Sar Bachan (Chand Band), Hindi

April 18, 2017 | Author: Gurjit Singh | Category: N/A
Share Embed Donate


Short Description

Download Sar Bachan (Chand Band), Hindi...

Description

सार बचन राधास्वामी छंद बंद जिस को परम पुरुष पूर्ण धनी स्वामी िी मराराि ने ज़बाने मुबारक से फ़माणया

राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सराय

परम संत हुज़ूर धनी स्वामी जिवदयाल ससर िी मराराि

राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सराय

राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सराय

भूजमका 1. परम संत हुज़ूर स्वामी िी मराराि कक जिनका नाम नामी सेठ जिवदयाल ससर िी था, भादों वदी अष्टमी संवत 1875 जबक्रमी मुताजबक 25 अगस्त सन् 1818 ईसवी को बवक़्त क़रीब चार बिे तङके मरल्ला पन्नी गली िरर आगरे में प्रकट हुए । आप बैंिल सेठ क्षजियों के एक मिहूर खानदान से थे, िो असाण तक़रीबन दो सो साल का हुआ कक लारौर से देरली और देरली से आगरे आए थे। आपके वाजलद िरीफ़ का इस्म गरामी1 सेठ कदलवाली ससर िी था, और आपके दादा साजरब सेठ मलूकचन्द िी ररयासत धौलपुर में दीवान के ओरदे2 पर मुमताि3 थे । 2. आपके खानदान में िु रू से री गु र बार्ी का प्रचार था और िु म ला 4 अरले खानदान क्या मदण कया औरतें और बच्चे जिन की मादरी ज़बान पं िाबी थी, जनरायत प्रे म और भाव के साथ रोज़मराण 5 गु रू नानक साजरब की बार्ी का पाठ ककया करते थे , सु ब रा को िपु िी साजरब और िाम को सोदर रजररास । हुज़ू र स्वामी िी मराराि ने जितना असाण सत्सं ग ककया गु रु ग्रन्थ साजरब और तु ल सी साजरब

1. िुभ नाम ।

2. पद ।

3. सुसजित ।

4. सब ।

5. प्रजतकदन ।



सार बचन

की बार्ी का पाठ करते ररे । चूकूँ क उत्तर प्रदेि में पंिाबी ज़बान का ररवाि बहुत कम रै और आम लोगों को पंिाबी समझने में कदक्कत 1 मरसूस रोती थी इस जलये बहुत से प्रेमी सत्संजगयों और सत्संजगनों ने इस्त्रार 2 करके उन ऊूँची और गूढ़ रूरानी रमिों को सरल भाषा में आम फ़रम ज़बान में करने पर मज़बूर ककया । इसमें िक ऩरीं कक जिस खूबी के साथ हुज़ूर स्वामी िी मराराि ने राज़राय सरबस्ता3 यानी गूढ़ भेदों को आसान और सलीस ज़बान में कलम-बन्द ककया रै उस की नज़ीर4 आि करीं नरीं जमलती । यर अपनी नज़ीर आप री रै । 3. हुज़ूर स्वामी िी मराराि ने छ: साल की उमर से री रूरानी तल्कीन5 व जरदायत का जसलजसला िुरू कर कदया था । ख़ुद अपने वालदैन को और नीज़ उन साधुओं को िो उनकी बज़ूरगी से वाकक़फ़ रोकर उनकी जखदमत में राजज़र रोते थे रर तरर से परमाथण समझाते थे । 4. आप करीब पंद्रर वषण तक अपने मकान की एक कोठरी में िो अन्दर दूसरे कोठे के थी, बैठ कर सुरत िब्द योग का अभ्यास करते ररे, यराूँ तक कक अक्सर औक़ात दो-दो तीन-तीन रोि तक बारर नरीं जनकलते थे और न री इस अरसे में राित ज़रूरी की तरफ़ तविर रोती थी । 5. अकसर सत्सं गी व सत्सं जगनें एक वषण से जज़यादा आम सत्सं ग

िारी करने के जलये रठ कर ररे थे और बारबार यरी प्राथण ना हुज़ू र स्वामी िी मराराि के चरर्ों में करते थे । आजखर उनकी अज़ण क़बू ल फ़माण कर सं व त 1997 (जबक्र मी) बरोज़ बसन्त पं च मी मु ताजबक िनवरी 1861 (ईसवी) को हुज़ू र स्वामी िी मराराि ने

1. करठनता ।

2. आग्रर करके ।

3. गुप्त ।

4. उदाररर् । 5. प्रचार, उपदेि ।

भूजमका



अपने मकान पर बयान संत-मत और उसका उपदेि परमाथी लोगों को फ़माणना िुरू ककया और यर सत्संग सतरर वषण तक रात-कदन बराबर ज़ारी ररा । 6. राधासवामी मत का दूसरा नाम संत-मत रै िो कक जपछले िमाने में जनरायत गुप्त ररा। िो संत प्रकट रोते वे मुद्दतों परखने और अज़माइि करने के बाद और अंत: करर् यानी ज़मीर साफ़ करके जसफ़ण खास खास अजधकाररयों को इस ऊूँचे और सच्चे नाम का भेद बताते थे । लेककन अब इस घोर कलयुग में िीवों को जनरायत जनबणल यानी कमज़ोर और दुजनया में फं सा हुआ देख कर हुज़ूर स्वामी िी माराराि ने अपनी दया मेरर का बल देकर लोगों को भवसागर से पार करने के जलये फ़ै ज़े-आम1 ज़ारी फमाण कदया । जपछले ज़माने में ककसी संत ने इस फ़ै् याज़ी2 और फ़राख-कदली3 से नाम का भेद नरीं कदया । इस सबब से अक्सर मतों में लोग िग्ल रूरानी यानी अन्तमुख ण ी अभ्यास को छोड़ कर पूिा पाठ वगैरै़ ा बारर-मुखी साधनों की तरफ़ राजगब4 रो गये 7. राधास्वामी मत में तीन चीज़ें तरकार रैं --गुरू, नाम और सत्संग , और तीनों के ज़रीए री उद्धार रो सकता रै यानी निात 5 राजसल रो सकती रै । अव्वल गुरू पूरा और सच्चा चाजरये यानी संत सतगुरू । वंिवाली6 गुरूओं से काम नरीं जनकलेगा । दोयम नाम भी सब से ऊूँचा और सच्चा और पूरा और असली यानी ज़ाती चाजरये, ब-मैं भेद नामी यानी मुसम्मा के । कृ जिम यानी जसफ़ाती नामों से काम नरीं चलेगा । तीसरे सत्संग भी सच्चा चाजरये । उसकी दो कक़स्में रैं, एक सत्संग

1. िीवों के लाभजरत । 2. बजशिि । 3. खुले कदल से । 4. ध्यान देने लग पड़े । 5. मुजि । 6. गुरूओं के खानदान के कु ल गुरू मरन्त आकद ।



सार बचन

अन्तरी, दूसरा बाररी । अन्तरी सत्संग यर रै कक अभ्यासी अपनी सुरत यानी िीवात्मा या रूर को अन्तर में चढ़ा कर सत्पुरूष राधास्वामी के चरर्ों में लगावे या उस तरफ़ मुतविर1 करे । दूसरा यर कक िब उसको दिणन और संग सत्पुरूषों का िो कक सच्चे और पूरे संत और साध रैं नसीब रोवे यर उनके बचन सुने और दिणन करें और िो सेवा बन सके करे । इन दोनों कक़स्म के सत्संग से कु छ कदनों में रालत साफ़ बदलती हुई मालूम रोगी । 8. और िो और काम परमाथी कक़स्म के रैं, जमस्ल तीथण और ब्रत मजन्दर और मूरत और पोजथयों का पाठ और िप और सुजमरन जसफ़ाती नाम का, इन कामों के करने से ज़रा भी रालत नरीं बदलती, क्योंकक इन कामों में जनि मन और िीवात्मा यानी रूर जिसको संत सुरत करते रैं िाजमल नरीं रोते और इसी सबब से इन कामों का असर ज़ाजरर नरीं रोता । अलबत्ता2 ज़ाजररी आन्नद और अरंकार वगैरा कदल में आ िाता रै । 9. सुर त यानी िीवात्मा या रूर िो खास सत्पुरू ष राधास्वामी की अं ि रै इस जिस्म में एक बड़ा िौरर रै कक जिसकी ताक़त से कु ल बदन और मन और इन्द्रयाूँ वगैरा अपना अपना काम देती रैं । सो संतों ने इसी िौरर को छाूँट कर उसके असल भण्डार और खज़ाने की तरफ़ मु त विार ककया और िब इसकी सच्ची तविर उधर को हुई, तब

आजरस्ता-2 इसकी रालत भी बदलती िाती रै और दुजनया और उसके पदाथण रोज़-बरोज़ नज़र में ओछे और रक़ीर 3 कदखलाई देते रैं । इस िौरर लतीफ़ 4 का असल मुक़ाम क़याम यानी ठरराव सपड यानी जिस्म में आूँ खों के पीछे रै और वराूँ से यर तमाम देर में फै ला रै और सब

1. धयान देवे ।

2. परन्तु, लेककन ।

3. तुच्छ ।

भूजमका



आज़ा ( अंङ्गो ) को ताक़त दे ररा रै और इस का भंडार और खज़ाना आकद िब्द यानी आकद नाद रै । 10. मालूम रोवे कक आकद िब्द कु ल का कताण और स्वामी रै, और आकद सुरत यानी उसके अव्वल ज़हूर का नाम राधा रै । इन्रीं का नाम सुरत और िब्द रै और िब इनकी धार नीचे आई, तब इसी आकद िब्द से और िब्द,

और आकद सुरत से और सुरत, और िब्द से सुरत और सुरत से िब्द बराबर प्रकट रोते आये और अपने-अपने मुक़ाम पर कायम हुए । 11. िब्द की मजरमा तो तमाम मतों के ग्रन्थों में रै और खास खास संतों ने गूढ़ भेद को ककसी क़दर वज़ारत के साथ भी बयान ककया रै, लेककन स्वामी िी ने जनरायत तफ़सील के साथ यानी जवस्तार पूवक ण िब्द भेद ज़ाजरर फ़माणया रै ।

12. खुलासा भेद िब्द का नीचे जलखा िाता रै:-- कु ल की आकद राधास्वामी यानी कु ल मालक रै यराूँ िब्द जनरायत गुप्त रै और उसकी उपमा यानी नमूना इस रचना में करीं नरीं रै । इसी िब्द से सत्तपुरूष प्रकट हुए । िबद परला—सत्तपुरूष का िबद जिसको सत्तनाम और सत्तिब्द भी करते रैं और जिसकी सत्त क़ु दरत से सोरं पुरूष और पारब्रह्म और ब्रह्म और माया प्रकट हुए । दूसरा—सोंर पुरूष का िब्द । तीसरा—पारब्ररम् का िबद िसकी मदद से तीन लोक की रचना ठररी हुई रै । चौथा—ब्ररम् का िब्द, िो कक प्रर्व रै, और जिससे सूक्ष्म यानी ब्ररम्डीं वेद और ईश्वरी माया प्रकट हुई । पाूँचवाूँ— माया और ब्ररम् का िब्द जिससे जिलोकी की रचना मसाला प्रकट हुआ और आकािी वेद ज़ाजरर हुए । माया िब्द के नीचे वैराट पुरूष का िब्द और



सार बचन

िीव और मन का िब्द प्रकट हुआ । 13. इस वक़्त में िो कोई िब्द के अभ्यास का जज़क्र भी करते रैं तो जसवाय नीचे के िब्द के ऊूँचे िब्दों की उनको खबर तक भी नरीं रै और बाज़े बैराटी िब्द को री कताण िब्द मानते रैं और कोई कोई माया और ब्रह्म के जमले हुए िब्द का जसफ़ण जिक्र करते रैं । मगर उसकी मजरमा और जसफ़त और उसके स्थान और अभ्यास की युजि से, जिससे वर प्राप्त रोवे, नावाकक़फ़ रैं । इन सब िब्दों का राल इस पोथी में तफ़सील वार जलखा हुआ रै । 14. तरीक़ा राधास्वामी यानी संत —पन्थ का भजि मागण का रै, यानी सच्चे और पूरे माजलक के चरर्ों में प्रेम और प्रीत और प्रतीजत करना । इसको उपासना और तरीक़त भी करते रैं । इस मागण में या तो संत सतगुरू और साध गुरु की मजरमा रै और या उनके असली िब्द स्वरूप की मजरमा रै । संत सतगुरू उनको करते रैं कक िो सत्तपुरूष और राधास्वामी के मुक़ाम पर पहुूँचे, और साध गुरू उनको करते रैं िो ब्रह्म और पारब्रह्म के मक़ाम पर पहुूँचे, और िो यराूँ तक नरीं पहुूँचे, उनको साध और सत्संगी करा िाता रै । इन दोनों िानी संत और साध का असली स्वरूप, िब्द स्वरूप रै और ज़ाजररी स्वरूप नर स्वरूप यानी इन्सानी जखकाण 1 रै िो कक वे लोगों के समझाने और बुझाने और उपकार और उद्धार के जलये धर कर संसार में प्रकट रोते रैं । िब यर मालूम हुआ कक यर पूरे संत या पूरे साध रैं तो कफर उन में और सत्तपुरूष या पारब्रह्म में भेद नरीं माना िाता रै । इस वास्ते िब िब पूरे संत या पूरे साध प्रकट रोते रैं, तो उनके चरर् सेवक उनकी मजरमा सत्तपुरूष या पारब्रह्म के बराबर करते

1. चोला, जलबास ।

भूजमका



रैं और बाजरर में उनकी पूिा और सेवा और आरती वगैरा उसी तौर से बिा लाते रैं िैसे कक माजलक की करना चाजरये और इस ज़ाजररी स्वरूप की सेवा और दिणन और बचन और उनके चरर्ों में प्रेम और प्रीजत करने से और िो िुगत वे बतलावें उसके अभ्यास करने से सुरत यानी िीवात्मा मन और माया के िाल से अलारदा रो कर आकाि में और उससे परे चढ़ती रै और अन्तर के स्वरूप यानी िब्द में पहुूँचती रै, तब सच्चा और पूरा उद्धार

िीव का रोता रै । 15. िब तक कक पूरे संत या पूरे साध न जमलें तब तक खोिी को मुनाजसब रै की उनकी तलाि में ररे और िो कोई उनका सत्संगी यानी सेवक जमल िावे कक जिसने उनके दिणन और सेवा बखूबी की रै और उनसे भेद िब्द मागण का रासल करके अभ्यास ककया रै और कर ररा रै उससे प्रीजत करे और भेद मागण और मंजिल का और िुगत उसकी प्राजप्त की यानी तरीक़ा अभ्यास का दरयाफ़्त करके कमाई िुरू करे और सच्चा इष्ट राधास्वामी के चरर्ों में िो कु ल के माजलक रैं, और िराूँ कक पहुूँचने का इरादा रर एक परमाथी को मिबूत करना चाजरये, बाूँध कर अपना काम करना िुरू करे । िो प्रीजत और प्रतीजत सच्ची और िौक़ सच्चा और पक्का रोगा तो िरूर कु ल माजलक आप ककसी न ककसी वक़्त पर चारे जिस स्वरूप से दिणन देकर इस िीव का काम अपनी दया और कृ पा से बनावेंगे । 16. राधास्वामी नाम कु ल माजलक ने अपना आप प्रकट ककया रै, और िब कक हुिूर साजरब के चरर् सेवकों को कु छ कदन अभ्यास और सत्संग करने से कु छ-कु छ उनकी भारी क़ु दरत और गजत मालूम हुई और कु छ उनरोंने अपनी कृ पा से थोड़ी अपनी पजरचान बख़्िी, तब से उनको उसी नाम से जिस मुक़ाम

ि

सार बचन

यानी राधास्वामी पद से कक वे आये थे पुकारना िुरू ककया और वर अपनी मौि से इस कलयुग में िीवों पर जनरायत दया करके संत स्वरूप अवतार धारर् करके प्रकट हुए । संत-मत में भी वरी क़ायदा िारी रै िो और तरीक़त यानी उपासना वालों के मत में िारी रै और वर यर रै कक सतगुरू पूरे यानी मुिद ण -काजमल में और माजलक कु ल में भेद नरीं करते और इसी सबब से उनको उसी नाम से पुकारते रैं िो कक असली नाम उस मुक़ाम यानी पद का रै िराूँ से कक वे आये रैं । राधास्वामी नाम सुरत और िब्द की एक जसफत रै, िैसे समुद्र और उसकी लरर, िब्द और उसको धुन, प्रेमी और प्रीतम, इन सब का मतलब एक री रै । 17. इस मत के मानने वालों और सुरत िब्द के अभ्यास करने वालों को चन्द रोज़ में आप उनके अन्तर में मालूम रो िावेगा कक यर क्या भारी जनयामत और दुलभ ण पदाथण उन को जमला रै, और जिस क़दर कदन-कदन उन की रालत मोक्ष और उद्धार की रोती िावेगी उसको वे आप देख लेंगे और सब मतों के जसद्धान्त और मक़ाम की और उनकी गजत की आप खबर रो िावेगी कक कौन मत कराूँ से जनकला रै और करां तक उसकी रसाई और पहुूँच रै । 18. यर मत और इसका अभ्यास खास-कर उन लोगों के वास्ते रै जिन को सच्चे माजलक के जमलने की चार रै, और जिनको अपने िीव के कल्यार् और उद्धार का कदल में कफ़क्र रै और िो लोग कक दुजनया के सामान और नामवरी और मान और बढ़ाई और इल्म यानी जवद्या को पसन्द करते रैं और परमाथण को अपना रोज़गार मुक़रण र करते रैं उनके वास्ते यर उपदेि नरीं रै और न उनको यर कलाम पसन्द आवेगा, बजल्क िराूँ तक मुमककन रोगा वर इस पर तान करें गे और गलत और फ़ु िूल ठररावेंगे और सबब इसका यर रै

भूजमका



कक इस कलाम को सुन कर उनका मन घबरा िाता रै कक इसको मानने से उनकी दुजनया और देह् के मज़े जबलकु ल िाते ररेंगे और रोज़गार में फ़कण आ िावेगा, इस वास्ते वे िराूँ तक बन सके गा ऐसी कोजिि करें गे कक यर मत िारी न रोवे ताकक जिन िीवों को उन्रोंने गफ़लत में डाल रखा रै और तरर ब तरर की पूिाओं में भरमा रखा रै और उनसे अपने रोज़गार और आमदनी की सूग्त पैदा कर रखी रै, वे उनके गोल और हुक्म बरदारी से अलारदा न रो िावें और उनकी पूिा और आमदनी में खलल न पड़े । 19. हुज़ूर स्वामी िी मराराि ने भी अपनी जिन्दगी जमसल और गृरसथी संतों के बसर की, और ककसी सत्संगी की भेट और पूिा अपने खाने पीने या ज़ाती इस्तेमाल में नरीं लाये, और अपना कु ल सरमाया 1 परमाथण में खरच कर कदया और दुजनया में आला से आला पजवि जज़न्दगी का नमूना बनकर कदखा कदया । चूकूँ क ज़माना आज़ादी का था, इस वास्ते आपने कलाम भी जनरायत आज़ादी और बेबाकी2 से फ़माणया रै, और दुजनया में आपकी मुखालफ़त भी जसफ़ण चन्द अिखास जबरादरी तक री मरदूद थी । रर एक मज़रब व जमल्लत के लोग आप पर कदल व िान से फ़रे फ़्ता3 थे । आपने उनसठ साल दस मरीने तक िीवों का उद्धार करके आसाढ़ वदी एकम संवत् 1935 जबक्रमी मुताजबक 15 िून सन् 1878 ई. को अपने मकान पर पन्नी गली िरर आगरे में चोला छोड़ा । आजखरी बचन िो हुज़ूर मुक़द्दम व मुअल्ला ने चोला छोड़ने के मौक़े पर ज़बाने-मुबारक से अिाणद फ़माणए, नीचे दिण ककये िाते रैं ।

1. पूि ं ी।

2. जनभणयता ।

3. मुग्ध ।



सार बचन

वचन आजखरी वचन िो कक स्वामी िी मराराि ने आजखरी रोज़ पेितर अन्तर ध्यान रोने के , वास्ते जरदायत साधूओं, सत्संजगयों व सत्संजगनों के खास ज़बाने मुबारक से फ़माणये । तारीख 15 िून सन् 1878 मुताजबक असाढ़ वदी पड़वा (1) संवत् 1925 जब: रोि िनीचर वि अलस्सबार ।

वचन 1---चनद्रसैन

सत्संगी िो कक रर पूनो (पूर्म ण ासी) को मौज़ा

कु रसंडे से वासते दिणन हुज़ूर स्वामी िी मराराि के आता था, उसको स्वामी िी मराराि ने पास बुला कर फ़माणया: तुम बैठ िाओ और दिणन खूब गौर से कर लो और इस स्वरूप को अपने ह्रदय में रख लो क्योंकक दूसरी पूनों को तुमको दिणन न रोंगे तुम्रारी भजि पूर्ण हुई ।

वचन 2---वि

आठ बिे सुबर के स्वामी िी मराराि ने फ़माणया

कक :---अब चलने की तैयारी रै । इसके बाद मराराि ने सुरजत चढ़ाई और सब भास खैंच जलया, जसफ़ण सफ़ै द डेले आूँखों के पीले रो गये थे । कफर पाव घंटे के बाद सुरजत उतारी और उस वि यर फ़माणया :---अब मौि कफर गई, अभी देर रै । तब सेठ प्रताप ससर ने पूछा कक कब की मौि रै ? उस

पर फ़माणया :---कक बाद दोपरर के ।

वचन 3 —कफर

भारा ससर साधु और सत्सं जगयों ने कु छ रू पया

भें ट करना िु रू ककया और बन्दगी करने लगे उस पर लाला िगन्नाथ खिी पड़ोसी कर ने ल गे , कक इस वि मराराि का

भूजमका



ध्यान अन्तर में लगने दो, रूपया पेि करने का यर वि नरीं रै । तब स्वामी िी मराराि ने उसकी तरफ़ मुतवज्ज्र रो कर यर फ़माणया:--- कक ध्यान इसका नाम रै कक िब चारे तब सुरजत पहुूँचा दो और िब चारे तब उतार लो, और रमने तो डेरे रात को री पहुूँचा कदये और सुरजत सत्तपुरूष की गोद में पहुूँचा दी, मगर तुम लोगों से कु छ वचन करने को उतर आये

रैं ।

वचन 4---कफर

यर फ़माणया कक तुम िानते रो कक मेरी छ: वषण की

उमर थी िब से मैं परमाथण में लगा हूं तब से यर अभ्यान पका हुआ रै और यर दृष्टान्त फ़माणया;---कक कच्चा पैराक रो, उनको डू बते वि करो कक अब तू पैर (तैर) तो उस वि वर क्या पैरेगा वर तो डू बे री गा । और िो लड़कपन से तैरना सीख ररा रै उसको दरया में डाल दोगे तो वर नरीं डू बग े ा और यर देर तो खलड़ी रै, यर तो ककसी की भी नरीं ररी रै । इसका क्या रै, और जज़न्दगी भर का भिन जसमरन जसफ़ण इसी वास्ते रै कक इस वि न भूल,े इस वासते ऐसा नाम का अभ्यास करो कक चलते कफरते नाम न भूले ।

वचन 5---कफर

स्वामी िी मराराि ने राय साजरब सालगराम और

कु ल साधुओं व सत्संजगयों व सत्संजगनों की तरफ मुतविर रो कर फ़माणया:---कक िैसा मुझ को समझते रो वैसा री अब राधा1 िी को समझना और राधा िी और छोटी माता2 िी को बराबर िानना ।

1. असली नाम माता िी का माता नरायर् देवी िी था । लेककन चूकूँ क सेथ प्रताप ससर जिन्रोंने यर वचन जलखें रै, उन को राधा िी के नाम से पुकारते थे, इस वास्ते यारां राधा िी री दरि रै । 2. छोटी माता िी से मुराद सेठ जबन्द्रावन िी साजरब िो कक हुज़ूर स्वामी िी मराराि के मंझले भाई थे, की सुपत्नी से रै ।



सार बचन

वचन 6---कफर

राधा िी मराराि को हुकम कदया कक जसब्बो3 और

बुक्की3 और जबिनों3 को पीठ न देना ।

वचन 7---सनमुखदास4 को

फमाणया:--- कक इसको सब साधुओं का

मरन्त ककया और यर फमाणया:---कक एसी मरन्ती नरीं िैसी दुजनया में िाराण रै यानी सनमुखदास और जवमलदास साधुओं के अफ़सर हुए और इन्तज़ाम और बन्दोबस्त साधुओं का इनके तअल्लुक़ ररेगा और बाग में ठररें और बाग का माजलक “प्रतापा” (सेठ प्रताप ससर) ।

वचन 8---कफर फ़माणया:---कक गरणस्थी अपनी पूिा साधुओं से न करावें। वचन 9---कफर रद्धी बीबी नें पूछा---कक रमारे वास्ते ककसको तिवीज़ ककया रै ? इस पर फ़माणया :---कक गृरजस्थयों के वास्ते तो राधा िी और साधुओं के वासते सनमुख दास ।

वचन 10---स्वामी िी मराररि ने फ़माणया:--- कक गृरस्थी औरतें बाग़ में िाकर ककसी साधु की पूिा और सेवा न करें । इन सब को चाजरये कक राधा िी के दिणन और पूिा करें । कफर फ़माणया:---कक िेर और बकरी को एक घाट पानी मैनें जपलाया रै और ककसी का काम नरीं रै कक ऐसा करे ।

3. ये तीनों हुज़ूर स्वामी िी मराराि की खास सेजवकायें थी । 4. िालन्धर िरर के बाजिन्दे हुज़ूर स्वामी िी मराराि के गुरूमुख सेवक थे ।

भूजमका



वचन 11---कफर बीबी बुक्की ने अज़ण ककया कक स्वामी िी मुझ को भी अपने साथ ले चलो । इस पर फ़माणया---कक तुम घबराओ मत तुमको िल्दी बुला लेंग,े तुम अन्तर में चरनों की तरफ ज़ोर देना ।

वचन 12---कफर सेठ प्रताप ससर नें अज़ण ककया---कक मुझको भी अपने संग ले चलो । इस पर फमाणया:---कक तुमसे अभी बहुत काम लेना रै । बाग़ में ररोगे और सत्संग करोगे और कराओगे ।

वचन 13---कफर सुदिणन ससर ने पूछा कक---िो कु छ पुछना रोवे तो ककस से पूछे ? उस पर फमाणया:---कक जिस ककसी को पूछना रोवे वर सालगराम से पूछे ।

वचन 14---कफर

सेठ प्रताप ससर की मुतरफ तविर रो कर

फमाणया:---कक मेरा मत तो सतनाम और अनामी का था और राधास्वामी मत सालगराम का चलाया हुआ रै । इसको भी चलने देना और सत्संग िारी ररे और सत्संग आगे से बढ़कर रोगा ।

वचन 15---कफर फमाणया:---सब सत्संगी खार गृरस्थी या भेष, ककसी तरर न घबरावें, मैं रर एक के अङ्ग सङ्ग हूं और आगे को सब की सूँभाल

पजरले से जविेष ररेगी ।

वचन 16---कफर

फमाणया:---कक कलिुग में और कोई करनी नरीं

बनेगी, के वल सतगुरू के स्वरूप का ध्यान और नाम का जसमरन बनेगा ।



सार बचन

वचन 17---सेठ प्रताप ससर ने अज़ण ककया---कक िब्द खुले । इस पर फमाणया:---कक धुन का सुनाई देना और उस में आनन्द का प्राप्त रोना, यरी िब्द का खुलना रै ।

वचन 18---कफर स्वामी िी मराराि ने राधा िी की तरफ मुतविर रो कर फमाणया:---कक मैंने स्वाथण और परमाथण दोनों में कदम रखा रै यानी दोनों बरते रैं सो संसारी चाल भी सब करना और साधुओं को भी अपनी रीजत करने देना ।

वचन 19—कफर

स्वामी िी मराराि सेर न में से भीतर कमरे के

तिरीफ ले गये और क़रीब पौने दो बिे बाद दोपरर के अन्तर ध्यान हुए ।

सूची पि सार बचन छंद बंद

िब्द की टेक

पृष्ठ

अ अंत हुआ िग मासर अंदरूूँ अिण रफ़्ता दीदम नूर अकर अपार अगाध अनामी अगम आरती राधास्वामी गाऊूँ अिब यर बूँगला जलया सिाय अटक तू क्यों ररा िग में अनरद बािे बिे गगन में अपने स्वामी की मैं करत आरती अब खेलत राधास्वामी संग रोरी अब चली तीसर परदा खोल अब चलो सिनी दूसर धाम अब चौथे की करी तयारी अब बरी सुरत मंझधार अब मन आतुर दरस पुकारे अब मैं कौन कु मजत उरझानी अब सतगुरू की आरत गाऊं अब सूरत पूछे स्वामी से अरे मन देख कराूँ संसार अरे मन नसर आई अरे मन रं ग िा सतगुरू प्रीत अली री मथ जनि सपडा

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

379 180 8 245 363 121 94 60 358 227 226 228 154 262 263 48 215 154 258 137 305

दो

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ठ

आ आओ री सखी िुड़ रोली गावें आओ री जसमट रे सजखओ आि आरती इक कहूं भारी आि आरती करूूँ सुरावन आि काि मेरे कीन्रें पूरे आि घड़ी अजत पावन भवन आि कदवस सजख मंगल खानी आि बधावा राधास्वामी गाऊूँ आि मेरे आन्नद रोत अपार आि मेरे धूम भई रै भारी आि मैं देखूं घट में जतल को आि सखी काि करो कु छ अपना आि साि कर आरत लाई आनूँद मंगल आि, साि सब आया मास अगरन अब छठा आरत आगे राधास्वामी के कीिे आरत करूूँ आि सतगुरू की आरत गाऊं पाूँच कड़ी की आरत गाऊूँ पूरे गुरु की आरत गाऊूँ सत्तनाम की आरत गाऊूँ स्वामी अगम अनामी आरत गाऊूँ स्वामी सुरत चढ़ाऊूँ आरत गावे दरसो अपनी आरत गावे सेवक तेरा आरत गावे स्वामी दास तुम्रारा

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

361 289 43 248 281 235 51 37 76 38 286 138 52 55 341 253 62 243 239 243 239 300 60 42 242

सूची पि

तीन

िब्द की टेक

पृष्ठ

आरत सतगुरू की अब करहूूँ आले में देखा ताक उिाला आजिक़म ज़ाते मुर्शिदे काजमल

००० ००० ०००

77 326 183

००० ०००

189 315

००० ००० ००० ००० ०००

249 65 359 311 316

००० ००० ०००

244 61 7

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

263 291 56 1 69 71 288 251

इ इक पुरूष अिायब पाया इन्द्री उलट लाओ अब तन में

उ उठी अजभलाखा इक मन मोर उमंग आि हुई जरये में भारी उमंड घुमड ं कर खेली रोली उमूँड ररी घट में घटा अपार उलट घट झाूँको गुरु प्यारी

ए एक आरती और बनाऊ एक आरती कहूं बनाई एक जसफत यर वर्ण बताई

क करत हूं पुकार, आि सुजनये गुरार करूूँ आरती नाना जवजध से करूूँ आरती राधास्वामी, तन मन करूूँ बन्दगी राधास्बामी आगे करूूँ बेनती दोऊ कर िोरी करूूँ बेनती राधास्वामी आि करूूँ मैं आरत सजखयन साथ करूूँ री एक आरत अद्भुत भारी

चार

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ठ

करे आरती सेवक भोला करो री कोई सतसंग आि करां लग कहूं कु रटलता मन की कहूूँ अब गोपी कृ ष्र् जवरार काजतक मास पाूँचवाूँ चला काया नगर में धूम मची रै काल ने िगत अिब भरमाया काल मत िग में फै ला भाई कु मजतया दूर हुई गुरु हुए दयाल कु मजतया बैरन पीछे पड़ी कै सी करूूँ कसक ऊठी भारी कोई मानो रे करन रमारी कोई सुनो रमारी बात कोमल जचत्त दया मन धारो कौन करे आरत सतगुरू की क्योंकर करूं आरती सतगुरू क्यों कफरत भुलानी िगत में कवार मरीना चौथा आया

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

245 111 97 190 339 358 85 188 329 124 231 120 158 168 236 249 112 338

००० ००० ००० ००० ०००

311 357 365 126 160

ख जखज़ां ति देखो मूल बरार खेल ररी मैं जनत बसन्त खोित ररी जपया पंथ, ममण कोइ खोि री जपया को जनि घट मैं खोलो री ककवजड़याूँ चड़ो री अटररयाूँ

सूची पि

पाूँच

िब्द की टेक

पृष्ठ

ग गई आि सोच में मेरी सुरत गगन नगर चढ़ आरत करहूं गाऊूँ आरती लेकर थाली गाओ री सखी िुड़ मंगल बानी गुईयाूँ री गुरु समझ मुनावे गुईयाूँ री लख मरम िनाऊूँ गुज़र मेरी कै से रोय सरेली गुमठ चढ़ी मन बरिती गुरु अचरि खेल कदखाया गुरु आन जखलाई घट में रोली गुरु आरत तू कर ले सिनी गुरु आरत जबजध दीन बताई गुरु आरत मैं करने आई गुरु उलटी बात बताई गुरु करो खोि कर भाई गुरु करो मेरर की दृजष्ट गुरु करें खोल कर भाई गुरु करें िगत सब अंधा गुरु करें पुकार पुकार गुरु का अगम रूप मैं देखा गुरु का दरस तू देख री गुरु का मैं दामन पकड़ा गुरु की कर रर दम पूिा

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

255 300 241 303 80 295 256 319 378 359 289 79 241 381 133 269 161 149 126 295 41 324 133

छः

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ट

गुरु की गजत अगम अपारा गुरु की दया ले िब्द सम्रारा गुरु के चरन पर जचत बजलरारी गुरु के दरस पर मैं बजलरारी गुरु के दिणन करने, रम आये गुरु क्यों न सम्रार तेरा नर तन गुरु गरो आि मेरी बजरयाूँ गुरु घाट चलो मन भाई गुरु चरन जबरर मेरे आये गुरु चरन धूर कर अंिन गुरु चरन धूर रम हूइयां गुरु चरनन पर िाऊूँ बजलरार गुरु चरन पकड़ दृढ़ भाई गुरु चरन प्रीत मन रं गा गुरु चरन बसे अब मन में गुरु चेला ब्योरार िगत में गुरु तारें गे रम िानी गुरु दररयाव चलो सुतण सिनी गुरु ध्यान धरो तुम मन में गुरु नाम रटूूँ अंग अंग से गुरु नाम रसायन दीना गुरु जनरखे री, जरये नैन खुलें

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

322 90 252 41 287 151 266 147 235 83 313 79 134 323 81 108 150 139 134 323 307 369

गुरु ने अब दीन्रा भेद अगम का

०००

320

गुरु ने मोसर दीन्रा नाम सरी गुरु प्रीत बढ़ी जचतवन में

००० ०००

325 76

सूची पि

सात

िब्द की टेक

गुरु बचन करें सो सुन रे गुरु मता अनोखा दरसा गुरु मारा बचन का बान गुरु जमले अमी रस दाता गुरु जमले परम पद दानी गुरुमुख प्यारा गुरु अधारा गुरु मूरत मेरे मन बस गइयां गुरु मेरे िान जपरान िब्द का दीन्रा दाना गुरु में दाता मैं भई दासी गुरु मेरे दीन दयाल, करी ककरपा धनी गुरु सरन आि मैं पाई गुरु का ध्यान कर प्यारे गुरु की आरत ठानूग ूँ ी गुरु की मौि ररो तुम वार गुरु को ऊपर ऊपर गाता गुरु गुरु मैं जररदे धरती गुरु पै डालूं तन मन वार गुरु जबन कभी न उतरे पार गुरु जबन कौन उबारे गा गुरु मैं गुनरगार अजत भारी गुरु मोसर अपना रूप कदखाओ गुरु मोसर दीिे अपना धाम गुरु मोसर दीन्री अमृत रास गुरु मोसर भेद कदया पूरा गुरु संग खेलूूँ जनस कदन पास गुरु संग िागन का फल भारी

पृष्ठ

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

169 46 320 286 75 67 331 81 242 354 83 143 77 137 257 72 285 144 144 237 274 273 321 325 330 372

आठ

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ठ

गुरु सोई िो िब्द सनेरी गूग ूँ े ने गुड़ खाइया गूिरी चली भरन गगरी गोरी जखली श्याम दल कजलयां

००० ००० ००० ०००

105 384 259 312

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

253 207 276 317 302 368 317 356 168 164 108 245 370 162 308 321

००० ०००

161 162

घ घट औघट झाूँका री सिनी घट कपट दूर कर भाई घट का पट खोल कदखाओ घट चमन जखला उजियारी घट झम ररी अब सुरत रं गीली घट भीतर तू िाग री, रे सुरत पुरानी घट में अब िोर मचाय ररी घट में खेलूूँ अब बसन्त घट में चढ़ खेल कबडी घन गरि सुनवात गररी घर आग लगावे सखी सोई सीतल घामर घूमर करूूँ आरती घुड़ दौड़ करूूँ मैं घट में घुमर चल सुरत घोर सुन भारी घूूँघट खोल चली सुतण दुलजरन घोर सुन चढ़ी सुरत गगना

च चढ़ झाूँको गगन झूँझररया चढ़ सुरत गगन की घाटी

सूची पि

नौ

िब्द की टेक

पृष्ठ

चढ़ो री घट दोखो मौि भली चढ़ो री सखी अब अगम अटारी चमकन अब लागी घट में जबिली चमन को चीन्र री बुलबुल चमररया चार बसी घट माजर चरन गुरू जररदे धार चल अब सिनी जपया के देि चल री सुरत अब गुरू के देि चल सुरत देख नभ गजलयाूँ चली सुरत अब गगन गली री चलो री सखी अब आलस छोड़ चलो री सखी आि जपया से जमलाऊूँ चलो री सखी जमल आरत गावें चार खान चौपड़ िग रची चुनर मेरी मैली भई चेत चल िगत से बौरे चेत चली आि सुरत रूँ गीली चेत चलो यर सब िंिाल चेत मरीना आया चेत चेतो मेरे प्यारे तेरे भले की कहूं चेतो रे िम िाल जबछाया चौका बरतन ककया अचंभी

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

310 201 309 166 256 59 369 114 297 299 328 155 4 186 232 118 299 115 348 141 156 387

०००

254

छ छु टूं मैं कै से इस मन से

दस

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ठ

ि िग िाग्रत भौ दुखमूल िग में घोर अूँधरे ा भारी िगत भाव भय लिा छोड़ो िगत से चेतन ककस जवजध रोय िाग िल सूरत सोई बहुत िाग री उठ खेल सराजगन िाग रे मन छोड़ बखेड़ा िागो री सुरत अब देर न करो िीव जचताय ररे राधास्वामी िीव जचतावन आये राधास्वामी िुगजनयाूँ चढ़ी गगन के पार िेठ मरीना िेठ भारी िोड़ो री कोई सुरत नाम से

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

213 114 104 124 111 233 246 155 68 281 39 351 123

०००

110

०००

377

०००

259

००० ००० ०००

119 64 54

झ झंझररया झांको जवरर उमगाय

ठ ठु मरी अब करी रै बखानी

ड डगर मेरी रोक लई या ज़़ुल्मी काल

त तिो मन यर दुख सुख का धाम जतल भीतर कदल िोड़ तुम दीपक मैं भइ हूं पतंगा

सूची पि

ग्यारर

िब्द की टेक

पृष्ठ

तुम धुर से चल कर आये तुम साध करावत कै से तू देख उलट कर मन में त्याग चल सिनी िग की धार

००० ००० ००० ०००

271 131 148 164

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

310 247 244 232 230 277 327 167 37 41 357 275 191 355 119 330

००० ००० ०००

87 152 279

द दमजनयाूँ दमक ररी घट मासर दम्पत आरत करूं राधास्वामी दया गुरु की अब हूइ भारी ददण दुखी जियरा जनत तरसे ददण दुखी मैं जवररन भारी दिणन की प्यास घनेरी कदखाया रूप मनोरर गुरु ने दुलरनी करो जपया का संग देओ री सखी मोसर उमंग बधाई देखत ररी री दरस गुरु पूरे देखन चली बसंत अगम पर देख जपयारे मैं समझाऊूँ देखो गगन के बीच, श्याम कं ि जखल ररा देखो देखो सखी अब चल बसंत देखो सब िग िात बरा दौड़त गई गगन के घेरे

ध धन्न धन्न धन धन्न जपयारे धाम अपने चलो भाई धीरि धरो बचन गुरू गरो

बारर

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ठ

धुन धुन धुन डालूूँ अब मन को धुन में अब सरत लगाओ धुन सुन कर मन समझाई धुन से सुरत भइ न्यारी रे धुजबया गुरु सम और न कोय धूम धाम से आइ इक सिनी धोखा मत खाना िग आय जपयारे धोखे में सब िग िात पचा

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

377 167 93 110 328 250 105 195

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

45 268 159 95 96 269 322 373 139

००० ००० ००० ००० ००० ०००

229 294 364 332 231 192

न नगररया झाूँक ररी मैं न्यारी नाम दान अब सतगुरू दीिे नाम धुन सुनो िब्द धुन गुनो नाम जनर्णय करूूँ भाई नाम रस चखा गुरु संग सार नाम रस पीवो गुरु की दात नाल नभ तकी रोय न्यारी जनरखो री कोई उठ कर जपछली रजतयाूँ नैन कं वल गुरु ताक

प पंचम कक़ला तख़्त सुल्तानी पजिचम ति पूरब चल आया पाय गई राधास्वामी, रो गई सुराग भरी पीया दरसत भइ री जनराल जपया जबन कै से िीऊं मैं प्यारी जपया जबन प्यारी कै से रोय जनबार

सूची पि

तेरर

िब्द की टेक

पृष्ठ

पूस मरीना िाड़ा भारी (पूस मास) ००० प्रथम असाढ़ मास िग छाया (असाढ़ मास) ०००

343 333

प्रेम प्रीत घट धार आरती राधास्वामी

०००

63

प्रेम प्रीत घट भीतर आई प्रेम भरी मेरी घट की गगररया प्रेजमन दूर देि से आई प्रेमी सुनो प्रेम की बात

००० ००० ००० ०००

293 304 287 80

००० ०००

346 260

००० ००० ००० ००० ०००

197 117 295 349 307

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

282 155 103 157 58 375 336 क

फ फागुन मास रूँ गीला आया फै ल ररी सुतण बहु जवजध िग में

ब बंझा ने बालक िाया बूँधे तुम गाढ़े बंधन आन बहुररया धूम मचावम आई बैसाख मरीना जसर पर आया बोल री राधा प्यारी बंसी

भ भइ रै सुरत मेरी आि सुराजगन भजि अब करो मेरे भाई भजि मरात्म सुन मेरे भाई भिन कर मगन ररो मन में भर भर प्रेम आरती गाउं भरमी मन को लाओ रठकाने भादों मास तीसरा िारी भूजमका

चौदर

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ठ

भेद आरती सुन सजख मो से भोग धरे राधास्वामी आगे

००० ०००

130 388

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

329 1 115 295 163 255 324 261 152 123 260 386 314 272 344 327 116 121 307 178 116 237

म मंगल मूल आि की रिनी मंगलाचरर् मत देख पराये औगुन मन और सुरत चढ़ाओ जिकु टी मन घोटो घट में लाई मन चंचल करा न माने मन बजनया बनत बनाई मन बोला सुतण से कफर ऐसे मन मारो तन को िारो मन रे क्यों गुमान अब करना मन रे मान बचन इक मेरा मन सींचो प्रेम ककयारी मन सोधो घट में श्बद संग माूँगू इक गुरु से दाना माघ मरीना अजत रस भरा माजलनी लाई ररवा गूथ ूँ जमि तेरा कोई नरीं सूँजगयन में जमली नर देर यर तुम को मुरजलया बाि ररी कोई सुने संत मुर्शिदा आजिक़े दीदार िमालत गितम मुसाकफ़र ररना तुम हुजियार मेरी पकड़ो बाूँर रे सतगुरू

सूची पि

पंद्रर

िब्द की टेक

पृष्ठ

मेरी सुरत राधास्वामी िोड़ी मेरे उर में भरे दुख साल मेरे गुरु ने जखलाई प्रेम सूँघ रोरी मेरे घट का कदया गुरु ताला खोल मेरे जपया की अगम रैं गजतयां मेल करो जनि नाम गुसइयां मैं कहूूँ कौन से भाई मैं कौन कु मजत उर झाना मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की मैं भई अगम की दासी मैं भूली सतगुरू स्वामी मैं जलखूं गुरु को पाती मैं सतगुरू संग करूूँगी आरती मैं सुनूं कथा जनत घट की मोसर जमला सुराग गुरु का मौि इक धारी सतगुरू आि मौि करूूँ अब घट में बैठ मौत डर जछन जछन वयापे आई मौत से डरत ररो कदन रात

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

360 297 359 314 332 375 189 84 13 322 194 272 229 325 234 308 314 267 117

००० ००० ०००

54 127 122

०००

388

य यर आरत दासी रची यर तन दुलभ ण तुम ने पाया यराूँ तुम समझ सोच कर चलना

र रात िगूूँ मैं सुन कर खड़का

सोलर

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ठ

राधास्वामी आकद सुरत का नाम राधास्वामी आय प्रगट हुए िब से राधास्वामी का दरस मैं आि करूूँगी राधास्वामी घर बाढ़ो रं ग राधास्वामी झूलत आि सरडोला राधास्वामी दया प्रेम घट आया राधास्वामी धरा नर रूप िगत में राधास्वामी नाम, िो गावे सोई तरे राधास्वामी नाम, जसफत करूूँ इस नाम की राधास्वामी नाम सुनाया राधास्वामी राधास्वामी मेरे ससध गम्भीर राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी गाऊूँ राधास्वामी जलया अपनाय सखी री रोम रोम मेंरे तुम आधार

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

8 23 40 361 363 62 6 1-व-8 7 19 50 240 28 69

००० ००० ००० ०००

277 291 115 160

०००

146

००० ००० ०००

132 91 304

ल लगाओ मेरी नइया सतगुरू पार लाई आरती दासी सि के लाि िग काि जबगाड़ा री लोभ री खुवजनयाूँ काम री दलजनयाूँ

व जवररनी गुरु की सरन सम्रार

ि िब्द की करी न कोई कमाई िब्द की करो कमाई दम दम िब्द धुन सुनी असमानी

सूची पि

सतरर

िब्द की टेक

पृष्ठ

िब्द ने रची जिलोकी सारी िब्द जबना सारा िग अंधा िब्द संग बाूँध सुरत का ठाट िब्द संग लगी सुरत की डोर िोभा देखूूँ मैं अब गुरु की

००० ००० ००० ००० ०००

88 91 92 312 330

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

283 2 369 211 136 135 251 109 270 313 236 284 82 277 140 88 153 243 334 362

स संत दास की आरती सुनो राधास्वामी संदेि (वार्शत्तक) सखी चल देख बरार जपया की सतगुरू आरत लीन्र ससगारी सतगुरू करें करो तुम सोई सतगुरू का नाम पुकारो सतगुरू की अब करूूँ आरती सतगुरू खोिो री प्यारी सतगुरू मेरी सुनो पुकार सतगुरू मैं पूरे पाय सतगुरू संग आरत करना सतगुरू संत जमले राधास्वामी सतगुरू सरन गरो मेरे प्यारे सतगुरू से करूूँ पुकारी सतसंग करत बहुत कदन बीते सब की आकद िब्द को िान समझ कर चल िगत खोटा सात कड़ी की आरत फे रूं सावन आया मास दूसरा सावन मास आस हुइ झूलन

अठारर

सार बचन

िब्द की टेक

सावन मास सुराजगन आई जसफ़त तीसरी करूूँ बखाना जसफ़त राधास्वामी नाम की सुख समूर अन्तर घट छाया सुखमन िाय मन हुलसाना सुन गुरू बचन करें िो तुझ से सुन री सखी इक ममण िनाऊूँ सुन री सखी चढ़ मरल जवराि सुन री सखी तोजर भेद बताऊूँ सुन रे मन अनरद बैन सुन्नी सुरत िब्द जबन भटकी सुरत अब घूम चली तन छोड़ जनदान सुरत अब चढ़ो नाम रं ग लाग सुरत अब चली ऐन में पैन सुरत अब िाना जनि घर अपना सुरत अब िब्द मासर जनत भरना सुरत अब सार सम्रालो नाम सुरत आि चली आरती धार सुरत आि झूल ररी गुरु जमले झुलावन रार सुरत आि मगन भई सुरत आि लगी चरन गुरु धाय सुरत उठ िागी चरन सम्रार सुरत की आि लगा दे तारी सुरत को जमला खज़ाना नाम सुरत को साध, छबीली रो मगनी सुरत क्यों हुई कदवानी

पृष्ठ

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

362 8 7 47 306 195 383 170 225 149 366 313 164 309 303 93 166 65 364 305 58 329 275 315 166 146

सूची पि

उन्नीस

िब्द की टेक

सुरत घर खोि री ऋतु जमलन जमली सुरत चढ़ी घट में अब दौड़ी सुरत चल बावरी, क्यों घर जबसराया सुरत तू कौन कराूँ से आई सुरत तू कौन कु मजत उरझानी सुरत तू क्यों न सुने धुन नाम सुरत तू चढ़ िा तुरत गगन को सुरत तू चेत री अब सावन आया सुरत तू दुखी ररे रम िानी सुरत धुन धार री ति भोग सुरत नसर चढ़े करा कररये सुरत ने िब्द गरा जनि सार सुरत बसाओ िब्द में सुरत बुद ं सत ससध ति सुरत मेरी चढ़ गई गगन अटररयां सुरत मेरी दुजवधा आन छली सुरत मेरी धोय डालो सुरत मेरी हुई िब्द रस माती सुरत रत घोर सुनावत भारी सुरत संग सतगुरू धोवत मन को सुरत सखी आि करत आरती सुरत सरेली नभ पर खेली सुरत सुन बात री तेरा धनी बसे आकाि सुरजतया गगन चढ़ाई लो मीत सुतण चली धुलावन काि

पृष्ठ

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

368 302 367 110 113 111 164 362 113 145 150 326 280 188 363 214 274 303 371 147 56 296 145 169 233

बीस

सार बचन

िब्द की टेक

पृष्ठ

सुतण पजनरारी सतगुरू प्यारी सुतण बन्नी गुरु पाया बन्ना सुतण भरी अगम िल गगरी सूरत सरकत पार, वार त्याग देरी तित सूरमा सुरत हुई गुरु देख प्रताप सोचत करा सजख कर ले आरत सोचत ररी री बेचन ै , रै न कदन बहु सोच ररी री मौि की बजतयां सोच ले प्यारी अस जमला िोग सोता मन कस िागे भाई सोधत सुरत िब्द धुन अंतर सोया भाग मेरा िागा आि सखी स्वामी उठे और बैठे भिन में स्वामी सुनो रमारी जबनती

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

311 375 323 318 328 130 278 332 325 125 374 234 386 71

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

165 165 112 170 301 257 49 209 112 292

र रंसनी क्यों पीवे तू पानी रंसनी छानो दूध और पानी जरत कर करता सुन सुतण बात जरदायत नामा (वार्शत्तक) जररदे में गुल पौद जखलानी हुआ मन आि दुखदाई रे राधा तुम गजत अजत भारी रे जवद्या तू बड़ी अजवद्या रे सरेली अब गुरु के मारग चलना रे सरेली आली मौि करी अब भारी

बचनों का सूची पि बचन

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 20 21 22

जवषय

मंगलाचरर् संदि े आरती जसफ़त राधास्वामी नाम की मजरमा राधास्वामी मजरमा दिणन परम पुरूष राधास्वामी भेद मागण और िोभा सत्तलोक आरती परम पुरूष राधास्वामी जबनती मजरमा सतगुरू मजरमा िब्द जनर्णय नाम मजरमा सतसंग मरातम भजक्त्त पजरचान पूरे गुरु और परमाथी की जचतावनी भाग 1 जचतावनी भाग 2 जचतावनी भाग 3 उपदेि सतगुरू भजि जचतावनी भेखों को भाग 4 उपदेि सतगुरू भजि उपदेि िब्द अभ्यास जरदायतनामा, गज़ल फ़ारसी व तरिुमा भेद काल मत व दयाल मत का

पृष्ठ

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

1 7 8 37 42 48 69 72 87 95 97 103 105 110 115 127 131 133 141 155 186

बाईस बचन

23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42

सार बचन जवषय

पृष्ठ

राल उत्पजत्त प्रलय माया संवाद वर्णन भूल वेदांत मत सुरत संवाद वर्णन राल जवरर और खोि सतगुरू वर्णन आन्नद जवलास प्राजप्त सतगुरू प्राथणना आरती वर्णन मन इजरद्रयों के जवकार प्राथणना सुरत की मन से और िवाब फ़याणद और पुकार प्राजप्त मेरर और दया सतगुरू चढ़ना सुरत और लीला मुक़ामात प्राजप्त िब्द और मुक़ामात प्राजप्त िब्द और िुकराना सतगुरू बारर मासा बसन्त व रोली सावन सरडोला व झूला फु टकल िब्द सेवा बार्ी

००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ००० ०००

197 200 210 214 229 233 236 239 253 260 262 281 291 311 320 333 355 362 365 386

देिना (Index)

०००

389

राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सराय सोरठा राधास्वामी नाम, िो गावे सोई तरे । कल1 कलेि सब नाि, सुख पावे सब दुख ररे ।।1।। ऐसा नाम अपार, कोई भेद न िानई । िो िाने सो पार, बहुरर2 न िगमें िन्मई ।।2।। दोरा राधास्वामी गाय कर, िनम सुफल कर ले । यरी नाम जनि नाम रै, मन अपने धर ले ।।3।। बैठक स्वामी3 अद्भुती, राधा4 जनरख जनरार । और न कोई लख सके , िोभा अगम अपार ।।4।। गुप्त रूप िरूँ धाररया, राधास्वामी नाम । जबना मेरर5 नसर पावई, िराूँ कोइ जबसराम ।।5।।

।। मंगलाचरर् ।। करूूँ बन्दगी राधास्वामी आगे । जिन परताप िीव बहु िागे ।।1।। बारम्बार करूूँ परनाम । सतगुरू पदम6 धाम सतनाम ।।2।। आकद अनाजत िुगाकद अनाम । संत स्वरूप छोड़ जनि धाम ।।3।।

1. काल । 5. दया ।

2. कफर । 3. कु ल माजलक आकद िब्द । 6. सेत कूँ वल ।

4. आकद सुरत ।

2

सार बचन

बचन 1

आये भव िल नाव लगाई । रम से िीवन जलया चढ़ाई ।।4।। िब्द दृढ़ाया सुरत बताई । करम भरम से जलया बचाई ।।5।। दोरा कोरट कोरट करूूँ बन्दना, अरब खरब दंडौत । राधास्वामी जमल गये, खुला भजि का सोत1 ।।

चौपाई भजि सुनाई सबसे न्यारी2 । सत्तपुरूष चौथे पद बासा । सो घर दरसाया गुरु पूरे । आगे अलख पुरूष दरबारा । जतस पर अगम लोक इक न्यारा । तराूँ से दरसे अटल6 अटारी7 । सुरत हुई अजत कर मगनानी ।

वेद कतेब3 न ताजर जबचारी ।।1।। संतन का वराूँ सदा जबलासा ।।2।। बीन बिे िरूँ अचरि तूरे4 ।।3।। देखा िाय सुरत से सारा5 ।।4।। संत सुरत कोई करत जबरारा ।।5।। अद्भुत राधास्वामी मरल सूँवारी ।।6।। पुरूष अनामी िाय समानी ।।7।।

।। बचन परला ।। संदेि संदेि8 ---प्रगट रोना परम पुरूष धनी राधास्वामी का संत सतगुरू रूप धार कर वास्ते उद्धार िीवों के ।। सुनावना अजधकारी को इस सं देि का कक परम पुरू ष धनी राधास्वामी िीवों को मरा दुखी और भरम में भू ला हुआ दे ख कर

1. भं डार । 2. पृ थ क । 3. मिरबी ककताबें । 4. आवाि एक तरर के बािे की । 5. तत्व वस्तु । 6. िो कभी नाि न रो । 7. सब से ऊपर का मकान । 8. खबर ।

बचन 1

संदि े

3

आप उनके उद्धार के जनजमत्त1 संत सतगुरू रूप धारर् करके प्रगट हुये और अजत दया करके भेद अपने जनि स्थान का और युजि उसके प्राजप्त की सुरत िब्द के मागण2 से उपदेि करते रैं । िीवों को चाजरये कक उनके चरर् कूँ वल में प्रेम करें । इस मागण की कमाई से मन बस में आवेगा और जसवाय इसके दूसरा कोई उपाव मन के जनश्चल और जनमणल करके चढ़ाने का आकाि के परे

इस कलयुग में जनश्चय करके नरीं रै । जितने मत संसार में प्रवृत 3 रैं, उन सब का जसद्धांत4 संतो की पजरली मंजिल5 जनरायत दूसरी मिल तक खतम6 रो िाता रै । िो सुरत िब्द का अभ्यास जवजध पूवणक बन आवे तो मन और सुरत जनमणल रोकर और िब्द को पकड़ के आकाि के परे िो घट घट में व्यापक रै, चढ़ेंगे और नौद्वार अथवा सपड देि को छोड़ कर ब्रह्मांड यानी जिकु टी में पहुंचेंगे और वराूँ से सुरत मन से अलग रोकर आगे चलेगी और सुन्न और मरासुन्न के जबलास देखती हुई और सत्त लोक और अलख लोक और अगम लोक में दिणन सत पुरूष और अलख पुरूष और अगम पुरूष का करती हुई राधास्वामी के जनि देि में प्राप्त रोगी । इसी स्थान से आकद में सुरत उतरी थी और जिलोकी में आकर कालके िाल में फूँ स गई थी सो उसी स्थान पर कफर िा पहुंचेगी । सुरत िब्द मागी को यर सब स्थान यानी जवष्र्ु -लोक और जिव-लोक और ब्रह्मलोक और िजि-लोक और कृ ष्र्-लोक और राम लोक और ब्रह्म और पारब्रह्म पद और िैजनयों का जनवाणर् -पद और ईसाईयों का मकाम-खुदा और रूहुल क़ु द्स का जनवाणर् -पद और ईसाईयों का मकाम-ख़ुदा और रूहुल क़द्स8 और मुसलमानों के आलमे मलकू त 9 और िबरूत10 और

1. वास्ते । 2. रास्ते। 3. िारी । 4. आजखरी पद । 5. स्थान । 6. पूरा । 7. अभ्यासी । 8. पजवि आत्मा । 9. देव लोक, िरां के वल कफररिते ररते रैं । 10. सुषुजप्त ।

4

सार बचन

बचन 1

लाहूत1 सुन्न के नीचे नीचे रास्ते में पड़ेंगे । यर सब लीला देखती हुई सुरत संतों के प्रताप से अपने जनि देि को प्राप्त रोगी । ।। िब्द परला ।। आरती चलो री सखी जमल आरत गावें । ऋतु बसंत आये पुरूष पुराने ।।1।। अलख अगम का भेद सुनावें । राधास्वामी नाम धरावें ।।2।। सुरत िब्द की रे ल चलावें । िीव चढ़ाय अगम पुर धावें ।।3।। सतसूँग धारा जनतजर बरावें । राधास्वामी जछन जछन गावें ।।4।। उमूँग उमूँग जरया भेंट चढ़ावें । काल िाल दुख दूर बरावें ।।5।। ऐसे समरथ पुरूष अपारा । दृजष्ट िोड़ रहुं दिण अधारा ।।6।। पल पल खटकत जवरर करारी2 । िस हूलत3 कोउ सेल4 कटारी ।।7।। जबन देखे दीदार5 न मानूूँ । िग संसार सभी जवष िानूूँ ।।8।। अमृत कुं ड रूप राधास्वामी । अचऊूँ6 जछनजछन तबमन मानी ।।9।। जबन राधास्वामी मोसर कछु न सुरावे । चार लोक मेरे काम न आवे ।।10।। ज्ञान ध्यान और िोग बैरागा । तुच्छ7 समझ मैनें इनको त्यागा ।।11।। मैं तो चकोर चंद राधास्वामी । नसर भावे सतनाम अनामी ।।12।। जबन िल मछली चैन न पावे । कं वल जबना अल8 क्यों ठररावे ।।13।। स्वाूँजत जबना िैसे पजपरा तरसे । सुत जवयोग माता नसर सरसे9 ।।14।। अस अस राल भया अब मेरा । कासे बरनूं कोऊ न रेरा10 ।।15।। दान देयं तो दें राधास्वामी । और न कोई ऐसा अंतरिामी ।।16।। ऐसी भजि रोय इक रं गी । काटे बन्धन मन बहुरं गी ।।17।।

1. तुररया । 2. तीब्र, तेज़ । 3. छेदता रै । 4. बरछा । 5. दरिन । पान करूूँ, जपऊूँ । 7. ओछा । 8. भूँवरा । 9. मगन रोती रै । 10. पजरचानता ।

बचन 1

आरती

5

राधास्वामी राधास्वामी जनत गुन गाऊूँ । चरन सरनपर जरया उमगाऊूँ।।18।। कराूँ लग बरनूं मेरर अपारा । कदन कदन रोवत मौि1 जनयारा ।।19।। िगत िीव करा2 समझे लीला । देख देख रंसन जचत सीला3 ।।20।। अब के दाव पड़ा मोरा सिनी । िब आयो राधास्वामी की सरनी।।21।। खुल गये भजि

प्रेम भडांरा । कोरटन िीव का रोय उधारा ।।22।।

चहुं कदस धूम पड़ी अब भारी । काल नगर मानो4 दे रैं उिाड़ी ।।23।।

स्वामी दयाल मौि ऐसी धारी । दीन रोय जतस लेरैं उबारी ।।24।। मैं कककर उन

चरनन दासा । सब िीवन को देऊूँ कदलासा5 ।।25।।

बाूँध

सुरत चरनन में राखो । अगम अपार अमी रस चाखो ।।26।।

रंस

सभा करा बरनूं सोभा । रोवत िराूँ िब्दन की बरषा ।।27।।

चमकत जबिली गरि अकािा । और करा कहुं9 अिब तमािा ।।28।। बंकनाल जिकु टी

के

नाले

घाट

बैठ मल धोई । मान

रंस रूप रोय सुरत मरासुन्न

छू टे । सुखमन नकदयाूँ भरम पुल टू टे ।।29।।

के

सरोवर

दुरमत खोई ।।30।।

समानी । िब्द अगम धुन अंतर िानी ।।31।।

ऊपर

गािी7 । राधास्वामी

रो गये राज़ी ।।32।।

भूँवरगुफा की जखड़की खोली । सत्तपुरूष की सुन लइ बोली ।।33।। रंस

सभी

अगवानी

सुरत

जसरोमन

पहुंची

धाये । अलख लोक से

लेवन आये ।।34।।

धाई । अलख पुरूष का दिणन पाई ।।35।।

नाना जवजध िराूँ बित बधाई । रंस सभी जमल आरत गाई ।।36।। अगम लोक िाय झंडा गाड़ा । अगम पुरूष का भेद उघाड़ा8 ।।37।। वराूँ का मरम न कोई आखा । जबरले संत गुप्त कर भाखा ।।38।। िीव दया अब अजत कर आई । राधास्वामी खुल क़र गाई ।।39।।

1. दया की धार ।

2. क्या ।

3. जचत की िांजत ।

4. िैसे ।

6

सार बचन

मानो रे मानो िीव अभागी । धाओ दौड़ो पकड़ो चरना । कफर औसर1 नसर पाओ रे ऐसा । छोड़ो कमण धमण पाखंडा । िब रोवे जरये सुरत अखंडा । वराूँ से अलख लोक को धावे । अगम पुरूष का दिणन करई । रंसा पाूँजत2 िोड़ िराूँ बैठे । अरबन खरबन भान3 उिारा । कूँ वलन क्यारी चहुं कदस5 लागी । राग रं ग धुन अजत झनकारा । रीरे लाल रतन की धरती । िराूँ राधास्वामी का तख़्त9 जबरािे धूम धाम जनत रोत सवाई10 । ऐसा देि रचा राधास्वामी ।

बचन 1

राधास्वामी करर रैं सभागी ।।40।। िैसे बने तैसे आओ सरना ।।41।। अब कारि करो िैसा रे तैसा ।।42।। सुरत चढ़ा फोड़ो ब्रह्मण्डा ।।43।। पहुंचे सत्तलोक सचखंडा ।।44।। अगम लोक में िाय समावे ।।45।। अद्भुत रूप सुरत िब धरई ।।46।। झुड ं झुड ं ररें इकट्ठे ।।47।। करा कहुं सोभा भूजम4 अपारा ।।48।। झालर मोती झुम झुम6 आगी ।।49।। अमी सरोवर7 भरे रैं अपारा ।।50।। चाूँद सुरि की चादर तनती8 ।।51।। । रंस मंडली अद्भुत रािे ।।52।। आनंद मंगल कदन प्रजत गाई ।।53।। जनि भिन को करें जबसरामी ।।54।।

।। िब्द दूसरा ।। राधास्वामी धरा नर रूप िगत में जिन जिन माना बचन समझ के कर सतसूँग सार रस पाया गुरु सूँग प्रीत करी उन ऐसी गुरु जबन कल नसर पड़त घड़ी इक िब गुरु दिणन जमलें भाग से ऐसी प्रीत लगी जिन गुरूमुख

। । । । । । ।

1. समय ।

4. िगर ।

2. पंजि ।

3. सूयण ।

7. ताल । 8. फै ल हुई । 12. घबराये ।

गुरु रोय िीव जचताये ।।1।। जतनको संग लगाये ।।2।। पी पी तृप्त अघाये11 ।।3।। िस चकोर चन्दाये ।।4।। दम दम मन अकु लाये12 ।।5।। मगन रोत िस बछड़ा गाये ।।6।। सो सो गुरु अपनाये ।।7।।

9. ससरासन ।

5. कदिा ।

10. अजधक ।

6. लटकती हुई । 11. तृप्त रो गये ।

बचन 2

जसफ़त राधास्वामी नाम की

तन की लगन भोग इन्द्री के गुरु की मूरत बसी जरये में अस गुरू भजि करी जिन पूरी स्वाूँजत बूद ूँ िस रटत2 पपीरा नाम प्रताप सुरत अब िागी िब्द पाय गुरु िब्द समानी अलख िब्द और अगम िब्द ले पूरा घर पूरी गजत पाई

। । । । । । । ।

7

जछन में सब जबसराये1 ।।8।। आठ परर गुरु संग रराये ।।9।। ते ते नाम समाये ।।10।। अस धुन नाम लगाये ।।11।। तब घट िब्द सुनाये ।।12।। सुन्न िब्द सत िब्द जमलाये ।।13।। जनि पद राधास्वामी आये ।।14।। अब कु छ आगे करा न िाये ।।15।।

।। बचन दूसरा ।। जसफ़त राधास्वामी नाम की ।। जसफ़त पजरली ।।

सोरठा राधास्वामी नाम, जसफ़त3 करूूँ इस नाम की । सुनो कान ते आन4 जभन्न, जभन्न5 वर्णन करूूँ ।।1।। पाूँच अक्षर आये जरन्दी में । िबाूँ6 फ़ारसी अक्षर दस में ।।2।। पाूँच िब्द का भेद बतावें । दस मुक़ाम को ले पहुंचावें ।।3।। ।। जसफ़त दूसरी ।। एक जसफ़त यर वर्ण7 बताई । जसफ़त दूसरी खुल कर गाई ।।1।। राधा धुन का नाम सुनाऊूँ । स्वामी िब्द भेद बतलाऊूँ ।।2।। धुन और िब्द एक कर िानो । िल तरं ग सम भेद न मानो ।।3।।

1. भूले । 2. सुजमरता रै । 3. मजरमा । 6. भाषा । 7. बयान करके ।

4. आ करके ।

5. िुदा ।

8

सार बचन

बचन 3

।। जसफ़त तीसरी ।। जसफ़त तीसरी करूूँ बखाना । सुनो जचत्त से देकर काना ।।1।। राधा प्रीत लगावन रारी1 । स्वामी प्रीतम नाम करा री ।।2।। यर भी जसफ़त बताय दई । राधास्वामी सुरत िब्द गाया री ।।3।। ।। जसफ़त चौथी ।। राधा आकद सुरत िब्द सुरत िब्द राधास्वामी

सुरत का नाम और राधास्वामी संग करे जबलास दो कर िान

। । । ।

स्वामी आकद िब्द जनि धाम ।।1।। दोनों नाम एक कर िानी ।।2।। यों राधास्वामी कढग2 बास ।।3।। रोयूँ एक सत लोक रठकान ।।4।।

।। बचन तीसरा ।। मजरमा परम पुरूष पूरन धनी राधास्वामी की िो कक संत सतगुरू रूप धारन करके वास्ते उद्धार िीवों के िगत में प्रगट हुए और वर्णन प्रेम प्रीजत उनके चरर् कूँ वल में सोरठा राधास्वामी नाम, िो गावे सोई तरे । कलकलेि सब नाि, सुख पावे सब दुख ररे ।।1।। ऐसा नाम अपार, कोई भेद न िानई । िो िाने सो पार, बहुरर न िग में िन्मई ।।2।। ।। िब्द परला ।। अकर अपार अगाध अनामी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।1।। रैरत3 रूप अथार दवामी4 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।2।।

1. लगाने वाली ।

2. पास ।

3. अचरि ।

4. रमेिा कायम ररने वाला ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

अगम रूप धर आये अगामी1 । अलख धाम के जपर हुए धामी । सतलोक में हुए सतनामी । भूँवरगुफा बैठे अंतरिामी । मरासुन्न पर बैठक ठानी2 । सुन में अक्षर3 रूप मुक़ामी । गगन मूँडल ओंकार अकामी । रूप जनरं िन धारा श्यामी4 । मन के घाट हुए अब कामी । इन्द्री घाट जबकार घटामी5 । स्थूल रूप धर िगत िगामी । जिगुन रूप िग रचा रचामी । अललपच्छ6 सम कफर उलटामी । पहुंचे कफर जनि धाम अनामी । कफर हुए िस थे प्रथम अनामी । मजरमा उनकी कस कर गामी7 । बार बार मैं करूूँ नमामी । िोगी ज्ञानी ममण न िानी । ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि भुलानी । गौर8 सजविी लछमी न िानी । िेष गनेि कु रम9 अज्ञानी । ऋजष मुजन नारदाकद भटकानी ।

9

सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।3।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।4।। वर मेरे प्यारे राधास्वामी ।।5।। सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।6।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।7।। सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।8।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।9।। सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।10।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।11।। सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।12।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।13।। सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।14।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।15।। सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।16।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।17।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।18।। सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।19।। अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।20।। सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।21।। गजत मेरे प्यारे राधास्वामी ।।22।। िस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।23।। वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।24।।

1. िराूँ ककसी की गम यानी पहुूँच न रो । 2. मुक़रण र की । 3. अजवनािी । 4. श्याम रं ग । 5. दूर ककया । 6. एक अकािी पक्षी िो अंडे से जनकलते री आसमान को लौट िाता रै यानी ज़मीन तक नरीं आता । 7. गाऊूँ । 8. पारवती । 9. ओंकार ।

10

सार बचन

बचन 3

सनकाकदक जपिाकद न िानी । देवी देव ररे पछतानी । ईश्वर परमेश्वर भरमानी । वेद कतेब पुरार् नदानी1 । चाूँद सुरि तारा गगनानी । अल्ला ख़ुदा रसूल2 न मानी । इन भी भेद नसर पजरचानी । गंगा िमुना सार न िानी । तीरथ बरत िगत जलपटानी । तीन लोक सब काल चबानी3 । कोई न परखे तुम्ररी बानी । मजरमा कराूँ लग बनण बखानी । दिणन रस ले रहुं अघानी4 । चरन सरन में रहूं जलपटानी । दिण नैन रस रहूं तृप्तानी । बचन सुना दइ अगम जनिानी । सुरत िब्द मारग दरसानी । भेद पाय मैं रहूूँ समानी । रोय न कु छ कजभ मेरी रानी5 । मैं नारी तुम पुरूष सुिानी । जवरर भाव में हुई कदवानी6 । िम िगात7 कु छ लगे न लगानी । कलमल दाग धुले व धुलानी ।

सो मेरे प्यारे अस मेरे प्यारे क्या मेरे प्यारे मत मेरे प्यारे िाने न मेरे प्यारे अस मेरे प्यारे िस मेरे प्यारे सो मैरे प्यारे रे मेरे प्यारे वार मेंरे प्यारे रे मेरे प्यारे सो मेरे प्यारे वार मेरे प्यारे अस मेरे प्यारे वार मेरे प्यारे वार मेरे प्यारे अस मेरे प्यारे सो मेरे प्यारे अस मेरे प्यारे रे मेरे प्यारे देख मेरे प्यारे बल मेरे पयारे पाये मेरे प्यारे

1. नरीं िाना । 2. पैग़म्बर । 6. मस्त । 7. कर, मरसूल ।

3. खायगा ।

राधास्वामी ।।25।। राधासवामी ।।26।। राधास्वामी ।।27।। राधास्वामी ।।28।। राधास्वामी ।।29।। राधास्वामी ।।30।। राधास्वामी ।।31।। राधास्वामी ।।32।। राधास्वामी ।।33।। राधास्वामी ।।34।। राधास्वामी ।।35।। राधास्वामी ।।36।। राधास्वामी ।।37।। राधास्वामी ।।38।। राधास्वामी ।।39।। राधास्वामी ।।40।। राधास्वामी ।।41।। राधास्वामी ।।42।। राधास्वामी ।।43।। राधास्वामी ।।44।। राधास्वामी ।।45।। राधास्वामी ।।46।। राधास्वामी ।।47।।

4. तृप्त ।

5. नुकसान ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

िन्म िन्म ररी धोख धुखानी1 । क्या मेरे अब मेरा भाग िगा िग िानी । वार मेरे काम क्रोध नरीं लोभ लुभानी । गये मेरे िाल ज़बर अब सभी कटानी । अस मेरे धाम जमला िराूँ अचरि बानी । कदया मेरे संतन साथ हुई संतानी । िो मेरे बारम्बार करूूँ परनामी । वार मेरे धाम आपना भला दुरानी2 । तुम मेरे तुम्ररी गजत कु छ अिब करानी । सुनी मेरे मैं ररी जनस कदन नाम दीवानी । तुम्ररे मेरे काल मार तुम दूर रटानी । वार मेरे मैं बल िाऊूँ चरन क़ु रबानी3 । रे मेरे गावत गुन तुम अजत ररखानी । ऐसे मेरे देख रूप तुम रहुं मगनानी । वार मेरे मैं चकोर तुम चन्द समानी । वार मेरे मैं जवररन तुम दरि घुमामी4 । अस मेरे मैं पल पल तुम दरि कदवानी5 । रे मेरे तुम्ररे बचन मद झूम झुमानी6 । अस मेरे तुम स्वाूँती मैं सीप जनमानी7 । यों मेरे तुम्ररी गजत मजत गोप8 जछपानी । वार मेरे तुम्ररी सब जवजध लीला ठानी । अस मेरे तुमरी सब जवजध लीला ठानी । अस मेरे तुम चुम्बक मैं लोर करठनानी । सखच रहुं मेरे

11

प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्य़ारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे प्यारे

राधास्वामी ।।48।। राधास्वामी ।।49।। राधास्वामी ।।50।। राधास्वामी ।।51।। राधास्वामी ।।52।। राधास्वामी ।।53।। राधास्वामी ।।54।। राधास्वामी ।।55।। राधास्वामी ।।56।। राधास्वामी ।।57।। राधास्वामी ।।58।। राधास्वामी ।।59।। राधास्वामी ।।60।। राधास्वामी ।।61।। राधास्वामी ।।62।। राधास्वामी ।।63।। राधास्वामी ।।64।। राधास्वामी ।।65।। राधास्वामी ।।66।। राधास्वामी ।।67।। राधास्वामी ।।68।। राधास्वामी ।।69।। राधास्वामी ।।70।।

1. धोखा खाय । 2. जछपाया । 3. बजलदान करना । 4. मतवाली । 5. मस्त । 6. मतवाली जरई । 7. दीन । 8. गुप्त ।

12

सार बचन

बचन 3

मैं मृगनी तुम नाद समानी । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।71।। मैं मछली तुम हुए मेरे पानी । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।72।। राम न िाना कृ ष्र् न िानी । तुम को मेरे प्यारे राधास्वामी ।।73।। सीता रूकजमन और पटरानी1 । सुने न मेरे प्यारे राधास्वामी ।।74।। ईसा मूसा मररयम2 मानी । चूके मेरे प्यारे राधास्वामी ।।75।। कु लकर3 और मुरादेवी रानी । पाये न मेरे प्यारे राधास्वामी ।।76।। क़ु तुब5 पैग़म्बर5 ग़ौस5 रबानी5 । जमले न मेरे प्यारे राधास्वामी ।।77।। जरन्दू मुसलमान क्या िानी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।78।। ध्रुव प्ररलाद न मरम जपछानी । ऐसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।79।। नसर धरती नसर वराूँ असमानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।80।। पवन न अजि और नसर पानी । िरां मेरे प्यारे राधास्वामी ।।81।। तीनों गुन मरा तत्व न िानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।82।। नसर आतम परमातम धामी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।83।। सुन्न और मरासुन्न अलगानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।84।। भूँवरगुफा सतलोक जनचानी । ऊूँचे परे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।85।। अलख लोक और अगम रठकानी । जतस परे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।86।। और न कोइ ररें नाम जनिानी6 । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।87।। मजरमा वराूँ की तुले न तुलानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।88।। षट िास्तर नसर आकद पुरानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।89।। तीन लोक नसर चौथे धामी । िराूँ बसें मेरे प्यारे राधास्वामी ।।90।। पंजडत भेख न िेख जपछानी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।91।। ऐसे चरन पर हुई मस्तानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।92।। कामाकदक सब दीन लुटानी । तब जमले मेरे प्यारे राधास्वामी ।।93।।

1. मरारानी । 2. ईसा की मां । 3. िैजनयों के देवता । 4. िैजनयों की आकद माता । 5. फ़कीर, मुस्लमानों के मरात्मा । 6. रे खा ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

13

हुई सफ़ाई गगन चढ़ानी । तब जलये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।94।। पंथ चली गइ अधर रठकानी । जमल गये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।95।। अजत जबलास आनन्द हुलसानी1 । मजल गये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।96।। िराूँ तराूँ वज्र कपाट खुलानी । देखे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।97।। सतयुग िेता द्वाप2 जबतानी । कजल प्रगटे प्यारे राधास्वामी ।।98।। खोि कदया और ककया अपनामी । ऐसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।99।। जतजमर3 रटाया रै न जबरानी4 । भानु रूप प्यारे राधास्वामी ।।100।। भानु अनंत उगे5 घट आनी । ऐसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।101।। कोइ गजत मजत उन िाने न िानी । िस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।102।। अंग अंग में प्रेम रं गानी । बसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।103।। चरर् न भूले देर भुलानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।104।। मम जररदे तुम ररो लुकानी6 । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।105।। िुग7 नसर छू टे रहूूँ िुगानी । बर दो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।106।। कजल साप तुम दूर बरानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।107।। िस कमोदनी8 चन्द्र कदखानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।108।। गुरु स्वरुप आये राधास्वामी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।109।। ।। िब्द दूसरा ।। मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

की की की की की

। । । । ।

गुन गाऊूँ मुख देखूँू करूूँ सरवन सब सेवा जनत राजज़र

1. खुि हुआ । 2. द्वापर । 3. अूँधरे ा । 4. बीती । 7. िोड़ा । 8. कोई का फू ल ।

उनका नैन बचन करूूँ खड़ी

सार ।।1।। जनरार ।।2।। अधार ।।3।। सम्रार ।।4।। दरबार ।।5।।

5. उदय हुए ।

6. गुप्त ।

14

मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे

सार बचन

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 3

हुई दासी चरन जनरार ।।6।। लइ सरना अब की बार ।।7।। उन कीन्री दया अपार ।।8।। सब छू ट गया संसार ।।9।। कफर त्यागा कु ल पररवार ।।10।। लिा िग दई जनवार1 ।।11।। मैं पकड़ी उनकी लार2 ।।12।। कामाकदक कदये जनकार ।।13।। मल धोये सब री झाड़3 ।।14।। ईषाण दई जचत्त से डार ।। 15।। मान मद भागे बड़े गूँवार ।।16।। सफ़ाई रो गई जरये मूँझार ।।17।। घट आई उलटी धार ।।18।। मैं छोड़े अब नौ द्वार ।।19।। कफर हुई वार से पार ।।20।। नभ4 आई मन को मार ।।21।। जतल देखूूँ अिब बरार ।।22।। िराूँ जझल जमल िोत उिार ।।23।। पचरं गी गुल5 गुलज़ार6 ।।24।। यर लीला लखी जनयार7 ।।25।। कं ि8 में करती आि जबरार ।।26।। चली आगे को पग धार ।।27।। चढ़ खोला बंक दुआर ।।28।। जिकु टी में देख बरार ।।29।।

1. जनकाल दी । 2. संग । 3. झाड़ कर साफ करके । 4. चदाकाि । 5. फू ल । 6. फु लवारी, बग़ीचा । 7. िुदा, नयारी । 8. सरसदल कूँ वल ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

1. दूर करके ।

2. निा ।

की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

15

सुन चढ़ आई दसवें द्वार ।।30।। मरा सुन खेली खेल अपार ।।31।। गुफा में सुनी एक झनकार ।।32।। अमर पद पहुूँची खोल ककवाड़ ।।33।। बीन की सुनी िराूँ धधकार ।।34।। द्याल संग पाया काल जबडार1 ।।35।। िब्द का चढ़ गया आि ख़ुमार ।।36।। अलख में पहुूँची लगन सुधार ।।37।। अगम का पाया अब भंडार ।।38।। राधास्वामी देखा मैं दीदार ।।39।। जमटा मेरे घट का सब री खार3 ।।40।। लगी मेरी नौका आन ककनार ।।41।। उतर गया िनम िनम का भार ।।42।। ममत और माया डाली मार ।।43।। जमटाया कमण भमण गुब्बार4 ।।44।। जमले अब मेरे जनि कदलदार5 ।।45।। हुई मैं उनके गल की रार ।।46।। जवरोधी बैठे सब री रार ।।47।। जलया अब ऐसा अगम जवचार ।।48।। बहूं नसर कबरी भौ की धार ।।49।। रहूं मैं जनस कदन अब हुजियार ।।50।। जतजमर भी नासा हुआ उजियार ।।51।। हुइ अब जछन जछन िुकर गुज़ार ।।52।।

3. मैल, कड़वाई ।

4. अन्धकार ।

5. प्रीतम ।

16

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी

सार बचन

की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 3

डाररया उन पर तन मन वार ।।53।। कदया औघट1 से घाट उतार ।।54।। ककया राधास्वामी यर ससगार ।।55।। हुई मैं अब उन नाम अधार ।।56।। गई मैं अपने जनि घरबार ।।57।। लगी मैं रूप जनरार जनरार ।।58।। हुआ मैं2 सेवा संग जपयार ।।59।। जमली जनि बस्ती छु टा उिाड़3 ।।60।। सुन्न में खेलूूँ िब्द सम्रार ।।61।। सुनूूँ धुन ककगरी सारूँ ग सार ।।62।। िलाऊूँ सभी काल की िार4 ।।63।। िगत का घटा सभी जवस्तार ।।64।। लगी अब सूरत ति अरंकार ।।65।। लोभ भी मारा बड़ा लबार5 ।।66।। मोर भी भागा अिब चमार ।।67।। काम पर पड़ी बहुत जधक्कार ।।68।। काल दल िीता िीती नार6 ।।69।। देखती घट में अब गुलज़ार7 ।।70।। काट अब डारा सब िंिार ।।71।। सुनू मैं तन मैं राग धमार8 ।।72।। सुरत अब हुई बहुत सरिार9 ।।73।। मूल गर10 छोड़ दई सब डार ।।74।। चढ़न को आगे हूं तैयार ।।75।।

1. उलटा । 2. मोजर । 3. िमगल । 4. िान । 5. झूठ ूँ ा । 6. माया । 7. फु लवार । 8. राग का नाम । 9. मस्त । 10. पक्ड़ कर ।

बचन 3

मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे मैं प्यारी प्यारे

मजरमा राधास्वामी

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

17

ससर1 भी भागा देख जसयार2।।76।। िब्द की बाूँधी कमर कटार ।।77।। गुरु ने दीन्री अस तलवार ।।78।। सूरमा3 सुरत चढ़ी ललकार4 ।।79।। करम दल5 भागा सुनत पुकार ।।80।। भरम भी भागा बािी तार9 ।।81।। दूर हुई मन से िग की कार7 ।।82।। गई अब सूरत गगन मंझार ।।83।। चाूँदनी घट में खुली अगार8 ।।84।। सुरत अस चढ़ती बारम्बार ।।85।। खोजलया सुन्न का बज्र ककवाड़।।86।। हुई अब रलकी उतरा भार ।।87।। सुनूं धुन घट मैं रारं कार।।88।। अमी िल भरा हुई पजनरार9 ।।89।। बंद सब टू टे हुआ छु टकार।।90।। जमला अस मौसम10 सदा बरार ।।91।। जखिाूँ11 का काूँटा कदया जनकार ।।92।। गुरु ने लीन्रा गोद जबठार ।।93।। सुनाई पजरले धुन ओंकार ।।94।। करूं मैं सेवा इक इक न्यार ।।95।। छु टाई गुरु ने िग बेगार ।।96।। जमला अब प्रेम भजि औज़ार12 ।।97।। कदया सब घट का कू ड़ा टार ।।98।।

1. काल । 2. िीव । 3. िूरवीर । 4. पुकार । 5. फ़ौि । 6. िब्द । 7. करतूत । 8. प्रकािवान । 9. पानी भरने वाली । 10. ऋतु । 11. पतझड़ । 12. रजथयार ।

18

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी

सार बचन

की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की

बचन 3

। चली अब सुरत िब्द की लार ।।99।। । कदया मैं तन मन अपना वार ।।100।। । गुफा चढ़ सुनी बीन झनकार ।।101।। । ककया मैं अलख अगम को पार ।।102।। । कदया राधास्वामी पार उतार ।।103।। । हुइ मैं उन पर अब बजलरार ।।104।। । नाम रस पाया ककया अरार ।।105।। । सब अटक जमटा आचार ।।106।। । भोग सब रो गये अब बीमार ।।107।। । करूूँ नसर उनका कु छ तीमार1 ।।108।। । भूँवर मन बैठा सुन गुंिार ।।109।। । अगम सुख पाया नरीं िुमार2 ।।110।। । मौन रोय बैठी ति गुफ़तार3 ।।111।। । जमला मोसर आि सार का सार4।।112।। । सोई रै सब का सत करतार ।।113।। । रहूं मैं उसको सदा जचतार5 ।।114।। । रंस िराूँ बैठे बहुत क़तार6 ।।115।। । आनूँद अब जमला मोसर जबजसयार7।।116।। । ककया मैं सब से आि ककनार8 ।।117।। । करूूँ मैं गुरु सूँग बहुत जपयार ।।118।। । जमले राधास्वामी अजत दातार ।119।। । गरी मैं सरना आि तुम्रार ।।120।। । बोझ मैं डाला सभी उतार ।।121।।

1. खाजतरदारी, ग़मशवारी । 2. जगनती । 3. बोलना । 4. खुलासा, िौरर, तत्व । 5. याद रखना । 6. पंजि । 7. अजधक । 8. िुदा ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी

की की की की

। । । ।

तीन ति पाया मैं पद चार ।।122।। छु टाया मुझ से खेल असार1 ।।123।। ककया मैं मन का आि जिकार ।।124।। गई मैं राधास्वामी की सरकार ।।125।।

।। िब्द तीसरा ।।

राधास्वामी नाम सुनाया राधास्वामी । राधास्वामी रूप

कदखाया राधास्वामी ।।1।।

राधास्वामी धाम लखाया राधास्वामी । राधास्वामी खेल जखलाया राधास्वामी ।।2।। राधास्वामी मेल जमलाया राधास्वामी । राधास्वामी पंथ चलाया राधास्वामी ।।3।। राधास्वामी सेव

कराई

राधास्वामी ।

राधास्वामी भेव2 िनाइ राधास्वामी ।।4।। राधास्वामी मौि चलाइ

राधास्वामी ।

राधास्वामी जसफ़त3 कराइ राधास्वामी ।।5।। राधास्वामी गुन मैं गाऊूँ राधास्वामी । राधास्वामी मजरमा सुनाऊं राधास्वामी ।।6।। राधास्वामी आरत बनाई राधास्वामी । राधास्वामी िोत

िगाई राधास्वामी ।।7।।

राधास्वामी ममण

लखावे राधास्वामी ।

राधास्वामी भेद

सुनावे

1. असत्त, झूठा ।

2. भेद ।

19

3. मजरमा ।

राधास्वामी ।।8।।

20

सार बचन

बचन 3

राधास्वामी सुरत िब्द राधास्वामी । राधास्वामी धुनन बुलाई राधास्वामी ।।9।। राधास्वामी संग कराया राधास्वामी । राधास्वामी रं ग चढ़ाया राधास्वामी ।।10।। राधास्वामी बूझ1 बुझाइ राधास्वामी । राधास्वामी सूझ2 सुझाइ राधास्वामी ।।11।। राधास्वामी भान3 ककरन राधास्वामी । राधास्वामी ससध बुन्द राधास्वामी ।।12।। राधास्वामी चन्द्र कला राधास्वामी । राधास्वामी गगन जगरा4 राधास्वामी ।।13।। राधास्वामी धरजन नीर राधास्वामी । राधास्वामी अजि पवन राधास्वामी ।।14।। राधास्वामी तीन5 चार6 राधास्वामी । राधास्वामी एक7 दोय8 राधास्वामी ।।15।। राधास्वामी सात9 बीस10 राधास्वामी । राधास्वामी सरस11 दसम12 राधास्वामी ।।16।। राधास्वामी कं ि12 श्याम राधास्वामी । राधास्वामी सेत सुन्न राधास्वामी ।।17।। राधास्वामी ओंग ररूँ ग राधास्वामी । राधास्वामी सोरूँग सत्त राधास्वामी ।।18।। राधास्वामी अलख अगम राधास्वामी । राधास्वामी आप हुए राधास्वामी ।।19।।

1. समझ । 2. जनर्णय । 3. सूरि । 4. वार्ी िब्द । 5. तीन गुर् । 6. चार अन्तः करन । 7. सत्त पुरूष राधास्वामी । 8. ब्रह्म और माया । 9. सात द्वारे । 10. दस इजन्द्रय और उनके देवता । 13. तीसरा जतल ।

11. सरस दल कूँ वल ।

12. दसवाूँ द्वार ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

1. परदा ।

2. भेद ।

मजरमा करें राधास्वामी । अस्तुत करें राधास्वामी ।।20।। सार लखावें राधास्वामी । प्यार करावें राधास्वामी ।।21।। चरन पुिावें राधास्वामी । पाट1 खुलावें राधास्वामी ।।22।। िाब्द बतावें राधास्वामी । देि बुझावें राधास्वामी ।।23।। गुप्त प्रकािें राधास्वामी । तेि जनरारें राधास्वामी ।।24।। सम देखें राधास्वामी । गम2 खोलें राधास्वामी ।।25।। गाउूँ ध्याउूँ राधास्वामी । पुषण अिण3 राधास्वामी ।।26।। गीत नाद राधास्वामी । गान नाद राधास्वामी ।।27।। छान4 छनाई राधास्वामी । प्रीत लगाई राधास्वामी ।।28।। मथन मथी राधास्वामी । आकद अंत राधास्वामी ।।29।। मद्ध जबरािें राधास्वामी । िुजि ितन राधास्वामी ।।30।। रतन लाल राधास्वामी । दयाल कृ पाल राधास्वामी ।।31।।

3. चैतन्य आकाि ।

4. जनर्णय ।

21

22

सार बचन

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

1. हुक्म ।

2. पजत ।

7. सूरि । 8. चाूँद ।

बचन 3

आन1 मनाइ राधास्वामी । आन िगाइ राधास्वामी ।।32।। पीव2 जपता राधास्वामी । गुरु संत राधास्वामी ।।33।। अिर अमर राधास्वामी । कु रम3 िेष4 राधास्वामी ।।34।। चेत जमलो राधास्वामी । खेत जिताया राधास्वामी ।।35।। भजि जसखाई राधास्वामी । भाव बढ़ाया राधास्वामी ।।36।। सुजमर सुजमर राधास्वामी । लगन लगाइ राधास्वामी ।।37।। तोल तुलावें राधास्वामी । मोल अमोल राधास्वामी ।।38।। नेम प्रेम राधास्वामी । धरम करम राधास्वामी ।।39।। िुजि िोग राधास्वामी । भुि भोग राधास्वामी ।।40।। रै न कदवस राधास्वामी । जनजमष5 िाम6 राधास्वामी ।।41।। धूप छाूँव राधास्वामी । सूर7 सोम8 राधास्वामी ।।42।। िाप मौन राधास्वामी । नैन हृदय राधास्वामी ।।43।। अंतर बारर राधास्वामी ।

3. ब्रह्म ।

4. पारब्रह्म ।

5. पल ।

6. परर ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

राधास्वामी प्रोक्ष7 प्रत्यक्ष2 राधास्वामी ।।44।। राधास्वामी अधर धरजन राधास्वामी । राधास्वामी व्याप व्यापक राधास्वामी ।।45।। राधास्वामी दात दाता राधास्वामी । राधास्वामी करन कारन राधास्वामी ।।46।। राधास्वामी तरन तारन राधास्वामी । राधास्वामी सृष्ट सृष्टा राधास्वामी ।।47।। राधास्वामी दृष्ट दृष्टा राधास्वामी । राधास्वामी व्रत तीरथ राधास्वामी ।।48।। राधास्वामी वेद कतेब राधास्वामी । राधास्वामी गाय गवाओ राधास्वामी ।।49।। राधास्वामी पूि पुिाओ राधास्वामी । राधास्वामी अपर अपार राधास्वामी ।।50।। राधास्वामी अधर अधार राधास्वामी । राधास्वामी अगम अगाध राधास्वामी ।।51।। राधास्वामी परम अगार राधास्वामी । राधास्वामी कूँ वल भूँवर राधास्वामी ।।52।। राधास्वामी उधर इधर राधास्वामी । राधास्वामी अघड़ सुघड़ राधास्वामी ।।53।। राधास्वामी डाल मूल राधास्वामी । राधास्वामी गाऊूँ सब गाओ राधास्वामी ।।54।। ।। िब्द चौथा ।। राधास्वामी आय राधास्वामी नाम

1. गुप्त ।

2. प्रगट ।

प्रगट हुए िब से । सुनावें तब से ।।1।।

23

24

सार बचन

राधास्वामी नाम िपूूँ मैं मन राधास्वामी धाम जमला अब तन राधास्वामी दरस करूूँ नैनन राधास्वामी बचन सुनूूँ सरवन राधास्वामी करत रहूं जरयरे राधास्वामी सुनत रहूं जियरे राधास्वामी नाम धरूूँ प्रानन राधास्वामी नाम गहूं इजन्द्रन राधास्वामी रार चलूूँ पाूँवन1 राधास्वामी सेव करूूँ दोउ कर राधास्वामी संग करूूँ सब धर2 राधास्वामी पास बसूूँ अजत डर राधास्वामी गाय ररी मैं उमंग राधास्वामी ध्याय ररी कोइ कदन राधास्वामी रटन लगी दम दम राधास्वामी याद बढ़ी जछन जछन जबसरत नसर राधास्वामी जिगर3 जबछड़त नसर राधास्वामी पलक राधास्वामी रूप देख दोउ जतल राधास्वामी प्रीत लगी मेरे कदल राधास्वामी बोले इक कदन मुझ राधास्वामी पर बल4 गइ उस कदन राधास्वामी मजरमा क्या कहुं ककस राधास्वामी सरन छु ड़ावत िम राधास्वामी अलग ककया भरमन

1. पैरों ।

2. देर ।

3. कलेिा ।

बचन 3

से । से ।।2।। से । से ।।3।। से । से ।।4।। से । से ।।5।। से । से ।।6।। से । से ।।7।। से । से ।।8।। से । से ।।9।। से । से ।।10।। से । से ।।11।। से । से ।।12।। से । से ।।13।। से ।

4. बजलरार हुई ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

25

राधास्वामी जलया छु टा करमन से ।।14।। राधास्वामी जलया लगा चरनन से । राधास्वामी आये देि अगम से ।।15।। राधास्वामी रंस ककया मोसर नर से । राधास्वामी दान कदया जनि घर से ।।16।। राधास्वामी भेद सुनाया धुर से । राधास्वामी मोसर छड़ाया रम1 से ।।17।। राधास्वामी अपना ककया िगत से । राधास्वामी जनपट2 बचाया छल से ।।18।। राधास्वामी पार ककया भौिाल से । प्रेम लगा राधास्वामी गुरु से ।।19।। मैं चकोर राधास्वामी चंद से । मैं कं वला राधास्वामी भान से ।।20।। मैं कोककल3 राधास्वामी अम्ब4 से । मैं भौंरा राधास्वामी कूँ वल से ।।21।। मैं कदनकर5 राधास्वामी गगन से । मैं फनधर6 राधास्वामी मजर् से ।।22।। मैं बाली राधास्वामी मात से । मैं कु मार राधास्वामी तात7 से ।।23।। मैं दरदी राधास्वामी िाजन्त से । मैं चकवी राधास्वामी काजन्त8 से ।।24।। मैं घायल राधास्वामी जवरर से । मैं मायल राधास्वामी तरर10 से ।।25।। राधास्वामी िब्द लखाया िुजि से ।

1. अरंकार । 2. जबलकु ल । 3. कोयल । 4. आम का दरशत । 5. सूरि । 6. साूँप । 7. जपता । 8. सूरि का प्रकाि । 9. मोजरत । 10. छजव अन्दाि ।

26

सार बचन

राधास्वामी मैं प्यारी मैं मीना मैं अंडा मैं तरं ग मैं गगरी मैं कमान2 मैं भइ बन मैं हुइ तन मैं वृक्षा मैं साखा मैं दीपक मैं समुद्र मैं धरनी मैं सूरा मैं देरी मैं रसना मैं लोरा मैं जनरधन मैं सीपी मैं मोजरत मैं िीती मैं जतरपत मैं ब्यंिन6 मैं अंकुर

नाम कमाया भजि राधास्वामी प्यार राधास्वामी धार राधास्वामी कु रम1 राधास्वामी जसन्ध राधास्वामी नीर राधास्वामी तीर राधास्वामी ससर राधास्वामी िान राधास्वामी सुफल राधास्वामी फू ल राधास्वामी िोत राधास्वामी सोत राधास्वामी मेघ राधास्वामी तेग3 राधास्वामी नैन राधास्वामी बैन राधास्वामी नाव राधास्वामी साव4 राधास्वामी स्वाूँजत राधास्वामी भाूँजत राधास्वामी दाूँव5 राधास्वामी भाव राधास्वामी नोन राधास्वामी पौन

बचन 3

से ।।26।। से । से ।।27।। से । से ।।28।। से । से ।।29।। से । से ।।30।। से । से ।।31।। से । से ।।32।। से । से ।।33।। से । से ।।34।। से । से ।।35।। से । से ।।36।। से । से ।।37।। से । से ।।38।।

1. कछु आ िो पानी में ररता रै । 2. धनुष । 3. तलवार । 4. साहूकार, धनवान । 5. बािी । 6. भोिन ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

27

मैं तारा राधास्वामी व्योम1 से । मैं कु मुदन2 राधास्वामी सोम3 से ।।39।। राधास्वामी मेरर चली मैं घट से । राधास्वामी चरन पकड़ मेरी रठ से ।।40।। राधास्वामी मोसर रटाया कपट से । राधास्वामी पार ककया जतल पट4 से । 41।। राधास्वामी बंक चढ़ाया झट से । राधास्वामी घाट जमला औघट5 से ।।42।। राधास्वामी द्वार खुलाया जिकु ट से । राधास्वामी रंस ककया सर तट6 से ।।43।। चढ़ी मरासुन्न राधास्वामी बल से । राधास्वामी िुद्ध ककया कलमल से ।।44।। राधास्वामी आि जमलाया सोरंग से । सत्तलोक आइ राधास्वामी संग से ।।45।। राधास्वामी अलख लखाया मौि से । राधास्वामी अगम कदखाया चौि7 से ।।46।। राधास्वामी रूप लखा सूरत से । लगा प्रेम राधास्वामी मूरत से ।।47।। जमली िाय राधास्वामी चरन से । हुआ उद्धार राधास्वामी सरन से ।।48।। राधास्वामी धाम गई मैं घि8 से । राधास्वामी मोसर ससगारी सि से ।।49।। राधास्वामी अंग लगाया उमंग से । राधास्वामी भेद जमला सतसंग से ।।50।।

1. आकाि । 2. कोई का फू ल । 3. चाूँद । 4. जतल स्थान का पदाण । 5. अवघट, करठन, दुगम ण । 6. मानसरोवर तीर । 7. जबलास । 8. िान, ससगार ।

28

सार बचन

पार हुई राधास्वामी लगन राधास्वामी आि रटाया मलन1 उपमा राधास्वामी कहूं कौन राधास्वामी काढ़ा सभी िोन राधास्वामी पाये बहुत करठन जमल गये राधास्वामी बड़े ितन जपउं अमी राधास्वामी धुन िाय रलू1ं राधास्वामी सुन

बचन 3

से । से ।।51।। से । से ।।52।। से । से ।।53।। से । से ।।54।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। राधास्वामी जलया अपनाय सखी री । िोभा अद्भुत आि लखी री ।।1।। राधास्वामी बचन अगाध सुने री । राधास्वामी नाम अराध गुन3े री ।।2।। राधास्वामी आगम अनाम लखे री । राधास्वामी गजत कस बुजद्ध भखे4 री ।।3।। राधास्वामी चरन स्पिण5 करे री । राधास्वामी जररदे मासर धरे री ।।4।। राधास्वामी संग भौिाल भने6 री । राधास्वामी संगत काल रने7 री ।।5।। राधास्वामी काढ़ जलया िग से री । राधास्वामी रंस ककया खग8 से री ।।6।। राधास्वामी अिब संदेि कदया री । राधास्वामी करत अंदि े 9 गया री ।।7।।

1. मलीनता । 2. एक रस रोऊूँ । 3. सुजमरन । 4. करे । 6. काटे । 7. नाि ककया । 8. काग । 9. संिय ।

5. छू ना ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

राधास्वामी गोद जबठाया मुझे री । राधास्वामी लेरैं उबार तुझे री ।।8।। राधास्वामी िाम सुबर रट ले री । राधास्वामी आठ िाम भि ले री ।।9।। राधास्वामी पल पल जरये बसे री । राधास्वामी मेरर िताऊं ककसे री ।।10।। राधास्वामी संग न कोई करे री । राधास्वामी रं ग न कोई धरे री ।।11।। राधास्वामी जिस पर मेरर करें री । राधास्वामी उस को पकड़ धरें री ।।12।। राधास्वामी मेरर जबना क्या गत री । कस समझें राधास्वामी मत री ।।13।। राधास्वामी चौथा लोक करें री । राधास्वामी अलख अलोक भनें1 री ।।14।। राधास्वामी अगम सुगम कर दें री । राधास्वामी धाम िाय कफर ले री ।।15।। राधास्वामी जमले भाग से अब री । राधास्वामी पकड़ अभी कफर कब री ।।16।। राधास्वामी लाग बढ़ा जछन जछन री । राधास्वामी तेि देख कदन कदन री ।।17।। राधास्वामी देर धरी आ िग री । राधास्वामी काल रटावें ठग री ।।18।। तू राधास्वामी सरन मत ति री । तू राधास्वामी चरन जनत भि री ।।19।। राधास्वामी लाम कटें सब अघ2 री । राधास्वामी काया मथ ली सगरी3 ।।20।। 1. करें ।

2. पाप ।

3. कु ल, सब ।

29

30

सार बचन

बचन 3

राधास्वामी िब्द रूप तू सुन री । राधास्वामी सुरत साथ ले धुन री ।।21।। राधास्वामी संग मार ले मन री । राधास्वामी काटें नाजगन1 फन री ।।22।। राधास्वामी से गुरु कफर न जमलें री । राधास्वामी छोड़ें न जिसे गरें री ।।23।। राधास्वामी मजरमा कौन करे री । वेद थके और िेष ररे री ।।24।। राधास्वामी गुप्त प्रगट हुए अब री । राधास्वामी भेद कदया मोसर सब री ।।25।। राधास्वामी चमन2 कदखाया घट री । राधास्वामी खोल कदये सब पट री ।।26।। राधास्वामी कला3 जखलाई नट4 री । राधास्वामी गगन चढ़ाया झट5 री ।।27।। राधास्वामी संग गई सुन तट री । राधास्वामी रं ग जलया िग रट री ।।28।। राधास्वामी भरी आि सुतण गगरी । राधास्वामी अिब कदखाई नगरी ।।27।। राधास्वामी संग ररी मैं पग6 री । राधास्वामी दमक7 लखी मैं सगरी ।।30।। राधास्वामी जमले भाग उठा िग री । अमर हुई राधास्वामी सूँग लग री ।।31।। राधास्वामी सरन प्रीत हुई जिगरी । राधास्वामी अिब सुनाई धुन ककगरी ।।32।।

1. माया । 2. फु लवार । 3. बाज़ी । 6. जवलीन । 7. चमक ।

4. बाज़ीगर (मन) ।

5. िल्दी ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

ककया मोसर अपना कदया जमटा खपना1 िगत ककया सुपना दूर ककया तपना नाम सदा िपना दरस आि तकना भेद न काहु करना जबन िग जबच बरना कदया िब्द गरना2 चंद नरीं गरना3 संग न दुख सरना संग सुखी ररना परम जवलास कदया भौिल पार ककया कमण भमण काटे चरन िभी चाटे आरत जनत्त करूूँ करें सो जचत्त धरूूँ प्रेम िगाय रहूं राधास्वामी जनत्त भंिू करना मान चली ध्यान अब िाय जमली सीत4 जमला मोसर िब िुद्ध ककया मोसर तब गुन कस गाउं अली5 गगन कदखाई गली

31

री । री ।।33।। री । री ।।34।। री । री ।।35।। री । री ।।36।। री । री ।।37।। री । री ।।38।। री । री ।।39।। री । री ।।40।। री । री ।।41।। री । री ।।42।। री । री ।।43।। री । री ।।44।। री । री ।।45।।

1. वृथा मेरनत करना । 2. अभूषर्, िेवर । 3.ग्ररर् । 4.परिाद । 5. सखी ।

32

सार बचन

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

1. सामान ।

2. सखची ।

कमर बंधाई भली धुन में िाय जपली सब जवध काि ककया अचरि साि1 कदया आसन अधर धरा दिणन वरीं करा िोभा अिब बनी छजब पर दृजष्ट तनी2 िीव उद्धार करें संत औतार धरें मत कु छ अिब चला भेद अब कदया भला जगनें न ब्रह्म ज्ञान थापें न िोग ध्यान मानें न राम कृ ष्र् मानें न ब्रह्म जवष्र्ु पूिें न जिव गनेि पूिें न गौर िेष मानें न कमण धमण िप तप िानें भमण माने न तीथण बतण मानें न िास्त्र स्मृजत मानें न सूर चंद मानें न गंग िमन काटें जपछली टेक भमण न राखें एक

बचन 3

री । री ।।46।। री । री ।।47।। री । री ।।48।। री । री ।।49।। री । री ।।50।। री । री ।।51।। री । री ।।52।। री । री ।।53।। री । री ।।54।। री । री ।।55।। री । री ।।56।। री । री ।।57।। री । री ।।58।।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

बुत1 पूिा न धार जपि पूिा न धार करें गुरू भजि साध भिन बतावे नाद सतसंग करो करें वि गुरू1 थरपें4 ज़ात न पाूँत रखें सरदू न तुकण गरें वर्ण आश्रम न गायं जमथ्या भमण सुनायें भजि वर्ण बतायें गुरु की भजि दृढ़ायें वेद कतेब उड़ायें मुरजिद5 कौल6 ठररायें मुरजिद ख़ुदा कदखायें पीर7 परस्ती8 जसखायें रोज़ा नमाज़ उठायें मजस्िद बाूँग छु ड़ायें काबा न रि9 करायें क़ु राूँ न विीफ़ा10 पढ़ायें कदल पर क़ाबू कदलायें नफ्स अमारा11 जगरायें रूर12 असमान चढ़ायें घट में अिण13 कदखायें

33

री । री ।।59।। री । री ।।60।। री । री ।।61।। री । री ।।62।। री । री ।।63।। री । री ।।64।। री । री ।।65।। री । री ।।66।। री । री ।।67।। री । री ।।68।। री । री ।।69।। री । री ।।70।।

1. मूर्शत । 2. िब्द । 3. वि का गुरू । 4. स्थाजपत करते रै । 5. गुरू । 6. बचन । 7. गुरू । 8. पूिा । 9. यािा । 10. िाप । 11. मलीन मन । 12. सुरत । 13. चैतन्य आकाि ।

34

सार बचन

राधास्वामी रूर मेराि1

बचन 3

कदलायें री ।

राधास्वामी तन में ख़ुदा जमलायें री ।।71।। राधास्वामी फ़क़र2 को बड़ा बतायें री । राधास्वामी करत रसूल3 न पायें री ।।72।। राधास्वामी सात

मकाम लखायें री ।

राधास्वामी फ़क़र मराजतब4 गायें री ।।73।।

राधास्वामी िगल5 आवाज़ करायें री । राधास्वामी रूर को सौत6 सुनायें री ।।74।। राधास्वामी सुरत और िब्द मथें री । राधास्वामी रूर और सौत कथें री ।।75।। राधास्वामी अनरद

नाद

करें री ।

राधास्वामी सौत7 सरमदी8

गरें री ।।76।।

राधास्वामी आकद धाम से

आये री ।

राधास्वामी सब से

धाये री ।।77।।

ऊूँच

राधास्वामी की रै प्रथम मूँजिल़ री । सो

सब

मत जसद्धान्त

समझ री ।।78।।

राधास्वामी पजरली मंजिल करी री । सब

मत का

जसद्धान्त

वरी री ।।79।।

राधास्वामी मत अब बहुत बड़ा री ।

राधास्वामी मत यर िान पड़ा री ।।80।। राधास्वामी सात

मूँजिल9 बरनें री ।

राधास्वामी जभन जभन करें जनरने री ।।81।। राधास्वामी गजत सब भाूँजत बड़ी री ।

1. चढ़ाई । 2. संत गजत । 3. पैगम्बर । 4. दरिे । 5. अभ्यास । 7. आवाि । 8. अनरद । 9. स्थान ।

6. िब्द ।

बचन 3

मजरमा राधास्वामी

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी

1. चमक पत्थर ।

चरनन सुरत अड़ी रैरत धाम ररें अचरि नाम करें चुम्बक1 मैं लोरा रूप जनरख मोरा भृग ं ी मैं कीड़ा सकल ररी पीड़ा पहुंचे दूर देि अपना कदया संदेि कूँ वला मैं भूँवरा दरस देख सूँवरा2 करें सोई करना चरन सीस धरना उपमा कौन करे सरन िीव उधरे मूरत देख जिउं अमृत नाम जपउं सूँग घट खोि करूूँ सूँग पट मौि लहूं सूँग अब सुरत भरूं सूँग धुन िब्द सुनूं सूँग जतल तोड़ चलूं सूँग नभ फोड़ जमलूं सूँग कफर िोत लखूं सूँग सुन भेद तकूं

2. सूँवारा गया ।

35

री ।।82।। री । री ।।83।। री । री ।।84।। री । री ।।85।। री । री ।।86।। री । री ।।87।। री । री ।।88।। री । री ।।89।। री । री ।।90।। री । री ।।91।। री । री ।।92।। री । री ।।93।। री । री ।।94।।

36

सार बचन

राधास्वामी सूँग नल बंक धसूं राधास्वामी सूँग चढ़ गगन रंसूं राधास्वामी सूँग दस द्वार गहूं राधास्वामी सूँग मरासुन्न चढ़ूं राधास्वामी सूँग मैं गुफा रहूं राधास्वामी सूँग सतनाम लगूं राधास्वामी सूँग मैं अलख लखूं राधास्वामी सूँग अब अगम भखूं राधास्वामी राधास्वामी रं ग रं गू राधास्वामी राधास्वामी धाम बसूं राधास्वामी करें सो कार करूं राधास्वामी राधास्वामी पकड़ धरूं राधास्वामी लीला ताक तकूं राधास्वामी मरल अब िाय पकूं राधास्वामी िोभा अिब कहूं राधास्वामी आगे खड़ी रहूं राधास्वामी तशत जबराि ररे राधास्वामी सख़्त जवकार दरे राधास्वामी िीव जनवाि1 ररे राधास्वामी पीव रमार भये राधास्वामी अजत कर द्याल हुए राधास्वामी दया िम काल मुए2 राधास्वामी अब मोसर अमर ककया राधास्वामी पद मोसर अिर कदया राधास्वामी गुन गाऊं जनत जनत राधास्वामी मात हुए और जपत 1. दया करने वाले ।

2. मरे ।

बचन 3

री । री ।।95।। री । री ।।96।। री । री ।।97।। री । री ।।98।। री । री ।।99।। री । री ।।100।। री । री ।।101।। री । री ।।102।। री । री ।।103।। री । री ।।104।। री । री ।।105।। री । री ।।106।। री । री ।।107।।

बचन 4

मजरमा दिणन राधास्वामी

37

राधास्वामी सब से अलग ककया री । राधास्वामी सब बल तोड़ कदया री ।।108।।

।। बचन चौथा ।। मजरमा दिणन परम पुरूष पूरन धनी राधास्वामी की और वर्णन दिा प्रेम और आनन्द की उसकी प्राजप्त में ।। िब्द पजरला ।। देओ री सखी मोजर उमंग बधाई । जछन जछन ररखूं पल पल जनरखूं । आरत थाली लीन सिाई । चरन सरन गुरु लाग बढ़ाई । करा कहूं यर घड़ी सुराई । िब्द गुरु धुन गगन सुनाई । रोम रोम और अूँग अूँग न्राई । जलख जलख कर कु छ सैन िनाई । राधास्वामी करत बनाई । सत्तनाम धुन बीन बिाई । अलख अगम दोउ मेरर कराई ।

अब मेरे आनंद उर1 न समाई ।।1।। छजब राधास्वामी मोसे करी न िाई ।। प्रेम सजरत रस भर भर गाई ।।3।। अजधक जबलास ररा मन छाई ।।4।। सुरत रंसनी गई रै लुभाई ।।5।। अमी धार धुर से चल आई ।।6।। बरन जबनोद2 कहूं कस भाई।।7।। िानेंगे मेरे िो गुरु भाई ।।8।। चार लोक में कफरी रै दुराई ।।9।। काल बली अजत मुरछा खाई ।।10।। राधास्वामी राधास्वामी दरस कदखाई ।।

।। िब्द दूसरा ।। आि बधावा4 राधास्वामी गाऊूँ । चरन कूँ वल गुरु प्रेम बढ़ाऊूँ ।।1।। ररख अजधक अब जरये समाऊूँ । राधास्वामी रूप जचत्त लाऊूँ ।।2।। आि कदवस मेरा भाग अनोखा5 । दिणन राधास्वामी मनको पोखा6।।3।। सतगुरू पूरे अंग लगाया । राधास्वामी अचरि खेल कदखाया ।।4।।

1. ह्रदय । 2. आनन्द । 6. िान्त ककया ।

3. हुक्म ।

4. आनन्द गीत ।

5. अचरि ।

38

सार बचन

बचन 4

बाित घट में अनरद तूरा । राधास्वामी राधास्वामी खुला ज़हूरा ।।5।। िगा भाग मेरा अजत गंभीरा । राधास्वामी नाम करत मन धीरा ।।6।। खुल गये बज्र ककवाड़ अिण1 के । दिणन पाये राधास्वामी पुषण के ।।7।। िोभा अजधक कराूँ लग भाखूूँ । राधास्वामी मूरत नैनन ताकूूँ ।।8।। दरस अधार जिऊूँ जछन जछन में । राधास्वामी गुन गाऊूँ पल पल में ।।9।। गुन गावत मन रोत हुलासा2 । राधास्वामी चरन बूँधी मम आसा ।।10।। मीन मगन िस िल के मारीं । राधास्वामी सरन छू टत अब नारीं ।।11।। के ल1 करूूँ जनत उन के संगा । राधास्वामी ककये भरम सब भंगा4 ।।12।। जनरमल रोय चरन जलपटानी । राधास्वामी गजत अजत अगम बखानी ।।13।। आनंद मंगल अब ररा छाई । राधास्वामी आगे गाऊूँ बधाई ।।14।। अिब बधावा राधास्वामी गाया । उलट पलट राधास्वामी ररझाया ।।15।। ।। िब्द तीसरा ।। आि मेरे धूम भई रै भारी । कहूं क्या राधास्वामी रूप जनरारी ।।1।। घाट अब रो गया सुखमन5 िारी । आरती राधास्वामी करूूँ सूँवारी ।।2।। प्रेम रं ग भीि गई सुतण सारी । जनरत6 सूँग राधास्वामी कीन पुकारी ।।3।। हुइ िाय सुन में िब्द अधारी । चरन में राधास्वामी माथ धरा री ।।4।। कहूं क्या आरत गावत न्यारी । लगी मोसर राधास्वामी धुन अब प्यारी ।।5।। अगम गत कै से कोई जवचारी । रीत कु छ राधास्वामी अचरि धारी ।।6।।

1. चैतन्य आकाि । 2. आनन्द । 3. ककलोल । 6. सुरत का जनर्णय करने वाला अंग ।

4. दूर । 5. मध्य की धार ।

बचन 4

मजरमा दिणन राधास्वामी

39

छोड़ अब तन मन चढ़त अटारी । िराूँ राधास्वामी तशत जबछा री ।।7।। टरल में ररती जनस कदन ठाढ़ी । अमी रस राधास्वामी दीन अरारी ।।8।। बड़ा ब भाग अपार िगा री । तेि राधास्वामी बहुत बढ़ा री ।।9।। कौन यर पावे घट उजियारी । दई राधास्वामी लाभ अपारी ।।10।। धुनन की चेत सदा झनकारी । कीन राधास्वामी मोसर आपना री ।।11।। इड़ा1 ति सपगला2 खोि करा री । जिखर चढ़ राधास्वामी घार सुनारी ।।12।। सोरूँग3 में बंसी आन पुकारी । अिब गत राधास्वामी देखी न्यारी ।।13।। काल पुजन रारा कमण कटा री । लगी ऐसी राधास्वामी नाम कटारी4 ।।14।। सत्तसर4 गई सुरत पजनरारी । भरी राघास्वामी गगरी भारी ।।15।। रंसनी रो गई रंसन प्यारी । जपया अब राधास्वामी नाम सुधा7 री ।।16।। करत मैं मजरमा राधास्वामी रारी । करी मैं आरत राधास्वामी सारी ।।17।। ।। िब्द चौथा ।। िुगजनयाूँ8 चढ़ी गगन के पार । सुनी राधास्वामी धूम अपार ।।1।।

1. बाईं ओर की नाड़ी । 2. दाईं ओर की नाड़ी । 3. भूँवर गुफा । 4. रजथयार । 5. दस्मद्वार में िो अमृतसर रै । 6. पानी भरने वाली । 7. अमृत । 8. योग करने वाली, जमलने वाली ।

40

सार बचन

बचन 4

लगजनयाूँ1 मगन हुई दस द्वार । दगजनयाूँ2 मारी राधास्वामी झाड़ ।।2।। सुूँघजनयाूँ3 सूघ ूँ त मलय4 जनरार । नाम राधास्वामी पाया सार ।।3।। सुिजनयाूँ लखी िब्द की धार । राधास्वामी गावत राग मलार ।।4।। बैरागन भईलो सुरत रमार । चरन राधास्वामी मोर अधार ।।5।। सुराजगन चली नाम की लार । लई राघास्वामी सेि सूँवार ।।6।। जपया घर पहुूँची मौि जनरार । हुई राधास्वामी के मौि बजलरार ।।7।। िाय िरूँ देखी लीला सार । राधास्वामी चरन पखार5 पखार ।।8।। गई और झाूँकी जखड़की पार । राधास्वामी रूप ककया दीदार ।।9।। दृजष्ट उलटी करत िुरार6 । राधास्वामी परसे ति रंकार ।।10।। गये अब मन के सभी जवकार । दी अस राधास्वामी दृजष्ट डार ।।11।। कामना ररी न अब संसार । राधास्वामी दीन्रा संिय टार ।।12।। िुजि से डारा मन को मार । चलाई राधास्वामी पैनी7 धार ।।13।। जमरगनी8 भागी बन से रार । राधास्वामी छोड़ा बान सम्रार ।।14।। कहूं क्या देखी अिब बरार । कदखाया राधास्वामी इक गुलज़ार9।।15।। िब्द गुल10 जखल गये बार और पार । लगा राधास्वामी से अब प्यार ।।16।। घोर िराूँ अलरद उठत अपार । सुरत राधास्वामी दई सुधार ।।17।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। राधास्वामी का दरस मैं आि करूूँगी । पल पल जछन जछन पार रहूंगी ।।1।। िगत िाल से बहुत बचूग ूँ ी । कमण काल को मार धरूंगी ।।2।। सुरत चढ़ाय असमान भरूंगी । गगन मंडल की सैर करूंगी ।।3।। धुन धधकार अनंत सुनग ूं ी । िब्द अमी रस अगम जपऊंगी ।।4।। पुष्ट रोय गुरु चरन गहूंगी । सुखमन संग जवलास करूंगी ।।5।। बंकनाल में सरि धसूग ं ी । जिकु टी िा मैं ओंग गहूंगी ।।6।। सुन्न मरासुन पार सिूग ं ी । भंवरगुफा सतलोक रहूंगी ।।7।। अलख अगम धुन जनत्त भिूग ं ी । राधास्वामी चरन स्पिण करूंगी ।।8।। 1. लगाने वाली यानी प्रेमी सुरत । 2. धोखा देने वाली माया । 3. सूघ ूँ ने वाली सुरत । 4. मजलयाजगरर चन्दन । 5. धोकर । 6. दंडवत । 7. तेि । 8. माया । 9. चमन, बग़ीचा । 10. फू ल ।

बचन 4

मजरमा दिणन राधास्वामी

41

।। िब्द छठवाूँ ।। देखत ररी री दरस गुरु पूरे िोभा सतगुरू बरनी न िाई बुद ं चढ़ी ति सपड असारा गरित गगन जवरर उठ िागी चरन कूँ वल गुरु जररदे धारी कृ पा दृजष्ट सतगुरू अब धारी समुद ं सोत धस सुरत समानी सुरत चढ़ाय गई सतनामा

। । । । । । । ।

चाखत ररी री प्रेम रस मूरे ।।1।। बाित घट में अनरद तूरे ।।2।। पहुंची िाय जसन्ध सत नूरे ।।3।। मन कायर अब रोवत सूरे ।।4।। करत तमोगुन दम दम चूरे ।।5।। काल चक्र डारत अब तोड़े ।।6।। मान सरोवर दरसत हूरे 1 ।।7।। पहुंची राधास्वामी चरन रज़ूरे ।।8।।

।। िब्द सातवाूँ ।। गुरु के दरस पर मैं बजलरारी गुरु के बचन मरे जरये जसगारी गुरु का संग कर जछन जछन प्यारी गुरु के धाम पर सुरत लगा री सेत सूर िरं नूर लखा री मुरली धमक और बीन सुना री जबरले संत यर भेद पुकारी ज्यों मीना िल धार समा री अस परीत सतगुरू संग ला री भाग जबना क्या करे जबचारी राधास्वामी करी िुजि यर सारी

। । । । । । । । । । ।

गुरु के चरन मेरे प्रार् अधारी ।।1।। गुरु स्वरूप कदन रै न सम्रारी ।।2।। गुरु का रं ग ले नैन जनरारी ।।3।। नील जिखर2 चढ़ श्याम3 तका री ।।4।। िब्द अनारद तूर बिा री ।।5।। अद्भुत रस अचरि सखी भारी ।।6।। तू भी सरन पड़ उन की िा री ।।7।। ज्यों चकोर चन्दा जनरखा री ।।8।। कर प्रताप घट रोत उिारी ।।9।। यर भी भाग गुरु से पा री ।।10।। उनके चरन से प्रेम लगा री ।।11।।

।। िब्द आठवाूँ ।। गुरु का दरस तू देख री । जतल

1. पारब्रह्म देि की पजवि आत्मायें । और खुलासा ।

2. नील चक्र ।

आसन

डार ।।1।।

3. तीसरा जतल ।

4. सार

42

सार बचन

िब्द गुरु जनत सनो री गुरु रूप सुरावन अजत लगे कूँ वल जखलत सुख पावइ गुरु ज्ञान न पाया रे सखी पूरा सतगुरू ना जमला मैं तो सतगुरू पाइया ज्यों चकोर चन्दा गरे सतगुरू िब्द स्वरूप रैं तू भी सुरत स्वरूप रै नैनन में गुरू रूप रै सरवन मैं गुरु िब्द रै राधास्वामी कर ररे िो िो मानें भाग से

। । । । । । । । । । । । ।

बचन 5

जमल बासन1 िार ।।2।। घट भान उिार ।।3।। भौंरा कर प्यार ।।4।। जिन घट अंजधयार ।।5।। भरमत भौ िार2 ।।6।। िाऊूँ बजलरार ।।7।। रहूं रूप जनरार ।।8।। ररें अिण मूँझार ।।9।। ररो गुरु की लार ।।10।। तू नैन उघार3 ।।11।। सुन गगन पुकार ।।12।। यर मारग सार ।।13।। सो उतरें पार ।।14।।

।। बचन पाूँचवाूँ ।। वर्णन भेद मागण और िोभा सत्तलोक की और मजरमा जनि स्वरूप और जनि स्थान परम पुरूष पूरन धनी राधास्वामी की ।। िब्द पजरला ।। आरत गावे सेवक तेरा अब स्वामी ककरपा करो ऐसी जनरसंिय जचत्त िब्द समाई आगे मरासुन्न मैदाना आगे भंवरगुफा की जखड़की

1. बासना । 2. िाल ।

। । । । ।

3. खोल ।

संिय भरम ने जचत को घेरा ।।1।। संिय िड़ सब िायें जबनासी ।।2।। दसवें द्वार ररे ठरराई ।।3।। मौि रोय तो करे पयाना4 ।।4।। सोरंग धुन िराूँ जनसकदन खड़की5 ।।5।।

4. चलना ।

5. आवाि हुई ।

बचन 5

भेद मागण और िोभा सत्तलोक

तराूँ िाय कर आनंद पाऊं सत्तनाम सत िब्द रठकाना रंसन िोभा करी न िाई अद्भुत रूप पुरूष करा बरनूं दीपन िोभा अिब सूँवारी अमी कुं ड िराूँ भर ररे भारी जनत जनत लीला नई िराूँ की अलख लोक जतस आगे थापा अलख पुरूष िोभा करा गाई सुरत रूप वराूँ ऐसा पाई सुरत चली आगे पग धारा अगम पुरूष की िोभा न्यारी आगे ता के पुरूष अनामी संत जबनाूँ वराूँ और न िाई रे स्वामी यर जबनती रमारी पहुंचूं कै से सो भी गाओ सुरत िब्द की रार बताई संिय भरम न राखो कोई िब्द खोि तुम जनस कदन राखो अब आरत पूरन कर गाई

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

43

आगे को कफर सुरत चढ़ाऊं ।।6।। चौथा पद सोइ संत बखाना ।।7।। खोड़स1 चन्द्र सूर छजब छाई ।।8।। कोरट सूर चन्दा इक रोमूं ।।9।। रंस रंस प्रजत2 दीप जनरारी ।।10।। पुरूष दरस का करें अरारी ।।11।। मजरमा करूँ लग बरनूं वराूँ की ।।12।। गई सुरत तराूँ ति कर आपा ।।13।। अरब कोरट िजि सूर लिाई ।।14।। कोरट भान छजब ऐसी गाई ।।15।। अगम लोक को िाय जनरारा ।।16।। कोरटन खरब सूर उजियारी ।।17।। ता को अकर अपार बखानी ।।18।। संतन जनि घर बर ठरराई ।।19।। भेद कदया तुम अजत से भारी ।।20।। मन मेरे को बहुत उमाओ4 ।।21।। दया जबना नसर पहुंचे भाई ।।22।। धीरे धीरे सुरत समोई5 ।।23।। बार बार स्वामी यर भाखो ।।24।। संत मता सब कदया लखाई ।।25।।

।। िब्द दूसरा ।। आि आरती इक कहुं भारी । सुजमरन राधास्वामी करूं अधारी ।।1।। जतल का थाल िोत हुई बाती । प्रेम भरी सन्मुख स्वामी आती ।।2।। रूप अनूप जरये में लाती । दिणन राधास्वामी जनि कर पाती ।।3।।

1. सोलर । 2. वास्ते ।

3. न्यारे ।

4. उमूँगाओ ।

5. प्रवेि या लीन करना ।

44

सार बचन

मैं चकवी सतगुरू हुए चकवा । मैं अज्ञान रै न बस पड़ी । सतगुरू पार बसेरा कीन्रा । तड़पूं जछन जछन जपय के जवयोग । अजत आतुर2 घबराय पुकारी । रात जबताई हुआ जबराना । चक4 के वार पड़ी थी थोथी5 । गुरु से जमली खोल कर पाट । लोरा ज्यों चुम्बक सूँग जमली । सुरत दृजष्ट कर द्वारा झाूँका । भीतर धस िो लीला देखी । अंतरिामी सतगुरू िाने । श्याम सेत के मद्ध समानी । सूर चाूँद दोऊ कदस देखे । आगे धसी बंक की नाल । आगे पहुंची जिकु टी द्वार । सुन्न में गई मरल दस मासर । सेत सेत वर सुन्न कदखाई । जिखर चढ़ी पजच्छम के द्वार । भूँवरगुफा का ताक़ उधारा । चौक परे सतलोक समानी । कोरटन सूर8 लगे इक रोम । सत्तपुरूष की आयस 9 पाय । अरब सूर िजि11 लिायूँ ।

बचन 5

रै न भई तो हुआ जबछोरा 1 ।।4।। वार ररी और धीर न धरी ।।5।। क्योंकर जमलूं रार नसर चीन्रा ।।6।। कस पाऊूँ अब जपया संयोग ।।7।। तब स्वामी मेरी कीन सम्रारी ।।8।। घट के भीतर भान उगाना ।।9।। गुरु चक पार सुनाई पोथी6 ।।10।। घाट बाट घट बाूँधा ठाट ।।11।। सुरत िब्द से िाकर रली ।।12।। तोड़ा िाय सुई का नाका7 ।।13।। बरनी ूँ कै से बात अगम की ।।14।। और भेदी पुजन आप पजरचाने ।।15।। घंटा िंख सुनी धुन बानी ।।16।। सुखमन गगना तारे पेखे ।।17।। अवगत काल जबछाया िाल ।।18।। लाल रूप िरूँ धुन ओंकार ।।19।। रंसन साथ मानसर न्राजर ।।20।। चंद्र चाूँदनी चौक लगाई ।।21।। मरासुन्न के रो गई पार ।।22।। सोंरूँग मुरली सुनी पुकारा ।।23।। सत्त पुरूष धुन बीन बखानी ।।24।। कोरट कोरट िरूँ ऊगे सोम9 ।।25।। अलख लोक में पहुंची धाय ।।26।। ऐसी िोभा देखी आय ।।27।।

1. जवयोग । 2. तड़पती । 3. उदय हुआ । 4. चक्षु, आूँख । 6. आकाि बानी, िब्द । 7. मुख । 8. सूरि । 9. चाूँद । 11. चन्द्रमा ।

5. बे-काम । 10. आज्ञा ।

बचन 5

भेद मागण और िोभा सत्तलोक

वराूँ से आज्ञा लेकर चली खरबन चन्द्र सूर उजियारा वराूँ से भी कफर आगे बढ़ी जनि पद रै वर राधास्वामी

। । । ।

45

अगम पुरूष से िाकर जमली ।।28।। और कहूं क्या अगम पसारा ।।29।। सुरत जनरत जनि पद में धरी ।।30।। कफर कफर कहूं मैं राधास्वामी ।।31।।

सोरठा क्योंकर करूं बखान, मजरमा मैं उस धाम की । नील नील िजि भान, इक इक कं गुरे1 लग ररे ।।32।। पदमन2 मजर् िड़ी मरलन में संख और मरासंख िजि भान िस स्वरूप राधास्वामी धारा क्या दृष्टान्त देऊूँ मैं सरी यर आरत मैं बढ़की करी

। । । । ।

िोभा वराूँ की कहुं क्योंकर मैं ।।33।। जगदण ससरासन देखे आन ।।34।। िोभा वा की अकर अपारा ।।35।। जगनती भी बाक़ी नसर ररी ।।36।। कस बरनूूँ अब मीरी3 भई ।।37।।

।। िब्द तीसरा ।। नगररया झाूँक ररी मैं न्यारी । गुरु ने मोसर दीन्रीं अचरि तारी4 ।।1।। सुनी मैं अनरद धुन झनकारी । रूप अब जनरखा अद्भुत भारी ।।2।। कहूं क्या गुरु की मेरर करारी5 । हुई मैं राधास्वामी चरन दुलारी6 ।।3।। छोड़ कर देि पराया आई । मरल में राधास्वामी आन बसाई ।।4।। भेद यर दीन्रा मोसर मेरे भाई । कहूं कस मजरमा उनकी गाई ।।5।। सरन अब राधास्वामी दृढ़ कर पाई । छोट मुख क्योंकर करूूँ बड़ाई ।।6।। भाग मेरा िागा िब्द सुराई । नाम रस पाया करूं कमाई ।।7।। सुरत हुइ जनरमल सुखमन पाई । चली और नभ पर करी चढ़ाई ।।8।। नैन दोउ फे रे िोत कदखाई । सरस दल कूँ वल मध्य धस आई ।।9।। श्याम ति सेत रूप दरसाई । बंक चढ़ जिकु टी आन समाई ।।10।। ओंग धुन गरि भली समझाई । सूर िरूँ लाल लाल कदखलाई ।।11।। 1. कं गूरा । 2. अनेक पदम (संशया जविेष) । 5. तेि । 6. प्यारी ।

3. अव्वल नम्बर ।

4. कु ञिी ।

46

सार बचन

बचन 5

सुन्न चल मानसरोवर न्राई । ररं ग धुन ककगरी खूब सुनाई ।।12।। रंस रोय आगे पंथ चलाई । मरासुन सूरत अिब सिाई ।।13।। धमक सुन भंवरगुफा कढग1 आई । बाूँसरु ी सोरंग संग बिाई ।।14।। वराूँ से सचखंड पहुंची धाई । पुरूष का रूप अनोखा पाई ।।15।। बीन धुन सुन कर बहुत ररझाई । मेरर हुई भारी करा न िाई ।।16।। गुरु मोसर दीन्रा अलख लखाई । अगम का पदाण खोला िाई ।।17।। वराूँ से राधास्वामी धाम कदखाई । गई और चरन सरन जलपटाई ।।18।। आरती अद्भुत लीन सिाई । बूँगला अचरि रूप बनाई ।।19।। बैठकर राधास्वामी छजब कदखलाई । उमंग और प्रेम ररा मेरा छाई ।।20।। सखी सब जमल कर देत बधाई । आि मेरा िन्म सुफल हुआ भाई ।।21।। ब्रह्म और माया दोउ लिाई । काल और कमण ररे मुरझाई ।।22।। िोग और ज्ञान थके पछताई । कहूं क्या कोई ममण न पाई ।।23।। संत मत ठीक यरी ठरराई । सुरत और िब्द रार दरसाई ।।24।। वेद नसर पावे संत बड़ाई । करी अब राधास्वामी यर गजत गाई ।।25।। ।। िब्द चौथा ।। गुरु मता अनोखा दरसा लीला घट देखी भारी अमृत रस भर भर पीया चोरी अब चोरन त्यागी साहू अब घट में िागे गुन गावत मन हुलसाया िगमग हुइ िोत उजियारी सुन्दर की जखड़की खोली चढ़ बंक ककवाड़ी खोली

1. पास ।

। । । । । । । । ।

मन सुरत िब्द िाय परसा ।।1।। हुइ सुरत गगन परररारी ।।2।। तन मन सब सीतल हूआ ।।3।। घर उनके अजि लागी ।।4।। पररा दे िब्द अनुरागे ।।5।। धुन धावत अधर चढ़ाया ।।6।। घट जखल गइ कूँ वल ककयारी ।।7।। सुखमन में धुन जनत बोली ।।8।। जिकु टी िा हुई अमोली ।।9।।

बचन 5

भेद मागण और िोभा सत्तलोक

बचन फे रत पान तमोली क्या मजरमा गुरु पद गाऊूँ सुर नर मुजन गजत नसर िानी सुन्न में िा िब्द समानी गई मरा सुन्न के नाके कफर भूँवरगुफा लगी डोरी सतगुरू पद सत कर िाना िजि सूर अनेकन पाूँती लख अलख अगम दरसाना यर अिब परम पद पाया नसर वेद कतेब सुनाया यर वस्तु अमोलक पाई मेरे राधास्वामी परम दयाला मैं आरत उनकी करता मैं रर दम यरी पुकारूूँ मेरा भाग उदय रो आया िग स्वाद लगा सब फीका गजत मजत मेरी उलटी पलटी मेरा काि हुआ सब पूरा

। । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

47

यों धुन घट सूरत रोली1 ।।10।। जछन जछन में उमूँग बढ़ाऊूँ ।।11।। यर अचरि अकथ करानी ।।12।। अद्भुत धुन ककगरी छानी ।।13।। गुरु दया अचंभा2 ताके ।।14।। सोरूँग िा सूरत िोड़ी ।।15।। गजत मजत क्या कहूं बखाना ।।16।। देखे और आगे िाती ।।17।। जमला राधास्वामी नाम जनिाना ।।18।। अब तक कोई भेद न गाया ।।19।। िोगी नसर ज्ञानी धाया ।।20।। कोइ जबरले संत बताई ।।21।। जिन कीन्रा मोसर जनराला ।।22।। तन मन दोउ चरनन धरता ।।23।। मत अगम अगाध सम्रारूूँ ।।24।। राधास्वामी चरन जधयाया ।।25।। राधास्वामी नाम मैं सीखा ।।26।। गुरु कर दइ सूरत3 सुल्टी4 ।।27।। मैं राधास्वामी चरनन धूरा ।।28।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

सुख समूर5 अंतर घट छाया आनंद ररख अजधक जरये आया दिणन कर गुरु मजरमा गाया प्रेम सूर जनि गगन उगाया िगो भाग धुन अनरद पाया

। । । । ।

आरत सामाूँ6 आन गुरु चरनन में जचत्त छजब अनूप नैनन में भमण जतजमर सब दूर अंतर सुखमन तीरथ

सिाया ।।1।। समाया ।।2।। लाया ।।3।। बराया ।।4।। न्राया ।।5।।

1. छाूँटी । 2. अचरि । 3. सुरत । 4. सीधी । 5. बहुत । 6. सामान, पदाथण ।

48

सार बचन

बचन 6

सरसकं वल जतल उलट कफराया । मन को छोड़ सुरत संग धाया ।।6।। िोत जनरं िन रूप कदखाया । अजत हुलास कु छ करा न िाया ।।7।। घंटा नाद और संख सुनाया बंकनाल का द्वार खुलाया सूरि मंडल वेद पढ़ाया सुन्न जिखर धुन ररं ग िगाया सेत चन्द्रमा फू ल जखलाया रंसन साथ जमलाप मरासुन्न धुन

गुप्त

भूँवर गुफा अमृत

। । । । ।

चाूँद सूर तारा दरसाया ।।8।। जिकु टी चढ़ गुरु िब्द जमलाया ।।9।। अधण मािा मूल िनाया ।।10।। माया काल दोउ सुलवाया1 ।।11।। मानसरोवर अमी जपलाया ।।12।।

बढ़ाया । ककङ्गरी सारङ्गी धूम

मचाया ।।13।।

लखाया । मराकाल बल छीन

कराया ।।14।।

बरसाया । सोरंग

बंसी

नाद बिाया ।।15।।

चढ़ी सुरत सतपुरूष गिाया2 । सच्चखंड िा तख़्त जबछाया ।।16।। पुरूष मेरर दुरबीन कदलाया । अलख रूप िोभा परखाया ।।17।। अगम पुरुष कफर अमी चुवाया । राधास्वामी

भि धाम

भेद

बताया ।।18।।

येरी ठरराया । आरत कर राधास्वामी ररझाया ।।19।।

फल अपार दुख दूर गूँवाया । रसक रसक रस िब्द रसाया ।।20।। िन्म िन्म के कमण नसाया । काल दाव अब खूब चुकाया ।।21।। राधास्वामी चरनन माथ नवाया । राधास्वामी मूरत जरये बसाया ।।22।। ति जवकार मन को समझाया । नाम पकड़ अब काम रटाया ।।23।। सील जछमा दृढ़ थान िमाया । मन जबरंग को अधर उड़ाया ।।24।। गुरु भृङ्गी यर कीट जचताया । राधास्वामी चरनजनपट जलपटाया ।।25।।

।। बचन छटवाूँ ।। आरती परम पुरूष पूरन धनी राधास्वामी के चरर् कं वल में अब सतगुरू की आरत गाऊं । कथ कथ आरत बहुत सुनाऊं ।।1।। आरत

बानी

राधास्वामी

आगे

करत

1. जनकद्रत ककया ।

भनी3 । जवजवध भाूँजत की आरत बनी ।।2।। बखाना । सतसंगी

2. ऊूँची आवाज़ से बुलाया ।

सुनें

देकर

3. करो ।

काना ।।3।।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

49

।। िब्द पजरला ।। रे राधा तुम गजत अजत भारी । रे स्वामी तुम धाम अपारी । राधास्वामी दोउ मोसर गोद जबठारी ।।1।। राधा चरन गरे मैं आ री । स्वामी सरन हुई गजत न्यारी । राधास्वामी की हुई मैं प्यारी ।।2।। राधा अंतर दया जवचारी । स्वामी परगट ककया उबारी । राधास्वामी जमला कर मोसर सूँवारी ।।3।। राधा पल पल नाम रटा री । स्वामी जतल जतल रूप जनरारी । राधास्वामी मुझ को ककया अपना री ।।4।। राधा गुन क्या कहूं पुकारी । स्वामी मजरमा अकर अपारी । राधास्वामी अब मोसर लीन सुधारी ।।5।। राधा दरस करठन गजररा री । स्वामी बचन सुनत मोरा री । राधास्वामी अब के जलया उबारी ।।6।। राधा बल मन रार गया री । स्वामी बल मैं गगन चढ़ा री । राधास्वामी कीन्री मेरर करारी1 ।।7।। राधा आरत करूूँ ससगारी । स्वामी संग आरती धारी । राधास्वामी आरत करन जवचारी ।।8।। राधा चरन ससरासन धारी । स्वामी चरन सम्रार पखारी2 । राधास्वामी चरन अब जमला अधारी ।।9।। राधा दृजष्ट दया कर डारी । स्वामी मेरर करी अब न्यारी । राधास्वामी कीन मोर उपकारी ।।10।। राधा गल अब रार चढ़ा री । स्वामी सीतल जतलक लगा री । राधास्वामी पूिन आि करा री ।।11।। राधा आगे भोग धरा री । स्वामी सन्मुख थाल भरा री । राधास्वामी दोनों मान जलया री ।।12।।

1. अत्यन्त ।

2. धोया ।

50

सार बचन

बचन 6

राधा

अमर चीर पजरना री । स्वामी अिर वस्त्र तन धारी । राधास्वामी िोभा अगम अपारी ।।13।। राधा आरत अब हुइ भारी । स्वामी जचत में रषण बढ़ा री । राधास्वामी चरनन आन पड़ा री ।।14।। राधा कदया परिाद दया री । स्वामी मेरर करी कु छ न्यारी । राधास्वामी पर मैं िाऊूँ बजलरार ।।15।। जपरथम आरत राधा धारी । कफर आरत मैं स्वामी सम्रारी । राधास्वामी आरत कर लइ सारी ।।16।। राधा अपना धाम कदया री । स्वामी चरनन मासर जलया री । राधास्वामी दोनो पार ककया री ।।17।। ।। िब्द दूसरा ।। राधास्वामी मेरे ससध गम्भीर । रतनन के भरे भंडार । सुतण मीन करे िराूँ के ल1 । घट प्रेम धार अब उमूँगी । जतल उलट चली सुतण प्यारी । दल द्वार खोल कर पैठी3 । माया का चक्र रटाया । धुन अनरद सार बिाया । गुरु पर अब तन मन वारूूँ । क्या मजरमा गुरु पद गाऊूँ । गुरु मूरत हृदे5 जछपाऊूँ । गुरु संग जलये मोसर िावें ।

1. कलोल, आन्नद । 2. पीड़ के । गई । 5. हृदय में ।

कोइ थार न पावत बीर ।।1।। िराूँ लाल अमोलक सार ।।2।। कल काल धरे िराूँ पेल2 ।।3।। रस सार जपये कोइ संगी ।।4।। देखी वराूँ िोत उिारी ।।5।। नल पार अजवद्या ऐंठी4 ।।6।। ब्रह्म दरस सरि में पाया ।।7।। सुन भीतर िब्द िगाया ।।8।। गुन गावत कभी न रारूूँ ।।9।। मैं जनत जनत बल बल िाऊूँ ।।10।। मन अंदर द्वार खुलाऊूँ ।।11।। सत रूप अधर दरसावें ।।12।।

3. प्रवेि कर गई ।

4. आकड़ गई, मूरझा

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

51

कूँ वलन के बाग़ कदखावें । रंसन संग के ल करावें ।।13।। वर आनूँद करत न िाई । सुतण भीि ररी छजब छाई ।।14।। अमृत रस झड़ी लगाई । जछन जछन पर धार चुवाई ।।15।। मन गोता खावत भारी । सुतण िागी जमटी अूँजधयारी ।।16।। कोइ सिन प्रेम जबलासी । देखत और खेलत पासी ।।17।। गुरु बचन सुनत मैं राूँसी । हुइ राधास्वामी चरन जनवासी ।।18।। दम दम में प्रेम बढ़ाती । गुरु मूरत अिब कदखाती ।।19।। मैं नैन परान गूँवाती । तन मन की सुध जबसराती ।।20।। गुरु मूरत अजधक सुराती । ज्यों चन्द्र चकोर समाती ।।21।। राधास्वामी मौि कदखाई । मैं चरन धूर रोय धाई ।।22।। ।। तीसरा िब्द ।। आि कदवस सजख मंगल खानी । मैं राधास्वामी सूँग आरत ठानी ।।1।। तन मन थाल जवरर कर िोती । सुरत1 जनरत2 धुन माल3 परोती ।।2।। गगन जिखर चढ़ अचरि देखूूँ । रंसन साथ मरासुन पेखूूँ4 ।।3।। चरन गहूं अब राधास्वामी के । आरत गाऊूँ प्यारे जिय के ।।4।। जछन जछन जनरखूूँ छजब राधास्वामी । तन मन अरपूूँ दुख रर नामी ।।5।। जछन जछन जनरखूूँ छजब प्रीतम की । तन मन अरपूूँ दुख ररर जरये की ।।6।। कराूँ लग बरनूूँ चोट जवरर की । कोई न िाने साल5 जिगर की ।।7।। जवरर अजि तन मन मेरा फूूँ का । झाल उठी िग दीन्रा लूका ।।8।। जबन राधास्वामी मोसर कौन सम्रारे । लोक चार मेरे ज़रा न अधारे ।।9।। मैं भइ देरी तुम भये स्वाूँसा । तुम जबन नसर िीवन की आसा ।।10।। तुम भये मेघा मैं भइ मोरा । तुम्ररे दरस मैं करती िोरा ।।11।। मैं बुलबुल तुम गुल की क्यारी । मैं क़ु मरी6 तुम सवण7 अपारी ।।12।। तुम चंदा मैं रै न अूँजधयारी । तुम से िोभा भई रमारी ।।13।। 1. आन्तररक िब्द का श्रवर् करना । 4. देखूूँ । 5. चोट का दुख । 7. सरू का बूटा ।

2. आन्तररक दृष्य देखना । 3. गूथ ूँ ती । 6. एक घुग्गी की ककस्म की जचजड़या ।

52

सार बचन

प्रेम जसन्ध िब लरर उठाई काम क्रोध की बस्ती उिड़ी लोभ मोर सब दूर जनकारी राि जववेक हुआ अब भारी मैं दासी सतगुरू चरनन की कराूँ लग बरनू मजरमा उनकी सुरत चढ़ी पहुंची ब्रह्मर्डा गगन मूँडल िाय बैठक पाई द्वार दसम का पाया मरमा कमण काट जनि घर को चाली मरासुन्न का खेल कदखाना ससर नाग िराूँ चौकी लाये अन्ध घोर जतस आगे भारी झूँझरी पार झरोखा देखा दायें बाट गइ दीप अजचन्ता मद्य रोय सूरत चढ़ी आगे सोरूँ से िाय भेंटा कीन्रा अलख पुरू की धुन सुन पाई अगम लोक िाय डेरा डाला अब ररा आगे एक अनामी अब आरत पूरन भइ मेरी

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 6

भरम कोट सब दीन बराई ।।14।। आसा मनसा तन से जबछड़ी ।।15।। जवषय बासना घट से टारी ।।16।। सुख पाया तन रै यत1 सारी ।।17।। ककये रैं मनोरथ पूरन अब की ।।18।। खबर पड़ी अब अनरद धुन की ।।19।। छोड़ गई यर खाकी सपडा ।।20।। सुन्न मरल में धधक चढ़ाई ।।21।। दूर ककये सब कं टक करमा ।।22।। माया ठगनी दूर जनकाली ।।23।। क्या कहूूँ वराूँ का राल पूराना ।।24।। जबन सतगुरू कोइ पार न पाये ।।25।। िब्द गुरु तराूँ कीन उिारी ।।26।। संतन िांका बरना लेखा ।।27।। बाइूँ कदसा िराूँ सरि बसंता ।।28।। भूँवरगुफा िराूँ सोरूँग िागे ।।29।। सत्तनाम धुन ता पर चीन्रा ।।30।। तराूँ से अगम पुरूष को धाई ।।31।। अब पाई पूरी टकसाला ।।32।। करा कहूूँ वर अकर करानी ।।33।। दया करो स्वामी मैं बल तेरी ।।34।।

।। िब्द चौथा ।। आि साि कर आरत लाई । प्रेम नगर जबच कफरी रै दुराई ।।1।। जवरर व्यथा के लुट गये डेरे । जमल गये राधास्वामी जबछड़े मेरे ।।2।। जररदा थाल सुरत की बाती । िब्द िोत मैं जनत्त िगाती ।।3।।

1. प्रिा ।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

53

आरत फे रूं सन्मुख ठाढ़ी । प्रीत उमूँग मेरी जछन जछन बाढ़ी ।।4।। तन नगरी जबच बित ढूँढोरा । भागे चोर ज़ोर भया थोड़ा ।।5।। सील जछमा आय थाना गाड़ा । काम क्रोध पर पड़ गया धाड़ा1 ।।6।। स्वामी मेरर करी अब भारी । मैं भी उन चरनन बजलरारी ।।7।। अब ते सरन पड़ी राधास्वामी । राखो सूँग सदा अन्तर िामी ।।8।। मेरे और न कोई दूिा । मेरे जनस कदन तुम्ररी पूिा ।।9।। तुम जबन और न कोई िानूं । जछन जछन मन में तुमको मानूं ।।10।। मैं मछली तुम नीर अपारा । के ल करूूँ मैं तुम्रारी लारा ।।11।। मैं पजपरा तुम सवाूँजत के बादल । सुख पाये दुख गये रैं रसातल2 ।। तुम चंदा मैं कमोदन रीनी । तुम्ररी लगन में जनसकदन भीनी3 ।। मैं धरनी तुम गगन जबरािे । कै से जमलूं मैं तुम सूँग आिे ।।14।। सुरत जनरत से चढ़ कर धाऊूँ । कभी न छोड़ूूँ अस जलपटाऊूँ ।।15।। मैं गुरबतीं राधास्वामी के चरन की । लाि रखो मेरी काल से अबकी ।।16।। तुम्ररे बल से भइ हूं जनसचती । अब मन में नसर संका धरती ।।17।। सूर ककया स्वामी खेत जिताया । मार जलया मैंने मन और माया ।।18।। खाक जमला सब कपट खज़ाना । भाग गया दल मोर तुराना ।।19।। गढ़ जिकु टी अब चढ़कर लीन्रा । सुन्न जिखर पर डंका दीन्रा ।।20।। ससध मरासुन्न बीच में आया । सतगुरू कृ पा ने दीन तराया ।।21।। भूँवरगुफा के मरल जबरािी । सत्तलोक चढ़ अचरि गािी ।।22।। अलख लोक मैं सूरत सािी । अगम लोक को जछन में भािी4 ।।23।। पोरप5 ससरासन क्या कहुूँ मजरमा । िराूँ राधास्वामी ने धारे चरना ।।24।। उन चरनन पर िाय जलपटानी । आगे अकर की क्या कहुं बानी ।।25।। अब आरत मैं कीन्री पूरी । भाखा भेद अगम गम मूरी ।।26।। राधास्वामी की चरन धूर धर । आय गई अपने मैं जनि घर ।।27।।

1. डाका ।

2. पाताल में ।

3. भींिी हुई ।

4. भागी ।

5. पुष्प, फू ल ।

54

सार बचन

बचन 6

।। िब्द पांचवां ।। यर आरत दासी रची, प्रेम ससध की धार । धारा उमूँगी प्रेम की, िा का वार न पार ।।1।। सन्मुख ठाड़ी रोय कर जबन्ती करूूँ पुकार । भाग रीन मैं क्यों हुई, स्वामी तुम दरबार ।।2।। तुम से दाता कोइ नरीं, सब को लीन्रा तार । मुझ अपराजधन रीन की, अभी न आई बार ।।3।। मैं पड़ती तुम दरस को, िैसे चन्द चकोर । सीप चरै जिजम1 स्वाूँजत को, मोर चाजर घनघोर ।।4।। ।। चौपाई ।। तुम दीपक मैं भइ हूं पतंगा । भस्म ककया मन तुम्ररे संगा ।।5।। तुम भृङ्गी मैं कीट अधीना । जमल गये राधास्वामी अजत परवीना ।।6।। तुम चंदन मैं भइ हूं भुवग ं न2 । सीतल भइ लग तुम्ररे चरनन ।।7।। तुम समुद्र मैं लरर तुम्रारी । तुम से उठ कफर तुमसर सम्रारी ।।8।। तुम सूरि मैं ककरनी आई । तुम से जनकसी तुमसर समाई ।।9।। तुम मोती मैं भी भइ धागा । संग तुम्रारा कभी न त्यागा ।।10।। अब तो कृ पा करो राधास्वामी । तुम रो घट घट अंतरिामी ।।11।। तुम चंदा मैं कला तुम्रारी । घारट बाढ़

तुम्ररो

आधारी ।।12।।

मैं बाली तुम जपत और माता । तुम्ररी गोद खेलूूँ कदन राता ।।13।। नैन थाल और दृष्टी िोती । पलकन छड़ी खड़ी कर लेती ।।14।। प्रेम नीर का घी अब डारूूँ । आरत

तुम्ररे

सन्मुख

घंटा िंख नाद धुन गािा । बीन बाूँसरी अचरि

वारूूँ ।।15।। बािा ।।16।।

ताल मृदग ं ककगरी धधकी । ढोल पखावि जछन जछन जखड़की ।।17।। सरस धार अमृत की बरखा । गगन मूँडल कफरे िैसे चरखा ।।18।। 1. िैसे ।

2. सपनी ।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

घुमड़ ूँ घुमड़ ूँ रोवे बजलरारी समा बूँधा कु छ करा न िाई रीरे लाल न्योछावर1 रोई फल और फू ल िराूँ अजत रािें मगन हुआ अब तन मन मेरा आरत कीन्री अब मैं पूरी प्रेम ध्विा अब गगन फरराई

। । । । । । ।

55

आरत िोभा अब भइ भारी ।।19।। सतसंगी जमल आरत गाई ।।20।। माजर्क मोती लजड़याूँ पोई 2 ।।21।। राधास्वामी िराूँ जबरािें ।।22।। राधास्वामी जछन जछन रेरा3 ।।23।। देओ प्रिाद अमीरस मूरी4 ।।24।। धुन धधकार अगम से आई ।।25।।

।। िब्द छठवाूँ ।। आनूँद मैगल आि, साि सब आरत लाई । राधास्वामी हुए रैं दयाल, काल डर दूर बराई ।।1।। सुखमन थाल सिाय, बंक की खोल ककवाड़ी । चन्द्र कटोरी आन, भान की िोत सूँवारी ।।2।। सुरत जनरत की छड़ी, अमी का भोग धराई । सेत चूँदरवा5 तान, सेत की तान6 सुनाई ।।3।। कमण रे ख जमट गई, सुन्न में बिी बधाई । स्वामी ककरपा करी, रूप अद्भुत दरसाई ।।4।। सत्तनाम धुन अगम, जरये जबच आन समाई । काया नगर मूँझार, पुरूष की कफरी दुराई ।।5।। छोड़ कु टु म्ब और तोड़ िगत से, पोढ़7 परम पद पाई । राधास्वामी राधास्वामी, जनस कदन रटना लाई ।।6।। प्रेम मगन मन हुआ, करा अब कछू न िाई । सतसंगी जमल आरत गावें, तन मन सुध जबसराई ।।7।। स्वामी ककरपा करी, सुरत अब लीन िगाई । िब्द अगम का भेद, दीन सतगुरू दरसाई ।।8।।

1. वार कदये गये । 2. परोजतयां । 6. राग । 7. मड़बूत ।

3. देखा ।

4. मूल ।

5. चंदोआ ।

56

सार बचन

बचन 6

उमूँग उमूँग कर उमूँग उमूँग कर, आरत गाई । पंच िब्द धुन पंच िब्द धुन, पूरन आई ।।9।। ।। िब्द सातवाूँ ।। करूूँ आरती राधास्वामी, तन मन सुरत लगाय । थाल बना सत िब्द का अलख िोत फरराय ।।1।। रंस सभी आरत करे , सन्मुख दिणन पाय । राधास्वामी दया कर, दीन्राूँ अगम लखाय ।।2।। अनरद धुन घंटा बिे संख बिे जमरदंग । ओंकार मूँडल बूँधा, मेघनाद1 गरिंत ।।3।। सुन्न मूँडस धुन सारूँ गी, ककगरी बिे अनूप2 । कोरट भान छजब रोम इक, ऐसा पुरूष स्वरूप ।।4।। कूँ वलन की क्यारी बनी, भूँवर करें गुि ं ार । सेत ससरासन बैठ कर, देखें पुरूष सम्रार ।।5।। बीन बाूँसरी मधुर धुन, बािें पुरूष हुज़ूर । सुन सुन रंसा मगन रोयूँ, जपवें अमीरस मूर3 ।।6।। रं ग मरल सतपुरूष का, िोभा अगम अपार । रंस िराूँ आनूँद करें , देखें जबमल4 बरार ।।7।। अब आरत पूरन भई, मन पाया जबसराम । राधास्वामी चरन पर, कोरट कोरट परनाम ।।8।। ।। िब्द आठवाूँ ।। सुरत सखी आि करत आरती जनरत5 दीप का ककया उिाला जबरत6 जबबेक थाल जलया राथा दीन गरीबी आन समाई

। । । ।

िब्द गुरु मन अपने धारती ।।1।। रोई माया झुर गया काला ।।2।। मद और मोर झुकाया माथा ।।3।। कु रटल कपट अब दूर बराई ।।4।।

1. बादल की गरि । 2. उपमा रजरत । 3. मूल, सार । 4. जनमणल । 5. आन्तररक प्रकाि । 6. वृजत ।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

प्रेम भजि की िोत िगाई । फे रत आरत घेरत मन को । घोर2 उठा घट भीतर भारी । जिगर फटा कदल टु कड़े हुआ । ऐसे करठन स्वामी दिणन पाये । प्रेम भजि की धारा छू टी । मान मनी की मटकी फू टी । तत्व पाूँच परककतण पचीसा । सुरत छू ट चढ़ी गगन मूँडल को । िीत जलया गढ़ सुन्न मूँडल को । मैं लोरा पारस राधास्वामी । मैं भुवग ं 3 तुम रो मजर् मेरे । मैं कं वला तुम सूर प्रकासी । मैं सरवर तुम कं वल अनूपा । तुम सरवर मैं भइ हुूँ रंसला6 । मैं प्यासी तुम अमृत धारा । अगम आरती ऐसी गाई । कू ड़ा करकट7 सभी िलाया । मुझ सी जवररन और न कोई । घर फूं का और लीन्रा लूका8 । सत्तलोक का पाया कू का9 । पाया सतगुरू चरन जनवासा । मजरमा ताूँकी करी न िाई ।

57

लेकर सन्मुख स्वामी आई ।।5।। टेरत1 राधास्वाम चली धुन घन को ।। उमूँगा जररदा चोट करारी ।।7।। तब राधास्वामी का दिणन हुआ ।।8।। कमण भमण सब दूर नसाये ।।9।। काम क्रोध की गठरी लूटी ।।10।। िगत बासना सबरी छू टी ।।11।। गुन तीनों धर पटके सीसा ।।12।। घेर जलया िाय काल मूँडल को ।।13।। धार जलया मन अगम मूँडल को ।।14।। पारस परस गई जनि धामी ।।15।। तेि4 तुम्रारे सूक्ख घनेरे4 ।।16।। दरस तुम्रारे पाउं हुलासी ।।17।। िोभा पाउूँ मैं तुम्ररे रूपा ।।18।। मोती चुगूं और देखूं लीला ।।19।। मैं भूखी तुम्ररा अगम भंडारा ।।20।। जवरर भाव की धार बराई ।।21।। मरल आपना साफ़ कराया ।।22।। मैं सब अपनी गजत मजत खोई ।।23।। तीन लोक को जछन में थूका ।।24।। अब कीन्रा मैंने काल का टू का10 ।।25।। रोत सदा अब जबमल जबलासा ।।26।। गूग ूँ े का गुड़ रो गया भाई ।।27।।

1. पुकारती हुई । 2. िोर । 3. सपण । 4. प्रकाि । 5. अजधक । 6. रंस । 7. कू ड़ा । 8. पलीता, जिसमे आग लगाइ िावे । 9. आवाि । 10. काट जगराया ।

58

सार बचन

बचन 6

।। िब्द नवाूँ ।। भर भर प्रेम आरती गाऊं भजि ससध अजत लरर उठाई सुरत चंबेली घट में जखलाई िब्द गुरु गल रार जपन्राया पीत सेत और लाल बखाना पाूँच रं ग फ़ु लवार जखलानी िोत िगी जरये भया उिाला अनरद बानी सुनी गगन में घंटा िंख सूर कदस1 छाूँटा आरत एक करी जिकु टी में दूसर आरत सतगुरू कीन्री तीसर आरत राधास्वामी मजरमा उनकी क्योंकर गाऊं राधास्वामी धाम कदखाई राधास्वामी पुरूष अपारा

। । । । । । । । । । । । । । ।

नई उमूँग अब जचत्त समाउं ।।1।। प्रीत रीत मोती उपिाई ।।2।। जनरत रं गीली संग जमलाई ।।3।। गगन मूँडल धुन अिब सुनाया ।।4।। ररा श्याम पचरं गी बाना ।।5।। देख देख दृष्टी ररखानी ।।6।। श्याम जनरख कफर सेत सम्राला ।।7।। मगन हुई सुतण पहुंची धुन में ।।8।। बंक नाल का खोला घाटा ।।9।। गुरु स्वरूप जनरखा अब घट में ।।10।। सत्तलोक गइ सुरत प्रबीनी ।।11।। जनि कर करी देख जनि धामी ।।12।। चरन िरन में जनस कदन धाऊं ।।13।। अद्भुत िोभा करी न िाई ।।14।। कहूं करा2 कु छ अिब बरारा ।।15।।

।। िब्द दसवाूँ ।। सुरत आि लगी चरन गुरु धाय देख जनि नाली बंक समाय जरये जबच पंकि3 अिब जखलाय रंस िराूँ बािे ररे बिाय राजगनी नइ नइ जनत्त सुनाय घाट जन:अक्षर5 पाया िाय

। । । । । ।

श्याम ति सेत ग्राम ठरराय ।।1।। जिकु टी चढ़ कर पहुंची आय ।।2।। सेत पद धिा अगम फरराय ।।3।। गुरु अस लीला दई कदखाय ।।4।। भेद सब अक्षर4 दीन बताय ।।5।। गुफा में धुन इक सुनी बनाय ।।6।।

1. सूरि की कदिा यानी दाजरनी तरफ । 5. मरसुन्न ।

2. क्या करूं ।

3. कूँ वल । 4. सुन्न ।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

59

पदम सत जनरखा भरम नसाय । बीन धुन पाई सुरत लगाय ।।7।। अलख और अगम ररा दरसाय । परे जतस राधास्वामी धाम जमलाय ।।8।। िरां अब आरत साि सिाय । जलये मैं राधास्वामी खूब ररझाय ।।9।। कहूूँ क्या मजरमा बरनी न िाय । सुरत मेरी जछन जछन ररी मुसकाय 1 ।। राधास्वामी लीला कहूं जछपाय । जलया मोजर अपने अंग लगाय ।।11।। आरती पूरी कीन्री आय । कहूं क्या अस्तुत2 राधास्वामी गाय ।।12।। परम पद पाया काल भिाय3 । वेद भी ररा बहुत िरमाय ।।13।। भेद यर जमला न अब तक काय । दया कर राधास्वामी कदया िनाय ।।14।। करूं अब आरत उनकी गाय । सुरत मेरी राधास्वामी लीन िगाय ।।15।। िोग और ज्ञान ररे मुरझाय । संत कोई जवरले कदया सुझाय ।।16।। राधास्वामी अचरि खेल कदखाय । चरन में राधास्वामी गई समाय ।।17।। ।। िब्द ग्याररवाूँ ।। चरन गुरु जररदे धार ररी ।। टेक ।। भौ की धार करठन अजत भारी । सो अब उलट बरी ।।1।। गुरु जबन कौन सम्रारे मन को । सुरत उमूँग अब िब्द गरी ।।2।। कोरटन िन्म भरमते बीते । काहु मोरी आन न बाूँर गरी ।।3।। अब के सतगुरू जमले दया कर । िब्द भेद उन सार दई ।।4।। नौ4 को छोड़ द्वार दस लागी । अक्षर मथ नवनीत5 लई ।।5।। नौका पार चली अब गुरु बल । अगम पदाथण लीन सरी ।।6।। क्या क्या कहूं कर गजत नारीं । सुरत िब्द जमल एक हुई ।।7।। ररन गरन की बात जनयारी । संत जबना कोइ नासर करी ।।8।। सुन्न जिखर चढ़ मरासुन्न लख । भूँवरगुफा पर ठाट ठई6 ।।9।। सत्तनाम सत धाम जनरख धुर । अलख अगम गजत पाय गई ।।10।। सुरत जनरत सूँग चली अगाड़ी । राधास्वामी राधास्वामी चरन मई7 ।।11।।

1. रूँसती हुई । 2. स्तुजत । 3. दूर करके , भगा कर । 4. नौ द्वार । 5. मक्खन । 6. मुकाम ककया । 7. जमल गई ।

60

सार बचन

अब आरत ससगार सुधारी काल कला सब दूर जबडारी1 पचरूँ ग बाना 2 परन जबरािे िीव काि जनि भवन छोड़ कर मथ मथ माखन काढ़ जनकारा राधास्वामी दीन अवाज़ा

। । । । । ।

बचन 6

प्रेम उमंग मी बहुत चरी ।।12।। दयाल सरन अब आन लई ।।13।। िोभा धारी आि नई ।।14।। िमा दूध कफर रोत दरी ।।15।। जबरले गुरूमुख चाख चखी ।।16।। चढ़ो अधर जनि धाम पई ।।17।।

।। िब्द बाररवाूँ ।। अपने स्वामी की मैं करत आरती । काल कमण जसर धौल3 मारती । रस रस स्वामी जरये में धारती । थाल सिाया उमूँग प्रेम का । भोग धराया भाव भजि का । दृजष्ट िोड़ कर दिणन करती । छजव स्वामी की बड़ी चरीती4 । लौ5 लगाय चरनन मैं ररती । श्याम कं ि मैं त्यागा येरी । सुरत चढ़ाय गई आकािा । राधास्वामी चरन जनरारूं । आरत पूरन भई रै रमारी ।

कु ल कु टु म्ब सब अपना तारती ।।1।। ममता चादर जछन में फाड़ती ।।2।। रोग दोष सब जछन में िारती ।।3।। दीपक बाला दरस नेम का ।।4।। राग सुनाया ध्यान िुजि का ।।5।। नैनन में ज्यों पुतली धरती ।।6।। मैं दरबारी स्वामी दर की ।।7।। लउआ6 नाम मैं अपना धरती ।।8।। सेत पदम में सूरत दी ।।9।। जखल जखल देखूूँ जबमल तमािा ।।10।। तन अपना उन पर वारूं ।।11।। पहुूँच गई सतगुरू दरबारी ।।12।।

।। िब्द तेररवाूँ ।। आरत गावे दरसो7 अपनी । जछन जछन राधास्वामी राधास्वामी रटनी ।। थाल इल्म8 का िोत अमल6 की । पढ़ पढ़ आयो राधास्वामी की सरनी ।। क़लम लगन और प्रेम दवाता । जलखजलख राधास्वामी जरये जबच गाता ।।

1. जनकाल दी । 2. वस्त्र । 3. थप्पड़ । 4. प्यारी । 5. ध्यान । 6. िो जलव लगावे । 7. जिसको दिणन की इच्छा रै । 8. जवद्या । 9. अभ्यास ।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

पढ़ी फ़ारसी पढ़ी अंगरे ज़ी देखा सब िग झूठ पसारा सुरत चढ़ी खुला िब्द अपारा प्रेम बदररया घुमड़न3 लागी चाूँद सुरि दोउ गये जछपाई खुला द्वार फू टा घट गगना बाल अवस्था खेल कू द की दया हुई अब स्वामी भारी

। । । । । । । ।

61

हुई मेरर बुध पाई तेली ।।4।। पाया नाम राधास्वामी का सारा ।।5।। कु मत ररी1 और मनको गारा2 ।।6।। बरस बरस अनरद धुन िागी ।।7।। सुखमन नदी उमूँड़ कर आई ।।8।। सुन्न जिखर देखत मन मगना ।।9।। खेल कदखाया साूँचा अब की ।।10।। आरत पूरन हुई रमारी ।।11।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। एक आरती कहूं बनाई िाजन्त थाल और सत मत िोती रत्नन माल परोई भाई रीरे लाल थाल भर लाई गरने कपड़े बहु पजरनाई अस अस सब ससगार बनाई स्वामी सन्मुख ठाढ़ी भई आरत कर कर अजत ररखाई बािे बिें गगन के द्वार अजि पवन और िल भंडार इनके पार सुरत िब भई िोत जनरारत मन हुलसाना घंटा नाद सुनी और पहुंची यराूँ से रटी बंक8 पट खोला

। । । । । । । । । । । । । ।

राधास्वामी हुए सराई ।।1।। समता सील4 धरे िराूँ मोती ।।2।। गल में स्वामी आन चढ़ाई ।।3।। माजर्क पन्ना भेंट धराई ।।4।। चोआ चन्दन अंग5 लगाई ।।5।। कूँ वल देख ज्यों मधुकर6 आई ।।6।। आरत थाली कर7 में लई ।।7।। राग राजगनी नइ नइ गाई ।।8।। उमूँग बढ़ी सुन सुन झनकार ।।9।। तीनों पाये छोड़े वार ।।10।। चाूँद सूर ति सुखमन गरी ।।11।। रूप जनरं िन अलख पजरचाना ।।12।। संख नाद कफर सूरत खैंची ।।13।। जिकु टी िाय ओंग धुन तोला9 ।।14।।

1. दूर हुई । 2. गला कदया । 3. छा िाना । 4. िीतल स्वभाव । 6. भूँवरा । 7. राथ । 8. बंकनाल । 9. समझ ।

5. देर ।

62

सार बचन

गरि गरि आकाि पुकारी लीला देखत चली अगाड़ी रंसन साथ मरा सुख पाई भूँवरगुफा गइ सोरं पास यराूँ से चढ़ पहुूँची सतपुर में नाना2 धुन सुन बीन बिाई द्वारे धस गइ अलख लोक में राधास्वामी पद दरसाना करना था सो अब कर चुकी राधास्वामी हुए दयाल रीरे लाल4 न्योछावर करती

। । । । । । । । । । ।

बचन 6

आओ सुरत मैं तुझ पर वारी ।।15।। सुन्न सरोवर कूँ वलन बाड़ी 1 ।।16।। मरा सुन्न में िाय समाई ।।17।। मुरली धुन सुन करे जबलास ।।18।। सतगुरू पूरे जमले अधर में ।।19।। सतपुरूष दुरबीन लखाई ।।20।। अगम लोक फल पाया जछन में ।।21।। क्या कहुूँ मजरमा अिब रठकाना ।।22।। आरत पूरन अब मैं करी ।।23।। दे परिाकद ककया जनराल3 ।।24।। तन मन धन तो तुच्छ समझती ।।25।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।। आरत करूूँ आि सतगुरू की ममता छोड़ूूँ मैं अब सब की सुजमरन नाम नेम से करूूँ सुन सुन धुन कफर आगे चढ़ूूँ श्याम सेत तक आगे चलूूँ वराूँ से जिकु टी धाम सम्रारूूँ ररं कार धुन सरवर तीर सेत सेत पद िराूँ गंभीर िन्म िन्म की काटी पीड़ आतम अक्षर जनरख जनरारी अंध घोर िराूँ अजत कर भारी

1. बग़ीचा ।

2. कई तरर की ।

। । । । । । । । । । ।

तन मन भेंट चढ़ाऊूँ अब की ।।1।। प्रीत करूूँ राधास्वामी चरनन की ।।2।। प्रेम सजरत अनरद धुन सुनूूँ ।।3।। सरसकं वल दल बानी पढ़ूूँ ।।4।। बंकनाल के भीतर धसूूँ ।।5।। ओंग ओंग संग बहुत पुकारूूँ ।।6।। रंसन की िराूँ देखी भीड़ ।।7।। सुरत जनरत धस धारी धीर ।।8।। छान करी िराूँ नीर और खीर ।।9।। मरासुन्न की करी तयारी ।।10।। सतगुरू बल से पार जसधारी ।।11।।

3. प्रसन्न ।

4. सुन्न और जिकु टी के िब्द ।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

63

भूँवर गुफा पहुंची इक जछन में । बंसी की धुन पड़ी श्रवन में ।।12।। सोरं सोरं सुनी पुकार । रंसन रूप देख उजियार ।।13।। वराूँ से चली अमर पद आई । सत्तनाम धुन बीन सुनाई ।।14।। अलख अगम का नाका1 लीया । िराूँ अमी रस अद्भुत पीया ।।15।। आगे को कफर सूरत धाई । राधास्वामी धाम समाई ।।16।। अभेद आरती करी बनाई । भेद तासु कोई संत िनाई ।।17।। नसर वराूँ थाल न दीपक बाती । सदा आरती बहु जबजध गाती ।।18।। चरन सेव चरनामृत पीती । उमूँग सजरत परिादी लेती ।।19।। जछन जछन राधास्वामी रूप जनरारूूँ । पल पल राधास्वामी जररदे धारूूँ ।। सुरत िब्द सूँग आई िाग । राधास्वामी जमले बड़े मेरे भाग ।।21।। ।। िब्द सोलरवाूँ ।। राधास्वामी दया प्रेम घट आया । सीतल िब्द िोत लख पाई । उमंगा जररदा सुजध जबसराई । अब रक्षा मेरर तुम्ररे राथा । सुजमरन नाम करूूँ जनस2 बासर3 । देखत रहूं रूप गुरु प्यारा । आरत करूूँ प्रेम रं ग पूरी । प्रेम उमूँग धारा घट बढ़ती । भूल भरम धोखा सब भागा ।

बंधन छू टे भमण गूँवाया ।।1।। गगन मूँडल में सुरत समाई ।।2।। तन मन धन सब भेंट चढ़ाई ।।3।। चरन तुम्रार मोर ररे माथा ।।4।। िब्द िोग का पाया औसर4 ।।5।। काम बाम4 को धर धर मारा ।।6।। पास रहूं गुरु के ति दूरी ।।7।। सुरत जनरत जनत उूँ चे चढ़ती ।।8।। राघास्वामी चरन बढ़ा अनुरागा ।।9।।

।। िब्द सताररवाूँ ।। प्रेम प्रीत घट धार । आरती राधास्वामी मन माधो6 तन बास । सुरत चरनन में थाल उमूँग और िोत जबरर । घट परगट 1. रद, सीमा । 2. रात । पीछे दौड़ने वाला ।

3. कदन ।

4. मौका ।

कीिे ।।1।। दीिे ।।2।। कीिे ।।3।।

5. माया । 6. माया के

64

सार बचन

सतगुरू रोयूँ दयाल िब्द िब्द चढ़ गगन मानसरोवर बास कूँ वल द्वार धस िाय मरासुन्न का घाट भूँवरगुफा धुन बाूँसरी सत्तनाम धुन बीन अलख अगम दरबार सुरत सुराजगन हुई धोखा सब री जमटा संत कृ पा िब रोय सतसूँग करो बनाय राधास्वामी नाम रोम रोम मन मगन

। । । । । । । । । । । । । ।

बचन 6

दान कफर िब्द जमलीिे ।।4।। सुन्न में अमृत पीिे ।।5।। रंस संग खेल जखलीिे1 ।।6।। सेत पद आस धरीिे ।।7।। दया सतगुरू से लीिे ।।8।। आश्चय्ण सुनीिे ।।9।। ताजर में सूरत दीिे ।।10।। देख घट प्रेम भरीिे ।।11।। काल बल सब री छीिे ।।12।। पूरूष संग जछन जछन रीझे2 ।।13।। सुरत अपने घर सीझे3 ।।14।। अमी का छींटा लीिे ।।15।। जरये में आन धरीिे ।।16।। आरती पूरन कीिे ।।17।।

।। िब्द अठाररवाूँ ।। जतल भीतर कदल िोड़ दृजष्ट उलट असमान बािे िब्द अनारदी सुरत जिखर चढ़ गई कूँ वल जिकु टी पाय ररं कार धुन सुनी संत कृ पा अब हुई यर मारग जनि पीव का कौतुक6 क़ु दरत7 धार घट पट लीला देख जनि भिन के काि

। । । । । । । । । । ।

कूँ वल4 में आसन कररये ।।1।। िोत फु लवारी जखजलये ।।2।। घट मंगल भररये ।।3।। बंक में जछन जछन धररये ।।4।। भूँवर मन कारि सररये ।।5।। काल दल मार जगरइये ।।6।। घाट घट सब री खुजलये ।।7।। जबन भाग न जमजलये ।।8।। प्रेम का खेल जखलइये ।।9।। अमी रस धार बरइये ।।10।। पंथ यर नया चलइये ।।11।।

1. खेजलये । 2. मोजरत रोवे । 3. पहुंचे । 6. खेल । 7. िजि, ताकत ।

4. सरंस दल कूँ वल ।

5. प्यारा ।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

65

वेद न िाने भेद । कमण बस योंरी बजरये ।।12।। यर मारग जनि संत का । सतसूँग से पइये ।।13।। सतगुरू की कर आरती । उन बहुत ररझइये ।।14।। राघास्वामी दया से । पूरन पद पइये ।।15।। ।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। उमूँग आि हुई जरये में भारी । सरन में राधास्वामी िाय पुकारी ।।1।। करूूँ अब आरत जववध प्रकारी । रोय िो मेरर अपार तुम्रारी ।।2।। वरी ूँ राधास्वामी दृजष्ट जनरारी । करा कर आरत लेकर थारी ।।3।। सुरत से जनरखो जतल कर यारी1 । खोल यर जखड़की पार जसधारी ।।4।। गई नभ अन्दर िोत लखारी । देख कर तारा िब्द सुना री ।।5।। बंक चढ़ जिकु टी आन पुकारी । सुन्न में अक्षर धुन धर धारी ।।6।। मरासुन्न पहुंची खोल ककवाड़ी । भूँवर का राग सुना अजत भारी ।।7।। सत्त पद आई अमर आटारी2 । अलख और अगम िाय परसा3 री ।। करी यर आरत राधास्वामी सारी4 । करे कोई सिन सुरत सम्रारी ।।9।। प्रेम की धारा बरी जनयारी । िब्द घट पाया सुरत कारारी ।।10।। नाम रं ग लागा अिब बरारी । मगन रोय बैठी काि सूँवारीं ।।11।। संत जबन सब री पच पच रारी । जमला नसर भेद ररे सब वारी5 ।।12।। दई राधास्वामी वस्तु अपारी । मेरर अब रो गइ मुझ पर न्यारी ।।13।। ।। िब्द बीसवाूँ ।। सुरत आि चली आरती धार । नाना जवजध के भूषर् पजरने । मन के मोती जचत की चुन्नी । नेर6 नौगरी7 चेतन चटकी8 ।

1. प्रीजत । की रद में ।

गुरून पै चली आरती धार ।।1।। कर अपना ससगार ।।2।। जवरर नथजनया डार ।।3।। जबछु आ7 पजरर जबचार ।।4।।

2. मरल । 3. छु आ । 4. खास, सार । 6. सन्नेर, प्रजत । 7. नाम गरने का ।

5. इस पार, माया

66

पाूँच मुन्दरा1 मुन्दरी5 पजररी करनफू ल5 कारूर्ा गुरु पाई छन्न5 पछेली5 छान ज्ञान की पाूँच तत्त पचलड़ी5 बनाई बैना5 बैन2 सुने अनरद के िुगनी5 िुग3 बाूँधा सतगुरू से अनवट5 बाट4 खुली अंदर में झूमर5 अमर नगीना देखा सुजमरन नाम गुलब ू द ं 5 डाला मोर तोड़ तोड़ा5 गल डारा घुंघरू झाूँझ5 बिे घट भीतर बाूँक5 बंक के द्वार समानी जतल के छल्ले5 जपलकर पजररे चंपाकली5 कं वल की कजलयाूँ चौकी5 चौक जनरार सुन्न का मन इन्द्री बस छब्बा5 पजरना बेसर5 सरवर सुरत लगाई मरासुन्न चढ़ भूँवरगुफा पर सुन सुन धुन सतलोक जसधारी सत्तपुरूष संग रत कीन्री कोरट चन्द्रमा सूर करोड़ों पूरन पद पूरन परिादी रीरे लाल जनछावर कीन्रे

सार बचन

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 6

जररदे रार सूँवार ।।5।। पहुंची गुरु दरबार ।।6।। नौनग ति नौ द्वार ।।7।। सीसफू ल5 लख गगन मूँझार ।।8।। अधर चन्द्र5 का खोल द्वार ।।9।। चली आरसी पार ।।10।। मजन्दर िोत जनरार ।।11।। झूमी झुमके 5 साल सम्रार ।।12।। रूँसली5 सील सम्रार ।।13।। सतलड़5 हुई सत की लार2 ।।14।। िोभा पयज़ेब5 उजियार ।।15।। टीका टेक अधार ।।16।। कड़े5 कड़क7 धुन सार ।।17।। दल पर अिब बरार ।।18।। चमक दाजमनी पार ।।19।। लटकन5 लटक6 सम्रार ।।20।। रंसन साथ ककया िाय प्यार ।।21।। भूँवरकली5 मुरली झनकार ।।22।। जमली पुरूष से नार सुनार8 ।।23।। राथ जलया सत सोरं थार ।।24।। िोत िगाई अजधक सुधार ।।25।। दई राधास्वामी जनरख जनरार ।।26।। उमंग बढ़ी िाका वार न पार ।।27।।

1. चाचरी, भूचरी, खेचरी, अगोचरी उनमुनी । 2. बानी, आवाि । 3. िोड़ । 4. रास्ता । 5. नाम ज़ेवरों के । 6. भाव, ज़िबा । 7. ज़ोर दार आवाि । 8. उत्तम स्त्री ।

बचन 6

आरती परम पुरूष राधास्वामी

67

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। गुरुमुख प्यारा गुरु अधारा1 । चरन जनरारा सरन सम्रारा । राग3 जनकारा जबरर पुकारा । काल जबडारा4 मन को मारा । गगन जसधारा नाम जसरारा5 । रूप अपारा नैन उघाड़ा । खोल ककवाड़ा पाट उघाड़ा । कर दीदार सेत अखाड़ा । जनरमल धारा अगम अगारा7 । चौक अपारा अिब बरारा । धुन धधकार छाूँटी सारा । मनुआ रारा लीन ककनारा । गुरु दुलारा नाम जचतारा10 । धुन ओंकारा सूर आकारा11 । तुम दीन दयारा फाूँसी टारा । मैं नीच जनकारा अजत नाकारा । तन अरंकारा काम लबारा10 । लोभ गंवारा मोर जबिारा14 । हुआ तुम्रारा सब से न्यारा । चार चमारा नसर अचारा15 । सरस कं वल दल जिकु टी चढ़चल ।

आरत धारा2 िब्द ससगारा सुरत संवारा इन्द्री िारा सुन्न मंझारा देख पसारा6 श्याम दुआरा कमण पछाड़ा अमी अरारा कीन जबरारा8 गुरु दरबारा िब्द कटारा9 सूर करारा बित जचकारा12 कर उपकारा औगुन भारा पड़ा उिाड़ा कु छ न जवचारा सीस चरन पर डारा तौ भी पार उतारा खोला दसवाूँ द्वारा

री ।।1।। री ।।2।। री ।।3।। री ।।4।। री ।।5।। री ।।6।। री ।।7।। री ।।8।। री ।।9।। री ।।10।। री ।।11।। री ।।12।। री ।।13।। री ।।14।। री ।।15।। री ।।16।। री ।।17।। री ।।18।। री ।।19।। री ।।20।। री ।।21।।

1. आसरे । 2. धारर् । 3. संसारी । 4. दूर ककया । 5. परजखया देखना । 6. पदाण खोला । 7. रोिन, अजबनासी । 8. जबलास । 9. कटार खन्डा । 10. जचताया गया । 11. आकार । 12. एक प्रकार का बाज़ा । 13. झूठा । 14. सांड, बैल । 15. िुद्ध करम ।

68

सार बचन

सुन्न परे मरासुन्न अंधारा1 गुफा परे सतपुरूष रमारा अलख अगम को िाकर जनरखा सुरत जनरत दोउ चले अगाड़ी आरत कर कर प्रेम बढ़ाऊं राधास्वामी सतगुरू पाये करा कहूं कु छ करत न आवे

। । । । । । ।

देखा भूँवर ऊिारा पाया अब पद चारा तन मन उन पर वारा धाम जमला जनि सारा धृग धृग सब संसारा उन पर मैं बजलरारा मैं अब उन की लारा2

बचन 6

री ।।22।। री ।।23।। री ।।24।। री ।।25।। री ।।26।। री ।।27।। री ।।28।।

।। िब्द बाईसवाूँ ।। िीव जचताय ररे राधास्वामी । सतपुर जनिपुर अगम अधामी3 ।।1।। भाग उदय उन िीवन भारी । राधास्वामी जिन घर चरन पधारी ।।2।। कौन करे मजरमा इस औसर4 । रारे ब्रह्मा जवष्र्ु मरेिर ।।3।। इक इक िीव काि ककया अपना । गुरु आरत कर हुए अजत मगना ।।4।। गुरु संग रंस फौज़ चल आई । कर सन्मान रार पजरनाई ।।5।। भोिन वस्त्र देख सब ररखे । अजत कर प्रीत भाव इन परखे ।।6।। हुए प्रसन्न सतगुरू अजवनािी । कदया दान ककया सतपुर वासी ।।7।। अन धन और संतान भोग रस । िगत भोग और जमला िोग रस ।।8।। पर ककरपा सतगुरू अस ररई । मोर न व्यापे िग नसर फं सई5 ।।9।। ररे सुरत जनरमल गुरु साथा । िब्द जमले ररे चरनन माथा ।।10।। अपनी दया से गुरु कदयो दाना । सेवक तो कु छ माूँग न िाना ।।11।। दया करें िब सतगुरू अपनी । जबना माूँग करवावें करनी ।।12।। नाम अनाम पदारथ न्यारा । सो सतगुरू दीन्र कर प्यारा ।।13।। अब देवे को कु छ न रराई । सतगुरू री तेरे हुए भाई ।।14।। राधास्वामी करा बनाई । सदा ररे सतनाम सराई ।।15।।

1. अूँधरे ा । 2. नाल, साथ । 5. बन्धन में पड़े ।

3. अनामी पद पर आरूढ़ ।

4. समय ।

बचन 7

आरती परम पुरूष राधास्वामी

69

।। बचन सातवाूँ ।। जबनती और प्राथणना परम पुरूष धनी राधास्वामी के चरन कूँ वलो में ।। िब्द पजरला ।।

करूूँ बेनती दोउ कर िोरी सत्त पुरूष तुम सतगुरू दाता दया धार अपना कर लीिे सतयुग िेता द्वापर बीता कजलयुग में स्वामी दया जवचारी िीव काि स्वामी िग में आये तीन2 छोड़ चौथा3 पद दीन्रा िगमग िोत रोत उजियारा सेत ससरासन छि जबरािे क्षर6 अक्षर7 जनःअक्षर पारा लोक अलोक पाउं सुख धामा

। । । । । । । । । । ।

अज़ण1 सुनो राधास्वामी मोरी ।।1।। सब िीवन के जपतु और माता ।।2।। काल िाल से न्यारा कीिे ।।3।। काहु न िानी श्बद की रीता ।।4।। परगट करके िब्द पुकारी ।।5।। भौ सागर से पार लगाये ।।6।। सत्तनाम सतगुरू गत चीन्रा ।।7।। गगन सोत4 पर चन्द्र जनरारा ।।8।। अनरद िब्द गैब5 धुन गािे ।।9।। जबनती करे िराूँ दास तुम्रारा ।।10।। चरन सरन दीिे जबसरामा ।।11।।

।। िब्द दूसरा ।। रोम रोम मेरे तुम आधार अंग अंग मेरा करे गुरार9 रे राधास्वामी अधम अधार इन्द्री मन मेरे भरे जबकार मैं सब जवजध बरता भौ धार

। । । । ।

रग रग मेरी करत पुकार ।। बन्द बन्द से करूं िुरार9 ।। मैं कककर10 तुम दीन दयार ।।1।। तन भी बंधा िगत की लार ।। तुमरी पार उतारनरार ।।

1. प्राथणना । 2. जिलोकी । 3. सत्तलोक । 4. भंडार यानी दसवाूँ द्वार । 5. गुप्त । 6. जिकु टी । 7. सुन्न । 8. पुकार । 9. बंदगी । 10. दास ।

70

सार बचन

बचन 7

रे राधास्वामी सुख भंडार । मैं अजत दीन फं सा संसार ।।2।। काकढ़ जनकारो मोसर दातार । दात तुम्रारी गम अपार ।। दया जसन्ध िीवन आधार । तुम जबन कोइ न स्मरारन रार ।। रे राधास्वामी सरन तुम्रार । गरी आन मैं नीच नकार1 ।।3।। सदा रहूूँ तुम चरन अधार । कभी न जबछड़ूूँ यरी पुकार ।। जनस कदन राखूं जरये सम्रार । चरन तुम्रार मोर आधार ।। रे राधास्वामी अपर अपार । मोसर कदखाओ जनि दरबार ।।4।। मम करनी कसर को जवचार । तो मैं ठररन िोग न द्वार ।। तुम गंभीर धीर िग पार । मैं डू बत हूूँ भौिल वार ।। रे राधास्वामी लगाओ ककनार । तुम खेवरटया सबसे न्यार ।।5।। चोर चगल बरतू अरंकार । कपट कु रटलता बड़ा लबार ।। काम क्रोध और मोर जपयार । क्या क्या बरनूं भरा जवकार ।। रे राधास्वामी जछमा सम्रार । लीिे मुझ को भी उबार ।।6।। तुम मजरमा का बार न पार । िेष गनेि ररे सब रार ।। माया ब्रह्म नरीं औतार । कर न सके बरे काली धार ।। रे राधास्वामी सब के पार । इन सब के तुमरीं आधार ।।7।। मैं तुम चरन िाउं बजलरार । देख न सकूं रूप इजियार ।। तेि पुि ं 2 तुम अगम अपार । चाूँद सूर की िराूँ न िुमार3 ।। रे राधास्वामी तुम दीदार । जबना मेरर को करे अधार ।।8।। राधास्वामी राधास्वामी नाम तुम्रार । यरी मेरा कु ल और यरी पररवार ।। राधास्वामी राधास्वामी बारम्बर । करत रहूूँ और रहूूँ हुजियार ।। रे राधास्वामी ममण तुम्रार । तुम्ररी दया से पाऊं सार ।।9।। गुरु स्वरूप धर जलया औतार । िीव उबारन आये संसार ।। नर स्वरूप धर ककया उपकार । तुम सतगुरू मेरे परम उदार4 ।। रे राधास्वामी िब्द दुवार5 । खोल कदया तुम बज्र ककवाड़ ।।10।।

1. नकारा ।

2. समूर ।

3. जगनती ।

4. सखी ।

5. दरवाज़ा रज़ीआ ।

बचन 7

बेनती

71

लीला तुम्ररी अिब बरार । कर न सके कोइ वार न पार ।। जिसे कदखाओ सो देखनरार । तुम जबन कोई न परखनरार ।। रे राधास्वामी गुरू रमार । तुम जबन कौन करे जनरवार ।।11।। ।। िब्द तीसरा ।। करूं बेनती राधास्वामी आि मैं कककर तुम चरन नमामी कराूँ लग जबनती कर कर गाऊं जबनती करनी भी नसर िानूं तुम जबन और न दूिा कोई मैं िंगी तुम रो राधास्वामी

। । । । । ।

काि करो अर राखो लाि ।।1।। पाऊं अगमपुर और अनामी ।।2।। तुम्ररर सरन स्वामी मैं बल िाऊं ।। तुम्ररे चरन को पल पल मानूं ।।4।। सेवक मुझ सा और न रोई ।।5।। िोड़ जमलाया तुम अंतर िामी ।।6।।

।। िब्द चौथा ।। स्वामी सुनो रमारी जबनती । मेरे औगुन मत करो जगनती । मैं कककर कु रटल कु पंथी । मजरमा अगम तुम्रारी सुनती । जनत कु मजत िाल उरझंती2 । मैं जवरर अजगन जबच रहुं िलंती । मेरी सुरत करो सतवंती3 । सब कमण धमण ज्यों दाल दलंती । रोग सोग दुख रहूं सरंती ।

1. मारती ।

2. फं सती ।

मैं करूूँ तुम्रारी जबनती ।।1।। मैं तन मन अपना रनती1 ।।2।। मैं रीन करूूँ अजत सचती ।।3।। तुम दयाल दाता जनि संती ।।4।। तुम समरथ पुरष मराूँ सतवंती ।।5।। क्यों कर भौसागर पार परं ती ।।6।। तुम चरन सरन की रहुं दृढ़वंती ।।7।। मुझे करो भि कु लवंती ।।8।। दूर करो ऐसी मान मरंती3 ।।9।।

3. बढ़ाई ।

72

सार बचन

बचन 8

।। बचन आठवाूँ ।। मजरमा सतगुरू स्वरूप राधास्वामी की ।। िब्द पजरला ।। गुरु गुरु मैं जररदे धरती गुरु मेरे पूरर् पुरूष जबधाता गुरु रैं अगम अपार अनामी नसर ब्रह्म नसर जवष्र्ु मरेिा राम कृ ष्र् नसर दस औतारी ऋजष मुजन देवी देव न कोई िोगी िती तपी ब्रह्मचारी आतम परमातम नसर मानूं सत्तनाम िानूं न अनामी सब को करूं प्रनाम िोड़ कर सतगुरू कृ पा सबन को िाना सतगुरू भेद कदया इक इक का सतगुरू सब का भेद बखानें गुरु ने सब का पद दरसाई ताूँते सतगुरू सब के करता याते सतगुरू का पद भारी िब जिव सरन गुरु की आवे िो गुरु मारग देसर लखाई गुरु आज्ञा से िो जिष करई ताते प्रथमे गुरु को खोिो

1. सामान ।

2. मोजरत ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

गुरु आरत की सामाूँ1 करती ।।1।। जनत चरनन पर मन मेरा राता2 ।।2।। गुरु जबन दूसर और न िानी ।।3।। नसर ईश्वर परमेश्वर िेषा ।।4।। व्यास वजिष्ठ न आकद कु मारी ।।5।। तीरथ बतण धमण नसर रोई ।।6।। िनक सनक संन्यास जवचारी ।।7।। अक्षर जनःअक्षर नसर िानू ।।8।। जलख ग्रन्थ सब करत बखानी ।।9।। पर कोई नसर सतगुरू सम सर4 ।।10।। जबन सतगुरू कै से पजरचाना ।।11।। तब िाना इन सब का ठे का ।।12।। अब ककसको गुरु से बढ़ िानें ।।13।। िस िस जिनकी गजत तस गाई ।।14।। सतगुरू री रैं सब के ररता ।।15।। सतगुरू सम नसर कोइ जबचारी ।।16।। कमण धमण और भमण नसावे ।।17।। सोइ जनि कमण धमण हुआ भाई ।।18।। वर करतूत भजि फल देई ।।19।। िब्द बतावें सो गुरु सोधो5 ।।20।।

3. देवी, माया ।

4. बराबर ।

5. धारर् करो ।

बचन 8

मजरमा सतगुरू

73

अस गुरु सम कोइ और न आना1 । गुरु जमले कफर करा कमाना2 ।।21।। या ते मो मत जनश्चय येरी । गुरु जबन दूसर और न सेई ।।22।। िाके जररदे गुरु परतीती । काल कमण वा से नसर िीती ।।23।। सब के जसर पर इन का डंका । काहू की उसके नसर संका ।।24।। बड़े बड़े उधरें उस संगा । गुरुमुख रै इन सब से चंगा3 ।।25।। गुरूमुख की गजत सब से भारी । गुरूमुख कोरटन िीव उबारी ।।26।। कराूँ लग मजरमा गुरूमुख गाऊूँ । कोई न िाने ककस समझाऊूँ ।।27।। िग में पड़ा काल का घेरा । िीव करें चौरासी फे रा ।।28।। िो चौरासी छू टन चावें । तो गुरूमुख सेवा जचत लावें ।।29।। और काम सब देसर बराई । िब्द गुरु की करें कमाई ।।30।। कोरटन िन्म ररे कोइ कािी । वेद पाठ और तीरथ बासी ।।31।। िप तप संिम बर जवजध कराई । भेख बनावे जवद्या पढ़ई ।।32।। जपछलों की िो धारें टेका । जिन को कभी आूँख नसर देखा ।।33।। पोजथन में सुनी उनकी मजरमा । टेक बाूँध मन सब का भरमा ।।34।। अब इन को िो कोइ समझावे । टेक छोड़ते जिव सा िावे ।।35।। कोई जिव और कोई जवष्र्ु की । कोइ राम और कोई कृ ष्र् की ।।36।। कोइ देवी कोइ गंगा िमना । कोइ मूरत कोइ चारों धामा4 ।।37।। कोइ मथुरा कोइ टेक मुरारी । मदन मोरन कोइ कुूँ ि जबरारी ।। कोइ गोकु ल कोइ बलभाचारी । कोइ कं ठी माला गल धारी ।।39।। कोइ अचार कोइ संध्या तपणन । गया गायिी करें समपणन ।।40।। कोइ गीता कोइ भागवत पढ़ते । कथा पुरान नेम से सुनते ।।41।। क्या दादू क्या नानकपंथी । क्या कबीर क्या पलटू संती ।।42।। सब जमल करते जपछली टेका । वि गुरु का खोि न नेका5 ।।43।। जबन गुरु वि भजि नासर पावे । जबना भजि सतलोक न िावे ।।44।।

1. दूसरा । 2. करने में ररना । 3. नीरोग, अच्छा । 4. चार तीरथ के स्थान यानी बद्रीनाथ, द्वारका , िगन्नाथ और रामेश्वर । 5. कु छ ।

74

सार बचन

यर करना उन िीवन कारन जवषई संसारी और रागी इन को टेक सरारा भारी उनको नसर उपदेि रमारा कोइ कु टु म्ब कोइ धन आधीना मारे डर के टेक न छोड़ें िो अनरागु जबररी भाई वि गुरु िब लग नसर जमलई पररथम सीढ़ी भजि गुरु की िब लग गुरु भजि नरीं पूरी मन चूरे जबन सुरत न जनमणल गुरु भजि आस कै से आवै गुरु को पल पल मासर ररझावै गुरु िब इसको प्यारे रोई पूरन दया गुरु िब करईं यर भी िोग मेरर से रोगा

। । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 8

जिनके जवरर अवराग की धारन ।।45।। इन को टेक न चजरये त्यागी ।।46।। टेक जबना कु छ नासर अधारी ।।47।। उनको िगत कामना मारा ।।48।। कोइ कोइ मान प्रजतष्ठा लीना ।।49।। वि गुरु में मन नसर िोड़ें ।।50।। भजि गुरु की उन प्रजत गाई ।।51।। अनुरागी का काि न सरई ।।52।। दूसर सीढ़ी सुरत नाम की ।।53।। मन मनसा यर रोयूँ न चूरी ।।54।। कै से चढ़े और लगे िब्द चल ।।55।। सतसूँग कर गुरु सेवा धावै ।।56।। गुरु प्रसन्नता जनत्य कमावै ।।57।। गुरु को प्यारा िब यर रोई ।।58।। भजि पदारथ िबरी जमलई ।।59।। दया मेरर जबन िानो धोखा ।।60।।

।। दोरा ।। क्या जरन्दू क्या मुसलमान, क्या ईसाई िन । गुरु भजि पूरन जबना, कोइ न पावे चैन ।।61।। पररथम सीढ़ी रै गुरु भजि । गुरु भजि जबन काि न रत्ती ।।62।। और उपाय अनेकन करते । गुरु भजि को मुशय न रखते ।।63।। यरी कसर रै सब के मत में । जसद्धान्त1 न पावें औछे जचत में ।।64।। ।। दोरा ।। गुरु भजि दृढ़ के करो, पीछे और उपाय । जबन गुरु भजि मोर िग, कभी न काटा िाय ।।65।।

1. असली मतलब ।

बचन 8

मजरमा सतगुरू

75

मोटे बंधन िगत के , गुरु भजि से काट । झीने1 बंधन जचत्त के , कटें नाम परताप2 ।।66।। मोटे िब लग िायूँ नसर, झीने कै से िायूँ । ताते सबको चाजरये, जनत गुरु भजि कमायूँ ।।67।। एक िन्म गुरु भजि कर, िन्म दूसरे नाम । िन्म तीसरे मुजिपद, चौथे में जनि धाम ।।68।।

अब आरत गुरु करूूँ सूँवारा । काया थाल मन दीपक बारा ।।69।। भजि िोत और भोग अनुरागा । दृजष्ट िोड़ जचत चरनन लागा ।।70।। यों आरत अब करी बनाई । सतगुरू पूरे ररें सराई ।।71।। ।। िब्द दूसरा ।। गुरु जमले परम पद दानी मैं अिान मजरमा नसर िानी गजत अजत गोप2 न िाने वेदा पद उनका इन से ररे दूरी वर दयाल पद अगम अपारा संत जबना कोइ भेद न िाने मैं भी उन चरनन कर दासा सुरत िब्द मारग मोजर दीन्रा जनत अभ्यास करूूँ मैं ये री सतगुरू मेरे परम दयाला आतम थाल परमातम िोती भाव भजि से आरत कीनी यर आरत अब पूरन भई

1. सूक्षम । 5. परोया ।

। । । । । । । । । । । । ।

क्या गजतमजत उनकी करूूँ बखानी ।।1।। जबना मेरर क्योंकर पजरचानी ।।2।। ज्ञान िोग कर जमले न भेदा ।।3।। यर तो थक ररे गाल रिूरी ।।4।। तीन सुन्न आगे ररा न्यारा ।।5।। उस घर से वर आय बखानें ।।6।। भइ परतीत बूँधी पद आसा ।।7।। ककरपा कर अपना कर लीन्रा ।।8।। इक कदन पाऊूँ िब्द जवदेरी4 ।।9।। करूूँ आरती रोउूँ जनराला ।।10।। सत्तनाम पद पोया5 मोती ।।11।। पद सतगुरू िल में भइ मीनी6 ।।12।। आगे कु छ करनी नसर ररी ।।13।।

2. गुप्त । 3. हुई । 6. मच्छली ।

4. सूक्षम, देर रजरत, माया से रजरत ।

76

सार बचन

बचन 8

।। िब्द तीसरा ।। गुरु प्रीत बढ़ी जचतवन में मेरी दृजष्ट ररी दिणन में सतगुरू पर िाऊूँ बजलरारी लीन्रा मोसर भुिा पसारी आरत अब उनकी करहूं जबन गुरु कोइ और न मानूं गुरु करें रोयगा सोई गुरु करता सब िग कारि गुरु तो मेरे प्रान अधारा गुरु सम कोइ और न प्यारा मेरे जररदे गुरुजर जबरािें छाया घट गुरु परतापा आरत गुरु कर कर भींिूं मीना सम लइ गुरु सरना राधास्वामी गुरु रम पाये

। । । । । । । । । । । । । । ।

सुतण खैंच धरी चरनन में ।।1।। अब प्रेम बढ़ा जछन जछन में ।।2।। सतगुरू मेरी सुजध सम्रारी ।।3।। दीन्रीं मोसर भजि करारी ।।4।। तन मन धन सभी अरपहूं ।।5।। जबन नाम ठौर नसर िानूं ।।6।। गुरु जबन कोइ और न रोई ।।7।। गुरु री सब िीव अचारि ।।8।। गुरु री मेरा करें उधारा ।।9।। गुरु री मोसर लेयूँ सुधारा ।।10।। िम काल लिावत भािें ।।11।। रद्द बलाया दूर जिया तापा1 ।।12।। उमंग बढ़ाय प्रेम धुर खींचूूँ ।।13।। अब ररा न मोसर कु छ करना ।।14।। पी चरन अंबु2 तृप्ताये ।।15।।

।। िब्द चौथा ।। आि मेरे आनन्द रोत अपार । ककया मैं अचरि प्रेम ससगार । दरस उन करूूँ सम्रार सम्रार । आओ री सजखयो िुड़ जमल झाड़ । गुरु मेरे बैठे पलंग संवार । ररी मैं गुरु के सनमुख ठाड़3 । चाहुं नसर दूसर से उपकार । गुरु पर डारूूँ तन मन वार ।

आरती गावत हूं गुरु सार ।।1।। जबरािे सतगुरू बस्तर धार ।।2।। गाउं गुन उनका बारम्बार ।।3।। गाओ और दिणन करो जनरार ।।4।। आि मेरा िागा भाग अपार ।।5।। करूूँ मैं उन चरनन आधार ।।6।। गुरु की बाूँधी टेक सम्रार ।।7।। बचन पर उन के रहुूँ हुजियार ।।8।।

1. तीन ताप यानी आजध, व्याजध, उपाजध ।

2. चरनामृत ।

3. खड़ी ।

बचन 8

मजरमा सतगुरू

कमण सब दीन्रे गुरु ने िार । सुरत को िब्द सुनाइ धार । सपड को छोड़ा चढ़ी मुनार2 । नाम की सुनी िाय धधकार । सुरत और जनरत लगाया तार । जमला राधास्वामी का दीदार ।

77

उतारा नौका1 दे भौ पार ।।9।। गगन चढ़ पहुंची घर करतार ।।10।। हुई अजत जनरमल छु टा गुबार ।।11।। बाूँसरु ी सुनी नई झनकार ।।12।। गई अब चौथे पद के पार ।।13।। करूं अब जनस कदन उन दरबार ।।14।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। आरत सतगुरू की अब करहूूँ आरत सामाूँ सिूूँ बनाई िोत सुिानी लीन िगाई सतसंगी सब मीत सुमीता भजि भाव संग भोग लगाऊूँ बैठ ससरासन सतगुरू गािे अब आरत सनमुख में फे री कराूँ लग मजरमा उनकी गाऊूँ मैं अजत दीन रीन आधीनी सुरत िब्द मारग कदया पूरा नौबत जछन जछन झड़ने लागी घाट जिबेनी ककये अस्नाना आरत सब जवजध पूरी धारी

। । । । । । । । । । । । ।

जछन जछन सुरत िब्द में धरहूूँ ।।1।। थाल सुचेती कर4 में लाई ।।2।। रूप सुदिणन घट में पाई ।।3।। घट परताप बढ़ा मन िीता ।।4।। अमी ससध िल अमृत लाऊूँ ।।5।। िोत जनरं िन दोनों लािे ।।6।। कृ पा दृजष्ट से सतगुरू रेरी ।।7।। बार बार चरनन बल िाऊूँ ।।8।। वे दयाल ककरपाल क़दीमी5 ।।9।। घट में बिने लगा तूँबरू ा ।।10।। सुरत जनरत चढ़ चढ़ अब िागी ।।11।। सुन्न मूँडल जचत िाय समाना ।।12।। राधास्वामी ककरपा कीन्री भारी ।।13।।

।। िब्द छटा ।। गुरु गुरु

की की

आरत ठानूग ूँ ी । गुरु मजरमा गाऊूँगी । गुरु

1. िब्द रूपी नाव । 6. धोऊूँगी ।

2. चोटी ।

की के

3. हुजियारी ।

सरन चरन

सम्रारूूँगी ।।1।। पखारूंगी6 ।।2।।

4. राथी ।

5. प्राचीन ।

78

सार बचन

गुरु पर मनुआ वारूंगी काल को जछन जछन टारूंगी ध्यान गुरु जररदे पऊंगी बचन सुन जनत्त कमाऊंगी सुन्न चढ़ िब्द िगाऊंगी सत्त पद िाय समाऊंगी कु टु म्ब को अपने लाऊंगी प्रीत की रीत जसखाऊंगी जपि पुरखा तराऊंगी भमण सब री जमटाऊंगी बुजद्ध जनरमल कराऊंगी सुरत नैनन िमाऊंगी िोत दिणन कदखाऊंगी बंक द्वार खुलाऊंगी मानसर चढ़ अन्राऊंगी मरासुन ं पार पाऊंगी सोरंग बंसी सुनाऊंगी सत्त की रार धाऊंगी दूर दुरबीन लगाऊंगी अगम गढ़ चढ़ कदखाऊंगी आरती अब सिाऊंगी सुरत िोती जचताऊंगी आरती राधास्वामी गाऊंगी

1. तीर ।

2. गुप्त ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 8

गुरु संग सदरी धारूंगी ।।3।। कमण को तुरत पछाड़ूूँगी ।।4।। रूप रस जछन जछन पाऊूँगी ।।5।। सुरत कफर गगन चढ़ाऊंगी ।।6।। नाद दस द्वार बिाऊंगी ।।7।। उलट कफर िग में आऊंगी ।।8।। गुरु के चरन लगाऊंगी ।।9।। आरती बहुत कराऊंगी ।।10।। गया की धूर उड़ाऊंगी ।।11।। भटक सब री छु ड़ाऊंगी ।।12।। संत मत अब दृ ढ़ाऊंगी ।।13।। सरंस दल कं वल आऊंगी ।।14।। िब्द में िा समाऊंगी ।।15।। सारं गी धुन सुनाऊंगी ।।16।। सारं गी धुन सुनाऊंगी ।।17।। गुफा धुन सर लगाऊंगी ।।18।। रौब2 धुन भेद गाऊंगी ।।19।। नाम पद कफर िनाऊंगी ।।20।। अलख को िा लखाऊंगी ।।21।। भेद वराूँ का जछपाऊंगी ।।22।। प्रेम अपना बढ़ाऊंगी ।।23।। थाल भजि धराऊंगी ।।24।। परम पद आि पाऊंगी ।।25।।

बचन 8

मजरमा सतगुरू

79

।। िब्द सातवाूँ ।। गुरु आरत जबजध दीन बताई िब्द अनारद पता िनाई दृजष्ट खुली आर छजब कदखलाई मानसरोवर थाल बनाया लगन लाग से आरत सािी मन बैरी से िीती बाज़ी गुरु चरनन पर मैं बजल िाऊं डोर लगी और चढ़ी गगन को

। । । । । । । ।

मोर नींद से जलया िगाई ।।1।। सुरत इधर से उधर लगाई ।।2।। मगन रोय कर जनि घर आई ।।3।। िोत चन्द्रमा दीप धराया ।।4।। नाद अनारद घट में बािी ।।5।। सुमत समाई दुरमत भािी1 ।।6।। उनकी दया से सत पद पाऊ ।।7।। उमंगा मन राधास्वामी गरन को ।।8।।

।। िब्द आठावाूँ ।। गुरु चरनन पर िाउूँ बजलरार गया जतजमर आया परकाि गुरु जबन और न िानूं कोई ऐसे गुरु के चरन जनरारूं क्या गुरु मजरमा करूं बनाई गुरु िोभा भूषर् जनत घढ़ता जचत्त कु ठाली मोर गलाता प्रेम िंतरी4 तार सखचाता घढ़ तोड़ा5 गल रार जपन्राता बाज़ूबन्द5 प्रीत घढ़वाता नाम रतन रीरा िड़वाता राधास्वामी दीन दयाल

। । । । । । । । । । । ।

जिन घट िोत कदखाई सार ।।1।। गुरु संग करता परम जबलास ।।2।। कमण भमण दुजबधा सब खोई ।।3।। तन मन धन सब री ति डारूं ।।4।। रात कदवस रहुं सुरत लगाई ।।5।। सुरत रथौड़ी मन अररन5 धरता ।।6।। जवरर अजि मुख नाल फु कांता ।।7।। सुरत जनरत के पेच कदलाता ।।8।। गुरु छजब देख मगन रोय िाता ।।9।। मन परतीत कड़े5 पजरनाता ।।10।। अंग अंगठ ु ी5 गुरु पजरनाता ।।11।। करूं आरती जचत्त सम्राल ।।12।।

1. भागी । 2. जिस पर गरना वग़ैरा रथौड़ी से गढ़ा िाता रै । 3. चाूँदी सोना गालने का बतणन, घररया । 4. तार सखचने का यंि । 5. नाम गरने का ।

80

सार बचन

बचन 8

।। िब्द नवाूँ ।। गुइयाूँ1 री गुरु समझ सुनावें अगम देि का पता िनावें जिनके जबरर प्रेम अनुरागा सतगुरू प्यारा नाम रस पीवें कौन करे मजरमा अब उनकी घट का भेद अनारद बानी िोगी िती नाथ सब थाके सत्तनाम सत्तधाम जपया का अलख अगम का फोड़ जनिाना यर अभेद गत कोई न िाने सो पद जमला सरि में रमको अब आरत यर करी समापत

। । । । । । । । । । । ।

प्रेम भरी सजखयाूँ जमल गावें ।।1।। सुरत िब्द मारग दरसावें ।।2।। सो सुन सुन कर लगन बढ़ावें ।।3।। दर िाय जनि भाग िगावें ।।4।। जिनको सतगुरू चरन लगावें ।।5।। सुन्न मूँडल का िब्द सुनावे ।।6।। सो पद अपने दास लखावें ।।7।। सुरत जनरत कर ले दरसावें ।।8।। अकर अनामी सैन2 िनावें ।।9।। जबरले संत कोई ममण जपछाने ।।10।। ककस आगे रम बर्ण बखानें ।।11।। राधास्वामी सदा जधयावें ।।12।।

।। िब्द दसवाूँ ।। प्रेमी सुनो प्रेम की बात ।। टेक ।। सेवा करो प्रेम से गुरु की । और दिणन पर बल बल िात ।।1।। बचन जपयारे गुरु के ऐसे । िस माता सुत तोतरर बात ।।2।। िस कामी को काजमन प्यारी । अस गुरुमुख को गुरु का गात3 ।।3।। खाते पीते चलते कफरते । सोवत िागत जबसर न िात ।।4।। खटकत4 ररे भाल ज्यों जरयरे । दरदी के ज्यों ददण समात ।।5।। ऐसी लगन गुरु संग िां की । वर गुरूमुख परमारथ पात ।।6।। िब लग गुरु प्यारे नसर ऐसे । तब लग जररसी िानो िात ।।7।। मनमुख कफरे ककसी का नारीं । करो क्योंकर परमारथ पात ।।8।। राधास्वामी करत सुनाई । अब सतगुरू का पकड़ो राथ ।।9।।

1. सरेली ।

2. इिारा ।

3. िरीर ।

4. चुभता ।

बचन 8

मजरमा सतगुरू

81

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। गुरु मेरे िान जपरान, िब्द का दीन्रा दाना । िब्द मेरा आधार, िब्द का ममण जपछाना ।।1।। क्या गुर् गाऊूँ िब्द, िब्द का अगम रठकाना । जबना िब्द सब िीव, धुध ूँ में कफरें भरमाना ।।2।। िल पाषान पूित ररें, ररें कागज़ अटकाना । मन मत ठोकर खाय, गये चौरासी खाना ।।3।। बहु जवजध जबपता िीव को, जबन िब्द सुनाना । सतगुरू की सेवा जबना, नसर लगे रठकाना ।।4।। िब्द भेद जबन सतगुरू, क्या करें अिाना । मन इन्द्री बस में नरीं, तो काल चबाना ।।5।। राधास्वामी सरन ले, सब भाूँजत बचाना । मेरर दया जछन में करें , दें अगम खिाना ।।6।। ।। िब्द बाररवाूँ ।। गुरु चरन बसे अब मन में कफर प्रीत लगी घट धुन में अब सील क्षमा मन छाई कफर क्रोध लोभ भी भागे धुन पाूँच िब्द घट िागी गुरु ककरपा सूर उगाना घट बैठी तारी1 लाई गुरु अद्भुत सुख कदखलाया िग िीव अभागी सारे

1. ध्यान ।

2. करतूत ।

। । । । । । । । ।

मैं सेऊूँ दम दम तन में ।।1।। चढ़ पहुंची पजरली सुन में ।।2।। गइ तपन काम दुखदाई ।।3।। अरंकार मोर सब त्यागे ।।4।। मन हुआ सरि बैरागी ।।5।। अब हुआ िगत बेगाना ।।6।। बारर की ककररया2 दूर बराई ।।7।। क्या मजरमा िाय न गाया ।।8।। नर देरी योंरी3 रारे ।।9।।

3. अकाथण ।

82

सार बचन

क्यों गुरु से प्रीत न करते । मैं ककस से कहूं सुनाई । तू गुरूमत दृढ़ कर भाई । चल रर तू जिकु टी घाटी । मरासुन्न की तोड़ो टाटी3 । कफर सत्तपुरूष घर पाया । सुनी अलख अगम की बजतयाूँ5 । जपया परसे राधास्वामी । मेरी आरत सब से न्यारी । यर भेद अथार बखाना । करमी िीव िग के अंधे । उन से नसर करना चजरये । सुतण िब्द कमाई करना । गुरु दिणन बहुत जनरखना । सतसंग की चारत रखना । उपदेि ककया यर टीका8 ।

बचन 8

क्यों िम के कककर ररते ।।10।। कफर अपना मन समझाई ।।11।। अब छोड़ो तात1 पराई ।।12।। चढ़ सुन्न जिखर की बाटी2 ।।13।। िा भूँबरगुफा की राटी4 ।।14।। धुन बीना िाय बिाया ।।15।। िजि सूर खरब िराूँ थककयाूँ6 ।।16।। कु छ कहूं न पुरूष अनामी ।।17।। कोई समझेगी जपया प्यारी ।।18।। जबन संत न कोई िाना ।।19।। सब फूँ से काल के फूँ दे ।।20।। मत गूढ़ जछपाये रजरये ।।21।। सुजमरन में तन मन देना ।।22।। धुन अनरद जनत्त परखना ।।23।। िब डौल7 बने तब करना ।।24।। राधास्वामी नाम मैं सीखा ।।25।।

।। िब्द तेररवाूँ ।। सतगुरू सरन गरो मेरे प्यारे भूल भरम में सब िग पचता भागरीन सब िग माया बस जिन पर दया आकद करता की कराूँ लग मजरमा कहुूँ इस गजत की जबन गुरु चरन और नसर भावे दिणन करत सपड सुध भूली

1. जचन्ता । 6. लजित ।

2. रास्ता । 7. मौका ।

। । । । । । ।

कमण िगात9 चुकाय ।।1।। अचरि बात न काहु सुराय ।।2।। यर जनरमल गजत कोइ न पाय ।।3।। सो यर अमृत पीवन चाजर ।।4।। जबरले गुरूमुख चीन्रत ताजर ।।5।। इस आनूँद में ररे समाय ।।6।। कफर घर बारर सुजध क्या आय ।।7।।

3. परदा । 4. बाज़ार । 5. आवाज़ । 8. सब से अच्छा । 9. मसूल, कर ।

बचन 8

मजरमा सतगुरू

83

ऐसी सुरत प्रेम रं ग भीनी । जतनकी गजत क्या कहूूँ सुनाय ।।8।। िोग बैराग ज्ञान सब रूखे । यर रस उन में दीखे न ताय1 ।।9।। बड़ भागी कोइ जबरला प्रेमी । जतन यर न्यामत2 जमली अजधकाय ।।10।। राधास्वामी करत सुनाई । यर आरत कोई गुरूमुख गाय ।।11। ।। िब्द चौदरवाूँ ।। गुरु सरन आि मैं पाई । गुरु कृ पाससध मैं पाये । गुरु परम पुरूष सुखदाता । गुरु भजि करूूँ कदन राती । गुरु दिणन सुरत लगाऊूँ । गुरु मूरत नैनन ताकूूँ । गुरु सम अब कोइ न कदखाई । गुरु चरन पकड़ मेरे भाई । अब िन्म सुफल कर अपना । िग रै न अंधरे ी भारी । सीतलता जररदे आई । गुरु से कोइ बड़ा न मेरे । गुरूमुख कोइ सतगुरू रेरे2 । गुरु मजरमा मुख से करते । भरमों में भटके कफरते । वर िीव अभागी िानूूँ । अब आरत गुरु की करता ।

मेरे आनन्द अजधक बधाई ।।1।। मेरे घर दर बित बधाये ।।2।। उन चरन मोर मन राता ।।3।। मन जचत से अजत गुन गाजत ।।4।। मन अंतर प्रेम बढ़ाऊूँ ।।5।। िजि भान कोरट छजब झाूँकूूँ ।।6।। मैं फे रूूँ यरी दुराई ।।7।। क्यों भरमे नर तन पाई ।।8।। गुरु प्रेम करो िग सुपना ।।9।। गुरु मूरत चन्द्र उगा री ।।10।। गुरु बचन चाूँदनी छाई ।।11।। सब पड़े काल के घेरे ।।12।। मनमुख सब काल के चेरे ।।13।। अंतर में प्रीत न धरते ।।14।। गुरु पद में जचत्त न धरते ।।15।। मैं गुरु जबन और न मानूूँ ।।16।। राधास्वामी चरन पकड़ता ।।17।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।। गुरु

चरन

1. उसको ।

धूर

कर

अंिन । जरये नैन खुले मन मंिन ।।1।।

2. उत्तम पदाथण ।

84

सार बचन

बचन 8

घट जतजमर1 अनाकद नािन । गुरु रूप भान परकािन ।।2।। मेरे जररदे प्रेम बढ़ावन । पल पल में उमंग समावन ।।3।। सुतण चढ़े गगन गुरु पावन । सतगुरू पद िब्द सुनावन ।।4।। सो सतगुरू िग मासर जबरािन । िग िीव अचेत जचतावन ।।5।। क्या मजरमा सतगुरू गावन । जिव अधम नीच ककये पावन2 ।।6।। मन माया ज़ोर चलावन । ठोकर दे दूर करावन ।।7।। दासन का दास दसावन । सेवा पर तन मन वारन ।।8।। मैं कककर कु रटल अपावन3 । गुरु गोद जलया और ककया अपनावन ।।9।। यर मानुष िन्म जितावन । गुरु रूप लखा मन भावन ।।10।। यर आरत दोना गावन । राधास्वामी ककया बखानन ।।11।। ।। िब्द सोलरवाूँ ।। मैं कौन कु मजत उरझाना4 । अब कौन ितन अस कररये । यर बचन करां मैं पाऊूँ । जनस कदन ररे जचत्त उदासी । नर देर न बरम्बारी । सतगुरू संग कभी न छोड़ूं । गुरु बल से करम जनकारूं । िो मेरर करें गुरु मुझ पर । मेरे मन में चारत येरी । गुरु से कोई अजधक न राखा । गुरु मजरमा सबजरन गाई । मेरी लाग लगी गुरु चरनन ।

1. अूँधरे ा । का नाम ।

गुरु दिण छोड़ घर िाना ।।1।। गुरु चरन जचत्त में धररये ।।2।। मन खेती बीि िमाऊूँ ।।3।। क्यों छोड़ूं चरन जबलासी ।।4।। क्यों भौिल डू बे आ री ।।5।। मन तन से नाता तोड़ूं ।।6।। सतसंग से काल पछाड़ूं ।।7।। यर बात बने अजत दुस्तर6 ।।8।। गुरु चरन न छोड़ूं कबरी ।।9।। पुजन संत वेद अस भाषा ।।10।। मैं दीन अधीन िनाई ।।11।। नख सोभा क्या करूं बर्णन ।।12।।

2. पजवि । 3. अपजवि । 5. फ़सा । 6. औखी ।

4. जिस की यर आरती रै उस

बचन 8

कोरटन रजव यर जतजमर जररदे में अब आरत सुतण फे रो राधास्वामी मैं दासन

मजरमा सतगुरू

चन्द्र लिाई बाररी खोवें सदा उिारी उनकी करता सतगुरू मेरी काटो बेड़ी दास तुम्रारा

। । । । । । ।

उस वर गुरु मन घर यर तुम

85

नख की गजत नसर पाई ।।13।। अन्तर मोती पोवें1 ।।14।। नख पर िाऊूँ बजलरारी ।।15।। चरन कं वल में धरता ।।16।। िाऊं करूं कफर फे री2 ।।17।। जबनती सुजनये मेरी ।।18।। बचन मोर जनस्तारा ।।19।।

।। िब्द सताररवाूँ ।। काल ने िगत अिब भरमाया िो साधन थे जपछले िुग के मूरख प्रानी मन सैलानी बुजद्धमान अजभमानी िो नर बाक़ी िीव बीच के जितने िप तप व्रत संिम बहु धोखे देखो चररि काल करता के भटक भटक भटकाया सब िग ऐसी रालत देख िगत की गुरु सेवा और नाम मरातम साधन तीन सार उन बरने वेद िास्त्र और स्मृत पुराना पंजडत भेख पेट के मारे जरत कर संत उन्रें समझावें उनके चार मान और धन की

। मैं क्या करूं बखान ।।1।। । सो कलिुग में ककये प्रमान ।।2।। । सो अटके िल और पाषान ।।3।। । जवद्या नारर के हुये गुलाम ।।4।। । ना मूरख ना अजत बुजद्धमान ।।5।। । पंच अजि में िले जनदान ।।6।। । कोई जसर कोई पैर रूंधान3 ।।7।। । कोइ न लगाया ठौर रठकान ।।8।। । संत सतगुरू प्रगटे आन ।।9।। । सतसंग सतगुरू ककया बखान ।।10।। । और साधन सब थोथे मान ।।11।। । पढ़ना इनका जबरथा िान ।।12।। । वे संतन पर करते तान ।।13।। । वे मानी नसर मानें आन ।।14।। । परमारथ से खाली िान ।।15।।

1. परोते रैं । 2. अपने घर वाजपस आते रैं । कोई पैरों से मले दले िाते रैं ।

3. कोई जसर से रोड़े िाते रै

86

सार बचन

बचन 8

वे चौरासी चक्कर मारें । कफर कफर जगरते चारों खान ।।16।। जपछले िुग की जवद्या पढ़ते । कोई न्याय वेदान्त बखान ।।17।। ना साधन अजधकार न परखें । पढ़ने का करते अजभमान ।।18।। इस िुग की जवद्या नसर पढ़ते । तांते उलटे जगरें जनदान ।।19।। दीन गरीबी मत इस िुग का । और गुरु भजि कर परमार् ।।20।। ताते जनरमल जनश्चल जचत रोय । गगन चढ़ाओ िब्द जनिान ।।21।। सुरत िब्द मारग अंतरमुख । पाूँच िब्द का गरो रठकान ।।22।। िाब्द िब्द पौड़ी1 पै चढ़ कर । पहुूँचो सच्चखंड सतनाम ।।23।। ताते परले गुरु को ध्याओ । और काम सब पीछे िान ।।24।। गुरु की मूरत हृदे बसाओ । चंद्र चकोर प्रीत घट आन ।।25।। िब लग ऐसी प्रीत न रोवे । तब लग साधन यरी बखान ।।26।। गुरु भजि िब पूरन रो ले । तब सुतण चढ़े अधर असमान ।।27।। गुरु भजि जबन िब्द में पचते । सो भी मानुष मूरख िान ।।28।। िब्द खुलेगा गुरु मेरर से । खैंचे सुरत गुरु बलवान ।।29।। गुरुमुखता जबन सुरत न चढ़ती । फू टे गगन न पावे नाम ।।30।। गुरुमुखता रै मूल सबन की । और साधन सब िाखा िान ।।31।। माता को िस पुि प्यारा । और कामी को काजमन िान ।।32।। मछली को िस नीर अधारा । चाजिक2 को िस स्वाूँजत समान ।।33।। ऐसा गुरु प्यारा िब रोगा । तब कु छ आगे पंथ चलान ।।34।। करना था सो सब कर दीन्रा । अब तू चारे मान न मान ।।35।। यर आरत गुरूमुख की गाई । गुरुमुख रोय सो करे प्रमार् ।।36।। राधास्वामी भजि बताई । गुरु की भजि करो यर िान ।।37।। और भजि सब दूर बारओ । क्यों पड़ते चौरासी खान ।।38।। गुरु भजि सम और न कोई । राधास्वामी ककया बखान ।।39।। गुरु का ध्यान करो तुम जनस3 कदन । गुरु का िब्द सुनो जनत कान ।।40।।

1. मंिल ।

2. पपीरा ।

3. रात ।

बचन 9

मजरमा िब्द

87

नैन श्रवर् और जररदा तीनों । िीि मरल सम जनरमल िान ।।41।। राधास्वामी ज़ोर देय कर । गुरु भजि को करें प्रमार् ।।42।।

बचन नावां मजरमा िब्द स्वरूप सतगुरू की

।। िब्द पजरला ।। धन्य धन्य धन धन्य जपयारे िो परचे1 रैं िब्द से जछन जछन रक्षा रो ररी जबन िब्द कफरे भरमजतयाूँ जिन गुरु पाया िब्द का बड़ भागी वर िीव रैं जबना िब्द मन बस नरीं वर क्यों आये इस िगत में धुन घट में रर दम रो ररी तू बैठ अके ला ध्यान धर ति आलस सनद्रा काजरली2 पाूँच िब्द घट में बिें गुरु ज्ञान बताया िब्द का मैं िब्द िब्द बहुतक करा िन्म अकारथ खो कदया राधास्वामी कर कर चुप हुए

1. मेल ककया ।

2. सुस्ती ।

। । । । । । । । । । । । । । । ।

क्या कहुं मजरमा िब्द की ।।1।। सो िाने मजरमा िब्द की ।।2।। क्या उपमा कहुं मैं िब्द की ।।3।। नसर िानी गजत मजत िब्द की ।।4।। और प्रीजत करी जिन िब्द की ।।5।। िो करें कमाई िब्द की ।।6।। तुम सुरत करो अब िब्द की ।।7।। जिन जमली न पूूँिी िब्द की ।।8।। क्यों सुने न बार्ी िब्द की ।।9।। तो जमले जनिानी िब्द की ।।10।। तू लगन लगा ले िब्द की ।।11।। यर जनर्णय करले िब्द की ।।12।। तू रोिा ध्यानी िब्द की ।।13।। कोई न माने िब्द की ।।14।। िो चढ़े न घाटी िब्द की ।।15।। जबन भाग न धारा िाब्द की ।।16।।

88

सार बचन

बचन 9

।। िब्द दूसरा ।। िब्द ने रची जिलोकी सारी । िब्द ने अंड ब्रह्मंड रचा री । िब्द ने गुर् तीनों और परिा धारी । िब्द ने िीव और ब्रह्म ककया री । िब्द ने सुन्न मरासुन्न सूँवारी । िब्द री घट घट करे पुरानी । िब्द से खाली कोइ न ररा री । िब्द की मजरमा क्या कहुं गा री । गुरु अब करते रेला1 मारी । िब्द में सुरत लगा कर यारी । िब्द की करनी करो सदा री । िब्द का िग़ल3 करो मन मारी । िब्द में सुरत लगा सुन प्यारी । िब्द तेरे तन में बोल ररा री । सुरत को गगन जिखर लेिा री । िब्द की जवरर लगे िो कारी4 । िब्द को जनि कर कोइ न सुना री । िब्द का मारग संत जनकारी । िब्द जबन रोगा बहुत ख़ुवारी । सुरत को बाूँध लगा दे तारी7 ।

िब्द से माया फै ली भारी ।।1।। िब्द से सात दीप नौखंड बना री ।। िब्द से धरजन अकाि खड़ा री ।।3।। िब्द से चाूँद और सूर भया री ।।4।। िब्द ने चौथा लोक करा री ।।5।। िब्द कफर अलख अगम से न्यारी ।। िब्द सब ठौर रठकान भरा री ।।7।। िब्द को िैसे बने तैसे पा री ।।8।। िब्द जबन कोइ न करे उपकारी ।। िब्द री चेतन करे उिारी ।।10।। िब्द जबन ख़ुदी2 न िाय तुम्रारी ।। िब्द से काल कमण सब रारी ।।12।। िब्द जबन रोय न कभी उबारी ।। सुरत से सुन सुन करो जबचारी ।। धुनों की रोत िराूँ झनकारी ।। सभी रस लगें तोजर कफर खारी ।। भोगते कफरें िन्म मरना री ।।17।। संत जबन कोई न ममण लखा री ।। िब्द री पकड़ो क्यों झख मारी6 ।। भेद यर राधास्वामी खोल करा री ।।

।। िब्द तीसरा ।। सब की आकद िब्द को िान । अंत सभी का िब्द जपछान ।।1।। तीन लोक और चौथा लोक । िब्द रचे यर सब री थोक ।।2।।

1. पुकार कर । 2. अरंकार । 3. अभ्यास । 6. वृथा मेरनत करना । 7. ध्यान, लौ ।

4. गररी ।

5. खराबी ।

बचन 9

मजरमा िब्द

िब्द सुरत दोउ धार समान । चेतनता सब इनकी मान । िब्द गुप्त तब हुआ अनाम । नाम अनाम िब्द परमान1 । िस अजि तदरूप पषान । िब्दजर कारर् िब्दजर काि । िब्दजर अगम अलख कफर िब्द । िब्द जनःअक्षर3 अक्षर िब्द । ओअं िब्द जनरं िन िब्द । िब्दजर िीव सीव4 भी िब्द । ओतपोत5 यों िब्दजर िब्द । िब्दजर सेवक िब्दजर स्वामी । िब्द न मरे अमर भी िब्द । िब्द गुरु और िब्दजर दास । िब्द न जबनसे जबनसे काया । िब्द करा सब संतन सार । िब्द गरीर िब्द गंभीर । िब्द जबना कोइ रोय न धीर8 । िब्द तुड़ावे सब ज़ंिीर । िब्दजर मछली िब्द नीर । िब्द बतावें नानक पीर8 । िब्दजर बस्तर िब्दजर चीर । िब्द जमले तू खोि िरीर । िब्द जबना सब िीव असीर10 ।

89

पुरूष अनामी के यर प्रार् ।।3।। िब्द जबना कोइ और न आन ।।4।। िब्द प्रगट तब धररया नाम ।।5।। िब्द जबना रोय सब की रान ।।6।। तस तदरूपी2 िब्द अनाम ।।7।। िब्द रचाया सगला साि ।।8।। िब्दजर सतनाम सत िब्द ।।9।। सोरं िब्द ररं भी िब्द ।।10।। ब्रह्म िब्द और माया िब्द ।।11।। िब्द से सुरत सुरत से िब्द ।।12।। ऊूँच नीच दोउ िब्दजर िब्द ।।13।। िब्दजर घट घट अंतरिामी ।।14।। िब्द न िरे अिर भी िब्द ।।15।। िब्द जबना झूठ ूँ ी सब आस ।।16।। िब्द जबना कु छ राथ न आया ।।17।। िब्द जबना कै से जनरवार ।।18।। िब्द जबना पद जमले न थीर6 ।। िब्द जबना झूठ ूँ ी तदबीर ।।20।। िब्द जमटावे तन मन पीर ।।21।। िब्द बखानें सत्त कबीर ।।22।। िब्द लखावें तुलसी धीर ।।23।। िब्दजर माखन िब्दजर रीर9 ।।24।। िब्द बसे नभ जिकु टी तीर ।।25।। िब्द जमले कोइ जमले फ़कीर ।।26।।

1. सबूत । 2. वैसा री रूप । 3. मरासुन्न । 4. ईश्वर, जिसकी सेवा करता रै । 5. उलट पलट । 6. जस्थर । 7. जनश्चल । 8. गुरू । 9. सारं ि । 10. कै दी ।

90

सार बचन

बचन 9

िब्दजर बम1 िब्द री ज़ीर2 । िब्द जबना सब मथते नीर ।।27।। िब्द पकड़ सब तेरी सीर3 । िब्द गरे िो वरी अमीर ।।28।। िब्द िार और िबद वज़ीर । राधास्वामी करें समझ मेरे वीर ।।29। ।। िब्द चौथा ।। गुरु की दया ले िब्द सम्रार िब्द लगावे तुझ को पार िब्द कमाई करनी सार िब्द गुरु सूँग करले प्यार िब्द जबना नसर खेवनरार िब्द िब्द का भेद जनयारा तू तो सुरत िमा नभ द्वार िब्द करे अब िग से पार िब्दजर िब्द करो जनरवार िब्द रटावे सब अरंकार िब्द जबना कु छ और न सार िब्द लगो मत बैठो रार िब्द ककया जिस घट उजियार तू भी सुन चढ़ िब्द पुकार िब्द पकड़ और सब ति डार िब्द भेद तू िान गूँवार सुरत खैंच तक जतल का द्वार बाईं कदिा काल का िार घंटा िंख सुनो कर प्यार

1. बांयां, टीप ।

2. दांयां, खरि ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

गुरु के सूँग कर िब्द अधार ।।1।। जबना िब्द चौरासी धार ।।2।। िब्द चड़ावे दसवें द्वार ।।3।। और कमण सब त्यागो झाड़ ।।4।। िब्दजर करता सबकी सार ।।5।। सो गुरु तुझ से करें सम्रार ।।6।। िब्द जमले छू टे िंिार ।।7।। िब्द मासर तुम ररो हुजियार ।।8।। िब्द जबना कोई बचे न यार ।।9।। िब्द छु ड़ावे सभी जबकार ।।10।। मैं तोजर कहूं पुकार पुकार ।।11।। िब्द नाव चढ़ पहुंचो पार ।।12।। धन वे िन जिन िब्द अधार ।।13।। िब्द रोय कफर गल का रार ।।14।। जबना िब्द नसर रोत उधार ।।15।। क्यों भरमे तू मन की लार ।।16।। दजरनी कदिा िब्द की धार ।।17।। ताजर छोड़ कर सुरत सम्रार ।।18।। जतस के आगे धुन ओंकार ।।19।।

3. ज़मीन जिस पर कर नरीं लगता ।

बचन 9

मजरमा िब्द

91

सुन्न मासर सुन रारं कार । भूँवरगुफा मुरली झनकार ।।20।। सत्तलोक धुन बीन सम्रार । अलख अगम धुन कहुं न पुकार ।।21।। राधास्वामी भेद सुनाया झाड़ । पकड़ धरो अब जरये मूँझार ।।22।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। िब्द जबना सारा िग अंधा िब्द जबना जबरथा सब धंधा िब्दजर सूर िब्द री चंदा िब्द जबना सबरी मजतमंदा िब्द कमावे जमले अनंदा ताते िब्दजर िब्द कमाओ िब्द भेद तुम गुरु से पाओ िब्द अधर में करे उिारा िब्द ररे सबरी से न्यारा िब्द िाजनयो सब का सारा िब्द कमाई कर रे मीत िब्द घाट तू घट में देख िब्द कमण की रे ख कटावे िब्द जबना सब झूठा ज्ञान िब्द छोड़ मत अरे अिान

। । । । । । । । । । । । । । ।

काटे कौन मोर का फं दा ।।1।। िब्द जबना जिव बंधन बंधा ।।2।। िब्द जबना जिव ररता गंदा ।।3।। िब्दजर नाजसर1 िब्दजर पंदा2 ।।4।। िब्द जबना सबरी की जनन्दा ।।5।। िब्द जबना कोइ और न ध्याओ ।।6।। िब्द मासर कफर िाय समाओ ।।7।। िब्द नगर तुम झाूँको द्वारा ।।8।। िब्द करे सब िीव गुज़ारा3 ।।9।। िब्द माजनयो रोय उबारा ।।10।। िब्द प्रताप काल को िीत ।।11।। िब्दजर िब्द पीव को पेख ।।12।। िब्द िब्द से िाय जमलावे ।।13।। िब्द जबना सब थोथा ध्यान ।।14।। राधास्वामी करें बखान ।।15।।

।। िब्द छठवाूँ ।। िब्द की करो कमाई दम दम । िब्द सा और न कोई रमदम4 ।।1।। िब्द को सुनो बंद कर सरवन । िब्द की गरो िाय धुन झम झम ।। िब्द तेरी दूर करे सब रमरम5 । िब्द को पाय गरो वराूँ सम सम9 ।।

1. उपदेिक ।

2. उपदेि । 3. जनवाणर ।

4. जमि । 5. अरंकार । 6.एकता ।

92

सार बचन

बचन 9

देजखयो िोत उिाला चमचम । ररो कफर धुनमें जछन जछन रम रम ।। भोग सब त्यागे हुआ मन उपसम1 । सुनी अब चढ़कर धुन िराूँ घमघम2 ।। करें गुरु रर तू उसमें िम िम । बहुरर सुन पाई इक धुन बमबम ।।6।। सुरत कफर चढ़ी वराूँ से धम धम । सुन्न में पहुंची लई धुन छम छम ।।7।। और भी सुनी एक धुन खम खम । कहूूँ क्या मजरमा िब्द अगम गम ।।8।। करूं मैं जितनी री सब कम कम । खोल कस कहू बात ये मुबरम3 ।।9।। सुरत को जमली अधर की गम गम । जपया सूँग बैठी करत परम रम4 ।।10।। जमटा सब घटका अबरी तम तम । बरसने लागीं झजड़याूँ ररम जझम ।।11।। तेि अब फै ला घट में इम इम5 । अमीरस चुआ चुए ज्यों िबनम6 ।।12।। हुआ मन सभी ितन से बररम7 । सुरत के लागी अब धुन मररम ।।13।। गुरु पर तन मन करूूँ समरपन । करें अस राधास्वामी बचन दमादम8 ।। ।। िब्द सातवां ।। िब्द संग बाूँध सुरत का ठाट । िब्द जबन जमले न घर की बाट । िब्द संग बाूँधो ऐसा ठाट । गगन चढ़ िब्द अमी रस चाट । िब्द संग भरलो मन का माट9 । िब्द जबन रो गई बारर बाट10 । िब्द री खोले ब्रि कपाट । िब्द की करो सदा तुम छाूँट । काल की ठोको कफर तुम टाूँट12 । राधास्वामी करते मार कु टाूँट14 ।

बरें मत िग का चौड़ा फाट ।।1।। िब्द का परखो घट में घाट ।।2।। बहुरर तुम सोवो जबछाये खाट ।।3।। िब्द जबन और न सूधी बाट ।।4।। िब्द री करे करम का काट ।।5।। िब्द संग िग से ररी उचाट ।।6।। िब्द संग झाूँका चौक सपाट11 ।।7।। िब्द रस पीवो और दो बाूँट ।।8।। िब्द संग ररे न कोई आूँट12 ।।9।। िब्द री खोलै घटकी साूँट15 ।।10।।

1. उपराम । 2. एक प्रकार की आवाज़ । 3. गुप्त । 4. जबलास । 5. इधर इधर । 6. धुन्ध, ओस । 7. बेज़ार । 8. बारम्बार । 9. घड़ा । 10. खराब । 11. समान । 12. जसर । 13. रूकावट । 14. ढोल बिाना । 15. गंड ।

बचन 9

मजरमा िब्द

93

।। िब्द आठवाूँ ।। सुरत अब िब्द मासर जनत भरना गगन में देखो कूँ वल चमकना सुरत मन वराूँ से अधर उलटना इड़ा ति सपगला घाटी चढ़ना पकड़ धुन िाय धुनी से लगना गुमठ1 का खेल अिायब तकना सुन्न में पहुंची सरवर तटना2 सुरत को जमला धाम यर अपना अमी रस वराूँ का जनतरी चखना

। । । । । । । । ।

करो यर काम और नसर करना ।। दृजष्ट पर देखो िोत दमकना ।। घाट सुखमन का खोल पलटना ।। तान कर सूरत आगे बढ़ना ।। मान मद त्याग भमण सब तिना ।। ओं धुन पाई सुनी गरिना ।। रूँस रोय जनसकदन मोती चुगना ।। मगन रोय बैठी अब नसर रटना ।। मौि राधास्वामी यरी जनरखना ।।

।। िब्द नावाूँ ।। धुन सुन कर मन समझाई ।। टेक ।। कोरट ितन से यर नसर माने । धुन सुन कर मन समझाई ।।1।। िोगी िुजि कमावें अपनी । ज्ञानी ज्ञान कराई ।।2।। तपसी तप कर थाक ररे रैं । िती3 ररे ित लाई ।।3।। ध्यानी ध्यान मानसी लावें । वर भी धोक्खा खाई ।।4।। पंजडत पढ़ पढ़ वेद बखानें । जवद्या बल सब िाई ।।5।। बुजद्ध चतुरता काम न आवे । आजलम3 ररे पछताई ।।6।। और अमल4 का दखल नरीं रै । अमल िब्द लौ लाई ।।7।। गुरु जमले िब धुन का भेदी । िष्य जवरर धर आई ।।8।। सुरत िब्द की रोय कमाई । तब मन कु छ ठरराई ।।9।। जरसण5 रवस से राथ न आवे । तन मन देव चढ़ाई ।।10।। बुल्रवसी6 और कपटी िन को । नेक7 न धुन पजतयाई8 ।।11।।

1. गुब ं ि। 2. ककनारा । 3. जवद्वान् । 4. अभ्यास । 5. िो देखा देखी शवाजरि पैदा रो । 6. जररसी । 7. ज़रा भी । 8. प्रतीत करना ।

94

सार बचन

यर धुन रै धुर लोक अधर की मन को मार करें असवारी खाई सुन्न पार मैदाना भूँवरगुफा का फाटक तोड़ा अद्भुत लीला अिब वराूँ की सूरि सूरि िोत जनरारी घट आकाि औघट परकािा यर लीला कु छ अिब पेच की करां लग बरनूूँ भेद अगाधा

। । । । । । । । ।

बचन 9

कोइ पकड़ें संत जसपारी ।।12।। गगन कोट वर लेयूँ जघराई ।।13।। मरासुन्न नाका1 परमाना ।।14।। िीि मरल सतगुरू कदखलाई ।।15।। ककरन ककरन सूरि दरसाई ।।16।। चन्द्र चन्द्र कोरटन छजब छाई ।।17।। लख आकाि कोरटन परसाई ।।18।। उलट पलट कोइ गुरूमुख पाई ।।19।। िो कोई लावे सुन्न समाधा ।।20।।

समझ बूझ गूग ूँ े गुड़ खाई । अकथ अकर की बात जनराली । क्योंकर राधास्वामी राज़3 जछपे को । परगट

कहूूँ कर

बनाई ।।21।। सरसाई4 ।।22।।

।। िब्द दसवाूँ ।। अनरद बािे बिे गगन में गुरु सुनावें यर धुन तन में मार ससर को चढ़ी इस बन में सुरत लगाई उसी लगन में सुन सुन िब्द गई सुन धुन में सुरत न आवे अब कभी इन में िब्द प्रताप जमटाई तपन मैं िब्द सुनूूँ जनत इसी भवन6 में अंतर पाऊूँ िब्द रतन में िब्द गहूूँ अब मार मदन8 मैं

। । । । । । । । । ।

1. सीमा । 2. उल्टा । 3. भेद । 6. घर । 7. चलना । 8. काम ।

सुन सुन मगन रोत अब मन में ।।1।। सुरत लगा तू भी अब घन5 में ।।2।। िब्द जमला अब िुगन िुगन में ।।3।। धुन िागी अब रगन रगन में ।।4।। दूर ककये सब भूत और जिन में ।।5।। िब्द जमला गुरु कदया अपन में ।।6।। िाग उठी िग देख सुपन में ।।7।। जछन जछन पकड़ूूँ यरी ितन में ।।8।। िब्द िब्द संग करूं गवन7 में ।।9।। राधास्वामी करें पुकार सबन में ।।10।।

4. कदखाया ।

5. बादल की गरि ।

बचन 10

जनर्णय नाम

95

बचन दसवां जनर्णय िब्द अथवा नाम का ।। िब्द पजरला ।। रे खता

नाम जनर्णय करूूँ भाई वर्ण2 धुनात्मक गाऊूँ वर्ण कहु चारे कहु अक्षर जलखन और पढ़न में आया लखायक रै यरी धुन का जमलें गुरु नाम धुन भेदी एकता नाम और नामी नाम वर्ाणत्मक गाया वर्ण से सुरत मन माूँिो धुनी धुन एक कर िानो िब्द और सुरत भये एका गुरु जबन और जबना करनी चार अनुराग जिस रोई नाम नामी दोऊ गाया गुरु की मौि में सब कु छ गुरूमुख रोय तन धन से लगे तब िाय धुन धुन से वर्ण धुन भेद दोउ बरना

1. दोनों । 6. प्रकट ।

2. अक्षर । 7. गुप्त ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । ।

दुधा1 जवजध भेद बतलाई ।।1।। दोऊ का भेद दरसाऊूँ ।।2।। िो बोला िाय रसना3 कर ।।3।। उसे वर्ाणत्मक गाया ।।4।। जबना गुरु फल नरीं ककनका4 ।।5।। सुरत धुन धुनी संग बेधी5 ।।6।। करावें िो जमलें स्वामी ।।7।। नामी धुनआत्मक पाया ।।8।। बहुरर चढ़ गगन धुन साधो ।।9।। सुरत से िब्द पजरचानो ।।10।। नाम धुन आत्मक देखा ।।11।। जमले कस करो यर ररनी ।।12।। भाग बड़ गुरूमुखी सोई ।।13।। अभेदी भेद समझाया ।।14।। जिसे चारें करें गुरूमुख ।।15।। करे कफर प्रीत जनि मन से ।।16।। गये तब तीन गुन तन से ।।17।। वाच6 और लक्ष7 इन करना ।।18।।

3. ज़बान ।

4. बहुत कम ।

5. प्रवेि करना ।

96

सार बचन

वाच वर्ाणत्मक िानो । वर्ण में भेष िग भूला । वर्ण िप िप पचें भेषी । भेद धुन का नरीं पाया । िपें जनत सरस और लाखा । जतमर संसार नसर िावे । धुनी धुन भेद नसर चीन्रा । जमला नसर गुरु धुन भेदी । काल ने बुजद्ध न छेदी । दया कर संत गोररावें । पाूँच धुन भेद बतलावें । धुनों के नाम दरसावें । सुरत का िोग लखवावें । सुरत ले गगन चढ़वावें । चढ़े ब्ररमंड तब परखे । बंक चढ़ जतरकु टी धावे । मरासुन िाय ररखानी । अमर पद मूल िा देखा । अलख और अगम भी पेखा । कहूं क्या खोल राधास्वामी ।

बचन 10

लक्ष धुन धनी पजरचानो ।।19।। ममण धुन सेत कोइ तोला ।।20।। जमले कु छ फल नरीं नेकी1 ।।21।। नाम फल राथ नसर आया ।।22।। खुले नसर नेक उन आूँखा ।।23।। मोर मद काम भरमावे ।।24।। सुरत और िब्द नसर लीन्रा ।।25।। लखावे धुन जमटे खेदी2 ।।26।। मुफ़्त नर देर उन दे दी ।।27।। ज़रा नसर जचत्त में लावें ।।28।। सुरत की रार कदखलावें ।।29।। रूप अस्थान कर गावें ।।30।। िीव नसर करन उन मानें ।।31।। सपड में सार बतलावें ।।32।। सरसदल मध्य कु छ जनरखे ।।33।। सुन्न दस द्वार गजत पावे ।।34।। भूँवर में िा सुनी बानी ।।35।। बीन धुन का जमला लेखा ।।36।। नाम का मूल अब देखा ।।37।। सैन यर समझ परमानी ।।38।।

।। िब्द दूसरा ।। नाम रस चखा गुरु संग सार नाम रं ग रं गी सुरत मन मार नाम का जमला आि भंडार नाम गजत पाई चढ़ आकाि

1. ज़रा ।

2. दुख ।

। । । ।

काम क्रोध लोभ मोर

3. जनरधन ।

रस छोड़ा देख असार ।।1।। को िारा जक्षमा सम्रार ।।2।। को टाला िान कं गार3 ।।3।। तम गया देख परकाि ।।4।।

बचन 10

मजरमा सतसंग

नाम धन पाया गगन जनरार नाम धुन सुनी सुन्न दस द्वार सुरत जलया भूँवरगुफा आधार पद चौथे चली नाम की लार अगम में पहुंची नाम स्मरार करो अब सतसूँग िग को िार मान मद बैठे दोनों रार भेद यर गावें संत पुकार ररे पंजडत और िोगी वार संत कोई पहुंचे अगम जनरार नाम पद बरने देख जवचार नाम का परदा कदया उघाड़ जमलैं कोई सतगुरू परम उधार पाओ तब नाम कु ल्ल करतार मीन मजत4 चढ़ गइ उलटी धार काल अब थका पुकार पुकार सुरत अब पाया जनि घर बार

। । । । । । । । । । । । । । । । ।

97

मगन रोय बैठी ति अरंकार ।।5।। नाम पद जमला मरासुन्न पार ।।6।। सोरं और बंसी सुनी पुकार ।।7।। अलख में गई नाम को धार ।।8।। जमला राधास्वामी नाम अगार1 ।।9।। रोय घट भीतर नाम उिार ।।10।। नाम पद हुई सुरत गल रार ।।11।। भेष नसर मानें बड़े गूँवार ।।12।। ज्ञान कर ज्ञानी मानी रार ।।13।। तोजड़या जिन जिन जतल का द्वार ।। ररा नसर धोखा खोला झार2 ।।15।। कहूं मैं तुम से कर अजत प्यार ।।16।। करो यर करनी तुम जनरवार3 ।।17।। बाूँध कर चढ़ो सुरत का तार ।।18।। मकर5 गजत पकड़ा अपना तार ।।19।। िरम कर बैठी माया नार ।।20।। जमले राधास्वामी पुरूष अपार ।।21।।

बचन ग्याररवाूँ सतसंग मजरमा और भेद सत्तनाम का

।। िब्द पजरला ।। कराूँ लग कहूं कु रटलता6 मन की । कान7 न माने गुरु के बचन की ।।1।। प्रेम गया और भजि जछपानी । बैर ईषाण की खुली खानी ।।2।।

1. सब के आगे । 2. कु ल । 3. छु टकारा । 6. दुष्टता, िरारत । 7. मयाणदा, क़ायदा ।

4. समान, मजनन्द ।

5. मकड़ी ।

98

सार बचन

माया लाई छलबल अपना । ज्ञान बुजद्ध बल सतसंग भाई । देखो अचरि करा न िाई । रैं गुर-भैजरन और गुर-भाई । काल दाव4 अपना यों खेला । सेवा में घुस पैठ कराई । सेवा में अस कीन्रा पेचा । गुरु ताड़ें सतसंगी झींखें5 । गुरु समझावें सीख न मानें । गुरु को देवें दोष लगाई । इतने कदन सतनंग िो कीया । सतगुरू से अब करूूँ पुकारा । तुम से काल ज़बर नसर रोई । तुम्ररे चरन प्रीत रोय गाढ़ी । जरल जमल कर सब करें अनन्दा । सतसंगी सब जमल कर चालें । यरी हुकु म अब सब को कीना । िो कोई माने हुकु म रमारा । बुजद्ध अपनी लेव सम्रारी । जिन के मन को काल सम्रारा । अब मन में जचन्ता मत राखो । दीन रीन िानो अपने को । अब अरंकार करो क्या ककस से । िैसे िग में मरा जभखारी ।

बचन 11

काल कदया कलमल1 का ढकना ।।3।। जक्षमा मौि गुरू गई जरराई2 ।।4।। कजलयुग का परभाव3 कदखाई ।।5।। जतन में जनस कदन रोत लड़ाई ।।6।। सतसंग में आय कीन्रों मेला ।।7।। और तरर कोइ घात न पाई ।।8।। मन को सब के धर धर खैचा ।।9।। काल लगाई ऐसी लीकें 6 ।।10।। मन मत अपनी कफर कफर ठानें ।।11।। कफर कफर चौरासी भरमाई ।।12।। कु छ भी असर न उसका हुआ ।।13।। काल मार मन लेव सुधारा ।।14।। काटो फं दा िम का सोई ।।15।। सतसंजगयन मन िुद्धता बाढ़ी ।।16।। द्रोर घात7 का काटो फं दा ।।17।। प्रीत परस्पर पल पल पालें ।।18।। िो नसर माने सो काल अधीना ।।19।। पहुंचे वर सतगुरू दरबारा ।।20।। बचन गुरु यर मन में धारी ।।21।। सो नसर माने बचन रमारा ।।22।। सत्तनाम अब जछन जछन भाखो ।।23।। जनपट नीच मानो अपने को ।।24।। मौत धार दम दम में बरसे ।।25।। दीन गरीबी उन सब धारी ।।26।।

1. अंधकार, मलीनता । 2. िाती ररी । 3. असर । रोना । 6. दाग । 7. ििुता और बैर ।

4. पेंच ।

5. दुजखत

बचन 11

मजरमा सतसंग

99

कोई उसको कु छ कर लेवे । मन को अपने िरा न देवे ।।27।। तुम सतसंग कर क्या फल पाया । उनका सा भी मन न बनाया ।।28।। अब ऐसा तुम्रें करना चाजरये । अपने मन अधीनी धररये ।।29।। रारा खाओ1 चरन पखालो2 । आपस में तुम जरल जमल चालो ।।30।। िो कोइ जिस से रूठे भाई । सोई जतसको लेय मनाई ।।31।। राथ िोड़ बहु जबनती करे । करे खुिामद चरनन पड़े ।।32।। इतने पै िो माने नारीं । गुनरगार सतगुरू का भाई ।।33।। िलन ईषाण जिस घट आई । वर दुख कै से िाय नसाई ।।34।। कर जववेक मन को समझावे । या सतगुरू की दया समाई ।।35।। सतगुरू दया जबना नसर रोई । जबन जववेक नसर िावे खोई ।।36।। िो सतगुरू जनि दया जवचारें । तब यर दुरमत मन से टारें ।।37।। िो कोइ दीन कपट से रोई । ता का रोग करो कस िाई ।।38।। कपटी को ऐसा अब चारी । करे सफ़ाई कपट नसाई ।।39।। िो बल उसका पेि न िावे । तो सतगुरू से जबनती लावे ।।40।। खोले कपट न राखे परदा । गुरु से खोले रख रख सरधा ।।41।। अपने औगुन उन से भाखे3 । बार बार जबनती कर आखे4 ।।42।। रे स्वामी मेरी कपट जनकारो । मैं बलरीन मोसर तुम तारो ।।43।। तुम्रारी दया रोय िब भारी । घट से जनकसे कपट रमारी ।।44।। और उपाय न इसका कोई । जबना दया कोई िुजि न रोई ।।45।। मन कपटी घट घट में पैठा । सब िीवन का पकड़ा फें टा5 ।।46।। कर सतसंग भौ6 भाव बसावे । गुरु की दया कपट नस7 िावे ।।47।। िो गुरु आगे कपट न खोले । जनष्कपटी अपने को बोले ।।48।। दोररा कपट जलये रै सोई । उसका ितन कभी नसर रोई ।।49।। बर सतसंग के लायक नारीं । वर असाध रोगी िग मारीं ।।50।।

1. दीनता के साथ जछमा मांगना । 2. धोओ । 5. कमरबन्द । 6. भय । 7. नाि ।

3. बयान करे ।

4. करे ।

100

सार बचन

पर िो सतगुरू समरथ पावे पड़ा ररे सतसंग के मारीं सतसंग िल िो कोई पावे सतसंग मजरमा करा बखानूं कलिुग खास यत्न कोई नारीं कमण धमण तप पूिा दाना और ज्यों की त्यों रोय न आवे याते संतन काकढ़ जनकारी

। । । । । । । ।

बचन 11

और चरनन पर सीस नवावे ।।51।। धीरे धीरे तो छु ट िाई ।।52।। सब मैलाई कट कट िावे ।।53।। अस सम ित्न और नसर मानूूँ ।।54।। जबन सतसंग संत नसर गाई ।।55।। इस करनी से जनत बढ़े माना ।।56।। तौ फल उलटा उसका पावे ।।57।। सतसंग की मजरमा कजर भारी ।।58।।

।। दोरा ।। सतसंग ककसको करत रैं, सो भी तुम सुन लेय । सत्तनाम सतपुरूष का, िराूँ कीतणन रोय ।।59।। चौथा पद सचखंड करावे । मरासुन्न के पार ररावे ।।60।। मरासुन्न वर संतन भाखी । अक्षर से वर आगे ताकी ।।61।। वर अक्षर रै वेद को मूला1 । ज्यों का त्यों ताजर वेद न तोला2।।62।। नेजत नेजत वारी को करता । आगे की गत कफर कस लेता ।।63।। वेद कतेब थके दोउ यरूँ री । अक्षर सुन के वार रराई ।।64।। आगे का इन ममण3 न िाना । संतन ने यर करी बखाना ।।65।। िोगेश्वर वेदांती भाई । यर भी ररे अक्षर लख4 मारीं ।।66।। सत्तनाम संतन िो भाखा । सत्तलोक संतन िराूँ आखा ।।67।। सो इन सब से आगे रोई । बुजद्ध से एक करो मत कोई ।।68।। संतन साफ़ साफ़ कर डाला । मत वेदांत काल कर िाला ।।69।। ।। दोरा ।। काल मता वेदांत का, संतन करा बनाय । सत्तनाम सतपुरूष का, भेद ररा अलगाय ।।70।।

1. िड़ ।

2. जवचारा, खोला ।

3. भेद ।

4. लजखया िाने वाला ।

बचन 11

मजरमा सतसंग

101

कु ल्ल मते संसार के , सभी काल के िान । सत्तनाम सतपुरूष मत, यर दयाल पजरचान ।।71।। सत्तनाम का भेद सुनाऊूँ । वा की आकद अूँत दरसाऊूँ ।।72।। तब नसर रचा अंड ब्रह्मंडा । तीन लोक और नजर नौ खंडा ।।73।। नरीं तब ब्रह्म नरीं तब आतम । नसर तब पारब्रह्म परमातम ।।74।। नसर तब देवी नसर तब देवा । सुर नर मुजन कोइ रचे न सेवा ।।75।। काल और मराकाल नसर दोई । सुन्न और मरासुन्न नसर रोई ।।76।। धरती गगन न वेद पुराना । कोई जसद्धांत वेदांत न िाना ।।77।। कराूँ लग कहूं खोल कर भाई । ककजचत1 रचना नसर प्रगटाई ।।78।। तब ररे आप नाम अमाया2 । अपने में ररे आप समाया ।।79।। मौि उठी एक धुन भइ भारी । सत्तनाम सत िब्द पुकारी ।।80।। सच्च खंड इस धुन से रजचया । िराूँ लग मंडल धुन का बंजधया ।। रंस रचे और दीप रचाये । सोलर सुत3 परगट रोय आये ।।82।। सत्तलोक यों रचन रचानी । सत्तनाम मजरमा जनि ठानी ।।83।। िुग के ते यारी जबजध बीते । सत्तनाम रस सब जमल पीते ।।84।। सत्य सत्य वराूँ ररा पसारा । कफर नीचे का ककया जवस्तारा ।।85।। एक धार वराूँ से चल आई । धार दूसरी आन समाई ।। 86।। सुन्न मूँडल कीन्रा जनि थाना । पुरूष प्रकृ जत रचा अरथाना ।।87।। िोत जनरं िन संतन गाया । माया ब्रह्म वरी ठरराया ।।88।। जिव िजि इस री को करते । के ते िुग यारी को बीते ।।89।। ब्रह्म सृजष्ट रचना इन ठानी । यर भी भेद न काहू िानी ।।90।। ब्रह्म हुआ िब इनसे न्यारा । सत्तनाम का ध्यान सम्रारा ।।91।। माया ने कफर रचना ठानी । तीन पुि लीन्रे उतपानी ।।92।। नर सृष्टी इन से भई भारी । वेद रचे और कमण पसारी ।।93।। कमणकांड में सब मन दीना । सुर नर मुजन भये काल अधीना ।।94।।

1. कु छ भी ।

2. माया से रजरत ।

3. सोलर कला ।

102

सार बचन

बचन 11

ज्ञानी िोगी पच पच रारे । कमण भमण से हुए न न्यारे ।।95।। सत्तपुरूष का भेद न िाना । वेद मते का बंधन ठाना ।।96।। संत मता इन से बहु दूरी । यर क्यों िाने वर पद मूरी1 ।।97।। याते संत संग अब कीिै । और संग सब परररर2 दीिै ।।98।। सतसंग या का नाम करावे । जमलें संत तब यर घर पावे ।।99।। सत्तनाम धुन अब कहूूँ खोली । बीन बाूँसरु ी धुन िरूँ बोली ।।100।। काल नगर िराूँ अनरद बािा । बाइूँ कदिा यर धुन उन सािा ।।101।। संतन की धुन इन से न्यारी । पावेगा कोइ चढ़ पद चारी ।।102।। छाूँट छू ूँट कर मैं सब गाई । संत मता सब कदया लखाई ।।103।। करने मैं कु छ कसर न राखी । खुले दृजष्ट तब देखे आूँखी ।।104।। संत मेरर से कोइ कोइ पावे । जबना संत कु छ राथ न आवे ।।105।। ।। दोरा ।।

संत करी यर छान कर, मूरख माने नासर । जबना प्रीत परतीत के , कै से पावे

ठासर3 ।।106।।

संतन से कर प्रीत अब , दृढ़ कर जचत्त लगाय । कमण भमण सब छोड़ कर, सुरत िब्द समाय ।।107।। राधास्वामी गाय कर, िन्म सुफल कर ले । यरी नाम जनि नाम रै, मन अपने धर ले ।।108।। भेद

नाम

सतसंग

1. मूल ।

2. त्याग ।

में

का

िब

स्वामी

3. रठकाना ।

तू के

पावे । आवे ।।109।।

बचन 12

मजरमा भजि

103

।। बचन बाररवां ।। वर्णन मरात्म भजि का ।। िब्द परला ।। भजि मरात्म सुन मेरे भाई यरी मता गुरू-मत पजरचानो जबना भजि थोथे सब मानो ताते भजि दृढ़ कर पकड़ो भजि इश़्क प्रेम ये तीनों भजि भाव यर गुरु-मत िानो प्रेम रूप आतम परमातम भजि और भगवंत एक रैं प्रेम रूप तेरा भी भाई एक भेद यामें पजरचानो करीं ससध सम करे प्रकािा करीं इच्छा परबल रोय बैठी एक रठकाने माया थोड़ी सोत पोत में माया नारीं वर भंडार प्रेम का भारी जबना संत पहुंचे नसर कोई प्रेम भजि की ऐसी मजरमा तांते पजरले करो भजि गुरु आरत कर कर गुरु ररझाओ राधास्वामी करत सुनाई

1. मगज़ ।

2. नष्ट रो िाना ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

सब संतन ने ककया बखान ।।1।। और मते सब झूठ भुलान ।।2।। जछलका रै मींगी1 की रान2 ।।3।। और सयानप तिो जनदान ।।4।। नाम भेद रै रूप समान ।।5।। और मते सब मन मत ठान ।।6।। भजि रूप सतनाम बखान ।।7।। प्रेम रूप तू सतगुरू िान ।।8।। सब िीवन को यों री मान ।।9।। करीं बुद ं करीं लरर समान ।।10।। करीं सोत और पोत करान ।।11।। करीं हुई माया बलवान ।।12।। जसन्ध प्रताप िुद्ध हुई आन ।।13।। वराूँ प्रेम री प्रेम ररान ।।14।। िाूँ का आकद न अंत कदखान ।।15।। सतगुरू संत ककया अस्थान ।।16।। ग्ररर् करो यर अमृत खान3 ।।17।। पीछे पाओ नाम जनिान ।।18।। पाओ उन से प्रेम जनधान4 ।।19।। जमला तुझे अब भजि दान ।।20।।

3. खज़ाना ।

104

सार बचन

बचन 12

।। िबद दूसरा ।। िगत भाव भय लिा छोड़ो िाजत बरन भय लिा त्यागो ििु जमि डर दूर रटाओ मात जपता डर छोड़ गूँवाओ िोरू लड़के मत डर इनसे भाई भतीिों का डर मत कर सास ससुर डर मन से छोड़ो बहू िमाई इन का डर ति यार आिना1 सब डर छोड़ो नातेदार कु टु म्बी जितने भजि अंग में िब तू बरते िो मूरख

रैं

ममण



सुन प्यारे तू कर भजि ।।1।। सुन प्यारे तू कर भजि ।।2।। सुन प्यारे तू कर भजि ।।3।। सुन प्यारे तू कर भजि ।।4।। सुन प्यारे तू कर भजि ।।5।। सुन प्यारे तू कर भजि ।।6।। सुन प्यारे तू कर भजि ।।7।। सुन प्यारे तू कर भजि ।।8।। सुन प्यारे तू कर भजि ।।9।। इनका डर ति कर भजि ।।10।। छोड़ जझझक2 इन कर भजि ।।11।।

िानें । इनका डर क्या ? कर भजि ।।12।।

इनका डर कु छ मत कर मन में भेष भेष को देख लिावे िब लग सब से जनडर न रोवे जज़ल्लत3 इज़्जज़त4 िो कु छ रोवे गुरु का बल जररदे धर अपने यर जबगाड़ कु छ करें न तेरा जबना मौि गुरु कु छ नजर रोता तू कच्चा यर करे कचाई करते करते पक्का रोगा कच्ची से पक्की रोय इक कदन कपट भजि कु छ काम न आवे राधास्वामी करत सुनाई

1. दोस्त ।

। । । । । । । । । । ।

2. डर और लिा ।

। । । । । । । । । । । ।

सुन प्यारे तू कर सो भी कच्चा कर तब लग कच्चा कर मौि जवचारो कर सुन प्यारे तू कर क्यों जझझके तू कर सुन प्यारे तू कर और कहूं क्या कर और उपाव न कर छोड़ कपट तू कर सच्ची कर िैसी बने तैसी कर

3. जनरादर ।

भजि ।।13।। भजि ।।14।। भजि ।।15।। भजि ।।16।। भजि ।।17।। भजि ।।18।। भजि ।।19।। भजि ।।20।। भजि ।।21।। भजि ।।22।। भजि ।।23।। भजि ।।24।।

4. आदर ।

बचन 12

मरातम भजि

105

।। िब्द तीसरा ।। धोखा मत खाना िग आय जपयारे कोई मीत न िानो अपना िब सच्चा रोय चले डगर1 गुरु ऊूँच नीच करैं बचन तोख2 के इनसे ररना समझ बूझ कर तेरी राजन लाभ नसर सोचैं तू भी चतुरा गुरु का प्यारा उन को भी इस भाूँजत भलाई िो बेमुख गुरु भजि नाम से तो िुजि से दीन जवजध से िो सन्मुख गुरु भजि नाम से राधास्वामी करत बनाई भजि न छू टे कोई िुजि से ।

। धोखा मत खाना िग आय ।।1।। । सब ठग बैठे फाूँसी लाय ।।2।। । तबरी चौंकैं रोकैं आय ।।3।। । मन को तेरे दें भरमाय ।।4।। । रैं ये बैरी जरत कदखलाय ।।5।। । अपने स्वारथ ररें जलपटाय ।।6।। । उन संग रहु गुरु चरन समाय ।।7।। । तेरी भजि न थकती िाय ।।8।। । कोई तरर क़ाबू नसर पाय ।।9।। । छोड़ चलो संग दोष न ताय ।।10।। । रोयूँ कदाजचत3 मेल जमलाय ।।11।। । बहुरर बहुरर तू भजि कमाय ।।12।। नसर तो बहु जवजध ररो पछताय ।।13।।

।। बचन तेररवाूँ ।। पजरचान पूरे गुरु की और सच्चे परमाथी की ।। िब्द परला ।। गुरु सोई िो िब्द सनेरी4 िब्द कमावे सो गुरु पूरा और पजरचान करो मत कोई िब्द भेद लेकर तुम उन से

। । । ।

िब्द जबना दूसर नसर सेई5 ।।1।। उन चरनन की रो िा धूरा ।।2।। लक्ष6 अलक्ष7 न देखो सोई ।।3।। िब्द कमाओ तुम तन मन से ।।4।।

1. रास्ता । 2. तान । 3. िायद, कभी । 6. लक्षर् पूरा । 7. बे-लक्षर्, अधूरा ।

4. प्रेमी ।

5. सेवन करना ।

106

सार बचन

बचन 13

।। सार उपदेि ।। ।। पजरचान परमाथी की ।। ।। सोरठा ।। अनुरागी िो िीव, जतन प्रजत अब ऐसी कहूं । सुनो कान दे चीत, बचन कहूं जवस्तार कर ।।5।। जवषयन से िो रोय उदासा धन संतान प्रीत नसर िाके तन इन्द्री आसि न रोई जबरर बान जिन जररदे लागा साध फ़क़ीर जमले िो कोई भेष धार पाखंडी रोई भेष नेष्ठा2 जनत प्रजत धारे ऐसी करनी िा की देखें सतगुरू बचन सुने िब काना सतगुरू से िब प्रीत लगावे

। । । । । । । । । ।

परमारथ की िा मन आसा ।।6।। िगत पदारथ चार न ता के ।।7।। नींद भूख आलस जिन खोई ।।8।। खोित कफरे साध गुरु िागा ।।9।। सेवा करे करे कदलिोई1 ।।10।। साधु िान करे जरत सोई ।।11।। ले परिादी चरन पखारे 3 ।।12।। आप आय सतगुरू जतस मेलें ।।13।। उमगे जररदा प्रेम समाना ।।14।। दया मेरर उनकी कु छ पावे ।।15।।

।। जवजध दिणन की ।। जनत प्रजत दिणन परसन करे । रूप अनूप जचत्त में धरे ।।16।। चरनामृत परिादी लेवे । मान मनी ति तन मन देवे ।।17।। ।। जवजध सेवा की ।। सेवा कर तन मन धन अरपे । सत्त पुरूष सम सतगुरू थरपे4 ।।18।। ।। प्रथम तन की सेवा ।। आरत चरन

सेवा जनत री करे । काम क्रोध मद जचत से ररे ।।19।। दबावे पंखा फे रे । चक्की पीसे पानी भरे ।।20।।

1. खाजतरदारी ।

2. धारना ।

3. धोवे ।

4. माने ।

बचन 13

पजरचान परमाथी की

मोरी धो झाड़ू को धावे राथ धुला दातन करवावे बटना मल असनान करावे धोती धोय अंगोछा धोवे वस्त्र पजरनावे जतलक लगावे िल अचवावे कमंडल भरे नाना जवजध की सेवा करे कोइ टरल में आर2 न लावे

। । । । । । । ।

107

खोद खदाना1 जमट्टी लावे ।।21।। काट पेड़ से दातन लावे ।।22।। अंग पोंछ धोती पजरनावे ।।23।। कं घा करे बाल बल खोवे ।।24।। करे रसोई भोग धरावे ।।25।। पलंग जबछावे जबनती करे ।।26।। नीच ऊूँच िो िो आ पड़े ।।27।। िो गुरु करें सो कार कमावे ।।28।।

।। दूसरे धन की सेवा ।। धन की सेवा यर रै भाई गुरु नसर भूखा तेरे धन का पर तेरा उपकार करावें उनकी मेरर मुफ्त तू पावे उनका ख़ुि रोना रै भारी

। । । । ।

गुरु सेवा में खचण कराई ।।29।। उन पै धन रै भजि नाम का ।।30।। भूखे प्यासे को कदलवावें ।।31।। िो उनको परसन्न करावे ।।32।। सत्त पुरूष जनि ककरपा धारी ।।33।।

।। तीसरे मन और बुजद्ध की सेवा ।। दिणन करे बचन पुजन3 सुने गुन गुन छाूँट लेय उन सारा कर अरार पुष्ट4 हुआ भाई गुरु भजि िानो इश्क़ गुरु का पक पक घट में गाढ़ा थाना गुरु का रूप लगे अस प्यारा सतसंग करना ऐसा चजरये

। । । । । । ।

कफर सुन सुन जनत मन में गुने ।।34।। सार धार जतस करे अरारा ।।35।। िग भौ लाि अब गई नसाई ।।36।। मन में धसा सुरत में पक्का ।।37।। थान गाढ़ अब हुआ कदवाना ।।38।। काजमन पजत मीना िल धारा ।।39।। सतसंग का फल येरी सरी रै ।।40।।

।। दोरा ।। िब सतगुरू प्रसन्न रोय, देयूँ नाम का दान । दीन रोय जररदे धरे , करे नाम पजरचान ।।41।।

1. जमट्टी का खान ।

2. िमण ।

3. कफर ।

4. मज़बूत, बलवान ।

108

सार बचन

बचन 13

चौथे सुरत और जनरत1 की सेवा यानी अंतर अभ्यास अंतरमुख बैठे एकान्त दो दल उलट गगन को धावे िोत देख कफर देखे सूर सत्तलोक पहुंचे और बसे तब सतगुरू की िानी मजरमा अलख अगम और जमला अनामी

। । । । । ।

अभ्यास करे पावे मन िान्त ।।43।। मगन रोय और नाद बिावे ।।44।। चन्द्र जनरारे पावे नूर2 ।।45।। सुन सुन धुन तब सूरत रूँसे ।।46।। जिन प्रताप बािी धुन बीना ।।47।। अब कहुं धन धन राधास्वामी ।।48।।

।। िब्द दूसरा ।। घर आग लगावे सखी िड़ चेतन की गाूँठ खुलानी सुरत िब्द की क्यारी सींचे गगन मूँडल का ताला खोले सुन्न जिखर4 का मजन्दर झाूँके मानसरोवर जनरमल धारा रंसन साथ राथ फल लेवे मरासुन्न का नाका तोड़े सत्तनाम पद परस4 पुराना राधास्वामी सतगुरू पावे

। । । । । । । । । ।

सोई सीतल समुद ूँ बुन्दा जसन्ध फल और फू ल लाल ज्वाजरर3 अद्भुत रूप ता जबच पैठ धृग धृग िगत भूँवरगुफा कढग अलख अगम को तब घर अपने

समावे ।।1।। जमलावे ।।2।। जखलावे ।।3।। पावे ।।4।। कदखावे ।।5।। अन्रावे ।।6।। सुनावे ।।7।। िावे ।।8।। धावे ।।9।। आवे ।।10।।

।। िब्द तीसरा ।। गुरु चेला व्योरार िगत में का से कहूं खोि नसर काहू गुरु तो लोभ प्रजतष्ठा6 चारत सच्चा मारग सुरत िब्द का

। । । ।

झूठा बरत ररा ।।1।। धोखे धार बरा ।।2।। जिष स्वारथ सूँग आन बूँधा ।।3।। सो अब गुप्त भया ।।4।।

1. जनगुर् ण करने वाली िजि । 5. स्पिण करके । 6. आदर ।

2. प्रकाि ।

3. रतन ।

4. चोटी ।

बचन 13

पजरचान परमाथी की

गुरु चेला पाखंडी कपटी िब्द सरूपी िब्द अभ्यासी सुरतवन्त1 अनुरागी सच्चा गुरु भी दुलभ ण 2 चेला दुलभ ण िब्द सुरत जबन िो गुरु रोई राधास्वामी यों कर गाई

। । । । । ।

109

चौरासी में दोउ गया ।।5।। अस गुरु जमले तो पार हुआ ।।6।। ऐसा चेला नाम करा ।।7।। करीं मौि से मेल जमला ।।8।। ता को छोड़ो पाप कटा ।।9।। बूझ बचन तब काि सरा ।।10।।

।। िब्द चौथा ।। सतगुरू खोिो री प्यारी । जिन पर मेरर दया सतगुरू की । दिण पाय सतलोक जसधारी । सरी नाम पाया सतगुरू से । िीव पड़े चौरासी भरमें । मान मनी का रोग पसररया3 । छोटा ररे जचत्त से अंतर । िब्द जबना सारा िग अन्धा । िब्द भेद और िब्द कमाई । िब्द रता सतगुरू पजरचानो । खोलो आूँख जनकट रो देखा । आगे भाग तुम्रारा प्यारी । करना था सोई कर डाला ।

1. संस्कारी ।

2. कामयाब ।

िगत में दुलभ ण रतन यरी ।।1।। उनको दिण दई ।।2।। सत्तनाम पद कौन सरी ।।3।। जबन सतगुरू सब िीव बरी ।।4।। खान पान मद मान लाई ।।5।। बड़े बने जिन मार सरी ।।6।। िब्द मासर तब सुरत गई ।।7।। जबन सतगुरू सब भमण मई4 ।।8।। जिन जिन कीन्री सार लई ।।9।। रम यर पूरा पता दई ।।10।। अब क्या खोलूूँ खोल करी ।।11।। नसर परखो तो िून5 ररी ।।12।। राधास्वामी खूब करी ।।13।।

3. फै ला ।

4. भरा हुआ । 5. योजन ।

110

सार बचन

बचन 14

।। बचन चौदरवाूँ ।। ।। जचतावनी भाग पजरला ।। ।। िब्द पजरला ।। धुन से सुरत भइ न्यारी भौिाल फूँ सी झख मारी गुरु ज्ञान नरीं जचत धारी जसर भार उठावत भारी दुख जवपता बहुत सरारी सुन मान बचन मेरा प्यारी िब्द रस जपयो अपारी गुरु जबन नसर और अधारी

रे रे रे रे रे रे रे रे

। । । । । । । ।

मन से बूँधी कर भारी रे ।।1।। घट छू टा कफर उिाड़ी रे ।।2।। जवष भोगे वषय जवकारी ।।3।। िम दंड सरे सरकारी1 रे ।।4।। अब सतगुरू करत पुकारी रे ।।5।। घट उलटो लख उजियारी रे ।।6।। चढ़ खोलो गगन ककवाड़ी रे ।।7।। राधास्वामी काि सुधारी रे ।।8।।

।। िब्द दूसरा ।।

सुरत तू कौन कराूँ से िगत िाल यर मन रच पुरूष अंस तू सतपुर सतगुरू दया साध की अनरद िब्द सुनो घट

आई ।। टेक ।। राखा । क्यों या में भरमाई ।।1।। बासी । फाूँसी काल लगाई ।।2।। संगत । उलट चलो घर पाई ।।3।। भीतर । राधास्वामी करत बुझाई ।।4।। ।। िब्द तीसरा ।।

झूँझररया झाूँको जवरर उमगाय ।। टेक ।। मन इन्द्री घर बास जबगाना2 । या में ररो अलसाय ।।1।। पूरे सतगुरू ममण लखावें । भमण देयूँ छु टकाय ।।2।। अब के दाव पड़ा तेरा सिनी । कफर औसर3 नसर पाय ।।3।। जतल को पेल तेल अब काढ़ो । लो घट िोत िगाय ।।4।। राधास्वामी करा बुझाई । एक रठकाना गाय ।।5।।

1. काल का ।

2. पराया ।

3. मौका ।

बचन 14

जचतावनी भाग पजरला

111

।। िब्द चौथा ।। करो री कोई सतसंग आि बनाय ।। टेक ।। नर देरी तुम दुलणभ पाई । अस औसर कफर जमले न आय ।।1।। जतररया सुत धन धाम बड़ाई । यर सुख कफर दुख मूल कदखाय ।।2।। या से बचो गरो गुरु सरना । सतसंग में तुम बैठो िाय ।।3।। यर सब खेल रै न का सुपना । मैं तुम को अब कदया िगाय ।।4।। झूठी काया झूठी माया । झूठा मन िो ररा लुभाय ।।5।। सतसंग सच्चा सतगुरू सचा । नाम सचाई क्या कहुूँ गाय ।।6।। मान बचन मेरा तू सिनी । िन्म मरन तेरा छु ट िाय ।।7।। नभ चढ़ चलो िब्द में पेलो । राधास्वामी करत बुझाय ।।8।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। सुरत तू क्यों न सुने धुन नाम । भूल भूलइयाूँ आन फूँ सानी । क्या समझा आराम ।।1।। भला तू समझ चेत चल धाम ।। टेक ।। मन इन्द्री संग भोग जवलासा । यर िमराय जबछाया दाम1 ।।2।। इन से जनकर भाग अब प्यारी । सतगुरू ममण लखावें ताम2 ।।3।। अब की बार पड़ो गुरु सरना । कफर न बने अस काम ।।4।। यराूँ तो चार कदवस ररे बासा । कफर भटको चौरासी ग्राम ।।5।। ता ते बचन रमारा मानो । तिो मोर और काम ।।6।। मन बौरा यर करा न माने । लगा भोग रस खाम3 ।।7।। िीव जनबल क्या करे जबचारा । िब लग राधास्वामी करें न सराम4 ।। ।। िब्द छठा ।। िाग चल

सूरत

सोई बहुत । कारे को पूूँिी अपनी खोत ।।1।।

1. िाल ।

2. तमाम ।

3. पागल ।

4. सरायता ।

112

सार बचन

पकड़ ले सतगुरू की तूं ओट काल अब मारे जछन जछन चोट मैल मन क्यों नसर अब तू धोत जनरख ले घट में अद्भुत िोत

। । । ।

बचन 14

नाम गजर दूर करो सब खोट1 ।।2।। िब्द संग डार2 कमण की पोट ।।3।। िब्द संग सूरत क्यों नसर पोत3 ।।4।। खोजलया राधास्वामी भजि सोत ।।5।।

।। िब्द सातवाूँ ।। जरत कर करता सुन सुतण बात काम संग बरती कदन और रात । लगा ले नौका सतगुरू घाट छोड़ दे मन से सब उत्पात जवघ्न यर भारी बुजद्ध भरमात करैं कोइ सतगुरू तोजर जनि दात करैं यर राधास्वामी अचरि बात

। ग़ोता मत खा मूरख साथ ।।1।। जमला तोजर भटक भटक यर गात4 ।।2।। । जमटा ले प्यारी िम की घात ।।3।। । रखो नसर मन में िात और पाूँत ।।4।। । कहूं क्या कौन सुने मेरी तात5 ।।5।। । नाम का भेद लखा धुन पात ।।6।। । जमले िब सतसंग सरन समात ।।7।।

।। िब्द आठवाूँ ।। रे सरेली अब गुरु के मारग चलना कामाकदक भोग जबसरना िग भट्टी में क्यों िलना धीरे धीरे नाम रसायन6 िरना राधास्वामी बचन पकड़ना

। । । । ।

मन मारग जछन जछन तिना ।।1।। धुन सुन कर नभ पर चढ़ना ।।2।। मद मान मोर नसर पचना ।।3।। भौिल से यों री तरना ।।4।। कफर िम से कारे को डरना ।।5।।

।। िब्द नावाूँ ।। क्यों कफरत भुलानी िगत में, कदन स्वारथ के संगी सभी, जिन मात जपता सुत इस्तरी, कोइ जबन गुरु सतगुरू कौन रै, िो नाम जबना सब िीव, करे 1. कसर । 2. फें क दे । 3. गूथता, परोता । 6. कीजमया । 7. छु टकारा ।

चार बसेरा ।।1।। तुझ को घेरा ।।2।। संग न रेरा ।।3।। करे जनबेड़ा7 ।।4।। चौरासी फे रा ।।5।। 4. िरीर ।

5. प्यारा ।

बचन 14

जचतावनी भाग पजरला

113

मन दुलरा गगना चढ़े, सि सुरत सेररा ।।6।। धुन दुलजरन को पाय कर, बसे िाय जिकु टी देररा1 ।।7।। राधास्वामी ध्यान धर, तू साूँझ सवेरा ।।8।। ।। िब्द दसवाूँ ।। सुरत तू दुखी ररे रम िानी िा कदन से तुम िब्द जबसारा मन मूरख तन साथ बूँधानी कु ल पररवार सभी दुखदाई तू चेतन यर िड़ सब जमथ्या ताते चेत चलो यर औसर सतसंग करो सत्त पद खोिो नाम रतन गुरु देयूँ बुझाई इतना काम करो तुम अब के राधास्वामी करन सम्रारो

।। टेक ।। । मन संग यारी ठानी ।।1।। । इन्द्री स्वाद लुभानी ।।2।। । इन संग ररत भुलानी ।।3।। । क्यों कर मेल जमलानी ।।4।। । नसर भरमो तुम खानी ।।5।। । सतगुरू प्रीत समानी ।।6।। । उलट चलो असमानी ।।7।। । कफर आगे की सतगुरू िानी ।।8।। । दुख छू टे सुख जमले जनिानी ।।9।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। सुरत तू कौन कु मजत उरझानी मन के साथ कफरे भरमानी कजनक2 काजमनी लागी प्यारी मोर िाल यर काल जबछाया तू अंिान पड़ी लालच में मैं समझाय कहूं अब तोसे गुरु से प्रीत करो िग िारो नाम रसायन गुरु से पावो कफर तू चढ़े गगन के नाके िम की घात बचा ले प्यारी 1. डेरा ।

2. सोना ।

।। टेक ।। । गुरु की सुने न बानी ।।1।। । रै न कदवस इन सूँग जलपटानी ।।2।। । दानां डाला िीव फं सानी ।।3।। । बहुत रोत तेरी रानी ।।4।। । गुरु जबना कौन बचानी ।।5।। । तन मन दिा भुलानी ।।6।। । छू टे सब रैरानी ।।7।। । तन से रोय अलगानी ।।8।। । राधास्वामी करत बखानी ।।9।।

114

सार बचन

बचन 14

।। िब्द बाररवाूँ ।। िग में घोर अूँधरे ा भारी स्वप्न िाग्रत दोनों देखी िीव अिान भया परदेसी कफरे भटकता खान खान में दम दम दुखी कष्ट बहु भोगे करे पुकार कारगर1 नारीं भटक भटक नर देरी पाई सतगुरू संत करें बहुतेरा बचन न माने करन न पकड़े फोकट2 धमण पकड़ कर िूझे पानी मथे राथ कु छ नारीं िीव अभाग कहूं मैं क्या क्या अंतरमुख िो िब्द कमाई वेद िास्त्र स्मृत और पुराना जबन सतगुरू और जबना िब्द सुतण यरी बात भाखी मैं चुन कर राधास्वामी करा बुझाई

। । । । । । । । । । । । । । । । ।

तन में तम का भंडारा ।।1।। भूल भुलइयाूँ धर मारा ।।2।। देस जबसर गया जनि सारा ।।3।। िोजन िोजन जबच झख मारा ।।4।। सुने कौन अब बहु रारा ।।5।। पड़े नकण में िम धारा ।।6।। इन्द्री मन जमल यराूँ मारा ।।7।। रार बतावें दस द्वारा ।।8।। कफर कफर भरमे नौ वारा ।।9।। बूझे न िब्द िुगत पारा ।।10।। क्षीर3 मथन आलस भारा ।।11।। बारर भरमे भौ िारा ।।12।। ता में मन को नसर गारा4 ।।13।। पढ़ पढ़ सब पंजडत रारा ।।14।। कोइ न उतरे भौ पारा ।।15।। अब तो मानो गुरु प्यारा ।।16।। सुरत चढ़ाओ नभ द्वारा ।।17।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

चल री सुरत अब गुरु के देि तन मन इन्द्री यर परदेि सुनो कान से गुरु संदि े ब्रह्मा जवष्र्ु न गौर गनेि संत सुरत िराूँ ककया प्रवेि

1. असर-दार । 6. अन्त पद ।

। । । । ।

िराूँ न काया कमण कलेि ।।1।। छोड़ो भेष भवन का लेि5 ।।2।। सुरत िब्द ले धाओ िेष6 ।।3।। िराूँ न नारद सारद7 िेष ।।4।। सतगुरू दया जमला वर देि ।।5।।

2. खाली । 3. दूध । 7. सारदा, सरस्वती ।

4. गाल्या ।

5. सपड की प्रीजत ।

बचन 15

जचतावनी भाग दूसरा

115

काल कमण की गई न पेि । तोड़े दाूँत और काटे नेि 1 ।।6।। सतगुरू को अब करूूँ अदेि2 । राधास्वामी पूरे धनी धनेि2 ।।7।।

।। बचन पन्द्ररवाूँ ।। ।। जचतावनी भाग दूसरा ।। ।। िब्द पजरला ।। चेत चलो यर सब िंिाल । काम न आवे कु छ धन माल ।।1।। गुरु चरन गरो लो नाम सम्राल । सतसंग करो धरो अब शयाल ।।2।। काम क्रोध संग मन पामाल4 । भमण भुलाना कमणन नाल5 ।।3।। करां कहूं यर मन का राल । रोग सोग संग रोत बेराल ।।4।। िीव जगरासे6 िम और काल । देखत िग में यर दुख साल7 ।।5।। तो भी चेत न पकड़े ढाल । जछन जछन मारे काल कराल ।।6।। राधास्वामी गुरु िब रोयं दयाल । चरन सरन दे करें जनराल ।।7।। ।। िब्द दूसरा ।। लाि िग कु टु म्ब की कमण ने मरन की मान में िीत कर राधास्वामी गुरु संग

काि जबगाड़ा यारी शवारी8 फाूँसी डारी सुद्ध जबसारी खप गइ सारी बाज़ी रारी करत पुकारी करो सुधारी

री री री री री री री री

। । । । । । । ।

मोर िग फन्दा डारा री ।।1।। काल संग व्यारी क्वारी री ।।2।। करे िम राूँसी भारी री ।।3।। देर अब लागी प्यारी री ।।4।। पोट9 जसर भारी धारी री ।।5।। चार िग की नसर मारी री ।।6।। करो कोई ितन जवचारी री ।।7।। नाम रस जपयो अपारी री ।।8।।

।। िब्द तीसरा ।। मत

देख

पराये

औगुन । क्यों पाप बढ़ावे कदन कदन ।।1।।

1. डंक । 2. बन्दगी । 3. भारी धनाडय । 4. अधीन ककया हुआ । 5. संग (पंिाबी बोली) । 6. जनगले । 7. तकलीफ़ । 8. भयंकर । 9. बोझा ।

116

सार बचन

बचन 15

पर1 िीव सतावे जखन2 जखन । छोड़ अपने औगुन जगन जगन ।।2।। मक्खी सम मत कर जभन जभन । नसर खावे चोट तू जछन जछन ।।3।। देखा कर सब के तू गुन । सुख जमले बहुत तोजर पुन पुन ।।4।। मैं कहूं तोजर अब गुन गुन3 । तू मान बचन मेरा सुन सुन ।।5।। गजत गाई मैं यर रंसन । यों वर्ण सुनाई संतन ।।6।। अब कान धरो इन बचनन । नसर रोवोगे जसर धुन धुन ।।7।। यर बात करी मैं चुन चुन । कर राधास्वामी चरन स्पिणन4 ।।8।। ।। िब्द चौथा ।। मुसाकफर रजरना तुम हुजियार । ठगों ने आन जबछाया िाल ।।1।। अके ले मत िाना इस रार । गुरु जबन नसर रोगा जनरबार ।।2।। िमा सब लेंगे तेरी छीन । करें गें तुझ को अपना दीन ।।3।। ठगों ने रोका सब संसार । गुरु जबन पड़ गइ सब पर धाड़5 ।।4।। मान लो करना मेरा यार । संग इन तिना पकड़ ककनार ।।5।। गुरु जबन और न कोइ रखवार । कहूं मैं तुम से बारम्बार ।।6।। रोयगी मंजज़ल तेरी पार । गुरु से कर ले दृढ़ कर प्यार ।।7।। गुरु के चरन पकड़ यर सार । इन्द्री भोग भुलावत झाड़ ।।8।। यरी रैं ठजगया करत ठगार । करें राधास्वामी तोजर पुकार ।।9।। सरन में आ िा लेउूँ सम्रार । नाम संग रोिा रोत उधार ।।10।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। जमि तेरा कोई नरीं संजगयन में चेत कर प्रीत करो सतसंग में धन सम्पत तेरे काम न आवे आगे रै न अंधरे ी भारी यर देरी कफर राथ न आवे गुरु सेवा कर गुरु ररझाओ 1. पराया । 6. जनमणल ।

2. जछन जछन ।

। । । । । ।

पड़ा क्यों सोवे इन ठजगयन में ।।1।। गुरु कफर रं ग दें नाम अरूँ ग 6 में ।।2।। छोड़ चलो यर जछन में ।।3।। काि करो कु छ कदन में ।।4।। कफरो चौरासी बन में ।।5।। आओ तुम इस ढंग में ।।6।।

3. जवचार कर ।

4. छू ना ।

5. लूट । डाका ।

बचन 15

जचतावनी भाग दूसरा

गुरु जबन तेरा और न कोई िगत िाल में फूँ सो न भाई साध गुरु का करना मानो छल वल छोड़ो और चतुराई सुजमरन करो गुरु को सेवो कल की खबर काल कफर लेगा अबरी समझ देर मत कररयो यों समझाय करें राधास्वामी

। । । । । । । ।

117

धार बचन यर मन में ।।7।। जनस कदन ररो भिन में ।।8।। ररो उदास िगत में ।।9।। क्यों तुम पड़ो कु गजत1 में ।।10।। चल ररो आि गगन में ।।11।। वराूँ तुम चलो अजगन में ।।12।। ना िानूूँ क्या रोय इस पन2 में ।।13।। मानो एक बचन में ।।14।।

।। िब्द छठा ।। मौत से डरत ररो कदन रात थक कदन भारी भीड़ पड़ेगी वा कदन की तुम याद जबसारी एक कदन काठी बने तुम्रारी भाई बन्धु कु टु म्ब पररवारा आगे मरघट िाय उतारा वराूँ िमपुर में नकण जनवासा दोनों दीन जबगाड़े अपना वा कदन बहु पछतावा रोगा ज्वानी गई वृद्धता आई चेत करो मानो यर करना राधास्वामी करत सुनाई

।। टेक ।। । िम खूंदग ें े3 धर धर लात ।।1।। । अब भोगन में ररो भुलात ।।2।। । चार कररवा4 लादे िात ।।3।। । सो सब पीछे भागे िात ।।4।। । जतररया रोए जबखेरे लाट5 ।।5।। । यराूँ अजि में फूूँ के िात ।।6।। । अब नरीं सुनता सतगुरू बात ।।7।। । अब तुम करते अपनी घात 6 ।।8।। । अब कै कदन का इन का साथ ।।9।। । गुरु के चरन झुकाओ माथ ।।10।। । अब तुमको बहुजबजध समझात ।।11।।

।। िब्द सातवाूँ ।। बूँधे तुम गाढ़े7 बंधन आन ।। टेक ।। पजरले बंधन पड़ा देर का । दूसर

1. बुरी रालत । 2. अवस्था, उमर । वाले लोग । 5. बाल खोले हुए ।

जतररया

िान ।।1।।

3. पाओं के नीचे दलेंगे । 4. काठी उठाने 6. नुक़सान । 7. मज़बूत ।

118

सार बचन

तीसर बंधन पुि जबचारो । नाती के कसर नाजत रोवे । धन सम्पजत्त और रट रवेली । चौलड़ पचलड़ सतलड़ रसरी1 । कै से छू टन रोय तुम्रारा । मरे जबना तुम छू टो नारीं । िगत लाि और कु ल मयाणदा । लीक पुरानी कभी न छोड़ो । क्या क्या कहूं जबपत मैं तुम्रारी । तुम तो िगत सत्य कर पकड़ा । बेड़ी तौक़3 रथकड़ी बाूँधे । काल दुष्ट तुम्रें बहु जवजध बाूँधा । ऐसे मूरख दुख सुख िाना । िरम करो कु छ लज्या ठानो । राधास्वामी सरन गरो अब ।

बचन 15

चौथा नाती मान ।।2।। कफर करो कौन रठकान ।।3।। यर बंधन क्या करूूँ बखान ।।4।। बाूँध जलया अब बहु जवजध तान2 ।।5।। गररे खूूँटे गड़े जनदान ।।6।। िीते िी तुम सुनो न कान ।।7।। यर बंधन सब ऊपर ठान ।।8।। िो छोड़ो तो िग की रान ।।9।। भटको िोनी भूत मसान ।।10।। क्योंकर पावो नाम जनिान ।।11।। काल कोठरी कष्ट समान ।।12।। तुम ख़ुि रोके ररो गलतान4 ।।13।। क्या कहूं अिब सुिान ।।14।। नसर िमपुर का भोगो डान ।।15।। तो कु छ पाओ उनसे दान ।।16।।

।। िब्द आठवाूँ ।। चेत चल िगत से बौरे कफरे गाकफ़ल तू मद माता लगे नसर राथ कु छ तेरे चार कदन के सूँगाती यर ररो हुजियार िग ठग से मुसाकफ़र रो गुरु संग लो सुरत को तान गगना में काल की घात से बच कर

1. रस्सी । 5. पचना ।

2. कस कर । 6. मुसाकफर ।

। । । । । । । ।

कपट ति गरो गुरु सरना ।।1।। अंत जसर पीट कर मरना ।।2।। कु टु म्ब के साथ क्यों जपलना5 ।।3।। बटाऊ6 कफर नरीं जमलना ।।4।। बचा पूूँिी कमर कसना ।।5।। नाम िमिेर7 कर8 गरना ।।6।। पकड़ धुन बान घट ररना ।।7।। गरो राधास्वामी के चरना ।।8।।

3. गले का बन्धन । 4. डू बे हुए, भुले हुए । 7. तलवार । 8. राथ ।

बचन 15

जचतावनी भाग दूसरा

119

।। िब्द नावाूँ ।। तिो मन यर दुख सुख का धाम । कदना चार तन संग बसेरा । धन दारा1 सुत नाती कजरयन2 । स्वाूँस दुधारा जनत री िारी । मिक समान िान यर देरी । तू अचेत गाकफ़ल रो ररता । माया नारर पड़ी तेरे पीछे । जबन गुरु दया छु टो नसर या से । गुरु का ध्यान धरो जररदे में । वे दयाल तेरी दया जवचारें । छोड़ भोग क्यों रोग जबसावे5 । गुरु का करना मान जपयारे । दुख तेरा सब दूर करें गे । राधास्वामी करत सुनाई ।

लगो तुम चढ़ कर अब सत्तनाम ।।1।। कफर छू टे यर ग्राम ।।2।। यर नसर आवें काम ।।3।। इक कदन खाली चाम ।।4।। बरती आठों िाम ।।5।। सुने न मूल कलाम3 ।।6।। क्यों नसर छोड़त काम ।।7।। भिो गुरु का नाम ।।8।। मन को राखो थाम ।।9।। दम दम करें सराम4 ।।10।। या में नसर आराम ।।11।। तो पावे जवश्राम ।।12।। देंगे अचल मुक़ाम ।।13।। खोि करो जनि नाम ।।14।।

।। िब्द दसवाूँ ।। देखो सब िग िात बरा देख देख मैं गजत या िग की चारों िुग चौरासी भोगी िन्म िन्म दुख पावत बीते पाप पुण्य बस जबपता भोगी अब यर देर जमली ककरपा से

।। टेक ।। । बार बार यों वर्ण करा ।।1।। । अजत दुख पाया नकण ररा ।।2।। । एक जछन करीं न चैन लरा6 ।।3।। । नसर सतगुरू का चरन गरा ।।4।। । करो भजि िो कमण दरा7 ।।5।।

1. स्त्री । 2. करावे । 7. िलें ।

4. सरायता ।

3. िब्द ।

5. खरीदना ।

6. जमला ।

120

सार बचन

बचन 15

अब की चूक माफ़ नसर रोगी । नाना जवजध के कष्ट सरा ।।6।। गफ़लत छोड़ भुलाओ िग को । नाम अमल अब घोट जपया ।।7।। मन से डरो करो गुरु सेवा । राधास्वामी भेद कदया ।।8।। ।। िब्द ग्याररवाूँ ।। कोइ मानो रे करन रमारी ।। टेक ।। िो िो कहूं सुनो जचत देकर । गौं1 की कहूं तुम्रारी ।।1।। िग के बीच बूँधे तुम ऐसे । िैसे सुवना2 नलनी3 धारी ।।2।। मरकट4 सम तुम हुए अनाड़ी । मुट्ठी दीन फूँ सा री ।।3।। और मीना5 जिह्वा रस माती6 । काूँटा जिगर जछदा री ।।4।। गि7 सम मूरख हुए इस बन8 में । झूठी रथनी देख बूँधा री ।।5।। क्या क्या कहूं काल अन्याई । बहुजवजध तुमको फाूँस जलया री ।।6।। तुम अंिान ममण नसर िाना । छल बल कर इन फाूँस जलया री ।।7।। छू टन की जवजध नेक न मानो । क्यों कर छू टन रोय तुम्रारी ।।8।। सतगुरू संग हुए उपकारी । उनका संग करो न स्मरारी ।।9।। वे दयाल अस िुगत लखावें । कर दें तुम ं छु टकारी ।।10।। पाूँच तत्व गुन तीन िेवरी6 । काटें पल पल बंधन भारी ।।11।। उनकी संगत करो ममण ति । पावो तुम गजत न्यारी ।।12।। िगत िाल सब धोखा िानो । मन मूरख संग कीन्री यारी ।।13।। इसका संग तिो तुम जछन जछन । नसर यर लेगा िान तुम्रारी ।।14।। अपने घर से दूर पड़ोगे । चौरासी के धक्के खा री ।।15।। बड़ी कु गजत में िाय पड़ोगे । वराूँ से तुम को कौन जनकारी ।।16।। ता ते अब री करना मानो । राधास्वामी करत जवचारी ।।17।।

1. मतलब । 2. तोता । 3. पकड़ने की कला । 6. मस्त । 7. राथी । 8. संसार । 9. रस्सी ।

4. बन्दर ।

5. मछली ।

बचन 15

जचतावनी भाग दूसरा

121

।। िब्द बाररवाूँ ।। अटक तू क्यों ररा िग में खटक तू धार अब मन में जवरर की आग िब भड़के लगा लो लगन सतगुरू से छु टेगा िन्म और मरना भाग तेरा िगर सोता कहूं क्या काल िग मारा नरीं कोई मौत से डरता पड़े सब मोर की फाूँसी चेत करो रोय अब कै से काम और क्रोध जबच जबच में गुरु जबन कोइ नरीं अपना कु टु म्ब पररवार मतलब का कराूँ लग कहूं इस मन को गुरु और साध करें बहु जवजध मेरर जबन क्या कोई माने

। । । । । । । । । । । । । । । ।

भटक में क्या जमले भाई ।।1।। खोि सतसंग में िाई ।।2।। दूर कर िगत की काई ।।3।। जमले कफर िब्द लौ लाई ।।4।। अमर पद िाय तू पाई ।।5।। नाम और धाम जमल िाई ।।6।। िीव सब घेर भरमाई ।।7।। खौफ िम का नरीं लाई ।।8।। लोभ ने मार धर खाई ।।9।। गुरु के संग नसर धाई ।।10।। िीव से भाड़1 झोंकवाई ।।11।। िाल यर कौन तुड़वाई ।।12।। जबना धन पास नसर आई ।।13।। उन्रीं से मास नुचवाई ।।14।। करन उनकी न पजतयाई2 ।।15।। करी राधास्वामी यर गाई ।।16।।

।। िब्द तेररवाूँ ।। जमली नर देर यर तुम को पचो मत आय इस िग में देर और ग्रेर3 सब झूठा िीव सब लोभ में भूले तृष्र्ा4 अजि िग िारा नरीं कोइ रार बचने की

1. भट्टी ।

2. प्रतीत करना ।

। । । । । ।

बनाओ काि कु छ अपना ।।1।। िाजनयो रै न का सुपना ।।2।। भमण में कारे को खपना ।।3।। काल से कोई नरीं बचना ।।4।। पड़ा सब िीव को तपना ।।5।। िले सब नकण की अजगना ।।6।।

3. घर

122

सार बचन

िलेंगे आग में जनसकदन भटकते वे कफरें खानी कहूं क्या दुक्ख वर भोगें दया कर संत और सतगुरू न माने िुजि यर उनकी जबना सतगुरू जबना करनी कराूँ लग मैं कहूूँ उनको हुये मनमुख कफरें दुख में पुिावें आप को िग में कफ़कर नसर िीव का अपने समझ कर धार लो मन में

। । । । । । । । । । ।

बचन 15

बहुरर1 भोगें िनम मरना ।।7।। नरीं कु छ ठीक उन लगना ।।8।। करन में आ नरीं सकना ।।9।। बतावें नाम का िपना ।।10।। सुरत और िब्द का गरना2 ।।11।। छु टे नसर खान का कफरना ।।12।। कोई नसर मानता करना ।।13।। वचन गुरु का नरीं माना ।।14।। गुरु की सेव नसर करना ।।15।। पड़ेगा नकण में फु कना ।।16।। करें राधास्वामी जनि बचना ।।17।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। यराूँ तुम समझ सोच कर चलना ।। टेक ।। यर तो रार बड़ी अजत टेढ़ी । मन के साथ न पड़ना ।।1।। भौिल धार बरे अजत गररी । जबन गुरु कै से पार उतरना ।।2।। गुरु से प्रीत करो तुम ऐसी । िस कामी काजमन संग धरना ।।3।। संग करो चेटक3 जचत राखो । मन से गुरु के चरन पकड़ना ।।4।। छल वल कपट छोड़ कर बरतो । गुरु के बचन समझना ।।5।। डरते ररो काल के भय से । खबर नरीं कब मरना ।।6।। स्वाूँसो स्वाूँस रोि कर बौरे । पल पल नाम सुजमरना ।।7।। यराूँ की गफ़लत बहुत सतावे । कफर आगे कु छ नसर बन पड़ना ।।8।। िो कु छ बने सो अभी बनाओ । कफर का कु छ न भरोसा धरना ।।9।। िग सुख की कु छ चार न राखो । दुख में इसके दुखी न ररना ।।10।। दुख की घड़ी गनीमत4 िानो । नाम गुरु का जछन जछन भिना ।।11।।

1. कफर ।

2. पकड़ना ।

3. चार ।

4. अच्छी, उत्तम ।

बचन 15

जचतावनी भाग दूसरा

सुख में गाकफ़ल1 ररत सदा नर ता ते चेत करो सतसंगत अपना रूप लखो घट भीतर राधास्वामी करें बुझाई

। । । ।

123

मन तरं ग में दम दम बरना ।।12।। दुख सुख नकदयाूँ पार उतरना ।।13।। कफर आगे को सूरत भरना ।।14।। िब्द गुरु से िाकर जमलना ।।15।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।। मन रे क्यों गुमान अब करना ।। टेक ।। तन तो तेरा खाक जमलेगा । चौरासी िा पड़ना ।।1।। दीन गरीबी जचत में धरना । काम क्रोध से बचना ।।2।। प्रीत प्रतीत गुरु की करना । नाम रसायन घट में िरना2 ।।3।। मन मलीन के करे ना चलना । गुरु का बचन जरये जबच रखना ।।4।। यर मजतमंद गरे नसर सरना । लोभ बढ़ाय उदर3 को भरना ।।5।। तुम मानो मत इसका करना । इसके संग िगत जबच जगरना ।।6।। इस मूरख को समझ पकड़ना । गुरु के चरन कभी न जवसरना ।।7।। गुरु का रूप नैन मैं धरना । सुरत िब्द से नभ पर चढ़ना ।।8।। राधास्वामी नाम सुजमरना । िो वर करें जचत में धरना ।।9।। ।। िब्द सोलरवाूँ ।। िोड़ो री कोई सुरत नाम से यर तन धन कु छ काम न आवे अब तो समय जमला अजत सुन्दर सुजमरन कर सेवा कर सतगुरू

।। टेक ।। । पड़े लड़ाई िाम3 से ।।1।। । सीतल रो बच घाम4 से ।।2।। । मनजर5 रटाओ काम से ।।3।।

मन इन्द्री कु छ बस कर राखो । जपयो

घूटूँ

गुरु

िाम6 से ।।4।।

लगे रठकाना जमले मुक़ामा । छू टो मन के दाम7 से ।।5।। भिन करो छोड़ो सब आलस । जनकर चलो कजल ग्राम8 से ।।6।। दम दम करो बेनती गुरु से । वरी जनकारें तन चाम से ।।7।। 1. भूला हुआ । 2. बनाना । 3. यमराि । 4. संसार को तपन । 5. मन को । 6. प्याला । 7. िाल । 8. काल के देि से जनकालो ।

124

सार बचन

बचन 15

और उपाव न ऐसा कोई । रटन करो सुबर िाम से ।।8।। प्रीत लाय जनत करो साध संग । रट ररो िग के खासो आम से ।।9।। राधास्वामी करें सुनाई । लगो िाय सतनाम से ।।10।। ।। िब्द सताररवाूँ ।। िगत से चेतन ककस जवजध रोय । मोर ने बाूँध जलया अब मोसर ।।1।। बेजड़याूँ भारी पड़ती िायूँ । फाूँजसयां करड़ी लगी आयूँ ।।2।। िाल अब चौड़े जबछ गये आय । चाट1 अब सुख की कु छ कु छ पाय ।।3।। दुक्ख अब पीछे रोगा आय । खबर नसर उसकी कौन बताय ।।4।। पड़ेगी भारी इक कदन भीड़ । सरेगा नाना जवजध की पीड़ ।।5।। करे गा पछतावा िब बहुत । अभी तो सुनता नसर कदन खोत ।।6।। याद नरीं लाता अपनी मौत । रात कदन गफ़लत में पड़ा सोत ।।7।। करे में मन के चलता बहुत । भरे रै कदन भर िग का पोत2 ।।8।। रात को सोता खाट बछाय । रोि नसर कल को क्या रो िाय ।।9।। काल ने मारा कर कर ज़ेर3 । कमण ने खूद ूँ ा धर धर पैर ।।10।। तमोगुर् छाय गया घट मासर । खबर सब भूल गया यराूँ आय ।।11।। संत और सतगुरू ररे जचताय । बचन उन मन में नरीं समाय ।।12।। भिनऔर सुजमरन कदया जबसराय । प्रीत भी उन चरनन नसर लाय ।।13।। करो कस छू टे िम की घात । भोग और सोग लगे कदन रात ।।14।। गुरु जबन कौन छु ड़ावे ताय । हुआ यर क़ै दी बहु जवजध आय ।।15।। जबना सतसंग और जबन नाम । न पावे कबरी अपना धाम ।।16।। करी राधास्वामी यर गजत गाय । सरन ले संत की तू िाय ।।17।। ।। िब्द अठाररवाूँ ।। कु मजतया बैरन पीछे पड़ी । मैं सतगुरू बचन न माने कबरी । उन

1. मज़ा, चसका ।

2. कर, लगान ।

कै से संग

3. नीचे, अधीन ।

रटाऊूँ धरे

िान ।।1।। गुमान ।।2।।

4. कु चला ।

बचन 15

जचतावनी भाग दूसरा

काम क्रोध की सनी बुजद्ध से सेवा करे न सरधा लावे अपनी गजत रालत नसर बूझे लोभ मोर की सूखी नकदयाूँ संत मता करो कै से बूझे जतन से संत मौन रोय बैठे कु मजत अधीन हुए सब प्रानी जिन पर मेरर पड़े आ सरना अपनी उजि1 चतुरता छोड़ें तब सतगुरू प्रसन्न रोय कर कु मजत रटाय छु ड़ावें पीछा जबना िब्द उद्धार न रोगा सोई गावें राधास्वामी

। । । । । । । । । । । । ।

125

परखा चारे उन का ज्ञान ।।3।। उलट करावे उनसे मान ।।4।। कै से लगे रठकान ।।5।। ता में जनस कदन ररे भरमान ।।6।। अपनी मजत के दे परमान ।।7।। सो जिव करते अपनी रान ।।8।। क्या क्या उनका करूूँ बखान ।।9।। वे पावें सतगुरू पजरचान ।।10।। अपने को िानें अनिान ।।11।। देवें पता जनिान ।।12।। सुरत लगावें िब्द ध्यान ।।13।। सब संतन यर ककया बखान ।।14।। िो कोइ माने सोइ सुिान ।।15।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। सोता मन कस िागे भाई तीरथ करे बतण भी राखे िप तप संिम बहु जबजध धारे अस उपाव रम बहुतक कीन्रे खोित खोित सतगुरू पाये सतसंग करो संत को सेवो सतगुरू िब्द सुनो गगना चढ़ िागत िागत अब मन िागा मन की मदद जमली सूरत को जबना िब्द यर मन नसर िागे

1. अक्ल, खयाल ।

। । । । । । । । । ।

सो उपाव मैं करूूँ बखान ।।1।। जवद्या पढ़ के हुए सुिान ।।2।। मौनी हुए जनदान ।।3।। तो भी यर मन िगा न आन ।।4।। उन यर िुि करी परमान ।।5।। तन मन करो क़ु रबान ।।6।। चेत लगाओ अपना ध्यान ।।7।। झूठा लगा िरान ।।8।। दोनों अपने मरल समान2 ।।9।। करो चारे कोइ अनेक जवधान ।।10।।

2. समा िायें, मन ब्रह्म में समा िायें सुरत सतपूरूष में ।

126

सार बचन

यरी उपाव छाूँट कर गया जबरथा बैस1 जबतावें अपनी संत जबना सब भटके डोलें िब्द िब्द मैं िब्दजर गाऊूँ घर पावे चौरासी छू टे राधास्वामी करें बुझाइ

। । । । । ।

बचन 14

और उपाय न कर परमान ।।11।। लगे न कभी रठकान ।।12।। जबना संत नसर िब्द जपछान ।।13।। तू भी सुरत लगा दे तान ।।14।। िन्म मरन की रोवे रान ।।15।। जबना संत सब भटके खान ।।16।।

।। िब्द बीसवाूँ ।। खोि री जपया को जनि घर में िो तुम जपया से जमलना चारो तीरथ बतण कमण आचारा िब लग सतगुरू जमलें न पूरे नाम सुधा रस कभी न पाओ पंजडत क़ािी भेख िेख सब इन के संग जपया नसर जमलना यर तौ भूले जवषय बास में जबना संत कोइ भेद न पावे िब लग संत जमलें नसर तुम को राधास्वामी सरन गरो तो

।। टेक ।। । तो भटको मत िग में ।।1।। । ये अटकावें मग2 में ।।2।। । पड़े ररोगे अघ3 में ।।3।। । भरमो िोनी खग4 में ।।4।। । अटक ररे डग डग5 में ।।5।। । जपया जमले कोइ साध समग6 में ।।6।। । भमण धसे इन की रग रग में ।।7।। । वे तोजर करें अलग में ।।8।। । खाय ठगौरी तू इन ठग में ।।9।। । रलो िोत िगमग में ।।10।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। गुरु करें पुकार पुकार । समझ मन करलो सुजमरजनयाूँ ।।1।। स्वाूँसो स्वाूँस घटे तेरी पूूँिी । चली िाय यर उमरजनयाूँ ।।2।। वि जमला यर तख़्तनिीनी । छोड़ बान7 अब घुरजबजनयाूँ8 ।।3।।

1. उमर । 2. रास्ता । 3. पाप । 4. पंछी । 7. आदत । 8. मुरग़ी िो घूरा (कू ड़ा) चुगती रै ।

5. क़दम क़दम ।

6. संग ।

बचन 15

जचतावनी भाग तीसरा

यर मारग अब गुरु बतावें िब्द संग तुम सुरत लगाओ दया लेव तुम ररदम उनकी वर तो भेद बतावें घट का लागी लगन बहुरर नसर सूझे जिन जिन संग करा गुरु पूरे िगत िार ति सार समझ तू सतसंग करो प्रीत घट धारो गगन जगरा4 परखो धुन बानी पहुंचो िाय अधर में प्यारी या िग में कोइ सुखी न देखो दुख के िाल फूँ से सब मूरख मैं तू मोर तोर सब त्यागो

। । । । । । । । । । । । ।

127

पकड़ गरो तुम उर1 धजनयाूँ ।।4।। ररो जनत्त गुरु मुिरजनयाूँ2 ।।5।। सरन पड़ो उन चरनजनयाूँ ।।6।। पकड़ िब्द भौ तरनजनयाूँ ।।7।। सुरत अिर में िरनजनयाूँ ।।8।। छु टा िन्म और मरनजनयाूँ ।।9।। जमटे चौरासी भरमजनयाूँ ।।10।। देख रूप चढ़ दपणजनयाूँ3 ।।11।। यरी कमाई करनजनयाूँ ।।12।। गाूँठ खुले तब तन मजनयाूँ ।।13।। गरो गुरु के बचनजनयाूँ ।।14।। तू क्यों उन संग फूँ सनजनयाूँ ।।15।। गरो राधास्वामी सरनजनयाूँ ।।16।।

।। बचन सोलरवाूँ ।। ।। जचतावनी भाग तीसरा ।। ।। उपदेि सतगुरू भजि का ।। ।। िब्द पजरला ।। यर तन दुलभ ण तुमने अब या को जबरथा मत भजि करो तो गुरु की िब्द मारगी गुरु न गुरु सोई िो िब्द

1. अन्तरी ।

2. राजज़र ।

पाया खोवो करना रोवे सनेरी

। । । । ।

कोरट िन्म भटका िब खाया ।।1।। चेतो जछन जछन भजि कमावो ।।2।। मारग िब्द गुरु से लेना ।।3।। तो झूठी गुरूवाई लेवे ।।4।। िब्द जबना दूसर नसर सेई ।।5।।

3. आईना, िीिा ।

4. वार्ी, िब्द ।

128

सार बचन

िब्द करा मैं गगन जिखर का िब्द करा मैं भूँवर डगर का गुरु पजरचान खूब मैं गाई िब्द कमावे सो गुरु पूरा और पजरचान करो मत कोई िब्द भेद लेकर तुम उनसे अपने िीव की कु छ दया पालो नसर नकण न में अजत दुख पइरो यर सुख चार कदनों का भाई बार बार मैं कहूूँ जचताई मेरे मन करूर्ा4 अस आई जबन गुरु और न पूिो कोई गुरु पूिा में सब की पूिा देवी देवा ईि मरेिा ब्रह्म और पारब्रह्म सतनामा गुरु सेवा में सब की सेवा ताते बार बार समझाऊूँ गुरुमुख रोय गुरु आज्ञा बरते गुरु मजरमा मैं कराूँ लग गाऊूँ गुरु अस्तुत रै सब मत मारीं भोग जबलास हुकू मत िग की राककम सेवा तुम कस करते आज्ञा उसकी अस जसर धरते सो धन िोड़ ककया क्या भाई सो िग की गजत पजरले भाखी

1. गुर्, लक्षर् । 6. िगर ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 16

िब्द करा मैं सुन्न िरर का ।।6।। िब्द करा मैं अगम नगर का ।।7।। धोखा या में कु छ न रराई ।।8।। उन चरनन की रोिा धूरा ।।9।। लक्ष1 अलक्ष2 न देखो सोई ।।10।। िब्द कमाओ तुम तन मन से ।।11।। चौरासी का फे र बचा लो ।।12।। अजग्र कुं ड में जछन जछन दजररो ।।13।। कफर दुख सदा रोय दुखदाई ।।14।। दया तुम्रारी मोसर सताई ।।15।। चेतो तुम गुरु रोयूँ सराई ।।16।। दिणन कर गुरु पद जनत सेई ।।17।। िस समूद्र सब नदी समािा ।।18।। सूरि िेष और गौर गनेिा ।।19।। तीन लोक और चौथा धामा ।।20।। रं चक4 भमण न मानो भेवा5 ।।21।। गुरु की भजि जछन जछन गाऊूँ ।।22।। गुरु बरती इक जछन में तरते ।।23।। गुरु समान कोइ और न पाऊूँ ।।24।। गुरु से बेमुख ठौर6 न पाई ।।25।। धन और राककम के बस ररती ।।26।। धन और मान बड़ाई लेते ।।27।। खान पान सनद्रा भी तिते ।।28।। िगत लाि में कदया उड़ाई ।।29।। चार कदनां कफर रै नसर बाकी ।।30।।

2. औगुर्, कु लक्षर् ।

3. दुख देती रै ।

4. दया ।

5. भेद ।

बचन 16

जचतावनी भाग तीसरा

सो धन कारर् राककम सेवा । गुरु सेवा िो सदा सराई । कदन नसर पक्ष मास नसर बरसा । करो कै से तुम्रारा उद्धारा । उस दुख में करो कौन सराई । िो इसकी परतीत न लाओ । रोग दुक्ख जनत प्रती सताई । मृत्यु रोन में नसर कु छ संसा । यर सरसा तुम पर भी आवे । उस कदन का कु छ करो उपाई । कारि लेना यर रै भाइ । गुरु नसर भूखा तेरे धन का । पर तेरा उपकार करावें । उनकी मेरर मुफ़्त तू पावे । उनका खुि रोना रै भारी । गुरु प्रसन्न रोयूँ िा ऊपर । गुरु राज़ी तो करता राज़ी । गुरु की आन3 सभी जमल मानें । ताते गुरु को लेव ररझाई । गुरु प्रसन्न और सब रूठे । औरन को प्रसन्न िो करता । गुरु की जनन्दा से नसर डरता । सो नरकी िानो अपघाती5 । याते6 समझो बूझो भाई ।

1. भेद । 2. चाल । वाला । 6. इससे ।

3. पक्ष ।

129

ऐसी करते क्या कहुं भेवा1 ।।31।। ताको एसी पीठ कदखाई ।।32।। कभी न दिणन को मन तरसा ।।33।। नकण जनवास दुक्ख चौ धारा ।।34।। गुरु से प्रीत न करी बनाई ।।35।। तौ मन अपना यों समझाओ ।।36।। मौत जपयादे रैं यर भाई ।।37।। वर तो करे सकल जिव सरसा ।।38।। इक कदन काल सीस पर धावे ।।39।। धन राककम कु छ काम न आई ।।40।। गुरु सेवा में खचण कराई ।।42।। उन पै धन रै भजि नाम का ।।43।। भूखे प्यासे को कदलवावें ।।44।। िो उनको परसन्न करावे ।।45।। सत्तपुरूष जनि ककरपा धारी ।।46।। वरी िीव रै सब के उपर ।।47।। कमण काल की चले न बाज़ी2 ।।48।। िुकदेव नारद व्यास बखानें ।।49।। औरन रीझे कु छ न भलाई ।।50।। तो भी उसका रोम न टू टे ।।51।। गुरु से द्रोर4 घात िो रखता ।।52।। गुरु को मानुष रूप समझता ।।53।। उस संग दूत करें उतपाती ।।54।। गुरु को प्रसन्न करो बनाई ।।55।।

4. बैर ।

5. अपने िीव की घात करने

130

सार बचन

कु ल कु टु म्ब कु छ काम न आई यर तो चार कदना के संगी लिा डर इन का मत करो गुरु सरायता यराूँ व्राूँ करें कु ल कु टु म्ब से कु छ नसर सरे कायण माि बरतो इन मारीं ताते सतसंग सतगुरू सेवो गुरु समान और नाम समाना इन से सब कारि रोयूँ पूरे यर करना मेरा अब मानो धन और मान काम नसर आवे ता ते कु छ भजि कर लीिे

। । । । । । । । । । । ।

बचन 16

और जबरादरी करे न सराई ।।56।। इन जनि स्वारथ में बुजध रं गी ।।57।। गुरु भजि में अब जचत धरो ।।58।। उनसे करता भी कु छ डरे ।।59।। इन के संग नकण में पड़े ।।60।। बहुत मोर में बहु दुख पाई ।।61।। नाम पदारथ दम दम लेवो ।।62।। तीसर सतसंग और न िाना ।।63।। कमण काट पहुंचो घर मूरे1 ।।64।। नरीं अंत को पड़े पछतानो ।।65।। हुकु म राककमी सभी नसावे ।।66।। यर भी सुफल कमाई कीिे ।।67।।

।। िब्द दूसरा ।। भेद आरती सुन सजख मो से सरधा थाल राथ लो पजरले िगत भोग से कर बैरागा सुरत िब्द का गावो गीत दया करें तब राधास्वामी दृजष्ट िोड़ कर आरत फे रो पूरन पद को करो पयाना4 आरत गाई प्रेम भजि से

। । । । । । । ।

प्रगट बनाय कहूं अब तो से ।।1।। सम2 दम िोत प्रेम घी मेले ।।2।। काम क्रोध तब जछन में त्यागा ।।3।। गुरु चरनन में िोड़ो चीत ।।4।। इक कदन देवें पद जनि नामी ।।5।। तन मन अपने दोनों घेरो ।।6।। सत्तनाम सब सुरत समाना ।।7।। मन को मोड़ा िब्द िुजि से ।।8।।

।। िब्द तीसरा ।। सोचत करा सजख करले आरत । कफर नसर ऐसा समय परापत ।।1।।

1. मूल ।

2. मन का रोकना ।

3. इजन्द्रयों का रोकना । 4. चलने की तैयारी ।

बचन 17

जचतावनी भाग चौथा

करा1 करूूँ सिनी2 मैं जबन बल कर धीरि मैं करूं उपाई वे दयाल िब ककरपा धारें िब्द थाल देवें स्त्रुत राथा िब आरत तू करे बनाई यर जनश्चय कर साूँची िानो भोग लगाय लेव परसादी राधास्वामी िप जनि नामा

। । । । । । । ।

131

तन मन मेरा रै अजत चंचल ।।2।। सतसंग कर स्वामी कढग3 िाई ।।3।। मन चंचल को जछन में मारें ।।4।। प्रेम िोत िगवावें साथा ।।5।। तबरी मुजि पदारथ पाई ।।6।। तुम स्वामी को समरथ मानो ।।7।। चरनामृत ले मन को साधी ।।8।। सत्तलोक पावे तब धामा ।।9।।

।। बचन सतारवाूँ ।। ।। जचतावनी भेखों को ।। भाग चौथा

।। िब्द पजरला ।। तुम साध करावत कै से मान न छोड़ो क्रोध न छोड़ो कोमल जचत्त न कोमल बोली आप पुिावत काहु न पूित काम न छू टा लोभ न छू टा भिन भजि अभ्यास न करते घर छोड़ा उद्यम3 पुजन छोड़ा देि जवदेि कफरो झख मारत दंभ8 कपट छल जररदे बसता चौके से रम रोटी खावें बुजद्ध जवचार न गुरु जमला पूरा

। । । । । । । । । । ।

मैं पूछूूँ तुम से ऐसे ।।1।। कु रटल4 बचन नसर सरते ।।2।। दया भाव नसर लेस5े ।।3।। मांग मांग धन िोड़त पैसे ।।4।। मोर ईषाण डारत पीसे ।।5।। कभी न छू टो तुम इस िम से ।।6।। मेरनत कोई न करते ।।7।। कफ़न7 पजरन क्यों लाि लगाते ।।8।। जगररी9 को आचार कदखाते ।।9।। रोटी पूरी भेद समझते ।।10।। जगररी की भय लिा करते ।।11।।

1. क्या । 2. सखी । 3. जनकट । 4. सशत, कड़वा । 6. रोिगार । 7. कफ़नी, साधुओं का कपड़ा । 8. फरे ब ।

5. ज़रा सा भी । 9. गृरस्थी ।

132

सार बचन

साध चरन अठिठ1 से उत्तम तुम तो कमण भमण में भटके भेख बनाय िगत को ठगते अब कु छ समझ करो सतसंगत जबरर भाव बैराग सम्रालो मन को मारो इन्द्री बाूँधो तब जचत्त कोमल बुजद्ध जनरमल अब क्या कहूं करा मैं बहुतक िो जनलि कपटी िग मारे राधास्वामी करत सुनाई

। । । । । । । । । ।

बचन 17

भूजम पजवि िराूँ पग धरते ।।12।। साध नाम अपना क्यों धरते ।।13।। काल ठगौरी2 डाली तुम पै ।।14।। डरो ज़रा नकण न के दुख से ।।15।। भजि करो और भागो िग से ।।16।। सुरत लगाओ िब्द अधर से ।।17।। आप रोय छू टो मन ठग से ।।18।। अजधकारी माने इक तुक3 से ।।19।। वर क्या िानें भूत पिू से ।।20।। मानेंगे कोइ रंस बचन से ।।21।।

।। िब्द दूसरा ।। िब्द की करी न कोई कमाई यर िब्द अधर से आता अंतर में सुरत लगाता यर करना सभी भुलाता तू िब्द न दृढ़ कर गरता िो िब्द राथ तेरे आता जबन िब्द न और कमाता कोइ मजरमा िब्द सुनाता तैं क़दर िब्द नसर िानी िो िब्द का रजसया रोता तेरी दिा और री रोती अब बात बना तू बहुती जिन िब्द कमाया भाई

1. अड़सठ तीथण ।

। । । । । । । । । । । । ।

कफर ममण कराूँ से पाई ।।1।। तू सुन सुन कर क्या गाता ।।2।। तौ भेद अधर का पाता ।।3।। जबन िब्द न और सुराता ।।4।। ता ते मन जछन जछन बरता ।।5।। तो रोता मन रस माता4 ।।6।। इच्छा सब दूर बराता ।।7।। तू उस से प्रेम बढ़ाता ।।8।। तेरी बातें झूठ करानी ।।9।। तो मान प्रजतष्ठा खोता ।।10।। तेरी सुरत न कबरी बरती ।।11।। पर िब्द कमाई न रोती ।।12।। उन सुरत अगम रस पाई ।।13।।

2. ठगाई या फ़रे ब ।

3. कड़ी बचन ।

4. मतवाला ।

बचन 18

उपदेि सतगुरू भजि का

133

सब िगत लगा उन फीका । इक िब्द सभी का टीका1 ।।14।। राधास्वामी गायें यर ठीका । जिन मानी जतन रस चीखा ।।15।।

।। बचन अट्ठाररवाूँ ।। उपदेि सतगुरू भजि का ।। िब्द पजरला ।। गुरु करो खोि कर भाई िग डू बा भौिल धारा िग पंजडत भेख जबचारे संतन से प्रीत न धारी तप तीरथ बतण पचे रे भजि रस नेक न पाया भजि का भेद न िाना गुरु सब को पार लगावें गुरु से तू बेमख ु कफरता करमों में पचता खपता अब चेतो समझो भाई कर कर राधास्वामी गाई

। । । । । । । । । । । ।

जबन गुरु कोइ रार न पाई ।।1।। कोइ जमला न काढ़नरारा2 ।।2।। क्या िोगी ज्ञानी रारे ।।3।। क्यों उतरें भौिल पारी ।।4।। पढ़ जवद्या मान भरे रे ।।5।। भिों की सरन न आया ।।6।। गुरु को सतपुरूष न माना ।।7।। िो िो उन चरन ध्यावें ।।8।। मन के जनत सन्मुख ररता ।।9।। नर देरी बाद3 गूँवाता ।।10।। कर प्रीत गुरु संग आई ।।11।। करनी कर जमले बड़ाई ।।12।।

।। िब्द दूसरा ।। गुरु की कर ररदम पूिा गुरु चरन सेव जनत कररये गुरु दिण करो आूँखन से गुरु के बल मन को मारो गुरु ब्रह्म रूप धर आये

1. सब से बड़ा ।

। । । । ।

गुरु तन गुरु गुरु गुरु

2. जनकालने वाला ।

समान कोई देव न दूिा ।।1।। मन गुरु आगे धररये ।।2।। बचन सुनो सरवन से ।।3।। के बल काल संघारो4 ।।4।। पारब्रह्म गजत गाये ।।5।।

3. जनष्फल ।

4. नाि करो ।

134

सार बचन

बचन 18

गुरु सत्तनाम पद खोला । गुरु अलख अगम को तोला ।।6।। गुरु रूप धरा राधास्वामी । गुरु से बड़ नरीं अनामी ।।7।। ।। िब्द तीसरा ।। गुरु ध्यान धरो तुम मन में गुरु री गुरु गावो भाई जितने पद ऊूँचे नीचे गुरु री घट भेद लखाया मरसुन्न भी गुरु कदखलाई गुरु सत्तलोक पहुंचाया गुरु री सब भेद बखाना

। । । । । । ।

गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु

नाम सुजमर जछन जछन में ।।1।। री कफर रोयूँ सराई ।।2।। जबन कोइ नारीं पहूूँचे ।।3।। री सुन जिखर चढ़ाया ।।4।। भूँवरगुफा दरसाई ।।5।। अलख अगम परसाया ।।6।। से राधास्वामी िाना ।।7।।

।। िब्द चौथा ।। गुरु चरन पकड़ दृढ़ भाई गुरु बचन करो आधारा गुरु की गजत अगम अपारा गुरु राखो जररदे मारीं भोगों की आसा त्यागो आसा गुरु िब्द लगाओ आसा और मनसा मोड़ी कदन रात ररे गुरु ध्याना गुरु स्वाूँस जगरास न जबसरे गुरु रैं जरतकारी तेरे गुरु फं द छु ड़ावे िम के भौिल से पार उतारें ज्यों जनि सेवे कच्छा3

1. छाया ।

2. मजरमा ।

। । । । । । । । । । । । ।

गुरु का संग करो बनाई ।।1।। गुरु दिण जनरारो सारा ।।2।। गुरु अस्तुजत करो सूँवारा ।।3।। तो जमटे काल परछारीं1 ।।4।। मन्सा ति िग से भागो ।।5।। मन्सा गुरु पद में लाओ ।।6।। मन इन्द्री गुरु में िोड़ी ।।7।। गुरु जबन कोई और न िाना ।।8।। तू पल पल गा गुरु िस2 रे ।।9।। गुरु जबन कोइ जमि न रै रे ।।10।। गुरु ममण लखावें सम के ।।11।। जछन जछन में तुझे सूँवारें ।।12।। त्यों गुरु राखैं तेरी पच्छा4 ।।13।।

3. कछु आ ।

4. पक्ष ।

बचन 18

सतगुरू भजि

135

गुरु सम और नरीं को रक्षक । कु ल कु टु म्ब सब िानो तक्षक1 ।।14।। ताते गुरु को कभी न छोड़ो । कनक काजमनी से मन मोड़ो ।।15।। गुरु की भजि सदा सुखदाई । गुरु जबन मन बुजद्ध भी दुखदाई ।।16।। गुरु जवश्वास जचत्त में धरो । गुरु परिाद िगत से तरो ।।17।। मान मोर मद गुरु सब ररें । काम क्रोध भी तुझ से डरें ।।18।। लोभ लरर सब देयूँ जनकारी । माया ममता बाज़ी रारी ।।19।। तुझ से िीत सके नसर कोई । गुरु का बल िो मन में रोई ।।20।। गुरु से पावे नाम रसायन । घट से भागे तृष्र्ा डायन ।।21।। गुरु चरनामृत गुरु परिादी । प्रीत सजरत ले जमटे उपाधी2 ।।22।। गुरु पै तन मन दोनों वारो । जररदे में गुरु रूप जनरारो ।।23।। गुरु रैं दाता गुरु रैं दानी । गुरु आराधो3 जछन जछन प्रानी ।।24।। सत्तपुरूष सतनाम गुरु रैं । अलख रूप और अगम गुरु रैं ।।25।। राधास्वामी गुरु का नाम । जनि पद पाय करो जबसराम ।।26।। गुरु सब जबजध रैं अंतरिामी । गावो ध्यावो राधास्वामी ।।27।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। सतगुरू का नाम पुकारो । सतगुरू का करो भरोसा । सतगुरू तोजर जछन जछन पोसें4 । तू कर उन चरनन रोिें । सतगुरू गजत अब सुन मो से । दसवें में खैचें नौ से । िब्दा रस तोजर जपलावें । घर अगम तोजर दरसावें ।

1. सांप । 6. दूर करें ।

2. झगड़ा । 7. रंसी ।

सतगुरू को जरयरे धारो ।।1।। कफर करो न कु छ अफ़सोसा ।।2।। रूँगता5 तेरी सब जवजध खोसें6 ।।3।। सतगुरू से मत कर रोसें7 ।।4।। कजर िात न रं चक8 मुर ूँ से ।।5।। कफर एक करें तोजर दो से ।।6।। िमपुर से फे र बचावें ।।7।। मारग सब तोजर लखावें ।।8।।

3. पूिा करो । 8. थोड़ी ।

4. रक्षा करें ।

5. अरंकार ।

136

सार बचन

िो संगत उनकी करते िो बेमख ु गुरु से कफरते चौरासी चक्कर खावें तुम सोचो अपने मन में जिन जिन गुरु भजि धारी गुरु भजि न जिन को प्यारी गुरु चरनन आजिक़ रोना गुरु लगें जिसे अजत प्यारे धन मात जपता उन िन के जिन सरी मलामत1 िग की िो कु ल लाि िगत से डरे सूरा रर् से कभी न टरे रर् छोड़े कायर करलाय पजपरा अपना पन3 नसर त्यागे मछली को िैसे िल धारा जिन पर बजशिि गुरु की रोई राधास्वामी करी बनाय

। । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 18

सो िग से कभी न डरते ।।9।। सो भौ सागर में जगरते ।।10।। कफर िन्म िन्म दुख पावें ।।11।। कोइ नासर गुरु सम िग में ।।12।। सो पहुंचे जनि दरबारी ।।13।। जतन िीती बाज़ी रारी ।।14।। यर बात बड़ी क्या करना ।।15।। जतन कु ल कु टु म्ब सब तारे ।।16।। जिन भजि करी कु ल ति के ।।17।। जतन जमली रास2 सुख घर की ।।18।। गुरु भजि से वर पुजन जगरे ।।19।। सती सदा मुरदे संग िरे ।।20।। सती कफरे भंगी घर िाय ।।21।। िले पतंगा िोती आगे ।।22।। गुरुमुख को सतगुरू अस प्यारा ।।23।। गुरूमुख ऐसा जबरला कोई ।।24।। सेवक को गुरु कदया िगाय ।।25।।

।। िब्द छठा ।। सतगुरू करें करो तुम सोई यर भौ में गोते कदलवावे काल चक्र में डाल घुमावे जमि न िानो बैरी पूरा दारा सुत सम्पजत पररवारा इन्द्री भोग बास4 भरमावे सतगुरू प्रीतम जमलें न िब तक

। । । । । । ।

1. जनन्दा ।

3. प्रर्, अरद ।

2. भंडार, ढेरी ।

मन के करे चलो मत कोई ।।1।। सतगुरू से बेमख ु करवावे ।।2।। मोर िाल में बहुत फूँ सावे ।।3।। गुरु भजि से डारे दूरा ।।4।। डारे काम क्रोध की धारा ।।5।। भजि जववेक नाि करवावे ।।6।। कभी न छू टें मन के कौतुक5 ।।7।। 4. बासना ।

5. खेल ।

बचन 18

सतगुरू भजि

छल बल मन के करूँ लग बरनूूँ ता ते सतगुरू खोिो जनि के सतगुरू सम प्रीतम नसर कोई मेरा भाग उदय हुआ भारी िगत िीव करा1 िानें मजरमा ज्ञानी िोगी सब थक रारे ता ते सतगुरू सरन पुकारूं आरत करूूँ प्रेम से िबरी आरत जबजध अब करूूँ ससगारा राधास्वामी परम दयाल

। । । । । । । । । ।

137

ऋजष मुनी कोइ िाने न मरमूूँ ।।8।। जबन सतगुरू कोइ चले न बच के ।।9।। मन मलीन को धोवें वोरी ।।10।। सतगुरू की मैं हुइ अजत प्यारी ।।11।। वेद कतेब न िानें मरमा ।।12।। सतगुरू मजरमा कोई न जवचारे ।।13।। आरत उनकी जनत प्रजत धारूूँ ।।14।। कु ल पररवार तरे मेरा तब री ।।15।। राधास्वामी मेरे हुए दयारा ।।16।। कर आरत उन हुआ जनराल ।।17।।

।। िब्द सातवाूँ ।। अरे मन रं ग िा सतगुरू प्रीत । यरी अब धारो जरत कर चीत । गुरु से लेना िा उन सीत3 । मार लो मन को यरी पलीत5 । चढ़ो तुम नभ में यर िग िीत । गुरु का नाम सम्रारो चीत । गायें राधास्वामी यर जनि गीत ।

रोय मत और ककसी का मीत ।।1।। जवना गुरु िानो सभी अनीत2 ।।2।। तिो सब कलमल ररो अतीत ।।3।। सुरत में धरो िब्द की रीत ।।4।। गरो अब संतन की यर नीत6 ।।5।। लगाओ जछन जछन उनसे प्रीत ।।6।। तिो सब छल बल ममता तीत7 ।।7।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

गुरु की मौि ररो तुम धार गुरु िो करें सो जरतकर िान िुकर की करना समझ जवचार ताढ़ और मार करें सोइ प्यार कहूं क्या दम दम िुकर गुज़ार

। । । । ।

गुरु की रज़ा8 सम्रालो यार ।।1।। गुरु िो करें सो जचत धर मान ।।2।। सुक्ख दुख देंगे जरकमत धार ।।3।। भोग सब इन्द्री रोग जनरार ।।4।। जबना उन और न करनेरार ।।5।।

1. क्या करे । 2. अन्याय । 3. सीत प्रिाद । 6. जनयम । 7. माया । 8. भाना ।

4. माया से परे ।

5. मलीन ।

138

सार बचन

दुखी जचत से न रो दुख लार । जबसारो मत उन्रें रर बार । गुरु और िब्द ये दोउ मीत । यरी सतपुरूष यरी करतार । जबना उन कोइ नरीं संसार । करें वर जनत्त तेरी सार1 । िुकर कर राख जररदे धार । करें क्या मन तेरा नाकार । भोग में जगरें बरम्बार । इसी से जमले तुझ को दंड । सरो अब पड़े िैसी आय । पकड़ कफर उन्रीं को तू धाय । जबना उन और नरीं दरबार । गुनर तुम ककये कदन और रात । इसी से भोगते दुख घात । ररो राधास्वामी के तुम साथ ।

बचन 18

सुखी रोना नरीं सुख िार ।।6।। दुक्ख और सुक्ख ररो उन धार ।।7।। नरीं कोइ और इन धर चीत ।।8।। लगावें तोजर इक कदन पार ।।9।। देव मन सूरत उन पर बार ।।10।। तेरे तन मन के रैं रखबार ।।11।। जमटावें दुक्ख सबरी झाड़ ।।12।। नरीं तू छोड़ता जवष धार ।।13।। न माने करन उन की सार ।।14।। नरीं तू मानता मजतमंद ।।15।। करो फ़याणद गुरु से िाय ।।16।। करें गे वोरी तेरी सराय ।।17।। ररो उन चरन में हुजियार ।।18।। गुरु की कु छ न मानी बात ।।19।। बचावेंगे वरी कफर तात ।।20।। लगे कफर िब्द अगम तुम राथ ।।21।।

।। िब्द नावाूँ ।। आि सखी काि करो कु छ अपना नसर पजछतइरो जसर धुन रोइरो मानो बचन सुनो धर कान नसर मर मर िन्मो चारों खान गुरु के चरन का कर तू ध्यान गुरु जबन तेरा को न सराई आि काि कर गुरु संग भाि

1. खबरदारी ।

2. िेखी, अकड़ ।

। । । । । । ।

गुरु दिण तको छोड़ो िग सुपना ।।1।। िम की नगररया अनेक दुख सजररो ।। सुरत लगाय सुनो धुन तान ।।3।। मान मान अब मेरी करी मान ।।4।। िान2 गुमान छोड़ अजभमान ।।5।। नाम जबना को3 पार लगाई ।।6।। सूना पड़ा तेरा तशत और ताि ।।7।।

3. कौन ।

बचन 18

सतगुरू भजि

िब्द जपछान सुरत जनि साि1 मन और सुरत गुरु संग माूँि कू ड़ पटक ले गुरु का छाि3 राधास्वामी करी बनाई

। । । ।

139

छोड़ िगत और कु ल की लाि ।।8।। नसर कफर खुजल रै तेरा पाि2 ।।9।। भोग जबलास छोड़ यर खाि4 ।।10।। िो नसर मानो भुग्तो भाई ।।11।।

।। िब्द दसवाूँ ।। गुरु दररयाव चलो स्नुत सिनी जचत से चेत खेत को िीतो तेरा भाग बढ़ा गुरु ककरपा मोती चुनो रंस गजत धारो खंड खंड ब्ररमंड पसारा कूँ वल पार दल द्वार खोल कर दीपक राथ चली घर अपने धुन धधकार आकद की आई समुन्द पार सेता पद न्यारी सुन्न िब्द सतिब्द अधारी सतगुरू प्रेम मगन लौ लाई सार िब्द िरूँ तेि अनामी संत धाम जनि अलख अगम पर राधास्वामी अचल मुकामी यरी आरती करूं गुरु की

। । । । । । । । । । । । । । ।

मन की लरर सम्रार ।।1।। यर औसर नसर बारम्बार ।।2।। न्राओ अमृत धार ।।3।। चढ़ो अंड5 के पार ।।4।। जनरखो नैन जनरार ।।5।। पहूंची सुन्न मंझार ।।6।। मेटत घट आूँजधयार ।।7।। पकड़ी ज्यों मक6 तार ।।8।। सुनत भूँवर गुूँिार7 ।।9।। पाया गुरु दरबार ।।10।। जबसरी सब संसार ।।11।। नाम रूप से न्यारा ।।12।। स्नुत पाया ससगार ।।13।। मैं उनके बजलरार ।।14।। धसी वार से पार ।।15।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। नैन कं वल गुरु ताक अरे मन भूँवर ।।1।। तू जनमणल सीतल रोय सुन अनरद घोरा ।।2।। तेरा भाग बढ़ेगा भाई कर घट में दौरा ।।3।।

1. सूँवार । 2. कलई । 3. छि । 6. मकड़ी । 7. िब्द, आवाज़ ।

4. खुिली का रोग । 5. सरस्नदल कूँ वल ।

140

सार बचन

बचन 18

जिकु टी में मेघा गरिे, तू रोिा मोरा ।।4।। स्नुत तोड़ा नभ का द्वारा, वराूँ करती िोरा ।।5।। स्नुत सेत पदम पर आई, गया काल का ज़ोरा ।।6।। राधास्वामी रूप कदखाया, मन सूरत मोड़ा ।।7।। ।। िब्द बाररवाूँ ।। सतसंग करत बहुत कदन बीते कब लग करो कु रटलता गुरु से गुरु को तुम मानुष मत िानो िैसे तैसे मन समझाओ दया मेरर से बचन सुनावें धरी देर मानुष की गुरु ने सेवा कर पूिा कर उनकी वोरी कबीर वोरी सतनामा तेरा काि उन्री से रोगा चूके मत औसर अब पाया िो अब के तू गुरु से चूका कफर ऐसे गुरु जमलें न कबरी पढ़ पढ़ पोथी गा गा साखी इसी मान ने शवार2 ककया रै ता ते प्यारे कहूं बुझाई िल्दी करो कपट को छोड़ो इतने पर मन करा न माने जसर पर तेरे हुकु म काल का एक बात िानी रम भाई

1. बेपवाणरी ।

2. बेपवाणरी ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

अब तो छोड़ पुरानी बान1 ।।1।। अब तो गुरु को लो पजरचान ।।2।। वे रैं सत्तुरुष की िान ।।3।। धर परतीत करो उन ध्यान ।।4।। वे रैं पूरन पुरूष अनाम ।।5।। ज्यों त्यों तेरा करें कल्यान ।।6।। उनरी को गुरु नानक िान ।।7।। सब संतन को वरीं जपछान ।।8।। मत भटके तू ति अजभमान ।।9।। बढ़कर इन से कोइ न जमलान ।।10।। तो भरमेगा चारों खान ।।11।। मान मान तू अबरी मान ।।12।। क्यों मन में तू धरता मान ।।13।। यरी मान अब करता रान ।।14।। यर इजस्तगना2 भली न िान ।।15।। सरधा भाव बढाओ आन ।।16।। तो कफर अपनी तू री िान ।।17।। ताूँ ते मन तेरा नसर मान ।।18।। रै तू बढ़का बे-ईमान ।।19।।

बचन 19

गुरू और नाम भजि

141

लगा ररेंगा संग में गुरु के । सरि सरि िायद मन मान ।।20।। राधास्वामी करैं बुझाई । ऐसे िीव रोयूँ रैरान ।।21।।

।। बचन उन्नीसवाूँ ।। ।। उपदेि गुरु और िब्द ।। अथवा

।। नाम भजि का ।। ।।िब्द पजरला ।। चेतो मेरे प्यारे तेरे भले की गुरु तो पूरा ढू ूँढ़ तेरे भले की िब्द रता गुरु देख तेरे भले की जतस गुरु सेवा धार तेरे भले की गुरु चरनामृत पी तेरे भले की गुरु परिादी खाव तेरे भले की गुरु आरत करले तेरे भले की तन मन भेंट चढ़ाव तेरे भले की बचन गुरु के मान तेरे भले की गुरु को कर प्रसन्न तेरे भले की जनत्त भिन कर नेम तेरे भले की िीव दया तू पाल तेरे भले की दुक्ख न दे तू काय तेरे भले की बचन तान मत मार तेरे भले की कड़़ुवा तू मत बोल तेरे भले की सब को सुख पहुंचाव तेरे भले की नाम अमीरस पी तेरे भले की

कहूं ।।1।। कहूं ।।2।। कहूं ।।3।। कहूं ।।4।। कहूं ।।5।। कहूं ।।6।। कहूं ।।7।। कहूं ।।8।। कहूं ।।9।। कहूं ।।10।। कहूं ।।11।। कहूं ।।12।। कहूं ।।13।। कहूं ।।14।। कहूं ।।15।। कहूं ।।16।। कहूं ।।17।।

142

सार बचन

सील जक्षमाजचत राख तेरे भले की कहूं ।।18।। संतोष जववेक जवचार तेरे भले की कहूं ।।19।। काम क्रोध को त्याग तेरे भले की कहूं ।।20।। लोभ मोर को टार तेरे भले की कहूं ।।21।। दीन गरीबी धार तेरे भले की कहूं ।।22।। संतों से कर प्रीत तेरे भले की कहूं ।।23।। भोिन बहुत न खाव तेरे भले की कहूं ।।24।। सतसंग में तू िाग तेरे भले की कहूं ।।25।। मान बढ़ाई छोड़ तेरे भले की कहूं ।।26।। भोग वासना िार तेरे भले की कहूं ।।27।। संम दम जररदे धार तेरे भले की कहूं ।।28।। बैराग भजि न छोड़ तेरे भले की कहूं ।।29।। गुरु स्वरूप धर ध्यान तेरे भले की कहूं ।।30।। गुरु री का िप नाम तेरे भले की कहूं ।।31।। गुरु अस्तुत कर जनत्त तेरे भले की कहूं ।।32।। गुरु से प्रेम बढ़ाव तेरे भले की कहूं ।।33।। तीरथ मूरत भमण तेरे भले की कहूं ।।34।। ज़ात अजभमान जबसार तेरे भले की कहूं ।।35।। जपछलों की ति टेक तेरे भले की कहूं ।।36।। वि गुरु को मान तेरे भले की कहूं ।।37।। तीरथ गुरु के चरन तेरे भले की कहूं ।।38।। गुरु की सेवा बतण तेरे भले की कहूं ।।39।। जवद्या गुरु उपदेि तेरे भले की कहूं ।।40।। और जवद्या पाखंड तेरे भले की कहूं ।।41।। लीक1 पुरानी छोड़ तेरे भले की कहूं ।।42।।

1. मनमजत ।

बचन 19

बनच 19

गुरू और नाम भजि

िो गुरु करैं सो मान तेरे भले की मारग ज्ञान न धार तेरे भले की भजि पंथ सम्रार तेरे भले की सुरत िब्द मजत ले तेरे भले की सुरत चढ़ा नभ मासर तेरे भले की गगन जतरकु टी िाव तेरे भले की दसवें द्वार समाव तेरे भले की भूँवरगुफा चढ़ समाव तेरे भले की सत्तलोक धस िाव तेरे भले की अलख अगम को पाव तेरे भले की राधास्वामी नाम जधयाव तेरे भले की भटक अटक सब तोड़ तेरे भले की टेक पक्ष गुरु बाूँध1 तेरे भले की

143

कहूं ।।43।। कहूं ।।44।। कहूं ।।45।। कहूं ।।46।। कहूं ।।47।। कहूं ।।48।। कहूं ।।49।। कहूं ।।50।। कहूं ।।51।। कहूं ।।52।। कहूं ।।53।। कहूं ।।54।। कहूं ।।55।।

।। िब्द दूसरा ।। गुरु का ध्यान कर प्यारे नाम के रं ग में रं ग िा गुरु की सरन दृढ़ कर ले लाभ और मान क्यों चारें करम िो िो करें गा तू िगत के िाल से ज्यों त्यों जिन्रों ने मार मन डाला बड़ा बैरी यर मन घट में पड़ो तुम इसरी के पीछे

। । । । । । । । ।

जबना इस के नरीं छु टना ।।1।। जमले तोजर धाम जनि अपना ।।2।। जबना इस काि नसर सरना2 ।।3।। पड़ेगा कफर तुझे देना ।।4।। वरी कफर भोगना भरना ।।5।। रटो मरदानगी3 करना ।।6।। उन्री को सूरमा करना ।।7।। इसी का िीतना करठना ।।8।। और सबरी ितन तिना ।।9।।

1. गुरू पर जनश्चय रखकर, गुरू का पक्ष ले ।

2. रोना ।

3. बरादुरी ।

144

सार बचन

गुरु की प्रीत कर पजरले मान दो बात यर मेरी रार िब िाय मन तुझ से और सब काम िग झूठा करैं राधास्वामी समझाई

। । । । ।

बचन 19

बहुरर घट िब्द को सुनना ।।10।। करें मत और कु छ ितना ।।11।। चढ़ा दे सुतण को गगना ।।12।। त्याग दे इसरी को गरना1 ।।13।। गरो अब नाम की सरना ।।14।।

।। िब्द तीसरा ।। गुरु जबन कौन उबारे गा । भिन जबन को जनस्तारे गा2 । जबरर जबन कौन पुकारे गा । िब्द जबन कौन ससगारे गा । काल को कौन गारे गा1 । संत कोइ आन मारे गा । काम संतसंग सारे गा4 । सोई जनि नाम धारे गा । िीव इक इक उबारे गा । सरन सतगुरू सम्रारे गा5 । राधास्वामी िो सरावेगा5 ।

नाम जबन सरन जबन ददण जबन संग जबन कमण ककस भि कोइ िोई तन िगत को मान मद सोई वर सोई वर

कौन सुधारे गा ।।1।। कौन सूँवारे गा ।।2।। कौन जचतारे गा ।।3।। कौन जनरारे गा ।।4।। भाूँजत रारे गा ।।5।। दोऊ िारे गा ।।6।। मन बारे गा ।।7।। आन तारे गा ।।8।। मोर टारे गा ।।9।। धाम पावेगा ।।10।। धाम पावेगा ।।11।।

।। िब्द चौथा ।। गुरु जबन कभी न उतरे पार संग जबन कभी न पावे सार िुजि जबन चढ़े न गगन मूँझार सुरत जबन रोय न िब्द सम्रार गुरु से करना पजरले प्यार काल घर िान तिा संसार 1. ग्ररर् करना, पकड़ना । 5. स्तुजत करे गा ।

। । । । । ।

नाम जबन कभी न रोय उधार ।।1।। प्रेम जबन कभी न पावे यार ।।2।। दया जबन खुले न बज्र ककवाड़ ।।3।। जनरत जबन रोय न धुन आधार ।।4।। नाम रस पीना मन को मार ।।5।। दयाल घर आई िन्म सुधार ।।6।।

2. उद्धार करे गा ।

3. जनकालेगा ।

4. बनावेगा ।

बचन 19

गुरू और नाम भजि

145

संत गजत पाई गुरु की लार । िब्द संग जमली जमला पद चार ।।7।। करा राधास्वामी अगम जवचार । सुने और माने करे जनरवार ।।8।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। सुरत धुन धार री, ति भोग जनकाम ।। टेक ।। दारा सुत धन मान बड़ाई । यर सब थोथा काम ।।1।। लोक प्रजतष्ठा िगत बड़ाई । इन में नरीं आराम ।।2।। सतगुरू भजि नाम रस पीवे । तौ पावें तू अजवचल धाम ।।3।। तन मन साथ करो अब संगत । तब जमले नाम सतनाम ।।4।। सुरत चढ़ाय चलो ऊपर को । रोत यराूँ धुन आठों िाम ।।5।। नर की देर सुफल रोय तेरी । जमले िब्द जबसराम ।।6।। स्वाूँस नक़ारा कूूँ च पुकारी । बिे सुबर से िाम ।।7।। राधास्वामी नाव लगाई । भौ उतरो जबन दाम ।।8।।

।। िब्द छठवाूँ ।। सुरत सुन बात री तिो संग िार री चलो गुरु की लार1 री गरो सरन कोई साध री तन सपिरा यर काल का दस इन्द्री के भोग की नौ द्वारन में बूँध ररी दसवीं जखड़की खोल री सतगुरू पूरे कर ररे राधास्वामी नाम भि

1. संग ।

। । । । । । । । । ।

तेरा धनी बसे आकाि।।1।। तू देख जपया परकाि ।।2।। तू पावे अिर जनवास।।3।। िो जमले िब्द घर बास।।4।। क्यों करें पराई आस ।।5।। तेरे पड़ी गले में फाूँस।।6।। अब चैन नरीं इक स्वाूँस।।7।। कर परम जबलास ।।8।। तू मान बचन जवश्वास।।9।। रोयूँ कमण सब नाि ।।10।।

146

सार बचन

बचन 19

।। िब्द सातवाूँ ।। सुरत क्यों हुई दीवानी िग भोग रोग कदन बीते िमपुर रोय धूमा धामी वराूँ कौन सराई तेरा कर गुरु से जरत जचत लाई सूरत िा िब्द जमलाई तेरा भाग बढ़त जनत िावे रस अगम िब्द का पावे चढ़ चढ़ नभ ऊपर धावे जतल मोड़े जबिली चमके कफर चाूँद सुरि दोऊ दरसें गुरु मूरत अिब कदखाई नर रूप कदखावें तब री दे मदद बढ़ावें आगे चढ़ बंक चले जिकु टी में िरूँ िोभा रंसन भारी धुन ककगरी बिे करारी कफर लगे मरांसन ु तारी लख भूँवर गुफा हुई न्यारी चौथे पद करी तयारी लख अलख अगम्म लखा री मजरमा उनकी क्या कहुं भारी

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

तेरी जबरथा बैस1 जबरानी2 ।।1।। तू िाय दोऊ कर रीते3 ।।2।। तू पड़े चौरासी खानी ।।3।। तू बचन मान अब मेरा ।।4।। सुन मान बचन गुरु भाई ।।5।। कर जनस कदन यरी कमाई ।।6।। कफर काल न तोजर सतावे ।।7।। मन भोग सरि छु ट िावे ।।8।। दल सरस कूँ वल गजत पावे ।।9।। सुन िब्द अनारद धमके ।।10।। सुखमन मन सूरत परसें ।।11।। िोभा कु छ करी न िाई ।।12।। मन खैंच चढ़ावें िब री ।।13।। मन िुग िुग सोया िागे ।।14।। कफर सुन्न तके सरवर में ।।15।। वर भूजम लगे अजत प्यारी ।।16।। सुन सुरत हुई मतवारी ।।17।। िरूँ दीप असचत सम्रारी ।।18।। िरूँ सेत सूर उजियारी ।।19।। धुन बीन सुनी अजत भारी ।।20।। हुई राधास्वामी रूप जनरारी ।।21।। मुझ गरीब की बहुत सुधारी ।।22।।

।। िब्द आठवाूँ ।। जबररनी गुरु की सरन सम्रार ।। टेक ।। या िग में कोइ मीत4 न तेरा । करो 1. उमर, आयु । 5. आसरा ।

2. ब्यतीत रो गई ।

नाम

आधार5 ।।1।।

3. दोनों राथ खाली ।

4. जमि ।

बचन 19

गुरू और नाम भजि

चेतन डोरी िब्द लगाओ काम क्रोध की कीचड़ छू टे गगन मंडल में अनरद गािे जबना संत कोई अंत न पावे राधास्वामी जरत उपदेिी िो समझे सो सार समावे

। । । । । ।

147

खुले घाट और न्रावो जनरमली सुन सुन करो चलो संत की करते रेला पावे भेद

द्वार ।।2।। धार ।।3।। अधार ।।4।। लार ।।5।। मार1 ।।6।। अपार ।।7।।

।। िब्द नवाूँ ।। सुरत संग सतगुरू धोवत मन को ।। टेक ।। प्रीत प्रतीत बढ़ावत जछन जछन । भेट चढ़ावत तन को ।।1।। िुद्ध रोय िब्दारस पावत । चढ़त उलट घट घन को ।।2।। इन्द्री पाूँच प्रककतण पचीसों । दूर रटावत तीनों गुन को ।।3।। धुन रस पाय हुई मतवारी । करत न काहू िन को ।।4।। जिन यर भेद स्वाद नसर िाना । कहूं करा अब जतन को ।।5।। पंजडत ज्ञानी भेख भुलाने । तीरथ बरत करें करमन को ।।6।। यर रस सार िब्द क्यों पावें । िाल जबछावें जनत भरमन को ।।7।। कौन करे उनको समझाई । सुनें न संत बचन को ।।8।। षट िास्त्र और जसमृत पुराना । लीक पीट छोड़ें नसर पन को ।।9।। जिव और िजि गनेि मनावें । कौन करे अब उनको ।।10।। जवष्र्ु सूर और देव अनेका । पुिवावें सबजरन को ।।11।। गुरु भजि संतन की मजरमा । नेक न िानें वर इस गुन को ।।12।। जरत कर करें कोई नजर माने । कौन गरज़ अब रम को ।।13।। राधास्वामी भेद बतावें । पकड़ ररो तुम अब घट धुन को ।।14।। ।। िब्द दसवाूँ । गुरु घाट चलो 1. ऊूँची आवाज़ से ।

मन भाई । सुरत चदररया

लेव

धुवाई ।।1।।

148

सार बचन

सेवा साबन दिणन मंिन बचन की रे र1 भाव की भाठी भजि नदी िरूँ जनस कदन बरती उिवल जनमणल हुई सुरत िब चला गगन पर जमला िब्द संग सुन्न जिखर चढ़ रंस रूप धर भूँवरगुफा पर सोरं सोरं अलख अगम को देखत देखत

। । । । । । । ।

बचन 19

प्रेम का नीर भराई ।।2।। जवरर की अजगन िराई ।।3।। मल मल ता में मैल गूँवाई ।।4।। ओढ़त मन अब अजत ररखाई ।।5।। चढ़त चढ़त जिकु टी कढग आई ।।6।। मरासुन्न छजव औरजर पाई ।।7।। राधास्वामी चरनन िाय समाई ।।8।। राधास्वामी चरनन िाय समाई ।।9।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। तू देख उलट कर मन गुरु करें तोजर जछन जछन गुरु मूरत धार अूँदर कफर सुरत लगा सुन्न-दर3 चुप बैठो गगन कूँ दर5 तुम सुरत िमाओ सुन क्यों पड़ो िाय औगुन तेरा िन्म गया धोखन जनत कर जबलास संतन मन इन्द्री बस कर तन बस आवें यर कोई कदन कफर देर न रोय िागन अब जगर राधास्वामी चरनन

में में में में में में में में में में में में में

। । । । । । । । । । । । ।

क्यों कफरे भटकता बन में ।।1।। तू जसमर नाम जनस कदन में ।।2।। मन चंचल रोक मूँदर में ।।3।। तू धस िा ब्रह्म रन्ध्र4 में ।।4।। मन खैंच धरो धुन धर6 में ।।5।। भरमो मत तीनों गुन में ।।6।। मत जगरो िाय दोषन में ।।7।। अब खोि करो िब्दन में ।।8।। मत पचो मान और धन में ।।9।। तू लग ररो इसी ितन में ।।10।। कफर सुनो नाद सरवन में ।।11।। तू मगन ररो रागन में ।।12।। तेरा काि करें पल जछन में ।।13।।

1. कपड़ा धोने की जमट्टी । 2. पजरनता । 3. सुन्न का दर यानी द्वारा । 4. जछद्र, द्वार । 5. गुफ़ा । 6. धुन की धार ।

बचन 19

गुरू और नाम भजि

149

।। िब्द बाररवाूँ ।। सुन रे मन अनरद बैन गुरु िब्द गरो उपदेिा चक्कर अब फे रो आई जबन नाम नरीं गजत पाई सतसंग अब करो बनाई िग भोग रोग सम िानो भौ सागर फाट3 अपारा गुरु जबन कौइ पार न पाया अब सुरत सम्रालो आई मन ईन्द्री तन भरमाई रौं रौं कर4 िन्म जबताई अब सोच करो तुम मन में राधास्वामी करत बुझाई

। । । । । । । । । । । । ।

घट में मठ1 जनरखो नैन ।।1।। रस पी पी करो प्रवेिा ।।2।। धुन िब्द तभी खुल िाई ।।3।। सतगुरू यों2 करैं बुझ ई ।।4।। गुरु गरो आन सरनाई ।।5।। धन माल चार दुख मानो ।।6।। डू बे सब उसकी धारा ।।7।। जबन नाम न धीरि आया ।।8।। िो िब्द राथ लग िाई ।।9।। दुख सुख में गये भुलाई ।।10।। करता की बूझ न आई ।।11।। कु छ रोको मन जनि तन में ।।12।। तब सुरत िब्द घर पाई ।।13।।

।। िब्द तेररवाूँ ।। गुरु करें िगत सब अंधा बारर-मुख भरमें सारे मन िगत भोग रस बंधा फूँ स मरे काल के फं दा गुरु करैं जनत्त समझाइ यर सुने न गुरु के बैना जबरला कोइ जिव अजधकारी िो बचन सम्रारे गुरु के

1. मजन्दर । 2. इस प्रकार । 5. जनिान यानी िब्द ।

। । । । । । । ।

कोई गरै न घट की संधा5 ।।1।। अंतर-मुख िब्द न धारे ।।2।। जनत करे कमण बस धंधा ।।3।। अब हुआ िीव अजत गंदा ।।4।। कर खोि िब्द घट िाई ।।5।। कस खुलैं जरये के नैना ।।6।। गुरु बचन करे आधारी ।।7।। मन फं द लगावे छल के ।।8।।

3. चौड़ाई ।

4. अरंकार ।

150

सार बचन

ज्यों त्यों कर िीव भुलावे गुरु भजि न करने पावे कभी जमि रोय भरमावे कभी रोगन मासर झुमावे िब्दा रस लेन न पावे गुरु मेरर करें जिस िन पर तब गरे िब्द रस िाूँची सब बात लगी अब काूँची राधास्वामी की लीन्री सरनी

। । । । । । । । ।

बचन 19

काल अपने खेल जखलावे ।।9।। बहु भाूँजत उपाजध लगावे ।।10।। कभी वैरी बन धमकावे ।।11।। नाना जबजध िाल जबछावे ।।12।। यों िीव सदा दुख पावे ।।13।। सो बचे िब्द धुन सुन कर ।।14।। कफर िले न िग की आूँची1 ।।15।। गुरु भजि जमली अब साूँची ।।16।। सो िीव लगे भौ तरनी2 ।।17।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। सुरत नसर चढ़े करा कररये मन करा न करे कु मजत भररये गुन तीन कमण बस जनत डररये कोई और उपाव नरीं चजरये िब नाम अमीरस घट भररये संतन मत साूँचा यर कजरये मन चढ़े गगन पर िा रजरये सुन िाूँच करो और घर अइये गुरु नाम रटो तब मन रररये घर अलख अगम िाकर लजखये

। । । । । । । । । ।

सपड नसर तिे झुरत रजरये ।।1।। इन्द्री रस भोग अजधक िररये ।।2।। दुख सुख संतापे बहु सजरये ।।3।। गुरु चरन सरन में जसर धररये ।।4।। स्त्रुत खैंच गगन को अब चकढ़ये ।।5।। स्रुत िब्द लखावें सो गजरये ।।6।। स्त्रुत लगे िब्द से रस पइये ।।7।। कफर मौि करो आनंद लजरये3 ।।8।। सतलोक चलो कारि सररये ।।9।। राधास्वामी चरन में कफर पककये ।।10।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।। गुरु तारें गे रम िानी । तू सुरत कारे बौरानी4 ।।1।। दृढ़ पकड़ो िब्द जनिानी । तेरी काल करे नसर राजन ।।2।।

1. अजि ।

2. संसार से पार रोने लगे ।

3. लो ।

4. बांवरी, पागल ।

बचन 19

तू सब चढ़

गुरू और नाम भजि

151

रोिा िब्द दीवानी । मत सुनो और की बानी ।।3।। छोड़ो भमण करानी । गुरु का मत लो पजरचानी ।।4।। बैठो अगम रठकानी । राधास्वामी करत बखानी ।।5।। ।। िब्द सोलरवाूँ ।।

गुरु क्यों न सम्रार । तेरा नर तन बीता भमण में ।।1।। दारा सुत पररवार । ठजगयन संग क्यों खोवरी ।।2।। क्यों नसर करत जवचार । िग जमथ्या यर रै सरी ।।3।। मन रै बड़ा गूँवार । मोर ररा कर प्यार । छू टे कै से िार से ।।4।। जबन गुरु चले न दाव । थाके सभी उपाय कर ।।5।। नाम सम्रारो मीत । धीरि धर घट में ररो ।।6।। मौि जनरारो पीव । िो करररैं सो सब भला ।।7।। तेरी बुजद्ध मलीन । मन चंचल घाटा गरे ।।8।। तू नसर िाने भेद । भमण िाल में फूँ स ररा ।।9।। या ते कर जवश्वास । गुरु जबन और न दूसरा ।।10।। गुरु का घाट जनरार । सुरत बाूँध जनि िब्द में ।।11।। िब्द जबना कोइ नासर । िो काढ़े इस फं द से ।।12।। ता ते िब्द ककवाड़ । खोलो गुरु कुूँ िी पकड़ ।।13।। मरल मारीं धस िाय । गुरूमुख को रोकें नरीं ।।14।। मनमुख भटका खाय । चढ़ उतरे जगर जगर पड़े ।।15।। ठीका1 ठौर न पाय । क्यों कर गुरु समझावरीं ।।16।। मन मत छोड़े नासर । गुरु को दोष लगावरीं ।।17।। गुरु िो करें उपाय । उस में मन बांधे नरीं ।।18।। क्योंकर रोय जनबार । िम धक्के खावत कफरे ।।19।। राधास्वामी करत सुनाय । मन बैरी को मीत कर ।।20।।

1. असली रठकाना ।

152

सार बचन

मन मारो तन को िारो तुम जनद्रा आलस टारो सतसंग तुम जनत री धारो मन से क्यों दम दम रारो यर भमण सभी अब टारो खोलो चढ़ गगन ककवाड़ो कफर मरासुन्न रोय पारो सतनाम जमला अजत प्यारो राधास्वामी धाम अपारो

। । । । । । । । ।

बचन 19

इजन्द्र रस भोग जबसारो ।।1।। गुरू के संग िब्द पुकारो ।।2।। गुरु दिणन जनत्त जनरारो ।।3।। िग आसा दूर जनकारो ।।4।। कफर परखो तुम घर न्यारो ।।5।। धस बैठो दसवें द्वारो ।।6।। तरूँ देखो भूँवर उिारो1 ।।7।। िा अलख अगम को धारो ।।8।। कदया सतगुरू परम उदारो ।।9।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।। धाम2 अपने चलो भाई काम अपना करो िाइ नाम गुरु का सम्राले चल िगत का संग सब मैला भोग संसार कोई कदन के सरन सतगुरू गरो दृढ़ कर सुरत मन थाम अब घट में फूँ से तुम िाल में भारी गुरु अब दया कर करते भटक में क्यों उमर खोते बसो तुम आय नैनन में दुई यरूँ दूर रो िावे श्याम ति सेत को गरना

1. उिाला, रौिनी ।

। । । । । । । । । । । । ।

2. स्थान ।

पराये देि क्यों ररना ।।1।। पराये काम नसर फूँ सना ।।2।। यरी रै दाम गूँठ बूँधना ।।3।। धुला ले मान यर करना ।।4।। सरि में त्यागते चलना ।।5।। करो यर काि जपल3 ररना ।।6।। पकड़ धुन ध्यान धर गगना ।।7।। जबना इस िुजि नजर खुलना ।।8।। मान यर बात जचत धरना ।।9।। करीं नसर ठीक तुम लगना ।10।। जसमट कर एक यरूँ रोना ।।11।। दृजष्ट िोत में धरना ।।12।। सुरत को तान धुन सुनना ।।13।।

3. तकड़े रोकर लगना ।

बचन 19

गुरू और नाम भजि

बंक के द्वार धस बैठो सुन्न चढ़ िा धसो भाई मरासुन चौक अूँजधयारा लोक चौथे चलो सि1 के अलख और अगम के पारा वरीं राधास्वामी से जमलना

। । । । । ।

153

जतरकु टी िाय कर लेना ।।14।। सुरत से मानसर न्राना ।।15।। वराूँ से िा गुफा बसना ।।16।। गरो2 वरूँ िाय धुन बीना ।।17।। अिब इक मरल कदखलाना ।।18।। हुआ मन आि अजत मगना ।।19।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। समझ कर चल िगत खोटा । खुदी3 को छोड़ नसर टोटा4 । करो सतसंग गुरु के रा5 । मगन रोय बैठ कफर घट में । कु टु म्ब संग चार कदन नाता । करो कु छ भिन अंतर में । गुरु जबन कोइ नरीं संगी । करें गे काि वर तेरा । जमले तब नाम की रं गत । भाग तेरा बड़ा िागा । उठा कफर िाग इक जछन में । िगत को देख तू मथ कर । उलट कर कदन मथो अपना । गुरु ने अब करी ककरपा । करें राधास्वामी यर तुम को ।

मान मद त्याग मन मोटा ।।1।। भजि कर खाय क्यों सोटा ।।2।। सुरत से लो गगन झोटा6 ।।3।। फ़तर कर जतरकु टी कोटा7 ।।4।। मोर संग क्यों पड़ा लोटा ।।5।। गरो गुरु चरन की ओटा8 ।।6।। उन्रीं सूँग बैठ मन घोटा9 ।।7।। उतारें पाप की पोटा10 ।।8।। िब्द की सेि िा लोटा ।।9।। हुआ मन अिाण का तोता ।।10।। िुगन िुग से पड़ा सोता ।।11।। नरीं कु छ सार रै थोथा ।।12।। अमोलक वि क्यों खोता ।।13।। कदया अब काल को गोता ।।14।। चलो सतलोक दूूँ न्योता12 ।।15।।

1. त्यार रो कर । 2. पकड़ो । 3. अरंकार । 6. झोका झूले का । 7. कक़ला । 8. सरन । 11. जवचार कर, जबलो कर । 12. बुलावा ।

4. राजन । 5. का । 9. रगड़ा । 10. बोझ ।

154

सार बचन

बचन 19

।। िब्द बीसवाूँ ।। अरे मन देख कराूँ संसार भरे तेरे मन में सभी जवकार रोय कफर झूठा िगत असार1 जमले तब उन से नाम अपार चलो कफर िब्द जवचार जवचार पड़े क्यों भटको नैनन बार गुरु से लेना िुजि यार कमाना िुजि तुम कर प्यार चले कफर सूरत धुन की लार नाम रस जपयो ररो हुजियार करो मत उनको अंगीकार चलो और देखो घट का सार

। । । । । । । । । । । ।

झूठे भमण हुआ बीमार ।।1।। ितन से इनको दूर जनकार ।।2।। गरो कफर गुरु के चरन सम्रार ।।3।। देख कफर घट में मोक्ष दुवार ।।4।। पाओ इक िब्द सार का सार ।।5।। झाूँक जतल जखड़की उतरो पार ।।6।। गुरु जबन नरीं खुले यर द्वार ।।7।। लगाना सुरत सरि मन मार ।।8।। चुए िरूँ पल पल अमृत धार ।।9।। ऋजद्ध और जसजद्ध ररें तेरे द्वार ।।10।। वराूँ से आगे धरो जपयार ।।11।। पहुंचना राधास्वामी के दरबार ।।12।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। अब बरी सुरत मूँझधार । िकड़ कर पकड़ा इन संसार । नाम का ककया न कु छ आधार । कमण का बहुत उठाया भार2 । साध कोइ ककया न अपना यार । कु मजत बस भरमें बारम्बार । देर संग ररी न कु छ हुजियार । जबछाया िग में मन ने िार3 । करैं राधास्वामी तोजर पुकार ।

1. थोथा ।

2. बोझ ।

गुरु जबन कौन लगावे पार ।।1।। नाम जबन कौन करे जनरवार ।।2।। गुरु संग ककया न अब के प्यार ।।3।। काल ने खाया सब को झाड़ ।।4।। देर में ककया बहुत अरंकार ।।5।। सुमजत का ककया न नेक जवचार ।।6।। हुई अब ग़ाकफ़ल भोगन लार ।।7।। पड़ी अब मन के क़ाबू रार ।।8।। पकड़ अब चरन सम्रार सम्रार ।।9।।

3. िाल ।

बचन 20

उपदेि िब्द अभ्यास

155

।। बचन बीसवाूँ ।। ।। उपदेि सुरत िब्द के अभ्यास का ।। ।। िब्द पजरला ।। चलो री सखी आि जपया से जमलाऊूँ । तन मन धन की प्रीत छु ड़ाऊूँ ।।1।। पुि कजलि1 िाल छु टकाऊूँ । सुन्न मंडल धुन अिब सुनाउूँ ।।2।। गगन तख़्त पर िाय जबठाऊूँ । तीन लोक का राि कदलाऊूँ ।।3।। जतरबेनी तीरथ परसाऊूँ । मन माधो2 से खूटं 3 छु ड़ाऊूँ ।।4।। काल चक्र से तुरत बचाऊूँ । कमण काट जनि घर पहुंचाऊूँ ।।5।। मरासुन्न और भूँवरगुफ़ा से । सत्तपुरूष दीदार करऊूँ ।।6।। दीन4 दुरबीन पुरूष इक ऐसी । अलख अगम के पार समाऊूँ ।।7।। राधास्वामी पद रम िाना । करन सुनन का लगा रठकाना ।।8।। ।। िब्द दूसरा ।।

िागो री सुरत अब देर न करो । चालो री सुरत अब गगन चढ़ो ।।1।। भागो री सुरत अब जपया से जमलो । लागो री सुरत अब िब्द रलो ।।2।। ताको री सुरत अब जनरत5 करो । झाूँको री सुरत अब मूरत लखो ।।3।। न्राओ री सुरत और नीर भरो । धाओ री सुरत और ध्यान धरो ।।4।। गाओ री सुरत और गवन6 करो । भोगो री सुरत सुख सरि बरो7 ।।5।। झूँझरी जनरख कफर नाम भिो । बंक छोड़ धुन गगन गरो ।।6।। सुन्न तिो मरासुन्न ररो । भूँवरगुफा पर िाय अड़ो ।।7।। सत्तलोक सतनाम रसो8 । अलख अगम के पार बसो ।।8।। राधास्वामी राधास्वामी रटन करो । बहुत करा अब खतम करो ।।9।। ।। िब्द तीसरा ।। भजि अिब

अब करो मेरे यर औसर

भाई । प्रीत अब धरो मेरे भाई ।।1।। पाई । जमले अब राधास्वामी आई ।।2।।

1. स्त्री । 2. जिसका झुकाव माया की तरफ़ रो । 3. पल्ला, दामन । 4. दी । 5. भीतर के दृश्य देखो । 6. यािा । 7. जपया का । 8. भीगो ।

156

सार बचन

बचन 20

सेवा दिणन बाड़1 धराई । पौद अब िब्द जखलाई ।।3।। सुरत िमिेर2 चलाई । काल जसर काट जगराई ।।4।। धमक अब सुन्न समाई । चमक िरूँ चन्द्र कदखाइ ।।5।। श्याम ति सेत जमलाई । रेत कर नेत4 घर आई ।।6।। मरासुन तार जमलाई । भूँवर का द्वार तुड़ाई ।।7।। िब्द पद िाय समाई । अलख और अगम सराई8 ।।8।। राधास्वामी अगम सुनाई । सरन अब पूरी पाई ।।9।। ।। िब्द चौथा ।। चेतो रे िम िाल जबछाया सरन गरो सतगुरू के री6 उलट कर घट में आवो पकड़ मन खैंचो तानी िोत की गरो जनिानी बंक चढ़ जिकु टी फोड़ी काल की रद्द छु ड़ानी संत संग नाता िोड़ा सुरत का घोड़ा दौड़ा सुरत का बान चलाया िब्द से िब्द समाया बीन धुन अिब सुनाई जमला अब प्रीतम प्यारा अलख का लखा उिाला राधास्वामी कीन्र जनराला

। । । । । । । । । । । । । । ।

काल कु ल चक्र चलाया ।।1।। बचे चौरासी फे री ।।2।। सुई के द्वार समावो ।।3।। सुनो कफर अनरद बानी ।।4।। जनरं िन रूप पजरचानी ।।5।। सुन्न में आतम िोड़ी ।।6।। दयाल पद जलया अगवानी7 ।।7।। गगन का नाका8 तोड़ा ।।8।। जनरत का चाबुक छोड़ा ।।9।। भूँवर का चक्र कफराया ।।10।। परम पद अपना पाया ।।11।। सुरत िरूँ दीन तनाई ।।12।। सुरत मत रूप जनरारा ।।13।। अगम पद िाय सम्राला ।।14।। सीस उन चरनन डाला ।।15।।

1. रोक । 2. तलवार । 3. प्रेम । 4. दसवाूँ द्वार । 6. की । 7. आगे का । 8. रद, सीमा ।

5. मजरमा गाई ।

बचन 20

उपदेि िब्द अभ्यास

157

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। भिन कर मगन ररो मन में ।। टेक ।। िो िो चोर भिन के प्रानी । सो सो दुक्ख सरें ।।1।। आलस नींद सतावे उनको । जनत जनत भमण बरें ।।2।। काम क्रोध के धक्के खावें । लोभ नदी में डू ब मरें ।।3।। गुरु संग प्रीत करें नसर पूरी । नाम न डोर गरें ।।4।। तृ ष्र्ा अजि िलें जनस बासर । नकण न मासर पड़ें ।।5।। संतन साथ जवरोध बड़ावें । उलटी बात करें ।।6।। सतसंग मजरमा मूल न िानें । भेड़ चाल में जनत्त पचें ।।7।। धन और मान भोग रस चारें । रोग सोग में आन फसें ।।8।। भाग रीन मत रीन परार्ी । नर देरी बरबाद करें ।।9।। ऐसी दिा मासर जनत बरतें । रम क्योंकर समझाय सकें ।।10।। साध गुरु का करा न मानें । मनमत अपनी ठानठनें1 ।।11।। खर2 कू कर सम वे नर िानो । जबरथा उदर भरें ।।12।। िमपुर िाय बहुत पछतावें । व्राूँ कफर उनकी कौन सुने ।।13।। िन्म िन्म चौरासी भोगें । यर िरीर कफर नासर धरें ।।14।। दुलभ ण देर जमली यर औसर । ऐसी कर िो बात बने ।।15।। सतगुरू सरन पकड़ ले अबकी । तो सब काि सरें 3 ।।16।। जरत का बचन दया कर बोलें । तू नसर कान सुने ।।17।। अंधा बररा कफरे िगत में । कु ल कु टु म्ब तेरी राजन करें ।।18।। कर सतसंग मान यर करना । कान आूँख कफर दोऊ खुलें ।।19।। देखे घट में िोत उिाला । सुने गगन में अिब धुनें ।।20।। सुन्न िाय जतरबेनी न्रावे । रीरे मोती लाल चुने ।।21।। मरासुन्न में सुरत चढ़ावे । तब सतगुरू तेरे संग चलें ।।22।।

1. रठ करके रखते रै ।

2. गधा ।

3. बनें ।

158

सार बचन

बचन 20

भूँवरगुफा की बंसी बािी । मराकाल भी सीस धुन1े ।।23।। अब चढ़ गई पुरूष दरबारा । वराूँ िाय धुन बीन गुने ।।24।। ले दुरबीन चली आगे को । लख अगम का भेद भने2 ।।25।। यराूँ से आगे चली उमूँग से । तब राधास्वामी चरन जमलें ।।26।। जमला अधार पार घर पाया । लीला यराूँ की करे न बने ।।27।। ।। िब्द छठवाूँ ।। कोइ सुनो रमारी बात । कोइ चलो रमारे साथ ।।1।। क्यों सरो काल की घात । िम धर धर मारे लात ।।2।। तुम चढ़ो गगन की बाट । तो खुले अधर का पाट3 ।।3।। घट बाूँधो दृढ़ कर ठाट । छू टे यर औघट घाट4 ।।4।। िब्द रस भरो सुरत के माट5 । बंक चढ़ खोलो सुखमन घाट ।।5।। नाम की जमली अपूरब6 चाट । अब सोऊूँ जबछाये खाट ।।6।। चेतन की िड़ से खोली साूँट7 । उलट मन कला खाय ज्यों नाट8 ।।7।। मानसर देखा चौड़ा फ़ाट । गया कफर परदा सुन का फाट10 ।।8।। काल की डारी गदणन काट । कमण की खुल गई भारी आूँट11 ।।9।। सुन्न का जलया अमी रस बाूँट । िब्द की खुली जरये में राट ।।10।। मोर मद रो गये बारर बाट12 । जमले अब सतगुरू मेरे तात13 ।।11।। बाल ज्यों पावे जपत और मात । कहूूँ क्या खोल यर जवशयात ।।12।। अब चले न माया घात । झड़ पड़ी वृक्ष ज्यों पात ।।13।। कमण की कीन्री बाज़ी मात । लखी िाय सुन में धुन की भाूँत14 ।।14।। टू ट गया सपड से मेरा नात । कदखाई गुरूने अचरि क्रान्त15 ।।15।। पाइ अब मैंने ऐसी िांत । अब ररी न कोई भ्ांत16 ।।16।। गुरु करी प्रेम की दात । सुरत अब हुई िब्द की ज़ात ।।17।।

1. जसर पटके । 2. वर्णन करती रै । 3. पट, ककवाड़ । 4. उल्टा घाट । 5. घड़ा । 6. अचरि । 7. पेंच, लपेट । 8. नट । 9. पाट, चौड़ाई । 10. फट गया । 11. जगरर, गाूँठ । 12. नष्ट । 13. प्यारे । 14. छजव । 15. प्रकाि । 16. भ्म ।

बचन 20

उपदेि िब्द अभ्यास

सुरत ररे लागी कदन और रात गुरु का दम दम अब गुन गात नाम धुन चली अधर से आत राधास्वामी धरा सीस पर राथ

। । । ।

159

िब्द रस अब नसर छोड़ा िात ।।18।। अमर पद पाया छू टा गात1 ।।19।। अिण2 का चरखा डाला कात ।।20।। मैं तिूूँ न उनका साथ ।।21।।

।। िब्द सातवाूँ ।। नाम धुन सुनो, गगन चढ़ चलो, गुरु सूँग करो, चेत कर ररो, बाूँध मन धरो, चरन गजर4 चखो, धीर पुजन गरो, क्रोध को दरो, काल कु ल दलो, मगन रोय ररो, घाट घट खुल,े द्वार जतल धसे, सेत पजरचान, सुखमना िान, संख धुन जमले, भेद तब खुल,े सुन्न चढ़ आय, रंस गजत लाय,

1. तन ।

2. आसमान ।

िब्द धुन प्रेम लौ साध संग सदा जचत सरन गुरु अगम रस सील घर िान्त घर दयाल पद परम पद बाट तब श्याम पद िोत लख बंक धस सुरत कफर नाद धुन मानसर चन्द्र में

3. जवचारो ।

गुनो3 । लाय ।।1।। रलो । लाय ।।2।। तको । आये ।।3।। ररो । आय ।।4।। चलो । पाय ।।5।। चले । पाय ।।6।। आन । िाय ।।7।। जपले5 । गाय ।।8।। न्राय । धाय ।।9।।

4. पकड़ कर ।

5. इकट्ठी रोवे ।

160

सार बचन

बचन 2

खोि कर चली , मरासुन जमली । पाय जनि गली, जवरंग1 रो िाय ।।10।। भूँवर गढ़ तोड़, बाूँसरी घोर । सोरं का िोर, सुना रस खाय ।।11।। पाय पद चार, पुरूष घर प्यार । बीन धुन सार, सुनी जनि आय ।।12।। अलख घर जमला, अगम गुल2 जखला । चाल धुर चला, जलया सब काि बनाय ।।13।। एक पद ररा, गुप्त सो करा । सीस अब धरा, चरन राधास्वामी िाय ।।14।। ।। िब्द आठवाूँ ।। खोल री ककवजड़याूँ, चढ़ो री अटररयाूँ । सुरत नटररयाूँ, करो िब्द सूँग रजलयाूँ ।।1।। पावो री मरजमयाूँ, छु टे री मरजनयाूँ । िन् सुफजलयाूँ, झाूँको री जनरत गुरुगजलयाूँ ।।2।। धावो री धरजनयाूँ4, गरो री सरजनयाूँ । रोवो री मगजनयाूँ, भइलो5 नाम कदवजनयाूँ ।।3।। खोिो री अमजनयाूँ6, टले री िमजनयाूँ7 । छु टे री गुनजनयाूँ8,राधास्वामी िब्द िुगजनयाूँ9 ।।4।।

।। िब्द नवाूँ ।। लोभ री खुवजनयाूँ10, काम री दलजनयाूँ । क्रोध री दगजनयाूँ11, मन संतोष जमलजनयाूँ ।।1।।

1. पक्षी । 2. फू ल । 3. जवलास । 4. संसारी सुरत । 5. रोवो । 6. जनमणल, िुद्ध । 7. िमराि । 8. गुनावन । 9. योग । 10. खो देना । 11. िलाना ।

बचन 20

उपदेि िब्द अभ्यास

161

काटो री मलजनयाूँ1, चढ़ो री गगजनयाूँ । िाय री तपजनयाूँ, पकड़ो गुरु चरजनयाूँ ।।2।। रौंमें री टलजनयाूँ, भाित2 गुनजनयाूँ3 । बढ़े री लगजनयाूँ, ररो जनस बास िगजनया ।।3।। गावो री गुनजनयाूँ,4 धावो री धुनजनयाूँ5 । बुझे री अजगजनयाूँ, राधास्वामी िाजन्त कदवजनयाूँ6 ।।4।।

।। िब्द दसवाूँ ।। गुरु करे खोल कर भाई जबन िब्द उपाव न दूिा घर में घर गुरु कदखलावें धुन में अब सुरत लगावो वर घर रै अगम अपारा दस द्वारा घट चढ़ खोलो जबन मेरर गुरु नसर पावे सुतण खैंच चढ़ावो गगनी मन चंचल जथर न ररावे सुतण िब्द कमाई करना जनश्चय दृढ़ इस पर धरना यर सार सार सब गाया राधास्वामी भेद लखाया

। । । । । । । । । । । । ।

लग िब्द अनारद िाई ।।1।। काया का छु टे न कु िा7 ।।2।। धुन िब्द पाूँच बतलावें ।।3।। इस घर से उस घर िावो ।।4।। दसवें के पार जनरारा ।।5।। सत िब्द अधर पै तोलो ।।6।। जबन िब्द राथ नसर आवे ।।7।। धुन िब्द सुनो यर करनी ।।8।। जचत जनमणल कस रोय आवे ।।9।। सब ितन दूर अब धरना ।।10।। आलस कर कभी न कफरना ।।11।। संतन मत भाख सुनाया ।।12।। सुन मान सार समझाया ।।13।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। चढ़ झाूँको गगन झूँझररया । धस देखो श्याम सुन्दररया8 ।।1।। कफर तको िोत जझजलजमजलया । मध मान मोर दल मजलया9 ।।2।।

1. मैल । 2. भागे । 3. तीनों गुन । 4. मजरमा । 5. धुन को पकड़ कर चढ़ो । 6. देता रै । 7. बरतन । 8. तीसरा जतल । 9. जमटा कदया ।

162

सार बचन

सब दूर रोयूँ कलमजलया1 । जिकु टी चढ़ देख कूँ वजलया । तब सुरत रोय जनमणजलया । भागे कफर माया छजलया । यर अगम भेद अब जमजलया ।

बचन 20

धुन िब्द सुरत िा रजलया2 ।।3।। धुन परखो सुन्न मूँडजलया ।।4।। तुम धारो यरी अमजलया3 ।।5।। सुतण पकड़ा िब्द अटजलया4 ।।6।। राधास्वामी करन सम्रजलया ।।7।।

।। िब्द बाररवाूँ ।। घुमर5 चल सुरत घोर सुन भारी । िग ररना रै कदनचारी6 । गुरु करें पुकार पुकारी । ममता सब झाड़ जनकारी । यर काम नरीं संसारी । मनमुख सब बाज़ी रारी । इक नाम सार सब खारी । यर िुजि बताई न्यारी । अब मानो बात रमारी । कामाकदक काढ़ जनकारी । मन माया दोनों मारी । कफर मुरत करे असवारी । तू अगम पुरूष की नारी । सतगुरू संग प्रेम बढ़ा री । सरबर7 की धारा िारी ।

अरी सतगुरू संत जपयारी ।।1।। क्यों भार उठावो भारी ।।2।। धुन संग करो चल यारी ।।3।। सुतण अगम देि पग धारी ।।4।। कोई गुरूमुख बूझ सम्रारी ।।5।। सतसंग कर छु टे जवकारी ।।6।। तू रोिा नाम अधारी ।।7।। नसर वेद कतेब जवचारी ।।8।। ग़फ़लत ति रो हुजियारी ।।9।। कफर न्रावो सीतल धारी ।।10।। तब काल करम दोउ रारी ।।11।। सतगुरू के मरल जसधारी ।।12।। सब की अब हुई दुलारी ।।13।। देखे घट िब्द उिारी ।।14।। राधास्वामी कर पुकारी ।।15।।

।। िब्द तेररवाूँ ।। चढ़ सुरत गगन

की

घाटी । क्यों िले भरम की

भाठी ।।1।।

1. काल का मैल । 2. रल जमल गई । 3. अभ्यास । 4. जनश्चल । 5. घूम कर । 6. आयु की चार अवस्था-लड़कपन, िवानी, अधेड़, बुड़ापा । 7. मानसरोवर ।

बचन 20

उपदेि िब्द अभ्यास

क्यों चले काल की बाटी1 । तुझे पड़ी जबषय रस चाटी । सौदा कर सतगुरू राटी3 । अब बाूँध सुरत संग ठाठी । कफर खोलो चढ़ कर साूँटी5 । घट देखो चौक सपाटी6 । मन माना छोड़ लपाटी8 । घट बली िोत की लाटी10 ।

163

तू खोल कपट की टाटी2 ।।2।। तू रले एक कदन माटी ।।3।। चल खोलो घट की टाटी ।।4।। तब छू टे कमण प्रपाटी4 ।।5।। नभ चढ़ िा खोल कपाटी ।।6।। िग छू टा हुई उचाटी7 ।।7।। मैं मारा काल झपाटी9 ।।8।। मैं राधास्वामी दर की भाटी11 ।।9।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। मन घोटो घट में लाई धुन िब्द सुनो गगनाई चंचलता जचत्त भगाई भोगों की आस छु टाई मल बास12 हृदे13 से िाई मजरमा कु छ करी न िाई घट अनरद घोर बिाई घट भान उदय रोय आई संतन मत कहूूँ बड़ाई आरत की बात चलाई गुरु आगे धरे बनाई मैं भी कफर आरत गाई गुरु चरनन दास कराई राधास्वामी नाम जधयाई

। । । । । । । । । । । । । ।

मन आसा सब जमट िाई ।।1।। सुतण लगे रोय मगनाई ।।2।। जनमणलता जमजल सफ़ाई ।।3।। सुजमरन मन अजधक लगाई ।।4।। अमृत रस जपया अघाइ ।।5।। मन मारा सुरत समाई ।।6।। गुरु सतगुरू लीन ररझाई ।।7।। चन्दा की िोत िगाई ।।8।। श्रुजत जसमृजत सभी लिाई ।।9।। कफर सामां सब ले आई ।।10।। गुरु मेरर करी अजत भाई ।।11।। गुरु मुझ पर हुए सराई ।।12।। मैं िोभा अद्भुत पाई ।।13।। लीला कु छ आगम कदखाई ।।14।।

1. रास्ता । 2. परदा । 3. दुकान । 4. जसलजसला । 5. गाूँठ । 6. साफ़ । 7. उदास । 8. लपेट की बात । 9. िल्द । 10. लौ । 11. भाट याने मजरमा गानेवाला । 12. मलीन वासना । 13. हृदय ।

164

सार बचन

बचन 20

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।। घन मन वर कफर व्राूँ सत जिन

गिण सुनावत गररी छोड़त सब जवष लररी सुन्न बड़ी अजत गररी सेत कूँ वल सुतण ठररी संत करें जनत फे री िब्द िाय धुन रेरी राधास्वामी चरन गरे री

। । । । । । ।

अब सुरत सुन सुन ठररी ।।1।। तू चढ़ चल और वराूँ रर री ।।2।। लीला व्राूँ देख अूँधरे ी ।।3।। घट िब्द गुरु हुइ चेरी ।।4।। सुन बात सखी अब मेरी ।।5।। अब कफरी दुराई तेरी ।।6।। उन जमटी चौरासी फे री ।।7।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।। सुरत तू चढ़ िा तुतण गगन को । छोड़ चल सकल पसार सगुन ण को । जनगुन ण छोड़ चलो आगे को । या को त्याग सुनो सुन धुन को । व्राूँ से चल पहुंचो मरासुन को । सत्तनाम पद जमला सुरत को । राधास्वामी करत भेद जनि घर को

लखो िाय पजरले िोत जनगुणन को ।।1।। काट अब िड़ से फाूँस जिगुन को ।।2।। पकड़ो िाय मरा जनगुन ण को ।।3।। यों तुम धारो संत बचन को ।।4।। देखो आगे धाम सोरं को ।।5।। अलख अगम िा पसण चरन को ।।6।। । मेट कदया अब आवागवन को ।।7।।

।। िब्द सत्तररवाूँ ।। त्याग चल सिनी िग की धार सुरत से रोिा सतगुरू लार लगी रहु आठों परर सम्रार गगन का पकड़े रहु तू द्वार करें राधास्वामी रेला मार

। । । । ।

बरे मत या में दुक्ख अपार ।।1।। िब्द में तन मन दोनों गार1 ।।2।। अमी रस पीती रहु हुजियार ।।3।। नाद संग कर ले अब के प्यार ।।4।। सोच कर चढ़ना जिकु टी द्वार ।।5।।

।। िब्द अठाररवाूँ ।। सुरत अब चढ़ो नाम रं ग लाग । िगत सब सोवे तू उठ िाग ।।1।।

1. गला दे ।

बचन 20

उपदेि िब्द अभ्यास

बड़े कफर तेरा अचरि भाग । जमले तोजर प्यारी परम बैराग । जमटे सब मन क द्वेष और राग1 । खेल जनत सतगुरू संग तू फाग । हुई अब जनभणय िम भौ भाग । हुई अब जनमणल छू टे दाग़ ।

165

सुने तू चढ़ कर अनरद राग ।।2।। लगे तेरा धुन से अजत अनुराग ।।3।। मार ले नभ चढ़ काला नाग ।।4।। बासना टू टे सब ज्यों ताग ।।5।। रंस संग जमली उड़ाया काग ।।6।। राधास्वामी दीन्रा िब्द सुराग ।।7।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। सागर क्षीर पीवे तू पानी ।। टेक ।। सागर क्षीर भरा घट भीतर । पीवो सूरत तानी ।।1।। िग को िार धसो नभ अंदर । मंदर परख जनिानी ।।2।। गुरु मूरत तू धार जरये में । मन के संग क्यों कफरत जनमानी2।।3।। तेरा काि करें गुरु पूरे । सुन ले अनरद बानी ।।4।। कमण भमण बस सब िग बौरा । तू क्यों रोत कदवानी ।।5।। सुरत सम्रार करो सतसंगत । क्यों जवष अमृत सानी ।।6।। तेरा धाम अधर में प्यारी । क्यों धर3 संग बंधानी ।।7।। िल्दी करो चढ़ो ऊूँचे को । राधास्वामी करत बखानी ।।8।। ।। िब्द बीसवाूँ ।। रंसनी छानो दूध और पानी छोड़ो नीर जपयो पय4 सारा िुजि ितन से घट में बैठो खान पान जनद्रा ति आलस कफर औसर नसर राथ पड़ेगा गुरु का करना मान सखी री पाूँचो इन्द्री उलटी तानो

।। टेक ।। । जनस कदन ररो अघानी5 ।।1।। । सुरत िब्द समानी ।।2।। । सुन ले अधर करानी ।।3।। । भरमो चारों खानी ।।4।। । देत जसखापन6 िानी ।।5।। । इच्छा मार भवानी7 ।।6।।

1. नफ़रत और रग़बत । 2. रीन । 3. देर । 6. जिक्षा । 7. संसार में लाने वाली ।

4. अमृत, दूध ।

5. तृप्त ।

166

सार बचन

बचन 20

मन को साध चढ़ो गगनापुर । सुनो अनारद बानी ।।7।। िोर रोत तेरे घट के भीतर । तू क्यों ररे अलसानी ।।8।। राधास्वामी टेरत तो को । कर कर अमृत बानी ।।9।। ।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। सुरत को साध, छबीली रो मगनी । चदररया धोय, अधर में िा रं गनी ।।1।। करम सब िार, लगा ले घर अगनी । मान मद छोड़, दूर कर सब जवघनी ।।2।। सोवना छोड़, रै न का ररो िगनी । गुरु यों करैं, बात ले मान, करो लगनी ।।3।। सरन में आय, चरन उर धार, सुनो सिनी । करें राधास्वामी, मानो आि, धरन धरनी1 ।।4।।

।। िब्द बाइसवाूँ ।। सुरत अब सार सम्रालो नाम ।। टेक ।। चेत चलो तुम िग से अब के । कफर औसर नसर पाम2 ।।1।। गुरु की भजि प्रेम जचत धारो । वरी सुधारें काम ।।2।। नाम भेद दे सुरत चढ़ावें । पहुंचावें जनि धाम ।।3।। तू सुख साथ सरि रस भोगे । पावे कफर आराम ।।4।। राधास्वामी करें सुनाई । सेत जमला और छू टा श्याम ।।5।। ।। िब्द तेईसवाूँ ।। चमन3 को चीन्र री बुलबुल । जखले िरूँ बहुत से गुल गुल4 ।।1।। गुरु संग चल ररो जरल जमल । चढ़ाओ सुरत मन जमल जमल ।।2।। लगाओ खैंच कर कदल कदल । समाओ िोत में जतल जतल ।।3।।

1. िो सपड को धारर् कर ररी रै यानी सुरत । 4. फू ल ।

2. पावेगी ।

3. फु लवाड़ी ।

बचन 20

उपदेि िब्द अभ्यास

सरसदल कूँ वल लख जखल जखल । झाूँक वर घाट रहु खुल खुल । सुगन्धें मरकतीं संदल । रटे कफर काल की ककल ककल2 । छु टाई कमण की दल दल ।

167

रटा कर देख दो जसल जसल1 ।।4।। उतर िा पार चढ़ पुल पुल ।।5।। धुलें तब सुतण मन कल मल ।।6।। लगे तब िब्द में जपल जपल ।।7।। जमलो राधास्वामी से चलचल ।।8।।

।। िब्द चौबीसवाूँ ।। धुन में अब सुरत लगाओ इन्द्री सब घट उलटाओ गुनना जवष छोड़ समाओ लय3 रोय न मन समझाओ इक िब्द पकड़ और सब जबसराओ जबन सुरत सब्द कु छ और न गाओ जतल पर भी सुरत िमाओ िरूँ िोत जनरं िन पाओ चढ़ बंकनाल में आओ सुन्न में धस खेल जखलाओ मरासुन्न जनरखते िाओ आगे सतलोक घुमाओ कफर अगम देि धस िाओ

। । । । । । । । । । । । ।

िब्दा रस पी जिप्ताओ ।।1।। मन फै ला खैंच जमलाओ ।।2।। आलस ति िौक़ बड़ाओ ।।3।। जवक्षेप3 जवघन यर दूर कराओ ।।4।। यर मारग जनत्त कमाओ ।।5।। मन रोको नभ पर धाओ ।।6।। जपल कर दलसरस खुलाओ ।।7।। कफर िब्दजर िब्द सुनाओ ।।8।। गढ़ जिकु टी फ़तर कराओ ।।9।। व्राूँ का भी िब्द िगाओ ।।10।। कफर भूँवरगुफा पर छाओ ।।11।। व्राूँ से भी अलख चढ़ाओ ।।12।। राधास्वामी संग जमल िाओ ।।13।।

।। िब्द पच्चीबसवाूँ ।। दुलरनी करो जपया का संग ।। टेक ।। दुलरा तेरा गगन बसेरा4 । तू बसे गुरु के साथ चलो उस नगरी । चढ़े प्रेम यर िोबन तेरा उतर िायगा । कफर तू

नइरर5 का रोगी

अंग ।।1।। रं ग ।।2।। तंग ।।3।।

1. परदे । 2. िोर । 3. जवघ्न अभ्यास के -लय, जवक्षेप, कषाय, रसास्वाद । 4. बसता रै । 5. माूँ बाप का घर (सपड देि ) ।

168

सार बचन

ताते अभी सम्रारो मग1 को नाम रूँ गीला दुलरा तेरा सूरत डोर बाूँध दे गुरु से जपया के द्वार तेरे नौबत3 झड़ती राधास्वामी पता बताया

। । । । ।

बचन 20

धारो ढंग उमंग ।।4।। उड़ो गगन िस चंग2 ।।5।। त्यागो सभी उचंग ।।6।। जबच जबच बिे मुर ूँ चंग4 ।।7।। चढ़ चल पकड़ तरं ग ।।8।।

।। िब्द छब्बीसवाूँ ।। घट में चढ़ खेल कबड्डी । स्वान5 ज्यों चूसे मत जवष रड्डी ।।1।। मार मन चढ़ो काल की चढ्ढी6 । नाम गर पाला7 छोड़ जतगड्ढी8 ।।2।। चलो घर चढ़ कर सूरत गड्डी9 । बनो तुम मीरी10 रो मत फड्डी11 ।।3।। तरं गें रोको बाूँधों गड्डी12 । उखाड़ो ममत पुरानी गड्डी ।।4।। पकड़ कर मूड ूँ काल की डढ्ढी14 । जवषय सब त्यागो खा मत बड्डी15।।5।। सुरत मैं गुरु चरनन पर अड्डी18 । िगत की सभी वासना कढ्ढी17 ।।6।। राधास्वामीनाम चढ़ो यर जसढ्ढी18 । काल की बातरोय सब कफड्डी19।।7।। ।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।। कोमल जचत्त दया मन धारो इन्द्री थान जवषय को त्यागो सार पदारथ गुरु से पाओ धारा अगम पकड़ सुतण िोड़ो चलो सुरत नभ द्वारा झाूँका परे िाय ब्रह्मण्ड समानी अब तो काल कला सब रारा अक्षर रूप जनरखती चाली सूरत साफ़ ऊड़ी ऊूँचे को

। । । । । । । । ।

परमारथ का खोि लगाना ।।1।। सुतण िब्द में जनत्त लगाना ।।2।। चरन कूँ वल में प्रीत बढ़ाना ।।3।। इस सतसंग में सदा समाना ।।4।। अंडा तीन लोक दरसाना ।।5।। सुन्न सरोवर कूँ वल जखलाना ।।6।। मानसरोवर पैठ अन्राना ।।7।। छोड़ कदया अब देि जबगाना ।।8।। छू ट गया सब मरल पुराना ।।9।।

1. रास्ता, मागण । 2. पतंग । 3. नक्क़ारा । 4. एक बािा । 5. कु त्ता । 6. सवारी । 7. रद । 8. तीन गुनों का । 9. गाड़ी । 10. अब्वल । 11. सब से पीछे । 12. गठरी । 13. गाड़ी हुई । 14. डाढ़ी । 15. ररश्वत, घुस । 16. ठरराई, रटकाई । 17. जनकाली । 18. सीढ़ी, िीना । 19. फीका ।

बचन 20

उपदेि िब्द अभ्यास

आगे चढ़ चढ़ अधर समानी संत जबना कोइ समझे नारीं करने में आवे नसर पूरा बाचक अपनी उजि लगावें संतन की गजत संतजर िाने अपनी उजि चतुरता त्यागो वर करते देखो जनि अपनी राधास्वामी सब से करते

। । । । । । । ।

169

िब्द िब्द का ममण जपछाना ।।10।। आगे िो िो भेद कदखाना ।।11।। उलटा सुलटा करत बखाना ।।12।। अमल जबना नसर बूझ बुझाना ।।13।। और करो कै से पजरचाना ।।14।। संत बचन को करो प्रमाना ।।15।। तू सुन सुन क्यों बुजद्ध लड़ाना ।।16।। संत भेद कोइ भेदी िाना ।।17।।

।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।। गुरु बचन करें सो सुन तुझे नाम जमला रै अिर गुरु खैंचे तोजर अधर तू फै ला बहुत पसर1 और मारें काल पकड़ तू सुरत लगा दे िकड़ मन माला फे र सुजमर ले अनरद िब्द खबर तू छोड़ जवरर के सर4 कर सुन्न जिखर पर घर कफर अलख अगम िा तर यर आरत जनत री कर

रे रे रे रे रे रे रे रे रे रे रे रे

। । । । । । । । । । । ।

अब सतसंग में जचत धर रे ।।1।। तू सुरत सम्रार पकड़ रे ।।2।। उनके संग बाूँध कमर रे ।।3।। गुरु खोवें तेरी कसर से ।।4।। कफर खोवें सभी अकड़2 रे ।।5।। तेरा जमटे चौरासी चकर रे ।।6।। गुरु कुं िी राथ पकड़ रे ।।7।। घट फोड़ो गगन अबर3 रे ।।8।। सुन घोर मानसर चल रे ।।9।। धुन सुनता चल सतपुर रे ।।10।। राधास्वामी धाम अमर रे ।।11।। गुरु करें दया तुझ पर रे ।।12।।

।। िब्द उन्तीसवाूँ ।। सुरजतया गगन चढ़ाइलो मीत । जमटाइलो सकल भरम भौ भीत5 ।।1।। भवन6 ति गइलो अधर मसीत7 । बाूँग8 सुन ध्याइलो अिर अिीत ।।2।। 1. फै लकर । 2. ऐंठ, अरंकार । 3. बादल । 4. तीर । 7. मसजिद । 8. नमाि के जलये बुलारे की आवाज़ ।

5. भय ।

6. घर ।

170

सार बचन

बचन 20

नाम रस पाइलो गुरु की नीत1 । िब्द धुन गाइलो अचरि गीत ।।3।। समाइलो मनुवाूँ गर गुरु रीत । लगाइलो घट में जछन जछन प्रीत ।।4।। भगाइलो काल करम दल िीत । जमटाइलो मन से भरम अनीत2 ।।5।। बिाइलो सुन में िब्द अतीत3 । मेरर से पाइलो संतन सीत4 ।।6।। बिाइलो राधास्वामी सरन पुनीत5 । धाररलो नाम रसायन चीत ।।7।। ।। िब्द तीसवाूँ ।। सुन री सखी चढ़ मरल जवराि । कर जबलास और िग से भाि । रंसन का िरूँ िुड़ा समाि । गुरु चरन पकड़ ति कु ल की लाि । सुरत जनरत का लेकर छाि6 । बड़े भाग पाया सब साि । तीन लोक का खुल गया पाि10 । राधास्वामी कदया मोसर यर दाि11 ।

िरूँ तेरे प्रीतम बैठे आि ।।1।। तख़्त बैठ और कर व्राूँ राि ।।2।। तू उन जमल कर अपना काि ।।3।। मन दपणन बहु जवजध कर माूँि ।।4।। छाूँट फटक7 डालो धुन नाि8 ।।5।। सतगुरू बख़्िा तख़्त और ताि9 ।।6।। चार लोक चढ़ भोगूूँ राि ।।7।। अब मेरा रोय न कभी अकाि ।।8।।

।। बचन इक्कीसवां ।। जरदायतनामा12 बीच बयान सुरबत और जखदमत-गुज़ारी13 मुर्शिद-काजमल14 के और िरर15 दरिात फ़क़ीरी के और जिसमें उपदेि िब्द के अभ्यास का और भेद िब्द मागण और उस के मुक़ामात का भी वर्णन ककया रै । जिन लोगों को िौक़ जमलने माजलक कु ल का रै और तरक़ीक़ात मज़रब की मंज़ूर रै कक कौनसा मज़रब सब से बाला 16 रै और तरीक़ 17 1. रीत, तरीक़ा । 2. अन्याय । 3. जनरमाया । 4. प्रसाद । 5. पजवि । 6. सू प , छािन । 7. साफ़ करलो । 8. अनाि । 9. मु कु ट । 10. क़लई, मु ल म्मा । 11. िरे ज़ यानी बखजिि । 12. अनु दे ि , उपदे ि । 13. से वा । 14. पू रे सतगु रू । 15. बयान । 16. ऊूँ चा । 17. रास्ता ।

बचन 21

जरदायतनामा

171

भी उस का बहुत सीधा चारते रैं , उन के वास्ते यर कलाम 8 करा िाता रै । उन को चाजरये कक कु छ दुजनया की मु र ब्बत कम करें यानी ज़र और ज़न और औलाद की चार तक़दीर 2 के रवाले करके अव्वल सु र बत फक़ीरों को मु क़ द्दम 3 रक्खें । फ़कीरों में सु र बत उस फ़कीर की करें िो िाजग़ल 4 िग़ल 5 सु ल्तानु ल अज़कार 6 का रोवे या िग़लनसीरा 7 करता रोवे , यानी अनरद िब्द के मागण को िानता रोवे और दृ जष्ट की साधना जिसने करी रोवे और मदुमण क -चश्म 8 याने दोनों जतलों को खींच कर िग़ल की मदद से एक ककया रोवे और आवाज़े आसमानी को सु न कर रूर को चढ़ाता रोवे और िो ऐसा फ़कीर कम्याब 9 रो तो जज़करूल्क़लू ब 10 पासे - अनफ़ास 11 वालों को तलाि करे , उसकी सु र बत से भी सफाई-कदल और कमज़ोरी-नफ़्से अम्मारा 12 की रोगी और कु छ लज़्जज़त अं द रूनी राजसल रोगी ले ककन िो फ़ायदा कक रूर के चढ़ाने का रै वर तो तरीक़ सु ल्तानु ल -अज़कार राजसल रोगा । अब चाजरये कक ऐसे फ़कीर की जखदमत में िा कर उन से मु र ब्बत पै दा करो और उनकी जखदमत-गु ज़ारी में चु स्त व चालाक ररो और तन से , मन से , धन से ब-रर-सू र त उनको अपने ऊपर मे र रबान और मु त विर कर लो और दिण न उनका कदल और दीदा 13 से घं टे दो घं टे बराबर करते ररो यानी अपनी आूँ खों से उनकी आूँ खो को ताकते ररो और जिस कदर ताक़त अपनी दे खो पलक से पलक न लगाओ और इस कसरस 15 को रोज़ ज़्जयादा करते ररो । जिस रोज़ और जिस वि नज़र-मे र र-आलू द 15 उनकी तु म पर पड़े गी उसी कदन सफ़ाई कदल की फ़ौरन रोगी और िब वर मे र र करके अपनी मौि व

1. बचन । 2. प्रारब्ध । 3. मुशय । 4. अभ्यासी । 5. अभ्यास । 6. सुरत िब्द योग । 7. दृजष्ट का साधन । 8. आूँख की पुतली । 9. दुलभ ण । 10. नाम की ज़रब (चोट) कदल पर लगाना । 11. स्वाूँसा का अभ्यास । 12. मलीन मन । 13. आूँख । 14. अभ्यास । 15. भरी हुई ।

172

सार बचन

बचन 21

मरज़ीसे िग़ल बाला 1 का उपदेि करें तो रूर तुम्रारी आवाज़े आसमानी को पकड़ेगी और मुनाजसब रै कक तुम भी इस िग़ल को रोज़मराण जबला-नागा 2 चार बार दो बार जिस क़दर फु रसत जमले करते ररो और िो कदल तुम्रारा क़बूल न करे और वसवसा 3 और खदिा और गुनावन बे -फ़ायादा उठावे तो फ़याणद 5 मुर्शिद के आगे करो और कफर उसी िग़ल में मेर नत रक्खो । उनकी तविर और तुम्रारी मेर नत से रोज़-बरोज़ तरक़्की रोगी और िल्दी और इजज़्जतराबी 6 करना नरीं, क्योंकक ‘तािील कारे ियातीं बुव द’ 17 –आजरस्ता आजरस्ता राजसल रोना मुफ़ीद पड़ेगा और िल्दी िो कु छ रोगा, वर क़ायम नरीं ररेगा, क्योंकक वर िेतान की तरफ़ से रोगा । िो मुर्शिद ररमान 8 की मदद से रोगा, वर रमेिा क़ायम ररेगा । ज़ाजरर लवाज़मा 9 िो कु छ चाजरये सो मैं कर चुका । अब बाजतनी 10 राल कक िो दरिे फ़क़ीरों को राजसल रैं, उस को ब्यान करता हूं – कक जिस वि जनगार तुम्रारी कदमाग़ के भीतर उलट कर आसमान को देखेगी और रूर तुम्रारी जिस्म 11 को छोड़कर उपर को चढ़े गी तो तुम को आकाि नज़र पड़ेगा कक जिस में थाना सरसदल कूँ वल का रै और रज़ारों पंखजड़याूँ उस की िुदा िुदा काम तीनों लोक का दे ररी रैं । उस की सैर को देख कर तुम बहुत ख़ुि रोंगे और तीन लोक के माजलक का दिणन पाओगे । और बहुत से मज़रब इसी मुक़ाम को पाकर और इसी को माजलक-कु ल गरदान कर 12 धोखा खा गये, और नूर और तिल्ली 13 इस िगर की देख कर तृप्त रो गये, आगे चलने का रास्ता बंद रो गया, मुर्शिद आगे का उनको न जमला, िो मुर्शिद जमलता तो आगे का रास्ता खुलता, सो इस से आगे का राल सुनो ।

1. ऊपर बयान ककये हुए । 5. पुकार । 6. बेचन ै ी। 9. सामान । 10. अंतरी ।

2. जनत्त नेम से । 3. भरम । 7. िल्दी िैतान का काम रै । 11. देर । 12. मान कर ।

4. सचता । 8. दयालु । 13. प्रकाि ।

बचन 21

जरदायतनामा

173

इस आकाि के ऊपर एक दरवाज़ा ऐसा बारीक और झीना रै कक िैसे रौज़न1 सुई के नाके का रोता । चाजरये कक उस रौज़न में अपनी रूर को प्रवेि करो2 और आगे उस के बंकनाल, टे ढ़ा रास्ता, कु छ दूर तक सीधा गया और कफर नीचा पड़ा और कफर ऊूँचे को चढ़ा, उस नाल को पार करके दूसरे आसमान पर सुरत पहुूँची । उस आसमान पर एक मुक़ाम जिकु टी कक उस को मुसल्लसी 3 करते रैं, लाख िोिन वसीअ4 और लाख िोिन तवील5 रै । उस में लीला और तमािे तरर-ब-तरर के रैं । िरर6 उसकी कराूँ तक करूूँ, मगर कु छ करता हूूँ कक रज़ार आफ़्ताब 7 और रज़ार मारताब 8 उसकी रोिनी से खजिल9 रैं और आवाज़ “ओं ओं” और “हू हू” और बादल की सी गिण बहुत सुरावनी आठ परर रोती ररती रै । उस मुक़ाम को पा करके रूर को बहुत सरूर10 राजसल रोता रै और रूर भी बहुत पाक और लतीफ़ 11 रो िाती रै । आलमे रूरानी 12 की खबर उस िगर से पड़नी िुरू रोती रै । कोई कदन उस िगर की सैर करके कफर ऊपर को चढ़ती रै । चढ़ते चढ़ते करोड़ िोिन ऊपर चढ़ कर तीसरा पदाण फोड़ कर सुन्न में पहुंची कक जिस को फ़ु करा ने आलमे-लाहूत करा रै । उसकी तारीफ़ क्या कहूं उस मुक़ाम पर रूरें बहुत जवलास करती रैं और रोिनी वराूँ की ऐसी रै कक बारर बारर जरस्सा ज़्जयादा रोिनी जिकु टी से मालूम पड़ती रै तालाबे-ज़़ुलाली13 व रौिे-कौसरी14 पुर-अज़-आबे-रयात15 कक जरन्दी में उसको मानसरोवर करते रैं, िा-ब-िा16 मौिूद रैं और ककतने री गुलिन17 और चमन 18 जखले हुये नज़र पड़ते रैं और अकसर रूरें बसुरते-नाज़नीनाूँ19 मुक़ामाते मुशतजलफ़20 पर रक़्स21 कर ररी रैं व जग़ज़ाराय लतीफ़अज़-बस-िीरीं22 व ख़ुिनुमा23 तरोताज़ा तैयार रैं 1. जछद्र । 2. धसाओ । 3. जिकोन । 4. चौड़ा । 5. लम्बा । 6. जवस्तार । 7. सूर ि । 8. चन्द्रमा । 9. लजित । 10. आनन्द । 11. सूक्षम । 12. चैतन्य । 13. जनमणल, साफ़ । 14. अमृत कुं ड । 15. अमृत । 16. िगर िगर, रर िगर, इधर उधर । 17. फु लवारी । 18. बाग़ । 19. खूबसूर त । 20. ज़़ुदा । 21. नृत्य । 22. उम्दा खाना और जमठाई । 23. सुरावनी ।

174

सार बचन

बचन 21

और नग्मरा1 व तरानरा2 रर िाजनब को रो ररे रैं । उस आनन्द व सरूर को रूर रसीदा 3 िानती रै । करने में आ नरीं सिा, और रर एक िगर जझरने आबे -रयात के िारी रैं यानी अमी सरोवर भरे रैं, अमृत की धारा चल ररी रैं । रोनक़ 4 और ज़ेबाइि 5 उस मुक़ाम की क्या कहूूँ, रीरों के चबूतरे , पन्नों की क्याररयाूँ, िवाजररात के पौदे, लाल और चुजन्नयाूँ िड़े हुए नमूदार 9 रो ररे रैं । मछजलयाूँ मुर स्सा 7 उन तालाबों में तैर ररी रैं । दम दम पर झलक कदखाती रैं । पल पल पर चमक उनकी कदल को पकड़ती रै । आगे उसके अनन्त िीि मरल बने हुए रैं और रूरें अपने अपने मुक़ामों पर मुवाकफ़क़ हुक्म माजलक अपने के मुक़ाम8 रैं और कै कफ़यत और जबलास नये नये परस्पर देखती रैं और कदखाती रैं कक जरन्दी में उन्रीं रूरों को रंस मंड ली करके बयान ककया रै । नक़्िाबंदी9 उन मुक़ामों की देखने री के ताल्लुक़ रै । कु ल कारखाना उस िगर का रूरानी रै यानी चैतन्य लतीफ़ 10 –कसीफ़11 और िड़ नरीं

रै-और वराूँ की रूरों में लताफ़त 12 और पाकी13 अज़-बस14 रै, कसाफ़त15 और मलीनता जिसमानी याने बदन की नरीं रै, और िरर उस सैरगार की फ़कीर िानते रैं । ज़्जयादा खोलना उस का मुनाजसब नरीं । मुद्दत कसीर 16 उस िगर रूर इस फ़कीर की ने सैर की, कफर मुर जिदों की जरदायत से आगे को चली । चलते चलते पाूँच अरब पछत्तर करोड़ िोिन उूँ ची गई । अलमे राहूत 17 का नाका तोड़ा । उस आलम की सैर की । उस मुक़ाम का बयान क्या करूूँ , दस नील तक ज़़ुलमात याने अूँधेरा रै । गरराई उस जतजमर-खूँड की कराूँ तक वर्णन करूूँ खरब िोिन तक रूर नीचे उतर गई, और थार उसकी राथ न लगी, कफर उलट कर ऊपर चढ़ आई और िो जनिाना कक मुर्शिदों ने बताया था, उसकी सुध लेक र उसी रास्ते पर 1. राग । 2. रागनी । 3. पहुं ची हुई । 4. िोभा । 5. सिावट । 6. कदखलाई दे ते रैं । 7. िड़ाऊ । 8. ठररी । 9. जचिकारी और बनावट । 10. सू क्ष्म । 11. स्थू ल , नापाक । 12. सू क्ष्मता । 13. जनमण ल ता । 14. बहुत । 15. गं द गी । 16. बहुत ज़्जयादा । 17. मरासु न्न ।

बचन 21

जरदायतनामा

175

चली और अंत लेना उस मुक़ाम का अनसब 1 न समझा । आगे को बढ़ी । यर मैदान मरासुन्न का रै । इस िगर चार मुक़ाम जनरायत गुप्त रैं और ककसी संत ने खोले नरीं । उस िगर रूरें बे - िुमार िो कक मरदूद 2 दरबार सच्चे ख़ु दा की रैं, उनके बन्दी-खाने बने हुए रैं । रोिनी में अपना अपना कारि करती ररती रैं ले ककन दिण न माजलक का उनको नसीब नरीं रोता । दिणन के न जमलने से अलबत्ता बे - कली रै मगर एक सूर त मु आ फ़ी की उनके वास्ते भी मुक़ रण र रक्खी गई रै कक िब िब संत उस रास्ते से गुज़ र करते रैं और िो रूरें नीचे के लोकों में से संतों के वसीले से िाती रैं, जिन जिन रूरों को कक इजत्तफ़ाक़ उन सं तों के दिण नों का रो िावे, इन रूरों के ले िाने की िो ख़ु िी कक संतों को रोती रै और उस सच्चे ख़ुदा की जनरायत मेर रबानी और अल्ताफ़ 3 इन रूरों पर रोता रै, संत उन रूरों को बख़्िा कर कफर सच्चे ख़ुदा के पास बु ल वा लेते रैं और राल उस िगर का बहुत से बहुत रै मगर कराूँ तक कहूं । उस मुक़ाम को छोड़ कर आलमे - हूतलहूत में पहुंची कक जिसको जरन्दी में भूँव रगुफा करते रैं कक वराूँ ऐक चक्कर कक जिसको सरडोलना करते रैं , ऐसा लतीफ़ कफर ररा रै और रूरें उस िगर सदा झू ल ती ररती रैं और जगदण उस के अनन्त दीप रूरानी बने हुए रैं और उन दीपों में से आवाज़, “अनाहू अनाहू” सदा उठ ररी रै और रूरें और रंस उन्रीं धु नों से रमेिा जबलास करते ररते रैं और िो िो जसफ़त 5 इस मूक़ाम पर और रै वर ज्यों की त्यों जलखने में नरीं आती । दे ख ते री के ताल्लुक़ रै । िब रूर इस मागण को कमाती कमाती पहुं चेगी, तब आप

1. मुसीबत ।

2. जनकाली हुई ।

3. दया ।

4. आवाज़ ।

5. तारीफ़ ।

176

सार बचन

बचन 21

देख लेवेगी, इस वास्ते मुनाजसब रै कक इस तरीके की कमाई करे िाओ । यर िग़ले आवाज़ रै । इस को मत छोड़ो । अब यराूँ की सैर देख कर रूर आगे को चढ़ी । आकाि मागण रो कर यानी ऊूँ चे को चढ़ती चली िाती रै, दूर से सुगंधें मलया-जगर की और कक़स्म कक़स्म के इतररयात की सी लपटें चली आती रैं और धुनें बाूँस ररयों की अनंत सुनाई देती रैं । उन को सुनती और सूूँघती हुई रूर यानी सुरत आगे को चढ़ती चली िाती रै । िब इस मैदान के पार पहुंची, नाका सत्तलोक का राजसल हुआ कक वराूँ से आवाज़ ”सत्त सत्त” और “रक़ रक़” बीन के बािे में से जनकलती सुनाई दी कक उसको सुन कर रूर मस्ताना-वार1 धसी चली िाती रै । और वराूँ नररें सुनररी और रूपररी पुर -अि-आबे-ज़़ुलाल2 दीखने लगीं और बाग़ बड़े बड़े नज़र आये । एक एक दरख़्त उसका करोड़ करोड़ िोिन की बुलंदी3 रखता रै और सूर ि और चाूँद करोड़ों बिाये फू ल और फलों के लगे हुए रैं और अनेक रूरें और रंस उन दरशतों पर बिाय िानवरों के चरचरे और जबलास कर ररे रैं । अिब लीला उस मुक़ाम की रै कक करने में नरीं आ सिी । यर लीला देखती हुई रूर यानी सुरत सतलोक में दाजखल हुई और सत्तपुरूष का दिणन पाया । अब सत्तपुरूष के स्वरूप का वर्णन करता हूूँ कक एक एक रोम उस का इस क़दर मुनव्वर 4 रै कक करोड़ों सूरि और चाूँद िरसमदा रैं । िब कक एक रोम की ऐसी जसफ़त रै तो तमाम रोमों की क्या जसफ़्त जलखने में आवे और जिस्म की तारीफ़ की कराूँ गुंिाइि, नैन नाजसका और श्रवर् मुख और राथ और पाूँव का क्या वर्णन करूूँ , मरज़ 5 नूर6 रै, नूर का समुद्र कहूूँ तो नरीं बनता ।

1. मतवाली । 2. अमृत से भरी हुई । 5. जबलकु ल । 6. प्रकाि ।

3. ऊूँचाई ।

4. रौिन, प्रकािवान ।

बचन 21

जरदायतनामा

177

एक पदम पालंग घेर सत्तलोक का रै और पालंग की िुमार यर रै कक यर जिलोकी एक पालंग रै । पद दराज़ी1 और वुसअत2 सत्तलोक की ककस क़दर बड़ी हुई कक क़यास3 काम नरीं कर सिा, और रूरें पाक कक जिन को रंस करते रै, वराूँ बसती रैं और सत्तपुरूष का दिणन करती रैं और नवाय4 बीना िा-ब-िा सुन ररी रैं व जग़ज़ाय5 अमी रमेिा खाती ररती रैं ।

इस मुक़ाम का भी जबलास देख कर रूर आगे को चली और अलख लोक में पहुूँची । अलख पुरूष का दिणन पाया । एक संख का घेर उस लोक का रै और अरब खरब सूरिों का उिाला एक एक रोम में अलख पुरूष के रै । कफर वराूँ से ऊपर को चली । अगम लोक को पाया कक जिस का घेर मरासंख पालंग का रै और करोड़ संख की काया6 अगम पुरूष की रै और वराूँ के रंसों के रूप भी अद्भुत रैं और जबलास भी वराूँ के अचरि रूप रैं । इस िगर बहुत मुद्दत जवश्राम ककया । इससे आगे राधास्वामी यानी अनामी पुरू ष का दीदार ककया और उस में समाई । वर बे -इजन्तरा 7 और बे - िुमार और बे - अंत रै और फ़क़ीरों का जनि स्थान वरी रै । उस को पाकर के सब संत चुप रो गये और मैं भी अब चुप रोता हूूँ । इतनी बड़ी भारी गजत फ़क़ीर और संत की रै । और िो लोग कक परले री मुक़ाम पर थक गये और उसको बे इजन्तरा 7 और बे- अन्त करने लगे, पस उनके मुरीदों और सेव कों को

कै से इन मुक़ामात का जनश्चय कराया िाय ? जसवाय संत और फ़क़ीर काजमल के कोई नरीं िान सिा और यक़ीन भी इन मुक़ामों का उन्रीं को रोगा कक जिन को संत और फ़क़ीर भेदी इन मुक़ामो के जमलो रोंगे । उन को इन के बचन पर एतक़ाद 8 रोगा तो यक़ीन लायेंगे । यर मुक़ाम न पैग़ म्बर साजरब पर खुले और न व्यास और वजिष्ठ को मालूम

1. लम्बाई । 2. चौड़ाई । 3. समझ, अनुमान । 6. जिस्म । 7. अपार । 8. जनश्चय ।

4. आवाज़ ।

5. आरार ।

178

सार बचन

बचन 21

हुए, पस जरन्दू और मुसलमान कोई इसका यक़ीन कर नरीं सिा । उन को इस राल का सुनाना भी ज़रूर नरीं क्योंकक वे पैग़म्बर और कु रान के पाबन्द रैं और जरन्दू व्यास वजिष्ठ और वेद के कै दी रैं । इनसे यर बचन सुने भी नरीं िावेंगे । इससे मुनाजसब रै कक जिस ककसी को एतक़ाद फ़क़ीर और संत पर ऐसा रै कक इन सब से आगे संत पहुूँचे रैं और संतों की मजरमा बहुत भारी रै और ख़ुदा और परमेश्वर दोनों के पैदा करने वाले संत रैं और इनकी गजत को वे दोनों नरीं िान सिे , ऐसा एतक़ाद संत और फ़क़ीर पर जिस ककसी का रै, उसको सुनना और करना इस राल का फ़ायदा करे गा ।इस वास्ते रर एक को यर सुनाना न चाजरये िब तक कक एतक़ाद उस का ऐसा परख न जलया िावे िैसा कक ऊपर मैंने बयान ककया रै ।

।। ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा ।। बीच बयान चढ़ने रूर के अिण यानी आसमान पर और पहुूँचना मुक़ाम हूत यानी सत्तलोक और सैर मुक़ामात रास्ते के

।। ग़ज़ल परली ।। मुर्शिदा आजिक़े दीदारे िमालत गश्तम । रे सतगुरू मैं तुम्रारे स्वरूप के दिणन का आजिक हुआ हूूँ ।

कदल खस्ता व िाूँबाख़्ता अज़ ख़ुद रफ़्तम ।।1।। मन मुरझाया हुआ और िान से खोया हुआ और आपे से बाजरर हूूँ ।

यक जनगारे तो मरा चाक जगरे बां करदा । आप की एक नज़र ने मुझ को दीवाना और परे िान कर कदया ।

बचन 21

ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा

रमचो मिनूूँ पए लैला चे परे िां करदा ।।2।। िैसे मिनूूँ लेला के वास्ते हुआ ।

ददणमन्देम

कदगर

रेच

न दरमाूँ दारे म ।

मैं दुजखया हूूँ और मेरा कोई इलाि नरीं रै ।

लुत्फ़े गुफ़्तारे जिगर रे ि चो मररम दारे म ।।3।। आप के बचन मेरे ज़खमी कदल के जलये मररम रैं ।

रूए ज़ेबाय तो तारे कदले मन नूराूँ कदण । आप के िोभायमान मुखड़े ने मेरे अंधरे े मन को ऐसा रौिन ककया ।

मार व ख़ुरिैद रज़ाराूँ ब फ़लक जखिलाूँ कदण ।।4।। कक रज़ारों िाूँद सूरि आसमान पर िरजमन्दा रैं ।

दौरे अफ़लाक चुनाूँ गरकदिे दौराूँ करदा । आसमानी चक्र ने ऐसी गरकदि ज़माने की की रै ।

आजिकाूँ रा ज़े क़दमबोजसये मरबूब नुमायाूँ करदा ।। कक प्रेजमयों के प्रीतम के चरनों में लगने से मिहूर और ज़ाजरर ककया ।

जरसे दुजनया ज़े दरूनम रमा बेरूूँ गरदीद । संसार की चार मेरे अन्तर से जबलकु ल जनकल गई ।

िोक़े दीदार कदलम रा रमा सर पुर पेचीद ।।6।। और दिणनों के िौक़ ने मेरे मन को भर कर फे र कदया ।

मररबा बख़्ते सफ़े दम क़दमे यार जगररफ़्त । धन्य रै मेरे भाग कक मैंने प्रीतम के चरन पाए ।

रूरे मन िक़्के क़मर कदो फ़लक रा जबजगररफ़्त ।।7।। और मेरी सुरत चाूँद को चीर कर आसमान पर पहुूँच गई ।

नग़्मरा नेक िुनीदम व जनदारा वाकफ़र । वराूँ राग और राजगनी और आवािें सुरावनी सुनी ।

काबा बुतखाना ब जनज़्जदम िुदा रर दो क़ाकफ़र ।।8।। और मेरे नज़दीक मसजिद और मंकदर दोनों काकफ़र मालूम हुए ।

179

180

सार बचन

बचन 21

।। ग़ज़ल दूसरी ।। अंदरूूँ अिण

रफ़्ता

दीदम

नूर ।

अिण यानी आसमान पर पहुूँच कर मैंने नूर देखा ।

कु श्ता िैताूँ व रम दमीदम सूर ।।1।। और िैतान यानी काल को मार कर सूर को फूं का । (प्रलय यानी क़्यामत का बािा बिाया ।)

रोिे तन रफ़्त रूर बाला िुद । तन का रोि न ररा और रूर यानी सुरत ऊूँचे को गई ।

िा जगररफ़्ता ब िा कक साजबक़ बूद ।।2।। और िराूँ कक पजरले थी वराूँ पहुूँच कर ठररी ।

ददण

मंदाने

इश्क़े

कू ए

वरीद ।

अब िो कोई दरदी प्रीतम एक माजलक की गली के रैं ।

मेकिम अज़ िमा बसूए फ़रीद ।।3।। उन को मैं भीड़ भाड़ से एकान्त में यानी बारर से अन्तर में लाता हूूँ ।

रचे गोयम िुनो बगोिे

तमीज़ ।

अब िो कु छ कक मैं करता हूूँ उस को कान देकर सुनो ।

रूर रा कि रसाूँ ब सौते अज़ीज़ ।।4।। कक अपनी सुरत को उस प्यारी आवाज़ में खैंच कर लगाओ ।

दर कदमाग़े तो गुलिनो मिजलस । तुम्रारे मस्तक में बाग़ व मरकफ़ल मौिूद रैं ।

सैर कु न तेज़ रौ ज़े मुर्शिद पुसण ।।5।। सतगुर से पूछ कर िल्दी चलो और उस की सैर करो ।

चश्म बंदो व मदुमक ण दर

कि ।

अपनी आूँखें बंद करके पुतली को चढ़ाओ ।

बर फ़लक रौ कु िादा कु न तो दरि ।।6।। और आसमान पर पहुूँच कर उस का दरवािा खोलो ।

बचन 21

ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा

अन्दरूनि रवाूँ

चो

181

रूर नमूद ।

िब आसमान के अन्दर सुरत चलने लगे तब वराूँ की सैर करो ।

कु न तो सुरैि जनगर बरारे विूद ।।7।। और इस िरीर में बरार देखो ।

दर

विूदत

अिब

तमािाए ।

तुम्रारी देर में अिब तमािा रै ।

आसमाूँ

ज़ेरो

अज़ण

बालाए ।।8।।

कक आसमान नीचे और ज़मीन ऊपर रै ।

कि नए

दाद

रार

रूरम रा ।

बंकनाल के रास्ते से रो कर सुरत चली ।

दर रसीदम

मुसल्लसी

रर िा ।।9।।

और जिकु टी स्थान पर पहुूँची ।

िम्स दीदम बरं गे सुखण आूँ िा । वराूँ सूरि लाल रं ग का देखा ।

ख़ुर रज़ाराूँ



रमसरत

ज़ेबा ।।10।।

कक जिसकी बराबरी रिारों सूरि भी नरीं कर सकते ।

मुल्के लाहूत पेि अज़ाूँ

याबी ।

उस के आगे लाहूत का मुक़ाम रै ।

सुन्न मेगोयंद ओरा

दर जरन्दी ।।11।।

कक जिसको जरन्दी में सुन्न करते रैं ।

सौते

आूँिा जनदा रमीं

दारद ।

वराूँ की आवाि का यर सरूप रै ।

रम्चो ककगरी व सारूँ गी आयद ।।12।। िैसे कक सारं गी और ककगरी बिती रै ।

रौज़े

आबे ज़़ुनान

दीदम

पुर ।

दराूँिा

दुर ।।13।।

और अमृत के कु ण्ड भरे कदखलाई कदये ।

मेखऱु ं द और अभ्यासी वराूँ मोती चुगते रैं ।

आजमलाूँ

182

सार बचन

चूूँ गुज़श्तम ज़े

बचन 21

आलमे लाहूत ।

िब मुक़ाम लाहूत यानी सुन्न से आगे चला ।

दर

रसीदम ब आलमे

राहूत ।।14।।

तो मुक़ाम राहूत यानी मरासुन्न में पहुूँचा ।

राले आूँिा बकै

बुगोयं

बाज़ ।

वराूँ का राल ककस से और कै से करा िावे ।

रूर रफ़्ता रर कक दानद आूँ आवाज़ ।।15।। जिस की सुरत वराूँ पहुूँची रै वरी उस को और उस की आवाज़ को िाने ।

सौते पोिीदा रस्त तर बारीक । वराूँ आवाज़ जनरायत गुप्त और झीनी रै ।

साख़्त रारि ब क़ु दरते तारीक ।।16।। और उस का रास्ता क़ु दती अंधरे ा बनाया गया रै ।

मुरजिद रमरार िुद दराूँ मैदाूँ । उस मैदान में सतगुरू आप संग हुए ।

िुदा

रैराूँ

बराय



िैताूँ ।।17।।

और उन को देख कर िैताने अज़ीम यानी मराकाल रैरान रो गया ।

रूर आूँ िा गुज़श्त बाला रफ़्त । कफर सुरत उस मुक़ाम को भी छोड़ कर ऊपर को गई ।

सौत अनाहू िुनीद दीद जगरफ़्त ।।18।। और वराूँ आवाज़ अनाहू यानी भूँवर गुफा के स्थान की सुनी और देखी और पकड़ी ।

हूतल्हूत आलमे अिायब याफ़्त । आगे मुक़ाम हूतल्हूत यानी भूँवर गुफा अचरि रूप पाया ।

रूर रा अन्दरूूँ

दरीचा

ताख़्त ।।19।।

और रूर को जखड़की के अन्दर से दौड़ाया ।

पस जबरफ़्तो रसीद आलमे हूत । कफर चल कर मुक़ाम हूत यानी सत लोक में पहुूँची ।

बचन 21

ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा

183

याफ़्त आबे रयात दम दम क़ू त ।।20।। और वराूँ अमृत का दम दम पर आरार ककया ।

पेि अज़ाूँ रचे

रस्ती

रस्त ।

अब इसके आगे िो रै वर के वल सत्य री रै ।

लबे मन िुद खमोि बारम बस्त ।।21।। और अब यराूँ मैं रोंट बंद करके चुप रोता हूूँ ।

िुज़ फ़क़ीरे कसे न याफ़्त मुक़ाम । जसवाए संत के यर मुकाम ककसी ने नरीं पाया ।

राधास्वामी न गुफ़्त आूँ रा नाम ।।22।। और राधास्वामी भी उसको अनामी करते रैं ।

।। गज़ल तीसरी ।। आजिक़म

ज़ाते मुर्शिदे काजमल ।

मैं सतगुर पूरे के जनि सरूप का प्रेमी हूूँ ।

कदले मन िूद ब क़ौले िाूँ माइल ।।1।। और मेरा मन उनके बचन का आजिक रै ।

चूूँ जगररफ़्तम क़दम व खाके क़दम । अब से मैनें उनके चरन पकड़े और चरन धूर ली ।

ज़़ुलमते कदल िुदा रमा ज़ाइल ।।2।। तब से मेरे मन का अंधरे ा जबलकु ल दूर रो गया ।

रूए ज़ेबा व क़द्दे सवे

रवाूँ ।

और सतगुरू के सुरावने सरूप और खूबसूरत क़द्द ।

नूर दर सीना नफ़्स रा क़ाजतल ।।3।। और नूर ने सीने में काल अंग को काट डाला ।

सोरबते मुर्शिदो कलामे रिीद । सतगुर के संग और उनके पहुूँचे हुए बचन ने ।

कदण दुजनया व दीन रा बाज़िल ।।4।। दीन व दुजनया को झूठा कदखला कदया ।

184

सार बचन

बचन 21

राज़े जपनराूँ विूद िुद ज़ाजरर । और देर के अन्तर का भेद सब खुल गया ।

याफ़्तम

लुत्फ़े मुर्शिदे आजमल ।।5।।

और मुझ पर सतगुर पूरे की मेरर हुई ।

रूरे जम चूूँ जगररफ़्त

आवाज़े ।

और जिस वक़त मेरी सुरत ने आवाज़ को पकड़ा ।

बर फ़लक दर रसीद िुद क़ाजबल ।।6।। उसी वक़त आसमान पर पहुूँची और समझ वाली रो गई ।

दीद नौरस बरार रफ़्त जखज़ाूँ । और वराूँ नई बरार देखी और जखिाूँ (पतझड़) दूर हुई ।

इल्मे अिी बयाफ़्त िुद फ़ाजज़ल ।।7।। और आकािी (परा) जवद्या पढ़ कर मरा ज्ञानी रो गई ।

कु लफ़ते

मौतो

रं िे

पैदाइि ।

िन्म मरन के दुखों पर पदाण पड़ गया ।

बर रूखे रर दो परदा िुद राइल ।।8।। यानी दूर रो गया ।

राज़े बाजतन िुदा व मन ज़ाजरर । अन्दर का भेद मुझ पर उसी वक़त प्रगट रो गया ।

चूूँ िुदम पेिे पीरे ख़ुद साइल ।।9।। िब कक मैं अपने सतगुर का मËता हुआ ।

जिस्मे खाकी गुज़ाश्तम जबलफ़े ल । और इस खाक़ी देर की करतूत मैं ने फौरन छोड़ दी ।

िुदा िैताूँ बराय मन काजरल ।।10।। और िैतान यानी काल मेरे वास्ते मुरझा गया ।

रूर परवाज़ कदण िाजनबे अिण । सुरत उड़ कर गगन को चली ।

बचन 21

ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा

185

फ़े लो मफ़ऊल रफ़्त िुद फ़ाइल ।।11।। कारर् व कायण को छोड़ कर आप कताण रो गई ।

नज़रे

मेरर

कदण मुर्शिदे

मन ।

िो मेरे सतगुर ने मेरर की दृजष्ट की ।

जरज्र बुगुज़श्त मन िुदम वाजसल ।।12।। तो जवयोग िाता ररा और संयोग रो गया ।

ज़ाजरदो

मुत्तक़ी

नमाज़ी

पंि ।

िती तपी और नेमी धमी और पाूँचो वक़त नमाज़ी ।

कस न दानद चुनाूँ बिुज़ िाजग़ल ।।13।। इस कै फ़ीयत व आनन्द को नरीं िानते रैं पर अभ्यासी िानें ।

रूबरू

आजमलाने बाजतन फ़रम ।

अन्तर-मुख अभ्यासी और अनुभवी पुरूषों के सामने ।

आजलमाूँ इल्मे ज़ाजररी

िाजरल ।।14।।

जवद्यावान और बाजरर-मुखी ज्ञानी मूखण रैं ।

रमा दुजनया कफ़तादा दर िुबरात । तमाम संसार संश्य और िकों (भ्मों) में पड़ा रै ।

रर कक रादी न याफ़्त िुद नाकक़ल ।।15।। जिस को सतगुर पूरे न जमले वरी वाचक ब नक़ली ररा ।

िुमला रा कदण जिरल ज़ेरो ज़बर । ये सब मूखत ण ा के चक्र में रैरान व परे िान रो ररे रैं ।

मुर्शिदे याफ़्त

िुद रमा आकक़ल ।।16।।

जिस को सतगुर पूरे जमलें उसी को समझ आई और अनुभव हुआ ।

याफ़्ता राधास्वामी मेररे फ़क़ीर । राधास्वामी करते रैं कक संतों की मेरर हुई ।

रम िुदा लुत्फ़े एजज़दी िाजमल ।।17।। और कु ल माजलक की दया भी िाजमल हुई ।

186

सार बचन

बचन 22

।। बचन बाईसवाूँ ।। भेद काल मत और दयाल मत का और वर्णन राल भूल भमण संसाररयों का और मजरमा सतगुरू भजि और सुरत िब्द मागण की ।। िब्द परला ।।

चार खान चौपड़ िग रची माया ब्रह्म पुरूष प्रकृ जत सुरत नदण5 ता में बहु पची तीन गुनन का पांसा लीन्र कमण राथ से पांसे डारे झूठ ूँ ी बाज़ी िानी सच्ची नदण सुरत चौरासी घर में रारे ब्रह्म और िीते माया कजभ कजभ ब्रह्म िीत िो रोई चौपड़ से बारर नसर रोई माया ब्रह्म जखलाड़ी दोई भरमे नदण जपटे और कु टे सभी नदण पछतावें दम दम करें फ़याणद दाद6 नसर पावें बार बार भरमें चौरासी श्रुजत जसमृत और वेद पुरान माया काल जबछाया िाल कोई गोट न िावे घर को सत्त पुरूष देखा यर राल

। । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

अंड1 िेर2 सेति3 उतभुिी4 ।।1।। मन इच्छा खेलें जिव िजि ।।2।। धूम खेल की अजत कर मची ।।3।। रिोगुन तमोगुन सतोगुन चीन्र ।।4।। भोग अंक ता में जबस्तारे ।।5।। कोइ पक्की कोई मारे कच्ची ।।6।। भरमत कफरे दुक्ख और सुख में ।।7।। िीव नदण बहु जवजध दुख पाया ।।8।। नदण लाल रोय ब्रह्म घर सोई ।।9।। जनि घर अपना पाये न कोई ।।10।। खेलें इन नरदन से सोई ।।11।। दुख उनका कोई नसर सुने ।।12।। कै से छू टें इन से अब रम ।।13।। रोवें झीखें और जचल्लावें ।।14।। कोई न काटे उनकी फाूँसी ।।15।। सबरी मारें इनकी िान ।।16।। अपने स्वारथ करें बेराल7 ।।17।। यराूँ री खेल जखलावें सब को ।।18।। काल हुआ िीवन का काल ।।19।।

1. अन्डि यानी िो अन्डे से पैदा रोते रै । 2. िेरि यानी िो जझल्ली से पैदा रोते रै । 3. स्वदेि यानी िो पसीने से पैदा रोते रै । 4. उजिि यानी िो जमट्टी या खान से पैदा रोते रैं । 5. गोट । 6. इनसाफ़ । 7. परे िान, दुखी ।

बचन 22

भेद काल मत व दयाल मत का

अपने स्वाद िीव भरमावे पुरूष दयाल दया उमगाई नदणन को बहु जवजध समझाया अब मैं कहूं करो तुम सोई सतगुरू संग बाूँध िुग चलो यर घर काल बसाया आन

। । । । । ।

187

पता रमारा काहु न िनावे ।।20।। संत रुप धर िग में आई ।।21।। काल जनदणई तुम को खाया ।।22।। िाल िाल1 कर न्यारे रोई ।।23।। चोट न खावो काल बल दलो ।।24।। तुम को लाया रमसे माूँग ।।25।।

दोरा यर तो घर रै काल का, घर अपना मत मान । जनश्चय करके माजनयो, िो अब करूूँ बखान ।।26।। जनि घर तुम्ररा रमरे देि सत्तनाम सतपुरूष कराई ता के परे अलखपुर बसा अगम लोक रचना जतस परे आगे ता के जनि घर िान इन लोकन की िोभा भारी अब िुजि का भेद सुनाऊूँ मन इन्द्री उल्टो घट मारीं सरसकूँ वल चढ़ जिकु टी आओ भूँवरगुफा सतलोक जनरारो राधास्वामी करी बनाय पौ पर बाज़ी अटकी आय संत सतगुरू िो िन पाय जनि घर अपने िाय समाय

1. िला कर ।

2. बने ।

। । । । । । । । । । । । । ।

अब मैं कहूं देि सन्देि ।।27।। चौथा लोक संत करें भाई ।।28।। संत सुरत जबन कोई न धसा ।।29।। जबन वराूँ पहुंचे काि न सरे 2 ।।30।। राधास्वामी धाम जपछान ।।31।। देखे सो जिन िुजि सम्रारी ।।32।। सुरत िब्द की रार लखाऊूँ ।।33।। सुरत जनरत दोउ नैन िमाई ।।34।। सुन्न के परे मरासुन पाओ ।।35।। अलख अगम के पार जसधारो ।।36।। चौपड़ खेली अद्भुत आय ।।37।। गुरु जबन पौ का दाव न पाय ।।38।। चौपड़ से बारर रो िाय ।।39।। राधास्वामी दिणन पाय ।।40।।

188

सार बचन

बचन 22

।। िब्द दूसरा ।। सुरत बुन्द सत ससध ति व्राूँ से उतरी सपड में मन इन्द्री सम्बन्ध कर िन्म िन्म दुख में ररी सुध भूली घर आकद की नर देरी िब िब जमली संिय सोग भरमत ररी सतगुरू संत दया करी बहु जवजध अब समझावरीं काल जबछाया िाल अस करम भरम पाखंड का जवद्या रस ज्ञानी ठगे िड़ चेतन ग्रन्थी2 बूँधे सुरत िब्द की रार को मन बैरी धोखा कदया इन की संगत मत करो खोिी कोइ कोइ रोयगा रोज़गारी भेखी सभी राधास्वामी गाइया संत सरन दृढ़ कर गरो सुरत न पावे िब्द रस ता ते सतगुरू संग कर

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

आई दसवें द्वार ।।1।। बसी आय नौ वार ।।2।। पड़ी िगत को लार1 ।।3।। बरी चौरासी धार ।।4।। सत्तपुरूष दरबार ।।5।। ककया न सतगुरू प्यार ।।6।। क्यों कर उतरे पार ।।7।। आये धर औतार ।।8।। मारग िब्द पुकार ।।9।। गुप्त ककया मत सार ।।10।। कीन्रा बहुत पसार ।।11।। बाचक अजत अरंकार ।।12।। थोथा करें जवचार ।।13।। करें न अंगीकार ।।14।। तिे न मूल जवकार ।।15।। यर मारें घेरा डार ।।16।। बादी4 सब संसार ।।17।। मानी मान अधार ।।18।। इन से ररो हुजियार ।।19।। काल का बड़ा बररयार5 ।।20।। तब लग ररे ख़ुवार6 ।।21।। पहुंची जनि घर बार ।।22।।

।। िब्द तीसरा ।। काल मत िग में फै ला भाई । दयाल मत भेद न काहू पाई ।।1।। 1. संग ।

2. गाूँठ ।

3. खाली ।

4. झगड़ा करने वाले ।

5. बलवान ।

बचन 22

भेद काल मत व दयाल मत का

बेद पुरान िास्त्र और जसमृत ब्ररमा जवष्र्ु मरादेव िजि ज्ञानी िोगी और संन्यासी करा कहूं सारा िग भूला पंजडत भेख टेक में भूले सारेब कबीर और तुलसी सारेब राधास्वामी खोल सुनाई

। । । । । । ।

189

इन सब रूूँधा1 मारग आई ।।2।। दस औतार िाल फै लाई ।।3।। ब्रह्मचार तपसी भरमाई ।।4।। कोइ जबरले संत िनाई ।।5।। सब भौ धार बराई ।।6।। दयाल मता इन आन चलाई ।।7।। मैं भी इन संग मेल जमलाई ।।8।।

।। िब्द चौथा ।। इक पुरूष अिायब पाया जबन संत राथ नसर आया क्या व्यास वजिष्ठ भुलाया पारासर िोगी नारद रंम करें कौन समझाई संतन यर भाख सुनाया घट घट में काल समाया खट िास्तर बुजद्ध चलाया कु छ राथ न उनके आया संतन वर देि िनाया नीचों को घाट लगाया राधास्वामी पता बताया

। । । । । । । । । । । ।

कोई ममण न उसका गाया ।।1।। ऋजष मुजन सब धोखा खाया ।।2।। क्या िेष मरेि भ्माया ।।3।। श्रृग ं ी ऋजष ग़ोता खाया ।।4।। परतीत न कोई लाया ।।5।। कोइ गुरूमुख बूझ बुझाया ।।6।। श्रुजत जसमृत िाल जबछाया ।।7।। अंधे जमल धूल उड़ाया ।।8।। जबन सतगुरू भटका खाया ।।9।। तब तुच्छ िीव भी पाया ।।10।। ऊूँचों को काल बराया ।।11।। खोिी की कमर बूँधाया ।।12।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। मैं कहूूँ कौन से भाई िो बात संत बतलाई जतरलोकी सभी सुनाई जिस चौथा लोक िनाई

1. बन्द ककया ।

। । । ।

कोइ मेली नज़र न आई ।।1।। काहू से मेल न खाई ।।2।। चौथे का ममण न गाई ।।3।। सो अचरि करते भाई ।।4।।

190

सार बचन

बचन 22

कोई माने न बहुत मनाई । अब क्यों कर करूूँ लखाई ।।5।। मैं समझ यरी जचत लाई । जबन मेरर न सरधा आई ।।6।। िो सतगुरू रोयूँ सराई । तो सभी बात बन आई ।।7।। ता ते यर जगनत1 जमटाई । राधास्वामी चुप्प रराई ।।8।। ।। िब्द छठा ।। कहूं अब गोपी कृ ष्र् जवरार2 ।। टेक ।। मन रै कृ ष्र् इजन्द्रयाूँ गोपी । लीला भोग जवकार ।।1।। कामाकदक सब ग्वाल बाल सूँग । जबन्द्रावन तन करत जखलार ।।2।। नंद अनंद रूप जपत अपना । छोड़ जतरकु टी द्वार ।।3।। नाद धाम ति िगत सम्रारा । आय फूँ सा नौ वार ।।4।। कं स रूप अज्ञान जनिाचर3 । पड़ गया इस मन लार ।।5।। नाद ज्ञान ले करी चढ़ाई । मारा कं स गूँवार ।।6।। राधा सुरत जमली जिस मन को । वरी कृ ष्र् पहुंचा दस द्वार ।।7।। आगे का गुरु जनला न उसको । ररा काल के िार4 ।।8।। यर दोउ लीला कृ ष्र् सम्रारी । कभी नौ में और कभी दस द्वार ।।9।। संत धाम इन भेद न पाया । काल हुआ यर कृ ष्र् मुरार ।।10।। ता ते संतन वर्ण सुनाया । कृ ष्र् काल दोउ एक जवचार ।।11।। िब लग सुरत न पावे सतपुर । ररे काल के वार5 ।।12।। ता ते सतगुरू करत िनाई । छोड़ो कृ ष्र् दुआर ।।13।। आगे चलो संत मत परखो । िाकी ऊूँची धार ।।14।। चौथा लोक संत गुररावें । सत्त नाम पद सार ।।15।। सुरत िब्द का मारग धारो । पहुंचो जनि घर बार ।।16।। राधास्वामी करत बुझाई । त्यागो काल लबार6 ।।17।। यरी राल तुम राम जवचारो । दोनों रैं इकतार7 ।।18।।

1. खयाल । 7. एक से ।

2. खेल ।

3. राक्षस ।

4. िाल ।

5. द्वार ।

6. झूठा ।

बचन 22

भेद काल मत व दयाल मत का

राम कृ ष्र् दोउ िग में आये वरी रावन को मार राम ने आय अिुध्या तन के भीतर पजरले जवपता बहुतक भोगी संत मता इनहूं नसर िाना राधास्वामी कर समझावें दस औतार काल के िानो चौथा पद िो संत बतावें

। । । । । । । ।

191

काल धरे औतार ।।19।। सीता सुमत सुधार ।।20।। राि जलया दस द्वार ।।21।। िब लग चढ़े न जिकु टी पार ।।22।। ररे काल के गार1 ।।23।। कृ ष्र् राम दोनों ति डार ।।24।। सब री से तुम गरो ककनार2 ।।25।। सुरत िब्द ले उतरो पार ।।26।।

।। िब्द सातवाूँ ।। देखो गगन बीच, श्याम कं ि जखल ररा । भूँवरा गया लुभाय, वरीं चढ़ के जमल ररा ।।1।। धोखे का वर मुक़ाम, उसे देखता ररा । बहु जसद्ध नाथ िोगी, उन्रें पेखता3 ररा ।।2।। काल अपना िाल एक, िुदा री जबछा ररा । िो िो गये वराूँ, उन्रें उलटावता ररा ।।3।। नाना कला4 दुखाय, वरीं मोरता ररा । सब की कमाई आप, खड़ा खोसता5 ररा ।।4।। क्या क्या कहूं, अनथण बहुत भाूँजत कर ररा । जबन संत सतगुरू , वर सभी को जनगल ररा ।।5।। आगे न कोइ िाय, इसी में भुला ररा । माया का झूला डाल, मुनन को झुला ररा ।।6।। द्वारे के पार काहु को, िाने न दे ररा । कफर भेद व्राूँ के पार का, सबरी ढका ररा ।।7।। क्या िेष क्या मरेि, सभी रार कर ररा ।

1. मुर ूँ ।

2. अलेरदगी ।

3. देखता ।

4. लीला ।

5. छीनता ।

192

सार बचन

बचन 22

जबन संत उसके पार, कोई भी न िा ररा ।।8।। सो भेद राधास्वामी, सभी को सुना ररा । जिस पर रै मेरर उनकी, वर परतीत ला ररा ।।9।। ।। िब्द आठवाूँ ।। जपया जबन प्यारी कै से रोय जनबार ।। टेक ।। तू तो अचेत कफरे बौरानी । कस पावे सच िार ।।1।। िगत भाड़ में क्यों तू भुनती । पावे जनस कदन दार ।।2।। छोड़ उपाजध करो सत संगत । ले सतगुरू से रार ।।3।। इन्द्री भोग जवसारो मन से । छोड़ो सब की चार ।।4।। चेतन रूप जवचारो अपना । कफर लगो िब्द घट आय ।।5।। करना मान जपयार मेरा । अब तै1 पाया दाव ।।6।। अब के चूके ठौर न पइरो । ररो बहुत पछताय ।।7।। ता ते पजरले सोधो2 आपा । कफर सतनाम समाय ।।8।। रार रकाना3 गुरु से लेना । सरन पड़ो उन िाय ।।9।। जबन सरना उन काि न सरररै । ठग संग कारे ठगाय ।।10।। पंजडत भेख देर अजभमानी । िग संग ररे गरठयाय4 ।।11।। करम भरम संग हुए बावरे । तीरथ बरत पचाय ।।12।। गंगा िमना मूरत मंकदर । माला जतलक लगाय ।।13।। िप तप संिम और अचारा । िाजत बरर् जलपटाय ।।14।। जिखा5 सूत6 और धोती पोथी । नेम धरम अटकाय ।।15।। चौका दे दे करे रसोई । कच्ची पक्की छू त लगाय ।।16।। पानी साथ िुद्धता मानें । नाम मरातम जचत न समाय ।।17।। चौके बैठे मछली खावें । भिन साथ उपाजध लगाय ।।18।। जवद्या पढ़ पढ़ मानी रोवें । पत्थर पानी िगत पुिाय ।।19।।

1. तू, तुम । 6. िनेऊ ।

2. साफ करो ।

3. तरकीब ।

4. गठ ररे ।

5. चोटी ।

बचन 22

भेद काल मत व दयाल मत का

दान पुण्य की मजरमा गावें । मथुरा कािी गया द्वारका । चारधाम2 पृथवी पररकमाण । करम चढ़ाये भरम भुलाये । िड़ बुजद्ध अजभमानी भारी3 । गंगा िमना पाप कटावें । पिु रोय पिुवन को पूिें । नर देरी की सार न िानें । संत सीत4 और गुरु परिादी । ऐसे मूरख भटका खावें । कथा पुरान सुनावत डोलें । िीव अकाि न सोचें कबरी । सुनत सुनावत मरम न पावत । भजि भाव की सार न िानत । माया िाल जबछाया भारी । दस औतार िती और िोगी । संत मते की सार न िानें । सतगुरू जबन सब धोखा खावें । िगत िाल में ररे फूँ साई । सुरत िब्द मारग अजत सूधा । ऐसी भूल पड़ी िग मारीं । िो िो संत सरन में आवें । अब आरत सतगुरू की करहूं । सुरत चढ़ाय चलूूँ नभ ऊपर ।

193

देवी देवा ररे भुलाय ।।20।। जपत्तर पूिा दाग़ दग़ाय1 ।।21।। धूर फाूँक कफर घर को आय ।।22।। दुख भोगें कु छ लाभ न पाय ।।23।। सतसंग बचन न जचत ठरराय ।।24।। गोबर बजछया मूत जपलाय ।।25।। पीपल तुलसी पेड़ लगाय ।।26।। चौरासी में ग़ोता खाय ।।27।। चरनामृत को दोष लगाय ।।28।। तुम उन संग करो मत भाय5 ।।29।। जिवका कारर् भटका खाय ।।30।। मान लोभ में ररे जलपटाय ।।31।। अरंकार में ररे भुलाय ।।32।। िगत ठगौरी6 जनस कदन खाय ।।33।। ऋजष मुनी सब धर धर खाय ।।34।। पंजडत ज्ञानी ररे पछताय ।।35।। काल मते में अवजध7 जबराय8 ।।36।। जनि घर अपने कोई न िाय ।।37।। बार बार चौरासी धाय ।।38।। ता का मरम न को कोई पाय ।।39।। रम ककस ककस को करें बुझाय ।।40।। सो सो पावें घर की रार ।।41।। बहुत करा यर झगड़ा गाय़ ।।42।। सरसकूँ वल में बैठूँू िाय ।।43।।

1. बदन पर गरम लोरे से द्वारका में दाग़ लगवाना । 2. िगन्नाथ, बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम् । 3. बढ़के । 4. परिादी । 5. भाव, प्रीत । 6. धोखा । 7. अवस्था, उमर । 8. जबताया ।

194

सार बचन

वरां से बंक जतरकु टी छेदूँू मरासुन्न और भंवरगुफा पर अलख अगम के पार जसधारी प्रेम खिाना जमला अपारा

। । । ।

बचन 22

सु न्न जिखर में आसन लाय ।।44।। सत्तलोक में पहुंची धाय ।।45।। वराूँ आरती कीन्री िाय ।।46।। राधास्वामी जलये ररझाय ।।47।।

।। िब्द नवाूँ ।। मैं भूली सतगुरू स्वामी । मैं चूकी अंतरिामी ।।1।। क्या क्या कहूं जबथा1 बखानी । सब िग को पंजडयन कीन्र दीवानी ।।2।। ब्राह्मर् और भेखन बहु भरमानी । ऊभट2 में पड़े भटक भटकानी ।।3।। मारग िो सीधा दीन्र जछपानी । तीरथ और बरतन मासर भुलानी ।।4।। गया गायिी रार खुलानी । यर कमण प्रवृजत्त3 करें करानी ।।5।। उलटे जगर भौिल ग़ोता खानी । यर साधन जपछले हुए पुरानी ।।6।। श्रुजत जसमृजत व्यास आकदक करें बखानी । यर साधन मुजि जनजमत्त न िानी ।।7।। जनरवृजत्त4 साधन यों कर गानी । कलिुग में एक नाम जनधानी ।।8।। सतगुरू सेवा सतसूँग ठानी । अब जनरवृजत पर जिन मन मानी ।।9।। जतन िीवन प्रजत कहूूँ बुझानी । सतगुरू पूरा खोि ख़ुिानी ।।10।। िब लग पूरा जमले न जमलानी । तब लग खोित ररे िरानी ।।11।। खोिन में िो कदवस जबतानी । वर साधन में वृथा न िानी ।।12।। सतगुरू पूरे िभी जभटानी5 । प्रेम प्रीत से सेवा आनी6 ।।13।। तब वर भेद नाम दें दानी । नाम िुजि तुम ररो कमानी ।।14।। नाम प्रताप मुजि गजत पानी । जबना नाम नसर ठौर रठकानी ।।15।। कलिुग में जबन नाम जनिानी । मुजि न रोगी जनश्चय ठानी ।।16।। करमी धरमी िोगी ज्ञानी । यर सब जपल ररे मनकी घानी ।।17।। सतगुरू संत जमले नसर आनी । भूले पढ़ पढ़ जपछली बानी ।।18।। सब से करी काल ठग राजन । संत जबना कोइ बचे न बचानी ।।19।।

1. जवपजत्त । 2. बुरी रार । वाले । 5. भेटें यानी जमलें ।

3. संसार में फूँ साने वाले । 6. करो ।

4. संसार से छु ड़ाने

बचन 22

भेद काल मत व दयाल मत का

195

जबरले संत नाम गजत गानी । चौथे लोक चढ पता िनानी ।।20।। राधास्वामी करा भेद सब छानी । उनकी दया से महुं1 पुजन िानी ।।21।। भमण जमटा भइ नाम दीवानी । आरत उन की सिूँ सिानी ।।22।। ।। िब्द दसवाूँ ।। धोखे में सब िग िात पचा ।। टेक ।। अपनी अपनी बुजध दौड़ावें । सार भेद नसर राथ लगा ।।1।। कराूँ कराूँ की बरन सुनाऊूँ । सारेब सच्चा काहु न जमला ।।2।। बुजध चतुराई सबजरन कीन्री । थकी बुजद्ध तब रार ररा ।।3।। दसअष्टी2 कु छ और बखानें । छः िास्तर कु छ और करा ।।4।। चार वेद जमल नेजत पुकारें । संत जबना कोइ नासर करा ।।5।। सुरत चढ़ाय िब्द संग पहुंचे । अगम देि में राि ककया ।।6।। जतन का बचन न कोई माने । मूरखता में बरक गया ।।7।। जबन जमलाप सतगुरू पूरे के । िन्म िुए में रार कदया ।।8।। जररसी िीव जमले बहुतेरे । उन से करो क्या काि सरा ।।9।। मेरनत करें न मन को मारें । कै से छू टे िाल बड़ा ।।10।। काल जिकारी जसर पर ठाढ़ा । िीव अनाड़ी फाूँस फूँ सा ।।11।। राधास्वामी करत जवचारी । जबना सरन अब कौन बचा ।।12।। ।। िब्द ग्याररवाूँ ।। सुन गुरु बचन करें िो तुझ से चौथा लोक बतावें सतगुरू वेद पुरान जसमृत और िास्तर उन के बचन सभी जमल मानें प्रत्यक्ष तो दो लोक कदखावें जिन जिन के मन में उनका जनश्चा

1. मैं ।

2. अट्ठारर पुरान ।

। । । । । ।

कर परतीत मान जरत जचत से ।।1।। तीन लोक भाखें सब री गुरु ।।2।। सबरी जमल भाखें चौदर पुर ।।3।। कर परतीत झूठ लसर िानें ।।4।। और लोक सुन सुन सभ गावें ।।5।। सो रखते सब उनकी दृढ़ता ।।6।।

196

सार बचन

बचन 22

तू सतगुरू का सेवक कै सा । उनका बचन न माने वैसा ।।7।। एक लोक आगे वर करें । इन से ऊूँचा ता में ररें ।।8।। सो परतीत न लावो भाई । यर अिरि मेरे मन आई ।।9।। दोरा मजरमा सतगुरू संत की, करते सब जमल झाड़ । करें संत सब से बड़े, कोई न पावत पार ।।10।। गगन सात के ऊपरे , सतगुरू का जनि धाम । सुरतवंत कोई पावई सत्त िब्द जबसराम ।।11।। गगन सात का भेद सुनाऊूँ । जभन्न जभन्न जनर्णय कर गाऊूँ ।।12।। प्रथम गगन में दो दल बासा । श्याम सेत का वरीं जनवासा ।।13।। दूसर गगन जतरकु टी थाना । कूँ वल चार दल ओं रठकाना ।।14।। तीसर गगन सुन्न परमाना । दसवाूँ द्वारा संत बखाना ।।15।। चौथा भूँवरगुफा पजरचानो । मरासुन्न के ऊपर िानो ।।16।। पंचम सत्तलोक सतनामा । खष्टम अलख लोक परमाना ।।17।। सप्तम अगम लोक स्त्रुत पाया । संतन यर पद ऊूँच सुनाया ।।18।। जतस पर आकद अनाम समाना । आकद अंत जतसका नसर िाना ।।19।। सो पद भेद संत कोइ पावें । राधास्वामी कर समझावें ।।20।। दोरा गगन भेद जनर्णय ककया, सैन1 बैन के संग । नैन उलट स्त्रुत मोड़ कर, चढ़े पुकारें संत ।।21।। पद अनाम िो भाशया, सो सतगुरू का ठाम2 । िब्द िब्द को बेंधती , पहुंची मूल मुक़ाम3 ।।22।। संत दया जबन कोई न पावे । जबना संत कु छ राथ न आवे ।।23।। करनी भी सब संत बताई । जबना मेरर पचना रै भाई ।।24।। ताते मुशय मेंरर अब ररी । सरन पड़ो राधास्वामी करी ।।25।।

1. इिारा ।

2. धाम ।

3. स्थान ।

बचन 23

राल उत्पजत्त और प्रलय

197

।। बचन तेईसवाूँ ।। राल उत्पजत्त प्रलय रचना का और मजरमा सुरत िब्द मागण की वास्ते पहुूँचने जनि स्थान के ।। िब्द परला ।। बंझा1 ने बालक2 िाया अज्ञानी नाम कराया ब्रह्मा और जवष्र्ु मरेिा ऋजष मुजन और िोगी ज्ञानी वेद पुरान िास्त्र परमाना िीव अिान ममण नसर िानै ररट5 घड़ी सम ऊूँचे नीचे कोई ज्ञान कर ब्रह्म समाने कोइ करमी स्वगणन में पहुंचे मुजि पदारथ बढ़ कर िाना कोई काल मुिी रस भोगा कमण करे िैसे देरी में करमी जवषई और उपािक काल िाल से कोइ न बाचा तब सतपुरुष दया जचत आई सब िीवन को कदया संदस े ा जबरले िीव बचन उन माना बहुतक िीव बूँधे श्रुजत जसमृत कफर कफर माूँगें वेद प्रमाना िब नसर वेद वेद का करता

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

जिन सकल िीव भरमाया ।।1।। जिन माया सबल3 उपाया4 ।।2।। नारद और सारद िेषा ।।3।। सब को उन ले धर खाया ।।4।। दे दे िीवन अजधक भुलाया ।।5।। काल दुष्ट िंिाल लगाया ।।6।। भरमत कफरैं कु छ चैन न पाया ।।7।। कोइ उपाि6 बैराट समाया ।।8।। कोइ जवषई नकण न भोगाया ।।9।। ज्ञानी ऐसा धोखा खाया ।।10।। कफर नर देरी आन बूँधाया ।।11।। कफर तैसा फल पाया ।।12।। इन तो सदरी7 चक्कर खाया ।।13।। जनि घर अपने कोई न आय ।।14।। कजल में संत रूप धर आया ।।15।। सत्तलोक का भेद िनाया ।।16।। उनको ले सतपुर पहुूँचाया ।।17।। संत बचन परतीत न लाया ।।18।। उन उस घर को नेजत सुनाया ।।19।। तब का भेद संत गुरराया ।।20।।

1. जिस स्त्री को संतान न रोती रो, माया । 2. मन । 3. बलवान । ककया । 5. पानी खींचने का चक्कर । 6. भि । 7. सदा, रमेिा ।

4. पैदा

198

सार बचन

उस घर ममण वेद नसर िाने यर तो बात अगम गजत न्यारी ताते संत बचन को मानो संत जबना कोइ ममण न िाने वर तो तीन गुनन में बरते

। । । । ।

बचन 23

कफर क्यों कर परमान सुनाया ।।21।। संत जबना कोइ नेक न गाया ।।22।। यर परतीत प्रमान दृढ़ाया ।।23।। वेद कतेब कराूँ से लाया ।।24।। काल बचन क़ानून सुनाया ।।25।।

दोरा

वेद बचन िैगन ु जवषय, तीन लोक की नीत । चौथे पद के राल को, वर क्या िाने मीत ।।26।। अब उत्पजत वर्णन करूूँ, िस संतन मत मासर । पुजन परलय भी करत हूं, ताते भमण नसाय ।।27।। सब की आकद कहूं अब स्वामी । जतन से अगम पुरूष प्रगटाये । अलख पुरूष का हुआ उिाला । कफर सतनाम पुरूष मत सोई । सत्त लोक वर धाम सुरेला2 । इन लोकन की मजरमा भारी । सरस अठासी दीप जनवास । सुख का धाम सदा सुख िराूँ । नइ नइ लीला सदा अनंद । अमी अरार भोग परचंड4 । तरूँ से भूँवरगुफा रच राखी । मरासुन्न इक रचा रठकाना । जतस के नीचे सुन्न जबलास । व्राूँ से रचा जतरकु टी धाम । वेद कतेब का यरी मुक़ाम ।

1. अथार ।

2. सुरावन, सुन्दर ।

अकर अगाध1 अपार अनामी ।।28।। अगम लोक में आसन लाये ।।29।। अलख लोक उन चौकी डाला ।।30।। सत्य सत्य रचना िरूँ रोई ।।31।। रंस करें िरूँ अचरि के ला3 ।।32।। कहूं करा अद्भुत जबस्तारी ।।33।। रंस करें िरूँ सदा जबलास ।।34।। दुख कलेि का नाम न वराूँ ।।35।। रंस करें जनत परमानन्द ।।36।। सच्चखंड वर धाम अखंड ।।37।। सोरं पुरुष नाम कर भाखी ।।38।। दीप असचत मरा मैदाना ।।39।। अक्षर दीप रकार प्रकास ।।40।। ओंकार का िरूँ जवश्राम ।।41।। जतरलोकी का कारन धाम ।।42।।

3. ककलोल ।

4. प्रबल ।

बचन 23

राल उत्पजत्त और प्रलय

199

झूँझरी दीप1 की रचन रचाई । जनगुन ण काल की िरूँ ठकु राई2 ।।43।। गुन तीनों यराूँ से उतपाने । ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि कराने ।।44।। यराूँ से सरगुन रचा पसारा । चार खान उत्पजत जवस्तारा ।।45।। िन्में मरें िीव चौरासी । काल जनरं िन डाली फाूँसी ।।46।। वर दयाल पद कोई न पावे । जनरगुन सरगुन चककर खावे ।।47।। अब परलय का भाखू लेखा3 । िस जसमटाव िगत का देखा ।।48।। काल आय िीवन को ग्रासा4 । िीव समाने काल की स्वाूँसा ।।49।। देरी कारि पृथवी रोई । पृथवी ने जगरसी पुजन सोई ।।50।। पृथवी घोली िल ने आय । िल को सोखा अजि धाय ।।51।। अगजन जमली पवन के रूप । पवन हुई आकाि सरूप ।।52।। आकाि समाना माया मासर । तम रूपा दीखे कु छ नासर ।।53।। माया रली ब्रह्म में िाय । ििी5 जिव में गई समाय ।।54।। जिव6 पहुंचे ओंकार मंझार । ओंकार समाने सुन्न का बास ।।55।। सुन्न ककया मरासुन्न जनवास । भूँबरगुफा मरासुन्न का बास ।।56।। यराूँ तक परलय कजभ कजभ रोई । सत्तलोक का द्वारा सोई ।।57।। परलय गजत आगे नसर भाई । सत्तलोक में कभी न िाई ।।58।। काल जिलोकी कीन्री नास । मराकाल पुजन काल जगरास ।।59।। मराकाल पहुंचा सत द्वार । आगे गजत7 नसर रठटका8 वार ।।60।। परलय मरापरलय गजत गाई । सपड प्रलय अब कहूं बुझाई ।।61।। काल ककया िब तन परवेि । िीव चला ति यर परदेि ।।62।। मूलद्वार9 पृथ्वी का बास । सखचा वराूँ से स्वाूँस और भास10 ।।63।। सखच कर आया इन्द्री द्वार । व्राूँ से पहुंचा नाजभ मूँझार ।।64।। नाभी से सखच जररदे आया । जररदे से कफर कं ठ समाया ।।65।। पृथवी िल अिी और पौन । कं ठ मासर रूूँधन लगी रोन ।।66।। चारों तत्त्व भास और स्वाूँस । यराूँ से चले सखचे आकाि ।।67।। 1. सरसदल कूँ वल । 2. हुकू मत, राि । 5. िोत । 6. जनरं िन । 7. पहुूँच । 10. चैतन्य का प्रकाि, सत्ता ।

3. कै कफ़यत, जववरर् । 4. खाया । 8. ठरर गया । 9. गुदा चक्र ।

200

सार बचन

बचन 23

दो दल कूँ वल काल के देि इस जवजध काल िीव को खाय सतगुरू जबन नसर लगे रठकाना सतगुरू करें भेद दरसाई जपरथम सरन गरो सतगुरू की गुरु िो भेद बतावें तुम को तन मन इं द्री सुरत समेटो सुनो जनत्य तुम अनरद बानी िोत फाड़ कफर सुन्न समाओ बंक पार जिकु टी सुन गीत सुन्न जिखर चढ़ी सूरत घूम मरा सुन्न िरूँ अजत अूँजधयार भूँवरगुफा िाय लीन्री चीन्र अलख अगम को िाकर परसा राधास्वामी नगर जनरारा उत्पजत परलय मारग भेद यर उत्पजत कर भली सुनाई

। कमण अनुसार खान परवेि ।।68।। । िन्मे मरे बहुत दुख पाय ।।69।। । ता ते सतगुरू सरन समाना ।।70।। । मारग घर का देयूँ बुझाई ।।71।। । दुजतये बाड़1 धरो सतसंग की ।।72।। । धारो बचन कमाओ उनको ।।73।। । चढ़ आकाि िब्द गुरू भेटो ।।74।। । देखो अद्भुत िोत जनिानी ।।75।। । सुखमन रोय बंक में आओ ।।76।। । काल कमण दोउ लीन्रे िीत ।।77।। । मानसरोवर पहुंची झूम ।।78।। । गुप्त चार धुन बानी सार ।।79।। । आगे सत्तलोक चढ़ लीन्र ।।80।। । िब्द पकड़ मन सूरत सरसा2 ।।81।। । देखा िराूँ अगर उजियारा ।।82।। । िो िो सुने जमटे भ्म खेद ।।83।। । वेद िास्त्र ताजर िाने न भाई ।।84।। सोरठा संतन का मत गूढ़3, जबना संत को िानई । राधास्वामी ककया ज़हूर4, माने सतसंगी कोई ।।85।।

।। बचन चौबीसवाूँ ।। ।। माया संवाद ।। भेद वेदांत और राल वाचक ज्ञाजनयों का और यर कक जसद्धांत पद वेदांत का सुरत िब्द मागण की कमाई से प्राप्त रोगा

1. ओट ।

2. आनन्द पाया ।

3. गुप्त ।

4. प्रकाि ।

बचन 24

माया संवाद

201

।। िब्द परला ।। चढ़ो री सखी अब अगम अटारी राथ लई मैंने जवरर कटारी जतल का परदा तुरत फटा री देख जलया अब मूल अटारी छोड़ कदया िग देख मठा2 री लोभ मोर मेरा आि घटा री मन करे मेरा खेल नटा री दुख सुख संिय सभी घटा री मानसरोवर पाया तटा री अमल ककया िाय अगम पुरी में धुन धधकार उठी िरूँ भारी धड़की छाती काल जिकारी इन मेरा अब देि उिाड़ी जबनती करूूँ अब राधास्वामी पै और िीव कोइ अब न जचतावें बहुतक िीव जलए रैं उबारी बंद करो अब अपना रास्ता सुन लो स्वामी जबनती मोरी और िीव तेरे मैं हूं ककस की सुन कर बचन सुआमी बोले िीव रमारा तू नसर पावे जसमृत िास्तर बेद पुराना

1. पट्टा ।

2. छाछ ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

खोल दई मेरे जरये की जपटारी ।।1।। काल दुष्ट का सीस कटा री ।।2।। गुरु से जलखाया अमर पटा1 री ।।3।। बाूँध लई मैंने प्रेम िटा री ।।4।। काम क्रोध अब दूर रटा री ।।5।। करम भरम सब आप लटा3 री ।।6।। भर गया मेरा प्रेम घटा4 री ।।7।। छाय गई अब जवरर घटा री ।।8।। फ़तर ककया गढ़ झटापटा री ।।9।। झाूँक ररी अब सुन झूँझरी में ।।10।। तीन लोक से रो गइ न्यारी ।।11।। धर धर रोवे माया पुकारी ।।12।। क्या ऐसी अब मन में धारी ।।13।। और उपाय नरीं अब मो पै ।।14।। घर मेरा िो चारें बसावें ।।15।। एक िीव यर सब पर भारी ।।16।। बहुत ककया तुम मारग सस्ता ।।17।। मैं आई अब सरना तोरी ।।18।। मैं भी पकड़ी ओटा अब की ।।19।। छल बल तेरे सब रम तोले ।।20।। अमर लोक को सीधा िावे ।।21।। इन में सब जिव आय फूँ साना ।।22।।

3. जनरबल रो गया ।

4. घड़ा ।

202

सार बचन

संत पंथ का मारग छू टा बहुत पुिाया पत्थर पानी ज्ञान ध्यान सब बाचक फै ला साधन चारों2 सब के ढीले मन अजभमानी िैसे फ़ीले3 ना गुरु भजि न नाम सनेरा जपछले िन्म का धोखा दे रैं बालपने से जवषय कमाये बुजद्ध जवलास ककया अब सब ने देखो न्याव कर मन में अपने मन तरं ग में जछन जछन बरते कोइ उन का ज़रा करे अपमाना करें इषाण उसकी भारी बारर सूरत बहुत बनावें यर उनके रै मन की ररनी ज्ञान मते को दाग़4 लगाया वर तो भये िोग मत सूरे ब्रह्म देि उन बासा कीना इतना पद उनका रै पूरा जबना िोग कीई ज्ञान बखाने या ते सुरत योग अब कीिै जबन सम दम नसर आत्म अनंदा िैसे बुलबुल बाूँधे पेटी जछन में खैंच जखलाड़ी लीना

। तीरथ बतण नेम कर लूटा ।।23।। । करम भरम में जिव जलपटानी ।।24।। । िोग िुजि में ठे लमठे ला1 ।।25।। । िो समझाओ तो करें दलीलें ।।26।। । संत पंथ में ढीले ढीले ।।27।। । करो तो करें रम आगे कीया ।।28।। । जवषई िीव को ले भरमैं रैं ।।29।। । जवद्या पढ़ पढ़ बुजद्ध बढ़ाये ।।30।। । मान बड़ाइ में लागे खपने ।।31।। । बुजध से िग को करते सुपने ।।32।। । तब िग को िागृत सम करते ।।33।। । या कोइ का वर देखें माना ।।34।। । क्रोध करें अजत छाती िारी ।।35।। । अंतर में तलवार चलावें ।।36।। । परख परख मैं सब कर दीनी ।।37।। । ऐसाजर मत क्या व्यास चलाया ।।38।। । ज्ञान ध्यान उन पाय पूरे ।।39।। । मन और सुरत करी वसर लीना ।।40।। । इनका करना सब रै कू ड़ा ।।41।। । सम दम साधन कै से आने ।।42।। । सम दम साधन वाते लीिै ।।43।। । गाूँठ खुली नसर झूठा धन्धा5 ।।44।। । गई बाग़ में गुल6 पर बैठी ।।45।। । जमट गया आनंद दुख भया दूना ।।46।।

1. बे-परवारी, ढीला । 3. राथी । 4. धब्बा ।

बचन 24

2. वैराग, जववेक, षट सम्पजत और मुमोक्षता । 5. करतूत । 6. फू ल ।

बचन 24

माया संवाद

ऐसे ग्रन्थ बग़ीचे मारीं । पढ़ते पढ़ते आनंद भोगें । िो कोइ करे जचतावन कारन । रोग सोग में रालत बदली । ऐसे ज्ञान का नरीं भरोसा । सुरत िब्द का साधन कररये । िो मन िब्द में ठररे नारीं । िो सम रोता उन के राथा । मन चंचल तौ ज्ञान भी चंचल । आतम सुख की क्या कहूं मजरमा । आतम में वर ररदम बरते । िो जबरती आतम नसर माने । िो जबरती आतम को परसे । िगत भोग सब जछन में फें के । अन्तर बररती ऐसी ररई । आप आप को आप जपछानो । ज्ञानी के प्रारब्ध न ररती । यर िो गजत तुम में नसर आई । जबना िोग ज्ञानी नसर रोई । जपछला िोग कभी नसर पाई । संत मता अब धारो नीका4 । वर तो धमण िुगन जपछले का । िब थे जिव सब ईश्वर कोटी । िीव कोरट में इनकी जगन्ती ।

1. आचरन, मन का झुकाव । 5. सार, जसरमौर ।

203

करें सैर यर ज्ञानी भाई ।।47।। कफर पीछे मन के बस रोवें ।।48।। जमथ्या कर कर मुख से भाखन ।।49।। िानो गाूँठ बूँधी नसर खोली ।।50।। कफर साधो मन खाया धोखा ।।51।। तब सम दम जछन मारीं पइये ।।52।। तब री िानो सम नसर भाई ।।53।। तौ जछन में मन िब्द समाता ।।54।। क्यों सुख पावे आतम जनश्चल ।।55।। जिन्रें परापत जतनरी िाना ।।56।। करो तुम ककतनी जबरती1 धरते ।।57।। तो सम री का घाटा2 िाने ।।58।। कदन कदन आनंद बढ़ता दरसे ।।59।। बान दिा रोय िग को छेके3 ।।60।। बारर से कु छ काि न सरई ।।61।। करा और का नेक न मानो ।।62।। देरी उसकी जवदेरी में बरती ।।63।। झूठा ज्ञान तुम्रारा भाई ।।64।। िनम मरन से छु टे न कोई ।।65।। ताते सुरत िोग ठरराई ।।66।। सुरत िब्द यर सब का टीका5 ।।67।। इन िीवन का बल नसर बूता ।।68।। अब िीवों की बुजद्ध रै खोटी ।।69।। यर नसर धारें उनकी िुगती ।।70।।

2. कमी ।

3. दूर करे ।

4. अच्छे तौर से ।

204

सार बचन

या ते ज्ञान िोग दोउ खंडन सुरत िब्द की अब करो करनी ईश्वर पद िब घट में पाओ िब वर ज्ञान सफल रोय तुम को िब लग जनश्चल जचत्त न रोई जबन उपािना जचत नसर ठररे िो उपािना करे रम कीन्री तो मन जनश्चल आतम मारीं िो मन आतम रं ग न राचा2 अब चजरये कफर करें उपािन िो तुम करो कदाजचत4 ऐसी लक्ष5 जगयानी की यर बातें अब मन में तुम खूब जवचारो धोखा मत खाओ पढ़ पोथी भजि भाव को मन में धारो सत्तपुरूष ने धारा रूपा हुक्म कदया क़तई अब ऐसा गुरु भजि जबन तरे न कोई िब्द ज्ञान गुरु ज्ञान जपछानो धुन का नाम िब्द रै भाई िब तक सुरत न पकड़े धुन को जबन मन मारे कभी न तरना सुरत िब्द से मन को मारो काल पड़ा िीवन के पाछे खट िास्तर और चारों वेदा

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

1. स्थाजपत । 2. भीना, भीगा हुआ । 6. खाली । 7. मट्ठा, लस्सी ।

बचन 24

भजि भाव संतन ककयो मंडन1 ।।71।। तो उनकी सी रो िाय ररनी ।।72।। ईश्वर कोटी तुम रो िाओ ।।73।। नसर अजधकार ज्ञान का सब को ।।74।। ज्ञान बचन को सुनो न कोई ।।75।। िब्द जबना कोइ उपाि न रै रे ।।76।। जपछले िन्म भुगत रम लीन्री ।।77।। रोना चजरये अचरि नारीं ।।78।। तो िानो सब करना काचा ।।79।। िासे कटें सभी मन बासन3 ।।80।। ज्ञानी को करनी नसर ररती ।।81।। बाचक को िोभा नसर याते ।।82।। बाचक तुमरीं रो अस धारो ।।83।। क्यों ऐसी बातें करों थोथी6 ।।84।। कलिुग का यर धमण सम्रारो ।।85।। संत स्वरूप भये िग भूपा ।।86।। भजि जबना तरना करो कै सा ।।87।। जबन गुरु ज्ञान पार नसर रोई ।।88।। और गुरु सब झूठे िानो ।।89।। द्वार दसम से िो जनत आई ।।90।। मार न सिा कोई मन को ।।91।। िनम िनम भौसागर पड़ना ।।92।। और ितन कोई मत धारो ।।93।। दूध जछपाय जपलावे छाछे 7 ।।94।। यर संतन ने ककये जनषेधा ।।95।।

3. बासना ।

4. कभी ।

5. प्रत्यक्ष ।

बचन 24

माया संवाद

205

बानी अपनी िुदी बनाई । मूरख उन से जवजध जमलाई ।।96।। संग पंजडतन जिस ने कीन्रा । बुजद्ध ररी भये काल अधीना ।।97।। काल दूत तुम उन को िानो । उन की बात िरा मत मानो ।।98।। संतन का मत उन से न्यारा । गुरु पूरे संग करो जवचारा ।।99।। जबन गुरु पूरे राथ न आवे । गुरु पूरा िो िब्द बतावे ।।100।। िब्द अथण िो और लगावे । धुन के जबना झूठ वर गावे ।।101।। िब्द करो चारे धुन अनरद । और अथण नसर येरी अद्भुत ।।102।। बार बार मैं करा बनाई । िब्द जबना नसर और कमाई ।।103।। िो तुम चारो अपन उधारा । पकड़ो िब्द करो मत बारा1 ।।104।। मैं अपनी सी सब कर दीनी । आगे सारेब मौि अधीनी ।।105।। जिन पर ककरपा उन की रोई । िब्द भेद िानेगा सोई ।।106।। धुन अंतर मन राखो अपना । बार बार कहुं मानो बचना ।।107।। काल बड़ा बररयार2 करावे । या से कोइ न बचने पावे ।।108।। जबना संत कभी नासर उबारा । तीन लोक से रोय न पारा ।।109।। चौथा लोक संत दरबारा । व्राूँ पहुंचे संतन का प्यारा ।।110।। सुरत िब्द का मारग लीिै । सत्तलोक को प्याना3 कीिै ।।111।। और मते सब काल पसारे । जरन्दू मुसलमान सब सारे ।।112।। िैनी और अंगरे ज़ जबचारे । ईसा पारसनाथ पुकारे ।।113।। वर ईसा को बेटा मानें । वर तीरथंकर उनको िानें ।।114।। यर तो बात सरी मैं मानूं । पर इस में इक भेद बखानूं ।।115।। जतरलोकी का नाथ िो कजरये । ईसा उनका बेटा सरी रै ।।116।। तीरथंकर भी उसको िाना । नाम जनरं िन करें जनरबाना ।।117।। पद जनवाणर् करें रैं िैनी । उनके मत की सब रम चीन्री ।।118।। राम ब्रह्म सरदू कर बोले । अल्ला ख़ुदा मुसलमाूँ तोले ।।119।।

1. देरी ।

2. ज़बरदस्त, बलवान् ।

3. कूूँ च, रवानगी ।

206

सार बचन

ख़ुद ख़ुदाय1 का ममण न िाना । राम ब्रह्म से वर पद आगे । नानक और कबीर बखाना । उन की बानी वर पद गावे । अब संिय कु छ करो न भाई । जनश्चय कर आसा दृढ़ राखो । सब जवद्या और करमा धरमा । िीव उबार न इन से रोई । चारों मत को यर उपदेिा । चौथा लोक अगम रै भाई । सत्तपुरूष िरूँ सदा जबरािैं । कोरट सूर और चंद्र करान्ती2 । रंसन दीप िुदे रच राखे । अमृत कुं ड भरे िरूँ भारी । और जबलास अनेकन भाई । रीरे मोती लाल अपारा । राग राजगनी सदा बसंता । अंतवंत4 जतरलोकी िानो । िोभा रंसन करा कहूं भाई । नाना जवजध िरूँ उठें सुगंधा । रंस करें िरूँ सदा जबलासा । रंस करें िरूँ सदा अनंदा । देखें अचरि भोगें अचरि । बुजधवानों की बुजद्ध जरराई ।

बचन 24

राम ब्रह्म का बाप जछपाना ।।120।। चौथा लोक संत िरूँ लागे ।।121।। तुलसी सारेब जनि कर िाना ।।122।। सच्चखंड सतलोक लखावे ।।123।। सत्तलोक की आसा लाई ।।124।। सुरत िब्द का मारग ताको ।।125।। दूर बराओ यर सब भरमा ।।126।। सुरत िब्द अब धारो सोई ।।127।। पकड़ िब्द िाओ उस देिा ।।128।। िोभा व्राूँ की बरनी न िाई ।।129।। कूँ वल ससरासन ता पर गािैं ।।130।। रोम रोम प्रजत3 सदा लिाती ।।131।। अमी अरार सभी जनत चाखे ।।132।। सच्च खंड की िोभा न्यारी ।।133।। जभन्न जभन्न कु छ करा न िाई ।।134।। भरे िराूँ अचरि भंडारा ।।135।। मजरमा कहूं करा नसर अंता ।।136।। वर अस्थान सदा जथर5 मानो ।।137।। सूर चंद बहु देख लिाई ।।138।। कोरट मलय6 िरूँ मानो मंदा ।।139।। पुरूष दिण दूिी नसर आसा ।।140।। काल कष्ट नारीं कु छ धन्धा ।।141।। कहूं करा सब अचरि अचरि ।।142।। जवद्यावान नरीं कु छ पाई ।।143।।

1. सच्चे माजलक । 2. प्रकाि । 3. एक एक, ररे क । 5. ठरराऊ । 6. मलयाजगर चंदन । 7. मंद, तुच्छ ।

4. नाि रोनेवाली ।

बचन 24

बुजध बुजध या ते करो

माया संवाद

और जवद्या दोनों रारें जवचार से समझा चारें बुजध बल सबरी छोड़ो कमाई जनस कदन भाई

। । । ।

207

संत मते पर जसर धुन मारें ।।144।। कभी न पावें भटका खावें ।।145।। मन और सुरत िब्द में िोड़ो ।।146।। बुजद्ध से कु छ भेद न पाई ।।147।।

दोरा यर करनी का भेद रै, नारीं बुजद्ध जवचार । बुजद्ध छोड़ करनी करो, तो पावो कु छ सार ।।148।। ।। िब्द दूसरा ।। घट कपट दूर कर भाई सरधा भाव चरन में राखो मुर ूँ के करे काि नसर रोगा बाचक सूर करें अपने को बैरी सन्मुख रोत कदाजचत छाया जतजमर बुजद्ध पर ऐसा िैसे मूसा जबल का सूरा जबल में बैठे बातें मारें जबल्ली जबल पर आन पुकारी सुन कर म्याउूँ च्याउूँ घबराये ऐसे ज्ञानी बाचक िग में भाग रीन माया नसर पूछे धन वालों को ढू ूँढत डोलें िो संयोग बने कसर ऐसा तो भोगी पूरे बन िावें अथवा प्रारब्ध जसर डालें

।। टेक ।। । प्रीत प्रतीत बढ़ाई ।।1।। । िब लग मन में प्रेम न आई ।।2।। । जबन रन देखे करत बड़ाई ।।3।। । ऐसे भागें खोि न पाई ।।4।। । अपनी गजत की बूझ न लाई ।।5।। । जबल्ली का भय जचत न समाई ।।6।। । जबल्ली को रम मार जगराई ।।7।। । आओ सूरमा बड़े जसपारी ।।8।। । इक इक भागे खबर न पाई ।।9।। । जनि बैराग की करत बड़ाई ।।10।। । मन िाने रम त्याग कराई ।।11।। । काहू के उपदेि समाई ।।12।। । जवषय परापत रोता िाई ।।13।। । करवें मन का धमण सुनाई ।।14।। । तरर तरर की बात बनाई ।।15।।

208

सार बचन

बचन 24

राग द्वेष1 में जछन जछन बरतें । अब बैराग कराूँ गया भाई ।।16।। अन जमलते के त्यागी िानो । ज्ञान लखौटा2 करत सुनाई ।।17।। यों तो सख़्त कड़ा पत्थर सा । अजि आगे जपघला िाई ।।18।। मुख से मान अपमान समाना । बरतन3 में जनि मानजर चारी ।।19।। िो अपमान करे कोई उनका । क्रोध करें बैरी बन िाई ।।20।। मान करें मन की सी बोलें । प्रीत करें स्वारथ जलपटाई ।।21।। और कमण सबरी जनत करते । भजि भाव में ररें अलसाई ।।22।। िो भजि संतन ने भाखी । ता का ममण नेक नसर पाई ।।23।। खान पान बस्तर तन ककररया । सब करते इक भजि रटाई ।।24।। व्यवराररक िग सत्त बतावें । भजि का व्यवरार छु ड़ाई ।।25।। तीरथ भरत नेम खट करमा । पूिा पाठ करें जनत आई ।।26।। पोथी पुस्तक जवद्या नाना । पढ़ें पढ़ावें बहु जवजध भाई ।।27।। सैर तमािा देि कदिंतर । मेला ठे ला िात भ्माई ।।28।। यर करतूत न छोड़ें कबरी । भजि से पुन4 िन्म बताई ।।29।। ज्ञान मता मारग ठरारया । िो भजि का फल था भाई ।।30।। भजि दीनता करें न आदर । अपनी भजि करन जसखाई ।।31।। धन और माल देय िो कोइ । तो पाखूँड संग लेत गठाई ।।32।। और व्यवरार करें सब िग का । इक भजि से जवरोध िनाई ।।33।। भिी की परवार न राखें । राजन समझ मानो डरजर लगाई ।।34।। गुरु भजि सुपने का ससर करें । ता को छोड़त देर न लाई ।।35।। और कमण और भोग िगत के । यर नसर छोड़ें बरतें िाई ।।36।। काग जवष्ट सम मुख से करते । सो नसर छू टे जवषठा खाई ।।37।। भजि भाव को जछन में छोड़ा । और करम दम साथ जनबारी ।।38।। जिन बातों में मन मरता था । सो जमथ्या कर दूर कराई ।।39।।

1. रग़बत, नफ़रत । 4. पुनिणन्म ।

2. लाखका, (बनावटी) ।

3. बरताव करने में ।

बचन 24

माया संवाद

और कमण कोई ककया न जमथ्या ऐसे मूरख मन के मौिी सुरत िब्द मारग नसर धारें राधास्वामी करत सुनाई

। । । ।

209

सब फ़े लों1 में जनत्त खपाई ।।40।। जनभणय बरतें खौफ़ न लाई ।।41।। संत बचन परतीत न आई ।।42।। ऐसा मत कोई गरो न भाई ।।43।।

।। िब्द तीसरा ।। रे जवद्या तू बड़ी अजवद्या । संतन की तैं2 कद़र न िानी ।।1।। संत प्रेम के ससध भरे रैं । तैं उलटी बुजध कीचड़ सानी ।।2।। संतन प्रेम लगा प्यारे से । उनकी सूरत िब्द समानी ।।3।। तू धन मान प्रजतष्ठा चारे । और चतुरता में जलपटानी ।।4।। कजल में िीव बहुत तैं घेरे । जबरले गुरूमुख बचे जनदानी ।।5।। उनकी प्रेम अनुभवी बानी । तू बुजद्ध संग ररत खपानी ।।6।। जवद्या पढ़ पढ़ बहुत पचे रैं । प्रेम जबना कु छ राथ न आनी ।।7।। अथण संप्रदा3 कर कर फू लें । अनुभव की उन सार न िानी ।।8।। बानी बन में ररे भुलाने । पढ़ पढ़ पोथी िन्म बतानी ।।9।। घट के भीतर नेक न ठररें । मन चंचल की गजत न जपछानी।।10।। बाररमुखी ग्रन्थ जनत पढ़ते । घट की पोथी पढ़ें न पढ़ानी ।।11।। घट का भेद करो िो उनसे । तो उनका मन देत न रामी4 ।।12।। संत गगन में सुरत चढ़ावें । वे सुनते जनत व्राूँ की बानी ।।13।। उनकी गजत मजत अगम अपारा । तू लोगन को रीझ ररझानी ।।14।। प्रेमी िीव न मानें तेरी । तू अपनी सी करत करानी ।।15।। अस्तुजत के भूखे तुम जनस कदन । मान अस्तुती चार भरानी ।।16।। अपने औगुन आप जवचारो । और काढ़न की िुगत कमानी ।।17।। धोखे में क्यों िनम जबताओ । सुरत िब्द में जनत्त चढ़ानी ।।18।। जवद्या छोड़ करो यर करनी । तो पावो सतनाम जनिानी ।।19।।

1. कामों ।

2. तू ने ।

3. टीका ।

4. मानना ।

210

सार बचन

जवद्या पढ़ मन से नसर िीतो संत मता जवद्या से न्यारा भजि भाव प्रेम नसर उनके जवद्या के बल ररैं अजभमानी िीव अकाि सोच नसर मन में मुर ूँ से जमथ्या िग को करते मान अपमान समान न कीन्रा ताते जवद्या सभी भुलाओ वे जवद्या के िो नर प्रेमी जवद्यावान एक नसर ठररे संत न जवद्या पढ़ते कोई उनका प्यार लगा प्यारे से तन मन की सब सुध जबसरानी सब परकार प्रेम की मजरमा जिनका प्रेम िब्द में नारीं िनम मरन से छु टें न भाई जवद्या भूल चढ़ो अब घट में जवद्या भी बुजध जवषय जपछानो कथनी बदनी3 काम न आवे गुरु भिी जबन सब िग चूका और ितन जमथ्या सब िानो िब्द कमाई करो प्रेम से

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 24

जवरथा थोथे तीर चलानी ।।20।। जवद्या ठगनी िीव ठगानी ।।21।। प्रेमी वे मूरख िानी ।।22।। संतन से उन प्रीत न ठानी ।।23।। िगत बड़ाई मन में समानी ।।24।। बरतन में सो सच्चा मानी ।।25।। बाचक जवद्या ररे भुलानी ।।26।। संत सरन पकड़ो अब आनी ।।27।। सो संतन के संग जलपटानी ।।28।। ताते जवद्या जवघन जपछानी ।।29।। उनके अनुभन समुद ूँ समानी ।।30।। जवद्या क्यो कर याद ररानी ।।31।। जवद्या बुजध कफर क्यों ठररानी ।।32।। जवद्या अजवद्या दोनों रानी ।।33।। उनको जवद्या ख़्वार1 करानी ।।34।। चौरासी में वरें बरानी ।।35।। सुरत िब्द में लाओ तानी ।।36।। यर आििी2 भली न िानी ।।37।। भजि जबना िम के सरे डानी4 ।।38।। अनेक जसयानप5 में भरमानी ।।39।। यरी ितन मैं करा प्रमानी ।।40।। राधास्वामी करत बखानी ।।41।।

बचन पच्चीसवां वर्णन भूल वेदान्त मत और वेदाजन्तयों का िो कक काल पुरूष के लक्ष

1. खराब ।

2. पकड़ ।

3. बरस मुबारसा ।

4. दंड ।

5. चतुरता ।

बचन 25

वर्णन भूल वेदान्त मत

211

स्वरूप को अनामी रूप और जसद्धान्त समझ कर उस में समाये और जसन्ध स्वरूप राधास्वामी की प्रतीत नरीं करते और उस की खबर न पाई ।। िब्द परला ।। सतगुरू आरत लीन्र ससगारी िीव चैतन्य देि अब छोड़ा सरस कूँ वल दल जलया आकाि द्वारा सुखमन नाका बंक गंगा िमुना सरस्वती तीन जिकु ट िाय लंका गढ़ घेरा सीता धुन ले सूरत साधी राि ककया घर अिर बसाया जगर सुमरे परवत कं चन धर सुन्न नगर बस्ती िरूँ अक्षर अक्षर जनःअक्षर धुन पारा द्वारे धस गई भूँवरगुफा में उलटी पहुंची सत्त नगर में अगम लोक िाय अधर जसधारी संतन उनमुन8 देि बखाना सोई अनामी अकर कराया यर पद संतन जनि कर थापा इतने ऊूँचे िो कोई चढ़े

। । । । । । । । । । । । । । । । । ।

िड़ चेतन से सुरत जनकारी ।।1।। िब्द चैतन्य देि ककया पोढ़ा1 ।।2।। चढ़ कर पहुंची जगर2 कै लाि ।।3।। तोड़ा फोड़ा उलटी गंग3 ।।4।। धार जिवेनी लीन्री चीन ।।5।। रावन ब्रह्म राम मन रेरा4 ।।6।। पहुंची िाय अवधपुर5 आदी6 ।।7।। रावन सीता राम समाया ।।8।। भान उलट फे रा िजि7 मंदर ।।9।। दीप असचत लखा जनःअक्षर ।।10।। मरासुन्न का ताका द्वारा ।।11।। धारा सोरं सुरत सफ़ा में ।।12।। धाई दौड़ी अलख डगर में ।।13।। अगम पुरूष दीदार करा री ।।14।। जबस्मादी9 रैरत10 अस्थाना ।।15।। रूप न रे ख11 न रं ग धराया ।।16।। जबन िाने सब करते आपा ।।17।। रूप रं ग रे खा ते टरे ।।18।।

1. मज़बूत । 2. पवणत । 3. सुरत की धार । 4. देखा । 5. दसवां द्वार । 6. इब्तदाई, िुरू का । 7. चन्द्रमा । 8. अपने में आप मगन । 9. जविेष समाजध । 10. अचरि रूपी । 11. जचन्र ।

212

सार बचन

सत्तलोक जतरलोकी चारी चार लोक के िो रोय पार ससध बुन्द ति आतम आया आतम लक्ष1 ज्ञान जलया जिसने बुन्द ज्ञान तृप्त हुए मन में बुन्द देि रै अजत री नीचा बुन्द ससध को एक जमलावें ससध देि िरूँ संत बखाने रूप रं ग रे खा से न्यारा बुन्द मासर रं ग रूप न रे खा यर पद वर पद एक न रोई मेरे मत मूरख यर ज्ञानी यर परमान वेद का मानें संत देि इन सुना न देखा जसन्ध जछपाय बुन्द कदखलाई ससध भेद िो संत बताबें अब इनको क्योंकर समझाऊूँ आरत करूूँ और प्रेम बढ़ाऊूँ सुरत िब्द ले खैंच चढाऊूँ राधास्वामी सतगुरू पाये बार बार िाऊूँ बजलरारी

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 25

रूप रं ग रे खा सब धारी ।।19।। रूप रं ग रे खा ति न्यार ।।20।। सपड अंड ब्रह्मंड समाया ।।21।। रूप रं ग रे खा नसर जतस में ।।22।। ससध ज्ञान पाया नसर सुपने ।।23।। ससध देि रै सब से ऊूँचा ।।24।। बुन्द देि को जसन्ध बतावें ।।25।। संत बचन परतीत न आने2 ।।26।। ससध देि को संत पुकारा ।।27।। बीि रूप था इन नसर देखा ।।28।। बुजध से जवधी3 जमलावें सोई ।।29।। कै से इन को कहूं बखानी ।।30।। संतन की परतीत न आनें ।।31।। सब को कदया काल ने धोखा ।।32।। बुन्द देख सब गये भलाई ।।33।। बुन्द मासर ले सभी घटावें ।।34।। रार मान अब चुप्प रराऊूँ ।।35।। इनका झगड़ा अब नसर गाऊूँ ।।36।। ससध मासर अब सरि समाऊूँ ।।37।। मजरमा उनकी अगम अथाये ।।38।। चरन सरन पर तन मन वारी ।।39।।

सोरठा वार पार का भेद, आकद अंत सबरी लखा । पाया अगम अभेद, भूल भरम सबरी थका ।।40।।

1. प्रतयक्ष ।

2. लावे ।

3.मेल ।

बचन 25

वर्णन मूल वेदान्त मत

213

।। िब्द दूसरा ।। िग िाग्रत भौ दुख मूल सुषपजत कु छ घर आराम तीनों में भरमत आठों िाम अब कररये कौन उपाय तड़पूूँ और तरसूूँ जनस कदन कोइ रार न सुख की गावैं कोइ तीरथ बरत बतावें जनि भेद करे नसर कोई यर सोच करा मैं भारी कर दया भेद बतलाया तुररया से आगे बरना जतस के भी परे लखाया जतस परे और समझाया व्राूँ से पुजन आगे भाखा संतन गजत अगम सुनाई तुररया में सब थक बैठे इतने पद संत बताई सतगुरू कफर भेद बतावें तुररया पद सरसकूँ वल में दस द्वारा सुन्न चढ़ खोलो चढ़ भूँवरगुफा तब आई व्राूँ

से

भी

चली

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

सुपना भी दुख सुख सूल1 ।।1।। वर भी नसर ठररन धाम ।।2।। पूरा नरीं करीं जबसराम ।।3।। का से अब पूछूूँ िाय ।।4।। जवरर अजि िलूूँ मैं कदन कदन ।।5।। सब करम भरम भरमावैं ।।6।। कोइ िप तप मासर लगावैं ।।7।। जबरथा नरदेरी खोई ।।8।। तब सतगुरू आन सम्रारी ।।9।। तुररया2 पद मारग गाया ।।10।। कफर उस्से आगे चलना ।।11।। उस के भी पार सुनाया ।।12।। कु छ आगे और बुझाया ।।13।। जनि धाम मुशय यर राखा ।। 14।। िरूँ वेद कतेब न िाई ।।15।। आगे कोई ममण न देखे ।।16।। जबन सुरत िब्द नसर पाई ।।17।। अब खुलकर तोजर सुनावें ।।18।। जतस आगे चढ़ जिकु टी में ।।19।। कफर मरासुन्न चढ़ तोलो ।।20।। कफर सत्तनाम पद पाई ।।21।।

अगाड़ी । हुइ अलख पुरूष दरबारी ।।22।।

िाय अगम लोक को लीन्रा । लीला सब व्राूँ की चीन्रा ।।23।।

1. कष्ट ।

2. सरसदल कूँ वल ।

214

सार बचन

बचन 25

राधास्वामी धाम लखाया । अब यरी ठीक घर पाया ।।24।। वर तुररया भी नसर पावें । बातों की तुररया गावें ।।25।। तीनों1 में चेतन बरते । वारी को तुररया करते ।।26।। बाचक

यर

बड़े

िोगेश्वर ज्ञानी उन चार अवस्था चारों से न्यारा इन मूरधनी2 घर क्यों कर इन कहूं राधास्वामी करत

अन्याई । अवस्था चौथी सोऊ गूँवाई ।।27।। जपछले गाई गाया त्यागा बुझाई सुनाई

। । । । । ।

चढ़ मूरधनी2 घट खेले ।।28।। पंचम करा चेतन भाई ।।29।। ताजर आतम भाख सुनाया ।।30।। मन अकाि आतम कर भाखा ।।31।। इन बहुतजर धोखा खाई ।।32।। तुम बजचयो इन से भाई ।।33।।

।। िब्द तीसरा ।। सुरत मेरी दुजवधा2 आन छली कौन उपाय करूूँ अब सिनी इक गुरु ज्ञान वेदान्त सुनावें मैं अिान कु छ ममण न िानूूँ िब्द कमाई रोय न मो से ज्ञान बचन भी समझ न आवे अब क्या करूूँ रार कर बैठी राधास्वामी करत बुझाई ज्ञान मता यर काल पसारा सुरत िब्द मत दयाल सुनाया

। । । । । । । । । ।

बान अस मारा काल बली ।।1।। संिय अजगन में िात िली ।।2।। इक गुरु भाखें िब्द गली ।।3।। कौन रार को कहूं भली ।।4।। यरी खटक अब जचत्त खली4 ।।5।। दोउ में एक न मोसर जमली ।।6।। मौि जबना क्या पेि चली ।।7।। छोड़ो दुजबधा िब्द जपली ।।8।। सब िीवन को खात दली5 ।।9।। पकड़ गहूं अब नासर टली ।।10।।

।। बचन छब्बीसवाूँ ।। ।। सुरत संवाद ।। जिस में कु ल भेद संत यानी राधास्वामी मत 1. िगृत, स्वप्न, सुषजु प्त । 5. टुकड़े करके ।

2. ओंकार पद ।

3. संिय ।

4. दुख देती ररी ।

बचन 24

सुरत संवाद

215

का और और मतों का िो संसार में प्रवृत रैं और िुजि इसमें सुरत िब्द मागण की और जनि भेद मुक़ामात का वर्णन ककया रै

।। प्रश्न परला ।। अब सूरत पूछे स्वामी से बास तुम्रारा कौन लोक में देि तुम्रारा ककतनी दूर मैं जबछड़ी तुम से करो कै से मेरा राल जभन्न कर गाओ मन तन संग पड़ी मैं कब से क्यों भूली मैं देि तुम्रारा पाताल बसो कक मृत्यु लोक में जवष्र्ु लोक बैकुंठ धाम में कृ ष्र् लोक या राम लोक में या तुम व्यापक सभी लोक में क्यों मोसर डाला काल लोक में अब क्यों आये मोसर जचतावन मैं दासी तुम चरन जनरारे

। । । । । । । । । । । । । ।

भेद करो अपना तुम मोसे ।।1।। यराूँ आये तुम कौन मौि में ।।2।। खोिे सुरत न िानैं मूर1 ।।3।। देि पराये आई िैसे ।।4।। देि आपना मोसर लखाओ ।।5।। दुख पाये बहुतक मैं िब से ।।6।। आय पड़ी परदेि जनरारा ।।7।। स्वगण बसो कक ब्रह्म लोक में ।।8।। इन्द्रपुरी या जिव मुक़ाम में ।।9।। प्रकृ त लोक या पुरूष लोक में ।।10।। चार खान चर अचर2 थोक में ।।11।। अजत भरमाया रषण िोक3 में ।।12।। रूप धरा तुम अजत मन भावन ।।13।। भेद देवो तुम अपने सारे ।।14।।

।। उत्तर अंग परला ।। तब रूँस िब्द सुवामी बोले िो तू पूछे भेद रमारा मैं हूं अगम अनाम अमाया मेरा भेद न कोई पावे

1. मूल ।

2. चेतन्य और िड़ ।

। । । ।

सुनो सुरत तुम मैं कहुं खोले ।।15।। कहूं सभी अब कर जवस्तारा ।।16।। रहूं मौि में अधर समाया ।।17।। मैं री कहूं तो करन में आवे ।।18।।

3. भंडार ।

216

सार बचन

जपरथम अगम रूप मैं धारा । तीसर सत्त पुरूष मैं भया । इन तीनों में मेरा रूप । यरां तक जनि कर मुझ को िानो । अंस दोय सतपुरूष जनकारी । यर दो कला उतर कर आईं । यराूँ बैठ जतरलोकी रची । तीन लोक से मैं रहुं न्यारा । तीन लोक एक बुन्द पसारा । मैं न पताल स्वगण नसर जमरता3 । नसर गोलोक5 नरीं साके त6 । तीन लोक व्यापक मैं नरीं । उसी बुन्द का सकल पसारा । वेदान्ती याजर ब्रह्म बखानें । इसके आगे भेद न पाया । जितने मत रैं िग के मारीं । ससध असल ररा इन से न्यारा । ब्रह्माकदक सब वेद भुलाये । पीर पैग़म्बर क़ु तुब औजलया7 ।

बचन 26

दूसर अलख पुरूष हुआ न्यारा ।।19।। सत्तलोक मैं री रच लीया ।।20।। यराूँ से उतरीं कला1 अनूप2 ।।21।। पूरन रूप मुझे पजरचानो ।।22।। िोत जनरं िन नाम धरा री ।।23।। झूँझरी दीप में आन समाईं ।।24।। पाूँच तीन की धूम अब मची ।।25।। चार पाूँच छः में जबस्तारा ।।26।। ससध रूप मैं अगम अपारा ।।27।। ब्रह्मा जबष्र्ु मरेि न िुगता4 ।।28।। इन्द्रपुरी नसर ब्रह्म समेत ।।29।। बुन्द एक मेरी यराूँ ररी ।।30।। वेद ताजर करैं ब्रह्म अपारा ।।31।। जसद्धान्ती याजर िुद्ध पुकारें ।।32।। सतगुरू जबन उन धोखा खाया ।33।। इसी बुन्द को ससध बतारीं ।।34।। वेद कतेब न ताजर जबचारा ।।35।। ऋजष मुजन करम भरम जलपटाये ।। बुन्द भेद पूरा नसर जमजलया ।।37।।

।। उत्तर अंग दूसरा ।। सुनो काल तुम काल दुख

सुरत तुम अपना भेद करी रम सेवा भारी को माूँगा रम से उस ने लाय तन मन में घेरा में देखा तुम को िबरी

। । । । ।

तुम रम में थी सदा अभेद ।।38।। सेवा बस रोय कु छ न जवचारी ।।39।। सौंप कदया तुम्रें सेवा बस में ।।40।। दुख सुख पाय तुम बहुतेरा ।।41।। दया उठी रम आये तबरी ।।42।।

1. अंि । 2. जिस की उपमा न कर सके । 3. मृत्यु लोक । 5. कृ ष्र् लोक । 6. राम लोक । 7. ईश्वर भि ।

4. माया ।

बचन 26

सुरत संवाद

आय ककया रम िब्द उपदेिा िब्द िब्द पौड़ी1 रम रची बुन्द देि को छोड़ो अबरी बुन्द देि जतरलोकी िानो मुफ़रद3 रचना रमरे देि ययाूँ रचना तरकीबी4 हुई मुफ़रद बुन्द रमारी आई पाूँच तत्त्व तीनों गुन जमले रल जमल कर इन रचना ठानी

। । । । । । । । ।

217

िब्द मासर तुम करो प्रवेिा ।।43।। चढ़ चढ़ पहुंचो नगरी सच्ची ।।44।। ससध देि चल खेलो तबरी ।।45।। रचन मुरक्कब2 यराूँ पजरचानो ।।46।। सत्त सत्त िरूँ सत्त संदि े ।।47।। सो मैं खोल सुनाऊं सरी ।।48।। दूसर माया आन जमलाई ।।49।। यर सब दस आपस में रले ।।50।। तीन लोक और चारों खानी ।।51।।

।। उत्तर अंग तीसरा ।। वेदान्ती अब ककया जवचार दसवीं वरी बुन्द मम अंस िराूँ जमलौनी तराूँ जवचार रमरे देि एक सतनाम कर जवचार इन धोखा खाया चलना चढ़ना इन के नारीं ससध भेद िो इन से करते करें दलील बुजद्ध से भारी बुजध बल से वर करते तोल यर मारग रै प्रेम भजि का संत मते पर नसर परतीत पाूँच िब्द मारग नसर चले

। । । । । । । । । । । ।

नौ5 को छाूँट जलया दस सार ।।52।। छाूँट ताजर लीन्रा रोय रंस ।।53।। एक एक में करा जवचार ।।54।। वराूँ जवचार का कु छ नसर काम ।।55।। बुन्द मासर यर िाय समाया ।।56।। ता ते ससध न पाया इनरीं ।।57।। तो परतीत न जचत में धरते ।।58।। रूँसी उड़ावें बचन न धारी ।।59।। कभी न पावें डावाूँ डोल ।।60।। चलना चढ़ना सुरत िब्द का ।।61।। सुरत िब्द नसर धारें चीत ।।62।। ससध पता करो कै से जमले ।।63।।

।। उत्तर अंग चौथा ।। जवद्या पढ़ िो करें जवचार । बुन्द भेद भी जमला न सार ।।64।। 1. सीढ़ी चढ़ने की । 2. जमलौनी की । 5. पाूँच तत्त्व तीन गुन और माया ।

3. बे जमलौनी की ।

4. जमलौनी की ।

218

सार बचन

सार बुन्द रै जिकु टी पार प्रार् िोग कर पहुंचे तराूँ आगे का गुरु जमला न उनको िोग जबना जवद्या पढ़ करते यर तो जनपट अरंकार में भूले तू तो सुरत अब सुन मम बचन सुन सुन धुन चल देि रमारे

। । । । । । ।

बचन 26

िोगेश्वर चढ़ करें जवचार ।।65।। बुद ूँ ज्ञान उन पाया वराूँ ।।66।। व्राूँ का ज्ञान सुनाया सबको ।।67।। जवद्या बुजध से जतरपत ररते ।।68।। इधर न उधर िमपुरी झूले ।।69।। चढ़ और चल सुन सुन्न की धुन ।।70।। रम तुझको अब ककया अपना रे ।।71।।

।। प्रश्न दूसरा ।। यर कक िो सुरत अपने देि को लौट िावे तो कफर काल देि में आवेगी या नरीं चलने की तो करी तयारी । स्वामी से यों बचन उचारी ।।72।। संिय एक उठा मोसर भारी । सो जनरवार करो जवस्तारी ।।73।। दोरा सेवा बस तुम काल को, सौंप कदया िब मोसर । तो अब कौन भरोस रै, कफर भी ऐसा रोय ।।74।।

।। उत्तर ।। तब स्वामी रूँस कर यों बोले िान बूझ रम लीला ठानी काल रचा रम समझ बूझ के क़दर1 दयाल नसर जबना काल के कदया जनकाल काल को व्राूँ से मैं समरथ हूं सब जवजध िान काल न पहुंचे उसी लोक में एक बार यर मौि ज़रूर

1. मजरमा ।

। । । । । । । ।

कहूं बचन मैं तुम से खोले ।।75।। मौि रमारी हुई सुन बानी ।।76।। जबना काल नसर खौफ़ िीव के ।।77।। मौि उठी तब अस दयाल के ।।78।। दखल काल अब कभी न यराूँ से ।।79।। बचन मोर तू जनश्चय मान ।।80।। अब न करूं कभी ऐसी मौि में ।।81।। अब मतलब नसर डाली दूर ।।82।।

बचन 26

सुरत संवाद

219

तू िंका अब मत कर जचत में । चलो देि रमरे ररो सुख में ।।83।।

।। प्रश्न तीसरा ।। यर कक िो िीव संत मागण पर नरीं चलते और कमण और भमण में पड़े रैं, उन को इस करनी का क्या फल प्राप्त रोगा

।। अंग पजरला ।। सुन कर सुरत मगन रोय बोली मेरे मन अब दया समाई िग में सुरत अनेकन आई कोई करे िप कोई तीरथ दाना कोई अचार1 कोई नेमी धरमी कोई वैराग त्याग सब देते

। । । । । ।

जनश्चय ककया बचन रम तोली ।।84।। प्रश्न करूूँ िीवन जरत लाई ।।85।। काल िाल में गई भुलाई ।।86।। कोई मूरत कोई तप अजभमाना ।।87।। कोई जवद्या पढ़ करते करनी ।।88।। बन परबत में िा कर ररते ।।89।।

।। अंग दूसरा ।। प्रार् योग कर मुद्रा साधें । पाूँच मुद्रा धरें समाधें ।।90।। चाचरी भूचरी खेचरी भाई । और अगोचरी उनमुजन लाई ।।91।। चक वेध घट खैंचे प्रार् । सरसकूँ वल चढ़ लावें ध्यान ।।92।।

।। अंग तीसरा ।। कोई ज्ञानी बाचक कोई लक्ष । कोई खट िास्तर करते पक्ष ।।93।। मीमान्सा वैिजे षक न्याय । पातंिली िोग ठरराय ।।94।। सांशय करे जनत2 अजनत3 जवचार । वेदान्ती जमथ्या संसार ।।95।। व्यापक सत जचत आनंद रूप । िीव ब्रह्म दोऊ एक स्वरूप ।।96।। िीव वाच4 िैदर े बतावें । ईश्वर वाच ब्रह्ममंड सुनावें ।।97।। जवश्व5 नाम तेिस6 और प्राग7 । िागृत स्वप्न सुषोपजत भाग ।।98।। वैराट8 जररनगभण9 और अव्याकृ त10 । तीन नाम ईश्वर करें कजल्पत ।। 1. लौककक धमण पालन करने वाला । 2. ठरराऊ । 3. नािमान । 4. प्रकट स्वरूप । 5. िागृत । 6. स्वप्न । 7. सुषजु प्त । 8. स्थूल । 9. सूक्ष्म । 10. कारर् ।

220

सार बचन

वाच वाच दोउ जमथ्या मान जववतणवाद2 इन कीन्री जसद्ध पर जसद्धान्त सबन का एक पाूँच िास्त्र इन ककये जनषेद चेतन को यर एक बतावें चेतन ज्ञान मगन रोय कफरते कु छ करनी करतूत न रखते आना िाना भी कु छ नरीं पर इक मतलब की उन धारी कोई कोई प्रारब्ध सत मानें अब चेतन चेतन री ररा मैं भी चेतन तू भी चेतन चेतन को पकड़ा मज़बूत सुरत अंस का भेद न पाया यर तो भेद संत कोई िाना बुद्धी की गम उसमें नारीं चेतन चेतन करत बखाना सब मत ऐसा धोखा खाया

। । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 26

व्यापक लक्ष1 एक कर िान ।।100।। कोई अवछेद3 अिात4 जवजवद्ध5 ।।101।। व्यापक जनश्चय बाूँधी टेक ।।102।। छठा िास्त्र माना मत वेद ।।103।। और कु ल्ल रचना िड़ गावें ।।104।। सब को कजल्पत6 उसमें करते ।।105।। चढ़ना चलना सब भ्म करते ।।106।। चेतन री चेतन इक सरी ।।107।। व्यवरारक िग सत्य करा री ।।108।। भोग चुकें तब असत बखानें ।।109।। िग िै काल7 कभी नरीं हुआ ।।110।। मैं तू का यर भमण जमटावन ।।111।। छोड़ा िग को जमथ्या कू त8 ।।112।। िो सतपुर से आन समाया ।।113।। और कोई नसर परख जपछाना ।।114।। वर ररी चेतन चेतन मारीं ।।115।। सुरत चैतन्य का ममण न िाना ।।116।। सुरत भेद काहू नसर पाया ।।117।।

।। अंग चौथा ।। मुसल्मान जरन्दू और िैनी कोइ नमाज़ कोइ रोज़ा रखते कोइ क़ु रान पढ़ राकफ़ज़10 रोते कोइ जचल्ला कर मुल्ला बनते कोइ मिायख14 क़ालो राल के

। । । । ।

ईसाई क्या िानें करनी ।।118।। कोइ मजस्िद कोइ काबा9 कफरते ।। पढ़ें व ज़ीफ़ा11 रात न सोते ।। कोइ आजबद12 कोइ ज़ाजरद13 ररते ।। कोइ सरोद15 कोइ रागो ताल के 122।।

1. गुप्त स्वरूप । 2. वेदान्त का वर जसद्धान्त जिसमें ब्रह्म को कत्ताण और संसार को जमथ्या माना रै । 3. जिसका टु कड़ा नरीं हुआ । 4. िो िनमा नरीं । 5. रर तरर के । 6. खयाली । 7. भूत यानी िो रो गया, भजवष्य िो रोवेगा, वत्तणमान िो रो ररा रै । 8. तौल कर । 9. मक्का । 10. जिनको क़ु रान याद रो । 11. िाप । 12. पुिारी । 13. पररेज़गार । 14. जवद्यावान । 15. राग ।

बचन 26

सुरत संवाद

221

कोई िरीअत1 कोई तरीक़त2 । कोई माफ़ण त3 कोई रक़ीक़त4 ।।123।।

।। अंग पाूँचवाूँ ।। िैन धमण संिम बहु करते । भूख प्यास को अजत री सरते ।।124।। बेला5 तेला6 चौला7

साधें । तीथणङ्कर

कु लकर

आराधें ।।125।।

िीव दया भी अजत कर पालें । दातन करें न दीबा बालें ।।126।। मुख पर बस्तर बांधे बोलें । सूत मोरछल लेकर डोलें ।।127।। ररी8 जतयागें पत्थर पूिें । कोइ जनवाणर् पद आतम बूझें ।।128।।

।। अंग छठा ।। अब ईसाई का भाखूूँ बृत्तन्ता । इक सम रोकर सब से बरतें । पूिें िल्पा9 और सलेब10 । रज़रत ईसा को यर मानें । वर बख़्िावें रम को इक कदन । यर भी मत रै काल के घर का ।

पढ़ ककताब जगरिा िा पूिा ।।129।। नीच ऊूँच ज़ाती नसर धरते ।।130।। मन के छोड़ें सबरी ऐब ।।131।। पुि ख़ुदा का उसको ज़ानें ।।132।। करें भरोसा उनका जनस कदन ।।133।। इन से भी मेरा मन फड़का ।।134।।

।। अंग सातवाूँ ।। और अनेक मते िग मारीं । सब री चालो काल की छारीं ।।135।। यर पूछूूँ मैं तुम से बात । स्वामी करो खोल जवशयात11 ।।136।। इन िीवन को क्या फल रोई । जभन्न जभन्न कर भाखो सोई ।।137।।

।। उत्तर ।। सुन अब सुरत कहूं मैं तो से । यर तो भूले रैं सब मो से ।।138।। करमी िरई12 रैं यर िीव । सतगुरू जबन नसर पावें पीव13 ।।139।। कोइ रािा कोइ पंजडत रोवे । कोइ धनवान सुखी िग सोवे ।।140।। कोइ स्वगण िा करे जबलास । कोइ ऐराफ़14 बजरश्त जनवास ।।141।। कोइ सैययद कोइ िेख मौलवी । कोइ आजमल15 जसफ़ली16 कोइ उलवी17 ।। 1. कमण कांड । 2. उपासना । 3. ज्ञान । 4. जवज्ञान । 5. दो कदन का ब्रत । 6. तीन कदन का ब्रत । 7. चार कदन का ब्रत । 8. साग, फल आकदक । 9. बपजतस्मा, ककसी को ईसाई बनाने का संस्कार । 10. सूली । 11. प्रकट । 12. कमणकाूँडी । 13. पजत । 14. स्वगण और नकण के बीच में िो मुक़ाम रै । 15. अभ्यासी । 16. नीचे मुक़ामो का । 17. ब्रह्मांडी ।

222

सार बचन

कोइ तारागन मंडल पावे । कोइ सुमरे पर करे बसेरा । कोइ गन्धवण लोक कोइ इं द्रपुरी में कोइ िजि लोक कोइ ईि धाम में उत्पजत1 अजस्थत2 परलै मारीं काल रद्द से परे न कोइ आवगवन न काहू छू टा सतगुरू जबना न कोई बाचा । फल करनी तो सबने पाया । ताते सतगुरू पद को सेवो । सुरत िब्द के मारग चलो ।

बचन 26

कोइ चाूँद सूयण के लोक समावे ।।143।। कोइ कै लास जरमांचल डेरा ।।144।। । कोइ जपिलोक कोइ जवष्र्ुपुरी में ।। । कोइ ओंकार कोइ रं ग नाम में ।। । यर सब ररे काल की छारीं ।।147।। । देि दयाल कोई नसर िोई ।।148।। । देर अवेर सभी िम लूटा ।।149।। सत्तनाम पद जमला न साूँचा ।।150।। सुखी हुए पर कफर भरमाया ।।151।। जबन सतलोक न छू टे फे रो ।।152।। सत्त िब्द से चढ़ कर जमलो ।।153।।

।। प्रश्न चौथा ।। यर कक संतों के जनि स्थान और उस के मागण का भेद क्या रै तब सूरत पूछे इक बाता । स्वामी देव भेद जवशयाता3 ।।154।।

।। उत्तर ।। तब स्वामी ने बचन सुनाया । मारग का यों भेद लखाया ।।155।। पाूँच नाम का सुजमरन करो । श्याम सेत में सूरत धरो ।।156।। प्रथमे सुनो गगन में बािा । घंटा संख छाूँट धुन गािा ।।157।। सरस कूँ वल दल िोत लखाई । बंकनाल में िाय समाई ।।158।। बंक पार जिकु टी में गई । ओंकार और रआद4 धुन लई ।।159।। आगे पहुंची सुन्न मूँझार । ररं कार धुन सुनी पुकार ।।160।। ककगरी और सारं गी सुनी । मान सरोवर चढ़ चढ़ गुनी ।।161।। आगे मरासुन्न मैदाना । िराूँ चार धुन जतजमर5 समाना ।।162।।

1. पैदायि ।

2. ठरराव ।

3. प्रकट ।

4. बादल की गरि ।

5. अूँधरे ा ।

बचन 26

सुरत संवाद

223

भूँवर गुफा ता ऊपर देखी । सोरं बंसी बिती पेखी1 ।।163।। ता के परे धाम सत नामा । बीन बिे सतलोक रठकाना ।।164।। सुनत सुरत कफर आगे चढ़ी । अलख लोक में िा कर धरी ।।165।। कोरटन अरब सूर उजियारा । अलख पुरूष छजब अद्भुत धारा ।।166।। तरूँ से अगम लोक को चली । अगम पुरूष से िाकर जमली ।।167।। खरबन सूर चाूँद परकािा । धुन का व्राूँ की अगम जबलासा ।।168।। धुन का वर्णन कै से गाऊूँ । िग में कोइ दृष्टान्त न पाऊूँ ।।169।। ता के आगे ररत अनामी । जनि घर संतन बरना स्वामी ।।170।। सुन कर सुरत अजत ररखानी । चलो सुवामी मैं सब िानी ।।171।। जबन सतगुरू कोइ भेद न पावे । सतगुरू सो यर देि लखावे ।।172।। सतगुरू की मजरमा अजत भारी । कोई न िाने पच पच रारी ।।173।। िा पर कृ पा दृजष्ट वे करें । वर िाने और जनश्चय धरे ।।174।। कोइ कोइ िीव करें जवश्वासा । कर प्रतीत वे धारें आसा ।।175।। संत बचन िो सच्चा मानें । इस बानी को सो सच िानें ।।176।।

।। प्रश्न पाूँचवाूँ ।। यर कक संत और साध और भेख और पाखंडी की पजरचान क्या रै । इक संिय मेरे मन आई । सो जनर्णय कर करो सुनाई ।।177।। संत नाम तुम ककसका गावो । साध भेख दोउ भेद बतावो ।।178।।

।। उत्तर अंग पजरला ।। ।। पजरचान संत की ।। तब स्वामी बोले सुन लीिै । कान लगाय जचत्त अब दीिै ।।179।। संत करें रम उनको भाई । सत्तलोक जिन सुरत समाई ।।180।। चौथा लोक तीन के पारा । सत्तनाम सतगुरू दरबारा ।।181।।

1. परख जलया ।

224

सार बचन

संत सुरत व्राूँ करे जबलास जतरलोकी के आगे सुन्न मरासुन्न के पार रठकाना ता के परे लोक रै चौथा संत जबना कोई वराूँ न पहुंचा

। । । । ।

बचन 26

सत्तपुरूष सत िब्द जनवास ।।182।। सुन्न के आगे रै मरासुन्न ।।183।। भंवरगुफा ताजर करत बखाना ।।184।। जबन व्राूँ पहुंचे सब रै थोथा ।।185।। जबन व्राूँ पहुंचे संत न रोता ।।186।।

।। अंग दूसरा ।। ।। पजरचान साध की ।। संत संत िाय साध

भेद सब जनर्णय कीन्रा मते का जनश्चय करे जिवेर्ी मिन1 करे नाम रम या को गाई

। । । ।

साध सुरत सुन्न जबन

भेद अब तुम लो चीन्रा ।।187।। िब्द के मारग चले ।।188।। सरोवर2 जिकु टी परे ।।189।। साधे यर साध न भाई ।।190।।

।। अंग तीसरा ।। ।। पजरचान भेख की ।। भेख संत अब बर्ण सुनाऊूँ संतन की बार्ी िो पढ़ते संत सरन जिन दृढ़ कर पकड़ी जबना संत नसर और भरोसा सुरत िब्द मारग कु छ साधें इन का नाम भेख तुम िानो चारे बस्त्र रं ग घर को छोड़ें

। । । । । । ।

यर भी छान तोजर समझाऊूँ ।।191।। सुरत िब्द का जनश्चय करते ।।192।। कर जवश्वास सुरत जनि िकड़ी ।।193।। करम भरम ति जचत को पोसा3 194।। जितना बने उतना आराधें ।।195।। प्रीत करो इन सेवा ठानो ।।196।। चारे घर ररें मन को मोड़ें ।।197।।

।। अंग चौथा ।। ।। पजरचान पाखंडी की ।। जिन की नरीं धारना ऐसी । घर को छोड़ें रोयूँ परदेसी ।।198।। कपड़े रं ग बातें बहु सीखी । िग को ठगें करावें भेखी ।।199।।

1. स्नान ।

2. आन्तररक अमृतसर ।

3. िाूँजत दी, सरारा कदया ।

बचन 26

सुरत संवाद

कमण जलखी वर भोगें अपनी उनका नाम भेख नसर रोई दीन गूँवाया दुजनया खोई िम के द्वारे धक्के खावें जगररी िीवन बहुत सतावें पूिा अपनी बहुत करावें साध संत अपने को करें यर भी जनर्णय तोजर सुनाया चौथे पाखंडी कर गाये

। । । । । । । । ।

225

भरमत कफरें पजरन कर कफ़नी1 ।।200।। वर पाखंडी िानो सोई ।।201।। ना जगररी ना त्यागी दोई ।।202।। नकण पड़ें चौरासी िावें ।।203।। खावें पीवें और धमकावें ।।204।। धन खैंचे ब्यौपार बढ़ावें ।।205।। गृरस्थ जबचारे उन की सरें ।।206।। साध संत और भेख लखाया ।।207।। जिन िग में बहु फं द लगाये ।।208।। उपदेि

सुनो सुरत अब कहूं बखानी सतगुरू कर उन सेवा ठानो चरनामृत परिादी लेना उनकी सेवा फल अजत देई सतसंग उनका तुम जनत करना तीन लोक सब माया चेले तीन लोक अंतर और बारर

। । । । । । ।

खोिो साध संत तुम िानी ।।209।। जचत्त लगाय चरन में आनो ।।210।। दिणन पर तन मन सब देना ।।211।। सत्तलोक तू इक कदन लेई ।।212।। बचन सुनो और जचत्तमें धरना ।।213।। ब्रह्मा जवष्र्ु मरादेव पेले ।।214।। काल जबयापा देखा ज़ाजरर2 ।।215।।

।। दोरा ।। जबन सतगुरू सतनाम जबन , कोई न बाचे िीव । सत्तलोक चड़ कर चलो, तिो काल की सीव3 ।।216।। ---- ---वर्णन भेद पाूँच नाम यानी पाूँच िब्द क जवस्तार करके मय नाम और रूप और लीला और धाम एक एक िब्द के । ।। िब्द स्थान पजरला ।। सुन री सखी तोजर भेद बताऊूँ । प्रथम अस्थान खोल कर गाऊूँ ।।1।।

1. साधू का कपड़ा ।

2. प्रकट ।

3. सीमा, रद्द ।

226

सार बचन

सरसकूँ वलदल नाम सुनाऊूँ । करता तीन लोक यर ठाऊूँ1 । ब्रह्मा जवष्र्ु मरादेव तीनों । कु ल बैराट2 रचा इन जमल के । िाल जबछाया िग में भारी । फूँ से िाल में पचे कमण में । अब िो इन को कोइ समझावे । तो नसर मानें झगड़ा ठानें । या ते मैं तो को समझाऊूँ । इनके मारग तू मत िाय । सतगुरू करें सोई तुम मानो । रार रकाना5 देऊूँ दरसाई । मन और सुरत िमाओ जतल पर । जनरखो जखड़की देखो चौका । पचरं गी फु लवारी जनरखो । कोइ कदन ऐसी लीला देखो । जवरर प्रेम बल ताको फोड़ो । अनरद घंटा सुन सुन रीझो । यर पजरला अस्थान बताया ।

बचन 26

िोत जनरिन बास लखाऊूँ ।।2।। वेद चार इन रचे िनाऊूँ ।।3।। पुि इन्रीं के रैं यर चीन्रों ।।4।। िीवन घेर जलया इन जपल के ।।5।। इनकी पूिा िीव सम्रारी ।।6।। धोखा खाया पड़े भरम में ।।7।। सत्तपुरूष का भेद लखावे ।।8।। पक्षपात3 कर कढग नसर आवें ।।9।। यर सब ठग खुलकर ितलाऊूँ ।।10।। तू संतन की सरन समाय ।।11।। इनका बचन न कर परमानो ।।12।। पता भेद अब कहूं िनाई ।।13।। घेर घुमर घट आओ जपल कर6 ।।14।। जचत्त लगाओ राखो रोका ।।15।। दीपदान घट भीतर परखो ।।16।। नील चक्र ता आगे पेखो ।।17।। िोत जनरारो मन को मोड़ो ।।18।। िंख बिाओ रस में भीिो ।।19।। राधास्वामी बरन सुनाया ।।20।।

।। िब्द स्थान दूसरा ।। अब चलो सिनी दूसर धाम ओंकार धुन िरं जबसराम सूरि मंडल लाल मुक़ाम पंचम वेद नाद यजर गाया

। । । ।

जनरखो जिकु टी गुरु का ठाम7 ।।1।। गरिे बादल और घनश्याम ।।2।। गुरु ने बताया गुरु का नाम ।।3।। चहुूँ दल कूँ वल संत बतलाया ।।4।।

1. स्थान । 2. पसारा । 3. तरफ़दारी । 6. धस कर । 7. स्थान ।

4. बतलाऊं ।

5. भेद, तरकीब ।

बचन 26

सुरत संवाद

घंटा िब्द तिी धुन दोई सुरत चली और खोला द्वार ऊूँची नीची घाटी उतरी गढ़ भीतर िाय कीन्रा राि करम बीि अब कदया िलाई नौबत झड़ती आठों िाम मराकाल और कु रम2 बखाना सूरि चाूँद अनेकन देखे सपड अंड से न्यारी खेली वन और परवत बाग़ कदखाई नररें नकदयाूँ जनरमल धारा मेर सुमरे देख कै लासा राधास्वामी करत पुकारी

। । । । । । । । । । । । ।

227

गरि मृदग ं सुनाई सोई ।।5।। बंकनाल धस रो गई पार ।।6।। जतल की उलटी फे री पुतरी ।।7।। भजि भाव का पाया साि ।।8।। आगे को कफर सुरत बढ़ाई ।।9।। सूरत पाया मूल कलाम1 ।।10।। उत्पजत बीिा यराूँ से िाना ।।11।। तारा मंडल बहु जवजध पेखे ।।12।। ब्रह्मंड पार चली अलबेली3 ।।13।। चमन चमन फु लवारी छाई ।।14।। समुन्दर पुल चढ़ रो गइ पारा ।।15।। गई सुरत िरूँ जवमल जबलासा ।।16।। दूसर मंजज़ल करली पारी ।।17।।

।। िब्द स्थान तीसरा ।। अब चली तीसर परदा खोल दसवाूँ द्वार तेि परकाि मानसरोवर ककये अश्नान सुन्न जिखर चढ़ी सूरत घूम सुन सुन सूरत रो गइ सार मरासुन्न का नाका लीन्र अंध घोर िरं भारी फे र बानी चार गुप्त िरूँ उठती झन्कारें अद्भुत करा बरनूूँ पाूँच अंड रचना तरूँ कीन्री

1. िब्द । 2. कछु आ । के बराबर रै ।

। । । । । । । । । ।

सुन्न मंडल का सुन जलया बोल ।।1।। छोड़े नीचे गगन अकाि ।।2।। रंस मंडली िाय समान ।।3।। ककगरी सारूँ गी डाली धूम ।।4।। पहुंची िाय जिवेनी पार ।।5।। गुप्त भेद िाय लीन्रा चीन्र ।।6।। सत्तर पालूँग4 िा का घेर ।।7।। सुरत राजगनी नइ नइ सुन्ती ।।8।। सुन सुन धुन मन में अजत ररखूूँ ।।9।। ब्रह्म पाूँच ता में हुए लीनी ।।10।।

3. सुरत मतवाली ।

4. यर जतरलोकी एक पालंग

228

सार बचन

अंडन सोभा बरनूूँ कै सी लख लख अरब तासु परमाना या में ब्रह्म जवयापक िोई ताका ज्ञान पाय यर ज्ञानी मेंडक सी गजत इन की िानी करा करें यर रैं लाचार जबन देखे कै सै परतीत इसी ब्रह्म को िान अपार अब इन को कै से समझाऊूँ राधास्वामी करी सुनाय

। । । । । । । । । ।

बचन 26

सब्ज़ सेत कोइ पीत बरन सी ।।11।। यर अंडा अजत तुच्छ कदखाना ।।12।। ता की गजत करो ककतनी रोई ।।13।। फू लें मन में रोय अजभमानी ।।14।। कू प समुद्र िान मगनानी ।।15।। वर तो देि न देखा सार ।।16।। उन नसर िानी अचरि रीत ।।17।। भूले मारग करें जवचार ।।18।। बर नसर मानें चुप्प रराऊूँ ।।19।। तीनों परदे कदये लखाय ।।20।।

।। िब्द स्थान चौथा ।। अब चौथे की करी तयारी । नाल रंसनी घाटा1 फाूँदा । पाूँिी2 जनरखी िरूँ गंभीर । दायें रचे दीप परचंड3 । मोती मरल और रतन अटारी । गुप्त भेद यर कदया िनाई । भूँवरगुफा का परवत जनरखा । धुन मुरली िरूँ उठत करारी4 । तेि पुि ूँ 5 वर देि भला री । रंस अखाड़ा6 लीला चौक । लोक अनंत भि िरूँ बसें । राधास्वामी यर भी गाई ।

1. घाट । 2. रास्ता । 3. बड़े ।

चल री सुरत तू िब्द सम्रारी ।।1।। रूकजमन नाल सुरत को साधा ।।2।। सुरत जनरत दोउ धारी धीर ।।3।। बायें रचाये बहुतक खंड ।।4।। रीरे लाल िड़े िरूँ भारी ।।5।। िानेंगे कोइ संत जसपारी ।।6।। सोरं िब्द िाय िरूँ परखा ।।7।। सेत सूर सूरत जनरखा री ।।8।। धुन अपार तरूँ रोत सदा री ।।9।। भि मंडली खेलें थोक7 ।।10।। नाम अधार अमीरस रसें ।।11।। चौथा परदा लीन्रा िाई ।।12।।

4. तेज़ ।

5. समूर ।

6. झुड ूँ ।

7. इकट्ठा ।

बचन 27

राल जवरर और खोि सतगुरू का

229

।। िब्द स्थान पाूँचवाूँ ।। पंचम कक़ला तख़्त सुल्तानी चली सुरत देखा मैदाना अमृत कुूँ ड अमी की खाई चौक चाूँदनी दीप अनूपा खोड़स2 भान चंद्र जियारा द्वारपाल बैठे िरूँ रंस सरि सुरत तरूँ बचन सुनाये सुरत नवीन करी तब बानी इतना कर तब भीतर धसी पुरप3 मध्य से उठी अवाज़ा सतगुरू जमले भेद सब दीन्रा दिणन कर अजत कर मगनानी अलख लोक का भेद सुनाया अलख पुरूष का रूप अनूपा देखा अचरि करा न िाई तीन पुरूष और तीनों लोक प्रेम जबलास िराूँ अजत भारी

। । । । । । । । । । । । । । । । ।

बादिार सच्चा जनि िानी ।।1।। अिब िरर अद्भुत चौगाना1 ।।2।। मरल सुनररी रचे बनाई ।।3।। रंसन िोभा अचरि रूपा ।।4।। सुरत चढ़ी देखा जनि द्वारा ।।5।। कसर कसर अंस करीं कसर बंस ।।6।। करो भेद तुम यरूँ कस आये ।।7।। संत जमले उन करी जनिानी ।।8।। सत्तनाम दिणन कर रूँसी ।।9।। को तुम रो आये के जर कािा ।।10।। जतन की कृ पा दरस रम लीन्रा ।।11।। सत्तपुरूष तब बोले बानी ।।12।। बल अपना दे सुरत पठाया ।।13।। अगम पुरूष जनरखा कु ल भूपा ।।14।। क्या क्या िोभा बरनूूँ भाई ।।15।। देखे सूरत पाया िोग ।।16।। राधास्वामी करत पुकारी ।।17।।

।। बचन सत्ताईसवाूँ ।। वर्णन राल जवरर और खोि सतगुरू का और उनके सतसंग का ।। िब्द परला ।। मैं सतगुरू संग करूूँगी आरती । मो जवररन को कोइ मत रटको4 ।।1।। जिगर5 िले का दीपक बारूूँ । मन बट कर मैं बाती डारूूँ ।।2।।

1. चौक ।

2. सोलर ।

3. फू ल, कूँ वल ।

4. मना करो ।

5. कलेिा ।

230

सार बचन

बचन 27

िोत िगाऊूँ ददण प्रेम की । आरत फे रूूँ सोज़1 मरम की ।।3।। वेदन2 मेरी सतगुरू िाने । जबन दीदार नरीं मन माने ।।4।। दुष्ट दूत अब अजधक सतावें । दिणन राधास्वामी नासर कदखावें ।।5।। कौन उपाव करूूँ मैं सिनी । ज़ोर ज़़ुल्म उन कब लग सरनी ।।6।। िल बल खाक ककया मैं अंगा । िस िोती पर िले पतंगा ।।7।। कौन सुने मेरी ककस पै रोऊूँ । िैसी जबथा मेरी मैं री सरऊूँ ।।8।। आर आर कर जनस कदन दैहू3ूँ । सबर न आवे कफर पछतै हूं ।।9।। जबन राधास्वामी अब कोइ नसर मेरा । दुक्ख ददण ने अजत कर घेरा ।।10।। अब घबराय करूं मैं जबनती । पल पल राधास्वामी जचत में धरती ।।11।। दाद4 फ़याणद 5 सुनो मेरी सतगुरू । कं वल जबन िैसे तड़पे मधुकर6 ।।12।। मैं तड़पूं िस िल जबन मीना । जिगर फटे को कै से सीना ।।13।। तुम सब जवजध रो समरथ स्वामी । तुमसर ितन करो अन्तरिामी ।।14।। मैं अिान कु छ िानत नारीं । िैसे बने तैसे काटो फारी7 ।।15।। तब सतगुरू इक िुजि बताई । सुरत िब्द की करो कमाई ।।16।। और आरत यर जनत प्रजत गाओ । घर में बैठो सुरत लगाओ ।।17।। मौि जनरारो करो जवश्वासा । इक कदन रोगी पूरन आसा ।।18।। अस अस सतगुरू दीन्र कदलासा । अब मन अंतर रोत हुलासा ।।19।। यर अरज़ी अब मानो मेरी । मैं दुजखया तुम चरनन चेरी ।।20।। उमूँग उमूँग कर आरत गाई । जनत्त करूूँ अस आरत आई ।।21।। ।। िब्द दूसरा ।। ददण दुखी मैं जवरजरन भारी । दिणन राधास्वामी जछन जछन चाहूं वर तो ताड़ मार फटकारें । जनधणन जनबणल क्रोजधन मानी ।

दिणन की मोसर प्यास करारी ।।1।। । बार बार उन पर बल िाऊं ।।2।। मैं चरनन पर सीस चढ़ाऊं ।।3।। औगुन अपने अब पजरचानी ।।4।।

1. तपन । 2. कष्ट । 3. तपूूँगी । 4. प्राथणना । 5. पुकार । 6. भूँवरा । 7. बन्धन ।

बचन 27

राल जवरर और खोि सतगुरू का

231

स्वामी दीन दयाल रमारे । मो सी अधम को लीन्र उबारे ।।5।। मैं जज़कद्दन1 दम दम रठ करती । मौि हुक्म में जचत नरीं धरती ।।6।। दया करो राधास्वामी प्यारे । औगुन बख़्िो लेव उबारें ।।7।। ।। िब्द तीसरा ।। कै सी करूूँ कसक2 उठी भारी । दम दम तड़पूूँ जछन जछन तरसूूँ । सुलगत जिगर फटत जनत छाती । नैनन नीर बहुत िस नकदयाूँ । ठं डी आर उठे पल पल में । तोड़ी न टू टे छोड़ी न छू टे । सुरत जनरत दोउ क़ाजसद4 कीन्रे । पजतयाूँ भेिूूँ गुरु दरबारा । नगर उिाड़ देि सब सूना । कौन सुने और कौन सम्रारे । बरी िात नइया मूँझधारा । खेवरटया क्यों देर लगाई । मैं मरी िाउूँ जिऊं अब कै से । डालो िान देवो सरिीवन6 । बचन सुनाओ दरस कदखाओ । राधास्वामी सुनो रमारी ।

मेरी लगी गुरु संग यारी ।।1।। चढ़ ररी मन में जवरर ख़ुमारी3 ।।2।। उठन लगी जरये से जचनगारी ।।3।। डू ब मरी माया मतवारी ।।4।। छाय गई अब प्रीत करारी ।।5।। काल करम पच रारी ।।6।। जबथा5 जलखूूँ अब सारी ।।7।। अब लो खबर रमारी ।।8।। तुम जबन िग अूँजधयारी ।।9।। सब मोसर दीन जनकारी ।।10।। तुम जबन कौन उबारी ।।11।। क्यों कर करूूँ पुकारी ।।12।। तुम मेरी सुजध न सम्रारी ।।13।। मैं तुम पर बजलरारी ।।14।। ररो पीर मेरी सारी ।।15।। मैं तुम्ररे आधारी ।।16।।

।। िब्द चौथा ।। जपया जबन कै से जिउं मैं प्यारी । मेरा तन मन िात फु कारी ।।1।। कोइ संत जमलें अब भारी । िो जपया को जमलावें आ री ।।2।। मैं चढ़ूूँ गगन में सारी । कदन रात लगे मेरी तारी7 ।।3।।

1. रठ करने बाली । 2. पीर । 3. निा । 4. दूत । 5. तक़लीफ़ । 6. अमृत बूटी । 7. ध्यान ।

232

सार बचन

मैं जवरजरन लगी कटारी सतगुरू अब करें स्मरारी मोसर नाम देसर जनि सारी राधास्वामी करें दवा री

। । । ।

बचन 27

मैं घायल कफरूूँ उिाड़ी ।।4।। तब जररदे घाव पुरा1 री ।।5।। यर मररम जनत्त लगा री ।।6।। मैं उन पै िाउं बजलरारी ।।7।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। ददण दुखी जियरा जनत तरसे कोइ सतगुरू संत दया कर रेरें मैं अजत दीन अनाथ अचेती क्या क्या कहूं काल िस कजसयाूँ2 मन की बात मनजर पुजन िाने अंतरिामी वैद जमलें िब आपजर आप रोग मेरा बूझें मैं तो अिान जनपट कर मूढ़ा तुम दयाल कस ढील करोगे सतसंग सार न बूझे चंचल राधास्वामी अचरि धामी

। । । । । । । । । । ।

तन मन में पीर घनेरी ।।1।। तो जमटे जबथा घट मेरी ।।2।। उन जबन को मोसर गरे री ।।3।। फूँ जसयाूँ आन अूँधरे ी ।।4।। मुख से क्यों करत बने री ।।5।। तब दुख दूर टरे री ।।6।। आपजर दें कु छ दवा भली री ।।7।। भूला गैल3 गली री ।।8।। िल्दी से अब कमण दलेरी ।।9।। ठररत नसर जछन एक पली री ।।10।। आन जमले सब पीर ररी री ।।11।।

।। िब्द छठा ।। चुनर मेरी मैली भई घाट घाट मैं खोित रारी नैरर4 रहुं कस जपया घर िाऊूँ जनत जनत तरसूूँ पल पल तड़ूपूँ काम दुष्ट और मन अपराधी का से कहुं सुने नसर कोई सखी सरेली सब िुड़ आई ूँ

। । । । । । ।

अब का पै िाऊूँ धुलान ।।1।। धुजबया जमला न सुिान ।।2।। बहुत मरे मेरे मान ।।3।। कोइ धोवे मेरी चूनर आन ।।4।। और लगावें कीचड़ सान ।।5।। सब जमल करते मेरी रान ।।6।। लगीं भेद बतलान ।।7।।

1. पुरना = भरना । घाव । अच्छा रोना । 4. मां का घर ।

5. पापी ।

2. बांधा ।

3. मागण, रास्ता ।

बचन 28

राधास्वामी

वर्णन आनन्द प्राजप्त सतगुरू

धुजबया

भारी । प्रगटे

233

आय

िरान ।।8।।

।। िब्द सातवाूँ ।। सुतण चली धुलावन काि गई सतसंग के घाट पाया िब्द अगाध चली सुरत आकाि हुआ काम बल छीन2 पाया प्रथम रठकान खोला बंक दुवार सुन्न सरोवर पाय मरा सुन्न के पार भूँवरगुफा कढग पहुंच परसे पुरूष पुरान खोला अलख दुवार अगम पुरूष दरबार राधास्वामी मरल कदखान

। । । । । । । । । । । । । ।

चुनररया मैली भरी ।।1।। सुरत गुरु चरन धरी ।।2।। हुई घट बीच खरी1 ।।3।। उड़ी ज्यों उड़त परी ।।4।। जतररष्र्ा सकल िरी ।।5।। जमली पद आन ररी3 ।।6।। सुफल हुइ देर नरी4 ।।7।। सेत हुइ अब चुनरी ।।8।। लगी झाूँकन झूँझरी ।।9।। सुनी बंसी मधुरी ।।10।। गई अमरा नगरी ।।11।। अमी संग भरी गगरी ।।12।। देख लीला सगरी5 ।।13।। हुई सुतण अि अिरी ।।14।।

।। बचन अट्ठाईसवाूँ ।। ।। वर्णन आनंद जवलास प्राजप्त सतगुरू का ।। ।। िब्द परला ।।

िाग री उठ खेल सुराजगन लाग री उन चरनन सखी सरेली सब िुड़ आईं िोभा भारी रूप जनरारी बिी बधाई रषण समाई

1. जनमणल ।

2. नाि ।

। । । । ।

3. जनरं िन ।

जपया जमले बड़े भाग ।।1।। कफर न जमले अस दाव ।।2।। गावत मंगल राग ।।3।। बढ़ा प्रेम अनुराग ।।4।। भाग़ चला बैराग ।।5।।

4. नर की ।

5. सब ।

234

सार बचन

भजि भावनी जनरमल करनी सत्त सरोवर मिन कीन्रा सतगुरू सरन रंस रोय बैठी राधास्वामी मगन हुए िब

। । । ।

खेलत धोये छू टी दुमत ण

बचन 28

जनि कर फाग ।।6।। कल मल दाग़ ।।7।। संगत काग ।।8।। दीन्री त्याग ।।9।।

।। िब्द दूसरा ।। सोया भाग मेरा िागा आि सखी । सोया भाग मेरा िागा । कमण कला सब फूूँ क िलाई । सतगुरू दया द्वार घट खोला । नाल काल ति िब्द समानी । माया ममता सब धर खाई । गुरु दयाल मोसर जरम्मत दीन्री । भूँवरगुफा रस अगम जपलाया । सत्तलोक सतपुरूष रूप लख । राधास्वामी धाम अिब गत । वेद पुरान क़ु रान न िाने । िोत जनरं िन ममण न िाना । ज्ञानी िोगी सब थक बैठे । यर पद सार भेद जनि सारा । ब्रह्मा जवष्र्ु मरादेव गोरख । इस पद का कोइ भेद न िाने ।

परम पुरूष गुरु पाया ।।1।। सुरत िब्द रम पाया ।।2।। सुखमन िाय बसाया ।।3।। सुन्न सरोवर न्राया ।।4।। सुन्न जिखर चढ़ आया ।।5।। मरासुन्न के पार कराया ।।6।। िब्द िोर िरूँ अजधक सुनाया ।।7।। अलख अगम दरसाया ।।8।। काहू भेद न पाया ।।9।। बर पद अगम अथाया ।।10।। अक्षर लग सब वार रराया ।।11।। वर पद ककनहुं न पाया ।।12 ।। जबरले संत िनाया ।।13।। इन को माया खाया ।।14।। राधास्वामी अब प्रगटाया ।।15।।

।। िब्द तीसरा ।। मोसर जमला सुराग गुरु का । मैं पाया नाम गुरु का ।।1।। मैं सरना जलया गुरु का । मैं कककर हुआ गुरु का ।।2।। मेरे मस्तक राथ गुरु का । मैं हुआ ग़़ुलाम गुरु का ।।3।।

बचन 28

वर्णन आनन्द प्राजप्त सतगुरू

मैं पाया अधार गुरु मैं सरबस हुआ गुरु कोइ और न मुझसा गुरु राधास्वामी नाम यर धुर

का का का का

। । । ।

मैं पकड़ा चरन गुरु मैं रो गया अपने गुरु गुरु का मैं गुरु का गुरु मैं पाया धाम उधर

235

का ।।4।। का ।।5।। का ।।6।। का ।।7।।

।। िब्द चौथा ।। आि घड़ी अजत पावन1 भावन2 । जिनके जगरर3 प्रेम पग धारन । आनंद मंगल रषण सुरावन । िोभा अजधक न िाय बखानन । राधास्वामी िब्द मनावन4 ।

राधास्वामी आये िगत जचतावन 1।। जतन िीवन का करें उबारन ।।2।। िुड़ जमल रंस लगे गुन गावन ।।3।। करं लग कहूं वार नसर पारन ।।4।। सुरत चढ़ी देखा घट चाूँदन ।।5।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। गुरु चरन जगरर मेरे आये पौद5 मेरी सूखी ररी कराये कहूं क्या आनूँद उर न समाये गुरु संग सतसंगी चल आये अिब यर औसर करा न िाये कोरट तेतीसों ररे पछताये आरती ऐसी कौन सुनाये जनरं िन िोत थके गुन गाये सोरं सतनाम रार में आये मरल राधास्वामी ऊंच कदखाये जबना गुरु भेदी कौन लखाये पलूँग पर बैठे सतगुरू आये द्वार सब घट के गये खुलाये

। । । । । । । । । । । । ।

भाग मेरे सोते कदये िगाये ।।1।। देि मेरा सूना आन बसाये ।।2।। फू लती कफरूूँ देर जबसराये ।।3।। रंस आकािी देख लिाये ।।4।। देव और मुजनिन गये लुभाये ।।5।। दरस नसर पाया ररे भुलाये ।।6।। अगम गजत संत कौन कर गाये ।।7।। ओं और अक्षर भेद न पाये ।।8।। अलख और अगम द्वार पर छाये ।।9।। करन में िोभा बरनी न िाये ।।10।। सुरत जबन िब्द कभी नरीं िाये 11।। आरती अद्भुत लीन सिाये ।।12।। जवरंगी9 सुरत चढ़ी गुन गाये ।।13।।

1. पजवि । 2. प्यारी । 3. घर । 4. मनाते रै । 5. छोटे पेड़ । 6. पक्षी की सी गजत रै जिसकी ।

236

सार बचन

बचन 29

दया अस कीन्री राधास्वामी आये । पड़ी मैं उनके चरनन धाये ।।14।। प्रेम और प्रीत लगी अजधकाये । नरीं सुध तन मन गई भुलाये ।।15।। ।। िब्द छठा ।। कौन करे आरत सतगुरू की ।। टेक ।। ब्रह्माकदक सब तरस ररे रैं । जमली नरीं यर पदवी ।।1।। कोरट तेतीसों राग बैरागी । इं द्र मुसनदर1 भटकी ।।2।। सतगुरू जबना खोि नसर पाया । करम भरम जबच अटकी ।।3।। बड़े भाग िानो अब उन के । जिनको सरन परापत गुरु की ।।4।। गुरु समान समरथ नसर कोई । जिन धुर घर की आन खबर दी ।।5।। मेरे भाग बड़े अब िागे । जमल सतगुरू संग आरत करती ।।6।। भाव भजि क्या कदखलाऊूँ । मैं सतगुरू जबन और न रखती ।।7।। गुरु की दया सरसदल पाया । जिकु टी चढ़ कर सुन्न परखती ।।8।। मरासुन्न और भूँवरगुफा लख । सत्तलोक चढ़ अजधक ररखती ।।9।। अलख अगम दरसे पद दोनों । आगे राधास्वामी चरन परसती ।।10।।

।। बचन उनतीसवाूँ ।। जबनती और प्राथणना सतगुरू के चरन कूँ वल में ।। िब्द परला ।। सतगुरू संग आरत करना । भव में क्यों दुख सुख सरना ।।1।। मन जचत का थाल सिाऊूँ । सम सुरत िोत िगवाऊं ।।2।। चढ़ अधर गगन पर धाऊं । अनरद धुन सदा बिाऊं ।।3।। गुरु ककरपा करो बनाई । अब मुझ पै ररो सराई ।।4।। मैं दुजखया बहु दुख पाई । तन मन को रोग सताई ।।5।। सतसंग भी ककया न िाई । ज़़ुल्मी2 बहु ज़ोर चलाई ।।6।। अब मेरी कु छ न बसाई । कोइ चले न मोर उपाई ।।7।।

1. बड़े मुजन ।

2. दुख देने वाला यानी काल .

बचन 29

प्राथणना

तुम दाता समरथ दाना1 मोजर जनश्चय टेक तुम्रारी इक जबनती सुनो रमारी गुन गाऊं चरन जधयाऊं मैं अधम दीन गजत मेरी अब जछन जछन मुझे सम्रारो भजि की रीत जसखाओ दृढ़ पकड़ू चरन तुम्रारे मेरे मन आसा भारी राधास्वामी गुरु रमारे

। । । । । । । । । ।

237

िो चारो करो जनदाना ।।8।। तुम करररो भौिल पारी ।।9।। मोसर लीिे सरन सम्रारी ।।10।। तुम जबन कोइ और न गाऊं ।।11।। तुम चरन गरे रोय चेरी ।।12।। मन भटक भटक अब रारो ।।13।। घट में मेरे प्रेम बढ़ाओ ।।14।। तुम जबन नसर और अधारे ।।15।। मुझ को भी लेरैं उबारी ।।16।। कर दया दास भव तारे ।।17।।

।। िब्द दूसरा ।। मेरी पकड़ो बाूँर रे सतगुरू । मैं बचूं िाल से क्योंकर । अब जमला अिायब औसर । कोइ मंि जसखाओ आ कर । मैं थका चौरासी कफर कफर । तब सतगुरू करा दया कर । वर घाटी रै अजत अड़बड़4 । तब जमले िब्द तोजर इजस्थर । गुरु प्रीत करो जचत सम कर । राधास्वामी सरन तू दृढ़ कर ।

नसर बह्मो धार भौ सागर ।।1।। तुम जबन कोई और न आसर2 ।।2।। िम काल बड़ा रै फनधर3 ।।3।। लो चरन ओट ककरपा कर ।।4।। अब कै से जमले अमर घर ।।5।। अब सुरत चढ़ाओ गगन पर ।।6।। मन इन्द्री खैंच उधर धर ।।7।। तन मन धन आि अरप धर ।।8।। यर आरत करो अधर चढ़ ।।9।। कफर छोड़ न कभी उमर भर ।।10।।

।। िब्द तीसरा ।। गुरु मैं गुनरगार5 अजत भारी ।। टेक ।। काम क्रोध और छल चतुराई । इन संग

1. अन्तरयामी ।

2. सरारा ।

3. सांप ।

रै

मेरी यारी ।।1।।

4. ऊूँची नीची ।

5. पापी ।

238

सार बचन

लोभ मोर अरंकार ईषाण । कपटी लम्पट1 झूठा सरसक2 । दुक्ख जनरादर सरा न िाई । सबिन3 स्वाद अजधक रस चारे । धन और काजमन जचत्त बसाये । नाना जवजध दुख पावत पापी । यर मन दुष्ट काल का चेरा । िब िब चोट पड़ी दुक्खन की । देखो दया मेरर सतगुरू की । बुजध चतुराई बचन बनावट । िेखी बहुत प्रीत नसर अंतर । नर नारी बहुतक बस कीन्रे । गुरु संग प्रीत कपट कु छ डर की । करूँ लग औगुन बरनूूँ अपने । चोर चुग़ल6 इन्द्री रस माता । ख़ुद मतलबी जनदणई मानी । कोरटन पाप ककये बहुतेरे । रे सतगुरू अब दया जवचारो । नसर परतीत प्रीत नसर रं चक7 । मो सा कु रटल और नसर िग में । ितन करूूँ तो बन नसर आवत । यर भी बात करी मैं मुर ूँ से । सरना लेना यर भी करना । तुम्ररी गजत मजत तुमरीं िानो । मैं तो नीच जनपट संिय रत ।

बचन 29

मान बड़ाई धारी ।।2।। अस अस पाप करा री ।।3।। सुख आदर अजभलाष भरा री ।।4।। मन रसना यरी चाट पड़ा री ।।5।। पुि कजलत्तर4 आस भरा री ।।6।। तो बी यर करतूत न छाूँड़ी ।।7।। जनत भरमावत जनडर हुआ री ।।8।। तब डर डर कर भिन करा री ।।9।। उसी भिन को मान जलया री ।।10।। रार िीत की चरचा धारी ।।11।। भोले भिन धोख कदया री ।।12।। मान प्रजतष्ठा5 भोग ककया री ।।13।। कभी थोड़ी कभी बहुत ककया री ।।14।। याद न आवत भूल गया री ।।15।। मतलब की सब बात जवचारी ।।16।। बहुतन का अपमान ककया री ।।17।। कहूं कराूँ लग वार न पारी ।।18।। क्या मुख ले मैं करूूँ पुकारी ।।19।। कस कस मेरा करो उबारी ।।20।। तुम सतगुरू मोसर लेव सुधारी ।।21।। रार रार अब सरन पड़ा री ।।22।। मन से सरना करठन भया री ।।23।। झूठ हुआ मुर ूँ का करना री ।।24।। िस तस मेरा करो उबारी ।।25।। लगे न चरनन प्रीत करारी ।।26।।

1. जवषयी । 2. रत्यारा, कष्ट पहुंचाने वाला । 3. अनेक प्रकार के भोिन, पकवान । 4. स्त्री । 5. इज़्जित । 6. जनन्दक । 7. कु छ ।

बचन 30

आरती

मेरे रोग असाध भरे रैं िब चारो िब जछन में टारो बारम्बार करूूँ मैं जबनती तुम जबन और न कोई दीखे बुरा बुरा कफर बुरा बुरा हूं अब तो लाि तुम्रें रै मेरी

। । । । । ।

239

तुम जबन को अस करे दवा री ।।27।। मेरर दया की मौि जनरारी1 ।।28।। और प्राथणना करूूँ तुम्रारी ।।29।। तुमरीं रो मेरे रखवारी ।।30।। िैसा तैसा आन पड़ा री ।।31।। राधास्वामी खेवो2 बला3 री ।।32।।

।। बचन तीसवाूँ ।। ।। आरती सतगुरू के चरन कूँ वल में ।। ।। िब्द परला ।। आरत गाऊूँ स्वामी अगम अनामी । सरि का थाल असचत की गादी4 । मूल नाम की िोत िगाई । टोपी कमरी6 धोती पटका7 । के सर जतलक माल फू लन की । अब आरत ले फे रन लागी । दृजष्ट िोड़ जचत चरन लगाई । भान चनद्र छजब घट उजियारी । सब रंसन जमल आरत गाई ।

सत्तपुरूष सतगुरू राधास्वामी ।।1।। कूँ वल कटोरी जघय5 अमी डराई ।।2।। दोऊ राथ ले सनमुख आई ।।3।। मुख पोंछन रूमाल चढ़ाई ।।4।। धूप दीप8 और भोग धराई ।।5।। सुन्न मंडल अनरद धुन आई ।।6।। कृ पा दृजष्ट गुरु कीन्र बनाई ।।7।। देखत देखत दृजष्ट समाई ।।8।। समथण सब को जलया अपनाई ।।9।।

।। िब्द दूसरा ।। आरत गाऊूँ पूरे गुरु धुन पकड़ू मैं अनरद घर बात कहूं मैं डगर9 दीद11 करूं मैं पुरूष अधर

की की की की

। । । ।

मजरमा बरनूूँ गगन जिखर की ।।1।। सैर करूं मैं सुन्न नगर की ।।2।। पीर10 ररूं मैं अपने जिगर की ।।3।। दूर करूं मैं ममता धर12 की ।।4।।

1. जनराली । 2. दूर करो । 7. िो कमर में बाूँधा िाय । 11. दिणन । 12. देर ।

3. आफ़त । 4. गद्दा । 5. घी । 8. दीपक । 9. मागण, रास्ता ।

6. जमरज़ई । 10. ददण ।

240

सार बचन

िोजत िगाऊं प्रेम जवरर की मैं तो छोटा यर पद मोटा कृ पा दृजष्ट का दीिै झोटा1 अब मन तुम चरनन पर लोटा खेल कू द सब मैनें छोड़ा अब कीिे मो पै दया अपारी मैं कककर हूं दीन अधीना क्या आरत मैं करने िोगा अब रक्षा मेरी तुम कीिै दामन5 तुम्ररा पकड़ा स्वामी प्रेम भजि और सेवा ध्याना

। । । । । । । । । । ।

बचन 30

थाली धारूं सुरत जनरत की ।।5।। कै से चढ़ूं स्वामी यर मन खोटा ।।6।। तो िावे बुजध बल का टोटा2 ।।7।। काल करम जसर मारा सोटा3 ।।8।। जचत्त चरन में जनस कदन िोड़ा ।।9।। मैं िाऊं स्वामी तुम बजलरारी ।।10।। नसर अबतक मैं तुम को चीन्रा ।।11।। अपनी दया से मोको पोषा4 ।।12।। जबछड़ूं न कभी सरन में लीिै ।।13।। तुम रो अगम अपार अनामी ।।14।। यर सब दीिै मुझ को दाना6 ।।15।।

।। िब्द तीसरा ।। राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी गाऊूँ । नाम पदाथण नाम पदाथण नाम पदाथण पाऊूँ ।।1।। िोत िगाय दृजष्ट भर देखूं । अगम अगाध रूप जरय पेखूं7 ।।2।। मजरमा ता की बरनी न िाई । प्रत्यक्ष सतगुरू कदया कदखाई ।।3।। चरन सरन वर8 माूँगू दाता । रो मेरे तुम जपत और माता ।।4।। करी आरती जरत जचत लाई । अमृतसर अश्नान कराई ।।5।। सुन्न मरल िाय बासा कीन्रा । धुन ककगरी सुन मन हुआ लीना9 ।।6।। सुरत सखी िरूँ करे जबलासा । रंस मंडली अिब तमािा ।।7।। लीला देखी यराूँ अजत भारी । आगे की अब करी तयारी ।।8।। मरासुन्न में लगन लगाई । गुप्त भेद ले सुरत चढ़ाई ।।9।। घाटा10 भारी सो अब तोड़ा । भूँवरगुफा सुनी सोरं घोरा11 ।।10।। सत्तनाम धुन जनि कर पाई । राधास्वामी भेद िनाई ।।11।। 1. झूले का झोंका । 2. नुक़सान, घाटा । 3. डंडा । 4. सम्राला । 5. पल्ला यानी आसरा । 6. बखजिि । 7. जनरखूूँ । 8. वरदान । 9. मगन । 10. घाटी । 11. आवाज़ ।

बचन 30

आरती

241

।। िब्द चौथा ।। गुरु आरत मैं करने आई । दुक्ख भरम सब दूर नसाई ।।1।। थाल जलया मैं सील जछमा का । पाया भेद मैं गुरु मजरमा का ।।2।। िोत िगाई जवरर अजगन की । करी आरती प्रेम उमंग की ।।3।। भोग लगाया अपने भाव का । फल पाया रम देर दाव का ।।4।। दृजष्ट िोड़ कर सन्मुख ठाढ़ी1 । सतगुरू दया दृजष्ट िब डारी ।।5।। राधा राधा जनत जनत गाऊूँ । स्वामी स्वामी सदा मनाऊूँ ।।6।। राधास्वामी कफर दोउ एका । िुगल2 रूप की जनस कदन टेका ।।7।। करूँ लग बरनूं िोभा उन की । कोरट सूर चूँद छजब इक अंगकी ।।8।। देखत देखत मन जबगसाना3 । कूँ वल सूर िस प्रीत पुराना ।।9।। करूँ लग आरत करूूँ बनाई । मन नसर माने जचत न अधाई4 ।।10।। प्रेम उमंग अपनी अब रोकूं । पूरन आरत कर जरया पोखूूँ5 ।।11।। राधास्वामी मगन रोय कर । दें परिादी लेउूँ गोद भर ।।12।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। गाऊूँ आरती ले कर थाली । उलट दृजष्ट देखूं मैं िोती । सुरत जनरत कर सुनती बािा । कर आरत लीन्रा फल पूरा । सूर चाूँद दोउ देख उिाली । कूँ वलन क्यारी िाय सम्रारी । गूथ ं गूथ ं स्वामी कढग लाई । फू ल फू ल कर सन्मुख ठाढ़ी । चार चमेली मन ककया मरूवा9 । मोर िाल का धागा तोड़ा ।

1. खड़ी हुई । 5. िांजत दूूँ ।

गगन जिखर सूरत मेरी चाली ।।1।। जछन जछन मन को तराूँ परोती ।।2।। बना आरती का सब सािा ।।3।। उदय हुआ घट में अब सूरा ।।4।। िब्द पौद सींचे मन माली ।।5।। सुरत माजलनी फू ल सूँवारी ।।6।। आरत कर गल रार चढ़ाई ।।7।। आरत फे रूूँ दृजष्ट जनरारी ।।8।। भरा अमी से तन का चरूवा7 ।।9।। रोग सोग संिय अब छोड़ा ।।10।।

2. दोनों । 3. जखला, खुि हुआ । 4. तृप्त, संतष्ट ु रोना । 6. एक फू ल का नाम । 7. बड़ा मटका ।

242

सार बचन

बचन 30

खैंच खाूँच मन चरनन िोड़ा । ज्यों त्यों कर यर िग से मोड़ा ।।11।। तन सीतल और मन भया सीतल । नसर भावे अब काूँसा पीतल ।।12।। प्रेम प्रीत स्वामी से लागी । और काम सब दीन्रा त्यागी ।।13।। आरत पूरन कीन्री अबरी । राधास्वामी दया करी पुजन िबरी ।।14।। ।। िब्द छठा ।। आरत गावे स्वामी दास तुम्रारा । ज्ञान ध्यान का दीपक बारा । झुनक झुनक झनकार झुमावा1 । अब आरत स्वामी मानो मेरी । जछमा करो अपराध सुवामी । दया करो दाता प्रभु मेरे । दृजष्ट करो भरपूर अपारा । नाम तुम्रार धुन्ध2 उजियारा । दया करो अब राधास्वामी ।

प्रेम प्रीत का थाल सूँवारा ।।1।। भजि िोग धुन सुन झनकारा ।।2।। सुरत िब्द धुन आन समावा ।।3।। गुनरगार भूला बहुतेरी ।।4।। आगे न चूकूूँ पाइ रैरानी ।।5।। मैं सेवक जनि चरनन चेरे ।।6।। पद पाऊूँ िा का वार न पारा ।।7।। गुन गाऊूँ धुन अगम अपारा ।।8।। देव प्रसाद मोसर अंतरिामी ।।9।।

।। िब्द सातवाूँ ।। गुरु मेरे दाता मैं भई दासी दुलभ ण नर देरी अब पाई रटना नाम करूूँ मैं जनस कदन दिणन पाऊं मन उमगाऊं तब अनरद अद्भुत पाऊं जिकु टी िाय ससरासन बैठी आरत जवजध अब कीन्रा सािा धुन आई इक धुर से भारी बरसे अमी की धार अखंडा

1. घुमाया ।

2. अंधरे ा ।

। । । । । । । । ।

िनम िनम की काटी फाूँसी ।।1।। करूूँ भजि गुरु लेउूँ ररझाई ।।2।। गुन गाऊूँ अब स्वामी जछन जछन ।।3।। नैन िोड़ कर सुरत लगाऊं ।।4।। गगन मंडल में िाय समाऊं ।।5।। करे राि घट घट में पैठी ।।6।। धुन धधकार गगन का बािा ।।7।। अधर पदारथ पाया सारी3 ।।8।। भींिे सुरत तिा नौखंडा ।।9।।

3. सार, िौरर ।

4. सपड ब्रह्मंड ।

बचन 30

आरती

रंस चाल अब चली सरोवर अगम1 जनगम2 से रो गइ पारा सत्तनाम पद पाया नूरा मैं भी भई नाम रस माती तुम दयाल देओ मोसर दाना कभी न जबछडू ूँ ज्यों िल मीना

। । । । । ।

243

पहुंची िाय असचत बरोबर ।।10।। फोड़ा िाय सत्त का द्वारा ।।11।। काल देख अब जछन जछन झूरा3 ।।12।। आरत सतगरू जनत प्रजत गाती ।।13।। जचत्त ररे तुम चरन समाना ।।14।। बार बार तुम चरन अधीना ।।15।।

।। िब्द आठवाूँ ।। आरत गाऊं पाूँच कड़ी पाूँच प्रार्5 की डोर बंधी सतगुरू पूरे दया करी काया मद्धे खूब लड़ी सुन्न मंडल की धुन पकड़ी

की री री री री

। । । । ।

पाूँच तत्त्व4 संग आन पची री ।।1।। पाूँच दुष्ट6 संग आन अड़ी री ।।2।। खुली गाूँठ और गगन चढ़ी री ।।3।। धुन के मोती पोये लड़ी री ।।4।। राधास्वामी चरनन आन पड़ी री ।।5।।

।। िब्द नवाूँ ।। सात कड़ी की आरत फे रूं मन को मोड़ गगन को फोड़ूूँ सतगुरू मुखड़ा जछनजछन जनरखूूँ मैं मृगनी सुनी नाद गुरु की इन्द्री पाूँच सुरत मन दोई आूँख कदखाऊं और झुझ ूँ लाऊूँ यर आरत मैं जनत्त करूूँगी

। । । । । । ।

सुरत चढ़ाय िब्द संग घेरूं ।।1।। जचत्त को रोक चरन में िोड़ूूँ ।।2।। जवजवध भाूँत अनरद धुन परखूूँ ।।3।। सुनत नाद तन मन सुध जबसरी ।।4।। सातों सूँग ले गगन समोई7 ।।5।। सतगुरू के बल ज़ोर चलाऊूँ ।।6।। अब नसर रूठूूँ 8 सच्च कहूंगी ।।7।।

।। िब्द दसवाूँ ।। आरत गाऊूँ सत्तनाम की । िोत िगाऊूँ अधर नाम की ।।1।। लीला देखूूँ कं ि श्याम की । सैर करूूँ मैं सेत धाम की ।।2।। िड़ काटूूँ अब दुष्ट काम की । मैं चेरी गुरु जबना दाम की ।।3।। 1. दसवाूँ द्वार । 2. मरासुन्न । 3. सूख गया । 4. पृथ्वी, िल, अजि, पवन, आकाि । 6. पाूँच वायु यानी अपान, व्यान, समान, प्रार्, उदान । 6. काम, क्रोध, लोभ, मोर, अरंकार । 7. प्रवेि ककया । 8. खफा हूूँ ।

244

सार बचन

बचन 30

सेवा धारूं आठ िाम1 की । त्याग दई धुन कदिा बाम2 की ।।4।। प्रीत लगी िस अजलफ़ लाम3 की । नाद सुनी चढ़ ला-मुकाम4 की ।।5।। संगत छोड़ी खासो आम की । ररी न लिा नंगो नाम5 की ।।6।। िोभा देखी गगन बाम6 की । हुइ मस्तानी अिर िाम7 की ।।7।। िगर नरीं अब कु छ कलाम8 की । आरत राधास्वामी अब तमाम की ।।8।। ।। िब्द ग्याररवाूँ ।। दया गुरु की अब हुइ भारी ज्ञान गुरु का थाल ससगारी खड़ी हुई िब गुरु के आगे दृजष्ट लकु रटया गुरु की लागी मंि बताया गुरु ने ऐसा सुरत चढ़ी अब गगन मंडल में राधास्वामी नाम सम्रारा

। । । । । । ।

मैं भी आरत करन जवचारी ।।1।। भजि िोत ले कर6 में धारी ।।2।। मद और मौर काम उठ भागे ।।3।। ममता कु जतया भोंकत भागी ।।4।। लोभ भूत छोड़ा तन देसा ।।5।। नौ छोड़े गइ अष्ट कं वल में ।।6।। रूप अनूप हृदे में धारा ।।7।।

।। िब्द बाररवाूँ ।। एक आरती और बनाऊं िुजि ितन कर जवरर िगाऊं कु ल कु टु म्ब से नाता तोड़ा काल चक्र डाला बहुतेरा मन उमूँगा चरनन में भारी िब्द भेद िो गुरु दरसाया गगन मासर धस दास कराया घट में दिणन सतगुरू पाया गूूँित भूँवर सरोि11 सेत में धुन की खबर िनावत न्यारी

। । । । । । । । । ।

राधास्वामी आगे आन सुनाऊं ।।1।। प्रेम प्रीत का थाल सिाऊं ।।2।। चरन कूँ वल में मन को िोड़ा ।।3।। छोड़ कदया सब मेरा तेरा ।।4।। सुध नसर को नर रै को नारी ।।5।। सुरत चढ़ाय द्वार पर आया ।।6।। स्वामी चरन जनपट जलपटाया ।।7।। रूप अनूप देख ररखाया ।।8।। लेत सुगध ं और मगन रेत12 में ।।9।। लगी सुर त िरूँ अजधक करारी ।।10।।

1. परर । 2. बायाूँ । 3. प्रीत िो कभी न टूटे । 4. अधामी । 5. बदनामी और नेकनामी । 6. अटारी । 7. प्याला । 8. बचन । 9. राथ । 10. लकड़ी । 11. कूँ वल । 12. प्यार ।

बचन 30

राधास्वामी

आरती

दया

245

जवचारी । मो सी अधम को जलया उबारी ।।11।। ।। िब्द तेररवाूँ ।।

अगम आरती राधास्वामी गाऊूँ छत बुरारूूँ1 छिे झाड़ूं दया करो अब स्वामी मेरे अब दयाल ने मुरर2 लगाई देव प्रसाद मोसर राधास्वामी मैं चेरी स्वामी तुम्ररे घर की

। । । । । ।

तन मन धन सब भेंट चढ़ाऊूँ ।।1।। नीच नीच मैं सेवा धारूं ।।2।। िन्म िन्म पड़ी काल के घेरे ।।3।। कं टक3 काल सब दूर पराई ।।4।। पद पाऊूँ सतनाम नामी ।।5।। साफ़ करूूँ बुजध मायाबर4 की ।।6।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। घामर घूमर5 करूूँ आरती खाउूँ परिादी ओढ़ूूँ परिादी देखो चारे मत देखो स्वामी देउूँ पररकमाण जपऊूँ चरनामृत काल करम का माथा फोड़ूूँ ऐसी दुलभ ण भजि कमाऊूँ पूिा भेट धरूूँ नसर कौड़ी खफ़ा रोव तो रूसूूँ नारीं

। । । । । । । ।

स्वामी हुए दयाल िी ।।1।। नाम तुम्रारा जलये िाउूँ गी ।।2।। मैं अपनी सी करे िाउूँ गी ।।3।। बूँदगी कर कर चरन गहूंगी ।।4।। सुरत चरन में िोड़ रहूंगी ।।5।। उमंग उमंग गुन गाऊंगी ।।6।। आरत गाऊूँ नौड़ी नौड़ी6 ।।7।। चरन तुम्रारे पकड़ रहूंगी ।।8।।

।। िब्द पंद्ररवाूँ ।। करे आरता सेवक भोला चौक आकाि साफ़ अब कीन्रा कर कर दरस मगन हुआ मन में लगन लगी और प्रीजत अब िागी पाूँच तत्त्व फु लवारी देखी सरन9 चौतरा सुन्न मझारा

1. झाड़ू लगाऊूँ । 5. पररक्रमा देकर ।

। । । । । ।

नेर7 नगर का फाटक खोला ।।1।। िब्द गुरु का दिणन लीन्रा ।।2।। सुरत सखी पहुंची इक जछन में ।।3।। राधास्वामी दिणन सूरत पागी8 ।।4।। प्रकृ त पचीसों क्यारी पेखी ।।5।। तरूँ राधास्वामी ससरासन धारा ।।6।।

2. छाप । 3. दुख । 4. माया का पजत यानी काल । 6. झुक कर । 7. प्रीजत । 8. दृढ़ हुई । 9. आूँगन ।

246

सार बचन

जरया परात राथ अब लीन्री । अगम नगर ला भेट चढ़ाया । ककया आरता उमंग प्रेम का । धारा राधास्वामी नाम जवरंगम3 । फू ल पान और के सर टीका । पाउं प्रसाद अब राधास्वामी का । ककया आरता पूरा आि ।

बचन 30

बाला िोता1 धुन्ध टलीनी ।।7।। अमी सिीवन बूटी2 लाया ।।8।। फोड़ा माथा काल अधम का ।।9।। दम दम तोड़े दाूँत धरमिम4 ।।10।। भोग भाव धरा प्रीत रीत का ।।11।। गाउं गीत पल पल प्रीतम का ।।12।। िन्म अष्टमी पाया साि ।।13।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।। िाग रे मन छोड़ बखेड़ा । अब खोिो साूँझ सवेरा । तब सतगुरू करें जनबेड़ा6 । काल यर डाला घेरा । सतगुरू पद सेवो मेरा । मत कर तू बहुत अबेरा । घाट घट भीतर रेरा । मैं ककया गगन में डेरा । तसकर10 सब मारे घेरा । संतन का चौकी पररा । आरत की उमंग उठाऊूँ । मन भूखा सूरत भूखी । तब सतगुरू दीन्री टेरा । जिकु टी का देख उिेरा । सुन्न में िाय चौकी डारी । अब आरत करूूँ ससगारी ।

त्याग रे मन िगत अूँधरे ा ।।1।। कफर क़ाबू4 चले न तेरा ।।2।। तू करे न भौिल फे रा ।।3।। सब खायूँ िीव भटभेड़ा7 ।।4।। छू टे सब मेरा तेरा ।।5।। अब बाूँध अगम का बेड़ा8 ।।6।। पद जमला आि बहु नेड़ा9 ।।7।। िरूँ संत करें जनत फे रा ।।8।। सुख पाया आि घनेरा ।।9।। मैं करूूँ असचत बसेरा ।।10।। सामान कराूँ से लाऊूँ ।।11।। इन्द्री तन भीतर सूखी ।।12।। तू चढ़ आ छोड़ अूँधरे ा ।।13।। धुन से कर व्राूँ की नेररा11 ।।14।। अब जमल गइ सामाूँ भारी ।।15।। सतगुरू पै िाऊूँ बजलरारी ।।16।।

1. बड़ी िोत । 2. िान देने वाली िड़ी । 3. पक्षी । 4. धमणराय । 5. उपाय । 6. जनस्तार । 7. भटकना । 8. नाव । 9. पास । 10. चोर । 11. प्रीजत ।

बचन 30

आरती

उमगी अब सुरत करारी िरूँ सीतल िोत िगाई अमी मूर का भोग धराई सतगुरू की िोभा भारी मरासुन्न ग़लीचा डारा िरं दीप रचे अजत भारी भिन के िूथ1 बसाये आरत जवजध देखन आये सचखंड बना ससरासन अनरद धुन बीन बिाई िरं आरत कीन्री भारी आरत की धूम समाई यर आरत बहुत बढ़ाई राधास्वामी घर में आई आरत अब रो गइ पूरी

। । । । । । । । । । । । । । ।

247

यजर कर में लीन्री थारी ।।17।। झारी भर अमृत लाई ।।18।। कं वलन गल रार परराई ।।19।। मैं जनरखूं दृजष्ट पसारी ।।20।। िरं गगन धरन नसर तारा ।।21।। रंसन गजत क्या कहुं न्यारी ।।22।। उपमा उन करी न िाये ।।23।। सब भूँवरगुफा कढग छाये ।।24।। सतपुरूष ककया तसर आसन ।।25।। रंसन जमल आरत गाई ।।26।। कफर अलख लोक पग धारी ।।27।। धुर अगम लोक तक आई ।।28।। परताप करा नसर िाई ।।29।। क्या भाग सराहूं भाई ।।30।। मैं राधास्वामी चरनन धूरी ।।31।।

।। िब्द सिरवाूँ ।। दम्पत2 आरत करूं राधास्वामी कर पकवान जमष्टान भोग धर लाय भेट स्वामी के राखे करो आरती प्रेम ससगारी रम भी आरत करें बनाई सुरत िब्द भाूँवर3 अब लीन्री गुरु दयाल तो कल्ल दयाला उन चरनन पर िाउं बजलरारी

1. झुड ं ।

2. िोड़ा ।

। । । । । । । ।

प्रेम सजरत गाऊं गुन नामी ।।1।। और वस्तर गोटन के सि कर ।।2।। तब स्वामी अस आज्ञा भाखे ।।3।। बार बार अस आरत धारी ।।4।। राधास्वामी ररो सराई ।।5।। सदा सुराग अचल गुरु दीन्री ।।6।। सतगुरू पूरे करें जनराला ।।7।। उन जबन कौन करे उपकारी ।।8।।

3. पररक्रमा ।

248

सार बचन

मैं कककर तुम चरन अधारा । मस्तक राथ धरो अब रमरे । ऐसी कृ पा करो राधास्वामी । मन और सुरत दोउ जमल आये । अब दोनों को लेकर सरना । सुरत चढ़ाओ सरसकूँ वल में । कफर आगे को चढ़ूूँ बंक में । सुन्न जिखर चढ़ पहुंचूूँ जछन में । भंवरगुफा बैठंू सुन धुन मैं । अलख अगम की दया समाई । सुनूं नाम और धारूं जचत में । कर सतसंग मजलनता नासी । अन्ध घोर अज्ञान नसाना2 । सुन सुन धुन मगनानी ऐसी । दासी दास िुगल सरनाये । भेट चढ़ावें अब अजत गररी । मैं अिान कु छ ममण न िानूं । तुम दयाल मेरी आरत मानो । राधास्वामी दरस भाग से पाया ।

बचन 30

तुम जबन को अब करे उबारा ।।9।। प्रीत लगे अब चरनन तुम्ररे ।।10।। भजि िुजि मोसर देव अनामी ।।11।। नूर तुम्रार जरये में लाये ।।12।। मारग अगम लखाओ अपना ।।13।। रूप जनरारूं िोत अब जतल में ।।14।। लखूूँ जतरकु टी धाम ओं में ।।15।। मरासुन्न का धारूं पन1 मैं ।।16।। बीन बिाऊं िा सतपुर में ।।17।। राधास्वामी नाम सुनाई ।।18।। करम भरम काटूूँ इक पल में ।।19।। घट में चेतन कीन्र प्रकासी ।।20।। घोर अनारद जमला रठकाना ।।21।। मीन मगन ररे िल में िैसी ।।22।। करके ब्यार आरती लाये ।।23।। तन मन धन तो तुच्छ भये री ।।24।। राधास्वामी नाम बखानूं ।।25।। रम अिान तुम गजत न जपछानो ।।26।। राधास्वामी सरन जचत्त अब आया ।।27।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।। आि आरती करूूँ सुरावन गावन लावन3 प्रीत बढ़ावन सुरत चलावन िब्द जमलावन अघ5 रावर् कु ल नाि करावन

1. इरादा, प्रजतज्ञा ।

। । । ।

2. नाि हुआ ।

भावन छावन सरि सीता

पावन मन ललचावन ।।1।। उमंग रटावन धावन4 ।।2।। समावन रं ग चढ़ावन ।।3।। राम अिुध्या लावन ।।4।।

3. सुन्दर ।

4. चंचलता ।

5. पाप ।

बचन 30

आरती

सुरत जसया मन राम करावन मानसरोवर घाट अन्रावन भंवरगुफा लीला दरसावन अलख अगम िा िब्द िगावन

। । । ।

249

दसवाूँ द्वार अिुध्या गावन ।।5।। मरासुन्न में िाय चढ़ावन ।।6।। सत्तलोक गजत बीन सुनावन ।।7।। राधास्वामी धाम कदखावन ।।8।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। उठी अजभलाषा इक मन मोर प्रेम की थाली लूग ूँ ी राथ सुरत को बाूँधूूँगी अब तान बचन कर मजरमा करूं बखान गुरु जबन और न काहू मान करें गुरु खेवा मेरा पार पकड़ अब लेना भुिा पसार सुरत को लीिे आि सम्रार जनरं िन िोत लखूं उजियार घाट कफर जिकु टी लेउं जनरार मरासुन पहुंचूं सतगुरू लार सच्चखंड आई बीन सम्रार ककया राधास्वामी मुझ से प्यार करूं मैं आरत लूं आनन्द

। । । । । । । । । । । । । ।

करूूँ अब आरत गुरु की िोर ।।1।। िब्द की िोत िगाऊं साथ ।।2।। रूप गुरु जनरखुग ं ी अब आन ।।3।। चरन गुरु लाऊं जररदे ध्यान ।।4।। सरन में उनके पड़ी जनदान1 ।।5।। बचावें डू बत हूं मूँझधार ।।6।। िगत का मेटो सभी ग़़ुबार ।।7।। चढ़ूं और झाूँकू नभ का द्वार ।।8।। सरसदल छोड़ बंक के पार ।।9।। सुन्न चढ़ खोलूं बिर ककवाड़ ।।10।। भंवर चढ़ पकड़ूं बंसी धार ।।11।। अलख और अगम ककया दरबार ।।12।। हुई मैं उन पर अब बजलरार ।।13।। जमला मोसर आि परमानन्द ।।14।।

।। िब्द बीसवाूँ ।।

क्योंकर करूं आरती सतगुरू तुम रो दीन दयाल कृ पाला मैं कककर अजत अधम उदासी मैं करा िानूं भेद तुम्रारा काल कला की धारा भारी

1. अजखरकार ।

। । । । ।

बल नसर धरूं प्रेम का जनि उर ।।1।। बंधन काट करो प्रजतपाला ।।2।। तुम्ररी गजत सब पर अजबनासी ।।3।। जवषय भोग मेरा सदा अरारा ।।4।। या ते पार उतरो तारी ।।5।।

250

सार बचन

मन तन मोर करत नसर कािा संत समागम दुलभ ण भाई कौन भाग अब उदय रमारा दूर देि से चल कर आयो मन उचाट कर जचत भरमावत सतसंग में ररना नसर चारत ताते सतगुरू मत को फे रो सुरत चढ़ाओ गगन िब्द में सरस कूँ वल जिकु टी लख लीला भूँवर गुफा सतलोक कदखाई राधास्वामी दीन अवाज़ा

। । । । । । । । । । ।

बचन 30

सेवा भिन करत करे लािा ।।6।। सो ककरपा से जमल्यो मोसर आई ।।7।। या ते दिणन पायो तुम्रारा ।।8।। और काल बहु जबघन लागायो ।।9।। बारम्बार देि को धावत ।।10।। धन जतररया की याद बढ़ावत ।।11।। तुम चरनन कर जनस कदन चेरो ।।12।। जनरत िमाओ धुनन अवध1 में ।।13।। सुन्न मरासुन खेलत सीला ।।14।। अलख अगम की छजब जचत भाई ।।15।। चलो सुरत घर अपना पािा ।।16।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। धूम धाम से आइ इक सिनी आय सरन सतगुरू की लीन्री आरत करन जवचारत गुरु की गुरु संग प्रीजत करी नसर थोड़ी प्रेम िगावत कमण सुलावत जनत्त नवीन प्रीजत अजधकाई गुरु की मजरमा करी न िाई गजत उनकी उनरीं की िानी सतसंग उनका िो कोइ पावे ताते सरन गरी राधास्वामी मैं आरत कु छ करन न िानी

1. दसवां द्वार ।

2. मन ।

। पजत2 को संग पुि दोउ3 मगनी ।।1।। । तन मन सजरत प्रीजत परबीनी ।।2।। । उमंग प्रीत कदखलावत उर की ।।3।। । सुरत जनरत जनि चरनन िोड़ी ।।4।। । भिन भजि में धीर बढ़ावत ।।5।। । िोभा गुरु देखत मुसकाई ।।6।। । कोरटन सूर इक रोम लिाई ।।7।। । कौन करे यर अकथ करानी ।।8।। । िब्द मासर वर जछन जछन धावे ।।9।। । तुमरी रक्षा करो जनदानी ।।10।। । अपनी दया से लगन लगानी ।।11।।

3. बैराग और अनुराग ।

बचन 30

आरती

251

।। िब्द बाईसवाूँ ।। सतगुरू की अब करूूँ आरती कदन कदन प्रीत पदारथ लाती देख सारदा1 जनपट लिाती िब िब दरस गुरु का पाती अस आरत मैं करूूँ बनाई काल दुष्ट इक जवघन लगाई मैं गुरु मूरत जररदे धारी तब तो काल ररे मुरझाई दूर रहूं सतगुरू उर धारूूँ मैं सतगुरू बल लीन्रा राथा अब जछन जछन यर आरत गाऊूँ तन तो ररे देि के मारीं यों दम दम गुरु पास बसानी राधास्वामी मूरत जररदे धारी

। । । । । । । । । । । । । ।

िगा भाग और रहूं िागती ।।1।। बढ़ी उमंग अब करां जछपाती ।।2।। सतगुरू मजरमा करी न िाती ।।3।। तन मन धन सब अपण धराती ।।4।। संत सरन मैं जनि कर पाई ।।5।। उलटी मो को देि पठाई ।।6।। पल पल जछन जछन करूूँ अधारी ।।7।। जवरर प्रेम बल मार जगराई ।।8।। काल जवघन सब दूर जनकारूूँ ।।9।। फोड़ूं काल करम का माथा ।।10।। सतगुरू चरनन जनत बल िाऊूँ ।।11।। मन तो ररे चरन की छारीं ।।12।। अब क्या जवघन करे मेरी रानी ।।13।। जछन जछन देखूं नैन उघाड़ी ।।14।।

।। िब्द तेईसवाूँ ।। करूूँ री इक आरत अद्भुत भारी सुरत मेरी लागी धुन में पागी रंस गजत पाई पानी त्यागी गुरु ने अब दीन्रा मोसर सुरागी भोग सब छू टे जचत बैरागी कहूं करा मैं अब बड़ भागी करम धरम जबच दीन्री आगी सतगुरू चरन हुई मैं दाग़ी

1. सरस्वती ।

। । । । । । । ।

चरन गुरु सेव रोकर न्यारी ।।1।। जनरत मेरी िागी ममता भागी ।।2।। ररी मैं अब तक बहुत अभागी ।।3।। मैं गुरु के चरन की हुई अनुरागी ।।4।। गाउं अब जनसकदन सतगुरू रागी ।।5।। िब्द मासर सूरत मेरी लागी ।।6।। मान अपमान दोउ मैं त्यागी ।।7।। नाम दान सतगुरू से माूँगी ।।8।।

252

सार बचन

बचन 30

गगन चढ़ूूँ देखूं पद आगी1 । सत्त िब्द में सुरत समागी2 ।।9।। छू ट गई संगत सब कागी । रंसन साथ रला मेरा भागी ।।10।। मन को िीता ममता भागी । राधास्वामी चरन परस परसागी ।।11।। ।। िब्द चौबीसवाूँ ।। गुरु के चरन पर जचत बजलरारी । कर अजभलाख दूर से आयो । काल करी अपनी ठजगयाई । कभी परतीत प्रीत दृढ़ताई । कभी झकोले मोर कदखाई । चरन गुरु ज्यों त्यों दृढ़ करता । क्या क्या कहूं काल की लीला । लीक पुरानी कु ल मरिादा4 । भरम उठावत अस अस भारी । मैं बलरीन दीन सरनागत । यर मन चोर कठोर रमारो । आस भरोस और जबश्वासा । क्यों कर इस मन को समझाऊूँ । ता ते जबनती करूूँ तुम्रारी । तुम चरनन में रहूं सदा री । चरन भेद गुरु कदया बताई । दो जतल छू ट एक जतल दरसा । आगे सुखमन घाट सुराई । घंटा संख ररी लौ लाई । गरिा बादल मृदग ं सुनाई ।

1. आगे का । 6.दृढ़ता ।

मन परतीत करूूँ दृढ़ सारी3 ।।1।। अचरि दिण नैन भर पायो ।।2।। मन जबच नाना भरम उठाई ।।3।। कभी सरन से देत कचाई ।।4।। कु टुंब देस की याद कराई ।।5।। कफर भरमाय िगत में धरता ।।6।। तपन उठावत खोवत सीला ।।7।। तीरथ बतण धमण को साधा ।।8।। दूर रटावत प्रेम जवचारी5 ।।9।। िस िानो तस टारो आफ़त ।।10।। लोभ लरर में बरतो सारो ।।11।। गुरु चरनन में करे न बासा ।।12।। गुरु की दया जबन ठौर न पाऊूँ ।।13।। ज्यों त्यों मन को लेओ सुधारी ।।14।। कभी न छोड़ूं देओ क़रारी6 ।।15।। नैन जनरख िरूँ सुरत लगाई ।।16।। िोत जनरं िन का पद परसा ।।17।। द्वार बंक में िाय समाई ।।18।। छोड़ ताजर कफर िकु टी आई ।।19।। ओंकार गुरु िब्द िनाई ।।20।।

2. समा गई, धस गई ।

3. पूरी ।

4. रीजत ।

5. जवचार ।

बचन 31

आरती

253

लीला देख सुरत ररखाई । आगे सुन्न सरोवर धाई ।।21।। रंसन साथ उमंग बढ़ाई । मान सरोवर जबमल अन्राई ।।22।। मरासुन्न की करी चढ़ाई । सतगुरू संग खेप जनभ आई1 ।।23।। जतजमर छाूँट परकाि कदखाई । भूँवरगुफा बंसी सुन पाई ।।24।। सच्चखंड सतिब्द लखाई । धुन अनंत और बीन बिाई ।।25।। अलख अगम दिणन दरसाई । राधास्वामी धाम समाई ।।26।। आरत कर लीन्रा घट भेदा । भई परापत सवण उमेदा ।।27।। सकल मनोरथ पूरन हुए । रतन पदारथ राधास्वामी कदये ।।28।। ।। िब्द पच्चीसवाूँ ।। आरत आगे राधास्वामी के कीिे जचत कर चंदन जरत कर माला गगन का थाल सुरत की बाती सरस कूँ वल दल घंटा बािे ओंकार धुन जिकु टी बािे भूँवरगुफा कढग सोरं बासा दास तुम्रारे स्वामी आरत गावें

। । । । । । ।

जबमल प्रकाि अमी रस पीिे ।।1।। आन चढ़ाऊूँ स्वामी दीनदयाला ।।2।। िब्द की िोत िगे कदन राती ।।3।। बंकनाल धुन िंख सुनीिे ।।4।। सुन्न जिखर अक्षर धुन गािे ।।5।। सत्तलोक सतनाम जनवासा ।।6।। चरन कूँ वल में बासा पावें ।।7।।

।। बचन इकतीसवाूँ ।। वर्णन मन और इजन्द्रयों से जवकार और काल के जवघ्नों का अभ्यास की रालत में

।। िब्द परला ।। घट औघट झाूँका री सिनी ।। टेक ।। मन मजतमन्द करन नसर माने । िब्द सुरत नसर ताका री ।।1।। घर घर कफरे स्वान2 मजत लीये । झूठ झूठ जवष खाता री ।। 2।। धन सम्पत सुख चार उठाई । मान मनी मद माता री ।।3।।

1. जनर्शवघन पार हुई ।

2. कु त्ता ।

254

सार बचन

कु ल कु टु म्ब िग झूठ पसारा घाट बाट सतगुरू नसर चीन्रे क्यों कर कहूं बूझ नसर माने छल और कपट ईषाण जनन्दा गुरु का बचन साजत्वकी1 ररनी करूँ लग कहूं रार अब मानी गुरु चरनन पर प्रेम बढ़ाओ दूसर सीढ़ी सुरत िब्द की राधास्वामी करत बुझाई

। । । । । । । । ।

बचन 31

जतन संग बाूँधा नाता री ।।4।। खान चार जनत िाता री ।।5।। कफर कफर भरम भुलाता री ।।6।। दम दम पाप बढ़ाता री ।।7।। इन में जचत न समाता री ।।8।। गुरु जबन कौन बचाता री ।।9।। जपरथम सीढ़ी गाता री ।।10।। मन अन्तरगत न्राता री ।।11।। िीवन काि सुनाता री ।।12।।

।। िब्द दूसरा ।। छु टूं मैं कै से इस मन से िाल इन डाला बहु रस से बूँधी मैं आय इन दस2 से द्वार मैं आन नौ परसे लगी अब लाग भोगन से गुरु जबन कोइ नसर दरसे कांपती मैं कफरूं िम से पिु सम रो गई नर से डार ज्यों टू ट गई िड़ से करूं फ़याणद सतगुरू से दूर करो मैल सतसंग से जमले तब िाय सुन धुन से िब्द से िाय कर परसे लगूं मैं आय राधा7 से

1. सतोगुर्ी । 6. तृष्र्ा करे ।

2. दस इजन्द्रय । 7. आकद सुरत ।

। । । । । । । । । । । । । ।

सुरत यर करती जनि मन से ।।1।। छु टाया मोसर धुर घर से ।।2।। ककया परपंच3 इन मुझ से ।।3।। जगराया मोसर दस दर4 से ।।4।। छु टूं क्यों राय इस फूँ द से ।।5।। जनकाले मोसर इस वन से ।।6।। छु ड़ावे कौन इस डर से ।।7।। करी नसर प्रीत मैं गुरु से ।।8।। पड़ी मैं दूर जनि घर से ।।9।। लगाओ मोसर चरनन से ।।10।। रोय कफर जभन्न इस तन से ।।11।। अमीरस पाय तब सरसे5 ।।12।। जमटे दुख कफर नरीं तरसे6 ।।13।। करूूँ मैं प्रीत स्वामी से ।।14।।

3. उपाजध ।

4. द्वार ।

5. खुि रो ।

बचन 31

मन और इजन्द्रयों के जवकार

करो राधास्वामी तुम अपना । पड़ी में आय तुम

255

सरना ।।15।।

।। िब्द तीसरा ।। गई आि सोच में मेरी सुरत कु चालन चाल अनरद बािे बिें गगन में सतगुरू पूरे भेद बतावें सतसंग सार जनकार न िाने कै से कहूं बूझ नसर लावे जबन सतगुरू जबन नाम सम्रारे जछन जछन फाूँसी पड़े गुनन की काम क्रोध आिा और तृष्र्ा जबरर अजगन उठ उठ बुझ िावे दूत दुष्ट अब मोसर सतावें सुरत िब्द मारग जबन पाये सरसकूँ वल चढ़ जिकु टी आवे मरासुन्न चढ़ भूँवरगुफा तक दया करो अब राधास्वामी

।। टेक ।। । गई आि सोच में ।।1।। । धरे न धुन पर ख़्याल ।।2।। । यर भरमे भौ िाल ।।3।। । पड़ी बहुत िंिाल ।।4।। । अजत भरमाया काल ।।5।। । कौन करे प्रजतपाल ।।6।। । कोइ काटें दीन दयाल ।।7।। । यर घट भारी पाल1 ।।8।। । क्यों कर करूूँ सम्राल ।।9।। । अपनी छाया डाल ।।10।। । कै से रोय जनराल ।।11।। । न्राय मानसर ताल ।।12।। । सत्तनाम पावे जनि माल ।।13।। । मेटो यर दुख साल2 ।।14।।

।। िब्द चौथा ।। मन चंचल करा न मानें गुरु जनत समझावें साध बुझावें सुन सुन बचन बहुत पछताऊूँ अपनी सी बहु िुजि सम्रारी सुरत िब्द का घाट न पाया डावाूँडोल ररे संिय में

1. परदा ।

2. ददण ।

। । । । । ।

मैं कौन उपाय सतसंग में जचत िोड़ बहुर भुलावे भमण कै से मन को मार कफर क्योंकर मैं गगन िगत आस से नासर

करूूँ ।।1।। धरूूँ ।।2।। रहूं ।।3।। मरूूँ ।।4।। भरूूँ ।।5।। टरूूँ ।।6।।

256

सार बचन

बचन 31

सतगुरू सरन पकड़ कर बैठंू । तो इस मन की व्याजध ररूूँ ।।7।। िगत िाल यर अजत दुखदाई । इसी अजगन में जनत्त िरूूँ ।।8।। जबना मेरर कु छ काि न सरररै । अब राधास्वामी की सरन पड़ूं ।।9।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। चमररया1 चार बसी घट मासर दुक्ख सुख जनतरी आवें िायूँ िुद्धता सब री भागी िायूँ जवरर अनुराग जनकासे िायूँ बहुरर कफर गुरूरी लेयूँ बचाय करूं अब सतसंग सरन समाय राधास्वामी कीन्री दृजष्ट झुमाय2

। । । । । । ।

गुरु अब कै से धारें पायूँ ।।1।। करम फल भोगत मन के मासर ।।2।। प्रेम और भजि नरीं ठररायूँ ।।3।। करूूँ क्या कोई ितन अब नासर ।।4।। नाम जबन करे न कोइ सराय ।।5।। िब्द में जनस कदन लगन लगाय ।।6।। चमररया घट से भागी िाय ।।7।।

।। िब्द छठवाूँ ।। गुज़र मेरी कै से रोय सरेली यर तो चोर चुग़ल छल कपटी गुरु समझावें मैं समझाऊूँ काम न छोड़े क्रोध न छोड़े मान बड़ाई िगत बासना खान पान और भोग जबलासा सतगुरू दाता िब्द लखावें ऐसा दुष्ट करा नसर माने िम नगरी के दुक्ख सुनाऊूँ सत्तलोक के सुख दरसाऊूँ कहूूँ कराूँ लग नेक न माने कै सी करूूँ उपाय न सूझे

1. चमड़े से जिसकी प्रीजत रै ।

। । । । । । । । । । । ।

इस मन साथ ।।1।। कभी न आवे राथ ।।2।। पुजन पुजन करता अपनी घात ।।3।। लोभ मोर संग अजत दुख पात ।।4।। जनत्त बढ़ावत िात ।।5।। इन में सदा फं साता ।।6।। सो नसर लेता दात ।।7।। छोड़त नसर उतपात ।।8।। तो भी भय नसर खात ।।9।। सो भी कु छ परतीत न लात ।।10।। मैं तो रारा िात ।।11।। नसर या ते बजसयात3 ।।12।।

2. घुमा कर ।

3. जववि हूूँ ।

बचन 31

मन और इजन्द्रयों के जवकार

िो कु छ करें करें राधास्वामी । और न कोई

257

दृजष्ट

आत ।।13।।

।। िब्द सातवाूँ ।। हुआ मन आि दुखदाई न डर गुरु का न भय िम का करे सतसंग सुने बानी स्वान की पूछ ूँ ज्यों िानो जमरग सम रोय सदा चंचल नाद घट में घुरे1 जनस कदन कमण और भमण में पचता भोग और रोग में खपता ररे अजभमान में भूला करी राधास्वामी गजत मन की

। । । । । । । । । ।

कहूूँ मैं चाल इस गाई ।।1।। जगरे जनत पाप में िाई ।।2।। समझ तो भी नरीं आई ।।3।। कभी छोड़े न टेढ़ाई ।।4।। कभी लेवे न जथरताई ।।5।। सुने नसर एक जछन भाई ।।6।। भोग में ररे लौ लाई ।।7।। नाम रस लेत नसर आई ।।8।। गुरु संग करत चतुराई ।।9।। दया जबन राथ नसर आई ।।10।।

।। िब्द आठवाूँ ।। गुरु को ऊपर ऊपर गाता गूरू का दिणन बारर करता काि तेरा कै से रोवे भाई भीतरी धन और मान जवरािा भीतरी काम और क्रोध बसाये भीतरी लगन न गुरु से लागी गुरु कस तेरे रोयूँ सराई कौन जवजध कहूूँ तोजर समझाई तमोगुन छाय ररा घट तेरे भिन तू करे न कबरी सच्चा ज़रा सी ताड़ मार नसर सरता

1. बिे ।

2. नीच, दुष्ट ।

। । । । । । । । । । ।

गुरु को कदल भीतर नसर लाता ।।1।। जचत्त में दिणन कभी न धरता ।।2।। ऊपरी गुरु संग लगन लगाई ।।3।। ऊपरी नाम ग़रीबी सािा ।।4।। ऊपरी सील जछमा कदखलाये ।।5।। ऊपरी लगन करे क्या पािी2 ।।6।। िब्द की प्रीजत न अन्तर आई ।।7।। भाग कु छ ओछा री तैं पाई ।।8।। सतोगुन कभी न आवे नेरे3 ।।9।। सरन में गुरु की रै तू कच्चा ।।10।। जनरादर करें िगत में बरता ।।11।।

3. जनकट ।

258

सार बचन

दुखों से डर कर कु छ कु छ लगता नाम रस पाय नसर अजवनासी ितन कोइ समझ नसर अब आता गुरु की मरज़ी कभी न परखी खबर नसर पाई तैं जनि घर की मरम यर मन का सबरी गाया

। । । । । ।

बचन 31

गये दुख वोरी तुतण फड़कता1 ।।12।। िगत से हुआ न कभी उदासी ।।13।। गुरु की मेरर जबना क्या पाता ।।14।। मेरर करो आवे कै से धुर की ।।15।। िब्द में सुरत न तेरी सरकी2 ।।16।। सुनो राधास्वामी करत सुनाया ।।17।।

।। िब्द नावाूँ ।। अरे मन नसर आई परतीत गुरु की नसर आई परतीत बहुतक भरमा िगत भमण में गुरु संग ररता सतसंग करता अब िो देखी रालत मन की धोखा देत ररा मन पािी गुरु ने परख करी कु छ मन की मन मूरख यर करा न माने क्योंकर मन को देऊूँ सचौटी कु टु म्ब िगत संग सच्चा बरते िब देखो तब रूखा सूखा सतसंजगयन से रेल मेल नसर दारा5 सुत पररवार सकल संग गुरु से सीधे मुर ूँ नसर बोले गुरु सतसंगी दोउ जरतकारी िग जबच्छू जतररया रै नाजगन ज़रर रलारल8 जनत री खावत

।। । अब तक नसर आई परतीत ।।1।। । नसर कीन्रा मन मीत ।।2।। । चरनामृत पी खाता सीत ।।3।। । लगी न गुरु संग प्रीत ।।4।। । गरी न गुरु की रीत ।।5।। । छोड़ चला संगीत3 ।।6।। । सोता ररे कपट नसर िीत ।।7।। । कु टु म्ब िगत की लिा कीत ।।8।। । झूठा सतसंग लीत4 ।।9।। । गुरु दिणन में नसर हुलसीत ।।10।। । िग िीवन संग रखता प्रीत ।।11।। । रंस रंस खेलत नीत6 ।।12।। । सतसंजगयन से टेढ़ा चीत ।।13।। । जतन का जरत िाने न पलीत7 ।।14।। । इन संग ररत जमलीत ।।15।। । डंक सरत कफर कफर पछतीता ।।16।।

1. बे रोक टोक बरतता रै । 2. आगे बढ़ी । 3. संगत । 4. जलया । 5. िोरू । 6. जनत्त । 7. नापाक, अपजवि । 8. मार डालने वाला ।

बचन 31

मन और इजन्द्रयों के जवकार

गुरु के बचन अमी की धारा ऐसा नीच कु बुद्धी यर मन गुरु संग प्रीत लगावत ऐसी िो कोई बचन करे वर कड़़ुवा तो मन फे रे घर को भागो गुरु को दुख पहुंचावन चारे िोरू लड़के गाली देवें उनकी ताड़ मार जनत सरता उनकी प्रीत लगी अस दृढ़ रोय अब तो चेत ज़रा तू रे मन खान पान और लोभ लरर में राधास्वामी करत बुझाई

। । । । । । । । । । । ।

259

जतन में न्रात न रो मगनीत ।।17।। गुरु को अपना िाने न मीत ।।18।। िस धागा कच्चा चटकीत1 ।।19।। और करें अपमान भलीत ।।20।। बैर करे कु छ करे अनीत ।।21।। क्यों नसर मेरा आदर कीत ।।22।। मूछ पकड़ वर खैंच सखचीत ।।23।। उन से तौ भी मन न कफरीत ।।24।। लोरे की संगलीत2 ।।25।। त्याग पिु की रीत ।।26।। क्यों बरता ति भीत3 ।।27।। इस से बढ़ क्या गाऊूँ गीत ।।28।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

डगर मेरी रोक लई मैं पजनरारी अमी अधारी गगरी सुरत डोर जनि करनी उधणमख ु ी कु इया4 चढ़ झाूँकी भेद गुप्त इक सतगुरू दीन्रा राधास्वामी अगम अनामी सुरत िब्द मारग दरसाया

। । । । । । ।

या ज़़ुल्मी काल ।।1।। सतगुरू करो सम्राल ।।2।। छू ट गया िंिाल ।।3।। भरत अधर रस राल ।।4।। पहुंची रूँसन ताल ।।5।। मुझ पर हुए दयाल ।।6।। काटा मन का िाल ।।7।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। गूिरी5 चली भरन गगरी । श्याम6 ने रोकी पनघटवा ।।1।। सजखयन साथ उमंग से िाती । खोि लगाती धुन घटवा ।।2।। अब क्या करूूँ ज़ोर नसर चले । कै से खोलूूँ घट पटवाूँ ।।3।।

1. टू ट िाता रै । 2. िंदीर । 3. भय, डर । 4. ऊपर मुख वाला कु आ यानी मस्तक । 5. सुरत । 6. काल । 7. पाट, पदाण ।

260

सार बचन

बचन 32

मारग रोक भुलावत सब को । कला कदखावत ज्यों नटवा ।।4।। धूम धाम कर कफर बगदावत1 । ठररन देत न काहु तटवा ।।5।। ऐसा छजलया कान्र न माने । छोड़त नारीं जनि रटवा ।।6।। गुरु जबन कौन बचावे या ते । खोल सुनावें धुन छूँटवा2 ।।7।। राधास्वामी खेली लीला । दूर रटाया अब झटवा ।।8।। ।। िब्द बाररवाूँ ।। फै ल ररी सुतण बहु जवजध िग में । जबन जपया भटक गई या मग में ।।1।। इन्द्री रस अजधक सतावें । मन तरं ग बहुत भरमावें ।।2।। राधास्वामी दया करावें । मन उलट फे र बदलावें ।।3।। रस िब्द अधर चखवावें । तब तन मन िांजत धरावें ।।4।।

।। बचन बत्तीसवाूँ ।। प्राथणना सुरत की मन से और िवाब देना उसका ।। िब्द परला ।। मन रे मान बचन इक मेरा ।। टेक ।। मैं तेरी दासी िनम िनम की । तू हुआ स्वामी मेरा ।।1।। तीन लोक का नाथ करावें । तीन देव तेरा चेरा ।।2।। ऋजष मुजन सब पर हुकु म चलावे । िती सती सब घेरा ।।3।। तेरे बस सुर नर और िोगी । कोइ तेरा हुकम न फे रा ।।4।। जिस चारे जतस िगत फूँ साए । और चारे जतस करे जनबेरा ।।5।। ऐसी मजरमा सुनी तुम्रारी । ताते तुम पै करूूँ जनरोरा3 ।।6।। इस तन नगरी तुच्छ देि में । क्यों क़ै दी रोय पड़े अंधरे ा ।।7।। सतगुरू मोसे करा बचन इक । मन को संग ले चलो सबेरा ।।8।। ता ते तुम पै करूूँ बीनती । चढ़ो गगन क्यों करो अबेरा ।।9।। इन्द्री द्वार जवषय अब त्यागो । करो अभी सुलझेरा4 ।।10।। तुम सा संगी और न कोई । मैं तुम्ररी और तुम री मेरा ।।11।।

1. लौटा देता रै ।

2. छूँटी हुई ।

3. जवनती, प्राथणना । 4. जनबेड़ा, सुलझाना ।

बचन 32

प्राथणना सुरत की मन से और मन का िवाब

मुझ दासी का करना मानो िैसे थे तैसे कफर रोइ रो सतगुरू पूरे भेद बताया मैं हूं सुरत पड़ी बस तेरे िो यर करन न मानो मेरी अब तुम दया करो मेरे ऊपर रम तुम दोनों चढ़ें अधर में तुम वराूँ ररना राि कमाना

। । । । । । । ।

261

गगन मंडल चढ़ बाूँधो डेरा ।।12।। क्यों दुख सुख यराूँ सरो घनेरा ।।13।। मन को संग लेकर घर फे रा ।।14।। जबन तुम मदद िब्द नसर रेरा ।।15।। तो चौरासी करें बसेरा ।।16।। सुन जबनती खोिो धुन नेरा ।।17।। िाकर बसें पराड़ सुमरे ा ।।18।। रम पहुंचें िरूँ राधास्वामी डेरा ।।19।।

।। िब्द दूसरा ।। मन बोला सुतण से कफर ऐसे । कै सी करूूँ बचन कस मानूं । बल पौरूष मैं सब री रारा । मैं चाहूं छोड़ूूँ भोगन को । आगे पीछे बहु पछताऊूँ । कै से चढ़ूं गगन को प्यारी । ताते तोसे कहूं ितन मैं । सरन पड़ें जमल कर अब रम तुम । दया करें सतगुरू िब अपनी । मैं अपने बल चढ़ूूँ न कब री । सुन कर सुरत अजधक ररखानी । सतसंग सरन गरी अब दोनों । दोनों जमल कर चढ़े गगन को । दया करी राधास्वामी उन पर । राधास्वामी ऐसी मौि कदखाई ।

1. मज़बूत ।

जवषय स्वाद मोसे िात न छोड़ा ।।1।। मैं इन्द्री बस हुआ न थोड़ा ।।2।। अब इन से मेरा चले न ज़ोरा ।।3।। देख भोग बस चले न मोरा ।।4।। समय पड़े पर रोवत चोरा ।।5।। मैं चंचल ज्यों दौड़त घोड़ा ।।6।। चल सतगुरू पै करो जनरोरा ।।7।। कर सतसंग रोयूँ कु छ पोढ़ा1 ।।8।। पल पल राखें मोको मोड़ा ।।9।। िब लग जमलें न गुरु बंदी छोड़ा।।10।। चल िल्दी वर बन्धन तोड़ा ।।11।। भर भर पीवत अमी कटोरा ।।12।। िब्द िब्द रस हुए चटोरा ।।13।। रीरा मोती लाल बटोरा ।।14।। मार जलया अब काल कठोरा ।।15।।

262

सार बचन

बचन 33

।। बचन तेंतीसवाूँ ।। फ़याणद और पुकार करना सतगुरू से और माूँगना मेरर और दया का वास्ते चढ़ने सुरत के और प्राजप्त दिणन स्वरूप सतगुरू की ।। िब्द परला ।।

अब मन आतुर दरस पुकारे । दम दम जछन जछन ददण दीवानी । बेकल तड़पूूँ जपया तुम कारन । कौन उपाय करूूँ अब सिनी । याजर सोच में कदन कदन िलती । जपया तो बसें मेरे लोक चतुर में । जबन जमलाप प्रीतम दुख भारी । घाट बाट िरूँ अजत अूँजधयारी । ितन न सूझे जरम्मत रारी । िो जपया चारें तो दम में बुलावें । भाग रीन मैं धुन नसर पकड़ी । सुरत िब्द मारग िो पाया । मैं तो सब जवजध रीन अधीनी । तुम समरथ स्वामी अजत परबीना1 काि करो मेरा आि सम्रारी । रार पड़ी अब तुम्रारे द्वारे । तब स्वामी बोले अस बानी । धीरि धरो करो जवश्वासा । सुनत बचन अब सीतल भई ।

1. िानकार ।

कल नसर पकड़े धीर न धारे ।।1।। सोऊूँ न िागूूँ अन्न न पानी ।।2।। डस डस खावत सचता नाजगन ।।3।। भौिल से अब कारे को तरनी ।।4।। कोइ न सम्रारे आली पल पल गलती ।। मैं तो पड़ी आय मृत्यु नगर में ।।6।। रार चलूं नसर िात चला री ।।7।। कोई न सुने मेरी बहुत पुकारी ।।8।। अपने जपया की मैं ना हुई प्यारी ।।9।। िब्द डोर दे अभी चढ़ावें ।।10।। काम क्रोध माया ररी िकड़ी ।।11।। सो भी मुझ से गया न कमाया ।।12।। मन नसर जनमणल सुरत मलीनी ।।13।। । मैं तड़पूं िैसे िल जबन मीना ।।14।। तुम्रारी सरन स्वामी मैं बजलरारी ।। तुम जबन अब मोसर कौन सम्रारे ।। मौि जनरारो ररो चुप ठानी ।।17।। अब करूं पूरन तुम्ररी आसा ।।18।। चरन सरन स्वामी जनश्चल गरी ।।19।।

बचन 33

फ़याणद और पुकार

263

।। िब्द दूसरा ।। अब मैं कौन कु मजत उरझानी अब की बार मोसर लेओ सुधारी रहुं पछताय झुरूूँ मन अपने मैं धरती जपया बसें अकासा रे सतगुरू सुनो मेरी टेरा दीन दुखी रोय करत पुकारी तुम दयाल सब को देओ दाना क्या कहुं मैं अब अपनी पीर की तब स्वामी ने कदयो कदलासा दया हुई अब जमली जपया से

। । । । । । । । । ।

देि पराया भई हूं जबगानी1 ।।1।। मैं चरनन पर जनस कदन वारी ।।2।। कै से लगूूँ में संग जपया अपने ।।3।। जबन पाये जपया रहूं उदासा ।।4।। काल चक्र अब मारो घेरा ।।5।। सुन स्वामी यर जबनती रमारी ।।6।। मैंरी अभाजगन भई दुख खाना ।।7।। िस कोइ छेदत भाल तीर की ।।8।। प्रेम पंख ले उड़ो अकासा ।।9।। ररी पीर दुख दूर जिया से ।।10।।

।। िब्द तीसरा ।।

करत हूं पुकार, आि सुजनये गुरार2, मैं दीन हूं अधीन, तुम दाता दयार रो ।।1।। अब कररये सम्रार, मेरी नाव रै मूँझधार, मैं दुजखया अजत भार, तुम खेवट अगार3 रो ।।2।। दूत और दुष्ट मोसर, घेर जलया वार, दुख देत रैं अपार, भय कदखावत िमद्वार, तुम रक्षक हुजियार रो ।।3।। लेना अब खबर मोर, मैं तो हूं सरन तोर, काल ककया बहुत ज़ोर धूम धाम करत िोर, तुम सूरन प्रधान रो ।।4।। मेरी बुजद्ध रै मलीन, मन सुरत रै अलीन4, बल पौरुष सब छीन, तुम सतगुरू प्रबीन5 रो ।।5।। मोसर दीिे इक दान, मैं माूँगत हूं जनदान,

1. परदेजसन, पराई । 5. िानकार ।

2. पुकार ।

3. सब से भारी ।

4. अपजवि ।

264

सार बचन

बचन 33

सुतण िब्द का जनिान , तुम समरथ सुिान रो ।।6।। जवरर नासर, प्रेम नासर, भजि भाव चाव1 नासर, सरधा परतीत नासर, काम क्रोध लोभ मासर, कै से करोगे जनवाणर रो ।।7।। रोग सोग जनत सतायूँ, भिन सुजमरन बनत नासर, भोग बास घटत नासर, सचता डर अजधक दासर2 और कोई सुनत नासर, तुम री मेरे बैद रो ।।8।। संतन जबन कोइ नासर, सतगुरू जबन ठीक3 नासर, करम भरम नीक नासर, िब्द जबना सीख नासर, यरी भीख दीजिये ।।9।। सुरत को चढ़ाओ आि, िब्द का कदखाओ साि, सरसकूँ वल िाय भाि, देखे व्राूँ का समाि, मन को तब रोय लाि, यरी काि कीजिये ।।10।। बंक परे जिकु ट घाट, खुले कफर सुन्न बाट, मरासुन्न खोल पाट, भवूँरगुफा बाूँध ठाट, सत्तिब्द पाय चाट, सतपुर पहुंचाइये ।।11।। िरूँ से परे अलख देख, लोक एक अगम पेख, राधास्वामी पद अलेख, पंजडत न िाने भेख, क़ािी न मुल्ला िेख, संत जबन न िाइये ।।12।। एक कहूं सीख मान, मन की तू छोड़ ठान4, गुरु की गजत अगम िान, िब्द भेद ले पजरचान, तेरी बुजद्ध रै अिान, काम क्रोध त्याजगये ।।13।। सतसंग की क़दर िान, नर िरीर दुलणभ मान, नाम रस करो पान, गुरु स्वरूप धरो ध्यान, इन्द्री मन करो आन, पखण पखण चाजलये ।।14।।

1. िौक़ ।

2. िलाने वाले ।

3. रठकाना ।

4. रठ, जज़द ।

बचन 3

फ़याणद और पुकार

265

जमि तेरा कोई नासर, कु ल कु टुंब लूट खासर, िोबन धन साथ नासर, िि भमण फाूँस मासर, काल कमण खोस खासर, खान चार िाईये ।।15।। िन्म िन्म नकण बास, िम कदखावे अजधक िास, तड़पे तू स्वाूँस स्वाूँस, पुिवे1 न करीं आस, पावे न सुख जनवास, कष्ट बहु भोगाइये ।।16।।

िि भोग छोड़ चार, सब से तू रो अचार, संतन को खोि िाय, सतगुरू की सरन आय, बचन उनके मन समाय, बंद से छु ड़ाइये ।।17।। गुरु का तू बचन पाल, मन की मजत तुतण टाल, बुजद्ध के सांचे ढाल, मनमुख का संग िाल, गुरूमुख की यरी चाल, काल राल िाररये ।।18।। सूरत नैना सम्राल, जतल आकाि फाड़ डाल, जनरखो िोती िमाल, द्वारे धस बंकनाल, अनरद पर धरो ख़्याल, गगन में चढ़ाइये ।।19।। सुन्न जिखर चन्द्र देख, दसम द्वार सेत पेख, सरवर में मुजि लेख2, ककगरी धुन सुन जबिेष, कमण की जमटाओ रे ख, रंस रूप धाररये ।।20।। मरासुन्न अंध घोर, घाट अगम सुगम तोड़, सूरत िरूँ कीन पोढ़, सतगुरू संग चली दौड़, भूँबरगुफा सुना िोर, सोरूँग में समाइये ।।21।। आगे की गली लीन्र, धुन अनन्त िब्द चीन्र, रंस जमले अजत प्रवीन, प्रेम भाव बहुत कीन्र, सत्तलोक द्वार लीन्र, बीन धुन बिाइये ।।22।।

1. पूरी रो ।

2. पजरचान ।

266

सार बचन

बचन 33

वराूँ से कफर चली पार, अलख लोक िा जनरार, अलख पुरूष धुन सम्रार, देखा अचरि उिार, ककया िाय धुन अधार, अलख दिण पाइये ।।23।। अगम लोक खबर पाय, ऊपर को चढ़ी धाय, अगम पुरूष दिण पाय, तेि पुूँि1 अिब िाय, अमी ससध पहुंची आय, अगम रूप धाररये ।।24।। यराूँ से भी चली सुत,ण ककया िाय वराूँ जनतण, िस समुद्र नदी रलत, चरनन पर सीस धरत, राधास्वामी संग जमलत, जनि घर अपना पाइये ।।25।। कहूं करा बहुत करी, यरी बात रै सरी, िन्म िन्म भूल ररी, चरन धूर धार लई, करम भरम सभी बरी, राधास्वामी गाइये ।।26।।

लाओ पाओ बाज़ी मेरी

अब कफर यर तू

प्रेम सत्त लेव कर

प्रीत, सतसंग में धारो चीत, रीत, गाओ यर अगम गीत, िीत, िग में कोइ नासर मीत, प्रतीत, कदया सब बुझाइये ।।27।। ।। िब्द चौथा ।।

गुरु गरो आि मेरी बजरयाूँ2 । कलमल सब मेरे दजरयाूँ3 । कफर चलूं तुम्रारी रजरयाूँ4 । उिड़ा घर तुमसर बसइयाूँ ।

1. भंडार ।

2. भुिा ।

मैं बसूूँ तुम्रारी छइयाूँ ।।1।। मैं छोड़ी मन परछइयाूँ4 ।।2।। तुम जबन मेरा कोइ न गुसइयाूँ ।।3।। दुख िन्म िन्म मैं सजरयाूँ ।।4।।

3. िला कदया ।

4. परछाई ।

5. मागण, रास्ता ।

बचन 33

फ़याणद और पुकार

अब करूूँ सोई तुम कजरयाूँ कमणन से खूटं 1 छु ड़इयाूँ मैं दुख सुख बहुतक सजरयाूँ इन्द्री बस आन पड़इयाूँ ऐसी कोइ करन न कजरयाूँ गगना में सुरत चढ़इयाूँ सतपुरूष भेद बतलइयाूँ नइया मेरी पार लगइयाूँ राधास्वामी चरन समइयाूँ

। । । । । । । । ।

267

मेटो िग भूल भुलइयाूँ ।।5।। िब्दा रस सार जपलइयाूँ ।।6।। कु ल लाि तिी नसर िइयाूँ ।।7।। भोगन में बहुत फूँ सइयाूँ ।।8।। िैसी तुम बात सुनइयाूँ ।।9।। मन माया दोऊ पचइयाूँ2 ।।10।। कफर अलख अगम दरसइयाूँ ।।11।। कफर अलख अगम दरसइयाूँ ।।12।। जछन जछन में लेउूँ बलैयाूँ3 ।।13।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। मौत डर जछन जछन व्यापे आई । सुरत मन बहुत चढ़ाऊूँ भाई । करो कस काटूूँ बड़ी बलाई4 । सुरत मन नेक नरीं ठरराई । गुरु से यर फ़याणद सुनाई । भरोसा दम का रै नसर भाई । करूूँ क्या चले न कोई उपाई । प्रीत का घाटा बहुत कदखाई । दोऊ में एक न अब बन आई । गुरु तब बचन सुनाया सार । नाम रट मन से बारम्बार । करो तुम जनत प्रजत यर करतूत । िुगत से बस7 कर मन का भूत । तिो मत जनत कर यर अभ्यास ।

1. पल्ला । 6. पागल ।

काल भय पल पल मोसर सताई ।।1।। गगन में रटके न जछन इक िाई ।।2।। गुरु मोसर करें जनत्त समझाई ।।3।। करूूँ क्या कै से पाऊूँ रारी ।।4।। िब्द में कभी न िाय समाई ।।5।। ममण मैं अब तक कु छ नसर पाई ।।6।। सरन गुरु गहूं यरी ठरराई ।।7।। सरन भी मो से गरी न िाई ।।8।। मरूूँ क्या अब मैं माहुर5 खाई ।।9।। मरे मत बौरी6 धीरि धार ।।10।। रूप गुरु धारो जरये मूँझार ।।11।। टलें तब तेरे घट के दूत ।।12।। लगे तब धुन से तेरी सूत ।।13।। गुरु का संग कर रर कर पास ।।14।।

2. थक गये । 3. वार दूूँ । 7. वि में करो ।

4. आफ़त, बला ।

5. जवष, ज़रर ।

268

जमटे भोग िब्द मौि रोहु

सार बचन

िब िग की तेरी आस सब त्यागो रोहु जनरास रस पीवे स्वाूँसी स्वाूँस को ताको कर जविवास अब राधास्वामी दास

। । । । ।

बचन 33

लगे तब घट में करन जबलास ।।15।। सुरत तब पावे गगन जनवास ।।16।। मरल में िावे पावे बास ।।17।। नरीं कु छ ितन नरीं पररयास1 ।।18।। करें वर पूरन इक कदन आस ।।19।।

।। िब्द छठा ।। नाम दान अब सतगुरू दीिे दुख पावत मैं जनस कदन भारी तुम समान कोइ और न दाता मो को दुखी आप कस देखो मैं हूं पापी अधम जवकारी अवगुन अपने करूँ लग वरनूूँ तुम्ररी गजत मजत नेक न िानूं तुम समरथ और अंतरिामी मौि करो दुख अंतर ररो माूँगूं नाम न माूँगूूँ मान मैं अजत दीन जभखारी भूखा कै से दोगे नाम अमोला रोय जनरास सबर कर बैठा िायद कभी मेरर रो िावे जबना मेरर कोइ ितन न सूझे ककनका नाम करे मेरा काि अब तो मन कर चुका पुकार

1. पररश्रमी, मेरनत ।

। । । । । । । । । । । । । । । । ।

काल सतावे स्वाूँसा छीिे2 ।।1।। गरी आय अब ओट तुम्रारी ।।2।। मैं बालक तुम जपता और माता ।।3।। यर अचरि मोसर रोत परे खो3 ।।4।। भूला चूका जछन जछन भारी ।।5।। मेरी बुजध समझे नसर मरमूं ।।6।। अपनी मजत अनुसार बखानूं ।।7।। क्या क्या कहूं मैं सतगुरू स्वामी ।।8।। दया दृजष्ट अब मो पै धरो ।।9।। िस िानो तस देओ मोसर दान ।।10।। प्रेम भाव नसर सब जवजध रूखा ।।11।। मैं अपने को बहु जवजध तोला ।।12।। पर मन धीरि धरे न नेका ।।13।। तो कहूं नाम नैक जमल िावे ।।14।। बखजिि रोय तभी कु छ बूझे ।।15।। रे सतगुरू मेरी तुमको लाि ।।16।। राधास्वामी करो उधार ।।17।।

2. घटती रै ।

3. जवचार करने से ।

बचन 33

फ़याणद और पुकार

269

।। िब्द सातवाूँ ।। नाम रस पीवो गुरू की दात । चरन गुरु पकड़ो तन मन साथ । परख कर समझो गुरु की बात । िगत सब डू बा भौिल िात । घाट घट उलटो कदन और रात । सुरत से करो िब्द जवशयात2 । जमटे कफर मन की सब उत्पात4 ।

िब्द संग भींिो मन कर राथ ।।1।। मान मद मारो आवे िांत ।।2।। जनरख कर चजलयो माया घात ।।3।। नाम जबन छु टे न िम का नात1 ।।4।। मोर की बाज़ी रोगी मात ।।5।। गगन चढ़ देखो िा साक्षात3 ।।6।। राधास्वामी परखी और परखात ।।7।।

।। िब्द आठवाूँ ।। गुरु करो मेरर की दृजष्ट दास पल पल दुख पावत । मैं आरत करूूँ बनाय रोग सब री घट िावत ।।1।। जनि औगुर् देखूं आय मनसर मन में पछतावत । क्यों कर करूूँ पुकार काल अब बहु भरमावत ।।2।। काम क्रोध अजत ज़ो िीव इन में झख मारत5 । राधास्वामी लेओ बचाय रहूं मैं अजत घबरावत ।।3।। सुजनये दीनदयाल तुम्रें मैं टेर9 सुनावत । तुम को समरथ िान, कहूं यर ददण बुझावत ।।4।। खोलो प्रेम दुआर, नरीं मोसर कमण बरावत । िब्द मासर दृढ़ करो, रहूं जछन जछन गुन गावत ।।5।। रजसक7 रहूं धुन मासर, और कछु नासर सुरावत । दुख पाये मैं बहुत, नीच मन करा मनावत ।।6।। कै से करूूँ पुकार, िब्द में नरीं लगावत । आि बने तो बने, बहुरर यर दांव न पावत ।।7।।

1. बन्धन, ररश्ता । 2. परख । 6. पुकार । 7. रसीला ।

3. प्रत्यक्ष ।

4. उपद्रव ।

5. अबस ररता रै ।

270

सार बचन

बचन 33

मैं हूं दीन अधीन, ईषाण, बहुत िरावत । मेटो कलर1 अपार, कारे को जनत्त बढावत ।।8।। तुमरीं करो सराय, मोर कु छ नसर बसावत2 । डरत रहूं कदन रात, काल से िान जछपावत ।।9।। मैं जनत करूूँ पुकार, ख़्याल तुम क्यों नसर लावत । ममण न िानूूँ नेक, मौि तुम करा करावत ।।10।। करूँ लग कहूूँ िनाय, नेक मन बस नसर आवत । सदा ररी तुम साथ, तौऊ तुम क्यों न बचावत ।।11।। अचरि भारी रोत, समझ में नेक न आवत । गुरु जबन रक्षक नासर, करें सब िरी करावत ।।12।। कौन कमण मैं ककये, जनत्त यर भुगतूं आफ़त । रार पड़ी अब द्वार, बहुरर मैं तुमसर मनावत ।।13।। िस तस दीिै दान, और कोई जचत न समावत । राधास्वामी नाम, परर आठों अब गावत ।।14।। ।। िब्द नावाूँ ।। सतगुरू मेरी सुनो पुकार दुरमत मेरी दूर जनकारो मोसर भौिल पार उतारो तुम जबन अब कोइ न सरारो मैं कपटी कु रटल तुम्रारो मैं दीन दुखी अजत भारो मैं आरत करूूँ तुम्रारी अब जमला सरारा भारी घट भेद नाद समझाया

1. जवघ्न ।

2. बस चलता रै ।

। । । । । । । । ।

मैं टेरत3 बारम्बार ।।1।। मुझे करलो चरन अधारो ।।2।। मेरी पड़ी नाव मूँझदारो ।।3।। अपना कर मुझे सम्रारो ।।4।। तुम दाता अपर अपारो ।।5।। िब चारो तब जनस्तारो ।।6।। तन मन धन तुम पर वारी ।।7।। मैं नीच अिान अनाड़ी ।।8।। मन बैरी स्वाद न पाया ।।9।।

3. प्राथणना करती हूूँ ।

बचन 33

फ़याणद और पुकार

271

दुख सुख में बहु भरमाया । िग मान बड़ाई चारा ।।10।। उल्टूं मैं इसको क्यों कर । जबन दया तुम्रारी सतगुरू ।।11।। अब खैंचो राधास्वामी मन को । मैं जवनय सुनाऊं तुमको ।।12।। ।। िब्द दसवाूँ ।। तुम धुर से चल कर आये िल्दी से काि सूँवारो मैं आतुर2 तुम्रें पुकारूं मेरा िीवन मूर अधारा3 अब मुिा4 नाम िमाओ मन सूरत अधर चढ़ाओ भौसागर वार न पारा रै जमथ्या झूठ पसारा सतगुरू जबन धोख न िाई या ते तुम सरना ताकूूँ जबन मेरर ितन सब थाके बल पौरूष मोर न चाले जबनती अब करूूँ बनाई मैं दीन अधीन तुम्रारी कु छ करो कदलासा मेरी परकाि करो घट भाना तुम ति अब ककस पै िाऊूँ िब चारो तब री देना मैं द्वारे पड़ी तुम्रारे मन आतुर दुख न सरारे

1. जवलंब, देर ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

अब क्यों ऐसी ढील1 लगाये ।।1।। तुम दाता देर न धारो ।।2।। जचत में कोइ और न धारूं ।।3।। िस सीपी स्वाूँत जनरारा ।।4।। मेरे िी की आस पुराओ ।।5।। अब के मेरी खेप जनबारो ।।6।। डू बे सब उसकी धारा ।।7।। धोखे को सच सा धारा ।।8।। जबन िब्द सुरत भरमाई ।।9।। सोवत मैं क्यों कर िागूूँ ।।10।। मैं कर कर बहु जवजध त्यागे ।।11।। मैं पड़ी काल िंिाले ।।12।। तुम सतगुरू करो सराई ।।13।। तुम जबन अब कौन सम्रारी ।।14।। भरमों की पड़ी अूँधरे ी ।।15।। जमटे भमण जतजमर अज्ञाना ।।16।। मैं कर कर तुम्रें सुनाऊूँ ।।17।। तुम जबन मोसर ककससे लेना ।।18।। धीरि धर रहूं सम्रारे ।।19।। उठ बारं बार पुकारे ।।20।।

2. दुखी, घबराई हुई ।

3. असली सरारा ।

4. मोती ।

272

मैं घर यर अब तुम मैं

सार बचन

सरन दयाल तुम्रारी तुम्ररे कमी न कोई भी सब तुम्ररे राथा करूँ लग करूूँ पुकारी दाता दीन दयाला आरत कीन्र अधारी

। । । । । ।

बचन 33

कर िल्दी लो जनस्तारी ।।21।। कसर भाग ओछ1 मेरा रोई ।।22।। तुम चारो करो सनाथा ।।23।। मैं रार रार अब रारी ।।24।। राधास्वामी करो जनराला ।।25।। तुम राधास्वामी सब पर भारी ।।26।।

।। िब्द गायाररवाूँ ।। माूँगूूँ इक गुरु से दाना । मन साथ सदा भरमाना । सुतण चढ़े सुने धुन ताना । सब छू टे बान कु बाना2 । अब कर दो नाम कदवाना । कोइ करे न मेरी राना । कल3 धारा मुझे न बराना । मन रो गया बहुत जनमाना4 ।

घट िब्द देव पजरचाना ।।1।। कर ककरपा कमण छु ड़ाना ।।2।। मन मारो कमण नसाना ।।3।। सत िब्द जमले दृढ़ थाना ।।4।। मैं ताकूूँ िब्द जनिाना ।।5।। मोसर तुम पर बल बल िाना ।।6।। मोसर देना िब्द रठकाना ।।7।। अब राधास्वामी चरन समाना ।।8।।

।। िब्द बाररावाूँ ।। मैं जलखूं गुरु को पाती । मन कीन्री बहु उतपाती ।।1।। मेरी धड़के जछन जछन छाती । नरीं धीरि बहु दुख पाती ।।2।। जवरर अजगन मोसर जनत्त िलाती । मैं पल पल गुरु गुन गाती ।।3।। मेरे ददण उठा बहु भाूँजत । मैं ककस को वर्ण सुनाती ।।4।। अब छोड़ी कु ल और ज़ाती । गुरु चरन सुरत मेरी राती5 ।।5।। मैं रहूं लगन जबच माती6 । अब सुरत गगन को िाती ।।6।। व्राूँ िब्द अमीरस खाती । गुरु प्रेम जरये में लाती ।।7।। दिणन जबन रोय न िान्ती । उलटी कफर तन में आती ।।8।। 1. छोटा । 2. बुरी आदत । 3. काल की । रर्शषत, मरव, मसत । 6. मतवाली ।

4. दीन अधीन ।

5. रत हुई,

बचन 33

फ़याणद और पुकार

कोई सुने ना मेरी बाती । मैं रोती कदन और राती । गुरु करो दया की दाती । मन आवे मेरे राथी । मेरे लगी प्रेम की काती3 । अब रर दम उमंग िगाती । मारूूँ अब माया ताती5 । अब छू टी सकल भ्ांती6 । अब काटूूँ कमण सनाती8 । गुरु को सब भेद िनाती । कस मानसरोवर न्राती । िुग बूँधे िो गुरु के साथी । गुरु चरन सदा परसाती । मन चादर नाम रूँ गाती । िन्म मरर् दुख दूर कराती । राधास्वामी सरन पराती9 ।

273

मैं रहूं सदा घबराती ।।9।। मन मारे बहु जवजध लाती ।।10।। तौ टले काल की घाती ।।11।। तौ मारे ससर1 को राथी2 ।।12।। जररदे में धीर न लाती ।।13।। मैं देखूूँ गुरु कराूँती4 ।।14।। गुरु मूरत जचत में ध्याती ।।15।। मैं पाई नाम दराूँती7 ।।16।। गुरु जबन क्यों और मनाती ।।17।। मैं पाये दुख बहु भाूँती ।।18।। मैं उलटी धार बराती ।।19।। तौ ममण सभी दरसाती ।।20।। मैं सुरत पतंग उड़ाती ।।21।। घट भीतर नाद बिाती ।।22।। ममता में सकल खपाती ।।23।। राधास्वामी दास कराती ।।24।।

।। िब्द तेररवाूँ ।। गुरु मोसर दीिे अपना धाम मैं तो जनकाम भमण बस ररता ना िानूूँ क्या पाप कमाये कै सी करूूँ ज़ोर नसर चाले रे सतगुरू अब दया जवचारो ना सुतण चढ़े न मन ठररावे संत मता ऊूँचा सुन पकड़ा

।। टेक ।। । तुम दयाल लो मोको थाम ।।1।। । गरे न सूरत नाम ।।2।। । मन नसर पावे दृढ़ जवश्राम ।।3।। । मैं दुख में रहूं आठों िाम ।।4।। । िब्द मरातम नसर पजतयाम10 ।।5।। । क्यों नसर संत करे मेरी साम11 ।।6।।

1. काल । 2. मन । 3. कटारी । 4. प्रकाि । 5. अजि रूप । 7. रूँजसया, काटने वाला । 8. पुराना । 9. प्राप्त हुई या पड़ी । करती । 11. सरायता ।

6. भरम । 10. प्रतीत

274

सार बचन

संत मते को लिा आवे अपनी मजत ले करूूँ पुकारा बार बार मैं जवनय पुकारूूँ राधास्वामी करें जनि नामी

। । । ।

बचन 33

िो मेरा नसर पूरन काम ।।7।। मौि तुम्रारी मैं नसर िाम1 ।।8।। िस िानो तस देओ जनि नाम ।।9।। ददी को चजरये आराम ।।10।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। सुरत मेरी धोय कमण मेरे खोय भमण मेरे सब ममण अब दे काल को धर प्रर् को धर श्रम5 यर कर मोर को ले िाल से अब राधास्वामी गुरु

डालो डालो टारो डारो मारो धारो डालो डारो काढ़ो न्यारो

। । । । । । । । । ।

नसर मरररों रोय ।।1।। मैं सरना तोय2 ।।2।। मैं दासी तोय ।।3।। तुम सतगुरू मोय3 ।।4।। तुम सूरा रोय ।।5।। नसर ररकत4 रोय ।।6।। िो बखजिि रोय ।।7।। तुम समरथ सोय ।।8।। लगी फाूँसी मोय ।।9।। अस लखा न कोय ।।10।।

।। िब्द पंद्ररवाूँ ।। गुरु मोसर अपना रूप कदखाओ यर तो रूप धरा तुम सगुर् ण रूप तुम्रारा अगम अपारा देखूूँ रूप मगन रोय बैठूँू यर भी रूप जपयारा मो को जबन इस रूप काि नसर रोई ता ते मजरमा भारी इसकी वर तो रूप सदा तुम धारो यर भी भेद सुना मैं तुम से

1. िानती ।

2. तुम्रारी ।

।। टेक ।। । िीव उबार कराओ ।।1।। । सोई अब दरसाओ ।।2।। । अभय दान कदलवाओ ।।3।। । इस री से उसको समझाओ ।।4।। । क्यों कर वारी लखाओ ।।5।। । पर वर भी लखवाओ ।।6।। । या ते िीव िगाओ ।।7।। । सुरत िब्द मारग जनत गाओ ।।8।।

3. मेरे ।

4. नुक़सान ।

5. श्रम, कोजिि ।

बचन 33

फ़याणद और पुकार

275

िब्द रूप िो रूप तुम्रारा । वा में भी अब सुरत पठाओ ।।9।। डरता रहूं मौत और दुख से । जनभणय कर अब मोसर छु ड़ाओ 10।। दीनदयाल िीव जरतकारी । राधास्वामी काि बनाओ ।।11।। ।। िब्द सोलरवाूँ ।। देख प्यारे मैं समझाऊूँ वर तो रूप लखे नसर कोई करनी करो मार मन डालो सुरत चढ़ाय गगन पर धाओ सत्त पुरूष का रूप कदखाऊूँ ता के आगे राधास्वामी धीरि धरो करो सतसंगत वर तो रूप कदखा कर छोड़ूूँ तुम्ररी सचता मैं मन धारी संिय छोड़ करो दृढ़ प्रीती यर करनी मैं आप कराऊूँ राधास्वामी करत सुनाई

। । । । । । । । । । । ।

रूप रमारा न्यारा ।।1।। िब लग देउूँ न सरारा ।।2।। इन्द्री रोक दुआरा ।।3।। सुन्न जिखर के पारा ।।4।। अलख अगम दर सारा ।।5।। वर जनि रूप रमारा ।।6।। मेरर दया से लेउूँ सुधारा ।।7।। तुम िल्दी क्यों करो पुकारा ।।8।। तुम असचत रर धरो जपयारा ।।9।। और परतीत सूँवारा ।।10।। और पहुचाऊूँ धुर दरबारा ।।11।। िब िब िैसी मौि जवचारा ।।12।।

।। िब्द सिरवाूँ ।। सुरत की आि लगा दे तारी । गगन चढ़ पीऊूँ अमृत धारी ।।1।। िब्द धुन उठती क़रारी1 । नाम सुन तन मन जलया पखारी2 ।। गुरु का रूप जनरार जनरारी । मैं कककर अधम अनाड़ी3 ।।3।। तुम सतगुरू पजतत उधारी । तुम्ररी गजत तुमसर जवचारी ।।4।। मैं जछन जछन पल पल जवषय अरारी । तुम ककरपा अमृत धार बरा री ।।5।। अब लीिै मोसर जनस्तारी । घट दीिै नाम सम्रारी ।।6।। मैं भूला भूल फूँ सारी । तुम काढ़ो मोसर जनकारी ।।7।। मैं दास दासन पजनरारी । तुम चरन िाऊूँ बजलरारी ।।8।।

1. तेज़ ।

2. धोया ।

3. मूढ़ ।

276

सार बचन

अब मारग देव उघाड़ी1 मेरा कोई नसर अपना री क्या क्या कहूं बर्ण सुना री इन्द्री मोसर जनत्त सता री रोगन में सदा जगरसा2 री कस जनकसूूँ कौन उबारी जबन िब्द बहुत भरमा री इन भमणन ररा भरमा री राधास्वामी चरन दुलारी

। । । । । । । । ।

बचन 33

मेंरा मन करो िांत सुखारी ।।9।। मेरे तुम रो मैं भी तुम्रारी ।।10।। मन िैसे नाच नचा री ।।11।। भोगन की चार बढ़ा री ।।12।। भव कू प पड़ा गररा री ।।13।। सुतण हुई न िब्द जपयारी ।।14।। िल पत्थर िगत पुिारी ।।15।। तुम जमल अब कीन सुधारी ।।16।। अब नाम देवो कर न्यारी ।।17।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।। घट का पट खोल कदखाओ ।। टेक ।। यर मन िूझ िूझ कर रारा । लगे न एक उपाओ ।।1।। तुम समरत्थ करा नसर तुम्ररे । क्यों एती देर लगाओ ।।2।। मैं दुख सुख में खाऊूँ झकोले3 । क्यों न पड़ा मेरा अब तक दाओ ।।3।। अब री दया करो मेरे दाता । मन और सूरत गगन चढ़ाओ ।।4।। मन तो दुष्ट जवरर नसर लावे । प्रेम प्रीत का दान कदवाओ ।।5।। यर तो सुख झूठे री चारे । सच्चे की परतीत न लाओ ।।6।। भोग जबलास िगत के माूँगे । सुरत िब्द का रस नसर पाओ ।।7।। क्योंकर कहुं ककस जवजध समझाऊूँ । गुरु का बचन न ररदे4 समाओ ।।8।। इस मन की कु छ घढ़त अनोखी । िब्द मासर कु छ प्रेम न भाओ ।।9।। कै से बचे पचे चौरासी । यर नसर चढ़ता गुरु की नाओ ।।10।। संसारी के धक्के खावे । कफर िमपुर में जपटता िाओ ।।11।। ऐसे दुक्ख सरेगा बहुतक । अब नसर माने गया भुलाओ ।।12।। सब घट में गुरु तुमरीं प्रेरक । मुझ दुजखया को क्यों न बुलाओ ।।13।।

1. खोल ।

2. फं सा ।

3. झटका ।

4. हृदय ।

बचन 33

फ़याणद और पुकार

277

तुम जबन और न कोई मेरा । चार लोक में तुमसर कदखाओ ।।14।। अब तो दया करो राधास्वामी । िैसे बने तैसे घाट चढ़ाओ ।।15।। ।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। सतगुरू से करूूँ पुकारी । िीवन का रोय उधारी । मैं मौि करूूँ कफर भारी । मैं ररखूूँ खेल जनरारी । मैं राखूं पक्ष तुम्रारी । मैं बालक सरन अधारी । िो मौि न रो यर न्यारी । घट भीतर रोय क़रारी1 । दोउ में से एक सुधारी । मैं राज़ी रज़ा तुम्रारी ।

संतन मत कीिे िारी ।।1।। मैं देखूं यरी बरारी ।।2।। सब आरत करें तुम्रारी ।।3।। मानो यर अज़ण रमारी ।।4।। अब कीिे दया जवचारी ।।5।। मैं करूूँ बीनती भारी ।।6।। तो फे रो सुरत रमारी ।।7।। िब्दारस करे अरारी ।।8।। िो दोनों करो दया री ।।9।। मैं राधास्वामी गोद पड़ा री ।।10।।

।। िब्द बीसवाूँ ।। लगाओ मेरी नइया सतगुरू पार । तुम जबन नारीं को ककढ़यार2 । सरेली मत तू मन में रार । चढ़ाऊूँ सूरत उलटी धार । गुरु को धर ले जरये मूँझार । तरं गें उठतीं बारम्बार । मेरर से पहुंची दसवें द्वार ।

मैं बरी िात िग धार ।।1।। लगादो डू बी खेप ककनार ।।2।। कदखाऊूँ िग का वार और पार ।।3।। िब्द संग खेप उतारूूँ पार ।।4।। नाम धुन घट में सुन झनकार ।।5।। भूँवर िरूँ पड़ते बहुत अपार ।।6।। राधास्वामी दीन्रा पार उतार ।।7।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। दिणन की प्यास घनेरी3 । जचत तपन िग भोग रोग सम दीखें । सतसंग में सुरत

1. जस्थर ।

2. जनकालने वाला ।

3. भारी ।

समाई ।।1।। लगाई ।।2।।

278

सार बचन

गजत अगम तुम्रारी समझी गुरूमुखता बन नसर पड़ती तुम गुप्त ररो िीवन से जबन ककरपा सतगुरू पूरे अब तरसूूँ तड़पूूँ बहु जवजध रो समरथ दाता सब के मैं कै से देखूूँ तुम को घट का पट खोलो प्यारे तुम चारो तो जछन में कर दो अब दरस कदखादो िल्दी अब दया जवचारो ऐसी तुम जबन कोई और न िानूं यर आरत अद्भुत गाई राधास्वामी करत सुनाई

। । । । । । । । । । । । । ।

बचन 33

पर दरस जबन जतरपत नसर आई ।।3।। जपर कै से प्रत्यक्ष पाई ।।4।। संग सब के दूर न भाई ।।5।। जनि रूप न तुम कदखलाई ।।6।। तुम जनकट न रोत रसाई1 ।।7।। मुझ को भी खैंच बुलाई ।।8।। कोई ितन न अब बन आई ।।9।। यर बात न कु छ करठनाई ।।10।। नसर िन्म िन्म भटकाई ।।11।। मैं रहूं जनत्त मुरझाई ।।12।। मैं रहूं चरन लौ लाई ।।13।। तुमरीं से रहुं जलपटाई ।।14।। सूरत मेरी िब्द समाई ।।15।। मैं दासन दास कराई ।।16।।

।। िब्द बाईसवाूँ ।। सोचत ररी री बेचन ै , रै न कदन बहु पछतानी । मेरी लगी न प्रीत संग िबद, करन मेरी सभी करानी ।।1।। झुरत रहूं मन मासर, कौन से करूूँ बखानी । सुननरार नसर सुन,े करो मेरी करा बसानी ।।2।। मौि जबना क्या रोय, मौि की सार न िानी । सबर न आवे जचत्त, ददण में रै न जबरानी2 ।।3।। कदवस करूूँ फ़याणद, गुरु मेरे अन्तरिामी । अपनी चूक जवचार, रहूं मैं अजत घबरानी ।।4।। दीना नाथ दयाल, सुनो िल्दी मेरी बानी ।

1. पहुूँच ।

2. बीती ।

बचन 33

फ़याणद और पुकार

279

चरन पकड़ रठ करूूँ, मेरर कर देवो दानी ।।5।। मैं तो अिान अभाग, कु रटल मोसर सब िग िानी । िो अपना कर जलया, लाि अब तुम्रें समानी ।।6।। राधास्वामी कर ररे, यर अचरि बानी । सौदा पूरा जमले, रोय नसर तेरी रानी ।।7।। ।। िब्द तेईसवाूँ ।। धीरि धरो बचन गुरु गरो दूर न िानो सतगुरू पास सागर मेरर दया की मौि खेल जखलावें बाल समान रक्षक िब्द िान और प्रान मन की घढ़त करावें दम दम भूल चूक बखिें3 वर जछन जछन यर मन कच्चा बूझ न िाने िगत िाल में ररा भुलाई या से सोग जवयोग सतावे गुरु कुं िी िो जबसरे नारीं खुले घाट तब सुन्न में देखे चढ़े अधर िब नाम समावे रतन खान घट में िब खुले मौि जनरारो सबर सम्रारो अमल अचल पकड़ो गुरु चरना यर संसार अजगन भंडार बड़े भाग जिन सतगुरू पाये

1. खूबसुरती, जबलास ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । ।

अमृत जपयो गगन चढ़ ररो ।।1।। जनस कदन करो चरन जवश्वास ।।2।। राधास्वामी दीन्री अचरि चोि1 ।3।। देखे मात ररख मन आन ।।4।। सो परलू छोड़े न जनदान ।।5।। वर रैं जमि वरी रैं रमदम2 ।।6।। संग ररें इसके वर जनस कदन ।।7।। उनकी गजत कै से पजरचाने ।।8।। सुरत िब्द में नरीं िमाई ।।9।। मन का घाट राथ नसर आवें ।।10।। घट ताला जछन में खुल िाई ।।11।। धुन की खबर रूप जनि पेखे ।।12।। रस पावे सूरत घर आवें ।।13।। दुक्ख ददण और दुमत ण टले ।।14।। भमण अूँधरे ा कौतुक4 टारो ।।15।। सुक्ख जपरापत दुख सब ररना ।।16।। सीतल िल सतगुरू आधार ।।17।। चौरासी से तुरत रटाये ।।18।।

2. गररे साथी ।

3. क्षमा करें ।

4. खेल ।

280

सार बचन

बचन 33

दुक्ख सुक्ख िो व्यापत रोई । जपछले कमण भोग रैं सोई ।।19।। कोइ कदन सोग रोग रट िावें । देर नसर िल्दी भुगतावें ।।20।। दोरा राधास्वामी रक्षक िीव के , िीव न िाने भेद । गुरु चररि1 िाने नरीं, ररे कमण के खेद2 ।।21।। खेद जमटे गुरु दिण से, और न कोई उपाय । सो दिणन िल्दी जमलें, बहुत करा मैं गाय ।।22।।

।। दो कजड़या छन्द ।। धीरि धरना, मत घबराना, जचत ठरराना, रूप समाना, जनत गुन गाना, नरीं बराना, यरी जनिाना, ज्यों पजपरा स्वाूँती आस ।।23।। घट में ररना, करीं न बरना, मन में सरना, रस री लेना, धीरि गरना, ममण न करना, ज्यों िल मीना, राधास्वामी पास ।।24।। आगे दया मेरर सतगुरू की । वरीं दरसावें वर अब धुर की ।।25।। राधास्वामी बचन सुनाया । िीवन की रठ से जलखवाया ।।26।। दोरा सुरत बसाओ िब्द में, िब्द गगन के मासर । जवरर बसाओ जरये में, जरया जतरकु टी मासर ।।1।। सुरत िब्द इक अंग कर, देखो जबमल बरार । मध्य सुखमना जतल बसे, जतल में िोत अकार ।।2।। िब्द स्वरूपी संग रैं, कभी न रोते दूर । धीरि रजखयो जचत्त में, दीखेगा सत नूर ।।3।। सत्तनाम सतपुरूष का, सत्तलोक में पूर ।

1. लीला ।

2. दुख ।

बचन 34

प्राजप्त मेरर व दया सतगुरू

281

सुरत चढ़ाओ िब्द में, दिणन राल हुज़ूर ।।4।। प्रेम प्रीत राचे ररो, कु मजत कु रटल से दूर । मन सूरत से िूझ कर, ररो िब्द में सूर ।।5।।

।। बचन चौंतीसवाूँ ।। प्राजप्त मेरर और दया सतगुरू की और पहुूँचना सुरत का चढ़ कर स्थानों पर और वर्णन मजरमा िब्द और सतगुरू की और भेद और लीला स्थानों की ।। िब्द परला ।। िीव जचतावन आये राधास्वामी । आरत उनकी करूूँ सिाई । अब िीवों को चजरए ऐसा । िोत िगावें प्रथम जवरर की । िब आरत अस लई सूँिोई2 । दीन्रा दीन िान उपदेिा । खोलो िाकर गगन ककवाड़ी । सेत कूँ वल कफर मन ठरराना । सेत श्याम दल दोनों छोड़े । बंकनाल का द्वारा सोई । मन और सुरत चेत कर िागी । अब पाया जवश्राम रठकाना । इतना धाम सुरत ने पाया ।

बार बार जतन करूं प्रनामी ।।1।। जचत्त िुद्ध कर थाल बनाई ।।2।। चल कर अपें तन मन सीसा ।।3।। बाती िोड़ें जबतण1 लगन की ।।4।। सतगुरू दया दृजष्ट कर िोई3 ।।5।। सुरत िब्द में करो प्रवेिा ।।6।। श्याम कं ि तब लागी ताड़ी ।।7।। प्रगटी िोत सुन्न में िाना ।।8।। तीसर दल में मन को िोड़े ।।9।। तन की सुजद्ध वराूँ गइ खोई ।।10।। जिकु टी िब्द गुरु में लागी ।।11।। आरत पूरन करी बखाना ।।12।। राधास्वामी चरन समाया ।।13।।

।। िब्द दूसरा ।। आि काि मेरे कीन्रें

1. धारा ।

2. तैयार का ।

पूरे । बािे

3. देखा ।

घट

में

अनरद

तूरे ।।1।।

282

सार बचन

बचन 34

भाग उदय आि हुये रमारे । राधास्वामी चरन सीस पर धारे ।।2।। जबमल आरती अब मैं गाऊूँ । परस चरन और बल बल िाऊूँ ।।3।। कोरट िन्म से धोखा खाया । जबन स्वामी िोनी भरमाया ।।4।। दाव पड़ा मेरा अब के ऐसा । राधास्वामी चरन आय मैं परसा ।।5।। अब पाया मैंने अिर जवलासा । क्या कहूं मजरमा अजधक हुलासा ।।6।। रोम रोम रग रग मेरी बोली । राधास्वामी राधास्वामी घुड ूँ ी1 खोली ।। रं ग रं गी मेरे तन की चोली2 । सुन सुन धुन अब भइ हुं अमोली ।।8।। घूम चली अब गगन मूँझारा । सुन्न जिखर का झाूँका द्वारा ।।9।। मानसरोवर ककये अश्नाना । सत्तनाम सू3ूँ लागा ध्याना ।।10।। मरासुन्न घाटी चढ़ भागी । सत्तपुरूष के चरनन लागी ।।11।। रंसन साथ करूूँ अब आरत । प्रेम मगन रोय दुक्ख बरावत ।।12।। अमी अरार ककया मैं भारी । जछन जछन दिणन पुरूष जनरारी ।।13।। िोभा बरनी न िाय अपारी । आरत पूरन रो गइ सारी ।।14।। धन धन धन धन क्या कहूं मजरमा । राधास्वामी राधास्वामी पलपल करना ।। ।। िब्द तीसरा ।। भइ रै सुरत मेरी आि सुराजगन स्वामी स्वामी लगी रै पुकारन गगन मूँडल अब लागा गिणन तन मन मैंने कीन्रा अपणन नाम थाल और बाती सुजमरन आरत फे र चढ़ाया जनि मन संत कृ पा पाया पद पूरन साफ़ ककया मैं मन का दपणन नूर जनरं िन िगत सम्रारन सुई द्वार नाका लगी झाूँकन

1. गाूँठ ।

2. परनने का कपड़ा ।

। । । । । । । । । ।

लगी रै सुरत मेरी जछन जछन िागन ।। राधा राधा नाम सम्रारन ।।2।। भाग गये मेरे घट से दुिन ण ।।3।। लगी सुरत अब सतगुरू चरनन ।।4।। िुजि िोत बाली मैं जनि तन ।।5।। गगन िाय सुनता अनरद धुन ।।6।। करम भरम डाले कर चूरन ।।7।। ममता माया कीन्री मदणन ।।8।। सरसकूँ वल चढ़ कीन्रा दिणन ।।9।। पाप अनंत हुयं िरं खंडन ।।10।।

3. से ।

बचन 34

प्राजप्त मेरर व दया सतगुरू

283

बंकनाल धस जिकु टी धावन । ओंकार धुन करी अब सरवन ।।11।। सुन्न मूँडल धुन पाई रारूँ ग । ककगरी सुनी और बािी सारूँ ग ।।12।। चन्द्र चौक िरूँ देखा चाूँदन । रंसन रूप धरे मन भावन ।।13।। मरासुन्न सागर चली न्रावन । सूरत जमली िाय मरा चेतन ।।14।। भूँवरगुफा द्वारा अजत पावन1 । धुन मुरली िरूँ बित सुरावन ।।15।। रंसन िोभा मन जबगसावन2 । सुन सुन धुन अजत प्रेम बढ़ावन ।।16।। चौक अगाध साध कर चालन । गइ सतपुर लगी पुरूष मनावन ।।17।। चौथा लोक जिलोकी कारन । संत बसें जिव करें उबारन ।।18।। अलख लोक इक पुरूष जबरािन । बैठे अचरि धार ससरासन ।।19।। जतस आगे कफर अगम जनरारन । अगम पुरूष कढग िोभा पावन ।।20।। लगी सुरत जनि भेद सुनावन । जमल गये राधास्वामी पजतत उधारन ।। अब अनाम का क्या करूूँ छानन3 । सैन करी यर अकर अपारन ।।22।। भई आरती अब सम्पूरन । छोड़ दई मैं सभी गुनावन4 ।।23।।

।। िब्द चौथा ।। संत दास की आरती, सुनो राधास्वामी । मैं अजत दीन अधीन हूं, सेवक जबन दामी ।।1।। िन्म िन्म सरनागती, तुम पुरूष अनामी । दया करो अपना करो, मुझे अन्तर िामी ।।2।। मैं अन-समझ अबूझ हूं, तुम चरन नमामी । तुम दाता पद अधर के , मैं दास जनकामी5 ।।3।। तुम्ररी गजत मजत को करे, तुम अगम रठकानी । मुझपर अस ककरपा करी, कु छ जमली जनिानी ।।4।। अनरद धुन बािे बिें, मन रोय अकामी । सरन गरी सतगुरू की, ति लाि लोकानी6 ।।5।।

1. पजवि । 2. प्रफु जल्लत करने वाली । 6. लोक यानी संसार की ।

3. जनर्णय ।

4. जचन्त ।

5. नीच ।

284

सार बचन

बचन 34

जिकु टी घाट सूरत चढ़ी, जमला पद जनरबानी । अब आगे का भेद यर, सुन अचरि बानी ।। 6 ।। मानसरोवर घाट, करें रंसा जबसरामी । धुन ककगरी और सारूँ गी, तामें सुरत समानी ।। 7 ।। यर पद रै जनि ब्रह्म का, लक्ष वाच प्रमानी । पारब्रह्म जतस ऊपरे , मरासुन्न पुरानी ।। 8 ।। भूँबरगुफा सतलोक को, सब संत बखानी । दो पद आगे और रैं, सो गुप्त करानी ।। 9 ।। तापर अगत1 अगाध रैं, जतस रूप न नामी । संत जबना नसर पाइये, यर भेद मुदामी2 ।।10।। अब आरत फे रन लगा, धर धीरि थाला । दृजष्ट िोड़ सन्मुख खड़ा, काटा िंिाला ।।11।। जवरर िोत िगमग हुई, और काल जनकाला । दया करी राधास्वामी, अगम कर कदया जनराला ।।12।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। सतगुरू संत जमले राधास्वामी अधर थाल और अक्षर िोती जनरत नाम धुन माला डारूूँ बस्तर भाव प्रीत पजरराऊूँ तन मन जनि मन भेंट चढ़ाऊूँ नओं द्वार पर नीत जबठाऊूँ मैं अजत दीन अधम तुम दासा दूर देि से आयो अबरी मो पर कृ पा दृजष्ट अब कीिै

1. जिसकी गजत न िानी िाय ।

। । । । । । । । ।

आरत करने की जवजध ठानी ।।1।। प्रेम सुरत से दृजष्ट परोती ।।2।। सीतल जतलक के सरी धारूूँ ।।3।। अमी मूर मय3 भोग धराऊूँ ।।4।। नौ जनजध नौछावर करवाऊूँ ।।5।। जचत्त िोड़ मुख आरत गाऊूँ ।।6।। आरत देखन उपिी आसा ।।7।। आरत करूूँ ररझाऊं गुरु री ।।8।। दीनबन्धु मोसर सरना लीिै ।।9।।

2. अजवनािी ।

3. सजरत ।

बचन 34

प्राजप्त मेरर व दया सतगुरू

भेद तुम्रारा अजत कर सारा पकड़ूं िब्द चढ़ाऊं सूरत सरसकं वल धस घंट बिाऊं जिकु टी घाट ककया िाय फे रा मन हुआ लीन सुरत अब चीन्री मानसरोवर पैठ अन्राई सुन्न जिखर िाय फे रा दीन्रा भंवरगुफा सोरं धुन सुनी सत्तलोक िाय बैठक पाई अलख अगम के पार अनामी मजरमा सतगुरू करं लग कहूं देओ प्रिाद रहूं चरनन में ।

285

। सुरत िब्द मारग मैं धारा ।।10।। । नभ जनरखूं और देखू मूरत ।।11।। । बंकनाल चढ़ िंख सुनाऊं ।।12।। । ओंकार धुन से मन घेरा ।।13।। । कान पड़ी धुन झीनी झीनी ।।14।। । जनमणल रोय जनमणल पद पाई ।।15।। । कोट मरासुन चढ़ कर लीन्रा ।।16।। । सत्तनाम धुन जछन जछन गुनी ।।17।। । सत्त सुरत सत िब्द समाई ।।18।। । यर भी पद दरसे मोसर स्वामी ।।19।। । आरत कर अब चुप रो रहूं ।।20।। गुन गाऊं पल पल जछन जछन में ।।21।।

।। िब्द छठा ।। गुरु पै डालूं तन मन वार गुरु ने नाम सुनाया सार सुरत से सेऊं नाम सम्रार दाजमनी दमकत नैन जनरार छाूँट धुन घंटा बारम्बार िंख धुन पकड़ो उसके पार गरो कफर व्राूँ से धुन ओंकार ररं ग धुन रोवत दसवें द्वार मानसर न्राओ जनमणल धार मरासुन पहुंची िोभा धार भूँवर चढ़ बैठी रोय हुजियार

1. साथ ।

। । । । । । । । । । ।

गुरु पै िाऊं अब बजलरार ।।1।। गुरु ने दीन्रा भेद अपार ।।2।। सरसदल मध्य रोत झनकार ।।3।। रूप का खुला िराूँ भंडार ।।4।। और धुन त्यागो सबरी झाड़ ।।5।। बंक का खोलो िाकर द्वार ।।6।। गिण जमरदंग रै जतस लार1 ।।7।। सुनो तुम िाकर अजत कर प्यार ।।8।। रंस हुइ छू टा काग अकार ।।9।। िब्द संग कीन्रा िाय जवरार ।।10।। नाम घर आई सुरत सुधार ।।11।।

286

सार बचन

बचन 34

अलख लख अगम करा दरबार । जमले कफर राधास्वामी यार ।।12।। ।। िब्द सातवाूँ ।। गुरु जमले अमी रस दाता । मैं अधम जवषय मद माता ।।1।। मैं नीच अिान अनाड़ी । सुतण कीन्री िब्द दुलारी ।।2।। गुरु मजरमा जछन जछन गाता । मन जनि मन चरन लगाता ।।3।। घट में जनत आरत करता । सुतण सरसकं वल में धरता ।।4।। िरं िोत िगाई न्यारी । जतल तोड़ा गगन जसरारी1 ।।5।। धुन अनरद िोर मचाई । सुखमन में सुरत िमाई ।।6।। गढ़ बंका तोड़ा भाई । धुन ओंकार सुन पाई ।।7।। आगे को जनरत बड़ाई । श्यामा ति सेत समाई ।।8।। चंदा िरूँ नूर कदखाई । रंसन की पाूँत िुड़ाई ।।9।। मुिा िरूँ चुन चुन खाई । आतम जनि अक्षर पाई ।।10।। सतगुरू कफर ककरपा धारी । हुइ मरासुन्न धस पारी ।।11।। अनरद धुन मुरली बािी । कढग भूँबरगुफा सुतण गािी ।।12।। बल सतगुरू सचखूँड आई । यरूँ आरत अद्भुत गाई ।।13।। चढ़ आगे अलख कदखाई । गुरु अगम पुरूष दरसाई ।।14।। लीला कु छ अचरि करी न िाई । ज्ञानी और िोगी भेद न पाई ।।15।। सब काल देि में गये भुलाई । द्याल देि यर संत िनाई ।।16।। राधास्वामी मरल अिब मैं पाया । रूप अगाध िाय नसर गाया ।।17।। ।। िब्द आठवाूँ ।। आि मैं देखूूँ घट में जतल को । लगी यर बजतयाूँ प्यारी कदल को ।।1।। गुरु अपनाय जछन जछन रमको । ममण मैं पाया चढ़ कर नभ को ।।2।। सरसदल चढ़ कर जमली अलख को । िोत लख पाई छोड़ खलक2 को ।। श्याम ति पहुंची सेत नगर को । चली और जनरखा जिकु टी घर को ।।4।।

1. गई ।

2. संसार ।

बचन 34

प्राजप्त मेरर व दया सतगुरू

बहुर चल जनरखा सरवर तट को मरासुन पा गइ गुप्त समझ को सत्त पद आगे जमला सुरत को अलख लख पहुंची िाय अगम को

। । । ।

287

खोल वर द्वारा फाड़ा पट1 को ।।5।। भूँवर चढ़ परखा पुरूष रमज़2 को ।।6।। सुनी धुन बीना धार जनरत को ।।7।। जमला अब राधास्वामी धाम अधम को ।।

।। िब्द नवाूँ ।। प्रेजमन दूर देि से आई जवरर जबमल अनुराग बढ़ाई ददण कदवानी रो मस्तानी गुरु की मजरमा अगम बखानी बचन बान गुरु अजधक चलाये करूँ लग कहूं खोट इस मन की अमृत सागर गुरु बतलाया िब्द जनिानी पूरन बानी मन बौराना जवषय कदवाना कौन सुने अब गुरु जबन मेरी सेवा करूूँ सरन दृढ़ पकड़ूूँ चले सुरत कफर िब्द सम्रारे सरसकूँ वल चढ़ जिकु टी आवे मरासुन्न से भूँवरगुफा तक अलख अगम का लगा रठकाना आरत करूं प्रेम से पूरी

। । । । । । । । । । । । । । । ।

चलो सतगुरू की राट ।।1।। लगो अब सतगुरू घाट ।।2।। खोलो गगन कपाट ।।3।। समझ समझ मुसक्यात ।।4।। गया कलेिा फाट ।।5।। चले न सतगुरू बाट ।।6।। यर जनत जवषया3 खात ।।7।। सो गुरु कीन्री दात ।।8।। उलटा भरमा िात ।।9।। उन जबन को कमण काट ।।10।। तौ धरें मेरर का राथ ।।11।। सुने सुन्न जवशयात4 ।।12।। गया दसम दर5 फाट ।।13।। सत्तनाम की पाई चाट ।।14।। राधास्वामी जनरखा ठाट ।।15।। काल बली की कीन्री घात ।।16।।

।। िब्द दसवाूँ ।। गुरु के दिणन करने, रम आये अब दूर से । आये अब दूर से, चल आये रम दूर से ।।1।।

1. पदाण ।

2. भेद ।

3. िरर ।

4. बानी ।

288

सार बचन

बचन 34

दीन अनाथ जभखारी दर के । हुए मंगता रम धुर घर के । गुरु जमलावें मूर1 से ।।2।। और आस जवश्वास न कोइ । चरन गुरु के पकड़े सोई । वरी छु ड़ावें कू ड़2 से ।।3।। सुरत डोर चरनन में लागी । जचत चंचलता सबरी भागी । वरी लगावें तूर3 से ।।4।। अनरद बािे बिें गगन में । सुरत चढ़ी और लागी धुन में । दृजष्ट जमली अब नूर से ।।5।। कायरता अब मन से भागी । सुरत िब्द में जछन जछन लागी । डरे काल गुरु सूर से ।।6।। सरसकूँ वल ति जिकु टी आई । सुन्न परे मरसुन्न चढ़ाई । भेद जमला गुरु पूर से ।।7।। भंवरगुफा का ताला तोड़ा । अमर नगर िा सूरत िोड़ा । जमल गई सत्त ज़हूर4 से ।।8।। अलख पुरूष की प्रीत समानी । अगम लोक िा बैठक ठानी । हुई पावन गुरु धूर से ।।9।। राधास्वामी चरन जनरारे । लगे मोसर अब अजतकर प्यारे । आरत करूूँ िऊर5 से ।।10।। ।। िब्द ग्याररवाूँ ।। करूं मैं िोत में सिाऊं कु लारल8 छोड़ नौ

आरत सजखयन साथ धारूं जवरर अनुराग आरत पाऊं लाभ रोत गगन में आि आई दसवें द्वार

1. मूल । 2. झूठा (पंिाबी बोली) । 5. जवजध । 6. सरसदल कूँ वल ।

। । । । ।

गहूूँ मैं थाली सम जचत राथ ।।1।। प्रेम सूँग गाऊं गुन और राग ।।2।। सुरत सखच पहुंची नभ6 ति नाभ7 ।। प्रेम संग भींिा सकल समाि ।।4।। खोजलया ताला सुन्न मूँझार ।।5।।

3. एक प्रकार का बािा ।

4. प्रकाि ।

बचन 34

प्राजप्त मेरर व दया सतगुरू

धुनों की रोत िराूँ झनकार मरासुन पहुंची सतगुरू लार सत्त पद पाया अधर अधार आगम का पाया वार और पार । सुरत अब िब्द लखा जनि सार साध संग कीन्रा ति अरंकार नाम धन पाया जवरर सम्रार कं वल चढ़ झाूँकी मन को मार चरन राधास्वामी जररदे धार हुए राधास्वामी आि दयार

289

। सुरत िरूँ देखत रूप अपार ।।6।। । भूँवर चढ़ खुला िब्द भंडार ।।7।। । अलख का जलया िाय दरबार ।।8।। ररी अब राधास्वामी रूप जनरार ।।9।। । कदया अब राधास्वामी भेद जवचार ।। । गुरु संग मेल ककया बहु प्यार ।।11।। । गुरु ने ममण लखाया पार ।।12।। । घाट अब देखा घट में सार ।।13।। । रहूं मैं दम दम चरन सम्रार ।।14।। । नाम रस पाया परखी धार ।।15।।

।। िब्द बाररवाूँ ।। गुरु आरत तू करले सिनी । कदवस गया आई अब रिनी1 ।।1।। मन को तोड़ चढ़ो जनि गगनी । सुरत िब्द रस पीवत मगनी ।।2।। जरसण रवस2 िग जछन जछन तिनी । नाम ओर3 अब पल पल भिनी4 ।।3।। िोत नाद संग दम दम रं गनी । लख जपया रूप बढ़ावत लगनी ।।4।। जबन गुरु कौन करावत करनी । सुख आकाि ति जगरती धरनी ।।5।। छू ट गया मेरा िन्म और मरनी । सतगुरू दया सुरत नभ भरनी ।।6।। अमर लोक अब लागी चढ़नी । धुन अपार जररदे में िरनी ।।7।। सत्तनाम सतगुरू हुइ सरनी । अलख अगम के चरनन पड़नी ।।8।। गुरु पद परस परख घट चलनी । माया ममता तृष्र्ा दलनी ।।9।। सुआ5 समान फूँ सा िग नलनी6 । गुरु प्रताप मेरे दुख टलनी ।।10।। राधास्वामी दृजष्ट करी मन गलनी । बाल समान गोद गुरु पलनी ।।11।। ।। िब्द तेररवाूँ ।। आओ री

जसमट रे सजखयो । मैं

1. रात । 2. तृष्र्ा और वासना । 6. तोता फं साने की कल ।

आरत

3. तरफ़ ।

करूूँ

गुरु

4. भागना ।

की ।।1।।

5. तोता ।

290

सार बचन

तुम िुड़ जमल बैठो गाओ । मैं तुम अपने संग लगा लो । मैं तुम प्रेम बढ़ा दो मेरा । मैं तुम करो मदद मेरी जमल कर । मैं तुम जबन मेरे बल नसर पौरूष । मैं तुम सेवक साूँचे गुरु की । मैं अब जबनती सुनो अधम की । मैं तुम ढंग जसखाओ रं ग से । मैं यर औसर जमले न कबरी । मैं अस औसर कफर न जमलेगा । मैं मन जवरर िोत अब बाली । मैं कर1 उमंग थाल ले आई । मैं सामाूँ सब हुई इकट्ठी । मैं सुतण श्याम कं ि चढ़ झाूँकी । मैं कफर बंकनाल धस आई । मैं जिकु टी की जसला2 रटाई । मैं सुन सेत रंस गजत पाई । मैं मरासुन्न जनरखती चाली । मैं मुरली धुन गुफा सम्रारी । मैं सचखंड बीन धुन िागी । मैं लख अलख पुरूष पद पागी । मैं अब अगम गम्म कर धाई । मैं राधास्वामी धाम कदखाई । मैं राधास्वामी सतगुरू पूरे । मैं

1. राथ ।

2. बज्र कपाट ।

बचन 34

आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत आरत

करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ करूूँ

गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु

की ।। 2 ।। की ।। 3 ।। की ।। 4 ।। की ।। 5 ।। की ।। 6 ।। की ।। 7 ।। की ।। 8 ।। की ।। 9 ।। की ।।10।। की ।।11।। की ।।12।। की ।।13।। की ।।14।। की ।।15।। की ।।16।। की ।।17।। की ।।18।। की ।।19।। की ।।20।। की ।।21।। की ।।22।। की ।।23।। की ।।24।। की ।।25।।

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुकामात

291

।। बचन पैतीसवाूँ ।। चढ़ कर पहुूँचना सुरत का आकाि में और भेद और लीला मुक़ामात की िो कक सुरत ने रास्ते में देखी रै ।। िब्द परला ।। करूूँ आरती नाना जवजध से । देखो स्वामी मेरर बेरद से ।।1।। घट का थाल जचत्त की बाती । नाम चेतना1 िोत िगाती ।।2।। भाव भजि का भोग धराऊूँ । सुरत दृजष्ट का िोग जमलाऊूँ ।।3।। बािे अनरद जनत्त बिाऊं । अमी धार रस अगम चुवाऊं ।।4।। रूप अनूपम गगन गंभीरा । झलकें िरं तरं मोती रीरा ।।5।। सूरि मंडल तेि उिारा । चन्द्र मंडली खोला द्वारा ।।6।। सुखमन नाली सुरत चढ़ाई । बंकनाल में सरि समाई ।।7।। धुन धधकार सुनी ओंकारा । लाल रं ग िरूँ सूर जनरारा ।।8।। जिकु टी घाट सुरत अब िागी । मानसरोवर चालन लागी ।।9।। सेत सेत मैदान अनूपा । रंसन का िरूँ देखा रूपा ।।10।। द्वादस सूर कला जिन के री । रंस रंस प्रजत ऐसी रेरी ।।11।। िोभा वरां की अगम अगाधा2 । नसर पावे कर िोग समाधा ।।12।। सुरत िोग से पहुंचे कोई । िा पर दया राधास्वामी की रोई ।।13।। आगे भेद गुप्त रम राखा । अजधकारी को कसर कसर भाखा ।।14।। यर आरत अब पूरर् रोई । स्वामी देओ प्रसादी मोरीं ।।15।। ।। िब्द दूसरा ।। लाई आरती दासी सि के । नाम राधास्वामी का जछन जछन भि के ।। सील जछमा की ओढ़ चदररया । काम क्रोध की छाूँट बदररया ।।2।।

1. याद करना ।

2. अथार ।

292

सार बचन

बचन 35

नाम थाल जलया राथ पसारी । जवरर अजि से िोत सूँवारी ।।3।। अमी सरोवर भर लइ झारी । राधास्वामी सन्मुख कर कर ढारी1 ।।4।। अगम लोक के सबिन लाई । राधास्वामी आगे भोग धराई ।।5।। अम्बर चीर जपताम्बर िोड़े । भेट ककये मैंने राथी घोड़े ।।6।। पाूँच तत्त्व गुन तीन जसपारी । मार जलये राघास्वामी की दुराई ।।7।। चढ़ी गगन पर कीन्रा धावा । सुरत जनरत दोउ िब्द समावा ।।8।। बंकनाल की तोप चलाई । जवरर अजि की जचनगी लाई ।।9।। धमणराय की फ़ौि भगाई । धूम धाम मैंने बहुत मचाई ।।10।। घंटा िंख मृदग ं बिाई । धौंसा2 धमक अिब धुन आई ।।11।। गगन मूँडल का घाटा3 रोका । काल मंडली खाया झोका ।।12।। अब चढ़ गई सुरत िजि4 द्वारे । तीन लोक के रो गइ पारे ।।13।। भान ककरन िरूँ झलकन लागी । अगम रूप अद्भुत िरूँ पागी ।।14।। खुली दृजष्ट िब जझरना झाूँकी । क्या कहूं िोभा अब मैं वराूँ की ।।15।। कोरटन भान रोम इक लागी । देख सुरत अचरि अस िागी ।।16।। सुरत िब्द का रो गया मेला । अगम पुरूष अब ररा अके ला ।।17।। एक दोय कु छ करा न िाई । ऐसे पद में िाय समाई ।।18।। आरत का मैं यर फल पाया । दुक्ख भमण सब दूर बराया ।।19।। परम िाूँजत में आन समानी । क्या कहूं मजरमा अचरि बानी ।।20।। अब कीिै स्वामी पूरन ककरपा । तन मन मैं सब तुम पर अरपा ।।21।। राधास्वामी राधास्वामी अब जनत गाऊं । और बचन कु छ याद न लाऊूँ ।। देओ प्रसाद अगमपुर धामी । भजि सजरत तुम चरन नमामी ।।23।। ।। िब्द तीसरा ।। रे सरेली आली मौि करी अब भारी । चरन कूँ वल प्रीतम जिया धारी ।। िगी रै िोत जरये भई उजियारी । गगन मंडल धुन भई धधकारी ।।2।।

1. जगराया ।

2. बड़ा नक़क़ारा ।

3. रास्ता ।

4. चन्द्रमा ।

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात

293

चाूँद सुरि दोउ झाूँक झरोका1 । सुखमन जखड़की द्वार िाय रोका ।।3।। प्रार् पवन िरूँ देती झोका2 । सुरत अड़ी अब माने न नेका ।।4।। िब्द गुरु िाय कीन्रा ठे का । जिकु टी मरल पर पग अब टेका ।।5।। मानसरोवर रंस समीपा । अक्षर का िरूँ रै जनि दीपा ।।6।। चार भान काजमन िराूँ क़ांती4 । द्वादस भान रंस की भाूँती ।।7।। लीला अद्भुत बरनी न िाई । देख देख मन िरूँ जबगसाई ।।8।। इकटक4 ठाढ़ी सुरत जनरारी । धुन ककगरी िरूँ सुनत सम्रारी ।।9।। मरासुन्न रोय सचखंड आई । अलख अगम में िाय समाई ।।10।। मौि अनामी क्या कहूं लेखा । बरना न िाय रूप िस देखा ।।11।। सोई रूप धारा राधास्वामी । िीव काि आये जनि धामी ।।12।। उन चरनन पर तन मन वारूूँ । छजब उनकी पल पल जरये धारूूँ ।।13।। आरत फे रूूँ प्रेम उमंग से । सुजध बुजध जबसरी अब मोरे तन से ।।14।। कल पाया मैं अगम अपारा । अमी अरार करूूँ जनत सारा ।।15।।

।। िब्द चौथा ।। प्रेम प्रीत घट भीतर आई जतल का थाल मदुमक ण 6 बाती चक्र फे र कर िोत िगाती सुन्न जनरख कफर धुन को सुनती तराूँ संखनी8 करें पुकारा िब्द कमान राथ लइ िबरी झुड ं झुड ं उनके सब भागे ब्रह्म देि िरूँ नाद अस्थाना नाग फाूँस डाली िरूँ काला कफर सतगुरू िब भये सराई

। । । । । । । । । ।

दास आरती नई बनाई ।।1।। सरसकूँ वल दल सन्मुख लाती ।।2।। सोत पोत7 लख ऊपर िाती ।।3।। घाटी बंक मध्य रोय धसती ।।4।। और डंकनी8 अमल9 पसारा ।।5।। धुन के बान छु टे बहु तबरी ।।6।। सुरत िब्द ले चाली आगे ।।7।। धुन अनंत िरूँ वेद रठकाना ।।8।। गरूड़ िब्द से काटा िाला ।।9।। जबघन अनेकन दूर बराई ।।10।।

1. सुराख । 2. धक्का । 3. रंसनी । 4. प्रकाि । 5. एक तरफ़ दृजष्ट कर । 6. आूँख की पुतली । 7. भंडार । 8. माया की िजियां । 9. हुक्म, दखल ।

294

सार बचन

चौक चाूँदनी घट के पारा मरासुन्न सागर गंभीरा भंवरगुफा िाय द्वारा खोला सुन सुन बानी सुरत समानी पद अनाम कु छ करा न िाई अब आरत यर पूरन करहूं

। । । । । ।

बचन 35

पारब्रह्म का रूप जनरारा ।।11।। पार ककया दई सतगुरू धीरा ।।12।। सत्तपुरूष तब बानी बोला ।।13।। अलख अगम की कफर गजत िानी ।।14।। देि संत का जनि कर पाई ।।15।। राधास्वामी जछन जछन भिहूं ।।16।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। पजश्चम1 ति पूरब2 चजल आया । सतगुरू आरत सामाूँ लाया ।।1।। दीन ग़रीबी भजि ससगारी । उमंग थाल जचत िोत संवारी ।।2।। गुरु दर3 झाूँक झुकाया माथा । घेर घार मन चरनन लाया ।।3।। आरत कीन्रीं जवजवध भाूँत से । िुद्ध ककया मन भमण भ्ांत से ।।4।। काल रटाया िुजि घात से । जनमणल ककया मन अष्ट धात4 से ।।5।। जगरा5 सुनी इक जिकु टी घाट से । सुरत चढ़ाई नैन बाट से ।।6।। दो दल6 मोड़े िब ठाट से । सुरत रटाई नऊराट7 से ।।7।। बज्र ककवाड़ दूसरा खोला । चारकं वलदल8 अन्दर मोड़ा ।।8।। खटदलकूँ वल9 सुन्न में फू ला । अष्टकूँ वलदल10 आगे झूला ।।9।। द्वादसदल11 मैं सुरत समानी । दल तेरर12 से जनकसी बानी ।।10।। दस दल मरासुन्न के नाके । झार झरोखा धस कर ताके ।।11।। संतोष दीप अमृत िरूँ जझरना । सुरत जनरत दोनों िरूँ भरना ।।12।। आगे सतमत ताला खोला । पुरूष सत्त बानी सत बोला ।।13।। लौ लागी गइ अलख अगम में । सुरत समानी अधर पदम में ।।14।। राधास्वामी नाम अनामी । बार बार चरनन परनामी ।।15।।

1. नीचे । 2. ऊपर । 3. दरवािा । 4. पाूँच तत्त्व और तीन गुन । 5. आवाज़ । 6. आंख । 7. नव द्वार । 8. तीसरा जतल । 9. तीसरे जतल के ऊपर का सुन्न । 10. सरसदल कं वल । 11. जिकु टी । 12. सुन्न ।

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुकामात

295

।। िब्द छठा ।। गुरु का अगम रूप मैं देखा बल सतगुरू अब काल पछाड़ा सरसकं वल का थाल सुधारा धुन घंटा और िंख बिाई दृजष्ट सम्रारत मन हुलसाना देख रूप सूरि परकािा पाया आतमपद1 अब भारी चंद्र चांदनी चौक जनरारा इकटक सुरत लगी वजर द्वारे राधास्वामी लीला धारी दया मेरर परिादी पाऊं

। । । । । । । । । । ।

सतगुरू सत्तनाम सम पेखा ।।1।। कमण काट सतगुरू पद धारा ।।2।। िोत रूप का दीपक बारा ।।3।। बंक नाल में दृजष्ट िमाई ।।4।। गगन मंडल धुन गरि जपछाना ।।5।। जमटा अूँधरे ा झलक अकािा ।।6।। ररं कार धुन िराूँ सम्रारी ।।7।। सेत सेत पद श्याम जनकारा ।।8।। रंस िूथ2 बहु लगे जपयारे ।।9।। आरत कर मन जबगसा भारी ।।10।। रि चरनन की सीस चढ़ाऊं ।।11।।

।। िब्द सातवाूँ ।। गुइयाूँ3 री लख मरम सुतण सरसकूँ वल पर िोती की झलक कफर बंकनाल चढ़ सुन्नी4 िाय सुन्न रंसन से प्यार राधास्वामी नाम

िनाऊूँ लाऊं झकाऊूँ आऊूँ समाऊूँ बढ़ाऊूँ िपाऊूँ

। । । । । । ।

अब भेद अगम घट गाऊूँ ।।1।। लख नैन सैन दरसाऊूँ ।।2।। श्यामा ति सेत जमलाऊूँ ।।3।। जिकु टी का राग सुनाऊूँ ।।4।। सरवर में धमक चढ़ाऊूँ ।।5।। ककगरी अब जनत्त बिाऊूँ ।।6।। नौका अब पार लगाऊूँ ।।7।।

।। िब्द आठवाूँ ।। बहुररया5 धूम मचावत आई । चढ़न को सतगुरू धाम ।।1।। भाव भजि और प्रेम कदवानी । आरत लीन्री साम6 ।।2।। करूर्ाजनजध7 गुरु फू ल जबरािें । करें भिन जनि नाम ।।3।।

1. सुन्न । 2. झुड ं । 3. सखी, सरेली । 4. सुरत । 5. दुलजरन । 6. सामान । 7. दया के भंडार ।

296

सार बचन

िोभा भारी कहूं सम्रारी तन मन की सुजध भूल गई रै सुरत चढ़ाय गगन पर आई रम सतगुरू अब पूरे पाये देखा जतल तोड़ा वर द्वारा िोत िगमगी थाली उस की घंटा िंख धूम अजत डारी नाली पार चढ़ी सुतण जवरजरन सुन्न जिखर िा डंका दीन्रा मरासुन्न पर गािन लागी बंसी अधर बिावन लागी सत्तलोक में िाय समानी अलख अगम का दिणन पाया आगे चली जमले राधास्वामी आरत कर कर मगन हुई अजत

। । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 35

जबसर गये सब काम ।।4।। पाया अब आराम ।।5।। कौन िपे मुख राम ।।6।। भेद कदया सतनाम ।।7।। जखला कं ि घट श्याम ।।8।। पाया काल मुक़ाम ।।9।। रार गया अब िाम1 ।।10।। बसी जतरकु टी ग्राम ।।11।। पाई सीतल छाम2 ।।12।। भूँवरगुफा कीन्रा जबसराम ।।13।। लजित कोरटन श्याम3 ।।14।। बीन बिे िराूँ आठों िाम ।।15।। िराूँ खास नसर आम ।।16।। अब पाया जवश्राम ।।17।। भागा लोभ और काम ।।18।।

।। िब्द नवाूँ ।। सुरत सरेली नभ पर खेली आगे पेली4 धुन सूँग मेली सुन्न में िाय धुन अक्षर पाई रूँसन साथ करे कं तूरल5 मरासुन्न चढ़ झांकी गुरु बल भूँवरगुफा पर आसन डारा सत्तलोक िा सतगुरू पाये अलख पुरूष का दिणन पाया

1. िमराय ।

2. छांर ।

। । । । । । । ।

परखी मूरत िोत जनिान ।।1।। िब्द गुरु का पाया ज्ञान ।।2।। लखा चंद्र अस्थान ।।3।। मान सरोवर कर अश्नान ।।4।। देखा अजत मैदान ।।5।। वरां लगाया ध्यान ।।6।। सुनी बीन धुन तान6 ।।7।। पहुंची अगम रठकान ।।8।।

3. कृ ष्र् ।

4. धसी । 5. जबलास । 6. स्वर, राग ।

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात

राधास्वामी धुन सुन पाई अब आरत ले सन्मुख आई प्रेम प्रीत चरनन में लागी करनी कथनी सब अब थाकी यर आरत मैं अचरि कीन्री यर गजत मजत रै सब से न्यारी रतन पदारथ घट में पाया

। । । । । । ।

297

करी बहुत पजरचान ।।9।। भेट चढ़ाई अपनी िान ।।10।। देख रूप मैं हुइ रैरान ।।11।। देखे री परमान1 ।।12।। बूझें जबरले संत सुिान ।।13।। ज्ञानी िोगी ममण न िान ।।14।। राधास्वामी दीन्रा दान ।।15।।

।। िब्द दसवाूँ ।। चल सुरत देख नभ गजलयाूँ । िरूँ सरस कूँ वल की पसरी2 कजलयाूँ ।। कली कली में देखीं नजलयाूँ । नली नली मध िोती बजलयाूँ ।।2।। िोत जनरं िन करते रजलयाूँ । नाना रं ग फु लवारी जखजलयाूँ ।।3।। देखत छजब मन िगत उगजलयाूँ । अनरद सुन धुन में सुतण जपजलयाूँ ।।4।। सुख अगाध क्या कहु िो जमजलयाूँ । कमण कला िराूँ जछन जछन िजलयाूँ ।। काम क्रोध आसा िरूँ दजलयाूँ । कफर आगे सूरत चढ़ चजलयाूँ ।।6।। बंक जतरकु टी सुखमन खुजलयाूँ । देख सूर िजि चमक जबिजलयाूँ ।।7।। सुन्न जिखर पर िाय सम्रजलयाूँ । सेत वर्ण िरूँ देख कूँ वजलयाूँ ।।8।। मरासुन्न मराकाल जमलजनयाूँ । भंवरगुफा पर सुरत चलजनयाूँ ।।9।। सत्तनाम िा ममण खुलजनयाूँ । अलख अगम पद जमले िुगजलयाूँ ।।10।। राधास्वामी चरन परस मल धुजलयाूँ । आनंद अजधक मोसर अब जमजलयाूँ ।। ।। िब्द ग्याररवाूँ ।। मेरे उर में भरे दुख साल मैं भरम ररी भौिाल कभी करत चाूँदना दीवा बाल कभी पाूँच तत्त्व के रं ग कदखाल

1. प्रतीत ।

2. फै ली ।

। । । ।

कब काटोगे दीन दयाल ।।1।। अचरि खेल कदखावत काल ।।2।। कभी घोर अूँधरे ा बाूँधत पाल5 ।।3।। कभी िब्द सुनावत डारत िाल ।।4।।

3. प्रवेि ककया ।

4. दोनों ।

5. परदा ।

298

सार बचन

बहु भटकावत िोग सम्राल मैं भी भटका बहुतक काल अब सतगुरू मोसर जमले दयाल रूप जनरारूूँ अिब जविाल जिकु टी घाट भेद दरसाल देखी नदी चमकती चाल बित िराूँ जछन जछन करताल मररम2 मरल न को अटकाल अब आरत गुरु करूूँ सम्राल सेत पदम चढ़ मारा काल

। । । । । । । । । ।

बचन 35

िोगी भूले ऐसे ख़्याल ।।5।। क्या क्या कहूं मैं अपना राल ।।6।। कुं िी दे खोला जतल ताल1।।7।। िब्द सुनूूँ चढ़ बंकीनाल ।।8।। सुन्न मूँडल अक्षर परसाल ।।9।। अचरि लररें करत बेराल ।।10।। सुरत सुरत काटा िंिाल ।।11।। सतगुरू दया सुफल हुइ घाल3 ।।12।। राधास्वामी ककया जनराल ।।13।। मूल जमली और छू टी डाल ।।14।।

।। िब्द बाररवाूँ ।। मन और सुरत चढ़ाओ जिकु टी । खेलो गगन और करो आरती ।।1।। जनरख नाम पोओ धुन मोती । गरि गरि झलके िरूँ िोती ।।2।। राथ झाड़ माया तब रोती । पाया ररं कार जनि गोती4 ।।3।। आसा मंसा यरां ररी सोती । घाट जिबेनी चढ़ मल धोती ।।4।। आलस नींद भूख सब खोती । ममता जवपता सब भई थोथी5 ।।5।। जछन जछन प्रेम मगन सुतण रोती । कूँ वलन की िराूँ माल परोती ।।6।। अब चली सत्तनाम पद न्योती6 । सुरत िब्द की क्यारी बोती ।।7।। धन धन राधास्वामी मेरे सतगुरू । जिन यर मौि कदखाई चढ़ कर ।।8।। क्या आरत मैं उनकी गाऊूँ । मजरमा अगम अगाध सुनाऊूँ ।।9।। करत करत मैं कभी न अघाऊूँ7 । उमूँग प्रेम अब करा समाऊूँ ।।10।। चरन कूँ वल जबन और न आसा । मन भूँवरा वसर करत जबलासा ।।11।। राधास्वामी राधास्वामी उठी धुन जरये से । सुरत सुराजगन अब जमली जपय से ।।12।।

1. ताला । 2. िानकर । 3. खेप । नेवता कदया रै । 7. संतष्ट ु रोऊूँ ।

4. गोि, िाजत ।

5. खाली । 6. जिसके

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुकामात

299

।। िब्द तेररवाूँ ।। चेत चली आि सुरत रं गीली राथ लगी अनरद धुन थैली द्वारा फोड़ गगन को पेली इड़ा थाल सपगला कर िोती बंकनाल धुन िंख बिाई बािे मृदग ूँ गाि तम्बूरा सूर रोयकर काल पछाड़ी फाूँद2 सपड और तोड़ा अंडा भर छलाूँग3 पहुंची सचखंडा अब अनाम पद िाय समानी राधास्वामी दया करी अब भारी

। । । । । । । । । । ।

छू ट गई मजत बुजध सब भैली ।।1।। रोय गई जनि घर की चेली ।।2।। अब सूरत भई अजत अलबेली1 ।।3।। करी आरती सुखमन सेती ।।4।। जिकु टी घाट ओं धुन पाई ।।5।। सुन सुन धुन अब मन भया सूरा ।।6।। माया चादर जछन में फाड़ी ।।7।। खंड खंड कीन्रा ब्रह्मंड़ा ।।8।। पायगई पद अमर अखंडा ।।9।। आरत की जवजध पूरी िानी ।।10।। मैं अपना पद जलया सम्रारी ।।11।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। चली सुरत अब गगन गली री । दली िाय मंसा सब मैली । भई सुरत सतनाम की चेली । अब पाया पद ऐसा रेली4 । पजरर लई गल धुन की सेली5 । अगम अटारी चढ़ी अके ली । अब याकी जवजध क्या कहूं खोली । यर आरत रै परम पुरूष की । सतगुरू ने अब दया जवचारी । िब्द अगम का सौदा कीन्रा । दीनदयाल दयाजनजध स्वामी ।

जमली िाय अब जपया से अली री ।।1।। सुन्न जिखर पर खुल खुल खेली ।।2।। गगन फोड़ अब आई सरेली ।।3।। जखलगई घट में पौद चमेली ।।4।। चरर् धूर सतगुरू अब ले ली ।।5।। िरूँ से यर रचना सब फै ली ।।6।। संत जबना को समझे बोली ।।7।। धुन पकड़ी मैं अधर अिण6 की ।।8।। पद अपना दे काल जबडारी7 ।।9।। सरन पड़ी सतगुरू पद लीन्रा ।।10।। काकढ़ जलया मोसर अंतरिामी ।।11।।

1. अनोखी । 2. लांघ करके । 3. उछाल । 4. रै आली, सखी । 5. गूलब ू न्द । 6. आकाि । 7. दूर ककया ।

300

सार बचन

बचन 35

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।। गगन नगर चढ़ आरत करहूं सुनूूँ गगन में अनरद रागा रूप अनूप देख जरये मारीं मथ मथ िब्द िोत परकािी दुन्द1 धुन्ध2 से जनकसी पारा अंस रंस सूँग कीन्र जबलासा सुरत सम्रार सुनी धुन बीना िोगी थके समाध लगाई यर संतन का भेद अमोला संतन की गजत अगम अपारा संत मौि से िा पर रेरा यर आरत करी उमूँग प्रेम से

। । । । । । । । । । । ।

सपड देि अब जछन जछन तिहूं ।।1।। बढ़त िाय पल पल अनुरागा ।।2।। करत न बने करा कहूं भाई ।।3।। सुन सुन धुन भई सुतण अजवनािी ।।4।। सत्तनाम का खोला द्वारा ।।5।। देखा िाय बंस परकािा ।।6।। कौन करे वर अचरि चीन्रा ।।7।। ज्ञानी ररे आतम गजत पाई ।।8।। जबना संत काहू नसर तोला ।।9।। क्योंकर कहूं वार नसर पारा ।।10।। कदया अमर पद जमट गया फे रा3 ।।11।। पाठ करूूँ और करूूँ नेम से ।।12।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।। आरत गाउूँ स्वामी सुरत चढ़ाऊूँ । श्याम4 सुन्दर पद जनरख जनरारूूँ । जबन्द्राबन5 मथरा6 पद लीन्रा । सुन्न मरावन जगरवर9 चीन्रा । धीरि थाल प्रेम की िोती । जवरर राग ति रं ग लगाऊूँ । रास मंडल घट लीला ठानी । घोर उठा अब गगन कुं ि में । मद और मोर रने और सूदे11 ।

गगन मंडल में धूम मचाऊूँ ।।1।। सेत पदम पर तन मन वारूूँ ।।2।। गोकु ल7 िीत काजलन्द्री8 छीना ।।3।। मरासुन्न िाय अमृत पीना ।।4।। धुन जववेक घट मोती पोती ।।5।। सुरत जनरत ले िब्द समाऊं ।।6।। कालीनाथ10 जनरख नभ िानी ।।7।। मगन हुई लख तेि पुि ं में ।।8।। मोरन मुरली बिी मन बोधे ।।9।।

1. दुई । 2. अन्धेरा । 3. िन्म मरन । 4. सरसदल कूँ वल । 6. मथकर, रकार पद । 7. इजन्द्रयों का देि । 8. काल की िजि । देि । 10. काल को दबा कर । 11. मार कर दूर भगाए ।

5. देर । 9. ऊूँचा

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात

गोपी धुन और िब्द ग्वाल जमल खेलत कू दत िोर मचावत पी पी चहुं कदि रोत पुकारा स्वामी स्वामी धुन अब िागी िगत वासना सब रम त्यागी कृ पा करो अस राधास्वामी मन को फे रो दीनदयाला । अब तो जलये िात मोसर खींचे भजि पौद िो तुमसर लगाई मेरा बस मन से नसर चाले पर तुम समरथ पुरूष अपारा अब आरत सब जवजध हुइ पूरी

301

। सुरत गूिरी आई चल चल ।।10।। । दजध आकाि सब मथ मथ लावत ।। । सुन सुन राधा मगन जवरारा ।।12।। । उमूँग जरये में जछन जछन लागी ।।13।। । मन हुआ मेरा सरि वैरागी ।।14।। । करत रहूं तुम चरन नमामी ।।15।। जछन जछन जनरखूं दरस जविाला ।।16।। । मानत नासर डार मोसर भींचे1 ।।17।। । मेरर दया से सींचो आई ।।18।। । बहुत लगाये इन िंिाले ।।19।। । काटोगे रम जनश्चय धारा ।।20।। । राधास्वामी रहूं रज़ूरी2 ।।21।।

।। िब्द सिरवाूँ ।।

जररदे में गुल3 पौद जखलानी प्रेम प्रीत का लगा बग़ीचा अमर बेल फै ली चहुंकदस में बािे अनरद बिे गगन में दृजष्ट खुली और झाूँकी पाई माजर्क मोती िब्द नाद के रतन िजड़त सुन्न चौकी पाई मानसरोवर रंस जबलासा रंस रंजसनी नाचें गावें अस वेदी रच लीला ठानी दुलरा दुलजरन दोऊ जबठाये व्यार भया और जनि घर आये

। । । । । । । । । । । ।

1. दबा जलये ।

3. फू ल ।

2. सन्मुख ।

मैं बुलबुल सम भई मस्तानी ।।1।। मन माली ताजर दम दम सींचा ।।2।। भीि ररी वर अमृत रस में ।।3।। सुध भूली तन उसी लगन में ।।4।। सूरत मूरत अगम कदखाई ।।5।। नीलम पन्ना धुन अगाध के ।।6।। देखत छजब मन गया भुलाई ।।7।। के ल करें जमल अिब तमािा ।।8।। तूर तूँबरू ा अजधक बिावें ।।9।। सुरत िब्द जमल बोले बानी ।।10।। भाूँवर फे रे दोउ गरठयाये ।।11।। सत्तपुरूष का दिणन पाये ।।12।।

302

सार बचन

बचन 35

अिर चौतरा अमर अटारी । सेि अिूनी1 लीन्र ससगारी ।।13।। अटल सुराग सुरत अब लीन्रा । पजत जमलाप अनरद धुन बीना ।।14।। राधास्वामी लगन धराई । तब रम ऐसा दुलरा पाई ।।15।। अिब तमािा नरीं जतरासा2 । मौि चौि3 िराूँ अजधक कदलसा ।।16।। ।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।। सुरत चढ़ी घट में अब दौड़ी आसा मनसा िग की छोड़ी सतसंग रं ग पाया भई बौरी श्याम नगर गइ परदा फोड़ी गगन नगर पहुंची सुन्दर4 में सरन5 जमला चौड़ अब सुन में रस पाया अब अगम अधर में घट घट भीतर यरी जबलासा िीव अचेत न चेते भाई िाके घर सुख का भंडारा राधास्वामी करत सुनाई

। । । । । । । । । । ।

सुन कर िब्द भई अब पौढ़ी ।।1।। लाि कान कु ल की सब तोड़ी ।।2।। सेत द्वार में जनि कर िोड़ी ।।3।। गगन खंड कफर सूरत मोड़ी ।।4।। जखला चमन अब जरये अन्दर में ।।5।। मगन हुई पहुंची जनि धुन में ।।6।। पाया चैन आय गइ घर में ।।7।। देख देख मैं पाऊूँ हुलासा ।।8।। घर सुख ति बन बन भटकाई ।।9।। क्यों भरमे कफरे दर दर6 मारा ।।10।। कर सतसंग बूझ तब पाई ।।11।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। घट झूम ररी अब सुरत रं गीली । उलट नैन जतल डाला पेली । सुन सुन धुन जनरते8 अलबेली । धोय धोय जनमणल हुई मैली । सुन्न सरोवर गई अके ली । मरासुन्न चढ़ अद्भुत खेली । िब्द पेड़ पर चढ़ी सुतण बेली10 ।

पट घूम गई सुन िब्द छबीली7 ।।1।। िोत िगमगी झलके रेली ।।2।। गगन मूँडल चढ़ जिकु टी ले ली ।।3।। छोड़ गई गुन तीन की फ़े ली9 ।।4।। जसमट गई धुन में नसर फै ली ।।5।। सत्तनाम धुन जछन में ले ली ।।6।। नाम अगम गल डाली सेली11 ।।7।।

1. िूनी से रजरत । 2. डर, तकलीफ़ । 3. जबलास । 4. सुन्न का द्वार । 5. चौक । 6. दरवाज़ा । 7. सुन्दर । 8. नाचे । 9. करतूत । 10. लता, बेल । 11. गुलब ू न्द ।

।। व्याशया िब्द सोलरवाूँ ।। कड़ी "

"

"

"

" "

"

"

1—आरती राधास्वमी दयाल की गाऊूँ और सुरत को गगन मंडल में चढ़ा कर धूम मचाऊूँ यानी जबलास करूूँ । 2—और चढ़ाई के वक़्त श्यामसुन्दर पद यानी श्याम पद िो अजत सुन्दर रै, और वरी सुन्न यानी चैतन्य मंडल का द्वारा रै, देखती चलूूँ और सेत पदम यानी सत्तलोक में पहुूँच कर सत्तपुरूष पर तन मन वारूूँ यानी इन दोनों से न्यारी रोकर पहुूँचूूँ । 3---जबन्द्राबन, यानी देर को िो जबन्द से बनी रै, मथ कर रकार पद यानी सुन्न में पहुूँची और गोकु ल यानी इजन्द्रयों के देि से न्यारी हुई, और काल की िजि छीन हुई यानी िाती ररी । 4---सुन्न मंडल की िो मराबन रै, और वरी ऊूँच देि यानी पराड़ रै, परचान करो, और वराूँ से आगे मरासुन्न में पहुूँच कर अमृत पान ककया । 5---धीरि का थाल लेकर यानी जचत्त में धीरि कर और प्रेम की िोत िगा कर यानी प्रेम तेज़ करके मोती रूप धुनों को घट में छांट कर पोती हुई यानी सुनती चली । 6---संसारी भोगों की जवरर छोड़ कर प्रेम बढ़ाऊूँ और सुरत और जनरत को िगा कर और संग लेकर िब्द में लगूूँ । 7---यानी घट में रास मंडल की लीला करके और काल अंग को नीचे डाल कर सुरत रास्ते की सैर करती हुई आकाि में पहुूँची । 8---आकाि में चढ़ कर आवाज़ गगन मंडल की सुनाई दी और वराूँ पहुूँच कर जिकु टी में िो स्वरूप रै, उसका दिणन करके खुि हुई । 9---और मद और मोर दूर हुए और जनरायत रसीली बांसरु ी की आवाज़ सुन कर मन को नया बोध हुआ ।

कड़ी

"

"

" "

" " " " " "

"

10---िब्द की धुनें और िब्द सुनती हुई िो कक गोपी और ग्वाल रै, सुरत गूिरी यानी इजन्द्रयों को िलाने वाली ऊपर को चढ़ती चली िाती रै । 11---गोपी और ग्वाल यानी मन इजन्द्रय वग़ैरा जबलास और िोर करते हुए और आकाि में से दजध यानी चैतन्य को समेटते और छांटते हुए मगन रो ररे रैं । 12---और सब चारों तरफ से अपने प्रीतम िब्द गुरु को पुकारते रै और राधा यानी सुरत चलने वाली इस जबलास को देख कर मगन रोती रै । 13---कफर स्वामी नाम की धुन सुनती हुई नवीन उमंग जररदे में बढ़ाती िाती रै । 14---यर कै कफ़यत देख कर िगत की चार और बासना जबलकु ल छोड़ दी और मन सरि में बैरागी यानी उदासीन रो गया । 15---रे राधास्वामी दयाल ऐसी री कृ पा मेरे ऊपर िारी रक्खो, और मैं तुम्रारी बंदना करती रहूूँ । 16---और मेरे मन को इस तौर से फे र दीजिये कक जछन-2 आप का दिणन करती रहूूँ । 17---इस वि तो वर मुझ को अपनी तरफ़ं खींचे जलये िाता रै और करना नरीं मानता और मुझ को तंग कर ररा रै । 18---भजि की पौद िो आपने लगाई रै उस को आप री अपनी मेरर और दया से सींचो यानी बढ़ाओ और तरक़्की दो । 19---क्योंकक मेरा मन मेरे क़ाबू में नरीं रै और बहुत संसारी िाल इसने फै ला रक्खा रै । 20---लेककन आप सत्तपुरूष राधास्वामी दयाल समथण रो और मुझको यक़ीन रै कक आप दया करके इस िंिाल को काटोगे । 21---अब यर आरती सम्पूर्ण हुई और मेरी अज़ण और मांग यरी रै कक राधास्वामी दयाल के सदा सन्मुख रहूूँ ।

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुक़मात

303

।। िब्द बीसवाूँ ।। सुरत मेरी हुई िब्द रस माती अन्य गुरु जिन भेद लखाया राग राजगनी बारर बािे जनरत सखी को अगुआ करके िब्द फोड़ सुन िब्द को िाती धुन धुन जसर अब काल पुकारे पहुंची िाय सत्त दरबारा रंसन साथ आरती गावे और नरीं कु छ करने िोगी

। । । । । । । । ।

गुरु मजरमा अब जछन जछन गाती ।।1।। धुन अन्तर मन राती1 ।।2।। यर सब तुच्छ बुझाती ।।3।। पल पल िब्द समाती ।।4।। माया ममता कू टत छाती ।।5।। यर सूरत मेरे राथ न आती ।।6।। अगम पुरूष का दिणन पाती ।।7।। अमी अरार सदा जनत खाती ।।8।। राधास्वामी के बल बल िाती ।।9।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। सुरत अब िाना जनि घर अपना । िगत अब भासा2 रमको सुपना । करा करे ले िप और तपना । संत भेद पर डाला ढकना । अब यामें कोइ कभी न अटकना । सुरत िब्द ले गगन सटकना4 । कमण धमण से दूर फटकना6 ।

िब्द खोि रम पाया अपना ।।1।। छू ट गया सब भरम कल्पना3 ।।2।। या में काल करे िग ठगना ।।3।। िीवन पाया बहुत भटकना ।।4।। िैसे बने तैसे मन को झटकना ।।5।। वराूँ िाय कर बहुत मटकना5 ।।6।। सतगुरू चरनन मासर जलपटना ।।7।।

।। िब्द बाईसवाूँ ।। गाओ री सखी िुड़ मंगल बानी घट में घाट द्वार मैं चीन्रा मन चढ़ चला छोड़ तन थाना तरां से सुरत चली रोय न्यारी क्या कहूं मजरमा बरनी न िाई

। । । । ।

आि जपया मेरे दीन्र जनिानी ।।1।। प्रेम पदारथ जछन जछन लीन्रा ।।2।। गगन मरल पर उमूँग समाना ।।3।। सुन्न नगर का िब्द पजरचाना ।।4।। काल कमण दोउ हुए कदवाना ।।5।।

1. लवलीन रो गया । 2. मालूम पड़ा । 3. खयाल । का इज़रार (प्रकट) करना । 6. अलग रो िाना ।

4. िाना ।

5. खुिी

304

सार बचन

मैं जपया की अपने सुध पाई भागा जतजमर हुआ उजियारा िोभा मरल कराूँ लग बरनूूँ आगे बाट चली नसर मेरी

। । । ।

बचन 35

घाट घाट पर िोत िगाई ।।6।। चौक चाूँदनी द्वार जनरारा ।।7।। ककगरे ककगरे सूर रज़ाराूँ ।।8।। राधास्वामी करो जनबेड़ा1 ।।9।।

।। िब्द तेईसवाूँ ।। प्रेम भरी मेरी घट की गगररया नौ दूतन मोसे धूम मचाई रंस मंडली फ़ौि लड़ाई माया आई मोजर लुभावन मैं भी उमूँग नवीन सम्रारी भागी माया छोड़ा देि सतगुरू पकड़ी अब मोरी बजरयां धुन सुनकर अब भई जनराल दया करी मोसर अंग लगाई कोरट िन्म की खबर िनाई प्रेम प्रीत का जमला खज़ाना िब्द पाय सत िब्द पुकारी । राधास्वामी अन्तरिामी

। छू ट गई मोसे मजलन नगररया ।।1।। । दसवें ने मोसर खैंच चढ़ाई ।।2।। । काल दुष्ट अब पीठ कदखाई ।।3।। । कजनक काजमनी बान छु ड़ावन ।।4।। । मार जलया दल उसका भारी ।।5।। । मैं सतगुरू को करूूँ आदेि2 ।।6।। । खैच चढ़ाया गगन मूँझइयां ।।7।। । सतपुरूष मेरे दीन दयाल ।।8।। । चरन ओट गर सरन समाई ।।9।। । िन्म मरन अब दूर नसाई ।।10।। । िीत रीत गुरु िब्द जपछाना ।।11।। चली सुरत और जनि धुन धारी ।।12।। । गजत उनकी कस करूूँ बखानी ।।13।।

।। िब्द चौबीसवाूँ ।।

िब्द धुन सुनी असमानी । सुरत मेरी हुई रैरानी ।।1।। जवरंग की चाल चलानी । मीन मत मारग िानी ।।2।। मकर के तार समानी । लक़ा ज्यों उलट कदखानी ।।3।। गगन ज्यों धरन जपछानी । नाम फु लवार जखलानी ।।4।। िोत में िोत जमलानी । िोत िोती संग आनी ।।5।।

1. जनपटारा ।

2. प्रर्ाम ।

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुकामात

सुरत मेरी नाम की सुन्न की सुरत अब खोल कस राधास्वामी

305

हुई जनमानी1 । िब्द की लखी हुई कदवानी । भेद अब करूूँ धुन दरसानी । मानसर ककये अजत ररखानी । गुप्त पद बात कहूं करानी । अकर की सैन2 अगम रठकानी । चलो अब रोय न

जनिानी ।।6।। बखानी ।।7।। अश्नानी ।।8।। जछपानी ।।9।। प्रमानी ।।10।। रानी ।।11।।

।। िब्द पच्चीसवाूँ ।। अली री मथूूँ जनि सपडा । प्रेम का धारूं झंडा । द्वार दल नाका खंडा । िगी वराूँ िोत प्रचंडा3 । बंकनल द्वार समानी । सुन्न धुन लीन्र सम्रारी । सुरत की लागी तारी । मरासुन जतजमर कदखाना । सत्त पद अपना िाना । राधा यर करत बखानी ।

राधास्वामी दीन्रा भेद अखंडा ।।1।। गगन में फोडू ूँ अंडा ।।2।। चढ़ी और जलया ब्रह्मंडा ।।3।। काल जसर मारा डंडा ।।4।। िब्द गुरु गरी जनिानी ।।5।। रंस संग कीन्री यारी ।।6।। िब्द घट हुइ उजियारी ।।7।। पार हुई भूँवर समाना ।।8।। अलख गजत अगम पजरचाना ।।9।। स्वामी जनि कीन्र प्रमानी ।।10।।

।। िब्द छब्बीसवाूँ ।। सुरत आि मगन भई धमणराय अब जसर धुन मारे िन्म मरन की िास नसाई अजवनािी पद अगम जनरारा अब की बार दाव रम पाया नदण5 बचाई िुग गुरु बाूँधा

1. दीन ।

2. इिारा ।

3. तेज़ ।

। । । । । ।

उन पाया िब्द का भेद ।।1।। जमटा कमण का खेद ।।2।। अरंमव े 4 मम डाला छेद ।।3।। अमर पदारथ जमला अभेद ।।4।। लाल भई पद पाया सेत ।।5।। सत्तपुरूष पद धरी उमेद ।।6।।

4. अरंकार ।

5. गोट ।

306

सार बचन

चढ़ी सुरत और सपड जछपाना खुला देि भंडार भजि का मैं अजत दीन दुखी िन्मन की धन्य धन्य अब भाग रमारा गुरु ककरपा और साध की संगत मूल जमला और भूल जमटाई राधास्वामी खेल कदखाया अब क्या कहूं करन में नारीं

। । । । । । । ।

बचन 35

गरी िब्द की टेक ।।7।। सतगुरू दाता जछन जछन देत ।।8।। भूल गई दुख सब सुख लेत ।।9।। जनभ गइ अब के मेरी खेप ।।10।। सोया मनुवाूँ िागा चेत ।।11।। पाया बीि वृक्ष नापैद1 ।।12।। रैरत रैरत रैरत रेत ।।13।। अचरि भारी अद्भुत नेत ।।14।।

।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।। सुखमन िाय मन हुलसाना चाूँद सूयण दोउ सम कर राखे अब सुन धुन रोत नफ़ीरी3 तब सुन धुन अजत ररखानी मैं आरत कीन्रा सािा थाल सोसील4 धराया तन भीतर आरत फे री अंबर6 का चीर पजरराया दिणन कर जतरपत आई अब िन्म सुफल कर लीन्रा घट बािे अनरद तूरा अंतर हुई अिब सफ़ाई सुन्न और मरासुन देखा जनि भेद अधर रस पाई

। । । । । । । । । । । । । ।

सतगुरू संग कीन्र पयाना2 ।।1।। तब सतगुरू यों कर कर भाखे ।।2।। तेरी सुरत करूूँ मैं झूँझीरी ।।3।। मजरमा नसर िात बखानी ।।4।। सतगुरू घट मासर जबरािा ।।5।। सोमत5 की िोत िगाया ।।6।। मन लीन्रा चहुंकदि घेरी ।।7।। सतगुरू अचरि रूप कदखाया ।।8।। मन इन्द्री तराूँ िमाई ।।9।। आरत फल ऐसा चीन्रा ।।10।। पट खोला जनरख ज़हूरा ।।11।। गगन पर बिी बधाई ।।12।। धुर अगम लोक तक पेखा ।।13।। अस आरत राधास्वामी गाई ।।14।।

1. गुप्त, अप्राप्य िो पैदा न हुआ रो । 2. यािा । 3. िरनाई, बड़ी बांसरु ी । 4. िान्त स्वभाव । 5. सुमत । 6. आकाि यानी नूर ।

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात

307

।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।। मुरजलया बाि ररी सो मुरली गुरु मोसर सुनाई सपडा छोड़ अंड ति भागी पाया िब्द जमली रंसन से यर बंसी सतनाम बंस की भूँवरगुफा कढग सोरं बंसी इस मुरली का ममण पजरचानो गई सुरत खोला वर द्वारा सत्तपुरूष धुन बीन सुनाई

। । । । । । । । ।

कोइ सुने संत धर ध्यान ।।1।। लगे प्रेम के बान ।।2।। सुनी अधर में अपूबण तान ।।3।। खैंच चढ़ाई सुरत कमान ।।4।। ककया अिर घर अमृत पान ।।5।। रीझ ररी मैं सुन सुन कान ।।6।। जमली िब्द की खान ।।7।। पहुंची जनि अस्थान ।।8।। अद्भुत जिनकी िान ।।9।।

जिन जिन सुनी आन यर बंसी । दूर ककया सब मन का मान ।।10।। सुरत सम्रारत जनरत जनरारत । पाय गई अब नाम जनिान ।।11।। अलख अगम और राधास्वामी । खेल ररी अब उस मैदान ।।12।। ।। िब्द उनतीसवाूँ ।। बोल री राधा प्यारी बंसी तड़प ररी मैं कारन तोरे जबरर बान की वषाण कीन्री हुई दीवानी जमली जनिानी खान पान तन सुध जबसराई सुन सुन धुन अब सूर भई रै राधास्वामी देस कदखाना

। । । । । । ।

क्यों तरसावत िान ।।1।। सतगुरू ममण लखाया आन ।।2।। खैंच जलये मन प्रान ।।3।। जलया ममण सब छान ।।4।। सुरत समानी तान ।।5।। मारा काल जनदान ।।6।। कौन िुगत से करूूँ बखान ।।7।।

।। िब्द तीसवाूँ ।। गुरु सुख

नाम रसायन1 दीन्रा । दाररद्र2 हुआ सब छीना ।।1।। रास3 जमली घट अंतर । धुन िब्द गरी गगनन्तर ।।2।।

1. कीजमया ।

2. जनधणनता ।

3. भंडार ।

308

सार बचन

सुखसागर ग़ोता मारा धुन नाम जमले िराूँ मोती श्रृग ं ार ककया सुतण अपना अनरद धुन अिपा िपना कामाकदक मन से तिना नभ द्वारा लागा फटने अमृत रस जमला अधर में लीला अब देखी न्यारी रतनन के भरे खज़ाने रीरों की खान खुलानी सूरत और चाूँद अनंता रं भा1 िराूँ गावे बानी सुतण देख देख ररषानी यर भेद सार बतलाया

। । । । । । । । । । । । । ।

बचन 35

भौसागर त्यागा भारा ।।3।। सूरत अब लजड़यां पोती ।।4।। पजत जमला छोड़ िग सुपना ।।5।। सुन सुन इस तन से रटना ।।6।। गुरु िब्द मासर जनत लगना ।।7।। लगी नींद भूख अब घटने ।।8।। पहुंची अब सुन्न जिखर में ।।9।। वर्णन सब करूूँ सम्रारी ।।10।। अमृत के कुं ड कदखाने ।।11।। लालन की देख जनिानी ।।12।। तारों का मंडल बंधता ।।13।। रंसन गजत अिब करानी ।।14।। मजरमा क्या करूूँ बखानी ।।15।। राधास्वामी सब कदखलाया ।।16।।

।। िब्द इकतीसवाूँ ।। मौि इक धारी सतगुरू आि । गगन में देखा अिब समाि । ससर ने मारा गउवन गाि । अमी रस चाखा छोड़ा नाि । प्रेम का दुलजरन पाया दाि3 । सुरत ने कीन्रा अपना काि । गुरु ने दीन्री इक आवाज़ । राधास्वामी सरन गरी मैं भाि ।

कहूं क्या करते आवे लाि ।।1।। सुरत ने पाया अद्भुत साि ।।2।। जमरग2 इक आया नभ में भाि ।।3।। सुरत गइ जिकु टी पाया राि ।।4।। सुन्न में दुलरा जमला अगाि ।।5।। िब्द संग कीन्रा आन समाि ।।6।। प्रेम की पाई बड़ी ररवाि ।।7।। काि सब रो गया पूरा आि ।।8।।

।। िब्द बत्तीसवाूँ ।। घूूँघट खोल चली सुतण दुलजरन । दुलरा िब्द जमला अब चढ़ सुन ।।1।।

1. अपसरा ।

2. जररन ।

3. दरेज़ ।

बचन 35

चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात

309

करत जबलास एक हुए जछन जछन । देख रूप अब रोत मगन मन ।।2।। लीला अद्भुत रोत न वर्णन । अिब अखाड़ा रचा सेत धुन ।।3।। काल पछाड़ा कीन्रा मरदन । माया ममता भागी जसर धुन ।।4।। चली सुरत और पहुंची मरासुन । सेि जबछाई िा चौथे खन1 ।।5।। सत्तपुरूष मुख सुनी बीन धुन । अलख अगम को कीन्रा परसन ।।6।। वरां से चली देख कु छ अगमन । राधास्वामी रूप जनरारत कदरगन ।।7।। देख देख फू ली अब जनि तन । कौन करे वर गजत राधास्वामी जबन ।। ।। िब्द तेंतीसवाूँ ।। सुरत अब चली ऐन2 में पैन3 । त्याग गुन तीनों और दस धैन5 । कहूं क्या घट की परखी सैन । खुले अब सुन में जररदे नैन । सुरत अब लागी वराूँ रस लेन । चाूँद और सूरि गरे दोउ गरन । राधास्वामी सूरत कीन्री परन7 ।

लखा िाय अचरि रूप अनैन4 ।।1।। अधर में पहुंची पाया चैन ।।2।। चुका अब काल करम का दैन6 ।।3।। समझ तब आये वराूँ के बैन ।।4।। िब्द की परखी अद्भुत करन ।।5।। सुखमना लागी सूरत ररन ।।6।। दई मोजर पदवी अब अजत मरन8 ।।

।। िब्द चौंतीसवाूँ ।। चमकन अब लागी घट में जबिली । यर घाट लखे कोइ सूरत जबरली ।। सतगुरू ने दृजष्ट करी, मुझ पर अब सगली9 । जतल तोड़ जलया, नभ पार चढ़ी, िराूँ छाय ररी, जनत बदली ।।1।। दृग झाूँक ररी, सुतण सूर भई, छेदा दल कदली । तन छोड़ चली, िड़ गाूँठ खुली । अब पाय गई, अपना गुरु अदली10 ।।2।। धुन सार जमली, सुन पार चली, पाया पद अमली11 । खोला सुन द्वारा, झाूँका घर न्यारा । डार लई चौंकी अब सूँदली ।।3।।

1. खण्ड । 7. चौड़ी ।

2. आूँख । 3. तेज़ । 4. अगोचर । 5. इजन्द्रय । 6. क़रज़ा । 8. बड़ी । 9. सब । 10. न्यायकार, मुजन्सफ़ । 11. जनमणल ।

310

सार बचन

बचन 35

बैठी घर िानी, धुन मासर समानी । देख रंसन मंडली । जपया अमृत प्याला, घट हुआ उिाला, छाूँट दई माया सब गदली ।।4।। पद आकद जमली, धुन साथ रली, बुजध दूर हुई कमली1 । मरासुन्न जमली, लख भूँवर गली, अब रोय गई सत पद अचली ।।5।। लख अलख सरी, घर अगम ररी । कु ल काल दली, कफर चाल चली, पा कूँ वल कली । राधास्वामी चरन पर िा मचली ।।6।।

।। िब्द पैंतीसवाूँ ।। चढ़ोरी घट देखो मौि भली नाम धुन अंतर खूब खुली चढ़ गगन जिखर बंक नली कफर वराूँ से पहुंची सुन्न गली सब आजध2 जबयाजध3 उपाजध4 टली मराकाल िाल भी िार चली सतनाम लखा दुख दूर टली राधास्वामी चरन में आन जरली

। । । । । । । ।

अमीरस पाओ आि अली ।।1।। खोइ िमा मानो फे र जमली ।।2।। जिकु टी में बैठी िब्द जपली ।।3।। सुन में िा रंसन साथ रली ।।4।। कमणन की रसरी अजगन िली ।।5।। सोरं धुन पकड़ी मूर5 जमली ।।6।। अलख अगम धुन जचत्त खली6 ।।7।। मजरमा उन पाई सुरत घुली ।।8।।

।। िब्द छत्तीसवाूँ ।। दजमजनयाूँ दमक ररी घट मासर । धुजबजनयाूँ7 धोय ररी मल नासर ।।1।। रं जगजनयाूँ रं ग दई चटकासर । कूँ वल की जखल गई कजलयाूँ आसर ।।2।। सुरजतया झूम ररी मुसक्यासर । तपजनयाूँ दूर भई जमली छासर ।।3।। गगजनयाूँ फोड़ गई धुन पासर । जनरजतयाूँ छान लई छककयासर ।।4।। ठगजनयाूँ नाि भई बल नासर । मगजनयाूँ मगन भई सुन मासर ।।5।। सरजनयाूँ सरन पई गुरु पाूँय । धुनन की धुजनयाूँ धुन धुन लाय ।।6।। गजवनयाूँ गान सुनावन िांय । करजनयाूँ राधास्वामी नाम सुनाय ।।7।।

1. पगली, (पंिाबी ज़बान) । 2. मन का दुख । 3. तन का दुख । 4. बारर का दुख यानी लड़ाई, झगड़ा, सरदी गरमी बग़ैरा । 5. िड़ । 6. चुभी । 7. सुरत ।

बचन 36

चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात

311

।। िब्द सैंतीसवाूँ ।। जखज़ां ति देखो मूल बरार । जखला िरूँ अिब सदा गुलज़ार1 । चमन िरूँ नूरी जखले अपार । उतरता अमी लखा रर बार । सुरंगी2 सरवर भरे अपार । मरल िरूँ देखे खुले दुवार । सैर यर देखी तन मन वार । मेरर से दूर हुए सब खार3 । गुरु जमल पहुंची गुरु दरबार ।

घूम चल देखो जतल का द्वार ।।1।। पाूँच रं ग देखे पाूँचों सार ।।2।। नूर की क्यारी जनमणल धार ।।3।। फू ल ररी अद्भुत िरूँ गुलनार ।।4।। सुरत और िब्द करें िरं प्यार ।।5।। नीलगूूँ ककगुरे लगे क़तार ।।6।। गुरु ने मौि कदखाई सार ।।7।। तिा कफर मन ने जनि अरंकार ।।8।। पड़ी अब राधास्वामी चरन मंझार ।।

।। िब्द अड़तीसवाूँ ।। सुतण पजनरारी सतगुरू प्यारी प्रेम डोर ले पनघट आई िब्द पजरचान अमीरस पागी नगर अिायब जमला डगर में पहूंची िाय अगमपुर नामी

। । । । ।

चली गगन के भरी गगररया देखा अद्भुत िराूँ छाूँर नसर दिण ककया राधास्वामी

कू प ।।1।। खूब ।।2।। रूप ।।3।। धूप ।।4।। भूप ।।5।।

।। बचन छत्तीसवाूँ ।। प्राजप्त िब्द और मुक़ामात की और वर्णन आनंद और जबलास और मजरमा सतगुरू की

।। िब्द परला ।। उमूँड ररी घट में घटा अपार चमक बीिली प्यार बढ़ावत िोजभत अधर घाट सुतण प्यारी देख ररी िरूँ कूँ वल ककयारी

1. चमन ।

2. खुि रं ग ।

।। टेक ।। । और । िब्द । फू ल

3. काूँटे ।

घंटा खुला ररी

झनकार ।।1।। भंडार ।।2।। फु लवार ।।3।।

312

सार बचन

यर अन्तरगत खेल न देखे । भटके कौन करे जबन राधास्वामी । यर संतन

बचन 36

बारम्बार ।।4।। मत सार ।।5।।

।। िब्द दूसरा ।। गोरी1 जखलीं श्याम दल कजलयां । मन भूँवर करत िरां रजलयां ।।1।। माया िरां अजधक लगावत छजलयां । जसद्ध िोगी बहुत जनगजलयां ।।2।। मेरी गुरु जमल बात सम्रजलयां । नाम बल सकल उपाजध टजलयां ।।3।। काल िरां डारत सब को दजलयां । मैं वरीं िब्द संग जमजलयां ।।4।। मैं चली गगन की गजलयां । घट खोली अंतर नजलयां ।।5।। कफर िब्द गुरु मैं जपजलयां । पहुंची सुन्न सेत कूँ वजलयां ।।6।। धुन सुनी अजधक जनर्शमजलयां । गरे राधास्वामी चरन अमजलयां2 ।।7।। ।। िब्द तीसरा ।। िब्द सूँग लगी सुरत की डोर । सुराजगन करे आरती िोड़ ।।1।। भौसागर में तुलरा3 बांधा । िम के िाल जलये सब तोड़ ।।2।। प्रेम प्रीत घट थाली धारी । िोत िगाई मन को मोड़ ।।3।। सुरत लगाई िब्द समाई । जनत जनत धुन में रोती पोढ़4 ।।4।। गगन द्वार धस ताला खोला । अनरद िब्द मचावत िोर ।।5।। करम भरम सब दूर जनकारे । सतगुरू घट में कीन्रा दौर5 ।।6।। िन्म िन्म का सोया मनुवां । िाग उठा सुन अनरद घोर ।।7।। सपिर छोड़ उड़ा पंखरू े । चला गगन की ओर ।।8।। जिकु टी िाय िब्द फल पाया । छू टा मोर और तोर ।।9।। सुन्न जिखर िा रै न जबरानी । उदय हुआ घट भोर ।।10।। सुन्न मरासुन भूँवरगुफा पर । सुरत चढ़ी सब नाके तोड़ ।।11।। सत्त अलख और अगम रठकाना । राधास्वामी धाम जमला जचत चोर ।।

1. सखी । 4. मज़बूत ।

2. जनमणल । 5. दौरा ।

3. तैरने को मल्लार लोग फू स का बनाते रै ।

बचन 36

प्राजप्त िब्द व मुक़ामात

313

।। िब्द चौथा ।। गुरु क्या अब नभ सत

चरन क्या ध्यान िब्द िब्द

धूर रम हुइयां सुख कहूं गुसइयां कमान सखचइयां जनिान धरइयां जमलाप करइयां

। । । । ।

तुम सुनो रमारी गुइयां ।।1।। जबन भाग नरीं कोइ पइयां ।।2।। सुतण बान चलावत गइयां ।।3।। फोड़ा और आगे चलइयां ।।4।। राधास्वामी धाम समइयां ।।5।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।। सतगुरू मैं पूरे पाये सूरत ने िब्द िगाये रंसन के िूथ कदखाये घाटी चढ़ बाटी धाये सतलोक सुरत को लाये सत रूप अिब दरसाये रंसन छजब क्या कहूं गाये राधास्वामी करत बुझाये

। । । । । । । ।

मन घाट जलया बदलाये ।।1।। घट मोती चुन चुन खाये ।।2।। जमल उन संग प्रेम लगाये ।।3।। कफर सुन्न जिखर चढ़ आये ।।4।। कफर िोनी बास न आये ।।5।। कोरटन रजव1 चंद्र लिाये ।।6।। षोड़स2 िजि3 भान4 कदखाये ।।7।। सुन सेवक अजत ररषाये ।।8।।

।। िब्द छठवां ।। सुरत अब घूम चली तन छोड़ जनदान । चरन गुरु आन अड़ी गजर नाम रठकान ।।1।। धुन बािे अनरद परख जनिान । सतगुरू दई कुं िी कु फ़ल5 खुलान ।।2।। सुन्न सागर झाूँकी कर अश्नान । िब्द घट िागा सुरत समान6 ।।3।। पोढ़ भइ नभ में कूँ वल जखलान । िोत लख पाई जतल परमान ।।4।। काल की कला थकी अब िान । लखी गुरु मूरत िब्द जपछान ।।5।। तीन गुन टारे छोड़ा थान7 । लखी मैं राधास्वामी अचरि िान ।।6।। ररी नरीं अब कु छ िग की कान । गरी अब राधास्वामी पूरन आन8 ।।7।।

1. सूरि । 2. सोलर । 3. चन्द्रमा । 7. ठरराव की िगर । 8. हुक्म ।

4. सूरि ।

5. ताला ।

6. समाई ।

314

सार बचन

बचन 36

।। िब्द सातवाूँ ।। मन अब जनत क्या तन गुरु सेत कफर

सोधो घट में िब्द संग । औसर पाया अिब ढंग । बचन सुनूूँ मैं जवरंग अंग1 । उपमा बरनूूँ साध संग । दूत हूए सब आप तंग । प्रेम समाना जमट तरं ग । जमला रट श्याम रं ग । जनरत िगाई उड़ जबरंग ।

ति काम क्रोध और मोर रं ग ।।1।। जमली देरी उत्तम गुरु संग ।।2।। अब रोत सफ़ाई जमटत ज़ंग2 ।।3।। जनमणलता पाई अंग अंग ।।4।। घट भीतर लागी रोने िंग3 ।।5।। गुन जबतण रटाई जचत अपंग4 ।।6।। धुन िब्द सुनाई भरम भंग ।।7।। राधास्वामी पाये काल दंग ।।8।।

।। िब्द आठवाूँ ।। मौि खोली चाूँद लोभ इन्द्री

करूूँ अब घट में बैठ राट अधर की पैंठ सुरि दोउ देखे रेठ8 मोर सब डारे मेट भोग गये सब ऐंठ ।

। देवर5 मारा मारा िेठ6 ।।1।। । धुन को सुना गई वराूँ पैठ7 ।।2।। । सीस ककया सतगुरू की भेट ।।3।। । पाप पुण्य सब सोये लेट ।।4।। राधास्वामी जमल गये भारी सेठ ।।5।।

।। िब्द नवाूँ ।। मेरे घट का कदया गुरु ताला खोल । क्या कहूं सुरत िब्द की तोल । अजधक हुलास जमला िरूँ चोल । का से कहूं यर भेद अमोल । िीव जवचारे डावांडोल । मैं जवरजरन मेरे जररदे रौल10 । मैं पकड़ी अब धुन की रोल । िो गुरु भाखें मुझ से क़ौल13 ।

मैं सुनत रहूं जनत बाला बोल ।।1।। पहुंची िाय नाम के कोल9 ।।2।। माया की सब जनकसी पोल ।।3।। जबन गुरु कोई न करता खोल ।।4।। जबन गुरु भरे न मन का डोल ।।5।। काल चढ़ाई मुझ पर रौल11 ।।6।। मार कदया सब माया ग़ोल12 ।।7।। मन मूरख जसर मारी धौल ।।8।।

1. ऊूँचे चढ़ कर । 2. काई । 3. युद्ध । 4. जनश्चल । 5. सपडी मन । 6. जनि मन । 7. ठरर गई । 8. नीचे । 9. पास । 10. डर, धड़का । 11. रौला, रल्ला । 12. समूर । 13. बचन ।

बचन 36

कौन बिे पाई अब

प्राजप्त िब्द व मुक़ामात

करे उस धुन का मोल सुरावन घट में ढोल यर धुन करी टटोल जनत झूलूूँ गगन सरडोल

। । । ।

315

उसके आगे सभी कु बोल ।।9।। सुन सुन बोझ जगरा हुइ रौल1 ।।10।। परर जलया अब प्रेम पटोल2 ।।11।। राधास्वामी अमी जपलाया झकझोल ।।

।। िब्द दसवाूँ ।। इन्द्री उलट लाओ अब तन में सुरत लगाओ िा उस धुन में िोत िगाय देख तू घन में अक्षर लखो िाय दरपन में भूँवरगुफा धुन पड़ी श्रवन में धुन सुन पहुंची अलख अगम में आरत करी गुरु चरनन में प्रेम प्रतीत लगी अब उन में तन मन सीस करूूँ अपणन मैं खोल न कहूं भेद सबजरन में आनूँद रोत सदा जछन जछन में ।

। मन को खैंच चढ़ाओ गगन में ।।1।। । सरसकूँ वल चढ़ देखो सुन्न में ।।2।। । बंकनाल चढ़ पहुंच जनगुणन में ।।3।। । मरासुन्न चढ़ ररो अमन3 में ।।4।। । देख रूप सतपुरूष अपन में ।।5।। । राधास्वामी रूप बसा नैनन में ।।6।। । पाय दया गुरु हुई मगन मैं ।।7।। । कहूं करा मजरमा चुन चुन मैं ।।8।। । चरन सरन गजर गाऊूँ गुन मैं ।।9।। । नरीं समावत बचन रसन4 मैं ।।10।। राधास्वामी संग अब करूूँ रमन5 मैं ।।11।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। सुरत को जमला खज़ाना नाम सुरत जनमानी हुई कदवानी उमंग उमंग कर नभ पर पहुंची आगे चली बंक पट खोला सुन्न द्वार दसद्वार समानी मरसुन्न से भूँवरगुफा पर अलख अगम से भेटा कीन्रा

1. रलकी । 6. प्याला ।

2. वस्त्र ।

।। टेक ।। । कदया गुरु अस िाम6 ।।1।। । जमला जनरं िन धाम ।।2।। । जमला गुरु का नाम ।।3।। । पाया अब आराम ।।4।। । िाय जमली सतनाम ।।5।। । राधास्वामी जमली मुक़ाम ।।6।।

3. बे-खटके ।

4. ज़बान, जिह्वा ।

5. जबलास ।

316

सार बचन

मनसा पूरन रोय सब आई उमंग बढ़ी सूरत में भारी राधास्वामी ममण लखाया समझ बूझ कर भाख सुनाया

। । । ।

बचन 36

ररा न कोई काम ।।7।। आरत करूूँ मुदाम1 ।।8।। यर सब का अंिाम2 ।।9।। अब सबको यर कदया पयाम3 ।।10।।

।। िब्द बाररवाूँ ।। उलट घट झाूँको गुरु प्यारी देख नभ मंडल उजियारी जखली िराूँ पचरं ग फु लवारी लाल और माजनक पन्ना री जझलजमल दाजमन चमका री सरसदल मध्य घनकारी सुना यर अनरद बािा री ठगे बहु िोगी मुजन भारी चढ़ो अब घाटी बंका री गगन में परखो ओंकारी लाल िरूँ सूरि दरसा री तख़्त िराूँ िारी जबछता री िोगेश्वर ध्यान धारा री व्यास यर मत चलाया री रार जबच ररा अटका री राम और कृ ष्र् औतारी थके िराूँ िेष नारद री वेद भी नेत करता री साध संग सुन्न में आ री

1. रमेिा ।

2. अन्त ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

नैन दोउ तानो रो न्यारी ।।1।। अनेकन चंद्र सूर तारी ।।2।। नदी िराूँ बरती इक भारी ।।3।। झालरें मोती लख झारी ।।4।। दमक िराूँ िोत लखी भारी ।।5।। धुनन की रोत झनकारी ।।6।। करे िराूँ माया ससगारी ।।7।। रटके मत आगे चल प्यारी ।।8।। जनरख सब जिकु टी लीला री ।।9।। गरि िस बादल गरिा री ।।10।। मृदग ं और मुर ं चंग बिता री ।।11।। जिलोकी नाथ बैठा री ।।12।। परे इस िुद्ध गाया री ।।13।। संत उस तान मारा री ।।14।। संत घर उस न पाया री ।।15।। वजिष्ठ और िंकराचारी ।।16।। ररे िराूँ सनक सारद री ।।17।। कूँ वलसुत4 जवष्र्ु जिव रारी ।।18।। संत िराूँ करत दसद्वारी ।।19।।

3. सूँदि े ा।

4. ब्रह्मा ।

बचन 36

प्राजप्त िब्द व मुक़ामात

अगम परकाि धुन न्यारी । मरासुन चल करो यारी । भूँवर पा िा चढ़ी पारी1 । क़दम वराूँ से उठाया री । अलख और अगम धाया री ।

317

रकार अक्षर परख सारी ।।20।। संत अब हुए अगुवा री ।।21।। सुनी धुन बांसरु ी कारी2 ।।22।। सत्त पद यरी पाया री ।।23।। आरती राधास्वामी गाया री ।।24।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

घट में अब िोर मचाय ररी ऊूँचे चढ़ी सुरत सुन घोरा िीते मुजि जमली सतगुरू से घट में खेल पसारा अद्भुत सुन सुन अचरि करती पजरले क्या क्या कहूं बुजद्ध की जवपता जवद्या बुजद्ध चतुरता बैरन जवद्या बुजद्ध चतुरता बैरन भजि पदारथ मजरमा िानी मरासुन्न और भूँवरगुफा की सत्तलोक सतपुरूष जपयारा अलख अगम और राधास्वामी

।। टेक ।। । प्रार् सपड से छू ट गई ।।1।। । क्या कहुं मजरमा चुप्प ररी ।।2।। । देखे री परतीत भई ।।3।। । बुजद्ध खराबा भुगत ररी ।।4।। । करनी प्रेम बराय दई ।।5।। । अरंकार में डू ब ररी ।।6।। । गुरु सेवा मन त्याग दई ।।7।। । सुरत चढ़ी और सुन्न गई ।।8।। । लीला अद्भुत कौन करी ।।9।। । रूप जनरारा मगन भई ।।10।। । उन को देखत मौन ररी ।।11।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। घट चमन जखला उजियारी सुतण नदी चली धधकारी धुन अनरद जनरत जनरारी3 मन पररा द्वार लगा री दे सील क्षमा की बाडी

1. पार ।

2. कारगर ।

। । । । ।

गुरु ज्ञान जमला अब भारी ।।1।। पहुंची िाय ससध सम्रारी ।।2।। घंटा िराूँ िंख बिा री ।।3।। तसकर4 सब दूर जनकारी ।।4।। सत की फु लवार जखला री ।।5।।

3. जनराली ।

4. चोर ।

318

सार बचन

धीरि का कू प खुदा री भजि रस प्रीत जपया री दल कूँ वल सरस फु लवारी नौबत िरूँ बिती न्यारी सुन्न में चढ़ धुन लइ सारी गइ मरासुन्न पद पारी सतनाम जमला पद चारी राधास्वामी चरन सम्रारी कर आरत हुइ गुरु प्यारी सुतण मारग दूर चला री ज्ञानी थक िोग थका री संतन मत ऊूँच जनकारी ब्रत तीरथ िगत पचा री जवद्या पढ़ मान अरारी भजि और प्रेम गया री घट में क्यों िाय चढ़ा री मनमुखता अिब सूँवारी राधास्वामी करत पुकारी इन से मोसर लेओ बचा री मैं राधास्वामी सरन पड़ा री

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

िल प्रेम सींच ररी क्यारी ।।6।। चढ़ गगन रौब फल खा री ।।7।। पचरं गी रं ग बरारी ।।8।। खुल खेली सुरत रमारी ।।9।। ककगरी गजत अगम जवचारी ।।10।। िराूँ बंसी बित करारी1 ।।11।। गजत अलख अगम धर धारी ।।12।। पाई गजत आि अपारी ।।13।। घर अिर अमर पाया री ।।14।। रद बेरद पार जसधारी ।।15।। श्रुजत जसमृत पार न पा री ।।16।। मानी जिन भाग बड़ा री ।।17।। िप तप में वृथा खपा री ।।18।। जतरपत नसर बुजद्ध जबगाड़ी ।।19।। दासातन अब न ररा री ।।20।। मन हुआ सुतत ं र2 भारी ।।21।। गुरूमुखता दूर जनकारी ।।22।। रे सतगुरू लेओ सम्रारी ।।23।। यर रूखे प्रेम न धारी ।।24।। तुम रक्षा करो रमारी ।।25।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।। सूरत सरकत पार, वार त्याग देरी तित । घट का घोर सुनाय, रात कदवस लागी ररत ।।1।। नाम अमोलक पाय, गगन जगरा गरिी चलत ।

1. तेज़ ।

2. खुद मुशतयार ।

बचन 36

बचन 36

प्राजप्त िब्द व मुकामात

319

धाम जलया सत िाय, पुरूष दिण पाई सुगत ।।2।। मेरे गृर अजत रं ग, बोलत मोर पपीररा । स्वाूँती बरसत अंग, मेघ बरस तन मन ररा ।।3।। ज्यों रररयावल भूजम, खोल दृजष्ट देखत रहूं । जबच जबच उठत तरं ग, मन तन सीतलता सहूं ।।4।। खोलत बज्र ककवाड़, सुरत िराूँ टक लावई । सतगुरू जलया सम्रार, सुरत िब्द संग न्रावई ।।5।। झूलत गगन सरडोल, सजखयाूँ जनकट झुलावरीं । मैं अब ककया ससगार, जपया ररझावत धावरी ।।6।। अब आरत घट धार, अन्तर पट खोलत चली । दीपक िोत सम्रार, सूर चाूँद गगना गली ।।7।। गावत राग मलार, धुन अनरद िोभा अजधक । रोत िराूँ झनकार, ढोल दमामा1 अजत धमक ।।8।। जबन सतगुरू परताप, यर लीला नरीं को लखे । देखग ें े जनि दास, पी पी अमृत जनत छके 2 ।।9।। पूरर् पद जवश्राम, सेत पदम पर िा चढ़ी । राधास्वामी नाम, गावत रै सनमुख खड़ी ।।10।। ।। िब्द सोलरवाूँ ।। गुमठ3 चढ़ी मन बरिती4 गुरु पासा5 अद्भुत जलया बोलत तूती6 अधर में देि जबराना छु ट गया खुला उड़े आकाि में मरल अिब गत चाूँदना

1. नक्कारा । 2. अघाये । 7. मन । 8. िरीर ।

। । । । । ।

काल अटक तुड़वाय ।।1।। गजत मजत करी न िाय ।।2।। तोता7 कदया रै िगाय ।।3।। सपिरा8 दूर पराय ।।4।। तूती संग जमलाय ।।5।। सूरि ना ठरराय ।।6।।

3. जिखर ।

4. रोकती ।

5. तरफ़ ।

6. धुन ।

320

सार बचन

धुन धधकार अनारदी लख जतरबेनी घाट को सुन समाजध िाको जमली अमी बषण बुूँकदयन झड़ी राधास्वामी चाख कर

। । । । ।

बचन 37

जबरले गुरूमुख पाय ।।7।। ता में पैठ अन्राय ।।8।। अनरद मासर समाय ।।9।। रजसया ररे लुभाय ।।10।। वर्णन ककया बनाय ।।11।।

।। बचन सैंतीसवाूँ ।। दिा सुरत और मन की और प्राजप्त िब्द की और िुकराना सतगुरू का ।। िब्द परला ।। गुरु ने अब दीन्रा भेद अगम का बल पाया अब जवरर मरम का वषणन लागा मेघ करम का तोड़ कदया सब िाल जनगम3 का फल पाया आि रम सम दम का फूूँ क कदया घर लाि िरम का ज्ञान ध्यान बाचक रम छोड़ा भजि भाव की मजरमा भारी सत्तनाम सतपुरूष अपारा सुरत िब्द मारग कोइ पावे सो मारग अब राधास्वामी गाई

। । । । । । । । । । ।

सुरत चली ति देि भरम का ।।1।। भटकन छू टा दैरो1 ररम2 का ।।2।। संिय भागा िनम मरन का ।।3।। सुख पाया अब रम दम दमका ।।4।। भूँबर हुआ मन सेत पदम का ।।5।। काटा फं दा नेम धरम का ।।6।। भजि भाव का पजरना िोड़ा ।।7।। िानेंगे कोइ संत जवचारी ।।8।। चौथे माजर करें दरबारा ।।9।। सो रंसा चढ़ लोक जसधावे ।।10।। कोइ कोइ प्रेम भजि से पाई ।।11।।

।। िब्द दूसरा ।। गुरु मारा बचन का बान । मेरा गया कलेिा छान ।।1।। मैं सुनी सुन्न की तान । मर गये काल के मान ।।2।। तन छू ट गया अजभमान । मैं करी िब्द पजरचान ।।3।।

1. मजन्दर ।

2. मक्का ।

3. वेद ।

बचन 37

प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरू

मुरदे के पड़ गई िान मुझे सतगुरू दीन्रा दान मेरी सुरत चढ़ी खरसान मैं ककया अमीरस पान क्या मजरमा करूूँ बखान मैं पाया नाम जनिान मेरा छू टा आवन िान िग कफरे भरमता खान कोइ करे न गुरु की कान अब करो िीव कल्यान

। । । । । । । । । ।

321

मेंरी करे न कोई रान ।।4।। मैं पहुंची अधर अमान ।।5।। मैं मारा काल जनदान ।।6।। घट खुली रतन की खान ।।7।। अचरि का खेल कदखान ।।8।। अब झूठा लगा िरान ।।9।। मुझे जमला िब्द परमान ।।10।। कोइ सुने न अनरद कान ।।11।। घर घेर जलया िैतान ।।12।। धरो राधास्वामी ध्यान ।।13।।

।। िब्द तीसरा ।। गुरु मोसर दीन्री अमृत रास सुरत अब चढ़ गई फोड़ अकाि िगत की छू टी सब री आस काल मोसर देखत करे िास दूर की वस्तु जमली मोसर पास गई अमरापुर ककया जनवास हुई मैं राधास्वामी चरनन दास

। । । । । । ।

बुझी मेरी िन्म िन्म की प्यास ।।1।। जमली िाय िब्द लखा परकाि ।।2।। गई अब तृष्र्ा बल हुआ नास ।।3।। कमण भी भागा छोड़ा बास ।।4।। छु टी तन मन से हुई जनरास ।।5।। गाउूँ गुरु मजरमा स्वाूँसो स्वाूँस ।।6।। ज्ञानी और िोगी खोदें घास ।।7।।

।। िब्द चौथा ।। घोर सुन रूप उन चली अब कमण का मेट मन

चढ़ी सुरत गगना पाया अब अपना गुरु पद सो लखना छू ट गया खपना कपट छु टा ठगना

। । । । ।

भेद लख हुई अिब िगत हुआ झूठा ज्यों काल पर पड़ा करठन सरि सुख जमला िब्द अमर पद जमला िुगन

मगना ।।1।। सुपना ।।2।। तपना ।।3।। तकना ।।4।। िुगना ।।5।।

322

सार बचन

बचन 37

टेक गुरु बाूँध ध्यान धरना । चरन गुरु पकड़ पड़ो सरना ।।6।। सरसदल कूँ वल िाय लगना । जिकु टी चढ़ो चाल पकना ।।7।। सुन्न में नरीं नैन झपना । मानलो राधास्वामी गुरु करना ।।8।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। नाल नभ तकी रोय न्यारी मन बैठा भोग जबसारी क्या कहूं जमले गुरु भारी मैं पाऊूँ िब्द रस सारी मन तन पर कफरती आरी तब दया करी गुरु न्यारी मैं चढ़ गई गगन अटारी धुन सुन कर बहुत पुकारी राधास्वामी चरन जनरारी

। । । । । । । । ।

सुरत को लगी अब जवरर करारी ।।1।। जिव छोड़ी कृ त1 संसारी ।।2।। उन भेद कदया पद चारी ।।3।। मेरे लगा ज़ख़्म अब कारी2 ।।4।। क्यों िीऊूँ िीवना रारी ।।5।। अब दीन्रा िब्द सम्रारी ।।6।। वराूँ खेलूूँ जनत्त जिकारी ।।7।। चढ़ भागी खोल ककवाड़ी ।।8।। लख पाया भेद अपारी ।।9।।

।। िब्द छठवां ।। गुरु की गजत अगम अपार सतगुरू मोसर अंग लगाया बैराजगन भइलो सतगुरू चरना सतगुरू मेरे दया जवचारी ब्रह्मंडी खेल कदखाया घट जतजमर पुराना नािा गुरु ऊपर बल बल िाऊूँ

। । । । । । ।

मैं कै से बरनूूँ पार ।।1।। सतगुरू मोसर नाम दृढ़ाया ।।2।। अनुराजगन भइलो नाम अनामा ।।3।। भौिल से पार उतारी ।।4।। अनरद धुन तार बिाया ।।5।। िब्द उिास ककया परकािा ।।6।। राधास्वामी नाम जधयाऊूँ ।।7।।

।। िब्द सातवाूँ ।। मैं मैं

भई अगम की दासी । मेरी सुरत िब्द ककया घट मंिन । मन रारा

1. करतूत ।

2. गररा ।

हुई अजवनासी ।।1।। डरा जनरं िन ।।2।।

बचन 37

प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरू

323

िोती अब चरन पखारे । संतन की ओट पुकारे ।।3।। गुरु दया अनोखी कीन्री । मोसर चरन सरन गजत दीन्री ।।4।। तन भीतर उलटी धाई । राधास्वामी हुए सराई ।।5।। ।। िब्द आठवाूँ ।। सुतण भरी अगम िल गगरी । मेरी प्रीत लगी अब जिगरी1 । मेरी दूर हुई ममता अब मगरी2 । गुरु करा िब्द िा पग4 री । माया की इज़्जज़त जबगड़ी ।

मैं देखी राधास्वामी तेरी नगरी ।।1।। मैं चढ़ी गगन की डगरी ।।2।। मैं पहुंची सतगुरू मग3 री ।।3।। रूँगता की उतरी पगड़ी ।।4।। राधास्वामी चरन तू तक री ।।5।।

।। िब्द नवाूँ ।। गुरु नाम रटूूँ अंग अंग से मैं रूँ गी प्रेम के रं ग से में छू टी िगत कु रूँ ग से मैं रटी नाम और नूँग से मेरा काि ककया गुरु ढूँग से मैं िीती काल जनरूँग5 से अब जनकसी िाल उचूँग6 से सुतण लगी िाय सोरं से

। । । । । । । ।

गुरु आरत करूूँ उमूँग दुख दूर हुए कदल तूँग मन िोजभत नाम सुरूँग मैं तरी आि गुरु संग मैं पहुंची चाल जवरूँग मैं जमली िाय ओअं सुरत साफ़ हुई कु ल ज़ंग7 राधास्वामी छु ड़ाया अरं

से ।।1।। से ।।2।। से ।।3।। से ।।4।। से ।।5।। से ।।6।। से ।।7।। से ।।8।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

गुरु चरन प्रीत मन रं गा मन मारा संिय भंगा अब जमटा काल का दंगा आरत अब सिूूँ अभंगा मेरी परखे न कोइ उमंगा

। । । । ।

1. अन्तरी । 2. माया । 3. रास्ता । 7. मैल । 8. अच्छा । 9. लाि ।

अब सब से हुआ असंगा ।।1।। जचत िुद्ध हुआ अब चंगा8 ।।2।। डर ररा न नाम और नंगा9 ।।3।। मेरे प्रेम भरा अंगा अंगा ।।4।। मैं पकड़ा सतगुरू संगा ।।5।।

4. जमल ।

5. मगर-मच्छ । 6. तरं गें ।

324

सार बचन

मैं भौिल पार उलंघा1 । मैं घट में न्राया गंगा । मन घोड़ा बाूँधा तंगा । सब मेटी जचत्त उचंगा । गुरु चरन जमला आलंबा6 । गुरु चरन प्रेम मैं मंगा7 ।

बचन 37

मेरी सुरत उड़ी िस चंगा2 ।।6।। मैं छोड़ा मन परसंगा3 ।।7।। अब जमट गइ ममता पंगा4 ।।8।। रौं5 िाली िस िोत पतंगा ।।9।। सतगुरू का सीखी ढंगा ।।10।। राधास्वामी दीन्र उतंगा ।।11।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। मन बजनयां बनत8 बनाई नैनन के पलड़े धारे नभ डंडी पकड़ धरा रे िराूँ िब्द जिन्स तोला रे गुरु कीन्री दात अपारे मेरी ररटया माल भरा रे मोसर बाूँट जमले द्वारे मेरे सतगुरू िार जपयारे राधास्वामी खरा करा रे

। । । । । । । । ।

घट भीतर तोल तुलाई ।।1।। सुरत जनरत डोर गरठया रे ।।2।। सुखमन का फुं दन लगा रे ।।3।। मैं पाया आि नफ़ा रे ।।4।। अस बजनि ककया िग आ रे ।।5।। मैं करूूँ यरी व्योपारे ।।6।। मैं तोलूूँ वस्तु सम्रारे ।।7।। मेरी साख बढ़ी सब रारे ।।8।। खोटा घट दूर जनकारे ।।9।।

।। िब्द बाररवाूँ ।। गुरु का मैं दामन पकड़ा तू मत कर मुझ से रगड़ा मैं मारा मन और पकड़ा मैं छोड़ा काया छकड़ा10 मैं मारा मन का मकड़ा अब कटा क्रोध का लकड़ा मैं देखा गगन दमकड़ा12

। । । । । । ।

छोड़ूूँ नसर अब तो िकड़ा ।।1।। मैं छोड़ा िग का झगड़ा ।।2।। मेरे गुरु ने ककया मोसर तकड़ा9 ।।3।। कफर कमण द्वार से जनकरा ।।4।। तब काल देख बहु अकड़ा11 ।।5।। और मरा लोभ का बकरा ।।6।। राधास्वामी नाम चमकड़ा ।।7।।

1. छलांग मार गया । 2. पतंग । 3. साथ । 4. लूँगड़ी । 5. अरंकार । 6. सरारा । 7. मांगा । 8. बनाव । 9. बलवान । 10. गाड़ी । 11. ऐंठा । 12. चमकीला ।

बचन 37

िब्द व िुकराना सतगुरू

325

।। िब्द तेररवाूँ ।। गुरु मोसर भेद कदया हुआ मन तन में अब खुला अब घाट अगम कदखाया राधास्वामी पद

पूरा सूरा नूरा मूरा

। । । ।

सुरत संग बािा घट लखूूँ मैं नभ चढ़ िजि रटाया काल करम जतयागा िगत लगा

तूरा ।।1।। सूरा ।।2।। दूरा ।।3।। कू ड़ा ।।4।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।। मैं सुनूं क्या जनत घट की । गुरु भेद कदया धुन में अब अटकी ।। अब सुरत चढ़ी पहुंची नभ सटकी । मेरी फू ट गई कमणन की मटकी ।।2।। कफर काम क्रोध डारे सब पटकी । सुतण सरसकूँ वल चढ़ झटकी1 ।।3।। मन माया धर धर झटकी2 । आसा और तृष्र्ा िग की पटकी ।।4।। गुरु खबर िनाई अंतर पट की । सुतण िग से जछन जछन रटकी ।।5।। गुरु की मजत धारी दुमत ण खटकी3 । सुतण मगन हुई धुन सुन सर4 तट5 की ।। मन खेली कला उलट ज्यों नटकी । राधास्वामी गाई गजत उलट पलट की।। ।। िब्द पंद्ररवाूँ ।। सोच ले प्यारी अस जमला िोग । गुरु दया करी सब जमटे रोग ।।1।। सुतण जमली िब्द से ति जवयोग । यर जमला भाग से सरि िोग ।।2।। गुरु जबन कब जमलता अस संिोग । अब करले जनस कदन िब्द भोग ।।3।। मन की मजत त्यागी गया सोग । राधास्वामी ककरपा करी िोग6 ।।4।। िो रोना था सो हुआ रोग । को सुने रमारी भूले लोग ।।5।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।। गुरु ने मोसर दीन्रा नाम सरी सतसंग करूूँ सार रस पीऊूँ गुरु की मजरमा करी न िावे जिस पर दृजष्ट पड़ी मेरे गुरु की 1. बढ़ाई । 6. लायक ।

2. जगराई ।

। । । ।

तृष्र्ा सकल दृढ़ कर नाम चरनन पकड़ सोई पार

3. अलग हुई ।

4. मानसरोवर ।

दरी ।।1।। गरी ।।2।। ररी ।।3।। गई ।।4।। 5. ककनारा ।

326

सार बचन

धारा िब्द चली जनत आवे काल टार मन मार जनकारा मैं प्यारी सतगुरू अपने की धर को छोड़ अधर चढ़ चाली काम क्रोध मद लोभ जबडारे धुर पद पहुंच िब्द संग पागी राधास्वामी नाम दीवानी

। । । । । । ।

बचन 37

कू ड़ा कमण बरी ।।5।। सरि सुराग दई ।।6।। सत्तनाम की लार लई ।।7।। सुरत रंसनी आि भई ।।8।। ममता खोय गई ।।9।। मान ईषाण सकल दरी ।।10।। अस्तुत कौन करी ।।11।।

।। िब्द सिरवाूँ ।। आले1 में देखा ताक़ िाला सेत दीप में श्याम ककवाड़ी घट में िाय गगन में पैठी चढ़ा अमल घट भीतर झूमी अद्भुत ख़्याल कदखाया गुरु ने चढ़ कर खोली सुन्दर जखड़की मूरख िीव िगत में भटकें सतगुरू के रम चरन पखारे तसबी4 माला कसबी डाला सतगुरू पूरे पाये रमने राधास्वामी गुरु रमारे काल िाल से तुरत जनकाला

।। टेक ।। । सो मैं खोला ताला ।।1।। । जपया अमीरस प्याला ।।2।। । भूमी2 भार जनकाला ।।3।। । मन मौिी का ककया जनवाला ।।4।। । झाूँका गगन जिवाला ।।5।। । पूिें ईंट कदवाला ।।6।। । सुन्न नगर में फे रें माला ।।7।। । रम तो दूर जनकाला ।।8।। । रम जनि नाम सम्राला ।।9।। । वे रैं दीन दयाला ।।10।। । कीन्रा मोसर जनराला ।।11।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।। सुरत ने िब्द गरा जनि सार । आि घट कु ल का हुआ उधार ।।1।। नाम का पाया रं ग अपार । िीव ने धरा रंस औतार ।।2।। दूध और पानी कीन्रा न्यार । दूध कफर पीया तन मन वार ।।3।।

1. ताक ।

2. धरती यानी देर ।

3. ग्राम ।

4. माला ।

बचन 37

प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरू

327

छोजड़या पानी जवपत जबडार । जनत्त मैं पीती रहूं सुधार ।।4।। काल को डाला बहुत लताड़ । चरन गुरु पकड़े आि सम्रार ।।5।। नाम संग रो गइ सूरत सार । मानसर न्राई मैल उतार ।।6।। चुगूूँ मैं मोती िब्द जवचार । गुरु ने खोला घाट दुवार ।।7।। धुनन को छाूँट जलया मन मार । घाट घट भीतर पड़ी पुकार ।।8।। नाम गुरु लीन्रा मोसर जनकार । छोजड़या सारा िगत लबार1 ।।9।। ककया अब राधास्वामी िगत उधार । जिऊूँ मैं राधास्वामी चरन पखार ।। ।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। माजलनी लाई ररवा गूथ ूँ । प्रेजमन डाले फु लवा िूूँथ ।।1।। गुरून से पाई नाम जवभूत2 । आरती िोड़ी लागा सूत ।।2।। हुआ मन गगन मासर अवधूत3 । करे अस सेवा रोय सपूत ।।3।। भगाये गुरु ने घट के दूत । चरन गुरु पकड़े अब मज़बूत ।।4।। काल को डाला जछन जछन कू ट । मोर दल भागा लीन्रा लूट ।।5।। गया सब तन से नाता टू ट । काल बल डाला सब री कू त4 ।।6।। गुरु ने दीन्रा अमृत क़ू त5 । राधास्वामी दूर ककया कलबूत6 ।।7।। ।। िब्द बीसवाूँ ।। कदखाया रूप मनोरर गुरु ने जनि भेद कदया सतगुरू मेरे ररख हुई अजत उर चढ़ घोर सुना अन्दर मैं पाइ मौि सुन्दर मैं धाई सुन्न जिखर लग राधास्वामी हुई अमर

1. झूठा । 7. धुन ।

2. बड़ी कला ।

। मेरी दृजष्ट खुली पहुंची धुर घर में ।।1।। ने । धुन धमक सुनी नभपुर में ।।2।। में । मैं उलट चली अब सुर7 में ।।3।। में । मैं झाूँकी िा मंकदर में ।।4।। में । गुरु चरन धरे अब जसर में ।।5।। में । अब पाये पुरूष अिर मैं ।।6।। मैं । मैं न्राई अमी नरर में ।।7।।

3. साधु ।

4. तौल ।

5. अरार ।

6. देर से ।

328

सार बचन

बचन 37

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। धुजबया गुरु सम और न कोय मैल सब काढ़ा जनमणल रोय घाट पर बैठे दीखें मोसर धार अब आई कसमल2 खोय िब्द संग लागी प्रेमी रोय

। । । । ।

चदररया धोई सूरत िोय1 ।।1।। कहूं क्या गुरु की मजरमा सोय ।।2।। सुरत मैं डारी चरन समोय ।।3।। चटक कर दीन्र चदररया धोय ।।4।। भेद राधास्वामी पाया गोय1 ।।5।।

।। िब्द बाईसवाूँ ।। चलो री सखी अब आलस छोड़ । काल िो देवे कु छ झकझोर4 । दया गुरु सुन लो घट का िोर । बोल िराूँ परखो दादुर मोर । िब्द धुन परखी सूरत िोड़ । द्वार अब खोला ताला तोड़ । भगाये घट के सब री चोर । राधास्वामी डारा मन को तोड़ ।

सुनो अब चढ़कर घट में घोर ।।1।। भुिा उस डारो तुरत मरोड़ ।।2।। अमीरस पीओ नभ में ज़ोर ।।3।। मेघ िराूँ गरित घोरम घोर ।।4।। करम का कलसा डाला फोड़ ।।5।। जमला भंडार अगम का मोर5 ।।6।। गरी मैं जनि धुन की अब डोर ।।7।। चरन मैं परसे दोउ कर िोड़ ।।8।।

।। िब्द तेईसवाूँ ।। सूरमा सुरत हुई गुरु देख प्रताप सुरत िब्द की करूूँ कमाई गगन मंडल अब झाूँकन लागी चढ़ी अधर में देख धर में करम कटाने भरम नसाने सुन्न जिखर पर पहुंची सूरत अिब धाम पाया मैं सिनी राधास्वामी खेल कदखाया

1. स्त्री ।

2. मैल ।

3. गुप्त ।

।। टेक ।। । पाऊूँ अपना आप ।।1।। । कर कर सूरत साफ़ ।।2।। । परमातम को आतम पात ।।3।। । िन्म िन्म के छू टे पाप ।।4।। । करती अिपा िाप ।।5।। । कौन करे यराूँ तोल और नाप ।।6।। । वोरी रैं मेरे मा और बाप ।।7।।

4. झकोला ।

5. मुझे ।

बचन 37

प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरू

329

।। िब्द चौबीसवाूँ ।। कु मजतया दूर हुई, गुरु हुये दयाल । सुमजतया दान दई, गुरु ककया जनराल ।।1।। सरन गुरु आन लई, ति मन का िाल । मूल को पकड़ जलया, ति डारी डाल ।।2।। नाम धन पाय गई, ति झूठा मान । गुरु संग लाग ररी, देख अचरि ख़्याल ।।3।। परम पद पाय गई, चढ़ सुखमन नाल । भमण सब काट कदये, और मारा काल ।।4।। काल अब थककत हुआ, अब पाया राल1 । राधास्वामी दूर ककये, मेरे सब दुख साल2 ।।5।। ।। िब्द पच्चीसवाूँ ।। सुरत उठ िागी चरन सम्रार बचन सुन त्यागी मनसा शवार अमीरस पीवत नभ के द्वार पकड़ कर आई गुरु दरबार रंस रोय चुगती मुिा सार काल संग तोड़ा नाता झाड़ जमले राधस्वामी ककरपा धार

। । । । । । ।

गुरु संग लागी रूप जनरार ।।1।। सुरत हुई रागी3 िब्द सम्रार ।।2।। छोड़ कर भागी िगत लबार ।।3।। सरन गर बैठी तन मन वार ।।4।। नाम रस पागी सूरत नार ।।5।। दयाल घर पहुंची सतगुरू लार ।।6।। छु टे सब संगय गया संसार ।।7।।

।। िब्द छब्बीसवाूँ ।। मंगल मूल आि की आनूँद छाय ररा नभ जतजमर रटावन धारे अमी धार लागी अब

1. अन्तर की रालत ।

रिनी4 । धरनी । चरनी । जझरनी ।

2. पीड़ा कष्ट ।

मसरमा कहूं कौन सुन सिनी ।।1।। रोम रोम अमृत रस भरनी ।।2।। रूप सुरावन पाइ मैं सरनी ।।3।। सुरत जनरत लागी घट जघरनी ।।4।।

3. अनुरागी ।

4. रात ।

330

सार बचन

बचन 37

गगन मंडल लागी अब चढ़नी । जबन गुरु कौन करे यर करनी ।।5।। ता ते सरन गुरु की पड़नी । जमगण टले और भागी जररनी ।।6।। भान मध्य पहुंची िा ककरनी । सुरत अड़ी िा अब नसर जगरनी ।।7।। राधास्वामी भेद कदया कर जनरनी । मैं नसर उन चरनन से कफरनी ।।8।। ।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।। िोभा देखुूँ मैं अब गुरु खबर िनाऊूँ कफर सुर1 मो को करें सभी दुर दुर2 राधास्वामी गजत गाई ऊपर

की की की की

। । । ।

नैन जनरारूूँ जखड़की धुर की ।।1।। िान गई गजत अब उर उर की ।।2।। मैं गरी टेक गुरु गुरु की ।।3।। सुरत तिी मैं इस मरपुर3 की ।।4।।

।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।। दौड़त गई गगन के घेर । िराूँ िब्द अनारद लीन्रा रेर4 । काल करम दोउ कीन्रे ज़ेर7 । धुन पाई मैं अब अजत नेर8 । गीदड़ से गुरु कीन्रा िेर । छोड़ी मन की सभी लगेड़9 । अंतर दृजष्ट लाई फे र । अब सतगुरू की रोगई मेरर । लगी नरीं कु छ मुझे अबेर । तन मन झगड़ा सभी जनबेड़12 । बैररयन की खाल लई उधेड़ । मन का सभी जमटाया फे र ।

तन को छोड़ जलया मन फे र ।।1।। ज़ीना5 चढ़ कर सुनी इक टेर6 ।।2।। चढ़ आई मैं आि सुमरे ।।3।। िल्दी करी लगी नसर देर ।।4।। रेर रेर धुन घट में रेर ।।5।। सुरत हुई अब धुन की चेर ।।6।। दूर रटाया पापन ढेर ।।7।। जमट गया आि काल का क़रर11।।8।। मैं चढ़ पहुंची बहुत सबेर ।।9।। जमला भजि भंडार कु बेर ।।10।। मानसरोवर न्राई नरर ।।11।। राधास्वामी जलया मन घेर ।।12।।

।। िब्द उन्तीसवाूँ ।। गुरु संग खेलूूँ जनस कदन पास । करूूँ मैं अचरि जबमल जबलास ।।1।।

1. धुन । 2. फटकार । 3. मृत्यु लोक । 4. ढू ूँड जलया । 5. सीढ़ी । 6. आवाज़ । 7. अधीन । 8. जनकट । 9. लगाव । 10. चेली । 11. डंड । 12. जनपटा कर ।

बचन 37

प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरू

सुखी रोय करती चरन जनवास गुरु जबन और नरीं कोइ आस जधयाऊूँ पल पल स्वाूँसो स्वाूँस िगत से ररती सरि उदास करे अब सूरत नभ पर बास लगन अस ररती बारर मास द्वार घट खोला चढ़ आकाि हुआ अब घर में दीप उिास कहूं क्या मजरमा िब्द खवास2 करूं अब आरत राधास्वामी रास

। । । । । । । । । ।

331

हुआ मोसर गुरु का अजत जवश्वास ।। जमली अब नाम रतन की रास ।।3।। काल और कमण हुए दोउ नास ।।4।। जमली अब पदवी दासन दास ।।5।। िब्द का पाया परम प्रकाि ।।6।। चरन मैं पकड़े गुरु के खास ।।7।। काल मुरझाया सूखा मास ।।8।। जमला जनि सूरि संग आभास1 ।।9।। गरे3 िो पावे अमर अवास4 ।।10।। िब्द का दीपक कीन्रा चास5 ।।11।।

।। िब्द तीसवाूँ ।। गुरु मूरत मेरे मन बस गइयां । तन धन वारूं बल बल िइयां ।।1।। अस जपया संग सुराजगन भइयां । अटल सुराग नाम धुन पइयां ।।2।। करम भरम सब दूर बरइयां । िगत िाल िंिाल कटइयां ।।3।। अब चढ़ सुरत श्याम6 घर अइयां । सेत दीप की दमक कदखइयां ।।4।। सरस कूँ वल दल मोर दलइयां । काम क्रोध मद दूर करइयां ।।5।। घंटा संख नाद सुन लइयां । पाूँच तत्त्व रं ग सूक्षम पइयां ।।6।। लीला अद्भुत गुरु लखइयां । अब आगे को डगर7 चलइयां ।।7।। बंकनाल का द्वार खुलइयां । जिकु टी घाट मौि दरसइयां ।।8।। गुरु मूरत िरां सूर ललइयां8 । सुन्न जिखर चढ़ कमण िलइयां ।।9।। मरासुन्न मजरमा क्या कजरयां । भूँवरगुफा चढ़ बंस बिइयां ।।10।। सत्तनाम धुन बीन सुनइयां । अलख अगम िा सुरत नचइयां ।।11।। जनि कर राधास्वामी दास करइयां । अब आरत पूरन करवइयां ।।12।।

1. छटा, झलक । 2. गुन । 3. पकड़े । जतल । 7. रास्ता । 8. लाल ।

4. घर ।

5. िगाया ।

6. तीसरा

332

सार बचन

बचन 37

।। िब्द इकतीसवाूँ ।। सोच ररी री मौि की बजतयां । उमूँग प्रेम छजब लजखयाूँ । जनमख2 जनमख अटकी दृग िोभा । भीित मन सीझत नृत न्यारी । आवत घोर सुनत जनस3 बासर4 । चेतन रोत सोख तम सागर । चंद चकोर मगन प्रीतम रस । िगे भाग कल5 कालख6 नासे । अधर जपयारी चढ़ी अटारी । राधास्वामी दरस कदवानी ।

सुतण रजतयां1 कूँ वल जबलास ।।1।। अब जरयरे बढ़त हुलास ।।2।। जनरख ररी परकाि ।।3।। धावत जनि आकाि ।।4।। उलट कफराया स्वांस ।।5।। पावत अगम जनवास ।।6।। ज्यों िल मीना बास ।।7।। पाया सुख जवश्वास ।।8।। छू ट गई िम फाूँस ।।9।। बैठी चरनन पास ।।10।।

।। िब्द बत्तीसवाूँ ।। मेरे जपया की अगम रैं गजतयां । कोइ ममण न पावत रजतयां7 । धुन ध्यान लगावत रजतयां8 । जतल ताकत9 फे र उलरटयां । जलख भेिूूँ जपया को पजतयां11 । जवरर अजि िलावत जनजतयां । राधास्वामी भाग पलरटयां ।

मैं कै से कै से गाऊूँ ।।1।। क्योंकर मन लाऊूँ ।।2।। चुन चुन धुन लाऊूँ ।।3।। घट दीप10 िगाऊूँ ।।4।। क़ाजसद12 पहुंचाऊूँ ।।5।। घर घाट न पाऊूँ ।।6।। कमण काट िलाऊूँ ।।7।।

।। िब्द तैंतीसवाूँ ।। जपया दरसत भइ री जनराल काल गजत दूर जनकारी घट में धुन अवगत िागी सुतण सीतल सरवर पाया

। । । ।

राल क्या बरनूूँ िग लागा खोया तन िब्दारस

अपना ।।1।। सुपना ।।2।। तपना ।।3।। मगना ।।4।।

1. रत्त ररी रै । 2. पल । 3. रात । 4. कदन । 5. काल के । 6. क्लेि, दुख । 7. रत्ती भर । 8. प्रेम के साथ । 9. देख कर । 10. िोत । 11. जचट्ठी । 12. जचट्ठी ले िाने वाला ।

बचन 38

बाररमासा

जबन साध न कोई िाने । जनत घट में तन धरती अब रम त्यागी । पहुंची चढ़ अब लाि तुम्रें राधास्वामी । मैं रो गइ

333

िगना ।।5।। गगना ।।6।। सरना ।।7।।

।। बचन अड़तीसवाूँ ।। ।। बाररमासा ।।

।। असाढ़ मास परला ।। राल दुख सुख सरने िीव का संसार में मन और माया के संग भरम कर और वर्णन कष्ट और क्लेि का िो कक जबना सतगुरू और नाम भजि के अन्त समय में िमदूतों के राथ से सरता रै । प्रथम असाढ़ मास िग छाया । आसा धर जिव गभण समाया ।।1।। आस आड़ ले िीव भुलाया । घर को भूल दुक्ख अजत पाया ।।2।। कमण वेग1 ने बारर डाला । माया कीन्रा बहु िंिाला ।।3।। बाल अवस्था अजत दुख पावे । बेदन2 भारी जनत्त सतावे ।।4।। मुख बोले ना सैन चलावे । काहू दुख अपना न िनावे ।।5।। दुख में रोवे अजत जबल्लावे । मात जपता बुजध काम न आवे ।।6।। दुख कु छ रै औषध कु छ करर रैं । उलट पलट संतापे दे रैं ।।7।। बालपना अजत दुख में बीता । भई ककिोर खेल मजत लीता ।।8।। मात जपता चारें पढ़वाना । यर ररे जनस कदन खेल कदवाना ।।9।। मार पीट जपतु मात घनेरी । वर भी दुख की भारी ढेरी ।।10।। यर भी कदन दुख ग़फलत बीते । सुक्ख ना पाया ररे अब रीते ।।11।। तरून अवस्था आवन लागी । मन तरं ग अब जछन जछन िागी ।।12।। चार उठी तब करी सगाई । ब्यार हुआ घर नारी आई ।।13।। नारर देख मन अजत ररषाना । बेड़ी भारी सो नसर िाना ।।14।।

1. िोर ।

2. दुक्ख, ददण ।

334

सार बचन

मात जपता का रक़ सब भूले घटती चली लगन जपतु माता जफ़्कर पड़ा उद्यम का िबरी स्वान समान करी गजत अपनी धन पाया तो हुआ अनंदा गृर कारि अब जनत्त सतावें सब का बोझ भार जसर लीन्रा मूरख ने यर भार उठाया भरमत कफरे सुक्ख के कारन ककये अपने को बहु पछतावे कल कलेि बहु वषणन लागे मोर पपीरा भमण िास के बोलन लागे चहुंकदस घेरी भजि चन्द्रमा सूरि ज्ञाना अझान अूँधरे ा अजत घट छाया यर भी बीते दुख में सब कदन

। । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 38

कदन और रात नारर संग झूले ।।15।। नारर पुि संग मन अजत राता ।।16।। दर दर भरमे दुख अजत सररी ।।17।। धन का सुजमरन धन की िपनी ।।18।। अन-जमलते पड़ा दुख का फं दा ।।19।। कु ल और िाजत बहुत भरमावें ।।20।। अब तड़पे िस िल जबन मीना ।।21।। अब दुक्खन से बहु घबराया ।।22।। सुख नसर जमला हुआ दुख दारून ।।23।। पर अब कछू पेि नसर िावें ।।24।। वषाण ऋतु असाढ़ अब िागे ।।25।। रोग सोग दुख मोर आस के ।।26।। उमड़ी घटा मानो रात अूँधरे ी ।।27।। जछप गये दोनों घोर समाना ।।28।। लोक गया परलोक गूँवाया ।।29।। वृद अवस्था आई जछन जछन ।।30।।

।। दोरा ।। वृद्धाई बादल उमड, घेर जलया तन खंड़ । लोभ नदी बाढ़न लगी, तृष्र्ा अजत परचंड ।।31।। बुजद्ध रीन बल छीन रोय, वषाण तन से रोत । नैन नीर मुख नाजसका, बरन लगे िस सोत ।।32।।

।। सावन मास दूसरा ।। सावन आया मास दूसरा । सास1 मरी घर आया ससुरा2 ।।1।। काली घटा श्याम मन हूआ । श्याम कं ि में यर मन मूआ ।।2।।

1. माया, इच्छा ।

2. ब्रह्म ।

बचन 38

बररमासा

335

गरिे बादल चमके जबिली । मनसा मोड़ी आसा बदली1 ।।3।। सुरत जनरत की झजड़याूँ लागीं । धुन अनंत िब्दन से चालीं ।।4।। बृद्ध अवस्था चेतन लागी । काल आय िब जसर पर गािी ।।5।। िमपुर से अब सतगुरू राखें । बहुतक िीव मौत दर ताकें ।।6।। काल घटा िब आकर छाई । धारा मौत अजधक बषाणई ।।7।। िीव अनेक ररे घबराई । काया गढ़ न दीन्र ढवाई ।।8।। िमपुर िाय िीव पछतावें । िम के दूत जतन बहुत सतावें ।।9।। नाना कष्ट दें रैं पल पल में । कफर फाूँसी डालें गल गल में ।।10।। कु म्भी नकण मासर दें ग़ोते । िीव सरें दुख अजत कर रोते ।।11।। वे जनरदई2 दया नसर लावें । अजत िास से जिव मुरझावें ।।12।। अजगन खंभ से कफर जलपटावें । राय राय कर तब जचल्लावें ।।13।। सुने न कोई मुजश्कल भारी । सपणन माला ले गल डारी ।।14।। मार मार चहुं कदस से रोई । पजत गजत अपनी सब जवजध खोई ।।15।। नकण न में अजत िास कदखावें । कफर चौरासी ले पहुंचावें ।।16।। गुरु भिी जबन यर गजत पाई । नर देरी सब बाद गूँवाई3 ।।17।। िो िो भिन भजि से चूके । जतन के मुख िम पल ग्ल थूके ।।18।। ऐसी कु गजत रोयगी सब की । िो नसर धारें सतगुरू अब की ।।19।। सतगुरू जबना कोई नसर बाचे । नाम जबना चौरासी नाचे ।।20।। धन्य भाग रम सतगुरू पाया । चढ़ी सुरत मन गगन समाया ।।21।। सुन्न मूँडल िाय झूला झूली । सावन मास जलया फल मूली ।।22।। सजखयाूँ सब जमल गावन लागीं । माया ममता देखत भागीं ।।23।। सभी सुराजगन झूलें घर घर । जपया अपने को जररदे धर धर ।।24।। जपया जबमुख तरसें बहु नारी । जिनके पजत परदेि जसधारी ।।25।। जतनको सावन काला नागा । डस डस खावे लागे आगा ।।26।। बारर वषाण ररमजझम रोई । घट में उनके अजि समोई ।।27।। अजि लगी मानो तन मन फूूँ का । उनके भावें पड़ गया सूखा ।।28।।

1. बदल गई ।

2. कठोर, बे ररम ।

3. बे फ़ायदा खोई ।

336

सार बचन

बचन 38

तीि त्योरार कछू नसर भावे । मन में दुख, नसर रषण समावे ।।29।। जपया जबन सावन कै सा आया । िेठ तपन िस िीव िलाया ।।30।। ।। दोरा ।। िीव िले जवरर अजि में, क्योंकर िीतल रोय । जबन वषाण जपया बचन के , गई तरावत खोय ।।31।। जिन को कं त जमलाप रै, जतन मुख बरसत नूर । घट सीतल जररदा सुखी, बािे अनरद तूर ।।32।।

।। भादों मास तीसरा ।। चे तावनी िीवों को कक मनमत कमण और धमण और िप तप और मू र्शत पू िा और तीथण व्रत से िीव की चौरासी नरीं छू टे गी िब तक कक सं त सतगु रू और साध का सं ग और उनसे भे द नाम का ले क र अं त रमु ख अभ्यास न करें गे और वर्ण न िु जि और भे द सु र त िब्द मागण का भादों तीन काम िल कोई कोइ यर क्या

मास तीसरा िारी ताप का बड़ा पसारा2 क्रोध मद लोभ सतावें िल िीव पड़े घबरावें कमण कोइ धमण सम्रारे मंकदर िा मूरत पूिे सब भूले भटका खावें पंजडत क्या भेख गृरस्ती

1. प्यास लगने से िो भटकी लगती रै ।

। । । । । । । ।

दौं1 लागी सब िग को भारी ।।1।। इक इक िीव घेर कर मारा ।।2।। माया ममता आग लगावें ।।3।। छू टन की कोइ िुगत न पावें ।।4।। कोइ जवद्या कोइ िप तप धारे ।।5।। कोइ तीरथ कोइ बतण में िूझे ।।6।। कोई न इनकी भूल जमटावें ।।7।। यर सब बसे काल की बस्ती ।।8।।

2. फै लाव ।

बचन 38

बररमासा

चौरासी में बहु भरमावें िो कोई उन से करे समझाई कलिुग कमण धमण नसर कोई नाम भेद रै अजत कर झीना1 अपने में सब गये भुलाई िो सतगुरू पूरे जमल िाते नाम ररे चौथे पद मारीं तीन लोक में नाम न पावें तीन लोक में बसता काल सोई नाम संतन से पावे अब मारग का भेद बताऊूँ पजरले सुती नैन िमावे जवरर रोय तो यर बन आवे देखे जतल जपल िोत समावे मन बस रोय तो सूरत िागे िब्द पकड़ परमातम जनरखे परमातम से आगे िाई सुन्न के परे मरासुन लेखा जखड़की आगे चौक अपारा सत्तपुरूष सतनाम कराई यर मारग संतन ने भाखा लोक भेद बस िो जिव रोई

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

337

नकण स्वगण के धक्के खावें ।।9।। उलटी मानें करें लड़ाई ।।10।। नाम जबना उद्धार न रोई ।।11।। जबन सतगुरू काहू नसर चीन्रा2 ।।12।। नाम अगम कोइ भेद न पाई ।।13।। तो वे भेद नाम का गाते ।।14।। यर ढू ूँढ़ें जतरलोकी मारीं ।।15।। चौथे लोक में संत बतावें ।।16।। चौथे में ररे नाम दयाल ।।17।। जबना संत नसर नाम समावे ।।18।। आूँख खुले तो भेद लखाऊूँ ।।19।। घेर फे र घट भीतर लावे ।।20।। मेरनत करे तो कु छ फल पावे ।।21।। अनरद सुन मन बस में आवे ।।22।। जनरख आकाि आत्मा पागे ।।23।। आतम िाय परमातम परखे ।।24।। सुन्न मरल में बैठक पाई ।।25।। मरसुन्न पर जखड़की देखा ।।26।। चौक परे जनरखा सत द्वारा ।।27।। सत्तलोक जनि पाया आई ।।28।। भेद प्रगट कु छ गोय3 न राखा ।।29।। सो परतीत न लावे कोई ।।30।।

।। दोरा ।। लोक वेद में िो पड़े, नाग पाूँच4 डस खायूँ ।

1. बारीक ।

2. समझा ।

3. गुप्त ।

4. काम, क्रोध, लोभ, मोर, अरंकार ।

338

सार बचन

बचन 38

िन्म िन्म दुख में ररें, रोवें और जचल्लायूँ ।।31।। जिन सतगुरू के बचन की, करी नरीं परतीत । नसर संगत करी संत की, रोवें जसर पीट ।।32।।

।। क्वार मास चौथा ।। आसि रोना िीवों का मन और इजन्द्रयों के भोगों में और भूलना अपने सत्तकु ल को और प्रगट रोना सत्तपुरूष दयाल का संत सतगुरू रूप धारन करके वास्ते उनके उद्धार के और उपदेि करना सुरत िब्द मागण का क्वार मरीना चौथा आया पार न िावे वार ररावे िगत भोग में ररे अधीना ज्ञान वैराग भजि नसर धारी क्वारी सुरत करे व्यजभचारा काम क्रोध में भरमत डोले सतसंग करे न सतगुरू सेवे काल चक्र क़ा पड़ा सरडोला िन्म अनेक झूलते बीते धमणराय जनत करे ख़ुवारी2 कमण भार जसर ऊपर लादा प्यादों के संग इज्ज़त खोती गोत लिाया िाजत गूँवाई लाि करी तो मन के कु ल की कु ल इसका रै सब से ऊूँचा िेष मरेि ररे सब नीचे सत्तपुरूष को लिा आई

1. मुसीबतें ।

2. कु गत ।

। । । । । । । । । । । । । । । । ।

जिव भौ सागर वार रराया ।।1।। साध संत संग प्रीत न लावे ।।2।। रोग सोग दुख सुक्ख मलीना ।।3।। मोर राग रंकार पचा री ।।4।। मन इन्द्री संग कफरती लारा ।।5।। िड़ चेतन की गाूँठ न खोले ।।6।। भाव भजि में मन नसर देवे ।।7।। ऊूँच नीि खावे झकझोला ।।8।। िम झोटन के सरे फ़ज़ीते1 ।।9।। नकण न में भोगे दुख भारी ।।10।। घेरे कफरे काल का प्यादा ।।11।। सत्तनाम कु ल की थी गोती ।।12।। तो भी मन में लाि न आई ।।13।। सुध भूली सब अपने कु ल की ।।14।। संत जबना कोइ िराूँ न पहुंचा ।।15।। ब्रह्म और पारब्रह्म ररे बीचे ।।16।। संत औतार धरा िग मारी ।।17।।

बचन 38

बाररमासा

संत रूप धर जिव उपदेिें सुरत अिान न बूझे बानी भौसागर में ग़ोते खावे संत बतावें सत की रीत जबन परतीत रीत नसर पावे चौरासी से संत बचावें मन के रं ग कफरे बहुरं गी साध संत का ढंग नसर सीखे रस फीके संसार के सबरी स्वाूँजत पदररया अंतर बरसे िदण चन्द्रमा अंतर दरसे मोती चुने मानसरवर के िो संतन के बचन सम्राले

। । । । । । । । । । । । ।

339

बानी नाव बना जिव खेवें ।।18।। कफर कफर डू बे करा न मानी ।।19।। मनमत ठान चौरासी धावे ।।20।। यर नसर माने कु छ परतीत ।।21।। िन्म िन्म चौरासी िावे ।।22।। उनका बचन न मन ठररावे ।।23।। ढंग न सीखे बड़ी कु ढंगी ।।24।। भोगे दुख रस चाखे फीके ।।25।। अंतर का रस अगम न लेरी ।।26।। सुरत लगावे तो मन सरसे1 ।।27।। सुन्न की धुन्न िाय िब परसे ।।28।। भोगे भोग मराल2 नगर के ।।29।। िाय िबेनी रोय जनराले ।।30।।

।। दोरा ।। रोय जनराल सुन्दर लखे, सुने ककगरी नाद । नाद सुरत रोवत मगन, कफर खोित पद आद ।।31।। संत दया सतगुरू मया3, पाया आद अनाद । गजत मजत करते ना बने, सुरत भई जबस्माद ।।32।।

।। काजतक मास पाूँचवाूँ ।। वर्णन कूँ वलों का अंदर काया के और बड़ाई संत मते की काजतक मास पाूँचवाूँ चला । सुरत िब्द गुरु चेला जमला ।।1।। तक काया कूँ वलन जवजध भाखी । कूँ वल दुवादस काया राखी ।।2।। प्रथमे कूँ वल गनेि जबलासा । कूँ वल दूसरे ब्रह्मा बासा ।।3।।

1. खुि रो ।

2. रंस ।

3. कृ पा ।

340

सार बचन

कूँ वल तीसरे जवष्र्ु प्रकािा आतम कूँ वल पाूँचवाूँ रोई कूँ वल सातवें काल बसेरा कूँ वल आठवाूँ जिकु टी मारीं नवाूँ कूँ वल रै दसवें द्वारे मरासुन्न में कूँ वल असचता कूँ वल इकादि भूँवरगुफा पर खट चक्कर यर सपड सूँवारा तीन कूँ वल िो ऊपर ररे खष्ट कूँ वल तक िोगी आसन सपड ब्रह्मंड का इतना लेखा आगे का कोई भेद न िाने कोइ छः तक कोइ नौ तक भाखे बड़ा संत मत सब से आगे िो पहुंचे द्वादस अस्थाना संतन का मत सब से ऊूँचा पहुंचे की क्या करूूँ बड़ाई िो मन में परतीत न देखे तुलसी सारब का मत िोई इन संतन का देऊूँ प्रमाना िोग ज्ञान मत इनहूं भाखा िोगी और वेदान्ती भाई वेद कतेब4 न पहुूँचे तरूँ रीं बार बार कर कर समझाऊूँ

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

1. बासा, ठरराव ।

बचन 38

चतुथण कूँ वल जिव िजि जनवासा ।।4।। छठा कूँ वल परमातम सोई ।।5।। िोत जनरं िन का वराूँ डेरा ।।6।। सूरि ब्रह्म बसे तेजर ठारीं ।।7।। पारब्रह्म िरूँ बसे जनरारे ।।8।। कूँ वल दसम का वराूँ बरतंता ।।9।। द्वादस कूँ वल सत्तपद अंतर ।।10।। तीन चक्र ब्रह्मंड अधारा ।।11।। संत जबना कोइ बरन न करे ।।12।। नवें कूँ वल िोगेश्वर बासन1 ।।13।। योगी ज्ञानी यराूँ तक देखा ।।14।। तीन कूँ वल सो संत बखाने ।।15।। सवण मते इन भीतर थाके ।।16।। संत कृ पा से कोइ कोइ िागे ।।17।। सोई कजरये संत सुिाना ।।18।। िो परखे सोई धुर पहुंचा ।।19।। सब मत उसके नीचे आई ।।20।। तो कबीर गुरु2 बानी पेखे ।।21।। पलटू िगिीवन करें सोई ।।22।। इनकी बानी साख3 बखाना ।।23।। पुजन संतन मत ऊूँचा राखा ।।24।। संतन मत परतीत न लाई ।।25।। थके बीच में रस्ते मारीं ।।26।। संतन का मत ऊूँचा गाऊ ।।27।।

2. नानक सजरब ।

3. गवारी ।

4. कु रान ।

बचन 38

बाररमासा

341

िो परतीत न लावे या की । िानो काल ग्रसी बुजध वा की ।।28।। वे करा िानें मत संतन को । एक जमलावें काूँच रतन को ।।29।। उनसे यर मत खोल न कजरये । सैन िनाय मौन गजर रजरये ।।30।। ।। दोरा ।। संत मता सब से बड़ा, यर जनश्चय कर िान । सुफ़ी और वेदान्ती, दोनों नीचे मान ।।31।। संत कदवाली जनत करें , सत्तलोक के मासर । और मते सब काल के , योंरी धूल उड़ायूँ ।।32।।

।। अगरन मास छठवाूँ ।। मजरमा सतगुरू की और जवजध सतसंग और भजि की और चढ़ कर पहुूँचना सुरत का सत्तलोक में उन की मेरर और दया से आया मास अगरन अब छठा मन हुआ जनमणल जचत हुआ जनश्चल धरन छोड़ सुतण चढ़ी अकािा िब्द संग जनत करे जबलासा छोड़ा यर घर पकड़ा वर घर िब से सतगुरू सरना लीन्रा धन सतगुरू धन उनकी संगत कर सतसंग काि ककया पूरा पाप पुन्य दोउ गये नसाई अब यर सतसंग गुरु का पावे । चरन सेव चरनामृत पीवे दिणन करे बचन पुजन सुने

1. पाप ।

2. नाि हुए ।

। अघ1 की राजन हुई मल घटा ।।1।। । काम क्रोध गये इन्द्री जनष्फल ।।2।। । िब्द पाय आई मराकािा ।।3।। । देखे अचरि जबमल तमािा ।।4।। । खोया िग को पाया सतगुरू ।।5।। । सत्तनाम धुन घट में चीन्रा ।।6।। । जिन प्रताप पाई मैं यर गत ।।7।। । पाप नसे2 मानो खाया धतूरा ।।8।। । भजि भाव जिव हृदय समाई ।।9।। जरल जमल चरन मासर जलपटावे ।।10।। । गुरु परिादी खा जनत िीवे ।।11।। । कफर सुन सुन जनत मन में गुने ।।12।।

342

सार बचन

गुन गुन छाूँट लेय उन सारा कर अरार पुष्ट हुआ भाई गुरु भजि िानों इश्क़ गुरु का पक पक घट में गड़ा थाना गुरु का रूप लगे अस प्यारा सतसंग करना ऐसा चजरये सतसंग सतसंग मुख से गावे सतसंग मजरमा रै अजत भारी अजधकारी जबन प्रगट नरीं फल चल चल आये सतगुरू आगे सतसंग और सतगुरू क्या करें पत्थर पानी लेखा बरता बारर का संग िब अस रोई तब अंतर का सतसंग धारे बोले अिण और गरिे गगना ला-मुक़ाम पाया लाहूत राहूत का िाय खोला द्वारा हूत मुक़ाम फ़कीर अखीरी

। । । । । । । । । । । । । । । । । ।

बचन 38

सार धार जतस करे अरारा ।।13।। िग भौ लाि अब गई नसाई ।।14।। मन में धसा सुरत में पक्का ।।15।। थान गाड़ अब हुआ कदवाना ।।16।। काजमन पजत मीना िल धारा ।।17।। सतसंग का फल येरी सरी रै ।।18।। करें जनत्त फल कछू न पावें ।।19।। पर कोइ िीव जमले अजधकारी ।।20।। सतसंग तौ कीन्रा सब चल चल ।।21।। बचन न पकड़ा दरस न लागे ।।22।। सो जिव भौिल कै से तरें ।।23।। िल जमसरी सम मेल न करता ।।24।। सतगुरू सम प्रीतम नसर कोई ।।25।। सुरत चढ़े असमान पुकारे ।।26।। बैठा कु रसी मन हुआ मगना ।।27।। छोड़ा नासूत मलकू त िबरूत ।।28।। हूतलहूत और हूत सम्रारा ।।29।। रूर सुरत िराूँ देती फे री ।।30।।

।। दोरा ।। अल्लाहू जिकु टी लखा, िाय लखा रा सुन्न । िब्द अनाहू पाइया, भूँवरगुफा की धुन्न ।।31।। रक़्क़ सतनाम धुन, पाई चढ़ सचखंड । संत फक़र बोली िुगल, पद दोउ एक अखंड ।।32।।

बचन 38

बररमासा

343

।। पूस मास सातवाूँ ।। वर्णन स्वरूप सुरत और िब्द का और उपदेि सतगुरू भजि और सतसंग का िो कक मुशय उपाय प्राजप्त मेरर और दया का रै पूस मरीना िाड़ा भारी । कमण भमण ज्यों फू स िला री ।।1।। िल िल ढेर हुआ िब भारी । प्रेम पवन से तुरत उड़ा री ।।2।। मोर सीत1 ने जचत को घेरा । सूर जववेक2 ककया घट फे रा ।।3।। फे रा करत भजि गुरु िागी । सुरत भई अनरद अनुरागी ।।4।। राग भोग सब दूर जनकारा । जवमल जवरर वैराग सम्रारा ।।5।। सरि िोग गुरु कदया बताई । सुरत िब्द मारग लखवाई ।।6।। झीनी सुरत रूप नसर दरसे । परसे िब्द िाय मन घर से ।।7।। सुन्न जिखर िाय रूप कदखाना । गगन मंडल के पार रठकाना ।।8।। रूप सुरत का दरसा ऐसा । जबन अनुभव क्यों कर कहूं कै सा ।।9।। अनुभव से वर िाना िाई । िब्द जबना अनुभव3 नसर पाई ।।10।। सुरत िब्द दोउ अनुभव रूपा । तू तो पड़ा भमण के कू पा ।।11।। करनी करकर सुरत चढ़ाओ । िब्द जमले अनुभव घर पाओ ।।12।। जबना िब्द अनुभव नसर रोई । अनुभव जबन समझे नसर कोई ।।13।। सुरत िब्द दोउ रूप अमोला । सुन्न चढ़े जिन जनि कर तोला ।।14।। ताते करनी गुरु बताई । सतगुरू दया लेव संग भाई ।।15।। मेरर दया करनी करवाई । करनी कर बहु मेरर बढ़ाई ।।16।। करनी मेरर संग दोउ चलते । तब फल पूरा चढ़ चढ़ लेते ।।17।। अस संिोग मौि से रोई । मौि उपाव नरीं अब कोई ।।18।। पच पच थक थक सब री रारे । मौि जबना क्यों करें जबचारे ।।19।। इक उपाव कु छ मन में आया । पर थोड़ा सा जचत्त समाया ।।20।। िब िब संत िगत में आवें । ढू ंढ भाल उनके कढग िावें ।।21।। िाय करें जनत सेवा दिणन । राजज़र ररें जगरें उन चरनन ।।22।। जनत्त राजज़री उनकी करते । मन से दीन लीन रोय ररते ।।23।। पर यर बात बड़ी अजत झीनी । संत करावें सनदा अपनी ।।24।। 1. सरदी ।

2. जवचार ।

3. प्रत्यक्ष ।

344

सार बचन

बचन 38

जनन्दा चौकीदार जबठाई जबरला िीव रोय अनुरागी सनदा सुन सुन जचत नसर धारे िस िाने तस मन समझावे ऐसी दृढ़ता िाकर रोई संत मौि कफर कोइ न टारे

। कोई िीव धसने नसर पाई ।।25।। । सनदा से वर जछन जछन भागी ।।26।। । संतन की यर िुगत जवचारे ।।27।। । संतन सन्मुख ज्यों त्यों आवे ।।28।। । तो कफर संत मौि करें सोई ।।29।। । ईश्वर परमेश्वर सब रारे ।।30।। दोरा संत डाररया बीि, घट धरती िेजर िीव के । को अस समरथ रोय, िो िारे उस बीि को ।।31।। कोई काल के मासर, वर बीिा अंकुर गरे । िब िब आवें संत, अंकूरी उन संग ररे ।।32।। सोरठा वर सीचें जनि पौद, रोय भि वर पेड़ सम । फल लागें अजत से सरस, भोगें सतगुरू मेरर से ।।33।। कारि कीन्रा पूर, संत धूर जररदे धरी । सूर हुआ मन चूर, नूर तूर घट में प्रगट ।।34।।

।। माघ मास आठवाूँ ।। वर्णन लीला और जवलास मुक़ामात का और उनके रास्ते का अंतर में माघ मरीना अजत रस भरा । काया बन मन गुलिन1 ररा ।।1।। चमन2 चमन फु लवारी जखली । बाग़ बाग़ नररें अब चलीं ।।2।। गुरु भजि और पौद प्रेम की । क्यारी धीरि दया नेम की ।।3।। अस अस लीला देखी घट में । मन माली सींचे जछन जछन में ।।4।। नैनन आगे पचरं ग फू ल । पल पल जनरखत जतल जतल झूल3 5।। तत्त्व पृथवी जभन्न रोय दरसा । ऋतु बसंत फू ली मन सरसा ।।6।। झलक िोत और उमंड घटा की । ररम जझम बरसे बूद ं अमी की ।।7।। 1. फु लवारी ।

2. बग़ीचा ।

3. झूलती रै ।

बचन 38

बाररमासा

सरस धार दल सरस कूँ वल में मन चढ़ चला मरल अपने में गगन मंडल लीला इक न्यारी मूल नाम और िाखा धुन की यर लीला घट मासर जनरारी सरगुन नाम और सरगुन रूपा अब आगे सूरत चढ़ चली सुखमन में जनि मन दरसाना यर जनरगुन वर सरगुन देखा अब आगे पाूँिी2 इक गाऊूँ नाल भुवग ं न बायें त्यागी िागत नाल काल मुख मूद ं ा ससर पौल3 कढग झूँझरी जनरखी सुन्न ताल िरूँ धुन भंडारा सागर नागर िाकर झाूँका िराूँ सुरंगी दीप झरोखा संदली चंदली चौकी डारी कुं डल दीप छबीली रमना नीलम कुं ड रतन नल पाल कं कन घाटी सुरत झमाई सेत धरन िराूँ लाल अकासा यर पाूँिी जनरखी जनि धामी पोरप नगर िराूँ अमृत धाम

1. धसी ।

2. रास्ता ।

। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।

345

उठें तरं गें फै लें मन में ।।8।। उल्टा पहुंचा गगन मंडल में ।।9।। िब्द गुरु की जखल ररी क्यारी ।।10।। फू ली िरूँ फु लवार जिगुन की ।।11।। मजरमा नाम करा कहुं भारी ।।12।। वराूँ तक देखा मन का सूता ।।13।। पैठी1 िाय सुखमना नाली ।।14।। जनि मन आगे जनरगुन िाना ।।15।। दोनों घाट जभन्न कर पेखा ।।16।। गंधपण नाल के मध्य चढ़ाऊूँ ।।17।। दरने नाल धुन्धरी िागी ।।18।। घाट अठासी नाका रूूँधा ।।19।। सेत पदमनी िाली परखी ।।20।। छिली किली दीप जनरारा ।।21।। कु रम िेष अक्षर िराूँ थाका ।।22।। सुरत अड़ी िाय द्वारा रोका ।।23।। सुरत मंडली पाट खुला री ।।24।। दाजमन दीप सोत का झरना ।।25।। मराकाल रजचया िरां िाल ।।26।। िाल काल सब दूर पड़ाई ।।27।। रंस छावनी देख जबलासा ।।28।। जबमल दीप बैठे िराूँ स्वामी ।।29।। रंस बसें पावें जवश्राम ।।30।।

3. दरवािा ।

346

सार बचन

बचन 38

।। दोरा ।। बैठक स्वामी अद्भुती, राधा जनरख जनरार । और न कोइ लख सके , िोभा अगम अपार ।।31।। गुप्त रूप िराूँ धाररया, राधास्वामी नाम । जबना मेरर नसर पावई, िराूँ कोई जवश्राम ।।32।।

।। फागुन मास नवाूँ ।। उतरना सुरत का बीच नौ द्वार के और फूँ स िाना मन और इजन्द्रयों का संग करके भोगों में और कफर आना सत्तपुरूष दयाल का संत सतगुरू रूप धार कर और पहुूँचाना सुरत का जनि घर में िब्द मागण रास्ते की कमाई से और वर्णन भेद रास्ते और मुक़ामात का फागुन मास रूँ गीला आया घर घर बािे गािे लाया यर नर देरी फागुन मास मन इन्द्री संग खेली फाग िग में आ संिोग जमलाया भोग रोग पररवार बूँधानी धूल उड़ाई छानी खाक इच्छा गुन संग मैली भई फल पाया भुगती चौरासी आस िास मासर अजत फूँ सी रूँस रूँस माया िाल जबछाया तब संतन जचत दया समाई

। । । । । । । । । । । ।

धूम धाम िग में फै लाया ।।1।। झाूँझा मिीरा डफ़ बिाया ।।2।। सुरत सखी आइ करन जबलास ।।3।। उत से सोई इत को िाग ।।4।। लोक लाि कु ल चाल चलाया ।।5।। फगुआ खेली रोली ठानी ।।6।। पाप पुन्य संग हुइ नापाक ।।7।। रं ग तरं ग बासना गरी ।।8।। काल देस िरूँ बहुत जतरासी ।।9।। देख देख जतस माया रूँसी ।।10।। जनकसन का कोइ रार न पाया ।।11।। सत्तलोक से पुजन चजल आई ।।12।।

बचन 38

बाररमासा

ज्यों त्यों चौरासी से काढ़ा चरन प्रताप सरन में आई तुझको कफर कर फागुन आया सुरत करे सुनो संत सुवामी तब सतगुरू इक भेद लखाया सुरत चली अब खेलन रोली जवरर अनुराग रं ग घट लीन्रा िब्द गुरु से परले खेली जिकु टी मासर बहुत कदन खेली लाल गुलाल रूप सुतण पाया आगे बढ़ी चढ़ी ऊूँचे को चल चल पहुंची सत्तलोक में गई िराूँ से कफर वजर आई रं ग रं ग जनत खेलत रोली छोड़ा सपडा छोड़ा अंडा जनि घर अपने िाकर बसी रंस रूप अब धारा असली काल जनरं िन तोड़ी पसली

। । । । । । । । । । । । । । । । । ।

347

नर देरी में कफर ले डाला ।।13।। तब सतगुरू अजतकर समझाई ।।14।। सम्रल खेजलयो रम समझाया ।।15।। कस खेलूूँ करो अंतरिामी ।।16।। सुरत िोग मारग बतलाया ।।17।। कर ससगार बैठ धुन डोली ।।18।। मन को संग ले तन ति दीन्रा ।।19।। गगन चौक चढ़ जिकु टी लेली ।।20।। ओंकार संग कीन्रा मेली ।।21।। तब सतगुरू सुन्न िब्द सुनाया ।।22।। उलट न देखे अब नीचे को ।।23।। फगुवा माूँगे सत्तनाम से ।।24।। पद में अपने आन समाई ।।25।। िो रोना था सो अब रो ली1 ।।26।। खंड खंड कीन्रा ब्रह्मंडा ।।27।। सत्त िब्द धुन बीना रसी2 ।।28।। देर रूप धर बहुतक फूँ सली3 ।।29।। रो गइ सत्तनाम गल रूँसली4 ।।30।।

दोरा िब आवे सुतण देर में, देर रूप ले ठान । िब चढ़ उलटे सुन्न को, रंस रूप पजरचान ।।31।। सुरत रूप अजत अचरिी, वर्णन ककया न िाय । देर रूप जमथ्या तिा, सत्त रूप रो िाय ।।32।।

1. रो गया ।

2. रस से भरी ।

3. फूँ सी ।

4. नाम गरने का ।

348

सार बचन

बचन 38

।। चैत मास दसवाूँ ।। चैत मरीना आया चेत । बाूँधा सतगुरू भौ में सेत1 ।।1।। िीव जचताये िो थे वार2 । भौसागर से कीन्रे पार ।।2।। भौसागर अजत गजरर गंभीर । सतगुरू पूरे बाूँधी धीर ।।3।। तन मन धन की लई िगात3 । जिष्य उतारे गजरकर राथ5 ।।4।। सुरत बरे थी नौ5 की धार । ताजर चढ़ाया गगन मूँझार ।।5।। गगन िाय धुन िब्द जसरारी6 । देखा रूप िोत अजत भारी ।।6।। िोत जनरारे देखे तारा । बंक नाल का खोला द्वारा ।।7।। संख सुना और धुन ओंकारा । िब्द गुरु का घाट जनरारा ।।8।। छोड़ा मन अब चेती सूरत । जिकु टी चढ़ जनरखी गुरु मूरत ।।9।। गुरु चेला जमल आगे चाली । मानसरोवर िब्द सम्राली ।।10।। रंसन साथ करी िाय यारी । सुरत सखी हुइ सबकी प्यारी ।।11।। सुन्न िरर में कु छ कदन बसी । कफर चढ़ ऊपर आगे धसी ।।12।। मरासुन्न इक नगर अपारा । कहूं करा अचरि जबस्तारा ।।13।। धुन िराूँ चार गुप्त अजत झीनी । संत जबना कोइ परख न चीन्री ।।14।। असचत दीप तरं दायें ररता । सरि दीप दस पालूँग बसता ।।15।। मजरमा दीप करा कहुं भारी । संतोष दीप तराूँ बायें सूँवारी ।।16।। तरूँ इक जझरना अिब रचानी । सुरत जनरत से गरी जनसानी ।।17।। देख जनिान मध्य को धाई । भूँबरगुफा की गली समाई ।।18।। जतस आगे मैदान कदखाना । सत्तलोक िराूँ पुरूष पुराना ।।19।। जनि पद पाय पुरूष से जमली । देख गली आगे कफर चली ।।20।। अलख लोक में ककया बसेरा । अगम लोक िाय डाला डेरा ।।21।। िोभा वराूँ की क्या कर गाऊूँ । अरब खरब िजि सूर लिाऊं ।।22।। अब अनाम िराूँ रूप न नामा । संत करें िाय वराूँ जवश्रामा ।।23।।

1. सतगुर ने भवसागर में पुल बांधा । कर । 5. नौ द्वार । 6. पकड़ी ।

2. आर ।

3. मरसूल । 4. राथ पकड़

बचन 38

बाररमासा

सुरत चेत पाया जबसमाद1 । आकद न अंत अनंत अपार । संत सभी वा घर से आवें । िो चेते जतस से पहुंचावें । िीव चेत िो माने करना । मानो बचन करो कु छ करनी । सतसंग करो गरो गुरु रं ग ।

349

नसर िराूँ बानी नसर िराूँ नाद ।।24।। संतन का वर जनि दरबार ।।25।। काल देि से िीव जचतावें ।।26।। सुरत िब्द मारग बतलावें ।।27।। ताको कफर दुख सुख नसर सरना ।।28।। सुरत जनरत की धारो ररनी ।।29।। सुरत चढ़ाओ गगन उमंग ।।30।।

।। दोरा ।। सतगुरू संत दया करी, भेद बताया गूढ़1 । अब सुन िीव न चेतई, तो िानो अजत मूढ़ ।।31।। भौसागर धारा अगम, खेवरटया गुरु पूर । नाव बनाई िब्द की, चढ़ बैठे कोइ सूर ।।32।।

।। बैसाख मास ग्याररवाूँ ।। वर्णन भेद काल मत और दयाल मत का और प्रगट रोना सत्तलोक का और रचना तीन लोक की और सबब फै लने काल मत का और गुप्त रोना संत मते का बैसाख मरीना जसर पर आया । साख गई जिव हुआ पराया ।।1।। काल पक्ष सब िीवन धारी । पुरूष दयाल की सुजद्ध जबसारी ।।2।। सुरत देि अपना जबसराना । काल देि इन अपना िाना ।।3।। काल रची जतरलोकी सारी । दयाल रचा सतलोक सम्रारी ।।4।। तीन लोक काल का थाना । चौथा लोक दयाल अस्थाना ।।5।। काल कदया िीवन को धोका । चौथे पद से सब को रोका ।।6।। दयाल पुरूष का भेद न दीना । कमण कांड में िीव अधीना ।।7।। अपनी पूिा सब जवजध गाई । िीव चले चौरासी भाई ।।8।। िैगन ु रसरी िीव वूँधाना । ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि पुिाना ।।9।। 1. जविेष समाजध अवस्था ।

2. गुप्त ।

350

सार बचन

बचन 38

देवी देवा पत्थर पानी । पाप पुण्य में िीव उरझानी ।।10।। काल धरे िग दस औतारा । कला कदखाय िीव धर मारा ।।11।। आपजर राम आप हुआ रावन । आपहु कं स आप िसुनन्दन ।।12।। आपजर बल1 और आपजर बावन । आपजर कच्छ मच्छ धर धारन ।।13।। परसराम और नरससर देख । प्ररलाद भि रोय बाूँधी टेक ।।14।। खंभ फाड़ बारर रोय जनकला । रक्षक कला कदखाई सकला2 ।।15।। चाूँद सूयण और गौर गनेिा । पुिवाये और राहु रोय ग्रसा ।।16।। अस अस कला अनंत असंखा । कराूँ लग बरनूूँ भेद सबन का ।।17।। काल जलया सब लोकन घेरी । दयाल पुषण कोइ ममण न रेरी ।।18।। काल कला परचंड कदखाई । िीव चले सब उसकी रारी ।।19।। संतन का कोइ भेद न िाना । संत मता ररा गुप्त जछपाना ।।20।। संत मता खुल कर अब गाऊूँ । देकर कान सुनो समझाऊूँ ।।21।। नसर पताल नसर मृत अकािा । पाूँच तत्त्व नसर जतरगुन स्वाूँसा ।।22।। नसर जिव िजि न पुरूष प्रककरती । िोत जनरं िन नसर परककरती ।।23।। तारा मंडल सूर न चंदा । सपड ब्रह्मंड रचा नसर अंडा ।।24।। कु रम न िेष नरीं ओंकारा । माया ब्रह्म न ईश्वर धारा ।।25।। आतम परमातम नसर दोई । सुन्न मरासुन रचा न सोई ।।26।। अल्ला ख़ुदा रसूल न रोते । पीर मुरीद न दादा पोते ।।27।। वेद पुरान क़ु रान न करते । मजस्िद काबा बांग3 न देते ।।28।। नसर जिकाल सन्ध्या न नमाज़ा । तीरथ बतण नेम नसर रोज़ा ।।29।। कमी िरई थे नसर भाई । िोगी ज्ञानी खोि न पाई ।।30।। दोरा तपसी4 रबसी5 ज़ाजरदा6 नसर आजबद7 माबूद8 । क़ु तुब पैग़म्बर औजलया, कोई न थे मौिूद ।।31।।

1. एक दैत्यराि बजल । 2. सब । 3. अिान । 4. तप करने वाला । 5. प्रार्ों को रोकने वाला । 6. िती । 7. भि । 8. भगवंत ।

बचन 38

बाररमासा

351

स्वगण नकण दोज़ख1 इरम2, अज़ण3 समा नसर रोय । मुसलमान जरन्दू नसर, िैन न ईसा कोय ।।32।।

।। िेठ मास बाररवाूँ ।। िेठ मरीना िेठा भारी । िीवन जररदे तपन करारी5 ।।1।। संत दयाल िीव जरतकारी । भेद करें अब जनि कर भारी ।।2।। नसर खाजलक़6 मखलूक़7 न जखल्क़त । कताण कारन काि न कदक़्क़त ।।3।। दृष्टा दृजष्ट नसर कु छ दरसत । वाच8 लक्ष9 नसर पद न पदारथ ।।4।। ज़ात जसफ़ात न अव्वल आजखर । गुप्त न परगट बाजतन ज़ाजरर ।।5।। राम ररीम करीम न के िो । कु छ नसर कु छ नसर कु छ नसर था सो ।।6।। जसमृजत िास्त्र न गीता भागवत । कथा पुरान न विा कीरत ।।7।। सेवक सेव10 न दास न स्वामी । नसर सतनाम न नाम अनामी ।।8।। कराूँ लग कहूं नरीं था कोई । चार लोक रचना नसर रोई ।।9।। िो कु छ था सो अब कर भाखूूँ । उनमुन सुन्न जबसमाधी राखूूँ ।।10।। रैरत रैरत रैरत रोई । रैरत रूप धरा इक सोई ।।11।। उनमुन रूप सदा वर ररता । उनमुन दिा सदा वजर बरता ।।12।। वा की गजत कोई नसर िाने । वर अपनी गजत आप बखाने ।।13।। संत तूप रोय िग में आया । अपना भेद आप उन गाया ।।14।। आपजर आप न दूसर कोई । उठी मौि परगट सत सोई ।।15।। तीन देि मौि ने रचे । अगम अलख सतनाम रोय रूँसे ।।16।। धुन धधकार उठी इक भारी । सात सुरत रचना उन धारी ।।17।। सांचा बन िामन पुन दीन्रा । सुरत परस्पर रचना कीन्रा ।।18।। सोरं सुरत आकद यों बोली । सोरं सोरं सम्पट खोली ।।19।। सरि धीर िामन तरां दीन्रा । ओं सोरं गभण धुन चीन्रा ।।20।। मूल सुरत िरां पर प्रगटाई । मूल द्वार पर बैठी आई ।।21।। 1. नकण । 2. स्वगण । 3. पथणवी । 4. आकाि । 5. सशत । 6. पैदा करने वाला । 7. रचना । 8. िो वार्ी द्वारा करा िावे । 9. िो देखा िावे । 10. जिसकी सेवा की िाय ।

352

सार बचन

िांत सुरत तरं कीन्र जबलासा दीपन िोभा क्या कहुं भारी पुरूष दरस और लीला न्यारी िुग के ते और मुद्दत के ती रचना सत्य सत्य वर देिा रंस सभा समरथ तरूँ बैठे कूँ वल द्वार दल धारा जनकसी पुरूष देख अचरि लौलीना सब रंसन जमल अज़ीं कीन्रा पुरूष करा तुम करो जवलासा

। । । । । । । । । ।

बचन 38

रंस रचे कर दीप जनवासा ।।22।। रंस कु तूरल1 करें अपारी ।।23।। देख देख अनुभव गजत धारी ।।24।। करी न िावे उनकी जगनती ।।25।। नसर व्यापे िराूँ काल कलेिा ।।26।। लीला देखें ररें इकट्ठे ।।27।। श्याम रूप अचरि रोय दरसी ।।28।। सेत मासर िस श्याम नगीना ।।29।। कौन कला यर रम नसर चीन्रा ।।30।। यर कल रजचरै और तमािा ।।31।। दोरा रंसन मन अचरि भया, करा करे जवस्तार । पुरूष सेव जनत री करै , मन कु छ औरजर धार ।।32।। धारा वर बढ़ती चली, कला न रोकी ताजर । पुरूष मौि ऐसी हुई, बोली कला बनाय ।।33।। रचना रचूूँ और मैं न्यारी । यर रचना मोसर लगे न प्यारी ।।34।। तीन लोक रचना मैं करूूँ । राि पाय ध्यान तुम धरूूँ ।।35।। पुरूष कला को कदया जनकासी । जनकस कला कीन्रा अजत िासी ।।36।। पुरूष दया कर िुगत बनाई । कला दूसरी और उपाई ।।37।। पीत वर्ण वर कला ससगारी । दीन्री अज्ञा पुरूष जनरारी ।।38।। एक काल कु छ अंस दयाली । दोनों जमल कीन्रा कु छ ख़्याली ।।39।। आये मानसरोवर तीरा । अक्षर की देखी वरूँ लीला ।।40।। लीला देख कला जचत िासा । तब अक्षर ने कदया कदलासा ।।41।। दोरा िोत जनरं िन दोउ कला, जमल कर उत्पजत कीन । पाूँच तत्त्व और चार खान, रच लीन्रे गुन तीन ।।42।।

1. लीला ।

बचन 38

बाररमासा

353

गुन तीनों जमल िगत का, ककया बहुत जवस्तार । ऋजष मुनी नरदेव अदेव1, रच बाढ़ो रंकार ।।43।। ।। सोरठा ।। ब्रह्मा जवष्र्ु मरेष, और चौथी िोती जमली । भमण िाल की फांस, िीव न पावें जनि गली ।।44।। आप जनरं िन हुए जनयारे । भार सृजष्ट सब इन पर डारे ।।45।। दीप रचा इक अपना न्यारा । ता में कीन्रा बहु जवस्तारा ।।46।। पालूँग आठ दीप परमाना । िोग आरं भ कीन जवजध नाना ।।47।। स्वाूँस खैंच जनि सुन्न चढ़ाये । धुन प्रगटी और वेद उपाये ।।48।। वेद जमले ब्ह्मा को आये । देख वेद ब्रह्मा ररखाये ।।49।। मुख चारों से धुन उचारी । ताते वेद हुए पुजन चारी ।।50।। ऋजष मुजन जमल कफर ककया पसारा । कमण धमण और भमण सम्रारा ।।51।। जसमृत िास्तर बहु जवजध रचे । कमण धमण में सब जमल पचे ।।52।। खोि जनरं िन ककनहुं न पाया । वेदहु नेजत नेजत गुरराया2 ।।53।। ।। दोरा ।। दिण जनरं िन ना जमला, ककया ज्ञान अनुमान3 । कफर आगे सतपुरूष का, क्यों कर करें प्रमान ।।54।। ताते यर मत संत का, ररा गुप्त िग मासर । गुन तीनों मानें नरीं, िीवहु मानें नासर ।।55।। ।। सोरठा ।। संत पुकारें भेद, वेद पिु मानें नरीं । अब क्या करें उपाय, िीव पड़े सब भमण में ।।56।। जतरलोकी का नाथ कराया । सो भी उनके राथ न आया ।।57।। स्वगण नकण चौरासी फे रा । िन्म िन्म पड़े काल के घेरा ।।58।।

1. राक्षस ।

2. वर्णन ककया ।

3. कयास ।

354

सार बचन

कोइ कोइ चेतन मासर समाने चौथा लोक संत दरबारा संत दया अपने जचत धरें भेद बतावें बानी करें िीव जचतावें ककरपा धार तौ भी कोइ परतीत न लावे बारर मास बखान पुकारे रार िीत कु छ रमरे नारीं सत्य सत्य सत्य मैं करी राधास्वामी नाम उचारो संतन की जिन मन परतीत सतसंग करे जनत्त िो आई

। । । । । । । । । । । ।

सो भी कफर िनमे भौ आने ।।59।। जनश्चय ता का काहू न धारा ।।60।। िीव न मानें तो क्या करें ।।61।। देर धरें और िग में ररें ।।62।। बहुत उठावें िीवन भार ।।63।। चौथा पद आसा नसर धारे ।।64।। कर कर कर अब रम भी रारे ।।65।। मूरख पर इक तान चलाई ।।66।। अब करने को कु छ नसर ररी ।।67।। भजि भाव अब मन में धारो ।।68।। और धारी जिन सतसंग रीत ।।69।। उन प्रजत यर बानी रम गाई ।।70।।

।। मूँगल दूसरा ।। गुरु मेंरे दीनदयाल, करी ककरपा घनी । सुन कर बानी सार1 सुरत धुन में तनी ।।1।। प्रेम प्रीत जचत धार, दास िोभा बनी । मैं औगुन की खान, कहूं कराूँ लग जगनी ।।2।। िब्द भेद अजत गूढ़, थके िराूँ मुजन िनी । कोई न पावे भेद, छान ऐसी छनी ।।2।। सत्तनाम सतपुरूष, अगम पूरन धनी । संत बतावें भेद, सार भाखें पुनी ।।4।। िीव न माने नेक, काल बुजध उन रनी2 । प्रेमी सतसंगी कोई, जिन खोई मानमनी ।।5।।

1. बाररमासा ।

2. नाि करी ।

बचन 38

बचन 39

बसन्त

355

नसर बूझे संसार, चाल मनमुख सनी । िौररी िाने कोय, परख माजनक मनी ।।6।। पोत1 गरे िग मूढ़, छाूँड़ रीरा कनी । क्योंकर कहूं बुझाय, बात ऐसी बनी ।।7।। सुरत रंसनी िाय, िब्द मोती चुनी । कोइ जबरले गुरूमुख िीव, ठान ऐसी ठनी ।।8।। खोला अगम दुवार, ममण िाना जिनी । गई रात अूँजधयार, हुआ चाूँदन कदनी ।।9।। सतगुरू ककरपा धार, साख ऐसी भनी2 । मार जलया मन खेत, सोई सूरा रनी ।।10।। आकद नाम को भूल, हुई सब की ऋनी3 । ममत चदररया पजरन, कमण ने िो जबनी4 ।।11।। मंि कदया गुरु देव, काल , मारा फनी । राधास्वामी नाम, जचत्त दे अब सुनी ।।12।।

।। बचन उनतालीसवाूँ ।। ।। बसंत व रोली ।। ।। बसंत ।। ।। िब्द परला ।। देखो देखो सखी अब चल बसंत । फू ल ररी िराूँ तराूँ बसंत ।।1।। घट घट बाित धुन मृदंग । बीन बाूँसरी और मुरचंग ।।2।। खुल गये परदे अब जनसंग । लागी लगन मेरी रोय अभंग ।।3।। मोसर जमल गये राधास्वामी पूरे संत । अब बाित जरये मैं धुन अनंत ।।4।। मेरे घट में रूँ भा5 बहु नचंत । मानो इन्द्रपुरी आई असचत ।।5।। अस औसर बाढ़ी अजत उमंग । मन कू दन लागा िस तुरंग6 ।।6।। सब घट से जनकसे रूप रं ग । पद पायो अगम अनाम अरं ग ।।7।। 1. कांच के मनके । 6. घोड़ा ।

2. बयान करी ।

3. देनदार ।

4. बुनी ।

5. अप्सरा ।

356

सार बचन

बचन 39

मैं ने मारो काल मरा भुिग ं । मो पै बरसन लागे गुल सुरंग ।।8।। मोसर राधास्वामी दीन्रों ऐसो ढंग । मैं तो उड़न लगो अब िैसे चंग ।।9।। मेरे घट में धारा बरी रै गंग । न्राओ न्राओ जसमट कर सबजर संग ।।10।। स्वामी ककरपा कीन्री अजत उतंग1 । मैं तो सबसे रो गई अब असंग ।।11।। अब छु ट गया मेरा सब कु संग । मैं ने पायो अद्भुत आकद रं ग ।।12।। मेरा जबछ गया चौ-मरले पलंग । मैं ने छोड़ कदया नौ मरला तंग ।।13।। मेरे नाि हुए मन के कु रं ग । मोसर जमल गया ऐसा साध संग ।।14।। मुझे जपया ने जमलाया अपने अंग । मैं ने धारा अपने जपया का रं ग ।।15।। करूँ लग बरनूूँ यर बसंत । मेरा पावे न कोई आकद अंत ।।16।। मैं उबारे बहुतक िीव िंत । मेरा पावे न कोई परम मंत ।।17।। मैं बरनूूँ अपना आप तंत2 । मैंने कर जलया घट का सब मथंत3 ।।18।। कोइ नसर कजथ रै अस कथंत । मैंने भाखा अपना जनि बृतत ं ।।19।। मैंने दूर ककया सब नाम नंग । मेरी सुरत उड़ी िैसे पतंग ।।20।। मैंने मार लई अब मन की िंग4 । कोई कर न सके मेरा बाल बंक5 ।। मेरी जमट गई अब िीिे की ज़ंग । अब न ररी मेरे कोइ उचंग ।।22।। मैंने पाया अपना जपय जनरंग6 । अब आऊूँ िाऊूँ िस जबरंग7 ।।23।। मोसर काल न परखे रोय दंग । राधास्वामी लगाई यर सुरंग ।।24।। ।। िब्द दूरसा ।। घट घर कहूं सुरत छु ट काल मन

में खेलूूँ अब बसन्त । पाया मैं आकद अन्त । करा मजरमा अतन्त8 । जनरत दोऊ िगन्त । गइ भीड़ भई एकन्त । करी बहुतक ठगन्त । और माया दोउ िरन्त ।

1. ऊूँचे की । 6. बे पदाण ।

2. भेद । 7. पक्षी ।

भेद बताया सतगुरू सुन सुन अनरद धुन बरनूं कै से यर चली िाय मारग सुरत िब्द का पाया दयाल सुनाया अपना चढ़ी पहुंची जनि

3. मथन, जबलोना । 8. अत्यन्त, बहुत ।

सन्त ।।1।। अनन्त ।।2।। बृतन्त ।।3।। बेअन्त ।।4।। तन्त9 ।।5।। मन्त ।।6।। पन्थ ।।7।।

4. लड़ाई । 5. टेढ़ा । 9. तत्त, सार ।

बचन 39

बसन्त

357

घर छू टा कफर जमला िुगन्त1 । पाय गई राधास्वामी कन्त ।।8।। ।। िब्द तीसरा ।। खेल ररी मैं जनत बसन्त । राधास्वामी चरन मेरे जरये बसंत । िब्द िोर घट में उठन्त । उल्टत जतल देखत परन्त2 । गगन मूँडल पर बाित तन्त3 । छाय ररी िराूँ ऋतु बसंत । यर सतगुरू से पावे पंथ । अमी धार िराूँ जनत जगरं त । देि अगम बानी बृतत ं 5। सोइ सोइ पावे यर रसंत । खोला पाट रूप दरसंत । नौका मेरी पार लगंत । राधास्वामी नाम गरा जनि मंत ।

सुरत जनरत कर जमली हूं कं त ।।1।। खेलत उन संग आकद अन्त ।।2।। सुन्न जिखर पहुंची तुरन्त ।।3।। श्याम कं ि िोती िगन्त ।।4।। घोर उठत जछन जछन अतन्त4 ।।5।। खेल ररी सूरत इकं त ।।6।। चढ़ कर पहुंची मरले संत ।।7।। भींित गुरूमुख रोय जनसचत ।।8।। कोइ जबरले साधु घट मंथत ।।9।। राधास्वामी गाया अगम मंत ।।10।। कोरट भान छजब भाषत संत ।।11।। अलख अगम के पार चढ़ंत ।।12।। कूँ वल ककयारी िब्द जखलंत ।।13।।

।। िब्द चौथा ।। देखन चली बसंत अगम घर सजखयन साथ चली नभ ऊपर कूँ वलन क्यारी फू ल सूँवारी सतगुरू सूँघ6 परखती पहुंची ममता मार अरूँगता िारी अनरद राग सुने घट अंतर सुखमन पार सुन्न घर पहुंची सतगुरू ककरपा सत पद पाया

। । । । । । । ।

देख देख अब मगन भई ।।1।। िब्द गुरु संग लगन लगी ।।2।। पेख पेख अब गगन ररी ।।3।। कमण बीि को अजगन दई ।।4।। सुरत िब्द की सरन लई ।।5।। नाम रसायन रसन रसी ।।6।। भजि जिरोमन7 परन8 गरी ।।7।। राधास्वामी धरन9 धरी ।।8।।

1. बहुत काल का, युगों के पश्चात । 2. पार या ऊपर की तरफ़ । 3. बािा । 4. अत्यन्त । 5. राल । 6. जमलाप । 7. सब से उत्तम । 8. प्रजतज्ञा ।

358

सार बचन

बचन 39

रोली ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। अब खेलत राधास्वामी संग रोरी चाूँद सुरि तारागन मंडल िेषनाग और कु रम साि ले पूरब पजश्चम उत्तर दजक्षर् सुर नर मुजन िोगी बैरागी सागर कू प भरे सब रं ग से भींि ररीं सजखयाूँ सब संग की समा बंधा लीला अजत उमगी सुरत अबीर1 गुलाल िब्द का लोभ मोर अरंकार जवकारी धुन धधकार सुन्न की बरषा अगम खज़ाना जमला िब्द का सुन्न मरल सतलोक अटारी नइ नइ िोभा पुरूष पुराना राधास्वामी खेल जखलाया

। । । । । । । । । । । । । । ।

धरन गगन जबच िोर मचो री ।।1।। तर तर आये घर छोड़ी ।।2।। चड़ पताल आये कर िोड़ी ।।3।। चार कदिा सब भइ इक ठौरी ।।4।। धूम धाम कु छ भइ रै न थोड़ी ।।5।। मेरू डंड जपचकारी छोड़ी ।।6।। बार बार रं ग प्रेम जनचोड़ी ।।7।। काल बली अब िात ठगो री ।।8।। अब सब के मुख िात मलो री ।।9।। घर इनका सब आि िलो री ।।10।। मुख उनका अब िात न मोड़ी ।।11।। त्याग कदया धन लाख करोड़ी ।।12।। िाय चढ़ी और नाम लखो री ।।13।। करत न आवे बचन थको री ।।14।। अनेक रूप िराूँ एक भयो री ।।15।।

।। िब्द छठा ।। काया नगर में धूम मची रै छाय ररी सतनाम जनरख पद आसा मनसा कर जपचाकारी रूँगता ममता दूर उड़ाई संपजत रं भा3 नाच नची रै रोग सोग दुख मार जनकाले

। । । । । ।

खेल ररी अब सूरत रोली ।।1।। लाय ररी धुन परूष अतोली2 ।।2।। गुन गुलाल घट भीतर घोली ।।3।। प्रेम अबीर जलया भर झोली ।।4।। जवपता नटनी अब मुख मोड़ी ।।5।। धार लई मन में गुरु बोली ।।6।।

1. गुलाल या अबरक का मरीन चर जिसे रोली में लोग एक दूसरे पर डालते रै । 2. जिसकी तोल न रो सके । 3. अप्सरा ।

बचन 39

रोली

359

िन्म िन्म के फं दा काटे । खेली काल संग आूँख जमचौली ।।7।। भजि भाव रं ग माट भराया । रं ग रं गी मेरे मन की चोली ।।8।। कु मजत उड़ाय सुमजत अब धारी । मार मार माया जसर धौली ।।9।। ।। िब्द सातवाूँ ।। उमंड घुमड ं कर खेली रोली । सुमजत ज्ञान संग भर लई झोली ।।1।। मार लई मैनें माया पोली । चढ़के चली अब प्रेम खटोली ।।2।। गगन जिखर धुन जनिकर तोली । िड़ चेतन की गाूँठ सब खोली ।।3।। सुरत जनरत मेरी भई रै अमोली । फे रूूँ िैसे पान तमोली ।।4।। मन तन लाल भया िस रोली2 । सभी जवकार डारे मैंने रोली2 ।।5।। मोर नींद मैं बहुतक सोली । अब राधास्वामी मेरी रं ग दी चोली ।।6।। भरी नाम धन से जरये नौली3 । अब समझी सतगुरू की बोली ।।7।। आसा मन्सा तन से डोली । अब नसर करत काल मोसे ठोली4 ।।8।। ।। िब्द आठवाूँ ।। मेरे गुरु ने जखलाई प्रेम संग रोरी सील गुलाल अबीर जछमा का काम क्रोध दोउ खेलन आये सुरत जनरत दोउ सजखयाूँ संग ले सुखमन नाका िाय रम घेरा जिकु टी िब्द िाय रम पकड़ा रंस सभा िरूँ मान-सरोवर ककगरी नाद रोत धुन भारी राधास्वामी दया रं ग घट भररया

। । । । । । । । ।

मैं तो रोय ररी सब िग से बौरी ।।1।। ता से मैं भर लई झोरी ।।2।। मार मार उनका मुख मोड़ी ।।3।। िब्द खोि को चाली दौड़ी ।।4।। बंकनाल जपचकारी छोड़ी ।।5।। धूम धाम कु छ भई रै न थोड़ी ।।6।। प्रगट भई माया की चोरी ।।7।। सुरत तार अपना नसर तोड़ी ।।8।। िनम मरन दुख दूर करो री ।।9।।

।। िब्द नवाूँ ।। गुरु आन जखलाई घट में रोली । धुन नाम लई तन अंतर खोली ।।1।।

1. लाल रं ग । 2. रोल कर । 3. बसनी, बांसली – रूपया रखने की । 4. ठठोली ।

360

सार बचन

बचन 39

मन मार लई जतल ताला तोड़ी । सुतण फे र लई दल अंदर िोड़ी ।।2।। िुग बाूँध लई गुरु से पट फोड़ी । पद पाय गई जिकु टी गढ़ दौड़ी ।।3।। सुन िाय ररी सुतण घर िब मोड़ी । घर आय गई अपने भइ पोढ़ी ।।4।। पंच इन्द्री जपचकाररयाूँ, भर उलटी छोड़ी । गुन तीनों की िेवरी1, जछन मासर िलोरी ।।5।। रौंमें ममता छोड़ कर, चढ़ गगन चलोरी । जबखरी धुनें समेट कर, सब एक करो री ।।6।। दृजष्ट िोड़ नभ में धरो, तब िोत लखोरी । िोत फाड़ आगे धसो, कफर सुन्न तकोरी ।।7।। इस सुनकी धुन सोध लो, िस िंख बिोरी । राधास्वामी एक पद, यर कह्मो भलो री ।।8।। ।। िब्द दसवाूँ ।। मेरी सुरत राधास्वामी िोड़ी । घट में अब खेलूूँगी रोरी ।।1।। करम भरम की धूर उड़ाई । दुष्ट दूत सब का जसर फोड़ी ।।2।। गगन मूँडल में माट भराया । िुगत ितन कर मन को मोड़ी ।।3।। अनरद धुन अब धमकन लागी । जबिली चमक और उठी घनघोरी ।।4।। तन मन की सब सुद्ध गई रै । िग से कु ल नाता तोड़ी ।।5।। काल िाल के टु कड़े कीन्रे । सुन्न मूँडल तब सुरत बरोरी2 ।।6।। िम िंदार3 खड़ा मेरे द्वारे । पल पल जछन जछन करत जनरोरी4 ।।7।। िड़ चेतन की गाूँठ खुलानी । ममत माया से जतनका तोड़ी ।।8।। सुरत छड़ी5 अब चढ़ी रै अटारी । पकड़ गरी अब धुन की डोरी ।।9।। पंचमुखी जपचकारी छोड़ी । गई हूं जपया पै मैं दौड़ी दौड़ी ।।10।। ऐसी रं गी मेरी सुरत चुनररया । अगम पुरूष मोसे करत जनठोरी9 ।।11।। धन राधास्वामी ऐसा खेला जखलाया । तब ऐसी मैंने खेली रै रोरी ।।12।।

1. रस्सी । 6. ठठोली ।

2. उलटी ।

3. दूत, प्यादा ।

4. खुिामद ।

5. अके ली ।

बचन 39

रोली

361

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। राधास्वामी घर बाढ़ो रं ग सुरत जनरत की ले जपचकारी चाूँद सुरि दोउ क़ु मक़ु म1 कीन्रे सुखमन रौज़ भरा अब भारा सरस2 धार रोय जिकु टी पारा रंसन से िाय खेली रोरी अनरद बािे अद्भुत बािें ऐसी रोली खेलो मेरे भाई

। । । । । । । ।

मैं तो खेलूूँगी ऐसी रोली उमंग ।।1।। राधास्वामी पै भर भर डारी ।।2।। प्रेम गुलाल से भर भर लीन्रे ।।3।। बंकनाल का छु टा फु रारा ।।4।। पहुंचा िाय सुन्न के द्वारा ।।5।। बरन लगी िरूँ अमी की मोरी ।।6।। राधास्वामी खुल खुल गािें ।।7।। सब संतन के िर मन भाई ।।8।।

।। िब्द बाररवाूँ ।। आओ री सखी िुड़ रोली गावें । कर कर आरत परूष मनावें ।।1।। तन मन क़ु मक़ु म भर भर मारें । जछड़क रं ग राधास्वामी ररझावें ।।2।। लाल गुलाल वस्त्र पजरनावें । देख देख रं ग रूप जनरारें ।।3।। सुरत अबीर थाल भर लावें । नैनन की जपचकार छु ड़ावें ।।4।। राधास्वामी अपने जरये जबच धारें । उन संग जनस कदन प्रेम बढ़ावें ।।5।। धरन गगन जबच धूम मचावें । राधास्वामी अब ऐसी रोली जखलावें ।।6।। चाूँद सूरि दोउ खैंच जमलावें । सुखमन नकदयाूँ रं ग बरावें ।।7।। सुरत चुनररया रं ग रं गावें । भींित जनरत खोि धुन पावें ।।8।। दल बादल अब अजधक सुरावें । लाल लाल चहुं कदस जघर आवें ।।9।। रं ग भरे रं ग री बरसावें । अचरि लीला आन कदखावें ।।10।। अस रोली करो कौन जखलावें । राधास्वामी भेद बतावें ।।11।।

1. कांच के गोले गुलाल आकद डालने के जलए ।

2. रज़ार ।

362

सार बचन

बचन 40

।। बचन चालीसवाूँ ।। ।। सावन, सरडोला व झूला ।। ।। िब्द परला ।। सावन मास आस हुइ झूलन । गिणत गगन मगन मन फू लन ।।1।। सजखयाूँ सि सि आई ढूँढूलन1 । प्रेम भरी सुख सरि अमूलन2 ।।2।। करा कहूूँ बजतयाूँ3 नसर खूलन4 । देख देख छजब मन सुध भूलन ।।3।। गिणन धन और जबिली चमकन । श्याम घटा मानो अजत गि हूलन5 ।।4।। देखत सूरत चढ़ी पद मूलन6 । झूलत िब्द सरडोल अतूलन7 ।।5।। सुन सुन धुन काटे सब सूलन8 । मान-सरोवर मोती रूलन9 ।।6।। राधास्वामी करत सरस यर सावन । देख देख सब करत ममूलन10 ।।7।। ।। िब्द दूसरा ।। सावन मास सुराजगन आई । अपने जपया संग झूलन धाई ।।1।। श्याम घटा अब चहुं छाई । गिण गगन अजत धूम मचाई ।।2।। नई रागनी तान सुनाई । चमक धमक सूँग खेल कदखाई ।।3।। अमी धार जछन जछन बरषाई । सुखमन नकदयाूँ प्रेम भराई ।।4।। गगन सरडोला झोका लाई । सजखयाूँ संग की उमगत आई ।।5।। रस भर भर जपया सूँग लुभाई । दाजमन11 चमचम12 अजधक सुराई ।।6।। मोर पपीरा रटन लगाई । अचरि बानी घोर सुनाई ।।7।। राधास्वामी छजब जनरखत रषाणई । अिब समा सब देत बधाई ।।8।। ।। िब्द तीसरा ।। सुरत तू चेत री, अब सावन आया । गगन चढ़ झाूँक री, गुरु खेल कदखाया ।।1।। िरां पड़ा सरडोला नाम का, धुन डोर बूँधाया । सखी सरेली संग ले, िग काम न आया ।।2।।

1. देखने । 2. अनमोल । 3. बातें । 4. खोलने वाली । 5. राथी का झूलना । 6. मूल (आकद) । 7. अतोल । 8. सूल, कष्ट । 9. मोजतयों का रोलना (चुगना) । 10. आनन्द । 11. जबिली । 12. चमक, चमक कर ।

बचन 40

सावन सरडोला व झूला

363

मैं जबरजरन जपय दरस की, कसर चैन न पाया । अब खुल खेलूूँ सुन्न में, गुरु भेद िनाया ।।3।। ररमजझम वषाण रो ररी, मन मोर बुलाया । पी की री बजतयां सुन ररी, मन चाव1 बढ़ाया ।।4।। घट में कर ससगार, जपया को आन ररझाया । सजखयन साथ जवलास यर, राधास्वामी गाया ।।5।।

।। िब्द चौथा ।। राधास्वामी झूलत आि सरडोला । गगन मंडल धुन अद्भुत बोला ।।1।। सुरत जनरत सजखयां जमल आई । झूमत घूमत रूप समाई ।।2।। नैन जनरारत दरस पुकारत । राधास्वामी राधास्वामी नाम दृढ़ावत ।। चाूँद सुरि दोउ खंभ सिे रे । सुखमन चौकी लाला िड़े रे ।।4।। चरन धार राधास्वामी जबरािे । प्रेम मगन सब प्रीतम गािे ।।5।। अिब समा अचरि यर औसर । रंस रंसनी छोड़ा सरवर ।।6।। देख जबलास मगन हुए भारी । सुध बुध भूले देर जबसारी ।।7।। धूम मची अब अमर नगर में । झूलत राधास्वामी बैठ अधर में ।।8।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। अिब यर बूँगला जलया सिाय बैठ गये राधास्वामी ता में आय आि यर घड़ी सुरावन पाय हुई मैं पावन2 सरन समाय ररी मैं राधास्वामी मजरमा गाय

। । । । ।

रंस भी रीझे देखत ताजर ।।1।। करें सब आरत सुर संग गाय ।।2।। गई अब सब की दूर बलाय ।।3।। कहूं क्या बंगला अिब कदखाय ।।4।। सेत पद बंगला मोसर सुराय ।।5।।

।। िब्द छठा ।। सुरत मेरी चढ़ गई गगन अटररयां । मैं धीरे धीरे चढ़ गई गगन अटररयां ।।1।।

1. उमंग, िौक़ ।

2. पजवि ।

364

सार बचन

बचन 40

मैं लख जलये राधास्वामी सुधड़1 सुिजनयां । मोसर डार दई गल में प्यारे गल बजरयां । मैं धारा जनि नैना में ज्ञान अूँिजनयां2 ।।2।। ।। िब्द सातवाूँ ।। पाय गई राधास्वामी रोगई सुराग जखल गये कूँ वला मैं पाय गई जनरार लई िोभा मैं पार गई छोड़े जबकार पाई सतगुरू

भरी । बन्ना3 ।।1।। गगना । सरना ।।2।।

।। िब्द आठवाूँ ।। सुरत आि झूल ररी । वषाण ऋतु सजखयां रषाणनी4 । िब्द सरडोला पड़ा गगन में । धुन की डोरी सखची अधर में । सभी सुराजगन गावन लागीं । अिब अखाड़ा रचा सुन्न में । गुरु ससरासन धरा अधर में । दिणन करत जरया उमगावत6 । भाग सरावत7 भजि बढ़ावत । अधर धाम सतगुरू का डेरा । करे अनंद सदा सुख सागर । आरत समा जमला भागन से । खेलें जबगसें8 संग गुरु के । सरस कूँ वल में खेल िमाया । सुन्न नगर में धूमा धामी ।

गुरु जमले झुलावन रार ।।1।। आईं सरेली लार5 ।।2।। झूल ररी सुतण नार ।।3।। रोत िराूँ झनकार ।।4।। कर कर प्रेम ससगार ।।5।। देखैं जनत्त बरार ।।6।। बैठे लीला धार ।।7।। खावत अमी अरार ।।8।। भूल गई संसार ।।9।। पहुंची खोल ककवाड़ ।।10।। खोये सभी जवकार ।।11।। रोत िीव उपकार ।।12।। पाया भेद अपार ।।13।। खोला जिकु टी द्वार ।।14।। बित सारं गी सार ।।15।।

1. सुन्दर । 2. सुरमा । 3. दुल्रा । 4. खुि हुई (आजन्दत हुई) । 5. जनकट । 6. ह्दय में चाव उत्पन्न रोता रै । 7. मजरमा करती हुई । 8. ख़ुि रोवें ।

बचन 41

फु टकल िब्द

रंस रंसनी रचा अखाड़ा कौन करे मजरमा उस घर की सुरत रंसनी देख तमािा मरासुन्न मैदान अनूपा सुन सुन िब्द हुई मस्तानी सत्य धाम सतनाम जपयारा अलख पुरूष का खोि लगाया अगम नाम का सुजमरन पाया आगे मरल अनूप कदखाना ककगुरे ककगुरे नूर अपारा सुरत जनरत दोउ िाय समानी राधास्वामी अगम अनामी

। । । । । । । । । । । ।

अचरि िोभा धार ।।16।। अक्षर का दरबार ।।17।। आगे को पग धार ।।18।। पहुंची सतगुरू लार ।।19।। भूँवरगुफा बंसी झनकार ।।20।। जछन जछन मैं बजलरार ।।21।। कोरट अरब सूरि उजियार ।।22।। चली प्रेम की धार ।।23।। राधास्वामी अगम अपार ।।24।। बैठे िोभा धार ।।25।। पहुंची सब के पार ।।26।। कीन्रा उनसे प्यार ।।27।।

।। बचन इकतालीसवाूँ ।। फु टकल िब्द ।। िब्द परला ।। खोित ररी जपया पंथ, ममण कोइ नेक न गाया । रै न कदवस बेचन ै , तरसते िन्म जबताया ।।1।। करता ररा पुकार, दाद1 को करीं न पाया । भेख जभखारी िि गुरु, सब भरमें माया ।।2।। िब्द जबना खाली कफरें , सब धोखा खाया । अब जमल गये पूरे सतगुरू, उन भेद सुनाया ।।3।। सुरत सार लखवाय के , कफर गगन चढ़ाया । गगन मूँडल में पहुंच कर, अनरद बिवाया ।।4।। िपी तपी मौनी बकी, ित िोग चलाया ।

1. इन्साफ़ ।

365

366

सार बचन

बचन 41

यर मारग कोई ना करे, दुलभ ण दरसाया ।।5।। धन्य संत और सतगुरू, जिन सार बुझाया । मनमत िग में फै जलया, गुरूमत नरीं आया ।।6।। सुरतवंत जबरले कोई, जिन िब्द कमाया । राधास्वामी भेद दे, सब िीव जचताया ।।7।। ।। िब्द दूसरा ।।

सुन्नी सुरत िब्द जबन भटकी भरमत कफरे चक्र की नाई जवष खावत िगमें झख मारत सोवत ररी मोर अूँजधयारी इन्द्री के बस पड़ी जवकल रोय भोगन में अजत कर जलपटानी बंधन बूँधी िगत में गाढ़ी िग व्यव्रार लगा अजत प्यारा

। । । । । । । ।

अटकी मन संग दुख उलट गई तन में समझ सोच धुर नसर िागन चौप नरीं काल कला घट में रोग सोग कदन कदन बाढ़ी ममता रस धारा उलटी यरां

पाई ।।1।। छाई ।।2।। लाई ।।3।। पाई ।।4।। छाई ।।5।। खाई ।।6।। पाई ।।7।। आई ।।8।।

कड़ी 1—िो सुरत कक सुन्न यानी चैतन मंडल की बासी थी, िब्द की धार को छोड़ कर इस संसार में भटक गई और मन का संग करके दुख पाती रै । " 2---और चक्र यानी चकई के मुवकफ़क़ चंचल रोकर भरम ररी रै और उलटी रोकर देर में फै ल गई । " 3---और भोगों में िो ज़रर से भरे हुए रैं, बतण कर िगत में टक्करें खाती रै और अपने धुर मुक़ाम की समझ नरीं लाती रै । " 4---और मोर के अन्धकार यानी रात में बेरोि सो ररी रै और िागने का इरादा नरीं करती । " 5---और इजन्द्रयों के बस रोकर रर वि चंचल और बेकल रो ररी रै और इस सबब से काल की कला यानी ज़ोर घट में व्याप ररा रै । " 6---और भोगों में जलपट कर कदन कदन रोग और सोग सरती रै । " 7---इस तरर िगत में बन्धन इसके खूब मिबूत रो गये और थोड़ा थोड़ा रस पाकर रर एक चीि में पकड़ यानी मोर बढ़ गया । " 8---और िगत में बताणव प्यारा लग कर िो धार कक सुरत की ऊपर को चढ़नी चाजरए थी, वर उलटी देर और संसार में बरने और जबखरने लगी ।

बचन 41

फु टकल िब्द

जबना मेरर सतगुरू पूरे के सुखमन द्वार गगन का नाका श्याम धाम से हुई न न्यारी धुन की छाूँट रोत नसर भाई घट में बैठ जनरख दृग द्वारा घाटा तोड़ काल मजत मोड़ो राधास्वामी करत सुनाई

। । । । । । ।

367

कस उल्टे कस घर िाई ।।9।। करठन हुआ नसर सुजध पाई ।।10।। सेत पदम कस कस पाई ।।11।। कै से सूरत धुन पाई ।।12।। यरां से रार अधर िाई ।।13।। कमण काट ऊूँचे िाई ।।14।। समझ समझ पग धर भाई ।।15।।

।। िब्द तीसरा ।। सुरत चल बावरी, क्यों घर जबसराया । सतगुरू के संग लाग री, धुर ले पहुंचाया ।।1।। घट पट पजश्चम खोल कर, पूरब कदखलाया । अिब खेल अद्भुत दिा, रंसन परसाया ।।2।। संत मंडली सेत दीप, िा िोत िगाया । मौि जनरारी सत्त पुरूष, धुन बीन सुनाया ।।3।।

कड़ी " "

9---िब ऐसा राल रो गया तो अब जबना मेरर पूरे सतगुरू के मुख इसका ऊपर यानी जनि घर की तरफ़ कै से मोड़ा िावे । 10---और इसी सबब से आकाि का द्वारा िो कक परला सुखमन स्थान रै, खुलना करठन रो गया बजल्क उसकी सुध भी भूल गई । 11---और श्याम स्थान यानी काल के घेर से िुदा न रो सकी । कफर सेत धाम िो उसका जनि स्थान रै, कै से पावे ॽ

" " "

"

12---और इसी सबब से धुन की छाूँट भी नरीं हुई ! कफर जनि धुन को कै से प्राप्त रोवे ॽ 13---अब चाजरये कक अपने घट में जनश्चल रोकर और नेिों के द्वारे को झांक कर अन्दर को चले । यरी सड़क ऊंचे जनि देि की रै । 14---परली घाटी को कक जिसकी रद जिकु टी तक रै, तोड़ कर और काल का मुख मोड़ कर और करमों को काटते हुए ऊंचे को चलना चाजरये । 15---राधास्वामी दयाल फ़रमाते रै कक इस रास्ते में जनरख जनरख और परख परख कर कदम रखना चाजरये ।

368

सार बचन

अधण1 उधण2 के मध्य में, तीरथ परसाया । अंतर गजत नसर बूझते, जतन िन्म गूँवाया ।।4।। जबन सतगुरू यर बाट, करो कोइ कै से पाया । मेरर करें िा पर धनी, कफर रं क3 न राया4 ।।5।। ग़ोता मार समुद्र में मुिा चुन लाया । रतन माल जररदे धरी, बेरद पहुंचाया ।।6।। जनरत सखी अगुवा हुई, िा िब्द समाया । राधास्वामी नाम यर, कोई गुरूमुख पाया ।।7।। ।। िब्द चौथा ।। घट भीतर तू िाग री, रे सुरत पुरानी । जबना देि झाूँकत ररी, सब ममण भुलानी ।।1।। काल दाव मारत ररा, पर तू न जचतानी । अब सतगुरू की मेरर से, मौसम बदलानी ।।2।। नर देरी पाई सरि, सतसंग समानी । सुरत घाट अब पाइया, धुन िब्द जपछानी ।।3।। यर मारग संतन करा, पंजडत नसर िानी । जिन यर मारग पाइया, सो छू टे खानी ।।4।। श्याम कं ि के घाट से, सूरत अलगानी । चौथे पद में िा जमली, िरां अचरि बानी ।।5।। पंचम षष्टम पाय के , राघास्वामी िानी । भाग सुराजगन पाइया, को करे बखानी ।।6।। ।। िब्द पाूँचवाूँ ।। सुरत घर खोि री । ऋतु जमलन जमली ।।1।। िब्द घर सोच री । चढ़ मरल चली ।।2।।

1. नीचा ।

2. ऊूँचा ।

3. कं गाल ।

4. रािा ।

बचन 41

बचन 41

फु टकल िब्द

चन्द्र पद पाय अली घूम कर िाय अड़ी धुन धाम रली जपया संग खेल ररी बस्ती तन छू ट गई गुन इन्द्री त्याग दई राधास्वामी ध्यान धरी

। । । । । । ।

369

ऋतु सदण जखली ।।3।। जतल घोट जपली ।।4।। गई गगन गली ।।5।। सब कमण दली ।।6।। जखली कूँ वल कली ।।7।। िड़ काल जरली ।।8।। जबसरूं नसर एक पली ।।

।। िब्द छठा ।। चल अब सिनी जपया के देि । लखो कफर घट में पद िाय िेष2 । गई नसर उनकी वराूँ कु छ पेि । काल ने मारा गजर3 कर के ि । ररे सब कै दी माया देि । जमलें िो सतगुरू करें संदि े । धरा अब सूरत रंसा भेष । हुआ मैं राधास्वामी दर5 दरवेि6 ।

जमल अब गुरु से कर आदेि1 ।।1।। थके िरूँ ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि ।।2।। रार कर बैठे गौर गर्ेि ।।3।। संत जबन ककया न घट परवेि ।।4।। बचे नसर भोगें काल कलेि ।।5।। जमटे कफर काल कमण का लेि ।।6।। काल के तोड़ कदये सब नेि4 ।।7।। हुए अब राधास्वामी मेरे खेि7 ।।8।।

।। िब्द सातवाूँ ।। सखी चल देख बरार जपया की । चढ़ो घट सेि सूँवार जपया की ।।1।। सुनो धुन गगना पार जपया की । जनरख छजब देखी सार जपया की ।।2।। अमीरस आई धार जपया की । सुतण रोगइ प्यारी नार जपया की ।।3।। मैं रोगइ िग को िार जपया की । गुरु कीन्री सुरत गलरार जपया की ।।4।। ।। िब्द आठवाूँ ।। गुरु जनरखो री, जरये नैन खुलें । गुरु देखो री ।। टेक ।। घट के पट खोल चली, दल काल दले । गुरु पेखो री ।।1।।

1. प्रर्ाम । 6. फ़कीर ।

2. सरस दल कूँ वल । 7. जनि ।

3. पकड़ कर ।

4. डंक ।

5. दरवाज़ा ।

370

सार बचन

बचन 41

जचत चोर जलया, गुरु चरन अली । मन नाव चढ़ी, सतगुरू बल्ली ।।2।। भौिल के पार जपली, गुरु पदम रली । धुन ध्यान जमली, सुतण कूँ वल जखली ।। सब कमण िली, जनःकमण चली । घट खोि जपली, चढ़ गगन गली ।। जवरर बान खली, तब कूँ वल जखली । गुरु रूप लखी, जपया पास पली ।।5।। अमृत घट धार चली, जनस कदन मैं न्राऊूँ अली । मेरा भाग उदय, सत िब्द जमली ।।6।। काल करम घर आग लगी । सब पूूँिी माया िाल िली ।।7।। कफर खोदत खीदत खान खुली । क्या रीरे मोती लाल बली ।।8।। जनि काया काल की िात गली । माया दल मारा दलन दली ।।9।। मैं सुमजत दुआरा खोल चली । गुरुचरन पकड़ धुर धाम वली ।।10।। अब आरत पूरन करत चली । गुरु प्रेम बढ़ावत घाट घुली ।।11।। गुरु चरन पकड़ कहूं नासर टली । कफर चरन सरन में आन जरली ।।12।। दम दम मेरे चरन अधार कली । कल नासर जपया जबन बे-अकली1 ।।13।। कोइ परखत वेदन2 रोत वली । नसर िानत वेद कतेब तली ।।14।। राधास्वामी चरन पकड़ रेली । तन मन से सूरत अधर चली ।।15।। ।। िब्द नवाूँ ।। घुड़ दौड़ करूूँ मैं घट में मैं चेत चली अब तट में सूरत की मूरत जनरत चली मन तोड़त तन अकु लाना मेरे कूँ वल दलन पर भूँवरा अब परसूूँ जपया पद आि मेरे भाग बड़े क्या भाखूूँ तारागन गगन घुमाये

1. व्याकु ल ।

2. तकलीफ़ ।

। । । । । । । ।

मुझे जमले जसपारी संत री ।।1।। घट आकद अनादी अंत री ।।2।। जपया पाये सरोवर तंत री ।।3।। क्या वर्ण बताऊूँ िंतरी ।।4।। क्या करूूँ गुनावन कं त री ।।5।। पढ़ूूँ गुरु मंत री ।।6।। िजि सूर अनेकन दंत री ।।7।। गुरु मजरमा करूूँ बे-अंत री ।।8।।

3. नीचे ।

बचन 41

फु टकल िब्द

मैदान उलट घट झाूँकी मेरे सतगुरू सूरे पूरे रस वेद राि रिघानी मेरे गुरु का दरस कोइ देखे धुन िब्द सुनी िरां नाद री यर भेद जमला मोसर अब की मैं पकड़े चरन गुरु के क्या रोष मरेि न िाने ररर द्वारे अटके सबरी यर अगम भेद रस भारी मैं कककर दासन दासा गुरु जमले दयाल गुसाई कोरटन रजव रोम जबराित राधास्वामी दीन दयाला

। । । । । । । । । । । । । ।

371

धर मारे काल गिंत री ।।9।। दल मारें काल अनंत री ।।10।। गुरु बैठे आि मसंद री ।।11।। रो िावे हूर परं द1 री ।।12।। िराूँ रारे कृ ष्र् और नंद री ।।13।। घट कीन्रा आकद मंथत री ।।14।। नसर जबछड़ूूँ कोरट िुगत ं री ।।15।। मेरी मजरमां करत करंत री ।।16।। सतगुरू पद िानें न पंथ री ।।17।। कोइ पावे प्रेम मनंत री ।।18।। क्या बरनूूँ िोभा अंत री ।।19।। मैं पहुंची धुर घर कं त री ।।20।। क्या िोभा बरनूूँ संत री ।।21।। यर भाखें बचन पुखत ं री ।।22।।

।। िब्द दसवाूँ ।। सुरत रत घोर सुनावत भारी मैं चरन गुरु पर िाउूँ बजलरारी मैं मारूूँ िगत कु ल तारी गुरु मंत सुनो अब आ री गुरु मजरमा अगम सुना री गजत ब्रह्मा जवष्र्ु करां री सब बरे चौरासी धारी या ते सब पकड़ो गुरु चरना री गुरु आकद पुरूष िग आये

। । । । । । । । ।

1. उडालने वाली, सुन्दर, तारों िैसी ।

गुरु चरन कूँ वल मेरे जरये अधारी ।। िग भोग लगे सब खारी ।।2।। क्यों भूलो भूत अनाड़ी ।।3।। नसर नकण न बीच दुखारी ।।4।। नसर िोत जनरं िन गा री ।।5।। क्या देवी देव पुकारी ।।6।। गुरु जबन कोइ उतरे न पारी ।।7।। क्यों बरते भौिल धारी ।।8।। सब रंस िीव चोताये ।।9।।

372

सार बचन

कौवों से दूर रराये तब काल करम मुरझाये गुरु अगम देि अब दीन्रा मुझे लगे गुरु अजत प्यारे गुरु रूप दीप1 उजियारे चुम्बक लख लोर सखचा रे मैं जिऊूँ अधार गुरु प्यारे अब चढ़ूूँ गगन घट पारे लख अलख अगम उजियारे यर आरत करूूँ सदा रे

। । । । । । । । । ।

बचन 41

जनि प्रेमी खैंच बुलाये ।।10।। माया भी जसर धुन ररी पछताये ।।11।। मैं कराूँ लग बरनूं मजरमा ।।12।। ज्यों चंद्र चकोर जनरारे ।।13।। मैं पतंग समान तन िारे ।।14।। यों चरन गुरु मैं धारे ।।15।। मैं बन्धन तींड़ तरा2 रे ।।16।। वराूँ से सतपुर पग धारे ।।17।। राधास्वामी धाम समा रे ।।18।। राधास्वामी फे र बुला रे ।।19।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।। गुरु संग िागन का फल भारी ।। टेक ।। सेवा जमले दरस पुजन पावे । बचन सुनत गुलज़ारी ।।1।। रोम रोम रखणत जचत मंदर । अन्दर जखलत ककयारी ।।2।। िोभा अजधक सुगजन्धत बन बन । भूँवर चक्र फु लवारी ।।3।। इन्द्री द्वार कूँ वल दल न्यारी । सूरत अग्र3 जचतारी ।।4।। नैन बैन सतगुरू सुन जनरखत । कूँ वल जखलत उजियारी ।।15।। मारग छेक4 झकत माया मन । जनरत रोत सुजखयारी ।।6।। सागर तोल बुन्द गजत जसन्धा । अधर चढ़त जपउ प्यारी ।।7।। कोमल धाम कूँ वल रजव भूमी । भावन भार जनकारी ।।8।। श्यामा सरस नील जगर सारी । धारी धरन उठा री ।।9।। गुरु पद नाम अगम गम प्यारी । को कर सकत पुकारी ।।10।। सूरत चढ़ी अधर पद डंडा । अंडा फोड़ जनरारी ।।11।। मैं तो अिान ममण नसर िाना । राधास्वामी कीन्र दया री ।।12।।

1. दीपक ।

2. तर गया ।

3. आगे ।

4. रोक ।

बचन 41

फु टकल िब्द

373

।। िब्द बाररवाूँ ।। जनरखो री कोई उठकर जपछली रजतयाूँ ।। टेक ।। माया छलन तरूँ ग मन रोकन । घट में कूँ वल जखलजतयाूँ ।।1।। सीतल सागर मीन ममण िस । न्रावत मल मल गजतयाूँ ।।2।। जसला उठाय कूँ वल दल फोड़त । तोड़त द्वार सुनत िराूँ बजतयाूँ ।।3।। चमक िोत धारा धुन झककयाूँ । मन माया कू टत िराूँ छजतयाूँ ।।4।। ररख ररख धावत पद उत्तम । तम संसार सकल जबनसजतयां ।।5।। मौि जनरार पुरूष घर पावत । धावत सुरत जनरजतयां ।।6।। पीवत अमी झकोल कूँ वल पद । के ल करत सत मजतयां ।।7।। को कर सके नाम की मजरमा । संत बतावत िो गजत पजतयां ।।8।। राधास्वामी करत सुनाई । मूल जमलो चढ़ ररटयां ।।9।। कड़ी

" " "

" " " " "

1---जपछली चार घड़ी परले सूरि के जनकलने से सुबर तक रात के वि अभ्यास करने से माया को छलने और मन की तरं ग रोकने की ककसी क़दर ताक़त आवेगी, और घट में कूँ वल का भी दिणन रोगा । 2---तब सुरत मछली की तरर सीतल सागर में अश्नान करके सफाई राजसल करे गी । 3---परले परदे को उठा कर और श्याम कूँ वल का दल फोड़ कर यानी तीसरे जतल के अन्दर सुरत ने धस कर िब्द की आवाज़ सुनी । 4---िोत की चमक और वरां की धुन की धार मालूम हुई और मन और माया वरां पर छाती कू टने लगे कक यर अभ्यासी सुरत रमारी रद्द से जनकल गई । 5---और खुि रोकर सुरत वरां से आगे को बढ़ती चली और संसार यानी जिलोकी माया का अूँधरे ा दूर हुआ । 6---राधास्वामी दयाल की मौि के अनुसार सुरत और जनरत सत्तलोक की तरफ को दौड़ने लगीं । 7---सुरत ऊपर को चढ़ कर और दसवें द्वार में अमी का रस लेती हुई और वरां से आगे बढ़ कर सत्त िब्द के साथ जबलास करती हुई चलती रै । 8---संतों के नाम की मजरमा कोई नसर कर सकता रै । वे आप री उसकी गत और पत वर्णन करते रैं । 9---राधास्वामी दयाल समझा कर फरमाते रैं कक मूल पद से जमलना चाजरये रास्ते के मुक़ामात तै करके ।

374

सार बचन

बचन 41

।। िब्द तेररवाूँ ।। सोधत सुरत िब्द धुन अंतर चमकत चाूँप धनुष गजत न्यारी गगन गंग धारा उठ धावत िमुना तीर श्याम खुल खेलत िसुधानंद कं स ररपु सुन्दर धूमत अजधक धधक धुन धावत जबमल नगर िरां घोर अखाड़ा मीन मानसर भूँवर कं ि पर राधास्वामी उठत धाम धुन

। । । । । । । । ।

घटत जतजमर नभ बासी ।।1।। कं ि िोत जछटतक उजियासी ।।2।। रोत िरां जनमणल गजत स्वांसी ।।3।। गोप गूिरी करत जबलासी ।।4।। धमक सुनत ति आसी ।।5।। पावत काल तरासी ।।6।। खोित ररी नाम गजत पासी ।।7।। भृग ं ी रोत समझ गुन तासी ।।8।। बैठे मगन अजवनासी ।।9।।

कड़ी 1---अभ्यासी सुरत, िब्द धुन छांट कर पकड़ती हुई नभ में पहुूँची और नीचे के अन्धकार से न्यारी रो गई । " 2---इस तौर से तीर की भाल के मुवाकफ़क़ चमकती हुई तीसरे जतल से िो कक धनुष स्थान रै पार रो कर िोत का प्रकाि देखने लगी (धनुष स्थान इस सबब से करा कक दोनों आंखों से धारें कमान के मुवाकफ़क़ जमलती रै ) । " 3---अब वराूँ से (अथाणत सरसदल कूँ वल से ) सुरत की धार िो कक गंगा की धार रै गगन की तरफ़ को दौड़ी िराूँ पहुूँच कर प्रार् जनमणल रोते रैं । " 4---और रास्ते में िमुना के ककनारे (अथाणत बाईं तरफ़) मन खुल कर सैर करता िाता रै और सुरत भी उसके जबलास को देखती िाती रै ( गोपी रूप गूिरी अथाणत सुरत िो इजन्द्रयों से न्यारी रो गई रै ) । " 5---और वरी मन िो की कृ ष्र् रै ऊपर की आवाि सुन कर िगत की आस छोड़ कर । " 6---जनरायत धूम धाम के साथ धुन की धधकार पकड़ कर ऊपर को दौड़ता रै और काल मुरझाता िाता रै । " 7---चढ़ते चढ़ते सुरत जबमल नगर (अथाणत सुन्न ) में िरां रंसों के अखाड़े िमा रैं, पहुूँची और नाम की गजत वरां खोि कर अच्छी तरर से परचानी । " 8---कफर सुरत मछली की तरर मानसरोवर में और भूँवर की तरर गुफा में सैर करती हुई सत्तलोक में परूँच कर भृङ्गी अथाणत सतगुरू स्वरूप की गजत को "

प्राप्त हुई । 9---और वराूँ से राधास्वामी धाम में राधास्वामी धुन सुनती रई पहुूँच कर मगन रो गई अजवनासी रूप रो कर वर जवश्राम ककया ।

बचन 41

फु टकल िब्द

375

।। िब्द चौदरवाूँ ।। मेल करो जनि नाम गुसइयां । मेल करो जनि नाम ।। टेक ।। गुरु के चरन धार रहूं जरय में । खुले सेत और श्याम ।।1।। दुक्ख रटावन खेद जमटावन । टारन काल और िाम ।।2।। ऐसे गुरु का ध्यान सम्रारन । पहुंच जतरकु टी सतनाम ।।3।। मन और सुरत मान मद त्यागे । खोि जलया सतनाम ।।4।। उल्टी घाटी चढ़ कर झांकी । सीतल हुई छु टी कजल धाम ।।5।। मैं चकोर चंदा धुन पाई । छू ट गई कदि बाम1 ।।6।। काल नगर की हुद्द छु ड़ानी । दयाल गुरु दीन्रा आराम ।।7।। सुरत समानी िब्द रठकानी । पाया सुन्न जगराम2 ।।8।। आरत करूूँ प्रेम रस भीनी । सतगुरू चरन जमला जवश्राम ।।9।। राधास्वामी नाम अनामी । भेद कदया अब मूल मुक़ाम ।।10।। ।। िब्द पंद्ररवाूँ ।। भरमी मन को लाओ रठकाने । प्रीजत लगे गुरु चरन समाने ।।1।। दुजबधा छू टे मजत बदलाने । सुजमरन टेक तुम्रारी आने ।।2।। तुम जबन भमण भुलाना भारी । िराूँ तराूँ की अटक सम्रारी ।।3।। जबन सतसंग बूझ नसर आवे । भाग जबना सतसंग न पावे ।।4।। क्यों कर कहूूँ ब्योंत3 नरीं कोई । तुम दयाल कु छ करो जबलोई ।।5।। चरनामृत परिादी देना । और उपाव नरीं क्या करना ।।6।। इतना काम सदा तुम करना । तो कारि उसका भी सरना ।।7।। उसकी तरफ़ से आरत करो । प्रीत प्रतीत जचत्त में धरो ।।8।। तब कु छ फल पावेगा थोड़ा । तो मन मजत िावे जचत मोड़ा ।।9।। राधास्वामी करें समझाई । करो आरती प्रीजत लगाई ।।10।। ।। िब्द सोलरवाूँ ।। सुतण बन्नी गुरु पाया बन्ना । देख दरस जछन जछन मन जभन्ना ।।1।। तुररया घोड़ी सरि ससगारी । धीरि पाखर ता पर डारी ।।2।। चाूँद सुरि दोउ करी रकाबें । गगन ज़ीन ता पीठ धरावें ।।3।।

1. बांई ।

2. गाूँव ।

3. साधन, उपाय, युजि ।

376

सार बचन

जबिली पवन चली घोड़ी रीरे लाल झालरें मोती ता पर बन्ना करी असवारी चल बरात पहुंची गगना पुर ब्यार हुआ और फे रे डाले घर में धसे मात जपतु ररखे

कड़ी " "

"

"

" "

" "

। । । । । ।

बचन 41

फे र लगाम एड़ दे मोड़ी ।।4।। माजर्क पन्ना वारूूँ िोती ।।5।। जबिली चाल पवन धधकारी ।।6।। बन्नी बन्ना जमले जिष्य गुरु ।।7।। बन्नी ले बन्ना घर चाले ।।8।। प्रेम मगन मानो बादल बरखे ।।9।।

1---प्रेमी सुरत को िब सतगुरू प्रीतम जमले, तब उनका दिणन करके मन जछन जछन मगन हुआ । 2---तुररया यानी चैतन्य आत्मा की धार को घोड़ी बना कर उस पर धीरि की पाखर डाली, यानी धीरि के साथ उस पर सतगुरू सवार हुए । 3---चाूँद सूरि यानी इड़ा और सपगला की रकाबें बनाईं और गगन यानी चैतन्य आकाि रूपी ज़ीन उस पर धरी । 4---इस तरर सतगुरू उस तुररया की घोड़ी यानी चैतन्य धार पर सवार रोकर जबिली और पवन की चाल के मुवाकफ़क चले और लगाम यानी मुख उस धार का धर की तरफ़ मोड़ कर ऊपर चढ़ने के वास्ते ज़ोर कदया यानी एड़ लगाई । 5---ऐसे सतगुरू के ऊपर रीरे लाल और मोती की झालरें और माजर्क पन्ना और िोत स्वरूप को (िो मुराद िब्दों की धुन और स्थानों के स्वरूप से रै ) वार दूूँ । असल में िैसे कक सुरत चढ़ती िाती रै, सब रास्ते के स्थान और वराूँ की रचना सतगुरू पर अपने आपे को वारते रैं यानी नीचे पड़ते चले िाते रैं । 6---ऐसी चैतन्य धार की घोड़ी पर सतगुरू बन्ने सवार हुए, और वर धार जबिली और पवन की चाल और ज़ौर िोर के साथ चली और चढ़ी । 7---चलते चलते सतगुरू और प्रेमी सुरत और बरात यानी और सतसंगी और सतसंजगनों की सुरतें जिकु टी में परूँची और वराूँ सतगुरू और सेवक का मेला हुआ । 8---और प्रेमी सुरत सतगुरू की पररक्रमा करके उनके साथ घर को चली । 9---िब सत्तलोक में पहुूँचे तब सत्तपुरूष (िो कक कु ल रचना के माता जपता रैं ) देख कर मगन हुए । िैसे कक बादल की वषाण रोती रै, इसी तरर प्रेम और आन्नद की बषाण रोने लगी ।

बचन 41

फु टकल िब्द

377

मोती रीरे लाल िवाजरर । बुआ बजरन जमल ककये जनछावर ।।10।। करें आरत रूँस बन्ना बन्नी । रंस पुकारें धन्ना, धन्नी ।।11।। राधास्वामी रजलयाूँ मन्नी । मगन हुए भैया और बजरनी ।।12।। ।। िब्द सिरवाूँ ।। धुन धुन धुन डालूूँ अब मन को मन कपास सुरत कर रूई हुई साफ धुन की सुजध पाई गाली मनसा गाले कमाण सूत सुरत बारीक जनकासा जचत्त अटेरन टेर सुनाई कूँ वल कूँ वल लीला करा गाऊूँ सुरत रूँ गी करे िब्द जबलासा जनकर सपड सुन पैंठ समाई राधास्वामी हुए दयाला

। । । । । । । । । ।

मैं धुजनया सतगुरू चरनन को ।।1।। काम जबनौले डाले खोई ।।2।। नाम धुना ले गगन चढ़ाई ।।3।। चरखा चला कते सब भमाण ।।4।। कु कड़ी कर कदया िब्द जनवासा ।।5।। फे र फे र कूँ वलन पर लाई ।।6।। सुन सुन धुन जनि मन समझाऊूँ ।।7।। तिी बासना बेची आसा ।।8।। सौदा पूरा ककया बनाई ।।9।। नफा जलया खोला घट ताला ।।10।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।। ठु मरी अब करी रै बखानी जमल गया प्यारा झूँझरी झाूँकी ककगरी धुन अिब बिाई यर ठु मरी कोइ साध जवचारी राधास्वामी कर कर भाखी "

"

"

। । । । ।

सुरत चली ठु म ठु म अगवानी ।।1।। कहूूँ करा िोभा अब वराूँ की ।।2।। सारं गी धुन वरां ररी छाई ।।3।। िोगी िती ररे सब रारी ।।4।। सेवक देखें खुल खुल आंखी ।।5।।

10---मोती रीरे लाल और िवाजरर, बुआ और बजरन यानी रंस और रंसजनयों ने न्योछावर ककये, यानी सत्त िब्द की धुनों की िो रर एक रीरा मोती और लाल रूप रै सतगुरू और प्रेमी सुरत पर वषाण रोने लगी । 11---कफर सतगुरू और प्रेमी सुरत ने मगन रोकर उमंग सजरत सत्तपुरूष राधास्वामी दयाल की आरत उतारी, और चारों तरफ से रंस धन्य धन्य पुकारने लगे । 12---यर कै कफ़यत देख कर राधास्वामी दयाल मगन और प्रसन्न हुए और रंस रंसनी भी इस जबलास में िाजमल रोकर आन्नद को प्राप्त हुए ।

378

सार बचन

बचन 41

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।। गुरु अचरि खेल कदखाया बकरी ने राथी मारा चींटी चढ़ गगन समाई गूग ूँ ा सब राग सुनावे मक्खी ने मकड़ी खाई धरती चढ़ वृक्षा बैठी िंगल में बस्ती ब्याई मूसे से जबल्ली भागी

। । । । । । । ।

सुतण नाम रतन घट पाया ।।1।। गउ कीन्रा ससघ अरारा ।।2।। सपगला चढ़ पवणत आई ।।3।। अंधा सब रूप जनरारे ।।4।। भुनगे ने धरन तुलाई ।।5।। पक्षी ने पवन चुगाई ।।6।। बस्ती सब जखलक़त खाई ।।7।। पानी में अजि लागी ।।8।।

कड़ी 1---गुरु ने दया करके अचरि रूपी खेल घट में कदखाया, सुरत को नाम रूपी रतन यानी दसवें द्वार का िब्द प्राप्त हुआ । " 2---सुरत ने मन को िीता और कफर सुरत ने काल को मारा । " 3---सुरत चढ़ कर गगन में परूँची । िो मन कक दौड़ना यानी चंचलता छोड़ कर जनश्चल रो गया वरी पवणत पर चढ़ गया यानी जिकु टी में पहुूँचा । " 4---िो िशस कक दुजनया की तरफ़ और अन्तर में बोलने से चुप हुआ वरी िब्द कक धुनें सुनने लगा और जिस ककसी ने बारर से अपनी दृजष्ट बन्द की वरी अन्तर में रूप देखने लगा । " 5---मक्खी नाम सुरत का रै िो मकड़ी यानी माया के घर में िब तक थी उसका खािा रो ररी थी और िब कक दसवें द्वार की तरफ़ उलट कर पहुूँची तब माया को जनगल गई---भुनगे यानी िीव या सुरत ने सूक्षम िरीर को समेट कर आकाि में उठा जलया । " 6---सुरत चढ़ कर जिकु टी में पहुूँची---मन िो सैलानी था िब चढ़ कर जिकु टी में पहुूँचा तब प्रार् पवन को जनगलता चला गया । " 7---बस्ती यानी रचना (और रचना करने वाली नाम सुरत का रै ) सो उसने सपड रूपी िËल में उतर कर रचना की और कफर िब उलट कर जिकु टी या दसवें द्वार में पहुूँची तब सपड और ब्रह्मांड की रचना को जनगल गई यानी समेट गई । " 8---चढ़ने वाली सुरत को देख कर माया रट गई । अमी की धार िो कक सरसदल कूँ वल के मुकाम पर आई, वरी िोजत स्वरूप रोकर रोिन रो ररी रै और वरी माया का स्वरूप रै और वरी अजि रै ।

बचन 41

फु टकल िब्द

कउआ धुन मधुरी मूरख से चतुरा राधास्वामी उलटी

379

बोले । मेंडक अब सागर तोले ।।9।। रारा । धरती में गगन पुकारा ।।10।। गाई । उल्लू को सूर कदखाई ।।11।। ।। िब्द बीसवाूँ ।।

अंत मध्य आकद िीवन

हुआ िग गरी पुजन अंत मध पदवी

मासर आय छोड़ जमले

। । । ।

आकद घर अपना भूली ।।1।। अंत को कफर ले तोली ।।2।। गरी िा अपनी मूली ।।3।। चढ़े िो अब के सूली ।।4।।

कड़ी 9---िो मन कक परले कड़आ वाक्य बोलता था और अपने मतलब के जलये औरों को दुख देता था वरी जिकु टी में चढ़ कर मीठी बोली के साथ राग राजगनी सुनाता रै—सपड में नीचे का मन िो मेंडक के मुवाकफ़क़ थोड़ी रद में उछलता कू दता था जिकु टी में चढ़ कर भौसागर की तौल और नाप करता रै । " 10---मन िो कक सपड में बैठ कर मूरखता से भोगों में फूँ स ररा था िब गुरु कृ पा से घट में चढ़ कर जिकु टी में पहुूँचा तब काल जिसने चतुराई करके िाल जबछाया था उससे रार गया और कफर धरती यानी सपड में जिकु टी के िब्द की धुनें फै ली । " 11---राधास्वामी ने सुरत और मन के उलटने का यर राल वर्णन ककया और िो िीव कक उल्लू के मुवाकफ़क़ ब्रह्मरूपी सूरि का दिणन नरीं कर सकते थे उनको जिकु टी में चढ़ा कर ब्रह्म का दिणन कराया । " 1---सुरत भोगों में फूँ स कर िड़ खान में उतर गई और संतों के दसवें द्वार को िो तीन लोक की रचना का आकद रै और िरां से सुरत सपड में उतरी थी, भूल गई । " 2---और कफर मध्य यानी मृत्यु लोक में नर देरी पा कर जतरलोकी के अन्त पद को िो कक वरी दसवा द्वार रै, सुरत ने खबर ली । " 3---और कफर इन तीनों स्थान यानी दसवां द्वार और मृत्यु लोक और िड़ खान को छोड़ कर अपने मूल पद यानी सत्तपुरूष राधास्वामी देि में पहुूँची, या उसका जनिाना और इष्ट बाूँध कर उस तरफ़ को चलने लगी । " 4---सूली मतलब उस धार से रै िो सरसदल कूँ वल से गुदा चक्र तक आई रै सो िो कोई उस धार को पकड़ कर ऊपर को चढ़े, वरी छठे चक्र के पार िाकर मौत को िीत लेगा और कफर सत्तलोक में पहूूँच कर अमर रो िावेगा ।

380

सार बचन

ससे माररया ससर मात जपता दोउ िने मछली चढ़ी अकाि चाूँद सूर पाताल से चोरन पकड़ा सार अमृत पी पी मरें राधास्वामी गाइया संत जबना को बूजझ रै अिा माररया भेजड़या

। । । । । । । । ।

बचन 41

कौन यर समझे बोली ।।5।। पूत ने बैठ खटोली ।।6।। धरन कर डारी पोली ।।7।। जनकले पट खोली ।।8।। सार ने पजररी चोली ।।9।। ज़रर की गाूँठी खोली ।।10।। यर भेद अमोली ।।11।। यर ममण तोली ।।12।। ले जमरगन टोली ।।13।।

कड़ी 5---और कफर वरी सुरत िो कक मुवाकफ़क़ खरगोि के , सपड में ग़रीब और जनबणल थी, दसवें द्वार में पहूूँच कर ससर यानी काल को मार लेगी । " 6---िब सुरत गभण में यानी खट चक्र के देि में आई तब पजरले उसने ब्रह्मांड और सपड की रचना करी, यानी माया और ब्रह्म के पद उसी से प्रगट हुए, और िब सुरत, िन्मी यानी िीव गभण से बारर आया तब वरी िीव सपड में उतर कर बैठने से माया और ब्रह्म का पुि रो गया । " 7---और िब सुरत मछली की तरर िब्द की धार को पकड़ कर उल्टी यानी ऊपर को चढ़ी तब वर धरन यानी सपड को पोला या खाली कर गई । " 8---और िब चढ़ते चढ़ते दसवें द्वार के परे गई तब सूरि और चाूँद यानी जिकु टी और सुन्न स्थान दोनों पाताल यानी नीचे नज़राई कदये । " 9---िब सुरत यानी िीव का उतार हुआ तब काल और करम और काम क्रोध लोभ मोर और अरंकार बग़ैरा चोरों ने इस को घेर कर बन्द यानी चोले में जगरफ़्तार कर जलया । " 10---और िब वरी िीव यानी सुरत उलट कर अपने घर की तरफ को चली और ब्रह्मांड के परे चढ़ गई और अमी की धारा बराने लगी तब वरी सब चोर अमृत पी कर मर गये और उनकी ज़रर की गाूँठ खुल कर भस्म रो गई । " 11---राधास्वामी ने यर अमोल पद का अमोल भेद गाया । " 12---और इसको जबना संत के कोई नरीं समझ सकता रै । " 13---अिा बकरी को करते रैं सो यर सूरत सुरत की सपड में थी यानी काल भेजड़ये का खािा रो ररी थी, सो िब सतगुरू की कृ पा से उलट कर ब्रह्मांड और उसके परे पहुूँची तो मन और इजन्द्रयों को संग लेकर काल भेजड़ये पर चढ़ आई और उसको मार जलया ।

बचन 41

सुरत

फु टकल िब्द

िब्द

मेला

भया । ले

381

अनरस

घोली ।।14।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।। गुरु उलटी बात बताई । मूरखता खूब जसखाई ।।1।। सोते ने िमा कमाई । िगते ने माल गूँवाई ।।2।। बैठे ने रास्ता काटा । चलते ने बाट न पाई ।।3।। धरती चढ़ गगना आई । सुन्नी पाताल समाई ।।4।। चोरी से खासवद रीझा । सच्चे को मार खपाई ।।5।।

कड़ी 14---और तब सुरत का िब्द के साथ मेला रो गया यानी अमृत का भंडार खोल कदया । " 1---गुरु ने यर उलटी बात बताई कक संसार में मूखण रोकर के बरत यानी चतुराई छोड़ दे, तो तेरा कोई दामन नरीं पकड़ सके गा और दूसरे यर कक मूर यानी मूल पद की रक्षा और सम्राल रख यानी इस तरफ़ से उलट कर राधास्वामी के चरनों को दृढ़ करके पकड़ । " 2---जिस ककसी ने संसार की तरफ़ से उदास रोकर इसके कारोबार में दखल देना छोड़ कदया यानी इस तरफ से सो गया और परमाथण में प्रेम की दौलत पाई, और िो संसार की तरफ़ मुतविर ररा और बहुत रोजियारी और िौक़ से इसके कारोबार करता ररा उसी ने परमाथण की दौलत खोई और अपनी चैतन्यता मुफ़्त गूँवा दी । " 3---िो मन कक जनश्चल रोकर घट में बैठा वरी ऊूँचे की तरफ़ चढ़ने लगा और परमाथण का रास्ता तै करता हुआ घर की तरफ़ चला और िो मन की चंचल ररा और इधर उधर संसार में दौड़ता ररा उस को घर का रास्ता नरीं जमला और न उस तरफ़ को चला । " 4---िो सुरत कक अभ्यास करके ब्रह्मांड में और उसके परे पहुूँची उसके संग धरती यानी माया भी जिसका आकद जनकास जिकु टी से हुआ रै उलट कर अपने असल में िा जमला ओर िो सुरत कक संसार में जलपट ररी वर माया के साथ नीचे से नीचे के मुक़ाम तक उतरती चली गई । " 5---िो िशस कक अपने परमाथण की कमाई और तरक्की को िगत से जछपाये हुए चला उससे माजलक प्रसन्न हुआ और जिस ककसी ने कक सचौटी के साथ अपने परमाथण का भेद और कमाई का राल िगत के िीवें से खोल कर करा उसी को अनेक तरर के जवघ्नों से मुकाबला करना पड़ा और सशत तकलीफ उठानी पड़ी और उसके परमाथण में घाटा हुआ ।

382

सार बचन

अजि को िाड़ा लागा । वषाण रोटी जनत भूखी तरसे । पानी सोते पर खाट जबछाई । िगते बंझा जनत िनती रारी । िनती घोड़े पर पृथवी दौड़ी । ऊूँटन राधास्वामी मौि कदखाई । सूरत

बचन 41

से अब को पुजन चढ़ अब

सूखी साखा ।।6।। प्यासा तड़पे ।।7।। सुषपजत आई ।।8।। बाूँझ कराई ।।9।। गगना फोड़ी ।।10।। िब्द लगाई ।।11।।

कड़ी 6---िब सुरत गगन की तरफ़ को चढ़ने लगी, तब अजि यानी माया ( िो सुरत की मदद से चैतन्य थी ) कांपने लगी, यानी उसकी चैतन्यता सखच गई, और िब अमृत की वषाण अन्तर में चढ़ने वाली सुरत पर रोने लगी, तब ब-सबब सखचाव और जसमटाव सुरत के िो उसकी धारें नीचे की तरफ़ िारी थी वर सूखने लगी और जसमटती चलीं । " 7---और िब रोटी यानी माया और उसके पदाथण िो सुरत की धार से चैतन्य थे अब उस चैतन्यता के जलये भूखे तड़पते रैं और इसी तरर पानी यानी मन सुरत की चैतन्य धार के वास्ते प्यासा तड़पने लगा । " 8---िो परमाथण की तरफ़ से गाकफ़ल यानी सोता ररा वर माया के तले यानी षट चक्र में दबा और फूँ सा ररा और िो परमाथण की कमाई चेत कर और रोजियारी के साथ करने लगा वर सपड और संसार की तरफ़ से बे-खबर रोता गया । " 9---बंझा यानी माया से (िब कक सुरत उसके घेर में उतर कर आई ) अनेक प्रकार की रचना और अनेक पदाथण पैदा हुए, और िब सुरत यानी िनती और असल करता उलट कर सपड और ब्रह्मांड के परे पहुूँची, तब सब रचना जसमट गई, और वर अके ली अपने घर की तरफ जसधारी । " 10---िब कक सुरत िो सपड में फूँ स कर देर यानी पृथ्वी रूप रो ररी थी उलट कर ब्रह्मांड की तरफ़ चली तो वर मन रूपी घोड़े पर सवार रोकर दौड़ी और तब री ऊूँट यानी स्वांसा अथवा प्रार् उलट कर और गगन को फोड़ कर चढ़ गई । " 11---खुलासा इस िब्द का यर रै कक राधास्वामी ने अपनी मेरर और मौि से सुरत को चढ़ा कर िब्द से जमला कदया ।

बचन 41

फु टकल िब्द

383

।। िब्द बाईसवाूँ ।। सुन री सखी इक ममण िनाऊूँ कदन जबच नाचत चंद कदखाऊूँ अजि पूतरी िल से ससचाऊूँ गगन मासर पृथवी चलवाऊूँ व्योम वलाय पवन थमवाऊूँ दुबणल से बलवान जगराऊूँ कागन झुड ं रंस करवाऊूँ उलटी बात सभी कर गाऊूँ

। । । । । । । ।

नई बात अब तोजर सुनाऊूँ ।।1।। रै न उदय कदन कर दरसाऊूँ ।।2।। िल की रं भा अजि नचाऊूँ ।।3।। पृथवी मध्य गगन लखावऊूँ ।।4।। ससर मार और स्यार जिताऊूँ ।।5।। जिकु टी चढ़ यर धूम मचाऊूँ ।।6।। लूकन को अब सूर कदखाऊूँ ।।7।। ऐसे समरथ राधास्वामी पाऊूँ ।।8।।

कड़ी 1---रे सखी तुझको एक भेद िनाता हूूँ और नई बात सुनाता हूूँ । " 2---सुन्न में िरां कक सदा रोिनी ररती रै यानी कदन ररता रै चन्द्र स्वरूप नज़र आता रै, और जिकु टी के मुक़ाम पर िरां से कक माया यानी अन्धेरा और रात िुरू हुई सूरिरूप रोिनी देता रै । " 3---सरसदल कूँ वल में िोत स्वरूप अमृत की िल धार से (िो ऊूँचे से आती रै ) रोिन रै, और अमृत धार के संग िो धुन सरस दल-कूँ वल से नीचे उतरी, वर अजि यानी माया के घेर में के ल कर ररी रै । " 4---आकाि में पृथ्वी यानी देर की बासी सुरत को चढ़ाऊूँ, और पृथ्वी यानी देर में गगन यानी आकाि का लखाव करूूँ । " 5---व्योम यानी मन-आकाि िब सुरत की चढ़ाई के वि ऊूँपर को जसमटे, तब प्रार् यानी पवन धीमी रोकर ठरर िाती रै, स्यार िो िीव से मुराद रै वर गगन में चढ़ कर ससर यानी काल को िीत लेता रै । " 6---दुबल ण वरी िीव या सुरत से मतलब रै िो सपड में उतर कर जनरायत बे-ताक़त रो िाती रै, और जिकु टी में चढ़ कर काल बली को पछाड़ कर ज़ेर कर लेती रै । " 7---अनेक िीवों को िो सपड में जनपट काग यानी मन रूप रो कर बतण ररे रैं दसवें द्वार में पहुूँचा कर रंस स्वरूप बनाऊूँ, और जनपट संसारी िो उल्लू के मुवाकफ़क़ माजलक की तरफ से अन्धे और अिान रो ररे रैं उनको जिकु टी में पहुूँचा कर सूरि ब्रह्म का दिणन कराऊूँ । " 8---यर सब उलटी बातें समथण सतगुरू राधास्वामी दयाल की दया में सरी करके कदखाई िा सकती रैं ।

384

सार बचन

बचन 41

।। िब्द तेईसवाूँ ।। गूग ूँ े ने गुड़ खाइया बजररे ने धुन पाइया अन्धे मोती पो जलया लूले ने नभ थाजमया सपगला पवणत चढ़ गया रोगी सद िीजवत ररे

। । । । । ।

वर वर वर यर कोइ जबन

कै से क्योंकर ककसे अचरि साधु रोगजर

करे बनाय ।।1।। करे सुनाय ।।2।। कदखावन िाय ।।3।। करा न िाय ।।4।। िाने ताय ।।5।। मर मर िाय ।।6।।

कड़ी 1---जिसने कक अपने घट में िब्द का गररा रस पाया, वर उसको क्यों कर बयान कर सकता रै । उसका राल वरी रोगा िैसा कक गूग ूँ े का िो गुड़ खाकर उसके स्वाद का बयान करने से लाचार रै । और यर कक जिस ककसी को गररा रस अंतर में आया वरी उसके प्रकट करने में आम लोगों के सामने गूग ूँ ा रो गया । " 2---जिसने कक दुजनया की तरफ़ से अपने कान बन्द ककये उसी को अंतर में िब्द खुला कफर वर उस िब्द और आनन्द के भेद को आम लोगों को कै से ितावे या सुनावे ॽ " 3---जिसने कक अपनी नज़र दुजनया की तरफ़ से खींच ली यानी आूँखें बन्द कर ली, उसी ने अपनी सुरत की धार को दसवें द्वार में पहुूँचाया यानी मोती पो जलया । कफर वर इस कै कफयत को अवाम को कै से कदखा सकता रै ॽ " 4---िो मन कक दुजनया में दौड़ने से रर गया यानी जिसने चंचलता छोड़ दी उसी ने चढ़ कर नभ यानी आकाि को थाम जलया और यरी अचरि की बात रै । " 5---िो मन कक जनश्चल रो गया, वरी सपगला रै और वरी सतगुरू की दया से सुमरे पवणत यानी जिकु टी पर चढ़ गया । इस राल को कोई अभ्यासी साधु समझता रै । "

6---िो कोई माजलक के चरनों के इश्क़ यानी प्रेम का बीमार हुआ और जिस ककसी ने अपने मन को बीमार िान कर सतगुरू से उसका इलाि कराना िुरू ककया, वरी एक कदन अमर पद में पहुूँच कर अमर रो िावेगा और जिस ककसी को प्रेम की बीमारी नरीं लगी या जिसने अपने मन की बीमारी की खबर न ली यानी अपने को जनमणल और चंगा समझा, वर बारम्बार िन्मेगा और मरे गा ।

बचन 41

फु टकल िब्द

सोगी जनत ररखत ररे जचन्ता में िो जनत ररे बैरागी भरमत कफरे सतगुरू यर परचा कदया अंतरमुख िो िब्द में राधास्वामी कर कदया

। । । । । ।

385

जबन सोग चौरासी िाय ।।7।। सो जमले अजचन्ते आय ।।8।। रागी मुजि समाय ।।9।। कोइ जबरले खोि कराय ।।10।। लेंगे बूझ बुझाय ।।11।। तुम लेना िब्द कमाय ।।12।।

कड़ी 7---िो अपने प्रीतम सच्चे माजलक के जवयोग की जवरर में उदास और ग़मगीन ररता रै, वर कदन कदन अन्तर में चरर् रस पाकर मगन रोता िावेगा, और जिस ककसी के जररदे में माजलक के चरनों की जवरर और प्रेम नरीं रै, वरी मनुष्य चौरासी में भरमता ररेगा । "

8---िो कोई अपने माजलक के जमलने और अपने िीव का सच्चा उद्धार और कल्यार् करने की जचन्ता में ररता रै, वरी एक कदन अजचन्त पुरूष यानी सच्चे माजलक से जमलकर जनजिचन्त रो िावेगा ।

"

9---जिस ककसी ने संसार से वैराग ककया यानी घर बार छोड़ कर भेष जलया और माजलक के चरनों का प्रेम और प्यार उसके मन में नरीं आया तो वर रमेिा चारों खानों में भरमता ररेगा, और जिस ककसी के मन में माजलक के चरनों का राग और प्रेम समाया, वरी एक कदन मुजि पद में पहुूँच िावेगा ।

" 10---सतगुरू ने इस तरर से सच्चे प्रेजमयों को उनके घट में परचे कदये सो इस बात को सुन कर कोई जबरले िीव उसके खोि और तलाि में लगेंगे । " 11---और िो अपने अन्तर में िब्द का अभ्यास करें ग,े वरी इस कै कफ़यत को समझेंगे और अपने घट में जनरख और परख कर बूझग ें े । " 12---इस वास्ते सतगुरू राधास्वामी दयाल सब िीवों को पुकार कर करते रैं कक रे भाइयो ! िब्द की कमाई करो और अपने घट में रस और आनन्द लो

और दया और मेरर के परचे देखो ।

386

सार बचन

बचन 42

।। िब्द चौबीसवाूँ ।। मन सींचो प्रेम ककयारी घट पौद जखली अब भारी िल अमृत वषण बरा री गुरु िब्द लगा सुतण तारी कूँ वल कमोदनी चन्द्र जनरारी मन भूँवरा गुंिार लगा री मरूवा मोगर मन मोरा री चम्पा चाूँप चढ़ा धनुवा री मौरसली नृत मोर रसा री

। । । । । । । । ।

सतगुरू अस रेला मारी ।।1।। भजि की लग ररी बांड़ी ।।2।। संतन संग देख बरारी ।।3।। सुखमन रस पी ले प्यारी ।।4।। जखली सुरत और प्यार बढ़ा री ।।5।। सूरिमुखी कूँ वल जनरखा री ।।6।। चार चमेली मेल जमला री ।।7।। सुरत बान से काल जगरा री ।।8।। नरजगस नैन देख उजियारी ।।9।।

।। बचन बयालीसवाूँ ।। ।। सेवा बार्ी ।। ।। िब्द परला ।। स्वामी उठे और बैठे भिन में कफर भर कमूँडल धर कदया आगे ककया चरनामृत लई परसादी लोटे घर तब गये कदिा को चौकी जबछा मैंने गद्दी जबछाई दाूँतन कर मंिन करवाई । कु ल्ली दई स्वामी कु ल मेरा उधरा बटना तन मल मैल गूँवाई तेल मला और चमक बढ़ाई । मानसरोवर िल भर लाई ।

। कर कर ध्यान मगन हुए मन में ।।1।। । सतसंगी आय दिणन लागे ।।2।। । रार चढ़ा कर बूँदगी साधी ।।3।। । कफर आये िब टाल बला को ।।4।। । स्वामी जबठा और राथ धुलाई ।।5।। मुख ककया िुद्ध और दाूँत सफ़ाई ।।6।। । िन्म सुफल और तन मन सुधरा ।।7।। । बाट खुली और सुरत चढ़ाई ।।8।। िोभा राधास्वामी अजधक सुराई ।।9।। तब राधास्वामी अश्नान कराई ।।10।।

बचन 42

सेवा बार्ी

कर अश्नान पोंछ अंग लीन्रा कं घा ककया स्वामी बाल सुधारे धोती बदली पजरने वस्तर कमूँडल भर कफर दासी लाई सतगुरू सत सत बोली बोला कली कली मन जचत्त जखलानी सतसूँग में आय ककया उपदेिा कफर भोिन कर बीड़ी खाई सीत प्रसाद सभी जमल लीन्रा माूँि कमंडल िल भर लाई सेि जबछाई स्वामी पौढ़े चरनन सेवा करी बनाई िागे स्वामी दिणन पाई सेवा का वर्णन सब कीन्रा िो गावे यर मेवा बानी राधास्वामी सेवा गाई बड़ भागी िो सेवा करते

। । । । । । । । । । । । । । । । ।

387

मगन हुई मैं िस िल मीना ।।11।। गया िंिाल1 मोर मद रारे ।।12।। सतसंगी सब अब हुए इजस्थर ।।13।। राधास्वामी कढग बैठ जपलाई ।।14।। श्रवर्ी सुनी सुख दर खोला ।।15।। नइ नइ िोभा आन समानी ।।16।। बचन करे कदया अगम सूँदि े ा ।।17।। बाूँटी बीड़ी कन्रैया भाई ।।18।। िन्म िन्म से पातक छीना ।।19।। और स्वामी को कदया जपलाई ।।20।। चरनन सेवा में जचत िोड़े ।।21।। दुलभ ण सेवा यर रम पाई ।।22।। भाग आपना जलया िगाई ।।23।। गावे सुने रोय मन लीना ।।24।। सो पावे सतलोक जनिानी ।।25।। सुरत िब्द मारग तब पाई ।।26।। प्रीत सजरत स्वामी सूँग ररते ।।27।।

।। िब्द दूसरा ।। चौका बरतन ककया अचंभी नूर पुरूष का अद्भुत िागा चौका कीन्रा दसवें द्वारा चूल्रा धोया श्याम कं ि में तीन गुनन का पोता मारा हुई सफ़ाई अचरि भारी

1. दुख, रं ि ।

। । । । । ।

सफ़ा ककया मन अपना रम भी ।।1।। तेि प्रचंड जतजमर सब भागा ।।2।। पाूँचों बासन माूँि सूँवारा ।।3।। िोत िगाई सरसकूँ ल में ।।4।। करम भरम का कू ड़ा टारा ।।5।। सतगुरू ने अब मोजर सम्रारी ।।6।।

388

सतगुरू

सार बचन

बचन 42

सेवा में रहुं लागी । जछन जछन चरन कूँ वल में पागी ।।7।। ।। िब्द तीसरा ।।

रात िगूूँ मैं सुन कर खड़का । उठत सुवामी मन मेरा फड़का ।।1।। राथ धुलाऊूँ देऊूँ अूँगोछा । इस सेवा पर मन मेरा लोचा1 ।।2।। भाव भजि से सबिन करती । थाल परोस स्वामी कढग धरती ।।3।। िब राधास्वामी ने भोग लगाया । मगन हुआ मन अजत सुख पाया ।।4।। ग्रास कदया परिादी का िबरी । घट के परदे खुल गये तबरी ।।5।। राधास्वामी राधास्वामी जछन जछन गाया । कफर सतसंगी सब जमल पाया ।। बटी परिादी सुख भया भारी । कफर पानी की भर लाई झारी ।।7।। करमंडल ले िल अचवाया । पलूँग जबछा स्वामी पौढ़ाया ।।8।। चरन पखारूूँ िागूूँ रै ना । कफर उठें स्वामी तब पाउूँ चैना ।।9।। उठकर दिणन जछन जछन करती । चरनामृत परिादी लेती ।।10।।

।। िब्द चौथा ।। भोग धरे राधास्वामी आगे । लीन्रे सबिन अमी रस पागे ।।1।। गगन जिखर पर बिा रै नगारा । भोग लगाया राधास्वामी सारा ।।2।। काल करम को खा गये जछन में । िंगी नाम धराया पल में ।।3।। ऐसा भोग लगा नसर कबरी । राधास्वामी खा गये सबको अबरी ।।4।।

-----इजत सम्पूर्ण समाप्त बचन सार बयालीस राधास्वामी के -----

देिना (INDEX) सार बचन छंद बंद अंग 13, 59, 69, 107 अंडा (अंड) 26, 88, 101, 134, 168,

अचरि 2, 41, 45, 47, 53-54, 59, .

76, 82, 158, 165, 170,

186, 212, 227-28, 299, 347 अंतर-अभ्यास 108, 336, अंतरिामी 4, 9, 44, 53-54, 71, 89, 135, 194, 230-32, 242 268, 278, 283, 299, 347 अंतर मुख 86, 108, 114, 149, 336, 385 अंध घोर 62, 227, 248, 265 अंधा 91,109, 149, 157, 378, 384 अंजधयार 42, 68, 139, 200, 262, 355 अकाि 3, 5, 88, 94, 211, 214, 233, 262, 380 अक्षर 7, 9, 58-59, 62, 65 , 69, 72, 89, 95, 100, 168, 198, 211, 234-35, 253, 284, 317, 352, 365

177, 189, 196, 198, 204206, 228-29, 268, 270, 286, 300, 365, 378, 387 अिुध्या 191, 248-49 अद्भुत 2,6, 28, 41, 43, 45, 47, 55, 58, 63, 81, 94, 108, 112, 163, 177, 198, 200, 205, 223, 227, 229, 309, 331 अधम 84, 231, 237, 245, 249 284, 287, अधर 13, 32, 46, 60, 62, 66, 80, 86, 92-94, 132, 141, 15859, 165-66, 169, 211, 215, 236, 239, 260, 284, 299, 306, 364, 367 अधार 38, 40, 70, 76, 81, 86, 90, 139, 146, 228

अगमपुर 4, 71, 301

अजधकारी 2, 86, 132, 342

अगम पुरूष 3, 5, 6, 43,-44, 46,

अनरद 226, 265, 343

48, 52, 162,177, 211, 223 अगम लोक (कदिा) 2, 3, 5, 6, 12, 43 52-53, 62, 80, 128, 162

अनरद घोर 40, 139, 163, 312 अनरद तूरा (तूरे) 38,41,281,306, 336 अनरद धुन 45, 47, 50, 52, 56, 61-

187,195-96, 198, 206, 211, 223 अगरन मास (मागण िीषण) 341 अजि (अजगन, अगनी ) 12, 61, 89, 148, 199, 208, 213-14,335 अज्ञानी 9, 197

62, 82, 205, 239, 243, 247, 283, 286, 297-99,302, 308 317, 356, 360 अनरद नाद 34 अनरद बािे 94, 102,

255,

291, 301, 316, 361

288,

390

सार बचन

अनरद बार्ी (बानी ) 58, 156, 165, 200 अनरद राग 165, 300, 357 अनरद िब्द 69, 110, 169, 312 अनामी 4, 9, 52, 80, 89, 101, 140, 196, 198, 211, 223, 245, 283, 285, 293-94, 299, 300, 365, 269 अनामी पुरूष 2, 43, 52, 82, 283 अनारद नाद 79 अनारद बानी 80, 166 अनारद िब्द 64, 79, 146, 161, 330 अनाहू 175, 342 अनुभव 209, 210, 343, 352 अनुराग 46, 63, 80, 95, 165, 300 अनुरागी 74, 106, 109, 251, 34344 अनूप 43, 56-57, 229 अपनाये 5, 84, 286 अपार 8, 43, 65, 67, 72, 75, 76, 110, 161, 198, 206, 209. 216, 228, 364 अभागी 81, 83, 114 अजभमान 85, 86, 138, 140, 142, 192-93, 202, 219, 228, 257, 320 अभ्यास 3, 75, 108, 131, 170, 253, 260, 267 अभ्यास सुरत िब्द 3, 155 अमर 36, 50, 65-66, 89, 169, 201, 301-2, 327 अमर पद 15, 63, 96, 121, 159, 300, 321

अमी 28, 48, 55, 64, 229, 233, 247 अमी अरार 67, 198, 206, 282, 293, 303, 364 अमी कु न्ड 43 अमी िल 17 अमी धार 37, 242, 259, 291, 329, 357, 362 अमी रस 5, 39-40, 55-56, 63-64, 92-93, 141, 150, 158, 164, 228, 253-54, 272, 286,291 308, 326, 328, 399, 388 अमी सरोवर 6, 174, 292 अमी ससध 77, 266 अमृत 35, 44, 48, 57, 64, 67, 82, 103, 165-66, 206, 247,307 327, 386 अमृत कुं ड 4, 206, 229, 308 अमृत धारा 57, 139, 154, 174, 275 अमृत रस 46, 51, 163, 301, 329 अमृतसर 240 अमृत सागर 287 अिण 33, 38, 42, 153, 159, 178, 299 अलक्ष 105, 128 अलख 46-48, 56, 61, 211 अलख अगम 15, 18, 20, 27, 29, 37, 40, 46, 59, 63-68, 80, 82, 88-91, 96-97, 108, 134-35, 143, 148-53, 155-58, 160, 164, 167, 169, 187, 194, 200, 213, 216, 223 , 229, 233-36, 248-53, 315 अलख पुरूष 2, 3, 43, 52, 177, 198,

देिना (Index) सार बचन छंद बंद 216 अलख लोक 3, 6, 12, 43, 44, 53, 62, 196, 198 अलल पच्छ 9 अल्ताफ 175 अल्ला 10, 205, 350 अल्लाहू 342 अजवद्या 50, 209 असाढ़ मास 333 असाध 99, 239 अरंकार 16, 40, 67, 70, 81, 90, 9798, 154, 188, 193, 218, 238, 311, 317, 338, 353, 358 आूँख 73, 96, 102, 109, 133, 157, 243, 337, 359, 377 आकाि 199, 200, 331 आतम 62, 156, 203-4, 212, 214, 221 आतम-परमातम 12, 72, 75,101,103, 328, 337, 340, 350 आकद अन्त 21, 88, 101, 103, 196, 212, 379 आनंद 18, 37, 51, 55, 82-83 , 98, 150, 202, 206, 249, 364 आजवद 220, 350 आबे रयात 173-74 आरत 19, 37, 45, 47-48, 54, 61, 77, 86, 103, 106,131, 163, 169, 194, 212, 239-53 आरत-गुरूकी 48, 62, 75, 193, 28990 आरती 4-7, 38, 48, 56, 63, 35, 229, 239-53

391

आरती परम पुरूष राधास्वामी 48-69 आलस 3, 93 आलस 87, 106, 114, 123, 152, 157, 161, 165, 208 298, 328 अवागवन 164, 222 आवाज़ आसमानी 171-72 आसा 163, 206, 223, 230, 237, 255, 262, 325 आसा मनसा 52, 134, 298, 302, 335, 358, 359 इजन्द्रयों के जवकार 253-60 इन्द्री 9-67, 81, 106, 113-14, 132, 147-48, 150, 152, 167-68, 190, 199-200, 260-61, 264 315 इन्द्री भोग 116, 136, 145, 151, 192, 314, 338 इच्छा 103, 132, 165 इज़्जज़त 104 इजज़्जतरावी 172 इड़ा सपगला 39, 93, 299 इतररयात 176 इश्क 103, 107, 342 इजस्रग़ना 140 ईषाण 14, 97, 99, 131, 202, 238, 254, 270, 326 ईश्वर 10, 72, 203-4, 219, 344 ईसा 12, 205, 221, 351 ईसाई 3, 74, 220-21 उिारा 42, 85, 88, 97, 162 उिाला 56, 58, 92, 157, 198 उजियारा 45, 63,69-70,90,110, 200 223, 239, 249, 304, 365

392

सार बचन

उत्पजत्त प्रलय ( उत्पजत प्रलय, परलै) 197, 200, 222

ओंग ( ओं, ओम् ) 40, 61-62, 89, 173, 196, 235, 248

उत्पजत्त बेद ब्रह्मा 353

औगुन 67, 71, 99, 115-16, 209,

उनमुन 211, 219, 351

230-31, 238, 269

उपदेि 3, 74, 82,172, 206-7, 217, 225

औघट 16, 27, 94, 158

उपदेि गुरु और िब्द 141-54

औजलया 216, 350

उपदेि िब्द 87

औसर 6, 63, 68, 110-11, 113, 139,

उपदेि िब्द अभ्यास 155-70

140, 155, 157,165-66, 235

उपदेि सतगुरू भजि 127-31

237, 290, 314, 363

उपदेि सतसंग 82, 343

कच्छा (कछु आ) 134, 350

उपदेि सुरत िब्द मागण 3, 155-70

कड़़ुवा 141

206, 338

कनक कामनी 113, 135, 304

उपमा राधास्वामी 28-37

कपट 53, 56, 70, 73, 90, 104,

उपमा साध संग 314

118, 122, 131, 140, 163,

उपाव (उपाय) 3, 74, 99, 104,124-26

207, 254

उपाव जबन िब्द 161

कबीर 73, 89, 140, 189, 206, 340

उमंग 4, 37, 46-47, 53, 56, 58-61,

कमंडल 107, 386-88

63-66,

76,

84,

158, 168,

230, 241, 315-16

कमोदनी 13, 53, 386

उलट 59, 94, 113, 148, 158, 165, 169,

172,

187,

कमान 293, 307

194, 196

209, 211, 302, 315 उलटी दृजष्ट 40, 64

करनी 68, 70, 90, 100, 106, 133,196, 207, 219-20, 343 करमी (कमी ) 22, 82, 182, 194, 221 कमण 39, 46, 48, 55, 65, 67, 77,

उलटी बात 157, 378-85

82,84,90-91, 101, 114-115

उलटी 221

124, 133, 143-45, 149-150

एतक़ाद 178

154-55, 158, 162-63, 166-

ऐराफ़ 221

67, 170, 186, 193-94, 200,

ओंकार 9, 59, 198-99, 226, 252,

208-9, 225, 227 , 231-32,

316, 347-50 ओंकार धुन 17, 44-45, 67, 90, 93, 222, 253, 283, 235

234, 369, 388 कमण कांड 101, 349 कमण धमण 22, 71, 100, 206, 219

देिना (Index) सार बचन छंद बंद 251, 336-37 कमण धमण ममण 72, 253 कमण ममण 2, 6, 15, 17, 31-32, 3940, 57, 77, 79, 82, 88, 100, 102, 126, 132-33, 165, 188, 192, 201-2, 206, 213, 219, 224, 226, 236, 248, 257, 264, 274, 282, 303, 312, 343, 360, 387 कल कलेि 1, 7 कल िुग 3, 13, 69, 98, 100, 194, 204, 209, 337 कलाम 119, 171, 244 कजलि 155, 238 कजल्पत 219-20 कसीफ़ 174 काग 165, 208, 234, 285, 372, 379 काि 74, 89, 109-10, 121,138,153 काजतक मास 339 कात 86, 106, 114, 116, 118, 138, 157 काकफ़र 179 काबा 33, 179, 220, 350 काम 16, 48, 57, 63, 67, 81, 96, 111-112, 123, 232-33 काम क्रोध 52-53, 57, 70, 106, 115 121, 123, 125, 130, 135-36, 142, 147, 237, 255, 262 269, 291, 314, 331, 338, 359 काम क्रोध लोभ 11, 15, 81, 96, 112, 131, 157, 162, 190, 201, 244, 256, 264, 308, 326 कामी 9, 80, 86, 122 कायर 41 काल 10, 11, 15, 28-29-37, 39-40,

393

44, 46, 48, 50, 53, 56, 5960, 64, 67, 75, 78, 81, 8485, 88, 91, 96-98, 101, 110 115, 118, 120-22,124, 129, 132-36, 140, 144-146, 14950, 153-59, 162-63 ,167-70, 195-201 , 204-6, 210, 212, 214, 216, 218,222, 225, 231 34, 245, 250, 267, 303, 309, 329, 388 काल कमण 46, 60, 73, 88, 115, 129, 154, 158, 162, 245, 251, 265, 303, 309, 321, 330, 370, 372 काल घेरा 73, 83, 245-46, 353 काल का िाल (िार ) 3-4, 16, 44, 66, 90, 100, 113, 186, 188, 19091, 197, 201, 326-390 काल का दाव 48, 98, 368 काल चक्र 41, 136, 155-56, 244, 263 338 काल देि 200, 215, 236, 349 काल नगर 5, 102, 375 काल बल 64, 187, 327 काल मत 100, 188, 193, 205, 221, 349, 397 कािी 73, 193 कककर 69, 71, 82, 84,234,240, 24849, 275, 371 ककगरी 30, 46-47, 54, 146, 240, 235, 293, 318, 339, 359 ककगरी सारं ग 16, 48, 56, 222, 227, 283-84, 377 कीट 48, 54

394

सार बचन

कीतणन 100 कुं ि जबरारी 73 कुं िी 151, 169, 279, 298, 313, कु रटल 56, 71, 84, 131, 238, 270, 281 कु रटलता 70, 97, 140 कु टुम्ब 55, 60, 74, 104, 115, 117, 121, 130, 135-36, 153, 254, 258 कु तुब 12, 216, 350 कु तूरल 352 कु मत 61, 71, 84, 113, 124-25, 150, 154, 263, 281, 359 कु मुदन (कमोदन) 27, 53 कु म्भी नकण 335 कु रम 9, 22, 26, 227, 345, 350, 358 कु लकर 12, 221 कु ल कु टुम्ब 60, 130, 135-36 कृ ष्र् औतार 191, 316 क्रोध 53, 57, 96, 123, 131, 159, 202, 208, 230, 324 क्वार मास (आजश्वन) 338 खिाना 53, 81, 315, 358 खट करमा 208 खट िास्त्र 12, 147, 189, 204 खर 157 खाट 92, 124, 158 खान 122, 208 ख़ुदा 3, 10, 33-34, 175, 178, 205-6, 221, 350 ख़ुदी 88, 153 खेचरी 219 खोि 35, 43, 89, 108, 149, 168,

207, 229 गंगा िमुना 10, 32, 73, 192-93, 211 गंभीर (गम्भीर) 50, 62, 70, 89 गंवार 97, 151 गउ 308, 378 गगन 36-37, 39, 41-42, 44, 46, 53, 61, 64, 69, 77, 86, 93-97, 101, 155-69, 191, 209, 222, 227, 231, 247, 281, 299, 304, 312, 388 गगन मंडल 9, 40, 52, 54, 57-58, 63, 108, 147,155, 282, 292, 300, 302, 328-30, 343, 357, 360 गगरी 39, 259, 304, 311 ग़िल फ़ारसी 178-85 गजत 34, 38, 49, 59, 82-83, 96 100, 119, 124-25, 133, 145, 169, 203, 207,209, 213,322 330, 371 गजत मजत 11, 47, 57, 75, 87, 209, 238, 319, 339 गनेि 9, 32, 70, 114, 147 ग़फ़लता 120, 122, 124, 162, 333 ग़रीबी 86, 123, 141 गरने 61, 66, 118 गांठ 108, 127, 202-3, 243, 309, 338, 359-60 ग़ाकफ़ल 118, 123 गायिी 73, 194 गीता 73 गुइयां 80, 295 गुन 19, 36, 38, 46, 57, 76, 31, 83, 107, 147, 150, 159

देिना (Index) सार बचन छंद बंद गुनरगार 99, 237, 242 गुप्त 1, 5, 21, 30, 108, 188, 227-28, 259, 278, 287, 305, 346, 349 गुफा 15, 36, 58, 78, 153 ग़़ुबार 93 गुमठ 93 गुरु 30, 37, 41-42, 44, 72, 121, 126, 133, 135, 139-40, 161, 163, 168, 170, 192-93, 201, 204, 214, 218, 234, 286, 311, 315, 319, 324-25, 327, गुरु का दरस 41, 84, 133, 138 गुरु का ध्यान 86, 119, 134, 143 गुरु का बल 59, 84, 104, 133, 135 गुरु की जनन्दा 126 गुरु की मजरमा 47, 325, 328, 371 गुरु की मौि 95, 137 गुरु कुं िी 169, 279 गुरु के संग 41, 90, 96, 115, 118, 121, 134, 157, 159, 167, 235 गुरु ज्ञान 42, 87, 110, 204, 214, 312 गुरु चरन 40-41, 47, 58, 78-79, 81, 83-84, 105, 115-116, 122, 130, 133, 36, 150, 153-54, 163, 168, 170, 233, 235, 249, 269, 272, 313, 32224, 327, 370-72, 375 गुरु चेला 108-9 गुरु दया 47, 79, 90, 152, 169, 252, 323, 328 गुरु दिणन 6, 83, 139 गुरु प्रीत 6, 76, 82, 129

395

गुरु पूरे 2, 41-42, 127, 131, 141 165, 205, 239 गुरु पूरे की पजरचान 105, 128 गुरु बचन 51, 83, 97-98, 123, 134, 149, 169, 195-96, 254, 259, 320 गुरु जबन 6, 59, 72-73, 79, 83, 95, 110, 116-17, 121, 124, 134, 144, 149, 151, 153-54, 205, 249, 254, 260, 270, 287, 325, 331, 371, गुरु भजि 7, 33, 74, 75, 83-87, 103 107, 127-28, 130, 135, 14154, 165, 202-3, 208, 342 गुरु भजि जबन 74, 86, 113, 204, 210, 335 गुरु मता 46, 82, 103, 151, 325, 366 गुरु मुख 6,60, 67, 63, 80, 82,82-83 86, 94-95, 128, 136, 151, 162, 189, 209, 265, 320, 355, 357, 368 गुरु मुखता 86, 278, 318 गुरु मूरत 7, 50, 51, 83, 86, 146, 148, 165, 251, 273, 313, 331, 337, 348 गुरु मेरर 45, 84, 86, 129, 150, 163 गुरु सरन 83, 111, 118, 143, 150, 159, 192, 234, 249 गुरु सेवा 74, 85, 107, 116, 122, 128-29, 317 गुरु स्वरूप 13, 41, 70

396

सार बचन

गुरु 58, 67, 89, 93, 103, 159, 166 गूूँगे का गुड़ 57, 94, 384 गृरस्ती (गृरस्थ) 225, 339 गौकु ल 73, 300 गोपी कृ ष्र् 190 गोरख 234 गौर 9, 32, 114, 128, 369 ग़ौस 12 ज्ञान 42, 83, 93, 97-98, 143, 190, 197, 202-4, 208, 212, 214, 218, 220, 228, 338 ज्ञान िोग 46, 59, 75, 83, 204, 318 ज्ञान ध्यान 4,7, 32, 202, 320 ज्ञानी 147, 188, 197, 203-4, 207, 212, 214, 228 ज्ञानी िोगी 9, 47, 93, 97, 102, 133, 137, 189, 194, 197, 234, 286, 297, 300, 321, 340, 350 घंटा िंख (संख) 44, 48, 54, 56, 58, 61, 90, 222, 226-27, 25253, 285, 292, 295-96, 317, घट 33, 41-42, 54, 64, 79, 88-94, 97, 110, 124, 147, 149, 153-54, 159, 161-70, 187, 189, 207-209, 219, 226, घट िोत 79, 110, 157 घट धुन 81, 87, 147 घट िब्द 7, 65, 87, 144, 162, 192 पर 2, 75, 83, 85, 92, 108, 110, 126, 150, 156, 161, 166, 169

घर अपना 64, 108, 120, 139, 187 घाट 5, 27, 38, 64, 91-92, 147, 151, 158-59, 167, 232-33, 262, 313, 328 घाटी 82, 87, 93, 162, 313 घात 98, 113, 118, 158 घोर 39, 40, 57, 114, 162, 169 चंचल 131, 148, 151, 161, 203, 206, 232, 255, 257, 261 चंद चकोर 4, 6, 11, 25, 41-42, 51, 54, 89, 332, 372, 375 चंदन 54, 61, 253 चन्द्र 13, 43, 45, 55, 66, 69, 83, 94, 108, 156, 159, 206, 229, 239, 283, 295 चन्द्रमा 66, 79 चकवा चकवी 44 चकोर 4, 11, 25, 54, 86 चक्र (चक्कर ) 41, 86, 169, 199, 219, 226 चढ़ना सुरत ब लीला मुक़ामात 291311 चतुराई 117 चमन 166, 227, 302, 317, 344 चरखा 54, 377 चरन 11, 27, 38, 40, 48, 59, 63, 68, 70, 76, 98-100, 105, 118, 127, 133, 148, 156, 159-60, 164, 168, 207, 225, 230, 233, 237, 284, 288-89, 292, 387 चरर् कं वल 3, 37, 41, 48, 69, 85

देिना (Index) सार बचन छंद बंद चरन धूर 47, 51, 83, 128, 266, 299, 313 चरन पखार 40, 99, 106, 327 चरन सरन 5, 10, 27, 29, 35, 37, 46, 49, 58, 67, 69, 71, 115, 166, 212, 240, 262, 304, 315, 323, 370 चरनामृत 63, 106, 131, 135, 141, 193, 225, 245, 258, 341, 375, 386, 388 चररि 85, 280 चाूँद 44 चाूँदनी 17, 44, 83, 295 चाूँद सूरि 10, 48, 61, 70, 88, 146, 222, 227 चाचरी भूचरी खेचरी 219 चाजिक 86 चार दल 196 चार कदवस 111, 118-19, 128, 130, 153 चार धाम 73, 193 चार पद 19, 145, 160 चार लोक 4, 37, 51, 170, 212, 277 चार वेद 195, 204 चारों खान 86, 138, 140, 165, 186, 199, 215, 217, 254, 265, 352 चारों िुग 119 चार 67, 85, 106, 115, 192, 253, 256 जचतावनी 110-27, 133 जचतावनी भेखों को 131-33 चुम्बक 11, 35, 44, 372

397

चूक 120, 140, 192, 194 चेतन 65, 88-89, 124, 147, 148, 192, 211, 214, 220, 248, 354 चैत मास 348 चोर 46, 53, 70, 238, 252, 328, 380 चौथे धाम 12, 29, 128 चौथे पद 2, 43, 69, 77, 97, 100, 146, 191, 198, 267, 349, 354, 368 चौथे लोक 29, 88, 153, 187, 189-90 195, 205-6, 223-24, 233, 337, 349, 354 चौपड़ 186-87 चौरासी 73, 81, 86, 98, 109, 11112, 116, 119-20, 126-28, 136, 146, 156-57, 164,169 186, 188, 193, 199, 210, 225, 237, 261, 276, 279, 335, 339, 346-47,353, 321 385 चौला 221 छल बल 117, 122, 137, 201, 254 जछमा 70, 96, 98 िग 4, 9, 11, 14, 30, 61, 69-70, 82, 90, 105, 107, 109, 112, 114-15, 121-22, 124, 12627, 132-34, 144, 146, 15054, 162-66, 170, 186, 188, 192-95, 204, 208, 210,213 216, 219-21, 268 िग िीव 69, 82, 84, 137 िगत 19, 57, 75, 106, 108

398

सार बचन

110, 117-118, 130, 132-35, 144-45, 149, 152-54, 164, 168, 188, 190, 191-92,199, 203, 208, 210, 235, 256, 301, 303, 210, 235, 256, िगत िाल (िार) 40, 110, 117, 120, 127, 143, 193, 253, 279 िगत लिा (लाि)104, 115, 118, 128, 139, 342 िग मग 46, 69, 126 िग सुपना 83, 94, 121, 138, 202, 210, 303, 308, 322 िगात 10, 82 िड़ चेतन 108, 113, 158, 188, 196, 211, 220, 338, 359-60 ितन 84, 93-94, 100, 143, 161, 165, 210, 244, 271, 360 िती 72, 80, 92, 192 िनक 72 िन्म 46, 56, 62, 73, 75, 83,102, 144, 157, 160, 188, 195, 202, 204, 208-9, 245, 265, 387 िन्म मरन 88, 111, 121-22, 126-27, 203, 210, 273, 304 िप 96, 131, 142 िप तप 32, 213, 219, 318, 336, िबरूत 3, 342 िम 10, 17, 24, 36, 82, 98, 110, 112, 114-15,117,121, 124, 131, 134, 138, 151, 158, 165, 210, 222, 225, 633 िम काल 36 िम िाल 156, 312 िम िाल 156, 312

िम पुर 117-18, 135, 146, 157, 218 276, 335 िम राय 111 िल 7, 38, 61, 81, 85, 107, 199, 318, 386, 388 िल जबन मीना 230, 262, 334, िल मीना 41, 75, 243, 248, 280, 332, 342, 387 िाग्रत 114, 202, 213, 219 िात 142 िात पाूँत 33, 112 िाजत बरन 104, 192 िाल 11, 40, 44, 116, 121, 124, 147, 150, 152, 155, 193, 195, 226 ज़ाजरद 220, 350 जज़करूलकलूब 171 जज़ल्लत 104 िीव 1-4, 6, 60, 69-70, 81-84, 8889, 96, 106, 109, 114, 12122, 128, 141, 144, 149-50, 189, 193-97, 199, 201-6, 209-11, 214, 218-19, 221, 225-26, 235, 269,274, 322 326, 336, 354 िुजि (युजि) 3, 40-41, 93, 99, 105, 120, 122, 125, 144, 152, 154, 162, 165, 187, 194, 202-3, 215, 230, 244, 282, 336, 360 िुग 66, 85-86, 101, 146, 153, 203 िुलमात 174 िेठ 314

देिना (Index) सार बचन छंद बंद िेठ मास 351 िैनी 3, 74, 205, 220-21 िोग 4, 32, 46, 59, 68, 83, 96, 202-3, 218-19, 229, 325, 365 िोगी 9, 72, 80, 93, 97, 102, 189, 191, 193, 197, 286, 298, 300, 312, 340, 358 िोगेश्वर 100, 214, 218, 316, 340 िोत 14, 19, 35, 43, 45-46, 50, 52, 5661, 63-66, 69, 75, 77-78, 92, 94, 108, 110, 112, 126, 13031, 136, 152, 156, 159, 161, 163-66, 200, 222, 226, 230, 240-53, 282, 304, 312, 316, 324, 360, 387 िोत जनरं िन 48, 77, 101, 167, 216, 226, 234-35, 249, 253, 297, 340, 350, 352 371 िोरू 104, 259 झंिरी 52, 110, 155, 161, 199, 201, 216, 233, 345, 377 झीने बंधन 75 झूठ 103, 111, 204-5, 253, 271 झूठ पसारा 61, 271 झूठा ज्ञान 91, 203-4 झूठा िग़त 321 झूठा िरान 125, 321 टीका 66, 82, 133 टेक 73, 74, 76, 142-43, 189 टेक गुरु ( गुरु) 76, 143, 322, 330 टेक जपछलों की 32, 73, 142 ठग 105, 116, 118, 126, 132, 151, 192, 224, 226

399

ठोकर 81, 84 ठौर 76, 85, 88,151,192,195 252 डंका 53, 73 डगर 105, 256 डर 104, 238 ढूँडारा 53 ढोल 54, 315, 319 तूँबरू ा 77, 301 तक़दीर 171 तक्षक 135 तशत 48, 126, 138, 155, 170, 229, 316 तज़ल्ली 172 तन 34, 94-95, 106, 114, 123, 145, 147, 152 तन मन 16, 18, 39, 46-47, 50-51, 55-56, 60-63, 68, 71, 76, 84, 89, 92-93, 105-6, 114, 125, 127-28, 130-33, 135, 138, 141,144-45,164, 200, 210, 212, 215-16, 225, 231-32,235-236, 243, 260, 269, 284-85,311,315, 322, 335-30, 360, 370, 386 तन मन धन 62-63, 76, 79, 106, 155, 171, 237, 245, 248, 270, 348 तप 85, 93, 100, 133, 219 तपसी 93, 189, 350, तपी 72, 365 तम 96, 113 तमो गुन 41, 124 तमोली 47, 359

400 तरीक़त 221 तसकर 246, 317 तसबी 326 तािील 172 तारा 10, 27, 44, 48, 65, 227, 247, 350 तारी 81, 88, 146 ताला 108, 279, 288, 294, 298, जतजमर 13, 15, 47, 79, 84-85, 96, 207, 304, 322, 329, 387 जतजमर खंड 174 जतररया 111, 117, 250 जतल 14, 24, 27, 35, 41, 43, 48-50, 64-66, 90, 97, 110, 146, 64-66, 90, 97, 110, 146, 154, 159, 166-167, 171, 201, 226-27, 248, 252, 265, 280, 286, 293, 298, 302, 311, 313, 337, 357, 360, 369 जतलक 107, 192 तीि 336 तीन गुन 12, 19, 57, 95, 120, 157, 150, 186, 199, 213, 217, 292, 302, 309, 313, 352-53, 387 तीन ताप 76, 336 तीन पुि 101 तीन लोक 10, 12, 57, 88, 101, 128, 155, 168, 170, 172, 195, 201, 205, 216-17, 225-26, 229, 292, 337, 339, 352 तीन साधन 85 तीरथ ( तीथण) 47, 72-73, 142, 155, 219, 368

सार बचन तीरथ बरत ( ब्रत, बतण) 10, 23, 32, 72, 125-26, 133,142,147, 192, 194, 202, 208, 213, 252, 313, 336, 350 तीथणकर 205, 221 तुररया पद 213-14 तुलसी 89, 189, 193, 206, 340 तूरे (तूरा) 38, 41, 201 तृप्ताये 76, 212 तृष्र्ा 121, 135, 233, 255, 321, 324 तेला 221 त्याग 90, 164, 207, 219 जिकु टी 3, 5, 14, 27, 40, 44-48, 53, 58, 61-62, 64-65, 67, 78, 82, 89, 113, 140, 143, 146,148,153,156,162, 164 167, 173, 187,190-91,194, 196, 198, 200, 211, 213, 218,222,224,226,236,242, 248-53, 255, 281, 283-99, 302,308-12,316, 322, 331, 340, 342, 347-48, 359-61, 364, 375, 383 जिकु टी घाट 5, 82, 249 जिगुन 9, 164, 350 जितापा 76 जिबेनी (जतरबेनी), 77, 155, 157, 211, 224, 227, 298, 320, 339 जिलोकी 3, 88, 189, 198, 205-6, 212, 216-217, 224, 283, 316, 353 िेता 13, 69

देिना (Index) सार बचन छंद बंद दप़क़ 346 दया 36, 52, 59-61, 63, 68-69, 74, 82, 90, 99, 122, 126-27, 157, 168, 187-88, 197, 213, 216, 221, 231, 236, 240, 244, 262-81, 283-84, 291, 343 दया जबन 43, 74, 257 दया मेरर 106, 140, 238-39, 275, 280-90, 301 दयाल (थाल) 5, 15, 36, 55, 60, 71, 101, 156, 158, 159, 199, 714, 218, 375 दयाल देि 222, 286 दयाल मत 101, 188, 349 दया जसन्ध 70 दरबार 77, 98, 138-39, 154, 158, 175, 188, 204, 223, 231, 303 दरस 37, 40, 43, 60, 76, 109, 206, 229, 231 दपणन 170, 282, 315 दिणन 6, 32, 37, 43, 56, 60, 76, 80, 82, 106-7, 128-29, 148, 156, 171, 72, 175, 225, 229-30, 262-81, 287, 303, 364, 388 दाता 54, 69, 135, 270-72 दादू 73 दान 4, 25, 81, 100, 193, 219, 270, 321 दासन दास 84-85, 89, 275, 278, 331, 371 दीवाली 341 दीदार 4, 67, 77, 230

401

दीन दयार (दयाल) 67, 69, 231, 249, 253, 255, 269, 272, 375, 297, 299, 301, 304, 354, 371 दीन बन्धु 284 दीप 43, 56, 79, 101, 146, 175, 198-99, 206,211,216, 22829, 348 दीपक 54, 60, 63, 75, 139, 229, 331 दुःख 1, 71, 99,110,122-24,127-30, 132, 138, 141, 150, 157, 164, 188, 193, 198, 200, 202, 213,215-16,230, 232, 263, 239, 273 दुजवधा (दुजवधा) 79, 214, 375 दुरबीन 48, 62, 78, 155, 158 दुरमत 5, 79, 99, 234, 270, 279, 225, दुलभ ण 109, 111, 127, 157, 242, 387 डु लरा दुलजरन 113,167-68, 301, 308 दुराई 37 दूध 60, 165, 204, 326 दूसरी मंजिल 3 दृष्ट 4, 32, 40-41, 60, 64-65, 75-76, 79, 93, 102, 152, 288, 295, 301, 325, 327, 360 देवी देवा 10, 101, 128, 193, 371 दोिख 351, दो दल 108, 196, 200 द्वापर 13, 69 द्वारका 192 धतूरा 341 धन 85, 87, 90, 106-8,111, 116,-19

402 121, 123, 128-31, 145, 157, 207-9, 225, 238, 334 धरती 12, 101, 263, 378 धरजन ( धरनी, धरन) 88, 166, 247, 304, 378 धमण 32, 72, 100, 203-4, 207 धमण राय 292, 305, 338 धाम, 19, 34-36, 41, 45-46, 59, 93, 111, 119, 121, 124, 131, 144, 152, 164-65, 187, 190, 214, 273, 319, 369, 375 धार (धारा), 4, 53, 67, 87-90, 101, 108, 122, 147, 162, 164, 168, 170, 211, 352 धीरि 131, 151, 262, 267, 271-72 275, 279-80, 284, 300, 318, 376 धीरे 43, 89, 100 धुन 35, 37, 39, 44, 51, 54-55, 58, 78, 88, 91-96, 101, 110-11, 118, 138-39, 145-47, 15258, 161, 164-70, 200-1, 2045, 211, 218, 222-23, 227, 334, 369 धुन आत्मक 95 धुनी 93, 95-96 धूर 83, 105, 193 धृग 68, 108 धोखा 11, 63-64, 74, 85, 93, 97, 105, 108, 120, 128, 172, 188, 191, 193, 195, 202-4 209, 212, 214, 216-17, 220, 226, 238, 258, 271, 282, 365 धौल 60, 314 ध्यान 4, 31-32, 60, 78, 91, 93

सार बचन 101, 119, 125, 138, 140, 142-43, 155, 219,240, 386 ध्रुव 12 ध्विा 55 नई बात 383 नग्मरा 173 नज़र मेरर आलूद 171 नफ़्स अमारा (अम्मारा) 33, 171 नफ़ीरी 306 नभ 14, 35, 45, 65, 89-90, 111-12, 123, 137, 143, 146, 163, 165, 167, 193, 199, 285, 297, 300, 308, 316, 322, 325, 329, 360, 367, 384 नभ द्वार 90, 114, 140, 168, 249 नमाज़ 33, 350 नर देजर (देरी) 81, 84, 96,-111, 114, 121, 133, 145, 157, 188, 193, 197, 213, 242, 335, 346, 368 नर रूप 6, 146 नकण 114, 119, 122, 128, 130, 132, 157, 197, 225, 265, 335, 338, 351, 353, 371 नकण की अजगना 121 नकण जनवास 117, 129 नकण स्वगण 337 नदण 186-87, 305 नलनी 120, 289 नवनीत 59 नाका 44, 47, 94, 108, 112, 156, 174, 211, 227, 305, 312 नाज़नीनाूँ 173 नाती 118-19 नाद 12, 33-34, 48, 54, 78, 108

देिना (Index) सार बचन छंद बंद 159, 164, 190, 226, 243, 257, 273, 331, 339 नानक 73, 89, 140, 206 नाम 1, 31, 35, 39-40, 45, 48-49, 61-68, 75, 77, 85-86, 89, 105, 111, 118, 120-22, 130, 134, 142, 145-46, 150-60, 162, 168-69, 192, 194-95, 202, 205, 232-35, 240, 302310, 313-15, 318, 321-25, 327, 329, 331-33, 335, 337 345, 351, 354-57, 359, 362, 365, 368, 373, 388 नाम दान 107, 251, 268 नाम धुन 97, 111, 159, 277, 331, 377 नाम जनर्णय 95 नाम पद 78, 97, 144 नाम प्रताप 7, 75, 194 नाम जबना 112, 138, 144, 154, 194, 256, 269, 335, 337 नाम भजि 141-54 नाम भेद 103, 112, 166, 194 नाम रं ग 65, 96, 164, 222 नाम रतन 79, 113, 378 नाम रस 18, 45, 80, 96, 115, 126, 144-45, 154, 170, 257-58, 269, 329 नाम रसायन 112-13, 123, 135, 170, 307, 357 नार (नारी, नारर) 10, 66, 85, 97, 119, 189, 197, 316, 369 नारद 9, 114, 129, 189, 197, 316 नाव 2, 90, 145, 263, 270, 276, 339

403

नासूत 342 जनन्दा 91, 254, 343-44 जनःअक्षर 58, 69, 72, 89, 211 जनि घर 25, 43, 53, 79, 97, 155 164,186-90, 193,197, 223, 254, 266, 298, 301, 347, जनि धाम 1, 9, 57-58, 60, 68, 75, 143, 166, 196, 213 जनि नाम 1, 102, 119, 131, 144, 274, 295, 326, 375 जनि पद 7, 45, 130, 135, 348 जनि मन 95, 254, 282, 284, 345 377 जनि स्थान 3, 42, 101, 177, 197, 222, 307 जनि स्वरूप 42, 275, 278 जनदान 85-86, 103, 118, 125, 209 जनवाणन 104 जनरं िन 9, 48, 61, 77, 89, 156, 199, 205, 315, 322, 353 जनरत 38, 45, 56, 58, 155, 160 303 जनगुन ण 194, 199, 345 जनमणल (जनरमल) 3, 38, 67-68, 74, 77-78, 82, 86-87,108, 132, 139,146,148,161,165, 294 302 जनवाणर् पद 3, 205, 221 जनश्चय 131, 161, 206, 218, 224 नींद (जनद्रा) 79, 87, 106, 128, 152 157, 165, 298, 308 नीच 67, 70, 84, 98 नीर 54, 62, 86, 89-90, 148, 155, 165, 231, 334

404

सार बचन

नूर 41, 108, 176, 248, 311, 344 नेम 60, 62, 73, 141, 202, 208, 350 नेम धरम 192, 214, 320 नैन 10, 13, 22, 24, 26, 38, 41-42, 45, 51, 54, 60, 67, 83, 87, 123, 139, 149, 152, 152, 187, 196, 231, 251, 302, 309, 316, 324, 334, 363-64, 369, 372, 386 नौका 15, 59, 77, 112, 357 नौ खंड 88, 101, 242 नौ द्वार 3, 14, 59, 66, 114, 135, न्यारा 69, 110, 139 पंच (पाूँच) िब्द 7, 56, 81, 86-87, 161, 217, 225 पंजडत (पजण्डत) 93, 114, 192, 194, 205, 221, 336, 368 पंजडत क़ािी 126 पंजडत ज्ञानी 147, 193 पंजडत भेख 85, 97, 133, 147, 189, 192, 264, 336 पंजडत भेख िेख 12, 126 पंथ 19, 64, 86, 202 पचरं गी 14, 58, 60, 226, 316, 318, 344 पतंगा 54, 136, 230, 273, 324, 372, पजनरारी 39, 46, 259, 275, 311 पजपरा (पपीरा) 4, 7, 11, 53, 136, 280, 319, 334, 362 परकाि (प्रकाि) 79, 94, 96, 103, 145, 198, 227 परककती (प्रकृ तण, प्रकृ त) 57, 101, 147, 186, 215, 245, 350

परम पद 47, 55, 59, 75, 78, 156 159, 329 परम पुरूष 2, 8, 37, 42, 69, 83, 234 परमातम 72, 101, 103, 337 परमारथ 80, 85, 106, 168 परमेश्वर 10, 72, 178, 344 परलय 198-99 परिादी 62, 63, 106, 131, 135, 141, 193, 245, 341, 375 386, 388 परस राम 350 पलटु 73, 340, पवन 12, 20, 61, 199, 293, 343, 376 पजरचान गुरु पूरे की 105, 125, 128 पजरचान पाखंडी की 223-25 पजरचान भेख की 224 पजरचान संत 223 पजरचान सच्चे परमाथी की 105-9 पजरचान साध 223-24 पजरचान मंजिल 3, 34 पजरली सुन 81 पांच अंड 227 पाूँच इन्द्री 147, 165, 243, 360 पंच तत्व (तत्त) 57, 66, 120, 217, 243,245,292,297,331, 350 352 पाूँच दुष्ट 243 पाूँच धुन 96, 161 पाूँच नाग 337 पाूँच नाम 222, 225-29 पाूँच प्रार् 243 पाूँच ब्रह्म 227 पाूँच मुन्दरा (मुद्रा) 66, 219

देिना (Index) सार बचन छंद बंद पाूँच रं ग 58, 311 पाूँच िास्त्र 220 पाखंडा (पाखंडी ) 6, 106, 109, 142, पाठ 208 पानी 106, 114, 165, 192, 202, 262, 326, 388 पाप 109, 119, 153, 193, 273, 314, 328, 330, 341 पाप पुन्न (पुण्य) 314, 346, 350 पारब्ह्म 3, 101, 133, 338 पारस 57 पारसनाथ 205 पालूँग (पलंग) 177, 227 पावन 84 पासे अनफ़ास 171 सपगला 36, 93, 378, 384 सपिरा 145, 312, 319 सपड 3, 41, 52, 77, 82, 96, 150, 158, 188, 199, 212, 299, 305, 340, 347, 350 जपत 268, 380 जपत और माता 36, 54, 69, 158, 240, 268, 333-34, 376 जपताम्बर 292 जपि 10, 33, 78, 193 जपया 40, 44. 80, 82, 92, 126, 145, 155, 168, 192, 231-33, 262, 63, 303-4, 335, 369 पीर 33, 89, 216, 231-32, 239, 263, 350 पीव 64, 91, 151, 221 पुकार 90, 98, 114, 262-81, 270 पुि 86, 118, 155, 221, 226, 238, 250

405

पुन्य (पुन्न) 119, 193, 314, 341 पुरार् (पुरान) 10, 73, 85, 101, 114, 189, 193 पुरूष 43, 46, 48, 55-56, 64, 72, 78, 110, 155, 158, 160, 206, 352 पूि ूँ ी 87, 111, 118, 126 पूिा 100, 140, 193, 208, 225-26, 349 पूरन धनी 2, 8, 37, 42, 69, 115 पूरन पद 65-66, 282, 319 पूरा सतगुरू (गुरु) 42, 105, 110, 128, 365 पूस मास 343 पैग़म्बर 12, 177-78, 216, 350 पोथी 44, 73, 140, 192, 204, 208-9 पोरप 53 पौड़ी 86, 73, 140, 192, 204, 208-9 प्रजतष्ठा 74, 108, 132, 145, 209, 238 प्रतीत (परतीत) 41, 75, 102, 123, 189,192,195-96, 209, 212, 217, 223, 228, 238, 258 339 प्ररलाद 12, 350 प्रार् (परान, जपरान, प्रान) 41, 51, 81, 69, 219, 293 प्रार् अधार 76 प्रार् योग 218-19 प्राजप्त मेरर व दया 281-90 प्राजप्त िब्द व मुक़ामात 311-20 प्राजप्त िब्द व िुकराना सत गुरु 320-33 प्रारब्ध 203, 207, 220 प्राथणना 69, 236-39

406

सार बचन

प्राथणना सुरत की मन से व िवाब 260-61 प्रीत (परीत) 6, 41, 53, 62-63, 68, 78, 83, 86-87, 95, 98, 106, 116, 122, 124, 127, 133, 135, 144, 155, 157, 170 194, 208, 211, 231, 266, 387 प्रीत प्रतीत (परतीत) 41, 79, 102, 140, 147, 207, 238, 252, 275-76, 375 प्रेम 37, 41, 46, 50, 54-55, 60-64 68, 79, 84, 97, 100, 103 106, 130-32, 139, 142, 148, 158-59, 162, 166-67, 194, 201, 207, 209-10, 212, 22930, 233, 235-36, 240, 244, 264, 298, 301, 303-5, 312, 343, 386 प्रेम जबन 134 प्रेम भजि 57, 103, 217, 240, 256 फं दा (फन्दा, फं द) 98, 115, 134 फ़क़र 34 फ़क़ीरी 170 फगुवा 347 फ़याणद 138, 172, 186, 254, 262-91 फल 55, 95-96, 99-100, 107-8, 318 फांसी 105, 110, 115, 124, 145, 199, 255 फागुन मास 346 फ़ारसी ग़िलें 178-85 फु ट कल िब्द 365-88 फु लवारी 64, 226, 245, 304, 316, 318, 344, 372

फू ल 48, 55, 108 फू लों के नाम 386 बंक 27, 45, 61, 64-65, 96, 146 155-56, 158-59, 194, 200 221-22, 248-53, 297 बंक ककवाड़ी 46-55 बंक दुआर (द्वार) 14, 66, 78, 153, 233, 252 बंक नाल 5, 36, 40, 44, 48, 58, 62, 96, 167, 173, 211, 222, 227,253, 281, 283, 290-93 295,298-99, 305, 359, 361 बूँगला 46, 363 बंझा 197, 382 बन्दगी 1 बंधन 4, 63, 75, 91, 117-18 बंसी 39, 48, 63, 78, 97, 158, 223, 233, 249, 307, 318, 365 बचन 6, 10, 11, 41, 49, 76, 78, 8485, 92, 98, 107, 109, 111, 122, 131, 140-41, 147-48, 193,195, 197-98, 201, 205 204, 217-19,222-225, 229, 231, 329, 387 बज्र ककवाड़ (वज्र कपाट) 13, 17, 38, 70, 249, 294, 319, 382 बरत (वतण, बतण) 10, 32, 72, 85, 126, 147 बल 27, 49, 93, 98, 207, 360 बल सतगुरू 243, 286, 295 बजलरारी(बजलरारी)40-42, 50, 53,55, 68, 70, 76, 79, 85, 131 231-32,292, 275, 285, 371 बसंत 4, 206, 344, 355-57

देिना (Index) सार बचन छंद बंद बजरश्त 211 बाइूँ (बाईं) 52, 90, 102 बाूँग 33, 169, 350 बाचक 188, 204, 207, 210, 214, 320 बािा (बािे) 54, 58, 61, 64, 94, 222, 241 बाती 43, 52, 63, 229, 253, 282 बानी 10, 11, 62, 87, 96, 151, 166, 194, 200, 205-6, 209, 218, 223, 227, 229, 339, 387 बारर मास 331 बारर मासा 333-55 जबन्द्रावन 190, 300 जबिली 5, 146, 297, 309, 311, 335 360, 362, 372 जबन करनी 95, 122 जबन गुरु 73, 76, 82, 96, 112 , 122, 128, 133, 144, 151, 205, 235, 289, 314, 330 जबन गुरु दया 99, 119, 271 जबन िल मछली 4 जबन नाम 76, 124, 144, 149, 194, 255 जबन नाम भजि 333 जबन भजि 73, 103, 204 जबन भिन 144 जबन भाग 64, 87, 313 जबन मेरर दया 74 जबन िब्द 81, 87, 90, 125, 132, 144, 161, 235, 276 जबन िब्द सुरत 109, 114, 167, 213, 271 जबन संत 82, 103, 126 , 147, 189, 191-92, 194, 196, 205, 224

407

300, 337 जबन सतगुरू 52, 72, 81, 109, 112, 114, 122, 137, 189, 191 195, 216, 223, 225, 271, 278, 333, 368, जबन सतगुरू प्रताप 319 जबना प्रीत परतीत 102 जबना मेरर 1, 75, 121, 170, 189, 196, 256, 268, 271 जबना मौि 104 जबरती 203 बीि 84, 212, 227, 306 बीन 2, 15, 18, 37, 41, 44, 46, 54 56, 59, 62-64, 82, 91, 96, 102, 108, 146, 153, 156, 158,160, 176-77, 223, 247 248-49,265, 290, 307, 309 331, 347, 355 बुन्द 20, 212, 217 बुआ 377 बुत 33 बुजद्ध (बुध) 28, 61, 78, 93, 96, 98, 100, 107,131-32, 151, 163 169,193,195, 202, 205-12, 217-18,220, 245, 268, 299 317, 344 बुजधमान (बुजद्धवान) 85, 206 बुलबुल 51, 166, 301 बुल्रवसी 93 बूंद 41, 103, 108, 212, 216-17 बेईमान 140 बेगाना 81 बेड़ी 85, 118, 124

408 बेनती 69-71, 123, 286 बेमख ु 105, 128, 133, 136 बेला तेला चौला 221 बैर 97 बैराग 4, 83, 132, 142, 165, 208, 219, 338, 343 बैसाख 349 बौरा 111, 118, 122, 165 ब्रह्म 9, 32, 50, 88-89, 101, 133, 186, 205-6, 211, 216, 219, 228, 338 ब्रह्मचारी 72, 189 ब्रह्म पारब्रह्म 128, 338, 340 ब्रह्म लोक (देि) 3, 202, 215 ब्रह्मंड (ब्रह्मण्ड) 3, 6, 52, 88, 96 101, 139, 168, 212, 219 227, 299, 340, 347, 350 भंगी 136 भंडारा 57, 103, 114, 206, 306 भूँवर 66, 277, 305 भूँवर गुफा 5, 9, 12, 40, 42-48, 5253, 59, 62-67, 82, 91, 9497, 108, 134, 143, 146, 148, 152, 155-55, 160, 167 175, 187, 194, 196, 198200, 211, 213, 223-24, 228, 233-36, 240, 247-53, 28399, 312, 315, 317, 331, 340, 342, 348, 365 भूँवरा 35, 42, 56, 139, 191, 311 370, 386 भि 48, 64, 133, 144, 192, 228 भजि (भिी) 2, 4, 33, 58, 72-77, 86, 97, 103-5, 112, 119

सार बचन 127, 130-33, 142-43, 148, 153, 155, 204, 208, 234 250, 301, 306, 317, 338 भजि दान 103 भजि नाम 107, 129 भजि जबन 204, 210 भिी जबन 204, 210 भगवंत 103 भिन 33, 117, 123-24, 131, 141, 144, 153, 157, 238, 250 257, 335, 386 भिन जबन 144, 264 भटक 78, 83, 85, 112, 114, 118, 121, 126, 151-52, 154, 189, 193-94, 207 भरमाई 98, 105, 110, 121, 194, 197 भमण 2, 6,15,17, 31-32, 38, 42, 47 52, 59, 63, 78, 83, 90, 93 109-10, 121,142, 147, 151 53, 157-58, 162, 167, 170 186, 188, 193, 195, 198, 200, 206, 212, 220, 297, 303, 329 भस्म 54 भाग 11, 37, 39, 41, 45, 68, 76 80, 87, 95, 109, 121, 146 153, 164-65, 170, 233-35 272, 387 भाग जबन 41, 375 भागवत गीता 73, 351 भाग रीन 54, 82, 157, 207, 262 भादों मास 336 भान (भानु) 6, 13, 20, 25, 42, 45

देिना (Index) सार बचन छंद बंद 83-84, 163, 211, 229, 239, 292-93 भाव 77, 103, 114, 132, 140, 148, 204, 207-8, 210, 320, 354 भाव भजि 60, 75, 193, 204, 236, 264, 291, 320, 338, 341, जभखारी 98, 268, 365 भुवंगन (भुवग ं ) 54, 57 भूत 94, 118, 132, 244, 267, 371 भूल (भूला) 2, 63, 82, 96, 114, 186 188-89, 193, 210, 215 , 221, 228, 232, 238, 275, 306 333 भूल भूलइयाूँ (भुलइयाूँ) 111, 114, 267 भूल वेदान्त मत 210-14 भृग ं ी 35, 48, 54, 374 भेंट 63, 147, 314, भेख 12, 73, 97, 104, 106, 132-33 147, 189, 194, 336, 365 भेखी 96, 188, 224 भेड़ चाल 157 भेजड़या 380 भेद 1, 3, 5, 27, 32, 41, 45, 59, 63, 65, 72, 75, 89-91, 94, 97, 120, 127, 130, 147-151, 157, 159, 164, 169, 191, 200, 207, 212-13, 216-17, 220, 222, 224, 226, 228-29 232, 264, 305, 324 भेद काल मत 86-96, 349 भेद दयाल मत 186-96, 349 भेद नाम 95, 102, 194, 337 भेद जनि स्थान 3, 222

409

भेद पाूँच नाम 225-29 भेद मागण व िोभा सत्तलोक 42-48 भेद मुक़ामात 170, 215, 281-90, 346 भेद राधास्वामी 19, 48, 161, 192, 215 भेद वेदान्त 200 भेद िब्द मागण 170, 200, 215, 244, 336 भेद संत मत 215 भेद संसारी मतों का 215 भेद सत्त नाम 97, 101-2 भेद सत्त लोक 42, 197 भेदी 44, 95-96, 169 भोग 18, 49, 60, 75, 77, 107, 11017, 124, 131, 134, 139, 142, 146, 163, 170, 190, 193, 198, 203, 208, 257, 267, 273, 322, 366, 388 भोग इन्द्री 7, 137, 276, 338 भोग रस 68, 111, 149, 157 भोिन 68, 142 भौंरा 25, 42, 298 भौ 15, 42, 59, 77, 99, 107, 114, 127, 136, 145, 150, 165 169, 213 भौिल (भव िल) 2, 25, 31, 70, 84, 112,122,133,194,237, 246 262, 269-70, 322, 324 370-71 भौ िाल 28, 110, 114, 255, 297 भौ सागर 69, 71, 136, 204, 237, 271,308, 312, 338-39, 348 मंगला चरर् 1-2

410

सार बचन

मंिन 83, 148, 322, 386 मूँजिल (मंजिल) 34, 116 मंडल 40, 56, 101, 227 मंि 237, 244, 355-56, 370-71 मजन्दर (मूँदर) 66, 108, 148, 165, 192, 211, 327, 336, 372 मकर (मक, मकड़ी) 97, 139, 304, 324, 378 मक्खी 116, 378 मछली (मच्छी) 4, 12, 136, 174, 192 350, 380 मछली और िल 4, 136 मछली और नीर 53, 86, 89 मिनूूँ 179 मज़रब 170, 172 मजर् 45, 57 मत 3, 32, 34, 46, 74, 81, 83, 8687, 101, 157, 206, 212, 216, 299 मथ 60, 90, 153 मथुरा 73, 193, 300 मद 96-97, 112, 135, 153, 158, 161, 166, 300, 375, 387 मदन 94 मन मोरन 73 मद माता 118, 253 मधुकर 61 मन 1, 3-4, 37-43, 46, 48, 53, 56-61, 63-79, 81-85, 87-90, 92-95, 97-99, 101, 103-8, 110-41, 143-59, 161-70, 186, 192, 200-16, 219, 221-22 306-9, 311-25, 327-48, 352,

354-66, 370, 372-73, 37577, 386-88 मन इन्द्री 66-67, 69, 81, 110-11, 114,123,134,148-49, 18788, 237, 253-60,306, 33846 मन बैरी 79, 136, 143, 151, 188, 270 मन मत 81, 98, 103, 151, 157, 253, 265, 336, 339, 366, 375 मन माया 53, 84, 162, 267, 325 मन मारग 112 मन मुख 80, 83, 122, 151, 162, 265, 355 मन मूरख 113, 120, 314 मन मुखता 318 मन मैल 112 मन ले (को) मार 30, 67, 94, 96, 131-33, 143-44, 151, 163, 166, 168, 195, 204, 326, 360 मन िान्त 108 मनसा (मन्सा) 52, 74, 134, 335 ममता 15, 60, 62, 135, 162, 168, 234, 239, 273, 282, 298, 303, 309, 324,326,335-36 मरदूद 175 मयाणदा (मरिादा) 118, 252 मररयम 12 मदुमक ण 293 मदुमम ण क चश्म 171 ममण (मरम) 5, 9, 19, 6,70,80,81, 88

देिना (Index) सार बचन छंद बंद 96, 100, 104, 110-11, 120, 132, 134, 137, 169, 189, 193, 197-98, 206, 208, मलकू त 3, 342 मलयाजगर 3, 342 मिायख 220 मजस्िद (मसीत) 33, 169, 220, 350 मसान 118 मरल 53, 57, 151, 153, 168, 170, 228-29, 233, 298 मरा काल 48, 101, 158, 199, 227, 228-29, 298 मरा काल 48, 101, 158, 199, 227, 310, 345 मरातम 85, 192, 273 मरातम भजि सतगुरू 103-5 मरा परलय 199 मरा सुन्न 3, 5, 9, 12, 15, 27, 4048, 53, 59, 62-68, 78, 88, 94-97, 100-1, 108, 134, 146 148, 152-53, 155-57, 160 164, 167, 175, 187, 194, 196, 199-200, 211, 213, 222, 224, 227, 233-36, 240 248-49, 282-83, 312, 315, 340, 365 मजरमा 19, 59, 68, 70-71, 75, 147, 163, 193, 198, 212, 240, मजरमा गुरु चरन 52 मजरमा गुरु पद 47, 50 मजरमा दिणन राधास्वामी 37-48 मजरमा जनि स्थान 42-48 मजरमा जनि स्वरूप 42-48, 274

411

मजरमा परम पुरूष पूरन धनी राधास्वामी 8-37, 42-48 मजरमा िब्द 88, 132, 206, 281-90, 331 मजरमा िब्द स्वरूप सतगुरू 87-94 मजरमा सतगुरू 57, 72-87, 108, 196, 223, 251, 281-90, 311-20 341 मजरमा सतगुरू भजि 186 मजरमा सत संग 97-102, 157, 342 मजरमा सुरत िब्द मागण 186, 197207 मरेि 9, 72, 189, 191, 197, 338, 371 माखन 60, 89 माघ मास 344 माजर्क 55, 61, 301, 316, 355, 376 मात जपता 112, 136, 380 माता 4, 69, 80, 86 माधो 63, 155 मान 74, 85-86, 93, 97, 100, 106, 130-35, 140, 142-45, 153, 157, 161, 166, 188, 193, 202, 208-9, 232-38, 253, 256, 269, 307, 327, 375 मान मनी 57, 106, 109, 355 मानसर 44, 78, 153, 158-59, 169, 255, 305, 326 मान सरोवर 5, 41, 44, 46, 48, 64, 79, 108, 163, 173, 200-1 222, 227, 249, 253, 273, 282, 284, 296, 301, 330

412 339, 348,

सार बचन 352,

359,

362,

386 मान मरंती 71 मानी 85 मानुष 84, 86, 140 माबूद 350 माया 15, 48, 52, 82, 88, 9798, 101, 103, 111, 119, 135, 158, 162, 186, 191, 193, 197, 199-201, 207 217, 225, 231, 234, 262 282, 303-4, 309, 323, 333, 359-60, 372 माया काल 48 माया चक्र 50 माया ब्रह्म 46, 50, 70, 101, 18699 माय संवाद 200-10 मारग 42, 64-65, 127, 167, 175, 200-2 मारग िब्द गुरु 127 मारग सुरत िब्द 193 मागण अनरद िब्द 171 मागण सत्त लोक 42 माफ़ण त 221 माला (माल) 51, 61, 192, 253, 336 मास 121 जमि 116, 134, 136, 150, 265, 279 जमरगन (जमरग) 257, 308 जमथ्या 33, 151, 203, 208-10, 21920, 271, 347 मींगी 103 मीना (मीन) 26, 38, 50, 76, 97, 107,

120, 304 मुन्दरा (मुद्रा) 66, 219 मुजि 75, 131, 194, 197, 265, 385 मुक़ाम सात 34, 196 मुनव्वर 176 मुजन 47, 101, 189, 197, 216 मुरदे 136, 321 मुरली 41-44, 62, 66, 91, 228, 283, 300, 307 मुरजिद (मुर्शिद) 33, 170 मलामत 136 मुल्ला 220, 264 मुसलमान 3, 12, 74, 178, 205, 220 351 मुसल्लली 173 मुसाकफ़र 116, 118 मूरख 84-86, 102-104, 112, 123 193, 105, 205, 209-10 212, 326, 334, 379 मूरत 35, 38, 48, 73, 83, 142, 155, 192, 219, 285, 296 301, 336 मूर्शत (मूरत) पूिा 336 मूसा (मूस)े 12, 207, 378 मृगनी (जमरगनी) 12, 40 मृदग ं (जमरदंग) 54-56, 227, 252, 285 316, 355 मेंडक 228 मेराि 34 मेरर 1, 5, 27, 29, 37, 45-46, 4849, 53, 51, 65, 74, 81, 102, 106-7, 109, 125, 170, 192, 262-81, 311, 341,343, 398

देिना (Index) सार बचन छंद बंद मोक्षद्वार 154 मोती 6, 54-58, 61, 75, 85, 93, 139, 157, 206, 228, 301, 313, 316, 327, 339, 355, 362, 370, 376 मोर 16, 52, 56, 68, 70, 79, 96, 111-12, 124, 131, 135, 144 151, 153, 158, 161, 300, 314, 387 मोर का फं दा (फाूँसी) 91, 121 मोर िग 74, 115 मोर िाल 113, 136, 241 मौि, 5, 42, 93, 95, 101, 104, 109, 150-51, 205, 215, 218, 230-31, 239, 262, 268, 270, 275, 277, 298, 300, 314, 343, 352, 373 मौि गुरु 98, 104 मौि जबना 214, 343 मौत 98, 117, 121, 124, 129, 267, 275, 335 मौलवी 221 ररूँ ग (ररं ग, ररं ) 20, 46, 48, 89, 283 रस 41, 83, 88, 92, 96, 101, 150 160, 166 रसूल 10, 34, 350 राग 6, 60, 65, 67, 165, 208 राग राजगनी (राजगनी) 58, 51, 206, 303 राधा 1, 7, 8, 49, 190, 241, 301 राधास्वामी ( जरदायत नामा और बारर मासा को छोड़ कर लगभग रर पृष्ठ पर रै ) राधास्वामी नाम 1, 4, 8, 64, 97, 163 राधास्वामी जसफ़त 7-37

413

राम 190-91, 205-6, 216, 248-49, 350-51 राम औतार 316 राम कृ ष्र् 12, 32, 72-73, 191, 316 राम लोक 3, 215 रारं कार (ररं कार) 17, 62, 64, 91, 198 222, 295, 298, 317 रावन 191, 211, 248-49, 350 रूकजमन 12, 228 रूप 1, 4, 11, 24, 30, 38, 40, 42, 46, 49-50, 57, 61, 63, 78, 123, 129, 134, 156, 187, 190, 204, 212, 215-16 219, 229, 244, 267, 289, 291-95 297-98, 300, 309, 311, 316, 312, 342,346-47 351-52, 363, 370, 372 रूप राधास्वामी 4, 37 रूहुल क़ु दस 3 रे ल 4 रै न 83, 111, 113, 116, 121 रोज़ा 33, 220, 350 रोम 43-44, 56, 64-69, 129, 206 रौज़न 173 लक़ा 304 लक्ष 47, 95-96, 204, 211, 219-20 लक्ष्मी 9 लतींफ़ 173-74 लबार 67, 70, 190 ला मुक़ाम 244, 342 लाल 6, 44-45, 50, 55, 58, 61-62, 108, 157, 206, 228, 316, 370, 376 लाहूत 4, 173, 342

414

सार बचन

लीला 4, 5, 11, 14, 36, 40, 44, 46, 58-59, 62, 64, 71, 94, 158, ,228 ,218 ,213 ,190 ,64-163 233, 260, 281-90, 309, 331, 352 लीला मुक़ामात 291-320, 344 लूका 57 लैला 179 लोभ 11, 16, 52, 96, 108, 121, 123, 1 35, 193, 324 लोभ मोर 52, 67, 121, 125, 142, 201 , 238, 358 लोर (लोरा) 11, 35, 44, 57 वि गुरु 33, 73-74, 242 वज़ीफा 33 वज़ीर 90 वर्णन आनंद प्राजप्त सतगुरू 233-36 वर्ाणत्मक 95-96 वस्त्र (वस्तर) 50, 68, 76, 89, 107, 208, 284, 387 वाच 96 वाचक ज्ञानी 200, 219 जवकार 9, 36, 40, 48, 79-70, 90 110, 154, 162, 188, 364 जवद्या 43, 85-86, 93, 125, 133, 142, 188, 192, 202, 206-10, 21719, 221, 317 जवजध आरत 79, 137, 284 जवजध दरस 106 जवजध पूवक ण 3 जवजध सतसंग 341 जवजध सेवा 106 जवरर 4, 10, 41, 51-52, 57, 63, 65, 67-68, 71, 74, 80, 93, 106

110, 121, 132, 144, 146 148, 169, 201, 213, 226, ,33-229 240-56, 264, 272, 276, 292, 300, 307, 320, 322, 332, 370 जवररन 11, 57, 146, 232, 296 जवजिष्ठ 72, 177, 189 जवष (जवषय) 4, 52, 106, 110, 165, 167-68, 253, 287 जवष्र्ु 147, 215, 340 जवरंग 314 वीर 90 वेद 30, 46, 48, 59, 65, 73, 75, 84, 93, 100-1, 178, 197-98 204, 212, 216, 226 वेद कतेब पुरार् 10 198, 213, 340, 370 वेद कतेब पुरार् 10 वेदन 230, 333, 370 वेद पुरार् 101, 186, 201, 234, 350 वेद पुरार् िास्त्र 85, 189, 195, 197, 200-1 वेद मता (मते) 102, 220 वेदान्त (वेदान्त) वेदान्ती 86, 100-1, 210-11, 214, 216 वैराट 197, 219, 226 व्यास 72, 129, 177-78, 189, 194, 202, 316 िऊर 288 ििी (िजि) 101, 147, 189 िग़ल 88, 171 िग़ल आवाज़ (आवाज़) 34, 176 िग़ल नसीरा 171

देिना (Index) सार बचन छंद बंद

415

श़गल बाला 172 िब्द 2, 7, 15, 30, 43, 58, 61, 6367, 69, 86, 92, 94, 111, 121, 125-27, 131-32, 139, 147-56 160, 162, 164-70, 195, 96, 200, 203-4, 206, 211, 214, 217, 233-34, 304-7, 309, 311-32, 341, 343, 354, 358, 374-385 िब्द अभ्यासी 109 िब्द कमाई 87, 90-91, 93, 105, 109, 114, 132, 205, 210, 214, 346, 366, 385 िब्द गुरु (गुरु ) 37, 42, 52, 56, 58, 73, 90, 123, 127, 164, 200, 245, 296, 312 िब्द धार 77, 326 िब्द धुन 150, 159, 161-63, 170, 205, 275, 307, 368 िब्द जबन (जबना) 88-92, 105, 109, 127, 144, 151, 204-5, 264-

जिकारी 195, 201, 322 जिव 32, 73, 101, 316 जिव लोक 3 जिव िजि 101, 147, 186, 199, 340, 350 िीि मरल 87, 94, 174 िुकदेव 126 श्रंगी ऋजष 189 िेख 9, 22, 30, 70, 72, 114, 189, 191, 197, 316, 338, 345, 350, 358, 371 िोभा सतगुरू 41, 56, 58, 146, 163, 247, 250, 330 श्याम कं ि 60, 191, 281-90, 296, 334, 357, 368, 387 श्याम सेत 44-45, 62, 67, 152, 156 159, 166, 222, 281, 286 295, 300, 302, 326, 331, 367, 375 संख 45, 159, 348 संग (सूँग) 31, 35, 41, 102

66

संत 2, 3, 32, 41, 43, 59, 63, 65,

िब्द भेद 59, 90-91, 105, 109, 128, 205, 244, 354 िब्द मारग 88, 127, 188 िब्द रस 92, 110, 135, 146-47, 150, 158, 167, 260, 277, 303, 322, 332 िब्द रूप 275 िब्द सनेरी 105, 127 िब्द स्वरूप (स्वरूपी), 87, 109, 262-81 िब्द िरई 221, 350 िरीअत 221 िास्त्र 32, 85, 189, 195, 2 1, 351 िार (सार) 90, 380

75, 85, 94, 97,103, 116, 120, 124-25, 133-34, 14547, 156-57, 162, 164, 170, 175, 178, 187-90, 193-96, 202,204,206,208-9,211-13, 220, 223, 225, 228-32, 312, 314, 318, 320, 323, 336, 337, 342-44, 348, 353-54, 364, 369, 386 संत कृ पा 64, 282, 340 संत बचन 124, 169, 197-98, 212 223-339 संत जबना (जबन) 43, 59, 65, 75, 88

416 102-3,

सार बचन 126,

169,

194-45,

सतगुरू दया 64, 99, 110, 114, 122,

198, 200, 224, 264, 299, 338, 369 संत मता (मता) 43, 46, 78, 102, 125, 150, 161, 163, 190-91, 193, 198, 200, 202-3, 205, 207, 210, 215, 217, 219, 224, 273-74, 277, 312, 318, 33941, 350, 353 संत रूप 187, 197, 351 संत सतगुरू रूप 2, 3, 338, 346 संत सरन 124, 188, 193, 210, 224, 226, 251 संत स्वरुप 1, 204 संदि े 2-4 संसार 4, 99, 101, 116, 154, 162, 219, 276, 339, 355, 364, 373 सच खंड 6, 46, 48, 86, 100-1, 198, 206, 247, 249, 293, 342 सच्चा 105, 108-9, 111 सतगुरू 1, 2, 41-42, 44, 47, 59, 63, 68-69 , 72, 85, 99, 103, 106, 111-12, 114, 120, 139, 157-58, 162-65, 187-88, 190, 192, 194, 200, 226, 229-33, 239-53, 262-98, 304, 306, 308, 311, 313-14, 318-24, 326-27, 329, 333, 335-38, 341-49, 357, 359, 365-68, 371, 375, 385-88 सतगुरू कृ पा (ककरपा) 53,68, 72, 229, 355, 357 सतगुरू चरन 57, 119, 375, 377

232, 234, 238, 241, 341, सतगुरू पूरे 37, 42, 62, 126, 145, 195-95, 243,247,255, 261, 313, 326, 337, 365, 367 सतगुरू जबन 109, 193, 200, 22123, 236, 264, 271, 335 सतगुरू भजि 127, 133, 145, 186 सतगुरू सरन 82, 156-57, 192, 200, 234, 250, 256, 283 सतगुरू सेवा 81, 123, 130, 194, 225 सत जचत आनंद 219 सत िुग 13, 69 सत धाम 13, 69 सत नाम 1, 41, 43, 55, 59, 63-64, 68-69, 72, 80, 86, 89, 98, 100-3, 107, 124, 131, 135 140, 145, 152, 155, 164, 187, 190, 192, 196, 198, 209, 213,217,222-23, 229, 235, 240, 253, 280, 287, 295-99, 300-2, 310, 315, 318, 320, 326,331,337-38, 342, 347, 351, 354, 365, 375 सत पद 65, 75, 78-79, 113, 289, 305, 317 सतपुर 62, 68, 110, 169, 197, 248, 283, 372 सत िब्द 43, 56, 89, 101, 161, 164 196, 222, 224, 252, 272, 285, 347 सतसूँग (संग) 4, 6, 27, 33, 64-65, 74, 77, 84-85, 97-102,

देिना (Index) सार बचन छंद बंद

417

107, 111-12, 115-16, 121, 123, 125, 127, 130-32, 140, 142, 144, 152-53, 162-65, 168-69, 194, 200, 225, 22933, 248, 250, 264-277, 302, 325, 338, 342, 349, 354, 375, 387 सत संगी 48, 55, 77, 68, 200, 258 386-88 सती 136 सत्तनाम धुन 37, 52, 55, 63-64 सत्त (सत) पुरूष 2, 3, 5, 44, 48, 56, 66-69, 82, 100, 102, 106, 129, 133, 135, 138, 140, 155, 176-77, 187-88, 19798, 204, 206, 216, 224, 226, 229, 234, 247, 267, 275, 280, 282, 294, 301, 394-5, 307, 309, 315, 317, 319, 320, 337-38, 353, 387 सत्तलोक 3, 6, 12, 27, 40, 44, 53, 57-58, 66, 73, 91, 101, 131, 134, 143, 148, 150, 153, 155, 167, 176, 178, 187, 194, 196-200, 212, 216, 222-25, 234, 236, 253, 280, 285, 387 सत्य सत्य (सत्त सत्त) 101, 176, 198, 217, 387 सनक 10, 72, 316

समरथ 4, 71, 100, 131, 218, 230, 237, 239, 262-64, 268, 276, 301 सरधा 99, 125, 130, 140, 190, 207 सरन 18, 24, 29, 35, 41, 45, 53, 65, 81, 118, 123-26, 14445, 152, 156, 160, 166, 170,195-96, 201,212, 272, 399 सरमदी 34 सरवन (श्रवन) 42, 63, 87, 91, 133 सरवर (सरोवर) 57, 62, 66, 93, 146, 162, 168, 234, 265 सरूप 45, 56 सरस्वती 211 सगुन ण (सगुर् ण ) 164, 199, 274, 345 सरि 80, 321 सरस दल कं वल ( सरस कं वल ) सरंस दल कं वल 45, 48, 62, 67, 78, 96, 146, 167, 187, 193, 211, 213, 219, 222, 226, 236, 248-55, 282-99, 315, 318, 322, 325, 331, 345, 360, 364, 387 साध 106, 117, 121, 124, 131-32, 145, 154, 157, 165, 203, 224-25, 333, 384 साधन 85-86, 194, 202-3 साध संग 110, 124, 126, 159, 289, 306, 316, 336, 338

सन्मुख (सनमुख) 49, 53-54, 56-57,

सारूँ ग (सारËL ) 16, 48, 56, 78, 283,

61, 76-77, 105, 133, सन्यास 72 सम दम 130, 142, 202-3

364 सार 40, 42, 85, 90, 96, 107, 109, 139, 147, 153, 161, 166,

207

418 168, 193, 195, 207 सार रस 6, 50, 147, 325 सावन मास 334-336 सावन सरडोला 362-65 ससगार 16, 60-61, 65, 67, 76 ससध (जसन्ध) 20, 41, 50, 58, 83, 103, 108, 188-209, 211-12, 216-17, 317 ससर 17, 52, 94, 208, 308, 345, 378, 380 ससरासन 45, 49, 53, 56, 69, 77, 206, 242, 245, 247, 283, 364 जसख 72, 93, 108 जसद्धान्त 3, 34, 74, 101, 211, 216, 220 जसफ़त राधास्वामी नाम 7-37 जसफ़ली 221 सीत 31, 137, 170, 193, 258, 387 सीतल 49, 54, 63, 108, 123, 139, 162, 242, 247, 262, 279, 284, 332, 336, 373, 375 सीतलता 83, 319 सीता 12, 191, 211, 248 सीप 11, 26, 54, 271 सील 61, 66, 159, 317 सील जछमा 48, 53, 81, 142, 291 सुई का नाका (द्वारा) 44, 156, 173, 282 सुख 81, 123, 128, 137, 141, 150, 155, 166, 186, 198, 203, 213, 219, 388 सुख दाता 83 सुख दुख 1, 53, 186, 201, 213, 216,

सार बचन 236, 238, 256, 267, 271, 280, 296, 306, 334, 338, 349 सुख देव 129 सुख धाम 198 सुख भंडार 70 सुख मन 5, 38, 40, 44-47, 55, 61, 93, 146, 158-59, 200, 211, 234, 280, 299-300, 306, 309, 329,357,359, 361-62, 367, 386 सुख मन तीरथ 47 सुत जवयोग 4 सुजध (सुध) 76, 82 सुन्न (सुन) 3, 12, 40, 55, 62, 64-67, 78, 88, 91, 93, 100, 139, 146, 153-59, 167-70, 173, 187, 196-201, 211, 213, 218, 222,224,233-35, 249, 302, 309, 312 सुन्न मंडल 56, 57, 77, 80, 101, 155, 162, 227, 239, 283, 335, 360 सुन्न जिखर 48, 53, 59, 61, 82, 108, 134, 148, 169, 194, 200, 227, 234, 248, 253, 265, 275, 282, 299, 312, 327, 360 सुपना 83, 94, 111, 121, 202, 208, 212-13, 219, 303, सुमत (सुमजत) 79, 154, 329, 359, 370 सुजमरन 43, 62-63, 66, 82, 117, 222 सुरत (सुत,ण सूरत) 2, 16-17, 35, 37,

देिना (Index) सार बचन छंद बंद 39-40, 43, 57, 59, 61, 6367, 76, 78-79, 82, 86, 88, 90, 92-97, 110, 113, 146-50, 153-69, 186, 190, 193, 195, 200, 202-4, 211, 214-30, 233-37, 239-55, 258, 309, 311-15, 317-21, 323-332, 336-38, 341-43, 345-49, 351, 375 सुरत जनरत 45, 51, 53, 55, 58-59, 62-63, 68, 77-80, 144, 15556, 170-187, 228, 231, 24851, 300, 324, 329, 335, 349, 356, 359, 361, 363, 365 सुरत िब्द 4, 20, 59, 63, 68, 77, 82, 89, 95, 102, 108, 114, 122-27, 130, 132, 138, 143, 146, 150-51, 155, 158-59, 161, 165, 168, 203-7, 20910, 212, 214, 217, 224, 230, 234, 242, 255, 264, 276, 301, 305, 308, 311, 356-57, 381 सुरत िब्द की लार (रार) 18, 43, 46, 96, 187-88 सुरत िब्द मागण (मारग) 3, 10, 75, 77, 80, 86, 135, 140, 193, 200, 205-6, 209, 215, 222, 224, 255, 259, 262, 274, 284, 320, 338, 243, 287 सुरत संवाद 214-29 सुर नर मुजन 101, 358 सुल्तानुल अज़कार 171

419

सुवना नलनी 120 सुफ़ी 331 सूरि (सूर) 43, 53-54, 57, 66-67, 81, 91,94,108, 136, 206-7, 222, 226, 228, 241, 274 सृजष्ट (सृजष्ट) 101, 353 सेत 41, 48, 55-56, 58, 60, 62, 66, 67, 69, 139-40, 146, 163, 196,228,233,243-363 सेवक 42, 68, 71, 89, 136, 196, 242, 283, 313, 377 सेवा 73, 80, 84, 98, 101, 106-8, 125, 140, 148, 155, 184, 216, 218, 240, 387-88, सेवा वार्ी 386-87 सैयद 221 सोत 2, 41, 69, 112, 124 सोत पोत 103, सोता सन 125 सोरूँग ( सोरंग, सोरं ) 20, 27, 39, 42, 44, 46-48, 52, 62-63, 78, 89, 97, 148, 160, 164, 175, 198, 211, 223, 228, 235, 240, 265, 285, 307, 351 सोरबते फ़कीरी 171 स्मृजत (स्मृत) 32, 85, 114, 163, 189, 194-95, 197, 201, 318 स्मृजत पुरार् 114, 147, 186, 201 स्वगण 215-16, 221, 351, 353 स्वांजत (स्वाूँजत) 4, 7, 11, 26, 53-54, 86, 271, 280, 319, 339 स्वान 168, 253, 257, 334 स्वामी 1, 7, 43, 49, 52-55, 57-61, 69, 89, 96, 99, 102, 131,

420

सार बचन

194, 201, 215, 218, 221-23,

134-35, 138,142,199, 232,

230,

244, 249, 273, 301, 309,

239-40,

262,

282,

386-88 स्वारथ 105, 108, 112, 130, 208 रंस 5, 6, 43, 56, 62, 93, 101, 108, 132, 139, 165, 170, 123-74, 198, 206, 215, 227, 229, 240, 247, 252-53, 283-85, 290-301, 304-4, 313, 345 रक्क़ रक्क़ 342 जरदायत नामा 170 राकफ़ि 220 राल उत्पजत्त प्रलय 197-200 राल जवरर सतगुर 229-33 राहूत 174, 342 सरदू 12, 33, 74, 178, 205, 220, 251 जररदे (जररदा) 28, 52, 57, 63, 66, 73, 76, 83-87, 106, 119

314, 335-36 जररन गभण 219 रीरा (रीरे ) 55, 61, 79, 157, 174, 206, 228, 308, 370, 376, हुकु म 98, 130, 140, 204, 231 हुलासा (हुलास) 38, 48 हुजियार 15, 70, 76, 90, 116, 118, 138,154,164,188,263, 285 हूत 178, 342 हूतल हूत 175, 342 हू हू 173 रैरत 8, 35, 211 रोली (रोरी) 347, 355, 358-61 रौजज़ कौसर 173 ऋजष 72, 216 ऋजष मुजन (ऋजष मुनी) 9, 137, 189, 193, 197, 216, 353 ऋजद्ध जसजद्ध 154

राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सराय

राधास्वामी िी

View more...

Comments

Copyright ©2017 KUPDF Inc.
SUPPORT KUPDF