Hindi Vyakaran in Hindi
January 30, 2017 | Author: Jahid Masud Akon | Category: N/A
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हहन्दी व्माकयण
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हहन्दी व्माकयण हहन्दी व्माकयण__________________________________________________________________ 1 व्माकयण फोध तथा यचना_______________________________________________________________ 3 विषमानुक्रभणणका_____________________________________________________________________ 3 अध्माम 1 ___________________________________________________________________________ 5 1.बाषा, व्माकयण औय फोरी ___________________________________________________________ 5 अध्माम 2 ___________________________________________________________________________ 7 िणण विचाय ________________________________________________________________________ 7 अध्माम 3 __________________________________________________________________________ 11 शब्द विचाय ______________________________________________________________________ 11 अध्माम 4 __________________________________________________________________________ 14 ऩद विचाय _______________________________________________________________________ 14 अध्माम 5 __________________________________________________________________________ 17 सॊऻा के विकायक तत्ि ______________________________________________________________ 17 अध्माम 6 __________________________________________________________________________ 22 िचन ___________________________________________________________________________ 22 अध्माम 7 __________________________________________________________________________ 27 कायक ___________________________________________________________________________ 27 अध्माम 7 __________________________________________________________________________ 30 कायक ___________________________________________________________________________ 30 अध्माम 8 __________________________________________________________________________ 33 सिणनाभ _________________________________________________________________________ 33 अध्माम 9 __________________________________________________________________________ 35 विशेषण _________________________________________________________________________ 35 अध्माम 10 _________________________________________________________________________ 41
हहन्दी व्माकयण
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हक्रमा ___________________________________________________________________________ 41 अध्माम 11 _________________________________________________________________________ 44 कार ____________________________________________________________________________ 44 अध्माम 12 _________________________________________________________________________ 47 िाच्म ___________________________________________________________________________ 47 अध्माम 13 _________________________________________________________________________ 49 हक्रमा विशेषण ____________________________________________________________________ 49 अध्माम 14 _________________________________________________________________________ 51 सॊफॊधफोधक अव्मम _________________________________________________________________ 51 अध्माम 15 _________________________________________________________________________ 52 सभुच्चमफोधक अव्मम ______________________________________________________________ 52 अध्माम 16 _________________________________________________________________________ 53 विस्भमाहदफोधक अव्मम ____________________________________________________________ 53 अध्माम 17 _________________________________________________________________________ 54 शब्द यचना _______________________________________________________________________ 54 अध्माम 18 _________________________________________________________________________ 58 प्रत्मम __________________________________________________________________________ 58 अध्माम 19 _________________________________________________________________________ 62 सॊधध ____________________________________________________________________________ 62 अध्माम 20 _________________________________________________________________________ 66 सभास __________________________________________________________________________ 66 अध्माम 21 _________________________________________________________________________ 71 ऩद ऩरयचम ______________________________________________________________________ 71 अध्माम 22 _________________________________________________________________________ 71 शब्द ऻान _______________________________________________________________________ 71 अध्माम 23 _________________________________________________________________________ 89 वियाभ धचह्न ______________________________________________________________________ 89
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अध्माम 24 _________________________________________________________________________ 90 िाक्म प्रकयण _____________________________________________________________________ 90 अध्माम 25 _________________________________________________________________________ 97 अशुद्ध िाक्मं के शुद्ध िाक्म ___________________________________________________________ 97 अध्माम 26 _________________________________________________________________________ 99 भुहािये औय रोकोविमाॉ _____________________________________________________________ 99 REFERENCE _______________________________________________________________________ 109
व्माकयण फोध तथा यचना मह ऩुस्तक हहन्दी व्माकयण ऻान की प्रिेधशका है । आशा है हक ऩाठकगण इसका सभुधचत राब उठा ऩामंगे। महद आऩ इस ऩृष्ठ ऩय कोई त्रुहट दे खें तो हभे अिश्म धरखें ताहक बूर सुधाय कयके सही ऻान ऩाठकं के सभऺ प्रस्तुत हकमा जा सके। - धन्मिाद
विषमानुक्रभणणका 1.
बाषा, व्माकयण औय फोरी
2.
िणण विचाय
3.
शब्द विचाय
4.
ऩद विचाय
5.
सॊऻा के विकायक तत्ि
6.
िचन
हहन्दी व्माकयण 7.
कायक
8.
सिणनाभ
9.
विशेषण
10. हक्रमा 11. कार 12. िाच्म 13. हक्रमा विशेषण 14. सॊफॊधफोधक अव्मम 15. सभुच्मफोधक अव्मम 16. विस्भमाहदफोधक अव्मम 17. शब्द यचना 18. प्रत्मम 19. सॊधध 20. सभास 21. ऩद ऩरयचम 22. शब्द ऻान 23. वियाभ धचह्न
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24. िाक्म प्रकयण 25. अशुद्ध िाक्मं के शुद्ध रूऩ 26. भुहािये औय रोकोविमाॉ 27. सॊिाद रेखेन 28. कहानी-रेखेन 29. साय-रेखेन तथा अऩहठत गद्याॊश 30. ऩत्र रेखेन 31. धनफॊध रेखेन
अध्माम 1 1.बाषा, व्माकयण
औय फोरी
ऩरयबाषा- बाषा अधबव्मवि का एक ऐसा सभथण साधन है णजसके द्वाया भनुष्म अऩने विचायं को दस ू यं ऩय प्रकट कय सकता है औय दस ू यं के विचाय जाना सकता है ।
सॊसाय भं अनेक बाषाएॉ हं । जैसे-हहन्दी,सॊस्कृ त,अॊग्रेजी, फॉगरा,गुजयाती,ऩॊजाफी,उदण ,ू तेरुग,ु भरमारभ, कन्नड़, फ्रैंच, चीनी, जभणन इत्माहद।
बाषा के प्रकाय- बाषा दो प्रकाय की होती है 1. भौणखेक बाषा। 2. धरणखेत बाषा। आभने-साभने फैठे व्मवि ऩयस्ऩय फातचीत कयते हं अथिा कोई व्मवि बाषण आहद द्वाया अऩने विचाय प्रकट कयता है तो उसे बाषा का भौणखेक रूऩ कहते हं ।
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जफ व्मवि हकसी दयू फैठे व्मवि को ऩत्र द्वाया अथिा ऩुस्तकं एिॊ ऩत्र-ऩवत्रकाओॊ भं रेखे द्वाया अऩने विचाय प्रकट कयता है तफ उसे बाषा का धरणखेत रूऩ कहते हं । व्माकयण भनुष्म भौणखेक एिॊ धरणखेत बाषा भं अऩने विचाय प्रकट कय सकता है औय कयता यहा है हकन्तु इससे बाषा का कोई धनणित एिॊ शुद्ध स्िरूऩ णस्थय नहीॊ हो सकता। बाषा के शुद्ध औय स्थामी रूऩ को धनणित कयने के धरए धनमभफद्ध मोजना की आिश्मकता होती है औय उस धनमभफद्ध मोजना को हभ व्माकयण कहते हं । ऩरयबाषा- व्माकयण िह शास्त्र है णजसके द्वाया हकसी बी बाषा के शब्दं औय िाक्मं के शुद्ध स्िरूऩं एिॊ शुद्ध प्रमोगं का विशद ऻान कयामा जाता है । बाषा औय व्माकयण का सॊफॊध- कोई बी भनुष्म शुद्ध बाषा का ऩूणण ऻान व्माकयण के वफना प्राप्त नहीॊ कय सकता। अत् बाषा औय व्माकयण का घधनष्ठ सॊफॊध हं िह बाषा भं उच्चायण, शब्द-प्रमोग, िाक्म-गठन तथा अथं के प्रमोग के रूऩ को धनणित कयता है । व्माकयण के विबाग- व्माकयण के चाय अॊग धनधाणरयत हकमे गमे हं 1. िणण-विचाय। 2. शब्द-विचाय। 3. ऩद-विचाय। 4. िाक्म विचाय। फोरी बाषा का ऺेत्रीम रूऩ फोरी कहराता है । अथाणत ् दे श के विधबन्न बागं भं फोरी जाने िारी बाषा फोरी कहराती है औय हकसी बी ऺेत्रीम फोरी का धरणखेत रूऩ भं णस्थय साहहत्म िहाॉ की बाषा कहराता है । धरवऩ हकसी बी बाषा के धरखेने की विधध को ‘धरवऩ’ कहते हं । हहन्दी औय सॊस्कृ त बाषा की धरवऩ का नाभ दे िनागयी है । अॊग्रेजी बाषा की धरवऩ ‘योभन’, उदण ू बाषा की धरवऩ पायसी, औय ऩॊजाफी बाषा की धरवऩ गुरुभुखेी है । साहहत्म
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ऻान-याधश का सॊधचत कोश ही साहहत्म है । साहहत्म ही हकसी बी दे श, जाधत औय िगण को जीिॊत यखेने का- उसके अतीत रूऩं को दशाणने का एकभात्र साक्ष्म होता है । मह भानि की अनुबूधत के विधबन्न ऩऺं को स्ऩष्ट कयता है औय ऩाठकं एिॊ श्रोताओॊ के रृदम भं एक अरौहकक अधनिणचनीम आनॊद की अनुबूधत उत्ऩन्न कयता है ।
अध्माम 2 िणण विचाय ऩरयबाषा-हहन्दी बाषा भं प्रमुि सफसे छोटी ध्िधन िणण कहराती है । जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क् , खे ् आहद। िणणभारा िणं के सभुदाम को ही िणणभारा कहते हं । हहन्दी िणणभारा भं 44 िणण हं । उच्चायण औय प्रमोग के आधाय ऩय हहन्दी िणणभारा के दो बेद हकए गए हं 1. स्िय 2. व्मॊजन स्िय णजन िणं का उच्चायण स्ितॊत्र रूऩ से होता हो औय जो व्मॊजनं के उच्चायण भं सहामक हं िे स्िय कहराते है । मे सॊख्मा भं ग्मायह हं अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। उच्चायण के सभम की दृवष्ट से स्िय के तीन बेद हकए गए हं 1. ह्रस्ि स्िय। 2. दीघण स्िय। 3. प्रुत स्िय। 1. ह्रस्ि स्िय णजन स्ियं के उच्चायण भं कभ-से-कभ सभम रगता हं उन्हं ह्रस्ि स्िय कहते हं । मे चाय हं - अ, इ, उ, ऋ। इन्हं भूर स्िय बी कहते हं ।
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2. दीघण स्िय णजन स्ियं के उच्चायण भं ह्रस्ि स्ियं से दग ु ुना सभम रगता है उन्हं दीघण स्िय कहते हं । मे हहन्दी भं सात हं - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
विशेष- दीघण स्ियं को ह्रस्ि स्ियं का दीघण रूऩ नहीॊ सभझना चाहहए। महाॉ दीघण शब्द का प्रमोग उच्चायण भं रगने िारे सभम को आधाय भानकय हकमा गमा है । 3. प्रुत स्िय णजन स्ियं के उच्चायण भं दीघण स्ियं से बी अधधक सभम रगता है उन्हं प्रुत स्िय कहते हं । प्राम् इनका प्रमोग दयू से फुराने भं हकमा जाता है । भात्राएॉ स्ियं के फदरे हुए स्िरूऩ को भात्रा कहते हं स्ियं की भात्राएॉ धनम्नधरणखेत हं स्िय भात्राएॉ शब्द अ × कभ आ ाा काभ इ णा हकसरम ई ाी खेीय उ ाु गुराफ ऊ ाू बूर ऋ ाृ तृण ए ाे केश ऐ ाै है ओ ाो चोय औ ाौ चौखेट अ िणण (स्िय) की कोई भात्रा नहीॊ होती। व्मॊजनं का अऩना स्िरूऩ धनम्नधरणखेत हं क् च ् छ् ज ् झ ् त ् थ ् ध ् आहद।
अ रगने ऩय व्मॊजनं के नीचे का (हर) धचह्न हट जाता है । तफ मे इस प्रकाय धरखेे जाते हं क च छ ज झ त थ ध आहद। व्मॊजन
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णजन िणं के ऩूणण उच्चायण के धरए स्ियं की सहामता री जाती है िे व्मॊजन कहराते हं । अथाणत व्मॊजन वफना स्ियं की सहामता के फोरे ही नहीॊ जा सकते। मे सॊख्मा भं 33 हं । इसके धनम्नधरणखेत तीन बेद हं 1. स्ऩशण 2. अॊत्स्थ 3. ऊष्भ 1. स्ऩशण इन्हं ऩाॉच िगं भं यखेा गमा है औय हय िगण भं ऩाॉच-ऩाॉच व्मॊजन हं । हय िगण का नाभ ऩहरे िगण के अनुसाय यखेा गमा है जैसेकिगण- क् खे ् ग ् घ ् ड़्
चिगण- च ् छ् ज ् झ ् ञ ्
टिगण- ट् ठ् ड् ढ् ण ् (ड़् ढ़्) तिगण- त ् थ ् द् ध ् न ्
ऩिगण- ऩ ् प् फ ् ब ् भ ् 2. अॊत्स्थ मे धनम्नधरणखेत चाय हं म ् य् र ् ि ् 3. ऊष्भ मे धनम्नधरणखेत चाय हं श ् ष ् स ् ह् िैसे तो जहाॉ बी दो अथिा दो से अधधक व्मॊजन धभर जाते हं िे सॊमुि व्मॊजन कहराते हं , हकन्तु दे िनागयी धरवऩ भं सॊमोग के फाद रूऩ-ऩरयितणन हो जाने के कायण इन तीन को धगनामा गमा है । मे दो-दो व्मॊजनं से धभरकय फने हं । जैसे-ऺ=क् +ष अऺय, ऻ=ज ्+ञ ऻान, त्र=त ्+य नऺत्र कुछ रोग ऺ ् त्र ् औय ऻ ् को बी हहन्दी िणणभारा
भं धगनते हं , ऩय मे सॊमुि व्मॊजन हं । अत् इन्हं िणणभारा भं धगनना उधचत प्रतीत नहीॊ होता। अनुस्िाय
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इसका प्रमोग ऩॊचभ िणण के स्थान ऩय होता है । इसका धचन्ह (ाॊ) है । जैसेसम्बि=सॊबि, सञ्जम=सॊजम, गड़्गा=गॊगा। विसगण इसका उच्चायण ह् के सभान होता है । इसका धचह्न (:) है । जैसे-अत्, प्रात्। चॊद्रवफॊद ु जफ हकसी स्िय का उच्चायण नाधसका औय भुखे दोनं से हकमा जाता है तफ उसके ऊऩय चॊद्रवफॊद ु (ाॉ) रगा हदमा जाता है ।
मह अनुनाधसक कहराता है । जैसे-हॉ सना, आॉखे। हहन्दी िणणभारा भं 11 स्िय तथा 33 व्मॊजन धगनाए जाते हं , ऩयन्तु इनभं ड़्, ढ़् अॊ तथा अ् जोड़ने ऩय हहन्दी के िणं की कुर सॊख्मा 48 हो जाती है । हरॊत जफ कबी व्मॊजन का प्रमोग स्िय से यहहत हकमा जाता है तफ उसके नीचे एक धतयछी ये खेा (ा्) रगा दी जाती है । मह ये खेा हर कहराती है । हरमुि व्मॊजन हरॊत िणण कहराता है । जैसे-विद् मा। िणं के उच्चायण-स्थान भुखे के णजस बाग से णजस िणण का उच्चायण होता है उसे उस िणण का उच्चायण स्थान कहते हं । उच्चायण स्थान ताधरका क्रभ िणण
उच्चायण विसगण कॊठ औय जीब का
1.
अ आ क् खे ् ग ् घ ् ड़् ह्
2.
इ ई च ् छ् ज ् झ ् ञ ् म ् श तारु औय जीब
3.
ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण ् ड़् ढ़् य ् ष्
धनचरा बाग
भूधाण औय जीब
श्रेणी कॊठस्थ तारव्म भूधन् ण म
हहन्दी व्माकयण 4.
त ् थ ् द् ध ् न ् र ् स ्
दाॉत औय जीब
दॊ त्म
5.
उ ऊ ऩ ् प् फ ् ब ् भ
दोनं हंठ
ओष््म
6.
ए ऐ
कॊठ तारु औय जीब
कॊठतारव्म
7.
ओ औ
दाॉत जीब औय हंठ
कॊठोष््म
8.
ि्
दाॉत जीब औय हंठ
दॊ तोष ्
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अध्माम 3 शब्द विचाय ऩरयबाषा- एक मा अधधक िणं से फनी हुई स्ितॊत्र साथणक ध्िधन शब्द कहराता है ।
जैसे- एक िणण से धनधभणत शब्द-न (नहीॊ) ि (औय) अनेक िणं से धनधभणत शब्द-कुत्ता, शेय,कभर, नमन, प्रासाद, सिणव्माऩी, ऩयभात्भा। शब्द-बेद व्मुत्ऩवत्त (फनािट) के आधाय ऩय शब्द-बेदव्मुत्ऩवत्त (फनािट) के आधाय ऩय शब्द के धनम्नधरणखेत तीन बेद हं 1. रूढ़ 2. मौधगक 3. मोगरूढ़ 1. रूढ़ जो शब्द हकन्हीॊ अन्म शब्दं के मोग से न फने हं औय हकसी विशेष अथण को प्रकट कयते हं तथा णजनके टु कड़ं का कोई अथण नहीॊ होता, िे रूढ़ कहराते हं । जैसे-कर, ऩय। इनभं क, र, ऩ, य का टु कड़े कयने ऩय कुछ अथण नहीॊ हं । अत् मे धनयथणक हं । 2. मौधगक जो शब्द कई साथणक शब्दं के भेर से फने हं,िे मौधगक कहराते हं । जैसेदे िारम=दे ि+आरम, याजऩुरुष=याज+ऩुरुष, हहभारम=हहभ+आरम, दे िदत ू =दे ि+दत ू आहद। मे सबी शब्द दो साथणक शब्दं के भेर से फने हं ।
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3. मोगरूढ़ िे शब्द, जो मौधगक तो हं , हकन्तु साभान्म अथण को न प्रकट कय हकसी विशेष अथण को प्रकट कयते हं , मोगरूढ़ कहराते हं । जैसे-ऩॊकज, दशानन आहद। ऩॊकज=ऩॊक+ज (कीचड़ भं उत्ऩन्न होने िारा) साभान्म अथण भं प्रचधरत न होकय कभर के अथण भं रूढ़ हो गमा है । अत् ऩॊकज शब्द मोगरूढ़ है । इसी प्रकाय दश (दस) आनन (भुखे) िारा यािण के अथण भं प्रधसद्ध है । उत्ऩवत्त के आधाय ऩय शब्द-बेद उत्ऩवत्त के आधाय ऩय शब्द के धनम्नधरणखेत चाय बेद हं 1. तत्सभ- जो शब्द सॊस्कृ त बाषा से हहन्दी भं वफना हकसी ऩरयितणन के रे धरए गए हं िे तत्सभ कहराते हं । जैसे-अणग्न, ऺेत्र, िामु, यावत्र, सूमण आहद। 2. तद्भि- जो शब्द रूऩ फदरने के फाद सॊस्कृ त से हहन्दी भं आए हं िे तद्भि कहराते हं । जैसे-आग (अणग्न), खेेत(ऺेत्र), यात (यावत्र), सूयज (सूम)ण आहद। 3. दे शज- जो शब्द ऺेत्रीम प्रबाि के कायण ऩरयणस्थधत ि आिश्मकतानुसाय फनकय
प्रचधरत हो गए हं िे दे शज कहराते हं । जैसे-ऩगड़ी, गाड़ी, थैरा, ऩेट, खेटखेटाना आहद। 4. विदे शी मा विदे शज- विदे शी जाधतमं के सॊऩकण से उनकी बाषा के फहुत से शब्द
हहन्दी भं प्रमुि होने रगे हं । ऐसे शब्द विदे शी अथिा विदे शज कहराते हं । जैसे-स्कूर, अनाय, आभ, कंची,अचाय, ऩुधरस, टे रीपोन, रयक्शा आहद। ऐसे कुछ विदे शी शब्दं की सूची नीचे दी जा यही है । अॊग्रेजी- कॉरेज, ऩंधसर, ये हडमो, टे रीविजन, डॉक्टय, रैटयफक्स, ऩैन, हटकट, भशीन, धसगये ट, साइहकर, फोतर आहद। पायसी- अनाय,चश्भा, जभीॊदाय, दक ु ान, दयफाय, नभक, नभूना, फीभाय, फयप, रूभार, आदभी, चुगरखेोय, गॊदगी, चाऩरूसी आहद।
अयफी- औराद, अभीय, कत्र, करभ, कानून, खेत, पकीय, रयश्वत, औयत, कैदी, भाधरक, गयीफ आहद। तुकी- कंची, चाकू, तोऩ, फारूद, राश, दायोगा, फहादयु आहद।
ऩुतग ण ारी- अचाय, आरऩीन, कायतूस, गभरा, चाफी, धतजोयी, तौधरमा, पीता, साफुन, तॊफाकू, कॉपी, कभीज आहद। फ्रैाॊसीसी- ऩुधरस, काटू ण न, इॊ जीधनमय, कर्फमू,ण वफगुर आहद। चीनी- तूपान, रीची, चाम, ऩटाखेा आहद। मूनानी- टे रीपोन, टे रीग्राप, ऐटभ, डे ल्टा आहद। जाऩानी- रयक्शा आहद।
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प्रमोग के आधाय ऩय शब्द-बेद प्रमोग के आधाय ऩय शब्द के धनम्नधरणखेत आठ बेद है 1. सॊऻा
2. सिणनाभ 3. विशेषण 4. हक्रमा 5. हक्रमा-विशेषण 6. सॊफॊधफोधक 7. सभुच्चमफोधक 8. विस्भमाहदफोधक इन उऩमुि ण आठ प्रकाय के शब्दं को बी विकाय की दृवष्ट से दो बागं भं फाॉटा जा सकता है 1. विकायी 2. अविकायी 1. विकायी शब्द णजन शब्दं का रूऩ-ऩरयितणन होता यहता है िे विकायी शब्द कहराते हं । जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तं, भं भुझे,हभं अच्छा, अच्छे खेाता है , खेाती है , खेाते हं । इनभं सॊऻा, सिणनाभ, विशेषण औय हक्रमा विकायी शब्द हं । 2. अविकायी शब्द णजन शब्दं के रूऩ भं कबी कोई ऩरयितणन नहीॊ होता है िे अविकायी शब्द कहराते हं । जैसे-महाॉ, हकन्तु, धनत्म, औय, हे अये आहद। इनभं हक्रमा-विशेषण, सॊफॊधफोधक, सभुच्चमफोधक औय विस्भमाहदफोधक आहद हं । अथण की दृवष्ट से शब्द-बेद अथण की दृवष्ट से शब्द के दो बेद हं 1. साथणक 2. धनयथणक
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1. साथणक शब्द णजन शब्दं का कुछ-न-कुछ अथण हो िे शब्द साथणक शब्द कहराते हं । जैसे-योटी, ऩानी, भभता, डॊ डा आहद। 2. धनयथणक शब्द णजन शब्दं का कोई अथण नहीॊ होता है िे शब्द धनयथणक कहराते हं । जैसे-योटी-िोटी, ऩानी-िानी, डॊ डा-िॊडा इनभं िोटी, िानी, िॊडा आहद धनयथणक शब्द हं । विशेष- धनयथणक शब्दं ऩय व्माकयण भं कोई विचाय नहीॊ हकमा जाता है ।
अध्माम 4 ऩद विचाय साथणक िणण-सभूह शब्द कहराता है , ऩय जफ इसका प्रमोग िाक्म भं होता है तो िह स्ितॊत्र नहीॊ यहता फणल्क व्माकयण के धनमभं भं फॉध जाता है औय प्राम् इसका रूऩ बी फदर जाता है । जफ कोई शब्द िाक्म भं प्रमुि होता है तो उसे शब्द न कहकय ऩद कहा जाता है । हहन्दी भं ऩद ऩाॉच प्रकाय के होते हं 1. सॊऻा 2. सिणनाभ 3. विशेषण 4. हक्रमा 5. अव्मम 1. सॊऻा हकसी व्मवि, स्थान, िस्तु आहद तथा नाभ के गुण, धभण, स्िबाि का फोध कयाने िारे शब्द सॊऻा कहराते हं । जैसे-श्माभ, आभ, धभठास, हाथी आहद। सॊऻा के प्रकाय- सॊऻा के तीन बेद हं 1. व्मवििाचक सॊऻा। 2. जाधतिाचक सॊऻा। 3. बाििाचक सॊऻा।
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1. व्मवििाचक सॊऻा णजस सॊऻा शब्द से हकसी विशेष, व्मवि, प्राणी, िस्तु अथिा स्थान का फोध हो उसे व्मवििाचक सॊऻा कहते हं । जैसे-जमप्रकाश नायामण, श्रीकृ ष्ण, याभामण, ताजभहर, कुतुफभीनाय, रारहकरा हहभारम आहद। 2. जाधतिाचक सॊऻा णजस सॊऻा शब्द से उसकी सॊऩूणण जाधत का फोध हो उसे जाधतिाचक सॊऻा कहते हं । जैसे-भनुष्म, नदी, नगय, ऩिणत, ऩशु, ऩऺी, रड़का, कुत्ता, गाम, घोड़ा, बंस, फकयी, नायी, गाॉि आहद। 3. बाििाचक सॊऻा णजस सॊऻा शब्द से ऩदाथं की अिस्था, गुण-दोष, धभण आहद का फोध हो उसे बाििाचक सॊऻा कहते हं । जैसे-फुढ़ाऩा, धभठास, फचऩन, भोटाऩा, चढ़ाई, थकािट आहद। विशेष ििव्म- कुछ विद्वान अॊग्रेजी व्माकयण के प्रबाि के कायण सॊऻा शब्द के दो बेद औय फतराते हं 1. सभुदामिाचक सॊऻा। 2. द्रव्मिाचक सॊऻा। 1. सभुदामिाचक सॊऻा णजन सॊऻा शब्दं से व्मविमं, िस्तुओॊ आहद के सभूह का फोध हो उन्हं सभुदामिाचक सॊऻा कहते हं । जैसे-सबा, कऺा, सेना, बीड़, ऩुस्तकारम दर आहद। 2. द्रव्मिाचक सॊऻा णजन सॊऻा-शब्दं से हकसी धातु, द्रव्म आहद ऩदाथं का फोध हो उन्हं द्रव्मिाचक सॊऻा कहते हं । जैसे-घी, तेर, सोना, चाॉदी,ऩीतर, चािर, गेहूॉ, कोमरा, रोहा आहद। इस प्रकाय सॊऻा के ऩाॉच बेद हो गए, हकन्तु अनेक विद्वान सभुदामिाचक औय द्रव्मिाचक सॊऻाओॊ को जाधतिाचक सॊऻा के अॊतगणत ही भानते हं , औय मही उधचत बी प्रतीत होता है । बाििाचक सॊऻा फनाना- बाििाचक सॊऻाएॉ चाय प्रकाय के शब्दं से फनती हं । जैसे1. जाधतिाचक सॊऻाओॊ से
हहन्दी व्माकयण दास दासता ऩॊहडत ऩाॊहडत्म फॊधु फॊधत्ु ि ऺवत्रम ऺवत्रमत्ि ऩुरुष ऩुरुषत्ि प्रबु प्रबुता ऩशु ऩशुता,ऩशुत्ि ब्राह्मण ब्राह्मणत्ि धभत्र धभत्रता फारक फारकऩन फच्चा फचऩन नायी नायीत्ि 2. सिणनाभ से अऩना अऩनाऩन, अऩनत्ि धनज धनजत्ि,धनजता ऩयामा ऩयामाऩन स्ि स्ित्ि सिण सिणस्ि अहॊ अहॊ काय भभ भभत्ि,भभता 3. विशेषण से भीठा धभठास चतुय चातुम,ण चतुयाई भधुय भाधुमण सुॊदय संदमण, सुॊदयता धनफणर धनफणरता सपेद सपेदी हया हरयमारी सपर सपरता प्रिीण प्रिीणता भैरा भैर
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हहन्दी व्माकयण
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धनऩुण धनऩुणता खेट्टा खेटास 4. हक्रमा से खेेरना खेेर थकना थकािट धरखेना रेखे, धरखेाई हॉ सना हॉ सी रेना-दे ना रेन-दे न ऩढ़ना ऩढ़ाई धभरना भेर चढ़ना चढ़ाई भुसकाना भुसकान कभाना कभाई उतयना उतयाई उड़ना उड़ान यहना-सहना यहन-सहन दे खेना-बारना दे खे-बार
अध्माम 5 सॊऻा के विकायक तत्ि णजन तत्िं के आधाय ऩय सॊऻा (सॊऻा, सिणनाभ, विशेषण) का रूऩाॊतय होता है िे विकायक तत्ि कहराते हं । िाक्म भं शब्दं की णस्थधत के आधाय ऩय ही उनभं विकाय आते हं । मह विकाय धरॊग, िचन औय कायक के कायण ही होता है । जैसे-रड़का शब्द के चायं रूऩ- 1.रड़का, 2.रड़के, 3.रड़कं, 4.रड़को-केिर िचन औय कायकं के कायण फनते हं । धरॊग- णजस धचह्न से मह फोध होता हो हक अभुक शब्द ऩुरुष जाधत का है अथिा स्त्री जाधत का िह धरॊग कहराता है । ऩरयबाषा- शब्द के णजस रूऩ से हकसी व्मवि, िस्तु आहद के ऩुरुष जाधत अथिा स्त्री जाधत के होने का ऻान हो उसे धरॊग कहते हं । जैसे-रड़का, रड़की, नय, नायी आहद।
हहन्दी व्माकयण
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इनभं ‘रड़का’ औय ‘नय’ ऩुणल्रॊग तथा रड़की औय ‘नायी’ स्त्रीधरॊग हं । हहन्दी भं धरॊग के दो बेद हं 1. ऩुणल्रॊग। 2. स्त्रीधरॊग। 1. ऩुणल्रॊग णजन सॊऻा शब्दं से ऩुरुष जाधत का फोध हो अथिा जो शब्द ऩुरुष जाधत के अॊतगणत भाने जाते हं िे ऩुणल्रॊग हं । जैसे-कुत्ता, रड़का, ऩेड़, धसॊह, फैर, घय आहद। 2. स्त्रीधरॊग णजन सॊऻा शब्दं से स्त्री जाधत का फोध हो अथिा जो शब्द स्त्री जाधत के अॊतगणत भाने जाते हं िे स्त्रीधरॊग हं । जैसे-गाम, घड़ी, रड़की, कुयसी, छड़ी, नायी आहद। ऩुणल्रॊग की ऩहचान 1. आ, आि, ऩा, ऩन न मे प्रत्मम णजन शब्दं के अॊत भं हं िे प्राम् ऩुणल्रॊग होते हं । जैसे- भोटा, चढ़ाि, फुढ़ाऩा, रड़कऩन रेन-दे न।
2. ऩिणत, भास, िाय औय कुछ ग्रहं के नाभ ऩुणल्रॊग होते हं जैसे-विॊध्माचर, हहभारम, िैशाखे, सूम,ण चॊद्र, भॊगर, फुध, याहु, केतु (ग्रह)।
3. ऩेड़ं के नाभ ऩुणल्रॊग होते हं । जैसे-ऩीऩर, नीभ, आभ, शीशभ, सागौन, जाभुन, फयगद आहद। 4. अनाजं के नाभ ऩुणल्रॊग होते हं । जैसे-फाजया, गेहूॉ, चािर, चना, भटय, जौ, उड़द आहद। 5. द्रि ऩदाथं के नाभ ऩुणल्रॊग होते हं । जैसे-ऩानी, सोना, ताॉफा, रोहा, घी, तेर आहद। 6. यत्नों के नाभ ऩुणल्रॊग होते हं । जैसे-हीया, ऩन्ना, भूॉगा, भोती भाणणक आहद। 7. दे ह के अिमिं के नाभ ऩुणल्रॊग होते हं । जैसे-धसय, भस्तक, दाॉत, भुखे, कान, गरा, हाथ, ऩाॉि, हंठ, तारु, नखे, योभ आहद। 8. जर, स्थान औय बूभॊडर के बागं के नाभ ऩुणल्रॊग होते हं । जैसे-सभुद्र, बायत, दे श, नगय, द्वीऩ, आकाश, ऩातार, घय, सयोिय आहद। 9. िणणभारा के अनेक अऺयं के नाभ ऩुणल्रॊग होते हं । जैसे-अ,उ,ए,ओ,क,खे,ग,घ, च,छ,म,य,र,ि,श आहद। स्त्रीधरॊग की ऩहचान
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1. णजन सॊऻा शब्दं के अॊत भं खे होते है , िे स्त्रीधरॊग कहराते हं । जैसे-ईखे, बूखे, चोखे, याखे, कोखे, राखे, दे खेये खे आहद। 2. णजन बाििाचक सॊऻाओॊ के अॊत भं ट, िट, मा हट होता है , िे स्त्रीधरॊग कहराती हं । जैसे-झॊझट, आहट, धचकनाहट, फनािट, सजािट आहद। 3. अनुस्िायाॊत, ईकायाॊत, ऊकायाॊत, तकायाॊत, सकायाॊत सॊऻाएॉ स्त्रीधरॊग कहराती है । जैसेयोटी, टोऩी, नदी, धचट्ठी, उदासी, यात, फात, छत, बीत, रू, फारू, दारू, सयसं, खेड़ाऊॉ, प्मास, िास, साॉस आहद। 4. बाषा, फोरी औय धरवऩमं के नाभ स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-हहन्दी, सॊस्कृ त, दे िनागयी, ऩहाड़ी, तेरुगु ऩॊजाफी गुरुभुखेी। 5. णजन शब्दं के अॊत भं इमा आता है िे स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-कुहटमा, खेहटमा, धचहड़मा आहद। 6. नहदमं के नाभ स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-गॊगा, मभुना, गोदाियी, सयस्िती आहद। 7. तायीखें औय धतधथमं के नाभ स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-ऩहरी, दस ू यी, प्रधतऩदा, ऩूणणणभा आहद।
8. ऩृथ्िी ग्रह स्त्रीधरॊग होते हं । 9. नऺत्रं के नाभ स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-अणश्वनी, बयणी, योहहणी आहद। शब्दं का धरॊग-ऩरयितणन प्रत्मम ई
इमा
ऩुणल्रॊग
स्त्रीधरॊग
घोड़ा
घोड़ी
दे ि
दे िी
दादा
दादी
रड़का
रड़की
ब्राह्मण
ब्राह्मणी
नय
नायी
फकया
फकयी
चूहा
चुहहमा
धचड़ा
धचहड़मा
फेटा
वफहटमा
हहन्दी व्माकयण
इन
नी
आनी
आइन
आ
अक को इका कयके
गुड्डा
गुहड़मा
रोटा
रुहटमा
भारी
भाधरन
कहाय
कहारयन
सुनाय
सुनारयन
रुहाय
रुहारयन
धोफी
धोवफन
भोय
भोयनी
हाथी
हाधथन
धसॊह
धसॊहनी
नौकय
नौकयानी
चौधयी
चौधयानी
दे िय
दे ियानी
सेठ
सेठानी
जेठ
जेठानी
ऩॊहडत
ऩॊहडताइन
ठाकुय
ठाकुयाइन
फार
फारा
सुत
सुता
छात्र
छात्रा
धशष्म
धशष्मा
ऩाठक
ऩाहठका
अध्माऩक
अध्मावऩका
फारक
फाधरका
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हहन्दी व्माकयण
इनी (इणी)
रेखेक
रेणखेका
सेिक
सेविका
तऩस्िी
तऩणस्िनी
हहतकायी
हहतकारयनी
स्िाभी
स्िाधभनी
ऩयोऩकायी
ऩयोऩकारयनी
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कुछ विशेष शब्द जो स्त्रीधरॊग भं वफरकुर ही फदर जाते हं । ऩुणल्रॊग
स्त्रीधरॊग
वऩता
भाता
बाई
बाबी
नय
भादा
याजा
यानी
ससुय
सास
सम्राट
सम्राऻी
ऩुरुष
स्त्री
फैर
गाम
मुिक
मुिती
विशेष ििव्म- जो प्राणणिाचक सदा शब्द ही स्त्रीधरॊग हं अथिा जो सदा ही ऩुणल्रॊग हं उनके ऩुणल्रॊग अथिा स्त्रीधरॊग जताने के धरए उनके साथ ‘नय’ ि ‘भादा’ शब्द रगा दे ते हं । जैसेस्त्रीधरॊग
ऩुणल्रॊग
भक्खेी
नय भक्खेी
कोमर
नय कोमर
धगरहयी
नय धगरहयी
हहन्दी व्माकयण भैना
नय भैना
धततरी
नय धततरी
फाज
भादा फाज
खेटभर
भादा खेटभर
चीर
नय चीर
कछुआ
नय कछुआ
कौआ
नय कौआ
बेहड़मा
भादा बेहड़मा
उल्रू
भादा उल्रू
भच्छय
भादा भच्छय
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अध्माम 6 िचन ऩरयबाषा-शब्द के णजस रूऩ से उसके एक अथिा अनेक होने का फोध हो उसे िचन कहते हं । हहन्दी भं िचन दो होते हं 1. एकिचन 2. फहुिचन एकिचन शब्द के णजस रूऩ से एक ही िस्तु का फोध हो, उसे एकिचन कहते हं । जैसे-रड़का, गाम, धसऩाही, फच्चा, कऩड़ा, भाता, भारा, ऩुस्तक, स्त्री, टोऩी फॊदय, भोय आहद। फहुिचन शब्द के णजस रूऩ से अनेकता का फोध हो उसे फहुिचन कहते हं । जैसे-रड़के, गामं,
कऩड़े , टोवऩमाॉ, भाराएॉ, भाताएॉ, ऩुस्तकं, िधुएॉ, गुरुजन, योहटमाॉ, णस्त्रमाॉ, रताएॉ, फेटे आहद। एकिचन के स्थान ऩय फहुिचन का प्रमोग
हहन्दी व्माकयण
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(क) आदय के धरए बी फहुिचन का प्रमोग होता है । जैसे(1) बीष्भ वऩताभह तो ब्रह्मचायी थे। (2) गुरुजी आज नहीॊ आमे। (3) धशिाजी सच्चे िीय थे। (खे) फड़प्ऩन दशाणने के धरए कुछ रोग िह के स्थान ऩय िे औय भं के स्थान हभ का प्रमोग कयते हं जैसे(1) भाधरक ने कभणचायी से कहा, हभ भीहटॊ ग भं जा यहे हं । (2) आज गुरुजी आए तो िे प्रसन्न हदखेाई दे यहे थे। (ग) केश, योभ, अश्रु, प्राण, दशणन, रोग, दशणक, सभाचाय, दाभ, होश, बाग्म आहद ऐसे शब्द हं णजनका प्रमोग फहुधा फहुिचन भं ही होता है । जैसे(1) तुम्हाये केश फड़े सुन्दय हं । (2) रोग कहते हं । फहुिचन के स्थान ऩय एकिचन का प्रमोग
(क) तू एकिचन है णजसका फहुिचन है तुभ हकन्तु सभ्म रोग आजकर रोक-व्मिहाय भं एकिचन के धरए तुभ का ही प्रमोग कयते हं जैसे(1) धभत्र, तुभ कफ आए। (2) क्मा तुभने खेाना खेा धरमा। (खे) िगण, िृॊद, दर, गण, जाधत आहद शब्द अनेकता को प्रकट कयने िारे हं , हकन्तु इनका व्मिहाय एकिचन के सभान होता है । जैसे(1) सैधनक दर शत्रु का दभन कय यहा है । (2) स्त्री जाधत सॊघषण कय यही है । (ग) जाधतिाचक शब्दं का प्रमोग एकिचन भं हकमा जा सकता है । जैसे(1) सोना फहुभूल्म िस्तु है ।
(2) भुॊफई का आभ स्िाहदष्ट होता है । फहुिचन फनाने के धनमभ
(1) अकायाॊत स्त्रीधरॊग शब्दं के अॊधतभ अ को एॉ कय दे ने से शब्द फहुिचन भं फदर जाते हं । जैसेएकिचन
फहुिचन
आॉखे
आॉखें
फहन
फहनं
ऩुस्तक
ऩुस्तकं
सड़क
सड़के
हहन्दी व्माकयण गाम
गामं
फात
फातं
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(2) आकायाॊत ऩुणल्रॊग शब्दं के अॊधतभ ‘आ’ को ‘ए’ कय दे ने से शब्द फहुिचन भं फदर जाते हं । जैसेएकिचन
फहुिचन
एकिचन
फहुिचन
घोड़ा
घोड़े
कौआ
कौए
कुत्ता
कुत्ते
गधा
गधे
केरा
केरे
फेटा
फेटे
(3) आकायाॊत स्त्रीधरॊग शब्दं के अॊधतभ ‘आ’ के आगे ‘एॉ’ रगा दे ने से शब्द फहुिचन भं फदर जाते हं । जैसेएकिचन
फहुिचन
एकिचन
फहुिचन
कन्मा
कन्माएॉ
अध्मावऩका
अध्मावऩकाएॉ
करा
कराएॉ
भाता
भाताएॉ
कविता
कविताएॉ
रता
रताएॉ
(4) इकायाॊत अथिा ईकायाॊत स्त्रीधरॊग शब्दं के अॊत भं ‘माॉ’ रगा दे ने से औय दीघण ई को ह्रस्ि इ कय दे ने से शब्द फहुिचन भं फदर जाते हं । जैसेएकिचन
फहुिचन
एकिचन
फहुिचन
फुवद्ध
फुवद्धमाॉ
गधत
गधतमाॉ
करी
कधरमाॉ
नीधत
नीधतमाॉ
कॉऩी
कॉवऩमाॉ
रड़की
रड़हकमाॉ
थारी
थाधरमाॉ
नायी
नारयमाॉ
(5) णजन स्त्रीधरॊग शब्दं के अॊत भं मा है उनके अॊधतभ आ को आॉ कय दे ने से िे फहुिचन फन जाते हं । जैसेएकिचन
फहुिचन
एकिचन
फहुिचन
हहन्दी व्माकयण गुहड़मा
गुहड़माॉ
वफहटमा
वफहटमाॉ
चुहहमा
चुहहमाॉ
कुधतमा
कुधतमाॉ
धचहड़मा
धचहड़माॉ
खेहटमा
खेहटमाॉ
फुहढ़मा
फुहढ़माॉ
गैमा
गैमाॉ
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(6) कुछ शब्दं भं अॊधतभ उ, ऊ औय औ के साथ एॉ रगा दे ते हं औय दीघण ऊ के साथन ऩय ह्रस्ि उ हो जाता है । जैसेएकिचन
फहुिचन
एकिचन
फहुिचन
गौ
गौएॉ
फहू
फहूएॉ
िधू
िधूएॉ
िस्तु
िस्तुएॉ
धेनु
धेनुएॉ
धातु
धातुएॉ
हहन्दी व्माकयण
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(7) दर, िृॊद, िगण, जन रोग, गण आहद शब्द जोड़कय बी शब्दं का फहुिचन फना दे ते हं । जैसे-
एकिचन
फहुिचन
एकिचन
फहुिचन
अध्माऩक
अध्माऩकिृॊद
धभत्र
धभत्रिगण
विद्याथी
विद्याथीगण
सेना
सेनादर
आऩ
आऩ रोग
गुरु
गुरुजन
श्रोता
श्रोताजन
गयीफ
गयीफ रोग
(8) कुछ शब्दं के रूऩ ‘एकिचन’ औय ‘फहुिचन’ दोनो भं सभान होते हं । जैसेएकिचन
फहुिचन
एकिचन
फहुिचन
ऺभा
ऺभा
नेता
नेता
जर
जर
प्रेभ
प्रेभ
धगरय
धगरय
क्रोध
क्रोध
याजा
याजा
ऩानी
ऩानी
विशेष- (1) जफ सॊऻाओॊ के साथ ने, को, से आहद ऩयसगण रगे होते हं तो सॊऻाओॊ का फहुिचन फनाने के धरए उनभं ‘ओ’ रगामा जाता है । जैसे-
हहन्दी व्माकयण
एकिचन
फहुिचन
रड़के को फुराओ
रड़को को फुराओ
नदी का जर ठॊ डा नहदमं का जर है
ठॊ डा है
एकिचन फच्चे ने गाना गामा
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फहुिचन फच्चं ने गाना गामा
आदभी से ऩूछ रो आदधभमं से ऩूछ रो
(2) सॊफोधन भं ‘ओ’ जोड़कय फहुिचन फनामा जाता है । जैसे-
फच्चं ! ध्मान से सुनो। बाइमं ! भेहनत कयो। फहनो ! अऩना कतणव्म धनबाओ।
अध्माम 7 कायक ऩरयबाषा-सॊऻा मा सिणनाभ के णजस रूऩ से उसका सीधा सॊफॊध हक्रमा के साथ ऻात हो िह कायक कहराता है । जैसे-गीता ने दध ू ऩीमा। इस िाक्म भं ‘गीता’ ऩीना हक्रमा का कताण है औय दध ू उसका कभण। अत् ‘गीता’ कताण कायक है औय ‘दध ू ’ कभण कायक।
कायक विबवि- सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं के फाद ‘ने, को, से, के धरए’, आहद जो धचह्न रगते हं िे धचह्न कायक विबवि कहराते हं । हहन्दी भं आठ कायक होते हं । उन्हं विबवि धचह्नं सहहत नीचे दे खेा जा सकता है कायक विबवि धचह्न (ऩयसगण) 1. कताण ने 2. कभण को 3. कयण से, के साथ, के द्वाया 4. सॊप्रदान के धरए, को 5. अऩादान से (ऩृथक) 6. सॊफॊध का, के, की 7. अधधकयण भं, ऩय 8. सॊफोधन हे ! हये !
कायक धचह्न स्भयण कयने के धरए इस ऩद की यचना की गई हं कताण ने अरु कभण को, कयण यीधत से जान।
हहन्दी व्माकयण
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सॊप्रदान को, के धरए, अऩादान से भान।। का, के, की, सॊफॊध हं , अधधकयणाहदक भं भान। ये ! हे ! हो ! सॊफोधन, धभत्र धयहु मह ध्मान।।
विशेष-कताण से अधधकयण तक विबवि धचह्न (ऩयसगण) शब्दं के अॊत भं रगाए जाते हं , हकन्तु सॊफोधन कायक के धचह्न-हे , ये , आहद प्राम् शब्द से ऩूिण रगाए जाते हं । 1. कताण कायक णजस रूऩ से हक्रमा (कामण) के कयने िारे का फोध होता है िह ‘कताण’ कायक कहराता है । इसका विबवि-धचह्न ‘ने’ है । इस ‘ने’ धचह्न का ितणभानकार औय बविष्मकार भं प्रमोग नहीॊ होता है । इसका सकभणक धातुओॊ के साथ बूतकार भं प्रमोग होता है । जैसे1.याभ ने यािण को भाया। 2.रड़की स्कूर जाती है । ऩहरे िाक्म भं हक्रमा का कताण याभ है । इसभं ‘ने’ कताण कायक का विबवि-धचह्न है । इस िाक्म भं ‘भाया’ बूतकार की हक्रमा है । ‘ने’ का प्रमोग प्राम् बूतकार भं होता है । दस ू ये िाक्म भं ितणभानकार की हक्रमा का कताण रड़की है । इसभं ‘ने’ विबवि का प्रमोग नहीॊ हुआ है ।
विशेष- (1) बूतकार भं अकभणक हक्रमा के कताण के साथ बी ने ऩयसगण (विबवि धचह्न) नहीॊ रगता है । जैसे-िह हॉ सा। (2) ितणभानकार ि बविष्मतकार की सकभणक हक्रमा के कताण के साथ ने ऩयसगण का प्रमोग नहीॊ होता है । जैसे-िह पर खेाता है । िह पर खेाएगा। (3) कबी-कबी कताण के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रमोग बी हकमा जाता है । जैसे(अ) फारक को सो जाना चाहहए। (आ) सीता से ऩुस्तक ऩढ़ी गई। (इ) योगी से चरा बी नहीॊ जाता। (ई) उससे शब्द धरखेा नहीॊ गमा। 2. कभण कायक हक्रमा के कामण का पर णजस ऩय ऩड़ता है , िह कभण कायक कहराता है । इसका विबविधचह्न ‘को’ है । मह धचह्न बी फहुत-से स्थानं ऩय नहीॊ रगता। जैसे- 1. भोहन ने साॉऩ को भाया। 2. रड़की ने ऩत्र धरखेा। ऩहरे िाक्म भं ‘भायने’ की हक्रमा का पर साॉऩ ऩय ऩड़ा है । अत् साॉऩ कभण कायक है । इसके साथ ऩयसगण ‘को’ रगा है । दस ू ये िाक्म भं ‘धरखेने’ की हक्रमा का पर ऩत्र ऩय ऩड़ा। अत् ऩत्र कभण कायक है । इसभं कभण कायक का विबवि धचह्न ‘को’ नहीॊ रगा।
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3. कयण कायक सॊऻा आहद शब्दं के णजस रूऩ से हक्रमा के कयने के साधन का फोध हो अथाणत ् णजसकी सहामता से कामण सॊऩन्न हो िह कयण कायक कहराता है । इसके विबवि-धचह्न ‘से’ के ‘द्वाया’ है । जैसे- 1.अजुन ण ने जमद्रथ को फाण से भाया। 2.फारक गंद से खेेर यहे है ।
ऩहरे िाक्म भं कताण अजुन ण ने भायने का कामण ‘फाण’ से हकमा। अत् ‘फाण से’ कयण कायक है । दस ू ये िाक्म भं कताण फारक खेेरने का कामण ‘गंद से’ कय यहे हं । अत् ‘गंद से’ कयण कायक है । 4. सॊप्रदान कायक सॊप्रदान का अथण है -दे ना। अथाणत कताण णजसके धरए कुछ कामण कयता है , अथिा णजसे कुछ दे ता है उसे व्मि कयने िारे रूऩ को सॊप्रदान कायक कहते हं । इसके विबवि धचह्न ‘के धरए’ को हं । 1.स्िास्थ्म के धरए सूमण को नभस्काय कयो। 2.गुरुजी को पर दो। इन दो िाक्मं भं ‘स्िास्थ्म के धरए’ औय ‘गुरुजी को’ सॊप्रदान कायक हं । 5. अऩादान कायक सॊऻा के णजस रूऩ से एक िस्तु का दस ू यी से अरग होना ऩामा जाए िह अऩादान कायक कहराता है । इसका विबवि-धचह्न ‘से’ है । जैसे- 1.फच्चा छत से धगय ऩड़ा। 2.सॊगीता घोड़े से धगय ऩड़ी। इन दोनं िाक्मं भं ‘छत से’ औय घोड़े ‘से’ धगयने भं अरग होना प्रकट होता है । अत् घोड़े से औय छत से अऩादान कायक हं । 6. सॊफॊध कायक शब्द के णजस रूऩ से हकसी एक िस्तु का दस ू यी िस्तु से सॊफॊध प्रकट हो िह सॊफॊध
कायक कहराता है । इसका विबवि धचह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘या’, ‘ये ’, ‘यी’ है । जैसे- 1.मह याधेश्माभ का फेटा है । 2.मह कभरा की गाम है । इन दोनं िाक्मं भं ‘याधेश्माभ का फेटे’ से औय ‘कभरा का’ गाम से सॊफॊध प्रकट हो यहा है । अत् महाॉ सॊफॊध कायक है । 7. अधधकयण कायक
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शब्द के णजस रूऩ से हक्रमा के आधाय का फोध होता है उसे अधधकयण कायक कहते हं । इसके विबवि-धचह्न ‘भं’, ‘ऩय’ हं । जैसे- 1.बॉिया पूरं ऩय भॉडया यहा है । 2.कभये भं टी.िी. यखेा है । इन दोनं िाक्मं भं ‘पूरं ऩय’ औय ‘कभये भं’ अधधकयण कायक है । 8. सॊफोधन कायक णजससे हकसी को फुराने अथिा सचेत कयने का बाि प्रकट हो उसे सॊफोधन कायक कहते है औय सॊफोधन धचह्न (!) रगामा जाता है । जैसे- 1.अये बैमा ! क्मं यो यहे हो ? 2.हे गोऩार ! महाॉ आओ। इन िाक्मं भं ‘अये बैमा’ औय ‘हे गोऩार’ ! सॊफोधन कायक है ।
अध्माम 7 कायक ऩरयबाषा-सॊऻा मा सिणनाभ के णजस रूऩ से उसका सीधा सॊफॊध हक्रमा के साथ ऻात हो िह कायक कहराता है । जैसे-गीता ने दध ू ऩीमा। इस िाक्म भं ‘गीता’ ऩीना हक्रमा का कताण है औय दध ू उसका कभण। अत् ‘गीता’ कताण कायक है औय ‘दध ू ’ कभण कायक।
कायक विबवि- सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं के फाद ‘ने, को, से, के धरए’, आहद जो धचह्न रगते हं िे धचह्न कायक विबवि कहराते हं । हहन्दी भं आठ कायक होते हं । उन्हं विबवि धचह्नं सहहत नीचे दे खेा जा सकता है कायक विबवि धचह्न (ऩयसगण) 1. कताण ने 2. कभण को 3. कयण से, के साथ, के द्वाया 4. सॊप्रदान के धरए, को 5. अऩादान से (ऩृथक) 6. सॊफॊध का, के, की 7. अधधकयण भं, ऩय 8. सॊफोधन हे ! हये ! कायक धचह्न स्भयण कयने के धरए इस ऩद की यचना की गई हं -
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कताण ने अरु कभण को, कयण यीधत से जान। सॊप्रदान को, के धरए, अऩादान से भान।। का, के, की, सॊफॊध हं , अधधकयणाहदक भं भान। ये ! हे ! हो ! सॊफोधन, धभत्र धयहु मह ध्मान।।
विशेष-कताण से अधधकयण तक विबवि धचह्न (ऩयसगण) शब्दं के अॊत भं रगाए जाते हं , हकन्तु सॊफोधन कायक के धचह्न-हे , ये , आहद प्राम् शब्द से ऩूिण रगाए जाते हं । 1. कताण कायक णजस रूऩ से हक्रमा (कामण) के कयने िारे का फोध होता है िह ‘कताण’ कायक कहराता है । इसका विबवि-धचह्न ‘ने’ है । इस ‘ने’ धचह्न का ितणभानकार औय बविष्मकार भं प्रमोग नहीॊ होता है । इसका सकभणक धातुओॊ के साथ बूतकार भं प्रमोग होता है । जैसे1.याभ ने यािण को भाया। 2.रड़की स्कूर जाती है । ऩहरे िाक्म भं हक्रमा का कताण याभ है । इसभं ‘ने’ कताण कायक का विबवि-धचह्न है । इस िाक्म भं ‘भाया’ बूतकार की हक्रमा है । ‘ने’ का प्रमोग प्राम् बूतकार भं होता है । दस ू ये िाक्म भं ितणभानकार की हक्रमा का कताण रड़की है । इसभं ‘ने’ विबवि का प्रमोग नहीॊ हुआ है ।
विशेष- (1) बूतकार भं अकभणक हक्रमा के कताण के साथ बी ने ऩयसगण (विबवि धचह्न) नहीॊ रगता है । जैसे-िह हॉ सा। (2) ितणभानकार ि बविष्मतकार की सकभणक हक्रमा के कताण के साथ ने ऩयसगण का प्रमोग नहीॊ होता है । जैसे-िह पर खेाता है । िह पर खेाएगा। (3) कबी-कबी कताण के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रमोग बी हकमा जाता है । जैसे(अ) फारक को सो जाना चाहहए। (आ) सीता से ऩुस्तक ऩढ़ी गई। (इ) योगी से चरा बी नहीॊ जाता। (ई) उससे शब्द धरखेा नहीॊ गमा। 2. कभण कायक हक्रमा के कामण का पर णजस ऩय ऩड़ता है , िह कभण कायक कहराता है । इसका विबविधचह्न ‘को’ है । मह धचह्न बी फहुत-से स्थानं ऩय नहीॊ रगता। जैसे- 1. भोहन ने साॉऩ को भाया। 2. रड़की ने ऩत्र धरखेा। ऩहरे िाक्म भं ‘भायने’ की हक्रमा का पर साॉऩ ऩय ऩड़ा है । अत् साॉऩ कभण कायक है । इसके साथ ऩयसगण ‘को’ रगा है । दस ू ये िाक्म भं ‘धरखेने’ की हक्रमा का पर ऩत्र ऩय ऩड़ा। अत् ऩत्र कभण कायक है । इसभं कभण कायक का विबवि धचह्न ‘को’ नहीॊ रगा।
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3. कयण कायक सॊऻा आहद शब्दं के णजस रूऩ से हक्रमा के कयने के साधन का फोध हो अथाणत ् णजसकी सहामता से कामण सॊऩन्न हो िह कयण कायक कहराता है । इसके विबवि-धचह्न ‘से’ के ‘द्वाया’ है । जैसे- 1.अजुन ण ने जमद्रथ को फाण से भाया। 2.फारक गंद से खेेर यहे है ।
ऩहरे िाक्म भं कताण अजुन ण ने भायने का कामण ‘फाण’ से हकमा। अत् ‘फाण से’ कयण कायक है । दस ू ये िाक्म भं कताण फारक खेेरने का कामण ‘गंद से’ कय यहे हं । अत् ‘गंद से’ कयण कायक है । 4. सॊप्रदान कायक सॊप्रदान का अथण है -दे ना। अथाणत कताण णजसके धरए कुछ कामण कयता है , अथिा णजसे कुछ दे ता है उसे व्मि कयने िारे रूऩ को सॊप्रदान कायक कहते हं । इसके विबवि धचह्न ‘के धरए’ को हं । 1.स्िास्थ्म के धरए सूमण को नभस्काय कयो। 2.गुरुजी को पर दो। इन दो िाक्मं भं ‘स्िास्थ्म के धरए’ औय ‘गुरुजी को’ सॊप्रदान कायक हं । 5. अऩादान कायक सॊऻा के णजस रूऩ से एक िस्तु का दस ू यी से अरग होना ऩामा जाए िह अऩादान कायक कहराता है । इसका विबवि-धचह्न ‘से’ है । जैसे- 1.फच्चा छत से धगय ऩड़ा। 2.सॊगीता घोड़े से धगय ऩड़ी। इन दोनं िाक्मं भं ‘छत से’ औय घोड़े ‘से’ धगयने भं अरग होना प्रकट होता है । अत् घोड़े से औय छत से अऩादान कायक हं । 6. सॊफॊध कायक शब्द के णजस रूऩ से हकसी एक िस्तु का दस ू यी िस्तु से सॊफॊध प्रकट हो िह सॊफॊध
कायक कहराता है । इसका विबवि धचह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘या’, ‘ये ’, ‘यी’ है । जैसे- 1.मह याधेश्माभ का फेटा है । 2.मह कभरा की गाम है । इन दोनं िाक्मं भं ‘याधेश्माभ का फेटे’ से औय ‘कभरा का’ गाम से सॊफॊध प्रकट हो यहा है । अत् महाॉ सॊफॊध कायक है । 7. अधधकयण कायक
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शब्द के णजस रूऩ से हक्रमा के आधाय का फोध होता है उसे अधधकयण कायक कहते हं । इसके विबवि-धचह्न ‘भं’, ‘ऩय’ हं । जैसे- 1.बॉिया पूरं ऩय भॉडया यहा है । 2.कभये भं टी.िी. यखेा है । इन दोनं िाक्मं भं ‘पूरं ऩय’ औय ‘कभये भं’ अधधकयण कायक है । 8. सॊफोधन कायक णजससे हकसी को फुराने अथिा सचेत कयने का बाि प्रकट हो उसे सॊफोधन कायक कहते है औय सॊफोधन धचह्न (!) रगामा जाता है । जैसे- 1.अये बैमा ! क्मं यो यहे हो ? 2.हे गोऩार ! महाॉ आओ। इन िाक्मं भं ‘अये बैमा’ औय ‘हे गोऩार’ ! सॊफोधन कायक है ।
अध्माम 8 सिणनाभ सिणनाभ-सॊऻा के स्थान ऩय प्रमुि होने िारे शब्द को सिणनाभ कहते है । सॊऻा की ऩुनरुवि को दयू कयने के धरए ही सिणनाभ का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-भं, हभ, तू, तुभ, िह, मह, आऩ, कौन, कोई, जो आहद।
सिणनाभ के बेद- सिणनाभ के छह बेद हं 1. ऩुरुषिाचक सिणनाभ। 2. धनिमिाचक सिणनाभ। 3. अधनिमिाचक सिणनाभ। 4. सॊफॊधिाचक सिणनाभ। 5. प्रश्निाचक सिणनाभ। 6. धनजिाचक सिणनाभ। 1. ऩुरुषिाचक सिणनाभ णजस सिणनाभ का प्रमोग ििा मा रेखेक स्िमॊ अऩने धरए अथिा श्रोता मा ऩाठक के धरए अथिा हकसी अन्म के धरए कयता है िह ऩुरुषिाचक सिणनाभ कहराता है । ऩुरुषिाचक सिणनाभ तीन प्रकाय के होते हं (1) उत्तभ ऩुरुषिाचक सिणनाभ- णजस सिणनाभ का प्रमोग फोरने िारा अऩने धरए कये , उसे उत्तभ ऩुरुषिाचक सिणनाभ कहते हं । जैसे-भं, हभ, भुझे, हभाया आहद।
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(2) भध्मभ ऩुरुषिाचक सिणनाभ- णजस सिणनाभ का प्रमोग फोरने िारा सुनने िारे के धरए कये , उसे भध्मभ ऩुरुषिाचक सिणनाभ कहते हं । जैसे-तू, तुभ,तुझे, तुम्हाया आहद। (3) अन्म ऩुरुषिाचक सिणनाभ- णजस सिणनाभ का प्रमोग फोरने िारा सुनने िारे के अधतरयि हकसी अन्म ऩुरुष के धरए कये उसे अन्म ऩुरुषिाचक सिणनाभ कहते हं । जैसेिह, िे, उसने, मह, मे, इसने, आहद। 2. धनिमिाचक सिणनाभ जो सिणनाभ हकसी व्मवि िस्तु आहद की ओय धनिमऩूिक ण सॊकेत कयं िे धनिमिाचक सिणनाभ कहराते हं । इनभं ‘मह’, ‘िह’, ‘िे’ सिणनाभ शब्द हकसी विशेष व्मवि आहद का धनिमऩूिक ण फोध कया यहे हं , अत् मे धनिमिाचक सिणनाभ है । 3. अधनिमिाचक सिणनाभ णजस सिणनाभ शब्द के द्वाया हकसी धनणित व्मवि अथिा िस्तु का फोध न हो िे अधनिमिाचक सिणनाभ कहराते हं । इनभं ‘कोई’ औय ‘कुछ’ सिणनाभ शब्दं से हकसी विशेष व्मवि अथिा िस्तु का धनिम नहीॊ हो यहा है । अत् ऐसे शब्द अधनिमिाचक सिणनाभ कहराते हं । 4. सॊफॊधिाचक सिणनाभ ऩयस्ऩय एक-दस ू यी फात का सॊफॊध फतराने के धरए णजन सिणनाभं का प्रमोग होता है
उन्हं सॊफॊधिाचक सिणनाभ कहते हं । इनभं ‘जो’, ‘िह’, ‘णजसकी’, ‘उसकी’, ‘जैसा’, ‘िैसा’मे दो-दो शब्द ऩयस्ऩय सॊफॊध का फोध कया यहे हं । ऐसे शब्द सॊफॊधिाचक सिणनाभ कहराते हं । 5. प्रश्निाचक सिणनाभ जो सिणनाभ सॊऻा शब्दं के स्थान ऩय तो आते ही है , हकन्तु िाक्म को प्रश्निाचक बी फनाते हं िे प्रश्निाचक सिणनाभ कहराते हं । जैसे-क्मा, कौन आहद। इनभं ‘क्मा’ औय ‘कौन’ शब्द प्रश्निाचक सिणनाभ हं , क्मंहक इन सिणनाभं के द्वाया िाक्म प्रश्निाचक फन जाते हं । 6. धनजिाचक सिणनाभ
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जहाॉ अऩने धरए ‘आऩ’ शब्द ‘अऩना’ शब्द अथिा ‘अऩने’ ‘आऩ’ शब्द का प्रमोग हो िहाॉ धनजिाचक सिणनाभ होता है । इनभं ‘अऩना’ औय ‘आऩ’ शब्द उत्तभ, ऩुरुष भध्मभ ऩुरुष औय अन्म ऩुरुष के (स्िमॊ का) अऩने आऩ का फोध कया यहे हं । ऐसे शब्द धनजिाचक सिणनाभ कहराते हं । विशेष-जहाॉ केिर ‘आऩ’ शब्द का प्रमोग श्रोता के धरए हो िहाॉ मह आदय-सूचक भध्मभ ऩुरुष होता है औय जहाॉ ‘आऩ’ शब्द का प्रमोग अऩने धरए हो िहाॉ धनजिाचक होता है । सिणनाभ शब्दं के विशेष प्रमोग (1) आऩ, िे, मे, हभ, तुभ शब्द फहुिचन के रूऩ भं हं , हकन्तु आदय प्रकट कयने के धरए इनका प्रमोग एक व्मवि के धरए बी होता है ।
(2) ‘आऩ’ शब्द स्िमॊ के अथण भं बी प्रमुि हो जाता है । जैसे-भं मह कामण आऩ ही कय रूॉगा।
अध्माम 9 विशेषण विशेषण की ऩरयबाषा- सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं की विशेषता (गुण, दोष, सॊख्मा, ऩरयभाण आहद) फताने िारे शब्द ‘विशेषण’ कहराते हं । जैसे-फड़ा, कारा, रॊफा, दमारु, बायी, सुन्दय, कामय, टे ढ़ा-भेढ़ा, एक, दो आहद। विशेष्म- णजस सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्द की विशेषता फताई जाए िह विशेष्म कहराता है । मथा- गीता सुन्दय है । इसभं ‘सुन्दय’ विशेषण है औय ‘गीता’ विशेष्म है । विशेषण शब्द विशेष्म से ऩूिण बी आते हं औय उसके फाद बी। ऩूिण भं, जैसे- (1) थोड़ा-सा जर राओ। (2) एक भीटय कऩड़ा रे आना। फाद भं, जैसे- (1) मह यास्ता रॊफा है । (2) खेीया कड़िा है । विशेषण के बेद- विशेषण के चाय बेद हं 1. गुणिाचक। 2. ऩरयभाणिाचक। 3. सॊख्मािाचक।
4. सॊकेतिाचक अथिा सािणनाधभक। 1. गुणिाचक विशेषण
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णजन विशेषण शब्दं से सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं के गुण-दोष का फोध हो िे गुणिाचक विशेषण कहराते हं । जैसे(1) बाि- अच्छा, फुया, कामय, िीय, डयऩोक आहद। (2) यॊ ग- रार, हया, ऩीरा, सपेद, कारा, चभकीरा, पीका आहद। (3) दशा- ऩतरा, भोटा, सूखेा, गाढ़ा, वऩघरा, बायी, गीरा, गयीफ, अभीय, योगी, स्िस्थ, ऩारतू आहद। (4) आकाय- गोर, सुडौर, नुकीरा, सभान, ऩोरा आहद। (5) सभम- अगरा, वऩछरा, दोऩहय, सॊध्मा, सिेया आहद। (6) स्थान- बीतयी, फाहयी, ऩॊजाफी, जाऩानी, ऩुयाना, ताजा, आगाभी आहद। (7) गुण- बरा, फुया, सुन्दय, भीठा, खेट्टा, दानी,सच, झूठ, सीधा आहद। (8) हदशा- उत्तयी, दणऺणी, ऩूिी, ऩणिभी आहद। 2. ऩरयभाणिाचक विशेषण णजन विशेषण शब्दं से सॊऻा मा सिणनाभ की भात्रा अथिा नाऩ-तोर का ऻान हो िे ऩरयभाणिाचक विशेषण कहराते हं । ऩरयभाणिाचक विशेषण के दो उऩबेद है (1) धनणित ऩरयभाणिाचक विशेषण- णजन विशेषण शब्दं से िस्तु की धनणित भात्रा का ऻान हो। जैसे(क) भेये सूट भं साढ़े तीन भीटय कऩड़ा रगेगा। (खे) दस हकरो चीनी रे आओ। (ग) दो धरटय दध ू गयभ कयो।
(2) अधनणित ऩरयभाणिाचक विशेषण- णजन विशेषण शब्दं से िस्तु की अधनणित भात्रा का ऻान हो। जैसे(क) थोड़ी-सी नभकीन िस्तु रे आओ। (खे) कुछ आभ दे दो।
(ग) थोड़ा-सा दध ू गयभ कय दो। 3. सॊख्मािाचक विशेषण णजन विशेषण शब्दं से सॊऻा मा सिणनाभ की सॊख्मा का फोध हो िे सॊख्मािाचक विशेषण कहराते हं । जैसे-एक, दो, हद्वतीम, दग ु ुना, चौगुना, ऩाॉचं आहद। सॊख्मािाचक विशेषण के दो उऩबेद हं -
(1) धनणित सॊख्मािाचक विशेषण- णजन विशेषण शब्दं से धनणित सॊख्मा का फोध हो।
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जैसे-दो ऩुस्तकं भेये धरए रे आना। धनणित सॊख्मािाचक के धनम्नधरणखेत चाय बेद हं (क) गणिाचक- णजन शब्दं के द्वाया धगनती का फोध हो। जैसे(1) एक रड़का स्कूर जा यहा है । (2) ऩच्चीस रुऩमे दीणजए। (3) कर भेये महाॉ दो धभत्र आएॉगे। (4) चाय आभ राओ। (खे) क्रभिाचक- णजन शब्दं के द्वाया सॊख्मा के क्रभ का फोध हो। जैसे(1) ऩहरा रड़का महाॉ आए। (2) दस ू या रड़का िहाॉ फैठे।
(3) याभ कऺा भं प्रथभ यहा। (4) श्माभ हद्वतीम श्रेणी भं ऩास हुआ है ।
(ग) आिृवत्तिाचक- णजन शब्दं के द्वाया केिर आिृवत्त का फोध हो। जैसे(1) भोहन तुभसे चौगुना काभ कयता है । (2) गोऩार तुभसे दग ु ुना भोटा है ।
(घ) सभुदामिाचक- णजन शब्दं के द्वाया केिर साभूहहक सॊख्मा का फोध हो। जैसे(1) तुभ तीनं को जाना ऩड़े गा। (2) महाॉ से चायं चरे जाओ। (2) अधनणित सॊख्मािाचक विशेषण- णजन विशेषण शब्दं से धनणित सॊख्मा का फोध न हो। जैसे-कुछ फच्चे ऩाकण भं खेेर यहे हं । 4. सॊकेतिाचक (धनदे शक) विशेषण जो सिणनाभ सॊकेत द्वाया सॊऻा मा सिणनाभ की विशेषता फतराते हं िे सॊकेतिाचक विशेषण कहराते हं । विशेष-क्मंहक सॊकेतिाचक विशेषण सिणनाभ शब्दं से फनते हं , अत् मे सािणनाधभक विशेषण कहराते हं । इन्हं धनदे शक बी कहते हं ।
(1) ऩरयभाणिाचक विशेषण औय सॊख्मािाचक विशेषण भं अॊतय- णजन िस्तुओॊ की नाऩ-तोर की जा सके उनके िाचक शब्द ऩरयभाणिाचक विशेषण कहराते हं । जैसे‘कुछ दध ू राओ’। इसभं ‘कुछ’ शब्द तोर के धरए आमा है । इसधरए मह
ऩरयभाणिाचक विशेषण है । 2.णजन िस्तुओॊ की धगनती की जा सके उनके िाचक शब्द सॊख्मािाचक विशेषण कहराते हं । जैसे-कुछ फच्चे इधय आओ। महाॉ ऩय ‘कुछ’ फच्चं की धगनती के धरए आमा है । इसधरए मह सॊख्मािाचक विशेषण है । ऩरयभाणिाचक विशेषणं के फाद द्रव्म अथिा ऩदाथणिाचक सॊऻाएॉ आएॉगी जफहक सॊख्मािाचक विशेषणं
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के फाद जाधतिाचक सॊऻाएॉ आती हं । (2) सिणनाभ औय सािणनाधभक विशेषण भं अॊतय- णजस शब्द का प्रमोग सॊऻा शब्द के स्थान ऩय हो उसे सिणनाभ कहते हं । जैसे-िह भुॊफई गमा। इस िाक्म भं िह सिणनाभ है । णजस शब्द का प्रमोग सॊऻा से ऩूिण अथिा फाद भं विशेषण के रूऩ भं हकमा गमा हो उसे सािणनाधभक विशेषण कहते हं । जैसे-िह यथ आ यहा है । इसभं िह शब्द यथ का विशेषण है । अत् मह सािणनाधभक विशेषण है । विशेषण की अिस्थाएॉ विशेषण शब्द हकसी सॊऻा मा सिणनाभ की विशेषता फतराते हं । विशेषता फताई जाने िारी िस्तुओॊ के गुण-दोष कभ-ज्मादा होते हं । गुण-दोषं के इस कभ-ज्मादा होने को तुरनात्भक ढॊ ग से ही जाना जा सकता है । तुरना की दृवष्ट से विशेषणं की धनम्नधरणखेत तीन अिस्थाएॉ होती हं (1) भूरािस्था (2) उत्तयािस्था (3) उत्तभािस्था (1) भूरािस्था भूरािस्था भं विशेषण का तुरनात्भक रूऩ नहीॊ होता है । िह केिर साभान्म विशेषता ही प्रकट कयता है । जैसे- 1.सावित्री सुॊदय रड़की है । 2.सुयेश अच्छा रड़का है । 3.सूमण तेजस्िी है । (2) उत्तयािस्था जफ दो व्मविमं मा िस्तुओॊ के गुण-दोषं की तुरना की जाती है तफ विशेषण उत्तयािस्था भं प्रमुि होता है । जैसे- 1.यिीन्द्र चेतन से अधधक फुवद्धभान है । 2.सविता यभा की अऩेऺा अधधक सुन्दय है । (3) उत्तभािस्था उत्तभािस्था भं दो से अधधक व्मविमं एिॊ िस्तुओॊ की तुरना कयके हकसी एक को
सफसे अधधक अथिा सफसे कभ फतामा गमा है । जैसे- 1.ऩॊजाफ भं अधधकतभ अन्न होता है । 2.सॊदीऩ धनकृ ष्टतभ फारक है । विशेष-केिर गुणिाचक एिॊ अधनणित सॊख्मािाचक तथा धनणित ऩरयभाणिाचक विशेषणं की ही मे तुरनात्भक अिस्थाएॉ होती हं , अन्म विशेषणं की नहीॊ।
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अिस्थाओॊ के रूऩ(1) अधधक औय सफसे अधधक शब्दं का प्रमोग कयके उत्तयािस्था औय उत्तभािस्था के रूऩ फनाए जा सकते हं । जैसेभूरािस्था उत्तयािस्था उत्तभािस्था अच्छी अधधक अच्छी सफसे अच्छी चतुय अधधक चतुय सफसे अधधक चतुय फुवद्धभान अधधक फुवद्धभान सफसे अधधक फुवद्धभान फरिान अधधक फरिान सफसे अधधक फरिान इसी प्रकाय दस ू ये विशेषण शब्दं के रूऩ बी फनाए जा सकते हं ।
(2) तत्सभ शब्दं भं भूरािस्था भं विशेषण का भूर रूऩ, उत्तयािस्था भं ‘तय’ औय उत्तभािस्था भं ‘तभ’ का प्रमोग होता है । जैसेभूरािस्था
उत्तयािस्था
उत्तभािस्था
उच्च
उच्चतय
उच्चतभ
कठोय
कठोयतय
कठोयतभ
गुरु
गुरुतय
गुरुतभ
भहान, भहानतय
भहत्तय, भहानतभ
भहत्तभ
न्मून
न्मूनतय
न्मनूतभ
रघु
रघुतय
रघुतभ
तीव्र
तीव्रतय
तीव्रतभ
विशार
विशारतय
विशारतभ
उत्कृ ष्ट
उत्कृ ष्टय
उत्कृ ट्ठतभ
सुॊदय
सुॊदयतय
सुॊदयतभ
भधुय
भधुयतय
भधुतयतभ
विशेषणं की यचना कुछ शब्द भूररूऩ भं ही विशेषण होते हं , हकन्तु कुछ विशेषण शब्दं की यचना सॊऻा, सिणनाभ एिॊ हक्रमा शब्दं से की जाती है (1) सॊऻा से विशेषण फनाना
हहन्दी व्माकयण प्रत्मम
सॊऻा
विशेषण
सॊऻा
विशेषण
क
अॊश
आॊधशक
धभण
धाधभणक
अरॊकाय
आरॊकारयक
नीधत
नैधतक
अथण
आधथणक
हदन
दै धनक
इधतहास
ऐधतहाधसक
दे ि
दै विक
अॊक
अॊहकत
कुसुभ
कुसुधभत
सुयधब
सुयधबत
ध्िधन
ध्िधनत
ऺुधा
ऺुधधत
तयॊ ग
तयॊ धगत
जटा
जहटर
ऩॊक
ऩॊहकर
पेन
पेधनर
उधभण
उधभणर
इभ
स्िणण
स्िणणणभ
यि
यविभ
ई
योग
योगी
बोग
बोगी
ईन,ईण
कुर
कुरीन
ग्राभ
ग्राभीण
ईम
आत्भा
आत्भीम
जाधत
जातीम
आरु
श्रद्धा
श्रद्धारु
ईष्माण
ईष्माणरु
िी
भनस
भनस्िी
तऩस
तऩस्िी
भम
सुखे
सुखेभम
दखे ु
दखे ु भम
िान
रूऩ
रूऩिान
गुण
गुणिान
िती(स्त्री) गुण
गुणिती
ऩुत्र
ऩुत्रिती
भान
फुवद्ध
फुवद्धभान
श्री
श्रीभान
श्री
श्रीभती
फुवद्ध
फुवद्धभती
यत
धभण
धभणयत
कभण
कभणयत
स्थ
सभीऩ
सभीऩस्थ
दे ह
दे हस्थ
धनष्ठ
धभण
धभणधनष्ठ
कभण
कभणधनष्ठ
इत
इर
भती (स्त्री)
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(2) सिणनाभ से विशेषण फनाना सिणनाभ
विशेषण
सिणनाभ
विशेषण
िह
िैसा
मह
ऐसा
(3) हक्रमा से विशेषण फनाना हक्रमा
विशेषण
हक्रमा
विशेषण
ऩत
ऩधतत
ऩूज
ऩूजनीम
ऩठ
ऩहठत
िॊद
िॊदनीम
बागना
बागने िारा
ऩारना
ऩारने िारा
अध्माम 10 हक्रमा हक्रमा- णजस शब्द अथिा शब्द-सभूह के द्वाया हकसी कामण के होने अथिा कयने का फोध हो उसे हक्रमा कहते हं । जैसे(1) गीता नाच यही है । (2) फच्चा दध ू ऩी यहा है ।
(3) याकेश कॉरेज जा यहा है । (4) गौयि फुवद्धभान है । (5) धशिाजी फहुत िीय थे।
इनभं ‘नाच यही है ’, ‘ऩी यहा है ’, ‘जा यहा है ’ शब्द कामण-व्माऩाय का फोध कया यहे हं । जफहक ‘है ’, ‘थे’ शब्द होने का। इन सबी से हकसी कामण के कयने अथिा होने का फोध हो यहा है । अत् मे हक्रमाएॉ हं । धातु हक्रमा का भूर रूऩ धातु कहराता है । जैसे-धरखे, ऩढ़, जा, खेा, गा, यो, ऩा आहद। इन्हीॊ धातुओॊ से धरखेता, ऩढ़ता, आहद हक्रमाएॉ फनती हं । हक्रमा के बेद- हक्रमा के दो बेद हं -
हहन्दी व्माकयण
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(1) अकभणक हक्रमा। (2) सकभणक हक्रमा। 1. अकभणक हक्रमा णजन हक्रमाओॊ का पर सीधा कताण ऩय ही ऩड़े िे अकभणक हक्रमा कहराती हं । ऐसी अकभणक हक्रमाओॊ को कभण की आिश्मकता नहीॊ होती। अकभणक हक्रमाओॊ के अन्म उदाहयण हं (1) गौयि योता है । (2) साॉऩ यं गता है । (3) ये रगाड़ी चरती है । कुछ अकभणक हक्रमाएॉ- रजाना, होना, फढ़ना, सोना, खेेरना, अकड़ना, डयना, फैठना, हॉ सना, उगना, जीना, दौड़ना, योना, ठहयना, चभकना, डोरना, भयना, घटना, पाॉदना, जागना, फयसना, उछरना, कूदना आहद। 2. सकभणक हक्रमा णजन हक्रमाओॊ का पर (कताण को छोड़कय) कभण ऩय ऩड़ता है िे सकभणक हक्रमा कहराती हं । इन हक्रमाओॊ भं कभण का होना आिश्मक हं , सकभणक हक्रमाओॊ के अन्म उदाहयण हं (1) भं रेखे धरखेता हूॉ।
(2) यभेश धभठाई खेाता है । (3) सविता पर राती है । (4) बॉिया पूरं का यस ऩीता है । 3.हद्वकभणक हक्रमा- णजन हक्रमाओॊ के दो कभण होते हं , िे हद्वकभणक हक्रमाएॉ कहराती हं । हद्वकभणक हक्रमाओॊ के उदाहयण हं (1) भंने श्माभ को ऩुस्तक दी। (2) सीता ने याधा को रुऩमे हदए। ऊऩय के िाक्मं भं ‘दे ना’ हक्रमा के दो कभण हं । अत् दे ना हद्वकभणक हक्रमा हं । प्रमोग की दृवष्ट से हक्रमा के बेद प्रमोग की दृवष्ट से हक्रमा के धनम्नधरणखेत ऩाॉच बेद हं 1.साभान्म हक्रमा- जहाॉ केिर एक हक्रमा का प्रमोग होता है िह साभान्म हक्रमा कहराती है । जैसे1. आऩ आए।
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2.िह नहामा आहद। 2.सॊमुि हक्रमा- जहाॉ दो अथिा अधधक हक्रमाओॊ का साथ-साथ प्रमोग हो िे सॊमुि हक्रमा कहराती हं । जैसे1.सविता भहाबायत ऩढ़ने रगी। 2.िह खेा चुका। 3.नाभधातु हक्रमा- सॊऻा, सिणनाभ अथिा विशेषण शब्दं से फने हक्रमाऩद नाभधातु हक्रमा कहराते हं । जैसे-हधथमाना, शयभाना, अऩनाना, रजाना, धचकनाना, झुठराना आहद। 4.प्रेयणाथणक हक्रमा- णजस हक्रमा से ऩता चरे हक कताण स्िमॊ कामण को न कयके हकसी अन्म को उस कामण को कयने की प्रेयणा दे ता है िह प्रेयणाथणक हक्रमा कहराती है । ऐसी हक्रमाओॊ के दो कताण होते हं - (1) प्रेयक कताण- प्रेयणा प्रदान कयने िारा। (2) प्रेरयत कताण-प्रेयणा रेने िारा। जैसे-श्माभा याधा से ऩत्र धरखेिाती है । इसभं िास्ति भं ऩत्र तो याधा धरखेती है , हकन्तु उसको धरखेने की प्रेयणा दे ती है श्माभा। अत् ‘धरखेिाना’ हक्रमा प्रेयणाथणक हक्रमा है । इस िाक्म भं श्माभा प्रेयक कताण है औय याधा प्रेरयत कताण।
5.ऩूिक ण ाधरक हक्रमा- हकसी हक्रमा से ऩूिण महद कोई दस ू यी हक्रमा प्रमुि हो तो िह
ऩूिक ण ाधरक हक्रमा कहराती है । जैसे- भं अबी सोकय उठा हूॉ। इसभं ‘उठा हूॉ’ हक्रमा से ऩूिण ‘सोकय’ हक्रमा का प्रमोग हुआ है । अत् ‘सोकय’ ऩूिक ण ाधरक हक्रमा है ।
विशेष- ऩूिक ण ाधरक हक्रमा मा तो हक्रमा के साभान्म रूऩ भं प्रमुि होती है अथिा धातु के अॊत भं ‘कय’ अथिा ‘कयके’ रगा दे ने से ऩूिक ण ाधरक हक्रमा फन जाती है । जैसे(1) फच्चा दध ू ऩीते ही सो गमा।
(2) रड़हकमाॉ ऩुस्तकं ऩढ़कय जाएॉगी। अऩूणण हक्रमा कई फाय िाक्म भं हक्रमा के होते हुए बी उसका अथण स्ऩष्ट नहीॊ हो ऩाता। ऐसी हक्रमाएॉ अऩूणण हक्रमा कहराती हं । जैसे-गाॉधीजी थे। तुभ हो। मे हक्रमाएॉ अऩूणण हक्रमाएॉ है । अफ इन्हीॊ िाक्मं को हपय से ऩहढ़ए-
गाॊधीजी याष्डवऩता थे। तुभ फुवद्धभान हो। इन िाक्मं भं क्रभश् ‘याष्डवऩता’ औय ‘फुवद्धभान’ शब्दं के प्रमोग से स्ऩष्टता आ गई। मे सबी शब्द ‘ऩूयक’ हं । अऩूणण हक्रमा के अथण को ऩूया कयने के धरए णजन शब्दं का प्रमोग हकमा जाता है उन्हं ऩूयक कहते हं ।
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अध्माम 11 कार कार हक्रमा के णजस रूऩ से कामण सॊऩन्न होने का सभम (कार) ऻात हो िह कार कहराता है । कार के धनम्नधरणखेत तीन बेद हं 1. बूतकार। 2. ितणभानकार। 3. बविष्मकार। 1. बूतकार हक्रमा के णजस रूऩ से फीते हुए सभम (अतीत) भं कामण सॊऩन्न होने का फोध हो िह बूतकार कहराता है । जैसे(1) फच्चा गमा। (2) फच्चा गमा है । (3) फच्चा जा चुका था। मे सफ बूतकार की हक्रमाएॉ हं , क्मंहक ‘गमा’, ‘गमा है ’, ‘जा चुका था’, हक्रमाएॉ बूतकार का फोध कयाती है ।
बूतकार के धनम्नधरणखेत छह बेद हं 1. साभान्म बूत। 2. आसन्न बूत। 3. अऩूणण बूत। 4. ऩूणण बूत। 5. सॊहदग्ध बूत। 6. हे तुहेतुभद बूत। 1.साभान्म बूत- हक्रमा के णजस रूऩ से फीते हुए सभम भं कामण के होने का फोध हो हकन्तु ठीक सभम का ऻान न हो, िहाॉ साभान्म बूत होता है । जैसे(1) फच्चा गमा। (2) श्माभ ने ऩत्र धरखेा।
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(3) कभर आमा। 2.आसन्न बूत- हक्रमा के णजस रूऩ से अबी-अबी धनकट बूतकार भं हक्रमा का होना प्रकट हो, िहाॉ आसन्न बूत होता है । जैसे(1) फच्चा आमा है । (2) श्मान ने ऩत्र धरखेा है । (3) कभर गमा है । 3.अऩूणण बूत- हक्रमा के णजस रूऩ से कामण का होना फीते सभम भं प्रकट हो, ऩय ऩूया होना प्रकट न हो िहाॉ अऩूणण बूत होता है । जैसे(1) फच्चा आ यहा था। (2) श्माभ ऩत्र धरखे यहा था। (3) कभर जा यहा था। 4.ऩूणण बूत- हक्रमा के णजस रूऩ से मह ऻात हो हक कामण सभाप्त हुए फहुत सभम फीत चुका है उसे ऩूणण बूत कहते हं । जैसे(1) श्माभ ने ऩत्र धरखेा था। (2) फच्चा आमा था। (3) कभर गमा था। 5.सॊहदग्ध बूत- हक्रमा के णजस रूऩ से बूतकार का फोध तो हो हकन्तु कामण के होने भं सॊदेह हो िहाॉ सॊहदग्ध बूत होता है । जैसे(1) फच्चा आमा होगा। (2) श्माभ ने ऩत्र धरखेा होगा। (3) कभर गमा होगा। 6.हे तुहेतुभद बूत- हक्रमा के णजस रूऩ से फीते सभम भं एक हक्रमा के होने ऩय दस ू यी
हक्रमा का होना आधश्रत हो अथिा एक हक्रमा के न होने ऩय दस ू यी हक्रमा का न होना आधश्रत हो िहाॉ हे तुहेतुभद बूत होता है । जैसे-
(1) महद श्माभ ने ऩत्र धरखेा होता तो भं अिश्म आता। (2) महद िषाण होती तो पसर अच्छी होती। 2. ितणभान कार हक्रमा के णजस रूऩ से कामण का ितणभान कार भं होना ऩामा जाए उसे ितणभान कार कहते हं । जैसे(1) भुधन भारा पेयता है । (2) श्माभ ऩत्र धरखेता होगा। इन सफ भं ितणभान कार की हक्रमाएॉ हं , क्मंहक ‘पेयता है ’, ‘धरखेता होगा’, हक्रमाएॉ
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ितणभान कार का फोध कयाती हं । इसके धनम्नधरणखेत तीन बेद हं (1) साभान्म ितणभान। (2) अऩूणण ितणभान। (3) सॊहदग्ध ितणभान। 1.साभान्म ितणभान- हक्रमा के णजस रूऩ से मह फोध हो हक कामण ितणभान कार भं साभान्म रूऩ से होता है िहाॉ साभान्म ितणभान होता है । जैसे(1) फच्चा योता है । (2) श्माभ ऩत्र धरखेता है । (3) कभर आता है । 2.अऩूणण ितणभान- हक्रमा के णजस रूऩ से मह फोध हो हक कामण अबी चर ही यहा है , सभाप्त नहीॊ हुआ है िहाॉ अऩूणण ितणभान होता है । जैसे(1) फच्चा यो यहा है ।
(2) श्माभ ऩत्र धरखे यहा है । (3) कभर आ यहा है । 3.सॊहदग्ध ितणभान- हक्रमा के णजस रूऩ से ितणभान भं कामण के होने भं सॊदेह का फोध हो िहाॉ सॊहदग्ध ितणभान होता है । जैसे(1) अफ फच्चा योता होगा। (2) श्माभ इस सभम ऩत्र धरखेता होगा। 3. बविष्मत कार हक्रमा के णजस रूऩ से मह ऻात हो हक कामण बविष्म भं होगा िह बविष्मत कार कहराता है । जैसे- (1) श्माभ ऩत्र धरखेेगा। (2) शामद आज सॊध्मा को िह आए। इन दोनं भं बविष्मत कार की हक्रमाएॉ हं , क्मंहक धरखेेगा औय आए हक्रमाएॉ बविष्मत कार का फोध कयाती हं ।
इसके धनम्नधरणखेत दो बेद हं 1. साभान्म बविष्मत। 2. सॊबाव्म बविष्मत। 1.साभान्म बविष्मत- हक्रमा के णजस रूऩ से कामण के बविष्म भं होने का फोध हो उसे साभान्म बविष्मत कहते हं । जैसे(1) श्माभ ऩत्र धरखेेगा। (2) हभ घूभने जाएॉगे। 2.सॊबाव्म बविष्मत- हक्रमा के णजस रूऩ से कामण के बविष्म भं होने की सॊबािना का
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फोध हो िहाॉ सॊबाव्म बविष्मत होता है जैसे(1) शामद आज िह आए। (2) सॊबि है श्माभ ऩत्र धरखेे। (3) कदाधचत सॊध्मा तक ऩानी ऩड़े ।
अध्माम 12 िाच्म िाच्म-हक्रमा के णजस रूऩ से मह ऻात हो हक िाक्म भं हक्रमा द्वाया सॊऩाहदत विधान का विषम कताण है , कभण है , अथिा बाि है , उसे िाच्म कहते हं । िाच्म के तीन प्रकाय हं 1. कतृि ण ाच्म। 2. कभणिाच्म। 3. बाििाच्म। 1.कतृि ण ाच्म- हक्रमा के णजस रूऩ से िाक्म के उद्दे श्म (हक्रमा के कताण) का फोध हो, िह कतृि ण ाच्म कहराता है । इसभं धरॊग एिॊ िचन प्राम् कताण के अनुसाय होते हं । जैसे1.फच्चा खेेरता है । 2.घोड़ा बागता है । इन िाक्मं भं ‘फच्चा’, ‘घोड़ा’ कताण हं तथा िाक्मं भं कताण की ही प्रधानता है । अत् ‘खेेरता है ’, ‘बागता है ’ मे कतृि ण ाच्म हं । 2.कभणिाच्म- हक्रमा के णजस रूऩ से िाक्म का उद्दे श्म ‘कभण’ प्रधान हो उसे कभणिाच्म कहते हं । जैसे1.बायत-ऩाक मुद्ध भं सहस्रों सैधनक भाये गए। 2.छात्रं द्वाया नाटक प्रस्तुत हकमा जा यहा है । 3.ऩुस्तक भेये द्वाया ऩढ़ी गई। 4.फच्चं के द्वाया धनफॊध ऩढ़े गए। इन िाक्मं भं हक्रमाओॊ भं ‘कभण’ की प्रधानता दशाणई गई है । उनकी रूऩ-यचना बी कभण के धरॊग, िचन औय ऩुरुष के अनुसाय हुई है । हक्रमा के ऐसे रूऩ ‘कभणिाच्म’ कहराते हं । 3.बाििाच्म-हक्रमा के णजस रूऩ से िाक्म का उद्दे श्म केिर बाि (हक्रमा का अथण) ही जाना जाए िहाॉ बाििाच्म होता है । इसभं कताण मा कभण की प्रधानता नहीॊ होती है ।
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इसभं भुख्मत् अकभणक हक्रमा का ही प्रमोग होता है औय साथ ही प्राम् धनषेधाथणक िाक्म ही बाििाच्म भं प्रमुि होते हं । इसभं हक्रमा सदै ि ऩुणल्रॊग, अन्म ऩुरुष के एक िचन की होती है । प्रमोग प्रमोग तीन प्रकाय के होते हं 1. कतणरय प्रमोग। 2. कभणणण प्रमोग। 3. बािे प्रमोग। 1.कतणरय प्रमोग- जफ कताण के धरॊग, िचन औय ऩुरुष के अनुरूऩ हक्रमा हो तो िह ‘कतणरय प्रमोग’ कहराता है । जैसे1.रड़का ऩत्र धरखेता है । 2.रड़हकमाॉ ऩत्र धरखेती है । इन िाक्मं भं ‘रड़का’ एकिचन, ऩुणल्रॊग औय अन्म ऩुरुष है औय उसके साथ हक्रमा बी ‘धरखेता है ’ एकिचन, ऩुणल्रॊग औय अन्म ऩुरुष है । इसी तयह ‘रड़हकमाॉ ऩत्र धरखेती हं ’ दस ू ये िाक्म भं कताण फहुिचन, स्त्रीधरॊग औय अन्म ऩुरुष है तथा उसकी हक्रमा बी ‘धरखेती हं ’ फहुिचन स्त्रीधरॊग औय अन्म ऩुरुष है ।
2.कभणणण प्रमोग- जफ हक्रमा कभण के धरॊग, िचन औय ऩुरुष के अनुरूऩ हो तो िह ‘कभणणण प्रमोग’ कहराता है । जैसे- 1.उऩन्मास भेये द्वाया ऩढ़ा गमा। 2.छात्रं से धनफॊध धरखेे गए। 3.मुद्ध भं हजायं सैधनक भाये गए। इन िाक्मं भं ‘उऩन्मास’, ‘सैधनक’, कभण कताण की णस्थधत भं हं अत् उनकी प्रधानता है । इनभं हक्रमा का रूऩ कभण के धरॊग, िचन औय ऩुरुष के अनुरूऩ फदरा है , अत् महाॉ ‘कभणणण प्रमोग’ है । 3.बािे प्रमोग- कतणरय िाच्म की सकभणक हक्रमाएॉ, जफ उनके कताण औय कभण दोनं
विबविमुि हं तो िे ‘बािे प्रमोग’ के अॊतगणत आती हं । इसी प्रकाय बाििाच्म की सबी हक्रमाएॉ बी बािे प्रमोग भं भानी जाती है । जैसे1.अनीता ने फेर को सीॊचा। 2.रड़कं ने ऩत्रं को दे खेा है । 3.रड़हकमं ने ऩुस्तकं को ऩढ़ा है । 4.अफ उससे चरा नहीॊ जाता है । इन िाक्मं की हक्रमाओॊ के धरॊग, िचन औय ऩुरुष न कताण के अनुसाय हं औय न ही
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कभण के अनुसाय, अवऩतु िे एकिचन, ऩुणल्रॊग औय अन्म ऩुरुष हं । इस प्रकाय के ‘प्रमोग बािे’ प्रमोग कहराते हं । िाच्म ऩरयितणन 1.कतृि ण ाच्म से कभणिाच्म फनाना(1) कतृि ण ाच्म की हक्रमा को साभान्म बूतकार भं फदरना चाहहए। (2) उस ऩरयिधतणत हक्रमा-रूऩ के साथ कार, ऩुरुष, िचन औय धरॊग के अनुरूऩ जाना हक्रमा का रूऩ जोड़ना चाहहए। (3) इनभं ‘से’ अथिा ‘के द्वाया’ का प्रमोग कयना चाहहए। जैसेकतृि ण ाच्म कभणिाच्म 1.श्माभा उऩन्मास धरखेती है । श्माभा से उऩन्मास धरखेा जाता है । 2.श्माभा ने उऩन्मास धरखेा। श्माभा से उऩन्मास धरखेा गमा। 3.श्माभा उऩन्मास धरखेेगी। श्माभा से (के द्वाया) उऩन्मास धरखेा जाएगा। 2.कतृि ण ाच्म से बाििाच्म फनाना(1) इसके धरए हक्रमा अन्म ऩुरुष औय एकिचन भं यखेनी चाहहए। (2) कताण भं कयण कायक की विबवि रगानी चाहहए। (3) हक्रमा को साभान्म बूतकार भं राकय उसके कार के अनुरूऩ जाना हक्रमा का रूऩ जोड़ना चाहहए। (4) आिश्मकतानुसाय धनषेधसूचक ‘नहीॊ’ का प्रमोग कयना चाहहए। जैसेकतृि ण ाच्म बाििाच्म 1.फच्चे नहीॊ दौड़ते। फच्चं से दौड़ा नहीॊ जाता। 2.ऩऺी नहीॊ उड़ते। ऩणऺमं से उड़ा नहीॊ जाता। 3.फच्चा नहीॊ सोमा। फच्चे से सोमा नहीॊ जाता।
अध्माम 13 हक्रमा विशेषण हक्रमा-विशेषण- जो शब्द हक्रमा की विशेषता प्रकट कयते हं िे हक्रमा-विशेषण कहराते हं । जैसे- 1.सोहन सुॊदय धरखेता है । 2.गौयि महाॉ यहता है । 3.सॊगीता प्रधतहदन ऩढ़ती है । इन िाक्मं भं ‘सुन्दय’, ‘महाॉ’ औय ‘प्रधतहदन’ शब्द हक्रमा की विशेषता फतरा यहे हं ।
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अत् मे शब्द हक्रमा-विशेषण हं । अथाणनुसाय हक्रमा-विशेषण के धनम्नधरणखेत चाय बेद हं 1. कारिाचक हक्रमा-विशेषण। 2. स्थानिाचक हक्रमा-विशेषण। 3. ऩरयभाणिाचक हक्रमा-विशेषण। 4. यीधतिाचक हक्रमा-विशेषण। 1.कारिाचक हक्रमा-विशेषण- णजस हक्रमा-विशेषण शब्द से कामण के होने का सभम ऻात हो िह कारिाचक हक्रमा-विशेषण कहराता है । इसभं फहुधा मे शब्द प्रमोग भं
आते हं - मदा, कदा, जफ, तफ, हभेशा, तबी, तत्कार, धनयॊ तय, शीघ्र, ऩूि,ण फाद, ऩीछे , घड़ी-घड़ी, अफ, तत्ऩिात ्, तदनॊतय, कर, कई फाय, अबी हपय कबी आहद।
2.स्थानिाचक हक्रमा-विशेषण- णजस हक्रमा-विशेषण शब्द द्वाया हक्रमा के होने के स्थान का फोध हो िह स्थानिाचक हक्रमा-विशेषण कहराता है । इसभं फहुधा मे शब्द प्रमोग भं आते हं - बीतय, फाहय, अॊदय, महाॉ, िहाॉ, हकधय, उधय, इधय, कहाॉ, जहाॉ, ऩास, दयू , अन्मत्र, इस ओय, उस ओय, दाएॉ, फाएॉ, ऊऩय, नीचे आहद।
3.ऩरयभाणिाचक हक्रमा-विशेषण-जो शब्द हक्रमा का ऩरयभाण फतराते हं िे ‘ऩरयभाणिाचक हक्रमा-विशेषण’ कहराते हं । इसभं फहुधा थोड़ा-थोड़ा, अत्मॊत, अधधक,
अल्ऩ, फहुत, कुछ, ऩमाणप्त, प्रबूत, कभ, न्मून, फूॉद-फूॉद, स्िल्ऩ, केिर, प्राम् अनुभानत्, सिणथा आहद शब्द प्रमोग भं आते हं ।
कुछ शब्दं का प्रमोग ऩरयभाणिाचक विशेषण औय ऩरयभाणिाचक हक्रमा-विशेषण दोनं भं सभान रूऩ से हकमा जाता है । जैसे-थोड़ा, कभ, कुछ कापी आहद। 4.यीधतिाचक हक्रमा-विशेषण- णजन शब्दं के द्वाया हक्रमा के सॊऩन्न होने की यीधत का फोध होता है िे ‘यीधतिाचक हक्रमा-विशेषण’ कहराते हं । इनभं फहुधा मे शब्द प्रमोग भं
आते हं - अचानक, सहसा, एकाएक, झटऩट, आऩ ही, ध्मानऩूिक ण , धड़ाधड़, मथा, तथा, ठीक, सचभुच, अिश्म, िास्ति भं, धनस्सॊदेह, फेशक, शामद, सॊबि हं , कदाधचत ्, फहुत कयके, हाॉ, ठीक, सच, जी, जरूय, अतएि, हकसधरए, क्मंहक, नहीॊ, न, भत, कबी नहीॊ, कदावऩ नहीॊ आहद।
हहन्दी व्माकयण
51
अध्माम 14 सॊफॊधफोधक अव्मम सॊफॊधफोधक अव्मम- णजन अव्मम शब्दं से सॊऻा अथिा सिणनाभ का िाक्म के दस ू ये
शब्दं के साथ सॊफॊध जाना जाता है , िे सॊफॊधफोधक अव्मम कहराते हं । जैसे- 1. उसका साथ छोड़ दीणजए। 2.भेये साभने से हट जा। 3.रारहकरे ऩय धतयॊ गा रहया यहा है । 4.िीय अधबभन्मु अॊत तक शत्रु से रोहा रेता यहा। इनभं ‘साथ’, ‘साभने’, ‘ऩय’, ‘तक’ शब्द सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं के साथ आकय उनका सॊफॊध िाक्म के दस ू ये शब्दं के साथ फता यहे हं । अत् िे सॊफॊधफोधक अव्मम है ।
अथण के अनुसाय सॊफॊधफोधक अव्मम के धनम्नधरणखेत बेद हं 1. कारिाचक- ऩहरे, फाद, आगे, ऩीछे । 2. स्थानिाचक- फाहय, बीतय, फीच, ऊऩय, नीचे। 3. हदशािाचक- धनकट, सभीऩ, ओय, साभने। 4. साधनिाचक- धनधभत्त, द्वाया, जरयमे। 5. वियोधसूचक- उरटे , विरुद्ध, प्रधतकूर। 6. सभतासूचक- अनुसाय, सदृश, सभान, तुल्म, तयह। 7. हे तुिाचक- यहहत, अथिा, धसिा, अधतरयि। 8. सहचयसूचक- सभेत, सॊग, साथ। 9. विषमिाचक- विषम, फाफत, रेखे। 10. सॊग्रिाचक- सभेत, बय, तक। हक्रमा-विशेषण औय सॊफॊधफोधक अव्मम भं अॊतय जफ इनका प्रमोग सॊऻा अथिा सिणनाभ के साथ होता है तफ मे सॊफॊधफोधक अव्मम होते हं औय जफ मे हक्रमा की विशेषता प्रकट कयते हं तफ हक्रमा-विशेषण होते हं । जैसे(1) अॊदय जाओ। (हक्रमा विशेषण) (2) दक ु ान के बीतय जाओ। (सॊफॊधफोधक अव्मम)
हहन्दी व्माकयण
52
अध्माम 15 सभुच्चमफोधक अव्मम सभुच्चमफोधक अव्मम- दो शब्दं, िाक्माॊशं मा िाक्मं को धभराने िारे अव्मम सभुच्चमफोधक अव्मम कहराते हं । इन्हं ‘मोजक’ बी कहते हं । जैसे(1) श्रुधत औय गुॊजन ऩढ़ यहे हं । (2) भुझे टे ऩरयकाडण य मा घड़ी चाहहए। (3) सीता ने फहुत भेहनत की हकन्तु हपय बी सपर न हो सकी। (4) फेशक िह धनिान है ऩयन्तु है कॊजूस।
इनभं ‘औय’, ‘मा’, ‘हकन्तु’, ‘ऩयन्तु’ शब्द आए हं जोहक दो शब्दं अथिा दो िाक्मं को धभरा यहे हं । अत् मे सभुच्चमफोधक अव्मम हं । सभुच्चमफोधक के दो बेद हं 1. सभानाधधकयण सभुच्चमफोधक। 2. व्मधधकयण सभुच्चमफोधक। 1. सभानाधधकयण सभुच्चमफोधक णजन सभुच्चमफोधक शब्दं के द्वाया दो सभान िाक्माॊशं ऩदं औय िाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़ा जाता है , उन्हं सभानाधधकयण सभुच्चमफोधक कहते हं । जैसे- 1.सुनॊदा खेड़ी थी औय अरका फैठी थी। 2.ऋतेश गाएगा तो ऋतु तफरा फजाएगी। इन िाक्मं भं औय, तो सभुच्चमफोधक शब्दं द्वाया दो सभान शब्द औय िाक्म ऩयस्ऩय जुड़े हं । सभानाधधकयण सभुच्चमफोधक के बेद- सभानाधधकयण सभुच्चमफोधक चाय प्रकाय के होते हं (क) सॊमोजक। (खे) विबाजक। (ग) वियोधसूचक। (घ) ऩरयणाभसूचक। (क) सॊमोजक- जो शब्दं, िाक्माॊशं औय उऩिाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़ने िारे शब्द सॊमोजक कहराते हं । औय, तथा, एिॊ ि आहद सॊमोजक शब्द हं । (खे) विबाजक- शब्दं, िाक्माॊशं औय उऩिाक्मं भं ऩयस्ऩय विबाजन औय विकल्ऩ प्रकट कयने िारे शब्द विबाजक मा विकल्ऩक कहराते हं । जैसे-मा, चाहे अथिा, अन्मथा, िा आहद।
हहन्दी व्माकयण
53
(ग) वियोधसूचक- दो ऩयस्ऩय वियोधी कथनं औय उऩिाक्मं को जोड़ने िारे शब्द वियोधसूचक कहराते हं । जैसे-ऩयन्तु, ऩय, हकन्तु, भगय, फणल्क, रेहकन आहद। (घ) ऩरयणाभसूचक- दो उऩिाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़कय ऩरयणाभ को दशाणने िारे शब्द ऩरयणाभसूचक कहराते हं । जैसे-परत्, ऩरयणाभस्िरूऩ, इसधरए, अत्, अतएि, परस्िरूऩ, अन्मथा आहद। 2. व्मधधकयण सभुच्चमफोधक हकसी िाक्म के प्रधान औय आधश्रत उऩिाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़ने िारे शब्द व्मधधकयण सभुच्चमफोधक कहराते हं । व्मधधकयण सभुच्चमफोधक के बेद- व्मधधकयण सभुच्चमफोधक चाय प्रकाय के होते हं (क) कायणसूचक। (खे) सॊकेतसूचक। (ग) उद्दे श्मसूचक। (घ) स्िरूऩसूचक। (क) कायणसूचक- दो उऩिाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़कय होने िारे कामण का कायण स्ऩष्ट कयने िारे शब्दं को कायणसूचक कहते हं । जैसे- हक, क्मंहक, इसधरए, चूहॉ क, ताहक आहद। (खे) सॊकेतसूचक- जो दो मोजक शब्द दो उऩिाक्मं को जोड़ने का कामण कयते हं , उन्हं सॊकेतसूचक कहते हं । जैसे- महद....तो, जा...तो, मद्यवऩ....तथावऩ, मद्यवऩ...ऩयन्तु आहद। (ग) उदे श्मसूचक- दो उऩिाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़कय उनका उद्दे श्म स्ऩष्ट कयने िारे शब्द उद्दे श्मसूचक कहराते हं । जैसे- इसधरए हक, ताहक, णजससे हक आहद। (घ) स्िरूऩसूचक- भुख्म उऩिाक्म का अथण स्ऩष्ट कयने िारे शब्द स्िरूऩसूचक कहराते हं । जैसे-मानी, भानो, हक, अथाणत ् आहद।
अध्माम 16 विस्भमाहदफोधक अव्मम विस्भमाहदफोधक अव्मम- णजन शब्दं भं हषण, शोक, विस्भम, ग्राधन, घृणा, रज्जा आहद बाि प्रकट होते हं िे विस्भमाहदफोधक अव्मम कहराते हं । इन्हं ‘द्योतक’ बी कहते हं । जैसे1.अहा ! क्मा भौसभ है । 2.उप ! हकतनी गयभी ऩड़ यही है । 3. अये ! आऩ आ गए ?
हहन्दी व्माकयण
54
4.फाऩ ये फाऩ ! मह क्मा कय डारा ? 5.धछ्-धछ् ! धधक्काय है तुम्हाये नाभ को। इनभं ‘अहा’, ‘उप’, ‘अये ’, ‘फाऩ-ये -फाऩ’, ‘धछ्-धछ्’ शब्द आए हं । मे सबी अनेक बािं को व्मि कय यहे हं । अत् मे विस्भमाहदफोधक अव्मम है । इन शब्दं के फाद विस्भमाहदफोधक धचह्न (!) रगता है । प्रकट होने िारे बाि के आधाय ऩय इसके धनम्नधरणखेत बेद हं (1) हषणफोधक- अहा ! धन्म !, िाह-िाह !, ओह ! िाह ! शाफाश ! (2) शोकफोधक- आह !, हाम !, हाम-हाम !, हा, त्राहह-त्राहह !, फाऩ ये ! (3) विस्भमाहदफोधक- हं !, ऐॊ !, ओहो !, अये , िाह ! (4) धतयस्कायफोधक- धछ् !, हट !, धधक् , धत ् !, धछ् धछ् !, चुऩ !
(5) स्िीकृ धतफोधक- हाॉ-हाॉ !, अच्छा !, ठीक !, जी हाॉ !, फहुत अच्छा ! (6) सॊफोधनफोधक- ये !, यी !, अये !, अयी !, ओ !, अजी !, है रो ! (7) आशीिाणदफोधक- दीघाणमु हो !, जीते यहो !
अध्माम 17 शब्द यचना शब्द-यचना-हभ स्िबाित् बाषा-व्मिहाय भं कभ-से-कभ शब्दं का प्रमोग कयके अधधक-से-अधधक काभ चराना चाहते हं । अत् शब्दं के आयॊ ब अथिा अॊत भं कुछ जोड़कय अथिा उनकी भात्राओॊ मा स्िय भं कुछ ऩरयितणन कयके निीन-से-निीन अथणफोध कयाना चाहते हं । कबी-कबी दो अथिा अधधक शब्दाॊशं को जोड़कय नए अथण- फोध को स्िीकायते हं । इस तयह एक शब्द से कई अथं की अधबव्मवि हे तु जो नए-नए शब्द फनाए जाते हं उसे शब्द-यचना कहते हं । शब्द यचना के चाय प्रकाय हं 1. उऩसगण रगाकय 2. प्रत्मम रगाकय 3. सॊधध द्वाया
4. सभास द्वाया उऩसगण
हहन्दी व्माकयण िे शब्दाॊश जो हकसी शब्द के आयॊ ब भं रगकय उनके अथण भं विशेषता रा दे ते हं अथिा उसके अथण को फदर दे ते हं , उऩसगण कहराते हं । जैसे-ऩया-ऩयाक्रभ, ऩयाजम, ऩयाबि, ऩयाधीन, ऩयाबूत। उऩसगं को चाय बागं भं फाॉटा जा सकता हं (क) सॊस्कृ त के उऩसगण (खे) हहन्दी के उऩसगण (ग) उदण ू के उऩसगण
(घ) उऩसगण की तयह प्रमुि होने िारे सॊस्कृ त के अव्मम (क) सॊस्कृ त के उऩसगण उऩसगण
अथण (भं)
शब्द-रूऩ
अधत
अधधक, ऊऩय
अत्मॊत, अत्मुत्तभ, अधतरयि
अधध
ऊऩय, प्रधानता
अधधकाय, अध्मऺ, अधधऩधत
अनु
ऩीछे , सभान
अनुरूऩ, अनुज, अनुकयण
अऩ
फुया, हीन
अऩभान, अऩमश, अऩकाय
अधब
साभने, अधधक ऩास
अधबमोग, अधबभान, अधबबािक
अि
फुया, नीचे
अिनधत, अिगुण, अिशेष
आ
तक से, रेकय, उरटा
आजन्भ, आगभन, आकाश
उत ्
ऊऩय, श्रेष्ठ
उत्कॊठा, उत्कषण, उत्ऩन्न
उऩ
धनकट, गौण
उऩकाय, उऩदे श, उऩचाय, उऩाध्मऺ
दयु ्
फुया, कहठन
दज ण , दद ण ु न ु ण शा, दग ु भ
दस ु ्
फुया
दि ण ु रयत्र, दस् ु साहस, दग ु भ
धन
अबाि, विशेष
धनमुि, धनफॊध, धनभग्न
धनय ्
वफना
धनिाणह, धनभणर, धनजणन
धनस ्
वफना
धनिर, धनश्छर, धनणित
ऩया
ऩीछे , उरटा
ऩयाभशण, ऩयाधीन, ऩयाक्रभ
ऩरय
सफ ओय
ऩरयऩूण,ण ऩरयजन, ऩरयितणन
55
हहन्दी व्माकयण प्र
आगे, अधधक, उत्कृ ष्ट
प्रमत्नो, प्रफर, प्रधसद्ध
प्रधत
साभने, उरटा, हयएक
प्रधतकूर, प्रत्मेक, प्रत्मऺ
वि
हीनता, विशेष
विमोग, विशेष, विधिा
सभ ्
ऩूण,ण अच्छा
सॊचम, सॊगधत, सॊस्काय
सु
अच्छा, सयर
सुगभ, सुमश, स्िागत
(खे) हहन्दी के उऩसगण मे प्राम् सॊस्कृ त उऩसगं के अऩभ्रॊश भात्र ही हं । उऩसगण
अथण (भं)
शब्द-रूऩ
अ
अबाि, धनषेध
अजय, अछूत, अकार
अन
यहहत
अनऩढ़, अनफन, अनजान
अध
आधा
अधभया, अधणखेरा, अधऩका
औ
यहहत
औगुन, औताय, औघट
कु
फुयाई
कुसॊग, कुकभण, कुभधत
धन
अबाि
धनडय, धनहत्था, धनकम्भा
(ग) उदण ू के उऩसगण उऩसगण
अथण (भं)
शब्द-रूऩ
कभ
थोड़ा
कभफख्त, कभजोय, कभधसन
खेुश
प्रसन्न, अच्छा
खेुशफू, खेुशहदर, खेुशधभजाज
गैय
धनषेध
गैयहाणजय, गैयकानूनी, गैयकौभ
दय
भं
दयअसर, दयकाय, दयधभमान
ना
धनषेध
नारामक, नाऩसॊद, नाभुभहकन
फा
अनुसाय
फाभौका, फाकामदा, फाइज्जत
56
हहन्दी व्माकयण फद
फुया
फदनाभ, फदभाश, फदचरन
फे
वफना
फेईभान, फेचाया, फेअक्र
रा
यहहत
राऩयिाह, राचाय, रािारयस
सय
भुख्म
सयकाय, सयदाय, सयऩॊच
हभ
साथ
हभददी, हभयाज, हभदभ
हय
प्रधत
हयहदन, हयएक,हयसार
(घ) उऩसगण की तयह प्रमुि होने िारे सॊस्कृ त अव्मम उऩसगण
अथण (भं)
शब्द-रूऩ
अ (व्मॊजनं से ऩूि)ण
धनषेध
अऻान, अबाि, अचेत
अन ् (स्ियं से ऩूि)ण
धनषेध
अनागत, अनथण, अनाहद
स
सहहत
सजर, सकर, सहषण
अध्
नीचे
अध्ऩतन, अधोगधत, अधोभुखे
धचय
फहुत दे य
धचयामु, धचयकार, धचयॊ तन
अॊतय
बीतय
अॊतयात्भा, अॊतयाणष्डीम, अॊतजाणतीम
ऩुन्
हपय
ऩुनगणभन, ऩुनजणन्भ, ऩुनधभणरन
ऩुया
ऩुयाना
ऩुयातत्ि, ऩुयातन
ऩुयस ्
आगे
ऩुयस्काय, ऩुयस्कृ त
धतयस ्
फुया, हीन
धतयस्काय, धतयोबाि
सत ्
श्रेष्ठ
सत्काय, सज्जन, सत्कामण
57
हहन्दी व्माकयण
58
अध्माम 18 प्रत्मम प्रत्मम- जो शब्दाॊश शब्दं के अॊत भं रगकय उनके अथण को फदर दे ते हं िे प्रत्मम
कहराते हं । जैसे-जरज, ऩॊकज आहद। जर=ऩानी तथा ज=जन्भ रेने िारा। ऩानी भं जन्भ रेने िारा अथाणत ् कभर। इसी प्रकाय ऩॊक शब्द भं ज प्रत्मम रगकय ऩॊकज अथाणत कभर कय दे ता है । प्रत्मम दो प्रकाय के होते हं 1. कृ त प्रत्मम। 2. तवद्धत प्रत्मम। 1. कृ त प्रत्मम जो प्रत्मम धातुओॊ के अॊत भं रगते हं िे कृ त प्रत्मम कहराते हं । कृ त प्रत्मम के मोग से फने शब्दं को (कृ त+अॊत) कृ दॊ त कहते हं । जैसे-याखेन+हाया=याखेनहाया, घट+इमा=घहटमा, धरखे+आिट=धरखेािट आहद। (क) कतृि ण ाचक कृ दॊ त- णजस प्रत्मम से फने शब्द से कामण कयने िारे अथाणत कताण का फोध हो, िह कतृि ण ाचक कृ दॊ त कहराता है । जैसे-‘ऩढ़ना’। इस साभान्म हक्रमा के साथ िारा प्रत्मम रगाने से ‘ऩढ़नेिारा’ शब्द फना। प्रत्मम शब्द-रूऩ
प्रत्मम शब्द-रूऩ
िारा
ऩढ़नेिारा, धरखेनेिारा,यखेिारा
हाया
याखेनहाया, खेेिनहाया, ऩारनहाया
आऊ
वफकाऊ, हटकाऊ, चराऊ
आक
तैयाक
आका रड़का, धड़ाका, धभाका
आड़ी
अनाड़ी, णखेराड़ी, अगाड़ी
आरू
आरु, झगड़ारू, दमारु, कृ ऩारु
ऊ
उड़ाऊ, कभाऊ, खेाऊ
एया
रुटेया, सऩेया
इमा
फहढ़मा, घहटमा
ऐमा
गिैमा, यखेैमा, रुटैमा
अक
धािक, सहामक, ऩारक
(खे) कभणिाचक कृ दॊ त- णजस प्रत्मम से फने शब्द से हकसी कभण का फोध हो िह कभणिाचक कृ दॊ त कहराता है । जैसे-गा भं ना प्रत्मम रगाने से गाना, सूॉघ भं ना प्रत्मम रगाने से सूॉघना औय वफछ भं औना प्रत्मम रगाने से वफछौना फना है । (ग) कयणिाचक कृ दॊ त- णजस प्रत्मम से फने शब्द से हक्रमा के साधन अथाणत कयण का फोध हो िह कयणिाचक कृ दॊ त कहराता है । जैसे-ये त भं ई प्रत्मम रगाने से ये ती फना।
हहन्दी व्माकयण प्रत्मम शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
आ
बटका, बूरा, झूरा
ई
ये ती, पाॉसी, बायी
ऊ
झा़ड़ू
न
फेरन, झाड़न, फॊधन
नी
धंकनी कयतनी, सुधभयनी
59
(घ) बाििाचक कृ दॊ त- णजस प्रत्मम से फने शब्द से बाि अथाणत ् हक्रमा के व्माऩाय का फोध हो िह बाििाचक कृ दॊ त कहराता है । जैसे-सजा भं आिट प्रत्मम रगाने से सजािट फना। प्रत्मम शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
अन
चरन, भनन, धभरन
औती
भनौती, हपयौती, चुनौती
आिा
बुरािा,छरािा, हदखेािा
अॊत
धबड़ॊ त, गढ़ॊ त
आई
कभाई, चढ़ाई, रड़ाई
आिट
सजािट, फनािट, रुकािट
आहट
घफयाहट,धचल्राहट
(ड़) हक्रमािाचक कृ दॊ त- णजस प्रत्मम से फने शब्द से हक्रमा के होने का बाि प्रकट हो िह हक्रमािाचक कृ दॊ त कहराता है । जैसे-बागता हुआ, धरखेता हुआ आहद। इसभं भूर
धातु के साथ ता रगाकय फाद भं हुआ रगा दे ने से ितणभानकाधरक हक्रमािाचक कृ दॊ त फन जाता है । हक्रमािाचक कृ दॊ त केिर ऩुणल्रॊग औय एकिचन भं प्रमुि होता है । प्रत्मम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
ता
डू फता, फहता, यभता, चरता
ता
हुआ आता हुआ, ऩढ़ता हुआ
मा
खेोमा, फोमा
आ
सूखेा, बूरा, फैठा
कय
जाकय, दे खेकय
ना
दौड़ना, सोना
2. तवद्धत प्रत्मम जो प्रत्मम सॊऻा, सिणनाभ अथिा विशेषण के अॊत भं रगकय नए शब्द फनाते हं तवद्धत प्रत्मम कहराते हं । इनके मोग से फने शब्दं को ‘तवद्धताॊत’ अथिा तवद्धत शब्द कहते हं । जैसे-अऩना+ऩन=अऩनाऩन, दानि+ता=दानिता आहद।
(क) कतृि ण ाचक तवद्धत- णजससे हकसी कामण के कयने िारे का फोध हो। जैसे- सुनाय, कहाय आहद।
हहन्दी व्माकयण
60
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
क
ऩाठक, रेखेक, धरवऩक
आय
सुनाय, रुहाय, कहाय
काय
ऩत्रकाय, कराकाय, धचत्रकाय
इमा
सुविधा, दणु खेमा, आढ़धतमा
एया
सऩेया, ठठे या, धचतेया
आ
भछुआ, गेरुआ, ठरुआ
िारा
टोऩीिारा घयिारा, गाड़ीिारा
दाय
ईभानदाय, दक ु ानदाय, कजणदाय
हाया
रकड़हाया, ऩधनहाया, भधनहाय
ची
भशारची, खेजानची, भोची
गय
कायीगय, फाजीगय, जादग ू य
(खे) बाििाचक तवद्धत- णजससे बाि व्मि हो। जैसे-सयाणपा, फुढ़ाऩा, सॊगत, प्रबुता आहद। प्रत्मम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
ऩन
फचऩन, रड़कऩन, फारऩन
आ
फुरािा, सयाणपा
आई
बराई, फुयाई, हढठाई
आहट
धचकनाहट, कड़िाहट, घफयाहट
इभा
राधरभा, भहहभा, अरुणणभा
ऩा
फुढ़ाऩा, भोटाऩा
ई
गयभी, सयदी,गयीफी
औती
फऩौती
(ग) सॊफॊधिाचक तवद्धत- णजससे सॊफॊध का फोध हो। जैसे-ससुयार, बतीजा, चचेया आहद। प्रत्मम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
आर
ससुयार, नधनहार
एया
भभेया,चचेया, पुपेया
जा
बानजा, बतीजा
इक
नैधतक, धाधभणक, आधथणक
(घ) ऊनता (रघुता) िाचक तवद्धत- णजससे रघुता का फोध हो। जैसे-रुहटमा। प्रत्ममम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
इमा
रुहटमा, हडवफमा, खेहटमा
ई
कोठयी, टोकनी, ढोरकी
टी, टा
रॉगोटी, कछौटी,करूटा
ड़ी, ड़ा
ऩगड़ी, टु कड़ी, फछड़ा
(ड़) गणनािाचक तद्धधत- णजससे सॊख्मा का फोध हो। जैसे-इकहया, ऩहरा, ऩाॉचिाॉ आहद। प्रत्मम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
हया
इकहया, दहु या, धतहया
रा
ऩहरा
हहन्दी व्माकयण या
दस ू या, तीसया
था
61
चौथा
(च) सादृश्मिाचक तवद्धत- णजससे सभता का फोध हो। जैसे-सुनहया। प्रत्मम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
सा
ऩीरा-सा, नीरा-सा, कारा-सा
हया
सुनहया, रुऩहया
(छ) गुणिाचक तद्धधत- णजससे हकसी गुण का फोध हो। जैसे-बूखे, विषैरा, कुरिॊत आहद।
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
आ
बूखेा, प्मासा, ठॊ डा,भीठा
ई
धनी, रोबी, क्रोधी
ईम
िाॊछनीम, अनुकयणीम
ईरा
यॊ गीरा, सजीरा
ऐरा
विषैरा, कसैरा
रु
कृ ऩारु, दमारु
िॊत
दमािॊत, कुरिॊत
िान
गुणिान, रूऩिान
(ज) स्थानिाचक तद्धधत- णजससे स्थान का फोध हो. जैसे-ऩॊजाफी, जफरऩुरयमा, हदल्रीिारा आहद। प्रत्मम
शब्द-रूऩ
प्रत्मम
शब्द-रूऩ
ई
ऩॊजाफी, फॊगारी, गुजयाती
इमा
करकधतमा, जफरऩुरयमा
िार
िारा डे येिारा, हदल्रीिारा
कृ त प्रत्मम औय तवद्धत प्रत्मम भं अॊतय कृ त प्रत्मम- जो प्रत्मम धातु मा हक्रमा के अॊत भं जुड़कय नमा शब्द फनाते हं कृ त प्रत्मम कहराते हं । जैसे-धरखेना, धरखेाई, धरखेािट। तवद्धत प्रत्मम- जो प्रत्मम सॊऻा, सिणनाभ मा विशेषण भं जुड़कय नमा शब्द फनाते हॊ िे तवद्धत प्रत्मम कहराते हं । जैसे-नीधत-नैधतक, कारा-काधरभा, याष्ड-याष्डीमता आहद।
हहन्दी व्माकयण
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अध्माम 19 सॊधध सॊधध-सॊधध शब्द का अथण है भेर। दो धनकटिती िणं के ऩयस्ऩय भेर से जो विकाय (ऩरयितणन) होता है िह सॊधध कहराता है । जैसे-सभ ्+तोष=सॊतोष। दे ि+इॊ द्र=दे िंद्र। बानु+उदम=बानूदम।
सॊधध के बेद-सॊधध तीन प्रकाय की होती हं 1. स्िय सॊधध। 2. व्मॊजन सॊधध। 3. विसगण सॊधध। 1. स्िय सॊधध दो स्ियं के भेर से होने िारे विकाय (ऩरयितणन) को स्िय-सॊधध कहते हं । जैसेविद्या+आरम=विद्यारम। स्िय-सॊधध ऩाॉच प्रकाय की होती हं (क) दीघण सॊधध ह्रस्ि मा दीघण अ, इ, उ के फाद महद ह्रस्ि मा दीघण अ, इ, उ आ जाएॉ तो दोनं धभरकय दीघण आ, ई, औय ऊ हो जाते हं । जैसे(क) अ+अ=आ धभण+अथण=धभाणथ,ण अ+आ=आ-हहभ+आरम=हहभारम। आ+अ=आ आ विद्या+अथी=विद्याथी आ+आ=आ-विद्या+आरम=विद्यारम। (खे) इ औय ई की सॊधधइ+इ=ई- यवि+इॊ द्र=यिीॊद्र, भुधन+इॊ द्र=भुनीॊद्र। इ+ई=ई- धगरय+ईश=धगयीश भुधन+ईश=भुनीश। ई+इ=ई- भही+इॊ द्र=भहीॊद्र नायी+इॊ द= ु नायीॊद ु
ई+ई=ई- नदी+ईश=नदीश भही+ईश=भहीश (ग) उ औय ऊ की सॊधधउ+उ=ऊ- बानु+उदम=बानूदम विधु+उदम=विधूदम उ+ऊ=ऊ- रघु+ऊधभण=रघूधभण धसधु+ऊधभण=धसॊधधू भण
ऊ+उ=ऊ- िधू+उत्सि=िधूत्सि िधू+उल्रेखे=िधूल्रेखे ऊ+ऊ=ऊ- बू+ऊध्िण=बूध्िण िधू+ऊजाण=िधूजाण
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(खे) गुण सॊधध इसभं अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए, उ, ऊ हो तो ओ, तथा ऋ हो तो अय ् हो जाता है । इसे गुण-सॊधध कहते हं जैसे-
(क) अ+इ=ए- नय+इॊ द्र=नयं द्र अ+ई=ए- नय+ईश=नये श आ+इ=ए- भहा+इॊ द्र=भहं द्र आ+ई=ए भहा+ईश=भहे श (खे) अ+ई=ओ ऻान+उऩदे श=ऻानोऩदे श आ+उ=ओ भहा+उत्सि=भहोत्सि अ+ऊ=ओ जर+ऊधभण=जरोधभण आ+ऊ=ओ भहा+ऊधभण=भहोधभण (ग) अ+ऋ=अय ् दे ि+ऋवष=दे िवषण
(घ) आ+ऋ=अय ् भहा+ऋवष=भहवषण (ग) िृवद्ध सॊधध अ आ का ए ऐ से भेर होने ऩय ऐ अ आ का ओ, औ से भेर होने ऩय औ हो जाता है । इसे िृवद्ध सॊधध कहते हं । जैसे(क) अ+ए=ऐ एक+एक=एकैक अ+ऐ=ऐ भत+ऐक्म=भतैक्म आ+ए=ऐ सदा+एि=सदै ि आ+ऐ=ऐ भहा+ऐश्वमण=भहै श्वमण
(खे) अ+ओ=औ िन+ओषधध=िनौषधध आ+ओ=औ भहा+औषध=भहौषधध अ+औ=औ ऩयभ+औषध=ऩयभौषध आ+औ=औ भहा+औषध=भहौषध (घ) मण सॊधध (क) इ, ई के आगे कोई विजातीम (असभान) स्िय होने ऩय इ ई को ‘म ्’ हो जाता है ।
(खे) उ, ऊ के आगे हकसी विजातीम स्िय के आने ऩय उ ऊ को ‘ि ्’ हो जाता है । (ग)
‘ऋ’ के आगे हकसी विजातीम स्िय के आने ऩय ऋ को ‘य’् हो जाता है । इन्हं मण-सॊधध कहते हं ।
इ+अ=म ्+अ महद+अवऩ=मद्यवऩ ई+आ=म ्+आ इधत+आहद=इत्माहद।
ई+अ=म ्+अ नदी+अऩणण=नद्यऩणण ई+आ=म ्+आ दे िी+आगभन=दे व्मागभन (घ) उ+अ=ि ्+अ अनु+अम=अन्िम उ+आ=ि ्+आ सु+आगत=स्िागत उ+ए=ि ्+ए अनु+एषण=अन्िेषण ऋ+अ=य+ ् आ वऩतृ+आऻा=वऩत्राऻा
(ड़) अमाहद सॊधध- ए, ऐ औय ओ औ से ऩये हकसी बी स्िय के होने ऩय क्रभश् अम ्, आम ्, अि ् औय आि ् हो जाता है । इसे अमाहद सॊधध कहते हं ।
(क) ए+अ=अम ्+अ ने+अन+नमन (खे) ऐ+अ=आम ्+अ गै+अक=गामक
(ग) ओ+अ=अि ्+अ ऩो+अन=ऩिन (घ) औ+अ=आि ्+अ ऩौ+अक=ऩािक औ+इ=आि ्+इ नौ+इक=नाविक
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2. व्मॊजन सॊधध व्मॊजन का व्मॊजन से अथिा हकसी स्िय से भेर होने ऩय जो ऩरयितणन होता है उसे व्मॊजन सॊधध कहते हं । जैसे-शयत ्+चॊद्र=शयच्चॊद्र।
(क) हकसी िगण के ऩहरे िणण क् , च ्, ट्, त ्, ऩ ् का भेर हकसी िगण के तीसये अथिा चौथे
िणण मा म ्, य,् र ्, ि ्, ह मा हकसी स्िय से हो जाए तो क् को ग ् च ् को ज ्, ट् को ड् औय ऩ ् को फ ् हो जाता है । जैसे-
क् +ग=ग्ग हदक् +गज=हदग्गज। क् +ई=गी िाक् +ईश=िागीश च ्+अ=ज ् अच ्+अॊत=अजॊत ट्+आ=डा षट्+आनन=षडानन ऩ+ज+ब्ज अऩ ्+ज=अब्ज
(खे) महद हकसी िगण के ऩहरे िणण (क् , च ्, ट्, त ्, ऩ ्) का भेर न ् मा भ ् िणण से हो तो उसके स्थान ऩय उसी िगण का ऩाॉचिाॉ िणण हो जाता है । जैसेक् +भ=ड़् िाक् +भम=िाड़्भम च ्+न=ञ ् अच ्+नाश=अञ्नाश
ट्+भ=ण ् षट्+भास=षण्भास त ्+न=न ् उत ्+नमन=उन्नमन ऩ ्+भ ्=भ ् अऩ ्+भम=अम्भम
(ग) त ् का भेर ग, घ, द, ध, फ, ब, म, य, ि मा हकसी स्िय से हो जाए तो द् हो जाता है । जैसे-
त ्+ब=द्भ सत ्+बािना=सद्भािना त ्+ई=दी जगत ्+ईश=जगदीश त ्+ब=द्भ बगित ्+बवि=बगिद्भवि त ्+य=द्र तत ्+रूऩ=तद्रऩ ू त ्+ध=द्ध सत ्+धभण=सद्धभण
(घ) त ् से ऩये च ् मा छ् होने ऩय च, ज ् मा झ ् होने ऩय ज ्, ट् मा ठ् होने ऩय ट्, ड् मा ढ् होने ऩय ड् औय र होने ऩय र ् हो जाता है । जैसे-
त ्+च=च्च उत ्+चायण=उच्चायण त ्+ज=ज्ज सत ्+जन=सज्जन
त ्+झ=ज्झ उत ्+झहटका=उज्झहटका त ्+ट=ट्ट तत ्+टीका=तट्टीका त ्+ड=ड्ड उत ्+डमन=उड्डमन त ्+र=ल्र उत ्+रास=उल्रास
(ड़) त ् का भेर महद श ् से हो तो त ् को च ् औय श ् का छ् फन जाता है । जैसेत ्+श ्=च्छ उत ्+श्वास=उच््िास त ्+श=च्छ उत ्+धशष्ट=उणच्छष्ट त ्+श=च्छ सत ्+शास्त्र=सच्छास्त्र
(च) त ् का भेर महद ह् से हो तो त ् का द् औय ह् का ध ् हो जाता है । जैसेत ्+ह=द्ध उत ्+हाय=उद्धाय त ्+ह=द्ध उत ्+हयण=उद्धयण त ्+ह=द्ध तत ्+हहत=तवद्धत
(छ) स्िय के फाद महद छ् िणण आ जाए तो छ् से ऩहरे च ् िणण फढ़ा हदमा जाता है । जैसे-
अ+छ=अच्छ स्ि+छॊ द=स्िच्छॊ द आ+छ=आच्छ आ+छादन=आच्छादन
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इ+छ=इच्छ सॊधध+छे द=सॊधधच्छे द उ+छ=उच्छ अनु+छे द=अनुच्छे द (ज) महद भ ् के फाद क् से भ ् तक कोई व्मॊजन हो तो भ ् अनुस्िाय भं फदर जाता है । जैसे-
भ ्+च ्=ाॊ हकभ ्+धचत=हकॊधचत भ ्+क=ाॊ हकभ ्+कय=हकॊकय भ ्+क=ाॊ सभ ्+कल्ऩ=सॊकल्ऩ भ ्+च=ाॊ सभ ्+चम=सॊचम भ ्+त=ाॊ सभ ्+तोष=सॊतोष भ ्+फ=ाॊ सभ ्+फॊध=सॊफॊध भ ्+ऩ=ाॊ सभ ्+ऩूण= ण सॊऩूणण
(झ) भ ् के फाद भ का हद्वत्ि हो जाता है । जैसे-
भ ्+भ=म्भ सभ ्+भधत=सम्भधत भ ्+भ=म्भ सभ ्+भान=सम्भान
(ञ) भ ् के फाद म ्, य,् र ्, ि ्, श ्, ष ्, स ्, ह् भं से कोई व्मॊजन होने ऩय भ ् का अनुस्िाय हो जाता है । जैसे-
भ ्+म=ाॊ सभ ्+मोग=सॊमोग भ ्+य=ाॊ सभ ्+यऺण=सॊयऺण
भ ्+ि=ाॊ सभ ्+विधान=सॊविधान भ ्+ि=ाॊ सभ ्+िाद=सॊिाद भ ्+श=ाॊ सभ ्+शम=सॊशम भ ्+र=ाॊ सभ ्+रग्न=सॊरग्न भ ्+स=ाॊ सभ ्+साय=सॊसाय
(ट) ऋ,य,् ष ् से ऩये न ् का ण ् हो जाता है । ऩयन्तु चिगण, टिगण, तिगण, श औय स का व्मिधान हो जाने ऩय न ् का ण ् नहीॊ होता। जैसे-
य+ ् न=ण ऩरय+नाभ=ऩरयणाभ य+ ् भ=ण प्र+भान=प्रभाण
(ठ) स ् से ऩहरे अ, आ से धबन्न कोई स्िय आ जाए तो स ् को ष हो जाता है । जैसेब ्+स ्=ष अधब+सेक=अधबषेक धन+धसद्ध=धनवषद्ध वि+सभ+विषभ 3. विसगण-सॊधध विसगण (:) के फाद स्िय मा व्मॊजन आने ऩय विसगण भं जो विकाय होता है उसे विसगणसॊधध कहते हं । जैसे-भन्+अनुकूर=भनोनुकूर। (क) विसगण के ऩहरे महद ‘अ’ औय फाद भं बी ‘अ’ अथिा िगं के तीसये , चौथे ऩाॉचिं िणण, अथिा म, य, र, ि हो तो विसगण का ओ हो जाता है । जैसे-
भन्+अनुकूर=भनोनुकूर अध्+गधत=अधोगधत भन्+फर=भनोफर (खे) विसगण से ऩहरे अ, आ को छोड़कय कोई स्िय हो औय फाद भं कोई स्िय हो, िगण के तीसये , चौथे, ऩाॉचिं िणण अथिा म ्, य, र, ि, ह भं से कोई हो तो विसगण का य मा य ् हो जाता है । जैसे-
धन्+आहाय=धनयाहाय धन्+आशा=धनयाशा धन्+धन=धनधणन
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(ग) विसगण से ऩहरे कोई स्िय हो औय फाद भं च, छ मा श हो तो विसगण का श हो जाता है । जैसेधन्+चर=धनिर धन्+छर=धनश्छर द्ु +शासन=दश्ु शासन (घ)विसगण के फाद महद त मा स हो तो विसगण स ् फन जाता है । जैसेनभ्+ते=नभस्ते धन्+सॊतान=धनस्सॊतान द्ु +साहस=दस् ु साहस
(ड़) विसगण से ऩहरे इ, उ औय फाद भं क, खे, ट, ठ, ऩ, प भं से कोई िणण हो तो विसगण का ष हो जाता है । जैसेधन्+करॊक=धनष्करॊक चतु्+ऩाद=चतुष्ऩाद धन्+पर=धनष्पर (ड)विसगण से ऩहरे अ, आ हो औय फाद भं कोई धबन्न स्िय हो तो विसगण का रोऩ हो जाता है । जैसेधन्+योग=धनयोग धन्+यस=नीयस (छ) विसगण के फाद क, खे अथिा ऩ, प होने ऩय विसगण भं कोई ऩरयितणन नहीॊ होता। जैसे-
अॊत्+कयण=अॊत्कयण
अध्माम 20 सभास सभास का तात्ऩमण है ‘सॊणऺप्तीकयण’। दो मा दो से अधधक शब्दं से धभरकय फने हुए एक निीन एिॊ साथणक शब्द को सभास कहते हं । जैसे-‘यसोई के धरए घय’ इसे हभ ‘यसोईघय’ बी कह सकते हं । साभाधसक शब्द- सभास के धनमभं से धनधभणत शब्द साभाधसक शब्द कहराता है । इसे सभस्तऩद बी कहते हं । सभास होने के फाद विबविमं के धचह्न (ऩयसगण) रुप्त हो जाते हं । जैसे-याजऩुत्र। सभास-विग्रह- साभाधसक शब्दं के फीच के सॊफॊध को स्ऩष्ट कयना सभास-विग्रह कहराता है । जैसे-याजऩुत्र-याजा का ऩुत्र। ऩूिऩ ण द औय उत्तयऩद- सभास भं दो ऩद (शब्द) होते हं । ऩहरे ऩद को ऩूिऩ ण द औय दस ू ये ऩद को उत्तयऩद कहते हं । जैसे-गॊगाजर। इसभं गॊगा ऩूिऩ ण द औय जर उत्तयऩद है ।
हहन्दी व्माकयण
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सभास के बेद सभास के चाय बेद हं 1. अव्ममीबाि सभास। 2. तत्ऩुरुष सभास। 3. द्वॊ द्व सभास। 4. फहुव्रीहह सभास। 1. अव्ममीबाि सभास णजस सभास का ऩहरा ऩद प्रधान हो औय िह अव्मम हो उसे अव्ममीबाि सभास कहते हं । जैसे-मथाभधत (भधत के अनुसाय), आभयण (भृत्मु कय) इनभं मथा औय आ अव्मम हं । कुछ अन्म उदाहयणआजीिन - जीिन-बय, मथासाभथ्मण - साभथ्मण के अनुसाय मथाशवि - शवि के अनुसाय, मथाविधध विधध के अनुसाय मथाक्रभ - क्रभ के अनुसाय, बयऩेट ऩेट बयकय
हययोज़ - योज़-योज़, हाथंहाथ - हाथ ही हाथ भं यातंयात - यात ही यात भं, प्रधतहदन - प्रत्मेक हदन फेशक - शक के वफना, धनडय - डय के वफना धनस्सॊदेह - सॊदेह के वफना, हयसार - हये क सार अव्ममीबाि सभास की ऩहचान- इसभं सभस्त ऩद अव्मम फन जाता है अथाणत सभास होने के फाद उसका रूऩ कबी नहीॊ फदरता है । इसके साथ विबवि धचह्न बी नहीॊ रगता। जैसे-ऊऩय के सभस्त शब्द है । 2. तत्ऩुरुष सभास णजस सभास का उत्तयऩद प्रधान हो औय ऩूिऩ ण द गौण हो उसे तत्ऩुरुष सभास कहते हं । जैसे-तुरसीदासकृ त=तुरसी द्वाया कृ त (यधचत)
ऻातव्म- विग्रह भं जो कायक प्रकट हो उसी कायक िारा िह सभास होता है । विबविमं के नाभ के अनुसाय इसके छह बेद हं (1) कभण तत्ऩुरुष धगयहकट धगयह को काटने िारा (2) कयण तत्ऩुरुष भनचाहा भन से चाहा (3) सॊप्रदान तत्ऩुरुष यसोईघय यसोई के धरए घय (4) अऩादान तत्ऩुरुष दे शधनकारा दे श से धनकारा
हहन्दी व्माकयण (5) सॊफॊध तत्ऩुरुष गॊगाजर गॊगा का जर (6) अधधकयण तत्ऩुरुष नगयिास नगय भं िास (क) नञ तत्ऩुरुष सभास णजस सभास भं ऩहरा ऩद धनषेधात्भक हो उसे नञ तत्ऩुरुष सभास कहते हं । जैसेसभस्त ऩद सभास-विग्रह सभस्त ऩद सभास-विग्रह असभ्म न सभ्म अनॊत न अॊत अनाहद न आहद असॊबि न सॊबि
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हहन्दी व्माकयण
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(खे) कभणधायम सभास णजस सभास का उत्तयऩद प्रधान हो औय ऩूिि ण द ि उत्तयऩद भं विशेषण-विशेष्म अथिा उऩभान-उऩभेम का सॊफॊध हो िह कभणधायम सभास कहराता है । जैसेसभस्त ऩद
सभास-विग्रह
सभस्त ऩद
सभात विग्रह
चॊद्रभुखे
चॊद्र जैसा भुखे
कभरनमन कभर के सभान नमन
दे हरता
दे ह रूऩी रता
दहीफड़ा
दही भं डू फा फड़ा
नीरकभर नीरा कभर
ऩीताॊफय
ऩीरा अॊफय (िस्त्र)
सज्जन
नयधसॊह
नयं भं धसॊह के सभान
सत ् (अच्छा) जन
(ग) हद्वगु सभास णजस सभास का ऩूिऩ ण द सॊख्मािाचक विशेषण हो उसे हद्वगु सभास कहते हं । इससे सभूह अथिा सभाहाय का फोध होता है । जैसेसभस्त
सभात-विग्रह
सभस्त ऩद सभास विग्रह
निग्रह
नौ ग्रहं का भसूह
दोऩहय
दो ऩहयं का सभाहाय
वत्ररोक
तीनं रोकं का सभाहाय
चौभासा
चाय भासं का सभूह
नियात्र
नौ यावत्रमं का सभूह
शताब्दी
सौ अब्दो (सारं) का सभूह
अठन्नी
आठ आनं का सभूह
ऩद
3. द्वॊ द्व सभास णजस सभास के दोनं ऩद प्रधान होते हं तथा विग्रह कयने ऩय ‘औय’, अथिा, ‘मा’, एिॊ रगता है , िह द्वॊ द्व सभास कहराता है । जैसेसभस्त ऩद ऩाऩ-
सभास-विग्रह
सभस्त ऩद
सभास-विग्रह
ऩाऩ औय ऩुण्म
अन्न-जर
अन्न औय जर
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ऩुण्म सीतायाभ
सीता औय याभ
ऊॉच-नीच ऊॉच औय नीच
खेया-खेोटा
खेया औय खेोटा
याधा-कृ ष्ण
याधा औय कृ ष्ण
4. फहुव्रीहह सभास णजस सभास के दोनं ऩद अप्रधान हं औय सभस्तऩद के अथण के अधतरयि कोई साॊकेधतक अथण प्रधान हो उसे फहुव्रीहह सभास कहते हं । जैसेसभस्त ऩद
सभास-विग्रह
दशानन
दश है आनन (भुखे) णजसके अथाणत ् यािण
नीरकॊठ
नीरा है कॊठ णजसका अथाणत ् धशि
सुरोचना
सुॊदय है रोचन णजसके अथाणत ् भेघनाद की ऩत्नोी
ऩीताॊफय
ऩीरे है अम्फय (िस्त्र) णजसके अथाणत ् श्रीकृ ष्ण
रॊफोदय
रॊफा है उदय (ऩेट) णजसका अथाणत ् गणेशजी
दयु ात्भा
फुयी आत्भा िारा (कोई दष्ट ु )
श्वेताॊफय
श्वेत है णजसके अॊफय (िस्त्र) अथाणत ् सयस्िती
सॊधध औय सभास भं अॊतय सॊधध िणं भं होती है । इसभं विबवि मा शब्द का रोऩ नहीॊ होता है । जैसेदे ि+आरम=दे िारम। सभास दो ऩदं भं होता है । सभास होने ऩय विबवि मा शब्दं का रोऩ बी हो जाता है । जैसे-भाता-वऩता=भाता औय वऩता। कभणधायम औय फहुव्रीहह सभास भं अॊतय- कभणधायम भं सभस्त-ऩद का एक ऩद दस ू ये
का विशेषण होता है । इसभं शब्दाथण प्रधान होता है । जैसे-नीरकॊठ=नीरा कॊठ। फहुव्रीहह भं सभस्त ऩद के दोनं ऩदं भं विशेषण-विशेष्म का सॊफॊध नहीॊ होता अवऩतु िह
सभस्त ऩद ही हकसी अन्म सॊऻाहद का विशेषण होता है । इसके साथ ही शब्दाथण गौण होता है औय कोई धबन्नाथण ही प्रधान हो जाता है । जैसे-नीर+कॊठ=नीरा है कॊठ णजसका अथाणत धशि।
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अध्माम 21 ऩद ऩरयचम ऩद-ऩरयचम- िाक्मगत शब्दं के रूऩ औय उनका ऩायस्ऩरयक सॊफॊध फताने भं णजस प्रहक्रमा की आिश्मकता ऩड़ती है िह ऩद-ऩरयचम मा शब्दफोध कहराता है । ऩरयबाषा-िाक्मगत प्रत्मेक ऩद (शब्द) का व्माकयण की दृवष्ट से ऩूणण ऩरयचम दे ना ही ऩद-ऩरयचम कहराता है । शब्द आठ प्रकाय के होते हं 1.सॊऻा- बेद, धरॊग, िचन, कायक, हक्रमा अथिा अन्म शब्दं से सॊफॊध। 2.सिणनाभ- बेद, ऩुरुष, धरॊग, िचन, कायक, हक्रमा अथिा अन्म शब्दं से सॊफॊध। हकस सॊऻा के स्थान ऩय आमा है (महद ऩता हो)। 3.हक्रमा- बेद, धरॊग, िचन, प्रमोग, धातु, कार, िाच्म, कताण औय कभण से सॊफॊध। 4.विशेषण- बेद, धरॊग, िचन औय विशेष्म की विशेषता। 5.हक्रमा-विशेषण- बेद, णजस हक्रमा की विशेषता फताई गई हो उसके फाये भं धनदे श। 6.सॊफॊधफोधक- बेद, णजससे सॊफॊध है उसका धनदे श। 7.सभुच्चमफोधक- बेद, अणन्ित शब्द, िाक्माॊश मा िाक्म। 8.विस्भमाहदफोधक- बेद अथाणत कौन-सा बाि स्ऩष्ट कय यहा है ।
अध्माम 22 शब्द ऻान 1. ऩमाणमिाची शब्द हकसी शब्द-विशेष के धरए प्रमुि सभानाथणक शब्दं को ऩमाणमिाची शब्द कहते हं । मद्यवऩ ऩमाणमिाची शब्द सभानाथी होते हं हकन्तु बाि भं एक-दस ू ये से हकॊधचत धबन्न होते हं ।
1.अभृत- सुधा, सोभ, ऩीमूष, अधभम।
हहन्दी व्माकयण 2.असुय- याऺस, दै त्म, दानि, धनशाचय। 3.अणग्न- आग, अनर, ऩािक, िहह्न। 4.अश्व- घोड़ा, हम, तुयॊग, फाजी। 5.आकाश- गगन, नब, आसभान, व्मोभ, अॊफय। 6.आॉखे- नेत्र, दृग, नमन, रोचन। 7.इच्छा- आकाॊऺा, चाह, अधबराषा, काभना। 8.इॊ द्र- सुयेश, दे िंद्र, दे ियाज, ऩुयॊदय। 9.ईश्वय- प्रबु, ऩयभेश्वय, बगिान, ऩयभात्भा। 10.कभर- जरज, ऩॊकज, सयोज, याजीि, अयविन्द। 11.गयभी- ग्रीष्भ, ताऩ, धनदाघ, ऊष्भा। 12.गृह- घय, धनकेतन, बिन, आरम। 13.गॊगा- सुयसरय, वत्रऩथगा, दे िनदी, जाह्निी, बागीयथी। 14.चॊद्र- चाॉद, चॊद्रभा, विधु, शधश, याकेश। 15.जर- िारय, ऩानी, नीय, सधरर, तोम।
16.नदी- सरयता, तहटनी, तयॊ धगणी, धनझणरयणी। 17.ऩिन- िामु, सभीय, हिा, अधनर। 18.ऩत्नोी- बामाण, दाया, अधाणधगनी, िाभा। 19.ऩुत्र- फेटा, सुत, तनम, आत्भज। 20.ऩुत्री-फेटी, सुता, तनमा, आत्भजा। 21.ऩृथ्िी- धया, भही, धयती, िसुधा, बूधभ, िसुॊधया। 22.ऩिणत- शैर, नग, बूधय, ऩहाड़। 23.वफजरी- चऩरा, चॊचरा, दाधभनी, सौदाभनी। 24.भेघ- फादर, जरधय, ऩमोद, ऩमोधय, घन। 25.याजा- नृऩ, नृऩधत, बूऩधत, नयऩधत। 26.यजनी- यावत्र, धनशा, माधभनी, विबाियी। 27.सऩण- साॊऩ, अहह, बुजॊग, विषधय। 28.सागय- सभुद्र, उदधध, जरधध, िारयधध। 29.धसॊह- शेय, िनयाज, शादण र ू , भृगयाज। 30.सूम-ण यवि, हदनकय, सूयज, बास्कय।
31.स्त्री- ररना, नायी, काधभनी, यभणी, भहहरा। 32.धशऺक- गुरु, अध्माऩक, आचामण, उऩाध्माम। 33.हाथी- कुॊजय, गज, हद्वऩ, कयी, हस्ती। 2. अनेक शब्दं के धरए एक शब्द
72
हहन्दी व्माकयण
73
1
णजसे दे खेकय डय (बम) रगे
डयािना, बमानक
2
जो णस्थय यहे
स्थािय
3
ऻान दे ने िारी
ऻानदा
4
बूत-ितणभान-बविष्म को दे खेने (जानने) िारे
वत्रकारदशी
5
जानने की इच्छा यखेने िारा
णजऻासु
6
णजसे ऺभा न हकमा जा सके
अऺम्म
7
ऩॊद्रह हदन भं एक फाय होने िारा
ऩाणऺक
8
अच्छे चरयत्र िारा
सच्चरयत्र
9
आऻा का ऩारन कयने िारा
आऻाकायी
10
योगी की धचहकत्सा कयने िारा
धचहकत्सक
11
सत्म फोरने िारा
सत्मिादी
12
दस ू यं ऩय उऩकाय कयने िारा
उऩकायी
13
णजसे कबी फुढ़ाऩा न आमे
अजय
14
दमा कयने िारा
दमारु
15
णजसका आकाय न हो
धनयाकाय
16
जो आॉखें के साभने हो
प्रत्मऺ
17
जहाॉ ऩहुॉचा न जा सके
अगभ, अगम्म
18
णजसे फहुत कभ ऻान हो, थोड़ा जानने िारा
अल्ऩऻ
19
भास भं एक फाय आने िारा
भाधसक
20
णजसके कोई सॊतान न हो
धनस्सॊतान
21
जो कबी न भये
अभय
22
णजसका आचयण अच्छा न हो
दयु ाचायी
23
णजसका कोई भूल्म न हो
अभूल्म
24
जो िन भं घूभता हो
िनचय
25
जो इस रोक से फाहय की फात हो
अरौहकक
हहन्दी व्माकयण 26
जो इस रोक की फात हो
रौहकक
27
णजसके नीचे ये खेा हो
ये खेाॊहकत
28
णजसका सॊफॊध ऩणिभ से हो
ऩािात्म
29
जो णस्थय यहे
स्थािय
30
दखे ु ाॊत नाटक
त्रासदी
31
जो ऺभा कयने के मोग्म हो
ऺम्म
32
हहॊ सा कयने िारा
हहॊ सक
33
हहत चाहने िारा
हहतैषी
34
हाथ से धरखेा हुआ
हस्तधरणखेत
35
सफ कुछ जानने िारा
सिणऻ
36
जो स्िमॊ ऩैदा हुआ हो
स्िमॊबू
37
जो शयण भं आमा हो
शयणागत
38
णजसका िणणन न हकमा जा सके
िणणनातीत
39
पर-पूर खेाने िारा
शाकाहायी
40
णजसकी ऩत्नोी भय गई हो
विधुय
41
णजसका ऩधत भय गमा हो
विधिा
42
सौतेरी भाॉ
विभाता
43
व्माकयण जाननेिारा
िैमाकयण
44
यचना कयने िारा
यचधमता
45
खेून से यॉ गा हुआ
यियॊ णजत
46
अत्मॊत सुन्दय स्त्री
रूऩसी
47
कीधतणभान ऩुरुष
मशस्िी
48
कभ खेचण कयने िारा
धभतव्ममी
49
भछरी की तयह आॉखें िारी
भीनाऺी
50
भमूय की तयह आॉखें िारी
भमूयाऺी
74
हहन्दी व्माकयण
75
51
फच्चं के धरए काभ की िस्तु
फारोऩमोगी
52
णजसकी फहुत अधधक चचाण हो
फहुचधचणत
53
णजस स्त्री के कबी सॊतान न हुई हो
िॊध्मा (फाॉझ)
54
पेन से बया हुआ
पेधनर
55
वप्रम फोरने िारी स्त्री
वप्रमॊिदा
56
णजसकी उऩभा न हो
धनरुऩभ
57
जो थोड़ी दे य ऩहरे ऩैदा हुआ हो
निजात
58
णजसका कोई आधाय न हो
धनयाधाय
59
नगय भं िास कयने िारा
नागरयक
60
यात भं घूभने िारा
धनशाचय
61
ईश्वय ऩय विश्वास न यखेने िारा
नाणस्तक
62
भाॊस न खेाने िारा
धनयाधभष
63
वफरकुर फयफाद हो गमा हो
ध्िस्त
64
णजसकी धभण भं धनष्ठा हो
धभणधनष्ठ
65
दे खेने मोग्म
दशणनीम
66
फहुत तेज चरने िारा
द्रत ु गाभी
67
जो हकसी ऩऺ भं न हो
तटस्थ
68
तत्त्त्त्ति को जानने िारा
तत्त्त्त्तिऻ
69
तऩ कयने िारा
तऩस्िी
70
जो जन्भ से अॊधा हो
जन्भाॊध
71
णजसने इॊ हद्रमं को जीत धरमा हो
णजतंहद्रम
72
धचॊता भं डू फा हुआ
धचॊधतत
73
जो फहुत सभम कय ठहये
धचयस्थामी
74
णजसकी चाय बुजाएॉ हं
चतुबज ुण
75
हाथ भं चक्र धायण कयनेिारा
चक्रऩाणण
हहन्दी व्माकयण 76
णजससे घृणा की जाए
घृणणत
77
णजसे गुप्त यखेा जाए
गोऩनीम
78
गणणत का ऻाता
गणणतऻ
79
आकाश को चूभने िारा
गगनचुफ ॊ ी
80
जो टु कड़े -टु कड़े हो गमा हो
खेॊहडत
818 आकाश भं उड़ने िारा
नबचय
82
तेज फुवद्धिारा
कुशाग्रफुवद्ध
83
कल्ऩना से ऩये हो
कल्ऩनातीत
84
जो उऩकाय भानता है
कृ तऻ
85
हकसी की हॉ सी उड़ाना
उऩहास
86
ऊऩय कहा हुआ
उऩमुि ण
87
ऊऩय धरखेा गमा
उऩरयधरणखेत
88
णजस ऩय उऩकाय हकमा गमा हो
उऩकृ त
89
इधतहास का ऻाता
अधतहासऻ
90
आरोचना कयने िारा
आरोचक
91
ईश्वय भं आस्था यखेने िारा
आणस्तक
92
वफना िेतन का
अिैतधनक
93
जो कहा न जा सके
अकथनीम
94
जो धगना न जा सके
अगणणत
95
णजसका कोई शत्रु ही न जन्भा हो
अजातशत्रु
96
णजसके सभान कोई दस ू या न हो
अहद्वतीम
97
जो ऩरयधचत न हो
अऩरयधचत
98
णजसकी कोई उऩभा न हो
अनुऩभ
3. विऩयीताथणक (विरोभ शब्द)
76
हहन्दी व्माकयण शब्द
विरोभ
शब्द
विरोभ
शब्द
विरोभ
अथ
इधत
आविबाणि
धतयोबाि
आकषणण
विकषणण
आधभष
धनयाधभष
अधबऻ
अनधबऻ
आजादी
गुराभी
अनुकूर
प्रधतकूर
आद्रण
शुष्क
अनुयाग
वियाग
आहाय
धनयाहाय
अल्ऩ
अधधक
अधनिामण
िैकणल्ऩक
अभृत
विष
अगभ
सुगभ
अधबभान
नम्रता
आकाश
ऩातार
आशा
धनयाशा
अथण
अनथण
अल्ऩामु
दीघाणमु
अनुग्रह
विग्रह
अऩभान
सम्भान
आधश्रत
धनयाधश्रत
अॊधकाय
प्रकाश
अनुज
अग्रज
अरुधच
रुधच
आहद
अॊत
आदान
प्रदान
आयॊ ब
अॊत
आम
व्मम
अिाणचीन
प्राचीन
अिनधत
उन्नधत
कटु
भधुय
अिनी
अॊफय
हक्रमा
प्रधतहक्रमा
कृ तऻ
कृ तघ्न
आदय
अनादय
कड़िा
भीठा
आरोक
अॊधकाय
क्रुद्ध
शान्त
उदम
अस्त
क्रम
विक्रम
आमात
धनमाणत
कभण
धनष्कभण
अनुऩणस्थत
उऩणस्थत
णखेरना
भुयझाना
आरस्म
स्पूधतण
खेुशी
दखे ु , गभ
आमण
अनामण
गहया
उथरा
अधतिृवष्ट
अनािृवष्ट
गुरु
रघु
आहद
अनाहद
जीिन
भयण
इच्छा
अधनच्छा
गुण
दोष
इष्ट
अधनष्ट
गयीफ
अभीय
इणच्छत
अधनणच्छत
घय
फाहय
इहरोक
ऩयरोक
चय
अचय
उऩकाय
अऩकाय
छूत
अछूत
उदाय
अनुदाय
जर
थर
उत्तीणण
अनुत्तीणण
जड़
चेतन
उधाय
नकद
जीिन
भयण
उत्थान
ऩतन
जॊगभ
स्थािय
उत्कषण
अऩकषण
77
हहन्दी व्माकयण उत्तय
दणऺण
जहटर
सयस
गुप्त
प्रकट
एक
अनेक
तुच्छ
भहान
ऐसा
िैसा
हदन
यात
दे ि
दानि
दयु ाचायी
सदाचायी
भानिता
दानिता
धभण
अधभण
भहात्भा
दयु ात्भा
धीय
अधीय
भान
अऩभान
धूऩ
छाॉि
धभत्र
शत्रु
नूतन
ऩुयातन
भधुय
कटु
नकरी
असरी
धभथ्मा
सत्म
धनभाणण
विनाश
भौणखेक
धरणखेत
आणस्तक
नाणस्तक
भोऺ
फॊधन
धनकट
दयू
यऺक
बऺक
धनॊदा
स्तुधत
ऩधतव्रता
कुरटा
याजा
यॊ क
ऩाऩ
ऩुण्म
याग
द्वे ष
प्ररम
सृवष्ट
यावत्र
हदिस
ऩवित्र
अऩवित्र
राब
हाधन
विधिा
सधिा
प्रेभ
घृणा
विजम
ऩयाजम
प्रश्न
उत्तय
ऩूणण
अऩूणण
िसॊत
ऩतझय
ऩयतॊत्र
स्ितॊत्र
वियोध
सभथणन
फाढ़
सूखेा
शूय
कामय
फॊधन
भुवि
शमन
जागयण
फुयाई
बराई
शीत
उष्ण
बाि
अबाि
स्िगण
नयक
भॊगर
अभॊगर
सौबाग्म
दब ु ाणग्म
स्िीकृ त
अस्िीकृ त
शुक्र
कृ ष्ण
हहत
अहहत
साऺय
धनयऺय
स्िदे श
विदे श
हषण
शोक
हहॊ सा
अहहॊ सा
स्िाधीन
ऩयाधीन
ऺणणक
शाश्वत
साधु
असाधु
ऻान
अऻान
सुजन
दज ण ु न
शुब
अशुब
सुऩुत्र
कुऩुत्र
सुभधत
कुभधत
सयस
नीयस
सच
झूठ
साकाय
धनयाकाय
श्रभ
विश्राभ
स्तुधत
धनॊदा
विशुद्ध
दवू षत
सजीि
धनजीि
78
हहन्दी व्माकयण विषभ
सभ
सुय
असुय
विद्वान
4. एकाथणक प्रतीत होने िारे शब्द 1. अस्त्र- जो हधथमाय हाथ से पंककय चरामा जाए। जैसे-फाण। शस्त्र- जो हधथमाय हाथ भं ऩकड़े -ऩकड़े चरामा जाए। जैसे-कृ ऩाण। 2. अरौहकक- जो इस जगत भं कहठनाई से प्राप्त हो। रोकोत्तय। अस्िाबाविक- जो भानि स्िबाि के विऩयीत हो। असाधायण- साॊसारयक होकय बी अधधकता से न धभरे। विशेष। 3. अभूल्म- जो चीज भूल्म दे कय बी प्राप्त न हो सके। फहुभूल्म- णजस चीज का फहुत भूल्म दे ना ऩड़ा। 4. आनॊद- खेुशी का स्थामी औय गॊबीय बाि। आह्लाद- ऺणणक एिॊ तीव्र आनॊद। उल्रास- सुखे-प्राधप्त की अल्ऩकाधरक हक्रमा, उभॊग। प्रसन्नता-साधायण आनॊद का बाि। 5. ईष्माण- दस ू ये की उन्नधत को सहन न कय सकना। डाह-ईष्माणमुि जरन।
द्वे ष- शत्रुता का बाि।
स्ऩधाण- दस ू यं की उन्नधत दे खेकय स्िमॊ उन्नधत कयने का प्रमास कयना। 6. अऩयाध- साभाणजक एिॊ सयकायी कानून का उल्रॊघन। ऩाऩ- नैधतक एिॊ धाधभणक धनमभं को तोड़ना। 7. अनुनम-हकसी फात ऩय सहभत होने की प्राथणना। विनम- अनुशासन एिॊ धशष्टताऩूणण धनिेदन। आिेदन-मोग्मतानुसाय हकसी ऩद के धरए कथन द्वाया प्रस्तुत होना। प्राथणना- हकसी कामण-धसवद्ध के धरए विनम्रताऩूणण कथन। 8. आऻा-फड़ं का छोटं को कुछ कयने के धरए आदे श। अनुभधत-प्राथणना कयने ऩय फड़ं द्वाया दी गई सहभधत। 9. इच्छा- हकसी िस्तु को चाहना। उत्कॊठा- प्रतीऺामुि प्राधप्त की तीव्र इच्छा। आशा-प्राधप्त की सॊबािना के साथ इच्छा का सभन्िम। स्ऩृहा-उत्कृ ष्ट इच्छा। 10. सुॊदय- आकषणक िस्तु। चारु- ऩवित्र औय सुॊदय िस्तु।
भूखेण
79
हहन्दी व्माकयण रुधचय-सुरुधच जाग्रत कयने िारी सुॊदय िस्तु। भनोहय- भन को रुबाने िारी िस्तु। 11. धभत्र- सभिमस्क, जो अऩने प्रधत प्माय यखेता हो। सखेा-साथ यहने िारा सभिमस्क। सगा-आत्भीमता यखेने िारा। सुरृदम-सुॊदय रृदम िारा, णजसका व्मिहाय अच्छा हो। 12. अॊत्कयण- भन, धचत्त, फुवद्ध, औय अहॊ काय की सभवष्ट। धचत्त- स्भृधत, विस्भृधत, स्िप्न आहद गुणधायी धचत्त। भन- सुखे-दखे ु की अनुबूधत कयने िारा। 13. भहहरा- कुरीन घयाने की स्त्री। ऩत्नोी- अऩनी वििाहहत स्त्री। स्त्री- नायी जाधत की फोधक। 14. नभस्ते- सभान अिस्था िारो को अधबिादन। नभस्काय- सभान अिस्था िारं को अधबिादन। प्रणाभ- अऩने से फड़ं को अधबिादन। अधबिादन- सम्भाननीम व्मवि को हाथ जोड़ना। 15. अनुज- छोटा बाई। अग्रज- फड़ा बाई। बाई- छोटे -फड़े दोनं के धरए। 16. स्िागत- हकसी के आगभन ऩय सम्भान। अधबनॊदन- अऩने से फड़ं का विधधित सम्भान। 17. अहॊ काय- अऩने गुणं ऩय घभॊड कयना। अधबभान- अऩने को फड़ा औय दस ू ये को छोटा सभझना। दॊ ब- अमोग्म होते हुए बी अधबभान कयना।
18. भॊत्रणा- गोऩनीम रूऩ से ऩयाभशण कयना। ऩयाभशण- ऩूणत ण मा हकसी विषम ऩय विचाय-विभशण कय भत प्रकट कयना। 5.सभोच्चरयत शब्द 1. अनर=आग अधनर=हिा, िामु 2. उऩकाय=बराई, बरा कयना अऩकाय=फुयाई, फुया कयना 3. अन्न=अनाज
80
हहन्दी व्माकयण अन्म=दस ू या
4. अणु=कण अनु=ऩिात 5. ओय=तयप औय=तथा 6. अधसत=कारा अधशत=खेामा हुआ
7. अऩेऺा=तुरना भं उऩेऺा=धनयादय, राऩयिाही 8. कर=सुॊदय, ऩुयजा कार=सभम 9. अॊदय=बीतय अॊतय=बेद
10. अॊक=गोद अॊग=दे ह का बाग 11. कुर=िॊश कूर=हकनाया 12. अश्व=घोड़ा अश्भ=ऩत्थय 13. अधर=भ्रभय आरी=सखेी 14. कृ धभ=कीट कृ वष=खेेती 15. अऩचाय=अऩयाध उऩचाय=इराज 16. अन्माम=गैय-इॊ सापी अन्मान्म=दस ू ये -दस ू ये 17. कृ धत=यचना
कृ ती=धनऩुण, ऩरयश्रभी 18. आभयण=भृत्मुऩमंत आबयण=गहना 19. अिसान=अॊत आसान=सयर 20. कधर=कधरमुग, झगड़ा
81
हहन्दी व्माकयण करी=अधणखेरा पूर 21. इतय=दस ू या
इत्र=सुगॊधधत द्रव्म 22. क्रभ=धसरधसरा कभण=काभ 23. ऩरुष=कठोय ऩुरुष=आदभी 24. कुट=घय,हकरा कूट=ऩिणत 25. कुच=स्तन कूच=प्रस्थान 26. प्रसाद=कृ ऩा प्रासादा=भहर 27. कुजन=दज ण ु न
कूजन=ऩणऺमं का करयि 28. गत=फीता हुआ गधत=चार 29. ऩानी=जर ऩाणण=हाथ 30. गुय=उऩाम गुरु=धशऺक, बायी 31. ग्रह=सूम,ण चॊद्र गृह=घय 32. प्रकाय=तयह प्राकाय=हकरा, घेया 33. चयण=ऩैय चायण=बाट 34. धचय=ऩुयाना चीय=िस्त्र 35. पन=साॉऩ का पन फ़न=करा 36. छत्र=छामा ऺत्र=ऺवत्रम,शवि 37. ढीठ=दष्ट ु ,णजद्दी डीठ=दृवष्ट
82
हहन्दी व्माकयण 38. फदन=दे ह िदन=भुखे 39. तयणण=सूमण तयणी=नौका 40. तयॊ ग=रहय तुयॊग=घोड़ा 41. बिन=घय बुिन=सॊसाय 42. तप्त=गयभ तृप्त=सॊतुष्ट 43. हदन=हदिस दीन=दरयद्र 44. बीधत=बम धबवत्त=दीिाय
45. दशा=हारत हदशा=तयफ़ 46. द्रि=तयर ऩदाय अथ द्रव्म=धन 47. बाषण=व्माख्मान बीषण=बमॊकय 48. धया=ऩृथ्िी धाया=प्रिाह 49. नम=नीधत नि=नमा 50. धनिाणण=भोऺ धनभाणण=फनाना 51. धनजणय=दे िता धनझणय=झयना 52. भत=याम भधत=फुवद्ध 53. नेक=अच्छा नेकु=तधनक 54. ऩथ=याह ऩथ्म=योगी का आहाय
83
हहन्दी व्माकयण 55. भद=भस्ती भद्य=भहदया 56. ऩरयणाभ=पर ऩरयभाण=िजन 57. भणण=यत्नो पणी=सऩण 58. भधरन=भैरा म्रान=भुयझामा हुआ 59. भातृ=भाता भात्र=केिर 60. यीधत=तयीका यीता=खेारी 61. याज=शासन याज=यहस्म
62. रधरत=सुॊदय रधरता=गोऩी 63. रक्ष्म=उद्दे श्म रऺ=राखे 64. िऺ=छाती िृऺ=ऩेड़ 65. िसन=िस्त्र व्मसन=नशा, आदत 66. िासना=कुणत्सत विचाय फास=गॊध 67. िस्तु=चीज िास्तु=भकान 68. विजन=सुनसान व्मजन=ऩॊखेा 69. शॊकय=धशि सॊकय=धभधश्रत 70. हहम=रृदम हम=घोड़ा 71. शय=फाण
84
हहन्दी व्माकयण सय=ताराफ 72. शभ=सॊमभ सभ=फयाफय 73. चक्रिाक=चकिा चक्रिात=फिॊडय 74. शूय=िीय सूय=अॊधा 75. सुधध=स्भयण सुधी=फुवद्धभान 76. अबेद=अॊतय नहीॊ अबेद्य=न टू टने मोग्म 77. सॊघ=सभुदाम सॊग=साथ
78. सगण=अध्माम स्िगण=एक रोक 79. प्रणम=प्रेभ ऩरयणम=वििाह 80. सभथण=सऺभ साभथ्मण=शवि 81. कहटफॊध=कभयफॊध कहटफद्ध=तैमाय 82. क्राॊधत=विद्रोह क्राॊधत=थकािट 83. इॊ हदया=रक्ष्भी इॊ द्रा=इॊ द्राणी 6. अनेकाथणक शब्द 1. अऺय= नष्ट न होने िारा, िणण, ईश्वय, धशि। 2. अथण= धन, ऐश्वमण, प्रमोजन, हे तु। 3. आयाभ= फाग, विश्राभ, योग का दयू होना। 4. कय= हाथ, हकयण, टै क्स, हाथी की सूॉड़। 5. कार= सभम, भृत्मु, मभयाज। 6. काभ= कामण, ऩेशा, धॊधा, िासना, काभदे ि।
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हहन्दी व्माकयण
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7. गुण= कौशर, शीर, यस्सी, स्िबाि, धनुष की डोयी। 8. घन= फादर, बायी, हथौड़ा, घना। 9. जरज= कभर, भोती, भछरी, चॊद्रभा, शॊखे। 10. तात= वऩता, बाई, फड़ा, ऩूज्म, प्माया, धभत्र। 11. दर= सभूह, सेना, ऩत्ता, हहस्सा, ऩऺ, बाग, धचड़ी। 12. नग= ऩिणत, िृऺ, नगीना। 13. ऩमोधय= फादर, स्तन, ऩिणत, गन्ना। 14. पर= राब, भेिा, नतीजा, बारे की नोक। 15. फार= फारक, केश, फारा, दानेमुि डॊ ठर। 16. भधु= शहद, भहदया, चैत भास, एक दै त्म, िसॊत। 17. याग= प्रेभ, रार यॊ ग, सॊगीत की ध्िधन। 18. याधश= सभूह, भेष, ककण, िृणिक आहद याधशमाॉ। 19. रक्ष्म= धनशान, उद्दे श्म।
20. िणण= अऺय, यॊ ग, ब्राह्मण आहद जाधतमाॉ। 21. सायॊ ग= भोय, सऩण, भेघ, हहयन, ऩऩीहा, याजहॊ स, हाथी, कोमर, काभदे ि, धसॊह, धनुष बंया, भधुभक्खेी, कभर। 22. सय= अभृत, दध ू , ऩानी, गॊगा, भधु, ऩृथ्िी, ताराफ। 23. ऺेत्र= दे ह, खेेत, तीथण, सदाव्रत फाॉटने का स्थान। 24. धशि= बाग्मशारी, भहादे ि, श्रृगार, दे ि, भॊगर। 25. हरय= हाथी, विष्णु, इॊ द्र, ऩहाड़, धसॊह, घोड़ा, सऩण, िानय, भेढक, मभयाज, ब्रह्मा, धशि, कोमर, हकयण, हॊ स। 7. ऩशु-ऩणऺमं की फोधरमाॉ ऩशु
फोरी
ऩशु
फोरी
ऩशु
फोरी
ऊॉट
फरफराना
कोमर
कूकना
गाम
यॉ बाना
धचहड़मा
चहचहाना
बंस
फकयी
धभधभमाना
भोय
कुहकना
घोड़ा
तोता
टं -टं कयना
हाथी
धचघाड़ना
कौआ
साॉऩ
पुपकायना
शेय
दहाड़ना
सायस
डकयाना (यॉ बाना) हहनहहनाना काॉि-काॉि कयना क्रं-क्रं कयना
हहन्दी व्माकयण हटटहयी
टीॊ-टीॊ कयना
कुत्ता
बंकना
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भक्खेी धबनधबनाना
8. कुछ जड़ ऩदाथं की विशेष ध्िधनमाॉ मा हक्रमाएॉ णजह्वा
रऩरऩाना
दाॉत
हकटहकटाना
रृदम
धड़कना
ऩैय
ऩटकना
अश्रु
छरछराना
घड़ी
हटक-हटक कयना
ऩॊखे
पड़पड़ाना
ताये
जगभगाना
नौका
डगभगाना
भेघ
गयजना
9. कुछ साभान्म अशुवद्धमाॉ अशुद्ध
शुद्ध
अशुद्ध
अगाभी
आगाभी
सॊसारयक
अशुद्ध
शुद्ध
धरखेामी धरखेाई
सप्ताहहक
साप्ताहहक
साॊसारयक
क्मूॉ
क्मं
आधीन
अधीन
व्मोहाय
व्मिहाय
फयात
फायात
उऩन्माधस
औऩन्माधस
क
क
दधु नमाॊ
दधु नमा
धतथी
धतधथ
कारीदास
काधरदास
अधतथी
अधतधथ
नीती
नीधत
गृहणी
गृहहणी
आधशणिाद आशीिाणद
धनरयऺ ण
शुद्ध
अशुद्ध अरोहक क
शुद्ध अरौहकक
हस्ताऺेऩ हस्तऺेऩ ऺत्रीम
ऺवत्रम
ऩूयती
ऩूधतण
ऩरयणस्थ ऩरयणस्थ त
धत
धनयीऺण वफभायी
फीभायी
ऩणत्नो
ऩत्नोी
शताणब्द
शताब्दी
रड़ामी
रड़ाई
स्थाई
स्थामी
श्रीभधत
श्रीभती
साधभग्री
साभग्री
िावऩस
िाऩस
प्रदधशणनी
प्रदशणनी
ऊत्थान
उत्थान
दस ु या
दस ू या
साधू
साधु
ये णू
ये णु
नुऩुय
नूऩुय
अनुहदत
अनूहदत
जाद ु
जाद ू
फृज
ब्रज
प्रथक
ऩृथक
हहन्दी व्माकयण इधतहाधस
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ऐधतहाधसक दाइत्ि
दाधमत्ि सेधनक
सैधनक
सैना
सेना
घफड़ाना
घफयाना
श्राऩ
शाऩ
फनस्ऩधत
िनस्ऩधत
फन
िन
विना
वफना
फसॊत
िसॊत
अभािश्मा अभािस्मा
प्रशाद
प्रसाद
हॊ धसमा
हॉ धसमा
गॊिाय
गॉिाय
असोक
अशोक
धनस्िाथण धन्स्िाथण
दस् ु कय
दष्ु कय
धसयीभान
श्रीभान
भहाअन भहान
निभ ्
क
भुल्मिा भूल्मिा न
न
निभ
ऺात्र
छात्र
छभा
ऺभा
आदण श
षष्टभ ्
षष्ठ
प्रॊतु
ऩयॊ तु
प्रीऺा
ऩयीऺा
भयमादा भमाणदा
दद ु शाण
दद ु ण शा
कवित्री
किधमत्री प्रभात्भा
ऩयभात्भा
घधनष्ट
घधनष्ठ
याजधबषे
याज्माधबषे
क
क
वऩमास
प्मास
वितीत
व्मतीत
कृ प्मा
कृ ऩा
व्मविक
िैमविक
भाॊधसक
सभिाद
सॊिाद
सॊऩधत
सॊऩवत्त
विषेश
विशेष
शाशन
शासन
द्ु खे
दखे ु
भूरतम् भूरत्
वऩओ
वऩमो
हुमे
हुए
रीमे
धरए
सहास
साहस
याभामन
याभामण
चयन
चयण
यनबूधभ
यणबूधभ
यसामण
यसामन
प्रान
प्राण
भयन
भयण
कल्मान
कल्माण
ऩडता
ऩड़ता
ढ़े य
ढे य
झाडू
झाड़ू
भंढ़क
भेढक
श्रेष्ट
श्रेष्ठ
षष्टी
षष्ठी
धनष्टा
धनष्ठा
सृवष्ठ
सृवष्ट
इष्ठ
इष्ट
स्िास्थ
स्िास्थ्म
ऩाॊडे
ऩाॊडेम
स्ितॊत्रा
स्ितॊत्रता
उऩरऺ
उऩरक्ष्म
भहत्ि
भहत्त्त्त्ि
आल्हाद आह्लाद
उज्िर
उज्जिर
व्मस्क
िमस्क
भानधस क
आदशण
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अध्माम 23 वियाभ धचह्न वियाभ-धचह्न- ‘वियाभ’ शब्द का अथण है ‘रुकना’। जफ हभ अऩने बािं को बाषा के द्वाया व्मि कयते हं तफ एक बाि की अधबव्मवि के फाद कुछ दे य रुकते हं , मह रुकना ही वियाभ कहराता है । इस वियाभ को प्रकट कयने हे तु णजन कुछ धचह्नं का प्रमोग हकमा जाता है , वियाभ-धचह्न कहराते हं । िे इस प्रकाय हं 1. अल्ऩ वियाभ (,)- ऩढ़ते अथिा फोरते सभम फहुत थोड़ा रुकने के धरए अल्ऩ वियाभ-
धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-सीता, गीता औय रक्ष्भी। मह सुॊदय स्थर, जो आऩ दे खे यहे हं , फाऩू की सभाधध है । हाधन-राब, जीिन-भयण, मश-अऩमश विधध हाथ। 2. अधण वियाभ (;)- जहाॉ अल्ऩ वियाभ की अऩेऺा कुछ ज्मादा दे य तक रुकना हो िहाॉ इस अधण-वियाभ धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-सूमोदम हो गमा; अॊधकाय न जाने कहाॉ रुप्त हो गमा। 3. ऩूणण वियाभ (।)- जहाॉ िाक्म ऩूणण होता है िहाॉ ऩूणण वियाभ-धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-भोहन ऩुस्तक ऩढ़ यहा है । िह पूर तोड़ता है । 4. विस्भमाहदफोधक धचह्न (!)- विस्भम, हषण, शोक, घृणा आहद बािं को दशाणने िारे शब्द के फाद अथिा कबी-कबी ऐसे िाक्माॊश मा िाक्म के अॊत भं बी विस्भमाहदफोधक धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे- हाम ! िह फेचाया भाया गमा। िह तो अत्मॊत सुशीर था ! फड़ा अफ़सोस है ! 5. प्रश्निाचक धचह्न (?)- प्रश्निाचक िाक्मं के अॊत भं प्रश्निाचक धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-हकधय चरे ? तुभ कहाॉ यहते हो ? 6. कोष्ठक ()- इसका प्रमोग ऩद (शब्द) का अथण प्रकट कयने हे तु, क्रभ-फोध औय नाटक मा एकाॊकी भं अधबनम के बािं को व्मि कयने के धरए हकमा जाता है । जैसे-धनयॊ तय (रगाताय) व्मामाभ कयते यहने से दे ह (शयीय) स्िस्थ यहता है । विश्व के भहान याष्डं भं (1) अभेरयका, (2) रूस, (3) चीन, (4) वब्रटे न आहद हं ।
नर-(णखेन्न होकय) ओय भेये दब ु ाणग्म ! तूने दभमॊती को भेये साथ फाॉधकय उसे बी जीिन-बय कष्ट हदमा।
7. धनदे शक धचह्न (-)- इसका प्रमोग विषम-विबाग सॊफॊधी प्रत्मेक शीषणक के आगे, िाक्मं, िाक्माॊशं अथिा ऩदं के भध्म विचाय अथिा बाि को विधशष्ट रूऩ से व्मि कयने हे त,ु उदाहयण अथिा जैसे के फाद, उद्धयण के अॊत भं, रेखेक के नाभ के ऩूिण औय
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कथोऩकथन भं नाभ के आगे हकमा जाता है । जैसे-सभस्त जीि-जॊतु-घोड़ा, ऊॉट, फैर, कोमर, धचहड़मा सबी व्माकुर थे। तुभ सो यहे हो- अच्छा, सोओ। द्वायऩार-बगिन ! एक दफ ु रा-ऩतरा ब्राह्मण द्वाय ऩय खेड़ा है ।
8. उद्धयण धचह्न (‘‘ ’’)- जफ हकसी अन्म की उवि को वफना हकसी ऩरयितणन के ज्मं-कात्मं यखेा जाता है , तफ िहाॉ इस धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है । इसके ऩूिण अल्ऩ वियाभ-धचह्न रगता है । जैसे-नेताजी ने कहा था, ‘‘तुभ हभं खेून दो, हभ तुम्हं आजादी दं गे।’’, ‘‘ ‘याभचरयत भानस’ तुरसी का अभय काव्म ग्रॊथ है ।’’ 9. आदे श धचह्न (:- )- हकसी विषम को क्रभ से धरखेना हो तो विषम-क्रभ व्मि कयने से ऩूिण इसका प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-सिणनाभ के प्रभुखे ऩाॉच बेद हं :(1) ऩुरुषिाचक, (2) धनिमिाचक, (3) अधनिमिाचक, (4) सॊफॊधिाचक, (5) प्रश्निाचक। 10. मोजक धचह्न (-)- सभस्त हकए हुए शब्दं भं णजस धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है , िह मोजक धचह्न कहराता है । जैसे-भाता-वऩता, दार-बात, सुखे-दखे ु , ऩाऩ-ऩुण्म।
11. राघि धचह्न (.)- हकसी फड़े शब्द को सॊऺेऩ भं धरखेने के धरए उस शब्द का प्रथभ
अऺय धरखेकय उसके आगे शून्म रगा दे ते हं । जैसे-ऩॊहडत=ऩॊ., डॉक्टय=डॉ., प्रोपेसय=प्रो.।
अध्माम 24 िाक्म प्रकयण िाक्म- एक विचाय को ऩूणत ण ा से प्रकट कयने िारा शब्द-सभूह िाक्म कहराता है । जैसे- 1. श्माभ दध ू ऩी यहा है । 2. भं बागते-बागते थक गमा। 3. मह हकतना सुॊदय
उऩिन है । 4. ओह ! आज तो गयभी के कायण प्राण धनकरे जा यहे हं । 5. िह भेहनत कयता तो ऩास हो जाता। मे सबी भुखे से धनकरने िारी साथणक ध्िधनमं के सभूह हं । अत् मे िाक्म हं । िाक्म बाषा का चयभ अिमि है । िाक्म-खेॊड िाक्म के प्रभुखे दो खेॊड हं 1. उद्दे श्म। 2. विधेम। 1. उद्दे श्म- णजसके विषम भं कुछ कहा जाता है उसे सूचहक कयने िारे शब्द को उद्दे श्म
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कहते हं । जैसे1. अजुन ण ने जमद्रथ को भाया। 2. कुत्ता बंक यहा है । 3. तोता डार ऩय फैठा है । इनभं अजुन ण ने, कुत्ता, तोता उद्दे श्म हं ; इनके विषम भं कुछ कहा गमा है । अथिा मं कह सकते हं हक िाक्म भं जो कताण हो उसे उद्दे श्म कह सकते हं क्मंहक हकसी हक्रमा को कयने के कायण िही भुख्म होता है । 2. विधेम- उद्दे श्म के विषम भं जो कुछ कहा जाता है , अथिा उद्दे श्म (कताण) जो कुछ कामण कयता है िह सफ विधेम कहराता है । जैसे1. अजुन ण ने जमद्रथ को भाया। 2. कुत्ता बंक यहा है । 3. तोता डार ऩय फैठा है । इनभं ‘जमद्रथ को भाया’, ‘बंक यहा है ’, ‘डार ऩय फैठा है ’ विधेम हं क्मंहक अजुन ण ने,
कुत्ता, तोता,-इन उद्दे श्मं (कताणओॊ) के कामं के विषम भं क्रभश् भाया, बंक यहा है , फैठा है , मे विधान हकए गए हं , अत् इन्हं विधेम कहते हं । उद्दे श्म का विस्ताय- कई फाय िाक्म भं उसका ऩरयचम दे ने िारे अन्म शब्द बी साथ आए होते हं । मे अन्म शब्द उद्दे श्म का विस्ताय कहराते हं । जैसे1. सुॊदय ऩऺी डार ऩय फैठा है । 2. कारा साॉऩ ऩेड़ के नीचे फैठा है । इनभं सुॊदय औय कारा शब्द उद्दे श्म का विस्ताय हं । उद्दे श्म भं धनम्नधरणखेत शब्द-बेदं का प्रमोग होता है (1) सॊऻा- घोड़ा बागता है । (2) सिणनाभ- िह जाता है । (3) विशेषण- विद्वान की सिणत्र ऩूजा होती है । (4) हक्रमा-विशेषण- (णजसका) बीतय-फाहय एक-सा हो। (5) िाक्माॊश- झूठ फोरना ऩाऩ है । िाक्म के साधायण उद्दे श्म भं विशेषणाहद जोड़कय उसका विस्ताय कयते हं । उद्दे श्म का विस्ताय नीचे धरखेे शब्दं के द्वाया प्रकट होता है (1) विशेषण से- अच्छा फारक आऻा का ऩारन कयता है । (2) सॊफॊध कायक से- दशणकं की बीड़ ने उसे घेय धरमा। (3) िाक्माॊश से- काभ सीखेा हुआ कायीगय कहठनाई से धभरता है ।
विधेम का विस्ताय- भूर विधेम को ऩूणण कयने के धरए णजन शब्दं का प्रमोग हकमा जाता है िे विधेम का विस्ताय कहराते हं । जैसे-िह अऩने ऩैन से धरखेता है । इसभं
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अऩने विधेम का विस्ताय है । कभण का विस्ताय- इसी तयह कभण का विस्ताय हो सकता है । जैसे-धभत्र, अच्छी ऩुस्तकं ऩढ़ो। इसभं अच्छी कभण का विस्ताय है । हक्रमा का विस्ताय- इसी तयह हक्रमा का बी विस्ताय हो सकता है । जैसे-श्रेम भन रगाकय ऩढ़ता है । भन रगाकय हक्रमा का विस्ताय है । िाक्म-बेद यचना के अनुसाय िाक्म के धनम्नधरणखेत बेद हं 1. साधायण िाक्म। 2. सॊमुि िाक्म। 3. धभधश्रत िाक्म। 1. साधायण िाक्म णजस िाक्म भं केिर एक ही उद्दे श्म (कताण) औय एक ही सभावऩका हक्रमा हो, िह साधायण िाक्म कहराता है । जैसे- 1. फच्चा दध ू ऩीता है । 2. कभर गंद से खेेरता है । 3. भृदर ु ा ऩुस्तक ऩढ़ यही हं ।
विशेष-इसभं कताण के साथ उसके विस्तायक विशेषण औय हक्रमा के साथ विस्तायक सहहत कभण एिॊ हक्रमा-विशेषण आ सकते हं । जैसे-अच्छा फच्चा भीठा दध ू अच्छी तयह ऩीता है । मह बी साधायण िाक्म है । 2. सॊमुि िाक्म दो अथिा दो से अधधक साधायण िाक्म जफ साभानाधधकयण सभुच्चमफोधकं जैसे(ऩय, हकन्तु, औय, मा आहद) से जुड़े होते हं , तो िे सॊमुि िाक्म कहराते हं । मे चाय प्रकाय के होते हं । (1) सॊमोजक- जफ एक साधायण िाक्म दस ू ये साधायण मा धभधश्रत िाक्म से सॊमोजक अव्मम द्वाया जुड़ा होता है । जैसे-गीता गई औय सीता आई।
(2) विबाजक- जफ साधायण अथिा धभश्र िाक्मं का ऩयस्ऩय बेद मा वियोध का सॊफॊध यहता है । जैसे-िह भेहनत तो फहुत कयता है ऩय पर नहीॊ धभरता।
(3) विकल्ऩसूचक- जफ दो फातं भं से हकसी एक को स्िीकाय कयना होता है । जैसे- मा तो उसे भं अखेाड़े भं ऩछाड़ू ॉ गा मा अखेाड़े भं उतयना ही छोड़ दॉ ग ू ा।
(4) ऩरयणाभफोधक- जफ एक साधायण िाक्म दसूये साधायण मा धभधश्रत िाक्म का
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ऩरयणाभ होता है । जैसे- आज भुझे फहुत काभ है इसधरए भं तुम्हाये ऩास नहीॊ आ सकूॉगा।
3. धभधश्रत िाक्म जफ हकसी विषम ऩय ऩूणण विचाय प्रकट कयने के धरए कई साधायण िाक्मं को धभराकय एक िाक्म की यचना कयनी ऩड़ती है तफ ऐसे यधचत िाक्म ही धभधश्रत िाक्म कहराते हं । विशेष- (1) इन िाक्मं भं एक भुख्म मा प्रधान उऩिाक्म औय एक अथिा अधधक आधश्रत उऩिाक्म होते हं जो सभुच्चमफोधक अव्मम से जुड़े होते हं । (2) भुख्म उऩिाक्म की ऩुवष्ट, सभथणन, स्ऩष्टता अथिा विस्ताय हे तु ही आधश्रत िाक्म आते है । आधश्रत िाक्म तीन प्रकाय के होते हं (1) सॊऻा उऩिाक्म। (2) विशेषण उऩिाक्म। (3) हक्रमा-विशेषण उऩिाक्म। 1. सॊऻा उऩिाक्म- जफ आधश्रत उऩिाक्म हकसी सॊऻा अथिा सिणनाभ के स्थान ऩय आता है तफ िह सॊऻा उऩिाक्म कहराता है । जैसे- िह चाहता है हक भं महाॉ कबी न आऊॉ। महाॉ हक भं कबी न आऊॉ, मह सॊऻा उऩिाक्म है । 2. विशेषण उऩिाक्म- जो आधश्रत उऩिाक्म भुख्म उऩिाक्म की सॊऻा शब्द अथिा सिणनाभ शब्द की विशेषता फतराता है िह विशेषण उऩिाक्म कहराता है । जैसे- जो घड़ी भेज ऩय यखेी है िह भुझे ऩुयस्कायस्िरूऩ धभरी है । महाॉ जो घड़ी भेज ऩय यखेी है मह विशेषण उऩिाक्म है । 3. हक्रमा-विशेषण उऩिाक्म- जफ आधश्रत उऩिाक्म प्रधान उऩिाक्म की हक्रमा की विशेषता फतराता है तफ िह हक्रमा-विशेषण उऩिाक्म कहराता है । जैसे- जफ िह भेये ऩास आमा तफ भं सो यहा था। महाॉ ऩय जफ िह भेये ऩास आमा मह हक्रमा-विशेषण उऩिाक्म है ।
िाक्म-ऩरयितणन िाक्म के अथण भं हकसी तयह का ऩरयितणन हकए वफना उसे एक प्रकाय के िाक्म से दस ू ये प्रकाय के िाक्म भं ऩरयितणन कयना िाक्म-ऩरयितणन कहराता है । (1) साधायण िाक्मं का सॊमुि िाक्मं भं ऩरयितणनसाधायण िाक्म सॊमुि िाक्म
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1. भं दध ू ऩीकय सो गमा। भंने दध ू वऩमा औय सो गमा।
2. िह ऩढ़ने के अरािा अखेफाय बी फेचता है । िह ऩढ़ता बी है औय अखेफाय बी फेचता है 3. भंने घय ऩहुॉचकय सफ फच्चं को खेेरते हुए दे खेा। भंने घय ऩहुॉचकय दे खेा हक सफ फच्चे खेेर यहे थे।
4. स्िास्थ्म ठीक न होने से भं काशी नहीॊ जा सका। भेया स्िास्थ्म ठीक नहीॊ था इसधरए भं काशी नहीॊ जा सका। 5. सिेये तेज िषाण होने के कायण भं दर्फतय दे य से ऩहुॉचा। सिेये तेज िषाण हो यही थी इसधरए भं दर्फतय दे य से ऩहुॉचा।
(2) सॊमुि िाक्मं का साधायण िाक्मं भं ऩरयितणनसॊमुि िाक्म साधायण िाक्म 1. वऩताजी अस्िस्थ हं इसधरए भुझे जाना ही ऩड़े गा। वऩताजी के अस्िस्थ होने के कायण भुझे जाना ही ऩड़े गा।
2. उसने कहा औय भं भान गमा। उसके कहने से भं भान गमा। 3. िह केिर उऩन्मासकाय ही नहीॊ अवऩतु अच्छा ििा बी है । िह उऩन्मासकाय के अधतरयि अच्छा ििा बी है । 4. रू चर यही थी इसधरए भं घय से फाहय नहीॊ धनकर सका। रू चरने के कायण भं घय से फाहय नहीॊ धनकर सका। 5. गाडण ने सीटी दी औय ट्रे न चर ऩड़ी। गाडण के सीटी दे ने ऩय ट्रे न चर ऩड़ी। (3) साधायण िाक्मं का धभधश्रत िाक्मं भं ऩरयितणनसाधायण िाक्म धभधश्रत िाक्म 1. हयधसॊगाय को दे खेते ही भुझे गीता की माद आ जाती है । जफ भं हयधसॊगाय की ओय दे खेता हूॉ तफ भुझे गीता की माद आ जाती है ।
2. याष्ड के धरए भय धभटने िारा व्मवि सच्चा याष्डबि है । िह व्मवि सच्चा याष्डबि है जो याष्ड के धरए भय धभटे । 3. ऩैसे के वफना इॊ सान कुछ नहीॊ कय सकता। महद इॊ सान के ऩास ऩैसा नहीॊ है तो िह कुछ नहीॊ कय सकता। 4. आधी यात होते-होते भंने काभ कयना फॊद कय हदमा। ज्मंही आधी यात हुई त्मंही भंने काभ कयना फॊद कय हदमा।
(4) धभधश्रत िाक्मं का साधायण िाक्मं भं ऩरयितणनधभधश्रत िाक्म साधायण िाक्म 1. जो सॊतोषी होते हं िे सदै ि सुखेी यहते हं सॊतोषी सदै ि सुखेी यहते हं । 2. महद तुभ नहीॊ ऩढ़ोगे तो ऩयीऺा भं सपर नहीॊ होगे। न ऩढ़ने की दशा भं तुभ
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ऩयीऺा भं सपर नहीॊ होगे। 3. तुभ नहीॊ जानते हक िह कौन है ? तुभ उसे नहीॊ जानते। 4. जफ जेफकतये ने भुझे दे खेा तो िह बाग गमा। भुझे दे खेकय जेफकतया बाग गमा। 5. जो विद्वान है , उसका सिणत्र आदय होता है । विद्वानं का सिणत्र आदय होता है । िाक्म-विश्लेषण िाक्म भं आए हुए शब्द अथिा िाक्म-खेॊडं को अरग-अरग कयके उनका ऩायस्ऩरयक सॊफॊध फताना िाक्म-विश्लेषण कहराता है । साधायण िाक्मं का विश्लेषण 1. हभाया याष्ड सभृद्धशारी है । 2. हभं धनमधभत रूऩ से विद्यारम आना चाहहए। 3. अशोक, सोहन का फड़ा ऩुत्र, ऩुस्तकारम भं अच्छी ऩुस्तकं छाॉट यहा है । उद्दे श्म विधेम िाक्म उद्दे श्म उद्दे श्म का हक्रमा कभण कभण का ऩूयक विधेम क्रभाॊक कताण विस्ताय विस्ताय का विस्ताय 1. याष्ड हभाया है - - सभृद्ध 2. हभं - आना विद्यारम - शारी धनमधभत चाहहए रूऩ से 3. अशोक सोहन का छाॉट यहा ऩुस्तकं अच्छी ऩुस्तकारम फड़ा ऩुत्र है भं धभधश्रत िाक्म का विश्लेषण1. जो व्मवि जैसा होता है िह दस ू यं को बी िैसा ही सभझता है ।
2. जफ-जफ धभण की ऺधत होती है तफ-तफ ईश्वय का अिताय होता है । 3. भारूभ होता है हक आज िषाण होगी। 4. जो सॊतोषी होत हं िे सदै ि सुखेी यहते हं ।
5. दाशणधनक कहते हं हक जीिन ऩानी का फुरफुरा है । सॊमुि िाक्म का विश्लेषण1. तेज िषाण हो यही थी इसधरए ऩयसं भं तुम्हाये घय नहीॊ आ सका। 2. भं तुम्हायी याह दे खेता यहा ऩय तुभ नहीॊ आए। 3. अऩनी प्रगधत कयो औय दस ू यं का हहत बी कयो तथा स्िाथण भं न हहचको। अथण के अनुसाय िाक्म के प्रकाय
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अथाणनुसाय िाक्म के धनम्नधरणखेत आठ बेद हं 1. विधानाथणक िाक्म। 2. धनषेधाथणक िाक्म। 3. आऻाथणक िाक्म। 4. प्रश्नाथणक िाक्म। 5. इच्छाथणक िाक्म। 6. सॊदेथक ण िाक्म। 7. सॊकेताथणक िाक्म। 8. विस्भमफोधक िाक्म। 1. विधानाथणक िाक्म-णजन िाक्मं भं हक्रमा के कयने मा होने का साभान्म कथन हो। जैसे-भं कर हदल्री जाऊॉगा। ऩृथ्िी गोर है । 2. धनषेधाथणक िाक्म- णजस िाक्म से हकसी फात के न होने का फोध हो। जैसे-भं हकसी से रड़ाई भोर नहीॊ रेना चाहता।
3. आऻाथणक िाक्म- णजस िाक्म से आऻा उऩदे श अथिा आदे श दे ने का फोध हो। जैसेशीघ्र जाओ ियना गाड़ी छूट जाएगी। आऩ जा सकते हं ।
4. प्रश्नाथणक िाक्म- णजस िाक्म भं प्रश्न हकमा जाए। जैसे-िह कौन हं उसका नाभ क्मा है । 5. इच्छाथणक िाक्म- णजस िाक्म से इच्छा मा आशा के बाि का फोध हो। जैसे-दीघाणमु हो। धनिान हो। 6. सॊदेहाथणक िाक्म- णजस िाक्म से सॊदेह का फोध हो। जैसे-शामद आज िषाण हो। अफ तक वऩताजी जा चुके हंगे। 7. सॊकेताथणक िाक्म- णजस िाक्म से सॊकेत का फोध हो। जैसे-महद तुभ कन्माकुभायी चरो तो भं बी चरूॉ। 8. विस्भमफोधक िाक्म-णजस िाक्म से विस्भम के बाि प्रकट हं। जैसे-अहा ! कैसा सुहािना भौसभ है ।
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अध्माम 25 अशुद्ध िाक्मं के शुद्ध िाक्म (1) िचन-सॊफॊधी अशुवद्धमाॉ अशुद्ध शुद्ध
1. ऩाहकस्तान ने गोरे औय तोऩं से आक्रभण हकमा। ऩाहकस्तान ने गोरं औय तोऩं से आक्रभण हकमा। 2. उसने अनेकं ग्रॊथ धरखेे। उसने अनेक ग्रॊथ धरखेे। 3. भहाबायत अठायह हदनं तक चरता यहा। भहाबायत अठायह हदन तक चरता यहा। 4. तेयी फात सुनते-सुनते कान ऩक गए। तेयी फातं सुनते-सुनते कान ऩक गए। 5. ऩेड़ं ऩय तोता फैठा है । ऩेड़ ऩय तोता फैठा है । (2) धरॊग सॊफॊधी अशुवद्धमाॉअशुद्ध शुद्ध 1. उसने सॊतोष का साॉस री। उसने सॊतोष की साॉस री। 2. सविता ने जोय से हॉ स हदमा। सविता जोय से हॉ स दी। 3. भुझे फहुत आनॊद आती है । भुझे फहुत आनॊद आता है । 4. िह धीभी स्िय भं फोरा। िह धीभे स्िय भं फोरा।
5. याभ औय सीता िन को गई। याभ औय सीता िन को गए। (3) विबवि-सॊफॊधी अशुवद्धमाॉअशुद्ध शुद्ध 1. भं मह काभ नहीॊ हकमा हूॉ। भंने मह काभ नहीॊ हकमा है । 2. भं ऩुस्तक को ऩढ़ता हूॉ। भं ऩुस्तक ऩढ़ता हूॉ।
3. हभने इस विषम को विचाय हकमा। हभने इस विषम ऩय विचाय हकमा 4. आठ फजने को दस धभनट है । आठ फजने भं दस धभनट है । 5. िह दे य भं सोकय उठता है । िह दे य से सोकय उठता है । (4) सॊऻा सॊफॊधी अशुवद्धमाॉअशुद्ध शुद्ध 1. भं यवििाय के हदन तुम्हाये घय आऊॉगा। भं यवििाय को तुम्हाये घय आऊॉगा। 2. कुत्ता यं कता है । कुत्ता बंकता है । 3. भुझे सपर होने की धनयाशा है । भुझे सपर होने की आशा नहीॊ है । 4. गरे भं गुराभी की फेहड़माॉ ऩड़ गई। ऩैयं भं गुराभी की फेहड़माॉ ऩड़ गई। (5) सिणनाभ की अशुवद्धमाॉअशुद्ध शुद्ध
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1. गीता आई औय कहा। गीता आई औय उसने कहा। 2. भंने तेये को हकतना सभझामा। भंने तुझे हकतना सभझामा। 3. िह क्मा जाने हक भं कैसे जीवित हूॉ। िह क्मा जाने हक भं कैसे जी यहा हूॉ। (6) विशेषण-सॊफॊधी अशुवद्धमाॉअशुद्ध शुद्ध 1. हकसी औय रड़के को फुराओ। हकसी दस ू ये रड़के को फुराओ। 2. धसॊह फड़ा फीबत्स होता है । धसॊह फड़ा बमानक होता है । 3. उसे बायी दखे ु हुआ। उसे फहुत दखे ु हुआ।
4. सफ रोग अऩना काभ कयो। सफ रोग अऩना-अऩना काभ कयो। (7) हक्रमा-सॊफॊधी अशुवद्धमाॉअशुद्ध शुद्ध 1. क्मा मह सॊबि हो सकता है ? क्मा मह सॊबि है ? 2. भं दशणन दे ने आमा था। भं दशणन कयने आमा था। 3. िह ऩढ़ना भाॉगता है । िह ऩढ़ना चाहता है ।
4. फस तुभ इतने रूठ उठे फस, तुभ इतने भं रूठ गए। 5. तुभ क्मा काभ कयता है ? तुभ क्मा काभ कयते हो ? (8) भुहािये -सॊफॊधी अशुवद्धमाॉअशुद्ध शुद्ध 1. मुग की भाॉग का मह फीड़ा कौन चफाता है मुग की भाॉग का मह फीड़ा कौन उठाता है । 2. िह श्माभ ऩय फयस गमा। िह श्माभ ऩय फयस ऩड़ा। 3. उसकी अक्र चक्कय खेा गई। उसकी अक्र चकया गई। 4. उस ऩय घड़ं ऩानी धगय गमा। उस ऩय घड़ं ऩानी ऩड़ गमा। (9) हक्रमा-विशेषण-सॊफॊधी अशुवद्धमाॉअशुद्ध शुद्ध 1. िह रगबग दौड़ यहा था। िह दौड़ यहा था। 2. सायी यात बय भं जागता यहा। भं सायी यात जागता यहा। 3. तुभ फड़ा आगे फढ़ गमा। तुभ फहुत आगे फढ़ गए.
4. इस ऩिणतीम ऺेत्र भं सिणस्ि शाॊधत है । इस ऩिणतीम ऺेत्र भं सिणत्र शाॊधत है ।
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अध्माम 26 भुहािये औय रोकोविमाॉ भुहािया- कोई बी ऐसा िाक्माॊश जो अऩने साधायण अथण को छोड़कय हकसी विशेष अथण को व्मि कये उसे भुहािया कहते हं ।
रोकोवि- रोकोविमाॉ रोक-अनुबि से फनती हं । हकसी सभाज ने जो कुछ अऩने रॊफे अनुबि से सीखेा है उसे एक िाक्म भं फाॉध हदमा है । ऐसे िाक्मं को ही रोकोवि कहते हं । इसे कहाित, जनश्रुधत आहद बी कहते हं । भुहािया औय रोकोवि भं अॊतय- भुहािया िाक्माॊश है औय इसका स्ितॊत्र रूऩ से प्रमोग नहीॊ हकमा जा सकता। रोकोवि सॊऩूणण िाक्म है औय इसका प्रमोग स्ितॊत्र रूऩ से हकमा जा सकता है । जैसे-‘होश उड़ जाना’ भुहािया है । ‘फकये की भाॉ कफ तक खेैय भनाएगी’ रोकोवि है । कुछ प्रचधरत भुहािये 1. अॊग सॊफॊधी भुहािये 1. अॊग छूटा- (कसभ खेाना) भं अॊग छूकय कहता हूॉ साहफ, भैने ऩाजेफ नहीॊ दे खेी।
2. अॊग-अॊग भुसकाना-(फहुत प्रसन्न होना)- आज उसका अॊग-अॊग भुसकया यहा था।
3. अॊग-अॊग टू टना-(साये फदन भं ददण होना)-इस ज्िय ने तो भेया अॊग-अॊग तोड़कय यखे हदमा। 4. अॊग-अॊग ढीरा होना-(फहुत थक जाना)- तुम्हाये साथ कर चरूॉगा। आज तो भेया अॊग-अॊग ढीरा हो यहा है । 2. अक्र-सॊफॊधी भुहािये 1. अक्र का दश्ु भन-(भूखे)ण - िह तो धनया अक्र का दश्ु भन धनकरा।
2. अक्र चकयाना-(कुछ सभझ भं न आना)-प्रश्न-ऩत्र दे खेते ही भेयी अक्र चकया गई। 3. अक्र के ऩीछे रठ धरए हपयना (सभझाने ऩय बी न भानना)- तुभ तो सदै ि अक्र के ऩीछे रठ धरए हपयते हो। 4. अक्र के घोड़े दौड़ाना-(तयह-तयह के विचाय कयना)- फड़े -फड़े िैऻाधनकं ने अक्र के घोड़े दौड़ाए, तफ कहीॊ िे अणुफभ फना सके। 3. आॉखे-सॊफॊधी भुहािये
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1. आॉखे हदखेाना-(गुस्से से दे खेना)- जो हभं आॉखे हदखेाएगा, हभ उसकी आॉखें पोड़ दे गं। 2. आॉखें भं धगयना-(सम्भानयहहत होना)- कुयसी की होड़ ने जनता सयकाय को जनता की आॉखें भं धगया हदमा। 3. आॉखें भं धूर झंकना-(धोखेा दे ना)- धशिाजी भुगर ऩहये दायं की आॉखें भं धूर झंककय फॊदीगृह से फाहय धनकर गए। 4. आॉखे चुयाना-(धछऩना)- आजकर िह भुझसे आॉखें चुयाता हपयता है । 5. आॉखे भायना-(इशाया कयना)-गिाह भेये बाई का धभत्र धनकरा, उसने उसे आॉखे भायी, अन्मथा िह भेये विरुद्ध गिाही दे दे ता। 6. आॉखे तयसना-(दे खेने के राराधमत होना)- तुम्हं दे खेने के धरए तो भेयी आॉखें तयस गई। 7. आॉखे पेय रेना-(प्रधतकूर होना)- उसने आजकर भेयी ओय से आॉखें पेय री हं । 8. आॉखे वफछाना-(प्रतीऺा कयना)- रोकनामक जमप्रकाश नायामण णजधय जाते थे उधय ही जनता उनके धरए आॉखें वफछाए खेड़ी होती थी।
9. आॉखें संकना-(सुॊदय िस्तु को दे खेते यहना)- आॉखे संकते यहोगे मा कुछ कयोगे बी 10. आॉखें चाय होना-(प्रेभ होना,आभना-साभना होना)- आॉखें चाय होते ही िह णखेड़की ऩय से हट गई। 11. आॉखें का ताया-(अधतवप्रम)-आशीष अऩनी भाॉ की आॉखें का ताया है । 12. आॉखे उठाना-(दे खेने का साहस कयना)- अफ िह कबी बी भेये साभने आॉखे नहीॊ उठा सकेगा। 13. आॉखे खेुरना-(होश आना)- जफ सॊफॊधधमं ने उसकी सायी सॊऩवत्त हड़ऩ री तफ उसकी आॉखें खेुरीॊ। 14. आॉखे रगना-(नीॊद आना अथिा व्माय होना)- फड़ी भुणश्कर से अफ उसकी आॉखे रगी है । आजकर आॉखे रगते दे य नहीॊ होती। 15. आॉखें ऩय ऩयदा ऩड़ना-(रोब के कायण सचाई न दीखेना)- जो दस ू यं को ठगा कयते हं , उनकी आॉखें ऩय ऩयदा ऩड़ा हुआ है । इसका पर उन्हं अिश्म धभरेगा।
16. आॉखें का काटा-(अवप्रम व्मवि)- अऩनी कुप्रिृवत्तमं के कायण याजन वऩताजी की आॉखें का काॉटा फन गमा। 17. आॉखें भं सभाना-(हदर भं फस जाना)- धगयधय भीया की आॉखें भं सभा गमा। 4. करेजा-सॊफॊधी कुछ भुहािये 1. करेजे ऩय हाथ यखेना-(अऩने हदर से ऩूछना)- अऩने करेजे ऩय हाथ यखेकय कहो हक क्मा तुभने ऩैन नहीॊ तोड़ा।
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2. करेजा जरना-(तीव्र असॊतोष होना)- उसकी फातं सुनकय भेया करेजा जर उठा। 3. करेजा ठॊ डा होना-(सॊतोष हो जाना)- डाकुओॊ को ऩकड़ा हुआ दे खेकय गाॉि िारं का करेजा ठॊ ढा हो गमा।
4. करेजा थाभना-(जी कड़ा कयना)- अऩने एकभात्र मुिा ऩुत्र की भृत्मु ऩय भाता-वऩता करेजा थाभकय यह गए। 5. करेजे ऩय ऩत्थय यखेना-(दखे ु भं बी धीयज यखेना)- उस फेचाये की क्मा कहते हं, उसने तो करेजे ऩय ऩत्थय यखे धरमा है ।
6. करेजे ऩय साॉऩ रोटना-(ईष्माण से जरना)- श्रीयाभ के याज्माधबषेक का सभाचाय सुनकय दासी भॊथया के करेजे ऩय साॉऩ रोटने रगा। 5. कान-सॊफॊधी कुछ भुहािये 1. कान बयना-(चुगरी कयना)- अऩने साधथमं के विरुद्ध अध्माऩक के कान बयने िारे विद्याथी अच्छे नहीॊ होते। 2. कान कतयना-(फहुत चतुय होना)- िह तो अबी से फड़े -फड़ं के कान कतयता है ।
3. कान का कच्चा-(सुनते ही हकसी फात ऩय विश्वास कयना)- जो भाधरक कान के कच्चे होते हं िे बरे कभणचारयमं ऩय बी विश्वास नहीॊ कयते। 4. कान ऩय जूॉ तक न यं गना-(कुछ असय न होना)-भाॉ ने गौयि को फहुत सभझामा, हकन्तु उसके कान ऩय जूॉ तक नहीॊ यं गी।
5. कानंकान खेफय न होना-(वफरकुर ऩता न चरना)-सोने के मे वफस्कुट रे जाओ, हकसी को कानंकान खेफय न हो। 6. नाक-सॊफॊधी कुछ भुहािये 1. नाक भं दभ कयना-(फहुत तॊग कयना)- आतॊकिाहदमं ने सयकाय की नाक भं दभ कय यखेा है ।
2. नाक यखेना-(भान यखेना)- सच ऩूछो तो उसने सच कहकय भेयी नाक यखे री। 3. नाक यगड़ना-(दीनता हदखेाना)-धगयहकट ने धसऩाही के साभने खेूफ नाक यगड़ी, ऩय उसने उसे छोड़ा नहीॊ। 4. नाक ऩय भक्खेी न फैठने दे ना-(अऩने ऩय आॉच न आने दे ना)-हकतनी ही भुसीफतं उठाई, ऩय उसने नाक ऩय भक्खेी न फैठने दी। 5. नाक कटना-(प्रधतष्ठा नष्ट होना)- अये बैमा आजकर की औराद तो खेानदान की नाक काटकय यखे दे ती है । 7. भुॉह-सॊफॊधी कुछ भुहािये
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1. भुॉह की खेाना-(हाय भानना)-ऩड़ोसी के घय के भाभरे भं दखेर दे कय हयद्वायी को भुॉह की खेानी ऩड़ी। 2. भुॉह भं ऩानी बय आना-(हदर ररचाना)- रड्डु ओॊ का नाभ सुनते ही ऩॊहडतजी के भुॉह भं ऩानी बय आमा। 3. भुॉह खेून रगना-(रयश्वत रेने की आदत ऩड़ जाना)- उसके भुॉह खेून रगा है , वफना धरए िह काभ नहीॊ कये गा। 4. भुॉह धछऩाना-(रणज्जत होना)- भुॉह धछऩाने से काभ नहीॊ फनेगा, कुछ कयके बी हदखेाओ। 5. भुॉह यखेना-(भान यखेना)-भं तुम्हाया भुॉह यखेने के धरए ही प्रभोद के ऩास गमा था, अन्मथा भुझे क्मा आिश्मकता थी। 6. भुॉहतोड़ जिाफ दे ना-(कड़ा उत्तय दे ना)- श्माभ भुॉहतोड़ जिाफ सुनकय हपय कुछ नहीॊ फोरा। 7. भुॉह ऩय काधरखे ऩोतना-(करॊक रगाना)-फेटा तुम्हाये कुकभं ने भेये भुॉह ऩय काधरखे ऩोत दी है ।
8. भुॉह उतयना-(उदास होना)-आज तुम्हाया भुॉह क्मं उतया हुआ है ।
9. भुॉह ताकना-(दस ू ये ऩय आधश्रत होना)-अफ गेहूॉ के धरए हभं अभेरयका का भुॉह नहीॊ ताकना ऩड़े गा।
10. भुॉह फॊद कयना-(चुऩ कय दे ना)-आजकर रयश्वत ने फड़े -फड़े अपसयं का भुॉह फॊद कय यखेा है । 8. दाॉत-सॊफॊधी भुहािये 1. दाॉत ऩीसना-(फहुत ज्मादा गुस्सा कयना)- बरा भुझ ऩय दाॉत क्मं ऩीसते हो? शीशा तो शॊकय ने तोड़ा है ।
2. दाॉत खेट्टे कयना-(फुयी तयह हयाना)- बायतीम सैधनकं ने ऩाहकस्तानी सैधनकं के दाॉत खेट्टे कय हदए।
3. दाॉत काटी योटी-(घधनष्ठता, ऩक्की धभत्रता)- कबी याभ औय श्माभ भं दाॉत काटी योटी थी ऩय आज एक-दस ू ये के जानी दश्ु भन है । 9. गयदन-सॊफॊधी भुहािये 1. गयदन झुकाना-(रणज्जत होना)- भेया साभना होते ही उसकी गयदन झुक गई। 2. गयदन ऩय सिाय होना-(ऩीछे ऩड़ना)- भेयी गयदन ऩय सिाय होने से तुम्हाया काभ नहीॊ फनने िारा है ।
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3. गयदन ऩय छुयी पेयना-(अत्माचाय कयना)-उस फेचाये की गयदन ऩय छुयी पेयते तुम्हं शयभ नहीॊ आती, बगिान इसके धरए तुम्हं कबी ऺभा नहीॊ कयं गे। 10. गरे-सॊफॊधी भुहािये 1. गरा घंटना-(अत्माचाय कयना)- जो सयकाय गयीफं का गरा घंटती है िह दे य तक नहीॊ हटक सकती। 2. गरा पॉसाना-(फॊधन भं ऩड़ना)- दस ू यं के भाभरे भं गरा पॉसाने से कुछ हाथ नहीॊ आएगा।
3. गरे भढ़ना-(जफयदस्ती हकसी को कोई काभ संऩना)- इस फुद्धू को भेये गरे भढ़कय राराजी ने तो भुझे तॊग कय डारा है ।
4. गरे का हाय-(फहुत प्माया)- तुभ तो उसके गरे का हाय हो, बरा िह तुम्हाये काभ को क्मं भना कयने रगा। 11. धसय-सॊफॊधी भुहािये 1. धसय ऩय बूत सिाय होना-(धुन रगाना)-तुम्हाये धसय ऩय तो हय सभम बूत सिाय यहता है । 2. धसय ऩय भौत खेेरना-(भृत्मु सभीऩ होना)- विबीषण ने यािण को सॊफोधधत कयते हुए कहा, ‘बैमा ! भुझे क्मा डया यहे हो ? तुम्हाये धसय ऩय तो भौत खेेर यही है ‘।
3. धसय ऩय खेून सिाय होना-(भयने-भायने को तैमाय होना)- अये , फदभाश की क्मा फात कयते हो ? उसके धसय ऩय तो हय सभम खेून सिाय यहता है । 4. धसय-धड़ की फाजी रगाना-(प्राणं की बी ऩयिाह न कयना)- बायतीम िीय दे श की यऺा के धरए धसय-धड़ की फाजी रगा दे ते हं । 5. धसय नीचा कयना-(रजा जाना)-भुझे दे खेते ही उसने धसय नीचा कय धरमा। 12. हाथ-सॊफॊधी भुहािये 1. हाथ खेारी होना-(रुऩमा-ऩैसा न होना)- जुआ खेेरने के कायण याजा नर का हाथ खेारी हो गमा था। 2. हाथ खेीॊचना-(साथ न दे ना)-भुसीफत के सभम नकरी धभत्र हाथ खेीॊच रेते हं । 3. हाथ ऩे हाथ धयकय फैठना-(धनकम्भा होना)- उद्यभी कबी बी हाथ ऩय हाथ धयकय नहीॊ फैठते हं , िे तो कुछ कयके ही हदखेाते हं । 4. हाथं के तोते उड़ना-(दखे ु से है यान होना)- बाई के धनधन का सभाचाय ऩाते ही उसके हाथं के तोते उड़ गए।
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5. हाथंहाथ-(फहुत जल्दी)-मह काभ हाथंहाथ हो जाना चाहहए।
6. हाथ भरते यह जाना-(ऩछताना)- जो वफना सोचे-सभझे काभ शुरू कयते है िे अॊत भं हाथ भरते यह जाते हं । 7. हाथ साप कयना-(चुया रेना)- ओह ! हकसी ने भेयी जेफ ऩय हाथ साप कय हदमा। 8. हाथ-ऩाॉि भायना-(प्रमास कयना)- हाथ-ऩाॉि भायने िारा व्मवि अॊत भं अिश्म सपरता प्राप्त कयता है । 9. हाथ डारना-(शुरू कयना)- हकसी बी काभ भं हाथ डारने से ऩूिण उसके अच्छे मा फुये पर ऩय विचाय कय रेना चाहहए। 13. हिा-सॊफॊधी भुहािये 1. हिा रगना-(असय ऩड़ना)-आजकर बायतीमं को बी ऩणिभ की हिा रग चुकी है । 2. हिा से फातं कयना-(फहुत तेज दौड़ना)- याणा प्रताऩ ने ज्मं ही रगाभ हहराई, चेतक हिा से फातं कयने रगा।
3. हिाई हकरे फनाना-(झूठी कल्ऩनाएॉ कयना)- हिाई हकरे ही फनाते यहोगे मा कुछ कयोगे बी ? 4. हिा हो जाना-(गामफ हो जाना)- दे खेते-ही-दे खेते भेयी साइहकर न जाने कहाॉ हिा हो गई ? 14. ऩानी-सॊफॊधी भुहािये 1. ऩानी-ऩानी होना-(रणज्जत होना)-ज्मंही सोहन ने भाताजी के ऩसण भं हाथ डारा हक ऊऩय से भाताजी आ गई। फस, उन्हं दे खेते ही िह ऩानी-ऩानी हो गमा। 2. ऩानी भं आग रगाना-(शाॊधत बॊग कय दे ना)-तुभने तो सदा ऩानी भं आग रगाने का ही काभ हकमा है । 3. ऩानी पेय दे ना-(धनयाश कय दे ना)-उसने तो भेयी आशाओॊ ऩय ऩानी ऩेय हदमा। 4. ऩानी बयना-(तुच्छ रगना)-तुभने तो जीिन-बय ऩानी ही बया है । 15. कुछ धभरे-जुरे भुहािये 1. अॉगूठा हदखेाना-(दे ने से साप इनकाय कय दे ना)-सेठ याभरार ने धभणशारा के धरए ऩाॉच हजाय रुऩए दान दे ने को कहा था, हकन्तु जफ भैनेजय उनसे भाॊगने गमा तो उन्हंने अॉगूठा हदखेा हदमा। 2. अगय-भगय कयना-(टारभटोर कयना)-अगय-भगय कयने से अफ काभ चरने िारा नहीॊ है । फॊधु !
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3. अॊगाये फयसाना-(अत्मॊत गुस्से से दे खेना)-अधबभन्मु िध की सूचना ऩाते ही अजुन ण के नेत्र अॊगाये फयसाने रगे। 4. आड़े हाथं रेना-(अच्छी तयह काफू कयना)-श्रीकृ ष्ण ने कॊस को आड़े हाथं धरमा। 5. आकाश से फातं कयना-(फहुत ऊॉचा होना)-टी.िी.टािय तो आकाश से फाते कयती है ।
6. ईद का चाॉद-(फहुत कभ दीखेना)-धभत्र आजकर तो तुभ ईद का चाॉद हो गए हो, कहाॉ यहते हो ?
7. उॉ गरी ऩय नचाना-(िश भं कयना)-आजकर की औयतं अऩने ऩधतमं को उॉ गधरमं ऩय नचाती हं । 8. करई खेुरना-(यहस्म प्रकट हो जाना)-उसने तो तुम्हायी करई खेोरकय यखे दी। 9. काभ तभाभ कयना-(भाय दे ना)- यानी रक्ष्भीफाई ने ऩीछा कयने िारे दोनं अॊग्रेजं का काभ तभाभ कय हदमा। 10. कुत्ते की भौत कयना-(फुयी तयह से भयना)-याष्डद्रोही सदा कुत्ते की भौत भयते हं । 11. कोल्हू का फैर-(धनयॊ तय काभ भं रगे यहना)-कोल्हू का फैर फनकय बी रोग आज बयऩेट बोजन नहीॊ ऩा सकते।
12. खेाक छानना-(दय-दय बटकना)-खेाक छानने से तो अच्छा है एक जगह जभकय काभ कयो। 13. गड़े भुयदे उखेाड़ना-(वऩछरी फातं को माद कयना)-गड़े भुयदे उखेाड़ने से तो अच्छा है हक अफ हभ चुऩ हो जाएॉ। 14. गुरछये उड़ाना-(भौज कयना)-आजकर तुभ तो दस ू ये के भार ऩय गुरछये उड़ा यहे हो।
15. घास खेोदना-(पुजूर सभम वफताना)-सायी उम्र तुभने घास ही खेोदी है । 16. चॊऩत होना-(बाग जाना)-चोय ऩुधरस को दे खेते ही चॊऩत हो गए। 17. चौकड़ी बयना-(छराॉगे रगाना)-हहयन चौकड़ी बयते हुए कहीॊ से कहीॊ जा ऩहुॉचे।
18. छक्के छुडा़ना-(फुयी तयह ऩयाणजत कयना)-ऩृथ्िीयाज चौहान ने भुहम्भद गोयी के छक्के छुड़ा हदए।
19. टका-सा जिाफ दे ना-(कोया उत्तय दे ना)-आशा थी हक कहीॊ िह भेयी जीविका का प्रफॊध कय दे गा, ऩय उसने तो दे खेते ही टका-सा जिाफ दे हदमा। 20. टोऩी उछारना-(अऩभाधनत कयना)-भेयी टोऩी उछारने से उसे क्मा धभरेगा? 21. तरिे चाटने-(खेुशाभद कयना)-तरिे चाटकय नौकयी कयने से तो कहीॊ डू फ भयना अच्छा है । 22. थारी का फंगन-(अणस्थय विचाय िारा)- जो रोग थारी के फैगन होते हं , िे हकसी के सच्चे धभत्र नहीॊ होते। 23. दाने-दाने को तयसना-(अत्मॊत गयीफ होना)-फचऩन भं भं दाने-दाने को तयसता
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हपया, आज ईश्वय की कृ ऩा है । 24. दौड़-धूऩ कयना-(कठोय श्रभ कयना)-आज के मुग भं दौड़-धूऩ कयने से ही कुछ काभ फन ऩाता है । 25. धणज्जमाॉ उड़ाना-(नष्ट-भ्रष्ट कयना)-महद कोई बी याष्ड हभायी स्ितॊत्रता को हड़ऩना चाहे गा तो हभ उसकी धणज्जमाॉ उड़ा दं गे। 26. नभक-धभचण रगाना-(फढ़ा-चढ़ाकय कहना)-आजकर सभाचायऩत्र हकसी बी फात को इस प्रकाय नभक-धभचण रगाकय धरखेते हं हक जनसाधायण उस ऩय विश्वास कयने रग जाता है । 27. नौ-दो ग्मायह होना-(बाग जाना)- वफल्री को दे खेते ही चूहे नौ-दो ग्मायह हो गए। 28. पूॉक-पूॉककय कदभ यखेना-(सोच-सभझकय कदभ फढ़ाना)-जिानी भं पूॉक-पूॉककय कदभ यखेना चाहहए। 29. फार-फार फचना-(फड़ी कहठनाई से फचना)-गाड़ी की टक्कय होने ऩय भेया धभत्र फार-फार फच गमा।
30. बाड़ झंकना-(मंही सभम वफताना)-हदल्री भं आकय बी तुभने तीस सार तक बाड़ ही झंका है । 31. भणक्खेमाॉ भायना-(धनकम्भे यहकय सभम वफताना)-मह सभम भणक्खेमाॉ भायने का नहीॊ है , घय का कुछ काभ-काज ही कय रो। 32. भाथा ठनकना-(सॊदेह होना)- धसॊह के ऩॊजं के धनशान ये त ऩय दे खेते ही गीदड़ का भाथा ठनक गमा। 33. धभट्टी खेयाफ कयना-(फुया हार कयना)-आजकर के नौजिानं ने फूढ़ं की धभट्टी खेयाफ कय यखेी है । 34. यॊ ग उड़ाना-(घफया जाना)-कारे नाग को दे खेते ही भेया यॊ ग उड़ गमा। 35. यपूचक्कय होना-(बाग जाना)-ऩुधरस को दे खेते ही फदभाश यपूचक्कय हो गए। 36. रोहे के चने चफाना-(फहुत कहठनाई से साभना कयना)- भुगर सम्राट अकफय को याणाप्रताऩ के साथ टक्कय रेते सभम रोहे के चने चफाने ऩड़े ।
37. विष उगरना-(फुया-बरा कहना)-दम ु ोधन को गाॊडीि धनुष का अऩभान कयते दे खे अजुन ण विष उगरने रगा।
38. श्रीगणेश कयना-(शुरू कयना)-आज फृहस्ऩधतिाय है , नए िषण की ऩढाई का श्रीगणेश कय रो। 39. हजाभत फनाना-(ठगना)-मे हहप्ऩी न जाने हकतने बायतीमं की हजाभत फना चुके हं । 40. शैतान के कान कतयना-(फहुत चाराक होना)-तुभ तो शैतान के बी कान कतयने िारे हो, फेचाये याभनाथ की तुम्हाये साभने वफसात ही क्मा है ?
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41. याई का ऩहाड़ फनाना-(छोटी-सी फात को फहुत फढ़ा दे ना)- तधनक-सी फात के धरए तुभने याई का ऩहाड़ फना हदमा। कुछ प्रचधरत रोकोविमाॉ 1. अधजर गगयी छरकत जाए-(कभ गुण िारा व्मवि हदखेािा फहुत कयता है )- श्माभ फातं तो ऐसी कयता है जैसे हय विषम भं भास्टय हो, िास्ति भं उसे हकसी विषम का बी ऩूया ऻान नहीॊ-अधजर गगयी छरकत जाए। 2. अफ ऩछताए होत क्मा, जफ धचहड़माॉ चुग गई खेेत-(सभम धनकर जाने ऩय ऩछताने से क्मा राब)- साया सार तुभने ऩुस्तकं खेोरकय नहीॊ दे खेीॊ। अफ ऩछताए होत क्मा, जफ धचहड़माॉ चुग गई खेेत। 3. आभ के आभ गुठधरमं के दाभ-(दग ु ुना राब)- हहन्दी ऩढ़ने से एक तो आऩ नई
बाषा सीखेकय नौकयी ऩय ऩदोन्नधत कय सकते हं , दस ू ये हहन्दी के उच्च साहहत्म का यसास्िादन कय सकते हं , इसे कहते हं -आभ के आभ गुठधरमं के दाभ।
4. ऊॉची दक ु ान पीका ऩकिान-(केिर ऊऩयी हदखेािा कयना)- कनॉटप्रेस के अनेक
स्टोय फड़े प्रधसद्ध है , ऩय सफ घहटमा दजे का भार फेचते हं । सच है , ऊॉची दक ु ान पीका ऩकिान।
5. घय का बेदी रॊका ढाए-(आऩसी पूट के कायण बेद खेोरना)-कई व्मवि ऩहरे काॊग्रेस भं थे, अफ जनता (एस) ऩाटी भं धभरकय काग्रंस की फुयाई कयते हं । सच है , घय का बेदी रॊका ढाए। 6. णजसकी राठी उसकी बंस-(शविशारी की विजम होती है )- अॊग्रेजं ने सेना के फर ऩय फॊगार ऩय अधधकाय कय धरमा था-णजसकी राठी उसकी बंस। 7. जर भं यहकय भगय से िैय-(हकसी के आश्रम भं यहकय उससे शत्रुता भोर रेना)- जो बायत भं यहकय विदे शं का गुणगान कयते हं , उनके धरए िही कहाित है हक जर भं यहकय भगय से िैय। 8. थोथा चना फाजे घना-(णजसभं सत नहीॊ होता िह हदखेािा कयता है )- गजंद्र ने अबी
दसिीॊ की ऩयीऺा ऩास की है , औय आरोचना अऩने फड़े -फड़े गुरुजनं की कयता है । थोथा चना फाजे घना। 9. दध ू का दध ू ऩानी का ऩानी-(सच औय झूठ का ठीक पैसरा)- सयऩॊच ने दध ू का दध ू ,ऩानी का ऩानी कय हदखेामा, असरी दोषी भॊगू को ही दॊ ड धभरा।
10. दयू के ढोर सुहािने-(जो चीजं दयू से अच्छी रगती हं)- उनके भसूयी िारे फॊगरे
की फहुत प्रशॊसा सुनते थे हकन्तु िहाॉ दग ं के भाये तॊग आकय हभाये भुखे से धनकर ु ध ही गमा-दयू के ढोर सुहािने।
11. न यहे गा फाॉस, न फजेगी फाॉसुयी-(कायण के नष्ट होने ऩय कामण न होना)- साया हदन
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रड़के आभं के धरए ऩत्थय भायते यहते थे। हभने आॉगन भं से आभ का िृऺ की कटिा हदमा। न यहे गा फाॉस, न फजेगी फाॉसुयी। 12. नाच न जाने आॉगन टे ढ़ा-(काभ कयना नहीॊ आना औय फहाने फनाना)-जफ यिीॊद्र ने कहा हक कोई गीत सुनाइए, तो सुनीर फोरा, ‘आज सभम नहीॊ है ’। हपय हकसी हदन कहा तो कहने रगा, ‘आज भूड नहीॊ है ’। सच है , नाच न जाने आॉगन टे ढ़ा। 13. वफन भाॉगे भोती धभरे, भाॉगे धभरे न बीखे-(भाॉगे वफना अच्छी िस्तु की प्राधप्त हो जाती है , भाॉगने ऩय साधायण बी नहीॊ धभरती)- अध्माऩकं ने भाॉगं के धरए हड़तार कय दी, ऩय उन्हं क्मा धभरा ? इनसे तो फैक कभणचायी अच्छे यहे , उनका बत्ता फढ़ा हदमा गमा। वफन भाॉगे भोती धभरे, भाॉगे धभरे न बीखे। 14. भान न भान भं तेया भेहभान-(जफयदस्ती हकसी का भेहभान फनना)-एक अभेरयकन कहने रगा, भं एक भास आऩके ऩास यहकय आऩके यहन-सहन का अध्ममन करूॉगा। भंने भन भं कहा, अजफ आदभी है , भान न भान भं तेया भेहभान। 15. भन चॊगा तो कठौती भं गॊगा-(महद भन ऩवित्र है तो घय ही तीथण है )-बैमा
याभेश्वयभ जाकय क्मा कयोगे ? घय ऩय ही ईशस्तुधत कयो। भन चॊगा तो कठौती भं गॊगा। 16. दोनं हाथं भं रड्डू -(दोनं ओय राब)- भहं द्र को इधय उच्च ऩद धभर यहा था औय उधय अभेरयका से िजीपा उसके तो दोनं हाथं भं रड्डू थे। 17. नमा नौ हदन ऩुयाना सौ हदन-(नई िस्तुओॊ का विश्वास नहीॊ होता, ऩुयानी िस्तु हटकाऊ होती है )- अफ बायतीम जनता का मह विश्वास है हक इस सयकाय से तो ऩहरी सयकाय हपय बी अच्छी थी। नमा नौ हदन, ऩुयाना नौ हदन।
18. फगर भं छुयी भुॉह भं याभ-याभ-(बीतय से शत्रुता औय ऊऩय से भीठी फातं)साम्राज्मिादी आज बी कुछ याष्डं को उन्नधत की आशा हदराकय उन्हं अऩने अधीन
यखेना चाहते हं , ऩयन्तु अफ सबी दे श सभझ गए हं हक उनकी फगर भं छुयी औय भुॉह भं याभ-याभ है । 19. रातं के बूत फातं से नहीॊ भानते-(शयायती सभझाने से िश भं नहीॊ आते)- सरीभ फड़ा शयायती है , ऩय उसके अब्फा उसे प्माय से सभझाना चाहते हं । हकन्तु िे नहीॊ जानते हक रातं के बूत फातं से नहीॊ भानते। 20. सहज ऩके जो भीठा होम-(धीये -धीये हकए जाने िारा कामण स्थामी परदामक होता है )- विनोफा बािे का विचाय था हक बूधभ सुधाय धीये -धीये औय शाॊधतऩूिक ण राना चाहहए क्मंहक सहज ऩके सो भीठा होम। 21. साॉऩ भये राठी न टू टे -(हाधन बी न हो औय काभ बी फन जाए)- घनश्माभ को उसकी दष्ट ु ता का ऐसा भजा चखेाओ हक फदनाभी बी न हो औय उसे दॊ ड बी धभर जाए। फस मही सभझो हक साॉऩ बी भय जाए औय राठी बी न टू टे ।
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22. अॊत बरा सो बरा-(णजसका ऩरयणाभ अच्छा है , िह सिोत्तभ है )- श्माभ ऩढ़ने भं कभजोय था, रेहकन ऩयीऺा का सभम आते-आते ऩूयी तैमायी कय री औय ऩयीऺा प्रथभ श्रेणी भं उत्तीणण की। इसी को कहते हं अॊत बरा सो बरा। 23. चभड़ी जाए ऩय दभड़ी न जाए-(फहुत कॊजूस होना)-भहं द्रऩार अऩने फेटे को अच्छे कऩड़े तक बी धसरिाकय नहीॊ दे ता। उसका तो मही धसद्धान्त है हक चभड़ी जाए ऩय दभड़ी न जाए। 24. सौ सुनाय की एक रुहाय की-(धनफणर की सैकड़ं चोटं की सफर एक ही चोट से भुकाफरा कय दे ते है )- कौयिं ने बीभ को फहुत तॊग हकमा तो िह कौयिं को गदा से ऩीटने रगा-सौ सुनाय की एक रुहाय की।
25. सािन हये न बादं सूखेे-(सदै ि एक-सी णस्थधत भं यहना)- गत चाय िषं भं हभाये िेतन ि बत्ते भं एक सौ रुऩए की फढ़ोत्तयी हुई है । उधय 25 प्रधतशत दाभ फढ़ गए हं बैमा हभायी तो मही णस्थधत यही है हक सािन हये न बागं सूखेे।
Reference http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4883&booktype=free
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