Vaastu Shastra

April 22, 2017 | Author: Jyotirvid Khivraj Sharma | Category: N/A
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अध्माम १ सॊग्रहाध्माम भङ्गराचयण सर्वस्र् के ऻाता, सॊसाय के स्र्ाभी दे र्ता को ससय झुका कय प्रणाभ कयने के ऩश्चात ् भैं (भम) ने उनसे (र्ास्तुशास्र

से सम्फन्धधत) प्रश्न ककमा एर्ॊ उनसे ऩमावप्त शास्र-श्रर्ण कयने के ऩश्चात ् क्रभानुसाय उस शास्र का उऩदे श कयता हॉ ॥१॥

दे र्ों एर्ॊ भनष्ु मों के सबी प्रकाय के र्ास्तु आदद (बसभ, बर्न एर्ॊ उऩस्कय आदद) के वर्द्र्ान स्थऩतत भम भतु न सख ु प्रदान कयने र्ारे सबी प्रकाय के र्ास्तु के रऺण का उऩदे श कयते हैं ॥२॥ ग्रन्थविषमसच ू ना र्ास्तुकामव के प्रायन्म्बक चयण भें प्रथभत् ध्मातव्म तथ्म है - सर्वप्रथभ बसभ एर्ॊ बर्न के प्रकाय (बेदों) का ऻान,

तत्ऩश्चात ् बसभ के गण-दोषों की ऩयीऺा । उऩमक् ु त बसभ के चमन के ऩश्चात ् उसका भाऩन एर्ॊ इसके ऩश्चात ् बसभ भें शङ्कु की स्थाऩना की जाती है ॥३॥

इसके ऩश्चात बसभ भें र्ास्तुऩद का वर्धमास ककमा जाता है एर्ॊ ऩदोंभें र्ास्तुदेर्ों की स्थाऩना की जाती है ।

र्ास्तुदेर्ों का फसरकभव वर्धध (ककस दे र्ता की ऩजा ककस साभग्री से की जाम, मही फसरकभव वर्धध है ) से ऩजन ककमा जाता है । तत्ऩश्चात ् नगय आदद भें वर्वर्ध प्रकाय के ग्राभों का रऺण एर्ॊ उनके वर्धमास का र्णवन ककमा गमा है (इसी बाॉतत नगय-मोजना ऩय बी वर्चाय ककमा गमा है ) ॥४॥

इसके ऩश्चात इस ग्रधथ भें बरम्फ (गह ृ के तर), गबव-वर्धमास, उऩऩीठ एर्ॊ गह ृ के अधधष्ठान के रऺणों का र्णवन ककमा गमा है ॥५॥

बर्नतनभावण के प्रसङ्ग भें स्तम्बों का रऺण, गह ृ की प्रस्तायवर्धध, बर्न के वर्सबधन अङ्गों की आऩस भें सन्धधॊ एर्ॊ बर्न के सशखयों के रऺण र्र्णवत है ॥६॥

बर्न के तरों के प्रसङ्ग भें (वर्शेषत् भन्धदयतनभावण भें ) एक तर का वर्धान. दसये तर का वर्धान, तीसये तर का वर्धान एर्ॊ चतुथव तर आदद का वर्धान रऺणों-सदहत र्र्णवत है ॥७॥ दे र्ारम के सेर्कों के आर्ास, गोऩयु (भन्धदय का प्रर्ेश-भागव), भण्डऩाददकों का वर्धान एर्ॊ शाराओॊ का रऺण प्राप्त होता है ॥८॥

इसके ऩश्चात ् गह ृ -वर्धमास-भागव, गह ृ प्रर्ेश, याजगह ृ का वर्धान एर्ॊ द्र्ायवर्धमास का रऺण र्र्णवत है ॥९॥

तदनधतय मान के रऺण, शमन के रऺण, सरङ्ग (दे र्सरङ्ग) एर्ॊ उनके ऩीठ के रऺण एर्ॊ उसके अनुरूऩ उधचत कभव की वर्धध र्र्णवत है ॥१०॥

दे र्ारम के प्रसङ्ग भें भततव के रऺण, दे र्ता एर्ॊ दे वर्मों के प्रभाण का रऺण, नेरों के उधभीरन की वर्धध क्रभानुसाय सॊऺेऩ भें र्र्णवत है ॥११॥

ब्रह्भा आदद दे र्ों ने एर्ॊ श्रेष्ठ भुतनमों ने न्जस प्रकाय वर्द्र्ानों, दे र्ों एर्ॊ भनुष्मों के सम्ऩणव बर्नरऺणों का उऩदे श ककमा है , उसी प्रकाय भम ऋवष ने उन सबी रऺणों का र्णवन प्रस्तत ु ककमा है ॥१२॥ इतत भमभते र्ास्तुशास्रे सॊग्रहाध्माम् प्रथभ्

अध्माम २ िस्तप्र ु काय आर्ास एर्ॊ बसभ के प्रकाय - अभय (दे र्) एर्ॊ भयणधभाव (भनुष्म) जहाॉ जहाॉ तनर्ास कयते हैं, वर्द्र्ज्जन उसे र्स्तु (र्ास्तु) कहते है । उन तनर्ासस्थरों के बेदों का भैं (भम ऋवष) र्णवन कयता हॉ ॥१॥

र्ास्तु चाय प्रकाय के होते हैं - बसभ, प्रासाद (दे र्ारम), मान एर्ॊ शमन । इनभें प्रधान र्ास्तु बसभ ही हैं; क्मोंकक शेष इसी से उत्ऩधन होते हैं ॥२॥

प्रासाद आदद र्ास्तु प्रधान र्स्तु (र्ास्तु) बसभ से उत्ऩधन होने एर्ॊ उस ऩय आधश्रत होने के कायण र्ास्तु ही है । इसी कायण प्राचीन आचामो ने इधहें र्ास्तु की सॊऻा प्रदान की है ॥३॥

(चायो र्ास्तुओॊ भें प्रथभत् प्रधान र्ास्तु ऩय वर्चाय कयना चादहमे ।) बर्न-प्रासादादद के तनभावण के सरमे बसभ की ऩयीऺा र्णव (यॊ ग), गधध, यस (स्र्ाद), आकृतत, ददशा, शब्द एर्ॊ स्ऩशव के द्र्ाया कयनी चादहमे । ऩयीऺा के ऩश्चात ् ही तनभावणकामव की आर्श्मकता के अनुसाय बसभ-ग्रहण कयना चादहमे ॥४॥ बूमभबेद प्रत्मेक र्णव (ब्राह्भणादद) के अनस ु ाय बसभ का र्णवन ककमा गमा है । इस दृन्ष्ट से बसभ क्रभश् दो प्रकाय की होती है - गौण एर्ॊ अङ्गी (प्रधान) ॥५॥

बसभ अङ्गी होती है तथा ग्राभादद गौण के अधतगवत आते है । सबागाय, शारा, प्रऩा (प्माऊ), यङ्गभण्डऩ एर्ॊ भन्धदय (प्रासाद होते है ) ॥ ६॥ इधहें प्रासाद कहते है । सशबफका, धगन्लरका, यथ, स्मधदन एर्ॊ आनीक को मान कहा जाता है ॥७॥ शमन के अधतगवत भञ्च (ससॊहासन), भन्ञ्चसरका (ददर्ान), काष्ठ (काष्ठ के आसन), ऩञ्जय (वऩॊजया), परकासन (फेञ्च), ऩमवङ्क (ऩरॊग), फारऩमवङ्क आदद ग्रहण ककमे जाते हैं ॥८॥ बूप्राधान्म हे तु

उऩमक् ुव त चायो भें प्रथभ स्थान बसभ का कहा जाता हैं; क्मोंकक बतों(ऩञ्च भहाबतों) भें प्रथभ स्थान बसभ का है , सॊसाय की न्स्थतत इसी ऩय है एर्ॊ मही सफका आधाय है ॥९॥ िणाानरू ु ऩ बमू भ ब्राह्भणो के सरमे प्रशस्त बसभ के रऺण इस प्रकाय है - बसभ चौकोय (रम्फाई-चौड़ाई का प्रभाण सभ) हो, सभट्टी का यॊ ग श्र्ेत हो, उदम् ु फय के र्ऺ ृ से (गरय) मुक्त हो एर्ॊ बसभ का ढरान उत्तय ददशा की ओय यहे ॥१०॥ कषाम-भधुय स्र्ाद र्ारी बसभ (ब्राह्भणो के सरमे) सुखद कही गमी है । ऺबरमों के सरमे श्रेष्ठ बसभ के रऺण इस प्रकाय है - बसभ रम्फाई भें चौडाई से आठ बाग अधधक हो, सभट्टी का यॊ ग रार हो एर्ॊ स्र्ाद भें ततक्त हो ॥११॥ ऩर्व की ओय ढरान र्ारी, वर्स्तत ृ , ऩीऩर के र्ऺ ृ से सभन्धर्त बसभ ऩीऩर के र्ऺ ृ से सभन्धर्त बसभ याजाओॊ (ऺबरमों) के सरमे शुब एर्ॊ सर्वदा सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्त प्रदान कयने र्ारी कही गई है ॥१२॥

रम्फाई चौड़ाई से छ् बाग अधधक हो, सभट्टी का यॊ ग ऩीरा हो, उसका स्र्ाद खट्टा ओ, प्रऺ (ऩाकड़) के र्ऺ ृ से मुक्त हो एर्ॊ ऩर्व ददशा की ओय ढरान हो-ऐसी बसभ र्ैश्म र्णव के सरमे प्रशस्त कही गई है ॥१३॥

रम्फाई औय चौड़ाई से चाय बाग अधधक हो, ऩर्व ददशा की ओय ढरान हो, सभट्टी का यॊ ग कारा हो तथा स्र्ाद कड़र्ा हो, बसभ ऩय फयगद के र्ऺ ृ हो । इस प्रकाय की बसभ शद्र र्णव र्ारों को धन-धाधम एर्ॊ सभवृ ि प्रदान कयती है ॥१४॥

इस प्रकाय ब्राह्भणों, ऺबरमों, र्ैश्मों एर्ॊ शद्रों के अनुरूऩ र्ास्तु (बसभ) के प्रकाय का र्णवन ककमा गमा है । दे र्ों,

ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के सरमे सबी प्रकाय की बसभमाॉ प्रशस्त होती है (मह उऩमुक् व त भत का वर्कलऩ है ); ककधतु शेष दो (र्ैश्म एर्ॊ शद्र) को अऩने अनुरूऩ बसभ का ही चमन कयना चादहमे ॥१५॥

अध्माम ३ बूभीऩयीऺा दे र्ों एर्ॊ ब्राह्भणों के सरमे आमताकाय बसभ बे प्रशस्त होती है । बसभ की आकृतत अतनधदनीम होनी चादहमे एर्ॊ उसे दक्षऺण तथा ऩन्श्चभ भें ऊॉची होनी चादहमे ॥१॥

बसभ, अश्र्, गज, र्ेणु, र्ीणा, सभद्र ु (जर) एर्ॊ दधु दसु ब र्ाद्म की ध्र्तन से मक् ु त होनी चादहमे तथा ऩध ु नाग (नागकेसय), जातत-ऩुष्ऩ (चभेरी), कभर, धाधम एर्ॊ ऩाटर (गुराफ) के सुगधध से सुर्ाससत होनी चादहमे ॥२॥

ऩशु के गधध के सभान एर्ॊ न्जस ऩय सबी प्रकाय के फीज उगे, ऐसी बसभ श्रेष्ठ होती है । बसभ एक यॊ ग की, सघन, कोभर एर्ॊ छने भें सख ु प्रदान कयने र्ारी होनी चादहमे ॥३॥

न्जस सभतर बसभ ऩय फेर, नीभ, तनगण् ुव डी, वऩन्ण्डत, सप्तऩणवक (सप्तच्छद) एर्ॊ सहकाय (आभ)-मे छ् र्ऺ ृ हों एर्ॊ बसभ सभतर हो ॥४॥

यॊ ग भे श्र्ेत, रार, ऩीरी तथा कऩोत के सभान कारी, स्र्ाद भे ततक्त, कड़र्ी, कसैरी, नभकीन, खट्टी ॥५॥ एर्ॊ भीठी - इन छ् स्र्ादोर्ारी बसभ सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्तमाॉ प्रदान कयती है । यॊ ग, गधध एर्ॊ स्र्ाद से मुक्त न्जस बसभ ऩय जरधाया का प्रर्ाह दादहनी ओय हो, र्ह बसभ शुब होती है ॥६॥

(उत्खनन कयने ऩय) ऩुरुषाञ्जसर-प्रभाण (ऩुरुष-प्रभाण) ऩय जर ददखाई ऩड़े, भन को अच्छी रगने र्ारी, कऩारान्स्थवर्हीन, कॊकड़-ऩत्थययदहत, कीटों एर्ॊ दीभक की फाॉफी आदद से वर्हीन ॥७॥

हड्डी आदद से यदहत, तछद्रयदहत, भहीन फार र्ारी, जरे कोमरे, र्ऺ ृ के भर एर्ॊ ककसी प्रकाय के शर से यदहत ॥८॥ कीचड़. धर, कऩ, काष्ठ, सभट्टी के ढे रे एर्ॊ फार, याख आदद से तथा बसे से यदहत ॥९॥ ननन््म बभ ू ी बसभ सबी र्णव र्ारों के सरमे शुब एर्ॊ सभवृ ि प्रदान कयने र्ारी होती है । जो बसभ दधध, घत ृ , भधु (भद्म), तेर तथा यक्त गधध र्ारी होती है (र्ह बी प्रशस्त होती है ) ॥१०॥

शर्, भछरी एर्ॊ ऩऺी के गधध र्ारी बसभ अग्राह्म होती है । इसी प्रकाय सबागाय, चैत्म (ग्राभ का प्रधान र्ऺ ृ ) एर्ॊ याजबर्न के तनकट की बसभ गह ृ तनभावण की दृन्ष्ट से त्माज्ज होती है ॥११॥

दे र्ारम के तनकट, काॉटेदाय र्ऺ ृ से मुक्त, र्त्ृ ताकाय, बरकोण, वर्षभ (न्जसकी आकृतत असभान हो), र्ज्र के सदृश (कई कोण र्ारी) तथा कछुमे के सभान आकृतत (फीच भे ऊॉची) र्ारी बसभ गह ृ तनभावण के सरमे प्रशस्त नही होती है ॥१२॥

न्जस बसभ ऩय चाण्डार (शर् आदद से आजीवर्का चराने र्ारे) के गह ृ की छामा ऩड़े, चभव द्र्ाया आजीवर्का चराने

र्ारे के गह ृ के ऩास, एक, दो, तीन एर्ॊ चाय भागो ऩय (एक-दो याजभागो, ततयाहे एर्ॊ चौयाहे ) ऩय न्स्थत तथा जहाॉ ठीक भागव न हों, ऐसे स्थान ऩय गह ृ -तनभावण प्रशस्त नहीॊ होता ॥१३॥

भध्म भें दफी, ऩणर् (ढोर के सदृश एक र्ाद्म), ऩऺी, भुयज (एक र्ाद्म) तथा भछरी के सभान आकाय की बसभ तथा जहाॉ चायो कोनों ऩय भहार्ऺ ृ रगे हों, ऐसी बसभ गह ृ तनभावण के सरमे उधचत नहीॊ होती है ॥१४॥

ग्राभादद के प्रधान र्ऺ ृ , न्जसके चायो कोनों ऩय सार र्ऺ ृ हों, सऩव के आर्ास के तनकट एर्ॊ सभधश्रत जातत के र्ऺ ृ ों के फाग के ऩास की बसभ गह ृ -तनभावण केर सरमे अप्रशस्त होती है ॥१५॥

श्भशान के ऺेर, आश्रभस्थान, फधदय एर्ॊ सुअय के आकाय की, र्नसऩव के सदृश, कुठाय की आकृतत र्ारी, शऩव एर्ॊ ऊखर की आकृतत र्ारी बसभ त्माज्म होती है ॥१६॥

शङ्ख, शङ्कु, वर्डार, धगयधगट तथा तछऩकरी की आकृतत र्ारी, ऊसय एर्ॊ कीड़े रगी बसभ गह ृ तनभावण के सरमे त्माज्म होती है ॥१७॥

इसी प्रकाय अधम आकृतत र्ारी बसभ, फहुत से प्रर्ेशभागव र्ारी एर्ॊ भागव से वर्ि बसभ वर्द्र्ानों द्र्ाया तनन्धदत है ॥१८॥

मदद अऻानतार्श ऐसी बसभ ऩय गह ृ फन बी जाम तो इससे भहान दोष उत्ऩधन होता है । अत् सबी प्रकाय से ऐसी बसभ का ऩरयत्माग कयना चादहमे ॥१९॥ सिोत्कृष्ट बभ ू ी श्र्ेत, यक्त, ऩीत एर्ॊ कृष्ण र्णव र्ारी, अश्र् एर्ॊ गज के तननाद से मुक्त, भधुय आदद छ् स्र्ादो र्ारी, एक र्णव की, गो-धाधम एर्ॊ कभर के गधध से मुक्त, ऩत्थय एर्ॊ बसे से यदहत, दक्षऺण एर्ॊ ऩन्श्चभ भे ऊॉची, ऩर्व एर्ॊ उत्तय भे ढरान र्ारी, श्रेष्ठ सयु सब के सदृश, शर एर्ॊ अन्स्थ से यदहत, कणद (धर, फार आदद) यदहत बसभ सबी के सरमे अनुकर होती है , ऐसा सबी श्रेष्ठ भुतनमों का वर्चाय है ॥२०॥

अध्माम ४ बूभीऩरयग्रह बूभीग्रहण कत्ताव्म तनभावण-हे तु बुसभ का ग्रहण - आकाय, यॊ ग एर्ॊ शब्द आदद गण ु ों से मुक्त बसभ का चमन कयने के ऩश्चात ् फुविभान स्थऩतत को दे र्फसर (र्ास्तुदेर्ों की ऩजा) कयनी चादहमे । इसके ऩश्चात ् ॥१॥

र्ह स्र्न्स्तर्ाचक घोष एर्ॊ जम आदद भॊगरकायी शब्दों के साथ इस प्रकाय कहे -याऺसों के साथ दे र्ता एर्ॊ बत (भानर्ेतय प्राणी) दय हो जामॉ ॥२॥ र्े इस बसभ से अधमर स्थान ऩय जाकय अऩना तनर्ास फनामें । हभ इस बसभ को (गह ृ तनभावण-हे त)ु ग्रहण कय यहे हैं । इस भधर का उच्चायण कयते हुमे ग्रहण की गी बसभ ऩय (अधोये र्खत कामव कयना चादहमे) ॥३॥

उस बसभ भें हर चरर्ा कय गोफयसभधश्रत सबी प्रकाय के फीजों को उसभें फो दे ना चादहमे । उन फीजों को उगा हुआ एर्ॊ उनभें ऩके हुमे पर दे ख कय - ॥४॥ र्ष ृ ब एर्ॊ फछड़ो के साथ गामों को र्हाॉ फसा दे ना चादहमे; क्मोंकक गामों के र्हाॉ चरने एर्ॊ सॉघने से र्ह बसभ ऩवर्र हो जाती है ॥५॥

प्रसधन र्ष ृ ों के नाद से एर्ॊ फछड़ों के भुख से धगये हुमे पेन से बसभ ऩरयष्कृत हो जाती है एर्ॊ उसके सबी दोष धुर जाते है ॥६॥ गोभर से सीॊची गई तथा गोफय से रीऩी हुई, शयीय यगड़ने से धगये हुमे योभों से मुक्त तथा गामों के ऩैयों द्र्ाया ककमे गमे खेर से बसभ (शुि हो जातत है ।) ॥७॥

गाम के गधध से मक् ु त, इसके ऩश्चात ् ऩण् ु मजर से ऩन ु ् ऩवर्र की गई बसभ ऩय (तनभावणकामव के सरमे) शुब ततधथ से मुक्त नऺर का वर्चाय कयना चादहमे ॥८॥

वर्द्र्ानों द्र्ाया सवु र्चारयत शुब कयण, भह ु तव एर्ॊ सध ु दय रग्न भें अऺत एर्ॊ श्र्ेत ऩष्ु ऩों से र्ास्तद ु े र्ों का ऩजन कयना चादहमे ॥९॥

ब्राह्भणों द्र्ाया मथाशन्क्त स्र्न्स्तर्ाचन कयाना चादहमे । इसके ऩश्चात ् र्ास्तुऺेर के भध्म भें ऩधृ थर्ीतर की खुदाई कयनी चादहमे ॥१०॥

र्ास्तु के भध्म भेख एक हाथ गहया, चौकोय, न्जसकी ददशामें ठीक हों, दोषयदहत गड्ढा खोदना चादहमे । मह गड्ढा सॉकया नहीॊ होना चादहमे तथा न ही फहुत गहया होना चादहमे ॥११॥

इसके ऩश्चात ् मथोधचत वर्धध से ऩजा कयके तथा उस गड्ढे की र्धदना कयने के ऩश्चात ् चधदन एर्ॊ अऺतसभधश्रत तथा सबी यत्नों से मुक्त जर को- ॥१२॥ ऩमसा तु तत् प्राऻो तनशादौ ऩरयऩयमेत ् । फुविभान ् भनुष्म को याबर के प्रायम्ब भें गड्ढे भें डारते हुमे उसे जर से ऩणव कयना चादहमे । इसके ऩश्चात ् ऩवर्र होकय सार्धान भन से गड्ढे के ऩास बसभ ऩय कुश बफछा कय ऩर्व ददशा की ओय भुख कयके फैठ जाना चादहमे ॥१३॥

उऩर्ास कयते हुमे इस भधर का जऩ कयना चादहमे । भधर इस प्रकाय है - हे ऩधृ थर्ी, इस बसभ ऩय उत्तभ सभवृ ि स्थावऩत कय इसे धन-धाधम से र्वृ ि प्रदान कयो । तभ ु कलमाणकायी फनो, तुम्हें प्रणाभ ॥१४-१५॥ उत्तभाददबूभीरऺण फवु िभान स्थऩतत को ददन होने ऩय प्रथभत् उस गड्ढे की ऩयीऺा कयनी चादहमे । इसभें जर फचा हुआ दे ख कय सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्तमों के सरमे उस बसभ को तनभावणहे तु ग्रहण कयना चादहमे ॥१६॥ बसभ मदद गीरी यहे तो उस ऩय तनसभवत गह ृ भें वर्नाश होता है । मदद शुष्क यहे तो उस गह ृ भें धन-धान की हातन

होती है । मदद उस गड्ढे के खोदने से तनकरी सभट्टी से उसे बया जाम एर्ॊ ऩयु ी सभट्टी उसभें सभा जाम तो बसभ को भध्मभ श्रेणी का सभझना चादहमे ॥१७॥

मदद सभट्टी से गड्ढा बय जाम एर्ॊ सभट्टी फच बी जाम अथावत ् सभट्टी अधधक हो तो बसभ उत्तभ, मदद गड्ढा बी न बये एर्ॊ सभट्टी सभाप्त हो जाम अथावत ् सभट्टी गड्ढा बयने भें कभ ऩड़े तो बसभ हीन कोदट की होती है । उस गड्ढे के भध्मभें मदद जर दादहनी ओय घभ कय फहे तो इस प्रकाय की सुयसब की भततव के सदृश र्ारी बसभ सर्वसम्ऩन्त्तकायक होती है ॥१८॥

इसे तनभावण-हे तु ग्रहण कयना चादहमे । इस प्रकाय ऩर्ोक्त वर्धध से वर्वर्ध प्रकाय की बसभमों का ऻान कय व्मन्क्त

को ग्राभ, अग्रहाय, ऩुय, ऩतन, खर्वट, स्थानीम, खेट, तनगभ एर्ॊ अधम की स्थाऩना के सरमे बसभ का ग्रहण कयना चादहमे ॥१९॥

अध्माम ५ भानोऩकयण बसभ-भाऩन के उऩकयण - सबी प्रकाय के र्ास्तुओॊ (बसभ एर्ॊ बर्न) का तनधावयण भान मा प्रभाण से ही ककमा जाता है ; अत् भैं (भम ऋवष) सॊऺेऩ भें भाऩन के उऩकयणों के वर्षम भें फतराता हॉ ॥१॥

(भाऩन की प्रथभ इकाई) अङ्गुर-भाऩ ऩयभाणुओॊ के क्रभश् र्वृ ि से होती है । ऩयभाणुओॊका दशवन मोगी-जनों को होता है , ऐसा शास्रों भे कहा गमा है ॥२॥

आठ ऩयभाणुओॊ के सभरने से एक 'यथये णु' (धर का कण), आठ यथये णुओॊ के सभरने से एक फाराग्र (फार की नोक), आठ फाराग्र से एक 'सरऺा', आठ सरऺा से एक 'मका' एर्ॊ आठ मका से एक 'मर्' रूऩी भाऩ फनता है ॥३॥

उऩमुक् व त भाऩ क्रभश् आठ गुना फढ़ते हुमे 'मर्' फनते हैं । मर् का आठ गुना 'अङ्गुर' भाऩ होता है । फायह अङ्गुर भाऩ को 'वर्तन्स्त' (बफत्ता) कहते है ॥४॥ दो वर्तन्स्त का एक 'हस्त' होता है , न्जसे 'ककष्कु' बी कहा गमा है । ऩच्चीस हाथ का एक 'प्राजाऩत्म' होता है ॥५॥ छब्फीस हाथ की एक 'धनसु भवष्ट' तथा सत्ताईस हाथ से एक 'धनग्र ु वह' भाऩ फनता है । मान (र्ाहन) तथा शमन (आसन एर्ॊ शय्मा) भें ककष्कु भाऩ तथा वर्भान भें प्राजाऩत्म भाऩ का प्रमोग होता है ॥६॥

र्ास्ततु नभावण भें 'धनभ व ' प्रभाण का प्रमोग होता है । अथर्ा सबी ु न्ुव ष्ट' भाऩ का तथा ग्राभादद के भाऩन भें 'धनग्र ु ह प्रकाय के र्ास्त-ु कभव भें 'ककष्कु' प्रभाण का प्रमोग ककमा जा सकता है ॥७॥

हस्त भाऩ को 'यन्त्न', 'अयन्त्न, 'बुज', फाहु' एर्ॊ 'कय' कहते हैं । चाय हस्त से 'धनुदवण्ड' भाऩ फनता है । इसी को 'मन्ष्ट' बी कहते है ॥८॥

आठ दण्ड (मन्ष्ट) को 'यज्ज'ु कहा जाता है । दण्डभाऩ से ही ग्राभ, ऩत्तन, नगय, तनगभ, खेट एर्ॊ र्ेश्भ (बर्न) आदद का भाऩन कयना चादहमे ॥९॥

गह ृ ादद का भाऩ हस्त से, मान एर्ॊ शमन का भाऩन वर्तन्स्त (बफत्ता) से एर्ॊ छोटी र्स्तुओॊ का भाऩन अङ्गुर से कयना चादहमे, ऐसा वर्द्र्ानों का भत है ॥१०॥

'मर्' भाऩ से अत्मधत छोटी र्स्तुओॊ का भाऩन ककमा जाता है । मह भध्मभा अङ्गुसर भें फीच र्ारे ऩर्व के फयाफय )अङ्गुसर के भध्म के जोड़ के ऊऩय फनी मर् की आकृतत ) होता है ॥११॥

इस भाऩ को 'भाराङ्गर ु ' कहते है । इसका प्रमोग मऻ भें ककमा जाता है एर्ॊ मह भाऩ मऻकताव की अङ्गसु र से सरमा जाता है । इसे 'दे हरब्धाङ्गुर' बी कहते है ॥१२॥

इस प्रकाय भाऩ का ऻान कयने के ऩश्चात ् स्थऩतत को दृढ़ताऩर्वक (सार्धानी ऩर्वक) भाऩनकामव कयना चादहमे । मिल्पऩरऺण सॊसाय भें अऩने-अऩने कामों के अनुसाय चाय प्रकाय के सशलऩी होते हैं ॥१३॥ चाय प्रकाय के सशलऩी - स्थवऩती, सरग्राही, र्धवकक (फढ़ई) एर्ॊ तऺक (छीरने, काटने एर्ॊ आकृततमाॉ उकेयने र्ारे) होते हैं । मे सबी (स्थाऩत्मादद कभव के सरमे) प्रससि स्थान र्ारे , सङ्कीणव जातत से उत्ऩधन एर्ॊ अऩने कामो के सरमे असबष्ट गुणों से मुक्त होते हैं ॥१४॥

'स्थऩतत' सॊऻक सशलऩी को बर्न की स्थाऩना भें मोग्म एर्ॊ (गह ृ -तनभावण के सहामक) अधम शास्रों का बी ऻाता

होना चादहमे । शायीरयक दृन्ष्ट से साभाधम से न कभ अङ्गो र्ारा तथा न ही अधधक अङ्गो र्ारा (अथावत ् सम्ऩणव रूऩ से स्र्स्थ) धासभवक र्न्ृ त्त र्ारा एर्ॊ दमार्ान होना चादहमे ॥१५॥

स्थऩतत को द्र्ेषयदहत, ईष्मावयदहत, सार्धान आसबजात्म गुणों से मुक्त, गर्णत तथा ऩुयाणों का ऻाता, सत्मर्क्ता एर्ॊ इन्धद्रमो को र्श भे यखने र्ारा होना चादहमे ॥१६॥

स्थऩतत को धचरकभव (गह ृ के नक्शा आदद फनाने) भे तनऩुण, सबी दे शों का ऻाता (स्थान के बगोर का ऻाता), (अऩने सहामको को) अधन दे ने र्ारा, अरोबी, योगयदहत, आरस्म एर्ॊ बर न कयने र्ारा तथा सात प्रकाय के व्मसनों

(र्ाधचक आघात ऩहुॉचाना, सम्ऩन्त्त के सरमे दहॊसा का भागव अऩनाना, शायीरयक चोट ऩहुॉचाना, सशकाय, जुआ, स्री एर्ॊ सुयाऩान -अथवशास्र - ८३.२३.३२) से यदहत होना चादहमे ॥१७॥ सूत्रग्राही 'सरग्राही' स्थऩतत का ऩुर मा सशष्म होता है । उसे मशस्र्ी, दृढ़ भानससकता से मुक्त एर्ॊ र्ास्तु-वर्द्मा भे ऩायॊ गत होना चादहमे ॥१८॥

सरग्राही को स्थऩतत की आऻानस ु ाय कामव कयने र्ारा एर्ॊ (स्थाऩत्मसम्फधधी) सबी कामों का ऻाता होना चादहमे । उसे सर एर्ॊ दण्ड के प्रमोग का ऻाता एर्ॊ वर्वर्ध प्रकाय के भाऩन भान-उधभान (रम्फाई, चौड़ाई, ऊॉचाई एर्ॊ उनके उधचत अनुऩात) का ऻाता होना चादहमे ॥१९॥ ऩत्थय, काष्ठ एर्ॊ ईट आदद को भोटा एर्ॊ ऩतरा काटने के कायण र्ह सशलऩी 'तऺक' कहराता है । मह सरग्राही के इच्छानुसाय कामव कयता है ॥२०॥ र्धवकक भन्ृ त्तका के कभव (गह ु र्ान, अऩने कामव भे सभथव, अऩने ऺेर से सम्फि सबी कामो को ृ तनभावण) का ऻाता, गण स्र्तधरताऩर्वक कयनेर्ारा, तऺक द्र्ाया काटे छाॉटे गमे सबी टुकड़ों को मुन्क्तऩर्वक जोड़ सकता है ॥२१॥

सर्वदा सरग्राही के अनस ु ाय कामव कयने र्ारा सशलऩी 'र्धवकक' कहा जाता है । इस प्रकाय मे सबी सशलऩी कामव कयने र्ारे, अऩने कामों भें कुशर, शुि, फरर्ान, दमार्ान होते है ॥२२॥

मे सबी सशलऩी अऩने गरु ु (प्रधान स्थऩतत) का सम्भान कयने र्ारे, सदा प्रसधन यहने र्ारे एर्ॊ सदै र् स्थऩतत की आऻा का अनुसयण कयने र्ारे होते है । उनके सरमे स्थऩतत ही वर्श्र्कभाव भाना जाता है ॥२३॥

उऩमुक् व त (सरग्राही, तऺक एर्ॊ र्धवकक) सशन्लऩमों के वर्ना स्थऩतत (बर्नतनभावणसम्फधधी) सबी कामव नही कय सकता है । इससरमे स्थऩतत आदद चायो सशन्लऩमों का सदा सत्काय कयना चादहमे ॥२४॥

इस सॊसाय भें इन स्थऩतत आदद को ग्रहण ककमे वर्ना कोई बी (तनभावणसम्फधधी) सुधदय कामव सम्बर् नही है । अत् तीनों सशन्लऩमों को उनके गरु ु (प्रहान स्थऩतत) के साथ ग्रहण कयना चादहमे । इसी से भनष्ु म सॊसाय (शीत, धऩ, र्षाव एर्ॊ गह ृ के अबार् भें होने र्ारे कष्टों) से भुन्क्त प्राप्त कयते है ॥२५॥

अध्माम ६ ददक्ऩरयच्छे द ददशा-तनधावयण - भैं (भम) ददशा के तनधावयण के वर्षम भें कहता हॉ । मह कामव उत्तयामण भास भें शुब शुक्र ऩऺ भें समोदम होने ऩय शङ्कु द्र्ाया कयना चादहमे ॥१॥

शुब ऩऺ एर्ॊ नऺर भें समवभण्डर के तनभवर यहने ऩय ग्रहण ककमे गमे र्ास्तु के भध्म की बसभ को सभतर कयना चादहमे ॥२॥ िङ्कुरऺण न्जस स्थान ऩय शङ्कुस्थाऩन कयना हो, उस स्थान से चायो ददशाओॊ भें दण्डप्रभाण से चौकोय ककमे गमे बखण्ड को जर द्र्ाया सभतर कयना चादहमे ॥

उस सभतर बसभ के भध्म भें शङ्कुस्थाऩन कयना चादहमे । अफ शङ्कु के प्रभाण का र्णवन ककमा जा यहा है ॥३॥ शङ्कु का रऺण इस प्रकाय है - मह एक हाथ रम्फा हो, शीषव ऩय इसका भाऩ एक अङ्गुर हो तथा भर बाग भें इसका व्मास ऩाॉच अङ्गुर हो । इसकी गोराई सुधदय हो, ककसी प्रकाय का इसभें व्रण न हो अथावत ् इसका काष्ठ कटा-पटा न हो एर्ॊ श्रेष्ठ हो ॥४॥

(उऩमुक् व त भाऩ उत्तभ शङ्कुभान का है ।) भध्मभ शङ्कु अट्ठायह अङ्गुर रम्फा एर्ॊ कतनष्ठ शङ्कु फायह मा नौ अङ्गुर रम्फा होता है । रम्फाई के सभान ही इसका भर एर्ॊ अग्र बाग भें बी भाऩ यखना चादहमे ॥५॥

दधत (भौरससयी), चधदन, खैय मा कत्था, कदय, शभी, शाक (सागौन) एर्ॊ ततधदक ु (तें द) के र्ऺ ृ शङ्कु-र्ऺ ृ कहराते है अथावत ् इनके काष्ठ से शङ्कुतनभावण कयना चादहमे ॥६॥

इनके अततरयक्त कठोय काष्ठ र्ारे र्ऺ ृ ों से बी शङ्कु तनभावण ककमा जा सकता है । शङ्कु का अग्र बाग धचरर्त्ृ तक (दोषहीन गोराई) होना चादहमे । शङ्कु तनभावण के ऩश्चात ् प्रात्कार बतर के ऩर्व तनधावरयत स्थर ऩय उसे स्थावऩत कयना चादहमे ॥७॥

शङ्कु प्रभाण का दग ु ुना भाऩ रेकय शङ्कु को केधद्र फना कय र्त्ृ त खीॊचना चादहमे । ददन के ऩर्ावह्ण एर्ॊ अऩयाह्ण भें उस भण्डराकृतत ऩय शङ्कु की छामा ऩड़ती है ॥८॥

उऩमक् ुव त छामामें न्जन-न्जन बफधदओ ु ॊ ऩय ऩड़ती है , उन बफधदओ ु ॊ को सर से सभराना चादहमे । इससे ऩर्व एर्ॊ ऩन्श्चभ

ददशा का ऻान होता है (ऩर्ावह्ण भे जहाॉ छामा ऩड़ती है , र्ह ऩन्श्चभ ददशा एर्ॊ अऩयाह्ण भें जहाॉ छामा ऩड़ती है , र्ह ऩर्व ददशा होती है )। ऩर्ोक्त बफधदओ ु ॊ को केधद्र फनाकय भछरी की आकृतत फनानी चादहमे ॥९॥ दो सरों को बफधदओ ु ॊ के केधद्र भें इस प्रकाय यखना चादहमे कक र्े दक्षऺण से उत्तय तक जामॉ । इसी प्रकाय दसये सर को उत्तय से दक्षऺण तक रे जाना चादहमे ।

कहने का तात्ऩमव मह है कक एक बफधद ु को केधद्र फनाकय चाऩ की आकृतत उत्तय से दक्षऺण तक फनानी चादहमे ।

ऩुन् दसये बफधद ु को केधद्र फनाकय दसयी चाऩाकृतत फनानी चादहमे । भण्डर के दो छोयों ऩय मे चाऩाकृततमाॉ एक-दसये को काटती है । इस प्रकाय भत्स्म की आकृतत फनती है ॥१०॥

इन सरों से फुविभान स्थऩतत उत्तय एर्ॊ दक्षऺण ददशा का तनधावयण कयते है । (ऩर्व के फाॉमीॊ औय उत्तय ददशा एर्ॊ दादहनी ओय दक्षऺण ददशा होती है । इस प्रकाय बसभ भें ददशा का ऻान होता है )। अिुद्ध छामा जफ समव कधमा मा र्ष ृ ब यासश भें होता है , उस सभम समव की अऩच्छामा नही ऩड़ती है (अथावत ् इस न्स्थतत भें शङ्कु की छामा सीधे ऩर्व औय ऩन्श्चभ ददशा ऩय ऩड़ती है ) ॥११॥ वििेष समव की छामा फायहो भहीनों भें एक सभान नहीॊ होती है । अत् समव के नऺरों के सङ्क्रभण के अनुसाय शुि रूऩ से ऩर्व एर्ॊ ऩन्श्चभ का तनधावयण ककस प्रकाय ककमा जाम एर्ॊ अऩच्छामा से फचा जाम, इसका उऩाम आगे के श्रोकों भें र्र्णवत है । भेष, सभथुन, ससॊह एर्ॊ तुरा यासश भें समव के यहने ऩय जहाॉ शङ्कु की छामा ऩड़े, उससे दो अङ्गुर ऩीछे हट कय ऩर्व

एर्ॊ ऩन्श्चभ का तनधावयण कयना चादहमे । न्जस सभम समव ककव, र्न्ृ श्चक एर्ॊ भीन यासश ऩय हो, उस सभम अङ्गुर हट कय ददशातनधावयण कयना चादहमे ॥१२॥

धनु एर्ॊ कुम्ब ऩय समव के यहने ऩय छ् अङ्गुर एर्ॊ भकय ऩय आठ अङ्गुर हट कय शङ्कु की छामा के दादहने एर्ॊ फाॉमे सुर का प्रमोग कयना चादहमे ॥१३॥ यज्जुरऺण

भाऩ-सर का रऺण - यज्जु अथर्ा सर को आठ दण्ड रम्फा होना चादहमे । इसका तनभावण तार, केतक के ये शे, कऩास, कुश अथर्ा धमग्रोध (फयगद) के छार से होना चादहमे ॥१४॥

दे र्ता, ब्राह्भण एर्ॊ याजा (ऺबरम) के र्ास्तु-भाऩन के सरमे यज्जु को अङ्गर ु के अग्र फाग के फयाफय भोटा, तीन फन्त्तमों से तनसभवत एर्ॊ वर्ना गाॉठ का फनाना चादहमे । र्ैश्म एर्ॊ शद्र के सरमे यज्जु को फन्त्तमों से फॉटा होना चादहमे ॥१५॥

खातिङ्कुरऺण गड्ढे भें गाड़े जाने र्ारे शङ्कु का रऺण - गड्ढे भें गाड़े जाने र्ारे शङ्कु न्जन र्ऺ ृ ों के काष्ठ से फनते है , उनके नाभ है - खददय, खाददय, भहा, ऺीरयणी तथा अधम कठोय काष्ठ र्ारे र्ऺ ृ ॥१६॥

इसकी रम्फाई ग्मायह अङ्गुर से रेकय इक्कीस अङ्गुर तक होनी चादहमे एर्ॊ व्मास एक भुट्ठी होना चादहए । इसका भर सई की बाॉतत नुकीरा होना चादहमे ॥१७॥

स्थऩतत ऩर्व मा उत्तय की ओय भुख कयके स्थाऩक की आऻा से फाॉमें हाथ भें खातशङ्कु रेकय एर्ॊ दादहने हाथ भें हथौड़ा रेकय क्रभश् आठ फाय शङ्कु ऩय प्रहाय कये ॥१८॥ सूत्रविन्मास सर को बसभ ऩय पैराना - चॉकक इस सर से बर्न-तनभावणसम्फधधी कामव भें प्रभाण मा भाऩ तनन्श्चत ककमा जाता है ; अत् इसे 'प्रभाणसर' कहा जाता है ॥१९॥

प्रभाणसर के कामवऺेर के फाहय के चायो ओय के ऺेर का न्जससे भाऩन ककमा जाता है , उस सर को 'ऩमवधत सर' कहते है । न्जस सर से तनन्श्चत स्थान का तनधावयण, दे र्ताओभ के ऩद का तनधावयन तथा र्ास्तुऩद का वर्धमास ककमा जाता है , उसे 'वर्धमाससर' कहते है ॥२०॥

गह ृ के दक्षऺण बाग भें गह ृ का गबव होता है , अत् उसी के ऩास से सरऩात प्रायम्ब कयना चादहमे ॥२१॥ उस सर से शङ्कु का भान रेते हुमे शङ्कु को बसभ भें गाड़ना चादहमे । इसी से प्रर्ेशभागव (अथर्ा गह ृ से फाहय तनकरने का भागव) मा सबन्त्त-तनभावण के सरमे भाऩन कयना चादहमे ॥२२॥ नगय, ग्राभ एर्ॊ दग ु व के भाऩन के सरमे सर्वप्रथभ सरऩात र्ामव्म कोण (उत्तय-ऩन्श्चभ) भें कयना चादहमे । इसके ऩश्चात ् दक्षऺण से उत्तय तथा ऩर्व से ऩन्श्चभ सरऩात कयना चादहमे । ॥२३॥

इसके ऩश्चात ् ऩन्श्चभ से ऩर्व एर्ॊ उत्तय से दक्षऺण तक सरप्रऩात कयना चादहमे । न्जस सर से ब्रह्भा के ऩद से प्रायम्ब कय ऩर्व ददशा तक भाऩन ककमा जाता है , उसे 'बरसर' कहते है ॥२४॥

इसके ऩश्चात ् ब्रह्भस्थान से ऩन्श्चभ की ओय जाने र्ारे सर को 'धन' दक्षऺण की ओय जाने र्ारे सर को 'धाधम' एर्ॊ उत्तय की ओय जाने र्ारे सर को 'सुख' कहते है ॥२५॥

न्जस सर से सख ु प्रभाण प्राप्त होता है , उसका भाऩ महाॉ र्र्णवत है । फर के सरमे केधद्र के चायो ओय भण्डऩ के व्मास से एक हाथ, दो हाथ मा तीन हाथ की दयी रेते हुमे उत्खनन कयना चादहमे ॥२६॥ ऩन ु यऩच्छामा ऩुन् दोषमुक्त छामा - ऩर्व एर्ॊ ऩन्श्चभ के तनधावयण के सरमे प्रत्मेक भाह प्रत्मेक दस ददन के कार-खण्ड भे

सॊख्माओॊ का सॊमोजन इस प्रकाय कयना चादहमे - समव का सङ्क्रभण भेष यासश भे होने ऩय दो, एक, शधम; र्ष ृ भे होने ऩय शधम, एक, दो; सभथन ु भे होने ऩय दो, तीन, चाय; ककव भे होने ऩय चाय, तीन, दो; ससॊह भे होने ऩय दो, एक, शधम;

कधमा भे होने ऩय शधम, एक, दो; तुरा भे होने ऩय दो, तीन, चाय; र्न्ृ श्चक भे होने ऩय चाय, ऩाॉच, छ्; धनु भे होने ऩय

छ;, सात, आठ; भकय भे होने ऩय आठ, सात, छ्; कुम्ब भें होने ऩय छ;, ऩाॉच, चाय तथा भीन भें होने ऩय चाय, तीन एर्ॊ दो ॥२७॥

यासश के साथ समव की गतत का वर्चाय एर्ॊ मुन्क्तऩर्वक सभीऺा कयते हुमे ऩर्ोक्त अङ्गुसरमों को छोड़ दे ना चादहमे । इसके अनुसाय सीभा एर्ॊ ददशा आदद का शङ्कु द्र्ाया ग्रहण कयते हुमे स्थान को तैमाय कयना चादहए ॥२८॥

अध्माम ७ िास्तुऩद-विन्मास भैं (भम ऋवष) सबी र्ास्तभ ु ण्डरों के ऩद ऩद-वर्धमास का र्णवन कयता हॉ । फत्तीस प्रकाय के ऩदवर्धमास होते है । उनके नाभ है - सकर, ऩेचक, ऩीठ, भहाऩीठ, उऩऩीठ, उग्रऩीठ, स्थन्ण्डरचन्ण्डत, भण्डक, ऩयभशातमक, आसन, स्थानीम, दे शीम, उबमचन्ण्डत, बद्रभाहसन, ऩद्मगबव, बरमत ु , व्रतबोग, कणावष्टक, गर्णत,

समववर्शारक, सस ु ॊदहत, सप्र ु तीकाधत, वर्शार, वर्प्रगबव, वर्श्र्ेश, वर्ऩर ु बोग, वर्प्रततकाधत, वर्शाराऺ, वर्प्रबन्क्तक, वर्श्र्ेसाय, ईश्र्यकाधत एर्ॊ इधद्रकाधत ॥१-७॥

'सकर' ऩदवर्धमास एक ऩद से फनता है । 'ऩेचक' चाय ऩद, 'ऩीठ' नौ ऩद एर्ॊ 'भहाऩीठ' सोरह ऩद से फनते है ॥८॥ 'उऩऩीठ' का ऩदवर्धमास ऩच्चीस ऩदों से, 'उग्रऩीठ' छत्तीस ऩदों से, 'स्थन्ण्डर' उनचास ऩदों से एर्ॊ 'भण्डक' चौसठ ऩदों से होता है ॥९॥

'ऩयभशातमक' इक्मासी ऩदों से एर्ॊ 'आसन' सौ ऩदों से फनता है । एक सौ इक्कीस ऩदों से - ॥१०॥ 'स्थानीम' ऩदो की यचना होती है । 'दे शीम' ऩदवर्धमास एक सौ चौर्ारीस ऩदो से तथा उबमचन्ण्डत एक सौ उनहत्तय ऩदों से होता है ॥११॥ 'बद्र-भहासन' भे एक सौ तछमानफे ऩद होते है तथा 'ऩद्मगबव' भे दो सौ ऩच्चीस ऩद होते है ॥१२॥ 'बरमुत' भे दो सौ छप्ऩन ऩद होते है एर्ॊ 'व्रतबोग' भे दो सौ नर्ासी ऩद होते है ॥१३॥

'कणावष्टक' भे तीन सौ चोफीस ऩद तथा 'गर्णत' र्ास्त-ु ऩद भे तीन सौ एकसठ ऩद होते है ॥१४॥ 'समववर्शार' भे चाय सौ ऩद कहे गमे है एर्ॊ 'सुसॊदहत' ऩद-वर्धमास भें चाय सौ एकतारीस ऩद होते है ॥१५॥ 'सुप्रतीकाधत' भे चाय सौ चौयासी ऩद तथा 'वर्शार' भे ऩाॉच सौ उधतीस ऩद कहे गमे है ॥१६॥ 'वर्प्रगबव' ऩदवर्धमास ऩाॉच सौ तछहत्तय तथा 'वर्श्र्ेश' छ् सौ ऩच्चीस ऩदों से तनसभवत होते है ॥१७॥ 'वर्ऩुरबोग' भे छ् सौ तछहत्तय एर्ॊ 'वर्प्रकाधत' भे सात सौ उधतीस ऩद होते है ॥१८॥ 'वर्शाराऺ' भे सात सौ चौयासी ऩद तथा 'वर्प्रबन्क्तक' भे आठ सौ इकतारीस ऩद होते है ॥१९॥ 'वर्श्र्ेशसाय' भे नौ सौ ऩद एर्ॊ 'ईश्र्यकाधत' भे नौ सौ इकसठ ऩद होते है ॥२०॥ 'इधद्रकाधत' ऩदवर्धमास भे एक हजाय चौफीस ऩद होते है । मे तधरशास्र के प्राचीन वर्द्र्ानों के भत है ॥२१॥ सकर प्रथभ र्ास्तुऩद-वर्धमास भे केर्र एक ऩद होता है । मह मततमों के सरमे अनुकर होता है । इसभे अन्ग्नकामव होता है एर्ॊ इसभे कुश बफछामा जाता है । इस ऩय वऩतऩ ृ जन, दे र्ऩजन एर्ॊ गुरुऩजन का कामव सम्ऩधन होता है । इसके चायो ओय खीॊची गई ये खामे बानु, अककव, तोम एर्ॊ शसश कहराती है ॥२२॥ ऩेचक ऩेचकसॊऻक ऩद-वर्धमास भे चाय ऩद होते है । इसभे वऩशाच, बत, वर्षग्रह एर्ॊ याऺसों की ऩजा होती है । वर्धधमों के ऻाता वर्धधऩर्वक इस प्रकाय के कामों के सरमे इस ऩदवर्धमास को फनाते है एर्ॊ इसभे सबी वर्धधमों का ऩारन कयते हुमे तनभवर एर्ॊ तनष्कर सशर्को प्रततन्ष्ठत कयते है ॥२३॥ ऩीठसॊऻक ऩद-वर्धमास भें नौ ऩद होते है । इसके चायो ददशाओ भे चायो र्ेद, ईशान आदद (कोणो) भें क्रभश् उदक (जर), दहन (अन्ग्न), गगन (आकाश) एर्ॊ ऩर्न (र्ामु) होते है तथा भध्म भे ऩधृ थर्ी होती है ॥२४॥ भहाऩीठ भहाऩीठ ऩद-वर्धमास भे सोरह ऩद होते है एर्ॊ इसभे ऩच्चीस दे र्ता होते है । इन ऩदो भे (ईशान कोण से प्रायम्ब कय क्रभश्) दे र्ता इस प्रकाय होते है - ईश, जमधत, आददत्म, बश ृ , अन्ग्न, वर्तथ, मभ ॥२५॥ बङ् ृ ग, वऩत,ृ सुग्रीर्, र्रुण, शोष, भारुत, भुख्म, सोभ एर्ॊ अददतत फाह्म ऩदो के दे र्ता कहे गमे है ॥२६॥

अधदय के ऩदो के दे र्ता आऩर्त्स, आमव, सावर्र, वर्र्स्र्ान, इधद्र, सभर, रुद्रज एर्ॊ बध ु य है । केधद्र भे ब्रह्भा न्स्थत होते है , जो सफके स्र्ाभी कहे गमे है ॥२७॥ उऩऩीठादी उऩऩीठ र्ास्त-ु वर्धमास भें र्े (ऩर्ोक्त) दे र्ता अऩने ऩदों के अततरयक्त अऩने दोनो ऩाश्र्ो भे एक-एक ऩद की र्वृ ि प्राप्त कयते हुमे न्स्थत होते है ॥२८॥

फुविभान (स्थऩतत) को चादहमे कक उन दे र्ो के दोनो ऩाश्र्ो भे एक-एक ऩद की र्वृ ि तफ तक कये , जफ तक इधद्रकाधत ऩद न फन जाम ॥२९॥

न्जन र्ास्त-ु वर्धमासों भे सभ सॊख्मा भे ऩद हो, उधहे चौसठ ऩद र्ारे र्ास्तु के सभान एर्ॊ वर्षभ सॊख्मा भे ऩद हो तो इक्मासी ऩद र्ारे र्ास्तु के सभान (दे र्ों को) यखना चादहमे ॥३०॥

सबी र्ास्त-ु वर्धमासों भे भण्डकसॊऻक र्ास्तुऩद- वर्धमास सबी तनभावण-कामो के सरमे उऩमुक्त होता है ; क्मोंकक मह (तान्धरक) वर्धध ऩय आधारयत होता है ॥३१॥

इससरमे भै (भम ऋवष) तधरों से सॊऺेऩ भें वर्षम ग्रहण कय सकर एर्ॊ तनष्कर चौसठ एर्ॊ इक्मासी दो ऩदवर्धमासों का र्णवन कयता हॉ ॥३२॥ (उऩमुक् व त दोनो ऩदवर्धमासो भे) र्ास्तुऩद के भध्म भे ब्रह्भा आदद दे र्ता स्थावऩत ककमे जाते है । ईशान कोण से प्रायम्ब कय ऩथ ृ क-ऩथ ृ क स्थावऩत ककमे जाने र्ारे दे र्ता का महाॉ र्णवन ककमा जा यहा है ॥३३॥ दै ितस्थान र्ास्तुदेर्ों के स्थान - (ईशान कोण से प्रायम्ब कयते हुमे दे र्ता इस प्रकाय है -) ईशान, ऩजवधम, जमधत, भहे धद्रक, आददत्म, सत्मक, बश ृ तथा अधतरयऺ ॥३४॥ (आग्धमे कोण से नैऋत्म कोण के दे र्ता इस प्रकाय है )- अन्ग्न, ऩषा, वर्तथ, याऺस, मभ, गधधर्व, बङ् ृ गयाज, भष ृ तथा वऩतद ृ े र्ता ॥३५॥

(ऩन्श्चभ से र्ामव्म तक तथा उत्तय के दे र्ता इस प्रकाय है ) दौर्ारयक, सुग्रीर्, ऩुष्ऩदधत, जराधधऩ (र्रुण), असुय, शोष, योग, र्ामु एर्ॊ (उत्तय ददशा भे) नाग ॥३६॥

(उत्तय ददशा के दे र्ता है -) भुख्म, बलराटक, सोभ, भग ृ , अददतत एर्ॊ उददतत- मे फत्तीस फाह्म ऩदों के दे र्ता है ॥३७॥ अधत् दे र्ों भे ऩर्ोत्तय (ईशान) भे आऩ एर्ॊ आऩर्त्स दे र्ता तथा ऩर्व-दक्षऺण (आग्नेम कोण) भे सवर्धद्र एर्ॊ सावर्धद्र दे र्ता होते है ॥३८॥

दक्षऺण-ऩन्श्चभ (नैऋत्म कोण) भे इधद्र एर्ॊ इधद्रयाज तथा ऩन्श्चभोत्तय (र्ामव्म कोण) भे रुद्र एर्ॊ रुद्रजम दे र्ता कहे गमे है ॥३९॥ भध्म भे न्स्थत ब्रह्भा शम्बु है तथा अमव, वर्र्स्र्ान ् सभर एर्ॊ बधय - मे चाय दे र्ता उनकी ओय भख ु कयके न्स्थत होए है ॥४०॥

ईशान आदद चायो कोणों के फाहय क्रभश् चाय स्री-दे र्ताओॊ-चयकी, वर्दायी, ऩतना एर्ॊ ऩाऩयाक्शसी की स्थाऩना होनी चादहमे । मे चायो वर्ना ऩद के ही फसर (र्ास्तु के तनसभत्त हवर्ष) ग्रहण कयती है । शेष दे र्ो का ऩद कहा गमा है ॥४१॥

इस प्रकाय इक्मासी सॊख्माओ का एक ऩद र्ास्तच ु क्र भे भण्डरदे र्ताओॊ का होता है , न्जसका वर्र्यण अग्रसरर्खत है -

२० + ७ + ६ + ६ + ६ +६ + ६ + १२ + ४ + ८ = ८१ अथावत खड़ी औय ऩड़ी दश-दश ये खामें होने से इक्मासी ऩद का र्ास्तुचक्र सम्ऩधन होता है ॥४२॥ चौसठ ऩद र्ारे भण्डक ऩद भे भध्म के चाय ऩद भे ब्रह्भा होते है ॥४३॥ भण्डूकऩद (ब्रह्भा के ऩश्चात ् उनके चायो ओय० आमवक आदद चाय दे र्ता (आमव, वर्र्स्र्ान ्, सभर, बधय) ऩर्व से आयम्ब होकय

तीने-तीन ऩद भे न्स्थत होते है । आऩ आदद आठ दे र्ता (आऩ, आऩर्त्स, सवर्धद्र, सावर्धद्र, इधद्र, इधद्रयाज, रुद्र एर्ॊ रुद्रजम) ब्रह्भा के चायो कोणों भे आधे -आधे ऩद भे प्रततन्ष्ठत होते है ॥४४॥ भहे धद्र, याऺस, ऩुष्ऩ एर्ॊ बलराटक - मे चायो दे र्ता ददशाओॊ भे (क्रभश् ऩर्व, दक्षऺण, ऩन्श्चभ एर्ॊ ऩर्व भे) दो-दो ऩद के बागी फनते है ॥४५॥

जमधत, अधतरयऺ, वर्तथ, भष ृ , सुग्रीर्, योग, भुख्म एर्ॊ ददतत को एक-एक ऩद प्राप्त होता है ॥४६॥ शेष फचे ईश आददआठ दे र्ता (ईश, ऩजवधम, अन्ग्न, ऩषा, वऩतद ृ े र्ता, दौर्ारयक, र्ामु एर्ॊ नाग) कोणों ऩय आधा-आधा ऩद ऩाप्त कयते है । इस प्रकाय भण्डक र्ास्तुऩद भे दे र्ताओॊ को स्थान प्राप्त होता है ॥४७॥

अऩने-अऩने क्रभ से मे सबी दे र्ता फाॉमे से दादहने ऩदो भे न्स्थत होते है । सबी दे र्गण ब्रह्भा को दे खते हुमे अऩनेअऩने ऩदों भे स्थान ग्रहण कयते है ॥४८॥ िास्तऩ ु रु ु षविधान र्ास्तुऩुरुष की यचना - र्ास्तु-ऩुरुष तनकुब्ज ऩर्व की ददशा भे ससय ककमे र्ास्तुबसभ ऩय न्स्थत होता है । उसके छ् र्ॊश (अन्स्थमाॉ), चाय भभवस्थर, चाय ससयामें एर्ॊ एक ह्रदम होते है ॥४९॥

उस र्ास्तुऩुरुष के ससय आमवकसॊऻक दे र्ता होते है । सवर्धद्र दादहनी बुजा एर्ॊ सावर्धद्र कऺ होते है ॥५०॥

आऩ एर्ॊ आऩर्त्स कऺसदहत र्ाभ बज ु ा, वर्र्स्र्ान दक्षऺण ऩाश्र्व एर् भहीधय र्ाभ ऩाश्र्व फनते है ॥५१॥ र्ास्तुऩुरुष का भध्म शयीय ब्रह्भा से तनसभवत होता है एर्ॊ सभर उसके ऩुरुषसरङ्ग होते है । इधद्र एर्ॊ इधद्रयाज र्ास्तऩ ु रु ु ष के दक्षऺण ऩाद कहे गमे है ॥५२॥

रुद्रॊ एर्ॊ रुद्रजम इसके र्ाभ ऩद है एर्ॊ र्ह अधोभुख होकय बसभ ऩय सोता है । इसके छ् र्ॊश (ये खामे) है , जो ऩर्व एर्ॊ उत्तय की ओय होते है ॥५३॥

र्ास्तुभण्डर के भध्मे भें र्ास्तुऩुरुष के भभवस्थर होते है एर्ॊ ब्रह्भा र्ास्तुऩुरुष के ह्रदम है । र्ास्तुभण्डर के तनष्कट अॊश (ये खामे) र्ास्तुऩुरुष की ससयामें (यक्तर्ादहनी सशयामे) होती है ॥५४॥

भनुष्मों के प्रत्मेक गह ृ भें र्ास्तुऩुरुष का तनर्ास होता है , जो गह ृ भे यहने र्ारो के शुब एर्ॊ अशुब ऩरयणाभ का

कायक होता है । वर्द्र्ान भनुष्म को चादहमे कक र्ास्तुऩुरुष के अङ्गो को गह ृ के अङ्गो को गह ृ के अङ्गो (स्तम्ब, सबन्त्त आदद) से ऩीड़ड़त न कये ॥५५॥

र्ास्तुऩुरुष का जो-जो अङ्ग ऩीड़ड़त होता है , गह ृ स्र्ाभी के उस-उस अङ्ग भे योग होता है । अत् वर्द्र्ान ् गह ृ स्र्ाभी को र्ास्तुऩुरुष के अॊगो ऩय तनभावणकामव का सर्वथा त्माग कयना चादहमे । ऩुनभाण्डूकऩद ऩुन् भण्डक- ऩदवर्धमास - र्ास्त-ु भण्डर भे ४५ दे र्ता होते है । भण्डकसॊऻक र्ास्तुभण्डर भें चौंसठ ऩद होते है ।

केधद्र भे ब्रह्भा के चाय ऩद होते है । ब्रह्भा की ओय भुख ककमे चाय दे र्ों के तीन-तीन ऩद, सोरह दे र्ों के आधे-आधे ऩद, आठ दे र्ों के एक-एक ऩद एर्ॊ सोरह के दो ऩद होते है ॥५६-५७॥

ऩयभशामी र्ास्त-ु भण्डर भे ब्रह्भा को नौ ऩद प्राप्त होते है । उनकी ओय भुख ककमे चायो दे र्ों को छ्-छ् ऩद, कोण भे न्स्थत दे र्ो को दो-दो ऩद एर्ॊ फाहय न्स्थत सबी दे र्ो को एक-एक ऩद प्राप्त होता है ॥५८॥

अध्माम ८ फमरकभा अऩने-अऩने र्ास्तुऩद भें न्स्थत र्ास्तुदेर्ों का फसरकभव (ऩजा एर्ॊ नैर्ेद्म) होना चादहमे । इनका फसरकभव साभाधम आहत्म भागव (प्रत्मेक दे र्ता के अनस ु ाय ऩजा एर्ॊ नैर्ेद्म) से कयना चादहमे । फसरकभव भें ब्रह्भा आदद दे र्ों की क्रभानुसाय ऩजा कयनी चादहमे ॥१॥ आहत्मफमर ऩजन-साभग्री एर्ॊ नैर्ेद्म - फसरकभव भे दे र्ों को इस प्रकाय क्रभ दे ना चादहमे - ब्रह्भस्थान की ऩजा गधध, भालम, धऩ, दध, भधु, घी खीय एर्ॊ धान के रार्ा से कयनी चादहमे ॥२॥

(इसके ऩश्चात ् ब्रह्भा के चायो ओय न्स्थत दे र्ोंकी ऩजा होती है ।) आमवक का फसरकभव परतनसभवत बोज्म ऩदाथव, उड़द एर्ॊ ततर से कयना चादहमे । वर्र्स्र्ान ् को दधध एर्ॊ सभरक को दर्ाव प्रदान कयना चादहमे ॥३॥

भहीधय को दध प्रदान कयना चादहमे । इस प्रकाय र्ास्तभ ु ण्डर के बीतय केधद्रस्थ दे र्ों का फसरकभव सम्ऩधन होता है (इसके ऩश्चात ् फाह्म कोष्ठों के दे र्ों का फसरकभव होता है ।) ऩजवधम को घी एर्ॊ ऐधद्र को ऩुष्ऩसदहत नर्नीत प्रदान कयना चादहमे ॥४॥

इधद्र को कोष्ठ एर्ॊ ऩष्ु ऩ, समव को कधद एर्ॊ भधु, सत्मक को भधु तथा बश ृ को नर्नीत प्रदान कयना चादहमे ॥५॥ आकाश को उड़द एर्ॊ हयतार, अन्ग्न को दध, घी एर्ॊ तगयऩुष्ऩ तथा ऩषा को सशम्फाधन (तयकायी) एर्ॊ ऩामस प्रदान कयना चादहमे ॥६॥

वर्तथ को ऩका हुआ कङ्कु, याऺस को भददया, मभ को तयकायी एर्ॊ र्खचड़ी तथा गधधर्व को सुगन्धध फसररूऩ भे प्रदान कयना चादहमे ॥७॥ बङ् ृ गयाज को सभुद्र की भछरी, भष ृ को भछरी एर्ॊ बात, तनऋतत को तेर भें ऩका वऩण्माक (वऩण्डी मा भुदठमा) तथा दौर्ारयक को फीज की फसर दे नी चादहमे ॥८॥

सुग्रीर् को रड्ड, ऩुष्ऩदधत को ऩुष्ऩ एर्ॊ जर, र्रुण को दध एर्ॊ धाधम (अधन) तथा असुय को यक्त प्रदान कयना चादहमे ॥९॥

शोष को ततरमुक्त चार्र, योग को सखी भछरी, र्ामु को चफी एर्ॊ हरयद्रा (हलदी) तथा नाग को भद्म एर्ॊ रार्ा प्रदान कयना चादहमे ॥१०॥

भुख्म को अधन का चणव (आटा), दधध, एर्ॊ घत ृ , बलराट को गुड़ भें ऩका बात एर्ॊ सोभ को दध-बात प्रदान कयना चादहमे ॥११॥

भग ु भें ऩका अधन एर्ॊ घत ृ को शुष्क भाॊस, दे र्भाता अददतत को रड्ड, उददतत को ततर-बोज्म एर्ॊ ईश को दध ृ को फसररूऩ भें चढ़ाना चादहमे ॥१२॥

रार्ा एर्ॊ धाधम सवर्धद्र को, सग ु न्धधत जर सावर्धद्र को, फकयी का भेद एर्ॊ भॉग का चणव इधद्र एर्ॊ इधद्रयाज को प्रदान कयना चादहमे ॥१३॥

रुद्र एर्ॊ रुद्रजम को भाॊस तथा चफी, आऩ एर्ॊ आऩर्त्स को कुभद ु ऩष्ु ऩ, भछरी का भाॊस, शङ्ख (शङ्ख के भध्म न्स्थत भाॊस) एर्ॊ कछुमे का भाॊस प्रदान कयना चादहमे ॥१४॥

चयकी को भद्म एर्ॊ घत ृ , वर्दायी को रर्ण, ऩतना को ततर एर्ॊ वऩष्ट तथा ऩाऩ-याऺसी को भॉग का सत्त्र् प्रदान कयना चादहमे ॥१५॥ साधायणफमर

साभाधम रूऩ से सबी दे र्ों को प्रदान की जाने र्ारी फसर इस प्रकाय है - साधायण फसर घत ृ के सदहत शुि बोजन एर्ॊ दधध है । सबी दे र्ों को क्रभश् गधध आदद प्रदान कयना चादहमे ॥१६॥

कधमा मा र्ेश्मा को फसर-ऩदाथव धायण कयने मोग्म भाना गमा है । इधहे अङ्गधमास एर्ॊ कयधमास द्र्ाया ऩवर्र भन (एर्ॊ शयीय) र्ारी फनना चादहमे ॥१७॥ र्ास्तुदेर्ों का क्रभानुसाय नाभ रेना चादहमे । उनके नाभ से ऩर्व 'ॐ' एर्ॊ नाभ के ऩश्चात ् 'नभ्' रगाना चादहमे । उधहे प्रथभत् जरॊ एर्ॊ उसके ऩश्चात ् साधायण फसर दे नी चादहमे ॥१८॥

इसके ऩश्चात ् उनको वर्सशष्ट फसर प्रदान कय ऩीछे जर प्रदान कयना चादहमे । वर्द्र्ानों के अनुसाय ग्राभादद भें भण्डक र्ास्तऩ ु द एर्ॊ ऩयभशातमक र्ास्तऩ ु द भें बी फसर प्रदान कयना चादहमे ॥१९॥

इस प्रकाय ऩर्व भें कही गमी वर्धध से दे र्ों को उनके क्रभ के अनुसाय तप्ृ त कयके उधहे वर्धधऩर्वक वर्सन्जवत कयना चादहमे, न्जससे र्ास्तुऺेर का तनभावण कयने के सरमे वर्धमास (बर्नतनभावण की मोजना) ककमा जा सके ॥२०॥

ब्रह्भा एर्ॊ फाह्म दे र्ों को उनके-उनके स्थानों ऩय यखना चादहमे , न्जससे दे र्ारम एर्ॊ द्र्ाय का वर्धान उनको ध्मान भें यखते हुमे ककमा जा सके ॥२१॥ ऩद से यदहत शेष सबी दे र्ों को र्ास्तु की यऺा के सरमे स्थान दे ना चादहमे । इसी वर्धध से ग्राभादद भे बी दे र्ों का वर्धमास कयना चादहमे । इस प्रकाय र्ास्तु-ऩदवर्धमास एर्ॊ र्ास्तुदेर्ों के ऩजन के यहस्म का र्णवन ककमा गमा है ॥२२॥

प्रात्कार से उऩर्ास कयते हुमे स्थऩतत वर्शुि शयीय एर्ॊ शाधत भन से र्ास्तु दे र्ों की वर्शेष एर्ॊ साभाधम फसर को रेकय ऩर्वर्र्णवत यीतत से बरी-बाॉतत ऩजा कये एर्ॊ फसर प्रदान कये ॥२३॥

अध्माम ९ ग्राभवर्धमास ग्राभमोजना - अफ ग्राभ आदद का तनमभानस ु ाय प्रभाण एर्ॊ वर्धमास (तनभावण-मोजना) का र्णवन ककमा जा यहा है । ऩुनभाानोऩकयण ऩुन् प्रभाण-चचाव -ऩाॉच सौ दण्डों का एक क्रोश एर् उसके दग ु ने (दो क्रोश) का एक अधवगव्मत भान होता है ॥१॥ एक अधवगव्मत का दग ु ुना एक गव्मत होता है । आठ हजाय दण्ड का एक मोजन होता है । आठ धनु (दण्ड) का चौकोय भाऩ

काकनीका एर्ॊ उसका चौगुना भाऩ भाष कहराता है ॥२॥

भाश का चाय गन ु ा र्तवनक एर्ॊ ऩाॉच गन ु ा र्ादटकासॊऻक भाऩ होता है । र्ादटका का चाय गन ु ा स्थान ग्राभ भे एक ऩरयर्ाय के

सरमे उत्तभ होता है ॥३॥ इस प्रकाय दण्डभाऩ के द्र्ाया बसभ का भान होता है । उनका भान (इस प्रकाय) कहा जा यहा है । ग्राभाददभानभ ् ग्राभादद का प्रभाण - (सफसे फड़े) ग्राभ का भान सौ हजाय दण्ड कहा गमा है ॥४॥ फीस हजाय दण्ड से प्रायम्ब कय सभ सॊख्मा भें भानर्वृ ि कयते हुमे ग्राभों के ऩाॉच प्रकाय के प्रभाण होते है । ग्राभ के फीस बाग भें एक बाग एक कुटुम्फ की बुसभ होती है ॥५॥ हीन (सफसे छोटे ) ग्राभ का भान ऩाॉच सौ दण्ड का होता है । इससे प्रायम्ब कय ऩाॉच सौ दण्ड फढ़ाते हुमे फीस हजाय दण्ड तक भान प्राप्त कयना चादहमे ॥६॥ ग्राभ के चारीस बेद होते है । मह ग्राभ का भान है । (चौड़ाई भें ) दो हजाय दण्ड, एक हजाय ऩाॉच सौ दण्ड तथा हजाय दण्ड (ग्राभ का भान है ) ॥७॥ नौ सौ, सात सौ, ऩाॉच सौ एर्ॊ ततन सौ (ग्राभ का) वर्स्ताय होता है । नगय का दण्डभान एक हजाय दण्ड से प्रायम्ब कय दो हजाय दण्डऩमवधत होता है ॥८॥ (सफसे फड़े) नगय का भान आठ हजाय दण्ड होता है । दो-दो हजाय दधड कभ कयते हुमे नगय के चाय प्रकाय के भान प्राप्त होते है ॥९॥ ग्राभ, खेट, खर्वट, दग ु व एर्ॊ नगय - मे ऩाॉच प्रकाय के (र्सतत-वर्धमास) होते है । अफ भै (भम ऋवष) दण्ड के द्र्ाया प्रत्मेक के तीन

- तीन बेद कहता हॉ ॥१०॥ छोटे भे बी सफसे छोटा ग्राभ चौसठ दण्ड होता है । भध्मभ ग्राभ का उसका दग ु ुना एर्ॊ उत्तभ तीन गुना होता है ॥११॥

छोटे खेट का भाऩ दो सौ छप्ऩन, भध्मभ खेट का तीन सौ फीस तथा उत्तभ खेट का भाऩ तीन सौ चौयासी दण्ड होता है ॥१२॥ छोटे खर्वट का भाऩ चाय सौ अड़तारीस, भध्मभ खर्वट का भाऩ ऩाॉच सौ फायह तथा उत्तभ खर्वट का भाऩ ऩाॉच सौ तछहत्तय दण्ड कहा गमा है ॥१३॥ कतनष्ठ दग ु व छ् सौ चारीस दण्ड, भध्मभ दग ु व सात सौ चाय दण्ड एर्ॊ उत्तभ दग ु व सात सौ अड़सठ दण्ड का होता है ॥१४॥

कतनष्ठ नगय आठ सौ फत्तीस दण्ड, भध्मभ नगय आठ सौ तछमानफे दण्ड तथा उत्तभ नगय नौ सौ साठ दण्ड भाऩ का होता है ॥१५॥ सोरह दण्ड की र्वृ ि कयते हुमे प्रत्मेक के नौ बेद होते है । इनकी रम्फाई चौड़ाई की दग ु ुनी, तीन चौथाई, आधी मा चौथाई अधधक होती है ॥१६॥ अथर्ा छ् मा आठ बाग अधधक हो सकता है । इच्छानुसाय इसकी रम्फाई-चौड़ाई सभान बी हो सकती है । इनकी रम्फाई

एर्ॊ चौड़ाई वर्षभ दण्डसॊख्मा भें होनी चादहमे ॥१७॥ शेष का सम्फधध उस ऺेर से होता है , न्जस ऩय तनभावणकामव नहीॊ हुआ यहता । इस वर्धध का प्रमोग सबी ग्राभ आदद र्ास्तऺ ु ेरों ऩय होता है । आमादद आमादद को प्राप्त कयने के सरमे दण्डो को फढ़ामा-घटामा जा सकता है ॥१८॥ न्जस र्ास्तु का भाऩ आम, व्मम, नऺर, मोतन, आमु, ततधथ एर्ॊ र्ाय के वर्ऩयीत न हो एर्ॊ न ही मजभान (गह ृ स्र्ाभी) के नाभ,

जधभनऺर अथर्ा स्थान से वर्ऩयीत होना चादहमे (कहने का तात्ऩमव मह है कक ग्राभ आदद र्सततवर्धमास के सबी वर्चायणीम बफधद ु गह ु र होने चादहमे) ॥१९॥ ृ स्र्ाभी एर्ॊ उसकी बसभ के अनक

सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्तमो की प्रान्प्त के सरमे र्ास्तऺ ु ेर को उसके भान सभेत ग्रहण कयना चादहमे । र्ास्तऺ ु ेर के चौड़ाई एर्ॊ

रम्फाई को जोड़ कय आठ से एर्ॊ नौ से गुणा कयना चादहमे । प्राप्त गुणनपर भें क्रभश् फायह एर्ॊ दश का बाग दे ना चादहमे ॥२०॥ शेष सॊख्मा से क्रभश् आम एर्ॊ व्मम का ऻान कयना चादहमे । (रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई के मोग भें ) तीन से गुणा कय आठ से

बाग दे ने ऩय जो शेष फचे, उससे मोतनमों की प्रान्प्त होती है । मे मोतनमाॉ ध्र्ज, धभ, ससॊह, श्र्ान, र्ष ृ , खय, गज एर्ॊ काक कही

गई है ॥२१॥ (उऩमुक् व त) आठ मोतनमाॉ कही गई है । इनभे ध्र्ज, ससॊह, र्ष ृ एर्ॊ गज प्रशस्त है । ऩुन् (रम्फाई एॊ चौड़ाई के मोग भें ) आठ का

गन ु ा कय सत्ताईस का बाग दे ने ऩय बागपर से र्म का ऻान होता है ॥२२॥ रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई के मोग भें तीस का बाग दे ने ऩय शेष सॊख्मा से सौय ददनों का ऻान होता है । प्रथभ र्ाय यवर्र्ाय होता है । सबी प्रकाय के र्ास्तुओॊ भें इसी प्रकाय ऻात कय कामव कयना चादहमे ॥२३॥ आम का अधधक होना सख ु दामक होता है एर्ॊ व्मम का अधधक होना नाश का कायण होता है । इसके वर्ऩयीत होना वर्ऩन्त्तकायक होता है । अत् बरी-बाॉतत इसकी ऩयीऺा कयने के ऩश्चात ् ही कामव कयना चादहमे ॥२४॥ विप्रसॊख्मा ब्राह्भणों की सॊख्मा - सर्वश्रेष्ठ ग्राभ र्ह है , जहाॉ फायह हजाय ब्राह्भण हों । भध्मभ ग्राभ भें दस हजाय तथा छोटे ग्राभ भें आठ हजाय ब्राह्भण होते हैं ॥२५॥ सात हजाय ब्राह्भण भध्मोत्तभ ग्राभ भें होते है । छ् हजाय ब्राह्भण भध्मभ-भध्मभ ग्राभ भे तथा ऩाॉच हजाय ब्राह्भण भध्मभ के

अधभ ग्राभ भे होते है ॥२६॥ अधभोत्तभ (छोटे ग्राभ भे उत्तभ) ग्राभ भे चाय हजाय, अधभसभ (छोटे भे भध्मभ) ग्राभ भे तीन हजाय तथा अधभाधभ (छोटे भे सफसे छोटे ) ग्राभ भे दो हजाय ब्राह्भण यहते है ॥२७॥ नीचोत्तभ ग्राभ भें एक हजाय ब्राह्भण यहते है । नीच-भध्मभ ग्राभ भें सात सौ एर्ॊ नीचालऩ ग्राभ भें ऩाॉच सौ ब्राह्भण होते है , ऐसा आचामों का कथन है ॥२८॥ ब्राह्भणों के आर्ास की दृष्टी से दस प्रकाय के ऺुद्रक ग्राभ इस प्रकाय है - एक हजाय आठ, दो हजाय सोरह, तीन हजाय चौफीस, चौयासी, चौंसठ, ऩचास, फत्तीस तथा चौफीस ॥२९॥ फायह एर्ॊ सोरह ब्राह्भण (आर्ास) की दृष्टी से ऺुद्रक ग्राभ के दस बेद होते है । मदद ऐसा न हो तो एक से दस ब्राह्भण को बसभ दान भे दे ना चादहमे ॥३०॥ न्जस ग्राभ भें एक ब्राह्भण-ऩरयर्ाय यहता हो, उसे 'कुदटक' ग्राभ तथा 'एकबोग' ग्राभ कहते है । र्हाॉ 'सुखारम' प्रशस्त होता है

तथा 'दण्डक' आदद अधम ग्राभो भें प्रशस्त होता है ॥३१॥ सबी प्रकाय के र्ास्त-ु वर्धमास दो वर्बागों-मग्ु भ एर्ॊ अमग्ु भ (सभ सॊख्मा एर्ॊ वर्षभ सॊख्मा) भे यक्खे जाते है । मग्ु भ र्ास्तुवर्धमास भे सरऩथ से भागववर्धमास एर्ॊ अमुग्भ वर्धमास भे भध्मभ ऩद से र्ीथी का वर्धमास ककमा जाता है ॥३२॥

ग्राभनाभानन ग्राभो के नाभ - ग्राभ आठ प्रकाय के होते है - दण्डक, स्र्न्स्तक, प्रस्तय, प्रकीणवक, नधद्मार्तव, ऩयाग, ऩद्म एर्ॊ श्रीप्रततन्ष्ठत ॥३३-३४॥ िीथथविधानभ ्

भागव-वर्धान - सबी ग्राभ अधदय एर्ॊ फाहय से भङ्गरजीर्ी से आर्त ृ होते है । ग्राभ भे ब्रह्भस्थान (भध्म बाग) भें दे र्ारम मा

ऩीठ (दे र्ों के तनसभत्त फना चफतया) होता है ॥३५॥ भागों की चौड़ाई एक, दो, तीन, चाय मा ऩाॉच काभक ुव (दण्ड) होती है ; ककधतु ऩर्व से ऩन्श्चभ जाने र्ारे 'भहाऩथ' सॊऻक भागव छ्

दण्ड चौड़े होते है ॥३६॥ ग्राभ की भध्म-र्ीथी 'ब्रह्भर्ीथी' होती है । र्ही ग्राभ की नासब होती है । द्र्ाय से मुक्त र्ीथी 'याजर्ीथी' होती है । दोनो ऩाश्र्ों से

फनी र्ीथी 'ऺुद्रा' होती है ॥३७॥ सबी वर्धथमाॉ 'कुदट्टभका' सॊऻक होती है । इसी प्रकाय भङ्गरर्ीथी 'यथभागव' कहराती है । ततमवग द्र्ाय (प्रधान द्र्ाय का सहामक

द्र्ाय) मुक्त र्ीधथमाॉ 'नायाचऩथा' कहराती है । उत्तय की ओय जाने र्ारे भागव 'ऺुद्र', 'अगवर' एर्ॊ 'र्ाभन कहे जाते है ॥३८॥

ग्राभ को घेयने र्ारी र्ीथी 'भङ्गरर्ीधथका' तथा ऩुय को आर्त ृ कयने र्ार र्ीथी 'जनर्ीधथका' होती है । इन दोनों को 'यथ्मा' बी

कहा जाता है । प्राचीन वर्द्र्ानों के अनुसाय अधम भागो को बी इसी प्रकाय सभझना चादहमे ॥३९॥ ग्राभबेद ग्राभ के बेद - ब्राह्भणों से ऩरयऩणव र्सतत-वर्धमास को 'भङ्गर' कहते है । याजा (ऺबरम) तथा व्माऩारयमों से मक् ु त स्थान 'ऩुय'

कहराता है । जहाॉ अधम जन तनर्ास कयते है , उसे 'ग्राभ' कहते है । जहाॉ तऩन्स्र्मो का तनर्ास होता है , उसे 'भठ' कहते है ॥४०॥ ऩर्व एर्ॊ उत्तय की ओय सीधी ये खा से फने हुमे दण्ड के सभान भागव होते है एर्ॊ चाय द्र्ाय से मुक्त होते है । ऐसे ग्राभ को

भुतनजन दण्डक कहते है । जहाॉ दण्ड के सदृश एक र्ीथी होती है , उसे बी 'दण्डक' ग्राभ कहते है ॥४१-४२॥ नौ ऩदों से मक् ु त ग्राभ भें ऩद से फाहय चायो ओय एक भागव होता है । एक र्ीथी उत्तय-ऩर्व से प्रायम्ब होकय ऩर्व की ओय जाती

है । र्ह दक्षऺण से प्रायम्ब होती है ॥४३॥ दक्षऺण र्ीथी ऩर्व-दक्षऺण से प्रायम्ब होकय ऩन्श्चभ की ओय जाती है । दक्षऺण से ऩन्श्चभ होकय जाने र्ारी र्ीथी उत्तय की ओय जाती है ॥४४॥ दसयी र्ीथी उत्तयसे प्रायम्ब होती है , इससरमे उत्तयर्ीथी है । इसका भुख ऩर्व की ओय होता है । इस ग्राभ को 'स्र्न्स्तक' कहा

गमा है । इसके चाय भागव स्र्न्स्तक की आकृतत के होते है ॥४५॥ 'प्रस्तय' ग्राभ ऩाॉच प्रकाय के होते है । इसभें ऩर्व से ऩन्श्चभ तीन भागव जाते है । उत्तय से जाने र्ारे भागव तीन, चाय, ऩाॉच, छ् मा सात होते है ॥४६॥ 'प्रकीणवक' ग्राभ ऩाॉच प्रकाय के होते है । इसभे चाय भागव ऩर्व से ऩन्श्चभ जाते है । उत्तय से फायह, ग्मायह, दस, नौ मा आठ भागव जाते है ॥४७॥ (नधद्मार्तव ग्राभ का रऺण इस प्रकाय है -) ऩाॉच सड़के ऩर्व से ऩन्श्चभ की ओय जाती है । उत्तय ददशा से तेयह, इक्कीस, ऩधद्रह, सोरह एर्ॊ सरह भागो द्र्ाया । (इस ग्राभ का वर्धमास ककमा जाता है ) ॥४८॥ नधद्मार्तव ग्राभ (उऩमुक् व त भागो से) मुक्त होता है । मह नधद्मार्तव आकृतत का होता है । फाहय की ओय जाने र्ारे भागो के फाहय

चायो ददशाओॊ भें चाय द्र्ाय होते है ॥४९॥ अनेक भागो के आऩस भे सॊमक् ु त होने से अनेक भागव-सॊमोग (ततयाहे , चौयाहे आदद) फनते है । नधद्मार्तव की आकृतत के सदृश

होने के कायण इस ग्राभ को 'नधद्मार्त' कहते है । ऩयाग ग्राभ का रऺण इस प्रकाय है - महाॉ अट्ठायह से फाईस सॊख्मा तक भागव उत्तय से जाते है ॥५०॥ छ् भागव ऩर्व से तनकरते है । इस ग्राभ को 'ऩयाग' कहते है । (ऩद्म ग्राभ भें) ऩर्व-ऩन्श्चभ भें सात भागव होते है तथा उत्तय से तीन, चाय, ऩाॉच- ॥५१॥ छ् मा सात भागव तनकरते है तथा फीस भागव-सॊमोग फनते है । इस प्रकाय 'ऩद्म' ग्राभ के ऩाॉच बेद फनते है । (श्रीप्रततन्ष्ठत ग्राभ भें ) आठ भागव ऩर्व ददशा से तथा अट्ठाईस से प्रायम्ब कय ॥५२॥ फत्तीस सॊख्मा तक भागव उत्तय ददशा से तनकरते है । इसे 'श्रीप्रततन्ष्ठत' ग्राभ कहते है । इस प्रकाय आठ प्रकाय के ग्राभ होते है ॥५३॥ अथर्ा 'श्रीर्त्स' आदद अधम ग्राभों का बी वर्धमास कयना चादहमे । सबी ग्राभों के नासब (केधद्र-स्थर) को फुविभान व्मन्क्त को

वर्ि नही कयना चादहमे ॥५४॥ ग्राभ अथर्ा गह ृ भें दण्डच्छे द नही कयना चादहमे । फुविभान व्मन्क्त को ग्राभ अथर्ा गह ृ के वर्धमास हे तु सकर (एकऩद र्ास्तु)

से रेकय आसन (एक हजाय ऩद र्ास्त)ु तक (ककसी उऩमक् ु त) ऩदवर्धमास को ग्रहण कयना चादहमे ॥५५॥ छोटे ग्राभ भें चाय भागव, भध्मभ ग्राभ भें आठ भागव एर्ॊ उत्तभ ग्राभ भें फायह अथर्ा सोरह भागव होते है ॥५६॥ ्िाय ्िाय - बलराट, भहे धद्र, याऺस एर्ॊ ऩुष्ऩदधत ऩद द्र्ायस्थाऩन के स्थान है तथा जरभागव बी चाय है ॥५७॥ जरभागव के चाय र्ास्त-ु ऩद वर्तथ, जमधत, सुग्रीर् एर्ॊ भुख्म है । बश ृ , ऩषा, बङ् ृ गयाज, दौर्ारयक, शोष, नाग, ददतत एर्ॊ जरद

॥५८॥

इन आठ र्ास्तद ु े र्ों के ऩद उऩद्र्ाय के स्थान है । इन उऩद्र्ायों का वर्स्ताय तीन, ऩाॉच मा सात हस्त होता है ॥५९॥ इन उऩद्र्ायों की ऊॉचाई उसकी चौड़ाई की दग ु ुनी, डेढ़ गुनी अथर्ा ततन चौथाई होनी चादहमे । सबी ग्राभों के चायो ओय फायह

ऩरयका (खाई) एर्ॊ र्प्र (प्राचीय, घेयने र्ारी सबन्त्त) होनी चादहमे ॥६०॥ नदद के दक्षऺण तट ऩय उससे तघये ग्राभ (उत्तभ) होते है । इक्मासी र्ास्तऩ ु द एर्ॊ चौसठ र्ास्तऩ ु द-वर्धमास से मक् ु त ग्राभ का

भध्म बाग ब्राह्भऺेर एर्ॊ इसके ऩश्चात ् दै र् ऺेर होता है ॥६१॥ इसके ऩश्चात ् भानुष एर्ॊ ऩैशाच ऺेर का तनश्चम कयना चादहमे । दै र् एर्ॊ भानुष ऺेर भें ब्राह्भणों के गह ृ होने चादहमे ॥६२॥

अऩने कामव के द्र्ाया अऩनी आजीवर्का चराने र्ारों का गहृ ऩैशाच ऺेर भें होना चादहमे अथर्ा र्हाॉ ब्राह्भणों का आर्ास होना

चादहमे । उनके भध्म ऩर्व आदद ददशाओॊ भें क्रभानुसाय दे र्ारम की स्थाऩना कयनी चादहमे ॥६३॥ प्रासादस्थान र्ास्त-ु ऺेर के बीतय ब्राह्भण एर्ॊ दे र्ता की स्थाऩना कयनी चादहमे । सशर्ारम की स्थाऩना ग्राभ के फाहय होनी चादहमे अथावत ्

सशर्ारम की स्थाऩना इच्छानुसाय ग्राभ के बीतय मा फाहय कही बी हो सकती है ॥६४॥ बङ् ृ गयाज के मा ऩार्क के बाग ऩय वर्नामक का भन्धदय होना चादहमे । ईश के ऩद ऩय, सोभ के ऩद ऩय अथर्ा अधम ककसी

र्ास्तुऩद ऩय सशर्भन्धदय की स्थाऩना कयनी चादहमे ॥६५॥ दे र्ारम के फाहय गह ृ ो की श्रेणी ऩर्वर्र्णवत भान के अनुसाय तनमभऩर्वक होनी चादहमे । सशर् के ऩरयर्ाय-दे र्ताओ के स्थान का

महाॉ र्णवन ककमा जा यहा है ॥६६॥ समव के र्ास्तुऩद ऩय समवदेर्ता का स्थान एर्ॊ अन्ग्न के ऩद ऩय कासरका का भन्धदय होना चादहमे । बश ृ के र्ास्तुऩद ऩय

वर्ष्णुभन्धदय तथा मभ के ऩद ऩय षण्भुख (काततवकेम) का भन्धदय होना चादहमे ॥६७॥ बश ु ीर् के ऩद ऩय मा ऩष्ु ऩदधत के ऩद ऩय गणाध्मऺ ृ , भग ृ मा नैऋत्म स्थानऩय केशर् का भन्धदय होना चादहमे । सग्र (गणेश)

का भन्धदय होना चादहमे ॥६८॥ आमवक का बर्न नैऋत्म कोण भे एर्ॊ वर्ष्णु का वर्भान (दे र्ारम) र्रुण के ऩद ऩय होना चादहमे । भन्धदय भें ऊऩयी तर से

क्रभश् वर्ष्णु की स्थानक (खड़ी), आसन (फैठी) एर्ॊ शमन प्रततभा होनी चादहमे ॥६९॥ अथर्ा बतर ऩय फड़ी एर्ॊ बायी तथा ऊऩयी तर ऩय स्थानक भुद्रा भें वर्ष्णुप्रततभा होनी चादहमे । सुगर के ऩद ऩय सुगत

(फुि) की प्रततभा एर्ॊ बङ् ृ गयाज के ऩद ऩय न्जन-दे र्ारम होना चादहमे ॥७०॥ र्ामु के ऩद ऩय भददया का भन्धदय, भुख्म के ऩद ऩय कात्मामनी का भन्धदय, सोभ के ऩद ऩय धनद (कुफेय) का भन्धदय अथर्ा

भातद ृ े वर्मों का भन्धदय होना चादहमे ॥७१॥ सशर्ारम ईश, ऩजवधम मा जमधत के ऩद ऩय, कुफेय का भन्धदय सोभ अथर्ा शोष के ऩद ऩय तनसभवत कयाना चादहमे ॥७२॥

र्ही गणेश का बर्न होना चादहमे । अथर्ा अददतत के ऩद ऩय भातद ृ े वर्मो का भन्धदय होना चादहमे । भध्म भें वर्ष्णु का

भन्धदय होना चादहमे । र्ही सबाभण्डऩ बी होना चादहमे - ऐसा कहा गमा है ॥७३॥ अथर्ा सबास्थर ब्रह्भा के ऩद ऩय ईशान कोण मा आग्नेम कोण भें होना चादहमे । वर्ष्णुभन्धदय उत्तय-ऩन्श्चभ भे अथर्ा दक्षऺण

भें होना चादहमे ॥७४॥ भध्म के ऩाॉच ऩदों ऩय तनभावणकामव द्ु खकायक होता है । र्ास्तुभण्डर के मुग्भ ऩद से तथा अमुग्भ ऩद (सभसॊख्मा एर्ॊ

वर्षभसॊख्मा) से तनसभवत होने ऩय ब्रह्भस्थान आठ बाग एर्ॊ नौ बाग से तनसभवत होना चादहमे ॥७५॥

ब्रह्भा के बाग को छोड़ कय ऩर्व ददशा से प्रायम्ब कय क्रभश् नसरनक, स्र्न्स्तक,नधद्मार्तव, प्ररीनक, श्रीप्रततन्ष्ठत, चतुभख ुव एर्ॊ ऩद्मसभ बर्न का तनभावण कयना चादहमे । र्हाॉ तीन तर से रेकय फायह तरऩमवधत वर्ष्णुच्छधद वर्भान का तनभावण होना

चादहमे ॥७६॥७७॥ मह वर्ष्णुभन्धदय ग्राभादद से फाहय बी हो सकता है । इसभें वर्ष्णु की खड़ी, फैठी मा शमन कयती हुई भततव स्थावऩत कयनी चादहमे ॥७८॥ ग्राभों भें क्रभानस ु ाय उत्कृष्ट, भध्मभ, अधभ एर्ॊ नीच आदद बर्न होने चादहमे ; ककधतु उत्तय ग्राभ भें नीच बर्न नहीॊ होना

चादहमे ॥७९॥ मदद ग्राभ ऺुद्र हो तो र्हाॉ ऺुद्र वर्भान (छोटा भन्धदय) ही उधचत है एर्ॊ र्ही फनाना चादहमे । तीन, चाय एर्ॊ ऩाॉच तर का दे र्ारम हीन ग्राभ भें होना चादहमे तथा हीन ग्राभ भें साभाधम बर्न होना चादहमे ॥८०॥ उत्कृष्ट ग्राभ अथर्ा नगय भें मदद नीच श्रेणी का दे र्ारम हो तो र्हाॉ के ऩुरुषो भें नीच प्रर्न्ृ त्त एर्ॊ न्स्रमों भें द्ु शीरता होती है ॥८१॥ इससरमे ग्राभ अथर्ा नगय की श्रेणी के सभान मा अधधक श्रेणी का भन्धदय तनसभवत होना चादहमे । हरयहय भन्धदय अथर्ा अधम सबी र्ास्तुतनसभवत मथोधचत होनी चादहमे ॥८२॥ दौिारयक चण्डश्र्य, कुभाय, धनद, कारी, ऩतना, कारीसुत तथा खड्गी - मे दे र्ता दौर्ारयक कहे गमे है ॥८३॥ ग्राभ आदद भें ऩर्वभुख मा ऩन्श्चभभुख सशर् का स्थान होना चादहमे । मदद उनका भुख ग्राभादद से फाहय की ओय हो तो प्रशस्त

होता है । वर्ष्णु का भख ु सबी ददशाओॊ भें हो सकता है; ककधतु उनका भख ु मदद ग्राभ कक ओय हो तो शुब होता है ॥८४॥

शेष दे र्गण ऩर्वभख ु होने चादहमे । भातद ु स्थावऩत कयना चादहमे । समवभन्धदय का द्र्ाय ृ े वर्मों को उत्तयभख ऩन्श्चभभुख होना

चादहमे । ऩुय आदद भें भनुष्मों के गह ृ से ऩहरे दे र्ारमों का तनभावण कयाना चादहमे ॥८५॥ त्माज्म स्थान - र्ास्तुभण्डर के ह्रदम, र्ॊश, सर, सन्धधस्थर तथा कणवससयाओॊ इन छ् स्थरों ऩय दे र्ारम आदद का तनभावण

नहीॊ होना चादहमे ॥८६॥ अन्म श्रेणी के बिन - स्थान - (ऩुय तथा ग्राभ आदद के) दक्षऺण ओय गोशारा एर् उत्तय भें ऩुष्ऩर्ादटका होनी चादहमे । ऩर्व

मा ऩन्श्चभ द्र्ाय के तनकट तऩन्स्र्मों का आर्ास होना चादहमे ॥८७॥ जराशम, र्ाऩी एर्ॊ कऩ सबी स्थानों ऩय होना चादहमे । र्ैश्मों का आर्ास दक्षऺण भें एर्ॊ शद्रों का आर्ास चायो ओय होना चादहमे ॥८८॥ ऩर्व अथर्ा उत्तय ददशा भें कुम्हायो के गह ृ होने चादहमे । र्ही नाइमों का एर्ॊ अधम हस्तकौशर र्ारों के बी गह ृ होने चादहमे ॥८९॥ उत्तय-ऩन्श्चभ ददशा भें भछुआयों का तनर्ास होना चादहमे । ऩन्श्चभी ऺेर भें भाॊस से आजीवर्का चराने र्ारों का तनर्ास होना

चादहमे ॥९०॥ तेसरमों के गह ृ उत्तय ददशा भें होने चादहमे । गह ृ रऺण गह ृ के रऺण - गह ृ ों की चौड़ाई तीन, ऩाॉच, सात मा नौ धनुप्रभाण होनी चादहमे ॥९१॥

गह ृ ों की रम्फाई चौड़ाई से क्रभश् दो-दो दण्ड फढ़ानी चादहमे । रम्फाई उतनी ही ग्रहण कयनी चादहमे , न्जतनी कक चौड़ाई की

दग ु ुनी से अधधक न हो जाम ॥९२॥ गह ृ ों का तनभावण वर्धध के अनुसाय हस्तप्रभाण से कयना चादहमे । मे गह ृ रुचक, स्र्न्स्तक, नधद्मार्तव औय सर्वतोबद्र (ककसी एक

शैरी के) हो सकते है ॥९३॥ गह ृ (सर्वतोबद्र मा) र्धवभान हो सकता है । आकृतत की दृन्ष्ट से मे चाय गह ृ कहे गमे है । अथर्ा दण्डक, राङ्गर मा शऩव गह ृ

इच्छानस ु ाय हो सकते है ॥९४॥ ग्राभ से कुछ दय आग्नेम अथर्ा र्ामव्म कोण भें स्थऩततमों का आर्ास होना चादहमे । शेष का आर्ास बी र्ही फनर्ाना

चादहमे ॥९५॥ उससे कुछ दय यजक (धोफी) आदद का आर्ास होना चादहमे । ग्राभ से ऩर्व ददशा भे एक कोस की दयी ऩय चण्डार र्गव का

आर्ास होना चादहमे ॥९६॥ र्हाॉ चण्डार-न्स्रमाॉ ताम्र, अमस ् एर्ॊ सीसे के आबषण ऩहने हुमे तनर्ास कये । ददन के प्रथभ प्रहय भें ग्राभ भें प्रर्ेश कय चण्डार र्गव ग्राभ की गधदगी साप कयें ॥९७॥ ऩर्ोत्तय ददशा भें ग्राभ से ऩाॉच सौ दण्ड दय शर्ों (की अधत्मेन्ष्ट कक्रमा) का स्थान होना चादहमे । शेष रोगों (साभाधम जनों से ऩथ ृ क् ) का श्भशान उससे दय होना चादहमे ॥९८॥ विन्मासदोष बिन-विन्मास के दोष - चण्डार एर्ॊ चभवकाय का आर्ास, श्भशान, जराशम, दे र्ारम, वर्श्र्कोष्ठ (सबी ऩदाथो का सॊग्रहस्थर),

ग्राभ के चायो ओय का ऩरयर्ेश एर्ॊ ग्राभ के चायो ओय के भागव मदद उधचत स्थान ऩय नहीॊ होते है (तो उनका ऩरयणाभ कष्टकय होता है ) ॥९९॥ उऩमुक् व त का दष्ु ऩरयणाभ ग्राभ का वर्नाश, याजा का बङ्ग (हातन) एर्ॊ भत्ृ मु होता है । दे र्ारम एर्ॊ हाट का रयक्त होना, कड़े का

सॊग्रह तथा भागव भें अशुि र्स्तुओॊ (कड़े आदद) का पेंका जाना ग्राभ को शधम कय दे ता है ॥१००॥ गबाविन्मास मिरान्मास - सबी ग्राभाददकों के गबव-वर्धमास का र्णवन ककमा जाता है ॥१०१॥ (ग्राभादद का) गबवमक् ु त होना सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्तमों का एर्ॊ गबवहीन होना सबी प्रकाय के वर्नाश का कायण होता है ।

इससरमे प्रमत्नऩर्वक सही यीतत से गबववर्धमास कयना चादहमे ॥१०२॥ गबाविन्मास - बसभ भे खोदे गमे गतव भें आगे के श्रोकों भे र्र्णवत ऩदाथों का डारा जाना गबव-वर्धमास कहराता है । भन्ृ त्तका, कधद (भर, जड़), रोहमुक्त अधन (रोह-ऩार भे यक्खा अधन), धातु, इधद्रनीर आदद यत्न गबववर्धमास के द्रव्म है ।

इधहे दोषहीन ही होना चादहमे तथा इधहे ऩैसों से क्रम कयके सॊगह ृ ीत कयना चादहमे ॥१०३॥ बसभ भें खोदे गमे गतव भें जर बयने के ऩश्चात ् भन्ृ त्तका आदद डारनी चादहमे । अधन के ऊऩय दोषहीन ताम्रऩार यखना चादहमे ॥१०४॥ ताम्रऩार की चौड़ाई ऩाॉच प्रकाय की कही गई है । इनका प्रभाण चौदह, फायह, दश, आठ मा चाय अङ्गुर होना चादहमे ॥१०५॥

ताम्रऩार की ऊॉचाई चौड़ाई के सभान होनी चादहमे । उसभें ऩच्चीस अथर्ा नौ कोष्ठ होने चादहमे ॥१०६॥ उऩऩीठ ऩद से मक् ु त (ऩच्चीस कोष्ठ र्ारे) उस ऩार भें र्ास्तद ु े र्ों को स्थान दे ना चादहमे । समव के कोष्ठ भें यजततनसभवत र्ष ृ एर्ॊ

सुर्णवतनसभवत इधद्र को स्थावऩत कयना चादहमे ॥१०७॥

मभ के ऩद ऩय ताम्रतनसभवत मभयाज, रौहतनसभवत ससॊह एर्ॊ यजततनसभवत र्रुण को स्थावऩत कयना चादहमे ॥१०८॥ सोभ के ऩद ऩय श्र्ेत र्णव का (यजतभम) अश्र् तथा यजततनसभवत गज यखना चादहमे । ईश के ऩद ऩय ऩाया, अन्ग्न ऩय दटन, तनऋतत ऩय सीसा यखना चादहमे ॥१०९॥ सभीयण के ऩद ऩय सर् ु णव, जमधत ऩय ससधदय, बश ृ ऩय हरयतार तथा वर्तथ ऩय भन्सशरा (भैनससर) यखना चादहमे ॥११०॥

बङ् ृ गयाज ऩय भाक्षऺक (एक खतनज ऩदाथव), सुकधधय ऩय राजार्तव, शोष ऩय गैरयक (गेरु) तथा गणभुख्म ऩय अञ्जन यखना

चादहमे ॥१११॥ अददतत ऩय यक्त र्णव का ताम्र यखना चादहमे । उऩमक् ुव त सबी को बरी बाॉतत जान कय क्रभानस ु ाय यखना चादहमे । चतुष्ऩदो ऩय

रोकनाथों को इस प्रकाय स्थावऩत कयना चादहमे , न्जससे उनका भुख केधद्र की ओय यहे ॥११२॥ इन दे र्ों की प्रततभा की ऊॉचाई छ्, ऩाॉच, चाय, तीन मा दो अङ्गुर होनी चादहमे एर्ॊ उनके र्ाहनों की ऊॉचाई ऩर्ोक्त भाऩ की

आधी होनी चादहमे । प्रततभामें स्थानक भुद्रा (खड़ी) अथर्ा आसन भुद्रा (फैठी) भें होनी चादहमे ॥११३॥ आऩर्त्स ऩय भोती, भयीधच ऩय भॉगा, सवर्ता ऩय ऩुष्ऩयाग (ऩोखयाज) तथा वर्र्स्र्ान ् ऩय र्ैदमव भर्ण यखना चादहमे ॥११४॥

इधद्रजम ऩय हीया, सभरक ऩय इधद्रनीर, रुद्रयाज ऩय भहानीर तथा भहीधय ऩय भयकत (ऩधना) यखना चादहमे ॥११५॥ ऩार के भध्म भे ऩद्मयाग (रुफी) यखना चादहमे । यत्न एर्ॊ धातुओॊ को ऩार भें उनके उधचत स्थान ऩय यखना चादहमे ॥११६॥

उन दे र्ों के स्थान एर्ॊ न्स्थतत को वर्धधऩर्वक ऻात कय यत्नादद को यखना चादहमे । चायो ददशाओॊ भें सर् ु णव, आमस (रौह),

ताॉफे एर्ॊ चाॉदी के स्र्न्स्तक यखने चादहमे ॥११७॥ ब्रह्भस्थान के फाहय ऩर्व, दक्षऺण, ऩन्श्चभ, ऩन्श्चभ एर्ॊ उत्तय ददशा भें सर् ु णव के साथ शासरधाधम, चाॉदी के साथ व्रीदह, अमस के

साथ कोद्रर् (कोदो) यखना चादहमे ॥११८॥ दटन के साथ कङ्कु धाधम, सीसा के साथ भाष (उड़द), ततर ऩाये के साथ, भॉग को अमस (रोह) के साथ तथा कुरत्थ को ताम्र

धातु के साथ यखना चादहमे ॥११९॥ प्रथभत् ऩार के सरमे फसर (उऩमक् ुव त र्र्णवत ऩदाथव) प्रदान कयना चादहमे । इसके ऩश्चात ् सबी ऩदाथो को ऩार भें यख दे ना

चादहमे । (ऩार को ढकने के सरमे) एक अङ्गुर से अधधक चौड़ा तथा फायह अङ्गुर रम्फा ऩर रेना चादहमे ॥१२०॥ फायह अङ्गुर से रेकय ऩाॉच-ऩाॉच अङ्गुर के र्वृ ि-भान से फत्तीस अङ्गुर तक (ऩर) का प्रभाण हो सकता है । मह इधद्रकीरसॊऻक ऩर खददय के काष्ठ का गोराकाय तनसभवत होना चादहमे ॥१२१॥ गबव-वर्धमास के ऻाता को इस ऩर को ऩार के ऊऩय यखना चादहमे । मह गबव वर्धमास स्थानीम, द्रोणभुख तथा खर्वट एर्ॊ

प्रत्मेक प्रकाय के नगय भे कयना चादहमे । (उऩमुक् व त के अततरयक्त) ग्राभ, तनगभ, खेट, ऩत्तन तथा कोत्भकोरक आदद र्सततवर्धमासों भें गबव-वर्धमास ब्रह्भा, आमव, अकव,

वर्र्स्र्ान ्, मभ, सभर, र्रुण, सोभ एर्ॊ ऩधृ थर्ीधय के बाग भें मा द्र्ाय के दक्षऺण बाग भें कयना चादहमे ॥१२३-१२४॥ (द्र्ाय के दक्षऺण बाग भें ) ऩुष्ऩदधत, बलराट, भहे धद्र एर्ॊ गह ृ ऺत के ऩद ऩय अथर्ा वर्ष्णु के स्थान (भन्धदय), रक्ष्भी के स्थान

मा स्कधद के स्थान भें ग्राभ की यऺा के सरमे एर्ॊ सबी प्रकाय की काभनाओॊ की र्ि ृ ी के सरमे गबव-वर्धमास कयना चादहमे ।

प्रथभत् (गत्तव भें ) गबव-वर्धमास कयना चादहमे । तत्ऩश्चत ् उसके ऊऩय भततवमों को स्थावऩत कयना चादहमे ॥१२५१२६॥

गबव-वर्धमास र्ारे ऺेर को (गत्तव को) सशराओॊ एर्ॊ इष्टकाओॊ से तनसभवत कयना चादहमे । इसका भाऩ ऩुरुष का अञ्जसरप्रभाण

यखना चादहमे । अर्र्णवत सबी ऩदाथों को ब्रह्भ आदद के बाग भें यखना चादहमे (अर्र्णवत ऩदाथो का र्णवन 'गबववर्धमास' अध्माम भे प्राप्त होता है ) ॥१२७॥ न्जस वर्धे से गबववर्धमास सुयक्षऺत एर्ॊ न्स्थय है (तथा बर्नतनभावण बी सुयक्षऺत एर्ॊ न्स्थय यहे ), उसी यीतत से स्थऩतत को गबव

स्थावऩत कयना चादहमे । महाॉ न्जनका र्णवन नहीॊ ककमा गमा है , उन सबी का र्णवन गबवरऺण (गबववर्धमास, अध्माम-१२) भें ककमा गमा है ॥१२८॥ इस प्रकाय दे र्ों के अनरू ु ऩ बसभ का भाऩ (र्ास्तभ ु ण्डर), र्णव एर्ॊ अधम जाततमों के अनक ु र भाऩ, ग्राभाददकों का प्रभाण,

भागवमोजना आदद को तधरों से अरङ्कायसदहत, सुधदय ढॊ ग से एर्ॊ सॊऺेऩ भें सरमा गमा है ॥१२९॥ याजा को भाऩन आदद कभव भें तनऩुण चायो स्थऩततमों को बसभ एर्ॊ गामे प्रदान कयनी चादहमे; जो व्मन्क्त इस प्रकाय कयता है ,

उसे सॊसाय भे चधद्रभा एर्ॊ तायों की न्स्थततऩमवधत सर्वदा धन एर्ॊ अनेक (सभवृ िदामक) र्स्तुओॊ की प्रान्प्त होती यहती है एर्ॊ र्ह

सर्वदा प्रसधन यहता है ॥१३०॥

अध्माम १० नगयभान नगय - मोजना - भै नगय आदद के प्रभाण एर्ॊ वर्धमास का क्रभानुसाय र्णवन कयता हॉ । नगयों का प्रभाण - नगय का प्रभाण तीन सौ धनुष से प्रायम्ब होकय एक-एक सौ दण्ड की र्ि ृ ी कयते हुमे आठ हजाय दण्ड तक प्राप्त होता है । इसके अठहत्तय बेद फनते है । इस प्रकाय नगयों के वर्स्ताय का प्रभाण प्राप्त होता है ॥१-२॥ एक सौ दण्ड से प्रायम्ब कय दश-दश दण्ड की र्वृ ि कयते हुमे तीन सौ दण्डऩमवधत सबी ऺुद्र नगयों के इक्कीस वर्स्ताय-प्रभाण प्राप्त होते है ॥३॥ याजाओॊ के उत्तभ ऩुयों की ऩरयधध का प्रभाण सोरह हजाय मन्ष्टप्रभाण से प्रायम्ब कय ऩाॉच सौ दण्ड कभ कयते हुमे चाय हजाय ऩमवधत कहा गमा है । इस प्रकाय इनके ऩच्चीस प्रभाणबेद फनते है ॥४॥

तीन सौ दण्ड से प्रायम्ब कय फीस-फीस दण्ड की र्वृ ि कयते सभम चाय सौ दण्डऩमवधत खेट के छ् प्रकाय के बेद र्र्णवत है । इनभे दो श्रेष्ठ, दो भध्मभ एर्ॊ दो कतनष्ठ प्रकाय के खेट होते है ॥५॥

उससे (चाय सौ दण्ड से) चोफीस-चौफीस दण्ड की र्वृ ि कयते हुमे चाय सौ तछमानफे दण्डऩमवधत द्रोणभुख र्ास्तु के ऩाॉच प्रकाय फनते है । मे इनके वर्स्तायभान कहे गमे है ॥६॥ दो सौ दण्ड से प्रायम्ब कयते हुमे ऩचास-ऩचास दण्ड की क्रभश् र्वृ ि चाय सौ दण्डऩमंधत की जाती है । इस प्रकाय खर्वट के वर्स्ताय के ऩाॉच प्रभाणबेद प्राप्त होते है ॥७॥ दो सौ से प्रायम्ब कय दश-दश दण्ड की र्वृ ि कयते हुमे तीन सौ चारीस दण्डऩमवधत तनगभ के वर्स्ताय का भान प्राप्त होता है । वर्स्तायभान की दृन्ष्ट से इसके ऩधद्रह बेद फनते है ॥८॥ शत दण्ड से प्रायम्ब कय एक-एक सौ दण्ड की र्ि ृ ी कयते हुमे ऩाॉच सौ ऩमवधत कोत्भकोरक का वर्स्ताय यक्खा जाता है । वर्स्तायभान की दृन्ष्ट से इसके ऩाॉच बेद होते है ॥९॥ वर्द्र्ान ् भनीवषमों ने ऩुयों के वर्स्ताय के प्रभाणों का इस प्रकाय र्णवन ककमा है । वर्डम्फ का वर्स्ताय भान तीन सौ

दण्ड से प्रायम्ब कय ऩचास-ऩचास दण्ड की र्वृ ि कयते हुमे ऩाॉच सौ दण्डऩमवधत होता है । इसके प्रभाण की दृन्ष्ट से सात बेद फनते है । ऩर्वर्र्णवत भान ही इनका (सभानऩ ु ाततक) भान होता है ॥१०-११॥ इन ऩुयाददकों की रम्फाई इनकी चौड़ाई की दग ु ुनी, तीन चौथाई, आधी अथर्ा चतुथांश अधधक होती है । अथर्ा चौड़ाई का षष्ठाॊश मा अष्टभाॊश अधधक रम्फाई यखनी चादहमे ॥१२॥ िप्रविधान प्राकाय-मोजना - नगय का प्राकायभण्डर (चायददर्ायी) ऩाॉच प्रकाय की होती है - चौकोय, आमताकाय, र्त्ृ ताकाय, र्त्ृ तामताकाय (रम्फाई सरमे र्त्ृ ताकाय) तथा गोरर्त्ृ ताकाय ॥१३॥

प्राकाय-भण्डर की रम्फाई दश, आठ, सात, ऩाॉच एर्ॊ चाय तथा चौड़ाई सात, छ्, ऩाॉच, चाय एर्ॊ तीन यखनी चादहमे ॥१४॥ र्प्र के भर का वर्स्ताय दो, तीन मा चा हस्त तथा ऊॉचाई सात, दश मा ग्मायह हस्त यखना चादहमे । इसके ऊध्र्व बाग का वर्स्ताय भर से तीन बाग कभ होना चादहमे । दे र्ारम आदद के फाहय एर्ॊ बीतय ऩरयखा (जरमुक्त खाई) होनी चादहमे ॥१५॥ िज्मास्थान त्माज्म स्थान - ऩेचक र्ास्तु-वर्धमास (चाय ऩद र्ास्तु) मा आसन र्ास्तुवर्धमास (एक सौ ऩद र्ास्तु) अथर्ा इन दोनों के भध्म आने र्ारे र्ास्त-ु वर्धमासों भें से ककसी का प्रमोग ककमा जा सकता है । फवु िभान व्मन्क्त को तनभावण कयते सभम र्ास्तु के सराददकों एर्ॊ वर्षभ स्थरों का ऩरयत्माग कयना चादहमे ॥१६॥

भागा र्हाॉ भागव की मोजना इच्छानुसाय वर्धधऩर्वक ऩर्व तथा उत्तय से प्रायम्ब कयते हुमे कयनी चादहमे ॥१७॥ भागो का वर्स्ताय एक दण्ड से प्रायम्ब कय आधा-आधा दण्ड फढ़ाते हुमे सात दण्डऩमवधत यखना चादहमे । इस प्रकाय वर्स्ताय की दृन्ष्ट से भागव के तेयह बेद कहे गमे है ॥१८॥ याजधानी याष्र (याज्म) के भध्म बाग भें , नदी के तनकट, श्रेष्ठ रोगो की जनसॊख्मा जहाॉ अधधक हो, ऐसा र्सतत-वर्धमास केर्र नगय होता है । उस नगय भें मदद याजबर्न हो तो उसे याजधानी कहते है ॥१९॥ चाय ददशाओॊ भें चाय द्र्ाय से मक् ु त, द्र्ायों ऩय शारमक् ु त गोऩयु , क्रम-वर्क्रम के स्थानों (फाजाय) से मक् ु त एर्ॊ सबी र्णो के आर्ास से मुक्त स्थान (नगय होता है ) ॥२०॥

सबी दे र्ों के भन्धदय से मुक्त स्थान को केर्र नगय कहा गमा है । (याजधानी के) ऩर्व एर्ॊ उत्तय ददशा भें गहया होता है तथा फाहय चायो ओय गीरी सभट्टी से तनसभवत प्राकाय होता है ॥२१॥

प्राकाय-भण्डर के फाहय चायो ओय ऩरयखा होती है । नगय (याजधानी) के यऺाथव सशवर्य होता है , जहाॉ से प्रत्मेक ददशा ऩय दृन्ष्ट यक्खी जातत है । याज्म के प्रहयी सैतनक ऩर्व एर्ॊ दक्षऺण ददशा भे भख ु कयके ऩहया दे ते है ॥२२॥ नगय भें ऊॉचे-ऊॉचे गोऩुय (प्रर्ेशद्र्ाय) होते है , न्जनभें अनेक भासरकामें होती है । उसभे सबी दे र्ों के भन्धदय, नाना प्रकाय की गर्णकामे एर्ॊ फहुत से उद्मान होते है ॥२३॥

महाॉ गज, अश्र्, यथ एर्ॊ ऩैदर सैतनक होते है । सबी प्रकाय के एर्ॊ सबी र्णव के रोग तनर्ास कयते है । इस नगय भें द्र्ाय एर्ॊ उऩद्र्ाय (छोटे प्रर्ेशद्र्ाय) होते है । नगय के बीतय अनेक प्रकाय के जनार्ास होते है ॥२४॥ इस प्रकाय का याजबर्न से मक् ु त नगय याजधानी कहराता है । जो र्न-प्रदे श भें न्स्थत होता है , जहाॉ सबी प्रकाय के रोग फसते है एर्ॊ क्रम-वर्क्रम के स्थर (हाट, फाजाय) से मुक्त ऩुय को नगय कहते है ॥२५॥ खेटादटबेद नदी अथर्ा ऩर्वत से तघये एर्ॊ शद्रों के तनर्ास से मक् ु त स्थान को खेट कहते है ॥२६॥ चायो ओय ऩर्वत से तघये हुमे, सबी र्णो के आर्ास से मुक्त स्थान को खर्वटक कहते है । खेट एर्ॊ खर्वट के भध्म न्स्थत घनी जनसॊख्मा र्ारे स्थान को कुब्ज कहते है ॥२७॥ अधम द्र्ीऩों से आमे हुमे र्स्तुओॊ से मुक्त, सबी प्रकाय के रोगों से मुक्त, क्रमवर्क्रमस्थर से मुक्त, यत्न, धन, ससलक के र्स्रों से मुक्त तथा वर्वर्ध प्रकाय के सुगन्धधमों (इर आदद) से मुक्त, सागय-तट ऩय न्स्थत एर्ॊ उससे सम्फि नगय को ऩत्तन कहते है ॥२८॥

शर-ु दे श के सभीऩ न्स्थत, मि ु प्रायम्ब कयने के सरमे सबी साभधग्रमों से मक् ु त तथा सेना एर्ॊ सेनाऩतत से मक् ु त

स्थान को सशवर्य कहते है । र्ही स्थान सबी प्रकाय के रोगों के आर्ास से मुक्त एर्ॊ याजबर्न से मुक्त होता है तथा फहुत-सी सेनाओॊ से मुक्त होता है , तो उसे सेनाभुख कहते है ॥२९-३०॥

नदी के ककनाये मा ऩर्वत के ऩास, याजबर्न तथा फहुत से सैतनकों से मुक्त तथा याजा के द्र्ाया स्थावऩत स्थान को स्थानीम कहते है ॥३१॥ नदी के उत्तय एर्ॊ दक्षऺण दोनों बागों भें अथर्ा सभद्र ु के ककनाये फसे हुमे स्थान को द्रोणभख ु कहते है । महाॉ व्माऩायी र्गव (प्रधान रूऩ से) तथा अधम सबी र्गो के रोग तनर्ास कयते है । ग्राभ के सभीऩ जनार्ास को वर्डम्फ कहा जाता है ॥३२-३३॥ र्न के भध्म भें न्स्थत जनस्थान को कोत्भकोरक कहा जाता है । जो स्थान चायो र्णों के रोगों से मुक्त हो, सबी प्रकाय के रोगों से फसा हो तथा अधधक सॊख्य़ा भें जहाॉ हस्तसशलऩी तनर्ास कयते हो, उसे तनगभ कहते है ॥३४॥ नदी, ऩर्वत एर्ॊ र्न से मक् ु त, जहाॉ की जनसॊख्मा अधधक हो एर्ॊ जहाॉ याजा तनर्ास कयते हों; ऐसे स्थान को स्कधधार्ाय कहते है । इसके ऩाश्र्व भे चेरयका जनार्ास होता है ॥३५॥ दग ु ा दग ु व के प्रकाय - दग ु व सात प्रकाय के होते है - धगरयदग ु ,व र्नदग ु ,व जरदग ु ,व ऩङ्कदग ु ,व इरयण (भरु) दग ु ,व दै र्तदग ु व एर्ॊ सभधश्रत दग ु व ॥३६॥

धगरयदग ु व ऩर्वत के भध्म, ऩर्वत के फगर मा ऩर्वत के सशखय ऩय न्स्थत होता है । र्नदग ु व की न्स्ततत जरहीन स्थान ऩय र्ऺ ु व भें धगरय एर्ॊ र्न दोनों दग ु ों के सभधश्रत रऺण होते है ॥३७॥ ृ ों के सघन र्न भें होती है । सभधश्रत दग

न्जस दग ु व की सुयऺा-व्मर्स्था प्राकृततक होती है , उसे दै र्दग ु व कहते है । न्जस दग ु व के फाहय कीचड़ (दरदर) हो, उसे ऩङ्कदग ु व कहते है । चायो ओय नदी मा सभुद्र से तघये दग ु व को जरदग ु व तथा र्न एर्ॊ जर से यदहत (ऊषय मा ये धगस्तान ऺेर भें न्स्थत) दग ु व को इरयण दग ु व कहते है ॥३८॥

दग ु व प्रत्मेक दृन्ष्ट से सबी रऺणों से ऩरयऩणव होना चादहमे । दग ु व भे अऺम जर, अधन एर्ॊ शस्रास्र होना चादहमे । दग ु व अत्मधत वर्स्तत ृ , उधनत एर्ॊ ठोस होना चादहमे । उसे प्राकाय-भण्डर एर्ॊ सबी द्र्ायों ऩय यऺकों से मुक्त होना चादहमे ॥३९॥

फाहय से दग ु व भें प्रर्ेश हे तु ऐसा भागव होना चादहमे, न्जस ऩय जर न हो, र्न द्र्ाया तछऩा हो तथा इस भागव से दग ु व भे प्रर्ेश कदठनाई से होता है । दग ु व का प्रर्ेशद्र्ाय गोऩुयभण्डऩ से मुक्त, सोऩानमुक्त हो एर्ॊ ढका न हो ॥४०॥

प्रर्ेशद्र्ाय ऩय दो कऩाट हो, न्जनभे चाय ऩरयघागवर (द्र्ाय को खुरने से योकने के सरमे रगी अगवरा) तथा एक हाथ

ऊॉची इधद्रकीर रगी होनी चादहमे । द्र्ाय ऩय भध्म भें काष्ठ की स्थणा (खम्बा) से मुक्त कऺ होना चादहमे , न्जसभें सभण्ठक (द्र्ाय ऩय रटकने र्ारी वर्शेष आकृतत) रगा हो । उस कऺ भें प्रर्ेश हे तु सीदढ़माॉ फनी होनी चादहमे , जो तछऩी हो ॥४१॥

द्र्ायों को भण्डऩ, सबा अथर्ा शारा के आकाय का फनाना चादहमे । इनकी मोजना फायह भें से ककसी एक प्रकाय की होनी चादहमे । फायह आकृतत-मोजनामें इस प्रकाय है - चौकोय, र्त्ृ त, आमत, नधद्मार्तव, कुक्कुट, इब (गजाकृतत), कुम्ब,

नागर्त्ृ त (कुण्डरीमुक्त सऩव), भग्नचतुय (गोराई र्ारे कोने से मुक्त चौकोय), बरकोण, अष्टकोण तथा नेसभखण्ड (कुछ गोराई सरमे आकृतत) ॥४२-४३॥

ईटों से तनसभवत प्राकाय की ऊॉचाई कभ से कभ फायह हाथ यखनी चादहमे । प्राकाय के भर की चौड़ाई ऊॉचाई की आधी होनी चादहमे । सबन्त्त इतनी चौड़ी होनी चादहमे , न्जससे उस ऩय सुगभता से चरा जा सके ॥४४॥ प्राकाय के बीतय बाग भें ऩाॊसच ु म (कच्ची सभट्टी की जोड़ाई) के ऊऩय अनेक सुयऺामधर रगाना चादहमे । चायो ओय ऩरयखा (खाई) होनी चादहमे एर्ॊ ऩाॊसुचम के ऊऩय अट्टारक फनाना चादहमे ॥४५॥

इसके चायो ओय सैतनकों की छार्नी होनी चादहमे । दग ु व भे वर्सबधन प्रकाय के रोगों का आर्ास, याजबर्न तथा गज, अश्र्, यथ एर्ॊ ऩैदर सेना होनी चादहमे ॥४६॥

दग ु व के बीतय अधन, तेर, ऺाय, नभक, औषधधमाॉ, सग ु धध, वर्ष, धातम ु ें, अङ्गाय (कोमरा), स्नामु (चभड़े की डोयी), सीॊग, फाॉस एर्ॊ इधधन की रकड़ी ऩमावप्त भारा भें होनी चादहमे ॥४७॥

दग ु व भे तण ु त काष्ठ एर्ॊ कठोय काष्ठ प्रबत भारा भें होनी ृ (ऩशुओॊ का चाया), चभड़ा, शाक (तयकायी), छार से मक्

चादहमे । दग ु व का कदठनाई से प्रर्ेश कयने मोग्म, कदठनाई से राॉघने मोग्म तथा कदठनाई से ऩाय कयने मोग्म होना चादहमे- ऐसा कहा गमा है ॥४८॥

यऺा के सरमे, वर्जम के सरमे एर्ॊ शरओ ु ॊ द्र्ाया अबेद्मता के सरमे दग ु व की आर्श्मकता होती है । दग ु -व तनर्ेश के

सभम प्राकाय के बीतय इधद्र, र्ासुदेर्, गुह, जमधत, कुफेय, दोनों अन्श्र्नीकुभाय, श्री, भददया, सशर्, दग ु ाव तथा सयस्र्ती दे र्ीदे र्ताओॊ को स्थावऩत कयना चादहमे ॥४९-५०॥

इस प्रकाय प्राचीन भनीषमों ने दग ु -व वर्धान का र्णवन ककमा है । नगयविन्मास नगय - मोजना - अफ क्रभश् सबी (नगयों) का वर्धमास सॊऺऩ े भें र्र्णवत ककमा जा यहा है ॥५१॥ ऩर्व से ऩन्श्चभ की ओय जाने र्ारे भागों की सॊख्मा फायह, दश, आठ, छ्, चाय मा दो होनी चादहमे । इसी प्रकाय उत्तय (से दक्षऺण जाने र्ारे) भागों की बी मोजना यखनी चादहमे । अथर्ा अमुग्भ (वर्षभ) सॊख्मा भें भागव होने चादहमे ॥५२॥

अमुग्भ सॊख्माओॊ भें ग्मायह, नौ, सात, ऩाॉच, तीन मा एक भागव होने चादहमे । मुग्भ (सभ) अथर् अमुग्भ (वर्षभ) ऩदों भें दो, तीन एर्ॊ एक अज (ब्रह्भा) का बाग होता है ॥५३॥

इस प्रकाय सबी नगयाददकों के भागो का र्णवन ककमा गमा है । दण्ड के सभान एक र्ीथी (भागव) को दण्डक कहते है ॥५४॥

उत्तय ददशा से आता हा एक भागव मदद ऩर्ोक्त भागव के सार भध्म भें सॊमक् ु त होता है तो उसे कतवरयदण्डक कहते है । मदद ऩर्व ददशा से ईटो से तनसभवत दो भागव आते है ॥५५॥

तो उसे फाहुदण्डक कहा जाता है । मदद चायो ददशाओॊ भें द्र्ाय हो तथा र्ीथी के भध्म भें दोनों ऩाश्र्ो भे फहुत से कुदट्टभमुक्त (ईटों से तनसभवत) भागव आकय सभरे एर् शेष न्स्थतत ऩर्वर्र्णवत यहे तो उसे कुदटकाभुख दण्डक कहते है ॥५६॥

ऩर्व से आने र्ारे तीन भागव तथा उत्तय से आने र्ारे तीन भागव जफ आऩस भें सॊमक् ु त होते है तो उसे करकाफधधदण्डक कहा गमा है ॥५७॥

मदद ऩर्व से तीन भागव एर्ॊ उत्तय से तीन भागव तनकरें तथा इनभें एक-एक के फाद अनेक कुदट्टभभागव हो तो उसे र्ेदीबद्रक कहते है । मह भागव-मोजना नगयाददकों के सरमे उऩमुक्त होती है ॥५८-५९॥

भागव की स्र्न्स्तक-मोजना स्र्न्स्तक ग्राभ के सरमे कही गई है । इसभें छ् भागव ऩर्व से एर्ॊ छ् भागव उत्तय से तनकरते है ॥६०॥ ऩर्व-र्र्णवत भागव-मोजना के अनुसाय भागो की यचना स्र्न्स्तक होती है । ऩर्व से एर्ॊ उत्तय से तनकरने र्ारे भागो की सॊख्य़ा चाय होती है । एक भागव ब्रह्भस्थान से तनकरता है । तीन कुदट्टभभागव ऩर्व ददशा भे होते है । इस भागवमोजना को बद्रक कहा जाता है । इस भागवमोजना का प्रमोग नगयादद के वर्धमास भे ककमा जाता है ॥६१-६२॥

ऩाॉच भागव ऩर्व ददशा से एर्ॊ ऩाॉच भागव उत्तय ददशा से तनकरते है । फहुत से कुदट्टभ भागव तनकरते है । इस भागवमोजना को बद्रभुख कहते है ॥६३॥ छ् भागव ऩर्व ददशा से एर्ॊ छ् भागव उत्तय ददशा से तनकरते है तथा फहुत से कुदट्टभ भागव होते है , तो उसे बद्रकलमाण भागवमोजना कहते है ॥६४॥ ऩर्व से ऩन्श्चभ की ओय जाने र्ारे सात भागव तथा उत्तय से (दक्षऺण की ओय जाने र्ारे) सात भागव हो तथा शेष मोजना ऩर्वर्त ् ९फहुत से कुदट्टभ भागव) हो तो उसे भहाबद्र भागवमोजना कहते है ॥६५॥

आठ भागव ऩर्व ददशा से एर्ॊ आठ भागव उत्तय ददशा से तनकरते है । (इनके अततरयक्त) फायह भागो एर्ॊ फहुत से अगवर कुदट्टमों से (अगवरा के सभान आऩस भें गुन्म्पत) मुक्त भागव-वर्धमास को र्स्तुसुबद्र कहते है ॥६६॥ नौ द्र्ाय ऩर्व से तनकरते हो तथा नौ द्र्ाय उत्तय से तनकरते हो, इन भागो ऩय द्र्ाय एर्ॊ उऩद्र्ाय (छोटे प्रर्ेशद्र्ाय) हो, इन भागो के साथ अगवर-कुदट्टभ भागव बी हो तथा नगय भे याजगह ृ बी हो तो उसकी सॊऻा जमाङ्ग होती है ॥६७६८॥

ऩर्व ददशा से दश भागो का प्रायम्ब होता हो तथा उत्तय ददशा से बी दश भागव तनकरते हो; साथ ही इन भागो के साथ अनेक अगवरामुक्त कुदट्टभ भागव हो तथा नगय भे याजबर्न बी हो तो उसे श्रेष्ठ जनों ने वर्जम सॊऻा प्रदान की है ॥६९॥

(सर्वतोबद्र मोजना भे) ऩर्व से ग्मायह भागव तथा उत्तय से ग्मायह भागव तनकरते हो, ब्रह्भबाग क ऩन्श्चभ भे इन्च्छत स्थान ऩय याजा का आर्ास हो, उसके सम्भुख फहुत वर्शार आॉगन होना चादहमे ॥७०-७१॥ इसके ऩश्चात अबीष्ट स्थन ऩय यातनमों का आर्ास होना चादहमे । ऩर्व से तनकरे भागव को याजर्ीथी कहते है ॥७२॥ याजर्ीथे के दोनो ऩाश्र्ों भे धनाढ्म रोगों की भासरका-ऩङ्न्क्त (बर्नो की ऩङ्न्क्त होनी चादहमे । उनके ऩाश्र्ों भे व्माऩारयमों का आर्ास होना चादहमे । उसके दक्षऺण भें तधतुर्ामों (जर ु ाहो) का आर्ास होना चादहमे । उसके उत्तय भे कुम्हायों का आर्ास होना चाइमे औय इनके सभीऩ ही जात्मधतयो (छोटी जातत र्ारों) का आर्ास होना चादहमे ॥७३-७४॥

शेष सबी ऩर्वर्र्णवत तनमभों के अनस ु ाय होना चादहमे । मह सर्वतोबद्र व्मर्स्था है । इस प्रकाय प्राचीन भतु नमों ने नगय के सोरह बेदों का र्णवन ककमा है ॥७५॥

नगय के भध्म ऩद भें न तो भागव फाधधत होना चादहमे तथा न ही र्हाॉ चौयाहा होना चादहमे । शेष की मोजना याजा की इच्छानुसाय भध्म भे कयनी चादहमे, न्जनका महाॉ र्णवन नही ककमा गमा है ॥७६॥ अन्तयाऩण हाट-मोजना - अफ भैं (भम) कुटुम्फार्सरक (ऩरयर्ायों के आर्ास की ऩॊन्क्त) तथा फाजायों का र्णवन कयता हॉ ॥७७॥ फाजाय के चायो ओय यथ के चरने मोग्म भागव हो एर्ॊ भध्म भे व्माऩारयमों के गह ृ ों की ऩङ्न्क्त होनी चादहमे । उनके दक्षऺण ऩाश्र्व भे जुराहों के गह ृ होने चादहमे ॥७८॥

उत्तय बाग भे कुम्हायो के बर्न होने चादहमे । अधम सशन्लऩमों के गह ु त होने चादहमे ॥७९॥ ृ बी यथभागव से सॊमक् जो भागव ब्रह्भ-ऩद को घेयता हो, उस ऩय ऩान, पर एर्ॊ सायमुक्त साभधग्रमो का हाट फनाना चादहमे ॥८०॥ ईशान से भहे धद्र ऩद तक हाट-फाजाय तनसभवत कयना चादहमे । र्ही ऩय भछरी, भाॉस, सखे ऩदाथव एर्ॊ शाक (सब्जी, तयकायी) का हाट बी होना चादहमे ॥८१॥ भहे धद्र ऩद से प्रायम्ब कय अन्ग्नकोण-ऩमवधत बक्ष्म एर्ॊ बोज्म (खाने-ऩीने मोग्म) ऩदाथों का हाट फनाना चादहमे तथा अन्ग्न से गह ृ ऺतऩमवधत बाण्डों (फयतन) का हाट होना चादहमे ॥८२॥ गह ृ द से ऩष्ु ऩदधत ृ ऺत से तनऋतत के ऩद तक काॊस्म आदद धातुओॊ से तनसभवत ऩदाथों का हाट होना चादहमे । वऩतऩ के ऩद तक र्स्रों का हाट होना चादहमे ॥८३॥

ऩष्ु ऩदधत से सभीय ऩदऩमवधत चार्र, अधन एर्ॊ बसे के फाजाय होने चादहमे । र्ामु से बलराट के ऩद तक र्स्र आदद के हाट होने चादहमे ॥८४॥

उसी स्थान ऩय नभक आदद ऩदाथव एर्ॊ तेर आदद का हाट होना चादहमे । बलराट से ईश तक सग ु धध एर्ॊ ऩष्ु ऩ आदद का हाट होना चादहमे ॥८५॥

इस प्रकाय र्सतत-वर्धमास (नगयादद) भे चायो ओय नौ प्रकाय के हाटों का र्णवन ककमा गमा है । भध्म बाग भे जाने र्ारे भागो ऩय यत्न, सर् ु णव एर्ॊ र्स्रो का हाट होना चादहमे ॥८६॥ इनके अततरयक्त भान्ञ्जष्ठ (भजीठ, यॊ ग), कारी सभचव, ऩीऩर, हारयद्र (हलदी), शहद, घी, तेर तथा औषध के हाट सबी स्थानों ऩय होने चादहमे ॥८७॥ आमव, वर्र्स्र्ान, सभर एर्ॊ ऩधृ थर्ीधय के ऩद ऩय शास्ता, दग ु ाव, गजभुख एर्ॊ रक्ष्भी का स्थान होना चादहमे ॥८८॥ न्जस प्रकाय ग्राभ भे उसी प्रकाय (नगय आदद भे बी) चायो ओय दे र्ारम होना चादहमे । इससे कुछ दय सबी र्णव के भनुष्मों का आर्ास होना चादहमे ॥८९॥

नगय से दो सौ दण्ड दय रे जाकय ऩर्व अथर्ा आग्नेम कोण भे चण्डारों एर्ॊ कोसरकों के कुटीय होने चादहमे ॥९०॥ महाॉ न्जन सफका र्णवन नही ककमा गमा है , र्े सफ उसी प्रकाय होंगे, जैसे ग्राभों भे र्र्णवत है । ऩत्तन भें ऋतऩ ु थ

(सीधी सड़क) होती है एर्ॊ र्हाॉ फाजाय नही होते है । शेष नगय आदद स्थानों भे मथोधचत (आर्श्मकतानुसाय) हाट आदद होना चादहमे ॥९१॥

प्राचीन आचामो ने दस प्रकाय के र्ासमोग्म अधधष्ठानो का र्णवन ककमा है - स्नानीम, दग ु ,व ऩयु , ऩत्तन, कोत्भकोर, द्रोणभुख, तनगभ, खेट, ग्राभ तथा खर्वट । (इनकी स्थाऩना बौगोसरक न्स्थत के अनुसाय होती है ) ॥९२॥

इस प्रकाय तधरों से ग्रहण कय सॊऺेऩ भे बसभ, दे र्ताओॊ, चाय र्णों, जात्मधतयो (सङ्कय जातत), ग्राभादद के प्रभाण, भागववर्धमास का सुधदय सजार्ट के साथ र्णवन ककमा गमा है ॥९३॥ याजा को भाऩन आदद कामव भें तनऩुण चायो स्थऩतत आदद को गाम एर्ॊ ऩधृ थर्ी प्रदान कयना चादहमे । ऐसा कयने से

जफ तक सॊसाय भे चधद्रभा एर्ॊ ताये यहें गे तफ तक र्ह याजा प्रसधनताऩर्वक ऩधृ थर्ी ऩय धन आदद अनेक सभवृ िदामक र्स्तुओॊ से मुक्त एर्ॊ सर्वदा प्रसधन यहता है ॥९४॥ इतत भमभते र्स्तश ु ास्रे नगयवर्धानो

अध्माम ११ बूमभ के तर एिॊ आमाभ -

अफ भै (भम) सॊऺेऩ भे क्रभानस ु ाय बसभरम्फवर्धान का र्णवन कयता हॉ । ऺम (कभ कयते हुमे) एर्ॊ र्वृ ि (फढाते हुमे) वर्धान के अनुसाय वर्धमास-बेद इस प्रकाय है - चौकोय, आमताकाय, गोराकाय, रम्फाई सरमे गोराकाय, अष्टकोण, षटकोण एर्ॊ द्व्मस्रर्त्ृ त (दो कोणों के साथ गोराकाय) ॥१-२॥

इसे बसभरम्फ कहते है । एक बसभ (के बर्न) का भान तीन मा चाय हस्त से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ की र्वृ ि कयते हुमे चाय प्रकाय का होता है ॥३॥

ऩाॉच मा छ् हाथ से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे ग्मायह मा फायह हाथ तक दो तर र्ारे बर्न के चाय प्रकाय के भान होते है ॥४॥ तीन तर र्ारे बर्न के सात मा आठ हाथ से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे ऩधद्रह मा सोरह हस्तऩमवधत ऩाॉच प्रकाय के भान होते है ॥५॥ नौ मा दश हाथ से प्रायम्ब कय ऩधद्रह मा सोरह हाथ तक चाय औय ऩाॉच तर र्ारे बर्न के चाय प्रकाय के भान र्र्णवत है ॥६॥ अथर्ा एक तर का ऺुद्र प्रभाण एक हाथ मा दो हाथ कहा गमा है । कुछ वर्द्र्ान ् दे र्ों एर्ॊ भनुष्मो के कई तर

र्ारे बर्न के वर्स्तायप्रभाण भें आधा हाथ जोड़ने मा कभ कयने के सरमे कहते है । मह सभ मा वर्षभ सॊख्मा र्ारे सबी हस्त-प्रभाण के सरमे है । (रम्फाई के सरमे) वर्स्तायप्रभाण भे तीन के साथ वर्स्ताय का सात, छ्, ऩाॉच, चाय मा ततन अॊश अधधक जोड़ना चादहमे ॥७-८॥ शान्धतक, ऩौन्ष्टक, जमद, अद्भत ु एर्ॊ सार्वकासभक बर्नों भे ऩर्ोक्त प्रभाण के अततरयक्त बर्न की ऊॉचाई उसके चौड़ाई की दग ु ुनी, डेढ़गुनी अथर्ा सर्ा गुनी अधधक होनी चादहमे ॥९॥

चौड़ाई भे ऩधद्रह हाथ से कभ भाऩ का बर्न ऺुद्रवर्भानक होता है । सरह मा अट्ठायह हाथ से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ फढ़ाना चादहमे ॥१०॥ (दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे) सत्तय हाथ तक भाऩ रे जाना चादहमे । चाय तर से फायह तरऩमवधत बर्न के सत्ताईस बेद होते है एर्ॊ इनभें से प्रत्मेक के तीन बेद होते है ॥११॥ तेईस मा चौफीस हाथ से प्रायम्ब कय एक सौ हाथ तक तीन-तीन हाथ फढ़ाते हुमे बर्न के सत्ताईस प्रकाय के ऊॉचाई के प्रभाण-बेद प्राप्त होते है ॥१२॥ इस प्रकाय उॉ चे बर्नों के श्रेष्ठ, भध्मभ एर्ॊ अधभ बेद प्राप्त होते है । तेयह मा चौदह हाथ से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे ऩैसठ मा छाछठ हाथ ऩमवधत इनके भाऩ प्राप्त होते है । इसी प्रकाय ऩर्वर्र्णवत सॊख्माओॊ द्र्ाया चाय तर के बर्न से रेकय फायह तर तक बर्नों के प्रकाय प्राप्त होते है ॥१३-१४॥ सरह मा अट्ठायह हाथ से प्रायम्ब कय ऩञ्चानफे मा तछमानफे हाथ तक तीन-तीन हाथ फढ़ाते हुमे बर्न की ऊॉचाई का प्रभाण प्राप्त होता है ॥१५॥

उऩमक् ुव त सबी बर्नों के श्रेष्ठ, भध्मभ एर्ॊ कतनष्ठ बेद होते है । नौ मा दश हाथ से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ फढ़ाते

हुमे ऩचऩन मा छप्ऩन हाथऩमवधत चौफीस प्रकाय के वर्स्ताय प्रभाण - प्राप्त होते है । मे बर्न ऩाॉच तर से प्रायम्ब होकय फायह तर तक होते है ॥१६-१७॥ सात, आठ मा नौ तर के बर्नों का भान के साथ र्णवन ककमा गमा । भान भें कुशर स्थऩतत इन तनमभों का प्रमोग कयते हुमे फायह तरऩमवधत बर्नों का तनभावण कय सकता है ॥१८॥

सशर् दे र्ता से सम्फि दे र्ारम फायह, तेयह अथर्ा सोरह तर का होता है , न्जसका वर्स्ताय क्रभश् छत्तीस, फमारीस एर्ॊ ऩचास हाथ कहा गमा है ॥१९॥ बर्न का वर्स्ताय स्तम्ब के फाहय से भाऩना चादहए एर्ॊ इसकी ऊॉचाई इसके जधभ (भर) से प्रायम्ब कय स्तवऩकाऩमवधत रेनी चादहमे । कुछ वर्द्र्ान ् बर्नकी ऊॉचाई सशखय-ऩमवधत भानते है ॥२०॥ फड़े बर्नों की ऊॉचाई कय-प्रभाण भें दी गई है । इनका वर्स्तय दश भे सातर्ाॉ बाग होना चादहमे ॥२१॥ छोटे बर्नों की ऊॉचाई उनके वर्स्तय की दग ु ुने होनी चादहमे । सार्वबौभ दे र्ों का भन्धदय फायह तरों का होना चादहमे ॥२२॥

याऺस, गधधर्व एर्ॊ मऺो का बर्न एकादश तर का तथा ब्राह्भणों का बर्न नौ मा दश तर का होना चादहमे ॥२३॥ ऩाॉचर्े प्रकाय का बर्न मुर्याजों एर्ॊ याजाओॊ का होता है , जो सात तर का होता है । चक्रर्ती याजाओॊ का बर्न छ् तर से प्रायम्ब कय ग्मायह तरऩमवधत होता है ॥२४॥

र्ैश्मों एर्ॊ शद्रों का बर्न तीन एर्ॊ चाय तर का होना चादहमे तथा ऩट्टबत ृ याजाओॊ (छोटे याजाओॊ) का बर्न ऩाॉच तर का होना चादहमे ॥२५॥

कुशर स्थऩतत एक सौ हाथ से अधधक ऊॉचे तथा सत्तय हाथ से अधधक वर्स्तत ृ बर्न का प्रभाण अबीष्ट नहीॊ भानते है ॥२६॥

भैने (भम ऋवष ने) वर्सबधन ऊॉचई र्ारे एर्ॊ वर्स्ताय र्ारे अत्मधत छोटे , भध्मभ एर्ॊ फडे बर्नों का र्णवन प्राचीन वर्द्र्ानों के भतानस ु ाय ककमा । इस प्रकाय मह ब्रह्भा आदद दे र्ों एर्ॊ भनष्ु मो के बर्नो का र्णवन तनमभानस ु ाय ककमा गमा ॥२७॥

इतत भमभते र्स्तश ु ास्रे बरम्फवर्धानो नाभैकादशोऽध्माम्

अध्माम १२ मिरान्मास -

दे र्ों के ब्राह्भणों के एर्ॊ अधम र्णव र्ारों के बर्नों के गबवधमास (सशराधमास) की वर्धध का बरी-बाॉतत एर्ॊ सॊऺेऩ भे अफ र्णवन ककमा जा यहा है ॥१॥ सबी ऩदाथों से मक् ु त गबव (बर्न की नीॊर् का गत) सम्ऩदा का स्थर होता है तथा ककसी ऩदाथव के कभ होने से अथर्ा गबवधमास न होने से र्ह गबव सबी प्रकाय की वर्ऩन्त्तमों का कायण (उस ऩय तनसभवत बर्न एर्ॊ बर्न के तनर्ाससमों के सरमे) फनता है ॥२॥ इससरमे सबी प्रकाय के प्रमत्नऩर्वक गबव का धमास कयना चादहमे । गबव के गतव की गहयाई को अधधष्ठान की ऊॉचाई तक सभतर कयना चादहमे ॥३॥ गतव को ंटटों एर्ॊ ऩत्थयो से सभ एर्ॊ चौकोय कयना चादहमे । ऩानी से गड्ढे को बयने के फाद इसके भर भे सबी प्रकाय की सभदट्टमाॉ डारनी चादहमे ॥४॥ मह भन्ृ त्तका नदी से, ताराफ से, अधन के खेत से, ऩर्वत से, फाॉफी से, हर से, फैर के सीॊग से एर्ॊ गजदधत से प्राप्त होती है ॥५॥

उसके ऊऩय गतव के भध्म भें ऩद्म (रार कभर) की जड़, ऩर्व ददशा भें उत्ऩर (नीरकभर) की जड़ एर्ॊ दक्षऺण भें कुभद ु (की जड़) डारनी चादहमे ॥६॥ ऩन्श्चभ ददशा भें सौगन्धध (एक प्रकाय की सुगन्धधत घास), उत्तय ददशा भें नीर-रोह (नीरे मा कारे यॊ ग का धातु)

डारना चादहमे । उनके ऊऩय आठो ददशाओॊ भें आठ धाधमशासर (चार्र का एक प्रकाय), व्रीदह (चार्र का एक प्रकाय), कोद्रर् (कोदो), कङ्कु, भद् ु ग (भॉग), भाष (उड़द), कुरत्थ (कुरथा) एर्ॊ ततर को प्रदक्षऺण क्रभ से ईशान से प्रायम्ब कयते हुमे गतव भे डारना चादहमे ॥७-८॥ ऩेटी उसके ऊऩय ताॉफे से तनसभवत भञ्जषा (ऩेटी, फाक्स) यखना चादहमे । प्रभाण की दृन्ष्ट से मह ऩार चौड़ाई भें तीन मा चाय अॊगुर से प्रायम्ब कयते हुमे दो-दो अॊगुर की र्वृ ि के साथ ऩच्चीस-छब्फीस अॊगुरऩमवधत फायह प्रकाय का होता है । इसकी ऊॉचाई इसकी चौड़ाई के फयाफय अथर्ा आठ, छ् मा ऩाॉच बाग कभ यखनी चादहमे ॥९-१०॥ उऩमुक् व त भाऩ एक से फायह तरऩमवधत बर्नों के क्रभानुसाय र्र्णवत है । (अथर्ा) ऩादरम्फ (स्तम्ब) के वर्धान के अनस ु ाय गह ृ की ऊॉचाई के तीसये बाग के प्रभाण को ग्रहण कयना चादहमे ॥११॥

अथर्ा बर्न के स्तम्ब के वर्ष्कम्फ (घेया) से आठ बाग कभ भञ्जषा का भाऩ यखना चादहमे । भञ्जषा की चौड़ाई पेरा (गतव के तर का भेहयाफ) का तीन चौथाई बाग मा ऩर्वर्र्णवत भाऩ के अनुसाय यखना चादहमे ॥१२॥ भञ्जषा की आकृतत बरर्गव भण्डऩ के सदृश, र्त्ृ ताकाय अथर्ा चौकोय होना चादहमे । इसभे ऩच्चीस कोष्ठ मा नौ कोष्ठ होना चादहमे ॥१३॥

पेरा की ऊॉचाई के तीन बाग कयने चादहमे । उसके एक बाग के फयाफय कोष्ठ की सबन्त्त की ऊॉचाई होनी चादहमे । उस सबन्त्त की भोटाई दो, तीन मा चाय मर् (वर्ना तछरके र्ारे मर् के भध्म बाग की चौड़ाई) के फयाफय यखनी चादहमे । उऩऩीठ र्ास्तुवर्धमास ऩय ऩच्चीस र्ास्तुदेर्ों को स्थावऩत कयना चादहमे ॥१४॥ नीर् भे र्ास्त-ु ऩजन की साभग्री यखना - न्जस ददन गबवस्थाऩन का वर्धान कयना हो, उसके एक ददन ऩर्व गतव के ऊऩय की (आस-ऩास की) बसभ को सबी प्रकाय के गधधो से सुर्ाससत कय ऩुष्ऩों तथा दीऩकों से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । भञ्जषाऩार को ऩञ्चगव्म (गाम का दध, दही, घी, भर एर्ॊ गोफय) से स्र्च्छ कय उस ऩय सर रऩेटना चादहमे । इसके ऩश्चात ् बसभ ऩय शुि शासर का धान बफछाना चादहमे ॥१५-१६॥ उस शासर के आस्तयण ऩय चन्ण्डत अथर्ा भण्डक र्ास्तुऩद का वर्धमास कय श्र्ेत तण्डुर की धाया के द्र्ाया ब्रह्भा आदद र्ास्तुदेर्ों का ऩदवर्धमास कयना चादहमे ॥१७॥

र्ास्तु-दे र्ों की ऩजा गधध एर्ॊ ऩुष्ऩ आदद से कयके सॊसाय के स्र्ाभी (सशर्) का जऩ कयना चादहमे । इसके ऩश्चात

ऩाॉच-ऩाॉच करशो का धमास कयना चादहमे । इन करशों को र्स्रों से सजाना चादहमे , उनभें सुगन्धधत जर से बयना चादहमे तथा गधध एर्ॊ ऩुष्ऩों से उनकी ऩजा कयनी चादहमे । इन करशों को दोषयदहत, तछद्रयदहत एर्ॊ एक सर (एक राइन) भें यक्खा होना चादहमे ॥१८-१९॥

शासर धाधम के ऊऩय तनसभवत स्थन्ण्डर भण्डर के ऊऩय प्रदक्षऺणक्रभ से (ऩर्व, दक्षऺण, ऩन्श्चभ एर्ॊ उत्तय) गधध एर्ॊ ऩुष्ऩ आदद से र्ास्तुदेर्ों को तनमभानुसाय फसर प्रदान कय एर्ॊ उनकी ऩजा कयने के ऩश्चात ् भञ्जषा-ऩार को श्र्ेत र्स्र से रऩेटना चादहमे । उसके ऊऩय श्र्ेत र्स्र को पैराना चादहमे एर्ॊ उसके ऊऩय दबव (कुश) बफछाना चादहमे ॥२०-२१॥

तदनधतय सरग्राही आदद के द्र्ाया सम्भातनत फवु िभान एर्ॊ र्ास्तश ु ास्र के ऻाता स्थऩतत को शुि जर ऩान कय याबर को उऩर्ास कयना चादहमे ॥२२॥

(अगरे ददन) भञ्जषा भे प्रमत्नऩयक धाधम आदद र्स्तुओॊ को यखना चादहमे । मे ऩदाथव है -सोने के शासर, चाॉदी के

व्रीदह, ताॉफे के कुरत्थ, याॉगे के कङ्कु, सीसे के उड़द, अमस (रोहे ) के भॉग, अमस ् के कोदो तथा ऩाये के ततर ॥२३-२४॥ उऩमुक् व त र्स्तुओॊ को ईशान कोण से प्रायम्ब कयते हुमे (प्रदक्षऺणक्रभ से) आठो ददशाओॊ (एर्ॊ कोणों) भें यखना चादहमे । इसके ऩश्चात ् जमधत के ऩद ऩय ससधदय एर्ॊ बश ृ ऩय हरयतार यखना चादहमे ॥२५॥ वर्तथ के ऩद ऩय भन्सशरा (भैनससर), बङ् ृ गयाज ऩय भाक्षऺक (रार खड़ड़मा), सुग्रीर् ऩय राजार्तव, शोष ऩय गेरु,

गणभुक्य़ ऩय अञ्जन, उददय ऩय दयद (रार ताॉफा), भध्म बाग ऩय ऩद्मयाग (रूफी ऩत्थय), भयीधच ऩय भॉगा, सवर्धद्र ऩय ऩष्ु ऩयाग, वर्र्स्र्ान ् ऩय र्ैदमव भर्ण, इधद्रजम ऩय हीया, सभर ऩय इधद्रनीर, रुद्रयाज ऩय भहानीर, भहीधय ऩय भयकत

(ऩधना) एर्ॊ आऩर्त्स ऩय भोती का स्थाऩन कयना चादहमे । इन सबी ऩदाथों को भध्म से प्रायम्ब कय ऩर्व क्रभ से क्रभानुसाय यखना चादहमे । ॥२६-२७-२८-२९॥ उऩमुक् व त कोष्ठों भे इन ओषधधमों को ईशान कोण से प्रायम्ब कयते हुमे यखना चादहमे - वर्ष्णुक्राधता, बरशरा, श्री, सहा, दर् ु ाव, बङ् ृ गक, अऩाभागव तथा एकऩराब्ज ॥३०॥

जमधत आदद के कोष्ठों भें चधदन, अगरु, कऩय, रर्ङ्ग, इरामची, रतापर, तक्कोर एर्ॊ इना- इन आठ गधधमुक्त ऩदाथों को यखना चादहमे ॥३१॥

चायो ददशाओॊ भे सर् ु णव, अमस ्, ताम्र एर्ॊ रुप्मक (रूऩा, चाॉदी) द्र्ाया तनसभवत स्र्न्स्तक यखना चादहमे । सबी दे र्ों केसरमे मे सबी साभाधम है ; ककधतु उनको उनके वर्शेष धचह्नों से मुक्त ककमा जाता है ॥३२॥

सशर्ारम का सशराधमास - सशर्ारम के बगबव भें ऩर्व ददशा से प्रायम्ब कय सर् ु णव-तनसभवत कऩार, शर, खटर्ाङ्ग, ऩयशु, र्ष ु , हरयण एर्ॊ ऩाश का गबवधमास कयना चादहमे ॥३३॥ ृ ब, वऩनाक धनष

उऩमुक् व त क्रभानुसाय ही आठ भॊगर ऩदाथव यखना चादहमे । दऩवण, ऩणवकुम्ब (जर बया घट), र्ष ृ ब, चाभय का जोड़ा,

श्रीर्त्स, स्र्न्स्तक, शॊख एर्ॊ दीऩ - मे सबी दे र्ों के अष्टभॊगर होते है । स्थाऩक के अनस ु ाय स्थऩतत को इधहे क्रभश् स्थावऩत कयना चादहमे ॥३४-३५॥

उस ऩवर्र एर्ॊ दृढॊ भञ्जषाऩार को ढक्कन से ढॉ क कय उसकी गधध आदद से ऩजा कये एर्ॊ एक करश के जर से उसे स्नान कयामे ॥३६॥ न्जस सभम ब्राह्भण र्ेदभधरों का उच्चायण कय यहे हो, शॊख एर्ॊ बेयी आदद र्ाद्मों के स्र्य हो यहे हो, कलमाण एर्ॊ जम का उद्घोष हो यहा हो, उस सभम स्थऩतत एर्ॊ स्थाऩक को अऩने शयीय को ऩष्ु ऩ, कुण्डर, हाय, कटक (फाजफधद) एर्ॊ अॊगठी- इन ऩञ्चाङ्ग आबषणों से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । मे आबषण सुर्णवतनसभवत होने चादहमे । ऩवर्र

होकय उधहें सोने का जनेऊ, नमा उत्तयीमक (शयीय के ऊऩय ओढ़ा जाने र्ारा) र्स्र, श्र्ेत, (चधदन आदद) का रेऩ एर्ॊ ससय ऩय श्र्ेत ऩुष्ऩ धायण कयना चादहमे ॥३७-३८-३९॥ (इसके ऩश्चात ्) ऩधृ थर्ी दे र्ी का ध्मान कयना चादहमे । र्ह ददग्गजों से मुक्त हो, सागय एर्ॊ ऩर्वतयाज से मुक्त हो तथा अनधत नाग के ऊऩय न्स्थत हो (इस रूऩ भें ऩधृ थर्ी का ध्मान कयना चादहमे ) ॥४०॥

(ऩधृ थर्ी का ध्मान कयने के ऩश्चात ्) सन्ृ ष्ट, न्स्थतत एर्ॊ वर्नाश के आधायबत सॊसाय के स्र्ाभी का जऩ कयना चादहमे । ब्रह्भा आदद दे र्ों एर्ॊ दे वर्मों के (भन्धदय के) दक्षऺण द्र्ाय के स्तम्ब के भर भें, होभस्तम्ब के नीचे,प्रततस्तम्ब के नीचे, ऩादक ु ा से प्रतत के नीचे उधचत यीतत से यखना चादहमे ॥४१-४२॥ तनमत स्थान से ऊॉचा मा नीचा गबव-स्थाऩन सम्ऩन्त्त के वर्नाश का कायण होता है । भञ्जषा-स्थाऩन के ऩश्चात ् साय-र्ऺ ृ के काष्ठ मा ऩाषाण-खण्डो से बसभ को चौकोय फनाना चादहमे ॥४३॥

इस ऩार के ऊऩय ऩार का दग ु ना चौड़ा एर्ॊ ऩाॉच अॊगुर भोटा प्रततभापरक स्थावऩत कयना चादहमे ॥४४॥ उसके ऊऩय चाय ंटटो से जुड़े हुमे स्तम्ब की स्थाऩना कयनी चादहमे । र्ह स्तम्ब यत्न एर्ॊ ओषधधमों से मुक्त हो एर्ॊ र्स्र तथा ऩष्ु ऩ आदद से अरङ्कृत हो ॥४५॥ इस प्रकाय सशर्ारम के ब-गबव वर्धमास की वर्धध का र्णवन ककमा गमा । अफ अधम भन्धदयों के गबव-वर्धमास का र्णवन ककमा जा यहा है ।

विष्णुगबा विष्णुभल्न्दय का मिरान्मास - वर्ष्णुदेर् के बर्न भें भध्म बाग भे सुर्णवतनसभवत चक्र स्थावऩत कयना चादहमे । शङ्ख, धनष ु , दण्ड सर् ु णव-तनसभवत एर्ॊ रोहे की तरर्ाय होनी चादहमे । धनष ु एर्ॊ शङ्ख र्ाभ बाग भें तथा खड्ग एर्ॊ दण्ड दक्षऺण बाग भें होना चादहमे । साभने सोने का गरुड स्थावऩत कयना चादहमे ॥४६-४७॥

ब्रह्भा के भन्धदय का सशराधमास - ब्रह्भा के भन्धदय भें जनेऊ, ॐकाय, स्र्न्स्तक एर्ॊ अन्ग्न सुर्णवतनसभवत स्थावऩत

कयना चादहमे । ऩद्म, कभण्ड्रौ, अऺभारा एर्ॊ कुश ताम्रतनसभवत यखना चादहमे । ब्रह्भा के स्थान के भध्म भें कभर स्थावऩत होना चादहमे । ॥४८-४९॥

उसके भध्म भें जनेऊ से रऩेटा हुआ ॐकाय, चायो ददशाओॊ भें स्र्न्स्तक तथा र्ाभ बाग भे कभण्डरु स्थावऩत कयना चादहमे ॥५०॥ र्ाभ बाग भें कुश एर्ॊ अऺभारा तथा सम्भुख तीक्ष्ण अन्ग्न स्थावऩत कयनी चादहमे । ब्रह्भस्थान भे स्थावऩत होने र्ारे ब्रह्भगबव का र्णवन इस प्रकाय ककमा गमा ॥५१॥

कानताकेम -भल्न्दय का मिरान्मास - षण्भुख (कान्त्तवकेम) के भन्धदय के गबव भे सुर्णवभम स्र्न्स्तक, अऺभारा, शन्क्त,

चक्र, कुक्कुट (भग ु ाव) एर्ॊ भोय तथा रोहे की शन्क्त भध्म बाग भे स्थावऩत कयनी चादहमे । र्ाभ बाग भे कुक्कुट एर्ॊ दादहने बाग भे भोय यखना चादहमे । अऺयभारा को सम्भुख स्थावऩत कयना चादहमे ॥५२-५३॥

अधम दे र्ों के सरमे गबवधमास की साभग्री - सवर्त ृ दे र्ता के बर्न भें कभर, अॊकुश, ऩाश एर्ॊ ससॊह तथा इधद्र के बर्न भें र्ज्र, गज, तरर्ाय एर्ॊ चाभय स्थावऩत कयना चादहमे ॥५४॥

अन्ग्न के बर्न भें सुर्णवतनसभवत भेष एर्ॊ शन्क्त तथा मभ के बर्न भें रोहे का भदहष एर्ॊ सुर्णवभम ऩाश स्थावऩत कयना चादहमे ॥५५॥

तनऋतत के बर्न भे रोहे की तरर्ाय तथा र्रुण के बर्न भे रोहे का भकय एर्ॊ सुर्णवभम ऩाश गबवस्थान भे यखना चादहमे ॥५६॥

गबवधमास भे र्ामु के बर्न भें कृष्ण र्णव का भग ु णवतनसभवत व्मार स्थावऩत ृ तथा तायाऩतत (चधद्रभा) के बर्न भें सर् कयना चादहमे । कुफेय के बर्न भे भनुष्म (की प्रततभा) एर्ॊ भदन (काभदे र्) के बर्न भें भकय स्थावऩत कयना चादहमे ॥५७॥

वर्घ्नेश (गणेश) के बर्न के गबव भे कुठायदधत (गजदधत) एर्ॊ अऺभारा स्थावऩत कयनी चादहमे । आमवक के बर्न भें सुर्णवतनसभवत टे ढ़ा दण्ड एर्ॊ ओभ ् स्थावऩत कयना चादहमे ॥५८॥

सुगत के बर्न के गबवधमास के सरमे सोने के ऩीऩर, कयक (कभण्डरु), ससॊह एर्ॊ छर तनसभवत कयाना चादहमे । साभने के बाग भे अश्र्त्थ (ऩीऩर) स्थावऩत कयना चादहमे एर्ॊ उसके ऊऩय छर स्थावऩत कयना चादहमे । र्ाभ बाग भें

कुन्ण्डका (कभण्डर)ु एर्ॊ दादहने बाग भें केसयी (ससॊह) तथा गबव भें श्रीर्त्स, अशोक एर्ॊ ससॊह स्थावऩत कयना चादहमे ॥५९-६०॥

(श्रीर्त्स, अशोक एर्ॊ ससॊह के अततरयक्त) कभण्डरु, अऺभारा एर्ॊ भोय का ऩॊख सर् ु णवभम तथा बरच्छर, कयक एर्ॊ तारर्धृ त (तार का ऩॊखा) सोने से तनसभवत होना चादहमे ॥६१॥

(न्जनभन्धदय भें ) र्ऺ ु , उसके ऊऩय छर स्थावऩत कयना चादहमे । भोय-ऩॊख को दादहने बाग भे एर्ॊ ृ को सम्भख र्ाभबाग भे कुन्ण्डका (कभण्डरु) के साथ अऺभारा स्थावऩत कयनी चादहमे ॥६२॥

न्जन-भन्धदय भें श्रीरूऩ को गबव के भध्म भें स्थावऩत कयना चादहमे एर्ॊ ससॊह को बी र्ही स्थावऩत कयना चादहमे । कयक एर्ॊ तारर्धृ त को उसके फामे स्थावऩत कयना चादहमे ॥६३॥ फुविभान (स्थऩतत) को दग ु ाव-भन्धदय के गबव-वर्धमास भे शुक एर्ॊ चक्र सुर्णव तनसभवत, ससॊह एर्ॊ शॊख यजत-तनसभवत, भग ृ

ताम्र-तनसभवत तथा तरर्ाय रोहा-तनसभवत स्थावऩत कयना चादहमे । ऺेरऩार के भन्धदय के गबव-वर्धमास भें सर् ु णवतनसभवत खटर्ाङ्ग, तरर्ाय एर्ॊ शन्क्त स्थावऩत कयनी चादहमे ॥६४-६५॥

सुर्णवऩद्म रक्ष्भी-भन्धदय भें , तीन र्णव का ॐकाय सयस्र्ती भन्धदय भे तथा ज्मेष्ठा के भन्धदय भे सुर्णवतनसभवत काक, केतु एर्ॊ कभर गबव भे स्थावऩत कयना चादहमे ॥६६॥

कारी-भन्धदय के गबववर्धमास के कऩार, शर एर्ॊ घण्टो के साथ प्रेतो को स्थावऩत कयना चादहमे । भातक ृ ाओॊ के

बर्न के गबव भें हॊ स, र्ष ु णव-प्रततभामें स्थावऩत कयनी चादहमे । योदहणी के ृ ब, भमय, गरुड़, ससॊह, गज एर्ॊ प्रेतों की सर् भन्धदय के गबव भें ऩद्म, अऺसर एर्ॊ दीऩ स्थावऩत कयना चादहमे ॥६७-६८॥

ऩार्वती-भन्धदय के गबव भें दऩवण एर्ॊ अऺभारा तथा भोदहनी-भन्धदय भें ऩद्म, अऺभारा एर्ॊ ऩणव-कुम्ब स्थावऩत कयना चादहमे ॥६९॥

न्जन दे र्ी एर्ॊ दे र्ों का उलरेख महाॉ नही ककमा गमा है , उनके भन्धदय के गबव भें उनके वर्सशष्ट धचह्न एर्ॊ र्ाहन के साथ छर, ध्र्ज एर्ॊ ऩताका स्थावऩत कयनी चादहमे ॥७०॥ भानुषहर्ममागबाक भनुष्म के बर्न का सशराधमास - द्वर्जधभा र्णव र्ारों के बर्न के गबव भे न्जन र्स्तुओॊ का वर्धमास होता है , उनका र्णवन ककमा जा यहा है । उनभे कायक तथा दधतकाष्ठ ताम्रभम एर्ॊ सुर्णवभम होता है ॥७१॥

मऻोऩर्ीत (जनेऊ), मऻान्ग्न एर्ॊ मऻऩार यजत-तनसभवत होते है । मऻोऩर्ीत गबव के भध्म भे तथा मऻऩार उसके दादहने होना चादहमे ॥७२॥ मऻोऩर्ीत के र्ाभ बाग भे कयक तथा दधत-काष्ठ एर्ॊ मऻान्ग्न सम्भुख होना चादहमे । चायो ददशाओॊ भें स्र्न्स्तक होने चादहमे । ब्राह्भण के गह ृ का गबव-वर्धमास इस प्रकाय र्र्णवत है ॥७३॥

(ऺबरम के गह ु णवभम चक्र, उसके र्ाभ बाग भे यजत-तनसभवत ृ का गबव-वर्धमास इस प्रकाय होना चादहमे) भध्म भे सर् शॊख एर्ॊ ताम्रतनसभवत धनुष होना चादहमे । चक्र के दक्षऺण बाग भें सोने का दण्ड होना चादहमे ॥७४॥

दक्षऺण बाग भें ही रोहे का खड्ग तथा चायो ददशाओॊ भें चाय गज होने चादहमे । मे क्रभश् सर् ु णव, रोहा, ताॉफा एर्ॊ यजत-तनसभवत हो ॥७५॥

भध्म बाग भें सर् ु णवतनसभवत श्रीरूऩक एर्ॊ चायो ददशाओॊ भें स्र्न्स्तक तथा छर, ध्र्ज, ऩताका एर्ॊ दण्ड तनन्श्चत रूऩ से होना चादहमे । मह गबव-धमास याजा के गह ृ के सरमे होता है ॥७६॥

मे सबी गबव-धमास याजबर्न के द्र्ाय के स्थान ऩय होने चादहमे । अधम ऺबरमों के गह ृ ों भे उधचत स्थान ऩय होना चादहमे । मदद याजा 'र्ाष्णेमक' श्रेणी का हो तो मह गबव-धमास वर्जमद्र्ाय के दक्षऺण ओय होना चादहमे ॥७७॥

(र्ैश्म-गह ृ ो का गबव-धमास इस प्रकाय होना चादहमे) रोहे से तनसभवत हर का अग्र बाग (न्जह्र्ा) एर्ॊ शॊख तथा ताॉफे से तनसभवत केकड़ा, (वर्ष्णु के) ऩाॉच अस्र एर्ॊ उड़द सीसा (रेड) से तनसभवत होना चादहमे । इनके अततरयक्त अश्र्, र्ष ृ , गज एर्ॊ ससॊह होना चादहमे ॥७८॥

इधहें समव, अन्ग्न, र्रुण एर्ॊ सोभ के स्थान ऩय बरी-बाॉतत स्थावऩत कयना चादहमे । श्र्ेत र्णव (यजत) से तनसभवत चाय गामों को चायो ददशाओॊ भे स्थावऩत कयना चादहमे । र्ष ृ को र्ैश्मों के बर्न के गबव भें साभने यखना चादहमे ॥७९॥ (शद्र के गह ृ का गबव-वर्धमास इस प्रकाय र्र्णवत है -) फीजऩार, सोने का हर एर्ॊ ताॉफे का मुग (हर का जुआ) होना

चादहमे । चायो ददशाओॊ भे चाॉदी से तनसभवत ऩशु (गाम) यखना चादहमे एर्ॊ भध्म भे र्ष ृ होना चादहमे , न्जसके साभने जुआ यक्खा होना चादहमे ॥८०-८१॥

र्ष ृ के दादहने बाग भे हर एर्ॊ फाॉमे बाग भे फीज का ऩार होना चादहमे । फीजों को सुर्णव-तनसभवत होना चादहमे । शेष गबव-धमास शद्रो के बर्न के गबव भें उसी प्रकाय होना चादहमे, न्जस प्रकाय र्ैश्मों के गह ृ भें र्र्णवत है ॥८२॥

साभाधम बर्नों के गह ृ ों के गबव-धमास एर्ॊ जातत-वर्शेष के गह ृ ों के गबव-धमास को उस बर्न भे सभधश्रत कय ददमा जाता है , जो अनेक तर र्ारे होते है ॥८३॥

उत्तय आदद चायो ददशाओॊ के भख र्ारे गह ृ ों भें सबतत के नेर (गह ृ का द्र्ाय) के दादहने बाग भे ऩुष्ऩदधत (ऩन्श्चभ ददशा), बलराट (उत्तय ददशा), भहे धद्र (ऩर्व ददशा) एर्ॊ गह ृ ऺत (दक्षऺण ददशा) के ऩद ऩय गबव-धमास कयना चादहमे ॥८४॥

यसोई के गबव धमास भे द्र्ाय के दादहने बाग भे अथर्ा स्तम्ब के नीचे स्थारी (ऩकाने का ऩार), उसका ढक्कन, कयछुर, चार्र, भथानी, चरनी, दाॉत साप कयने का काष्ठ (दतअ ु न मा दातौन) तथा अन्ग्न की रौह-तनसभवत प्रततभा यखनी चादहमे ॥८५॥

यसोई के दादहनी ओय के कऺ भे शासर (चार्र) से बया कुम्ब गबव भे स्थावऩत कयना चादहमे । धन-कऺ के गबवधमास भे चाबी एर्ॊ अगवरा होनी चादहमे । सख ु ारम (वर्श्राभ-गह ृ ) के गबव भें ऩरॊग, दीऩक एर्ॊ शमन (आसन) स्थावऩत कयना चादहमे । ॥८६-८७॥

न्जन साभधग्रमों से न्जन कामों को सम्ऩधन ककमा जाता है , उन साभधग्रमों को उनके कऺों के गबव भें स्थावऩत कयना चादहमे । जो न्जनके प्रतीक हो, उन धचह्नो को उसके गबव भें स्थावऩत कयना चादहमे ॥८८॥

सबागाय, प्रऩा (प्माऊ) एर्ॊ भण्डऩो भे दक्षऺणी कोने के स्तम्ब अथर्ा दसये स्तम्ब मा द्र्ाय के दादहने स्तम्ब के नीचे गबव-स्थाऩन कयना चादहमे ॥८९॥ उऩमक् ुव त बर्न-तनभावण भें गबव-वर्धमास हे तु रोहे का गज, कोदो (अधन-वर्शेष) सर् ु णव-तनसभवत रक्ष्भी एर्ॊ सयस्र्ती को ऩार के भध्म भें यखना चादहमे ॥९०॥

नाटम-गह ृ का गबववर्धमास कुदटकाभुख मा भन्ण्डतस्तम्ब के भर भे अथर्ा दोनो स्थानो ऩय कयना चादहमे ॥९१॥ नाटम-गह ृ के गबव-वर्धमास भे सबी प्रकाय के धातुओॊ से तनसभवत सबी र्ाद्म-मधर यखना चादहमे । श्रीर्त्स, कभर तथा ऩणव कुम्ब सोने से तनसभवत होना चादहमे ॥९२॥

सबागाय के गबव-स्थाऩन भें (ऩर्ोक्त) सुर्णव-तनसभवत ऩदाथों को यखना चादहमे । गबव-स्थाऩन सबागाय के द्र्ाय अथर्ा स्तम्ब के नीचे अथर्ा कोण भे न्स्थत स्तम्ब के भर भे कयना चादहमे ॥९३॥

उऩमुक् व त हे भ-गबव का स्थाऩन तुराबाय एर्ॊ असबषेक भण्डऩ (याजबर्न के वर्सशष्ट अर्सयों ऩय प्रमोग होने र्ारे

भण्डऩ) भें बी होता है । ऩाखण्डी (वर्धभी) रोगों के आर्ास भें उनके धचह्नो को बर्न के गबव भें स्थावऩत कयना चादहमे ॥९४॥ (चायो र्णो से ऩथ ृ क् ) अधम जातत र्ारों के आर्ास भे उनके वर्सशष्टो धचह्नो को बर्न-गबव भे स्थावऩत कयना चादहमे । मदद बर्न के स्र्ाभी की ऩत्नी गबवर्ती हो तो उसे बर्नगबव का स्थाऩन नहीॊ कयना चादहमे ॥९५॥

छोटे ऩार (गबव भे स्थावऩत होने र्ारी भञ्जषा) भें र्ास्त-ु दे र्ों के स्थानों के ऻाता को दे र्ों के अनुरूऩ यत्न एर्ॊ धातुओॊ को मथोधचत वर्धध से यखना चादहमे ॥९६॥

ऩार को द्र्ाय के दक्षऺण बाग भें मा गह ृ स्र्ाभी के कऺ के दादहने बाग भे स्थावऩत कयना चादहमे । (साभाधमतमा)

इस ऩार का भुख बर्न के बीतयी बाग की ओय होना चादहमे; ककधतु भञ्जषा बर्न के भध्म बाग भे स्थावऩत हो तो उसका भुख फाहय की ओय होना चादहमे ॥९७॥ गबाभन्त्र सशराधमास का भधर - भरोक्त भधर का उच्चायण कयते हुमे ऩर्ावसबभख ु अथर्ा उत्तयभुख होकय स्थऩतत को ऩर्वर्र्णवत वर्धध से क्रभश् वर्धधर्त ् बर्न का गबव स्थावऩत कयना चादहमे ॥९८॥ अमॊ भन्त्र भधर इस प्रकाय है - भधरो एर्ॊ स्र्य के दे र्ता के सरमे स्र्ाहा ॥ सबी यत्नो के अधधऩतत के सरमे स्र्ाहा । उत्तभ एर्ॊ सत्मर्ादी प्रजाऩतत के सरमे स्र्ाहा । रक्ष्भी को प्रणाभ । सयस्र्ती को प्रणाभ । वर्र्स्र्ान ् को प्रणाभ । र्ज्रऩार्ण को प्रणाभ । सबी वर्घ्नो के वर्नाशक असबनर् को प्रणाभ । अन्ग्न को प्रणाभ एर्ॊ स्र्ाहा ॥

फार्ड़ी आदद का सशराधमास - र्ाऩी (फार्ड़ी) कऩ, ताराफ, दीतघवका (रम्फा सयोर्य, जराशम) एर्ॊ ऩर ु के तनभावण भे

गबव-स्थाऩन हे तु स्र्णव-तनसभवत भछरी, भेढक, केकड़ा, सऩव एर्ॊ सॉस को ऩार भें यखकय उत्तय ददशा मा ऩर्व ददशा भें एक ऩुरुष की अञ्जरी के भाऩ के गड्ढे भे स्थावऩत कयना चादहमे ॥९९-१००॥ प्रथभेष्टक सशराधमास की प्रथभ ईट-स्थाऩना - बर्न के गबव का स्थाऩन शुब भुहतव, रग्न एर्ॊ होया से मुक्त याबर भें कयना चादहमे तथा शुब भह ु तव, रग्न एर्ॊ होया से मक् ु त ददन भे चाय ंटटो की स्थाऩना कयनी चादहमे ॥१०१॥

न्जस-न्जस स्थान ऩय गबव-स्थाऩन ककमा गमा हो, र्हाॉ प्रथभ ईट भन्ृ त्तका, जड़, अधन, धातु, यत्न एर्ॊ ओषधधमों के साथ स्थावऩत कयनी चादहमे ॥१०२॥

(इनके अततरयक्त) गधधमुक्त ऩदाथो एर्ॊ फीजों के साथ प्रथभ ईट का धमास कयना चादहमे । प्रस्तय से तनसभवत होने र्ारे बर्न भें प्रस्तयभमी सशरा एर्ॊ ईट से तनसभवत होने र्ारे बर्न भे इष्टका का धमास कयना चादहमे ॥१०३॥

गबव भे यक्खी जाने र्ारी भञ्जषा के फयाफय चौड़ी, चौड़ाई से दग ु ुनी रम्फी एर्ॊ चौड़ाई की आधी भोटी चायों इष्टकामें होनी चादहमे । इष्टका का मह प्रभाण सबी बर्नों के सरमे होता है ॥१०४॥

भध्मभ एर्ॊ उससे फडे आकाय के ईट आठ मा फायह होने चादहमे । ऩुरुष-इष्टकाओॊ की रम्फाई सीधी होनी चादहमे एर्ॊ उनका भाऩ सभ सॊख्मा र्ारी अॊगुसरमों से यखना चादहमे ॥१०५॥

स्री-इष्टकाओ की रम्फाई का भाऩ वर्षभ सॊख्मा भे होना चादहमे तथा नॊऩुसक इष्टकाओॊ की ये खा र्क्र होनी चादहमे । ईटो को स्ऩशव भे धचकना, अच्छी प्रकाय ऩका हुआ, (ठोकने ऩय) सुधदय स्र्य से मुक्त एर्ॊ दे खने भें सुधदय होना चादहमे ॥१०६॥ ऩुरुष, स्री एर्ॊ नऩुॊसक इष्टकाओॊ का बर्न भें प्रमोग क्रभानस ु ाय कयना चादहमे । जैसा ऩहरे प्राप्त होता है , उसी प्रकाय उनकी स्थाऩना कयनी चादहमे ॥१०७॥

प्रथभेष्टका को दोषहीन तथा बफधद ु एर्ॊ ये खाओॊ (अप्रशस्त धचह्नो) से यदहत होना चादहमे तथा प्रायम्ब भे ही झषार स्तम्ब के नीचे स्थावऩत कयना चादहमे ॥१०८॥

वर्भान (भन्धदय) भे तनखात स्तम्ब के नीचे एर्ॊ गबवधमास के ऊऩय इष्टका यखनी चादहमे । उधहे ऩर्व-दक्षऺण से (प्रायम्ब कय) प्रदक्षऺणक्रभ से तीनों कोणों (दक्षऺण-ऩन्श्चभ, उत्तय-ऩन्श्चभ एर्ॊ उत्तय-ऩर्व) भे स्थावऩत कयना चादहमे ॥१०९॥ दे र्ों एर्ॊ ब्राह्भणों के बर्न भे इष्टका-स्थाऩन ऩर्ोक्त क्रभ से होना चादहमे । कुछ वर्द्र्ानों के अनुसाय गतव की गहयाई वर्स्ताय के २/५ बाग (से अधधक) नही होनी चादहमे ॥११०॥

इष्टकाओ के चमन से तैमाय गतव भे सुधदय र्ेष धायण कय प्रथभ इष्टका को ऩर्वर्र्णवत वर्धध से स्थावऩत कयना चादहमे ॥१११॥

शुब ददन, ऩऺ, नऺर, होया एर्ॊ भह ु तव प्राप्त होने ऩय प्रथभत् गबव भे यक्खे जाने र्ारे ऩार भे भततवमाॉ, र्नस्ऩततमाॉ,

भर्ण, सुर्णव आदद अष्टधातु तथा र्णो; मथा अञ्जन आदद को यखना चादहमे । याबर भें भन्ृ त्तका, जड़ एर्ॊ आठ प्रकाय के अधनों को गतव के भर भें यखना चादहमे । (अगरे ददन प्रात्) गबव-स्थाऩन की भञ्जषा के सरमे फसर-कभव कयने के ऩश्चात ् गतव भे जर के बीतय गबव-स्थाऩन कयना चादहमे ॥११२॥ दे र्ों के एर्ॊ भनुष्मों के बर्न भें द्र्ाय एर्ॊ स्तम्ब के भर भें वर्धधऩर्वक अवर्कराङ्ग (सम्ऩणव अङ्गो के सदहत)

प्रायम्ब भे गबव-स्थाऩन कयना चादहमे । इसी के ऊऩय स्तम्ब आदद का तनभावण कयना चादहमे । गबव -स्थर के ऊऩय सम्ऩणव र्ैबर् से मुक्त स्तम्ब आदद को वर्धध-वर्धानऩर्वक स्थावऩत कयना चादहमे ॥११३॥ द्र्ाय-मोग एर्ॊ स्तम्ब को ऩच्चीस करशों के जर से ऩवर्र कयना चादहमे । इधहें श्र्ेत चधदन एर्ॊ नर्ीन र्स्र से मुक्त कयना चादहमे एर्ॊ सबी भङ्गर ऩदाथो से मुक्त कयने के ऩश्चात स्थऩतत को स्तम्ब एर्ॊ द्र्ाय-मोग को स्थावऩत कयना चादहमे ॥११४॥

इतत भमभते र्स्तुशास्रे गबववर्धमासो नाभ द्र्ादशोऽध्माम्

अध्माम १३ उऩऩीठ-विन्मास उऩऩीठ का तनभावण अधधष्ठान के नीचे होता है । मह बर्न की यऺा, ऊॉचाई एर्ॊ शोबा के सरमे होता है ॥१॥ उऩऩीठ का प्रभाण अधधष्ठान के फयाफय (ऊॉचाई), तीन चौथाई, आधा, ऩाॉच बाग भें से दो बाग के फयाफय, सर्ा बाग, डेढ़ बाग अथर्ा दग ु ुने से चतुथांश कभ होना चादहमे ॥२॥ अथर्ा उऩऩीठ को अधधष्ठान की ऊॉचाई का दग ु ुना यखना चादहमे । ऊॉचाई के दस बाग कयने चादहमे तथा एक-एक बाग की र्वृ ि कयनी चादहमे ॥३॥

(एक-एक बाग से र्वृ ि कयते हुमे) ऩाॉचर्े बाग तक तनभावण कयना चादहमे । अथर्ा अधधष्ठान के प्रायम्ब से फाह्म बाग भें अधधष्ठान से फाहय की ओय तनकरा हुआ) एक दण्ड, डेढ़ दण्ड, दो दण्ड अथर्ा तीन दण्ड भाऩ का तनगवभ तनसभवत कयना चादहमे ॥४॥

उऩऩीठ को अधधष्ठान अथर्ा जगती के फयाफय बी तनसभवत ककमा जाता है । उऩऩीठ तीन प्रकाय के होते है -र्ेददबद्र, प्रततबद्र एर्ॊ सुबद्र ॥५॥ (र्ेददबद्र उऩऩीठ दो प्रकाय के होते है ) - आठ अङ्ग र्ारे एर्ॊ छ् अङ्ग र्ारे । इनका र्णवन इस प्रकाय है -) उऩऩीठ की ऊॉचाई को फायह बागों भे फाॉटना चादहमे । दो बाग से उऩान, एक बाग से ऩद्म, उसके ऊऩय आधे बाग से ऺेऩण, ऩाॉच बाग से ग्रीर्, आधे से कम्ऩ, एक बाग से अम्फुज तथा शेष बाग से र्ाजन एर्ॊ कम्ऩ का तनभावण कयना चादहमे । इस प्रकाय उऩऩीठ के आठ अङ्ग होते है ॥६-७॥

अथर्ा ऊऩय एर्ॊ नीचे के अम्फज ु (तथा ऩद्म) को छोड़ कय छ् बागों का उऩऩीठ फनाना चादहमे । इस प्रकाय सबी बर्नों के अनुरूऩ र्ेददबद्र उऩऩीठ दो प्रकाय के होते है ॥८॥

प्रततबद्र उऩऩीठ के जधभ (उऩऩीठ का एक बाग) से रेकय र्ाजनऩमवधत सत्ताईस बाग कयने चादहमे । एक बाग से जधभ एर्ॊ र्ाजभ, दो बाग से ऩादक ु , दो से ऩङ्कज, एक से कम्ऩ, फायह से कण्ठ, एक से उत्तय, तीन से अम्फुज, एक से कऩोत, दो से आसरङ्ग एर्ॊ एक से प्रततर्ाजन तनसभवत कयना चादहमे । प्रततबद्र नाभक मह उऩऩीठ इन सबी अरङ्कायों से मुक्त होता है ॥९-१०-११॥ प्रततबद्र दो प्रकाय के होते है । (प्रथभ प्रकाय ऊऩय र्र्णवत है ।) दसये प्रकाय भें एक बाग अधधक होता है । (इसके अट्ठाईस बाग ककमे जाते है ।) इसभें दो बाग से ऩादक ु , तीन से ऩङ्कज, एक से आसरङ्ग, एक से अधतरयत, दो से प्रतत, एक से ऊध्र्व र्ाजन, आठ से कण्ठ, एक से उत्तय, एक से अब्ज, तीन से कऩोत, एक से आसरङ्ग, एक से अधतरयत, दो से प्रतत एर्ॊ एक बाग से ऊध्र्वर्ाजन का तनभावण ककमा जाता है ॥१२-१३-१४॥ इस उऩऩीठ भें ऊॉचाई के इक्कीस बाग ककमे जाते है । दो बाग से जधभ, दो से अम्फुज, आधे से कण्ठ, आधे से ऩद्म, दो से र्ाजन, आधे से अब्ज, आधे से कम्ऩ, आठ से कण्ठ, एक से उत्तय, आधे से ऩद्म, तीन से गोऩानक एर्ॊ आधे से ऊध्र्व कम्ऩ तनसभवत होते है । (इनसे मक् ु त उऩऩीठ) की सॊऻा सब ु द्रक होती है ॥१५-१६॥ (सुबद्र उऩऩीठ का दसया बेद इस प्रकाय है । इसभें बी ऊॉचाई के इक्कीस बाग ककमे जाते है ।) इसभें दो बाग से जधभ, तीन से ऩद्म, एक से कधधय, दो से र्ाजन, एक से कम्ऩ, आठ से गर, एक से कम्ऩ, दो से र्ाजन एर्ॊ एक से

कम्ऩ तनसभवत होता है । इस प्रकाय सबी (उऩमक् ुव त) अरङ्कयणों से मक् ु त सब ु द्र उऩऩीठ दो प्रकाय के होते है ॥१७१८॥

अवऩवत (बर्न का बागवर्शेष) से मक् ु त एर्ॊ अवऩवत से यदहत सबी प्रकाय के बर्नों भें ससॊह, गज, भकय, व्मार, बत ु

(प्राणी), ऩर एर्ॊ न्जसके भस्तक ऩय फार भीन सर्ाय हो, ऐसा भत्स्म अरङ्कयणरूऩ भें अॊककत कयना चादहमे ॥१९२०॥ उऩऩीठ के प्रत्मेक अङ्ग को र्वृ िक्रभ से अथर्ा हीन-क्रभ से तनसभवत कयना चादहमे एर्ॊ उसी प्रकाय उऩऩीठ को अधधष्ठान से जोड़ना चादहमे ॥२१॥

उऩऩीठ अधधष्ठान की ऊॉचाई से दग ु न ु ा, डेढ़ गन ु ा, फयाफय, आधा, तीन चौथाई, २/५, दो ततहाई मा आधी होना चादहमे ।

मदद अऩने सबी अङ्गो के साथ उऩऩीठ अददष्ठान के फयाफय हो तो बी उसका र्ाजन फड़ा होना चादहमे । उऩऩीठ के दृढ़ फनाने के सरमे फुविभान स्थऩतत को उसके सबी अङ्गो को उधचत भाऩ भे यखना चादहमे ॥२२॥

अध्माम १४ अथधष्ठान का ननभााण दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ अधम र्णव र्ारों के गह ृ -तनभावण के अनुरूऩ दो प्रकाय की बसभ-जाङ्गर (सखी) एर्ॊ अनऩ (न्स्नग्ध) होती है ।॥१॥

जाङ्गर बसभ अत्मधत कॊकयीरी होती है एर्ॊ खोदने भें कड़ी होती है । इसभें खद ु ाई के ऩश्चात ् अत्मधत स्र्च्छ, चधद्रभा के सदृश जर प्राप्त होता है ॥२॥

बर्न की मोजना के अनरू ु ऩ खद ु ाई कयने ऩय धर कभर एर्ॊ ककड़ी से मक् ु त भहीन फार प्राप्त होते है । ऐसी बसभ को अनऩ कहते है । इसभें खुदाई कयते ही जर ददखाई ऩड़ने रगता है ॥३॥

(जरदशवन के ऩश्चात ् ) गड्ढे को ंटटो, प्रस्तय, सभट्टी, धचकने फार एर्ॊ कङ्कड़ से बयना चादहमे । इधहे इस प्रकाय बयना चादहमे, न्जससे कक खोदा गमा गड्ढा छे दयदहत एर्ॊ दृढ़ हो जाम । इसे गजऩाद से एर्ॊ फड़े काष्ठखण्डों से (कट-ऩीट कय) सघन फना दे ना चादहमे ॥४-५॥ उस गतव को (कङ्कड़ आदद से बयने के फाद शेष फचे गड्ढे को) जर से बयना चादहमे । जर के ऺीण न होने ऩय शुब होता है । फुविभान ् (स्थऩतत) को जर से ही बसभ के सभान होने (सभतर होने) की ऩयीऺा कयने के ऩश्चात ् गतव भें गबव-धमास कयना चादहमे । इसके ऩश्चात ् तनमभऩर्वक र्ास्तु-होभ कयना चादहमे ॥६॥

उस स्थान ऩय स्तम्ब का दग ु न ु ा मा तीन गन ु ा व्मास र्ारा एर्ॊ उसका आधा भोटाई र्ारा फहर से मक् ु त उऩान

स्थावऩत कयना चादहमे । उसके ऊऩय फुविभान (स्थऩतत) को उऩान के अनुरूऩ प्रभाण का ऩद्म तथा उऩोऩान तनसभवत कयना चादहमे ॥७-८॥

बसभ को एक हाथ के प्रभाण से ऊॉचा फनाकय एर्ॊ सघन कय उसके ऊऩय न्जस उऩान को स्थावऩत ककमा जात है , उसे जधभ कहते है ॥९॥ उसके ऊऩय उऩऩीठ से मक् ु त अधधष्ठान स्थावऩत कयना चादहमे एर्ॊ उसके ऊऩय स्तम्ब, सबन्त्त अथर्ा जङ्घा तनसभवत होनी चादहमे ॥१०॥

न्जस ऩय प्रासाद आदद बर्न न्स्थत यहते है एर्ॊ न्जससे कऩोत (बर्न का एक बाग) के ऊऩय प्रतत (बर्न का अङ्ग) तनसभवत होता है , उसे बसभदे श कहते है ॥११॥ अथधष्ठानोन्भान अधधष्ठान की ऊॉचाई का प्रभाण - अधधष्ठान की ऊॉचाई का प्रभाण बसभ (तर) के एर्ॊ जातत के अनुसाय दो प्रकाय का होता है । दे र्ारम भें मह चाय हाथ का एर्ॊ ब्राह्भणगह ृ भें साढ़े तीन हाथ का होता है ॥१२॥

याजा के बर्न भें तीन हाथ, मुर्याज के बर्न भें ढ़ाई हाथ, र्ेश्मों के बर्न भें दो हाथ एर्ॊ शद्र के बर्न भें एक हाथ का अधधष्ठान कहा गमा है ॥१३॥

अधधष्ठान की ऊॉचाई का मह प्रभाण जातत के अनुसाय र्र्णवत है । बसभ (तर) के अनुसाय अधधष्ठान का भाऩ इस प्रकाय है - फायह बसभ से प्रायम्ब कय छ्-छ् अॊश प्रत्मेक बसभ के कभ कयते हुमे तीन बसभऩमवधत बर्न भें अधधष्ठान (की ऊॉचाई) एक दण्ड होना चादहमे ॥१४॥

तीन तर के बर्न भें उत्तभ अधधष्ठान प्रशस्त होता है । उसका भाऩ चतथ ु ांश कभ दो हाथ होता है । इससे छोटे अधधष्ठान का प्रमोग छोटे बर्नों भें वर्द्र्ानों द्र्ाया र्र्णवत नीतत के अनुसाय कयना चादहमे ॥१५॥

मह भान बर्न के स्तम्ब के आधे प्रभाण से छ् मा आठ बाग कभ होना चादहमे । अधधष्ठान की ऊॉचाई का प्रभाण बर्न के तर के अनुसाय यखना चादहमे ॥१६॥ उऩान के तनष्क्राधत के तीन बाग कयने चादहमे । उसके एक बाग को छोड़ कय जगती (अधधष्ठान) का तनभावण कयना चादहमे ॥१७॥ इसी प्रकाय कुभुदऩट्ट एर्ॊ कण्ठ का बी तनभावण कयना चादहमे । इस प्रकाय अधधष्ठान की ऊॉचाई ऩमवधत प्रत्मेक बाग का प्रभाण र्र्णवत है ॥१८॥

ऩादफधध अधधष्ठान - ऩादफधध के बागों के नाभ एर्ॊ प्रभाण इस प्रकाय है - र्प्र आठ बाग, कुभुद सात बाग, कम्ऩ एक बाग, कधधय तीन बाग, कम्ऩ एक बाग, र्ाजन तीन बाग तथा एक बाग भे अधोकम्ऩ एर्ॊ ऊध्र्वकम्ऩ ॥१९॥ इस प्रकाय ऊॉचई भें चौफीस बागों भें फाॉटे गमे ऩादफधध का र्णवन प्राचीन ऋवषमों द्र्ाया ककमा गमा है , जो दे र्ों, ब्राह्भणों, याजाओॊ (ऋवषमों) र्ैश्मों एर्ॊ शद्रों के बर्न के अनुकर है ॥२०॥ उयगफधध अधधष्ठान - ऊॉचाई भें अट्ठायह फागों भें वर्बान्जत उयगफधध अधधष्ठान, के दो प्रतत नाग-भुख के सदृश होते है । इसभें र्ाजन एक फाग, प्रततभुख दो फाग, बरमस्रक एक फाग, दृक् तीन बाग, र्त्ृ तकुभुद च् बाग एर्ॊ र्प्रक ऩाॉच बाग से तनसभवत होता है । मह दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के बर्नों के मोग्म होता है ॥२१-२२॥ प्रनतक्रभ प्रततक्रभ अधधष्ठान - प्रततक्रभ अधधष्ठान की ऊॉचाई के इक्कीस बाग कयने चादहमे । एक बाग से ऺुद्रोऩान, डेढ़ बाग से अब्ज, आधे बाग से कम्ऩ, सात बाग से जगती, छ् बाग से धायामुक्त कुभुद, एक बाग से आसरङ्गाधत, एक बाग से आसरङ्गादद, दो बाग से प्रततभुख एर्ॊ एक बाग से ऩद्ममुक्त र्ाजन का तनभावण कयना चादहमे । अधधष्ठान ऩय गज, ससॊह, भकय एर्ॊ व्मार आदद का आबषण के रूऩ भें अॊकन कयना चादहमे ॥२३॥

इस प्रकाय सुसन्ज्जत प्रततक्रभ अधधष्ठान दे र्ारम के सरमे प्रशस्त होता है । जफ इस ऩय ऩर एर्ॊ रताददकों का

अॊकन ककमा जाता है , तफ र्ह ब्राह्भण एर्ॊ याजाओॊ के गह ृ के अनुरूऩ होता है ; साथ ही उधहे शुब, सभवृ ि तथा वर्जम प्रदान कयता है ॥२४॥ ऩद्मकेसय ऩद्मकेसय अधधष्ठान - ऩद्मकेसय अधधष्ठान के छब्फीस बाग (ऊॉचाई भें ) ककमे जाते है । इसभें जधभ एक बाग, अब्जक दो बाग, र्प्र एक बाग, ऩद्म छ् बाग, गर एक बाग, अब्ज एक बाग, कुभुद एक बाग, ऩद्म चाय बाग, कम्ऩ एक बाग, गर एक बाग, कम्ऩ दो बाग, ऩद्म एक बाग, ऩटी दो बाग, कभर एक बाग एर्ॊ कम्ऩ एक बाग होता है ॥२५॥

मह अधधष्ठान ऩद्मकेसय है । इस ऩद्मकेसय अधधष्ठान भें कम्ऩर्ाजन, ऩङ्कज, कुम्ब, र्प्र औय कधधय जफ मक् ु त होता है तो मह शम्ब-ु भन्धदय के अनुकर हो जाता है ॥२६॥

ऩष्ु ऩऩष्ु ऩक अधधष्ठान - ऩष्ु ऩऩष्ु ऩकर अधधष्ठान की ऊॉचाई को उधनीस बागों भें फाॉटना चादहमे । इसभें एक बाग से जधभ, ऩाॉच से वर्प्र, एक से कञ्ज, आधे से गर, आधे से अब्ज, चाय से कुभुद, आधे से ऩङ्कज, आधे से कम्ऩ, दो से

कण्ठ, आधे से कम्ऩ, आधे से ऩद्म, दो से भहार्ाजन, आधे से दर तथा आधे से ऩङ्कजमुक्त कम्ऩ तनसभवत होते है । इस प्रकय अनेक ऩद्म-ऩुष्ऩों से मुक्त अधधष्ठान ऩुष्ऩऩुष्ऩकर कहराता है । सशन्लऩमों के अनुसाय मह अधधष्ठान भध्मभ एर्ॊ फड़े वर्भानों (भन्धदयो) के अधधक अनुकर होता है ॥२७-२८॥

श्रीफधध अधधष्ठान - श्रीफधध अधधष्ठान की ऊॉचाई के फत्तीस बाग ककमे जाते है । इसभे दो बाग से अधधष्ठान का तनचरा बाग, एक से अब्ज, सात से ह्रत,् एक से ऩद्म, एक से कैयर्, चाय से अब्ज, एक से गर, एक से अधय, तीन से गर, एक से कम्ऩ, एक से दर, चाय से कऩोत, एक से आसरङ्गादद, एक से आसरङ्गाधत, दो से प्रततभुख एर्ॊ एक से

ऩङ्कजमक् ु त र्ाजन तनसभवत होते है । इसकी स्थाऩना कुशर र्धवकक द्र्ाया कयानी चादहमे । मह अधधष्ठान दे र्ारमों एर्ॊ याजबर्नों के सरमे अनुकर होता है तथा श्री, सौबाग्म, आयोग्म एर्ॊ बोग प्रदान कयता है ॥२९-३०॥

भञ्चफधध अधधष्ठान - भञ्चफधध अधधष्ठान की ऊॉचाई के छब्फीस बाग कयने चादहमे । एक बाग से खयु , छ् से

जगती, ऩाॉच से कैयर्, एक से कम्ऩ, तीन से कण्ठ, एक से कम्ऩ, एक से ऩद्म, तीन से कऩोत, एक-एक बाग से ऊऩयनीचे के सदृश तनभावण, एक-एक बाग से अधतर्क्र एर्ॊ आददर्क्र तथा एक बाग से कम्ऩ तनसभवत होना चादहमे । मह अधधष्ठान याजगह ृ के अनुकर होता है ॥३१॥ श्रीकाधत अधधष्ठान - जफ अधधष्ठान आसरङ्ग एर्ॊ अधतरयत प्रतत से मुक्त हो एर्ॊ र्ाजन से यदहत हो तो उसे

श्रीकाधत कहते है । इसका कुभुद अष्टकोण अथर्ा र्त्ृ ताकाय हो सकता है एर्ॊ मह अम्फयाभाधगवमों के अनुकर होता है ॥३२॥

श्रेणीफन्ध श्रेणीफधध अधधष्ठान - दे र्ारमों के अनक ु र श्रेणीफधध सॊऻक अधधष्ठान ऊॉचाई भें छब्फीस बागों भें फाॉटा जाता है । इसभें एक बाग से जधभ, दो से अब्ज, एक से कम्ऩ, छ् से जगती, चाय से कुभुद, एक से कम्ऩ, दो से कण्ठ, एक से कम्ऩ, दो से ऩद्म, एक से ऩट्ट, दो से कण्ठ, एक से र्ाजन, डेढ़ से अब्ज एर्ॊ एक से ऩट्ट तनसभवत होता है ॥३३॥

ऩद्मफधध अधधष्ठान - ऩद्मफधध अधधष्ठान की ऊॉचाई को अट्ठायह बागों भें फाॉटना चादहमे । डेढ़ बाग से जधभ, आधे बाग से ऺुद्र, ऩाॉच से ऩद्म, एक से धक ृ ् , तीन से अब्ज, एक से कुभुद, एक से ऩद्म, एक से आसरङ्ग, एक से

आसरङ्गात, दो से प्रतत एर्ॊ एक से र्ाजन तनसभवत होता है । इस अधधष्ठान को वर्ना ककसी दोष के प्रधान दे र्ों के भन्धदय भें तनसभवत कयना चादहमे ॥३४॥ र्प्रफधध अधधष्ठान - र्प्रफधध अधधष्ठान की ऊॉचाई को फाईस बागों भें फाॉटा जाता है । इसभें दो बाग से उऩान, एक से कञ्ज, एक से कम्ऩ, ऩाॉच से र्प्र, चाय से कुम्ब, एक से ऩद्म, एक से ऩट्ट, दो से कण्ठ, एक से कम्ऩ, एक से ऩद्म, दो से ऩट्टी तथा एक से ऩट्ट तनसभवत होता है । इसे र्प्रफधध अधधष्ठान कहते है ॥३५॥ कऩोतफन्ध

कऩोतफधध अधधष्ठान - र्ाजन ऩय जफ कुभद ु र्त्ृ ताकाय हो एर्ॊ कऩोत तनसभवत तो उसे कऩोतफधध अधधष्ठान कहते है ।

प्रततफधधभ ् प्रततफधध अधधष्ठान - जफ प्रतत एर्ॊ र्ाजन चाय बाग भें तनसभवत हो एर्ॊ प्रतत बरकायस्रमुक्त (तीन कोणों र्ारा) हो तो उसे प्रततफधध अधधष्ठान कहते है ॥३६॥ करिाथधष्ठान करश अधधष्ठान - इस अधधष्ठान को ऊॉचाई भें चौफीस बागों भें फाॉटा जाता है । इसभें एक बाग से खुय, दो से

कभर, एक से कम्ऩ, तीन से कण्ठ, एक से कम्ऩ, दो से ऩद्म, एक से ऩट्ट, दो से अब्ज, एक से तनम्न, दो से प्रतत एर्ॊ एक से र्ाजन तनसभवत होता है । इसे करश अधधष्ठान कहते है ॥३७॥ अथधष्ठानसाभान्मरऺण अधधष्ठान के साभाधम रऺण - इस प्रकाय चौदह प्रकाय के अधधष्ठानो का रऺणसदहत र्णवन वर्द्र्ानों द्र्ाया ककमा गमा है । सबी को छोटे ऩादों एर् सजार्टी र्खड़ककमों से मुक्त कयना चादहमे । इनके सबी अङ्गों को, न्जनका र्णवन ऋवष भम ने ककमा है , दृढ़ता ऩर्वक स्थावऩत कयना चादहमे ॥३८॥

अधधष्ठान को अधधक दृढ़ फनाने के सरमे फुविभान (स्थऩतत) को एक बाग मा आधा, बरऩद(ऩौन बाग) मा चतुथांश, डेढ़ बाग अथर्ा एक बाग का चतुथांश जोड़ना मा घटाना चादहमे । इस भाऩ का तनणवम बर्न के अनुसाय उसके

उत्तभ (फड़ा), भध्मभ अथर्ा छोटे आकाय के अनुसाय कयना चादहमे । मह बर्न की शोबा के सरमे होता है । मह भत सॊमभी, तनभवर फुिी, तधर एर्ॊ ऩुयाण के ऻाता वर्द्र्ानों का है ॥३९॥ अथधष्ठानऩमाामनाभान अधधष्ठान के ऩमावमर्ाची शब्द - भसयक, अधधष्ठान र्ास्त्र्ाधाय, धयातर, तर, कुदट्टभ अथा आद्मङ्ग अधधष्ठान के ऩमावमर्ाची है ॥४०॥

तनगवभ का प्रभाण - न्जतना जगती का तनष्क्राधत तनसभवत हो, उतना ही कुभद ु का तनगवभ तनसभवत कयना चादहमे । सबी अम्फुजों की ऊॉचाई तनगवभ के फयाफय यखनी चादहमे ॥४१॥

दर (ऩन्त्तमों की ऩॊन्क्त) के अग्र बाग ऩॊन्क्त की ऊॉचाई का चतुथांश मा चतुथांश का आधा होना चादहमे । सबी र्ेरों का तनगवभ चौथाई होना चादहमे ॥४२॥

भहार्ाजन का तनगवभ उसके फयाफय आथर्ा तीन चौथाई होना चादहमे । शोबा एर्ॊ फर के अनुसाय अधधष्ठान के सबी बागों का प्रर्ेश एर्ॊ तनगवभ यखना चादहमे ॥४३॥ अथधष्ठानप्रनतच्छे दविथध

अधधष्ठान भें खण्ड कयने की वर्धध - फवु िभान (स्थऩतत) को अधधष्ठान भें कहीॊ बी प्रततच्छे द (खण्ड) नहीॊ कयना चादहमे । द्र्ाय के सरमे ककमा गमा प्रततच्छे द सम्ऩन्त्तकायक नही होता है । ऩादफधध एर्ॊ अधधष्ठान भें आर्श्मकतानुसाय प्रततच्छे द कयना चादहमे ॥४४-४५॥ जधभ आदद ऩाॉच र्गोंभे उनकी ऊॉचाई के अधत भें , सऩदट्टकाङ्ग भें , अधधष्ठान भें एर्ॊ अधम अङ्गो भें प्रततच्छे द हो सकता है । जहाॉ-जहाॉ उधचत हो, फुविभान (स्थऩतत) को र्हाॉ प्रमोग कयना चादहमे ॥४६॥ अधधष्ठान की ऊॉचाई स्तम्ब के ऊॉचाई की आधी, छ्, सात मा आठ बाग कभ होनी चादहमे । अधधष्ठान की ऊॉचाई सबी बर्नों भें उनके अनुसाय यखनी चादहमे । इस भत का प्रततऩादन शम्बु ने अच्छी प्रकाय से ककमा है ॥४७॥

अध्माम १५ स्तर्मबरऺण स्तम्ब के रऺण - भैं (भम ऋवष) अधम रऺणों के साथ स्तम्बों की रम्फाई, चौड़ाई, आकृतत एर्ॊ उनके अरङ्कयण आदद का सॊऺेऩ भे सम्मक् रूऩ से क्रभश् र्णवन कय यहा हॉ ॥१॥

स्थाणु, स्थण, ऩाद, जङ्घा, चयण, अङ्तिक, स्तम्ब, तसरऩ एर्ॊ कम्ऩ (स्तम्ब के) ऩमावमर्ाची शब्द है ॥२॥ स्तर्मबभान स्तम्ब का प्रभाण - फायह तर के बर्न भें बतर ऩय फनने र्ारे स्तम्ब की ऊॉचाई आठ हाथ एक बफत्ता (साढ़े आठ हाथ) होनी चादहमे । प्रत्मेक तर ऩय एक-एक बफत्ता कभ कयते हुमे सफसे ऊऩय के तर ऩय तीन हाथ ऊॉचाई होनी चादहमे ॥३॥ अथर्ा स्तम्ब की ऊॉचाई का भाऩन ददमे गमे भाऩ से (दसये ढॊ ग से) कयना चादहमे । अधधष्ठान की ऊॉचाई का दग ु न ु ा भाऩ स्तम्ब का यखना चादहमे ॥४॥

(फायह तर के बर्न भें ) स्र्मम्ब के अनुसाय स्तम्ब की ऊॉचाई अधधष्ठान के दग ु ुने से अधधक होनी चादहमे । बतर के स्तम्ब का वर्स्ताय अट्ठाईस भारा (अङ्गर ु -भाऩ) होना चादहमे ॥५॥

प्रत्मेक तर भे उऩमुक् व त भाऩ से दो-दो अङ्गुर कभ कयते हुमे ऊऩय के तर भें स्तम्ब की चौडाई का भाऩ प्राप्त होता है । अथर्ा स्तम्ब की ऊॉचाई का दसर्ाॉ, नर्ाॉ मा आठर्ाॉ बाग उसकी चौड़ाई का भाऩ होना चादहमे ॥६॥ अथर्ा स्तम्ब का वर्स्ताय आधा, तीन बाग कभ अथर्ा चतुथांश कभ यखना चादहमे । सबन्त्त-स्तम्ब के वर्स्ताय से

सबन्त्त-वर्ष्कम्ब का वर्स्ताय दग ु ुना, तीन गुना, चाय गुना, ऩाॉच गुना मा छ् गुना यखना चादहए । स्तम्ब-स्थाऩन-वर्धध के ऻाता अधधष्ठान के ऊऩय स्तम्ब के स्थाऩन के सभम होभ कयने का वर्धान फतराते है ॥७-८॥

स्तम्ब के बेद - प्रततस्तम्ब के प्रतत के ऊऩय एर्ॊ उत्तय (सबन्त्त) के नीचे तनसभवत ककमा जाता है । जधभ (अधधष्ठान का एक बाग) के ऊऩय स्तम्ब को स्थावऩत ककमा जाता है एर्ॊ उसकी चौड़ाई उसकी ऊॉचाई के तीसये बाग के फयाफय होती है ॥९॥ (तनखातस्तम्ब के सरमे) गहया गतव फनाकय उसके ऊऩय तर का तनभावण ककमा जाता है (ऩुन् स्तम्ब-स्थाऩन होता है ) । ऩादक ु से रेकय उत्तय-सबन्त्त के भध्म भें न्स्थत इस स्तम्ब का तनखातस्तम्ब कहते है ॥१०॥

अधधष्ठान से प्रायम्ब होकय उत्तयसबन्त्त के भध्म भें न्स्थय स्तम्ब को झषार स्तम्ब कहते है । मह स्तम्ब भर की अऩेऺा ऊध्र्व बाग भें छ्-फायह बाग कभ चौड़ा होता है ॥११॥ (फायह भन्ञ्जर के बर्न भें ) बतर भें स्तम्ब की चौड़ाई उसकी ऊॉचाई का छठर्ाॉ बाग होना चादहमे । ऊऩय के तरों भें बी स्तम्बों की ऊॉचाई एर्ॊ चौड़ाई भें मही अनुऩात होना चादहमे ॥१२॥ भुर से रेकय ऊऩय तक चौकोय तथा कुम्ब एर्ॊ भन्ण्ड से मुक्त स्तम्ब को ब्रह्भकाधत कहा जाता है तथा आठ कोण र्ारे स्तम्ब को वर्ष्णक ु ाधत कहते है ॥१३॥

षटकोण र्ारा स्तम्ब इधद्रकाधत सॊऻक होता है । सोरह कोण र्ारा स्तम्ब सौम्म कहराता है । (कोण र्ारे स्तम्बों भे) भर भें चौकोय होता है । इसके ऩश्चात ् अष्टकोण, षोडशकोण अथर्ा र्त्ृ ताकाय होता है । इसकी सॊऻा

ऩर्ावस्र होती है । र्त्ृ ताकाय स्तम्ब मदद कुम्ब एर्ॊ भन्ण्ड से मुक्त हो तो उसकी सॊऻा रुद्रकाधत होती है ।॥१४-१५॥ मदद स्तम्ब की रम्फाई वर्स्ताय से दग ु ुनी हो, भध्म भें अष्टकोण एर्ॊ ऊऩय तथा नीचे चौकोय हो तथा कुम्ब एर्ॊ भन्ण्ड से यदहत हो तो उसे 'भध्मे अष्टास्र' कहा जाता है ॥१६॥

रुद्रच्छधद सॊऻक स्तम्ब (भर से क्रभश् ऊऩय की ओय) चतुष्कोण, अष्टकोण एर्ॊ र्त्ृ ताकाय होता है । ऩद्मासन सॊऻक स्तम्ब के भर भें ऩद्मासन की यचना की जाती है , न्जसका प्रभाण डेढ़ दण्ड अथर्ा दो दण्ड ऊॉचा एर्ॊ उसका दग ु न ु ा चौड़ा होता है । इसके ऊध्र्व बाग भें इच्छानुसाय आकृतत अथर्ा भन्ण्ड का तनभावण कयना चादहमे । ॥१७-१८॥

बद्रक सॊऻक स्तम्ब के भर भें ऩद्मासन, चक्रर्ाक की आकृतत से मुक्त दो भन्ण्ड एर्ॊ भध्म भें बद्र तनसभवत होता है ॥१९॥

न्जसके भर भें व्मार, गज, ससॊह, एर्ॊ बत आदद (अधम प्राणी) अरॊकृत हो एर्ॊ ऊऩय इच्छानुसाय आकृतत का तनभावण ककमा गमा हो, उस स्तम्ब को उसके अरङ्काय के अनस ु ाय सॊऻा दी जाती है ॥२०॥

न्जस स्तम्ब ऩय रम्फाई भें हाथे का सॉड़ तनसभवत हो एर्ॊ कुम्ब तथा भन्ण्ड से मुक्त हो, उसे शुण्डऩाद स्तम्ब कहते है ॥२१॥

शुण्डऩाद भें जफ ऩये स्तम्ब भें भोततमाॉ उत्कीणव होती है तो उसे वऩन्ण्डऩाद कहते है । (धचरखण्ड सॊऻक स्तम्ब के) अग्र बाग (ऊऩयी बाग) भें दो दण्ड से चौकोय तनसभवत होता है । उसके नीचे आधे दण्ड से अष्टकोण ऩद्म होता है । उसके नीचे एक दण्ड भाऩ का सोरह कोण ऩद्म तथा उसके नीचे एक दण्डप्रभाण का चौकोय भध्म ऩट्ट होता है । इसके ऩश्चात ् (नीचे) ऩहरे के सदृश षोडश कोण ऩद्म तनसभवत होता है । भर भें शेष बाग चौकोय होता है । इस

स्तम्ब को धचरखण कहते है । इसी भें मदद भध्म ऩट्ट अष्टकोण हो तो उसे श्रीखण्ड स्तम्ब कहते है ॥२२-२३-२४२५॥ उऩमक् ुव त स्तम्ब भें मदद भध्म ऩट्ट सोरह कोण हो तो उसकी सॊऻा श्रीर्ज्र होती है । (ऺेऩण स्तम्ब के) अग्र बाग

की आकृतत चौकोय होती है । न्जसभें तीन ऩट्ट से मुक्त ऺेऩण तनसभवत होता है , उसे ऺेऩण स्तम्ब कहते है । इसके ऩट्ट ऩर आदद से अरॊकृत होते है । उसके नीचे तीन अथर्ा चाय बाग भे सशखा का भान यक्खा जाता है । सबी स्तम्ब ऩोततका से मुक्त एर्ॊ वर्सबधन प्रकाय की आकृततमों से सुसन्ज्जत होते है ॥२६-२७॥ दण्डरऺण दण्ड का रऺण - स्तम्ब के अग्र (ऊध्र्व) बाग की चौड़ाई को दण्ड कहते है । बर्न के सबी बागों का प्रभाण दण्डभान से भाऩा जाता है ॥२८॥ करश के रऺण - करशों के नाभ क्रभश् श्रीकय, चधद्रकाधत, सौभुख्म एर्ॊ वप्रमदशवन है । इनका भाऩ (चौड़ाई भें ) सर्ा दण्ड, डेढ़ दण्ड, ऩौने दो दण्ड तथा दो दण्ड एर्ॊ इसके दग ु न ु ा ऊॉचा होता है ॥२९-३०॥

स्तम्ब के ऊध्र्व बाग से ऩोततका, खण्ड, भन्ण्ड, कुम्ब, स्कधध, ऩद्म एर्ॊ भारास्थान का क्रभश् तनभावण कयना चादहमे ॥३१॥

कुम्ब की ऊॉचाई के नौ बाग कयने चादहमे । इसभें एक बाग से धग ृ , चाय बाग से कभर, एक बाग से कण्ठ, एक

बाग से भुख, एक बाग से ऩद्म, आधा बाग से र्त्ृ त एर्ॊ आधा बाग से दो हीयकों का तनभावण कयना चादहमे । हीयकों का व्मास स्तम्ब की चौड़ाई के फयाफय एर्ॊ भख ु उसके कणव तक वर्स्तत ृ होना चादहमे ॥३२-३३॥

कणव परक के फयाफय चौड़ा होना चादहमे एर्ॊ कणव के फयाफय कुम्ब का वर्स्ताय यखना चादहमे अथर्ा परक का वर्स्ताय चाय दण्ड मा ततन दण्ड होना चादहमे ॥३४॥

अथर्ा साढ़े तीन दण्ड वर्स्ताय होना चादहमे एर्ॊ उसकी ऊॉचाई तीन दण्ड यखनी चादहमे । ऊॉचाई को तीन फयाफय बागों भें फाॉटना चादहमे । ऊध्र्व बाग की तनसभवतत (उत्सन्धध) एक बाग से कयनी चादहमे ॥३५॥ एक बाग से र्ेरॊ एर्ॊ एक बाग से अधदय की ओय भुड़ा ऩद्म होना चादहमे । र्ह कुम्ब स्तम्ब की आकृतत के सभान र्ेर से नागर्क्र के आकाय का होना चादहमे ॥३६॥

स्तम्ब के वर्स्ताय के सभान धक ृ ् , कण्ठ एर्ॊ र्ीयकाण्ड का वर्स्ताय यखना चादहमे । सबी स्तम्बों का र्ीयकाण्ड चौकोय होना चादहमे ॥३७॥

उसकी (र्ीयकाण्ड की) ऊॉचाई से ऩौन बाग कभ (एक चौथाई अथर्ा) एक दण्ड ऊॉचा स्कधध होना चादहमे । उसके नीचे उसके आधे भाऩ का ऩद्म होना चादहमे , जो ऩरों से अरॊकृत हो । उसके नीचे भारा-स्थान होना चादहमे , जो दण्डप्रभाण ऊॉचा हो ॥३८॥ ऩोततका

ऩोततका (स्तम्ब का ऊऩयी बाग, जो स्तम्ब से फाहय तनकरा हो) का वर्स्ताय स्तम्ब के वर्स्ताय के फयाफय होना चादहमे एर्ॊ उसकी ऊॉचाई बी वर्स्ताय के फयाफय होनी चादहमे ॥३९॥ उत्तभ ऩोततका की चौड़ा ऩाॉच दण्ड एर्ॊ उसकी ऊॉचाई की आधी होनी चादहमे । कतनष्ठ ऩोततका की चौड़ाई तीन दण्ड एर्ॊ भध्मभ ऩोततका की चौड़ाई तीन बाग कभ चाय दण्ड होनी चादहमे । (स्तम्ब का) ऩर्ोक्त प्रभाण भण्डी एर्ॊ कुम्ब के साथ चाय गुना हो जाता है ॥४०-४१॥ (भण्डी, कुम्ब आदद से यदहत) केर्र स्तम्ब का भाऩ ततन गन ु ा होता है । सबी ऩादों का मथोधचत भाऩ र्र्णवत ककमा गमा है ॥४२॥

ऩोततका की ऊॉचाई के तीसये मा चौथे बाग के फयाफय ऩोततका के ऊऩय अग्रऩदट्टका तनसभवत होती है । इसका छामाभान आधा, दो-ततहाई अथर्ा तीन-चौथाई होना चादहमे ॥४३॥ तीन बाग अथर्ा चौथे बाग भें तयङ्ग-स्थान (रहयों की यचना) होना चादहमे । मह ऺुद्र -ऺेऩण, भध्म ऩट्ट एर्ॊ ऩट्टो से अरॊकृत होना चादहमे ॥४४॥ सबी रहयें सभ एर्ॊ एक-दस ु ये से हीन नही होती है । इनका अग्र बाग एर्ॊ तनष्क्राभ (प्रथभ छोय से अन्धतभ छोय) अऩने वर्स्ताय का आधा अथर्ा तीसये बाग के फयाफय होना चादहमे ॥४५॥

इसके ऊध्र्व बाग भें सऩव की कुण्डरी के सदृश भुन्ष्टफधध होना चादहमे, जो नासरमों के सदहत सभतर एर्ॊ नाटकों (नाटम धचरो) से मुक्त हो ॥४६॥

ऩोततका के ऊध्र्व बाग भें बत (जीर्-जधतु), गज, भकय एर्ॊ व्मार आदद का अरङ्कयण होना चादहमे । ऩोततका का भध्म ऩट्ट दोनों ऩाश्र्ों भे स्तम्ब के सभान वर्स्तत ृ होना चादहमे ॥४७॥

न्जस ऩोततका की अग्रस्थ ऩदट्टका (ऊऩयी ऩट्टी ऩय) यत्नजदटत रता अङ्ककत हो अथर्ा अनेक प्रकाय के धचरों से न्जसकी सज्जा की गई हो, उसे धचरऩोततका कहते है ॥४८॥ वर्सबधन प्रकाय के ऩरों से अरॊकृत ऩोततका को ऩरऩोततका कहते हैं । न्जस ऩोततका भें सागय के रहयों के सदृश

रहयें तनसभवत हो, र्ह तयङ्धगणी ऩोततका होती है । इन रहयों की सॊख्मा चाय, छ्, आठ, दश मा फायह होनी चादहमे । अथर्ा फहुत सी सभ सॊख्माओॊ भें रहये होनी चादहमे, जो एक-दसये से आगे फढ़ती हुई हो ॥४९-५०॥ स्तम्ब के वर्षम भें वर्शेष - सबन्त्त के स्तम्ब का तनगवभ इस प्रकाय होना चादहमे - मदद चतुष्कोण हो तो चौथाई, अष्टकोण हो तो आधा तथा र्त्ृ ताकाय हो तो तीन चौथाई ॥५१॥

स्तम्बाधतय दो हाथ से रेकय चाय हाथ तक कहा गमा है । छ्-छ् अङ्गुर की र्वृ ि कयते हुमे इसके नौ बेद कहे गमे हैं ॥५२॥ सबी स्थानों ऩय सबी बर्नों भे मथोधचत अॊश (उऩमुक् व त भाऩों भें से) ग्रहण कय स्तम्ब एर्ॊ स्तम्बाधतय भें प्रमोग कयना चादहमे ॥५३॥

मदद स्तम्ब-स्थाऩन तनमभानुकर न हो तो र्ह बसभ एर्ॊ बर्न (तथा उसके स्र्ाभी) का वर्नाश कयने र्ारा होता है । अनुकर स्तम्ब-स्थाऩन कलमाण प्रदान कयता है ॥५४॥

न्जतना वर्स्तत ु न ु ा मा तीन गन ु ा वर्स्तत ृ काष्ठस्तम्ब होता है , उतना वर्स्तत ृ , उसका आधा, दग ृ प्रस्तयस्तम्ब हो सकता है ; ककधतु इसका प्रमोग केर्र दे र्ारम भें होना चादहमे, भनुष्मारम भे नही होना चादहमे ॥५५॥

प्राचीन भनीवषमों ने सबी स्तम्बों को ईट, प्रस्तय अथर्ा काष्ठ से तनसभवत कहा है । दे र्गह ृ ोंभे स्तम्ब की सॊख्मा सभ अथर्ा वर्षभ हो सकती है ; ककधतु भनष्ु मों के गह ृ भें स्तम्बों की सॊख्मा वर्षभ होनी चादहमे ॥५६॥

न्जस प्रकाय आजुसर (भाऩसर) हो, उसी के अनुसाय अधत्स्तम्ब एर्ॊ फदह्स्तम्ब का तनभावण कयना चादहमे । उसी के अनस ु ाय गह ृ की सबन्त्त के भध्म शाराओॊ की बी न्स्थतत होनी चादहमे ॥५७॥

मह भाऩ दे र्ारमों भे स्तम्ब के फाहय से सरमा जाता है । (ककधतु) शमन एर्ॊ आसन के तनभावण भें ऩाद (ऩामे =

स्तम्ब) के अधदय से सरमा जाता है । (प्रासादों के तनभावण भें ऊॉचाई का भाऩ) कुछ वर्द्र्ानों के अनुसाय उऩान से

सशय्प्रदे श तक भाऩ रेना चादहमे तथा कुछ के भतानस ु ाय भाऩन कामव प्रासाद की स्तऩी तक होना चादहमे । ॥५८॥ सबी स्थानों ऩय प्रासादों की ऊॉचाई का भाऩ इसी प्रकाय रेना चादहमे , ऐसा भुतनमों का भत है । सबागाय एर्ॊ भण्डऩ भें स्तम्बों के फाहय से अथर्ा स्तम्ब के भध्म से भाऩ-सर रे जाना चादहमे ॥५९॥

बर्नों भें भानसर फाहय (सबन्त्त अथर्ा स्तम्ब के फाहय) से, बीतय से एर्ॊ भध्म से प्रमुक्त होना चादहमे । इस प्रकाय का (वर्वर्ध प्रकाय से भानसर का) प्रमोग सबी सम्ऩदाओॊ को प्रदान कयने र्ारा होता है । इसके वर्ऩयीत (भानसर द्र्ाया बरी-बाॉतत भाऩन न कयने ऩय) होने ऩय गह ृ स्र्ाभी के सरमे वर्ऩन्त्तकायक होता है , ऐसा शास्रों का भत है ॥६०॥

द्रव्मऩरयग्रह् ऩदाथों का सॊग्रह - स्तम्ब एर्ॊ उत्तय (स्तम्ब के ऊऩय तनसभवत सबन्त्त) आदद अङ्गों भें प्रमुक्त होने र्ारे द्रव्म काष्ठ, प्रस्तय एर्ॊ ईटे है ॥६१॥ िऺ ृ रऺण र्ऺ ृ के रऺण - (बर्नों भें प्रमुक्त होने र्ारे काष्ठ के गुण-धभव इस प्रकाय है -) न्स्नग्धसाय (ठोस एर्ॊ धचकना),

भहासाय (अत्मधत दृढॊ ) न ही फहुत ऩुयाना तथा न ही अऩरयऩक्र् हो, टे ढ़ा न हो तथा र्ऺ ृ भें ककसी प्रकाय का चोट एर्ॊ दोष न हो; ऐसा र्ऺ ृ गह ृ तनभावण भें ग्रहण कयने मोग्म होता है ॥६२॥ ऩवर्र स्थर, ऩर्वत, र्न एर्ॊ तीथों भे न्स्थत, दे खने भें सुधदय तथा भन को आकृष्ट कयने र्ारे र्ऺ ृ सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्त एर्ॊ सभवृ ि प्रदान कयने र्ारे होते है , इसभेभ सधदे ह नही है ॥६३॥

स्तम्ब भें प्रमोग के मोग्म र्ऺ ु ष, कत्था, सार, भहुआ, चम्ऩक, शीशभ, अजन ुव , अजकणी, ऺीरयणी, ऩद्म, ृ इस प्रकाय है - ऩरु चधदन, वऩसशत, धधर्न, वऩण्डी, ससॊह, याजादन, शभी एर्ॊ ततरक । इसी प्रकाय तनम्फ, आसन, सशयीष, एक, कार, कटपर, ततसभस, सरकुच, कटहर, सप्तऩणवक, बौभा एर्ॊ गर्ाऺी के र्ऺ ृ बी ग्रहण कयने मोग्म होते है ॥६४-६५-६६॥ सशरारऺणभ ् सशरा के रऺण - शुब सशरा एक यॊ ग की, दृढ़, (ककधतु छने ऩय) धचकनी, छने ऩय अच्छी रगने र्ारी, बसभ भें गड़ी होने ऩय ऩर्वभख ु अथर्ा उत्तय की ओय भख ु र्ारी होती है ॥६७॥ इष्टकारऺण ईटो के रऺण - इष्टकामे स्रीसरङ्ग, ऩॉन्ु लरङ्ग, एर्ॊ नऩुॊसक सरङ्ग की होती है । इधहे दोषहीन, घनी (न्जसभें सभट्टी

खफ दफा कय फैठामी गई हो), आग भे चायो ओय सभान रूऩ से ऩकी हो, (फजाने ऩय) सुधदय स्र्य र्ारी, दयाय, टटन

तथा तछद्रयदहत होनी चादहमे । (मे रऺण) स्रीसरङ्ग, एर्ॊ ऩॉन्ु लरङ्ग (दोनो) इष्टकाओॊ के सरमे कहे गमे है ॥६८-६९॥ इस प्रकाय के इन ऩदाथो से तनसभवत बर्न तनन्श्चत रूऩ से धभव, अथव एर्ॊ काभ के सुख को प्रदान कयने र्ारा होता है ॥७०॥

र्ज्माव र्ऺ ृ ा् त्माज्म र्ऺ ृ - गह ृ इस प्रकाय है - दे र्ारम के तनकट न्स्थत र्ऺ ृ , शस्रादद से आहत र्ऺ ृ , ृ तनभावण भें त्माज्म र्ऺ

आकाशीम बफजरी से जरा हुआ र्ऺ ृ , र्न की अन्ग्न से जरा हुआ तथा प्रेतस्थर ऩय उगा हुआ र्ऺ ृ (बर्न के काष्ठ के सरमे) ग्राह्म नही होता है ॥७१॥ प्रधान भागव ऩय उगा हुआ र्ऺ ृ , ग्राभ भें उत्ऩधन र्ऺ ृ , घट के जर से ससन्ञ्चत र्ऺ ृ तथा ऩक्षऺमों एर्ॊ ऩशुओॊ से सेवर्त र्ऺ ृ गह ृ तनभावण के सरमे ग्राह्म नही होता है ॥७२॥ र्ामु द्र्ाया तोड़ा गमा, गजों द्र्ाया तोड़ा गमा, सभाप्त जीर्न र्ारा, चण्डारर्गव के रोगों को शयण दे ने र्ारा तथा

न्जस र्ऺ ृ के नीचे (चण्डारर्गव को छोड़ कय) अधम सबी र्गव के रोग शयण रेते हो (इस र्गव के र्ऺ ृ बी बर्न के सरमे अग्राह्म होते है ) ॥७३॥

दो र्ऺ ृ आऩस भें सरऩटे हुमे हो, टटे हो, दीभक रगे हो, उस र्ऺ ृ से घनी रता सरऩट हो तथा उस र्ऺ ृ ऩय ऩक्षऺमों के घोसरे हो इस प्रकाय के र्ऺ ृ बर्न के सरमे अग्राह्म होते है ॥७४॥ न्जस र्ऺ ृ के सबी अङ्गो ऩय अङ्कुय तनकरे हो, भ्रभयो तथा कीटों से दोषमुक्त, वर्ना सभम परने र्ारे तथा श्भशान के सभीऩ उगे र्ऺ ृ (गह ृ तनभावण के सरमे) ग्राह्म नही होते है ॥७५॥

सबागाय एर्ॊ चैत्म (ग्राभ का ऩजनीम स्थर) के सभीऩ तथा दे र्ारम के सभीऩ उगे र्ऺ ृ तथा र्ाऩी, कऩ एर्ॊ ताराफ आदद तनभावण-स्थरों ऩय उगे र्ऺ ृ बी (बर्न तनभावण के सरमे) ग्राह्म नही होते है ॥७६॥

अग्राह्म र्ऺ ु त होते है तो) सबी प्रकय की वर्ऩन्त्तमों के कायक फनते है । ृ ादद से तनसभवत ऩदाथव (जफ बर्न भे प्रमक् इससरमे प्रमत्नऩर्वक शुि ऩदाथों को ही रेना चादहमे ॥७७॥

प्रस्तय का प्रमोग दे र्ारम, ब्राह्भण, याजा तथा ऩाषन्ण्डमों (वर्धभी) के गह ृ भें होना चादहमे; ककधतु र्ैश्म एर्ॊ शद्र के बर्न भें नही कयना चादहमे ॥७८॥

मदद उस प्रकाय का (र्ैश्म एर्ॊ शद्र के बर्न भें सशराप्रमोग) बर्न तनसभवत ककमा गमा तो र्ह धभव, काभ एर्ॊ अथव का नाश कयता है । एक ऩदाथव से तनसभवत बर्न की सॊऻा 'शुि' दो द्रव्म से तनसभवत बर्न 'सभश्र' तथा तीन द्रव्म-सभधश्रत

ऩदाथव से तनसभवत बर्न की सॊऻा 'सङ्कीणव' होती है । ऩहरे र्र्णवत तनमभों के अनुसाय तनसभवत बर्न सम्ऩन्त्त प्रदान कयता है ॥७९-८०॥ िऺ ृ सॊग्रहण काष्ठ हे तु र्ऺ ृ का सॊग्रह - (गहृ तनभावण हे तु काष्ठ के सॊग्रह के सरमे) ऩदाथों की काभना यखने र्ारे (गह ृ स्र्ाभी) को शुब कृत्म कयके सर्वद्र्ारयक नऺर भें शुब (शुक्र) ऩऺ भें एर्ॊ शुब भह ु तव भे र्न की ओय प्रस्थान कयना चादहमे ॥८१॥

अच्छे रऺणों र्ारे शकुनों एर्ॊ भङ्गरध्र्तन के साथ र्नदे र्ताओॊ एर्ॊ सबी अबीष्ट र्ऺ ृ ों की गधध, ऩष्ु ऩ, धऩ, भाॊस, र्खचड़ी, दध, बात, भछरी एर्ॊ वर्वर्ध प्रकाय की बोज्म साभधग्रमों से ऩजा कयनी चादहमे ॥८२-८३॥

(र्ऺ ृ ों भें तनर्ास कयने र्ारे) बतों (प्रेत, वऩशाच, ब्रह्भ आदद) के सरमे क्रय फसर (यक्त, भाॊस आदद) दे कय अऩने कामव के अनक ु र र्ऺ ृ का चमन कयना चादहमे । मे र्ऺ ृ जड़ से सशयोबाग तक सीधे, गोराकाय एर्ॊ अनेक शाखाओॊ से मुक्त होने चादहमे ॥८४॥

उऩमक् ुव त र्ऺ ु ष' होते है । जो र्ऺ ृ 'ऩरु ृ भर भें स्थर एर्ॊ ऊध्र्व बाग भें ऩतरे होते है , र्े 'स्री' र्ऺ ृ हैं तथा न्जनका भर कृश एर्ॊ ऊध्र्व बाग स्थर हो, र्े र्ऺ ृ 'षण्ड' (नऩुॊसक) होते है ॥८५॥

'भुहतवस्तम्ब' (सशराधमास के स्थान ऩय स्थावऩत होने र्ारा स्तम्ब) ऩुरुष र्ऺ ृ का होना चादहमे । गह ृ के अधम बागों के सरमे ऩरु ु ष, स्री एर्ॊ षण्ड तीनों र्ऺ ृ ों का प्रमोग हो सकता है ॥८६॥

(काष्ठानमन के सरमे गमे व्मन्क्त को) फुविभान एर्ॊ ऩवर्र व्मन्क्त (स्थऩतत) को र्ऺ ृ के नीचे ऩर्व ददशा भें कुश बफछा कय एर्ॊ अऩने दादहने बाग भें ऩयशु यख कय याबर भें र्ही शमन कयना चादहमे ॥८७॥

इसके ऩश्चात ् याबर (शेष यहने ऩय) शुि जर ऩीकय ऩन्श्चभासबभुख होकय सुधदय र्ेष धायण कय हाथ भें ऩयशु रेकय स्थऩतत को इस प्रकाय भधरऩाठ कयना चादहमे ॥८८। अमॊ भधर्इस र्ऺ ृ से बत-प्रेत, दे र्ता, गुह्मक आदद दय हो जामॉ । हे र्ऺ ृ ों! आऩको सोभ दे र्ता फर प्रदान कयें ॥८९॥

हे र्ऺ ु मकों! (हभाया) कलमाण हो । भैं अऩना (इन काष्ठों से गह ृ ों, दे र्ों एर्ॊ उनके साथ गह् ृ तनभावणरूऩी) कामव ससि कयना चाहता हॉ । आऩ दसये स्थान ऩय तनर्ास ग्रहण कयें ॥९०॥

इस प्रकाय भधर फोर कय ऩवर्र स्थऩतत र्ऺ ु ृ ों को प्रणाभ कयके दध, तेर एर्ॊ घी से ऩयशु (पयसा, कुलहाड़ी) के भख (धाय) को बरी)बाॉतत तेज कये ॥९१॥

(ऩयशु को तेज कयके) उस अबीष्ट र्ऺ ृ के ऩास उसे काटने के सरमे जाना चादहमे । उस र्ऺ ृ के भर से एक हाथ छोड़कय तीन फाय (ऩयशु द्र्ाया) छे द कय उसका तनयीऺण कयना चादहमे ॥९२॥

कटे स्थान से मदद जर फहे तो र्ह र्ऺ ृ गह ृ स्र्ाभी को र्वृ ि प्रदान कयता है । मदद दध का स्रार् हो तो ऩुरों की

र्वृ ि प्रदान कयने र्ारा तथा यक्त का (रार र्णव का स्रार्) स्रार् गह ृ स्र्ाभी को भत्ृ मु प्रदान कयने र्ारा होता है । ऐसे र्ऺ ृ को प्रमत्नऩर्वक छोड़ दे ना चादहमे ॥९३॥

कटे र्ऺ ृ के धगयने के सभम मदद ससॊह, शादव र एर्ॊ गज के स्र्य सुनाई ऩड़े तो शुब होता है । इसके वर्ऩयीत वर्द्र्ानों ने योदन, हॉसने, आक्रोशऩणव एर्ॊ गञ् ु जन के स्र्य को तनधदनीम कहा है ॥९४॥

र्ऺ ृ मदद ऩर्व मा उत्तय ददशा की ओय असबभुख होकय धगये तो दोनो ददशामें शुब होती है । अधम ददशाओॊ भें र्ऺ ृ का ऩतन वर्ऩयीत ऩरयणाभ प्रदान कयता है ॥९५॥

मदद सार, अश्भयी एर्ॊ अजकणी र्ऺ ृ ों का ऊध्र्व बाग धगये तो शुब; ककधतु मदद ऩतन होते सभम ऊऩयी बाग नीचे एर्ॊ ऩष्ृ ठ मा भर बाग ऊऩय होकय धगये तो गह ृ स्र्ाभी के फधधु-फाधधर्ों एर्ॊ ऩरयचायोंका वर्नाश होता ॥९६॥

काटने के ऩश्चात ् अधम र्ऺ ृ ो के भध्म धगयता हुआ र्ऺ ृ मदद अधम र्ऺ ृ ों के शीषव बाग से सहाया ऩाकय धगयने से रुक जाता है तो गह ृ स्र्ाभी का वर्नाश होता है तथा जड़ के सहाये रुकने ऩय गह ृ स्र्ाभी के अस्र्ास्थ्म का कायण फनता है ॥९७॥

मदद र्ऺ ृ का भध्म बाग टट जाम तो र्ऺ ृ काटने र्ारे का नाश होता है तथा शीषव बाग के टटने ऩय सधततत का

नाश होता है । र्ऺ ृ ों का एक-दसये ऩय धगयना (एक र्ऺ ृ के ऊऩय दसये कटे र्ऺ ृ का धगयना) प्रशस्त होता है । र्ऺ ृ ों के दोनों बागों को फयाफय काटना चादहमे ॥९८॥

(कटे र्ऺ ृ के दोनों छोयों को फयाफय काट कय) काष्ठ को चौकोय एर्ॊ सीधा फनाना चादहमे तथा उसे भुहतवस्तम्ब के सरमे ग्रहण कयना चादहमे । तत्ऩश्चात ् उस काष्ठ को श्र्ेत र्स्र से ढॉ ककय स्मधदन (यथ, गाड़ी) भे यखना चादहमे ॥९९॥

दे र्ों, ब्राह्भणों, याजाओॊ एर्ॊ र्ैश्मों का काष्ठ शकट (गाड़ी) द्र्ाया रे रामा जाना चादहमे तथा फुविभान व्मन्क्त को शद्र के गह ु ष के कधधों द्र्ाया ढ़ोकय रे जाना चादहमे ॥१००॥ ृ का काष्ठ ऩरु

र्ऺ ृ ों (काष्ठों) को सरटा कय दोनों ऩाश्र्ों से शकट भें यखना चादहमे । स्थऩतत द्र्ाया चुने गमे र्ऺ ृ ों को प्रशस्त द्र्ाया द्र्ाया (कभवभण्डऩ भें ) प्रर्ेश कयाना चादहमे ॥१०१॥

कभवभण्डऩ (कामवशारा) भें र्ऺ ृ ों का प्रर्ेश कयाकय उधहें फार ऩय सरटा दे ना चादहमे । उनका शीषव बाग ऩर्व अथर्ा उत्तय की ओय होना चादहमे । इनके सखने तक इनकी यऺा कयनी चादहमे ॥१०२॥

छ् भासों तक इन र्ऺ ृ ों को अऩने स्थान से नहीॊ दहराना चादहमे । इसी प्रकाय सबी इधद्रकीरों (कीरों) को बी प्रमत्नऩर्वक प्राप्त कयना चादहमे ॥१०३॥

अधम धातु आदद ऩदाथों का सॊग्रह कयके उधहें बी इसी प्रकाय कयना चादहमे । ॥१०३॥ भुहूत्तास्तर्मब भुहतव-स्तम्ब - दे र्ों एर्ॊ द्वर्जाततमों (ब्राह्भण, ऺबरम, र्ैश्म) के भुहतवस्तम्ब (का काष्ठ) क्रभश् इस प्रकाय होता है कातवभार, खददय, खाददय, भधक एर्ॊ याजादन । इनका वर्स्ताय एर्ॊ रम्फाई क्रभश् इस प्रकाय र्र्णवत है ॥१०४-१०५॥

इनकी ऊॉचाई (मा रम्फाई) फायह, ग्मायह, दश मा नौ वर्तन्स्त (बफत्ता) एर्ॊ वर्स्ताय बी इतने ही अॊगुर का होता है । इसके अग्र बाग (शीषव बाग) का वर्स्ताय दश बाग कभ होता है ॥१०६॥

गतव भें यहने र्ारे भर बाग की चौड़ाई ऩाॉच, साढ़े चाय, चाय मा तीन बफत्ता होनी चादहमे । अथर्ा स्तम्ब की ऊॉचाई एर्ॊ चौड़ाई बर्न के तर के अनुसाय यखनी चादहमे ॥१०७॥ झषाराङ्ति स्तम्ब भें सबी स्थानों ऩय गतव का ऩरयत्माग कयना चादहमे ॥१०७॥ अश्र्त्थ (ऩीऩर), उदम् ु फय (गरय), प्रऺ (ऩाकड़), र्ट (फयगद), सप्तऩणव, बफलर् (फेर), ऩराश, कुटज, ऩीर,ु श्रेष्भातकी

(सरसोढ़ा), रोध्र, कदम्फ, ऩारयजात, सशयीष, कोवर्दाय (कचनाय), ततन्धरणी, भहाद्रभ ु , सशरीधध्र, सऩवभाय, शालभरी (सेभर),

सयर (चीड़), ककॊ शुक, अरयभेद, अबमा, अऺ, आभरकद्रभ ु , कवऩत्थ (कैथा), कण्टक, ऩर ु जीर्, डुण्डुक, कायस्कय, कयञ्ज, र्यण, अश्र्भायक, फदय, फकुर, वऩण्डी, ऩद्मक, ततरक, ऩाटरी, अगरु तथा कऩय के र्ऺ ृ ों का प्रमोग गहृ तनभावण भे नही कयना

चादहमे । मे सबी र्ऺ ृ दे र्ों के मोग्म है ; रेककन भनुष्मों सरमे अनथवकायक होते है । इससरमे भनुष्मों के गह ृ -तनभावण के सरमे इनको प्रमत्नऩर्वक नहीॊ ग्रहण कयना चादहमे अथावत ् इन र्ऺ ृ काष्ठों का ऩरयत्माग कय दे ना चादहमे ।॥१०८१०९-११०-१११-११२-११३॥ इष्टकासॊग्रहणभ ंटटों का सॊग्रह - (भन्ृ त्तका चाय प्रकाय की होती है -) ऊषय (रोनी, नभकीन), ऩाण्डुय (सपेद), कृष्ण-धचक्कण (कारी औय धचकनी) एर्ॊ ताम्रऩुलरक (रार र्णव की र्खरी हुई) ॥११४॥

भन्ृ त्तकामें चाय प्रकाय की होती है । इनभें ताम्रऩुलरक भन्ृ त्तका इष्टकादद के सरमे ग्रहण कयने मोग्म होती है । इसभें कॊकड़, ऩत्थय, जड़ एर्ॊ अन्स्थ के टुकड़े नही होने चादहमे; साथ ही इसभें भहीन फार होना चादहमे ॥११५॥

मह भन्ृ त्तका एक यॊ ग की एर्ॊ छने भें सख ु द होनी चादहमे । रोष्ट (टाइलस) एर्ॊ ईट के तनभावण के सरमे (गतव भें ) घुटने के फयाफय जर भें सभट्टी डारनी चादहमे ॥११६॥

सभट्टी एर्ॊ ऩानी को अच्छी तयह से सभराकय ऩैयों से चारीस फाय उनका भदव न कयना चादहमे । इसके ऩश्चात ् ऺीयद्रभ ु , कदम्फ, आभ, अबमा एर्ॊ र्ऺ ृ के छार के जर से एर्ॊ बरपरा के जर से ससन्ञ्चत कय तीस फाय भदव न कयना चादहमे अथावत ् ऩैयों से सानना चादहमे ॥११७॥

(उऩमुक् व त वर्धध से तैमाय की गई सभट्टी से) चाय, ऩाॉच, छ् मा आठ अङ्गुर चौड़ी, चौड़ाई की दग ु ुनी रम्फी तथा चौड़ाई की चतुथांश, आधा अथर्ा तीसये बाग के फयाफय भोटी ईटो का तनभावण कयना चादहमे । इनकी भोटाई एक छोय से

दसये छोय तक फयाफय होती है । ईटों को ऩणव रूऩ से सुखाकय ऩुन् इधहें सभान रूऩ से ऩकामा जाता है ॥११८-११९॥ इसके ऩश्चात ् एक, दो, तीन मा चाय भास फीत जाने ऩय फुविभान (स्थऩतत) को ईटों को मत्नऩर्वक जर भें डार कय

ऩुन् जर से तनकारना चादहमे । जफ ईटे सख जामॉ तफ इन्च्छत तनभावणकामव भे इनका प्रमोग कयना चादहमे ॥१२०॥ इस प्रकाय वर्धधऩर्वक र्ऺ ृ (काष्ठ), ईट एर्ॊ सशरा आदद रेकय बर्नतनभावण कयना चादहमे । श्रेष्ठ जन ऐसे बर्न को सभवृ िदामक कहते है । जो ऩदाथव तनन्धदत है अथर्ा दसये बर्न से सरमे गमे है (ऩुयने बर्न से तनकरे ईट, काष्ठ

आदद), उनसे तनसभवत बर्न नष्ट हो जाते है तथा (गह ृ स्र्ाभी के सरमे) वर्ऩन्त्त के कायण फनते है , ऐसा प्राचीन जनों का भत है ॥१२१॥

स्तम्बों की रम्फाई, भोटाई एर्ॊ आकायों का र्णवन उनके अरङ्काय एर्ॊ सज्जासदहत क्रभानुसाय ककमा गमा है ।

भनुष्मों एर्ॊ दे र्ों के गह ृ भें वर्धधऩर्वक इनका प्रमोग सम्ऩन्त्त प्रदान कयता है , ऐसा भम द्र्ाया र्र्णवत है ॥१२२॥

अध्माम १६ प्रस्तय-ननभााण भैं (भम ऋवष) सबी प्रकाय के बर्नों के अनरू ु ऩ उत्तय से प्रायम्ब कय र्तृ त (प्रतत) ऩमवधत प्रसात (प्रस्तय) के अॊगों का सम्मक् रूऩ से क्रभश् र्णवन कय यहा हॉ ॥१॥ उत्तयिाजनौ उत्तय एर्ॊ र्ाजन - उत्तय (स्तम्ब के ऊऩय की सबन्त्त) तीन प्रकाय का होता है । प्रथभ की चौड़ाई स्तम्ब के फयाफय

होनी चादहमे एर्ॊ उसकी ऊॉचाई चौड़ाई के फयाफय होनी चादहमे । दस ु ये उत्तय की ऊॉचाई चौड़ाई से तीन चौथाई अधधक होनी चादहमे एर्ॊ तीसये उत्तय की ऊॉचाई चौड़ाई की आधी होनी चादहमे ॥२॥

इन तीनों उत्तयों की सॊऻा खण्डोत्तय, ऩरफधध एर्ॊ रूऩोत्तय है । इनका कणवतनगवभ (कोणों ऩय तनकरी तनसभवतत) तीन चौथाई, तीन बाग कभ अथर्ा आधा होना चादहमे । ॥३॥ उत्तय से र्तृ त (अथर्ा प्रतत) के भध्म होने र्ारे तनर्ेश स्र्न्स्तक, र्धवभान, नधद्मार्तव अथर्ा सर्वतोबद्र आकृतत के होते है ॥४॥

र्ाजन के तीसये अथर्ा चौथे बाग से चाय कोणों र्ारे एर्ॊ ऊऩयी बाग भें ऩणव से मुक्त तनगवभ का प्रायम्ब होना चादहमे । तनगवभ के ऊऩय भुन्ष्टफधध तनसभवत होना चादहमे । ॥५॥

र्ाजन के ऊऩय भन्ु ष्टफधध तर ु ाच्छे द के द्र्ाया अथर्ा स्र्तधर रूऩ से तनसभवत होना चादहमे । स्तम्ब की चौड़ाई का आधा चौड़ा एर्ॊ अऩनी चौड़ाई का आधा भोटा अम्फुजऩट्ट तनसभवत होना चादहमे । र्ाजन के नीचे र्ारी से मुक्त दण्डतनगवभ का तनभावण होना चादहमे ॥६॥

उसके ऊऩय भर एर्ॊ ऊध्र्व बाग भें सशखा से (चर) मुक्त प्रभासरका तनसभवत होती है । मह स्तम्ब के व्मास के

फयाफय ऊॉची एर्ॊ उसके तीसये मा चौथे बाग के फयाफय भोटी होती है । साथ ही हाथी के सॉड के सभान आकृतत र्ारी कुम्ब एर्ॊ भन्ण्ड से मुक्त होती है ॥७-८॥

उसके ऊऩय दन्ण्डका होती है । मह स्तम्ब की आधी चौड़ी, चौड़ाई की आधी भोटी एर्ॊ एक दण्ड भाऩ की होती है । इसका तनष्क्रभ नीव्र का आधा होता है । इसकी आकृतत भुन्ष्टफधध के सभान चौकोय होती है ॥९॥ िरमॊ गोऩानञ्च इसके ऊऩय ऊॉचाई ऩय इच्छानुसाय चौड़ा एर्ॊ ऊॉचा र्रम होना चादहमे । उसके ऊऩय गोऩान तथा उसके ऊऩय ऺेऩणाम्फज ु ऩदट्टका होती है , जो भन्ु ष्टफधध के सभान वर्स्तत ृ एर्ॊ ऊॉची होती है ॥१०-११॥

मह ऩदट्टका दन्ण्डका के ऊऩय छीर-काट कय रगाई जाती है । उसके ऊऩय उसके प्रभाण के अनुसाय काट कय फवु िभान (स्थऩतत) को गोऩान तनसभवत कयना चादहमे ॥१२॥

उत्तय के अन्धतभ बाग भें इच्छानुसाय मुन्क्तऩर्वक अर्रम्फ तनसभवत कयना चादहमे । र्ाजन अथर्ा तुरा के ऊऩय फुविभान (स्थऩतत) को गोऩान रगाना चादहमे ॥१३॥

न्जतना (सबन्त्त से) तुरा का अधतय होता है , उतना ही अधतय गोऩान का बी होना चादहमे । गोऩान मदद दन्ण्डका के ऊऩयी बाग भें तनसभवत हो तो र्ाजन के अन्धतभ बाग भें अर्रम्फन होना चादहमे ॥१४॥

गोऩान के ऊऩय दण्ड का आधा चौड़ा एर्ॊ चौड़ाई का आधा भोटा कम्ऩ तनसभवत होना चादहमे । इसे र्रमतछद्र अधतय के फयाफय अधतय ऩय यखते हुमे उसके सभानाधतय तनसभवत कयना चादहमे ॥१५॥ कामऩाद दन्ण्डका एर्ॊ र्ाजन के फीच भें ऩर्ोक्त र्र्णवत बाग के अनस ु ाय कामऩाद (स्तम्ब को सहाया दे ने र्ारी कड़ी) रगाना चादहमे । मह स्तम्ब के वर्स्ताय के फयाफय होता है एर्ॊ उसका तनष्क्राधत उसके वर्स्ताय के आधे का आधा होता है एर्ॊ अग्रऩट्टी से मुक्त होता है ॥१६॥ स्तम्बों के भध्म बाग को साय र्ऺ ृ के काष्ट के परकों (ऩटयों) से छा दे ना चादहमे । इसे दण्ड़ के आठर्ें बाग की भोटाई र्ारे परकों से छाना चादहमे । इसके ऊऩय गोऩान के ऊऩय धातुतनसभवत रोष्टकों (टाइलस) से आच्छादन

कयना चादहमे । इसके साथ दो मा तीन दण्ड भाऩ की ऊॉचाई ऩय तनकरी हुई कऩोतऩासरका तनसभवत होनी चादहमे ॥१७-१८॥

छोटे बर्न भें एक हाथ की एर्ॊ फड़े बर्न भें दो हाथ की सध ु दयता के लमे धचरमक् ु त कणवऩासरका कऩोत ऩय तनसभवत कयनी चादहमे । अथर्ा इसे बर्न के भध्म बाग भें प्रस्तय-तनसभवत कणवऩासरका रगानी चादहमे ॥१९॥

र्ाजन के ऊऩय बत (प्राणी, ऩशु आदद) एर्ॊ हॊ स आदद की ऩॊन्क्त एक दण्ड मा ऩौन दण्ड ऊॉची होनी चादहमे । र्ाजन ऩर्व के सदृश होना चादहमे । र्हाॉ आधे दण्ड मा एक दण्ड भाऩ का कऩोतारम्फन होना चादहमे ॥२०-२१॥

कऩोत की ऊॉचाई से तनकरा तनगवभ डेढ़ दण्ड से रेकय तीन द्ण्डऩमवधत होता है । र्ाजन के ऊऩय र्सधतक अथर्ा तनद्रा तनसभवत कयनी चादहमे । मह उसके ऊऩय ऩौन दण्ड ऊॉची होनी चादहमे एर्ॊ कऩोत की ऊॉचाई ऩर्वर्र्णवत यखनी चादहमे ॥२२॥ इस प्रकाय ऩर्ोक्त र्र्णवत बागों को प्रस्तय अथर्ा ंटटो से दृढ़ फनाना चादहमे । न्जस र्स्तु के प्रमोग से न्स्थयता

प्राप्त हो, उसी का प्रमोग फुविभान (स्थऩतत) को कयना चादहमे । कऩोत की ऊॉचाई के तीन बाग अथर्ा चतुथांश के फयाफय ऺुद्रतनष्कृतत (फाहय तनकरा बाग) फनाना चादहमे ॥२३-२४॥

कऩोत के नीव्र के ऊऩय नाससका (र्खड़की के सदृश आकृतत) होती है , जो कर्णवका (रता) की बाॉतत होती है । मह सर्ा दण्ड, डेढ़ दण्ड मा दो दण्ड वर्स्तत ृ होती है ॥२५॥

इसके शीषव बाग की आकृतत ससॊह के कान के सदृश होती है । ऩदट्टक के अन्धतभ बाग भें स्र्न्स्तक की आकृतत

र्ारी ऩदट्टका होती है । नाससका के ऊऩय नाससका तनसभवत होनी चादहमे । इसके भर बाग एर्ॊ ऊध्र्व बाग का प्रभाण शोबा के अनुसाय होना चादहमे । प्रततर्ाजनक के ऊऩय नाससका की ऊॉचाई नहीॊ होनी चादहमे ॥२६-२७॥ प्रस्तय का ऊऩयी बाग - प्रस्तय के ऊध्र्व बाग की मोजना इस प्रकाय है - आसरङ्ग का भाऩ ऩाद के चतथ ु ांश भाऩ

का होता है एर्ॊ ऩादवर्तनगवत (फाहय तनकरा बाग) बी चतुथांश भाऩ का होना चादहमे । उन दोनों के भध्म भें ऊध्र्व बाग ऩय तनष्क्राधत स्थावऩत कयना चादहमे ॥२८॥

दो स्तम्बों के भध्म, स्तम्बों के ऊऩय स्तम्ब की ऊॉचाई का बरऩट्टाग्र (तीन ऩदट्टमों की आकृतत) तनसभवत होनी चादहमे । उसके ऊऩय प्रतत का तनभावण कयना चादहमे , न्जसका भाऩ एक दण्ड, तीन चौथाई अथर्ा आधा दण्ड होना चादहमे ॥२९॥ प्रततर्क्र सॊऻक बाग का भाऩ प्रतत के भाऩ का तीन चौथाई, आधा, एक दण्ड, सर्ा दण्ड अथर्ा डेढ़ दण्ड यखना चादहमे ॥३०॥ उसके ऊऩय उसकी गतत का तनभावण ऩर्वर्र्णवत वर्धध से कयना चादहमे । प्रतत की यचना व्मार के सदहत, ससॊह के सदहत, गज के सदहत अथर्ा सीधी कयनी चादहमे । ॥३१॥ इसके ऊऩय इसकी ऊॉचाई के तीसये अथर्ा चौथे बाग से र्ाजन एर्ॊ तनगवभ का प्रायम्ब कयना चादहमे । मे सभकय, धचरखण्ड एर्ॊ नागर्क्र - तीन प्रकाय के होते है । ॥३२॥ नागर्क्र आकृतत भें नाग के पण एर्ॊ स्र्न्स्त की आकृतत भें (नाग का) ससय तनसभवत होता है । दे र्ों एर्ॊ ब्राह्भणों के बर्न भें सभकय प्रतत का तनभावण कयना चादहमे । ॥३३॥

(सभकय प्रतत) आकृतत भें चौकोय एर्ॊ शीषवबाग भें भकय तनसभवत होता है । धचरखण्ड प्रतत याजाओॊ, व्माऩारयओॊ (र्ैश्मों) एर्ॊ शद्रों के (बर्न के) अनुकर होता है । इसकी आकृतत अधवचधद्र के सदृश होती है । इसका शीषवबाग गज की

आकृतत से मुक्त होता है । इस प्रतत का अग्र बाग धचर की बाॉतत होता है ; इससरमे इसे ककय, ककवट, फधध अथर्ा अधम सॊऻा से बी सम्फोधधत कयते है ॥३४-३५॥

र्ाजन के ऊऩय (अथर्ा) र्रीक के ऊऩय बरी-बाॉतत तुरा (फीभ) को स्थावऩत कयना चादहमे । इसकी ऊॉचाई एक दण्ड अथर्ा तीन चौथाई दण्ड होनी चादहमे तथा इसकी भोटाई ऊॉचाई की आधी होनी चादहमे ॥३६॥

र्रीक की रम्फाई तीन, चाय मा ऩाॉच दण्ड होनी चादहमे । इसके अग्र बाग भें नासरमाॉ, व्मार मा बफधद ु होना चादहमे एर्ॊ इसका ऩाश्र्व बाग तयङ्ग की बाॉतत होना चादहमे ॥३७॥

(उऩमुक् व त र्णवन के अनुसाय) र्रीक होना चादहमे । र्रीक के ऊऩय र्णवऩदट्टका का तनभावण कयना चादहमे । इसका

वर्स्ताय आधा दण्ड एर्ॊ ऊॉचाई वर्स्ताय का आधा होना चादहमे । उसके भध्म बाग को परकों द्र्ाया छे दयदहत कयना चादहमे । इसके ऊऩय एक दण्ड ऊॉची न्स्थय तुरा स्थावऩत कयनी चादहमे । तुरा का वर्स्ताय तीन चौथाई दण्ड होना चादहमे । इसे द्र्ाय की ओय उधभुख होना चादहमे ॥३८-३९॥

तुरा के ऊऩय तुरा की चौड़ाई के फयाफय ऊॉचाई र्ारी जमधती यक्खी जानी चादहमे । जमधती के ऊऩय आधा दण्ड ऊॉचा अनुभागवक यखना चादहमे ॥४०॥

उसके ऊऩय परको को स्थावऩत कयना चादहमे । इसकी भोटाई दण्ड के चौथे मा छठर्े बाग के फयाफय होनी चादहमे । प्रस्तय एर्ॊ स्तम्ब के वर्स्ताय को ंटटों एर्ॊ चणव से जोड़ना चादहमे ॥४१॥ कयार, भद् ु धग, गुलभास, कलक एर्ॊ धचक्कण (मे सबी ंटटो को जोड़ने एर्ॊ रेऩ भें प्रमुक्त होते है ) का प्रमोग कयना चादहमे । उत्तय एर्ॊ र्ाजन ऩाश्र्व भें रगने चादहमे । ॥४२॥

तुरा (की स्थाऩना) द्र्ाय के अनुसाय होनी चादहमे । जमधती (उसके ऊऩय) ततयछी यक्खी जानी चादहमे । उसके ऊऩय द्र्ाय के अनुसाय अनुभागव यक्खा जाना चादहमे । ॥४३॥

दे र्ारम एर्ॊ याजबर्न भें तर ु ा द्र्ाय से ततयछी होनी चादहमे । र्रीक एर्ॊ तर ु ा के भध्म का अर्काश दो मा तीन दण्ड होना चादहमे ॥४४॥

जमन्धतमों के भध्म का अधतय डेढ़ मा ढ़ाई दण्ड होता है । उनके ऊऩय एक-एक दण्ड के अधतय ऩय यक्खे अनभ ु ागव उनके भध्म के तछद्र को बय दे ते है ॥४५॥

इस प्रकाय प्रस्र-कक्रम धचर-वर्धचर अङ्गो से तनसभवत होती है । ऺुद्रॊ एर्ॊ तुरा को इस प्रकाय यखना चादहमे , न्जससे कक र्े दृढ़ताऩर्वक स्थावऩत हो जामॉ ॥४६॥

रूऩ (आकृतत) के साथ अथर्ा वर्ना रूऩ के (प्रस्तय-प्रकलऩन भें ) सबी अङ्गों का प्रमोग कयना चादहमे । तुरा के

ऊऩय परकों द्र्ाया आच्छादन कयना चादहमे । अथर्ा ंटटों से आच्छादन कयना चादहमे । शेष कामव ऩर्वर्र्णवत वर्धध से कयना चादहमे ॥४७॥

प्रस्तय की ऊॉचाई भसय की ऊॉचाई के फयाफय होनी चादहमे एर्ॊ स्तम्ब की ऊॉचाई से दश मा आठ बाग कभ होनी चादहमे । प्रस्तय की ऊॉचाई एर्ॊ भाऩ इस प्रकाय यखना चादहमे , न्जससे कक बर्न को दृढ़ता एर्ॊ सौधदमव प्रदान ककमा जा सके, ऐसा वर्द्र्ानों का भत है ॥४८॥ रेऩ रेऩ-साभग्री - रेऩ के सरमे मह सभश्रण तैमाय ककमा जाता है - शहद, घत ृ , दही, दध, उड़द का ऩानी, चभड़ा, केरा, गुड़, बरपरा एर्ॊ नारयमर । इधहें क्रभश् एक-एक बाग फढ़ाते हुमे रेना चादहमे । इनभें एक सौ बाग चना सभराना चादहमे तथा इस सभश्रण भें दग ु ुनी भारा भें फार सभराना चादहमे ॥४९॥ मग्ु भामग्ु भभान सभ एर्ॊ वर्षभ भान - भनुष्मों के गह ृ भें हस्त, स्तम्ब तथा तुरा आदद का प्रमोग वर्षभ सॊख्माओॊ भें कयना चादहमे ; ककधतु दे र्ारम भें हस्त आदद का प्रमोग सभ अथर्ा वर्षभ सॊख्माओॊ भें होता है । ्िाय दे र्ता, ब्राह्भण एर्ॊ याजाओॊ के गह ृ भें भध्म भें द्र्ायस्थाऩन तनधदनीम नही है ; ककधतु अधम र्णव र्ारों के सरमे द्र्ाय भध्म के ऩाश्र्व भें शुब होता है ॥५०॥ िेदद प्रतत के ऊऩय र्ेदद का तनभावण होना चादहमे , न्जसकी ऊॉचाई प्रतत की डेढ़, ऩौने दो मा दग ु ुनी होनी चादहमे ॥५१॥ कम्ऩ की सॊख्मा दो, चाय मा छ् होनी चादहमे । इनकी भोटाई चौथाई दण्ड होनी चादहमे । इनकी र्ेददका ऩद्मऩुष्ऩ, शैर्ार एर्ॊ ऩर आदद धचरों से सन्ज्जत होनी चादहमे ॥५२॥

कम्ऩ के नीचे स्तम्बों को उधचत यीतत से जोड़ना चाइमे । इन स्तम्बों का भर एर्ॊ अग्र बाग कम्ऩ के अनुसाय होना चादहमे तथा इसे ऩद्मऩट्टी एर्ॊ अग्रफधधन से मुक्त होना चादहमे ॥५३॥ जारकानन झयोखा, जार - वर्द्र्ानों के अनस ु ाय र्ेददमों के ऊऩय जारकों (र्खड़की, योशनदान) का प्रमोग कयना चादहमे । इधहे सबन्त्त के साथ स्तम्ब के भध्म बाग भें नही होना चादहमे । इनकी चौड़ाई चाय दण्ड होनी चादहमे ॥५४॥

इनकी चौड़ाई दो दण्ड से प्रायम्ब कय (चाय दण्डऩमवधत) तथा ऊॉचाई चौड़ाई की दग ु न ु ी होनी चादहमे । अथर्ा ऊॉचाई डेढ़ मा ऩौने दो बाग (चौड़ाई की) होनी चादहमे । मह स्तम्ब के भध्म यधध्र को छोड़ कय होनी चादहमे ॥५५॥

सभ एर्ॊ वर्षभ सॊख्माओॊ र्ारे ऩादों एर्ॊ कम्ऩों से मक् ु त सजार्टी र्खड़ककमों का मथोधचत ऊॉचाई एर्ॊ वर्स्ताय के

साथ प्रमोग कयना चादहमे । इनकी सॊऻा गर्ाक्श, कुञ्जयाऺ, नधद्मार्तव, ऋजुकक्रम, ऩुष्ऩखण्ड एर्ॊ सकणव है । गर्ाऺ सॊऻक जारक (र्खड़की, झयोखा) रम्फा, अनेक कोणों र्ारा एर्ॊ तछद्रमुक्त होता है ॥५६-५७॥

चौकोय एर्ॊ कणवकतछद्र (वर्सबधन प्रकाय के तछद्रों र्ारे) से मक् ु त जारक कुञ्जयाऺ सॊऻक होता है । ऩाॉच सरों से

प्रदक्षऺणक्रभ (फामें से दादहने) से तनसभत तछद्रमुक्त जारक नधद्मार्तव आकृतत का होने के कायण नधद्मार्तव सॊऻक होता है । ततयछे एर्ॊ सीधे स्तम्बों से तनसभवत एर्ॊ कम्ऩमुक्त जारक की सॊऻा ऋजुकक्रम होती है ॥५८-५९॥

ऩुष्ऩखण्ड एर्ॊ सकणव जारक नधद्मार्तव के सभान होते है । सबन्त्त के भध्म से हट कय जारकों के स्तम्बों का मोग होता है एर्ॊ जारक कर्ाट (ऩलरों) से मुक्त होते है ॥६०॥

मे कर्ाट एक अथर्ा दो होते है एर्ॊ खुरने तथा फधद होने भें सभथव होते है । जारकों की न्स्थतत स्तम्ब के फयाफय अथर्ा बर्न की ग्रीर्ा के फयाफय होती है ॥६१॥

गोर आकृतत र्ारे जारक समव की आकृतत र्ारे एर्ॊ तछद्रमक् ु त होते है । मे स्र्न्स्तक, र्धवभान तथा सर्वतोबद्र प्रकाय के होते है ॥६२॥ मबल्त्त दीर्ाय - फुविभान, (स्थऩतत) को गह ृ स्र्ाभी की इच्छानुसाय अथर्ा आर्श्मकतानुसाय) काष्ठ, प्रस्तय अथर्ा ंटटो से

सबन्त्त-तनभावण कयना चादहमे । इस प्रकाय जारक (काष्ठ-तनसभवत), परक (प्रस्तयपरकों से तनसभवत) तथा ऐष्टक (ंटटो से तनसभवत) तीन प्रकाय की सबन्त्तमाॉ होती है ॥६३॥ जारक सबन्त्त जारकों (काष्ठतनसभवत) से मुक्त, ऐष्टक सबन्त्त ंटटों से मुक्त तथा पारक सबन्त्त परकों (प्रस्तयखण्डों) से मक् ु त होती है । सबन्त्त के भध्म भें ऩाद होते हैं ॥६४॥

दीर्ाय फनाते सभम ऊऩय एर्ॊ नीचे कभरऩुष्ऩों के सभह से मुक्त ऩदट्टका का तनभावण कयना चादहमे । परकों की भोटाई स्तम्ब के चौथे, छठे मा आठर्ें बाग के फयाफय होनी चादहमे ॥६५॥

अथर्ा सबी स्थान ऩय सशबफका (ऩारकी) की सबन्त्त के सभान परका तनसभवत होनी चादहमे । (महाॉ सम्बर्त् काष्ठखण्डों से तनसभवत सबन्त्त का तात्ऩमव है ) इस प्रकाय जहाॉ -जहाॉ उधचत हो, परका कुड्म र्हाॉ-र्हाॉ (परकतनसभवत सबन्त्त) का प्रमोग कयना चादहमे, ऐसा र्ास्तश ु ास्र के वर्शेषऻो का भत है ॥६६॥

इस प्रकाय प्रस्तय-कयण, र्ेददकाङ्ग, जारक एर्ॊ तीन प्रकाय की सबन्त्तमों का र्णवन एर्ॊ उनकी यीतत का र्णवन वर्द्र्ानों के भतानुसाय ककमा गमा । जारक के तनभावण के सरमे र्ेददका को कबी नहीॊ तोड़ना चादहमे तथा प्रतत के अङ्गो को बी नही तोड़ना चादहमे ॥६७॥

अध्माम १७ सल्न्धकामा का विधान -

ऩाश्र्व भें खड़े एर्ॊ रेटे (ऊध्र्ावधय एर्ॊ ऺैततज न्स्थतत) ऩदाथों की सन्धध होती है । एक र्स्तु (के तनभावण) भें फहुत र्स्तुओॊ के सॊमोग से, र्ऺ व ता के कायण, दफ व के फरर्वृ ि के कायण सन्धधकभव ु र ु र ृ के अग्र बाग (के काष्ठों) की दफ प्रशस्त होता है । सभान जातत र्ारे र्ऺ ृ ों (कोष्ठों) का सन्धधकभव प्रशस्त होता है ॥१-२॥

सन्धध के बेद - सन्धधमाॉ छ् प्रकाय की होती है - भलररीर, ब्रह्भयाज, र्ेणुऩर्वक, ऩकऩर्व, दे र्सन्धध एर्ॊ दन्ण्डका ॥३॥ सल्न्धविथध जोड़ने के वर्धध - स्थऩतत घय के फाहय खड़े होकय चायो ददशाओॊ से उसका तनयीऺण कये । तत्ऩश्चात ् दक्षऺण को उत्तय से एर्ॊ दीघव (रम्फाई) को अदीघव (छोटी रम्फाई) से क्रभश् जोड़े ॥४॥

मदद भध्म एर्ॊ दक्षऺण भें सन्धध कयना चाहते हों तो भध्म के अतत दीघव को ऩर्व की बाॉतत छोटे दीघव से जोड़ना चादहमे ॥५॥ अथर्ा र्ाभ बाग एर्ॊ दक्षऺण बाग भें सभान भाऩ के द्रव्म हो तथा भध्म भें न्स्थत ऩदाथव दीघव हों तो उनभें सन्धध कयनी चादहमे । मदद भध्म का ऩदाथव न हो तथा दोनों ओय सभान भाऩ के द्रव्म हो तो बी सन्धध कयनी चादहमे ॥६॥ इस प्रकाय गह ृ के फाहयी बाग कक सन्धध कयनी चादहमे । बीतयी बाग की सन्धध के सरमे गह ृ के भध्म स्थान भें

खड़े होकय स्थऩतत को चायो ददशाओॊ का तनयीऺण कयना चादहमे । न्जस प्राकय फाहयी बाग की सन्धध होती है , उसी प्रकाय बीतयी बाग की बी सन्धध होती है ॥७॥ दीघव, छोटे एर्ॊ सभान भाऩ के द्रव्मों की सन्धध ऩर्वर्र्णवत वर्धध से कयनी चादहमे । आधाय एर्ॊ आधेम के तनमभ (दीघव का अलऩ दीघव से, दीघव को भध्म भें यखकय सभ भाऩ की सन्धध आदद) का ऩारन कयते हुमे ऩदाथों को जोड़ना चादहमे ॥८॥ ककसी ऩदाथव के भर को भर से एर्ॊ अग्र बाग को अग्र बाग से नही जोड़ना चादहमे । भर एर्ॊ अग्र बाग को जोड़ने से सन्धधकामव सुखद होता है । भर बाग को नीचे सरटा कय यखना चादहमे एर्ॊ उसके ऊऩय अग्र बाग को जोड़ना चादहमे ॥९॥

दो द्रव्मों को जोड़ कय एक सन्धध होती है । इसे भलररीर कहा गमा है । तीन ऩदाथो को जोड़ने से दो सन्धधमाॉ फनती है । इसे ब्रह्भयाज कहते है । चाय एर्ॊ ऩाॉच ऩदाथों के मोग से क्रभश् तीन एर्ॊ चाय सन्धधमाॉ होती है ॥१०११॥ (तीन एर्ॊ चाय सन्धधमों को) र्ेणुऩर्व कहते है । मह दे र्ारम एर्ॊ भनुष्मों के गह ृ ों भें होता है । छ् एर्ॊ सात ऩदाथो के मोग से ऩाॉच एर्ॊ छ् सन्धधमाॉ फनती है ॥१२॥

(उऩमुक् व त सन्धधमों के) ऩकऩर्व कहा गमा है ; साथ ही इसे धन-धाधम प्रदान कयने र्ारा कहा गमा है । आठ एर्ॊ नौ ऩदाथों के मोग से सात एर्ॊ आठ सन्धधमाॉ तनसभवत होती है ॥१३॥

(ऩर्ोक्त सन्धधमों को) दे र्सन्धध कहते है । मह सबी प्रकाय के गह ु र होती है । फहुत-से ऩदाथों से फहुतृ ों के अनक सी सन्धधमाॉ तनसभवत होती है । इनभें दीघव एर्ॊ अलऩ दीघव (कभ रम्फा) के सॊमोग का तनमभ ऩहरे की बाॉतत ही रगता है । इस सन्धध को दन्ण्डका कहा गमा है । मह सन्धध धन, धाधम एर्ॊ सुख प्रदान कयती है ॥१४॥ (सर्वतोबद्र सन्धध भें ) दक्षऺण एर्ॊ अऩय बाग (दक्षऺण-ऩर्व) भें ऩदाथव का भर यखना प्रशस्त होता है ; साथ ही इसका ऊध्र्व बाग ईशान कोण भें होना चादहमे । अफ इनके फधधन का उलरेख ककमा जाता है । प्रथभ आधाय ऩर्व ददशा होती है , जहाॉ भर एर्ॊ अग्र छे द से मुक्त ऩदाथव यक्खा जाता है । उसके ऊऩय दक्षऺण एर्ॊ उत्तय भें अग्र बाग से

मुक्त ऩदाथव यक्खा जाता है । इनके भर बाग एर्ॊ ऊध्र्व छे द से मुक्त अग्र बाग सॊमुक्त होते है । ऩन्श्चभी ददशा भें यक्खे ऩदाथव का छे द नीचे की ओय यखना चादहमे एर्ॊ इसे आधेम होना चादहमे । इस प्रकाय दक्षऺण से प्रायम्ब होने र्ारा मह सॊमोग (सन्धध) सर्वतोबद्र सॊऻक होता है ॥१५-१८॥ नन््माितासल्न्ध नधद्मार्तव सन्धध नधद्मार्तव आकृतत के अनुसाय फनाई जाती है । दक्षऺण से उत्तय की ओय जाने र्ारी रम्फाई भें दक्षऺण ददशा भें तनकरा बाग कणवकमुक्त होता है ॥१९॥

ऩर्व से ऩन्श्चभ की ओय जाने र्ारे आमाभ (रम्फाई) का कणवक ऩन्श्चभ भें होता है । दक्षऺण एर्ॊ उत्तय की रम्फाई (सन्धध के दसयी ओय) भें उत्तय ददशा भें कणवक होता है ॥२०॥ ऩर्व एर्ॊ ऩन्श्चभ की (दसयी ददशा भें ) रम्फाई भें ऩर्व ददशा भें कणवक होता है । आधाय एर्ॊ आधेम तनमभ के अनुसाय ऩर्व आदद भें इस प्रकाय यखना चादहमे । इस नधद्मार्तव सन्धध को दक्षऺणक्रभ से कयना चादहमे ॥२१॥ स्िल्स्तफन्धसल्न्ध जफ ऩर्व-उत्तय की ओय शीषव बाग र्ारे दीघव से फहुत से ऩदाथव जड़ ु ते है , जफ ततयछे अग्र बाग र्ारे दीघव से दो मा फहुत से ऩदाथव सशखाओॊ (चरों) से जुड़ते है एर्ॊ मह मोग मदद स्र्न्स्तक की आकृतत का होता है तो इसे स्र्न्स्तफधध सन्धध कहते है ॥२२-२३॥ िधाभानसल्न्ध जफ चायो ओय फहुत से ऩदाथों का सॊमोग होता है एर्ॊ इसी प्रकाय बीतय बी होता है तथा भध्म बाग भें आॉगन जैसी आकृतत होती है तो फाह्म बाग से मक् ु त मह आकृतत सबद्रक होती है ॥२४॥ ऩर्व ददशा का ऩदाथव दक्षऺण की ओय एर्ॊ ऩन्श्चभ ददशा का ऩदाथव उत्तय की ओय कऺों की सबन्त्त का आश्रम रेते हुमे उधचत यीतत से यखते हुमे जोड़ना चादहमे । इस फधध को र्धवभान कहते है । तनचरे तर के कामव के अनुसय ऊऩय एर्ॊ उसके ऊऩय के तर भें बी कयना चादहमे ॥२५-२६॥ इसके वर्ऩयीत कयने से वर्ऩत्ती आती है , ऐसा शास्रों का भत है । दीघव एर्ॊ अदीघव (कभ रम्फा) का सॊमोग ऩदाथों का वर्धधर्त ् ऩयीऺण एर्ॊ तनयीऺण कयके ही कयना चादहमे ॥२७॥

न्जस स्थान ऩय न्जतने फर की एर्ॊ न्जस प्रकाय के मोग (सन्धध, जोड़) की आर्श्मकता हो, र्हाॉ उसी प्रकाय की सन्धध का प्रमोग फुविभान (स्थऩतत) को कयना चादहमे । इस प्रकाय वर्शेष वर्धध से की गई सन्धध सम्ऩन्त्तकायक होती है ॥२८॥

सन्धध के बेद - स्तम्बों की ऩाॉच प्रकाय की सन्धधमाॉ इस प्रकाय कही गई है - भेषमुि,बरखण्ड, सौबद्र, अधवऩार्णक एर्ॊ भहार्त्ृ त ॥२९॥

(खड़ी न्स्थतत की सन्धधमाॉ ऩर्वर्र्णवत है ) रेटी न्स्थतत (अथर्ा ऺैततज) की ऩाॉच प्रकाय की सन्धधमाॉ इस प्रकाय है षटसशखा, झषदधत, सकयिाण, सङ्कीणवकीर एर्ॊ र्ज्राब ॥३०॥ स्तर्मबसन्धम स्तम्ब की सन्धधमाॉ - जफ सन्धध र्ारे ऩदाथव का भध्म बाग चौड़ाई भें स्तम्ब के तीसये बाग के फयाफय एर्ॊ रम्फाई चौड़ाई कक दग ु ुनी अथर्ा ढाई गुनी हो तो इसे भेषमुि सन्धध कहते है ॥३१॥ बरखण्ड सन्धध स्र्न्स्तक के आकाय की होती है । इसके तीन बाग एर्ॊ तीन चसरमाॉ होती है । ऩाश्र्व भें चाय सशखा (चरी) से मुक्त सन्धध सौबद्र कहराती है ॥३२॥ न्जस सन्धध के सरमे स्तम्ब की भोटाई के अनुसाय आधा बाग भर (तनचरे) बाग का एर्ॊ आधा बाग अग्र (ऊध्र्व) बाग का काटा जाता है , उसे अधवऩार्ण सन्धध कहते है ॥३३॥

जफ चसरका का आकाय अधवर्त्ृ ताकाय हो एर्ॊ भध्म बाग (जहाॉ जोड़ फैठामा जाम) भें अधवर्त्ृ त हो तो उस सन्धध को भहार्त्ृ त कहते है । फुविभान (स्थऩतत) स्तम्बों के र्त्ृ ताकाय बाग भें इस सन्धध का प्रमोग कयते है ॥३४॥

स्तम्बों भें की जाने र्ारी सन्धध स्तम्बों की रम्फाई के भध्म बाग के नीचे कयनी चादहमे । स्तम्ब के भध्म एर्ॊ उसके ऊऩय मदद सन्धध हो तो र्ह सर्वदा वर्ऩन्त्त प्रदान कयती है ॥३५॥ कुम्ब एर्ॊ भन्ण्ड आदद से मुक्त स्तम्ब की सन्धध (उऩमक् ुव त दोनों की सन्धध) सम्ऩतत-कायक होती है । सज्जा से मुक्त प्रस्तय-स्तम्ब की सन्धध जैसी आर्श्मकता हो, उसके अनुसाय कयनी चादहमे ॥३६॥

खड़े र्ऺ ु ु रता के अनस ु ाय कयना चादहमे । ऊध्र्व बाग का भर बाग ृ के (काष्ठों के) वर्वर्ध अङ्गों का सॊमोग अनक के साथ एर् तनचरे बाग के साथ शीषव बाग की सन्धध सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्तमों का नाश कयती है ॥३७॥ िनमतसन्धम ऺैततज सन्धधमाॉ - न्जसके दोनो छोयों ऩय अधवऩार्ण सन्धधमाॉ हो एर्ॊ सन्धध र्ारे ऩदाथव भें छ् राङ्गर (हर के) आकाय की सशखामें (चरे) फनी हो, साथ ही भध्म की कीर भोटी हो, उस सन्धध को षटसशखा सन्धध कहते है ॥३८॥ झषदधतक सन्धध भें ऩदाथव के ऊऩय एर्ॊ नीचे दोनों ओय फहुत-सी सशखामें होती है । मे सबी सशखामें आर्श्मकतानुसाय एर्ॊ फर के अनुसाय तनसभवत होती है ॥३९॥

सअय की नाक के सभान, आर्श्मकतानस ु ाय शन्क्त एर्ॊ मोग से मक् ु त, वर्सबधन फर की सशखाओॊ र्ारी सन्धध सकयिाण कही जाती है ॥४०॥

वर्सबधन प्रकाय की कीरों से मक् ु त सन्धध को सङ्कीणवकीरक कहते है । र्ज्रसन्धनब सन्धध भें र्ज्र के आकृतत की सशखा होती है ॥४१॥

इस प्रकाय एक ऩॊन्क्त को जोड़ने भें ऊऩय से तनचे तक एक की आकाय की सन्धध का प्रमोग कयना चादहमे । इसके वर्ऩयीत सन्धध कयने ऩय वर्ऩन्त्त आती है ॥४२॥ (सन्धध कयते सभम इस फात का ध्मान यखना चादहमे कक) भर बाग बीतय की ओय एर्ॊ अग्र बाग फाहय की ओय यहे । मदद अग्र बाग बीतय एर्ॊ भर बाग फाहय यहता है तो र्ह स्र्ाभी के वर्नाश का कायण फनता है ॥४३॥ विद्ध एिॊ कीर सशखा, दधत, शर एर्ॊ वर्ि - मे सबी (चरी, चर के) ऩमावम है तथा शलम, शङ्कु, आर्ण तथा कीर- मे सबी शब्द

(कीर के) ऩमावम है । शर एर्ॊ कीर का भाऩ स्तम्ब की चौड़ाई का आठ, सात मा छठर्ें बाग के फयाफय होता है ॥४४॥ सल्न्धदोषा सन्धध के दोष - फुविभान (स्थऩतत) को चादहमे कक कीर का ऩाश्र्व स्तम्ब के भध्म भें रगामे ॥४५॥ स्तम्ब का अन्धतभ बाग एर्ॊ दधत, (सशखा, चर) का अन्धतभ बाग मदद आऩस भें जुड़े तो वर्नाश के कायण फनते है । इसी प्रकाय मदद दधत का अन्धतभ बाग स्तम्ब के भध्म भें ऩड़े तो बी र्ही ऩरयणाभ होता है । मदद स्तम्ब का

अन्धतभ बाग सन्धध के भध्म ऩड़े तो र्ह योगकायक होता है तथा सन्धध का भध्म एर्ॊ ऩाद का भध्म मदद एक साथ हो तो र्ह ऺम का कायण होता है ॥४६॥ ददक् , वर्ददक् एर्ॊ द्र्ाय के दे र्ताओॊ के सबी बागों को छोड़कय सन्धध का प्रमोग कयना चादहमे । अकव (समव), अककव (मभ), र्रुण एर्ॊ इधद ु दे र्ों का स्थान ददक् कहराता है (मे ददशामें क्रभश् ऩर्व, दक्षऺण, ऩन्श्चभ एर्ॊ उत्तय है ) ॥४७॥ अन्ग्न, याऺस, र्ामु एर्ॊ ईश दे र्ता का स्थान वर्ददक् (कोण) कहराता है । गह ृ ऺत, ऩष्ु ऩाख्म, बलराट एर्ॊ भहे धद्र दे र्ों का बाग द्र्ायबाग है । इन स्थानों ऩय सन्धध नही कयनी चादहमे । ऩर्व-र्र्णवत स्थानों ऩय शलम (कीर) एर्ॊ दधत (चर) का प्रमोग नही कयना चादहमे ॥४८-४९॥ इसी प्रकाय दधत का प्रमोग भध्म अथर्ा भध्माधव के भध्म (चतुथांश बाग के बफधद)ु को छोड़ कय कयना चादहमे । दधत का प्रमोग ऩदाथव के केधद्र-सर के दादहने एर्ॊ फाॉमें बाग भें कयना चादहमे ॥५०॥

ऩदाथव के वर्स्ताय के भध्म भें न्स्थत सशखा (चर) शीि ही वर्नाश कयती है । सशखा के सरमे तनसभवत स्थान भें कीर रगाना तथा कीर के स्थान भें सशखा का प्रमोग कयना र्ेधन होता है ॥५१॥

(उऩमक् ुव त र्ेधन) धभव, अथव, काभ एर् सख ु का नाश कयती है । फाॉमे स्थान भें होने र्ारी सन्धध दादहने एर्ॊ दादहने स्थान की सन्धध फाॉमे हो तो इसका (प्रततसन्धध का) ऩरयत्माग कयना चादहमे ॥५२॥

ऩदाथव की चौड़ाई के फयाफय स्थान ऩय रम्फाई भें हुई सन्धध कलप्मशलम कहराती है । ऩर्वर्र्णवत वर्धध से ऩदाथव के भध्म स्थान को छोड़ कय सन्धध कयनी चादहमे ॥५३॥ अऻानता अथर्ा शीिता के कायण र्न्जवत स्थान ऩय मदद सन्धध की जाम तो सबी र्णव र्ारे गह ृ स्थो की सबी सम्ऩन्त्तमों का नाश होता है ॥५४॥

ऩुयाने ऩदाथों की नमे ऩदाथव से तथा नमे ऩदाथों की ऩुयाने ऩदाथों के साथ सन्धध नहीॊ कयनी चादहमे । नमे ऩदाथों की नमे से एर्ॊ ऩयु ाने ऩदाथों का ऩयु ाने ऩदाथव से सन्धध कयनी चादहमे ॥५५॥

उधचत यीतत से ऩदाथों की सन्धध सम्ऩन्त्तकायक होती है । इसके वर्ऩरयत कयने से तनश्चम ही वर्नाश होता है ॥५६॥ (स्तम्ब के) ऊऩय के सबी र्ाजन आदद ऩदाथव सशखा के साथ अथर्ा वर्ना सशखा के ऩर्वर्र्णवत वर्धध के अनुसाय उधचत यीतत से जोड़ना चादहमे ॥५७॥

सन्धध स्तम्ब के ऊऩय होती है । उनके भध्म भें सन्धध नही कयनी चादहमे । ब्रह्भस्थर (भध्म स्थान) के ऊऩय ऩदाथों की सन्धध वर्ऩन्त्तकायक होती है ॥५८॥ ब्रह्भस्थान ऩय न्स्थत स्तम्ब गह ृ स्र्ाभी का वर्नाश कयता है । तुरा आदद मदद ऊऩय न्स्थत ऩदाथव र्हाॉ ऩड़े तो दोष नहीॊ होता है ॥५९॥

ऩॊन्ु लरङ्ग, स्रीसरङ्ग एर्ॊ नऩस ॊ सरङ्ग र्ऺ ु क ृ ों के काष्ठों के सन्धध की सभम इस फात का ध्मान यखना चादहमे कक

ऩुरुष-काष्ठ से ऩुरुष-काष्ठ का एर्ॊ इसी प्रकाय स्री-काष्ठ से स्रीकाष्ठ का ही सन्धधकभव हो । इनके साथ नऩुॊसक काष्ठ की सन्धध नहीॊ होनी चादहमे । नऩुॊसक काष्ठ का सजातीम काष्ठ से सॊमोग होना चादहमे । एक जातत के काष्ठों की सन्धध शुब ऩरयणाभ दे ती है ॥६०॥

इस वर्धध से भनुष्मों एर्ॊ दे र्ों के आर्ास भें ऩदाथों की सन्धध कयनी चादहमे । इस यीतत से की गई सन्धध सम्ऩन्त्त प्रदान कयती है । इसके वर्ऩयीत यीतत से हुई सन्धध सबी सम्ऩन्त्तमों का नाश कयती है ॥६१॥

अच्छे स्थऩतत को छोटा, ककधतु गहया तछद्र फनाना चादहमे । कीर काष्ठ, प्रस्तय मा गजदधत तनसभवत से होना चादहमे

। ऩकी ंटट भें तछद्र छोट एर्ॊ कभ गहया होना चादहमे ।इसके तछद्र को सुधा को प्रमोग से ऩतरा एर्ॊ उधचत घेये र्ारा फनाना चादहमे । न्जनका महाॉ र्णवन नही ककमा गमा है , उनके मोग को फुविभान स्थऩतत को अऩनी फुवि द्र्ाया मुन्क्तऩर्वक कयना चादहमे ॥६२॥

अध्माम १८ प्रासाद के उद्धाा िगा -

अफ भैं (भम ऋवष) इन (प्रासादों) के गरे के अरङ्कयणों का, शीषव-बाग के आच्छादन का, रऩ ु ा के प्रभाण का एर्ॊ स्तवऩका के रऺण का क्रभश् र्णवन कयता हॉ ॥१॥ गररऺण गर का रऺण - बर्न का गर र्ेददका की ऊॉचाई का दग ु ुना ऊॉचा होना चादहमे । उसके ऊऩय सशखयोदम गर का

दग ु ुना अथर्ा तीन गुना ऊॉचा होना चादहमे । अथर्ा गर की ऊॉचाई र्ेददका की ऊॉचाई के फयाफय होनी चादहमे ॥२॥ गबव-सबन्त्त (कऺ की ददर्ाय) के तीन बाग के एक बाग के फयाफय अङ् ति (ऩद, चयण, स्तम्ब) की र्ेदी भें अङ्ति का तनर्ेश होना चादहमे । इसी प्रकाय सबन्त्त के ऊऩयी बाग भें ग्रीर्ा (काष्ठ, गर) का तनर्ेश होना चादहमे । मह वर्धान दे र्ारम एर्ॊ भनष्ु मगह ृ -दोनों के सरमे कहा गमा है ॥३॥ (अथर्ा) सबन्त्त-वर्ष्कम्ब के ऩाॉचर्े बाग के फयाफय ऩाद-तनर्ेश की र्ेददका एर्ॊ ग्रीर्ार्ेश (कण्ठ-तनर्ेश) होता है । इसी प्रकाय मे दोनों सबन्त्त-वर्ष्कम्ब के चौथे बाग के फयाफय बी हो सकते हैं ॥४॥ इस प्रकाय इन तीन प्रकायों से (ककसी एक तनमभ से आर्श्मकतानुसाय) प्रमत्नऩर्वक कण्ठ तनसभवत कयना चादहमे ।

उत्तयर्ाजन, भुन्ष्टफधध, भण ृ ासरका, दन्ण्डका एर्ॊ र्रम गर के बषण होते है । भुन्ष्टफधध के ऊऩय व्मार एर् नाटमदृश्म ऊऩय से (नीचे तक) होते है । दन्ण्डका का तनभावण (इस प्रकाय) होना चादहमे (न्जससे) उसके ऊऩय सशखयतनभावण हो सके ॥५-६॥ सशखय के बेद - सशखय की ऊॉचाई र्र्णवत बाग के भान के अनुसाय होती है । अथर्ा दन्ण्डका के भध्म के वर्स्ताय के अनस ु ाय यक्खी जाती है । इसका भाऩ इस प्रकाय होता है - ऩाॉच बाग भें दो बाग, सात बाग भें तीन बाग, नौ

बाग भें चाय बाग, ग्मायह बाग भें ऩाॉच बाग, तेयह बाग भें छ् बाग, ऩधद्रह बाग भें सात बाग, सरह बाग भें आठ बाग अथर्ा दन्ण्डका की भोटाई का आधा बाग । इस प्रकाय सशखय के आठ बेद फनते हैं, न्जनके नाभ क्रभश् इस प्रकाय है - ऩाञ्चार, र्ैदेह, भागध, कौयर्, कौसर, शौयसेन, गाधधाय एर्ॊ आर्न्धतक । इसे इस प्रकाय सभझा जा सकता है १. ऩाॉच बाग भें दो बाग - ऩाञ्चार २. सात बाग भें तीन बाग - र्ैदेह ३. नौ बाग भें चाय बाग - भागध ४. ग्मायह बाग भें ऩाॉच बाग - कौयर् ५. तेयह बाग भें छ् बाग - कौसर ६. ऩधद्रह बाग भें सात बाग - शौयसेन ७. सरह बाग भें आठ बाग - गाधधाय

८. दन्ण्डका भोटाई का आधा बाग - आर्न्धतक ॥७-१०॥ ऻातनमों द्र्ाया इनका (ऩाञ्चार आदद का) नाभ क्रभश् जानना चादहमे । मे सबी जङ्घा के फाहय तनकरे होते है । इन सशखयों भें नीचे र्ारा (आर्न्धतक) सशखय भनष्ु म के आर्ास के मोग्म एर्ॊ शेष सबी दे र्ारम के मोग्म होते है ॥११॥

इन आर्न्धतक आदद सशखयों ऩय रुऩा-सॊमोजन के सरमे दश बाग से प्रायम्ब कय एक-एक अॊश फढ़ाते हुमे सरह बाग ऩमवधत आठ प्रकाय की ऊॉचाइमाॉ प्राप्त होती है । इनके नाभ इस प्रकाय है - व्मासभश्र, कसरङ्ग, कौसशक, र्याट, द्रावर्ड, फफवय, कोलरक तथा शौन्ण्डका ॥१२-१४॥ मिखयाकृनत सशखय की आकृतत - दे र्ों एर्ॊ साधुओॊ-सॊधमाससमों का बर्न के सशखयों के आकाय चौकोय, र्त्ृ ताकाय, षटकोण,

अष्टकोण, द्र्ादश कोण, षोडश कोण, ऩद्माकाय, ऩके आॉर्रे के आकाय का, रम्फी गोराई के आकाय का औय गोराकाय होता है । ॥१५-१६॥ हम्मों (भहरों) के सशखय आठ कोण एर्ॊ आठ धायाओॊ र्ारे होते है ; ककधतु मे छ् कोण से रेकय साठ कोणऩमवधत हो सकते है ॥१७॥ स्थूवऩकोत्सेध सशखय की ऊॉचाई के चौथे मा ऩाॉचर्ें बाग के फयाफय ऊॉचा कभर होना चादहमे । उसके ऊऩय ऩद्म के फयाफय अथर्ा उसके तीसये बाग के फयाफय रम्फी स्थवऩका (स्तवऩका) होती है ॥१८॥ अत्मधत छोटे बर्न भें स्थवऩका (स्तवऩका) का प्रभाण सशखय का आधा अथर्ा तीसये बाग के फयाफय होना चादहमे । इस प्रकाय सॊऺेऩ भें स्थवऩका को अरङ्कयणों का र्णवन ऊऩय ककमा गमा ॥१९॥ रुऩासॊख्मा दे र्ों एर्ॊ भनुष्मों के बर्न भें चाय प्रकाय के रुऩाओॊ (रट्ठे , रकड़ी के ऩट्टे ) की सॊख्मा होती है । मह ऩाॉच से रेकय ग्मायह ऩमवधत (ऩाॉच, सात, नौ, ग्मायह) अथर्ा चाय से रेकय दस तक (चाय, छ्, आठ, दश) होती है ॥२०॥ ऩुष्कय ऩर्व-र्र्णवत अधतय की ऊॉचाई व्मासभश्र नाभक ऩष्ु कय (सशखय का एक बाग) की है । ऊध्र्व-न्स्थतॊ एर्ॊ अधोबाग भें न्स्थत ऩुष्कय का भाऩ आधे प्रभाण से यखना चादहमे ॥२१॥

आधे प्रभाण से प्रायम्ब कय सफसे ऊॉचे प्रभाण तक जाना चादहमे । इसके ऩश्चात ् र्ाऩस (नीचे तक) रौटना चादहमे । आयोह एर्ॊ अर्योह का मह गोऩनीम क्रभ इस प्रकाय र्र्णवत है ॥२२॥

रुऩाभान (दो) दन्ण्डकाओॊ के भध्म के भोटाई (चौड़ाई) के आधे भाऩ के फयाफय एक सभ चतुबज ुव फनाना चादहमे । इस चतुबज ुव के चायो बज ु ाओॊ (सरों) की सॊऻा क, उष्णीष, आसन एर्ॊ सीभ होती है ॥२३॥

आसन सर के नीचे दन्ण्डका एर्ॊ उत्तय के फयाफय सर पैराना चादहमे (ये खा फनानी चादहमे) । इसके ऩश्चात ्

आसनसर ऩय चाय से प्रायम्ब कय दश बागऩमवधत (चाय, ऩाॉच, छ्, सात, आठ, नौ, दश) बफधद ु धचन्ह्नत कयना चादहमे ॥२४॥

क सर एर्ॊ उष्णीष सर की सन्धध से उस बफधद ु को सीभ की छामा (सशखय का एक बाग) की ऊॉचाई तक रे जाना चादहमे । छामा की ऊॉचाई तक रम्फाई के भान को क सर के म्र से आसानसर ऩय धमस्त कयना चादहमे ॥२५॥ मे ही सर दन्ण्डका आदद तक होते है । रुऩाओॊ की रम्फाई क एर्ॊ उष्णीष सर के सन्धधस्थर से बफधद ु के अधत तक होती है ॥२६॥

क सर ऩय उनका (रुऩाओॊ का) वर्स्ताय ऩुन् वर्धमस्त कयना चादहमे (अथावत ् रुऩामें कहाॉ-कहाॉ रगनी है - इसे धचन्ह्नत कयना चादहमे) । सबी को अऩने कणव से छामाभान तक भाऩना चादहमे ॥२७॥

र्े ऩमवधत सर भलर (सशखय के एक बाग) तक सर की बाॉतत होते है । इस प्रकाय भध्म भें न्स्थत रुऩा अधम रुऩाओॊ (ऩाश्र्व के न्स्थत रुऩा) की सॊख्मा के अनुसाय फढ़ सकते है ॥२८॥

इस प्रकाय (रुऩा-सॊमोजन) कयने से तथा आयोह एर्ॊ अर्योह से ऩुष्कय तनसभवत होता है एर्ॊ इससे भलर की रम्फाई ऻात होती है ॥२९॥ ऩञ्चरुऩाबेद रऩ ु ामें (अऩनी न्स्थतत के अनुसाय दो प्रकाय की) सभध्म (भध्म भें रगने र्ारी) एर्ॊ वर्भध्म (भध्म से हट कय रगने र्ारी) होती है । रुऩामें ऩाॉच प्रकाय की क्रभश् इस प्रकाय होती है - भध्म, भध्मकणव, आकणव, अनुकोदटक एर्ॊ कोदट । मदद ये खा का वर्बाजन सभ बागों भें हुआ हो तो रुऩा की सॊख्मा वर्षभ होती है एर्ॊ वर्षभ बागों भें सभ सॊख्मा भें रुऩामें होती है ॥३०-३१॥ काधता, अधतया, अससका, उष्णीष, सीभाधत, चसरका, भ्रभणीमा, सभमा एर्ॊ असभमा उन सरों से न्स्थत होकय दधत एर्ॊ स्तन सॊऻक सुरों को सर भें फाॉधती है (दधत से स्तन सॊऻक सर के भध्म उऩमुक् व तों की न्स्थतत होतत है ) । नीचे न्स्थत शतमत सर (ऺैततज सर) ऩष्ृ ठर्ॊश (रुऩामें न्जस ऩय दटकती है ) को सर भें फाॉधते है । ॥३२-३३॥

शतमत सर के बीतयी बाग भें न्स्थत कीर के ऊध्र्व बाग भें कट को अधवचधद्र की बाॉतत स्थावऩत कय सबी सभ चसरकाओॊ को धचन्ह्नत कयना चादहमे ॥३४॥ रुऩा एर्ॊ वर्रुऩ के भध्म भें बीतय न्स्थय चसरका की आकृतत तनसभवत होती है । इस प्रकाय ऋजु तनसभवत होता है एर्ॊ इसकी आकृतत कुक्कुट ऩऺी के ऩॊख के सभान होती है ॥३५॥

फारकट के वर्स्ताय भें न्स्थत सरस्तन के भध्म भें , र्रम के तछद्र के भध्म भें न्स्थत कट का भध्मभ सर होता है ॥३६॥ ऩमवधत-सर से अधतय-दन्ण्डका के र्ाभ बाग भें जो वर्स्ताय होता है , र्हाॉ अधतजावनुक का व्मास एर् उसके भध्म भें चसरका की न्स्थतत होती है ॥३७॥ मिखयािमिभान सशखय के अङ्गों के प्रभाण - रुऩा की चौड़ाई एक दण्ड, सर्ा दण्ड मा डेढ़ दण्ड होती है तथा उसकी भोटाई का भाऩ वर्स्ताय का तीसया, चौथा मा ऩाॉचर्ाॉ बाग होता है ॥३८॥

जानु का व्मास उत्तय का आधा अथर्ा चसरका के आधे का आधा (चतुथांश) होना चादहमे । इसकी भोटाई दन्ण्डका के फयाफय, तीन चौथाई अथर्ा आधी होनी चादहमे ॥३९॥

र्रम एर्ॊ जानु के नीव्र (ककनाया) का भाऩ दन्ण्डका के वर्स्ताय का आधा होना चादहमे । भलर का भध्म एर्ॊ आददक अभीरी एर्ॊ जानु के आरम्फन से जानु के अधत तक चसरका का अॊश होता है । नीव्र का आरम्फन-सर शमन से होता है । ॥४०-४१॥

कुठारयका, रराट एर् जघन का भान एक सभान होता है । ऩाद-वर्ष्कम्ब एर्ॊ कणव का भाऩ सभान होता है अथर्ा वर्ष्कम्ब का दग ु ुना होता है ॥४२॥

कट के व्मास के फयाफय रुऩा की वऩण्डी होती है एर्ॊ कणव की रम्फाई उसकी दग ु ुनी होती है । उसके आधे भाऩ का नासरका-रम्फ होता है । इसके ऊऩय भलर के अग्र बाग को जोड़ा जाता है ॥४३॥

तछद्र उसकी भोटाई के अनुसाय होना चादहमे, न्जससे उसभें भलरों का प्रर्ेश हो सके । जानुक, रुऩाभध्म एर्ॊ भध्म ऩष्ृ ठ ऩय न्स्थत र्ॊश सभान के भाऩ के होते है । उनकी भोटाई चरी के बाग के अथर्ा रऩ ु ा के भध्म बाग के

फयाफय होती है । अथर्ा रुऩा की भोटाई के आठर्ें बाग के फयाफय र्रम एर्ॊ र्ॊश का वर्स्ताय होता है ॥४४-४५॥ छादन आच्छादन, छाजन - उऩमक् ुव त भाऩ का आधा भोटा (आच्छादन होना चादहमे) । काष्ठ के परकों, धातु के रोष्टकों

(धातुतनसभवत ऩट्ट) अथर्ा भन्ृ त्तका-तनसभवत रोष्टकों से इच्छानुसाय (बर्न के शीषव को) इस प्रकाय आच्छाददत कयना चादहमे, न्जससे आच्छादन न्स्थय यहे । रुऩा के ऊऩय परकों (मा रोष्टकों) को यखकय नीचे एर्ॊ ऊऩय अष्टफधध (वर्सशष्ट गाया) रगाना चादहमे ॥४६॥ िरमसल्न्ध र्रम की सन्धध - र्रम के तछद्र रऩ ु ा के भध्म के नीचे होता है । इसके सरमे सोरह सॊख्मा भें ऩयरेखामें (वर्सशष्ट

ये खामें) तनसभवत कयनी चादहमे । इसका प्रभाण कुक्षऺ के व्मास के आठर्े बाग के अङ्गुसरभान के फयाफय होनी चादहमे ॥४७-४८॥

उस बाग से साढ़े सात से प्रायम्ब कय ढ़ाई बाग फढ़ाते हुमे ऩधद्रह सॊख्मा तक रे जाना चादहमे । इस प्रकाय सोरह ऩयरेखामें फनती है ॥४९॥ रऩ ु ा के नीचे एर्ॊ ऩय बफधद्र्ादद को भध्म भें कयना चादहमे । उस बफधद्र्ादद से फवु िभान (स्थऩतत) को ऩयरेका का अर्रोकन कयना चादहमे ॥५०॥

प्रासादों (भहरों, दे र्ारमों) की मे ऩयरेखामें गह ु ुना भान ृ ों भे सोरह सॊख्माओॊ भे होती है । रुऩाओॊ भें प्रथभ से दग कयते हुमे उनका भान फवु िभान (स्थऩतत) को स्र्ीकाय कयना चादहमे ॥५१॥

क, उष्णीर् तथा आसन सर के नीचे शपय को अङ्ककत कयना चादहमे । उसके ऊऩय फुविभान (स्थऩतत) को भलर का अङ्कन कयना चादहमे ॥५२॥

भलर के नीचे रम्फाई के ऩधद्रह बाग कयने चादहमे । उन-उन बागों के अधत से भत्स्म की आकृतत फनानी चादहमे ॥५३॥

सबी ऩयरेखाओॊ का मही क्रभ कहा गमा है । ऩाञ्चार आदद रुऩाओॊ भें से प्रत्मेक के वर्षम भें फुविभानों ने र्णवन ककमा है ॥५४॥

आसन एर्ॊ क सर के अग्रबाग से एर्ॊ भलर से सॊमुक्त, भध्म बाग एर् उसके फाद सीधी ये खा को फुविअभन ने ऩयरेखा कहा है ॥५५॥ घदटका रऩ ु ा की चौड़ाई के भान से चौकोय घदटका का तनभावण कयना चादहमे । मह एक वर्तन्स्त (बफत्ता, फासरश्त) रम्फी, सीधी, भध्मभ सर से मुक्त होती है ॥५६॥

चसरका, अधतर्वणव, रऩ ु ा एर्ॊ ततमवक सर के भध्म भें घदटका को स्थावऩत कयना चादहमे । इसके ऩश्चात ् इसे शभन सर के सभान तछद्रमुक्त कयना चादहमे ॥५७॥

प्रत्मेक र्णव की घदटका को उसके र्णव ऩय स्थावऩत कयना चादहमे । क्षऺप्त सर के शेष बाग के र्णव रुऩा के उदय

बाग ऩय दन्ण्डका, उत्तय एर्ॊ र्रम ऩय न्स्थत सभसर का आरेखन कयना चादहमे । उदय बाग की रम्फाई के भध्म बाग भें सभ-सर के अङ्कन से ककय तनसभवत होता है ॥५८-५९॥ न्जस प्रकाय घदटका रराट के भध्म भें हो तथा ककय सभ हो, उस वर्धध से रऩ ु ा के उदय बाग भें रम्फाई भें यखकय उसे रराट की आकृतत भें काटना चादहमे । र्रम आदद को रुऩा के उदय बाग भें इन्च्छत बाग यखना चादहमे । र्रम के तछद्रों के साथ छामा के स्थावऩत कयना चादहमे ॥६०-६१॥

उस-उस घदटका के साथ तथा भध्म भें न्स्थत उनके भध्म बाग से सॊमक् ु त जो रराट से सम्फि छामा है , र्ह उनउन (घदटकाओॊ) की होती है ॥६२॥

दन्ण्डका, र्रम, तछद्र, स्तन, जानु एर्ॊ उत्तय आदद ऩय, सशय के भध्म बाग भें तथा अधव के भध्म भें तर ु ा के ऊऩय भुण्ड (सजार्टी अङ्ग) स्थावऩत कयना चादहमे । ॥६३॥

वर्ट बाग (शीषव बाग) सशखा से मक् ु त, तर ु ा-ऩाद से मक् ु त, र्ॊश से मक् ु त, र्णव से मक् ु त, भत्स्म-फधध एर्ॊ खजयव -ऩर के सभान आकृतत से मुक्त होती है ॥६४॥ ऩन ु श्छादन ऩुन् आच्छादन - सशखय के बीतयी बाग भें र्रमऺ के साथ रुऩा यखनी चादहमे । रुऩा के ऊऩय परक अथर्ा कम्ऩ यखना चादहमे तथा सुधा (गाया) एर्ॊ ईटों से आच्छादन को सुधदय फनाना चादहमे (अथावत उधहे सही एर्ॊ सुधदय फनाना चादहमे) । ॥६५॥ स्थूवऩकाकीर स्तवऩका की कीर - स्थवऩका (स्तवऩका) के कीर की रम्फाई स्तम्ब की रम्फाई के फयाफय होनी चादहमे । इसके शीषव बाग की चौड़ाई चौथाई दण्ड एर्ॊ भर की चौड़ाई आधा दण्ड होनी चादहमे । इसके भर का र्ेधन शङ्ग्कु के भर से रेकय भुण्ड ऩमवधत होना चादहमे ॥६६-६७॥

र्ॊश के नीचे भधडनाग, अग्रऩदट्टका, फारकट, स्तन, शङ्कुभर एर्ॊ भुण्डक स्थावऩत कयना चादहमे ॥६८॥ सशखय के बीतयी बाग की सज्जा अधत्स्थ र्रम, नासरमों से मुक्त र्णवऩदट्टका, भत्स्मफधधन, खजयव ऩर, भरम, र्रऺ तथा स्र्न्स्त धायाओॊ से कयनी चादहमे ॥६९॥

भख ु ऩट्टी का वर्स्तय एक दण्ड मा डेढ़ दण्ड होना चादहमे । नीप्र का भाऩ उसके छटर्ें मा आठर्ें बाग के फयाफय होना

चादहमे एर्ॊ सुअकी चौड़ाई कर्णवका की ऊॉचाई के फयाफय होनी चादहमे । शन्क्तध्र्ज के भर की चौड़ाई एक दण्ड होनी चादहमे । उसका कण्ठ उसके फयाफय, उसका सर्ा बाग मा डेढ़ बाग अधधक होना चादहमे । ग्रीर्ा के अधत तक जाने र्ारे गग्रऩर का भान स्तम्ब की चौड़ाई का आधा ऊॉचा होना चादहमे । ॥७०-७१-७२॥ दो गग्रऩरों के भध्म का बाग दो दण्ड से प्रायम्ब कय तीन दण्ड तक होना चादहमे । कर्णव का र्ामु के र्ेग से दहरती हुई रता की बाॉतत होनी चादहमे ॥७३॥

नीचे अधवकणव होना चादहमे एर्ॊ उसके ऊऩय सशय होना चादहमे । डेढ़ बाग से अनतत होनी चादहमे । ग्रीर्ा के ऊऩय कऩोर-ऩमवधत का बाग तीन मा साढ़े तीन दण्ड होना चादहमे ॥७४॥ उससे ऩर एर्ॊ शर से मुक्त शन्क्तध्र्ज रगा होना चादहमे । र्हाॉ नेर से मुक्त भलर, चसरका एर्ॊ स्तनभण्डर आदद तनसभवत होना चादहमे ॥७५॥

ऺैततज न्स्थत ऩट्ट कभर आदद से अरङ्कृत होना चादहमे । अधवकणव, ऊध्र्वऩट्ट एर्ॊ ऊध्र्वप्रतत के ऊऩय भन्ु ष्टफधध तनसभवत होना चादहमे ॥७६॥

शोबा के अनस ु ाय तनष्क्राधत होना चादहमे । उसके ऊऩय बरभख ु होना चादहमे, जो शर के सभान, भतर के सदृश, व्मार (गज अथर्ा सऩव) के सदृश अथर्ा नत्ृ मादद के दृश्मों से मुक्त हो ॥७७॥ रराटबष ू ण रराट के अरङ्कयण - उसके ऊऩय कट एर्ॊ कोष्ठ आदद से अरङ्कृत वर्भान (भन्धदय) के सदृश यचना होती चादहमे , जो ऩट्ट, ऺुद्रकम्ऩ आदद अङ्गों अथर्ा भध्म तोयण से मुक्त हो ॥७८॥

तोयण के भध्म भें रक्ष्भी अङ्ककत होनी चादहमे , न्जनका (गजों द्र्ाया) ऐषेक ककमा जा यहा ओ एर् हाथ भें कभरऩुष्ऩ हो । इस प्रकाय अथर्ा अधम वर्धध से ररादटका को सजाना चादहमे ॥७९॥ रराट के र्ॊश वर्ि, भध्म के शर से दृढ़ फनाई गई, एक दण्ड वर्स्तत ृ कुठारयका होनी चादहमे । इसका कणव ऩर एर्ॊ भकय से अरङ्कृत तथा उस ऩय दटका होना चादहमे । अथर्ा ऩर तथा भकय भध्म भें मा अधवकणव ऩय रुधच एर्ॊ मोजना के अनुसाय तनसभवत कयना चादहमे ॥८०-८१॥ स्थूवऩका स्तवऩका - अग्र बाग (ऊऩयी बाग) भें जोड़े गमे ंटटों के भध्म भें ततयछी रुऩामें प्रवर्ष्ट होती है । उसके ऊऩय उनको बेद कय स्थवऩका-मऩ तनकरी होती है ॥८२॥

स्थवऩका के प्रभाण का ऩहरे र्णवभ ककमा चुका है । अफ उसके अरङ्कयणों के फाईस बागों का (प्रभाणसदहत) र्णवन ककमा जा यहा है ; जो इस प्रकाय है - ऩद्म - एक, ऺेऩण, आधा, र्ेर - आधा, ऺेऩण - आधा, ऩङ्कज्, एक, घट - ऩाॉच,

ऩङ्कज - एक , ऺेऩण - आधा, धक ृ ् - एक, ऺेऩण - आधा, र्ेर - एक, ऺेऩण - आधा, धक ृ - एक, कम्ऩ - आधा, ऩद्म आधा, परक - एक, अम्फुज - आधा, र्ेर - आधा तथा भुकुर - साढ़े चाय ॥८३-८६॥

ऩद्म से आयम्ब कय भुकुर ऩमवधत (ऊऩय र्र्णवत क्रभ से अङ्गों) की चौड़ाई इस प्रकाय होनी चादहमे - ऩद्म - सात

बाग, ऺेऩण - दो, र्ेर - तीन, ऺेऩण - दो, ऩङ्कज - ऺेऩण - तीन, धक ृ ् - दो, कम्ऩ - तीन, ऩद्म - ऩाॉच, परक - छ्, अम्फुज - ऩा~म्च, र्ेर - दो एर्ॊ भुकुर - तीन बाग ॥८७-८८॥

भुकुर के अग्र बाग को शोबा के अनुसाय एक मा डेढ़ बाग फढ़ामा जा सकता है । इसका आकाय चाय, आठ मा

सोरह कोण र्ारा अथर्ा गोर यक्खा जा सकता है । न्जस प्रकाय से ऊऩयी बाग को सहाया दे सके (र्ही आकृतत चन ु ी जानी चादहमे)। ॥८९॥

अथर्ा इसकी आकृतत बर्न के शीषव बाग के अरङ्कयण के अनुसाय यखनी चादहमे । मे आकृततमाॉ दे र्ों, याजाओॊ, ब्राह्भणों एर्ॊ र्ैश्मों के अनुकर होती है ॥९०॥

दे र्ों, ब्राह्भणों , ऺबरमों एर्ॊ र्ैश्मों के सरमे तो मह अनुकर ऐ; ककधतु शद्रो के सरमे नही है । इन अङ्गों को (मथोधचत यीतत से) तनमोन्जत कय ध्र्जदण्ड को उसके ऊऩय यखना चादहमे । इन रऺणों से मुक्त वर्भान (दे र्ारम, ऊॉचा बर्न) सम्ऩततकायक होता है ॥९१॥

रेऩ एिॊ गाया कयार, भुद्गी, गुलभाष, कलक एर्ॊ धचक्कण - मे ऩाॉचों चणव सबी (तनभावण) कामो के सरमे उधचत होते है । कयार अबमा (हयव , हयीतकी) अथर्ा अऺ (फहे ड़ा, बफबीतक) के फीज के फयाफय आकाय के कङ्कड़ होते है ॥९२-९३॥

भॉग के दाने के फयाफय छोटे कङ्कड़ को भुद्ग कहते है । डेढ़ बाग, तीन चौथाई अथर्ा दग ु ुने भाऩ भें फार से मुक्त ककञलक (कभर के सर, ये शे) भें शकवया (कङ्कड़) एर्ॊ सीवऩमों (के चणव के साथ) चना सभराने ऩय गुलभाष (एक प्रकाय का गाया) तैमाय होता है । कयारॊ एर् भद् ु गी को बी इसी भाऩ से तैमाय ककमा जाता है ॥९४-९५॥

ऩर्व-र्र्णवत भाऩ भें फार के साथ चणक (चने के आकाय का चना) को एक साथ ऩीसना चादहमे । मह कलक होता है । धचक्कण केर्र (सादा, इसभें कुछ नही सभरामा जाता ) होता है ॥९६॥ ऩर्वर्र्णवत कयार, भुद्गी आदद ऩदाथों का प्रमोग अरग-अरग कयना चादहमे । इनसे ईटों को आऩस भें इस प्रकाय जोड़ा जाता है ; न्जससे उनभें तछद्र शेष न यहें । ॥९७॥

उऩमुक् व त ऩदाथों भें से ककसी एक का चनार् कयना चादहमे । (चुने गमे ऩदाथव को) केर्र जर के साथ ऩहरे तीन फाय कटना चादहमे ॥९८॥

इसके ऩश्चात ् ऺीयद्रभ ु , कदम्फ, आभ, अबमा, (हयव ) तथा अक्श (फहे ड़ा) के छार के जर के साथ, इसके ऩश्चात ् बरपरा (हयव , फहे ड़ा एर्ॊ आॉर्रा ) के जर के साथ, तदनधतय उड़द के ऩानी के साथ (कटा जाता है ) ॥९९॥

इसके ऩश्चात ् कुङ्कड़, सीवऩमाॉ एर्ॊ चने भें कऩ का (अथर्ा गड्ढ़े का) जर सभरा कय खुय से वर्धधर्त ् कुटाई कयना चादहमे । ऩुन् इसको कऩड़े से छानना चादहमे ॥१००॥

इस (तयर ऩदाथव) से कलक एर्ॊ धचक्कण को फुविभान (स्थऩतत) को तैमाय कयना चादहमे । दही, दध, उड़द का ऩानी, गुड़,घी, केरा, नारयमर का ऩानी एर्ॊ ऩके आभ का यस- इन ऩदाथों का उधचत भारा भें सॊमोजन कय सशलऩी रोग 'फुिोदक' तैमाय कयते है ॥१०१-१०२॥

प्रथभत् साप ऩानी से (सबन्त्त आदद) स्थान को शुि कय (साप कय) ऩुन् फधधोदक का रेऩ कयना चादहमे । रेऩ के ऩश्चात ् सुधा से रेऩ कयके वर्सबधन प्रकाय के रूऩों (धचरों) आदद का तनभावण कयना चादहमे ॥१०३॥

गोऩान के ऊऩय ऩकी सभट्टी के द्र्ाया तनसभवत अथर्ा धातु-तनसभवत रोष्ट (टाइलस) से फुविभान स्थऩतत को आच्छादन कयना चादहमे ॥१०४॥

उसके ऊऩय कयार, भुद्गी एर्ॊ गुलभाष को एक-एक अङ्गुर, कलक को उसका आधा (आधा अङ्गुर) तथा धचक्कण को कलक का आधा भोटा यखना चादहमे ॥१०५॥

जर र्ारे स्थान ऩय उऩमक् ुव त ऩदाथो को ऩमावप्त भोटा रगाना चादहमे । इधहें फधधोदक से गीरा कय मदद छ् भास के सरमे छोड़ ददमा जाम तो उत्तभ ऩरयणाभ प्राप्त होता है (इससे ंटटो की जोड़ाई अत्मधधक द्रढ़ ु होती है ) । चाय भास छोड़ने ऩय भध्मभ एर्ॊ दो भास छोड़ने ऩय कभ ऩरयणाभ प्राप्त होता है ॥१०६-१०७॥

रऩ ु ाओॊ के ऊऩय ंटटों को बफछाना चादहमे एर्ॊ उसके ऊऩय चना डारना चादहमे । छत को प्रमत्नऩर्वक (ऩर्ोक्त रेऩ से) घना आच्छाददत कयना चादहमे ॥१०८॥

दे र्ताओॊ एर्ॊ ब्राह्भणों के सबी बर्नों के बीतय एर्ॊ फाहय फवु िभान को व्मन्क्त को धचरों से मक् ु त कयना चादहमे ॥१०९॥

वर्प्र आदद सबी र्णव र्ारों के गह ृ ों भे भाङ्गसरक कथाओॊ से मुक्त, श्रिा, नत्ृ म एर्ॊ नाटक आदद के धचर फनाने चादहमे । मे धचर गह ृ स्र्ाभी को सभवृ ि प्रदान कयने र्ारे होते है ॥११०॥

मुि, भत्ृ मु, द्ु ख से मुक्त दे र्ासुय की कथा का धचरण, नग्न, तऩन्स्र्मों की रीरा तथा योधगमों-द्ु र्खमों का अङ्कन नही कयना चादहमे । अधम रोगो के तनर्ास स्थान भें उनकी इच्छानस ु ाय अङ्कन कयना चादहमे ॥१११॥

(अच्छे सुफधधन के सरमे) ऩाॉच बाग उड़द का ऩानी, नौ बाग गुड़, आठ बाग दही, दो बाग घी, सात बाग ऺीय, छ्

बाग चभव, दश बाग बरपरा, चाय बाग नारयमर का ऩानी, एक बाग शहद एर्ॊ तीन बाग केरा होना चादहमे । इनभें दश बाग चना सभराने से सफ ु धधन (अच्छा भसारा, रेऩ) प्राप्त होता है । इन सबी ऩदाथों भें गड़ ु , दही एर्ॊ दध अधधक होना चादहमे ॥११२-११४॥

दो बाग चना, कयार, भधु, घी, केरा, नारयमर, उड़द, शुन्क्त (सीऩी) का जर, दध, दही, गड़ ु एर्ॊ बरपरा-इनसे प्राप्त चणव

भें इनके सौर्ें बाग के फयाफय चना सभराना चादहमे । इस वर्धध से तैमाय फधध (ंटटों को जोड़ने का गाया) ऩत्थय के सभान दृढ़ होता है - ऐसा तधर के ऻाता ऋवषमों का कथन है ॥११५॥ सशयोबाग की ंटट - अफ दे र्ों, ब्राह्भणों, ऺबरमो एर्ॊ र्ैश्मों के बर्न भें भध्नेष्टका (बर्न के ऊध्र्व बाग भें यक्खी जाने र्ारी इष्टका) यक्खी जानी चादहमे । इसे चाय रऺणों से मुक्त होना चादहमे - मे धचकनी हो, बरी-बाॉतत ऩकी हों, (ठोकने ऩय) इससे सुधदय स्र्य उत्ऩधन हो तथा दे खने भें सुधदय हों ॥११६-११७॥

मे ंटटे स्रीसरङ्ग अथर्ा ऩुन्लरङ्ग होनी चादहमे । मे टटी न हों तथा तछद्र आदद से यदहत हो । रम्फाई, चौड़ाई एर्ॊ भोटाई भें मे प्रथभ ंटटों (सशराधमास की ंटटो) के सभान होती है ॥११८॥

प्रस्तय से तनसभवत बर्न भें सशरा को सबी दोषों से यदहत होना चादहमे । जधभ (नीॊर्) से रेकय सशखय के अन्धतभ फाग तक बर्न न्जस द्रव्म से तनसभवत होता है , उसी द्रव्म (ंटटो अथर्ा सशराओॊ) से तनसभवत इष्टका को बर्न के प्रायम्ब एर्ॊ अन्धतभ बाग (सशखय) भें बी स्थावऩत कयना चादहमे । मह प्रशस्त होता है । सभधश्रत द्रव्मों से तनसभवत बर्न भें ऊऩयी बाग भें जो द्रव्म ऊऩय न्स्थत हो, उसी द्रव्म का वर्धमास बर्न के ऊऩयी बाग भें कयना चादहमे । मह यहस्म (ऋवषमों द्र्ाया) कहा गमा है । ॥११९-१२०॥ स्थूवऩकाकीर स्तवऩका की कीर - स्थवऩका (स्तवऩका) की कीर धातुतनसभवत मा काष्ठतनसभवत होनी चादहमे ॥१२१॥

कीर की चौड़ाई ऊध्र्व बाग एर्ॊ अधोबाग भें सभान होनी चादहमे । इसकी रम्फाई (ऊऩयी भन्ञ्जर के) स्तम्ब के फयाफय होनी चादहमे तथा अग्र बाग (ऊऩयी बाग का अन्धतभ बाग) एक अङ्गुर चौड़ा एर्ॊ नीचे की अऩेऺा ऩतरा होना चादहमे ॥१२२॥

कीर के नीचे का एक-ततहाई बाग चौकोय होना चादहमे तथा उसके ऊऩय गोराकाय होना चादहमे । इसके तनचरे बाग भें भोय के ऩैय की आकृतत होनी चादहमे । ॥१२३॥ इसकी रम्फाई चौड़ाई की तीन गन ु ी होनी चादहमे एर्ॊ चौड़ाई ऊऩयी स्तम्ब के फयाफय होनी चादहमे । मह बसभ ऩय दृढ़ताऩर्वक दटका यहे एर्ॊ इसे ऩञ्चभततवमों से मुक्त होना चादहमे ॥१२४॥

अथर्ा स्तवऩका-कीर की रम्फाई बर्न की सशखा की रम्फाई से दग ु न ु ी तथा चौड़ाई स्तम्ब के व्मास की आधी, तीसये अथर्ा चौथे बाग के फयाफय होनी चादहमे । ॥१२५॥

मदद कीर के अग्र बाग का व्मास आधा अङ्गुर हो तो भमय-ऩाद फर की आर्श्मकता के अनुसाय यखना चादहमे ।

सशखय की आकृतत के अनस ु ाय कीर की आकृतत अथर्ा सरङ्ग की आकृतत का स्तवऩक-कीर तनसभवत होना चादहमे । इस प्रकाय तीन प्रकाय के स्तवऩका-कीर र्णवन वर्द्र्ानों ने ककमा है ॥१२६॥ भध् ू नेष्टकाददस्थाऩन भुध्नेष्टका आदद की स्थाऩना - गह ृ के उत्तयी बाग भें भण्डऩ को स्र्च्छ कयके, चाय दीऩों से मुक्त, र्स्रों से

आच्छाददत कयके सबी भॊगर ऩदाथों से मुक्त कयना चादहमे । शुि शासरधाधम को बफछा कय स्थन्ण्डर र्ास्तुभण्डर

अथर्ा भण्डक र्ास्तभ ु ण्डर तनसभवत कयना चादहमे । इसके ऩश्चात ् र्ास्तभ ु ण्डर भें ब्रह्भा आदद दे र्ों का वर्धमास कय उनको श्र्ेत तण्डुर (अऺत) सभवऩवत कयना चादहमे ॥१२७-१२९॥

गधध तथा ऩष्ु ऩ आदद से गह ृ -दे र्ता की ऩजा एर्ॊ स्तर्न कयना चादहमे । दे र्ताओॊ को उनके नाभ से वर्धधऩर्वक फसर प्रदान कयनी चादहमे ॥१३०॥

स्थऩतत को ऩच्चीस सुधदय रऺणों र्ारे करश स्थावऩत कयने चादहमे । इन करशों भें सग ु न्धधत जर बयना चादहमे तथा ऩाॉच यत्नों को डारना चादहमे । सर, र्स्र, कचव तथा स्र्णव से मक् ु त कयके इन करशों को ढॉ क दे ना चादहमे ।

उऩऩीठ सॊऻक र्ास्तुभण्डर भें दे र्ों को उनके नाभ से आहत कय 'ॐ से प्रायम्ब कय 'नभ्' से अधत कयते हुमे उन दे र्ों की गधध आदद से क्रभश् ऩजा कयनी चादहमे ॥१३१-१३२॥ इष्टकाओॊ एर्ॊ कीर को ऩञ्चगव्म से, नर्यत्नों एर्ॊ कुशा के जर से प्रऺासरत कयके क्रभश् सरों से रऩेटना चादहमे । प्रत्मेक कुम्ब के दादहने बाग भें शुि शासरधाधम के द्र्ाया तनसभवतस्थन्ण्डर र्ास्तुभण्डर भें ॥१३३-१३४॥

र्ास्तद ु े र्ों की ऩजा गधध एर्ॊ ऩष्ु ऩों से कयके एर्ॊ उधहे वर्धध के अनस ु ाय फसर प्रदान कय ंटटो एर्ॊ कीरों को शुब र्स्र से रऩेटना चादहमे ॥१३५॥

श्र्ेत र्स्र के आस्तयण (चादय, बफछा र्स्र) के ऊऩय बफछे हुमे ऩवर्र कुश ऩय इष्टका एर्ॊ कीरों को यखना चादहमे । स्थऩतत को अच्छा र्ेष, श्र्ेत ऩुष्ऩों की भारा, श्र्ेत (चधदन) का रेऩ, श्र्ेत र्स्र के उत्तयीम को ऊऩय ओढ़ कय तथा

सर् ु णवतनसभत अॊगठी धायण कय शुि जर ऩीना चादहमे तथा याबर भें उऩर्ास यखते हुमे र्हीॊ तनर्ास कयना चादहमे ॥१३६-१३७॥ स्थऩतत को (याबर भें ) करश के उत्तयी बाग भें श्र्ेत र्स्र के बफस्तय (अथर्ा चादय, बफछार्न) ऩय यहना चादहमे । इसके ऩश्चात ् प्रबात र्ेरा भें शुि नऺर एर्ॊ कयण भें , सुधदय भुहतव एर्ॊ शुब रग्न भें स्थऩतत को स्थाऩक (बर्न-

स्र्ाभी) के साथ ऩुष्ऩ, कुण्डर, हाय, कटक (हाथ के आबषण) एर्ॊ अॊगठी- इन ऩाॉच अॊगों के सुर्णव तनसभवत आबषणों से अरङ्कृत होकय सुर्णव-तनसभवत जनेऊ तथा नर्ीन र्स्र का ऩरयच्छद (ओढ़ने का र्स्र) धायण कयना चादहमे । श्र्ेत रेऩ तथा ससय ऩय सपेद ऩुष्ऩ धायण कयना चादहमे एर्ॊ ऩवर्र होना चादहमे ॥१३८-१४०॥

(ऩवर्र तन एर्ॊ भन से) ददशाओॊ के गजों, सभुद्रों एर्ॊ ऩर्वतों से मुक्त तथा अनधत सऩव ऩय न्स्थत ऩधृ थर्ी का ध्मान

कयते हुमे सन्ृ ष्ट, न्स्थतत एर्ॊ प्ररम के आधाय, बुर्नों के अधधऩतत दे र्ता का जऩ (स्तुतत) कयना चादहमे ॥१४१-१४२॥ ऩर्वर्र्णवत करशों के जरों से इष्टका एर्ॊ कीर को स्नान कयाकय गधध, ऩुष्ऩ, धऩ एर्ॊ दीऩ से र्ास्तुदेर्ों की ऩजा कयनी चादहमे ॥१४३॥

तनमभानुसाय र्ास्तुदेर्ों को फसर प्रदान कय जम आदद भङ्गर शब्दों, ब्राह्भणो द्र्ाया ककमे जा यहे र्ेदऩाठ एर्ॊ शङ्ख

तथा बेयी आदद र्ाद्मों की ध्र्तन के साथ भुध्नेष्टका को क्रभानुसाय ऩर्व से दक्षऺण क्रभ भें स्थावऩत कयना चादहमे । इसे वर्भान (बर्न) के सशखय के अधव बाग भें अथर्ा गग्र एर्ॊ ऩर के भध्म भें स्थावऩत कयना चादहमे । ॥१४४१४५॥ सशखय के तीसये अथर्ा चौथे बाग के अधत तक, ऩद्म के नीचे से, स्थवऩका (स्तवऩका) की रम्फाई से कीर की रम्फाई ग्रहण कयनी चादहमे ॥१४६॥ इष्टका के स्थान को ऩहरे ही तछद्रयदहत एर्ॊ दृढ़ कयना चादहमे ; साथ ही उसके भध्म भें नर्यत्नों को क्रभानुसाय यखना चादहमे ॥१४७॥

इधद्र के ऩद ऩय भयकत भर्ण, अन्ग्न के ऩद ऩय र्ैदमव भर्ण, मभ के स्थान ऩय इधद्रनीर भर्ण एर्ॊ वऩतऩ ृ द ऩय भोती स्थावऩत कयना चादहमे ॥१४८॥

र्रुण के स्थान ऩय स्पदटक, र्ामु के स्थान ऩय भहानीर भर्ण, सोभ के ऩद ऩय र्ज्र (हीया) तथा ईशान भें प्रर्ार (भॉगा) स्थावऩत कयना चादहमे ॥१४९॥

भध्म बाग भें भार्णक्म, सोना, यस (धातुतनवसभत अधन के दाने), उऩयस (यॊ गे हुमे ऩदाथव), फीज, धाधम (अधन) एर् औषध (जड़ी) डारना चादहमे ॥१५०॥ उसके ऊऩय फयाफय एर्ॊ न्स्थय कयते हुमे स्तवऩका-कीर स्थावऩत कयना चादहमे । इससे तनचरी बसभ तक उत्तय ददशा भें भहाध्र्ज स्थावऩत होता है ॥१५१॥ इसे ये शभी र्स्र अथर्ा सती र्स्र से तनसभवत सध ु दय (ध्र्ज) ईशान कोण भें रटकाना चादहमे । मदद मह ईशान कोण की बसभ को छता है तो र्ह बर्न सबी (र्णों) के प्रार्णमों के सरमे सम्ऩन्त्त एर्ॊ सभवृ िदामक होता है ॥१५२॥

बर्न के स्थवऩकीर (स्तवऩका-कीर) को श्र्ेत र्स्रों से रऩेट कय चायो ददशाओॊ भें फछड़ो के साथ चाय गामें यखनी चादहमे । द्र्ाय को नमे यॊ ग-बफयॊ गे र्स्रों से सजाना चादहमे ॥१५३-१५४॥ दक्षऺणादान दान-दक्षऺणा - मजभान (गह ृ स्र्ाभी) को शुि भन-भन्स्तष्क से गुरु (प्रधान आचामव), वर्भान (बर्न मा भन्धदय),

स्थवऩका (स्तवऩका, स्तम्ब, द्र्ाय एर्ॊ सज्जा को प्रणाभ कय प्रसधन बार् से स्थऩतत को र्स्र, धन, अधन एर्ॊ फछड़े सदहत ऩशु (गाम) प्रदान कयना चादहमे एर्ॊ शेष (उसके सहामकों) को बन्क्तऩर्वक (धनादद द्र्ाया) तप्ृ त कयना चादहमे ॥१५५-१५६॥

यत्नाददस्थान यत्न आदद का स्थान - इस प्रकाय प्रासादों के सशयोबाग भें , बर्न के सशराधमास से जुड़े सबन्त्तमों भें , प्रत्मेक तर के

फीच भेभ,भण्डऩ भें , भध्म बाग भे, सबागाय आदद भें , सशखय ऩय न्स्थत ऩद्म के नीचे एर्ॊ गोऩुय द्र्ायों के शीषव बाग भें प्रासाद के सदृश यत्नादद स्थावऩत कयना चादहमे - ऐसा श्रेष्ठ भतु नमों का र्चन है ॥१५७-१५८॥ कभासभाल्तत कामव की सभान्प्त - इस प्रकाय बर्न-तनभावण के प्रायम्ब भें एर्ॊ अधत भें वर्धधऩर्वक सबी कक्रमामें सम्ऩधन कयने से गह ृ भें सम्ऩदा आती है ॥१५९॥ गह ृ स्र्ाभी के द्र्या वर्धधऩर्वक ककमा गमा कभव श्री, सौबाग्म, आमु एर्ॊ धन प्रदान कयता है । गह ृ स्र्ाभी के अबार् भें उसका ऩुर अथर्ा सशष्म उसकी आकृतत को र्स्र ऩय ये खाङ्ककत कय उसके (र्स्र ऩय अॊककत धचर के) द्र्ाया सबी कामो को सम्ऩधन कये । अधम व्मन्क्त के द्र्ाया ककमा गमा कामव मदद शीिता अथर्ा अऻानतार्श सही यीतत से नहीॊ होता है तो गह ृ स्र्ाभी को वर्ऩयीत ऩरयणाभ प्राप्त होता है ॥१६०-१६१॥ गह ृ कताव न्जस वर्धध से कामव का प्रायम्ब कये , उसी वर्धध से कामव कयते हुमे सभाऩन कयना चादहमे । मदद फीच भें अधम वर्धध का अनुसयण ककमा जाम तो गह ृ स्र्ाभी का अशुब होता है ॥१६२॥ इस प्रकाय अरङ्कायों से मुक्त ग्रीर्ा, ऩद्म की आकृतत, भलरों का प्रभाण एर्ॊ शीषव-स्थान के अरङ्कयण का तनभावण

कयना चादहमे । उधचत यीतत से कयार आदद से फधध (ंटटो का जोड़ने का गाया) फनाकय ऊध्र्व बाग भें बरी-बाॉतत ंटटो को जोड़ना चादहमे ॥१६३॥ स्थूवऩकीरिऺ ृ ा स्तवऩका-कीर के र्ऺ ृ - स्थवऩकीर के सरमे प्रससि र्ऺ ृ कत्था, चीड़, सार, स्तफक, अशोक, कटहर, ततसभस, नीभ,

सप्तर्णव - मे सबी र्ऺ ृ तथा ऩरुष, र्कुर, र्दहन (अगरु), ऺीरयणी (सनोर्य का र्ऺ ृ ) आदद र्ऺ ृ एर्ॊ इस प्रकाय के अधम सुदृढ़्भ दोषहीन एर्ॊ ठोस र्ऺ ृ उऩमुक्त होते है ॥१६४॥

बर्न के सम्ऩणव हो जाने ऩय मजभान, गरु ु एर्ॊ र्धवकक (फढ़ई) को शुब उत्तयामण नऺर एर्ॊ ऩऺ भें जरसम्प्रोऺण कभव का प्रायम्ब कयना चादहमे ॥१६५॥ अथधिासभण्डऩ नर्ीॊ, सातर्ीॊ, तीसयी एर्ॊ ऩाॉचर्ी याबर भें वर्धधऩर्वक अङ्कुयाऩवण कभव कयना चादहमे । बर्न के उत्तय-ऩर्व बाग भें स्र्धधर्ास-मोग्म भण्डऩ फनाना चादहमे ॥१६६॥

इस भण्डऩ को चौकोय, नौ, सात, मा ऩाॉच हस्तभाऩ का एर्ॊ आठ स्तम्बों से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे तथा नर्ीन

र्स्रों से सजाना चादहमे । अधदय वर्तान को सुधदय र्स्र से तथा श्र्ेत ऩुष्ऩों से सजा कय भण्डऩ को भनोहय फनाना चादहमे ॥१६७॥

उसके भध्म बाग भें शासरधाधम से एक दण्ड प्रभाण का स्थन्ण्डर र्ास्तुभण्डर तनसभवत कयना चादहमे ॥१६८॥ चौसठ ऩद फनाकय श्र्ेत चार्र से ब्रह्भा आदद र्ास्तुदेर्ताओ को क्रभानुसाय स्थावऩत कय तथा ऩुष्ऩ-गधध-धऩ-दीऩ

आदद से उनकी ऩजा कय उनेहॊ वर्धधऩर्वक फसर प्रदान कयनी चादहमे । इसके ऊऩय र्स्रों से सुशोसबत ऩच्चीस करश यखना चादहमे । ॥१६९-१७०॥

इन करशों को यत्नों, सुर्णव, सरों एर्ॊ ढक्कनों से मुक्त कयना चादहमे । मे करश दोषयदहत, तछद्रयदहत एर्ॊ हाटक-जर (सुनहया, ऩीरा जर) अथर्ा धतयामुक्त जर से बये होने चादहमे । उऩऩीठ र्ास्तुभण्डर ऩय यक्खे गमे प्रत्मेक घट को उस-उस र्ास्तुदेर्ता (न्जसके ऩद ऩय करश हो) का नाभ रेते हुमे ओॊकाय से प्रायम्ब कय नभ् से अधत कयते हुमे र्ास्तद ु े र्ता की ऩज ु ा (आर्ाहन कयते हुमे) कयनी चादहमे । ॥१७१-१७२॥

ऩवर्र भन एर्ॊ आत्भा र्ारे, व्रत भें न्स्थत स्थऩतत को शुि जर ऩीकय उऩर्ास यखते हुमे करश के उत्तयी बाग भें कुश के बफस्तय ऩय, न्जसके चतदु दव क चाय दीऩक जर यहे हों एर्ॊ जो भाङ्गसरक ऩदाथों से सश ु ोसबत हो, याबर भें तनर्ास कयना चादहमे ॥१७३-१७४॥

भन्धदय के अग्र बाग भें वर्धधऩर्वक चाय तोयणों से सुसन्ज्जत, चाय द्र्ायों से मुक्त माग-भण्डऩ तनसभवत कयना चादहमे

। इस मागभण्डऩ को र्स्रों, कुशभाराओॊ एर्ॊ ऩष्ु ऩों से अरङ्कृत कयना चादहमे । इसके भध्म बाग भें माग-भण्डऩ के वर्स्ताय के तीसये बाग के भाऩ से र्ेददका का तनभावण कयना चादहमे ॥१७५-१७६॥

चायो ददशाओॊ भें चौकोय तथा ददक्कोणों भें ऩीऩर के ऩत्ते के सदृश कुण्ड तनसभवत कयना चादहमे । इधद्र एर्ॊ ईशकोण के भध्म अष्टकोण का तीन भेखरा अथर्ा एक भेखर से मुक्त कुण्ड तनसभवत कयना चादहमे ॥१७७॥ कुर्मबस्थाऩन कुम्ब की स्थाऩना - स्थाऩक को भततवयऺक के साथ वर्धधऩर्वक हर्न कयना चादहमे । शासरधाधम द्र्ाया र्ेदद के

भध्म भें स्थन्ण्डर र्ास्तुभण्डर तनसभवत कय फुविभान व्मन्क्त को फीज-भधर का स्भयण कयते हुमे सम्मक् यीतत से भततवकुम्ब का धमास कयना चादहमे ॥१७८-१७९॥

प्रासाद के चायो ददशाओॊ भें र्त्ृ ताकाय कुण्ड भें स्थाऩक को वर्धधऩर्वक अन्ग्न स्थावऩत कयनी चादहमे ॥१८०॥ वर्भान (भन्धदय) को जधभ (प्रायम्ब) से रेकय स्थवऩकाऩमवधत र्स्रों से आर्त्ृ त कयना चादहमे । स्थवऩकीर को कुशा से मक् ु त नर्ीन र्स्र से सस ु न्ज्जत कयना चादहमे । ॥१८१॥

स्थाऩक को फसर का अधन, खीय, मर् (जौ) से ऩका अधन, र्खचड़ी, गुड़ एर्ॊ शुि अधन (चार्र), ऩीरा, कारा एर्ॊ रार

(यॊ ग भें यॊ गा चार्र)- मे सबी साभग्री सुर्णव-ऩार भें रेकय र्ास्तु-दे र्ता के आगे यखकय दही, दध, घी, शहद, यत्न, ऩुष्ऩ,

अऺत एर्ॊ जर तथा केरा से मक् ु त ऩार रेकय अधम सशन्लऩमों के साथ याबर भें इन ऩदामों के द्र्ाया र्ास्तुदेर्ता को फसर प्रदान कयनी चादहमे ॥१८२-१८४॥ चऺुभोऺण आॉख खोरना - इसके ऩश्चात ् प्रात्कार शुब नऺर एर्ॊ कयण से मुक्त र्ेरा भें स्थऩतत को सुधदय र्ेष धायण कय, ऩाॉचों अॊगों भें आबषण धायण कय, सुर्णव-तनसभवत जनेऊ तथा श्र्ेत (चधदन) का रेऩ धायण कय, सशय ऩय श्र्ेत ऩुष्ऩ

से मक् ु त ऩगड़ी तथा कोये र्स्र को ऩहन कय ददशा-भततवमों एर्ॊ अधम (भतु तवमों) की ओय चऺुभोऺण (आॉख खोरने का कृत्म) कयना चादहमे एर्ॊ इन भततवमों को गधध एर्ॊ ऩुष्ऩ से मुक्त करश के जर से स्नान कयाना चादहमे ॥१८५१८७॥

प्रथभत् सोने की सुई से नेर-भण्डर की आकृतत फना कय (तदनधतय) तीक्ष्ण शस्र से तीन (नेर) भण्डर तनसभवत कयना चादहमे ॥१८८॥

ब्राह्भणों के सरमे नर्ीन र्स्र से अधन के ढे य को ढॉ क कय फछड़े सदहत गाम एर्ॊ कधमा को क्रभश् ददखाना चादहमे ॥१८९॥ सर्मप्रोऺण सम्प्रोऺण कामव - इसके ऩश्चात स्थाऩक की आऻा से शङ्ख, काहर (ऩीट कय फजामा जाने र्ारा र्ाद्म) तथा तमव आदद र्ाद्मों के स्र्य एर्ॊ (ब्राह्भणों द्र्ाया ककमे जाने र्ारे) स्र्न्स्त-ऩाठ के साथ स्थऩतत को भन्धदय ऩय चढ़ाकय स्तवऩका से प्रायम्ब कय बसभ तक चायो ददशाओॊ भें ये शभी अथर्ा सती र्स्र से तनसभवत एर्ॊ नय (की आकृतत से मुक्त) ध्र्ज को रटकाना चादहमे ॥१९०-१९१॥

फवु िभान स्थऩतत को चधदन एर्ॊ अगरु के जर से, सबी गधधों से मक् ु त जर से, करश के जर से एर्ॊ कुश के जर से ऊऩय से चायो ओय प्रोऺण कयना चादहमे एर्ॊ सॊसाय के स्र्ाभी की स्तुतत कयनी चादहमे ॥१९२॥ स्थवू ऩकुर्मब दे र्ारमों भें स्थवऩकुम्ब सुर्णव, ताॉफा, चाॉदी, प्रस्तय, ंटट अथर्ा सुधा-इन ऩाॉच ऩदाथो के सभश्रण से तनसभवत कयना चादहमे । इसे कीर के सभान यखना चादहमे । ॥१९३-१९४॥

इसे न्स्थय कयते हुमे स्थावऩत कयके सग ु न्धधत जर से इसका प्रोऺण कयना चादहमे । वर्भान (दे र्ारम) से उतयने के ऩश्चात गबवगह ृ एर्ॊ भण्डऩ का प्रोऺण कयना चादहमे तथा सम्भुख खड़े होकय र्ास्तुदेर् को प्रणाभ कय इस प्रकाय कहना चादहमे । ॥१९५॥

(हे ईश्र्य) इस बर्न की धगयने से, जर के प्रकोऩ से, (गजादद ऩशुओॊ के) दाॉत से धगयने से, र्ामु के प्रकोऩ से, अन्ग्न द्र्ायाजरने से एर्ॊ चोयों से यऺा कीन्जमे औय भेया कलमाण ककन्जमे ॥१९६॥

योगयदहत, प्रसधनता, धनय्क्त, कीतत का वर्स्ताय कयने र्ारी, फड़े चभत्कायो से एर्ॊ फर से मक् ु त, वर्ना उऩद्रर् के तनयधतय कभव से मुक्त मह ऩधृ थर्ी धचयकार तक धभवऩर्वक यहे ॥१९७॥

ब्रह्भा, वर्ष्णु, सशर्, सबी दे र्ता, ऺोणी (ऩधृ थर्ी), रक्ष्भी, र्ाग्र्ध (सयस्र्ती), ससॊहकेतु, ज्मेष्ठा, वर्श्र्दे र् तथा दे वर्माॉ प्रजाजनों को श्री, सौबाग्म, आयोग्म एर्ॊ बोग प्रदान कयें ॥१९८॥

इस प्रकाय कहने के ऩश्चात ् स्थऩतत का कामव ऩणव हो जाता है । इसके ऩश्चात ् स्थाऩक को वर्धध-ऩर्वक मऻ आदद कामव से तथा घट के जर, ऩञ्चगव्म एर्ॊ कुश के जर से प्रोऺण कय (वर्भान को) शुि कयना चादहमे ॥१९९-२००॥

स्थाऩक को गधध एर्ॊ ऩुष्ऩ आदद से ऩजा कयनी चादहमे तथा नैर्ेद्म प्रदान कयना चादहमे; साथ ही दे र्ारम के प्रधान दे र्ता को तनसभत्त फना कय प्रासाद के फीज-भधर का धमास कयना चादहमे ॥२०१॥ दक्षऺणादान दक्षऺणा एर्ॊ दान - प्रसन-भतत मजभान द्र्ारम के सम्भुख खड़े होकय स्थऩतत के सम्ऩणव धभव (उत्तयदातमत्र्) को,

जो उसके ऊऩय कष्ट के साथ थे , उन सफको प्रसधन बार् से स्थाऩक की आऻा से ग्रहण कये एर्ॊ शन्क्त के अनुसाय स्थाऩक एर्ॊ स्थऩतत का सत्काय कये ॥२०२-२०३॥

अऩने ऩुर, बाई एर्ॊ ऩत्नी के साथ मजभान धन, अधन, ऩशु, र्स्र, र्ाहन तथा बसभ के दान से एर्ॊ सोने तथा सुधदय र्स्रों से शेष तऺक आदद सबी सशन्लऩमों को बी सधतुष्ट कये ॥२०४-२०५॥

वर्भान, स्थवऩका (स्तवऩका), स्तम्ब एॊ भण्डऩ को अरङ्कयणोभ से मुक्त, र्स्रादद, ध्र्ज एर्ॊ गाम को प्रसधन बार् से स्थऩतत को दे ना चादहमे ॥२०६॥ सर्मप्रोऺणािश्मकता सम्प्रोऺण की आर्श्मकता - इस प्रकाय से तनसभवत र्ास्तु मग ु ों तक तनत्म र्वृ ि को प्राप्त होता है । मजभान को इस रोक एर्ॊ ऩयरोक भें न्स्थय पर बरी बाॉतत प्राप्त होता है ॥२०७॥

मदद र्ास्त-ु कृत्म अधम वर्धध से होता है तो र्ह र्ास्तु परदामी नही होता है । उस बर्न भें बत, प्रेत, वऩशाच एर्ॊ याऺस तनर्ास कयते है । इससरमे प्रासाद तनसभवत हो जाने ऩय सफ प्रकाय से प्रोऺण कभव अर्श्म कयना चादहमे ॥२०८॥

भण्डऩ भें , सबा भें, यङ्गभण्डऩ भें , वर्हायशारा भें, हे भगबव के सबागाय भें , तर ु ाबायकट भें, वर्श्र्कोष्ठ भें , प्रऩा (जर का

प्माऊ) भें, धाधमगह ृ भें तथा यसोई भें वर्धधऩर्वक र्ास्तुदेर् को फसरप्रदान कय ऩवर्र धचत्त एर्ॊ आत्भा से ऩाॉच अङ्गो भें आबषण धायण कय, नर्ीन र्स्र ऩहन कय तथा नर्ीन उत्तयीम (ऊऩय ओढ़ने का चादय) धायण कय सबी प्रकाय के भङ्गर-स्र्य के साथ जरसम्प्रोऺण कभव सम्ऩधन कयना चादहमे ॥२०९-२१२॥ सर्मप्रोऺणकार सम्प्रोऺण का सभम - मदद सम्प्रोऺण-कभव उत्तयामण भासों भें ककमा जाम तो अतत उत्तभ होता है । इदद शीिता हो तो दक्षऺणामन भासों भें बी कयना चादहमे ॥२१३॥ कताव प्रासाद के ऩयीतयह ऩणव हो जाने ऩय तीन याबर, एक याबर अथर्ा उसी ददन र्हाॉ अधधर्ास कये तो र्ह भहान पर प्राप्त होता है ॥२१४॥ दे र्ारम भे एक, तीन मा ऩाॉच दे र्ताभततव हो तो एक, तीन मा ऩाॉच करशों भें भधरसदहत उनके नीचे सुर्णव के साथ यत्नन को दे खकय वर्धधऩर्वक करशों का धमास कयना चादहमे ॥२१५॥

इस प्रकाय प्रसधनताऩर्वक बर्न का तनभावण ऩणव होता है तो गह ृ स्र्ाभी, उसके ऩरयर्ाय, उसके ऩरयजन एर्ॊ उसके गामों

के र्ॊश की र्वृ ि होती है । इसके वर्ऩयीत र्ास्तक ु ामव सम्ऩधन होने ऩय एर्ॊ र्ास्तद ु े र्ता के फसर से यदहत होने ऩय र्ह तनसभवत बर्न अनथवकायी होता है ॥२१६॥

अध्माम १९ एक तर का विधान एक तर र्ारे बर्न (दे र्ारम) का शास्र के अनुसाय चाय प्रकाय का प्रभाण सॊऺेऩ भें कहता हॉ । मह तीन हाथ से प्रायम्ब कय नौ हाथ तक एर्ॊ चाय हाथ से प्रायम्ब कय दस हाथ तक वर्स्तत ृ होता है ॥१॥

इनकी ऊॉचाई चौड़ाई के दस बाग भें सातर्ें बाग के फयाफय, चौड़ाई का डेढ़ गुना, चौड़ाई का तीन चौथाई (अथावत ्

चौड़ाई के दग ु ुने से चतुथांश कभ) मा चौड़ाई का दग ु ुना ऊॉचा (मे चाय प्रकाय के भान) होनी चादहमे । चाय प्रकाय की ऊॉचाई र्ारे बर्न की सॊऻा शान्धतक, ऩौन्ष्टक, जमद एर्ॊ अद्भत ु होती है ॥२॥

इन (दे र्ारमों) की आकृतत चौकोय, गोर, आमताकाय, दो कोणों के साथ गोराई सरमे, षटकोण तथा अष्टकोण होती है । इनका सशखय बी इनकी आकृतत के अनुरूऩ होता है ॥३॥ भुखभण्डऩ दे र्ारम के भख ु बाग ऩय तनसभवत भण्डऩ का भाऩ दे र्ारम के सभान, तीन चौथाई अथर्ा आधा होना चादहमे ॥४॥ (दे र्ारम के) सभान भण्डऩ अधतयार (भण्डऩ एर्ॊ भन्धदय का भध्म बाग) एर्ॊ र्ेशक (प्रर्ेश , ऩोचव) से मुक्त तथा सभ सॊख्मा र्ारे स्तम्बों से मक् ु त एर्ॊ सम्ऩणव अङ्गों से अरॊकृत होना चादहमे ॥५॥

अधतयार का वर्स्ताय डेढ़ हाथ, दो हाथ मा प्रासाद के फयाफय एर्ॊ उसकी रम्फाई दो दण्ड होनी चादहमे । उसका र्ेशन अर्काश एर्ॊ अधतयार से मुक्त हो तो उसका भाऩ दो मा तीन हाथ का होना चादहमे । र्ेशन के फगर भें सोऩान तनसभवत हो एर्ॊ र्ह गज के सॉड़ से सुसन्ज्जत हो ॥६-७॥

सबन्त्ततनष्कम्ब का भान प्रधान बर्न की सबन्त्त के फयाफय, उसका आधा मा उससे चतुथांश कभ होना चादहमे ।

ऩाश्र्व बाग भें दो मा तीन दण्ड भाऩ का र्ेशन एर्ॊ अग्र बाग भें भण्डऩ होना चादहमे , ऐसा फुविभान (ऋवष) का भत है ॥८॥

वर्स्ताय, ऊॉचाई एर्ॊ रम्फाई के हस्तभान भें एक हाथ कभ (अथावत ्) तीन चतुथांश, आधा अथर्ा चौथाई प्रभाण होना

चादहमे । र्हीॊ (प्रधान) बर्न के तनभावण भें अनेक शास्रकायों द्र्ाया ककसी बी प्रकाय की र्वृ ि अथर्ा हातन को र्न्जवत ककमा गमा है ॥९॥

बर्न के ऩमावमर्ाची नाभ - वर्द्र्ानों के अनुसाय बर्न के ऩमावमर्ाची शब्द मे है - वर्भान, बर्न, हम्मव, सौध, धाभ, तनकेतन, प्रासाद, सदन, सद्म, गेह, आर्ासक, ग,ृ आरम, तनरम, र्ास, आस्ऩद, र्स्तु, र्ास्तुक, ऺेर, आमतन, र्ेश्भ, भन्धदय, धधष्ण्मक, ऩद, रम, ऺम, अगाय, उदर्ाससत तथा स्थान ॥१०-१२॥ गबागह ृ भान गबवगह ृ -प्रधान बततकऺ का भान - वर्स्ताय भें गबवगह ृ का प्रभाण भन्धदय के प्रभाण के तीन बाग भें एक बाग, ऩाॉच बाग भें तीन बार्, सात भें चाय बाग, नौ भें ऩाॉच बाग, ग्मायह भें छ् बाग, तेयह भें सात बाग, ऩधद्रह भें आठ बाग, सरह भें नौ बाग मा आधा होना चादहमे ॥१३-१४॥ स्थूवऩकाभान स्तवऩका का प्रभाण - पसरक के ऩाॉच बाग भें दो बाग के फयाफय ऩद्म की चौड़ाई यखनी चादहमे । ऩद्म की चौड़ाई के तीसये बाग के फयाफय कुम्ब की चौड़ाई यखनी चादहमे । कुम्ब के वर्स्ताय के तीसये बाग के फयाफय कुम्ब के नीचे र्रग्न का भान होना चादहमे । र्रग्न के तीसये बाग के फयाफय कुम्ब के ऊऩय कधधय होना चादहमे । कधधय का तीन गुना ऩारी का प्रभाण एर्ॊ उसके तीसये बाग के फयाफय कुड्भर का भान होना चादहमे ॥१५-१७॥

भहानासी (सजार्टी र्खड़की) का वर्तनगवभ (तनभावणमोजना सशखय के वर्सशष्ट बाग के) फयाफय, तीन चतुथांश अथर्ा

आधा चौड़ा होना चादहमे । इसकी ऊॉचाई उसकी चौड़ाई से तीन मा चाय बाग कभ एर्ॊ स्कधध के अन्धतभ बाग तक यखनी चादहमे ॥१८॥ शन्क्तध्र्ज को उसका आधा ऊॉचा अथर्ा तीन चौथाई प्रभाण का होना चादहमे । कधधय की ऊॉचाई के तीसये बाग से र्ेददका का उदम (प्रायम्ब) कहा गमा है । ऺुद्रनासा (छोटी सजार्टी र्खड़की) की चौड़ाई आधा दण्ड मा दो दण्ड होनी चादहमे ॥१९॥ ्िाय

द्र्ाय की ऊॉचाई स्तम्ब की ऊॉचाई के दश बाग भें नौ बाग, आठ भें नौ बाग मा सात भें आठ बाग के फयाफय होनी चादहमे । इसकी चौड़ाई ऊॉचाई की आधी होनी चादहमे । याजबर्न के भध्म बाग भें द्र्ाय होना चादहमे ॥२०॥ द्र्ाय के ऩाख (चौखट का ऩाश्र्व) की चौड़ाई स्तम्ब के फयाफय अथर्ा उससे चतथ ु ांश अधधक होनी चादहमे एर्ॊ उसकी भोटाई चौड़ाई की आधी मा तीन चतुथांश होनी चादहमे । फाहयी बाग भें द्र्ाय का फाहुलम ऩद्मों से सुसन्ज्जत होना चादहमे एर्ॊ इसकी भोटाई चौड़ाई के तीन चतुथांश बाग के भाऩ की होनी चादहमे ॥२१॥

सबन्त्त के व्मास के फाहयी बाग के फायह बाग कयने चादहमे । ऩाॉचर्े बाग भें द्र्ाय मोग का भध्म बाग होना चादहमे तथा दसयी ओय से बी इतनी ही दयी यखनी चादहमे । इन दोनों (बफधदओ ु ॊ) के भध्म वर्द्र्ानों ने सबन्त्तभध्म कहा है ॥२२॥

नारभान नारी का भान - सबी बर्नों भें तर के ऩाॉच बेद होते है - जधभ का अन्धतभ बाग, जगती का अन्धतभ बाग, कैयर् का अन्धतभ बाग, गर का अन्धतभ बाग एर्ॊ ऩदट्टका का अन्धतभ बाग । इनके तनचरे एर्ॊ ऊऩयी बाग भें तछद्र होना चादहमे एर्ॊ नारी फाहय होनी चादहमे ॥२३-२४॥ फायह अङ्गर ु से प्रायम्ब कयते हुमे तीन-तीन अङ्गर ु की र्वृ ि से चौफीस अङ्गर ु ऩमवधत ऩाॉच प्रकाय की नारी की रम्फाई होती है ॥२५॥ आठ अङ्गुर से प्रायम्ब कय दो-दो अङ्गुर फढ़ाते हुमे सोरह अङ्गुरऩमवधत ऩाॉच प्रकाय की नारी की चौड़ाई होती है ॥२६॥ इनकी भोटाई (गहयाई) चौड़ाई के फयाफय, तीन चौथाई मा आधी होनी चादहमे । भध्मभ भाऩ तीन, चाय, ऩाॉच मा छ् अङ्गर ु चौड़ा एर्ॊ उतना ही गहया होता है ॥२७॥ नारी के अग्र बाग (दसये छोय) की चौड़ाई भर बाग के ऩाॉच बाग भें से तीन बाग के फयाफय एर्ॊ धाया से मुक्त होनी चादहमे । इसका अग्र बाग भर बाग से कुछ नीचा (ढारदाय) एर्ॊ ससॊह के भुख से मुक्त होता है ॥२८॥

इस प्रकाय दे र्ारम के भध्म बाग के र्ाभ बाग भें प्रणार का तनभावण कयना चादहमे । अधत्ऩीठ का नार फयाफय (सतह ऩय) एर्ॊ फाहय होना चादहमे ॥२९॥ अरङ्कयण सज्जा - प्रासाद के सबी अङ्गों का सॊऺेऩ भें क्रभश् वर्स्ताय, रम्फाई एर्ॊ ऊॉचाई का र्णवन ककमा गमा है । अफ उसके अरङ्कयण का र्णवन ककमा जा यहा है ॥३०॥ मदद दे र्ारम का ग्रीर्ा एर्ॊ भस्तक (शीषव बाग) र्त्ृ ताकाय हो तो उसकी सॊऻा 'र्ैजमधत' होती है । मदद दे र्ारम के

कणवबाग (कोणों) भें कट तनसभवत हों तो र्ह 'श्रीबोग' सॊऻक होता है । मदद भध्म बाग भें बद्र हो, तो र्ह 'श्रीवर्शार' एर्ॊ शीषवबाग मदद अष्टकोण हो तो र्ह 'स्र्न्स्तफधध' सॊऻक प्रासाद होता है ॥३१॥

चाय कोण र्ारे शीषव से मक् ु त प्रासाद 'श्रीकय', दो कोण एर्ॊ र्त्ृ ताकाय प्रासाद 'हन्स्तऩष्ृ ठ' तथा छ् कोण के शीषव र्ारा प्रासाद 'स्कधदकाधत' सॊऻक होता है । मे सबी बर्न रम्फाई सरमे होते है ॥३२॥

केसय सॊऻक प्रासाद भें भध्म बाग भें बद्र एर्ॊ शीषवबाग भें कणवकट, कोष्ठक एर्ॊ बद्रनासी आदद अङ्ग तनसभवत होते है । इसके गर एर्ॊ भस्तक (छत, आच्छादन) र्त्ृ ताकाय अथर्ा चतुष्कोण होते है । भध्म-बद्रक का प्रभाण (बर्न की चौड़ाई के) ऩाॉच, सात मा छ् बाग के तीसये एर्ॊ दसये बाग के फयाफय होनी चादहमे ॥३३-३४॥ धाभबेद बर्न के बेद - बर्न के तीन बेद होते है - नागय, द्रावर्ड एर्ॊ र्ेसय । सभ, चतुबज ुव एर्ॊ आमताकाय बर्न नागय कहे गमे है ॥३५॥

आठ बुजा (एर्ॊ कोण) तथा छ् बुजा (एर् कोण) र्ारा रम्फा बर्न द्रावर्ड़ कहा जाता है । र्त्ृ ताकाय, रम्फाई सरमे र्त्ृ ताकाय, दो कोण एर्ॊ र्त्ृ ताकाय बर्न र्ेसय कहराता है ॥३६॥

स्तवऩका ऩमवधत चौकोय बर्न को नागय कहते है । ग्रीर्ा से अष्टकोण वर्भान (बर्न, प्रासाद) द्रावर्ड होता है । ग्रीर्ा से र्त्ृ ताकाय बर्न र्ेसय कहराता है । विभानतरदे िता वर्भान - दे र्ारम के तरों के दे र्ता - वर्भानों (दे र्ारमों) के प्रत्मेक तर भें ददशाओॊ भें दे र्ताओॊ का क्रभश् धमास कयना चादहमे । ऩर्व ददशा भें नधदी एर्ॊ कार के रूऩ भें द्र्ायऩार का वर्धमास कयना चादहमे ॥३९॥ दक्षऺण ददशा भें दक्षऺणाभततव को, ऩन्श्चभ ददशा भें अच्मत ु को मा सरङ्गसम्बत को एर्ॊ उत्तय भें वऩताभह को वर्धमस्त कयना चादहमे ॥४०॥

भण्डऩ के भध्म बाग भें दक्षऺण भें वर्नामक, एर्ॊ उनके ऩर्व मा ऩन्श्चभ भें नत्ृ तरूऩ का वर्धमास वर्शेष रूऩ से कयना चादहमे ॥४१॥

उत्तय बाग भें कात्मामनी एर्ॊ ऺेरऩार को तथा स्थानक का आसन (खड़े अथर्ा फैठे) भुद्रा भें ददशाभततवमों का

वर्धमास कयना चादहमे । वर्सशष्ट कथाओॊ से मक् ु त आकृततमों का बी तनमभानस ु ाय अङ्कन कयना चादहमे । इस

प्रकाय भर-तर (बतर) के दे र्ता-वर्धमास का र्णवन ककमा गमा । अफ ऊऩयी तरों के वर्धमास का र्णवन ककमा जा यहा है ॥४२-४३॥ दसये तर भें ऩर्व ददशा भें ऩुयधदय मा सुब्रह्भण्म को, दक्षऺण भें र्ीयबद्र को, ऩन्श्चभ भें नयससॊह को एर्ॊ उत्तय भें

वर्धाता मा धनद को वर्धमस्त कयना चादहमे । तीसये तर भें भरुद्गणों का वर्धमास कयना चादहमे । प्रत्मेक तर भें दे र्ों, ससिों, गधधर्ावददकों एर्ॊ भुतनमों का वर्धमास कयना चादहमे । प्रत्मेक तर भें सोरह प्रततभाओॊ का वर्धमास होना चादहमे ॥४४-४६॥

ग्रीर्ा के नीचे एर्ॊ प्रतत के ऊऩय कोने-कोने ऩय र्ष ृ बों का वर्धमास कयना चादहमे । सबी दे र्ों के र्ाहन का र्णवन ककमा गमा है । सबी दे र्ारमों भें दे र्ता के दक्षऺण बाग भें उनका वर्धमास कयना चादहमे । इस प्रकाय सबी

वर्शेषताओॊ से मुक्त वर्भान (भन्धदय) सम्ऩततमाॉ प्रदान कयता है । कट, नीड, तोयण, भध्म बद्र आदद से मुक्त, सबी

अरङ्कयणों से सुशोसबत, वर्वर्ध प्रकाय के अधधष्ठान, स्तम्ब एर्ॊ र्ेददमों आदद से मुक्त दे र्ारमों का र्णवन भेये (भम ऋवष) द्र्ाया ककमा गमा है ॥४७-४९॥

अध्माम २० (भन्धदय के) दसये तर के ऩाॉच प्रकाय के प्रभाण को क्रभश् सॊऺेऩ भें कहता हॉ । ऩाॉच-छ् हाथ से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ की र्वृ ि से तेयह मा चौदह हाथऩमवधत उसकी ऊॉचाई ऩर्व-र्र्णवत तनमभ के अनुसाय होनी चादहमे । (तनचरे तर के) वर्स्ताय के छ् मा सात बाग कयने चादहमे । उसके एक बाग को सौन्ष्ठक (कणवकट) के सरमे ग्रहण कयना चादहमे ॥१-२॥ कोष्ठ (भन्धदय के भध्म बाग का कट) की रम्फाई के सरमे दो मा तीन बाग का प्रभाण एर्ॊ शेष बाग भें हाय (गसरमाया) एर्ॊ ऩञ्जय (अरङ्कयणवर्शेष) होना चादहमे । वर्भान (दे र्ारम) की ऊॉचाई को अट्ठाईस बागों भें फाॉटना चादहमे ॥३॥ (उऩमुक् व त अट्ठाईस बाग भें ) तीन बाग भसयक (अधधष्ठान), छ् बाग अड़ङि (बतर), तीन बाग भञ्च, ऩाॉच बाग अॊति

(तर), दो बाग भञ्च, एक बाग वर्तददव क (र्ेददका), दो बाग कधधय, साढ़े चाय बाग सशकय एर्ॊ डेढ़ बाग कुम्ब के सरमे होता है । मह ऩरयकलऩना भर से (सशखयऩमवधत) की गई है ॥४-५॥ स्िल्स्तक (स्र्न्स्त दे र्ारम का) अधधष्ठान चतुबज ुव होता है एर्ॊ कधधय तथा भस्तक (शीषवबाग) बी उसी प्रकाय होता है । मह चाय कटों एर्ॊ चाय कोष्ठों (भध्म-कट) से मक् ु त होता है ॥६॥

ऊऩयी बाग भें आठ दभ्रनीड (सजार्टी र्खड़ककमाॉ) तथा अड़तारीस अलऩनाससक (अत्मधत छोटे अरङ्कयण-वर्शेष) होते है । सशखयबाग भें चाय फड़े आकाय के नीड (सजार्टी र्खड़ककमाॉ) होते है ॥७॥ हाय (चायो ओय तनसभवत गसरमाया) के भध्म बाग भें सबन्त्त ऩय कुम्ब से तनगवत रतामें तनसभवत होती है तथा तोयण, र्ेददका एर्ॊ वर्सबधन प्रकाय के अङ्कनों से बर्न सुसन्ज्जत यहता है । मह बर्न सबी दे र्ों के अनुकर होता है एर्ॊ इसका नाभ स्र्न्स्तक होत है ॥८॥

मदद दे र्ारम के सौन्ष्ठक (कणवकट) नीचे हों एर्ॊ कोष्ठक (भध्म-कट) ऊॉचा हो तथा अधतय प्रस्तय से मुक्त हो तो उसे 'वर्ऩुरसुधदय' कहते है ॥९॥ कूट का रऺण -

द्वर्तर आदद र्ारे वर्भान (दे र्ारम) भें ऩादोदम, (ऩये दे र्ारम) के दश बाग होने चादहमे । एक बाग से वर्तददव , तीन बाग से अड़ङि, ऩौने दो बाग से प्रस्तय, सर्ा बाग से ग्रीर् तथा तीन बाग से भस्तक तनसभवत होना चादहमे । अधतय प्रस्तय से मुक्त ऊॉचे बर्न को 'कटशार' कहते है ॥१०-११॥ मदद कोष्ठक नीचा हो एर्ॊ सौन्ष्ठक ऊॉचा हो तथा अधतय-प्रस्तय से मुक्त हो तो उस बर्न (दे र्ारम) को कैरास कहते है ॥१२॥

मदद र्ेदी, कधधय, सशखय एर्ॊ घट र्तर ुव ाकाय हो, आठ कट हो, चाय शार से मक् ु त हो, छप्ऩन नाससक (सजार्टी

र्खड़ककमों की आकृततमाॉ) हों, कोष्ठक (भध्म कट) से प्रायाम्ब हुमे दो मा तीन दण्ड के तनगवभ सौन्ष्ठक से सम्फि होते है । सभान भाऩ र्ारे ग्रीर्ा एर्ॊ शीषवबाग से मुक्त कट-कोष्ठ होते है । वर्वर्ध प्रकाय के अधधष्ठान से मुक्त

एर्ॊ वर्वर्ध प्रकाय के स्तम्बों से सुसन्ज्जत वर्भान की सॊऻा 'ऩर्वत' होती है एर्ॊ मह सबी के अनुकर होती है ॥१३१५॥

दे र्ारम के सशखय ऩय चाय अधवकोष्ठ हो, इनका सशयोबाग चौकोय हो एर्ॊ चाय कटों से मुक्त हो, अनेक प्रकाय के

अधधष्ठान से मुक्त हों एर्ॊ अड़तारीस अलऩनाससक हो, तो उसकी सॊऻा 'स्र्न्स्तफधध' होती है एर्ॊ मह वर्सबधन अङ्गों से सस ु न्ज्जत होता है ॥१६-१७॥

मदद कोणों एर्ॊ भध्म भें अधतय-प्रस्तय से मुक्त कोष्ठ हों, हाया (गसरमाया) एर्ॊ अलऩ-ऩञ्जय नीचे हो, फहत्तय अलऩनाससक हो तथा वर्सबधन अरङ्कयणों से मुक्त हो तो उस दे र्ारम को 'कलमाण' कहते है ॥१८-१९॥

मदद दे र्ारम के सशखयबाग ऩय अधवकोष्ठ न हो तथा र्हाॉ चाय नीडा (सजार्टी र्खड़की की आकृततवर्शेष) तनसभवथो तो उसे 'ऩाञ्चार' कहते है ॥२०॥

मदद दे र्ारम की र्ेदी, कधधय, सशखय एर्ॊ घट अष्ट-कोण हो तथा सशखय ऩय आठ भहानासी तनसभवत हो, तो उसकी सॊऻा 'वर्ष्णुकाधत' होती है ॥२१॥ मदद दे र्ारम कट, शारा (भध्म कोष्ठ) एर्ॊ अधतय-प्रस्तय से यदहत हो, चाय बुजाओॊ र्ारा हो तथा रम्फाई चौड़आई से चतुथांश अधधक हो, र्ेदी, कधधय एर्ॊ सशखय आमताकाय हो एर्ॊ तीन स्तवऩमाॉ हो तो उसका नाभ 'सुभङ्गर' होता है ॥२२-२३॥

मदद दे र्ारम की र्ेददका, गर एर्ॊ सशयोबाग र्त्ृ तामत (रम्फाई सरमे र्त्ृ ताकाय) हो तथा सबी अङ्गों से बर्न मुक्त हो तो उसकी सॊऻा 'गाधधाय' होती है ॥२४॥

मदद दे र्ारम आमताकाय हो तथा रम्फाई चौड़ाई से आधा बाग अधधक हो, सशयोबाग दो कोण से मुक्त गोराई सरमे हो तथा भुखबाग (साभने) ऩय नेरशारा (नेर की आकृतत का प्रकोष्ठ) हो तो उसे 'हन्स्तऩष्ृ ठ कहते है । इसका अधधष्ठान दो कोण से मुक्त गोराकाय बी हो सकता है ॥२५॥

मदद दे र्ारम का अधधष्ठान चौकोय हो एर्ॊ गबवगह ृ र्त्ृ ताकाय हो तथा बर्न सबी अरङ्कयणों से मुक्त हो तो उसकी सॊऻा 'भनोहय' होती है ॥२६॥

मदद जधभ (बर्न के भर) से रेकय कुम्ब (सशखय बाग) तक दे र्ारम फाहय एर्ॊ बीतय से र्त्ृ ताकाय हो एर्ॊ शेष बाग ऩर्वर्र्णवत वर्धध के अनुसाय हो तो उसे 'ईश्र्यकाधत' कहते है ॥२७॥

मदद दे र्ारम का गबवगह ृ चौकोय हो, अधधष्ठान गोराकाय हो तथा जधभ से रेकय स्तवऩकाऩमवधत बर्न र्त्ृ ताकाय हो तो उसे 'र्त्ृ तहम्मव' कहते है ॥२८॥

मदद अधधष्ठान चौकोय हो तथा कधधय एर्ॊ सशय षटकोण हो एर्ॊ शेष सबी बाग ऩर्वर्त ् हो तो उस दे र्ारम की सॊऻा 'कुफेयकाधत' होती है ॥२९॥

दो तर र्ारे बर्नों के प्रभाण ऩाॉच प्रकाय के होते है एर्ॊ उनके बेद ऩधद्रह होते है । फुविभान (स्थऩतत) को बर्न का तनभावण उसी प्रकाय कयना चादहमे , न्जस प्रकाय उनका र्णवन ककमा गमा है ॥३०॥ ऩुन् धाभबेद ऩुन् बर्न के बेद - सन्ञ्चत, असन्ञ्चत एर् उऩसन्ञ्चत सॊऻक बर्न के तीन बेद होते है ॥३१॥ उऩमक् ुव त बेदों को स्री, ऩरु ु ष एर्ॊ नऩॊस ु क कहते है । ंटटों अथर्ा सशराओॊ से तनसभवत बर्न 'सन्ञ्चत' होता है ॥३२॥ कऩोत आदद न्जस बर्न के शीषवबाग ऩय हो, उसे ऩुरुष बर्न कहते है । ईटों मा काष्ठ से तनसभवत, बोग एर्ॊ आग

(सशयोबाग के वर्सशष्ट तनभावण) से मक् ु त बर्न स्रीत्र्मक् ु त 'असन्ञ्चत' सॊऻक होते है । काष्ठ अथर्ा ंटटों से तनसभवत बोग एर्ॊ अबोग से मुक्त तथा घन एर्ॊ अघन अङ्गों से मुक्त बर्न नऩुॊसक होता है । इसकी सॊऻा 'उऩसन्ञ्चत' होती है ॥३३-३४॥

भनीवषमों के अनस ु ाय खण्डबर्न की स्थऩी (स्तवऩका) का भान ऊऩयी तर के स्तम्बके सातर्ें बाग के फयाफय होता है । छत की ऊॉचाई (स्तम्ब के सात बाग) के तीन बाग के फयाफय, गर दो बाग के फयाफय एर्ॊ वर्तददव क (गर का आधाय) एक बाग के फयाफय होता है ॥३५॥ तोयण की ऊॉचाई के सरमे स्तम्ब के दश, नौ मा आठ बाग कयने चादहमे । उनभें क्रभश् सातर्ें , छठे मा ऩाॉचर्े बाग को ग्रहण कयना चादहमे । शेष बाग से झषाॊश (भछरी की आकृतत के सदृश गोराई सरमे ऩदट्टका) तनसभवत कयना

चादहमे । इसकी चौड़ाई रम्फाई की आधी, छठर्ें बाग, ऩाॉचर्े बाग अथर्ा चौथे बाग के फयाफय यखनी चादहमे ॥३६॥ नीड (सजार्टी र्खड़की की आकृतत) की चौड़ाई उसकी ऊॉचाई के फयाफय होनी चादहमे । उन दोनों (तोयण एर्ॊ नीड) की ऩरयधध स्तम्ब के भर बाग के तीन चौथाई के फयाफय होनी चादहमे । हाय के भध्म, बर्न-भध्म, कट ऩय एर्ॊ कोष्ठ ऩय तोयण से अरङ्कयण कयना चादहमे ॥३७॥ द्र्ाय के यऺक का कऺ द्र्ाय के दोनों ऩाश्र्ों भें , द्र्ाय के सभीऩ अथर्ा ऩद के भध्म भें होना चादहमे । इसकी ऊॉचाई उत्तयभण्डऩमवधत, खण्डऩमवधत, ऩोततकाऩमवधत अथर्ा तोयणऩमवधत कही गई है । सबी बर्नों भें उधचत यीतत से प्रर्ेश-बाग का तनभावण मुन्क्तऩर्वक कयना चादहमे ॥३८-३९॥

अध्माम २१

(त्रत्रबूमभविधान) तीन तर र्ारे बर्न का वर्धान - तीन तर र्ारे बर्न के ऩाॉच प्रकाय के प्रभाण को अफ सॊऺेऩ भें र्र्णवत ककमा जा यहा है । सात मा आठ हाथ से प्रयम्ब कऩवधद्रह मा सोरह हाथऩमवधत दो-दो हाथ क्रभश् र्वृ ि कयते हुमे इसे रे जाना चादहमे । मह इनका व्मास है । उॉ चाई ऩर्वर्र्णवत तनमभ के अनुसाय होनी चादहमे ॥१॥ मदद (बतर की चौड़ाई) सात, आठ मा नौ हाथ हो तो उसके सात मा आठ बाग कयने चादहमे । इसके एक फाग से ऊट की चौड़ाई, दो मा तीन बाग से कोष्ठ (भध्म भें न्स्थत कोष्ठ मा कट) की चौड़ाई, आधे बाग से रम्फ ऩञ्जय (हाया सॊऻक भागव के ऊऩय रटकती आक्रुतत ) एर्ॊ इसी के फयाफय प्रभाण का हाया सॊऻक भागव मा गसरमाया होना चादहमे ॥२-३॥

ऊऩयी तर (द्वर्तीम तर) के छ् बाग कयना चादहमे । एक बाग से कट एर्ॊ उसका दग ु ुना चौड़ा कोष्ठक एर्ॊ भध्म भें एक बाग से हाया का तनभावण कयना चादहमे ॥४॥

उसके ऊऩयी तर (तत ृ ीम तर) के भध्म बाग भें बद्र का तनभावण होना चादहमे । फवु िभान ् (स्थऩतत) को बद्र का भाऩ एक दण्ड, डेढ़ दण्ड मा दो दण्ड यखना चादहमे ॥५॥

दे र्ारम की सम्ऩणव ऊॉचाई को चौफीस बागों भें वर्बक्त कयना चादहमे । तीन बाग से धयातर (अधधष्ठान), चाय बाग से अध्स्तम्ब (प्रथभ तर की ऊॉचाई), दो बाग से भञ्च, ऩौने चाय बाग से (द्वर्तीम तर का) अड़ङिक (स्तम्ब), डेढ़ बाग से भञ्चक, साढ़े तीन बाग से तसरऩ (तत ृ ीम भॊन्जर का स्तम्ब अथर्ा ऊॉचाई), सर्ा बाग से प्रस्तय, आधे बाग से र्ेदी एर्ॊ गर, साढ़े तीन बाग से सशखय एर्ॊ एक फाग से घट का तनभावण कयना चादहमे ॥६-८॥

दे र्ारम भे आठ कट (कोण के कोष्ठ), आठ नीड (कट एर्ॊ कोष्ठ के भध्म के कोष्ठ) एर्ॊ आठ कोष्ठक (भध्म कोष्ठ) होना चादहमे । इधहे जधभ (प्रायम्ब) से स्तवऩकाऩमवधत चौकोय फनाना चादहमे । ऊऩयी तर ऩय सोरह अलऩनीड (छोटे कोष्ठ) एर्ॊ तछमानफे अलऩनास का तनभावण कयना चादहमे । अधधष्ठान, स्तम्ब एर्ॊ र्ेददका आदद की आकृतत वर्सबधन प्रकाय की हो सकती है । शीषवबाग ऩय आठ अभ्रनास (सजार्टी र्खड़कीमाॉ) होती है । कोष्ठ कट से उधनत हों एर्ॊ आऩस भें सभान ऊॉचाई के हों, तो र्ह दे र्ारम शम्बु का र्ास होता है एर्ॊ मह तीन तर का दे र्ारम 'स्र्न्स्तक' सॊऻक होता है ॥९-१०॥ विभराकृनतक दे र्ारम की चौड़ाई के सात मा नौ बाग कयने ऩय सौन्ष्ठक (कोण के कोष्ठों) को एक बाग चौड़ा, शारा (भध्म का रम्फा कोष्ठ) एक मा दो बाग चौड़ा तथा हाया-भागव को एक बाग से तनसभवत कयना चादहमे ॥११॥ (इस दे र्ारम भें ) आठ कट, फायह कोष्ठ, आठ नीड तथा एक सौ फीच अलऩनाससक होना चादहमे ॥१२॥ भस्तक, र्ेदी एर्ॊ कधधय अष्टकोण एर्ॊ आठ नाससक होना चादहमे । 'वर्भराकृततक' नाभक मह दे र्ारम बगर्ान ् सशर् के तनर्ासमोग्म होता है ॥१३॥

जफ चौड़ाई सात मा नौ हाथ हो तो उसके सात मा नौ बाग कयने चादहमे । कट की चौड़ाई एक बाग हो एर्ॊ इनकी सॊख्मा आठ हो । फायह कोष्ठ हों, आठ ऊध्र्वऩञ्जय हो, आठ गरनास हो तथा एक सौ फीस (सजार्टी आकृतत हो) तो उस वर्भान (दे र्ारम) की सॊऻा 'वर्भराकृतत' होती है ॥१४॥ हल्स्तऩष्ृ ठ ग्मायह हाथ के वर्स्ताय को आठ बाग भें वर्बक्त कयना चादहमे । रम्फाई को वर्स्ताय से चाय बाग अधधक यखना चादहमे तथा (एक ओय) र्त्ृ ताकाय (एर्ॊ एक ओय दो कोण) होना चादहमे ॥१५॥ अधधष्ठान दो कोण (एक ससये ऩय एर्ॊ दसये ससय ऩय) र्त्ृ ताकाय होना चादहमे । इसी प्रकाय कधधय एर्ॊ भस्तक (सशखय) होना चादहमे । वर्स्ताय के आधे प्रभाण से र्त्ृ ताकृतत तनसभवत कयना चादहमे ॥१६॥

कोण (एर्ॊ बुजा) के फगर एर्ॊ ऩष्ृ ठ बाग के फायह बाग दो फाय कयना चादहमे । कट, कोष्ठक एर्ॊ नीड के वर्स्ताय

का तनभावण एक बाग से कयना चादहमे । कोष्ठक को दग ु ुना रम्फा तथा हायाभागव (की चौड़ाई) एक बाग से तनसभवत कयनी चादहमे ॥१७॥

भुख-भण्डऩ का प्रभाण बर्न के फयाफय, तीन चौथाई मा आधा होना चादहमे । भण्डऩ के ऊऩय उसी प्रकाय का

अरङ्कयण होना चादहमे , न्जस प्रकाय बर्न के ऊऩय होता है । सबी बर्नों (दे र्ारमों) भें भण्डऩ को कट एर्ॊ कोष्ठ आदद से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे ॥१८-१९॥ अथर्ा बरर्गवसदहत बर्न (अथावत ् कट आदद से यदहत तीन र्गव र्ारे बर्न) को तोयण आदद से सजाना चादहमे । मदद भण्डऩ प्रधान बर्न के फयाफय हो तो अधतयार नीचा होना चादहमे ॥२०॥

कट एर्ॊ कोष्ठ आदद सबी अर्मर् भान-सर से फाहय की ओय तनकरे होते है । मे बाग अऩने चौड़ाई के आधे अथर्ा उसके आधे, एक दण्ड, डेढ़ दण्ड, ढ़ाई दण्ड, तीन दण्डऩमवधत भानसर से फाहय तनकरे होते है । न्जस बर्न भें इस वर्धध से कटादद अङ्गों का तनभावण होता है , र्ह सदै र् सम्ऩन्त्त प्रदान कयता है । एक सीधी ये खा (ऋजु सर ) से इसका प्रभाण रेना चादहमे । ऋजुसर का टटना वर्ऩन्त्त प्रदान कयता है । ॥२१-२२॥

ऊध्र्व-तर ( की चौड़ाई) को छ् बाग भे फाॉटना चादहमे । उसके ऩष्ृ ठ-बाग के दोनों ऩाश्र्ो को फायह-फायह बाग भे

फाॉटना चादहमे । ऊऩयी तर के चाय बाग कयने चादहमे । चौकोय बाग ऩय ऩहरे के सभान मथोधचत यीतत से कट एर्ॊ कोष्ठ आदद का तनभावण कयना चादहमे ॥२३-२४॥ बर्न के शीषव बाग भें साभने की ओय नेरशारा (नेर के आकाय का प्रकोष्ठ) एर्ॊ र्क्र (भख ु बाग) तनसभवत कयना चादहमे तथा ऺुद्रनासी एर्ॊ स्तम्ब से मुक्त गबवकट का तनभावण कयना चादहमे ॥२५॥

कट एर्ॊ कोष्ठ आदद का तनभावण इस प्रकाय कयना चादहमे, न्जससे बर्न सध ु दय रगे । सशखय बाग ऩय तीस नाससकामें तनसभवत होनी चादहमे ॥२६॥

बर्न ऩय आठ कट एर्ॊ आठ कोष्ट तथा फायह नीड होना चादहमे । हाया-भागव ऩय फायह ऺुद्रनीडों का तनभावण होना चादहमे ॥२७॥

वर्सबधन प्रकाय के भसयु क (अधधष्ठान), स्तम्ब एर्ॊ र्ेददका आदद से बर्न को अरङ्कृत कयना चादहमे । अधधष्ठान उऩऩीठ से मुक्त हो अथर्ा केर्र अधधष्ठान हो । मह 'हन्स्तऩष्ृ ठ' नाभक बर्न सबी दे र्ों केसरमे अनुकर होता है ॥२८॥

स्तर्मबतोयण स्तम्ब की ऊॉचाई के दो ततहाई बाग के फयाफय (स्तम्बतोयण) की ऊॉचाई यखनी चादहमे एर्ॊ इसके सबी अङ्गों का तनभावण कयना चादहमे । इसे ऩोततकावर्हीन तथा र्ीयकाण्ड के ऊऩय भन्ण्ड से मक् ु त, उत्तय-र्ाजन, अब्ज-ऺेऩण (ऩदट्टका ऩय तनसभवत ऩद्मऩुष्ऩ) एर्ॊ तनम्न-र्ाजन से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे ॥२९-३०॥

उसके ऊऩय झष-काण्ड (भछरी की आकृतत र्ारी गोराई-मक् ु त ऩदट्टका) वर्सबधन प्रकाय के ऩरों से सस ु न्ज्जत होना

चादहमे । इसे तोयण की आकृतत से मुक्त एर्ॊ कधधय ऩय कभर की नार अङ्ककत होनी चादहमे । सबी अरङ्कयणों से मुक्त 'स्तम्बतोयण' का र्णवन ककमा गमा है ॥३१॥

दो स्तम्बों के भध्म भें , हाया-भागव ऩय, कणव-प्रासाद के भध्म बाग भें , शारा (कोष्ठ) के भध्म के अधतयार ऩय सबी बर्नों भें (स्तम्ब-तोयण का प्रमोग कयना चादहमे) ॥३२॥ सबी अर्मर्ों से मक् ु त दोनों ऩाश्र्ो भें न्स्थत स्तम्ब का तर (ऊॉचाई) सभान होना चादहमे । र्ीय-काण्ड अग्र बाग भें उत्तय एर्ॊ र्ाजन की स्थाऩना कयनी चादहमे । र्ाजन के ऊऩय दर (ऩुष्ऩ-ऩर आदद) एर्ॊ ऺेऩण की स्थाऩना कयनी चादहमे । तोयण के अग्र बाग भें नक्र (भकय) एर्ॊ ऩर आदद की यचना कयनी चादहमे । इस प्रकाय के तोयण की

दे र्ारम, भण्डऩ, बर्न मा अधम बर्न भें स्थाऩना कयनी चादहमे । इसभें स्तम्ब की सॊख्मा अमुत (एक) होनी चादहमे ॥३३॥

ऩुन् हल्स्तऩष्ृ ठ जफ भसयक (अधधष्ठान) आमताकाय हो तो उसकी चौड़ाई के आठ बाग एर्ॊ रम्फाई के दस बाग कयने चादहमे । कट, कोष्ठक एर्ॊ नीड की सॊयचना एक-एक बाग से कयनी चादहमे ॥३४-३५॥ एक बाग से हाया-भागव फनाना चादहमे । इसके ऊऩय के तर की चौड़ाई के छ् बाग होने चादहमे तथा रम्फाई को दो बाग अधधक यखना चादहमे एर्ॊ उसके चाय बाग कयने चादहमे ॥३६॥ र्ेददका, गर एर् भस्तक आमताकाय; ककधतु दो कोण र्ारा र्त्ृ ताकय (आमताकाय आकृतत के एक ससये ऩय दो कोण हो एर्ॊ दसया ससया गोराई सरमे हो) होना चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद सबी अङ्गों को ऩर्वर्र्णवत यीतत से तनसभवत कयना चादहमे ॥३७॥ वर्वर्ध प्रकाय के अधधष्ठानों से एर्ॊ वर्सबधन प्रकाय के स्तम्बों से अरङ्कृत होना चादहमे । स्तम्बों के ऊऩय

स्र्न्स्तफधधन से सुशोसबत नासी (सजार्टी र्खड़की) होनी चादहमे । फुविभान व्मन्क्त को फर के अनुरूऩ एर्ॊ

मथोधचत यीतत से बर्न का तनभावण कयना चादहमे । प्राचीन भनीवषमों ने इस बर्न (दे र्ारम) को बी 'गजऩष्ृ ठ' कहा है । सबी दे र्ारमों भें सभ सॊख्मा का प्रमोग प्रभाण के सरमे कयना चादहमे ॥३८-३९॥

बद्रकोष्ठ तेयह हाथ की चौड़ाई को नौ बागों भें फाॉटना चादहमे । गबवगह ृ को तीन बाग से एर्ॊ गह ृ वऩण्डी (सबन्त्त) एक बाग से

फनानी चादहमे । अधधाय (असरधद, फयाभदा) को एक बाग से तथा एक बाग से उसके चायो ओय अधधारयका (असरधद के फाहय की दीर्ाय) फनानी चादहमे ॥४०-४१॥ एक बाग से सौन्ष्ठक एर्ॊ कोष्ठ का वर्स्तय यखना चादहमे । इसकी रम्फाई चौड़ाई से तीन बाग अधधक होनी चादहमे । आधे बाग से नीड का वर्स्ताय तथा शेष बाग से हायाभागव तनसभवत होना चादहमे ॥४२॥ कोष्ठ के भध्म भें तीन दण्ड के प्रभाण से तनगवभन (फाहय की ओय तनकरा बाग) से मुक्त नासी होनी चादहमे ।

ऊऩयी तर के छ् बाग कयने चादहमे । उसके एक बाग से कट तनसभवत कयना चादहमे । कोष्ठक की रम्फाई दग ु न ु ी

होनी चादहमे । एक बाग से ऩञ्जय से मुक्त हाया होनी चादहमे । उसके ऊऩयी बाग (तर) के तीन बाग कयने चादहमे । भध्म बाग भें एक दण्ड का तनगवभ होना चादहमे ॥४३-४४॥

मदद अधधष्ठान चौकोय हो तो गर तथा सशखय अष्टकोण होना चादहमे । प्रथभ तर के चायो कोनों ऩय कट होना चादहमे एर्ॊ सशयोबाग चौकोय होना चादहमे ॥४५॥ ऊऩयी तर ऩय सौन्ष्ठकों (कोष्ठों) का शीषव अष्टकोण होना चादहमे । इसी प्रकाय आठ कट, नीड एर्ॊ कोष्ठक होना चादहमे ॥४६॥ इसी प्रकाय ऺुद्रनीड होना चादहमे । गर-नाससकामें चौसठ होनी चादहमे । नाससकाओॊ का अरङ्कयण स्र्न्स्तक की आकृतत का होना चादहमे । इस बर्न की सॊऻा 'बद्रकोष्ठ' उधचत ही है ॥४७॥ जफ प्रत्मेक ऊऩरय तर भें र्त्ृ ताकय कणव-कट तनसभवत हो, सशखय र्त्ृ ताकाय हो तथा चाय नाससमों से मुक्त हो, तो उस दे र्ारम को 'र्त्ृ तकट' कहते है । मह दे र्ारम सर्वदा दे र्ों के अनक ु र होता है ॥४८-४९॥ सुभङ्गर मदद दे र्ारम चाय बुजाओॊ र्ारा आमताकाय हो तथा उसकी रम्फाई चौड़ाई से आठ बाग अधधक हो, चाय बुजाओॊ र्ारा कणवकट हो एर्ॊ उसका सशखय र्त्ृ तामताकाय (दीघव-र्त्ृ त के आकाय का) हो तथा कोष्ठबद्र न हो एर्ॊ शेष

ऩर्वर्र्णवत अर्मर् तनसभवत हो तो तीन स्तवऩकाओॊ से मुक्त इस दे र्ारम की सॊऻा 'सुभङ्गर' होती है । ॥५०-५१॥ गान्धाय दे र्ारम का ऩधद्रह हाथ व्मास होने ऩय उसके ऩधद्रह बाग कयने चादहमे । चाय बाग से गबवगह ृ , एक बाग से अधधायी

(सबन्त्त की भोटाई), एक बाग से असरधद, एक बाग से खण्डहम्मव, एक बाग से कट, एक बाग से कोष्ठ एर्ॊ एक बाग से ऩञ्जय तनसभवत कयना चादहमे । कोष्ठक की रम्फाई उसकी चौड़ाई से दग ु ुनी होनी चादहमे, ऐसा फुविभानों का भत है ॥५२-५३॥

ऊऩयी तर के छ् बाग होने चादहमे । सौन्ष्ठक की चौड़ाई एक बाग होनी चादहमे । कोष्ठक की रम्फाई दग ु न ु ी होनी

चादहमे एर्ॊ हाया एक बाग से होनी चादहमे । उसके ऊऩय के तर का चाय बाग कयना चादहमे एर्ॊ दो बाग से भध्मतनगवभ तनसभवत कयना चादहमे ॥५४-५५॥ इसका भाऩ एक दण्ड, डेढ़ दण्ड मा दो दण्ड होना चादहमे । अधधष्ठान चौकोय होना चादहमे एर्ॊ इसी प्रकाय कधधय (गर) तथा शीषव होना चादहमे ॥५६॥ कटों की सॊख्मा आठ हो एर्ॊ इसी प्रकाय नीड एर्ॊ कोष्ठक बी होना चादहमे । ऊध्र्व बाग भें र्षवस्थर (जर का स्थान) से मुक्त आठ रम्फनीड का तनभावण कयना चादहमे ॥५७॥ स्र्न्स्तक के आकाय की नाससका सबी स्थरों ऩय सश ु ोसबत होती है । वर्सबधन प्रकाय के भसयक (अधधष्ठान), स्तम्ब, र्ेदी, जारक (झयोखा) एर्ॊ तोयण इस बर्न के अनुकर होते है ॥५८॥

मदद कट एर्ॊ कोष्ठ ऊॉचे एर्ॊ अधतय-प्रस्तय (आधाय-र्ेददका) से मुक्त हो, गर एर्ॊ सशय अष्टकोण हों तो ऐसे दे र्ारम को 'गाधधाय' कहते है ॥५९॥ श्रीबोग मदद र्ेदी, कधधय एर्ॊ सशखय गोराकाय हो तथा अधम अङ्ग ऩर्व-र्र्णवत वर्धध के अनुसाय हो तो उस दे र्ारम की सॊऻा 'श्रीबोग' होती है ॥६०॥ कूटकोष्ठ र्त्ृ ताकाय, र्त्ृ तामताकाय (रम्फाई-मक् ु त गोराई), दो कोण र्ारे (एर्ॊ दसये ससये ऩय) र्त्ृ ताकाय, आठ कोण एर्ॊ छ् कोण र्ारे बर्न भें प्रत्मेक तर भें कट, कोष्ठक एर्ॊ नीड होना चादहमे । इनके ऊऩय खण्ड-हम्मवक (रम्फी सजार्टी कऺ की आकृतत) बी हो, जो कट, कोष्ठ तथा नीडों से सुसन्ज्जत हो ॥६१॥ दो कोण र्ारे र्त्ृ ताकय एर्ॊ र्तुर व ाकाय बर्न भें बीतयी बाग भें सीधे बाग से कुछ कभ हो सकता है मा फयाफय भाऩ

हो सकता है । ऊऩयी तर तनचरे तर से आठ मा दश बाग कभ हो सकता है । न्जस यीतत से बर्न सुधदय रगे एर्ॊ दृढ़ हो, उस यीतत का प्रमोग फुविभान स्थऩतत को कयना चादहमे ॥६२-६३॥ ऩुन् धाभबेद ऩन ु ् बर्न के बेद - दे र्ारम दो प्रकाय के होते है - अवऩवत एर्ॊ अनवऩवत । अवऩवत दे र्ारम भें असरधद नही होता है एर्ॊ अनवऩवत भें असरधद होता है । इस अलऩक्रभ का प्रमोग सबी दे र्ारमों भें फुविभान स्थऩतत को कयना चादहमे ॥६०-६५॥ नारीगह ृ

गबवगह ृ - गबवगह ृ अथर्ा नारी-गह ृ का प्रभाण दे र्ारम का तीसया बाग, ऩाॉच बाग भें तीन बाग, सात भें चाय बाग, नौ भें ऩाॉच बाग, ग्मायह भें छ् बाग, तेयह भें सात बाग, ऩधद्रह भें आठ बाग, सरह भें नौ बाग अथर्ा भन्धदय का आधा होना चादहमे ॥६६॥ िेददका बर्न के अर्मर्ों के नीचे, कट एर्ॊ कोष्ठ आदद के नीचे एर्ॊ ग्रीर्ा के नीचे र्ेददका तनसभवत कयनी चादहमे । हायाबाग के नीचे र्ेददका का तनभावण हो बी सकता है तथा नही बी हो सकता है । र्हाॉ नीड एर्ॊ अलऩ-नास का तनभावण (ऊऩयी बाग भें ) होना चादहमे ॥६७॥ तोयणाददविधान तोयण आदद का वर्धान - तोयण तीन प्राकय के होते है - ऩर तोयण, भकय-तोयण एर्ॊ धचर-तोयण । अफ इनकी सज्जा का र्णवन ककमा जा यहा है ॥६८॥ उगते हुमे चधद्रभा के सभान एर्ॊ ऩरों से अरङ्कृत तोयण को 'ऩरतोयण' कहते है । भध्म भें दो भकयों के भुख ऩय न्स्थत ऩरयन (सशर्) हो एर् तोयण ऩय वर्वर्ध प्रकाय की रतामें तनसभवत हो तो र्ह 'भकयतोयण' होता है ॥६९॥ (धचरतोयण भें ) भध्म बाग भें ऩरयन (सशर्) न्स्थत यहते है , न्जधहे नक्र-तुण्ड (भकयों के भुख का अग्र-बाग) दोनों ओय से ऩकड़े यहता है । दोनों भकय-भुखों से वर्द्माधय, बत, ससॊह, व्मार, हॊ स एर्ॊ फच्चे तनकरते है जो ऩुष्ऩों की भारा, अधम भर्णफधध आदद आबषणों से सुसन्ज्जत यहते है । इस तोयण की सॊऻा 'धचरतोयण' है तथा मह दे र्ों एर्ॊ याजाओॊ के सरमे (दे र्ारम एर्ॊ याज-बर्न भें ) प्रशस्त होता है ।

इस तोयण की गुहाओॊ (सजार्टी र्खड़ककमो के बीतय का कऺनुभा स्थान) भें प्रततभामें होती है । तोयण के दोनो ऩाश्र्ो भें स्तम्ब होते है एर्ॊ नीचे उत्तय होते है । ॥७३॥

स्तम्ब की ऊॉचाई को ऩाॉच, छ् मा सात बागों भें फाॉटना चादहमे । दो बाग तोयण के ऊध्र्व बाग के सरमे एर्ॊ शेष बाग स्तम्ब के सरमे छोड़ना चादहमे । स्तम्ब चौकोय, अष्टकोण मा र्त्ृ ताकाय होना चादहमे । मह कुम्ब एर्ॊ भन्ण्ड से मक् ु त एर्ॊ ऩोततका के वर्ना बी हो सकता है । इसके अततरयक्त उत्तय, र्ाजन, अब्ज-ऺेऩण एर्ॊ ऺुद्र-र्ाजन तनसभवत होती है ॥७४-७५॥

ऩोततका के ऊऩय मा र्ीयकाण्ड के ऊऩय (स्तम्ब की) सन्धध के ऊध्र्व बाग ऩय भकय-वर्ष्टय (भकयाकृतत ढरान) तनसभवत कयना चादहमे ॥७६॥

तोयण की ऊॉचाई की आधी उसकी चौड़ाई यखनी चादहमे (अथर्ा) तीन, चाय मा ऩाॉच दण्ड तोयण का वर्स्ताय यखना चादहमे । (अथर्ा) तोयण की ऊॉचाई द्र्ाय के फयाफय हो एर्ॊ चौड़ाई दोनों स्तम्बों के भध्मबाग के फयाफय होनी चादहमे । ऊऩयी बाग भें भकय के आकाय का उत्तय तनसभवत कयना चादहमे , न्जस ऩय अष्ट-भङ्गर ऩदाथव अङ्ककत हो । परक ऩय ऩञ्चर्क्र (सशर्) अङ्ककत हो एर्ॊ ऊध्र्व बाग भें शर तनसभवत हो । ऊध्र्व बाग भें छर, ध्र्ज, ऩताका, श्री, बेयी, कुम्ब, दीऩ एर्ॊ नधद्मार्तव आकृतत (स्र्न्स्तक) सबी ऩय इन अष्टभङ्गर धचह्नो का अङ्कन होना चादहमे । इस दे र्ता आदद के (बर्नों भें ) चाय प्रकाय के तोयणों के बेद र्र्णवत है ॥७७-७९॥

ऩद्मासन (ऩद्म-परक) के ऊऩय कुम्ब के ततयछे (ऩाश्र्व भें ) सध ु दय रता की आकृतत होनी चादहमे । उसके ऊऩयी परक के ऊध्र्व बाग भें कुम्ब की रता के अग्र बाग भें ऩद्म-ऩुष्ऩ अङ्ककत होना चादहमे ॥८०-८१॥

ऩद्म, कुम्ब एर्ॊ रता तथा अधम सज्जाओॊ का बी अङ्कन होना चादहमे । ऊऩयी जोड़ के ऊऩय र्ीयकाण्ड होना चादहमे

। ऊध्र्व बाग भें स्तम्बकुम्बरता एर्ॊ स्तम्बतोयण होना चादहमे । दे र्ारम एर्ॊ उससे सबधन (भनुष्म-आर्ास) भें हायाभागव का तनभावण कयना चादहमे ॥८२-८३॥

'र्त्ृ तस्पुदटत' दे र्ारमों का अरङ्कयण होता है । इसकी रम्फाई तोयण के स्तम्ब के फयाफय होती है । इसकी चौड़ाई

छ्, आठ, दश, फायह मा चौदह भाऩ (भारक) की होनी चादहमे तथा तनष्क्राधत (फाहय तनकरा बाग) चौड़ाई का आधा, दो ततहाई मा एक ततहाई होना चादहमे । इसका आच्छादन गोराकाय होता है । ऊध्र्व बाग कधधय (गर)से मुक्त होता है , न्जस ऩय 'शुकनासस' तनसभवत होती है ॥८४-८५॥

सीढ़ी - प्रत्मेक तर भें फुविभान व्मन्क्त को सीढ़ी का तनभावण कयना चादहमे । इसका भर (प्रायम्ब, प्रकाय) तीन

प्रकाय का सम्बर् है - चौकोय, गोराकाय मा आमताकाय । सीढ़ीमोंके चाय प्रकाय होते है -बरखण्ड, शङ्खभण्डर, र्लरी भण्डर, एर्ॊ अधवगोभर ॥८६-८७॥ भर (प्रायम्ब) से ऊऩय तक चौड़ाई भें क्रभश् ऺीण होने र्ारा सोऩान 'शङ्खभण्डर' है । र्लरीभण्डर सोऩान की सॊयचना र्ऺ ृ ऩय चढ़ी हुई (गोराई भें सरऩटी हुई) रता के सभान की जाती है । अश्र्ऩाद (अश्र् के खुय अथर्ा अधवचधद्र का प्रथभ सोऩान ऩट्टी) के ऊऩय से प्रायम्ब होकय दक्षऺण की ओय भड़ ु ते हुमे दो दण्ड से रेकय सात

दण्डऩमवधत सोऩान की चौड़ाई हो सकती है । अश्र्ऩाद का वर्स्ताय सोऩान के प्रभाण से दग ु न ु ा से रेकय चाय गन ु ा तक होता है ॥८८-९०॥

सोऩान-ऩदट्टमों के भध्म की ऊॉचाई शतमत व्मास (रेटाई गई ऩदट्टमों की चौडाई) की चौथाई, आधी मा तीन चौथाई होनी चादहमे । गज, फच्चों एर्ॊ र्ि ृ ो को ध्मान भें यखते हुमे सोऩान-ऩदट्टमों को फयाफय बागों भें फाॉटना चादहमे (अथावत उनकी रम्फाई-चौड़ाई आदद ऩर्व-तनधावरयत प्रभाण भें हो) । सोऩान के बफछे परक का व्मास (गहयाई) सोरह से अट्ठायह अङ्गुर होना चादहमे एर्ॊ ऊॉचाई उसके छठे बाग के फयाफय होनी चादहमे । इस प्रकाय सोऩान का तनभावण कयना चादहमे ॥९१-९२॥

हस्त की चौड़ाई दो दण्ड एर्ॊ भोटाई उसकी चतुथांश होनी चादहमे । न्स्थत (खड़ी न्स्थतत) एर्ॊ शातमन (रेटी न्स्थतत) र्ारे परकों को हस्त भें दृढताऩर्वक फैठाना चादहमे । (हस्त सीढ़ी के ऩाश्र्व का एक अङ्ग है ) ॥९३॥

सोऩानों की सॊख्मा वर्षभ होनी चादहमे । मे गुप्त (सबन्त्त आदद भें तछऩी) मा प्रकट हो सकती है । भण्डऩ आदद भें फाहय की ओय एक सबन्त्त (सीढ़ी का एक वर्शेष बाग) तनकरी होनी चादहमे ॥९४॥

सबी र्णव र्ारे व्मन्क्तमों के बर्न भें सीढ़ी दक्षऺण (दादहनी) की ओय घभनी चादहमे । मह शुब होता है । इसके वर्ऩयी (फाॉमी ओय भुड़ना) वर्नाशकायक होता है ॥९५॥

अधधष्ठान ऩय चढ़ने के सरमे तनसभवत सोऩान भुख एर्ॊ दोनों ऩाश्र्ों की ओय होना चादहमे । हन्स्तहस्त (सीढ़ी का एक बाग, सम्बर्त् ये सरङ्ग) का तनभावण अश्र्ऩाद से रेकय परक (ऊऩय परक) तक होना चादहमे ॥९६॥

अधधष्ठान का सोऩान उसके स्तम्ब-प्रस्तय के फयाफय (ऊॉचा) होना चादहमे । इस वर्धध से तनसभवत सोऩान सम्ऩन्त्तकायक होता है ॥९७॥ इस प्रकाय दे र्ारम एर्ॊ भनष्ु मों के आर्ास के अनरू ु ऩ तोयण एर्ॊ सोऩान के बेद एर्ॊ आकाय का र्णवन ककमा गमा । र्ास्तु-वर्द्मा के ऻाता को बर्न के अनुसाय उधचत यीतत से इनकी मोजना फनानी चादहमे ॥९८॥

इस प्रकाय इनके (बर्न के) तीन बेद- नागय, द्रावर्ड एर्ॊ र्ेसय होते है , जो क्रभश् सत्त्र्, यजस एर्ॊ तभस के प्रतीक है । मे (भनष्ु मों भें ) ब्राह्भण, याजा (ऺबरम) एर्ॊ र्ैश्म के तथा (दे र्ों भें ) हरय, वर्धाता एर्ॊ सशर् के (बर्न के सरमे) अनुकर होते है ॥९९॥

अध्माम २२ चाय तर से रेकय फहुतरों के दे िारमों का विधान चाय तर र्ारे बर्न (दे र्ारम) के ऩाॉच प्रकाय के प्रभाणों का सॊऺेऩ भें क्रभानुसाय र्णवन कय यहा हॉ । इसका व्मास

तेयह मा चौदह हाथ से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे इक्कीस मा फाईस हाथ तक जाता है एर्ॊ बर्न की ऊॉचाई ऩर्ोक्त तनमभ के अनस ु ाय यक्खी जाती है ॥१॥ सुबद्रकभ ् वर्स्ताय एर्ॊ ऊॉचाई के प्रभाण से बर्न के बागों की चचाव कय यहा हॉ । तेयह हस्त के व्मास को फयाफय-फयाफय आठ बागों भें फाॉटना चादहमे । एक बाग से कट का वर्स्ताय, दो बाग से शारा का वर्स्ताय एर्ॊ एक बाग से ऩञ्जय का

वर्स्ताय कयना चादहमे । उसके ऊऩय (दसये तर) को बी आठ बागों भें फाॉटना चादहमे । सबाकऺ, शारा एर्ॊ ऩञ्जय के ऊऩय ऩर्वर्र्णवत (कटादद) का तनभावण कयना चादहमे ॥२-४॥ ऊऩयी बाग (तीसयी भन्ञ्जर) के छ् बाग कयने चादहमे । एक बाग से कट का वर्स्ताय, दो बाग से कोष्ठक की रम्फाई एर्ॊ आधे बाग से नीड़ का भाऩ कयना चादहमे ॥५॥ उसके ऊऩय (के तर) के तीन बाग कयना चादहमे । भध्म का बाग एक अॊश (आधा) यखना चादहमे एर्ॊ तनगवभ का भाऩ एक दण्ड यखना चादहमे । फुविभान स्थऩतत को ऊॉचाई के उधतारीस बाग कयने चादहमे ॥६॥

(प्रथभ तर भें ) ढ़ाई बाग से अधधष्ठान, ऩाॉच बाग से स्तम्ब की रम्फाई (प्रथभ तर के बर्न की ऊॉचाई), (द्वर्तीम तर भें ) इसके आधे भाऩ की प्रस्तय की ऊॉचाई एर्ॊ ऩौने ऩाॉच बाग से (तर की) स्तम्ब की ऊॉचाई यखनी चादहमे । (तीसये तर भें ) सर्ा दो फाग से भञ्चक औय उसके दग ु ुने प्रभाण से जङ्घा होनी चादहमे । इसके ऊऩय (चौथे तर भें ) दो बाग से प्रस्तय एर्ॊ सर्ा चाय बाग से स्तम्ब की ऊॉचाई यखनी चादहमे । इसके ऊऩय सर्ा एक बाग से

प्रस्तय, एक बाग से र्ेददका, गर की ऊॉचाई दो बाग से, सशखय सर्ा चाय बाग से तथा शेष बाग से सशखा का प्रभाण यखना चादहमे । ऩया बर्न बतर से चौकोय होता है ॥७-१०॥

इस बर्न भें फायह सौष्ठी, फायह कोष्ठॊ एर्ॊ ऩञ्जय सशखय ऩय चाय नासी होनी चादहमे एर्ॊ अलऩनाससमों से अरङ् कृत होना चादहमे । तर के नीचे (अधधष्ठान) ऩर्वर्र्णवत तनमभ के अनुसाय होना चादहमे तथा स्तम्ब, अरङ्कयण एर्ॊ

तोयण तनसभवत होना चादहमे । सबी अरङ्कयणों से मुक्त इस बर्न (दे र्ारम) की सॊऻा 'सुबद्रक' होती है । ॥११-१२॥ श्रीवििार न्जस दे र्ारम के (कोणों ऩय तथा भध्म भें ) कट एर्ॊ कोष्ठ आदद हो तथा फीच-फीच भें बर्न की छत गोराई सरमे हो, कोणकोष्ठ बी भण्डराकाय हो, गबवगह ृ बर्न के वर्स्ताय के आधे ऩय (भध्म) न्स्थत हो, बीतय की सबन्त्त की

भोटाई शेष का तत ृ ीमाॊश हो तथा मही भाऩ फाहय की सबन्त्त (अधधाय हाय) का होना चादहमे । इस बर्न के अनुरूऩ वर्वर्ध प्रकाय के अधधष्ठान स्तम्ब एर्ॊ र्ेदद आदद होते है एर्ॊ इस दे र्ारम की सॊऻा 'श्रीवर्शार' होती है ॥१३-१४॥ बद्रकोष्ठ बर्न के ऩधद्रह हाथ के व्मास को नौ बागों भें फाॉटना चादहमे । तीन बाग से गबवगह की चौड़ाई यखनी चादहमे । बीतयी सबन्त्त की भोटाई के सरमे एक बाग एर्ॊ चायो ओय असरधद की चौड़ाई के सरमे एक बाग तथा खण्डहम्मवक के सरमे एक बाग यखना चादहमे ॥१५-१६॥ सबा, शारा एर्ॊ नीड की चौड़ाई एक-एक अॊश से यखनी चादहमे । इनकी रम्फाई चौड़ाई की तीन गन ु ी होनी चादहमे । इनकी चौड़ाई के भाऩ से इनका तनगवभ तनसभवत कयना चादहमे । शारा के भध्म बाग भें भहानासी तनसभवत होनी

चादहमे, न्जसकी चौड़ाइ एर्ॊ गहयाई एक बाग भाऩ की हो । सबा, कोष्ठक एर्ॊ नीडों के भध्म आधे बाग से हायक (हायाभागव) तनसभवत होना चादहमे ॥१७-१८॥ ऊऩयी (दसये ) तर की चौड़ाई को आठ बागों भें फाॉटना चादहमे । एक बाग से कट एर्ॊ एक बाग से कोष्ठक यखना चादहमे । कोष्ठक की रम्फाई वर्स्ताय की दग ु ुनी होनी चादहमे । कट एर्ॊ शारा के भध्म भें एक बाग से नीड की यचना कयनी चादहमे । उसके ऊऩय (तत ृ ीम फर) के छ् बाग कयने चादहमे एर्ॊ कट तथा कोष्ठक का तनभावण एक बाग से कयना चादहमे ॥१९-२०॥

(कट एर्ॊ कोष्ठक की) रम्फाई चौड़ाई की दग ु ुनी होनी चादहमे । इनके भध्म भें आधे बाग से ऩञ्जय होना चादहमे ।

इसके ऊऩयी बाग के चाय बाग होने चादहमे । भध्म बाग भें एक दण्ड का तनगवभ होना चादहमे । कणवकट अष्टकोण हों एर्ॊ कोष्ठक क्रकयी (ददशाओॊ भें कोण) हो । भहासशखय अष्टकोण हो तथा आठ नाससमों से अरङ् कृत हो । कट, कोष्ठक एर्ॊ नीड की सॊख्मा, वर्स्ताय एर्ॊ ऊॉचाई आदद के भाऩ ऩर्ोक्त यीतत से होने चादहमे । चाय तर र्ारा मह दे र्रम 'बद्रकोष्ठ' सॊऻक होता है ॥२१-२३॥ सरह हाथ के व्मास को दश बागों भें फाॉटना चादहमे । चाय बाग से नारीगह ृ (गबवगह ृ ), एक बाग से अधधारयका

(बीतयी सबन्त्त), एक बाग से असरधद एर्ॊ एक बाग से चायो ओय खण्ड-हम्मवक का तनभावण कयना चादहमे ॥२४-२५॥ कट, कोष्ठ एर्ॊ नीड की यचना एक-एक बाग से कयनी चादहमे । कोष्ठ की रम्फाई चौड़ाई की दग ु न ु ी हो एर्ॊ शेष बाग से ऩञ्जयमुक्त हाया का तनभावण कयना चादहमे ॥२६॥

इसके ऊऩय (दसये तर) जरस्थान को छोड़ कय आठ बाग कयना चादहमे । एक बाग से कट की चौड़ाई यखनी चादहमे । कोष्ठक की रम्फाई चौड़ाई की दग ु ुनी होनी चादहमे । हाया के भध्म भें एक बाग से रम्फ ऩञ्जय (रटकती हुई सजार्टी आकृतत) होनी चादहमे । इसके ऊऩय (तीसये तर ऩय) छ् बाग कयने चादहमे । एक बाग से सौन्ष्ठक का वर्स्ताय कयना चादहमे ॥२७-२८॥

कोष्ठक की रम्फा (चौड़ाई की) दग ु ुनी होनी चादहमे । हायाभागव भें ऺुद्र-ऩञ्जय होना चादहमे । उसके ऊऩय (चतुथव तर ऩय) के तीन बाग होने चादहमे । भध्म बाग भें एक दण्ड का तनगवभ तनसभवत होना चादहमे ॥२९॥

इस बर्न (दे र्ारम) का अधधष्ठान चौकोय होना चादहमे एर्ॊ गर तथा भस्तक आठ कोण का होना चादहमे । फायह कोष्ठक, फायह सौन्ष्ठक एर्ॊ आठ ऩञ्जय होना चादहमे । आठ रम्फऩञ्जय एर्ॊ सोरह ऺुद्रनीड होना चादहमे । गर ऩय आठ नासी हों एर्ॊ कोष्ठक कुछ ऊॉचे हो । वर्सबधन प्रकाय के भसयक, स्तम्ब, र्ेदी, जारक (झयोखा, योशनदान) एर्ॊ

तोयण हों । नाना प्रकाय के अरङ्कयणों एर्ॊ वर्सबधन प्रकाय के अङ्कनों से मुक्त हो । अधधष्ठान उऩऩीठ से मुक्त

हो मा केर्र भसयक हो । स्र्न्स्तक की आकृतत तनसभवत हो एर्ॊ नाससकाओॊ से सस ु न्ज्जत हो । ऊॉचे बाग की सॊयचना ऩर्व-र्र्णवत वर्धध से हो । इस दे र्ारम को 'जमार्ह' सॊऻा दी गई है ॥३०-३३॥ बद्रकूट उधनीस हाथ की चौड़ाई को दश बागों भें फाॉटा जाता है । चाय बाग से गबवगह ृ , एक बाग से सबन्त्त की भोटाई, एक

बाग से अधधाय, एक बाग स चायो ओय खण्डहम्मवक, एक-एक बाग से कट, कोष्ठक एर्ॊ नीड की चौड़ाई यखनी चादहमे । कोष्ठक की रम्फाई चौड़ाई की दग ु न ु ी होनी चादहमे तथा एक बाग से हाया-भागव की यचना होनी चादहमे ॥३४-३६॥ कऩोतऩञ्जय सौन्ष्ठक का व्मस भध्म भें ऩाॉच भें से दो बाग से तनसभवत होना चादहमे । एक बाग से वर्तनष्क्राधत का तनभावण होना चादहमे, जो दो स्तम्बों से मुक्त हो । मह उऩऩीठ, अधधष्ठान, भञ्च, वर्तददव क, कधधय एर्ॊ सशयोबाग से मुक्त हो तथा सबी अरङ्कयणों से मुक्त हो । ऩादक ु से उत्तय के भध्म नौ बाग से उऩऩीठ, दो बाग ऊॉचा भसयक, उनका

दग ु न ु ा ऊॉचा स्तम्ब, आधे बाग से प्रस्तय की ऊॉचाई, आधे बाग से र्ेददका तथा उत्तय से प्रायम्ब कय कऩोत तक गर का तनभावण कयना चादहमे ॥३७-४०॥

ऩञ्जय की आकृतत से मक् ु त एर्ॊकऩोत से वर्तनगवत (कऩोतऩञ्जय) होता है । न्जस प्रकाय अच्छा रगे एर्ॊ ठीक हो, उस प्रकाय शन्क्त-ध्र्ज से मुक्त होना चादहमे । मह कऩोतऩञ्जय सबी प्रकाय के दे र्ारम के अनुकर होता है । इसे हाया के मा शारा के भध्म भें तनसभवत कयना चादहमे ॥४१-४२॥ ऩन ु ् बद्रकट कट, कोष्ठक एर्ॊ नीड अधतय-प्रस्तय से मुक्त होते है । इसके ऊऩय जर-स्थर को छोड़ कय आठ बाग फचते है ।

एक बाग से सौन्ष्ठक का तनभावण होना चादहमे । कोष्ठक की रम्फाई (चौड़ाई की)दग ु न ु ी होनी चादहमे । उनके भध्म भें ऩञ्जय होना चादहमे । उसके ऊऩय छ् बाग कयना चादहमे । सौन्ष्ठक एर्ॊ कोष्ठ ऩहरे की बाॉतत होने चादहमे । इसके ऊऩयी बाग भें जो मोजना 'वर्जम' के सरमे कही गमी है , र्ही महाॉ बी होनी चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद

सबी अङ्गों की सॊख्मा ऩर्व-र्र्णवत होनी चादहमे । भहानीड की सॊख्मा सोरह होनी चादहमे । इस दे र्ारम की सॊऻा 'बद्रकट' होती है ॥४३-४५॥ भनोहय मदद बर्न के अरङ्कयण सबधन हों एर्ॊ शाराओॊ के भध्म भें बद्रक हों, ग्रीर्ा एर्ॊ सशयोबाग गोराई सरमे हों तो इस दे र्ारम का नाभ 'भनोहय' होता है ॥४६॥ आर्न्धतकभ ् मदद अरङ्कयण सबधन हों, कधधय एर्ॊ सशयोबाग चौकोय हो, वर्सबधन प्रकाय के भसयक, स्तम्ब एर्ॊ र्ेददका आदद से

अरङ्कृत हो तो इस दे र्ारम की सॊऻा 'आर्न्धतक' होती है । मह बर्न सशर्-भन्धदय के सरमे उऩमुक्त होता है ॥४७४८॥

सुखािह मदद वर्स्ताय इक्कीस हाथ हो तो उसके दश बाग कयने चादहमे । चाय बाग से नारी (गबवगह ृ ), एक बाग से चायो

ओय बीतयी सबन्त्त की भोटाई, एक बाग से अधधाय, उसके चायो ओय एक बाग से हायाभागव का वर्स्ताय तथा एक बाग से कट, नीड एर्ॊ कोष्ठक का वर्स्ताय यखना चादहमे । शारा की रम्फाई चौड़ाई की दग ु ुनी होनी चादहमे । हायाभागव की चौड़ाई एक बाग से यखनी चादहमे । र्ातामन (र्खड़की, झयोखा) एर्ॊ भकय-तोयण से सज्जा कयनी चादहमे ।

इसके ऊऩयी बाग भें जर-बाग को छोड़ कय आठ बाग कयना चादहमे । कट, नीड एर्ॊ कोष्ठक का वर्स्ताय एक बाग से यखना चादहमे ॥४९-५०॥ शारा की रम्फाई चौड़ाई की दग ु ुनी होती है । उसके ऊऩय (के तर के) छ् बाग होते है । सौष्ठी की चौड़ाई एक

बाग से एर्ॊ उसकी रम्फाई उसके दग ु न ु ी होती है । कोष्ठ एर्ॊ नीड की चौड़ाई आधे बाग से होनी चादहमे । उसके ऊऩय के (तर के) चाय बाग होने चादहमे एर्ॊ दो बाग से भध्म-बद्र की यचना कयनी चादहमे ॥५१॥

दण्ड-प्रभाण से तनगवभ होना चादहमे । इसके ऊऩय बद्रनीड तनसभवत होना चादहमे । गर एर्ॊ नाससक ढ़ाई दण्ड चौड़ा होना चादहमे । कधधय, वर्तददव क एर्ॊ भस्तक गोराई सरमे होना चादहमे । आठ अधवनाससक एर्ॊ आठ अलऩनाससक होना चादहमे ॥५२॥ प्रथभ तर भें कट, नीड एर्ॊ कोष्ठक भध्मभ भञ्च (प्रस्तय) से मक् ु त एर्ॊ ऊॉचे हो । इसके ऊऩय शारा (भध्म कोष्ठ)

उधनत हो, इसके ऊऩय ऊॉचा ऊध्र्व-कट हो, जो गोराई सरमे हो । भध्म भें शीषव-बाग आठ ऩट्टो र्ारा हो । प्रथभ तर भें कट का सशखय चौकोय हो एर्ॊ र्हाॉ ऊऩय वर्ना ककसी खुरे स्थान के अलऩ-नास होना चादहमे । वर्सबधन प्रकाय के भसयक, स्तम्ब एर्ॊ अरङ्कयणों से मुक्त इस दे र्ारम की सॊऻा 'सुखार्ह' होती है ॥५३-५४॥

ऩाॉच तर के दे र्ारम का वर्धान - ऩाॉच तर के दे र्ारम की ऊॉचाई को अड़तारीस फयाफय बागों भें फाॉटना चादहमे । ऩौने तीन बाग से कुदट्टभ, साढ़े ऩाॉच बाग से चयण (स्तम्ब, द्वर्तीम तर की ऊॉचाई), ढ़ाई बाग से भञ्च, सर्ा ऩाॉच बाग से ऩादक (स्तम्ब, द्वर्तीम तर की ऊॉचाई) ढाई बाग से प्रस्तय, ऩाॉच बाग से तसरऩ (तत ृ ीम तर की ऊॉचाई),

सर्ा दो बाग से भञ्च, ऩौने ऩाॉच बाग से अड़ङि (स्तम्ब, चतुथव तर की ऊॉचाई), दो बाग से प्रस्तय, सर्ा चाय बाग से

तसरऩ (स्तम्ब, ऩाॉचर्े तर की ऊॉचाई) ऩौने दो बाग से भञ्च, एक बाग से र्ेददका, दो बाग से कधधय, सर्ा चाय बाग से सशखय एर्ॊ दो बाग से कुम्ब की यचना कयनी चादहमे । ऩाॉच तर के दे र्ारम की चौड़ाई को नौ, दश मा ग्मायह फयाफय बागों भे फाॉटना चादहमे । ॥५५-५७॥ षडा्मैकादिबूर्ममन्तविधान (ऩर्वर्र्णवत ऩाॉच तर से ऊऩय तर भें ) तनचरे तर से ऊऩय ऊॉचाई भें छ् बाग से अड़ङि (स्तम्ब, तर की ऊॉचाई) एर्ॊ तीन बाग से तर (अधधष्ठान) तनसभवत कयना चादहमे । इसकी चौड़ाई ऩर्वर्र्णवत तनमभ के अनस ु ाय होनी चादहमे ॥५८॥

(सातर्ें तर के सरमे) तनचरे तर के ऊऩय ऊॉचाई भें साढ़े छ् बाग से स्तम्ब एर्ॊ भसयक सर्ा तीन बाग से तनसभवत कयना चादहमे तथा वर्स्ताय को ग्मायह मा फायह बाग से यखना चादहमे । सात तर र्ारा मह वर्भान प्रत्मेक स्थान एर्ॊ अर्सय के सरमे उऩमुक्त कयना होता है ॥५९॥ उसके ऊऩयी तर भें सात बाग से स्तम्ब एर्ॊ साढ़े तीन बाग से कुदट्टभ यखना चादहमे । इसकी चौड़ाई को दश,

ग्मायह, फायह मा तेयह बाग भें फाॉटना चादहमे । आठ तर के भन्धदय के तनभावण के वर्षम भें भुतनमों का वर्चाय इस प्रकाय र्र्णवत है । ॥६०-६१॥

उसके ऊऩयी तर (नौ तर) भें तनचरे तर से ऊऩय साढ़े सात बाग से स्तम्ब एर्ॊ ऩौने चाय बाग से तर (अधधष्ठान) फनाना चादहमे । तर का वर्स्ताय ऩर्वर्त ् होना चादहमे । इस प्रकाय नौ तर का भन्धदय तनसभवत होता है । अफ दशर्ें तर का र्णवन ककमा जा यहा है ॥६२॥

(दसर्ें तर के सरमे) तनचरे तर के ऊऩय आठ बाग से ऩाद (स्तम्ब, तर की ऊॉचाई) एर्ॊ चाय बाग से भसयक होता है । चौड़ाई ऩर्ोक्त यीतत से मा चौदह बाग भें फाॉटनी चादहमे ॥६३॥ इसके ऊऩयी तर (ग्मायह तर) भें तनचरे तर के ऊऩय साढ़े आठ बाग से स्तम्ब एर्ॊ सर्ा चाय से भसयक तनसभवत कयना चादहमे । चौड़ाई ऩर्वर्र्णवत अथर्ा ऩधद्रह, सोरह मा सरह बागों भें फाॉटनी चादहमे । इस प्रकाय ग्मायह तर का दे र्ारम तनसभवत होता है । अफ फायह तर के दे र्ारम का र्णवन ककमा जा यहा है ॥६४-६५॥ ्िादितरविधान फायह तर के दे र्ारम का वर्धान - (फायह तर के दे र्ारम के सरमे) तनचरे तर (की बसभ) के नौ बाग कयने चादहमे । साढ़े चाय बाग से भसयक होने चादहमे । चौड़ाई को सोरह से चौफीस बागों भें फाॉटना चादहमे । गबवगह ृ से रेकय बर्न की सीभा तक क्रभश् गहृ वऩन्ण्द (सबन्त्त), असरधद्र एर्ॊ हायाभागव को उनके बाग के अनुसाय यखना चादहमे । गबवगह ृ दो, तीन, चाय मा छ् बाग से मा ऩर्ोक्त बाग से तनसभवत कयना चादहमे ॥६६-६८॥

असरधद्र की सॊयचना एक मा डेढ़ बाग से कयनी चादहमे एर्ॊ शेष बाग से सबन्त्त तनसभवत होनी चादहमे । कुछ

वर्द्र्ानों के अनुसाय फायहर्ें तर के सत्ताईस बाग कयने चादहमे । छ् बाग से सबन्त्त एर्ॊ ऩाॉच बाग से असरधद्र तनसभवत होना चादहमे । फाहयी बाग भें कटादद से अरङ्कयण होना चादहमे । र्हाॉ कट, कोष्ठ, नीड, ऺुद्र-शार एर्ॊ गजशुण्ड तनसभवत होना चादहमे ॥६९-७०॥

इन अरङ्कयणों को इस प्रकाय तनसभवत कयना चादहमे , न्जससे र्े सध ु दय रगें । इधहे सभ-हस्तप्रभाण से मा वर्षभहस्तप्रभाण से तनसभवत कयना चादहमे ॥७१॥

मदद प्रभाण सभ सॊख्मा भें हों तो कट का व्मास दो बाग से एर्ॊ चौड़ाई उसके दग ु न ु ी यखनी चादहमे । अथर्ा शारा (कट) की चौड़ाई चाय बाग से यखनी चादहमे । सभ सॊख्मा का भाऩ होने ऩय सबी बागों का भाऩ सभ सॊख्मा भें

होना चादहमे । श्रेष्ठ भुतनमों ने वर्सबधन बागों एर्ॊ अरङ्कयणो का र्णवन ककमा है । फुविभान सशलऩी को उन स्थानों ऩय उसी वर्धध से तनभावण कयना चादहमे ॥७२-७३॥

खण्डहम्मव भें मदद दे र्ारम चाय तर का हो तो प्रथभ तर की ऊॉचाई ऩय ग्रास (तनभावण का एक वर्सशष्ट अङ्ग) होना चादहमे । मदद बर्न ऩाॉच, छ् मा सात तर का हो तो दसये तर की ऊॉचाई ऩय; मदद बर्न आठ, नौ मा दश तर का हो तो तीसये तर ऩय; मदद ग्मायह तर का बर्न हो तो ग्रास चौथे तर ऩय तथा फायह तर र्ारे बर्न भें ऩाॉचर्ें तर ऩय तनसभवत होना चादहमे ॥७४-७५॥ कूटकोष्ठादद जो व्मन्क्त प्रथभ तर से कट-कोष्ठ आदद का उधचत यीतत से तनभावण कयना चाहता है , उसे प्रत्मेक तर का वर्बाग तनमभानुसाय कयना चादहमे । प्रत्मेक ऊऩयी तर भें कट-कोष्ठ आदद अङ्गों को ऩहरे न्जस प्रकाय कहा गमा है , उसी ढॊ ग से तनसभवत कयना चादहमे । कट, कोष्ठ एर्ॊ नीड आदद बेदों का र्णवन ऩहरे ककमा जा चुका है ॥७६-७७॥

(कटादद) बेदों का न्जस बर्न भें न्जस प्रकाय प्रमोग कयना चादहमे , उसका र्णवन ऩहरे ककमा जा चुका है । इनका

प्रमोग दसये तर से प्रायम्ब कय फायह तरऩमवधत कयना चादहमे । बर्न के कणव (कोने) ऩय कट, भध्म बाग भें कोष्ठ एर्ॊ कट तथा कोष्ठ के भध्म भें ऩञ्जय का तनभावण कयना चादहमे । उनके तनगवभ का तनभावण भानसर से कयना चादहमे ॥७८-७९॥ तनगवभों का भाऩ (उस तर) की चौड़ाई का आधा अथर्ा उसका बी आधा (चौड़ाई का चौथाई बाग) यखना चादहमे मा उनका भाऩ एक, दो अथर्ा तीन दण्ड होना चदहमे । इसके बीतयी बाग केभाऩ के सरमे भानसर का प्रमोग नही

कयना चादहमे । ऋजस ु र भाऩ के अधत तक होता है । इसका फीच भें बङ्ग होना वर्ऩन्त्तकायक होता है ; इससरमे कट आदद सबी अङ्गों का तनभावण भानसर से हटकय कयना चादहमे ॥८०-८१॥

कणव ऩय तनसभवत कट का शीषव चौकोय, अष्टकोण, षोडशकोण अथर्ा गोराकाय एर्ॊ स्तवऩका से मक् ु त होता है । इसके भध्म बाग भें नासस एर्ॊ अधवकोदट तनसभवत होता है । मह भुखऩदट्टका एर्ॊ शन्क्तध्र्ज से मुक्त होता है ॥८२-८३॥

अनेक स्तवऩकाओॊ से मुक्त कोष्ठ भध्म भें होना चादहमे । इसका वऩछरा बाग हाथी के ऩीठ की सभान एर्ॊ अग्र बाग शारा के आकाय का होना चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ भध्मऩञ्जय होना चादहमे । इसका भख ु ऩाश्र्व भें होना चादहमे एर्ॊ गज-शुण्ड से सुसन्ज्जत होना चादहमे ॥८४-८५॥

'जातत' (बर्न का प्रकायवर्शेष) का र्णवन इस प्रकाय ककमा गमा । (छधदबर्न भें ) बर्न के कणव (कोणों) ऩय कोष्ठ, भध्म बाग भें कट तथा इन दोनों के भध्म भें ऺद्रकोष्ठ आदद तनसभवत हो तो उसे 'छधद' कहा जाता है । (वर्कलऩ बर्न भें ) कट मा कोष्ठ अधतय-प्रस्तय से मुक्त हो, ऊॉचे मा नीचे हों तो उस बर्न को 'वर्कलऩ' कहा जाता है ।

'आबास' बर्न भें इन दोनों व्मर्स्थाओॊ के सभधश्रत रूऩ का प्रमोग ककमा जाता है । मह छोटे , भध्मभ एर्ॊ उत्तभ

श्रेणी के बर्नों के अनक ु र होता है । 'जातत' आदद बेदों से मक् ु त दे र्ारम सम्ऩन्त्त प्रदान कयते है । इसके वर्ऩयीत यीतत से तनसभवत दे र्ारम वर्नाश के कायण फनते है ॥८९॥

(कट आदद के) षटकोण, अष्टकोण, र्त्ृ ताकाय, द्व्मस्रर्त्ृ ताकय (दो कोण एर्ॊ अगरे ससय ऩय गोराई) होने ऩय उनके

व्मास के क्रभश् ऩाॉच, आठ, नौ एर्ॊ दश बाग कयने चादहमे एर्ॊ एक बाग से उसके फाहय उसी की आकृतत का घेया फनाना चादहमे । महाॉ कोदट के छे द के सरमे स्थान यक्खा जाता है । चौकोय के घेये को इस प्रकाय यखना चादहमे , न्जससे भाऩ सभ फना यहे । उनकी र्तवनी से उनका (कटादद का) भान ऩणव होता है । मदद बर्न का भान ऩणव होताहै तो सॊसाय सम्ऩणवता को प्राप्त होता है (अथावत ् गह ृ कताव को सभवृ ि एर्ॊ ऩणवता इस सॊसाय भें प्राप्त होती है ) ॥९०-९२॥

इससरमे फुविभान व्मन्क्त को प्रत्मेक अङ्ग का तनभावण अत्मधत सार्धानीऩर्वक कयना चादहमे । इस प्रकाय भन्धदयों

का रऺण सॊऺेऩ भें र्र्णवत ककमा गमा । एक तर से रेकय फायह तर तक के बर्न की ऊॉचाई एर्ॊ चौड़ाई हस्त-भान से र्र्णवत की गई है । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद अङ्गों के बेदों का क्रभानस ु ाय र्णवन ककमा गमा । दे र्ों के वप्रम एर्ॊ

ऩवर्र वर्भानों एर्ॊ उअनेक वर्सबधन बेदों का दोषहीन र्णवन न्जस प्रकाय प्राचीन ऋवषमों ने ककमा, न्जसका प्रथभत् ब्रह्भा ने उऩदे श ददमा, उसे सॊक्षऺप्त कयके भम ने महाॉ प्रस्तुत ककमा ॥९३-९४॥

अध्माम २३ तत्र प्राकायविधान चाय दीर्ायी एर्ॊ सहामक दे र्ऩरयर्ाय के स्थान का वर्धान - फुविभान ऋवषमों ने दे र्ारम की यऺा के सरमे, शोबा के सरमे एर्ॊ ऩरयर्ाय (सहामक दे र्, सेर्कर्गव) के सरमे प्राकाय का र्णवन न्जस प्रकाय ककमा गमा है , उसका र्णवन अफ ककमा जा यहा है ॥१॥ प्राकायभान प्राकाय का भान - प्रधान दे र्ारम की चौड़ाई को चाय ऩद भें फाॉटना चादहमे । प्रथभ सार (प्राकाय) की सॊऻा 'भहाऩीठ' है एर्ॊ इसभें सोरह ऩद होते है । द्वर्तीम सार की सॊऻा 'भण्डक' (चौसठ ऩद), भध्म सार (तत ृ ीम) की सॊऻा

"बद्रभहासन' (एक सौ छत्तीस ऩद), चतुथव 'सप्र ु तीकाधत' (चाय सौ चौयासी ऩद) एर्ॊ ऩाॉचर्े की सॊऻा 'इधद्रकाधत' (एक हजाय चौफीस ऩद) होती है (मे ऩाॉच प्रकाय होते है ) । ॥२-३॥

(उऩमुक् व त प्राकायबेद) मुग्भ सॊख्मा र्ारे ऩदों के अनुसाय र्र्णवत है । अफ असभ सॊख्मा के अनुसाय (प्राकाय) र्णवन

ककमा जा यहा है । वर्भान (दे र्ारम) का भार एक ऩद होता है । प्रथभ सार 'ऩीठ' (नौ ऩद), दस ु या 'स्थन्ण्डर' (उनचास ऩद), भध्म सार (तत ृ ीम) 'उबमचन्ण्डत' (एक सौ उनहत्तय ऩद) सॊऻक, चौथ 'सुसॊदहत' (चाय सौ इकतारीस) सॊऻक एर्ॊ ऩाॉचर्ाॉ 'ईशकाधत' (नौ सौ इकसठ ऩद) सॊऻक होता है ॥४-५॥

चतुष्कोण ऺेर के अग्र बाग की रम्फाई का र्णवन ऊऩय ककमा जा चुका है । मह रम्फाई (भन्धदय के चौड़ाई की)

क्रभश् सर्ा, डेढ़, तीन, चौथाई एर्ॊ दग ु ुनी होती है । प्राकायों के अग्र बाग की रम्फाई दग ु ुनी, ढाई गुनी, तीन गुनी मा चाय गुनी कही गई है ॥६-७॥

छोटे भन्धदयों भें बी अत्मधत छोटे भन्धदय की चौड़ाई के डेढ़ फाग की दयी ऩय (प्रथभ प्राकाय) 'अधतभवण्डर', उसके आगे उतनी ही दयी तीन हाथ ऩय दसया प्राकाय, उससे ऩाॉच हाथ दयी ऩय तीसया प्राकाय, उससे सात हाथ की दयी ऩय चौथा प्राकाय एर्ॊ नौ हाथ की दयी ऩय ऩाॉचर्ाॉ प्राकाय होना चादहमे ॥८-९॥ (छोटे भन्धदय के) भध्मभ कोदट के दे र्ारम की चौड़ाई के आधे भाऩ की दयी ऩय अधतयभण्डर की यचना की जाती है । दसया प्राकाय ऩाॉच हाथ की दयी ऩय होता है । तीसया सार (प्राकाय) सात हाथ की दयी ऩय, चतुथव सार नौ हाथ की दयु ी ऩय एर्ॊ ऩाॉचर्ाॉ ग्मायह हाथ की दयी ऩय होना चादहमे ॥१०-१२॥

(छोटे दे र्ारमों के) उत्तभ श्रेणी के दे र्ारमों का प्रथभ सार उसकी चौड़ाई के आधे भाऩ की दयी ऩय होना चादहमे । दसया सार सात हाथ की दयु ी ऩय, तीसया नौ हाथ की दयी ऩय, चौथा ग्मायह हाथ कक दयी ऩय एर्ॊ ऩाॉचर्ाॉ तेयह हाथ

की दयी ऩय होना चादहमे । इस प्रकाय अत्मधत छोटे , ऺुद्र-भध्मभ एर्ॊ ऺुद्र उत्तभ कोदट के दे र्ारम के सारों (प्राकायों) का र्णवन ककमा गमा ॥१३-१५॥ फुविभान व्मन्क्त को इस वर्धध से मा ऩर्ोक्त क्रभ से चायो ओय प्राकाय की यचना कयनी चादहमे । इसके भुखबाग

की रम्फाई ऩर्व-र्र्णवत यखनी चादहमे । भाऩ के ऻाता सबन्त्त के बीतय से भाऩ रेते है । कुछ वर्द्र्ानों के अनुसाय सबन्त्त के भध्म से एर्ॊ कुछ के अनस ु ाय सबन्त्त के फाहय से भाऩ रेना चादहमे ॥१६-१७॥ प्राकायमबल्त्त अधतभवण्डर की सबन्त्त का वर्ष्कम्ब (भोटाई) डेढ़ हाथ होना चादहमे । इसके आगे के प्राकायों के वर्ष्कम्बो का भाऩ तीन-तीन अङ्गुर फढ़ाते हुमे दो हाथ तक क्रभानुसाय रे जाना चादहमे । ऩाॉचो सारो (प्राकायों) का वर्ष्कम्ब इस प्रकाय ग्रहण कयना चादहमे । उनके वर्ष्कम्ब-भान से उनकी ऊॉचाई तीन गन ु ी मा चाय गुनी अधधक होनी चादहमे । अग्र बाग (ऊऩयी बाग) का वर्स्ताय (भर से) आठ बाग कभ होना चादहमे ॥१८-१९॥

प्राकाय की ऊॉचाई उत्तय के अधत तक मा (स्तम्ब के) कुम्ब मा भन्ण्ड तक यखनी चादहमे । प्राकाय को भसयक से मुक्त एर्ॊ खण्डहम्मव से सुसन्ज्जत होना चादहमे । मह सबन्त्त सीधी हो अथर्ा फुद्फुद (गोर सजार्टी बफधद)ु मा अधवचधद्र उसके शीषवबाग ऩय सस ु न्ज्जत होना चादहमे ॥२०-२१॥

(छोटे दे र्ारमो के) सफसे छोटे भन्धदय के सारों की सबन्त्त (प्राकायों की भोटाई) हस्त-प्रभाण से होती है । इसे डेढ़ हाथ से प्रायम्ब होकय ऩर्व-र्र्णवत यीतत (तीन-तीन अङ्गर ु ) से क्रभानस ु ाय फढ़ाना चादहमे ॥२२॥ प्राकाय-शीषव उत्तय, र्ाजन एर्ॊ छर से मुक्त होता है । इसकी ऊॉचाई सबन्त्त के चौड़ाई के फयाफय, सर्ा बाग मा डेढ़

बाग अधधक होनी चादहमे । ऊॉचाई को ग्मायह बागों भें फाॉटना चादहमे । तीन बाग से उत्तय, तीन बाग से र्ाजन, दो बाग से अब्ज एर्ॊ तीन बाग से ऺेऩण की क्रभानस ु ाय मोजना कयनी चादहमे । सबन्त्त (का फाहयी बाग) सीधा अथर्ा खण्डहम्मव से मुक्त हो सकता है । मह अधधष्ठान से प्रायम्ब होकय (ऊॉचाई ऩय) तनगवभ से मुक्त होता है ॥२३-२५॥ आित ृ भण्डऩ सबन्त्त के बीतयी बाग भें एक, दो मा तीन तर से मुक्त आर्त ृ भण्डऩ का तनभावण कयना चादहमे । सबन्त्त फाहय से

सीधी होती है । तनचरे तर के तीन बाग भें से दो बाग के फयाफय ऊऩयी तर का भान यखना चादहमे । अथर्ा मह

चतुथांश मा आठर्ाॉ बाग हीन हो सकता है । मा इसकी ऊॉचाई फाहयी सबन्त्त के फयाफय हो सकती है । मह भासरका की आकृतत र्ारी मा भहार्ाय (फड़ा फयाभदा) से मुक्त होती है ॥२६-२७॥

फाह्म सबन्त्त की सफसे अधधक ऊॉचाई प्रधान दे र्ारम की तनचरी बसभ के स्थरबाग से उत्तय ऩमवधत, प्रस्तय तक, खण्डहम्मव के उत्तय तक अथर्ा सशखय ऩमवधत हो सकती है ॥२८-२९॥ दो मा एक तरमुक्त भण्डऩ (दे र्ारम) के चाओ ओय हो सकता है । मह अधधष्ठान से मुक्त, उसके फयाफय ऊॉचा, आठ बाग कभ मा तीन चौथाई ऊॉचा ओ सकता है । भण्डऩ के स्तम्ब (अधधष्ठान से) दग ु न ु े ऊॉचे मा (दग ु न ु े से) आठ मा छ् बाग कभ ऊॉचे हो सकते है ॥३०-३१॥ सारिीषाारङ्काय प्राकाय के शीषवबाग के अरङ्कयण - सार (प्राकाय) के शीषवबाग ऩय र्ष ृ ब मा फतों का स्र्रूऩ अङ्ककत कयना चादहमे । भर दे र्-बर्न का जधभतर (अधधष्ठान) सार के जधभ से एक हाथ ऊॉचा यखना चादहमे ॥३२॥ अथधष्ठानोत्सेध अधधष्ठान की ऊॉचाई - ऺुद्र दे र्ारम भें शेष सारों भे प्रत्मेक सार छ्-छ् अङ्गुर कभ होता जाता है । भध्मभ

दे र्ारम भें अट्ठायह अङ्गुर का अधतय होता है । प्रत्मेक सार भें (प्रथभ से) ऩाॉचर्े तक चाय-चाय अङ्गुर कभ होता जाता है । स्थऩतत को इसी वर्धध से सार-मोजना कयनी चादहमे ॥३३-३४॥ ऩरयिायारमविधान दे र्-ऩरयर्ाय के बर्न का वर्धान - ऩरयर्ाय दे र्ारम (प्रधान दे र्-भततव से ऩथ ृ क् दे र्-ऩरयर्ाय का भन्धदय, जो भन्धदय

ऩरयसय भें फने होते है ) के गबवगह ृ का भान प्रधान दे र्ारम के वर्स्ताय का आधा होता है । इस तीसये बाग, आधा,

तीन चौथाई के फयाफय बी यक्खा जाता है । इस बर्न का वर्स्ताय तीन, चाय, ऩाॉच, छ् मा सात हात यखना चादहमे ॥३५॥ शास्र के ऻाताओॊ के अनुसाय आथ, फायह, सोरह मा फत्तीस ऩरयर्ाय-दे र्ता होते है । ऩरयर्ाय-दे र्ों की भततव की ऊॉचाई

तनमभानुसाय होनी चादहमे । जो प्रभाण सकर फेयों (फेयों, ऩदट्टमों ऩय तनसभवत आकृतत) के सरमे कही गई है , र्ही प्रभाण श्रेष्ठ स्थऩतत को ग्रहण कयना चादहमे । मे (भततवमाॉ) सबी रऺणों से मुक्त फैठी मा खड़ी भुद्रा भें होनी चादहमे ॥३६३८॥

अष्टौ ऩरयिाय आठ ऩरयर्ाय-दे र्ता - छोटे दे र्ारमों भें एक ही प्राकाय एर्ॊ आठ ऩरयर्ाय दे र्ता होने चादहमे । मदद ऩीठ-सॊऻक र्ास्तुऩद हो तो आमवक के ऩद से प्रायम्ब कय ऋषब, गणाधधऩ, कभरजा (रक्ष्भी), भातक ृ ामें, गुह, आमव, अच्मुत एर्ॊ चण्डेश होने चादहमे ॥३९॥ ्िादि ऩरयिाय

फायह ऩरयर्ाय-दे र्ता - उऩऩीठ र्ास्तऩ ु द ऩय फायह ऩरयर्ाय-दे र्ताओॊ की स्थाऩना कयनी चादहमे । ऩहरे की बाॉतत

आमवक ऩद से प्रायम्ब कय र्ष ृ , कभरजा, गह ृ एर्ॊ हरय होने चादहमे । समव के ऩद से दादहनी ओय यवर्, गजर्दन, मभ, भातक ु ाव, धनद एर्ॊ चण्ड क्रभानुसाय होने चादहमे ॥४०-४१॥ ृ ामें, जरेश, दग षोडि ऩरयिाय षोडश ऩरयर्ाय-दे र्ता - उग्र ऩीठ र्ास्तुऩद ऩय सोरह दे र्-ऩरयर्ाय स्थावऩत कयना चादहमे । आमवक ऩद ऩय र्ष ृ आदद

दे र्ों को ऩहरे के सदृश स्थावऩत कयना चादहमे । ईश, जमधत, बश ु र, शोष,र्ाम,ु भख् ु म ृ , अन्ग्न, वर्तथ, बङ् ृ गनऩ ृ , वऩत,ृ सग

एर्ॊ उददतत के ऩद ऩय क्रभश् चधद्र, चधद्र, समव, गजर्दन, श्री, सयस्र्ती, भातक ु ाव, ददतत एर्ॊ उददतत होनी ृ ामें, शुक्र, जीर्, दग चादहमे ॥४२-४४॥

्िात्रत्रॊित ् ऩरयिाय फत्तीस ऩरयर्ाय-दे र्ता - स्थन्ण्डर र्ास्तुऩद ऩय फत्तीस ऩरयर्ायदे र्ता स्थावऩत ककमे जाते है । ब्रह्भा के ऩद के फाहय नौ ऩदो ऩय श्री, ज्मेष्ठा, उभा एर्ॊ सयस्र्ती को क्रभश् सावर्धद्र, इधद्रजम, रुद्रजम एर्ॊ आऩर्त्स के ऩद ऩय यखना चादहमे । आमवक आदद के ऩद ऩय र्ष ृ ब आदद दे र्ों को ऩहरे की बाॉतत स्थावऩत कयना चादहमे । ॥४५-४६॥ ईश, ऩजवधम, भहे धद्र, समव, सत्म, अधतरयऺ, अनर, ऩषा, गह ृ , वऩत,ृ फोधन, ऩष्ु ऩदधत, र्रुण, मऺ, ृ ऺत, मभ, गधधर्व, भष

सभीयण, नाग, बलराट, सोभ, भग ृ एर्ॊ उददतत के ऩद ऩय क्रभश् दे र्ों की स्थाऩना कयनी चादहमे । (मे दे र्ता है ०) ईश, शसश, नन्धदकेश्र्य, सुयऩतत, भहाकार, ददनकय, र्न्ह्न, फह ृ गयीदट, चाभुण्डा, तनऋतत, अगस्त्म, ृ स्ऩतत, गजर्दन, मभ, बङ् वर्श्र्कभाव, जरऩतत, बग ु ाव, र्ीयबद्र, धनद, चण्डेश्र्य एर्ॊ शुक्त । वर्द्र्ानों के कथनानुसाय ृ ु, दऺ प्रजाऩतत, र्ामु, दग स्थन्ण्डर र्ास्त-ु वर्बाग भें मह व्मर्स्था होनी चादहमे ॥४७-५२॥

र्ास्तु-वर्धमास सभ ऩदों का हो अथर्ा वर्षभ ऩदों का हो, ऩरयर्ाय-दे र्ता प्राकाय की सबन्त्त ऩय तनसभवत होने चादहमे । उससे ऩथ ृ क् होने की न्स्थतत भें भध्म ऩद के ऩास होने चादहमे । जहाॉ तीन अथर्ा ऩाॉच प्राकाय हो, र्हाॉ प्रायन्म्बक आठ दे र्ता भध्माहाय मा अधताहाय ऩय तनसभवत होने चादहमे । मदद दे र्ारम ऩन्श्चभ-भुख हो तो सभर के ऩद ऩय र्ष ृ ब की न्स्थतत होनी चादहमे ॥५३-५४॥

कभजर, गह ृ एर्ॊ हरय को बुधय, आमव एर्ॊ वर्र्स्र्ान ् के ऩद ऩय होना चादहमे । न्जस ददशा भें ईश्र्य के बर्न का

भख ु हो, उसी ददशा भें उनका बी भख ु होना चादहमे । शेष दे र्ों को ऩर्वर्र्णवत ऩदो ऩय होना चादहमे एर्ॊ उनका भख ु दे र्ारम की ओय होना चादहमे ॥५५॥

दे र्ारम का भुख चाहे ऩर्व ददशा भें हो, चाहे ऩन्श्चभ भें हो, र्ष ृ का भुख अथर्ा ऩष्ृ ठबाग सशर् की ओय होना चादहमे

। चण्डेश एर्ॊ गजानन का भख ु क्रभश् दक्षऺण एर्ॊ उत्तय की ओय होना चादहमे । दे र्-ऩरयर्ाय के बर्न सबी अङ्गो से मुक्त, उधचत यीतत से प्रासाद, भण्डऩ, सबा अथर्ा शारा के आकाय का तनसभवत कयना चादहमे । ॥५६-५७॥

भध्महाय एर्ॊ अधतहावय के फीच भें भासरका-ऩङ्न्क्त तनसभवत होनी चादहमे । मह एक, दो, ततन, चाय मा ऩाॉच तर की होनी चादहमे । दीर्ाय के ऊऩय एर्ॊ स्तम्ब के ऊऩय स्तम्ब तनसभवत होना चादहमे । सबन्त्त के ऊऩय स्तम्ब तनसभवत हो सकते है ; ककधतु स्तम्ब के ऊऩय सबन्त्त नही तनसभवत होनी चादहमे । भासरका-ऩङ्न्क्त को कट एर्ॊ कोष्ठ आदद से

मक् ु त एर्ॊ जारसबन्त्त से अरङ्कृत होना चादहमे । मह भण्डऩ के आकृतत की, शारा मा सबा के आकृतत की होनी चादहमे ॥५८-६०॥

अफ बन्क्तभान (वर्बाजन, दयी) एर्ॊ स्तम्ब का आमाभ सॊऺेऩ भें र्र्णवत ककमा जा यहा है । प्रधान दे र्बर्न के उऩानत ् (अधधष्ठान का ऊऩयी बाग) से उत्तयऩमवधत की दयी को सात फयाफय बागों भें फाॉट कय दो बाग से भसयक

(अधधष्ठान) की ऊॉचाई एर्ॊ ऩाॉच बाग से स्तम्ब की ऊॉचाई यखनी चादहमे । स्तम्ब को सफी अङ्गो से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे मा स्तम्ब के प्रभाण को नौ बागों भें फाॉटना चादहमे । दो बाग से अधधष्ठान एर्ॊ शेष बाग से स्तम्ब की ऊॉचाई यखनी चादहमे । ढ़ाई हाथ से प्रायम्ब कय छ्- छ्- अङ्गुर फढ़ाते हुमे छ् हाथ तक स्तम्ब की ऊॉचाई यखनी चादहमे । इस प्रकाय स्तम्बों की उॉ चाई ऩधद्रह प्रकाय की हो सकती है । बीतयी सबन्त्त की भोटाई के अनस ु ाय

स्तम्ब की चौड़ाई होनी चादहमे । मह बन्क्तभान एर्ॊ रम्फाई छोटे एर्ॊ फड़े सबी दे र्ारमों के सरमे सभान है । अथर्ा छ् अङ्गर ु से प्रायम्ब कयके एक-एक अङ्गुर फढ़ाते हुमे फीस अङ्गुरऩमवधत ऩादवर्ष्कम्ब (स्तम्ब की चौड़ाई) यखना चादहमे । ॥६१-६६॥ अधधष्ठान की ऊॉचाइ स्तम्ब की ऊॉचाई का आधा, छ् मा आठ बाग कभ मा स्तम्ब की ऊॉचाई का तीसया अथर्ा चौथा बाग यखना चादहमे । मह अधधष्ठान ऩादफधध मा चारुफधध शैरी का होना चादहमे । इसका चतुथांश कभ

प्रस्तय होना चादहमे, जो अरङ्कयणों से सुसन्ज्जत हो । इस प्रकाय ऩर्वर्र्णवत यीतत से उधचत ढॊ ग से तनभावणकामव कयना चादहमे ॥६७-६९॥

(न्जस प्रकाय दे र्ारम भें भासरका) उसी प्रकाय भनुष्मो के आर्ास भें खररयका का तनभावण गह ृ के चायो ओय होना चादहमे, जो प्रथभ आर्यण (प्राकाय) से रेकय तीसये प्राकाय तक होता है ॥७०॥

उनके द्र्ायों को अबीन्प्सत ददशा भें भनुष्मों के बर्न भें कहे गमे तनमभ के अनुसय स्थावऩत कयना चादहमे ।

(भासरकाऩङ्न्क्त भें ) ऩरयर्ाय-दे र्ारमों को न्जन-न्जन ऩदों भें कहा गमा है , उधहे क्रभानुसाय र्ही तनसभवत कयना चादहमे

। आमवक के ऩद से प्रायम्ब कयते हुमे ऩर्वर्र्णवत तनमभ के अनुसाय दे र्ारम की ओय उधभख ु फनाना चादहमे । इन ऩरयर्ाय-दे र्ारमोंके फाहय नत्ृ म-भण्डऩ एर्ॊ ऩीठ (र्ेदी) आदद का तनभावण कयना चादहमे अथर्ा स्नान-भण्डऩ एर्ॊ नत्ृ मभण्डऩ ऩरयर्ायदे र्ारम के बीतय बी प्रभाण के अनुसाय तनसभवत हो सकता है ॥७१-७३॥ ऩीठरऺण ऩीठ के रऺण - गबवगह ृ के व्मास के आधे प्रभाण से दो ऩीठों की चौड़ाई एर्ॊ ऊॉचाई यखनी चादहमे । फसरवर्ष्टय

(जहाॉ फसर दी जाम) की ऊॉचाई एर्ॊ चौड़ाई एक, दो मा तीन हाथ होनी चादहमे । (वऩशाच) ऩीठ को गोऩुय से फाहय

प्रासाद की चौड़ाई के आधे बग की दयी ऩय तनसभवत कयना चादहमे । फसरवर्ष्टय की गोऩयु से दयी उऩमक् ुव त भाऩ के

फयाफय अथर्ा तीन चौथाई होनी चादहमे । वऩशाचऩीठ को ऩाॉचो प्राकायों के फाहय एर्ॊ भन्धदय के सम्भुख होना चादहमे तथा फसरवर्ष्टय को वऩशाचऩीठ एर्ॊ प्रासाद के भध्म भें तनसभवत कयना चादहमे ॥७४-७६॥

ऩीठ की ऊॉचाई को सोरह फयाफय बागों भें फाॉटना चादहमे । एक बाग से जधभ, चाय बाग से जगती, तीन बाग से कुभुद, उसके ऊऩय एक बाग से ऩट्ट, तीन बाग से कण्ठ, ऊऩय एक बाग से कम्ऩ एर्ॊ उसके ऊऩय दो बाग से र्ाजन होना चादहमे । ॥७७-७८॥

उसके ऊऩय एक बाग से र्ाजन एर्ॊ कभरऩष्ु ऩ होना चादहमे । कभर का घेया (ऩीठ के) व्मास का आधा मा तीन चौथाई होना चादहमे । ऩद्म के ऊऩय भध्म बाग भें कर्णवका तनसभवत कयनी चादहमे , न्जसका वर्स्ताय ऩद्म का तीन

चौथाई हो । ऩद्म की ऊॉचाई उसकी चौड़ाई का आधा अथर्ा कर्णवका की ऊॉ चाई का आधा होना चादहमे । ऩीठ भध्म बाग भें बद्रमुक्त, बद्रयदहत मा उऩऩीठ से मुक्त हो सकता है । ऩीठ की आकृतत अधधष्ठान के अनुसाय मा उससे ऩथ ृ क् हो सकती है । इस प्रकाय प्राचीन श्रेष्ठ भुतनमों ने ऩीठ के अरङ्कयणों का र्णवन ककमा है ॥७९-८१॥

प्रासाद के आधे भाऩ से र्ष ृ ब के अग्र बाग भें ध्र्ज स्थान का तनभावण होना चादहमे एर्ॊ आगे बरसशखारम (बरशर) होना चादहमे । मे सबी र्ष ृ आदद गोऩुय के र्ाभ बाग भें (प्राकाय के) बीतय होने चादहमे ॥८२॥ प्राकायाथश्रतस्थान प्राकाय के आधश्रत स्थान - भमावदद सार (प्राकाय) से सटा कय आग्नेम कोण भें हवर् का प्रकोष्ठ होना चादहमे । अन्ग्नकोण एर्ॊ गोऩुय के भध्म भें धन-धाधम का गह ृ होना चादहमे । मभ के प्रकोष्ठ ऩय भज्जनशारा (स्नानभण्डऩ) एर्ॊ र्ही ऩुष्ऩभण्डऩ तनसभवत होना चादहमे ॥८३-८४॥

तनऋतत के स्थान ऩय अस्र-भण्डऩ एर्ॊ र्रुण तथा र्ामु के स्थान ऩय शमनस्थान तनसभवत कयना चादहमे ॥८५॥ सोभ के ऩद ऩय धभवश्रर्ण-भण्डऩ (जहाॉ धभवसबा, धभववर्षमक प्रर्चन होते हो ) होना चादहमे । ईश के ऩद ऩय एर्ॊ आऩर्त्स के ऩद ऩय र्ाऩी एर्ॊ कऩ होना चादहमे । ईश एर्ॊ गोऩुय के भध्म स्थर भें र्ाद्मस्थान होना चादहमे ।

वर्भान के तनकट ही ईश के ऩद ऩय चण्डेश्र्य का स्थान होना चादहमे । अथर्ा ऩर्वर्र्णवत स्थान ऩय फुविभान को तनभावण कयना चादहमे ॥८६-८७॥

(वर्भान के) ऩीठ के साभने वर्भान के भान के अनुसाय शन्क्तस्तम्ब होना चादहमे । ऺुद्र (अत्मधत छोटे ) भन्धदय की ऊॉचाई के दग ु ुने भाऩ की शन्क्तस्तम्ब की ऊॉचाई होनी चादहमे । अलऩ (छोटे ) वर्भान का शन्क्तस्तम्ब उसके फयाफय भाऩ का तथा भध्मभ वर्भान भें उसकी ऊॉचाई का आधा मा तीन चौथाई भाऩ का शन्क्तस्तम्ब होना चादहमे ।

उत्तभ वर्भान भें उसकी ऊॉचाई के तीसये मा आधे बाग के फयाफय शन्क्तस्तम्ब की ऊॉचाई होनी चादहमे । इसकी चौड़ाई एक हाथ, सोरह अङ्गर ु मा दश अङ्गर ु होनी चादहमे । शन्क्तस्तम्ब को भन्ण्ड एर्ॊ कुम्ब से मक् ु त होना

चादहमे एर्ॊ उसके ऊऩय बत मा र्ष ृ ब की आकृतत होनी चादहमे । मह बाग प्रस्तय मा काष्ठ से तनसभवत होना चादहमे तथा इसे र्त्ृ ताकाय, अष्टकोण मा सोरह कोण का होना चादहमे । ॥८८-९१॥ इतय स्थानातन अन्म स्थान र्ेशस्थान (ऩुयोदहत का आर्ास), र्ाऩी (फार्ड़ी), कऩ, फगीचा एर्ॊ दीतघवका (ताराफ) सबी स्थानों भें (कही बी) हो सकते है । इसी प्रकाय भठ एर्ॊ बोजनशारा बी कहीॊ बी तनसभवत हो सकते है ॥९२॥

मदद वर्भान भें एक प्राकाय हो तो र्ह अधतभवण्डर न होकय अधतहावय होता है । मदद तीन प्राकाय हो तो र्े अधतहावय, भध्मभहाय एर्ॊ भमावदासबन्त्त होते है । मदद ऩाॉच प्राकाय हो (तो र्े ऩर्वर्र्णवत होते है ) इन प्राकायों के ऊऩय चायो ओय ऩङ्न्क्त भें र्ष ृ बों की आकृततमाॉ तनसभवत होती है ॥९३-९४॥

शन्क्तस्तम्ब से ऩर्व प्रधान दे र्ारम की चौड़ाई के तीन, चाय मा ऩाॉच गन ु ी दयी ऩय गर्णकागह ृ एर्ॊ उसके दोनों ऩाश्र्ों भें सॊर्ादहका-स्थान होना चादहमे । प्राकाय के फाहय चायो ओय (भन्धदय के) सेर्कों का आर्ास होना चादहमे । इसी

प्रकाय दाससमों का आर्ास होना चादहमे अथर्ा ऩर्व ददशा भें सेर्काददकों का आर्ास होना चादहमे । गुरुभठ (प्रधान

ऩुजायी का स्थान) दक्षऺण ददशा भें होना चादहमे अथर्ा ऩर्व ददशा भें होना चादहमे, न्जसका भुख दक्षऺण ददशा भें हो । शेष के वर्षम भें, जो नही कहा गमा है , र्ह सफ याजा के अनुसाय कयना चादहमे ॥९५-९७॥ विष्णुऩरयिायक वर्ष्ण-दे र्ारम के ऩरयर्ाय -दे र्ता - अफ भै वर्ष्णबर्न के ऩरयर्ायदे र्ों के वर्षम भें कहता हॉ । प्रभुख स्थान (ऩर्व भे) र्ैनतेम (गरुड़), अन्ग्नकोण भें गजभुख, दक्षऺण भें वऩताभह एर्ॊ वऩतऩ ृ द ऩय सप्त भातक ृ ामें कही गई है । जरेश के ऩद ऩय गुह, र्ामव्म कोण भें दग ु ाव, सोभ के ऩद ऩय धनाधधऩ कुफेय तथा ईशान कोण ऩय सेनाऩतत का स्थान होना चादहमे । ऩीठ आदद की न्स्थतत ऩर्वर्र्णवत तनमभों के अनुसाय होनी चादहमे ॥९८-९९॥

(उऩमुक् व त व्मर्स्था) एक प्राकाय होने ऩय इस प्रकाय होनी चादहमे । अफ फायह ऩरयर्ायदे र्ों का र्णवन ककमा जा यहा है । वर्ष्णु के साभने चक्र, उसके दादहने गरुड एर्ॊ र्ाभ बाग भें शङ्ख होना चादहमे । समव एर्ॊ चधद्रभा गोऩुय के दोनों ऩाश्र्ों भे तनसभवत हो एर्ॊ इनका भख ु बीतय की ओय होना चादहमे । आग्नेम कोण भें हवर्ष को ऩकाने का स्थान होना चादहमे एर्ॊ शेष तनभावण ऩर्वर्र्णवत तनमभ के अनुसाय होना चादहमे ।॥१००-१०२॥

जहाॉ सोरह ऩरयर्ायदे र्ों की स्थाऩना कयनी हो, र्हाॉ उनकी स्थाऩना भध्महाय एर्ॊ अधतहावय के फीच भें कयनी चादहमे । भण्डऩ के आगे ऩक्षऺयाज (गरुड) एर्ॊ ऩीथ होना चादहमे । सशर् को छोड़कय सबी रोकऩारों को उनके स्थानों ऩय स्थावऩत कयना चादहमे । कोण एर्ॊ द्र्ायऩारों के भध्म बाग भे आददत्म, बग ृ ु, दोनो अन्श्र्नीकुभाय, सयस्र्ती, ऩद्मा, ऩधृ थर्ी, भुतनगण एर्ॊ सधचर्दे र्ों को स्थावऩत कयना चादहमे । मदद दे र्ऩरयर्ाय की सॊख्मा फत्तीस हो तो उधहे र्ही उधचत यीतत से स्थावऩत कयना चादहमे । ॥१०३-१०५॥

चण्ड, प्रचण्ड, यथनेसभ, ऩाञ्चजधम, दग ु ाव, गणेश, यवर् तथा चधद्र-इन सबी भहान दे र्ों को तथा सर्ेश्र्य एर्ॊ सुयऩतत- इन दस को ऩाॉचों प्राकायों के गोऩुय की ओय भुख ककमे हुमे तनसभवत कयना चादहमे ॥१०६॥ िष ृ रऺण र्ष ृ ब के रऺण - र्ष ृ (की प्रततभा) का रऺण अफ सॊऺेऩ भें र्र्णवत ककमा जा यहा है । श्रेष्ठ र्ष ृ की ऊॉचाई द्र्ाय के फयाफय मा सरङ्ग के फयाफय होती है । भध्मभ र्ष ृ उससे चाय बाग कभ एर्ॊ छोटा र्ष ृ तीन बाग भें दो बाग के

फयाफय ऊॉचा होता है । (अथर्ा) छोटे र्ष ृ की ऊॉचाई गबवगह ृ की ऊॉचाई ृ की ऊॉचाई की आधी होती है एर्ॊ श्रेष्ठ र्ष

गबवगह ृ के फयाफय होती है । इन दो ऊॉचाई के भध्म के अधतय को आठ बागों भें फाॉटा गमा है । इस प्रकाय एक हाथ से रेकय नौ हाथ तक कतनष्ठ आदद तीन(उत्तय, भध्मभ, कतनष्ठ ऊॉचाई र्ारे) र्ष ृ ों के तीन-तीन बेद फनते है । इसभें एक अॊश (अङ्गर ु प्रभाण) का भाऩ भततव की ऊॉचाई के ऩधद्रहर्े बाग के फयाफय कहा गमा है ॥१०७-११०॥

इसकी रम्फाई चारीस अङ्गुर होती है । इसके प्रभान का र्णवन अफ ककमा जा यहा है । सशय के ऊध्र्व बाग से

रेकय गरे तक का भाऩ द्स अङ्गुर होता है । इसके ऩश्चात ् उसके नीचे गरे का भाऩ आठ अङ्गुर तथा गरे से

ऊरू बाग के अधत तक का भाऩ सोरह अङ्गर ु होता है । ऊरू की रम्फाई का प्रभाण छ् अङ्गर ु एर्ॊ जानु (घट ु ने)

का भाऩ दो अङ्गर ु होता है । जङ्घा (घट ु ने के नीचे का बाग) की रम्फाई छ् अङ्गर ु एर्ॊ खयु की रम्फाई कोरक (दो अङ्गुर) होती है । दोनों सीॊगों के भध्म की दयी दो अङ्गुर तथा सीॊग की रम्फाई दो कोरक (चाय अङ्गुर) होनी चादहमे । ॥१११-११३॥

सीॊग के तनचरे बाग का व्मास तीन अङ्गुर से एर्ॊ ऊऩयी ससया दो अङ्गुर का होना चादहमे । र्ष ृ का रराट नौ अङ्गुर का एर्ॊ भुख का व्मास ऩाॉच अङ्गुर का होना चादहमे । भुख की ऊॉचाई उसकी चौड़ाई के फयाफय यखनी

चादहमे । नेरों की रम्फाई दो अङ्गुर एर्ॊ उसकी ऊॉचाई (चौड़ाई के) डेढ़ अङ्गुर होनी चादहमे । नेरों के भध्म भें भुखबाग की रम्फाई आठ अङ्गुर होनी चादहमे । इसके ऩश्चात ् ऩष्ृ ठबाग ग्रीर्ा के अधत तक छ् अङ्गुर होनी चादहमे । नेर के भध्म से रराट की ऊॉचाई चाय अङ्गर ु कही गई है ॥११४-११६॥

नेर से कान की दयी कान की रम्फाई के फयाफय होनी चादहमे एर्ॊ कान की रम्फाई ऩाॉच अङ्गुर होनी चादहमे । कानों को भर भें दो अङ्गुर चौड़ा, भध्म भें दो अङ्गुर चौड़ा एर् ऊऩयी बाग एक अङ्गुर चौड़ा होना चादहमे । इनकी भोटाई आधी अङ्गर ु होनी चादहमे ॥११७॥

नाक की रम्फाई डेढ़ अङ्गुर, चौड़ाई एक अङ्गुर तथा ऊॉचाई एक अङ्गुर होनी चादहमे । भुख की रम्फाई ऩाॉच अङ्गर ु , ऊऩयी ओठ तीन अङ्गर ु तथा तनचरा ओठ दो अङ्गर ु होना चादहमे ॥११८-११९॥

न्जह्र्ा की रम्फाई तीन अङ्गुर, चौड़ाई दो अङ्गुर एर्ॊ ऊॉचाई (भोटाई) एक अङ्गुर होनी चादहमे । ग्रीर्ा का व्मास

दश अङ्गुर एर्ॊ उसका तनचरा बाग फायह अङ्गुर होना चादहमे । ऩष्ृ ठ ऩय इसका भर बाग आठ अङ्गुर एर्ॊ शीषव

के नीचे छ् अङ्गर ु होना चादहमे । ककुत ् (ऩीठ का ऊबया बाग) का व्मास छ् अङ्गर ु एर्ॊ इसकी ऊॉचाइ चौड़ाई की आधी होनी चादहमे ॥१२०-१२१॥

ग्रीर्ा के अग्र बाग भे ककुत ् की चौड़ाई दो अङ्गर ु होनी चादहमे । ककुत ् तक शयीय की ऊॉचाई अट्ठायह अङ्गर ु एर्ॊ

ऩीठ तक ऊॉचाई चौदह अङ्गर ु होनी चादहमे तथा व्मास फायह अङ्गुर होना चादहमे । वऩछरे ऊरुओॊ की चौड़ाई दश, आठ एर्ॊ चाय अङ्गुर होनी चादहमे ॥१२२-१२३॥

उनकी रम्फाई ऩाॉच अङ्गर ु एर्ॊ जानु (घट ु ना) दो अङ्गर ु का होना चादहमे । जङ्घा (घट ु ने से नीचे का बाग) की

रम्फाई ऩाॉच अङ्गुर एर्ॊ चौड़ाई चाय अङ्गुर होनी चादहमे । खुयों की ऊॉचाई तीन अङ्गुर एर्ॊ इसी प्रकाय ऩॉछ के भर बाग का भाऩ (तीन अङ्गुर) होना चादहमे । इसका अग्र बाग डेढ़ अङ्गुर होना चादहमे एर्ॊ जङ्घा के अधत तक मह रटकती होनी चादहमे ॥१२४-१२५॥

भुष्क (अण्डकोश) की रम्फाई तीन अङ्गुर एर्ॊ चौड़ाई दो अङ्गुर होनी चादहमे तथा शेप (सरङ्ग) की रम्फाई तीन अङ्गुर एर्ॊ ऩेट के ऩास इसकी भोटाई एक अङ्गुर होनी चादहमे ॥१२६॥

ऊरूभर की चौड़ाई चाय अङ्गुर एर्ॊ आगे जङ्घा के अग्रबाग ऩय दो अङ्गुर प्रभाण का होना चादहमे । शेष को

आर्श्मकतानुसाय तनसभवत कयना चादहमे । र्ष ृ ब की भततव को खड़ी अथर्ा शतमत (फैठी, पैरी हुई) भुद्रा भें, जो उधचत रगे, तनसभवत कयनी चादहमे ॥१२७॥

मह प्रततभा सध ु ा (चना, गाया) रौह (धात)ु मा अधम ऩदाथों से, जो अनक ु र हो, तनसभवत होनी चादहमे । प्रततभा मदद

धातुतनसभवत हो तो र्ह घन (ठोस, ऩणव रूऩ से बयी हुई) मा खोखरी आर्श्मकतानुसाय हो सकती है । र्ष ृ ब की ऊॉचाई सशर् की भततव की ऊॉचाई के अनुसाय हो सकती है ॥१२८-१२९॥ इसकाकुछ कभ मा अधधक होना सबी प्रकाय के दोषों को उत्ऩधन कयता है । अत् ऻाता सशलऩी को दोषों को त्मागते हुमे सबी रऺणों से मुक्त र्ष ृ प्रततभा का तनभावण कयना चादहमे । श्रेष्ठ भुतनमों के अनुसाय र्ष ृ प्रततभा की ऊॉचाई तीन प्रकाय की होनी चादहमे. १. सशर्-सरङ्ग के द्र्ाय के फयाफय उत्तभ प्रततभा, २. उससे चाय बाग कभ भध्मभ प्रततभा तथा ३. तीन बाग भें से दो बाग के फयाफय कतनष्ठ प्रततभा (इस प्रकाय र्ष ृ की तीन ऊॉचाई र्ारे प्रभाण की प्रततभामें होती है ) ॥१३०-१३१॥

अध्माम २४ गोऩुय - अफ भें (भम ऋवष) फहुत छोटे -छोटे , भध्मभ एर्ॊ उत्तभ आकाय के प्रभुख बर्नों के अनुसाय गोऩुयों के रऺण का र्णवन कयता हॉ ॥१॥ ऩञ्चविधगोऩुयभान ऩाॉच प्रकाय के गोऩुयों का प्रभाण- द्र्ाय-शोबा से प्रायब कयते हुमे गोऩुय तक द्र्ाय का वर्स्ताय इस क्रभ से यखना चादहमे । प्रथभ द्र्ाय 'द्र्ायशोबा' का वर्स्ताय प्रधान प्रासाद के वर्स्ताय के सात बाग कयने ऩय उससे एक बाग कभ अथावत ् छठर्े बाग के फयाफय यखना चादहमे । (दसये द्र्ाय) का वर्स्ताय भर प्रासाद के आठ बाग कयने ऩय उससे

एक बाग कभ (सात बाग), का वर्स्ताय भर प्रासाद के आठ बाग कयने ऩय उससे एक बाग कभ (सात बाग), (तीसये द्र्ाय) का वर्स्ताय भर बर्न के वर्स्ताय के नौ बाग कयने ऩय उससे एक बाग कभ (आठ बाग), (चौथे द्र्ाय) का वर्स्ताय भर प्रासाद के दस बाग कयने ऩय उससे एक बाग कभ (नौ बाग) तथा (ऩाॉचर्े द्र्ाय-गोऩुय) का वर्स्ताय भर प्रासाद के ग्मायह बाग कयने ऩय उससे एक बाग कभ (दस बाग) यखना चादहमे । मे प्रभाण ऺुद्र एर्ॊ अलऩ प्रासादों के गोऩुयों के होते है । भध्मभ प्रासादों के गोऩुयों का भान इस प्रकाय वर्दहत है ॥२-३॥ (भध्मभ आकाय के दे र्ारमो भें) द्र्ाय शोबा से गोऩुय तक ऩाॉच द्र्ायो के क्रभश् भान इस प्रकाय है - भर प्रासाद की चौड़ाई के चाय बाग कयने ऩय तीसये बाग के फयाफय, ऩाॉच बाग कयने ऩय चौथे बाग के फयाफय, छ् बाग कयने

ऩय ऩाॉचर्े बाग के फयाफय, सात बाग कयने ऩय छॉ ठर्े बाग के फयाफय एर्ॊ आठ बाग कयने ऩय सातर्ें बाग के फयाफय वर्स्ताय यखना चादहमे ॥४॥ द्र्ायशोबा से रेकय गोऩुयऩमवधत वर्स्ताय उत्तभ (फड़े) प्रासादों भें वर्स्तायभान इस प्रकाय क्रभश् यक्खा जाता है ।

(प्रधान प्रासाद के वर्स्ताय के ) तीन बाग भें से एक बाग, डेढ़ बाग, दो बाग, चाय बाग भें तीन बाग मा ऩाॉच भे से चाय बाग के फयाफय यखना चादहमे । अफ वर्स्ताय को हस्त-भाऩ भे र्र्णवत ककमा जा यहा है ॥५-६॥ (मदद प्रभुख दे र्ारम छोटा हो तो) द्र्ायशोबा आदद हायों का प्रभाण दो हाअथ भाऩ से प्रायब कय उसे एक-एक हाथ

फढ़ाते हुमे सोरह हाथ तक यखना चादहमे । (भध्मभ आकाय के दे र्ारम भें ) द्र्ायशोबा आदद ऩाॉच द्र्ायों भें से एक-

एक के तीन प्रकाय के भान होते है । प्रथभ द्र्ाय द्र्ायशोबा से तीन हाथ भान से प्रायब कयते हुमे दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे इकतीस हाथ तक रे जाना चादहमे । (प्रभुख दे र्ारम के उत्तभ आकाय के होने ऩय) नौ हाथ से प्रायब कयते हुमे सैतीस हाथ तक दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे कुर ऩधद्रह प्रकाय के प्रभाण प्राप्त होते है । मे वर्स्ताय-प्रभाण ऩाॉचों द्र्ायों भें द्र्ायशोबा से प्रायब होकय गोऩुय-ऩमवधत यक्खे जाते है ॥७-१०॥ ऩञ्चविधगोऩुय ऩाॉच प्रकाय के गोऩयु - द्र्ायशोबा, द्र्ायशारा, द्र्ायप्रासाद, द्र्ायहमव एर्ॊ गोऩयु मे ऩाॉच द्र्ायों के क्रभश् नाभ कहे गमे है । प्रथभ द्र्ाय की सॊऻा 'द्र्ायशोबा' कही गई है ॥११॥

इनके वर्स्ताय का भान हस्तप्रभाण से ग्रहण कयना चादहमे । इसके सबावर्त वर्स्ताय-भान ऩाॉच है । द्र्ाय का वर्स्ताय तीन, ऩाॉच, सात, नौ मा ग्मायह हाथ से प्रायब कय दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे (प्रथभ द्र्ाय से अन्धतभ द्र्ाय तक) रे जाना चादहमे । इस प्रकाय द्र्ायशोबा सॊऻक प्रथभ द्र्ाय का भान ऩाॉच , सात, नौ, ग्मायह मा तेयह हाथ होने ऩय 'द्र्ायशारा' सॊऻक द्र्ाय का भान ऩधद्रह से रेकय तेईस हाथ-ऩमवधत होता है । 'द्र्ाय-प्रासाद' सॊऻक द्र्ाय का भान ऩाॉच प्रकाय का होता है , जो ऩच्चीस हाथ से प्रायब कय तैतीस हाथ तक जाता है । 'द्र्ायहमव' सॊऻक द्र्ाय का भान ऩैंतीस हाथ से प्रायब कय तैतारीस हाथ-ऩमवधत ऩाॉच प्रकाय का होता है । अन्धतभ 'गोऩयु ' सॊऻक द्र्ाय का भान ऩैतारीस हाथ से प्रायब कय ततये ऩन हाथ-ऩमवधत ऩाॉच प्रकाय का होता है ॥१२-१७॥

उक्त प्रकाय से ही चक्रर्ती एर्ॊ भहायाज याजाओॊ के बर्नों भें बी द्र्ाय का तनभावण कयना चादहमे । द्र्ायशोबा आदद ऩाॉच द्र्ायों की चौड़ाई उनके रफाई की डेढ़ गन ु ी, ऩौने दो गन ु ी, दग ु न ु ी अथर्ा ऩौने तीन गन ु ी तनधावरयत कयनी चादहमे । चौड़ाई के क्रभ से ही अफ उनकी ऊॉचाई का र्णवन ककमा जा यहा है ॥१८-१९॥

द्र्ायों की चौड़ाई के सात बाग भें दशर्ाॉ बाग, चाय बाग भें छठा बाग, चाय बाग भें सातर्ाॉ बाग तथा ऩाॉच बाग भें नर्ाॉ बाग एर्ॊ दग ु ुना भान ऊॉचाई के सरमे क्रभश् ग्रहण कयना चादहमे । गोऩुय के द्र्ायामतन (द्र्ाय ऩय तनसभवत

बर्न) की ऊॉचाई के मे भान कहे गमे है । प्राकायसबन्त्त की चौड़ाई का तीसया बाग, एक चौथाई अथर्ा ऩाॉच बाग भें से दो बाग के फयाफय गोऩुयों का तनगवभ (फाहय की ओय तनकरा हुआ तनभावण वर्शेष) तनसभवत कयना चादहमे ॥२०-२२॥ ्िायभान द्र्ाय-प्रभाण - ऺुद्र (छोटे ), भध्मभ एर्ॊ श्रेष्ठ (फड़े) द्र्ायो का वर्स्ताय-प्रभाण इस प्रकाय होता है । ऺुद्र द्र्ाय की चौड़ाई डेढ़ से प्रायब कय ऩाॉच हाथ तक छ् छ् अॊगुर फढ़ाते हुमे रे जाना चादहमे । भध्मभ द्र्ाय की चौड़ाई दो हाथ से प्रायब कयते हुमे सात हाथ तक नौ-नौ अॊगुर फढ़ाते हुमे रे जाना चादहमे । फड़े द्र्ाय की चौड़ाई दो हाथ से प्रायब कयते हुमे नौ हाथ तक फायह अॊगुर क्रभश् फढ़ाते हुमे रे जाना चादहमे । इस प्रकाय प्रत्मेक द्र्ाय के ऩधद्रह प्रभाण ऩथ ु ाय उनकी ऊॉचाई अग्र र्र्णवत प्रकाय से प्राप्त होती है ॥२३-२५॥ ृ क् -ऩथ ृ क् प्राप्त होते है । वर्स्ताय के अनस उनकी ऊॉचाई क्रभश् उनकी चौड़ाई के ऩाॉच बाग से सात बाग, सात बाग से दस बाग, दग ु ुनी, ढाई गुनी एर्ॊ सर्ा दोगुनी होनी चादहमे । मे ऩाॉच ऊॉचाई के प्रभाण कहे गमे है ॥२६॥ अथधष्टानाददभान

अधधष्ठान आदद के प्रभाण - प्रधान बर्न को दे खकय ही गोऩयु के ऩाद (स्तब) एर्ॊ अधधष्ठान की ऊॉचाई यखनी

चादहमे । अधधष्ठान की ऊॉचाई प्रधान बर्न के चाय, ऩाॉच, छ्, सात, आठ, नौ, दस, ग्मायह एर्ॊ फायह बागों से एक-एक बाग कभ यखना चादहमे । शेष बाग से उऩऩीठ का तनभावण कयना चादहमे । शेष बाग से उऩऩीठ का तनभावण कयना चादहमे । मह ऩादफधध भसुयक (अधधष्ठान) होता है ॥२७-२८॥ प्रासाद के स्तब का प्रभाण बी इसी प्रकाय यखना चादहमे । अथर्ा गोऩुय-स्तब की ऊॉचाई आठ, नौ मा दस बाग भें एक-एक बाग कभ यखनी चादहमे । (स्तब के सरमे) अधधष्ठान भें होभाधत तक खातऩादक (स्तब के सरमे गड्ढा) तनसभवत कयना चादहमे । इसकी (द्र्ाय की) ऊॉचाई उत्तय (सबन्त्त का बागवर्शेष) तक यखनी चादहमे एर्ॊ द्र्ाय का

वर्स्ताय इसका आधा होना चादहमे । प्रर्ेश के दक्षऺण भें सबन्त्त के नीचे गबवधमास (सशराधमास) कयना चादहमे ॥२९३०॥ गोऩयु बेद गोऩुय के प्रकाय - ऩधद्रह प्रकाय के गोऩुयों केनाभ इस प्रकाय है - श्रीकय, यततकाधत, काधतवर्जम, वर्जमवर्शारक, वर्शारारम, वर्प्रतीकाधत, श्रीकाधत, श्रीकेश, केशवर्शारक, स्र्न्स्तक, ददशास्र्न्स्तक, भदव र,भारकाण्ड, श्रीवर्शार एर्ॊ चतभ ु ख ुव ॥३१-३३॥ छोटे भन्धदयों भें ऩाॉच गोऩुय द्र्ायशोबा से प्रायब कय एक से ऩाॉच तर तक क्रभश् होना चादहमे । भध्मभ भन्धदयों भें दो से छ् तर तक एर्ॊ फड़े भन्धदयो भें तीन से सात तर तक होने चादहमे ॥३४-३५ एकतरगोऩुय एक तर का गोऩुय - एक तर के गोऩुय की ऊॉचाई उत्तयाधत से स्थऩी (स्तवऩका) तक छ् फयाफय बागों भें फाॉटनी

चादहमे । सर्ा बाग भञ्च की ऊॉचाई, एक बाग कधधय, तीन चौथाई सदहत दो बाग से सशयोबाग एर्ॊ शेष से सशखोदम का तनभावण कयना चादहमे । इस प्रकाय एक तर गोऩुय का र्णवन ककमा गमा । अफ दो तर गोऩुय के बागों का र्णवन ककमा जा यहा है ॥३६-३७॥ ्वितरगोऩुय दो तर का गोऩुय - (द्वर्तर गोऩुय भें प्रथभ तर के) उत्तय से प्रायब कयते हुए सशखा (सशयोबाग) तक नौ फयाफय बागों भें फाॉटना चादहमे । (प्रथभ तर के) भञ्च की ऊॉचाई सर्ा बाग, ढाई फाग चयण (अथावत ् द्वर्तीम तर का बाग), एक बाग से प्रस्तय की ऊॉचाई, एक बाग कधधय, ढाई बाग सशयोबाग की ऊॉचाई एर्ॊ शेष बाग से सशखा

(शीषवबाग) का उदम तनसभवत कयना चादहमे । इस प्रकाय द्वर्तर का र्णवन ककमा गमा । अफ बरतर गोऩुय के बागों का र्णवन ककमा जा यहा है ॥३८-४०॥ त्रत्रतरगोऩुय तीन तर का गोऩुय - (बरतर गोऩुय भें ) स्थऩी से रेकय उत्तयऩमवधत ऊॉचाई को फायह फयाफय बागों भें फाॉटना चादहमे । डेढ़ बाग से कऩोत की ऊॉचाई, ढाई बाग से चयण (द्वर्तीम तर की ऊॉचाई), एक बाग से प्रस्तय, दो बाग से ऩाद (तत ृ ीम तर की ऊॉचाई), ऩौने एक बाग से कऩोत, एक बाग से ग्रीर्ा, ढाई बाग से सशय एर्ॊ शेष बाग से स्थऩी

(स्थवऩका) की ऊॉचाई यखनी चादहमे । इस प्रकाय बरतर गोऩयु का र्णवन ककमा गमा । अफ चतस् ु तर गोऩयु का र्णवन ककमा जा यहा है ॥४१-४३॥ चतस् ु तरगोऩयु चाय तर का गोऩुय - (चाय तर के गोऩुय भें ) उत्तय से सशखा तक के प्रभाण को अट्ठायह बागों भें फाॉटा जाता है । ऩौने दो बाग से भञ्च, तीन बाग से तसरऩ (द्वर्तीम तर), डेढ़ बाग से प्रस्तय की ऊॉचाई, ढाई बाग से ऩद (तत ृ ीम

तर), सर्ा एक बाग से भञ्च की ऊॉचाई, दो बाग से स्तब की ऊॉचाई (चतुथव तर), एक बाग से भञ्च, एक बाग से

गर, तीन बाग से सशखय एर्ॊ शेष बाग से सशका का प्रभाण यखना चादहमे । अफ ऩाॉच तर के गोऩुय का र्णवन ककमा जा यहा है ॥४४-४५॥

ऩाॉच तर का गोऩुय - (ऩाॉच तर के गोऩुय के भान को) स्थऩी से उत्तय ऩमवधतप्रभाण को तेईस बागों भें फाॉटना

चादहमे । दो बाग से प्रस्तय की ऊॉचाई, साढ़े तीन बाग से चयण (दसया तर), ऩौने दो बाग से भञ्च, तीन बाग से ऩाद (तीसया तर), डेढ बाग से भञ्च, ढ़ाई बाग से ऩाद (चतुथव तर), सर्ा एक बाग से कऩोत, दो बाग से तसरऩ

(ऩाॉचर्ाॉ तर), एक बाग से प्रस्तय, एक बाग से कधधय, ढाई बाग से सशखय एर्ॊ शेष बाग से स्थऩी को ऊॉचाई यखनी चादहमे ॥४६-४९॥ षटनतरगोऩुय छ् तर का गोऩुय - (छ् तर के गोऩुय भें ) उत्तय से सशखाधतऩमवधत प्रभाण को उधतीस बागों भें फाॉटना चादहमे । दो बाग से प्रस्तय की ऊॉचाई, चाय बाग से ऩाद (द्वर्तीम तर), ऩौने दो बाग से भञ्च, साढे तीन बाग से ऩाद (तीसया तर), ऩौने दो बाग से भञ्च, तीन बाग से तसरऩ (चतुथव तर), डेढ़ बाग से प्रस्तय, ढाई बाग से ऩाद (ऩाॉचर्ाॉ तर),

सर्ा एक बाग से कऩोत, दो बाग से ऊध्र्वबाग (ऊऩयी तर, छठर्ाॉ तर), एक बाग से प्रस्तय, एक बाग से कधधय, ढाई बाग से सशयोबाग एर्ॊ शेष बाग से सशखाबाग की ऊॉचाई यखनी चादहमे । इस प्रकाय छ् तर गोऩुय का र्णवन ककमा गमा । अफ सात तर के गोऩयु का र्णवन ककमा जा यहा है ॥५०-५३॥ सतततरगोऩयु सात तर का गोऩुय - (सात तर के गोऩुय के) उत्तय से प्रायब कय सशखाऩमवधत प्रभाण को छत्तीस बागों भें फाॉटना

चादहमे । सर्ा दो बाग से भञ्च, साढ़े चाय बाग से ऩाद (द्वर्तीम तर), दो बाग से प्रस्तय, चाय बाग से ऩाद (तत ृ ीम

तर), ऩौने दो बाग से भञ्च, साढ़े तीन बाग से चयण (चतुथव तर), ऩौने दो बाग से भञ्च, तीन बाग से ऩाद (ऩाॉचर्ाॉ तर), डेढ़ बाग से प्रस्तय, ढाई बाग से तसरऩ (छठर्ाॉ तर), सर्ा एक बाग से भञ्च, दो बाग से ऊध्र्व ऩाद (सातर्ाॉ तर, ऊऩयी तर), एक बाग से कऩोत, एक बाग से कधधय, ऩौने तीन बाग से सशयोबाग एर्ॊ शेष बाग से सशखा की ऊॉचाई यखनी चादहमे । इस प्रकाय इस क्रभ से गोऩुयों का बाग तनधावरयत कयना चादहमे ॥५४-५८॥ गोऩुयविस्तायभान गोऩुय के वर्स्ताय का प्रभाण - एक तर र्ारे गोऩुय की चौड़ाई के ऩाॉच बाग कयने चादहमे । तीन बाग स नारीगेह (भध्म का स्थान) एर्ॊ शेष बाग से सबन्त्तवर्ष्कब (सबन्त्त की भोटाई) तनसभवत कयनी चादहमे ॥५९॥

(मदद दो तरों का गोऩयु हो तो) चौड़ाई के सात बाग कयने चादहमे । चाय बाग से गबवगह ृ (भध्म बाग) एर्ॊ शेष

बाग से सबन्त्तवर्ष्कब (सबन्त्त कीचौड़ाई) यखनी चादहमे । एक बाग से कट का वर्स्ताय यखना चादहमे । कोष्ठक का वर्स्ताय तीन बाग से एर्ॊ रफाई ऩाॉच बाग से तनसभवत कयनी चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ के भध्म बाग को ऩञ्जय आदद से अरॊकृत कयना चादहमे । इस प्रकाय द्वर्तर गोऩुय का र्णवन ककमा गमा है । अफ बरतर गोऩुय का र्णवन ककमा जा यहा है ॥६०-६२॥

(बरतर गोऩुय भें ) चौड़ाई के नौ बाग कयने चादहमे । तीन बाग से नारीगेह (भध्म बाग), एक बाग से गह ृ वऩण्डी

(अधत्सबन्त्त) एर्ॊ एक बाग से असरधदहाया (फाह्म सबन्त्त) तनसभवत कयनी चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद सबी अॊगो को ऩहरे के सभान तनसभवत कयना चादहमे । शेष बाग से सबन्त्त-वर्ष्कब एर्ॊ एक बाग से कट का वर्स्ताय यखना चादहमे ॥६३-६४॥ शारा (भध्म कोष्ठ) की रफाई तीन बाग एर्ॊ रफ-ऩञ्जय (भध्म भें रटकता हुआ कोष्ठ) एक बाग, आधे बाग से हायाबाग तनसभवत होना चादहमे । कोष्ठ की रफाई ऩाॉच मा छ् बाग होनी चादहमे एर्ॊ ऊध्र्व बाग भे चौड़ाई सात बाग होनी चादहमे ॥६५॥ कट की चौड़ाई एक बाग से, शारा (भध्म कोष्ठ) की चौड़ाई एर्ॊ रफाई दोनों दो बाग से , हाया (भध्म तनसभवतत) दो बाग से एर्ॊ ऺुद्रनीड (छोटी सजार्टी र्खड़कीमाॉ) आधे बाग से तनसभवत कयनी चादहमे । शारा की रफाई को ऩाॉच बाग से तनसभवत कयना चादहमे । इस प्रकाय बरतर गोऩुय का र्णवन ककमा गमा है । शेष बागो का तनभावण वर्द्र्ान रोगों को अऩने वर्चाय के अनुसाय कयना चादहमे ॥६६-६७॥

(चाय तरों र्ारे गोऩुय भें ) चौड़ाई के दस बाग कयने चादहमे । तीन बाग से नारीगेह (भध्म बाग), डेढ़ बाग से

सबन्त्त-वर्ष्कब (बीतयी सबन्त्त की भोटाई) एक बाग से असरधद एर्ॊ एक बाग से खण्डहमव (फाह्म सबन्त्त से सफि सॊयचना) तनसभवत कयनी चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ का तनभावण ऩहरे के सभान कयना चादहमे । साभने एर्ॊ ऩीछे के बाग भें भहाशारा (फड़ा प्रकोष्ठ) ऩाॉच बाग एर्ॊ छ् बाग से तनसभवत कयना चादहमे । इस प्रकाय सबी अॊगो से मुक्त चाय तर से मक् ु त श्रेष्ठ गोऩयु तनसभवत होता है ॥६८-७०॥

(ऩञ्चतर गोऩुय भें ) वर्स्ताय के ग्मायह बाग कयने चादहमे । तीन बाग से नारीगेह, दो बाग से सबन्त्त-वर्ष्कब, एक बाग से असरधद, एक बाग से खण्डहमव एर्ॊ अधम अॊगो का तनभावण ऩर्व-र्र्णवत वर्धध से कयना चादहमे । इस प्रकाय ऩञ्चतर गोऩुय का तनभावण कयना चादहमे । अफ षटतर गोऩुय का र्णवन ककमा जा यहा है । ॥७१-७२॥ (षटतर भें ) चौड़ाई के फायह बाग कयने चादहमे । चाय बाग से नारीगेह, दो बाग से सबन्त्त-वर्ष्कब, एक बाग से अधधायक (भागववर्शेष) एर्ॊ एक बाग से खण्डहमव तनसभवत कयना चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद की सॊयचना ऩहरे के सभान कयनी चादहमे ॥७३॥ (सात तर के गोऩयु भें) चौड़ाई के तेयह बाग कयने चादहमे । चाय बाग से गबवगह ृ (नारीगहृ , भध्मबाग), ढाई बाग से सबन्त्त-वर्ष्कब, एक बाग से असरधद्र एर्ॊ एक बाग से खण्डहमव का तनभावण कयना चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद ऩर्वर्धध से तनसभवत कयनी चादहमे । साभने एर्ॊ ऩष्ृ ठबाग भें छ् बाग से भहाशारा तनसभवत कयना चादहमे । इसे

ऩञ्जय, हन्स्तऩष्ृ ठ, ऩऺशारा आदद से मुक्त कयना चादहमे । इसभें वर्सबधन प्रकाय के भसयक (अधधष्ठान), स्तब, र्ेदी

एर्ॊ जारक-तोयण तनसभवत कयना चादहमे । इस प्रकाय सबी स्थानों के अनक ु र सप्ततर गोऩयु का र्णवन ककमा गमा ॥७४-७७॥

्िायविस्तायभान द्र्ाय की चौड़ाई का प्रभाण - ऊऩयी तर के द्र्ाय की चौड़ाई भर द्र्ाय (तनचरे तर, बतर के द्र्ाय) के वर्स्ताय से ऩाॉच मा चाय बाग कभ होना चादहमे । प्रत्मेक तर के भध्म बाग भें ऩाद एर्ॊ उत्तय (चौखट) से मुक्त द्र्ाय

स्थावऩत होना चादहमे । ऊऩयी तरों भें सोऩान का वर्धमास गबव-गह ृ (भध्म बाग) भें कयना चादहमे । ॥७८-७९॥ सोऩान चौकोय उऩऩीठ से प्रायब कयना प्रशस्त होता है । फुविभान (स्थऩतत) को न्जस प्रकाय सोऩान का तनभावण सध ु दय रगे, उस प्रकाय सभधु चत यीतत से कयना चादहमे ॥८०॥ गोऩुयारङ्काय गोऩुय के अरङ्काय - गोऩुयों के प्रत्मेक अरङ्काय का र्णवन अफ ककमा जा यहा है । द्र्ायशोबा गोऩुय का तनभावण भण्डऩ के सदृश कयना चादहमे । द्र्ायशारा गोऩुय का तनभावण दण्डशारा के सभान कयना चादहमे । द्र्ायप्रासाद

गोऩुय का तनभावण प्रासाद (भन्धदय) की आकृतत के सदृश कयना चादहमे । द्र्ायहमव गोऩुय की आकृतत भासरका की

आकृतत के सभान होनी चादहमे । द्र्ायगोऩयु सॊऻक गोऩयु का स्र्रूऩ शारा के सभान होना चादहमे । सबी गोऩयु ो का अरङ्कयण वर्शेष रूऩ से मथोधचत यीतत से कयना चादहमे ॥८१-८३॥ श्रीकय-्िायिोबा श्रीकय-यीतत से द्र्ायशोबा - श्रीकय के बी अरङ्कायों का र्णवन क्रभानुसाय ककमा जा यहा है । इसकी रफाई चौड़ाई की दग ु ुनी मा दग ु ुनी से चौथाई कभ होनी चादहमे । वर्स्ताय के ऩाॉच, सात मा नौ बाग कयने चादहमे । वर्स्ताय के बागप्रभाण से रफाई के बाग तनन्श्चत कयना चादहमे । इसे एक, दो मा तीन तर से एर्ॊ सबी अॊगों से मक् ु त तनसभवत कयना चादहमे ॥८४-८६॥

स्र्न्स्तक के आकृतत की नासा (सजार्टी छोटी र्खड़की) सबी स्थानों ऩय होनी चादहमे । साभने एर्ॊ ऩीछे भहानासी तथा दोनों ऩाश्र्ों भें र्ॊशनासी का तनभावण कयना चादहमे । सशयोबाग भें क्रकय कोष्ठ (वर्सशष्ट आकृतत) मा सभ

सॊख्मा भें स्थऩी होनी चादहमे । साथ ही इसके सशयोबाग ऩय रुऩा हो अथर्ा इसकी आकृतत भण्डऩ के सदृश होनी चादहमे ॥८७-८८॥

यनतकान्त-्िायिोबा यततकाधत यीतत से द्र्ायशोबा - यततकाधत शैरी भें रफाई चौड़ाई से डेढ़ गुनी अधधक होती है । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद सबी अॊगो को ऩर्वर्र्णवत वर्धध से कयना चादहमे । इसका सशयोबाग शारा के आकाय का होना चादहमे एर्ॊ षण्णासी (छोटी-छोटी छ् सजार्टी र्खड़ककमाॉ) साभने एर्ॊ ऩीछे होनी चादहमे तथा अधवकोदट (वर्सशष्ट आकृतत) का तनभावण कयना चादहमे । स्थवऩमों की सॊख्मा सभ होनी चादहमे । इसे अधत्ऩाद (बीतयी स्तब) एर्ॊ उत्तय से मुक्त तथा भध्मर्ेशन (भध्म बाग भें कऺ) से मुक्त साभने तनसभवत कयना चादहमे ॥८९-९०॥

कान्तविजम-्िायिोबा काधतवर्जम यीतत से द्र्ायशोबा - काधतवर्जम द्र्ायशोबा की रफाई उसकी चौड़ाई से दो ततहाई अधधक होती है । इसके तर ऩर्व र्र्णवत एर्ॊ कट तथा कोष्ठ आदद अॊग बी ऩर्वर्र्णवत वर्धध से तनसभवत कयने चादहमे । इसे बीतयी स्तबो एर्ॊ उत्तय से मुक्त तथा वर्वर्ध अगो से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । सशखय के आगे एर्ॊ ऩीछे षण्णासी (छ्

नाससमाॉ) तथा दोनों ऩाश्र्ो भे सबा के आकाय का सशयोबाग होना चादहमे , न्जस ऩय वर्षभ सॊख्मा भें स्थवऩकामें होनी चादहमे । इस प्रकाय द्र्ायशोबा के तीन बेदों का र्णवन ककमा गमा, जो अऩने सबी अॊगो से मुक्त है एर्ॊ न्जनका भुखबाग अरॊकृत है ॥९१-९३॥

विजमवििार-्िायिारा द्र्ायशारासॊऻक गोऩुय का वर्जमवर्शार प्रकाय - वर्जमवर्शार द्र्ायशारा की रफाई उसकी चौड़ाई की दग ु ुनी, सर्ा

बाग, डेढ़ बाग अथर्ा चतुथांश कभ दग ु न ु ी यखनी चादहमे । इसकी चौड़ाई के सात, नौ मा ग्मायह बाग कयने चादहमे तथा इसके दो, तीन मा चाय तर होने चादहमे ॥९४-९५॥

तीन मा चाय तरे भें असरधद्र एर्ॊ चाय भख ु ऩदट्टकामें भख ु बाग एर्ॊ ऩीछे भहानासी (फड़ी सजार्टी र्खड़की) अधवकोदट

एर्ॊ बद्रक होना चादहमे । इसका सशयोबाग शारा के आकाय का होना चादहमे एर्ॊ दोनो ऩाश्र्ों भे ऩञ्जय होने चादहमे । इसे वर्षभ सॊख्मा भें स्थवऩकाओॊ एर्ॊ सबी अॊगो से मुक्त कयना चादहमे ॥९६-९७॥ वििारारम-्िायिारा वर्शारारम प्रकाय की द्र्ायशारा - वर्शारारम द्र्ायशारा की रफाई उसकी चौड़ाई से चतुथांश कभ दग ु ुनी यखनी चादहमे । इसके तर ऩर् व र्णवत वर्धध से तनसभवत होने चादहमे तथा इसे कट एर्ॊ कोष्ठ आदद से सस ु र् ु न्ज्जत होना

चादहमे । इसको शीषवबाग ऩय अधवकोदट, बद्र तथा आगे एर्ॊ ऩीछे बद्रनासी से मुक्त कयना चादहमे । दोनों ऩाश्र्ों भे

चाय नाससमाॉ, सशखय बाग शारामुक्त एर्ॊ वर्षभ सॊख्मा भेभ स्थवऩकामें तनसभवत होनी चादहमे । शेष अॊग ऩर्व के सदृश तनसभवत होने चादहमे ॥९८-९९॥ विप्रतीकान्त-्िायिारा वर्प्रतीकाधत यीतत से द्र्ायशारा - वर्प्रतीकाधत द्र्ायशारा की रफाई उसकी चौड़ाई से दो ततहाई अथावत ् तीन बाग भें से दो बाग के फयाफय अधधक यखनी चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद सबी अॊगों को ऩहरे सभान तनसभवत कयना

चादहमे । तरों का तनभावण ऩर्वर्र्णवत वर्धध से कयना चादहमे । चायो ददशाओॊ भें बद्रक, सशखय ऩय चाय नाससमाॉ एर्ॊ सशयो बाग कोबद्र से मुक्त कयना चादहमे । इसके बीतयी बाग भें स्तब एर्ॊ उत्तय तनसभवत कयना चादहमे एर्ॊ इसे

वर्षभ सॊख्मा भें स्थवऩकाओॊ से मुक्त कयना चादहमे । इस प्रकाय सफी अर्मर्ों से मुक्त तीन प्रकाय की द्र्ायशाराओॊ का र्णवन ककमा गमा ॥१००-१०२॥ श्रीकान्त-्िायप्रासाद

द्र्ायप्रासादसॊऻक गोऩयु का श्रीकाधत प्रकाय - श्रीकाधत द्र्ायप्रासाद की रफाई उसकी चौड़ाई से डेढ गन ु ी अधधक होती है । इसकी चौड़ाई को नौ, दस मा ग्मायह बागों भें फाॉटना चादहमे । इसभें तीन, चाय मा ऩाच तर का तनभावण कयना चादहमे । द्र्ाय के ऊऩय बीतयी बाग भें यङ्ग एर्ॊ ऩरयबद्र तनसभवत कयना चादहमे । इसका सशयोबाग शारा (कोष्ठक) के आकाय का हो एर्ॊ साभने तथा ऩीछे भहानासी का तनभावण होना चादहमे । इसे अधवकोदट से मुक्त एर्ॊ चाय ऩञ्जयों से सुशोसबत होना चादहमे । श्रीकेि-्िायप्रासाद श्रीकेश यीतत से द्र्ायप्रासाद - श्रीकेश द्र्ायप्रासाद भें रफाई चौड़ाई से तीन गुनी अधधक होती है । इसके तर ऩहरे

के सदृश होने चादहमे एर्ॊ द्र्य ऩय तनगवभ कुदटभ (थोड़ा फाहय तनकरा हुआ अधधष्ठान) तनसभवत होना चादहमे । इसे अधधाय (भध्म भें न्स्थत भागव) से मुक्त एर्ॊ कट-कोष्ठ आदद सबी अर्मर्ों से मक् ु त होना चादहमे ॥१०६-१०७॥ इसे वर्सबधन प्रकाय के अधधष्ठानों, स्तबों एर्ॊ र्ेददका आदद से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । इसके बीतयी बाग भें

स्तब एर्ॊ उत्तय तथा भध्म बाग भें र्ायण का तनभावण कयना चादहमे । इसका सशयोबाग शारा के आकाय का हो एर्ॊ साभने तथा ऩीछे भहानासी होनी चादहमे । दोनों ऩाश्र्ो भें चाय नाससमाॉ तनसभवत होनी चादहमे एर्ॊ इसे सबी अॊगो से मक् ु त होना चादहमे । सबी स्थानों ऩय स्र्न्स्तक के आकृतत र्ारी नाससमाॉ सश ु ोसबत होनी चादहमे तथा इसे नधद्मार्तव गर्ाऺ एर्ॊ जारक (झयोखा) आदद से सुसन्ज्जत कयना चादहमे ॥१०८-११०॥ केिवििार-्िायप्रासाद केशवर्शारसॊऻक द्र्ायप्रासाद गोऩुय - एक्शवर्शार द्र्ायप्रासाद की रफाइ चौड़ाई के डेढ़ गुनी अधधक होती है तरों

कातनभावण ऩहरे के सभान होना चादहमे एर्ॊ भध्म बाग भें र्ायण (दारान, ओसाया) होना चादहमे । कट, कोष्ठ आदद अरॊकयणों का तनभवण ऩहरे की बाॉतत होना चादहमे । साभने, ऩीछे एर्ॊ दोनों ऩाश्र्ों भें चाय भहानासस तनसभवत कयनी चादहमे । इसका सशयोबाग सबा के आकाय का हो । उसके भख ु बाग, ऩष्ृ ठबाग एर्ॊ दोनों ऩाश्र्ों भें वर्षभ सॊख्मा भें स्थवऩकामें होनी चादहमे । इस प्रकाय द्र्ायप्रासाद गोऩुय के तीन बेद होते है ॥१११-११३॥ स्िल्स्तक-्िायहमा द्र्ायहमव गोऩुय का स्र्न्स्तकसॊऻक बेद - स्र्न्स्तकसॊऻक द्र्ायहमव गोऩुय की रफाई चौड़ाई की दग ु ुनी होती है एर्ॊ

चौड़ाई को दस, ग्मायह मा फायह बागों भें फाॉटना चादहमे । इसे चाय, ऩाॉच मा छ् तर से मक् ु त तनसभवत कयना चादहमे । बीतयी बाग भें स्तब एर्ॊ उत्तय होना चादहमे तथा तरों की मोजना ऩर्व-र्र्णवत होनी चादहमे । कट, कोष्ठ आदद सबी अर्मर्ों तथा अधधाय आदद से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । इस गोऩुय को सबाकाय सशखय से मुक्त तथा

स्र्न्स्तकाकाय नाससमों से मुक्त कयना चादहमे । सबा के अग्र-बाग भें आठ नाससमाॉ एर्ॊ वर्षभ सॊख्मा भें स्थवऩकाओॊ का तनभावण कयना चादहमे ॥११४-११६॥ ददिास्िल्स्तक-्िायहमा ददशास्र्न्स्तक सॊऻक द्र्ायहमव - ददशास्र्न्स्तक सॊऻक द्र्ायहमव गोऩुय की रफाई वर्स्ताय की दग ु ुनी होनी चादहमे । इसके तरों की मोजना कट-कोष्ठादद सज्जा ऩहरे के सदृश होनी चादहमे । इसे अधधायी (बीतयी सबन्त्त), अधधाय,

हायाङ्ग एर्ॊ खण्डहमव से मुक्त कयना चादहमे । इसका सशयोबाग आमतभण्डराकाय (गोराई सरमे रफाई) एर्ॊ साभने

तथा ऩीचे अततबद्राॊश तनसभवत कयना चादहमे । इसे चाय भहानाससमों एर्ॊ चाय ऩञ्जयों से अरॊकृत कयना चादहमे ।

बीतयी बाग को स्तब, उत्तय एर्ॊ सबी अॊगो से मुक्त कयना चादहमे । न्जनका जहाॉ उलरेख नही ककमा गमा है , उन सफको ऩहरे के सभान तनसभवत कयना चादहमे तथा वर्षभ सॊख्मा भें स्थवऩकामें तनसभवत होनी चादहमे ॥११७-११९॥ भदा र-्िायहमा भदव र सॊऻक द्र्ायहमव गोऩुय - भदव र की रफाई उसकी चौड़ाई की दग ु ुनी होती है । तरों का तनभावण एर्ॊ कट तथा कोष्ठ आदद अरॊकयणों का तनभावण ऩर्वर्र्णवत वर्धध से होता है । साभने एर्ॊ ऩीचे सबा के अग्र बाग के सदृश

तनभावण होना चादहमे तथा इसका तनगवत वर्स्ताय के तीसये बाग के फयाफय होना चादहमे । इसका शीषवबाग शारा के आकाय का हो एर्ॊ ऺुद्रनाससमों से सुसन्ज्जत हो । भुखबाग एर्ॊ ऩष्ृ ठबाग की भहानासी एर्ॊ चाय ऩञ्जयों से सज्जा होनी चादहमे । बीतय स्तब एर्ॊ उत्तय तनसभवत होना चादहमे । इस प्रकाय द्र्ायहमव तीन प्रकाय से र्र्णवत है ॥१२०१२२॥ द्र्ायगोऩुय का भाराकाण्ड सॊऻक बेद - भाराकाण्ड की रफाई चौड़ाई की दग ु ुनी होती है । इसकी चौड़ाई के ग्मायह,

फायह मा तेयह बाग कयने चादहमे एर्ॊ ऩाॉच, छ् मा सात तर होने चादहमे । तरमोजना ऩर्वर्त ् एर्ॊ कट तथा कोष्ठ आदद बी ऩहरे के सदृश होने चादहमे । इसके बीतयी बाग भें स्तब एर्ॊ उत्तय हो तथा चायो ददशाओॊ भें बद्रक

तनसभवत हो । इसे गह ृ वऩण्डी (बीतयी सबन्त्त), असरधद एर्ॊ हाया से अरॊकृत कयना चादहमे तथा खण्डहमव तनसभवत होना चादहमे । इसका सशयोबाग शारा की आकृतत का हो तथा साभने एर्ॊ ऩीछे भहानासी तनसभवत हो । दोनों ऩाश्र्ों भें ऺुद्रनाससमाॉ मथोधचत यीतत से तनसभवत होनी चादहमे ॥१२३-१२६॥ श्रीवििार-्िायगोऩुय श्रीवर्शार सॊऻक द्र्ायगोऩयु - श्रीवर्शार द्र्ायगोऩयु की चौड़ाई के ऩाॉच बाग भें से दो बाग के फयाफय अधधक रफाई यखनी चादहमे । तर-मोजना ऩहरे के सदृश होनी चादहमे तथा भर से ऊऩय क्रकयी आकाय (क्रास का आकाय) भें तनसभवत कयना चादहमे । इसके सशयोबाग ऩय क्रकयश्रेष्ठ (क्रास के आकाय का कोष्ठ) मा सबा का आकाय तनसभवत कयना चादहमे । इसे वर्सबधन प्रकाय के अधधष्ठानों, स्तबों एर्ॊ र्ेददकाओॊ से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । चायो ददशाओॊ भें भहानासी एर्ॊ ऺुद्रनासी तनसभवत कयना चादहमे । स्र्न्स्तकाकाय नाससमाॉ सबी ओय तनसभवत होनी चादहमे ॥१२७१२९॥ चतुभख ुव सॊऻक द्र्ायगोऩुय - चतुभख ुव द्र्ायगोऩुय की रफाई उसकी चौड़ाई से चाय बाग अधधक होती है । इसके तरों का बाग ऩर्व-र्र्णवत हो एर् प्रत्मेक ददशा भें बद्रक हो । हाया के भध्म भें कुबरता से मुक्त सबन्त्त हो एर्ॊ

तोयण,जारक तथा र्त्ृ तस्पुदटत (अरङ्कयणवर्शेष) आदद से सस ु न्ज्जत हो । कटों, नीडों (सजार्टी र्खड़ककमों), कोष्ठो एर्ॊ ऺुद्रकोष्ठों से अरॊकृत हो एर्ॊ गह ृ वऩण्डी, असरधद्र, हाया एर्ॊ खण्डहमव आदद से सुसन्ज्जत हो ॥१३०-१३२॥

इसका सशयो-बाग सबा की आकृतत का मा शारा की आकृतत का होता है । मह चाय नाससमों से मक् ु त होता है एर्ॊ

ऩाश्र्ों भें दो-दो नाससकामें होती है । ऊऩयी (तर) कट आदद सफी अॊगो से सुसन्ज्जत होता है तथा बीतय सोऩान से मुक्त होता है । इस प्रकाय मह गोऩुय तीन प्रकाय का होता है ॥१३३-१३४॥

श्रीकय आदद ग्ऩयु र्षाव के स्थर (र्षाव के जर के तनकास-स्थर) से मक् ु त अथर्ा इससे यदहत हो सकते है एर्ॊ मे सघन अथर्ा घनयदहत अॊगों से मुक्त आर्श्मकतानुसाय तनसभवत ककमे जाते है ॥१३५॥

शोबा आदद ऩधद्रह गोऩयु ों भें अनेक प्रकाय के स्तब, भसयक (अधधष्ठा), अनेक प्रकाय के रऺणों से मक् ु त अर्मर्,

वर्वर्ध प्रकाय के उऩऩीठ भण्डक सदहत, बद्र से मुक्त मा बद्रयदहत तथा घने मा वर्यर अॊग आदद से मुक्त एक से

रेकय सात तरों तक का तनभावण उधचत यीतत से कयना चादहमे । इनके शीषवबाग शारा के आकाय, सबा के आकाय मा भण्डऩ के आकाय के तनसभवत होने चादहमे । इस प्रकाय याजाओॊ एर्ॊ दे र्ों के बर्नों के गोऩुयों का र्णवन ककमा गमा ॥१३६-१३७॥

अध्माम २५ भण्डऩ का वर्धान - दे र्ों, ब्राह्भणों, ऺबरमों, र्ैश्मों एर्ॊ शद्रों के अनुकर भण्डऩों का र्णवन उधचत यीतत से ककमा जा यहा है ॥१॥

भण्डऩमोग्मदे ि भण्डऩ के अनक ु र स्थान (भण्डऩों का स्थान) प्रासाद (दे र्ारम) के अग्र बाग भें, ऩण् ु मऺेर (तीथवस्थर) भें , आयाभ

(उद्मान, ऩाकव) भें, ग्राभ आदद र्ास्तुऺेर के फीच भें, चायो ददशाओॊ एर्ॊ ददशाओॊ के कोणों भें , गह ृ ों के फाहय, बीतय, भध्म भें एर्ॊ साभने होता है ॥२॥ भण्डऩ की आिश्मकता (भण्डऩ के प्रमोजन इस प्रकाय है -) र्ास के सरमे भण्डऩ, मऻ-भण्डऩ, असबषेक आदद उत्सर्ों के अनुरूऩ भण्डऩ, नत्ृ म

के सरमे भण्डऩ, र्ैर्ादहक कामव के सरमे भण्डऩ, भैर (साभदहक उत्सर्, कामवक्रभ) एर्ॊ उऩनमन सॊस्काय के मोग्म भण्डऩ, आस्थान-भण्डऩ (याजा की सबा अथर्ा दे र्ों के जन-साभाधम के दशवन हे तु वर्शेष अर्सयों ऩय तनसभवत भण्डऩ),

फरारोनक-भण्डऩ (सैधम कामवसम्फधधी भण्डऩ), सन्धधकामावहवक भण्डऩ (न्जस भण्डऩ भें सन्धध आदद से सम्फन्धधत कामव सम्ऩधन हो), ऺौय भण्डऩ (जहाॉ भुण्डन आदद कामव सम्ऩधन हो) तथा बुन्क्तकभवसुखान्धर्त भण्डऩ (जहाॉ सभहबोज एर्ॊ सुख उठामा जाम) ॥३-५॥

भण्डऩों के नाभ - अफ उन भण्डऩों के नाभों का क्रभश् वर्धधऩर्वक उलरेख ककमा जा यहा है । मे सोरह चतुष्कोण भण्डऩ है , जो दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के सरमे होते है । (उनके नाभ इस प्रकाय है ) - भेरुक, वर्जम, ससि, ऩद्मक, बद्रक, सशर्, र्ेद, अरॊकृत, दबव, कौसशक, कुरधारयण, सुखाङ्ग, गबव, भालम तथा भालमाद्भत ु ॥६-७॥ धन, सुबषण, आहलम, स्रुगक, कोण, खर्वट, श्रीरूऩ एर्ॊ भङ्गर- मे आठ आमाताकाय भण्डऩ दे र्ता आदद के एर्ॊ याजाओॊ के अनुकर होते है तथा र्ैश्म एर्ॊ शद्रोभ के अनुकर भण्डऩों के नाभ इस प्रकाय है - भागव, सौबद्रक, सुधदय, साधायण, सौख्म, ईश्र्यकाधत, श्रीबद्र तथा सर्वतोबद्र ॥८-१०॥

इनके स्तम्बों के बन्क्तभान (वर्बाजन का प्रभाण) रम्फाई एर्ॊ चौडाई, इनके अधधष्ठान, आकाय, प्रऩा (तनसभवतत वर्शेष), भध्मभ यङ्ग, अरङ्काय, स्तम्बों के ऩऺ (स्तम्बों की मोजना) एर्ॊ उनकी आकृतत- इन सबी का र्णवन अफ भैं (भम ऋवष) कयता हॉ ॥११-१२॥

बल्क्तभान बन्क्त का प्रभाण, प्रभाणमोजना - डेढ़ हाथ से प्रायम्ब कय छ्-छ् अगुर फढ़ाते हुमे ऩाॉच हाथ तक ऩधद्रह प्रकाय के स्तम्ब-भान प्राप्त होते है । इसकी रम्फाई का भान चौड़ाई के बन्क्तभान से ग्रहण ककमा जाता है । चौड़ाई से ग्रहण ककमे गमे रम्फाई के भान के सरमे चौड़ाई को एक, दो, तीन, चाय मा ऩाॉच बाग भें फाॉटना चादहमे एर्ॊ रम्फाई को एक बाग अधधक होना चादहमे । अऩने वर्स्ताय के बन्क्तभान से तीन-तीन अॊगुर फढ़ाते हुमे एक हाथ तक रे जाना चादहमे । इस प्रकाय रम्फाई के आठ प्रभाण प्राप्त होते है । इससे प्रभाणमोजना फनानी चादहमे तथा सबी रम्फे भण्डऩ इसी बन्क्तभान से तनसभवत होने चादहमे ॥१३-१६॥ स्तर्मबभान स्तम्ब-प्रभाण - ढाई हाथ से प्रायम्ब कय छ्-छ्- अॊगुर फढ़ाते हुमे आठ हाथ तक स्तम्ब की ऊॉचाई रे जानी चादहमे । इस प्रकाय स्तम्ब के तेईस प्रभाण फनते है । अथर्ा तीन-तीन अॊगुर फढ़ाते हुमे स्तम्ब का भान प्राप्त होता है ॥१७॥

स्तम्ब का वर्स्ताय (घेया) आठ अॊगुर से प्रायम्ब कय आधा अॊगुर फढ़ाते हुमे उधनीस अॊगुर तक रे जाना चादहमे । इस स्तम्ब के भर का वर्स्ताय प्राप्त कयने के सरमे उसकी ऊॉचाई के ग्मायह, दस, नौ मा आठ बाग कयने चादहमे एर्ॊ उसभें से एक कभ कयने ऩय (दस, नौ, आठ, सात बाग) भर के वर्स्ताय मा ऩरयधध का होता है ॥१८-१९॥ अथधष्ठानोत्सेध अधधष्ठान की ऊॉचाई - साभाधमतमा सबी र्ास्तओ ु ॊ भे स्तम्ब की ऊॉचाई के आधे प्रभाण से अधधष्ठान का भान

यक्खा जाता है । अथर्ा स्तम्ब की ऊॉचाई के ऩाॉच बाग कयने ऩय अधधष्ठान दो बाग के फयाफय यक्खा जाता है मा स्तम्ब की ऊॉचाई के तीन बाग कयने ऩय एक बाग के फयाफय अधधष्ठान यक्खा जाता है ॥२०-२१॥ उऩऩीठोत्सेध उऩऩीठ की ऊॉचाई - अधधष्ठान उऩऩीठ से मुक्त मा केर्र अधधष्ठान (उऩऩीठयदहत अधधष्ठान) होना चादहमे । उऩऩीठ ऊॉचाई भें अधधष्ठान के फयाफय, उसका दग ु न ु ा मा तीन गन ु ा होता है । अथर्ा उसकी ऊॉचाई उसी प्रकाय यखनी चादहमे, जैसी उऩऩीठवर्धान के प्रसॊग भें र्र्णवत है । उऩऩीठ की ऊॉचाई इच्छानुसाय मा आर्श्मकतानुसाय यखनी चादहमे ।

उऩऩीठ, तर (अधधष्ठान), स्तम्ब एर्ॊ प्रस्तय की सज्जा के वर्षम भें ऩहरे कहा जा चुका है । शेष मथार्सय कयना चादहमे ॥२२-२४॥

भण्डऩ का रऺण - अधधष्ठान, उसके ऊऩय स्तम्ब एर्ॊ प्रस्तय- इन तीन र्गो से मुक्त, कऩोत एर्ॊ प्रतत से मुक्त तनभावण को भण्डऩ कहा जाता है ॥२५॥ भण्डऩिब्दाथा भण्डऩ शब्द का अथव - भण्ड अथावत अरङ्कयण । उसकी जो यऺा कयता है , उसे भण्डऩ कहते है ।

प्रऩारऺण प्रऩा का रऺण - सबी र्णों के अनुकर प्रऩा के साभाधम स्र्रूऩ का र्णवन कयता हॉ । इसके स्तम्ब बतर से

प्रायम्ब होते है एर्ॊ इनके ऊऩय उत्तय होते है । उत्तय (स्तम्ब के ऊऩय सबन्त्त), उसके ऊऩय ऊध्र्वर्ॊश (प्रधान र्ॊश, छाजन के रट्ठे ) होते है । इनके साथ प्राग्र्ॊश (प्रधान र्ॊश से जुड़े ऩर्व की ओय जाने र्ारे अॊश), अनुर्ॊश (सहामक र्ॊश) आदद होते है । प्रऩा का आच्छादन नारयमर के ऩत्ते तथा अधम ऩत्तों से ककमा जाता है ॥२६-२७॥

स्तम्बों की रम्फाई ऩर्वर्णवन के अनस ु ाय यखनी चादहमे । स्तम्ब का वर्ष्कम्ब (स्तम्ब का घेया) चाय, छ्, आठ मा

दस अॊगुर होना चादहमे । मह भान सायदारु (ठोस काष्ठ) से तनसभवत स्तम्ब का कहा गमा है । र्ॊश-तनसभवत स्तम्ब का भान बी मही है । जहाॉ जैसी आर्श्मकता हो, र्हाॉ र्ैसा तनभावण कयना चादहमे ॥२८-२९॥ स्तम्ब की ऊॉचाई के दस, नौ, आठ, सात, छ् मा ऩाॉच बाग कयना चादहमे । यङ्गरऺण यङ्ग का रऺण - (ऩर्वर्र्णवत बाग के फयाफय) र्ेददका की ऊॉचाई होनी चादहमे । एक बाग से भध्म बाग भें यङ्ग तनसभवत कयना चादहमे । स्तम्ब की ऊॉचाई के चाय बाग कयने ऩय एक बाग से भसयक (अधधष्ठान), दो बाग से स्तम्ब की रम्फाई एर्ॊ एक बाग से प्रस्तय तनसभवत कयना चादहमे ॥३०-३१॥ बर्न-मोजना सभ सॊख्मा भे हो मा वर्षभ सॊख्मा भें हो, यङ्ग की वर्शारता दो बाग मा एक बाग यखनी चादहमे । आठ स्तम्बों से मुक्त अथर्ा चाय स्तम्बों से मुक्त यङ्ग का तनभावण प्रऩा आदद के सभान कयना चादहमे ॥३२॥ यङ्ग सबी अॊगो से मुक्त एर्ॊ सभधश्रत ऩदाथो से मुक्त होता है । शारा, सबागाय, प्रऩा एर्ॊ भण्डऩों के भध्म भें - इन चाय स्थरों ऩय यङ्ग का तनभावण होता है । इसका भान तीन प्रकाय का कहा गमा है ॥३३-३४॥ भामरकाभण्डऩ भासरका-भण्डऩ - भण्डऩ के ऊऩय का तर भासरका भण्डऩ होता है । मदद भण्डऩ के दो तर हो तो र्ह सशखयमुक्त होता है । दोनों तरों के भध्म भें न्स्थत बाग को प्रततभध्म कहते है ॥३५॥ भेरुक भेरुक - भेरुक भण्डऩ चौकोय, चाय स्तम्बों से मुक्त, एक बाग (बन्क्त) भाऩ का तथा आठ नाससकाओॊ से मुक्त होता है । इसे ब्रह्भासन कहा गमा है ॥३६॥

वर्जम - वर्जम सॊऻक भण्डऩ दो फन्क्त से मुक्त एर्ॊ चतुष्कोण होता है । मह आठ स्तम्बों एर्ॊ आठ नाससमों से

अरॊकृत होता है । मह अधधष्ठान से मुक्त एर्ॊ भध्म स्तम्ब से यदहत होता है । वर्र्ाह के सरमे नौ स्तम्बों से मुक्त प्रऩा तनसभवत होनी चादहमे ॥३७-३८॥ मसद्ध

ससि - ससि सॊऻक भण्डऩ तीन बन्क्त (प्रभाण की इकाई) र्ारा, चतष्ु कोण, सोरह स्तम्ब से मक् ु त, सोरह नाससकाओॊ से मुक्त एर्ॊ भध्म भें आॉगन से मुक्त होना चादहमे, न्जसके ऊऩय भध्मबाग भें कट हो सकता है । चायो ददशाओॊ भें चाय द्र्ाय हो । फाहयी द्र्ायों कोचाय तोयणों से अरॊकृत कयना चादहमे । मह भण्डऩ दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के मऻ-कामव के अनुकर होता है । मह ससि नाभक भण्डऩ सबी कामों के अनुकर कहा गमा है ॥३९-४१॥ मागभण्डऩ मऻभण्डऩ - फवु िभान स्थऩतत को भण्डऩ के बीतयी बाग को इक्मासी बागों भें फाॉटना चादहमे । भध्म के नौ बागों

भें र्ेदी होती है । चायो ओय तीन बाग छोड़कय भध्म भें चौकोय, मोतन के आकाय का, अधवचधद्रकाय, बरकोण, र्त्ृ ताकाय, षटकोण, ऩद्मऩुष्ऩ के आकाय का मा अष्टकोण कुण्ड ऩर्व ददशा से प्रायम्ब कयते हुमे तनसभवत कयना चादहमे ॥४२॥ कुण्डरऺण कुण्ड का रऺण - (कुण्ड के सरमे) एक हाथ चौड़ा तथा एक हाथ गहया चौकोय गड्ढा तनसभवत कयना चादहमे । मदद

इसे तीन भेखरा से मक् ु त कयना हो तो तीन सर मा दो भेखरा से मक् ु त कयना हो तो दो सर खीॊचना चादहमे । इन भेखराओॊ की ऊॉचाई सात, ऩाॉच मा तीन अॊगुर यखनी चादहमे ॥४३॥

उऩमक् ुव त भेखराओॊ की चौड़ाई क्रभश् चाय, तीन एर्ॊ दो अॊगर ु यखनी चादहमे । मोतन की आकृतत गज के ओष्ठ के

सभान तनसभवत कयना चादहमे । इसकी चौड़ाई, रम्फाई एर्ॊ गहयाई क्रभश् चाय, छ् एर्ॊ एक अॊगुर यखनी चादहमे तथा इसे अन्ग्न की ओय होना चादहमे ॥४४॥

कुण्ड के भेखराओॊ की ऊॉचाई चाय, तीन मा दो अॊगर ु होनी चादहमे । अथर्ा कुण्ड की गहयाई एक बफत्ता हो एर्ॊ एक भेखरा से मुक्त हो । सबी कुण्डों की मोतन कोने भें नही होनी चादहमे ॥४५॥

कुण्ड का केधद्र (नासब) कभर के सभान होना चादहमे । इसकी आकृतत र्त्ृ त के सभान होनी चादहमे । इसका व्मास चाय, ऩाॉच मा छ् अॊगुर होना चादहमे तथा इसकी ऊॉचाई चाय मा तीन बाग होनी चादहमे ॥४६॥ मोननकुण्ड मोतन की आकृतत का दण्ड - कुण्ड के ऩर्व बाग को ऩाॉच बागों भें फाॉटना चादहमे । कोण से आधा बाग ग्रहण कय (सीधी ये खा द्र्ाया उत्तय एर्ॊ दक्षऺण के) भध्म बाग को जोड़ना चादहमे । इसके ऩश्चात ् (उत्तय, ऩन्श्चभ) कोण को

गोराई से घेयना चादहमे । इसी प्रकाय दसयी ओय बी कयना चादहमे अथावत ् दक्षऺण-ऩन्श्चभ के कोण को बी गोराई से घेयना चादहमे । इस प्रकाय दो सरों के प्रमोग से मोतन की आकृतत तनष्ऩधन होती है ॥४७॥ अधाचन्द्रकुण्ड अधवचधद्रकाय कुण्ड - कुण्ड के व्मास के दसर्े बाग भें ऊऩय एर्ॊ नीचे (बफधद ु फनाना चादहमे । उस बफधद ु से) ज्मासर

(सीधी ये खा) खीॊचना चादहमे । इस भान से अधवचधद्राकाय ये खा खीॊचनी चादहमे । इस प्रकाय र्ास्तुवर्द्मा के ऻाता को अधवचधद्रकुण्ड तनसभवत कयना चादहमे ॥४८॥

त्र्मस्त्रकुण्ड बरकोण कुण्ड - चौकोय ऺेर के व्मास के आठ बाग भें छ् बाग कयके तीन सरों से त्र्मस्र कुण्ड तनसभवत होता है । ित्ृ तकुण्ड र्त्ृ ताकाय कुण्ड - बरकोण कुण्ड का र्णवन ककमा जा चुका है । ऺेर को अट्ठायह बागों भें फाॉटना चादहमे । र्त्ृ ताकाय

कुण्ड इस प्रकाय तनसभवत कयना चादहमे (सुर इस प्रकाय घुभाना चादहमे), न्जससे कक कुण्ड एक बाग फाहय यहे ॥४९॥ छ् कोण का कुण्ड - (चतष्ु कोण) कुण्ड के ऺेर को ऩाॉच बागों भें फाॉटना चादहमे । एक र्त्ृ त इस प्रकाय खीॊचना चादहमे, न्जससे उसकी ऩरयधध उन ऩाॉच बागों से अधधक हो । इसके ऩश्चात ् प्रत्मेक बाग भें भत्स्म की आकृतत तनसभवत कयनी चादहमे । इस प्रकाय छ् सरों के द्र्ाया षटकोण कुण्ड तनसभवत होता है ॥५०॥

ऩद्माकाय कुण्ड - ऩर्वर्र्णवत वर्धध से र्त ृ फनाकय उसके भध्म भें एक र्त्ृ त तनसभवत कयना चादहमे । इसके ऩश्चात ् भध्म से प्रायम्ब कयते हुमे ऩद्म का आकाय एर्ॊ कर्णवका आदद न्जस प्रकाय फने, उस प्रकाय वर्द्र्ान को ऩद्मकुण्ड तनसभवत कयना चादहमे । ॥५१॥ अष्टकोण कुण्ड - कुण्ड के ऺेर को चौफीस बागों भें फाॉटना चादहमे । एक बाग फाहय यहे , इस प्रकाय एक र्त्ृ त

खीॊचना चादहमे । दोनों कोणों से एर्ॊ कोणों के अधव बाग से आठ सरों (ये खाओॊ) से अष्टकोण कुण्ड तनसभवत कयना चादहमे ॥५२॥ सततास्त्रकुण्ड सप्तकोण कुण्ड - कुण्ड के ऺेर को दस बागों भें फाॉटना चादहमे । उसभें एक र्त्ृ त इस प्रकाय खीॊचना चादहमे , न्जससे एक बाग ऺेर के फाहय यहे । सात सरों के प्रमोग से सप्तकोण कुण्ड तनसभवत होता है , न्जसका ऩट्टदै घ्म (सात कोणों का भाऩ) तैतीस हो एर्ॊ ऺेर का भाऩ चौसठ हो ॥५३॥ ऩञ्चास्रकुण्ड ऩञ्चकोण कुण्ड - कुण्ड के ऺेर को सात बागों भें फाॉटना चादहमे एर्ॊ उसभें एक र्त्ृ त इस प्रकाय खीॊचना चादहमे , न्जससे उसका एक बाग फाहय यहे । ऩाॉच सरों के द्र्ाया ऩञ्चकोण कुण्ड फनाना चादहमे, न्जससे ऩट्ट का आमाभ चतुष्कोण का तीन चौथाई हो ॥५४॥

प्राप्त बागों के उतने बाग कयके ऩहरे के सभान एक-एक बाग कभ मा अधधक कयते हुमे कोणों को ऩरयधध के फयाफय तनसभवत कयना चादहमे । इस प्रकाय फुविभान स्थऩतत को सबी प्रकाय के कुण्डों की मोजना कयनी चादहमे ॥५५॥

ऩाॉच भें तीन चतुथांशमक् ु त एक बाग, सात भें दो बाग, सोरह भें ऩाॉच बाग, नौ भें तीन चतथ ु ांशमक् ु त एक बाग,

ग्मायह भें डेढ़ बाग, तेयह भें सर्ा एक बाग कहा गमा है । ऩधद्रह भें एक बाग कभ एर्ॊ सोरह बाग, सरह बाग तथा उधनीस बाग भें क्रभश् आठ बाग कभ होना चादहमे ॥५६॥

मसद्ध ससिभण्डऩ - मदद ससि भण्डऩ को दे र्ारम के सम्भुख स्थावऩत ककमा जाम तो उसभें अधधष्ठान, स्तम्ब, प्रस्तय एर्ॊ

र्गव दे र्ारम के अॊग के सभान होने चादहमे । मह एक, दो मा तीन द्र्ायों से मक् ु त हो एर्ॊ सबन्त्त ऩय कुम्बरता का अॊकन होना चादहमे ॥५७-५८॥

भण्डऩ के भध्म भें बद्रक (ऩोचव) तनसभवत कयना चादहमे , न्जसका व्मास स्तम्ब के व्मास का एक गुना (फयाफय), दग ु ुना

मा तीन गन ु ा यखना चादहमे । इसे तोयण से मक् ु त, सबी अॊगों एर्ॊ दे र्ों की आकृततमो से मक् ु त तनसभवत कयना चादहमे ॥५९॥

भण्डऩ की सबन्त्त का वर्ष्कम्ब (भोटाई) प्रधान बर्न (मा दे र्ारम) की भोटाई के फयाफय तीन चौथाई अथर्ा तीन भें दो बाग के फयाफय होना चादहमे । मह सबी बर्नों के सम्भख ु अधतयार (भागव) से मुक्त एर्ॊ र्ेश (आच्छाददत स्थर) से मुक्त होना चादहमे ॥६०॥ ऩद्मक ऩद्मक - चौकोय ऺेर को चाय बन्क्त (इकाई भाऩ) एर्ॊ चाय द्र्ाय से मुक्त कयना चादहमे । भुखबाग एर्ॊ ऩष्ृ ठबाग ऩय दो बन्क्त एर्ॊ एक बाग से तनगवभ का वर्स्ताय यखना चादहमे । भख ु बाग एर्ॊ ऩष्ृ ठबाग ऩय दो बन्क्त एर्ॊ एक बाग से तनगवभ का वर्स्ताय यखना चादहमे । भध्म बाग भें स्तम्ब नही होना चादहमे एर्ॊ दो बन्क्त से ऊध्र्वकट का तनभावण कयना चादहमे ॥६१-६२॥ इसभें ततये सठ स्तम्ब तथा अट्ठाईस अलऩनाससकामें (छोटी सजार्टी र्खड़ककमाॉ) होनी चादहमे । चायों ददशाओॊ भें सोऩान होने चादहमे एर्ॊ राङ्गर के आकाय की सबन्त्त होनी चादहमे । आठ ऩञ्जय (सजार्टी अॊग) होने चादहमे । ऩद्मक (कभरऩुष्ऩ के सभान) इस भण्डऩ की सॊऻा ऩद्मक है । दे र्ारम के सम्भुख मह भण्डऩ दे र्ों के असबषेक के

सरमे प्रशस्त होता है । मह एक भुख र्ारा हो तो भध्म भें आॉगन होना चादहमे । मह मऻकामव के अनुकर होता है एर्ॊ आठों ददशाओॊ भें र्ायण (ककसी बी ददशा भें ) हो सकता है ॥६३-६५॥ बद्रक बद्रक - बद्रक भण्डऩ चौकोय होता है एर्ॊ इसका भाऩ ऩाॉच बाग यक्खा जाता है । भध्म बाग भें तीन बाग से कट एर्ॊ चायो ओय एक बाग से भण्डऩ तनसभवत होता है । मह फत्ती स्तम्बों एर्ॊ चौफीस नाससकाओॊ से मुक्त तथा आठ ऩञ्जयों से मुक्त होता है । सबन्त्त कुम्बरता से सुसन्ज्जत होती है ॥६६-६७॥

चायो ददशाओॊ भें चाय द्र्ाय एर्ॊ कोनों ऩय राङ्गरसबन्त्त (हर के आकाय की सबन्त्त) होनी चादहमे । अथर्ा भध्म बाग भें आॉगन हो एर्ॊ तीन बन्क्त (तीन ईकाई) वर्स्तय र्ारे स्तम्बों से मुक्त यखना चादहमे । भण्डऩ को बर्न के

सतह के फयाफय, दस मा आठ बाग कभ यखना चादहमे । मह भण्डऩ (दे र्ाददकों के) स्नान के सरमे एर्ॊ नत्ृ म के सरमे अनक ु र होता है ॥६८-६९॥ मिि

सशर्-भण्डऩ - मह छ् बन्क्त र्ारा चौकोय भण्डऩ होता है । इसभें आठ स्तम्ब एर्ॊ कट होते है । मद दो बन्क्त वर्स्तत ृ होता है एर्ॊ बाग से र्क्रतनष्क्राधत तनसभवत होता है । इसभे भध्म बाग को छोड़कय साठ स्तम्ब, चौफीस नाससमाॉ होती है एर्ॊ मह सबी अरङ्कायों से सुसन्ज्जत होता है । सशर् नाभक मह सबी बर्नों के सरमे सदा उऩमुक्त होता है ॥७०-७१॥ िेद र्ेद - मह चौकोय एर्ॊ सात बाग से मक् ु त होता है । मह साठ स्तम्बों से मक् ु त होता है । उसके भध्म भें नौ बग से आॉगन हो, जो कट से अरॊकृत हो (अथर्ा खुरा हो) सकता है । इसभें फत्तीस नाससमाॉ एर्ॊ चायो ददशाओॊ भें र्ायण होता है । ॥७२-७३॥

इस भण्डऩ को तीन बाग के भाऩ र्ारे भुखबद्रक (साभने ऩोचव) से मुक्त कयना चादहमे, न्जसभें एक बाग से तनगवभ तनसभवत हो । इसे भध्म यङ्ग से मुक्त एर्ॊ इन्च्छत ददशा भें सबन्त्त से मुक्त होना चादहमे । मह दे र्ों एर्ॊ याजाओॊ का आस्थान भण्डऩ (जहाॉ श्रोता-दशवक फैठते है ) है एर्ॊ असबषेक आदद कामों के सरमे उऩमुक्त होता है । इसे र्ेद (भण्डऩ) कहा गमा है ॥७४-७५॥ अरङ्कृत अरॊकृत - मह भण्डऩ चौकोय, आठ बन्क्तमुक्त एर्ॊ अस्सी स्तम्बों से मुक्त होता है । इसभें चाय बाग से ऊध्र्वकट एर्ॊ दो बागों से बद्रक तनसभवत होना चादहमे । चायो ददशाओॊ भें चाय द्र्ाय एर्ॊ फगर भें सीढ़ी होनी चादहमे । सबी अरॊकायो से मुक्त इस भण्डऩ को अरॊकृत कहा गमा है ॥७६-७७॥ इसके ब्रह्भस्थर (केधद्रबाग भें ) जरऩाद (जर का स्थान) हो सकता है , न्जसके चायो ओय एक बाग से ऩैदर चरने का भागव हो एर्ॊ दो बाग से ढॉ का हुआ भण्डऩ तनसभवत हो । भुखबद्र ऩर्व-र्र्णवत यीतत से हो एर्ॊ अबीन्प्सत ददशा भें बद्रक तनसभवत हो । इसे ग्राभ आदद के ब्रह्भस्थान (केधद्र) भें तनसभवत कयना चादहमे ॥७८-७९॥ दबा दबव - मह भण्डऩ नौ बन्क्तप्रभाण का एर्ॊ एक सौ स्तम्बों से मक् ु त होता है । इसका बद्र तीन बाग वर्स्तत ृ (तथा

एक बाग से तनगवभमुक्त) एर्ॊ चाय द्र्ायों से मुक्त होता है , जो सोऩान से मुक्त होते है । उसके कोनों भें राङ्गर के आकाय की सबन्त्त होती है । इसे नौ यॊ गो से तथा अड़तारीस अलऩनाससमों से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । मह नौ ब्रह्भाओॊ (ब्रह्भा के नौ ऋवषऩुरों) से ऩन्जत एर्ॊ ग्राभ तथा बर्न आदद के भध्म भें होता है । सबी अरॊकायों से मुक्त दबवसॊऻक भण्डऩ अत्मधत सुधदय होता है । ॥८०-८१-८२॥ कौमिक कौसशक - दस अॊशो र्ारा चौकोय भण्डऩ एक सौ फायह स्तम्बों से मुक्त होता है । मह नौ कटों से मुक्त एर्ॊ एक

बाग के अधतयार से मुक्त होता है । इसे 'कौसशक' कहते है । चतुष्कोण होने ऩय मह 'जाततक' होता है । मदद इसभें एक भुख (द्र्ाय) एर्ॊ एक बद्र हो तो इसे 'नधद' कहते है तथा दो भुख होने ऩय इसकी सॊऻा "बद्रकौसशक' होती है । तीन भुख होने ऩय 'जमकोश' तथा चाय भुख होने ऩय इसे 'ऩणवकोश' कहते है । मह अधधष्ठान, स्तम्ब एर्ॊ कोनों ऩय

राङ्गर के आकाय की सबन्त्त से मक् ु त होता है । इसे अड़तारीस अलऩनाससकाओॊ एर्ॊ सबी अरङ्कयणों से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । ॥८३-८४-८५॥ कुरधायण कुरधायण - इसभें एक सभचतुष्कोण ऺेर ग्मायह बाग से मुक्त होता है । इसके चायो ओय एक बाग से भण्डऩ तनसभवत होता है । चायो कोणों ऩय दो बाग से चाय कट होते है ॥८६-८७॥

चायो ददशाओॊ भें दो बाग चौड़ा एर्ॊ तीन बाग रम्फा कोष्ठ होना चादहमे । तीन बन्क्तभाऩ का चौकोय भध्मयङ्ग एर्ॊ उसके ऊऩय कट होना चादहमे । कट एर्ॊ शारा के फीच भें क्रकयीकृत (क्रास के आकाय भें ) भागव होने चादहमे । जातत आदद को भख ु बद्र आदद सबी अॊगो से मक् ु त होना चादहमे ॥८८-८९॥

ऊऩयी बाग भें सबाङ्ग, नीड, प्रस्तय एर्ॊ नौ फोधक होना चादहमे । भण्डऩ ढका हुआ अथर्ा खुरा हुआ गोऩनीम अथर्ा खुरे कामव की आर्श्मकता के अनुसाय तनसभवत ककमा जा सकता है । इस सभ-चतुष्कोण भण्डऩ को कुरधायण कहते है । ॥९०॥ सुखाङ्ग सुखाङ्ग - इस भण्डऩ भें फायह बागों र्ारा सभ चतुष्कोण ऺेर होता है , न्जसके आठों ददशाओॊ एर्ॊ भध्म बाग भें दो ईकाई भाऩ के ऊध्र्वकट होते है । उसके फाहय एक बाग भाऩ का असरधद्र (गसरमाया) चायो ओय होना चादहमे ॥९१९२॥ इसभें आॉगन मा सबा-स्थर एर्ॊ कोने भें राङ्गर के आकाय की सबन्त्त होनी चादहमे । चायो ददशाओॊ भें चाय बाग से वर्स्ताय यक्खा जाम एर्ॊ दो बाग से तनगवभ तनसभवत हो । सोऩान ऩाश्र्व भें हो तथा आठ ऩञ्जयों से मुक्त हो । भण्डऩ के प्रायन्म्बक अॊग (अधधष्ठान) भें एक सौ साठ स्तम्ब होने चादहमे । मथोधचत स्थान ऩय नाससकामें होनी चादहमे । इस प्रकाय तनसभवत भण्डऩ को सुखाङ्ग कहते है ॥९३-९४॥ सौर्मम सौम्म - सौख्म (सौम्म)भण्डऩ भें तेयह बाग का सभ-चतुष्कोण ऺेर होता है । इसके चायो ओय दो बाग से भण्डऩ

एर्ॊ एक बाग से क्रकयी-ऩथ होना चादहमे । तीन बाग से भध्म यॊ ग एर्ॊ ऊऩयी बाग भें ऊध्र्व कट एर्ॊ स्थऩी से मुक्त नीव्र होता है । ॥९५-९६॥

भण्डऩ के भध्म भें स्तम्ब नही होना चादहमे । चायो कोणों ऩय दो बाग से कट एर्ॊ चायो ददशाओॊ भें दो बाग चौड़े एर्ॊ तीन बाग रम्फे चाय कोष्ठ होने चादहमे । इसका भुखबाग नधद वर्धध (श्रोक ८४-८५) के अनुसाय बद्र (ऩोचव) से मक् ु त होना चादहमे । सबन्त्त का तनभावण इन्च्छत ददशा भें कयना चादहमे । इसभें एक सौ चायासी स्तम्ब एर्ॊ सबी प्रकाय के अरॊकयण होने चादहमे । मह भण्डऩ दे र् , ब्राह्भण एर्ॊ याजाओॊ के सरमे उऩमुक्त होता है ॥९७-९८॥ गबा

गबवभण्डऩ - चौदह बाग वर्स्ताय र्ारा मह भण्डऩ चौकोय होता है । दो बाग से गबवकट (भध्म बाग के ऊऩय तनसभवत कट) होना चादहमे, न्जसके चायो ओय एक बाग से असरधद्र (गसरमाया) तनसभवत हो । एक बाग से अधतयार (भागव) तनसभवत होना चादहमे , न्जसके ऊऩय छत न तनसभवत हो ॥९९-१००॥ चायो कोनों ऩय दो-दो बाग से आॉगन तनसभवत होने चादहमे , न्जनके ऊऩय ऊध्र्वकट हो सकते हो (मा आॉगन खुरे यह

सकते है ) । चायो ददशाओॊ भें दो बाग चौड़े एर्ॊ तीन बाग रम्फे आॉगन मा तो कोष्ठ से मुक्त (मा वर्ना कोष्ठ के) होने चादहमे । उनके फाहय चायो ओय एक बाग से असरधद्र होना चादहमे ॥१०१॥

अबीष्ट ददशा भें सबन्त्त हो एर्ॊ आठो ददशाओॊ भें बद्र तनसभवत होने चादहमे । अधधष्ठान ऩय दो सौ आठ स्तम्ब तनसभवत होने चादहमे । गबवसॊऻक सुधदय भण्डऩ दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के अनुकर होता है ॥१०२-१०३॥ भापम भालम - इस भण्डऩ भें ऩधद्रह बाग वर्स्तत ृ चौकोय ऺेर होता है । इसके भध्म भें तीन बाग से ऊध्र्वकट-मुक्त

भध्मयॊ ग अथर्ा आॉगन होना चादहमे । चायो ओय एक बाग से असरधद्र तथा एक बाग से अधतयार होना चादहमे । शेष अॊग ऩर्वर्र्णवत होने चादहमे; ककधतु कोष्ट एक बाग अधधक रम्फा होना चादहमे । अधधष्ठान ऩय दो सौ फत्तीस स्तम्ब होने चादहमे । सबी सज्जाओॊ से मुक्त इस भण्डऩ की सॊऻा भालम होती है । ॥१०४-१०६॥ भापमाद्भत ु भालमाद्भत ु भ ् - भालमाद्भत ु भण्डऩ सोरह बागों के सभ-चतुष्कोण ऺेर से मुक्त होता है । दो बाग से ऊध्र्वकट होता है एर्ॊ एक बाग भाऩ के असरधद्र से तघया होता है । साभने दो बाग एर्ॊ एक बाग भाऩ का बद्र होता है एर्ॊ कोने भें

राङ्गर के आकाय की सबन्त्त होती है । ऩाश्र्व भें सीढ़ी तनसभवत होती है एर्ॊ मह धचर-प्रस्तय से मुक्त होता है ॥१०७१०८॥

उसके फाहय दो बाग के प्रभाण से चायो ओय जरऩाद (जरस्थान) होना चादहमे तथा उसके फाहय चायो ओय चाय बाग भाऩ का भण्डऩ होना चादहमे । दो बाग का चौकोय ऺेर हो एर्ॊ एक बाग से व्मर्धान (अधतयार) तनसभवत हो । उसके भध्म भें चायो ओय सोरह बागों र्ारा आॉगन होना चादहमे ॥१०९-११०॥ कोनों ऩय राङ्गर के आकाय की सबन्त्त हो एर्ॊ ऊध्र्व बाग ऩय हायाभागव से अरॊकयण हो । दो बाग वर्स्तत ृ ऺेर

तनगवभ से मुक्त हो एर्ॊ चायो ददशाओॊ भें बद्र तनसभवत हो । ऩाश्र्व भें सीढ़ी हो एर्ॊ सबी प्रकाय के आबयणों से मुक्त हो । मे सोरह प्रकाय के चौकोय भण्डऩ दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के सरमे उऩमुक्त होते है ॥१११-११२॥

फुविभान व्मन्क्त (स्थऩतत) को उऩमुक् व त चतुष्कोण भण्डऩों भें प्रत्मेक भें ऩाश्र्ो भें एक-एक बाग फढ़ाते हुमे फत्तीस बाग तक वर्स्ताय रे जाना चादहमे । मे भण्डऩ खुरे मा फधद हो सकते है एर्ॊ आर्श्मकतानुसाय सबन्त्त एर्ॊ स्तम्ब तनसभवत ककमे जाने चादहमे । फुविभान व्मन्क्त को मथार्सय एर्ॊ शोबा के अनुकर भण्डऩ-तनभावण कयना चादहमे । आमताकाय भण्डऩो का र्णवन इस प्रकाय ककमा गमा ॥११३-११४॥ धन

धन - मह भण्डऩ तीन बाग चौड़ा एर्ॊ रम्फाई भें दो बाग अधधक होता है । साभने एक बाग से र्ाय (प्रर्ेश) होता है एर्ॊ मह चौफीस स्तम्बों से मुक्त होता है । इसभें फीस नाससमाॉ होती है । धन प्रदान कयने र्ारा मह भण्डऩ धनसॊऻक होता है ॥११५-११६॥ सुबूषण सुबषणभ - इसका वर्स्ताय चाय बागों से एर्ॊ रम्फाई उससे दो बाग अधधक यक्खा जाता है । एक बाग से चायो

ओय भण्डऩ एर्ॊ शेष बाग से आॉगन तनसभवत कयना चादहमे । भख ु -बद्रक (साभने फना ऩोचव) दो बाग वर्स्तत ृ एर्ॊ एक बाग (आगे तनकरा बाग) भाऩ का होना चादहमे । अधधष्ठान ऩय फाहयी बाग भें फत्तीस स्तम्ब होने चादहमे । सबी अरॊकयणों से मुक्त इस भण्डऩ का नाभ सुबषण होता है । ॥११७-११८॥ आहपम आहलम - इस भण्डऩ की चौड़ाई ऩाॉच बाग एर्ॊ रम्फाई उससे दो बाग अधधक होती है । चायो ओय भण्डऩ एक बाग से एर्ॊ शेष बाग से कट तनसभवत कये मा (खर ु ा) आॉगन छोड़ दे ना चादहमे । तीन बाग वर्स्ताय र्ारा एक बाग का भुखबद्र तनसभवत कयना चादहमे । अधधष्ठान चारीस स्तम्बों से मुक्त होना चादहमे । वर्धचर एर्ॊ सबी अरॊकायों से मुक्त आहत्म सॊऻक भण्डऩ सबी स्थानों के सरमे उऩमुक्त होता है ॥११९-१२१॥ स्त्रुगाख्म स्रुग भण्डऩ - मह भण्डऩ छ् बाग वर्स्तत ृ होता है एर्ॊ इसकी रम्फाई चौड़ाई से दो बाग अधधक होती है । भध्म

बाग भें चाय बाग रम्फा एर्ॊ दो बाग चौड़ा सबागाय होता है , न्जसके चायो ओय भण्डऩ होता है । दो बाग से भख ु बद्र का तनभावण इच्छानुसाय ककसी बी ददशा भें ककमा जा सकता है । अधधष्ठान साठ स्तम्बों से मुक्त होता है तथा नाससमाॉ तनसभवत होती है । सबी आबयणों से सुसन्ज्जत एर् भनोहय इस भण्डऩ की सॊऻा स्रुग है ॥१२२-१२३॥ कोण कोण - मह भण्डऩ सात बाग वर्स्तत ृ एर्ॊ रम्फाई भें चौड़ाई से दो बाग अधधक होता है । तीन बाग चौड़ा एर्ॊ ऩाॉच

बाग रम्फा इसका सबाङ्गण होता है । इसके चायो ओय भण्डऩ दो बाग से तनसभवत होता है एर्ॊ इच्छानस ु ाय ददशा भें सबन्त्त तनसभवत की जा सकती है । भुखबद्र तीन बाग चौड़ा एर्ॊ एक बाग तनगवभ से मुक्त होता है । मह

आर्श्मकतानुसाय नाससमों से मुक्त होता है एर्ॊ इसका अधधष्ठान फहत्तय स्तम्बों से मुक्त होता है । कोणसॊऻक मह भण्डऩ सबी अरॊकयणों से सुसन्ज्जत होता है । ॥१२४-१२५-१२६॥ खिाट खर्वट - इस भण्डऩ की चौड़ाई आठ बाग एर्ॊ रम्फाई उससे दो बाग अधधक होती है । भध्म बाग भें दो बाग चौड़ा एर्ॊ चाय बाग रम्फा जर-स्थान होना चादहमे । चायो ओय एक बाग से असरधद्र एर्ॊ उसके फाहय दो बाग से भण्डऩ होना चादहमे । ॥१२७-१२८॥

उसके भध्म बाग भें स्तम्ब नहीॊ होना चादहमे । अबीन्प्सत ददशा भें सबन्त्त होनी चादहमे । ऩहरे के सभान अड़सठ एर्ॊ भुख-बद्र होना चादहमे । भुखबाग ऩय एक बाग से प्रर्ेश एर्ॊ भुखबाग सीदढ़मों से मक् ु त होना चादहमे । वर्सबधन अरॊकायो से सुसन्ज्जत खर्वटसॊऻक मह भण्डऩ दे र्ों आदद के सरमे प्रशस्त होता है । ॥१२९-१३०॥ श्रीरूऩ श्रीरूऩ - मह भधडऩ नौ बाग वर्स्तत ृ होता है एर्ॊ इसकी रम्फाई चौड़ाई से दो बाग अधधक होती है । चायो ओय एक बाग से असरधद्र एर्ॊ उसके फाहय दो बाग से भण्डऩ होता है । भध्म बाग भें स्तम्ब नही होता है तथा फाहय की ओय एक बाग से भागव होता है ॥१३१-१३२॥ इसभें उनहत्तय स्तम्ब होते है तथा इन्च्छत ददशा भें द्र्ाय एर्ॊ सबन्त्त का तनभावण ककमा जाता है । ऩर्वर्र्णवत यीतत से भुखबद्र होता है , जो भागव से मुक्त मा उसके वर्ना होता है । वर्सबधन अॊगो से मुक्त इस भण्डऩ को श्रीरूऩ कहते है ॥१३३॥ भङ्गर भङ्गर - मह भण्डऩ दस बाग चौड़ा एर्ॊ रम्फाई उससे दो बाग अधधक होती है । भध्म बाग भें दो बाग चौड़ा एर्ॊ चाय बाग रम्फा सबागाय होता है । चायो ओय एक बाग से असरधद्र एर्ॊ एक बाग से जर-स्थान होता है ॥१३४१३५॥ उसके फाहय चायो ओय दो बाग से भण्डऩ होता है । स्तम्ब, सबन्त्त, भुखबद्र आदद का तनभावण इच्छानुसाय ककमा

जाता है । अथर्ा भध्मकट एर्ॊ असरधद्र ऩहरे के सदृश तनसभवत कयना चादहमे । सबी भण्डऩों को जर-स्थान के वर्ना ही तनसभवत कयना चादहमे ।॥१३६-१३७॥ दोनों ऩाश्र्ों भें दो बाग से चौकोय छ् कटों का तनभावण कयना चादहमे । साभने एर्ॊ ऩीछे दो बाग चौड़ा एर्ॊ चाय बाग रम्फा कोष्ठ तनसभवत कयना चादहमे । कोनों ऩय राङ्गर-सबन्त्त तथा चायो ओय सबन्त्त तनसभवत कयनी चादहमे मा सबन्त्त नही बी हो सकती है । मह खुरा अथर्ा ढॉ का हो सकता है । र्ही स्तम्ब का तनभावण कयना चादहमे । ॥१३८१३९॥

सबी अॊगो से मुक्त इस भण्डऩ की सॊऻा भङ्गर है । आठ चतुष्कोण से मुक्त मे (आमताकाय) भण्डऩ दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के सरमे कहे गमे है ॥१४०॥

ऩर्ोक्त चतुष्कोण (आमताकाय) भण्डऩों भें चौड़ाई भें एक-एक बाग फढ़ाते हुमे र्हाॉ तक रम्फाई का भाऩ यखना चादहमे, जफ तक रम्फाई चौड़ाई की दग ु ुनी न हो जाम । फुविभान स्थऩतत को भण्डऩ भें स्तम्ब एर्ॊ सबन्त्त आदद

सफी अरॊकयणों का इच्छानुसाय एर्ॊ न्जस प्रकाय सुधदय रगे, उस प्रकाय तनभावण कयना चादहमे । अफ र्ैश्म एर्ॊ शद्रो के अनुकर आठ आमताकाय भण्डऩों का र्णवन ककमा जा यहा है । ॥१४१-१४२॥ भागा

भागव - इस भण्डऩ का वर्स्ताय दो बाग एर्ॊ रम्फाई वर्स्ताय की दग ु न ु ी होनी चादहमे । इसभें ऩधद्रह स्तम्ब हों एर्ॊ दो बाग (चौड़ा) एर्ॊ एक बाग (फाहय की ओय तनकरा) भुखबद्रक (प्रोच) होना चादहमे । इसका सोऩान ऩाश्र्व भें

तनसभवत होना चादहमे तथा नाससकाओॊ से मह सुशोसबत होना चादहमे । इसका भुख-बाग इन्च्छत ददशा भें यखना चादहमे । इसे भागव सॊऻक भण्डऩ कहते है ॥१४३-१४४॥

सौबद्र - सौबद्र भण्डऩ का वर्स्ताय तीन बाग एर्ॊ रम्फाई वर्स्ताय की दग ु ुनी होती है । मह अट्ठाईस स्तम्बों से मुक्त होता है एर्ॊ साभने एक बाग से र्ाय (भागव) से तनसभवत होता है । उधचत यीतत से नाससमों एर्ॊ स्तम्बों से मुक्त मह सुधदय भण्डऩ सौबद्र सॊऻक होता है ॥१४५-१४६॥ सुन्दय सुधदय - इस भण्डऩ की चौड़ाई चाय बाग एर्ॊ रम्फाई उसकी दग ु ुनी होती है । भध्म बाग दो बाग चौड़ा एर्ॊ चाय

बाग रम्फा होता है , न्जस ऩय कट तनसभवत होता है अथर्ा र्हाॉ (खुरा हुआ) आॉगन होता है ।फत्तीस स्तम्बों से मुक्त इस भण्डऩ भें एक बाग से भख ु -बद्रक तनसभवत होता है । सुधदय नाभक मह भण्डऩ आर्श्मकतानुसाय नाससमों एर्ॊ स्तम्बों से मुक्त होता है ॥१४७-१४८॥ साधायण साधायण - मह भण्डऩ ऩाॉच बाग वर्स्तत ृ एर्ॊ रम्फाई भें चौड़ाई से चाय बाग अधधक होता है । फगर भें दो बाग

चौड़े एर्ॊ तीन बाग रम्फे दो आॉगन होते है । इसभें छप्ऩन खम्बे होते है एर्ॊ साभने एक बाग से र्ाय तनसभवत होता है । तीन बाग वर्स्तत ृ एर्ॊ एक बाग (फाहय तनकरा) भाऩ से भुख-बद्रक का तनभावण कयना चादहमे । भुख बाग ऩय सोऩान एर्ॊ चायो ओय सबन्त्त होनी चादहमे । आर्श्मकतानुसाय नासी आदद अॊगो से मुक्त इस भण्डऩ को साधायण कहते है ॥१४९-१५१॥ सौख्म सौख्म - मह छ् बाग चौड़ा एर्ॊ चौड़ाई से तीन बाग अधधक रम्फा होता है । भध्म बाग भें दो बाग चौड़ा एर्ॊ ऩाॉच बाग रम्फा सबागाय होता है । चायो ओय दो बाग से भण्डऩ एर्ॊ साभने एक बाग से र्ाय तनसभवत होता है । ऩहरे के सभान भुख-बद्रक तनसभवत होता है एर्ॊ नाससकाओॊ से सुसन्ज्जत होता है । साठ स्तम्बों से एर्ॊ सबी अॊगो से मक् ु त इस भण्डऩ की सॊऻा सौख्म है । मह सबी रोगों के सरमे अनक ु र होता है ॥१५२-१५४॥ ईश्ियकान्त ईश्र्यकाधत - इस भण्डऩ की चौड़ाई सात बाग से एर्ॊ रम्फाई उससे चाय बाग अधधक होती है । भध्म बाग भें तीन बाग का चौकोय ऺेर होता है , न्जस ऩय कट तनसभवत होता है अथर्ा र्हाॉ (खुरा) आॉगन होता है । उसके फाहय एक

बाग प्रभाण से चायो ओय असरधद्र होता है । दोनों ऩाश्र्ों भें दो बाग चौड़े एर्ॊ ऩाॉच बाग रम्फे दो आॉगन होते है । उसके फाहय एक बाग से चायो ओय भण्डऩ तनसभवत होता है , ऐसा वर्द्र्ानों का भत है ॥१५५-१५७॥

तीन बाग चौड़ा एर्ॊ एक बाग फाहय तनकरा भख ु -बद्रक तनसभवत होता है । अधधष्ठान ऩय चौयासी स्तम्ब तनसभवत होते है । भुखबाग ऩय एक बाग से र्ाय तनसभवत होता है । मह ईश्र्यकाधत भण्डऩ वर्सबधन अॊगों से सुशोसबत एर्ॊ सबी अरॊकयणों से मुक्त होता है ॥१५८-१५९॥ श्रीबद्र श्रीबद्र - मह भण्डऩ आठ बाग चौड़ा तथा ऩर्वर्र्णवत भाऩ के अनुसाय रम्फा होता है । भध्म बाग दो बाग भाऩ का

चौकोय ऺेर होता है , न्जसभें कट तनसभवत होता है मा आॉगन होता है । उसके फाहय एक बाग के प्रभाण से चायो ओय असरधद्र तनसभवत होता है । दोनों ऩाश्र्ों भें ऩहरे के सभान कट होते है , न्जधहे ऩर्वर्र्णवत भान से दो बाग अधधक रम्फा यक्खा जाता है ॥१६०-१६१॥ उसके फाहय चायो ओय दो बाग से फुविभान स्थऩतत को भण्डऩ तनसभवत कयना चादहमे । चाय बाग चौड़ा एर्ॊ दो बाग फाहय तनकरा भुखबद्रक तनसभवत कयना चादहमे । अधधष्ठान ऩय एक सौ दस स्तम्ब तनसभवत कयना चादहमे । सबी अरॊकयणों से मुक्त मह श्रीबद्र भण्डऩ सबी के सरमे अनुकर होता है ॥१६२-१६३॥ सिातोबद्र सर्वतोबद्र - इस भण्डऩ को नौ बाग वर्स्तत ु ाय होना चादहमे । तीन बाग ृ एर्ॊ रम्फाई ऩहरे ददमे गमे भाऩ के अनस चौड़ाई र्ारे भध्म बाग भें चौकोय ऺेर कट से मुक्त हो सकता है मा र्हाॉ आॉगन हो सकता है । उसके फाहय एक

बाग प्रभाण से चायो ओय असरधद्र होना चादहमे । ऩाश्र्व बाग भें दो बाग चौड़ा एर्ॊ ऩाॉच बाग रम्फा दो आॉगन होना चादहमे । चायो ओय उसके फाहय दो बाग से फुविभान व्मन्क्त को भण्डऩ फनाना चादहमे । साभने एर्ॊ ऩीछे ऩाॉच बाग चौड़े एर्ॊ दो बाग रम्फे (गहये ) बद्र (ऩोचव) होने चादहमे ॥१६४-१६६॥

दोनो ऩाश्र्ो भें तीन बाग चौड़े एर्ॊ एक बाग रम्फे दो बद्रक होने चादहमे । कोनों ऩय राङ्गर के सभान सबन्त्त एर्ॊ स्तम्ब होने चादहमे । अधधष्ठानऩय एक सौ अट्ठाईस स्तम्ब तनसभवत होने चादहमे । अधम अर्मर्ों को आर्श्मकतानुसाय उधचत यीतत से फुविभान स्थऩतत को सॊमुक्त कयना चादहमे । सर्वतोबद्र सॊऻक भण्डऩ सबी

अरॊकयणों से मक् ु त होता है । इस प्रकाय फवु िभान व्मन्क्त को इस भण्डऩ का तनभावण दे र्ाददकों के बर्न भें कयना चादहमे ॥१६७-१६९॥ भण्डऩभख ु ाम भण्डऩ की रम्फाई - भण्डऩों की रम्फाई का वर्धान उनकी चौड़ाई के अनुसाय ककमा जाता है । जाततरूऩ का र्णवन ऩहरे ककमा जा चुका है । छधदरूऩ भें रम्फाई चौड़ा से एक बाग अधधक होती है । वर्कलऩ यीतत भें दो बाग एर्ॊ आबास यीतत भें तीन बाग अधधक रम्फाई यक्खी जाती है । चौकोय, दण्डक, स्र्न्स्तबद्र, ऩद्म, क्रकयबद्रक, षण्भख ु , राङ्गर तथा भौसर भण्डऩ जाततभान के अनुसाय होते है । प्रऩा एर्ॊ भण्डऩ जाततभान के अनुसाय होते है तथा आर्श्मकतानुसाय इनभें स्तम्बों का तनभावण ककमा जाता है ॥१७०-१७२॥ ऩुन् भण्डऩबेद

भण्डऩों के अधम बेद - गह ृ वर्धमास के अॊगबत यङ्गस्थर को गह ृ भण्डऩ कहते है । न्जस प्रकाय प्रासाद भें गबवगह ृ

होता है , उसी प्रकाय गह ृ भें भण्डऩ होता है जो वर्शेष रूऩ से असरधद्र से मुक्त होता है । अधधष्ठान आदद से मुक्त मह भण्डऩ दे र्ारम के आकाय का होता है । न्जस गह ृ भण्डऩ भें र्ो वर्सशष्ट अॊग होते है , जो दे र्ारम के भण्डऩ के अॊग होते है , उसे गह ृ प्रासादभण्डऩ कहते है ॥१७३-१७४॥

मदद भण्डऩ के ऊऩय तर तनसभवत हो तो उसे भासरकाभण्डऩ कहते है । मह भण्डऩ ंटटो, सशराओॊ, काष्ठ, गजदधत मा धातुओॊ से तनसभवत होता है । मह सबी प्रकाय के सभधश्रत द्रव्मों से तनसभवत होता है ॥१७५॥ जरक्रीडाभण्डऩ जरक्रीडा-भण्डऩ - याजा की इच्छा के अनस ु ाय जर-क्रीडा से मक् ु त भण्डऩ चौकोय मा आमताकाय हो सकता है । इसभें एक मा अनेक तर हो सकते है ॥१७६॥

मह भण्डऩ खुरा अथर्ा (सबन्त्त से) ढॉ का हो सकता है । मह अॊति-सबन्त्तमों (ऩॊन्क्त भें तनरयत स्तम्बों) से तघया होता है । ददशाओॊ भें बद्र (ऩोचव) तनसभवत होते है । मह भध्म बाग भें यङ्गसदहत होता है अथर्ा र्हाॉ आॉगन होता है । ऊऩयी तर स्तम्बों अथर्ा सबन्त्तमों से तघया होता है ॥१७७॥ इसकी सीढी गप्ु त द्र्ाय के ऩीछे होती है , न्जसके द्र्ाय ऩय फहुत से मधर तनसभवत होते है । मे गज, बत, हॊ स, व्मार, कवऩ एर्ॊ शारबन्ञ्जका (ऩेड़ की शाख ऩकड़ कय तोड़ने की भुद्रा भें स्री आकृतत) आदद के रूऩ भें होते है , न्जनके बीतय जर बया होता है ॥१७८॥

भण्डऩ का शीषव बाग हम्मव के शीषव बाग के सभान मा सबागाय के शीषव बाग के सभान होता है । मह कट, नीड, गज-तुण्ड (हाथी की सॉड) एर्ॊ कोष्ठक से सुसन्ज्जत होता है । मह तोयण आदद, अनेक जारकों (झयोखों) एर्ॊ

नाससकाओॊ से अरॊकृत होता है । भण्डऩ के साभने मा भध्म बाग भें अनेक मधरों से मुक्त जराशम होता है , जो ंटटों मा प्रस्तयों से सुसन्ज्जत होता है । जर से मुक्त मह जराशम गुप्त होता है अथर्ा खुरा होता है ॥१७९-१८०॥

इस प्रकाय याजाओॊ के जर-क्रीडा के सरमे न्जस भण्डऩ का उलरेख ककमा गमा है , र्ह यभणीम स्थान भें यहता है । मह अरॊकायों से मुक्त, वर्सबधन प्रकाय के धचरों से मुक्त, स्री, सौबाग्म, आयोग्म एर्ॊ बोग प्रदान कयने र्ारा होता है ॥१८१॥

भण्डऩमोग्मिऺ ृ भण्डऩ के अनुकर र्ख ु , याजादन, होभ एर्ॊ भधक के ृ - खददय, खाददय, र्न्ह्न, तनम्फ, सार, सससरधद्रक, वऩसशत, ततधदक

र्ऺ ृ (के काष्ठ) स्तम्ब तनभावण के सरमे अनुकर होते है । मे र्ऺ ृ दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के सम्फि सबी कामो के सरमे प्रशस्त होते है । ऩर्ोक्त सबी र्ऺ ु त होते है ॥१८२-१८३॥ ृ (काष्ठ) सबी प्रकाय के स्तम्बों के सरमे उऩमक् वऩसशत, ततधदक ु , तनम्फ, याजादन, भधक एर्ॊ सससरधद्र के र्ऺ ृ से तनसभवत स्तम्ब र्ैश्मों एर्ॊ शद्रो के सरमे होते है ।

स्तम्बों की आकृततमाॉ र्त्ृ ताकाय चौकोय, अष्टकोण मा सोरह कोण की हो सकती है एर्ॊ त्र्क्साय अथावत ् फाॉस से तनसभवत स्तम्ब सबी के सरमे अनुकर होती है ॥१८४-१८५॥

तार, नासरकेय (नारयमर), क्रभक ु , र्ेणु (फाॉस) एर्ॊ केतकी र्ऺ ु र होते है । ंटटो, प्रस्तयों एर्ॊ र्ऺ ृ सबी के सरमे अनक ृ ों (काष्ठों) से तनसभवत बर्न दे र्ों, ब्राह्भणों तथा याजाओॊ (ऺबरमों) -इन सबी र्णव के गह ृ स्र्ासभमों के सरमे उऩमुक्त होता है ; ककधत र्ैश्मों एर्ॊ शद्रो के बर्न भें प्रस्तय का प्रमोग कबी बी अनुकर नही होता है ॥१८६-१८७॥ भुखभन्डऩ भुखभण्डऩ - भन्धदय के भुख-बाग ऩय तनसभवत भण्डऩ श्रेष्ठ होता है । उनके आद्मङ्ग (अधधष्ठान), स्तम्ब, उत्तय एर्ॊ र्ाजन भन्धदय के सभान होते है ; ककधतु उनके भाऩ उनसे सात, आठ, नौ मा दस बाग कभ होते है । अथर्ा सबी अॊगो का भाऩ ऩर्व-र्र्णवत भाऩ के सभान यखना चादहए ॥१८८-१८९॥

भण्डऩों की ददशा एर्ॊ उनका प्रभाण र्ही होना चादहए, जो भन्धदयों का कहा गमा है । सबन्त्त की चौड़ाई स्तम्ब की चौड़ाई से ऩाॉच, चाय, तीन अथर्ा दग ु ुनी होनी चादहमे । काष्ठस्तम्ब के व्मास से सबन्त्त की चौड़ाई उससे चतुथांश कभ तीसये बाग के फयाफय मा आधे के फयाफय होनी चादहए । अथर्ा कुड्मस्तम्ब (सबन्त्त से सॊरग्न स्तम्ब) की चौड़ाई सबन्त्त की चौड़ाई फयाफय बी हो सकता है ॥१९०-१९१॥ भण्डऩगबास्थान भण्डऩ का गबवस्थर - सशराधमास स्थर - भण्डऩ के गबव-स्थर तीन हो सकते है - भध्म आॉगन के दक्षऺण बाग भें स्तम्ब के भर भें, द्र्ाय के दक्षऺण बाग भें स्तम्ब के नीचे मा कोने भें द्वर्तीम स्तम्ब के नीचे । इन तीन स्थानों के वर्षम भें भुतनजन कहते है ॥१९२॥ अमरन्द्र असरधद - (भण्डऩ आदद के) साभने, ऩीछे मा चायो ओय असरधद्र सॊऻक भागव होता है , न्जसकी चौड़ाई भण्डऩ की चौड़ाई से एक बाग मा डेढ़ बाग होनी चादहमे । मह दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओ के भण्डऩों के सरमे वर्धान ककमा गमा है । रम्फाई भण्डऩ के अनुसाय होती है ॥१९३॥ भासरका - भासरका के अर्मर्ों के प्रासाद के अॊगो के अनुसाय यखना चादहमे । ऊऩयी तर की सबन्त्त बतर की भर सबन्त्त के ऊऩय तनसभवत कयनी चादहमे एर्ॊ स्तम्बों को स्तम्बों के ऊऩय तनसभवत कयना चादहमे । आर्श्मकतानस ु ाय तर एक-दो मा तीन हो सकते है ॥१९४॥

कुछ वर्द्र्ानों के अनस ु ाय स्तम्बों के फाहयी बाग के अनस ु ाय उनकी रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई का भान रेना चादहमे ; जफकक अधम वर्द्र्ानों के भतानुसास्र भान का ग्रहण सबन्त्त के भध्म से कयना चादहमे । तनर्ास-मोग्म भण्डऩ के शीषव का तनभावण शारा के आकाय का मा सबा के आकाय का कयना चादहमे ॥१९५-१९६॥

भण्डऩ के एक, दो, तीन मा चाय भख ु बाग हो सकते है । मे बद्र से मक् ु त मा बद्रयदहत हो सकते है । भध्म बाग भें

ऊऩय कट हो सकता है , यङ्गस्थर मा आॉगन हो सकता है । मे भण्डऩ चौकोय मा आमताकाय हो सकते है । मे सबी दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के अनुकर होते है । आमताकाय भण्डऩ र्ैश्मों एर्ॊ शद्रों के अनुकर होते है ॥१९७॥ सबाविधानभ ्

तत्र सबाबेद सबागाय का वर्धान एर्ॊ बेद - अफ नौ प्रकाय के सबागायों के रऺण का र्णवन ककमा जा यहा है । इनभें प्रथभ भलरर्सधतक सॊऻक है । इसके ऩश्चात ् ऩञ्चर्सधतक, एकर्सधतक, सर्वबोबद्र, ऩार्वतकभवक, भाहे धद्र, सोभर्त्ृ त,

शुकवर्भान एर्ॊ श्रीप्रततन्ष्ठत होते है । इन नौ सबाओॊ भें सें ऩाॉच आमताकाय होती है तथा शेष चौकोय होती है ॥१९८-२००॥

दे र्ों एर्ॊ भनष्ु मों के सबागह ृ रम्फाई भें चौड़ाई से एक, दो, तीन मा चाय बाग अधधक होते है । इनकी रम्फाई, चौड़ाई, सबन्त्त एर्ॊ स्तम्बों का भान ऩहरे के सदृश होता है । सबी दन्ण्डका ऩमवधत अरॊकाय वर्भान (भन्धदय) के सदृश होते है । रुऩा आदद का वर्धान उसी प्रकाय होता है , जैसा सशखय-रऺण भें र्र्णवत है । ॥२०१-२०२॥ कूटरऺण कट का रऺण - न्जस चौकोय सबा के कोनों भें यन्श्भमाॉ (रऩ ु ा) हो, उसकी कट सॊऻा होती है । कट एर्ॊ कोष्ठक (रम्फा सबागाय) दोनों सबागाय कोणों भें र्रक्षऺतस्र्न्स्त से यदहत होना चादहमे ॥२०३॥ भपरिसन्त भलरर्सधतक - भलरर्सधत सॊऻक सबागह ृ एक बाग भाऩ का, चाय स्तम्बों, रुऩाओॊ, कोदटमों (कोदट रुऩाओॊ, कोने की रुऩाओॊ) तथा एक कट र्ारा होता है । इसभें आठ ऩुच्छर्रऺ होते है ॥२०४॥ ऩञ्चिसन्तक ऩञ्चर्सधतक - दो बाग भाऩ की, आठ स्तम्बों एर्ॊ आठ रम्फी रऩ ु ाओॊ से मक् ु त सबा ऩञ्चर्सधतक सॊऻक होती है । इसभें आठ स्र्न्स्तकर्रऺ, भध्म भे भरकट एर्ॊ चायो कोणों ऩय चाय कट होते है ॥२०५॥ एकिसन्तक एकर्सधतक - एकर्सधतक सॊऻक सबागाय तीन बाग भाऩ का, चौकोय एर्ॊ फायह स्तम्ब से मुक्त होता है । इसभें सोरह स्र्न्स्तऩुच्छ, तेयह कट एर्ॊ चौफीस र्रऺ होते है ॥२०६-२०७॥ सिातोबद्र सर्वतोबद्र - मह सबागाय चाय कोणों र्ारा, चाय बाग भाऩ का, फाहय सोरह स्तम्बों से मुक्त, बीतयी बाग भें आठ

स्तम्ब एर्ॊ आठ रम्फी रऩ ु ाओॊ से मुक्त, सोरह कट, चौफीस स्र्न्स्तऩुच्छ तथा अड़तारीस र्रऺों से मुक्त होता है । भध्म भें कट होता है । सर्वतोबद्र सॊऻक सबागाय चाय चौकोय (कऺों) से मुक्त होता है । ॥२०८-२०९॥ ऩािातकूभाक

ऩार्वतकभवक - ऩार्वतकभवक सबागाय आमताकाय, चाय बाग चौड़ा तथा ऩाॉच बाग रम्फा होता है । फाहयी बाग भें अट्ठायह स्तम्ब एर्ॊ बीतयी बाग भें दस स्तम्ब होते है तथा अट्ठायह यन्श्भमाॉ (रुऩामें) होती है । सोरह एर्ॊ चौदह

कट होते है । छ् (मा सोरह) फाहय एर्ॊ चौदह बीतय होते है । इसभें चौसठ र्रऺ तथा सोरह चतुष्कोष्ठ होते है ॥२१०-२११॥ भाहे न्द्र भाहे धद्र सबागह ृ चाय बाग चौड़ा एर्ॊ छ् बाग रम्फा होता है । इसभें फीस स्तम्ब एर्ॊ बीतय स्तम्ब होते है । इसके बीतयी बाग भें आठ कट एर्ॊ फाहयी बाग भें सोरह कट होते है तथा सोरह रम्फी यन्श्भमाॉ (रुऩामे) होती है ॥२१२२१३॥

इसभें चौफीस स्र्न्स्तक एर्ॊ भध्म भें तीन कट होते है तथा इसभें अस्सी र्रऺ एर्ॊ उधतारीस कट होते है । बीतयी बाग भें स्तम्ब नही होते है एर्ॊ बाग के अनुसाय र्ही मोजना कयनी चादहमे । भुतनमों ने भाहे धद्र सबागाय को याजाओॊ के अनुकर फतामा है ॥२१४-२१५॥ सोभित्ृ त सोभर्त्ृ त - इसकी चौड़ाई चाय बाग एर्ॊ रम्फाई सात बाग होती है । बीतयी बाग भें चौदह एर्ॊ फाहय फाईस स्तम्ब होते है तथा चौफीस स्र्न्स्तऩुच्छ होते है । सोरह रम्फी यन्श्भमाॉ एर्ॊ तछमानफे र्रऺ होते है । भध्म बाग भें चाय

कट, बीतयी बाग भें दस एर्ॊ फाहय अट्ठायह कट होते है । इसभें चाय कोदटमाॉ (कोदटरुऩामें) एर्ॊ सात कणवधायामें होती है तथा भध्म बाग भें स्तम्ब नही होते है । इस सबागह ृ की सॊऻा सोभर्त्ृ त होती है ॥२१६-२१८॥ िुकविभान शुकवर्भान - मह सबागाय ऩाॉच बाग चौड़ा एर्ॊ आठ बाग रम्फा होता है । इसभें छब्फीस स्तम्ब होते है । अट्ठायह स्तम्ब बीतय होते हैं एर्ॊ चाय कोदटमों (कोने की रुऩाओॊ) से मुक्त होते है । मह फत्तीस स्र्न्स्तक एर्ॊ फहत्तय र्रऺों से मुक्त, सशयोबाग ऩय चाय कटों से मुक्त तथा सोरह यन्श्भमों (रुऩाओॊ) से मुक्त होता है । मह चौफीस

अधत्कटों एर्ॊ फाईस फदह्कटों से मुक्त होता है । आठ कणवधायाओॊ से सभन्धर्त मह सबागाय शुकवर्भान सॊऻक होता है ॥२१९-२२१॥ श्रीप्रनतल्ष्ठत श्रीप्रततन्ष्ठत - इस सबागह ृ की चौड़ाई ऩाॉच बाग एर्ॊ रम्फाई नौ बाग होती है । इसभें अट्ठाईस गार (स्तम्ब, ऩाद)

फत्तीस स्र्न्स्तऩुच्छ, फत्तीस बीतयी बाग के स्तम्ब एर्ॊ उसी प्रकाय भध्म यन्श्भमाॉ (भध्म भें न्स्थत रुऩामे), सशयोबाग ऩय ऩाॉच कट एर्ॊ चाय कोदटमों (कोदट-रुऩाओॊ) से मह मुक्त होता है । इसभें एक सौ साठ र्रऺ होते है । इसभेभ दस कट होते है एर्ॊ इस सबागह ृ की सॊऻा श्रीप्रततन्ष्ठत होती है । ॥२२२-२२३-२२४॥

उसी रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई के भाऩ भें तीन-तीन बाग फढ़ाने से चाय आमताकाय बर्न फनते है , न्जनभें फायह बीतयी बाग भें एर्ॊ सोरह फाहयी बाग भें स्तम्ब फनते है । इसभें एक बाग से र्ाय (भागव मा ऩोचव) तथा दो बाग से शारा तनसभवत होती है । फाहयी एर्ॊ बीतयी बाग भें चाय र्ाय (चाय स्थानों ऩय) फहत्तय स्तम्ब फनते है । भन्धदय के सदृश

अरॊकृत कय इसभें चाय द्र्ाय एर्ॊ दो चसरकामें तनसभवत होती है । मह श्रीप्रततन्ष्ठत सॊऻक सबागाय याजा के सरमे श्रीप्रततष्ठा र्ारा (प्रततष्ठकाकायक) होता है ॥२२५-२२७॥

उऩमक् ुव त भाऩ भे एक-एक बाग फढ़ाने ऩय सबाओॊ के अधम प्रकाय प्राप्त होते है । उनके नाभ छधद, वर्कलऩ एर्ॊ

आबास है । उनभें स्तम्ब, यन्श्भ (रुऩा), र्रऺ एर्ॊ कट का आर्श्मकतानुसाय तनभावण कयना चादहमे । रम्फाई एर्ॊ

चौड़ाई के बाग (भाऩ की ईकाई) इच्छानुसाय एर्ॊ न्जससे सबी सुधदय रगे, उस प्रकाय यखना चादहमे । ॥२२८-२२९॥ कट को रम्फी यन्श्भमों से मक् ु त तनसभवत कयना चादहमे अथर्ा कट को चौकोय फनाना चादहमे । स्तम्बों के ऊऩय

उत्तय का उद्गभ (ऊॉचाई) दन्ण्डका के तनगवभ के फयाफय यखना चादहमे । चसरका का रन्म्फक (ऊऩय रटकता बाग) तुरा एर्ॊ प्रस्तय के बाग के अनुसाय होना चादहमे । ऋजु अथर्ा स्र्न्स्तक र्रऺ भें प्रवर्ष्ट होना चादहमे ।॥२३०२३१॥

सशखार्गव (सशयोबाग) तथा सबी कचग्रह वर्ना कट के होते है । दो चसरकाओॊ के भध्म भें न्स्थत सॊयचना र्णवऩदट्टका सॊऻक होती है । र्रम व्मास (चौड़ाई) से तीन गुना होना चादहमे एर्ॊ फाहुलमा को भाऩ भें रुऩा के सभान होना चादहमे । रुऩा के दोनो ऩाश्र्ो भें र्रमनासरका होनी चादहमे ॥२३२-२३३॥ प्रततचसरक का वर्धमास एर्ॊ भुद्गय का आरम्फन न्स्थय होता है । आॉगन के र्रऺ अनुरोभ (नीचे से ऊऩय सीधे)

एर्ॊ प्रततरोभ (वर्ऩयीत वर्धध) से तनसभवत होते है । दो कोदटमों (कोदट-रुऩाओॊ) का सॊमोग गबवगह ृ के दादहने तछद्र भें होता है । सशलऩी को सर्वप्रथभ स्तम्ब का वर्धान कयना चादहमे ॥२३४-२३५॥

ऩादफधध अधधष्ठान स्तम्ब के भाऩ का आधा होना चादहमे । मदद ककसी अॊग आदद का र्णवन नही ककमा गमा हो तो उसका प्रमोग आर्श्मकतानुसाय कयना चादहमे । सबा हर के राङ्गर के सभान सबन्त्त से मुक्त, भध्म बाग यङ्ग से मक् ु त मा यङ्ग से यदहत हो सकता है । सबा सबा के अनरू ु ऩ (सभ्म) रोगों से फनती है - ऐसा प्राचीन वर्द्र्ानों ने कहा है । सभ्मजनों के भागव तनधावरयत होते है ॥२३६-२३७॥

ध्माम २६ िारा का विधान - दे र्ों एर्ॊ ब्राह्भण आदद र्णो के तनर्ास के अनुकर एक, दो, तीन, चाय, सात एर्ॊ दस शारा र्ारे छ् गह ृ होते है ॥१॥

मे बर्न ब्रह्भा के बाग को छोड़कय तनसभवत, सम्भुख असरधद से मुक्त एर्ॊ सबधन वऩण्डर्ारे (आऩस भें अरग) होते

है । इनकी चौड़ाई, रम्फाई एर्ॊ ऊॉचाई सभ अथर्ा वर्षभ हस्त भाऩ भें होती है । इनका र्णवन तथा इनके अरॊकयणो का र्णवन सॊऺेऩ भें अफ ककमा जाता है ॥२॥ िाराविस्ताय् िारा की चौड़ाई - मदद बर्न एक शारा से तनसभवत हो तो उसके वर्स्ताय के ग्मायह भाऩ फनते है । मे भाऩ तीन हाथ से प्रायम्ब होकय तेईस हाथ तक तथा चाय हाथ से रेकय चौफीस हाथ तक दो-दो फढ़ाते हुमे सरमे जाते है ॥३४॥

मदद बर्न द्वर्शार मा बरशार हो तो उसका सात प्रकाय का वर्स्ताय सम्बर् है । मह भाऩ सात मा आठ हाथ से प्रायम्ब होकय उधनीस (सात से उधनीस) मा फीस हाथ (आठ से फीस) तक क्रभश् दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे जाता है ॥५॥ िारामाभ् िारा की रर्मफाई - शारा की रम्फाई उसकी चौड़ाई से सर्ा बाग, डेढ बाग ऩौने दो मा चौड़ाई की दग ु ुनी होनी चादहए । इसभें चतथ ु ांश, आधा, तीन चौथाई मा चौड़ाई का तीन गुना भाऩ अधधकतभ फढ़ामा जा सकता है । इस प्रकाय रम्फाई का भाऩ आठ प्रकाय से सरमा जाता है ॥६-७॥

मे सबी रम्फाई के भाऩ दे र्ारम के सरमे अनक ु र होते है । साभाधम जन के सरमे दग ु न ु ी रम्फाई अनक ु र होती है । सबी वर्हाय एर्ॊ आश्रभ-र्ाससमों (साधु-सॊधमाससमों) के तनर्ास के सरमे दग ु ुनी मा उससे अधधक रम्फाई उऩमुक्त होती है । न्जस आर्ास भें सबी प्रकाय के व्मन्क्त एक साथ तनर्ास कयते हो, र्हाॉ बर्न की रम्फाई (फयाफय मा) चौड़ाई की दग ु ुनी होनी चादहमे ॥८॥ िारोत्सेध् िारा की ऊॉचाई - शारा की ऊॉचाई ऩाॉच प्रकाय की होती है - वर्स्ताय के फयाफय ऊॉचाई, सर्ा बाग अधधक ऊॉचाई, डेढ़ बाग अधधक ऊॉचाई, तीन चौथाई अधधक मा चौड़ाई की दग ु ुनी ऊॉचाई । इनके नाभ क्रभश् शान्धतक, ऩौन्ष्टक, जमद, धन एर्ॊ अद्भुत होते है ॥९-१०॥ एकिारासाभान्मरऺणभ ् एकिारा गह ृ के साभान्म रऺण - एकशार बर्न दे र्ों, ब्राह्भण आदद र्णो, ऩाखन्ण्डमों (नान्स्तको), आश्रभर्ाससमों, गज, अश्र् एर्ॊ यथ के मोिाओ, माग-होभ आदद कयने र्ारों तथा रूऩ के द्र्ाया आजीवर्का चराने र्ारी न्स्रमों (नतवकी, असबनेरी आदद) के सरमे प्रशस्त होता है ॥११॥ दण्डक, भौसरक, स्र्न्स्तक एर्ॊ चतुभख ुव सॊऻक चाय प्रकाय के एकशार बर्न दे र्ों एर्ॊ ऩर्व-र्र्णवत जनों के सरमे

अनक ु र होते है । मे बर्न एक तर से प्रायम्ब होकय अनेक तरऩमवधत तथा खण्ड-हम्मव आदद अर्मर्ों से सस ु न्ज्जत होते है ॥१२-१३॥

मे अवऩवत एर्ॊ अनवऩवत दो प्रकाय के होते है तथा इनकी सज्जा दे र्ारम के सभान होती है । इनके साभने दोनो ऩाश्र्ो एर्ॊ ऩष्ृ ठबाग भें चायो ओय असरधद्र (गसरमाया, भागव) का तनभावण कयना चादहमे । भनुष्मों, दे र्ों, ऩाखन्ण्डमों एर्ॊ आश्रभर्ाससमों के बर्न के साभने भण्डऩ तथा ऩीछे एर्ॊ दोनोंऩाश्र्ों भें बद्र (ऩोचव) का तनभावण कयना चादहमे । भध्म बाग भें दे र्ों का तथा ऩाश्र्व बाग भें भनुष्मों का आर्ास होना चादहमे ॥१४-१५॥ प्रधान रूऩ से एकशार बर्न ऩर्व, दक्षऺण, ऩन्श्चभ मा उत्तय भें न्स्थत होता है । मह सबी जाततमों के सरमे अनुकर

होता है । वर्शेष रूऩ से भनुष्मों के सरमे दक्षऺण मा ऩन्श्चभ भें शारा तनसभवत होनी चादहए । मदद शारा राङ्गर हो (दो कोणों को सभराकय राङ्गर मा हर के आकाय भें तनसभवत शारा) तो मह ऩर्व औय उत्तय-ऩर्व एर्ॊ दक्षऺण मा

ऩन्श्चभ एर्ॊ उत्तय भें तनसभवत हो सकती है । इनका ऩरयणाभ गह ृ स्र्ाभी की भत्ृ मु है । सभवृ ि की काभना कयने र्ारे को अऩनी शारा दक्षऺण -ऩन्श्चभ भें तनसभवत कयनी चादहमे ॥१६-१८॥

दक्षऺण, ऩन्श्चभ एर्ॊ उत्तय की शारा सम्ऩन्त्त तथा ऩर्व, दक्षऺण एर्ॊ ऩन्श्चभ की शारा जम प्रदान कयती है । दक्षऺण एर्ॊ ऩन्श्चभ से यदहत बरशार-गह ृ सर्वदोषकायक होता है ॥१९॥ राङ्गर शारगह ृ गर्णका आदद के सरमे एर्ॊ शऩवशार-गह ृ (शोलक १९)उग्र कभव द्र्ाया आजीवर्का चराने र्ारों के

सरमे अनक ु र होता है । राङ्गर एर्ॊ शऩव गह ृ क शारा-गह ृ ों भें तथा सबी ऩथ ृ ों भें शारावर्हीन स्थानों ऩय द्र्ाय से

मुक्त सबन्त्त तनसभवत कयनी चादहमे । द्वर्शार गह ृ भें एक सन्धध तथा बरशार गह ृ भें दो सन्धधमाॉ होती है । अफ ऩर्वर्र्णवत दण्डक आदद गह ृ ों के वर्धमास का र्णवन कयता हॉ ॥२०-२१॥ प्रथभदण्डकभ ् प्रथभ दण्डक - प्रथभ दण्डक भें वर्स्ताय के तीन बाग एर्ॊ रम्फाई के चाय बाग कयने चादहमे । इनभें गह ृ की चौड़ाई दो बाग से तथा एक बाग से साभने र्ाय (भागव, फयाभदा) तनसभवत कयना चादहमे । इसका भख ु बाग खन्ण्डत दण्ड के साभने होना चादहमे । मह आर्ास सबी रोगों के सरमे अनुकर होता है । शारबर्न के सफसे छोटे रूऩ र्ारे इस बर्न की सॊऻा दण्डक होती है ॥२२-२३॥ ्वितीमदण्डकभ ् ्वितीम दण्डक - इस बर्न भें चौड़ाई के चाय बाग तथा रम्फाई के छ् बाग कयने चादहमे । गह ृ का वर्स्ताय दो बाग से एर्ॊ चॊक्रभण (चरने का भागव, फयाभदा) दो बाग से कयना चादहमे । इसके अधम बाग ऩर्ोक्त यीतत से तनसभवत कयने चादहमे । इस बर्न को दण्डक कहते है ॥२४-२५॥ बर्न की द्र्ाय-व्मर्स्था - गह ृ की रम्फाई के नौ बाग कयने चादहमे । इसभें ऩाॉच बाग दादहने हाथ एर्ॊ तीन बाग फाॉमे हाथ भें छोड़ दे ना चादहमे । इन दोनों छोड़े गमे बाग के भध्म भें (अथावत एक बाग भें ) द्र्ाय की स्थाऩना कयनी चादहमे ॥२६॥ कुछ वर्द्र्ानों के भतानस ु ाय भध्म सर (अथावत रम्फाई के भध्म बफधद)ु से र्ाभ बाग भें भनष्ु मों के आर्ास भें द्र्ाय की स्थाऩना होनी चादहमे । सबी बर्नों भें शारा की रम्फाई के एक बाग भें द्र्ाय की स्थाऩना कयनी चादहमे ॥२७॥ तत ृ ीमदण्डकभ ् तत ु ुने बाग (छ् बाग) कयने चादहमे । एक बाग ृ ीम दण्डक - गह ृ की चौड़ाई के तीन बाग तथा रम्फाई के उसके दग से चॊक्रभण तथा भध्म बाग को सबन्त्त से मक् ु त कयना चादहमे । मह कुलमा के सभान (भड़ ु ा हुआ) द्र्ाय से मक् ु त होता है तथा शेष बाग ऩहरे के सभान तनसभवत होता है । र्ॊश (भध्म-काष्ठ) के नीचे गह ृ होना चादहमे एर्ॊ इसके अग्र बाग भें यङ्गस्थर तनसभवत होना चादहमे ॥२८-२९॥

इसके चायो ओय सबन्त्त होनी चादहमे एर्ॊ यङ्गस्थर स्तम्बों से मक् ु त होना चादहमे । एक बाग के साभने, दोनों

ऩाश्र्ों भें मा वऩछरे बाग भे असरधद्र तनसभवत होना चादहमे । इसका अरॊकयण भन्धदय के सदृश कयना चादहमे तथा इसकी सॊऻा दण्डक होती है । चतुथद ा ण्डकभ ् चतुथा दण्डक - इस बर्न के भध्म बाग भें यङ्गस्थर होता है तथा र्ॊश (भध्म भें रगे र्ॊशसॊऻक काष्ठ) के नीचे एर्ॊ ऊऩय कऺ होता है । बीतयी बाग भें स्तम्बों का सॊमोजन आर्श्मकतानस ु ाय होता है । र्ॊश के साभने द्र्ाय नही

होना चादहमे । इस बर्न के अधम बाग ऩर्वर्र्णवत यीतत से तनसभवत होते है । इस शार गहृ की सॊऻा दण्डक होती है ॥३१-३२॥

ऩञ्चभदण्डकभ ् ऩाॉचिाॉ दण्डक - इस बर्न के वर्स्ताय के छ् बाग एर्ॊ रम्फाई के फायह बाग होते है । एक बाग से चायो ओय असरधद्र तनसभवत होता है तथा दो बाग से शारा तनभावण होता है । इसके साभने इसी के फयाफय बाग से असरधद्र का तनभावण होता है । बीतयी स्तम्बों का सॊमोजन आर्श्मकतानुसाय कयना चादहमे । शारा की रम्फाई के अनुसाय दोनों ऩाश्र्ों भें दो कऺ तनसभवत होते है , जो दो बाग चौड़े एर्ॊ तीन बाग रम्फे होते है ॥३३-३४॥

भध्म बाग भें दो बाग चौड़ा एर्ॊ चाय बाग रम्फा यङ्गस्थर होता है । शेष अर्मर् ऩहरे के अनुसाय तनसभवत होते है । इस बर्न को दण्डक कहते है ॥३५॥

असरधद का प्रभाण - द्वर्शार एर्ॊ बरशार बर्न भें साभने के असरधद्र के वर्स्ताय का भाऩ बर्न के तीन बाग भें एक बाग, ऩाॉच बाग भें दो बाग, सात बाग भें तीन बाग औय नौ बाग भें चाय बाग होता है ॥३६॥ मे सबी दण्डकगह ु कयने र्ारी तथा रूऩ ृ जाततशैरी के होते है । मे दे र्ो, ब्राह्भणों, याजाओॊ, नान्स्तकों, र्ैश्मों, शद्रो, मि के भाध्मभ से आजीवर्का चराने र्ारी न्स्रमों के सरमे प्रशस्त कहे गमे है ॥३७॥ भौमरकभ ् भौमरक - भौसरक बर्न का शीषवबाग सबा के आकाय का (फीच भें उठा हुआ) होता है । अथर्ा मह कानन (वर्सशष्ट शीषव यचना) से मुक्त होता है । इसे भौसरक बर्न कहते है । मह ऩर्व-र्र्णवत रोगों के सरमे प्रशस्त होता है ; ककधतु न्स्रमों (सम्बर्त् रूऩ के द्र्ाया आजीवर्का र्ारी न्स्रमों) के सरमे उऩमक् ु त नही होता है ॥३८॥ स्िल्स्तकभ ् स्िल्स्तक - बर्न के अग्र बाग भें चाय बाग से बद्र तनसभवत कयना चादहमे तथा तनगवभ (आगे तनकरा बाग) दो बाग भाऩ का होना चादहमे । आर्ास तीन नेरों (वर्सशष्ट तनसभवतत) से मुक्त होता है । इस बर्न को स्र्न्स्तक कहते है

एर्ॊ मह वर्कलऩ जातत का बर्न है । मह दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के सरमे प्रशस्त है ; ककधतु अधत्मजों (शद्रो) के सरमे उऩमक् ु त नही होता है ॥३९-४०॥

चतुभख ुा भ ् चतुभख ुा - बर्न के सम्भुख न्जस प्रकाय का बद्र होता है , उसी प्रकाय ऩीछे बी (बद्र) होता है । क्रकयी तथा र्ॊश के

भर बाग एर्ॊ अग्र बाग भें चाय नेर होते है । मह अधधष्ठान आदद अॊगो से मक् ु त होता है । मह दे र्ारम के सभान अरॊकृत औय नाससका, तोयण, र्ातामन आदद अॊगो से मुक्त होता है । मह बर् चतुभुवखसॊऻक होता है तथा आबास

शैरी भें तनसभवत होता है । मह दे र्ों, ब्राह्भणों औय याजाओॊ के अनुकर एर्ॊ सम्ऩन्त्त प्रदान कयने र्ारा होता है ॥४१४३॥

दण्डकाददसाभान्मरऺणभ ् दण्डक आदद बिनों के साभान्म रऺण - दण्डक आदद चायो बर्नों को एक तर से रेकय ऩाॉच तर तक यक्खा जा सकता है । इसका स्थान एर्ॊ अॊगो का वर्धमास गह ृ स्र्ाभी की इच्छा के अनुसाय कयना चादहमे ॥४४॥ गज, अश्र् एर्ॊ र्ष ृ ब आदद प्रत्मेक ऩशु का आर्ास ऩथ ृ क् ऩॊन्क्त भें होना चादहमे । मह दो मा तीन चसरमों

(सम्बर्त् र्खड़की) से मक् ु त, प्रग्रीर् (भख ु शारा) से मक् ु त एर्ॊ तलऩ (द्र्ाय) से मक् ु त होता है । इसकी ऊॉचाई (वर्स्ताय के) फयाफय, सर्ा बाग मा डेढ़ बाग अधधक होनी चादहमे । दण्डक एर्ॊ भौसरक बर्न के र्ायण (द्र्ाय) इन्च्छत ददशा भें तनसभवत होने चादहमे ॥४५-४६॥ ्वििारविधानभ ् चतभ ु ख ुा भ ् चतुभख ुव द्वर्शार बर्न - चौकोय द्वर्शार गह ृ के दस बाग कय एक बाग से फाहय का भागव एर्ॊ दो बाग से गह ृ का वर्स्ताय यखना चादहमे । साभने एक बाग से र्ाय (भागव) एर्ॊ नौ बाग से भण्डऩ होना चादहमे । उसको घेयते हुमे एक बाग से असरधद एर्ॊ शेष बाग से चॊक्रभण का तनभावण कयना चादहमे ॥४७-४८॥

गह ृ का भुखबाग एर्ॊ फाहयी भागव रागर के आकाय का होना चादहमे, ककधतु भुखबाग ऩय न्स्थत चॊक्रभण (गसरमाया) तथा बीतयी वर्धमास चौकोय होना चादहमे ॥४९॥

दो कऺों से तनसभवत भुख्म बर्न भध्म बाग भें यङ्गस्थर से मुक्त होना चादहमे । फाह्म चॊक्रभण के फाहय दो बाग

से भुखबद्र (साभने का ऩोचव) तनसभवत होना चादहमे । चाय भुख (द्र्ाय) से मुक्त इस द्वर्शार बर्न की सॊऻा चतुभख ुव है ॥५०॥

स्िल्स्तकभ ् स्िल्स्तक - इस द्वर्शार बर्न के एक शारा की रम्फाई के ऩाॉच बाग कयने चादहमे । द्र्ाय का तनभावण ऩर्वर्र्णवत तनमभों के अनुसाय होना चादहमे एर्ॊ मह बर्न सबी अरॊकयणों से मुक्त होना चादहमे । भण्डऩ एर्ॊ फाहयी असरधद्र आमताकाय होना चादहमे । इसभें तीन नेर होते है औय रम्फाई भें इसभें आमताकाय बद्र होता है । इस बर्नको स्र्न्स्तक कहते है । शेष अर्मर्ों का तनभावण ऩहरे के सभान कयना चादहमे । ॥५१-५३॥

दण्डिक्त्रभ ् दण्डर्क्र - दण्डर्क्र बर्न दो भुखों से मुक्त कहा गमा है । मदद भण्डऩ न तनसभवत हो, तो र्हाॉ खुरा आॉगन होता है । न्जस स्थान ऩय कऺ न तनसभवत हो र्हाॉ सबन्त्त एर्ॊ द्र्ाय तनसभवत होता है । रूऩ से आजीवर्का चराने र्ारी न्स्रमों के बर्न एक तर से रेकय अनेक तर से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे ॥५४-५५॥ त्रत्रिाराविधानभ ् भेरुकान्तभ ् तीन शारा र्ारे भेरुकाधत बर्न - इस बरशार बर्न की चौड़ाई के आथ बाग एर्ॊ रम्फाई के १० बाग कयने चादहमे । इसभें दो बाग से आॉगन, तीन ओय एक बाग से असरधद्र तथा दो बाग से शारा का वर्स्ताय यखना चादहमे ॥५६॥ इस बर्न का भुखबद्र दो बाग से तनसभवत होता है , न्जसके भध्म बाग भें स्तम्ब नही होता है । इसके भुख (द्र्ाय) की सॊख्मा छ् होती है तथा भध्म बाग भें तनसभवत आॉगन छत से ढॉ का होता है । एक मा अनेक तर से मुक्त मह

बर्न अरॊकयणोभ से सुसन्ज्जत होता है । द्र्ाय आदद की व्मर्स्था ऩहरे के सभान होती है । भेरुकाधत सॊऻक मह बर्न उग्रजीवर्मों (कठोय कामव कयने र्ारों) के सरमे उऩमुक्त होता है ॥५७-५८॥ भौमरबद्रभ भौमरबद्र - इस बर्न की चौड़ाई के दस बाग एर्ॊ रम्फाई के फायह बाग कयने चादहमे । दोनो ऩाश्र्ों एर्ॊ वऩछरे बाग भें एक बाग से र्ाय (भागव) एर्ॊ दो बाग से गह ृ का वर्स्ताय यखना चादहमे । भुखबाग ऩय एक बाग से (भागव, बद्र)

होता है , न्जसके भध्म बाग भें दो बाग से आॉगन होता है । चायो ओय एक बाग से र्ाय तनसभवत होता है , जो ढका हो सकता है । इसकी रम्फाई चौड़ाई से दो बाग अधधक होती है एर्ॊ इसके चाय भुख होते है । भुखबाग ऩय (द्र्ाय के

साभने) द्र्ायबद्रक (द्र्ाय ऩय फना ऩोचव) होता है , न्जसका भाऩ चाय बाग होता है एर्ॊ दो बाग फाहय तनकरा होता है । इस बर्न के दोनों ऩाश्र्ों भें मा ऩष्ृ ठबाग भें दो रराट (भख ु , तनकरने का भागव) तनसभवत होते है । इसके शेष अॊग ऩर्वर्र्णवत वर्धध से तनसभवत होते है । इस बर्न की सॊऻा भौसरबद्र होती है ॥५९-६२॥ त्रत्रिारकप्रभाणभ ् बरशार बर्न का प्रभाण - इस बर्न के ऩाॉच वर्स्तायभाऩ होते है । मह ऩधद्रह हाथ से प्रायम्ब होकय (तेईस हाथ ऩमवधत) मा सोरह हाथ से प्रायम्ब होकय चौफीस हाथ ऩमवधत जाता है । इनके भध्म क्रभश् दो-दो हाथ भाऩ की र्वृ ि की जाती है ॥६३॥ चत्ु िाराविधानभ ् चतु्िाराप्रभाणबेदानन चाय शाराओॊ र्ारे बर्न की मोजना - चतु्शार बर्न का वर्स्ताय उधतीस प्रकाय के भान से मुक्त होता है । इसका वर्स्ताय नौ हाथ से प्रायम्ब होकय ऩौसठ हाथ तक तथा दस हाथ से छाछठ हाथ तक जाता है । इसके भध्म के

भाऩों भें क्रभश् दो-दो हाथ की र्वृ ि की जाती है । प्रथभ चौदह भाऩ के बर्नों भें आॉगन ढका होता है । शेष भें आॉगन को आर्श्मकतानुसाय खुरा यक्खा जाता है ॥६४-६५॥

इनभे प्रथभ बर्न की सॊऻा सर्वतोबद्र, द्वर्तीम की र्धवभान, तत ृ ीम की स्र्न्स्तक, चतुथव की नधद्मार्तव एर्ॊ ऩाॉचर्े की रुचक होती है ॥६६-६७॥ चत्ु िारादै र्घमागणनभ ् चतुश्शार बर्न के रम्फाई की गणना - चौकोय चतुश्शार बर्न का भाऩ चौड़ाई के सरमे ददमे गमे भाऩ के अनुसाय

होता है । चौड़ाई के भाऩ से जफ रम्फाई दो हाथ अधधक होती है तफ र्ह बर्न जातत शैरी का होता है । चाय हाथ अधधक होने ऩय छधद शैरी का एर्ॊ छ् हाथ अधधक होने ऩय वर्कलऩ शैरी का होता है । चौड़ाई से आठ हाथ अधधक रम्फाई होने ऩय बर्न आबास शैरी का होता है ॥६८-६९॥ जफ चौड़ाई के भाऩ से रम्फाई का भाऩ तनन्श्चत कयना हो तो रम्फई की गणना वर्सशष्ट यीतत से कयनी चादहमे । चौड़ाई के भाऩ से दो बाग अधधक यखने ऩय जातत शैरी होती है । मदद चौड़ाई के भानक भाऩ से रम्फाई चाय बाग अधधक हो तो र्ह छधद जातत की होती है । चौड़ाई से छ् बाग अधधक रम्फा होने ऩय वर्कलऩ शैरी होती है । चौड़ाई से रम्फाई जफ आठ बाग अधधक होती है , तफ र्हाॉ आबास शैरी होती है । जफ रम्फाई छ् बाग अधधक हो तो र्हाॉ आबास शैरी प्रशस्त नहीॊ होती है । ॥७०-७१-७२॥ प्रथभसिातोबद्रभ ् प्रथभ सिातोबद्र - अफ सर्वतोबद्र बर्न का वर्धमास सॊऺेऩ भें र्र्णवत ककमा जा यहा है । बर्न की चौड़ाई के आठ बाग कयने ऩय भध्म बाग भें दो बाग से आॉगन होना चादहमे । इसके चायो ओय उसके आधे भाऩ से भागव होना चादहमे तथा दो बाग से गह ृ का वर्स्ताय यखना चादहमे । चायो कोणों ऩय सबास्थर (फाहयी कऺ) एर्ॊ भध्म बाग भें र्ाय (भागव) होना चादहमे ॥७३-७४॥

गह ृ स्र्ाभी का आर्ास बर्न के ऩर्व मा ऩन्श्चभ भें होना चादहमे । मह चायो ओय सबन्त्त से मुक्त हो तथा कुलमा के

सदृश (थोड़ा भुड़े हुमे) द्र्ाय से मुक्त हो । सबन्त्त भें फाहय की ओय जारक (झयोखा)तनसभवत हो तथा बीतय की ओय स्तम्ब तनसभवत होने चादहमे । प्रधान द्र्ाय ऩऺ (रम्फाई की ओय) के एक बाग से तनसभवत होना चादहमे । भुखबाग ऩर्व मा ऩन्श्चभ भें होना चादहमे ॥७५-७६॥

इस बर्न भें जारक एर्ॊ कऩाट फाहय एर्ॊ बीतय होना चादहमे । इसभें क्रकयी र्ॊश (आऩस भें क्रास फनाते हुमे फीभ) हो एर्ॊ आठ भुखबाग बद्र से मुक्त हो । बर्न के चाय भुखों के भध्म बाग भे अधव सबा के आकाय के कऺ होने चादहमे । कोणों भें बीतय की ओय अधतबद्रसबा (कऺ) हो, न्जसके छत शॊख के आकाय की रऩ ु ा से मक् ु त हो ॥७७७८॥

(सशखयबाग ऩय) भख ु ऩदट्टका अधवकोदट (रऩ ु ा) से मक् ु त होती है । चायो ओय दन्ण्डकार्ाय (तनभावण-वर्शेष) होना चादहमे तथा सशखयबाग ऩय नीव्रऩदट्टका (न्जस ऩट्टी ऩय रुऩाओॊ का तनचरा ससया दृढ़ ककमा जाता है ) होती है । प्रस्तय

नाससकाओॊ से मुक्त तथा अधतय प्रस्तय से मुक्त होते है । रुऩामें, द्र्ाय एर्ॊ र्ॊश (फीभ) (चायो बर्नों के) सभान होने चादहमे ॥७९-८०॥

इसके वर्ऩयीत अनथवकायक ही होता है , इसभें सधदे ह नही है । सबी खर ु े स्थर भण्डऩ के सभान होते है । मे एक तर मा अनेक तरों से मुक्त होते है एर्ॊ दे र्ारम के सभान सुसन्ज्जत होते है । मे बर्न सदा दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के तनर्ास के अनुकर होते है ॥८१-८२॥

हस्त-भाऩ की र्वृ ि कयते हुमे मा घटाते हुमे न्जस प्रकाय भाऩ ऩणव हो, उस प्रकाय भाऩ कयना चादहमे । मह तनमभ सबी बर्नों ऩय सभान रूऩ से सम्भत है ॥८३॥ चायो बर्नों के अधत भें तनसभवत भख ु दक्षऺण बाग भें होने चादहमे । इन आथ भख ु ोभ के ऊऩयी तर ऩय ग्रीर्ा

स्तवऩका एर्ॊ र्ॊश से मुक्त होनी चादहमे । र्ॊश के ऊऩय स्तवऩका सभान होनी चादहमे । बद्र के ऊऩय भुखबाग ऩय

कट होना चादहमे तथा बीतयी द्र्ाय फाहय की ओय भुख ककमे हुमे होना चादहमे । मह सर्वतोबद्र सॊऻक बर्न याजाओॊ के तनर्ास के मोग्म होता है ॥८४-८५॥ ्वितीमसिातोबद्रभ ् सर्वतोबद्र का दसया बेद - बर्न की चौड़ाई के फायह बाग कयने चादहमे । भध्म बाग भें दो बाग भें आॉगन होना चादहमे । उसके चायो ओय एक बाग से भागव तनसभवत होना चादहमे । एक बाग से बीतय का र्ाय (फयाभदा) तनसभवत होता है । शारा का वर्स्ताय दो बाग से एर्ॊ फाहयी भागव उसके आधे भाऩ से तनसभवत होना चादहमे । इस बर्न की सॊऻा सर्वतोबद्र है तथा इसकी सजार्ट ऩर्व-र्र्णवत यीतत से कयनी चादहमे । ॥८६-८७॥ तत ृ ीमसिातोबद्रभ ् सर्वतोबद्र का तीसया बेद - बर्न की चौड़ाई के चौदह बाग कयने चादहमे । दो बाग से भध्म आॉगन तथा उसके चायो ओय एक बाग से भागव तनसभवत होना चादहमे । दो बाग से शारा का वर्स्ताय तथा उसके आधे भाऩ से फाहयी भागव तनसभवत कयना चादहमे । फड़ा भागव दो बाग से होना चादहमे । चायो शाराओॊ का शीषव बाग सबा के आकाय का (फीच भें उठा हुआ) होना चादहमे ॥८८-८९॥ भध्म बाग भें नाससकामें होनी चादहमे । बद्र आदद का तनभावण ऩहरे के सभान होना चादहमे । सबी कऺों के भध्म बाग भें स्तम्ब नही स्थावऩत कयना चादहमे । इस बर्न भें (कभ से कभ) तीन तर होते है एर्ॊ मह खण्दहम्मव आदद बागों से सस ु न्ज्जत होता है । इस बर्न को सर्वतोबद्र कहते है एर्ॊ मह दे र्ों, ब्राह्भणों तथा याजाओॊ के सरमे प्रशस्त होता है ॥९०-९१॥ चतुथस ा िातोबद्रभ ् सर्वतोबद्र का चतुथव प्रकाय - बर्न की चौड़ाई के सोरह बाग कयने चादहमे । भध्म आॉगन चाय बाग से होना चादहमे । शेष अॊगों को ऩहरे के सभान यखना चादहमे । सशखय की आकृतत (ऩर्वर्र्णवत आकृततमों से) हीन होती है ॥९२॥

मह नाससका, तोयण आदद अॊगों एर्ॊ जारकों (झयोखों) से मुक्त होता है । तीन तर आदद तरों से मुक्त तथा दे र्ारम के सदृश सुसन्ज्जत होता है । इसभें प्रत्मेक तर ऩय सीढ़ी एर्ॊ फीच-फीच भें भण्डऩ होताहै अथर्ा खुरा आॉगन होता है

। न्जनकी चचाव नही की गई है , उनका बी आर्श्मकतानुसाय तनभावण कयना चादहमे । इस बर्न की सॊऻा सर्वतोबद्र है । मह याजाओॊ के तनर्ास के सरमे प्रशस्त होता है ॥९३-९४॥

ऩञ्चभसिातोबद्रभ ् सर्वतोबद्र का ऩञ्चभ प्रकाय - बर्न की चौड़ाई के अट्ठायह बाग कयने चादहमे । दो बाग से भध्म-आॉगन, चायो ओय एक बाग से भागव, एक बाग से बीतयी भागव, दो बाग से शारा का वर्स्ताय, उसके आधे बाग से फाहय का भागव मा गसरमाया, दो बाग से वर्स्तत ृ भागव तथा उसके फाहय एक बाग से तनसभवत होना चादहमे । बर्न का शीषव शारा के आकाय का (सीधा) मा सबा के आकाय का (उबया हुआ) होना चादहमे ॥९५-९७॥

मह तीन तर आदद (अनेक तरों) से मक् ु त, खण्ड-हम्मव आदद से सश ु ोसबत होता है । शेष अर्मर्ों का सॊमोजन

आर्श्मकतानुसाय एर्ॊ इच्छानुसाय कयना चादहमे । बर्न के स्थानों की तनभावण-मोजना गह ृ स्र्ाभी के भन के अनुसाय

कयनी चादहमे । इसके अरङ्कयण फुविभान व्मन्क्त को दे र्ारम के सभान कयना चादहमे । मह सर्वतोबद्र बर्न होता है एर्ॊ इसे याजबर्न कहा गमा है ॥९८-९९॥ विभानाददरऺणभ ् वर्भान आदद के रऺण - न्जस बर्न का शीषव-बाग शारा के आकाय का होता है , उसे वर्भान कहते है । न्जस बर्न का शीषव-बाग भुण्ड के आकाय का होता है , उसे हम्मव कहते है । वर्सबधन आकाय के अर्मर्ों से मुक्त, अनेक तर से मुक्त तथा भारा के सभान एक-दसये से सॊमुक्त बर्न की सॊऻा भासरका होती है ।

जफ बर्न की चौड़ाई के छ् मा आठ बाग ककमे जाते है तफ रम्फाई आठ बाग, फायह बाग मा चौदह बाग यक्खी जानी चादहमे । प्रधान बर्न का भागव एक बाग मा दो बाग वर्स्तत ृ होना चादहमे । रम्फाई मदद आठ बाग से हो तो र्ाय (भागव, फयाभदा) एक बाग मा डेढ़ बाग से होना चादहमे ॥१००-१०१॥ प्रथभिधाभानभ ् र्धवभान बर्न का प्रथभ प्रकाय - अफ भैं सॊऺेऩ भें क्रभश् र्धवभान शारगह ृ के वर्धमास के फाये भें कहता हॉ । गह ृ की चौड़ाई के छ् बाग कयने चादहमे । उसभें दो बाग से बर्न का वर्स्ताय यखना चादहमे । दो बाग से आॉगन यखना चादहमे । फाहय चायो ओय सबन्त्त होनी चादहमे ॥१०२-१०३॥ प्रधान आर्ास के भख ु बाग (ऩर्व भें ) ऩय एक बाग से भागव फनाना चादहमे । मह बर्न भध्म बाग भें सबन्त्त तथा कुलमा के सदृश (भोड़ र्ारे) द्र्ाय से मुक्त होता है ॥१०४॥

ऩन्श्चभ बाग भें एक रम्फी शारा हो, जो दो नेरोभ से मक् ु त हो एर्ॊ ऊॉची हो । ऩर्व ददशा की शारा (ऩन्श्चभ की

शारा की अऩेऺा) कुछ नीची एर्ॊ रम्फी तथा साभने भुख (द्र्ाय) से मुक्त होती है । फगर के दो कऺ भुखवर्हीन एर्ॊ नीचे (अधम र्ॊशो की अऩेऺा कभ ऊॉचे) र्ॊश (रट्ट) से मक् ु त होते है । भध्म बाग भें दो अॊशो से र्ायण (ऩोचव) होता है , न्जसके एक-एक ददशा भें तनष्क्राधत (तनगवभ, फाहय तनकरा बाग) तनसभवत होता है ॥१०५-१०६॥

इसभें छोटे स्तम्ब इस प्रकाय तनसभवत होते है , न्जससे मह सुधदय रगे । कोने ऩय दो बाग से शॊखार्तव आकृतत का सोऩान तनसभवत होता है ॥१०७॥

इस बर्न को नाससका, तोयण, स्तम्ब तथा जारकों आदद से सस ु न्ज्जत कयना चादहमे । इसकी सजार्ट भन्धदय के

सभान उन अर्मर्ोभ से बी कयनी चादहमे , न्जनका महाॉ र्णवन नहीॊ है ; ककधतु ऩहरे (दे र्ारम के प्रसॊग भें ) ककमा गमा है । मह बर्न एक, दो मा तीन तर से मुक्त होता है । मदद इसका तनभावण याजा के सरमे ककमा जाम तो उत्तय ददशा भें द्र्ाय नहीॊ होना चादहमे ॥१०८॥ ्वितीमिधाभानभ ् र्धवभान शारगह ु त खुरा भागव फनाना चादहमे । ृ का दसया बेद - उसी प्रकाय एक बाग से स्तम्ब एर्ॊ सबन्त्त से मक् भुख्म बर्न दक्षऺण बाग भे होता है एर्ॊ इसका भर र्ॊश ऊॉचा होता है । इसका बद्र (ऩोचव) इच्छानुसाय ककसी बी ददशा भें एर्ॊ गह ृ इन्च्छत ददशा भें तनसभवत कयना चादहमे ॥१०९-११०॥

मह बर्न दन्ण्डका-भागव से मुक्त एर्ॊ दे र्ारम के सभान द्र्ाय, तोयण, नासोमों, र्ेददकाओॊ एर्ॊ जारकों से सुसन्ज्जत

होता है । फुविभान (स्थऩतत को) इच्छानुसाय, न्जस प्रकाय सुधदय रगे, उस प्रकाय बर्न का तनभावण कयना चादहमे । इस बर्न को र्धवभान कहते है । मह शारगह ृ चायो र्णों के सरमे प्रशस्त होता है ॥१११-११२॥ तत ृ ीमिधाभानभ ् र्धवभान बर्न का तीसया प्रकाय- गह ृ के वर्स्ताय के दस बाग कयने चादहमे । उसभें दो बाग से आॉगन होना चादहमे तथा उसके फाहय एक बाग से र्ाय (भागव) एर्ॊ दो बाग से शार-बर्न की चौड़ाई यखनी चादहमे । उसके आधे भाऩ से फाहयी भागव तनसभवत कयना चादहमे । द्र्ाय को बद्र से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद सबी

अर्मर्ों का तनभावण आर्श्मकतानुसाय एर्ॊ इच्छानुसाय कयना चादहमे । मह शार-बर्न र्धवभान सॊऻक होता है । मह चायो र्णों के सरमे उऩमुक्त फतामा गमा है ॥११३-११४॥ चतुथि ा धाभानभ ् र्धवभान का चतुथव प्रकाय - अथर्ा ऩये बर्न की चौड़ाई के दस बाग कयने ऩय दो बाग फाहयी र्ाय (भागव, फयाभदा)

तनसभवत कयना चादहमे । प्रत्मेक तर के खुरे स्थान को भण्डऩ के सभान फनाना चादहमे । ऊऩयी तरों ऩय क्रभानुसाय उधचत सजार्ट कयनी चादहमे ॥११५-११६॥

भुख-बाग ऩय बद्र को छोड़कय शेष अर्मर्ों को जैसा ऩहरे कहा गमा है , र्ैसा ही तनसभवत कयना चादहमे । भुक-भण्डऩ को बर्न के सभान, तीन चौथाइ मा बर्न के आधे भाऩ से यखना चादहमे ॥११७॥

शेष बागोभ को ऩर्वर्र्णवत यीतत भें तनसभवत कयना चादहमे । मह शारबर्न ब्राह्भण आदद सबी र्णो के सरमे प्रशस्त होता है । सुधदय र्धवभान बर्न तीन, चाय मा ऩाॉच तर का होता है ॥११८॥ ऩञ्चिधाभानभ ् र्धवभान बर्न का ऩाॉचर्ाॉ प्रकय - बर्न के वर्स्ताय के फायह बाग कयने ऩय दो बाग से भध्म आॉगन दो बाग से शारा का वर्स्ताय तथा उसके फाहय दो बाग से असरधद्र होता है । उसके फाहय एक बाग से र्ाय तथा

आर्श्मकतानस ु ाय स्तम्ब एर्ॊ सबन्त्त तनसभवत कयना चादहमे । दोनो ऩाश्र्ों भे उसके फाहय दो बाग वर्स्तत ृ एक बाग से तनगवभ (से मक् ु त बद्र) होना चादहमे ॥११९-१२०॥

उसके साथ र्ाय (फयाभदा), भख ु -ऩट्टी आदद अर्मर्, नेरशारा तनसभवत होते है । साभने एर्ॊ दोनों ऩाश्र्ों भें नेरशारा एर्ॊ असरधद्र ऩहरे के सभान होने चादहमे । इन दोनों के भध्म दसये तर ऩय आठ बाग रम्फा जर-स्थर होना चादहमे ।

तीसये तर ऩय र्ाय (भागव,फयाभदा) तनसभवत हो तथा चौथे तर भें उन-उन स्थरों ऩय कऺ होना चादहमे । ॥१२१-१२२॥ ऩाॉचर्े तर भें दोनों कोनों ऩय कणवकट (कऺ) तनसभवत कयना चादहमे । छठर्ें तर ऩय उन दोनों कणव-कटों के भध्म भें उसके आधे भाऩ का सबा-भुख फनाना चादहमे । छठर्े तर ऩय ही प्रधान बर्न के दोनों ऩाश्र्ो भें दो नेरकट होने चादहमे । उन दोनों के भध्म भें साभने सोऩान तनसभवत कयना चादहमे । चौथे तर ऩय साभने की ओय दो कणवकट

तनसभवत कयना चादहमे । ऩाॉचर्े तर ऩय एक बाग से रम्फाई भें शारा एर्ॊ र्ही ऩय दोनों ऩाश्र्ों भें ऩञ्जय तनसभवत होना चादहमे, न्जसकी रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई दो बाग हो ॥१२३-१२५॥ (प्रथभ तर भें ) आॉगन एर्ॊ उसके ऊऩय भण्डऩ तथा उसके ऊऩय स्तम्बों से मुक्त स्थान होना चादहमे । मह द्र्ाय

एर्ॊ नेर (सम्बर्त् दसये द्र्ाय) से मुक्त होता है एर् इसके र्ाभ बाग भें सोऩान तनसभवत होता है । प्रत्मेक तर ऩय भख ु -चङ्क्रभण (साभने का फयाभदा) से तछऩी सीदढ़माॉ होनी चादहए ॥१२६-१२७॥

वऩछरे बाग भें आठ बाग चौड़ा एर्ॊ दो बाग तनगवभ मुक्त बद्र होता है । उसके दोनों ऩाश्र्व-भुखों ऩय एक बाग से

तीन तरों से मुक्त र्ाय (फयाभदा) तनसभवत होता है । ऩाॉचर्े तर ऩय दो बाग वर्स्तत ृ एर्ॊ एक बाग फाहय की ओय

तनकरा तनगवभ तनसभवत होता है । ऩष्ृ ठबाग की शारा र्ाय, भख ु ऩट्टी आदद अॊगो से मक् ु त होती है । चौथे तर ऩय दोनों ऩाश्र्ों भें दो-दो बाग भाऩ से दो कट तनसभवत होते है । उसके चायो ओय बर्न की चौड़ाई के भाऩ से भण्डऩ तनसभवत होता है । दसये तर ऩय नेर से मुक्त बद्राङ्गी सारा (बद्र के सभान शारा) तनसभवत होती है ॥१२८-१३०॥ चाय भुख र्ारे र्ास्तु (गह ृ ) के भध्म चाय सर (ये खामें) खीॊचनी चादहमे । उन सरों के र्ाभ बाग भें तनमभ के

अनुसाय द्र्ाय फनाना चादहमे । भध्म बाग भें स्तम्ब स्थावऩत कय ऩाश्र्व बाग भें द्र्ाय फनाना चादहमे । इस प्रकाय से तनसभवत द्र्ाय को वर्द्र्ान कम्ऩद्र्ाय कहते है । प्रतेक तर ऩय स्तम्ब आदद अर्मर्ों द्र्ाया दे र्ारम की बाॉतत अरॊकयण कयना चादहमे । सात तर र्ारा मह याजबर्न र्धवभान कहराता है । ॥१३१-१३२-१३३॥ षष्ठिधाभानभ ् र्धवभान बर्न का छठर्ाॉ प्रकाय - बर्न के वर्स्ताय के चौदह बाग कयने ऩय दो बाग से भध्म बाग भे आॉगन, उसके चायो ओय एक बाग से र्ाय (भागव) तथा दो बाग से शारा का वर्स्ताय यखना चादहमे । दो बाग से ऩथ ृ ुर्ाय (फड़ा

गसरमाया) एर्ॊ फाहयी र्ाय उसके आधे भाऩ से होना चादहमे । चायो ओय दन्ण्डकार्ाय भुन्ष्टफधध (वर्सशष्ट आकृतत) से सुसन्ज्जत होनी चादहमे ॥१३४-१३५॥

बर्न के चरहम्मव आदद अर्मर्ों, सबन्त्त एर्ॊ ऊऩय भहार्ाय (फड़ा गसरमाया) तनसभवत कयना चादहमे । कट, कोष्ठ आदद सबी अॊगो को उधचत यीतत से आर्श्मकतानुसाय तनसभवत कयना चादहमे । मह बर्न र्धवभान सॊऻक होता है ; ककधतु मदद मह याजा के सरमे तनसभवत हो तो इसका द्र्ाय उत्तय ददशा भें नही होना चादहमे ॥१३६॥

सततिधाभानभ ् र्धवभान का सातर्ाॉ प्रकाय - गह ृ के वर्स्ताय के सोरह बाग कयना चादहमे । इसभें दो बाग से भध्म आॉगन एर्ॊ

इतने ही भाऩ का शारा का वर्स्ताय होना चादहमे । चायो ओय सबन्त्त तनसभवत होनी चादहमे । दो बाग से फड़ा भागव तथा स्तम्बो का तनभावण आर्श्मकतानुसाय होना चादहमे । इसके फाहय एक बाग से र्ाय एर्ॊ दो बाग से ऩथ ृ ुर्ाय

(फड़ा गसरमाया) होना चादहमे । स्तम्ब एर्ॊ सबन्त्त का तनभावण आर्श्मकतानुसाय एर्ॊ न्जस प्रकाय सुधदय रगे, उस प्रकाय कयना चादहमे ॥१३७-१३९॥

बर्न के दोनों ऩाश्र्ों भे दन्ण्डकार्ाय तथा वऩछरे बाग भें बद्र होना चादहमे । दोनों ऩाश्र्ों भें दो-दो भहार्ायों से मुक्त दो नेरशारामें होनी चादहमे । उन भहार्ायों (फयाभदों) के आगे दो-दो बाग आगे तनकरी हुई भुखऩदट्टकामें होनी चादहमे । बर्न के ऩष्ृ ठर्ास (वऩछरे बाग) को इस प्रकाय तनसभवत कयना चादहमे , न्जससे र्ह सुधदय रगे । कट एर् कोष्ठ के प्रत्मेक तर अप्र इच्छानुसाय एर्ॊ शोबा के अनुसाय तनसभवत कयना चादहमे । दसये मा तीसये तर ऩय गोऩान के ऊऩय भञ्चक तनसभवत कयना चादहमे ॥१४०-१४२॥

साभने कणव एर्ॊ कट ऩय शॊखार्तव सोऩान (सोऩान का वर्शेष प्रकाय) तनसभवत होना चादहमे । प्रत्मेक तर ऩय सोऩान एर्ॊ भख ु बाग ऩय चङ्क्रभण (चरने का भागव) होना चादहमे ॥१४३॥ स्तम्ब को स्तम्ब ऩय आधश्रत होना चादहमे । स्तम्ब को इस प्रकाय तनसभवत कयना चादहमे , न्जससे र्ह दृढ़ हो एर्ॊ सुधदय रगे । मदद मह आश्रम थोड़ा हो (अथावत ऩणव रूऩ से आधश्रत न हो, दटका न हो) मा बफलकुर आश्रम न हो तो र्ह स्तम्ब वर्ऩन्त्तकायक होता है ॥१४४॥

र्शव-स्थर (जरस्थान) एर्ॊ चरहम्मव प्रत्मेक तर ऩय तनसभवत होना चादहमे । फुविभान व्मन्क्त को गोऩान (कातनवस), रऩ ु ा, र्क्र-स्तम्ब, नाटक (वर्सबधन प्रकाय के धचर), भन्ु ष्टफधध, तनमवह, र्रबी एर्ॊ कचग्रह (आदद वर्वर्ध अरॊकयण) जहाॉ जहाॉ आर्श्मकता हो, र्हाॉ-र्हाॉ इनका सॊमोजन कयना चादहमे ॥१४५-१४६॥

फुविभान व्मन्क्त को इन बर्नों का आॉगन (हॉर) सबागह ृ के आकाय का, भण्डऩ के आकाय का मा भासरका के आकाय का तनसभवत कयना चादहमे । भण्डऩ के भध्म भें स्तम्ब का प्रमोग नही कयना चादहमे ॥१४७॥

बर्न के साभने भण्डऩ बर्न की चौड़ाई के फयाफय, उसका तीन चौथाई मा आधे भाऩ का होना चादहमे । आर्श्मकतानस ु ाय इसे बीतयी स्तम्ब से मक् ु त कयना चादहमे । मह एक, दो मा तीन से मक् ु त होता है एर्ॊ भासरका के सभान होता है । मह वर्र्त ृ स्तम्बों से मुक्त मा असरधद्र से मुक्त होता है । इसे बीतरय सोऩान से मुक्त होना

चादहमे । महाॉ न्जन अॊगो का र्णवन ककमा गमा है , उनका तथा न्जनका र्णवन नही ककमा गमा है , उनका तनभावण ऩहरे र्र्णवत वर्धध के अनुसाय कयना चादहमे ॥१४८-१५०॥ तीसये तर से प्रायम्ब कय नर्ें तर मा ग्मायह तर तक र्धवभान शार-बर्न हो सकता है । मह बर्न वर्शेष रूऩ से याजाओॊ के अनुरूऩ होता है ॥१५१॥

प्रथभनन््मािताभ ् नधद्मार्तव का प्रथभ प्रकाय - नधद्मार्तव शार-बर्न के वर्धमास एर्ॊ सज्जा का र्णवन अफ ककमा जा यहा है । बर्न के वर्स्ताय के छ् बाग कयना चादहमे । उनभें दो बाग से भध्म आॉगन तथा दो बाग शारा का वर्स्ताय यखना चादहमे । इसका प्रभाण चायो (शाराओॊ) के सरमे होता है । फाहयी भागव एर्ॊ सबन्त्त नधद्मार्तव की आकृतत भें होनी चादहमे ॥१५३-१५३॥

(प्रधान) शारा भें एक द्र्ाय नही होता है मा चाय द्र्ाय होते है । द्र्ाय फाहय एर्ॊ बीतय जारक एर्ॊ कऩाट से मक् ु त होते है ॥१५४॥

भख् ु म गह ु त होता है । इसका सबतयी बाग सबन्त्त से फॉटा होता है , न्जसभें कुलमाब (थोड़ा ृ चायो ओय सबन्त्त से मक्

भुडा हुआ) द्र्ाय होता है । भुख बाग ऩय चॊक्रभण (भागव) होता है । बीतयी बाग भें स्तम्ब होते है एर्ॊ खुरा (सबन्त्त के वर्ना) होता है । फाहयी बाग सबन्त्त से ढॉ का होता है । चायो ददशाओ भे तनगवभ होते है एर्ॊ अधवकट की आकृतत तनसभवत होती है । मह दन्ण्डकार्ाय से मुक्त तथा दे र्ारम के सदृश अरॊकृत होता है ॥१५५-१५६॥

मह बर्न चायो र्णो के अनुकर होता है । र्ैश्म एर्ॊ शद्र र्णव के सरमे बर्न का भुख ऩर्व ददशा भें होना चादहमे । मह एक बाग असरधद्र से तघया हो तथा फाहयी द्र्ाय अरॊकृत होना चादहमे । अधधष्ठान एर्ॊ स्तम्ब आदद का

सॊमोजन ऩर्वर्र्णवत यीतत से होना चादहमे । एक, दो मा तीन तर से मुक्त तथा सीधे शीषव बाग र्ारी मह शारा

प्रासाद-डलऩ होती है । फुविभान (स्थऩतत) को चायो र्णो के अनुरूऩ इस शार-बर्न की मोजना कयनी चादहमे ॥१५७१५८॥

्वितीमनन््मािताभ ् नधद्मार्तव का दसया प्रकाय - बर्न के वर्स्ताय के दस बाग भें दो बाग से भध्म-आॉगन तनसभवत कयना चादहमे । चायो ओय एक बाग से भागव तथा दो बाग से बर्न का वर्स्ताय यखना चादहमे । फाहय एक बाग से असरधद्र तथा बद्र आदद का तनभावण ऩर्वर्र्णवत वर्धध से कयना चादहमे । इसभें हम्मव आदद अॊगो से अरॊकयण आर्श्मकतानुसाय एर्ॊ शोबा के अनस ु ाय कयना चादहमे ॥१५९-१६०॥ तत ृ ीमनन््मािताभ ् नधद्मार्तव का तीसया प्रकाय - बर्न के वर्स्ताय के फायह बाग कयने चादहमे । दो बाग से भध्म-आॉगन एर् दो बाग से गह ृ का वर्स्ताय यखना चादहमे । भुख्म गह ृ के बीतयी बाग भें एक सबन्त्त (वर्बाजक दीर्ाय) होती है । फाहयी बाग भें चायो ओय दो बाग से वर्स्तत ृ भागव होना चादहमे । उसके चायो ओय के बाग असरधद्र (फयाभदा) होना

चादहमे, न्जसभें इच्छानस ु ाय स्तम्ब मा सबन्त्त का तनभावण कयना चादहमे । असरधद्र को चर एर्ॊ हम्मव आदद से

आर्श्मकतानुसाय मा इच्छानुसाय मुक्त कयना चादहमे । द्र्ाय, भुखबद्र औय अधधष्ठान आदद का तनभावण ऩहरे के सभान कयना चादहमे । ॥१६१-१६३॥

चायो शारगह ु ) ृ ों भें शीषव बाग भध्म र्ॊश के ऊऩय होता है । साभने र्ारे बाग भें कट एर्ॊ ऩाश्र्व-शारामें आनन (भख से मुक्त होती है । नधद्मार्तव की आकृतत र्ारा मह बर्न चाय भुखों (प्रर्ेश बाग) से मुक्त होता है ॥१६४-१६५॥ आॉगन के ऊऩय आॉगन एर्ॊ ऩऺशारा (फाहयी कऺ) के ऊऩय ऩऺशारा तनसभवत कयना चादहमे । भध्म-आॉगन का तनभावण सबागाय, भण्डऩ मा भासरका के सभान कयना चादहमे । मह बर्न तीन तर से प्रायम्ब कय (उससे अधधक तरों से मुक्त) ऊह एर्ॊ प्रत्मह आदद अॊगो से मुक्त होना चादहमे । मह प्रासाद-बर्न ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के सरमे अनुकर होता है ॥१६६-१६७॥ चतुथन ा न््मािताभ ् नधद्मार्तव का चौथा प्रकाय - बर्न के वर्स्ताय के चौदह बाग कयने चादहमे । दो बाग से भध्म-आॉगन , एक बाग से चायो ओय भागव एर्ॊ दो बाग से गह ृ ुर्ाय (वर्स्तत ृ भागव) होना चादहमे , ृ का वर्स्ताय यखना चादहमे । दो बाग से ऩथ न्जसके बीतयी बाग भें आर्श्मकतानुसाय स्तम्ब तनसभवत कयना चादहमे । उसके फाहय एक बाग से सबन्त्त एर्ॊ स्तम्ब आदद से मुक्त भागव तनसभवत कयना चादहमे ॥१६८-१६९॥

नधद्मार्तव की आकृतत र्ारा मह बर्न चायो ददशाओॊ भें भुख से मुक्त होता है । ऊध्र्वशारामें आठ भुखों से मुक्त होती है एर्ॊ मे चाय भुख र्ारी शाराओॊ ऩय व्मर्न्स्थत की जाती है । इस प्रकाय तनचरे तर एर्ॊ ऊऩयी तर की

शाराओॊ को सभराकय बर्न के फायह भुख होते है । चायो ददशाओॊ भें बद्र एर्ॊ द्र्ायशारामें सुशोसबत होती है । न्जन अॊगो का र्णवन महाॉ नही ककमा गमा है , उन सबी का तनभावण बी ऩहरे की बाॉतत कयना चादहमे ॥१७०-१७१॥ ऩञ्चभनन््मािताभ ् नधद्मार्तव का ऩाॉचर्ा प्रकाय - बर्न की चौड़ाई के सोरह बाग कयने ऩय दो बाग से भध्म आॉगन एर्ॊ दो बाग से शारा का वर्स्ताय यखना चादहमे । चौड़ा भागव उसी के साभने होना चादहमे । इसके फाहय एक बाग से फाहयी भागव एर्ॊ उसके फाहय एक बाग चौड़ा भागव होना चादहमे ॥१७२-१७३॥ इस बर्न भें आर्श्मकतानुसाय एर्ॊ इच्छानुसाय असरधद्र (फयाभदा) तथा चर-हम्मावङ्ग का तनभावण कयना चादहमे । इसके ऊऩय तनसभवत शारा का शीषव बाग चौकोय होना चादहमे ॥१७४॥

मह बर्न तीन तर से प्रायम्ब होकय नौ तर तक होता है एर्ॊ मह याजा तथा ब्राह्भण के मोग्म होता है । द्र्ाय एर्ॊ सबन्त्तमाॉ आदद ऩर्व-र्र्णवत तनणवम के अनुसाय तनसभवत होनी चादहमे । इसका अरॊकयण प्रासाद के सभान होना चादहमे एर्ॊ इसके जारक (झयोखे) नधद्मार्तव के सदृश होने चादहमे । इस बर्न भें ऊह, प्रत्मह आदद सब गह ृ के अरॊकयणों की आर्श्मकता होती है ॥१७५-१७६॥ स्िल्स्तकभ ् स्र्न्स्तक बर्न - इस स्र्न्स्तक बर्न की चौड़ाई के छ् बाग कयने चादहमे । इसभें दो बाग से आॉगन एर्ॊ उसी के सभान शारा का वर्स्ताय यखना चादहमे । इसका द्र्ाय कुलमा के सभान (भुड़ा हुआ) होना चादहमे । इसके वऩचरे बाग भें दीघव कोष्ठ एर्ॊ साभने बी उसी प्रकाय कोष्ठ होना चादहमे ॥१७७-१७८॥

इसके दोनों ऩाश्र्ो भें भख ु ऩदट्टका से मक् ु त ककवयी शारा (चौकोय तनभावण) तनसभवत होना चादहमे । वऩछरे बाग भें ऩष्ृ ठ से मुक्त, वर्ना ऩदट्टका के कोष्ठक का तनभावण होना चादहमे ॥१७९॥

अथर्ा मह बर्न दन्ण्डकाभागव से मक् ु त, छ् नेरो (झयोखों, र्खड़ककमो) से मक् ु त एर् बद्र से मक् ु त होना चादहमे ।

फुविभान व्मन्क्त को सबी अरॊकयण प्रासाद के सदृश कयना चादहमे । ऩर्व-भुख मह स्र्न्स्तक बर्न र्ैश्मों एर्ॊ शुद्रो के सरमे अनुकर कहा गमा है ॥१८०॥ स्िल्स्तकान्तयभ ् अधम प्रकाय का स्र्न्स्तक - र्ही बर्न एक बाग भाऩ के असरधद्र से तघया होता है तथा खण्ड-हम्मव आदद से अरॊकृत होता है । मह ऩर्व-र्र्णवत बद्र से मक् ु त होता है एर्ॊ इसकी सज्जा ऩहरे के सभान ही कयनी चादहमे । बर्न के सम्ऩणव वर्स्ताय को फायह, चौदह मा सोरह बागों भें इच्छानुसाय फाॉटना चादहमे ॥१८१-१८२॥

आॉगन, फाहयी भागव, वर्स्तत ृ भागव एर्ॊ असरधद्र का तनभावण होना चादहमे । शारा का वर्स्ताय दो बाग से यखना चादहमे ॥१८३॥

द्र्ाय, स्तम्ब, सबन्त्त एर्ॊ बद्र को आर्श्मकतानुसाय तनसभवत कयना चादहमे । बर्न भें हम्मावङ्ग आदद का तनभावण आर्श्मकतानस ु ाय एर्ॊ शोबा के अनस ु ाय कयना चादहमे । इस बर्न का शीषव बाग शारा के आकाय का, सबा के

आकाय का (उठा हुआ) मा हम्मावङ्ग के सभान होता है । इस बर्न को स्र्न्स्तक कहते है । न्जनका र्णवन महाॉ नही ककमा गमा है , उन अॊगो का र्णवन ऩहरे ककमा जा चक ु ा है ॥१८४-१८५॥ रुचकभ ् रुचक - रुचक सॊऻक बर्न भें तनवर्वष्ट (क्रास-फीभ) नहीॊ होता है । मह कोदट-रुऩाओॊ से सॊमुक्त होता है तथा कोने

ऩय सोऩान तनसभवत होता है । मह वर्धचर अॊगो से मक् ु त होता है ; ककधतु उत्तय ददशा भें कोई द्र्ाय नही होता । मह बर्न नान्स्तकों, ब्राह्भणों, अधम र्णों एर्ॊ दे र्ो के तनर्ास के मोग्म होता है । फुविभानो के अनुसाय मह बर्न चायो र्णों- याजाओॊ, ब्राह्भणों, र्ैश्मों एर्ॊ शद्रों के अनुकर होता है ॥१८६-१८७॥ चतु्िारसाभान्मविथध् चतुश्शार बर्नों के साभाधम तनमभ - वर्द्र्ानों के भतानुसाय चतुश्शार बर्न ऩर्वर्र्णवत व्मास से मुक्त होते है ;

ककधतु रम्फे नही होते है । मे चौकोय बर्न दे र्ो, ब्राह्भणो, दान आदद के सरमे एर्ॊ सबी नान्स्तकों के सरमे प्रशस्त होते है । ॥१८८॥

(इस वर्षम भें ) भुतन-जन इस प्रकाय कहते है - मदद गह ृ के वर्स्ताय के नौ, आठ, सात, मा छ् बाग ककमे जामॉ तो

प्रधान बर्न की चौड़ाई दो बाग के फयाफय होगी । मदद वर्स्ताय के ऩाॉच बाग ककमे जामॉ तो प्रधान बर्न की चौड़ाई एक बाग से यखनी चादहमे ॥१८९॥ सततिारादद

सात शारा आदद से तनसभवत गह ु न ु ी होती है ृ - सात कऺों के याजगह ृ का वर्स्ताय चौसठ हाथ एर्ॊ रम्फाई उसकी दग । इसभें दो द्र्ाय, दस नेर, दो आॉगन एर्ॊ प्रधान बर्न भें छ् सन्धधमाॉ होती है । इसकी सज्जा बर्न (भन्धदय) के सभान कयनी चादहमे । ॥१९०॥ चौड़ाई ऩाॉच बाग यहने ऩय रम्फाई नौ बाग होनी चादहमे । चौड़ाई छ् फाग होने ऩय रम्फाई ग्मायह बाग, सात बाग होने ऩय फायह बाग, आठ बाग होने ऩय चौदह बाग मा नौ बाग होने ऩय सोरह बाग रम्फाई होनी चादहमे । मे सप्तशार बर्न के ऩाॉच प्रकाय की रम्फाई के भाऩ है । दश-शार बर्न भें बर्न की चौड़ाई ऩर्व-र्र्णवत बागों भें होती है । इसकी रम्फाई (ऩाॉच बाग ऩय) तेयह बाग, (छ् बाग ऩय) सोरह बाग, (सात बाग ऩय) सरह बाग, (आठ बाग ऩय) फीस बाग मा (नौ बाग ऩय) तेईस बाग होनी चादहमे ॥१९१-१९२॥

मदद दश-शार बर्न याजा के सरमे तनसभवत हो तो इसकी चौड़ाइ अस्सी हाथ एर्ॊ रम्फाई उसकी तीनगुनी होनी

चादहमे । इसके फायह रराट, तीन प्रधान द्र्ाय, तीन आॉगन एर्ॊ आठ सन्धधमाॉ होनी चादहमे । इसका सॊमोजन हम्मव के सभान कयना चादहमे । ॥१९३॥ असरधद्र का भाऩ बर्न के तीसये बाग के फयाफय मा आधा होना चादहमे । इसका प्रर्ेशबाग (बद्र, प्रोच) तीन बाग मा छ् बाग से (चौड़ाई के) होना चादहमे । उसके फाहय एर्ॊ अधदय (बद्र के) आधे बाग से नारनीप्र (सॊयचनावर्शेष) होना चादहमे । मह सबी बर्नों के सरमे साभाधम तनमभ है ॥१९४॥ न्जस बर्न भें (भध्म बाग भें ) आॉगन न हो, उसके कोनों भें आॉगन होना चादहमे । इसके फहुत से भुक एर्ॊ प्रर्ेश (द्र्ाय का तनभावण, बद्र) होते है । इसके फाहयी एर्ॊ बीतयी बाग भें र्क्र (र्खड़की) होते है । इस बर्न को 'असीभ' कहते है । इसभें साभाधमतमा भध्माॊगन की आर्श्मकता नही होती है ॥१९५॥ भनष्ु मों के सरमे तनसभवत बर्न भें वर्षभ सॊख्मा भें हस्तभाऩ, स्तम्ब, डरामें (फीभ) आदद होनी चादहमे । दे र्ारम भें

हस्ताददकों की सॊख्मा सभ मा वर्षभ होनी चादहमे । दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के इस बर्न भें भध्म बाग भें द्र्ाय अप्रशस्त नही होता है ; ककधतु अधम भनुष्मों के बर्न भें द्र्ाय भध्म के ऩाश्र्व भें होना चादहमे । उनके सरमे र्ही प्रशस्त होता है ॥१९६॥ गबास्थानभ ् सशराधमास मा गबववर्धमास का स्थान - बर्न का गबव-वर्धमास साभने की सबन्त्त के नीचे तथा स्तम्ब के गतव भें कयना चादहमे । इसे बर्न के भध्म बाग के र्ाभ बाग के अथर्ा बर्न की प्रधान शारा के र्ाभ बाग भें स्थावऩत कयना चादहमे ॥१९७॥ सबन्त्त की चौड़ा के आठ बाग कयने चादहमे एर्ॊ इसके साभने र्ारे बाग से चाय बाग तथा बीतयी बाग से तीन बाग (छोड़कय उन दोनों के भध्म भें न्स्थत) बाग भें गबववर्धमास कयना चादहमे । दे र्ारम के द्र्ाय के भध्म भें गबव धमास कयना चादहमे; ककधतु ब्राह्भण आदद (चायो र्णो के) बर्न भे मह (भध्म भे गबव-वर्धमास) प्रशस्त नही होता है ॥१९८॥

िॊि्िायभ ् र्ॊशद्र्ाय - ब्राह्भण आदद र्णो के बर्न भें र्ॊशद्र्ाय (भध्म र्ॊश के साभने द्र्ाय) नही यखना चादहमे । नान्स्तकों एर्ॊ सॊधमाससमों के गह ृ भें र्ॊश-द्र्ाय दोषकायक नही होता है ॥१९९॥ विहायिारभ ् भठ - प्रभुख बर्न की चौड़ाई से तीन गुनी अधधक उसकी रम्फाई होनी चादहमे । बर्न की रम्फाई चौड़ाई के दग ु ुने भाऩ से रेकय तेईस बाग भाऩ ऩमवधत यक्खी जाती है । इस प्रकाय रम्फाई की दृन्ष्ट से ग्मायह प्रकाय के बर्न तनसभवत होते है ॥२००॥ प्रधान बर्न के साभने बद्र तनसभवत होना चादहमे । इसे सबागाय, कोष्ठ एर्ॊ नीड (सजार्टी र्खड़की) से सुसन्ज्जत

कयना चादहमे । बर्न के ऩष्ृ ठ-बाग भे र्ाय (फयाभदा) तनसभवत हो मा गबवकट के सदृश दो रराट (झयोखा) तनसभवत

होना चादहमे । इसे एक-दो मा तीन से मुक्त तथा आगे एर्ॊ ऩीछे वर्धचर नाससमों (सजार्टी आकृतत) से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । मही वर्हायशार (भठ) है । इसका तनभावण भन्धदय के सभान कयना चादहमे ॥२०१-२०२॥ िाराऩादप्रभाणभ ् बर्न के स्तम्बों का भाऩ - सबी बर्नों के स्तम्बों की रम्फाईएर्ॊ वर्ष्कम्ब (ऩरयधध) का र्णवन ककमा जा यहा है । स्तम्ब की रम्फाई ढाई हाथ से साढ़े तीन हाथ मा चाय हाथ से अधधक तक यक्खी जाती है । तीन अॊगुर मा छ्

अॊगुर की र्वृ ि कयते हुमे नौ तक स्तम्ब की ऊॉचाई होती है । इसकी चौड़ाई छ् से प्रायम्ब कय आधा मा एक अॊगुर फढ़ाते हुमे दस मा चौदह अॊगुर भाऩ तक रे जानी चादहमे । अथर्ा वर्द्र्ानों द्र्ाया ऩर्वर्र्णवत भान के अनस ु ाय इनका भान यखना चादहमे ॥२०३-२०५॥ आमाददरऺणभ ् आम आदद के रऺण - बर्न की चौड़ाई के भाऩ का तीन गुना कय उसभें आठ से बाग दे ना चादहमे । जो शेष

सॊख्मा फचे, उससे (एक से आठ तक क्रभश्) ध्र्ज, धभ, ससॊह, श्र्ान, र्ष ृ , खय, गज एर्ॊ र्ामस मोतनमाॉ होती है । इनभें ध्र्ज, ससॊह, र्ष ृ एर्ॊ गज मोतनमाॉ शुब एर्ॊ अधम अशुब होती है ॥२०६॥

बर्न की रम्फाई भें आठ का गुणा कयने ऩय गुणनपर भें सत्ताइस का बाग दे ना चादहमे । शेष से अन्श्र्नी आदद नऺरों का एर्ॊ उनके अनस ु ाय यासशमों का ऻान होता है । ॥२०७॥

बर्न की रम्फाई भें क्रभश् आठ एर्ॊ नौ का गुणा कयना चादहमे । प्राप्त गुणनपर भें फायह एर्ॊ दस से बाग दे ना

चादहमे । इससे दो सबधन-सबधन प्रकाय का शेष प्राप्त होता है । इनेह 'धन' एर्ॊ 'ऋण' कहते है । आम अथर्ा धन का ऋण से अधधक होना प्रशस्त होता है ॥२०८॥ बर्न की ऩरयधध को नौ से गन ु ा कयना चादहमे । गुणनपर भें तीस का बाग दे ना चादहमे । शेष से (तीस ददन के चाधद्रभास का ऻान होताहै एर्ॊ उसभें ) ततधथ एर्ॊ यवर् आदद ददनों का ऻान होता है । इनसे अभत ृ , र्य एर्ॊ ससवि मोगों को बी ऻान होता है तथा अधम का ऻान नही होता है ॥२०९-२१०॥

न्जस बान का नऺर गह ृ स्र्ाभी मजभान के जधभनऺर के सदृश होता है , र्ह बर्न प्रशस्त होता है । मह तनमभ

भनुष्मों के आर्ास के सरमे है । दे र्ारम के तनभावण भें बर्न के तनभावणकताव के अनुसाय नऺर होना प्रशस्त होता है ॥२११॥ खरुयी खरुयी, गह ृ की फाह्म बाग की सॊयचना - गह ृ के फाह्म बाग भें खरयी का वर्स्ताय इकतीस हाथ से प्रायम्ब कय दोदो हाथ फढ़ाते हुमे इकसठ हाथ तक यक्खा जाता है तथा इसकी रम्फाई इच्छानस ु ाय यक्खी जाती है । सबन्त्त एर्ॊ स्तम्ब आदद अॊगो का तनभावण बीतय अथर्ा फाहय इच्छानुसाय शोबा के सरमे होता है । इस ऩय रुऩा के ऊऩय

शीषवबाग का तनभावण ककमा जाता है अथर्ा महाॉ भण्डऩ का तनभावण ककमा जाता है । खरयी का तनभावण भनुष्मों के बर्न अथर्ा दे र्ारम के चायो ओय होता है । मह एक तर मा दो तर का अथर्ा वर्ना ककसी तर का होता है ॥२१२-२१३॥ बर्न के ऩर्व बाग भे प्रथभ मा द्वर्तीम आर्यण (बीतयी बाग) भें न्स्रमों का आर्ास होना चादहमे । नैऋत्म ददशा भें सततका-गह ृ तथा शौचारम होना चादहमे । न्स्रमों का आर्ास र्ामु के ऩद से इधद ु (सोभ) के ऩद तक हो सकता है ॥२१४॥

मभ ऩद (दक्षऺण ददशा) ऩय बोजन-गह ृ , सोभ ऩद (उत्तय ददशा) ऩय धन-सञ्चमगह ृ , अन्ग्न के स्थान ऩय धाधमगह ृ

तथा आकाश के स्थान ऩय ऩके हुमे बोजन के यखने का स्थान होना चादहमे । ऩजा-गह ृ ईश (ईशान कोण) भें एर्ॊ र्ही कऩ होना चादहमे । उददतत के ऩद ऩय स्नान का स्थान होना चादहमे । न्जस-न्जस स्थान ऩय न्जनकी न्स्थतत र्र्णवत है , उधहे र्ही यखना चादहमे ॥२१५-२१६॥ द्र्ाय एर्ॊ सबन्त्त का सॊमोजन गह ु ाय कयना चादहमे । शेष का तनभावण फवु िभान व्मन्क्त ृ -स्र्ाभी की इच्छा के अनस को ऩर्व-र्र्णवत क्रभ भें कयना चादहमे ॥२१७॥

सशर्ख के ऩद ऩय गोशारा, तनऋतत के ऩद ऩय फकरयमों की शारा, र्ामु के ऩद ऩय बैंसो की शारा तथा ईश के कोण ऩय अश्र्शारा एर्ॊ गजशारा होनी चादहमे । सबी प्रकाय के र्ाहनों का स्थान द्र्ाय के र्ाभ बाग भें होना चादहमे ॥२१८॥ उऩमक् ुव त सबी तनमभ चायो र्णो के बर्न के सरमे कहे गमे है । याजाओॊ के आर्ास के सरमे वर्शेष सॊमोजन होता है । उनके बर्न भें तीन प्रकाय, बर्नोभ की तीन ऩॊन्क्तमाॉ एर्ॊ तीन बोग (अधत्ऩुय) होना चादहमे । शेष तनमभ उसी प्रकाय है , जो तीनों र्णो के सरमे वर्दहत है ॥२१९॥

भनष्ु मों के गह ृ भें एक, दो मा तीन सार (प्राकाय) एर्ॊ दे र्ारमों भें ऩाॉच, तीन मा एक सार होता है । वर्धध के ऻाता (स्थऩतत) को भनुष्मों के आर्ास के सरमे ऩर्वर्र्णवत भाऩ का प्रमोग कयना चादहमे ॥२२०॥

अध्माम २७ िाटमबल्त्त फाहयी सबन्त्त का वर्धान - चाय दण्ड (सोरह हस्त) से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे तीस हाथ तक एक-एक गह ृ का भान होता है । ऺुद्र (छोटे ) गह ृ ों के मे आठ प्रकाय के भान है । अफ भध्मभ भान र्ारे गह ृ (के र्ाटसबन्त्त)

का भान आठ दण्ड से प्रायम्ब होकय दो-दो दण्ड फढ़ाते हुमे फत्तीस दण्ड तक होता है । (उत्तभ गह ृ के भन भे) महाॉ से (फत्तीस दण्ड से) प्रायम्ब कय दो-दो दण्ड फढ़ाते हुमे एक सौ दण्ड तक रे जाना चादहमे । र्ाटसबन्त्त का मह भान गह ृ के बीतयी बाग से सरमा जाना चादहमे ॥१-४॥

ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओॊ के बर्न की र्ाटसबन्त्त वर्शेष रूऩ से चौकोय होनी चादहमे । ऺबरम आदद र्णो (र्ैश्म एर्ॊ शद्र) के भान भें रम्फाई चौड़ाई से आठ बाग, छ् बाग एर्ॊ चाय बाग अधधक होती है । सोरह हाथ से कभ भाऩ र्ारे गह ृ का तनभावण नही कयना चादहमे । र्ाटसबन्त्त की ऊॉचाई नौ, आठ, सात मा छ् हाथ होनी चादहमे । इसके तर कक

भोटाई तीन मा चाय बाग के फयाफय होनी चादहमे तथा अग्र बाग (ऊऩयी बाग) की भोटाई अधोबाग से चतुथांश कभ होनी चादहमे । इसका सशयोबाग सीधा अथर्ा चधद्रकाय नाससमों से सस ु न्ज्जत होना चादहमे ॥५-७॥

मह चायो ददशाओॊ भें चाय द्र्ायों से मुक्त होता है । मे द्र्ाय तलऩ (कऩाट) मुक्त होते है । मह वर्सबधन अॊगो से

सुशोसबत द्र्ाय-गोऩुय से मुक्त होता है । इसके फाहय ऩरयखा होती है एर्ॊ सबी प्रकाय की सुयऺा, व्मर्स्था होती है । इस प्रकाय र्ाटसबन्त्त का र्णवन ककमा गमा है , जो गह ृ कयती है ॥८-९॥ ृ के फाहय से आर्त खरूरयखा खररयखा - अथर्ा (र्ाटसबन्त्त के स्थान ऩय) खररयका का तनभावण होता है । मह सभट्टी से अथर्ा रकड़ी के रट्ठोंसे तनसभवत होती है , न्जसे घास आदद से आच्छाददत ककमा जाता है । मह र्ेददका एर्ॊ स्तम्बो से मुक्त होती है ॥१०॥ मबन्नामबन्नगह ृ सॊमक् ु त एर्ॊ ऩथ ृ क् गह ृ - गह ृ -तनभावण सबधन एर्ॊ असबधनबेद से दो प्रकाय के होते है । स्ऩष्ट रूऩ से सबधन एर्ॊ वऩण्डबेद (असबधन) गह ृ का र्णवन ककमा जा यहा है ॥११॥

सबधन गह ु त होता है । सबधन गह ृ सन्धधयदहत होता है । असबधन गह ृ सन्धध से मक् ृ ों भें चायो ददशाओॊ भें चाय प्रधान गह ृ तनसभवत होते है तथा ददक्कोणों भें भण्डऩ मा खररयका तनसभवत होती है ॥१२॥

मदद र्ाटसबन्त्त के बीतय तीन, दो मा एकशार बर्न हो तो र्ह दब ु ावग्मकायक होता है , इससरमे चतुश्शार बर्न प्रशस्त होता है तथा इसका भाऩ इसके वर्स्ताय के भाऩ से ग्रहण कयना चादहमे ॥१३॥

छोटे रोगों के सरमे छोटे भान का प्रमोग कयना चादहमे तथा श्रेष्ठ रोगों के सरमे उत्तभ भान का प्रमोग कयना चादहमे । छोटे रोगों के सरमे कबी बी उत्तभ भान का प्रमोग नही कयना चादहमे । कही-कही छोटे रोगों का भान श्रेष्ठ रोगों के सरमे बी प्रशस्त होता है ॥१४॥

गह ृ विन्मास गह ृ की मोजना - गह ृ छोटे भान का हो मा उत्तभ भान का हो, सर्वप्रथभ इसकी सीभाये खा सर द्र्ाया तनधावरयत

कयनी चादहमे । आमताकाय मा चौकोय ऺेरको चौसठ ऩदों भें वर्बान्जत कयना चादहमे । इसभें छ् यज्जु, चाय र्ॊश एर्ॊ आठ ससयामें इस प्रकाय खीॊचनी चादहमे , न्जससे सन्धधमाॉ तनसभवत हो ॥१५-१६॥

र्ास्तुवर्द् स्थऩतत को गह ृ तनभावण के सरमे सभम सराददकों से तनसभवत भभवशर को गह ृ के अर्मर्ों (स्तम्ब-सबन्त्त

आदद) से ऩीड़ड़त नही कयना चादहमे । ऐसा होने ऩय (गह ृ एर्ॊ गह ृ स्र्ाभी का) सर्वनाश हो जाता है । इससरमे सबी प्रकाय से प्रमत्नऩर्वक सरादद (से तनसभवत भभवस्थरों) का ऩरयत्माग कयना चादहमे ॥१७॥

ऩर्व आदद ददशा के भध्म सर अधन, धाधम, धन एर्ॊ सख ु सॊऻक है । इधही के आधाय ऩय चाय शाराओॊ की सॊऻा अधनारम, धाधमारम, धनारम एर्ॊ सुखारम होती है ॥१८-१९॥ भध्मभन्डऩप्रभाण भध्म भण्डऩ का भान - फुविभान स्थऩतत को सर्वप्रथभ र्ास्तु के भध्म भें भण्डऩ का तनभावण कयना चादहमे । इसका

वर्स्ताय र्ास्तु ऺेर के वर्स्ताय के चाय, ऩाॉच, छ्, सात, आठ मा नर्ें बाग के फयाफय होना चादहमे । श्रेष्ठ (फड़े) , भध्मभ एर्ॊ कतनश्ठ (सफसे छोटे ) भण्डऩ के छ् प्रभाण सात हाथ से प्रायम्ब कय दो-दो हाथ फढ़ाते हुमे सरह हाथ तक जाते है ॥२०-२१॥ एक बाग मा दो बाग प्रभाण र्ारे भण्डऩ भें चाय मा आठ स्तम्ब होने चादहमे । ब्राह्भण, ऺबरम एर्ॊ र्ैश्म के बर्न भें सभ सॊख्मा भें स्तम्ब प्रशस्त होते है एर्ॊ शद्र तथा अधम जाततमों (छोटी जाततमों) भें वर्षभ सॊख्मा भें स्तम्ब प्रशस्त होते है ॥२२॥२३॥ भध्मिेददका भध्म र्ेदी - ब्राह्भण, ऺबरम एर्ॊ र्ैश्मों के गह ृ भें भध्मर्ेदी का वर्शेष भहत्त्र् है । महाॉ तीनों कारों (प्रात्, भध्माह्न एर्ॊ सामॊकार) भें फसर (ऩजन साभग्री) प्रदान की जाती है एर्ॊ ऩुष्ऩ तथा सुगधध से ऩजा की जाती है ॥२४॥

र्ेददका की ऊॉचाई तीन तार (बफत्ता, फासरश्त) एर् चौड़ाई ऊॉचाई के सभान होती है । इसके भध्म बाग भें र्ेददका के आधे भाऩ से ब्रह्भऩीठ का तनभावण होता है । याजा (ऺबरम) एर्ॊ र्ैश्म के बर्न भें इसका भान छ्-छ् अॊगुर कभ यखना चादहमे । शद्र एर्ॊ अधम जाततमों के बर्न भें ब्रह्भर्ेददका का तनभावण नही कयना चादहमे । ॥२५-२६॥

भध्म-भण्डऩ के रऺण - भण्डऩ का तनभावण गह ृ के आकाय के अनुसाय आमताकाय मा चौकोय होता है । स्तम्ब का

भान ऩाॉच तार से प्रायम्ब होकय तीन-तीन अॊगुर फढ़ाते हुमे सात तार तक जाता है । इस प्रकाय स्तम्ब की रम्फाई नौ प्रकाय की होती है । स्तम्ब का वर्ष्कम्ब (घेया) ऩाॉच अॊगर ु से प्रायम्ब होकय तेयह अॊगर ु ऩमवधत होता है । इस प्रकाय ऩादवर्ष्कम्ब नौ प्रकाय का होता है । इसके अग्र बाग (ऩाद के शीषव बाग) का वर्ष्कम्ब (नीचे के भाऩ से)

आठ बाग कभ होता है । ऩाद के अधधष्ठान की ऊॉचाई स्तम्ब की ऊॉचाई की आधी, छ् मा आठ बाग कभ होती है अथर्ा अधधष्ठान की ऊॉचाई स्तम्ब के तीसये मा चौथे बाग के फयाफय होती है । स्तम्बों की आकृतत चौकोय, र्त्ृ ताकाय, अष्टकोण मा धचरखण्ड होती है ॥२७-३०॥

ब्राह्भणो एर्ॊ याजाओॊ (ऺबरमों) के स्तम्ब शभी, खाददय, खददयकाष्ठ से तनसभवत होते है । र्ैश्म के स्तम्ब ससरीधध्र, वऩसशत एर्ॊ भधककाष्ठ के होते है । शद्रों के स्तम्ब याजादन, तनम्फ, ससरीधध्र, वऩसशत मा ततनुक के काष्ठ से तनसभवत होते है । त्र्क्साय (फाॉस) के स्तम्ब सबी के सरमे अनुकर होते है ॥३१-३२॥

फाह्भण एर्ॊ याजाओॊ के भण्डऩ ऩक्की ंटटों एर्ॊ गाया से तनसभवत होते है । र्ैश्मों आदद के भण्डऩ कच्ची ंटटो से तनसभवत होते है । सबी भण्डऩ वर्वर्ध अरॊकयणो से सुसन्ज्जत होते है । अथर्ा (भण्डऩ के स्थान ऩय) नारयमर के ऩरों से आच्छाददत प्रऩा का तनभावण होता है । गह ृ एर्ॊ भण्डऩ के फीच भें चायो ओय तीन, चाय, ऩाॉच मा छ् हाथ

वर्स्ताय का एर्ॊ सबी स्थानों ऩय सभान भाऩ का भागव तनसभवत कयना चादहमे । छोटे बर्नों भें एक मा दो हाथ चौड़ा भागव होना चादहमे ॥३३-३५॥ अन्नागायाददस्थान अधनागाय आदद (धाधम, धन एर्ॊ सौख्म गह ृ ) का भध्म र्ास्तु के भध्म से दादहनी ओय होना चादहमे । मह क्रभश् फायह, नौ, सात एर्ॊ ऩाॉच अॊगुर होना चादहमे । (कहने का तात्ऩमव मह है कक मे कऺ र्ास्तुभध्म से हटकय दक्षऺण बाग भें तनसभवत होने चादहमे) ॥३६॥

अधनागाय आदद (धाधम, धन एर्ॊ सुख) के स्तम्ब गह ृ ों के क्रभश् दस, नौ, आठ एर्ॊ सातर्ें बाग से होते है । एक-एक स्तम्ब स्तम्ब-स्थाऩन-कभव द्र्ाया स्थावऩत होना चादहमे । इधहे र्ास्तु के भध्म से उत्तय, ऩर्व, दक्षऺण एर्ॊ ऩन्श्चभ भें क्रभश् स्थावऩत कयना चादहमे । गह ृ एर्ॊ स्तम्बो के भध्म भें न्स्थत सबन्त्त को भध्मसबन्त्त कहते है । गह ृ ों (कऺो) के भख ु (द्र्ाय) बीतय की ओय एर्ॊ र्ास्तु का (गह ृ के फाहयी बाग का) द्र्ाय फाहय की ओय होना चादहमे ॥३७-३९॥ सुखारम सुखारम - ब्राह्भणों का सुखारम भहीधय, इधद,ु बलराट, भग ृ एर्ॊ अददतत के ऩद ऩय तनसभवत होना चादहमे । उसकी

रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई इस प्रकाय है - ऩाॉच हाथ से नौ हाथ तक, साढ़े ऩाॉच से साढ़े दस तक एर्ॊ सात हाथ से ग्मायह हाथ तक । इस प्रकाय इनका तीन प्रकाय का प्रभाण होता है ॥४०-४१॥ साभान्मप्रभाण साभाधम भाऩ - सबी बर्नों की चरी (स्तम्ब का ऊऩयी बाग) की ऊॉचाई गह ृ के अन्धतभ बाग तक की चौड़ाई के

फयाफय होनी चादहमे । स्तम्ब की ऊॉचाई के फयाफय सबन्त्त की ऊॉचाई होनी चादहमे तथा भोटाई (चौड़ाई) स्तम्ब की चौड़ाई की तीनगुनी होनी चादहमे ॥४२॥ दो स्तम्बों के भध्म का अधतयार बर्न की चौड़ाई के तीसये मा ऩाॉचर्े बाग के फयाफय होना चादहमे । स्तम्ब का व्मास ऩर्वर्णवन के अनुसाय मा बर्न के हस्त-भाऩ के व्मास के अनुसाय यखना चादहमे । बर्न का वर्स्ताय न्जतने

हाथ हो, उतने अॊगुर का स्तम्ब का वर्स्ताय होना चादहमे । सबी प्रकाय के बर्नों के स्तम्ब का वर्ष्कम्ब (वर्स्ताय) इसी प्रकाय होना चादहमे ॥४३-४४॥ ऩुन् सुखारम

ऩन ु ् सख ु ारम - बर्न का द्र्ाय भहे धद्र के ऩद ऩय एर्ॊ जर की नारी भख् ु म के ऩद ऩय होनी चादहमे । इस प्रकाय का बर्न ब्राह्भणो के सरमे सर्व-सम्ऩन्त्तकायक होता है ॥४५॥ अन्नारम अधनगह ृ के ऩद ऩय होना चादहमे । इसका ृ - भहानस (यसोई -कऺ) का तनभावण भहे धद्र, अकव, आमवक, सत्म तथा बश

भाऩ ऩाॉच प्रकाय का - तीन हाथ एर्ॊ ऩाॉच हाथ, साढ़े तीन तथा साढ़े छ् हाथ, चाय एर्ॊ सात हाथ, साढ़े चाय तथा साढ़े आठ हाथ औय ऩाॉच एर्ॊ नौ हाथ तक होता है ॥४६-४७॥ गह ृ का द्र्ाय गह ृ ऺत के बाग ऩय एर्ॊ जर-प्रणार जमधत के बाग ऩय होता है । इस प्रकाय ऩर्व ददशा भे न्स्थत याजा का गह ृ कोश को राने र्ारा एर्ॊ र्वृ ि कयने र्ारा होता है ॥४८॥ धान्मारम धाधमगह ृ गयाज तथा वर्र्स्र्ान ् के ऩद ऩय होनी चादहमे । ृ - धाधमारम की न्स्थतत गह ृ ऺत, अकी (मभ), गधधर्व, बङ्

उसकी रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई का र्णवन ककमा जा यहा है ऩाॉच हाथ तथा नौ हाथ, साढ़े छ् एर्ॊ साढ़े दस हाथ, सात एर्ॊ ग्मायह हाथ, नौ एर्ॊ तेयह हाथ औय ग्मायह एर्ॊ ऩधद्रह हाथ- मे ऩाॉच प्रकाय के भाऩ होते है । ॥४९-५०॥ ऩुष्ऩदधत के ऩद ऩय द्र्ाय होना चादहमे तथा वर्तथ के ऩद ऩय जरतनकास होना चादहमे । र्ैश्मों का दक्षऺण ददशा भें आर्ास धन, धाधम एर्ॊ सुख प्रदान कयता है ॥५१॥

धनगह ृ - धनारम ऩुष्ऩदधत, असुय, शोष, र्रुण एर्ॊ सभर के ऩद ऩय होता है । इसे धाधमारम के सभान मा उससे कुछ कभ होना चादहमे । ऩन्श्चभ ददशा भें शद्र का र्ास धन, धाधम एर्ॊ शुबता प्रदान कयता है ॥५२-५३॥

इस बर्न भें बलराट के ऩद ऩय द्र्ाय तथा सुग्रीर् के ऩद ऩय जरप्रणार होना चादहमे । इस प्रकाय चायो र्णो के आर्ास की वर्धध का र्णवन ककमा गमा ॥५४॥ गह ृ ोध्िाबागाङ्गान गह ृ के ऊऩयी बाग के अॊग - स्तम्ब के ऊऩय ऩोततका, उत्तय, र्ाजन, तुरा, जमधती, अनुभागव, परका, ऊऩयी बसभ का

तर (पशव), कऩोत, उसकी प्रतत, वर्तन्स्त-जरक (कातनवस), भन्ु ष्टफधध, भण ु ा-कक्रमा (रऩ ु ा का ढाॉचा), रऩ ु ाृ ारी, दन्ण्डका, रऩ प्रच्छादन तथा ऩदट्टका से मुक्त भुख की यचना होनी चादहमे । गह ृ के दक्षऺण ऩाश्र्व भें फड़ा द्र्ाय होना चादहमे ॥५५५७॥

र्ास्तु भण्डऩ का भान - भण्डऩ का प्रभाण दो हाथ, साढे तीन हाथ औय चाय हाथ होता है । अथर्ा र्ास्त-ु भण्डऩ

(गह ृ का भण्डऩ) चाय हाथ प्रभाण से प्रायम्ब होकय फत्तीस हाथ तक होता है । छोटे बर्न भें प्रऩा का तनभावण होता

है , न्जसका प्रभाण एक बन्क्त से रेकय इकतीस बन्क्त तक होता है । मह तार एर्ॊ नारयमर के ऩत्तों से आच्छाददत होता है एर्ॊ स्तम्ब तथा फीभ से फना होता है ॥५८-५९॥ गबास्थान

गबव-धमास का स्थान - अफ भै गह ु ाय कयता हॉ । मह वर्शेष रूऩ से दे र्ों ृ ो के गबवस्थान का र्णवन ऩर्व-र्णवन के अनस के बाग के अनुसाय वर्धमास के वर्षम भें है ॥६०॥

चाय प्रधान बर्नों भे उत्तय से प्रायम्ब कय ऩष्ु ऩदधत, बलराट, भहे धद्र एर्ॊ गह ु म ृ ऺत के ऩद ऩय सबतत के नीचे भख् द्र्ाय के दादहने बाग भें गबवधमास होना चादहमे ॥६१॥

सबन्त्त की चौड़ाई के नौ बाग मा आठ बाग कयने चादहमे । फाहय से चौथे बाग एर्ॊ बीतय से तीसये बाग को रेकय इन दोनों (बफधदओ ु ॊ) के भध्म भें गबवधमास कयना चादहमे ॥६२॥ गह ृ स्र्ाभी के कऺ की सबन्त्त की चौड़ाई को ऩाॉच, छ् मा सात बाग भें फाॉटना चादहमे । सबतय से दादहने बाग भें दो बाग रेना चादहमे ॥६३॥

स्तम्ब के भर भें गबवधमास अन्च्छ तयह तछऩा कय कयना चादहमे । इसे द्र्ाय के दादहने स्तम्ब के नीचे, बीतयी सबन्त्त के नीचे अथर्ा तछऩे स्तम्ब के नीचे, र्ास्त-ु भण्डर के भध्म से दक्षऺण स्तम्ब के नीचे स्थावऩत कयना चादहमे । वऩण्डसबधन (सॊमक् ु त एर्ॊ ऩथ ृ क् ) गह ृ भें गबव-धमास के मे ऩाॉच स्थान है ॥६४-६५॥ भुहूतास्तर्मब भुहत्तव-स्तम्ब - वर्धध के ऻाता के द्र्ाया उसके (गबवधमास के) ऊऩय उत्तभ भुहतव-स्तम्ब की स्थाऩना कयनी चादहमे । मे स्तम्ब खददय, खाददय, भधक मा याजादन के काष्ठ से तनसभवत होते है । इनकी रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई इस प्रकाय

कही गई है - इसकी रम्फाई फायह, ग्मायह, दस मा नौ बफत्ता तथा इसकी चौड़ाई बफत्ते के भाऩ के फयाफय अॊगुर होती है । शीषव बाग भें इसकी चौड़ाई आठ बाग कभ होनी चादहमे । गड्ढे भे यक्खा जाने र्ारा उसकी रम्फाई का ऩाॉच , साढे चाय, चाय मा तीन बफत्ता के फयाफय का बाग होता है । इसके शीषव बाग को र्त्ृ ताकाय, कभरऩुष्ऩ की करी के

सभान, खण्डाग्र मा फुद्फुद के सभान तनसभवत कयना चादहमे । स्तम्ब की ऩजा ब्राह्भण आदद चायो र्णो द्र्ाया बरीबाॉतत कयनी चादहमे ॥६६-६९॥ साभान्मविथध साभाधम वर्धध- वऩण्डशारा (सम्ऩणव बर्न का एक बाग) का तनभावण भध्म भे न्स्थत स्तम्ब को छोड़कय कयना चादहमे (अथावत गह ृ के भध्म भें स्तम्ब नही होना चादहमे) गह ृ की भध्म सबन्त्त स्तम्ब के भध्म बाग से सम्फि नही होनी चादहमे । इस सबन्त्त ऩय दो कुलमाब द्र्ाय (भुडा हुआ द्र्ाय) होना चादहमे ॥७०॥

(सुखारम) बर्न भें बीतयी द्र्य दक्षऺण-ऩर्व भे होना चादहमे । गह ृ का ऩाश्र्व दक्षऺण बाग भें होना चादहमे एर्ॊ गह ृ के ऩाश्र्व (दक्षऺण बाग भें) यसोई होनी चादहमे । (धाधमारम) बर्न का बीतयी द्र्ाय ऩन्श्चभोत्तय ददशा भे होना चदहमे । गह ृ का ऩाश्र्व बाग उत्तय ददशा भे होना चादहमे । (धनारम बर्न) ऩाश्र्व बाग के ऩन्श्चभ भें होना चादहमे । सबधन शारागह ृ ो भे शाराओ भें सन्धधकामव नदह कयना चादहमे ॥७१-७३॥

दे र्ों (र्ास्तुदेर्ों) की स्थाऩना वऩण्डशाराओॊ भे (बर्न के सॊमुक्त खण्ड भें ) कयना चादहमे । ब्रह्भा एर्ॊ उनके चतुददव क फाह्म दे र्ों की स्थाऩना उधचत यीतत से कयनी चादहमे । वर्ना ऩदो र्ारे शेष सबी दे र्ों को यऺा के सरमे स्थावऩत कयना चादहमे ॥७४॥

ऐसा बी कहा गमा है कक वऩण्डशारा भें भध्म बाग भें स्तम्ब नही होना चादहमे । अफ भै कपय से क्रभानस ु ाय दोनो ऩाश्र्ों भे, ऩीछे तथा साभने स्तम्बों की सॊख्मा का र्णवन हस्तसॊख्मा (हस्त-भाऩ) के अनस ु ाय कयता हॉ ॥७५-७६॥

बर्न का भाऩ (वर्स्ताय) तीन मा साढे तीन हाथ होने ऩय आठ स्तम्ब होते है । भाऩ चाय, साढ़े चाय मा ऩाॉच हाथ होने ऩय सोरह स्तम्ब, भाऩ छ्, साढे छ् मा सात हाथ होने ऩय चौफीस स्तम्ब, भाऩ साढे आठ मा नौ हाथ होने ऩय फत्तीस स्तम्ब् भाऩ साढे दस मा ग्मायह हाथ होने ऩय चारीस स्तम्ब; भाऩ साढ़े फायह मा तेयह हाथ वर्स्तत ृ होने ऩय अड़तारीस स्तम्ब होने चादहमे । न्जस प्रकाय चौड़ाई भें उसी प्रकाय रम्फाई भें बी स्तम्बों की सॊख्य़ा होनी चादहमे ॥७७-८०॥ अमरन्द्र असरधद्र, फयाभदा - (गह ृ का) वर्स्ताय सात हाथ होने ऩय उसको छ् बागो भें फाॉटना चादहमे । (गह ृ के) भुखबाग (साभने) दो बाग से असरधद्र तनसभवत कयना चादहमे । नौ हाथ (वर्स्ताय) होने ऩय आठ बाग कयना चादहमे तथा

साभने तीन बाग से असरधद्र तनसभवत कयना चादहमे । ग्मायह बाग वर्स्ताय होने ऩय दस बाग कयना चादहमे तथा चाय बाग से फयाभदा कयना चादहमे । तेयह बाग वर्स्ताय होने ऩय फायह बाग कयने चादहमे औय छ् बाग से साभने असरधद्र तनसभवत कयना चादहमे । असरधद्र का बाग इस ऩय जानना चादहमे ॥८१-८२॥ स्िामभस्थान गह ृ स्र्ाभी का स्थान - स्र्ाभी के स्थान का वर्स्ताय चौर्न अॊगुर होना चादहमे । फड़े गह ृ भें अठहत्तय अॊगुर होना चादहमे । प्रायम्ब से रेकय छ्-छ् अगुर फढ़ाते हुमे इसके ऩाॉच प्रभाण प्राप्त होते है ॥८३-८४॥

स्तम्ब की ऊॉचाई के साठ बाग कयने चादहमे । सोरह बाग से र्ेददका का तनभावण होना चादहमे । र्ेददका का दग ु ुना स्तम्ब होना चादहमे तथा शेष से प्रस्तय की यचना कयनी चादहमे ॥८५॥

अधधष्ठान ऩादफधध यीतत से तनसभवत होना चादहमे एर्ॊ स्तम्ब सबी अॊगो से मुक्त होना चादहमे । उत्तय के ऊऩय

बत, कऩोत एर्ॊ प्रतत तनसभवत होनी चादहमे । इसे व्मार, गज, भकय, ससॊह तथा नाससका आदद अरॊकयणों से सुसन्ज्जत कयना चादहमे । द्र्ाय तोयण से मुक्त हो तथा सबन्त्त का बीतयी बाग अरॊकृत होना चादहमे ॥८६-८७॥

स्र्ाभी का आर्ास बर्न के बीतय होता है एर्ॊ र्हाॉ भण्डऩ तनसभवत कयना चादहमे । स्र्ाभी के र्ास-गह ृ भें शय्मा र्ॊश (र्ास्तुऩद की ये खा) ऩय नही होनी चादहमे ॥८८॥

स्र्ाभी के आर्ास भें न्स्थत स्तम्ब दो बाग र्ारे कहे गमे है ; (जफकक शेष स्थान ऩय न्स्थत) स्तम्ब एक-दस ु ये से ऩथ ृ क् होकय न्स्थत होते है । स्तम्ब का वर्स्ताय स्तम्ब (की रम्फाई) का आधा होता है एर्ॊ इसका अरॊकयण

इच्छानुसाय ककमा जाता है । स्र्ाभी का स्थान बर्न के प्रत्मेक तर भें होना चादहमे । इसकी सबन्त्तमाॉ ईटो, गाया मा परक से तनसभवत होती है । याजाओॊ के आर्ास की सबन्त्त सोने एर्ॊ ताम्र आदद धातुओॊ से तनसभवत होती है ॥८९-९१॥ प्रधान बर्न का आच्छादन - अधनागाय आदद गह ृ ों भे ऊऩय ऩाञ्चार आदद यीततमों से दो-दो रुऩामें होनी चादहमे ।

रुऩा-तनमोजन एर्ॊ उनका क्रभ ऩर्व-र्र्णवत वर्धध से होना चादहमे । रुऩाओॊ के धमन होने से धन का ऺम होता है एर्ॊ

अधधक होने से ऋण एर्ॊ फधधन होता है । र्ैश्म एर्ॊ शद्र के गह ृ ों भें तीन चरी तथा याजा के बर्न भे ऩाॉच मा सात

चरी होनी चादहमे । ब्राह्भणों के गह ृ भें नौ, दे र्गह ृ भें ग्मायह, नान्स्तकों एर्ॊ आश्रभर्ाससमों के गह ृ भें सभ सॊख्मा भें चरी तनसभवत होनी चादहमे ॥९२-९४॥

प्रधान आर्ास भें गबवधमास, चॊक्रभण (ऩैदर चरने का भागव) औय क सबन्त्त (भध्म-वर्बाजक सबन्त्त) होनी चादहमे । भनुष्मों के आर्ास भें सशरातनसभवत स्तम्ब, तर एर्ॊ सबन्त्त नही तनसभवत कयनी चादहमे । तण ृ आदद से भन्ृ त्तका-

तनसभवत बर्न का छाद्म तथा अभण्ृ भम बर्न भें रोष्ट-तनसभवत छाद्म (टाइलस की छत) तनसभवत कयना चादहमे ।

ब्रह्भस्थान का तर (अधधष्ठान से) नीचा होना चादहमे । इसी प्रकाय के गह ृ के बीतयी बाग का तर होना चादहमे । गह ृ का तर नीचा होने ऩय गह ृ का द्र्ाय इस प्रकाय आच्छाददत होना चादहमे, न्जससे गह ृ की र्षाव के जर से यऺा

हो सके । सबी र्णो के गह ु ाय ृ के अधधष्ठान की ऊॉचाई स्तम्ब की आधी होनी चादहमे । कुछ वर्द्र्ानों के भतानस

अधधष्ठान की ऊॉचाई गह ृ स्र्ाभी के र्ऺ मा नासब के फयाफय होनी चादहमे । मह भान दक्षऺण ददशा से प्रायम्ब होकय चायो ददशा के बर्नों के सरमे क्रभश् कहा गमा है ॥९५-९८॥

गह ु ाय कयनी चादहमे । गह ृ के अधम कऺों की सॊयचना प्रधान बर्न के अनस ृ स्र्ाभी के बोग का स्थान र्ही (तनददव ष्ट स्थर ऩय) कयना चादहमे ॥९९॥ बोगविन्मास बोग का वर्धमास - ऩके बात के एर्ॊ नभक के जर का ऩार ऩर्ोत्तय ददशा भें यखना चादहमे । अधतरयऺ के ऩद ऩय चलहा, सत्म के ऩद ऩय ओखरी एर्ॊ ईशान के स्थान ऩय ऩाकस्थर सबी व्मन्क्तमों के सरमे कलमाणकय होता है ॥१००॥ चुपरीरऺण चलहे के रऺण - चलहे के ऩाॉच प्रकाय कहे गमे है । इनका वर्स्ता-भान आठ अॊगुर से रेकय दो-दो अॊगुर फढ़ाए हुमे सोरह अॊगुर तक तथा ऊॉचाई फायह अॊगुर से प्रायम्ब कयते हुमे- तीन-तीन अॊगुर फढ़ाते हुमे एक हाथ तक होता है ॥१०१॥

चलहे के भुख का वर्स्ताय चाय अॊगुर से रेकय फायह अॊगुर तक औय इसी प्रभाण से ऩुट (चलहे के स्थान) की चौड़ाई एर्ॊ ऩष्ृ ठ कट (धचभनी) का तनभावण कयना चादहमे । इसकी चौड़ाई एर्ॊ ऊॉचाई सभान होनी चादहमे । मह चलहे का उऩमक् ु त प्रभाण है । चलहे का सफसे छोटा प्रभाण छोटे रोगों के सरमे उऩमक् ु त होता है ॥१०२॥

याजाओॊ के चलहे का आकाय भनुष्म के शीषव के सभान, दे र्ों एर्ॊ ब्राह्भणों का चलहा चौकोय, र्ैश्मों का चलहा आमताकाय तथा अधम आकृतत के चलहे अधम र्णव के रोगों के सरमे अबीष्ट होते है ॥१०३॥ चूरीसॊख्मा चरी की सॊख्मा - भनुष्मो तथा दे र्ों के बर्न भें चरी की सॊख्म एक, तीन, ऩाॉच, सात, नौ मा ग्मायह होती है । इनकी सॊख्मा सभ एर्ॊ वर्षभ होती है । दे र्ों, ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओ के बर्न भे सबी सॊख्मामे अनुकर होती है । शेष र्णव

के रोगों के बर्न भें उसी सॊख्मामे अनुकर होती है । शेष र्णव के रोगों के बर्न भे उसी सॊख्मा का प्रमोग कयना चादहमे, जैसा वर्द्र्ानों ने कहा है ॥१०४॥

ऩुनबोगविन्मास ऩुन् बोगे का वर्धमास - अधनप्राशन (बोजन) का स्थान आमव, इधद्र तथा सवर्धद्र के ऩद ऩय होना चादहमे । श्रर्ण

(र्ेदाभ्मास, अध्मय्न) का स्थान वर्र्स्र्ान ् के ऩद ऩय, वर्र्ाह का स्थान सभर के ऩद ऩय तथा ऺौयकभव (फार कटर्ाने) का स्थान इधद्रजम, र्ामु एर्ॊ सोभ के ऩद ऩय कहा गमा है । आम-व्मम (दहसाफ-ककताफ) का स्थान वऩत,ृ दौर्ारयक

एर्ॊ जर के ऩद ऩय औय सुगर तथा ऩुष्ऩदधत के ऩद ऩय प्रसततगह ृ होना चादहमे । जरकोश (जरसॊग्रह) आऩर्त्स

के स्थान ऩय एर्ॊ कुण्ड (जरकुण्ड) आम के ऩद ऩय होना चादहमे । अङ्कन (चक्की) भहे धद्र के ऩद ऩय तथा ऩेषणी (ससर) भहीधय के ऩद ऩय होना चादहमे ॥१०५-१०८॥ िस्तुबेद र्ास्तु के बेद - ऩर्वर्र्णवत बर्नों के क्रभ भें र्ास्तुबेद का र्णवन कयता हॉ । इनभें प्रथभ ददशाबद्र, उसके ऩश्चात दसया गरुड़ऩऺ, तीसया कामबाय एर्ॊ चौथा तुरानीम होता है ॥१०९॥ ददसशबद्रकभ ् ददशाबद्र बर्न - ददसशबद्र बर्न भें उसकी रम्फाई के सभान सबी ददशाओॊ भें बद्रक होना चादहमे । सबी ददशाओॊ भें आॊगन तथा ददक्कोणों भें प्रततर्ाटब (खर ु ा स्थान मा मागस्थर) होना चादहमे । शेष ऩर्वर्र्णवत तनमभ के अनस ु ाय, वर्शेष रूऩ से ब्राह्भण एर् याजाओ के बर्न भें तनसभवत कयना चादहमे ॥११०-१११॥ गरुडऩऺ गरुड़ऩऺ - गरुडऩऺ बर्न के तनमभ र्ही है , जो याजबर्नों के होते है । कामबाय कामबाय - इस बर्न की रम्फाई वर्स्ताय की दग ु न ु ी होती है एर्ॊ रम्फाई के ऩाॉच बाग कयने चादहमे । दो बाग

ऩन्श्चभ भें छोड़कय शेष बाग भे चौसठ बाग तनसभवत कयना चादहमे । भण्डऩ आदद सबी बागो का तनभावण ऩहरे के सभान कयना चादहमे । प्रधान बर्न दक्षऺण ददशा भें एर्ॊ शेष बोगाधधर्ास होते है ॥११२-११३॥ अरयष्टागाय एर्ॊ गह ु ीर् एर्ॊ वऩत ृ के ऩद ऩय होना चादहमे । द्र्ाय के र्ाभ बाग ृ याज, दौर्ारयक, सग्र ृ के साभानों का बॊग भें र्रुण के ऩद ऩय दानशारा, असुय के ऩद ऩय धाधमगह ृ , इधद्रयाज के ऩद ऩय आमुध, सभर के ऩद ऩय सभरर्ास

(अततधथगह ृ ) योग के ऩद ऩय उरखर मधर (ओखरी), बधय के ऩद ऩय कोश-गह ृ , नाग के ऩद ऩय घी एर्ॊ औषध

जमधत के ऩद ऩय वर्ष, आऩर्त्स के ऩद ऩय वर्षघात, ऩजवधम के ऩद ऩय कऩ तथा सशर् के ऩद ऩय दे र्गह ृ होना

चादहमे । सवर्र से अधतरयऺ के ऩद तक खाद्मसाभग्री एर्ॊ यसोई का स्थान होना चादहमे । वर्तथ, ऩषा एर्ॊ सवर्धद्र के ऩद ऩय बन्ु क्तगेह (बोजनशारा) होनी चादहमे ॥११४-११८॥ मह र्ैश्मों भें ऐश्र्मवशारी रोगों के सरमे है । कामबाय सॊऻक बर्न ऩन्श्चभ बाग को छोड़कय सबी र्ैश्मो के सरमे अनक ु र होता है । अफ तर ु ानीम बर्न का र्णवन ककमा जा यहा है ॥११९-१२०॥

तुरानीम तुरानीम - तुरानीम बर्न की रम्फाई उसकी चौड़ाई की दग ु न ु ी होती है । रम्फाई के सात बाग ककमे जाते है ।

र्ास्त-ु भध्म भें तीन बाग सरमा जाता है एर्ॊ चौसठ ऩदों को फाॉटा जाता है । भण्डऩ आदद सबी अॊगो का तनभावण

ऩहरे के सभान होता है । ऩर्व एर्ॊ ऩन्श्चभ भे दो-दो बाग प्रमत्नऩर्वक छोड़कय भध्म स्थान को वर्द्र्ान ् व्मन्क्त को उधचत यीतत से आर्श्मकतानुसाय अरॊकृत कयना चादहमे ॥१२१-१२२॥

र्ाम,ु बलराट एर्ॊ सोभ के ऩद ऩय आस्थानशारा (स्र्ागतकऺ) होना चादहमे । भख् ु म के ऩद ऩय ओखरी, आऩ के ऩद ऩय गर्णकाओॊ का स्थान, र्ाहन साभने (द्र्ाय के) र्ाभ बाग भें तथा शेष स्थान इच्छानुसाय तनसभवत कयना चादहमे । सभि ृ शद्रो के स्थान का इस प्रकाय बरी-बाॉतत र्णवन ककमा गमा ॥१२३-१२४॥

मदद बर्न के फाहय सबन्त्त ऩय चायो ओय जर धगये तो कुर का नाश होता है । मदद बर्न की छत का ककनाया (सबन्त्त) भें सॊक्रसभत न हो तो सबी र्णव र्ारो की सम्ऩणव सम्ऩन्त्त का नाश हो जाता है ॥१२५-१२६॥

गह ृ के वर्स्ताय के प्रभाण से एर्ॊ रम्फाई के भान से गह ृ की ऊॉचाई यखनी चादहमे । इस प्रकाय से तनसभवत बर्न प्रशस्त होता है , इससे वर्ऩयीत होने ऩय वर्नाश का कायण फनता है ॥१२७॥ ्िायभान द्र्ाय के भान - वर्धध के ऻाता (स्थऩतत) को भनुष्मों के बर्न के द्र्ाय का तनभावण इस प्रकाय कयना चादहमे ।

स्तम्ब की रम्फाई के आठ बाग कयने चादहमे । उसके साढ़े छ् बाग से द्र्ाय की रम्फाई यखनी चादहमे । रम्फाई के नौ बाग कयके उसके आधे बाग को छोड़ दे ना चादहमे । शेष बाग के फयाफय द्र्ाय की चौड़ाई यखनी चादहमे ॥१२८॥ स्तम्ब की रम्फाई के ऩाॉच बाग कयने चादहमे । चाय बाग से द्र्ाय की रम्फाई यखनी चादहमे । शेष बाग के छ् बाग कयने चादहमे । सढ़े तीन बाग से उत्तय (सरधटर) तथा ढ़ाई बाग से प्रतत होनी चादहमे । द्र्ाय ऩय फधध (फधद कयनेर्ारा बाग) होना चादहमे , न्जसकी भोटाई ऩर्वर्र्णवत होनी चादहमे ॥१२९॥ कभाकार उददत होते हुमे समव की ककयणोंसे जफ (शङ्कु की छामा ऩड़े) तफ अधनशारा का तनभावण कयना चादहमे । दोऩहय के ऩश्चात ् जफ समव कीककयणें ऩन्श्चभ से अत्मधत ढरकय आती है , उस सभम अतत उधनत धनगह ृ तनसभवत होना चादहमे । दक्षऺण गह ृ होना चादहमे । (इस सभम समव दक्षऺण भें होता है ) । सुखगह ृ अत्मधत उॉ चा एर्ॊ वर्स्तत ृ का तनभावण

उस सभम कयना चादहमे , जफ समव की ककयणे उतय ददशा से आती है मा जफ ककयणे सुखद हो । प्राचीन भनीवषमों के अनुसाय ब्राह्भण, याजा (ऺबरम) र्ैश्म एर्ॊ शद्रो के बर्न का तनभावण समव के उददत होने एर्ॊ डफने के सभम के अनुसाय कयना चादहमे ॥१३०-१३१॥ ्िायस्थान

द्र्ाय का स्थान गह ु म प्रर्ेशद्र्ाय याऺस, ऩष्ु ऩदधत, बलराट मा भहे धद्र के ऩद ऩय प्रशस्त होता है । मह ृ का भख्

गह ृ स्र्ाभी के धन, र्ॊश एर्ॊ ऩशुओॊ की र्वृ ि कयता है । गह ृ की सबन्त्त एर्ॊ स्तम्ब के भध्म भें न्स्थत प्रर्ेशद्र्ाय प्रशस्त होता है ॥१३२॥

गह ृ भें र्ास-मोजना - गह ृ स्र्ाभी का कऺ बर्न के दादहनी ओय एर्ॊ उसकी स्री का कऺ फामी औय होना चादहमे । इसके वर्ऩयीत होनेऩय प्रशस्त नही होता है एर्ॊ मही न्स्थतत उनके धचत्त को सदै र् द्ु खी फनाती है ॥१३३॥

सम्ऩन्त्त एर्ॊ सभवृ ि के सरमे गह ृ का तनभावण र्ास्तु-ऺेर के भध्म भे , गह ृ के भध्म भे, स्तम्ब एर्ॊ सबन्त्त के वर्षम भें न्जस प्रकाय कहा गमा है . उसी प्रकाय कयना चादहमे । इनके आऩस भें सभधश्रत हो जाने ऩय सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्तमों का नाश होता है । अत् तनभावणकामव बरी-बाॉतत ऩयीऺा कयके ही कयना चादहमे ॥१३४॥ आयर्मबकार गह ृ भें जाने ऩय अधनगह ृ -तनभावण का आयम्बकार - समव के भेष औय र्ष ृ का तनभावण कयना चादहमे । ककव औय

ससॊह भें समव के यहने ऩय धाधमारम का तनभावण कयना चादहमे । तर ु ा औय र्न्ृ श्चक भें समव के यहने ऩय धनारम एर्ॊ

भकय तथा कुम्ब भें समव के होने ऩय सुखारम का तनभावण होता है । समव के भीन, सभथुन, कधमा मा धनु भें होने ऩय कभववर्त ् व्मन्क्त को सबी ददशाओॊ भें (अथावत ् ककसी बी ददशा भें ) घय नही फनर्ाना चादहमे । मदद कोई व्मन्क्त इस व्मर्स्था की उऩेऺा कय अऩनी इच्छा के अनुसाय गह ृ -तनभावण प्रायम्ब कयता है तो र्ह मा तो मभरोक जाता है अथर्ा उसके सेर्कों का नाश होता है ॥१३५-१३६॥

अध्माम २८ (गह ृ प्रिेि) गह ृ भें प्रथभ प्रर्ेश - जफ गह ृ तनसभवत हो जाम तफ गह ृ भें प्रर्ेश कयना चादहमे । वर्ना ऩणव रूऩ से तनसभवत गह ृ भें

प्रर्ेश कयने की शीिता नही कयनी चादहमे । गह ृ तनभावण के ऩणव होने के ऩश्चात गह ृ -प्रर्ेश कयने भे वर्रम्फ होने ऩय उस गह ृ भें दे र् एर्ॊ बुत आदद गणों का र्ास हो जाता है ॥१॥

जफ गह ृ -तनभावण का कामव सभाऩन की ओय ऩहुॉचे तफ शुब नऺर, ततधथ, र्ाय, शुब होया, शुब भुहतव, अॊश, कयण एर्ॊ शुब रग्न भें गह ृ प्रर्ेश कयना चादहमे ॥२॥ अथधिास प्रर्ेश से ऩर्व के कृत्म - गह ृ ब को फसाना चादहमे एर्ॊ जर आदद ृ प्रर्ेश के एक ददन ऩर्व गह ृ भें ब्राह्भण, ऩशु एर्ॊ र्ष

से उधहे तप्ृ त कयाना चादहमे । स्र्ाध्माम (र्ेद-ऩाठ) तथा होभ आदद तथा स्र्न्स्तर्ाचन से ब्राह्भण को प्रसधन कयना

चादहमे । गह ृ की सपाई कयनी चादहमे । सबन्त्त ऩय हरयद्रा (हलदी), सयसों, कुष्ठ (कट), र्चा के सभश्रण का रेऩ कयना चादहमे तथा बसभ ऩय चधदन के जर का तछड़कार् कयना चादहमे ॥३॥

बर्न के उत्तय-ऩर्व बाग भें तनशाकार भें (ऩर्वसधध्मा भें ) फवु िभान भनुष्म को अधधर्ास-कभव कयना चादहमे । गह ृ को वर्तान, ऩताका तथा यॊ ग-बफयॊ गे र्स्राददकों से भण्डऩ को सजाना चादहमे ॥४॥

स्थऩतत को श्र्ेत र्स्र, सोने का मऻोऩर्ीत, श्र्ेत ऩष्ु ऩ, श्र्ेत रेऩ (चधदन), सोने एर्ॊ यत्नों से मक् ु त वर्वर्ध आबषण को धायण कय प्रसधन भन से उऩन्स्थत यहना चादहमे ॥५॥ करि स्थाऩन करश की स्थाऩना- फुविभान व्मन्क्त को ऩच्चीस जरऩणव करश को नमे र्स्रों से रऩेटना चादहमे एर्ॊ उनभें सुर्णव तथा यत्न डारना चादहमे । इधहे तण्डुर (चार्र) से मुक्त उऩऩीठ र्ास्तुऩद ऩय स्थावऩत कयना चादहमे ॥६॥

इन करशों के उत्तय ददशा भे फसर के अधन (दे र्ों को सभवऩवत कयने र्ारे अधन) श्र्ेत , रार, ऩीरा एर्ॊ कृष्ण र्णव

(का चार्र), भॉग, ऩाअस (दध भें ऩका बात), ऩका मर्, वऩङ्गाधन (केसय का चार्र), कृसय (र्खचड़ी), गुड़ भे ऩका बात एर्ॊ शुिाधन (केर्र फात) यखना चादहमे ॥७॥

इसके ऩश्चात ् स्थऩतत ऩरॊग ऩय फैठता है , न्जस ऩय सुद्नय बफस्तय बफछा होता है , चाय दीऩक होते है तथा उस ऩय र्स्र (चादय) होता है । स्थऩतत सदै र् 'शम्फय' (शुब र्ाचक शब्द) फोरता यहता है ॥८॥

एक सुर्णवऩार भें सबी अधन, फसर एर्ॊ चरु (हर्न के सरमे खीय), यत्न, सुर्णव, दही, गुड, भधु, पर, घी, अऺत, धान का रार्ा, यजतन, तगरु, कुष्ठ (कट), अच्छकलक (हलदी का सभश्रण) आदद यक्खा जाता है ॥९॥

इसके ऩश्चात ् स्थऩतत सबी दे र्ों को (र्ास्तुभण्डर) उनके कोष्ठों भें यखता है औय तनभवर करशोभ को एक हाथ की ऩॊन्क्त भें यखता है । तऺक (स्थऩतत) इन करशों को श्र्ेत ऩुष्ऩ, मऩ (काष्ठ की खट ॉ ी, न्जसकी प्रमोग मऻबसभ भें

होता है ), दीऩ तथा गधध अवऩवत कयता है । प्रत्मेक दे र्ता को आदयऩर्वक ओॊकाय से प्रायम्ब कय नभ् ऩमवधत नाभ रेते हुमे फसर प्रदान कयता है , ऐसा प्राचीन वर्द्र्ानों का भत है । ॥१०॥ फमरविधान फसरप्रदान - सफसे ऩहरे वर्धधऩर्वक अज (ब्रह्भा) को नभन कयते हुमे उधहे फसर-प्रदान कये । इसके ऩश्चात ् चतुभुवख ब्रह्भा के चायो ददशाओॊ भे न्स्थत दे र्ों को उनके अनुकर फसर, ऩुष्ऩ, गधध एर्ॊ धऩ आदद से तप्ृ त कयना चादहमे ॥११-१२॥

फधधुओॊ के साथ इधद्र के सरमे ऩर्व ददशा भें, अन्ग्न के सरमे अन्ग्नकोण भें , मभ के सरमे दक्षऺण ददशा भे, तनऋतत एर्ॊ उसके वऩरु आदद फधधु-र्गव के सरमे नैऋत्म कोण भें , ऩन्श्चभ भे र्रुण के सरमे, र्ामव्म कोण भें ऩरयर्ाय के साथ

अतनर के सरमे, सोभ के ऩद ऩय उत्तय ददशा भें सभरो के साथ सोभ के सरमे फसर प्रदान कयना चादहमे । ऩर्ोत्तय ददशा भें फधध-ु फाधधर्ों के सदहत सशर् के सरमे फसर प्रदान कयना चादहमे । इस प्रकाय सबी ददशाओॊ एर्ॊ कोणों भें फसर प्रदान कयना चादहमे ॥१३-१४॥

चयकी के सरमे ईश ऩद (के फाहय), वर्दायी के सरमे ज्र्रन (के स्थान के फाहय), ऩतना के सरमे वऩतऩ ृ द के फाहय, इसी प्रकाय ऩाऩयाऺसी के सरमे भारुत के ऩद के फाहयी बाग ऩय फसर-कभव कयना चादहमे ॥१५॥

स्तम्ब ऩय र्न (र्ऺ ृ ) एर्ॊ घास के सरमे, ददन भें वर्चयण कयने र्ारों के सरमे ददशाओॊ भें , याबर भे वर्चयण कयने

र्ारों (याऺस आदद) के सरमे ददक्कोणों भे फसर प्रदान कयना चादहमे । सऩव एर्ॊ दे र्ताओॊ के सरमे (बसभ के नीचे

न्स्थत दे र्ों के सरमे) ऩथ् ृ र्ी ऩय फसर डारनी चादहमे । धभव एर्ॊ सबी दे र्ों के सरमे आकाश की ओय फसर पेंकनी चादहमे । द्र्ाय के र्ाभ बाग भें भनु एर्ॊ अधम को तथा शमन ऩय श्री को फसर प्रदान कयना चादहमे ॥१६॥

शाराओॊ भे, भण्डऩ भें , सबागायो भें , भासरकाओॊ भें, भध्म आॉगन भे तथा वर्भान (भन्धदय ) भें , भख् ु म भण्डऩ भें बर्न के आभ्मधतय दे र्ों का चौसठ ऩद र्ास्त-ु भण्डर भें आर्ाहन कय गधध-ऩुष्ऩ आदद से उनकी ऩजा कयनी चादहमे ।

उनको जर तथा सुधदय फसर प्रदान कयने के ऩश्चात ् जर एर्ॊ धऩ स्थऩतत द्र्ाया प्रदान ककमा जाना चादहमे । ॥१७१८॥

उत्तभ धऩ भें तुरसी, सज्जवयस (सार र्ऺ ुव , भञ्जयी, घनर्ाचक, ऩटोर (ककड़ी की एक जातत), गुग्गुर, ृ का यस), अजन रऩुष, दहॊग, भहौषधध (दर्ाव), सयसो तथा कुयर्क (सदाफहाय ऩुष्ऩ) होते है ॥१९॥

(उऩमुक् व त धऩ) प्रबत धन एर्ॊ अधन प्रदान कयता है । बत, वऩशाच एर्ॊ याऺसो को दय कयता है औय कीट, सऩव, भक्खी, चहा, भकड़ी एर्ॊ चीदटमों का दाह कयता है (अथावत ् मे घय से दय यहते है ) ॥२०॥

इसके ऩश्चात ् ऩारों के ऩन्श्चभ बाग भें धाधम के बफछौने ऩय तऺक (स्थऩतत) के सबी साधन (उऩकयण, औजाय)

यखकय उनको फसर प्रदान कयना चादहमे । उस सॊग्रह के भध्म न्स्थत होकय उनके सरमे (इस प्रकाय) कहना चादहमे ॥२१॥ आयोग्म, प्रसधनता, धन एर्ॊ मश की र्वृ ि से मुक्त, भहान कभव से मुक्त, तनयधतय उऩद्रर्कायी कभों से यदहत ऩधृ थर्ी

धभव के भागव ऩय धचय कार तक जीवर्त यहे । धायातनऩात से , जर के प्रकोऩ से, (गज के) दाॉतों द्र्ाया धगयामे जाने से, र्ामु के प्रकोऩ से, अन्ग्न के दाह से औय चोयों द्र्ाया चोयी से इस गह ृ की यऺा कीन्जमे । मह गह ृ भेये सरमे कलमाणकायी हो ॥२२-२३॥ स्थऩनतननगाभनभ ् स्थऩतत का तनकरना - इस प्रकाय कहते हुमे सम्ऩणव साधनों (उऩकयणों) को खड़े होकय स्थऩतत दोनों हाथों से (जोड़ते हुमे) एर्ॊ सशय से प्रणाभ कये । उन सबी उऩकयणों को हाथों भें अऩने रोगों एर्ॊ सेर्कों के साथ उधचत यीतत

से यखकय सधतुष्ट भन से फधधु, ऩुर एर्ॊ सहामक आदद के साथ स्थऩतत अऩने घय जाम । इसके ऩश्चात ् सबी फसर के अधनों को सभेट कय गह ृ दे र्ताओॊ के सरमे जर भे वर्धधर्त ् डार दे ना चादहमे ॥२४-२५॥

इसके ऩश्चात ् गह ृ की बरी-बाॉतत सपाई कयके कुष्ठ, अगरु एर्ॊ चधदन-सभधश्रत जर से तथा करश के सुगधधमुक्त भर्ण एर् सुर्णवसभधश्रत जर से ससज्चन कयना चादहमे । तदनधतय रार्ा एर्ॊ शासर (चार्र) को बर्न के बीतय

छीॊटना चादहमे । इसके ऩश्चात ् सम्ऩणव गह ृ भें आठो प्रकाय के अधन, धन औय यत्नों को यखना चादहमे ।॥२६-२७॥ गह ृ ऩनतगदृ हणीप्रिेि् गह ृ स्र्ाभी एर्ॊ गह ृ स्र्ासभनी का प्रर्ेश - गह ृ ऩतत एर्ॊ गदृ हणी भाङ्गसरक प्रतीकों से मुक्त, स्र्जनों, सेर्कों, ऩुरों

(सधतानो), फधधु-फाधधर्ों से मुक्त होकय अऩने उस गह ृ भें जगत्ऩतत ईश्र्य का धचधतन कयते हुमे प्रर्ेश कयते है , गह ृ के सबी र्स्तुओॊ से मुक्त होता है ॥२८॥

प्रसधन भन से गह ृ भें प्रर्ेश कय, गह ृ भे यखे गमे सबी ऩदाथों को दे खकय गह ृ ऩतत एर्ॊ गह ृ स्र्ासभनी को शय्मा ऩय

फैठना चादहमे । इसके ऩश्चात ् गदृ हणी व्मञ्जनसदहत अधन को रेकय गह ृ के तनसभत्त फसर प्रदान कयती है । फसर दे ने से फचे हुमे अधन को गदृ हणी अऩने कुर के साथ चरने र्ारी भर दासी को दे ती है एर्ॊ दे र्ता, ब्राह्भण तथा तऺक (स्थऩतत) आदद को धन, यत्न, ऩशु, अधन एर्ॊ र्स्रादद दे कय तप्ृ त कयती है । ॥२९-३०॥ गह ृ भें सर्वप्रथभ आत्भीम जन, गुरुजन (फड़े रोग), सभरगण, सेर्कगण एर्ॊ अधम सम्फन्धधमों को बोजन कयाना

चादहमे । गह ु -ऩौरों को बी बोजन कयाना चादहमे ृ ऩतत एर्ॊ गदृ हणी अऩने गुरुजनों को प्रणाभ कये । इसी क्रभ से ऩर ॥३१॥

गह ृ स्र्ाभी उस ऩवर्र गह ृ भें प्रर्ेश कये , जो जरऩणव घटों से मुक्त हो, केरे के परमुक्त डारी से मुक्त हो, ऩग (सुऩाड़ी) र्ऺ ु त हो, दीऩ, ऩीऩर के ऩत्ते, श्र्ेत ऩुष्ऩ, अङ्कुरयत फीजों से मक् ु त हो । भाॊगसरक ृ (की डारी) से मक्

कधमाओॊ, तनभवर मुर्ततमों, प्रधान ब्राह्भणों से मुक्त हो एर्ॊ न्जस बर्न का द्र्ाय र्धदनर्ाय से सुसन्ज्जत हो ॥३२॥ गह ृ ऩतत न्जस प्रकाय वर्र्ाह के सभम गदृ हणी का हाथ ऩकड़ता है , उसी प्रकाय श्र्ेत र्स्र, जर एर्ॊ जरते हुमे दीऩक से मुक्त होकय, प्रसधन भन से श्र्ेत ऩुष्ऩ एर्ॊ र्स्र धायण कय गदृ हणी का हाथ ऩकड़कय गह ृ भें प्रर्ेश कये ॥३३॥ वर्ना फसर प्रदान ककमे, वर्ना बोजन कयामे, वर्ना गह ृ आच्छाददत ककमे, वर्ना गबववर्धमास ककमे , ब्राह्भण एर्ॊ स्थऩतत आदद जहाॉ तप्ृ त न ककमे गमे हो मा जहाॉ वर्स्तय न हो, ऐसे गह ृ भें प्रर्ेश कयने ऩय भार वर्ऩन्त्त आती है । दष्ु ट ह्रदम (द्ु खी भन, अप्रसधन धचत्त) प्रर्ेश कयने र्ारा गह ृ ऩतत वर्ऩन्त्त का बाजन फनता है ॥३४॥

अत्मधत सधतुष्ट भन से ऩुर, ऩत्नी, आत्भीम जनों एर्ॊ वप्रम रोगों के साथ गह ृ स्र्ाभी अऩने गह ृ भें प्रर्ेश कये एर्ॊ प्रर्ेश कयने के ऩश्चात ् शुब र्चन उसके कानों भें ऩड़े ॥३५॥

ग्राभ, अग्रहाय, ऩुय, ऩतन आदद भें ब्रह्भा के ऩद ऩय, ददशाओॊ एर्ॊ ददक्कोणों भें फसर प्रदान कयना चादहमे । दे र्ारम एर्ॊ सयस्र्ती बर्न भें चौसठ ऩद र्ास्तुभण्डर भें सबी दे र्ताओॊ को फसर प्रदान कयना चादहमे ॥३६॥

अध्माम २९ याजबिन - अफ भै (भम) सॊऺेऩ भें फाह्म बाग भें नगय एर्ॊ सशवर्य से मुक्त याजगह ृ का र्णवन कयता हॉ । याजिेश्भभान याजगह ृ के प्रभाण - नगय भें तीन मा चाय बाग भें ऩर्व ददशा भें मा शाराओॊ (प्राकायों) के फीच (अथर्ा वर्ना प्राकायों के) याजबर्न होना चादहमे । अधधयाज का बर्न दक्षऺण से ऩन्श्चभ बाग भें होना चादहमे । ऩाष्णीम आदद याजाओॊ के बर्न नगय के ऩन्श्चभ बाग भें सात मा नौ बाग से होना चदहमे । अङ्कुय आदद (याजऩर ु ों) के बर्न तथा

सेनाऩतत के बर्न बी र्हीॊ होने चादहमे । वर्श्र्नऩ ृ ेश्र्य (सम्राट) का बर्न नगय के तीसये बाग से भध्म भें होना चादहमे ॥१-३॥

नगय के अनुसाय याजबर्नों का प्रभाण कहा गमा है । अफ दण्ड-प्रभाण का र्णवन ककमा जा यहा है । बर्न का वर्स्ताय एक सौ चौर्ारीस दण्ड होना चादहमे । इनभें क्रभश् चाय, आठ, फायह एर्ॊ सोरह दण्ड कभ कयते जाना

चादहमे । याजबर्न का व्मास फत्तीस दण्डऩमवधत होता है । उऩमक् ुव त याजबर्नों का वर्स्ताय उसी प्रकाय फढ़ाना

चादहमे, जो ऩाॉच सौ अट्ठाईस दण्डऩमवधत जाता है एर्ॊ जो याजबर्न का सफसे फड़ा वर्स्ताय प्रभाण होता है । इस प्रकाय फत्तीस दण्ड से प्रायम्ब कय फत्तीस प्रकाय के याजबर्न के प्रभाण फनते है । याजबर्न का ज्मेष्ठ मा अज्मेष्ठ (छोटा) प्रभाण (नगयादद के अनुसाय) होना चादहमे ॥४-७॥ रम्फाई चौड़ाई की दग ु ुनी, दग ु ुनी से चतुथांश कभ, डेढ बाग मा सर्ा बाग अधधक होनी चादहमे । सारा (प्राकाय) का

आकाय फायह प्रकाय का होता है - चौकोय, र्त्ृ त, आमताकाय, शकटाकाय, नधद्मार्तव, कौक्कुट (भुगे का आकाय), गज का

आकाय, कुम्ब का आकाय, स्र्न्स्तकाकाय, गोराकाय, भद ृ ङ्ग का आकाय मा भग्न (खोखरा) होना चादहमे तथा एक भान का प्रमोग कयना चादहमे ॥८-९॥

एक फाय अबीष्ट रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई का चमन कयने के ऩश्चात ् उसी के अनुसाय बर्नतनभावण कयना चादहमे । मदद बर्न तनसभवत होने के ऩश्चात ् ककसी बी कायण से उससे छोटा है तो र्ह याजा के सरमे अशुब होता है एर्ॊ तनयधतय वर्ऩन्त्तकायक फनता है । मदद बर्न को फाहय फढ़ाकय तनसभवत कयना अबीष्ट हो तो उसे ऩर् ु व मा उत्तय ददशा भें फढ़ाना श्रेमस्कय होता है अथर्ा चायो ओय फढ़ाना चादहमे, ऐसा प्राचीन भनीवषमों का भत है ॥१०-११॥

छोटे बर्नों की मोजना - प्रथभ आॉगन ऩर्व मा दक्षऺण भे होना चादहमे । बर्न के भध्म भें ऩीठ होना चादहमे , न्जसकी ऊॉचाई एर्ॊ चौड़ाई आधा दण्ड हो । मही सह (ब्रह्भा) की र्ेदी ऩीठ से चायो ओय एक दण्ड अधधक फड़ी होती है ॥१२-१३॥ र्ेदी की दक्षऺण तीस हाथ की दयु ी ऩय सीध भें याजा का बर्न होना चादहमे । र्ेदी के ऩन्श्चभ भें भध्मसर होता है । र्ेदी के उत्तय भें इसी प्रभाण की दयी ऩय यानी का बर्न होता है , न्जसका भध्म सर र्ेदी के ऩर्व भें होता है ॥१४१५॥ याजा के दै घ्मव (दीतघवका, ताराफ) को अड़तारीस, फत्तीस, चौफीस मा सोरह दण्ड की दयी ऩय तनसभवत कयना चादहमे तथा प्रथभ प्राकाय को इसके फाहय फनाना चादहमे । मह तीन हाथ वर्स्तत ृ एर्ॊ ग्मायह हाथ ऊॉचा होता है । प्राकाय के

फाहय सात हाथ चौड़ड़ सड़क होनी चादहमे । इसके फाहय नौ हाथ चौड़ी बर्नो की ऩॊन्क्त होनी चादहमे । इसके ऩश्चात ् बर्नों की अन्धतभ ऩॊन्क्त एर्ॊ उसके फाहय प्राकाय होना चादहमे । मह प्राकाय एक दण्ड चौड़ा एर्ॊ साढ़े दस हाथ ऊॉचा

होता है । इसके चायो औय नौ हाथ चौड़ी सडक होती है । इससे फत्तीस दण्ड की दयी ऩय फाहयी प्राकाय 'भमावदद' होता है । मह डेढ़ दण्ड वर्स्तत ृ एर्ॊ ऩधद्रह हाथ ऊॉचा होता है । इसके फाहय तीन दण्ड वर्स्तत ृ भागव होता है । याजबर्न

के फाहय दे ख-ये ख के सरमे फायह सुयऺाकभी तनमुक्त ककमे जाते है । फुविभान ऩुरुषों ने सबन्त्तमों के फाहय एर्ॊ बीतय का भान इस प्रकाय तनधावरयत ककमा है ॥१६-२१॥ एत्गोऩुयाण गोऩयु द्र्ाय - छोटे याजाओॊ के बर्नों भें तीन प्राकाय, तीन भागव एर्ॊ तीन बाग (तीन बर्नों की ऩॊन्क्तमाॉ) होती है । इनभें चाय से अधधक गोऩुय नही होते है । प्रभुख गोऩुय सफसे अधधक उधनत होना चादहमे । ऩन्श्चभ का प्रर्ेशद्र्ाय (गोऩुय) नीचा होना चादहमे । प्रधान गोऩुय बर्न के ऩर्व मा दक्षऺणभुख होना चादहमे । उत्तय मा ऩन्श्चभभुख

(याजाओॊ के सरमे) प्रशस्त नही होता है । याजाओॊ के बर्न भें ऩाॉच भुख अबीष्ट नही होते । ऩर्वर्र्णवत (सॊख्मा भें ) गोऩुय होने चादहमे ॥२२-२३॥

गह ृ विन्मास बर्नों का वर्धमास - कुछ वर्द्र्ानों के भतानुसाय यातनमों का बर्न याजाओॊ के बर्न के बीतय होना चादहमे । उसके भध्म भें आॉगन मा एक सौ स्तम्बों से मक् ु त प्रऩा होनी चादहमे । दक्षऺण बाग भें याजबर्न तथा ऩन्श्चभ बाग भें

असबषेक-गह ृ होना चादहमे । उत्तय ददशा भें एक तर मा अनेक तर से मुक्त याजभदहषी (ऩटयानी) का बर्न होना चादहमे । याजा का प्रधान आर्ास ऩन्श्चभ ददशा भें ऩर्वभुख होना चादहमे ॥२४-२६॥ ऩरयखा खाई - फाह्म प्राकाय के चायो ओय ऩरयखा होनी चादहमे , न्जसकी चौड़ाई छ् दण्ड से रेकय नौ दण्डऩमवधत होती है । ऩरयखा के फाहय एर्ॊ बीतय बाग भें तीन दण्ड वर्स्तत ृ भागव होना चादहमे । ऩरयखा के भर बाग का वर्स्ताय ऊऩयी

बाग के वर्स्ताय के आठर्े बाग के फयाफय होना चादहमे । इसकी गहयाई आर्श्मकतानुसाय (ऩरयन्स्थतत के अनुसाय) एर्ॊ आकृतत घण्टे के सभान (अथर्ा सुयऺा के अनुसाय) होनी चादहमे ॥२७-२८॥ ऩन वृ वर्धमास् ु गह ऩुन् गह ृ का वर्धमास - यानी के बर्न के फाहय गह ृ ों को आर्श्मकतानुसाय तनसभवत कयना चादहमे । अफ भै महाॉ

उनके दै वर्क बाग का र्णवन कय यहा हॉ । प्रथभ प्राकाय के फाहय का बर्न दे र्ता के बाग के अनस ु ाय होना चादहमे ॥२९॥

प्रथभाियण द्र्ायहम्मव सॊऻक द्र्ाय आमव के ऩद ऩय होना चादहमे । इधद्र एर्ॊ समव के ऩद ऩय एक फड़ा आॉगन होना चादहमे । बश ृ एर्ॊ व्मोभ के ऩद ऩय र्त्ृ त (शारावर्शेष) होना चादहमे । ऩषा के ऩय ऩय स्र्णव होना चादहमे । सबी साराओॊ (प्राकायों) का आॉगन याऺस के ऩद से रेकय वर्तथ के ऩद तक होना चादहमे । मभ के ऩद ऩय अत्मधत उधनत

सेनार्ेशहम्मव (यऺाकभी से मुक्त प्रर्ेशद्र्ाय ऩय तनसभवत शारा) होना चादहमे । गधधर्व के ऩद ऩय नीड़ (सजार्टी

र्खड़की की आकृतत) के सभान तनभावण होना चादहमे, जो नत्ृ म कयने के अनुकर यङ्गस्थर से सुशोसबत हो । मह वर्भान भन्धदय, शारा मा हम्मव भें होना चादहमे ॥३०-३२॥

बङ् ृ गयाज के ऩद ऩय अश्र्शारा, बश ृ के ऩद ऩय सततकागह ृ , वऩत ृ के ऩद ऩय स्थानहम्मव (स्र्ागत कऺ), दौर्ारयक एर्ॊ सुकण्ठ के ऩद ऩय जररीरा (स्थानवर्शेष, सम्बर्त् जरक्रीडा-स्थर) तनसभवत कयना चादहमे । ऩुष्ऩदधत के ऩद ऩय

खररयका (अततरयक्त फाहय तनकरा स्थान मा कऺ) तनसभवत कयना चादहमे, जहाॉ नभक एर्ॊ भरयच आदद भसारे यक्खे जामॉ ॥३३-३४॥ र्रुण, असुय, शोष एर्ॊ सभर के ऩद ऩय सङ्कयारम (सभरने-जुरने का स्थान) होना चादहमे । इसके दादहने एर्ॊ फाॉमे यानी का कऺ एर्ॊ गबावगाय होना चादहमे । सभर के ऩद ऩय नत्ृ मशारा एर्ॊ यस (नाटमशारा) तथा उऩस्कयगह ृ

(नत्ृ मादद से सम्फन्धधत साभग्री यखने का कऺ ) होना चादहमे । योग एर्ॊ सभीयण के ऩद ऩय ऩणव रूऩ से फधद आर्ास कऺ होना चादहमे ॥३५-३६॥

र्धवभान आदद चतुश्शार गह ृ ो भें नाग के ऩद ऩय सैयधध्री (केशसज्जा कयने र्ारी स्री) एर्ॊ धारी न्स्रमों (फच्चों की दे ख-ये ख कयने र्ारी भदहराओॊ) का कऺ, भुख्म के ऩद ऩय कधमाओॊ का गह ृ होना चादहमे । बलराट के ऩद ऩय औषधकऺ एर्ॊ भग ृ के ऩद ऩय साॊर्ादहका गह ृ (भासरश कयने र्ारी स्री का कऺ) होना चादहमे । रुचक आदद

चतुश्शार गह ृ भें महाॉ कऺ तनसभवत कयना चादहमे । उददतत एर्ॊ आऩर्त्स के ऩद ऩय स्नानगह ृ होना चादहमे , जहा~भ ऩीने का जर एर्ॊ उष्ण जर होना चादहमे । वर्द्र्ानों के अनुसाय मह प्रासाद के सभम होना चादहमे । इष्टदे र् का स्थान ईशान एर्ॊ जमधत के ऩद ऩय होना चादहमे ॥३७-४०॥

भहे धद्र के ऩद ऩय बोजनकऺ होना चादहमे । भहीधय औय भयीच के ऩद ऩय (बोजनकऺ) अथर्ा ऩार्वत कभव सबाकऺ के सभान सम्फाध (सभरने-जर ु ने का स्थान) तनसभवत कयाना चादहमे । सबी द्र्ाय एर्ॊ सबन्त्तमाॉ गह ृ स्र्ाभी की इच्छा के अनुसाय होनी चादहमे । प्रथभ आर्यण (प्रथभ आकाय) भें (सबी अॊगो का) र्णवन ककमा गमा । अफ द्वर्तीम आर्यण का र्णवन क्रभानुसाय ककमा जा यहा है ॥४१-४२॥ ्वितीमाियण द्वर्तीम प्राकाय - इधद्र एर्ॊ आददत्म के ऩद ऩय छर एर्ॊ बेयी का स्थान एर्ॊ शॊख, काहर तथा तमव आदद अधम र्ाद्मों का स्थान होना चादहमे । सत्म के ऩद ऩय दान की साभग्री, बश ृ के ऩद ऩय धभवसम्फधधी कामवहेतु जर, ऩॊन्क्तक (आकाश) के ऩद ऩय ओखरी, ज्र्रन (अन्ग्न) के ऩद ऩय इधधन, ऩषा, सावर्धद्र एर्ॊ वर्तथ के ऩद ऩय अश्र्शारा होनी चादहमे ॥४३-४४॥ ऩर्व भें न्स्थत शाराओॊ के द्र्ाय ऩन्श्चभ ददशा भें, दक्षऺण भें न्स्थत शाराओॊ के द्र्ाय उत्तय भें , ऩन्श्चभ भें न्स्थत बर्नों का भुख ऩर्व भें एर्ॊ उत्तय भे न्स्थत शाराओॊ के भुख दक्षऺण भें होने चादहमे । सबी गह ृ भध्म भें न्स्थत बर्न के साभने भागव द्र्ाया ऩथ ृ क् -ऩथ ृ क् होना चादहमे ॥४५-४६॥

याऺस के ऩद ऩय शस्रागाय, (द्र्ाय के) र्ाभ बाग भें द्र्ायशारा (द्र्ाययऺक का कऺ), धभवयाज के ऩद ऩय अधन एर्ॊ ऩेम ऩदाथों को तैमाय कयने का कऺ होना चादहमे । चतुश्शार गह ृ को भध्म यङ्ग (भध्म भें आच्छाददत हार मा फड़ा

कभया) से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे । गधधर्व के ऩद ऩय सेनाऩतत का स्थान प्रशस्त एर्ॊ वर्जम प्रदान कयने र्ारा होता है । ऐसा बी भत है कक बॊग ृ याज के ऩद ऩय (सेनाऩतत का स्थान) अजेम होता है । भष ृ के ऩद ऩय व्मारकाभी (सऩेया) एर्ॊ इधद्रकाजारी (जादगय) आदद का स्थान होना चादहमे । तनऋतत के ऩय ऩय दौर्ारयक एर्ॊ सक ु ण्ठ के ऩद ऩय बैसों का स्थान होना चादहमे । ऩुष्ऩदधत आदद के ऩद ऩय दानगह ृ , ईऺणगह ृ (सभरने-जुरने का स्थान) तथा स्नानगह ृ होना चादहमे ॥४७-५०॥

नाग एर्ॊ रुद्र के बाग ऩय रम्फी दीतघवका (ताराफ) होनी चादहमे । कधमाओॊ एर्ॊ (उनकी) धाबरमों का स्थान भख् ु म के ऩद ऩय होना चादहमे । साभाधमतमा वर्द्र्ानों के भतानुसाय कञ्जुककमों से भद्गु (एक वर्शेष प्रकाय के याजसेर्क,

सङ्कय जातत के रोग) का स्थान अधमर (याजबर्न से हट कय) होना चादहमे । बलराट, सोभ एर्ॊ भग ृ के ऩद ऩय कृण्र् आदद (धचरकाय एर्ॊ कराकाय आदद) का तनर्ास होना चादहमे । अददतत के ऩद ऩय कुन्ब्जनी (कुफड़ी), र्ाभनी

कधमा (फौनी) एर्ॊ षण्डकी (दहजड़ी) आदद का स्थान होना चादहमे । उददतत, ईश एर्ॊ ऩजवधम के ऩद ऩय धारी न्स्रमों का स्थान होना चादहमे ॥५१-५३॥

आऩ एर्ॊ आऩर्त्स के ऩद ऩय फार्डी, कऩ, दीतघवका (ताराफ), ऩीने मोग्म जर का स्थान एर्ॊ ऩष्ु ऩों का फाग होना

चादहमे । जमधत के ऩद ऩय दक्षऺणा-गह ृ एर्ॊ सुयेधद्र के ऩद ऩय दानशारा होनी चादहमे । ऩर्व से दक्षऺण की ओय तनसभवत इन सबी बर्नों का भख ु भुख्म बर्न की ओय होना चादहमे ॥५४-५५॥ तत ृ ीमार्यणभ ् तत ृ के ऩद ऩय अध्मय्न, ृ ीम आर्यण मा प्राकाय - इधद्र के ऩद ऩय शास्र, यवर् के ऩद ऩय सॊगीत, सत्म एर्ॊ बश

आकाश के ऩद ऩय प्रधान यसोईगह ृ , ऩषा एर्ॊ ऩार्क के ऩद ऩय गामों एर्ॊ उनके फछड़ो को यखना चादहमे । वर्तथ के

ऩद ऩय नभक, र्लरय (सखा भाॊस), स्नामु (नस, नाड़ी) तथा चभव यखना चादहमे । याऺस के ऩद ऩय गजशारा एर्ॊ धभव के ऩद ऩय धचर एर्ॊ सशलऩ का स्थान होना चादहमे एर्ॊ इसकी मोजना दण्डक, शऩव मा राॊगर (हर) के सभान कयनी चादहमे ॥५६-५७॥ गधधर्व एर्ॊ बॊग ृ याज के ऩद ऩय यसऩदाथों का स्थान फनाना चादहमे । भष ृ के ऩद ऩय दाह (इधधन), वऩत ृ एर्ॊ

दौर्ारयक के ऩद ऩय दान-साभग्री, सुग्रीर् के ऩद ऩय भलरों का तनर्ास तथा ऩुष्ऩदधत के ऩद ऩय चाय कोष्ठ (शारामें) होने चादहमे । ॥५८-५९॥

र्ारुण के ऩद ऩय मुर्याज की शारा मा भासरका होनी चादहमे । र्ही ऩय अश्र्शारा एर्ॊ ऩुयोदहत का आर्ास होना

चादहमे । असुय के ऩद ऩय चधद्रशारा एर्ॊ शोष के ऩद ऩय दहयणों का स्थान होना चादहमे । योग के ऩद ऩय गधे एर्ॊ ऊॉट का स्थानन होना चादहमे एर्ॊ औषध-स्थान बी र्ही तनसभवत कयना चादहमे । र्ामु के ऩद ऩय र्ाऩी एर्ॊ गोरनाग

के ऩद ऩय ऩष्ु करयणी (कभर का ताराफ) होना चादहमे । भख् ु म एर्ॊ बलराट के ऩद ऩय गजशारा एर्ॊ अश्र्शारा होनी चादहमे ॥६०-६२॥

सोभ के ऩद ऩय प्रसततगह ृ , अददतत, उददतत, ईशान एर्ॊ ृ एर्ॊ उऩनीततका (वर्चाय-वर्भशव का स्थान) होनी चादहमे । भग

जमधत के ऩद ऩय दीतघवका (ताराफ) आदद होना चादहमे । र्ही ऩय वर्हाय एर्ॊ आयाभ (उऩर्न) तथा आॉगन से मुक्त सबा-स्थर होना चादहमे ॥६३-६४॥ नगय नगय - (याज) बर्न के साभने एर्ॊ फगर भें याजा की सेनाऩॊन्क्त होनी चादहमे । उसके फाहय व्माऩारयमों के आर्ास की ऩॊन्क्त आर्श्मकतानस ु ाय होनी चादहमे । याजबर्न की ऩन्श्चभ ददशा भें रम्फी दीतघवका, र्ाऩी एर्ॊ कऩ आदद

क्रभश् ओने चादहमे । र्ही ऩय अधत्ऩुय तथा भरबत्ृ मों (र्ॊशो से यहने र्ारे सेर्कों) के आर्ास की ऩॊन्क्त होनी चादहमे ॥६५-६६॥

(नगय भें ) दीतघवका, आयाभ (उऩर्न), र्ाऩी एर्ॊ कऩ सबी स्थानों ऩय होना चादहमे । वर्सबधन जातत के रोग एर्ॊ वर्सबधन प्रकाय की न्स्रमाॉ र्हाॉ तनर्ास कयती है । वर्सबधन प्रकाय केसशलऩी र्हाॉ तनर्ास कयते है तथा (नगय) छ् प्रकाय की सेनाओॊ से मुक्त होता है । ऩर्ोत्तय कोण एर्ॊ दक्षऺण-ऩर्व कोन भें गजशारा एर्ॊ अश्र्शारा होती है ।

नगय वर्सबधन र्णव के रोगों से मुक्त, वर्सबधन व्माऩायीर्गव से मुक्त होता है । सबी र्गव के रोग याजा की इच्छा के अनुसाय अऩने-अऩने असबधान र्ारे होने चादहमे । ॥६७-६९॥ नगयमबल्त्त

नगय का प्राकाय - नगय को चायो ओय से घेयने र्ारा प्राकाय दो दण्ड चौड़ा होना चादहमे । इसकी चौड़ाई क्रभश् ऩाॉच, छ् मा सात हाथ भाऩ की बी कही गई है । इसकी ऊॉचाई चौड़ाई से दग ु ुनी मा तीन गुनी होनी चादहमे एर्ॊ

इसके फाहय सभट्टी की सबन्त्त होनी चादहमे मा इसके फाहय एक धनुप्रभाण (एक दधड) से ऩरयखा एर्ॊ र्प्र (सभट्टी की सबन्त्त) होनी चादहमे । उसके फाहय सबी स्थान ऩय सशन्लऩका (यचना वर्शेष) होनी चादहमे ॥७०-७१॥ याजिेश्भगोऩुयाण याजबर्न के गोऩयु द्र्ाय - सबी याजबर्नों भें छोटा मा फड़ा गोऩयु होना चादहमे । फाहयी (प्राकाय का) गोऩयु स्र्ाभी (याजा) के आर्ास फयाफय होना चादहमे । मदद स्र्ाभी का आर्ास छोटा हो तो गोऩुय आर्ास से छोटा एर्ॊ एक तर

का होना चादहमे । मदद प्रधान बर्न नौ मा ग्मायह तर का हो तो द्र्ाय-गोऩुय सात तर का होना चादहमे । बीतयी (सबन्त्त ऩय तनसभवत) गोऩुय फाहयी सबन्त्तमों के गोऩुय से क्रभश् एक-एक तर कभ होता जाना चादहमे ॥७२-७४॥

नये धद्र याजाओॊ (याजाओॊ का स्तयवर्शेष) का सफसे फड़ा गोऩुय द्र्ाय भहे धद्र के ऩद ऩय मा याऺस के ऩद ऩय ऩाॉच मा तीन तर का होना चादहमे । ऩुष्ऩदधत औय बलराट के ऩद ऩय कभ तरों का गोऩुय द्र्ाय होना चादहमे । सुग्रीर्,

भुख्म, जमधत एर्ॊ वर्तथ के ऩद ऩय ऩऺद्र्ाय (ऩाश्र्वद्र्ाय) एक मा दो तर से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे । ॥७५७७॥

वर्शेष रूऩ से नये धद्रों का बर्न इधद्र के ऩद ऩय होना चादहमे । ब्रह्भा के बाग से सॊरग्न याजबर्न सबी प्रकाय की सम्ऩन्त्तमों एर्ॊ सुखों का प्रदाता होता है ॥७८॥ िेश्भतररर्मफविधान याजबर्न के तर का वर्धान - सम्ऩणव ऩधृ थर्ी के स्र्ाभी याजा का बर्न ग्मायह तर का होता है । ब्राह्भणों का

बर्न नौ तर का, याजाओॊ (ऺबरमों) का बर्न सात तर का, भण्डर के स्र्ासभमों का बर्न छ् तर क मुर्याज का

बर्न ऩाॉच तर का, र्ैश्मों का चाय तर का तथा मोिाओॊ एर्ॊ सेनाओॊ के स्र्ाभी का बर्न बी चाय तर का होता है । शद्रों का बर्न एक से रेकय तीन तरऩमवधत होना चादहमे । साभधत आदद प्रभुखों का बर्न ऩाॉच बसभमों का होना चादहमे ॥७९-८१॥

सबी याजबर्न सभ मा वर्षभ सॊख्मा र्ारे तर से मुक्त होते है । याजा की न्स्रमों तथा दे वर्मों (अधम ऩन्त्नमो) के बर्न के तर सभ मा वर्षभ सॊख्मा भें होते है । दन्ण्डमक् ु त, रऩामक् ु त, दो नेर (र्खड़की) एर्ॊ प्रस्तय से मक् ु त

भन्ृ त्तका-तनसभवत, तण ृ ों (घास-पस) से आच्छाददत, एक तर मा दो तर से मुक्त, स्तवऩका एर्ॊ कणवरुऩा से यदहत बर्न सबी र्णव र्ारों के सरमे प्रशस्त होता है ॥८२-८३॥

सभधश्रत जातत के रोगों, सबी प्रकाय के ऐश्र्मव का बोग कयने र्ारों, रुचक आदद बर्नों भें तनर्ास कयने र्ारों के बर्न भें (तर आदद का) आर्श्मकतानुसाय तनभावण कयना चादहमे । महाॉ न्जन अॊगों की चचाव नही की गई है , उनका प्रमोग फुविभान व्मन्क्त को आर्श्मकतानुसाय कयना चादहमे । इस प्रकाय ऩन्ण्डतों ने याजाओॊ की याजधानी के साभाधम तनमभों का र्णवन ककमा है ॥८४-८५॥ नये न्द्रिेश्भ

नये धद्र का याजबर्न - अफ भै (भम) वर्शेष रूऩ से नये धद्र के सनातन आर्ास के वर्षम भें कहता हॉ ॥८६॥ प्राकाय प्राकाय, फाहयी सबन्त्त - प्राकाय की चौड़ाई एक दण्ड (एर्ॊ उससे रगी हुई) ऩरयखा दो मा तीन दण्ड की होनी चादहमे । र्त्ृ त-भागव चाय दण्ड एर्ॊ फीस दण्ड तक गह ृ भागव तीन मा ृ ों की ऩॊन्क्तमाॉ होनी चादहमे । र्ेश्माओॊ की क्रीड़ा से आर्त चाय दण्ड भान का होना चादहमे । र्त्ृ त-भागव चाय दण्ड एर्ॊ फीस दण्ड तक गह ृ ों की ऩॊन्क्तमाॉ होनी चादहमे । (इसके ऩश्चात ् ) तीन दण्ड का र्प्र भागव (सभदट्ट से तनसभवत भागव) तथा ऩाॉच हाथ प्रभाण का प्राकाय (दसया प्राकाय) होना चादहमे ॥८७-८८॥

उसकी (द्वर्तीम प्राकाय की ) ऩरयखा चाय दण्ड चौड़ी होनी चादहमे । ऩरयखा के चायो ओय आठ मन्ष्ट वर्स्तत ृ भागव

होना चादहमे । उसके ऩश्चात ् अड़तारीस दण्ड वर्स्तत ृ ऺेर भें सबी प्रकाय के बर्न होने चादहमे । उसके फाहय चायो ओय छ् मा सात धनु प्रभाण वर्स्तत ृ भागव होने चादहमे । ऩुन् चाय दण्ड प्रभण का र्प्र एर्ॊ सात हाथ का प्राकाय

(तीसया प्राकाय) होना चादहमे । (इसके ऩश्चात ्) एक दण्ड प्रभाण का नागों से मुक्त फधधन (फाॉध, खाई) होना चादहमे ॥८९-९१॥

ऩरयखा की चौड़ाई आठ दण्ड से रेकय फायह दण्डऩमवधत होनी चादहमे । प्राकाय की चौड़ाई के फयाफय सबतयी एर्ॊ फाहयी भागव होना चादहमे । उसे फाहय दस दण्ड तक सबी प्रकाय के रोगों का आर्ास होना चादहमे । अथर्ा र्हाॉ प्राकाय (चौथा प्राकाय) मा आर्ास के साथ ऩरयखामे होनी चादहमे । र्ास्तुवर्दों के द्र्ाया इस प्रकाय र्प्र एर्ॊ प्राकाय की प्रशॊसा की गई है । ऩाॉचर्ाॉ आर्यण (प्राकाय) आठ हाथ चौड़ा होना चादहमे । बीतयी बागों की मोजना आर्श्मकतानस ु ाय कयनी चादहमे ॥९२-९४॥ िेश्भविन्मास याजबर्न का वर्धमास - याजबर्न के चुने हुमे वर्स्ताय एर्ॊ रम्फाई के छ् एर्ॊ नौ बाग कयने चादहमे । एक बाग साभने के सरमे, एक बाग ऩीछे के सरमे एर्ॊ एक-एक बाग दोनों ऩाश्र्ो के सरमे यखना चादहमे । शेष बाग भें ऩैंतीस बाग ब्रह्भा का स्थान होता है । उस स्थान ऩय सौ स्तम्बों र्ारा भण्डऩ एर्ॊ उसके बीतय र्ेददकाऩीठ होना चादहमे

मा उसके बीतय दे र्ारम हो एर्ॊ उसके चायो ओय प्रऩा तनसभवत हो । एक बाग से भागव एर्ॊ उसी प्रभाण से खरुरयका (अततरयक्त बाग) तनसभवत कयना चादहमे । मह चाय द्र्ायों से मुक्त, सौन्ष्ठक (रम्फा कऺ) एर्ॊ कोष्ठ से मुक्त होने ऩय प्रशस्त होती है ॥९५-९७॥

याजबर्न का केधद्रबाग के तनमभों का र्णवन ककमा गमा । र्हाॉ नौ ऩदों ऩय प्रभुख दे र्ता का स्थान बी हो सकता है । याजबर्न को अबीन्प्सत बाग भें , दे र्ारम के दक्षऺण बाग भें तथा ज्मेष्ठ यातनमों के आर्ास के उत्तय बाग भें

होना चादहमे । आमव के ऩद ऩय द्र्ाय होना चादहमे एर्ॊ न्जसके ऩन्श्चभ भें हम्मव , शारा मा सबी यॊ ग-वर्यॊ गे अरॊकयणों से मक् ु त असबषेक-सबा होनी चादहमे । चायो कोनों ऩय दृढ़ स्तम्बों से मक् ु त खररयकामक् ु त सबा होनी चादहमे ॥९८१००॥

ऩर्ोत्तय ददशा भें जर, स्नान एर्ॊ दे र्ों का गह ृ होना चादहमे । साभने होभ का स्थान होना चादहमे । ऩर्व-दक्षऺण ददशा भें सेना के अर्रोकन का हम्मव (कऺ) मा कट होना चादहमे । ऩन्श्चभ-दक्षऺण कोण भें नत्ृ म, र्ाद्म एर्ॊ अधम

भनोयञ्जन के स्थान तथा उत्तय-ऩन्श्चभ कोण भे गामक गादद का एर्ॊ अधम (नाटमाददकभी) न्स्रमों का स्थान होना चादहमे ॥१०१-१०२॥ ऩर्व ददशा भें दग ु व का आॉगन एर्ॊ भेरु गोऩयु , ऩर्ोत्तय ददशा भे जर, जरक्रीडा का आॉगन एर्ॊ सबा होनी चादहमे । र्हाॉ बोजन एर्ॊ ऩा का गह ृ सबी उधचत रऺणों से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे । ऩर्व-दक्षऺण कोण भें भध्म-आॉगन से

मुक्त सबा होनी चादहमे । र्हाॉ यत्न, सुर्णव एर्ॊ र्स्र आदद का गह ृ प्रशस्त होता है । उसके ऩश्चात ् दक्षऺण को भें

भध्म-आॉगन से मुक्त सबा होनी चादहमे । इसके फाहय चायो ओय न्स्रमों के अऩने बर्न होने चादहमे । र्हाॉ आयाभ

(फगीचा) से मुक्त क्रीड़ागह ृ एर्ॊ जर का स्थान होना चादहमे । ऩर्ोत्तय कोण भें सबी न्स्रमों का सबार्ास (सबी के रूऩ भें आर्ास मा कऺ) होना चादहमे ॥१०३-१०६॥

महाॉ याजबर्न के न्जन बीतयी अॊगो एर्ॊ फाहयी अॊगो का र्णवन नही ककमा गमा है , उनके वर्षम भें ऩर्वर्र्णवत तनमभ जानना चादहमे । इस प्रकाय भुतनमों ने याजाओॊ के ऩद्मक आर्ास का र्णवन ककमा है ॥१०७॥ सौफरिेश्भ प्रथभाियण सौफर याजगह ृ (ऩथभ आर्यण, प्राकाय) - याजबर्न की रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई सतु नन्श्चत कय स्थानीम सॊऻक

र्ास्तुभण्डर (एक सौ फीस ऩद र्ास्तु) तनसभवत कयना चादहमे । भध्म ऩद भें सकर र्ास्तभ ु ण्डर के अनुसाय ब्रह्भा

की ऩीठ फनानी चादहमे । मह र्ेददका ऩय भण्डऩ भें होनी चादहमे । यानी का बर्न दक्षऺण एर्ॊ उत्तय भें होना चादहमे । ऩन्श्चभ ददशा भें याजा का बर्न अनेक तरों से मुक्त होना चादहमे । ऩर्व ददशा भें आॉगन होना चादहमे एर्ॊ भध्म बाग भें द्र्ायशोबा सॊऻक द्र्ाय आदद से सुसन्ज्जत होना चादहमे । द्र्ाय के ऩन्श्चभ भें ऩर् ु ी बाग भें असबषेक गह ृ

होना चादहमे । इसकी मोजना ऩीठ र्ास्तु ऩद ऩय होनी चादहमे । इस ऩय सार (प्रथभ आर्यण) ऩर्व-र्णवन के अनस ु ाय कयना चादहमे ॥१०८-११०॥ ्वितीमाियण उसके ऩश्चात ् ( प्रथभ आर्यण के ऩश्चात ् ) ऩर्व से प्रायम्ब कय क्रभश् जमधत, बानु एर्ॊ बश ृ के ऩद ऩय आॉगन

होना चादहमे । उनके भध्म भें तीन तर से मुक्त द्र्ायहम्मव द्र्ाय होना चादहमे । अन्ग्न के ऩद ऩय यसोई एर्ॊ वर्तथ के ऩद ऩय भर कोश (ऩरयर्ारयक कोष) होना चादहमे । उसी ऩद-बाग ऩय द्र्ायप्रासाद द्र्ाय का तनभावण होना चादहमे । ॥१११-११३॥ मभ, बॊग ृ याज एर्ॊ वऩतब ृ ाग ऩय न्स्रमों का बर्न होना चादहमे । सुगर के ऩद ऩय नत्ृ तशारा (यॊ गभञ्च, नाटमगह ृ ) एर्ॊ र्ारुण के ऩद ऩय याजबर्न होना चादहमे । शोष के ऩद ऩय अधत्ऩयु एर्ॊ र्ामु के ऩद ऩय जर-क्रीड़ा के तनसभत्त र्ाऩी होनी चादहमे । भुख्म के ऩद ऩय याजभदहषी का आर्ास, शारा मा भासरका होनी चादहमे । ॥११४-११५॥

तर ु ाबाय का तनभावण सोभ के ऩद ऩय औय उसके ऩश्चात ् हे भगबव का कृत्म होना चादहमे । ददतत के बाग ऩय सर् ु णव एर्ॊ यत्न तथा सुगन्धध का कऺ होना चादहमे । र्ही गजशारा होनी चादहमे । ईश के ऩद ऩय र्ाऩी एर्ॊ कऩ होना

चादहमे । र्ही र्चोगह ृ (शौचगह ृ ) एर्ॊ जरमधर स्थावऩत कयना चादहमे । र्ही ऩय सार (द्वर्तीम आर्यण) एर्ॊ भागव का तनभावण ऩर्वर्र्णवत वर्धध से कयना चादहमे ॥११६-११७॥

तत ु ण्डर (उनचास ऩद का र्ास्तभ ु धडर) तनसभवत ृ ीम आर्यण - उसके (द्वर्तीम आर्यण) के फाहय स्थन्ण्डर र्ास्तभ

कयना चादहमे । फुविभानों के भतानुसाय ऩजवधम, भहे धद्र, बानु, सत्म एर्ॊ अधतरयऺ के ऩद ऩय आॉगन तनसभवत कयना

चादहमे । भहे धद्र के ऩद ऩय चाय मा ऩाॉच तर से मुक्त द्र्ाय तनसभवत कयना चादहमे । र्ही शॊख, बेयी आदद र्ाद्मों के वर्सबधन प्रकाय के शब्द होते है । महाॉ न्जन फातों का र्णवन नही ककमा गमा है , उधसबी का चायो ओय तनभावण

ऩर्वर्णवन के अनुसाय कयना चादहमे । इस (तत ृ ीम आर्यण) के फाहय ऩयभशामी र्ास्तुभण्डर (इक्मासी ऩद) तनसभवत कयना चादहमे । इसके ऩर्व बाग भें आॉगन होना चादहमे ॥११८-१२०॥ चतुथााियण चौथा आर्यण - इसका (ऩर्वर्र्णवत आॉगन का) अधधकाॊश बाग जमधत से अधतऺवऩमवधत होना चादहमे । न्जनकी महाॉ चचाव नही की गई है , र्े सबी श्मेन (अन्ग्न) के ऩद से प्रायम्ब कयते हुमे तनसभवत होने चादहमे ॥१२१॥ ऩञ्चभाियण ऩाॉचर्ा आर्यण - उसके (चौथे आर्यण के) फाहय स्थानीम र्ास्तभ ु ण्दर (एक सौ इक्कीस ऩद) के ऩर्व ददशा भें आॉगन होना चादहमे । इस आॉगन की चौड़ाई उसकी रम्फाई के सात बाग भें दो फाग से यखनी चादहमे । मह गोऩुय द्र्ाय

से एर्ॊ दग ु व के भन्धदय से मुक्त होना चादहमे । इसके ऩर्व-दक्षऺण बाग भें फड़ी यसोईगह ृ होनी चादहमे । र्ही याजबर्न के याजकीम कामो का रेखन कयने र्ारे (प्रशासन) कसभवमों का स्थान होना चादहमे ॥१२२-१२४॥

दक्षऺण बाग भें आठ ऩदों ऩय एक फड़ा आर्त ृ आॉगन होना चादहमे, जहाॉ अश्र्कक्रडा मा गज-क्रीडा होनी चादहमे । र्ही ऊॉचा कट एर्ॊ तनऋतत के ऩद ऩय याजबर्न होना चादहमे । उसके फाहयी बाग भें खररयका तथा उसके फाहय र्रुण

ऩद ऩय न्स्रमों का आर्ास होना चादहमे । नऩ ृ -बर्न के र्ाभ बाग भें न्स्रमों का सङ्कयारम (सभरने-जुरने का कऺ), जरक्रीडास्थान, सबा, भासरका मा आर्ासबर्न होना चादहमे । ॥१२५-१२७॥

र्ामु के ऩद ऩय र्ाऩी, वर्हाय (उद्मान आदद) एर्ॊ आश्रभ आदद का स्थान होना चादहमे । सोभ के ऩद ऩय तुराबाय

एर्ॊ उसके फाद सुर्णवगबव का कृत्म कयना चादहमे । ईश के ऩद ऩय सशर्ारम उधचत यीतत से तनसभवत कयना चादहमे । उसके (ऩाॉचर्ी सबन्त्त के) फाहय नगय मा सशवर्य का तनभावण ऩर्वर्र्णवत वर्धध से कयना चादहमे । इस याजबर्न का सौफर कहा गमा है ॥१२८-१२९॥ अथधयाजभल्न्दय अधधयाज याजबर्न - अफ भै वर्शेष रूऩ से सॊऺेऩ भें अधधयाज याजाओॊ के बर्न का र्णवन कयता हॉ । वर्स्ताय एर्ॊ रम्फाई का तनश्चम कयने के ऩश्चात ् र्हाॉ उबमचन्धदत र्ास्तुभधडर (उनहत्तय ऩद) तनसभवत कयना चादहमे । उसके भध्म ऩद भे ब्रह्भा का आसन मा असबषेक के मोग्म सबागय एर्ॊ भण्डऩ तनसभवत कयना चादहमे ॥१३०॥

उसके ऩन्श्चभ बाग भें ऩाॉच, सात मा नौ तर का याजबर्न होना चादहमे । उसके ऩष्ृ ठ बाग एर्ॊ दोनो ऩाश्र्ों भें एक बाग से आॉगन से मक् ु त खररयका होनी चादहमे । याजा की इच्छानस ु ाय बीतयी बाग भें बोजन-कऺ का तनभावण कयना चादहमे ॥१३१-१३२॥

ऩर्ोत्तय कोण भें स्नानगह ृ एर्ॊ दे र्ारम होना चादहमे । साभने नौ बाग से अत्मधत रम्फा-चौड़ा वर्शार आॉगन होना

चादहमे, न्जसके ऩर्व बाग भें भध्मबाग से मुक्त खररयका तनसभवत होनी चादहमे । दो मा तीन तरमुक्त द्र्ाय हो, न्जस ऩय बेयी होनी चादहमे । बर्न का भुख-भण्डऩ महाॉ तनसभवत कयना चादहमे तथा ऩाश्र्व-बाग भें ऩोत का ऩाश्र्वबाग

तनसभवत कयना चादहमे......................... द्र्ाय के सभीऩ याजा का प्रमोगस्थर (अभ्मासस्थर) होना चादहमे । आॉगन के दो मातीन ऩाश्र्व बागों भें गोरक आदद (खेरों) का स्थान होना चादहमे । न्जस बर्न भें भर कोश (प्रधान खजाना) यक्खा जाम, र्ह ऩर्ोत्तय कोण भें होना चादहमे ॥१३३-१३६॥ उसके ऩन्श्चभ बाग भें र्स्र आदद का स्थान एर्ॊ कऺ होना चादहमे । द्र्ाय के उत्तय बाग भें ऩीने मोग्म ऩानी एर्ॊ उष्ण जर का कऺ तनसभवत कयना चादहमे । र्हीॊ ऩय ऩाक-गह ु ॊ को यखने का स्थान (सॊग्रह कऺ) ृ एर्ॊ सबी र्स्तओ

तनसभवत कयना चादहमे । द्र्ाय के दक्षऺण बाग भें अधधर्ासक गह ृ (कऩड़ा फदरने का स्थान) तनसभवत कयना चादहमे । उसके दक्षऺण बाग भें सुगधध आदद (श्रॊग ृ ायऩयक साभग्री ) का कऺ होना चादहमे । ऩर्व-दक्षऺण भें तनसभवत कऺ भें

भर कोश यखने का गह ृ तनसभवत होना चादहमे । याऺस के ऩद ऩय एर्ॊ उसके ऩन्श्चभ बाग भें गजशारा होनी चादहमे । उसके ऩश्चात ् दक्षऺण-ऩन्श्चभ कोण भें सशर् का स्थान एर्ॊ यत्न औय सुर्णव यखने का कऺ होना चादहमे । ॥१३७१४०॥

ऩर्ोत्तय कोण भें दान एर्ॊ अध्ममन हे तु शारा होनी चादहमे । प्राम् प्रमोगशारा एर्ॊ छोटा द्र्ाय होना चादहमे । (महाॉ भर-ऩाठ खन्ण्डत है ।) द्र्ाय के दोनों ऩाश्र्ों भें साय-द्रव्मों का स्थान एर्ॊ कट-गह ृ होना चादहमे । र्ही ऩय

गजशारा,सबी प्रकाय के ओषधधमों का कऺ एर्ॊ शस्रागाय होना चादहमे । अधम सबी व्मर्स्थामें याजा की इच्छा के अनुसाय कयनी चादहमे ॥१४१-१४२॥ याजा का बर्न भख ु ाङ्गण (सम्भख ु आॉगन) एर्ॊ भख ु भण्डर से मक् ु त होना चादहमे । याजा की इच्छानस ु ाय बोग-गह ृ एर्ॊ यऺा-व्मर्स्था कयनी चादहमे । (महाॉ भर ऩाठ खन्ण्डत है ) । ॥१४३॥

उसके दक्षऺण ऩाश्र्व बाग भें फायह ऩद का रम्फा आॉगन होना चादहमे । र्ही ऩन्श्चभ बाग भें भण्डऩ, शारा मा भासरका होनी चादहमे । उसके दोनों ऩाश्र्ो भे स्नान-गह ृ एर्ॊ भण्डऩ होना चादहमे । आॉगन के दक्षऺण बाग भें सबी

प्रकाय की र्स्तुओॊ का सॊग्रहकऺ होना चादहमे । ऩर्व बाग भें ऩरयघा, सभण्ठक एर्ॊ कटशारा से सुसन्ज्जत र्ेशन (प्रर्ेश द्र्ाय) होना चादहमे । याजबर्न के एर्ॊ आॉगन के ऩर्व बाग, दोनों ऩाश्र्ों एर्ॊ ऩन्श्चभ बाग भे न्स्रमों का आॉगन से मुक्त आर्ास मा भासरकागह ृ ों की ऩॊन्क्त होनी चादहमे । बर्न के उत्तय ऩाश्र्व भें याजबर्न के सभान ऊॉचा

याजभदहषी का बर्न होना चादहमे । उसके एक बाग भाऩ से ऩाश्र्व बाग भें यातनमों की भासरका-ऩॊन्क्त (बर्नों की ऩॊन्क्त) होनी चादहमे । र्ही कधमाओॊ का आर्ास एर्ॊ कुब्जक आदद (सेर्कों) का आर्ास होना चादहमे ॥१४४-१४८॥ दक्षऺण से उत्तय की ओय क्रभश् एक, दो मा तीन बाग से वर्शार उद्मान एर्ॊ उसके फाहय सार (प्राकाय) होना चादहमे । उसके उत्तय बाग भें जरक्रीड़ा का स्थान, जर का स्थान एर्ॊ याजा की दीतघवका (जर-र्ाऩी) होनी चादहमे । याजबर्न के ऩन्श्चभ बाग भें न्स्रमों की सङ्कयशारा (सभरने-जुरने का कऺ) होना चादहमे । ॥१४९-१५०॥ याजबर्न के ऩर्ोत्तय बाग भें फाहय नर् ऩदों भें इष्टदे र्ों का गह ृ होना चादहमे । र्हीॊ ऩय आग्रामण (ऩजाकृत्म) की शारा, ऩष्ु ऩर्ादटका एर्ॊ कऩ होना चादहमे । ऩर्व ददशा भें तीस ऩदों से एक वर्स्तत ृ आॉगन तनसभवत होना चादहमे । भहे धद्र के ऩद ऩय तीन मा चाय तर से मुक्त गोऩुयद्र्ाय तनसभवत होना चादहमे । द्र्ाय के दक्षऺण ओय ऩार्वती,

सयस्र्ती एर्ॊ रक्ष्भी का भन्धदय होना चादहमे । इनका भख ु बीतय की ओय होना चादहमे एर्ॊ मे दो, तीन मा चाय तर से भुक्त होने चादहमे । इसके ऩर्व बाग भें शॊख, बेयी आदद र्ादों का कऺ होना चादहमे ॥१५१-१५४॥

उसके दक्षऺण बाग भे सबी प्रकाय के यऺकों से मक् ु त फड़ी यसोई होनी चादहमे । आॉगन के दक्षऺण बाग भें दो मा तीन तर से मुक्त द्र्ाय होना चादहमे । द्र्ाय के दोनो ऩाश्र्ो भे रेखक (दहसाफ सरखने र्ारे) की खरयी होनी

चादहमे । आॉगन के उत्तय बाग भें एक वर्शार सबागह ृ होना चादहमे, न्जसका भुख दक्षऺण की ओय हो, साथ ही

सुसन्ज्जत, सुधदय एर्ॊ उॉ चा हो, न्जसके ऩन्श्चभ बाग भें ऩर्व की ओय गीत आदद की सबा होनी चादहमे । अधम सबी याजा की इच्छा के अनुसाय कयना चादहमे । ॥१५५-१५७॥

याजबर्न के फाहय प्रस्तय एर्ॊ ईट से प्राकाय तनसभवत कयना चादहमे , न्जसके भर की चौड़ाई एर्ॊ ऊॉचई ऩर्वर्र्णवत तनमभ के अनुसाय होनी चादहमे । उसके फाहय ऩरयखा होनी चादहमे । उत्तभ याजबर्न ईट आदद से तनसभवत होना चादहमे; इसे 'जमङ्ग' कहते है ॥१५८॥

ऩरयखा को प्रर्ादहत होने र्ारे जर से बयना चादहमे । इसे कदव भ , भत्स्म, जोक, जरसऩव, ऩद्म, काॉटेदाय भछसरमाॉ, कच्छऩ, केकड़ा एर्ॊ शॊखो से मक् ु त कयना चादहमे । ॥१५९॥ सबन्त्त ऩय तनर्ास कयने मोग्म कट से मुक्त आरम्फन तनसभवत होने चादहमे । मह जार, रता एर्ॊ ऩरों से ऩरयऩणव होता है । इसका बीतयी बाग झुका एर्ॊ उठा होता है । सबन्त्त तछद्र से मुक्त होती है एर्ॊ अनेक मधरों से मुक्त

होती है । इस प्रकाय याजबर्न फाहय, बीतय एर्ॊ भध्म बाग भें दग व ुक्त होना चादहमे । याजा के सबी जन (प्रजा) ु म यऺणीम होते है , इससरमे फाहय (दग ु व के फाहय) छ् प्रकाय के फर (सैतनक) होने चादहमे ॥१६०-१६१॥ नगयबेद नगय के बेद - वर्द्र्ानों के भतानुसाय याजाओॊ के नगय चाय प्रकाय के होते है - स्थानीम, आहुत, माराभर्ण एर्ॊ वर्जम ॥१६२॥

जनऩद के भध्म भें (र्तवभान याजा के) कुर के भर याजाओॊ के द्र्ाया फसामा गमा नगय स्थानीम सॊऻक होता है । मह तण ृ , जर एर्ॊ बसभ से मुक्त होता है । ॥१६३॥

प्रबु (स्र्ाभी), भधर (सही भधरणा) एर्ॊ उत्साहरूऩी तीन शन्क्तमों से मुक्त; तण ृ , बसभ एर्ॊ जर से मुक्त; नदी से

आर्त ृ मा अधम यऺणों से मुक्त नगय को कबी रयक्त नही छोड़ना चादहमे । प्रततऩऺी याजागण इस नगय (आहुत) को दग व कहते है । बसभ, जर एर्ॊ तण ु भ ृ से मुक्त तथा मुि की मारा के सरमे तनसभवत नगय को सॊग्राभ (माराभर्ण) कहते है । जो नगय वर्जम के अर्सय ऩय स्थावऩत ककमा जाता है , तीन आर्श्मक र्स्तुओॊ स मुक्त होता है एर्ॊ न्जसका प्रधान उद्देश्म सीभा की यऺा है , वर्ऻोने उस नगय को वर्जम कहा है ॥१६४-१६६॥

फड़े याजबर्न भें धनुष (शस्र) से मुक्त बर्न मदद (शरुओॊ द्र्ाया) अधधगह ृ ीत कय सरमा जाता है तो शेष याजबर्न शन्क्तहीन हो जाता है ॥१६७॥ हल्स्तिारा

गजशारा- तीन हाथ से प्रायम्ब कय आधा-आधा हाथ फढ़ाते हुमे ऩाॉच हाथ तक गजशारा के ऩाॉच भाऩ प्राप्त होते है ॥१६८॥ रम्फाइ एर्ॊ चौड़ाई के अनस ु ाय गजशारा तीन प्रकाय की होती है । मे क्रभश् नौ एर्ॊ छ् बाग, सत एर्ॊ चाय बाग

तथा तीन एर्ॊ ऩाॉच बाग के होते है । छोटे याजबर्न भें छोटे भाऩ की एर्ॊ फड़े याजबर्न भें फड़े भाऩ की गजशारा तनसभवत कयनी चादहमे । भुखशारा एक बाग भाऩ से होनी चादहमे तथा भध्म बाग के वर्स्ताय से तनगवत तनसभवत होना चादहमे । इसके दक्षऺण बाग भें एक बाग भाऩ से शमनस्थान तनसभवत होना चादहमे ॥१६९-१७०॥

गजशारा के स्तम्ब के सरमे अनुकर काष्ठ याजादन, भधक, खददय, खाददय, अजन ुव , ततन्धरणी, स्तम्फक, वऩसशत, शभी, ऺीरयणी एर्ॊ ऩद्मक होते है ॥१७१-१७२॥

(गज) शारा के स्तम्बों की ऊॉचाई सात, आठ मा नौ हाथ होनी चादहमे । इसभें स्तम्ब का बसभ भें गड़ा बाग नही ग्रहण ककमा जाता है । इसकी चौड़ाई बसभ भे गड़े बाग के अनुसाय इस प्रकाय होनी चादहमे, न्जसभें स्तम्ब

दृढ़ताऩर्वक स्थावऩत हो सके । मे शारास्तम्ब र्ऺ ृ की शाखाओॊ के सभान सशखाओॊ से मुक्त होने चादहमे ॥१७३॥ गजशारा के स्तम्ब र्त्ृ ताकाय होने चादहमे । इनकी भोटाई एक हाथ, तीन चौथाई हाथ मा आधा हाथ इस तयह तीन प्रकाय की कही गई है । इसके ऊध्र्व बाग की चौड़ाई (नीचे से) आठ बाग कभ होनी चादहमे ॥१७४-१७५॥

चौड़ाई के सोरह बाग कयने ऩय ऩाॉच बाग शारा की चौड़ाई भें एर्ॊ तीन बाग ऩष्ृ ठ बाग भें ग्रहण कयना चादहमे । र्ाभ बाग भें आठ बाग छोड़कय ऩर्ोक्त तनमभ के अनुसाय स्तम्ब को (बसभ के सबतय) गाड़ना चादहमे ॥१७६॥

सबन्त्त के ऊॉचाई स्तम्ब की आधी ऊॉचाई तक होनी चादहमे । उसके ऊऩय कटक (तण ृ -सीॊक आदद से) आच्छाददत कयना चादहमे, न्जसे खोरा एर्ॊ फधद ककमा जा सके । वर्तन्स्तगोस्तन (वर्शेष प्रकाय की र्खड़की मा झयोखा) एर्ॊ फाहय की ओय भुख होना चादहमे । इसका तर (बसभ, पशव) गज के प्रभाण से परक-प्रस्तय (काष्ठ-परक ) से

तनसभवत कयना चादहमे । इसका प्रस्तय सशराओॊ एर्ॊ ंटटो से तनसभवत नही कयना चादहमे । इसभें (गजशारा) भर तनकरने का द्र्ाय (फाहय तनकरने के) द्र्ाय की न्स्थतत के अनुसाय तनसभवत कयना चादहमे । अधम सबी व्मर्स्थामें फवु िभान स्थऩतत को आर्श्मकतानस ु ाय कयनी चादहमे ॥१७७-१८०॥ अश्ििारा अश्र्शार, घुड़शार - अश्र्शारा के ऩाॉच प्रकाय के प्रभाण- नौ, आठ, सात, छ् मा ऩाॉच हाथ होना चादहमे तथा इसकी रम्फाई तीन बन्क्त (इकाई) से रेकय इक्कीस बन्क्त तक होनी चादहमे ॥१८१॥

अश्र्शारा चाय द्र्ाय, चाय कऺ एर्ॊ प्रत्मेक कऺ भें प्रग्रीर् से मुक्त होनी चादहमे । स्तम्ब का व्मास दस मा फायह

हाथ कहा गमा है । सबन्त्त की ऊॉचाई तीन,चाय, ऩाॉच मा छ् हाथ होनी चादहमे । सबधन एर्ॊ असबधन (दोनो प्रकाय की शाराओॊ) की सबन्त्त का जोड़ सभुधचत यीतत से होना चादहमे । प्रत्मेक गह ृ भें नेरसबन्त्त एर्ॊ ऩष्ृ ठ बाग भें जारक (झयोखा) होना चादहमे । गह ृ के अन्धतभ बाग भें दृढ़ कणवधाया (यचनावर्शेष) होनी चादहमे ॥१८२-१८४॥

वर्षम सॊख्मा र्ारे बफछामे गमे र्ॊश के ऊऩय प्रस्तयपरकों (काष्ठ-खण्ड) से बसभ तनसभवत होनी चादहमे । इसभें भर तनकरेके सरमे तछद्र होना चादहमे एर्ॊ इसे ठोस काष्ठ से दृढ़ फनाना चादहमे । प्रत्मेक अश्र्स्थान भे प्रर्ेश के सरमे

एक बन्क्त-प्रभाण का प्रर्ेश भागव होना चादहमे । (अश्र्शारा की) कीर ठोस काष्ठ से तनसभवत चौदह अॊगर ु रम्फी

होनी चादहमे । इसकी चौड़ाई दो मा तीन अॊगुर एर्ॊ अग्र बाग भें सई के सभान नोंक होनी चादहमे । ऩश्चाद्फधध को अग्रफधध भें दृढ़ताऩर्वक इस प्रकाय जोड़ना चादहमे, जैसे गतव भें दृढ़ताऩर्वक फैठामा जाता है ॥१८५-१८७॥ नानारमा वर्वर्ध बर्न - भोय एर्ॊ फधदय आदद के गह ृ , तोते का वऩञ्जया, एक जोड़ी फैर, गाम एर्ॊ फछडो, जर, धाधम एर्ॊ धन

के कऺ; र्स्र, यत्न, अस्र-शस्र, द्मतक्रीडा एर्ॊ कामव कयने के सरमे आर्यण-कऺ; दानशारा, बोजनगह ु त ृ एर्ॊ दक्षऺणामक् मऻशारा होनी चादहमे ॥१८८-१८९॥

दक्षऺण ददशा भें उधचत स्थान ऩय वऩञ्जये का स्थान होना चादहमे । फगीचे औय जराशम के ऩास स्थान-भण्डऩ (फैठने के सरमे भण्डऩ) होना चादहमे । फैरों के सरमे कटागाय मा गोर कऺ होना चादहमे ॥१९०॥ भन्त्रिाराददविथध भधरणा कऺ आदद की वर्धध - याजा भधरणा-कऺ ऩर्व-ऩन्श्चभ रम्फा, सुधदय एर्ॊ ऊॉची सबन्त्तमों से मुक्त होना चादहमे । सबा स्तम्बों से आर्त ृ तथा सबन्त्तहीन होनी चादहमे, न्जससे दय तक दे खा जा सके ॥१९१॥

अथर्ा र्हाॉ ऩन्श्चभ ददशा भें कटागाय होना चादहमे, जो याज-ससॊहासन मुक्त हो एर्ॊ इस प्रकाय तनसभवत हो, न्जससे कक उसका भुख ऩर्व की ओय हो । उसके ऩर्व-दक्षऺण बाग भे भधरी का आसन होना चादहमे । दत का ऩर्ोत्तय बाग भें एर्ॊ प्रशास्ता का उत्तय बाग भें आसन होना चादहमे । उसके दक्षऺण बाग भें सेनाऩतत का आसन होना चादहमे ।

सबी आसनों के भध्म फयाफय नासरक का अधतय होना चादहमे । भधरनासरका सध ु दय एर्ॊ एक-एक अॊगर ु की दयी ऩय ऩाॉच गाॉठ से मुक्त होनी चादहमे । मह तछद्रमुक्त एर्ॊ अग्र बाग भें (दोनो ओय) करी से मुक्त होनी चादहमे ॥१९२१९४॥

प्रसाधनगह ृ बर्न की चौड़ाई के ऩाॉच बाग एर्ॊ रम्फाई के छ् बाग कयने चादहमे । भध्म बाग भें एक बाग (चौड़ा) एर्ॊ दो बाग रम्फा आॉगन होना चादहमे । मह र्ऺ के फयाफय ऊॉची सबन्त्त से ढॉ का होना चादहमे । उसके भध्म भें र्त्ृ ताकाय प्रस्तय होना चादहमे तथा ऩर्ोत्तय बाग भें जरऩणव ऩार होना चादहमे । उसके दक्षऺण बाग भें केश धोने के सरमे ऩमंक (आसन) होना चादहमे ॥१९५-१९६॥ भण्डऩ-भासरका ऩर्ोत्तय द्र्ाय से मुक्त होती है । प्रसाधन कयने र्ारी स्री का आसन सभर के ऩद ऩय तथा र्हीॊ ऩय

भदहराओॊ का स्थानभण्डऩ होना चादहमे । इसका वर्स्ताय ऩाॉच हाथ से प्रायम्ब होकय ऩच्चीस हाथ तक वर्शभ सॊख्मा र्ारे भाऩ भें होना चादहमे । सबा, भण्डऩ एर्ॊ शाराओॊ की रम्फाई के साभाधम तनमभ होते है । चौड़ाई ऩधद्रह हाथ होने ऩय रम्फाई इक्कीस हाथ एर्ॊ ऊॉचाई चरी-ऩमवधत होनी चादहमे ; ककधतु र्य तेयह हाथ से अधधक नही होनी चादहमे ॥१९७-१९९॥

अमबषेकिारा

असबषेक के अनक ु र शारा ऩर्ावसबभख ु तनसभवत कयनी चादहमे । इसके भध्म बाग भें यॊ गभञ्च से मक् ु त सबा होनी

चादहमे । याजा का भण्डऩ दक्षऺण बाग भे होना चादहमे एर्ॊ न्जस कऺ भें ऩट्टासबषेक हो, उसे उत्तय ददशा भें होना चादहमे ॥२००-२०१॥ (भध्म बाग भें ) ऩाॉच, सात मा नौ हाथ चौड़ी एर्ॊ रम्फाई भें चौड़ाई की दग ु ुनी र्ेददका होनी चादहमे । इसकी ऊॉचाई

चौड़ाई के तीन, चाय मा ऩाॉच बाग के फयाफय होनी चादहमे । स्तम्बों की ऊॉचाई र्ेददका के फयाफय एर्ॊ चौड़ाई र्ेददका के अनुसाय होनी चादहमे । बीतयी बाग स्तम्बों से मुक्त होना चादहमे; ककधतु भध्म बाग भें स्तम्ब नही होना चादहमे । स्तम्बों की चौड़ाई फायह, सोरह मा अट्ठायह अॊगुर होनी चादहमे । एक बन्क्त (भाऩ की इकाई) ऩमवधत जार से मह आर्त ृ होना चादहमे; न्जससे कक र्हाॉ प्रकाश का प्रर्ेश हो सके ॥२०२-२०४॥ तुराबायस्थान तुराबाय का स्थान - तुराबाय कृत्म के अनुरूऩ कट मा भण्डऩ होता है । तोयण्के स्तम्ब की रम्फाई तीन हाथ एर्ॊ

व्मास दस अॊगुर होना चादहमे । इसके ऩष्ृ ठ बाग भें (ऊध्र्व बाग भे) नौ, आठ मा सात अॊगुर की सशखा होनी चादहमे । इसे र्ास्तु के भध्म भें इस प्रकाय स्थावऩत कयना चादहमे, न्जससे मह दक्षऺण-उत्तय की ओय यहे । तोयण के भध्म बाग की ऊॉचाई सभान होनी चादहमे ॥२०५-२०७॥

एक-दसये भें प्रवर्ष्ट रट्ठे (क्रास फीभ) भध्म बाग भें र्क्रतुण्ड (भुड़े हुमे भुख मा सॉड की आकृतत) से मुक्त होते है । ऩर्व से ऩन्श्चभ भें रगाई गई प्रधान तुरा के दोनों ससये अचर (न दहरने-डरने र्ारे) तनसभवत कयना चादहमे । तुरा के भध्म भें रगी अये (तीसरमाॉ, श्रॊख ु ाय होनी चादहमे । भध्म बाग भें दृढ़ काष्ठ से ृ रामे) भहायाज के (ऩदादद) अनस तनसभवत कुण्डर जड़ दे ना चादहमे । इस कुण्डर को र्क्रतुण्ड से दृढ़ताऩर्वक जोड़ना चादहमे । परकासन (काष्ठ का

आसन) का तनभावण ऩ-ुॊ काष्ठ मा नऩुॊसक-काष्ठ को छोड़कय कयना चादहमे । इसे सभान्रऩ से रम्फी एर्ॊ दृढ श्रॊख ृ राओॊ द्र्ाय सार्धानी से जोड़ना चादहमे । इसे दो-दो र्क्रतुण्डों से दो-दो फाय प्रमत्नऩर्वक जोड़ना चादहमे ॥२०८-२११॥

र्ास्तु की चायो ददशाओॊ भे तथा ऩर्वभुख तोयण होना चादहमे । स्तम्ब, वर्ष्ट (क्रास फीभ) एर्ॊ तुरा प्रशस्त एर्ॊ दृढ काष्ठों से तनसभवत कयना चादहमे । चायो ओय फाहय प्रऩा (भण्डऩ) का तनभावण होना चादहमे , जो र्ास्तु के भध्म तक

ऩहुॉचता हो । उसी के फयाफय उसके फाहय चायो ओय (दसयी प्रऩा) तनसभवत कयनी चादहमे । तोयण काष्ठ (क्रभश्) उदम् ु फय (गरय), र्ट (फड़), अश्र्त्थ (ऩीऩर) तथा धमग्रोध (फयगद) के काष्ठ से तनसभवत होना चादहमे । इसी क्रभ से ऩीरा, रार, श्र्ेत एर्ॊ नीरा ध्र्ज रगाना चादहमे ॥२१२-२१४॥

जफ याजा तुरा के फयाफय (तुरा के दोनो ऩरडे फयाफय) हो जाम एर्ॊ याजा का भुख इधद्र की ददशा (ऩर्व) की ओय हो

जाम, तो याजा को सबी सख ु प्राप्त होते है । अऩने सन्ञ्चत सर् ु णव यासश को दे खकय याजा ऩथ् ृ र्ी ऩय कुफेय के सभान हो जाता है ॥२१५॥ दहयण्मगबास्थान दहयण्मगबव का स्थान - सुर्णव-गबव से मुक्त बर्न के सबन्त्त की रम्फाई सात मा नौ हाथ, व्मास चौकोय एर्ॊ व्मास

के फयाफय बतर से उसकी ऊॉचाई होती है । स्तम्ब का व्मास दस मा फायह अॊगुर का कहा गमा है । मह र्त्ृ ताकाय मा चौकोय होता है एर्ॊ इसे बसभ के बीतय मथाशन्क्त दृढ़ताऩर्वक गाड़ना चादहमे । आर्त ृ सबन्त्त (बर्न के ऩास की

सबन्त्त) की ऊॉचाई तीन हाथ एर्ॊ इसकी र्ेददका एक दण्ड ऊॉची होनी चादहमे । (बर्न का) बीतयी बाग सोरह वर्ष्टों (क्रास फीभ) की दो ऩॊन्क्तमों से सुसन्ज्जत होना चादहमे, जो स्तम्बों के अग्र बाग ऩय दटके है ॥२१६-२१८॥ उनकी ऊॉचाई सभान होनी चादहमे ; ऊऩय से ढॉ की होनी चादहमे एर्ॊ रऩ ु ा के द्र्ाया इधहे सहाया प्राप्त होना चादहमे ।

सबा के भध्म बाग भें र्ेददका तनसभवत होनी चादहमे, जो सात हाथ चौड़ी एर्ॊ दो हाथ ऊॉची मा ऩाॉच हाथ चौड़ी एर्ॊ दो हाथ ऊॉची हो । उसके भध्म भें गतव होना चादहमे ॥२१९-२२०॥ फाहय जार से मक् ु त सबन्त्त होनी चादहमे, न्जसके फाहय प्रकाश हो । सबा की ऊॉचाई नीव्र (छत का ककनाया) के फयाफय एर्ॊ चौडाई एक दण्ड प्रभाण की होनी चादहमे । उसके फाहय तेईस हाथ की ऩरयखा होनी चादहमे । चायो

ददशाओॊ भें चाय द्र्ाय एर्ॊ दध र्ारे र्ऺ ृ ों के काष्ठ से तनसभवत तोयण होना चादहमे । प्रत्मेक तोयण का व्मास एर्ॊ ऊॉचाई द्र्ाय के फयाफय होनी चादहमे ॥२२१-२२३॥

आठ भाॊगसरक ऩदाथव काॉसे के ऩार ऩय मा अधम धातु ऩय (अॊककत कय) स्तम्बों के ऊऩय तोयण ऩय रगाना चादहमे । चक्रर्ती की सशखा (ऩहचान, धचह्न) को प्रत्मेक द्र्ाय ऩय रगाना चादहमे । सबी के सरमे आठ भॊगर- छर, ध्र्ज, ऩताका, बेयी, श्री, कुम्ब, दीऩक एर्ॊ नधद्मार्तव (स्र्न्स्तक) है ॥२२४-२२५॥ याजबर्न के यऺक का आर्ास द्र्ाय की ऊॉचाई का दग ु ुना होना चादहमे । याजबर्न के फाहय की यऺा फाहय चरने र्ारे रोगों (यऺकों) के द्र्ाया की जानी चादहमे । याजा की इच्छानुसाय यानी एर्ॊ याजकुभायी का आर्ास भासरकाबर्न के अधत भें बसभ के नीचे मा जहाॉ भन को अच्छा रगे, र्हाॉ फनर्ाना चादहमे ॥२२६-२२७॥

याजा की इच्छानुसाय याजबर्न, कोष एर्ॊ अधम बाग, यऺा, प्रकाय, गजशारा, अश्र्शारा, यातनमों का आर्ास आदद तनसभवत कयना चादहमे । नगय की सॊयचना ऩरयन्स्थतत के अनुसाय कयनी चादहमे ॥२२८॥

अध्माम ३० ्िाय का विधान भतु नमों के र्ास्त-ु ऩयक र्ाक्म को सख ु ऩर्वक फवु ि भे धायण कय (भै भम) ब्राह्भण, याजा (ऺबरम), व्माऩायी (र्ैश्म) एर्ॊ

शद्रजनों के बर्नों के भुख-द्र्ाय की न्स्थतत, चौड़ाई एर्ॊ ऊॉचाई तथा ऩथ ृ क् -ऩथ ृ क् उनके बेद एर्ॊ सज्जा के साथ नाभों का उलरेख करूॉगा ॥१॥ ्िाय के प्रभाण द्र्ाय की चौड़ाई (कभ से कभ) तीन बफत्ता एर्ॊ रम्फाई (ऊॉचाई) सात बफत्ता होनी चादहमे । (ऩर्ोक्त) चौड़ाई एर्ॊ रम्फाई भे क्रभश् छ् एर्ॊ फायह अॊगर ु फढ़ाते हुमे ऩधद्रह बफत्ता चौड़ाई एर्ॊ इक्कीस बफत्ता (ऊॉचाई) रे जानी चादहमे । इस प्रकाय द्र्ाय के वर्स्ताय एर्ॊ ऊॉचाई के ऩच्चीस प्रकाय के प्रभाण फनते है ॥२-३॥ इनभें प्रथभ भान शमन-गह ु त है । (आगे के) फायह प्रभाण गह ु ाय ृ के सरमे उऩमक् ृ के होते है । वर्द्र्ानों के भतानस

गह ु व एर्ॊ याजबर्न के ृ के फाहय चायो ओय खरयी के द्र्ायभान बी मही है । (तत्ऩश्चात) फायह प्रभाण नगय, ग्राभ, दग

होते है । द्र्ाय की ऊॉचाई चौड़ाई की दग ु न ु ी एर्ॊ छ् अॊगर ु मा नौ अॊगर ु अधधक होनी चादहमे । मह भाऩ सबी के सरमे कहा गमा है ॥४-५॥

छोटे द्र्ायो की चौड़ाई के तीन भान प्राप्त होते है - दो बफत्ता छ् अॊगर ु , दो बफत्ता तीन अॊगर ु तथा दो बफत्ता ।

उनकी ऊॉचाई चौड़ाई की दग ु ुनी होनी चादहमे । इस प्रभाण भें छ् अॊगुर मा दो अॊगुर अधधक रेना चादहमे । इस द्र्ायो से ब्राह्भण आदद (अधम र्णों) का प्रर्ेश प्रशस्त होता है ॥६-७॥

द्र्ाय की ऊॉचाई स्तम्ब की ऊॉचाई के आथ बाग भें साढ़े छ् बाग के फयाफय एर्ॊ वर्स्ताय स्तम्ब की ऊॉचाई के नौ बाग भें साढ़े आठ बाग के फयाफय होनी चादहमे । छोटे एर्ॊ भध्मभ द्र्ाय प्रत्मेक बसभ ऩय होते है । न्जस द्र्ाय की ऊॉचाई चौड़ाई की दग ु ुनी होती है , र्ह भनुष्मो के आर्ास के सरमे शुब नही होता है ॥८-९॥ दे र्ारमों भें द्र्ाय की उचाई स्तम्ब के आठ बाग भें सात, नौ भे आठ तथा दस भें नौ बाग के फयाफय एर्ॊ चौड़ाई उचाई की आधी होनी चादहमे । प्रत्मेक तर भें उस तर के स्तम्ब के अनुसाय द्र्ाय का भा यखना चादहमे ॥१०॥ मोगभान द्र्ाय का मोगभान - द्र्ाय के मोग के वर्स्ताय का भान स्तम्ब के फयाफय, उससे एक चौथाई बाग मा उससे आधा बाग अधधक होना चादहमे । उसकी भोटाई चौड़ाई की आधी होनी चादहमे । चौखट का जो बाग उत्तय (सरधटर) के नीचे एर्ॊ र्ाजन (ऊऩयी बाग) तक जाता है , उसकी चौड़ाई बरऩाद (ऩौने तीन बाग) होनी चादहमे । ॥११-१२॥ किाट कऩाट, द्र्ाय का ऩलरा - कर्ाट की चौड़ाई स्तम्ब की चौड़ाई के तीसये , चौथे मा ऩाॉचर्े बाग के फयाफय होनी चादहमे । दे र्ता, ब्राह्भण एर्ॊ याजाओॊ के द्र्ाय भें दो कऩाट एर्ॊ शेष के सरमे एक कऩाट कहा गमा है । साभधत एर्ॊ प्रभुख आदद के सरमे द्र्ाय के दो कऩात प्रशस्त होते है ॥१३-१४॥

द्र्ाय के कऩाटों की उचाई साढ़े चाय, ऩाॉच, सात, आठ मा ग्मायह हाथ होनी चादहमे । मह उचाई बर्न के बीतयी बाग की उचाई के अनुसाय होनी चादहमे । इसभे आधा बाग गुलप (नीचे की चौखट) एर्ॊ आधा बाग वर्भर (ऊऩय क

चौखट) के सरमे होता है । मह दृढ़ता के सरमे थोडा भोटा यक्खा जाता है । कऩाट के बीतयी बाग भें सयऩ (द्र्ाय के खुरने-फधद होने ऩय तनमधरण यखने र्ारा अॊग) रगामा जाता है , न्जसकी उचाई कऩाट के तीन बाग भें दो बाग के मा ऩाॉच बाग भें चाय बाग के फयाफय होती है । इसके वर्षम भें ऩहरे र्णवन ककमा जा चुका है ॥१५-१६॥

दो कऩाट होने ऩय एक फड़ा एर्ॊ दसया छोटा होता है । दादहनी ओय के कऩाट की उचाई के ऩाॉच बाग एर्ॊ चौड़ाई के तीन बाग कयने चादहमे । (रम्फाई के) तीन बाग को ऊऩय एर्ॊ नीचे के सरमे एर्ॊ एक बाग दोनो ऩाश्र्ो के सरमे छोडकय भध्म भे फचे द्र्ायबाग को 'आर्ाय' कहते है । इसे रोहे के ऩट्टो से इस प्रकाय दृढ कयना चादहमे , न्जससे कक कऩाट दृढ हो एर्ॊ सुधदय रगे ॥१७-१९॥ बाजन (साॉकेट) का बीतयी व्मास फडे द्र्ाय, भध्म द्र्ाय मा छोटे द्र्ाय के अनुसाय तीन, चाय मा ऩाॉच अॊगुर का होना चादहमे अथर्ा (साॉकेट के) फाहयी चौडाई का आधा, दो ततहाई, तीन चौथाई मा तीसये बाग के अनुसाय होना चादहमे ।

अथर्ा इसका भाऩ दस अॊगर ु मा वर्कासन (घभने र्ारी कीर) की चौड़ाई के फयाफय होनी चादहमे । र्ेर (कीर के नोक) को (साॉकेट भे) इस प्रकाय यखना चादहमे , न्जससे कक मह हाथी की सॉड के सभान रगे ॥२०-२१॥

कऩाट के सरमे वर्षभ सॊख्मा के परक का प्रमोग कयना चादहमे एर्ॊ भध्म बाग भे जोड नही होना चादहमे । कऩाट की बेषणी (सहाया दे ने र्ारा बाग) भध्म बाग को छोडकय होनी चादहमे । दो कऩाट होने ऩय दृढ़ता को ध्मान भे यखते हुमे बेषणी का प्रमोग (अनार्श्मक होने ऩय) नही कयना चादहमे ॥२२-२३॥ तलऩ (कऩाटपरक) ऩय तीन, ऩाॉच, सात, नौ मा ग्मायह दण्ड रगना चादहमे , न्जनकी भोटाई तलऩ की आधी एर्ॊ चौड़ाई भोटाई की दग ु ुनी होनी चादहमे । उनकी आकृतत अश्र् के कधधे मा नख के सभान, ऩीऩर के ऩत्ते के अग्र बाग के सभान, स्र्न्स्तक के सभान, घदटका (छोटा घट) मा सभणवका के सभान होनी चादहमे । ॥२४-२५॥

कर्ाट को श्रीभुख, र्ाभदण्ड, वऩञ्जयी, गर, अगवर (कड़ड़माॉ, श्रॊख ृ रामे) ऺेऩण, सन्धधऩर, गुच्छे , र्न, रतागुलभ (झुयभुट),

बीतयसे ऩकडने र्ारे बाग (है ण्डर) र्ाराग्र (ऩॉछ), भध्म बाग भें कुण्डर, वर्षाण (सीॊग), ऩरयघा एर्ॊ ऺुद्र दण्ड (छोटा दण्ड, न्जससे द्र्ाय को खुरने से योका जा सके) से मुक्त कयना चादहम ॥२६-२७॥

कऩाट को सबी प्रकाय से सुधदय इधद्रकीर से मुक्त कयना चादहमे मा अधम धातु से उधचत यीतत से दृढ कयना चादहमे । गुलप (तनचरे बाग),सन्धधस्थान ऩय एर्ॊ रराट (साभने के बाग) ऩय इधद्रकीर को शॊग ृ एर्ॊ रोहे के ऩर द्र्ाया

प्रमत्नऩर्वक इस प्रकाय रगाचा चादहमे, न्जससे कक र्े दृढ यहे एर्ॊ सुधदय रगे । दो कसरमो के फीच भें सई के सभान रम्फी ऩर बरनेरा रगानी चादहमे । चौखट का बीतय धॉसा बाग ऩयी ऊॉचाई का तीसया बाग होना चादहमे , न्जससे कक र्ह दृढ यहे ॥२८-३०॥ ऩट्ट के साभने स्कधधऩदट्टका (दोनो कऩाटों के भध्म के अर्काश को ढॉ कने र्ारी ऩट्टी) को प्रर्ेश कयते सभम दादहने कऩाटपरक ऩय इस प्रकाय रगाना चादहमे , न्जससे कक र्ह सध ु दय प्रतीत हो । इसकी भोटाई कऩाटपरक के सभान एर्ॊ चौडाई भोटाई की दग ु ुनी होती है । मह ऩद्मऩर की आकृतत से सुसन्ज्जत होती है । दक्षऺण मोग ऩय अगवर (ससकडी, ससटककनी) एर्ॊ र्ाभमोग ऩय कऩाटपरक होना चादहमे । ॥३१-३२॥ िुबािुब्िाय प्रशस्त एर्ॊ अप्रशस्त द्र्ाय - वर्द्र्ान को (द्र्ाय खोरते सभम) फाॉमे हाथ से कऩाटपरक एर्ॊ दादहने हाथ से घदटका (द्र्ाय को खोरने फधद कयने का अर्मर्) का प्रमोग कयना चादहमे । चाहे द्र्ायपरक एक हो मा दो हो । द्र्ाय को खोरने एर्ॊ फधद कयते सभम उत्ऩधन स्र्य बेयी के स्र्य के सभान, गज के स्र्य मा ससॊह के स्र्य के सभान, र्ीणा एर्ॊ र्ेणु के स्र्य के सभान हो तो र्ह नाद प्रशस्त होता है । कण्ठ से तनकरे गजवन के सभान, धचलराने के सभान, गॉजने के सभान एर्ॊ अधम प्रकाय के स्र्य अप्रशस्त होते है ॥३३-३५॥

द्र्ाय के नीचे का बाग एर्ॊ ऊऩय का बाग सभान रूऩ से खर ु ना चादहमे । बीतयी अगवरा का उसके तछद्र से (जहाॉ

पॉसामा जाम) छोटा होना मा अगवरा एर्ॊ मोग का आऩस भें यगडना फधधुओॊ के नाश का कायण, शरुओॊ से ऩीडा एर्ॊ

सदा उऩद्र का कायण होता है । जो द्र्ाय अऩने-आऩ खुरे तथा अऩने-आऩ फधद हो, र्ह फधधु-फाधधर् के वर्नाश का, सम्ऩन्त्त की हातन का एर्ॊ वर्ऩन्त्त का कायण होता है ॥३६-३७॥

द्र्ाय का र्ऺ ृ , कोऩ, चायददर्ायी, खम्बा एर्ॊ कऩ से वर्ि होना (इनका द्र्ाय के साभने होना), दे र्ारम से वर्ि होना,

भागव से वर्ि होना, फाॉफी एर्ॊ बस्भ से वर्ि होना, ससया एर्ॊ भभवस्थान से वर्ि होना वर्ष-नाडी के सभान (अप्रशस्त) होता है औय र्ह सऩो का स्थान (भत्ृ मुकायक स्थान) होता है । द्र्ाय गह ृ का यऺक एर्ॊ दृढ होना चादहमे । ऐसा द्र्ाय वर्द्र्ानो को प्रसधन कयता है ॥३८-४०॥

गज के ऊऩय फैठकय आते-जाते सभम द्र्ाय के कऩाट के आघात से मदद ब्राह्भण की भत्ृ मु हो जाती है तो द्र्ाय

याजा के वर्नाश का कायण फनता है । जफ ऩैदर हो औय ऐसी घटना हो तो र्ह याजा की अर्नतत का कायण फनता है । मदद याजा फडे द्र्ाय से प्रर्ेश कयता है तो र्ह तन्सधदे ह धचयकार तक जीवर्त यहता है । र्ह दसये के याज्म ऩय बी अधधकाय प्राप्त कयता है एर्ॊ कबी बी ऺीण नही होता है ॥४१-४२॥ ्िायस्थान द्र्ाय की न्स्थतत - दे र्ो, ब्राह्भणो एर्ॊ याजाओॊ का द्र्ाय भध्म भें तथा शेश भनुष्मों के आर्ास का द्र्ाय भध्म बाग के ऩाश्र्व भे होना चादहमे ॥४३॥

फत्तीस ऩद र्ास्तुभण्डर भे भहे धद्र, याऺस, ऩुष्ऩदधत एर्ॊ बलराट- इन चायो ऩदो ऩय द्र्ाय होना चादहमे । मे द्र्ाय

अऩनी ददशाओॊ के अधधऩतत दे र्ों द्र्ाया सॊयक्षऺत होते है । फुविभान व्मन्क्त को इसी प्रकाय बीतय के द्र्ाय एर्ॊ फाहय के द्र्ायों का सभामोजन कयना चादहमे । शेष अधम सबी द्र्य दोषमुक्त होते है । ब्रह्भा के सभान एर्ॊ ब्रह्भा की

ओय (फाहय तनकरने र्ारे व्मन्क्त की ऩीठ) र्ारे द्र्ाय तनवषि होते है । प्रराऩ कयने से क्मा राब? अधम स्थान ऩय द्र्ाय तनन्धदत होते है ॥४४-४६॥ द्र्ाय के वर्स्ताय का भाऩ सुतनन्श्चत होना चादहमे । भाऩ से कभ मा अधधक योग का कायण होता है । खोरने एर्ॊ फधद कयने ऩय जहाॉ इसे योका जाम, उसी न्स्थतत भे कऩाट का न्स्थत यहना तथा ऊऩय एर्ॊ तनचे का व्मास एर्ॊ

रम्फाई फयाफय यहे तो र्ह द्र्ाय प्रशस्त होता है । मदद (खोरने एर्ॊ फधद कयने ऩय द्र्ाय का) स्र्य धोफी के र्स्र धोने जैसा हो तो र्ह गह ृ स्र्ाभी के वर्ऩन्त्त का कायण फनता है ॥४७-४९॥ जरद्र्ाय (जरप्रणारी) को जमधत, वर्तथ, सग्र ु ीर् एर्ॊ भख् ु म के ऩद ऩय क्रभश् तनसभवत कयना चादहमे । अधम स्थान (जरद्र्ाय के सरमे) छोड दे ना चादहमे ॥५०॥

ऩजवधम, बश ृ , ऩषा, बॊग ृ याज, दौर्ारयक, शोष, नग एर्ॊ अददतत के ऩद उऩद्र्ाय का प्रमोग कयना चादहमे । इसे सयु ङ्ग कहते है । मे एक मा दो तर से मुक्त फहुत-सी यऺाओॊ (सुयऺा-फर) से मुक्त होते है ॥५१-५२॥

(महाॉ कुछ छट है ; ऩाठ खन्ण्डत है ) । स्तम्ब एर्ॊ अधधष्ठान की ऊॉ के भान को रेकय जो शेष फचे, उससे उऩऩीठ की

ऊॉचाई एर्ॊ द्र्ाय की ऊॉचाई रेनी चादहमे ; न्जसका र्णवन ऩहरे ककमा गमा है । साभने द्र्ाय (कऩाट) से रगे गप्ु त मा ददखाई ऩडने र्ारे सोऩान का तनभावण कयना चादहमे । द्र्ाय के मोग को द्र्ायगोऩुय के फयाफय गहयाई भे (बसभ भे)

स्थावऩत कयना चादहमे । बर्न की फाहयी सबन्त्त याजबर्न एर्ॊ अधम बर्नों की सीभा तनधावरयत कयता है ॥५३-५४॥ गोऩुयभान

गोऩयु के भान - अफ द्र्ायशोबा से रेकय द्र्ायगोऩयु तक (सबी द्र्ायो) का वर्स्ताय, रम्फाई एर्ॊ ऊॉचाई के प्रभाण का

र्णवन सॊऺेऩ भें क्रभश् ककमा जा यहा है । प्रथभ आर्यण द्र्ायशोबा के ऩाॉच प्रकाय के व्मास-भान प्राप्त होते है । मे ऩाॉच, सात, नौ, ग्मायह एर्ॊ तेयह हाथ है । द्र्ायशारा का वर्स्ताय भान ऩधद्रह से तेईस हाथ ऩमवधत होता है । द्र्ायगोऩुय के ऩच्चीस हाथ से रेकय तैतीस हाथ ऩमवधत ऩाॉच प्रकाय के वर्स्तायभान कहे गमे है ॥५५-५८॥ इनकी रम्फाई वर्स्ताय के फयाफय मा उससे दो ततहाई, चौथाई, आधा मा तीन चौथाई बाग अधधक होती है । इसकी उचाई इच्छानुसाय मा चौड़ाई के फयाफय अथर्ा सात बाग भें ऩाॉच बाग मा दस भे सात बाग अधधक यखनी चादहमे ॥५९-६०॥

एकतरगोऩुय एक तर का गोऩुय - द्र्ायशोबा आदद ऩाॉच गोऩुयद्र्ायों के अरॊकयणों का र्णवन ककमा जा यहा है । (एक तर गोऩुय की) रम्फाई के दो, चाय मा छ् बाग कयने चादहमे । उसके आधे बाग से नारीगेह (भध्मबाग) फनाना चादहमे। शेष बाग से सबन्त्त की भोटाई यखनी चादहमे । द्र्ाय भध्म भें होना चादहमे । भण्डऩ के आकाय भें एर्ॊ तीन र्गव से मुक्त इस द्र्ाय का नाभ 'श्रीकय' होता है ॥६१-६२॥ उसके चायो ओय एक बाग से भहार्ाय (फड़ा भागव) तनसभवत कयना चादहमे । मह ढॉ का हुआ मा खुरा हुआ एर्ॊ राॊगर (हर) के आकाय की सबन्त्त से मुक्त हो । र्ाय के ऊऩयी बाग तक प्रस्तरस्तुर (सॊयचनावर्शेष) से मक् ु त सोऩान होना चादहमे । महाॉ सकर दस् ु तक (अथव स्ऩष्ट नही है ) कोष्ठ, कानन (सॊयचनावर्शेष) एर्ॊ भुखऩदट्टका तनसभवत होनी

चादहमे । भध्म स्तम्ब से मक् ु त भध्म बाग भें नाससका होनी चादहमे । भहार्ाय ऩय अष्ट नाससमाॉ (सजार्टी र्खड़की) होनी चादहमे । ग्राभ भे इसे 'सीता' कहते है । ॥६३-६४-६५॥

(अथर्ा भख ु बाग ऩय) भख ु ऩदट्टका के मक् ु त काननकोष्ठ (एक रम्फी तनसभवतत) होना चादहमे । इसकी सॊऻा 'श्रीबद्र' है

एर्ॊ मह सबी स्थान के सरमे प्रशस्त है । इस प्रकाय एक तर के तीन प्रकाय के गोऩुयों का र्णवन ककमा गमा । अफ दो तर के गोऩुयों का र्णवन ककमा जा यहा है ॥६६-६७॥ ्वितरगोऩयु यनतकान्त दो तर के गोऩुय - (यततकाधत) - (द्वर्तर गोऩुय भें ) रम्फाई छ् बाग एर्ॊ चौड़ाई दो बाग होनी चादहमे । भध्म बाग भे एक बाग चौड़ा एर्ॊ तीन बाग रम्फा नारीगह ृ (कऺ) होना चादहमे । मह चायो ओय एक बाग भोटी सबन्त्त से तघया होना चादहमे तथा उसके आधे बाग से तीन बाग से र्ाय (भागव, फयाभदा) होना चादहमे । उसके फाहय उसके

आधे बाग से तीन बाग चौडा गोऩानभञ्चक तनसभवत होना चादहमे । अधधष्ठान उऩऩीठ से मक् ु त तथा स्तम्ब आदद

से सुसन्ज्जत होना चादहमे । भहार्ाय अष्टनाससमों से मुक्त औय सशखय कोष्ठक के आकाय का होना चादहमे । साभने एर्ॊ ऩीछे दो बाग चौडी भहानासी होनी चादहमे । मह बद्र से मुक्त, बद्र से यदहत मा स्तम्बसदहत बद्र से मुक्त होती है । भहार्ाय दक्षऺण बाग से सोऩान से मुक्त होता है । इसका नाभ 'यततकाधत' है एर्ॊ मह सबी की प्रसधनता भें र्वृ ि कयता है ॥६८-७२॥ कान्तविजम

काधतवर्जम - उसी सशखय भें मदद चाय नाससमाॉ हो तो उसकी सॊऻा 'काधतवर्जम' होती है एर्ॊ मह सबी की शोबा फढ़ाने र्ारा होता है ॥७३॥ सभ ु ङ्गर सुभङ्गर - मदद सशखय हीन (छोटा, धचऩटा) हो एर्ॊ हाया से मुक्त हो तथा र्ाय की फाहयी सबन्त्त ऩय चायो ओय

नाससमाॉ तनसभवत हो तो उसकी सॊऻा 'सुभङ्गर' होती है । इस प्रकाय द्वर्तर गोऩुय का र्णवन ककमा गमा, अफ बरतर गोऩयु का र्णवन ककमा जा यहा है ॥७४॥ त्रत्रतरगोऩुय भदा र बरतरगोऩुय (भदव र) - मह गोऩुय चाय बाग चौडा एर्ॊ छ् बाग रम्फा होता है । द्र्ाय के दोनो ऩाश्र्ो भे एक-एक

बाग के आर्ास होते है । उसके चायो ओय आधे बाग से सबन्त्त तनसभवत होती है । उसके चायो ओय एक बाग से र्ाय तनसभवत होता ह, न्जस ऩय दो नाससमाॉ तनसभवत होती है । दोनो गह ृ सोऩान से मुक्त होते है एर्ॊ ऊऩय बी हाया

तनसभवत होते है । उन दोनो के भध्म र्ास्तर (गटय) तनसभवत होता है , न्जसका भाऩ द्र्ाय की चौड़ाई के फयाफय होता है । इस द्र्ायहम्मव गोऩयु की सॊऻा 'भदव र' होती है एर्ॊ मह याजगह ृ भें तनसभवत होता है ॥७५-७८॥ भारखण्ड - मह गोऩुय छ् बाग चौड़ा एर्ॊ दस बाग रम्फा होता है । द्र्ाय के दोनो ऩाश्र्ो भे एक बाग से कऺ तनसभवत होते है । दोनो कऺ आधे बाग भोटी सबन्त्त से तघये होते है । उसके फाहय एक बाग से चायो ओय र्ाय

तनसभवत होता है । उन दोनो के भध्म द्र्ाय की चौड़ाई के फयाफय जरस्थर (गटय) तनसभवत होता है । उसके फाहय एक बाग से चायो ओय र्ाय तनसभवत होता है । उसके चायो ओय भहार्ाय (फडा भागव, फयाभदा) तनसभवत होता है , न्जस ऩय नाससकामे तनसभवत होती है । इसका सशखय हीन (रगबग धचऩटा) होता है एर्ॊ ऊऩय हाय तनसभवत होता है । फाहयी र्ाय ऩय चौदह नाससकामे तनसभवत होती है । द्र्ाय, सोऩान एर्ॊ भागव का तनभावण आर्श्मकतानुसाय कयना चादहमे । इस गोऩुय की सॊऻा 'भारखण्ड' है एर्ॊ मह याजाओॊ को वर्जम प्रदान कयता है । ॥७९-८०-८१-८२-८३॥ श्रीननकेतन इस गोऩुय द्र्ाय की चौड़ाई आठ बाग एर्ॊ रम्फाई दस बाग होती है । नारीगह ृ (भध्म कऺ) दो बाग से एर्ॊ चायो

ओय एक बाग से सबन्त्त होती है । तत्ऩश्चात आधे बाग से असरधद्र (फयाभदा) एर्ॊ एक बाग से चायो ओय अधधाय (भागव, गसरमाया) होता है । इसके ऩश्चात एक बाग से चायो ओय असरधद्र एर्ॊ एक बाग से हाय (फाहयी सबन्त्त) तनसभवत होता है । कट की चौड़ाई दो बाग से एर्ॊ शारा की रम्फाई छ् बाग से होती है । कोष्ठक का वर्स्ताय चाय बाग से एर्ॊ (उसी प्रकाय उसकी) रम्फाई होती है । द्र्ाय का तनभावण एक बाग से चरहम्मव से मक् ु त कयना चादहमे । कट एर्ॊ शारा के भध्म भे जर का स्थान होना चादहमे । इस प्रकाय आददतर (बतर) का र्णवन ककमा गमा । अफ दसये तर के बागों का र्णवन ककमा जा यहा है ॥८४-८८॥ नारी-गह ृ , चायो ओय की सबन्त्त एर्ॊ असरधद्र ऩर्वर्णवन के अनुसाय होना चादहमे । आधे बाग से चायो ओय

गोऩानप्रस्तय से मुक्त वऩण्डी का तनभावण कयना चादहमे । ऊऩयी बाग भें आठ नाससमों से मुक्त भहार्ाय तनसभवत होता

है । सशखय कोष्ठक के आकाय का होता है एर्ॊ इसका वर्स्ताय रम्फाई का आधा होता है । आगे एर्ॊ ऩीछे दो बाग चौड़े भहानाससमों का तनभावण होता है ॥८९-९०॥ ऊऩयी तरो भें भध्म स्तम्ब से मक् ु त प्रर्ेश का सॊमोजन आर्श्मकतानस ु ाय कयना चादहमे । प्रत्मेक तर भे दक्षऺण बाग भे सोऩान तनसभवत होता है । अधधष्ठान उऩऩीथ एर्ॊ स्तम्ब आदद से सुसन्ज्जत होते है । ऊह एर्ॊ प्रत्मह

(प्रधान एर्ॊ अप्रधान बाग) से मुक्त इसकी सॊऻा 'श्रीतनकेतन' होती है । शुि (एक) मा सभधश्रत (अनेक) ऩदाथों से

तनसभवत तीन तर के गोऩुयों के तीन प्रकायों का र्णवन ककमा गमा । मे वर्सबधन प्रकाय की र्खड़ककमों एर्ॊ अधत्सारो

(बीतयी प्राकायों) से मुक्त होते है । अफ सात तर से प्रायम्ब कय चाय तर ऩमवधत गोऩुयों का र्णवन ककमा जा यहा है ॥९१-९४॥

सतततरगोऩुय बद्रकपमाण सात-तर गोऩयु (बद्रकलमाण) - इस गोऩयु की चौडाई चौदह बाग एर्ॊ रम्फाई सोरह बाग होती है । नारीगेह

(भध्मकऺ) दो बाग चौडा एर्ॊ छ् बाग रम्फा होता है । इसके चायो ओय सबन्त्त होती है । दो बाग भान के चाय असरधद्र होते है । चायो ओय आधे बाग से चाय हाया का तनभावण कयना चादहमे । इसके फाहय चायो ओय एक बाग से असरधद्र होता है । एक बाग से हाय-बाग एर्ॊ आधे बाग से सबन्त्त होती है । हाय के बाग के फयाफय दोनो ऩाश्र्ो भें ऩञ्जय तनसभवत होते है ॥९५-९७॥ प्रत्मेक ऊऩयी तर की बसभ प्रततमुक्त होती है । तीसये तर को खण्डहम्मव आदद से सुसन्ज्जत एर्ॊ जरस्थर से मुक्त फनाना चादहमे । प्रत्मेक ऊऩयी तर की ग्रीर् ऩय चाय भहार्ाय (फडे फयाभदे ) होते है । प्रत्मेक ऊऩयी तर के द्र्ाय के भध्म भें स्तम्ब तनसभवत कयना चादहमे । छत ऩय छत के भाऩ की ऩदट्टका एर्ॊ वर्षभ सॊख्मा भें स्तवऩकामे होनी चादहमे ॥९८-१००॥ इसे तोयणो, झयोखो एर्ॊ ऺुद्रनीडो (छोटी सजार्टी र्खड़ककमों) से बरी-बाॉतत अरॊकृत कयना चादहमे । प्रत्मेक तर ऩय

भहार्ाय (की सबन्त्तमों) को नाससमों से सस ु न्ज्जत कयना चादहमे । मह द्र्ाय के दोनो ऩाश्र्ो भे तथा कट औय शारा के भध्म भे होता है । इसके ऩश्चात उऩऩीठ, चढने के सरमे सीढ़ी एर्ॊ चाय (चरने के सरमे भागव) होता है । आॉगन एर्ॊ कट का सोऩान बरखण्ड मा श्रङ् ृ गभण्डर (शैरी का) होता है । प्रत्मेक ऊऩयी तर भे सोऩान की मोजना

आर्श्मकतानुसाय की जानी चादहमे । इस द्र्ायगोऩुय को 'बद्रकलमाण' सॊऻा से असबदहत ककमा जाता है ॥१०१-१०३॥ सुबद्र सब ु द्र - उसी भे भध्म बाग तथा दोनो ऩाश्र्ो भे नाससका हो तथा साभने एर्ॊ ऩीछे नाससमाॉ हो तो उसकी सॊऻा 'सुबद्र' होती है ॥१०४॥ बद्रसन् ु दय बद्रसुधदय - भध्म बाग भें दो बाग से जरस्थान तथा दोनो ऩाश्र्ों भे दो बाग प्रभाण से चाय नाससमों से मुक्त

सौन्ष्ठक होता है । इसे 'बद्रसध ु दय' नाभ से असबदहत ककमा गमा है । ऩाश्र्व बाग भें इसी के वर्स्ताय भे सोरह बाग

एर्ॊ रम्फाई भे अट्ठायह बाग यक्खा जाता है । इसकी रम्फाई चौड़ाई से चतुथांश अधधक होती है । शेष बागो को आर्श्मकतानुसाय यखना चादहमे । इसका तनभावण एक मा अनेक द्रव्मों से क्मा जाता है ॥१०५-१०७॥ षटतरगोऩयु छ् तर का गोऩुय - इस प्रकाय सप्ततर गोऩुय का र्णवन ककमा गमा है । इसके तीन प्रकाय होते है । इसी भे तनचरे तर को छोड छ् तर के गोऩयु फनते है ; न्जधहे क्रभश् सुफर, सुकुभाय एर्ॊ सुधदय कहा गमा है ॥१०८-१०९॥ ऩञ्चतरगोऩुय ऩाॉच तर का गोऩुय - द्र्ाय की रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई चौदह बाग होनी चादहमे । गह ृ की सबन्त्त एर्ॊ गह ृ (भध्म कऺ)

ऩहरे के सभान होना चादहमे । उसके चायो ओय हाय (फाह्म सबतत) एर्ॊ असरधद्र क्रभश् ऩाॉच तथा डेढ़ बाग से होनी चादहमे । असरधद्र एर्ॊ फाह्म सबन्त्त की चौड़ाई एक बाग होनी चादहमे । आॉगन भें दो बाग से सौन्ष्ठक एर्ॊ छ् बाग रम्फी शारा होनी चादहमे । कट एर्ॊ शारा के भध्म बाग भे तीन बाग से जरस्थान होना चादहमे । वर्स्ताय भें जरस्थान दो बाग से हो एर्ॊ तीन भहार्ाय से मक् ु त हो । शेष अॊगो का तनभावण ऩर्वर्र्णवत यीतत से कयना चादहमे । ऩञ्चतर गोऩुय को क्रभश् श्रीच्छधद, श्रीवर्शार एर्ॊ वर्जम कहा गमा है । इस प्रकाय वर्सबधन अॊगो से सुशोसबत ऩञ्चतर गोऩुय तीन प्रकाय के कहे गमे है ॥११०-११४॥ चतुस्तरगोऩुय चाय तर का गोऩुय - उस रम्फाईएर्ॊ चौड़ाई भे से दो बाग छोड ददमा जाम, दो भहार्ायों से मुक्त हो तता कट एर्ॊ

कोष्ठ ऩहरे के सभान हो (तो र्ह चतस् ु तर गोऩयु होता है ), मह रसरत, कलमाण एर्ॊ कोभर- तीन प्रकाय का होता है । मे चतुस्तर सॊऻक गोऩुय ग्राभो एर्ॊ याजबर्न के सरमे उऩमुक्त होते है ॥११५-११६॥ साभान्मविथध साभाधम तनमभ - सप्ततर आदद तीन गोऩुयों भें तीन असरधद्र, दो एर्ॊ एक असरधद्र होते है । शेष भे सबन्त्त का

प्रमोग कयना चादहमे । इस प्रकाय प्रत्मेक के तीन बेद होते है एर्ॊ उनका अरॊकयण इस प्रकाय कयना चादहमे , न्जससे कक र्े सध ु दय एर्ॊ दृढ यहे । स्तम्ब एर्ॊ प्रस्तय की चौड़ाई एर्ॊ रम्फाई ऩर्वर्र्णवत यीतत से यखनी चादहमे । ऊऩयी तर एर्ॊ तनचरे तर के भध्म के स्थान (मा सॊयचना) को 'प्रतत' कहते है । गबवधमास प्रर्ेशद्र्ाय के दादहनी ओय सबन्त्त के नीचे होना चादहमे ॥११९॥ ब्राह्भण आदद चायो र्णो के तनर्ास के सरमे भम ने एक से रेकय सात तर तक गोऩुयो का र्णवन ककमा है , न्जनके इक्कीस बेद फनते है । इनभें से ब्राह्भण आदद को उऩमुक्त गोऩुय का चमन कयना चादहमे । प्रायन्म्बक तीन बेद

सबी र्णो के अनक ु र होते है ; वर्शेष रूऩ से उन रोगो के सरमे, जो भनष्ु मो भे सभवृ िशासर है । दसये ग्राभ, अग्रहाय, ऩुय, ऩत्तन के सरमे एर्ॊ सबी याजबर्न एर्ॊ दे र्ारमो के सरमे प्रशस्त होते है ॥१२०-१२१॥

अध्माम ३१

मानिमनबेद मान एर्ॊ शमन के बेद - अफ भै (भम) मानो (र्ाहनो) एर्ॊ शमनो के रऺण को क्रभश् कहता हॉ । सशबफका (ऩारकी) एर्ॊ यथ मान है तथा ऩमवङ्क (ऩरॊग) आदद शमन है । शमन के अधतगवत उधही से उत्ऩधन (उधही की शैरी भे तनसभवत) ऩीठ आदद आसन आते है ॥१॥ मित्रफकाबेद सशबफका के बेद - भेये (भम के) अनुसाय ऩीठा, सशखया औय भौण्डी - मे तीन प्रकाय की सशबफकामें होती है । इनकी

रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई सभान होती है । इनभे बेद सबन्त्त (ऩाश्र्व का ककनाया), सशखय (छाजन) मा अऩने तीन स्तय के तनभावण के कायण होता है । अफ भै (भम) उनकी चौड़ाई, रम्फाई एर्ॊ ऊॉचाई का अरग-अरग र्णवन कयता हॉ ॥२-३॥ ऩीठ इसका वर्स्ताय तीन बफत्ता एर्ॊ रम्फाई ऩाॉच बफत्ता होनी चादहमे । अधभ (छोटा) ऩीठा का भाऩ तीन बफत्ता एर्ॊ भध्मभ का भाऩ उससे एक अॊगुर अधधक होता है । उत्तभ (सफसे फडा) उससे तीन अॊगुर अधधक होता है - ऐसा भुतनमो द्र्ाया कहा गमा है । इसकी रम्फाई चौड़ाई से डेढ गुनी मा दग ु ुनी होती है ॥४-५॥

श्रेष्ठ (सफसे फडे) ऩीठा की सबन्त्त की ऊॉचाई चौड़ाई की आधी होती है । भध्मभ ऩीठा की ऊॉचाई उससे तीन अॊगुर कभ एर्ॊ अधभ ऩीठा की ऊॉचाई उससे (भध्मभ से ) तीन अॊगुर कभ होती है । इस प्रकाय ऩीठा की ऊॉचाई तीन

प्रकाय की होती है । चौड़ाई, रम्फाई एर्ॊ ऊॉचाई के अनुसय ऩौन्ण्डका सॊऻक सशबफका तीन प्रकाय की कही गई है ।

इनकी चौड़ाइ इकतीस, ऩैंतीस एर्ॊ सैतीस अॊगर ु कही गई है । इनकी रम्फाई एर्ॊ ऊॉचाई ऩर्वर्र्णवत यीतत से कयनी चादहमे ॥६-७॥

उत्तभ, भध्मभ एर्ॊ अधभ प्रकाय के ईवषका (चौखट, फ्रेभ) की चौड़ाई ऩाॉच, उसके आधी मा दो अॊगर ु होनी चहै मे ।

उसकी ऊॉचाई चौड़ाई की आधी एर्ॊ रम्फाई उधचत (आर्श्मकतानुसाय) होनी चादहमे । (अथर्ा) इसकी चौड़ाई ऩाॉच,

चाय मा तीन अॊगुर एर्ॊ भोटाई डेढ अॊगुर होनी चादहमे । मह ऺुद्रऩदट्टका, र्ाजन, तनम्न एर्ॊ अब्जक (सबी अरॊकयणो) से मुक्त होती है ॥८-९॥

हस्त (काष्ठतनसभवत ऩाश्र्वसबन्त्त का ऊऩयी बाग) की चौड़ाई ढाई, दो मा डेढ अॊगुर चौडी तथा भोटाई तीन चौथाई मा चौडाई की आधा होती है । इसकी आकृतत आधी गोराई सरमे, छर के सभान मा र्ेर (र्ेत) के सभान होती है ॥१०११॥

हस्त एर्ॊ ईवषका के भध्म छ् बाग कयना चादहमे एर्ॊ र्हाॉ चाय चम्ऩक (यचना-वर्शेष) तनसभवत कयना चादहमे । इनका वर्स्ताय ढ़ाई, दो मा डेढ़ अॊगुर होना चादहमे । कम्ऩकों के ऊऩय एर्ॊ नीचे एक अॊगुर भोटा परक होता है एर्ॊ इनकी ऊॉचाई (हस्त एर्ॊ ईवषका के भध्म) छठे बाग के फयाफय होती है । भध्म कम्ऩ को छोड़कय (परक की ऊॉचाई) आर्श्मकतानस ु ाय यखनी चादहमे । भध्म सबन्त्त ऩय भध्म बाग के दो बाग भे नय, नायी, चक्रर्ाक, रता, चाय ऩैय र्ारे

ऩशु, नाटक आदद के दृश्मों से अरॊकयण होने चादहमे । हस्त एर्ॊ अधधक (सम्बर्त् ईवषका) के भध्म भे अग्रबाग भे

व्मारस्थान होता है । तनगवभन के साथ भुन्ष्टफधध-भाऩ चौड़ाई का दग ु ुना होता है (इधहे हस्त एर्ॊ ईवषका के भध्म भें स्थावऩत ककमा जाता है ) । उसके नीचे अॊति (स्तम्ब, ऩाद) होता है , न्जसकी ऊॉचाई अधोबाग (व्मार के नीचे बाग) के

फयाफय होती है । उससे सम्फि तनगवभ उसके फयाफय भाऩ का मा चौड़ाई के आधे भाऩ का होता है एर्ॊ नक्रभख ु

(भकयाकृतत) से सुसन्ज्जत होते है । स्तम्ब का व्मास ऩाॉच, सात मा नौ बाग चौड़ा तथा नौ, दस मा ग्मायह बाग रम्फा होता है । इन ऩादों की चौड़ाई एर्ॊ भोटाई कम्ऩ की चौड़ाई एर्ॊ भोटाई के अनुरूऩ होती है ॥१२-१८॥

फड़े काष्ठखण्ड (चौखट, फ्रेभ) के अग्र बाग एर्ॊ भर बाग (ऊऩयी एर्ॊ तनचरे ससये ) ऩय दृढ एर्ॊ आर्श्मकतानुसाय सशखा (खट ॉ ी जैसी आकृतत) तनसभवत कयनी चादहमे, न्जससे कक र्ह काष्ठ (फ्रेभ के दसये परक भें ) सयरता से

स्थावऩत ककमा जा सके (दसये परक भे सशखा के अनुसाय गड्ढा तनसभवत होता है , न्जसभे सशखा दृढ़ता से स्थावऩत की जाती है ) इसभें ऩाॉच मा चाय अॊगुर का तनगवभ होता है , न्जस ऩय ऩद्म, ऩद्म का अग्रहस्त एर्ॊ कोने ऩय उसी के भाऩ का कभर मा चौकोय आकृतत तनसभवत होती है ॥१९-२०॥

छोटे -छोटे खण्डो के ऊऩय वर्स्तत ृ कम्ऩ मा परक होना चादहमे, न्जसकी ऊॉचाई एक बाग के फयाफय होनी चादहमे । मह शोबा के सरमे मा आर्श्मकतानुसाय होता है । र्ही छोटे -छोटे स्तम्ब एर्ॊ गुसरकामे (गोसरमाॉ) शोबाथव तनसभवत

होती है । अथर्ा साभने ऩाॉच मा तीन बाग के फयाफय द्र्ाय होना चादहमे , न्जसका वर्स्ताय तीन मा चाय अॊगर ु एर्ॊ

ऊॉचाई सात मा आठ अॊगुर होनी चादहमे । स्तम्ब, कुम्ब, अर्रग्न (स्कधध) तथा हीयक (आकृततवर्शेष) से मुक्त औय सुधदय गोर होना चादहमे । फुविभन व्मन्क्त को द्र्ाय के गल ु प को दृढ़ताऩर्वक कीर से जड़ दे ना चादहमे । इस प्रकाय वर्सबधन प्रकाय से अरॊकृत सशबफका को 'ऩैदठका' कहा गमा है ॥२१-२४॥

सशबफकाओॊ के अधम प्रकाय - (शेखयी) सशबफका की ऊॉचाई उसकी चौड़ाई के फयाफय एर्ॊ सबन्त्त चौड़ाई की आधी मा तीन बाग के फयाफय होती है । स्तम्बों से मुक्त एर्ॊ सशखय से मुक्त सशबफका को 'शेखयी' कहा गमा है । 'भौण्डी'

सशबफका भुण्ड के आकाय की होती है एर्ॊ सबन्त्तमाॉ 'शेखयी' के सभान होती है । इसकी चौड़ाई के सभान ऊॉचाई होती है । मह भण्डऩ के सभान होता है एर्ॊ कहा जाता है ॥२५-२६॥

इन सशबफकाओॊ का प्रभाण स्तम्ब के भध्म से सरमा जाता है । मान एर्ॊ शमन के तनभाव ण के सरमे प्राचीन भनीवषमों के अनुसाय प्रशस्त र्ऺ ुव एर्ॊ भधक (भहुआ) के होते है । ृ शाक (सागौन), कार, ततसभश, ऩनस (कटहर), तनम्फ, अजन श्रीमक् ु त भनष्ु म जफ मान ऩय सर्ाय होता है तफ उसकी प्रसधनता असबव्मक्त होती है । इस प्रकाय के रऺणों से मुक्त सशबफका उस व्मन्क्त को सपरता एर्ॊ सभवृ ि प्रदान कयती है ॥२७-२८॥ मित्रफका-ननभााण का अध्माम सभातत हुआ यथ् यथ - यथ का वर्स्ताय दोनो चक्रों के फाहयी बाग से ग्रहण ककमा जाता है । मह छ्, सात मा आठ बफत्ता होता है । मह भाऩ चक्रों की दोनों नासबमों के अन्धतभ बाग से मा अऺ (धुयी) के ऊऩय यक्खे उत्तय (ऩट्टी) की रम्फाई से

अथर्ा यथ के फाह्म बाग की चौड़ाई के अनुसाय यक्खी जाती है । इसकी रम्फाई चौड़ाई से डेढ़ गुनी अधधक होती है ॥२९॥

यथ भें ऩाॉच बाय (रम्फी ऩदट्टमाॉ) होती है , न्जनकी भोटाई एर्ॊ ऊॉचाई चाय, तीन मा दो अॊगुर होती है । अथर्ा उनकी

सॊख्मा तीन, सात मा नौ होती है तथा उनका वर्स्ताय एर्ॊ ऊॉचाई ऩर्वर्र्णवत यक्खा जाता है । उधहे रम्फाई के अनुसाय यक्खा जाता है एर्ॊ उऩमक् ु त ततमवक् कम्ऩो से दृढ़ ककमा जाता है ॥३०-३१॥

भध्म बाय के ऊऩय तर ु ा होती है । इसके जोड़ से प्रायम्ब कय कऩय (यथ का दण्ड) होता है । इस कऩय का भाऩ यथ के साभने के बाग से सरमा जाता है , न्जसका भाऩ तीन हाथ से प्रायम्ब होता है एर्ॊ उसका अग्र बाग (छोय) भुड़ा होता है । इस कऩय को भध्मबाय कहा जाता है । मह मुग (जुआ) को सहाया प्रदान कयता है । इसके ऊऩय एक अॊगुर भोटा परक प्रस्तय (ऩट्टी) होता है ॥३२-३३॥

अऺ, अऺोत्तय, चक्रऩट्ट एर्ॊ बायोऩधानक (का र्णवन ककमा जा यहा है ) । बायोऩधानक (रम्फी ऩट्टी का सहाया) की ऊॉचाई ऩाॉच, छ् मा सात अॊगुर; भोटाई दे मा तीन अॊगुर एर्ॊ रम्फाई अट्ठायह अॊगुर होती है । मे ऩाश्र्व भें रगे होते है । इनकी आकृतत ऩोततका के सभान होती है एर्ॊ रोहे की ऩट्टी से मे दृढ़ताऩर्वक जड़ी होती है ॥३४-३५॥

अऺ के ऊऩय उत्तय (क्रास फीभ) के भध्म भें एक तछद्र होता है , न्जसकी चौड़ाई एर्ॊ गहयाई फयाफय होती है । इसे अऺ की यऺा के सरमे तनचरे बाग भें दोनो ऩाश्र्ो से दृढताऩर्वक कसा जाता है । इसकी भोटाई चौड़ई की आधी होती है , जो कक उऩधान के फयाफय होती है । इसकी रम्फाई अऺ के फयाफय होती है । मदद मह (उत्तय) काष्ठतनसभवत हो तो चौकोय होता है एर्ॊ रोहे की ऩट्टी, कीर एर्ॊ उसी काष्ठ की सशखा (नक ु ीरी रकड़ी) द्र्ाया दृढ ककमा जाता है । अऺ के ऊऩयी बाग भें उत्तय को काष्ठ के कीर से दृढताऩर्वक कसा जाता है ॥३६-३८॥

चक्र का वर्स्ताय अऺ के उत्तय के फयाफय कहा गमा है । नासब की ऊॉचाई (घेया) दस अॊगर ु एर्ॊ रम्फाई- चौड़ाई एक वर्तन्स्त (बफत्ता) होनी चादहमे । ऩट्ट एर्ॊ नासब के फीच भें फत्तीस, चौफीस मा सोरह अथर्ा आर्श्मकता के अनुसाय

सॊख्मा भें अयें (ततसरमाॉ) होती है । मे छोय ऩय तीन अॊगुर चौड़ी होती है अथर्ा भर बाग भें सॉकयी डेढ़ अॊगुर भाऩ की होती है । मे मर् के आकाय की एर्ॊ भर तथा अग्र बाग (दोनो छोय) ऩय सशका (नोक) से मुक्त होती है । जफ ऩदहमा योहायोह (ऊऩय-नीचे) होता है , उस सभम अऺ का भध्म बाग आॉख के सदृश प्रतीत होता है ॥३९-४१॥

बाय (रम्फी ऩट्टी) को रोहे के ऩट्ट, कीर एर्ॊ ऩट्टफधध आदद से जो जहाॉ उधचत हो, कसना चादहमे । रोहऩट्टी की रम्फाई उसकी चौड़ाई से दग ु ुनी होनी चादहमे । उऩऩीठ एर्ॊ गोऩनीम बाग को मथास्थान स्थावऩत कयना चादहमे ॥४२-४३॥

स्तम्बों की ऊॉचाई चक्र के आधे बाग के फयाफय होती है । मह आधे बाग भें हस्त (हत्था, ये सरॊग) को सहाया दे ता है । चसरका (ऊध्र्वबाग की सॊयचना) की ऊॉचाई स्तम्ब की ऊॉचाई की आधी होती है । ऩदट्टकाओॊ के भध्म बाग भे आगे, दोनो ऩाश्र्ो भें एर्ॊ तरबाग भें गसु रकामें (गोरी आकृततमाॉ) होती है । ऩष्ृ ठ बाग ऩाॉच अॊगर ु ऊॉची भख ु ऩदट्टका से तघया होता है । कोने के स्तम्बों के भध्म बाग भें उत्तय ऩय भुकुर (कभर-कसरका) अॊककत होते है ॥४५॥

बाय, बायोऩधान, अऺ, अऺोत्तय, कफय (कऩय) एर्ॊ कफय के छोय को रोहऩट्टो एर्ॊ कीरों से इस प्रकाय जोड़ना चादहमे, न्जससे कक र्े सही स्थान ऩय ठीक से जड़ ु े । अऺ एर्ॊ अऺोत्तय के भध्म भें रकड़ी की कीर का प्रमोग कयना चादहमे ॥४६-४७॥

यथ ऩय आयोहण सर्वयाज ऩय अधधकाय प्राप्त कयने के सभम (साम्राज्म का अधधऩतत फनने के सभम), याज-मि ु के

सभम, भहोत्सर् के सभम, भॊगरर्ेरा भें , दे र्ऩजा तथा सोभमाग के सभम तथा न्जन कामो भे कहा गमा हो, उस सभम कयना चादहमे ॥४८-४९॥

चक्र का भाऩ (ऩरयधध) र्ास (गबवगह ु न ु ा मा तीन गन ु ा होता है । अथर्ा ृ , यथ भें फैठने का स्थान) की चौड़ाई का दग

इसका भाऩ सात तार एर्ॊ वर्स्ताय तीन मा चाय अॊगुर होना चादहमे । (यथ के) स्तम्ब के भाऩ के अनुसाय उत्तय आदद का तनभावण ऩुर्र् व र्णवत वर्धध से कयना चादहमे । हाय (फ्रेभ, चौखट) के ऊऩय अधतयार भें चौसठ छोटे स्तम्ब

होते है औय स्तम्ब से मुक्त होते है । स्तम्बोभ का उदम छ्, साढ़े ऩाॉच मा ऩाॉच तार का होता है । मह एक, दो मा तीन तरों से मुक्त एर्ॊ एक मा चाय भुख (प्रर्ेश) से मुक्त होता है । इसका आकाय भण्डऩ के सभान एर्ॊ सशयोबाग शारा के सभान (सीधा) होता है ॥५०-५३॥

(अथर्ा) चक्र का भाऩ तीन, चाय, ऩाॉच, छ्मा सात हाथ एर्ॊ भोटाई उसका चाय, ऩाॉच, छ् सात मा आठर्ाॉ बाग होता है । अऺ (धयु ी), अऺोत्तय (धयु ी की ऩट्टी) तथा बायोऩधान (रम्फी सहाया दे ने र्ारी फीभ) की चौड़ाई एर्ॊ भोटाई

आर्श्मकतानुसाय होनी चादहमे एर्ॊ काष्ठकीरों से दृढ ककमा जाना चादहमे । मह एक, दो मा तीन तर से मुक्त एर्ॊ प्रासाद (दे र्ारम) के सभान अरॊकृत होना चादहमे ॥५४-५५॥

(अथर्ा) सोरह स्तम्बों से मक् ु त, सबी ददशाओॊ भें भख ु बद्र से मक् ु त, सबी प्रकाय के अरॊकयणो से मक् ु त यॊ ग

(यङ्गभञ्च की आकृतत) को यथ भें दृढ़ताऩर्वक जोड़ना चादहमे । इस प्रकाय वर्द्र्ानों के अनुसाय सशलऩ-वर्शेषऻ की इच्छानुसाय यथ भें (आकृतत आदद का) सॊमोजन कयना चादहमे ॥५६-५७॥

रेर्खत (धचरण) भें ऩादक ु (न्प्रधथ), (दसया) जोड़े सदहत ऩद्म, (तीसया) भुततवमों सदहत स्तम्ब, (चौथा) तुमवक आदद से मुक्त ऩट्टी, ऩाॉचर्ाॉ फोधध एर्ॊ छठर्ा कभरकसरका होती है ॥५८॥

दो, तीन, चाय, एक एर्ॊ नौ र्गों से वर्प्रबाग की गणना की जाती है । ऩद्म, सहकणव के साथ ऩट्टी एर्ॊ व्मार तथा नक्र से सुशोसबत प्रस्तय का तनभावण होना चादहमे । दो बाग से ऩद्म, जगती, प्रर्ेश का आधाय एर्ॊ कुभुद एक-एक बाग से तनसभवत होना चादहमे ॥५९-६०॥

मदद सोरह बाग हो तो तीन बाग से ऩट्टी, एक बाग से र्ेदी, एक बाग से धयातर (आधाय), ऩाॉच बाग से ऩद्म, दो बाग से र्ेददका, एक बाग से र्ेदी, एक बाग से गर, एक बाग से प्रस्तय एर्ॊ (शेष से) भुतन, दे र्, नाटम दृश्म एर्ॊ उऩधान आदद तनसभवत होने चादहमे ॥६१॥

अध्माम ३२ िमन शमन - (सफसे छोटे ) शमन की चौड़ाई तीन बफत्ता एर्ॊ रम्फाई ऩाॉच बफत्ता होती है । ज्मेष्ठ (उससे फडे शमन) की चौड़ाई तीन अॊगर ु एर्ॊ रम्फाई ऩाॉच अॊगर ु अधधक होती है । ईवषका (ऩट्टी, दण्ड) की चौड़ाई चाय अॊगर ु मा ऩाॉच अॊगुर होती है । इसकी भोटाईचौड़ाई की आधी होती है । भध्म ऩट्ट व्मास के तीसये बाग के फयफय होता है । (अथर्ा) ईवषका की भोटाई उसकी चौड़ाई के तीसये मा चौथे बाग के फयाफय होती है ॥१-२॥

(शमन के) शीषव बाग एर्ॊ ऩष्ृ ठ (ऩैय की ओय दो रम्फी ऩदट्टमाॉ ) मा तो अधत तक होती है मा कोने ऩय सभाप्त हो

जाती है । ऩाश्र्व की ऩदट्टमाॉ शीषव बाग से ऩष्ृ ठ बाग तक रम्फी होती है । इनके भध्म बाग भें सशखा रगी होती है , न्जससे के मे दृढ़ यहे । फड़ी ऩदट्टमोभ की रम्फाई इस प्रकाय यखनी चादहमे , न्जससे कक मे (शमन के) ऩामे भें दृढ़ताऩुर्क व स्थावऩत की जा सके ॥३-४॥

शमन के ऩाद (ऩामे) की रम्फाई डेढ़ मा एक बफत्ता मा उससे कभ होनी चादहमे । इनकी चौड़ाई रम्फाई के चतुथांश

मा तीसये बाग के फयाफय होनी चादहमे , शमन के ऩाद सीदे , व्माि के ऩैय मा भग ृ के ऩैय के सभान होने चादहमे । फड़े

काष्ठखण्ड भें रगामी गमी सशखा छोटे काष्ठ भें स्थावऩत होनी चादहमे । शमनो की सॊऻा उनके (ऩैय , ऩाद) के आकाय के अनुसाय होती है ॥५-६॥ ऩमाङ्क ऩमवङ्क, दीर्ान - ऩमंक का तनभावण परक से मा वर्सबधन प्रकाय की ऩदट्टमों से ककमा जाना चादहमे । ऩाद एर्ॊ ऩदट्टमों से मुक्त ऩमंक की रम्फाई, चौड़ाई एर्ॊ ऊॉचाई शमन के फयाफय होनी चादहमे । 'ऩमंकसशबफका' (ऩमंक का प्रकाय) के

ऊध्र्व बाग भें तोयण होता है , न्जस ऩय कुण्डर, कीर एर्ॊ फक (फगुरे) की चोंच के आकाय की कीर (आदद अरॊकयण) तनसभवत होते है । मह याजा-यातनमों, ब्राह्भणों आदद के सरमे प्रशस्त होता है ॥७-८॥

मदद ऩमंक का ससय ऩर्व की ओय हो तो रेटने र्ारे का भख ु दक्षऺण की ओय होना चादहमे । दक्षऺण की ओय ससय

होने ऩय भुख ऩन्श्चभ की ओय होना चादहमे । अधम ददशामें इष्ट नही होती है । व्मािऩाद शमन एर्ॊ भग ृ ऩाद शमन ब्राह्भण एर्ॊ याजाओॊ के सरमे प्रशस्त होते है । शेष अधम र्णव के सरमे अनुकर होते है ॥९॥ आसन आसन - सीधे ऩाद र्ारे उत्तभ, भध्मभ एर्ॊ छोटे आसन को शमन के सभान तनसभवत कयना चादहमे । इनकी चौड़ाई उधतीस, सत्ताईस मा ऩच्चीस अॊगुर तथा ऊॉचाई चौड़ाई के फयाफय होती है । सभान रम्फाई-चौड़ाई र्ारे आसन को

'ऩीठ' औय आमताकाय को 'आसन' कहते है । इसकी रम्फाई-चौड़ाई से आठर्ाॉ बाग अधधक मा दग ु ुनी होती है । दे र्ों,

ब्राह्भणो एर्ॊ याजाओभ के आसन (के ऩाद का आकाय) ससॊह, गज, बत (प्राणी, जीर्) मा र्ष ृ के सभान होता है । ससॊह एर्ॊ गज के सभान (ऩाद से मक् ु त) आसन की सॊऻा उनकी आकृतत के अनस ु ाय होती है ॥१०-१२॥ मसॊहासन ससॊहासन - अफ (भै, भम) दे र्ों एर्ॊ याजाओ के (ससॊहासन का) र्णवन कयता हॉ , जो उत्तय, कभर, कऩोत, भसरङ्ग आदद से मुक्त एर्ॊ वर्सबधन प्रकाय के यॊ ग-बफयॊ गे अरॊकयणों से मुक्त होता है । मह उऩऩीठ एर् ऩद्मफधध से मुक्त होता है । मह कोनों एर्ॊ फीच-फीच भें स्तम्बससॊह से अरॊकृत होता है ॥१३-१४॥

ससॊहासन इसके ऊऩय होता है । मह तोयणमुक्त, रहयों (की आक्रुततमों) से सुसन्ज्जत, सुर्णव एर्ॊ यत्नोंसे अरॊकृत होता है । इसके सबी अॊग दृढ होते है , ऐसा भुतनमों ने कहा है । इसके आसन-परक की चौड़ाई ससॊहासन के फयाफय एर्ॊ

रम्फाई चौड़ाई की दग ु ुने होती है । उसके ऩाद (ऩामे) ऩाॉच अॊगुर से अधधक नही होने चादहमे । ऊॉचाई के सरमे ऊऩय र्ाजन होता है ॥१५-१६॥

इसके वऩछरे बाग भें अधव-उत्तय होता है तथा उसके भध्म बाग भें उसकी चौड़ाई के फयाफय 'खात' होता है । भध्म बाग भें एक वर्ष्टय (कुशन) होता है , न्जसकी चौड़ाई ऩाॉच बाग एर्ॊ रम्फाई एक बाग (अधधक) होती है । आसन का वऩछरा बाग उधचत भाऩ का होना चादहमे । ऐसा न होने ऩय आसन प्रशस्त नही होता है । आसन एर्ॊ शमन की रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई उत्तभ होनी चादहमे एर्ॊ इच्छानुसाय होनी चादहमे । एर्ॊ इच्छानुसाय होनी चादहमे । इसकी रम्फाई-चौड़ाई (आसन के अनुसाय) फढ़ाई-घटाई जाती है ॥१७-१९॥

ऩूजाऩीठ ऩजाऩीठ - ऩजा ऩीठ की चौड़ाई छ् अॊगुर से प्रायम्ब होकय दो-दो अॊगुर फढ़ाते हुमे एक हाथ ऩमवधत दस प्रकाय की होती है । कुछ वर्द्र्ानों के भतानस ु ाय इसकी चौड़ाई चाय अॊगर ु होती है । मह चौकोय, आमताकाय मा गोर होता है । इसकी ऊॉचाई चौड़ाई की आधी, छठे मा आठर्े बाग के फयाफय होती है । इसकी ऊॉचाई चौड़ाई की आधी, छठे मा आठर्े बाग के फयाफय होती है । मह ससॊह ऩाद, कम्ऩ एर्ॊ र्ाजन से मुक्त होत है ॥२०-२१॥ उसके ऊऩयी बाग भें कर्णवका से सश ु ोसबत सध ु दय ऩद्मऩष्ु ऩ की ऩॊखड़ु डमाॉ होती है । इसे 'शोबन' कहते है ' क्मोंकक मह

सबी दे र्ों से ऩन्जत होता है । वर्सबधन धचरों (र्णों) से अरॊकृत इस ऩीठ को ऩजा-ऩीठ कहते है , जो गह ृ की ऩजा के सरमे होता है । इसे धमग्रोध, उदम् ु फय, र्ट, वऩप्ऩर, बफलर् मा आभरक के काष्ठ से तनसभवत कयते है । इन काष्ठों से तनसभवत ऩीठ सबी कामो के मोग्म होते है एर्ॊ ससवि प्रदान कयते है । ॥२२-२३॥ आमादद आमादद - आम को आठ से गण ु ा कय एर्ॊ फायह से बाग दे कय प्राप्त ककमा जाता है । व्मम नौ से गण ु ा कय एर्ॊ दस से बाग दे कय प्राप्त ककमा जाता है । गुह्म को तीन से गुणा कय एर्ॊ आठ से बाग दे कय प्राप्त ककमा जाता है ।

उड्र् एर्ॊ र्ामु को आथ से गुणा अक्र एर्ॊ सत्ताईस से बाग दे कय तथा अॊश को चाय से गुणा कय एर्ॊ नौ से बाग

दे कय प्राप्त ककमा जाता है । र्ाय का ऻान नौ से गुणा कय एर्ॊ सात से बाग दे कय प्राप्त होता है । मान, शमन, यथ एर्ॊ आसन आदद का तनभावण इस प्रकाय होता है ॥२४॥

अध्माम ३३ ननष्कराददमरङ्गबेद तनष्कर आदद सरङ्ग के बेद - सरङ्ग (दे र्-प्रतीक) के तनष्कर, सकर एर्ॊ सभश्र- मे तीन बेद होते है । तनष्कर (प्रतीक) को सरङ्ग एर्ॊ सकर (आकृततमुक्त) को फेय (प्रततभा) कहते है । भुखसरङ्ग इन दोनो का सभधश्रत स्र्रूऩ होता है । इसकी ऊॉचाई एर्ॊ आकृतत सरङ्ग के सभान होती है ॥१॥

बफम्फभततव (प्रततभा) (भानर्) शयीय के सभान तथा वर्श्र्भततवस्र्रूऩ (भततव के साभाधम रऺण एर्ॊ भानक) होती है । मह दे र्ता के धचह्न, शयीय, प्रततछधद, प्रततभा के प्रतीकों तथा नाभ से होती है । इस प्रकाय दृश्म दे र् (दे र्ता की प्रततभा) का र्णवन ककमा गमा । अफ तनष्कर (प्रतीक, सरङ्गादद) का र्णवन ककमा जा यहा है ॥२-३॥ मिरारऺण ब्राह्भण आदद (ब्राह्भण, ऺबरम, र्ैश्म, शद्र) के सरमे अनक ु र सशरा (प्रततभा तनभावण हे तु क्रभश्) श्र्ेत, रार, ऩीरी एर्ॊ कारी होती है । सशरा को एक यॊ ग की, ठोस, स्ऩशव भें कोभर एर्ॊ बसभ के बीतय अच्छी तयह गड़ी होनी चादहमे । इसकी उधचत रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई होनी चादहमे । मह दे खने भें सुधदय एर्ॊ मुगा (फहुत ऩुयानी न हो) होनी चादहमे ॥४॥वर्द्र्ानों ने इन सशराओॊ को गदहवत कहा है - र्ामु, धऩ एर्ॊ अन्ग्न से ऺततग्रस्त, अत्माधधक भद ृ ु (जलदी टटने

र्ारी) खाये जर के सम्ऩकव र्ारी, तनधदनीम स्थान से प्राप्त, रूखी, ककसी अधम कामव भें प्रमुक्त, ये खा, बफधद ु मा अधम

धचह्न से मक् ु त, र्ि ु त) न्जसका यॊ ग ठीक न हो, रास (धचटकी ृ ा (अत्मधत ऩयु ानी) टे ढी, शकवया (कॊकड-फारु आदद से मक् हुई), गह ृ भें प्रमुक्त, (ठोकने ऩय) स्र्यहीन, टटी हुई एर्ॊ गबवमुक्त ॥५-७॥

एक यॊ ग की, घन (ठोस), कोभर, भर से अग्र बाग तक सीधी, गजघण्टा के सभान स्र्य र्ारी सशरा को 'ऩॊसु शरा' (ऩुरुषसशरा) कहते है । भर बाग भें भोटी एर्ॊ अग्र बाग भें ऩतरी, काॊस्मतार के सभान स्र्य र्ारी सशरा को

'स्रीसशरा' तथा भर एर्ॊ अग्र बाग भें ऩतरी एर्ॊ (भध्म बाग भें ) भोटी सशरा को 'षण्डा' (नऩुॊसक) सशरा कहते है ॥८९॥

वर्द्र्ान व्मन्क्त को सकर, तनष्कर एर्ॊ सभश्र (प्रततभा) को ऩुॊसशरा से तनसभवत कयना चादहमे । नायी-प्रततभा एर्ॊ

वऩन्ण्डका (भततव की वऩण्डका, आधाय) के तनभावण भें स्रीसशरा का प्रमोग कयना चादहमे । षण्डसशरा से ब्रह्भसशरा मा कभवसशरा का अथर्ा नधद्मार्तव सशरा का तनभावण कयना चादहमे । इसी प्रकाय फुविभान भनुष्म को दे र्ारम के तर एर्ॊ सबन्त्त आदद का बी तनभावण कयना चादहमे ॥१०-११॥

मह सशरा (अर्स्था की दृन्ष्ट से) फारा, भध्मभा तथा स्थवर्या होती है । फारा सशरा कभ ऩकी हुई ईट के सभान भद ृ ु एर्ॊ टॊ क (टाॉकी, छे नी) के आघात से टटने र्ारी होती है । मह सशरा सबी कामो के सरमे त्माज्म होती है , ऐसा वर्द्र्ानों का भत है ॥१२-१३॥

मौर्ना (भध्मभा) सशरा स्ऩसव भें कोभर, गम्बीय स्र्य र्ारी, सुगन्धधत, शीतर,भद ृ ,ु सघन अॊगो र्ारी (ठोस) एर्ॊ

तेजमुक्त (चभकदाय) होती है । मह भध्मभा सशरा सबी कामो भे प्रमोग कयने मोग्म होती है एर्ॊ सबी कामों भें ससवि प्रदान कयने र्ारी होती है ॥१४॥

र्ि ृ ा (स्थवर्या) सशरा भछरी मा भेढक के खार के सभान रूखी होने के कायण अप्रशस्त होती है । मह ये खा, बफधद ु एर्ॊ करॊक (दाग-धब्फो) से मक् ु त होती है । इस सशरा का प्रमत्नऩर्वक त्माग कयना चादहमे ॥१५॥

काटते-छीरते सभम मदद सशरा भें भण्डर ददखाई ऩडे तो उसे 'गसबवणी' सशरा कहते है । वर्द्र्ान व्मन्क्त को उसका प्रमत्नऩर्वक त्माग कयना चादहमे ॥१६॥ (बसभ से फाहय तनकारते सभम) सशरा का भुख नीचे की ओय एर्ॊ सशय ऊऩय होता है । सशरा का भर बाग दक्षऺण ददशा मा ऩन्श्चभ ददशा एर्ॊ अग्र बाग उत्तय मा ऩर्व की ओय होता है । (बसभ भें) जफ सशरा न्स्थत (खड़ी) हो तो अग्र बाग ऊऩय एर्ॊ भर बाग नीचे होता है । (दक्षऺण-ऩन्श्चभ एर्ॊ उत्तय-ऩर्व भे रेटी न्स्थतत भे) नैऋत्म कोण भें अग्र बाग एर्ॊ ईशान भें (भर) तथा (उत्तय-ऩन्श्चभ एर्ॊ दक्षऺण-ऩर्व भे रेटी न्स्थतत की सशरा का ) अग्र बाग आग्नेम कोण भें तथा (भर बाग) र्ामव्म कोण भें होता है ॥१७-१८॥ मिरासॊग्रहन सशरा-सॊग्रह - (समव के) उत्तयामण भास भे, शुक्र ऩऺ भे, शुब उदम कार भें, शुब ऩऺ, नऺर एर्ॊ कयण से मुक्त

भह ु तव भें सरॊग-तनभावण (हे तु प्रस्तय रेने के सरमे) र्न, उऩर्न, ऩर्वत अथर्ा शुि स्थान ऩय जाना चादहमे, जहाॉ बसभ भें प्रस्तय प्राप्त होता हो । मह ऺेर वर्शेष रूऩ से ऩर्व, उत्तय मा ईशान ददशा भें होना चादहमे । ॥१९-२०-२१॥

स्थाऩक, स्थऩतत एर्ॊ कताव तीनों को भॊगर कृत्म कयने के ऩश्चात शुब शकुनो एर्ॊ भॊगरध्र्तन के साथ (प्रस्थान

कयना चादहमे), स्थाऩक एर्ॊ स्थऩतत श्र्ेत को र्स्र धायण कय, श्र्ेत सुगधध एर्ॊ रेऩ धायण कय तथा श्र्ेत र्स्र का उत्तयीम (ऊऩय ओढने का चादय) ओढकय, ससय ऩय श्र्ेत ऩुष्ऩ धायण कय एर्ॊ ऩाॉच अॊगो भें आबषण धायण कय (सशरा प्राप्त कयनी चादहमे ) ॥२२-२३॥

गधध, ऩुष्ऩ, धऩ, भाॊस, यक्त, दध ु , बात, भछरी एर्ॊ वर्वर्ध प्रकाय के बोज्म ऩदाथों से अबीष्ट र्ऺ ृ ों, प्रस्तयो तथा

र्नदे र्ता की ऩजा कयनी चादहमे । बतो एर्ॊ क्रय दे र्ो को फसर प्रदान कय कामव के अनुकर श्रेष्ठ सशरा का चमन कयना चादहमे । श्रेष्ठ स्थऩतत उधचत र्ेष धायण कय ऩर्ावसबभुख होकय भधर-ऩाठ कये ॥२४-२६॥ अमॊ भन्त्रभधर इस प्रकाय है - बत एर्ॊ गुह्मको के साथ दे र्गण तथा क्रय र्नदे र्ता महाॉ से दय चरे जामॉ । आऩ सफको फसर प्राप्त हो । भै इस कामव को करूॉगा । आऩ तनर्ासस्थान फदर दे ॥२७॥

इस प्रकाय कहने के ऩश्चात प्रणाभ कय सशरा-छे दन प्रायम्ब कये । उसी सभम स्थाऩक उसके (सशरा) के उत्तय ददशा भें तनमभऩर्वक हर्न कये । तत्ऩश्चात सोने की सई एर्ॊ अष्ठीर (गोर ऩत्थय) से ऩहरे शोधन कयना चादहमे । (अथावत सशरा ऩय तनशान फनाना चादहमे) । तदनधतय तीक्ष्ण शस्र से तथा फड़े ऩत्थय से उसऩय प्रहाय कयना चादहमे ॥२८-२९॥ र्ान्ञ्चत रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई से प्रमत्नऩर्वक अधधक सशरा (का भाऩ) रेकय उसे चौकोय फनाकय उसके भुखबाग का तनणवम कयना चादहमे ॥३०॥

इसे शुि कय एर्ॊ गधध आदद से वर्धधऩर्वक ऩजा कयके सरङ्ग, वऩण्डका (सरङ्ग का आधाय) मा भततव के सरमे प्रस्तय मा काष्ठ को र्स्र से रऩेट कय यथ ऩय सार्धानी से यखकय सबी भङ्गर (कृत्मों एर्ॊ ऩदाथो) के साथ कभवभण्डऩ

(जहाॉ तनभावण कयना हो) भें राना चादहमे । र्हाॉ तछऩे रूऩ से (सफकी आॉखो से फचाकय ) र्र्णवत वर्धध से बरी-बाॉतत कामव कयना चादहमे ॥३१-३३॥ मदद वर्द्र्ान को कही गई वर्धध से (सशरादी) न प्राप्त हो तो अधम स्थान से सशरादद ग्रहण कयना चादहमे । उसके उत्तय ददशा भें ऩुर्ोक्त वर्धध से (हर्न आदद कयके) र्हाॉ उत्खनन कय, प्रशस्त नऺर एर्ॊ भुहतव भे राकय, वर्धधऩर्वक

हर्न कय एर्ॊ जर से शुि कयके गधध आदद से ऩजन कय सबी प्रकाय की भॊगरध्र्तनमों के साथ ऩर्वर्र्णवत वर्धध से (कभवभण्डऩ तक) राना चादहमे । इससे उधचत ददशा न होने का दोष सभाप्त हो जाता है ॥३४-३६॥ मरङ्गप्रभाण सरङ्ग का स्थान - सरङ्ग के भान से वर्भान (दे र्ारम) का प्रभाण अथर्ा दे र्ारम के प्रभाण से सरङ्ग के भान का तनधावयण कयना चादहमे । वर्द्र्ान व्मन्क्त को गबव के भध्मसर से र्ाभ बाग भे कुछ ईशान कोण का आश्रम रेते हुमे ऩजा ककमे जाने र्ारे सरङ्ग को स्थावऩत कयना चादहमे ॥३७॥

द्र्ाय की चौड़ाई के इक्कीस बाग कयने चादहमे । ब्रह्भा के बाग भें इसका भध्म बाग होता है । भध्मभ बाग के छ् बाग कयने चादहमे । इसके र्ाभ बाग भें दो बाग छोड़कय उस बाग से सर को ऩर्व-उत्तय की ओय रे जाना चादहमे । इस सर को ब्रह्भसर कहते है तथा र्ह सर सशर् के भध्म बाग को तनददव ष्ट कयता है ॥३८-३९॥ नागयमरङ्ग नागय सशर्सरङ्ग - नागय भन्धदय भें नागयप्रभाण से सरङ्ग का भान कहा गमा है । गबव-गह ृ के (चौड़ाई के प्रभाण

से) आधे प्रभाण से सफसे छोटा सशर्सरङ्ग होता है । श्रेष्ठ (फड़ा) सशर्सरङ्ग (गबवगह ृ की चौड़ाई के) ऩाॉच बाग कयने ऩय तीन बाग के फयाफय होता है । इन दोनों के भध्म भें आठ बाग कयने ऩय नौ सशर्सरङ्ग तनसभवत होते है ।

सशर्सरङ्ग के श्रेष्ठ, भध्मभ एर्ॊ कतनष्ठ बेद होते है तथा इनके बी (प्रत्मेक के) तीन-तीन बेद होते है । इन सरङ्गो की चौड़ाई उनकी ऊॉचाई के सोरह बाग भें ऩाॉच, चाय मा तीसये बाग के फयाफय होती है । इधहे नागयबेद भें जमद, ऩौन्ष्टक एर्ॊ सार्वकासभक कहा जाता है ॥४०-४२॥ द्राविडमरङ्ग द्रावर्ड सशर्सरङ्ग - द्रावर्ड गबवगह ृ के इक्कीस बाग कयने ऩय दसर्ें बाग के फयाफय छोटे द्रावर्ड सरङ्ग की ऊॉचाई

होती है एर्ॊ श्रेष्ठ सरङ्ग की ऊॉचाई तेयह बाग के फयाफय होती है । इन दोनों के भध्म के अधतय को उऩमुक्त प्रकाय से फाॉटना चादहमे । द्रवर्ड र्गव के जमद आदद की ऊॉचाई इक्कीस बाग भें छ्, ऩाॉच एर्ॊ चाय बाग के फयाफय यक्खी जाती है ॥४३-४४॥ िेसयमरङ्गभ ् र्ेसय सशर्सरङ्ग - र्ेसय दे र्ारम के ऩच्चीस बाग कयने ऩय तेयह बाग से सफसे छोटा सरङ्ग तनसभवत होता है । सफसे फड़ा सरङ्ग सोरह बाग के फयाफय ऊॉचा होता है । उनके भध्म बाग के आठ बाग कयने ऩय ऩहरे के सभान नौ सरङ्ग तनसभवत होते है । र्ेसय सरङ्ग के जमद आदद बेदों की ऊॉचाई आठ, सात, छ् (ऩच्चीस बाग भें से) बाग के फयाफय यक्खी जाती है ॥४५-४७॥ सबी प्रकाय के सरङ्गों की चौड़ाई की ऩरयधध सोरह भें ऩाॉच बाग के फयाफय यक्खी जाती है । मे प्रभाण गबवगह ृ के अनुसाय कहे गमे है । अफ उनके हस्तप्रभाण को कहता हॉ ॥४८॥ हस्ततो मरङ्गभानानन सरङ्गों का हस्तप्रभाण - एक हाथ से प्रायम्ब कय छ्- छ् अॊगुर फढ़ाते हुमे नौ हाथ ऩमवधत सरङ्ग के तैतीस बेद होते है । मदद दे र्ारम फायह मा उससे अधधक तर से मुक्त हो तो मे तैतीस बेद ऩाॉच हाथ से प्रायम्ब कय ऩर्ोक्त

(छ्-छ् अॊगुर) र्वृ ि कयते हुमे तनसभवत कयना चादहमे । कुछ वर्द्र्ानों के भतानुसाय एक हाथ से प्रायम्ब कय तीनतीन अॊगुर फढ़ाना चादहमे ॥४९-५०॥ मदद सरङ्ग के प्रभाण भें ऊऩय ददमे भान से एक अॊगुर कभ मा अधधक हो औय ऐसा आमादद की दृन्ष्ट से ककमा गमा हो तो र्ह दोषऩणव नही होता है । छोटे , भध्मभ एर्ॊ फड़े दे र्ारम के सरमे सरङ्ग के नौ भान होते है । मे ऩच्चीस अॊगुर से प्रायम्ब होकय आठ मा सोरह अॊगुर फढ़ाते हुमे होते है ॥५१-५३॥

्िायाददतो भानानन द्र्ाय आदद के अनुसाय प्रभाण - श्रेष्ठ सरङ्ग की ऊॉचाई द्र्ाय की ऊॉचाई के फयाफय तथा कतनष्ठ सरङ्ग की ऊॉचाई

उससे तीन बाग कभ होती है । (अथर्ा) श्रेष्ठ सरङ्ग की ऊॉचाइ स्तम्ब की ऊॉचाई के नौ बाग कयने ऩय सात बाग के फयाफय होती है । कतनष्ठ सरङ्ग नौ बाग भें से ऩाॉच बाग के फयाफय होता है । उनके (ज्मेष्ठ एर्ॊ कतनष्ठ के) भध्म के अधतय को आठ बाग फाॉटना चादहमे । इससे नौ प्रकाय के सरङ्गो की ऊॉचाई फनती है । नागय आदद दे र्ारम के सरङ्गो का व्मास ऩर्वर्र्णवत भान के अनुसाय यखना चादहमे ॥५४-५५॥ कुछ श्रेष्ठ ऋवषमों के अनुसाय कुम्बमोतन के फाये भें कहा गमा है कक दे र्ारम की ऊॉचाई अधधष्ठान से सशखय, ग्रीर्ा मा स्तवऩकाऩमवधत भान को अॊगुर-प्रभाण से वर्बान्जत कयना चादहमे (एर्ॊ उसके अनुसाय सरङ्ग का भान तनधावरयत कयना चादहमे) । एक फाय ऊॉचाई का तनणवम कय रेने के ऩश्चात ् उसभे अॊगुर की र्वृ ि मा हातन नही होनी चादहमे ॥५६-५७॥ आमादद आमादद - ऊॉचाई भें आठ का गुणा कयना चादहमे एर्ॊ उसभें सत्ताईस का बाग दे ना चादहमे । शेष एक के सत्ताईस

तक नऺर का ऻान होता है । एक से अश्र्मुज नऺर होता है । ऊॉचाई भें चाय का गुणा कयना चादहमे । गुणनपर

भें नौ का बाग दे ना चादहमे । शेष से तस्कय आदद 'अॊशक' प्राप्त होते है । इनभें (प्रथभ तस्कय) अधम बुन्क्त, शन्क्त, धन, याज, षण्ड, अबम, वर्ऩत ् एर्ॊ सभवृ ि - मे नौ क्रभश् अॊशक होते है । इनभें तस्कय, वर्ऩत ् एर्ॊ षण्ड र्ास्तुवर्दों द्र्ाया तनधदनीम है ॥५८-६०॥

ऊॉचाई को आठ, नौ एर्ॊ तीन से गुणा कये एर्ॊ (प्राप्ताॊक) भें फायह, दस एर्ॊ आठ से (क्रभश्) बाग दे ना चादहए । शेष से धन, ऋण एर्ॊ मोतन का ऻान होता है । मदद धन अधधक हो एर्ॊ ऋण कभ हो तो चमन ककमा गमा प्रभाण सम्ऩन्त्तकायक होता है । मोतनमों भें ध्र्ज, ससॊह, र्ष ृ एर् गज शुब होते है ॥६१-६२॥ ऊॉचाई को नौ सो गुणा कयना चादहमे । गुणन-पर भें सात से बाग दे ना चादहमे । शेष से समव आदद सात ददन का ऻान होता है । इनभें क्रय ददनों को छोड़ दे ना चादहमे । ॥६३॥

सरङ्ग के नऺर का वर्योध ग्राभ मा कताव के नऺर से नही होना चादहमे । र्ह सरङ्ग दे श , दे श के स्र्ाभी एर्ॊ उस दे श की जनता के सरमे शुब होता है ॥६४॥ मरङ्गतऺणभ ् सरङ्ग का तऺण = छे दन, कटाई- अबीन्प्सत रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई से (सशरा को) चौकोय फनाना चादहमे । इसके ऩश्चात ् मथोधचत दे र्ता की आकृतत उत्कीणव कयनी चादहमे । इसे 'जातत' रूऩ कहते है । 'छधद' रूऩ अष्टकोण मा

षोडशकोण होता है । र्त्ृ ताकाय सरङ्ग 'आबास' होता है । इस प्रकाय सरङ्ग का छे दन तीन प्रकाय का होता है ॥६५६६॥

सरङ्ग की ऊॉचाई के तीन बाग कयना चादहमे । भर भें ब्रह्भा का बाग होता है , जो चौकोय होता है । भध्म का अष्टकोण बाग र्ैष्णर् होता है । ऊध्र्व बाग र्त्ृ ताकाय होता है तथा मह ईशबाग होता है ॥६७॥ अष्टकोण फनाने की तीन वर्धधमाॉ है । अबीष्ट भान (सरङ्गभान) से एक सभ चतयु स्र (चौकोय) तनसभवत कयना

चादहमे । अधवकणों से दो ये खामें (कोण तक) खीॊचनी चादहमे तथा चतुयस्र के भध्म से ये खामें खीचनी चादहमे । इस प्रकाय अष्टकोण तनसभवत होगा । (द्रष्टव्म २५.५२) । चतुयस्र के एक चतुथांश एर्ॊ तीन बाग के फीच भें भध्म ऩट्ट

होता है । चौकोय की चौड़ाई के सात बाग कयने ऩय तीसये बाग भें भध्म ऩट्ट होता है । इस प्रकाय (अष्टकोण) तीन प्रकाय से कहा गमा है ॥६८-६९॥ अफ षोडशास्र का रऺण कहते है । कोण के अधत से ऩट्टसर-ये खा भें ततरछे सभरे सर का ऩट्टाधव से जो अॊककत हो तो उसे षोडशास्र कहते है । इस प्रकाय षोडशास्र के भध्म भें कोदट छे दन से फुविभान को र्त्ृ त फनाना चादहमे , जो न ही ऊॉचा होता है औय न ही नीचा होता है । ॥७०-७१॥ सिातोबद्राददमरङ्गप्रभाणभ ् सर्वतोबद्र आदद सरॊगो का प्रभाण - प्रथभ प्रकाय का सरङ्ग 'सर्वतोबद्र' दसया र्धवभान', तीसया 'सशर्ाधधक' एर्ॊ चौथा 'स्र्न्स्तक' होता है । 'सर्वतोबद्र' सरङ्ग ब्राह्भण के सरमे प्रशस्त होता है । 'र्धवभान' याजाओॊ को सुख एर्ॊ र्वृ ि प्रदान कयता है । 'शम्बुबागाधधक' र्ैश्मों को धन प्रदान कयता है एर्ॊ 'स्र्न्स्तक' चतुथव र्णव के सरमे प्रशस्त होता है ॥७२७३॥

सर्वतोबद्र सरङ्ग को तीस बागों भें फाॉटना चादहमे । दस बाग तनचरे बाग के सरमे तथा उतना ही बाग भध्म एर्ॊ ऊध्र्व बाग के सरमे होना चादहमे । शम्बबाग ऩणवत् गोर होता है । मह ब्राह्भणों एर्ॊ याजाओ के सरमे प्रशस्त होता है ॥७४॥ र्धवभान सरङ्ग चाय प्रकाय के होते है । इसका तनधावयण ब्रह्भा, वर्ष्णु एर्ॊ सशर्बाग की ऊॉचाई से होता है । तनचरे

बाग से प्रायम्ब कयते हुमे चाय बाग (ब्रह्भा का), ऩाॉच बाग (वर्ष्णु का) एर्ॊ छ् बाग सशर्तत्त्र् का होता है । (अथर्ा) ऩाॉच, छ् एर्ॊ सात बाग होता है । (अथर्ा) छ्, सात मा आठ बाग होता है । (अथर्ा अनत ृ ्) सात, आठ एर् नौ बाग होता है । मह सरङ्ग याजाओॊ को सबी प्रकाय की सम्ऩततमाॉ , वर्जम एर्ॊ ऩुरों की र्वृ ि प्रदान कयता है ॥७५७६॥

सशर्धधक सरङ्ग चाय प्रकाय का होता है । ब्रह्भा से प्रायम्ब कय तीन तत्त्र् सात-सात एर्ॊ आठ बाग (मा) ऩाॉच, ऩाॉच, छ् बाग (अथर्ा) चाय, चाय, ऩाॉच बाग एर्ॊ (अधतत्) तीन, तीन, चाय बाग होते है । मह सरङ्ग र्ैश्मों को सबी प्रकाय की सभि ृ ी प्रदान कयता है , जो सॊमभी है । ऐसा (वर्द्र्ानों द्र्ाया) कहा गमा है । ॥७७-७८॥ स्र्न्स्तक सरङ्ग की ऊॉचाई के नौ बाग कयने चादहमे । इनभे दो बाग भर के सरमे, तीन बाग भध्म के सरमे एर्ॊ चाय बाग ऩजा के सरमे (उध्र्व बाग ) होता है । मह शद्रो के सरमे सबीकाभनाओॊ को प्रदान कयने र्ारा होता है ॥७९॥ सुयाथचाताददमरङ्गबेदा्

सयु ाधचवत आदद सरङ्गो के बेद - सयु ाधचवत सरङ्ग, धायासरङ्ग,साहस्रसरङ्ग एर्ॊ रैयासशक सरङ्ग सबी के काभनाओॊ को ऩणव कयता है ॥८०॥

(सयु गणाधचवत) सरङ्ग की चौड़ाई उसकी रम्फाई के चौथे बाग के फयाफय होती है एर्ॊ शेष ऩहरे के सभान होता है । इस सरङ्ग को सुयाधचवत कहते है ॥८१॥

धायासरङ्ग सबी सरङ्गो के सभान होता है । इसका भर बाग आठ, सोरह मा चाय कोणों र्ारा होता है । इसका ऊऩयी बाग दग ु न ु ा होता है । मह धायामुक्त धायासरङ्ग सबी र्णो के सरमे प्रशस्त होता है ॥८२॥ सर्वतोबद्र सरङ्ग भें ऩजाबाग भें ऩच्चीस धायामें क्रभश् तनसभवत की जामॉ तथा प्रत्मेक ऩय चारीस (सरङ्ग) तनसभवत ककमे जामॉ तो इस प्रकाय सहस्र सरङ्ग तनसभवत होते है एर्ॊ इसे साहस्रसरङ्ग कहते है ॥८३॥ रैयासशक सरङ्ग भें र्त्ृ ताकाय बाग की ऩरयधध सम्ऩणव ऊॉचाई के नौ बाग भें छ् बाग के फयाफय होती है । अष्टास्र

बाग की ऩरयधध नौ भे सात बाग के फयाफय एर्ॊ चौकोय बाग की ऩरयधध नौ भें आठ बाग के फयाफय होती है । अज (ब्रह्भ) के बाग की ऊॉचाई नौ भे तीन बाग के फयाफय, हरय (वर्ष्ण)ु बाग की ऊॉचाई नौ भें तीन बाग तथा हय (सशर्) बाग की ऊॉचाई नौ भें तीन बाग के फयाफय होती है ॥८४॥ आषामरङ्गभ ् आषव = ऋवष के अनुकर सरङ्ग - ऋवषमों के अनुकर चाय प्रकाय के सरङ्ग होते है - सस्थरभर (तर भें अधधक

चौड़ा) सरङ्ग, मर्भध्म (भध्म बाग भें मर् के सभान) सरङ्ग, वऩऩीसरकाभध्म (भध्म बाग भें चीॊटी के सभान) सरङ्ग तथा सशय् स्थर (ऊऩयी बाग भें स्थर) सरङ्ग । आर्श्मकतानस ु ाय तर, भध्म मा ऊऩयी बाग का वर्स्ताय र्ान्ञ्छत

वर्स्ताय से आठ बाग कभ होता है । आषव सरङ्ग भें ब्रह्भा एर्ॊ वर्ष्णु का बाग बरी-बाॉतत चौकोय होता है ॥८५-८६॥ स्र्मॊ प्रकट सशर्सरङ्ग - स्र्मम्बु सरङ्ग का आकाय परक के सभान, द्वर्कोण, ऩञ्चकोण, बरकोण, ग्मायह, नौ, छ्,

सात तथा फायह कोण अथर्ा ऩर्ोक्त से ऩथ ृ क् कोण हो सकते है । इसका अग्र बाग शर के सभान एर्ॊ श्रङ् ृ ग के

सभान सशय हो सकता है । इसके सशयोबाग अधम प्रकाय के बी हो सकते है । मे भानमुक्त नही होते एर्ॊ प्रभाणसर

से ऩथ ृ क् होते है (अथावत ् इनका कोई तनधावरयत प्रभाण नही होता है ) । मे ऊॉचे-नीचे, झझवय के सभान तछद्रमुक्त, वर्र्णव (अस्ऩष्ट र्णव के) तथा ऩजाबाग ऊॉचा-नीचा हो सकता है । मे टे ढ़े मा सीधे, फारमुक्त (प्रस्तय के), ये खा, धचह्न तथा

बफधद ु से मक् ु त मा एक ये खा से मक् ु त होते है । मे ही स्र्मम्बु सरङ्ग कहराते है । फवु िभान व्मन्क्त को इन सरङ्गो के भर स्र्रूऩ का शोधन नही कयना चादहमे । अऻानता से अथर्ा भोहर्श भर सरङ्गो का सॊशोधन दोषकायी होता है ॥८७-९०॥ मियोितानभ ् सशयोबाग कक गोराकाय कटाई - स्थाऩना के सभम सरङ्ग का (तनचरा) ऩजा बाग ऩीठ के फयाफय होना चादहमे । ऩजाबाग र्त्ृ ताकाय मा धायामक् ु त हो सकता है । मह ऩजक को भन्ु क्त प्रदान कयने र्ारा होता है । अफ क्रभानस ु ाय सरङ्गो के सशयोबाग की गोराकृतत (तनभावण, कटाई) के वर्षम भें कहा जा यहा है ॥९१-९२॥

भतु नमों के अनस ु ाय (सरङ्ग के सशयोबाग की) गोराई ऩाॉच प्रकाय की होती है - छर के सभान, रऩष ु (ककड़ी) के सभान, कुक्कुट (भुगी के) अण्डे के सभान, अधवचधद्र के सभान मा फुद्फुद के सभान ॥९३॥

छराब सशयोबाग की (गोराई की ऊॉचाई) चौड़ाई के सोरह बाग के फयाफय मा दो, तीन मा चाय बाग के फयाफय होनी चादहमे । शीषव बाग से प्रायम्ब कय नीचे तक गोराई दोनो ऩाश्र्ो भें उधचत अनुऩात भें होनी चादहमे । प्रथभ दो भाऩ सरङ्गो के सरमे साभाधम होते है । शैर्ाधधक सरङ्ग के सरमे ततसया भाऩ होता है । र्धवभान सरङ्ग के सरमे चाय बाग का भाऩ कहा गमा है । भाऩों को एक-दसये भें सभराकय गोराई का तनभावण अशुब होता है ॥९४-९६॥ रऩुषाकाय सरङ्ग के गोराई की ऊॉचाई सरङ्ग की चौड़ाई के छ् बाग भें ढाई बाग के फयाफय यक्खी जाती है ।

कुकुटाण्ड की ऊॉचाई आधे भाऩ से, अधवचधद्र की ऊॉचाई तीसये बाग के फयाफय एर्ॊ फुदफुद की ऊॉचाई आठ बाग भें साढ़े तीन बाग भाऩ से यक्खी जाती है ॥९७॥

सबी प्रकाय के सरङ्गो का साभाधम तनमभ इस प्रकाय है । सरङ्गो की गोराई का भाऩ सरङ्ग के ऊऩयी बाग का तीसया बाग होता है । मह सशयोभाऩ क्रभश् कतनष्ठ, भध्मभ एर्ॊ श्रेष्ठ सरङ्ग का होता है ॥९८-९९॥ सरङ्ग के सशयोबाग के अबीष्ट बाग को दोनो ऩाश्र्ो भे (फयाफय) यखना चादहमे । उसऩय चाय भत्स्माकृतत तनसभवत

कयनी चादहमे । प्रत्मेक आकृतत के भुख एर्ॊ ऩॉछ तक दो ये खामे खीॊचनी चादहमे । जहाॉ उनका सॊमोग हो, र्हाॉ तीन बफधद ु रगाना चादहमे । इस प्रकाय प्रमत्नऩर्वक सशर्सरङ्ग की र्तवना कयनी चादहमे ॥१००॥ रऺणोद्धयणभ ् रऺणों का उियण - अफ भै सबी सरङ्गो का रऺणोियण कहता हॉ । सरङ्गो की तघसाई धचकने ऩत्थय, भहीन फार

के साथ गाम के फार की यस्सी आदद से एक फाय भें कयनी चादहमे एर्ॊ सार्धानीऩर्वक सरङ्ग के धचह्नो की ऩयीऺा कयनी चादहमे । इसके ऩश्चात शुब रऺणो का उियण प्रायम्ब कयना चादहमे । ॥१०१-१०२॥ भन्धदय के तनकट यॊ ग-बफयॊ गे र्स्रों से अरॊकृत भण्डऩ भें शासर आदद धाधमों से मुक्त सुधदय स्थन्ण्डर ऩय आसन के ऊऩय प्रस्तय-शमन ऩय, जो कक श्र्ेत र्स्र से सन्ज्जत हो, सरङ्ग की स्थाऩना कयनी चादहमे । आचामव एर्ॊ स्थऩतत

नर्ीन र्स्र, सुर्णव एर्ॊ ऩुष्ऩादद से तथा ऩाॉचो अॊगो भे अरॊकायो से सुसन्ज्जत होकय तथा श्र्ेत ऩुष्ऩ, रेऩ आदद से एर्ॊ उष्णीष (ऩगडी) आदद धायण कय सुधदय फने ॥१०३-१०५॥

आचामव नेर-भधर का स्भयण कयते हुमे सोने की सई से अजसर, ऩाश्र्वसर तथा ये खा का रेखन कये ॥१०६॥ सुर्णव अस्र से ये खाङ्कन प्रायम्ब कय स्थऩतत ऩुन् छोटे शस्र से हाथ भें घी, दध एर्ॊ भधु के साथ उधचत ये खा फनामे, न्जससे सध ु दय झयने का रूऩ फने ॥१०७॥

श्र्ेत र्स्र से सबी अधनों को ढॉ ककय गाम, ब्राह्भण, गोर्त्स तथा कधमा आदद को ददखामे तथा शेष को उधचत यीतत से फुविभान को कयना चादहमे ॥१०८॥ नागयमरङ्गरऺणोद्धयणभ ्

नागय सशर्सरङ्ग का रऺणोियण - प्रथभ प्रकाय के नागय सरङ्ग भे सशर्-बाग की ऊॉचाई के सोरह बाग कयने चादहमे । छोटे सरङ्ग भें छ् बाग (भध्मभ सरङ्ग भें ) चाय बाग एर्ॊ (फड़े सरङ्ग भें ) तीन बाग ऊऩयी बाग भें एर्ॊ तनचरे बाग भें तीन बाग छोड दे ना चादहमे । इस प्रकाय सबी सरङ्गो की तीन प्रकाय की ऊॉचाई होती है । वर्ष्णबाग भें ऩाश्र्व भें दो ये खामे खीचनी चादहमे । छोटे सरङ्गो भें मे ये खामें चाय, तीन एर्ॊ दो बाग से होती हुई ऩष्ृ ठ बाग भें सभरती है । भध्मभ सरङ्ग भें मे ये खामें ऩाॉच, चाय, तीन एर्ॊ दो बाग से होती हुई ऩीछे सभरती है । श्रेष्ठ सरङ्ग भें मे ये खामे छ्, ऩाॉच, चाय, तीन एर्ॊ दो बाग से होती हुई ऩीछे सभरती है । श्रेष्ठ सरङ्ग भे मे ये खामें छ्, ऩाॉच, चाय, तीन एर्ॊ दो बाग से होती हुई ऩीछे सभरती है । सरङ्ग की चौड़ाई (रम्फाई की) दो ततहाई होती है । मा सरङ्ग की चौड़ाई ऩुयी रम्फाई तक सभान एर्ॊ एक कृष्णर बाग (वर्शेष भाऩ) कभ होती है । इस प्रकाय भम ने नागयसरङ्ग के सर का बरी-बाॉतत र्णवन ककमा ॥१०९-११३॥ द्राविडमरङ्गरऺणोद्धयणभ ् द्रावर्डसरङ्ग का रऺणोियण - द्रावर्ड सरङ्ग के सशर्तत्त्र् की ऊॉचाइ को ऩधद्रह बाग भें फाॉटना चादहमे । सर की रम्फाई हीन (छोटे ) आदद क्रभ से (भध्मभ एर्ॊ श्रेष्ठ) नौ, दस मा ग्मायह होनी चादहमे । आठ, नौ मा दसर्ें बाग से सर रटकाना चादहमे । इनका ऩष्ृ ठ बाग भें सॊमोग, चाय, तीन मा दो ऩय (गोराई फनाते हुमे) होता है । मह भाऩ छोटे सरङ्ग के सरमे कहा गमा है । ऩाॉच, चाय, तीन एर्ॊ दो भध्मभ सरङ्ग के सरमे तथा छ्, ऩाॉच, चाय, तीन एर्ॊ दो बाग श्रेष्ठ सरङ्ग के कहा गमा है । द्रावर्ड सरङ्ग के सर की चौड़ाई (सशर्बाग की ऊॉचाई की) आधी होती है ॥११४११६॥ िेसयमरङ्गरऺणोद्धयणभ ् र्ेसयसरङ्ग का रऺणोियण - र्ेसय सरङ्ग के ऩजाबाग की ऊॉचाई को ऩधद्रह बागों भें फाॉटना चादहमे । सर की ऊॉचाई को आठर्ें बाग से प्रायम्ब कय दस बाग तक यखना चादहमे । सरों का सॊमोग ऩाॉच, चाय एर्ॊ तीन बाग ऩय (गोराई फनाते हुमे) होना चादहमे । सर की चौड़ाई सरङ्ग की ऩरयधध के सोरहर्े बाग के फयाफय होनी चादहमे । मह श्रेष्ठ र्ेसय-सरङ्ग का प्रभाण है ॥११७-११८॥ भध्मभ सरङ्ग के (सशर्तत्त्र्) की ऊॉचाई को आठ बागों भें फाॉटना चादहमे । सर की ऊॉचाई चाय बाग होनी चादहमे । सर तीन बाग से प्रायम्ब होकय दो मा एक बाग ऩय सॊमक् ु त होता है । सर की चौड़ाई ऩौन बाग के फयाफय होती है । छोटे र्ेसय सरङ्ग की (सशर्बाग की) ऊॉचाई को फायह बागों भें फाॉटना चादहमे । शेष प्रकक्रमा ऩहरे के सभान होती है । सुर की चौड़ाई (सशर्बाग के) दो बाग के फयाफय होती है ॥११९-१२१॥ सत्र ू मासगार्मबीमे ये खाओॊ की चौड़ाई एर्ॊ गहयाई - सबी प्रकाय के सरङ्गो भें प्राप्त बाग (तनन्श्चत ककमे गमे बाग) भे नौ बाग कयने ऩय एक बाग से ये खाओॊ की चौड़ाई एर्ॊ गहयाई तनसभवत कयनी चादहमे । मे ये खामें स्ऩष्ट एर्ॊ तनमभानस ु ाय होती है । दृढभतत व्मन्क्त को आठ मर्ों को रेकय (आठ मर् के भाऩ से) नौ बागों भें फाॉटना चादहमे । एक हाथ ऊॉचे सरङ्ग

भें एक बाग से ये खा फनानी चादहमे । एक-एक बाग फढ़ाते हुमे नौ हाथऩमवधत सरङ्ग भें आठ मर् के भाऩ से गहयी एर्ॊ रम्फी ये खा फनती है । ॥१२२-१२४॥

(अथर्ा एक हाथ से सरङ्ग भें ) आधे मर् के भाऩ से ये खामे तनसभवत होनी चादहमे तथा श्रेष्ठ सरङ्ग भे साढ़े चाय मर्भाऩ से ये खाओॊ की चौड़ाई एर्ॊ गहयाई यखनी चादहमे । (इसके भध्म प्रत्मेक हाथ भाऩ ऩय) आधे मर् के भाऩ को जोडते जाना चादहमे । भध्म सर (ये खा) की चौड़ाई की आधी ऩाश्र्व सरों की चौड़ाई होती है । अधम सबी ये खामें सभान चौड़ाई एर्ॊ भाऩ की होती है ॥१२५-१२६॥ साभान्मविथध् साभाधम तनमभ - अफ भै (भम) नागय आदद सरङ्गो के रऺणोियण के साभाधम तनमभों का र्णवन कयता हॉ । ऩजा बाग की ऊॉचाई के सोरह बाग कयने चादहमे । इसभें नीचे दो बाग तथा ऊऩय चाय बाग छोड़ दे ना चादहमे । अग्र बागसदहत सर के दस बाग होते है । भर्ण ये खा दो बाग छोड़कय (ऩजाबाग के) नीचे से प्रायम्ब कयनी चादहमे । भुकुर को एक बाग छोड़कय र्े ये खामें ऩष्ृ ठ बाग भें जुड़ती है । भुकुर की चौडाई एक बाग के फयाफय होनी चादहमे ॥१२७-१२९॥

अथर्ा सरङ्ग (के सशर्बाग) की ऊॉचाई के सोरह बाग कयने चादहमे । नीचे एक बाग छोड़कय दस बाग नार के सरमे ग्रहण कयना चादहमे । शेष कामव ऩर्व-र्र्णवत होना चादहमे । मह तनमभ सबी सरङ्गो के सरमे साभाधम होता है ॥१३०॥ अथर्ा सशर्बाग के फायह बाग कयने चादहमे । दो बाग ऊऩय एर्ॊ एक बाग नीचे छोड़ना चादहमे तथा नौ बाग (सर तथा) अग्र बाग (भुकुर) के सरमे ग्रहण कयना चादहमे । शेष ऩर्वर्र्णवत यीतत से कयना चादहमे ॥१३१॥ अथर्ा सशर्बाग के अट्ठायह बाग कयने चादहमे । दो बाग नीचे एर्ॊ ऩाॉच बाग ऊऩय छोड़ दे ना चादहमे । ग्मायह बाग अजसर के सरमे रेना चादहमे, न्जसभें एक बाग भुकुर के सरमे होता है । शेष ऩर्वर्त ् होता है ॥१३२॥ अथर्ा सशर्बाग के सोरह बाग कयने चादहमे । दो बाग नीचे एर्ॊ चाय बाग ऊऩय छोड़कय दस बाग से सर की ऊॉचाई यखनी चादहमे । दो सर आठर्े बाग से प्रायम्ब कय ऩाॉच, छ् एर्ॊ आठ बाग से रे जाते हुमे ऩष्ृ ठ बाग भें एक बाग ऩय सॊमुक्त कयना चादहमे । शेष सबी ऩहरे के सभान होता है ॥१३३-१३४॥ सर को ऩहरे बस्भ रगे सर के साथ रऩेटना चादहमे । इसके घदटकाग्र (सर का अग्र बाग) से धचह्न फनाकय ऩाश्र्व बाग भे सर से रऺण अङ्ककत कयना चादहमे ॥१३५॥ सूत्राग्ररऺणभ ् सर के अग्र बाग का रऺण - सबी सर के अग्र बाग ऩय गोरा फनाना चादहमे । इसे सरङ्ग की आकृतत के अनुसाय मा साभाधम तनमभ के अनुसाय फनाना चादहमे । गोर आकृतत सबी सरङ्गो भें साभाधम है । मह ऩीऩर के ऩत्ते के सदृश, कदरी (केरा) के भुकुर (करी) के सभान, जौ के सभान मा कभरऩुष्ऩ की करी के सभान होती है ।

सर के अग्र-बाग की चौड़ाई (सशर्तत्त्र् के) बाग एक बाग के फयाफय एर्ॊ ऊॉचाई चौड़ाई के फयाफय होती है ॥१३६१३७॥

सर के अग्रबाग का आकाय सरङ्ग (के आकाय) के अनस ु ाय कहा जा यहा है । सरङ्ग के अग्रबाग की आकृतत छर के सभान होने ऩय सराग्र गज-नेर के सभान होता है । सरङ्ग का अग्र बाग अधवचधद्र के सभान एर्ॊ फुदफुद के सभान होने ऩय सर का अग्र बाग शर के अग्र बाग के सभान होता है । सरङ्ग का अग्र बाग रऩुषाब (ककड़ी) होने ऩय सराग्र कुक्कुट (भुगी) के अण्डे के सभान होता है । कुक्कुट के अण्डे के सभान सरङ्ग के अग्र-बाग के होने ऩय सराग्र छर के सभान होता है ॥१३८-१४०॥

भध्मभ सर की चौड़ाई सरङ्ग की ऩरयधध के सरह बाग कयने ऩय दो-ततहाई के फयाफय होती है तथा ऩाश्र्वसर चौड़ाई भे उसके आधे होते है । सरङ्ग की रम्फाई भे साभाधम सबी तनमभ उसी प्रकाय होते है ॥१४१-१४२॥ सरङ्गो की रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई उनके नाभ एर्ॊ बेदो के साथ, उष्णीष (सशयोबाग) का भान, छर के सभान आदद (अधम आकृततमाॉ) एर्ॊ उष्णीषसर का र्णवन भैने (भम ने ) महाॉ नागय आदद क्रभ से आर्श्मकतानुसाय ककमा ॥१४३॥ स्पादटकमरङ्गभ ् स्पदटक सशर्सरङ्ग - अफ भै (भम) छोटे , भध्मभ एर्ॊ उत्तभ स्पदटकसरङ्ग का क्रभश् र्णवन कय यहा हॉ । छोटे

सरङ्ग के ऩजा-बाग की ऊॉचाई एक अॊगुर से प्रायम्ब होकय एक-एक अॊगुर फढ़ाते हुमे छ् अॊगुर तक जाती है । भध्मभ सरङ्ग के ऩजा बाग की ऊॉचाई सात अॊगुर से प्रायम्ब होकय फायह अॊगुर तक जाती है । उत्तभ सरङ्ग के

ऩजा बाग की ऊॉचाई छ् प्रकाय की होती है । मह तेयह बाग से प्रायम्ब होकय एक-एक अॊगुर फढ़ाते हुमे अट्ठायह बाग तक जाती है । (अथर्ा) ऊॉचाई भें डेढ़ -डेढ़ अॊगुर की र्वृ ि कयनी चादहमे । इस प्रकाय (सबी सरङ्गो भें ) ग्मायह सॊख्माबेद प्राप्त होते है । श्रेष्ठ, भध्मभ एर्ॊ कतनष्ठ सरङ्गों के तैतीस ऊॉचाई-भान (इस प्रकाय) प्राप्त होते है ॥१४४१४७॥ (ऩीदठका भें स्थावऩत होने र्ारा) स्पदटकसरङ्ग के (अधोबाग के) ऩजा बाग की ऊॉचाई के आधे बाग मा तीसये बाग के फयाफय होती है । ऩजाबाग की चौड़ाई इसकी ऊॉचाई के फयाफय, तीन चौथाई मा आधी होती है । स्पदटकसरङ्गो की आकृतत धाया र्ारी मा गोर होती है । इसके सशय की गोराई नागय आदद सरङ्गो के सदृश होती है । भध्मभ एर्ॊ श्रेष्ठ सरङ्ग भें ब्रह्भसर ऩर्वर्णवन के अनुसाय होना चादहमे । वर्ना ब्रह्भसर के मह र्य-प्रदाता होता है ॥१४८-१५०॥ (सरङ्ग के ऩीठ की) चौड़ाई (सरङ्ग की) दग ु न ु ी, ढाई गन ु ी मा तीन गन ु ी होती है । ऩीठ का भण्डन (ककनाया, घेया) एर्ॊ नार उधचत यीतत से तनसभवत होना चादहमे । वऩन्ण्डका (ऩीठ) की ऊॉचाई ऩजाबाग के फयाफय मा उसके तीन-चौथाई होनी चादहमे । ॥१५१-१५२॥ भन्ृ त्तका-तनसभवत एर्ॊ अधम सशर्सरङ्ग - सरङ्ग का तनभावण भन्ृ त्तका, काष्ठ, यत्न एर्ॊ रौह (धाड) से स्पदटक के

सभान दृढ कयना चादहमे । भन्ृ त्तकातनसभवत सरङ्ग इच्छानुसाय ऩक्का मा कच्चा हो सकता है । काष्ठसरङ्ग दोषयदहत (काष्ठ से) तनसभवत होना चादहमे । धातु-तनसभवत सरङ्ग घना (ठोस) होना चादहमे । रोहसरङ्ग घना होना चादहमे ।

रोहतनसभवत सरङ्ग अङ्गसदहत भततव अथर्ा अङ्गयदहत (सरङ्गरूऩ) होता है । धातुतनसभवत सरङ्ग ऩन्जत होने ऩय बोग एर्ॊ भुन्क्त प्रदान कयता है । सशरा से सबधन सरङ्ग को भर्णसरङ्ग कहते है ॥१५३-१५५॥

अऩनी जातत की र्स्तु से अथर्ा रोहे से अथर्ा स्पदटक आदद धातु मा यत्न से तत्तत सरङ्गो की यचना कयनी चादहमे । स्पदटक से सबधन र्स्तु भें ऩीठस्थान फनाना चादहमे । इस प्रकाय रौहऩीठ भें यत्नतनसभवत प्रततभा की

स्थाऩना की जाती है । सॊकलऩ के अनुसाय ब्रह्भा, वर्ष्णु एर्ॊ शॊकय के सरङ्ग की मुन्क्तऩर्वक न्स्थतत बोग एर्ॊ भोऺ प्रादान कयने र्ारी होती है ॥१५६-१५७॥

फाणसरङ्ग (स्र्मम्बसरङ्ग) को ऩीदठका भें न्जस प्रकाय न्स्थत हो, उस प्रकाय स्थावऩत कयना चादहमे । इसका ऩजाबाग ऩाॉच भें से तीन बाग, आधा मा इसकी ऊॉचाई का दो ततहाई होता है । शेष बाग फाणसरङ्ग भें ऩीठफधध (ऩीठ से सम्फि) होता है ॥१५८-१५९॥ (भर्णसरङ्ग के सरमे) ऩणवत् त्माज्म भर्णमाॉ इस प्रकाय है - ये खा, बफधद ु एर्ॊ करङ्क आदद से मुक्त, वर्र्णव (यङ्ग का साप न होना), भक्षऺका (धचह्न) से मुक्त (काक) ऩद के धचह्न से मुक्त, दयाय-मुक्त एर्ॊ शकवया (फारुका) मुक्त भर्णमाॉ ॥१६०॥ मरङ्गस्थाऩनभ ् सरङ्ग की स्थाऩना - फुविभान व्मन्क्त को फडे सरङ्ग की स्थाऩना अधधष्ठानतनसभवत होने ऩय, भध्मभ सरङ्ग की स्थाऩनादे र्ारम के आधा तनसभवत होने ऩय तथा छोटे सरङ्ग की स्थाऩना दे र्ारम के ऩणव होने ऩय कयनी चादहमे ॥१६१॥ मरङ्गस्थाऩनपरभ ् सरङ्ग-स्थाऩना का पर - र्र्णवत वर्धध से स्थावऩत सरङ्ग श्री, सौबाग्म, आयोग्म एर्ॊ बोग प्रदान कयता है । कही गई वर्धध से स्थाऩना न कयने ऩय स्र्ाभी (स्थाऩक) के सरमे वर्ऩन्त्तकायक तथा तनत्म योग एर्ॊ शोक प्रदान कयने र्ारा होता है ॥१६२॥

अध्माम ३४ ऩीठ-रऺण - अफ भै (भम) तनष्कर (न्जसभे दे र्ो के अॊग न तनसभवत हो) सरङ्गो एर्ॊ सकर (दे र्भततवमों) के ऩीठ (आधाय) के साभाधम तनमभो के अनुसाय रऺणों का र्णवन कय यहा हॉ ॥१॥ ऩीठद्रव्माणण ऩीठों के द्रव्म - (ऩीठ एर्ॊ सरङ्गादद का) तनभावण एक ही जातत के द्रव्म से कयना चादहमे । कई द्रव्मो का सभश्रण प्रशस्त नही होता है । कुछ वर्द्र्ान प्रस्तय एर्ॊ काष्ठतनसभवत सरङ्गादद भे ऩकी ईट से तनसभवत ऩीठ के वर्षम भे

कहते है । भर्णसरङ्गो एर्ॊ धाततु नसभवत सरङ्गो भें धाततु नसभवत वऩण्ड होना चादहमे । स्री-सशरा को रेकय सरङ्ग के ऩीठ का बरी-बाॉतत तनभावण कयना चादहमे ॥२-३॥ ऩीठप्रभाणभ ्

ऩीठ का प्रभाण - कतनष्ठ ऩीठ (सरङ्ग के) ऩजाबाग का दग ु न ु ा होता है एर्ॊ श्रेष्ठ ऩीठ सरङ्ग की ऊॉचाई के फयाफय

होता है । इन दोनों के भध्म आठ बाग कयने ऩय नौ प्रकाय के ऩीठ-वर्स्ताय प्राप्त होते है । उत्तभ, भध्मभ एर्ॊ हीन के तीन-तीन बेद कहे गमे है ॥४॥ अथर्ा हीन (सफसे छोटा) ऩीठ सरङ्ग की ऊॉचाई का आधा एर्ॊ श्रेष्ठ ऩीठ सरङ्ग की ऊॉचाई से चतुथांश कभ होता है । इन दोनो के भध्म आठ बाग कयने ऩय ऩीठ का व्मास ऩर्वर्णवन के अनुसाय होता है ॥५॥

ऩीठ की चौड़ाइ सरङ्ग की ऩरयधध की तीन गन ु ी, ऩरयधध के फयाफय मा गबवगह ृ के तीसये बाग के फयाफय मा चौथे बाग के फयाफय अथर्ा सरङ्ग की चौड़ई की दग ु ुनी, ढाई गुनी मा तीन गुनी होनी चादहमे ॥६-७॥

ऩीठ के वर्स्ताय को आठ बाग कभ यखना चादहमे । इसके ऊऩय सजार्ट होती है । वर्स्ताय को मा तो आठ बाग कभ यखना चादहमे मा आठ बाग फढ़ाकय यखना चादहमे । सबी ऩीठों के भर बाग (नीचे का) वर्स्ताय जधभबाग तक होता है एर्ॊ ऊऩयी बाग का वर्स्ताय भहाऩदट्टका तक होता है । मह वर्ष्णुबाग के फयाफय, सर्ा बाग मा डेढ बाग अधधक होता है ॥८-९॥ ऩीठाकाय् ऩीठ की आकृतत - ऩीठ की आकृतत चौकोय, अष्टकोण, षटकोण, फायहकोण, सोरह कोण, र्त्ृ ताकाय मा उधही भें

आमताकाय हो सकती है । मह बरकोण मा अधवचधद्र बी हो सकती है । इस प्रकाय इसकी चौदह आकृततमाॉ हो सकती है ॥१०-११॥

सभ ऩीठ सरङ्गो के अनक ु र होते है । आमत ऩीठ सकर (भततवमों) के सरमे होते है । बरकोण एर्ॊ अधवचधद्र ऩीठ क्रभश् तनष्कर (सरङ्ग) एर्ॊ सकर (भततव) के अनुकर होते है ॥१२॥ ऩीठनाभानन ऩीठो के नाभ - नौ ऩीठों के नाभ इस प्रकाय कहे गमे है - बद्रऩीठ, ऩद्मऩीठ, र्ज्रऩीठ, भहाम्फुज, श्रीकय, ऩीठऩद्म, भहार्ज्र, सौम्मक एर्ॊ श्रीकाभाख्म । बरकोण एर्ॊ अधवचधद्र ऩीठ अऩने नाभ के अनुरूऩ होते है ॥१३-१४॥ अफ ऊॉचाई एर्ॊ अनेक बागों के अनुसाय ऩीठों के सजार्टों का र्णवन ककमा जा यहा है ॥१५॥ बद्रऩीठभ ् बद्रऩीठ - ऩीठ की ऊॉचाई के ऩधद्रह बाग ककमे जाते है । इसभें दो बाग से जधभ (न्प्रधथ), चाय बाग से र्प्र, डेढ़ बाग से ऩद्मक, आधे बाग से कुम्ब, दो बाग से ऺेऩण, ऊध्र्व बाग भें आधे बाग से ग्रीर् तथा उसी प्रकाय ऺेऩण की ऊॉचाई होती है । दो बाग से ऩट्ट एर्ॊ आधे बाग स स्नेहर्ायी होती है । मे बद्रऩीठ के साभाधम र्ैसशष्टम है , जो

प्रसधनता प्रदान कयते है । मे ब्राह्भणो, याजाओॊ, र्ैश्मों एर्ॊ दसयो को श्री, सौबाग्म, आयोग्म एर्ॊ बोग प्रदान कयते है ॥१६-१७॥ ऩद्मऩीठभ ्

ऩद्मऩीठ - ऩद्म ऩीथ की ऊॉचाई को सोरह बागों भें फाॉटना चादहमे । दो बाग से ऩट्ट, ऩाॉच बाग से ऩद्म, दो बाग से र्त्ृ त, चाय बाग से दर, दो बाग से ऩट्ट एर्ॊ एक बाग से घत ृ र्ारय होना चादहमे ॥१८॥ िज्रऩद्मऩीठभ ् र्ज्रऩीठ - ऩीठ की ऊॉचाई के चौदह बाग होते है । जधभ डेढ़ बाग से , तनम्न आधा बाग से, ऩद्म साढे तीन बाग से क्रभश् होते है । ऩट्ट एर्ॊ तनम्न आधे-आधे बाब से तथा र्ज्र, तनम्न एर्ॊ कम्ऩक ऩहरे के सभान होते है । तीन बाग से ऩद्म, आधे बाग से तनम्न, उसके ऊऩय डेढ़ बाग से ऩदट्टका होती है । हर्न के सरमे आधे बाग से ऩीठ का तनभावण कयना चादहमे । इस ऩीठ का नाभ र्ज्रऩीठ है एर्ॊ मह सबी सरङ्गो के सरमे प्रशस्त होता है ॥१९-२०॥ भहाब्जऩीठभ ् भहाब्ज ऩीठ - ऩीठ की ऊॉचाई के अट्ठायह बाग कयने चादहमे । जधभ ढाई बाग से , अब्ज चाय बाग से, ऩट्ट आधे बाग से, तनम्न डेढ बाग से, ऩङ्कज ढाई बाग से, र्त्ृ त आधे बाग से, अब्ज आधे बाग से, तनम्न आधे बाग से, ऩट्ट तीन

बाग से, ऩॊकज आधे बाग से तनसभवत होते है । श्रीऩट्ट डेढ़ बाग से एर्ॊ उसका स्नेह -बाय आधे बाग से होता है । इस ऩीठ की सॊऻा भहाब्ज होती है एर्ॊ मह भनुष्मों तथा ऋवषमों द्र्ाया तनसभवत सरङ्ग के सरमे प्रशस्त होता है ॥२१-२२॥ श्रीकयऩीठभ ् श्रीकय ऩीठ - ऩीठ की ऊॉचाई के सोरह बाग कयने चादहमे । एक बाग से जधभ, तीन बाग से र्प्र, चाय बाग से ऩद्म, आधे बाग से ह्रद्, दो बाग से र्त्ृ त, आधे बाग से धग ृ ,् तीन बाग से ऩद्म, डेढ़ बाग से ऩदट्टका, स्नेहर्ारय आधे बाग से तथा उसकी चौड़ाई बी उतने ही बाग से होती है । नार का व्मास तीन मा चाय बाग से एर्ॊ इसका तनगवभ तीन बाग से होता है । इसका अग्र श्रीप्रदान कयने र्ारा होता है एर्ॊ मह ऩीठ श्रीकय सॊऻक होता है ॥२२-२४॥ ऩीठऩद्मऩीठ ऩीठऩद्म ऩीठ - ऩीठऩद्म ऩीठ की ऊॉचाई को दस बागों भें फाॉटा जाता है । खुय डेढ़ बाग, तनम्न आधा बाग, अब्ज ढाई बाग, ऩट्ट आधा बाग, तनम्न आधा बा, ऩट्ट आधा बाग, अब्ज ढाई बाग, तनम्न आधा बाग, ऩट्ट डेढ़ बाग एर्ॊ तनम्न आधा बाग से तनसभवत होता है ॥२५॥ भहािज्रसौर्ममऩीठे भहार्ज्र एर्ॊ सौम्म ऩीठ - ऩीठ की ऊॉचाई को ऩधद्रह बागों भें फाॉटना चादहमे । जधभ डेड़्ह बाग से , तनम्न एक बाग से, ऩट्ट चाय बाग से अथर्ा जधभ डेढ़ बाग से, तनम्न एक बाग से, ऩङ्कज चाय बाग से, र्ज्र ढाई बाग से, र्त्ृ त डेढ बाग से, कञ्ज ढाई बाग से, उसके ऊऩय ऩट्ट डेढ़ बाग से एर्ॊ तनम्न आधे बाग से होता है । इस सौम्म ऩीठ को

भहार्ज्र कहते है । मह सबी प्रकाय की सम्ऩततमाॉ प्रदान कयता है । र्ही जफ र्त्ृ त र्ज्राकाय हो तो उस सौम्म ऩीठ को तुङ्ग कहते है । मह सम्ऩन्त्त एर्ॊ आमु प्रदान कयता है ॥२६-२७॥ श्रीकार्ममऩीठ

श्रीकाम्म ऩीठ - ऩीठ की ऊॉचाई को फायह बाग भें फाॉटा जाता है । जधभ एक बाग से , र्प्र दो बाग से, तनम्न आधे बाग से, ऩद्म डेढ़ बाग से, धग्ृ दर डेढ़ बाग से, र्त्ृ त डेढ़ बाग से, अब्ज डेढ़ बाग से, धक ृ ् आधे बाग से, ऩद्म आधे बाग से, ऩदट्टका डेढ़ बाग से एर्ॊ तनम्न आधे बाग से होता है । इसे श्रीकाम्म ऩीठ कहते है , न्जसका र्णवन भैने (भम ने) ककमा ॥२८-२९॥ ऩीठसाभान्मरऺण ऩीठ के साभाधम रऺण - बर्नों के अधधष्ठान इस प्रकाय होने चादहमे , न्जससे कक उसके अरॊकयण उस (बर्न) के अनुसाय हो अथावत बर्न एर्ॊ अधधष्ठान (अथर्ा ऩीठ) भें एकरमता हो । सबी ऩीठों के अॊगो के प्रर्ेश एर्ॊ तनगवभ इस प्रकाय तनसभवत होने चादहमे कक न्जससे ऩीठ दृढ, सुधदय एर्ॊ उधचत रगे ॥३०-३१॥

ऩीठ के प्रणार का भर-वर्स्ताय एर्ॊ रम्फाई क्रभश् ऩीठ के वर्स्ताय के तीसये बाग तथा चौथे बाग के फयाफय होती है । प्रणार के अग्रबाग का वर्स्ताय भर के वर्स्ताय के आधे, दो ततहाई मा तीसये बाग के फयाफय होता है । इसकी भोटाई इसकी चौड़ाई के तीन चौथाई के फयाफय होती है ॥३२-३३॥ प्रणार की आकृतत हाथी के ओष्ठ के सभान मा गाम के भुख के सभान होनी चादहमे । इसके तनम्न खात (गड्ढा)

की चौड़ाई प्रणार की चौड़ाई के तीसये बाग के फयाफय भर एर्ॊ अग्र बाग भें होनी चाइमे । अबीष्ट ददशा भें सरङ्ग होने ऩय ऩीठ के भध्म के र्ाभ बाग भें प्रणार होता है । इसे आधायमुक्त फनाना चादहमे ॥३४-३५॥ अग्र ऩट्ट की चौड़ाई इसकी रम्फाई के फयाफय मा सर्ा बाग, आधा मा तीन चौथाई इसकी दृढ़ता के अनुसाय यखनी

चादहमे । भुतनमों के अनुसाय उस ऩट्ट का गतव ऩट्ट की भोटाई के फयाफय गहया फनाना चादहमे । इस खात के तर को इस प्रकाय तनसभवत कयना चादहमे, न्जससे कक उसका तर क्रभश् फढते हुमे सरङ्ग से सभरे । सशर्तत्त्र् का भर ऩीठ के ऊऩयी तर से थोडा नीचा होना चादहमे । मदद उस उससे ऊॉचा होगा तो सबी का अशुब होता है ॥३६-३८॥ अधवचधद्र ऩीठ का धनुषाकाय बाग द्र्ाय के साभने होना चादहमे तथा बरकोण ऩीठ का सीधा बाग द्र्ाय के सम्भुख होना चादहमे । वर्द्र्ानों के अनुसाय ऩीठ के कोण को द्र्ाय-सर का र्ेध नही कयना चादहमे ॥३९॥

एक ही ऩत्थय से वर्ना सन्धध के तनसभवत ऩीठ शुब होता है । मदद एक ही ऩत्थय न प्राप्त हो तो ऩीठ का ऊऩयी बाग एक ऩत्थय का होना चादहमे । छोटे एर्ॊ फड़े ऩीठ भें भध्म बागों भें सन्धध नही होनी चादहमे ॥४०-४१॥

ऊऩयी बाग भें ऩीठ के बागो की सन्धध अधत भें होनी चादहमे । प्रणार के भध्म भें , (ऩीठ के) आधे बाग के भध्म भें एर्ॊ कोणों ऩय सन्धध नही होनी चादहमे ॥४२॥ रम्फे एर्ॊ छोटे बागों के दक्षऺण एर्ॊ र्ाभ बाग को तनमभानुसाय जोड़ना चादहमे । ऩीठ के तनचरे बाग को तीन खण्डो भें अथर्ा आर्श्मकतानुसाय फनाना चादहमे ॥४३॥ ब्रह्भमिरा ब्रह्भसशरा - ब्रह्भसशरा की सफसे फडी चौड़ाइ सरङ्ग की ऊॉचाई के फयाफय होती है । सफसे छोटा भाऩ सरङ्ग के ऩजा बाग की ऊॉचाई का दग ु ुना होता है । इन दोनों के भध्म के अधतय को आठ बागों भें फाॉटते है । इस प्रकाय वर्स्ताय

के नौ प्रकाय फनते है । इसकी सफसे अधधक भोटाई वर्स्ताय की आधी होती है एर्ॊ सफसे कभ भोटाई चौडाई की चतुथांश होती है । इन दोनों के भध्म के बेद को ऩहरे के सभान फाॉटते है ॥४४-४५॥ अथर्ा ब्रह्भसशराकी श्रेष्ठ चौड़ाई सरङ्ग की ऩरयधध की दग ु न ु ी होती है । सफसे कभ चौड़ाई (सरङ्ग की ऩरयधध) डेढ गुनी होती है । इसकी भोटाई चौड़ाई की तीन चौथाई होती है । सफसे कभ भाऩ चौड़ाई की आधी होती है । व्मास एर्ॊ भोटाई (मा ऊॉचाई) के दोनो भाऩों के भध्म के बेद ऩहरे के सभान नौ बेद फनते है ॥४६॥

(सरङ्ग के) ब्रह्भ बाग को स्थावऩत कयने के लमे (ब्रह्भसशरा) के भध्म भें ब्रह्भतत्त्र् के आकाय के अनस ु ाय गड्ढा

फनाना चादहमे । गतव की गहयाई उसकी चौड़ाई के आधी होती है अथर्ा सरङ्ग के तनचरे बाग की ऊॉचाई के आठर्े बाग के फयाफय होती है । इसभें यत्नों को यखना चादहमे एर्ॊ इसभें सरङ्ग के भर बाग को बरी बाॉतत- दृढताऩर्वक स्थावऩत कयना चादहमे । ब्रह्भसशरा को नऩुॊसक सशरा से तनसभवत कयनी चादहमे ।॥४७-४९॥ नन््माितामिरा नधद्मार्तव सशरामे - चाय सशरामे प्रदक्षऺणक्रभ से ब्रह्भसशरा एर्ॊ ऩीठ के भध्म के अर्काश भें नधद्मार्तव आकृतत तनसभवत कयती है ॥५०॥ प्रनतभाऩीठ प्रततभाओॊ के ऩीठ - भततवमों की ऩीठों भें कुछ स्थानक (खड़ी) एर्ॊ कुछ आसन (फैठी) प्रततभाओॊ के अनुकर होती है । आसन-प्रततभाओॊ के (ऩीठ की चौड़ाई) (उन प्रततभाओॊ से) एक, दो, तीन, चाय, ऩाॉच मा छ् अॊगुर अधधक होती है ।

इसकी रम्फाई उसकी चौड़ाई से आठ बाग अधधक होती है । ऩीठ की चौड़ाई (प्रततभा की) चौड़ाई के दग ु न ु े से अधधक नही होनी चादहमे ॥५१-५२॥

ऩीठ की ऊॉचाई प्रततभा की ऊॉचाई के तीसये बाग के फयाफय होती है , मदद शमन प्रततभा हो । आसन-प्रततभा भें चौथे बाग एर्ॊ स्थानक प्रततभा भें ऩाॉचर्े बाग के फयाफय ऩीठ होता है । शमन प्रततभा के (ऩीठ की) रम्फाई एर्ॊ चौड़ाई मथोधचत (ऩर्वर्र्णवत) यीतत से ग्रहण कयनी चादहमे ॥५३॥ ब्रह्भा आदद दे र्ों एर्ॊ दे वर्मों के आसन को ससॊहासन कहते है । जफ इसे ऩीठ ऩय स्थावऩत ककमा जाता है , तफ इसके ऩाद ससॊह के सदृश होते है । इसके तीन औय तयङ्गे तनसभवत होती है एर्ॊ मह वर्सबधन अरॊकयणो से सुसन्ज्जत होता है । इस ससॊहासन की तनभावणवर्धध को दे खकय इसक अरॊकयण कयना चादहमे ॥५४-५५॥ ऩीठभान प्रासादभान ऩीठ के प्रभाण के अनुसाय प्रासाद का प्रभाण - फाणसरङ्ग आदद के, ऋवषमों द्र्ाया तनसभवत सरङ्गो के तथा स्र्मम्ब सरङ्गो के ऩीठो का तनभावण फवु िभान व्मन्क्त इच्छानस ु ाय प्रासाद की आकृतत का कय सकता है । ऩर्वर्र्णवत

ऩुरुषतनसभवत सरङ्गो के ऩीठ के वर्स्ताय आददके भाऩ ऩहरे कहे गमे तनमभो के अनुसाय होने चादहमे । ऩीठों के

प्रभाण के अनुसाय वर्भान (दे र्ारमो) के वर्स्ताय का सम्मक प्रकाय से र्णवन ककमा जा यहा है । नारीगेह (गबवगह ृ )

का वर्स्ताय ऩीठ का दग ु ुना, चौगुना मा ऩाॉच गुना होना चादहमे मा ऩहरे के सभान (भाऩ के अनुसाय) तनसभवत कयना चादहमे । इसकी सबन्त्त की भोटाई इसके तीसये बाग मा आधे के फयाफय होती है । मह अधधाय (ऩरयक्रभाभागव) से

मक् ु त मा वर्ना अधधाय के हो सकती है । कट एर्ॊ कोष्ठ आदद ऩहरे के सदृश (तनसभवत) होते है । प्रासाद का र्णवन सरङ्ग के प्रभाण के अनुसाय ककमा गमा है , न्जसकी ऊॉचाई ऩहरे के सभान होती है ॥५६-६०॥ फेयभानत प्रासादभान फेय - प्रततभा के भान के अनुसाय दे र्ारम का प्रभाण - दे र्ारम का तनभावण न्जस प्रकाय बर्न के स्तम्ब एर्ॊ द्र्ाय

के प्रभाण के अनस ु ाय होता है , उसी प्रकाय प्रततभा के प्रभाण के अनुसाय बी होता है । इसी प्रकाय आकायमुक्त प्रततभा के अनस ु ाय बी दे र्ारम का तनभावण कयना चादहमे । (गबव) गहृ का वर्स्ताय फेय की रम्फाई के फयाफय, उससे डेढ गन ु ा मा दग ु ुना होना चादहमे । (अथर्ा) फेय के ऩाॉच बाग भें तीन बाग के फयाफय वर्स्ताय यखना चादहमे । (अथर्ा) फेय

(की रम्फाई) गह ृ के वर्स्ताय के चाय बाग, तीन बाग मा आधे के फयाफय एर्ॊ (गबवगह ृ की चौड़ाई) (उसकी ऊॉचाई) की आधी होनी चादहमे ॥६१-६३॥ अष्टफन्धसॊग्रहण अष्टफधध= गाया का सॊग्रह - राऺा (राख), गड ु , भधु, उन्च्छष्ट गग्ु गर ु की सभान भारा एर्ॊ इसका दग ु न ु ा सजवयस

(सार र्ऺ ृ का यस) रेना चादहमे । इसभें गैरयकचणव एर्ॊ इसका आधा घनचुणव (सम्बर्त् ईट का चणव) रेना चादहमे । इन सबी का आधा तेर रेकय रोह (धातु) के ऩार भें डारना चादहमे । इन सबी को रोह (धातु) के करछुर से

चराकय (सभराकय) धीभी आॉच ऩय ऩकाना चादहमे । इसे अष्टफधध कहते है । मह प्रस्तय के सभान दृढ़ता से जोड़ता है ॥६४-६६॥ गबवगह ृ भें फेय के स्थान - (दे र्ारम) कताव की इच्छा के अनुसाय एक मा अनेक सरङ्गों की स्थाऩना कयनी चादहमे । इसे भध्म भें , सबन्त्त के ऩाश्र्ो भें मा जहाॉ जहाॉ चायो ओय चाहे , स्थावऩत ककमा जा सकता है । दे र्ारम एक मा कई हो सकते है । इनभे शर एर्ॊ सरङ्ग र्ारा बर्न अधम बर्नों से फड़ा होना चादहमे । शेष बर्नो को फवु िभान स्थऩतत को उससे हीन फनाना चादहमे ॥६७-६८॥

गबव-गह ृ को उनचास बागों भें फाॉटना चादहमे । भध्म के आठ बागों भें ब्रह्भा का ऩद होता है । चायो ओय आठ बाग आठो दे र्ताओॊ के सरमे, इसके फाहय सोरह बाग भनष्ु मों के सरमे एर्ॊ फाहय के चौफीस बाग वऩशाच के सरमे होते है ॥६९॥

सशर्सरङ्ग को ब्रह्भा के बाग भे, वर्ष्णु को दे र्ों के बाग भें,अधम दे र्ोभ को भनष्ु मों के बाग भें , वऩशाचबाग भें

भातद ृ े र्ों, असुयों, याऺसों, गधधर्व आदद दे र्ो, मऺो एर्ॊ अधम शेष दे र्ों की स्थाऩना कयनी चादहमे । भध्म भे ब्रह्भा का सर होता है । उसके र्ाभ बाग भें सशर् तथा दोनो के भध्म भें वर्ष्णुसर होता है । दे र्ों को क्रभश् वर्ष्णुसर ऩय स्थावऩत कयना चादहमे । मे सर ददशाओॊ से खीॊचे जाते है ॥७०-७१॥

सरङ्ग सकर (अॊगो से मुक्त), अकर (अॊगवर्हीन) मा सभधश्रत हो, फुविभान स्थऩतत को सार्धान होकय न्स्थयताऩर्वक उसे स्थावऩत कयना चादहमे । (स्थऩतत को) सुर्णव मऻोऩर्ीत तथा आबषणों से सुसन्ज्जत होकय, सबी प्रकाय के र्ैबर् से मुक्त होकय (सरङ्ग के) स्थाऩक के साथ (सशर्सरङ्ग) की स्थाऩना कयनी चादहमे । सर्ावत्भ सरङ्ग

(साभाधमतमा आकृततहीन होने के कायण) आकाशरूऩ होते है । इससरमे भनुष्मतनसभवत सरङ्ग ही स्थाऩना के मोग्म

होते है । वर्द्र्ान अर्सय के अनस ु ाय इसे अर्काशमक् ु त (ऩमावप्त फड़े) दे र्ारम भें स्थावऩत कयते है । र्े भध् ु नेष्टका (सशयोबाग की सशरा) को सरङ्गस्थाऩना के ऩश्चात स्थावऩत कयते है ॥७२-७३॥

इस प्रकाय तनष्कर सरङ्गो के ऩीठ, आसन, भण्डन एर्ॊ प्रणार होते है । भनष्ु मतनसभवत सरङ्गो को दे र्ारम भें तनमभानुसाय स्थावऩत ककमा जाता है ॥७४॥

अध्माम ३५ जीणोद्धाय- विधान अफ भै (भम) हम्मो (भन्धदयो), सरङ्गो, ऩीठो, प्रततभाओॊ एर्ॊ अधम र्ास्तु-तनभावणों के अधम रऺणों से अनुकभववर्धध का सॊऺेऩ भें उनके क्रभ से बरी-बाॉतत र्णवन कयता हॉ ॥१॥ बिनजीणोद्धाय बर्न का जीणोिाय - बर्न (दे र्ारम) टट सकता है, धगय सकता है , टे ढ़ा हो सकता है , ऩयु ाना हो सकता है मा जीणव

हो सकता है । अथर्ा इसकी जातत, छधद, वर्कलऩ मा आबास सॊस्थान से सबधन हो सकती है । अथर्ा इसकी जातत, छधद, वर्कलऩ मा आबास सॊस्थान से सबधन हो सकती है । न्जन (दे र्ारमों) का रऺण स्ऩष्ट न हो, र्हाॉ स्थावऩत सरङ्ग के बेद के अनुसाय (अनुकभववर्धान होना चादहमे) इसभें अधम द्रव्म, अच्छे द्रव्म, नर्ीन घय, वर्स्ताय एर्ॊ ऊॉचाई आदद से उधचत आम आदद का तनधावयण तथा अरॊकयण आदद से (अनक ु भव होना चादहमे) ॥२-४॥

न्जन दे र्ारमों के प्रधान अॊगो एर्ॊ उऩाॊगो के रऺण प्राप्त हो यहे हो, उनका (अनुकभववर्धान) उधही के द्रव्मों से कयना चादहमे । मदद उनभें ककसी तत्त्र् की कभी हो मा कोई औय अबार् हो तो वर्द्र्ानों के अनस ु ाय उसे ऩणव कयना

चादहमे । इससे र्े ऩणवता को प्राप्त कयते है एर्ॊ सौम्म यीतत से द्रव्मों का प्रमोग कयना चादहमे । मह सफ ऊॉचाई आदद के अनुसाय होना चादहमे एर्ॊ उनको सौन्ष्ठक एर्ॊ कोष्ठ आदद अरॊकायो से मुक्त कयना चादहमे । वर्ना उसभें कुछ जोड़े उसके र्ास्तवर्क स्र्रूऩ को फनामे यखना चादहमे ॥५-७॥

नागय दे र्ारम भें नागय दे र्ारम (का अनक ु भव-वर्धान) कहा गमा है । इसी प्रकाय द्रावर्ड दे र्ारम भें द्रावर्ड एर्ॊ र्ेसय

दे र्ारम भें र्ेसय प्रशस्त कहा गमा है । अवऩवत बर्न भें बी अवऩवत (बर्न का अनुकभव-वर्धान) होना चादहमे । अवऩवत से सबधन बर्न (दे र्ारम) भें अवऩवत से सबधन बर्न (का अनुकभव-वर्धान) होना चादहमे ॥८॥

वर्द्र्ान व्मन्क्त को र्ास्तु (बर्न) तनभावण भें सबी मोजनीम बागों को उधचत यीतत से प्रमत्नऩर्वक जोड़ना चादहमे । वर्भान को प्राकाय से सॊमुक्त कयना चादहमे । सार बर्न के बीतय एर्ॊ फाहय प्राकाय वर्कलऩ से होता है (अथावत ् हो बी सकता है , नही बी हो सकता है ) । दे र्ारम भें गततमों (चरने का भागव) का तनभावण तनमभानुसाय होना चादहमे,

न्जनका र्णवन भै (भम) महाॉ कय यहा हॉ । इनकी ऊॉचाई भर बर्न के सभान मा उससे अधधक होनी चादहमे , अथर्ा

इच्छानस ु ाय स्र्ीकयणीम होता है । ददशाओॊ भें न्जनकी मोजना की जाती है , उनकी ऊॉचाई भर बर्न के सभान होती

है । ददक्कोणों भें मह अधधक ऊॉची होती है , ककधतु वर्भान के तनष्क्रभ को आठर्े बाग मा चौथे बाग से अधधक नही होना चादहमे । इसे आर्श्मकतानुसाय तनसभवत कयना चादहमे ॥९-११॥

सार की र्वृ ि उत्तय ददशा, ऩर्व ददशा मा चायो ओय तनमभानस ु ाय कयनी चादहमे । बर्न के जीणव होने ऩय तनभावणकामव उसी स्थान ऩय मा अधम स्थान ऩय कयना चादहमे । र्ास्तुवर्द ददशाओॊ एर्ॊ ददक्कोणों भें मा उससे फाहय इसका

तनभावण प्रशस्त नही भानते । इससे वर्ऩयीत कयने ऩय वर्ऩन्त्त आती है ; अत् ऩर्ोक्त क्रभ से ही तनभावण कयना चादहमे । नष्ट र्ास्तु को छोड़कय ऩुन् गबववर्धान (सशराधमास) से बर्नतनभावण कयना चादहमे ॥१२-१४॥ मरङ्गजीणोद्धाय सरङ्ग का जीणोिाय - सॊसाय भेभ वर्ऻजन इन सरङ्गों को सदासशर् (सदा असशर्, अप्रशस्त) कहते है । मे है - धगया हुआ सरङ्ग, पटा हुआ, न्जसके चायो ओय चरना कदठन हो, टे ढा, अधोगत सरङ्ग, सरङ्ग से ऊध्र्वगत सरङ्ग, ककसी की कलऩना से तनसभवत सरङ्ग, अऻानी द्र्ाया स्थावऩत सरङ्ग, टटा हुआ सरङ्ग, जरा हुआ सरङ्ग, जीणव सरङ्ग, टटा-पटा सरङ्ग, चायो द्र्ाया छोड हुआ सरङ्ग, दवषत स्थान का सरङ्ग, अशुि व्मन्क्त द्र्ाया छुआ गमा सरङ्ग एर्ॊ वर्ऩयीत तनमभो से मुक्त सरङ्ग ॥१५-१७॥

मदद सरङ्ग धगय जाम तथा ककसी अऻानी व्मन्क्त द्र्ाया उसे स्थावऩत कय ददमा जाम तो उसके स्थान ऩय दसया ऐसा सरङ्ग स्थावऩत कयना चादहमे , न्जसे समव की ककयणें बी न स्ऩशव की हो । जो सरङ्ग अऩवर्र र्स्तुओॊ के भध्म भें यक्खा हो, मा जो ऩीठ के खात के तनचरे तर का स्ऩशव कये , अथर्ा जो ऩीदठका के ऊऩय न ददखाई ऩडे, उसे

'तुच्छ' सरङ्ग कहते है । न्जस सरङ्ग की ददशा सही न हो, र्ह बी उसी प्रकाय (तुच्छ ) होता है । वर्द्र्ान ् व्मन्क्त र्क्र एर्ॊ र्क्रर्त्ृ तॊ सरङ्ग को भाऩ के अनुसाय ठीक कय सकता है ॥१८-२०॥

जो सरङ्ग ऻात कार तक बसभ भें गड़ा हो, उसे अधोगत सरङ्ग कहते है । इसे फाहय तनकार कय इसका भाऩ कयना चादहमे । अऻात कार से गड़े सरङ्ग को ऊध्र्वगत सरङ्ग कहते है । मदद इसभें कोई दोष न हो तो उसे ऩुन् उसी स्थान ऩय स्थावऩत कयना चादहमे ॥२१-२२॥

मदद सरङ्ग नदी भें धगय जाम तो उसे तनकार कय उसके ऩयु ाने स्थान से एक सौ दण्ड दय ददव्म सरङ्ग की वर्धध से ऩवर्र स्थान ऩय ऩर्वभुख वर्धधऩर्वक स्थावऩत कयना चादहमे ॥२३॥

मदद कोई सरङ्ग सबी रऺणों से मक् ु त हो; ककधतु भधर एर्ॊ कक्रमा से यदहत एर्ॊ अऻानताऩर्वक स्थावऩत हो तो उसे

वर्धधऩर्वक ऩुन् स्थावऩत कयना चादहमे । हीन, जरे हुमे, जीणव, पटे एर्ॊ टटे हुमे सरङ्ग को, चाहे उसकी ऩजा हो यही हो । तो बी उसका त्माग कय नर्ीन सरङ्ग की ऩुन् स्थाऩना कयते सभम अऻानतार्श ऊऩय का बाग नीचे स्थावऩत हो जाम, मा इसका भुख अधम ददशा भें हो, मा अचानक वर्ऩयीत हो जाम तो उस सरङ्ग का तुयधत ऩरयत्माग कय उसके स्थान ऩय तनमभऩर्वक नर्ीन सरङ्ग की स्थाऩना कयनी चादहमे ॥२४-२६॥

सबी रऺणों से मुक्त होने ऩय बी तर मा अऺ (अथावत ् उधचत आकृतत न होने ऩय) से यदहत होने ऩय अथर्ा त्माज्म ऺेर भें होने ऩय र्ह सरङ्ग स्थाऩना के मोग्म नही होता है , अत् उसका ऩणव रूऩ से त्माग कयना चादहमे । उसके स्थान ऩय नर्ीन सरङ्ग की वर्धधऩर्वक स्थाऩना कयनी चादहमे । मदद ककसी सरङ्ग को चोय छोड़ गमे हो एर्ॊ र्ह ऩञ्च-सधधान के बीतय धगया हो तथा र्ह सरङ्ग दोषयदहत हो तो उसे र्ही ऩय वर्धधऩर्वक स्थावऩत कयना चादहमे ॥२७-२८॥

चाण्डार एर्ॊ शद्र आदद द्र्ाया स्ऩशव ककमा गमा सरङ्ग (ऩजा के सरमे) अमोग्म कहा गमा है । मदद नदी के तट ऩय स्ऩशव ककमा गमा हो एर्ॊ र्ह सरङ्ग भन्धदयवर्हीन हो तो उसे ऩर्व ददशा मा उत्तय ददशा भें अधमर ऩवर्र स्थान ऩय रे जाकय ऩर्वर्र्णवत वर्धध द्र्ाया रामे गमे सरङ्ग के सभान सम्मक् प्रकाय से स्थावऩत कयना चादहमे । मदद फेय (प्रततभा) को बी ऩरयन्स्थततर्श नमे स्थान ऩय रे जामा एर्ॊ र्ह दोषहीन हो तो उसे स्थावऩत कयना चादहमे । इस वर्षम भें मदद कुछ न कहा गमा हो तो जो कुछ सरङ्ग के सरमे कहा गमा है , उसी वर्धध को भानना चादहमे ॥२९३१॥

कुछ वर्द्र्ानों के भतानुसाय मदद सरङ्ग फायह र्षों से अधधक सभम तक शधम (ऩजा आदद से यदहत, त्मक्त) यहा हो तो ऐसे सरङ्ग को दोषयदहत होने ऩय बी ग्रहण नही कयना चादहमे । फवु िभान व्मन्क्त को उसे शीि ही नदी भें प्रर्ादहत कय दे ना चादहमे ॥३२॥ ऩीठजीणोद्धाय ऩीठ का जीणोिाय - सशरा आदद द्र्ाया तनसभवत ऩीठॊ मदद दोषयदहत हो तबी उसका ग्रहण कयना चादहमे । ब्रह्भसशरा, अधम द्रव्म एर्ॊ वऩण्ड आदद का ग्रहण ऩहरे के सभान कयना चादहमे ॥३३॥ वर्ना रऺण के, हीन (अऩणव), टटे -पटे ऩीठ का त्माग कय ऩर्वर्र्णवत वर्धध से ऩीठ का तनभावण कयना चादहमे । ऩाषाणतनसभवत ऩीठ के स्थान ऩय ऩाषाणतनसभवत तथा काष्ठभम ऩीठ के स्थान ऩय काष्ठभम ऩीठ तनसभव त कयना चादहमे । मदद ऩर्व ऩीठ धगय जाम तो ऩहरे के सभान उधचत यीतत से तनभावण कयना चादहमे । प्रस्तय के प्राप्त न होने ऩय मा इष्टका-तनसभवत ऩीठ होने ऩय ऩीठ को इष्टका से ही तनसभवत कयना चादहमे ॥३४-३६॥ फेयजीणोद्धाय फेय का जीणोिाय - मदद प्रस्तयतनसभवत मा काष्ठतनसभवत फेय (प्रततभा) अऩणव हो तो उसका तुयधत त्माग कय नर्ीन

प्रततभा की ऩर्वर्र्णवत वर्धध से स्थाऩना कयनी चादहमे । उधचत भाऩ से मुक्त होने ऩय बी मदद फेय जीणव हो मा टटपट जाम तो उसका त्माग कय उसके स्थान ऩय नर्ीन फेये स्थावऩत कयना चादहमे ॥३७-३८॥

धातु-तनसभवत मा भन्ृ त्तकातनसभवत फेय हाथ, नाक, ऩैय, आबषण, कान एर्ॊ दाॉत आदद से यदहत हो तो उसे उसी द्रव्म

(धातु भें धातु एर्ॊ भन्ृ त्तका भें भन्ृ त्तका) द्र्ाया (उन अॊगो को) दृढ ककमा जाता है; ककधतु मदद प्रधान अॊग से यदहत हो तो उसे त्माग कय दसयी नर्ीन प्रततभा की स्थाऩना कयनी चादहमे ॥३९॥ साभान्मविथध साभाधम तनमभ - दे र्ारम, सरङ्ग, ऩीठ मा प्रततभाओॊ भें (जीणोिाय कयते सभम) उधही द्रव्मों मा उत्तभ द्रव्मों का प्रमोग कयना चादहमे । हीन द्रव्मों का प्रमोग कबी नही कयना चादहमे । (उऩमुक् व त के) जीणव हो जाने ऩय जो वर्द्र्ान उसका तनभावण (जीणोिाय) कयना चाहता है , उसे उसी द्रव्म से ऩर्वर्र्णवत यीते से वर्धधऩर्वक सभ (ठीक) कयना चादहमे । मदद उऩमक् ुव त हीन (कभ मा छोटे ) हो तो उसे ऩर्व-रूऩ के फयाफय कयना चादहमे । उससे अधधक कयने ऩय शुब की काभना कयने र्ारे को सदा सर्वदा अबीष्ट की प्रान्प्त होती है ॥४०-४२॥

हीन का तनभावण श्रेष्ठ द्रव्मों से कयना चादहमे मा ऩहरे प्रमक् ु त द्रव्म से कयना चादहमे । इसका भाऩ गबवगह ृ , स्तम्ब एर्ॊ द्र्ाय आदद के प्रभाण के अनुसाय होना चादहमे । मदद प्रततभा भन्ृ त्तका-तनसभवत हो तो उसे जर भें प्रर्ादहत

कयना चादहमे । काष्ठ-तनसभवत को अन्ग्न भें प्रज्ज्र्सरत कयना चादहम । धातुतनसभवत को अन्ग्न भें जराने ऩय शुि रूऩ (धातु) प्राप्त होता है ॥४३-४४॥

ग्राभादद का जीणोिाय - ग्राभ आदद का, गह ृ आदद का तथा शारा आदद का व्मास एर्ॊ रम्फाई (जीणोिाय के सभम)

भर से कभ नही होना चादहमे । मह प्रशस्त नही होता, ऐसा श्रेष्ठ भुतनमों का भत है । इसे उसके फयाफय फनामे मा उससे अधधक फनाना चादहमे । आर्श्मकतानुसाय इसे चायो ओय फढाना चादहमे अथर्ा ऩर्वर्र्णवत ददशा भें फढ़ाना चादहमे । दक्षऺण मा ऩन्श्चभ ददशा भें फढ़ाने ऩय र्स्तु (गह ृ ) का वर्नाश होता है ॥४५-४६॥

गह ृ मा भासरका भें ऊऩय के तर ऩर्वसॊख्मा के अनुसाय तनसभवत कयना चादहमे । उससे कभ कयना उधचत नही होता है । इसक अतनभावण ऩर्वर्र्णवत क्रभ से कयना चादहमे ॥४७॥ फारस्थाऩन फार-स्थाऩन - तनभावण-कामव के आयम्ब भे अथर्ा जीणव होने मा टटने ऩय, हीन अॊगो (अऩणव) के तनभावण भें , सरङ्ग अथर्ा फेय (प्रततभा) के धगयने, पटने, प्रधान अॊग के हीन होने (टटने मा खोने) ऩय, ऩीठफधध के सभम फार-स्थाऩन (साभतमक स्थाऩना) कयनी चादहमे ॥४८॥ प्रधान बर्न के उत्तय भें नौ स्तम्बो ऩय (फार बर्न) का स्थाऩन कयना चादहमे । फार-स्थाऩन का भाऩ प्रधान बर्न के तीसये , चौथे, ऩाॉचर्े मा छठे बाग के फयाफय होता है । अथर्ा इसका भाऩ तीन, चाय, ऩाॉच, छ् मा सात हाथ छोटे मा फड़े (बर्न के ) अनस ु ाय होना चादहमे ॥४९॥ (फारबर्न की) सबन्त्त की भोटई प्रधान बर्न के बतर के स्तम्ब की दग ु ुनी मा ततगनी होती है । शेष गह ृ नीचे होते है । मह (फारबर्न) सबा मा भण्डऩ हो सकता है ॥५०॥

(सरङ्ग की ऊॉचाई) गबवगह ृ के चतुथांश से रेकय आधे तक हो सकती है । इन दोनो भाऩों के भध्म के अधतय को

आठ से बाग दे ने ऩय (सरङ्ग) के नौ ऊॉचाई के भाऩ प्राप्त होते है । सरङ्ग की ऩरयधध उसकी ऊॉचाई के फयाफय होती है । मह अच्छी गोराई से मुक्त होता है एर्ॊ इसका सशयोबाग छर के सभान एर्ॊ सरहीन होता है ॥५१॥ तरुण सरङ्ग के नौ प्रभाण प्राप्त होते है । मह स्थाऩक के अॊगुसर-प्रभाण से ऩधद्रह अॊगुर भाऩ से प्रायम्ब होता है एर्ॊ एक-एक अॊगुर प्रत्मेक भें फढ़ामा जाता है । इसे ऩीठ भें इसकी रम्फाई के तीसये मा चौथे बाग के फयाफय गहयाई भें स्थावऩत ककमा जाता है ॥५२॥

तरुण सरङ्ग की सफसे अधधक ऊॉचाई प्रधान बर्न के भर बाग के फयाफय होती है एर्ॊ सफसे कभ ऊॉचाई उसकी आधी होती है । इन दोनों के भध्म के अधतय को आठ से बाग दे ने ऩय ऊॉचाइमों के नौ बेद प्राप्त होते है ॥५३॥ तरुण प्रततभा की ऊॉचाई के नौ बेद प्राप्त होते है । इसे सात अॊगुर से प्रायम्ब कय प्रत्मेक (अगरे चयण ऩय) दो

अॊगुर फढ़ाते जाना चादहमे । मह वर्धध सकर (अॊगमुक्त) एर्ॊ सकर (अॊगवर्हीन) दोनों (प्रकाय के प्रततभाओॊ, सरङ्गों) के सरमे कही गई है ॥५४॥

जफ कोई तरुण प्रततभा ऩजन के सरमे तनसभवत हो तो उसकी सफसे अधधक ऊॉचाई भर चर प्रततभा की आधी तथा सफसे कभ ऊॉचाई उसके चतुथांश होनी चादहमे । इन दोनों भाऩो के भध्म के भाऩ को आठ से बाग दे ने ऩय ऊॉचाई के नौ प्रभाण प्राप्त होते है ॥५५॥

तरुण ऩीठ की सफसे अधधक ऊॉचाई एर्ॊ वर्स्ताय भर अचर ऩीठ के फयाफय होती है एर्ॊ सफसे कभ भाऩ उसका तीन चौथाई होता है । इन दोनों भाऩों के भध्म के अधतय भें आठ से बाग दे ने ऩय ऊॉचाई एर्ॊ वर्स्ताय के नौ भाऩ प्राप्त होते है ॥५६॥ तरुण दे र्ारम भें प्रततभा मा सरङ्ग प्रस्तय, रोह (धातु) अथर्ा काष्ठतनसभवत होते है । (फार अथर्ा तरुण) सरङ्ग के सरमे अनुकर र्ऺ ु ॥५७॥ ृ सयर, कारज, चधदन, सार, खददय, भारुत, ऩीऩर एर्ॊ ततधदक

तरुणारम भें स्थावऩत होने र्ारी सरङ्ग मा प्रततभा होनी चादहमे । जफ तक प्रधान दे र्ारम का तनभावण नही होता है एर्ॊ जफ तक र्ान्ञ्छत रक्ष्म ससि नही हो जाता, तफ तक के सरमे ही इसे कयना चादहमे । प्राचीन भनीवषमों के अनुसाय तरुणारम को फायह र्षव से अधधक नही कयना चादहमे । मह सीभा अधम कामोभ के सरमे बी है । मदद अर्धध इससे अधधक हो तो सबी प्रकाय के दोष उत्ऩधन होते है ॥५८॥

इस प्रकाय भन्धदयों, सरङ्गो, ऩीठों, भततवमों, ग्राभ आदद आर्ासमोग्म स्थानोंभे मदद दोष आ जामॉ तो उनके अर्श्म कयने मोग्म अनुकभव-वर्धध का र्णवन ककमा गमा । इनसे सबधन वर्धध सबी प्रकाय के दोषों का कायण फनती है ॥५९॥

अध्माम ३६ प्रनतभारऺण प्रततभा के रऺण - अफ ब्रह्भा आदद दे र्ों एर्ॊ दे वर्मों के वर्धमास, यॊ ग, आमध ु , र्ाहन, अरॊकाय, धचह्न एर्ॊ वर्भान का क्रभश् र्णवन ककमा जा यहा है ॥१॥ ब्रह्भ ब्रह्भा - ब्रह्भा के चाय भुख, चाय बुजामें, तऩामे गमे सोने के सभान र्णव तथा वर्द्मुत के प्रकाश की ककयणों के सभान ऩीरी जटामे होती है , न्जन ऩय भुकुट फॉधा होता है । मे कुण्डर, फाजफधद, हाय, भग ृ चभव एर्ॊ उत्तयीम से

सश ु ोसबत होते है । उत्तयीम (ऊऩयी बाग भें ओढ़ा जाने र्ारा र्स्र, चादय) को जनेऊ के सभान गराधत तक यखना चादहमे ॥२-३॥

उनके फभ्रु र्णव (बयी, ऩीरी) के ऊरु बाग भे भौन्ञ्जक (भॉज की) भेखरा यहती है । र्ह श्र्ेत तथा ऩवर्र भारा एर्ॊ

र्स्र धायण ककमे यहते है । दादहने दोनो हाथो भें अऺभारा एर्ॊ कचव (कॉ ची) होती है । र्ाभ बाग के (दोनो हाथों भें ) कभण्डरु एर्ॊ कुश होता है । अथर्ा दक्षऺण हाथों भें स्रुक् (काष्ठतनसभवत चम्भच, न्जससे हर्न ककमा जाता है ) एर्ॊ स्रुर् (काष्ठतनसभवत मऻीम ऩार) होता है तथा र्ाभ हस्तों भें घी का ऩार एर्ॊ कुश होता है । मा तनचरे हाथ र्यद (र्य दे ने र्ारी) भुद्रा एर्ॊ अबम भुद्रा भें होते है । मे जटा एर्ॊ भुकुट से सश ु ोसबत होते है ॥४-५॥

इनके र्ाभ बाग भें सावर्री एर्ॊ दक्षऺण बाग भें बायती, ऋवष-गण एर्ॊ ऩरयर्ाय तनसभवत होते है । ब्रह्भा हॊ स ऩय आरूढ़ एर्ॊ कुश के ध्र्ज से मुक्त होते है । (अथर्ा) ब्रह्भा को ऩद्मासन ऩय फैठे मा खड़े तनसभवत कयना चादहमे ॥६-७॥ विष्णु वर्ष्णु - वर्ष्णु ककयीट, भुकुट, केमय एर्ॊ कटक आदद आबषणों से मुक्त, कयधनी से अरॊकृत, ऩीत र्स्र धायण ककमे एर्ॊ चतुबज ुव होते है । (उनके हाथ) र्यद भुद्रा, अबम भुद्रा, शॊख एर्ॊ चक्र से मुक्त होते है । र्े ऩवर्र है । र्े फैठे

अथर्ा खड़े यहते है । उनके र्ाभ बाग भें अर्तन (ऩथ् ु प्रबु का ृ र्ी) एर्ॊ दक्षऺण बाग भें यभा (रक्ष्भी) होती है । अच्मत र्णव श्माभ होता है एर्ॊ र्ह ऩीठ ऩय अथर्ा कभर ऩय न्स्थत होते है ॥८-९॥

(वर्ष्णु की प्रततभा) ग्राभ आदद र्ास्तओ ु ॊ के भध्म भें तथा आठो ददशाओॊ भें प्रशस्त होती है । श्री, रक्ष्भी एर्ॊ बसभ

को प्रकाश से मुक्त एर्ॊ कभर के सभान नेरों र्ारी होनी चादहमे । वर्द्र्ानों के अनुसाय भोऺकासभमों को एक (मही) प्रततभा स्थावऩत कयनी चादहमे । इनका ध्र्ज एर्ॊ र्ाहन गरुड़ कहा गमा है ॥१०-११॥ ियाह र्याह - र्याह के दो हाथ र्यदॊ एर्ॊ अबमभुद्रा भें होने चादहमे एर्ॊ र्े बुजाओॊ से ऩथ् ृ र्ी को उठामे हो । र्े ऩैय से

सऩवयाज को आक्राधत ककमे हो एर्ॊ उनका र्णव तऩे हुमे सोने के सभान होना चादहमे । र्े ऩीरे यॊ ग के जनेऊ एर्ॊ सबी अरॊकायों से सुसन्ज्जत हो । र्याह की प्रततभा का र्णवन इस प्रकाय प्राप्त होता है ॥१२-१३॥ त्रत्रविक्रभ बरवर्क्रभ - प्ररमकारीन फादर के सभान, गबवगह ृ के सबन्त्त के सहाये खडे, ऩञ्चामुध शयीय र्ारे बरवर्क्रभ होते है । र्ाभन की प्रततभा बी इसी प्रकाय होती है ॥१४॥ नायमसॊह नायससॊह - नायससॊह (की प्रततभा) र्ैष्णर् है । इनका भुख ससॊह का, अत्मधत रूऺ (बमानक), उग्र दाॉत एर्ॊ र्े अत्मधत

फरी होते है । उनकी भाॉसर जाॉघें भुड़ी होती है एर्ॊ र्े योभ तथा भारा से मुक्त होते है । र्े कुण्डर से मुक्त, स्थर न्जह्र्ा र्ारे, कयण्ड एर्ॊ भुकुट से अरॊकृत होते है । उनका र्णव श्र्ेत होता है । (नायससॊह) वर्शार शयीय भॊगरभम

एर्ॊ प्रचण्ड र्ेग से मुक्त होते है । उनके दस मा आठ हाथ होते है एर्ॊ र्े तीक्ष्ण दाॉत एर्ॊ नख से मुक्त होते है । र्े ऩीरे जनेऊ, ऩष्ु ऩभाराओॊ से अरॊकृत होते है तथा हाय, केमय, कटक एर्ॊ कदटसर आदद से सश ु ोसबत होते है । नायससॊह

दे र् यक्त र्स्र धायण ककमे हुमे यहते है एर्ॊ मुि भें उनके दोनो हाथो भें अस्र नही होते । उनके दोनो हाथ दहयण्मकसशऩु के र्ऺ्स्थर को वर्दीणव कयते है । ऩर्ोक्त यीतत से (नायससॊह) आसीन भुद्रा भें होते है एर्ॊ सबी दे र्ता उनका असबर्धदन कयते है ॥१५-१९॥

वर्द्र्ानों के अनुसाय शरुओॊ के वर्नाश के सरमे नायससॊह की प्रततभा को ऩर्वतसशखय ऩय, गुपा भें अथर्ा शरुओॊ के ऺेर भें र्न भें स्थावऩत कयना चादहमे ॥२०॥

ग्राभ आदद भें चतब ु ज ुव , शॊख एर्ॊ चक्र धायण ककमे , सबी आबयणों से सस ु न्ज्जत, ऩीत र्स्र धायण ककमे , ऩवर्र नायससॊह दे र् को र्ामव्म कोण भें खड़ी मा फैठी भुद्रा भें स्थावऩत कयना चादहमे । (आसीन भुद्रा भें ) इनके दो हाथ

शन्क्तशारी जानुओॊ ऩय न्स्थत होते है एर्ॊ उनकी जङ्घामें ऩदट्टका के ऊऩय उठी होती है । उनकी भुद्रा दण्ड होती है (अथर्ा उनके हाथ भें दण्ड हो) अथर्ा अबम भुद्रा होती है । अथर्ा अधम भुद्रा होती है । उधहे मोगऩट्ट से रऩेटना

चादहमे । इनकी स्थानक (खडी भुद्रा) प्रततभा ऩद्माकाय ऩीठ ऩय र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा र्ारे हाथों से मुक्त होनी चादहमे । (नायससॊह की मह प्रततभा) शान्धत, ऩन्ु ष्ट, जम, आयोग्म, बोग, ऐश्र्मव एर्ॊ धन प्रदान कयती है ॥२१-२४॥ अनन्तिामी अनधतशामी - (अनधतशामी वर्ष्णु का) शमन कयता हुआ रूऩ अनधत रूऩ र्ारी शय्मा ऩय तनसभवत कयना चादहमे । मह (सऩवरूऩ) शय्मा तीन भेखरा (तीन कुण्डरी भायी हुई) एर्ॊ ऩाॉच मा सात पणों से मुक्त होनी चादहमे । दे र्ता का सशय ऩर्व मा दक्षऺण ददशा भें होना चादहमे । इनकी दो बुजामें होनी चादहमे एर्ॊ दे र्ता को प्रबु (बास्र्य, प्रकाशभान) होना चादहमे । दक्षऺण हस्त भें दण्ड होना चादहमे अथर्ा उनका हाथ सशय को धायण ककमे हो (सहाया ददमे हो) ।

उनके फाॉमे हाथ भें ऩुष्ऩ होना चादहमे । इस प्रकाय (अनधतशामी) मोगतनद्रा भे होते है । कृत (सतमुग) आदद मुगों भें इनका र्णव क्रभश् श्र्ेत, ऩीत, अञ्जन के सभान कृष्ण एर्ॊ श्माभ होता है । इनके आबषण ऩहरे के र्णवन के अनुसाय होने चादहमे ॥२५-२७॥

(अनधतशामी की) नासब से उत्ऩधन कभर ऩय ध्मानस्थ धाता आसीन यहते है । श्री एर्ॊ बसभ को हाथ भें ऩुष्ऩ रेकय सशय की ओय एर्ॊ ऩैय की ओय स्थावऩत कयना चादहमे । दे र्ता के ऩाश्र्व भें ऩुष्ऩ से मुक्त (उनका) हाथ हो, दसया घटने ऩय पैरा हो । दे र् का र्ाभ ऩैय श्री की ओय एर्ॊ दक्षऺण ऩैय बसभ की ओय होना चादहमे । शॊख, चक्र, गदा, शाङ्वग धनष ु एर्ॊ खड्ग का अॊकन अऩने रूऩ भें होना चादहमे ॥२८-३०॥ शॊख का स्र्ाभी र्ाभन ऩुरुष होता है , न्जसका र्णव श्र्ेत होता है । चक्र यक्त र्णव का ऩुरुष है । गदा सोने के र्णव की स्री होती है । शाङ्वग कृष्ण र्णव का ऩुरुष होता है । खड्ग श्माभर र्णव की, सबी आबयणों से आबवषत स्री

होती है । मे सबी र्ाभ बाग भे न्स्थत होते है । र्ाभ हस्त भें सधचमाॉ (धचह्न) होती है एर्ॊ दक्षऺण हाथ उठा होता है । सबी अनेक र्णों के र्स्र धायण ककमे होते है एर्ॊ उनके ससय ऩय अस्र यक्खे होते है । (दे र्ता के) ऩाश्र्व बाग भें क्रोधधत भधु एर्ॊ कैटब (असुयों) को स्थावऩत कयना चादहमे । सुयेधद्र को अधम दे र्ों एर्ॊ भहवषवमों के साथ ऩर्वभुख होना चादहमे । ॥३१-३२-३३॥

दहत की काभना कयने र्ारों को तनमभानुसाय हरय को ग्राभ आदद र्ास्तु के भध्म भें अथर्ा फाहय ददशाओॊ एर्ॊ ददक्कोणों भें स्थावऩत कयना चादहमे ॥३४॥ भहे श्िय भहे श्र्य- (भहे श्र्य के) उध्र्व बाग भें वऩशॊग र्णव (बया रार) की जटामें सर् ु णव एर्ॊ अन्ग्न के सभान बास्र्य होती है । उनके ऊरू सघन होते है । र्े ककयणसभह से मुक्त चधद्रभा को अऩनी जटाओॊ भें धायण कयते है । र्े चाय बुजाओॊ

एर्ॊ तीन नेरों र्ारे, सौम्म एर्ॊ ऩणव मुर्ार्स्था से मुक्त होते है । (भहे श्र्य) वर्स्तत ृ र्ऺ र्ारे, र्ष ृ ऩय सर्ाय, श्रॊख ृ रा,

अॊकुश एर्ॊ ऩाश धायण ककमे यहते है । इनकी बुजामें वर्स्तत ृ एर्ॊ ऊॉची होती है तथा गज के सॉड के सभान होते है ।

र्े हाय एर्ॊ नऩयु , कटक, कदटसर, नागतनसभवत कुण्डर, उदय-बाग को फाॉधने र्ारी भेखरा से मक् ु त एर्ॊ भग ु त ृ चभव से मक् होते है ॥३५-३८॥

(भहे श्र्य की) दस मा आठ बज ु ामें सबी प्रकाय के अरॊकयणों से मक् ु त होती है । दादहने हाथ भें शन्क्त, शर, असस,

गदा एर्ॊ अन्ग्न होती है । र्ाभ हस्त भें नाग, खटर्ाङ्ग, खेटक, कऩार एर्ॊ नागऩाश होते है । व्मािचभव के र्स्र को धायण ककमे सशर् प्रसधन (बार् से मुक्त) होते है । अष्टबुजाओॊ र्ारे भहे श्र्य उऩमक् ुव त अस्रों भें गदा एर्ॊ असस से यदहत होते है । मे फैठे हुमे, खड़े अथर्ा र्ष ृ ऩय आरूढ होते है एर्ॊ र्ष ृ ध्र्ज से मुक्त होते है ॥३९-४१॥

(भहे श्र्य) बॊग ृ ी र्ाद्म एर्ॊ नत्ृ म तथा (अधम) र्ाद्मों से प्रसधन होकय नाचते हुमे, नन्धद आदद गणों से मुक्त, दे र्ाददकों से सेवर्त यहते है । दहत की काभना कयने र्ारों के द्र्ाया (भहे श्र्य की) स्थाऩना ग्राभ मा नगय भें कयनी चादहमे ॥४२॥ षोडिभुत्ताम सोरह भततवमाॉ - अफ भै (भम) भहे श्र्य की सोरह प्रकाय की भन्त्तवमों का र्णवन क्रभश् तनमभानस ु ाय कयता हॉ । सुखासन, वर्र्ाह, उभास्कधद, र्ष ृ ारूढ, ऩुयारय, नत्ृ त, चधद्रशेखय, अधवनायी, वर्ष्ण्र्धव, चण्डेशानुग्रह, काभारय, कारनाश, दक्षऺणाभततव, सबऺाटन, भुखसरङ्ग एर्ॊ सरङ्गसम्बत ॥४३-४५॥

सोरह भततवमों के साभाधम रऺण इस प्रकाय र्र्णवत है । (भहे श्र्य) तीन नेरों, चाय बुजाओॊ, सशय ऩय फारचधद्र,

व्मािचभव का र्स्र धायण ककमे, हाय एर्ॊ केमय से अरॊकृत, जनेऊ से मुक्त तथा दो कुण्डरों से वर्बवषत होते है । अफ क्रभश् प्रत्मेक के रूऩ का ऩथ ृ क-ऩथ ृ क र्णवन ककमा जा यहा है ॥४६-४८॥ सुखासनभन्त्तव् सखासन भततव आसन ऩय सख ु ऩर्वक फैठे हुमे र्यद एर्ॊ अबम भद्र ु ाओॊ भें हाथ र्ारे भहे श्र्य के दादहने हाथ भें टङ्क (ऩयशु) एर्ॊ र्ाभ हाथ भें कृष्ण (दहयण) तनसभवत कयना चादहमे । र्ाभ ऩैय आसन ऩय शतमत । (रेटा हुआ, भोड़ कय यक्खा हुआ) एर्ॊ दादहना ऩैय ऩीठ ऩय दटका होना चादहमे । न्जनका र्णवन महाॉ न ककमा गमा हो, र्ह सफ ऩर्वर्णवन के अनुसाय सुखासन भततव भें होना चादहमे । इस प्रकाय की भततव की ऩजा तनन्श्चत रूऩ से भोऺ प्रदान कयती है ॥४९-५०॥ िैिाहभल्ू त्ता (भहे श्र्य की भततव को) थोड़ा बरबङ्गी (तीन स्थान ऩय भुडी हुई) तनसभवत कयना चादहमे । र्ाभ ऩैय भुड़ा होना चादहमे । दे र्ता का दादहना हाथ दे र्ी के हाथ से जुड़ा होना चादहमे । दे र्ता का फाॉमा हाथ र्यदभुद्रा भें होना चादहमे । (शेष दो हाथ) कृष्ण (भग ु त होना चादहमे । हय (सशर्) सबी आबयणों से मक् ु त एर्ॊ ऺौभ र्स्र (ये शभी ृ ) एर्ॊ ऩयशु से मक् र्स्र) धायण ककमे होने चादहमे ॥५१-५२॥

दे र्ी को दे र्ता के फाहु के भाऩ (फाहु के फयाफय ऊॉचाई) का तनसभवत कयना चादहमे । दे र्ी को दो फाहु से मक् ु त, दो नेरो र्ारी, सुधदय भुख र्ारी, श्माभ र्णव की, कोभर तथा थोड़ी टे ढी तनसभवत कयना चादहमे । गौयी को केमय, कटक, अॊगठी

से मक् ु त, ससय ऩय कयन्ण्डका एर्ॊ सबी प्रकाय के आबयणों से अरॊकृत होना चादहमे । गौयी दक ु र-र्स्र धायण ककमे एर्ॊ हाथों भें कभर सरमे होती है । इनके चयण-कभर नऩुय आदद अरॊकयणों से शोबामभान होते है । (इस प्रकाय की) गौयी को (हय दे र् के) दादहने बाग भें स्थावऩत कयना चादहमे ॥५३-५५॥

रक्ष्भी को सुर्णव र्णव की दो बुजाओॊ एर्ॊ दो नेरों से मुक्त तथा सबी आबषणों से मुक्त उभा के ऩाश्र्व भें तनसभवत कयना चादहमे । सशरा अथर्ा वर्ष्णुभततव ऩय जरधाया डारनी चादहमे । सोरह ऩटर र्ारे कभर ऩय आसीन ब्रह्भा वर्र्ाह-हर्न के सम्भुख हो । इस प्रकाय सबी दे र्गणों से मक् ु त, दे र्ों द्र्ाया ऩन्जत दे र्ता का कलमाण (वर्र्ाह)

तनसभवत कयना चादहमे । मह (भततव) सबी प्रकाय का कलमाण कयने र्ारी एर्ॊ ससवि प्रदान कयने र्ारी होती है ॥५६५८॥

सोभास्कन्दभूल्त्ता सोभाकधद भततव - (भहे श्र्य दे र् को अधवचधद्र के आकाय के आसन ऩय आसीन तनसभवत कयना चादहमे । उनके र्ाभ बाग भें गौयी हो । उनका हाथ उभा के साथ हो (भहे श्र्य का एक हाथ उभा को ऩकड़े) । दे र्ी का हाथ तछऩा हो । उभा एर्ॊ भहे श्र्य के अऩने-अऩने रूऩ का जैसा र्णवन ऩहरे ककमा गमा है , र्ैसा ही तनभावण होना चादहमे । वर्द्र्ान को दे र्ी को दे र्ता के र्ाभ बाग भें तनसभवत कयना चादहमे ॥५९-६०॥ उभा एर्ॊ शॊकय के फीच भें फाररूऩ भें स्कधद होते है । उभा एर्ॊ स्कधद के साथ शॊकय को सुखासन भें तनसभवत

कयना चादहमे । उभा एर्ॊ स्कधद से मुक्त दे र्ता (शॊकय) सबी काभनाओॊ की ऩततव कयते है । अथव एर्ॊ ससवि प्रदान कयते है ॥६१॥ िष ृ ारूढभूल्त्त र्ष ृ ऩय आरूढ भततव - उभा एर्ॊ ईश्र्य (सशर्) ऩीठ ऩय न्स्थत होते है एर्ॊ र्ष ृ ब ऩीछे न्स्थत होता है । सशर् की फाॉई कोहनी र्ष ृ के भस्तक ऩय यक्खी होती है । दादहना हाथ रटका यहता है । फामें हाथ भें शर होता है । (शेष दो

हाथों भें ) कृष्ण (भग ृ ) एर्ॊ ऩयशु होता है । इसे र्ष ृ ारूढ (सशर्भततव) कहते है । इस भततव की ऩजा दारयद्र्म के वर्नाश के सरमे होती है एर् मह सबी प्रार्णमों का कलमाण कयती है ॥६२-६४॥ त्रत्रऩुयान्तकभूल्त्ता बरऩुयाधतक - (बगर्ान सशर्) दक्षऺण ऩैय ऩय बरी-बाॉतत न्स्थत होते है एर्ॊ फामाॉ ऩैय भुड़ा होता है । मे धनुष एर्ॊ

फाण से मुक्त तथा कृष्ण (भग ृ ) एर्ॊ ऩयशुसे मुक्त होते है । मे र्ष ृ ब द्र्ाया खीॊचे जा यहे ऩय न्स्थत होते है एर्ॊ सबी दे र्गणों से मुक्त होते है । बरऩुय का र्ध कयने र्ारे दे र् (सशर्) को उभा के सदहत तनसभवत कयना चादहमे । शरुओॊ के वर्नाश के सरमे बरऩयु सध ु दय का ऩजन कयना चादहमे ॥६५-६६॥ नत्ृ तभूत्ताम नत्ृ म कयती भततवमाॉ - बुजॊगरसरत नत्ृ म को महाॉ सधध्मा नत्ृ म कहा गमा है । इनके दादहने हाथ भें डभरू एर्ॊ फाॉमे

हाथ भें अन्ग्न यहती है । (अधम) दादहने हाथों भें बरशर, ऩयशु, खड्ग एर्ॊ फाण होते है । फाॉमे हाथों भें खेटक, वऩनाक, दण्ड एर्ॊ ऩाश होते है ॥६७-६८॥

इनके ऩैय नत्ृ म की सध ु दय गतत से प्रकाशभान होते है । दादहना ऩैय भड़ ु ा होता है एर्ॊ र्ाभ जानु तक उठा होता है । फाॉमी एड़ी तथा दादहने घुटने के भध्म भें भुख की ऊॉचाई का तीन गुना अधतय होता है । अऩने स्थान से उठे हुमे दादहने ऩैय के भध्म नौ भें से आठ बाग के फयाफय अधतय ऩर्वर्णवन के अनुसाय होना चादहमे । फाॉमे ऩैय का तनगवभ आर्श्मकतानुसाय यखना चादहमे ॥६९-७१॥

भुख सीधा होना चादहमे; ककधतु शयीय तीन स्थानों से थोडा झुका होना चादहमे । दादहना हाथ अबम भुद्रा भें हो,

न्जसका अॊगठे का अन्धतभ बाग स्तन तक होना चादहमे । डभरू उठामा हाथ कान की चरी तक उठा होना चादहमे । गज के सॉड के सभान फाॉमाॉ हाथ फाॉमे ऩैय के सभीऩ तक होना चादहमे । फुविभान व्मन्क्त को (दसये ) फाॉमे हाथ को अन्ग्न से मक् ु त तनसभवत कयना चादहमे एर्ॊ फाहु के फयाफय ऊॉचा यखना चादहमे ॥७२-७३॥

(सशर् के) फाहु एर्ॊ कऺ के भध्म का अधतय उतना ही होना चादहमे । (सशर्) व्माि का चभव धायण कयते है । फाॉमे एर्ॊ ददहने हाथ से सऩव की आकृतत फनानी चादहमे मा र्ाभ हस्त अबम भुद्रा भें होना चादहमे । (दे र्ता की) फॉधी जटामें तक (फगर ु े) के ऩॊखो से सजी होती है । उनकी फॉधी जटा भें कऩारों की भारा सरऩटी होती है एर्ॊ उसभें चधद्रभा होता है । उनके जटाओॊ की सॊख्मा ऩाॉच, सात मा नौ होती है ॥७४-७६॥

उनके र्ाभ बाग भें(दे र्ता के) तीन बाग के फयाफय गौयी होनी चादहमे एर्ॊ दादहने बाग भें नन्धदकेश्र्य होना चादहमे । दोनों नत्ृ म एर्ॊ सॊगीत से प्रसधन होते है एर्ॊ बङ् ृ गी ऩर्वर्णवन के अनुसाय नत्ृ म कयते है । (सशर्) दे र्, दानर्, गधधर्व, ससि एर्ॊ वर्द्माधयों से मुक्त होते है । उनके दोनों ऩाश्र्ों भें भुतनगण होते है एर्ॊ र्े दे र्गणों से सेवर्त होते है ।

दे र्ता को ऩीठ ऩय न्स्थत मा कभर ऩय न्स्थत स्थावऩत कयना चादहमे । उनके ऩैय का आधाय अऩस्भाय होता है एर्ॊ महाॉ सऩव बी र्र्णवत है । नत्ृ मभततव की ऩजा का ऩरयणाभ तुयधत शरु का नाश कयने र्ारा होता है ॥७७-७९॥ चन्द्रिेखयभूल्त्ता चधद्रशेखय भततव - चधद्रशेखय की भन्त्तव को सीधी खड़ी, र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा भें हाथों से मुक्त एर्ॊ कृष्ण (भग ृ ) तथा ऩयशु से मुक्त तनसभवत कयना चादहमे ॥८०॥ अधानायीश्ियभल्ू त्ता अधवनायीश्र्य भन्त्तव - र्ाभ बाग भें उभा एर्ॊ दादहने बाग भें ईश होना चादहमे । (दादहना बाग) अत्मधत ऩीत र्णव की जटा, भक ु ु ट एर्ॊ अनेक प्रकाय (के अरॊकयणों) से अरॊकृत होना चादहमे । आधा र्ाभ बाग धन्म्भर सीभधत (भाॉग) से मुक्त होना चादहमे एर्ॊ भस्तक ऩय ततरक होना चादहमे । दादहने कान भें र्ासुकक सऩव का कुण्डर होना चादहमे । फाॉमे कान भें ताड़डक एर्ॊ ऩासरका (आबषणवर्शेष) होना चादहमे । ॥८१-८२॥

(दोनों) दादहने हाथों कें कऩार, शर मा टॊ क, (ऩयशु) होना चादहमे । फाॉमे हाथ भें कभर होना चादहमे तथा र्ह केमय एर्ॊ कटक (फाजफधद एर्ॊ कॊगन) से सुसन्ज्जत होना चादहमे । दादहने फाग भें ऩवर्र (मऻोऩर्ीत) हो एर्ॊ र्ाभ भें

अऺभारा होनी चादहमे । गरे का र्ाभ बाग हाय से मुक्त तथा दक्षऺण बाग अन्ग्न से मुक्त होना चादहमे । ॥८३८४॥

उभा के आधे बाग भें स्तन एर्ॊ दादहने (सशर् के) बाग भें ऩीन र्ऺ होना चादहमे । दादहने आधे सशर् के बाग भें कभय ऩय व्मािचभव से तनसभवत र्स्र होना चादहमे । उभा र्ारा आधा बाग कदटसर (कयधनी) तथा यॊ ग-बफयॊ गे र्स्रों से आच्छाददत होना चादहमे ॥८५-८६॥ दे र्ता एर्ॊ दे र्ी के दोनो ऩैय एक ही ऩद्मऩुष्ऩ ऩय न्स्थत यहते है ; ककधतु र्ाभ ऩाद नऩुय से सुसन्ज्जत एर्ॊ थोड़ा झुका होता है । दे र्ी का र्ाभ ऩाद अॊगुरीम (बफतछमा) से अरॊकृत होता है ॥८७॥

अथर्ा, दे र्ता को चतब ु ज ुव तनसभवत कयना चादहमे । उभा के (दसये हाथ भें ) शुक होना चादहमे । ईश (सशर्) का आधा

बाग यक्त र्णव का एर्ॊ उभा का आधा बाग श्माभ र्णव का होना चादहमे । वर्द्र्ान व्मन्क्त को इन रऺणों से मुक्त अधवनायीश्र्य के रूऩ का तनभावण कयना चादहमे ॥८८-८९॥ हरयहयभूल्त्ता हरयहय भन्त्तव - (इस भततव का) आधा बाग वर्ष्णु का एर्ॊ आधा बाग ईश्र्य (सशर्) का होता है । इसे ऩर्वर्त ् तनसभवत कयना चादहमे । कृष्ण के आधे बाग भें शॊख एर्ॊ दण्ड तथा सशर् के आधे बाग भें शर एर्ॊ टॊ क (ऩयशु) होना चादहमे । एकही ऩद्म ऩय न्स्थत (हरय-हय को) उनके अऩने-अऩने सम्ऩणव आबयणों से अरॊकृत कयना चादहमे । र्ाभ बाग वर्ष्णु का एर्ॊ दक्षऺण बाग शॊकय का होता है ॥९०-९१॥ चण्डेिानुग्रहभूल्त्ता चण्डेशानुग्रह भन्त्तव - प्रत्मारीढ (धनुष खीचे हुमे) दे र्ता के ऩाश्र्व भें चण्डेश को स्थावऩत कयना चादहमे । ह्रदम ऩय हाथ फाॉधे हुमे चण्डेश प्रकोष्ठ (दोनों फॉधे हाथों के भध्म) भें ऩयशु सरमे हो । र्ह ऩष्ु ऩभारा से मक् ु त, अत्मधत ऊजावर्ान ् तथा तेज से मुक्त हो । मह चण्डेश्र्य प्रसाद रूऩ है ॥९२॥ काभारयभल्ू त्ता काभारय भन्त्तव - अफ काभारय सशर् का रूऩ-र्णवन ककमा जा यहा है । दे र्ता के ऩाश्र्व भें काभ तनसभवत होना चादहए । उसक अरूऩ कहा जा यहा है । काभदे र् ऩमंक के फधध (ककनाये ) फैठे हो एर्ॊ अऩना हाथ ऊऩय उठामे हो । काभारय सशर् का रूऩ उग्र हो एर्ॊ उधहे रऺणों के अनस ु ाय तनसभवत कयना चादहमे ॥९३-९४॥ कारनािभूल्त्ता कारनाश भन्त्तव - (सशर् का) दादहना ऩैय ऊऩय उठा हो एर्ॊ फाॉमाॉ ऩैय भुड़ा होना चादहमे । दादहने हाथ भें शर एर्ॊ

फाॉमे हाथ भें ऩयशु होना चादहमे । (दसये ) दादहने हाथ भें नाग-ऩाश तथा (दसया) र्ाभ हस्त सधचत कयता हो । उनका ऩैय कार के ह्रदम ऩय हो एर्ॊ शर का भुख नीचे की ओय होना चादहमे । अफ कारनाश के वर्ग्रह के फाये भें कहा जा यहा है । उनका रूऩ उग्र एर्ॊ दृन्ष्ट बमानक होनी चादहमे ॥९५-९७॥ दक्षऺणाभूनता

दक्षऺणाभन्त्तव - सशर् का दादहना हस्त सशऺा दे ने की भुद्रा भें हो एर्ॊ दसये हाथ भें अऺभारा होनी चादहमे । फाॉमे हाथ भें ऩुस्तक एर्ॊ अन्ग्न होनी चादहमे । दे र्ता को श्र्ेत र्णव का एर्ॊ बरनेरमुक्त तनसभवत कयना चादहमे ॥९८॥

उनके केश वऩङ्गर र्णे से आर्त ु त होते है । (उनके केश) कऩार भधदाय एर्ॊ धत्तय के ृ होते है एर्ॊ चधद्रभा से मक्

ऩुष्ऩ से अरॊकृत होते है । र्ह आसीन होते है तथा उनके दादहने ऊरू ऩय र्ाभ चयण शतमत (पैरा, दटका) होता है । ऩीठ ऩय र्े आसीन होते है एर्ॊ ऩैय के आधाय (ऩैय के नीचे) ऩय अऩस्भाय का तनभावण कयना चादहमे । उनके दोनो ऩाश्र्ों भें ऋवषगण होते है । दक्षऺणाभन्त्तव दे र् ऩर्वत के सशखय ऩय न्स्थत होते है एर्ॊ र्े ऩशु-ऩऺी एर्ॊभुतनमों के स्र्ाभी है ॥९९-१०१॥ मबऺाटनभूल्त्ता सबऺाटन भन्त्तव - सबऺाटन भततव को नग्न रूऩ, बररोचन एर्ॊ चाय बजाओॊ से मुक्त होना चादहमे । फाॉमे हाथ भें

भमयऩॉछ एर्ॊ कऩार होता है । दादहना हाथ दहयण के भुख तक गमा होता है एर्ॊ दसया हाथ डभय सरमे ऊॉचा उठा होता है । ऩैय ऩादक ु (जता, चप्ऩर) से मुक्त होते है । दे र्ता चरने के सरमे तत्ऩय होते है ॥१०२-१०३॥ कङ्कारभूल्त्ता कॊकार भन्त्तव - अथर्ा भहे श्र्य आठ बज ु ाओॊ, चाय बज ु ाओॊ मा चाय बज ु ाओॊ मा छ् बज ु ाओॊ से मुक्त होते है । मे

भर्णमों, भोततमों एर्ॊ नागों से सुसन्ज्जत होते है । सऩव का कुण्डर (दादहने कान भें ) होता है तथा फाॉमे भें ऩासरक मा ऩर होता है । उनकी कदट ऺुरयका से आबवषत होती है । दे र्ता व्मािचभव का र्स्र धायण ककमे, श्र्ेत र्णव के एर्ॊ तीन नेरों से मुक्त होते है ॥१०४-१०५॥ दे र्ता के ऩैय ऩादक ु से सुसन्ज्जत होते है एर्ॊ हाथ भें तुदटकाधव (कच्छऩ के आधे खोर से तनसभवत ऩार) होता है । मे सबी आबषणों से आबुवषत एर्ॊ सबी बतों से मुक्त होते है । आर्ेशमुक्त न्स्रमों से तघये हुमे एर्ॊ सुधदय र्ेष से मुक्त कॊकारभन्त्तव सशर् होते है ॥१०६॥ भुखमरङ्ग भख ु सरॊग - अफ भै (भम) सबी इच्छाओॊ की ससवि के सरमे भख ु सरङ्ग का र्णवन कय यहा हॉ । सशर्बाग की चौड़ाई

सरङ्ग की ऊॉचाई के दस बाग भें तीन बाग के फयाफय होती है । कधधों के सरमे दस भें दो बाग, गरे के सरमे एक बाग, भुख के सरमे तीन बाग, सशयोबाग के सरमे एक बाग, भुकुट के सरमे दो बाग, एक बाग भुखवर्ष्कम्ब के सरमे होना चादहमे । सरङ्ग के ऊऩयी बाग की चौड़ाई बी उसी प्रकाय होनी चादहमे । वर्ष्णु एर्ॊ वऩताभह के बाग ऋवषसरङ्ग के अनुसाय होने चादहमे ॥१०७-१०९॥

रराट, फार-चधद्र, भुख, ओष्ठ, नाससका, नेर, कणव, गण्ड (कऩोर) सबी के वर्षम भें जैसा कहा गमा है , र्ैसा ही होना

चादहमे । शास्रऻ को इसे भान एर्ॊ उधभान (रम्फाई, चौड़ाई, ऊॉचाई) के प्रभाण से तनसभवत कयना चादहमे ॥११०-१११॥ चायो भुखों का अरॊकयन अफ र्र्णवत ककमा जा यहा है । ऩर्व ददशा का भुख तत्ऩुरुष सॊऻक, तीन नेरों से मुक्त एर्ॊ न्स्भत (भुस्कुयाहट) मुक्त होता है । जटाजट चधद्र से मुक्त एर्ॊ कुङ्कुभ के सभान (यक्त र्णव का) होता है । मे नक्रकुण्डर (भकयाकृतत कुण्डर) से सुशोसबत होते है एर्ॊ इनके नेर कभर-ऩर के सदृश होते है ।

इनका दक्षऺण भख ु अघोय सॊऻक होता है । आॉखे एर्ॊ भख ु ससॊह के सभान होते है । इनका र्णव याजार्तव (राजार्तव)

के सभान होता है एर्ॊ सऩव से आर्त ृ एर्ॊ जटामें चधद्रभा से मुक्त होती है । मह भुख दाढ़ से मुक्त, भोटी न्जह्र्ा से मुक्त, बयी दाढी-भॉछों से मुक्त एर्ॊ तीन नेरों से मुक्त होता है ॥११४-११५॥

दे र्ता का ऩन्श्चभ भुख प्रसधन यहता है । मे यत्नों एर्ॊ कुण्डर से भन्ण्डत होते है । फॉधी जटा सऩव एर्ॊ अधवचधद्र से मुक्त होती है । भुख ऩणव चधद्र के सभान होता है । इसे सद्मोजात कहते है । उत्तय भुख फधधकऩुष्ऩ के सभान

होता है । जटाजट चधद्रभा से मुक्त होता है एर्ॊ भस्तक ऩय ततरक होता है । मुर्ततमों के आबयणों से मुक्त दे र्ता

का भुख धन्म्भर (केशसज्जावर्शेष) से प्रकाशभान यहता है । भुखसरङ्ग एक, दो, तीन मा चाय भुखों से मुक्त होता है ॥११६-११८॥ षण्भुख षण्भुख - सबी आबषणोंसे आबवषत षण्भुख का सौधदमव कॊु कुभ के यॊ ग का होता है । उनके दादहने एर्ॊ फाॉमे ऩीरे एर्ॊ श्माभ र्णव की गजा एर्ॊ र्लरी सॊऻक दे वर्माॉ सबी आबषणों से आबवषत तनसभवत होती है ॥११९॥

ग्राभ आदद र्ास्तुओॊ के भध्म भें एर्ॊ चायो ददशाओॊ भें षण्भख ु की भततव प्रशस्त होती है । र्ीधथमों के अग्र बाग मा

भध्म बाग भें तथा ईशान कोण भें षण्भुख र्वृ ि प्रदान कयते है । बोग के सरमे इनकी स्थाऩना ऩन्श्चभ भें एर्ॊ भोऺ के सरमे भध्म भें कयनी चादहमे ॥१२०-१२१॥ गणाथधऩ गणाधधऩ - गणाधधऩ गजभख ु , एकदधत, सभन्स्थत, तीन नेरों से मक् ु त, रार र्णव के, चाय बज ु ाओॊ र्ारे, बत रूऩ, फड़े उदय र्ारे, सऩव के मऻोऩर्ीत र्ारे होते है । इनके उरू एर्ॊ जानु सघन होते है । मे ऩद्मासन ऩय न्स्थत होते है । इनका र्ाभ ऩाद शतमत भुद्रा भें एर्ॊ दक्षऺण ऩैय भुडा होता है । इनकी सॉड फाॉमी ओय भुड़ी होती है ॥१२२-१२३॥ दादहने दोनों हाथों से दाॉत एर्ॊ अॊकुश ऩकड़े होते है । दोनों र्ाभ हस्तों भें अऺभारा एर्ॊ रड्ड दे ना चादहमे ।

(गणाधधऩ) का सशयोबाग कयन्ण्डका (सशयोबषण) से सुसन्ज्जत होता है एर्ॊ र्े हाय आदद आबषणों से आबवषत होते है ॥१२४-१२५॥

इस प्रकाय गणाधधऩ को खड़ा मा ऩद्मऩीठ ऩय आसीन तनसभवत कयना चादहमे । नत्ृ म कयते हुमे इनकी छ् मा चाय बुजामें होती है । भषक इनका र्ाहन एर्ॊ केतु (ध्र्ज, ऩहचान) होता है ॥१२६॥ सूमा समव - समव का फडा यथ एक चक्र, सात अश्र्ों एर्ॊ आगे अरुण (समव का सायधथ) से मुक्त यहता है । दो हाथो र्ारे, हाथ भें कभर-ऩष्ु ऩ से मक् ु त (समव दे र् का) र्ऺ कञ्चक ु से आच्छाददत यहता है । इनके सध ु दय केश अकुन्ञ्चत

(सीधे) होते है तथा प्रबाभण्डर से मुक्त होते है अथर्ा मे कोशर्ेष्टन (रम्फे र्स्र) से मुक्त होते है एर्ॊ स्र्णव तथा यत्नों से सुसन्ज्जत यहते है । उधहे भुकुट से एर्ॊ अधम सबी अरॊकयणों से मुक्त कयना चादहमे ॥१२७-१२८॥

समव को एक भख ु एर्ॊ स्कधधमक् ु त दो फाहु होते है । इधहे हाथ भें कभर एर्ॊ ऩरु ु ष की आकृतत से मक् ु त तनसभवत कयना चादहमे । इधहे अश्र् ऩय आरूढ़ मा ऩद्म ऩय न्स्थत तनसभवत कयना चादहमे , जो ऩजा के अनुकर हो । ससधदय

र्णव के समवभण्डर भें श्माभ र्णव की दे र्ी उषा एर्ॊ सुर्णव र्णव की प्रत्मषा की स्थाऩना कयनी चादहमे ।॥१२९-१३१॥ (समव की प्रततभा) चाय बुजाओॊ से मुक्त होने ऩय दो हाथों भें यक्त कभर होता है । अधम दो हाथ अबम एर्ॊ र्यद भुद्रा भें होते है । उनका सायधथ अरुण दो हाथो से मुक्त होता है एर्ॊ र्ह यथ ऩय न्स्थत होता है ॥१३२॥

सम्ऩणव रोक के एकभार जीर्ात्भा समवदेर् सदा ही हीन शयीय (सम्ऩणव शयीय) र्ारे होते है । ददन के स्र्ाभी समव की स्थाऩना कयनी चादहमे ; क्मोंकक मही ब्रह्भा, वर्ष्णु एर्ॊ सशर् आदद दे र् है । इनके फाॉमे एर्ॊ दादहने ऩाश्र्व भें दे र्ी प्रबा एर्ॊ सधध्मा होती है । उनके चायो ओय ऩधद्रह आर्यणों (ऩॊन्क्तमों) भें ग्रहों एर्ॊ अधम ऩरयर्ाय को स्थावऩत कयना

चादहमे । आगभ ग्रधथों भें इनके तनत्म ऩजन एर्ॊ उत्सर्ऩजन की वर्धध र्र्णवत है । इनका ध्र्ज एर्ॊ र्ाहन ससॊह ही कहा गमा है ॥१३३-१३५॥ ददक्ऩारका इन्द्र इधद्र - दे र्ों के याजा शचीऩतत इधद्र हाथ भें र्ज्र धायण ककमे हुमे; ससॊह के सभान स्कधध र्ारे; वर्शार नेरो र्ारे; ककयीट, कुण्डर, हाय एर्ॊ केमय धायण ककमे हुमे; गज र्ाहन र्ारे; दो बुजाओॊ र्ारे; श्माभ र्णव र्ारे; यक्त र्णव के र्स्र धायण ककमे हुमे; सुखी; रराट, र्ऺ्स्थर एर्ॊ ऩैयों भें सबी आबषण धायण ककमे हुमे; वर्शार नेरों र्ारे तथा चौड़ी ग्रीर्ा र्ारे होते है ॥१३६-१३८॥ अल्ग्न अन्ग्न- अन्ग्नदे र् का स्र्रूऩ र्ि ृ व्मन्क्त के सभान होता है । मे अधवचधद्राकाय आसन ऩय न्स्थत यहते है । इनकी

ज्मोतत प्रकाशभान सुर्णव के सदृश होती है । इनकी आॉखे एर्ॊ बौंहें वऩङ्ग (बये ) यॊ ग की होती है । इनकी दाढ़ी सोने की कॉ ची के सभान होती है एर्ॊ इसी प्रकाय इनके केश होते है । इनका र्स्र उददत होते हुमे समव के सदृश होता है एर्ॊ मऻोऩर्ीत बी उसी प्रकाय होता है ॥१३९-१४०॥ (अन्ग्नदे र्) दादहने हाथ भें अऺभारा एर्ॊ फाॉमे हाथ भें कयक (सभट्टी का ऩार) धायण ककमे यहते है । मे सात अस्रशस्रों से मुक्त होते है । इनकी जटा एर्ॊ दाढ़ी से सात प्रकाय की ककयणे प्रकासशत होती यहती है । इनकी भारा से प्रज्ज्र्सरत ज्र्ारा तनकरती यहती है । इनके ऩाश्र्व भें अॊशु-भधडर तनसभवत यहता है ॥१४१॥

(अन्ग्नदे र्) भेष ऩय सर्ाय एर्ॊ कुण्ड भें न्स्थत यहते है । मे मोग-ऩट्ट से सरऩटे होते है । इनक एदादहने यत्नकुण्डर

से वर्बवषत स्र्ाहा तनसभवत होती है । वऩङ्ग र्णव के आबयणों से सुसन्ज्जत ऩुण्म अन्ग्न सबी माजों के अनुकर होते है ॥१४२-१४३॥ मभ

मभ - (मभयाज) हाथ भें दण्ड धायण ककमे हुमे, (दसये हाथ भें ) ऩाश धायण ककमे हुमे एर्ॊ जरती हुई अन्ग्न के सभान नेरों र्ारे होते है । मे फड़े बैंसे ऩय सर्ाय होते है एर्ॊ इनका शयीय नीरे अञ्जन के सभान प्रकाशभान यहता है ॥१४४॥ मभ के दोनों ऩाश्र्ों भें उनके ही सभान सहामक ऩुरुष होते है । उनका र्ऺ्स्थर ददव्म तथा वर्स्तत ृ होता है एर्ॊ र्े शन्क्तशारी सॊहायो (अस्रों) से मुक्त होते है । र्े द्र्ाय ऩय खड़े होते है , क्रोधमुक्त होते है एर्ॊ सम्ऩणव रोकों को

बमबीत कयते है । (मभ के) दादहने एर्ॊ फाॉमे ऩाश्र्व भें धचरगुप्त एर्ॊ कसर होते है । मे दोनो कृष्ण एर्ॊ श्माभ (गहये यॊ ग) के होते है , रार र्स्र धायण ककमे होते है तथा सार्धान भुद्रा भें होते है ॥१४५-१४६॥

भदहष ध्र्ज एर्ॊ र्ाहन र्ारे, आसीन मभ के ऩीठ के ऩाश्र्व भें उग्र तेज र्ारे भत्ृ मु एर्ॊ सदहता न्स्थत होते है । उनके दोनों ऩाश्र्ो भें नीर र्णव एर्ॊ यक्त र्णव की दो चाभयधारयणी न्स्रमाॉ होती है । फाॉमे एर्ॊ दक्षऺण ऩाश्र्व भें धभव एर्ॊ अधभव होते है । इस प्रकाय मभ का र्णवन भेये (भम के) द्र्ाया ककमा गमा ॥१४७-१४८॥ ननऋनत तनऋतत - तनऋतत वर्शार नेर र्ारे, हाथ भें खड्ग सरमे हुमे, फड़ी बुजाओॊ र्ारे, ऩीरे र्स्रों र्ारे, शर् ऩय आरूढ, नीरे यॊ ग के, अत्मधत फरशारी, सबी अरॊकायों से मुक्त, सहामकयदहत् ककधतु सॊसाय के स्र्ाभी है ॥१४९-१५०॥ िरुण र्रुण - र्रुणदे र् शङ्ख एर्ॊ कुधद के ऩुष्ऩ के सभान उज्ज्र्र, हाथ भें ऩाश सरमे, अत्मधत शन्क्तशारी है । हाय, केमय एर्ॊ सध ु दय कुण्डरों से सस ु न्ज्जत, ऩीरा र्स्र धायण, अतर ु नीम, सोने के र्णव र्ारे एर्ॊ सबी को प्रसधनता दे ने र्ारे है । मे आसीन भुद्रा भें मा भकय ऩय खड़े यहते है ॥१५१-१५२॥ िामु र्ामु - र्ामुदेर् हाथ भें ध्र्ज सरमे, अत्मधत फरशारी, ताॉफे के सभान नेर र्ारे, धभ के सभान र्णव र्ारे, भुड़ी बौहों र्ारे, वर्धचर र्णो के र्स्र र्ारे एर्ॊ आबषणों से सुसन्ज्जत होते है । इधहे भग ृ ऩय आरूढ़ तनसभवत कयना चादहमे ॥१५३॥ कुफेय कुफेय - फुविभान व्मन्क्त को कुफेय की प्रततभा को इस प्रकाय तनसभवत कयना चादहमे । र्े सबी मऺों के स्र्ाभी , भुकुट

आदद से सुशोसबत, तप्त सुर्णव के सभान र्णव र्ारे, र्य प्रदान कयने र्ारे तथा अबम प्रदान कयने र्ारे हाथों से मुक्त होते है । मे भेष ऩय आरूढ़, हाथ भें गदा सरमे दौ ऩैय एर्ॊ दो हाथों से मुक्त होते है । नय ऩय आरूढ़ कुफेय शङ्ख

एर्ॊ ऩद्मतनधधमों को धायण कयते है । इधहे सबी आबषणों से मक् ु त एर्ॊ दे र्ी के साथ तनसभवत कयना चादहमे ॥१५४१५६॥ चन्द्र

चधद्र - चधद्रभा ससॊहासन ऩय आसीन होते है । मे कुधद एर्ॊ शङ्ग के सभान श्र्ेत र्णव के होते । (चधद्रभा)

प्रबाभण्डर से मुक्त होते है तथा दो बुजाओॊ एर्ॊ श्र्ेत र्स्र धायण ककमे होते है । मे आसीन मा खड़े हो सकते है । उनके प्रकाशभान हाथ भें कुभुदऩुष्ऩ होता है । (चधद्रभा का) मऻोऩर्ीत सुर्णवतनसभवत होता है । सोभ सौम्म एर्ॊ

घटते-फढ़ते यहते है । मे श्र्ेत भारा एर्ॊ र्स्र से मुक्त, सोने के सभान एर्ॊ रार नेरों र्ारे होते है ॥१५७-१५८॥ ये र्ती एर्ॊ योदहणी धाधम के अॊकुय से मुक्त होती है । इनके नेर कभरऩुष्ऩ के सभान प्रकाशभान होते है । मे दोनो ऩवर्र तथा कृष्ण र्स्र धायण कयती है । ऩन्श्चभ ददशा भें हाथ भें चाभय-व्मजन धायण ककमे तनशा एर्ॊ ज्मोत्सना होती है । तनशा चधद्रभा की गौयी (ऩत्नी) है एर्ॊ ज्मोत्सना भानर्ों की प्रकाश होती है ॥१५९-१६०॥ ईिान ईशान - ईशान र्ष ृ ऩय सर्ाय, अत्मधत तेजस्र्ी, श्र्ेत र्णव के एर्ॊ श्र्ेत नेरों र्ारे होते है । मे हाथ भें बरशर सरमे, सॊसाय के स्र्ाभी, तीन नेरों र्ारे एर्ॊ रोक का कलमाण कयने र्ारे होते है ॥१६१॥ काभ काभदे र् - काभदे र् सोने के सभान, अच्छी प्रकाय से सबी आबयणों से सुसन्ज्जत, दो फाहुओॊ र्ारे, सुधदय आकृतत र्ारे, सौम्म एर्ॊ नर्मर् ु ा होते है । मे ऩीठ ऩय आसीन मा यथ ऩय आसीन होते है एर्ॊ सम्ऩणव रोकों द्र्ाया ऩन्जत होते है ॥१६२-१६३॥

है भ, भद, याग एर्ॊ र्सधत उनके साथी है । ताऩनी, दादहनी, सर्वभोदहनी, वर्श्र्भददव नी एर्ॊ भायणी कासभनी के दाॉत - मे उनके ऩाॉच शय है । ईख से तनसभवत धनष ु एर्ॊ ऩञ्चशय ऩन्श्चभ भें र्र्णवत है । उनके दादहने बाग भें यतत होती है ।

इनकी शोबा श्माभ र्णव की होती है । मे सबी आबषणों से आबवषत तथा सुधदय फड़े केशों से प्रकाशभान होती है । इस प्रकाय काभ का र्णवन ककमा गमा है । इनका ध्र्ज भकय होता है ॥१६४-१६६॥ अल्श्िनी दोनों अन्श्र्नीकुभाय - (दोनों अन्श्र्नीकुभाय) अश्र्-रूऩ र्ारे, ससॊहासन ऩय फैठे हुमे, दाड़डभी ऩुष्ऩ के सभान र्णव र्ारे, अऩने कधधों ऩय मऻोऩर्ीत धायण ककमे यहते है । मे दोनों धचककत्सक होते है एर्ॊ दो न्स्रमाॉ चभय धायण ककमे होती है । (उन न्स्रमों भें एक) भत ृ सञ्जीर्नी ऩीत र्णव की होती है (तथा दसयी) वर्शलमकयणी ऩीछे रार यॊ ग की होती है । दो न्स्रमाॉ ऩीत एर्ॊ वऩङ्गर (रासरभामुक्त) र्णव की होती है । फाॉमी ओय धधर्धतरय एर्ॊ आरेम यहते है । मे दोनों ऩीत एर्ॊ यक्त र्णव के एर्ॊ कृष्ण र्स्र धायण ककमे यहते है ॥१६८-१७०॥ िसि र्सद ु े र्गण - (र्सु दे र्गण) हाथ भें खड्ग एर्ॊ खेटक धायण ककमे, सबी आबषणों से सस ु न्ज्जत, दो बज ु ाओॊ र्ारे, यक्त र्णव के, ऩीत र्स्रों से मुक्त एर्ॊ ऩवर्र होते है । फैठे हुमे खड़ी भुद्रा भें मे आठों र्सु बमानक होते है । धय, ध्रुर्, सोभ, आऩ, अनर, अतनर, प्रत्मष एर्ॊ प्रबार्- मे आठ र्सु कहे गमे है ॥१७१-१७२॥ भरु्गणा

भरुद्गण - (भरुतों के) केश जट भें आफि होते है , न्जधहे सध ु दय न्स्रमाॉ अऩने स्तनों ऩय रटकाती है । सबी ददव्म ऩुरुष धायण कयते है तथा सबी उत्तभ दक ु र र्स्र धायण कयते है । आठों भरुद्गण सबी मऻो के मोग्म होते है ॥१७३-१७४॥

रुद्र वि्मेश्िय रुद्र एर्ॊ वर्द्मेश्र्य - रुद्र दे र्गण रुद्रान्ग्न (बमानक अन्ग्न) के सभान होते है । (वर्द्मेश्र्य) नीर रोदहत, जीभत (फादर) के र्णव के, कॊु कुभ (रार) र्णव के तथा कृष्ण र्णव के होते है । मे चतब ु ज ुव , तीन नेरों र्ारे, टङ्क शर एर्ॊ

जटाधायी होते है । मे र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा भें हाथ र्ारे, ऺौभ र्स्र धायण ककमे हुमे तथा ऩवर्र होते है ॥१७५-१७६॥ सबी मऻो से मक् ु त आठ वर्द्मेश्र्य अनधत, सक्ष्भ, सशर्ोत्कृष्ट, एकनेरक, एकरुद्र, बरभततव, श्रीखण्ड तथा सशकन्ण्डक कहे गमे है ॥१७७॥ ऺेत्रऩार ऺेरऩार - (ऺेरऩार) ताभस रूऩ र्ारे तथा प्ररमकारीन भेघ के सभान कृष्ण र्णव र्ारे होते है । सान्त्त्र्क (रूऩ भें ) दो मा चाय बुजाओॊ से मुक्त एर्ॊ याजस (रूऩ भें) छ् बुजाओॊ एर्ॊ ताभस (रूऩ भें ) आठ बुजाओॊ से मुक्त होते है ।

गोचय बसभ भें उनके सरमे उधचत स्थान होता है । दो बज ु ाओॊ भें कऩार तथा शर एर्ॊ चाय बज ु ाओॊ भें खटर्ाॊग एर्ॊ ऩयशु होता है । दो बुजामें र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा भें होती है ॥१७८-१७९॥

(छ् हाथों भें ) दादहने हाथो भें शर, असस एर्ॊ घण्टा होता है तथा र्ाभ हस्तों भें खेटक, कऩार एर्ॊ नागऩाश कहे गमे है ॥१८०॥ आठ हाथ होने ऩय ऩर्ोक्त शस्रों के साथ धनुष एर्ॊ फाण होते है । यक्त र्णव के गुणों से मुक्त (याजस रूऩ भें ) इनके केश ऊऩय उठे हुमे एर्ॊ रहयाते यहते है । बौहें भड़ ु ी होती है , तीन नेर तथा दो बमानक दाॉतों से मक् ु त (ऺेरऩार) होते है । ॥१८१-१८२॥

(ऺेरऩार) भागव के अधत भें गणों के सॊयऺक, फाररूऩ तथा कुत्ते ऩय सर्ाय होते है । इनकी स्थाऩना ग्राभ आदद

र्ास्तऺ ु ेरों के फाहय, द्र्ाय ऩय, र्न भें , ऩर्वत ऩय होनी चादहमे । इनकी ददशा ईशान के ऩर्व बाग भें ऩजवधम ऩय एर्ॊ

ददतत के ऩद ऩय क्रभश् होनी चादहमे । ऩद्मासन ऩय आसीन (ऺेरऩार) सबी इच्छाओॊ को ऩणव कयते है । छ् मा चाय बुजाओॊ से मुक्त मे कुत्तों, कुक्कुटों एर्ॊ अधम जीर्ों द्र्ाया सेवर्त होते है तथा ससि एर्ॊ मोधगमों द्र्ाया तघये होते है ॥१८३-१८५॥ चण्डेश्िय चण्डेश्र्य - चण्डेश्र्य श्र्ेत र्णव सभधश्रत सध ु दय रार यॊ ग की शोबा से मक् ु त होते है । इनकी दो बज ु ामें होती है ।

इनके केश ऩरों से आच्छाददत होते है तथा मे शॊख एर्ॊ ऩर से मुक्त होते है । (चण्डेश्र्य) मऻोऩर्ीत धायण ककमे

हुमे, श्र्ेत र्णव की भारा एर्ॊ र्स्र ऩहने हुमे ऩवर्र होते है । इनके हाथ ह्रदम के ऩास जुड़े होते है । इनकी बुजाओॊ भें टङ्क (ऩयशु) होता है । मे ऩुष्ऩभाराओॊ से सस ु न्ज्जत, अधवचधद्राकाय आसन ऩय आसीन होते है । सबी आबषणों से सुसन्ज्जत, जटाधायी मा केशफधध से मुक्त (चण्डेश्र्य) होते है ॥१८६-१८८॥

आददत्मा आददत्मगण - सबी फायह बास्कय दो बुजाओॊ र्ारे, हाथों भें कभरऩुष्ऩ सरमे, रार ऩद्मासन ऩय न्स्थत, यत्नकुण्डर से

मक् ु त, सबी आबषणों से आबवषत एर्ॊ रार र्स्र धायण ककमे यहते है । (फायह आददत्म इस प्रकाय है -) अमवभा, सभर, र्रुणाॊश, बग, इधद्र, वर्र्स्र्ान ्, ऩषा, ऩजवधम, त्र्ष्टा, वर्ष्णु, अजघधम तथा जघधमज ॥१८९-१९१॥ सततषाम सप्तवषवगण - सप्तवषवगण उऩदे श दे ने की भुद्रा भें भुख एर्ॊ हाथो र्ारे, जटाजट से मुक्त, ऩीत र्णव के तथा अनेक

र्णों के र्स्र धायण ककमे हुमे होते है । (अथर्ा) मे दो बुजाओॊ र्ारे, वऩङ्गनेरों (रराईमुक्त नेरों) र्ारे, ऩीत र्णव के, अत्मधत र्ि ृ , यक्त र्णव के र्स्र ऩहने हुमे, केशबाय (जटा-जट) को धायण ककमे एर्ॊ वर्सबधन प्रकाय के आबषणों से आबवषत होते है ॥१९२-१९३॥ सततयोदहण्म सात योदहणी - सप्त योदहणीगण सुधदय रूऩ र्ारी, सोने के सभान र्णव र्ारी, नागों से आबवषत, श्र्ेत र्स्र धायण की हुई आसीन मा खड़ी भुद्रा भें होती है ॥१९४॥ गरुड गरुड - ताक्ष्मव (गरुड) गोर यक्त र्णव के नेरों से मुक्त, ऩीत र्णव के, अत्मधत फरशारी, दो बुजाओॊ र्ारे, अञ्जसरफि अथर्ा थोडी उठी जॊघाओॊ ऩय हाथ दटकामे हुमे, ऩाॉच र्णव र्ारे कञ्चुक धायण ककमे हुमे, सीसतनसभवत ऩऺों से मुक्त, दाॉतो से मुक्त, श्माभ र्णव की नाससका र्ारे, कयण्ड एर्ॊ भुकुट से प्रकाशभान,नागों के आबषणों से मुक्त, कानों भें ऩीत र्णव के ऩरों को धायण ककमे हुमे, रार र्स्र ऩहने हुमे, सऩों के शरु एर्ॊ वर्ष्णुर्ाहन होते है ॥१९५-१९७॥

शास्ता - भोदहनी के ऩुर शास्ता दो बुजाओॊ र्ारे, श्माभ र्णव के, ऩीठ ऩय न्स्थत, (फाॉमे) ऩैय को भोड कय दादहना ऩैय रटकामे यहते है । इनकी र्ाभ बुजा गज के सॉड के सभान होती है तथा घुटने एर्ॊ ऊरु के फाहय (ऩीठासन ऩय

दटकी) यहती है । र्े गोराई र्ारे अथर्ा टे ड़े दण्ड को (हाथों भें ) धायण ककमे यहते है । इनके कोभर कारे घुघ ॉ यारे केश पैरे यहते है ॥१९८-२००॥

मे र्ाहन एर्ॊ ध्र्ज (दोनों भें ) गज से मुक्त, हाय आदद से अरॊकृत होते है । अथर्ा जफ मे चाय बुजाओॊ एर्ॊ तीन नेरों र्ारे होते है , तफ उनका ध्र्ज सर्वर कुक्कुट (भग ु ाव) होता है ॥२०१॥

(शास्ता) ऻानी, मोगासन भुद्रा भें आसीन, सदा अध्ममन कयने र्ारे, ऩवर्र दोनों कधधों ऩय मऻोऩर्ीत धायण ककमे

हुमे, मुर्ा, र्ीयासन से मुक्त, उलरासमुक्त, गीत-बार् र्ारे, दे र्-बार् र्ारे तथा सुखासन भें न्स्थत होते है । मे र्ाभ ऊरु के ऊऩय दादहना ऩैय दटकामे न्स्थत होते है ॥२०२-२०३॥ (शास्ता) नौ शन्क्तमों से तथा चौसठ मोधगतनमों से मुक्त होते है । ऩणाव एर्ॊ ऩुष्करा दे वर्माॉ उनके र्ाभ एर्ॊ दक्षऺण बाग भें होती है । इनका र्णव कृष्ण एर्ॊ सर् ु णव के सभान होता है । दोनों सौगधध्म ऩष्ु ऩ सरमे, सबी अरॊकायों से सुसन्ज्जत एर्ॊ ऩीत तथा श्र्ेत र्स्र धायण ककमे यहती है ॥२०४-२०५॥

इनके र्ाभ हस्त भें भधु होता है । मे भधु के सभान शोबा र्ारे, दो बज ु ाओॊ र्ारे, भाॊसर शयीय र्ारे, र्खरे भख ु र्ारे एर्ॊ रम्फे उदय र्ारे होते है । इनके र्ाभ हस्त भें शीधु-ऩार (भधु-ऩार) एर्ॊ दादहने हाथ भें दण्ड तनसभवत कयना चादहमे । इनके द्र्ायऩार शन्क्त धायण कयने र्ारे , दण्ड एर्ॊ राॊगर से मुक्त होते है ॥२०६-२०७॥

दे र्ों के वप्रम शास्ता को र्णावधतय (छोटी जातत के) आश्रभस्थान भें , र्ेश्मा के आर्ास भें , दग व भें, तनगभ भें , खर्वट भें ु भ एर्ॊ खेट भें स्थावऩत कयना चादहमे । ग्राभ आदद र्ास्तुओॊ के भध्म भें , फाहय, दक्षऺण द्र्ाय ऩय कलमाणेच्छुओॊ को दे र्बार्ी एर्ॊ ऻानबार्ी (शास्ता) का तनभावण कयना चादहमे । नगय एर्ॊ ऩत्तन भें गीतबार्ी की स्थाऩना कयनी चादहमे ॥२०८-२१०॥ भातक ृ ा भातक ृ ामें - अफ भै (भम) भातक ृ ाओॊ के रऺण, स्थाऩन एर्ॊ स्थान के वर्षम भें कहता हॉ । मे ब्राह्भी, भाहे श्र्यी,

कौभायी, र्ैष्णर्ी, र्ायाही, इधद्राणी तथा कारी है । इनके दक्षऺण एर्ॊ र्ाभ बाग भें र्ीयबद्र एर्ॊ वर्नामक यहते है ॥२११२१२॥ िीयबद्र र्ीयबद्र - र्ीयबद्र र्ष ृ ऩय आरूढ, हाथ भें शर सरमे, गदा धायण ककमे , हाथ भें र्ीणा सरमे अथर्ा (नीचे के हाथ) र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा भें होते है । मे चाय बुजाओॊ एर्ॊ तीन नेरों से मुक्त होते है । मे जटा धायण ककमे हुमे एर्ॊ जटा भें चधद्रभा धायण ककमे होते है । सबी आबषणों से मुक्त, श्र्ेत र्णव के एर्ॊ र्ष ृ ध्र्ज र्ारे (र्ीयबद्र) ऩद्मासन से मुक्त दे र्ता र्टर्ऺ ृ का आश्रम सरमे होते है । रोकों के स्र्ाभी, कलमाण कयने र्ारे (रोकेश, शॊकय) शम्बु भातक ृ ाओॊ के आगे न्स्थत होते है ॥२१३-२१५॥ ब्रह्भाणी ब्रह्भाणी - ब्रह्भाणी को ब्रह्भा के सभान तनसभवत कयना चादहमे । मे चाय भुखों र्ारी; वर्शार नेरो र्ारी; तप्त सुर्णव

के सभान र्णव र्ारी; र्यद भुद्रा, अबमभुद्रा, शर तथा अऺभारा से मुक्त चाय बुजाओॊ र्ारी; यक्तकभर के आसन ऩय आसीन; र्ाहन एर्ॊ ध्र्ज भें हॊ स से मुक्त तथा व्मािचभव से मुक्त होती है ॥२१६-२१७॥ भाहे श्ियी भाहे श्र्यी - भाहे श्र्यी को तीन नेरोंर्ारी, रार र्णव की, हाथ भें शर सरमे, र्ष ु त, र्यद तथा अबम भद्र ु ा से ृ ध्र्ज से मक् मुक्त हाथों र्ारी, अऺभारा से मुक्त, जटा एर्ॊ भुकुट से मुक्त, शम्बु (के अनुसाय, उधही के सभान) आबवषत, चधदन के र्ऺ ृ से मुक्त तथा र्ष ृ ऩय आरूढ़ होती है ॥२१८-२१९॥ कौभायी कौभायी - र्स्र से भुकुट फाॉधे हुमे, शन्क्त एर्ॊ कुक्कुट धायण कयने र्ारी, यक्त र्णव की, अत्मधत शन्क्तमुक्त, हाय एर्ॊ केमय से आबवषत, र्यद एर्ॊ अबम भद्र ु ा भें हस्ते से मक् ु त, कॊु कुभ के सभान प्रबा र्ारी, सबी आबषणों से आबवषत,

भमयध्र्ज से मक् ु त एर्ॊ भमय ऩय आरूढ, उदम् ु फय र्ऺ ृ का आश्रम री हुई कौभायी दे र्ी का प्रकलऩन फवु िभान भनष्ु म को कयना चादहमे ॥२२०-२२१॥ िैष्णिी र्ैष्णर्ी - वर्द्र्ान व्मन्क्त को र्ैष्णर्ी का तनभावण इस प्रकाय कयना चादहमे - र्ह दे र्ी शॊख एर्ॊ चक्र धायण ककमे हो एर्ॊ (शेष दो) हाथ र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा भें हो । उधहें अच्छी प्रकाय खड़ी, श्माभ र्णव की, ऩीत र्स्र धायण की हुई एर्ॊ सध ु दय नेरों से मक् ु त तनसभवत कयना चादहमे । गरुड़ध्र्ज एर्ॊ र्ाहन र्ारी (र्ैष्णर्ी) ऩीऩर के र्ऺ ु त ृ से सॊमक् होती है । मे वर्ष्णु के आबषणों से अरॊकृत होती है ॥२२२-२२३॥ िायाही र्ायाही - र्यद एर्ॊ अबम हस्त र्ारी र्ायाही कृष्ण के सभान होती है । हर एर्ॊ भुसर को धायण कय चभवर्स्र से

मुक्त होती है । शॊख र्णव की (र्ायाही) र्यद, अबम एर्ॊ दण्ड को हाथ भें धायण कयती है । (फड़े) दाॉतो र्ारी, वर्शार शयीय र्ारी, प्रकाशभान भक ु ु ट एर्ॊ ककयीट से मुक्त, कृष्ण र्स्र धायण कयने र्ारी दे र्ी सबी आबषणों से आबवषत होती है । (र्ायाही) कयञ्ज के र्ऺ ृ के मुक्त तथा भदहष ध्र्ज एर्ॊ र्ाहन से मुक्त होती है ॥२२४-२२६॥ इन्द्राणी इधद्राणी - (इधद्राणी) ककयीट एर्ॊ भुकुट से मुक्त एर्ॊ सबी आबषणों से सुसन्ज्जत होती है । हाथ भें र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा तथा ऩाश एर्ॊ कभर धायण ककमे होती है । मे चधद्रभा के सभान होती है । फुविभान व्मन्क्त को इधद्राणी को कलऩद्रभ ु से मक् ु त तनसभवत कयना चादहमे ॥२२७-२२८॥ चाभुण्डी चाभुण्डी - चाभुण्डी दे र्ी कऩार सरमे, शर धायण की हुई, र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा भें हाथ र्ारी होती है । (अथर्ा) उनकी आठ बुजामें होती है । शर एर्ॊ कऩार (के अततरयक्त), र्ाभ हस्त भें दण्ड, धनुष, खड्ग, खेटक, ऩाश एर्ॊ फाण

धायण ककमे यहती है । इनकी आठ बुजामें कही गई है । इनके दस हाथ (बी) कहे गमे है । सबी का ऩर्व भें र्णवन ककमा गमा है । (इनके अततरयक्त हाथों भें ) डभरु एर्ॊ शर कहा गमा है । मे यक्तर्णव के नेरों र्ारी, कुदटका ऩय आसीन एर्ॊ स्तनोंऩय सऩवफधध धायण ककमे यहती है ॥२२९-२३१॥

र्ह सशयों (भण् ु डो) की भारा धायण ककमे यहती है । र्ह ऩतरे उदय र्ारी शर् ऩय आरूढ होती है । मे भाॊसयदहत खर ु े भुख र्ारी, रम्फी न्जह्र्ा र्ारी, तीन नेरों र्ारी, व्मािचभव धायण की हुई होती है । इसके केश ज्र्ारा के सदृश एर्ॊ सऩो से मुक्त होते है । मे अबीष्ट प्रदान कयती है । कारी, ऩतरे अॊगो र्ारी, कृष्णा, र्ट र्ऺ ृ का आश्रम री हुई है , फड़े दाॉतो एर्ॊ बमानक भुख र्ारी चाभुण्डा गध्र ृ ध्र्ज से मुक्त होती है ॥२३२-२३३॥ विनामक वर्नामक - फवु िभान व्मन्क्त को वर्नामक का स्र्रूऩ ऩर्व-र्णवन (१२२-१२५ श्रोक) के अनुसाय तनसभवत कयना चादहमे ॥२३२॥

भातक ृ ा स्थाऩन भातक ृ ाओॊ की स्थाऩना - भातक ृ ाओॊ की स्थाऩना ग्राभ से दय, ग्राभ के उत्तय मा ईशान कोण भें की जानी चदहमे ।

इधहे बरशर के आकाय के शर एर्ॊ र्स्रों से व्माह्रत (जागत ु त) कयना चादहमे । (अथर्ा) ददशाओॊ के द्र्ाय ृ , भधरमक् के ऩास इधहे ऩर्वभुख मा उत्तयभुख स्थावऩत कयना चादहमे ॥२३५॥

(इसके ऩश्चात) इधहे ब्रह्भस्थान ऩय दक्षऺणक्रभ से क्रभश् स्थावऩत कयना चादहमे । इससे शान्धत, ऩुन्ष्ट, जम, आयोग्म, बोग, ऐश्र्मव एर्ॊ आमु की र्वृ ि होती है । इससे वर्ऩयीत होने ऩय तनस्सधदे ह शरत ु ा होती है ॥२३६-२३७॥

ऩर्वर्र्णवत वर्धान के अनुसाय मदद भध्म भें ब्रह्भाणी स्थावऩत होती है तो मह प्रततष्ठा सबी को भोदहत कयती है एर्ॊ

सबी काभनामे ऩरयऩणव होती है । मदद भध्म भें चाभण् ु डी की स्थाऩना की जाम तो प्रततन्ष्ठत होने ऩय प्रजा (सधततत) की प्रान्प्त होती है । (भातक ृ ाओॊ की स्थाऩना) काभासन भें होने ऩय मोग, र्ीयासन भें होने ऩय शान्धत प्राप्त होती है । सुखासन भें (प्रततष्ठा) होने ऩय सबी काभनाओॊ की प्रान्प्त होती है ॥२३८-२३९॥ ऩन ु ् चाभण् ु डी वर्द्र्ान व्मन्क्त को काश्ठ, भन्ृ त्तका मा सुधा (चना-गाया) से आठ, दस, फायह मा सोरह बुजाओभ से मुक्त चाभुण्डी

का तनभावण कयना चादहमे । अथर्ा आठ बज ु ाओॊ से मक् ु त नत्ृ मभद्र ु ा भें चाभण् ु डी का तनभावण आर्श्मकतानस ु ाय कयना चादहमे । इसे सधध्मानत्ृ म (सशर्) के सभीऩ अथर्ा न्जस प्रकाय सधध्मानत्ृ म

होता है , उस प्रकाय तनसभवत कयना चादहमे मा रोक की शान्धत के सरमे (चाभुण्डी के) चाय मा छ् बुजामें तनसभवत कयनी चादहमे ॥२४०-२४२॥ ऩरयिाय ऩरयर्ाय - द्र्ाय के फाहय न्स्थत दो दौर्ामों (द्र्ायऩारों) की स्थाऩना कयनी चादहमे । मे शर आदद धायण कयने र्ारे बत होते है । मे बमानक बतों के सभह से मुक्त एर्ॊ वऩशाचों से तघये होते है ॥२४३॥ भण्डऩ के बीतय दो सुधदय, मुर्ा, यक्त तथा श्माभ र्णव की न्स्रमाॉ मोधगनी कही गई है । मे हाथभें कऩार की अन्स्थ

सरमे होती है एर्ॊ व्मार से मुक्त होती है । इनके केश भाॉग से मुक्त, धन्म्भर शैरी भें (सजे) होते है तथा भुकुट से प्रकाशभान होते है । मे (दोनो मोगोतनमाॉ) सबी प्रकाय के आबषणों से सुसन्ज्जत, सुधदय भुख तथा तीन नेरों से मक् ु त होती है ॥२४४-२४५॥

उसी स्थान ऩय बत, र्ेतार एर्ॊ डाककनी आदद को स्थावऩत कयना चादहमे । भधरशास्र द्र्ाया र्र्णवत माभर वर्धध से तनत्मोत्सर् कयना चादहमे ॥२४६॥ रक्ष्भी रक्ष्भी - ऩद्मासन ऩय आसीन रन्क्ष्भ दो बुजाओॊ से मुक्त एर्ॊ सुर्णव आबा र्ारी होती है । उनके (दोनो कुण्डरों भें से एक) नक्र-कुण्डर (तथा दसया) शॊखकुण्डर होता है एर्ॊ र्ह कुण्डर सुर्णव एर्ॊ यत्नों से प्रकाशभान होता है । र्े

मौर्नसम्ऩधन, सध ु दय अॊगो र्ारी, भड ु े हुमे बौंहो से रीरा कयती हुई, गोर भख ु र्ारी, कणवऩय (कान भें आबषण) से मुक्त एर्ॊ कभर के सभान नेरों से मुक्त होती है । इनके ओष्ठ रार र्णव के, कऩोर बये हुमे तथा स्तन कञ्चुक से ढॉ के होते है । सशय का श्रॊग ृ ाय शॊख, चक्र, भाॉग एर्ॊ कभर से होता है । दादहने हाथ भें ऩद्म होता है एर्ॊ फाॉमे हाथ भें

श्रीपर होता है । इनका भध्म बाग सुधदय तथा ब़डे तनतम्फ सुधदय र्स्रों से सरऩटे यहते है । मे भेखरा, कदटसर एर्ॊ सबी आबषणों से अरॊकृत होती है । इनका सशयोबाग कयण्डक से सुशोसबत होता है एर्ॊ मे कभरासन ऩय आसीन होती है ॥२४७-२५१॥

उनके ऩाश्र्व भें दो न्स्रमाॉ हाथ भें चाभय धायण ककमे यहती है । दो हाधथमों को सॉड भें कुम्ब रेकय उधहे (रक्ष्भी दे र्ी को) स्नान कयाते हुमे ददखाना चादहमे ॥२५२॥

गह ृ भें ऩजा-मोग्म रक्ष्भी चाय बुजाओॊ से मुक्त होती है । इनके हाथ र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा भें होते है । र्े यक्त र्णव के ऩद्म की आबा के सभान अरुण र्णव की होती है । र्े सबी आबषणों से सुसन्ज्जत, तऩे हुमे सोने के सभान आबा र्ारी होती है । (रक्ष्भी) ऩमवङ्कफधध भद्र ु ा भें श्र्ेत कभर ऩय आसीन होती है । इस प्रकाय अबीष्ट ऩर प्रदान कयने र्ारी रक्ष्भी दे र्ी को तनसभवत कयना चादहमे ॥२५३-२५५॥ मक्षऺणी मक्षऺणी - हे भभारा मक्षऺणी रक्ष्भी के रऺणों से मुक्त, ककधतु गज से यदहत ऩरयरक्षऺत होनी चादहमे । मह ससि एर्ॊ अप्सयाओॊ से सेवर्त होती है । ककधनय के साथ गान कयती हुई मऺों एर्ॊ गधधर्ो से सेवर्त होती है । ग्राभ आदद र्ास्तओ ु ॊ भें बीतय एर्ॊ फाहय इनकी स्थाऩना होनी चादहमे ॥२५६-२५७॥ कात्मामनी कात्मामनी - कात्मामनी दे र्ी ककयीट एर्ॊ भुकुट से मुक्त, सबी अरॊकयणों से सुसन्ज्जत, दस बुजाओॊ से मुक्त तथा

भदहष का ससय काटने के सरमे उद्मत होती है । इनके (दादहने हाथ भें ) शन्क्त, फाण, भुसर, शर तथा खड्ग एर्ॊ फाॉमें हाथ भें क्रभश् चभव, र्याखेट, ऩणव चाऩ, अङ्कुश तथा नागऩाश होते है । इनके सबी कयकभरों भें सबी अस्र होते है ॥२५८-२५९॥

मे सुधदय र्स्रों से मुक्त, नीरे केशों र्ारी, नीर कभर के ऩर के सभान नेरों र्ारी, तीन नेरों र्ारी, सुधदय अॊगो

र्ारी, उधनत एर्ॊ ऩीन र्ऺो र्ारी, सध ु दय भध्म बाग र्ारी, श्माभ र्णव की तथा स्तनों ऩय सऩवफधध धायण ककमे होती है । मे ससॊह ऩय आरूढ, ससॊह-ध्र्ज से मुक्त एर्ॊ ससॊहचभव का र्स्र धायण ककमे होती है । दस बुजाओॊ र्ारी कात्मामनी भदहष के ससय ऩय खड़ी यहती है ॥२६०-२६२॥ दग ु ाा दग ु ाव - दग ु ाव दे र्ी चाय बुजाओॊ से मुक्त ऩॊकज के आसन ऩय न्स्थत होती है । इनके हाथ र्यद एर्ॊ अबम भुद्रा भें होते है तथा (शेष दो हाथों भें ) शॊख एर्ॊ चक्र धायण ककमे यहती है । अष्ट बज ु ाओॊ से मक् ु त होने ऩय (ऩर्ावर्णवत

ऩदाथों भें से) खेटक एर्ॊ शन्क्त से यदहत होती है एर्ॊ शुक धायण कयती है । र्ह दग ु ाव है तथा दग ु व एर्ॊ ग्राभादद र्ास्तुओॊ भें वर्शेष रूऩ से (स्थावऩत) होती है ॥२६३-२६४॥

सयस्िती सयस्र्ती - सयस्र्ती दे र्ी श्र्ेत र्णव की, ससय ऩय जटा धायण ककमे, चाय बुजाओॊ र्ारी, श्र्ेत कभर के आसन ऩय

आसीन, यत्नकुण्डर से सस ु न्ज्जत, मऻोऩर्ीत से मक् ु त, सध ु दय भोततमों का हाय धायण की हुई, सध ु दय नेरों र्ारी, दादहने हाथ भें व्माख्मान-भुद्रा एर्ॊ अऺसर धायण ककमे तथा (र्ाभ हस्तों भें ) ऩुस्तक एर्ॊ कुन्ण्डका धायण ककमे यहती है । मे तीन नेरों र्ारी, सुधदय रूऩ र्ारी, ऊऩय उठे सीधे भुख र्ारी तथा सबी भुतनमों से सेवर्त होती है । कलमाण की काभना कयने र्ारी द्र्ाया र्ास्तु के भध्म भें चायो ददशाओॊ भें इनकी स्थाऩना होनी चादहमे ॥२६५-२६७॥ ज्मेष्ठा ज्मेष्ठा - ज्मेष्ठा दे र्ी रम्फे ओठों र्ारी, ऊॉची नाससका र्ारी, रम्फे स्तनों एर्ॊ उदय र्ारी, हाथ भें कभर सरमे ज्मेष्ठा भहारक्ष्भी की फड़ी (फहन) है । ऩीठ ऩय आसीन, कसर की दे र्ी, ऩीठ ऩय ऩैय रटकामे यहती है । मे रार र्णव का र्स्र धायण कयती है । इनका र्णव श्माभ है तथा मे अभत ृ से उत्ऩधन है । सबी आबषणों से मुक्त एर्ॊ सशय ऩय र्स्र का फधध धायण कयती है । मे काकध्र्ज से मुक्त तथा सायार के ततरक से मुक्त होती है ॥२६८-२७०॥

उनका ऩुर र्ष ृ के सभान भुख र्ारा, सुखासन भें आसीन, हाथ भें दण्ड धायण ककमे , फड़ी बुजाओॊ र्ारा होता है । र्ह ज्मेष्ठा के दक्षऺण भें होता है । उनकी ऩुरी ज्मेष्ठा के र्ाभ बाग भें होती है । र्ह सुधदय स्तनों र्ारी, मुर्ार्स्था से मुक्त अॊगो र्ार, सुधदय र्स्रों र्ारी, सुधदय नेरों र्ारी, कृष्ण र्णव की एर्ॊ सबी आबषणों से आबवषत होती है । अथर्ा प्रत्मेक द्र्ाय ऩय, प्रत्मेक स्थान ऩय सबन्त्तमों के ऊऩय मुर्ा स्री होना चादहमे ॥२७१-२७३॥ बूमभ बसभ - धाधम के अॊकुय के सभान बसभ कभरऩुष्ऩ के सभान फड़े नेरो र्ारी होती है । मे ततरक एर्ॊ केशों से मुक्त एर्ॊ सबी आबयणों से अरॊकृत होती है । बसभ हाथ भें ऩुष्ऩ धायण ककमे सुधदय रूऩ र्ारी, कयण्ड एर्ॊ भुकुट से

प्रकाशभान, ऩीरे र्स्र धायण ककमे , सबी प्रार्णमों को धायण कयने र्ारी एर्ॊ ऩीठ ऩय आसीन होती है ।॥२७४-२७५॥ ऩािाती ऩार्वती - ऩार्वती दे र्ी प्रसधनभख ु , सौम्म दृष्टी र्ारी, सध ु दय रूऩ र्ारी, सबी आबषणों से मक् ु त, श्माभर्णव की, दो

बुजाओॊ र्ारी, दक ु र र्स्र धायण की हुई, हाथ भें ऩुष्ऩ सरमे, अत्मधत सुधदय होती है । चायो ददशाओॊ भें, भध्म भें मा बलराट के ऩद ऩय सुसम्ऩधन एर्ॊ ऩरयर्ाय (सहामकों) से मक् ु त ऩार्वती की स्थाऩना कयनी चादहमे । ससि एर्ॊ वर्द्माधय न्स्रमों से सेवर्त (ऩार्वती) सबी असबरवषत काभनाओॊ की ऩणव कयती है ॥२७६-२७८॥

सप्तभाता - सप्तभाता को ग्राभ एर्ॊ नगय के फाहय स्थावऩत कयना चादहमे । मे स्थर शयीय की, फडे उदय र्ारी, ऩाश्र्व भें दो र्धुओॊ से मुक्त, श्माभ र्णव की, फड़े नेरों र्ारी, रार र्स्र धायण ककमे तथा दो बुजाओॊ से मुक्त होती है । मे वर्शेष रूऩ से बत, प्रेत एर्ॊ वऩशाच आददसे सेवर्त होती है ॥२७९-२८०॥ फुद्ध

फि ु - फि ु दे र् ऩमवङ्कफधध भद्र ु ा (एक के ऊऩय दसया ऩैय यखकय, ऩारथी भाय कय फैठना) भें आसीन यहते है । अऩनी गोद भें अऩने हाथ ऊऩय की ओय (हथेरी ककमे) यक्खे यहते है । मे यक्त र्णव का र्स्र धायण ककमे , यक्त र्णव का उत्तयीम (चादय, ऊऩय ओढने का र्स्र) ओढे तथा दो बुजाओॊ र्ारे होते है । वऩङ्ग र्णव (ऩीरा, बया) र्स्र धायण

ककमे, ससय ऩय वर्ना ककसी आबषण के, ससॊहासन के ऊऩय (न्स्थत फुिदे र्) इधद्र आदद दे र्ों से सेवर्त यहते है । मऺ,

वर्द्माधय, ससि तथा गधधर्व आदद उनकी सेर्ा कयते है । इस प्रकाय अश्र्त्थ (ऩीऩर) र्ऺ ृ से सॊमुक्त फुि के रूऩ का तनभावण कयना चादहमे ॥२८१-२८३॥

न्जन - जैन (न्जन) नीरे (कारे) अञ्जन के सभान र्णव र्ारे , अशोक र्ऺ ृ द्र्ाया सेवर्त होते है । इनका आसन

स्थानक भद्र ु ा (खड़ी प्रततभा) भें र्र्णवत है तथा इनका आसन (ऩीठ) ससॊह मा ऩद्म होता है । इनका (एक) हाथ फगर भें रटका यहता है तथा (दसया) स्तनाधत ऩय दटका होता है । इनका भाऩ दे र्ों के अनुसाय यखना चादहमे । इनके

चाभय ग्रहण कयने र्ारे का भान दे र्ता के अॊगुर-भान से तीस अॊगुर का होता है । शेष भान ऩर्वर्णवन के अनुसाय आर्श्मकतानुसाय यक्खा जाना चादहमे । इनका रूऩ र्स्रयदहत होता है । तीन छरों से मुक्त मे दे र्ों एर्ॊ अभयों

(अधम दे र्ों) द्र्ाया सेवर्त होते है । ऩाश्र्व भें न्स्थत उनकी बुजामे रताओॊ एर्ॊ यत्नों से मुक्त होती है । प्रत्मेक

अऩने र्णव से मक् ु त होते है । इनकी दो बज ु ामें होती है । उनके ऩाश्र्व भें मऺेधद्र एर्ॊ अऩयान्जत होते है । उनका शीषव (न्जन दे र् के) कभय तक होता है । इन दोनों को ऩर्वर्र्णवत तनमभों के अनुसाय सशलऩशास्र के तरस्ऩशी वर्द्र्ानों द्र्ाया तनसभवत कयना चादहमे ॥२८४-२८७॥ साभान्मविथध साभाधम तनमभ - इसी प्रकाय अधम दे र्ों का बी तनभावण कयना चादहमे तथा उनके धचह्नो को बी प्रदसशवत कयना चादहमे । सऩो को सात मा तीन बोगों (कुण्डसरमों) से मक् ु त तथा याऺसों एर्ॊ वऩशाचों को बमानक स्र्रूऩ र्ारा

तनसभवत कयना चादहमे । प्रेत तथा बत-र्ेतार आदद सबी को मथोधचत यीतत से तनसभवत कयना चादहमे । उधहे अनुकर स्थान ऩय यखना चादहमे । इस प्रकाय भैने (भम ने) सॊऺेऩ भें प्रततभाओॊ के रऺण का र्णवन ककमा ॥२८८-२९१॥ फेयभान प्रनतभाओॊ के प्रभाण मजभान (स्थाऩक) के फयाफय ऊॉचा फेय श्रेष्ठ, आठ बाग कभ भध्मभ तथा उससे एक बाग कभ अधभ (छोटा, हीन) होता है । इसे (मजभान की) रुधच के अनुसाय मा उसे ऩथ ृ क् इच्छानुसाय तनसभवत कयना चादहमे । अथर्ा (प्रततभा

मजभान के) स्कधध, स्तनाधत मा नासब तक तनसभवत कयनी चादहमे । मे (क्रभश्) श्रेष्ठ, भध्मभ एर्ॊ कतनष्ठ होती है । (ककधतु मदद मजभान) कफड़मक् ु त मा फौना हो तो (मजभान के प्रभाण को) छोड़ दे ना चादहमे ॥२९२-२९३॥ धाभ (भन्धदय), गबवगह ृ , स्तम्ब, द्र्ाय अथर्ा तनभावण कयने र्ारे की ऊॉचाई के अनुसाय रम्फोच्च भान को फयाफय

अॊगर ु -भान से फाॉटना चादहमे । फवु िभान व्मन्क्त को अॊगर ु च्छे द (सबधन) को छोड़कय सॊख्मा की र्वृ ि मा हातन (कभ) कय ऩणव सॊख्मा कय रेनी चादहमे । इसे इस प्रकाय कयना चादहमे, न्जससे आम, व्मम, नऺर, र्ाय, अष्ट मोतनमाॉ एर्ॊ अॊशक शुब हों ॥३९४-३९५॥

ऋवषमों के अनस ु ाय आम एर्ॊ व्मम क्रभश् राब एर्ॊ हातन के कायण होते है । भन्त्तव की ऊॉचाई को आठ, नौ एर्ॊ

तीन से गुणा कयना चादहमे । प्राप्ताॊक को क्रभश् फायह, आठ, आठ से वर्बान्जत कयना चादहमे । इससे आम, व्मम एर्ॊ मोतन का ऻान होता है । मदद आम अधधक हो एर्ॊ व्मम कभ हो तो इससे सम्ऩन्त्त (राब) प्राप्त होती है । आठ मोतनमों भें ॥२९६-२९८॥ ऐसा कहा गमा है कक श्रेष्ठ फेय स्तम्ब के डेढ़ बाग के फयाफय होता है । अथर्ा स्तम्ब की ऊॉचाई के नौ बागों भें आठ बाग के फयाफय मा आठ भें सात बाग के फयाफय (भन्त्तव की ऊॉचाई के) दो प्रकाय के प्रभाण प्राप्त होते है ॥२९९॥ इस प्रकाय फेय के प्रभाण का अनेक प्रकाय से र्णवन ककमा गमा है । श्रेष्ठ, भध्मभ एर्ॊ कतनष्ठ तीन प्रकाय की प्रततभाओॊ के अनुसाय ऊॉचाई ऩधद्रह, दस मा ऩाॉच हाथ की होती है । इनका भान छोटे एर्ॊ फड़े गह ृ ों के अनुसाय, प्रासाद के हस्त-भान के अनुसाय यखना चादहमे ॥३००-३०१॥

इकतीस अॊगुर से प्रायम्ब कय नौ हाथ, सात अॊगुर तक छ्-छ् अॊगुर फढ़ते हुमे प्रततभा की ऊॉचाई का भान यखना चादहमे । ऩाॉच हाथ से फायह हाथ (चौड़े) वर्भा (भन्धदय) के तैतीस ऊॉचाई के प्रभाण के ऻाता भनीवषमों द्र्ाया र्र्णवत है ॥३०२-३०३॥ जङ्गफेयभानातन जॊगभ प्रततभाओॊ के प्रभाण - भहान ऋवषमों के अनुसाय चर प्रततभाओॊ की ऊॉचाई भर प्रततभा के सात, छ्, ऩाॉच बाग अथर्ा चाय, तीन एर्ॊ दो बाग के फयाफय यखनी चादहमे ॥३०४॥

चर प्रततभा की ऊॉचाई सरङ्ग के भान के अनुसाय होती है । हीन प्रततभा सरङ्ग के ऩजा बाग के फयाफय, भध्मभ

प्रततभा उससे आधी बाग अधधक होती है । श्रेष्ठ प्रततभा उसकी (ऩजाफाग की) दग ु ुनी होती है । (अथर्ा) चर प्रततभा की ऊॉचाई सरङ्ग के ऩजा बाग की ऊॉचाई की आधी, तीन चौथाई मा उसके फयाफय ऊॉची होती है । इस प्रकाय चर प्रततभा दो प्रकाय की होती है ॥३०५-३०६॥ तेयह अॊगुर से प्रायम्ब कय दो-दो अॊगुर क्रभश् फढ़ाते हुमे इकतीस अॊगुर तक चर प्रततभा के दस प्रकाय की ऊॉचाई के प्रभाण फनते है । भनुष्मों के (आर्ास) गह ृ भें तनसभवत होने र्ारी प्रततभा तीन अॊगुर से प्रायम्ब कय आधा-आधा अॊगर ु फढ़ाते हुमे ऩधद्रह अॊगर ु तक ( ऊॉची ) होती है । अथर्ा, मजभान के अॊगर ु से प्रभाण ग्रहण कयना चादहमे । छोटी भततवमों के सरमे मर् के प्रभाण का प्रमोग कयना चादहमे ॥३०७-३०९॥ ्िायऩार नधदी तथा कार ऩर्व ददशा भें, दण्डी एर्ॊ भुण्डी दक्षऺण भें , र्ैजम एर्ॊ बङ् ृ गयीटी ऩन्श्चभ भें तथा गोऩ एर्ॊ अनधतक उत्तय ददशा भें होते है । इधहे क्रभश् दक्षऺण-क्रभ से (प्रथभ नाभ दादहनी ओय) स्थावऩत कयना चादहमे ॥३१०॥

इन द्र्ायऩारों के र्णव इस प्रकाय कहे गमे है - श्माभ र्णव (नधदी), कॊु कुभ के सभान र्णव (कार), इधद्रक र्णव अथावत इधद्रनीर र्णव (दण्डी), रार र्णव (भुण्डी), श्र्ेत र्णव (र्ैजम), भमय के कण्ठ के सभान र्णव (बङ् ृ गयीटी), नीर ऩद्म के सभान र्णव (गोऩ) तथा कारा र्णव (अनधतक) ॥३११॥

इनके आमुध इस प्रकाय है - दण्ड, टङ्क, तीक्ष्ण नोक से मक् ु त खड्ग, सबन्ण्डऩार, र्ेर, शर, र्ज्र एर्ॊ स्पुरयत सशखा से

मुक्त शन्क्त । मे चाय बुजाओॊ से मुक्त, तीन मा दो नेर तथा उग्र दाॉतो से मुक्त होते है । इनके भुकुट के तर शर से मुक्त होते है तथा अॊगो ऩय सऩव अॊककत होते है ॥३१२॥

प्रत्मेक के एक हाथ सची के सभान, दसया अधवचधद्र के सभान तथा अधम हाथ र्खरे हुमे कभर के सभान होते है । उनके शयीय उधचत भाॊस से मक् ु त होते है । दे र्ों के सभान उनके चेहये बमयदहत होते है ; ककधतु (दे खने र्ारों के

सरमे) बम उत्ऩधन कयते है । मे प्रचण्ड स्र्रूऩ र्ारे होते है । मे वर्सबधन कामों के सरमे उऩमुक्त होते है । मे हात भें शर धायण ककमे, केशों से मुक्त सशर्ारम भें स्थावऩत होते है ॥३१३॥

सबी के प्रभाण नौ तार कहे गमे है । वर्द्र्ान ् सशन्लऩमों को तार-प्रभाण के क्रभ को हय के द्र्ाया उऩददष्ट शास्र

(आगभ) के अनुसाय ग्रहण कयना चादहमे । सबी के एक ऩैय भुड़े होने चादहमे । भन्धदयों भें इधहे द्र्ायऩार के रूऩ भें स्थावऩत कयना चादहमे । सबी प्रकाश से मुक्त, सऩों से सुसन्ज्जत एर्ॊ इच्छानुसाय र्स्रों से मुक्त होते है ।॥३१४॥

आगभ-ऩयम्ऩया के अनुमातममों के सरमे महाॉ ब्रह्भा, वर्ष्णु, सशर् एर्ॊ कुभाय आदद प्रभुख दे र्ों के आकाय, र्णव, आबषण, र्ाहन, स्थान, ध्र्ज, आमुध, उनके आसन आदद का र्णवन ककमा गमा है ॥३१५॥

ऩरयसशष्ट (कूऩायर्मब) कऩायम्ब - ग्राभ आदद भें मदद कऩ नैऋत्म कोण भें हो तो व्माधध एर्ॊ ऩीड़ा, र्ारुण ददधा भें ऩशु की र्वृ ि, र्ामव्म

कोण भें शर-ु नाश, उत्तय ददशा भें सबी सुखों को प्रदान कयने र्ारा तथा ईशान कोण भें शरुॊ का नाश कयने र्ारा होता है । ऐसा कहा गमा है ॥१-२॥ चन्द्रगुतत चधद्रगुप्त ने कहा है कक खेत एर्ॊ उद्मानों भें ईशान तथा ऩन्श्चभ ददशा भें कऩ प्रशस्त होता है ॥३॥ ियाहमभदहय मदद ग्राभ के मा ऩुय के आग्नेम कोण भें कऩ हो तो र्ह सदा बम प्रदान कयता है तथा भनुष्म का नाश कयता है । नैऋत्म कोण भें कऩ होने ऩय धन की हातन तथा र्ामव्म कोण भें होने ऩय स्री की हाने होती है । इन तीनों ददशाओॊ को छोड़कय शेष ददशाओॊ भें कऩ शुब होता है ॥४-५॥ ततधथ के वर्धध के वर्षम भें नसृ सॊह ने इस प्रकाय कहा है - धचरा नऺर, अभार्स्मा ततधथ तथा रयक्ता ततधथमाॉ (चाय,

नौ, चौदह) छोड़कय शेष ततधथमाॉ शुब होती है । शकुन (अऩशकुन) होने ऩय वर्शेष रूऩ से छोड़ दे ना चादहमे । अथर्ा शुक्र, फुध, फह ृ स्ऩतत एर्ॊ चधद्र र्गों का उदम शुब होता है ॥६-७॥ नऺत्रविथधभाह -

नऺर-वर्धध के वर्षम भें कहा गमा है कक कऩ-खनन भें अधोभख ु मे नऺर शुब होते है - भर, कृन्त्तका, भघा, आश्रेषा, वर्शाखा, बयणी तथा तीनों ऩर्ाव (ऩर्ावपालगुनी, ऩर्ावषाढ़ा एर्ॊ ऩर्ावबाद्रऩदा) ऊध्र्वभुख मे नऺर प्रशस्त होते है - योदहणी, आद्राव, श्रवर्ष्ठा, ऩुष्म, शतसबषा, श्रर्ण तथा तीनों उत्तया (उत्तयापालगुनी, उत्तयाषाढ़ा एर्ॊ उत्तयाबाद्रऩदा) तुरा आदद

यासशमाॉ क्रभश् र्वृ ि-कामों आदद भें प्रशस्त होती है । अन्श्र्नी से प्रायम्ब कय ऩाॉच नऺर, धचरा से प्रायम्ब कय ऩाॉच नऺर तथा भुर से प्रायम्ब कय ऩाॉच नऺर र्वृ ि प्रदान कयते है । कुछ वर्द्र्ानों के भतानुसाय मे सबी सेत,ु कुलमा (नहय) आदद कामों भें प्रशस्त होते है ॥८-१०॥

चाय नऺर - ऩर्ावषाढ़ा, स्र्ाती, कृन्त्तका एर्ॊ शतसबषा का अर्योहन कार (उतयता कार) र्ाऩी- कऩ तथा तटाक (ताराफ) आदद के खनन (खद ु ाई) भें शुब होते है ॥११-१२॥ चन्द्रगुततधचरगुप्त के भतानुसाय हस्त, (तीनो) उत्तया, धतनष्ठा, भघा, शतसबषा, ज्मेष्ठा, योदहणी, श्रर्ण, भर, आश्रेषा, धचरा तथा ततष्म नऺर खुदाई के सरमे प्रशस्त होते है ॥१३॥

कऩखनन के प्रायम्ब की वर्धध कही जा यही है - ईशान कोण से प्रायम्ब कऩखनन से ऩुन्ष्ट, बतत (धन), ऩुरहातन,

स्री-नाश, भत्ृ मु, सम्ऩदा, शस्र-फाधा तथा कुछ सुख प्राप्त होता है । गह ृ के भध्म भें कऩ भनुष्मों के सरमे ऺमकायक होता है ॥१४॥

तथाह दे ियातदे र्यात ने कहा है - (गह ु कायक होता है । आग्नेम कोण भें होने ृ के) भध्म भें कऩ धन-नाशकायक तथा ऩर्व भें सख ऩय ऩुर की भत्ृ मु तथा दक्षऺण भें होने ऩय सर्वस्र् का नाश होता है ॥१५॥

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