Vedas on Duties of King.

October 3, 2017 | Author: subodh kumar | Category: N/A
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Duties of King-and people Rig Veda Book 4 Hymn 17 Duties of King 1.वं महाँ इ तु यं ह ा अनु ं मंहना म यत ौः | वं वृं शवसा जघ वान् सृजःिस धूँरिहना ज सानान || ऋ4.17.1 •राजा को िवा और ऐ&य' से यु) िव*तृत भूिम निदय. के जल सौर ऊजा' की सहायता और सब 3कावट. दु5 जन. को दूर करके उ ता से कम'वीर. के 8ोसाहन 9ारा उ:म समाज का िनमा'ण करना चािहये 2.तव तिवषो जिनमन् रे जत ौः रे जद भूिमिभयसा *व*य म योः | ऋघाय त सु वः पव'तास आद'न ध वािन सरय त आपः ||ऋ4.17.2 •हे राजन् आप परमे&र की तरह पपात याग के मनुBयो मे िपता के समान बता'व करो. परमे&र के भय से जैसे सDपूण' जगत Eवि*थत रहता है, वैसे आप के दGड के भय से सब लोग Eव*था बनाये रहI. समाज के शुJ को बािधत करके सKन. को आन द 8दान कीिजए. 3.िभनद िगिर शवसा वNिमBणO आिवBकृ Gवानः सहसान ओजः | वधीद वृं वNेण म दसानः सरOापो जवसा हतवृBणी ||ऋ4.17.3 •पारदिशत काय'शैली के बल से.QेR राजा अखGड आन द 8ाT करते हU 4.सुवीर*ते जिनता म यत ौिर *य कता' सवप*तमो भूत् | य W जजान *वयX सुवNमनपYयुतं सदसो न भूम || ऋ4.17.4 •जो लोग (राजा) सूय' के सदृश याय से (सम दृि5 से) 8काश.(पारदिशता) से 8िसZ (पहचाने) दु5. के िलए यायकारक और Qे5 पु3ष. के िलए आनंद दायक होते हU उन का यश सब लोक. मे होता है और वे अखGड आन द पाते हU.



5.य एक इ[यावयित 8 भूमा राजा कृ 5ीनाम पु3\त इ ः | सयमेनमनु िव&े मदि त राित देव*य गृणतो मघोनः ||ऋ 4.17.5 •सुरा^य से . उमी कम'वीर. के 8ोसाहन. 8िशण से अनेक उम. Eापार, इयािद 9ारा सव'Eापी समृिZ *थािपत होती है. 6.सा सोमा अभवO*य िव&े सा मदासो बृहतो मिदRाः | साभवो वसुपितव'सूनां दे िव&ा अिधथा इ कृ 5ीः ||ऋ4.17.6 •दािर ज य दु5ता के दमन का उपाय .हर Eि) को िकसी िश_प का 8िशण दे कर बेकारी से हटाना और ऐ&य' ज य दु5ता का उपाय कठोर रा^य Eव*था िनयम Eव*था से होता है. 7.वमध 8थमं जायमानो ऽमे िव&ा अिधथा इ कृ 5ीः | वं 8ित 8वत आशयानमिह वNेण मघवन िव वृbः || ऋ4.17.7 •जो पु3ष cdचय', िवा, िवनय, और सुशीलता से सब से उ:म हो. जो रा^य पालन और युZ करना जानता हो (वही यह समझता है के जैसे नीचे की ओर बहने वाला.जल सुषुिT को 8ाT होता है, (हर े मI अकम' यता िवनाश दिर ता और दु5ता को ज म देती है, हर समय उमशीलता कम'ठता ही उOित का साधन है,)उसी को राजा िनयु) कर के सुखी होवI (In Science they Entropy tends to infinity.) 8.साहणं दाधृिष तुfिम म महामपारं वृषभं सुवNम | ह ता यो वृं सिनतोत वाजं दाता मघािन मघवा सुराधाः || ऋ4.17.8 •पूण' िवा यु) सयवादी 8ग_भ बिल5 शg. अg के 8योग मे िनपुण और अभयदाता जो पु3ष हो, उसी को रा^य के िलए िनयु) करो.

9.अयं वृतbातयते समीचीय' आिजषु मघवा शृGव एकः | अयं वाजं भरित यं सनोय*य ि8यासः सhये *याम ||ऋ4.17.9 •हे राजन् जो सेनाJ को 8िशण िदलाता है. , िवशेष iप से युZ के समय योZाजन. का उसाह बढाता है, और जो जनता के सDमुख आप के दोष. को E) करते हU उन से िशा ले कर उन की िमता 8ाT करके सDपूण' कायk को िसZ करो. 10.अयं शृGवे अध जयOुत घनO अयम उत 8 कृ णुते युधा गाः | यदा सयं कृ णुते म युिम ो िव&ं दृlहं भयत एजद*मात || ऋ4.17.10 •िजस Eि) की उ:म कीित आप सुनI और जो लोग रा^यपालन, 8शासन, युZ मI चतुर ह. सयाचारी ह. उन को *वीकार कर के शांित से सKन. का अYछे 8कार से 8ोसाहन दे कर उपयोग करI और दु5 जन. को िनरं तर nGड देव. I िजस से समाज के लोग धमा'चार मI आ*था बनाए रख कर अधािमक कायk की ओर न भटकI . 11.सिम ो गा अजयत सं िहरGया सं अि&या मघवा यो ह पूवoः | एिभनृ'िभनृ'तमो अ*य शाकै रायो िवभ)ा सDभरश च व*वः || ऋ4.17.11 • जो राजा उ:म जन. का धन सDमन साम ी से और देश के आ तिरक दािरp अqान दुिभ और बाr शुJ पर िवजय 8ाT करने के िलए अपने िभO िभO िवभाग. का िनयंण करता है वही िव9ान राजा िवजय को 8ाT कर के आन द से रहता है.

12.िकयतत् ि*विद ो अsय एित मातुः िकयत िपतुि^नतुयt जजान | यो अ*य शुBमं मुuकै िरयित वातो न जूतः *तनयिvरwैः ||ऋ4.17.12 •िजस 8कार वायु गज'न शाली, धारावषo मेघ के सDपक' से शीतव गुण हण करता है, इसी 8कार राx को धोखा देने वाले राx शुJ से भी बuत कु छ सीखा जाता है, उसी 8कार माता iप 8जा और िपता iप िनवा'चन मGडल से भी बuत कु छ सीखना होता है. 13.िय तं वमिय तं कृ णोतीयित रे णुम मघवा समोहम् | िवभyनुरशिनमाँ इव ौ3त *तोतारं मघवा वसौ धात् ||ऋ4.17.13 •समाज मI दुिभ दैवीय आपदा के समय जैसे बाज पी अपने ल पर झपटता उसी 8कार कु शल रा^य Eव*था माता िपता की तरह 8युपकार करते हU. और इन देश घाित शुJ पर िवजय पाकर यश. 8ाT करते हU 14.अयं चzिमषणत सूय'*य येतशं रीरमत् ससृमाणम | आ कृ Bण W जुuराणो िजघित तवचो बु{े रजसो अ*य योनौ ||ऋ4.17.14 •सौरम डल से 8ेरणा ले कर िनरं तर 8ाT होने वाली ऊजा' से गितमान कलाकौशल से चzयं. के िनमा'ण कु िटल माग' से चलने वाल. 9ारा जल का न5 न करना लोकसमूह की वाणी को सDमान देना ऐ&य' और और सुख 8ाT कराते हU 15.अिस| यां यजमानो न होता || ऋ4.17.15 •िजस रा^य मI शयन करते uवे छु प कर पाप कम' करने वाले भी दGड से अभय नह} होते वहां 8जा अभय से रहती है.

16.गE त इ ं सhयाय िव8ा अ&ाय तो वृषणं वाजय तः | जनीय तो जिनदामाितोितमा Yयावयामो ऽवते न कोशम् || ऋ4.17.16 •ऐसे रा^य मI 8जा को इYछानुसार सुख के सब साधन उ:म गोव श, आवागमन के रथ वाहनािद साधन *व*थ सुखी पिरवार, qानवान िम ऐसे उपल~ध रहते हU जैसे उ:म qान और धन धा य की िनबा'िधत वषा' हो रही हो. 17.ाता नो बोिध ददृशान आिपरािभhयाता मिडता सोDयानाम | सखा िपतः िपतृणां कतमुलोकमुशते वयोधाः || ऋ4.17.17 •हे मनुBयो यह सब 8दान कराने वाला ,िम के तु_य, सब का सुखकता', सय का उपदेश देने वाला, उपO करने वाल. को उपO करने वाला, पालन करने वाल. का पालन करने वाला, सब कमk को देखने वाला, यायाधीश ,अ तया'मी जगदी&र है.उसी को जान कर उपासना करो. 18.सखीयतामिवता बोिध सखा गृणान इ *तुवते वयो धाः | वयं r ते चकृ मा सबाध आिभः शमीिभह'य त इ ||ऋ4.17.18 •हे राजन् यिद आप की इYछा रा^य मे सुख समृिZ के िव*तार की है, तो पपात को याग कर सब से िमता पूण' Eवहार किरये, QेR पु3ष. की रा करते uवे दु5. को दGड देते uवे अपने तेज की 8िसिZ कीिजये. 19.*तुत इ ो मघवा यZ वृा भूरीGयेको अ8तीिन हि त | अ*य ि8यो जिरता य*य शम'Oिकदवा वारय ते न मता'ः || ऋ4.17.19 •जो राजा देशिहत मI सय बोलने वाले उपदेशक और िव9ान. से रा^य की रा करते हU उनकी कभी पराजय नह} होती.

20.एवा न इ ो मघवा िवर€शी करत् सया चष'णीधृदनवा' | वं राजा जनुषां धेr*मे अिध Qवो मािहनं यKिरे || ऋ4.17.20 •जो पु3ष अ याय मे 8व:' मान राजा को रोकते हU वे सय का 8चार करने वाले होते uए बडे सुख को 8ाT होते हU. 21.नू 5ु त इ नू गृणान इषं जिरे नो3 न पीपेः | अकािर ते हिरवो cd नEं िधया *याम रयः सदासाः ||ऋ4.17.21 •हे मनुBयो जो राजा अित उ:म गुण कम' *वभाव और िवा से यु).और 8जा के िहत के िलए धन धा य को बढाता है, आप का कत'E है उस के अनुकूल Eवहार से राx के बल को बढाना.

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