Honey शहद

March 10, 2017 | Author: संजय कुमार | Category: N/A
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घरे लू औषध-६

मधु

ले ख क

वामी ओमान द सर वती

काशक - हरयाणा सा ह य सं थान, गु कु ल झ जर, जला झ जर (हरयाणा) अग त १९९६ ई० ावण २०५३ व०

Digital text of the printed book prepared by - Dayanand Deswal दयान द दे सवाल

Contents 1 भूि मका 2 घरे लू औषध मधु 3 मधु के विभ न नाम 4 शु मधु क पहचान 5 सामा य प से मधु के गुण-दोष और भाव 6 िभ न-िभ न कार के मधु 7 मधु (शहद) ह अमृत है

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8 शहद के वषय म एक बड़ा म 9 उदर रोग क सव म औषध मधु 10 मानवीय शर र पर मधु के भाव 11 बाल रोग क िच क सा 12 दमागी रोग 13 खाँसी-जुकाम शीत रोग क सरल औषध 14 आँख के रोग 15 स तामृतलौह 16 उ माद, पागलपन क औषध 17 जुकाम-खांसी कभी नह ं होगा 18 आयुवद और मधु

भूिमका

The author - Acharya Bhagwan Dev alias Swami Omanand Saraswati

भु द मधु (शहद) एक अमृततु य पदाथ है । वह परमे र क ा णय के क याण के िलए द य दे न है । जस कार यह जग िस मा यता है क गंगाजल कभी सड़ता नह ,ं पाचक व रोगनाशक है । इसी कार मधु (शहद) भी एक ऐसी प व व तु है जसम सड़ांद कभी उ प न नह ं होती । यह शर र से उ प न होने वाली सड़ांद को भी रोकता है । फल आ द व तुओं को भी इसम बहुत दे र के िलए सुर त रखा जा सकता है । शहद के गुण को समझने के िलए वै ािनक ने जो अनुस ंधान कये ह, उनसे इस बात का भी पता चला है क शहद कृिमनाशक है । डॉ टर ड यू जी सैकट ने रोगक टाणुओं को शहद म रखा, तो ये क टाणु शी ह मर गए । इनम टाईफाईड और पेिचस पैदा करने वाले क टाणु भी थे । शहद म सड़ा द को रोकने और क टाणुओं का नाश करने क जो श व मान है , उसने उसे भोजन म सव म (सव े ) और प व थान दया है । हमारे पूवज शहद के इन गुण से प रिचत थे, इसिलए उ ह ने शहद पंचामृत का अंग माना है । शहद म वटािमन कम पाये जाते ह । 'बी' वग के वटािमन के अित र वटािमन 'सी' भी शहद म िमलता है । येक साधारण च मच शहद से ४५ लोर ज श उ प न होती है । इन त व के अित र शहद म अनेक कार के पु प क मनोरम सुग ध होती है जो अ य कसी भी िमठाई म नह ं िमलती ।

मधु - आवरण पृ

सामा य सफेद चीनी क तुलना म मधु एक उ कृ पदाथ है । चीनी म ६६ ितशत से अिधक मधु म केवल ५ ितशत । चीनी म कोई धातुियक त व नह ं होते और न वटािमन ह ।

ेत सार होता है जब क

मधु ७० ड ी (फानहाइट) ताप म से नीचे रवेदार बन जाता है , उसम गाढ़ापन आ जाता है और वह जमने लगता है ।

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जाड़ के दन म पघलाने के िलए शहद के बतन को गम पानी म रखकर या धूप म रखकर पघलाना चा हए । १५० ड ी फानहाइट से अिधक ताप दे ने से इसका वाद और रं ग बगड़ जाता है । भारत म राजय मा अथवा य रोग से एक िमनट म एक य मरता है । आज व म य रोग दवस मनाया जा रहा है । व वा य संग ठन ने भारत स हत सभी एिशयाई दे श से कहा क एिशयाई दे श म व के अ य दे श क अपे ा नये कार का य रोग (ट .बी.) फैलने क बहुत आशंका है । इस य रोग का बहुत भयानक प है जो पूरे व म ह फैल रहा है । इस भयंकर रोग से बचने के िलए शी ह कोई सफल पग नह ं उठाया गया तो इस रोग के रोिगय क सं या बहुत तेजी से बढ़ जायेगी । अभी तक इसक िच क सा म सफलता नह ं िमल रह है । चय के पालन न करने से असा य रोग ए स दन- ित दन बढ़ता जा रहा है । लोग के य न करने पर यह घटा नह ं क तु यह बहुत भयानक प धारण कर स मुख आ रहा है । व वा य संगठन का मत है क य रोग से ह सबसे अिधक लोग क मृ यु होती है । ितवष लगभग ३० लाख लोग इस य रोग से मरते ह । इनक सं या तेजी से बढ़ रह है । यह भयंकर रोग चय का पालन न करने, आहार- यवहार के द ू षत होने और अंडे-मास, म दरा आ द नशीले पदाथ के सेवन से य ए स आ द भयंकर रोग दन- ित दन बढ़ते जा रहे ह । ितवष लगभग ७० लाख नये य के रोगी आते ह । बा यकाल से ह माता- पता व गु जन बालक को चय के पालन क िश ा द और सव म भोजन मधु (शहद), गोद ु ध आ द पदाथ का सेवन कराय तो इन भयंकर रोग से बचा जा सकता है । स व म य एिशया म पौ क पदाथ के सेवन से वहाँ के लोग क आयु व कद बढ़ते जा रहे ह । कई वष पहले स म एक स मेलन हुआ जसम पाँच हजार से अिधक सं या म द घ आयु वाले लोग ने दशन दये । उन सबक आयु १५० वष से अिधक थी । जब बालक माँ के गभ म हो तो माता को गोद ु ध के साथ मधु का सेवन कराना चा हए और िशशु को उ प न होते ह बालक का पता वण क शलाका से मधु से उसक ज ा पर ओ३म ् िलखे व मधु उसी शलाका से चटावे और बालक को थम नौ मास तक मधु दया जाये तो उसको छाती रोग, ास, कास, जुकाम, िनमोिनया आ द नह ं होते । मधु कोई बहुमू य या दल प म सुल भ हो सकता है । वे चाह तो ु भ व तु नह ं है । साधारण मनु य के िलए भी वह शु बड़ सुगमता से मधुम खय को अपने घर म पाल-पोसकर उनसे मधु वैसे ह ा त कर सकते ह जस कार से अपने यहां गौ और बक रय को पालकर उनसे दध ू लेते ह । गौ, बक रय के चारे पर जो यय होता है , मधु-म खय के िलए उसक भी आव यकता नह ं पड़े गी । वे अपना आहार वन, जंगल के फूल से सं ह कर ले आती ह । उनके रहने के िलए केवल लकड़ के बने हुए म का को क आव यकता पड़े गी और उनक दे खभाल ह पालन-पोषण के प म अव य करनी पड़े गी । हां, मधुम खय क पालनकला को सीख लेना आव यक है । हमारे दे श म चीनी का योग बहुत अिधक बढ़ता जा रहा है । ाकृितक िच क सक ने तो चीनी को सफेद जहर माना है । चीनी के सेवन से आंत म सड़ा द व अ सर पैदा होता है और अ ल प (तेजाब) क उ प होती है । इसके सेवन से सभी आयु के य य के यकृत खराब हो जाते ह और उ ह बहुत शी जुकाम होने लगता है और छाती म िनमोिनया आ द रोग क उ प होती है और गले क थयां सूज जातीं ह । इसके खाने से शर र म चूने (कै शयम) क कमी हो जाती है । चीनी म कोई पोषक त व नह ं ह और चीनी और मधु म उसी कार का भेद है जैस ा दध ू और शराब म होता है । द ु ध अमृत है । शराब वष है । इसी कार मधु अमृत और चीनी वष है । इस चीनी ने मानव जाित के वा य का नाश करने म कोई कसर नह ं छोड़ । मधु (शहद) म वे सभी त व पाये जाते ह जो क शार रक उ नित के िलए आव यक ह । यािमन जो त तुओं का िनमाण करती है , लोह जो क र के िलए आव यक है , चूना जो ह डय को सु ढ़ बनाता है । खा ोज जनक पोषक मह ा से सभी प रिचत ह, यह सभी पदाथ शहद म पाए जाने वाली शकरा म अिधकांश लूकोज का होता है , जो बना कसी पाचन या पर बोझ डाले शर र म आ मसात ् हो जाता है । शहद कसी भी े मक कला म से गुजर कर र म सीधा घुल जाता है । आप आ य म आ जायगे य द म यह कहँू क शहद जब क वह मुंह म होता है , पूव इसके वह हमार भोजन नािलका ारा आमाशय म पहुंचे, वह र म िमलना ार भ हो जाता है । मेदे म पहुंचकर शहद का आ मीकरण भी बहुत ज द होता है । यह कारण है क शहद दय के िलए श व क माना गया है । थका-मांदा इ सान चाय पीकर सु ती को दरू करता है , य द वह चाय के थान पर शहद को पानी म घोलकर पये तो उसे यह अनुभ व कर बड़ा आ य होगा क न केवल उसक थकावट ह दरू हो गई है ब क उसके शर र म नवीन फूित आ गई है ।

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जो दे श कभी दध से ू क अिधकता के िलए िस था, आज वह दध ू के अभाव म शार रक व आ मक दन ित दन अवनत होता जा रहा है । धनी और स प न य य को भी यथोिचत मा ा म दध ू और घी नह ं िमलता । आज समाज के खान-पान क से इतने िनकृ तर पर पहंु चने का कारण णघातक चीनी ह है । सब जानते ह क िमठाई बनाने के काम चीनी ह आती है । हलवाई के हाथ म अगर चीनी न हो तो आज दध ू क इस कार ह या न क जाए । हम खुरचन, मलाई, रबड़ , पेड़ा और ल डू नह ं ा त हो सक । दध ू का योग अिधकतर इन िमठाइय के बनने म हो जाता है । हम शु घी व दध पीने को नह ं िमलता । दे श क े वा य का हत इसम है क चीनी का सेवन बंद ू कया जावे । सरकार भी कानून बनाकर इस पर ितब ध लगावे और जनता भी इसका कम से कम योग करे । सी लेखक डॉ टर ए वद का दे ल ने सो वयत भूि म म कािशत अपने एक लेख म िलखा था क जब वे मा को के एक िच क सालय म गये तो उ ह ने वहां के रोिगय को एक गाढ़ -गाढ़ दवा को बहुत वाद से खाते दे खा । ायः दवाओं का वाद कड़वा होता है ले कन इस सुग धत फ के अंबर रं ग के व पदाथ को बड़ स नता से गटकते दे खा । यह दवा थी मधु । सारे इितहास म स ने अपने शहद के िलए संस ार म सव े इनाम पाया है । यु म ज मी सैिनक को सौ वष पुराना शहद वा य ा त के िलए दे ने क चचा आती है । ाचीनकाल से ह स विभ न दे श म अपने मधु का िनयात करता रहा है । आधुि नक िच क सक ने रोग पर मधु का योग कया । वे सभी इसी प रणाम पर पहुंचे क मधु येक रोग पर आ यजनक लाभ करता है । यह सभी जानते ह क खाने क भोजन साम ी अिधक दन रखने से खराब हो जाती है । पर तु या ऐसा भी कोई खा पदाथ है जो हजार वष तक रखा रहने पर भी न तो सड़े और न ह बगड़े । वह केवल मधु ह है । १९३३ म िम के परािमड म एक मधु का पा िमला जो ३३०० वष पुराना था । पा के मधु का कोई वाद वा गुण नह ं बगड़ा था य क मधु म क टाणुनाशक बहुत गुण ह । इतना ह नह ं, यह अनेक रोग उ प न करने वाले क टाणुओं का नाश करता है और इसका सेवन उ म वा य दान करता है । इस कार मधु के जतने गुण गाए जाय, उतने थोड़े ह । यह सव म भोजन व सव म औषध है । घरे लू औषध थमाला का यह छठा भाग पाठक क सेवा म आ रहा है । इसम सामा य प से रोग के िनदान वा पहचान, िच क सा, उपचार, प य और अप य पर भी काश डाला है । आशा है म े ी पाठक इससे लाभ उठायगे । इस पु तक क स ै कापी चार सुभाषच शा ी ने िलखकर तैयार क है । आशीवाद स हत ध यवाद ।

- ओमान द सर वती

घरे लू औषध मधु मह ष ध व त र जी ने चरक शा

मधु के भे द - १. मा

क, २

म मधु के चार नाम व भेद िलखे ह ।

ामर, ३.

मा

कं

ामरं

ौ ं पौ कं मधुजातयः ।

मा

कं वरं तेषां वशेषा

ामरं गु ॥

ौ , ४. पौ क - इतने कार क शहद क जाितयाँ ( कार) होती ह ।

क तु ध व त र िनघ टु म मधु के आठ नाम व पयाय दये ह । मधु

ौ ं तु मा ीकं मा

कं कुसुमासवम ् ।

पु पासवं सारघं च त च पु परसं मृतम ् ॥ पयाय -

ौ , मा ीक, मा

क, कुसुम ासव, पु पासव, सारघ और पु परस - ये मधु के पयाय ह ।

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राज िनघ टु म िन न कार के पयाय व नाम दये ह । मधु

ौ ं च मा ीकं मा

कं कुसुमासवम ् ।

पु पासवं प व ं च प यं पु परसा यम ् ॥ पयाय - मधु

ौ , मा ीक, मा

क, कुसुमासव, पु पासव, प व और प य - ये मधु के पयाय ह ।

ध व त र िनघ टु म मधु क आठ जाितयां िन न कार से द ं ह । इन जाितय के भेद िन न कार से दये ह मा

कं तैलवण या पौ कं घृतवण तु

ौ ं तु क पलं भवेत ् । ेतं ामरमु यते ॥

आपीतवण छा ा यं प गलं चा यनामकम ् । औ ालं वणस शं दालं च पाटलं मृतम ् ॥ अथ - मा क मधु तैल के समान, ौ मधु क पल वण का, पौ क मधु घी के समान, ामर मधु ेत वण का, छा मधु ईषत ् पीत वण का, आ य मधु प गल वण का, औ ालक मधु वण के समान तथा दाल मधु पाटलवण (गुलाबी रं ग का) होता है ।

सामा यमधु गु ण ाः कषायानुरसं

ं शीतलं मधुरं मधु ।

द पनं लेखनं ब यं णरोपणमु मम ् । स धानं लघु च ु यं वय



दोषनुत ् ।

छ द ह का वष ास ् कासशोषाितसार जत ् । र

प हरं ा ह कृिमतृ मोह

परम ् ।

मधु के सामा य गु ण मधु कषायानुरस, , शीतवीय, मधुर, अ न द पन, लेखन, बलवधक, णरोपण, स धानजनन, लघु, ने के िलए हतकर, वर को उ म करने वाला, दय के िलए हतकर, दोषहर, वमन, हचक वष, ास, कास, शोथ, अितसार और र प को न करने वाला, ाह , कृिम, तृ णा तथा मू छा को दरू करने वाला है ।

विश मधुगु ण ाः १.

ामर मधु पै छ यात ् वाद ु प वा

ामरं गु सं

तम ् ।

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ामरं कु ते जा यम य तं मधुरं च तत ् ॥ प छलता तथा माधुय के कारण ामर मधु गु होता है । यह अ य त मधुर होता है तथा जड़ता (जकड़न) उ प न करता है । २.

ौ मधु -

ौ ं वशेषतो

ेयं शीतलं लघु लेखनम ् । अथ -

ौ मधु वशेषतः शीतल, लघु और लेखन होता है ।

३. मा क मधु - त मा लघुतरं ं मा कं वरं मृतम ् । अथ - मा तथा सभी कार के मधुओं म े होता है ।

क मधु

ौ मधु क अपे ा लघुतर,

४. पौ क मधु - इसका िनमाण पु का नामक म खय के ारा कया जाता है । यह गाढा और घी के रं ग जैसा होता है । यह उ णवीय, क चत ् कसैला, वातवधक, र प को पैदा करने वाला, भेद क, मदकारक, मधुर और कुछ वषैला होता है । ५. ामर मधु - ामर मधु मर नामक म खय के ारा बनाया जाता है , यह बहुत गाढ़ा, सफेद, पारदशक और िम ी के समान रवे वाला होता है । यह बहुत वा द , र प नाशक, मू रोधक, भार , पाक म मधुर और शीतल होता है । ६. छा मधु - छ जाित क म खय ारा तैयार कया हुआ मधु छा मधु कहलाता है । यह कुछ पीले रं ग का और गाढ़ा होता है । यह मधु शीतल, भार , पाक म मधुर, तृि दायक और कृिम रोग, कु , र प , मेह, म, तृषा तथा वष को न करने वाला होता है । ७. औ ालक मधु - उ ालक नामक मधु म खय ारा बनाया हुआ मधु औ ालक कहलाता है । यह सोने के समान रं ग वाला, चमकदार और क चत ् गाढा होता है । यह िधर को बढाने वाला, कसैल ा, गम, अ ल, पाक म कड़वा और प कारक होता है । ८. दाल मधु - पाक म ह का, अ नद पक, कफ को न करने वाला, कसैल ा, खा, िचवधक, मधुर, िचकना, पौ क, वजनदार और मेह को न करने वाला होता है । ९. आ य मधु - ने ।

को अित हतकारक, कफ तथा प नाशक, उ म, कसैल ा, पाक म चरपरा, कड़वा, पौ क होता है

पु र ाना मधु एक वष के बाद पड़ा रहने वाला मधु पुराना समझा जाता है । यह पुराना मधु संकोचक, खा और मेदोरोगनाशक समझा जाता है , क ज को दरू करता है ।

नवीन मधु – यह पौ क और द तावर होता है । शािल ाम िनघ टु के अनुस ार नवपुराणमधुगुणाः -

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बृह ं णीयं मधु वनं वात े महरं परम ् । पुराणं लघु सं ाह िनद षं थौ यनाशनम ् ॥ अथ - नवीन मधु पु कारक और वातकफनाशक है , पुराना मधु ह का, मलरोधक, दोषर हत और थूलतानाशक है ।

मधु के विभ न नाम ह द - मधु, शहद सं कृत - मधु मा



बंगला - मधु, मौ कणाटक - जेनतु प मराठ , गुजराती - म तेलगू - तेनी फारसी - शहद, अगबीन अं ेजी - हनी (Honey) लै टन - मेल (Miel) सी - मेद (Med) अरबी - आसलुल, नहल

चिलत भारतीय ह द भाषा म मधु को शहद कहते ह । यह मधुम खय के ारा िनिमत होता है । मधुम खयां िभ न-िभ न कार के फूल से उनका मकर द (मीठा रस) चूसकर उसको अपने पेट के समीप मधु वाली थैली म भरती रहती ह और फर अपने छ म जाकर छ े म बनी हुई छोट -छोट कोठ रय म भर दे ती ह । यह मधु पहले तो पानी के समान पतला और फ का होता है क तु मधुम खय क थैली म कुछ समय रहने के प ात ् कुछ गाढ़ा और मीठा हो जाता है और कुछ समय छ े म रहने के बाद और गाढ़ा हो जाता है तथा मधु का प धारण कर लेता है । छ े म मधुम खयां उसे मोम म सुर त करके रख दे ती ह । वैस े मधु िचपिचपा और कुछ पारदशक, वजनदार, सुग धयु , ह के भूरे रं ग का अ य त मीठा, गाढ़ा और जल म भली कार घुल जाने वाला एक ाकृ ितक व (बहने वाला) पदाथ ह है । हम पहले िलख चुके ह क मधु आठ कार का होता है । इनम से छः कार के मधु छः जाितय क म खय ारा तैयार होते ह क तु दाल और आ य जाित के मधु को सु त ु म वृ उ भव िलखा है । अथात ् फूल का रस वयं टपक-टपककर प पर िगरता है और कुछ काल पड़ा रहने पर जमकर मधु का प धारण कर लेता है । इसको दाल मधु कहते ह । जस वृ के फूल से यह रस टपकता है उसी वृ के वभाव के अनुसार इसका मधु, प, रं ग और वाद वाला होता है । आ य मधु - आ य नामक मधु महुव े के पेड़ से टपककर गाढ़ा हो जाता है । यह मधु जब महुव े के पेड़ से टपकता है तो बहुत गाढ़ा होता है पर तु कुछ समय प ात ् हवा और धूप लगते ह जमकर ग द के समान हो जाता है । यह मधु बहुत ह साफ, महुवे के फूल के समान गंधवाला और वाद म अ य त मीठा होता है ।

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शु मधु क पहचान अ य व तुओं के समान मधु के अंदर भी अ य व तुओं का िमलाव बहुत होने लगा है । नगर म असली मधु क ाि होती ह नह ं । मधु म लोग चीनी, गुड़, मैदा आ द पदाथ और अरारोट आ द व तुओं को िमला दे ते ह । बनावट शहद तो केवल गुड़ या चीनी के शीरे म नी बू का स व िमलाकर बनाया जाता है । नट जाित के लोग बनावट शहद के बनाने म अ यंत कुशल होते ह । उनके बनाए हुए शहद क कतनी ह पर ाय कर लो, वह कभी फेल नह ं होता, क तु नकली मधु तो नकली ह होता है । आयुवद शा म असली मधु के गुण व ल ण बताये ह, वे िन न ह १. असली शु मधु को कु ा नह ं खाता । २. मधु म ई क ब ी िभगोकर उसे जलाने से वह ब ी घी और तेल क ब ी के समान जलती है । ३. सामा य म खी को पकड़कर उसे शहद म डु बो द जये । न वह म खी मरे गी और न ह डू बेगी - ले कन कुछ दे र बाद तैरती हुई ऊपर आ जायेगी और उड़ जायेगी । ४. चौथी पर ा मधु क उसक गंध, प और वाद से क जाती है क तु यह सब पर ाय पूण और पया नह ं ह । सहारनपुर म नकली शहद बनाने के बड़े -बड़े कारखाने ह जो नकली शहद ऐसा बनाते ह क सामा य आदमी तो या, वशेष य भी उसे पहचानने म फेल हो जाते ह । उपरिल खत सभी पर ाय कर लेने के बाद भी शहद के खर दने म धोखा हो जाता है । नकली शहद बनाने वाले इतने चतुर होते ह क उनका बनाया हुआ शहद ऊपर वाली पर ाओं म सरलता से उ ीण हो जाता है । पर तु उनके जाने के दो-चार दन बाद उस शहद क पोल खुल जाती है । इसिलए शहद व सनीय थान व य य से खर दना उ म है ।

मधु उ प

क आधु िनक योजनाएं

इस व ान के युग म मधुम खय का पालन और उनके ारा मधु क ा त एक िचकर व मनोरं जक वषय है । इस वषय म मनु य जतना यास कर रहा है , वैसे-वैसे मधुम खय के वषय म उसका ान बढ़ता जा रहा है । यह व ान मनोरं जन क सीमा से िनकलकर आिथक सीमा म वेश कर गया है । अब यूरोप म भी व हो गया है और बहुत से थान पर आिथक से मधुम खय के पालन ने यवसाय का प धारण कर िलया है । इस कार यवसाय करने वाले लोग लकड़ के बनावट छ े बनाते ह और चतुराई से उन छ म मधुम खय को लाकर पालते ह । भारतवष म भी मधुम खय के पालन का काय बढ़ता जा रहा है ।

सामा य प से मधु के गुण-दोष और भाव हमारे ाचीन ऋ षय के मत से मधु मीठा, वा द , शीतल, खा, वर को शु करने वाला, ाह , ने रोग हतकार , नस-ना ड़य को शु करने वाला, सू म, वणशोधक, का तवधक, मेधा बु को बढ़ाने वाला, िचकारक, आन दक, कसैल ा, वातकारक, कु , बवासीर, खांस ी, िधर वकार, चम रोग, कफ, मेह, कृ िम, मद, लािन, तृषा, वमन, अितसार, दाह, त य, हचक , दोष, अफारा, वायु वकार और क ज का नाश करने वाला है । सब कार के मधु ण, ज म को भरने वाले और टू ट ह डय को जोड़ने वाले होते ह । इसका अिधक सेवन कामो पक भी है ।

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चरक शा

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के अनु स ार - मधु भार , शीतल, कफनाशक, छे दक,

, मीठा और कसैल ा होता है ।

हार त के मतानु स ार - मधु शीतल, कसैला, मधुर, ह का, अ नद पक, शर र को शु करनेवाला, ाह , ने का हतकार , अ नद पक, णशोधक, नाड़ को शु करने वाला, घाव को भरने वाला, दय को हतकार , बलकारक, दोषनाशक, पौ क तथा खांस ी, य, मू छा, हचक , म, शोष, पीनस, मेह, ास, अितसार, र ाितसार, र प , तृषा, मोह, दयरोग, ने रोग, सं हणी और वष वकार म लाभदायक होता है ।

िभ न-िभ न कार के मधु यह वशेष यान म रखने क बात है क मधु के गुण दे श और काल के भेद से पृथक् -पृथक् होते ह । शहद एक वत व एक ह समान गुण वाली व तु नह ं है । िभ न-िभ न काल म और िभ न-िभ न दे श म विभ न कार के फूल से मधुम खयां इसको हण करती ह । इसिलए दे श , काल और व तु के अनुसार इसके गुण म िभ नता होना िन य से वाभा वक ह है । इसिलए मधु को हण करते समय इस बात का अव य यान रखना चा हए । दे श के अनुस ार तो उ म मधु हमालय दे श का होता है जहां सह कार के पु प वाले वृ अपने सौरभ से वायुम ंडल को या त कए होते ह । तेज गम के कारण भी वहां उ णता का अनुभ व नह ं होता, वहां का मधु शु , गाढ़ा, वा द , शीतल, वषर हत और िनद ष होता है । व याचल दे श का मधु हमालय क अपे ा कुछ कम गुण वाला होता है य क वहां का जलवायु वशेष प से गम होता है । मारवाड़ आ द म भूिम वाले दे श का मधु जहां फूल के वृ कम होते ह, और भी कम गुणव ा वाला होता है । काल के अनुस ार तो शीतकाल का सं ह कया हुआ मधु सव म होता है य क इन दन सब वन पितयां पककर रसपूण हो जाती ह । इन िनद ष और पु वन पितय ारा रस का सं ह करके मधुम खयां मधु का िनमाण करती ह । ी म और वषाकाल का सं ह कया मधु उ म नह ं होता । इसके अित र जन जंगल म जन जाित के वृ क बहुल ता होती है उस मधु म भी उ ह ं वृ के गुण पाये जाते ह । संकुिचत धम वाले वृ से जो मधु िमलेगा वह क ज करे गा । इसी कार वरे चक गुण वाले वृ से सं ह कया मधु वरे चक गुण वाला होगा । नीम मधु - नीम के फूल से एक

कया हुआ मधु शीतल, र शोधक, अशनाशक और कुछ कटु वादवाला होगा ।

प मधु - कमल के फूल से मधुम खय ारा ा त कया हुआ शहद ने रोग और दय रोग के िलए भु का आशीवाद ह सम झये । जन तालाब और झील म कमल के फूल बहुत अिधक होते ह, मधुम खयां उ ह ं कमल के पौध पर अपने छ े बना लेती ह और उ ह ं फूल से अपने छ े म मधु इक ठा करती रहती ह । यह मधु प मधु के नाम से संस ार म िस है । का मीर क डल झील म बड़े प रणाम से कमल क खेती होती है । यह शहद का मीर म ह पैदा होता है । गु ल ाब मधु - पु कर (अजमेर) आ द े म जहां गुलाब के बाग बहुत बड़ सं या म ह, वहां पर मधुम खय के लगे छ से गुल ाब मधु ा त हो सकता है । यह भी आंख के िलए अमृततु य होता है । इसका सेवन क ज को भी दरू करता है ।

मधु (शहद) ह अमृत है परम पता परमा मा क कृपा से अनेक गुणकार व तुऐ ं हम ऐसी ा हु ह ज ह हम अमृत नाम दे सकते ह । जैसे मधु (शहद) जीवन म सबको अमृतपान करा दे ता है । यह आबाल, वृ , सभी आयु वग के िलए समान प से सुपा य और श वधक है । वा य द होने से मधु म रोग िनवारण श भी व मान है । इसी कारण आयुव दक िच क सा प ित म मधु को वशेष थान दया गया है । भगवान ने छोट मधुम खय को ज म दया और उनको वह श दान क क सह फूल से रस चूस-चूसकर उ ह ने एक वा द स तुिलत आहार क रचना कर डाली । उसने जहां मधु को वा यवधक बनाया, साथ ह मधु म रोग िनवारण क अ ुत श उसने दान कर डाली । शहद का रं ग- प

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और गंध भी आकषक है । इसम श द शकरा, अित र लोहा, तांबा, डा टर के मतानुसार फासफोरस, पोटािशयम, कै सयम स हत अनेक खिनज त व , ोट न तथा वटािमन बी एवं सी स हत कुछ अ य वटािमन का ऐसा विश अनुपात डाल दया क व ान का दम भरने वाले वै ािनक के िलए ऐसा खा पदाथ बनाना असंभव नह ं तो सहज भी नह ं है । यह कौशल परमा मा ने वशेष प से मधुम खय को ह दान कया है । इ ह ं न ह -ं न ह ं मधुम खय ारा सह फूल का रस चूसकर ा णमा के िलए क याणकार औषध मधु व शहद के प म तैयार कर डाली । िनःस दे ह मधु परमा मा क अनमोल िनिध है । शहद के अ भुत गुण जान लेने के बाद मनु य ने कृित के साथ िमलकर शहद क उ पादकता बढ़ाने क दशा म काय कया और वतमान म बा स टाइप छ म मधुम खयां पालकर शहद ा त कया जाने लगा है । इन बा स को नसर अथवा फूल से यु फसल के म य रखकर अिधक मा ा म शहद ा त कया जा सकता है । इन ब स म एक त शहद क यह वशेषता होती है क आस-पास जैसे परागकण होते ह वैसे ह वाद का शहद एक होता है । उदाहरण के तौर पर सरस और सूरजमुखी क फसल के दौरान एक त शहद के वाद, रं ग म अ तर होगा । बादाम के बगीच म एक कया गया शहद अलग वाद का होगा, पर तु गुण क से शहद शहद ह होता है ।

शहद के वषय म एक बड़ा



ायः अिधकतर लोग म यह बड़ा भार म है क शु शहद जमता नह ं क तु शीतकाल म अिधक सद से असली शु शहद भी जम जाता है । शहद का न जमना शु ता क कसौट नह ं । शहद को थोड़े गम पानी या धूप म रखकर तरल कया जा सकता है य क शु शहद म श कर, चीनी, लुकोज आ द क िमलावट भी हो सकती है । अतः शु ता के बारे म स तु कर लेनी चा हये । इसक शु ता क जांच के वषय म पहले िलख चुके ह । शहद क एक और वशेषता है क यह वष तक पड़ा रहने पर भी खराब नह ं होता य क इसम जीवाणु-नाशक श होती है । योग से यह िस हो गया है क शहद नमी को सोख लेता है और कसी भी कार के जीवाणु को पनपने के िलए नमी क आव यकता होती है । इसिलए शहद म जीवाणु पनप नह ं सकते । यह कारण है क हर समय हरे रहने वाले घाव को भरने व सुखाने के िलए मधु का योग कया गया तो थोड़े दन के शहद के योग से घाव ठ क हो गया । इसी कार अगर कसी घाव से र बंद नह ं हो रहा हो तो मधु का लेप लगाने से र तुर त बंद हो जाता है ।

उदर रोग क सव म औषध मधु आमाशय भोजन का पाचन करता है जससे र उ प न होकर शर र के अंग- यंग क पु होती है । अतः वा य आमाशय के ठ क होने पर ह िनभर है । आमाशय दब यून हो जाती है और भोजन को ठ क नह ं ु ल होने से पाचनश पचा सकती । अतः शर र के सभी अवयव को यथोिचत बल नह ं िमलता । इसिलए य दब ु लता का ास बन जायेगा । अतः चतुर वै आमाशय क सुर ा का वशेष यान रखते ह और मधु आमाशय को बल दे ता है । पाचनश का सहायक है । आमाशय के दोष और द ू षत मल का नाशक है । वमन, हचक , अितसार को िमटाता है । मधु म यह भी गुण है क जब तक उदर म द ू षत मल होता है , उ ट (कै) और द त अिधक आने लगते ह । उदर के भली-भांित साफ होने पर यह वतः ब द हो जाते ह और रोगी ठ क हो जाता है ।

उदर और आं त के रोग ग ने से चीनी, खांड, गुड़, श कर जो बनते ह इनका सेवन आजकल ायः सभी लोग अिधक मा ा म करते ह । ये उदर म पड़े रहते ह और दे र से पचते ह । शर र इसको पचाकर बहुत दे र म उसको शर र का अंग बनाता है । इसिलए कभी-कभी इस शकरा पर सू म जीवाणु आ मण कर दे ते ह और तब आंत म सड़न पैदा हो जाती है और साथ-साथ अपान वायु बगड़कर गैस बनने लग जाती है । पेट म अफारा हो जाता है । ख ट डकार आतीं ह । डकार के साथ सड़ने

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से उ प न अ ल मुख म आते ह जो माग म छाती और गले म जलन पैदा करते ह । बोलचाल म इसे कलेजे क जलन और िच क सक के श द म दाह कहा जाता है , य प इसका दय से कोई संब ध नह ं होता । जन य य का पाचन सं थान इस कार का हो, अगर वे खांड के थान पर मधु खाऐं तो उ ह कोई क न हो, य क मधु क शकराय इतनी ज द शर र ारा हण कर र संचार म िमल जातीं ह । इसिलए सड़ा द पैदा होने का अवसर ह नह ं िमलता और कोई वकार पैदा नह ं होता । पेट रोग म चरक ह के व द पक प य म शहद दे ने का आदे श दे ते ह । आमाशय और आं शोध जैसी अ न माग क शोथयु अव थाओं म मधु दे ने म भय नह ं होता और ी म म अितसार के रोिगय के िलए भी यह लाभ द है । गम म अितसार के सब रोिगय को आधा पाव जौ के पानी म छः माशे शहद डालकर दया जा सकता है । इससे लाभ होगा ।

उदर रोगनाशक शबत विध - बालछड़, म तगी मी, दालचीनी, बड़ इलायची, ऊद, ह द क ची, जा व ी - येक सात माशे, ल ग साढ़े तीन माशे इन सबको जौकुट करके तीन सेर पानी िमलाकर उबाल । दो सेर जल रहने पर छान ल । इसम चार सेर शु मधु डालकर पकाव । ऊपर का झाग उतारते जाव । शबत क चाशनी ठ क पकने पर उतार ल । शीतल होने पर शीिशय म भर द । इसको अिधक गुणकार बनाने के िलए इसे आग से उतारने के पीछे इसम म तगी मी का बार क चूण अ छ तरह िमला ल । से वन विध - इस शबत को ातःकाल खाली पेट व सायंकाल एक तोला चाट िलया कर और धीरे -धीरे इसक मा ा बढ़ाते जाय । यह शबत आमाशय और यकृत के सभी रोग को दरू करता है ।

पाचनश

वधक योग

भोजन करने के पीछे दोन समय एक-दो तोला शहद चाट िलया कर । इससे खाया- पया भोजन भली कार से पच जाता है और पाचनश बढ़ती है ।

उदर पीड़ा नाशक योग शु मधु दो तोला, बड़े पीपल को खूब बार क पीसकर एक तोला मधु म िमला ल । इसक एक मा ा छः माशे रोगी को खलाएं । य द एक मा ा से पीड़ा ठ क हो जाय तो अ छा है अ यथा एक घ टे बाद छः माशे क एक खुराक और दे द । इससे उदर पीड़ा अव य शा त हो जायेगी ।

आँ त रोग आँत ड़य क बनावट बड़ ह कोमल है । य द आँत म रोग उ प न हो तो वे बड़ क ठनता से अ छे होते ह । पीड़ा इतनी होती है क रोगी बेहोश हो जाता है । मधु इन रोग के िलए अनुपम दवा है । यह क ज को खोल दे ता है । ब च क क ज को तोड़ने के िलए केवल मधु दे ना ह पया त है । कई बार इससे पेट म मरोड़े होने लगते ह और अजीण हो जाता है । छोटे ब च को अर ड का तैल दे ने के िलए यह उपयु अनुपान है । अतः इस तैल म आधा या बराबर मधु िमलाकर चटा दया करते ह । पर तु य द इसम थोड़ा-सा अनीस या स फ का अक िमला दया जाय तो अ छा है । इससे पेट म मरोड़े पैदा होने क आशंका नह ं रहती ।

आं त के घाव जब आँत म घाव पड़ जाते ह तो पेट म सदै व पीड़ा बनी रहती है । मरोड़े से द त लगते ह और रोगी हर समय पीड़ा से

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याकुल रहता है । य द साथ म आँत म सूजन भी हो जाए तो पीड़ा क कोई सीमा ह नह ं रहती । इसक औषिध यह है विध - बारतंग (Ribwort) के दो तोला बीज को एक सेर पानी म उबाल । जब पानी तीन पाव रह जाये तो इसे खूब मलकर छान ल । इसम पाँच तोला पानी िमलाकर ब ती अथात ् एनीमा कर । इसको कुछ दन करने से आंत के घाव व सूजन िमट जाती है । िनर तर योग से सब घाव भर जाते ह । औषध सेवन के समय शी पचने वाला भोजन करना चा हए ।

पे ट के क ड़े (कृ िम रोग) ढाक के बीज, पलास पापड़ा सात माशे पीसकर इसम दो तोला शहद िमलकर पला द । इसके पलाने से पेट के क ड़े मर जाते ह । इसके पीछे रे चक औषध दे व जससे मृत क ड़े पेट से िनकल जाव । अ य योग - नीम के प ,े धतूरे के प ,े अर ड के प े येक छः माशे - इन सबको घोटकर इनका रस िनकाल और इसम दो तोले मधु िमलाकर रोगी को पलाव । इससे पेट के क ड़े न हो जाते ह ।

अितसार नाशक औषध अितसार कई कार के होते ह । जैसे यकृत स ब धी, प ज, कफज, वातज, खूनी, मरोड़े दार इ या द । येक के िलए विभ न कार क िच क सा और विभ न कार के योग यु कये जाते ह, क तु िन न गोिलयां सबके िलए लाभ द ह । विध - भूना हुआ सुहागा १ भाग, िशंगरफ २ भाग, अफ म ४ भाग - इनको पीसकर मधु के साथ वार के दान के बराबर गोिलयां बनाव । येक द त के बाद एक गोली खलाव । कुछ गोिलय के योग से द त बंद हो जायगे । कुछ वै नी बू के रस के साथ गोिलयां बनाते ह पर तु ये केवल दन म आने वाले अितसार के िलए विश ह ।

क ज नाशक मधु मृद ु वरे चक औषध है इसिलए जन रोिगय को जुल ाब या रे चक औषिध दे ना हािनकारक समझो तो गम दध ू म दो च मच मधु दे ने से क ज दरू हो जाता है । वा य को ठ क रखने के िलए मधु एक अनुपम औषध है । यह एक शु रोगनाशक मीठा पदाथ है जो पु प व फल के ाकृितक िमठास का गुणकारक स म ण है । इसिलए ातःकाल मधु का सेवन करने से अ न द त होती है । साथ ह क ज का नाश होने से सभी रोग न हो जाते ह ।

यकृ त ् एवं लीहा (ित ली) रोग क औषध यकृत ् भोजन के रस से खून बनाता है और लीहा इसम रासायिनक प रवतन उ प न करती है । जब यकृत ् दब ु ल हो जाता है तो शर र म शु र कम मा ा म तैयार होता है । कमजोर िन य बढ़ती जाती है । भुस, पांडु रोग जैसे भयंकर रोग आ घेरते ह । कभी ित ली बढ़ जाती है जससे खून कम होकर दब ु लता बढ़ती है और उपरो रोग म वृ हो जाती है । मधु का य द उपयु मा ा म िन य सेवन कया जाए तो इन भयंकर रोग के होने क आशंका नह ं रहती है । य द असावधानी से रोग हो जाए तब भी मधु से इसका उपचार आसानी से हो सकता है । मधु पा डु , ित ली बढ़ हुई को दरू

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करता है । यकृत ् को श

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दे ता है जससे खून म वृ

होती है । शर र म श

आने से सब रोग लु त हो जाते ह ।

मानवीय शर र पर मधु के भाव आधुिनक खोज से इस बात का पता चला है क मधु म शर र के पोषक वटािमन म से वटािमन ए और बी पाए जाते ह । वटािमन ए इसम कुछ कम मा ा म रहती है । मगर वटािमन बी इसम चुर मा ा म पाया जाता है । इस वटािमन बी के भाव से र शु होता है । र वकृित और र क व पता दरू होती है और आँख क योित बढ़ती है । र क वकृित और वटािमन बी के अभाव से पैदा होने वाले सु िस बेर -बेर नामक रोग म भी शहद का योग बहुत सरलता-पूवक कया जाता है ।

आँ त के ऊपर शहद के भाव शहद पेट के अ दर जाकर आँत क बगड़ हुई या को सु यव थत करके उनके अ दर जमे हुए वजातीय य को दरू कर दे ता है । इसिलए पुरातन अितसार, वा हका तथा पुरानी क जयत म मधु क व त दे ना लाभदायक होता है । इससे आँत का कु पत कफ शमन होकर उनसे भलीभांि त रस िनकलना ार भ हो जाता है और रस िनकलने से आहार रस का ठ क से शोषण होता है जससे क जयत अितसार इ या द उप व दरू हो जाते ह । आँत क तरह आमाशय और प वाशय पर भी इसक या बड़ स तोषजनक होती है । कृित व और भार भोजन बहुत अिधक समय तक करने क वजह से आमाशय और प वाशय म खराबी हो जाय तो मधु का वत प से या कसी दस थयां याशील होकर अिधक पाचक रस ू र अनुकूल औषिधय के साथ सेवन करने से आमाशय क रस िनकालना ार भ कर दे ती ह जससे सूजन दरू हो जाती है , जठरा न ती हो जाती है और भूख अिधक लगने लगती है । यकृ त ् क या िशिथल होने के कारण य द रोगी पोषक आहार - दध ू , दह , घृत या श कर क जाित के दस ू रे पदाथ को पचाने म असमथ हो तो ऐसी हालत म मधु का सेवन करने से यकृत ् क या सुधर कर पाचन या द ु त हो जाती है ।

आँ त के रोग आँत के लगभग सभी रोग म आँवले के रस के साथ शहद का योग करने से लाभ पहुंचता है । ताजा आँवला न िमले तो सूखे आँवले के चूण के साथ शहद िमलाकर चाटने से लाभ होगा । आँत के घाव (अ सर) व अजीण रोग म मधु के योग से बढ़कर दस ू र कोई औषिध नह ं ।

जलोदर रोग इस रोग म पेट म पानी पैदा होकर पेट बढ़ जाता है । हाथ-पांव पर सूजन आ जाती है । रोगी दब ु ल होकर जीवन क अपे ा मौत से म े करने लगता है । इसके िलए सकड़ दवाय यु करने पर कोई लाभ नह ं होता । अ त म िनराश होकर ऑपरे शन ह इसका एकमा उपचार रह जाता है । इससे पेट का पानी िनकाला जाता है । रोगी समझता है क उसे जीवन िमला । ऑपरे श न के बाद पानी फर पैदा होना शु होता है और दो-चार दन म पेट फूल जाता है । वह संकट पुनः आ उप थत होता है । क तु मधु इसका सव म उपचार है । विध - दो तोला मधु पानी म घोलकर लंबे समय तक लगातार पीते रह ।

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चम रोग पर मधु का भाव चम रोग पर मधु का लेप करने से बहुत लाभ होता है क तु चौबीस घंटे म इसका एक बार लगाना उिचत है । चम रोग पर मधु का आंत रक योग तब तक करना चा हये जब शर र क रासायिनक या बगड़कर वकार पैदा हो और फोड़े आ द िनकलने लग । बड़े -बड़े क ठन फोड़े मधु के बाहर योग से अ छे हो जाते ह । इन फोड़ म पहले कसी साधारण तेज चाकू से पके हुए फोड़े पर छोटा सा िछ करके फर फोड़े पर मधु का लेप कर द । इससे आ यजनक लाभ होगा, इसके लेप से ज म म पीप पैदा नह ं होने पाता और घाव का िनशान भी नह ं रहने पाता । कसी कपड़े पर मधु लगाकर िचपकाने से प ट भी अ छ हो जाती है और अ य मरहम आ द लगाने क आव यकता नह ं होती । बगड़े हुए घाव को साफ करने म भी मधु एक अ तीय औषिध है । डा टर के मत के अनुस ार मधु म वटािमन बी क धानता होती है और इस कारण वचा और र क विनमय या को मधु का सेवन सुधारता है । चम और र संब धी रोग म मधु का आंत रक सेवन अ य त लाभदायक है । आंत के ज म म भी जसे अ सर कहते ह, चाहे ब च या बड़ का हो, सबके िलए अित उ म औषिध है । य द मधु के साथ शु गंधक का थोड़ मा ा म सेवन कराया जाये तो बहुत ह लाभदायक है ।

बाल रोग क िच क सा पेट दद व वमन - दो तीन बार तीन चार शहद क बूद ं स फ या पौद ने के अक म िमलाकर आध-आध घंटे म दे ते रह, तीन चार बार दे ने से पेट क पीड़ा शा त हो जाती है । पोद ने क सूखी प ी व हर प ी छः माशे अजवायन व छः माशे स फ आध पाव पानी म डालकर उबाल । ठं डा होने पर मल छानकर इसी पानी क कुछ बूद ं लेकर थोड़ा मधु िमलाकर ब चे को दे ना चा हये । क ज - ब चे को क ज रहता हो तो स तरे के रस म मधु क चार-पांच बूद ं िमलाकर दन म तीन बार द । यह क ज क अनुपम औषध है । खां स ी-जु क ाम - सद या कसी कारण से भी खाँसी-जुकाम का क हो तो माँ के दध ू म आधा च मच शहद िमलाकर दन म तीन-चार बार दे व । बड़े ब च को गाय के दध ू म दो च मच मधु िमलाकर दन म तीन-चार बार दे व । शहद को िन बू के रस म बराबर मा ा िमलाकर थोड़ा गम कर और ठं डा करके रख ल और जल म िमलाकर ब च को चटाने से खाँसी के रोग दरू होते ह । दन म कई बार चटाना चा हये । अदरक का रस आधा ाम और मधु दो ाम िमलाकर बालक को कई बार चटाने से खाँसी-जुकाम व सद का बुखार भी चला जाता है । बढ़े हु ए गं ठू (टां ि सल) - मीठे सेब के रस म बराबर का शहद िमलाकर दन म चार-पाँच बार चटाव और बढ़ हुई गांठ पर शहद का लेप कर । सभी क ठ रोग क औषध - िसतोपला द चूण या वृहत ् िसतोपला द चूण एक दो र ी लेकर शहद िमलाकर दन म तीन-चार बार चटाव । इससे खांस ी-जुकाम, शीत वर और िनमोिनया म भी लाभ होता है । क ठ के सभी रोग दरू होते ह। िनमोिनया - मोम दे स ी को पघलाकर उस म शहद िमला ल और गम-गम से छाती पर सेक कर । िनमोिनया म िसतोपला द चूण चार र ी म एक र ी शृंगभ म िमलाव और उसे एक तोला शहद म िमला ल । आध-आध घंटे प ात ् इसे थोड़ा-थोड़ा बालक को चटाते रह ।

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बालक के सब रोग क रामबाण औषध काकड़ािसंग ी, अतीस मीठा, छोटा पीपल, छोट इलायची के दाने, नागरमोथा, जायफल, शंख भ म, ज व ी, म तगी मी इन सबको िमलकर कपड़छान कर ल । इन सबके ाबर िम ी वा खा ड को बार क पीसकर िमला ल । यह बालक मे सभी रोग क रामबाण औषध है । जस के ब चे सूख-सूखकर मर जाते ह, इसके सेवन से वे भी बच जाते ह । मा ा - इसक मा ा एक वष के बाद तक एक र ी है । इसे दन म तीन-चार बार दे ना चा हए । जब द तो मधु (शहद) म िमलाकर द । एक वष के पीछे ित वष एक र ी क मा ा बढ़ाते चले जाय अथात ् एक वष के बालक को एक र ी से दो वष के बालक को दो र ी, चार वष के बालक को चार र ी, इस कार सदै व मधु म िमलाकर चटाना चा हए । अगर ब चे को सूखनेवाला रोग हो तो महाला ा द तैल क मािलश भी करनी चा हए और गम पानी से नान कराना चा हए । ब च के सब कार के रोग पर शहद के साथ इसका योग करने से सभी रोग ठ क होते ह । दाँ त िनकलना - जब ब च के दाँत िनकलते ह तो उ ह बहुत क होता है । मसूडे सूज जाते ह । ऐसी अव था म मसूड पर चार-पांच बार िनयमपूवक शहद लगाने से लाभ होगा । कनफे ड़ - इस रोग म कान के पास से एक तरफ का या दोन तरफ का सारा मुंह स त होता है । पीड़ा भी बहुत होती है , रोगी को वर तक आ जाता है । दन म पाँच-छ: बार शहद क नौ-दस बूद ं हलके गम जल म िमलाकर पलाव और काला जीरा छ: माशे िशल पर पीसकर शहद म िमलाकर कनफेड़ पर लेप कर और इसक िसकाई कर । इ रमेद वृ जसे हरयाणे म र झ कहते ह, उसके काली-काली स त गांठ वाला फल लगता है , उसे तोड़कर गम पानी म िघसकर शहद िमलाकर लेप कर । इससे भी लाभ होता है । काली खां स ी - एक या दो बादाम पानी म िभगोय और बाद म उसका िछलका उतारकर िघस और शहद म िमलाकर ब चे को चटाव । गाय के दध ू क शु मलाई म शहद िमलाकर ब चे को चटाय । इसके बार-बार खलाने से काली खांस ी म लाभ होता है । ब च को कोई भी रोग हो, गाय के ताजा दध ू म शु शहद िमलाकर दन म दो-तीन बार पलाव । बालक को दब ाव होता हो तो िन बू का रस एक च मच एक ु लता का रोग हो, मसूड़ म िछ ह और चम के भीतर र कटोर पानी म घोल और उसम एक च मच शहद िमलाकर दन म तीन-चार बार पलाव । दाद - नीम के प को उबालकर उनका पानी ल । उससे ज म को साफ कर व शु शहद लगाकर प ट बांध द । दन म तीन बार मधु को पानी म घोलकर पलाते रह । दौरा ( व ेप) - इसम रोगी के हाथ-पाँव अकड़ते ह और वह बेहोश होकर िगर जाता है और शर र भी सारा अकड़ जाता है । िमग , मू छा और ह ट रया रोग म ऐसा होता है । दन म कई बार छः माशे से लेकर एक तोला तक शहद जल म िमलाकर ातः-सायं िनयिमत प से सेवन कर । इस कार िनर तर कई मास सेवन करने से यह रोग न हो जाता है । िन ा म मू याग - जन ब च को माता का दध ू या गऊ, बकर का दध ू आर भ म नह ं िमलता वे शी ह अ न-फल आ द का भोजन करने लगते ह । इ ह ं ब च को बहुधा यह रोग होता है । इस रोग म मधु के योग से बहुत लाभ होता है य क मधु म जल के सुखाने क बड़ श होती है । अत: शहद के सेवन से ब च के रा समय सोते हुए को पेश ाब करने का वभाव शी न हो जाता है । दो-तीन वष क आयु के बाद ब च को यह रोग हो तो ब चे क माता को बड़ा क होता है । अत: बालक को रा म सोने से पूव एक च मच शहद चटा द । इस बात का यान भी रख क सायंकाल ब चे को पानी या दध ू का पलाना बंद रखना चा हये । सोने से दो-तीन घंटे पहले खाने क चीज दे नी चा हये । छ: माशे से एक तोला शहद थोड़े से जल म िमलाकर दन म दो-तीन बार दे ना चा हये । मधु के योग से यह रोग ठ क हो जाता है ।

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िसर क पीड़ा जसके आधे िसर या पूरे िसर म दद या पीड़ा का दौरा हो उसे आधा छटाँक मधु थोड़े गम जल म घोलकर पला दे व । दौरे को सवथा दरू करने के िलए एक अखरोट क िगर को बार क पीस और एक च मच मधु म िमलाकर ात: सायं डे ढ़ मह ने तक सेवन कराने से रोग जड़ मूल से न हो जायेगा । अ य योग - महाल मी वलारस ( वणयु ) एक र ी मधु म िमलाकर ातः-सायंकाल दे व । इससे सब कार के िसर के दद न होते ह ।

दमागी रोग ये कई कार के होते ह जैसे अप मार (िमग ), उ माद (पागलपन), म त क म च कर आना व थके रहना, सु ती, माद, सदै व आल य का बना रहना, मरणश का घटना, सदै व िनराश व हताश रहना, भय का बना रहना, सवथा अस तु होकर आ मह या करने क सोचना । इनम अनार के रस म मधु डालकर पीव व पाँच-छ: बादाम क िगर िभगोकर िछलका उतारकर पानी के साथ घोलकर मधु िमलाकर पीव । इसके िनर तर सेवन से मरणश बढ़ जाती है । मृितसागर रस १ र ी ात:-सायं शहद म िमलाकर चाट व ऊपर से गाय का दध ू पीव । इससे भी मरणश बढती है । ा घृत ५ ाम, मधु १ तोला िमलाकर ात:-सायं चाट, ऊपर से गाय का दध ू पीव । इससे दमागी रोग न होते ह और मरणश बढ़ती है ।

सार वता र का सेवन भी साथ करने से बहुत लाभ होता है । कुमुदासव, अ ग धा र और गु कुल झ जर का बना हुआ बलदामृत भी इन रोग म अ छा लाभ करता है ।

खाँस ी-जु काम शीत रोग क सरल औषध शहद, अदरक और नी बू के रस को समान मा ा म िमलाकर रख ल और थोड़ा गम जल ठं डा करके आधी छटांक जल म छ: माशे मधु िमलाकर दन म तीन-चार बार लेव । इससे गले के सभी रोग दरू होते ह । पुरानी खांसी भी चली जाती है । इससे पाचन-श भी बढ़ती है । इसके साथ गेहँू का चोकर एक तोला एक पाव जल म उबाल । छानकर शहद िमलाकर दन म तीन-चार बार पीव । मरवे के प का रस शहद म िमलाकर चाटने से मुंह के छाले दरू हो जाते ह । तुलसी के प ,े अदरक का रस तीन-तीन माशे िमलाव । एक तोला शहद िमलाकर दन म तीन-चार बार चाट । इससे जुकाम-खांसी आ द गले के सभी रोग म लाभ होता है ।

आँ ख के रोग ने रोग म मधु का योग बा और अ या तर दोन तरफ से कया जाता है । दरू या नजद क क

कमजोर हो तो

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एक तोला छोट म खी का शहद और इसम तीन-चार नींबू का रस िमलाव । शीशी म सुर त रख और सलाई से ात: सायं लगाव । मोितया ब द के आर भ म छोट म खी का शहद एक तोला और सफेद याज का रस नौ-दस बूद ं िमला ल । सलाई से ित दन लगाव । आँख के साधारण रोग म शु मधु डालकर उपचार कया जाता है ।

ने रोग क उ म औषध सफेद याज का रस एक छटाँक, अदरक का रस एक छटाँक, शु मधु चार छटाँक । इन सबको िमला ल और एक बड़ शीशी म काक लगाकर रख द । दन म दो-तीन बार इसको हला दया कर । दो-तीन दन के प ात यह िनथर जायेगा । िनथर जाने के बाद ऊपर क औषध िनकाल ल । इसक एक-दो बूद ं सोते व आंख म डाल िलया कर । इससे मोितया बंद, जाला आ द सब कट जाते ह । यह आंख म लगता है य क यह लेखन म काटने क या करता है । बड़ आयु के लोग के िलए अ छ औषध है ।

े त पु न नवा सफेद फूल वाली सांठ क जड़ आँख के िलए बहुत ह लाभदायक है । इसको शहद म िघसकर लगाने से फोला, जाला, सफेद मोितया आ द सब कट जाते ह । यह अंध को भी योित दे ता है । अहमदाबाद म एक वृ साधु थे जनको मोितया ब द का रोग था और द खना ब कुल ब द हो गया था, आ श े न कराने से बहुत डरते थे । म इन दन वहां आयसमाज का चार करने हे तु गया हुआ था । म जब जंगल म घूम ने गया तो म ेत पुननवा (सफेद सांठ ) क जड़ उखाड़ लाया और उस साधु को शहद म िघसकर लगाने को दे द । कुछ समय इसका सेवन करने से उसका सफेद मोितया कट गया और उसे अ छ कार द खने लगा । शहद का योग आंख के िलए अमृत तु य है ।

स तामृतलौह हरड़, बहे ड़ा, आँवला तीन क छाल एक-एक तोला, मुल हट एक तोला, लोहभ म एक तोला सबको कूट-छानकर खरल म पीसकर कपड़छान कर ल और इसम १० तोले गौ दध ू िमलाव और ३० (तीस) तोले शु मधु िमला ल और शीशी म सुर त रख । मा ा - एक तोला या १० ाम ात: सूय दय के प ात ् व सायंकाल सूया त के समय एक तोला खाकर ऊपर से गाय का दध ू पी ल । यह च ु रोग के िलए अमृततु य औषध है । जवानी म चढे हुए च मे इसके दो-तीन मास के सेवन से सब उतर जाते ह । बनी हुई आँख म और वृ ाव था म भी आँख के सभी रोग म यह अ य त लाभदायक है । गुरदासपुर का एक वक ल जसक आंख बगड़ने लगी थी, वह अपने पु , जो क डॉ टर था कनाडा म, वहाँ पर िच क सा हे तु गया । क तु वहां के सभी िस डॉ टर ने एक वर म यह कह दया क सरदार जी, अब तो अ धा ह रहना पड़े गा, दिु नयां म इसक कोई दवाई नह ं । वह िनराश व दःु खी होकर भारत लौट आए । यह िनराश-हताश होकर हमारे पू य गु वामी सवान द जी महाराज क शरण म पहुंच गए । उ ह ने कृपा करके इसी स तामृत लौह का सेवन सरदार जी को कराया । ईश कृ पा से पुनः योित आ गई और ये जवान क तरह सब काम फर से करने लगे । ये सरदार जी मुझे दयान द मठ द नानगर म िमले थे । इ ह ने सारा वृ ा त मुझे अपने मुख से सुनाया और गु जी के गुण गाते हुए थकते नह ं थे । इस सरदार ने स न होकर ५१००० पये का चैक वामी जी महाराज के पास भेज दया । पू य वामी जी ने यह कहकर लौटा दया क हम सं यािसय को य लोभी-लालची बनाते हो । हमने औषध का मू य ले िलया था, हम और कुछ नह ं चा हये । यह पंजाब म आतंकवाद के दन थे, वह सरदार हाई कोट का वक ल था, उसने वामी जी का एक राईफल लाइसस बनवाया और एक राईफल व कारतूस खर द कर पू य वामी जी के चरण म भेज दया । मने भी इस औषध का अनेक आंख के रोिगय पर योग करके अनुभव कया । इसक जतनी शंसा क जाये, थोड़ ह

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है । ने वकार म मधु का योग सव होता है । सामा य लोग भी दख ु ती हुई आंख म शहद डालते ह । शहद को पानी म घोलकर इसम आंख धोई जाती ह । रात को सोते समय सलाई से शहद को लगाते ह । आँख दख ू ना, धूल-धुँआ, िम ट के कण आंख म िगर जाना, रे ल गाड़ म या ा करते समय कोयला पड़ जाने आ द से आंख म घाव हो जाते ह और पीड़ा होने लगती है । शहद को पानी म डालकर दो बार धोना चा हए । रा म सोने से पूव शहद सलाई से डाल । इससे बड़ा लाभ होता है । मधु म रोपक गुण ह । इस कारण यह शी आंख के ज म को अ छा कर दे ता है ।

गोरखमु ड गोरखमु ड का गोल-गोल फूल वा फल होता है । एक फूल को िनगलकर छः माशे या एक तोला शहद चाटने से एक वष तक आंख नह ं दख ु ती । इसी कार दो फल दो वष । इसी कार तीन फल खाकर एक तोला शहद चाटने से तीन वष तक आंख म कोई वकार पैदा नह ं होता । अगर चै मास म ित दन िनराहार गोरखमु ड के चार पांच फूल ित दन जल से िनगल, ऊपर से एक तोला शहद चाट ल, फर सार उ आंख नह ं दख ु तीं और ने योित बढ़ती है और र भी शु हो जाता है ।

िसर के रोग िसर के बाल के िलए मधु का योग अ छा लाभ द है । एक तोला शहद और दो तोला िन बू का रस िमला ल और इस घोल को िसर पर लगाकर कुछ दे र रगड़, फर आध घंटे बाद जल से भली कार धो डाल और तोिलये से प छ ल । इससे बाल का झड़ना आ द रोग समा त हो जाते ह और उसके लेप से िसर के बाल क खूब वृ होती है ।

वषै ले डं क मधुम खी, ततैया आ द के लड़ने से तथा अ य भी कसी कार के क ड़े के डं क मारने से जो क होता है , जहां वषैल े क ड़े ने काटा है उस थान पर शहद के मलने से सूजन नह ं आता और पीड़ा भी शा त हो जाती है । य द उनके काटने से शर र पर सूजन आ गया हो और पीड़ा हो तो नीम के प को पानी म उबाल और उसम मधु िमलाकर िनकलती हुई गम-गम भांप से कुछ दे र िसकाई कर । इससे सूजन और पीड़ा शा त हो जाती है ।

शीत प छपाक शीत प या प उपड़ने पर हरे पोद ने को पीसकर रस िनकाल । दो तोले रस म छः माशे शहद िमलाव और रोगी को दन म तीन बार पलाव । य द रोग बहुत पुराना हो तो कई मास तक इसको पलाव ।

हाथ-पां व क जलन पांच-छ: इमली के फल को रात को िम ट के बतन म एक पाव जल म िभगो द । ात:काल मल छानकर दो च मच मधु िमलाकर रोगी को पलाव । एक-दो स ाह ऐसा करने से रोग न हो जायेगा । दस ू र विध - कासनी छः माशे कूटकर रा म जल म िभगो द । ातःकाल पीस-छान कर इसम एक तोला मधु िमलाकर पलाव । जलन से छुटकारा िमल जायेगा । इसे दन म चार बार पलाना चा हए ।

मुं ह के क ल और मुं ह ासे

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ातःकाल उठने पर दो च मच मधु जल म घोलकर पीव । एक च मच बादाम-रोगन म एक च मच शहद िमलाव और इसको अ छ तरह िमला ल । मुंह को छाछ या बेसन से धोव और िमले हुए शहद बादाम रोगन को चेहरे पर ह का-ह का लगाय और आध घंटा तक लगा रहने दे ना चा हये । फर थोड़े गम पानी से मुंह को धो ल और फर ठं डे पानी से अ छ तरह धो ल और फर तोिलये आ द से प छ ल । द ूस रा योग - एक बड़ा च मच मैदा ल और उसे मधु म िमला ल । गुलाब जल म िमलाकर इसका एक नम घोल बना ल और उसको चेहरे पर लगाव और आध घंटा प ात ् ठं डे पानी से धो ल और कसी नम तोिलए से प छ ल । ऐसा कुछ दन करने से चेहरे क फुंिसयां, क ल-मुंहासे न हो जाते ह और िनखर कर चेहरा सु दर बन जाता है ।

सं ज ीवनी तै ल गु कुल झ जर का बना हुआ संजीवनी तैल एक तोला ल और उसम एक तोला मधु िमलाव और इसका आधा घंटा चेहरे पर लेप कर । आध घंटा प ात ् ठं डे पानी से धो डाल और कोमल तौिलये से प छ डाल । इस रोग म एक मास तक दो तोले अमृता र समान जल और एक तोला शहद िमलाकर भोजन के आध घंटे प ात ् पलाने से दो-तीन स ताह म मुंह के फोड़े -फुंिसयां समूल न हो जाते ह । संजीवनी तैल लगाने से इनके दाग व िनशान भी समा त हो जाते ह । यह हमारा बहुत बार का अनुभव कया हुआ योग है ।

पीिलया यह भयानक रोग है । इसक ठ क समय पर िच क सा न होने पर यह रोग ाणघातक का प धारण कर लेता है । कुछ सूखे आलूबख ु ारे को िम ट के बतन म एक पाव जल म िभगो द और छानकर एक तोला मधु िमलाकर रोगी को पलाव । इसी कार इसको दन म तीन-चार बार पलाना चा हये । द ूस रा उपचार - बागड़ म मतीरा होता है । उसका रस एक पाव एक तोला मधु िमलाकर दन म कई बार पलाव । यह भी पीिलये क बहुत अ छ औषध है । गु कुल झ जर म इसी मतीरे के रस से कािल दासव बनाया जाता है जसम शहद पड़ता है । यह पीिलये क सव म औषध है । यह अ ल प म भी बहुत लाभ करता है । यह र क वृ करके िनबलता को भी दरू करता है ।

लकवा लकवा फाजील व वायु रोग म जब ऐसी दशा हो क इसका भाव जबान पर भी हो तो रोगी को खाने को कुछ न द और अंधेरे म रख और एक-एक घंटा के प ात ् दो तोले शहद जल म िमलाकर बार-बार पलाव । इससे यह रोग बहुत शी ठ क हो जाता है । य द शहद के साथ रसराज रस, योगे रस वा वृहत ् वातिच ताम ण रस इनम से कसी एक का योग मधु के साथ रोगी को कराव तो इस दःु ख द रोग से शी छुटकारा िमल जाता है ।

र चाप बढ़े हुए र चाप (हाई लड श े र) म मधु का योग लहसुन के साथ कर । लहसुन के तीन-चार जवे बार क पीस और एक तोला मधु म िमलाव और एक पाव जल म घोलकर दन म दो बार पीव । य द कम र चाप हो तो चार बादाम क िगर पीसकर शहद म िमलाव । इसे चाटकर एक पाव गाय का गम दध ू पीव ।



सं च ार

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य द शर र म र संचार ठ क नह ं हो रहा हो तो ातःकाल उठकर एक तोला शहद चाट ल और रा कार शहद का योग कर और नायु क दब ु लता म भी मधु का योग लाभदायक है ।

म सोने से पूव इसी

उ माद, पागलपन क औषध दो छटांक मुलहट को कूट पीस कर कपड़छान कर ल । इसम से दो माशे मुलहट एक तोला शहद म िमलाकर चाट ल । ऊपर से गाय का दध ू पलाय । इसी कार सायंकाल भी ल । यून से यून दस दन तक इसका योग कर । भोजन म मूंग चावल क खचड़ खाव । सार वत चूण का भी योग उ माद, पागलपन व िमग म लाभदायक होता है ।



रसायन

छाया म सुखाई हुई ा का चूण पांच तोले, मुलहट का चूण ५ तोले, शंखपु पी का चूण ५ तोले, िगलोय का चूण ५ तोले, वणभ म आधा तोला - इन सबको पीस कपड़छान करके शीशी म सुर त रख । मा ा - एक माशा से तीन माशे तक लेकर इसम छः माशे गोघृत व एक तोला शहद िमला ल और इसको ातः-सायं रोगी को चटाकर ऊपर से गाय का दध ापूवक सेवन करने से ू पला द । इसी कार सायंकाल द । इसके एक दो मास उ माद, पागलपन, अप मार, िमग , मृितनाश आ द रोग का नाश होता है । यह इन रोग क सव म औषध है । अकेली ा व शंखपु पी का चूण ३ माशे, गौद ु ध छः माशे व मधु एक तोला - इनको िमलाकर इसके योग से उ माद, अप मार, िमग आ द न होते ह । घोड़ा बच, कूठ, शंखपु पी व ा समभाग लेकर सबको कूटकर बार क छलनी से छान ल । इस चूण क मा ा तीन माशे, गौ दध ू छः माशे व मधु एक तोला रोगी को ातः सायंकाल द और ऊपर से गाय का दध ू पलाव । यह िमग , पागलपन आ द म त क रोग क उ म औषध है । नोट - यह यान रख क इन रोग से पहले रोगी को ती रे चक औषध दे कर रोगी का पेट साफ करवा द । फर इन औषिधय का योग कर । रोगी को क ज नह ं रहना चा हए ।



वधक औषध

एक सेर याज के छोटे -छोटे टु कड़े कर ल और इन टु कड़ से दग ु ुना शहद लेकर कसी ढ कन वाले बतन म डालकर िमला द । ढ़ न बंद करके भूि म म ग ढ़ा खोदकर प ह दन के िलए इसे भूिम म गाड़ द । प ह दन के पीछे िनकाल कर इसम से एक तोला ात: सायं खाव । यह बड़ा श द औषध है ।

उपदं श क औषध ताजे आँवले का रस एक तोला, मधु दो तोले िमलाकर ातः सायंकाल पीव । य द ताजे आँवले का रस न िमले तो सूखा आँवला का चूण ३ माशे से ६ माशे ल व गुण शहद िमलाकर ातः सायं रोगी को चटाव । ऊपर से गोद ु ध पला द । इसके एक दो मास सेवन से यह भयंकर उपदं श का रोग न हो जाता है ।



वकार क औषध

एक तोला महद के प े दो तोले शहद म िमलाकर पीस ल और इसका एक दो मास सेवन कर । ात: सायंकाल इसे

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दोन समय सेवन करना चा हये । भोजन म चने क रोट और मूंग क िछलके वाली दाल व चावल खाय । फोड़े , दाद-खाज आ द र वकार के सभी रोग दरू हो जायगे ।

पे ट का दद अदरक का रस व याज का रस एक-एक तोला ल । दो तोले शहद िमलाकर रोगी को दन म दो-तीन बार द । इससे उदरशूल व पेट क सभी पीड़ा दरू होगी ।

जुक ाम-खांस ी कभी नह ं होगा औषध प म मधु बहुत गुणकार है । कसी कार क हािन नह ं करता । जहां श द है , वहां रोग वनाशक है । मृद ु वरे चक होने से क ज नह ं होने दे ता । यह कफ िनसारक है । इसक मा ा िशशुओं के िलए छः माशे व बालक के िलए आठ माशे है । युवक के िलए एक तोला या डे ढ़ तोले तक दे सकते ह । जो य मधु का िन य ित सेवन करते ह, उनके म त क व शर र श शाली हो जाते ह । जो बालक को रोग से सुर त रखना चाह वे भूल कर भी खांड, चीनी, गुड़, श कर, िम ी आ द न दे व, आव यकता पड़ने पर अकेले मधु का सेवन कराव या गाय या बकर के दध ू म सेवन कराय । मधु का सेवन करने वाल को जुकाम, खांस ी कभी नह ं होती । मधु एक उपयोगी पदाथ है । वेद भगवान ने भी ऋ वेद (२०/९०) म िलखा है -

मधु वाता ऋतायते मधु

र त िस धवः मा वीनः स

वोषधीः ॥६॥

मधु न मु त ोषसो मधु म पािथवं रजः मधु ौर तु नः पता ॥७॥ मधु म ा नो वन पितमधु म ां अ तु सू यः मा वीगावो भव तु नः ॥८॥ हम स य क खोज करने वाल के िलए वायु मधुर बहे , न दय से हम मधुर जल ा त हो, औषिधयां मधुरता से प रपूण ह । रात, ातः और सं या मधुरता का सार कर । धरती का येक रजकण मधुमय हो । आकाश जो पता व प है , दध ू क वषा करे । वृ से मधुमय फल िमल, सूय मधुमय करण का सार करे और गाय हम मधुिमि त दध ू द । यह है मधु के माहा य का वणन ऋ वेद म ।

अ न से जलना शर र का कोई भाग अ न से जल जाए तो जले हुए भाग पर मधु लगाव । जलन और पीड़ा तुर त दरू हो जायेगी और ज म भी ज द ह भर जायेगा ।

अश (बवासीर) इस रोग म ायः सभी रोिगय को क ज रहता है । छः माशे फला का बार क चूण ल और एक तोला शहद म िमलाकर चाट ल । ऊपर शीतल जल पला दे व । शहद म स पर लगाना चा हए । बवासीर खूनी हो या बाद हो, दोन म ह लाभ होता है । बादाम रोगन एक तोला और मधु एक तोला - दोन को िमलाकर गाय के दध ू के साथ लेने से अ छा लाभ होता है ।

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खूनी बवासीर म छः माशे नागकेशर और छः माशे खांड वा िम ी िमला ल । इसको दो तोले गाय के म खन म िमलाव और इसे चाटकर ऊपर से गाय का दध ू पलाएं । इसके सेवन से म स से खून आना तो दो-तीन दन म ठ क हो जायेगा, एक मास के सेवन से बवासीर समूल न हो जाती है । बाद बवासीर म म से फूलकर बाहर आ जाते ह । रोगी को बहुत क होता है । कभी तो पेशाब व पाखाना दोन का ब धा पड़ जाता है । रोगी तड़फने लगता है । रोगी चल फर भी नह ं सकता । ऐसी अव था म ऊपरवाली औषध रोगी को दे नी चा हए और दो याज भूभल (गम राख) म भून ल । उनके िछलके उतारकर साफ प थर पर रगड़कर बार क चटनी सी बना ल । उसक ट कया सी बना कर गाय के घी म भून ल । फर इन ट कय से म स क िसकाई करके इनको बांधकर सो जाएं । कुछ दन इसका योग करने से सब क दरू हो जाएंगे ।

वात रोग वात रोग के रोगी को तीन दन का उपवास कराव । इन दन म मधु एक तोला पानी म घोलकर दन म पांच-छः बार दे व । सायंकाल सोते समय प चग यघृत या बादाम रोगन एक तोला गाय के दध ू म िमलाकर पला द । तीन दन के प ात ् रोगी को फल के रस व शाक-स जी पर ह रख । मधु का योग पूववत ् चलता रहे । य द रोगी को सवथा दरू करना हो तो गाय के दध ू के साथ योगराज गु गुल आधा ाम अथवा वातगजे िसंह रस आधा ाम ातः-सायं दे ते रह । महानारायण तैल व वषगभ तैल िमलाकर उसक मािलश व िसकाई कर । अभया र का ित दन सेवन भी इसम बहुत लाभदायक है । आलू, गोभी, चावल, उड़द क दाल, टमाटर, पेठा आ द वायु को बढ़ाने वाली चीज का योग न कर ।

वर और राजय मा मले रया वर म खूब गम पानी के एक छोटे िगलास म दो छोटे च मच शहद घोलकर गम-गम घूट कर पीव, पसीना आकर बुखार उतर जाता है । अगर इसके साथ भुवनक ित रस क एक आध गोली द तो और अिधक लाभ होगा । इस कार कई दन इसका योग करना च हए । राजय मा म आँवले का रस एक तोला, शहद एक तोला िमलाकर सेवन कर । शहद का सेवन गाय या बकर के दध ू के साथ भी बहुत लाभ करता है । यह योग कई मास तक चलना चा हये । शहद म वणबस तमालती रस एक र ी शहद म िमलाकर दन म दो बार द । य द खांसी हो तो बृहत ् िसतोपला द चूण शहद म िमलाकर दे ना चा हए । राजय मा म वशेष यवन ाश का भी योग अ छा रहता है । रोगी चय का पालन कर व इस औषध का सेवन कर तो इस बीमार से छुटकारा िमल सकता है ।

मोटापा मधु श द और फूित दे ने वाला भोजन है । शकरा क िगनती श वधक तथा फूितदायक भोजन म क जाती है । शहद म पाई जाने वाली शकरा आसानी से और शी ता से पच जाती है । वा तव म पाचन रोग क एक मह वपूण या इस कृित ारा ह हो चुक होती है अथात ् इसका आंिशक कृ म पाचन हो चुका होने के कारण शर र को इसे पचाने म म नह ं करना पड़ता । क ठनाई नह ं पड़ती । यह कारण है क शहद कृित क वह अनुपम दे न है जो शर र को थोड़े से थोड़े समय म अिधक से अिधक श दान करता है । ग ने के रस से बनी चीनी म ऐसी बात नह ं । यह त वह न होती है । शर र म पचाने के िलए अंगूर श कर म प रवितत करना होता है । ऐसा करने के िलए शर र क श का यय होता है और उसके बदले म िमलती है हािन । भारतीय मधु के वषय म वै ािनक ने िन निल खत पदाथ का िम ण िलखा है । भारतीय शहद के रासायिनक त व इस कार ह जल (१९.१०%) फल शकरा (Loevulose) (४२.२०%)

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अंगूर शकरा (Glucose) (३४.७१%) चीनी (Sugrose) (०.८५%) लाख या मांड (Albuminois) (१.१८%) खिनज पदाथ (१०.६%) अ य पदाथ (०.६०%)

ऊपर क तािलका के आधार पर यह कहा जा सकता है क शहद के घोल म ३ कार क शकरा पाई जाती है । ग ने क श कर नाम मा क ह है । यह शकरा शर र म आ मसात ् होने से पहले पाचन या से गुजरती है , फलशकरा को भी शर र म िमलने से पहले कुछ रासायिनक याओं का सामना करना होता है । यकृ त ् म पहुंचकर इसे लाईकोजन म प रवितत होना होता है और त प ात ् अंगूर शकरा म बदलकर इसका आ मीकरण होता है । जब क मधु म पाई जाने वाली अंगूर शकरा (Glucose) सीधी ह र म घुल जाती है । शहद का यह वह अंश है क आपने शहद मुंह म रखा और इसका अंश र म िमलना आर भ हो गया । शहद के रं ग व गंध म जो अ तर गोचर होता है उसका आधार व मा यम वह है जससे मधुम खयां इस अमृत को एक करती ह ।

आयुव द और मधु सं ेप म मधु के गुण-दोष भाव पर कुछ िलखा जावे तो आयुव दक मत से मधु शीतल, वा द , खा, वर को शु करने वाला, ाह , ने को हतकार , अ नद पक, णशोधक, नाड़ को शु करने वाला, सू म, कांितवधक, मेधाजनक, कामो पक, िचकारक, आन दजनक, कसैल ा, कुछ वातकारक तथा कु , बवासीर, खांसी, िधर वकार, कफ, मेह, कृिम, मद, लािन, तृषा, वमन, अितसार, दाह, मेद, य, हचक , दोष, अफारा, वायु, वष और क जयत को न करने वाला होता है । सब कार के मधु ण को भरने वाले, शोधक और टू ट ह डय को जोड़ने वाले होते ह । आग पर गम कया हुआ मधु अथवा ी मकाल म उ ण करता है ।

य के साथ खाया हुआ मधु वष के समान संताप को पैदा

हार त के मतानुसार मधु शीतल, कसैल ा, मधुर, ह का, अ नद पक, शर र को शु करनेवाला, वण शोधक, घाव को भरने वाला, नाड़ को शु करने वाला, दय को हतकार , बलकारक, दोषनाशक, पौ क तथा खांस ी, य, मू छा, हचक , म, शोष, पीनस, मेह, ास, अितसार, र ाितसार, र प , तृषा, मोह, दयरोग, ने रोग, सं हणी और वष वकार म लाभदायक है । चरक शा

के अनुसार मधु वातकारक, भार , शीतल, कफनाशक, छे दक,

, मीठा तथा कसैला होता है ।

मधु के अनेक कार के वषय म पहले िलखा जा चुका है क वैसे शहद क म खयां बड़ और छोट दो ह कार क होतीं ह । बड़ म खी को पहाड़ म खी कहते ह । इसका वभाव हं सक होता है । क ह ं कारण से बगड़ जाये तो मनु य और सभी पशु-प य का जीना दभ ू र कर दे ती है । छोट म खी का मधु सव म होता है । छोट म खी के शहद क अपे ा बड़ म खी के शहद म गुण कम होते ह । नवीन मधु - वात और कफ का नाश करने वाला होता है और पु कारक होता है ।

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यू नानी मत के अनु स ार शहद शर र को शु करता है । पुराने और लेशदार कफ को छांटता है । हर कार क वायु का शमन करता है । पेशाब अिधक लाता है । ब द हुए मािसकधम को पुनः खोलकर जार कर दे ता है । दध ू को खूब बढ़ाता है । मशाने और गुद क प थर को तोड़ता है । पाचनश और जगर को बलवान बनाता है । छाती को शु व साफ करता है । शीत के कारण उ प न हुए जुकाम, खाँस ी व िनमोिनया क इससे अ छ कोई औषध नह ं है । कान म भी कसी कार क कड़कड़ाहट क आवाज आती हो तो शहद क चार पांच बूद ं म थोड़ा सा उ ण जल िमलाकर कान म डालने से यह रोग दरू होता है । य द इसम थोड़ा कलमी शोरा और िमला िलया जाये तो सोने म सुहागा है । यह सं ेप म मधु के वषय म पाठक के लाभाथ िलख दया है । मु झे पूण आशा है क जनता को इस छोट सी पु तक के पढ़ने से पया त लाभ होगा । इस वषय म बहु त व तार से भी िलखा जा सकता है क तु बड़ पु तक के पढ़ने म बहु त कम पाठक क िच होती है । इसिलए ले खनी को वराम दे त ा हूँ ।

(समा त)

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Digital text of the printed book prepared by - Dayanand Deswal दयान द दे सवाल

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