The Book of mirdad hindi.pdf

April 4, 2017 | Author: Mukeshbhai Joshi | Category: N/A
Share Embed Donate


Short Description

Download The Book of mirdad hindi.pdf...

Description

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय 1 / 2 / 3 / 4

Mirdad

मीरदाद एक व्यक्तित्व kitab-e-mirdad

*** किताब-ए-मीरदाद *** किसी समय 'नौिा'िे नाम से पि ु ारे जाने वाले मठ िी अद्भत ु िथा

ममखाइल नईमी

िी अंग्रेजी पुस्ति

''द बुि ऑफ़ मीरदाद'' िा

ह द ं ी अनुवाद

डा. प्रेम मोह द्र ं ा आर. सी. ब ल

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

साइंस ऑफ़ द सोल ररसर्च सेंटर य



किताब-ए-मीरदाद

उस रूप में जजसमें इसे उसिे साथथयों में से

सबसे छोटे और ववनम्र नरौंदा ने लेखनीबद्ध किया। जजनमें आत्म-ववजय िे मलये तड़प ै

उनिे मलये य

मात्र आलोि-स्तम्भ और आश्रय ै ।

बाक़ी सब बुवद्धजन ताकिचि इससे सावधान र ें ।

भाई भगवतीदासनंदलाल जी िे स योग से प्रिामित पीडीएफ ननम्न मलिं से ले सिते



pdf link part one : https://www.facebook.com/groups/Call4BookReaders12.06.2013/73470118990821 4/ and pdf part two : https://www.facebook.com/groups/Call4BookReaders12.06.2013/734701736574826/ िेष ; अध्याय खंड

१ से लेिर ३७ ति क्रम अनस ु ार में य ााँ ब्लॉग में इस पस् ु ति िो बााँट र ी

ाँ ।

प्रथम-पवच-आरं भ ममखाइल नईमी द्वारा रचिि पुस्िक ‘किताब-ए-मीरदाद’ अध्यात्म का सवोत्कृष्ट बीसवीीं सदी की भाषा

में मलखा ग्रन्थ है । ओशो ने एक बार कहा था कक ककसी कारण वश सारे ग्रन्थ नष्ट हो जाए एवीं यदद यह कृति शेष रहे िो सभ्यिा किर भी ववकमसि हो सकिी है । िकू कीं इस ग्रन्थ में सभी सत्यों का

सार एवीं जीवन का सार है । इसमें सींस्कृति का उद्वार करने की कला एवीं आत्म ज्ञान को प्राप्ि करने की क्षमिा है । यह एक ग्रन्थ नहीीं बक्कक प्रकाश स्िम्भ है ।

यह ग्रन्थ गीिा,बाईबबल एवीं कुरान के समकक्ष रखने योग्य है । इसमें आक्त्मक उन्नति की ववचि एक

मठ की कथा की माध्यम से रखी हुई है । उति कृति में पहाड़ पर स्थावपि पुराने मठ से जुड़ी कहानी है । प्रतिकात्मक भाषा में गूढ़ बािें इस पस् ु िक में मलखी हुई है । सािक की दृक्ष्ट को मजबूि कर उसकी राह के कााँटे हटािी है । नकारात्मकिा का सामना करने की समग्र ववचि इसमें है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

यह व्यवाहाररक पस् ु िक नहीीं है , सींसार में रस क्जनको आिा हो उनके मलए यह नहीीं है ैै। जो सींसार

से थक गए है उनके मलए ज्योति प्रदायक है । जो नहीीं कहा जा सकिा है , उसे कहने में यह सक्षम है । परम सत्य को लेखक को कथा के रूप में बुनने में महारथ प्राप्ि है । यह हमारे उपतनषदों की िरह है ।

लेखक मलखिा है कक हम जीने के मलए मर रहे है जबकक लेखक मरने के मलए जी रहा है । वविारणीय है कक जीने के मलए मरे या मरने के मलए क्जए। साथ ही इसमें मलखा है : प्रेम ही प्रभु का वविान है ।

िुम जीिे हो िाकक िुम प्रेम करना सीख लो।

िुम प्रेम करिे हो िाकक िुम जीना सीख लो।

मनुष्य को और कुछ सीखने की आवश्यकिा नहीीं।

और प्रेम करना तया है , मसवाय इसके कक प्रेमी वप्रयिम को सदा के मलये अपने अन्दर लीन कर ले िाकक दोनों एक हो जायें? ममखाइल नईमी लेबनान के ईसाई पररवार में पैदा हुए, रुस में मशक्षा ग्रहण की एवीं आगे की मशक्षा अमेररका में । वहीीं पर वे खलील क्जब्रान से जुड़े एवीं वहीीं मािभ ृ ाषा अरबी की सींस्कृति एवीं सादहत्य को नव जीवन प्रदान करने के मलए 1947 में द बुक आैि मीरदाद मलखी।

अध्याय एि मीरदाद अपना पदाच टाता ै और पदों और मु रों िे बबषय में बात िरता ै

नरौंदा

; उस शाम आठों साथी खाने की मेज के िारों ओर जमा थे और मीरदाद एक ओर खड़ा िुपिाप उनके

आदे शों की प्रिीक्षा कर रहा था। साचथयों पर लागू परु ािन तनयमों में से एक यह था कक जहााँ िक सम्भव हो वािाालाप में बारे

''मैं''शब्द का प्रयोग न ककया जाये। साथी शमदाम मखु खया के रूप में अक्जाि अपनी उपलक्ब्ियों के में डीींग मार रहा था। यह ददखािे हुए कक उसने नौका की सींपक्त्ि और प्रतिष्ठा में ककिनी ववृ ि की है ,

उसने बहुि से आींकड़े प्रस्िि ु ककये। ऐसा करिे हुए उसने वक्जाि शब्द का बहुि अचिक प्रयोग ककया। साथी ममकेयन ने इसके मलए उसे एक हलकी सी खिड़की दी। इस पर एक उत्िेजनापण ू ा वववाद तछड़ गया कक इस

तनयम का तया उद्देश्य था और इसे बनाया था वपिा हजरि नह ू ने या साथी अथााि सैम ने। उत्िेजना से एक

-

दस ू रे पर दोष लगाने की नौबि आ गई और इसके िलस्वरूप बाि इिनी बाद गई कक कहा िो बहुि कुछ पर समि में ककसी की कुछ नहीीं आया।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html वववाद को हीं सी के वािावरण में बदलने की इच्छा से शमदाम मीरदाद की ओर मड़ ु ा और स्पष्ट उपहास के स्वर में बोला

:'' इिर दे खो, कुलवपिा से भी बड़ी हस्िी यहााँ मौजदू है। मीरदाद, शब्दों की इस भलू भलु यै ााँ से तनकलने में हमें राह बिा। ''सबकी दृक्ष्ट मड़ ु कर मीरदाद पर दटक गई, और हमें आश्िया िथा प्रसन्निा हुई जब, साि वषा की लम्बी अवचि में पहली बार, मीरदाद ने अपना मह ुीं खोला मीरदाद ; नौका के मेरे साचथयों शमदाम की इक्षा िाहे उपहास में प्रकट की गई है , ककन्िु अनजाने ही मीरदाद के गींभीर तनणाय की पव ू ा सि ू ना दे िी है । तयोंकक क्जस ददन मीरदाद ने इस नौका में प्रवेश ककया था, उसी ददन उसने अपनी मह ु रें िोड़ने अपने परदे हटाने और िम् ु हारे िथा सींसार के सम्मख ु अपने वास्िववक रूप में प्रकट होने के मलए इसी समय और स्थान को

-- इसी पररक्स्थति को-- िुना था|साि महु रों से मीरदाद ने अपना महु बींद ककया हुआ है| साि पदों से उसने अपना िेहरा ढक रखा है , िाकक िम ु जब मशक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाओ िो वह िम् ु हे और सींसार को मसखा दे कक कैसे अपने होंठों पे लगी मोहरें िोड़ी जायें, कैसे आाँखों पे पड़े परदे हटाये जायें और इस िरह अपने आपको अपने सामने अपने सम्पण ू ा िेज में प्रकट ककया जाये ।िम् ु हारी आाँखें बहुि से पदों से ढकी

हुई हैं । हर वास्िु क्जस पर िम ु द्रक्ष्ट डालिे हो मात्र एक पदाा है । िम् ु हारे होठों पे बहुि सी मह ु रें लगी हुई हैं

,

,

। हर शब्द क्जसका िम ु उच्िारण करिे हो मात्र एक मह ु र है

| तयोकक पदाथा िाहे उसका कोई रूप या प्रकार तयों न हो, केवल परदे और पोिड़े हैं क्जनमे जीवन ढका और मलप्ि हुआ है । िम् ु हारी आाँख, जो स्वयीं एक पदाा और पोिड़ा है , परदे और पोिड़े के मसवाय िम् ु हे कहीीं और कैसे ले जा सकिी है ? और शब्द-- वे तया ,

अक्षरों और मात्राओीं में बींद ककये हुए पदाथा नहीीं हैं और तया बोल सकिा है

? िम्ु हारा होंठ, जो स्वयीं एक महु र है, महु रों के मसवाय

? आाँखें पदाा डाल सकिी हैं, परदे

को वेि नहीीं सकिीीं ।होंठ मह ु र लगा सकिे हैं

,

मह ु रों को िोड़ नहीीं सकिे ।इससे अचिक इनसे कुछ न माींगो । शरीर के कायों में से इनके दहस्से का काया इिना ही है और इसे ये भली भााँिी तनभा रहे हैं । परदे डालकर और मह ु रें लगाकर ये िम ु से पक ु ार पक ु ार

;

-

,

-

कर कह रहे हैं कक आओ और उसकी खोज करो जो पदों के पीछे तछपा है और उसका भेद प्राप्ि करो जो मह ु रों

,

के नीिे दबा है । अगर िम ु अन्य वस्िओ ु ीं को सही रूप से दे खना िाहिे हो िो पहले स्वयीं आाँख को ठीक से

दे खो । िम् ु हे आाँख के द्वारा नहीीं आाँख में से दे खना होगा िाकक इससे परे की सब वस्िओ ु ीं को िम ु दे ख सको

,

।यदद िम ु दस ु रे शब्द ठीक से बोलना िाहिे हो िो पहले होंठ और जबान ठीक से बोलो । िम् ु हे होंठ और जबान के द्वारा नहीीं वक्कक होंठ और जबान में से बोलना होगा िाकक उनसे परे के सारे शब्द िम ु बोल सको ।यदद

,

िम ु केवल ठीक से दे खोगे और बोलोगे िो िम् ु हे अपने मसवाय और कुछ नजर नहीीं आयेगा और न िम ु अपने

,

,

मसवाय और कुछ बोलोगे । तयोंकक प्रत्येक वस्िु के अींदर और प्रत्येक वस्िु से परे सब शब्दों में और सब शब्दों

,

हो | यदद किर िम्ु हारा सींसार एक िकरा दे ने वाली पहेली है, िो वह इसमलए कक िमु स्वयीं ही वह िकरा दे ने बाली पहे ली हो । और यदद िम् ै ाीं है , िो वह इसमलए ु हारी वाणी एक ववकट भल ू भल ु य कक िम ै ाीं हो । िीजें जैसी हैं वैसी ही रहने दो; उन्हें बदलने का प्रयास मि करो ु स्वयीं ही वह ववकट भल ू भल ु य । तयोंकक वे जो प्रिीि होिी हैं, इसमलए प्रिीि होिी हैं कक िम ु वह प्रिीि होिे हो जो प्रिीि होिे हो । जब िक िम ु उन्हें द्रक्ष्ट वाणी प्रदान नहीीं करिे, वे न दे ख सकिी हैं, न बोल सकिी हैं । यदद उनकी वाणी ककाश से परे केवल िम ु ही

,

है िो अपनी ही क्जभ्या की और दे खो । यदद वह कुरूप ददखाई दे िी हैं िो शरू ु में भी और आखखर में भी अपनी

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html ही आाँख को परखो ।पदाथों से उनके कपडे उिार िेंकने को मि कहो । अपने परदे उिार िेंको पदाथों के परदे

,

स्वयीं उिर जायेंगे । न ही पदाथों से उनकी मह ु रें िोड़ने को कहो । अपनी मह ु रें िोड़ दो अन्य सब की मह ु रें

,

स्वयीं टूट जाएाँगी ।अपने परदे उिारने और अपनी मह ु रें िोड़ने की कींु जी एक शब्द है क्जसे िम ु सदै व अपने होंठों में पकडे रहिे हो । शब्द है

" मैं " यह सबसे िच्ु छ और सबसे महान है

|

अध्याय -२ मसरजन ार िब्द - मैं ********************************* समस्ि वस्िओ ु ीं का श्रोि और केंद्र है जब िुम्हारे मुह से ”मैं” तनकले िो िुरींि अपने हृदय में कहो,

” प्रभ,ु ”मैं”की ववपक्त्ियों में मेरा आश्रय बनो, और ”मैं” के परम आनींद

की ओर िलने में मेरा मागा दशान करो ।” तयोंकक इस शब्द के अींदर,

यद्यवप यह अत्यींि सािारण है ,

प्रत्येक अन्य शब्द की आत्मा कैद है । एक बार उसे मुति कर दो,

िो सुगींि िैलाएगा िुम्हारा मुख,

ममठास में पगी होगी िम् ु हारी क्जव्हा, और िुम्हारे प्रत्येक शब्द से

जीवन में आह्लाद का रस टपकेगा ।

। मीरदाद ने इसे सज ृ नहार शब्द कहा

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

उसे कैद रहने दो, िो दग ा ि पण ु न् ू ा होगा िम् ु हारा मख ु , कडवी होगी िुम्हारी क्जव्हा और िम् ु हारे प्रत्येक शब्द से

मत्ृ यु का मवाद टपकेगा । तयोंकक ममत्रो ”मैं” ही मसरजनहार शब्द है । और जब िक िम ु इसकी

िमत्कारी शक्ति को प्राप्ि नहीीं करोगे, िब िक िुम्हारी हालि ऐसी होगी

यदद गाना िाहोगे िो आिानाद करोगे; शाींति िाहोगे िो युि करोगे;

यदद प्रकाश में उड़ान भरना िाहोगे,

िो अाँिेरे कारागारों में पड़े मसकुड़ोगे ।

िुम्हारा ”मैं” अक्स्ित्व की िुम्हारी िेिना मात्र है , मूक और दे ह रदहि अक्स्ित्व की,

क्जसे बानी और दे ह दे दी गई है । वह िुम्हारे अींदर का अश्रव्य है क्जसे श्रव्य बना ददया गया है ,

अदृश्य है क्जसे दृश्य बना ददया गया है ,

िाकक िुम दे खो िो अदृश्य को दे ख सको;

और जब सन ु ो िो अश्रव्य को सन ु सको ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक अभी िुम आाँख

और कान के साथ बींिे हुए हो. और यदद िुम इन आाँखों के द्वारा न केखो, और यदद िम ु इन कानो के द्वारा न सन ु ो,

िो िम ु कुछ भी दे ख और सन ु नहीीं सकिे । ”मैं” के वविार–मात्र से िुम अपने ददमाग में वविारों के

समुद्र को दहलकोरने लगिे हो । वह समुद्र रिना है िुम्हारे ”मैं”की

जो एक साथ वविार और वविारक दोनों है । यदद िुम्हारे वविार एसे हैं जो िभ ु िे, काटिे या नोििे हैं,

िो समि लो कक िम् ु हारे

अींदर के ”मैं” ने ही उन्हें डींक, दाींि, पींजे प्रदान ककये हैं … मीरदाद िाहिा है ….

कक िुम यह भी जान लो

कक जो प्रदान कर सकिा है वह छीन भी सकिा है ।

”मैं” की भावना–मात्र से िम ु अपने हृदय में भावनाओीं का कुआाँ खोद लेिे हो । यह कुआाँ रिना है िुम्हारे ”मैं” की जो एक साथ अनुभव करनेवाला और अनभ ु व दोनों है । यदद िम् ु हारे हृदय में कींटीली

िाड़ड़यााँ हैं, िो जान लो िुम्हारे अींदर के ”मैं” ने ही उन्हें वहाीं लगाया

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

है ।मीरदाद िाहिा है कक िुम यह भी जान लो कक जो इिनी आसानी

से लगा सकिा है वह उिनी आसानी से जड़ से उखाड़ भी सकिा है । ”मैं” के उच्िारण–मात्र से िुम शब्दों के एक ववशाल समह ू को जन्म

दे िे हो; प्रत्येक शब्द होिा एक वस्िु का प्रिीक; प्रत्येक वस्िु होिी है एक सींसार का प्रिीक;प्रत्येक सींसार होिा है एक ब्रम्हाण्ड का घटक अींग ।वह ब्रम्हाींड रिना है िुम्हारे ”मैं” की जो एक साथ स्रष्टा और

स्रक्ष्ट दोनों है । यदद िम् ु हारी स्रक्ष्ट में कुछ हौए हैं, िो जान लो कक

िुम्हारे अींदर के ”मैं” ने ही उन्हें अक्स्ित्व ददया है ।मीरदाद िाहिा है कक यह भी जान लो कक जो रिना कर सकिा है वह नष्ट भी कर

सकिा है ।जैसा स्रष्टा होिा है , वैसी ही होिी है उसकी रिना । तया कोई अपने आप से अचिक रिना रि सकिा है ? या अपने आपसे

कम?स्रष्टा केवल अपने आपको रििा है —-न अचिक, न कम ।एक

मल ू – स्रोि है ”मैं”क्जसमे वे सब वस्िए ु ीं प्रवादहि होिी हैं और क्जसमे वे वापस िली जािी हैं ।जैसा मूल स्रोि होिा है , वैसा ही होिा है

उसका प्रवाह भी एक जाद ू की छड़ी है ”मैं” । किर भी यह छड़ी एसी ककसी वस्िु को पैदा नहीीं कर सकिी जो जादग ू र में न हो । जैसा

जादग ू र होिा है , वैसी ही होिी हैं उसकी छड़ी की पैदा की हुई वस्िए ु ीं ।इसमलए जैसी िम् ु हारी िेिना है , वैसा ही िुम्हारा ”मैं” । जैसा िुम्हारा

”मैं” है वैसा ही है िम् ु हारा सींसार । यदद इस ;;मैं” का अथा स्पष्ट और

तनक्श्िि है , िो िुम्हारे सींसार का अथा भी स्पष्ट और तनक्श्िि है ; और िब िुम्हारे शब्द कभी भूलभुलय ै ााँ नहीीं होंगे; न ही होंगे िुम्हारे कमा

कभी पीड़ा के घोंसले । यदद यह पररविान–रदहि िथा चिर स्थाई है ,

िो िुम्हारा सींसार भी पररविान रदहि और चिर स्थाई है ; और िब िम ु हो समय से भी अचिक महान िथा स्थान से भी कहीीं अचिक ववस्िि ृ

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

। यदद यह अस्थायी और अपररविानशील है , िो िुम्हारा सींसार भी

अस्थायी और अपररविानशील है ; और िम ु हो िए ु ीं की एक परि क्जस

पर सूया अपनी कोमल साींस छोड़ रहा है ।यदद यह एक है िो िुम्हारा सींसार भी एक है ; और िब िम् ु हारे और स्वगा िथा पथ् ृ वी के सब

तनवामसयों के बीि अनींि शाक्न्ि है । यदद यह अनेक है िो िम् ु हारा सींसार भी अनेक है ; और िुम अपने साथ िथा प्रभु के असीम

साम्राज्य के प्रत्येक प्राणी के साथ अन्ि–हीन यि ु कर रहे हो ”मैं” िुम्हारे जीवन का केंद्र है क्जसमे से वे वस्िए ु ीं तनकलिी हैं क्जनसे

िुम्हारा सम्पूणा सींसार बना है , और क्जनमे वे सब वापस आकर ममल

जािी हैं । यदद यह क्स्थर है िो िम् ु हारा सींसार भी क्स्थर है ; ऊपर या नीिे की कोई भी शक्ति िुम्हे दायें या बाएीं नहीीं डुला सकिी । यदद यह िलायमान है िो िुम्हारा सींसार भी िलायमान है ; और िम ु एक

असहाय पत्िा हो हो जो हवा के क्रुि बवींडर की लपेट में आ गया है

।और दे खो िुम्हारा सींसार क्स्थर अवश्य है , परन्िु केवल अक्स्थरिा में ।तनक्श्िि है िम् ु हारा सींसार, परन्िु केवल अतनक्श्िििा में ; तनत्य है

िम् ु हारा सींसार, परन्िु अतनत्यिा में ; और एक है िम् ु हारा सींसार, परन्िु केवल अनेकिा में ।िुम्हारा सींसार है कब्रों में बदलिे पालनो का, और

पालनो में बदलिी कब्रों का, रािों को तनगलिे ददनों का, और ददनों को

उगलिी रािों का, यि ु की घोषणा कर रही शाक्न्ि का, और शाक्न्ि की प्राथाना कर रहे यि ु ों का, अश्रुओीं पर िैरिी मुस्कानों का, और मुस्कानों से दमकिे अश्रओ ु ीं का ।िुम्हारा सींसार तनरीं िर प्रसव-वेदना में िड़पिा सींसार है , क्जसकी िाय है मत्ृ यु ।िम् ु हारा सींसार छलतनयों और

िरतनयों का सींसार है क्जसमे कोई दो छलतनयााँ या िरतनयााँ एक

जैसी नहीीं हैं । और िम ु तनरीं िर उन वस्िओ ु ीं को छानने और िारने

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

में खपिे रहे हो क्जन्हें छाना या िारा नहीीं जा सकिा ।िुम्हारा सींसार अपने ही ववरुि ववभाक्जि है तयोंकक िम् ु हारे अींदर का ”मैं” इसी प्रकार ववभाक्जि है ।िुम्हारा सींसार अवरोिों और बाड़ों का सींसार है , तयोंकक

िम् ु हारे अींदर का ”मैं” अवरोिों बाड़ों का ;;मैं” है ।कुछ वस्िओ ु ीं को यह पराया मान कर बाड के बाहर कर दे ना िाहिा है ; कुछ को अपना

मानकर बाड़ के अींदर ले लेना िाहिा है । परन्िु जो वस्िु बाड़ के

बाहर है वह सदा बलपव ा बाड़ के अींदर आिी रहिी है , और जो वस्िु ू क बाड़ के अींदर है वह सदा बलपूवक ा बाड़ के बाहर जािी रहिी है । तयोंकक वे एक ही मााँ की–िुम्हारे ”मैं” की—सींिान होने के कारण अलग-अलग नहीीं होना िाहिीीं ।और िम ु , उनके शभ ु ममलाप से

प्रसन्न होने के बजाय, अलग न हो सकनेवालों को अलग करने की

तनष्िल िेष्टा में िी जुट जािे हो । ”मैं” के अींदर की दरार को भरने की बजाय िम ु अपने जीवन को छील-छील कर नष्ट करिे जािे हो; िुम आशा करिे हो कक इस िरह िुम इसे एक पच्िड़ बना लोगे क्जसे िुम, जो िुम्हारी समि में िुम्हारा ”मैं” है और जो िुम्हारी

ककपना में िम् ु हारे ;;मैं;;से मभन्न है , उन दोनों के बीि ठोंक सको |हे

सािुओ, मीरदाद िुम्हारे ”मैं” के अींदर की दरारों को भर दे ना िाहिा है िाकक िुम अपने साथ, मनुष्य-मात्र के साथ, और सम्पूणा ब्रम्हाींड के

साथ शाींतिपव ा जी सको ।मीरदाद िम् ू क ु हारे ”मैं” के अींदर भरे बबष को सोख लेना िाहिा है िाकक िुम ज्ञान की ममठास का रस िख सको ।मीरदाद िुम्हे िम् ु हारे ”मैं” को िोलने की ववचि मसखाना िाहिा है िाकक िम ु पण ू ा सींिल ु न का आनींद ले सको | अध्याय 3-

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

☞पावन बत्रपुटी और पूणा सींिल ु न ☜ मीरदाद-यद्यवप िुममे से हर-एक अपने-अपने ” मैं ” में केक्न्द्रि हैं, किर भी िुम सब एक मैं में केक्न्द्रि हो प्रभु के मैं में | प्रभु का ‘मैं’…..

मेरे साचथयों, प्रभु का शाश्वि,

एकमात्र शब्द है . इसमें प्रभु प्रकट होिा है जो परम िेिना है . इसके बबना व पूणा मौन ही रह जािा.

इसी के द्वारा स्रष्टा ने अपनी रिना की है . इसी के द्वारा

वह तनराकार अनेक आकार िारण करिा है क्जनमे से होिे हुए जीव किर से तनराकारिा में पहुाँि जायेंगे.

अपने आपका अनुभव करने के मलये;

अपने आप का चिींिन करने के मलये; अपने आप का उच्िारण करने के

मलये प्रभु को ‘मैं’ से अचिक और कुछ बोलने की आवश्यकिा नहीीं. इसमलए ‘मैं’ उसका एकमात्र शब्द है .

इसमलए यही शब्द है .जब प्रभु ‘मैं’ कहिा है

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िो कुछ भी अनकहा नहीीं रह जािा.

दे खे हुए लोक और अनदे खे लोक; जन्म ले िक ु ी वस्िए ु ीं और जन्म लेने की प्रिीक्षा कर रही

वस्िए ु ;ीं बीि रहा समय और अभी आने बाला

समय – सब; सब-कुछ ही,

रे ि के एक-एक कण िक,

इसी शब्द के द्वारा प्रकट होिा है और इसी शब्द में समा जािा है .

इसी के द्वारा सब वस्िए ु ीं रिी गईं थी.

इसी के द्वारा सभी का पालन होिा है . यदद ककसी ककसी शब्द का कोई अथा न हो, िो वह शब्द शून्य में

गूींजिी केवल एक प्रति ध्वनी है . यदद इसका अथा सदा एक ही न हो,

िो यह गले का कैं सर जबान पर पड़े छले से अचिक और कुछ नहीीं | प्रभु का शब्द शून्य में गींज ू िी प्रतिध्वनी नहीीं है , न ही गले का कैं सर है ,

मसवाय उनके मलए जो ददव्य ज्ञान से रदहि हैं . तयोंकक ददव्य ज्ञान वह पववत्र शक्ति है …. जो शब्द को प्राणवान बनािी है

और उसे िेिना के साथ जोड़ दे िी है . यह उस अनींि िराजू की डींडी है क्जसके दो पलड़े हैं —

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

आदद िेिना और शब्द .आदद िेिना, शब्द और ददव्य ज्ञान —दे खो सािुओ,

अक्स्ित्व की यह बत्रपट ु ी,

वे िीन जो एक हैं, वह एक जो िीन हैं,

परस्पर सामान, सह-व्यापक, सह-शाश्वि; आत्म-सींिुमलि, आत्म- ज्ञानी, आत्म-परू क. यह न कभी घटिी है न बढिी है — सदै व शाींि, सदै व

सामान. यह है पण ू ा सींिुलन, ये सािुओ .मनुष्य ने इसे प्रभु नाम ददया है , यद्यवप यह इिना ववलक्षण है कक इसे कोई नाम नहीीं ददया जा

सकिा. किर भी पावन है यह नाम, और पावन है वह क्जव्हा जो इसे पावन रखिी है .मनुष्य यदद इस प्रभु की सींिान नहीीं िो और तया

है ? तया वह प्रभु सकिा है से मभन्न हो? तया बड़ का वक्ष ृ अपने बीज

के अींदर समाया हुआ नहीीं है ? तया प्रभु मनष्ु य के अींदर व्याप्ि नहीीं है ? इसमलए मनुष्य भी एक ऐसी ही पावन बत्रपुटी है ; िेिना, शब्द और ददव्य ज्ञान. मनष्ु य भी, अपने प्रभु की िरह एक स्रष्टा है .उस्क ‘मैं’

उसकी रिना है .क़िर तयों वह अपने प्रभु जैसा सींिमु लि नहीीं है ? यदद िुम इस पहे ली का उत्िर जानना िाहिे हो, िो ध्यान से सुनो जो कुछ भी मीरदाद िुम्हे बिाने जा रहा है | अध्याय4☞मनुष्य पोिड़ों में मलपटा ☜ एक परमात्मा है

मनुष्य पोिड़ों में मलपटा एक परमात्मा है । समय एक पोिड़ा है ,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

स्थान एक पोिड़ा है , दे ह एक पोिड़ा है और

इसी प्रकार हैं इक्न्द्रयाीं िथा

उनके द्वारा अनभ ु व-गम्य वस्िए ु ीं भी । मााँ भली प्रकार जानिी है की पोिड़े मशशु नहीीं हैं ।

परन्िु बच्िा यह नहीीं जानिा । अभी मनुष्य का अपने पोिड़ों में बहुि ध्यान रहिा है जो हर ददन के साथ,

हर युग के साथ बदलिे रहिे हैं । इसमलए उसकी िेिना में तनरीं िर पररविान होिा रहिा है ; इसीमलए उसका शब्द, जो उसकी िेिना की अमभव्यक्ति है ,

कभी भी अथा में स्पष्ट और तनक्श्िि नहीीं होिा;

और इसीमलए उसके वववेक पर िि ुीं छाई रहिी है ; और इसीमलए उसका जीवन असींिमु लि है । यह तिगुनी उलिन है ।

इसीमलए मनुष्य सहायिा के मलए प्राथाना करिा है । उसका आिानाद अनादद काल से गाँज ू रहा है ।

वायु उसके ममलाप से बोखिल है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

समुद्र उसके आींसओ ु ीं के नमक से खारा है ।

िरिी पर उसकी कब्रों से गहरी िरु रा याीं पड़ गईं हैं । आकाश उसकी प्राथानाओीं से बहरा हो गया है । और यह सब इसमलए कक

अभी िक वह ;मैं’ का अथा

नहीीं समििा जो उसके मलए है

पोिड़े और उसमे मलपटा हुआ मशशु भी । ‘मैं’ कहिे हुए मनष्ु य शब्द को दो भागों में िीर दे िा है ; एक, उसके पोिड़े;

दस ू रा प्रभु का अमर अक्स्ित्व । तया मनुष्य वास्िव में

अववभाज्य को ववभाक्जि कर दे िा है ? प्रभु न करे ऐसा हो ।

अववभाज्य को कोई शक्ति ववभाक्जि नहीीं कर सकिी–इश्वर की शक्ति भी नहीीं ।

मनुष्य अपररपतव है

इसमलए ववभाजन की ककपना करिा है । और मनष्ु य, एक मशशु,

उस अनींि अक्स्ित्व को अपने

अक्स्ित्व का बैरी मानकर लड़ाई के मलए कमर कस लेिा है और युि की घोषणा कर दे िा है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इस युि में , जो बराबरी का नहीीं है ,

मनष्ु य अपने माींस के िीथड़े उदा दे िा है , अपने रति की नददयााँ वह दे िा है ; जबकक परमात्मा, जो मािा भी है

और वपिा भी, स्नेह-पव ा दे खिा रहिा है , ू क तयोंकक वह भली-भााँिी जानिा है कक मनष्ु य अपने उन मोटे पदों को ही िाड़ रहा है और अपने

उस कड़वे द्वेष को ही बहा रहा है जो उस एक के साथ उसकी

एकिा के प्रति उसे अाँिा बनाय हुए है । यही मनुष्य की तनयति है – लड़ना और रति बहाना और मतू छाि हो जाना, और अींि में जागना

और ‘मैं’ के अींदर की दरार को अपने माींस से भरना

और अपने रति से उसे

मजबूिी से बींद कर दे ना । इसमलए साचथयों…….. िुम्हे साविान कर ददया गया है – और बड़ी बुविमानी के साथ

साविान कर ददया गया है –

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

कक ‘मैं’ का कम से कम प्रयोग करो । तयोंकक जब िक ‘मैं’ से

िुम्हारा िात्पया पोिड़े है ,

उसमे मलपटा केवल मशशु नहीीं; जब िक इसका अथा िम् ु हारे

मलए एक िलनी है , कुठली नहीीं, िब िक िम ु अपने ममथ्या अमभमान को छानिे रहोगे और बटोरोगे

केवल मत्ृ यु को, उससे उत्पन्न सभी पीडाओीं और वेदनाओीं के साथ |

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय 5/6/7 प्रभु रर्ना और प्रभु एि

ी तो भी

अध्याय–5.. कुठामलयााँ और िलतनयाीं शब्द प्रभु का

और मनुष्य का प्रभु का शब्द एक कुठली है । जो कुछ वह रििा है

उसको वपघलाकर एक कर दे िा है , न उसमे से ककसी को अच्छा मानकर स्वीकार करिा है न ही बरु ा मानकर ठुकरािा है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ददव्य ज्ञान से पररपण ू ा होने के कारण वह भली- जानिा है कक उसकी रिना और वह स्वयीं एक हैं; कक एक अींश को ठुकराना सम्परू को ठुकराना है ; और सम्पूणा को ठुकराना

अपने आप को ठुकराना है । इसमलए उसका उद्देश्य और

आशय सदा एक ही रहिा है । जबकक मनुष्य का शब्द एक िलनी है । जो कुछ यह रििा है

उसे लड़ाई-िगड़े में लगा दे िा है । यह तनरीं िर ककसी को ममत्र मानकर अपनािा रहिा है

िो ककसी को ठुकरािा रहिा है । और अकसर इसका कल का ममत्र आज का शत्रु बन जािा है ; आज का शत्र,ु कल का ममत्र ।

इस प्रकार मनष्ु य का अपने ही ववरुि क्रूर और तनरथाक युि तछड़ा रहिा है ।

और यह सब इसमलए तयोंकक मनष्ु य में पववत्र शक्ति का अभाव है ;और केवल वही उसे बोि करा सकिी है कक वह िथा उसकी रिना एक ही हैं;

कक शत्रु को त्याग दे ना ममत्र को त्याग दे ना है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक दोनों शब्द, शत्रु और ममत्र उसके शब्द उसके मैं की रिना है ।

क्जससे िम ु घ्रणा करिे हो

और बरु ा मानकर त्याग दे िे हो,

उसे अवश्य ही कोई अन्य व्यक्ति,

अथवा अन्य पदाथा अच्छा मानकर, अपना लेिा है तया एक ही वस्िु एक ही समय में

परस्पर ववपरीि दो वस्िए ु ीं हो सकिी है ? वह न एक हैं,

न ही दस ू री; केवल िुम्हारे ‘मैं ने उसे बुरा बहा ददया है , और ककसी दस ु रे ;;मैं” ने उसे अच्छा बना बना । तया मैंने कहा नहीीं कक जो रि सकिा है ? वह अ-रचिि भी कर सकिा है ?

क्जस प्रकार िम ु ककसी को शत्रु बना लेिे हो, उसी प्रकार उसके साथ शत्रुिा को ममटा भी सकिे हो,

या उसे शत्रु से ममत्र बना सकिे हो । इसके मलए िुम्हारे ”मैं” को एक कुठाली बनना होगा।

इसके मलया िह ु े ददव्य ज्ञान की आवश्यकिा है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इसमलए मैं िुमसे कहिा हूाँ कक यदद िम ु कभी ककसी वस्िु के मलए प्राथाना करिे ही हो,

िो केवल ददव्य ज्ञान के मलए प्राथाना करो। छानने वाले कभी न बनना, मेरे साचथयों …

तयोंकक प्रभु का शब्द जीवन है और जीवन एक कुठाली है

क्जसमे सब कुछ एक, अववभाज्य एक बन जािा है ; सब कुछ परू ी िरह सींिमु लि होिा है , और सबकुछ अपने रितयिा–

पावन बत्रपुटी–के योग्य होिा है । और इससे और ककिना अचिक िम् ु हारे योग्य होगा ? छानने वाले कभी न बनना, मेरे साचथयों; िब िम् ु हारा व्यक्तित्व इिना महान,

इिना सवाव्यापी और इिना सवाग्राही हो जाएगा कक ऐसी कोई भी

िलनी नहीीं ममल सकेगी जो िम् ु हे अपने अींदर समेट ले । छानने वाले कभी न बनना, मेरे साचथयों । पहले शब्द का ज्ञान प्राप्ि करो िाकक िुम अपने खुद के शब्द को जान सको । जब िम ु अपने शब्द को

जान लोगे िब अपनी िलतनयों को अक्ग्न की भें ट कर दोगे । तयोंकक िुम्हारा शब्द और प्रभु का शब्द एक है , अींिर इिना ही है िुम्हारा

शब्द अभी भी पदों में तछपा हुआ है । मीरदाद िम ु से परदे किीं कवा दे ना िाहिा है ।प्रभु के शब्द के मलए समय और स्थान का कोई

अक्स्ित्व नहीीं । तया कोई ऐसा समय था जब िुम प्रभु के साथ नहीीं

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

थे ? तया कोई ऐसा स्थान है जहााँ िुम प्रभु के अींदर नहीीं थे ? किर

तयों बााँििे हो िम ु अनन्ििा को प्रहारों और ऋिओ ु ीं की जींजीरों में ?

और तयों समेटिे हो स्थान को इींिों और मीलों में ?प्रभु का शब्द वह जीवन है जो जन्मा नहीीं,इसी मलए अववनाशी है । किर िम् ु हारा शब्द जन्म और मत्ृ यु की लपेट में तयों है ? तया िम ु केवल प्रभु के सहारे जीववि नहीीं हो ? और मत्ृ यु से मुति कोई मत्ृ यु का स्रोि हो सकिा

है ? प्रभु के शब्द में सभी कुछ शाममल है उसके अींदर न कोई अवरोि है न कोई बाड़ें । किर िुम्हारा शब्द अवरोिों और बाड़ों से तयों इिना जजार है ?

मैं िम ु से कहिा हूाँ, िम् ु हारी हड्ड़डयााँ और माींस भी केवल िम् ु हारी ही हड्ड़डयााँ और माींस नहीीं है । िम् ु हारे हाथो के साथ और अनचगनि हाथ भी प्रथवी और आकाश की उन्ही दे गचियों में डुबकी लगािे हैं

क्जनमे से िम् ु हारी हड्ड़डयााँ और माींस आिे हैं और क्जनमे वो वापस

िले जािे है ।न ही िुम्हारी आाँखों की ज्योति केवल िुम्हारी ज्योति है । यह उन सबकी ज्योति भी है जो सूया प्रकाश में िुम्हारे भागीदार हैं

। यदद मि ु मे प्रकाश न होिा िो तया िम् ु हारी आाँखे मि ु े दे ख पािीीं ? यह मेरा प्रकाश है जो िुम्हरी आाँखों में मुिे दे खिा है । यह िुम्हारा

है जो मेरी आाँखों में िुम्हे दे खिा है । यदद मैं पण ू ा अन्िकार होिा िो मेरी और िाकने पर िम् ु हारी आाँखें पण ू ा अींिकार ही होिीीं । न ही

िुम्हारे वक्ष में िलिा श्वाींस िुम्हारा श्वाींस है । जो श्वास लेिे हैं, या

क्जन्होंने कभी श्वास मलया था, वे सब िुम्हारे वक्ष में श्वास ले रहे हैं । तया यह आदम का श्वास नहीीं जो अभी भी िम् ु हारे िेंिडों को िुला रहा है ? तया यह आदम का हृदय नहीीं जो आज भी िुम्हारे

हृदय के अींदर िड़क रहा है ?न ही िुम्हारे वविार िुम्हारे अपने वविार

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हैं । सावाजातनक चिींिन का समुद्र दावा करिा है कक यह वविार उसके हैं; और यह दावा करिे हैं चिींिन करने वाले अन्य प्राणी जो िम् ु हारे साथ उस समुद्र में भाचगदार हैं ।न ही िुम्हारे स्वप्न केवल िम् ु हारे

स्वप्न हैं िम् ु हारे स्वप्नों में सम्पण ू ा ब्रम्हाण्ड अपने सपने दे ख रहा है । न ही िम् ु हारा घर केवल िम् ु हारा घर है । यह िम् ु हारे मेहमान का

और उस मतखी, उस िूहे, उस बबकली, और उन सब प्राखणयों का भी घर है जो िम् ु हारे साथ उसका उपयोग करिे हैं ।इसमलए, बाड़ों से

साविान रहो । िुम केवल भ्रम को बाद के अींदर लािे हो और सत्य

को बाद के बाहर तनकलिे हो । और जब िुम अपने आप को बाद के

अींदर दे खने के मलए मड़ ु िे हो, िो अपने सामने खडा पािे हो मत्ृ यु को जो भ्रम का दस ू रा नाम है ।मनुष्य को, हे सािुओ प्रभु से अलग नहीीं ककया जा सकिा; और इसमलए अपने साथी मनष्ु य से और अन्य

प्राखणयों से भी उसे अलग नहीीं ककया जा सकिा तयोंकक वे भी शब्द से उत्पन्न हुए हैं |शब्द सागर है , िुम बादल हो, और बादल तया बादल हो सकिा है यदद सागर उसके अींदर न हो? तनिःसींदेह मख ू ा हैं

वह बादल जो अपने रूप और अपने अक्स्ित्व को सदा के मलए बनाये रखने के उद्देश्य से आकाश में अिर टीं गे रहने के प्रयास में ही अपना जीवन नष्ट करना िाहिा है । अपने मख ा ापूणा श्रम का उसे भग्न ू ि आशाओीं और कटु ममथ्यामभमान के मसवाय और तया िल प्राप्ि

होगा? यदद वह अपने आप को गाँवा नहीीं दे िा, िो अपने आपको प ्

नहीीं सकिा । यदद वह बादल के रूप में मरकर लप्ु ि नहीीं हो जािा, िो अपने अींदर के सागर को पा नहीीं सकिा जो एकमात्र उसका

अक्स्ित्व है ।मनष्ु य एक बादल है जो प्रभु को अपने अींदर मलए हुए है । यदद वह अपने आप से ररति नहीीं हो जािा, िो वह अपने आप को

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

पा नहीीं सकिा । आह, ककिना आनींद है ररति हो जाने में !यदद िम ु अपने आप को सदा के मलए शब्द में खो नहीीं दे िे िो िम ु उस शब्द

को समि नहीीं सकिे जो की िुम स्वयीं हो, जो की िुम्हारा ”मैं” ही है । आह, ककिना आनींद है खो जाने में !मैं िम ु से किर कहिा हूाँ, ददव्य ज्ञान के मलए प्राथाना करो । जब िम् ु हारे अन्िर में ददव्य ज्ञान प्रकट हो जाएगा, िो प्रभु के ववशाल साम्राज्य में ऐसा कुछ नहीीं होगा जो

िम् ु हारे द्वारा उच्िाररि प्रत्येक ”मैं” का उत्िर एक प्रसन्न हुाँकार से न दे ।और िब स्वयीं मत्ृ यु िुम्हारे हाथों में केवल एक अस्त्र होगी क्जससे िम ु मत्ृ यु को पराक्जि कर सको । और िब जीवन िुम्हारे

हृदय को असीम ह्रदय की कींु जी प्रदान करे गा । वह है प्रेम की सन ु हरी कींु जी ।शमदाम ;– मैंने स्वप्न में भी ककपना नहीीं की थी की जूिे

बिान पोंछने के चिथड़े और िाड़ू में से इिनी बुविमत्िा तनिोड़ी जा सकिी है । (उसका सींकेि मीरदाद के सेवक होने की ओर था )मीरदाद :– बुविमानों के मलए सब कुछ बुविमत्िा का भण्डार है ।.

बुवि हीनों के मलए बवु िमत्िा स्वयीं एक मूखि ा ा है । शमदाम : — िेरी जब ु ान, तनिःसींदेह बड़ी ििरु है । आश्िया है कक िन ू े इसे इिने समय

िक लगाम ददए रखी । परन्िु िेरे शब्द बहुि कठोर और कदठन हैं ।मीरदाद;– मेरे शब्द िो सरल हैं शमदाम । कदठन िो िुम्हारे कानों को लगिे हैं । अभागे हैं वे जो सन ु कर भी नहीीं सन ु िे; अभागे हैं वे जो दे खकर भी नहीीं दे खिे ।शमदाम:– मुिे खूब सन ु ाई और ददखाई

दे िा है , शायद जरुरि से कुछ ज्यादा ही । किर भी मैं ऐसी मख ा ा की ू ि बाि नहीीं सन ु ाँग ू ा कक शमदाम और मीरदाद दोनों सामान हैं; कक मामलक और नौकर में कोई अींिर नहीीं ।

* परा अजस्तत्व

ी *

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

एि दसरे िी सेवा में लीन अध्याय 6 मीरदाद :– मीरदाद ही शमदाम का एकमात्र सेवक नहीीं है । शमदाम……..तया िुम अपने सेवकों की चगनिी कर सकिे हो ?

तया कोई गरुड या बाज है ; तया कोई दे वदार या बरगद है ; तया कोई पवाि या नक्षत्र है ; तया कोई महासागर या सरोवर है ; तया कोई ़िररश्िा या बादशाह है जो शमदाम की सेवा न कर रहा हो ? तया सारा सींसार ही शमदाम की सेवा में नहीीं है ? न ही मीरदाद शमदाम का एक मात्र स्वामी है । शमदाम, तया िुम अपने स्वाममयों की चगनिी कर सकिे हो ? तया कोई भींग ृ ी या कीट है ;

तया कोई उकलू या गौरै या है ; तया कोई कााँटा या टहनी है ; तया कोई कींकर या सीप है ;

तया कोई ओस-बबींद ु या िालाब है ; तया कोई मभखारी या िोर है



http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

क्जसकी शमदाम सेवा न कर रहा हो ? तया शमदाम सम्पण ू ा सींसार की सेवा में नहीीं है ? तयोंकक अपना काया करिे हुए सींसार िम् ु हारा काया भी करिा है ।

और अपना काया करिे हुए िुम सींसार का काया भी करिे हो । हााँ……..

मस्िक पेट का स्वामी है ; परन्िु पेट भी मस्िक

का कम स्वामी नहीीं । कोई भी िीज सेवा नहीीं कर सकिी जब िक सेवा करने में

उसकी अपनी सेवा न होिी हो । और कोई भी िीज सेवा नहीीं करवा सकिी जब िक उस सेवा से

सेवा करने वाले की सेवा न होिी हो । शमदाम…..मैं िुम से और सभी से कहिा हूाँ, सेवक स्वामी का स्वामी है , और स्वामी सेवक का सेवक । सेवक को अपना मसर न िुकाने दो । स्वामी को अपना मसर न उठाने दो ।

क्रूर स्वामी के अहीं कार को कुिल डालो ।

शममान्दा सेवक की शममान्दगी को जड़ से उखाड़ िेंको |

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

याद रखो,शब्द एक है । और उस शब्द के अक्षर होिे हुए िुम भी वास्िव में एक ही हो ।

कोई भी अक्षर ककसी अन्य अक्षर से श्रेष्ठ नहीीं,

न ही ककसी अन्य अक्षर से अचिक आवश्यक है । अनेक अक्षर एक ही अक्षर हैं, यहााँ िक कक शब्द भी ।

िुम्हे ऐसा एकाक्षर बनना होगा

यदद िुम उस अकथ आत्म-प्रेम के क्षखणक परम आनींद का अनभ ु व प्राप्ि करना िाहिे हो

जो सबके प्रति,सब पदाथों के प्रति, प्रेम है । शमदाम…

इस समय मैं िम ु से उस िरह बाि नहीीं कर रहा हूाँ क्जस िरह स्वामी सेवक से अथवा सेवक स्वामी से करिा है ; बक्कक इस िरह बाि कर रहा हूाँ क्जस िरह भाई भाई से बाि करिा है ।

िुम मेरी बािों से तयों इिने व्याकुल हो रहे हो ? िम ु िाहो िो मि ु े अस्वीकार कर दो ।

परन्िु मैं िुम्हे अस्वीकार नहीीं करूींगा । तया मैंने अभी-अभी नहीीं कहा था कक मेरे शरीर का माींस

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िुम्हारे शरीर के माींस से मभन्न नहीीं है ? मैं िम ु पर वार नहीीं करूाँगा,

कहीीं ऐसा न हो कक मेरा रति बहे ।

इसमलए अपनी जबान को म्यान में ही रहने दो,

यदद िम ु अपने रति को बहने से बिाना िाहिे हो । मेरे मलए अपने ह्रदय के द्वार खोल दो, यदद िम ु उन्हें व्यथा और पीड़ा

के मलए बींद कर दे ना िाहिे हो । ऐसी क्जव्हा से

क्जसके शब्द काींटे और जाल हों

क्जव्हा का न होना कींहीीं अच्छा है । और जब िक क्जव्हा ददव्य ज्ञान के द्वारा स्वच्छ नहीीं

की जािी िब िक उससे तनकले शब्द सदा घायल करिे रहें गे और जाल में िाँसािे रहें गे | हे सािुओ…….

मेरा आग्रह है कक िुम अपने ह्रदय को टटोलो । मेरा आग्रह है कक िम ु उसके अींदर के सभी अवरोिों को उखाड़ िेंको । मेरा आग्रह है कक िुम उन

पोिड़ों को क्जनमे िम् ु हारा ;

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मैं; अभी मलपटा हुआ है िेंक दो, िाकक िुम दे ख सको

कक अमभन्न है िम् ु हारा ‘मैं’ प्रभु के शब्द से जो

अपने आपमें सदा शाींि है

और अपने में से उत्पन्न हुए सभी खण्डों–ब्रम्हान्डों के साथ तनरीं िर एक- स्वर है ।

यही मशक्षा थी मेरी नह ू को । यही मशक्षा है मेरी िुम्हे है …

नरौन्दा;–इसके बाद हम सबको अवाक और लक्ज्जि छोड़कर मीरदाद अपनी कोठरी में िला गया । कुछ समय के मौन के बाद,

क्जसका बोि असह्य हो रहा था,

सभी साथी उठकर जाने लगे और

जािे जािे हर साथी ने मीरदाद के

ववषय में अपना वविार प्रकट ककया । शमदाम;– राज-मुकुट के स्वप्न दे खने वाला एक मभखारी ।

ममकेयन:- यह वही है जो गुप्ि रूप से हजरि नूह की नौका में सवार हुआ था । इसमें कहा नहीीं था, ”यही मशक्षा थी मेरी नूह को ?”

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अबबमार:- उलिे हुए सूि की एक गुच्छी । ममकास्िर :- ककसी दस ु रे ही आकाश का एक िारा । बैनून :- एक मेिावी पुरुष, ककन्िु परस्पर ववरोिी बािों में खोया हुआ । जमोरा :- एक ववलक्षण रबाब क्जसके स्वरों को हम नहीीं पहिानिे । दहम्बल :- एक भटकिा शब्द ककसी सहृदय श्रोिा की खोज में र िब्द िो प्राथचना में ढाल दो प्रभु मागच िे मलए अध्याय -7

ममकेयन और नरौंदा

राि को मीरदाद से बाििीि करिे हैं

जो भावी जल-प्रलय का सींकेि दे िा है और उनसे िैयार रहने का आग्रह करिा है *************************************** नरौन्दा :- राबत्र के िीसरे पहर की लगभग दस ू री घडी थी जब मुिे लगा कक

मेरी कोठरी का द्वार खल ु रहा है

और मैंने ममकेयन को िीमे स्वर में कहिे सुना…. तया िम ु जाग रहे हो, नरौन्दा ?”” इस राि मेरी कोठरी में नीींद का

आगमन नहीीं हुआ है ……ममकेयन

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

‘ न ही नीींद ने आकर मेरी आाँखों में बसेरा ककया है । और वह तया िम ु सोििे हो कक वह सो रहा है ?”” िुम्हारा मिलब मुमशाद से है ?….

िम ु अभी से उसे ममु शाद कहने लगे ? शायद वह है भी ।

जब िक मैं तनश्िय नहीीं कर लेिा की वह कौन है ,

मैं िैन से नहीीं बैठ सकिा । िलो…..

इसी क्षण उसके पास िलें । हम दबे पााँव मेरी कोठरी से तनकले और मुमशाद की कोठरी में जा पहुींिे ।

िीकी पड़ रही िाींदनी की कुछ ककरणें दीवार के उपरी भाग के एक तछद्र से

िोरी तछपे घस ु िी हुई उसके सािारण-से बबस्िर पर पड़ रहीीं थीीं

जो सा़ि-सुथरे ढीं ग से िरिी पर बबछा हुआ था । स्पस्ट था कक उस राि उस पर कोई सोया न था । क्जसकी िलाश में हम वहाीं आये थे, वह वहाीं नहीीं ममला ।

िककि, लक्ज्जि और तनराश हम लौटने ही लगे थे की अिानक…..

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इससे पहले कक हमारी आाँखे द्वार पर उसके करुणामय मख ु की िलक पािीीं,

उसका कोमल स्वर हमारे कानो में पड़ा । मीरदाद :- घबराओ मि, शाींति से बैठ जाओ । मशखरों पर राबत्र िेजी से प्रभाि में ववलीन होिी जा रही है ।

ववलीन होने के मलए यह घडी बड़ी अनक ु ू ल है । ममकेयन :- ( उलिन,और रुक-रुक कर) इस अनाचिकार प्रवेश के मलए क्षमा करना ।

राि- भर हम सो नहीीं पाये । मीरदाद:- बहुि क्षखणक होिा है नीींद में अपने आपको भूल जाना । नीींद की हलकी-हलकी िपककयााँ लेकर अपने को भल ू ने से बेहिर हैं

जागिे हुए ही अपने आपको परू ी िरह से भल ु ा दे ना । …. मीरदाद से िम ु तया िाहिे हो ?… ममकेयन:- हम यह जानने के मलए आये थे की िम ु कौन हो । मीरदाद:- जब मैं मनुष्यों के साथ होिा हूाँ िो परमात्मा हूाँ …. जब परमात्मा के साथ

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िो मनुष्य ।

तया िम ु ने जान मलया ममकेयन ? ममकेयन:- िुम परमात्मा की तनींदा कर रहे हो । मीरदाद:- ममकेयन के परमात्मा की-शायद हााँ, मीरदाद के परमात्मा की बबलकुल नहीीं ।

ममकेयन:- तया क्जिने मनुष्य हैं उिने ही परमात्मा हैं जो िम ु मीरदाद के मलए एक परमात्मा की और ममकेयन के मलए

दस ु रे परमात्मा की बाि करिे हो ? मीरदाद:- परमात्मा अनेक नहीीं हैं । परमात्मा एक है ।

ककन्िु मनुष्यों की परछाइयााँ

अनेक और मभन्न-मभन्न हैं ।

जब िक मनष्ु यों की परछाइयााँ िरिी पर पड़िी हैं,

िब िक ककसी मनष्ु य का

परमात्मा उसकी परछाईं से बड़ा नहीीं हो सकिा । केवल परछाईं -रदहि मनुष्य ही परू ी िरह से प्रकाश में है ।

केवल परछाईं-रदहि मनुष्य ही

उस एक परमात्मा को जानिा है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक परमात्मा प्रकाश है , और केवल प्रकाश ही

प्रकाश को जान सकिा है । ममकेयन:- हमसे पहे मलयों में बाि मि करो । हमारी बवु ि अभी बहुि मन्द है ।

मीरदाद:- जो मनष्ु य परछाईं का पीछा करिा है , उसके मलये सबकुछ ही पहे ली है ।

ऐसा मनुष्य उिार ली हुई रौशनी में िलिा है , इसमलए वह अपनी परछाईं से ठोकर खािा है । जब िम ु ददव्य ज्ञान के प्रकश से िमक उठोगे िब िुम्हारी कोई परछाईं रहे गी ही नहीीं । शीघ्र ही मीरदाद परछाइयााँ इकट्ठी कर लेगा

और उन्हें सूया के िाप में जला डालेगा ।

िब वह सब जो इस समय िुम्हारे मलए पहे ली है , एक ज्वलींि सत्य के रूप में

सहसा िुम्हारे सामने प्रकट हो जायेगा, और वह सत्य इिना प्रत्यक्ष होगा

कक उसे ककसी व्याख्या की आवश्यकिा नहीीं होगी.. ममकेयन :- तया िुम हमें बिाओगे नहीीं कक िुम कौन हो?

यदद हमे िम् ु हारे नाम का–

िुम्हारे वास्िववक नाम का—

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िथा िुम्हारे दे श

और िम् ा ों का ज्ञान होिा ु हारे पव ू ज िो शायद हम िम् ु हे अचिक

अच्छी िरह से समि लेिे । मीरदाद :- ओह, ममकेयन !

मीरदाद को अपनी जींजीरों में बााँिने और अपने पदों में तछपाने का िुम्हारा यह प्रयास ऐसा ही है

जैसा गरुड को वापस उस खोल में

ठूींसना क्जसमे से वह तनकला था । तया नाम हो सकिा है उस मनुष्य का

जो अब ‘खोल के अींदर ‘ है ही नहीीं ? ककस दे श की सीमाएाँ उस मनुष्य को

अपने अींदर रख सकिी हैं

क्जसमे एक ब्रम्हाण्ड समाया हुआ है ? कौन-सा वींश उस मनुष्य को अपना कह सकिा है क्जसका एकमात्र पव ा स्वयीं परमात्मा है ? ू ज

यदद िुम मुिे अच्छी िरह से जानना िाहिे हो, ममकेयन,

िो पहले ममकेयन को अच्छी िरह से जान लो ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ममकेयन :- शायद िुम मनुष्य का िोला पहने एक ककपना हो ।

मीरदाद :- हााँ लोग ककसी ददन कहें गे कक मीरदाद केवल एक ककपना था ।

परन्िु िम् ु हे शीघ्र ही पिा िल जायेगा कक यह ककपना ककिनी यथाथा है —

मनुष्य के ककसी भी प्रकार के यथाथा से ककिनी अचिक यथाथा । इस समय सींसार का ध्यान मीरदाद की ओर नहीीं है । पर मीरदाद सींसार को सदा ध्यान में रखिा है ।

सींसार भी शीघ्र ही ममरदाद की ओर ध्यान दे गा….. ममकेयन:- कहीीं िम ु वही िो नहीीं जो गप्ु ि रूप से नह ू की नौका में

सवार हुआ था ? मीरदाद:- मैं प्रत्येक उस नाव में गुप्ि रूप से सवार हुआ व्यक्ति हूाँ जो भ्रम के िि ू ानों से जि ू रही है । जब भी उन नौकाओीं के कप्िान मुिे सहायिा के मलये पुकारिे हैं, मैं आगे बढ़कर पिवार थाम लेिा हूाँ । िम् ु हारा ह्रदय भी,िाहे िम ु नहीीं जानिे,

दीघाकाल से उच्ि स्वर में मुिे पक ु ार रहा है । और दे खो !

मीरदाद िम् ु हे सरु क्षक्षि खेने के मलए यहााँ आ गया है िाकक अपनी

बारी आने पर िम ु सींसार को खेकर उस जल-प्रलय से बाहर तनकल सको

क्जससे बड़ा जल-प्रलय कभी दे खा या सन ु ा न गया होगा ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ममकेयन:- एक और जल-प्रलय ? ममरदाद :- िरिी को बहा दे ने के मलए नहीीं,

बक्कक िरिी के अींदर जो स्वगा है उसे बाहर लाने के मलए । मनष्ु य का तनशान िक ममटा दे ने के मलए नहीीं, बक्कक मनष्ु य के अींदर तछपे

परमात्मा को प्रकट करने के मलए । ममकेयन :- अभी कुछ ही ददन िो हुए हैं जब इींद्रा-िनष ु ने साि रीं गों से हमारे आकाश को सुशोमभि ककया था, और िुम दस ु रे जल-प्रलय की बाि करिे हो |

मीरदाद:- नह ू के जल-प्रलय से अचिक ववनाशकारी होगा यह जलप्रलय क्जसकी िि ू ानी लहरें अभी से उठ रही हैं ।

जल में डूबी िरिी के गभा में वसींि का वादा होिा है । लेककन अपने ही िप्ि लहू में उबल रही िरिी ऐसी नहीीं होिी ।

ममकेयन:- िो तया हम समिें कक अन्ि आनेवाला है ? तयोंकक हमें बिाया गया था

कक गप्ु ि रूप से नौका में सवार होने वाले व्यक्ति का आगमन अन्ि का सूिक होगा ।

मीरदाद:- िरिी के बारे में कोई आशींका मि करो । अभी उसकी आयु बहुि कम है , और उसके वक्ष का दि ू उसके अींदर समा नहीीं रहा है ।

अभी और इिनी पीदढयाीं उसके दि ू पर पलेंगी

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

कक िुम उन्हें चगन नहीीं सकिे । न ही िरिी के स्वामी मनष्ु य के मलए चिींिा करो,

तयोंकक वह अववनाशी है । हााँ…….

अममट है मनुष्य ।

हााँ…अक्षय है मनष्ु य ।

वह भट्ठी में प्रवेश मनुष्य–

रूप में करे गा और तनकलेगा परमात्मा बनकर । क्स्थर रहो ।

िैयार रहो ।

अपनी आाँखों, कानों और क्जव्हाओीं को भख ू ा रखो,

िाकक िुम्हारा ह्रदय उस पववत्र भख ू का अनुभव कर सके

क्जसे यदद एक बार शाींि कर ददया जाये

िो वह सदा के मलये िप्ृ ि कर दे िी है । िुम्हे सदा िप्ृ ि रहना होगा,

िाकक िम ु अिप्ृ िों को िक्ृ प्ि प्रदान कर सको । िुम्हे सदा सबल और क्स्थर रहना होगा, िाकक िुम तनबाल और डगमगाने वालों को सहारा दे सको ।

िुम्हे िू़िान के मलये सदा िैयार रहना होगा,

िाकक िम ु ि़ि ू ान-पीड़ड़ि बेआसरों को आसरा दे सको । िम् ु हे सदा

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

प्रकाशवान रहना होगा, िाकक िम ु अन्िकार में िलनेवालों को मागा ददखा सको ।

तनबाल के मलए तनबाल बोि है ;

परन्िु के मलए एक सख ु द दातयत्व । तनबालों की खोज करो;

उनकी तनबालिा िम् ु हारा बल है । भूखे के मलए भख ू े केवल भूख हैं;

परन्िु िप्ृ ि के मलए कुछ दे ने का शुभ अवसर ।

भख ू ों की खोज करो; उनकी भींख ू िम् ु हारी िक्ृ प्ि है ।

अींिे के मलए अींिे रास्िे के पत्थर हैं; परन्िु आींखोंवालों के मलए मीलपत्थर ।

अींिों की खोज करो; उनका अन्िकार िुम्हारा प्रकाश है । नरौन्दा:- िभी प्रभाि की प्राथाना के लीये आह्वान करिा हुआ बबगल ु बज उठा । मीरदाद:- जमोरा एक नये ददन के आगमन का बबगुल बजा रहा है – एक नये िमत्कार के आगमन का क्जसे िुम गवाीं दोगे उठने–बैठने के बीि,

जींभाइयाीं लेिे हुए, पेट को भरिे और खली करिे हुए, व्यथा के शब्दों से अपनी

क्जव्हा को पैनी करिे हुए और

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ऐसे अनेक काया करिे हुए क्जन्हें न करना बेहिर होिा, और ऐसे काया न करिे हुए क्जन्हें करना आवश्यक है |

ममकेयन:- िो तया हम प्राथाना के मलये न जायें ? मीरदाद:- जाओ ! करो प्राथाना

जैसे िम् ु हे मसखाया गया है । जैसे भी हो सके प्राथाना करो, ककसी भी पदाथा के मलय करो ।

जाओ ! िुम्हे जो कुछ भी करने के आदे श ममले हैं वह सब कुछ करो जब

िक िुम आत्म- मशक्षक्षि और आत्मतनयींबत्रि न हो जाओ,

जब िक िम ु हर शब्द को एक प्राथाना, हर काया को

एक बमलदान बनाना न सीख लो । शाींि मन से जाओ ।

मीरदाद को िो दे खना है

कक िुम्हारा सुबह का खाना

पयााप्ि िथा स्वाददष्ट हो ।

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय -8/9 सीमाएाँ न फैलाओ ☞ फैलते जाओ ☜

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अध्याय 8 साि साथी मीरदाद से ममलने नीड़ में जािे हैं जहााँ वह उन्हें अाँिेरे में काम करने से साविान करिा है ************************************* नरौन्दा :- उस ददन मैं और ममकेयन प्रभाि की प्राथाना में गए ही नहीीं । शमदाम को हमारी अनप ु क्स्थति आखखर और यह पिा लग जाने पर

कक हम राि को ममु शाद से ममलने गए थे ।

वह बहुि अप्रसन्न हुआ । किर भी उसने अपनी अप्रसन्निा प्रकट नहीीं की; उचिि समय की प्रिीक्षा करिा रहा । बाींकी साथी हमारे व्यवहार से बहुि उत्िेक्जि हो गये थे और उसका कारण जानना िाहिे थे । कुछ ने सोिा कक हमें हमें प्राथाना में शाममल न होने

की सलाह ममु शाद ने दी थी । अन्य कुछ साचथयों ने

उसकी पहिान के सम्बन्ि में कौिूहलपूणा अटकलें लगािे हुए कहा

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

कक अपने आपको केवल हम पर प्रकट करने के मलए मुमशाद ने हमें राि को अपने पास बुलाया था ।

कोई भी यह मानने को िैयार नहीीं था कक मीरदाद ही गप्ु ि रूप से नह ू की

नौका में सवार होने वाला व्यक्ति था । ककन्िु सभी उससे ममलने और अनेक बबषयों पर

उससे प्रश्न पूछने के इच्छुक थे । मुमशाद की आदि थी कक जब वे

नौका में अपने कायों से मत ु ि होिे िो अपना समय काले खड्ड के

कगार पर दटकी गुिा में बबिािे । इस गि ु ा को हम आपस में नीड कहकर पुकारिे थे । उसी ददन दोपहर,

शमदाम के अतिररति हम सबने उन्हें वहाीं ढूींढ़ा और ध्यान में डूबे हुए पाया । उनका िेहरा िमक रहा था; वह और भी िमक उठा

जब उनहोंने आाँखें ऊपर उठाई और हमारी ओर दे खा ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद:- ककिनी जकदी िुमने अपना नीड़ ढूींढ़ मलया है ।

मीरदाद िुम्हारी खातिर इस बाि पर खुश है । अबबमार:- हमारा नीड़ िो नौका है ।

िम ु कैसे कहिे हो कक यह गि ु ा हमारा नीड़ है ? मीरदाद:- नौका कभी नीड़ थी | अबबमार:- और आज । मीरदाद:- अ़िसोस !

केवल एक छुछुींदर का बबल । अबबमार:- हााँ, आठ प्रसन्न छछूींदर और नौवाीं मीरदाद । मीरदाद:- ककिना आसान है मजाक उड़ाना; समिना ककिना कदठन ।

पर मजाक ने सदा मजाक उड़ाने वाले का मजाक उड़ाया है ।

अपनी क्जव्हा को व्यथा कष्ट तयों दे िे हो । अबबमार:- मजाक िो िम ु हमारा उड़ािे हो जब हमें छछूींदर कहिे हो ।

हमने ऐसा तया ककया है कक हमें यह नाम ददया जाये ? तया हमने हजरि नूह की

ज्योति को जलाये नहीीं रखा ? तया हमने इस नौका को,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जो कभी मुट्ठी भर

मभखाररयों के मलये एक कुदटया-मात्र थी, सबसे अचिक समि ृ महल से भी ज्यादा समि ृ नहीीं बना ददया ? तया हमने इसकी सीमाओीं का दरू िक ववस्िार नहीीं ककया जब िक कक यह एक

शक्तिशाली साम्राज्य नहीीं बन गई ? यदद हम छछूींदर हैं

िो तनिःसींदेह मशरोमखण हैं

हम बबल खोदने वालों में ? मीरदाद:- हजरि नूह की ज्योति जल िो रही है , ककन्िु केवल वेदी पर ।

यह ज्योति िुम्हारे ककस काम की यदद िुम स्वयीं वेदी न बने,

और नहीीं बने िम् ु हारे ह्रदय ईंिन और िेल ? नौका इस समय सोने िाींदी

से बहुि अचिक लदी हुई है ; इसमलए इसके जोड़ िराा रहे हैं, यह जोर से डगमगा रही है और डूबने को िैयार है ।

जबकक मााँ-नौका जीवन से भरपरू थी और उसमे कोई जड़ बोि नहीीं था;

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इसमलये सागर उसके ववरुि शक्तिहीन था । जड़ बोि से साविान, मेरे साचथयों ।

क्जस मनष्ु य को अपने

ईश्वरत्व में दृढ़ ववश्वास है

उसके मलये सबकुछ जड़ बोि है ।

वह सींसार को अपने अींदर िारण करिा है , ककन्िु सींसार का बोि नहीीं उठािा | मैं िुमसे कहिा हूाँ….. यदद िम ु अपने सोने और िाींदी को समद्र ु में िेंककर नाव को हकका नहीीं कर लोगे,

िो वे िुम्हे अपने साथ समुद्र की िह िक खीींि ले जायेंगे ।

तयोंकक मनुष्य क्जस वास्िु को कसकर पकड़िा है ,

वही उसको जकड लेिी है वस्िुओीं को अपनी पकड़ से मुति कर दो

यदद िम ु अपनी जकड से बिना िाहिे हो । ककसी भी वस्िु का मोल न लगाओ, तयोंकक सािारण से सािारण वस्िु भी अनमोल होिी है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िुम रोटी का मोल लगािे हो । सय ू ,ा

िरिी, वाय,ु

िरिी,

सागर िथा मनष्ु य के पसीने

और ििरु िा का मोल तयों नहीीं लगािे

क्जनके बबना रोटी हो ही नहीीं सकिी थी ? ककसी भी वस्िु का मोल न लगाओ, कहीीं ऐसा न हो िम ु

अपने प्राणों का मोल लगा बैठो मनुष्य के प्राण उस वस्िु से अचिक मक ू यवान नहीीं होिे

क्जस वस्िु को वह मूकयवान मानिा है । ध्यान रखो…..

िम ु अपने अनमोल प्राणों को कहीीं सोने क्जिना सस्िा न मान लो नौका की सीमाएाँ िुमने

मीलों दरू िक िैला दी हैं । यदद िुम उन्हें िरिी की

सीमाओीं िक भी िैला दो,

किर भी िम ु सीमा के अींदर रहोगे और उनमे कैद रहोगे ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद िाहिा है कक िम ु अनींििा के के िरों ओर सीमा रे खा खीींि दो,

उससे आगे तनकल जाओ । समद्र ींू -मात्र है , ु िरिी पर दटकी एक बद

किर भी यह उसकी सीमा बना हुआ है , उसे अपने घेरे में मलये हुए है । और मनुष्य िो उससे और भी कहीीं अचिक असीम सागर है । ऐसे नादान न बनो

कक मनुष्य को एडी से छोटी िक नाप कर यह समि बैठो कक

िम ु ने उसकी सीमाएाँ पा ली हैं । िुम बबल खोदनेवालों में मशरोमखण हो सकिे हो,

जैसा की अबबमार ने कहा है ; परन्िु केवल उस छछूींदर की

िरह जो अाँिेरे में काम करिा है । क्जिनी अचिक जदटल उसकी

भूलभल ु ैयााँ हों उिना ही दरू होिा है सूया से उसका मख ु । मैं िम् ु हारी भल ू भल ु ैयााँ

को जानिा हूाँ, अबबमार ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िुम मुटठी भर प्राणी हो, जैसा िम ु कहिे हो,

और कहने को सींसार के सब प्रलोभनों से मत ु ि और

परमात्मा को समवपाि हो । परन्िु कुदटल और अींिकारपूणा है

वे रास्िे जो िम् ु हे सींसार के साथ जोड़िे हैं । तया मुिे िुम्हारे मनोवेग मिलिे, िुींकारिे सुनाई नहीीं दे िे ? तया मि ु े िम् ु हारी ईष्यााएाँ

िुम्हारे परमात्मा की वेदी पर रें गिी और िडपिी ददखाई नहीीं दे िीीं ?

भले ही िम ु मट्ठ ु ी भर हो परन्ि,ु ओह,

ककिना ववशाल जनसमूह है उस मट्ठ ु ी भर में !

यदद िुम वास्िव में ही

बबल खोदनेवालों में मशरोमखण होिे, जो िम ु कहिे हो िम ु हो, िो िुम खोदिे-खोदिे

बहुि पहले िरिी में से ही नहीीं, सय ू ा में से भी िथा गगन-मण्डल में ितकर काटिे

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हर ग्रह- उपग्रह में से भी अपनी राह बना ली होिी छछुन्दरों को थूथनो

और पींजों से अपनी अाँिेरी

राहें बनाने दो िम् ु हे अपना राजपथ ढूींढने के मलये

पलक िक दहलाने की आवश्यकिा नहीीं । इस नीड़ में बैठे रहो

और अपनी ददव्य ककपना को उड़ान भरने दो । उस पथ-रदहि अक्स्ित्व के, जो िुम्हारा साम्राज्य है ,

अद्भि ु खजानों िक पहुाँिने के मलये यही िम् ु हारा ददव्य पथ-प्रदशाक है । सशति और तनभाय मन से

अपने पथ-प्रदशाक के पीछे -पीछे िलो ।

उसके पद-चिन्ह िाहे वे दरू िम नक्षत्र पर हों, िुम्हारे मलये इस बाि का सूिक और जमानि होंगे

कक िम् ु हारी जड़ वहाीं

पहले ही रोपी जा िुकी है । तयोंकक िुम ऐसी ककसी

भी वस्िु की ककपना नहीीं कर सकिे जो पहले से िुम्हारे भीिर न हों,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

या िुम्हारा अींग न हों ।

वक्ष ृ अपनी जड़ों से आगे नहीीं ़िैल सकिा, जबकक मनुष्य असीम िक ़िैल सकिा है , तयोंकक उसकी जड़ें अनींि में हैं ।

अपने मलए सीमाएाँ तनिााररि मि करो । िैलिे जाओ

जब िक कक ऐसा कोई लोक न रहे क्जसमे िम ु न होओ । िैलिे जाओ जब िक

कक सारा सींसार वहााँ न हो

जहााँ सींयोगवश िम ु होओ ।

िैलिे जाओ िाकक जहााँ कहीीं भी िम ु अपने आपसे ममलो, िुम प्रभु से ममलो ।

िैलिे जाओ । िैलिे जाओ ! अाँिेरे में इस भरोसे कोई काया न करो कक अन्िकार एक ऐसा आवरण है

क्जसे कोई दृक्ष्ट बेि नहीीं सकिी । यदद िम् ु हे अन्िकार से अींिे हुए लोगों से शमा नहीीं आिी िो कम से कम जुगनुओीं और

िमगादड़ों से िो शमा करो ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अन्िकार का कोई अक्स्ित्व नहीीं है , मेरे साचथयो ।

प्रकाश की मात्रा सींसार के हर

जीव की आवश्यकिा की पतू िा

के मलये कम या अचिक होिी है । िुम्हारे ददन का खुला प्रकाश

अमर पक्षी* के मलये साींि का िट ु पट ु ा है । िुम्हारी घनी अाँिेरी राि

में ढक के मलये जगमगािा ददन है । यदद स्वयीं अन्िकार पर से ही आवरण हटा ददये जायें

िो वह ककसी वस्िु के मलये

आवरण कैसे हो सकिा है ? ककसी भी वस्िु को ढकने का यत्न न करो । यदद यदद और कुछ िुम्हारे

रहस्यों को प्रकट नहीीं करे गा िो

उनका आवरण ही उन्हें प्रकट कर दे गा । तया ढतकन नहीीं जानिा की बिान के अींदर तया है ? ककिनी दद ु ा शा होिी है सााँपों

और कीड़ों से भरे बिानों की

जब उन पर से ढतकन उठा ददये जािे हैं ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मैं िुमसे कहिा हूाँ, िुम्हारे अींदर से एक भी ऐसा स्वास नहीीं तनकलिा जो िुम्हारे ह्रदय के गहरे से गहरे

रहस्यों को वापु में बबखेर नहीीं दे िा । ककसी आाँख से एक भी

ऐसी क्षखणक दृष्टी नहीीं तनकलिी जो उसकी सभी लालसाओीं िथा भयों को, उसकी मस् ु कानों िथा

अश्रओ ु ीं को साथ न मलये हो । ककसी द्वार में एक भी ऐसा सपना प्रववष्ट नहीीं हुआ है क्जसने अन्य सब द्वारों पर दस्िक न दी हो ।

िो ध्यान रखो िम ु कैसे दे खिे हो । ध्यान रखो ककन सपनों को

िुम द्वार के अींदर आने दे िे हो

और ककन्हें िुम पास से तनकल जाने दे िे हो । यदद िम ु चिींिा और पीड़ा से मत ु ि होना िाहिे हो, िो मीरदाद िुम्हे ख़ुशी से रास्िा ददखायेगा ।

☞ आप िा

र िरम ☜

आिाि में अंकित

ोता



http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अध्याय 9 पीड़ा-मत ु ि जीवन का मागा ममकास्िर:- हमें मागा ददखाओ । मीरदाद; यह है चिींिा और पीड़ा से मक्ु ति का मागा…… इस िरह सोिो मानो

िम् ु हारे हर वविार को

आकाश में अींककि होना है िाकक उसे हर प्राणी,

हर पदाथा दे ख सके । और वास्िव में वह अींककि होिा भी है ।” इस िरह बोलो मानो सारा सींसार केवल एक ही कान है

जो िम् ु हारी बाि सन ु ने के मलये उत्सुक है ।

और वास्िव में वह उत्सुक है भी । ” इस िरह कमा करो मानो िुम्हारे हर कमा को पलटकर िुम्हारे

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मसर पर आना है । और वास्िव में वह आिा भी है । ” इस िरह इच्छा करो मानो िम ु स्वयीं इच्छा हो ।

और वास्िव में िम ु हो भी । ” इस िरह क्जयो मानो स्वयीं िम् ु हारे प्रभु को

अपना जीवन जीने के

मलये िुम्हारी आवश्यकिा है ।

और वास्िव में उसे आवश्यिा है भी ।” दहम्बल: और कब िक िुम

हमें उलिन में रखोगे, मीरदाद ? िम ु हमसे ऐसे बाि करिे हो

जैसे कभी ककसी व्यक्ति ने नहीीं की, न हमने ककसी ककिाब में पढ़ी । बैनन ू :- बिाओ िम ु कौन हो िाकक हम जान सकें

कक िुम्हारी बाि हम ककस कान से सन ु ें ।

यदद िुम ही नूह की नौका में

गुप्ि रूप से िढ़ने वाले व्यक्ति हो िो हमें इसका कोई प्रमाण दो ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद: ठीक कहा िुमने, बैनून । िम् ु हारे बहुि- से कान हैं, इसमलये िम ु सुन नहीीं सकिे। यदद िम् ु हारा केवल एक ही कान होिा

जो सुनिा और समििा,

िो िम् ु हे ककसी प्रमाण की आवश्यकिा न होिी ।

बैनून:- नूह की नौका में गुप्ि रूप से िढ़नेवाले व्यक्ति को सींसार के बारे में तनणाय करने के मलये आना िादहये

और हम नौका के तनवामसयों को भी तनणाय करने में

उसके साथ बैठना िादहये । तया हम

तनणाय-ददवस की िैयारी करें ?

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय -10/11 यह सींसार गवाहीयाीं के मलए नहीीं प्रेम बबखेरने के मलए है । *********************************** अध्याय 10 ☞ तनणाय िथा तनणाय-ददवस ☜

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

**************************************

मीरदाद: मुिे कोई तनणाय नहीीं दे ना है , दे ना है केवल ददव्य ज्ञान ।

मैं सींसार में तनणाय दे ने नहीीं आया, बक्कक उसे तनणाय के बींिन से मुति करने आया हूाँ । तयोंकक केवल अज्ञान ही न्यायिीश की पोशाक पहनकर क़ानून के अनस ु ार दण्ड दे ना िाहिा है । अज्ञान का सबसे तनष्ठुर तनणाायक स्वयीं अज्ञान है । मनष्ु य को ही लो । तया उसने अज्ञानवश अपने आपको िीरकर दो नहीीं कर डाला और इस प्रकार अपने मलये िथा उन सब पदाथों के मलये क्जनसे उसका खक्ण्डि सींसार बना है उसने मत्ृ यु को तनमींत्रण नहीीं दे ददया ? मैं िुमसे कहिा हूाँ……… प्रभु और मनष्ु य अलग नहीीं है । केवल है प्रभ-ु मनुष्य या मनुष्य-प्रभु । वह एक है । उसे िाहे जैसा गुणा करें , िाहे जैसे भी भाग दें , वह सदा एक है । प्रभु का एकत्व उसका स्थाई वविान है । यह वविान स्वयीं लागू होिा है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अपनी घोषणा के मलये, या अपना गौरव िथा सत्िा बनाये रखने के मलये इसे न न्यायालय की आवश्यकिा है न न्यायािीश की । सम्पूणा ब्रम्हाींड– जो दृश्य है और जो अदृश्य है – एकमात्र मुख है जो तनरीं िर इसकी घोषणा कर रहा है – उनके मलये क्जनके पास सन ु ने के मलये कान हैं । सागर, िाहे वह ववशाल और गहरा है , तया एक ही बूींद नहीीं ? िरिी, िाहे वह इिनी दरू िक िैली है , तया एक ही ग्रह नहीीं ? इसी प्रकार सम्पूणा मानव–जाति एक ही मनष्ु य है ; इसी प्रकार मनुष्य, अपने सभी सींसारों सदहि, एक पूणा इकाई है । प्रभु का एकत्व, मेरे साचथयों, अक्स्ित्व का एकमात्र कानून है । इस्क दस ू रा नाम है प्रेम । इसे जानना और स्वीकार करना जीवन को स्वीकार करना है । अन्य ककसी कानन ू को स्वीकार करना अक्स्ित्व-हीनिा या मत्ृ यु को स्वीकार करना है । जीवन अन्िर में मसमटना है ; मत्ृ यु बाहर बबखर जाना । जीवन जड़ ु ना है ;मत्ृ यु टूट जाना ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इसमलये मनुष्य, जो द्वैिवादी है , दोनों के बीि लटक रहा है । तयोंकक मसमटे गा वह अवश्य, ककन्िु बबखरकर ही । और जुड़ग े ा वह अवश्य, ककन्िु टूटकर ही । मसमटने और जड़ ु ने में वह कानून के अनुसार आिरण करिा है ; और जीवन होिा है उसका पुरस्कार । बबखरने और टूटने में वह कानून के ववरुि आिरण करिा है ; और मत्ृ यु होिा है उसका कटु पररणाम । किर भी िुम, अपनी दृष्टी के दोषी हो, उन मनुष्यों पर तनणाय दे ने बैठिे हो जो िम् ु हारी ही िरह अपने आपको दोषी मानिे हैं । ककत्ने भयींकर है तनणाायक और उनका तनणाय ! तनिःसींदेह, इससे कम होंगे मत्ृ यु-दण्ड के दो अमभयुति जो एक-दस ू रे को िााँसी की सजा सुना रहे हों । कम हास्यजनक होंगे, एक ही जए ु में जुिे दो बैल जो एक-दस ू रे को जोिने की िमकी दे रहे हों । कम घखृ णि होंगे एक ही कब्र में पड़े दो शव जो एक-दस ू रे को कब्र के योग्य ठहरा रहे हों ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

कम दयनीय होंगे दो तनटप अींिे जो एक-दस ू रे की आाँखें नोि रहे हों । न्याय के हर आसन से बिो,मेरे साचथयो । तयोंकक ककसी भी व्यक्ति या वस्िु पर िैसला सन ु ाने के मलये िुम्हे न केवल उस कानून को जानना होगा और उसके अनुसार जीवन बबिाना होगा, बक्कक गवादहयााँ भी सन ु नी होंगी । और ककसी भी वविारािीन मुकद्दमे में िुम गवाही ककनकी सुनोगे ? तया िुम वायु को न्यायालय में बुलाओगे ? तयोंकक आकाश के नीिे जो कुछ भी होिा है , वायु उसके होने में सहायक और प्रेरक होिी है । या किर िुम मसिारों को िलब करोगे ? तयोंकक सींसार में जो भी घटनाएाँ घटिी हैं, मसिारे उनके रहस्यों से पररचिि होिे हैं । या किर िुम आदम से लेकर आज िक के प्रत्येक मि ृ क को न्यायालय में उपक्स्थि होने का आदे ह जारी करोगे ? तयोकक सब मि ृ क जीने वालों में जी रहे हैं । ककसी भी मक ु द्दमे में परू ी गवाही प्राप्ि करने के मलये ब्रम्हाींड का गवाह होना आवश्यक है । जब िुम ब्रम्हाींड को न्यायालय में बुला सकोगे, िुम्हे न्यायालयों की आवश्यकिा ही नहीीं रहे गी । िुम न्यायासन से उिर जाओगे और गवाह को न्यायािीश बनने दोगे ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जब िुम सबकुछ जान लोगे, िो ककसी के ववषय में तनणाय नहीीं दोगे| जब िुम्हारे अींदर सींसारों को एकत्र करने का सामथ्या पैदा हो जायेगा, िब िम ु जो बाहर बबखर गये है उनमे से एक को भी अपरािी नहीीं ठहराओगे; तयोंकक िुम जान लोगे कक बबखरनेवाले को उसके बबखराव ने ही अपरािी घोवषि कर ददया है और अपने आपको दोषी माननेवाले को दोषी ठहराने के बजाय िम ु उसे उसके दोष से मुति करने का प्रयत्न करोगे । इस समय मनुष्य अपने ऊपर स्वयीं लादे हुए बोि से बुरी िरह दबा हुआ है । उसका रास्िा बहुि उबड़-खाबड़ िथा टे ढ़ा-मेढ़ा है । हर िैसला जज और अमभयत ु ि दोनों के मलये सामान रूप से एक अतिररति बोि होिा है । यदद िुम अपने बोि को हलका रखना िाहिे हो, िो ककसी के ववषय में िैसला करने न बैठो । यदद िम ु िाहिे हो कक िम् ु हारा बोि अपने आप उिर जाये, िो शब्द में डूबकर सदा के मलये उसमे खो जाओ । यदद िुम िाहिे हो कक िुम्हारा मागा सीिा िथा समिल हो िो ददव्य- ज्ञान को अपना मागादशाक बना लो । मैं िुम्हारे पास तनणाय लेकर नहीीं, ददव्य-ज्ञान लेकर आया हूाँ । बैनन ू :- तनणाय ददवस के ववषय में िम ु तया कहिे हो ? मीरदाद -हर ददन तनणाय-ददवस है , बैनून ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

पलक की हर िपक पर हर प्राणी के कमों का दहसाब ककया जािा है | कुछ तछपा नहीीं रहिा । कुछ अन्िुला नहीीं रहिा | ऐसा कोई वविार नहीीं है , कोई कमा नहीीं, कोई इच्छा जो वविार, कमा या इच्छा, करनेवाले के अींदर अींककि न हो जाये । सींसार में कोई वविार, कोई इच्छा, कोई कमा िल ददये बबना नहीीं रहिा; सब अपनी वविा और प्रकृति के अनुसार िल दे िे हैं| जो कुछ भी प्रभु के वविान के अनक ु ू ल होिा है , जीवन से जुड़ जािा है | जो कुछ उसके प्रतिकूल होिा है , मत्ृ यु से जा जड़ ु िा है | सब ददन एक सामान नहीीं होिे, बैनून । कुछ शाींतिपूणा होिे हैं, वे होिे हैं ठीक िरह से बबिाई गई घड़ड़यों के िल| कुछ बादलों से तघरे होिे हैं, वे वे होिे है मत्ृ यु में अिा-सुप्ि िथा जीवन में अिा-जाग्रि अवस्था में बबिाई गई घड़ड़यों के उपहार।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

कुछ और होिे हैं जो िू़िान पर सवार, आाँखों में बबजली की कौंि और नथनों में बादल की गरज मलए िुम पर टूट पड़िे हैं। वे ऊपर से िुम पर प्रहार करिे हैं; वे िरिी पर िम् ु हे सपाट चगरा दे िे है और वववश कर दे िे हैं िुम्हे िल ू िाटने पर और यह िाहने पर कक िुम कभी पैदा ही न हुए होिे। ऐसे ददन होिे हैं जान- बूि कर वविान के ववरुि बबिाई गईं घड़ड़यों का िल। सींसार में भी ऐसा ही होिा है । इस समय आकाश पर छाये हुए साये उन सायों से रत्िी भर भी कम अमींगल-सि ू क नहीीं हैं जो जल-प्रलय के अग्रदि ू बनकर आये थे। अपनी आाँखें खोलो और दे खो। जब िुम दक्तिनी वायु के घोड़े पर सवार बादलों को उत्िर की ओर जािे दे खिे हो, िो कहिे हो कक ये िम् ु हारे मलये बषाा लािे हैं। इींसानी बादलों के रुख से यह अींदाजा लगाने में कक वे तया लायेंगे, िम ु इिने बवु िमान तयों नहीीं हो। तया िुम दे ख नहीीं सकिे कक

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मनुष्य ककिनी बुरी िरह से अपने जालों में उलि गए हैं। जालों में से तनकल आने का ददन तनकट है । और ककिना भयावह है वह ददन। दे खो, ककिनी सददयों के दौरान मन और आत्मा की नसों से बुने गये हैं मनष्ु य के ये जाल! मनुष्यों को उनके जालों में से खीींि तनकालने के मलये उनके माींस िक को िाड़ना पड़ेगा; उनकी हड्ड़डयों िक को कुिलना पड़ेगा। और माींस को िाड़ने और हड्ड़डयों को कुिलने का काम मनुष्य स्वयीं ही करें गे। जब ढतकन उठाये जायेंगे, जो उठाये अवश्य जायेंगे, और जब विान बिायेंगे कक उनके अींदर तया है , जो वे तनिःसींदेह बिायेंगे, िब मनष्ु य अपने कलींक को कहााँ तछपायेंगे और भागकर कहााँ जायेंगे? जीववि उस ददन मि ृ कों से ईष्याा करें गे, और मि ृ क जीवविों को कोसेंगे। मनुष्यों के शब्द उनके कन्ठ में चिपककर रह जायेंगे, और प्रकाश उनकी पलकों पर जम जायेगा। उनके ह्रदय में से तनकलें गे नाग और बबच्छू, और यह भूलकर कक उन्होंने स्वयीं अपने ह्रदय में इन्हें बसाया और पाला था, वे घबराकर चिकला उठें गे,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

कहााँ से आ रहे हैं ये नाग और बबच्छू? अपनी आाँखे खोलो और दे खो। ठीक इसी नौका के अींदर, जो ठोकरें खा रहे सींसार के मलए आलोक- स्िम्भ के रूप में स्थावपि की गई थी, इिनी दलदल है कक िुम उसे ककसी िरह से भी पार नहीीं कर सकिे. यदद आलोक-स्िम्भ ही िन्दा बन जाये, िो उन याबत्रयों की कैसी भयींकर दशा होगी जो समुद्र में हैं ! मीरदाद िुम्हारे मलये एक नई नौका का तनमााण करे गा। ठीक इसी नीड़ के अन्दर वह उसकी नीींव रखकर उसे खड़ा करे गा। इस नीड़ में से उड़ कर िुम मनष्ु य के मलये शाींति का सन्दे श लेकर नहीीं, अनन्ि जीवन लेकर सींसार में जाओगे। उसके मलये अतनवाया है कक िुम वविान को जानो और उसका पालन करो। जमोरा: हम प्रभु के वविान को कैसे जानेंगे और कैसे करें गे उसका पालन? सींसार हम प्रेम मसखने आए है

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

अध्याय 11

प्रेम प्रभु िा ववधान °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° मीरदाद: प्रेम ही प्रभु का वविान है ।

िुम जीिे हो िाकक िुम प्रेम करना सीख लो। िम ु प्रेम करिे हो िाकक िम ु जीना सीख लो। मनुष्य को और कुछ सीखने की आवश्यकिा नहीीं। और प्रेम तया है , मसवाय इसके कक प्रेमी वप्रयिम को सदा के मलये अपने अींदर लीन कर लें िाकक दोनों एक हो जायें? और मनुष्य को प्रेम ककस्से करना है ? तया उसे जीवन- वक्ष ृ के एक ववशेष पत्िे को िन ु कर उस पर ही अपना पूरा प्यार उड़ेल दे ना है ? िो किर तया होगा उस शाखा का क्जस पर वह पत्िा उगा है ? उस िने का क्जससे वह शाखा तनकली है ? उस छाल का जो उस शाखा की रक्षा करिी है ? उन जड़ों का जो छाल, िने, शाखाओीं और पत्िो का पोषण करिी हैं? ममटटी का क्जसने जड़ों को छािी से लगा रखा है ? सूय,ा समुद्र, वायु का जो ममटटी को उपजाऊ बनािे हैं? यदद ककसी पेड़ पर लगा एक छोटा सा पत्िा िम् ु हारे प्रेम का अचिकारी हो िो पूरा पेड़ उसका ककिना अचिक अचिकारी होगा?

ै।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जो प्रेम सम्पूणा के एक अींश को िन ु िा है , वह अपने भाग्य में आप ही दख ु ों की रे खा खीींि लेिा है । िुम कहिे हो, ”एक ही वक्ष ृ पर भााँिी-भााँिी के पत्िे होिे हैं। कुछ स्वस्थ होिे हैं, कुछ अस्वस्थ,; कुछ सुींदर होिे हैं, कुछ कुरूप; कुछ दै त्याकार होिे हैं, कुछ बौने। पसींद करने और िन ु ने से भला आप कैसे बि सकिे हैं।” मैं िुमसे कहिा हूाँ कक बीमारों के पीलेपन में से िन्दरु ु स्िों की िाजगी पैदा होिी है । मैं यह भी कहिा हूाँ कक कुरूपिा सुींदरिा की रीं ग-पटटी, रीं ग और काँू िी है , और यह भी कक बौना, बौना बौनापने कद में से कुछ न होिा यदद उसने अपने कद कद में से कुछ कद दै त्य को भें ट न कर ददया होिा| िुम जीवन-वक्ष ृ हो। अपने आपको टुकड़ों में बााँटने से साविान रहो। िल की िल से िल ु ना न मि करो, न पत्िे की पत्िे से, न शाखा की शाखा से; और न िने की जड़ों से िल ु ना करो, न वक्ष ृ की माटी-मााँ से।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

पर िुम ठीक यही करिे हो जब िुम एक अींश को बाकी अींशों से अचिक, अथवा बाकी अींशों को छोड़कर केवल एक अींश को ही प्यार करिे हो। िम ु जीवन-वक्ष ृ हो। िुम्हारी जड़ें हर स्थान पर है । िुम्हारे िल हर मुींह में हैं। इस वक्ष ृ पर िल जो भी हों; इसकी शाखाएाँ और पत्िे जो भी हों; जड़ें जो भी हों, वे िुम्हारे िल हैं; वे िुम्हारी शाखाये और पत्िे हैं; वे िुम्हारी जड़ें है । यदद िम ु िाहिे हो कक वह सदा दृढ़ और हरा-भरा रहें , िो उस रस का ध्यान रखो क्जससे उसकी जड़ों का पोषण करिे हों। प्रेम जीवन का रस है , जबकक घण ृ ा मत्ृ यु का मवाद। ककन्िु प्रेम का भी, रति की िरह, हमारी रगों में बेरोक प्रवादहि होना तनिान्ि आवश्यक है । रति के प्रवाह को रोको िो वह एक ख़िरा, एक सींकट बन जायेगा। और घण ृ ा तया है मसवाय दबा ददये गये या रोक मलये गये प्रेम के,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जो इसी मलये घािक बबष बन जािा है । खखलानेवाले और खानेवाले, दोनों के मलये; घण ृ ा करनेवाले और घण ृ ा पानेवाले, दोनों के मलये? िुम्हारे जीवन-वक्ष ृ का पीला पत्िा केवल प्रेम से वींचिि पत्िा है । पीले पत्िे को दोष मि दो। मुरिाई हुई शाखा प्रेम की भूखी शाखा है । मरु िाई हुई शाखा को दोष मि दो। सड़ा हुआ िल केवल घण ृ ा का पाला गया िल है । सड़े हुए िल को दोष मि दो। बक्कक दोष दो अपने अींिे और कृपण मन को, जो जीवन-रस को भीख की िरह थोड़े-से व्यक्तियों में बााँटकर अचिकााँश को उससे वींचिि रखिा है , और ऐसा करिे हुए अपने आपको भी उससे वींचिि रखिा है । आत्म-प्रेम के अतिररति कोई प्रेम सम्भव नहीीं है । अपने अींदर सबको समा लेनेवाले अहम ् के अतिररति अन्य कोई अहम ् वास्िववक नहीीं हैं। इसमलये प्रभु शब्द प्रेम है , तयोंकक वह इसी अहम ् से प्रेम करिा है । जब िक प्रेम िुम्हे पीड़ा दे िा है , िुम्हे अपना वास्िववक अहम ् नहीीं ममला है , न ही प्रेम की सन ु हरी कींु जी िम् ु हारे हाथ लगी है । तयोंकक िुम एक क्षणभींगुर अहम ् को प्रेम करिे हो, िुम्हारा प्रेम भी क्षण-भींगुर है । स्त्री के मलए पुरुष का प्रेम, प्रेम नहीीं। वह प्रेम का एक बहुि िि ींु ला चिन्ह है । सींिान के मलये मािा या वपिा का प्रेम, प्रेम पववत्र मींददर की दे हरी-मात्र है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जब िक हर पुरुष हर स्त्री का प्रेमी नहीीं बन जािा और हर स्त्री हर पुरुष की प्रेममका, जब िक हर सींिान हर मािा या वपिा की सींिान नहीीं बन जािी और हर मािा या वपिा हर सींिान की मािा या वपिा, जब िक स्त्री पुरुष हाड-माींस के साथ हाड-माींस के घतनष्ठ सम्बन्ि की डीींग भले ही बााँि लें, ककन्िु प्रेम के पववत्र शब्द का उच्िारण कभी न करें । तयोकक ऐसा करना प्रभ-ु तनींदा होगी। जब िक िम ु एक भी मनष्ु य को शत्रु मानिे हो, िुम्हारा कोई ममत्र नहीीं क्जस ह्रदय में शत्रि ु ा का वास है , वह ममत्रिा के मलये सुरक्षक्षि आवास कैसे हो सकिा है ? जब िक िुम्हारे ह्रदय में घण ृ ा है , िुम प्रेम के आनींद से अपररचिि हो। यदद िम ु अन्य सभी वस्िओ ु ीं का जीवन-रस से पोषण करिे हो, पर ककसी छोटे -से कीड़े को उससे वींचिि रखिे हो, िो वह छोटा-सा कीड़ा अकेला ही िुम्हारे जीवन में कडवाहट घोल दे गा। तयोंकक ककसी वस्िु या ककसी व्यक्ति से प्रेम करिे हुए िुम वास्िव में अपने आप से ही प्रेम करिे हो। इसी प्रकार, ककसी वस्िु या ककसी व्यक्ति से घण ृ ा करिे हुए िम ु वास्िव में अपने आपसे ही घण ृ ा करिे हो।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक क्जससे िुम घण ृ ा करिे हो वह उसके साथ जुड़ा हुआ है क्जससे िुम प्रेम करिे हो– ऐसे जुड़ा हुआ है जैसे ककसी मसतके के दो पह्लू क्जन्हें कभी एक-दस ू रे से अलग नहीीं ककया जा सकिा। यदद िुम अपने प्रति ईमानदार रहना िाहिे हो िो उससे प्रेम करने से पहले क्जसे िम ु िाहिे हो और जो िुम्हे िाहिा है, उससे प्रेम करना होगा क्जससे िुम घण ृ ा करिे हो और जो िुम्हे घण ृ ा करिा है | प्रेम कोई गण ु नहीीं हैं। प्रेम एक आवश्यकिा है ; रोटी और पानी से भी बड़ी, प्रकाश और हवा से भी बड़ी। कोई भी अपने प्रेम करने का अमभमान न करें । प्रेम को उसी सरलिा और स्विींत्रिा के साथ स्वीकार करो क्जस सरलिा िथा स्विींत्रिा से िम ु साींस लेिे हो। तयोंकक प्रेम को उन्नि होने के मलये ककसी की आवश्यकिा नहीीं।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

प्रेम िो उस ह्रदय को उन्नि कर दे गा क्जसे वह अपने योग्य समििा है । प्रेम के बदले कोई पुरस्कार मि मााँगो। प्रेम ही प्रेम का पयााप्ि पुरस्कार है , जैसे घण ृ ा ही घण ृ ा का पयााप्ि दण्ड है । न ही प्रेम के साथ कोई दहसाब-ककिाब रखो; तयोंकक प्रेम अपने मसवाय ककसी और को दहसाब नहीीं दे िा। प्रेम न उिार दे िा है न उिार लेिा है ; प्रेम न खरीदिा है , न बेििा है , बक्कक जब दे िा है िो अपना सब-कुछ दे दे िा है ; और जब लेिा है िो सब-कुछ ले लेिा है । इसका लेना ही दे ना है । इसका दे ना ही लेना है । इसमलये यह आज,कल और कल के बाद भी सदा एक-सा रहिा है । एक ववशाल नदी ज्यों-ज्यों अपने आपको समुद्र में खाली करिी जािी है , समद्र ु उसे किर से भरिा जािा है । इसी िरह िम्हे अपने आपको प्रेम में खाली करिे रहना है , िाकक प्रेम िम् ु हे सदा भरिा रहे ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िालाब, जो समुद्र से ममला उपहार उसी को सौंपने से इनकार करिा है , एक गींदा पोखर बनकर रह जािा है । प्रेम में न अचिक होिा है , न कम। क्जस क्षण िम ु उसे ककसी श्रेणी में रखने या मापने का प्रयत्न करिे हो, उसी क्षण वह िुम्हारे हाथ से तनकल जािा है , और पीछे छोड़ जािा है अपनी कडवी यादें । न प्रेम में अब और िब होिा है , न ही यहााँ और वहााँ। सब ऋिुएीं प्रेम की ऋिुएाँ हैं, सब स्थान प्रेम के तनवास के योग्य स्थान। प्रेम कोई सीमा या बािा नहीीं जानिा। क्जस प्रेम के मागा को ककसी भी प्रकार की बािा रोक लें , वह अभी प्रेम कहलाने का अचिकारी नहीीं है । मैं अकसर िुम्हे कहिे सुनिा हूाँ कक प्रेम अींिा होिा है , अथााि उसे अपने वप्रयिम में कोई दोष ददखाई नहीीं दे िा। इस प्रकार का अींिापन सवोत्िम दृक्ष्ट है । काश िुम सदा इिने अींिे होिे कक िुम्हे ककसी भी वस्िु में कोई दोष ददखाई न दे िा। स्पष्टदशी और बेिक होिी है प्रेम की आाँख। इसमलए उसे कोई दोष ददखाई नहीीं दे िा।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जब प्रेम िुम्हारी दृक्ष्ट को तनमाल कर दे गा, िब कोई भी वस्िु िुम्हे प्रेम के अयोग्य ददखाई नहीीं दे गी। केवल प्रेमहीन, दोषपण ू ा आाँख सदा दोष खोजने में व्यस्ि रहिी है । जो दोष उसे ददखाई दे िे हैं वे उसके अपने ही दोष होिे हैं। प्रेम जोड़िा है । घण ृ ा िोडिी है । ममटटी और पत्थरों का यह ववशाल और भारी ढे र, क्जसे िुम पूजा मशखर कहिे हो, क्षण भर में बबखर जािा यदद इसे प्रेम से बााँि न रखा होिा। िुम्हारा शरीर भी, िाहे वह नाशवान प्रिीि होिा है , ववनाश का प्रतिरोि अवश्य कर सकिा था यदद िुम उसके प्रत्येक कोषाणु को समान लगन के साथ प्रेम करिे। प्रेम जीवन के मिरु सींगीि से स्पींददि शाक्न्ि है , घण ृ ा मत्ृ यु के पैशाचिक िमाकों से आकुल युि है । िम ु तया िाहोगे? प्रेम करना और अनन्ि शाक्न्ि में रहना, या घण ृ ा करना और अनन्ि युि में जुटे रहना? समस्ि िरिी िम् ु हारे अींदर जी रही है । सभी आकाश िथा उनके तनवासी िुम्हारे अींदर जी रहे हैं।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अििः िरिी और उसकी गोद में पल रहे सब बच्िों से प्रेम करो यदद िुम अपने आप से प्रेम करना िाहिे हो। और आकाशों िथा उनके सब वामसयों से प्रेम करो यदद िम ु अपने आप से प्रेम करना िाहिे हो। िुम नरौन्दा से घण ृ ा तयों करिे हो, अबबमार ? नरौन्दा: मुमशाद की आवाज और उनके वविार-प्रवाह में इस आकक्स्मक पररविान से सब अिम्भे में पड़ गये। मैं और अबबमार िो अपने आपसी मन-मुटाव के बारे में ऐसा स्पष्ट प्रश्न पूछे जाने पर अवाक रह गये, तयोंकक उस मन-मुटाव हमने बड़ी साविानी के साथ सबसे तछपाकर रखा था और हमें ववश्वास था, जो अकारण नहीीं था, कक उसका ककसी को पिा नहीीं है । सबने परम आश्िया के साथ हम दोनों की ओर दे खा और अबबमार के होंठ खल ु ने की प्रिीक्षा करने लगे। अबबमार:(चितकापण ूा ा दृक्ष्ट से मुिे दे खिे हए) नरौन्दा, तया मुमशाद को िुमने बिाया ? नरौन्दा: जब अबबमार ने मुमशाद कह ददया है िो मेरा ह्रदय प्रसन्िा से िूल उठा है , तयोंकक जब मीरदाद ने अपना भेद खोला उससे बहुि पहले हमारे बीि इसी शब्द पर मिभेद पैदा हुआ था; मैं कहिा था कक वह मशक्षक है जो लोगों को ददव्य ज्ञान का मागा ददखने आया है , और अबबमार का हठ था कक वह केवल सािारण व्यक्ति है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद: नरौन्दा को सींदेह की दृक्ष्ट से न दे खो, अबबमार, तयोंकक वह िुम्हारे द्वारा लगाए गए दोष से मुति है । अबबमार: िो किर िुम्हे ककसने बिाया? तया िम ु मनष्ु यों के वविारों को भी पढ़ लेिे हो? मीरदाद: मीरदाद को न गुप्ििरों की आवश्यकिा है न दभ ु ावषयों की। यदद िम ु मीरदाद से उसी िरह प्रेम करिे जैसे वह िुमसे करिा है , िो िुम आसानी से उसके वविारों को पढ़ लेिे और उसके ह्रदय के अींदर भी िााँक लेिे| अबबमार: एक अींिे और बहरे मनुष्य को क्षमा करो, मुमशाद। मेरे आाँख और कान खोल दो, तयोंकक मैं दे खने और सन ु ने के मलए उत्सुक हूाँ। मीरदाद: केवल प्रेम ही िमत्कार कर सकिा है । यदद िुम दे खना िाहिे हो िो अपनी आाँख की पुिली में प्रेम को बसा लो। यदद िम ु सन ु ना िाहिे हो िो अपने कान के परदे में कान को स्थान दो। अबबमार: ककन्िु मैं ककसी से घण ृ ा नहीीं करिा, नरौन्दा से भी नहीीं।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद: घण ृ ा न करना प्रेम करना नहीीं होिा, अबबमार। तयोंकक प्रेम एक कक्रयाशील शक्ति है ; और जब िक यह िुम्हारी हर िेष्टा को, िम् ु हारे हर पद को राह न ददखाये, िुम अपना मागा नहीीं पा सकिे; और जब िह प्रेम िुम्हारी हर इक्षा में हर वविार में हर वविार में पूरी िरह समा न जाये, िुम्हारी इच्छाएाँ िुम्हारे सपने में काँटीली िाड़ड़यााँ होंगी िुम्हारे वविार िुम्हारे जीवन में शोक गीि होंगे। इस समय मेरा ददल रबाब है , और मेरा गाने को जी िाहिा है । ऐ भले जमोरा, िम् ु हारा रबाब कहााँ है ? जमोरा: तया मैं जाकर उसे ले आऊीं, मुमशाद? मीरदाद: जाओ, जमोरा। जब जमोरा रबाब लेकर लौटा िो मुमशाद ने िीरे से उसे अपने हाथ में ले मलया और स्नेह के साथ उस पर िक ु िे हुए उसके हर िार का सुर ममलाया और किर उसे बजािे हुए गाना शुरू कर ददया। मीरदाद: िैर, िैर, री नौका मेरी, प्रभु िेरा कप्िान। उगले जीवन और मि ृ क पर

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

नरक अपना प्रकोप भयींकर, आग में उसकी िप कर िरिी हो जाये ज्यों वपघलिा सीसक, नभ-मींडल में रहे न बाकी ककसी िरह का कोई तनशान। िैर,िैर, री नौका मेरी, प्रभु िेरा कप्िान। िल, िल री नौका मेरी,प्रेम िेरा कम्पास। उत्िर-दक्षक्षण, पूरब-पक्श्िम कोष अपना िू जाकर बााँट। िरीं ग-श्रींग पर िुिको अपने कर लेगा ि़ि ू ान सवार, मकलाहों को अन्िकार में वहाीं से िू दे गी प्रकाश। िल, िल री ऐ नौका मेरी, प्रेम िेरा कम्पास। बह, बह, री ऐ नौका मेरी, लींगर है ववश्वास। गड़बड़ कर िाहे बादल गरजे, कौंिे िड़ड़ि कड़क के साथ, थराा उठें अिल, िट जाएाँ,खण्ड-खण्ड हों, िैले त्रास, मानव दब ा -ह्रदय हो जायें, ु ल भूल जायें वे ददव्य प्रकाश, पर बहिी जा री नौका मेरी, लींगर है ववश्वास।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

नरौन्दा: मुमशाद ने गाना बन्द ककया और रबाब पर ऐसे िुक गये जैसे प्यार में खोई मााँ छािी से लगे अपने बच्िे पर िुक जािी है । और यद्यवप रबाब के िार अब कक्म्पि नहीीं हो रहे थे, किर भी अभी उसमे से ‘िैर, िैर, री नौका मेरी, प्रभु िेरा कप्िान” की िन ु आ रही थी। और यद्यवप मुमशाद के होंठ बींद थे, किर भी उनका स्वर कुछ समय िक नीड़ में गाँज ू िा रहा, और िरीं गे बनकर िैरिा हुआ पहुाँि गया िारों ओर ऊाँ िी-नीिी िोदटयों िक; ऊपर पहाड़ड़यों और नीिे वाददयों िक; दरू अशान्ि सागर िक; ऊपर मेहराबदार नीले आकाश िक। उस स्वर में मसिारों की बौछारें और इन्द्र-िनुष थे, उसमे भूकम्प थे और साथ ही थीीं सनसनािी हवाएाँ और गीि के नशे में िूमिी बुलबुलें। उनमे कोमल, शबनम-लड़ी िि ुीं से ढके लहरािे सागर थे। लगिा था मानो सारी सक्ृ ष्ट

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

आभार-भरी प्रसन्निा के साथ उस स्वर को सुन रही हैं। और ऐसा भी लगिा था मानो दचू िया पवाि-माला क्जसके बीिोंबीि पज ू ा-मशखर था, अिानक िरिी से अलग हो गई है और अन्िररक्ष में िैर रही है — गौरवशाली, सशति िथा अपनी ददशा के बारे में आश्वस्ि। इसके बाद िीन ददन िक मुमशाद ककसी से एक शब्द भी नहीीं बोले।

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय -12/13 मौन -अनअजस्तत्व िो अजस्तत्व में बदल दे गा ************************************* अध्याय 12 मसरजन ार मौन ************************************** नरौन्दा: जब िीन ददन बीि गये िो सािों साथी, मानो ककसी सम्मोहक आदे श के आिीन, अपने आप इकटठे हो गये और नीड़ की ओर िल पड़े। ममु शाद हमसे यों ममले जैसे

उन्हें हमारे आने की परू ी आशा हो। मीरदाद: मेरे नन्हे पींतछयों…… एक बार किर मैं िम् ु हारे नीड़ में िम् ु हारा स्वागि करिा हूाँ। अपने वविार और इच्छाएाँ

मीरदाद से स्पष्ट कह दो।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ममकेयन: हमारा एकमात्र वविार और इच्छा मीरदाद के तनकट रहने की है , िाकक हम उनके सत्य को महसूस कर सकें और सुन सकें;

शायद हम उिने ही छाया-मुति हो जायें क्जिने वे हैं।

किर भी उनका मौन हम सबके मन में श्रिाममचश्रि भय उत्पन्न करिा है । तया हमने उन्हें ककसी िरह से नाराज कर ददया है ? मीरदाद: िुम्हे अपने आप से दरू हटाने के मलये मैं िीन ददन मौन नहीीं रहा हूाँ, बक्कक मौन रहा हूाँ िुम्हे अपने और अचिक तनकट लाने के मलये।

जहाीं िक मुिे नाराज करने की बाि है ,

याद रखो क्जस ककसी ने भी मौन की अजेय शाक्न्ि का अनुभव ककया है ,

उसे न कभी नाराज ककया जा सकिा है ; न वह कभी ककसी को नाराज कर सकिा है । ममकेयन: तया मौन रहना बोलने से अचिक अच्छा है ? मीरदाद: मख ु से कही बाि अचिक से अचिक एक तनष्कपट िठ ू है ; जबकक मौन कम से कम सत्य है ।

अबबमार: िो तया हम यह तनष्कषा तनकालें कक मीरदाद के विन भी, तनष्कपट होिे हुए भी, केवल िठ ू हैं? मीरदाद: हााँ.. मीरदाद के विन भी उन सबके मलए केवल िूठ हैं,

क्जनका ”मैं” वही नहीीं जो मीरदाद का है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जब िक िम् ु हारे सब वविार एक ही खान में से

खोदकर न तनकाले गए हों, और जब िक िुम्हारी सब कामनाएाँ

एक ही कुएाँ में से खीींिकर न तनकाली गई हों, िब िक िुम्हारे शब्द,

तनष्कपट होिे हुए भी िूठ ही रहें गे। जब िुम्हारा ”मैं और मेरा ”मैं” एक हो जायेंगे, जैसे मेरा ”मैं” प्रभु का ”मैं” एक हैं, हम शब्दों को त्याग दें गे और सच्िाई-भरे मौन में भी खल ु कर ददल की बाि करें गे। तयोंकक िुम्हारा ”मैं” और मेरा ”मैं” एक नहीीं है ,

मैं िुम्हारे साथ शब्दों का युि करने को बाध्य हूाँ,

िाकक मैं िुम्हारे ही शस्त्रों

से िुम्हे पराक्जि कर सकाँू

और िुम्हे अपनी खान और

अपने कुएाँ िक ले जा सकाँू । और केवल िभी िुम सींसार में जाकर उसे पराक्जि करके अपने वश में कर सकोगे, जैसे मैं िम् ु हे पराक्जि करके अपने वश में करूींगा।

और केवल िभी िम ु इस होगे

कक सींसार को परम िेिना के मौन िक, शब्द की खान िक, और ददव्य ज्ञान के कुएाँ िक ले जा सको। जब िक िुम मीरदाद के हाथों

इस प्रकार पराक्जि नहीीं हो जािे,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िम ु सच्िे अथों में अजेय

और महान ववजेिा नहीीं बनोगे। न ही सींसार अपनी तनरीं िर पराजय के कलींक को िो सकेगा जब िक कक वह िुम्हारे हाथों पराक्जि नहीीं हो जािा।

इसमलए, युि के मलए कमर कस लो।

अपनी ढालों और कविों को िमका लो और अपनी िलवारों और भालों को िार दे दो। मौन को नगाड़े की िोट करने दो और ध्वज भी उसी को थामने दो। बैनून: यह कैसा मौन है

क्जसे एक साथ नगाड़िी और ध्वज-िारी बनना होगा? मीरदाद: क्जस मौन में मैं िुम्हे ले जाना िाहिा हूाँ, वह एक ऐसा अींिहीन ववस्िार है

क्जसमे अनक्स्ित्व अक्स्ित्व में बदल जािा है , अक्स्ित्व अनक्स्ित्व में । वह एक ऐसा ववलक्षण शून्य है

जहााँ हर ध्वतन उत्पन्न होिी है और शान्ि कर दी जािी है ; जहााँ हर आकृति को रूप ददया जािा है और रूप-रदहि कर ददया जािा है ; जहााँ हर अहीं को मलखा जािा है और अ-मलखखि ककया जािा है ; जहााँ केवल ‘वह’ है , और ‘वह’ के मसवाय कुछ नहीीं। यदद िुम उस शून्य और उस ववस्िार को मूक

ध्यान में पार नहीीं करोगे,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िो िम ु नहीीं जान पाओगे

कक िम् ु हारा अक्स्ित्व ककिना यथाथा है ,

और िम् ु हारा अनक्स्ित्व ककिना कक्कपि। न ही िुम यह जान सकोगे कक िुम्हारा यथाथा

सम्पूणा यथाथा से ककिनी दृढ़िा से बाँिा हुआ है । मैं िाहिा हूाँ कक इसी मौन में भ्रमण करो िुम, िाकक िुम अपनी पुरानी िींग केंिल ु ी उिार दो और बींिन- मुति,

अतनयक्न्त्रि होकर वविरण करो। मैं िाहिा हूाँ की इसी मौन में बहा दो

िुम अपनी चििाओीं और आशींकाओीं को, िाकक िुम उन्हें एक-एक करके ममटिे हुए दे खो और इस िरह अपने कानों को

उनकी तनरीं िर िीख-पुकार से छुटकारा ददल दो, और बिा लो अपनी पसमलयों को उनकी नुकीली एड़ों की पीड़न से। मैं िाहिा हूाँ कक इसी मौन में िेंक दो िुम इस सींसार के िनुष्य-बाण क्जनसे िुम सींिोष और प्रसन्निा का मशकार

करने की आशा करिे हो, परन्िु वास्िव में अशाींति

और दिःु ख के मसवाय और ककसी िीज का मशकार नहीीं कर पािे। मैं िाहिा हूाँ कक इसी मौन में िुम अहीं के अाँिेरे और घुटन-भरे खोल में से

तनकलकर उस ‘एक अहीं ‘ की रौशनी और खल ु ी हवा में आ जाओ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इस मौन की मसिाररश करिा हूाँ मैं िम ु से, न की बोल-बोल कर थकी िुम्हारी क्जव्हा के मलये ववश्राम की। िरिी के िक दायक मौन की मसिाररस करिा हूाँ मैं

िुम से, न कक अपरािी

और िि ू ा के भयानक मौन की। अण्डे सेनेवाली मुगी के िैया पूणा मौन की

मसिाररश करिा हूाँ मैं िुमसे, न कक अण्डे दे नेवाली उसकी बहन की अिीर कुडकुडाहट की। एक इतकीस ददन िक इस मूक ववश्वाश के साथ अण्डे सेिी है कक उसकी रोएाँदार छािी और पींखों के नीिे वह अदृश्य हाथ करामाि कर ददखायेगा। दस ू री िेजी से भागिी हुई अपने दरबे से तनकलिी है और पागलों की िरह कुडकुडािी हुई दढींढोरा पीटिी है कक मैं अण्डा दे आई हूाँ। डीींग मारिी नेकी से खबरदार रहो, मेरे साचथयों। जैसे िम ु अपनी शममान्दगी का माँह ु बन्द रखिे हो,

वैसे ही अपने सम्मान का माँह ु भी बन्द रखो। तयोंकक डीींग मारिा सम्मान मूक कलींक से बदिर है ; शोर मिािी नेकी गाँग ू ी बदी

से बदिर है ।बहुि बोलने से बिो।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

बोले गये हजार शब्दों में से शायद एक, केवल एक, ऐसा हो क्जसे बोलना सिमुि आवश्यक है । बाकी सब िो केवल बुवि को िि ुाँ ला करिे हैं,

कानों को ठसाठस भरिे हैं, क्जव्हा को कष्ट दे िे है , और ह्रदय को भी अन्िा करिे हैं। ककिना कदठन है वह शब्द बोलना क्जसे बोलना सिमुि आवश्यक है ! मलखे गए हजारों शब्दों में से शायद एक, केवल एक, ऐसा हो क्जसे मलखना सिमुि आवश्यक है ।

बाकी सब िो व्यथा में गाँवाई स्याही और कागज़ हैं, और ऐसे क्षण हैं क्जन्हें प्रकाश के पींखों की बजाय सीसे के पैर दे ददये गये हैं। ककिना कदठन, ओह, ककिना कदठन है वह शब्द मलखना क्जसे मलखना सिमि ु आवश्यक है ! बैनन ू : और प्राथाना के बारे में तया कहें गे, ममु शाद मीरदाद? प्राथाना में हमें

आवश्यकिा से कहीीं अचिक से कहीीं अचिक शब्द बोलने पड़िे हैं, और आवश्यकिा से कहीीं अचिक िीजें मााँगनी पड़िी हैं। ककन्िु मााँगी हुई िीजों में से हमें शायद ही कभी कोई प्रदान की जािी है ।

मेिा अपने -आप िो

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

प्राथचना िरो ************************************ अध्याय-13 ☞ प्राथचना ☜ ************************************* मीरदाद: िुम व्यथा में प्राथाना करिे हो जब िुम अपने आप को छोड़

दे विाओीं को सम्बोचिि करिे हो। तयोकक िुम्हारे अींदर है

आकवषाि करने की शक्ति,

जैसे दरू भगाने की की शक्ति िुम्हारे अींदर है । और िुम्हारे अींदर हैं वे वस्िुएाँ

क्जन्हें िुम आकवषाि करना िाहिे हो, जैसे वे वस्िुएाँ क्जन्हें िुम दरू

भगाना िाहिे हो िम् ु हारे अींदर हैं। तयोंकक ककसी वस्िु को लेने का सामथ्या रखना उसे दे ने का सामथ्या रखना भी है । जहाीं भख ू है , वहाीं भोजन है ।

जहाीं भोजन है , वहाीं भख ू भी अवश्य होगी। भख ू की पीड़ा से व्यचथि होना

िप्ृ ि होने का आनींद लेने का सामथ्या रखना है । हााँ, आवश्यकिा में ही आवश्यकिा की पूतिा है । तया िाबी िाले के प्रयोग का अचिकार नहीीं दे िी? तया िाला िाबी के प्रयोग का अचिकार नहीीं दे िी ? तया िाला और िाबी दोनों दरवाजे के प्रयोग का अचिकार नहीीं दे िे ? जब भी िुम िाबी गाँवा बैठो

या उसे कहीीं रखकर भूल जाओ,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िो लोहार से आग्रह करने के मलये उिावले मि होओीं। लोहार ने अपना काम कर ददया है , और अच्छी िरह से कर ददया है ; उसे वही काम बार-बार करने के मलये मि कहो। िुम अपना काम करो और

लोहार को अकेला छोड़ दो; तयोंकक जब एक बार वह िुमसे तनपट िक ू ा है , उसे और भी काम करने हैं। अपनी स्मतृ ि में से दग ा ि ु न् और किरा तनकाल िेंको,

और िाबी िुम्हे तनश्िय ही ममल जायेगी| अकथ प्रभु ने उच्िारण द्वारा जब िुम्हे रिा िो िुम्हारे रूप

में उसने अपनी ही रिना की। इस प्रकार िुम भी अकथ हो। प्रभु ने िुम्हे अपना कोई अींश प्रदान नहीीं ककया–

तयोंकक वह अींशों में नहीीं बााँट सकिा; उसने िो अपना समग्र, अववभाज्य, अकथ ईश्वरत्व ही िम ु सबको प्रदान कर ददया। इससे बड़ी ककस ववरासि की

कामना कर सकिे हो िम ु ? और िम् ु हारी अपनी कायरिा का अन्िेपन के मसवाय और कौन,

या तया, िम् ु हे पाने से रोक सकिा हैं ? किर भी, कुछ–अन्िे कृिध्न लोग– अपनी ववरासि के मलये कृिज्ञीं होने के बजाय, उसे प्राप्ि करने की

राह खोजने के बजाय,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

प्रभु एक प्रकार का कूडाघर बना दे ना िाहिे हैं

क्जसने वे अपने दाींि और पेट के ददा , व्यापार में अपने घाटे , अपने िगडे, अपनी बदले की भावनाएीं िथा अपनी तनद्राहीन रािें ले जाकर िेंक सकें।

कुछ अन्य लोग प्रभु को

अपना तनजी कोष बना लेना िाहिे हैं जहाीं से वे जब िाहें सींसार की िमकदार तनकम्मी वस्िुओीं में से हर ऐसी वस्िु को पाने की आशा रखिे हैं क्जसके मलए वे िरस रहे हैं। कुछ अन्य लोग प्रभु को

एक प्रकार का तनजी मुनीम बना लेना िाहिे हैं,

जो केवल यह दहसाब ही न रखे कक वे ककन िीजों के मलये दस ू रों के कजादार हैं और ककन िीजों के मलये उनके कजादार है , बक्कक उनके ददये कजा को वसल ू भी करे और उनके उनके खािे में हमेशा एक बड़ी रकम जमा ददखाये। हााँ….. अनेक िथा नाना प्रकार के हैं वे काम जो मनुष्य प्रभु को सौंप दे िा है । किर भी बहुि थोड़े लोग ऐसे होंगे जो सोििे हों कक यदद सिमुि इिने सारे काम करने की क्जम्मेदारी प्रभु पर है

िो वह अकेला ही उनको तनपटा लेगा, और उसे यह आवश्यकिा नहीीं होगी

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

कक कोई उसे प्रेररि करिा रहे या अपने कामों की याद ददलािा रहे । तया प्रभु को िम ु उन घड़ड़यों की याद ददलािे हो

जब सूया उदय होना है

और जब िन्द्र को अस्ि ? तया उसे िुम दरू के खेि में पड़े

अनाज के उस दाने की याद ददलािे हो क्जसमे जीवन िूट रहा है ? तया उसे िुम उस मकडी की याद ददलािे हो

जो रे शे से अपना कौशल-पूणा ववश्राम-गह ृ बना रही है ?

तया उसे िुम घोंसले में पड़े

गौरे या के छोटे -छोटे बच्िों की याद ददलािे हो ? तया िुम उसे उन अनचगनि वस्िुओीं की याद ददलािे हो

क्जनसे यह असीम ब्रह्माण्ड भरा हुआ है ? िुम अपने िुच्छ व्यक्तित्व को अपनी समस्ि अथाहीन

आवश्यकिाओीं सदहि बार-बार उसकी स्मतृ ि पर तयों लादिे हो ? तया िम ु उसकी दृक्ष्ट में गौरे या, अनाज और मकड़ी की िल ु ना में कम कृपा के पात्र हो ?

िम ु उनकी िरह अपने उपहार स्वीकार तयों नहीीं करिे और बबना शोर मिाये, बबना बबना घुटने टे के, बबना हाथ िैलाये और

बबना चिींिा-पूवक ा भववष्य में

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िााँके अपना-अपना काम तयों नहीीं करिे ? और प्रभु दरू कहााँ है

कक उसके कानों िक अपनी सनकों और ममथ्यामभमानों को, अपनी स्िुतियों और अपनी

िररयादों को पहुाँिाने के मलये िुम्हे चिकलाना पड़े ? तया वह िुम्हारे अींदर और

िुम्हारे िारों ओर नहीीं है ? क्जिनी िुम्हारी क्जव्हा

िुम्हारे िालू के तनकट है , तया उसका कान िुम्हारे माँह ु के उससे कहीीं

अचिक तनकट नहीीं है ? प्रभु के मलये िो उसका

ईश्वरत्व ही कािी है क्जसका बीज उसने िुम्हारे अींदर रख ददया है । यदद अपने ईश्वरत्व का बीज िुम्हे दे कर िुम्हारे बजाय प्रभु को ही उसका ध्यान

रखना होिा िो िम ु मे तया खब ू ी होिी ? और जीवन में िम् ु हारे करने के मलये तया होिा ?

और यदद िम् ु हारे करने को कुछ भी नहीीं है ,

बक्कक प्रभु को ही िुम्हारी खातिर सब करना है ,

िो िुम्हारे जीवन का तया महत्व है ? िुम्हारी सारी प्राथाना से तया लाभ है ? अपनी अनचगनि चिींिाएाँ और

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

आशाएाँ प्रभु के पास मि ले जाओ। क्जन दरवाजों की िाबबयााँ उसने िुम्हे सौंप दी है ,

उन्हें िुम्हारी खातिर खोलने के मलये ममन्निें मि करो।

बक्कक अपने ह्रदय की ववशालिा में खोजो। तयोंकक ह्रदय की ववशालिा में ममलिी है हर दरवाजे की िाबी। और ह्रदय की ववशालिा में मौजूद हैं

वे सब िीजें क्जनकी िुम्हे भूख और प्यास है ,

िाहे उनका सम्बन्ि बुराई से है या भलाई से। िुम्हारे छोटे से छोटे आदे श का पालन करने को िैयार एक ववशाल सेना िुम्हारे इशारे पर काम करने के

मलये िैनाि कर दी गयी है । यदद वह अच्छी िरह से सक्ज्जि हो, उसे कुशलिापूवक ा मशक्षण ददया गया हो और तनडरिा पूवक ा उसका सींिालन ककया गया हो, िो उसके मलये कुछ भी करना असम्भव नहीीं,

और कोई भी बािा उसे अपनी मींक्जल पर पहुाँिने से रोक नहीीं सकिी। और यदद वह परू ी िरह सक्ज्जि न हो, उसे उचिि मशक्षण न ददया गया हो

और उसका सञ्िालन साहसहीन हो, िो वह ददशाहीन भटकिी रहिी है , या छोटी से छोटी बािा के सामने मोरिा छोड़ दे िी है , और उसके पीछे -पीछे िली आिी है शमानाक पराजय। वह सेना और कोई नहीीं,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

सिओ ु …

इस समय िम् ु हारी रगों में िप ु िाप ितकर लगा रही सूक्ष्म लाल कखणकाएाँ हैं;

उनमे से हरएक शक्ति का िमत्कार, हरएक िुम्हारे समूिे जीवन का और समस्ि जीवन का–उनकी अन्िरिम सूक्ष्मिाओीं सदहि– पूरा और सच्िा वववरण।

ह्रदय में एकबत्रि होिी है यह सेना; ह्रदय में से ही बाहर तनकलकर यह मोरिा लगािी है । इसी कारण ह्रदय को इिनी ख्याति और इिना सम्मान प्राप्ि है । िुम्हारे सुख और दिःु ख के आाँसू

इसी में से िूटकर बाहर तनकलिे हैं। िुम्हारे जीवन और मत्ृ यु के भय दौड़कर इसी के अन्दर घुसिे हैं। िुम्हारी लालसाएाँ और कामनाएाँ इस सेना के उपकरण हैं

िुम्हारी बुवि इसे अनुशासन में रखिी है । िम् ु हारा सींककप इससे कवायद करवािा है और इसकी बागडोर सींभालिा है ।

जब िम ु अपने रति को एक प्रमख ु कामना से सक्ज्जि कर लो

जो सब कामनाओीं को िप ु कर दे िी है और उन पर छा जािी है ;

और अनश ु ासन एक प्रमख ु वविार को सौंप दो, िब िुम ववश्वास कर सकिे हो

कक िुम्हारी वह कामना पूरी होगी। कोई सींि भला सींि कैसे हो सकिा है जब िक वह अपने मन की वतृ ि को सींि-पद के अयोग्य

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हर कामना से िथा हर वव िार से मत ु ि न कर दे , और किर एक अड़डग सींककप के द्वारा उसे अन्य सभी लक्ष्यों को छोड़ केवल सींि-पद की प्राक्प्ि के मलये यत्नशील रहने का तनदे श न दे ? मैं कहिा हूाँ कक आदम के समय से

लेकर आज िक की हर पववत्र कामना, हर पववत्र वविार, हर पववत्र सींककप उस मनुष्य की सहायिा के मलये िला आयेगा

क्जसने सींि-पद प्राप्ि करने का ऐसा दृढ़ तनश्िय कर मलया हो। तयोंकक सदा ऐसा होिा आया है कक पानी, िाहे वह कहीीं भी हो, समुद्र की खोज करिा है जैसे प्रकाश की ककरने सूया को खोजिी हैं। कोई हत्यारा अपनी योजनाएाँ कैसे पूरी करिा है ?

वह कवल अपने रति को उत्िेक्जि उसमे ह्त्या के मलये एक उन्माद-भरी प्यास पैदा करिा है , उसके कण-कण को हत्यापण ू ा वविारों के कोड़ों की

मार से एकत्र करिा है , और किर तनष्ठुर सींककप से उसे घािक बार करने का आदे श दे िा है । मैं िुमसे कहिा हूाँ कक केन* से लेकर आज िक का हर हत्यारा बबना बुलाये

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

उस मनष्ु य की भज ु को

सबल और क्स्थर बनाने के मलये दौड़ा आयेगा क्जस पर ह्त्या का ऐसा नशा सवार हो। तयोंकक सदा ऐसा होिा आया है कक कौए, कौओीं का साथ दे िे हैं और लकड़ बग्घे लकड़-बग्घों का। इसमलये प्राथाना करना अपने अींदर एक ही प्रमुख कामना की एक ही प्रमुख वविार की

एक ही प्रमुख सींककप की सींिार करना है ।

यह अपने आप को इस िरह सुर में कक क्जस वस्िु

के मलये भी िुम प्राथाना करो, उसके साथ पूरी िरह एक-सुर, एक-िाल हो जाओ।

इस ग्रह का वािावरण, जो अपने सम्पूणा रूप में

िुम्हारे ह्रदय में प्रतिबबक्म्बि है , उन सब बािों की आवारा स्मतृ ियों से िरीं चगि है क्जन्हें

उसने अपने जन्म से दे खा है । कोई विन या कमा; कोई इक्षा या तनिःश्वास; कोई क्षखणक वविार या अस्थाई सपना; मनष्ु य या पशु का कोई श्वास;

कोई परछाईं; कोई भ्रम ऐसा नहीीं जो आज के ददन िक

अपने-अपने रहस्यमय रास्िे पर न िलिा रहा हो,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

और समय के अींि िक इसी प्रकार उस पर िलिे न रहना हो। उनमे से ककसी एक के साथ भी िुम अपने ह्रदय का सुर ममला लो,

और वह तनश्िय ही उसके िारों पर िन ु बजाने के मलय िेजी से दौड़ा आयेगा। प्राथाना करने के मलए िुम्हे ककसी होंठ या क्जव्हा की आवश्यकिा नहीीं। बक्कक आवश्यकिा है एक मौन, सिेि ह्रदय की, एक प्रमुख कामना की, एक प्रमुख वविार की, और सबसे बढ़कर,

एक प्रमुख सींककप की

जो न सींदेह करिा है न सींकोि। तयोंकक शब्द व्यथा हैं यदद प्रत्येक अक्षर में ह्रदय अपनी पूणा जागरूकिा के साथ उपक्स्थि न हो।

और जब ह्रदय उपक्स्थि और सजग है , िो क्जव्हा के मलये यह बेहिर होगा कक वह सो जाये, या मह ु रबन्द होंठों के पीछे तछप जाये। न ही प्राथाना करने के मलये िम् ु हें मक्न्दरों की आवश्यकिा है । जो कोई अपने ह्रदय में

मक्न्दर को नहीीं पा सकिा, वह ककसी भी मक्न्दर में अपने ह्रदय को नहीीं पा सकिा।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

किर भी मैं िम ु से यह सब कहिा हूाँ, और जो िम ु जैसे हैं उनसे भी, ककन्िु प्रत्येक मनुष्य से नहीीं,

तयोंकक अचिकााँश लोग अभी भ्रम में हैं। वे प्राथाना की जरुरि िो महसूस करिे हैं, लेककन प्राथाना करने का ढीं ग नहीीं जानिे। वे शब्दों के बबना प्राथाना कर नहीीं सकिे, और शब्द उन्हें ममलिे नहीीं जब िक शब्द उनके माँह ु में न डाल ददये जायें।

और जब उन्हें अपने ह्रदय की ववशालिा में वविरण करना पड़िा है िो वे खो जािे हैं, और भयभीि हो जािे हैं; परन्िु मींददरों की दीवारों के

अींदर और अपने जैसे प्राखणयों के िुींडों के बीि उन्हें साींत्वना और सुख ममलिा है ।

कर लेने दो उन्हें अपने मींददरों का तनमााण। कर लेने दो उन्हें अपनी प्राथानाएाँ। ककन्िु िुम्हें िथा प्रत्येक मनुष्य को ददव्य ज्ञान के मलये

प्राथाना करने का आदे श दे िा हूाँ। उसके मसवाय अन्य ककसी वस्िु की िाह रखने का अथा है कभी िप्ृ ि न होना। याद रखो, जीवन की कींु जी ”

मसरजनहार शब्द” है । ‘ मसरजनहार शब्द’ की कींु जी प्रेम है । प्रेम की कींु जी ददव्य ज्ञान है ।

अपने ह्रदय को इनसे भर लो,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

और बिा लो अपनी क्जव्हा को अनेक शब्दों की पीड़ा से, और रक्षा कर लो अपनी बुवि का अनेक प्रा थानाओीं के बोि से,

और मत ु ि कर लो अपने ह्रदय को सब दे विाओीं की दासिा से जो िुम्हे उपहार दे कर

अपना दास बना लेना िाहिे हैं; जो िुम्हें एक हाथ से केवल

इसमलए सहलािे हैं कक दस ू रे

हाथ से िुम पर बार का सकें; जो िुम्हारे द्वारा प्रशींसा

ककये जाने पर सींिुष्ट और कृपालु होिे हैं, ककन्िु िुम्हारे द्वारा कोसे जाने

पर क्रोि और बदले की भावना से भर जािे हैं; जो िब िक िुम्हारी बाि नहीीं

सुनिे जब िक िुम उन्हें पुकारिे नहीीं; और िब िक िुम्हे दे कर

बहुिा दे ने पर पछिािे हैं; क्जनके मलये िुम्हारे आाँसू अगरबत्िी हैं, क्जनकी शान िम् ु हारी दयनीयिा में है । हााँ……. अपने ह्रदय को इन सब दे विाओीं से मत ु ि कर लो, िाकक िम् ु हें उसमे वह एकमात्र प्रभु ममल सके जो

िम् ु हें अपने आप से भर दे िा है िाहिा है की िुम सदै व भरे रहो।

बैनून: कभी िुम मनुष्य को सवाशक्तिमान कहिे हो िो कभी उसे लावाररस कहकर िुच्छ बिािे हो।

लगिा है िुम हमें िन् ु ि में लाकर छोड़ रहे हो।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद हाँसिा है और आकाश की और दे खिा .. मौन से कुछ अलोककक

आिा ददखाई दे िा है ….

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय -14 / 15 मनष्ु य जन्म समय

परमात्मा और शैिान की सींवेदना लेकर आिा है ************************************ अध्याय -14 मनुष्य िे िाल-मुक्त जन्म पर दो प्रमख ु दे वदतों िा संवाद

और दो प्रमुख यमदतों िा संवाद ************************************ मीरदाद :- मनुष्य के काल-मत ु ि जन्म पर ब्रम्हाींड के उपरी छोर पर दो प्रमख ु दे वदि ू ों के बीि तनम्न मलखखि

बाििीि हुई ☜ पहले दे वदि ू ने कहा; एक ववलक्षण

बालक को जन्म ददया है िरिी ने; और िरिी प्रकाश से जगमगा रही है । दस ू रा दे वदि ू बोला;एक गौरवशाली राजा को जन्म ददया है स्वगा ने; और स्वगा हषा ववभोर है । पहला; बालक स्वगा और

िरिी के ममलन का िल है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

दस ू रा; यह शाश्वि ममलन है — वपिा, मािा और बालक।

पहला; इस बालक से िरिी की मदहमा बढ़ी है । दस ु रा; इससे अवगा साथाक हुआ है । पहला; ददन इसकी आाँखों में सो रहा है । दस ु रा; राि इसके ह्रदय में जाग रही है । पहला; इसका वक्ष िि ू ानों का नीड़ है । दस ु रा; इसका कींठ गीि का सरगम है । पहला; इसकी भज ु ाएाँ पवािों का आमलींगन करिी हैं।

दस ु रा; इसकी उीं गमलयााँ मसिारे िुनिी हैं। पहला; सागर गरज रहे हैं इसकी हड्ड़डयों में । दस ु रा; सय ू ा दौड़ रहे हैं इसकी रगों में । पहला; भट्ठी और सााँिा है इसका मख ु । दस ु रा; हथोड़ा और अहरन है इसकी क्जव्हा। पहला; इसके पैरों में आने बाले काल की बेड़ड़यााँ हैं। दस ु रा; इसके ह्रदय में उन बेड़ड़यों की कींु जी है । पहला; किर भी ममटटी के पालने में पड़ा है यह मशश।ु दस ु रा; ककन्िु ककपों के

पोिड़ों में मलपटा है यह।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

पहला; प्रभु की िरह ज्ञािा है यह अींकों के हर रहस्य का। प्रभु की िरह जानिा है शब्दों के ममा को।

दस ु रा; सब अींकों को जानिा है यह, मसवाय पववत्र एक के,

जो प्रथम और अींतिम है । सब शब्दों को जानिा है यह, मसवाय उस ”मसरजनहार शब्द” के, जो प्रथम और अींतिम है । पहला; किर भी जान लेगा यह उस अींक को और उस शब्द को। िब िक नहीीं जब िक स्थान के पथ-ववहीन वीरानों में िलिे-िलिे इसके पााँव तघस न जाएाँ; िब िक नहीीं जब िक समय के

भयानक भमू मगह ृ ों को दे खिे-दे खिे इसकी आाँखें पथरा न जाएाँ।

पहला; ओह,ववलक्षण, अति ववलक्षण है िरिी का यह बालक। दस ु रा; ओह, गौरवशाली, अत्यींि

गौरवशाली है स्वगा का यह राजा। पहला; अनामी ने इसका नाम मनुष्य रखा है । दस ु रा; और इसने अनामी का प्रभु नाम रखा है । पहला; मनुष्य प्रभु का शब्द है । दस ु रा; प्रभु मनुष्य का शब्द है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

पहला; िन्य है वह क्जसका शब्द मनष्ु य है । दस ु रा; िन्य है वह क्जसका शब्द प्रभु है । पहला; अब और सदा के मलये। दस ु रा यहााँ और हर स्थान पर।

यों बाििीि हुई मनष्ु य के काल-मत ु ि जन्म पर ब्रम्हाींड के उपरी छोर पर दो प्रमख ु दे वदि ू ों के बीि।

उसी समय ब्रम्हाींड के तनिले छोर पर दो प्रमख ु यमदि ू ों के

बीि तनम्नमलखखि बाििीि िल रही थी; पहले यमदि ू ने कहा;

एक वीर योिा हमारे वगा में आ ममला है । इसकी सहायिा से हम ववजय प्राप्ि कर लेंगे। दस ू रा यमदि ू बोला; बक्कक चिडचिडा और पाखींडी कायर कहो इसे।

और ववश्वासघाि ने इसके माथे पर डेरा डाल रखा है । लेककन भयींकर है यह अपनी कायरिा और ववश्वासघाि में। पहला; तनडर और तनरीं कुश है इसकी दृक्ष्ट। दस ा है ु रा; अश्रुपूणा और दब ु ल

इसका ह्रदय। ककन्िु भयानक है

यह अपनी दब ा िा और आाँसओ ु ल ु ीं में । पहला;पैनी और प्रयत्नशील है इसकी बुवि।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

दस ु रा; आलसी और मींद है इसका कान। ककन्िु खिरनाक है यह अपने आलस्य और मींदिा में ।

पहला; िुिीला और तनक्श्िि है इसका हाथ। दस ु रा; दहिककिािा और सस् ु ि है इसका पैर। परन्िु भयानक है

इसकी सस् ु िी और डरावनी है इसकी दहिककिाहट। पहला; हमारा भोजन इसकी नाड़ड़यों के मलए िौलाद होगा। हमारी शराब इसके लहू के मलए आग होगी। दस ु रा; हमारे भोजन के ड़डब्बों से यह हमें मारे गा। हमारे शराब के मटके यह हमारे सर पर िोड़ेगा।

पहला; हमारे भोजन के मलये इसकी भख ू और हमारी शराब के मलये इसकी प्यास लड़ाई में इसका रथ बनेंगे।

दस ू रा; अींिहीन भख ू और अममि प्यास इसे अजेय बना दें गी

और हमारे मशववर में यह ववद्रोह पैदा कर दे गा। पहला; परन्िु मत्ृ यु इसका सारथी होगी। दस ु रा; मत्ृ यु इसका सारथी होगी िो यह अमर हो जायेगा। पहला; मत्ृ यु तया इसे मत्ृ यु के मसवाय कहीीं ओर ले जायेगी? दस ु रा; हााँ, इिनी िींग आ जायेगी मत्ृ यु इसकी तनरीं िर मशकायिों से कक वह आखखर इसे जीवन के मशववर में ले जायेगी।

पहला; मत्ृ यु तया मत्ृ यु के साथ ववश्वासघाि करे गी? दस ु रा; नहीीं जीवन जीवन के साथ विादारी करे गा। पहला; इसकी जीव्हा को दल ा और स्वाददष्ठ िलों से परे शान करें गे। ु भ

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

दस ु रा; किर भी यह िरसेगा उन िलों के मलए जो इस छोर पर नहीीं उगिे। पहला; इसकी आाँखों और नाक को हम सद ुीं र और सग ु ींिमय िूलों से लभ ु ायेंगे| दस ु रा; किर भी ढूींढेंगी इसकी आाँख अन्य िूल और इसकी नाक अन्य सग ु ींि । पहला; और हम इसे तनरीं िर मिरु ककन्िु दरू का सींगीि सन ु ायेंगे। दस ु रा; किर भी इसका कान ककसी अन्य सींगीि की ओर रहे गा। पहला; भय इसे हमारा दास बना दे गा।दस ु रा; आशा भय से इसकी रक्षा करे गी।पहला पीड़ा इसे हमारे आिीन कर दे गी। दस ु रा; ववश्वास इसे पीड़ा से मत ु ि कर दे गा। पहला; हम इसकी तनद्रा पर उलिनों से भरे सपनों की िादर डाल दें गे, और इसके जागरण में पहे मलयों से भरी परछाईयााँ बबखेर दें गे। दस ू रा; इसकी ककपना उलिनों को सल ु िा लेगी और परछाईयों को ममटा दे गी। पहला; यह सब होिे हुए भी हम इसे अपने में से एक मान सकिे हैं। दस ु रा; मान लो इसे हमारे साथ यदद िुम िाहो िो; ककन्िु इसे हमारे ववरुि ही मानो।

पहला; तया यह एक ही समय में हमारे साथ और हमारे ववरुि हो सकिा है ? दस ु रा; रणभमू म में यह एकाकी योिा है । इसका एकमात्र शत्रु इसकी परछाईं है । जैसे परछाईं का स्थान बदलिा है ,

वैसे ही युि का स्थान भी बदल जािा है। यह हमारे साथ है जब इसकी परछाईं इसके आगे है । यह हमारे ववरुि है जब इसकी परछाईं इसके पीछे है । पहला; िो तया हम इसको इस िरह से न रखें की इसकी पीठ हमेशा सय ू ा की ओर रहे ? दस ु रा; परन्िु सय ू ा को हमेशा इसकी पीठ के पीछे कौन रखेगा ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

पहला एक पहे ली है यह योिा। दस ु रा; एक पहे ली है यह परछाईं। पहला; स्वागि है इस एकाकी शूरवीर का। दस ु रा; स्वागि है इस एकाकी परछाईं का। पहला; स्वागि है इसका जब यह हमारे साथ है । दस ु रा; स्वागि है इसका जब यह हमारे ववरुि है । पहला; आज और हमेशा। दस ू रा; यहााँ और हर जगह। यों बाििीि हुई ब्रम्हाींड के तनिले मसरे पर दो प्रमख ु यमदि ू ों के बीि मनुष्य के काल-मत ु ि जन्म पर।

हवा की िरह स्विींत्र िथा लिीले बनो ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ अध्याय┉15 शमदाम मीरदाद को नौका से बाहर तनकाल दे ने का प्रयत्न करिा है ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

नरौन्दा: मुमशाद ने अभी अपनी बाि पूरी की ही थी कक मुखखया की भारी-भरकम दे ह नीड़ के द्वार पर ददखाई दी।

और ऐसा लगा जैसे उसने हवा और रौशनी की राह बींद कर दी हो। और उस एक क्षण के मलए मेरे मन में वविार कौंिा कक द्वार पर ददखाई दे रही आकृति कोई

ओर नहीीं है , केवल उन दो प्रमुख यमदि ू ों में से एक है क्जसके बारे में मुमशाद ने हमें अभी-अभी बिाया था।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मुखखया की आाँखों से आग बरस रही थी, और उसका िेहरा क्रोि से िमिमा रहा था। वह मुमशाद की ओर बढ़ा और एकाएक उन्हें बााँह से पकड़ मलया। स्पष्ट था कक वह उन्हें घसीट कर बाहर तनकालने का यत्न कर रहा था। शमदाम: मैंने अभी- अभी िुम्हारे दष्ु ट मन के अत्यींि भयानक उदगार सुने हैं ।

िुम्हारा मुींह ववष का िव्वारा िुम्हारी उपक्स्थति एक अपशकुन है । इस नौका का मुखखया होने के नािे मैं िुन्हें इसी क्षण यहााँ से िले जाने का आदे श दे िा हूाँ ।

नरौन्दा: मुमशाद इकहरे शरीर के थे िो भी शाींतिपूवक ा अपनी जगह डटे रहे , मानो वे ववशालकाय हों और शमदाम केवल एक मशशु । उनकी अवविमलि शाींति आश्ियाजनक थी । उन्होंने शमदाम की ओर दे खा और कहा;मीरदाद: िले जाने का आदे श दे ने का अचिकार केवल उसी को है क्जसे आने का आदे श दे ने का अचिकार है । मुिे नौका पर आने का आदे श तया िुमने ददया था शमदाम ? शमदाम: वह िम् ु हारी दद ु ा शा थी क्जसे दे खकर मेरे ह्रदय में दया उमड़ आई थी, और मैंने िुम्हे आने की अनुमति दे दी थी । मीरदाद : यह मेरा प्रेम है , शमदाम, जो िम् ु हारी दद ु ा शा को दे खकर उमड़ आया था।

और दे खो, मैं यहााँ हूाँ और मेरे साथ है मेरा प्रेम। परन्िु अ़िसोस िुम न यहााँ हो न वहाीं | केवल िुम्हारी परछाईं इिर-उिर भटक रही है | और मैं सब परछाइयों को बटोरने और उन्हें सय ू ा के िाप में जलाने आया हूाँ | शमदाम: जब िुम्हारी सााँस ने वायु को दवू षि करना शुरू ककया उससे बहुि पहले मैं

इस नौका का मखु खया था । िम् ु हारी नीि क्जव्हा कैसे कहिी है कक मैं यहााँ नहीीं हूाँ ? मीरदाद: मैं इन पवािों से पहले था, और इसके िूर-िूर होकर ममटटी में ममल जाने के बाद भी रहूींगा । मैं नौका हूाँ, वेदी हूाँ, और अक्ग्न भी। जब िक िुम मेरी शरण में

नहीीं आओगे, िुम िू़िान के मशकार बने रहोगे। जब िक िुम मेरे सामने अपने आप को ममटा नहीीं दोगे, िुम मत्ृ यु के अनचगनि कसाइयों की तनरीं िर साीं दी जा रही

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

छुररयों से बि नहीीं पाओगे । और यदद मेरी कोमल अक्ग्न िम् ु हे जलाकर राख नहीीं कर दे गी, िुम नरक की क्रूर अक्ग्न का ईंिन बन जाओगे । शमदाम: तया िम ु सब ने सन ु ा ? सुना नहीीं तया िुमने ? मेरा साथ दो, साचथयों । आओ, इस प्रभ-ु तनींदक पाखींडी को नीिे खड्ड में िेंक दें । नरौन्दा: शमदाम किर िेजी से मुमशाद की ओर बढ़ा और घसीटकर उन्हें बाहर तनकाल दे ने के इरादे से उसने एकाएक बाींह से पकड़ मलया।

परन्िु मुमशाद न वविमलि हुए न अपनी जगह से हटे ; न ही कोई साथी ितनक भी दहला। एक बेिैन ख़ामोशी के बाद शमदाम का मसर उसकी छािी पर िक ु गया

और मींद स्वर में मानो अपने आपसे कहिे हुए वह नीड़ से तनकल गया ”मैं इस

नौका का मुखखया हूाँ , मैं अपने प्रभु-प्रदत्ि अचिकार पर डटा रहूींगा।” मुमशाद बहुि दे र िक सोििे रहे , पर कुछ बोले नहीीं। ककन्िु जमोरा िप ु न रह सका।

जमोरा; शमदाम ने हमारे मुमशाद का अपमान ककया है । मुमशाद, बिायें हम उसके साथ तया करें ? हुतम दें , और हम पालन करें गे। मीरदाद; शमदाम के मलये प्राथाना करो, मेरे साचथयों। मैं िाहिा हूाँ कक उसके साथ िुम केवल इिना ही करो। प्राथाना करो की उसकी आाँखों पर से पदाा उठ जाये और उसकी परछाईं ममट जाये |

अच्छाई को आकृष्ट करना उिना ही आसान है क्जिना बुराई को। प्रेम के साथ सुर ममलाना उिना ही आसान है क्जिना घण ृ ा के साथ।अनींि आकाश में से,

अपने ह्रदय की ववशालिा में से शुभ कामना लेकर सींसार को दो। तयोकक हर वस्िु जो सींसार के मलये वरदान है िुम्हारे मलए भी वरदान है । सभी जीवों के दहि के मलये प्राथाना करो। तयोकक हर जीव का हर दहि िुम्हारा भी दहि है । इसी प्रकार हर जीव का अदहि िुम्हारा भी अदहि है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तया िुम सब अक्स्ित्व की अनन्ि सीढ़ी की गतिमान पौड़ी के सामान नहीीं हो? जो पववत्र स्विींत्रिा के ऊाँिे मींडल पर िढ़ना िाहिे हैं, उन्हें वववश होकर दस ू रों के िढ़ने के मलए सीढ़ी की पौड़ी बनना पड़िा है । िुम्हारे अक्स्ित्व की सीढ़ी में शमदाम एक पााँवरी के अतिररति और तया है ? तया िुम नहीीं िाहिे िुम्हारी सीढ़ी मजबूि और सुरक्षक्षि हो ?

िो उसकी हर पााँवरी का ध्यान रखो और उसे मजबूि और सुरक्षक्षि बनाये रखो। िुम्हारे जीवन की नीव में शमदाम एक पत्थर के अतिररति और तया है ? और िुम उसके और प्रत्येक प्राणी के जीवन की इमारि में लगे पत्थर के अतिररति और तया हो ? यदद िुम िाहिे हो िुम्हारी इमारि पूणि ा या दोष रदहि हो, िो ध्यान रखो शमदाम एक दोष-रदहि पत्थर हो।

िुम स्वयीं भी दोष-रदहि रहो, िाकक क्जन लोगों की ईमारि में िुम पत्थर बनकर लगो उनकी इमारिों में कोई दोष न हो। तया िुम सोििे हो कक िुम्हारे पास दो से अचिक आाँखें नहीीं हैं ?

मैं कहिा हूाँ कक दे ख रही हर आाँख, िाहे वह िरिी पर हो, उससे उपर हो, या उसके

नीिे, िम् ु हारी आाँख का ही भाग है । क्जस हद िक िम् ु हारे पड़ोसी की नजर सा़ि है , उस हद िक िुम्हारी नजर भी सा़ि है ।

क्जस हद िक िुम्हारे पड़ोसी की नजर िि ुीं ली हो गई है , उसी हद िक िुम्हारी नजर भी िुींिली हो गई है ।

यदद एक मनुष्य आाँखों से अाँिा है िो िम ु एक जोड़ी आाँखों से वींचिि हो जो िम् ु हारी आाँखों की ज्योति को और बढ़ािीीं। अपने पड़ोसी की आाँखों की ज्योति को सींभालकर रखो, िाकक िुम अचिक स्पष्ट दे ख सको। अपनी दृक्ष्ट को सींभालकर रखो, िाकक िुम्हारा पड़ोसी ठोकर न खा जाये और कहीीं िुम्हारे द्वार को ही न रोक ले। जमोरा सोििा है शमदाम ने मेरा अपमान ककया है । शमदाम का अज्ञान मेरे ज्ञान को अस्ि-व्यस्ि कैसे कर सकिा है ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

एक कीिड़ – भरा नाला दस ु रे नाले को आसानी के साथ कीिड़ से भर सकिा है। परन्िु तया कोई कीिड़-भरा नाला समुद्र को कीिड़ से भर सकिा है ? समद्र ु कीिड़ को सहषा ग्रहण कर लेगा िथा उसे िह में बबछा लेगा, और बदले में दे गा नाले को स्वच्छ जल। िुम िरिी के एक वगा िुट को–शायद एक मील को—गींदा, या रोगाण-ु मुति कर सकिे हो। िरिी को कौन गींदा या रोगाण-ु मुति कर सकिा है ? िरिी हर मनष्ु य िथा पशु की गींदगी को स्वीकार कर लेिी है और बदले में उन्हें दे िी है मीठे िल िथा सुगक्न्िि िूल, प्रिुर मात्रा में अनाज िथा घाींस। िलवार शरीर को तनश्िय ही घायल कर सकिी है । परन्िु तया वह हवा को घायल कर सकिी है , िाहे उसकी िार ककिनी ही िेज और उसे िलाने वाली भुजा ककिनी ही बलशाली तयों न हो ?

अन्िे और लोभी अज्ञान से उत्पन्न हुआ अहीं कार नीि और सींकीणा आपे का अहीं कार होिा है जो अपमान कर सकिा है और करवा सकिा है ,

जो अपमान का बदला अपमान से लेना िाहिा है और गींदगी को गींदगी से िोना िाहिा है । अहीं कार के घोड़े पर सवार िथा आपे के नशे में िूर सींसार िुम्हारे साथ

ढे रों अन्याय करे गा। वह अपने जजाररि तनयमों, दग ा ि–भरे मसिान्िों और तघसे-वपटे ु न् सम्मानों के रति-वपपासु कुत्िे िुम पर छोड़ दे गा। वह िम् ु हे व्यवस्था का शत्रु और अव्यवस्था का काररन्दा घोवषि करे गा। वह िम् ु हारी राहों में जाल बबछायेगा और िुम्हारी सेजों को बबच्छू-बूटी से सजायेगा। वह िुम्हारे कानों में गामलयााँ बोयेगा और तिरस्कारपूवक ा िुम्हारे िेहरों पर थूकेगा। अपने ह्रदय को दब ा न होने दो। ु ल बक्कक सागर की िरह ववशाल और गहरे बनो, और उसे आशीवााद दो जो िुम्हे केवल शाप दे िा है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

और िरिी की िरह उदार िथा शान्ि बनो और मनष्ु यों के ह्रदय के मैल को स्वास्थ्य और सौन्दया में बदल दो। और हवा की िरह स्विींत्र और लिीले बनो। जो िलवार िम् ु हे घायल करना िाहे गी वह अींि में अपनी िमक खो बैठेगी और उसे जींग लग जायेगा। जो भुजा िुम्हारा अदहि करना िाहे गी वह अींि में थककर रुक जायेगी। सींसार िुम्हे अपना नहीीं सकिा, तयोंकक वह िुम्हे नहीीं जानिा। इसमलए वह िुम्हारा स्वागि क्रुि गुरााहट के साथ करे गा। परन्िु िम ु सींसार को अपना सकिे हो, तयोंकक िम ु सींसार को जानिे हो। अिएव िुम्हे उसके क्रोि को सहृदयिा द्वारा शान्ि करना होगा, और उसके द्वेष-भरे आरोपों को प्रेमपूणा ददव्य ज्ञान में डुबाना होगा। और जीि अींि में ददव्य ज्ञान की ही होगी।यही मशक्षा थी मेरी नूह को।यही मशक्षा है मेरी िुम्हे ।

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय - 16 / 17 /18

ध्यान रखना तुम िभी लेनदार न बनो ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ अध्याय 16 लेनदार और दे नदार िन तया है ? *********************************** रक्स्िददयन को नौका के ऋण से मुति ककया जािा है ☜

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

नरौन्दा: एक ददन जब सािों साथी और मुमशाद नीड़ से नौका की ओर लौट रहे थे िो उन्होंने द्वार पर खड़े शमदाम को अपने पैरों में चगरे एक व्यक्ति के सामने कागज़ का एक टुकड़ा दहलािे हुए क्रुि स्वर में कहिे सन ू ा; ‘िुम्हारी लापरवाही ने मेरे िैया को समाप्ि कर ददया है । अब मैं और नरमी नहीीं बाराि सकिा।

अपना ऋण अभी िक ु ाओ नहीीं िो जेल में सड़ो।” हम उस व्यक्ति को पहिान गये, उसका नाम रक्स्िददयन था। वह नौका के अनेक काश्िकारों में से एक था, जो कुछ रकम के मलये नौका का

ऋणी था। वह चिथड़ों के बोि से उिना ही िक ु ा हुआ था क्जिना कक आयु के बोि से। उसने ब्याज िक ा समय मााँगा ु ाने के मलए यह कहिे हुए मुखखया से ववनयपूवक कक इन्ही ददनों मैंने अपना एकमात्र पुत्र खो ददया है और इसी सप्िाह अपनी गाय भी, और इस शोक के िलस्वरूप मेरी बूढ़ी पत्नी को लकवा हो गया है । ककन्िु शमदाम का ह्रदय नहीीं वपघला। मुमशाद रक्स्िददयन की ओर गये और कोमलिापूवक ा उसकी बााँह थामिे हुए बोले; मीरदाद: उठो, मेरे रक्स्िददयन। िुम भी प्रभु का रूप हो, और प्रभु के रूप को ककसी परछाईं के सामने िक ु ने के मलये वववश नहीीं ककया जाना िादहये। किर शमदाम की ओर मड़ ु िे हुए वे बोले; मुिे ऋण-आलेख ददखाओ। नरौन्दा: शमदाम ने, जो केवल एक पल पहले क्रोिाकुल हो रहा था, हम सबको

िककि कर ददया जब उसने मेमने से भी अचिक आज्ञाकारी होकर अपने हाथ का कागज़ िुपिाप मुमशाद के हाथ में दे ददया।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मुमशाद ने कागज़ ले मलया और दे र िक उसकी जाींि की, जबकक शमदाम स्िब्ि, बबना कुछ कहे दे खिा रहा, मानो उस पर कोई जाद ू कर ददया गया हो। मीरदाद: कोई साहूकार नहीीं था इस नौका का सींस्थापक। तया उसने िन ववरासि के रूप में िुम्हारे मलये इस उद्देश्य से छोड़ा था कक िुम उसे उिार दे कर सूदखोरी करो ?

तया उसने िल-सींपक्त्ि िुम्हारे मलए इस उद्देश्य से छोड़ी थी कक िुम उसे व्यापार में लगा दो, या जमीनें इस उद्देश्य से कक िम ु उन्हें काश्िकारों को दे कर अनाज की जमाखोरी करो? तया उसने िम् ु हारे भाइयों का खन ू -पसीना िम् ु हे सौंपिे हुए कारागार उन लोगों को बींदी बनाने के उद्देश्य से छोड़े थे क्जनका सारा पसीना िुमने बहा ददया है और क्जनका खून िुमने आखरी बूाँद िक िूस मलया है ? एक नौका, एक वेदी, और एक ज्योति सौंपी थी उसने िम् ु हे इससे अचिक कुछ नहीीं। नौका जो उसका जीववि शरीर है । वेदी जो उसका तनभीक ह्रदय है । ज्योति जो उसका ज्वलन्ि ववश्वास है । और उसने िम् ु हे आदे श ददया था कक इन िीनों को इस सींसार में सदा सुरक्षक्षि और पववत्र रखना; इस सींसार में जो ववश्वास के अभाव के कारण मत्ृ यु के िाल पर नाि रहा है और अन्याय की दलदल में लोट रहा है । और िुम्हारे शरीर की चिींिाएाँ कहीीं िुम्हारे ध्यान को इस लक्ष्य से हटा न दें , इसमलये िुम्हे श्रिालुओीं के दान पर तनवााह करने की अनुमति दी गई थी। और जबसे नौका की स्थापना हुई है दान की कभी कमी नहीीं रही।ककन्िु दे खो !

इस दान को िुमने अब एक अमभशाप बना मलया है, अपने और दातनयों के मलये। तयोंकक दातनयों द्वारा ददये गये उपहारों से ही िुम उन्हें अपने आिीन करिे हो। जो सूि वे िुम्हारे मलये काििे हैं उसी से िम ु उन पर कोड़े बरसािे हो।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जो कपड़ा वे िुम्हारे मलए बुनिे हैं उसी से िुम उन्हें नींगा करिे हो। जो रोटी वे िुम्हारे मलये पकािे हैं उसी से िुम उन्हें भूखों मारिे हो। क्जन पत्थरों को वे िम् ु हारे मलये काटिे और िराशिे हैं उन्ही से िम ु उनके मलये बींदीगहृ बनािे हो। जो लकड़ी वे िुम्हे गमााहट के मलये दे िे हैं उसी से िुम उनके मलये जए ु और िाबूि बनािे हो। उसका अपना खन ू -पसीना ही िुम उन्हें वापस उिार दे दे िे हो ब्याज पर। तयोंकक और तया है पैसा मसवाय लोगों के खन ू -पसीने के क्जसे िि ू ों ने छोटे - बड़े मसतकों में ढाल मलया है , िाकक उनसे वे लोगों को बींदी बना लें ? और तया है िन-दौलि मसवाय लोगों के खन ू -पसीने के क्जसे उन िि ू ा व्यक्तियों ने बटोरा है जो सबसे कम खून-पसीना बहािे हैं, िाकक वे इससे उन्ही लोगों को पीस डालें जो सबसे अचिक खून-पसीना बहािे हैं? चितकार है, बार-बार चितकार है उनको जो िन-दौलि इकट्ठी करने में अपने ह्रदय और बुवि को खपा दे िे हैं, अपने ददनों और रािों का खून कर दे िे हैं तयोंकक वे नहीीं जानिे कक वे तया इकटठा कर रहे हैं। वेश्याओीं,हत्यारों और िोरों का पसीना; िपेददक,कोढ़ और लकवे के रोचगयों का पसीना; अींिों का पसीना,लींगड़ों िथा लूलों का पसीना; और साथ ही पसीना ककसान और उसके बैल का, िरवाहे िथा उसकी भेड़ का, िसल को काटने िथा बेिने वाले

का—-ये सब, और ककिने ही और पसीने इकट्ठे कर लेिे हैं िन-दौलि के जमाखोर | अनाथों और दष्ु टों का खन ू ; िानाशाहों और शहीदों का खन ू ; दरु ािाररयों और न्यायवानों का खून; लुटेरों और लुटेजाने वालों का खून; जकलादों और उनके हाथों मरनेवालों का खून; शोषकों और ठगों िथा उनके द्वारा शोवषि ककये जाने वालों और ठगे जाने वालों का खून– ये सब,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

और ककिने ही और खून इकट्ठे कर लेिे हैं िन-दौलि के जमाखोर। हााँ, चितकार है , बार-बार चितकार है उनको क्जनकी िन-दौलि और क्जनके व्यापार का माल लोगों का खन ू और पसीना है । तयोंकक खन ू और पसीना िो आखखर अपनी कीमि वसूल करें गे ही । और भीषण

होगी यह कीमि और भयींकर उसकी वसल ू ी । उिार दे ना, और वह भी ब्याज पर ! यह सिमुि कृिध्निा है , इिनी तनलाज्ज कक इसे क्षमा नहीीं ककया जा सकिा । तयोंकक उिर दे ने के मलए िुम्हारे पास है तया ? तया िुम्हारा जीवन ही एक उपहार नहीीं है ? यदद परमात्मा को िम् ु हे ददये अपने छोटे से छोटे उपहार का भी ब्याज लेना हो िो िुम उसे ककस िीज से िक ु ाओगे ? तया यह सींसार एक सींयत ु ि कोष नहीीं क्जसमे हर मनष्ु य, हर पदाथा सबके भरणपोषण के मलये अपना सब-कुछ जमा कर दे िा है ? तया बुलबुल अपना गीि और िरना अपना उज्ज्वल जल िुम्हे उिार दे िे हैं ?तया बरगद अपनी छाया और खजरू अपने शहद-से मीठे िल तकाजा पर दे िे है ?तया

भेड़ अपना ऊन और गाय अपना दि ू िुम्हे ब्याज पर दे िी हैं ? तया बादल अपनी बषाा और सय ू ा अपनी गमी और प्रकाश िम् ु हे मोल दे िे हैं ? इन वस्िुओीं िथा अन्य हजारों वस्िुओीं के बबना िुम्हारा जीवन कैसा होिा ? और िुममे से कौन बिा सकिा है कक सींसार के कोष में, ककस मनष्ु य,ककस वस्िु ने सबसे अचिक और ककसने सबसे कम जमा ककया है ? शमदाम, तया िुम नौका के कोष में रक्स्िददयन के योगदान का दहसाब लगा सकिे हो ? किर भी िम ु उसी के योगदान को—-शायद उसके योगदान के केवल एक िच् ु छ अींश को—उसे ऋण के रूप में वापस दे िे हो और साथ ही उस पर ब्याज भी माींगिे हो ? किर भी िुम उसे जेल भेजना िाहिे हो और सड़ने के मलये वहाीं छोड़ दे ना िाहिे हो ? तया ब्याज माींगिे हो िुम रक्स्िददयन से ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तया िुम दे ख नहीीं सकिे िुम्हारे ऋण ने उसे ककिना लाभ पहुींिाया है ? मि ृ पुत्र, मि ृ गाय, और पक्षाघाि से पीड़ड़ि पत्नी–इससे अचिक अच्छा भुगिान िुम तया िाहिे हो ?

इिनी िक ु ी पीठ पर ये इिने चिथड़े—इससे अचिक और तया ब्याज वसूल कर सकिे हो िुम ? आह.. अपनी आाँखें मलो, शमदाम ! जागो इससे पहले कक िुम्हे भी ब्याज सदहि अपना ऋण िक ु ाने के मलये कहा जाये, और भग ु िान न कर पाने की सरू ि में िम् ु हे भी घसीटकर जेल में डाल ददया जाये और वहाीं सड़ने को छोड़ ददया जाये। यही बाि मैं िम ु सबसे कहिा हूाँ, साचथयों। अपनी आाँखें मलो, और जागो। जब दे सको, और क्जिना दे सको, दो। लेककन ऋण कभी मि दो, कहीीं ऐसा न हो कक जो कुछ िुम्हारे पास है, िुम्हारा जीवन भी, एक ऋण बनकर रह जाये और वह ऋण लौटाने का समय िरु न्ि ही आ जाये, और िुम ददवामलया पाये जाओ और िुम्हे जेल में डाल ददया जाये। नरौन्दा: ममु शाद ने िब हाथ में थामे हुए कागज़ पर एक नजर डाली और कुछ

सोिकर उसे टुकड़े-टुकड़े कर ददया, और उन टुकड़ों को हवा में बबखेर ददया। किर दहम्बल की ओर मुड़िे हुए, जो नौका का कोषाध्यक्ष था, वे बोले;मीरदाद: रक्स्िददयन को इिना िन दे दो कक वह दो गाय खरीद सके और जीवन के अींि िक अपनी और अपनी पत्नी की दे ख-भाल कर सके। और िम ु रक्स्िददयन शान्ि मन से जाओ। िम ु अपने ऋण से मत ु ि हुए। ध्यान रखना कक िुम कभी लेनदार न बनो। तयोंकक लेनदार का ऋण दे नदार के ऋण से कहीीं अचिक बड़ा और भारी होिा है ।

अध्याय- 17 िमदाम

म से

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ी आता



************************************** मीरदाद के ववरुि अपने सींघषा में शमदाम ररश्वि का सहारा लेिा है नरौन्दा: कई ददन िक रक्स्िददयन का मामला नौका में ििाा का मुख्य बबषय बना रहा। ममकेयन, ममकास्िर, िथा जमोरा ने जोश के साथ ममु शाद की सराहना की; जमोरा ने िो कहा उसे िन को दे खने और छूने िक से घण ृ ा है बैनून िथा अबबमार ने दबे स्वर में सहमिी और असहमति प्रकट की। लेककन दहम्बल ने ने यह कहिे हुए स्पष्ट बबरोि ककया कक िन के बबना सींसार का काम कभी नहीीं िल सकिा और कम-खिी और पररश्रम के मलये िन- सींपक्त्ि परमात्मा का उचिि पुरस्कार है, जैसे आलस्य और किजूल-खिी के मलये गरीबी परमात्मा का प्रत्यक्ष दण्ड है । उसने यह भी कहा की लेनदार और दे नदार िो समय के अींि िक सींसार में रहें गे ही। इस दौरान शमदाम मुखखया के रूप अपनी प्रतिष्ठा को सुिरने में व्यस्ि था।

उसने एक बार मि ु े बुलाया और अपने कमरे के एकाींि में मि ु से कहा; ” िम ु इस नौका के लेखक और इतिहासकार हो; और िम ु एक तनिान व्यक्ति के पुत्र हो। िुम्हारे वपिा के पास जमीन नहीीं,

उनके साि बच्िे और पत्नी है क्जनके मलये उसे पररश्रम करना पड़िा है और क्जनकी न्यूनिम आवश्यकिाएीं उसे पूरी करना पड़िी हैं। इस दख ु द का एक भी शब्द मि मलखना,

कहीीं ऐसा न हो कक हमारे बाद आने वाले लोग शमदाम को हास्य का पात्र बना लें। िुम एक पतिि मीरदाद का साथ छोड़ दो, और मैं िुम्हारे वपिा को भूममपति बना दीं ग ू ा उसका कोठार िथा तिजोरी पूरी िरह भर दीं ग ू ा।”

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मैंने उत्िर ददया कक परमात्मा मेरे वपिा िथा उसके पररवार का शमदाम की अपेक्षा कहीीं अचिक अच्छा ध्यान रखेगा। जहाीं िक मीरदाद का सम्बन्ि है , उसे मैंने अपना ममु शाद और मक्ु तिदािा स्वीकार कर मलया है , और उसका साथ छोड़ने से पहले मैं अपने प्राण त्याग दीं ग ू ा। रही नौका के इतिहास की बाि, वह िो मैं ईमानदारी के साथ अपनी पूरी समि और योग्यिा के अनस ु ार मलखग ूाँ ा। बाद में मुिे पिा िला कक शमदाम ने ऐसे ही प्रस्िाव हरएक साथी के सामने रखे थे, ककन्िु वे ककिने सिल रहे यह मैं नहीीं कह सकिा। हााँ, इिना अवश्य दे खने में आया कक दहम्बल पहले की िरह तनयममि रूप से नीड़ में उपक्स्थि नहीीं होिा था।

पने र्ारों और घमने दो पर समय साथ खुद मत घमो। ********************************** अध्याय -18 समय सबसे बड़ा मदारी



समय िा र्क्र, उसिी ाल और उसिी धरु ी **************************************** नरौन्दा: एक लींबे समय के बाद, जब बहुि-सा जल पहाड़ों से नीिे बहिा हुआ समुद्र में जा ममला था,

दहम्बल के मसवाय बाकी सभी साथी एक बार किर नीड़ में मुमशाद के िरों और इकट्ठे हुए। ममु शाद प्रभ-ु इच्छा पर ििाा कर रहे थे। ककन्िु अकस्माि वे रुक गये और बोले;

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद: दहम्बल सींकट में है और वह सहायिा के मलये हमारे पास आना िाहिा है , ककन्िु सींकोि के कारण उसके पैर इस ओर उठ नहीीं पा रहे हैं। जाओ अबबमार उसकी सहायिा करो। नरौन्दा: अबबमार बाहर गया और शीघ्र ही दहम्बल को साथ लेकर लौट आया। दहम्बल की दहिककयााँ बाँिी हुई थीीं और िेहरा उदास था। मीरदाद: मेरे पास आओ, दहम्बल। ओह, दहम्बल, दहम्बल। िुम्हारे वपिा की मत्ृ यु हो

गई इसमलये िुम इिने असहाय हो गये कक दिःु ख ने िुम्हारे ह्रदय को बेि ददया और िम् ु हारे रति को आाँसओ ु ीं में बदल ददया।

जब िुम्हारे पररवार के सब लोगों की मत्ृ यु हो जायेगी िब िम ु तया करोगे ? तया करोगे िम ु जब िम ु सींसार के सब वपिा और मािाएाँ, और सब बहनें और भाई िुम्हारे हाथों और आाँखों की पहुाँि से परे िले जायेंगे ? दहम्बल; हााँ मुमशाद। मेरे वपिा की मत्ृ यु दहींसापूणा हुई है । एक बैल ने, क्जसे उन्होंने हाल ही में खरीदा था, कल शाम उनके पेट में सीींग भोंक ददया और उनका मसर कुिल डाला। मि ु े अभी-अभी एक सन्दे श वाहक ने सूिना दी है । हाय, अ़िसोस !

ममरदाद: और उनकी मत्ृ यु, जान पड़िा है , ठीक उसी समय हुई जब उनका भाग्य उदय होने वाला था।

दहम्बल; ऐसा ही हुआ, मुमशाद। ठीक ऐसा ही हुआ। मीरदाद: और उनकी मत्ृ यु िुम्हे इसमलये और भी अचिक दिःु ख दे रही है कक वह बैल उन्ही पैसों से खरीदा गया था जो िम ु ने भेजे थे।

दहम्बल; यह सि है , मुमशाद। ठीक ऐसा ही हुआ है । लगिा है आप सब-कुछ जानिे हैं।

मीरदाद: और वे पैसे मीरदाद के प्रति िुम्हारे प्रेम की कीमि थे।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

नरौन्दा; दहम्बल आगे कुछ न बोल सका, तयोंकक आाँसुओीं से उसका गला रूाँि गया था।

मीरदाद: िम् ु हारे वपिा मरे नहीीं हैं, दहम्बल। न ही उनका स्वरूप और परछाईं नष्ट हुए हैं। परन्िु वास्िव िुम्हारे वपिा के बदले हुए स्वरूप और परछाईं को दे खने में िुम्हारी इक्न्द्रयााँ असमथा हैं।

तयोंकक कुछ स्वरूप इिने सूक्ष्म होिे हैं, और उनकी परछाइयााँ इिनी क्षीण कक मनुष्य की स्थूल आाँख उन्हें दे ख नहीीं सकिी।

जींगल में ककसी दे वदार की परछाईं वैसी नहीीं होिी जैसी परछाईं उसी दे वदार से बने जहाज के मस्िूल,या मींददर के स्िम्भ, या िाींसी के यखिे की होिी है । न ही उस दे वदार की परछाईं िप ु में वैसी होिी है जैसी िााँद और मसिारों के प्रकाश में, या भोर की मसींदरू ी िुींि में होिी है । ककन्िु वह दे वदार, िाहे वह ककिना ही बदल गया हो, दे वदार के रूप में जीववि रहिा है , यद्यवप जींगल के दे वदार अब पहिान नहीीं पािे कक वह बीिे ददनों में उनका भाई था। पत्िे पर बैठा रे शम का कीड़ा तया रे शमी खोल में पल रहे कीड़े में अपने भाई की ककपना कर सकिा है ? या खोल में पल रहा कीड़ा उड़िे हुए रे शम के पिींगे में अपना भाई दे ख सकिा है ?

तया िरिी के अींदर पडा गेहूीं का दाना िरिी के ऊपर खड़े गेहूीं के डींठल से अपना नािा समि सकिा है ?

तया हवा में उड़िी भाप या सागर का जल पवाि की दरार में लटक रहे दहम्लाम्बों को भाई-बहनों के रूप में स्वीकार कर सकिा है ? तया िरिी अन्िररक्ष की गहराइयों में से अपनी ओर िेंके गये टूटे िारे में एक भाई िारा दे ख सकिी है ? तया बरगद का वक्ष ृ अपने बीज के अींदर अपने आपको दे ख सकिा है ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक िुम्हारे वपिा अब एक ऐसे प्रकाश में हैं क्जसे दे खने की िुम्हारी आाँख अभ्यस्ि नहीीं हैं, और ऐसे रूप में हैं क्जसे िुम पहिान नहीीं सकिे, िुम कहिे हो कक िम् ु हारे वपिा अब नहीीं हैं। ककन्िु मनुष्य का भौतिक अक्स्ित्व, िाहे वह कहीीं भी पहुाँि गया हो, ककिना भी बदल गया हो, एक परछाईं जरुर िेंकेगा

जब िक वह मनुष्य के ईश्वरीय प्रकाश में पूरी िरह ववलीन नहीीं हो जािा। लकड़ी का एक टुकडा िाहे वह आज पेड़ की हरी शाखा हो और कल दीवार में गड़ी खींट ू ी, लकड़ी ही रहिा है । और अपना रूप िथा परछाईं बदलिा रहिा है । जब िक वह अपने अींदर तछपी आग में जलकर भस्म नहीीं हो जािा। इसी िरह मनष्ु य, जीिे हुए और मरकर भी, मनष्ु य ही रहे गा जब िक उसके अींदर का प्रभु उसे पूरी िरह अपने में समा न ले;

अथााि जब िक वह उस एक के साथ अपने एकत्व का अनुभव न कर ले। परन्िु ऐसा आाँख के एक तनमेष में नहीीं हो जािा क्जसे मनष्ु य जीवन-काल का नाम दे िा है ।सम्पूणा समय जीवन-काल है, मेरे साचथयों। समय में कोई आरीं भ या पड़ाव नहीीं है । न ही उसमे कोई सराय है जहाीं यात्री जलपान और ववश्राम के मलये रुक सकें। समय एक तनरीं िरिा है जो अपने आप में मसमटिी जािी है । इसका पछला छोर इसके अगले छोर के साथ जुड़ा है । समय में कुछ भी समाप्ि और ववसक्जाि नहीीं होिा;

कुछ भी आरम्भ िथा पूणा नहीीं होिा।समय इक्न्द्रयों के द्वारा रचिि एक िक्र है , और इक्न्द्रयों के द्वारा ही उसे स्थान के शून्यों में घुमा ददया जािा है ।

िुम ऋिुओीं के िक्र दे नेवाले पररविान का अनुभव करिे हो, और इसमलये ववश्वास करिे हो कक सब कुछ पररविान की जकड में है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

परन्िु साथ ही िुम यह भी मानिे हो कक ऋिुओीं को प्रकट और ववलीन करनेवाली शक्ति एक रहिी है, सदै व वहिी रहिी है । िुम वस्िुओीं के ववकास िथा क्षय को दे खिे हो, और तनराशपूवक ा घोषणा करिे हो कक सभी ववकासशील वस्िुओीं का अींि क्षय होिा है ।

परन्िु साथ ही िुम यह भी स्वीकार करिे हो कक ववकमसि और क्षीण करनेवाली शक्ति स्वयीं न ववकमसि होिी है न क्षीण। िम ु बयार की िल ु ना में वायु के वेग का अनभ ु व करिे हो, और कह दे िे हो दोनों में से वायु अचिक वेगवान है । ककन्िु इसके बावजूद िुम स्वीकार करिे हो कक वायु को गति दे नेवाला और बयार को गति दे नव े ाला एक ही है , और वह न िो वायु के साथ वेग से दौड़िा है न ही बयार के साथ ठुमकिा है । ककिनी आसानी से ववश्वास कर लेिे हो िुम ! ककिनी आसानी से िुम इक्न्द्रयों के हर िोखे में आजािे हो ! कहााँ है िम् ु हारी ककपना ?

तयोंकक उसी के द्वारा िुम यह दे ख सकिे हो कक जो पररविान िुम्हे िकरा दे िे है , वे केवल हाथ की सिाई हैं। वायु बयार से िेज कैसे हो सकिी है ? तया बयार ही वायु को जन्म नहीीं दे िी ? तया वायु बयार को अपने साथ मलये नहीीं किरिी ? ऐ िरिी पर िलनेवालो, िुम अपने पैरों द्वारा िय की गई दरू रयों को क़दमों और कोसों में तयों नापिे हो? िम ु िाहे िीरे -िीरे िलो िाहे सरपट दौड़ो, तया िरिी की गति िुन्हें उन अींिररक्षों और मण्डलों में नहीीं ले जािी जहााँ स्वयीं िरिी को ले जाया जािा है ? इसमलये िुम्हारी िाल तया वही नहीीं जो िरिी की िाल है ? और किर, तया िरिी को अन्य वपण्ड अपने साथ नहीीं ले जािे, और उसकी गति को अपनी गति के बराबर नहीीं कर लेिे ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हााँ, िीमा ही वेगवान को जन्म दे िा है । वेगवान िीमे का वाहक है। िीमे और वेगवान को समय और स्थान के ककसी भी बबन्द ु पर एक-दस ू रे से अलग नहीीं ककया जा सकिा। िुम यह कैसे कहिे हो कक ववकास ववकास है और क्षय क्षय है , और वे एक दस ू रे के बैरी हैं ? तया कभी ककसी वस्िु का उद्गम क्षीण हो िुकी ककसी वस्िु के अतिररति और कहीीं से हुआ है?

और तया कभी ककसी वस्िु में क्षय का आगमन ववकमसि हो रही ककसी वस्िु के अतिररति और कहीीं से हुआ ह ? तया िुम तनरीं िर क्षीण होकर ही ववकमसि नहीीं हो रहे हो? तया िुम तनरीं िर ववकमसि होकर क्षीण नहीीं हो रहे हो?

जो जीववि हैं, मि ृ क तया उनके मलये ममटटी की तनिली परि नहीीं हैं ? और जो मि ृ क हैं, जीववि तया उनके मलये अनाज के गोदाम नहीीं हैं ?

यदद ववकास क्षय की सींिान है और क्षय ववकास की; यदद जीवन मत्ृ यु की जननी है , और मत्ृ यु जीवन की, िो वास्िव में वे समय और स्थान के प्रत्येक बबन्द ु पर एक ही हैं।

और जीने िथा ववकमसि होने पर िुम्हारी प्रसन्निा वास्िव में उिनी ही बड़ी मुखि ा ा है क्जिनी मरने और क्षीण होने पर िुम्हारा शोक। िम ु यह कैसे कह सकिे हो कक पििड़ ही अींगरू की ऋिु है ? मैं कहिा हूाँ कक अींगरू शीि ऋिु में भी पका होिा है जब वह बेल के अींदर अदृश्य रूप में स्पींददि हो रहा और सपने दे ख रहा केवल सुप्ि रस होिा है ; और वह पका

होिा है बसींि ऋिु में भी, जब वह हरे रीं ग के छोटे -छोटे मनकों के कोमल गुच्छों के रूप में प्रकट होिा है; और ग्रीष्म में भी, जब गुच्छे ़िैल जािे हैं, मनके िूल उठिे हैं और उनके गाल सय ू ा के स्वणा में रीं ग जािे हैं।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

यदद हर ऋिु अपने भीिर िीनों ऋिुओीं को िारण ककये हुए है , िो तनिःसींदेह सब ऋिुएाँ समय और स्थान के प्रत्येक बबन्द ु पर एक हैं। हााँ, समय सबसे बड़ा मदारी है , और मनुष्य िोखे का सबसे बड़ा मशकार है । पदहये की हाल पर दौड़िी चगलहरी की िरह ही मनुष्य, क्जसने स्वयीं ही समय के पदहये को गति दी है , पदहये की गति पर इिना मोदहि है, उससे इिना प्रभाववि है कक अब उसे ववश्वास नहीीं होिा कक उसे घम ु ानेवाला वह स्वयीं है , न ही वह समय की गति को रोकने के मलये ‘समय तनकाल पािा’ है । और उस बबकली की िरह ही जो इस ववश्वास में कक जो रति वह िाट रही है वह पत्थर में से ररस रहा है माींस को िाटने में अपनी जीभ तघसा दे िी है, मनुष्य भी इस ववश्वास में की समय का रति और माींस है समय की हाल पर चगरा अपना ही रति िाटिा जािा है और समय के आरों द्वारा िीर डाला गया अपना ही माींस िबाये जािा है । समय का पदहया स्थान के शन् ू य में घम ू िा है । इसकी हाल पर ही वे सब वस्िए ु ाँ हैं क्जनका इक्न्द्रयााँ अनभ ु व कर सकिी हैं,

लेककन वे केवल ककसी समय और स्थान की सीमा के अींदर ही ककसी वस्िु का अनुभव कर सकिी हैं।

इस्कये वस्िुएीं प्रकट और लुप्ि होिी रहिी हैं। जो वस्िु एक के मलये समय और स्थान के एक बबींद ु पर लप्ु ि होिी है, वह दस ू रे के मलये ककसी दस ू रे बबींद ु पर प्रकट हो जािी है । जो एक के मलये ऊपर है , वह दस ु रे के मलये नीिे है । जो एक के मलये ददन हो, वह दस ु रे के मलये राि है । और यह तनभार करिा है दे खने वाले के ‘कब’ और ‘कहााँ’ पर। समय के पदहये की हाल पर जीवन और मत्ृ यु का रास्िा एक ही है , सािुओ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक गोलाई में हो रही गति कभी ककसी अींि पर नहीीं पहुाँि सकिी, न ही वह

कभी ख़त्म होकर रुक सकिी है । और सींसार में हो रही प्रत्येक गति गोलाई में हो रही गति है । िो तया मनुष्य अपने आपको समय के अींिहीन िक्र से कभी मुति नहीीं करे गा ? करे गा, अवश्य करे गा, तयोंकक मनुष्य प्रभु की ददव्य स्विींत्रिा का उत्िराचिकारी है । समय का पदहया घम ू िा है , ककन्िु इसकी िुरी क्स्थर है ।

प्रभु समय के पदहये की िरु ी है । यद्यवप सब वस्िुएीं समय और स्थान में प्रभु के िारों ओर घूमिी हैं, किर भी प्रभु सदै व समय-मत ु ि, स्थान-मत ु ि और क्स्थर है ।

यदयवप सब वस्िुएीं उसके शब्द से उत्पन्न होिी हैं, किर भी उसका शब्द उिना ही समय-मुति और स्थान-मुति है क्जिना वह स्वयीं। िरु ी में शाक्न्ि ही शाक्न्ि है , हाल में अशाक्न्ि ही अशाक्न्ि है । िम ु कहााँ रहना पसन्द करोगे ? मैं िुमसे कहिा हूाँ, िुम समय की हाल पर से सरककर उसकी िुरी पर आ जाओ और अपने आपको गति की बेिैनी से बिा लो। समय को अपने िारों ओर घम ू ने दो; पर समय के साथ खद ु मि घम ू ो।

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय -19/20/21 अध्याय -19

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

समय के पदहये को ☞ कैसे रोका जाये ☜ ••••••••••••••••••••••••••••••••••• िका और ववश्वास अहम ् को नकारना अहम ् को उभारना है समय के पदहये को कैसे रोका जाये रोना और हाँ सना

बैनून: क्षमा करें , मुमशाद। आपका िका अपनी िकाहीनिा से मि ु े उलिन में डाल दे िा है ।

मीरदाद: है रानी की बाि नहीीं, बैनून, कक िुम्हे ‘न्यायिीश’ कहा गया है । ककसी मामले िका-सींगि होने का ववश्वास हो जाने पर ही िुम उस पर तनणाय दे सकिे हो। िुम इिने समय िक न्यायिीश रहे हो, िो भी तया िम ु अब िक यह नहीीं जान पाये कक िका का एकमात्र उपयोग मनुष्य को िका से छुटकारा ददलाना और उसको ववश्वास की ओर प्रेररि करना है जो ददव्य ज्ञान की ओर ले जािा है । िका अपररपतविा है जो ज्ञान के ववशालकाय पशु को िाँसाने के इरादे से अपने बारीक जाल बुनिा रहिा है जब िका वयस्क हो जािा है िो अपने ही जाल में अपना दम घोंट लेिा है , और किर बदल जािा है ववश्वास में जो वास्िव में गहरा ज्ञान है । िका अपादहजों के मलये बैसाखी है ; ककन्िु िेज पैरवालों के मलये एक बोि है, और पींख वालों के मलये िो और भी बड़ा बोि है । िका सदठया गया ववश्वास है । ववश्वास वयस्क हो गया िका है । जब िुम्हारा िका वयस्क हो जायेगा, बैनून, और वयस्क वह जकदी ही होगा,िब िम ु कभी िका की बाि नहीीं करोगे। बैनून: समय की हाल से उसकी िुरी पर आने के मलये हमें अपने आपको नकारना होगा। तया मनष्ु य अपने अक्स्ित्व को नकार सकिा है ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद: बेशक! इसके मलये िुम्हे उस अहम ् को नकारना होगा जो समय के हाथों में एक खखलोना है और इस िरह उस अहम ् को उभारना होगा क्जस पर समय के जाद ू का असर नहीीं होिा। बैनून; तया एक अहम ् को नकारना दस ू रे अहम ् को उभारना हो सकिा है ? मीरदाद: हााँ, अहम ् को नकारना ही अहम ् को उभारना है । जब कोई पररविान के मलये मर जािा है िो वह पररविान– रदहि हो जािा है । अचिकााँश लोग मरने के मलये जीिे हैं। भाग्यशाली हैं वे जो जीने के मलये मरिे हैं। बैनन ू : परन्िु मनष्ु य को अपनी अलग पहिान बड़ी वप्रय है । यह कैसे सींभव है कक वह प्रभु में लीीं हो जाये और किर भी उसे अपनी अलग पहिान का बोि रहे ? मीरदाद: तया ककसी नदी-नाले के मलये सागर में समा जाना और इस प्रकार अपने आपको सागर के रूप में पहिानने लगना घाटे का सौदा है ? अपनी अलग पहिान को प्रभु के अक्स्ित्व में लीन कर दे ना वास्िव में मनुष्य का अपनी परछाईं को खो दे ना है और अपने अक्स्ित्व का परछाईं रदहि सार पा लेना है।

ममकास्िर: मनष्ु य, जो समय का जीव है , समय की जकड से कैसे छूट सकिा है ? मीरदाद: क्जस प्रकार मत्ृ यु िम् ु हे मत्ृ यु से छुटकारा ददलायेगी और जीवन जीवन से, उसी प्रकार समय िम् ु हे समय से मुक्ति ददलायेगा। मनुष्य पररविान से इिना ऊब जायेगा कक उसका पूरा अक्स्ित्व पररविान से अचिक शक्तिशाली वस्िु के मलये

िरसेगा, कभी मींद न पड़ने वाली िीब्रिा के साथ िरसेगा। और तनश्िय ही वह उसे अपने अींदर प्राप्ि करे गा। भाग्यशाली हैं वे जो िरसिे है तयोंकक वे स्विींत्रिा की दे हरी पर पहुाँि िक ु े हैं। उन्ही की मुिे िलाश है और उन्ही के मलये मैं उपदे श दे िा हूाँ। तया िुम्हारी ब्याकुल

पुकार सुनकर ही मैंने िुम्हे नहीीं िुना है ?पर अभागे हैं वे जो समय और िक्र के साथ घूमिे हैं और उसी में अपनी स्विींत्रिा और शाींति ढूढने की कोमशश करिे हैं। वे अभी जन्म पर मुस्करािे ही हैं कक उन्हें मत्ृ यु पर रोना पड़ जािा है । वे अभी

भरिे ही हैं कक उन्हें खली कर ददया जािा है । वे अभी शाींति के कपोि को पकड़िे

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ही हैं कक उनके में ही उसे युि के चगि में बदल ददया जािा है । अपनी समि में वे क्जिना अचिक जानिे हैं, वास्िव में वे उिना ही कम जानिे हैं। क्जिना वे आगे बढ़िे हैं, उिनी ही पीछे हट जािे हैं। क्जिना वे ऊपर उठिे है , उिना ही नीिे चगर जािे हैं। उनके मलये मेरे शब्द केबल एक अस्पष्ट और उत्िेजक िुसिुसाहट होंगे; पागलखाने में की गई प्राथाना के सामान होंगे, और होंगे अींिों के सामने जलाई गई ममशाल के सामान। जब िक वे भी स्विींत्रिा के मलये िरसने नहीीं लगें गे, मेरे शब्दों की ओर ध्यान नहीीं दें गे। दहम्बल: ( रोिे हुए) आपने केवल मेरे कान ही नहीीं खोल ददये, मुमशाद, बक्कक मेरे ह्रदय के द्वार भी खोल ददये हैं। कल के बहरे और अींिे दहम्बल को क्षमा करें ।

मीरदाद: अपने आींसओ ु ीं को रोको, दहम्बल। समय और स्थान की सीमाओीं से परे के क्षक्षतिजों को खोजने वाली आाँख में आाँसू शोभा नहीीं दे ि।े जो समय की िालाक

अाँगमु लयों द्वारा गद ु गद ु ाये जाने पर हाँसिे हैं, उन्हें समय के नाखन ू ों द्वारा अपनी िमड़ी के िार-िार ककये जाने पर रोने दो। जो यौवन की काक्न्ि के आगमन पर नाििे और गािे हैं, उन्हें बुढापे की िरु रा यों के आगमन पर लडखडाने और कराहने दो। समय के उत्सवों में आनन्द मनानेवालों को समय की अन्त्येक्ष्टयों में अपने मसर पर राख डालने दो। ककन्िु िुम सदा शाींि रहो। पररविान के बहुरुपदशी दपाण में केवल पररविान-मुति को खोजो।

समय में कोई वस्िु इस योग्य नहीीं है कक क्जसके मलये आाँसू बहाये जायें। कोई वस्िु इस योग्य नहीीं कक उसके मलये मुस्कुराया जाये। हाँसिा हुआ िेहरा और रोिा हुआ िेहरा सामान रूप से अशोभनीय और ववकृि होिे हैं। तया िुम आींसुओीं के खारे पन से बिना िाहिे हो?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िो किर हाँसी की कुरूपिा से बिो। आाँसू जब भाप बनकर उड़िा है

िो हाँसी का रूप िारण कर लेिा है ; हाँसी जब मसमटिी है िो आाँसू बन जािी है ।

ऐसे बनो कक िुम न हषा में िैलकर खो जाओ, और न शोक में मसमटकर अपने अींदर घुट जाओ।

बक्कक दोनों में िम ु सामान रहो शाींि रहो।

अध्याय-20 पश्िािाप मरने के बाद हम कहाीं जािे है ••••••••••••••••••••••••••••••••••

मीरदाद: इस समय िुम कहााँ हो,ममकास्िर ? ममकास्िर: नीड़ में । मीरदाद: िुम समििे हो कक यह नीड़ िुम्हे अपने अींदर रखने के मलये कािी बड़ा है ? िुम समििे हो यह िरिी मनुष्य का एकमात्र घर है ?

िुम्हारा शरीर िाहे वह समय की सीमा से बींिा हुआ है , समय और स्थान में ववद्यमान हर पदाथा में से मलया जािा है । िुम्हारा जो अींश सूया में से आिा है , वह सूया में जीिा है । िम् ु हारा जो अींश िरिी में से आिा है , वह िरिी में जीिा है ।

और ऐसा ही सभी ग्रहों और उनके बीि पथहीन शन् ू यों के साथ भी है । केवल मख ू ा ही सोिना पसींद करिे हैं कक मनष्ु य का एकमात्र आवास िरिी है ।

िथा आकाश में िैरिे असींख्य वपींड मसिा मनष्ु य के आवास की सजावट के मलये हैं, उसकी दृक्ष्ट को भरमाने के मलये हैं।प्रभाि- िारा, आकाश-गींगा, कृतिका मनष्ु य के मलये इस िािी से कम नहीीं हैं।

जब-जब वे उसकी आाँख में ककरण डालिे हैं, वे उसे अपनी ओर उठािे है । जब-जब वह उनके नीिे से गज ु रिा है, वह उनको अपनी ओर खीििे हैं। सब वस्िए ु ीं मनष्ु य में समाई हुई हैं, और मनष्ु य सब वस्िुओीं में ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

यह ब्रम्हाींड केवल एक ही वपण्ड है । इसके सक्ष् ू म से सक्ष् ू म कण के साथ सींपका कर लो, और िम् ु हारा

सभी के साथ सींपका हो जायेगाऔर क्जस प्रकार िम ु जीिे हुए मरिे हो, उसी प्रकार मरकर िम ु जीिे रहिे हो; यदद इस शरीर में नहीीं, िो ककसी अन्य रूप बाले शरीर में । परन्िु िुम शरीर में तनरीं िर रहिे हो जब

िक परमात्मा में ववलीन नहीीं हो जािे; दस ु रे शब्दों में , जब िक िुम हर प्रकार के पररविान पर ववजय नहीीं पा लेि|े

ममकास्िर: शरीर से दस ु रे शरीर में जािे हुए तया हम वापस िरिी इस पर आिे हैं ? मीरदाद: समय का तनयम पुनरावक्ृ त्ि है । समय में जो एक बार घाट गया, उसका बार-बार घटना अतनवाया है ; जहाीं िक मनुष्य का सम्बन्ि है , अींिराल लम्बे या छोटे हो सकिे हैं,

और यह तनभार करिा है पुनरावक्ृ त्ि के मलये प्रत्येक मनुष्य की इच्छा और सींककप की प्रबलिा पर। जब िुम जीवन कहलानेवाले िक्र में से तनकलकर मत्ृ यु कहलानेवाले िक्र में प्रवेश करोगे, और अपने

साथ ले जाओगे िरिी के मलये,उसके भोगों के मलये अनबुिी प्यास िथा उसके भोगों के मलये अिप्ृ ि कामनाएाँ,

िब िरिी का िम् ु बक िुम्हे वापस उसके वक्ष की ओर खीींि लेगा। िब िरिी िुम्हे अपना दि ू

वपलायेगी, और समय िुम्हारा दि ू छुडवायेगा –एक के बाद दस ु रे जीवन में और एक के बाद दस ू री मौि िक,

और यह क्रम िब िक िलिा रहे गा जब िक िुम स्वयीं अपनी ही इच्छा और सींककप से िरिी का दि ू सदा के मलये त्याग नहीीं दोगे।

अबबमार: हमारी िरिी का प्रभुत्व तया आप पर भी है , मुमशाद ? तयोंकक आप हम जैसे ही ददखाई दे िे हैं।

मीरदाद: मैं जब िाहिा हूाँ आिा हूाँ, और जब िाहिा हूाँ िला जािा हूाँ। मैं इस िरिी के वामसयों को िरिी की दासिा से मत ु ि करवाने आिा हूाँ। ममकेयन: मैं सदा के मलये िरिी से अलग होना िाहिा हूाँ। यह मैं कैसे कर सकिा हूाँ; ममु शाद ? मीरदाद: िरिी िथा उसके सब बच्िों से प्रेम करके। जब िरिी के साथ िम् ु हारे खािे में केवल प्रेम ही बाकी रह जायेगा, िब िरिी के साथ िम् ु हारे खािे में केवल प्रेम ही बाकी रह जायेगा, िब िरिी िम् ु हे अपने ऋण से मत ु ि कर दे गी।

ममकेयन: परन्िु प्रेम मोह है , और मोह एक बींिन है । मीरदाद: नहीीं, केवल प्रेम ही मोह से मुक्ति है । िम ु जब हर वस्िु से प्रेम करिे हो, िुम्हारा ककसी भी वस्िु के प्रति मोह नहीीं रहिा।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जमोरा: तया प्रेम के द्वारा कोई प्रेम के प्रति मलये गये अपने पापों को दोहराने से बि सकिा है और तया इस िरह समय के िक्र को रोक सकिा है ? ममरदाद: यह िम ा न जब लौटकर ु पश्िात्िाप के द्वारा कर सकिे हो। िम् ु हारी क्जव्हा से तनकले दव ु ि

िुम्हारी क्जव्हा को प्रेमपूणा शुभ कामनाओीं से मलप्ि पायेंगे िो अपने मलये कोई ओर दठकाना ढूींढेंगे । इअ प्रकार प्रेम उन दव ा नो की पुनरावतृ ि को रोक दे गा। काम्पूणा दृक्ष्ट जब लौटकर उस आाँख को, ु ि क्जसमे से वह तनकली है , प्रेमपूणा चििवनों से छलकिी हुई पायेगी िो कोई दस ू री कामपूणा आाँख ढूींढेगी।

इस प्रकार प्रेम उस कामािुर चििवन की पुनरावतृ ि पर रोक लगा दे गा। दष्ु ट ह्रदय से तनकली दष्ु ट इच्छा जब लौटकर उस ह्रदय को प्रेमपूणा कामनाओीं से छलकिा हुआ पायेगी, िो कहीीं और घोंसला ढूाँढेगी । इस प्रकार प्रेम उस दष्ु ट इच्छा से किर से जन्म लेने के प्रयास को तनष्िल कर दे गा। यही है पश्िात्िाप।

जब िुम्हारे पास केवल प्रेम ही बाींकी रह जािा है िो समय िुम्हारे मलये प्रेम के मसवाय और कुछ

नहीीं दोहरा सकिा। जब हर जगह और वति पर एक िीज दोहराई जािी है िो वह एक तनत्यिा बन जािी है जो सम्पूणा समय और स्थान में व्याप्ि हो जािी है और इस प्रकार दोनों के अक्स्ित्व को ही ममटा दे िा है ।

दहम्बल: किर भी एक और बाि मेरे ह्रदय को बैिेन और मेरी बुवि को िि ुीं ला करिी है , मुमशाद। मेरे वपिा ऐसी मौि तयों मरे , ककसी और मौि तयों नहीीं?

☞ परमात्मा की मौज ☜ *************************************** अध्याय -२१ घटनाएीं जैसे और जब घटिी हैं वैसे और िब तयों घटिी हैं *************************************** मीरदाद: कैसी ववचित्र बाि है कक िुम, जो समय और स्थान के बालक हो,

अभी िक यह नहीीं जानिे कक समय

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

स्थान की मशलाओीं पर अींककि की हुई ब्रम्हाींड की स्मतृ ि है । यदद इक्न्द्रयों द्वारा सीममि होने के बावजूद िुम अपने जन्म और मत्ृ यु के बीि की

कुछ ववशेष बािों को याद रख सकिे हो िो समय, जो िुम्हारे जन्म से पहले भी था और िुम्हारी मत्ृ यु के बाद भी सदा रहे गा, ककिनी अचिक बािों को याद रख सकिा है ?

मैं िुमसे कहिा हूाँ, समय हर छोटी से छोटी बाि को याद रखिा है –केवल उन बािों को ही नहीीं जो िम् ु हे स्पष्ट याद हैं, बक्कक उन बािों को भी क्जनसे िम ु पूरी िरह अनजान हो। तयोंकक समय कुछ भी नहीीं भूलिा; छोटी से छोटी िेष्टा, श्वास-तनिःश्वास, या मन की िरीं ग िक को नहीीं। और वह सब कुछ जो समय की स्मतृ ि में अींककि होिा है स्थान में मौजूद पदाथा पर गहरा खोद ददया जािा है ।

वही िरिी क्जस पर िम ु िलिे हो, वही हवा क्जसमे िम ु श्वास लेिे हो, वाही मकान क्जसमे िुम रहिे हो, िुम्हारे अिीि, विामान िथा भावी जीवन की सूक्ष्मिम बािों को सहज ही िुम्हारे सामने प्रकट कर सकिे हैं, यदद िुममे केवल पढ़ने की शक्ति और अथा को ग्रहण करने की उत्सुकिा हो।जैसे जीवन में वैसे ही मत्ृ यु में, जैसे िरिी पर वैसे ही िरिी से परे , िुम कभी अकेले

नहीीं हो, बक्कक उन पथाथों और जीवों की तनरीं िर सींगति में ही जो िम् ु हारे जीवन और मत्ृ यु में भागीदार हो।

जैसे िुम उनसे कुछ लेिे हो, वैसे ही वे िम ु से कुछ लेिे हैं, औए जैसे िुम उन्हें ढूींढ़िे

हो, वैसे हो वे िुम्हे ढूींढ़िे हैं।हर पदाथा में मनुष्य की इच्छा शाममल है और मनुष्य में शाममल है पदाथा की इच्छा। यह परस्पर ववतनमय तनरीं िर िलिा है । परन्िु मनष्ु य की दब ा स्मतृ ि एक बहुि ु ल ही घदटया मुनीम है । समय की अिूक स्मतृ ि का यह हाल नहीीं है ;

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

वह मनुष्य के अपने साथी मनुष्य के साथ िथा ब्रम्हाींड के एनी सब जीवों के साथ सींबींिों का पूरा-पूरा दहसाब रखिी है, और मनुष्य को हर जीवन हर मत्ृ यु में प्रतिक्षण अपना दहसाब िक ु ाने पर वववश करिी है ।

बबजली कभी ककसी मकान पर नहीीं चगरिी जब िक वह मकान उसे अपनी ओर न खीींिे। अपनी बबाादी के मलये यह मकान उिना ही क्जम्मेदार होिा है , क्जिनी बबजली। सााँड कभी ककसी को सीग नहीीं मारिा जब िक वह मनुष्य उसे सीींग मारने का तनमींत्रण न दे और वास्िव में वह मनष्ु य इस रति-पाि के मलये सााँड से अचिक उत्िरदायी होिा है । मारा जाने वाला मारनेवाले के छुरे को सान दे िा है और घािक बार दोनों करिे हैं। लुटनेवाला लूटनेवाले की िेष्टाओीं को तनदे श दे िा है और डाका दोनों डालिे हैं। हााँ, मनुष्य अपनी ववपक्त्ियों को तनमींत्रण दे िा है और किर इन दख ु दायी अतिचथयों के प्रति ववरोि प्रकट करिा है , तयोंकक वह भूल जािा है कक उसने कैसे, कब और कहााँ उन्हें तनमींत्रण-पत्र मलखे और भेजे थे। परन्िु समय नहीीं भल ू िा; समय उचिि अवसर पर हर तनमींत्रण-पत्र ठीक पिे पर दे दे िा है । और समय ही हर अतिचथ को मेजबान के घर पहुींिािा है । मैं िुमसे कहिा हूाँ, ककसी अचथति का ववरोि मि करो, कहीीं ऐसा न हो बहुि ज्यादा ठहरकर, या क्जिनी बार वह अन्यथा आवश्यक समििा उससे अचिक बार आकर,

वह अपने स्वामभमान को लगी ठे स का बदला ले।अपने सभी अतिचथयों का प्रेमपूवक ा

सत्कार करो, उनकी िाल-ढाल और उनका व्यवहार कैसा भी हो, तयोंकक वे वास्िव में केवल िुम्हारे लेनदार हैं। खासकर अवप्रय अतिचथयों का क्जिना िादहए उससे भी अचिक सत्कार करो िाकक वे सींिुष्ट और आभारी होकर जाएाँ, और दब ु ारा िुम्हारे घर आयें िो ममत्र बनकर आयें, लेनदार नहीीं।प्रत्येक अतिचथ की ऐसी आवभगि करो मानो वह िुम्हारा ववशेष

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

सम्मातनि अतिचथ हो, िाकक िुम उसका ववश्वास प्राप्ि कर सको और उसके आने के गुप्ि उद्देश्यों को जान सको। दभ ु ााग्य को इस प्रकार स्वीकार करो मानो वह सौभाग्य हो, तयोंकक दभ ु ााग्य को यदद एक बार समि मलया जाये िो वह शीघ्र ही सौभाग्य में बदल जािा है । जबकक सौभाग्य का यदद गलि अथा लगा मलया जाये िो वह शीघ्र ही दभ ु ााग्य बन जािा है । िुम्हारी अक्स्थर स्मतृ ि स्पष्ट ददखाई दे रहे तछद्रों और दरारों से भरा भ्रमों का जाल

है ; इसके बावजूद अपने जन्म िथा मत्ृ यु का, उसके समय,स्थान और ढीं ग का िुनाव

भी िम ु स्वयीं ही करिे हो। बुविमत्िा का दावा करने वाले घोषणा करिे हैं कक अपने जन्म और मत्ृ यु में मनुष्य का कोई हाथ नहीीं होिा। आलसी लोग, जो समय और स्थान को अपनी सींकीणा िथा टे ढ़ी नजर से दे खिे हैं, समय और स्थान में घटनेवाली अचिकााँश घटनाओीं को सींयोग मानकर उन्हें सहज ही मन से तनकाल दे िे हैं। उनके ममथ्या गवा और िोखे से साविान, मेरे साचथयो। समय और स्थान के अींदर कोई आकक्स्मक घटना नहीीं होिी। सब घटनाएीं प्रभुइच्छा के आदे श से घटिी हैं, जो जो न ककसी बाि में गलिी करिी हैं, न ककसी िीज को अनदे खा करिी हैं।जैसे बषाा की बाँूदें अपने आप को िरनों में एकत्र कर लेिी हैं, िरने, नालों और छोटी नददयों में इकट्ठे होने के मलये बहिे हैं, छोटी नददयााँ िथा नाले अपने आपको सहायक नददयों के रूप में बड़ी नददयों को अवपाि कर दे िे हैं, महानददयााँ अपने जल को सागर िक पहुींिा दे िी हैं, और सागर महासागर में इकट्ठे हो जािे हैं,

वैसे ही हर सष्ृ ट पदाथा या जीव की हर इच्छा एक सहायक नदी के रूप में बहकर प्रभु-इच्छा में जा ममलिी है ।मैं िुमसे कहिा हूाँ कक हर पदाथा की इच्छा होिी है ।

यहााँ िक कक पत्थर भी, जो दे खने मैं इिना गाँूगा, बहरा और बेजान होिा है, इच्छा से ववहीन नहीीं होिा।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इसके बबना इसका अक्स्ित्व ही नहीीं होिा, और न वह ककसी िीज को प्रभाववि करिा न कोई िीज उसे प्रभाववि करिी। इच्छा करने का और अक्स्ित्व का उसका बोि मात्रा में महुष्य के बोि से मभन्न हो सकिा है, परन्िु अपने मल ू रूप में नहीीं। एक ददन के जीवन के ककिने अींश के बोि का िुम दावा कर सकिे हो? तनिःसींदेह,

एक बहुि ही थोड़े अींश का। बुवि और स्मरण-शक्ति से िथा भावनाओीं और वविारों को दजा करने के सािनों से सम्पन्न होिे हुए भी यदद िुम ददन के जीवन के

अचिकााँश भाग से बेखबर रहिे हो, िो किर पत्थर अपने जीवन और इच्छा से इस िरह बेखबर रहिा है िो िम् ु हे आश्िया तयों होिा है? और क्जस प्रकार जीने और िलने-किरने का बोि न होिे हुए िुम इिना जी लेिे हो, िल-किर लेिे हो, उसी प्रकार इच्छा करने का बोि न होिे हुए भी िम ु इिनी इच्छाएाँ कर लेिे हो। ककन्िु प्रभु-इच्छा को िुम्हारे और ब्रम्हाींड के हर जीव और

पदाथा की तनबोििा का ज्ञान है । समय के प्रत्येक क्षण और और स्थान के प्रत्येक बबींद ु पर अपने आपको किरसे बााँटना प्रभु– इच्छा का स्वभाव है । और ऐसा करिे हुए प्रभु– इच्छा हर मनष्ु य को और हर पदाथा को वह सब लौटा

दे िी है —न उससे अचिक न कम–क्जसकी उसने जानिे हुए और अनजाने में इच्छा की थी। परन्िु मनुष्य यह बाि नहीीं जानिे, इसमलए प्रभु- इच्छा के थैले में से,

क्जसमे सबकुछ होिा है , उनके दहस्से में जो भी आिा है उससे वह बहुिा तनराश हो जािे हैं।

और किर हिाश होकर मशकायि करिे हैं और अपनी तनराशा के मलये िींिल भाग्य को दोषी ठहरािे हैं।भाग्य िींिल नहीीं होिा, सािओ ु , तयोंकक भाग्य प्रभु-इच्छा का ही दस ु रा नाम है । यह िो मनुष्य की इच्छा है जो अभी िक अत्यींि िपल, अत्यींि अतनयममि िथा अपने मागा के बारे में अतनक्श्िि है । यह आज िेजी से पूवा की ओर दौड़िी है िो कल पक्श्िम की ओर। यह ककसी िीज पर यहााँ अच्छाई की मोहर लगा दे िी है , िो उसी को वहाीं बुरा कहकर उसकी तनींदा करिी है । अभी यह ककसी को ममत्र के रूप में स्वीकार करिी है,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अगले ही पल उसी को शत्रु मानकर उससे युि छे ड़ दे िी है । िुम्हारी इच्छा को िींिल नहीीं होना िादहये, मेरे साचथयो। यह जान लो कक पदाथा और मनष्ु य के साथ िम् ु हारे सम्बन्ि इस बाि से िय होिे हैं कक िुम उससे तया िाहिे हो और वे िुमसे तया िाहिे हैं। और जो िुम उनसे िाहिे हो, उसी से यह तनिााररि होिा है कक वे िुम से तया िाहिे हैं।

इसमलये मैंने पहले भी िुमसे कहा था, और अब भी कहिा हूाँ: ध्यान रखो िुम कैसे

सााँस लेिे हो, कैसे बोलिे हो, तया िाहिे हो, तया सोििे,कहिे और करिे हो। तयोंकक िम् ु हारी इच्छा हर साींस में,हर िाह में, िम् ु हारे हर वविार, विन और कमा में तछपी रहिी है । और जो िुमसे तछपा है वह प्रभ-ु इच्छा के मलये सदा प्रकट है । ककसी मनष्ु य से ऐसे सख ु की इच्छा न रखो जो उसके मलये दिःु ख हो; कहीीं ऐसा न हो कक िुम्हारा सुख िुम्हे उस दिःु ख से अचिक पीड़ा दे । न ही ककसी से ऐसे दहि की कामना करो जो उसके मलये अदहि हो;कहीीं ऐसा न हो कक िम ु अपने ही मलये अदहि की कामना कर रहे होओीं।बक्कक सब मनष्ु यों और सब पदाथों से उनके प्रेम की इच्छा करो;

तयोंकक उसी के द्वारा िम् ु हारे परदे उठें गे, िम् ु हारे ह्रदय में ज्ञान प्रकट होगा जो िुम्हारी इच्छा को प्रभु-इच्छा के अद्भि ु रहस्यों से पररचिि करा दे गा।जब िक िुम्हे सब पदाथों का बोि नहीीं हो जािा, िब िक िुम्हे न अपने अींदर उनकी इच्छा का

बोि हो सकिा है और न उनके अींदर अपनी इच्छा का। जब िक िुम्हे सभी पदाथों में अपनी इच्छा िथा अपने अींदर उनकी इच्छा का बोि नहीीं हो जािा, िब िक िम ु प्रभु-इच्छा के रहस्यों को नहीीं जान सकिे। और जब िक प्रभु-इच्छा के रहस्यों को जान न लो, िुम्हे अपनी इच्छा को उसके ववरोि में खडा नहीीं करना िादहये; तयोंकक पराजय तनिःसींदेह िुम्हारी होगी। हर टकराव में िुम्हारा शारीर घायल होगा और िुम्हारा ह्रदय कटुिा से भर जायेगा। िब िुम बदला लेने का प्रयास करोगे, और पररणाम यह होगा िुम्हारे घावों में नये घाव जड़ ु जायेंगे और िम् ु हारी कटुिा का प्याला भरकर छलकने लगेगा।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मैं िुमसे कहिा हूाँ, यदद िुम हार को जीि में बदलना िाहिे हो िो प्रभु-इच्छा को

स्वीकार करो। बबना ककसी आपक्त्ि के स्वीकार करो उन सब पदाथों को जो उसके रहस्यपूणा थैले में से िम् ु हारे मलये तनकलें; कृिज्ञिा िथा इस ववश्वास के साथ

स्वीकार करो कक प्रभु इच्छा में वे िुम्हारा उचिि िथा तनयि दहस्सा हैं। उनका मूकय और अथा समिने की दृढ़ भावना से उन्हें स्वीकार करो। और जब एक बार िम ु अपनी इच्छा की गुप्ि काया-प्रणाली को समि लोगे,िो िुम प्रभु इच्छा को समि लोगे। क्जस बाि को िुम नहीीं जानिे उसे स्वीकार करो िाकक उसे जानने में वह िम् ु हारी सहायिा करे । उसके प्रति रोष प्रकट करोगे िो वह एक अनबूि पहे ली बनी रहे गी। अपनी इच्छा को िब िक प्रभु- इच्छा की दासी बनी रहने दो

जब िक ददव्य ज्ञान प्रभु-इच्छा को िम् ु हारी इच्छा की दासी न बना दे । यही मशक्षा थी मेरी नूह को। य ी मिक्षा

ै मेरी तम् ु े।

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय -22 / 23 / 24

*********************************अध्याय स्वयं अपने स्वामी बनो

********************************* मीरदाद जमोरा को उसके रहस्य के भार से मुति करिा है

-22

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

औरपुरुष िथा स्त्री की,वववाह की, ब्रहमिया की िथा आत्म-ववजेिा की बाि करिा है ……. मीरदाद: नरौन्दा, मेरी ववश्वसनीय स्मतृ ि ! तया कहिे हैं िुमसे ये कुमुदनी के िूल ?

नरौन्दा: ऐसा कुछ नहीीं जो मि ु े सुनाई दे िा हो, मेरे मुमशाद। मीरदाद: मैं इन्हें कहिे सुन रहा हूाँ, ”हम नारौन्दा से प्यार करिे हैं, और अपने प्यारस्वरूप अपनी सुगक्न्िि आत्मा उसे प्रसन्निा पूवक ा भेंट करिे है ।”

नरौन्दा, मेरे क्स्थर ह्रदय ! तया कहिा है िम ु से इस सरोवर का पानी ? नरौन्दा: ऐसा कुछ नहीीं जो

मि ु े सन ु ाई दे िा हो,मेरे ममु शाद। ममरदाद: मैं इसे कहिे सुनिा हूाँ, ” मैं नरौन्दा से प्यार करिा हूाँ, इसमलये मैं उसकी प्यास बुिािा हूाँ, और उसके प्यारे कुमुदनी के िूलों की प्यास भी।” नरौन्दा मेरे जाग्रि नेत्र!

तया कहिे हैं िुमसे यह ददन,उन सब िीजों को अपनी िोली में मलये क्जन्हें यह िप ू में नहाई अपनी बाींहों में इिनी कोमलिा से िल ु ािा है ?” नरोन्दा: ऐसा कुछ नहीीं जो मि ु े सुनाई दे िा हो, मेरे मुमशाद। मीरदाद मैं इसे कहिे सुनिा हूाँ, ” मैं नरौन्दा से बहुि प्यार करिा हूाँ, इसमलए मैं

अपने वप्रय पररवार के एनी सदस्यों सदहि उसे िूप में नहाई अपनी बाहों में इिनी कोमलिा से िुलािा हूाँ।” जब प्यार करने के मलए और प्यार पाने के ककये इिना कुछ है िो नरौन्दा का

जीवन तया इिना भरपूर नहीीं कक सारहीन स्वप्न और वविार उसमे घोंसला न बना सकें, अपने अण्डे न से सकें ? सिमुि मनुष्य ब्रम्हाण्ड का दल ु ारा है । सब िीजें उससे बहुि लाड़-प्यार करके प्रसन्न होिी हैं। ककन्िु इने-चगने हैं ऐसे मनुष्य जो इिने अचिक लाड़-प्यार से

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

बबगड़िे नहीीं, िथा और भी कम हैं ऐसे मनुष्य जो लाड-प्यार करनेवाले हाथों को काट नहीीं खािे। जो बबगड़े हुए नहीीं हैं उनके मलये सपा-दीं श भी स्नेहमय िम् ु बन होिा है । ककन्िु

बबगड़े हुए लोगों के मलए स्नेहमय िुम्बन भी सपा-दीं श होिा है। तया ऐसा नहीीं है,

जमोरा ? जमोरा; क्जस बाि को मुमशाद सि कहिे हैं, वह अवश्य सि होगी।मीरदाद; तया िुम्हारे सम्बन्ि में यह सि नहीीं है , जमोरा ? तया िुम्हे बहुि-से प्रेमपूणा

िुम्बनों का बबष नहीीं िढ़ गया है ? तया िम् ु हे अपने बबषैले प्रेम की स्मतृ ियााँ अब दख ु ी नहीीं कर रही है?

जमोरा; ( नेत्रों से अश्र-ु िारा बहािे हुए मुमशाद के पैरों में चगरकर ) ओह, मुमशाद ! ककसी भेद को ह्रदय के सबसे गहरे कोने में रखकर भी आपसे तछपाना मेरे मलये, या ककसी के मलये, कैसा बिपना है , कैसा व्यथा अमभमान है ! ममरदाद; ( जमोरा को उठाकर ह्रदय से लगािे हुए ) कैसा बिपना है , कैसा व्यथा अमभमान है इन कुमद ु -पुष्पों से भी उसे तछपाना।

जमोरा; मैं जानिा हूाँ कक मेरा ह्रदय अभी पववत्र नहीीं है , तयोंकक मेरे गि राबत्र के स्वप्न अपववत्र थे। मेरे ममु शाद, आज, मैं अपने ह्रदय का शोिन कर लाँ ग ू ा।

मैं इसे तनवास्त्र कर दाँ ग ू ा, आपके सामने,नरौन्दा के सामने, और इन कुमुद-पुष्पों िथा इनकी जड़ों में रें गिे केंिुओीं के सामने। कुिल डालनेवाले इस रहस्य के बोि से मैं अपनी आत्मा को मुति कर लाँ ग ू ा।

आज इस मींद समीर को मेरे इस रहस्य को उड़ाकर सींसार के हर प्राणी,हर वस्िु िक ले जाने दो। अपनी यव ु ावस्था में मैंने एक यव ु िी से प्रेम ककया था। प्रभाि के िारे से भी अचिक सुींदर थी वह। मेरी पलकों के मलये नीींद क्जिनी मीठी थी, मेरी क्जव्हा के मलये उससे कहीीं अचिक मीठा था उसका नाम। जब आपने हमें प्राथाना और रति के प्रवाह के सम्बन्ि में उपदे श ददया था, िब मैं समििा हूाँ, आपके शाक्न्िप्रद शब्दों के रस का पान सबसे पहले मैंने ककया था,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक मेरे रति की बागडोर होगला ( यही नाम था उस कन्या का ) के प्रेम के हाथ में थी, और मैं जानिा था एक कुशल सींिालक पाकर रति तया कुछ कर सकिा है । होगला का प्रेम मेरा था िो अनींि काल मेरा था।

उसके प्रेम को मैं वववाह की अींगठ ू ी की िरह पहने हुए था। और स्वयीं मत्ृ यु को मैंने कवि मान मलया था। मैं आयु में अपने आपको हर बीिे हुए कल से बड़ा और

भववष्य में जन्म लेने बाले अींतिम काल से छोटा अनुभव करिा था। मेरी भज ु ाओीं ने आकाश को थाम रखा था, मेरे पैर िरिी को गति प्रदान करिे थे, जबकक मेरे ह्रदय में थे अनेक िमकिे सय ू ।ा परन्िु होगला मर गई, और जमोरा आग में जल रहा अमरपक्षी, राख का ढे र होकर रह गया। अब उस बुिे हुए तनजीव ढे र में से ककसी नये अमरपक्षी को प्रकट नहीीं होना था।

जमोरा, जो एक तनडर मसींह था, एक सहमा हुआ खरगोश बनकर रह गया। जमोरा, जो आकाश का स्िम्भ था, प्रवाह-हीन पोखर में पड़ा एक शोिनीय खण्डहर बनकर रह गया। क्जिने भी जमोरा को मैं बिा सका उसे लेकर मैं नौका की ओर िला आया, इस आशा के साथ कक मैं अपने आपको नौका की प्रलयकालीन स्मतृ ियों और परछाइयों में जीववि दिना दीं ग ू ा।

मेरा सौभाग्य था कक मैं ठीक उस समय यहााँ पहुींिा जब एक साथी ने सींसार से

कूि ककया ही था, और मुिे उसकी जगह स्वीकार कर मलया गया। पन्द्रह वषा िक

इस नौका में साचथयों ने जमोरा को दे खा और सुना है, पर जमोरा का रहस्य उनहोंने न दे खा न सुना। हो सकिा है कक नौका की पुरािन दीवारें और िींि ु ले गमलयारे इस रहस्य से अपररचिि न हों। हो सकिा है कक इस उद्यान के पेड़ों, िूलों और पक्षक्षयों को इसका कुछ आभास हो। परन्िु मेरे रबाब के िार तनश्िय ही आपको मेरी होगला के बारे में मुिसे अचिक बिा सकिे हैं, मुमशाद।

आपके शब्द जमोरा की राख को दहलाकर गमा करने ही लगे थे और मुिे एक नये जमोरा के जन्म का ववशवास हो ही रहा था कक होगला ने मेरे सपनो में आकर मेरे

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

रति को उबाल ददया, और मुिे उछाल िेंका आज के यथाथा के उदास िट्टानी मशखरों पर — एक बुि िुकी मशाल, एक मि ृ -जाि आनींद, एक बेजान राख का ढे र। आह, हो गला, हो गला ! मुिे क्षमा कर दें , मुमशाद। मैं अपने आींसुओीं को रोक नहीीं सकिा। शरीर तया शरीर के मसवाय कुछ और हो सकिा है? दया करें मेरे शरीर पर। दया करें जमोरा पर।

मीरदाद : स्वयीं दया को दया की जरुरि है । ममरदाद के पास दया नहीीं है । लेककन अपार प्रेम है ममरदाद के पास सब िीजों के मलये, शरीर के मलये भी, और उससे अचिक आत्मा के मलये जो शरीर का स्थल ू रूप केवल इसमलये िारण करिी है कक उसे तनराकारिा से वपघला दे । ममरदाद का प्रेम जमोरा को उसकी राख में से उठा लेगा और उसे आत्म– ववजेिा बना दे गा। आत्म-ववजेिा बनने का उपदे श दे िा हूाँ मैं—एक ऐसा मनुष्य बनने का जो एक हो

िक ु ा हो, जो स्वयीं अपना स्वामी हो। स्त्री के प्रेम द्वारा बींदी बनाया गया पुरुष और पुरुष के प्रेम द्वारा बींदी बनाई गई स्त्री, दोनों स्विींत्रिा के अनमोल मुकुट को पहनने के अयोग्य हैं।

परन्िु ऐसे पुरुष और स्त्री पुरस्कार के अचिकारी हैं क्जन्हें प्रेम ने एक कर ददया हो, क्जन्हें एक-दस ू रे से अलग न ककया जा सके, क्जनकी अपनी अलग-अलग कोई पहिान ही न रही हो। वह प्रेम नहीीं जो प्रेमी को अपने आिीन कर लेिा है । वह प्रेम नहीीं जो रति और माींस पर पलिा है । वह प्रेम नहीीं जो स्त्री को पुरुष की ओर केवल इसमलये आकवषाि करिा है कक और क्स्त्रयााँ िथा पुरुष पैदा ककये जायें और इस िरह उनके शारीररक बन्िन स्थायी हो जायें। …आत्म-ववजेिा बनने का उपदे श दे िा हूाँ मैं—-उस अमरपक्षी जैसा मनुष्य बनने का जो इिना स्विींत्र है की पुरुष नहीीं हो सकिा, और इिना महान और तनमाल कक स्त्री नहीीं हो सकिा। क्जस प्रकार जीवन के स्थूल क्षेत्रों में पुरुष और स्त्री एक हैं, उसी प्रकार जीवन के सक्ष् ू म क्षेत्रों में वे एक हैं। स्थल ू और सक्ष् ू म के बीि का अींिर तनत्यिा का केवल एक ऐसा खण्ड है

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

क्जस पर द्वेि का भ्रम छाया हुआ है । जो न आगे दे ख पािे हैं न पीछे , वे तनत्यिा के इस खण्ड को तनत्यिा ही मान लेिे हैं। यह न जानिे हुए कक जीवन का तनयम

एकिा है, वे द्वेि के भ्रम से ऐसे चिपके रहिे हैं जैसे वाही जीवन का सार है । द्वेि समय में आनेवाली एक अवस्था है । द्वेि क्जस प्रकार एकिा से तनकलिा है, उसी प्रकार एकिा की ओर ले जािा है । क्जिनी जकदी िुम इस अवस्था को पार कर लोगे,उिनी ही जकदी अपनी स्विींत्रिा को गले लगा लोगे।

और पुरुष और स्त्री हैं तया ? एक ही मानव जो अपने एक होने से बेखबर है , और क्जसे इसमलये दो टुकड़ों में िीर ददया गया है िथा द्वेि का ववष पीने के मलये वववश कर ददया गया है कक वह एकिा के अमि ृ के मलये िड़पे; और िडपिे हुए दृढ़ तनश्िय के साथ उसकी िलाश करे ; और िलाश करिे हुए उसे पा ले,

िथा उसका स्वामी बन जाये क्जसे उसकी परम स्विींत्रिा का बोि हो। घोड़े को घोड़ी के मलये दहनदहनाने दो, दहरनी को दहरन को पुकारने दो। स्वयीं प्रकृति उन्हें

इसके मलये प्रेररि करिी है , उनके इस कमा को आशीवााद दे िी है और उसकी प्रशींसा करिी है , तयोंकक सींिान को जन्म दे ने से अचिक ऊाँिी ककसी तनयति का उन्हें अभी बोि ही नहीीं है । जो पुरुष और क्स्त्रयााँ अभी िक घोड़े घोड़ी से िथा दहरन और दहरनी से मभन्न नहीीं है , उन्हें काम के अाँिेरे एकाींि में एक- दस ू रे को खोजने दो। उन्हें शयन-कक्ष की वासना में वववाह- बींिन की छूट का ममश्रण करने दो। उन्हें अपनी कदट की

जननक्षमिा िथा अपनी कोख की उवारिा में प्रसन्न होने दो। उन्हें अपनी नस्ल को बढ़ाने दो। स्वयीं उनकी प्रेररका िथा िाय बनकर खश ु है;प्रकृति उन्हें िूलों की सेज बबछािी है , पर साथ ही उन्हें कााँटों की िभ ु न दे ने से भी नहीीं िूकिी।

लेककन आत्म-ववजय के मलये िडपनेवाले पुरुषों और क्स्त्रओीं को शरीर में रहिे हुए भी अपनी एकिा का अनुभव जरूर करना िादहये; शारीररक सींपका के द्वारा नहीीं,

बक्कक शारीररक सींपका की भूख और उस भूख द्वारा पूणा एकिा और ददव्य ज्ञान के रास्िे में खड़ी की गई रुकावटों से मक्ु ति पाने के सींककप द्वारा।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िुम प्रायिः लोगों को मानव प्रकृति के बारे में यों बाि करिे हुए सुनिे हो जैसे वह

कोई ठोस ित्व हो, क्जसे अच्छी िरह नापा-िोला गया है, क्जसके तनक्श्िि लक्षण हैं, क्जसकी पूरी िरह छान-बीन कर ली गई है और जो ककसी ऐसी वस्िु द्वारा िारों ओर से प्रतिबींचिि है क्जसे लोग ”काम” कहिे हैं। लोग कहिे हैं काम के मनोवेग को सींिुष्ट करना मनुष्य की प्रकृति है , लेककन उसके प्रिींड प्रवाह को तनयींबत्रि करके काम पर ववजय पाने के सािन के रूप में उसका उपयोग करना तनश्िय ही मानव-स्वभाव के ववरुि है और दिःु ख को न्योिा दे ना है । लोगों की इन अथाहीन बािों की ओर ध्यान मि दो। बहुि ववशाल है मनष्ु य और बहुि अनबूि है उसकी प्रकृति। अत्यींि ववववि हैं उसकी प्रतिभाएाँ और अटूट है उसकी शक्ति।

साविान रहो उन लोगों से जो उसकी सीमाएाँ तनिााररि करने का प्रयास करिे हैं। … काम-वासना तनश्िय ही मनष्ु य पर एक भारी कर लगािी है । लेककन यह कर वह कुछ समय िक ही दे िा है ।

िम ु मे से कौन अनींिकाल के मलये दास बना रहना िाहे गा? कौन-सा दास अपने राजा का जआ उिार िेंकने और ऋण-मत ु ु ि होने के सपने नहीीं दे खिा ? मनुष्य दास बन्ने के मलये पैदा नहीीं हुआ था, अपने पुरुषत्व का दास भी नहीीं। मनुष्य िो सदै व हर प्रकार की दासिा से मुति होने के मलये िडपिा है ;

और वह मुक्ति उसे अवश्य ममलेगी। जो आत्म-ववजय प्राप्ि करने की िीव्र इच्छा

रखिे हैं, उनके मलये खन ू के ररश्िे तया ? एक बींिन क्जसे दृढ़ सींककप द्वारा िोड़ना जरुरी है । आत्म-ववजेिा हर रति के साथ अपने रति का सम्बन्ि महसूस करिा है । इसमलये वह ककसी के साथ बाँिा नहीीं होिा। जो िड़पिे नहीीं, उन्हें अपनी नस्ल बढ़ाने दो। जो िड़पिे हैं, उन्हें एक और नस्ल बढ़ानी है –आत्म-ववजेिाओीं की नस्ल। आत्मववजेिाओीं की नस्ल कमर और कोख से नहीीं तनकलिी। बक्कक उसका उदय होिा है

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

सींयमी हृदयों से रति की बागडोर ववजय पाने के तनभीक सींककप के हाथों में होिी है । मैं जानिा हूाँ िम ु ने िथा िम ु जैसे अन्य अनेक लोगों ने ब्रम्हिया का व्रि ले रखा है । ककन्िु अभी बहुि दरू हो िुम ब्रम्हिया से, जैसा कक जमोरा का गि राबत्र का स्वप्न मसि करिा है। ब्रम्हिारी वे नहीीं हैं जो मठ की पोशाक पहनकर अपने

आपको मोटी दीवारों और ववशाल लौह-द्वारों के पीछे बींद कर लेिे हैं। अनेक सािू और साक्ध्वयाीं अति कामुक लोगों से भी अचिक कामुक होिे हैं, िाहे उनके शरीर सौगींि खाकर कहें , और पूरी सच्िाई के साथ कहें , कक उनहोंने कभी ककसी दस ू रे के साथ सम्पका नहीीं ककया। ब्रम्हिारी िो वे हैं, क्जनके ह्रदय और मन ब्रम्हिारी हैं, िाहे वे मठों में रहें िाहे खुले बाजारों में। स्त्री का आदर करो, मेरे साचथयों, और उसे पववत्र मानो।

मनुष्य जािी की जननी के रूप में नहीीं, पत्नी या प्रेममका के रूप में नहीीं, बक्कक द्वैि पूणा जीवन के लम्बे श्रम और दिःु ख में कदम-कदम पर मनष्ु य के प्रतिरूप और बराबर के भाचगदार के रूप में। तयोंकक उसके बबना पुरुष द्वेि के खण्ड को पार नहीीं कर सकिा। स्त्री में ही ममलेगी पुरुष को अपनी एकिा और पुरुष में ही ममलेगी स्त्री को द्वैि से अपनी मुक्ति। समय आने पर ये दो ममलकर एक हो जायेंगे–यहााँ िक कक आत्म-ववजेिा बन जायेंगे जो न नर है न नारी, जो है , पूणा मानव।

आत्म-ववजेिा बनने का उपदे श दे िा हूाँ मैं—ऐसा मनष्ु य बनने का जो एकिा प्राप्ि

कर िक ु ा हो, जो स्वयीं अपना स्वामी हो। और इससे पहले कक मीरदाद िम् ु हारे बीि में से अपने आप को उठा ले, िुम में से प्रत्येक आत्म-ववजेिा बन जायेगा।जमोरा; आपके मुख से हमें छोड़ जाने की बाि सुनकर मेरा ह्रदय दख ु ी होिा है । यदद वह ददन कभी आ गया जब हम ढूींढ़ें और आप न ममलें, िो जमोरा तनश्िय ही अपने जीवन का अन्ि कर दे गा। ममरदाद; अपनी इक्षा–शक्ति से िुम बहुि-कुछ कर सकिे हो, जमोरा–सब कुछ कर सकिे हो। पर एक काम नहीीं कर सकिे और वह है अपनी इक्षा-शक्ति का अन्ि कर दे ना, जो जीवन की इच्छा है , जो प्रभ–ु इच्छा है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक जीवन, जो अक्स्ित्व है , अपनी इच्छा शक्ति से अक्स्ित्व हीन नहीीं हो सकिा; न ही अक्स्ित्वहीन की कोई इच्छा हो सकिी है । नहीीं,परमात्मा भी जमोरा का अन्ि नहीीं कर सकिा। जहाीं िक मेरा िुमको छोड़ जाने का प्रश्न है , वह ददन अवश्य आयेगा जब िुम मुिे दे ह रूप में ढूींढोगे और मैं नहीीं ममलूींगा, तयोंकक इस िरिी के अतिररति कहीीं और

भी मेरे मलये काम हैं। पर मैं कहीीं भी अपने काम को अिूरा नहीीं छोड़िा। इसमलये खुश रहो। मीरदाद िब िक िुमसे ववदा नहीीं लेगा जब िक वह िुम्हे आत्म-ववजेिा नहीीं बना दे िा— ऐसे मानव जो एकिा प्राप्ि कर िुके हों, जो पूणि ा या अपने स्वामी बन गये हों। जब िम ु अपने स्वामी बन जाओगे और एकिा प्राप्ि कर लोगे, िब िम ु अपने ह्रदय में ममरदाद को तनवास करिा पाओगे, और उसका नाम त्िुम्हारी स्मतृ ि में कभी िूममल नहीीं होगा।

यही मशक्षा थी मेरी नह ू को। यही मशक्षा ही मेरी िुम्हे ।

************************************* म त्त्व िब्दों िा न ीं म त्व भावना िा ै जो िब्दों में गंज ु ती



************************************* अध्याय 23 मीरदाद मसम-मसम को ठीक करिा है और बुढापे के बारे में बिािा है” नरौन्दा: नौका की पशुशालाओीं की सबसे बूढ़ी गाय मसम-मसम पाींि ददन से बीमार थी और िारे या पानी को मींह ु नहीीं लगा रही थी। इस पर शमदाम ने कसाई को बुलवाया। उसका कहना था कक गाय को मारकर उसके माींस और खाल की बबक्री से लाभ उठाना अचिक समिदारी है ,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

बतनस्बि इसके कक गाय को मरने ददया जाये और वह ककसी काम न आये। जब मुमशाद ने यह सुना िो गहरे सोि में डूब गये, और िेजी से सीिे पशुशाला की ओर िल पड़े िथा मसम-मसम के ठान पर जा पहुींिे। उनके पीछे सािों साथी भी वहाीं पहुाँि गये।मसम-मसम उदास और दहलने-डुलने असमथा-सी थी।

उसका सर नीिे लटका हुआ था, आाँखें अिमुाँदी थीीं, शरीर के बाल सख्ि और काक्न्ि-हीन थे। ककसी ढीठ मतखी को उड़ाने के मलये वह कभी–

कभी अपने कान को थोड़ा सा दहला दे िी थी। उसका ववशाल दग्ु ि-कोष उसकी टाींगों के बीि ढीला और खाली लटक रहा था, तयोंकक वह अपने लम्बे िथा िलपूणा जीवन के अींतिम भाग में माित्ृ व की मिरु वेदना से वींचिि हो गई थी। उसके कूकहों की हड्ड़डयााँ उदास और असहाय, कब्र के दो पत्थरों की िरह बाहर

तनकली हुई थीीं। उसकी पसमलयााँ और रीढ़ की हड्ड़डयााँ आसानी से चगनी जा सकिी थीीं। उसकी लम्बी और पिली पींछ ू मसरे पर बालों का भारी गच् ु छा मलये अकड़ी हुई

सीिी लटक अदह थी। मुमशाद बीमार पशु के तनकट गये और उसे आाँखों िथा सीींगों के बीि और ठोड़ी के नीिे सहलाने लगे। कभी-कभी वे उसकी पीठ और पेट पर हाथ िेरिे। पूरा समय वे उससे इस प्रकार बािें करिे रहे जैसे ककसी मनष्ु य के साथ बािें कर रहे हों : मीरदाद: िुम्हारी जुगाली कहााँ है , मेरी उदार मसम-मसम? इिना ददया है मसम-मसम ने कक अपने मलये थोड़ा-सा जग ु ाल रखना भी भल ू गई। अभी और बहुि दे ना है मसम-मसम को। उसका बिा-सा स़िेद दि ू आज िक हमारी रगों में गहरा लाल रीं ग मलये दौड़ रहा है । उसके पुष्ट बछड़े हमारे खेिों में भारी हल खीींि रहे है और अनेक भूखे जीवों को भोजन दे ने में हमारी सहायिा कर रहे हैं। उसकी सुींदर बतछयााँ अपने बच्िों से

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हमारी िारागाहों को भर रही हैं। उसका गोबर भी हमारे बैग की रस-भरी सक्ब्जयों और िलोद्यान के स्वाददष्ट िलों में हमारे भोजन की बरकि बना हुआ है । हमारी घादटयााँ नेक मसम-मसम के खल ु कर राँभाने की ध्वनी और प्रतिध्वतन से अभी िक गाँूज रही हैं। हमारे िरने उसके सौम्य िथा सुींदर मुख को अभी िक

प्रतिबबक्म्बि कर रहे हैं। हमारी िरिी की ममटटी उसके खुरों की अममि छाप को अभी िक सीने से लगाय हुए है और साविानी के साथ उसकी साँभाल कर रही है । बहुि प्रसन्न होिी है हमारी घाींस मसम-मसम का भोजन बनकर। बहुि सींिुष्ट होिी है हमारी िप ू उसे सहला कर। बहुि आनींददि होिा हमारा मन्द समीर उसके कोमल और िमकीले रोम-रोम को छूकर।

बहुि आभार महसस ू करिा है मीरदाद उसे वि ृ ावस्था के रे चगस्िान को पार करवािे

हुए, उसे एनी सूयों िथा समीरों के दे श में नयी िरागाहों का मागा ददखािे हुए। बहुि ददया है मसम-मसम ने, और बहुि मलया है;

लेककन मसम-मसम को अभी और भी दे ना और लेना है । ममकास्िर: तया मसम-मसम आपके शब्दों को समि सकिी है जो आप उससे ऐसे बािें कर रहे हैं मानो वह मनष्ु य की-सी बुवि रखिी हो? मीरदाद; महत्व शब्द का नहीीं होिा, भले ममकास्िर। महत्व उस भावना का होिा है जो शब्द के अींदर गज ींू िी है; और पशु भी उससे प्रभाववि होिे हैं। और किर, मि ु े िो ऐसा प्रिीि होिा है कक बेिारी मसम-मसम की आाँखों में से एक स्त्री मेरी ओर दे ख रही है । ममकास्िर; बूढी और दब ा मसम-मसम के साथ इस प्रकार बािें करने का तया लाभ ? ु ल तया आप आशा करिे है कक इस प्रकार आप बुढापे के प्रकोप को रोककर मसम-मसम की आयु लम्बी कर दें गे ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद; एक ददा नाक बोि है बुढापा मनष्ु य के मलये, और पशु के मलये भी। मनुष्य ने अपनी उपेक्षापूणा तनदा यिा से इसे और भी ददा नाक बना ददया है । एक नवजाि मशशु पे वे अपना अचिक से अचिक ध्यान और प्यार लट ु ािे हैं। परन्िु बुढापे के बोि से दबे मनुष्य के मलये वे अपने ध्यान से अचिक अपनी

उदासीनिा, और अपनी सहानुभूति से अचिक अपनी उपेक्षा बिाकर रखिे हैं। क्जिने अिीर वे ककसी दि ू मह ुीं े बच्िे को जवान होिा दे खने के मलये होिे हैं, उिने ही अिीर होिे हैं वे ककसी वि ृ मनुष्य को कब्र का ग्रास बनिा दे खने के मलये। बच्िे और बूढ़े दोनों ही सामान रूप से असहाय होिे हैं ककन्िु बच्िों की बेबसी बरबस सबकी प्रेम और त्याग से पूणा सहायिा प्राप्ि कर लेिी है ; जब कक बूढों की बेबसी ककसी ककसी की ही अतनच्छा पूवक ा दी गई सहायिा को पाने में सिल होिी है । वास्िव में बच्िों की िुलना में बूढ़े सहानुभूति के अचिक अचिकारी होिे हैं। जब शब्दों को उस कान में प्रवेश पाने के मलये जो कभी हलकी से हलकी िुसिुसाहट के प्रति भी सींवेदनशील और सजग था, दे र िक और जोर से खटखटाना पड़िा है ;

जब आाँखें, जो कभी तनमाल थीीं, ववचित्र िब्बों और छायाओीं के मलये नत्ृ य मींि बन जािी हैं ;जब पैर, क्जनमें कभी पींख लगे हुये थे, शीशे के ढे ले बन जािे हैं ;

और हाथ जो जीवन को सााँिे में ढालिे थे, टूटे सााँिों में बदल जािे हैं ;जब घुटनों के जोड़ ढीले पड़ जािे हैं, और मसर गदा न पर रखी एक कठपुिली बन जािा है ;जब ितकी के पाट तघस जािे हैं, और स्वयीं ितकी-घर सुनसान गि ु ा हो जािा है ;जब

उठने का अथा होिा है चगर जाने के भय से पसीने-पसीने होना, और बैठने का अथा होिा है इस दिःु खदायी सींदेह के साथ बैठना कक शायद किर कभी उठा ही न जा सके ; जब खाने-पीने का अथा होिा है खाने-पीने के पररणाम से डरना, और न खाने-पीने का अथा होिा है घ्रखणि मत्ृ यु का दबे-पााँव िले आना ;हााँ जब बुढ़ापा मनुष्य को दबोि लेिा है , िब समय होिा है , मेरे साचथयो,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

उसे कान और नेत्र प्रदान करने का, उसे हाथ और पैर दे ने का, उसकी क्षीण हो रही शक्ति को अपने प्यार के द्वारा पुष्ट करने का, िाकक उसे महसूस हो कक अपने खखलिे बिपन और यौवन में वह जीवन को क्जिना प्यारा था, इस ढलिी आयु में उससे रत्िी भर भी कम प्यारा नहीीं है । अस्सी वषा अनन्िकाल में िाहे एक पल से कम न हों; ककन्िु वह मनष्ु य क्जसने अस्सी वषों िक अपने आप को बोया हो, एक पल से कहीीं अचिक होिा है । वह अनाज होिा है उन सब के मलये जो उसके जीवन की िसल काटिे हैं। और वह कौन-सा जीवन है क्जसकी िसल सब नहीीं काटिे हैं ? तया िुम इस क्षण भी उस प्रत्येक स्त्री और पुरुष के जीवन की िसल नहीीं काट रहे हो जो कभी इस िरिी पर िले थे ? िम् ु हारी बोली उनकी बोली की िसल के मसवाय और तया है ? िुम्हारे वविार उनके वविारों के बीने गये दानों के मसवाय और तया हैं ? िुम्हारे वस्त्र और मकान िक, िम् ु हारा भोजन, िम् ु हारे उपकरण,िम् ु हारे क़ानन ू , िम् ु हारी

परम्पराएाँ और िुम्हारी पररपादटयााँ—ये तया उन्हीीं लोगों के वस्त्र, मकान, भोजन, उपकरण, क़ानन ू , परम्पराएाँ और पररपादटयााँ नहीीं हैं जो िम ु से पहले यहााँ आ िक ु े हैं और यहााँ से जा िुके हैं।एक समय में िम ु एक ही िीज की िसल नहीीं काटिे हो, बक्कक सब िीजों की िसल काटिे हो, और हर समय काटिे हो। िुम ही बोने वाले हो, िसल हो, लुनेरे हो, खेि हो और खमलहान भी। यदद िुम्हारी िसल खराब है िो उस बीज की ओर दे खो जो िुमने दस ू रों के अींदर बोया है , और उस बीज की ओर भी जो िम ु ने उन्हें अपने अींदर बोने ददया है। लन ु ेरे और उसकी दरााँिी की ओर भी दे खो, और खेि और खमलहान की ओर भी।

एक वि ृ मनुष्य क्जसके जीवन की िसल िुमने काटकर अपने कोठारों में भर ली है , तनश्िय ही िुम्हारी अचिकिम दे ख-रे ख का अचिकारी है । यदद िुम उसके उन वषों में जो अभी काटने के मलए बिी वस्िुओीं से भरपूर है, अपनी उदासीनिा से कड़वाहट घोल दोगे, िो जो कुछ िम ु ने उससे बटोर कर सींभल मलया है ,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

और जो कुछ िुम्हें अभी बटोरना है, वह सब तनश्िय ही िुम्हारे मुींह को कड़वाहट से भर दे गा। अपनी शक्ति खो रहे पशु की उपेक्षा करके भी िुम्हे ऐसी ही कड़वाहट का अनभ ु व होगा। यह उचिि नहीीं कक िसल से लाभ उठा मलया जाये, और किर बीज बोने वाले और खेि को कोसा जाये। हर जािी िथा हर दे श के लोगों के प्रति दयावान बनो, मेरे साचथयो। वे प्रभु की ओर िुम्हारी यात्रा में िुम्हारा पाथेय हैं। परन्िु मनष्ु य के बुढ़ापे में उसके प्रति ववशेष रूप से दयावान बनो; कहीीं ऐसा न हो कक तनदा यिा के कारण िुम्हारा पाथेय खराब हो जाये और िम ु अपनी मींक्जल पर कभी पहुाँि ही न सको। हर प्रकार के और हर उम्र के पशुओीं के प्रति दयावान बनो; यात्रा की लम्बी और कदठन िैयाररयों में वे िम् ु हारे गाँग ू े ककन्िु बहुि विादार सहायक हैं। परन्िु पशुओीं के बुढ़ापे में उनके प्रति ववशेष रूप से दयावान रहो; ऐसा न हो िुम्हारे ह्रदय की कठोरिा के कारण उनकी विादारी बेविाई में बदल जाये और उनसे ममलने वाली सहायिा बािा बन जाये। मसम-मसम के दि ू पर पलना और जब उसके पास दे ने को और न रहे िो उसकी गदा न पर कसाई की छुरी रख

दे ना िरम कृिध्निा है ।

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ अध्याय - २४

दसरे िी पीड़ा पर जीना पीड़ा िा मििार

ोना



^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ खाने के मलये मारना तया उचिि है ? जब शमदाम और कसाई िले गए िो ममकेयन ने ममु शाद से पूछा: ममकेयन: खाने के मलये मारना तया उचिि नहीीं है ममु शाद ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद: मत्ृ यु से पेट भरना मत्ृ यु का आहार बनना है । दस ू रों की पीड़ा पर जीना पीड़ा का मशकार होना है । यही आदे श है प्रभु-इच्छा का यह समि लो और किर अपना मागा िन ु ो, ममकेयन। ममकेयन: यदद मैं िन ु सकिा िो अमर पक्षी की िरह वस्िुओीं की सुगींि पर जीना पसींद करिा, उसके माींस पर नहीीं।

मीरदाद: िुम्हारी पसींद सिमुि उत्िम है । ववश्वास करो, ममकेयन, वह ददन आ रहा है जब मनुष्य वस्िुओीं की सुगींि पर क्जयेंगे जो उनकी आत्मा है, उनके अति माींस पर नहीीं।

और िड़पने वाले के मलये वह ददन दरू नहीीं। तयोंकक िड़पने वाले जानिे हैं कक दे ह का जीवन और कुछ नहीीं, दे ह-रदहि जीवन िक पहुाँिने वाला पल ु -मात्र है । और

िड़पने वाले जानिे हैं कक स्थूल और अक्षम इक्न्द्रयााँ अत्यींि सूक्ष्म िथा पूणा ज्ञान के सींसार के अींदर िााँकने के मलये िरोखे-मात्र हैं। और िड़पने वाले जानिे हैं कक क्जस भी माींस को वे काटिे है, उसे दे र-सवेर, अतनवाया रूप से, उन्हें अपने ही माींस से जोड़ना पडेगा; और क्जस भी हड्डी को वे कुिलिे हैं, उसे उन्हें अपनी ही हड्डी से किर बनाना

पडेगा; और रति की जो बूींद वे चगरािे हैं, उसकी पूतिा उन्हें अपने ही रति से करनी पड़ेगी। तयोंकक शरीर का यही तनयम है । पर िड़पने वाले इस तनयम की दासिा से मुति होना िाहिे हैं। इसमलये वे अपनी शारीररक आवश्यकिाओीं को कम से कम कर लेिे हैं और इस प्रकार कम कर लेिे हैं शरीर के प्रति अपने ऋण को जो वास्िव में पीड़ा और मत्ृ यु

के प्रति ऋण है ।िड़पने वाले पर रोक केवल उसकी अपनी इच्छा और िड़प की होिी है , जबकक न िड़पने वाला दस ू रों द्वारा रोके जाने की प्रिीक्षा करिा है अनेक वस्िुओीं को, क्जन्हें न िड़पने वाला उचिि समििा है िड़पने वाला अपने मलये अनुचिि

मानिा है । न िड़पने वाला अपने पेट या जेब में डालकर रखने के मलये अचिक से

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अचिक िीजें हचथयाने का प्रयत्न करिा है , जबकक िदपने वाला जब अपने मागा पर िलिा है िो न उसकी जेब होिी है और न ही उसके पेट में ककसी जीव के रति और पीड़ा-भरी एींठ्नों की गींदगी। न िड़पने वाला जो ख़ुशी ककसी पदाथा को बड़ी मात्रा में पाने से करिा है–या

समििा है कक वह प्राप्ि करिा है —िड़पने वाला उसे आत्मा के हलकेपन और ददव्य ज्ञान की मिुरिा में प्राप्ि करिा है। एक हरे -भरे खेि को दे ख रहे दो व्यक्तियों में से एक उसकी उपज का अनुमान मन और सेर में लगािा है और उसका मक ू य सोने-िाींदी में आाँकिा है । दस ू रा अपने नेत्रों से खेि की हररयाली का आनींद लेिा है , अपने वविारों से हर पत्िी को िम ू िा है, और अपनी आत्मा में हर छोटी से छोटी जड़,हर कींकड़ और ममटटी के हर ढे ले के प्रति भ्रािभ ु रा व्यक्ति ृ ाव स्थावपि कर लेिा है । मैं िुमसे कहिा हूाँ, दस उस खेि का असली मामलक है, भले ही क़ानून की दृष्टी से पहला व्यक्ति उसका मामलक हो।एक मकान में बैठे दो व्यक्तियों में से एक उसका मामलक है, दस ू रा केवल एक अतिचथ। मामलक तनमााण िथा दे ख-रे ख के खिा की, और पदों,गलीिों िथा अन्य साज-सामग्री के मक ू य की ववस्िार के साथ ििाा करिा है । जबकक अतिचथ मन ही मन नमन करिा है उन हाथों को क्जन्होंने खोदकर खदान में से पत्थरों को तनकाला, उनको िराशा और उनसे तनमााण ककया; उन हाथों को क्जन्होंने गलीिों िथा पदों को बुना; और उन हाथों को क्जन्होंने जींगलों में जाकर उन्हें खखडककयों और दरवाजों का,कुमसायों और मेजों का रूप दे ददया। इन वस्िओ ु ीं को अक्स्ित्व में लानेवाले

तनमााण-किाा हाथ की प्रशींसा करने में उसकी आत्मा का उत्थान होिा है । मैं िुमसे कहिा हूाँ, वह अतिचथ उस घर का स्थायी तनवासी है ; जब कक वह क्जसके नाम वह मकान है केवल एक भारवाहक पशु है जो मकान को पीठ पर ढोिा है , उसमे रहिा नहीीं। दो व्यक्तियों में से,जो ककसी बछड़े के साथ

उसकी मााँ के दि ू के सहभागी हैं, एक बछड़े को इस भावना के साथ दे खिा है कक

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

बछड़े का कोमल शरीर उसके आगामी जन्म-ददवस पर उसके िथा उसके ममत्रों की दावि के मलये उन्हें बदढ़या माींस प्रदान करे गा। दस ू रा बछड़े को अपना िाय-जाया भाई समििा है और उसके ह्रदय में उस नन्हे पशु िथा उसकी मााँ के प्रति स्नेह उमड़िा है । मैं िुमसे कहिा हूाँ, उस बछड़े के माींस से दस ू रे व्यक्ति का सिमुि पोषण होिा है ; जबकक पहले के मलये वह ववष बन

जािा है । हााँ बहुि सी ऐसी िीजें पेट में दाल ली जािी हैं क्जन्हें ह्रदय में रखना िादहये।

बहुि सी ऐसी िीजें जेब और कोठारों में बन्द कर दी जािी हैं क्जनका आनींद आाँख और नाक के द्वारा लेना िादहये। बहुि सी ऐसी िीजें दाींिों द्वारा िबाई जािी हैं

क्जनका स्वाद बुवि द्वारा लेना िादहये।जीववि रहने के मलये शरीर की आवश्यकिा बहुि कम है । िुन उसे क्जिना कम दोगे, बदले में वह िुम्हे उिा ही अचिक दे गा; क्जिना अचिक दोगे, बदले में उिना ही कम दे गा।

वास्िव में िम् ु हारे कोठार और पेट से बाहर रहकर िीजें िम् ु हारा उससे अचिक पोषण करिी हैं क्जिना कोठार और पेट के अन्दर जाकर करिी हैं। परन्िु अभी िुम

वस्िओ ु ीं की केवल सग ु ींि पर जीववि नहीीं रह सकिे, इसमलये िरिी के उदार ह्रदय से अपनी जरुरि के अनुसार तनिःसींकोि लो, लेककन जरुरि से ज्यादा नहीीं। िरिी इिनी उदार और स्नेहपूणा है कक उसका ददल अपने बच्िों के मलये सदा खुला रहिा है । िरिी इससे मभन्न हो भी कैसे सकिी है ? और अपने पोषण के मलये अपने आपसे बाहर जा भी कहााँ सकिी है ? िरिी का पोषण िरिी को ही करना है , और िरिी कोई कींजूस गहृ णी नहीीं, उसका भोजन िो सदा परोसा रहिा है और सबके मलये पयााप्ि होिा है । क्जस प्रकार िरिी िुम्हे

भोजन पर आमींबत्रि करिी है और कोई भी िीज िुम्हारी पहुाँि से बाहर नहीीं रखिी, ठीक उसी प्रकार िुम भी िरिी को भोजन पर आमींबत्रि करो और अत्यींि प्यार के साथ िथा सच्िे ददल से उससे कहो;”मेरी अनप ु म मााँ !

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

क्जस प्रकार िूने अपना ह्रदय मेरे सामने िैला रखा है िाकक जो कुछ मुिे िादहये ले लाँ ू, उसी प्रकार मेरा ह्रदय िेरे सम्मुख प्रस्िुि है िाकक जो कुछ िुिे िादहये ले ले।”

यदद िरिी के ह्रदय से आहार प्राप्ि करिे हुए िम् ु हे ऐसी भावना प्रेररि करिी है , िो इस बाि का कोई महत्व नहीीं कक िुम तया खािे हो।परन्िु यदद वास्िव में यह

भावना िुम्हे प्रेररि करिी है िो िुम्हारे अन्दर इिना वववेक और प्रेम होना िादहये कक िुम िरिी से उसके ककसी बच्िे को न छीनो, ववशेष रूप से उन बच्िों में से ककसी को जो जीने के आनींद और मरने की पीड़ा अनभ ु व करिे हैं–जो द्वेि के खण्ड में पहुाँि िक ु े

हैं; तयोंकक उन्हें भी िीरे -िीरे और पररश्रम के साथ, एकिा की ओर जानेवाले मागा पर िलना है । और उनका मागा िम् ु हारे मागा से अचिक लींबा है । यदद िम ु उनकी गति में बािक बनिे हो िो वे भी िुम्हारी गति में बािक होंगे। अबबमार; जब मत्ृ यु सभी जीवों की तनयति है , िाहे वह एक कारण से हो या ककसी

दस ू रे कारण से, िो ककसी पशु की मत्ृ यु का कारण बनने में मि ु े कोई नैतिक सींकोि तयों हो ?

ममरदाद: यह सि है कक सब जीवों का मरना तनक्श्िि है , किर भी चितकार है उसे जो ककसी भी जीव की मत्ृ यु का कारण बनिा है । क्जस प्रकार यह जानिे हुए कक मैं नरौन्दा से बहुि प्रेम करिा हूाँ और मेरे मन में कोई रति-वपपासा नहीीं है , िुम

मुिे उसे मारने का काम नहीीं सौंपोगे, उसी प्रकार प्रभु-इच्छा ककसी मनुष्य को ककसी दस ू रे मनुष्य या पशु को मारने का काम नहीीं सौंपिी, जब िक कक वह उस मौि के मलये सािन रूप में उसका उपयोग करना आवश्यक न समििी हो। जब िक मनष्ु य वैसे ही रहें गे जैसे वे हैं, िब िक रहें गे उनके बीि िोररयााँ और डाके, िूठ, युि और हत्याएाँ, िथा इस प्रकार के दवू षि और पाप पूणा मनोवेग।लेककन चितकार है िोर को और डाकू को, चितकार है िूठे को और युि-प्रेमी को, िथा

हत्यारे को और हर ऐसे मनुष्य को जो अपने ह्रदय में दवू षि िथा पाप पूणा मनोवेगों को आश्रय दे िा है,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोकक अतनष्ट पूणा होने के कारण इन लोगों का उपयोग प्रभु-इच्छा अतनष्ट के सींदेह-वाहकों के रूप में करिी है ।परन्िु िम ु , मेरे साचथयों, अपने ह्रदय को हर दवू षि और पाप पूणा आवेग से अवश्य मुति करो

िाकक प्रभ-ु इच्छा िुम्हे दख ु ी सींसार में सुखद सन्दे श पहुाँिाने का अचिकारी

समिे–दिःु ख से मुक्ति का सन्दे श, आत्म-ववजय का सन्दे श, प्रेम और ज्ञान द्वारा ममलने वाली स्विींत्रिा का सन्दे श। यही मशक्षा थी मेरी नह ू को। यही मशक्षा है मेरी िम् ु हे ।

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय - 25 / 26

ममु िचद गम ु

ो िर भी

मारे बीर् र ता

ै ☜

************************************** अध्याय -25 अंगर-बेल िा हदवस और उसिी तैयारीउससे

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

एि हदन प ले मीरदाद लापता पाया जाता



**************************************** नरौन्दा: अींग-ू बेल का ददवस तनकट आ रहा था और हम नौका के तनवासी, क्जनमे मुमशाद भी शाममल थे, बाहर से आये स्वयीं सेवी सहायकों की टुकड़ड़यों के साथ ददनराि बड़े प्रतिभोज की िैयाररयों में जट ु े थे। मुमशाद अपनी सम्पूणा शक्ति से और इिने अचिक उत्साह के साथ काम कर रहे थे कक शमदाम िक ने स्पष्ट रूप से सींिोष प्रकट करिे हुए इस पर दटप्पणी की।

नौका के बड़े-बड़े िहखानों को बुहारना था और उनकी पुिाई करनी थी, और शराब के बीमसयों बड़े बड़े मिाबानों और मटकों को सा़ि करके यथास्थान रखना था िाकक उनमे नयी शराब भरी जा सके। उिने ही और मिाबानों और मटकों को, क्जनमे वपछले साल के अींगूरों की िसल से बनी शराब रखी थी सजाकर प्रदमशाि करना था िाकक ग्राहक शराब को आसानी से िख और परख सकें, तयोंकक हर अींगरू -बेल के ददवस पर गि बषा की शराब बेिने की प्रथा है । सप्िाह भर के आनींदोत्सव के मलये नौका के खल ु े आाँगनों को भली प्रकार सजाना-साँवारना था; आने वाले याबत्रयों के मलये सैकड़ों िम्बू लगाने थे और व्यापाररयों के सामान के प्रदशान के मलये अस्थायी दक ु ाने बनानी थीीं। अींगरू पेरने के ववशाल कोकहू को ठीक

करना था िाकक अींगरू ों के वे असींख्य ढे र उसमे डाले जा सकें क्जन्हें नौका के बहुि से काश्िकार िथा दहिैषी गिों,टट्टुओीं और ऊाँटों की पीठ पर लादकर लाने वाले हैं। क्जनकी रसद कम पड़ जाये, या जो बबना रसद मलये आयें, उनको बेंिने के मलये बड़ी मात्रा में रोदटयााँ पकानी थीीं और अन्य खाद्य सामग्री िैयार करनी थी। अींगरू -बेल का ददवस शरू ु -शरू ु में आभार प्रदशान का ददन था। परन्िु शमदाम की असािारण व्यापाररक सूि-बूि ने इसे एक सप्िाह िक खीींिकर एक प्रकार के मेले का रूप दे ददया क्जसमे तनकट और दरू से हर व्यवसाय के स्त्री-पुरुष प्रतिबषा बढिी हुई सींख्या में एकत्र होने लगे। राज और रीं क, कृषक और कारीगर, लाभ के इच्छुक, आमोद-प्रमोद िथा अन्य ध्येयों की पूतिा के िाहवान; शराबी और पुरे परहे जगार;

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िमाात्मा यात्री और अिमी आवारागदा ; मींददर के भति और मिुशाला के दीवाने, और इन सबके साथ लदद ू जानवरों के िुण्ड–ऐसी होिी है यह रीं ग-बबरीं गी भीड़ जो पूजा मशखर के शाींि वािावरण पर िावा बोलिी है साल में दो बार, पििड़ में अींगूर-बेल ददवस पर और बसींि में नौका-ददवस पर। इन दोनों अवसरों में से एक पर भी कोई यात्री नौका में खाली हाथ नहीीं आिा;

सब ककसी न ककसी प्रकार का उपहार साथ लािे हैं जो अींगूर के गुच्छों या िीड़ के िल से लेकर मोतियों की लड़ड़यों या हीरे के हारों िक कुछ भी हो सकिा है । और सब व्यापाररयों से उनकी बबक्री का दस प्रतिशि कर के रूप में मलया जािा है ।

यह प्रथा है कक आनींदोत्सव के पहले ददन अींगूर के गुच्छों से सजाये लिा-मण्डप के

नीिे एक ऊाँिे मींि पर बैठकर मुखखया भीड़ का स्वागि करिा है और आशीवााद दे िा है , और उनके उपहार स्वीकार करिा है । इसके बाद वह उनके साथ नयी अींगूरी शराब का जाम पीिा है । वह अपने मलये एक बड़ी, लम्बी खोखली िुम्बी में से प्याले में शराब उड़ेलिा है , और किर एकबत्रि जन-समूह में घुमाने के मलये वह िुम्बी ककसी भी एक साथी को थमा दे िा है । िम् ु बी जब-जब खाली होिी है उसे किर से भर ददया जािा है । और जब सब अपने प्याले भर लेिे हैं िो मुखखया सबको प्याले ऊाँिे उठाकर अपने साथ पववत्र अींगूर-बेल का स्िुति-गीि गाने का आदे श दे िा है ।

कहा जािा है कक यह स्िुति-गीि हजरि नूह और उनके पररवार ने िब गया था जब उन्होंने पहली बार अींगरू -बेल का रस िखा था। स्िुति-गीि गा लेने के बाद भीड़ खश ु ी के नारे लगािी हुई प्याले खाली कर दे िी है और किर अपने-अपने व्यापार

करने िथा खमु शयााँ मनाने के मलये ववसक्जाि हो जािी है ।और पववत्र अींगूर-बेल का स्िुति गीि यह है ; नमस्कार इस पुण्य बेल को ! नमस्कार उस अद्भि ृ ु अींकुर का पोषण जो करिी,स्वखणाम िल में मददरा ु जड़ कोमद भारिी। नमस्कार इस पुण्य बेल को। जल-प्रलय से अनाथ हुए जो,कीिड में हैं िाँसे

हुए जो,आओ, िखो और आमशष दो सब इस दयालु शाखा के रस को। नमस्कार इस

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

पुण्य बेल को। माटी के सब बींिक हो िुम, यात्री हो, पर भटक गये िुम; मुक्ति-मूकय िुका सकिे हो,पथ भी अपना पा सकिे हो, इसी ददव्य पौिे के रस से, इसी बेल से,इसी बेल से। उत्सव के आरम्भ से एक ददन पहले प्राििः-काल मुमशाद लापिा हो गये। सािों साथी इिने घबरा गये कक उसका

वणान नहीीं ककया जा सकिा; उन्होंने िुरींि पूरी साविानी के साथ खोज आरम्भ कर दी। पूरा ददन और पूरी राि, मशालें और लालटे नें मलये वे नौका में और उसके आसपास खोज रहे थे; ककन्िु ममु शाद का कोई सरु ाग नहीीं पा सके। शमदाम ने इिनी चिींिा प्रकट की और वह इिना व्याकुल ददखाई दे रहा था कक मुमशाद के इस प्रकार रहस्यमय ढीं ग से

लापिा हो जाने में उसका हाथ होने का ककसी को सींदेह नहीीं हुआ। परन्िु सबको पूरा ववशवास था कक मुमशाद ककसी कपटपूणा िाल के मशकार हो गये हैं|

महान आनींदोत्सव िल रहा था लेककन सािों साचथयों की जब ु ान शोक से जड़वि हो गई थी और वे परछाइयों की िरह घम ू रहे थे। जन-समूह स्िुति-गीि गा िुका था और शराब पी िक ु ा था और मुखखया ऊाँिे मींि से उिरकर नीिे आ गया था जब भीड़ के शोर शराबे से बहुि ऊाँिी एक िीखिी

आवाज सुनाई दी, ”हम ममरदाद को दे खना िाहिे हैं, हम ममरदाद को सुनना िाहिे हैं।”

हमने पहिान मलया कक यह आवाज रक्स्िददयन की थी। मुमशाद ने जो कुछ उससे

कहा था और जो उसके मलये ककया था वह सब रक्स्िददयन ने दरू -दरू िक लोगों को बिा ददया था।

जन-समूह ने उसकी पुकार को िुरींि अपनी पुकार बना मलया। मुमशाद के मलये की

जा रही पुकार िारो ओर िैलकर कानों को बेिने लगी, और हमारी आाँखें भर आईं, हमारे गले रूाँि गये मानो मशकींजे में जकड़ मलये गए हों। अिानक कोलाहल शाींि हो गया,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

और पुरे समुदाय पर एक गहरा सन्नाटा छा गया। बड़ी कदठनाई से हम अपनी आाँखों पर ववशवास कर पाये जब हमने नजर उठाई और मुमशाद को उस ऊाँिे मींि पर जनिा को शाींि करने के मलये हाथ दहलािे हुए दे खा।

मीरदाद प्रेम िी िराब से लदा



अपने खाली पयाले ले आयो.. °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° अध्याय 26 अींगरू -बेल के ददवस पर आये याबत्रयों को ममरदाद प्रभावशाली उपदे श दे िा है और नौका को कुछ अनावश्यक भार से मुति करिा है ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ ममरदाद: दे खो ममरदाद को–अींगरू की उस बेल को क्जसकी िसल अभी िक नहीीं काटी गई, क्जसका रस अभी िक नहीीं वपया गया। अपनी िसल से लदा हुआ है ममरदाद। पर, अ़िसोस, लन ु ेरे दस ू री ही अींगरू -वादटकाओीं में व्यस्ि हैं। और रस की बहुलिा से ममरदाद का दम घुट रहा है । लेककन पीने और वपलाने वाले दस ू री ही शराबों के नशे में िूर हैं।

हल, कुदाल, और दरााँिी िलानेवाली, िुम्हारे हालों, कुदालों और दराींतियों को मैं

आशीवााद दे िा हूाँ। आज िक िुमने तया जोिा है, तया खोदा है , तया काटा है ? तया िम ु ने अपनी आत्मा के सन ु सान बींजरों में हल िलाया है जो हर प्रकार के

घास-पाि से इिने भरे पड़े हैं कक सिमुि जींगल ही बन गये हैं क्जनमे भयींकर और तघनौने सपा, बबच्छू आदद पनप रहे हैं और उनकी सख्या बढ़ रही है ! तया िुमने उन घािक जड़ों को उखाड़ िेंका है जो अाँिेरे में िुम्हारी जड़ों से मलपटकर उन्हें दबोि रही हैं, और इस प्रकार िुम्हारे िल को कमल की अवस्था में ही नोि रही हैं? तया िम ु ने अपनी उन शाखाओीं की छाँ टाई की है जीने व्यस्ि कीड़ों ने खोखला कर ददया है , या परजीवी बेलों के आक्रमण ने सुखा ददया है?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अपनी लौककक अींगूर वादटकाओीं में हल िलाना और उनकी खुदाई िथा छाँ टाई करना िुमने भली भााँिी सीख मलया है । पर वह अलौककक अींगूर-वादटका जो िुम खुद हो बुरी िरह से उजाड़ और उपेक्षक्षि पड़ी है । ककिना तनरथाक िुम्हारा सब श्रम जब िक िुम वादटका से पहले वादटका के स्वामी की ओर ध्यान नहीीं दे ि!े श्रम-जन्य घट्ठों से भरे हाथ वाले लोगो ! मैं िुम्हारे घट्ठों को आशीवााद दे िा हूाँ। लम्बसूत्र और पैमाने के ममत्रो, हथोड़े और अहरन के साचथयों, छे नी और आरे के

हमरादहयो, अपने-अपने मशकप में िम ु ककिने कुशल और योग्य हो ! िम् ु हे मालम ु है

की वस्िुओीं का स्िर और उनकी गहराई कैसे जानी जािी है ; परन्िु अपना स्िर और गहराई कैसे जानी जािी है , इसका िम् ु हे पिा नहीीं। िुम लौहे के टुकड़े को हथौड़े और अहरन से कुशलिापूवक ा गढ़िे हो, पर नहीीं जानिे

कक ज्ञान की अहरन पर सींककप के हथौड़े से अनगढ़ मनष्ु य को कैसे गढ़ा जािा है । न ही िम ु ने अहरन से यह अनमोल मशक्षा ली है कक िोट के बदले िोट पहुाँिाने का रत्िी भर वविार ककये बबना भी िोट कैसे खाई जािी है ।

लकड़ी पर आरा और पत्थर पर िलाने में िम ु सामान रूप से तनपण ु हो; पर नहीीं जानिे कक गींवारू और उलिे हुए मनष्ु य को सभ्य और सुलिा हुआ कैसे बनाया

जािा है । ककिने तनरथाक हैं िुम्हारे सब मशकप जब िक पहले िुम मशकपी पर उनका प्रयोग नहीीं करिे!अपनी िरिी-मााँ के ददये उपहारों और साथी मनुष्य के हाथों से बनी िीजों की मनुष्य की आवश्यकिा होिी है, और मनष्ु य अपने लाभ के मलये ही इस आवश्यकिा का व्यापार कर रहे हैं। मैं आवश्यकिाओीं को, उपहारों को, और उत्पाददि वस्िुओीं को आशीवााद दे िा हूाँ,

आशीवााद दे िा हूाँ व्यापार को भी। ककन्िु स्वयीं उस लाभ के मलये, जो वास्िव में

हातन है, मेरे मुख से शुभकामना नहीीं तनकलिीराि के महत्वपूणा सन्नाटे में जब िम ु ददन भर हकी आय के जमा-खिा का दहसाब करिे हो िो लाभ के खािे में तया डालिे हो और हातन के खािे में तया?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तया लाभ के खािे में वह िन डालिे हो जो िुम्हे िुम्हारी लागि से अचिक प्राप्ि हुआ है ? िो सिमुि बेकार गया वह ददन क्जसे बेंिकर िुमने वह पूींजी प्राप्ि की, िाहे वह पींज ू ी ककिनी ही बड़ी तयों न रही हो।

और उस ददन के सौहादा , शाक्न्ि और प्रकाश के अींिहीन खजाने से िुम पूणि ा या

बींचिि रह गये। उस ददन के द्वारा स्विींत्रिा के मलये ददये गये तनरीं िर आमींत्रणों का भी िुम लाभ न उठा सके और खो बैठे उन मानव-हृदयों को क्जन्हें उसने िुम्हारे मलये उपहार के रूप में अपनी हथेली पर रखा था। जब िम् ु हारी मख् ु य रूचि लोगों के बटुओीं में है , िब िम् ु हे उनके ह्रदय में प्रवेश का मागा कैसे ममल सकिा है ? और यदद िम् ु हे मनुष्य के ह्रदय में प्रवेश का मागा नहीीं ममलिा िो प्रभु के ह्रदय िक पहुाँिने की आशा कैसे कर सकिे हो ? और यदद िम ु प्रभु के ह्रदय िक नहीीं पहुींिे िो तया अथा है िुम्हारे जीवन का ?

क्जसे िुम लाभ समििे हो यदद वह हातन हो, िो ककिनी अपार होगी वह हातन ! तनश्िय ही व्यथा है िम् ु हारा सम्पूणा व्यापार जब िक िम् ु हारे लाभ के खािे में प्रेम और ददव्य ज्ञान न आये। राजदण्ड थामनेवाले मक ु ु टिाररयो ! ऐसे हाथों में जो घायल करने में बहुि िस् ु ि, लेककन घाव पर मरहम लगाने में बहुि सस् ु ि हैं राजदण्ड सपा के सामान है ।

जबकक प्रेम का मरहम लगाने वाले हाथों में राजदण्ड एक ववद्युि-दण्ड के सामान है जो ववषाद और ववनाश को पास नहीीं िटकने दे िा।भली प्रकार परखो अपने हाथों को। ममथ्या अमभमान, अज्ञान िथा मनुष्यों पर प्रभुत्व के लोभ से िूले हुए मस्िक पर सजा हीरे , लाल और नीलम से जड़ ु ा सोने का मक ु ु ट बोि, उदासी बेिैनी महसस ू करिा है ।

हााँ, ऐसा मुकुट िो अपनी पीदठका का–क्जस पर वह रखा है उसका ममाभेदी उपहास ही होिा है । जब कक अत्यींि दल ा और उत्कृष्ट रत्नों से जड़ा मुकुट भी ज्ञान िथा ु भ आत्म-ववजय से आलोककि मस्िक के अयोग्य होने के कारण लज्जा का अनुभव

करिा है । भली प्रकार परखो अपने मस्िकों को। लोगों पर शासन करना िाहिे हो िुम ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िो पहले अपने आप पर शासन करना सीखो। अपने आप पर शासन ककये बबना िुम औरों पर शासन कैसे कर सकिे हो ? वायु से प्रिाड़ड़ि, िेन उगलिी लहर तया सागर को शाक्न्ि िथा क्स्थरिा प्रदान कर सकिी है ? अश्रु-पूररि आाँख तया ककसी अश्रु-पूररि ह्रदय में आनींदपूणा मस् ु कान जाग्रि कर सकिी है ? भय और क्रोि से काींपिा हाथ तया जहाज का सींिुलन बनाये रख सकिा है ? मनष्ु यों पर शासन करनेवाले लोग मनष्ु यों द्वारा शामसि होिे हैं। और मनष्ु य अशाक्न्ि, अराजकिा िथा अव्यवस्था से भरे हुए हैं, तयोंकक वे सागर ही की िरह आकाश की हर िींिा के प्रहार के सामने बेबस हैं; सागर ही की िरह उनमे ज्वार-भाटा आिा है , और कभी-कभी लगिा है कक वे अपनी सीमा का उकलींघन करने ही वाले हैं। लेककन सागर ही की िरह उनकी गहराईयााँ शाींि और सिह पर होने वाले िींिाओीं के प्रहारों के प्रभाव से मुति रहिी हैं।यदद िुम सिमुि लोगों पर शासन करना िाहिे हो िो उमकी िरम गहराईयों िक पहुाँिो, तयोंकक मनष्ु य केवल उिनिी लहरें नहीीं है ।

परन्िु मनुष्यों की िरम गहराईयों िक पहुाँिने मलये िुम्हे पहले अपनी िरम गहराई िक पहुाँिना होगा। और ऐसा करने के मलये िुम्हे राजदण्ड िथा मुकुट को त्यागना होगा िाकक िुम्हारे हाथ महसूस करने के मलये स्विींत्र हों, और िुम्हारा मस्िक

सोिने और परखने के मलये भार-मत ु ि हो।िप ू -दानों और िमा-पुस्िकों वालो ! तया जलािे हो िुम िूप-दानों में ? तया पढ़िे हो िुम िमा-पुस्िकों में ? तया िुम वह रस जलािे हो जो कुछ पौिों के सुगींि पूणा ह्रदय में से ररस-ररस कर जम जािा है ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ककन्िु वह िो आम बाजारों में खरीदा िथा बेंिा जािा है, और दो टे क का रस ककसी भी दे विा को कष्ट दे ने के मलये कािी है। तया िम ा ि को दबा ु समििे हो कक िप ू की सग ु ींि घण ु न् ृ ा, ईष्याा और लोभ की दग दे गी?

दबा सकिी है िरे बी आाँखों की,िूठ बोलिी क्जव्हा की, और वासनापूणा हाथों की दग ा ि को? दबा सकिी है ववश्वास का नाटक करिे अववश्वास और ढोल पीटिी ु न् अिम पाचथाविा की दग ा ि को? ु न् इन सब को भख ू ों मारकर, एक-एक कर ह्रदय में जला दे ने से, और उनकी राख को िारों ददशाओीं में बबखेर दे ने से जो सुगींि उठे गी वह िुम्हारे प्रभु की नामसका को

कहीीं अचिक सह ु ावनी लगेगी। तया जलािे हो िम ु िप ू -दानों में? अनन ु य,प्रशींसा और प्राथाना? अच्छा है क्रोिी दे विा को अपने क्रोि की अक्ग्न में िुलसिे छोड़ दे ना।

अच्छा है प्रशींसा के भख ू े दे विा को प्रशींसा की भख ू से िड़पने के मलये छोड़ दे ना। अच्छा है कठोर-ह्रदय दे विा को अपने ही ह्रदय की कठोरिा के हाथों मरने के मलये छोड़ दे ना। ककन्िु प्रभु न क्रोिी है , न प्रशींसा का भूखा और न ही कठोर-ह्रदय। क्रोि से भरे , प्रशींसा के भूखे और कठोर-ह्रदय िो िुम हो।प्रभु यह नहीीं िाहिा कक िुम िूप जलाओ; वह िो िाहिा है कक िुम अपने क्रोि को. अहींकार को और कठोरिा को जला डालो िाकक िुम उसी जैसे स्विींत्र और सवाशक्तिमान हो जाओ। वह िाहिा है कक िम् ु हारा ह्रदय ही िप ू -दान बन जाये| तया पढ़िे हो िम ु अपनी िमा-पुस्िकों में?

तया िुम िमाादेशों को पढ़िे हो िाकक उन्हें सुनहरे अक्षरों में मींददरों की दीवारों और गुम्बदों पर मलख दो? या िुम पढ़िे हो जीवन सत्य को िाकक उसे अपने ह्रदय में अींककि कर सको?

तया िम ु मसिाींिों को पढ़िे हो िाकक िाममाक मींिों से उनकी मशक्षा दे सको और

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िका िथा विन-िािुरी द्वारा, और यदद आवश्यकिा पड़े िो िलवार की िार द्वारा, उनकी रक्षा कर सको? या िम ु अध्ययन करिे हो जीवन का जो कोई मसिाींि नहीीं है क्जसकी मशक्षा दी जाये और रक्षा की जाये, बक्कक एक मागा है क्जस पर स्विन्त्रिा प्राप्ि करने के दृढ़ सींककप के साथ िलना है , मींददर के अींदर भी वैसे ही जैसे उसके बाहर, राि में भी वैसे ही जैसे ददन में, और तनिले पदों पर भी वैसे ही जैसे ऊाँिे पदों पर। और जब िक िुम उस मागा पर िलिे नहीीं िुम्हे उसकी मींक्जल का तनक्श्िि रूप से पिा नहीीं लग जािा, िब िक िम ु औरों को उस मागा पर िलने का तनमन्त्रण दे ने का दिःु साहस कैसे कर सकिे हो? तया िुम अपनी िमा-पुस्िकों में िामलकाओीं, मानचित्रों और मक ू य-सचू ियों को दे खिे हो जो मनष्ु य को बिािी हैं कक इिनी या इिनी िरिी से ककिना स्वगा खरीदा जा सकिा है ? िालवाजो और पाप के प्रतितनचियों ! िम ु मनुष्य को स्वगा बेंिकर उनसे िरिी का दहस्सा मोल लेना िाहिे हो। िम ु िरिी को नरक बनाकर मनष्ु यों को यहााँ से भाग जाने के मलये प्रेररि करिे हो और अपने आप को और भी मजबूिी के साथ यहााँ

जमा लेना िाहिे हो। िम ु मनष्ु यों को यह तयों नहीीं समिािे कक वह िरिी के कुछ दहस्से के बदले स्वगा में अपना दहस्सा बेंि दें ?

यदद िुम अपनी िमा-पुस्िकों अच्छी िरह पढ़िे िो लोगों को ददखािे कक िरिी को स्वगा कैसे बनाया जािा है , तयोंकक ददव्य-ह्रदय मनुष्य के मलये िरिी एक स्वगा है; जबकक उनके मलये क्जनका ह्रदय सींसार में है स्वगा एक िरिी है ।मनुष्य और उसके साचथयों के बीि, मनष्ु य और अन्य जीवों के बीि, मनष्ु य और प्रभु के बीि खड़ी सब बािाओीं को हटाकर मनुष्य के ह्रदय में स्वगा को प्रकट कर दो। परन्िु इसके मलये िुम्हे स्वयीं ददव्य ह्रदय बनना पड़ेगा। स्वगा कोई खखला हुआ उद्यान नहीीं है क्जसे खरीदा या ककराये पर मलया जा सके। स्वगा िो अक्स्ित्व की एक अवस्था है

क्जसे िरिी पर उिनी ही आसानी से प्राप्ि ककया जा सकिा है क्जिनी आसानी से इस असीम ब्रम्हाींड में कहीीं भी। किर उसे िािी से प्रे दे खने के मलये अपने गदा न तयों िानिे हो, अपनी आाँखों पर तयों जोर डालिे हो?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

न ही नरक कोई दहकिी हुई भटठी है क्जससे प्राथानाएाँ करके या िूप जलाकर बिा

जा सके। नरक िो मन की एक अवस्था है क्जसका िरिी पर उिनी ही आसानी से अनभ ु व ककया जा सकिा है क्जिनी आसानी से इस अममट ववशालिा में कहीीं भी। क्जस आग का ईंिन मन हो उस आग से भागकर िुम कहााँ जाओगे जब िक िम ु मन से ही नहीीं भाग जािे? जब िक मनुष्य अपनी ही छाया का बींदी है िब िक

व्यथा है स्वगा की खोज, और व्यथा है नरक से बिने का प्रयास। तयोंकक स्वगा और नरक द्वेि की स्वाभाववक अवस्थाएाँ हैं। जब िक मनष्ु य की बुवि एक न हो, ह्रदय एक न हो, और शरीर एक न हो; जब िक वह छ्या-मत ु ि न हो और उसका सींककप एक न हो, िब िक उसका एक पैर हमेशा स्वगा में रहे गा और दस ू रा हमेशा नरक में। और यह अवस्था तनिःसींदेह नरक है । और यह िो नरक से भी बदिर है की पींख प्रकाश के हों और पैर सीसे के; कक आशा ऊपर उठाये और तनराशा नीिे घसीट ले; कक भय-मुति बन्िन को खोले और भयपूणा सींशय बन्िन में जकड ले।स्वगा नहीीं है वह स्वगा जो दस ू रों के मलये नरक हो। नरक नहीीं है वह नरक जो दस ू रों के मलये स्वगा हो। और तयोंकक एक का नरक प्रायिः दस ू रे का स्वगा होिा है ,

और एक का स्वगा प्रायिः दस ू रे का नरक, इसमलये और नरक स्थायी और परस्पर ववरोिी अवस्थाएाँ नहीीं, बक्कक पड़ाव हैं क्जन्हें स्वगा और नरक दोनों से स्विींत्रिा प्राप्ि करने की लम्बी यात्रा में पार करना है । पववत्र अींगरू -बेल के याबत्रयों ! सदािारी बनने के इच्छुक व्यक्तियों को बेिने और प्रदान करने के मलये ममरदाद के पास कोई स्वगा नहीीं है ; न ही उसके पास पास कोई नरक है क्जसे वह दरु ािारी बनने के इच्छुक लोगों के मलये हौआ बनाकर खड़ा कर दे । जब िक कक िुम्हारी सदािाररिा खुद ही स्वगा नहीीं बन जािी, वह एक ददन के मलये खखलेगी और किर मरु िा जायेगी। जब िक िम् ु हारी दरु ािाररिा खद ु ही हौआ नहीीं

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

बन जािी, वह एक ददन के मलये दबी रहे गी पर अनुकूल अवसर पािे ही खखल

उठे गी। िुम्हे दे ने के मलये ममरदाद के पास कोई स्वगा या नरक नहीीं है , परन्िु है ददव्य ज्ञान जो िम् ु हे ककसी भी नरक की आग और ककसी भी स्वगा के ऐश्वया से बहुि ऊपर उठा दे गा। हाथ से नहीीं,ह्रदय से स्वीकार करना होगा िुम्हे यह उपहार। इसके मलये िुम्हे अपने ह्रदय को ज्ञान-प्राक्प्ि की इक्षा और सींककप के अतिररति अन्य हर इच्छा और सींककप के बोि से मुति करना होगा। िम ु िरिी के मलये कोई अजनबी नहीीं हो, न ही िरिी िम् ु हारे मलये सौिेली मााँ है । िुम िो उसके ह्रदय का ही सारभूि अींश हो, और उसके मेरुदण्ड का ही बल हो। अपनी सबल, िौड़ी और सदृ ु ढ़ पीठ पर िम् ु हे उठाने में उसे ख़श ु ी होिी है ; िम ु तयों अपने दब ा और क्षीण व्तशिःस्थल पर उसे उठाने का हाथ करिे हो, ु ल और पररणाम स्वरूप कराहिे, हााँििे और साींस के मलये छटपटािे हो?दि ू और शहद बहिे हैं िरिी के थनों से। लोभ के कारण अपनी आवश्यकिा से अचिक मात्रा में इन्हें लेकर िुम इन दोनों को खट्टा तयों करिे हो? शाींि और सन् ु दर है िरिी का मख ु ड़ा। िम ु दख ु द कलह और भय से उसे अशाींि और कुरूप तयों बनाना िाहिे हो? एक पूणा ईकाई है िरिी। िुम िलवारों और सीमाचिन्हों से तयों इसके टुकड़े-टुकड़े कर दे ने पर िुले हो? आज्ञाकारी और तनक्श्िन्ि है िरिी। िुम तयों इिने चिन्िा-ग्रस्ि और अवज्ञाकारी हो ? किर भी िुम िरिी से, सूया से, िथा आकाश के सभी ग्रहों से अचिक स्थायी हो। सब नष्ट हो जायेंगे, पर िम ु नहीीं। किर िम ु तयों हवा में पत्िों की िरह कााँपिे हो? यदद

अन्य कोई वस्िु िुम्हे ब्रम्हाींड के साथ िम् ु हारी एकिा का अनुभव नहीीं करवा सकिी िो अकेली िरिी से ही िुम्हे इसका अनभ ु व हो जाना िादहये। परन्िु िरिी स्वयीं केवल दपाण है क्जसमे िुम्हारी परछाइयााँ प्रतिबबक्म्बि होिी हैं। तया दपाण प्रतिबबक्म्बि वास्िु से अचिक महत्वपूणा है? तया मनुष्य की परछाईं मनष्ु य से अचिक महत्वपूणा है ? आाँखें मलो और जागो। तयोंकक िम ु केवल ममट्टी नहीीं

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हो। िुम्हारी तनयति केवल जीना और मरना िथा मत्ृ यु के भख ू े जबड़ों के मलये आहार बन कर रह जाना नहीीं है ।

िम् ु हारी तनयति है प्रभु की सिि िलदातयनी अींगरू -वादटका की िलविी अींगरू -बेल बनना। क्जस प्रकार ककसी अींगूर-बेल की जीववि शाखा िरिी में दबा ददये जाने पर जड़ पकड़ लेिी है और अींि में अपनी मािा की ही िरह, क्जसके साथ वह जुडी रहिी है , अींगूर दे ने वाली स्विींत्र बेल बन जािी है , उसी प्रकार मनुष्य, जो ददव्य लिा की

जीववि शाखा है , अपनी ददव्यिा की ममटटी में दबा दे ये जाने पर परमात्मा का रूप बन जाएगा और सदा परमात्मा के साथ एक–रूप रहे गा।तया मनुष्य जीववि दिना ददया जाये िाकक वह जीवन पा ले? हााँ, तनिःसींदेह हााँ। जब िक िुम जीवन और मत्ृ यु के द्वेि के प्रति द़िन नहीीं हो जािे, िुम अक्स्ित्व के एकत्व को नहीीं पाओगे। जब िक िुम ददव्य प्रेम के अींगूरों से पोवषि नहीीं होिे, िम ु ददव्य ज्ञान की मददरा से भरे नहीीं जाओगे। और जब िक िुम ददव्य ज्ञान की मददरा के नशे में बेहोश नहीीं हो जािे, िुम स्विींत्रिा के िम् ु बन से होश में नहीीं आओगे। प्रेम का आहार नहीीं करिे हो िम ु जब पथ् ृ वी की अींगूर-बेल के िल खािे हो। िुम एक छोटी भूख को शाींि करने के मलये एक बड़ी भूख को आहार बनािे हो। ज्ञान का पान नहीीं करिे हो िुम जब पथ् ृ वी की अींगूर-बेल का रस पीिे हो। िुम केवल पीड़ा की क्षखणक ववस्मतृ ि का पान करिे हो जो अपना प्रभाव समाप्ि

होिे ही िम् ु हारी पीड़ा की िीव्रिा को दग ु ना कर दे िी है । िम ु एक दिःु ख दायी अहम ् से दरू भागिे हो और वाही अहम ् िुम्हे अगले मोड़ पर खडा ममलिा है । जो अींगूर िुम्हे ममरदाद पेश करिा है उसे न ििूींदी लगिी है न वे सड़िे हैं। उनसे एक बार िप्ृ ि हो जाना सदा के मलये िप्ृ ि हो रहना है । जो मददरा उसने िुम्हारे

मलये िैयार की है वह उन ओींठों के क्जये बहुि िीखी है जो जलने से डरिे हैं; लेककन

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

वह जान डाल दे िी है उन हृदयों में अनन्िकाल काल िक आत्म-ववस्मतृ ि में डूबे रहना िाहिे हैं।

तया िम ु मे ऐसे मनष्ु य हैं जो मेरे अींगरू ों के भख ू े हैं ? वे अपनी टोकररयााँ लेकर आगे आ जायें।तया कोई ऐसे हैं जो मेरे रस के प्यासे हैं ? वे अपने प्याले लेकर आ जायें। तयोंकक ममरदाद अपनी िसल से लदा है , और रस की वहुलिा से उसकी साींस रुक

रही है । पववत्र अींगूर-बेल का ददवस आत्म-ववस्मतृ ि का ददन था—प्रेम की मददरा से

उन्मि और ज्ञान की आभा से स्नाि ददन, स्विन्त्रिा के पाँखों के सींगीि से आनींदववभोर ददन. बािाओीं को हटाकर एक को सबमे और सबको एक में ववलीन कर दे ने का ददन। पर दे खो, आज यह तया बन गया है । एक सप्िाह बन गया है यह रोगों अहम ् के दावे का; घखृ णि लोभ का जो घखृ णि

लोभ का ही व्यापार कर रहा है ; दासिा का जो दासिा के साथ ही क्रीडा कर रहा है ; अज्ञानिा का जो अज्ञानिा को ही दवू षि कर रही है । जो नौका कभी ववश्वास, प्रेम और स्विींत्रिा की मददरा बनाने का केंद्र थी, उसी को अब शराब की एक ववशाल भट्ठी िथा घखृ णि व्यापार मण्डी में बड़क ददया गया है । वह िुम्हारी अींगूर-वादटकाओीं की उपज लेिी है और उसे मति-भ्रष्ट करनेवाली मददरा

के रूप में वावपस िुम्हे ही बेंि दे िी है । और िुम्हारे हाथों के श्रम की वह िुम्हारे ही हाथों के मलये हथकड़ड़यााँ गढ़ दे िी है । िुम्हारे श्रम के पसीने को वह जलिे हुए अींगार बना दे िी है िुम्हारे ही मस्िक को

दागने के मलये। दरू बहुि दरू भटक गई है नौका अपने तनयि मागा से। ककन्िु अब इसकी पिवार को ठीक दे शा दे दी गई है ।

अब इसे सारे अनावश्यक भार से मुति कर ददया जायेगा िाकक यह अपने मागा पर सुवविापूवक ा और सुरक्षक्षि िल सके। इसमलये सब उपहार उन्ही को, क्जन्होंने ददये थे,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

लौटा ददये जायेंगे और सब कजादारों को मा़ि कर ददये जायेंगे। नौका मसवाय प्रभु के ककसी को डाटा स्वीकार नहीीं करिी, और प्रभु िाहिा है कोई भी कजादार न रहे – उसका अपना कजादार भी नहीीं। यही मशक्षा थी मेरी नूह को थी।

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय - 27 / 28 अध्याय 27. अक्स्ित्व का हर कण सत्य का अचिकारी •••••••••••••••••••••••••••••••••• सत्य का उपदे श तया सबको ददया जाना िादहये या कुछ िुने हुए व्यक्तियों को ?

अींगरू -बेल के ददवस से एक ददन पहले ममरदाद अपने लप्ु ि होने का भेद प्रकट करिा है और िूठी सत्िा की ििाा करिा है

नरौन्दा: प्रीति- भोज जब स्मतृ ि मात्र रह गया था, उसके कािी समय बाद एक ददन सािों साथी पवािीय नीड़ में मुमशाद के पास इकटठे हुए थे।

उस ददन की स्मरणीय घटनाओीं पर जब साथी वविार कर रहे थे िो मुमशाद िुप रहे । कुछ साचथयों ने उत्साह के साथ उद्वेग पर पर आश्िया प्रकट ककया क्जसके साथ जन समूह ने मुमशाद के विनों का स्वागि ककया था।

और कुछ ने शमदाम के उस समय के ववचित्र िथा रहस्य पूणा व्यवहार पर दटप्पणी की जब सैकड़ों ऋण-आलेख नौका के कोषागार से तनकाल कर सबके सामने नष्ट

ककये थे, शराब के सैकड़ों मिाबान और मटके िहखानों में से तनकाल कर दे ददये गए थे और अनेक मक ू यवान उपहार लौटा ददये गए थे,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक उस समय शमदाम ने ककसी प्रकार का ववरोि—क्जसका हमें डर था—नहीीं ककया था, बक्कक िुपिाप, बबना दहले-डुले, आाँखों से आींसुओीं की िारा बहािे हुए सब कुछ दे खिा रहा था।

बैनून ने कहा कक यद्यवप जय-जयकार करिे-करिे लोगों के गले बैठ गये थे, उनकी सराहना मुमशाद के विनों के मलये नहीीं बक्कक मा़ि कर ददये गए ऋणों और लौटा

ददये गए उपहारों के मलये थी। उसने िो मुमशाद की हलकी-सी आलोिना भी की कक उन्होंने ऐसी भीड़ पर समय नष्ट ककया क्जसे खाने-पीने िथा आनींद मनाने से बढ़कर ककसी ख़श ु ी की िलाश नहीीं थी। बैनून वविार प्रकट ककया कक सत्य का उपदे श बबना सोि-वविार के सबको नहीीं, कुछ िन ु े हुए व्यक्तियों को ही ददया जाना िादहये। इस पर ममु शाद ने अपना मौन िोड़ा और कहा:

मीरदाद: हवा में छोड़ा िुम्हारा श्वास तनश्िय ही ककसी के िेिड़ों में प्रवेश करे गा। मि पूछो कक िेिड़े ककसके हैं। केवल इिना ध्यान रखो कक िम् ु हारा श्वास पववत्र

हो। िुम्हारा शब्द कोई कान खोजेगा और तनश्िय ही उसे पा लेगा। मि पूछो की कान ककसका है । केवल इिना ध्यान रखो कक िुम्हारा शब्द स्विींत्रिा का सच्िा सन्दे श-वाहक हो।

िुम्हारा मूक वविार तनश्िय ही ककसी क्जव्हा को को बोलने के मलये प्रेररि करे गा। मि पूछो की क्जव्हा ककसकी है । केवल इिना ध्यान रखो कक िुम्हारा वविार प्रेमपूणा ज्ञान से आलोककि। ककसी भी प्रयत्न को व्यथा गया मि समिो। कुछ बीज वषों िरिी में दबे पड़े रहिे

हैं, परन्िु जब पहली अनुकूल ऋिू का श्वास उनमे प्राण िूाँकिा है , वे िुरींि सजीव हो उठिे हैं। सत्य का बीज प्रत्येक मनुष्य और वस्िु के अन्दर मौजूद है ।

िुम्हारा काम सत्य को बोना नहीीं है, बक्कक उसके अींकुररि होने के मलये अनुकूल ऋिू िैयार करना है ।अनन्िकाल में सबकुछ सींभव है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इसमलये ककसी भी मनुष्य की स्विींत्रिा के ववषय में तनराश न होओीं, बक्कक मुक्ति का सन्दे श सामान ववश्वास िथा उत्साह के साथ सब िक पहुाँिाओ—जैसे िड़पने वालों िक वैसे ही न िड़पने वालों िक भी।

तयोंकक न िड़पने वाले कभी अवश्य िड़पेंगे, और आज क्जनके पींख नहीीं हैं वे ककसी ददन िूप िोंि से अपने पींखो को साँवारें गे और अपनी उड़ानों से आकाश की दरू िम िथा अगम ऊाँिाइयों को िीर डालेंगे। ममकास्िर: हमें बहुि दिःु ख है कक आज िक,

हमारे बार-बार पूछने पर भी, मुमशाद ने अींगूर-बेल के ददवस से एक ददन पहले अपने रहस्यपूणा ढीं ग से गायब हो जाने का भेद हम पर प्रकट नहीीं ककया है । तया हम उनके ववश्वास के योग्य नहीीं हैं ? ममरदाद: जो भी मेरे प्यार के योग्य हैं तनिःसींदेह मेरे ववश्वास के योग्य भी हैं। ववश्वास तया प्रेम से बड़ा है, ममकास्िर ? तया मैं िुम्हे ददल खोलकर प्रेम नहीीं दे रहा हूाँ? मैंने उस अवप्रय घटना की ििाा नहीीं की िो इसमलये कक मैं शमदाम को प्रायक्श्िि करने के मलये समय दे ना िाहिा था,

तयोंकक वाही था क्जसने दो अजनबबयों की सहायिा से उस शाम मि ा इस ु े बलपव ू क नीड़ में से उठाकर काले खड्डे में डाल ददया था। अभागा शमदाम ! उसने स्वप्न में भी नहीीं सोिा था कक काला खड्ड कोमल हाथों से ममरदाद का स्वागि करे गा और उसके मशखर िक पहुाँिने के मलये जाद ू की सीदढयााँ लगा दे गा। दहम्बल: जब हमारे मुमशाद शमदाम को इिना प्रेम करिे हैं िो वह उन्हें तयों सिािा है ? मीरदाद: शमदाम मि ु े नहीीं सिािा। शमदाम शमदाम को ही सिािा है । अींिों के

हाथ में नाममात्र की भी सत्िा दे दी िो वे उन सब लोगों की आाँखे तनकाल दें गे जो दे ख सकिे हैं: उनकी भी जो उन्हें दे खने की शक्ति प्रदान करने के मलये कठोर पररश्रम करिे हैं। गल ु ाम को केवल एक ददन मनमानी करने की छूट दे दो, और वह सींसार को गुलामों के सींसार में बदल दे गा। सबसे पहले वह उन पर डींडे बरसायेगा और उन्हें बेड़ड़यााँ पहनायेगा जो उसे स्विींत्र कराने के मलये तनरीं िर पररश्रम कर रहे हैं।सींसार की प्रत्येक सत्िा, उसका आिार िाहे कुछ भी हो. िठ ू ी है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इसमलये वह अपनी एड़ें खनकािी है, िलवार घुमािी है, िथा कोलाहलपूणा ठाट-वाट और िमक-दमक के साथ सवारी करिी है िाकक कोई उसके कपटी ह्रदय के अन्दर िााँकने का साहस न कर सके। अपने डोलिे मसींहासन को वह बींदक ू ों और भालों के सहारे क्स्थर रखिी है ।

ममथ्यामभमान की लपेट में आई अपनी आत्मा को वह डरावने-िावीजों और अींिववश्वासों की आड़ में तछपािी है िाकक कुिूहली लोगों की आाँखें उसकी तघनौनी तनिानिा को न दे ख सकें।

ऐसी सत्िा उसका उपयोग करने को उत्सक ु व्यक्ति की आाँखों पर पदाा भी डालिी है और उसके मलये अमभशाप भी होिी है । वह हर मूकय पर अपने आपको बनाये रखना िाहिी है, िाहे बनाये रखने का भयींकर मक ू य िक ु ाने के मलये उसे स्वयीं सत्िािारी को और उसके समथाकों को ही नष्ट करना पड़े, और साथ ही उनको जो उसका ववरोि करिे हैं। सत्िा की भूख के कारण मनुष्य तनरीं िर व्याकुल रहिे हैं। क्जनके पास सत्िा है वे उसे बनाये रखने के मलये सदा लड़िे रहिे हैं, क्जनके पास नहीीं वे सत्िािाररयों के हाथों से सत्िा छीनने के मलये सदा सींघषारि रहिे हैं। जबकक मनष्ु य को, उसमे तछपे प्रभु को, पैरों और खरु ों िले रौंदकर यि ु -भमू म में छोड़ ददया जािा है —उपेक्षक्षि, असहाय और प्रेम से वींचिि। इिना भयींकर है यह युि, और रति-पाि के ऐसे दीवाने हैं यह योिा कक नकली दक ु हन के िेहरे पर से रीं गा हुआ मुखौटा कोई नहीीं हटािा, उसकी राक्षसी कुरूपिा प्रकट करने के मलये कोई नहीीं रुकिा;

अ़िसोस कोई नहीीं। ववश्वास करो, सािओ ु , ककसी भी सत्िा का रत्िी भर मक ू य नहीीं है , मसवाय ददव्य ज्ञान की सत्िा के जो अनमोल है । उसे पाने के मलये कोई त्याग बड़ा नहीीं है । एक बार उस सत्िा को पा लो िो समय के अींि िक वह िुम्हारे पास रहे गी। वह िुम्हारे शब्द में इिनी शक्ति भर दे गी क्जिनी सींसार की सारी सेनाओीं के हाथ में कभी नहीीं आ सकिी; अपने आशीवााद से वह िम् ु हारे कायों में इिना उपकार भर

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

दे गी क्जिना सींसार की सब सत्िाएाँ ममलकर भी कभी सींसार की िोली में डालने का स्वप्न भी नहीीं दे ख सकिीीं। तयोंकक ददव्य ज्ञान स्वयीं अपनी ढाल है ; इसकी शक्तिशाली भज ु प्रेम है । यह न सिािा है न अत्यािार करिा है , यह िो हृदयों पर ओस की िरह चगरिा है ; और जो इसे स्वीकार नहीीं करिे उन्हें भी वह उसी प्रकार राहि दे िा है क्जस प्रकार इसका पान करने वालों को। तयोंकक इसे अपनी आींिररक शक्ति पर बहुि गहरा ववश्वास है , यह ककसी बाहरी शक्ति का सहारा नहीीं लेिा। तयोंकक यह तनिाींि भय रदहि है , यह ककसी भी व्यक्ति पर अपने आपको थोपने के मलये भय को सािन नहीीं बनािा। सींसार ददव्य ज्ञान की दृष्टी से तनिान है —-अ़िसोस, अति तनिान!! इसमलये वह अपनी तनिानिा को िठ ू ी सत्िा के परदे के पीछे तछपाने का प्रयास करिा है । िूठी सत्िा िूठी शक्ति के साथ रक्षात्मक िथा आक्रमक सींचियााँ करिी है , और दोनों अपना नेित्ृ व भय को सौंप दे िे हैं। और भय दोनों को नष्ट कर दे िा है । तया ऐसा नहीीं होिा आया कक दब ा अपनी दब ा िा की रक्षा के मलये सींगदठि हो जािे ु ल ु ल हैं?

इस प्रकार सींसार की सत्िा िथा सींसार की पाशववक शक्ति दोनों, हाथ में हाथ डाले, भय के तनयींत्रण में िलिे हैं और अज्ञानिा को युि, रति िथा आींसुओीं के रूप में उसका दै तनक कर दे िे हैं।

और अज्ञानिा मींद-मींद मुस्करािी है और सबको कहिी है ‘शाबाश!’ममरदाद को खड्ड के हवाले करके शमदाम ने शमदाम से कहा, ‘शाबाश !’ परन्िु शमदाम ने यह नहीीं सोिा कक मि ु े खड्ड में िेंककर उसने मि ु े नहीीं अपने आपको िेंका था।

तयोंकक खड्ड ककसी ममरदाद को रोककर नहीीं रख सकिा; जबकक ककसी शमदाम को उसकी काली और किसलन भरी दीवारों पर िढ़ने के मलए दे र िक कदठन पररश्रम करना पड़िा है । सींसार की प्रत्येक सत्िा केवल नकली आभूषण है । जो ददव्य ज्ञान की दृष्टी से अभी मशशु हैं, उन्हें इससे अपना मन बहलाने दो। ककन्िु िम ा थोपा जािा ु स्वयीं अपने आपको कभी ककसी पर मि थोपो; तयोकक जो बलपव ू क

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

है उसे दे र-सवेर बलपूवक ा हटा भी ददया जािा है । मनुष्यों के जीवन पर ककसी प्रकार का प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न न करो; वह प्रभु-इच्छा के अिीन हैं। न ही मनष्ु यों की सींपक्त्ि पर अचिकार जमाने का प्रयत्न करो; तयोंकक मनष्ु य अपनी सींपक्त्ि से उिना ही बींिा हुआ है क्जिना अपने जीवन से, और उसकी जींजीरों को छे ड़नेवालों को वह सींदेह और घण ृ ा की दृष्टी से दे खिा है ।

लेककन प्रेम और ददव्य ज्ञान के द्वारा लोगों के ह्रदय में स्थान पाने का मागा खोजो; एक बार वहाीं स्थान पा लेने पर िुम लोगों को उनकी जींजीरों से छुटकारा ददलवाने के मलये अचिक कुशलिा पव ा काया कर सकिे हो। ू क तयोंकक प्रेम िुम्हे मागा ददखाएगा

और ददव्य ज्ञान होगा िम् ु हारा दीप-वाहक।

अध्याय -28 अपना नाम लोगो के मींह ु पर मि थोपो

लोगो के ह्रदय में अपना नाम अींककि कर दो ************************************** बेसार का सुलिान शमदाम के साथ नीड़ में आिा है यि ु और शाक्न्ि के ववषय में ”सुलिान और मीरदाद” में वािाालाप शमदाम

मीरदाद को जाल में िाँसािा है…… सुलिान ; प्रणाम, महात्मन । हम उस महान मीरदाद का अमभवादन करने आये हैं क्जसकी प्रमसवि इन पवािों में दरू -दरू िक िैलिी हुई हमारी दरू स्थ राजिानी में भी पहुाँि गई है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद ; प्रमसवि ववदे श में द्रि ु गामी रथ पर सवारी करिी है ; जबकक घर में वह बैसाखखयों के सहारे लड़खड़ािी हुई िलिी है । इस बाि में मखु खया मेरे गवाह हैं । प्रमसवि की िींिलिा पर ववश्वाश न करो, सुलिान ।

सुलिान ; किर भी मिुर होिी है प्रमसवि की िींिलिा, और सख ु द होिा है लोगों के ओठों पर अपना नाम अींककि करना ।

मीरदाद ; लोगों के ओठों पे अींककि नाम वैसा ही होिा है जैसा समुद्र-िट की रे ि पर नाम अींककि करना । हवाएीं और लहरें उसे रे ि पर से बहा ले जाएींगी । ओठों पर से िो उसे एक छीींक ही उड़ा दे गी । यदद िम ु नहीीं िाहिे कक लोगों की छीींकें िम् ु हे उड़ा दें िो अपना नाम उनके ओठों पर मि छापो, बक्कक उनके हृदयों पर अींककि कर दो । सुलिान ; लेककन लोगों का ह्रदय िो अनेक िालों में बींद है । मीरदाद ; िाले िाहे अनेक हों, पर िाबी एक है । सुलिान ; तया आपके पास है वह िाबी ? मि ु े उसकी बहुि सख्ि जरुरि है । मीरदाद ; वह िुम्हारे पास भी है । सुलिान ; अ़िसोस ! आप मेरा मूकय मेरी योग्यिा से

कहीीं अचिक लगा रहे

हैं । मैं लम्बे समय से खोज रहा हूाँ वह िाबी क्जससे अपने पड़ोसी के ह्रदय में प्रवेश पा सकाँू ,

परन्िु वह मुिे कहीीं नहीीं ममली । वह एक शक्तिशाली सुलिान है और मुिसे युि करने पे उिारू है । अपने शाींति-वप्रय स्वभाव के

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

बावजूद मैं उसके ववरुि हचथयार उठाने के मलए वववश हूाँ । मुमशाद, मेरे मक ु ु ट और मोतियों-जड़े वस्त्रों के िोके में न आयें । क्जस िाबी की मि ु े िलाश है वह मुिे इनमे नहीीं ममल रही है ।

मीरदाद ; ये वस्िुएीं िाबी को तछपा िो दे िी हैं, पर उसे अपने पास नहीीं रखिीीं । ये िुम्हारे द्वारा उठाये गए कदम को जकड दे िी हैं, िुम्हारे हाथ को रोक लेिी हैं, िुम्हारी दृष्टी को लक्ष्य-भ्रष्ट कर दे िी हैं, और इस प्रकार िुम्हारी िलाश को वविल कर दे िी हैं ।

सुलिान ; इससे मुमशाद का तया अमभप्राय है मुिे अपने मक ु ु ट और राजसी वस्त्रों को

िेक दे ना होगा िाकी मि ु े अपने पडोसी के ह्रदय में प्रवेश करने की िाबी ममल जाये । मीरदाद ; इन्हे रखना है िो िुम्हे अपने पडोसी को खोना होगा, अपने पडोसी को

रखना है िो िम् ु हे इन्हे खोना होगा । और अपने पडोसी को खोना अपने आप को खो दे ना है । सल ु िान ; मैं अपने पडोसी की ममत्रिा इिनी बड़ी कीमि पर नहीीं खरीदना िाहिा । मीरदाद ; तया िुम इस ज़रा-सी कीमि पर भी अपने आपको नहीीं खरीदना िाहिे ? सुलिान ; अपने आप को खरीदीं ू मैं कोई कैदी नहीीं हूाँ कक ररहाई की कीमि दाँ ू । और इसके अतिररति मेरी रक्षा के मलए मेरे पास सेना है क्जसे अच्छा बेटन ददया जािा

है और क्जसके पास पयााप्ि युि सामग्री है । मेरा पडोसी इससे उत्िम सेना होने का दावा नहीीं कर सकिा । मीरदाद ; एक व्यक्ति या वस्िु का बींदी होना ही असहनीय कारावास है । मनुष्यों की एक ववशाल सेना, और कई वस्िुओीं के समूह का बींदी होना िो अींिहीन दे शतनकाला है । तयोंकक ककसी वस्िु पर तनभार होना उस वस्िु का बींदी बनना है ।

इसमलए केवल प्रभु पर तनभार रहो, तयोंकक प्रभु का बींदी होना तनिःसींदेह स्विींत्र होना है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

सुलिान ; िो तया मैं अपने आपको, अपने मसींहासन को अपनी प्रजा को असरु क्षक्षि छोड़ दाँ ू ? मीरदाद ; अपने आपको असुरक्षक्षि न छोडो । सुलिान ; इसमलए िो मैं सेना रखिा हूाँ । मीरदाद ; इसमलए िो िुम्हे अपनी सेना को भींग कर दे ना िादहये । सुलिान ; परन्िु िब मेरा पडोशी मेरे राज्य को रौंद डालेगा । मीरदाद ; िम् ु हारे राज्य को रौंद सकिा है

लेककन िुम्हे कोई नहीीं तनगल सकिा । दो कारागार ममलकर एक हो जाएाँ िो भी वे स्विींत्रिा के मलए एक छोटा-सा घर नहीीं बन जािे ।

यदद कोई मनुष्य िुम्हे िुम्हारे कारागार में से तनकाल दे िो ख़ुशी मनाओ ; परन्िु उस व्यक्ति से ईष्याा न करो जो खद ु िम् ु हारे कारागार में बींद होने के मलए आ जाये ।

सुलिान ; मैं एक ऐसे कुल की सींिान हूाँ जो रणभूमम में अपनी वीरिा के मलए

ववख्याि है । हम दस ू रों को युि के मलए कभी वववश नहीीं करिे । ककन्िु जब हमें

युि के मलए वववश ककया जािा है िो हम कभी पीछे नहीीं हटिे, और शत्रु की लाशों पर ऊाँिी ववजय पिाकाएीं लहराये बबना रण-भमू म से ववदा नहीीं लेिे । आपकी सलाह

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

कक मैं अपने पड़ोसी को मनमानी करने दाँ ू , उचिि सलाह नहीीं है । मीरदाद : तया िम ु ने कहा नहीीं था कक िुम शाींति िाहिे हो ? सुलिान : हााँ शाींति िो मैं िाहिा हूाँ । मीरदाद : िो यि ु मि करो । सुलिान : पर मेरा पडोसी मुिसे युि करने पर िुला हुआ है ; और मुिे उससे यि ु करना ही पड़ेगा िाकक हमारे बीि शाींति स्थावपि हो सके ।

मीरदाद : िुम अपने पडोसी को इसमलए मार डालना िाहिे हो िाकक उसके साथ शाींतिपूवक ा जी सको ! कैसी ववचित्र बाि है ! मद ा जीने में कोई ु ों के साथ शाींतिपूवक खूबी नहीीं ; खूबी िो है उसके साथ शाींति पूवक ा जीने में जो क्जन्दा हैं । यदद िुम्हे ककसी ऐसे क्ज़ींदा मनष्ु य या वस्िु से युि करना ही है क्जसकी रूचि और दहि

िम् ु हारी रूचि और दहि से कभी-कभी टकरािे हैं, िो यि ु करो उस प्रभु से जो इन्हे अक्स्ित्व में लाया है । और युि करो सींसार से ; तयोंकक उसके अींदर ऐसी अनचगनि वस्िए ु ीं हैं जो िम् ु हारे मन को व्याकुल करिी हैं, िुम्हारे ह्रदय को पीड़ा पहुाँिािी हैं, और अपने आप को जबरदस्िी िुम्हारे जीवन पर थोपिी हैं ।

सुलिान ; यदद मैं अपने पड़ोसी के साथ शाींतिपूवक ा रहना िाहूाँ पर वह युि करना िहिा है .

िो मैं तया करूाँ ? मीरदाद ; युि करो । सुलिान ; अब आप मुिे ठीक सलाह दे रहे हैं । मीरदाद ; हााँ , युि करो, परन्िु अपने पड़ोसी से नहीीं । युि करो उन सभी वस्िुओीं से जो िुम्हे और िुम्हारे पड़ोसी को आपस में लड़ािी हैं ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

सुलिान, िुम्हारा पडोसी िुमसे लड़ना िाहिा है िुम्हारे राजसी वस्त्रों के मलए, िुम्हारे मसींहासन, िुम्हारी सींम्पक्त्ि और िुम्हारे प्रिाप के मलए, और उन सब वस्िओ ु ीं के मलए क्जनके िम ु बींदी हो । तया िम ु उसके ववरुि शास्त्र उठाये बबना उसे पराक्जि करना िाहोगे ? िो इससे पहले कक वह िुमसे युि छे ड़े, िुम स्वयीं ही इन सब वस्िुओीं के ववरुि युि कक घोषणा कर दो ।

जब िुम अपनी आत्मा को इनके मशकींजे से छुड़ाकर इन पर ववजय पा लोगे ; जब िुम इन्हे बाहर कूड़े के ढे र पर िेंक दोगे, सम्भव है कक िब िम् ु हारा पड़ोसी अपने

कदम थाम ले, और अपनी िलवार वावपस म्यान में रख ले और अपने आप से कहे ” यदद ये वस्िुएीं इस योग्य होिीीं कक इनके मलए युि ककया जाये, िो मेरा पड़ोसी इन्हे कूड़े के ढे र पर न िेंक दे िा ।” यदद िुम्हारा पड़ोसी अपना पागलपन न छोड़े और उस कूड़े के ढे र को उठाकर ले

जाये, िो ऐसे घखृ णि बोि से अपनी मुक्ति पर ख़ुशी मनाओ, लेककन अपने पडोसी के दभ ु ााग्य पर, अ़िसोस करो ।

सुलिान ; मेरे मान का, मेरी इज्जि का तया होगा जो मेरी सारी सींम्पक्त्ि से कहीीं अचिक मक ू य वान है ? मीरदाद ; मनुष्य का मान केवल मनुष्य बने रहने में है —- मनुष्य जो कक प्रभु का जीिा-जागिा प्रतिबबम्ब और प्रतिरूप है । बाकी सब मान िो अपमान ही हैं । मनुष्यों द्वारा प्रदान ककये गए सम्मान मनुष्य आसानी से छीन लेिे हैं । िलवार से मलखे गए मान को िलवार आसानी से ममटा दे िी है । कोई भी मान इस लायक नहीीं कक उसके मलए जींग लगा िीर भी िलाया जाये , िप्ि आींसू बहाना या रति की एक भी बूींद चगराना िो दरू रहा । सुलिान ; और स्विींत्रिा, मेरी और मेरी प्रजा कक स्विन्त्रिा, तया बड़े से बड़े बमलदान के लायक नहीीं ? मीरदाद ; सच्िी स्विींत्रिा िो इस लायक है कक उसके मलए अपने अहम ् की बमल दे दी जाये । िम् ु हारे पडोसी के हचथयार उस स्विींत्रिा को छीन नहीीं सकिे ; िम् ु हारे

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अपने हचथयार उसे प्राप्ि नहीीं कर सकिे, उसकी रक्षा नहीीं कर सकिे । और युि का मैदान िो सच्िी स्विन्त्रिा के मलए एक कब्र है । सच्िी स्विींत्रिा ह्रदय में ही पाई और खोई जािी है । तया युि िाहिे हो िुम ? िो अपने ह्रदय में अपने ही ह्रदय से युि करो । दरू करो

अपने ह्रदय से हर आशा को,हर भय और खोखली कामना को जो िुम्हारे सींसार को एक घुटन-भरा बाड़ा बनाये हुए हैं, और िम ु इसे ब्रह्माण्ड से भी अचिक ववशाल पाओगे ।

इस ब्रह्माण्ड में िम ु स्वेच्छा से वविरण करोगे, और कोई भी वस्िु बािा नहीीं बनेगी िुम्हारे मागा में । केवल यही एक युि है जो छे ड़ने योग्य है । जुट जाओ इस युि में और िब िम् ु हे अन्य ककसी यि ु के मलए समय ही नहीीं ममलेगा । और िब युि िुम्हे घखृ णि िथा आसुरी दााँव-पें ि प्रिीि होने लगें गे क्जनका काम होगा िुम्हारे मन को भटकाना और िुम्हारी शक्ति को सोखना, और इस प्रकार

अपने आपके ववरुि िम् ु हारे महायि ु में जो वास्िव में िमा यि ु है , िम् ु हारी पराजय का कारण बनना ।

इस यि ु को जीिने का अथा है अनींि जीवन को पाना, ककन्िु अन्य ककसी भी यि ु में ववजय पूणा पराजय से भी बुरी होिी है । और मनुष्य के हर युि का भयानक पक्ष यही है कक ववजेिा और पराक्जि दोनों के पकले पराजय ही पड़िी है । तया शाक्न्ि िाहिे हो िुम ? िो मि खोजो उसे दस्िावेजों के शब्द जाल में; और मि प्रयत्न करो उसे िट्टानों पर अींककि करने में ।तयोंकक जो लेखनी इिनी आसानी से शाींति मलख सकिी है , वह उिनी ही आसानी से युि भी मलख सकिी है ; और जी छे नी ” आओ शाींति स्थावपि करें ।” खोदिी है, वह उिनी ही आसानी से ”आओ युि करें ” भी खोद सकिी है । और इसके अतिररति, कागज़ और िट्टान, लेखनी और छे नी जकदी ही कीड़े ,जलन,जींग और प्रकृति के पररविान लाने वाले ित्वों का मशकार हो जािे हैं । ककन्िु

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मनुष्य के काल-मुति ह्रदय की बाि अलग है वह िो ददव्य ज्ञान के बैठने का मसींहासन है । जब एक बार ददव्य ज्ञान का प्रकाश हो जािा है , िो यि ु िरु ीं ि जीि मलया जािा है और ह्रदय में स्थायी शाींति स्थावपि हो जािी है । अज्ञानी ह्रदय द्वैिपूणा होिा है । द्वैिपूणा ह्रदय का पररणाम होिा है ववभाक्जि सींसार, और ववभाक्जि सींसार जन्म दे िा है तनरीं िर सींघषा और युि को । ज्ञानवान ह्रदय एकिापूणा होिा है । एकिापूणा ह्रदय का पररणाम होिा है एक सींसार, और एक सींसार शाींतिपूणा सींसार

होिा है, जबकक लड़ने के मलए दो की जरुरि होिी है । इसमलए मैं िम् ु हे सलाह दे िा हूाँ कक अपने ह्रदय को एकिापूणा बनाने के मलए उसी के ववरुि युि करो ववजय का पुरस्कार होगा स्थायी शाींति ।

हे सुलिान, जब िुम हर मशला में मसींहासन दे ख सकोगे, और हर गुिा में दग ु ा पा सकोगे, िब सूया िुम्हारा मसींहासन और िारा मींडल िुम्हारे दग ु ा बनकर बहुि प्रसन्न

होंगे । जब िम ु अपने ह्रदय पर शासन कर सकोगे, िब िम् ु हे इससे तया िका पडेगा कक िुम्हारे शरीर पर ककसका शासन है,?

जब सारा ब्रह्माण्ड िम् ु हारा होगा, िो इससे तया िका पड़ेगा कक िरिी के ककसी टुकड़े पर ककसका प्रभुत्व है ? सुलिान ; आपके शब्द कािी लुभावने हैं किर भी मि ु े लगिा है कक युि प्रकृति का तनयम है । तया समुद्र की मछमलयाीं भी तनरीं िर लड़िी नहीीं रहिीीं ? तया दब ा ु ल बलवान का मशकार नहीीं होिा ? पर मैं ककसी का मशकार नहीीं बनना िाहिा । मीरदाद ; जो िुम्हे यि ु प्रिीि होिा है वह अपना पेट भरने और अपना ववस्िार करने का प्रकृति का केवल एक ढीं ग है । बलवान को उसी प्रकार दब ा का आहार ु ल

बनाया गया है क्जस प्रकार दब ा को बलवान के मलए । और किर प्रकृति में कौन ु ल

बलवान है और कौन दब ा ? केबल प्रकृति ही बलवान है; अन्य सभी िो तनबाल जीव ु ल हैं जो प्रकृति की इक्षा का पालन करिे है और िुप िाप मत्ृ यु की िारा में बहे िले जािे हैं ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

केवल मत्ृ यु से मुति जीवों को बलवान का दजाा ददया जा सकिा है । और मनुष्य, ऐ सुलिान,मत्ृ य-ु मुति है । हााँ, प्रकृति से अचिक शक्तिशाली है मनुष्य । वह केवल इसमलए समद्र ु प्रकृति का शोषण करिा है कक अपने अभावों की पूतिा कर सके ।

वह केवल इसमलए सींिान के माध्यम से अपना ववस्िार करिा है कक अपने आपको ऐसे ववस्िार से ऊपर उठा सके । जो मनष्ु य पशु की स्वच्छ मूल-प्रवतृ ियों का

उकलेख कर के अपनी दवू षि कामनाओीं को उचिि मसि करना िाहिे हैं, उन्हें अपने आपको जींगली सअ ू र, या भेड़ड़ये, या गीदड़ या और कुछ भी कह लेने दो, परन्िु उन्हें मनष्ु य के श्रेष्ठ नाम को दवू षि मि करने दो । मीरदाद पर ववश्वास करो सल ु िान, और शाींति प्राप्ि करो । सल ु िान ; मखु खया ने मि ु े बिाया कक मीरदाद जाद ू टोने के रहस्यों का अच्छा ज्ञािा है , और मैं िाहिा हूाँ कक वह अपनी कुछ शक्तियों का प्रदशान करे िाकक मैं उन पर ववश्वास कर सकूाँ ।

मीरदाद ; यदद मनष्ु य के अींदर प्रभु प्रकट करना जाद ू है िो मीरदाद जादग ू र है । तया िुम मेरे जाद ू का कोई प्रमाण और कोई प्रदशान िाहिे हो ?िो दे खो मैं ही प्रमाण और प्रदशान हूाँ । अब जाओ क्जस काम के मलए आये हो वह करो । सुलिान ; ठीक अनुमान लगाया है िुमने कक मुिे िुम्हारी सनकी बािों से कान

बहलाने के अलावा और भी काम हैं । तयोंकक बेसार का सुलिान एक दस ू री िरह का जादग ू र है ; और अपने कौशल का वह अभी प्रदशान करे गा । मसपादहयो, अपनी जींजीरें लाओ और इस प्रभु- मनष्ु य या मनुष्य – प्रभु के हाथ पैर बााँि दो । आओ , ददखा दें इसे िथा यहााँ उपक्स्थि व्यक्तियों को कक हमारा जाद ू कैसा है ? नरौंदा ; मसपाही दहींसक पशुओीं की िरह मुमशाद पे िपटे और उनके हाथों और पैरों को जींजीरों से बाींिने लगे । क्षण भर के मलए सािों साथी स्िब्ि बैठे रहे ; उनकी समि में नहीीं आ रहा था कक उनके सामने जो हो रहा है उसे मजाक समिें या गम्भीर घटना ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ममकेयन और जामोरा ने उस अवप्रय क्स्थति की गम्भीरिा को पहले से ही समि मलया । दो क्रोचिि मसींहों की िरह वे मसपादहयों पर टूट पड़े ; और यदद मुमशाद की रोकिी और िैया बींिािी आवाज उन्हें सन ु ाई न दे िी िो उन्होंने मसपादहयों को पछाड़ ददया होिा । मीरदाद ; इन्हे अपने कौशल का प्रयोग कर लेने दो, उिावले ममकेयन । इन्हे अपनी इच्छा पूरी कर लेने दो, भले जामोरा । काले खड्ड से भयानक नहीीं हैं इनकी जींजीरें मीरदाद के मलए । शमदाम को अपनी सत्िा पर बेसार के सल ु िान की सत्िा का पैबींद लगाने की खुमशयाीं मना लेने दो । यह पैबींद ही इन दोनों को िीर डालेगा । सल ु िान ;- ऐसा ही व्यवहार ककया जाएगा हर उस दष्ु ट और पाखण्डी के साथ जो वैि अचिकार और सत्िा का ववरोि करने का दिःु साहस करे गा । मीरदाद िो सल ु तान िे मसपा ी बा र ले गए, और सल ु तान तथा िमदाम ख़ि ु ी से अिड़ते ु ए पीछे पीछे र्ल हदए ।

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय - 29 / 30 अध्याय 29 मीरदाद िोई र्मत्िार िरने न ीं आया हदव्य ज्ञान अपने आप में

ी र्मत्िार

ै .

************************************* शमदाम साचथयों को मनाकर अपने साथममलाने का असिल यत्न करिा है मीरदाद िमत्कारपण ू ा ढीं ग से लौटिा है और शमदाम के अतिररति सभी साचथयों को ववश्वास का िुम्बन प्रदान करिा है

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

नरौंदा ; जाड़े ने हमें आ दबोिा था, बहुि सख्ि, बिीले, काँपा दे ने वाले जाड़े ने । सािों साथी कभी आशा िो कभी सींदेह की लहरों के थपेड़े खा रहे थे ।

ममकेयन, ममकास्िर, जामोरा इस आशा का दामन थामे हुए थे कक ममु शाद अपने

विन के अनुसार लौट आयेंगे । बेनून, दहम्बल िथा अबबमार मुमशाद के लौटने के बारे में सींदेह को पकडे बैठे थे ।

लेककन सब एक भयानक खालीपन िथा वेदनापूणा तनरथाकिा का अनुभव कर रहे थे । नौका शीि-ग्रस्ि थी तनष्ठुर और स्नेह हीन । उसकी दीवारों पर एक विीली खामोशी छाई हुई थी,

यदयवप शमदाम उसमे जीवन िथा उत्साह का सींिार करने का भरपूर प्रयास कर

रहा था । तयोंकक जब मीरदाद को ले जाया गया िब से शमदाम दया के द्वारा हमें वश में करने की कोमशश कर रहा था । पर उसकी नम्रिा और स्नेह ने हमें उससे और अचिक दरू कर ददया । शमदाम ; मेरे साचथयो, यदद िम ु समििे हो कक मैं मीरदाद से घण ृ ा करिा हूाँ िो

िुम मेरे साथ अन्याय कर रहे हो । मुिे िो सच्िे ददल से उसपर दया आिी है । मीरदाद एक बुरा व्यक्ति भले ही न हो लेककन वह एक खिरनाक आदशावादी है , और क्जस मसिान्ि का वह इस ठोस वास्िववकिा और व्यावहाररकिा के जगि में प्रिार कर रहा, वह सवाथा अव्यावहाररक और िूठा है । गि कई वषों में नौका का प्रबन्ि कौन मुिसे अचिक लाभदायक ढीं ग से िला सकिा था ? क्जसका हम इिने समय से तनमााण करिे आ रहे हैं वह सब एक अजनबी के हाथों तयों नष्ट करने ददया जाए । और जहाीं ववश्वास का प्रभत्ु व था वहााँ उसे अववश्वास का, िथा जहााँ शाींिी का राज्य था वहााँ उसे कलह का बीज तयों बोने ददया जाए ? वह हवा में, अपार शन् ू य में एक नौका जट ु ाने का वादा करिा है .एक पागल का सपना, एक बिकानी ककपना, एक मिुर असींभावना । तया वह मााँ नौका के सींस्थापक वपिा नूह से भी अचिक समिदार है ? उसकी बेसर पैर की बािों पर वविार करने के मलए िम ु से कहिे हुए

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मुिे बहुि दिःु ख हो रहा है ।

मीरदाद के ववरुि अपने ममत्र बेसार के सल ु िान से उसकी सशति भुजाओीं की सहायिा माींगकर मैंने नौका िथा उसकी पववत्र परम्पराओीं के प्रति अपराि भले ही ककया हो, ककन्िु मैं िुम्हारी भलाई िाहिा था । ककन्िु अब, मेरे साचथयो, मैं अपने आपको हजरि नूह के प्रभु िथा उनकी नौका की, और िुम्हारी सेवा में समवपाि करिा हूाँ । पहले की िरह प्रसन्न रहो िाकक िुम्हारी प्रसन्निा से मेरी प्रसन्निा पूणा हो जाए ।

नरौंदा ; यह कहिे-कहिे शमदाम रो पड़ा । बहुि दयनीय थे उसके आींसू तयोंकक

आींसू बहाने वाला वह अकेला था ; उसके आींसुओीं को हमारे ह्रदय और आाँखों में कोई साथी नहीीं ममल रहा था । एक ददन प्राििःकाल, जब िींि ु ले मौसम की लम्बी घेराबन्दी के बाद सय ू ा ने पहाड़ड़यों पर अपनी ककरणें बबखेरीीं, ज़मोरा ने अपना रबाब उठाया और गाने लगा अब जम गया है गाना शीिहि होठों परमेरे रबाब के ।

तघर गया बिा में सपना बिा से तघरे ह्रदय में मेरे रबाब के । है श्वाींस कहााँ वह िेरे गाने को जो दे वपघला ऐ रबाब मेरे ? हैं हाथ कहााँ वह िेरे सपने को जो छुड़वा दें , ऐ रबाब मेरे ? बेसार के िहखाने में । आओ, ऐ मभखाररन वायु , माींग लो मेरी खातिरइक गाना जींजीरों से बेसार के िहखाने की । जाओ , ऐ ििुर रवव ककरणो, िुरा लाओ मेरी खातिरएक सपना जींजीरों सेबेसार के िहखाने की । पींख गरुड़ का मेरेछाया था पुरे नभ पर,उसके नीिे मैं राजा । अब हूाँ

अनाथ इक केवल और पररत्यति इक बालक, है नभ पर राज उलूक का,तयोंकक उड़ गया गरुड़ है बहुि दरू एक नीड़ को …….बेसार के िहखाने को । नरौंदा ; ज़मोरा के हाथ मशचथल हो गये, सर रबाब पर िक ु गया और उसकी आाँखों से आींसू टपक पड़ा । उस आींसू ने हमारी दबी हुई वेदना के बााँि को िोड़ ददया और हमारी आाँखों से आींसुओीं की िारा बह िली। ममकेयन सहसा उठकर खड़ा हो गया, और ऊाँिे स्वर में यह कहिे हुए

कक मेरा दम घुट रहा है । वह िेजी से बाहर खुली हवा में िला गया । जामोरा

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ममकास्िर और मैं उसके पीछे -पीछे िार ददवारी के द्वार िक पहुाँि गए क्जससे आगे बढ़ने का साहस करने की अनम ु ति साचथयों की नहीीं थी. ममकेयन ने एक जोरदार िटके के साथ भारी अगाला को खीींि मलया, ितका दे कर द्वार खोल ददया और वपींजरे से भागे बाघ की िरह बाहर तनकल गया अन्य िीनो भी ममकेयन के साथ-साथ बाहर िले आये । सूया की सुहावनी गमी और िमक थी, और उसकी ककरणे जमी हुई बिा से टकरािे

हुए मड़ ु कर अपनी िमक से हमारी आाँखों को िकािोंि कर रहीीं थी, जहााँ िक दृष्टी पहुाँििी बिा से ढकी ऊाँिी-नीिी वक्ष ृ -रदहि पहाड़ड़यााँ हमारे सामने िैली हुई थीीं

लगिा था मानो सब कुछ प्रकाश के ववलक्षण रीं गों से प्रदीप्ि है िारों ओऱ गहरी

ख़ामोशी छाई हुई थी जो कानो में िुभ रही थी, केवल हमारे पैरों के नीिे िरमरा रही बिा उस ख़ामोशी के जाद ू को िोड़ रही थी ।

हवा यदयवप शरीर को वेि रही थी , किर भी हमारे िेिड़ों को इस िरह दल ु ार रही

थी कक हमें लग रहा था हम अपनी ओऱ से कोई यत्न ककये बबना ही उड़े जा रहे हैं । और िो और, ममकेयन की मनोदशा भी बदल गई । वह रूककर ऊाँिी आवाज में बोला, ” ककिना अच्छा लगिा है सााँस ले सकना । आह, केवल साींस ले सकना । और सिमुि ऐसा लगा कक हमने पहली बार स्विन्त्रिा से साींस लेने का आनींद पाया है और साींस के अथा को जाना है ।हम थोड़ी दरू िले ही थे कक ममकास्िर को दरू ऊाँिे टीले पर एक काली छाया सी ददखाई दी । हममें से कुछ ने सोिा याक

कोई अकेला भेड़ड़या है ; कुछ को लगा वह एक िट्टान है । पर वह छाया हमारी ओर आिी लग रही थी ; हमने उसकी ददशा में िलने का तनश्िय ककया ।

वह हमारे तनकट और तनकट आिी गई और िीरे -िीरे उसने एक मानवीय आकार िारण कर मलया । अिानक ममकेयन ने आगे की ओर छलााँग लगािे हुए जोर से कहा अरे ” ये िो वही हैं ! ये िो वही हैं !और वे थे भी वही — उन्ही की मनमोहक िाल, उन्ही की

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

गौरवशाली मुद्रा, उन्ही का गररमामय उन्नि मस्िक । परन्िु उनके काले, स्वप्न दशी, सदा की िरह ज्योतिमाय नेत्रों से गम्भीर शाींति और ववजयी प्रेम की लहरें प्रभाववि हो रहीीं थीीं । ममकेयन सबसे पहले उनके पास पहुींिा । मससकिे िथा हाँसिे हुए उनके िरणो में

चगर गया और बेसुिी- की-सी दशा में बड़बड़ाया ” मेरी आत्मा मुिे वावपस ममल गई ।”एक एक सभी उनके िरणों में चगर पड़े । मुमशाद ने एक एक करके उठाया असीम प्यार से हर एक को गले लगाया और कहा ;मीरदाद ; ववश्वास का िुम्बन ग्रहण करो । अब से िम ु ववश्वास में सोओगे और ववश्वास में जागोगे ; सींदेह िम् ु हारे िककये में बसेरा नहीीं करे गा, और न ही िम् ु हारे कदमो को अतनश्िय के द्वारा जकड़ेगा । शमदाम शन् ू य दक्ॄ ष्ट से दे खिा रहा । वह सर से पैर िक कााँप रहा था उसका िेहरा मद ु े जैसा पीला पद

गया था । अिानक वह अपने आसन से सरका और हाथो िथा पैरों के बल रें गिे हुए वहााँ जा पहुाँिा जहााँ ममु शाद खड़े थे । उसने मुमशाद के पैरों को अपनी बाहों में ले मलया और जमीन की िरि मुींह ककये हुए व्याकुलिा के साथ कहा ” मि ु े भी ववश्वास है ।” ममु शाद ने उसे भी उठाया,

लेककन उसे िूमे बबना कहा ;मीरदाद ; यह भय है जो शमदाम के भारी- भरकम शरीर को काँपा रहा है और उससे कहलवा रहा है ” मुिे भी ववश्वास है । शमदाम

उस जाद ू के सामने कााँप रहा है और मसर िक ु ा रहा है क्जसने मीरदाद को काले – खड्ड िथा बेसार की कालकोठरी से बाहर तनकाल ददया । और शमदाम को डर है कक उससे बदला मलया जाएगा । इस बारे में उसे तनक्श्िन्ि रहना िादहए और अपने ह्रदय को ववश्वास की ददशा में मोड़ना िादहए । वह ववश्वास जो भय की लहरों पर उठिा है , भय का िाग मात्र होिा है ; वह भय के साथ उठिा है और उसी के साथ बैठ जािा है । सच्िा ववश्वास प्रेम की टहनी पर ही खखलिा है , और कहीीं नहीीं । उसका िल होिा है ददव्य ज्ञान । अगर िम् ु हे प्रभु से डर लगिा है िो प्रभु पर ववश्वास मि करो । ….शमदाम ; ( पीछे हटिे हुए आाँखें तनरीं िर िशा पे गड़ाये हुए ) अपने ही घर में अनाथ और

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

बदहष्कृि है शमदाम कम से कम एक ददन के मलए िो मुिे आपका सेवक बनने और आपके मलए कुछ भोजन िथा कुछ गमा कपडे लाने की अनुमति दें , तयोंकक आपको बहुि भख ू लगी होगी और ठण्ड सिा रही होगी ।

मीरदाद ; मेरे पास वह भोजन है क्जससे रसोई घर अनजान है : और वह गमााहट है जो ऊन के िागों या आग की लपटों से उिार नहीीं ली जा सकिी । काश, शमदाम ने अपने भण्डार में वह भोजन और गमााहट अचिक िथा अन्य खाद्य- सामग्री और ईंिन कम रखे होिे । दे खो, समुद्र पवाि-मशखरों पर शीिकाल बबिाने आया है । मशखर जमे हुए समद्र ु को कोट के समान पहनकर प्रसन्न हो रहे हैं, और अपने कोट में गमााहट महसूस कर रहे हैं । प्रसन्न है समुद्र भी कुछ समय के मलए मशखरों पर इिना शाींि, इिना मींत्रमुग्ि हो लेटने में, लेककन कुछ समय के मलए ही ।

तयोंकक बसींि अवश्य आयेगा, और समुद्र शीिकाल में तनक्ष्क्रय पड़े सपा की िरह अपनी कुण्डली खोलेगा िथा अस्थाई िौर पर चगरवी रखी अपनी स्विन्त्रिा वापस

ले लेगा एक बार किर वह एक िट से दस ू रे िट की ओर लहरायेगा ; एक बार किर वह हवा पर सवार होकर आकाश की सैर करे गा, और जहााँ िाहे गा िुहार के रूप में अपने आपको बबखेर दे गा । ककन्िु िुम जैसे लोग भी हैं क्जनका जीवन एक अन्िहीन शीिकाल और गहरी

दीघा- तनद्रा है । ये वे लोग हैं क्जन्हे अभी िक बसींि के आगमन का सींकेि नहीीं ममला । दे खो, मीरदाद वह सींकेि है । जीवन का सींकेि है मीरदाद, मत्ृ यु का सन्दे श नहीीं िुम और कब िक गहरी नीींद

सोिे रहोगे ? ववश्वास करो शमदाम जो क्जींदगी लोग जीिे हैं और जो मौि वे मरिे हैं दोनों ही दीघा – तनद्रा हैं । और मैं लोगों को उनकी नीींद से जगाने और उनकी गुिाओीं और बबलों से तनकालकर उन्हें अमर जीवन की स्विींत्रिा में ले जाने के मलए आया हूाँ । मुि पर ववश्वास करो मेरी खातिर नहीीं, िुम्हारी अपनी खातिर । मीरदाद ; बेसार का बींदीगहृ अब बींदीगहृ नहीीं रहा, एक पूजा- स्थल बन गया है । बेसार का सल ु िान भी अब सल ु िान नहीीं रहा । आज वह िम् ु हारी िरह सत्य का खोजी यात्री है । ककसी अाँिेरी कालकोठरी को एक उज्जवल प्रकाश – स्िम्भ में

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

बदला जा सकिा है, बेनून । ककसी अमभमानी सल ु िान को भी सत्य के मक ु ु ट के सामने अपना मक ु ु ट त्यागने के मलए प्रेररि ककया जा सकिा है । और क्रुि जींजीरों से भी ददव्य सींगीि उत्पन्न ककया जा सकिा है ददव्य ज्ञान के मलए कोई काम िमत्कार नहीीं है । िमत्कार िो स्वयीं ददव्य ज्ञान है । अध्याय 30 मुमिचद आप िे सभी सपनों िो जानता



—————————— ☞ननज घर िे मलए म ाववर ☜ ************************************ मुमशाद ममकेयन का स्वप्न सुनािे हैं नरौंदा ; मुमशाद के बेसार से लौटने से पहले और इसके बाद कािी समय िक हमने

ममकेयन को एक मस ु ीबि में पड़े व्यक्ति कक िरह आिरण करिे दे खा । अचिकिर वह अलग रहिा, न कुछ बोलिा, न खिा और कम ही अपनी कोठरी से बाहर

तनकलिा । एक ददन जब ममकेयन िथा बाक़ी साथी अाँगीठी के िारों ओर बैठे आग िाप रहे थे, मुमशाद ने ” तनज घर के मलए महाववरह ” के ववषय में प्रविन आरम्भ ककया । मीरदाद ; एक बार ककसी ने एक सपना दे खा, और वह सपना यह था ; उसने अपने आपको एक िौड़ी, गहरी खामोशी से बहिी नदी के हरे -भरे िट पर खड़े दे खा । िट हर आयु के और हर बोली बोलनेबाले स्त्री-पुरुष और बच्िों के ववशाल समह ू से भरा

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हुआ था । सबके पास अलग-अलग नाप िथा रीं ग के पदहये थे क्जन्हे वे िट पर ऊपर और नीिे की ओर ठे ल रहे थे ।

ये जन-समह ू शोख रीं ग के वस्त्र पहने हुए थे और मौज मनाने िथा खाने – पीने के मलए तनकले थे । उनके कोलाहल से वािावरण गूींज रहा था । अशाींि सागर की

लहरों की िरह वे ऊपर-नीिे, आगे-पीछे आ-जा रहे थे । वही एक ऐसा व्यक्ति था जो दावि के मलए सजा- साँवरा नहीीं था, तयोंकक उसे ककसी दावि की जानकारी नहीीं थी । और केवल उसी के पास ठे लने के मलए कोई पदहया नहीीं था । उसने बड़े ध्यान से सुनने का यत्न ककया, पर उस उस बहुभाषी भीड़ से वह एक भी ऐसा शब्द नहीीं

सन ु पाया जो उसकी अपनी बोली से ममलिा हो, उसने बड़े ध्यान से दे खने का यत्न ककया,। पर उसकी दक्ॄ ष्ट एक भी ऐसे िेहरे पर नहीीं अटकी जो उसका जाना पहिाना हो । इसके अतिररति भीड़ जो उसके िारों ओर उमड़ रही थी उसकी ओर अथा – भरी नजरें डाल रही थी मानो कह रही हों, ” यह ववचित्र व्यक्ति कौन है ?” किर अिानक उसकी समि में आया यह दावि उसके मलए नहीीं है ; और िब उसके मन में एक टीस उठी । …….शीघ्र ही उसे िट के ऊपरी मसरे से आिी हुई एक

ऊाँिी गरज सुनाई दी, और उसी क्षण उसने दे खा वे असींख्य लोग दो पींक्तियों में बाँटिे हुए घुटनो के बल िुक गए, उन्होंने अपने हाथों से अपनी आाँखें बींद कर लीीं और अपने सर िरिी पर िुका ददये ;

और उन पींक्तियों के बीि िट की पूरी लम्बाई िक एक खली, सीिा और िींग रास्िा बन गया और वह अकेला ही रास्िे के बीि खड़ा रह गया । वह समि नहीीं पा रहा था कक वह तया करे और ककस ओर मुड़े । जब उसने उस ओर दे खा क्जिर से गरज कक आवाज आ रही थी िो उसे एक बहुि बड़ा सााँड़

ददखाई ददया जो मुींह से आग की लपटें और नथुनों से िुींएाँ के अम्बार, और जो उस मागा पर बबजली की गति से बेिहाशा दौड़िा हुआ आ रहा था ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

भयभीि होकर उसने उस क्रोिोन्मत्िपअस की ओर दे खा िथा दाईं या बाईं िरि भागकर बिना िाहा, पर बिाव का कोई रास्िा ददखाई नहीीं ददया । उसे लगा वह जमीन में गाड़ गया और अब मत्ृ यु तनक्श्िि है । ज्यों ही सााँड़ उसके इिना नजदीक पहुींिा कक उसे िुलसािी लौं और िुआाँ महसूस हुआ, उसे ककसी ने हवा में उठा मलया । उसके नीिे खड़ा सााँड़ ऊपर की ओर आग और िुींआीं छोड़ रहा था ; ककन्िु वह ऊाँिा और ऊाँिा उठिा गया, और यद्यवप आग

और िुींआीं उसे अब भी महसूस हो रहे थे िो भी उसे कुछ ववश्वाश हो गया था कक अब सााँड़ उसका कुछ नहीीं बबगाड़ सकिा ।

उसने नदी को पार करना शुरू कर ददया। नीिे हरे -भरे िट पर उसने दृष्टी डाली िो दे खा कक जन समद ु ाय अब भी पहले की िरह घट ु नोके बल िक ु ा हुआ है , और सााँड़ अब उस पर आग और िए ु ाँ के बजाय िीर छोड़ रहा है । अपने नीिे से होकर

तनकलने रहे िीरों की सरसराहट उसे सुनाई दे रही थी ; उसमे से कुछ उसके कपड़ों में िाँस गए, पर उसके शरीर को एक भी न छू सका ।

आखखर सााँड़, भीड़, नदी आाँखों से ओिल हो गए ; और वह व्यक्ति उड़िा िला गया । उड़िे उड़िे वह एक सन ु सान, िप ू से िल ु से भू-खण्ड पर से गज ु रा क्जस पर जीवन का कोई चिन्ह न था । अींि में वह एक ऊाँिे, बीहड़ पवाि की उजाड़ िलहटी में उिरा जहााँ घाींस की एक पक्त्ि िो तया, एक तछपकली, एक िीींटी िक न थी । उसे लगा कक पवाि के ऊपर से होकर जाने के मसवाय उसके मलए कोई िारा नहीीं है । बड़ी दे र िक वह ऊपर िढ़ने का कोई सुरक्षक्षि मागा ढूाँढिा रहा, ककन्िु उसे एक पगडण्डी ही ममली जो मक्ु श्कल से ददखाई दे िी थी , और क्जस परमसिा बकररयाीं ही

िल सकिी थीीं । उसने उसी राह पर िलना तनश्िय ककया ।वह अभी कुछ सौ िुट

ही ऊपर िढ़ा होगा कक उसे अपनी बाईं ओर तनकट ही एक िौड़ा और समिल मागा ददखाई ददया । वह रुका और अपनी पगडन्डी को छोड़ने बल ही था कक वह मागा एक मानवीय प्रवाह बन गया क्जसका आिा भाग बड़े श्रम से ऊपर िढ़ रहा था, और दस ू रा आिा भाग अींिािुींि बड़ी िेजी के साथ पहाड़ से नीिे आरहा था । अनचगनि स्त्री पुरुष

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

सींघषा करिे हुए ऊपर िढ़िे, और किर कलाबाजी खािे हुए नीिे लुढक जािे थे, और जब बे नीिे लुढ़किे थे िो ऐसी िीख -पुकार करिे थे कक ददल दहल जािा था ।

वह व्यक्ति थीींदी दे र यह अद्भि ु दृष्य दे खिा रहा और मन ही मन इस निीजे पर

पहुींिा कक पहाड़ के ऊपर कहीीं एक बहुि बड़ा पागलखाना है, और नीिे लुड़कने वाले लोग उनमे से तनकल भागने वाले पागलों में से कुछ हैं । कभी चगरिे िो कभी

सींभलिे हुए वह अपनी घुमावदार पगडण्डी पर िलिा रहा, लेककन ितकर काटिे हुए वह तनरीं िर ऊपर की ओर बढ़िा गया |

थके, बोखिल पैरों से मागा पर रति-चिन्ह छोड़िे हुए वह आगे बढ़िा गया । कदठन जी-िोड़ पररश्रम के बाद वह एक ऐसी जगह पहुाँिा जहााँ ममटटी नरम और पत्थरों

से रदहि थी । उसकी ख़श ु ी का दठकाना न रहा जब उसे िारों ओर घाींस के कोमल अींकुर ददखाई ददए ; घाींस इिनी नरम थी और ममटटी इिनी मखमली और हवा इिनी सुगींिमय और शाक्न्ि दायक कक उसे वैसा ही अनुभव हुआ जैसा अपनी शक्ति के अींतिम अींश को खो दे ने वाले ककसी व्यक्ति को होिा है ।

अिएव उसने हाथ-पैर ढीले छोड़ ददए उसे नीींद आगई । ककसी हाथ के स्पशा और एक आवाज ने उसे जगाया, ”उठो ! मशखर सामने है और बसींि मशखर पर िम् ु हारी प्रिीक्षा कर रहा है ।” वह हाथ और वह स्वर था स्वगा की अप्सरा-सी एक अत्यींि रूपविी कन्या का जो अत्यींि उज्जवल स़िेद वस्त्र पहने थी । उस कन्या ने कोमलिा-पूवक ा उस व्यक्ति का हाथ अपने हाथ में मलया और एक नै स्िूतिा िथा उत्साह के साथ वह उठ खड़ा हुआ उसे सिमुि मशखर ददखाई ददया ।

उसे सिमि ु बसींि की सग ु न्ि आई । ककन्िु जैसे ही उसने पहला डग भरने को पैर उठाया, वह जाग पड़ा और उसका सपना टूट गया ।

ऐसे सपने से जागकर ममकेयन यदद दे खे कक वह िार सािारण दीवारों से तघरे एक सािारण-से बबस्िर पर पड़ा हुआ है , परन्िु उसकी पलकों की ओट में उस कन्या की छवव जगमगा रही हो और उस मशखर की सुगींिपूणा काींटी उसके ह्रदय में िाजी हो, िो वह तया करे गा ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ममकेयन ; (मानो उसे सहसा गहरी िोट लगी हो ) पर वह सपना दे खने वाला िो मैं हूाँ मेरा ही वह सपना । मैंने ही दे खा है उस कन्या और मशखर की िलक । आज िक वह सपना मि ु े रह रह कर सिािा है और मि ु े ज़रा भी िैन नहीीं लेने दे िा । उसने िो मि ु े मेरे मलए ही अजनबी बना ददया है । उसी के कारण ममकेयन ममकेयन को नहीीं पहिानिा । आह ! उस मशखर की स्विींत्रिा ! आह, उस कन्या का सौंदया ! ककिना िुच्छ है और सब उनकी िुलना में । मेरी अपनी आत्मा उनकी खातिर मुिे छोड़ गई थी । क्जस ददन मैंने आपको

बेसार से आिे दे खा उसी ददन मेरी आत्मा मेरे पास लौटी और मैंने अपने आपको शाींि िथा सबल पाया । पर यह एहसास अब मि ु े छोड़ गया है , और अनदे खे िार मि ु े एक बार किर मि ु से दरू खीींि रहे हैं । मि ु े बिा लो, मेरे महान साथी । मैं वैसे नज़ारे की एक िलक के मलए घुला जा रहा हूाँ । मीरदाद ; िुम नहीीं जानिे, िुम तया माींग रहे हो, ममकेयन । तया िम ु अपने मक्ु तिदािा से मत ु ि होना िाहिे हो ?

ममकेयन ; मैं इस सींसार में, जो अपने घर में इिना सुखी है , बेघर होने की इस असह्य यािना से मत ु ि होना िाहिा हूाँ । मैं उस मशखर पर कन्या के पास पहुींिना िाहिा हूाँ ।

ख़ुशी मनाओ कक तनज घर के मलए महाववरह ने िम् ु हारे ह्रदय को जकड मलया है । तयोंकक वह एक अटल आश्वासन है कक िम् ु हे अपना दे श और अपना घर आवश्य ममलेगा और िुम उस मशखर पर उस कन्या के पास अवश्य पहुींिोगे अबीमार,; कृपया हमें इस ववरह के बारे में और बिाएीं ।

हम इसे ककन चिन्हों से पहिान सकिे हैं ?

(hindi) किताब ए मीरदाद-अध्याय - 31 / 32

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

अध्याय -31 ननज– घर िे मलए म ाववर ***************************************** मीरदाद ; िींि ु के सामान है तनज-घर के मलए महाववरह । क्जस प्रकार समुद्र और िरिी से उठी िुींि समुद्र और िरिी पर ऐसे छा जािी है कक उन्हें कोई दे ख नहीीं सकिा, इसी प्रकार ह्रदय से उठा महाववरह ह्रदय पर ऐसे छा जािा है कक उसमे और कोई भावना प्रवेश नहीीं कर सकिी । और जैसे िुींि स्पष्ट ददखाई दे ने वाले पदाथा को आाँखों से ओिलकरके स्वयीं एकमात्र यथाथा बन जािी है , वैसे ही वह ववरह मन की अन्य भावनाओीं को दबाकर स्वयीं प्रमुख भावना बन जािा है । और यद्यवप ववरह उिना ही आकारहीन, लक्ष्यहीन िथा अींिा प्रिीि होिा है क्जिनी कक िुींि, किर भी िि ुीं की िरह ही इसमें अनींि अज्ञाि आकार भी होिे हैं, इसकी दृष्टी स्पष्ट होिी है िथा इसका लक्ष्य सुतनक्श्िि । ज्वर के सामान है यह महाववरह ।

जैसे शरीर में सुलगा ज्वर शरीर के ववष को भस्म करिे हुए िीरे -िीरे उसकी प्राणशक्ति को क्षीण कर दे िा है । वैसे ही अींिर की िड़प से जन्मा यह ववरह मन के

मैल िथा मन में एकबत्रि हर अनावश्यक वविार को नष्ट करिे हुए मन को तनबाल बना दे िा है ।

एक िोर के सामान है यह महा ववरह । जैसे तछपकर अींदर घस ु ा िोर अपने मशकार का भार िो कुछ हलका करिा है, पर उसे बहुि दख ु ी कर जािा है, वैसे ही यह ववरह

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

गुप्ि रूप से मन के सारे बोि िो हर लेिा है, पर ऐसा करिे हुए उसे बहुि उदास कर दे िा है और बोि के अभाव के बोि िले ही दबा दे िा है ।

िौड़ा और हरा-भरा है वह ककनारा जहााँ परु ु ष और क्स्त्रयाीं नाििे, गािे, पररश्रम करिे िथा रोिे हुए अपने क्षणभींगुर ददन गाँवा दे िे हैं । ककन्िु भयानक है आग और िआ ु ाँ उगलिा वह सााँड़ जो उनके पैरों को बााँि दे िा है , उनसे घुटने दटकवा दे िा है, उनके

गीिों को वापस उनके ही कींठ में ठूाँस दे िा है और उनकी सज ू ी हुई पलकों को उन्ही के आींसुओीं में चिपका दे िा है ।

िौड़ी और गहरी भी है वह नदी जो उन्हें दस ू रे ककनारे से अलग रखिी है । और उसे वे न िैरकर, और न ही िप्पू अथवा पाल से नौका को खेकर पार कर सकिे हैं । उनमे से थोड़े, बहुि ही थोड़े लोग उस पर चिींिन का पुल बााँिने का साहस करिे हैं ।

ककन्िु सभी, लगभग सभी, बड़े िाव से अपने ककनारों से चिपके रहिे हैं । जहााँ हर कोई अपना समय रूपी प्यारा पदहया ठे लिा रहिा है । महाववरही के पास ठे लने के मलए कोई मनपसींद पदहया नहीीं होिा । िनावपण ू ा व्यस्ििा और समयाभाव द्वारा सिाये इस सींसार में केवल उसी के पास कोई काम िींिा नहीीं होिा, उसीको जकदी नहीीं होिी । पहनावे, बोलिाल, और आिार- व्यवहार में इिनी शालीन मनुष्य जािी के बीि वह अपने आपको वस्त्र हीन, हकलािा हुआ और अनाड़ी पािा है । हाँसने वाले के साथ वह हाँस नहीीं पािा, और n ही रोने वाले के साथ वह रो पािा है । मनष्ु य खािे हैं, पीिे हैं, और खाने-पीने में आनींद लेिे हैं ; पर वह स्वाद के मलए खाना नहीीं खािा, और जो वह पीटा है वह उसके मलए नीरस ही होिा है । औरों के जीवन साथी होिे हैं, या वे जीवन साथी खोजने में व्यस्ि हैं ; पर वह अकेला िलिा है , अकेला सोिा है अकेला ही अपने सपने दे खिा है । लोग साींसाररक बुवि िथा समिदारी की दृष्टी से बड़े अमीर हैं ; एक वही मूढ़ और

बेसमि है । औरों के पास सख ु द स्थान हैं क्जसे वह घर कहिे हैं , एक वही बेघर है

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

औरों के पास कोई ववशेष भू-खण्ड हैं क्जन्हे वे अपना दे श कहिे हैं िथा क्जनका गौरव गान वे बहुि ऊाँिे स्वर में करिे हैं ; अकेला वही है क्जसके पास ऐसा कोई भ-ू खींड नहीीं क्जसका वह गौरव-गान करे और क्जसे वह अपना दे श कहे ।यह सब इसमलए कक उसकी आींिररक दृष्टी दस ू रे ककनारे की ओर है ।तनद्रािारी होिा है महाववरही इस पूणि ा या जागरूक ददखने वाले सींसार के बीि । वह एक ऐसे स्वप्न से प्रेररि होिा है क्जसे उसके आस-पास के लोग न दे ख सकिे हैं, न महसस ू कर सकिे हैं । और इसमलये वे उसका तनरादर करिे हैं और दबी आवाज में उसकी खखकली उड़ािे हैं । ककन्िु जब भय का दे विा– आग और िआ ु ाँ उगलिा वह सााँड़— प्रकट होिा है िो उन्हें िल ु िाटनी पड़िी है , जबकी तनद्रािारी, क्जसका वे तनरादर करिे और खखकली उड़ािे थे, ववश्वास के पींखों पर उनसे और उनके सााँड़ से ऊपर उठ जािा है , और दरू , दस ू रे ककनारे के पार, बीहड़ पवाि की िलहटी में पहुाँि जािा है । बींजर, और उजाड़, और सुनसान है वह भूमम क्जस पर से तनद्रािारी उड़िा है । ककन्िु ववश्वास के पींखों में बल है ; और वह व्यक्ति उड़िा िला जािा है । उदास, और वनस्पति हीन और अत्यींि भयानक है वह पवाि क्जसकी िलहटी में वह उिरिा है । ककन्िु ववश्वाश का ह्रदय अजेय है ; और उस व्यक्ति का ह्रदय साहसपूवक ा िड़किा िला जािा है । पथरीला, रपटीला और कदठनाई से ददखाई दे ने वाला है पहाड़ पर जािा उसका रास्िा । परन्िु रे शम-सा कोमल है ववश्वास का हाथ, क्स्थर है उसका पैर, और िेज है उसकी आाँख, और वह व्यक्ति िढ़िा िला जािा है ।रास्िे में उसे समिल, िौड़े मागा से पहाड़ पर िढ़िे हुए पुरुष और क्स्त्रयाीं ममलिे हैं । वे अकपववरही पुरुष और क्स्त्रयाीं हैं जो िोटी पर पहुाँिने की िीव्र इच्छा िो रखिे हैं, परन्िु एक लींगड़े और दृक्ष्टहीन मागादशाक के साथ । तयोंकक उनका मागादशाक है

उन वस्िओ ु ीं में ववश्वास क्जन्हे आाँखें दे ख सकिी हैं, और क्जन्हे कान सन ु सकिे हैं,

और क्जन्हे हाथ छू सकिे हैं,और क्जन्हे नाक और क्जव्हा सूींघ और िख सकिे हैं ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

उनमे से कुछ पवाि के टखनों से ऊपर नहीीं िढ़ पािे कुछ उसके घुटनों िक पहुाँििे हैं कुछ कूकहे िक, और बहुि थोड़े कमर िक ।

ककन्िु उस सन् ु दर िोटी की िलक पाये बबना वे सब अपने मागादशाक सदहि किसलकर पवाि से नीिे लुढ़क जािे हैं ।तया आाँखें वह सब दे ख सकिी हैं जो दे खने योग्य है , और तया कान वह सब सुन सकिे हैं जो सुनने योग्य है ?

तया हाथ वह सब छू सकिा है जो छूने योग्य है , और तया नाक वह सब सूींघ सकिी है जो सूींघने योग्य है ? तया क्जव्हा वह सब िख सकिी है जो िखने योग्य है ? जब ददव्य ककपना से उत्पन्न ववश्वास उनकी सहायिा के मलए आगे बढ़े गा, केवल िभी ज्ञानेक्न्द्रयााँ वास्िव में अनभ ु व करें गी और इस प्रकार मशखर िक पहुाँिने के मलये सीदढ़यााँ बनेंगी ।ववश्वास से रदहि ज्ञानेक्न्द्रयााँ अत्यींि अववश्वसनीय मागादशाक हैं ।

िाहे उनका मागा समिल और िौड़ा प्रिीि होिा हो, किर भी उनमे कई तछपे िन्दे और अनजाने खिरे होिे हैं । और जो लोग स्विन्त्रिा के मशखर पर पहुाँिने के मलए इस मागा को अपनािे हैं, वे या िो रास्िे में ही मर जािे हैं, या किसलकर वापस लढ़ ु किे हुए वापस वहीीँ पहुाँि जािे हैं जहाीं से वे िले थे ; और वहााँ वे अपनी टूटी हड्ड़डयों को जोड़िे हैं और अपने खुले घावों को सीींिे हैं | अकपववरही वे हैं जो अपनी ज्ञानेक्न्द्रयों से एक सींसार रि िो लेिे हैं, लेककन जकदी ही उसे छोटा िथा घट ु न-भरा पािे हैं ; और इसमलए वे एक अचिक बड़े और अचिक हवादार घर की ककपना करने लगिे हैं । परन्िु नई तनमााण– सामग्री और नये कुशल राजगीर को ढूाँढ़ने के बजाय वे पुरानी तनमााण– सामग्री ही बटोर लेिे हैं और उसी राजगीर को —- ज्ञानेक्न्द्रयों को —– अपने मलए एक अचिक बड़े घर का नतशा बनाने और उसका तनमााण करने का काम सौंप दे िे हैं । नये घर के बनिे ही वह उन्हें पुराने घर की िरह छोटा िथा घुटन-भरा प्रिीि होने

लगिा है । इस प्रकार वे ढहाने-बनाने में ही लगे रहिे हैं और सख ु िथा स्विन्त्रिा

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

प्रदान करने वाले क्जस घर के मलए वे िड़पिे हैं, उसे कभी नहीीं बना पािे, तयोंकक ठगे जाने से बिने के मलए वे उन्हीीं का आसरा लेिे हैं क्जनके द्वारा वे ठगे जा िुके हैं । और जैसे मछली कड़ाही में से उछलकर भट्टी में जा चगरिी है, वैसे ही वे जब ककसी छोटी मग ृ िष्ृ णा से दरू भागिे हैं िो कोई बड़ी मग ृ िष्ृ णा उन्हें अपनी ओर खीींि लेिी है । महाववरही िथा अकपववरही व्यक्तियों के बीि ऐसे मनुष्यों के ववशाल समूह हैं क्जन्हे कोई ववरह महसूस नहीीं होिा । वे खरगोशों की िरह अपने मलए बबल खोदने और उन्ही में रहने, बच्िे पैदा करने और मर जाने में सन्िुष्ट हैं । अपने बबल उन्हें कािी सुन्दर, ववशाल और आरामदे ह प्रिीि होिे हैं क्जन्हे वे ककसी राजमहल के वैभव से भी बदलने को िैयार नहीीं । वे तनद्रािाररयों का मजाक उड़ािे हैं, खासकर उनका जो एक ऐसी सूनी पगडण्डी पर िलिे हैं क्जस पर पद चिन्ह ववरले ही होिे हैं और बड़ी मुक्श्कल से पहिाने जािे हैं । अपने साथी मनुष्यों के बीि में महाववरही वैसा ही होिा है जैसा वह गरुड़ क्जसे मग ु ी ने सेया है और जो िज ू ों के साथ उनके बाड़े में बन्द है । उसके भाई-िूजे िथा मााँ-मुगी िाहिे हैं कक वह बाल- गरुड़ उन्ही के जैसे स्वभाव और आदिों वाला, और उन्ही की िरह रहनेवाला । और वह िाहिा है कक िज ू े उसके समान हों, अचिक खुली हवा और अनींि आकाश के स्वप्न दे खने वाले । पर शीघ्र ही वह उनके बीि अपने आपको एक अजनबी और अछूि पािा है ; वे सब उसको िोंि मारिे हैं यहााँ िक कक उसकी मााँ भी ।

ककन्िु उसे अपने रति में मशखरों की पुकार बड़े जोर से सुनाई दे िी है , और बाड़े की दग ा ि उसकी नाक में बुरी िरह िुभिी है । किर भी वह सब कुछ िुपिाप सहिा ु न् रहिा है जब िक उसके पींख पूरी िरह नहीीं तनकल आिे । और िब वह हवा पर सवार हो जािा है , और प्यार-भरी ववदा-दृष्टी डालिा है अपने भूिपूवा भाइयों और उनकी मााँ पर जो दानो और कीड़ों के मलये ममटटी कुरे दिे हुए मस्िी में कुड़कुड़ािे रहिे हैं ।ख़ुशी मनाओ, ममकेयन ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िुम्हारा सपना एक पैगम्बर का सपना है । महाववरह ने िुम्हारे सींसार को बहुि छोटा कर ददया है , और िुम्हे उस सींसार में एक अजनबी बना ददया है । उसने िम् ु हारी ककपना को तनरीं कुश ज्ञानेक्न्द्रयों की पकड़ से मत ु ि कर ददया है , ; और

मुति ककपना ने िुम्हारे अींदर ववश्वास जाग्रि कर ददया है । और ववश्वास िुम्हे दग ा िपूण,ा घुटन-भरे सींसार में बहुि ऊाँिा उठाकर वीरान खोखलेपन के पार बीहड़ ु न् पवाि के ऊपर ले जाएगा जहााँ हर ववश्वास को परखा जािा है और सींदेह की अक्न्िम िलछट को तनकालकर उसे तनमाल ककया जािा है । और इस प्रकार तनमाल हो िक ु ा ववश्वास िम् ु हें सदै व हरे -भरे रहनेवाले मशखर की सीमाओीं पर पहुींिा दे गा और वहााँ िुम्हें ददव्य ज्ञान के हाथों में सौंप दे गा । अपना काया परू ा करके ववश्वास पीछे हट जायेगा,

और ददव्य ज्ञान िुम्हारे कदमो को उस मशखर की अकथनीय स्विन्त्रिा की राह

ददखायेगा जो प्रभु िथा आत्मववजयी मनष्ु य का वास्िववक, सीमा– रदहि आनींदपूणा िाम है ।परख में खरे उिरना, ममकेयन । िम ु सब खरे उिरना, मेरे साचथयो । उस मशखर पर क्षण– भर भी खड़े हो सकने का सौभाग्य प्राप्ि करने के मलये िाहे कोई भी पीड़ा सहनी पड़े, ज्यादा नहीीं है । परन्िु उस मशखर पर स्थायी तनवास प्राप्ि करने में यदद अनींि काल भी लग जाए िो कम है । दहम्बल ; तया आप हमें अपने मशखर पर अभी नहीीं ले जा सकिे, एक िलक के मलए िाहे वह क्षखणक ही हो ? मीरदाद ; उिावले मि बनो, दहम्बल । अपने समय की प्रिीक्षा करो । जहााँ मैं आराम से सााँस लेिा हूाँ, वहााँ िुम्हारा दम घुटेगा ।

जहााँ मैं आराम से िलिा हूाँ,

वहााँ िम ु हााँिने और ठोकरें खाने लगोगे |

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ववश्वास का दामन थामे रहो ; और ववश्वास बहुि बड़ा कमाल कर ददखायेगा । यही मशक्षा थी मेरी नह ू को ।

अध्याय 32 ☞ पाप और आवरण ☜ ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ मीरदाद : पाप के ववषय में िम् ु हे बिा ददया गया है, और यह िुम जान जाओगे कक मनुष्य पापी कैसे बना । िुम्हारा कहना है , और वह सारहीन भी नहीीं है , कक परमात्मा का प्रतिबबम्ब और प्रति-रूप मनष्ु य यदद पापी है , िो स्पष्ट है कक पाप का श्रोि स्वयीं परमात्मा ही है । इस िका में भोले-भाले लोगों को एक जाल है ; और िुम्हे मेरे साचथयो, मैं जाल में िाँसने नहीीं दाँ ग ू ा । इसमलए इस जाल को मैं िम् ु हारे रास्िे से हटा दाँ ग ू ा िाकक िम ु इसे अन्य मनष्ु यों के रास्िे से हटा सको । परमात्मा में कोई पाप नहीीं ; तया सूया का अपने प्रकाश में से मोमबत्िी को प्रकाश दे ना पाप है ? न ही मनुष्य में पाप है ; तया एक मोमबत्िी के मलये िप ू में जलकर अपने आपको ममटा दे ना और इस प्रकार सूया के साथ ममल जाना पाप है ? लेककन पाप है उस मोमबत्िी में जो अपना प्रकाश बबखेरना नहीीं िाहिी, और जब उसे जलाया जािा है िो ददयासलाई िथा ददयासलाई जलानेवाले हाथ को कोसिी है । पाप है उस मोमबत्िी में क्जसे िप ू में जलने में शमा आिी है , और जो इसी मलये सूया से तछपा लेना िाहिी है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मनुष्य ने प्रभु के वविान का उलींघन करके पाप नहीीं ककया, बक्कक पाप ककया है उस वविान के प्रति अपने अज्ञान पर पदाा डालकर ।हााँ, पाप िो अींजीर- पत्िे के आवरण से अपनी नग्न िा तछपाने में था । तया िुमने मनुष्य के पिन की कथा नहीीं पढ़ी जो शब्दों की दृष्टी से सरल और सींक्षक्षप्ि, परन्िु अथा की दृष्टी से गहरी और महान है ?

तया िुमने नहीीं पढ़ा कक जब परमात्मा मनुष्य परमात्मा में से नया-नया तनकला था िो ककस प्रकार वह मशशु – परमात्मा जैसा था —-तनश्िेष्ट, गतिहीन, सज ृ न में असमथा ?

तयोंकक परमात्मा के सभी गुणों से युति होिे हुए भी वह सब मशशुओीं की िरह

अपनी अनींि शक्तियों और योग्यिाओीं को प्रयोग में लाने में ही नहीीं, बक्कक उन्हें जानने में भी असमथा था । एक सुींदर शीशी में बन्द अकेले बीज की िरह था मनष्ु य अदन की वादटका में । शीशी में पड़ा बीज बीज ही रहे गा, और जब िक उसे उसकी प्रकृति के अनक ु ूल ममटटी में दवाया न जाये और उसका खोल िूट न जाये उसके अन्दर बन्द िमत्कार सजीव होकर प्रकाश में नहीीं आयेगा । परन्िु मनुष्य के पास उसकी प्रकृति के अनुकूल कोई ममटटी नहीीं थी क्जसमे वह

अपने आपको रोपिा और अींकुररि हो जािा । उसके िेहरे को ककसी अन्य समरूपी िेहरे में अपनी िलक नहीीं ममलिी थी उसके मानवी कान को कोई अन्य मानव-

स्वर सुनाई नहीीं दे िा था । उसका मानव-स्वर ककसी अन्य मानव- कण्ठ में गाँूजकर नहीीं लौटिा था ।

उसके एकाकी-ह्रदय के साथ एक-सुर होने के मलए कोई अन्य ह्रदय नहीीं था । इस सींसार में, क्जसे उपयत ु ि जोड़ों के रूप में अपनी यात्रा पर रवाना ककया गया था, मनुष्य अकेला था बबलकुल अकेला । वह अपने मलए एक अजनबी था ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

उसके करने के मलये अपना कोई काम नहीीं था और न ही था उसके मलए तनिााररि कोई मागा । अदन उसके मलये वही था जो ककसी मशशु के मलये एक आरामदे ह पालना होिा है —तनक्ष्क्रय आनींद की एक अवस्था । वह उसके मलए सब प्रकार की सुख- सुवविा का स्थान था ।नेकी और बदी के ज्ञान का वक्ष ृ िथा जीवन का वक्ष ृ दोनों उसकी पहुाँि में थे ; किर भी वह उनके िल िोड़ने और िखने के मलए हाथ नहीीं बढ़ािा था ;

तयोंकक उसकी रूचि और उसकी सींककप-शक्ति, उसके वविार िथा उसकी कामनाएाँ, यहााँ िक की उसका जीवन भी, सब उसके अींदर बींद पड़े थे और इस प्रिीक्षा में थे की उन्हें कोई िीरे - िीरे खोले उन्हें स्वयीं खोलना उसके मलए सम्भव नहीीं था । अिएव उसे अपने अींदर से ही अपने मलए एक साथी पैदा करने के मलए वववश ककया गया — एक ऐसा हाथ जो उसके बींिन खोलने में उसका सहायक बने । उसे सहायिा और कहााँ से ममल सकिी थी मसवाय अपने अींदर के जो ददव्यत्व से सींम्पन होने के कारण सहायिा से भरपूर था ? और यह बाि अत्यन्ि महत्व पूणा है । ककसी नई ममटटी और साींस से नहीीं बनी थी हौवा; बक्कक आदम की अपनी ही ममटटी और साींस थी — उसकी हड्डी में से एक हड्डी, उसके माींस में से माींस का एक टुकड़ा । कोई अन्य जीव रीं गमींि पर प्रकट नहीीं हुआ था ;

बक्कक स्वयीं उसी एक आदम को युगल बना ददया गया था — एक पुरुष आदम और एक स्त्री आदम । इस प्रकार उस अकेले, दपाण-रदहि िेहरे को एक साथी और एक दपाण ममल जािा है ; और वह नाम जो पहले ककसी मानव- स्वर में नहीीं गाँज ू ा था अदन की वीचथकाओीं में ऊपर, नीिे, सवात्र मिुर स्वरों में गाँज ू ने लगिा है ; और वह ह्रदय क्जसकी उदास िड़कन एक सूने वक्ष में दबी पड़ी थी एक साथी वक्ष में एक साथी ह्रदय के अींदर अपनी गति महसूस करने और िड़कन सुनने लगिा है । इस प्रकार चिींगारी- रदहि िौलाद का उस िकमक पत्थर से मेल हो जािा है और उसमे से बहुि सी चिींगाररयााँ पैदा कर दे िा है

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इस प्रकार अनजली मोमबत्िी दोनों मसरों से जला दी जािी है ।मोमबत्िी एक है , बत्िी एक है , और रौशनी भी एक है , यद्यवप वह दे खने में दो अलग-अलग मसरों से पैदा हो रही है । इस प्रकार शीशी में पड़े बीज को वह ममटटी ममल जािी है क्जसमे अींकुररि होकर वह अपने रहस्य प्रकट कर सकिा है । इस प्रकार अपने आप से अनजान एकत्व द्वैि को जन्म दे िा है , िाकक द्वैि में तनदहि सींघषा और ववरोि के द्वारा उसे अपने एकत्व का ज्ञान कराया जा सके । इस प्रकक्रया में भी मनुष्य अपने परमात्मा का सही प्रतिबबम्ब है , उसका प्रतिरूप है । तयोंकक परमात्मा —आदद िेिना—अपने आपमें से शब्द को प्रकट करिा है ; और शब्द िथा िेिना दोनों ददव्य ज्ञान में एक हो जािे हैं |द्वैि कोई दण्ड नहीीं है , बक्कक, एकत्व की प्रकृति में तनदहि एक प्रकक्रया है, उसकी ददव्यिा के प्रकट होने का एक आवश्यक सािन । कैसा बिपना है और ककसी िरह सोिना !

कैसा बिपना है यह ववश्वास करना कक इिनी बड़ी प्रकक्रया से उसका मागा िीन बीसी और दस सालों या िीन बीसी दस-लाख सालों में भी िय करवाया जा सकिा है । आत्मा का परमात्मा बनना तया कोई मामूली बाि है ? तया परमात्मा इिना कठोर और कींजस ू मामलक है कक दे ने के मलए उसके पास पूरा अनन्ि काल होिे हुए भी वह मनुष्य को किर से एक होकर, अपने ईश्वरत्व िथ परमात्मा के साथ अपनी एकिा का पूरी िरह ज्ञान प्राप्ि करके वापस अपने

मूलिाम अदन में पहुाँिने के मलए केवल सत्िर बषा का इिना कम समय प्रदान करे ?

लींबा है द्वैि का मागा ; और मख ू ा हैं वे जो इसे तिचथ पत्रों से नापिे हैं ; अनन्ि काल मसिारों के ितकर नहीीं चगनिा । जब तनक्ष्क्रय, गतिहीन, सज ृ न में

असमथा आदम को एक से दो कर ददया गया िो वह िुरींि कक्रयाशील, गतिमान, िथा सज ृ न और सन्िानोत्पादन में समथा हो गया ।दो कर ददए जाने पर आदम का पहला काम तया था ?

वह था नेकी और बदी के ज्ञान के वक्ष ृ का िल खाना और इस प्रकार अपने सारे

सींसार को अपने जैसा ही दो कर दे ना । अब सब कुछ वैसा न रहा था जैसा पहले

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

था— तनष्पाप और तनक्श्िन्ि बक्कक सब कुछ अच्छा या बुरा, लाभकारी या

हातनकारक, सुखकर या कष्टकर हो गया था, दो ववरोिी दलों में बाँट गया था जबकक पहले एक था । और क्जस साींप ने हौवा को नेकी और बदी का स्वाद िखने के मलए िुसलाया था, तया वह उस सकक्रय ककन्िु अनुभवहीन द्वैि की गहरी आवाज नहीीं थी जो कुछ करने िथा अनुभव प्राप्ि करने के मलए अपने आपको प्रेररि कर रहा था ?

यह कोई आश्िया की बाि नहीीं है कक इस आवाज को पहले हौवा ने सुना और उसका कहा माना । तयोंकक हौवा मानो सान का पत्थर थी —

अपने साथी में तछपी शक्तियों को प्रकट करने के मलए बनाया गया उपकरण । इस प्रथम मानव-कथा में िोरी से अदन के पेड़ों में से अपना मागा बना रही इस प्रथम स्त्री कीसाजीव ककपना के मलये तया िुम अतसर रुक नहीीं गये— ऐसी स्त्री की ककपना जो घबराई हुई थी, क्जसका ह्रदय वपींजरे में बन्द पक्षी की िरह िड़िड़ा रहा था, क्जसकी आाँखें िारों िरि दे ख रहीीं थीीं कक कहीीं कोई िाक िो नहीीं रहा है , और क्जसके मुींह में पानी भर आया था जब उसने अपना काींपिा हुआ हाथ उस लभ ु ावने िल की ओर बढ़ाया था ? तया िुमने अपनी साींस रोक नहीीं ली जब उसने वह िल िोड़ा और उसके कोमल गुदे में अपने दाींि गड़ा ददये, ऐसी क्षखणक ममठास का स्वाद लेने के मलये जो स्वयीं उसके और उसकी सींिान के मलये कड़वाहट में बदलने बाली थी ? तया िम ु ने जी- जान से नहीीं िाहा कक जब हौवा अपना वववेक-शन् ू य काया करने ही बाली थी, परमात्मा उसी समय प्रकट होकर उसकी उन्मि िष्ृ टिा को रोक दे िा, बजाय बाद में प्रकट होने के जैसा कक कहानी में होिा है ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

और जब हौवा ने वह गुनाह कर ही मलया, िो तया िुमने नहीीं िाहा कक आदम के पास इिना वववेक और साहस होिा कक वह अपने आपको हौवा का सह-अपरािी बनने से रोक लेिा ? ककन्िु न िो परमात्मा ने हस्िक्षेप ककया, न आदम ने अपने आपको रोका, तयोंकक परमात्मा नहीीं िाहिा था कक उसका प्रतिरूप उससे मभन्न हो ।

यह उसकी इच्छा और योजना थी कक मनुष्य अपनी खुद की इच्छा और योजना को साँजोये और ददव्य ज्ञान द्वारा अपने आपको एक करने के मलये द्वैि का लींबा रास्िा िय करे । जहााँ िक आदम का सवाल है , वह िाहिा भी िो अपनी पत्नी के ददये िल को खाने से अपने आपकी रोक नहीीं सकिा था । वह िल खाने के मलये बाध्य था, केवल इसमलये कक उसकी पत्नी वह िल खा िक ु ी थी; तयोकक दोनों एक शरीर थे, और दोनों एक-दस ू रे के कमों के मलये उत्िरदायी थे ।तया परमात्मा मनुष्य के नेकी और बदी का िल खाने से अप्रसन्न और क्रुि हुआ ? यह सम्भव नहीीं था, तयोकक परमात्मा जानिा था कक मनुष्य िल खाये बबना नहीीं रह सकेगा, और वह िाहिा था कक मनुष्य िल खाये; ककन्िु वह यह भी िाहिा था कक मनुष्य पहले ही जान ले कक खाने का पररणाम तया होगा

और उसमे पररणाम का सामना करने की शक्ति हो । और मनुष्य में वह शक्ति थी । और मनुष्य ने िल खाया । और मनुष्य ने पररणाम का सामना ककया । और वह पररणाम था मत्ृ यु ।

तयोंकक प्रभु इक्षा से कक्रयाशील दो बनने में मनुष्य कक कक्रया-रदहि एकिा समाप्ि

हो गई । अिएव मत्ृ यु कोई दण्ड नहीीं है, बक्कक जीवन का एक पक्ष है , द्वैि का ही एक अींश है । तयोकक द्वैि कक प्रकृति है सब वस्िुओीं को एक से दो का रूप दे दे ना, प्रत्येक वस्िु को एक परछाईं प्रदान कर दे ना ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इसमलए आदम ने अपनी परछाईं पैदा कर ली हौवा के रूप में, और अपने जीवन के मलये दोनों ने एक परछाईं पैदा करली क्जसका नाम है मत्ृ यु । परन्िु आदम और हौवा मत्ृ यु की छाया में रहिे हुये भी प्रभु के जीवन में परछाईं-

रदहि जीवन जी रहे हैं ।द्वैि एक तनरीं िर सींघषा है ; और सींघषा यह भ्रम पैदा करिा है कक दो ववरोिी पक्ष अपने आपको ममटा दे ने पर िुले हैं । ववरोिी ददखनेवाले पक्ष वास्िव में एक-दस ू रे के पूरक हैं, एक-दस ू रे के सािक हैं और कन्िे से कन्िा ममलाकर एक ही उद्देश्य के मलये, सम्पूणा शाींति,एकिा और

ददव्य ज्ञान से उत्पन्न होने वाले सींिल ु न के मलये काया-रि हैं । परन्िु भ्रम कक जड़ ज्ञानेक्न्द्रयों में जमी हुई है , और वह जब िक बना रहे गा जब िक ज्ञानेक्न्द्रयााँ हैं । द्वैि एक तनरीं िर सींघषा है ; और सींघषा यह भ्रम पैदा करिा है कक दो ववरोिी पक्ष अपने आपको ममटा दे ने पर िुले हैं । ववरोिी ददखनेवाले पक्ष वास्िव में एक-दस ू रे के पूरक हैं, एक-दस ू रे के सािक हैं और कन्िे से कन्िा ममलाकर एक ही उद्देश्य के मलये, सम्पूणा शाींति,एकिा और ददव्य ज्ञान से उत्पन्न होने वाले सींिुलन के मलये काया-रि हैं । परन्िु भ्रम कक जड़ ज्ञानेक्न्द्रयों में जमी हुई है, और वह जब िक बना रहे गा जब िक ज्ञानेक्न्द्रयााँ हैं ।

इसमलए आदम की आाँखें खुलने के बाद प्रभु ने जब उसे बुलाया िो उसने उत्िर ददया, ”मैंने बाग़ में िेरी आवाज सुनी, और मैं डर गया तयोंकक ‘मैं’ नींगा था ; और ‘मैंने’ अपने आप को तछपा मलया ।”आदम ने यह भी कहा, ” जो स्त्री िूने ‘मुि’े साथी के रूप में दी थी, उसने ‘मि ु े’ वक्ष ृ का िल ददया, और ‘मैंने’ खाया ।”हौवा और कोई नहीीं थी आदम का अपना ही हाड-माींस थी ।

किर भी आदम के इस नवजाि ‘मैं’ पर वविार करो जो आाँख खुलने के बाद अपने आपको हौवा से, परमात्मा से, और परमात्मा कक समूिी रिना से मभन्न, पथ ृ क और

स्विन्त्र समिने लगा । एक भ्रम था यह ‘मैं’ । उस अभी-अभी खुली आाँख का एक भ्रम था परमात्मा से पथ ृ क हुआ यह व्यक्तित्व ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

इसमें न सार था, न यथाथा । इसका जन्म इसमलये हुआ था कक इसकी मत्ृ यु के

माध्यम से मनुष्य अपने वास्िववक अहम ् को पहिान ले जो परमात्मा का अहम ् है । यह भ्रम िब लप्ु ि होगा जब बाहर की आाँख के सामने अाँिेरा छा जाएगा और अींदर की आाँख के सामने प्रकाश हो जाएगा । और इसने यद्यवप आदम को िकरा ददया, किर भी इसने उसके मन में एक प्रबल क्जज्ञासा उत्पन्न कर दी और उसकी ककपना को लुभा मलया । मनुष्य के मलये, क्जसे ककसी भी अहम ् का अनुभव न हुआ हो, एक ऐसा अहम ् पा लेना क्जसे वह पूरी िरह अपना कह सके सिमि ु एक बहुि बड़ा प्रलोभन था, और उसके ममथ्यामभमान के मलये बहुि बड़ा प्रोत्साहन भी ।

और आदम अपने इस भ्रामक अहम ् के प्रलोभन और बहकावे में आ गया । यद्यवप वह इसके मलये लक्ज्जि था, तयोंकक वह अवास्िववक था, नग्न था, किर भी वह इसे त्यागने के मलये िैयार नहीीं था ; वह िो इसे अपने पूरे ह्रदय से और अपने नये ममले समि ू े कौशल से पकडे बैठा था । उसने अींजीर के पत्िे सीींकर जोड़ मलये िथा अपने मलए एक आवरण िैयार कर मलया क्जससे वह अपने नग्न व्यक्तित्व को ढक ले और उसे परमात्मा की सवा-वचि दृष्टी से बिाकर अपने ही पास रखे । इस प्रकार अदन, आनींदपूणा भोलेपन की अवस्था, अपने आप से बेखबर एकिा, पत्िों का आवरण एक से दो बने मनुष्य के हाथ से तनकल गई ;

और मनुष्य िथा ददव्य जीवन के वक्ष ृ के बीि ज्वाला की िलवारें खड़ी हो गईं

।मनष्ु य नेकी और बदी के दोहरे द्वार से अदन से बाहर आया था; वह ददव्य ज्ञान

के इकहरे द्वार से अदन के अींदर जाएगा । वह ददव्य जीवन के वक्ष ृ कक ओर पीठ ककये तनकला था ; उस वक्ष ृ की ओर मुींह ककये प्रवेश करे गा ।

जब वह अपने लम्बे कदठन स़िर पर रवाना हुआ था िो अपनी नग्न िा पर

लक्ज्जि था और अपनी लज्जा को तछपाये रखने के मलये आिुर : जब वह अपनी यात्रा के अींि में पहुाँिग े ा िो उसकी पववत्रिा आवरण-मत ु ि होगी और उसे अपनी नग्न िा पर गवा होगा ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

परन्िु ऐसा िब िक नहीीं होगा जब िक कक पाप मनुष्य को पाप से मुति न कर दे । तयोकक पाप स्वयीं अपने ववनाश का कारण मसि होगा । और पाप आवरण के मसवाय और कहााँ है ? हााँ, पाप और कुछ नहीीं है मसवाय उस दीवार के जो मनुष्य ने अपने और परमात्मा

के बीि में खड़ी कर ली है—अपने क्षण भर अहम ् और अपने स्थायी अहम ् के बीि । वह ओट जो शुरू में अींजीर के मुट्ठी भर पत्िे थी अब एक ववशाल परकोटा बन गई है । तयोंकक जब मनष्ु य ने अदन के भोलेपन को उिार िेंका िब से वह अचिकाचिक पत्िे जमा करने और आवरण पर आवरण सीने में जी-जान से जुटा हुआ है ।

आलसी लोग अपने मेहनिी पड़ोमसयों द्वारा िेंके गए िीथड़ों से अपने आवरणों के छे दों पर पैबन्द लगा-लगा के सींिोष कर लेिे हैं । पाप की पौशाक पर लगाया गया हर पैबन्द पाप ही होिा है, तयोंकक वह उस लज्जा को स्थायी बनाने का सािन होिा है क्जसे परमात्मा से अलग होने पर मनष्ु य ने

पहली बार और बड़ी िीव्रिा के साथ महसूस ककया था । तया मनुष्य अपनी लज्जा पर ववजय पाने के मलये कुछ कर रहा है ? अ़िसोस, उसके सब उिम लज्जा पर लादे गए लज्जा के ढे र हैं, आवरणों पर िढ़े और आवरण हैं ।मनष्ु य की कलाएाँ और ववद्द्याएाँ आवरणों के मसवाय और तया हैं ? उसके साम्राज्य राष्र, जािीय अलगाव, और युि के मागा पर िल रहे िमा—तया ये आवरण की पूजा के सम्प्रदाय नहीीं हैं ? उसके उचिि और अनचु िि,मान और अपमान, न्याय और अन्याय के तनयम ; उसके असींख्य सामक्जक मसिाींि और रूदढ़यााँ —-तया वे आवरण नहीीं हैं ? उसके द्वारा अमूकय का मूकयाींकन और उसका अममि को मापना, असीम को सीमाींककि करना– तया यह सब उस लुींगी पर और पैबन्द लगाना नहीीं है क्जस पर पहले ही कई पैबन्द लगे हुए हैं ।

पीड़ा से भरे सख े ाले िन के मलए ु ों के मलए उसकी अममट भींख ू ; तनिान बना दे नव उसका लोभ ; दास बना दे नेवाले प्रभुत्व के मलए उसकी प्यास; और िुच्छ बना

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

दे नेवाली शान के मलए उसकी लालसा—तया ये सब आवरण नहीीं हैं ? नग्न िा को ढकने के मलये अपनी दयनीय आिुरिा में मनुष्य ने बहुि अचिक आवरण पहन

मलये हैं जो समय के साथ उसकी त्विा इिने कस कर चिपक गए हैं कक अब वह उनमे और अपनी त्विा में भेद नहीीं कर पािा । और मनुष्य सााँस लेने के मलये िड़पिा है,; वह अपनी अनेक त्विाओीं से छुटकारा पाने के मलये प्राथाना करिा है । अपने बोि से छुटकारा पाने के मलये मनष्ु य अपने उन्माद में सब कुछ करिा है , लेककन वही एक काम नहीीं करिा जो वास्िव में उसे उसके बोि से छुटकारा ददला सकिा है, और वह है उस बोि को िेंक दे ना ।

वह अपनी अतिररति त्विाओीं से मुति होना िाहिा है , पर अपनी पूरी शक्ति से उनसे चिपका हुआ है। वह आवरण मत ु ि होना िाहिा है, पर साथ ही िाहिा है कक पूरी िरह कपडे पहने रहे ।तनवारण होने का समय समीप है और मैं अतिररति

त्विाओीं को– आवरणों को — उिार िेंकने में िुम्हारी सहायिा करने के मलए आया हूाँ िाकक त्विाओीं को उिार िेंकने में िम ु भी सींसार के उन सब लोगों की सहायिा कर सको क्जनमे िड़प है ।

मैं िो केवल ववचि बिािा हूाँ ; ककन्िु अपनी त्विा को उिार िेंकने का काम हरएक को स्वयीं ही करना होगा, िाहे वह ककिना ही कष्टदायी तयों न हो ।अपने आपसे

अपने बिाव के मलये ककसी िमत्कार की प्रिीक्षा न करो, न ही पीड़ा से डरो; तयोंकक आवरण-रदहि ज्ञान िुम्हारी पीड़ा को स्थायी आनींद में बदल दे गा । किर यदद ददव्य ज्ञान की नग्न िा में िुम्हारा अपने आप से सामना हो और यदद परमात्मा िम् ु हे बुलाकर पूछे, ”िम ु कहााँ हो ?” िो िम ु शमा महसस ू नहीीं करोगे, न

िुम डरोगे, न ही िुम परमात्मा से तछपोगे । बक्कक िुम अडोल, बन्िन-मुति, ददव्य शाींति से यत ु ि खड़े रहोगे और परमात्मा को उत्िर दें गे;” हमारे प्रभ,ु हमारी आत्मा, हमारे अक्स्ित्व, हमारे एक मात्र अहम ्, हमें दे खखये ।

लज्जा, भय,और पीड़ा से हम नेकी और बदी के लम्बे, ववषम, और टे ढ़े-मेढ़े, उस रास्िे पर िलिे रहे हैं क्जसे आपने हमारे मलये समय के आरन्भ में तनिााररि ककया था ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तनज-घर के मलए महाववरह ने हमारे पैरों को प्रेरणा दी और ववश्वास ने हमारे ह्रदय को थामे रखा, और अब ददव्य ज्ञान ने हमारे बोि उिार ददये हैं, हमारे घाव भर ददये हैं, और हमें वापस आपकी पावन उपक्स्थति में ला खड़ा ककया है — नेकी और बदी से मुति, जीवन और मत्ृ यु के आवरणों से मुति; द्वैि के सभी भ्रमों से मुति; आपके सवाग्राही अहम ् के मसवाय और हर अहम ् से मुति । अपनी नगनिा को तछपाने के मलये कोई आवरण पहने बबना हम लज्जा मुति, प्रकाशमान भय-रदहि होकर आपके सम्मुख खड़े हैं । दे खखये, हम एक हो गये हैं ।

दे खखये, हमने आत्म-ववजय प्राप्ि कर ली है । ”और परमात्मा िुम्हे अनन्ि प्रेम से गले लगा लेगा, और िम् ु हे सीिे अपने ददव्य जीवन-वक्ष ृ िक ले जायेगा। यही मशक्षा थी मेरी नूह को । यही मशक्षा है मेरी िम् ु हे । नरौंदा; यह बाि भी ममु शाद ने िब कही थी जब हम अाँगीठी के पास बैठे थे ।

(hindi) किताब ए मीरदाद-अध्याय - 33 / 34 अध्याय -33 समय आ गया



आदमी आदमी िो लट ु ना बंद िरे ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ राबत्र अनुपम गानयिा ****************************************

नरौंदा ; पवािीय नीड़ के मलये, क्जसे बिीली हवाओीं और बिा के भारी अम्बारों ने पूरे शीिकाल में हमारी पहुाँि से परे रखा था,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हम सब इस प्रकार िरस रहे थे क्जस प्रकार कोई तनवाामसि व्यक्ति अपने घर के मलए िरसिा है । हमें नीड़ में ले जाने के मलये ममु शाद ने बसन्ि की एक ऐसी राि िन ु ी क्जसके नेत्र कोमल और उज्जवल थे, उसकी सााँस उष्ण और सुगक्न्िि थी, क्जसका ह्रदय सजीव और सजग था ।

वे आठ सपाट पत्थर, जो हमारे बैठने के काम आिे थे, अभी िक वैसे ही अिा-िक्र के आकार में रखे थे जैसे हम उन्हें उस ददन छोड़ गए थे जब मुमशाद को बेसार ले जाया गया था ।

स्पष्ट था कक उस ददन से कोई भी नीड़ में नहीीं गया था । एक मशला से दस ू री मशला पर चगर रहे पहाड़ी िरनों ने राबत्र को अपने िुमुल सींगीि से भर ददया था ।बीि-बीि में ककसी उकलू की घू-घू या ककसी िीींगरु के गीि के खक्ण्डि स्वर सन ु ाई दे िे थे मीरदाद;- इस राि की शाींति में मीरदाद िाहिा है कक िम ु राबत्र के गीि सन ु ो । राबत्र के गायक-वन्ृ द को सुनो । तयोंकक सिमुि ही राबत्र एक अनप ु म गातयका है । अिीि की सबसे अाँिेरी दरारों में से, भववष्य के उज्जवल दग ु ों में से, आकाश के

मशखरों िथा िरिी की गहराईयों में से तनकल रहे है राबत्र के स्वर, और िेजी से पहुाँि रहे हैं ववश्व के दरू िम कोनों िक । ववशाल िरीं गों के रूप में ये िुम्हारे कानों के िारों ओर लहरा रहे हैं । अपने कानों को अन्य सब स्वरों से मुति कर दो िाकक इन्हे सुन सको । उिावली- भरा ददन

क्जसे आसानी से ममटा दे िा है , उिावली से मत ु ि राबत्र उसे अपने क्षण भर के जाद ू से पुनिः बना दे िी है तया िााँद और िारे ददन की रौशनी में तछप नहीीं जािे ? ददन क्जसे ककपना और असत्य के ममश्रण में डुबा दे िा है, राबत्र उसे नपे-िुले उकलास के साथ दरू -दरू िक गािी है । जड़ी-बूदटयों के सपने भी राबत्र के गायक-वन्ृ द में

शाममल होकर उनके गीि में योग दे िे हैं सुनो आकाशवपण्डों को :गगन में वे िूलिे सन ु ािे हैं

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

लोररयााँदलदली बालू के पालने में सो रहे भीमकाय मशशु को,िीथड़े कींगाल के पहने हुए राजा को,बेड़ड़यों-जींजीरों में जकड़ी हुई दाममनी को–पोिड़ों में मलपटे स्वयीं

परमात्मा को सन ु ो िम ु िरिी को,एक ही समय पर जो प्रसव में कराहिी है, दि ू भी वपलािी है ,पालिी है , ब्याहिी है , कब्र में सल ु ािी है । सुनो वन पशुओीं को : घूमिे हैं जींगलों में टोह में मशकार की, िीखिे, गुराािे हैं, िीरिे, चिर जािे हैं ; सुनो अपनी राहों पर रें गिे जींिुओीं को,रहस्यमय गीि अपने गुनगुनािे कीड़ों

को;ककस्से िारागाहों के, गीि जल- प्रवाहों के , सन ु ो अपने सपनों में दोहरािे ववहीं गों को; वक्ष ृ ों को, िाड़ड़यों को, हर एक जीव को मत्ृ यु के प्याले में गट-गट पीिे जीवन को । मशखर से और वादी से, मरुस्थल और सागर से,

िण ृ ावि भूमम के नीिे से और वायु से आ रही हैं िुनौिी समय में तछपे प्रभु को ।

सुनो सभी मािाओीं को, कैसे वे रोिी हैं, कैसे बबलखिी हैं और सभी वपिाओीं को, कैसे वे कराहिे हैं कैसे आहें भरिे हैं । सुनो उनके बेटों को और उनकी बेदटयों को बन्दक ू लेने भागिे, बन्दक ू से डर भागिे,प्रभु को िटकारिे,और भाग्य को चितकारिे ।स्वााँग रििे प्यार का और घण ृ ा िुसिुसािे हैं,पीिे हैं जोश, और डर से पसीने छूट जािे हैं, बोिे हैं मुस्काने और काटिे आाँसू हैं,अपने लाल खून से उमड़ रही बाढ़ के प्रकोप को पैनािे हैं ।

सुनो उनके क्षुिा-ग्रस्ि पेटों को वपिकिे,सूजी हुई उनकी पलकों को िपकिे,

कुम्हलाई अाँगुमलयों को उनकी आशा की लाश को ढूींढिे, और उनके हृदयों को िूलि– िूलिे ढे रों में िूटिे । सन ु ो क्रूर मशीनों को िम ु गड़गड़ािे हुए,दपा-भरे नगरों को

खण्डहर बन जािे हुए,शक्तिशाली दग ु ों को अपने ही अवसान की घक्ण्टयााँ बजािे हुए,पुरािन कीतिा-स्िम्भों को पींककल रति-िाल में चगर छीटे उड़ािे हुए ।

सुनो न्यायी लोगों की िुम प्राथानाओीं को लोभ की िीखों के साथ सुर ममलािे हुए,

बच्िों की भोली-भाली िोिली बािों को दष्ु टों की बकबक के साथ िुक ममलािे हुए। और ककसी कन्या की लज्जारुण मस् ु कान को वेश्या की ित्ू िािा के सींग िहिहािे हुए, और एक वीर के हषोन्माद को ककसी मायावी के वविार गुनगुनािे हुए ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

हर जनजािी और हर एक गोत्र के हर खेमे,हर कुदटया में राबत्र सुनािी है ऊाँिे स्वर

में िुम्ही पर युि-गीि मनुष्य के । पर जादग ू रनी राबत्र लोररयााँ, िुनोतियााँ, युि-गीि, सब कुछ ढाल दे िी एक ही मिरु म सींगीि में । गीि इिना सूक्ष्म जो कान सुन पाये न —गीि इिना भव्य, और अनन्ि िैलाव

में,स्वर में गहराई और टे क में ममठास इिनी,िुलना में िररश्िों के िराने और वन्ृ द

गान लगिे मात्र कोलाहल और बड़बड़ाहट हैं आत्म-ववजेिा का यही ववजय-गान है । पवाि जो राबत्र की गोद में हैं ऊाँघिे,यादों में डूबे मरू मलये टीले रे ि के,भ्रमणशील

िारे , सागर नदी में जो घम ू िे, तनवासी-प्रेि-पुररयों के,पावन-त्रयी और हरी इच्छा ,करिे आत्म-ववजेिा का स्वागि है , जय घोष है । भाग्य वान हैं वे जो सुनिे हैं और बूििे । भाग्य वान हैं लोग क्जनको राबत्र सींग अकेले में होिी अनुभूति है राबत्र जैसी शाक्न्ि की,गहराई की, ववस्िार की ;लोग वे, अाँिेरे में िेहरों पर क्जनके अाँिेरे में ककये गयेअपने कुकमों की पड़िी नहीीं मार है ; लोग वे, आाँसू क्जनकी ररकिे नहीीं पलकों में साचथयों की आाँखों से जो उन्होंने बहाये थे ;हाथों में न क्जनके लोभ से, द्वेष से, होिी कभी खाज है ;कानो को न क्जनके अपनी िष्ृ णाओीं की घेरिी िूत्कार है ;वववेक को न क्जनके डींक कभी मारिे उनके वविार हैं भाग्य वान हैं,

ह्रदय क्जनके समय के हर कोने से तघरकर आिी हुई ववववि चिन्िाओीं के बैठने के

छत्िे नहीीं ;बुवि में क्जनकी भय सुरींग खोद लेिे नहीीं ;साहस के साथ जो कह सकिे हैं राबत्र से, ”ददखा दो हमें ददन को ”कह सकिे हैं ददन को, ”ददखा दो हमें राबत्र को ”। हााँ, बहुि भाग्यवान हैं क्जनको राबत्र सींग अकेले में होिी अनुभतू ि है राबत्र जैसी

समस्वरिा, नीरविा, अनन्ििा की । उनके मलए ही केवल गािी है राबत्र यह गीि आत्म-ववजेिा का ।यदद िुम ददन के िठ ूीं े लाींछनों का सामना मसर ऊींिा रखकर ववश्वास से िमकिी आाँखों से करना िाहिे हो, िो शीघ्र ही राबत्र की ममत्रिा प्राप्ि करो ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

राबत्र के साथ मैत्री करो । अपने ह्रदय को अपने ही जीवन रति से अच्छी िरह िोकर उसे राबत्र के ह्रदय में रख दो । अपनी आवरण हीीं कामनाएाँ राबत्र के वक्ष को सौंप दो, और ददव्य ज्ञान के द्वारा स्विन्त्र होने की महत्त्वाकााँक्षा के अतिररति अन्य सभी महत्त्वाकाींक्षाओीं की उसके िरणों में बमल दे दो । िब ददन का कोई भी िीर िुम्हे वेि नहीीं सकेगा, और िब राबत्र िुम्हारी ओर से लोगों के सामने गवाही दे गी कक िुम सिमुि आत्म- ववजेिा हो ।बेिैन ददन भले ही पटकें िुम्हे इिर- उिरिारक-हीन रािें िाहे अाँिेरे में अपने लपेट लें िुमको,िेंक ददया जाये िम् ु हे ववश्व के िौराहों पर,चिन्ह पदचिन्ह न हों राह िम् ु हें ददखाने को किर भी न डरोगे िम ु ककसी भी मनुष्य से और न ककसी क्स्थति से,न ही होगा शक िम् ु हे लेशमात्र इसका कक ददन और रािें, मनुष्य और िीजें भी जकदी ही या दे र से आयेंगे िुम्हारे पास, और ववनयपूवक ा

प्राथाना वे करें गे आदे श उन्हें दे ने का । ववश्वास तयोंकक राबत्र का प्राप्ि होगा िुमको । और ववश्वास राबत्र का प्राप्ि जो कर लेिा है सहज ही आदे श वह अगले ददन को दे िा है । राबत्र के ह्रदय को ध्यान से सन ु ो, तयोंकक उसी के अींदर आत्म-ववजेिा का ह्रदय िड़किाहै । यदद मेरे पास आींसू होिे िो आज राि मैं उन्हें भेंट कर दे िा हर दटमदटमािे मसिारे और रज-कण को; हर कल-कल करिे नाले और गीि गािे दटड्डे को; वायु में अपनी सग ु क्न्िि आत्मा को बबखेरिे हर नील-पुष्प को ; हर सरसरािे समीर को; हर पवाि और वादी को; हर पेड़ और घाींस की हर कोंपल को — इस राबत्र की सम्पूणा अस्थाई शाक्न्ि और सींद ु रिा को । मैं अपने आींसू मनष्ु य

की कृिध्निा िथा बबार अज्ञान के मलये क्षमायािना के रूप में इनके सामने उाँ ड़ेल दे िा ।

तयोंकक मनुष्य, घखृ णि पैसे के गुलाम, अपने स्वामी की सेवा में व्यस्ि है , इिने

व्यस्ि की स्वामी की आवाज और इच्छा के अतिररति और ककसी आवाज और इच्छा की ओर ध्यान नहीीं दे सकिे ।और भयींकर है मनष्ु य के स्वामी का कारोबार

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

— मनुष्य के सींसार को एक ऐसे कसाईखाने में बदल दे ना जहााँ वे ही गला काटनेवाले हैं और वे ही गला कटवाने वाले । और इसमलए, लहू के नशे में िरू मनष्ु य मनुष्यों को इस ववश्वास में मारिे िले

जािे हैं कक क्जन मनुष्यों का कोई खून करिा है , िरिी के सब प्रसादों और आकाश

की समस्ि उदारिा में उन मनुष्यों का सभी दहस्सा उसे ववरासि में ममल जािा है । अभागे मूखा ! तया कभी कोई भेड़ड़या ककसी दस ू रे भेड़ड़ये का पेट िीर कर मेमना बना है ? तया कभी कोई सााँप अपने साथी सााँपों कुिल और तनगल कर कपोि बना है ? तया कभी ककसी मनष्ु य ने अन्य मनष्ु यों की ह्त्या करके उनके दख ु ों को छोड़ उनकी खुमशयााँ ववरासि में पाईं हैं ? तया कोई कान दस ू रे कान में डाट लगाकर जीवन की स्वर-िरीं गों का अचिक आनन्द ले सकिा है ? या कभी कोई आाँख अन्य आाँखों को नोिकर सुींदरिा के ववववि रूपों के प्रति अचिक सजग हुई है ?तया ऐसा कोई मनुष्य या मनष्ु य का समुदाय है जो केवल

एक घण्टे के वरदानों का भी परू ी िरह उपयोग कर सके, वरदान िाहे खाने पीने के पदाथों के हों,

िाहे प्रकाश और शाक्न्ि के ? िरिी क्जिने जीवों को पाल सकिी है उससे अचिक जीवों को जन्म नहीीं दे िी । आकाश अपने बच्िों के पालन के मलये न भीख माींगिा है , न िोरी करिा है ।वे िठ ू बोलिे हैं जो मनुष्य से कहिे हैं, ”यदद िुम िप्ृ ि होना िाहिे हो िो मारो और क्जन्हे मारो उनकी ववरासि प्राप्ि करो ।”

जो मनुष्य का प्यार, िरिी का दि ू और मिु, िथा आकाश का गहरा स्नेह पाकर

नहीीं िला-िूला, वह मनष्ु य के आींस,ू रति और पीड़ा के आिार पर कैसे िले-िूलेगा ? वे िठ ू बोलिे हैं जो मनुष्य से कहिे हैं, ”हर राष्र अपने मलये है ।”कनख़जूरा कभी एक इींि भी आगे कैसे बढ़ सकिा है यदद उसका हर पैर दस ू रे पैरों के ववरुि ददशा में िले, या उसके पैरों के आगे बढ़ने में रुकावट डाले, या दस ू रे पैरों के ववनाश के मलए षड्यन्त्र रिे ?

मनष्ु य भी तया एक दै त्याकार कनखजरू ा नहीीं है, राष्र क्जसके अनेक पैर हैं ?वे िठ ू बोलिे हैं जो मनुष्य से कहिे हैं, ” शासन करना सम्मान की बाि है , शामसि होना

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

लज्जा की ।” तया गिे को हाींकने वाला उसकी दम ु के पीछे -पीछे नहीीं िलिा ? तया जेलर कैदी से बाँिा नहीीं होिा । वास्िव में गिा अपने हााँकने वाले को हााँकिा है ; कैदी अपने जेलर को जेल में बींद रखिा है । वे िठ ू बोलिे हैं जो मनष्ु य से कहिे हैं, ”दौड़ उसी की जो िेज दौड़े, सच्िा वही जो समथा हो ।”तयोंकक जीवन माींसपेमशयों और बाहुबल की दौड़ नहीीं है । लूले- लाँ गड़े भी बहुिा स्वस्थ लोगों से बहुि पहले मींक्जल पर पहुाँि जािे हैं ।

और कभी-कभी िो एक िुच्छ मच्छर भी कुशल योिा को पछाड़ दे िा है । वे िूठ

बोलिे हैं जो मनष्ु य से कहिे हैं कक अन्याय का उपिार केवल अन्याय से ही ककया जा सकिाहै । अन्याय के बदले में थोपा गया अन्याय कभी न्याय नहीीं बन सकिा । अन्याय को अकेला छोड़ दो, वह स्वयीं ही अपने आपको ममटा दे गा । परन्िु भोले लोग अपने स्वामी पैसे के मसिाींिों को आसानी से सि मान लेिे हैं । पैसे और जमाखोरों में वे भक्तिपूणा ववश्वास रखिे हैं और उनकी हर मनमानी सनक के आगे मसर िक ु ािे हैं ।राबत्र का न वे ववश्वास करिे हैं न परवाह । जबकक राबत्र मुक्ति के गीि गािी है , और मुक्ति िथा प्रभु-प्राक्प्ि की प्रेरणा दे िी है ।

िम् ु हे िो मेरे साचथयो, वे या िो पागल करार दें गे या पाखण्डी ।मनष्ु य की कृिध्निा और िीखे उपहास का बुरा मि मानना ; बक्कक प्रेम और असीम िैया के साथ स्वयीं

उनसे िथा आग और खून की बाढ़ से, जो शीघ्र ही उनपे टूट पड़ेगी, उनके बिाव के मलये उद्यम करना । समय अ गया है कक मनुष्य मनुष्य की हत्या करना बींद कर दें । सूय,ा िन्द्र, और िारे अनाददकाल से प्रिीक्षा कर रहे हैं कक उन्हें दे खा, सुना और समिा जाये; िरिी की मलवप प्रिीक्षा कर रही है कक उसे पढ़ा जाये; आकाश के राजपथ, कक उन पर यात्रा कक जाये, समय का उलिा हुआ िागा, कक उसमे पड़ी गाींठों को खोला जाये, ब्रह्माण्ड की सग ु ींि, कक उसे सूाँघा जाये; पीड़ा के कबब्रस्िान, कक उन्हें ममटा

ददया जाये; मौि ककई गुिा, कक उसे ध्वस्ि ककया जाये; ज्ञान की रोटी, कक उसे िखा जाये; और मनष्ु य पदों में तछपा परमात्मा, प्रिीक्षा कर रहा है कक उसे अनावि ृ ककया जाये ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

समय आ गया है कक मनुष्य मनुष्यों को लूटना बन्द कर दें और सवाादहि के काम को पूरा करने के मलए एक हो जाएाँ । बहुि बड़ी है यह िन ु ौिी, पर मिरु होगी ववजय भी । िल ु ना में और सब िच् ु छ

िथा खोखला है । हााँ, समय आ गया है । पर ऐसे बहुि कम हैं जो ध्यान दें गे । बाक़ी को एक और पुकार की प्रिीक्षा करनी होगी —– एक और भोर की ।

अध्याय -34 आदमी एक लघु परमात्मा है ☞ ववराट कैसे होगा ☜

************************************ मााँ–अण्डाणु **************************************** मीरदाद; मीरदाद िाहिा है कक इस राि के सन्नाटे में िुम एकाग्र चित्ि होकर मााँ– अण्डाणु के ववषय में वविार करो । स्थान और जो कुछ्ह उसके अींदर है एक अण्डाणु है क्जसका खोल समय है यही मााँ-अण्डाणु है ।

जैसे िरिी को वायु लपेटे हुए है, वैसे ही इस अण्डाणु को लपेटे हुए है ववकमसि परमात्मा, ववराट परमात्मा—जीवन जो कक अमूि,ा अनन्ि और अकथ है ।

इस अण्डाणु में मलपटा हुआ है कींु डमलि परमात्मा लघ–ु परमात्मा–जीवन जो मूिा है ककन्िु उसी िरह अनन्ि और अकथ ।

भले ही प्रिमलि मानवीय मानदण्ड के अनुसार मााँ–अण्डाणु अममि है , किरभी इसकी सीमाएाँ हैं । यद्यवप यह स्वयीं अनन्ि नहीीं है , किर भी इसकी सीमाएाँ हर ओर अनन्ि को छूिी हैं |

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ब्रह्माण्ड में जो भी पदाथा और जीव हैं, वे सब उसी लघु- परमात्मा को लपेटे हुए समय-स्थान के अण्डाणुओीं से अचिक और कुछ नहीीं, परन्िु सबमें लघु-परमात्मा प्रसार की मभन्न-मभन्न अवस्थाओीं में है ।

पशु के अींदर के लघ-ु परमात्मा की अपेक्षा मनुष्य के अींदर के लघु-परमात्मा का

और वनस्पति के अींदर के लघु-परमात्मा की अपेक्षा पशु के अींदर के लघु- परमात्मा का समय-स्थान में प्रसार अचिक है । और सक्ृ ष्ट में नीिे-नीिे की श्रेणी में क्रमानुसार ऐसा ही है । दृश्य िथा अदृश्य सब पदाथो और जीवों का प्रतितनचित्व करिे अनचगनि अण्डाणओ ु ीं को मााँ-अण्डाणु के

अींदर इस क्रम में रखा गया है कक प्रसार में बड़े अण्डाणु के अींदर उसकेतनकटिम छोटा अण्डाणु है, और यही क्रम सबसे छोटे अींडाणु िक िलिा है । अण्डाणुओीं के बीि में जगह है और सबसे छोटा अण्डाणु केन्द्रीय नामभक है जो अत्यन्ि अकप समय िथा स्थान के अींदर बन्द है । अण्डाणु के अींदर अण्डाण,ु किर उस अण्डाणु के अींदर अण्डाण,ु मानवीय गणना से परे और सब प्रभु द्वारा अनुप्रमाखणि—यही ब्रह्माण्ड है .

मेरे साचथयो । किर भी मैं महसस ू करिा हूाँ कक मेरे शब्द कदठन हैं, वे िम् ु हारी बुवि

की पकड़ में नहीीं आ सकिे । और यदद शब्द पूणा ज्ञान िक ले जाने वाली सीढ़ी के सुरक्षक्षि िथा क्स्थर डण्डे बनाये गए होिे िो मुिे भी अपने शब्दों को सरु क्षक्षि िथा क्स्थर डण्डे बनाने में प्रसन्निा होिी । इसमलये यदद िुम उन ऊींिाइयों, गहराइयों और िौड़ाइयों िक पहुाँिना िाहिे हो क्जन िक मीरदाद िम् ु हे पहुाँिाना िाहिा है, िो बुवि से बड़ी ककसी शक्ति के द्वारा शब्दों से बड़ी ककसी वस्िु का सहारा लो ।

शब्द, अचिक से अचिक, बबजली की कौंि हैं जो क्षक्षतिजों की िलक ददखिी हैं; ये उन क्षक्षतिजों िक पहुाँिने का मागा नहीीं हैं ;

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

स्वयीं क्षक्षतिज िो बबलकुल नहीीं । इसमलए जब मैं िुम्हारे सम्मुख मााँ–अण्डाणु और अण्डाणुओीं की, िथा ववराट-परमात्मा और लघु-परमात्मा की बाि करिा हूाँ िो मेरे शब्दों को पकड़कर न बैठ जाओ, बक्कक कौंि की ददशा में िलो ।

िब िुम दे खोगे कक मेरे शब्द िुम्हारी कमजोर बुवि के मलये बलशाली पींख हैं ।अपने िारों ओर की प्रकृति पर ध्यान दो ।तया िुम उसे अण्डाणु के तनयम पर रिी गई नहीीं पािे हो ? हााँ, अण्डाणु में िुम्हे सम्पूणा सक्ृ ष्ट की कींु जी ममल जायेगी ।

िुम्हारा मसर, िुम्हारा ह्रदय,िुम्हारी आाँख अण्डाणु हैं । अण्डाणु है हर िूल और उसका हर बीज ।

अींडाणु है पानी की एक बूाँद िथा प्रत्येक प्राणी का प्रत्येक वीयााणु ।

और आकाश में अपने रहस्यमय मागों पर िल रहे अनचगनि नक्षत्र तया अण्डाणु नहीीं हैं क्जनके अींदर प्रसार की मभन्न-मभन्न अवस्थाओीं में पहुाँिा हुआ जीवन का सार—लघु–परमात्मा—तनदहि है ?

तया जीवन तनरीं िर अण्डाणु में से ही नहीीं तनकल रहा है और वापस अण्डाणु में ही नहीीं जा रहा है ? तनिःसींदेह िमत्कारपूणा और तनरीं िर है सक्ृ ष्ट की प्रकक्रया । जीवन का प्रवाह मााँ अण्डाणु कक सिह से उसके केंद्र िक, िथा केंद्र से वापस सिह िकबीना रुके जारी रहिा है । केंद्र- क्स्थि लघु- परमात्मा जैसे-जैसे समय िथा स्थान में िैलिा जािा है, जीवन के तनम्निम वगा से जीवन के उच्ििम वगा िक एक अण्डाणु से दस ू रे अण्डाणु में प्रवेश करिा िला जािा है । सबसे नीिे का वगा समय िथा स्थान में सबसे कम िैला हुआ है और सबसे ऊाँिा बगा सबसे अचिक । एक अण्डाणु से दस ू रे अण्डाणु में जाने में लगने वाला समय

मभन्न-मभन्न होिा है–कुछ क्स्थतियों पलक की एक िपक होिा है िो कुछ में पूरा यग ु ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

और इस प्रकार िलिी रहिी है सक्ृ ष्ट की प्रकक्रया जब िक मााँ–अण्डाणु का खोल टूट नहीीं जािा और लघ-ु परमात्मा ववराट-परमात्मा होकर बाहर नहीीं तनकल आिा ।इस

प्रकार जीवन एक प्रसार, एक ववृ ि और एक प्रगति है, लेककन उस अथा में नहीीं क्जस अथा में लोग ववृ ि और पगति का उकलेख प्रायिः करिे हैं; तयोंकक उनके मलए ववृ ि है आकार में बढ़ना, और प्रगति आगे बढ़ना ।

जबकक वास्िव में ववृ ि का िात्पया है समय और स्थान में सब िरि िैलना ; और

प्रगति का िात्पया है सब ददशाओीं में समान गति ; पीछे भी और आगे भी, और नीिे िथा दायें-बायें और ऊपर भी । अिएव िरम ववृ ि है स्थान से परे ़िैल जाना और िरम प्रगति है समय की

सीमाओीं से आगे तनकल जाना, और इस प्रकार ववराट-परमात्मा में लीन हो जाना और समय िथा स्थान के बन्िनों में से तनकलकर परमात्मा की स्विन्त्रिा िक जा पहुाँिना जो स्विन्त्रिा कहलाने योग्य एकमात्र अवस्था है । और यही है वह तनयति जो मनष्ु य के मलये तनिााररि है ।इन शब्दों पर ध्यान दो,

सािुओ । यदद िुम्हारा रति िक इन्हे प्रसन्निा पूवक ा न कर ले, िो सम्भव है कक अपने आप और दस ू रों को स्विन्त्र कराने के िम् ु हारे प्रयत्न िुम्हारी और उनकी जींजीरों में और अचिक बेड़ड़याीं जोड़ दें । मीरदाद िाहिा है कक िुम इन शब्दों को समि लो िाकक इन्हें समिने में िुम सब िड़पने वालों की सहायिा कर सको । मीरदाद िाहिा है कक िुम स्विन्त्र हो जाओ िाकक उन सब लोगों को जो आत्म-

ववजयी और स्विन्त्र होने के मलए िड़प रहे हैं िम ु स्विन्त्रिा िक पहुाँिा सको । इसमलए मीरदाद अण्डाणु के इस तनयम को और अचिक स्पष्ट करना िाहे गा, खासकर जहााँ िक इसका सम्बन्ि मनुष्य से है । मनुष्य से नीिे जीवों के सब वगा सामूदहक अण्डाणुओीं में बन्द हैं । इस िरह पौिों के मलए उिने ही अण्डाणु हैं क्जिने पौिों के प्रकार हैं,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जो अचिक ववकमसि हैं उनके अींदर सभी कम ववकमसि बन्द हैं और यही क्स्थति कीड़ों, मछमलयों और स्िनपायी जीवों की है ; सदा ही जीवन के एक अचिक ववकमसि वगा के अन्दर उससे नीिे के सभी वगा बन्द होिे हैं । जैसे सािारण अण्डे के भीिर की जदी और सिेदी उसके अींदर के िूजों के भ्रूण का

पोषण और ववकास करिी है , वैसे ही ककसी भी अण्डाणु में बन्द सभी अण्डाणु उसके अन्दर के लघ-ु परमात्मा का पोषण और ववकास करिे हैं । प्रत्येक अण्डाणु में समय- स्थान का जो अींश लघु-परमात्मा को ममलिा है , वह वपछले अण्डाणु में ममलने वाले अींश से थोड़ा मभन्न होिा है ।

इसमलए समय-स्थान में लघु-परमात्मा के प्रसार में अन्िर होिा है । गैस में वह

बबखरा हुआ आकारहीन होिा है , पर िरल पदाथा में अचिक घना हो जािा है और आकर िारण करने की क्स्थति में आ जािा है;

जबकक खतनज में वह एक तनक्श्िि आकार और क्स्थरिा िारण कर लेिा है । परन्िु इन सब क्स्थतियों में वह जीवन के गण ु ों से रदहि होिा है जो उच्ििर श्रेखणयों में प्रकट होिे हैं। वनस्पति में वह ऐसा रूप अपनािा है क्जसमे बढ़ने, अपनी सींख्या-ववृ ि करने और महसस ू करने की क्षमिा होिी है । पशु में वह महसूस करिा है , िलिा है और सींिान पैदा करिा है ; उसमे स्मरण शक्ति होिी है और सोि-वविार के मूल ित्व भी लेककन मनुष्य में, इन सब गुणों के अतिररति, वह एक व्यक्तित्व और सोि-वविार करने, अपने आपको अमभव्यति करने िथा सज ृ न करने की क्षमिा भी प्राप्ि कर लेिा है । तनिःसींदेह परमात्मा के सज ु ना में मनष्ु य का सज ृ न की िल ृ न ऐसा ही है जैसा ककसी महान वास्िुकार द्वारा तनममाि एक भव्य मींददर या सुन्दर दग ु ा की िुलना में एक बच्िे द्वारा बनाया गया िाींस के पत्िों का घर। ककन्िु है िो वह किर भी सज ृ न ही।प्रत्येक मनष्ु य एक अलग अण्डाणु बन जािा है,

और ववकमसि मनुष्य में कम ववकमसि मानव-अण्डाणओ ु ीं के साथ सब पश,ु

वनस्पति िथा उनके तनिले स्िर के अण्डाण,ु केंद्रीय नामभक िक, बन्द होिे हैं।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जबकक सबसे अचिक ववकमसि मनष्ु य में—आत्म-ववजेिा में—सभी मानव अण्डाणु और उनसे तनिले स्िर के सभी अण्डाणु भी बन्द होिे हैं। ककसी मनष्ु य को अपने अींदर बींद रखने वाले अण्डाणु का ववस्िार उस मनष्ु य के समय-स्थान के क्षक्षतिजों के ववस्िार से नापा जािा है । जहााँ एक मनुष्य की समय िेिना और उसके शैशव से लेकर वत्िामान घडी िक की अकप अवचि से अचिक और कुछ नहीीं समा सकिा, और उसके स्थान के क्षक्षतिजों के घेरे में उसकी दृष्टी की पहुाँि से परे का कोई

पदाथा नहीीं आिा, वहााँ दस ू रे व्यक्ति के क्षक्षतिज स्मरणािीि भि ू और सद ु रू भववष्य को, िथा स्थान की लम्बी दरू रयों को क्जन पर अभी उसकी दृष्टी नहीीं पड़ी है अपने घेरे में ले आिे हैं। प्रसार के मलए सब मनुष्यों को समान भोजन ममलिा है, पर उनका खाने और पिाने का सामथ्या समान नहीीं होिा ; तयोंकक वे एक ही अण्डाणु में से एक ही समय और एक ही स्थान पर नहीीं तनकले हैं। इसमलए समय-स्थान में उनके प्रसार में अन्िर होिा है; और इसी मलये कोई दो मनष्ु य ऐसे नहीीं ममलिे जो हूबहू एक जैसे हों।सब लोगों के सामने प्रिरु मात्रा में

और खुले हाथों परोसे गये भोजन में से एक व्यक्ति स्वणा की शुििा और सुींदरिा को दे खने का आनींद लेिा है और िप्ृ ि हो जािा है ,

जब कक दस ू रा स्वणा का स्वामी होने का रस लेिा है और सदा भूखा रहिा है । एक मशकारी एक सुींदर दहरनी को दे खकर उसे मारने और खाने के मलये प्रेररि होिा है ;

एक कवी उसी दहरनी को दे खकर मानो पींखों पर उड़ान भरिा हुआ उस समय और स्थान में जा पहुाँििा है क्जसका मशकारी कभी सपना भी नहीीं दे खिा ।

एक आत्म-ववजेिा का जीवन हर व्यक्ति के जीवन को हर ओर से छूिा है , तयोंकक सब व्यक्तियों के जीवन उसमे समाये हुये हैं। परन्िु आत्म-ववजेिा के जीवन को ककसी भी व्यक्ति का जीवन हर ओर से नहीीं छूिा। अत्यन्ि सरल व्यक्ति को

आत्म-ववजेिा अत्यन्ि सरल प्रिीि होिा है । अत्यन्ि ववकमसि व्यक्ति को वह अत्यन्ि ववकमसि ददखाई दे िा है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ककन्िु आत्म-ववजेिा के सदा कुछ ऐसे पक्ष होिे हैं क्जन्हे आत्म-ववजेिा के मसवाय

और कोई न कभी समि सकिा है , न महसूस कर सकिा है । यही कारण है कक वह सबके बीि में रहिे हुए भी अकेला है; वह सींसार में है किर भी सींसार का नहीीं है । लघु-परमात्मा बन्दी नहीीं रहना िाहिा। वह मनुष्य की बुवि से कहीीं ऊाँिी बुवि का प्रयोग करिे हुये समय िथा स्थान के कारावास से अपनी मुक्ति के मलये सदै व

काया-रि रहिा है । तनम्न स्िर के लोगों में इस बुवि को लोग सहज-बुवि कहिे हैं। सािारण मनुष्यों में वे इसे िका और उच्ि कोदट के मनुष्यों में इसे ददव्य बुवि

कहिे हैं। यह सब िो वह है ही, पर इससे अचिक भी बहुि कुछ है । यह वह अनाम शक्ति है क्जसे कुछ लोगों ने ठीक ही पववत्र शक्ति का नाम ददया है , और क्जसे मीरदाद ददव्य ज्ञान कहिा है ।

समय के खोल को बेिने वाला और स्थान की सीमा को लााँघने वाला प्रथम मानवपुत्र ठीक ही प्रभु का पुत्र कहलािा है । उसका अपने ईश्वरत्व का ज्ञान ठीक ही पववत्र शक्ति कहलािा है । ककन्िु ववश्वास रखो िुम भी प्रभु के पुत्र हो, और िुम्हारे अन्दर भी वह पववत्र शक्ति अपना काया कर रही है । उसके साथ काया करो उसके ववरुि नहीीं।परन्िु जब िक िुम समय के खोल को बेि नहीीं दे िे और स्थान की सीमा को लााँघ नहीीं जािे, िब िक कोई यह न कहे , ”मैं प्रभु हूाँ”।

बक्कक यह कहो ” प्रभु ही मैं हैं।” इस बाि को अच्छी िरह ध्यान में रखो, कहीीं ऐसा न हो कक अहींकार िथा खोखली ककपनाएाँ िुम्हारे ह्रदय को भ्रष्ट कर दें और िुम्हारे अन्दर हो रहे पववत्र शक्ति के काया का ववरोि करें । तयोंकक अचिकााँश लोग पववत्र शक्ति के ववरुि काया करिे हैं, और इस प्रकार अपनी अींतिम मुक्ति को स्थचगिकअऋ दे िे हैं। समय को जीिने के मलए यह आवश्यक है कक िुम समय द्वारा ही समय के ववरुि लड़ो। स्थान को पराक्जि करने के मलए यह आवश्यक है कक िुम स्थान को ही स्थान का आहार बनने दो।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

दोनों में से एक का भी स्नेहपूणा स्वागि करना दोनों का बन्द होना िथा नेकी और बदी की अन्िहीन हास्य-जनक िेष्टाओीं का बन्िक बने रहना है । क्जन लोगों ने अपनी तनयति को पहिान मलया है और उस िक पहुाँिने के मलए

िड़पिे हैं, वे समय के साथ लाड़ करने में समय नहीीं गाँवािे और न ही स्थान में भटकने में अपने कदम नष्ट करिे हैं। सम्भव है कक वे एक ही जीवन- काल में युगों को समेट लें िथा अपार दरू रयों को ममटा दें । वे इस बाि की प्रिीक्षा नहीीं करिे कक मत्ृ यु उन्हें उनके इस अण्डाणु से अगले अण्डाणु में ले जाये;

वे जीवन पर ववश्वास रखिे हैं कक बहुि से अण्डाणओ ु ीं के खोलों को एक साथ िोड़ डालने में वह उनकी सहायिा करे गा। इसके मलए िम् ु हे हर वस्िु के मोह का त्याग करना होगा, िाकक समय िथा स्थान की िुम्हारे ह्रदय पर कोई पकड़ न रहे । क्जिना अचिक िम् ु हारा पररग्रह होगा, उिने ही अचिक होंगे िम् ु हारे बन्िन। जजतना िम तुम् ारा पररग्र

ााँ, अपने ववश्वास, अपने प्रेम

ोगा, उतने

ी िम

ोंगे तुम् ारे बन्धन।

तथा हदव्य ज्ञान िे द्वारा

मजु क्त िे मलये अपनी तड़प िे अनतररक्त

र वस्तु िी

लालसा िो त्याग दो।

(hindi) किताब ए मीरदाद-अध्याय - 35 / 36 /37 अध्याय-35 परमात्मा िी रा

पर

र मागच प्रिाि से भर हदया जाएगा ************************************* परमात्मा िी रा पर प्रिाि-िण

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

*************************************

मीरदाद; इस राि के सन्नाटे में मीरदाद परमात्मा परमात्मा की ओर जानेवाली राह पर कुछ प्रकाशकण ववखेरना िाहिा है ।

वववाद से बिो सत्य स्वयीं प्रमाखणि है ; उसे ककसी प्रमाण की आवश्यकिा नहीीं है । क्जसे िका और प्रमाण कक आवश्यकिा होिी है , उसे दे र-सवेर िका और प्रमाण के द्वारा ही चगरा ददया जािा है । ककसी बाि को मसि करना उसके प्रतिपक्ष को खींड़डि करना है । उसके प्रतिपक्ष को मसि करना उसका खींडन करना है । परमात्मा का कोई प्रतिपक्ष है ही नहीीं किर िम ु कैसे उसे मसि करोगे या कैसे उसका खींडन करोगे ? यदद क्जव्हा को सत्य का वाहक बनाना िाहिे हो िो उसे कभी मस ू ल, ववषदीं ि, वािसूिक ,कलाबाज या सिाई करनेवाला नहीीं बनाना िादहए। बेजबानों को राहि

दे ने के मलये बोलो। अपने आप को राहि दे ने के मलये मौन रहो। शब्द जहाज हैं जो स्थान के समद्र ु ों में िलिे हैं। और अनेक बींदरगाहों पर रुकिे हैं। साविान रहो कक िुम उनमे तया लादिे हो;

तयोंकक अपनी यात्रा समाप्ि करने के बाद वे अपना माल आखखर िह ु ारे द्वार पर ही उिारें गे। घर के मलए जो महत्वज िाड़ू का है , वही महत्व ह्रदय के मलए आत्मतनरीक्षण का है ।

अपने ह्रदय को अच्छी िरह बुहारो। अच्छी िरह बुहारा गया ह्रदय एक अजेय गुगा है ।जैसे िुम लोगों और पदाथों को अपना आहार बनािे हो, वैसे ही वे िुम्हे अपना आहार बनािे हैं। यदद िम ु िाहिे हो कक िम् ु हे ववष न ममले, िो दस ू रों के मलए स्वास्थ्य-प्रद भोजन बनो। जब िुम्हे अगले कदम के ववषय में सींदेह हो, तनश्छल खड़े रहो।

क्जसे िुम नापसींद करिे हो वह िुम्हे नापसींद करिा है, उसे पसींद करो और ज्यों का त्यों रहने दो। इस प्रकार िुम अपने रास्िे से एक बािा हटा दोगे। सबसे अचिक

असह्य परे शानी है ककसी बाि को परे शानी समिना। अपनी पसींद का िन ु ाव कर लो; हर वस्िु स्वामी बनना है या ककसी का भी नहीीं। बीि का कोई मागा सम्भव नहीीं। रास्िे का हर रोड़ा एक िेिावनी है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

िेिावनी को अच्छी िरह पढ़ लो, और रास्िे का रोड़ा प्रकाश स्िम्भ बन जायेगा। सीिा टे ढ़े का भाई है। एक छोटा रास्िा है दस ू रा घुमावदार। टे ढ़े के प्रति िैया रखो। ववश्वास-यत ु ि िैया स्वास्थ्य है । ववश्वास-रदहि िैया अिाांग है ।होना, महसस ू करना, सोिना, ककपना करना, जानना –यह हैं मनुष्य के जीवन-िक्र के मुख्य पड़ावों का क्रम। प्रशींसा करने और पाने से बिो; जब प्रशींसा सवाथा तनश्छल और उचिि हो िब भी। जहााँ िक िापलूसी का सम्बन्ि है , उसकी कपटपूणा कसमों के प्रति गाँग ू े और बहरे बन जाओ । दे ने का एहसास रखिे हुए कुछ भी दे ना उिार लेना ही है । वास्िव में िम ु ऐसा कुछ भी नहीीं दे जो िुम्हारा है ।

िम ु लोगों को केवल वाही दे िे हो जो िम् ु हारे पास उनकी अमानि है । जो िम् ु हारा है , मसिा िुम्हारा ही, वह िुम दे नहीीं सकिे िाहो िो भी नहीीं। अपना सींिुलन बनाये रखो, और िुम मनुष्यों के मलए अपने आपको नापने का मापदण्ड और िौलने की िराजू बन जाओ। गरीबी और अमीरी नाम की कोई िीज नहीीं है , बाि वस्िुओीं का उपयोग करने के कौशल की है असल में गरीब वह है जो उन वस्िओ ु ीं का जो उसके पास हैं गलि उपयोग करिा है । अमीर वह है जो अपनी वस्िुओीं का सही उपयोग करिा है । बासी रोटी की सूखी पपड़ी भी ऐसी दौलि हो सकिी है क्जसे आींका न जा सके। सोने से भरा िहखाना भी ऐसी गरीबी हो सकिा है क्जससे छुटकारा न ममल सके। जहााँ बहुि से रास्िे एक केंद्र में ममलिे हों वहााँ इस अतनश्िय में मि पड़ो कक ककस रस्िे से िला जाये।

प्रभु की खोज में लगे ह्रदय को सभी रास्िे प्रभु की ओर लेजा रहे हैं। जीवन के सब रूपों के प्रति आदर-भाव रखो। सबसे िुच्छ रूप में सबसे अचिक महत्त्वपूणरू ा प की कींु जी छुपी तछपी रहिी है । जीवन की सब कृतियााँ महत्वपूणा हैं —हााँ, अद्भि ु ,श्रेष्ठ और अद्वविीय। जीवन अपने आपको तनरथाक, िच् ु छ कामों में नहीीं लगािा।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

प्रकृति के कारखाने में कोई वस्िु िभी बनिी है जब वह प्रकृति की प्रेमपूणा दे खभाल और श्रमपूणा कौशल की अचिकारी हो। िो तया वह कम से कम िुम्हारे आदर कक अचिकारी नहीीं होनी िादहए ? यदद मच्छर और िीींदटयााँ आदर के योग्य हों, िो िुम्हारे साथी मनुष्य उनसे ककिने

अचिक आदर के योग्य होने िादहयें ? ककसी मनुष्य से घण ृ ा न करो। एक भी मनुष्य से घण ृ ा करने की अपेक्षा प्रत्येक मनुष्य से घण ृ ा पाना कहीीं अच्छा है ।

तयोंकक ककसी मनुष्य से घण ृ ा करना उसके अींदर के लघु-परमात्मा से घण ृ ा करना है । ककसी भी मनष्ु य के अींदर लघु-परमात्मा से घण ृ ा करना अपने अींदर के लघ-ु परमात्मा से घण ृ ा करना है ।

वह व्यक्ति भला अपने बींदरगाह िक कैसे पहुाँिेगा जो बींदरगाह िक ले जाने वाले अपने एकमात्र मकलाह का अनादर करिा हो ?नीिे तया है , यह जानने के मलये

ऊपर दृष्टी डालो। ऊपर तया है , यह जानने के मलये नीिे दृष्टी डालो। क्जिना ऊपर िढ़िे हो उिना ही नीिे उिरो; नहीीं िो िम ु अपना सींिल ु न खो बैठोगे। आज िुम मशष्य हो। कल िुम मशक्षक बन जाओगे। अच्छे मशक्षक बनने के मलये अच्छे मशष्य बने रहना आवश्यक है । सींसार में से बदी के घाींस-पाि को उखाड़ िेंकने का यत्न न करो; तयोंकक घास-पाि की भी अच्छी खाद बनिी है । उत्साह का अनचु िि प्रयोग बहुिा उत्साही को ही मार डालिा है । केवल ऊाँिे और शानदार वक्ष ृ ों से ही जींगल नहीीं बन जािा; िाड़ड़याीं और मलपटिी लिाओीं की भी आवश्यकिा होिी है ।

पाखण्ड पर पदाा डाला जा सकिा है ,लेककन कुछ समय के मलए ही;उसे सदा ही परदे में नहीीं रखा जा सकिा, न ही उसे हटाया या नष्ट ककया जा सकिा है । दवू षि वासनाएाँ अींिकार में जन्म लेिी हैं और वहीीँ िलिी-िूलिी हैं। यदद िुम उन्हें तनयींत्रण में रखना िाहिे हो िो उन्हें प्रकाश में आने की स्विन्त्रिा दो। यदद िुम हजार पाखक्ण्डयों में से एक को भी सहज ईमानदारी की राह पर वापस लाने में सिल हो हो जािे हो िो सिमि ु महान है िम् ु हारी सिलिा। मशाल को

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ऊाँिे स्थान पर रखो, और उसे दे खने के मलये लोगों को बुलािे न किरो क्जन्हे प्रकाश कक आवश्यकिा है उन्हें ककसी तनमींत्रण की आवश्यकिा नहीीं होिी। बुविमत्िा अिरू ी बुवि वाले के मलये बोि है , जैसे मख ा ा मख ू ि ु ा के मलये बोि है । बोि उठाने में अिूरी बुवि वाले कक सहायिा करो और मूखा को अकेला छोड़ दो; अिूरी बुवि वाला मुखा को िुमसे अचिक मसखा सकिा है ।

कई बार िुम्हे अपना मागा दग ा ,अींिकारपूणा और एकाकी लगेगा। अपना इरादा ु म पतका रखो और दहम्मि के साथ कदम बढ़ािे जाओ; और हर मोड़ पर िुम्हे एक

नया साथी ममल जायेगा। पथ-ववहीन स्थान में ऐसा कोई पथ नहीीं क्जस पर अभी िक कोई न िला हो। क्जस पथ पर पद-चिन्ह बहुि कम और दरू -दरू हैं, वह सीिा और सरु क्षक्षि है, िाहे कहीीं-कहीीं उबड़-खाबड़ और सुनसान है । जो मागादशान िाहिे हैं उन्हें मागा ददखा

सकिे है , उस पर िलने के मलए वववश नहीीं कर सकिे। याद रखो िुम मागादशाक हो। अच्छा मागादशाक बनने के मलये आवश्यक है कक स्वयीं अच्छा मागादशान पाया हो। अपने मागादशाक पर ववश्वास रखो। कई लोग िम ु से कहें गे, ”हमें रास्िा ददखाओ।” ककन्िु थोड़े ही बहुि ही थोड़े कहें गे,

”हम िुमसे ववनिी करिे हैं कक रास्िे में हमारी रहनुमाई करो”।आत्म-ववजय के मागा में वे थोड़े- से लोग उन कई लोगों से अचिक महत्त्व रखिे हैं। िुम जहााँ िल न सको रें गो। जहााँ दौड़ न सको, िलो; जहााँ उड़ न सको, दौड़ो; जहााँ समूिे ववश्व को अपने अींदर

रोक कर खड़ा न कर सको,उड़ो। जो व्यक्ति िम् ु हारी अगआ ु ई में िलिे हुए ठोकर खािा है उसे केवल एक बार, दो बार या सौ बार ही नहीीं उठाओ।

याद रखो कक िुम भी कभी बच्िे थे, और उसे िब िक उठािे रहो जब िक वह ठोकर खाना बन्द न कर दे । अपने ह्रदय और मन को क्षमा से पववत्र कर लो िाकक जो भी सपने िुम्हे आयें वे पववत्र हों।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जीवन एक ज्वर है जो हर मनष्ु य कक प्रवतृ ि या िुन के अनस ु ार मभन्न-मभन्न प्रकार का और मभन्न-मभन्न मात्रा में होिा है; और इसमें मनुष्य सदा प्रलाप की अवस्था में रहिा है । भाग्यशाली हैं वे मनष्ु य जो ददव्य ज्ञान से प्राप्ि होने वाली पववत्र स्विींत्रिा के नशे में उन्मत्ि रहिे हैं। मनुष्य के ज्वर का रूप-पररविान ककया जा सकिा है ; युि के ज्वर को शाक्न्ि के ज्वर में बदला जा सकिा है और िन-सींिय के ज्वर को प्रेम का सींिय करने के ज्वर में। ऐसी है ददव्य ज्ञान की वह रसायन-ववद्या क्जसे िम् ु हे उपयोग में लाना है और क्जसकी िम् ु हे मशक्षा दे नी है । जो मर रहे हैं उन्हें जीवन का उपदे श दो, जो जी रहे हैं उन्हें मत्ृ यु का। ककन्िु जो आत्म ववजय के मलए िड़प रहे हैं, उन्हें

दोनों से मुक्ति का उपदे श दो।वश में रखने और वश में होने में बड़ा अींिर है । िुम उसी को वश में रखिे हो क्जससे िुम प्यार करिे हो। क्जससे िम ु घण ु वश में होिे हो। वश में होने से बिो। समय ृ ा करिे हो, उसके िम और स्थान के ववस्िार में एक से अचिक पक्ृ थ्वयााँ अपने पथ पर घूम रहीीं हैं।

िम् ु हारी पथ् ृ वी इस पररवार में सबसे छोटी है , और यह बड़ी हृष्ट-पुष्ट बामलका है । एक तनश्िल गति—–कैसा ववरोिाभास है ।

ककन्िु परमात्मा में सींसारों की गति ऐसी ही है ।यदद िुम जानना िाहिे हो कक छोटी-बड़ी वस्िुएाँ बराबर कैसे हो सकिी हैं िो अपने हाथों की अाँगुमलयों पर दृष्टी डालो। सींयोग बुविमानों के हाथ में एक खखलौना है ; मुखा सींयोग के हाथ में खखलौना होिे हैं। कभी ककसी िीज की मशकायि न करो।

ककसी िीज की मशकायि करना उसे अपने आपके मलये अमभशाप बना लेना है । उसे भली प्रकार सहन कर लेना उसे उचिि दण्ड दे ना है । ककन्िु उसे समि लेना उसे एक सच्िा सेवक बना लेना है । प्रायिः ऐसा होिा है कक मशकारी लक्ष्य ककसी दहरनी को बनािा है परन्िु लक्ष्य िुकने से मारा जािा है कोई खरगोश क्जसकी उपक्स्थति का उसे बबलकुल ज्ञान न था।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

ऐसी क्स्थति में एक समिदार मशकारी कहे गा, ”मैंने वास्िव में खरगोश को ही लक्ष्य बनाया था, दहरनी को नहीीं। और मैंने अपना मशकार मार मलया। ”लक्ष्य अच्छी िरह से सािो। पररणाम जो भी हो अच्छा ही होगा। जो िुम्हे पास आ जािा है , वह िुम्हारा है । जो आने में ववलम्ब करिा है, वह इस योग्य नहीीं कक उसकी प्रिीक्षा की जाये। प्रिीक्षा

उसे करने दो।क्जसका तनशाना िुम साििे हो यदद वह िुम्हे तनशाना बना ले िो िम ु तनशाना कभी नहीीं िक ू ोगे िक ू ा हुआ तनशाना सिल तनशाना होिा है । अपने ह्रदय को तनराशा के सामने अभेद्य बना लो।

तनराशा वह िील है क्जसे दब ा ह्रदय जन्म दे िे हैं और वविल आशाओीं के सड़े-गले ु ल माींस पर पालिे हैं। एक पूणा हुई आशा कई मि ृ -जाि आशाओीं को जन्म दे िी है ।

यदद िुम अपने ह्रदय को कबब्रस्िान नहीीं बनाना िाहिे िो साविान रहो, आशा के साथ उसका वववाह मि करो।

हो सकिा है ककसी मछली के ददए सौ अण्डों में से केवल एक में से बच्िा तनकले। िो भी बाकी तनन्यानवे व्यथा नहीीं जािे। प्रकृति बहुि उदार है, और बहुि वववेक है उसकी वववेकहीनिा में।

िुम भी लोगों के ह्रदय और बुवि में अपने ह्रदय और बुवि को बोने में उसी प्रकार उदार और वववेकपूवक ा वववेकहीन बनो। ककसी भी पररश्रम के मलए पुरस्कार मि मााँगो। जो अपने पररश्रम से प्यार करिा है , उसका पररश्रम स्वयीं पयााप्ि पुरस्कार है । सज ु न को याद रखो। जब िम ु ददव्य ज्ञान के द्वारा यह ृ नहार शब्द िथा पूणा सींिल सींिुलन प्राप्ि कर लोगे िभी िुम आत्म-ववजेिा बनोगे, और िुम्हारे हाथ प्रभु के हाथों के साथ ममलकर काया करें गे। परमात्मा करे इस राबत्र की नीरविा और शाक्न्ि का स्पन्दन िुम्हारे अींदर िब िक होिा रहे जब िक िम ु उन्हें ददव्य ज्ञान की नीरविा और शाक्न्ि में डुबा न दो।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

यही मशक्षा थी मेरी नूह को। यही मशक्षा है मेरी िम् ु हें । अध्याय-36 नौिा-हदवस तथा उसिे धाममचि अनष्ु ठान जीववत दीपि िे बारे में बेसार

िे सल ु तान िा सन्दे ि ************************************* नरौंदा ; जबसे मुमशाद बेसार से लौटे से लौटे िब से शमदाम उदास और अलग-अलग सा रहिा था।

ककन्िु जब नौका- ददवस तनकट आ गया िो वह उकलास िथा उत्साह से भर गया और सभी जदटल िैयाररयों का छोटी से छोटी बािों िक का, तनयींत्रण उसने स्वयीं सींभल मलया।

अींगूर-बेल के ददवस की िरह नौका-ददवस को भी एक ददन से बढ़ाकर उकलास- भरे आमोद-प्रमोद का पूरा सप्िाह बना मलया गया था क्जसमे सब प्रकार की वस्िुओीं िथा सामान का िेजी के साथ व्यापार होिा है । इस ददन के अनेक िाममाक अनष्ु ठानों में सबसे अचिक महत्वपूणा हैं; बमल िढ़ाये

जाने वाले बैल का वि, बाली-कुण्ड की अक्ग्न को प्रज्वमलि करना, और उस अक्ग्न से वेदी पर पुराने दीपक के स्थान पर नये दीपक को जलना। इस वषा दीपक भेंट करने के मलए बेसार के सुलिान को िुना गया था। उत्सव के एक ददन पहले शमदाम ने हमें और मुमशाद को अपने कक्ष में बुलाया और हमसे अचिक ममु शाद को सम्बोचिि करिे हुए उसने ये शब्द कहे ;शमदाम:> कल एक पववत्र-ददवस है ;

हम सभी को यही शोभा दे िा है कक उसकी पववत्रिा को बनाये रखें। वपछले िगड़े कुछ भी रहे हों, आओ उन्हें हम यहीीं और अभी दिना दें । यह नहीीं होना िादहए कक नौका की प्रगति िीमी पद जाये, या हमारे उत्साह में कोई कमी आ जाये। और परमात्मा न करे कक नौका ही रुक जाये। मैं इस नौका का मखु खया हूाँ। इसके सींिालन का कदठन दातयत्व मुि पर है । इसका मागा तनक्श्िि करने का अचिकार मि ु े प्राप्ि है । ये किाव्य और अचिकार मि ु े ववरासि में ममले हैं ; इसी

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

प्रकार मेरी मत्ृ यु के बाद वे तनश्िय ही िम ु में से ककसी को ममलेंगे। जैसे मैंने अपने अवसर की प्रिीक्षा की थी,

िम ु भी अपने अवसर की प्रिीक्षा करो। यदद मैंने मीरदाद के साथ अन्याय ककया है िो वह मेरे अन्याय को क्षमा कर दे । मीरदाद : मीरदाद के साथ िुमने कोई अन्याय नहीीं ककया है लेककन शमदाम के साथ िुमने घोर अन्याय ककया है । शमदाम : तया शमदाम को शमदाम के साथ अन्याय करने की स्विींत्रिा नहीीं है ? मीरदाद : अन्याय करने की स्विींत्रिा ? ककिने बेमोल हैं ये शब्द ! तयोंकक अपने साथ अन्याय करना भी अन्याय का दास बनना है ; जबकक दस ू रों के साथ अन्याय करना एक दास का दास बन जाना है । ओह, भारी होिा है अन्याय का बोि। शमदाम; यदद मैं अपने अन्याय का बोि उठाने को िैयार हूाँ िो इसमें िुम्हारा तया बबगड़िा है ?

मीरदाद : तया कोई बीमार दाींि मह ुाँ से कहे गा कक कक यदद मैं अपनी पीड़ा सहने को िैयार हूाँ िो इसमें िुम्हारा तया बबगड़िा है ? शमदाम : ओह, मि ु े ऐसा ही रहने दो, बस ऐसा ही रहने दो। अपना भरी हाथ मुिसे दरू हटा लो, और मि मारो मुिे िाबुक अपनी ििुर क्जव्हा से। मुिे अपने

बाकी ददन वैसे ही जी लेने दो जैसे मैं अब िक पररश्रम करिे हुए जीिा आया हूाँ। जाओ, अपनी नौका कहीीं और बना लो, पर इस नौका में हस्िक्षेप न करो। िुम्हारे और मेरे मलए, िथा िुम्हारी और मेरी नौकाओीं के मलए यह सींसार बहुि बड़ा है । कल मेरा ददन है । िम ु सब एक ओर खड़े रहो और मि ु े अपना काया करने दो — तयोंकक मैं िुममें से ककसी का भी हस्िक्षेप सहन नहीीं करूाँगा। ध्यान रहे शमदाम का प्रतिशोि उिना ही भयानक है क्जिना परमात्मा का। साविान ! साविान !

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

मीरदाद ; शमदाम का ह्रदय अभी िक शमदाम का ही ह्रदय है ।उस क्षण एक लम्बा और प्रभावशाली व्यक्ति, जो स़िेद वस्त्र पहने हुए था, ितकम ितका करिे कदठनाई से अपना रास्िा बनािे हुए वेदी की ओर आिा ददखाई ददया।

ित्काल दबी आवाज में कानों-कान बाि ़िैल गई कक यह बेसार के सुकिान का तनजी दि ू है जो नया दीपक ले कर आया है ;

और सब लोग उस बहुमूकय तनचि की िलक पाने के मलए उत्सुक हो उठे । ओरों की िरह यह मानिे हुए कक वह नए वषा की बहुमूकय भेंट लेकर आया है शमदाम ने बहुि नीिे िक िक ु कर उस दि ू को प्रणाम ककया।

लेककन उस व्यक्ति ने शमदाम को दबी आवाज से कुछ कहकर अपनी जेब से एक िमा-पत्र तनकला और, यह स्पष्ट कर दे ने के बाद कक इसमें बेसर के सक ु िान का सन्दे श है क्जसे लोगों िक खुद पहुाँिाने का उसे आदे श ददया गया है ,

वह पत्र पढ़ने लगा :”बेसार के भूिपूवा सुलिान की ओर से आज के ददन नौका में एकबत्रि दचू िया पवािमाला के अपने सब साथी मनष्ु यों के मलए शाींति-कामना और प्यार। नौका के प्रति गहरी श्रिा के आप सब प्रत्यक्ष साक्षी हैं।

इस वषा का दीपक भेंट करने का सम्मान मुिे प्राप्ि हुआ था, इसमलए मैंने बुवि

और िन का उपयोग करने में कोई सींकोि नहीीं ककया िाकक मेरा उपहार नौका के योग्य हो। और मेरे प्रयास पूणि ा या सिल रहे ; तयोंकक मेरे वैभव और मेरे मशकपकारों के कौशल से जो दीपक िैयार हुआ, वह सिमि ु एक दे खने योग्य िमत्कार था। ‘लेककन प्रभु मेरे मलए क्षमाशील और कृपालु था, वह मेरी दररद्रिा का भेद नहीीं

खोलना िाहिा था। तयोंकक उसने मि ु े एक ऐसे दीपक के पास पहुींिा ददया क्जसका प्रकश िकािौंि कर दे िा है और क्जसे बुिाया नहीीं जा सकिा, क्जसकी सुींदरिा अनुपम और तनष्कलींक है ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

उस दीपक को दे खकर मैं इस वविार से लज्जा में डूब गया कक मैंने अपने दीपक की कभी कोई कीमि समिी थी। सो मैंने उसे कूड़े के ढे र पर िेंक ददया। ‘यह वह जीववि दीपक है क्जसे ककसी के हाथों ने नहीीं बनाया है । मैं िम ु सबको हाददा क सुिाव दे िा हूाँ कक उसके दशान से अपने नेत्रों को िप्ृ ि करो, उसी की ज्योति से अपनी मोमबक्त्ियों को जलाओ। दे खो वह िुम्हारी पहुाँि में है । उसका नाम है मीरदाद।

प्रभु करे कक िुम उसके प्रकाश के योग्य बनो। ”. अध्याय -37 जो आत्म ववजय िे मलए तड़फ र े व

आए और नौिा पर सवार



ो जाए

************************************ मुमिचद लोगों िोआग और खन िी बाढ़ से सावधान िरते बर्ने िा मागच बताते

ैं..

ैं,

औरअपनी नौिा िो जल में उतारते ैं ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ मीरदाद : तया िाहिे हो िुम मीरदाद से ? वेदी को सजाने के मलए सोने का रत्न-जड़ड़ि दीपक ?

परन्िु मीरदाद न सन ु ार है , न जौहरी, आलोक-स्िम्भ और आश्रय वह भले ही हो। या िुम िाबीज िाहिे हो बुरी नजर से बिने के मलये ? हााँ, िाबीज मीरदाद के पास बहुि हैं, परन्िु ककसी और ही प्रकार के। या िुम प्रकाश िाहिे हो िाकक अपने-अपने पूव-ा तनक्श्िि मागा पर सुरक्षक्षि िल सको ? ककिनी ववचित्र बाि है । सय ू ा है िम् ु हारे पास, िन्द्र है , िारे हैं, किर भी िम् ु हे ठोकर खाने और चगरने का डर है ? िो किर िुम्हारी आाँखें िुम्हारा मागादशाक बनने के

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

योग्य नहीीं हैं ; या िम् ु हारी आाँखों के मलए प्रकाश बहुि कम है । और िुममे से ऐसा कौन है जो अपनी आाँखों के बबना काम िला सके ?

कौन है जो सय ू ा पर कृपणिा का दोष लगा सके ? वह आाँख ककस काम की जो पैर को िो अपने मागा पर ठोकर खाने से बिा ले,

लेककन जब ह्रदय राह टटोलने का व्यथा प्रयास कर रहा हो िो उसे ठोकरें खाने के मलये और अपना रति बहाने के मलये छोड़ दे ? वह प्रकाश ककस काम का जो आाँख को िो ज्यादा भर दे , लेककन आत्मा को खाली और प्रकाशहीन छोड़ दे ? तया िाहिे हो िम ु मीरदाद से ? दे खने की क्षमिा रखनेवाला ह्रदय और प्रकश में नहाई आत्मा िाहिे हो और उनके मलए व्याकुल हो रहे हो, िो िम् ु हारी व्याकुलिा व्यथा नहीीं है । तयोंकक मेरा सम्बन्ि मनुष्य की आत्मा और ह्रदय से है ।इस ददन के मलए जो गौरवपूणा आत्म-ववजय का ददन है , िुम उपहार-स्वरुप तया लाये हो ?

बकरे , मेढ़े और बैल ? ककिनी िच् ु छ कीमि िक ु ाना िाहिे हो िम ु मक्ु ति के मलये ! ककिनी सस्िी होगी वह मुक्ति क्जसे िुम खरीदना िाहिे हो !ककसी बकरे पर ववजय पा लेना मनष्ु य के मलए कोई गौरव की बाि नहीीं। और गरीब बकरे के प्राण अपनी प्राण-रक्षा के मलए भेंट करना िो वास्िव में मनुष्य के मलये अत्यींि लज्जा की बाि है । तया ककया है िुमने इस पववत्र-ददन की पववत्र भावना में योग दे ने के मलये, जो प्रकट ववश्वास और हर परख में सिल प्रेम का ददन है ? हााँ, तनश्िय ही िुमने िरह-िरह की रस्में तनभाई हैं, और अनेक प्राथानाएाँ दोहराई हैं।

ककन्िु सींदेह िुम्हारी हर कक्रया के साथ रहा है, और घण ृ ा िुम्हारी हर प्राथाना पर

”िथास्िु”कहिी रही है । तया िुम जल-प्रलय का उत्सव मानाने के मलये नहीीं आये हो ? पर िुम एक ऐसी ववजय का उत्सव तयों मानिे हो क्जसमे िुम पराक्जि हो गये ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तयोंकक नूह ने अपने समुद्रों को पराक्जि करिे समय िुम्हारे समुद्रों को पराक्जि नहीीं ककया था, केवल उन पर ववजय पाने का मागा बिाया था। और दे खो िम् ु हारे समद्र ु उिन रहे हैं और िम् ु हारे जहाज को डुबाने पर िल ु े हुए हैं। जब िक िुम अपने िू़िान पर ववजय नहीीं पा लेि,े िुम आज का ददन मानाने के योग्य नहीीं हो सकिे। िुममे से हर एक जल-प्रलय भी है ,

नौका भी और केवट भी। और जब िक वह ददन नहीीं आ जािा जब िुम अपनी ककसी नहाई-साँवरी कुाँआरी लींगर डाल लो, अपनी ववजय का उत्सव मानाने की जकदी न करना।िम ु जानना िाहोगे कक मनष्ु य अपने ही मलये बाढ़ कैसे बन गया।

जब पववत्र-प्रभु- इच्छा ने आदम को िीर कर दो कर ददया िाकक वह अपने आप को पहिाने और उस एक के साथ अपनी एकिा का अनभ ु व कर सके,

िब वह एक पुरुष और एक स्त्री बन गया—एक नर-आदम और एक मादा-आदम। िभी डूब गया वह कामनाओीं की बाढ़ में जो द्वैि से उत्पन्न होिी हैं—कामनाएाँ इिनी बहुसींख्य,

इिनी रीं ग-बबरीं गी, इिनी ववशाल, इिनी कलुवषि और इिनी उवार कक मनुष्य आज िक उनकी लहरों में बेसहारा बह रहा है । लहरें कभी उसे ऊींिाई के मशखर िक उठा दे िी हैं िो कभी गहराइयों िक खीींि ले जािी हैं। तयोंकक क्जस प्रकार उसका जोड़ा बना हुआ है, उसकी कामनाओीं के भी जोड़े बने हुए हैं। और यद्यवप दो परस्पर ववरोिी िीजें वास्िव में एक दस ू रे की

पूरक होिी हैं, किर भी अज्ञानी लोगों को वे आपस में लड़िी-िगड़िी प्रिीि होिी हैं और क्षण भर के यि ु -ववराम की घोषणा करने के मलये िैयार नहीीं जान पड़िीीं।

यही है वह बाढ़ क्जससे मनुष्य को अपने अत्यींि लम्बे, कदठन द्वैिपूणा जीवन में प्रतिक्षण, प्रतिददन सींघषा करना पड़िा है । यही है वह बाढ़ क्जसकी जोरदार बौछार

ह्रदय से िूट तनकलिी है और िुम्हे अपनी प्रबल िारा में बहा ले जािी है । यही है वह बाढ़ क्जसका इींद्रिनुष िब िक िुम्हारे आकाश को शोमभि नहीीं करे गा जब िक िम् ु हारा आकाश िम् ु हारी िरिी के साथ न जड़ ु जाये और दोनों एक न हो जाएाँ।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जबसे आदम ने अपने आपको हौवा में बोया है , मनुष्य बवण्डरों और बािों की िसलें काटिे िले आ रहे हैं। जब एक प्रकार के मनोवेगों का प्रभाव अचिक हो जािा है, िब मनष्ु यों के जीवन का सींिल ु न बबगड़ जािा है, और िब मनष्ु य एक या दस ू री बाढ़ की लपेट में आ जािे हैं िाकक सींिुलन पुनिः स्थावपि हो सके। और सींिुलन िब िक स्थावपि नहीीं होगा जब िक मनष्ु य अपनी सब कामनाओीं को प्रेम की पराि में गाँूिकर उनसे ददव्य-ज्ञान की रोटी पकाना नहीीं सीख लेिा। अ़िसोस ! िुम व्यस्ि हो बोि लादने में; व्यस्ि हो अपने रति में दख ु ों से भरपूर

भोगों का नशा घोलने में; व्यस्ि हो कहीीं न ले जाने वाले मागों के मान-चित्र बनाने में; व्यस्ि हो अींदर िााँकनेका कष्ट ककये बबना जीवन के गोदामों के वपछले अहािों से बीज िन ु ने में। िुम डूबोगे तयों नहीीं मेरे लावाररश बच्िो ? िुम पैदा हुए थे ऊाँिी उड़ाने भरने के

मलये, असीम आकाश में वविरने के मलये, ब्रम्हाण्ड को अपने डैनों में समेि लेने के मलये। परन्िु िम ु ने अपने आप को उन परम्पराओीं और ववश्वासों के दरबों में बींद कर मलया है

जो िम् ु हारे परों को काटिे हैं, िम् ु हारी दृष्टी को क्षीण करिे हैं और िम् ु हारी नसों को तनजीव कर दे िे हैं। िुम आने वाली बाढ़ पर ववजय कैसे पाओगे मेरे लावाररस बच्िो ? िुम प्रभु के प्रतिबबम्ब और समरूप थे,

ककन्िु िुमने उस समानिा और समरूपिा को लगभग ममटा ददया है । अपने ईश्वरीय आकर को िम ु ने इिना बौना कर ददया है कक अब िुम खुद उसे नहीीं

पहिानिे। अपने ददव्य मख ु -मण्डल पर िम ु ने कीिड़ पोि मलया है, और उस पर ककिने ही मसखरे मुखौटे लगा मलए हैं। क्जस बाढ़ के द्वार िुमने स्वयीं खोले हैं उसका सामना िुम कैसे करोगे मेरे लावाररस बच्िो ? यदद िुम मीरदाद की बाि पर ध्यान नहीीं दोगे िो िरिी िुम्हारे मलए कभी भी एक कब्र से अचिक कुछ नहीीं होगी, न ही आकाश एक क़िन से अचिक कुछ होगा।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जबकक एक का तनमााण िुम्हारा पालना बनने के मलए ककया गया था, दस ू रे का िुम्हारा मसींहासन बनने के मलए। मैं िुमसे किर कहिा हूाँ कक िुम ही बाढ़ हो, नौका

हो और केवट भी। िम् ु हारे मनोवेग बाढ़ हैं। िम् ु हारा शरीर नौका है । िम् ु हारा ववश्वास केवट है । पर सब में व्याप्ि है िुम्हारी सींककप- शक्ति और उनके ऊपर है िुम्हारे ददव्य ज्ञान की छत्र-छाया।यह तनश्िय कर लो कक िुम्हारी नौका में पानी न ररस सके और वह समुद्र- यात्रा के योग्य हो; ककन्िु इसी में अपना जीवन न गाँवा दे ना; अन्यथा यात्रा आरम्भ का समय कभी नहीीं आयेगा, और अींि में िम ु वहीीँ पड़े-पड़े अपनी नौका समेि सड़-गल कर डूब जाओगे। यह भी तनश्िय कर लेना कक िम् ा ान हो। पर सबसे ु हारा केवट योग्य और िैयव अचिक महत्त्वपूणा यह है कक िुम बाढ़ से से स्रोिों का पिा लगाना सीख लो, और उन्हें एक-एक करके सुख दे ने के मलए अपनी सींककप-शक्ति को साि लो। िब तनश्िय ही बाढ़ थमेगी और अींि में अपने आप समाप्ि हो जायेगी। जला दो हर मनोवेग को, इससे पहले कक वह िुम्हें जला दें । ककसी मनोवेग के मुख में यह दे खने के मलए मि िााँको कक उसके दाींि जहर से भरे हैं या शहद से। मिुमतखी जो िूलों का अमि ृ इकट्ठा करिी है उनका ववष भी जमा कर लेिी है । न ही ककसी मनोवेग के िेहरे को यह पिा लगाने के मलए जााँिो कक वह सुन्दर है या कुरूप। सााँप का िेहरा हौवा को परमात्मा के िेहरे से अचिक सुींदर ददखाई ददया

था। न ही ककसी मनोवेग के भार का ठीक पिा लगाने के मलए उसे िराजू पे रखो। भार में मक ु ु ट की िल ु ना पहाड़ से कौन करे गा ? परन्िु वास्िव में मक ु ु ट पहाड़ से कहीीं अचिक भारी होिा है । और ऐसे मनोवेग भी हैं, जो ददन में िो ददव्य गीि गािे हैं, परन्िु राि के काले परदे के पीछे क्रोि से दाींि पीसिे हैं, काटिे हैं और डींक मारिे हैं। ख़ुशी से िूले िथा उसके बोि के नीिे दबे ऐसे मनोवेग भी हैं जो िेजी से शोक के कींकालों में बदल जािे हैं। कोमल दृष्टी िथा ववनीि आिरण वाले ऐसे मनोवेग भी हैं जो अिानक भेड़ड़यों से भी अचिक भख ू े,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

लकड़बग्घों से भी अचिक मतकार बन जािे हैं। ऐसे मनोवेग भी हैं जो गुलाब से भी अचिक सुगींि दे िे हैं जब िक उन्हें छे ड़ा न जाये, लेककन उन्हें छूिे और िोड़िे ही उनसे सड़े-गले माींस िथा कबरबबज्जू से भी अचिक तघनौनी दग ा ि आने लगिी है । ु न् अपने मनोवेगों को अच्छे और बुरे में मि बााँटो, तयोंकक यह एक व्यथा का पररश्रम

होगा। अच्छाई बुराई के बबना दटक नहीीं सकिी; और बुराई अच्छाई के अींदर ही जड़ पकड़ सकिी है । एक ही है नेकी और बदी का वक्ष ृ । एक ही है उसका िल भी। िुम नेकी का स्वाद नहीीं ले सकिे जब िक साथ ही बदी को भी न िख लो।

क्जस िि ू ी से िम ु जीवन का दि ू पीिे हो उसी से मत्ृ यु का दि ू भी तनकलिा है । जो हाथ िुम्हे पालने में िुलािा है वही हाथ िुम्हारी कब्र भी खोदिा है । द्वैि की यही प्रकृति है, मेरे लावाररस बच्िो। इिने हठी और अहीं कारी न हो जाना कक इसे बदलने का प्रयत्न करो। न ही ऐसी मूखि ा ा करना कक इसे दो आिे-आिे भागों में बााँटने का प्रयत्न करो िाकक अपनी पसींद के आिे भाग को रख लो और दस ू रे भाग को िेंक दो। तया िम ु द्वैि के

स्वामी बनना िाहिे हो ? िो इसे न अच्छा समिो न बुरा। तया जीवन और मत्ृ यु का दि ू िम् ु हारे मींह ु में खट्टा नहीीं हो गया है ?

तया समय नहीीं आ गया है कक िुम एक ऐसी िीज से आिमन करो जो न अच्छी है न बुरी, तयोंकक वह दोनों से श्रेष्ठ है ? तया समय नहीीं आ गया है कक िुम ऐसे

िल की कामना करो जो न मीठा है न कड़वा, तयोंकक वह नेकी और बदी के वक्ष ृ पर नहीीं लगा है ?तया िुम द्वैि के िींगुल से मुति होना िाहिे हो ?

िो उसके वक्ष ृ को—नेकी और बदी के वक्ष ृ को—अपने ह्रदय में से उखाड़ िेंको। हााँ, उसे जसद और शाखाओीं सदहि उखाड़ िेंको िाकक ददव्य ज्ञान का बीज, पववत्र ज्ञान का बीज जो समस्ि नेकी और बदी से परे है , इसकी जगह अींकुररि और पकलववि हो सके।

िुम कहिे हो मीरदाद का सन्दे श तनरानन्द है । यह हमें आने वाले कल की प्रिीक्षा के आनन्द से वींचिि रखिा है । यह हमें जीवन में गाँग ू े, उदासीन दशाक बना दे िा है ,

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

जबकक हम जोशीले प्रतियोगी बनना िाहिे हैं। तयोंकक बड़ी ममठास है प्रतियोचगिा में, दाव पर िाहे कुछ भी लगा हो। और मिरु है मशकार का जोखखम, मशकार िाहे एक छलावे से अचिक कुछ भी न हो। जब िुम मन में इस िरह सोििे हो िब भूल जािे हो कक िम् ु हारा मन िुम्हारा नहीीं है जब िक उसकी बागडोर अच्छे और बुरे मनोवेगों के साथ है।

अपने मन का स्वामी बनने के मलये अपने अच्छे -बुरे सब मनोवेगों को प्रेम की एकमात्र पराि में गि ाँू लो िाकक िुम उन्हें ददव्य ज्ञान के िन्दरू में पका सको जहााँ द्वैि प्रभु में ववलीन होकर एक हो जािा है । सींसार को जो पहले ही अति दिःु खी है

और दिःु ख दे ना बन्द कर दो। िुम उस कुएाँ से तनमाल जल तनकालने की आशा कैसे कर सकिे हो क्जसमें िम ु तनरन्िर हर प्रकार का कूड़ा-करकट और कीिड़ िेंकिे रहिे हो ?

ककसी िालाब का जल स्वच्छ और तनश्िल कैसे रहे गा यदद हर क्षण िुम उसे हलोरिे रहोगे ?दिःु ख में डूबे सींसार से शाक्न्ि की रकम मि मााँगो, कहीीं ऐसा न हो

कक िुम्हे अदायगी दिःु ख के रूप में हो। दम िोड़ रहे सींसार से जीवन की रकम मि माींगो, कहीीं ऐसा न हो कक िम् ु हे अदायगी मत्ृ यु के रूप में हो। सींसार अपनी मुद्रा के मसवाय और ककसी मुद्रा में िुम्हे अदायगी नहीीं कर सकिा,

और उसकी मुद्रा के दो पहलू हैं। जो कुछ मााँगना है अपने ईश्वरीय अहम ् से मााँगो जो शाक्न्िपूणा ज्ञान से से इिना समि ृ है।

सींसार से ऐसी मााँग मि करो जो िुम अपने आप से नहीीं करिे। न ही ककसी मनष्ु य से कोई ऐसी मााँग करो जो िम ु नहीीं िाहिे कक वह िम ु से करे ।

और वह कौन-सी वस्िु है जो यदद सम्पूणा सींसार द्वारा िुम्हे प्रदान कर दी जाये िो िुम्हारी अपनी बाढ़ पर ववजय पाने और ऐसी िरिी पर पहुाँिने में िुम्हारी

सहायिा कर सके जो दिःु ख और मत्ृ यु से नािा िोड़ िुकी है और आकाश से जुड़कर स्थायी प्रेम और ज्ञान की शाक्न्ि प्राप्ि कर िक ु ी है ?

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

तया वह वस्िु सम्पक्त्ि है , सत्िा है , प्रमसवि है ? तया वह अचिकार है ,प्रतिष्ठा है, सम्मान है ? तया वह सिल हुई महत्त्वाकाींक्षा है , पूणा हुई आशा है ? ककन्िु इन में से िो हरएक जल का एक स्रोि है जो िम् ु हारी बाढ़ का पोषण करिा है ।

दरू कर दो इन्हे ,मेरे लावाररस बच्िो, दरू , बहुि दरू । क्स्थर रहो िाकक िुम उलिनो से मुति रह सको। उलिनों से मुति रहो िाकक िुम सींसार को स्पष्ट दे ख सको। जब िुम सींसार के रूप को स्पष्ट दे ख लोगो, िब िुम्हे पिा िलेगा कक जो स्विन्त्रिा, शाक्न्ि िथा जीवन िुम उससे िाहिे हो, वह सब िुम्हें दे ने में वह ककिना असहाय और असमथा है । सींसार िुम्हे दे सकिा है केवल एक शरीर—द्वैिपूणा जीवन के सागर में यात्रा के मलये एक नौका। और शरीर िम् ु हे सींसार के ककसी व्यक्ति से नहीीं ममला है । िम् ु हे शरीर दे ना और उसे जीववि रखना ब्रम्हाण्ड का किाव्य है । उसे िुिानो का सामना करने के मलये अच्छी हालि में,

लहरों के प्रहार सहने के योग्य रखना, उसकी पाशववक वतृ ियों को बााँिकर तनयींत्रण में रखना—यह िुम्हारा किाव्य है , केवल िुम्हारा। आशा से दीप्ि िथा पूणि ा या

सजग ववश्वास रखना क्जसको पिवार थमाई जा सके, प्रभु-इच्छा में अटल ववश्वास रखना जो अदन के आनन्दपूणा प्रवेश-द्वार पर पहुाँिने में िुम्हारा मागादशाक हो— यह भी िुम्हारा काम है , केवल िुम्हारा।

तनभाय सींककप हो, आत्म-ववजय प्राप्ि करने िथा ददव्य- ज्ञान के जीवन-वक्ष ृ का

िल िखने के सींककप को अपना केवट बनाना—-यह भी िुम्हारा काम है, केवल िम् ु हारा।मनष्ु य की मींक्जल परमात्मा है । उससे नीिे की कोई मींक्जल इस योग्य नहीीं कक मनुष्य उसके मलये कष्ट उठाये। तया हुआ यदद रास्िा लम्बा है और उस पर िींिा और ितकड़ का राज है ? तया पववत्र ह्रदय िथा पैनी दृक्ष्ट से युति ववश्वास िींिा को परास्ि नहीीं कर दे गा और ितकड़ पर ववजय नहीीं पा लेगा ?जकदी करो, तयोंकक आवारगी में बबिाया समय पीड़ा-ग्रस्ि समय होिा है । और मनष्ु य, सबसे अचिक व्यस्ि मनष्ु य भी, वास्िव में आवारा ही होिे हैं।

http://myspiritualitydiscourses.blogspot.in/2014/10/hindi-234.html

नौका के तनमाािा हो िुम सब, और साथ हो नाववक भी हो। यही काया सौंपा गया है िुम्हे अनादद काल से िाकक िुम उस असीम सागर की यात्रा करो जो िुम स्वयीं हो, और उसमे खोज लो अक्स्ित्व के उस मक ू सींगीि को क्जसका नाम परमात्मा है । सभी वस्िुओीं का एक केन्द्र होना जरुरी है जहााँ से वे ़िैल सकें और क्जसके िारों

ओऱ वे घूम सकें। यदद जीवन—-मनुष्य का जीवन—-एक वत्ृ ि है और परमात्मा की खोज उसका केन्द्र, िो िुम्हारे हर काया का केंद्र परमात्मा की खोज ही होना िादहये;

नहीीं िो िुम्हारा हर काया व्यथा होगा, िाहे वह गहरे लाल पसीने से िर-बिर ही तयों न हो।पर तयोंकक मनष्ु य को उसकी मींक्जल िक ले जाना मीरदाद का काम है, दे खो ! मीरदाद ने िम् ु हारे मलए एक अलौककक नौका िैयार की है, क्जसका तनमााण उत्िम है और क्जसका सींिालन अत्यन्ि कौशलपूण।ा यह दयार से बनी और िारकोल से पुिी नहीीं है; और न ही यह कौओीं, तछपकमलयों और लकड़बग्घों के मलये बनी है ।

इसका तनमााण ददव्य ज्ञान से हुआ है जो तनश्िय ही उन सबके मलए आलोक-स्िम्भ होगा जो आत्म-ववजय के मलये िड़पिे हैं। इसका सींिुलन-भार शराब के मटके और कोकहू नहीीं, बक्कक हर पदाथा हर प्राणी के प्रति प्रेम से भरपरू ह्रदय होंगे। न ही इसमें िल या अिल सम्पक्त्ि, िााँदी, सोना, रत्न आदद लदे होंगे,

बक्कक इसमें होंगी अपनी परछाइयों से मत ु ि हुई िथा ददव्य ज्ञान के प्रकाश और

स्विन्त्रिा से सुशोमभि आत्माएाँ। जो िरिी के साथ अपना नािा िोड़ना िाहिे हैं, जो एकत्व प्राप्ि करना िाहिे हैं, जो आत्म-ववजय के मलए िड़प रहे हैं, वे आयें और नौका पर सवार हो जायें। नौका िैयार है । वायु अनक ु ू ल है । सागर शान्ि है ।

यही मशक्षा थी मेरी नूह को। यही मशक्षा है मेरी िम् ु हे । ****इति ***

View more...

Comments

Copyright ©2017 KUPDF Inc.
SUPPORT KUPDF