TANTRA DARSHAN - SIDDH KUNJIKA STOTRA KE GUPT RAHASYA(PAARAD TANTRA AUR DURGA SAPTSHATI)
ममत्रों, ाआस ाऄद्बुत स्तोत्र के रहस्य कों ाईजागर करने के पर्ू व, मै ाअप लोगो से कुछ तथ्य बाांटना चाहता हू जो मेरे ाऄपने ाऄनभु र्ों में से है, कै से मझु े ज्ञात हुए ये पज्ू यपाद सदगरुु देर् जी का ाअशीर्ावद तो सदा से मझु पर रहा है ाआसमें कोाइ नयी बात नहीं, और ना के र्ल मझु पर ाऄमपतु हम सभी ाआस बात का ाऄनमु ोदन करें गे की ाईनका ाअशीर्ावद सदेर् हम सभी पर है ही. सदगरुु देर् जी ने दगु ाव सप्तशती की महत्ता के बारे में काइ बार मत्रां तत्रां यन्त्त्र मर्ज्ञान पमत्रका में ाईल्लेख मकया है. (र्ैसे ये एकमात्र ाईन ताांमत्रक ग्रांथो में से है जो मल ू रूप में ाअज भी हमारे समक्ष है) परन्त्तु मैने ाईन पर्ू व ाऄांको की तरफ कभी खास ध्यान ही नहीं मदया. मसफव पढ़ मलया करता था. ाऄसल में तो मै ाईसे हलके में ले मलया करता था. मै ाईनके मदव्य शब्दों की महत्ता कों नहीं समझता था, नहीं समझ पाया था ाईन बोलो कों मजस पर र्े हमेशा जोर मदया करते थे. मैंने ाआस मदव्य ग्रन्त्थ कों मात्र मााँ दगु ाव की स्तमु त और एक कहानी मजसमे मााँ भगर्ती ाऄसरु ों से यद्ध ु करती है और जो सांस्कृत में प्रकामशत है. बस, ाआससे ज्यादा और कुछ नहीं... मरे काइ गरुु भााआयो ने मझु े बताने की कोमशश की ाआस ग्रन्त्थ के बारे में, परन्त्तु में स्तोत्र र्ोत्र में ाआच्छुक नहीं था कभी. मत्रां और साधना में ही मेरी रूमच थी. कभी ाआस पर ध्यान ही कें मित करने का नहीं सझु ा. पर र्ो जो सदगरुु देर् पर मनभवर है, मफर कै से भला र्े छोड़ देते ाऄपने बच्चे कों ाआस भटकन भरी मजदां गी में, भले ही बात छोटी हो या बड़ी.. और मफर र्ो मदन ाअया जब मै पहली बार आररफ जी से ममला ( र्ह कहानी कभी और बतााउांगा शायद ाअगे ाअने र्ाले समय में ) ाईन्त्होंने मझु े एक महान तत्र मत्रां के साधक के बारे में बताया जो ाऄब तक जीमर्त ाऄर्स्था में र्ाराणसी में
रहते है. र्े ाऄब तक ाऄपनी र्ही तरुणार्स्था की ाउजाव कों बरकरार रखे हुए है ाऄपनी ९० साल की ाअयु में मभ.. मै यकीन ही नहीं कर पाया की र्े सच कह रहे है. ाईन्त्होंने मझु े काइ बार ाईनसे ममलने के मलए कहा परन्त्तु समय मनकलता गया और ऐसे करते करते ४ महीने बीत गए. सच कहू तो मै ाईनके ाअग्रह के पीछे की भार् भमू म कों समझ ही नहीं पा रहा था. ाईनसे ममलने की बात कों हलके में ले रहा था. जेसा की मैंने ाउपर बताया की मेरे ाऄपने सक ां ोच के कारण मै यही सोचता था की जब सदगरुु देर् जी है तो मकसी और की क्या ाअर्श्यकता. कही और क्यों जाना... पर ाईन्त्होंने कहा की सदगरुु देर् जी ने हमें कभी नहीं कहा या रोका कही और से ज्ञान बटोरने के मलए ाऄगर र्े प्रामामणक मसद्ध साधको की श्रेणी में ाअते है तो, ाईन्त्होंने हमें कभी बााँध के नहीं रखा ाऄमपतु ाईन्त्होंने हमें हमेशा स्र्छन्त्द श्वास लेने के मलए कहा. सो एक मदन मै बनारस चला गया, र्ैसे तो मै बहुत ही बेचनै था क्यक ु ी ाअररफ जी ने मझु े पहले से ही कहा था की भैया र्े तो ऐसे व्यमि है जो कुछ ममनटों में तोल लेते है की कोन मकतने पानी में है. मझु े लगा की तो हो सकता हे की मै भीकुछ ममनटों में बाहर ाअ जााउ.. ाआसीमलए परु े प्रर्ास में सतत सदगरुु देर् जी से प्रथवना करते हुए ाअ रहा था की ाआस् ाईद्देश्य से यह मेरा पहला प्रर्ास है तो ाअप मझु े ाआसमें सहायता कीमजए. यहााँ तक की र्ह पहुचने पर ाईन ममां दरों मशर्ालयों में दशवन करने पर भी मै यही प्राथवना में लगा रहा की मझु े सफलता प्रदान करे . ाईस साधक ने मेरा स्र्ागत मकया. ाईनके मख ु मांडल का तेज और तरुणााइ की ाईजाव ाऄब तक झलक रही थी. परन्त्तु मै तो नर्वस था ही ाआसीमलए कुछ बोल ही नहीं पाया. मैंने देखा कुछ ही ममनटों में र्े मझु से खल ु कर बातचीत करने लगे. ाईसके बाद तो ाईन्त्होंने मेरे काइ सर्ालों के जर्ाब मदए. (ाईसमे काइ मख ू तव ापणू व भी थे) पहली ही मल ु ाकात में हमने ाऄनेक मर्षयो पर जेसे साधना, तांत्र, मांत्र और मनमित ही दगु ावसप्तशती पर भी बातचीत करी. बातों बातों में पाता ही नहीं चला की कब ६ घटां े बीत गए. ाईन्त्होंने ाआस् मदव्य ग्रन्त्थ के बारे में मेरी धरणा कों बहुत हद तक दरू करी. साथ ही साथ नर्ीन रहस्यों कों भी ाईजागर मकया मेरे सामने.. र्ह से लौटते हुए मै ाआस मदव्य ग्रन्त्थ कों खरीद लाया. और बाद में मैंने सदगरुु देर् और मााँ दगु ाव से क्षमा याचना की ाऄपनी ाऄब तक की ाआस गलत धरणा के मलए और ाईपेक्षा भर् रखने के मलए.. खैर देखा जाए तो ये एक और लीला ही थी सदगरुु देर् जी की मेरे प्रमत की मै मफर सही ट्रेक पर चलने लग.ु
ाअगे ाअने र्ाले लेखो में कुछ और रहस्यों कों ाईजागर करूाँगा जो मझु े ाईनसे प्राप्त हुए. लगता हे मै कुछ ज्यादा ही बोल रहा हू तो चमलए मद्दु े पर पनु ाः लौटते है.. ससद्ध कुं सजका स्तोत्रुं मफर एक मदन मैंने ाईन्त्हें फोन मकया (बनारस के ाईन महान साधक कों) और पछ ु ा- की क्या कोाइ गप्तु मसद्ध कांु मजका स्तोत्रां भी है, मजस पर मै ाअपसे चचाव करना भल ू गया हू, मफर बड़ी ही सरलता से ाईन्त्होंने कहा की ाआन सब बातो पर समय और ाईजाव मत गर्ाओ, और मेरा ध्यान दसू री ओर कें मित करते हुए बोले की जो मैंने पहले बताया था ाईसे याद रखो. मफर मझु े लगा की ाईस स्तोत्र का कोाइ खास महत्त्र् नहीं जब की ाआस मदव्य ग्रन्त्थ में तो ाआसके बारे में बहुत ही ाईल्लेख ममला.. मफर एक मदन मै और ाअररफ जी एक मर्शेष चचाव में गमु थे तो बात करते हुए मैंने ाईन्त्हें परू ा र्तृ ाांत सनु ा मदया. जब मैंने स्तोत्र सम्बन्त्धी बाते बतााइ तो सनु ने पर र्े मसफव हलके से मस्ु कराए.. मैंने समझा की र्े भी मेरे ाआस बात का समथवन कर रहे हे. सदगरुु देर् के ाअशीर्ावद से हम मदव्य मााँ शमि रूपा के पार्न मांमदर में बैठे कुछ महत्र्पणू व चचाव में रत थे. हमारी चचाव पारद मर्ज्ञान के ाऄमल्ू य सत्रू ों पर हो रही थी. मै भी सनु रहा मेरे कुछ गरुु भााइयो के साथ. और मफर ाऄचानक ाईन्त्होंने ‚मसद्ध कांु मजका स्तोत्र‛ के बारे में बोलना शरू ु मकया.. मै हतप्रभ रह गया की ाईस समय ाईन्त्होंने ाआस पर कुछ भी नहीं कहा और ाअज ाऄचानक (मतलब, क्या मैने ाईस मस्ु कान कों गलत समझ लीया था) सदगरुु देर् जी ने ाईन्त्हें ाआस् स्तोत्र की गप्तु कांु जी मद थी. तो कुछ पांमिय ाआसी सांबांध में जो सदगरुु देर् जी के ज्ञान गांगा से ाईद्दतृ हुाइ है ाअररफ जी के मख ु से – ‚बहुत लोग हमारे प्राचीन शास्त्रों और ाऊमष ममु नयों के ज्ञान कों बहुत ही हलके में लेते है. र्े जानते नहीं की प्रत्येक स्तोत्र ाऄपने ाअप में गढु ाऄथव मनमहत है. और ाऄगर ाईसे समझ मलया जाए तो मफर क्या ाऄसांभर् है. ाऄगर ाअप लोगो कों दयाां हो तो सदगरुु देर् ने एक बार श्री सि ू के ाऄांतगवत स्र्णव मनमावण करने की मर्मध का ाईल्लेख मकया था, हना ये ाईसका शामब्दक ाऄथव तो नहीं पर हे सक ां े त मलमप में बद्ध.( ाआसका भाषातां र ाऄभी भी‚स्र्णवमसमद्ध‛ पस्ु तक में मलमखत है)‛ “ऐकारी ुं सृसि रूपायै” ाऄथावत ऐगां बीज मांत्र की सहायता से कुछ भीमनमावण मकया जा सकता है, और जब मै कहता हू की कुछ भीमतलब कुछ भीही है... ाआसमलए जब खरल मिया करते हुए ाआस मांत्र का जाप मकया जाय तो पारद में सजृ न की शमि मनममवत हो जाती है (सदगरुु देर् जी ने भीाआस बीज मन्त्त्र के बारे में बहुत र्णवन मकया है ) ाआस ऐगां मांत्र के द्वारा मबना गभव के बालक कों जन्त्म मदया जा सकता है. ाआस् मिया कों महमषव र्ाल्मीमक ने त्रेता यगु में सफलतापर्ू वक
प्रदामशवत मकया था जब कुश(भगर्न राम के पत्रु ) का जन्त्म हुाअ था. मै यहााँ प्रमिया तो नहीं परांतु पारद से ाआसका क्या सबां ांध है ये बताने का प्रयास कर रहा हू. “ह्रींकारी प्रसतपासिका” ाऄथावत माया बीज, ाआस् भोमतक जगत में मकसी भीधातु का रूपाांतरण कर समस्त भौमतक सख ु ो का ाईपभोग मकया जा सकता है. जब ह्रींग मांत्र का जाप रूपाांतरण मिया के दौरान मकया जाए तो सफल रूपान्त्तर सांभर् है. और ाआससे सफलता के प्रमतशत मद्वगमु णत भी हो जाते है. “क्िींकारी काम रूसपणयै” ाऄथावत क्लीं बीज मांत्र ाअकषवण के मलए होता है जससे बांधन मिया कों सफलता पर्ू क व सपां न्त्न मकया जा सकता है. यह बीज साधक की देह कों मदव्य कर मर्शद्दु पारद सामान कर देता है. यह काम बीज ाअतांररक ाऄल्के मी में ाईपयोग होता है.. ाआस सांबांमधत काइ साधनाए सदगरुु देर् ने मद है. “बीजरूपे नमोस्त ते” ाऄथावत यहााँ कहा गया है की मै नमन कताव हू ाआन बीज रूपी शमियों कों. हे पारद मै बीज स्र्रूप में ाअपकी पजू ा करता हू. ये ाआस् बात का भी प्रतीक है की मै ऐसा करके पारद कों बीज स्र्रूप में पजू कर मसद्ध सतू का भी मनमावण करता हू. मजस से समस्त सांसार की दररिता का नाश हो सकता है. जो प्रत्येक रसायनशास्त्री का ध्येय हो सकता है. “चामडुं ा चुंडघाती” ाऄथावत मत्ृ यु कों भी परास्त कर, ाऄगर प्रत्येक सांसकार कों सफलता पर्ू वक सपां न्त्न मकया जाए तो ाआस से रोग रूपी मत्ृ यु पर भी मर्जय प्राप्त की जा सकती है, चडां यहााँ दानर् का घोतक है. यहााँ ‚च‛ शब्द नाश/मत्ृ यु हे मजसे पारद में प्रेररत कर ऐसा पारद मनमावण मकया जा सकता हे मजससे ाऄकाल मत्ृ य,ु ाआच्छा मत्ृ यु प्राप्त की जा सकती है. “च यैकारी वरदासयनी” ाऄथावत समस्त प्रकार के र्रदान देने र्ाले पारद जो ाआस् सम्पणू व मिया का फल है. “सवच्चै चाभयदा सनत्यम नमस्ते मुंत्ररुसपणी ” ाऄथावत समस्त प्रकार के ाअरक्षण ाआस पारद तांत्र मर्ज्ञान में है ाआस मर्च्चै बीज में. ाआस से सभी प्रकार की मर्नाशकारी शमियों से ाअरक्षण प्राप्त मकया जा सकता हे, ाऄभयम ाऄथावत एक मदव्यता जहा भय र्ास ही नहीं करता और जो के र्ल ाआसी से सभां र् है.
“धाुं धीं धूुं धूजजटे” ाऄथावत समस्त प्रकार के प्रलयकारी शमियो कों ाआस से र्श में मकया जा सकता है. धजु वटा शमि (जो मशर् का ही एक रूप है ) ाऄथावत ऐसे सम्पमु टत पारद से हमारे समस्त दोष जो शत्रर्ु त है ाईनसे भी ममु ि का मागव प्रशस्त हो सकता है. “वाुं वीं वूुं वागधीश्वरी” ाऄथावत जो मााँ सरस्र्ती से सबां ांमधत है. (ज्ञान की देर्ी) मैंने र्ही रोक के पछ ू ा क्यों - यहााँ मााँ सरस्र्ती पारद से कै से सांबांमधत है ? ाअररफ जी बोले, भैया क्या ाअपने कभी ध्यान मदया सा + रस + र्ती . यहााँ पारद कों रस कहा है (ाऄब मझु े समझ ाअया की प्रत्येक देर्ी के नाम में एक गप्तु ाऄथव छुपा है) “क्ाुं क्ीं क्ूुं कसिका देवी” ाऄथावत मबना मााँ काली के , जो काल की देर्ी है, और मनमित काल के मबना के से हम पारद सांस्कार कर सकते हे ाऄमपतु हम तो सभी काल के बांधन में है. ाआसीमलए ाईनकी कृपा से ही पारद के द्वारा काल पर मर्जय प्राप्त की जा सकती है. ाआसीमलए ाआस् बीज मत्रां द्वारा ाऄसभां र् कों भी सम्भर् मकया जा सकता है. ाआसी सन्त्दभव में कृपया ाअररफ जी महाकाली साधना पर ाअधाररत लेख कों पढ़े मजसमे ाईन्त्होंने ाआस् बीज मत्रां का मर्श्लेषण मकया है. “शाुं शीं शूुं में शभ ू एर्ां धनात्मक शमिया सफलता ुं करु” ाऄथावत ाआस ससां ार की सभी ाऄचक प्रामप्त हेतु हमें सहायता करे . और ाआस् बीज मत्रां द्वारा ये सभी पारद में समामहत हो जाये. “हुं हुं हुंकार रूसपणयै” यह बीज मांत्र ाअधाररत हे मनयांत्रण शमि पर. पारद ाऄमनन स्थायी मिया ाआसी पर ाअधाररत है. ‘सदगरुु देर् मलमखत – महमालय के योगी की गप्तु शमियाां’ में सदगरुु देर् जी ने एक एसी मिया का ाईल्लेख मकया है मजस में ाईन्त्होंने के र्ल श्वास द्वारा पारद मशर्मलांग का मनमावण मकया है. के र्ल ‘हु’ां बीज मत्रां जो मकसी भी र्स्तु कों ाअकार देने में सभां र् है और ये के र्ल ाआसी बीज मत्रां द्वारा ही यह सभां र् हो सकता है. ठीक जेसे स्तम्भन मिया में होता है. और बहुत से रसायन शामस्त्रयों के मलए ाऄमननस्थायी पारद बनाना ाईनका स्र्प्न रहता है. जो के र्ल ाआस बीज मांत्र द्वारा ही सांभर् है. “जुं जुं जुं जम्भनासदनी” ाऄथावत सभी प्रकार की ज्रभांकारी शमियों जो ममु ि हेतु ाईपमस्थत होती है. “भ्ाुं भ्ीं भ्ूुं भैरवी....” ाऄथावत मााँ भैरर्ी (भगर्ती पार्वती) के ाअशीर्ावद के मबना कै से हमें पारद के लाभ ममल सकते है. हे मााँ मै ाअपका नमन करता हू की ाअपकी कृपा के मबना ाआस बीज मांत्र से सांसकाररत पारद का लाभ समस्त ससां ार कों ममल ही नहीं सकता.
“अुं कुं चुं.....स्वाहा ” ये सभी बीज मत्रां पारद की प्राण प्रमतष्ठा के मलए ाईपयोग होते है. प्राण प्रमतष्ठा के बाद ही ाआस में प्राणों का सचां ार होता है और तभी ये पारस पत्थर में परार्मतवत होता है साधक के मलए. ाआस् मिया कों करने का सक ां े त ये बीज मत्रां ही दशावते है. और ाआन्त्ही के कारण ये मिया सांपन्त्न होती है. “पाुं पीं पूुं पावजती पण ू ाज” जेसा की ाअप सभी जानते है की गधां क ाऄथावत पार्वती बीज हे रसायन तत्रां की भाषा में, और मबना ाआस् बीज के कै से भला पारद(मशर् बीज ाऄथावत र्ीयव) का बांधन सभां र् है.. ाआसीमलए ाआन तीन बीज मत्रां ो से ही पारद बांधन मिया सपां न्त्न होती है. “खाुं खीं खूुं खेचरी तथा” ाआसका ाऄथव है कै से खेचरत्र्ता ाऄथावत ाअकाश गमन क्षमता कों पारद में सांस्काररत कर ाआन तीन बीज मांत्रो से ाआस् मिया कों सांपन्त्न कीया जा सकता है. हमने बहुत से लेखो में खेचरी गमु टका के बारे में पढ़ा है परन्त्तु ाआसका मनमावण के से होता है ? परन्त्तु ाआस् मबांदु पर सभी मौन हो जाते है.. ाऄगर र्णव माला में ाऄ से ज्ञ तक (महदां ी शब्दमाला ५२ ाऄक्षरों की होती है ) परन्त्तु ाआसमें मकस ाऄक्षर का ाईपयोग होता है खेचरी गमु टका के मनमावण में ये एक ाऄद्बुत रहस्य है. ाईपरोि पांमिय र्ही रहस्य ाईद्घामटत करती है. ये हमारा सौभानय ही होगा ाऄगर हम सदगरुु देर् के श्री चरणों में ाआस् ाईपलक्ष साधना एर्ां र्ही रहस्य का प्रकटीकरण की प्रथवना करे और हमें र्े प्रदान करे . “साुं सीं सूुं सप्तशती देव्या मुंत्रसससद्ध”ुं –ाऄथावत ये तीन बीज है जो हमें मसमद्ध प्रदान करने में सहायक होते है साथ ही साथ पारद मर्ज्ञान में मभ, क्यक ु ी ाऄगर मसफव रसायन मिया कर के ही सब हामसल होना होता तो ाऄब तक र्ैज्ञामनको ने सभी मसमद्धयााँ प्राप्त कर ली होती. जब की ाईनके पास तो सभी समु र्धाए ाईपलब्ध होती है. ाआसीमलए यह स्पष्ट है की मत्रां मसमद्ध ाआस् मर्ज्ञान का ाऄमभन्त्न ाऄगां है सफलता प्रामप्त हेत.ु “अभक्ते नैव दातव्युं गोसपतुं रक्ष पावजती” भगर्ान मशर् कहते है हे पार्वती जी से की ाआस रहस्य कों कभी भी ऐसे स्थान पर ाईजागर नहीं करना चामहए जहा साधक सदगरू ु और पारद के प्रमत सममपवत ना हो. “न तस्य जायते सससद्धररणये रोदनुं यथा” ाऄथावत मजस मकसी कों ाऄगर ाआन सत्रू ों का ज्ञान नहीं होगा तो र्ह कदामप पारद मर्ज्ञान में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता.. ाईसके सभी मकये प्रयास व्यथव हो जायेंगे ाआन सत्रू ों के मबना ाआसीमलए ये तो र्ही बात हुाइ की ाऄरण्य में ाऄके ले मर्लाप करना र्ो भी मबना मकसी ाईद्देश्य के .
ाअररफ जी मझु े देख कर मस्ु कुराए, और कहा की भैया ाऄब शायद ाअप समझ गए होंगे की क्यों ाईन बनारस के साधक ने ाअपका ध्यान कही और कें मित करना चाहा. र्ास्तर् में ाआस् स्तोत्र के काइ गढ़ु ाऄथव है. और यही कारण रहा की मसद्ध साधक सार्तां जन भी ाआन सत्रू ों कों ाईजागर करने से कतराते है.. क्यक ु ी बहुत ही कम लोग ाआसका ममव समझ पाते है और ाआस मागव पर ाअगे बढते है और मै ाआस् बात पर पणू वताः सहमत हुाअ.. और हम दोनो एक साथ मस्ु कुराए.. ाऄब जाके मझु े समझ ाअया की स्तोत्र का ाईच्चारण ाअपका मागव प्रशस्त कर सकता है परन्त्तु ाआसके गढ़ु रहस्य और सटीक ममव कों जान लेना ाऄसली सफलता है. मसफव ाआसी मर्धा में ये तथ्य लागू नहीं होता ाऄमपतु तत्रां की प्रत्येक मर्धा में यह मनयम लागू होता है. ाईन्त्होंने ाआस परु े र्तृ ाांत कों िमबद्ध करने की मलए मझु े कहा था. तामक हमारे सभी ाऄन्त्य गरुु भााइ बहन और नए मजज्ञासु भी ाआस मर्ज्ञान के ाआस पष्ठृ से लाभ ाईठा सके जो सदगरुु देर् प्रणीत है. सो मेरे मप्रय भााइ मैंने ाऄपनी तरफ से एक कोमशश की है.. मपछले ४ घांटो से मै ाआसी में व्यस्त रहा की कै से ाईस परु े ज्ञान सांभाषण कों मलमपबद्ध करू.. क्यक ु ी मै ऐसे घटनाओ ां का मर्र्रण देने में कुछ खास मनपणु नहीं.. ;-) और ये मेरा पहला प्रयास है.. ाआसीमलए धन्त्यर्ाद देता हू. ाऄरे मझु े नमवदा नदी के मकनारे भी जाना था ाऄपने ममत्रों के साथ और यहााँ बहुत ही ठण्ड हे भााइ...सो चमलए ाऄब मै मर्दा लेता हू, ाऄगर ाअपको पसदां ाअया हो तो ाआसे जरुर सभी भााइ बहनों के मध्य पोस्ट करना... सदगरुु देर् का स्नेहामशर्ावद मेरे साथ सभी पर बना रहे ाआसी कामना के साथ... smile…
****NPRU**** Posted by Nikhil at 8:48 PM No comments: Links to this post Labels: SHAKTI SADHNA, TANTRA DARSHAN
Friday, December 21, 2012 TANTRA KE GUHYA AUR VISMRIT TATHYA - 2
India has always been vibrant foundation pillar in spread of Tantra. Tantra has spread not only in India but also in China, Tibet, Egypt, Africa, Indonesia, Cambodia, Pakistan and other nations. There is no medium better than Tantra to witness abstruse secrets of universe from close on and understand them….well, this can be realized by only those who can do in-depth analysis to find answers…When any sadhak enters the Tantra world then map of his flight of imagination is depicted in its subconscious mind. But he is pretty well aware of the fact that there is no intermediate state in Tantra. It is this side or that side and game over… Shaakt and Shaiva Tantra mentioned in Aagam and Nigam scriptures have been most popular……Where Shaakt sadhnas have been related to worship of Shakti i.e. Aadya Shakti , in the similar manner Shaiva sadhnas are related to worship of Lord Shiva. In north India , during the spread of Tantra sadhnas “Vinashikha Tantra “ came in vogue for
worship of Lord Shiva .This tantra has also been termed as Vinashikhotara in Aagam Tradition. It has also been called Veenadhar form of Shiva. Significance of this Tantra, one of the 64 tantras mentioned in Nityshodashikaarnav and Kulchudamani Tantra has been in Shaiva sadhnas. I fell necessary to tell you that in ancient times, different Tantra Acharyas and scholars have fixed their respective order and significance after self-studying these Manu Smritis and it is based on their experience…..so there are as many opinions as there are scholars….. Speciality of Vinashikha Tantra is due to worship of Shiva. It is related to worship of that form of him which has been termed as Tumburu. Priest named Hiranyadam has done the upasana of Bhole Shankar for attaining Shiv Kaivalya…as a result of accomplishment, that special form of Aadi Dev Shiva‘Tumburu’ manifested in front of Hiranyadam….his dhayan is something like this in which he has four mouth. Each mouth has a special name1. Shirshchhed 2. Vinashikha 3. Sammoh 4. Niyottar Each of the infinite forms of Shiv Ji creates one Tantra chapter in themselves. As we have read in starting lines of previous article that at the time of creation of universe, conversation between destructor Shiv Shankar and Aadya Shakti Paramba Shakti has been termed as Tantra
and in this context, many tantras were created for the infinite names and sub-names of Shiva and Shakti….For each portion of knowledge, one god and goddess were appointed to be ruler which has got corresponding knowledge for the fulfilment of that special desire. For the sake of convenience in subject of Tantra, they have been categorised and control of various god and goddess and protection of their secrets has been handed over to those Devi Shaktis…though all these Devi shaktis are only partial form of Aadi Shiva Shakti. Vinashikha Tantra has also prevailed in Indonesia and Cambodia….however there have been variation in worship pattern in various countries but desired aim has remain same all throughout i.e. Manifestation of four-mouthed lords of lord Mahadev…..four forms of Companions of four-mouthed Mahadev are also worshipped….Jaya, Vijaya, Jayanti and Aparaajita…. In Tumburu sadhna, one special yantra is established….in which Tumburu i.e. Lord Shiva is in middle and on all his four side his wives are present…From this sadhna one attains three elements- Aatm element, Vidya element and Shiva element. Worship/upasana is done by chanting beej mantra representing these elements. There is combination of 5 beej mantra which are beej alphabets of Tumburu i.e. Shiva and four goddesses. Tumburu– Ksham Jaya– Jam Vijaya– Bham Jayanti– Sam
Aparaajita– Ham Due to absence of permission, its hidden procedure is revealed only to that sadhak who has got orders or permission to do it. Hidden Tantra sadhnas have always been given through Guru Tradition ….because they certainly cannot be for everyone……because doing such sadhna requires a different type of mentality…..Guru has to see whether his disciple has become capable to digest abstruse truth or not. Upon verifying it, it is decided from vibrations emerging from his mental condition that he has to be provided sadhna or not…As I have told you Tantra is not a subject of play or to be taken lightly….it can cause harm to life…Therefore these sadhnas are done only in Savdhaan Mudra . In coming article, I will discuss such interesting and abstruse facts… Nikhil Pranaam ************************************************* तंत्र के विस्तार में भारत भवू म सदेि अधारस्तंभ की भााँती दैदीप्यमान रही है.. तंत्र का विस्तार ना केिल भारत में ऄवितु चीन, वतब्बत, वमस्र, ऄफ्रीका, आंडोनेविया, कम्बोवडया, िावकस्तान और कआ देिो में हु अ... ब्रम्हांड के गुढ़ रहस्यों कों वनकट से देख कर ईसे समझने के वलए तंत्र के सामान कोइ तोवडस माध्यम ही नहीं... खेर ये एहसास तो गहराइ में ईतर के देखने िाले कों ही वमल सकता है.. प्रत्येक साधक तंत्र जगत में जब प्रविष्ट होता है तो ईसकी ऄिनी एक कल्िना की ईडान का मानवचत्र ईसके ऄिचेतन मन में वचवत्रत होता है. िरन्तु िो आस् तथ्य से वभ भलीभांवत िररवचत होता है की तंत्र में कोइ वबच की वस्िवत नहीं या तो आस् िार या ईस िार और खेल खत्म...
अगम वनगम िास्त्रों में िवितत िाक्त और िैि तंत्र ऄत्यंत प्रचवलत रहे है.. िाक्त साधनाए वजस प्रकार िवक्त रूिा ऄिात त अद्य िवक्त अराधना से संबंवधत रही है िैसे ही िैि साधनाए विि जी के अराधना से संबंवधत रही है. ईत्तरी भारत में िैि तंत्र साधनाओ में प्रचलन में विि ईिासना के वलए ‚विणाविखा तंत्र”प्रचलन में अया. अगम िरं िरा में आस तन्त्र कों विणाविखोत्तरा की संज्ञा भी दी है. आसे विि का िीिाधर रूि वभ कहा गया है.. वित्यिोडषीकाणणि और कुलचड ु ामिी तंत्र में िवित त ६४ तन्त्रो में स्िान प्राप्त आस तंत्र की महत्ता िैि साधनाओ में रही है. मै यहााँ बताना जरुरी समझती हू की प्राच्य काल में विविध तन्त्राचायो और ऄध्येताओ ने आन मनु वस्िवतयों से स्ि ऄध्ययन िश्चात आनके क्रमो और महत्ता कों ऄिने ऄिने ऄनुभािों के अधार िर वनरधाररत वकया है.. सो वजतने साक्षर ईतने वभन्न मत... वििाविखा तंत्र की विविष्टता विि जी की ईिासना से है, ईनके ईस स्िरूि की ईिासना है वजसे तम्ु बरु ु नाम से संवज्ञत वकया गया. वहरयदयदम नामक िंवडत ने आसे भोले िंकर की ईिासना वििकैिल्य प्रावप्त हे तु की िी.. वसवि के फल स्िरूि वहरयदयदम कों अवद देि विि के ईस विलक्षि रूि ‘तुम्बरू’ के दित न हु ए.. ईनका ध्यान कुछ आस् प्रकार से है वजसमे ईनके चार मुख है. प्रत्येक मुख का एक वििेष नाम है – १. विरश्छेद २. विणाविखा ३. सम्मोह ४. वियोत्तर विि जी के ऄनंत रूि ऄिने अि में एक तंत्र ऄध्याय रचते है. जैसा की हमने विगत लेख में अरं वभक िंवक्तयों में िढ़ा िा की सवृ ष्ट की रचना में
संहार करता ऄनादी विि िंकर और अद्या िवक्त िराम्बा के संिाद कों तंत्र की संज्ञा दी है और आसी सन्दभत में विि और िवक्त के ऄनंत नामो ईिनामो िर तंत्र बने.. प्रत्येक ज्ञान खंड के एक ऄवधष्ठात्री देिी वकिां देिता वनयुक्त हु ए जो ईस विविष्ट ऄभीष्ट की िवू तत हे तु ईसका ज्ञान ऄिने अि में समेटे हु ए है. तंत्र विषय में सुगमता हे तु ईसका िगीकरि कर विवभन्न देिी देिता के वनयंत्रि और ईसकी गुप्तता का संरक्षि ईन्ही दैिी िवक्तयों कों सौि वदया गया.. हालांवक ये सभी दैिी िवक्त या अवद विि िवक्त का ही ऄंिरूि है. वििाविका तंत्र आंडोनेविया एिं कम्बोवडया में भी प्रचवलत रहा है... तिावि ऄलग ऄलग देिो में आनकी ईिासना ििवत में वनवश्चत ही ऄंतर रहा है िरन्तु ऄभीष्ट चौमुखी देिो के देि महादेि के दित न ही रहा.. चौमुखी महादेि की संवगनीयो के चौ रूि भी िज ू े जाते है.. जया, विजया, जयंती और अपरावजता ... तुम्बुरु साधना में एक विविष्ट यन्त्र स्िावित वकया जाता है.. वजसमे तुम्बुरु ऄिात त विि मध्य में स्िावित होकर चारो ओर ईनके चौ रूिों की िामांवगयां विराजमान होती है.. आस साधना से तीन तत्िों की प्रावप्त होती है – आत्म तत्त्ि; विद्या तत्ि; विि तत्ि आन्ही तत्िों का प्रवतवनवधत्ि बीज मंत्रो के ईच्चारि से आनकी अराधना ईिासना की जाती है. ५ बीज मंत्रो का समागम होता है जो तुम्बुरु ऄिात त विि और चार देवियों के बीज मातक ृ ा है. तुम्बुरु – क्षं (ksham) जया – जं (Jam) विजया – भं (Bham) जयंती – सं (Sam) ऄिरावजता – हं (Ham)
ऄनुमवत ना होने के कारि अगे की आनकी गुप्त विवध केिल ईसी साधक के समक्ष खुलती है वजसे आसे करने की अज्ञा या ऄनुमवत प्राप्त हो.. गुह्यतम तंत्र साधनाए केिल गुरुमुखी िरं िरा से ही दी जाती अ रही है.. क्युकी ये वनवश्चत ही सभी के वलए नहीं हो सकती.. क्युकी एसी साधनाओ कों करने की मानवसकता ही बहु त ऄलग होती है.. गुरु कों वभ देखना होता है की ऄभी मेरा विष्य ईस गुढ़ सत्य कों िचाने के योग्य बना है के नहीं, ये देख िरख कर ही ईसकी मानस वस्िवत मानस में ईठने िाली तरं गों से ये वनधात ररत होता है की ईसे ईस साधना कों देना हे के नहीं.. जेसा की मेने कहा की तंत्र कोइ खेल या मजाक का विषय नहीं.. जीिन िर वभ बन अ सकती हे.. आसीवलए सािधान मुद्रा में ही एसी साधनाए संिन्न की जा सकती है.. ऄगले लेख में कुछ एसे ही रोचक एिं गुढ़ तथ्यों के साि िुनः अिसे मानवसक िातात करुाँगी... वनवखल प्रिाम
****सि ु णाण विवखल****
****NPRU**** Posted by Nikhil at 12:47 AM No comments: Labels: MY VIEW, TANTRA DARSHAN
Sunday, December 16, 2012 TANTRA KE GUPT AUR VISMRIT TATHYA - 1
At the time of inception of universe, Tridev (Trinity of Hindu Gods) in order to ensure smooth functioning of universe had framed hidden solutions for each riddle/problem/curiosity………..In other words, we can say that riddles were created so that those hidden solutions/creation can occur in universe for first time and pave the way for writing novel chapter. And these hidden creations are often addressed by us as answer to question or key to lock. In intellectual terms, it has been termed as Tantra. Tantra, one such scripture, which was established as treasure of Hindu Religion in entire world. It paved the way for sadhna and upasana by different padhatis (sects).Tantra had emerged before inception of universe…..As it has been said above that answer to
any question was pre-decided or in other words , questions originated during course of manifestation of answers. Tantra scripture is primarily divided into two categories Aagam and Nigam….Besides it; it was also divided into categories like Yaamal, Daamar, and Uddish etc. And to add to it, many subtantras also got established. At such occasion, in ancient time itself, ancient sages, saints, great Tantra Acharyas, before handwritten Manu Smritis had predicted for Kalyuga that “In Kalyuga, no shastra except Aagam and Nigam of Tantra will be left meaningful to resolve the complex intricacies of life” To live in Kalyuga, Tantra will be established as one and only best path. For this reason, Tridev took birth as various avatars in order to keep this genre of knowledge alive, which is getting obsolete. And when the condition again become unsteady, Param Vandaniya Shri Nikhileshwaranand Ji took birth in householder form of Dr. Narayan Dutt Shrimali in order to revive and reestablish it and has again provided breath to this genre…..I always remember one of his teaching that SAB KAHE POTHAN KI DEKHI PAR MAIN KAHU AAKHAN KI DEKHI….( Knowledge is not in books, rather it lies in our experiences)…..He not only stood up as saviour of Mantra Tantra Yantra or Ittar science but also was creator of Mantra Tantra Yantra in Kalyuga…..He has got innumerable aspects about which it can be written here. But lack
of space does not allow me to do so. He created living scriptures and today also his chosen diamond pearls are distributing his knowledge in selfish-less manner. So all the scriptures which are available today, are capable of maintaining the dignity of Tantra Shastra in today’s difficult circumstances or in other words this era of negligence of religion………Quote of Bhagwat Gita is completely fruitful when we try to understand the reason behind manifestation of Sadgurudev Ji. From ancient times, many sects have been established in course of successive evolution of Tantra….Though seen from outer context; all sects are worshipper of Shiv and Shakti only. Therefore all the scriptures which were written are based on Shaktaagam and Shaivaagam only. Only padhati differs, fruits of upasana remains same…..In other words, destination has always remain the same i.e. merging with supreme Brahma but various paths have been deployed. Human has always remain creative and this creativity has inspired him to give rise to multiple sects……he always wish to attain state of being unparalleled and this has been his inspiration power also. So some of name of sects are as follows1. Kaul Maarg, which has also been called Kul Maarg or Kaul Mat. 2. Paashupat Maarg
3. Laakul Maarg 4. Kaalanal Maarg 5. Kaalmukh Maarg 6. Bhairav Sect 7. Vaam Sect 8. Kapaalik Sect 9. Som sect 10. Mahavrat Sect 11. Jangam Sect 12 Kaarunik or Kaarunk Maarg 13. Siddhant Maarg which has also been called Raudra Maarg 14. Siddhant sect Shaiva Maarg. 15. Rasheshwar Sect 16. Nandikeshwar Sect 17. Bhatt Maarg Out of the above said Maargs, some paths were more in vogue….meaning that numbers of followers following these paths were more……but with passage of time, some one maarg was boycotted and sometimes the other…..that’s why for getting recognition, new sects appeared as a result of amalgamation of many sects…….some path resorted to be propagated in hidden manner, which are now only carried out by Guru Tradition….
Question arises why at all need of so many sects when one Maarg can yield desired results? But one aspect has always been worth considering that best maarg out of all upasana maarg can be certified only when you have resorted to all paths and experienced corresponding sadhna journey. But then result of every person may vary. Because opinion differs with the person… Now second aspect can be that when ancient Tantra acharyas mixed the Padhatis of sects then they would have found results to be quick, very influential and timely too…. For example, disciple of any sect requesting for Tantra knowledge from Guru of another sect.Guru always searches for able and eligible disciples. Then how one Guru can ignore if he finds suitable person…..After testing, Guru does Shaktipaat and carry out the Guru tradition of that particular sect. And based on this knowledge, disciple creates a new chapter….And such combination of principles of two sects have written a chapter of a new sect…This is not necessary that all disciples did that. Only 12 in thousands were able to write such history… In this manner, I will try to present hidden information about Tantra in next article again….
Nikhil Pranaam
======================================== जब सृष्टि की उत्पष्टि हुई तब ष्टिदेव ने सृष्टि के सुगम सञ्चालन के ष्टलए प्रत्येक पहेली के समाधान की एक गुप्त रचना कर रखी है... या यु कहे की पहेली की रचना ही इसीष्टलए हुई की वो गुप्त रचना सृष्टि में प्रथम बार घटित हो कर एक अध्याय रचने के ष्टलए तैयार हो सके . और इष्टस गुप्त रचना कों हम प्रश्न का उिर या ताले की कुुं जी कह कर भी सुंबोष्टधत करते है. और साक्षर पाुंष्टित्य शब्दों में इसे तुंि की सुंज्ञा दी गई.. तुंि, एक ऐसा शास्त्र जो समस्त हहदू धमं का ष्टवश्वकोष बन कर स्थाष्टपत हुआ. जहा ष्टवष्टभन्न पद्धष्टतयों से साधना और उपासना का मागग प्रशस्त हुआ. तुंि की उत्पष्टि सृष्टि के उत्पष्टि से पहले ही हो चुकी थी.. जेसा की उपरोक्त कथुं में कहा है की ककसी ष्टभ प्रश्न का हल पहले से ही ष्टनयोष्टजत है या दूसरे शब्दों में हल के प्रकिीकरण में ही प्रश्न की उत्पष्टि हुई. तुंि शास्त्र मुख्य रूप से आगम और ष्टनगम इन दो श्रेष्टणयों में ष्टवभाष्टजत है... इन के आलावा यामल, िामर, उष्टिश आकद नामो के वगग में ष्टभ ष्टवभाष्टजत हुए और साथ ही साथ उपतुंि ष्टभ स्थाष्टपत हुए. इस उपलक्ष में प्राचीन काल में ही ऋष्टष मुष्टन महान तुंिाचायो ने हस्त ष्टलष्टखत मनु स्मृष्टतयों में पूवग से ही काली काल के ष्टलए भाष्टवष्टययत कर कदया था की “काली काल में तुंि की आगम ष्टनगमता के वैष्टतटरक्त अन्य कोई शास्त्र पयागय स्वरूप शेष नहीं रहेगा जीवन की ष्टवकिता से ष्टनपिने के ष्टलए” काली काल अथागत कष्टलयुग में जीष्टवत रहने के ष्टलए तुंि ही एकमेव श्रेष्ठ मागग स्थाष्टपत होगा और इसी कारण ष्टवलुप्त होती इस ष्टवधा के जैसे अब तक ष्टिदेवो ने ष्टवशेष नायक स्वरूप अवतटरत होकर इसकी काि सुंसार कों दी...और जब किर ष्टस्थष्टत के ष्टवचल होते ही इसी के पुनः सुंस्मरण और स्थापन के ष्टलए परम वन्दनीय श्री ष्टनष्टखलेश्वरानुंद जी का अवतरण पूजनीय िॉ. नारायण दि श्रीमाली जी के गृहस्थ रूप में हुआ और उन्होंने पुनः इस ष्टवधा कों एक नया श्वास प्रदान ककया है...उनकी एक सीख हमेशा याद रहती है की सब कहे पोथन की देष्टख पर मै कहू आखन की देष्टख... वे मुंि तुंि यन्ि या इतर ष्टवज्ञान के ना के वल रक्षक के रूप में खड़े हुए अष्टपतु वे इस काली काल के मुंि तुंि यन्ि के सृिा ष्टभ हुए... उनके अनष्टगनत पक्ष है ष्टजस पर यहााँ ष्टलखा जा सकता बस जगह कम पड़ती जायेगी. उन्होंने
जीष्टवत जागृत ग्रन्थो का ष्टनमागण ककया और आज भी ऐसे तराशे हुए हीरक खुंि उस ताजगी कों ष्टनस्वाथग भाव से उस ज्ञान गुंगा कों ष्टवतटरत करते जा रहे है... तो जो ष्टभ ग्रन्थ आज उपलब्ध है वे आज की ष्टवकि पटरष्टस्थष्टत या यु कहू की धमगग्लानी के इस काल में भी तुंि शास्त्र का गौरव अक्षुण्ण बनाये रखने में समथग है... भगवदगीता का कथन पूणग रूपें साथगक होता है जब हम सदगुरुदेव जी के अवतरण के कारण कों समझने की चेष्ठा करते है. तुंि अनुगमनता में प्राचीन काल से ष्टवष्टभन्न सुंप्रदायों की स्थापना की.. हालााँकक बाह्य पटरप्रेक्ष्यता से देखे तो सभी सम्प्प्रदाय ष्टशव शष्टक्त के ही उपासक है.. इसष्टलए ष्टजतने शास्त्र ष्टलखे गए वे शाक्तागम और शैवागम पर ही ष्टनधागटरत है. के वल पद्धष्टत अलग होती है परन्तु उपासना िल एक सा ही होता है... अथागत गुंतव्य सदा से एक ही रहा है उस ब्रम्प्ह का साक्षात्कार परन्तु मागग ष्टवष्टभन्न रहे है. मनुष्य सदा से सजगनशील रहा है और वही रचनात्मकता उसे एक से दो, दो से तीन सुंप्रदायों कों रष्टचत करने के ष्टलए प्रेटरत करती रही.. वह सदा से अष्टितीयता कों प्राप्त करना चाहता रहा है और यही उसकी प्रेरक शष्टक्त ष्टभ रही है. तो यहााँ में सुंप्रदायों के यथासम्प्भव प्राप्त ष्टवष्टभन्न नाम कु छ इस प्रकार से है – १. कौल मागग ष्टजसे कु ल मागग कौल मत ष्टभ कहा जाता है. २. पाशुपत मागग ३. लाकु ल मागग ४. कालानल मागग ५. कालमुख मागग ६. भैरव मत ७. वाम मत ८. कापाष्टलक मत ९. सोम मत १०. महाव्रत मत ११. जुंगम मत १२. कारुष्टणक या कारुुं क मागग १३. ष्टसद्धाुंत मागग ष्टजसे रौद्र मागग भी कहा गया है १४. ष्टसद्धाुंत मत शैव मागग १५. रासेश्वर मत
१६. नुंकदके श्वर मत १७. भट्ट मागग उपरोक्त मागो में से कु छ मागग बहुत ही प्रचाष्टलत रहे.. मतलब की उस मागग कों अनुगमन करने वाले साधक की तादाद ज्यादा रही... परन्तु काल के िे र में कभी कोई मागग बष्टहष्कृ त होता तो कभी कोई.. इसी के चलते मान्यता प्राष्टप्त हेतु बहुत से मतों का ष्टमश्रण होकर नए मतों का अवतरण ष्टभ होता गया.. कु छ मागग बहुत ही गुप्त रूप से अवलुंष्टबत होने लगे थे. जो के वल गुरुमुखी परम्प्परा में ही चलते है अब... प्रश्न ये उद्भष्टवत होता है की इतने ष्टवष्टवध मत मागग क्यों? जब एक ही मागग से अभीि की प्राष्टप्त हो सकती है. लेककन एक पक्ष ष्टवचारणीय हबदु यही रहा है की उपासना मागग में सबसे श्रेष्ठ मागग तभी प्रमाष्टणत हो सकता है जब आपने सभी मागो कों अवलुंष्टबत कर प्रत्येक साधना यािा कों अनुभूत ककया हो.. और उसी के आधार पर इसका ष्टनष्कषग सुंभव है. परन्तु किर प्रत्येक का ष्टनष्कषग ष्टभन्न हो सकता है. क्युकी व्यष्टक्त ष्टभन्न तो मत भी ष्टभन्न... अब दूसरा पक्ष कु छ इस प्रकार से हो सकता है की प्राचीन तुंिाचायो ने जब सुंप्रदायों की पद्धष्टतयों कों ष्टमष्टश्रत ककया तो उसके पटरणाम तीव्र एवुं अत्युंत प्राभावी ष्टमले और समय अनुरूप ष्टभ... जैसे ककसी सम्प्प्रदाय के गुरु के पास अगर दूसरे सम्प्प्रदाय के ष्टशष्य ने तुंि ज्ञान की याचना की. सुपाि ष्टशष्य कों गुरु स्वयुं ढू ढते है तो ष्टमलने पर नाकारा कै से जा सकता है.. परीष्टक्षत होने पर गुरु उसे शष्टक्तपात कर उस सम्प्प्रदाय की गुरु परुं परा कों ष्टनवागष्टहत करते है. और उसी ज्ञान के आधार पर ष्टशष्य एक नष्टवन अध्याय रचते है.. और दो सुंप्रदायों का उनके ष्टसद्धाुंतों का कु छ इसी तारह मेल एक नए सम्प्प्रदाय के अध्याय कों जन्म देता रहा..यहााँ जरुरी नहीं की सभी ष्टशष्यों से यह होता रहता हज़ारो में से इक्का दुक्का ही इस इष्टतहास के रचष्टयता बने... इसी प्रकार तुंि की गुह्य से गुह्य जानकारी कों पुनः अगले लेख में प्रस्तुत करने के प्रयास जरुर करती रहूुंगी सो आज यही ष्टवराम देती हू,,,,,,, MAHAKAALRATRI AUR USKE GOPNIY PRAYOG
Dear Brothers and my sisters, Jai Sadgurudev, Festival of Diwali is going to come or in other words we are in Sankranti Kaal (intermediate time interval between two events) of this great festival. And shastra says that Sankranti Kaal in itself contains many amazing powers in hidden manner. What is needed is to bhedan of them through weapon of knowledge. This great festival has those secrets embedded in it this time which can be only an imagination for high-level sadhaks. I pretty well have the personal experience how Sadgurudev used to direct us to do intense sadhna of
Holi and Deepawali festival in shamshaan and how we used to pass through titillating experiences and reach our milestone….yes all these are only milestone. This thing applies to all sadhnas even Mahavidya sadhna. Then….. Then…. What is our aim?????? Aim…… Our aim is to imbibe the secretiveness of these milestones inside us…imbibing them , filling ourselves with universal consciousness and imbibing that Param Tatv (supreme element) inside us ……which has been described by vedas and scriptures as Neti Neti….and has been called Nikhil Element….which cannot be described and whose elucidation is not possible….. But way to attain it goes through these procedures of Tantra or it passes through abstruse procedure of complete dedication…… Dedication and abstruse????
Who told that dedication is abstruse….. Is it not like this????? It is and the one who say that it is not abstruse….he can just for once ask his heart that has he completely dedicated himself to the divine lotus feet of Shree Sadgurudev. He will get the answer himself…. Because nothing is left after complete dedication…..no desires….no truth……any anand (bliss)…..what is left then is to be complete. Well we successively and gradually understand that dedication by following the path of sadhna too. And in this sequence on this Tantric festival of Deepawali Mahakaalraatri I will publish 3 sadhnas out of my collection between 7 to 10 November….These sadhnas are not common. And all of them are superior to each other… You have to do them from Triyodashi to Dooj (from 2 days before Diwali, On Diwali and till 2 days after Diwali i.e. total 5 days). Most important thing is that at one time you can do only one sadhna…( Only Deepawali
poojan and wealth attaining sadhna of Deepawali night can be done along with it) Secondly Muhurat for Tibbeti Lakshmi Vashikaran is yet not there, it is 34 day sadhna. But it can be done in some other way. I will send that to you all on 21st November so that you can use that amazing yantra. For the time being the three sadhna which I am talking about….they are amazing. You can do any of them according to your desire. 1) (Sarv Teevr Shamshaanik Shakti Prapti) Mahakaal Bhairav Yukt Bhagwati Dhoomarvarna Sadhna – This stage of Bhagwati Dhoomavati sadhna provides sadhak control over shamshaan sadhna and Ittar Yoni shaktis. Side by side, it also provides the keys of Shatkarma sadhna, secrets of attainment of power, titillating experiences. Then how can sadhak remain an average sadhak. 2 Bhagwati Mahakaali Praanbal Siddhi Yukt Mund Chaitanya Sadhna-Have you ever thought that how you pass your life fearing unknown…dying at each
step……how sting of disgrace , ill-fortune bites you…..how any Tantra prayog or Ittar powers takes you or your family under its control….how any mean person controls your life and destroy it…how feeling of failure always terrifies you, may it be your work-field, sadhna field or great battle of life……This prayog fills fear in our praan through Mund Shakti of Mahakaali and make sadhak unconquerable. 3. Kaamysiddhi Aishwarya Prapti Nakhaniya Poorn Siddhi Vidhaan- Nakhaniya tantra is both amazing and hidden. It contains so many amazing Vidhaans, one superior to other .This Vidhaan is one of the many sadhnas coming under Nakhaniya tantra which not only provides sadhak success in desired works…..but also provides hidden secrets of attaining prosperity and binding Lakshmi. You have to select……After praying for so many months I have got the permission to give it to dear ones from those siddhs and sadhaks who got complete success by grace of Guru and they gave it to me on my request…….Now you can do any of them according to
your own desire and move one more step on journey of dedication. “Nikhil Pranaam” =======================================================
मप्रय भााआयों और मेरी बहनों, जय सदगरुु देर्, दीपार्ली का पर्व ाअने र्ाला है,या ये कहें की हम ाईसी महापर्व की सांिाांमतकाल में गमतशील हैं.और शास्त्र मर्मदत है की सि ां ाांमतकाल ाऄपने ाअपमें ाऄमद्वय्तीय शमियों का के न्त्ि स्र्यां में छुपाये रहता है,ाअर्शयकता है मात्र ाईसका ज्ञान ाऄस्त्र से भेदन करने का. ये महान पर्व स्र्यां में ाईन रहस्यों को ाआस बार समेटे हुए है.जो की कभी मात्र कल्पना ही हो सकती है ाईच्चतर साधकों के मलए भी. मझु े भली भाांमत ाआस बात का व्यमिगत ाऄनभु र् है की कै से सदगरुु देर् होली और दीपार्ली के पर्व की तीव्र साधनाओ ां को शमशान में करने का हमें ाअदेश देते थे और कै से हम ाईन रोमाांचकारी ाऄनभु र्ों से होकर ाऄपने पड़ार् तक पहुचां ते थे....पड़ार् हााँ मात्र पड़ार् ही तो रही हैं र्े या ाऄन्त्य सभी साधनाएां चाहे मफर र्ो महामर्द्या साधना ही क्याँू ना हो...... तब...... तब...... तब लक्ष्य क्या है ??????? लक्ष्य..... लक्ष्य है ाआन पड़ार्ों की रहस्यमयता को स्र्यां में ाईतारते हुए....ाअत्मसात करते हुए ब्रह्ाांडीय चेतना से लबालब होकर ाईस परम तत्र् को स्र्यां में ाईतार लेना....मजसे र्ेद शास्त्र भी नेमत नेमत
कहते रहें हैं.....और ाईसे मनमखल तत्र् कहा गया है....मजसका र्णवन सांभर् ही नहीं है,और ना ही सभां र् है ाईसकी मर्र्ेचना भी..... मकन्त्तु ाईसे पाने का रास्ता तांत्र की ाआन्त्ही मियाओ ां से होकर गजु रता है या मफर होकर गजु रता है पणू व समपवण की मिया की दरुु हता से..... समपवण और दरूु ह ???? ये मकसने कहा की समपवण दरूु ह होता है....... क्या नहीं होता है ??????? होता है और जो कहता है की नहीं ये दरूु ह नहीं है...र्ो एक बार मसफव एक बार ाऄपने ाअप से,ाऄपने मदल से पछ ू े की क्या ाईसने श्री सदगरुु देर् के श्री चरणों में ाऄपने ाअपको पणू व सममपवत कर मदया है. जर्ाब ाईसे खदु ममल जाएगा...क्यांमू क पणू व समपवण के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता है...ाअकाांक्षा भी नहीं....सत्य भी नहीं....ाअनांद भी नहीं...... तब रहता है तो मात्र पणू व हो जाना. खैर साधनाओ ां के मागव का ाऄनसु रण करते हुए भी हम िमशाः धीरे धीरे ाईसी समपवण को समझते हैं. और ाईसी िम में दीपमामलका महाकालरात्री के ताांमत्रक पर्व पर मैं ाऄपने सांकलन में से ३ साधनाओ ां का प्रकाशन ७ से १० नर्म्बर के मध्य करूाँगा...ये साधनाएां सामान्त्य प्राप्त नहीं हैं. और हैं एक से बढ़ कर एक.... हााँ करना है ाअपको त्रयोदशी से दजू तक.... और सबसे बड़ी बात ाअप एक समय में मात्र एक ही साधनाएां ही कर पाएगां े...(दीपार्ली का पजू न और दीपार्ली की रात्री की धन प्रामप्त की साधनाएां मात्र ाआसके साथ की जा सकती है) दसू री बात ष्टतब्बती लक्ष्मी वशीकरण की साधना का मुहूतग अभी नहीं है,वो ३४ कदनों की साधना है,परन्तु उसे और ककस तरीके से ककया जा सकता
है,उसे भी मैं आप सभी को २१ नवुंबर को प्रेष्टषत कर दूग ाँ ा,ताकक आप उस अष्टिय्तीय यन्ि का प्रयोग कर सकें .
मफलहाल मैं मजन तीन साधनाओ ां की बात कर रहा हू.ाँ ..ये एक से बढ़कर एक हैं . और ाअप ाऄपनी चाहत के ाऄनसु ार ाआसका प्रयोग कर लें... १. (सवग तीव्र शमसाष्टनक शष्टक्त प्राष्टप्त) महाकाल भैरव युक्त भगवती धूम्रवणाग साधना – भगर्ती धमू ार्ती की साधना का ये सोपान साधक को शमसान साधना और ाआतर योनी शमियों पर ाऄमधपत्य प्रदान कर देता है.साथ ही रोमाचां का,शमि प्रामप्त का र्ो रहस्य जो षट्कमव साधनाओ ां की कांु जी साधक को प्रदान कर देता है.मफर भला कै से साधक सामान्त्य रह सकता है. २. भगवती महाकाली प्राणबल ष्टसष्टद्ध युक्त मुि ुं चैतन्य साधना – क्या ाअपने सोचा है की कै से ाअप ाऄज्ञात के भय से काांपते काांपते जीर्न गजु ारते हो...मतल मतल मर कर...कै से ाऄपमान,दभु ावनय...का दश ां ाअपको दमां शत करता रहता है...कै से कोाइ भी तत्रां प्रयोग या ाआतर शमियाां ाअपको या ाअपके पररर्ार को चगांु ल में ले लेती हैं...कै से कोाइ भी टुच्चा व्यमि ाअपको र्श में कर लेता है,जीर्न को बबावद कर देता है...कै से ाऄसफलता का भार् हमेशा ाअपको भयभीत करता है,मफर र्ो चाहे कायव का क्षेत्र हो,साधना का क्षेत्र हो या मफर जीर्न का महासमर...ये प्रयोग महाकाली की मडांु शमि से प्राणों में ाऄमनन भर कर ाऄमर्मजत कर देता है साधक को. ३. काम्प्यष्टसष्टद्ध ऐश्वयग प्राष्टप्त नखाष्टनया पूणग ष्टसष्टद्ध ष्टवधान – ाऄद्भुत है नखामनया तांत्र और गप्तु भी,एक से बढ़कर एक प्रयोगों को समेटे हुए नखामनया तांत्र के ाऄांतगवत ाअने र्ाली काइ साधनाओ ां में से र्ो ाऄद्भुत मर्धान जो साधक के ाआमच्छत कायों में तो साधक को सफलता देती ही है...ऐश्वयव और लक्ष्मी ाअबद्ध का गोपनीय रहस्य भी साधक को प्राप्त हो जाता है.
चयन ाअप करें गे...काइ महीनों की प्राथवना के बाद मझु े ाआन्त्हें ाऄपने ाअत्मीयों को देने की ाऄनमु मत प्राप्त हुयी है ाईन मसद्धों या साधकों से मजन्त्हें गरुु कृपा से ाआनमे पणू व सफलता ममली और ाईन्त्होंने ाऄनग्रु ह करते हुए मझु े मेरी प्राथवना पर मदया ..ाऄब मात्र ाअप ाऄपने ाऄपने कामना ाऄनसु ार ाआन्त्हें गमत दे सकते हैं और समपवण की मिया का एक और कदम परू ा कर सकते हैं. ‚मनमखल प्रणाम‛
****ARIF**** ****NPRU**** Posted by Nikhil at 5:59 AM 16 comments: Labels: TANTRA DARSHAN, TANTRA SIDDHI
Sunday, September 23, 2012 TANTRA SIDDHI AUR PHYSICAL BODY-
और
It has been told in Vedas and Upnashid that for imbibing big achievements in sadhna world Guru, complete procedure, suitable place, authentic sadhna material and complete dedication is required…….but one most important Shakti which has not been studied deeply but that Shakti is so
much important in itself that if it is not attained them all shaktis and siddhis are left useless and that invaluable power is……our body!!!!!!!.There is mention of supremacy of human body in Indian Tantra scriptures in two ways…..One is controlling power of whole universe, present in the form of our brain, which has been given the pace of Brahma and Shiva since it has got the capability to create and destroy universe. Second one is present in the form of Mahashakti Maha Maaya which is called in tantra as Para Shakti and which is present in each and every particle of whole universe. But human is only one creature that cannot only activate it but also make it conscious and can utilise it as per his capacity. In sadhna world, if there is any fact or thing which is valuable after soul or almighty, then it is …Human Body…..because as our soul has been called subtle form of supreme , in the same way our body is the miniature copy of whole universe since firstly whole universe is created by unification of Panch Mahabhoots i.e. earth, sky, fire, water and air and thereafter from those five elements our body was created which are called in tantra as Panchaagni……and under this only, from earth element skin and nervebranches were created, from water element blood, urine and sperm was created, fire gave rise to hunger, desire, love and
sex , air (Vayu) is present in form of Praan Vayu in our body and sky element gave birth to feelings of Kama, greed and fear. For finding out our Isht God/Goddess also, calculation is done from the day when our physical body was born. It is because of the fact that the element which is present in major proportion in our body, our mind will get attracted towards god and goddess related to that element. For example, it is natural to be attracted towards Lord Vishnu for Aakash element, towards Maa Aadi Shakti for fire god, towards Lord Bhaskar for air element, towards Bhagwan Bholenaath for earth element and towards Vighnharta Lord Ganpati for water element. And one of the benefits of this is that we come to know about out Isht Dev. In yog Shastra, entire universe has been described considering human body as clod and human body parts have been identified with goddess powers. For exhibiting the significance of body, our sages have even told that human’s voice, his mind, praan and bindu are reliable sources of entire Goddess powers. Therefore Para Shakti of almighty is activated the most in human body in form of Ichha, Gyan and Kriya. In our body centre of these three Para Shaktis is heart, brain and navel respectively. And maybe you can understand the importance of this thing better by the fact
that this Para Shakti is not even activated in Gods since they are Bhog Yoni whereas we are in Karm Yoni.This Shakti is situated in our body in the form of Kundalini without activating which we can’t move forward. In Tantra shastra, female are seen as form of Maa Aadi Shakti and her body is worshipped in Kamakhya form because if females are not considered as object of sexual gratification then accomplishing her in form of Bhairavi, we can become eligible to attain blessing of Maa Aadi Shakti. It is because of the fact that three powers Brahmi, Vaishnavi and Roodri are present in body of every female in the form of triangle. Therefore this triangle is called Yoniroopa and worship of these Shaktis is done in form of Yoni Peeth in which Gyan Shakti is situated in left angle, Iccha Shakti is situated in right angle and Kriya Shakti in the lowermost angle. It has been considered as centre of Kundalini Shakti in Yoga. And by activating this kundalini, we can remain in state of Samadhi for hours, months and years. My master is live example of it who made me do Aasan siddhi sadhna for making my body suitable for sadhna. I had seen his aasan rise above the ground during the sadhna time from my eyes and he was doing sadhna on that aasan. I saw the miracle of
aasan siddhi for the first time so I could not believe my eyes that whatever I was seeing is true or is it an illusion? He told me later that if your body is under your control and you love it in the form of Goddess Shakti then you can also do this. If body is weak and energy-less than self-reflection is not possible. It has got its own importance. It is not layfigure made up of bones and flesh rather it is Shakti made up of energy of senses. And you cannot fight with Shakti; you can only accomplish it….and this is highest sadhna. Nikhil Pranaam
साधना जगत में बड़ी-बड़ी ाईपलमब्धयों को ाअत्मसात करने के मलए एक गरुु , पणू व मर्धान, ाईमचत स्थान, ाऄनक ु ू ल सामग्री और पणू व मनष्ठा की बात हमारे र्ेदों और ाईपमनषदों में कही गयी है....मकन्त्तु एक ाऄमत ाअर्श्यक शमि मजस पर बहुत गहन ाऄध्ययन तो नहीं मकया गया पर ाऄपने ाअप में र्ो शमि ाआतनी ाऄमधक महत्र्पणू व है की यमद ाअपने ाईसका र्रन नहीं मकया तो सारी की सारी शमियााँ, मसमद्धयााँ धरी की धरी रह जाती है और र्ो ाऄमल्ू य शमि है..... हमारी खदु की देह या शरीर जो भी ाअप कहना चाहो!!!!!! भारतीय तत्रां शास्त्रों में दो प्रकार से मानर् देह की श्रेष्ठता का र्णवन ममलता है- एक तो समस्त ब्रह्ाांड की मनयांत्रणकाररणी शमि हमारे मामस्तष्क के रूप में, मजसे ब्रह्ा और मशर् का स्थान प्राप्त है क्योंमक ाआसमें समृ ष्ट के मनमावण और सांहार की क्षमता है और दसू रा महाशमि महामाया के रूप में मजसे तांत्र में पराशमि कहते है और जो ाआस परू े ब्रह्ाण्ड के कण कण में व्याप्त है मकन्त्तु मनष्ु य ही एक ऐसा प्राणी है जो ना के र्ल ाआसे जाग्रत कर सकता है बमल्क ाआसे चैतन्त्य कर क्षमता ाऄनसु सार ाआसका ाईपयोग करने में भी सक्षम है. साधना जगत में ाअत्मा और परमात्मा के बाद यमद कोाइ तथ्य या र्स्तु बहुमल्ू य है तो र्ो है – मानर् शरीर.....क्योंमक मजस प्रकार परमात्मा का सक्ष्ू म रूप या ाऄांश हमारी ाअत्मा को कहा गया है ठीक र्ैसे ही हमारा शरीर ाआस परू े ब्रह्ाांड का लघु सस्ां करण है क्योंमक पथृ र्ी, ाअकाश, ...............................................................................................................
ाऄमनन, जल, और र्ायु ाआन पांच महाभतू ों के एकीकरण से पहले ाआस समस्त बह्ाांड की रचना हुाइ और मफर ाईन्त्हीं पांच तत्र्ों से हमारे ाआस पांच-भतू क शरीर को भी मनममवत मकया गया मजसे तत्रां में पांचामनन कहते हैं......और ाआसी के तहत पथ्ृ र्ी तत्र् से हमारे शरीर में चरम और नाड़ीयों का सांग्रह बना, जल तत्र् से रि, मत्रू और र्ीयव न मनमावण हुाअ, ाऄमनन ने हममें क्षधु ा, तष्ृ णा, मोह और मैथनु ाईत्पन्त्न मदया, र्ायु प्राणर्ायु के रूप में हमारी देह में मर्धमान है और ाअकाश तत्र् ने हममें काम, लोभ और भय जैसी भार्नाओ ां को जन्त्म मदया. हमारे ाआष्ट देर् का पता लगाने के मलए भी ाईस मदन से गणना की जाती है मजस मदन हमारी ाअत्मा ने एक भौमतक देह को धारण करके ाआस लोक में जन्त्म मलया था क्योंमक यह एक मनधावररत तथ्य है की हमारे शरीर में मजस भी तत्र् की प्रधानता होगी हमारा मन स्र्त: ही ाईससे सांबांमधत देर्ी, देर्ता की और ाअकमषवत होता है जैसे ाअकाश तत्र् के साथ भगर्ान मर्ष्ण,ु ाऄमनन देर् के साथ जगतजननी मााँ ाअमदशमि, र्ायु तत्र् के साथ भगर्ान भास्कर, पथ्ृ र्ी तत्र् के साथ भगर्ान भोलेनाथ, और जल तत्र् के साथ मर्घ्नहताव भगर्ान गणपमत की तरफ ाअकमषवत होना स्र्ाभामर्क है और ाआसका एक फायदा यह है की हमें पता चल जाता है की हमारा ाआष्ट देर् कौन है. योग शास्त्र में मनष्ु य के शरीर को मपांड मानकर ाआस परू े ब्रह्ाांड की व्याख्या की गयी है की मानर् देह के मकस ाऄगां में कौन सी दैर्ी शमि मर्राजमान है और ाआस देह की महत्ता को दशावने के मलए हमारे मनीमषयों ने तो यहााँ तक बताया है की मनष्ु य की र्ाणी, ाईसका मन, प्राण और मबांदु सब ाऄपार दैर्ी शमियों के ाअश्रय स्रोत हैं ाआसीमलए ाइश्वर की पराशमि ाआच्छा, ज्ञान और मिया के रूप में सबसे ाऄमधक मानर् शरीर में ही जाग्रत है. हमारी देह में ाआन तीनों पराशमियों के के न्त्ि िमशाः रृदय, मामस्तष्क और नामभ हैं और ाआस बात का महत्र् ाआस तथ्य से शायद ाअप ज्यादा ाऄच्छे से समझ सकें की यह ाइश्वरीय पराशमि देर्ताओ ां में भी जागतृ नहीं होती क्योंमक र्ो भोग योनी में है जबमक हम कमव योनी में और हमारे शरीर में यह शमि कांु डमलनी के रूप में ाअमश्रत है मजसे जाग्रत मकये मबना ाअगे का मागव प्रशस्त नहीं हो सकता. तत्रां शास्त्र में ही स्त्री को मााँ ाअमदशमि के रूप में देखा जाता है और ाईसकी देह पजू ा मााँ कामाख्या के रूप में की जाती है क्योंमक यमद स्त्री को के र्ल भोग की र्स्तु ना समझा जाए तो ाईसी को भैरर्ी के रूप में साध के ाअप मााँ ाअमदशमि के ाअशीर्ावद के पात्र बन सकते हो क्योंमक ब्रह्ी, र्ैष्णर्ी और रौिी यह तीनो शमियााँ एक मत्रकोण के रूप में हर स्त्री के शरीर में स्थामपत है ाआसीमलए ाआस मत्रकोण को योमनरुपा कहा जाता है और ाआन शमियों की पजू ा योनी
पीठ के रूप में की जाती है और र्ास्तर् में देखा जाए तो हर स्त्री का शरीर ाऄपने ाअप में एक योनी पीठ है मजसके बाएां कोण में ज्ञान शमि, दायें कोण में ाआच्छा शमि और सब से नीचे र्ाले कोण में मिया शमि स्थामपत है और योग में ाआसे कांु डमलनी शमि का कें दर माना गया है. और ाआसी कांु डमलनी को जाग्रत कर हम घांटों, महीनों या सालों समामध की ाऄर्स्था में रह सकते है और ाआसका एक जीर्ांत ाईदाहरण मेरे मास्टर है मजन्त्होंने मझु े शरीर को साधना हेतु योनय बनाने के मलए ाअसन मसमद्ध की साधना करर्ााइ थी क्योंमक मैंने मेरी ाअाँखों से साधना के समय ाईनका ाअसन भमू म से ाईपर ाईठा देखा था और र्ो ाईस पर साधना रत थे, पहली बार ाअसन मसमद्ध का चमत्कार देखा था,तो ाऄपनी ाअाँखों पर मर्श्वास नहीं हो रहा था की जो देखा है र्ो सच है या मेरी ाअाँखों का भ्रम पर बाद में ाईन्त्होंने समझाया की यमद तम्ु हारा शरीर तम्ु हारे मनयांत्रण में है और तमु ाईसे एक दैर्ी शमि के रूप में प्यार और स्नेह करते हो, तो यह सब तमु भी कर सकती हो क्योंमक यमद शरीर कमजोर और ाउजाव रमहत है तो ाअत्म मचतां न सम्भर् नहीं, ाआसका ाऄपना एक मल्ू य है. यह के र्ल हड्मडयों और माांस से बना एक पतु ला नहीं बमल्क ाआमन्त्ियों की ाउजाव से मनममवत एक शमि है और शमि के साथ ाअप सांघषव नहीं कर सकते ाईसे के र्ल साध सकते हो.....और यही सर्ोच्च साधना है. BRAHMACHARYA
Char Iti Brahmacharya || Moving towards Bramha or doing conduct like Bramha is Brahmacharya. Brahmacharya has been considered to be very important part of sadhna world. It is mentioned in all places right from Vedokt Varnashram to Yoga and tantra path. In other words, all paths and aspects are connected to Brahmacharya. Aim of Brahmacharya is not merely progress in sadhna aspects rather it was also connected to materialistic aspects of life. Its
mention in ancient scriptures like Atharva Veda, Yogupnashid and Manu Smriti is witness to the fact that it is a Vedic conduct First of all, it is important to understand the fact that what do following Brahmacharya actually means? There are four aspects of human life Dharma (Religion), Artha (finance), Kama and Moksha (salvation).Here Kama aspect means attainment of complete happiness and pleasure in life by directing Kama energy in suitable manner. There is broad meaning of Kama element attraction element in life, beauty element and living completely all moral activities related to sweetness. In Vedic Varnashram, following Brahmacharyameant that instead of focusing on Kama energy, attainment of various types of knowledge; when one had attained completeness in this function, person was directed to follow householder dharma. Therefore, here Dharma means Dhaaryati Sah Dharma. In other words, the one which is followed is called Dharma. Moving towards special procedure and aim while following special rules is Dharma through which spiritual progress is possible. Now here a point to be discussed is that why Kama has been supressed so much? First of all let us understand that Kama is not any karma sequence or procedure, it is Shakti available to humans. About it, it has been said in Puraan that Purush Shakti (males) is Kaamdev and Stri Shakti (female) is Rati. And these shaktis are naturally attracted towards each other because Purush Kama Shakti is positive and Stri Kama Shakti is negative. Person can utilise Kama Shakti in three ways Self-satisfaction through physical pleasure Procreation and lineage-development Attainment of state of Samadhi (Deep Meditation)
First procedure of Kama, attainment of Kama pleasure, person does for physical and spiritual gratification. Composition of body is such that this act can provide self-satisfaction to humans. Second procedure of procreation and development of lineage also falls under category of pleasure and prosperity. This aspect has also been considered important element so that person can fulfil his wishes through child and by having capable child, increase the pride of family. Our ancient sages and saints discovered a lot so as to completely enjoy these two types of acts and for cure of related diseases and they put forward their experience among common people. Ancient scriptures like Kama Sootra, Rati Rahasya, and Anangrang were written so as to live completely Kama, third aspect of life but it is quite unfortunate that in today’s era they have been given the name of Tantra whereas they are nothing but only false misconception in name of Tantra. The root of these two procedures is, base of them is sperm. Naturally, this sperm eventually comes out of body; composition of nature is like this only, because by accumulating sperm human can move to third stage. But riddance from Kama element is definitely very cumbersome. It can be suppressed but cannot be destroyed. Kama procedure first of all happens in mind which is eventually transformed in physical form. If it is controlled in physical form then also it is very difficult to control it mentally. In the similar manner if person is able to control it mentally but by entry of even one thought in mind, it is natural for Kama desire to arise in physical form. Some people have conception that if one completely enjoys Kama then one gets rid of it.May be this fact can apply to other aspects but it is not possible in the case of Kama. In Manu Smriti it has been said regarding it that
Na Jaatu KamahKamanamupbhogenShaamyati HavishKrishnvatmairevBhooyEvaabhivardhete It is not possible to get riddance from Kama by fully enjoying Kama. The way, fire ignites much more upon putting ghee in it, same applies to Kama. Then its remedy is that this energy should be transformed. Third aspect related to Kama is Samadhi. State of Samadhi means that person loses himself completely in one’s own self and there is no other act than thinking about Brahma. Upon rise of mental thoughts, physical act takes place and physical sex act lead to decay of sperm. To stop decay of sperm, there is description of Brahmacharya in Yog. Brahmacharyapratishthaayam Veerylaabhah Shri Patanjali has written in his Sootra that Pratishtha of Brahmacharya lead to sperm-benefit. Even after knowing ability of sperm, person is oblivious of its ability. It is the life-giving fluid which can give birth to novel creation so healthy body in life and attainment of long life is definitely possible. There is significance of Brahmacharya in both Yog and Tantra and there is mention of same state in both of them. Sperm should be accumulated and purified and then its solid form should be changed to liquid form and subsequently it should be transformed in gaseous form. After transformation to gaseous state, sperm spreads completely in whole body and every atom of body is filled with sperm. Every part of human body attains the ability of creation and he definitely becomes master of various types of siddhis.
In Ashtaang Yog, under Niyam there have been told 8 types of following Brahmacharya. They have not merely said indulging in sexual act to be the non-following of Brahmacharya rather they have also advised sadhak to remain away from all such aspects by which person can fall. Thoughtprocess, sweet talks, scenes and staying with female in lonely place are included within it. Side by side, doing yogic procedures in correct way under direction of capable sadhak also lead to transformation of accumulated sperm. This is called yogic Brahmacharya. Now what is Brahmacharya in Tantra, let’s discuss it. The procedure which is done in Yoga through the medium of body, the same procedure is done in Tantra through combination of Mantra and procedure. Following Brahmacharya in Tantric sadhna and anushthan is essential. Thinking behind it is as follows. At the time of Ang pooja (worshipping parts of body), activation, establishment and poojan of Devta present in body is done.Therfore, Devta are activated at such time and they remain conscious in his body for fulfilling wish of sadhak up till end of Anushthan. If sadhak ignores his aim, gets attracted towards pleasure and indulges in such acts, they became angry and sadhak’s wish is not fulfilled. Kama energy of sadhak is connected to Kundalini. In middle of it, the sequence which is moving upward, it starts moving downward and Kundalini which is moving upward, it returns and gets situated in Muladhaar. Sperm is life-giving fluid; it was getting purified through mantra and procedures and through heat created by energy of mantras, its impurities are vanished and its transformation takes place. This activity stops when
person indulges in sexual act during anushthan or prayog time and purified sperm comes out. Rare Maarg like Vaam Maarg or Kaul Maarg completes all these activities through Kama energy but they defend their sperm definitely. For taking sperm out of the body, there is no need for them to indulge in sex and they have complete control over this procedure that they can take out sperm without being sexual and pull it back. In anushthan or prayog when sadhak is said to follow Brahmacharya then it means that defending sperm by not indulging in sexual act. There is no harm if sadhak does it after anushthan or prayog. Tamsik food and Tamsik conduct is also therefore prohibited in sadhna because this type of food increase Kama intensity .Therefore more the sadhak eats Satvik food, better it is for him. ===========================================
चर इसत ब्रह्मचयं || ब्रह् की तरफ चलना या ब्रह् यि ु ाअचरण करना यही ब्रह्चयव है. ब्रह्चयव साधना जगत का एक बहुत ही ाअर्श्यक ाऄांग माना गया है. र्ेदोि र्णावश्रम से ले कर योग तथा ताांमत्रक मागव में ाआसका प्रायाः सभी जगह पे ाईल्लेख ममलता है. ाऄथावत सभी मागव और पक्ष का सबांध ब्रह्चयव से है. ब्रह्चयव का ाईद्देश्य मसफव और मसफव साधनात्मक पक्ष में ाईन्त्नमत नहीं है र्रन ाआसे जीर्न के भौमतक क्षेत्र से भी जोड़ा गया था. ाऄथर्वर्ेद, योगाईपमनषद तथा मनस्ु ममृ त जेसे परु ातन ग्रांथो में ाआसका ाईल्लेख होना यह प्रमाण है की यह र्ेदोि ाअचार है. सर्व प्रथम यह बात को समजना ाअर्श्यक है की ब्रह्चयव का पालन करना क्या है? मनष्ु य जीर्न के चार पक्ष है धमव, ाऄथव, काम तथा मोक्ष. ाआसमें कामपक्ष का ाऄथव है काम ाईजाव का योनय रूप से सञ्चालन कर के जीर्न में पणू व सख ु तथा भोग की प्रामप्त करना. काम तत्र् का व्यापक ाऄथव है जीर्न में ाअकषवण तत्र्, सौंदयवतत्र् तथा माधयु व से सबांमधत सभी नैमतक मिया को पणू वता पर्ू वक जीना.
र्ैमदक र्णावश्रम में ब्रह्चयव धमव का पालन का ाऄथव होता था काम ाईजाव के ाउपर मचांतन ना करते हुर्े मर्मर्ध ज्ञान को प्राप्त करना; जब यह धमव में पणू वता प्राप्त हो जाती थी, ाईसके बाद व्यमि को गहृ स्थधमव का पालन करने का ाअदेश होता था. ाऄताः यहााँ पर भी धमव का ाऄथव र्ही है धारयमत साः धमव. ाऄथावत मजसे धारण मकया जाए र्ह धमव है. मर्शेष मनयमों का पालन करते हुर्े मर्शेष मिया और ाईद्देश्य की तरफ गमतशील होना ही धमव है मजससे ाअत्मोन्त्नमत सांभर् हो. ाऄब यहााँ पर चचाव यह है की ाअमखर काम को ाआतना दबाया क्यों गया या जाता है? सर्व प्रथम यह समजा जाए की काम कोाइ काममवक िम या प्रमिया नहीं है, काम मनष्ु य को प्राप्त हुाइ शमि है. मजसके बारे में परु ाण का कथन यह है की परुु षशमि कामदेर् तथा स्त्रीशमि रमत है. तथा यह शमि एक दसू रे से प्राकृमतक रूप से ाअकषवण बद्ध है क्यों की परुु ष काम शमि घनात्मक तथा स्त्रीकाम शमि ाऊणात्मक है. काम शमि का ाईपयोग मनष्ु य मतन रूप में कर सकता है. शारीररक ाअनांद के द्वारा ाअत्मसांतमु ष्ट सांतानोत्पमत तथा र्ांश मर्कास समामधाऄर्स्था की प्रामप्त काम की प्रथम प्रमिया, कमोमदक ाअनांद की प्रामप्त मनष्ु य ाऄपने शारीररक तथा ाअमत्मक सतां मु ष्ट के मलए करता है, शरीर की सरां चना कुछ ाआस प्रकार से है की र्ह ाआस िीडा के द्वारा मनष्ु य को ाअत्मसांतमु ष्ट की प्रामप्त करर्ा शमि है. मद्वतीय मिया सांतानोत्पमत तथा र्ांशमर्कास भी सख ु भोग तथा ऐश्वयव की श्रेणी ही है, सांतान सख ु के माध्यम से व्यमि ाऄपनी ाअकाांशाओ की पमू तव कर सके तथा योनय सतां ान की प्रामप्त कर ाऄपने तथा कुल के गौरर् का मर्कास कर सके ाआस मलए यह पक्ष भी ाऄत्यमधक ाअर्श्यक ाऄगां मन गया है. ाआस प्रकार की दोनों मिया में पणू वता से ाअनांद की प्रामप्त के मलए तथा ाआससे सबांमधत रोगों की मनर्मृ त के मलए हमारे परु ातन ाऊमषममु नयों ने ाऄत्यमधक खोज की थी तथा ाऄपने ाऄनभु र्ों को जनमानस के मध्य रखा था, कामसत्रू , रमतरहस्य, ाऄनांगरांग जेसे काइ परु ातन ग्रन्त्थ जीर्न के ततृ ीय पक्ष काम को पणू व रूप से जीने के मलए ाआसी कड़ी में रचे गए थे लेमकन ाऄफसोस की बात है की ाअज के यगु में ाआसको तांत्र का नाम दे मदया गया है जब की यह तांत्र के नाम पर मात्र ममथ्या भ्रामन्त्त के ाऄलार्ा और कुछ नहीं है.
ाआन दोनों प्रमिया में जो मल ू है, जो ाअधार है, र्ह जीर् िव्य है. प्राकृमतक रूप से यह जीर् िव्य शरीर से बाहर ाअही जाता है यह प्रकृमत की सरां चना ही है, क्यों की र्ीयव का सग्रां ह करने पर मनष्ु य तीसरे िम और बढ़ सकता है. लेमकन काम तत्र् से ममु ि मनमित रूप से ाऄत्यमधक कमठन है, ाआसको दबाया जा सकता है लेमकन ाआसे नाश नहीं मकया जा सकता. काममक मिया सर्व प्रथम ममस्तष्क में होती है जो की ाअगे शरीररक रूप में परार्मतवत होती है. ाऄगर शारीररक रूप से ाईसे मनयत्रां ण भी कर मलया जाए तो भी मानमसक रूप से ाईसे मनयमां त्रत करना ाऄत्यमधक कमठन है, ाआसी प्रकार मानमसक रूप से करना सहज हो जाये लेमकन एक बार भी मर्चार मन में प्रर्ेश करने पर शारीररक रूप से काम तमु ष्ट की मनसा ाअना स्र्ाभामर्क है. काइ व्यमियो की धारण यह होती है की काम को पणू व रूप से भोग मलया जाए तो ाईससे ममु ि ममल जाती है, लेमकन यह तथ्य सायद दसू रे पक्षों पर लागु हो काम के मर्षय में यह सभां र् नहीं है. ाआस पर मनस्ु ममृ त में कहा गया है न जात कामः कामानामपभोगेन शाम्यसत हसवष कृष्णवत्मैव भयू एवासभवधजते काम का ाईपभोग कर लेने से काम से ममु ि सांभर् नहीं है, मजस प्रकार ाऄमनन में घी डालने पर ाईसकी ज्र्ालाएां और बढ़ जाती है काम भी ठीक र्ैसे ही है. तब मफर ाआसका यह ाईपाय है की ाआस ाईजाव का रूपाांतरण मकया जाए. ततृ ीय पक्ष जो की काम से सबांमधत है र्ह है समामध. समाधी ाऄर्स्था का ाऄथव है मनष्ु य ाऄपने ाअप में पणू व रूप से मलन हो जाये तथा ाईसे ब्रह् मचांतन के ाऄलार्ा और कोाइ और मिया न हो. मानमसक मर्चार ाईठने पर शारीररक िम होता है और शारीररक काम िीडा होने पर र्ीयव का क्षय होता है. र्ीयव का क्षय रोकने के मलए योग में ब्रह्चयव का मर्र्रण है. ब्रहमचयजप्रसतष्ठायाुं वीयजिाभः श्रीपतजां मल ने ाऄपने सत्रू में मलखा है की ब्रह्चयव की प्रमतष्ठा से र्ीयवलाभ होता है. र्ीयव की क्षमता के बारे में मनष्ु य जान कर भी ाऄनजान है, यह र्ह जीर् िव्य है जो की नतू न रचना को जन्त्म दे सकता है तो जीर्न में मनरोगी काया तथा दीघव ाअयष्ु य की प्रामप्त तो मनिय ही सभां र् है. योग तथा तत्रां दोनों में सामान रूप से ब्रह्चयव का महत्त्र् है तथा दोनों में एक मस्थमत के बारे में ाईल्लेख है
र्ीयव का सांग्रह कर ाईसे शोमधत मकया जाए तथा घन में से तरल प्रर्ामह स्र्रुप और ाईसके बाद ाईसका रूपाांतरण र्ायु में करना चामहए. र्ायु रूप में रूपाांतरण होने पर यह जीर् िव्य शरीर में पणू व रूप से फ़ै ल जाता है तथा शरीर का प्रत्येक कण जीर् िव्य से यि ु हो जाता है, मनष्ु य के शरीर में सभी ाऄांग में सजवन करने की क्षमता ाअ जाती है तथा र्ह मनिय ही काइ प्रकार की मसमद्धयों का स्र्ामी बन जाता है. ाऄष्टाांग योग में मनयम के ाऄतां गवत ब्रह्चयव का पालन के ाअठ भेद बताये है, ाईन्त्होंने मात्र काम िीडा में सल ां नन होने से ब्रह्चयव व्रत का खडां होना नहीं कहा है बमल्क ाआसके साथ साथ ऐसे सभी तथ्य से भी साधक को दरू रहने की सलाह दी है मजसके माध्यम से व्यमि पमलत हो सके मजसमे मचांतन, मधरु र्ातावलाप, िश्य, एकाांत में स्त्री के साथ र्ास ाआत्यामद साममल है. ाआसके साथ ही साथ दसू री योमगक मियाओ ां को योनय रूप से योनय साधक के मनदशवन में करने पर सगां हृ ीत र्ीयव का रूपाांतरण होने लगता है. यह योमगक ब्रह्चयव कहेलाता है. ाऄब तांत्र में ब्रह्चयव क्या है ाआस पर चचाव करते है. योग में जो मिया शरीर को माध्यम बना कर की जाती है, र्ह मिया तांत्र में मन्त्त्र तथा प्रमिया के सांयोग से की जाती है. ब्रह्चयव का पालन ताांमत्रक साधना तथा ाऄनष्ठु ान में ाऄमनर्ायव कहा गया है ाईसके पीछे के कुछ मचतां न ाआस प्रकार है. ाऄगां पजू ा के समय शरीर में मस्थत देर्ता का जागरण, स्थापन, पजू न होता है ाआस मलए देर्ता ाआस समय में जागतृ होते है तथा साधक के ाऄभीष्ट के मलए ाईसके शरीर में जब तक ाऄनष्ठु ान चलता है चेतना र्ान रहते है. ाऄगर साधक ाऄपने लक्ष्य को नज़र ाऄांदाज़ कर भोग र्मृ त से ाअकमषवत हो कर भोग करता है तो देर्ता कुमपत होते है तथा साधक का ाऄभीष्ट सम्प्पन नहीं हो पता साधक की काम ाईजाव कुण्डमलनी के साथ सांयोमगत रहती है. ाआस दरममयान शारीररक भोग करने पर र्ह िम ाईध्र्वमान होता है र्ह र्ापस मनचे की और ाअने लगता है तथा कुण्डमलनी जो ाउपर की और बढ़ने लगती है र्ह र्ापस मल ू ाधार में मस्थत हो जाती है र्ीयव जीर् िव्य है, मत्रां तथा प्रमियाओ से ाईसका शोधन होता रहता है तथा माांमत्रक ाईजाव से मनममवत ाउष्मा से ाईसकी ाऄशमु द्ध दरू हो कर ाईसका रूपाांतरण होने लगता है. व्यमि के ाऄनष्ठु ान में या प्रयोग काल में काम िीडा में सांमलप्त होने पर र्ह प्रमिया ाऄटक जाती है, तथा शोमधत र्ीयव बाहर ाअ जाता है.
र्ामपांथ या कौलमागव जेसे दल ु वभ पांथ काम ाईजाव के माध्यम से ही ाआन सभी मियाओ ां को पणू व कर लेते है लेमकन ाऄपने र्ीयव की रक्षा मनमित रूप से करते है, र्ीयव को शरीर से बाहर मनकालने के मलए ाईनको मकसी भी प्रकार से काममलप्त होने की ाअर्श्यकता नहीं होती तथा ाआस प्रमिया पर ाईनका पणू व मनयांत्रण होता है की र्ह र्ीयव को मबना कामोमदत हुर्े शरीर से बाहर मनकाले तथा र्ापस ाऄांदर मखचां ले. ाऄनष्ठु ान में या प्रयोग में साधक को ब्रह्चयव का पालन करने के मलए कहा जाए तो ाईसका ाऄथव है काम िीडा में मलप्त ना हो कर ाऄपने र्ीयव की रक्षा करना. ाऄनष्ठु ान के बाद या प्रयोग के बाद साधक ाआस प्रकार की मिया करे तो दोष नहीं लगता है. ताममसक ाअहार और ताममसक ाअचरण भी ाआसी मलए साधना में र्ज्यव होता है क्यों की ाआस प्रकार का भोजन काम ाईद्वेग को और बढ़ा देता है. ाआस मलए मजतना सामत्र्क ाअहार ग्रहण मकया जाए ाईतना साधक के मलए ाईत्तम रहता है. EASY SADHNAS OF TANTRA WORLD FOR SOLVING YOUR PROBLEM………THEN WHY TO WORRY ??? जग
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He Ree Main ToKhojat Khojat Haari….. Peer Tabhi Mitegi Jab Vaidya Sawaliya Hoye…
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(I have searched ,searched and searched and failed. Problems will be solved only when Vaidya is my lover) Is there only one pain……or problem then…….But no, if we look at our today‟s life then we see only pain and pain. Otherwise if someone is healthy in true respect….if someone is happy then why he will need someone………but for today‟s human even if the Vaidya (Ancient Indian doctors) become your lover , then also how farthey will be capable of solving the problem……. Sadgurudev has said multiple times during the moments of happiness that problem will definitely come .One will go then other will come ….. If we are Purush (competent men) ….because challenges only come in purush‟s life. But if we have the power of sadhna, then why should weworry. And such is the amazing mathematics of life that today not only a common man, but if we see high-class person also, then it seems that leaving apart some of his achievements,problems , pain. Betrayal and loss are the only earnings of his life. And this is the truth of today‟s life. We can‟t run away from this fact. Today, even after doing so much of hard-work in our life, we are not able to progress in our profession. Husband or wife has chosen the wrong path and the one who are trying to bring back his/her life partner on right path, other person is not willing to understand. Code of conduct presented by many among the today‟s generation as a result of their directionlessness, decline in moral values and nearly perished life –values is the main reason for the stress in the whole family. Worst results of our children in sphere of knowledge. No child in some family despite the fact that both husband and wife are completely healthy. Either we are suffering from various diseases or some of our loved ones from our family. Even after trying very hard, our highly educated sons/daughters are not able to do business or job. Instead of getting cooperation from our brothers/sisters or our high-level officials, we are only getting animosity.
The capable person/ son/daughter/brother/sister of our family who are in their age of marriage, we are not able to find the suitable candidate for him/her as life partner. We are not able to attain the person whom we see as our desired life-partner. Sometimes our family member or sometimes other reasons come between us and our desired life-partner. Coming of such obstacles in our home or family or business which are more or less impossible to comprehend…..which we can say as curse If someone has done some tantra prayog on our family, then what can we do now. Continuous occurrence of disastrous incidents in our family one after the other Continuous ill-fortune/ failure in every field…. Not getting success in job-interview Either not able to choose the desired profession or not getting success in it. Due to planet-obstacles or other evil, fights in our life or occurrence of other incidents. And these are such problems which today every person has to struggle against but for how long he can bear it.But he does not have any other solution also……and in such a condition …..Whether the person believes in sadhna world or not…….runs in all directions And to take benefit from such attitude/mentality, there is market full of persons who fulfill their own aims in the name of Tantra. Some of them might be right also but there is no shortage of the adulterer and the person having contemptible mentality who commits fraud in the name of Tantra. And they suggest solutions like…. Either they suggest such big anushthan that all the earnings of common person is finished in it and in case of person not getting the benefit, any arbitrary reason is cited. Or he is advised to wear such precious gems that he has to loose so much of money for acquiring it. Or Suggesting purchase of costly yantra and rosary
But in spite of doing all these, if no appropriate solution is found to the problem, then it is quite natural for person to feel depressed. And if we, with full concentration, find the cause of all this then it is *********we ourselves*****.We have become such that we want to accomplish our work by giving money for doing anushthan or some other reason. We will not do hard-work. Just we directly get the solution…everything should automatically become fine….We should not do anything. Just we have given the money….in such hope we sit idle. One would hardly be amazed to find his own story among the various fraud-stories coming in newspapers. Sadgurudev has taught us the path of sadhna. He has put forward this divine path in front of us….and trust it that it is as precise as we find it while reading. But if we make laziness as our life then what one can say. Inclination of you all towards sadhna and you all doing June month sadhnas or other sadhnas and the results which you have told on Facebook or personally certainly increases our enthusiasm multiple times. So we all have thought a lot on this matter that why not……We should do something so that our brothers and sisters are saved from frauds occurring in the name of doing repeated anushthan , are saved from cheating , saved from frauds in the name of Tantra….. Sadgurudev has made us all self-dependent……..has told us to be so…….then why not we do it ourselves…..because in the name of anushthan …….or by citing other reasons, for how long one can purchase sadhna articles…..how much one can spend …..Because in this costly era, how common person lives the life, everyone knows it. For this, one chamber (Prakoshth in Hindi) has been made under NPRU by which your problems will be solved. But for getting benefits out of it, you have to either provide us the authentic birth time and horoscope or authentic photo of your palm in which lines are clearly visible. Also write in detail about the one or two problem whose solution you want. And before sending the e-mail, clearly make up your mind to do the sadhna.Beacuse we are not sending any anushthan or sadhna arbitrarily for solving your problem rather your authentic horoscope or palm photo will be studied, your problem will be understood and then only you all will be sent sadhna process which will be beneficial for you .But Only when you will do the sadhna with full dedication.Therfore you all will have to do sadhna with full devotion.
And in this sadhna, no costly yantra, rosary or sadhna article will be used rather the things which you can find easily in your home or nearby, are used. And if any yantra has to be used then you can make it yourselves. Because keep in mind that If there are cumbersome sadhnas in tantra then for getting desired results, there are easy process too. And our aim is that the easiness of Tantra should reach all. Therefore, for it, No costly procedure or difficult procedure should be told like so many lakhs of mantra Jap is necessary. Nothing of such kind…. Meaning of it is crystal clear that …..if you want to become active…if truly you want to solve your problem by doing sadhna yourselves, getting rid of erstwhile laziness…….to become self-dependent…and do not want to look for solution by bowing in front of others… If you are ready to do sadhna……with full dedication then we are also with you. We will tell you the complete sadhna process which has been tested multiple times from ancient times and when you will do it with full trust …..Then definitely by the blessings of Sadgurudev, you can take your life to higher pedestal by getting rid of your problems. Now it is for you to understand whether you want to sadhna which does not have any big anushthan, which does not need any costly sadhna articles….no cumbersome process and get the solution Or.. Keep on wasting precious time and money and keep on finding someone who will do everything for you…… But keep one thing in mind …….Disciple of Sadgurudev will neither be poor nor inferior. Ifanyone considered himself to be so, then it‟s all together a different thing. In Reality, disciple of Sadgurudev, whatever the condition may be, will do karmas and take his life to higher pedestal. And when today we, your brothers and sisters….we are ready to do maximum we can, we are in front of you. One complete chamber has been created …….will you still think or will do sadhna yourself and find the solution ….. So whatever may be your problem, please send it to
[email protected] will send the suitable sadhna to you as early as possible and keep in mind that this whole arrangement is totally free of cost for you all.
No known or unknown charges will be charged in this respect…… Now you yourself have to choose the sadhna-path for solving your problem. And that too when your own brothers and sisters are doing this work of assisting you solve the problem free of cost. We do not say that your problem will be uprooted or it will do something which is not in your fate. Becausefate is made only by Sadgurudev .But One thing is definite that if even one percent of benefit is in your fate, then sadhna can increase that one percent multiple times. And is there is case of complete loss, and then it can minimize the possible loss to negligible proportions. Is this not auspicious information, so make up your mind to do sadhna …..And we all NPRU TEAM MEMBERSare with you……..============================================== हे री मैं तो खोजत खोजत हारी .. पीर तभी ष्टमिेगी जब वैद सबष्टलयाहोय .... पर कोई एक पीर मतलब पीड़ा ..या वेदना हो तो तब न ...आज के जीवन मे ध्यान से देखें तो ष्टसिग पीड़ा ही पीड़ा कहीं ज्यदा कदखती हैं .अन्यथा अगर कोई सही अथो मे स्वस्थ हैं ...कोई प्रसन्न हैं तो उसे कहााँ कोई याककसी की जरुरत ...पर आज के मानव के ष्टलए तो बैद सवाष्टलया हो भी जाए तो वे भी कहााँ तक और ककतनी समस्या दूर करें गे .... सदगुरुदेव ने बहुत बार प्रसन्नता के क्षण मे कहा की समस्याए तोआयेगी ही .एक जायेगी तो दूसरी आएगी ....अगर हम पुरुष हैं तो ,.क्योंकक पुरुष के पास ही तो चुनौष्टतया आएगी ही .पर अगर हम मे या हमारे पास साधना का बल हैं तो इसने क्या घबराना . औरजीवन का अद्भूत गष्टणत की आज का सामान्य सा ही व्यष्टक्त नही बष्टकक उच्चस्थ व्यष्टक्त के पास भी कई कई बार ऐसा लगता हैं की उसकी कु छ उपलष्टब्धयाुं की बात छोड़ दे तो के बल परे शानी ..तकलीि..समस्या ..धोखा ..हाष्टन ही इस जीवन मे उसने कमाई हैं . और यही आज की सच्चाई हैं भी .हम इससे अपना मुख नही मोि सकते हैं . आज हमारे जीवन मे ककतनी मेहनत करने के नही हो रही हैं .
बाद भी हमारी अपने व्यवसाय मे उन्नष्टत
पत्नी या पष्टत कु मागी हो रहे हैं और जो अपने जीवन साथी को सही मागग पर लाना चाहते हैं ,वे उनकी बात ही नही मानते .
आज की पीढ़ी मे से अनेको ने कदशा हीनता और सुंस्कार हीनता और लगभग समाप्त से होते जीवन मूकयों के कारण जो आचरण प्रस्तुत ककया हैं / कर रहे हैं पुरे पटरवार के तनाब का कारण हैं . हमारे अपने बच्चो का ष्टशक्षा मे ष्टनम्न से ष्टनम्न पटरणाम लाना . ककसी पटरवार मे कोई भी सुंतान का न होना जबकक पष्टत पत्नी दोनों पूरी तरह से स्वस्थ हैं . अनेको बीमाटरयों से या तो हम खुद ग्रस्त हैं या हमारे पटरवार का कोई भी हमारा ष्टप्रय . कोष्टशश करके भी उच्च ष्टशक्षा प्राप्त हमारे पुि पुिी अपना व्यवसाय या नौकरी नही पा रहे हैं . हमारे अपने भाई बष्टहनों से हम या उच्चष्टधकाटरयों से हम कोई सहयोग नही वरन शिुता ही पा रहे हैं . हमारे पटरवार के योग्य व्यष्टक्त /पुि/ पुिी /भाई /बष्टहन को जो ष्टववाह की आयु प्राप्त हैं कोई भी उनके जीवन साथी हेतु योग्य पाि नही ष्टमल पा रहा हैं . हम अपने मनो वाुंष्टछत जीवन साथी के रूप मे ष्टजसे देखते हैं .उसे नही पा रहे हैं .कभी पटरवार वाले तो कभी अन्य कारण सामने आकर खड़े हो जाते हैं . हमारे घर या पटरवार या व्यवसाय मे कु छ ऐसी वाधाए आना. ष्टजनको समझना लगभग असुंभव सा ..ष्टजन्हे हम अष्टभशाप्त्िता भी कह सकते हैं . पटरवार मे अन्य जगह ककसी तुंि प्रयोग ककसी मे हम पर ककया हो. पर अब क्या करें . पटरवार मे लगतार ष्टवघिनकारी या दुखदायी घिनाओ का एक के बाद एक होते जाना . लगातार
भाग्यहीनता /हर क्षेि मे असिलता का
बने रहना ..
नौकरी हेतु साक्षात्कार मे सिलता न पाना . मनोवाुंष्टछत व्यवसाय का न चुन पाना या उसमे सिल हो पाना ग्रह वाधा या अन्य दोष के कारण हमारा जीवन मे कलह या अन्य घिनाये
होते जाना .
औरये तो ऐसी समस्याये हैं ष्टजनसे आज हर व्यष्टक्त को जूझना ही पड़ता हैं पर कब तक वह ष्टसिग सहन कर सकता हैंपर उसके पास कोई उपाय भी तो नही .औरऐसी ही .अवस्था मे वह ....किर चाहे व्यष्टक्त साधना जगत पर ष्टवश्वास करता हो या नही भी हो ...चारों तरि दौड़ लगाता हैं .
और उसकी इसी मानष्टसकता का िायदा उठाने के ष्टलए चारो ओर तुंि के नाम पर अपना मकसद पूरा करने के ष्टलए लोगों सेमानो आज पूरा बाजार भरा पड़ा हैं .इनमे से कु छ सही हो भी सकते हैं पर तुंि के नाम पर ठगी, धोखा करने वाले.व्यष्टभचाटरयों.और कु ष्टत्सक मानष्टसकता वाले तो आज कहााँ कहााँ नही हैं. और सलाहे भी ऐसी की .... या तो इतना बड़ा अनुष्ठान बताकदया जाता हैं कक सामान्य व्यष्टक्त की पूरी जमापूुंजी उसी मे समाप्त.और िायदा न होने पर कोई भी कारण ष्टगना कदया जाता हैं . या किर ऐसे महुंगे रत्न पष्टहनने के ष्टलए कहा जाता हैं ष्टजसको खरीद् पाने के ष्टलए उस सामान्य को न मालूम ककतना धन से हाथ धोना पड़े . या इतने महुंगे यन्ि माला खरीदने के ष्टलए कहा जाना . पर जब इन सब के बाबजूद हल न ष्टमले समस्या का समुष्टचत समाधान न ष्टमले तो व्यष्टक्त का ष्टनराश हो जाना स्वाभाष्टवक सा हैं . और इसका अगर बहुत ध्यान से कोई कारण खोजा जाए तो वह हैं**** हम स्वयम****हमकु छ ऐसे बन गए हैं की ककसी को भी अनुष्ठान के नाम पर या ककसी अन्य कारण से धन देकर कायग करवाना ही है,हम मेहनत नहीं करें गे बस सीधे हमें हल ष्टमल जाए .सब कु छ स्वयुं ही हमारे मनोकु ल हो जाए ..हमें कु छ न करना पड़े. बस धन राष्टश दे दी ..इस लाल च मे बैठे रहते हैं और अखबारों मे आने वालोंअनेको धोखा धिी की कहानी मे से कभी हमारी भी एक कहानी आ जाये तो .क्या आश्चयग . सदगुरुदेवजी ने हम सब को साधना का रास्ता बताया .यह कदव्य मागग हमारे सामने रखा ..और सच माने आज भी यह सब उतना ही सिीक हैं ष्टजतना पढ़ने मे लगता हैं .पर अगर हमने आलस्य को ही जीवन बना रखनाहैं तब क्या कहें. आप सभी का साधना के प्रष्टत रुझान और जून मास के ष्टलए दी गयी साधनाओ को और अन्य साधनाओ को आपने ककया और आपके पटरणाम जो आपने हमें िे सबुक या व्यष्टक्तगत रूप से बताये. वह तो हमारे उत्साह को कई कई गुणा बढ़ाते हैं .
तो हम सभी ने इस बात पर बहुत सोच ष्टवचार ककया की क्यों न ..हम कु छ ऐसा करें की हमारे अपने ही भाई बष्टहन बार बार अनुष्ठान करवानेके नाम पर होने वाले कई धोखों से बचे,धोखा धड़ी से बचे ,तुंि के नाम पर ठ गी करने वालो से बचे ..... सदगुरुदेव जी ने तो हमें आत्म ष्टनभगरबनाया हैं ...बनने को कहा हैं ....तो क्यों न वह स्वयम ही यह सब हम करें ...क्योंकक अनुष्ठान के नाम पर या ..ककसी ओर कारण ष्टगना ष्टगना कर आष्टखर ककतने बार कोई साधना सामग्री खरीद सकता हैं ..ककतना खचग कर सकता हैं..क्योंकक आज के इस महगाई के युग मे .कै से ककसी सामान्य व्यष्टक्त का जीवन चलता हैं वह हर कोई जानता ही हैं . इस हेतु हमने NPRU के अुंतगगत एक प्रकोष्ठ बनायाहैं ,ष्टजसके माध्यम से आपकी समस्याए का समाधान ककया जायेगा . पर इसका लाभ उठाने हेतु आपको या तो अपना प्रामाष्टणक जन्म समय और जन्म चक्र या अपने हाथ का प्रामाष्टणक िोिो ष्टजसमे रे खाए स्पिता से कदख रही हो. और ष्टजस समस्या का आप अभी समाधान चाहते हैं उस एक या दो समस्या के बारे मे ष्टवस्तार से ष्टलखे. और अपने इ मेल भेजने से पहले अपना मानस साधना करने का अच्छी तरह से बना ले. क्योंकक हम कोई भी अनुष्ठान या साधना आपकी समस्या ष्टनवारण हेतु नही करने जा रहे हैं. बष्टकक आपकी समस्या .जान कर /समझ कर आपके िारा भेजे गए प्रामाष्टणक जन्म कुुं िली या हस्त रे खा ष्टचि से..अध्ययन करके .आपको एक साधना का ष्टवधान भेज कदया जाएगा. जो आपके ष्टलए अनुकुल ष्टसद्ध होगी / लाभदायक ष्टसद्ध होगी .पर तब जब आप यह साधना पुरे मनोयोग से करोगे.तो आपको मन लगाकर पूरी ष्टनष्ठा के साथ साधना करना ही पड़ेगी. और इस साधना मे कोई भी महुंगा युंि माला या साधना सामग्री नही लगना हैं बष्टकक घर मे आसानी से उपलब्ध होने वाली चीजे या जो आसानी से आस पास ष्टमल जाए ऐसी सामग्री का ही उपयोग हैं या कहीं पर कोइ युंि की बात आती हैं तो आप स्वयुं ही उसका ष्टनमागण कर सकते हैं . क्यूकुं क याद रष्टखये तुंि में यकद कटठनतम साधनाएुं है तो अभीि प्राष्टप्त के सरलतम ष्टवधान भी है और हमारा उद्देयय ही तुंि की सुगमता सभी तक पुंहुचाना है | अतः इस हेतु न ही कोई महुंगा प्रकक्रया या कटठन प्रकक्रया बताई जाये की इतने लाख मुंि जप अष्टनवायग हैं.ऐसा कु छ भी नही . इसका मतलब एक दम साफ़ हैं ..की अगर आप कमग शीलबनाना चाहते हैं .अगर सच मे आलस्य हिाकर खुद ही साधना करके सिलता पाकर अपनी समस्या का ष्टनराकरण करना
चाहते हैं ..आत्म ष्टनभगर होना चाहते हैं....और न ही ककसी के भी चक्करलगाकर...रोकर ष्टगि ष्टगिा कर...समाधान मागना चाहते हैं ... अगर आप साधना करने के ष्टलए तैयार हैं ..पूरी ष्टनष्ठा के साथ तो हम भी आपके साथ हैं .हम साधना ष्टवधान पूणगतया के साथ आपको बताएाँगे. ष्टजन्हें सनातन काल से बहुतेरे बार परखा गया है और जब आप उनको पूरी श्रद्धा ,ष्टवश्वास के साथ सुंपन्न करें गे ..तो ष्टनश्चय ही सदगुरुदेव जी के आशीवागद से हम अपने जीवन को इन समयायाए से मुक्त करके ....उच्च पथ पे ले जा सकते हैं. अब सोचना आपको हैं कक ..आपको साधना करके ,ष्टजसमे कोई बड़ा अनुष्ठान नही .कोई भी महुंगी साधना सामग्री नही ..न ही कोई कटठन ष्टक्लि ताम झाम रहेगा की उसे करके समाधान या हल प्राप्त करें .. या.. करते रहे अपने बहुमूकय समय ..धन की बबागदी .और् खोजते रहे ऐसी ककसी को जो आपके ष्टलए ...सब कु छ करदे .... पर इस बात का ध्यान रहे ..सदगुरुदेव का ष्टशष्य न तो दीन होगा न ही हीन होगा. अगर उसने खुद को मान ष्टलया हो वो बात अलग हैं. वास्तव मे सदगुरुदेव का ष्टशष्य तो हर हाल मे कमग शील बन कर अपने जीवन को उच्चता की ओर ले जायेगा . और जब आज हम आपके ही भाई बष्टहन ...हमसे ष्टजतना भी बन पड़े ,इसके ष्टलए आपके सामने हैं. एक पूरा प्रकोष्ठ बनाया हैं तब ...क्या आप अभी भी सोचुंगे .या कमर कस कर साधना कर स्वयुं ही हल प्राप्त करने के ष्टलए और समस्या का ष्टनवारण करने के ष्टलए तैयार...
तो जो भी आप की समस्या हैं उसे
[email protected] पर भेज दे .हम ष्टजतनी जकदी सुंभव होगा आपके ष्टलए उपयुक्त साधना ष्टवधान भेजेगे .और यह ध्यान मे रहे .यह सारी व्यवस्था आपके ष्टलए पूणत ग या ष्टनशुकक हैं . कोई भी ज्ञात या अज्ञात शुकक नही ष्टलया जायेगा इस सन्दभग मे ... अब आपको अपनी समस्या का समाधान के ष्टलए यह साधना का रास्ता खुद चुनना हैं .वह भी जब आपके भाई बष्टहन आपकी सहायता के ष्टलए यह समस्या समाधान का सारा कायग ष्टनशुकक कररहे हैं
हम यह तो नही कहते की आपकी समस्या पूरी जड़ से ही समाप्त हो जायेगी या आपके ष्टलए जो आपके भाग्य मे न हो वह यहकर देगी .क्योंकक भाग्य ष्टनमागण तो सदगुरुदेव के हाथों मे हैं .पर यह जरुर हैं की लाभ का यकद एक भी प्रष्टतशत यकद आपके भाग्य में है तो साधना उस एक प्रष्टतशत को कई गुणा बढ़ा सकती हैं .और यकद कहीं पूरी हाष्टन की बात उठ रही हैं तो उस सुंभाष्टवत हाष्टनको बहुत ही कम ना के बराबर कर सकती हैं. क्या यह शुभ सूचना नही हैं, तो आप साधना करने का मन बनाये ..और हम सभी NPRU TEAM MEMBERS यहााँ पर आपके साथ हैं ही . One important Information :: Regarding the seminar - Apsara Yakshini Sadhna which is going to held on 12 August 2012 in Jabalpur ::12 अग
2012
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Dear Friends, You all are well aware about the facts that whosoever belongs to Sadhna Field or the new entered Sadhak and Sadhikas soon get fascinate towards the Apsara Varg Sadhnas. And the reason is so clear,
Actually they seems to be very easy Total Count of mantra jap is very less, In this sadhnas no frills are required. No such fearful experiences happen. Sadhak/Sadhika gets fulfilment by wealth, health, prosperity and jewels. Sadhak/ Sadhika also get rid from all physical lackings. Sadhak/ Sadhika is free from aging or u can say the effect of age is very less on him/her.
Its like in Sadhak/ Sadhika‟s life is shower of love happens. In their lives there is no place for depression, pain and disappointment. You can get introduce to many other secretive para world. In Tantra World „Yakshini‟ is the main possessor of specific fields. Via her only one cn multiple his/her speed in tantra field. Via her help one can enter in other world. We all have heard Sadgurudev Immortal words many times in his Audios and Vedios. Sadgurudev ji cleared especially “Swarna Deha Apsara Cassetes” which is in two parts. If you will listen in carefull you may find Apsara Yakshini sadhnas are boon for life and high to high level of Yogi also understands the importance of doing this sadhna in life. These sadhnas should be interpreted as any sexual pleasure amplification or fruition. Sadgurudev ji has always put an example of Maharishis, Bramha rishis and gods while expressing the importance of this sadhna. And along with also told that us if you really want to understand the life, to remove the drab and to understand the sadhnas then you have to keep a healthy mind-set for otherwise no option is there. And no other sadhna can challenge this sadhna utility. And everything can be achieve in life by this sadhna. Even he also clear specifically that Mahavidhya Sadhnas cannot stand before this sadhna. Because they can give you everything but the very important point in life is „happiness‟ and this can be possible only and only via Apsara Yakshini sadhna. Not even by Jagadaamba Sadhna. Sadgurudev ji cleared the same in “Ravan Krut Divyangana Swarnaprabha Yakshini Sadhna”. And these sadhna are not only just for sake of utility but also can become their best friends and credibles. although married sadhak are little bit scared of it whether it may not create obstacle in their married lives. Beacause these are accomplished more easily in form of lover rather that any other, but in motherly and sisterly form also can be siddh. And sadgurudev ji had also cleared that they cannot harm you by any means rather would benefit you only. As this sadhna is that one which can convert the drab into monotony.
Love and affection cannot be measured in terms of desire; no one is unaware of the truths of marital lives. Everyone understands the lacking of love and affection in their own lives but also know that this thing that which cannot be demanded. Now this was about the importance of these sadhnas. And why it has to be done. Even if it is written many a times that this is very easy to do, get siddh in very few time but it has always been found written from those interested ones that at least someone should come forward to reveal such secret procedures to perform this sadhna. As the simplicity of these sadhna is welknown but everyone keep mum and other just wanders here n there. How many times have done this sadhna but the success is still invisible.. On other side there are those sadhak also who have seen glimpse of it but couldn‟t be able to complete it successfully. And whatever advices are given to sadhak, he do it blindly but still success is far away because Sadgurudev always keeps telling that whatever mentioned in magazine is just an introduction but those who seriously want to accomplish this sadhna need to know the desired Mudras, Sthapan Kriyas, Chaitanyikaran, Avahan mantras and many other secret processes should be learn otherwise in lacking of thse how success can be achieve. But how can we find out such facts…and nor any help is offered in this regard. We had launched a complete special issue via Tantra Kaumudi And in which many secret were disclosed with complete and clear information. And which was so much liked by all of you. Even before some time some more special sutras were published on blog regarding this. Therefore after thinking we have decided why not along with thinking on many other sadhnas… We must organised a special seminar in the same chain of Apsara and Yakshini sadhna. But this seminar would be organised In which a whole day will be spend on the same for discussion. all the secrets will be disclosed be it of Mudras, Mantratmak or tantratmak. Which special kriyas are used before and after and what type of preparation is required etc..
Along with that one 40/50 pages book “Tantra kaumudiYakshini and Apsara siddhi Rahasya” based only on these sadhnas secrets which will be given only to those who will attend this seminar personally.
For Yakshini and Apsara Sadhna the establishment of three Board is must. These Boards are just like Yantras, in which related Yakshin or apsara is established by sadhak him/herself. That will be provided.
How the Keelan Vidhan of Apsara and Yakshini by our own will be explained to you.
The Yantra and Booklet will be prepared only for those who have confirmed their seats on earlier basis.
This is how the whole seminar is going to happen only on Apsara Yakshini Sadhna and how to achieve success in it. And every one cannot participate in.... because this is not Free… Only one who get permission to participate in this seminar or the one who have can participate in this seminar, not for others, For participating candidates there are necessary rules and regulations after fulfilling it only can grant permission to achieve it. he/she has to give passport size photograph and any a copy of ID proof has to mail on
[email protected] and can know the rules and regulations regarding attending the seminar. Yes, who so ever wants to participate in this seminar.. is not required to fulfil the criteria of being dikshit by our Sadgurudev. But they has to fulfil these conditions.This is going to held on 12 AUGUST 2012 at Jabalpur (Madhya Pradesh) ============================================== ष्टप्रय ष्टमिो ,
आप सभी इस तथ्य से पटरष्टचत हैं की जो भी आज साधना क्षेि मे हैं या जो नए साधक साष्टधका का आगमन इस क्षेि मे होता हैं वह बहुत जकदी उसका रुझान यष्टक्षणी और अप्त्सरा वगग की साधनाओ की ओर हो जाता हैं इसका कारण बहुत ही स्पस्ि हैं की यह साधनाए बहुत सरल सी कदखाई देती हैं.
कु ल मुंि जप भी इन साधनाओ मे बहुत कम होता हैं .
इन साधनाओ मे कोई ज्यादा तामझाम भी नही होता हैं
साधनाकाल मे कोई भयावह अनुभष्टू त भी नही होती हैं.
साधक/साष्टधका
को धनधान्य, स्वाकदस्ि भोजन ,सुष्टवधा ,आभूषणों से यह आपूटरत
कर देती हैं
साधक के शरीरगत कष्टमया यह दूर कर देती हैं .
साधक /साष्टधका पर आयु का असर बहुत न्यून हो जाता हैं .पुनयौवन वान हुआ जा
सकता हैं .
साधक /साष्टधका के जीवन मे स्नेह प्रेम की मानो वषाग कर देती हैं .
साधक /साष्टधका के जीवन से अवसाद , दुःख या ष्टनराशा को कोसो दूर कर देती
हैं .
अनेको पराजगत के दुलभ ग गोपनीय रहस्यों से अबगत हुआ जा सकता हैं .
यष्टक्षणी ,तुंि जगत के ष्टवष्टशि ष्टवधाओं की आष्टधस्ठाथी होती हैं अतः उसके माध्यम
से तुंि क्षेि मे अपनी गष्टत कई कई गुणा बढ़ाई जा सकती हैं.
इनकी सहायता से अनेको लोको मे प्रवेश पाया जा सकता हैं .
हम सब ने सदगुरुदेव जी के अमृत वचन इन साधनाओ
को लेकर अनेको वीष्टियो और
ऑष्टियो के सेिस मे सुने हैं . सदगुरुदेव जी ने स्पस्ि ककया खासकर आप “स्वणग देहा अप्त्सरा के सेट्स” जो दो भाग मे हैं उसे ध्यान से सुने
तो आप पाओगे की उन्होंने कहा हैं की अप्त्सरा यष्टक्षणी साधनाए तो
जीवन का वरदान हैं और उच्च से उच्च कोटि का योगी भी इन साधनाओ को करने का अथग समझता हैं .इन साधनाओ कोई भोग ष्टवलास की वस्तु या काम भाव प्रवधगन की वस्तु नही
समझा जाना चाष्टहए .सदगुरुदेव जी ने अनेको महा ऋष्टष और ब्रह्म ऋष्टषयों और देवताओ के उदहारण दे कर इन साधनाओ के महत्त्व को समझाया .और बताया की अगर जीवन को समझना हैं ,जीवन की नीरसता को दूर करना हैं और अगर साधनाओ को समझना हैं तो इन साधनाओ के प्रष्टत एक स्वास्थ्य मानष्टसकता रखना होगाइसके अलावा और कोई रास्ता नही हैं कोई अन्य साधनाए इन साधनाओ की उपयोष्टगता को चुनौती नही दे सकती हैं .औरइस साधना मे जीवन मे सब कु छ पाया जा सकता हैं . यहााँ तक की उन्होंने बहुत स्पस्ि ककया की महाष्टवद्या साधना भी इनके समक्ष नही हो सकती हैं क्योंकक वह सब कु छ दे सकती हैं पर जीवन का सवागष्टधक महत्वपूणग हबदु “ आनुंद “ हैं वह के बल और के बल अप्त्सरा यष्टक्षणी साधना से ही सुंभव हैं .यहााँ तक की जगदम्प्बा साधना से भी सभव नही हैं .सदगुरुदेव जी ने “रावण कृ त कदव्याुंगना स्वणगप्रभा यष्टक्षणी “ साधना मे यही सब स्पस्ि ककया हुआ हैं और यह साधनाए न के बल साधक बष्टकक साष्टधकाओ के ष्टलए भी उतनी ही उपयोगी हैं .उनके ष्टलए एक पूणग ष्टवश्वस्त ष्टमि सहेली के रूप मे ष्टसद्ध होती हैं . हलाकक ष्टववाष्टहत साधको के मन मे इन साधनाओ के प्रष्टत एक भय सा रखता हैं की कहीं यह उनके गृहस्थ जीवन मे व्यवधान
तो नही कर देगी .क्योंकक यह प्रेष्टमका के रूप मे कहीं
आसानी से ष्टसद्ध होती हैं पर इन्हें मााँ और बष्टहन के रूप मे भी ष्टसद्ध ककया जा सकता हैं पर सदगुरुदेव जी ने स्पस्ि ककया हैं की कहीं से भी यह आपके जीवन मे व्यवधान नही बष्टकक एक सम्प्पण ू त ग ा ही
देगी .जीवन की नीरसता को एक सरसता मे बदल दे यह वह साधना हैं
. स्नेह और प्रेम को वासना के तुकय नही देखा जाना चष्टहये ,ष्टववाष्टहक जीवन की सच्चाईयाुं हम मे से ककसी से भी छु पी नही हैं .जो स्नेह और प्रेम की कमी हमारे जीवन मे हैं वह सभी समझते हैं पर सभी यह जानते हैं की माुंग के तो स्नेह या प्रेम नही पाया जा सकता हैं . यह बात तो हुयी की क्या हैं इन साधनाओ का महत्त्व.क्यों इनको ककया जाना चष्टहये .भले ही यह बार बार ष्टलखा जाये की यह साधनाए सरल हैं कम समय मे ष्टसद्ध हो जाती हैं पर हर ग्रुप मे हर जगह साधक यही ष्टलखते पाए जाते हैं कक कोई तो उन्हें ऐसा ष्टमले जो इन
साधनाओ की गुप्त रहस्य बता दे .क्योंकक इन साधनाओ की सरलता तो जग जाष्टहर हैं पर सभी मौन रख लेते हैं और अब साधक इधर से उधर भिकते रहते हैं . ककतनी ककतनी बार साधनाए कर चुके हैं पर साधना मे सिलता ष्टमलती कदखाई देती नही..तो वही ाँ कु छ हैं जो प्रारुं ष्टभक अनुभष्टू त से ककतनी कोष्टशश करने के बाद भी आगे नही बढ़ पाए . और जो भी सलाह दी जाती हैं वह साधक करते जाते हैं पर सिलता तब भी कोसो दूर . क्योंकक सदगुरुदेव कहते रहे की पष्टिका मे साधना जो दी जाती हैं वह तो एक
पटरचय माि ही रहता हैं ष्टजन्हें सच मे इस क्षेि मे सिलता पाना हो उन्हें आवययक मुद्राये,स्थापन कक्रयाए ,चैत्न्यीकरण अन्य आह्वान मुंि और अन्य गोपनीय प्रकक्रयाओं का को सीखना चाष्टहये अन्यथा इनके आभाव मे सिलता कै से हो सकती हैं .पर इन तथ्यों को कै से पता लगाए ... . नही इस सदभग मे कोई उसकी सहायता हो पाती हैं हमने तुंि कौमुदी एक पुरा महाष्टवशेषाुंक यष्टक्षणी साधना के ऊपर ष्टनकाला था और ष्टजसमे अनेको गोपनीय रहस्य पूणत ग ा के स्पस्ि ककये गए .थे यह अुंक आप सभी के िार बहुत प्रशुंष्टसत
रहा . कु छ समय पूवग इन साधनाओ के कु छ ओर
गोपनीय रहस्य ब्लॉग पर सूि रूप मे कदए गए थे . अतः अब हमने यह ष्टवचार कर ष्टनणगय ष्टलया की. क्यों न अलग अलग साधनाओ के बारे मे ष्टवचार करने के साथ ही साथ ...... हम एक ष्टवशेष साधना पर एक सेमीनार का आयोजन करे इसी श्रुंखला मे एक कदवससीय अप्त्सरा औरयष्टक्षणी साधना पर यह सेमीनार आयोष्टजत ककया जायेगा
उसमे एक पूरा एक कदवसीय सि आमने सामने बैठ कर इन साधनाओ की
ष्टवषद चचाग .
इसके गोपनीय रहस्य और गोपनीय मुद्राये और मुंिात्मक और तुंिात्मक
रहस्य सभी पूणत ग ा के साथ अनावृत कर कदए जाए . ककस ककस कक्रयाओं का प्रयोग इस साधना के पहले ककया जाता है और तैयारी क्या होनी चाष्टहए आकद
औरसाथ ही साथ एक ४० /५० पेज की पुस्तक “तुंि कौमुदी-यष्टक्षणी व
अप्त्सरा ष्टसष्टद्ध रहस्य” ष्टसिग इन्ही साधनाओ के इन्ही रहस्यों पर कें कद्रत करते हुये बनायीं जाये जो की के बल और के बल इस सेमीनार मे भाग लेने वालो को ही उपलब्ध होगी .
यष्टक्षणी व अप्त्सरा साधना के ष्टलए तीन ष्टवष्टभन्न मुंिलों का स्थापन अष्टनवायग होता है ,ये मुंिल यन्ि के ही आकार के होते हैं,ष्टजनमे सम्प्बष्टुं धत यष्टक्षणी या अप्त्सरा का स्थापन साधक स्वयुं ही करता है,उसकी उपलब्धता की जाए ... यष्टक्षणी व अप्त्सरा का कीलन ष्टवधान स्वयुं कै से युंिों के िारा ककया जाता है,उसका ब्यौरा कदया जाये . यन्ि व पुस्तक माि उतनी ही तैयार करवाई जायेगी,ष्टजतने सदस्यों का भाग लेना सुष्टनष्टश्चत होगा.
इस तरह से यह सेमीनार पूरी तरह से ष्टसिग अप्त्सरा यष्टक्षणी साधनाओ मे कै से सिलता पायी जा सके
इस पर ही कें कद्रत रहेगा ,और इस सेमीनार मे भाग लेना सभी के ष्टलए भी नही
होगा ....क्योंकक यह फ्री नही हैं . ष्टसिग ष्टजनको इस एक कदवसीय सेष्टमनार मे भाग लेने की पूवग अनुमष्टत ष्टमलेगी या ष्टजनके पास होगी ष्टसिग वही व्यष्टक्तत्व इसमें भाग ले पायेगे , .और ककसी अन्य को नही , भाग लेने वाले व्यष्टक्तयों के ष्टनयम की आवययक ष्टनयम और शते होगी ष्टजनको पूरी करने के बाद
ही वह इस सेष्टमनार मे भाग लेने के ष्टलए अनुमष्टत पा सके गा वह
पासपोिग साइज़ की िोिो ग्राि और कोई एक id की कॉपी इस मेल id
अपनी
पर भेज कर
ष्टनयमों और शतों की जानकारी
[email protected] पर सुंपकग करने पर उपलब्ध हो जायेगी . हााँ जो भी व्यष्टक्तत्व इस सेमीनार मे भाग लेना चाहे ..उसके ष्टलए वह हमारे सदगुरुदेव से ही दीष्टक्षत हो यह कोई आवययक शतग नही हैं .पर उन्हें अन्य शते तो पूरी करनी होगी .
यह एक कदवसीय सेमीनार
१२ अगस्त २०१२
को जबलपुर (मध्यप्रदेश )मे आयोष्टजत
होगा
****NPRU**** Posted by Nikhil at 2:49 AM No comments: Labels: TANTRA DARSHAN, TANTRA KOUMUDI BOOK INFRMATION
Monday, June 25, 2012 ESTABLISHMENT OF TANTRA –OUR ENDEAVOR (
-
र
)
“Om Aatma ParShivDwayo Guruh Shivah | Gurunaam SarvVishwMidam Vishv Mantren Dharyaam ||” Omniscience of soul can be known by only two elements Guru and Shiv. And these two elements are actually one, not two. Guru is present in entire universe as well as in Para World. That‟s why capability to imbibe all mantras in world can be attained merely by the blessings of Sadguru. Knowledge about attaining various dimensions of life is only possible by the blessings of Sadguru. And if capable Guru has taken you in his arms with affection then what is there which cannot be acquired. If we consider the activity of construction then only by combining planning, related
articles or medium and fixed arrangement, we can successfully accomplish the activity of construction. In other words ….. Planning - Mantra Related Articles, medium –Yantra Fixed or definite arrangement –Tantra If we pretty well imbibe this formula then failure will be very distant from us. How one can get success in middle of all these blows, broken dreams, betrayal of trust, unknown fear happening continuously in dynamics of life??? By taking assistance of sadhna path, not only we can save our dream from breakage but also we can get rid of throbbing pain of mind which has made deep inroads in to our soul. Sadhna is not a field to become inactive rather the one who has unlimited Praan energy, strong resolution power and mentality of not running away from hard-work, he definitely attains success. Because sitting for 10 minutes with concentration, without moving your body and with stable mind is not easily possible. We all want to achieve our aim. We want to include our name in class of successful persons, but is it that much simple……. No.As we move forward to achieve target, then one or the other obstacle comes to stop our way. Sometimes health of child Sometimes Financial problem Sometimes domestic disputes Sometimes fear of untimely death Sometimes weak self-strength Sometimes absence of stability Sometimes unknown fear Sometimes betrayal of trust Sometimes Tantra obstacle Sometimes face-off with unknown disease Sometimes mental anxiety Sometimes cobweb of hidden or manifest enemies Sometimes unwanted interference of government or officer Sometimes any of the person in home remaining afflicted with disease. There are hundreds of “sometimes” which not only deviates us from our life-path but also stops our progress….and from where we started……we
stay behind from that point also….then in later part of life what is left behind is only this that “ I can‟t do anything in spite of having desire and if circumstances would have been in my favor, I would not have been here today.” Probably no other subject had misconceptions about it in society, as there are about tantra. Whereas I have written above also that Living life or doing activity according to fixed arrangement is Tantra. Our old history has been very prosperous and that prosperity was with our ancestors merely due to this knowledge. We do not know this that we have come to Iron Age from Golden Age. The development which we are boosting of is without substance. And the reason behind it is merely this that we do not have knowledge about those padhati which guides one to success. Whenever any normal person or sadhak gets entangled in danger then he runs straight to so-called tantriks or astrologers and then starts the sequence of augmentation of his problems…….spending money on arbitrary remedies one after the other breaks the backbone of person and when he comes back, he is destroyed completely. And in the end he give this full episode the name of tantra and declare it as merely imagination. Half-knowledge is more dangerous than any enemy which does not yield anything except destruction. Therefore whatever we do, we should at least possess complete knowledge about it… I used to think very often that if when I got success then why my other brothers and sisters did not get it? Again when I analyzed then I understood that my passion was merely orders of Guru and no doubts arose in my mind regarding the sadhnas given by them. May be not in one attempt or two attempt, I got success in many attempts and when I got it, then I understood those keys by which success can be achieved in first attempt only. My endeavor is to give authenticity only to sadhnas and this vigyaan.This is the aim of me and “NPRU” i.e. “Nikhil Para Science Research Unit” that nobody gets betrayed in the name of it and bears the resulting financial, mental or physical problems. You only do sadhnas and make the dreams of family fruitful by your hard-work and positive energy. Do the sadhnas but not merely by diving deep into world of imagination rather side by side satisfy your family by
providing them all the facilities of materialistic life. You can at least take out 5 hours out of 24 hours for yourself. Isn‟t it…. Do not mislead yourself to these tantriks rather have full trust on knowledge given by Sadgurudev….he has told us to follow the path of truth. If we are deprived of truth then it is due to our faults or lack of knowledge only. You can do sadhnas and for it we have made efforts that your life can go on in orderly way and you do not get entangled in sometimes which are written above and just do sadhnas and do not waste your time ,money or piece of mind for these “sometimes”. For this, our NPRU team has started the construction activity of various kavachs along with other sadhna-centric plans. This is completely free of cost. Because most of my brothers and sisters are such that who by giving hidden support for paving the way for other brothers and sisters are continuously assisting us. With their support, our few plans have taken shape. And I consider it my responsibility to inform you that you can do the “Aura Mandal” test of this Kavach .After seeing it, you will automatically know what is the effect of authentic energizing ,activation and mantras on the Kavach and sadhna articles. Also with this, distribution of some medicines, by the knowledge of Sadgurudev like – Siddh Dravya (helpful in removing during sadhna duration and beneficial in aasan siddhi), Shivatr Kushth Harlep,MadhurmehVinashini,asthma-curing medicine, Vaat-pitt-cough related disorders removal medicine ,medicine helpful in removing white leucorrhoea ,punstav Prapti yog etc. will be for brothers and sisters which will be beneficial for some diseases of daily life and sadhna-centric progress. These are being made by our Guru Brothers and sisters who have formally taken certification of doctor in Ayurveda and are registered. These medicine became obsolete during the course of time but we are now trying to again take them in front of you and these all are also available free of cost for our brothers and sisters. Work is going on these kavachs and they will be sent to desired persons after Shrawan month. This plan is only for the members of Group, blog and Tantra Koumudi. Shree Devi Kavach – Helpful in financial progress and attainment of prosperity
Soubhagya Taarini Kavach –For destroying ill fortune and success in work Saaraswat Kavach – Helpful in remembrance power and for acquiring knowledge Vighneswar Kavach – For safety from all type of obstacles. Rudra Mrityunjay Kavach –Helpful in untimely accident and pret obstacles and disease-removal Valga shatruanjayi Kavach –Safety from enemies and helpful in getting out of false court-cases and obstacles from government. Kleem Kaari Siddh Kavach –For success in job and business Raahu Rog Naashak Kavach –For showing path to cure the incurable disease. Panch Tatv Kavach –For simplifying difficult tasks and for destroying Vaat-Pitt –cough like diseases. Rinmochak Bhumisut Kavach – For getting relief from debt Tantra Baadha Nivaran Kavach- For safety from tantra obstacles and abhichaar karmas Kaali Sammohan Kavach-For providing complete self-confidence and combined with Mohan capability Maatr Shakti combined Nav Grah Kavach –Helpful in getting favor from nine planets combined with power of mother of planets Aghor Vivah Baadha Nivarak Kavach – Helpful in removing obstacles coming in the way of marriage. In future, many more kavachs will be made, whose information will be given from time to time. For any of these Kavach or yantra, construction is neither simple nor making it is not as simple as reading its name. Construction of every Kavach and its activation process is different from others. Some will be accomplished by Sabar padhati, some by Kapaalik…Some will be made by Muslim tantra then some by intense tantrik Vidhaan. Some will be energized by Vedas mantra and some by complete Shakta Tantra. Also their construction and yagya articles etc. will be different….Their construction will be costly in financial terms on one hand and will involve a lot of hard-work and knowledge on the other hand so that whatever is made is amazing and completely effective. But you all please relax. You do not have to bear any cost. You just use them for yourself and your family and appreciate Tantra.
Establishing Tantra is aim of my life. And also my tears and dedication of my karmas on the lotus feet of Sadgurudev. Note: The sadhna articles of seven sadhnas would have reached brothers and sisters…Hope that you would have made the rosary…Therefore you all would be mailed sadhna-related Vidhaan by the evening of 28. ======================================== “ओम आत्मा परष्टशवियो गुरु: ष्टशवः | गुरुणाुं सवगष्टवश्वष्टमदुं ष्टवश्व मुंिण े धायगम् || “ आत्मा की सवगज्ञता को माि दो ही तत्वों से जाना जा सकता है गुरु और ष्टशव | और ये दोनों दो तत्व ना होकर वस्तुतः एक ही हैं | और गुरु की व्यापकता सम्प्पण ू ग ब्रह्माण्ि में हैं और व्यापकता है परा जगत में तभी तो ष्टवश्व के सम्प्पण ू ग मन्िों को धारण करने की क्षमता माि सद्गुरु की कृ पा से ही प्राप्त की जा सकती है | जीवन के ष्टवष्टवध आयामों की प्राष्टप्त का ज्ञान माि सद्गुरु की कृ पा दृष्टि से ही सुंभव है | और यकद समथग गुरु ने तुम्प्हे हुमस कर अपने गले से लगाया हो तो,किर भला क्या है जो प्राप्त नहीं ककया जा सकता है | यकद हम ष्टनमागण की प्रकक्रया को समझे तो माि योजना,सम्प्बुंष्टधत उपकरण व माध्यम और ष्टनधागटरत व्यवस्था का आपस में योग कर हम ष्टनमागण की कक्रया को सिलता पूवगक सुंपन्न कर सकते हैं | अथागत...... योजना – मुंि सम्प्बष्टुं धत उपकरण,माध्यम – यन्ि ष्टनधागटरत व ष्टनष्टश्चत व्यवस्था – तुंि यकद हम इस सूि को भली भाुंष्टत आत्मसात कर लें तो असिलता कोसो कोसो दूर ही रहती है हमसे | जीवन की आपाधापी में लगातार हो रहे आघात,िूिते स्वप्न,ष्टवश्वासघात, अनजाने िर के मध्य भला कै से सिलता पायी जा सकती है ??? साधना मागग का आश्रय लेकर अपने स्वप्न को िू िने से ना ष्टसिग बचाया जा सकता है अष्टपतु मन की कसक .....जो कही बहुत गहरे पैठ बना चुकी है हमारी आत्मा में,उसे भी दूर ककया जा सकता है | साधना अकमगण्य हो जाने का क्षेि नहीं है,बष्टकक ष्टजसमें असीम प्राण ऊजाग हो,दृढ
सुंककप शष्टक्त हो और पटरश्रम से ना भागने की मानष्टसकता हो,वो सिलता पा ही लेता है | क्यूुंकक १० ष्टमनि एकाग्र होकर ष्टबना ष्टहले िु ले,ष्टस्थर मन से बैठना सहज सुंभव नहीं है | हम सभी अपने लक्ष्य को पाना चाहते हैं | अपना नाम सिल व्यष्टक्त की श्रेणी में रखना चाहते हैं, ककन्तु क्या ये इतना सहज है ...... नहीं ना | जैसे ही हम अपने लक्ष्य की और गष्टतशील होते हैं तो कोई ना कोई अड़चन हमारा मागग रोकने को आतुर ही खड़ी रहती है | कभी सुंतान का स्वास्थ्य कभी आर्थथक परे शानी कभी घरे लु ष्टववाद कभी अकाल दुघगिना का भय कभी कमजोर आत्मबल कभी ष्टस्थरता का अभाव कभी अनजाना भय कभी ष्टवश्वास घात कभी तुंि बाधा कभी अनजाने रोगों से सामना कभी मानष्टसक तनाव कभी गुप्त या प्रकि शिुओं का मकिजाल कभी शासन का या अष्टधकारी का अनचाहा हस्तक्षेप कभी घर पर ककसी ना ककसी सदस्य का रोगग्रस्त रहना ऐसे सैकिो “कभी” हैं जो हमें जीवन पथ पर ना ष्टसिग ष्टवचष्टलत कर देते हैं,अष्टपतु हमारी प्रगष्टत को ही रोक देते हैं....और हम जहााँ से चले थे..उससे भी कई गुना ष्टपछड़ जाते हैं..तब
जीवन के उिराधग में माि यही बाकी रह जाता है की “मैं चाह कर भी कु छ ना कर पाया और,यकद पटरष्टस्थष्टतयााँ मेरे अनुकूल होती तो मैं आज यहााँ नहीं होता |” तुंि को लेकर ष्टजतनी भ्ाुंष्टतयाुं समाज में प्रचष्टलत हैं,शायद उतनी ककसी और ष्टवषय को लेकर कदाष्टप नहीं हैं | जबकक मैंने ऊपर ष्टलखा भी है की ष्टनष्टश्चत व्यवस्था के अनुसार जीवन यापन करना या कक्रया करना ही तुंि है | हमारा पुरातन इष्टतहास बहुत ही समृद्ध रहा है और वो समृष्टद्ध माि इसी ज्ञान की वजह से हमारे पूवगजों के पास थी | हमें तो ये भी नहीं पता है की हम स्वणगयुग से लोह्युग की ओर आयें है | ष्टजस ष्टवकास पर आज हम इतरा रहे हैं वो माि थोथा है | और इसका कारण माि यही है की हमें उन पद्धष्टतयों का ज्ञान नहीं है ष्टजनके िारा सिलता का मागग प्रशस्त होता है |
जब भी एक आम व्यष्टक्त या साधक किों में िुं सता है तो सीधा दौिकर तथाकष्टथत ताुंष्टिकों,या ज्योष्टतषों के पास जाता है और किर शुरू होता है उसके किों के बढ़ने का ष्टसलष्टसला....एक के बाद एक मनमाने उपायों पर धन लुिाते लुिाते उसकी मानो कमर ही िूि जाती है,और जब तक उसकी वापसी होती है वो पूरी तरह बबागद हो जाता है | और अुंत में वो इस पूरे काुंि का ठीकरा तुंि के नाम पर िोि कर उसे कपोल-कष्टकपत घोष्टषत कर देता है | आधा ज्ञान एक शिु से भी खतरनाक शिु है जो तबाही के अलावा कु छ भी नहीं देता है | अतः जो भी करो उसका पूणग ज्ञान तो कम से कम हमें हो...... मैं बहुधा सोचा करता था की यकद मुझे सिलता ष्टमली तो मेरे अन्य भाई-बहनों को क्यूाँ नहीं ष्टमली ?? किर जब देखा तो समझ में आया की मेरा जूनून माि गुरु आज्ञा ही थी और उनके िारा प्रदि साधनाओं के ष्टलए कभी भी मेरे मन में ककन्तु-परुं तु नहीं आया| नतीजा एक बार में नहीं दो बार में नहीं ककन्तु कई बार के बाद सिलता ष्टमली और जब एक बार ष्टमल गयी तो वो कुुं जी भी समझ में आई की कै से एक बार में ही सिलता पायी जा सकती है | मेरा प्रयास माि साधनाओं और इस ष्टवज्ञान को प्रमाष्टणकता कदलाना है | कोई इस नाम से ठगा ना जाए,और ना ही आर्थथक,मानष्टसक या शारीटरक किों को इस ष्टनष्टमि बदागयत करे ,बस यही मेरा और “NPRU” अथागत “ष्टनष्टखल पराष्टवज्ञान शोध इकाई” का लक्ष्य है | आप माि साधनाएुं कटरये और अपने पटरवार के सपनों को अपने पटरश्रम और सकारात्मक ऊजाग से साथगकता दीष्टजए | साधनाएुं कीष्टजये ककन्तु माि ककपना जगत में िू बकर नहीं,अष्टपतु उसके साथ साथ भौष्टतक जीवन के सुख सुंसाधनों से भी अपने पटरवार को तृप्त रष्टखये | २४ में से ५ घुंिे तो हम खुद के ष्टलए ष्टनकाल ही सकते हैं ना ..... ककसी ताुंष्टिक के पास मत भिककए अष्टपतु सद्गुरु प्रदि ज्ञान पर श्रृद्धा रष्टखये...उन्होंने हमें
सत्य मागग का अनुसरण करना ष्टसखाया है | यकद हम सिलता से वुंष्टचत हैं तो माि हमारी िुटियों और ज्ञानाभाव के कारण | आप साधनाएुं कर सके और,इस हेतु हम ने अब ये प्रयास ककया है की आपका जीवन सुचारू रूप से चल सके और आप ऊपर जो ढेर सारे कभी ष्टलखे हुए हैं...उन कभी में ना उलझ कर माि साधनाएुं कर सकें ,तथा उनके ष्टनवारण हेतु ककसी ढोंगी के चक्कर में िुं सकर अपना समय,सुकून और धन बबागद ना करे | इस हेतु मेरे भाई बहनों के ष्टलए हमारी NPRU िीम ने अन्य साधनात्मक योजनाओं के साथ साथ ष्टवष्टभन्न कवच का ष्टनमागण कायग प्रारुं भ ककया है | ये पूरी तरह ष्टनशुकक है | क्यूकुं क मेरे बहुत से भाई बहन ऐसे हैं जो गुप्त सहयोग कर अन्य भाई बहनों के ष्टलए मागग प्रशस्त करने में हमारा सहयोग लगातार कर रहे हैं | उनके सहयोग से हमारी कई योजनाओं ने साकारता प्राप्त की है | और मैं आपको ये बता देना अपना किगव्य समझता हूाँ की आप इन कवच का “औरा मुंिल” पटरक्षण करवा सकते हैं | और इसे देखकर आपको स्वतः ज्ञात हो ही जायेगा की कवचों या सामष्टग्रयों पर प्रामाष्टणक प्राण प्रष्टतष्ठा,चैतन्यता और मुंि का प्रभाव कै से कदखाई पिता है | साथ ही सदगुरुदेव के िारा प्रदि ज्ञान से कु छ औषष्टधयों का भी ष्टवतरण जैसे – ष्टसद्धद्रव्य (साधनाकाल की ष्टशष्टथलता ष्टनवारक और आसन ष्टसष्टद्ध में सहायक),ष्टश्वि कु ष्ठ हरलेप, मधुमह े ष्टवनाष्टसनी, दमा रोग ष्टनवारक,वात-ष्टपि-क्िदोष नाशक,श्वेत प्रदर नाशक, पुस ुं त्व प्राष्टप्त योग आकद भाई बहनों के ष्टलए होगा,जो दैष्टनक जीवन के कु छ रोग और साधनात्मक उन्नष्टत के ष्टलए महत्वपूणग साष्टबत होंगी | इनका ष्टनमागण हमारे वे गुरु भाई बहन कर रहे हैं जो बकायदा आयुवेद में ष्टचककत्सक का प्रमाण पि प्राप्त ककये हुए हैं,तथा रष्टजस्ििग हैं | काल गतग में ये औषष्टधयााँ ष्टवलुप्त ही हो गयी थी,ककन्तु अब पटरश्रम करके हम उन्हें आपके सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं और ये भी पूरी तरह हमारे भाई बहनों के ष्टलए ष्टनशुकक है | इन कवचों पर अभी कायग चल रहा है और श्रावण के बाद इन्हें वाुंष्टछत व्यष्टक्तयों के पास भेज कदया जायेगा | ये योजना माि ग्रुप,ब्लॉग और तुंि कौमुदी के सदस्यों के ष्टलए है | श्रीदेवी कवच- आर्थथक उन्नष्टत और ऐश्वयग प्राष्टप्त में सहायक सौभाग्यताटरणी कवच- दुभागग्य नाशक और कायग में सिलता हेतु सारस्वत कवच – स्मरण शष्टक्त और ष्टवद्याजगन में सहायक ष्टवघ्नेश्वर कवच- सभी प्रकार की ष्टवघ्न बाधाओं से सुरक्षा हेतु रुद्रमृत्युन्जय कवच – अकाल दुघिग ना और प्रेत बाधा और रोग नाश में सहायक
वकगाशिुन्जयी कवच – शिुओं से रक्षाकारी और झूठे मुकदमों तथा राज्य बाधा की उलझन से ष्टनकलने में सहायक क्लींकारी ष्टसद्ध कवच – नौकरी और व्यवसाय में सिलता प्रदायक राहू रोग नाशक कवच –असाध्य रोगों को साध्य करने हेतु मागग कदखाने में सहायक पुंचतत्व कवच – असाध्य कायों को सरल करने में और ष्टिदोषों वात-ष्टपि-कि जैसे रोगों का नाश करने में सहायक ऋणमोचक भूष्टमसुत कवच – कजों से राहत प्राष्टप्त हेतु तुंि बाधा ष्टनवारण कवच – ताुंष्टिक बाधाओं और अष्टभचार कमों से पूणग रक्षाकारक काली सम्प्मोहन कवच- मोहन क्षमता से युक्त और पूणग आत्मष्टवश्वास प्रदायक मातृ शष्टक्त युक्त नवग्रह कवच – ग्रह माताओं की शष्टक्त युक्त नवग्रह की अनुकूलता पाने में सहायक अघोर ष्टववाह बाधा ष्टनवारक कवच – ष्टववाह में आ रही बाधाओं का ष्टनवारण करने में सहायक
भष्टवष्य में और भी कई कवचों का ष्टनमागण ककया जायेगा,ष्टजसकी सूचना समय समय पर दी ही जायेगी | इनमे से ककसी भी कवच या यन्ि का ष्टनमागण सहज नहीं है और ना ही इनका ष्टनमागण कायग इनके नाम को पढ़ने ष्टजतना सरल ही है | हर कवच की ष्टनमागण व चैतान्यीकरण कक्रया दुसरे से ष्टभन्न ष्टभन्न हैं | कोई साबर पद्धष्टत से ष्टसद्ध होगा तो कोई कापाष्टलक... ककसी का ष्टनमागण मुष्टस्लम तुंि के िारा होगा तो ककसी का तीव्र ताुंष्टिक ष्टवधान के िारा | कोई वेदोक्त मन्िों से अष्टभष्टषक्त होगा तो कोई पूणग शाक्त तुंि से | साथ ही इनकी ष्टनमागण सामग्री तथा यज्ञ सामग्री आकद भी ष्टभन्न ष्टभन्न होगी... इनका ष्टनमागण जहााँ आर्थथक रूप से महुंगा होगा वही कठोर पटरश्रम और ज्ञान का भी प्रयोग इनमे होगा,ताकक जो भी ष्टनर्थमत हो अष्टिय्तीय, तथा पूणग प्रभाव कारी हो | ककन्तु आप सभी ष्टनष्टश्चन्त रहे आपको कोई व्यय नहीं उठाना है,आप माि इन्हें अपने तथा पटरवार के ष्टलए प्रयोग कर,अपना कर देष्टखये और तुंि को सराष्टहये | तुंि की स्थापना ही मेरा जीवन उद्देयय है | और सदगुरुदेव के श्री चरणों में मेरी अश्रु और कमांजष्टल भी|
नोि- सात साधनाओं की जो सामग्री भाई-बहनों के पास पहुाँच गयी है....उम्प्मीद है की आप लोगों ने माला का ष्टनमागण कर ष्टलया होगा...अतः सभी को इउनकी साधनाओं से सम्प्बुंष्टधत ष्टवधान २८ की शाम तक मेल कर कदया जायेगा | TANTRA GYAN SHRINKHLA -2 (LING RAHASYA AUR MANAH SHAKTI JAAGRAN VIDHAAN-1 ) –२( गर और : ज गर -१ )
In Last Article, we discussed about what are those seven levels of mind whose bhedan can be done and after that we can unify conscious and subconscious state of mind and attain the state of super-conscious mind (Maha Chetan).For this we definitely needs Shivling, we can plan regarding Shivling considering our faculty of reasoning and capacity, but this is essential. As I told you earlier, there are three types of Shivling1. Sthul Ling (Visible Ling) 2. Sookshma Ling (Subtle Ling) 3. Para Ling This order of attainment of universal powers, when completed by Yogi, then in its root, complete combination of these three lings takes place. Remember that Mind is the master of infinite powers, but they are in
dormant state and if we unify those two states of mind then definitely, attained Maha Chetan mind entrust the authority of its infinite powers to us. The padhati which I am telling you, it will automatically keep on introducing you to the experiences. Just you have to do it with full dedication and besides this, do the process as it has been told here. Above, I have given you information about three lings which are known as Isht Ling Praan Ling Bhaav Ling (Para Brahamandeey Ling) by the sadhak. These three lings are related to three important states of mind, upon unifying these three lings, three states of mind also get unified and all the seven levels also become one. Till now, we have only heard of two states of mindConscious Mind (Outer Mind) Sub-Conscious Mind (Inner Mind) But there is one state also in middle of them which is known by sadhak by the name of Chetan-Avchetan Man (Conscious-Subconscious mind).In this state, activation of power takes place but there is shortage of consciousness due to which sadhak cannot attain full mastery and sometimes, deviating from the path, due to the ego of power, he degrades. Therefore, after attaining Maha Chetna state, understanding the infinite secrets will require the use of outer symbols. It has been said also “Chandrama Manso Jaatah” meaning moon is the indicator of mind. The speed of mind is infinite but it is full of instability (playful) and parad is also very instable and full of infinite powers. Therefore, when making use of full process, parad is combined in accordance with Kramik Vidhaan (sequential procedure) then instability of mind vanishes. But it does not mean that those who cannot attain parad Shivling can’t do this process.it is not like this. Their speed and progress may remain slow but activation and bhedan of chetna and Manah Shakti (mind-power) will definitely take place.
The three lings which I have mentioned above, their qualities are also similar with those three statesIsht Ling – Sakal ling Praan Ling –Sakal Nishkal Ling Bhaav Ling (Para Brahamandeey Ling) –Nishkal or Para Ling Now let’s see their situation at those seven level, these three important levels will be First, Fourth and Seventh. If you see it carefully then situation of Aadi (start).Madhya (middle and ant (end) is formed whose complete union lead to completion of journey towards completeness. I have told you earlier also that these seven levels contain different abilities meaning as we cross one level and reach the other level, automatically we get acquainted with the knowledge hidden in first level or first layer. But acquiring knowledge and mastering it are altogether different things. Therefore, for mastering it, complete Kramik Vidhaan needs to be done. 1. Chetan –Isht Ling 2. Smriti 3. Avchetna 4. Sarjana – Praan Ling 5. Jeewanaat 6. GarbhSuvistrita (Antasyog) 7. Brahmand Chetna – Bhaav Ling Meaning that as we complete the journey from first to the fourth level, union between the Isht Ling and Praan ling happens and as we reach the seventh level, these three lings become one. And then the three lines of great triangle present in our Muladhaar which represents Mind, Praan and soul get activated and thereby activates the triangle also. And
the center of triangle i.e. bindu which symbolizes Shiva provides everything i.e. “Bhogasch Mokshasch Karsth Ev Ch”| The journey of Aatm Ling (Bhaav Ling) is possible only when we have attained Maha Chetan mind. Then only we can see Great Triangle (Maha Trikon) and Aatm Ling.But before this, we have to make use of the symbol of outer consciousness Isht ling. On any Monday, wake up in Brahma Muhurat and after taking bath, sit in siddhaasan facing towards North. One should wear yellow, red or white dhoti or saree. Aasan should be of blanket and on it aasan should be woolen or silky. Remember that color of aasan should be same as that of your dress. After spreading the cloth of color mentioned above, on Baajot in front of you, establish Isht Ling in copper container. Now do the panchopchar poojan of your Guru and Ganpati using Dainik Vidhi. Then pronounce “Om” 11 times. Now sitting erectly and stably, pronounce “Hum” beej 5 minutes and you have to pronounce it with intensity. Mental chanting or chanting it in lower voice should not be done rather medium voice should be used. Besides this ,contract your anus gate with intensity but keep in mind that this contraction should be in sync with the sound of “Hum” otherwise our preliminary process will become errorenous.Vibration in naval starts takes place through this activity and also the union of Praan Vayu and Apaan Vayu. After this, uses Yoni Mudra i.e. close both your ears with thumbs of your hands, both your eyes with both forefingers, both your nostrils with middle fingers and both your upper and lower lips through the union of both ring fingers and little fingers. Before this, using Kaaki Mudra, pull breath inside using mouth and then only close your mouth. Now concentrate on your Trikoot (third eyes) where vermillion mark (on fore head) is applied by ladies. After some time, you are able to see light .Now remove your fingers and again do the “Hum” beej process for 5 minutes. Then again do the Yoni Mudra process meaning that you have to repeat this whole process 2 times. Now establish Shivling in your left hand because Isht ling is established or can be established on physical body and while touching it with middle
and ring finger of right hand, do the Upaanshu jap (chanting mantra in such a way that it is audible only to us) the mantra given below for 30 minutes. “ओम ह्रीं श्रीं मेधा प्रज्ञा प्रभा ष्टवद्या धी धृष्टत स्मृष्टत बुष्टद्ध सष्टहताय ष्टवद्येश्वरी श्रीं ह्रीं ओम” “Om Hreem Shreem Medha Pragya Prabha Vidya Dhee Dhriti Smriti Buddhi Sahitaay Vidhyeshwari Shreem Hreem Om” As you go more deep into your chanting, you will automatically start experiencing divinity and heat. Mind will become extremely peaceful .This process has to be done for 7 days. In seven day you will start experiencing yourself something which in your view, you have not experienced earlier. Now you are able to experience the hidden truth easily and…. To Be Continued “Nikhil Pranam” ========================================
ष्टपछले लेख में हमने यही चचाग की थी की मन के वो सात स्तर कौन से हैं,ष्टजनका भेदन कर हम मन की चेतन और अचेतन अवस्था का आपस में योग कराकर महाचेतन मन की प्राष्टप्त कर सकते हैं| इसके ष्टलए ष्टशवहलग की अष्टनवायगता होती ही है,हम अपने अपने ष्टववेक और सामथ्यागनुसार ष्टशवहलग की योजना बना सकते हैं,ककन्तु है ये अष्टनवायग,क्यूुंकक जैसा की मैंने बताया ही था की ष्टशवहलग के तीन प्रकार होते हैं – १. स्थूल हलग २. सूक्ष्म हलग ३. परा हलग ब्रह्माुंिीय शष्टक्तयों की प्राष्टप्त का ये क्रम जब एक योगी पूणग करता है तो उसके मूल में इन्ही ष्टिष्टवध हलगों का पूणग सुंयोग होता है | याद रष्टखये मन अनुंत शष्टक्तयों का स्वामी है,ककन्तु वे
सुप्तावस्था में हैं और यकद हम मन की उन दोनों अवस्थाओं का आपस में योग करवा दें तो ष्टनश्चय ही प्राप्त महाचेतन मन अपनी अनुंत शष्टक्तयों का स्वाष्टमत्व आपको सौंप देता है | जो पद्धष्टत मैं आपको बता रही हूाँ,ये अनुभूष्टतयों से स्वतः ही आपका साक्षात्कार कराते जायेगी,बस पूणग ष्टनष्ठाुं के साथ आप इसे सुंपन्न करे और साथ ही जैसा क्रम बताया गया है उसे वैसे का वैसा ही सुंपन्न करें | ऊपर मैंने आपको तीन हलगों की जानकारी दी है ष्टजन्हें साधक – इिहलग प्राणहलग भावहलग (परा ब्रह्माुंिीय हलग) के नाम से जानते हैं, ये तीनों हलग मन की तीन महत्वपूणग अवस्थाओं से सम्प्बुंष्टधत हैं,ष्टजनका आपस में योग होते ही मन की तीनों अवस्थाओं का आपस में योग हो जाता है और सातों स्तर आपस में एकाकार हो जाते हैं | वैसे हम ने अभी तक ष्टसिग मन की दो ही अवस्थाएुं सुनी हैं – चेतन मन (बाह्य मन) अवचेतन मन (अुंतर मन ) ककन्तु इनके मध्य की एक और अवस्था भी है ष्टजसे साधक चेतनअवचेतन मन के नाम से जानते हैं | इस अवस्था मेर शष्टक्तयों का जागरण तो हो जाता है ककन्तु उनमे चैतन्यता का अभाव रहता है,ष्टजसके िलस्वरूप साधक पूणग स्वाष्टमत्व नहीं प्राप्त कर पाता है और कभी कभी मागग से भ्ि होकर शष्टक्त के मद में पष्टतत भी हो जाता है | अतः महाचेतनावस्था की प्राष्टप्त कर अनुंत रहस्यों को समझने के ष्टलए बाह्य प्रतीक की आवययकता पड़ेगी ही | कहा भी गया है की “चुंद्रमा मनसो जात:” अथागत चुंद्रमा मन का प्रतीक है | और मन की गष्टत अथाह ककन्तु चुंचलता से भरी हुयी है और पारद भी पूणग चुंचलता और अथाह शष्टक्तयों से युक्त है,अतः जब क्रष्टमक ष्टवधान अनुसार पारद का पूणग ष्टवष्टध के साथ न्बुंधन कर कदया जाये तो मन की चुंचलता भी समाप्त हो जाती है | ककन्तु इसका ये अथग भी नहीं है की जो पारद हलग की प्राष्टप्त नहीं कर सकते हैं वो ये ष्टवधान सुंपन्न ही नहीं कर सकते,ऐसा नहीं है,हााँ उनकी गष्टत और प्रगष्टत थोड़ी मुंद रहेगी ककन्तु चेतना और मन: शष्टक्त का जागरण और भेदन अवयय होगा | ऊपर मैंने ष्टजन तीन हलगों का वणगन ककया है, उनके गुण भी मन की उन्ही तीन मुख्यावस्था से साम्प्य रखती है – इिहलग – सकल हलग प्राणहलग – सकल ष्टनष्कल हलग
भावहलग (परा ब्रह्माुंिीय हलग) – ष्टनष्कल अथवा परा हलग अब जरा हम इनकी ष्टस्थष्टत मन के उन ७ स्तर पर भी देख लेते हैं, ये तीन महत्वपूणग स्तर होंगे पहला,चौथा और सातवााँ | यकद आप ध्यान से देखग ें े तो आकद,मध्य और अुंत की ही ष्टस्थष्टत तो बन रही है ना ष्टजनके पूणग योग से पूणगत्व तक की यािा पूरी होती है |मैंने पहले भी यही कहा है की ये सातों स्तर ष्टवष्टभन्न क्षमताओं से युक्त हैं अथागत जैसे ही हम एक स्तर को लाुंघ कर दुसरे तक जाते हैं स्वतः ही हमें पहले स्तर या पहली परत में बुंद रहस्य का ज्ञान हो जाता है | ककन्तु ज्ञान होना और स्वाष्टमत्व पाना ये दो अलग अलग बातें हैं, अतः स्वाष्टमत्व के ष्टलए तो पूणग क्रष्टमक ष्टवधान को सुंपन्न करना ही होगा | १. चेतन – इिहलग २. स्मृष्टत ३. अवचेतना ४. सजगना – प्राणहलग ५. जीवनात ६. गभगसुष्टवस्तृता (अन्तययोग) ७. ब्रह्माण्ि चेतना – भावहलग अथागत जैसे ही हम पहले से चौथे क्रम तक की यािा पूरी करते हैं वैसे ही इिहलग और प्राणहलग का योग हो जाता है, और जैसे ही हम सातवें स्तर तक पहुचते हैं वैसे ही ये तीनों हलग एकरूप हो जाते हैं | और तब हमारे मूलाधार में ष्टस्थत महा ष्टिकोण की तीनों रे खाएुं जो मन,
और
क
क ,
क क अथागत ”
ग
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क
क क
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और कर
,
”|
आत्महलग(भावहलग) तक की यािा तभी सुंभव हो पाती है जब हमने महाचेतन मन की प्राष्टप्त कर ली हो,तभी हमें उस महा ष्टिकोण और उस आत्महलग के दशगन हो पाते हैं | लेककन उसके पूवग हमें बाह्य चेतना के प्रतीक इिहलग का प्रयोग करना ही पड़ेगा | ककसी भी सोमवार को ब्रह्ममुहूतग में उठकर स्नान आकद से ष्टनवृत होकर पीली,लाल या सफ़े द धोती या सािी पहनकर उिर कदशा की और मुख कर ष्टसद्धासन में बैठ जाना है | आसन कम्प्बल का हो और उस पर कोई भी रे शमी या ऊनी आसन हो,याद रष्टखये स्वयुं के वस्त्रों के रुं ग का ही आसन प्रयोग ककया जाना है | सामने बाजोि पर उपरोक्त अनुसार ही वस्त्र ष्टबछाकर एक ताम्र
पाि में इिहलग की स्थापना कर दे | अब दैष्टनक ष्टवष्टध से स्वगुरु व गणपष्टत का पुंचोपचार पूजन करे ,तत्पश्चात “ओ ” का ११ बार उच्चारण करे | अब ष्टस्थर और सीधे बैठकर “ ” बीज का ५ ष्टमनि तक उच्चारण करे तथा साथ ही,यहााँ उच्चारण तीव्रता के साथ करना है मन ही मन या हलके स्वर में नहीं बोलना है अष्टपतु मध्यम स्वर का प्रयोग करना है,साथ ही गुदा िार को तीव्रता से ष्टसकोड़ते रहे,ककन्तु याद रष्टखये ये सुंकुचन “हुुं” की ध्वष्टन के साथ ही होना चाष्टहये,अन्यथा प्रारुं ष्टभक कक्रया ही गलत हो जायेगी | इस कक्रया से नाष्टभ में स्पुंदन प्रारुं भ हो जाता है और प्राण वायु का अपान वायु से योग भी | तत्पश्चात योष्टनमुद्रा का प्रयोग करे अथागत हाथ के दोनों अुंगूठे से दोनों कान,दोनों तजगनी से दोनों आाँखें,दोनों मध्यमा अुंगुली से नाक के दूनो ष्टछद्र और दोनों अनाष्टमका और दोनों कष्टनष्ठका के योग से ऊपर और नीचे के होंठो को बुंद कर दे | इसके पहले काकी मुद्रा का प्रयोग कर मुख के िारा श्वाुंस खीच ले,तब जाकर मुख बुंद करें | अब अपना ध्यान अपने ष्टिकू ि अथागत जहााँ हबदी लगायी जाती है वहााँ पर कें कद्रत करें | थोड़े ही समय बाद हकका सा प्रकाश कदखना प्रारुं भ हो जाता है | अब ऊाँगली हिाकर किर से “हुुं” बीज वाली कक्रया ५ ष्टमनि करे ,किर से योष्टनमुद्रा वाला क्रम करे ,मतलब २ बार ये क्रम दोहराना है | इसके बाद बाएुं हाथ में ष्टशवहलग स्थाष्टपत करे क्यूुंकक इिहलग को स्थूल देह पर धारण ककया जाता है या ककया जा सकता है,और दाष्टहने हाथ की मध्यमा और अनाष्टमका ऊाँगली का स्पशग करा कर – “ओ
स
र
ओ ”
मुंि का ३० ष्टमनि तक उपाुंशु जप करे ,जैसे जैसे आपके जप में तकलीनता आएगी वैसे वैसे आपको स्वतः ही उसकी कदव्यता और उष्णता का अनुभव होता जाएगा,मन अथाह शाुंष्टत में िू बता जायेगा,ये क्रम ७ कदनों तक करना है | सात कदनों में ही आप स्वयुं ही ये अनुभव करलेंगे की कच्छ ऐसा अप अनुभव करे लगे हैं अपने दृष्टिकोण में जो पहले अनुभव नहीं ककया है अब आपकी दृष्टि छु पे हए सत्य को आसानी से अनुभव कर रही हैं और........... क्रमशः “
ख
”
****RAJNI NIKHIL****
****NPRU**** Posted by Nikhil at 2:36 AM 1 comment: Labels: TANTRA DARSHAN, TANTRA SIDDHI
Tuesday, May 22, 2012 Shakti rahashyam (secret of power) –
र
साधना जगत की अद्भुत शष्टक्तयों की खोज में ना जाने ककन ककन साधकों से मेरी मुलाकात हुयी....पर ये भी एक सबसे बड़ा सत्य रहा है की,ष्टजस कदन से सदगुरुदेव ने मेरा हाथ अपने हाथों में पकड़ा था.... बस प्रष्टत क्षण अभय और ष्टनष्टश्चन्तता ही अनुभव होती थी..... हर पर अनोखा सुकून मानों आत्मा को महसूस होता रहता था. ष्टजस भी ष्टजज्ञासा की मन के जल में उत्पष्टि होती...उसी क्षण जैसे वो हौले से उसे शाुंत कर के ये अहसास दे देते कक “अरे तू तो मेरा ही है,इतना व्यष्टथत क्यूाँ होता है.... याद रख जब भी तेरे मन को कोई प्रश्न अपनी चुभन से व्यष्टथत करे गी....तब तब मैं उसका समाधान उसी मन से ष्टनचोड़ कर ष्टनकाल कर तुझे दे दूग ाँ ा....उसी मन से जहााँ मैं ष्टचरकाल से सदा सदा के ष्टलए अपने प्रत्येक ष्टशष्य के ह्रदय में ष्टवराजमान हूाँ.और ऐसा आजन्म होगा और प्रत्येक ष्टशष्य के ष्टलए होगा...यह ष्टनष्टखल वाणी है” बस तबसे कोई हचता ही नहीं रही मन में . जब भी मेरे मन के सरोवर में कही से ष्टजज्ञासा का पत्थर ष्टगरता और उसमे लहरे उत्पन्न होती या मन कक शाुंष्टत भुंग होती...तब तब सदगुरुदेव अपनी अमृतवाणी से या तो स्वयुं या किर उनका कोई ज्ञानाुंश सन्यासी या गृहस्थ ष्टशष्य आगे बढ़ कर उन तरुं ष्टगत लहरों को अपने उिरों
से शाुंत कर देता .और एक बात मैं आपको जरुर बता देना चाहता हूाँ कक जब भी ककसी ज्ञान कक चाह में मैं कही गया तो उस साधक का व्यव्हार मेरे ष्टलए पूणग अनुकूल रहा है और उसने ये अवयय कर स्वीकार कक उसे पहले ही बता कदया गया था कक यहााँ तुम्प्हारा आना सदगुरुदेव ने पूवगष्टनयोष्टजत ककया हुआ था .और ऐसा प्रत्येक ष्टशष्य के ष्टलए उन्होंने ष्टनधागटरत ककया हुआ है...ककसे कब देना है ,क्या देना है....ये पहले से उन्होंने तय कर कदया है . यािा के उसी काल में मेरी मुलाकात सदगुरुदेव के पूणग शाक्त ष्टशष्य कौल मष्टण ष्टशवयोगियाुंनद से मुलाकात हुयी . सदगुरुदेव कक आज्ञा से उन्होंने हवध्यवाष्टसनी के परम पावन पीठ को अपनी साधनाओं के ष्टलए चुना था . वो उसी पवगत कक एक अत्यष्टधक गुप्त गुिा में आज भी साधनारत हैं . और उसी गुिा में मेरी उनसे मुलाकात हुयी और दशगनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ . थोड़े ही समय बाद मैंने मानो प्रश्नों कक बौछार कर दी थी उन पर ,और वो उतने ही शाुंत भाव से मुंद ष्टस्मत होकर मुझे उिर देते रहे और रहस्यों कक नवीन परतों को उधेड़ते रहे .(उन्होंने सैकिो प्रश्नों के उिर कदए थे,परन्तु इस ष्टवशेषाुंक में ष्टवषय वस्तु पर आधाटरत जो प्रश्न हैं ,मैं माि उनमे से कु छ को ही यहााँ दे रहा हूाँ...ष्टजससे ष्टवषय को समझना अपेक्षाकृ त आसान रहेगा) शष्टक्त क्या है,इसके ककतने रूप होते हैं ??? सरल शब्दों में यही कहा जा सकता है कक सम्प्पूणग ब्रम्प्हाुंि माि ष्टजसकी ककपना से साकार हो गया हो और ष्टजसके प्रभाव से प्रकृ ष्टत सृजन, पालन और सुंहार कमग में जुिी हुयी हो ,उसी ष्टचन्मयी परात्पर ज्योष्टत को शष्टक्त कहा जाता है . ये ककसी भी रूप में हो सकती है. इसका प्रभाव सभी पर होता है किर चाहे वो चेतन हो या अचेतन.प्रकि रूप में हम ष्टजन्हें शष्टक्त देने का उजाग देने का या किर बल देने का स्रोत मानते हो,वे सभी भी इसी परा शष्टक्त से ही शष्टक्त प्राप्त करते हैं .ये परा शष्टक्त स्थूल, सूक्ष्म या ककसी भी रूप में हो सकती है . ये सभी प्राष्टणयों में ष्टवद्यमान है , इसी के कारण हम सृजन तथा अन्य कमग सम्प्पाकदत कर पाते हैं. और ष्टवचारों की उत्पष्टि का मूल भी यही शष्टक्त है . इसके ककतने प्रकार होते हैं ? भावगिा के आधार पर गुणों की तीन ही ष्टस्थष्टतयाुं होती हैंसत् रज तम ठीक इन्ही गुणों के आधार पर तीन कक्रयाएाँ सृजन ,पोषण और ष्टवध्वुंश होती है . और इन कक्रयाओं को शष्टक्त के तीन आधारभूत शष्टक्तमान(ष्टजनके िारा शष्टक्त अपने कायों को सम्प्पाकदत करती हैं) सुंपन्न करते हैं . याद रखने योग्य तथ्य ये है की ष्टजस प्रकार गुणों के तीन प्रकार होते हैं, ठीक उसी प्रकार इन गुणों की अष्टधष्ठािी तीन मूल अष्टधष्ठािी शष्टक्तयाुं होती हैं. महाकाली – तम महालक्ष्मी – रज
महासरस्वती – सत् ऊपर जब बात मैंने शष्टक्तमानों की कही तो उसका अथग यही होता है की शष्टक्त तथा शष्टक्तमानों में कोई भेद नहीं होता है , ये एक दुसरे से प्रथक नहीं ककये जा सकते है, शष्टक्तमान इन्ही शष्टक्तयों की प्रेरणा से अपने अपने कायों का सञ्चालन करते हैं. जैसे महाकाल ष्टशव सुंहार का, ष्टवष्णु पालन का और ब्रम्प्हा सृष्टि के सृजन का. एक प्रकार से ये समझ लो की सृष्टि का कोई भी कायग या कण ष्टनरथगक नहीं है. प्रत्येक कक्रया या व्याप्त प्रत्येक कण पूणग शष्टक्त युक्त होता है. शष्टक्त की व्याख्या के क्रम में ये भी समझना अत्यष्टधक उपयोगी होगा की मानव अपना ष्टवकास कर देव स्तर तक पहुच सकता है और अपने अभीि को प्राप्त करता हुआ अपने अष्टस्तत्व को साथगक कर सकता है. और ये ष्टस्थष्टतयाुं तभी साध्य हो पाती है जब आप पटरष्कृ त रूप से ष्टनम्न सात शष्टक्तयों को सदा सवगदा के ष्टलए पूणग सुंकष्टकपत होकर अपना व्यष्टक्तत्व बना लेते हो. और यकद पूणगता के साथ ष्टनम्न सात शष्टक्तयाुं आपको पटरष्कृ त अवस्था में प्राप्त हो गयी तो कु छ भी असाध्य नहीं रह जाता है . प्रज्ञा शष्टक्त चेतना शष्टक्त वाक् शष्टक्त कक्रया शष्टक्त ष्टवचार शष्टक्त इच्छा शष्टक्त सुंककप शष्टक्त ये उपरोक्त तीनों मूल शष्टक्तयों के ही पटरवर्थतत रूप है. क्या इनके अष्टतटरक्त कोई और शष्टक्त नहीं है ष्टजसकी अष्टनवायगता मानव जीवन में प्रकृ ष्टत िारा ष्टनयोष्टजत की गयी हो ???? है क्यों नहीं.... काम शष्टक्त की अष्टनवायगता सवोपटर है . जीवन में पटरपूणगता काम भाव से ही आती है. सृजन के मूल में यही भाव ष्टवद्यमान है तभी तो वेद भी काम को देवता कहते हैं . काम का मूल गुण आकषगण है ... जो ष्टविान होते हैं वे काम को इच्छा शष्टक्त का ही पयागय मानते हैं . तुंि तो यहााँ तक कहता है की सृष्टि में ष्टजतने भी प्रकार की ऐषणायें हैं,उनके मूल में यही काम शष्टक्त ही है. इस ष्टलए ये सम्प्पूणग ष्टवश्व उसी परमशष्टक्त की इच्छा या काम भाव का ही ष्टवस्तार कहलाती है. जीवन के सारे चैत ,सामाष्टजक और वैषष्टयक ष्टनयमों के मूल में काम भाव ही होता है. परमात्मा से लेकर आत्मा तक के ष्टजतने भी सम्प्बन्ध होते हैं वे सब आकषगण,काम और मैथुन(योग) से ही युक्त होते हैं. ककसी भी प्रकार की पटरष्टस्थष्टत में ककसी भी प्रकार के सम्प्भोग में किर वो चाहे आष्टत्मक हो या बाह्यगत, वो आकदशष्टक्त ही काम शष्टक्त के रूप में पटरणत होती है कायग करती है.
भला ये कै से माना जाये की सभी कायों के पीछे यही कामशष्टक्त कायग करती है ... सृजन तो समझ में आता है की इसी काम भाव से उत्प्रेटरत है,परन्तु भला सुंहार से इस काम भाव का क्या लेना देना ??? इसे ऐसा समझा जा सकता है की यकद आप ककसी के आकषगण में बाुंध जाते हैं और आगे जाकर प्रेम करने लगते हैं तब भी तो आप एक समय बाद उसकी अपने से प्रथकता सहन नहीं कर पाते हैं तब आप क्या करते हैं... उसे आत्म एकाकार करने की कोष्टशश करते हैं . ऐसे में या तो आप उसमे ष्टवलीन होने की चेष्ठा करते हैं या उसे अपने में ष्टमलाने की. भूख समाप्त करने की आपकी लालसा या इच्छा भोजन के प्रष्टत आपको आकर्थषत करती है... अब ऐसे में उस भोजन का जो थोड़ी देर पहले तक अपना अलग अष्टस्तत्व था... आपके भोजन के प्रष्टत आकषगण के कारण,उस भोजन की सिा का ही अुंत कर देता है. ये ष्टनयम प्रत्येक प्राणी पर समानान्तर रूप से कायग करता है. परमात्मा से ही अुंश प्राप्त कर आत्मा मनुष्य शरीर धारण करती है इस क्रम में मनुष्य जन्म लेता है, जीवन के सुखों का उपभोग करता है और आष्टखर में एक समय बाद मृत्यु उसका वरण कर उस आत्मा को पुनः परमात्मा की तरि गष्टतशील कर देती है तो क्या इसके मूल में परमात्मा की काम शष्टक्त कायग नहीं करती है जो की वो अपने अुंश का ष्टवलीनीकरण अपने में कर के सुंपन्न करता है. क्या यहााँ पर सृजन हुआ ..... नहीं ना..... लेककन लौककक दृष्टि से ये सुंहार भी सृजन की तरि एक कदम ही तो है. आप ककसी से जब प्रेम करने लगते हैं तो तीव्र आकषगण के कारण उससे सम्प्भोग करने की तीव्र लालसा को आप क्या कहेंगे ..... क्या वो माि इष्टन्द्रय लोलुपता है ,नहीं... उसके मूल में भी आपकी अपने प्रेम या अभीि से प्रथक ना रह पाने की चरम लालसा ही तो है जो की उसके अष्टस्तत्व का योग अपने अष्टस्तत्व से करवाने के ष्टलए उत्पन्न होती है. तब वह दो हो ही नहीं सकते ..... रह जाते हैं तो माि एक ही. ये अलग बात है की एक साधक ,एक ष्टशष्य ,एक योगी इस भेद को आत्म एकाकार क्रम अपना कर दूर करता है और सामान्य अवस्था में सामान्य मनुष्य शरीर का योग कराकर. परन्तु तुंि शरीर से ऊपर उठ कर आत्म योग की बात करता है इसी काम शष्टक्त का सहयोग लेकर. इस प्रकार ये काम शष्टक्त उसी आकदशष्टक्त का ही तो रूप होती है ष्टजसके वशीभूत होकर वो तम,रज और सत् गुणों का पालन ष्टभन्न ष्टभन्न रूप में करती है. ताुंष्टिक दृष्टि से तम,रज और सत् गुणों की अष्टधष्ठािी शष्टक्त महाकाली,महालक्ष्मी और महा सरस्वती को ही क्यूाँ माना जाता है,क्या ऐसा नहीं हो सकता है की महालक्ष्मी रज के बजाय तम गुणों का प्रष्टतष्टनष्टधत्व करे ??? नहीं ऐसा नहीं हो सकता है... सृष्टि के आरुं भ में जब सृजन भी नहीं होता है,पालन भी नहीं होता है.तब ऐसे में माि पूणग अन्धकार ही होता है ...जब माि महाष्टनद्रा की उपष्टस्थष्टत ही अपने पूणग साकार या ष्टनराकार रूप में होती है.और ये तम तत्व ही महाकाल है...ष्टजसके अधीनस्थ काल भी सदा भयभीत रहता है . एक बात उकलेखनीय है की शरीर का ष्टवसजगन काल के िारा सम्प्पाकदत होता है और आत्मा पर काल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, आत्मा सदैव काल से परे रहकर माि महाकाल िारा ही ष्टतरोष्टहत होती है. उसी महाकाल की शष्टक्त है महाकाली, जो
सुंहार भाव की प्रणेता है . ये शष्टक्त प्रलयष्टनशा के मध्य काल से सम्प्बन्ध रखती है ,इसी की उपष्टस्थष्टत से ये सुंसार ष्टशववत बनकर साकार है , जैसे ही इनका लोप होता है ,ष्टशव को शव बनने में एक क्षण नहीं लगता है,चूाँकक ये प्रलयष्टनशा अथागत राष्टि से सम्प्बुंष्टधत हैं और है इनका सम्प्बन्ध मध्य काल से तब ऐसे में ये जहा तम को दशागती हैं वही ये सुंक्राुंत रूप में अपने अुंदर रज अथागत पालन-पोषण और सत् अथागत सृजन के गुणों को भी रखती हैं. परन्तु महालक्ष्मी तम भाव से प्रेटरत नहीं है और न ही महा सरस्वती ही रज से सम्प्बुंष्टधत हैं. इसष्टलए सुंहार का गुण तो कदाष्टप इनमे नहीं हो सकता है. हााँ ये अलग बात है की महाष्टवद्या रूप में ये जब अपना योग तम से कर लेती हैं तो ये सुंहार भी कर सकती हैं. आपने महाष्टवद्याओं की बात कही है ,तो क्या सारी महाष्टवद्याएुं इन्ही तीन मूल शष्टक्तयों का रूप होती हैं,क्या पुंचमहाभूत तत्वों से इनका कोई लेना देना नहीं होता है ???? नहीं ऐसा नहीं है ,जब हम आकद शष्टक्त की बात करते हैं तो उसका अथग बहुत ष्टवराि होता है,आकद शष्टक्त से मेरा मतलब राजराजेश्वरी षोिशी ष्टिपुर सुद ुं रीसे है, उन्ही के तीन गुणों की अष्टधष्ठािी वे तीनों महा शष्टक्त हैं. वैसे श्रीकु ल की मूल महा ष्टवद्या षोिशी ष्टिपुर सुन्दरी को माना जाता है. परन्तु उनका मुंि और यन्ि महाष्टवद्या रूप में ष्टभन्न ही होता है ,और जब वे आकद पराशष्टक्त राज राजेश्वरी होती हैं तो उनका मूल यन्ि श्री चक्र या श्री युंि ही होता है जो की इस ब्रम्प्हाुंिीय रूप का ज्याष्टमतीय रूप प्रदर्थशत करता है,ऐसा रूप जो अककपनीय शष्टक्तयों को प्रदर्थशत करता हो. रही बात पुंचमहाभूतों की तो प्रत्येक तत्व २ महाष्टवद्याओं का प्रष्टतष्टनष्टध है ,और इस प्रकार ५x २=१० होते हैं, इसमें भी ध्यान रखने वाली बात ये है की प्रत्येक तत्व के दो गुण होते हैं . उष्ण शीत इसी प्रकार प्रत्येक तत्व की दो महाष्टवद्याओं में से एक महाष्टवद्या उग्र भाव से युक्त होती हैं और दूसरी शाुंत प्रकृ ष्टत से युक्त होंगी. ष्टजस प्रकार उस पराशष्टक्त की शष्टक्त से ही सूयग और चन्द्र दोनों प्रकाष्टशत होते हैं, और सूयग जहा उष्णता देता है वहीं चुंद्रमा शीतलता देता है.लेककन ककतने आश्चयग की बात है की सूयग की उष्णता जहााँ मानव में ताप,तेज और तीव्रता लाती है, आत्मकें कद्रत होने के ष्टलए हमें प्रेटरत करती है,वही, चुंद्रमा की शीतलता और प्रकाश हमारे मन को आह्लाकदत और काम भाव की तीव्रता से युक्त कर देती है. जीवन के प्रत्येक कमग की अष्टधष्ठािी कोई ना कोई ष्टवशेष शष्टक्त होती है.तुंि में ष्टजतनी भी कक्रयाएाँ होती हैं वे सभी ककसी खास शष्टक्त के अुंतगगत ही आती हैं,यही कारण है की बहुधा लोगो को जब इन कमों की अष्टधष्ठािी शष्टक्त का ही ज्ञान नहीं होता है तो भला उनके िारा ककये गए ताुंष्टिक कमग कै से सिल हो सकते हैं . अज्ञानतावश ककया गया कै सा भी सरल से सरल प्रयोग इसी कारण सिल नहीं हो पाता है . इसष्टलए यकद कक्रया से सम्प्बुंष्टधत शष्टक्त का ज्ञान हो जाये तो ज्यादा उष्टचत होता है.... जैसे –
वशीकरण – वाणी स्तम्प्भन – रमा ष्टविेषण – ज्येष्ठा उच्चािन – दुगाग मारण – चुंिी या काली के अुंतगगत आते हैं . इसी प्रकार तुंि और उससे जुिी प्रत्येक कक्रया का यकद ष्टवष्टधवत प्रयोग ककया जाये तो कक्रया से सम्प्बन्धी शष्टक्त पूणग ष्टसष्टद्ध देती ही है. भला वो कै से सुंभव है ?? क्यूकुं क महाष्टवद्या इत्याकद क्रम तो अत्युंत जटिल कहे गए हैं कोई ष्टबरला ही इसमें सिलता पा सकता है, ठीक इसी प्रकार मैंने ये भी सुना है की दुगाग सप्तशती एक ताुंष्टिक ग्रन्थ है , और मैंने ये भी सुना है की यकद सही तरीके से इसका पथ या प्रयोग ककया जाये तो शष्टक्त के प्रत्यक्ष दशगन सुंभव होते ही हैं, और वह कौन सी मूल कक्रया है जो सरल और सहज भाव से जीवन के चतुर्थवध पुरुषाथों की प्राष्टप्त करवाती ही है ?? देखो ये तो सही है की महाष्टवद्या को पूणगता के साथ ष्टसद्ध कर लेना एक अलग बात है परन्तु , बहुत बार साधक अपने जीवन की सामान्य से परे शाष्टनयों या कायों के ष्टलए सीधे ही इन महाष्टवद्याओं का प्रयोग करने लगता है , जो की उष्टचत नहीं कहा जा सकता है ,क्यूुंकक ऐसी ष्टस्थष्टत के ष्टलए तो आप ष्टजस महाष्टवद्या का मन्ि जप करते हैं हैं या ष्टजसे वषों से कर रहे हैं , यकद माि उनके मन्ि का ष्टवखुंिन रहस्य समझ कर मन्ि के उस भाग का ही प्रयोग ककया जाये तब भी आप को समबष्टन्धत समस्या का ष्टनष्टश्चत समाधान ष्टमलेगा ही. जैसे मान लीष्टजए कोई साधक भगवती तारा की उपासना कर रहा है और उसके पटरवार के ककसी सदस्य को स्वास्थ्य सम्प्बन्धी जटिल बीमारी हो गयी हो .... तब इसके ष्टलए मूल मुंि की दीघग साधना के बजाय उस मन्ि या स्तुष्टत के एक ष्टवशेष भाग का प्रयोग भी अनुकूलता कदला देता है .... ‘ताराुं तार-पराुं देवीं तारके श्वर-पूष्टजताुं, ताटरणीं भव पाथोधेरुग्रताराुं भजाम्प्यहम् . स्त्रीं ह्रीं हूुं िि् ’ - मन्ि से जल को अष्टभमुंष्टित कर उससे ष्टनत्य रोगी का अष्टभषेक करे , तो उसके रोगों की समाष्टप्त होती है. ‘स्त्रीं िीं ह्रीं’ मन्ि से १००८ बार अष्टभमुंष्टित कर अक्षत िे कने से रूठी हुयी प्रेष्टमका या पत्नी वाष्टपस आती है . ‘हुंसः ॎ ह्रीं स्त्रीं हूुं हुंसः’ मन्ि से अष्टभमुंष्टित काजल का ष्टतलक लगाने से कायागलय,व्यवसाय और अन्य लोगो को साधक मोष्टहत करता ही है. वस्तुतः मूल साधना से ष्टसष्टद्ध पाने में बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है . ष्टजनके सहयोग से ही उस महाष्टवद्या साधना में ष्टसष्टद्ध ष्टमलती है. यथाशरीर स्थापन इत्याकद. और एक ष्टनष्टश्चत जीवन चयाग को भी अपनाना पड़ता है .तभी सिलता प्राष्टप्त होती है ,अन्यथा ये साधनाए तो साधक का तेल ष्टनचोड़ देती हैं ,इतनी ष्टवपरीतता बन जाती है साधक के जीवन में की वो इन साधनाओं को ष्टसद्ध करने का सुंककप ही मध्य में छोड़ देता है . रही बात दुगाग सप्तशती की तो हााँ ,ष्टनश्चय ही ये साुंगोपाुंग तुंि का बेजोि ग्रन्थ है और इसके माध्यम से देवी के समष्टन्वत और ष्टभन्न ष्टभन्न तीनों रूप के दशगन ककये जा सकते हैं,बस उनके
ष्टलए ष्टनष्टश्चत ष्टवष्टध का प्रयोग करना पड़ता है . यकद इसके ष्टलए भगवती राज राजेश्वरी की साधना कर ली जाये तो सोने पर सुहागे वाली बात हो जाती है . एक बात कभी नहीं भूलनी चाष्टहए की मन्ि ,उस मन्ि की इि शष्टक्त और साधक ये तीनों साधना काल में एकात्म ही होते हैं ,यकद साधक इसमें अुंतर लाता है तो उसे सिलता नहीं ष्टमल सकती है . प्रत्येक साधना में सद्गुरु की प्रसन्नता आपको सिलता कदलाती है , इसष्टलए हमें सदा सवगदा ऐसे कृ त्य ही करना चाष्टहए , ष्टजससे उन्हें प्रसन्नता का अनुभव हो. जब एक सामान्य व्यष्टक्त भी प्रसन्न होकर हमरे कायों को सरल कर देता है तब ऐसे में ब्रम्प्हाुंिीय ष्टवरािता ष्टलए हुए सदगुरुदेव के प्रसन्नता हमें क्या कु छ प्रदान नहीं कर सकती है. शष्टक्त प्राष्टप्त की मूल साधनाएुं कौन कौन सी हैं ,ष्टजन्हें सुंपन्न कर साधक सक्षमता को प्राप्त कर अभीि को पा लेता है ??? शष्टक्त की ककसी भी रूप में साधना की जा सकती है, किर वो चाहे पुरुष रूप में हो या स्त्री रूप में ,उससे कोई िकग नहीं पड़ता क्यूुंकक हलग बदल जाने से शष्टक्त का मूल स्रोत नहीं बदल जाता है.इसष्टलए मन में ये भाव कभी नहीं रखना चाष्टहए की ये पुरुष देव की साधना है तो इससे शष्टक्त की प्राष्टप्त नहीं होगी या ये स्त्री देवता की साधना है तो इससे ज्यादा शष्टक्त की प्राष्टप्त होगी. चाहे वो पुरुष देवता हो या स्त्री देवता, ऐसा नहीं है बहुत कम लोग होंगे ष्टजन्हें ये पता होगा कीशुक्र अथागत काम शष्टक्त की हबदु साधना की मूल शष्टक्त काल भैरव होते हैं,ष्टजनके ताुंष्टिक क्रम को अपनाकर कोई भी अद्भुत यौवन को प्राप्त कर सकता है और पा सकता है पूणग स्त्रीत्व या पूणग पौरूषत्व . और काल भैरव की शष्टक्त की प्राष्टप्त का उनका मूल स्रोत वो आकद शष्टक्त ही तो होगी,ष्टजसे ष्टनष्टखल शष्टक्त या राज राजेश्वरी कहा जाता है. सैकिो साधनाओं में से कु छ सरल मगर तीक्ष्ण प्रभाव से युक्त साधनाएुं ष्टनम्न अनुसार हैं ,जो की साधक के जीवन को अपनी जगमगाहि से भर देती हैं और उसकी अपूणगता को पूणगता में पटरवर्थतत कर देती हैं. ==================================================== In the search of amaizing powers of sadhana world, I met with so many sadhaka…but this is the biggest fact that the day when sadgurudev hold my hand in his hand… at the very same moment I started feeling no worries and state of Insouciance at every moment… every moment it was a peace which my soul was feeling. Any doubt arise in the mind…at the very next moment he used to vanish it by this way “ you are mine, why are you so much of Distressed…remember, whenever any of the question will trouble you, at that time I will give you by extracting your same mind, from the mind which is the source of my place in the heart of the disciples for and from infinite time duration, this will continue for whole life and will happen for every disciple this are my words.” From that moment there has been no place of worry in the mind. Whenever any curiosity comes to the mind and when it affects on the peace of mind… at those very specific moments sadgurudev himself or any of his loving sanyashi or gruhasth disciple came forward and established the peace of mind by
their valuable answers. Here I would like to mention specifically that whenever I went to anywhere with a will to have knowledge at that time the behavior of those specific sadhaka have remained completely positive for me and they had always accepted that they already had information about my arrival and the meeting has been designed already by the sadgurudev. And he have designed this for his every disciple…who and where to give and what to give, he had decided already from long. In that time period of my travel I met Sadgurudev‟s purn Shakt disciple Kaul Mani Shivayogatrayanand. With order of sadgurudev he selected very sacred vindhyavasini peetha for his sadhana. He is still in his sadhana in a secret cave of the same mountain. And I met him in the same cave and got blessing of his glimpse. In very short span of time I started shooting my questions, and he too kept on answering my all questions with peace and smiles on the face & kept on revealing secrets. (He answered hundreds of questions, but in this special issue I am giving few of them which are related to the subject which can make subject easy to understand.) What is the shakti (power), how many form does it have? In simple words whose imagination have caused complete universe and with whose effect nature keeps on works in creating, rearing and vanishing that only infinite light is called as Shakti. It could be in any form. It leaves effect on all rather living or non living. In tangibles, those who are classified as power supplier, energy supplier or force supplier those all receives power from this supreme power. This supreme power could be in tangible, non tangible or in any other form. It stays inside all beings, with only which we can accomplish task of creation and others. And base for the thoughts to be created is the same power. How many types are there? On the base of nature, it has three conditionsSat Raj Tam Holding the base of particular nature there is existence of three main processes of creation, rear and vanishes. And this processes are done by three base of shaktis, Shaktimaan ( by whose medium shakti does the processes) . it is the point to be
remembered that the way there are three main type of nature, the same way there is three main controlling power goddesses for those nature. Mahakaali – tam Mahalakshmi – raj Mahasawashwati – sat What I said above about the shaktimaana that does mean that there is no difference between shakti and Shaktimaana, they are inseparables, shaktimaan accomplish their tasks with inspiration of these shaki only. Like mahakaal in vanishing, Vishnu in rearing and creation of bramha. This way, understand this that any of the process or particle is not insignificant. Every process and particle is full of shakti. In the definitional description of shakti, it is also an essential point to understand that humans can reach to the stages of god by processes of development and can make his existence meaningful by accomplish his life desires. And these conditions could only be accomplished when you make these seven main powers your personality completely by being full determined and devoted. And if you accomplished this main power in their complete form then there would remain nothing impossible. Pragya shakti Chetana shakti Vaak shakti Kriya shakti Vichar shakti Ichha shakti Sankalp shakti These are modulated forms of the main three powers only.
Apart from these, is there any other shakti which is pre-designed by nature for the requirement of human life? Yes why not… requirement of Kamashakti is paramount. The fullness of the life comes throught Kaama Bhav only. In the base of creation this nature only stays for which even Vedas have classified it under Gods. The main property of kama is attraction… Scholars always understand Kama as synonymous of Ichha shakti. Tantra says at extent that every type of thing which are liable do have the base as kama Shakti. For this only, this whole universe is called as ichha or kaama bhav‟s expansion. All regulations of life subjected to socialism and subjects do have base as kama bhav. From the supreme soul to the normal soul all the relations exists, all those are accompanied by attraction, kama and maithoona (sex) {more specifically „Yoga‟}. In any situation in any type of sambhoga either internal or external, the task is done by the supreme Shakti by emerging a form of kama shakti. How does it could be understandable that behind every task there is work of kama shakti…creation could be understand that it is derived with kama bhav but what does it have relation with vanishing or destruction? This could be understand that in case that if you are in attraction with someone and further you start loving then too after a particular time duration you cannot tolerate what do you do at that time…you again try to merge your soul. In that condition either you try to merge yourself in that person or you try that person to merge with you. Your wish to overcome hunger will always attract you to the food… in that condition before a short time that particular food was having a very different form in itself…because of your attraction to that food, it ends the existence of food. This rule works on every being equally. With the separation from supreme soul, normal soul gets to be human and in this way, human takes birth, have pleasures of various comfort and at last one day cause of death will again make it move to supreme soul so don‟t kama shakti of supreme soul work in the base of this which is done by merging its part in itself. Is there a creation? No…but from the cosmic vision it is also a step to the creation. When you start loving someone with a strong attraction you feel to have a sex with person what you will call this…is it just a physical satisfaction, no…in the base of this there is a desire not to remain separate with that peson which is on extreme level which came up just to merge yourself with that person. At that time it does not stays two…anything stay behind is one. It is another thing that one sadhak, disciple, yogi will have internal self merge and stay far of it and in normal situation merging a normal body. But tantra speaks about aatmayoga being ahead
from body and that too with the help of this Kama power only…this way this kama shakti stays form of the supreme shakti by being attracted to which it works with different form of tam, raj and sat. In the tantra sight, why controlling goddess of tam, raj, sat are believed to be mahakali, mahalkashi and mahasaraswati respectively? Is it not possible that mahalakshmi works with nature of tam instead of raj??? No, it cannot happen. In the dawn of universe where there was no creation, there was no rear. At that time there was complete darkness only… when presence of mahanindra is there in its form of saakar and niraakar. And this tam element is mahakal only…from which kaal (time) even stays feared. Here it is to be noted that destruction of the body is done by kaal and there is no effect of the same on the soul. Soul always stays apart of kaal and covered with mahakaal. The same mahakal have mahakali as shakti, who is precursorproducer of the destruction. This shakti haves relation with middle time of pralaynisha. The presence of the same makes this world exist being covered with shiva, when it disappear, there is no moment time shiva turning in shavaa (death body or non existence). As it is related with pralaynisha means night time and they have a relation from middle time this way when it represents tam, it also has raj (to rear nature) and sat (creating nature) in the sankrant form. But mahalakshmi is not inspired from tam nature and neither maha sarashwati have relation with raja. This way there is no possibilities of them to have nature of vanishing. Yes, it is completely different condition when they get connected with tam in form of mahavidhyas, at that time they can even accomplish destructions. You just spoke about mahavidhya, so does all mahavidhyas are form of these three base powers, does they have not any relations with panchamahabhoota ???? No, it is not that way, when we are speaking about aaadhya shakti (supreme power) then it has a very big meaning, from aadishakti I mean to say Raajraajeshwari Shodashi Tripur Sundari; holding the three main nature of her, there stands three maha shaktis. Perhaps, main mahavidhya of shrikul is taken as shodashi tripur saundari. But her mantra and yantra in mahavidhya form is different, and when she is parashakri raaj raajeshwari then her main base yantra is shri chakra or shri yantra which is represents geometry form of universe, the one which is holder of unimaginable powers. And about panchmahabhuta then every element represents 2 mahavidhyas, and this way 5X2 = 10 occurs, in this too there is a notable thing that every element has 2 nature
Ushn (hot) Sheet (cold) This way, from ever element‟s 2 mahavidhya one would be with ugra nature and second would be having peaceful nature. The way sun and moon owns light with that parashakti, where sun gives heat and moon gives cold. But how strange is this, where heat of the sun provides warmth, splendor and intensity in humans, which inspire us to concentrate with oneness; the cold shine of moon gives excitement to the mind and make it filled with kama bhav. Behind the each and every action ( karma) of life there is a special ownering shakti, to whom we call Adhishthaatri Devi, related to that action is responsible for its happening similarly in tantra every procedure is carried out under the command of some special power but there are number of people who don‟t know which deity is regarded as the supreme power of which procedure than how they expect success in tantra as we all know little knowledge is dangerous thing and it‟s this little knowledge which becomes the cause root of failure in the easy to easiest process of tantra so it‟s better to have the complete knowledge of process and its authority likeSuch procedures as Vashikaran- Vaani Stambhan- Rama vidveshhan- Jyeshhtha Uchchatnan- Durga Maaran - fall under the authority of Chandi or we can say Kaali. Now the doubt here rises is…. Who takes its guarantee that if the whole procedure is carried out properly then its related supreme power will bless you??? As all the process and procedures related to Mahavidya is entitled as the toughest one and out of hundreds ones a single unique one gets success in them…..Just like that I have heard that Durgasapatshatii is a tantric granth and if carefully and properly its practicals should carry out than the deity is bounded to mark its appearance in front of sadhak and which is that fundamental process which helps to attain complete man power ( Chaturvidh Purusharth) in life that too by following easy going way??? Now here the all answers are there…..firstly let me make it clear for all of you that to get all Mahavidya Sidh is something different matter…..so its completely unfair if a sadhak starts to use these Mahavidhyaas just to get rid of his daily life‟s minor problems and situations as he can get them settle down just by doing the mantra jaap of that deity which he is doing from a long time back and for this he just need to understand the Vikhandan Rehasya of that mantra as which section of mantra will help him to which type of action…..definitely he will get the solution…..see how
simple it is….isn‟t it……ya it is if the doer is conscious. Let me make it more simple for you with an example……now just think there is a sadhak who is doing Bhagwati sadhna but at the same time someone is suffering from severe health disease in his family………than he just to change the section of mantra that is at the place of basic mantra‟s Dheerg Sadhna he should enchant that mantra or Satotra of it which deals with health portion as – …..Tara Taar-Pra Devi Tarkeshwer-Poojtiyan, Tarini Bhav Pathodherugratara Bhjamyahm...Streem Hreeng Hum Phat…just get the water enlighten (abhimantrit) with this mantra and give it to that person everyday he will soon recover his health. “Streem Treem Hreem” by making the rice (akshht) enlightens (abhimantrit) with this mantra jaap 1008 times and then throwing them away is helpful in getting back angry beloved or wife. If a sadhak put a tilak of enlighten kajal on his forehead with the mantra “Hans: Om Hreeng Streem Hum Hans: then every person in his office or business place gets attracted towards him. Finally in order to get sidhi in basic sadhna one need to pay attention at number of things because with the co-operation of these small things one get sidhi in Mahavidya. For this one need to follow a decided life style and shreer sthaapan process otherwise these sadhnaas can make your life living hell. Sometime situation become so severe that sadhak drop his resolution in between. Now come to our first question so the answer is YES!! Durgasapatshatii is a marvelous granth of Saangopaang Tantra and by following its complete process one can have the blissful presence of the whole three figures of Durga Deity but to have this divine feeling one need to follow proper procedure. If a sadhak does the sadhna of Bhagwati Raj Rajeshwari for this than its divinity becomes peerless. Always remember one thing that during sadhna- mantra, supreme authority of that mantra and sadhak becomes one during sadhnaa period as if there remains any gap then forget about success. In every sadhna Sadgurudev‟s happiness is essential for success so one should do such deeds which can bring smile on Sadgurudev‟s face as smile is a power to get your work done from a common person then think what will its reaction if it spread on the lips of the Highest Divine Power of this Universe. Which are the base sadhanas of shakti, after accomplishing which, sadhak will have their desires fulfilled? Sadhana of shakti could be done in any form, rather it is in form of man or woman, there is no difference because changing the gender will not change the basic source of energy. Therefore it should never be in mind that this is male deity so the shakti could not be gain or this is female deity so more energy could be generated. Rather it is male or female diety, it is not so many people know about thissukra i.e. kaam shakti‟s bindu sadhana have kaal bhairava as base shakti, of which anyone can adopt the process and have extraordinary beauty and can have complete femininity or robust. And source to have energy for kaal bhairav would be the main basic shakti
only, which is called as nikhilshakti or raaj raajeshwari. From hundreds of sadhanas few easy but extreme powerful sadhanas are as followed, which can bloom life of the sadhaka and will convert emptiness into totality.
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TRY YOUR LEVEL BEST, THAN LEAVE THE RESULTS ON GOD…… मेरे मास्िर मुझे अक्सर यह बात समझाते हैं की कायग चाहे कोई भी हो, कै सा भी हो हमारे हाथ में होता है उसे पूरी इमानदारी के साथ करना, क्योकक हार और जीत एक ही ष्टसक्के के दो पहलु होते हैं पर इसका यह अथग भी नहीं होता है की हम कोई उम्प्मीद ही ना रखें क्योकक उम्प्मीद पर तो दुष्टनया कायम है ....पर साथ ही साथ इस बात को भी याद रखें की तुंि भावनाओं पर नहीं चलता, उसे चलाता है हमारा दृढ़ सुंककप, हमारी अन्तश्चेतना और हमारे अुंदर की प्राण उजाग....क्योकक कमजोरी कै सी भी हो वो हाष्टनकारक ही होती है. सुंशय हर टरयते का दुयमन होता है, जहााँ इसके होने की आशुंका भी होने लगे वहाुं किर दूसरी कोई भावना नहीं रूकती. क्योकक हर टरयते का आधार ष्टवश्वास से बुंधा होता है और हमें ष्टसिग अपने ष्टहस्से की विा ष्टनभानी होती है और इन्ही सब बातों का ध्यान हमें अपने साधनात्मक जीवन में भी रखना पड़ता है. बहुत से सवाल ऐसे होते हैं जो साधना काल में हमारे मनमष्टस्तष्क को ष्टहला कर रख देते हैं और जब तक सही उिर ना ष्टमले तब तक ना तो साधना में मन लगता है और ना ही ककसी और काम में क्योकक हाथ में माला लेकर घुंिो आाँखें बुंद करके बैठने से अगर ष्टसष्टद्धयााँ ष्टमलती तो शायद आज हर दूसरा आदमी शुंकराचायग होता....बात अिपिी है पर उतनी ही सत्य भी..... आम तौर पर अक्सर यह सवाल हमारे मन में आते हैं१. साधना ककस समय पर शुरू करनी है और कब तक करनी है, इसे करने का सबसे उष्टचत काल कौन सा है ष्टजसमें यह ष्टसद्ध हो जायेगी.....
२. मेरे पास प्राण प्रष्टतष्टष्ठत युंि या माला नहीं है तो मैं क्या करूुं...... ३. कै से पता चलेगा मुझे यह मुंि ष्टसद्ध हुआ या नहीं...... ४. यकद में बताए गए समय पर साधना नहीं कर पाया तो क्या? मैं दुबारा इसे कब कर सकता हूाँ.... ५. मैंने इतने लाख अनुष्ठान इस मुंि के कर ष्टलए हैं पर मेरा यह कायग ष्टसद्ध नहीं हो रहा है ऐसा क्यों.... और ऐसे ही ढेरों प्रश्न ष्टजनकी गणना करना असम्प्भव है. अब क्रम से इन प्रश्नों के उिर१. हर साधना का अपना एक ष्टवशेष ष्टवधान और उसे करने का समय होता है इसमें कोई दोराय नहीं है और यकद उस साधना को उसी समय में ककया जाए तो वो िलीभूत भी होती है यह भी सत्य है पर यह सोचना की ष्टसष्टद्ध हाथ में माला ष्टलए हुए मेरे सामने उपष्टस्थत हो जाए यह उष्टचत नहीं है क्योकक साधनाओं को करने के पश्चात ऐसा तो होता नहीं है की आपको आपकी कदनचायग मैं उसका प्रभाव कदखाई ना देता हो, मन-मुताष्टबक प्रभाव ष्टमलने का अथग ही यही है की आपके िारा ककया गया मुंि जाप िलीभूत हो रहा है और अगर हम यह बात करें की हम देवी को प्रत्यक्ष करने के मनोरथ से साधना कर रहे थे मगर वो प्रत्यक्ष नहीं हुई तो इसका एक सीधा सा उिर यह है की हजारों वषग लग जाते हैं ऐसी कक्रया के सम्प्पन्न होने में और साथ ही साथ अष्टत कठोर ष्टनयमों का पालन करना होता हैजैसे की ष्टवशेष खान पान, पूणग मयागकदत जीवन और अष्टत कठोर ष्टवधान तब जाके कहीं यह ककयाग ष्टसद्ध होती है और यकद हम यह कहें की ५०० साल का समय माि ५ हफ्तों में सुंकुष्टचत हो सकता जाए तो यह थोिा मुष्टयकल है...पर क्या यह बात कम है की परा शष्टक्तयााँ अप्रत्क्ष रूप से ही सही पर आपको अपना साष्टनध्य तो दे रही हैं ना. साथ ही यकद इनका पूणग ष्टसष्टद्धकरण करना हो तो अकप काल के ष्टलए ही सही साधक को पूणग मयागकदत और सुंयष्टमत जीवन शैली का पालन करना ही होगा,याद रष्टखये प्रकिीकरण और पूणग ष्टसष्टद्ध दो अलग अलग बाते हैं. आपको इस कटठन मागग को कै से साध्य करना है ये आपको हिं सुंककप शष्टक्त से तय करना ही होगा. २. अब दूसरा प्रश्न प्राण प्रष्टतष्टष्ठत सामग्री का हर साधना में अपना एक महत्वपूणग स्थान है और उस साधना को ष्टसद्ध होने में इनका ष्टवशेष योगदान होता है इसीष्टलए जहााँ तक सम्प्भव हो साधना करने से पहले बताई गयी सामग्री को प्राप्त कर लेना चाष्टहए पर यकद कभी ऐसा हो की यह सब आपको नहीं ष्टमल रहा है तो क्या माि सामग्री के अभाव में साधना को ना करना क्या उष्टचत है?..... नहीं ऐसा नहीं सोचना चाष्टहए क्योकक अगर कु छ नहीं है तो क्या गुरु ष्टचि तो है जो अपने आप में प्राण प्रष्टतष्टष्ठत है और वो माला तो है ष्टजससे आप गुरु मुंि करते हो तो बस बन गया काम.....साधना को सम्प्पन्न करने से पहले सदगुरुदेव का आशीवागद अष्टनवायग होता है तो क्या उन्ही सदगुरुदेव को प्राणों में बसाए हुए यकद सामग्री के अभाव में भी हम कोई साधना सम्प्पन्न कर रहे है तो वो सिलता देने से पहले यह सोचेंगे की इसने सामग्री का उपयोग नहीं ककया तो इसे सिल होने का कोई अष्टधकार नहीं.....नहीं ऐसा कभी नहीं होगा क्योकक वो हमारे
प्राणों से जुड़े है और वो जानते हैं की ककन कारणों वश ऐसा ककया गया है तो यकीन माष्टनए वो अपने आशीवागद से आपको वुंष्टचत नहीं रखेंग.े ...... ३. अब हम बात करते हैं की यह बात कै से पता चले की ष्टजतना मुंि जाप ककया है वो हमें ष्टसद्ध हुआ है या नहीं.....तो मुंि ष्टसद्ध ना हुआ हो इसका तो प्रश्न ही नहीं उठता क्योकक इस ग्रुप में साधनाओं से सुंबष्टुं धत जो भी मुंि कदए जाते है वो सब जागृत होते हैं, इसीष्टलए तो आपको बस उनकी अष्टधकतम से अष्टधकतम ५१ माला करनी पिती हैं और वो भी इसष्टलए की मुंि शष्टक्त और आपकी प्राण उजाग में एक सामुंजस्य बैठ जाए और साधना में होने वाली अनुभष्टू तयााँ मुंि के जाग्रत अवस्था में होने का ही पटरणाम है. अब जरा सोष्टचए जाग्रत मुंि के साथ साधना करने में पसीने छू ि जाते हैं तो क्या हो यकद आपको स्वयुं वो मुंि जाग्रत भी करना पड़े तब शायद इस जीवन में माि एक-दो साधनाएुं कर पाना ही सम्प्भव होगा. पर साधना सम्प्पन्न हो जाने के बाद उसको छोड़ देना भी उष्टचत नहीं है.....मास्िर हमेशा कहते हैं एक बार मुंि और आपकी प्राण उजाग एक हो जाने पर भी कु छ कदनों के अुंतराल से और यकद सम्प्भव हो तो प्रष्टत कदन उस मुंि की कम से कम एक माला कर लेनी चाष्टहए ष्टजससे की आप दोनों (मुंि और आप) का आपसी तालमेल बना रहे. ४. हर साधना को करने का एक समय कदया जाता है पर ऐसा कभी-कभी हो जाता है की हम उस समय से चूक जाते हैं तो इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं है आप उस साधना को कभी भी कर सकते हैं बस इस बात का ध्यान रखें की आप उस समय ष्टवशेष से जान बूझकर ना चुकें हों और सदगुरुदेव तो हमेशा कहते हैं की जब भी अुंदर से महसूस हो तभी साधना करनी चाष्टहए क्योकक जबरदस्ती मन को मार कर आसन पर आाँख बुंद करने का क्या ओष्टचत्य जब हमारा मन ही उस काम को नहीं करना चाहता है. ५. अब आते हैं हमारे अुंष्टतम प्रश्न पर तो उसका एक सीधा सरल उिर यह है की हमारे िारा की गयी साधना की ष्टगनती तो हम करते हैं पर वो ष्टगन कर की गयी साधना ककतने मन से की गयी थी इसका नतीजा कहीं ओर से आना होता है....हमारे हाथ में ष्टसिग अपना कमग करना है वो भी पूरी ईमानदारी के साथ. अब आप खुद ही सोष्टचये हमारी पूरी चेतना तो माला को ष्टगनने में लगी पड़ी है तो हमने मुंि जाप ककया ही कहााँ? हमने तो बस आसन पर सदगुरुदेव के सामने बैठ कर ष्टगनती की है.... मेरे मास्िर हमेशा समझाते हैं टरयता चाहे मााँ-बेिे का हो, पष्टत-पत्नी का हो या किर गुरु-ष्टशष्य का अगर हम अपने ष्टहस्से की वफ़ा ष्टनभाएुंगे तो उस टरयते को अिूि बुंधन में बुंधने से कोई नहीं रोक सकता और हमारे सदगुरुदेव तो हमारे प्राणाधार हैं मतलब वो हम में ही हैं तो क्या हम अपने आप के प्रष्टत ईमानदार नहीं रह सकते.....रह सकते हैं.....हैं ना J ==============================
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My master often tells me one thing that whatever may be the work, how it may be, it is in our hands to do it with full honesty. Because winning and losing are two sides of the same coin but it does not mean that we don’t expect at all because it is the hope that sustains the life…….Side by side we should also keep one thing in mind that Tantra does not run on our feelings, it is based on our strong resolution, our inner consciousness and the power of inner praan……because whatever may be the weakness, it is always harmful. Doubt/suspicion is the enemy of every relation .Where there is even a slightest of apprehension about it, there no other feeling can sustain because trust is the cornerstone of every relation and we only have to fulfill the loyalty of our portion and all these things have to be kept in mind in our spiritual life too. There are lots of questions which shake our mind and brain during the sadhna duration and when we do not get the correct answers then neither we feel like doing sadhna nor any other work. Because if siddhis were obtained by just taking rosary in hands and sitting for hours while closing you are eyes, then every second person would have been Shankracharya…… this may seem strange but it is that much true…. Generally these questions arise in our mindAt what time one should start sadhna and up till what time it has to be done. Which is the best time for doing sadhna in which sadhna can be accomplished…? I do not have energized yantra and rosary then what should I do….. How would you know that this mantra has been accomplished (siddh) by me or not…. If I was not able to do sadhna at the time told to me then what? When I can do it again….. I have done lacs of anushthan of this mantra but this work is not getting accomplished. Why is it so…..and such type of so many questions which can’t be counted. Now answers to this question in the same sequence……. Every sadhna has got its own special rules and there is definite time for doing any sadhna. There are no second-opinion on it.It is also true that If the sadhna is done during that time then it is fructified also but thinking that siddhi will appear in front of me with garland in her hands is not correct .Because it never happens after doing sadhna that you do not witness its influence in your daily-life. Getting the desired influence simply means that mantra jap done by you is getting fructified
and if we say that we were doing the sadhna with the desire of manifesting the goddess but she did not appear then answer to it is quite simple that such an activity takes thousands of year to materialize and one need to follow very strict rules.—like special eating habits, full disciplined life and very strict rules then only this activity is accomplished. If we say that the duration of 500 years can be compressed into merely 5 weeks then this is little bit difficult……But is this not enough that Para powers though invisible , are giving their assistance to us. If one wants to completely accomplish them then may be for a shorter period, but sadhak would have to definitely follow complete disciplined life-style. Keep one thing in the mind that manifestation and complete accomplishment are two different things. You have to decide by your strong will power that how to accomplish this difficult path. 2. Now second question. Energized sadhna articles paly a very important role in every sadhna and they contribute a lot in accomplishing sadhna. Therefore wherever it is possible, one should attain the sadhna articles before doing any sadhna but if you are not able to get them then is it right not to do the sadhna in the absence of these articles?......No we should not think like this because if we do not have anything so what? We have Guru picture which is energized in itself and we have the rosary by which we chant Guru mantra so our work is done……It is compulsory to obtain the blessings of Sadgurudev before doing any sadhna then if we, with Sadgurudev in our heart, are doing any sadhna in absence of sadhna article, then will he think before giving us success that he has not used sadhna articles so he does not possess the right to succeed. ……never will it happen like this because he is connected to our heart and he knows the reason why we have done like this, so trust me, he will never deprive us of his blessings. 3. Now we will talk about how we will know that the mantra jap which have done has been accomplished to us ……so there are no question mark over nonaccomplishment of mantras because all sadhna related mantras which are given in this group are activated in themselves therefore you just have to chant maximum 51 rounds of rosary of them and that too so that coordination develops between power of mantra and power of your praan. Experiences in sadhna are only the results of activated state of mantras. Now just think that how you toil hard to do sadhna with activated mantras then what will happen if you have to activate mantras on your own .Then probably it will be possible to do only 1 or 2 sadhnas in entire life. But it is not correct to leave the mantra after completing the
sadhna……Master always says even after mantra and power of praan becoming one, after a gap of few days or if possible, one should chant at least one rosary so that mutual coordination is maintained between you both(Mantra and you). 4. Time is given for doing every sadhna but it happens sometimes that we miss that time.so we need not to worry in this case. You can do that sadhna anytime .Just keep this thing in mind that you should not have missed that particular time intentionally and Sadgurudev always used to say that whenever you feel from inside, do the sadhnathen only. Because what is the point in doing sadhna forcefully when you are not feeling like doing it. 5. Now we come to our last question. A simple and easy answer to this is that though we count the sadhna we do but how passionately we have done the sadhna( which we have done while counting ).Result of it has to come from somewhere else……Our job is to do our karma that too with total honesty. Now you think yourself when our full consciousness is busy in counting the rosaries then where we have done our mantra jaap? We have just counted the rosaries sitting on our aasan in front of Sadgurudev. My Master always says that any relationship whether it is of mother-son, husbandwife or guru-shishya, if we fulfill the loyalty of our part then nobody can stop that relation from being ever-lasting. And Our Sadgurudev is our Praanadhar (base of our praan) meaning he is inside us so can’t we remain honest to ourselves…….we can…..isn’t it?
****ROZY NIKHIL****
****NPRU**** Posted by Nikhil at 12:13 AM No comments: Labels: TANTRA DARSHAN, TANTRA SIDDHI
Friday, May 18, 2012 –१
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:
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“ष्टनरुं तरकृ ताभ्यासादुंतरे पययष्टत ध्रुवुं | तदा मुष्टक्तमवाप्नोष्टत योगी ष्टनयतमानस: ||” योगी ष्टनरुं तर अभ्यास के िारा ही स्वयुं को स्वयुं के भीतर देखने में समथग हो पाता है और ऐसा हो जाने पर ष्टनश्चय ही उसके मन और ष्टनयष्टत से वो मुक्त हो जाता है | ककन्तु कै सा अभ्यास,कै सी कक्रया का प्रयोग साधक को मन: शष्टक्त का स्वामी बनने में सहायक होता है,उसके पहले ये समझना ज्यादा महत्वपूणग है की आष्टखर मन की उपयोष्टगता साधना की सिलता के ष्टलए इतनी जरुरी क्यों है ? आपने कहावत तो सुनी ही होगी की – “मन के हारे हार है और मन के जीते जीत” अथागत यकद आप ककसी कायग को करना चाहते हैं तो आपको आपके मन का पूणग सहयोग आवययक होगा,यकद जरा सी भी न्यूनता रही तो एक सरल कायग को भी पटरष्टस्थष्टतयााँ इतनी जटिलता दे देती हैं की आपका सिल होना नामुमककन ही हो जाता है | ये तो हुआ कहावत का सामान्य अथग ककन्तु एक साधक अपने मतलब का अथग इस कहावत में ऐसे ढू ाँढ लेता है की यकद आप जीवन युद्ध में अपने मन से हार जाते हो तो भष्टवष्य में आप कभी नहीं जीत पायेंग,े ककन्तु यकद आपने मन को अपना स्वामी बनाने की अपेक्षा खुद उस पर ष्टनयुंिण स्थाष्टपत कर उसका स्वामी बन जाए तो,तब ऐसे में वो मन की अनुंत शष्टक्तयों का प्रयोग कर प्रत्येक पटरष्टस्थष्टत को अपने अनुकूल बना सकता है | मन के दो पक्ष होते हैं – १. बाह्य पक्ष या बाह्य मन २. अुंतर पक्ष या अन्तः मन वास्तव में ये दो मन ना होकर मन के दो पहलु होते हैं | और सम्प्पूणग तुंि कक्रया की सिलता इन्ही दोनों पहलुओं को आपस में ष्टमलाने से ष्टसद्ध होती हैं, बाह्य से भीतर की यािा ही तो तुंि योग या सािकय योग कहलाता है | अपरा से परा पथ पर अग्रसर होने की कक्रया मन के इन्ही दोनों पक्षों का योग करने से पूरी होती है तब जाकर मन पर ना ष्टसिग ष्टनयुंिण हो पाता है अष्टपतु वो अपनी अनुंत शष्टक्तयों से साधक को पटरपूणग कर देता है | १.अष्टनयुंष्टित मन या अधगष्टनयुंष्टित मन साधक के जीवन में माि भिकाव ही लाता है | २. ऐसी ष्टस्थष्टत में साधक ना तो गुरु के प्रष्टत समर्थपत हो पाता है और ना ही साधना के प्रष्टत वो पूणग श्रृद्धावान रह पाता है |
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३.चटरि की स्वच्छता मन के सहयोग पर ही तो ष्टनभगर करती है, मन ही हमें सुंबध ुं ों के प्रष्टत ष्टनष्ठावान बनाता है |अन्यथा ष्टवकृ त मन ककसी भी टरयतों की मयागदा हमें समझने नहीं देता, तब ऐसे में मााँ,बहन,बेिी जैसे पष्टवि टरयतों के प्रष्टत भी आपका स्नेह कामुकता में पटरवर्थतत हो जाता है | आज हम जो भी ऐसी खबरे सुनते,देखते या पढते हैं,वो सभी इसी ष्टवकृ त मन के दुष्पटरणाम ही हैं | ४. मन ही प्राण और आत्मा के साथ योग कर आपको पूणत ग ा देता है,और जब ककसी में इनके मध्य का बल कमजोर हो जाता है तो ऐसे में व्यष्टक्त ना ष्टसिग कमजोर मनोबल का स्वामी होता है बष्टकक उसकी ककसी भी क्षेि में सिल होने की सुंभावना ना के बराबर ही होगी | ५. ऐसा व्यष्टक्तत्व अपने जीवन में ककसी को प्रभाष्टवत नहीं कर सकता,और ना ही वो अपने लक्ष्य को सिलतापूवक ग प्राप्त कर पायेगा | ६. ऊपर के हबदु पढ़ने के बाद क्या ये नहीं लगता है की साधना में सिलता तो बहुत दूर की बात होगी | ककन्तु यकद ककसी कक्रया ष्टवशेष से मन के दोनों पक्षों का योग करवा कदया जाये तो मनोबल,प्राणबल और आत्मबल के पूणग योग से साधक पूणगत्व को प्राप्त करता ही है | ये दो प्रकार से सुंभव है | कक्रया योग िारा तुंि साधना की क्रम साधना के िारा सदगुरुदेव ने बहुत पहले “कक्रया योग” पर पूरा ८ कदवसीय ष्टशष्टवर लगाया था और इस कक्रया को प्रायोष्टगक रूप में सुंपन्न करवाया था | वास्तव में मन की दोनों अवस्था का योग करने पर साधक अनुंत रहस्यों की कुुं जी पा लेता है तब दीघागयुष्य, कदव्यता उसे सहज ही प्राप्त हो जाती है | मानव शरीर में जो सप्तचक्रों का ष्टववरण आता है वो प्रतीक है उन सप्त अवस्थाओं का उन सप्त अवस्थाओं का जो अपूणत ग ा से पूणगता की और बढते हुए क्रमशः हस्तगत होते जाती है, सदगुरुदेव कहते हैं की वैसे सम्प्पूणग शरीर में चक्रों की सुंख्या १०८ होती है ककन्तु मूल शष्टक्त के न्द्रों के रूप में सात चक्रों को मान्यता दी गयी है | हमने ऊपर मन के दो पक्षों की बात की है या दो अवस्थाओं की बात की है | ककन्तु इन अवस्थाओं के बीच में सात परते होती हैं ष्टजनका क्रष्टमक भेदन करने के बाद ही दोनों पक्ष एक हो पाते हैं, तब ना बाह्य चेतन मन होता है और ना ही अचेतन मन, तब होता है तो माि पूणग सुंचत े न मन | और इसी की प्राष्टप्त एक साधक का अभीि होती है | मन के ये सात स्तर ष्टनम्नानुसार होते हैं चेतन स्मृष्टत अवचेतना सजगना जीवनात
६. गभगसष्टु वस्तृता (अन्तययोग) ७. ब्रह्माण्ि चेतना और मन के दोनों पक्षों के मध्य इन्ही सात परतों से ष्टवभक्त है | सामान्य मानव बाह्य मन की अवस्था में ही जीता है और किर वैसे मर जाता है,ना तो कोई उपलष्टब्ध उसे प्राप्त होती है और ना ही जीवन का कोई लक्ष्य ही | मैं माि इतना बता दूाँ की सदगुरुदेव हमेशा से यही कहते हैं की इन परतों में से जो पहली का भी भेदन कर लेता है वो जीवनमुष्टक्त और भोग दोनों प्राप्त कर लेता है तब दूसरी तीसरी,चौथी,पाुंचवी आकद की शष्टक्तयों का भला क्या वणगन ककया जा सकता है | अब बात करते हैं इनकी भेदन प्रकक्रया की तो “ष्टशवहलग” के ष्टबना ये लगभग असुंभव है | अतः एक प्राण प्रष्टतष्टष्ठत ष्टशवहलग आपके पास होना अष्टनवायग है | कै सा भी ष्टशवहलग आपके पास होना चाष्टहए | मैं पारद ष्टशवहलग का प्रयोग ज्यादा उष्टचत समझती हूाँ ,क्यूकुं क अन्य तत्वों की अपेक्षा आत्मबल और ब्रह्माुंिीय ऊजाग का सबसे बड़ा कें द्र ष्टवशुद्ध पारद होता है | क्रमशः अन्य तत्वों,धातुओं से ष्टनर्थमत ष्टशवहलग में उिरोिर ऊजाग की तीव्रता मुंद होते जाती है | ष्टशवहलग के तीन प्रकार होते हैं | १. ईिहलग २. प्राण हलग ३. भाव हलग या आत्म हलग ईि हलग बाह्य और सकल हलग होता है और क्रम साधना के प्रथम स्तर का जागरण और भेदन के ष्टलए आपको अपने बाएुं हाथ में ष्टशवहलग का स्थापन कर दाष्टहने हाथ के मध्यमा और अनाष्टमका ऊाँगली का स्पशग कराकर मुंि का जप करना होता है ...... क्रमशः ..... ================================================
“NirantarKritaAbyaasadantrePashyatiDhruvam | Tada Muktimvaproti Yogi Niyatmanasah ||” Yogi, only upon continuous practice, becomes capable to see himself inside him and when it happens, he frees himself from mind and destiny. But which practice, which process helps sadhak to become master of the power of mind. Before this, it is very much important to understand that why; afterall, the utility of mind is so much necessary for success in sadhna?
You all would have listened to proverb in Hindi that ---“Man kehaarehaarhainaur man kejeetejeet”(Victory lies in conquering our mind) Meaning if you want to do any work then complete cooperation from your mind is necessary. If there is even a little bit of deficiency, then even the simple tasks are made to look cumbersome by the circumstances and it becomes impossible for you to get success. This was the simple meaning of the proverb but the sadhak derives his own interpretation from this proverb that If you loses to your mind in the battle of life then you can never win in future. But if instead of mind becoming your master, you become its master after establishing control over it then in that case you can utilize the infinite powers of mind and make every situation favourable. There are two aspects of mind1. Outer aspect or Outer Mind 2. Inner aspect or Inner mind
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In reality, they are not two minds rather they are two facets of mind. Success of entire tantra process lies in combining both these aspects together. Journey from outer to inner world only is called Tantra Yog or Safalya Yog. Advancing forward on Para path from Apara Path is completed when these two aspects are united. Then only, mind not only gets controlled but also mind, with its infinite powers, makes the sadhak complete. Uncontrolled mind or half-controlled mind only deviates the sadhak off the track in his life. In such a situation sadhak neither remains dedicated to his Guru nor develop a sense of trust towards sadhna. Purity of our character depends only on cooperation from our mind. Mind only makes us faithful towards our relations. Otherwise, distorted mind never allows us to understand the dignity of any relationship. In such a case even your love towards pure relations of mother, sister and daughter is transformed into lust. Today the news we see, hear or read is the ill-consequences of this distorted mind only. Mind only gives you completeness after combining with praan and soul. And whenever the strength between them is weakened in any person then in such a case person does not only become master of low morale but also chances of his succeeding in any field are negligible.
5. Such a personality can never impress anyone in his life and nor he will be able to successfully attain his goal. 6. Do you not feel after reading the above points that success in sadhna will be distant dream for him? But if, by any special process, these two aspects of mind are united then due to the total combination of Praanbal, Manobal and AatmBal, sadhak definitely attains the completeness. This is possible in two ways. 1. Through Kriya Yog. 2. Through Kram sadhna of tantra sadhna. Sadgurudev, very much earlier, conducted 8 day shivir on “Kriya Yog” and made us do this process practically. In reality, upon doing union of these two states of mind, sadhak gets key to infinite secrets .Then he easily attains divinity and long life. The description which we get of seven chakras in human body, they are the indicator of those seven states (those seven states, which are attained respectively while progressing towards completeness from incompleteness).Sadgurudev said that though there are 108 chakras in entire body but seven chakras have been recognized as the basic power centres. We have discussed about the two aspects or two states of mind but between these two states there are seven layers. Their respective bhedan leads to a state where these two aspects become one. Then there is neither outer conscious mind nor subconscious mind. Then what remains is only full conscious mind. And attaining this state is the aim for any sadhak. The seven levels of minds are as follows1. Chetan 2. Smriti 3. Avchetna 4. Srajana 5. Jeevanaat 6. GarbhSuvistrita(Antashyog) 7. Brahmand Chetna And between the two states of mind, these are the seven layers. Normal person lives in the states of outer mind and dies also in such a state. Neither he gets any achievement nor does he attain any goal of his life. I may tell you one fact that Sadgurudev used to say that who does the bhedan of only first layer among these layers; he not only frees himself from life but attains bhoga also. Now, how can we describe the powers of second, third, fourth, fifth etc.
Now we will talk about the bhedan process which is virtually impossible without Shivling. Therefore, it is necessary for you to have an energized Shivling.Any type of Shivling you can have. I prefer the use of Parad Shivling because as compared to other elements, centre of universal energy and spiritual power is pure Parad. Respectivelyin the Shivling made from other elements or metals, intensity of power successively goes on decreasing. There are three types of Shivling 1. Ishtling 2. Praan Ling 3. Bhaav Ling or Aatm Ling Isht ling is an outer and total ling. For the first stage of jagran and bhedan in Kram sadhna, you have to establish Shivling on your left hand and chant the mantras while touching Shivling with middle and ring finger…. To be Continued….
****RAJNI NIKHIL****
****NPRU**** Posted by Nikhil at 4:27 AM 1 comment: Labels: TANTRA DARSHAN, TANTRA SIDDHI
Monday, April 30, 2012 इ और अब Seven sadhnas of this Month and rules in context of these sadhnas , effective from now)
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ष्टमिो , अब समय हैं कु छ
बहुत ही कड़े ष्टनयम और गुंभीर बातों को आपके सामने रखने का .यह यािा जो
आज 5 वषग से अनवरत चल रही हैं , पर समय के इस हबदु पे अगर अभी कु छ भष्टवष्य को दृष्टिगत रखते हुए ष्टनयम न रखे ..तो कु छ कठोर ष्टनणगय न ष्टलये गए तो .... और उनका कठोरता से पालन न ककया गया तो ... ककये गए श्रम का उतना पटरणाम नही प्राप्त होगा .. हमें जो भी उच्चस्थ कदशा ष्टनदेश प्राप्त हुए हैं . और जो हमारा इतने कदन से इस ग्रुप को देख कर आकलन रहा हैं ..उसे ध्यान मे रखते हुए .. इससे पहले की आप ष्टनयम पढ़े कु छ बाते पहले आत्म मुंथन कर ले
तभी साथगकता रह पायेगी
..आपके श्रम की और हमारे श्रम की भी .. क्योंकक साधना कोई हास पटरहास का नही बष्टकक सवागष्टधक गुंभीर ष्टवषय या कमग हैं तो .... 1. क्या आप एक आसन पर कम से कम २ १/२ घुंिे तक
ष्टस्थर बैठ पाते हैं .?
2. क्या आपने गुरु मुंि का कम से कम सवा लाख मुंि का एक अनुष्ठान ककया हैं ?? 3. क्या आप ने सवा लाख
चेतना मुंि का जप ककया हैं .??
4. क्या आप की सदगुरुदेव या सदगुरुदेव स्वयुं िारा ष्टनर्ददि परम्प्परा पर श्रद्धा हैं.?? 5. क्या आपके मन मे हर हाल मे सदगुरुदेव का स्थान सवोपटर हैं, और उस स्थान पर ककसी “ तथाकष्टथत स्वम्प्भू गुरु “ बन बैठे को
गुरु बनाने का मानस
तो रख कर नही चले हैं या हैं .या श्रद्धा रख रहे
हो ?? इन प्रशनो का उिर को पहले अपने मन मे मुंथन कर ले .पहले चार हबदु पर आपके उिर यकद “”हााँ “” मे हैं और पुंचम हबदु पर
यह की ष्टसिग आपके ष्टलए सदगुरुदेव ही सवोपटर हैं और अन्य ककसी भी
****तथाकष्टथत स्वयम्प्भू गुरु***** के ष्टलए कोई स्थान आपके मन मे नही हैं ,तभी आगे आने वाले
ष्टनयम पढ़े ... क्यूकुं क इस शब्द का बहुत गहन अथग है ... प्रकि तौर पर सदगुरुदेव िारा,माि तीन ही गुरु गृहस्थों हेतु ष्टनर्थमत ककये गए हैं,जो स्वयम्प्भू गुरु बना है इसका सीधा अथग ये है की वो इस सदगुरुदेव के इस ष्टनणगय से सहमत नहीं है....अतः उनके समथगकों और ष्टशष्यों हेतु ये साधनाएुं िलीभूत हो ही नहीं सकती है..ये हमें कठोरता के साथ कहा गया है..अतः इस बात को हृदयुंगम कर ले...क्यूकुं क कु छ लोगो की मनोवृष्टि या समझ को मैं क्या कहूाँ...जो यहााँ ग्रुप में कहते हैं की गुरु भाई को ज्यादा मान कदया जा रहा है गुरु की अपेक्षा..तो उनकी बुष्टद्ध की कु न्द्ता को मैं क्या कहू,अरे मैं चाहे आकाश पाताल एक कर दूाँ रहूाँगा तब भी बना रहना चाहूाँगा ष्टशष्य ही...दीक्षा देने की क्षमता मुझमे कभी नहीं आएगी...क्यूकुं क पहले मैं ढुंग से ष्टशष्य ही बन जाऊुं तो मेरा जीवन साथगक हो जायेगा...| मैं तो सदैव भाई ही हूाँ और मेरा ये सारा खट्टा मीठा ज्ञान माि मेरे सदगुरुदेव की कृ पादृष्टि का पटरणाम है मैं कोई स्वयम्प्भू गुरु नहीं और ना ही मुझे मन्िों या श्लोको या साधना ष्टवधान को समझाने के ष्टलए पुस्तक देखने की जरुरत है...मैंने जो समझा है उसे आत्मसात ककया है और उसे कई बार कायगशाला में प्रत्यक्ष करके ष्टबना ककसी आिम्प्बर के अन्य गुरु भाई बहनों के समक्ष प्रमाष्टणत भी ककया है | उन मूखों को मैं क्या समझाऊुं की इस भाई की बात उन्हें गलत लगती है पर दूसरा भाई ष्टजसे तुंि का क भी नहीं आता है और जो स्वयम्प्भू गुरु बने बैठे हैं,उनकी वाह वाह करने में वो पीछे नहीं हैं...| गुरु बनों ककसने मना ककया है गुरु बनने को,पर अपने बूते पर ष्टबना ष्टनष्टखल नाम का सहारा ष्टलए बनकर कदखाओ और साष्टबत करो ऐसे ष्टशष्यों को सामने लाकर जो की तुंि को कक्रयात्मक रूप में सुंपन्न करके कदखाए,जैसा मेरे सदगुरुदेव ने ककया है और मैं जो कहता हूाँ करके भी कदखा सकता हूाँ,मुझे गवग है की उन्होंने मुझे इस मागग पर गष्टत दी है | उन मूढ़मष्टतयों को ये नहीं समझ में आ रहा है की मैं तो सदैव भाई बनकर साथ हूाँ पर वो उन तथाकष्टथत ढोंष्टगयों के साथ खड़े होकर कौन सा ष्टनष्टखल कायग कर रहे हैं..ष्टजनकी आाँखें और ष्टचि ही मर चूका है...| मैंने पाया है और इन्ही साधनाओं से पाया है और मेरा पटरवार,मेरा पूरा जीवन,मेरे जानने वाले और इन सबसे बढ़कर मेरे सदगुरुदेव इस बात के साक्षी हैं की ये जूनन ू मैंने कदन ब कदन बढ़ाया ही है और तब पटरणाम प्राप्त ककये हैं | यकद आप भी इन्हें पूणग ष्टनयम और दृढ़ता के साथ ष्टवधान के साथ मनोयोग पूवक ग करें गे तो आप भी मायूस नहीं होंगे..|
१. अब से जो भी उच्च कोटि के ष्टवधान ष्टजनके बारे मे िे सबुक या ब्लॉग पर आएगा ,पर उनके
बारे मे
पूणत ग ा से उन्हें ष्टसिग जो सदगुरुदेव जी से दीष्टक्षत हैं या गुरु ष्टिमूर्थत से दीष्टक्षत हैं या अन्य उन ककसी भी गुरु से दीष्टक्षत हैं जो की हमारे सदगुरुदेव से दीष्टक्षत ** नही** हैं ..उन्हें ही कदया
जायेगा. ये
साधनाएुं सहज प्राप्त्य नहीं रही हैं,इन्हें कई बार परखा गया है अनुभष्टू तयों की नुकीली चट्टानों पर,और हर बार इनका प्रभाव अद्भुत रहा है,इसष्टलए इन्हें व्यष्टक्तगत तौर पर ही उपलब्ध कराया जा रहा है,ताकक आप यकद इन्हें पूणग मनोयोग से सुंपन्न करे तो सिलता का वरण कर इसका लाभ...स्वयुं,स्व पटरवार,समाज और राष्ट्र को प्रदान कर सके ... २. हर महीने आने वाली सात साधनाए के ष्टलए बस 30 /40 यह देखने मे आया
हैं कक ककसी भी ष्टवधान के बारे मे
ही यन्ि बनबाये जा रहे हैं अभी तक
जब ग्रुप मे आता हैं तो
अष्टधकतम
कमेन्ि 60 या 70 तक आते हैं ष्टजनको यकद ध्यान से देख जाए तो माि 30 या 35 लोग ही ककये होते हैं तब और युंि बनाने का क्या औष्टचत्य ??
३. एक यन्ि पर भले ही ष्टनमागण की कीमत
२० से ३० रुपये आये
या कम /ज्यादा
भी . पर
एक एक इस प्रकार की अपने आप मे “ष्टवष्टशि साधना “ के ष्टलए आवययक यन्ि को प्राण प्रष्टतष्टष्ठत , चैतन्य
करना , शास्त्रीय माुंष्टिक और ताुंष्टिक ष्टवधान पूणत ग ा के साथ समपन्न करना , आवययक कमग
काुंि , हवन को ष्टबना ककसी िुटि के सिलता
भी दे सके , और इसमें
इस तरह से पूरे करना की सबुंष्टधत देव शष्टक्त पूणत ग ा के साथ
समय और धन दोनों की आष्टनवायगता
होती
है हीं .और इन
प्रकक्रयाओ को सम्प्पन्न करने मे हजारों रूपये का खचग आता हैं . यह कोई आपके सामने बार बार कहने की बात या तथ्य नही हैं . ४. पर आपको ष्टनशुकक यह यन्ि और ष्टवधानक्यों उपलब्ध कराया जाए .... पर यह सब क्यों ?? आज कौन हैं जो यह सब कर रहा हैं . ..ककसे हचता हैं.... ष्टसिग एक उदेयय की अब आप भी सिल हो कर सामने आ सकें ..इन ष्टवधानों की श्रेष्ठता /उपयोष्टगता अब हम नही आप स्वयुं प्रमाण बन कर दे .......ष्टसिग ष्टलख ष्टलख कर आष्टखर कब तक ......और कक यह ष्टवधान हैं और वह ष्टवधान हैं पर कदया ककसी को नही ...क्योंकक कोई उसके लायक उन्हें ष्टमल ही नही रहा हैं .ऐसा कह कर ......कब तक अन्य लोगो कक तरह लोगों को भ्ष्टमत ककया
जा सकता हैं . पर यह बात हम पर भी लागू हो .इस से पहले .अतः अब समय
हैं कक ..अब हमारे कायग का पहला परीक्षा काल प्रारुं भ हो .... ५. अब समय हैं कक .जो साधनाए हम दे उसे .हम अपनी ओर से पूरा श्रम करे
और शेष आपके
ष्टहस्से की मेहनत आप मनोयोग ..प्राण प्राण से करे ........और यह हर पल ध्यान मे रखें की गुरु भाई के बल ष्टवधान समझा सकते हैं ...पर सिलता के बल और के बल सदगुरुदेव ही दे सकते हैं.......अब आपकी सिलता ही हमारा कायग का एक प्रमाण होगी .अतः ष्टनश्चय ही ..सब नही के बल कु छ जो साधना को करके सिल होना चाहते हैं .उनके ष्टलए ही यह सब ....... और हमारा कोई भी ककसी भी प्रकार का उदेयय या गुप्त उदेयय नही हैं . .आज तक हमारी कथनी ही हमारा प्रमाण रहे हैं . ६. कभीं कभी यह मानना पड़ता ही हैं कक अगर हर चीज आसानी से उपलब्ध हो तो शायद उसका अथग उसकी गुंभीरता समाप्त सी हो जाती हैं .अतएब इन साधनाओ को कै से आपको कदया जाना हैं ?? यह भी ष्टवचारणीय हैं . इसके ष्टलए हमने यही सोचा हैं कक कोटरयर के माध्यम से सबुंष्टधत
यन्ि
और सम्प्बष्टुं धत पूणग साधना ष्टवष्टध ,उन कु छ चुष्टनदा
व्यष्टक्तयों को
जो सच मे
साधना के प्रष्टत समर्थपत हैं या होना चाहते हैं .........उनके पते पर भेज दी जायेगी ष्टसिग आपको कोटरयर चाजग ही देना होगा ...इसके बाद अभी भी ..अब अगर कोई भी स्वयुं व्यष्टक्तगत
रूप मे ष्टमलकर और भी मागगदशगन पाना चाहता हैं तो (के बल एक उसी साधना के सन्दभग मे ) तो ष्टसिग और ष्टसिग एक गुरु भाई की मयागदानुसार हम उपलब्ध रहेंगे .. ७. महत्वपूणग तथ्य :: पर इन साधनाओ को देते समय यह भी ध्यान मे रख जायेगा की वह व्यष्टक्त ष्टवशेष का सदगुरुदेव के प्रष्टत क्या रुख हैं .ष्टसिग हमारे ग्रुप मे ही नही बष्टकक अन्य ग्रुप मे भी ... क्योंकक यह देखने मे आया हैं की ष्टनष्टखल तत्व या ष्टशष्य के प्रष्टत जो आया जैसा आया ष्टलखा जाता हैं क्योंकक शब्दों का क्या हैं ...जो मन आये ष्टलखो ..... और यह उन ग्रुप का कायग हैं पर लोग सब मौन रह कर
दशगक
बने रहते हैं ...सभी पक्षों को मौन समथगन देना यह तो ठीक नही हैं ...अतः ष्टनश्चय ही ऐसे लोग जो हर जगह मौन समथगन देते रहते हैं उन तक साधनाए न ही पहुचे ये भी हमें बहुत ध्यान रखना हैं . ८. ष्टजनको भी यह साधनाए दी जायेगी ,क्योंकक इस प्रकक्रया को हलका नही बनाना हैं तो उन्हें अगली साधनाए उपलब्ध कराने से पहले यह देख ष्टलया जायेगा कक क्या वास्तव मे उन्होंने साधनाए की हैं या बस ...यह कै से देखना हैं यह हमारा कायग होगा .क्योंकक ष्टजतना कठोरता हमारे िारा रखी जायेगी उतनी ही सभावना सिलता प्राष्टप्त की सभावनाए आपकी होगी .भावनात्मक बातों के ष्टलए इस साधनाओ के सन्दभग मे शायद अब कोई जगह नही होगी . अब जब बात साधना की होगी तो हम और आप दोनों पर ही ष्टनयम कठोरता से लागु होंगे .
९. यह स्पस्ि करना चाहता हूाँ .कक प्राप्त हुए कदशा ष्टनदेश के अनु सार ...जो भी साधनाए , ष्टनष्टखल अकके मी ब्लॉग या
ष्टनष्टखल अकके मी िे सबूक ग्रुप
पर
उपलब्ध हैं वह के बल और के बल “तुंि कौमुदी “ फ्री इ पष्टिका प्राप्त करने वालो को ही िली भूत होंगी .. १०.
के बल भावनात्मक कमेन्ि ष्टलखने वालो को या हमारे अपनों को भी ..इन साधना के ष्टलए
चुने जाते समय नही ......बष्टकक जो सही अथो मे साधनाए करना चाहते हैं उसे ही यह उपलब्ध कराई जायेगी . .यह ष्टनयम भी कठोरता से पालन होगा . ११.
और यह साधनाए मजाक की वस्तु नही होगी .. को कोई भी हकका सा ष्टवधान रख कदया
......न ही के बल प्रशुंशा के ष्टलए ....बष्टकक जीवन पटरवतगन मे सक्षम होगी . १२. बतायेगा
ष्टजसे जो भी साधनाए ष्टमलेंगी वह ककसी अन्य को उसका ष्टवधान ष्टबना अनुमष्टत ष्टलए नही
१३.
.ष्टजनको भी यह साधनाए दी जायेगी उन्हें पहले से सूष्टचत कर कदया जायेगा या तो उन्हें ष्टसिग
कोटरयर का खचग वहन करना होगा या व्यष्टतगत ष्टमलने के अवस्था मे उनके अपने आने जाने खाने पीने की व्यवस्था का स्वतः ही भार वहन करना होगा. मई माह की ७ साधनाएुं जो १० जून तक प्रभावी है :१. आत्मगणपष्टत साधना – तुंि के उच्च ज्ञान तीक्ष्ण बुष्टद्ध,स्मरण शष्टक्त और भगवान गणपष्टत के दशगन प्राप्त करने के ष्टलए एक गोपनीय ष्टवधान . २. ताुंिोक्त गुरु साधना – गुरु साधना का वो सोपान ष्टजससे आप सीधे गुरु प्राणों से एकाकार हो जाते हैं. और चक्र जागरण की कक्रया प्रारुं भ हो जाती है,तब भला क्या बाकी रह जाता है . ३. कनक माया साधना – लक्ष्मी की अजस्र प्राष्टप्त का अघोर ष्टवधान,ष्टजससे लक्ष्मी बाध्य ही हो जाती है साधक के जीवन में रहने के ष्टलए. ४. धी: सम्प्मोहन साधना – ष्टतब्बती पद्दष्टत से ककया जाने वाला ऐसा प्रयोग ष्टजससे माि १४ कदनों में आप का व्यष्टक्तत्व पूणग आकषगण क्षमता से युक्त हो ही जाता है, इसे अन्य सम्प्मोहन प्रयोगों में ना ष्टगने. ५. ष्टसद्ध सम्प्प्रेषण साधना- ष्टवचार सम्प्प्रेषण की अद्भुत कक्रया,ष्टजसके िारा ककसी भी नवीन क्षेि में रहने वाले ष्टसद्ध्जनों से सुंपकग कर उनकी प्रत्यक्ष कृ पा,सहयोग और ज्ञान प्राप्त ककया जा सकता है तथा प्रकाश युक्त छाया ष्टवहीन सूक्ष्म देह बनाने का पहला तथा अष्टनवायग सोपान . ६. रसायनमेखला साधना – कायाककप और रस ष्टवज्ञानुं की आधारभूत साधना ष्टजसके िारा पारद ष्टवज्ञान के रहस्यों को आत्मसात कर पूणग सिलता पायी जा सकती है. ७.
साबर औष्टलया साधना – इतर योष्टनयों का सहयोग प्रदान करने वाली अद्भुत साधना. =============================================
Friends, Now is the time to put forward very stringent rules and serious things in front of you.This journey has been continuously going on from last 5 years .But if we do not put some rules looking at the future then….. Some strong decisions are not taken then ….. And they are not followed firmly then… We will not get the desired result of our hard-work. Keeping in the mind high lever orders which we have received and based on the analysis of groups from quite some time…… Before you read the rules, let‟s introspect yourself then only hard-work of both you and us will be fruitful. Since sadhna is not the subject matter of laughter, it is a very serious issue then….
1. 2. 3. 4. 5.
Can you sit stably (unmoved) on one aasan for at least two and half hours? Have you done the anushthan of Guru Mantra of at least 1.25 lakhs? Have you chanted chetna mantra 1.25 lakh times? Have you got faith on Sadgurudev and tradition given by Sadgurudev? Do you consider Sadgurudev supreme all the time and you do not have intention to make so called self-made gurus as your guru or have faith in them??
Please think about the answers of these questions in your mind. If the answers to first four questions are yes and for the last question, Sadgurudev is supreme for youand you do not have any place in your heart for so called Self-made gurus, then only read the rules given below…..Because it carries a deep meaning …..Visibly Sadgurudev has made 3 gurus for all householders. Whosoever has become selfmade guru, it simply means that he/she does not agree with this decision of Sadgurudev……….Therefore for the supporters and disciples of them, these sadhnas can‟t be fruitful…..This has been told to us very stringently…..therefore imbibe this thing in your heart……Because what I can about the mentality of some people in the group……who are saying in the group that Guru Brother has been given more respect than Guru…..what I can say about the negativity in their mind…….whatever I may be able to do, but I will always wish to remain a disciple only…….ability to give Diksha will never come in me…….because first I should become a true disciple, then my life will become meaningful. I am always a brother and all this knowledge is only the blessing of my Sadgurudev. I am neither any self-made Guru nor I do not have need to see books to make you understand mantra, slokas or any sadhna process….. Whatever I have understood, I have imbibed that and have shown it to guru brothers and sisters in various workshops without any showoffs.How can I make those fools understand that they consider this brother as wrong and the person who does not even have the preliminary knowledge of tantra and have become self-made Guru, they leave no stone unturned appreciating them. Become gurus, who have opposed it but become on your own, without taking the assistance of name Nikhil and prove it by bringing the disciples who can accomplish the tantra in practical way , the way my Sadgurudev has done. Whatever I say, I can show it by doing also. I am proud that he has initiated me in this path. These foolish people are not able to understand that I am always there as the brother but by standing with so called frauds, what sort of Nikhil work they are doing….who have become blind and whose hearts have died. I have achieved and have achieved because of these sadhnas only. My family, my whole life, my acquaintances and most importantly my Sadgurudev are witness to the fact that this passion has increased day by day and then only I have achieved the results. If you all will also do this process by dedication and will follow the rules, you also will not be disappointed.
1) From now on, whenever any high-order sadhna process will come on Facebook or blog, it will be told fully only to those who either have taken Diksha from Sadgurudev or Guru Trimurti or from any Guru who have not taken Diksha from our Sadgurudev. These sadhnas have never been easily available. They have been tested multiple times on the stringent parameters of experiences and results have always been amazing. Therefore they are being made available on personal level, so that if you do them with full dedication, then after getting success you can provide the gains to yourself, your family, society and the nation. 2) Only 30-40 yantra are being made for 7 sadhnas which will be coming each month .It has been seen that whenever any sadhna process appears in the blog then maximum number of comments are 60 or 70.If we pay attention to them, they are made by 30-35 persons so there is no logic in making more yantras?? 3) May be making of any yantra will cost only 30 to 40 rupees approximately but each yantra needed for these special sadhnas ,needs to be energised , instilledconsciousness , doing shastriy, mantric and tantric process on them, doing the necessary rites hawan without any errors so that associated lord can give you the complete success. This definitely requires both time and money and completing these processes requires thousands of rupees. This fact need not to be iterated again and again. 4) But why to make this yantra and process available to you free of cost? Who is the one doing like this today…..who is worried about your success…………..so that you can be proof to supremacy of these process, not us………………just writing will not solve the purpose…and people can‟t be fooled by citing the various processes but not providing it to them giving the excuse that we are not able to find capable persons for it.But this applies to us also. So this is time that examination of our work should start. 5) Now is the time that whatever sadhnas we give, we do the hard-work from our side and you do your part of hard-work by full dedication…. And always keep this in mind that Guru Brothers can only make you understand the process but the success can only be provided by Sadgurudev. Now your success will be the certificate of our work. Therefore definitely it is for not all but only those who want to be successful by doing sadhna. We do not have any secret agenda and our work is a proof to it.
6) We have to agree sometimes that the thing which is easily available, we do not understand its importance and its importance vanishes. Therefore how this sadhna needs to be given?? This is the point under consideration. For this we have thought that we will send the related yantra and related sadhna process via courier to all those chosen persons who are dedicated to sadhna field or willing to be…..Only they have to bear the courier charges. If after that also, someone wants to take guidance personally (only in relation to that particular sadhna), then we will be available only as a Guru Brother. 7) Important Point::But one more thing will also be kept in mind while giving these sadhnas that what is the attitude of that particular person towards Sadgurudev. Not only in our group but in other groups also. Because it has been seen in many groups that many things are written for Nikhil element or disciples as per their sweet will but people remain silent spectator after seeing this…..giving silent approval to all sides is not correct….. Therefore we have to keep in mind that these sadhnas should not reach the people who give the silent approval. 8) We do not have to take this sadhna process casually. Whosoever will be given these sadhnas, it will be seen before giving next sadhnas to them whether they have actually done the sadhnas or not. This will be done by us. The more stringent we are, more will be the chances of your success. There will probably be no place for emotional talks in context of sadhnas. When it is matter of sadhna, then the rules will apply both on us firmly. 9) One thing need to be clarified that as per the direction received….the sadhnas which are available either on Nikhil Alchemy blog or Nikhil Alchemy Facebook group will be fruitful only to those who get the e-magazine “Tantra Kaumadi”. 10)There will be no time to choose those who write emotional comments or are close to us………it will be made available to only those who really wants to do sadhna. This rule will also be followed stringently. 11)These sadhnas will not be matter of laughter……….nor it will be frivolous process…………nor it will be merely for appreciation. They will be capable of transforming your life. 12)Whosoever will get the sadhnas, they will not tell the process to anyone without seeking permission.
13)Whosoever will be given sadhna, they will be informed in advance. Either they have to bear the courier charges and in case of personal meeting, they would have to bear the travel and food charges. Here are the 7 sadhnas of May which are effective up till 10 June:1) AatmGanpati Sadhna- Sadhna to attain higher knowledge of Tantra , supreme memory power and to get Ganpati Darshan. 2) Tantrokt Guru Sadhna–That step of Guru Sadhna where you directly become one with your Guru and the process of Chakra Jagran starts. Then what is left. 3)
Kanak Maya Sadhna-Aghor process to attain Lakshmi whereby Lakshmi is compelled to remain in the life of sadhak.
4) Dheeh Sammohan Sadhna–The process done by Tibet Padhati by which your whole personality becomes attractive in just 14 days. Do not count this process as just an another Sammohan process. 5) Siddh Sampreshan Sadhna–the amazing process to transmit thoughts by which any great siddhs living in new area can be contacted and we can get their blessing , assistance and knowledge from them. This is the first and necessary step for lightfull shadow less subtle body. 6) Rasayan Mekhla Sadhna–The basic sadhna for Kayakalp and Ras Vigyan by which we can attain success by imbibing the secrets of Parad Vigyan. 7) Sabar Ooliya Sadhna– Amazing sadhna to get the assistance from ittar yonis. अ इ
र
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ककसी भी साधना को ष्टसद्ध करने के उपरान्त वह कौन कौन सी आवययक कक्रयाये है.ष्टजसके माध्यम से ष्टसद्ध की गयी साधना का सिल प्रयोग ककया जा सके . यह गोपनीय ष्टवधान तीन आवययक कक्रयाओं से युक्त हैं सुंधान कक्रया साधना प्रक्षेपण कक्रया साधना लक्ष्य कक्रया साधना और इन सभी के योग से बनी ...ष्टसष्टद्ध कक्रया . इस “ष्टसष्टद्ध कक्रया” को जो इन तीनो कक्रयाओं का सम्प्मष्टलत स्वरुप हैं कै से उपयोग में ष्टलया जाए ?. पर अभी तो इन तीनो कक्रयाओं को अलग अलग समझना ही होगा . “ सुंधान कक्रया साधना” और “प्रक्षेपण कक्रया ” के रहस्य सामने आ ही चुके हैं और इस कक्रया को कै से पूणग करना हैं वह भी रहस्य खुल ही चुका हैं अब इसी कदव्यतम सवगथा आवययक कक्रयाओं की श्रुंखला में तृतीय कक्रया****** “लक्ष्य कक्रया साधना “ *******के बारे में .. सुंधान का मतलब ष्टनशाना साधने की कक्रया . पर प्रक्षेपण का तात्पयग की ककतने तीव्रता से उसे लक्ष्य पर...मतलब ककस वेग से लक्ष्य पर छोड़ा जाए .अगर ष्टनशाना सही होने के बाद भी तीव्रता कम हुयी तो िल या कायग की पूणगता कै से सुंभव हैं .पर लक्ष्य कक्रया तो कायगको सिलता के िार पर ही ला देती हैं इस कदव्यतम कक्रया के बारे में कही भी कोई भी उकलेख नही हैं..और जब इन कक्रयाओं का मूकय समझ में आता हैं तब पता चलता हैं कक क्या अद्भुतता से युक्त ये ष्टवधान हैं . साधक साधना पके ट्स पे पैकेट्स मागाता जाता हैं पर उसे प्रयोग कै से करना हैं यह पता ही नही होता . यहााँ साधना ष्टसष्टद्ध की बात नही बष्टकक उस क्रम होने के बाद कै से उसका उपयोग करना हैं इस ष्टवधान के बारे में जानकारी होना . साधना क्षेि में अनाहत चक्र का अपना ही एक महत्त्व हैं .क्योंकक ष्टचि गत सारे अवस्था यही से ष्टनधागटरत होती हैं और यही पर तो चेतन और अवचेतन मन का ष्टमलना भी
. अबचेतनमन तो अष्टितीय शष्टक्तयों का स्वामी हैं . और जब तक इन दोनों मनो में साम्प्य न हो जाये कै से इस पथ पर आगे बढ़ा जा सकता हैं . यकद रोज मुंि जप के बाद भी मन अशाुंत हैं .... ष्टचि परे शाुं हैं .... तो ककतना भी कक्रया की जाए सिलता कै से ष्टमलेगी .इसका यह भी मतलब हैं कक कहीं न कहीं कु छ प्रकक्रया गत कमी या न्यून ताये तो हैं .पर कहााँ .. ‘कदमाग और ह्रदय के खेल में जब भी कदमाग जीतता हैं तब साधक को हाष्टन ही हो जाती हैं क्योंकक साधना का क्षेि में भाव गत हैं . और साधक को पता कै से लगे कक कब उसका ह्रदय या कब उसका कदमाग काम कर रहा हैं. जब तक वह समझ पाए तब तक तो अनथग हो ही चुका होता हैं . तो एक ओर जहााँ सदगुरुदेव तत्व के ष्टस्थत होने कक बात हैं तो वहाुं पर अनाहत चक्र पर होता हैं और उनका प्रका ि यी करण आज्ञा चक्र पर . पर ष्टचि के दुखी उदास होने पर सीधा असर यहााँ पर भी पड़ता हैं . पर यह अवस्था पर ष्टनयुंिण ककसे ककया जाए तो उस कायग के ष्टलए ही इस लक्ष्य कक्रया साधना की आवययकता पड़ती हैं . क्योंकक ष्टचि के दुखी रहने से . कक्रया में वह बल नही आ पायेगा .तो ककये जाने वाली साधना कै से सिल होगी ...?? तुंि में भले ही कु छ कक्रयाए जैसे मारण प्रयोग हैं. जो नैष्टतक और सामाष्टजक ष्टनयमों के अनुकूल नही हैं पर किर भी अगर देखे तो इन प्रयोगों में कै से ककया जाना हैं मतलब सामने वाले पर आघात कै से होना हैं पहले से ही ष्टनष्टश्चत करना पड़ता हैं और एक प्रयोग में सिलता ष्टमल जाना का मतलब पूरा जीवन बदल जाना हैं क्योंकक अब आपको यह समझ में आ गया हैं की सिलता कै से हस्तगत होना हैं . और यह तीव्रता कै से देना हैं वह तो ष्टचि के शाुंत होने पर ही होगा . तो लक्ष्य कक्रया साधना , न के बल साधक के ष्टचि को शान्त करती हैं बष्टकक आपकी प्राण वायु को भी ष्टनयुंष्टित करती हैं प्राण वायु को क्यों ??? तो वह इसष्टलए कक प्राण वायु की सहायता से ही कक्रया में तीव्रता लायी जा सकती हैं .इस ष्टलए जो ष्टस्थर ष्टचि हैं उसे तो कोई समस्या नही पर अन्य सभी के ष्टलए खासकर जो भी सूक्ष्म शारीर जागरण का अभ्यास कर कररहे हैं यह कक्रया न के बक्ल उनमे तीब्र ता देगी बष्टकक उनके रजत रज्जू को इतना मजबूत बना भी देगी कक कभी भी जो कक िू िे न .... हो .साथ ही साथ आपके शरीर की अष्टि को तीव्रतम कर देगा क्योंकक 95% शारीर गत बीमाटरया पेि के कारण ही होती हैं और ष्टजसके पीछे मूल में छु पा होगा यह कारण कक शरीर गत अष्टि कमजोर हैं....... और लक्ष्य कक्रया साधना .... चेतन और अवचेतन मन के मध्य की दुरी को कम कर देती हैं . कुुं िली जागरण और अन्य कोई भी साधना हो , हर जगह साधक की सिलता को कई कई गुणा बढाने में समथग इस लक्ष्य कक्रया की सवगश्रेष्ठ उपलष्टब्ध हैं ष्टसष्टद्ध साधना ..
वह ष्टसष्टद्ध कक्रया तो आएगी ही .कक कै से करे सारी इन ष्टवष्टशि प्रकक्रयाओं का योग एक ही बार में ..और क्या हैं अद्भुतता ष्टसष्टद्ध प्रयोग.....? कक और कै से उसका मन्ि का ष्टनमागण....?? इन तीनो साधना ओ के मन्ि की सहायता से करना हैं वह तो आएगा ही .. पर अभी इस लक्ष्य कक्रया साधना के ष्टवधान :: मुंि : हुंस: सोSहम हुंसः Mantra: hansah soham hansah इसी
कदव्य मन्ि के माध्यम से लुंकापष्टत रावण ने समस्त देवी देवताओ को अपने कै द
में कर इच््नुसारचलने पर बाध्य ककया था . आवययक ष्टवधान: एक बार में आसन स्थ होने पर 21 माला मुंि जप करना हैं इस मन्ि की कु ल 21 माला मुंि जप करना हैं मतलब एक ही कदन का ष्टवधान हैं . .और यह मुंि जप पारद ष्टशवहलग पर िािक करते हुए ही ककया जा सकता हैं . एक कदवस की प्रकक्रया समाप्त होने के बाद हर कदन 10 से 15 ष्टमष्टनि रोज जप चलते किरते ककया जा सकता हैं , ब्रह्मचयग आकद ष्टनयमों की कोई आवययकता नही ..(किर भी कर सके तो उष्टचत रहता ही हैं ) ष्टजतने कदन घर से बाहर रहे हैं(यकद साधना काल में और बाहर खाना आकद खाना पड़ा हो तो ) उतने कदन गुष्टणत ३ माला हर कदन के ष्टहसाब से नवाणग मन्ि की कर ली जाए तो ष्टि दोष नही लगता हैं . वस्त्र और आसान लाल होना चाष्टहये . ककसी भी माला से के बल तुलसी की माला को छोड़ कर जप कर सकते हैं. कदशा पूवग या उिर रहे तो उिम हैं ककसी ष्टवशेष समय की अष्टनवायगता मन्ि जप काल में नही हैं यकद इसी समय सुंधान कक्रया के मुंि जप भी ककये जा रहे हैं तो जैसे ही उस कदन का सुंधान कक्रया का मन्ि जप समाप्त हो तत्काल इस कक्रया का मन्ि जप ककया जा सकता हैं .ककसी भी कदन क्या जा सकता हैं इस प्रयोग से स्वत ही सूक्ष्म शरीर जागरण की साधना करने वालों के अत्यष्टधक लाभ ष्टमलता हैं और उनकी रजत रज्जू भी ष्टवशेष प्रभाव युक्त होजाती हैं . पर यह जप पारद ष्टशवहलग पर दृिी रखते ही ककया जा सकता हैं . . इस तरह से यह तीसरी आवययक कक्रया कै से सम्प्पन्न करना हैं ,यह रहस्य आपके सामने हैं आप इस कक्रया को सिलता पूवगक सम्प्पन्न कर सकते हैं .सरल हैं ...इस तरह आप इस
ष्टसष्टद्ध दायक आवययक गोपनीय ष्टवधान कक तीसरी महत्वपूणग कक्रया आपके सामने हैं . ========================================= After succeeding sadhna(siddh some sadhna), which are the necessary procedures(Kriyaaye)?, through which we can use that succeeded sadhna(siddh sadhna)? This secret Process consist of three procedures: सुंधान कक्रया साधना(SANDHAAN KRIYA SADHNA) प्रक्षेपण कक्रया साधना(PRAKSHEPAN KRIYA SADHNA) लक्ष्य कक्रया साधना(LAKSHYA KRIYA SADHNA) And the result of all these is…….SIDDHI KRIYA…… The “SIDDHI KRIYA” which is the combined form of the above three Kriyaa‟s. How to use this? But, first we have to understand each of these three kriyaa‟s separately…. The secrets of सुंधान कक्रया साधना(SANDHAAN KRIYA SADHNA) and “प्रक्षेपण कक्रया ”( PRAKSHEPAN KRIYA )had already come in front of you all and how to do that procedure, the secret of that also has opened…….Now, in this divine series of necessary procedures, the third procedure(kriya) is ****** “लक्ष्य कक्रया साधना(Lakshya KRIYA SADHNA) “ ******* The sandhaan means the process of firing at the goal…..but prakshepan means how speedily the bullet is moving at the goal…..in other words, with how much force the bullet is fired….If the bullet has fired at the right point but its speed or force is less….then, how it will be fruitful or how we will succeed in our work……But, Lakshya Kriya takes you at the doorstep of success……. No where information is given about this divine process…and when we realize the value of these procedures, then, we came to know with how much divinity these procedures are? Sadhak keeps on ordering sadhna packets but how to use them, he does not know about this? Here, we are not talking about sadhna siddhi but how to use that procedure after successfully compelting it, one should be aware about that also. There is a special importance of Anaahat Chakra in the area of sadhna because what we feel in our chit, all are decided here only and the meeting of avchetan and chetan man(heart) takes place here only. Avchetan man(heart) is the master of surprising powers and when the combination of these two do not take place, then, how can we move ahead on this field?
If mind is not in peaceful even after doing daily mantra jaap….chit is also very sad….Then, how will success will come even after doing so many sadhnas . Its meaning is that there is problem in ourself in doing procedures…But , where?...... Whenever mind wins in the game of mind and heart, then, the loss is of the sadhak only because the field of sadhna is of feeling(bhaav) only. And how should sadhak know when his mind is working and when heart is working? When, he came to know about this, it becomes too late and the loss had already happened to him. In other way, when we talk about the stability of Sadgurudev Tatv, it is only in Anaahat Chakra and we can see him only in Aagya chakra, but when we remain sad, unhappy….then, it effects us there also….But ,how to control that situation, for that only, we need Lakshya Kriya Sadhna. Because due to the unhappiness of the heart, strongness will not come to that procedure, so, the sadhnaa which we are doing, how it will success? In tantra, there are Maaran Paryogs, which are not favourable for society rules but still if we see, how we have to attack our enemy, it is to be decided earlier and the success to one sadhna can make change to the whole life because now you have understand that how we can get the success? And how we have to give the force, it is decided we are in peaceful mood, so Lakshya Kriya sadhna not only give peace to your heart but controls your Praan Vaayu also. Why Praan Vaayu? It is because we get the force from Praan Vaayu only…..So, which are stable from their Chit , there is no problem to them but who are practicing for activating Sukshma sharir(body),this procedure not give force to them but strongs their rjat rajju so that, it will never break…..at the same time, increases the fire of your body because 95% of the diseases of our body is due to stomach only and the root cause behind of it is thefire within the body is less…….and Lakshya Kriya Sadhna ….decreases the distance in between the Chetan Man(heart)and Acchetan man(heart). Whether it is a kundli jaagran or any other sadhna, everywhere increases the percentage of success. The main outcome of Lakshya Kriya is siddhi Sadhna….. Siddhi Kriya will come in future that how can we use all these special procedures at one time? And what is this miraculous Siddhi paryog? And how its mantra is made?With the help of mantra of these three sadhna, it will be done. It will surely come…. But, now, the procedure of this Lakshya Kriya Sadhna: मुंि : हुंस: सोSहम हुंसः Mantra: hansah soham hansah With this divine mantra, the lankspati Raavan has kept in his controls all the devi and devtaas and get all his work done of his want through him. Necessary Procedure:
. In one maala, 21 maalas has to be done. .Total, 21 maalas gas to be done, means it is a one day procedure. . This mantra should be done by meditating on the paraad shivling. -After doing one day procedure, every day jap can be done for 10-15 minutes. It can be done during walking or doing some other work. -There is no rule to follow Brahmcharya (But if u, it will be good). - If someone leaves out of house(if outside food has been eaten during sadhna period), then,for that much days *3 maala of Navaarn mantra should be done,so that, we could be saved from tri dosh. -Clothes and Aasan should be red. -Jaap can be done from any maala except tulsi maala. -Direction north or east will be best. -The necessary of following some special time during mantra jaap is not there. -.If the mantra jaap of sandhaan kriya is also being done at the same time, then, after doing mantra jaap of sandhaan kriya of that day, we can continue the mantra jaap of this process also. - with this, those who are practicing Sukshma Sharir(body), get special benefit and their Rjat Rajju becomes special affectful. - But, this paryog should only be done by seeing on paraad shivling. -So, how can u do the necessary third procedure, this secret is in front of u. You can do it successfully. It is simple. In this way, third important procedure of the necessary important process is in front of u.
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Monday, February 6, 2012 -2(KAPALIK SAMPRADAY-2)
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कई इष्टतहासकारों का मत है की इसी पुंथ से शैवशाक्त कौल मागग का प्रचलन हुआ. इस सम्प्प्रदाय से सबुंष्टधत साधनाए अत्यष्टधक महत्वपूणग रही है. कापाष्टलक चक्र मे मुख्य साधक भैरव तथा साष्टधका को ष्टिपुरसुुंदरी कहा जाता है. तथा काम शष्टक्त के ष्टवष्टभ्भन साधन से इनमे असीम शष्टक्तया आ जाती है. फ़क्त इच्छा माि से अपने शारीटरक अवयवों पर ष्टनयुंिण रखना या ककसी भी प्रकार के सजगन तथा ष्टवनाश करने की बेजोि शष्टक्त इस मागग से प्राप्त की जा सकती ष्टथ. इस मागग मे कापाष्टलक अपनी भैरवी साष्टधका को पत्नी के रूप मे भी स्वीकार कर सकता था. इनके मठ जीणगशीणग अवस्था मे उिरीपूवग राज्यों मे आज भी देखे जाते है. कापाष्टलक साधनाओ मे महाकाली, भैरव, चाुंिाली, चामुुंिा ष्टशव, ष्टिपुरा जेसे देवी देवताओं की साधना होती आई है. वही बौद्ध कापाष्टलक साधना मे वज्रभैरव, महाकाल, हेवज्रा जेसे ष्टतब्बती देवी देवताओ की साधना होती है. पहले के समय मे मुंि माि से मुख्य कापाष्टलक साथी कापाष्टलको की कामशष्टक्त को न्यूनता तथा उिेग देते थे ष्टजससे योग्य मापदुंि मे यह साधना पूरी होती ष्टथ. इस प्रकार यह अद्भुत मागग लुप्त होते हुए भी गुप्त रूप से सुरष्टक्षत है तथा ष्टवष्टभ्भन ताुंष्टिक मठो मे आज भी गुप्त रूप से कापाष्टलक अपनी तुंि साधनाओ को सम्प्प्त्पन करते है. =============================================== Many people underestimated Kapalik sadhna as a sadhna done for pleasure and got attracted towards it because of sexual factor and thats how it got converted in Bhog marg means the path of licentiousness. In real sense the chhakra sadhna of Kapaliks later treated as the sources of satisfying sexual pleasures. In resultant this sadhna
seen from hatred eyes…. Well the one who were Kapaliks in real sense started their own individual level practices. Adi Sankaracharya started revolting these practices, so the major part of this community shifted to Nepal border and Tibet. This remained active in Tibet as it and later come in light as Boudh Kapalik sadhnas. In the opinion of many Historians the SaivaShakt path came in trend. The sadhnas related from this community kept major significance. In Kapalik Chakra the Sadhak is known as Bhairav and female Sadhika as Tripursundari. And in the Sexual activities they achieved many siddhies and powers. Only by just means of will power they can control any part of body and any type of creation and destruction process via this path. In this Path Kapalik accepts the female bhairavi as his wife also. Their Mathas are still can be seen in northern part of India in decrepit manner. In Kapalik Sadhnas the sadhnas of Gods and Goddess like Mahakali, Bhairav, Chandali, Chamunda Shiv, Tripura whereas In Boudh Kapalik sadhnas the Tibetan gods like Vajra Bhairav, Mahakal, Hevjra are worshipped. Previously via just mantra power the kapaliks can make other kapaliks sexual energy decrease or increase. By which in exact measurement the sadhna can be done. This is how this wonderful path got disappeared in external sense but still awakening in secret form in various tantric mathas and still kapaliks are accomplishing these sadhnas successfully.
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Thursday, February 2, 2012 ४( १)SAADHUSHAHI 4-SHAIV SAMPRADAAY(KAPALIK SAMPRADAY 1)
बायतीम आध्मात्मभक सॊस्कृतत भे साधना भागग तथा सॊप्रदाम बेद अऩने आऩ भे फहोत ही विविधता लरए हुए है. जो लिि उऩासना का भागग भख् ु म िैि भागग यहा उसे बी दो विबाग भे फाॊटा गमा. भॊत्र भागग तथा उऩासना भागग. उऩासना भागग भख् ु म रूऩ से ऩौयाणिक भागग कहा जाता है, जफ की भॊत्र भागग को विकलसत मा अऩौयाणिक कहा गमा है. भॊत्र भागग भे लिि उऩासना के कई सम्प्प्रदाम है
कापालऱक मागग – मह भागग अऩने आऩ भे श्रेष्ठ था. लसद्धो से सन ु ाने भे आमा है की इसकी प्रचयु ता अममधधक धथ औय इनके भख् ु म भठ िायािसी तथा सोभनाथ जेसे प्रलसद्द िैि स्थर हुआ कयते थे रेककन इस भागग की अममधधक दद ु ग िा हुई.
लऱिंगमागग या लऱिंग्यात – मह भागग लििलरॊग की साधना ऩय ही भख् ु म रूऩ से आधारयत है . मह भागग िैसे द्रविड़ औय दक्षऺि बायत भे प्रचलरत यहा. प्रततष्ठा विधान के ऩऺ ऩय इस
भागग भे खूफ जोय ददमा जाता है. इसी भागग को लिि लसद्धाॊत भागग बी कहा गमा है. िैसे मह भागग अततभागग नाभ के भागग से बी जोड़ा गमा है . त्जसभे प्रततष्ठा भख् ु म औय भॊत्र साधना का प्रचरन कभ यहा है .
पाशप ु त मागग – मह भागग भे बगिान ऩािऩ ु त की साधना ही भख् ु म है . नेऩार तथा बायत के सीभािती याज्म इसका भख् ु म केंद्र यहा है
काऱमख ु मागग – मह बगिान भहाकार की साधना का भख् ु म भागग था त्जसका केन्द्द्र भध्म बायत यहा है
कश्मीरी शैव मागग – मह अममधधक प्रचालरत भागग है , जो की कश्भीयी ऩॊडडतो के भध्म
व्माऩक रूऩ से उऩत्स्थत था. त्जसका गढ़ भग़ ु र िािन से ऩहरे तक जम्प्भू औय कश्भीय हुआ कयता था
अघोर मागग – मह भागग अऩने आऩ भे उच्च कोदट का यहा है. िायािासी, धगयनाय, अफद ु ग, ऩॊचभढ़ी, जफरऩयु , गोयखऩयु के आसऩास का ऺेत्र मह सफ जगह इस भागग का व्माऩक प्रचरन यहा है .
इसके अरािा बी कई भागग प्रचरन भे यहे है जो की एक दस ू ये से ककसी न ककसी रूऩ भे सफॊधधत यहे है. इसभें से ज्मादातय भागग आज रप्ु त हो चक ु े है रेककन तॊत्र सादहमम भे इनका फयाफय से ििगन लभरता है .
महाॉ हभ सॊक्षऺप्त भे चचाग कयें गे काऩालरक भागग की.
काऩालरक सम्प्प्रदाम लिि उऩासना का एक अद्भत ु भागग यहा है. इस भागग भे दीक्षऺत साधक
को काऩालरक मा बैयि कहा जाता ही जफ की साधधका को दे िी ित्तत मा त्रत्रऩयु सॊद ु यी. मह भागग भे भख् ु म दे ि लिि तथा उनकी आदद ित्तत को ही इष्ट के रूऩ भे स्िीकाय ककमा गमा है . इसभें बी दो बेद है. कई काऩालरक इसके अरािा दस ू ये दे िी दे िताओ का अत्स्तमि
स्िीकाय नहीॊ कयते. लरॊग तथा मोनी को ही िो प्रतीक भे लिि तथा ित्तत के रूऩ भे दे िी दे िता की उऩाधध दे ते है. रेककन दस ू या भागग दे िी दे िताओ तथा दस ू यी ित्ततमो का
अत्स्तमि स्िीकाय कयता है तथा उनकी साधना बी. इस भागग की साधना भख् ु म रूऩ से
भाॊस, भददया तथा भैथन ु ऩय आधारयत है. भॊत्र िोधधत भाॊस औय भददया के साथ भैथन ु किमा कयने ऩय विविध लसद्धमो की प्रात्प्त इस भागग की उऩासना ऩद्धतत धथ. मह भागग तरिाय की धाय ऩय चरने जेसा अममधधक कसोटी ऩि ू ग भागग है. तमों की इस भागग भे साधक िैबि भत्ु तत नहीॊ कयता. साधक को िैबि ऩि ू ग यहना है रेककन तनलरगप्त.
काऩालरको के भठ ककसी भहे र से नीची कऺा के नहीॊ हुआ कयते थे. भल् ू मिानयमन तथा स्ििगआबष ू ि हभेिा इनको सि ु ोलबत कयते यहते थे. तथा विरास ऩि ू ग जीिन व्मतीत कयते हुए बी साधक को उससे तनभोदहत यहना होता था. औय मही कायि यहा की कई
व्मत्तत इस भागग की तयप आकवषगत हुए तथा मही कायि फना इस भागग का. (िभि्) ========================================== In Indian Spiritual Culture the Sadhna path and established doctrine peculiarities have various varieties in itself. The Shaiv Marg which is the main path of Lord Shiva reverence can be divided into two parts. Mantra path and Upasana (worship) Path. The worshipping path is mostly known as Mythological path whereas the Mantra Path is known as developed or non-mythological path. In Mantra path there are many ways of worshipping Lord Shiva.
Kapalik Path – This was the best known. It has been heard from the Siddhas that this path has been mostly found one. Its main places known as Mathas are found in Varanasi and the famous place like Somnath is known as Shaiv place but later it has drowned down pathetically. Lingmarg or Lingyat – This path is based on the ling (genital) of Shiva. This one is especially famous in Dravids and Southern India. On the side of Pratishtha Vidhan this was emphasized more. The other name of this path is Shiv Sidhant Marg also. By the way it has also been added to the Atimarg in which the establishment and mantra sadhna is included most. Pashupat Marg – This way is mainly used for God Pashupat sadhnas. The main areas where it has been practiced is Nepal and border lines of India. Kaalmukh Maarg – This is the main path of Mahakaal Sadhna which has been practiced in central India. Kashmiri Shaiv Marg – This was most famous path which was used between Kashmiri Pandits. And their main place where it was used was Jammu and Kashmir before the Mughal rulers. Aghor Marg – This is most high level of path amongst all. The areas nearby Varanasi, Girnar, Aburd, Pachmadi, Jabalpur, Gorakhpur is the common place for Aghor practitioners. Apart from all these, there are many other ways which were in light and attached with each other in either way. Today many has been disappeared but prominently metioned in Tantra textures. Now let‟s discuss in brief about the Kapalik Marg. Kapalik Sampradaay is a wonderful path of Shiva‟s reverence. The one who is dikshit in this path is known as Kapalik or bhairav whereas female practioners are known as Devi Shakti or Tripur Sundari. In this Path mostly the Dev Shakti and their Aadi Shakti is accepted mainly. There are two difference of it. Many kapaliks doesn‟t accept the other forms of Gods and Goddess. They treat Ling and Yoni (genitals of male and female) as their Gods and Goddess. But in the other path accepts the identity of other gods and goddess and their related sadhnas also. This is based on Meat, alcohol and Sex. Along with the purified Meat and alcohol, the sexual activities are done and this leads to different siddis and that‟s how it works. This is toughest path as good as walking on sword. Because in this path the sadhak doesn‟t do anything just for sake of getting pleasure. Rather he has to be uncontaminated detached from the acts. Well the class of Kapalik was not less than any king size rather they were always decorated with the valuable gems and golden jewelleries. And while spending luxurious life they have to become the hardest form as unanointed. That‟s how many were attracted towards it and becomes the only reason of this path. (continued)
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Monday, January 23, 2012 Beejaatmak Tantra Aur Bhagya Utkeelan Vidhaan(HINDI+ENGLISH)
साभान्द्म भानि जीिन अऩेऺाओॊ औय भनोयथों के दो ऩदहमों ऩय दटका हुआ है ,त्जनकी ऩत ू ी होने से सख ु औय ऩत ू ी न होने से द्ु ख का अनब ु ि होता है
,औय हभ अऩने जीिन को उन्द्नतत की औय अग्रसय होने के लरए बाग्म का
भॉह ु ताकते फैठते हैं की कफ िो हभाया सहमोग कये औय हभ जीिन भें उन्द्नतत के लिखय को छू सके . ऩय तमा सच भें बाग्म सदै ि हभाया सहमोग कयता
है .... नहीॊ ऐसा हभेिा तो नहीॊ होता,तमा तफ हाथ ऩय हाथ धये फैठे यहना
उधचत है ? िास्तविकता मे है की बाग्म कभग का अनग ु ाभी है औय त्जसे कभग कयना आता है बाग्म सदै ि उसके ऩीछे ऩीछे दौड़ता है , फहुधा जीिन की विऩन्द्नता औय गयीफी को हभ योते हैं,विविध प्रमोग बी कयते हैं ,ऩयन्द्तु हभें
राब नहीॊ होता है,तफ अतसय हभ किमा को दष ू ि दे ने का कामग कयने रगते हैं
जफकक हभ मे फात बर ू जाते हैं की प्रायब्ध,सॊधचत औय किमभाि कभों का भर जफ तक हभाये सौबाग्म के ऊऩय अऩना आियि डारे यहे गा तफ तक हभ चाहे
राख प्रममन तमॉू न कयें ,हभाये द्िाया ककमे गए प्रमासों से हभाया बाग्म कदावऩ नहीॊ जागेगा.
जफ फात हभ कयते हैं की कभग का अनग ु ाभी बाग्म होता है तो इसका अथग
िायीरयक ऩरयश्रभ तो होता ही है ऩयन्द्तु उसके साथ साधनामभक कभग बी अतनिामग होता है,औय जफ मे दोनों कभग सकायामभक ददिा भें होते हैं तो,विऩन्द्नता का नाि होकय,उन्द्नतत,िचगश्ि,ऐश्िमग,सौ बाग्म औय सम्प्भान की प्रात्प्त होती ही है .
हभ विऩन्द्नता की अिस्था भें हभ आकत्स्भक धन प्रात्प्त के िह ृ द अनष्ु ठान को सॊऩन्द्न कयते हैं ,ऩय तमा मे सही िभ है ? नहीॊ ना,तमॊकू क दब ु ागग्र
तनिायि,दरयद्रता नाि औय तमऩश्चात श्री आभॊत्रि िभ कयना उधचत होता
है ,तदऩ ु याॊत रक्ष्भी का श्री के रूऩ भें आऩके जीिन भें आगभन होता है औय
उसके फाद जफ हभ रक्ष्भी कीरन मा त्स्थयीकयि की किमा कयते हैं तो रक्ष्भी जन्द्भ जन्द्भान्द्तयों के लरए हभाये कुर भें स्थामी रूऩ से तनिास कयती हैं.
स्भयि यखने मोग्म तथ्म मे है की िह ृ द अनष्ु ठान कबी बी आऩको िीग्र राब नहीॊ दे सकते हैं तमोंकक उन्द्हें लसद्ध कयने के लरए जो एकाग्रता,धचमत की
सध्नात्व्ध भें इष्ट के साथ होने तायतम्प्मता का आबाि होना स्िाबाविक होता है औय दीघग अनष्ु ठान प्रायॊ लबक स्तय ऩय धचमत को उद्विग्न बी कय दे ते हैं अत्
गह ृ स्थों को मा त्जन्द्हें िीघ्र राब चादहए होता है उन्द्हें फीजामभक साधनाओॊ को
सम्प्ऩाददत कयना चादहए.सदगुरुदे ि के आिीिागद से मे अततिीघ्र राब बी दे ते हैं
औय लसद्ध बी जल्दी हो जाते हैं तथा “मथा फीजभ तथा अॊकुयभ ्” की उत्तत को चरयताथगता बी तबी प्राप्त होती है जफ आऩका फीज ऩष्ु ट हो तबी तो उसका आधाय प्राप्त कय साधना आऩके सभस्त भर का नाि कय आऩको आऩका अबीष्ट प्रदान कयती है .
माद यणखमे प्रममेक फीज के चैतान्द्मीकयि औय जागयि की प्रथक प्रथक किमा होती है जो आऩके उद्देश्म को ददिा दे ती है ,जैसे “तरीॊ” फीज का मदद
ििीकयि साधना के लरए प्रमोग कयना हो तो उसे जाग्रत कयने औय स्िप्राि
घवषगत कयने की किमा लबन्द्न होगी उस किमा से जो की सॊहाय के लरए प्रमत ु त की गमी हो.
महाॉ ऩय हभ फात आधथगक उन्द्नतत की कय यहे हैं ,तो जफ जॉफ भें मा व्मिसाम भें अथिा साभान्द्म जीिन भें आऩ ऩैसों के लरए भोहताज हो गए हो तो ककसी बी अन्द्म रक्ष्भी प्रात्प्त प्रमोग को कयते सभम मदद “ह्ीॊ” फीज का
सामज् ु मीकयि कय ददमा जामे तो िह प्रकिमा तनसॊदेह अऩना तीव्र प्रबाि प्रदान कयती है ,औय मदद भात्र इसी फीज का प्रमोग ककमा जामे तफ बी आधथगक
फाधाओॊ का नाि तो कयती ही है साथ ही साथ नौकयी मा व्मिसाम ऩय छामे हातन के फादरों को बी ऩयू ी तयह सभाप्त कय दे ती है ,प्रमोग फड़ा मा छोटा
होने से प्रबाि की प्रात्प्त नहीॊ होती है अवऩतु उसकी ऩद्धतत ककतनी विश्िसनीम है औय उसका आधाय तमा है मे ज्मादा भहमिऩि ू ग है ,माद यणखमे “ह्ीॊ’
भहाकारी,भहासयस्िती औय भहारक्ष्भी तीनों का ही फीज है अथागत त्रत्रगि ु
ित्ततमों से ऩरयऩि ू ग है अथागत ,ित्तत,िेग औय तीव्रता का सॊमत ु त रूऩ,अत्
इसका कैसे समज् ु मीकयि ककमा जामेगा मे ज्मादा भहमिऩि ू ग तथ्म होता है ककसी बी किमा के ऩि ू ग होने के लरए.
हभ फात आधथगक राब मा सम्प्भान मा नौकयी मा व्मिसाम के स्थातमि की कय यहे है तफ इसका प्रमोग कैसे ककमा जाए भात्र उससे अिगत कयना ही भेया उद्देश्म है –
ककसी बी यात्रत्र को वििद्ध ु िहद १०० ग्राभ रेकय एक काॊच के ऩात्र भें यख रे
औय उस ऩात्र को सदगुरुदे ि,गिऩतत औय हाथों से स्ििग फयसाती ऩद्म रक्ष्भी के साभने स्थावऩत कय दे ,घत ु औय गुराफ ृ दीऩक प्रज्िलरत कये औय गुराफ धऩ ऩष्ु ऩ से ऩज ू न कये ,साफ़ िस्त्र ि आसन हो यात्री मा सॊध्मा का सभम हो,
सफ़ेद कागज मा ज्मादा उधचत है की बोजऩत्र ऩय अष्टगॊध के द्िाया अनाय की
करभ से “ह्ीॊ” लरखे औय अऩना ऩि ू ग नाभ लरख कय कपय से “ह्ीॊ” लरख दे ,मे फहुत ही छोटे कागज मा ऩत्र ऩय लरखना है .इसके फाद उसी स्थान ऩय फैठे फैठे फीज भॊत्र की ३ भारा हकीक मा भग ॊू े भारा से कये ,औय उसके फाद उस ऩत्र की गोरी फनाकय उस िहद भें डुफो दे ,मे िभ भात्र ३ ददन कयना है अथागत
आऩको तनमम फीजॊकन कय के उसके साभने ऩज ू न तथा जऩ कयना है औय भधु भें डुफो दे ना है .इसके साथ आऩ अन्द्म प्रमोग बी कय सकते हैं मा मदद अन्द्म
रक्ष्भी प्रमोग न कय यहे हो तो इस फीज की भारा सॊख्मा ७ कय दीत्जए औय
ददन की अिधध ५ कय दीत्जमेगा,अॊततभ ददिस जऩ के दस ु ये ददन उस ऩात्र भें
से सबी गोलरमों को तनकार कय ककसी फहते साफ़ जर भें प्रिादहत कय दे औय िहद का आऩ स्भयि ित्तत फढ़ाने के लरए तनमम सेिन बी कय सकते हैं मा
ििीकयि साधना भें बी प्रमोग कय सकते हैं,सेिन कयने के लरए एक इरामची को तनमम उसभे लबगोकय खाना चादहए. मे सदगुरुदे ि की असीभ अनक ु म्प्ऩा है
की हभाये भध्म इतने सयर ऩयन्द्तु अचक ू प्रमोग प्राप्म है,आऩ स्िमॊ ही इसे कय के प्रबाि दे ख सकते हैं. ----------------------------------------------------------Common human‟s life is just based on two type of wheels named expectations and destinations and no doubt fulfillment of these expectations give us happiness and leads our life towards development…..so let me know my dear is it all right for us to look at sky in the form of our destiny so that there will be someone who can hear us and fulfill our motives…..and is it destiny which always support us….no it never happens always….so is it fine to sit back in such dreadful situations…….again a big NO. The fact is that “necessity is the mother of invention” so it is clear that who will work hard definitely will be honored of destiny. Mostly we cry over poverty and illness and to remove such pitfalls we do number of experiments but again all in vain and this causes depression in our life. When we talk about that it is our needs which causes miracles but one thing which should kept in mind is that when we talk about hard work it‟s not always about physical beside this sadhnatmak hardship is must and when both of these powers works for you then definitely emptiness of life removes and development, luxury, destiny and magnificence blessed you. During hardship times we do our best to change time‟s cycle from misfortune to fortune and to get this done we take the shelter of Anushthans but do we ever try to
know whether these anushthans and all that going on right direction or not? Because to get all this perfectly done we need to follow a systematical order as firstly one should get rid of his misfortune, secondly make sure your poverty has been destroyed than finally you can welcome Goddess Laxmi in the form of Shri in your home so that she should stay there permanently to give you and your family a luxuries life for- ever and forever. Another important fact is that to carry on big anushthan at grand scale is not always prove beneficial as to carry out them one should be more conscious and stable in his thoughts and action whereas on the other hand long anushthan makes us bored quite bitter but true so for a domestic person its always good to get power and blessings from Beejaatmak sadhnaas as they get easily sidh and fruitful as well and according to “मथा फीजभ तथा अॊकुयभ ्” if you sow pure seed than its quite sure you are going to have a fruitful tree similarly when we talk about sadhnaa its result depends on our concentration in the form of seed. One should always keep in his mind that in order to enlighten each and every month, needs to follow different procedure as in order to sidh “KLEEM” beej for Vashikaran purpose is followed by totally differ process in which this mantra is get sidh for Sanhaar proyog. Here we are talking about financial growth so if one faces financial crisis so what should he prefers to do…..with any type of Laxmi proyog he should lit the spark the “HREEM” beej with it as by doing so work will work at super speed…..about this beej mantra another important thing is that if someone uses this mantra alone then to all the financial obstacles ultimately get removes as the results of the proyog don‟t affected by the fact that at what scale you are carrying out them. Instead of this the important thing is that how strong your consciousness is and faithfully you are carrying out them. Always remember that “HREEM” beej collectively symbolizes Maha Kaali, Maha Saraswati and Maha Laxmi in short this beej represents Shakti (power), Veag (density) and Teevrta (velocity) and the procedures based on the fact that how you get it enlighten. As we are talking about financial betterment or permanence in job so its my duty to let you know its procedureAt any night take 100grams pure honey in clear glass utensil (kaanch ka paatr) and place that paatr in front of Sadgurudev, Lord Ganpati and Goddess Laxmi, lit ghee lamp and offer rose (gulab) incense and rose flowers as well, your clothes and aasan should neat and clean and time can be evening or night as well. Then if possible write “HREEM” with ashtgandha on bhojpatra with the pencil of pomegranate stem (anaar ki kalam) if not bhojpatra you can use white paper for it then after Hreem write your name then again after your name write Hreem. Remember you have to use very short paper for this. After that do 3 rosary of beej mantra with the rosary of Black Hkeek aur Moonga. After finishing it roll that paper in round shape and dip it in that honey….follow this process for continuous 3 days means daily you need to
write beej mantra then your name then again mantra on paper and after pooja dip that paper in honey….you can do any other proyog along with this related to Laxmi and if you are not doing so than increase the number of rosaries from 3 to 7 and days from 3 to 5. Day after the final jaap day take out all the papers from honey gat them dump under the flowing clean water and as the matter of honey you can use it to strengthen your memory as well as it can be used for Vashikaran sadhna. If you want to eat or drink that honey then don‟t forget to dip a cardamom (ilaichi) in it every day. It is just because of the blessings of our revered Sadgurudev that we have such a small, easy but meaningful proyog to get comforts in our life.