Hindi Vyakaran Bharti.

January 17, 2017 | Author: P K Thakur | Category: N/A
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Hindi Vyakaran Bharti...

Description

सभी कक्षाओं के लिए ईपयोगी।

सुरेश कुमार ममश्रा “उरतप्ृ त”

ऄध्याय 1 1.भाषा, व्याकरण और बोली पररभाषा- भाषा ऄलभव्यलि का एक ऐसा समथथ साधन है लजसके द्वारा मनष्ु य ऄपने लिचारों को दूसरों पर प्रकट कर सकता है और दूसरों के लिचार जाना सकता है। संसार में ऄनेक भाषाए ँ हैं। जैसे-लहन्दी,संस्कृत,ऄंग्रेजी, बगँ िा,गज ु राती,पंजाबी,ईदथ ू, तेिगु ,ु मियािम, कन्नड़, फ्रैंच, चीनी, जमथ न आत्यालद। भाषा के प्रकार- भाषा दो प्रकार की होती है1. मौलखक भाषा। 2. लिलखत भाषा। अमने-सामने बैठे व्यलि परस्पर बातचीत करते हैं ऄथिा कोइ व्यलि भाषण अलद द्वारा ऄपने लिचार प्रकट करता है तो ईसे भाषा का मौलखक रूप कहते हैं। जब व्यलि लकसी दूर बैठे व्यलि को पत्र द्वारा ऄथिा पस्ु तकों एिं पत्रपलत्रकाओं में िेख द्वारा ऄपने लिचार प्रकट करता है तब ईसे भाषा का लिलखत रूप कहते हैं। व्याकरण मनष्ु य मौलखक एिं लिलखत भाषा में ऄपने लिचार प्रकट कर सकता है और करता रहा है लकन्तु आससे भाषा का कोइ लनलित एिं शद्ध ु स्िरूप

लस्थर नहीं हो सकता। भाषा के शद्ध ु और स्थायी रूप को लनलित करने के लिए लनयमबद्ध योजना की अिश्यकता होती है और ईस लनयमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं। पररभाषा- व्याकरण िह शास्त्र है लजसके द्वारा लकसी भी भाषा के शब्दों और िाक्यों के शद्ध ु स्िरूपों एिं शद्ध ु प्रयोगों का लिशद ज्ञान कराया जाता है। भाषा और व्याकरण का संबंध- कोइ भी मनष्ु य शद्ध ु भाषा का पूणथ ज्ञान व्याकरण के लबना प्राप्त नहीं कर सकता। ऄतः भाषा और व्याकरण का घलनष्ठ संबंध हैं िह भाषा में ईच्चारण, शब्द-प्रयोग, िाक्य-गठन तथा ऄथों के प्रयोग के रूप को लनलित करता है। व्याकरण के लिभाग- व्याकरण के चार ऄंग लनधाथ ररत लकये गये हैं1. िणथ -लिचार। 2. शब्द-लिचार। 3. पद-लिचार। 4. िाक्य लिचार। बोली भाषा का क्षेत्रीय रूप बोिी कहिाता है। ऄथाथ त् देश के लिलभन्न भागों में बोिी जाने िािी भाषा बोिी कहिाती है और लकसी भी क्षेत्रीय बोिी का लिलखत रूप में लस्थर सालहत्य िहाँ की भाषा कहिाता है। लललि

लकसी भी भाषा के लिखने की लिलध को ‘लिलप’ कहते हैं। लहन्दी और संस्कृत भाषा की लिलप का नाम देिनागरी है। ऄंग्रेजी भाषा की लिलप ‘रोमन’, ईदथ ू भाषा की लिलप फारसी, और पंजाबी भाषा की लिलप गरुु मख ु ी है। सालहत्य ज्ञान-रालश का संलचत कोश ही सालहत्य है। सालहत्य ही लकसी भी देश, जालत और िगथ को जीिंत रखने का- ईसके ऄतीत रूपों को दशाथ ने का एकमात्र साक्ष्य होता है। यह मानि की ऄनभु ूलत के लिलभन्न पक्षों को स्पष्ट करता है और पाठकों एिं श्रोताओं के रृदय में एक ऄिौलकक ऄलनिथ चनीय अनंद की ऄनभु ूलत ईत्पन्न करता है।

ऄध्याय 2 वणण-लवचार पररभाषा-लहन्दी भाषा में प्रयि ु सबसे छोटी ध्िलन िणथ कहिाती है। जैसे-ऄ, अ, आ, इ, ई, उ, क्, ख् अलद। वणणमाला िणों के समदु ाय को ही िणथ मािा कहते हैं। लहन्दी िणथ मािा में 44 िणथ हैं। ईच्चारण और प्रयोग के अधार पर लहन्दी िणथ मािा के दो भेद लकए गए हैं1. स्िर 2. व्यंजन स्वर लजन िणों का ईच्चारण स्ितंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के ईच्चारण में सहायक हों िे स्िर कहिाते है। ये संख्या में ग्यारह हैंऄ, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। ईच्चारण के समय की दृलष्ट से स्िर के तीन भेद लकए गए हैं1. ह्रस्ि स्िर। 2. दीघथ स्िर। 3. प्ितु स्िर।

1. ह्रस्व स्वर लजन स्िरों के ईच्चारण में कम-से-कम समय िगता हैं ईन्हें ह्रस्ि स्िर कहते हैं। ये चार हैं- ऄ, आ, ई, ऊ। आन्हें मूि स्िर भी कहते हैं। 2. दीघण स्वर लजन स्िरों के ईच्चारण में ह्रस्ि स्िरों से दगु नु ा समय िगता है ईन्हें दीघथ स्िर कहते हैं। ये लहन्दी में सात हैं- अ, इ, उ, ए, ऐ, ओ, औ। लिशेष- दीघथ स्िरों को ह्रस्ि स्िरों का दीघथ रूप नहीं समझना चालहए। यहाँ दीघथ शब्द का प्रयोग ईच्चारण में िगने िािे समय को अधार मानकर लकया गया है। 3. प्लुत स्वर लजन स्िरों के ईच्चारण में दीघथ स्िरों से भी ऄलधक समय िगता है ईन्हें प्ितु स्िर कहते हैं। प्रायः आनका प्रयोग दूर से बि ु ाने में लकया जाता है। मात्राएँ स्िरों के बदिे हुए स्िरूप को मात्रा कहते हैं स्िरों की मात्राए ँ लनम्नलिलखत हैंस्िर मात्राए ँ शब्द ऄ × कम अ ाा काम

आ ला लकसिय इ ाी खीर ई ाु गि ु ाब उ ाू भूि ऊ ाृ तणृ ए ाे के श ऐ ाै है ओ ाो चोर औ ाौ चौखट ऄ िणथ (स्िर) की कोइ मात्रा नहीं होती। व्यंजनों का ऄपना स्िरूप लनम्नलिलखत हैंक् च् छ् ज् झ् त् थ् ध् अलद। ऄ िगने पर व्यंजनों के नीचे का (हि) लचह्न हट जाता है। तब ये आस प्रकार लिखे जाते हैंक च छ ज झ त थ ध अलद। व्यंजन लजन िणों के पूणथ ईच्चारण के लिए स्िरों की सहायता िी जाती है िे व्यंजन कहिाते हैं। ऄथाथ त व्यंजन लबना स्िरों की सहायता के बोिे ही नहीं जा सकते। ये संख्या में 33 हैं। आसके लनम्नलिलखत तीन भेद हैं1. स्पशथ 2. ऄंतःस्थ

3. उष्म 1. स्िर्ण आन्हें पाचँ िगों में रखा गया है और हर िगथ में पाचँ -पाचँ व्यंजन हैं। हर िगथ का नाम पहिे िगथ के ऄनस ु ार रखा गया है जैसेकिगथ - क् ख् ग् घ् ड़् चिगथ - च् छ् ज् झ् ञ् टिगथ - ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्) तिगथ - त् थ् द् ध् न् पिगथ - प् फ् ब् भ् म् 2. ऄंतःस्थ ये लनम्नलिलखत चार हैंय् र् ि् ि् 3. ऊष्म ये लनम्नलिलखत चार हैंश् ष् स् ह् िैसे तो जहाँ भी दो ऄथिा दो से ऄलधक व्यंजन लमि जाते हैं िे संयि ु व्यंजन कहिाते हैं, लकन्तु देिनागरी लिलप में संयोग के बाद रूप-पररितथ न हो जाने के कारण आन तीन को लगनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से लमिकर बने हैं। जैसे-क्ष=क्+ष ऄक्षर, ज्ञ=ज+् ञ ज्ञान,

त्र=त्+र नक्षत्र कुछ िोग क्ष् त्र् और ज्ञ् को भी लहन्दी िणथ मािा में लगनते हैं, पर ये संयि ु व्यंजन हैं। ऄतः आन्हें िणथ मािा में लगनना ईलचत प्रतीत नहीं होता। ऄनस्ु वार आसका प्रयोग पंचम िणथ के स्थान पर होता है। आसका लचन्ह (ां) है। जैसे- सम्भि=संभि, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा। लवसगण आसका ईच्चारण ह् के समान होता है। आसका लचह्न (:) है। जैसे-ऄतः, प्रातः। चंद्रलबंदु जब लकसी स्िर का ईच्चारण नालसका और मख ु दोनों से लकया जाता है तब ईसके उपर चंद्रलबंदु (ाँ) िगा लदया जाता है। यह ऄननु ालसक कहिाता है। जैसे-हस ँ ना, अख ँ । लहन्दी िणथ मािा में 11 स्िर तथा 33 व्यंजन लगनाए जाते हैं, परन्तु आनमें ड़्, ढ् ऄं तथा ऄः जोड़ने पर लहन्दी के िणों की कुि संख्या 48 हो जाती है। हलंत जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्िर से रलहत लकया जाता है तब ईसके

नीचे एक लतरछी रेखा (ा्) िगा दी जाती है। यह रेखा हि कहिाती है। हियि ु व्यंजन हिंत िणथ कहिाता है। जैसे-लिद् या। वणों के उच्चारण-स्थान मख ु के लजस भाग से लजस िणथ का ईच्चारण होता है ईसे ईस िणथ का ईच्चारण स्थान कहते हैं। उच्चारण स्थान ताललका क्रम िणथ

श्रेणी

1.

कं ठस्थ

2. 3. 4. 5. 6. 7. 8.

ईच्चारण लिसगथ कं ठ और ऄ अ क् ख् ग् घ् ड़् जीभ का लनचिा ह् भाग आ इ च् छ् ज् झ् ञ् य् तािु और जीभ श ऊ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ् मूधाथ और जीभ र ् ष् त् थ् द् ध् न् ि् स् दातँ और जीभ ई उ प् फ् ब् भ् म दोनों होंठ एऐ कं ठ तािु और जीभ ओऔ दातँ जीभ और होंठ ि् दातँ जीभ और होंठ

तािव्य मूधथन्य दंत्य ओष्ठ्य कं ठतािव्य कं ठोष्ठ्य दंतोष्

ऄध्याय 3 र्ब्द-लवचार पररभाषा- एक या ऄलधक िणों से बनी हुइ स्ितंत्र साथथ क ध्िलन शब्द कहिाता है। जैसे- एक िणथ से लनलमथ त शब्द-न (नहीं) ि (और) ऄनेक िणों से लनलमथ त शब्द-कुत्ता, शेर,कमि, नयन, प्रासाद, सिथ व्यापी, परमात्मा। र्ब्द-भेद व्यत्ु पलत्त (बनािट) के अधार पर शब्द-भेदव्यत्ु पलत्त (बनािट) के अधार पर शब्द के लनम्नलिलखत तीन भेद हैं1. रूढ 2. यौलगक 3. योगरूढ 1. रूढ़ जो शब्द लकन्हीं ऄन्य शब्दों के योग से न बने हों और लकसी लिशेष ऄथथ को प्रकट करते हों तथा लजनके टुकड़ों का कोइ ऄथथ नहीं होता, िे रूढ कहिाते हैं। जैसे-कि, पर। आनमें क, ि, प, र का टुकड़े करने

पर कुछ ऄथथ नहीं हैं। ऄतः ये लनरथथ क हैं। 2. यौलगक जो शब्द कइ साथथ क शब्दों के मेि से बने हों,िे यौलगक कहिाते हैं। जैसे-देिािय=देि+अिय, राजपरुु ष=राज+परुु ष, लहमािय=लहम+अिय, देिदूत=देि+दूत अलद। ये सभी शब्द दो साथथ क शब्दों के मेि से बने हैं। 3. योगरूढ़ िे शब्द, जो यौलगक तो हैं, लकन्तु सामान्य ऄथथ को न प्रकट कर लकसी लिशेष ऄथथ को प्रकट करते हैं, योगरूढ कहिाते हैं। जैसेपंकज, दशानन अलद। पंकज=पंक+ज (कीचड़ में ईत्पन्न होने िािा) सामान्य ऄथथ में प्रचलित न होकर कमि के ऄथथ में रूढ हो गया है। ऄतः पंकज शब्द योगरूढ है। आसी प्रकार दश (दस) अनन (मख ु ) िािा रािण के ऄथथ में प्रलसद्ध है। उत्िलि के अधार िर र्ब्द-भेद ईत्पलत्त के अधार पर शब्द के लनम्नलिलखत चार भेद हैं1. तत्सम- जो शब्द संस्कृत भाषा से लहन्दी में लबना लकसी पररितथ न के िे लिए गए हैं िे तत्सम कहिाते हैं। जैसे-ऄलग्न, क्षेत्र, िाय,ु रालत्र, सूयथ अलद। 2. तद्भि- जो शब्द रूप बदिने के बाद संस्कृत से लहन्दी में अए हैं िे

तद्भि कहिाते हैं। जैसे-अग (ऄलग्न), खेत(क्षेत्र), रात (रालत्र), सूरज (सूयथ) अलद। 3. देशज- जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाि के कारण पररलस्थलत ि अिश्यकतानस ु ार बनकर प्रचलित हो गए हैं िे देशज कहिाते हैं। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, थैिा, पेट, खटखटाना अलद। 4. लिदेशी या लिदेशज- लिदेशी जालतयों के संपकथ से ईनकी भाषा के बहुत से शब्द लहन्दी में प्रयि ु होने िगे हैं। ऐसे शब्द लिदेशी ऄथिा लिदेशज कहिाते हैं। जैसे-स्कूि, ऄनार, अम, कैं ची,ऄचार, पलु िस, टेिीफोन, ररक्शा अलद। ऐसे कुछ लिदेशी शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है। ऄंग्रेजी- कॉिेज, पैंलसि, रेलडयो, टेिीलिजन, डॉक्टर, िैटरबक्स, पैन, लटकट, मशीन, लसगरेट, साआलकि, बोति अलद। फारसी- ऄनार,चश्मा, जमींदार, दक ु ान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाि, अदमी, चगु िखोर, गंदगी, चापिूसी अलद। ऄरबी- औिाद, ऄमीर, कत्ि, किम, कानून, खत, फकीर, ररश्वत, औरत, कै दी, मालिक, गरीब अलद। तक ु ी- कैं ची, चाकू, तोप, बारूद, िाश, दारोगा, बहादरु अलद। पतु थ गािी- ऄचार, अिपीन, कारतूस, गमिा, चाबी, लतजोरी, तौलिया, फीता, साबनु , तंबाकू, कॉफी, कमीज अलद। फ्रांसीसी- पलु िस, काटूथन, आंजीलनयर, कर्फयथ ू, लबगि ु अलद। चीनी- तूफान, िीची, चाय, पटाखा अलद। यूनानी- टेिीफोन, टेिीग्राफ, ऐटम, डेल्टा अलद। जापानी- ररक्शा अलद।

प्रयोग के अधार िर र्ब्द-भेद प्रयोग के अधार पर शब्द के लनम्नलिलखत अठ भेद है1. संज्ञा 2. सिथ नाम 3. लिशेषण 4. लक्रया 5. लक्रया-लिशेषण 6. संबधं बोधक 7. समच्ु चयबोधक 8. लिस्मयालदबोधक आन ईपयथ ि ु अठ प्रकार के शब्दों को भी लिकार की दृलष्ट से दो भागों में बाटँ ा जा सकता है1. लिकारी 2. ऄलिकारी 1. लवकारी र्ब्द लजन शब्दों का रूप-पररितथ न होता रहता है िे लिकारी शब्द कहिाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मझ ु े,हमें ऄच्छा, ऄच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं। आनमें संज्ञा, सिथ नाम, लिशेषण और लक्रया लिकारी शब्द हैं।

2. ऄलवकारी र्ब्द लजन शब्दों के रूप में कभी कोइ पररितथ न नहीं होता है िे ऄलिकारी शब्द कहिाते हैं। जैसे-यहा,ँ लकन्त,ु लनत्य, और, हे ऄरे अलद। आनमें लक्रया-लिशेषण, संबंधबोधक, समच्ु चयबोधक और लिस्मयालदबोधक अलद हैं। ऄथण की दृलि से र्ब्द-भेद ऄथथ की दृलष्ट से शब्द के दो भेद हैं1. साथथ क 2. लनरथथ क 1. साथणक र्ब्द लजन शब्दों का कुछ-न-कुछ ऄथथ हो िे शब्द साथथ क शब्द कहिाते हैं। जैसे-रोटी, पानी, ममता, डंडा अलद। 2. लनरथणक र्ब्द लजन शब्दों का कोइ ऄथथ नहीं होता है िे शब्द लनरथथ क कहिाते हैं। जैसे-रोटी-िोटी, पानी-िानी, डंडा-िंडा आनमें िोटी, िानी, िंडा अलद लनरथथ क शब्द हैं। लिशेष- लनरथथ क शब्दों पर व्याकरण में कोइ लिचार नहीं लकया जाता है।

ऄध्याय 4 िद-लवचार साथथ क िणथ -समूह शब्द कहिाता है, पर जब आसका प्रयोग िाक्य में होता है तो िह स्ितंत्र नहीं रहता बलल्क व्याकरण के लनयमों में बधँ जाता है और प्रायः आसका रूप भी बदि जाता है। जब कोइ शब्द िाक्य में प्रयि ु होता है तो ईसे शब्द न कहकर पद कहा जाता है। लहन्दी में पद पाचँ प्रकार के होते हैं1. संज्ञा 2. सिथ नाम 3. लिशेषण 4. लक्रया 5. ऄव्यय 1. संज्ञा लकसी व्यलि, स्थान, िस्तु अलद तथा नाम के गणु , धमथ , स्िभाि का बोध कराने िािे शब्द संज्ञा कहिाते हैं। जैसे-श्याम, अम, लमठास,

हाथी अलद। संज्ञा के प्रकार- संज्ञा के तीन भेद हैं1. व्यलििाचक संज्ञा। 2. जालतिाचक संज्ञा। 3. भाििाचक संज्ञा। 1. व्यलिवाचक संज्ञा लजस संज्ञा शब्द से लकसी लिशेष, व्यलि, प्राणी, िस्तु ऄथिा स्थान का बोध हो ईसे व्यलििाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-जयप्रकाश नारायण, श्रीकृष्ण, रामायण, ताजमहि, कुतबु मीनार, िािलकिा लहमािय अलद। 2. जालतवाचक संज्ञा लजस संज्ञा शब्द से ईसकी संपूणथ जालत का बोध हो ईसे जालतिाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-मनष्ु य, नदी, नगर, पिथ त, पश,ु पक्षी, िड़का, कुत्ता, गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी, नारी, गािँ अलद। 3. भाववाचक संज्ञा लजस संज्ञा शब्द से पदाथों की ऄिस्था, गणु -दोष, धमथ अलद का बोध हो ईसे भाििाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-बढु ापा, लमठास, बचपन, मोटापा, चढाइ, थकािट अलद। लिशेष ििव्य- कुछ लिद्वान ऄंग्रेजी व्याकरण के प्रभाि के कारण संज्ञा शब्द के दो भेद और बतिाते हैं-

1. समदु ायिाचक संज्ञा। 2. द्रव्यिाचक संज्ञा। 1. समदु ायवाचक संज्ञा लजन संज्ञा शब्दों से व्यलियों, िस्तओ ु ं अलद के समूह का बोध हो ईन्हें समदु ायिाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-सभा, कक्षा, सेना, भीड़, पस्ु तकािय दि अलद। 2. द्रव्यवाचक संज्ञा लजन संज्ञा-शब्दों से लकसी धात,ु द्रव्य अलद पदाथों का बोध हो ईन्हें द्रव्यिाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-घी, तेि, सोना, चादँ ी,पीति, चािि, गेह,ँ कोयिा, िोहा अलद। आस प्रकार संज्ञा के पाचँ भेद हो गए, लकन्तु ऄनेक लिद्वान समदु ायिाचक और द्रव्यिाचक संज्ञाओं को जालतिाचक संज्ञा के ऄंतगथ त ही मानते हैं, और यही ईलचत भी प्रतीत होता है। भाििाचक संज्ञा बनाना- भाििाचक संज्ञाए ँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं। जैसे1. जालतवाचक संज्ञाओं से दास दासता पंलडत पांलडत्य बंधु बंधत्ु ि

क्षलत्रय क्षलत्रयत्ि परुु ष परुु षत्ि प्रभु प्रभतु ा पशु पशतु ा,पशत्ु ि ब्राह्मण ब्राह्मणत्ि लमत्र लमत्रता बािक बािकपन बच्चा बचपन नारी नारीत्ि 2. सवणनाम से ऄपना ऄपनापन, ऄपनत्ि लनज लनजत्ि,लनजता पराया परायापन स्ि स्ित्ि सिथ सिथ स्ि ऄहं ऄहंकार मम ममत्ि,ममता 3. लवर्ेषण से मीठा लमठास चतरु चातयु थ , चतरु ाइ मधरु माधयु थ सदंु र सौंदयथ , सदंु रता

लनबथ ि लनबथ िता सफे द सफे दी हरा हररयािी सफि सफिता प्रिीण प्रिीणता मैिा मैि लनपणु लनपणु ता खट्टा खटास 4. लिया से खेिना खेि थकना थकािट लिखना िेख, लिखाइ हस ँ ना हस ँ ी िेना-देना िेन-देन पढना पढाइ लमिना मेि चढना चढाइ मस ु काना मस ु कान कमाना कमाइ ईतरना ईतराइ ईड़ना ईड़ान रहना-सहना रहन-सहन देखना-भािना देख-भाि

ऄध्याय 5 संज्ञा के लवकारक तत्व लजन तत्िों के अधार पर संज्ञा (संज्ञा, सिथ नाम, लिशेषण) का रूपांतर होता है िे लिकारक तत्ि कहिाते हैं। िाक्य में शब्दों की लस्थलत के अधार पर ही ईनमें लिकार अते हैं। यह लिकार लिंग, िचन और कारक के कारण ही होता है। जैसेिड़का शब्द के चारों रूप- 1.िड़का, 2.िड़के , 3.िड़कों, 4.िड़कोके िि िचन और कारकों के कारण बनते हैं। लिंग- लजस लचह्न से यह बोध होता हो लक ऄमक ु शब्द परुु ष जालत का है ऄथिा स्त्री जालत का िह लिंग कहिाता है। पररभाषा- शब्द के लजस रूप से लकसी व्यलि, िस्तु अलद के परुु ष जालत ऄथिा स्त्री जालत के होने का ज्ञान हो ईसे लिंग कहते हैं। जैसेिड़का, िड़की, नर, नारी अलद। आनमें ‘िड़का’ और ‘नर’ पलु ल्िंग तथा िड़की और ‘नारी’ स्त्रीलिंग हैं। लहन्दी में लिंग के दो भेद हैं1. पलु ल्िंग।

2. स्त्रीलिंग। 1. िुल्लंग लजन संज्ञा शब्दों से परुु ष जालत का बोध हो ऄथिा जो शब्द परुु ष जालत के ऄंतगथ त माने जाते हैं िे पलु ल्िंग हैं। जैसे-कुत्ता, िड़का, पेड़, लसंह, बैि, घर अलद। 2. स्त्रीललंग लजन संज्ञा शब्दों से स्त्री जालत का बोध हो ऄथिा जो शब्द स्त्री जालत के ऄंतगथ त माने जाते हैं िे स्त्रीलिंग हैं। जैसे-गाय, घड़ी, िड़की, कुरसी, छड़ी, नारी अलद। िुल्लंग की िहचान 1. अ, अि, पा, पन न ये प्रत्यय लजन शब्दों के ऄंत में हों िे प्रायः पलु ल्िंग होते हैं। जैसे- मोटा, चढाि, बढु ापा, िड़कपन िेन-देन। 2. पिथ त, मास, िार और कुछ ग्रहों के नाम पलु ल्िंग होते हैं जैसेलिंध्याचि, लहमािय, िैशाख, सूयथ, चंद्र, मंगि, बधु , राहु, के तु (ग्रह)। 3. पेड़ों के नाम पलु ल्िंग होते हैं। जैसे-पीपि, नीम, अम, शीशम, सागौन, जामनु , बरगद अलद। 4. ऄनाजों के नाम पलु ल्िंग होते हैं। जैसे-बाजरा, गेह,ँ चािि, चना, मटर, जौ, ईड़द अलद। 5. द्रि पदाथों के नाम पलु ल्िंग होते हैं। जैसे-पानी, सोना, ताबँ ा, िोहा, घी, तेि अलद।

6. रत्नों के नाम पलु ल्िंग होते हैं। जैसे-हीरा, पन्ना, मूगँ ा, मोती मालणक अलद। 7. देह के ऄियिों के नाम पलु ल्िंग होते हैं। जैसे-लसर, मस्तक, दातँ , मख ु , कान, गिा, हाथ, पािँ , होंठ, ताि,ु नख, रोम अलद। 8. जि, स्थान और भूमंडि के भागों के नाम पलु ल्िंग होते हैं। जैसेसमद्रु , भारत, देश, नगर, द्वीप, अकाश, पाताि, घर, सरोिर अलद। 9. िणथ मािा के ऄनेक ऄक्षरों के नाम पलु ल्िंग होते हैं। जैसेऄ,ई,ए,ओ,क,ख,ग,घ, च,छ,य,र,ि,ि,श अलद। स्त्रीललंग की िहचान 1. लजन संज्ञा शब्दों के ऄंत में ख होते है, िे स्त्रीलिंग कहिाते हैं। जैसे-इख, भूख, चोख, राख, कोख, िाख, देखरेख अलद। 2. लजन भाििाचक संज्ञाओं के ऄंत में ट, िट, या हट होता है, िे स्त्रीलिंग कहिाती हैं। जैसे-झंझट, अहट, लचकनाहट, बनािट, सजािट अलद। 3. ऄनस्ु िारांत, इकारांत, उकारांत, तकारांत, सकारांत संज्ञाए ँ स्त्रीलिंग कहिाती है। जैसे-रोटी, टोपी, नदी, लचट्ठी, ईदासी, रात, बात, छत, भीत, िू, बािू, दारू, सरसों, खड़ाउँ, प्यास, िास, सास ँ अलद। 4. भाषा, बोिी और लिलपयों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-लहन्दी, संस्कृत, देिनागरी, पहाड़ी, तेिगु ु पंजाबी गरुु मख ु ी। 5. लजन शब्दों के ऄंत में आया अता है िे स्त्रीलिंग होते हैं। जैसेकुलटया, खलटया, लचलड़या अलद।

6. नलदयों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-गंगा, यमनु ा, गोदािरी, सरस्िती अलद। 7. तारीखों और लतलथयों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-पहिी, दूसरी, प्रलतपदा, पूलणथ मा अलद। 8. पथ्ृ िी ग्रह स्त्रीलिंग होते हैं। 9. नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-ऄलश्वनी, भरणी, रोलहणी अलद। र्ब्दों का ललंग-िररवतणन प्रत्यय इ

आया

िुल्लंग घोड़ा देि दादा िड़का ब्राह्मण नर बकरा चूहा लचड़ा बेटा गडु ् डा

स्त्रीललंग घोड़ी देिी दादी िड़की ब्राह्मणी नारी बकरी चलु हया लचलड़या लबलटया गलु ड़या

आन

नी

अनी

अआन अ

िोटा मािी कहार सनु ार िहु ार धोबी मोर हाथी लसंह नौकर चौधरी देिर सेठ जेठ पंलडत ठाकुर बाि सतु छात्र

िलु टया मालिन कहाररन सनु ाररन िहु ाररन धोलबन मोरनी हालथन लसंहनी नौकरानी चौधरानी देिरानी सेठानी जेठानी पंलडताआन ठाकुराआन बािा सतु ा छात्रा

लशष्य ऄक को पाठक आका करके ऄध्यापक बािक िेखक सेिक आनी (आणी) तपस्िी लहतकारी स्िामी परोपकारी

लशष्या पालठका ऄध्यालपका बालिका िेलखका सेलिका तपलस्िनी लहतकाररनी स्िालमनी परोपकाररनी

कुछ लिशेष शब्द जो स्त्रीलिंग में लबिकुि ही बदि जाते हैं। पलु ल्िंग स्त्रीलिंग लपता माता भाइ भाभी नर मादा राजा रानी ससरु सास

सम्राट परुु ष बैि यिु क

सम्राज्ञी स्त्री गाय यिु ती

लिशेष ििव्य- जो प्रालणिाचक सदा शब्द ही स्त्रीलिंग हैं ऄथिा जो सदा ही पलु ल्िंग हैं ईनके पलु ल्िंग ऄथिा स्त्रीलिंग जताने के लिए ईनके साथ ‘नर’ ि ‘मादा’ शब्द िगा देते हैं। जैसेस्त्रीलिंग पलु ल्िंग मक्खी नर मक्खी कोयि नर कोयि लगिहरी नर लगिहरी मैना नर मैना लततिी नर लततिी बाज मादा बाज खटमि मादा खटमि चीि नर चीि कछुअ नर कछुअ कौअ नर कौअ

भेलड़या ईल्िू मच्छर

मादा भेलड़या मादा ईल्िू मादा मच्छर

ऄध्याय 6 वचन पररभाषा-शब्द के लजस रूप से ईसके एक ऄथिा ऄनेक होने का बोध हो ईसे िचन कहते हैं। लहन्दी में िचन दो होते हैं1. एकिचन 2. बहुिचन एकवचन शब्द के लजस रूप से एक ही िस्तु का बोध हो, ईसे एकिचन कहते हैं। जैसे-िड़का, गाय, लसपाही, बच्चा, कपड़ा, माता, मािा, पस्ु तक, स्त्री, टोपी बंदर, मोर अलद। बहुवचन शब्द के लजस रूप से ऄनेकता का बोध हो ईसे बहुिचन कहते हैं। जैसेिड़के , गायें, कपड़े, टोलपया,ँ मािाए,ँ माताए,ँ पस्ु तकें , िधएु ,ँ गरुु जन, रोलटया,ँ लस्त्रया,ँ िताए,ँ बेटे अलद।

एकिचन के स्थान पर बहुिचन का प्रयोग (क) अदर के लिए भी बहुिचन का प्रयोग होता है। जैसे(1) भीष्म लपतामह तो ब्रह्मचारी थे। (2) गरुु जी अज नहीं अये। (3) लशिाजी सच्चे िीर थे। (ख) बड़प्पन दशाथ ने के लिए कुछ िोग िह के स्थान पर िे और मैं के स्थान हम का प्रयोग करते हैं जैसे(1) मालिक ने कमथ चारी से कहा, हम मीलटंग में जा रहे हैं। (2) अज गरुु जी अए तो िे प्रसन्न लदखाइ दे रहे थे। (ग) के श, रोम, ऄश्र,ु प्राण, दशथ न, िोग, दशथ क, समाचार, दाम, होश, भाग्य अलद ऐसे शब्द हैं लजनका प्रयोग बहुधा बहुिचन में ही होता है। जैसे(1) तम्ु हारे के श बड़े सन्ु दर हैं। (2) िोग कहते हैं। बहुिचन के स्थान पर एकिचन का प्रयोग (क) तू एकिचन है लजसका बहुिचन है तमु लकन्तु सभ्य िोग अजकि िोक-व्यिहार में एकिचन के लिए तमु का ही प्रयोग करते हैं जैसे(1) लमत्र, तमु कब अए। (2) क्या तमु ने खाना खा लिया। (ख) िगथ , िदंृ , दि, गण, जालत अलद शब्द ऄनेकता को प्रकट करने िािे हैं, लकन्तु आनका व्यिहार एकिचन के समान होता है। जैसे(1) सैलनक दि शत्रु का दमन कर रहा है। (2) स्त्री जालत संघषथ कर रही है। (ग) जालतिाचक शब्दों का प्रयोग एकिचन में लकया जा सकता है। जैसे-

(1) सोना बहुमूल्य िस्तु है। (2) मंबु इ का अम स्िालदष्ट होता है। बहुिचन बनाने के लनयम (1) ऄकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के ऄंलतम ऄ को ए ँ कर देने से शब्द बहुिचन में बदि जाते हैं। जैसेएकिचन बहुिचन अख अख ँ ँ ें बहन बहनें पस्ु तक पस्ु तकें सड़क सड़के गाय गायें बात बातें (2) अकारांत पलु ल्िंग शब्दों के ऄंलतम ‘अ’ को ‘ए’ कर देने से शब्द बहुिचन में बदि जाते हैं। जैसेएकिचन बहुिचन एकिचन बहुिचन घोड़ा घोड़े कौअ कौए कुत्ता कुत्ते गधा गधे के िा के िे बेटा बेटे

(3) अकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के ऄंलतम ‘अ’ के अगे ‘ए’ँ िगा देने से शब्द बहुिचन में बदि जाते हैं। जैसेएकिचन बहुिचन एकिचन बहुिचन कन्या कन्याए ँ ऄध्यालपका ऄध्यालपकाए ँ किा किाए ँ माता माताए ँ कलिता कलिताए ँ िता िताए ँ (4) आकारांत ऄथिा इकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के ऄंत में ‘या’ँ िगा देने से और दीघथ इ को ह्रस्ि आ कर देने से शब्द बहुिचन में बदि जाते हैं। जैसेएकिचन बहुिचन एकिचन बहुिचन बलु द्ध बलु द्धयाँ गलत गलतयाँ किी कलियाँ नीलत नीलतयाँ कॉपी कॉलपयाँ िड़की िड़लकयाँ थािी थालियाँ नारी नाररयाँ (5) लजन स्त्रीलिंग शब्दों के ऄंत में या है ईनके ऄंलतम अ को अँ कर देने से िे बहुिचन बन जाते हैं। जैसेएकिचन बहुिचन एकिचन बहुिचन गलु ड़या गलु ड़याँ लबलटया लबलटयाँ चलु हया चलु हयाँ कुलतया कुलतयाँ

लचलड़या बलु ढया

लचलड़याँ बलु ढयाँ

खलटया गैया

खलटयाँ गैयाँ

(6) कुछ शब्दों में ऄंलतम ई, उ और औ के साथ ए ँ िगा देते हैं और दीघथ उ के साथन पर ह्रस्ि ई हो जाता है। जैसेएकिचन बहुिचन एकिचन बहुिचन गौ गौए ँ बह बहए ँ िधू िधूए ँ िस्तु िस्तएु ँ धेनु धेनएु ँ धातु धातएु ँ (7) दि, िदंृ , िगथ , जन िोग, गण अलद शब्द जोड़कर भी शब्दों का बहुिचन बना देते हैं। जैसेएकिचन बहुिचन एकिचन बहुिचन ऄध्यापक ऄध्यापकिदंृ लमत्र लमत्रिगथ लिद्याथी लिद्याथीगण सेना सेनादि अप अप िोग गरुु गरुु जन श्रोता श्रोताजन गरीब गरीब िोग (8) कुछ शब्दों के रूप ‘एकिचन’ और ‘बहुिचन’ दोनो में समान होते हैं। जैसेएकिचन बहुिचन एकिचन बहुिचन

क्षमा जि लगरर राजा

क्षमा जि लगरर राजा

नेता प्रेम क्रोध पानी

नेता प्रेम क्रोध पानी

लिशेष- (1) जब संज्ञाओं के साथ ने, को, से अलद परसगथ िगे होते हैं तो संज्ञाओं का बहुिचन बनाने के लिए ईनमें ‘ओ’ िगाया जाता है। जैसेएकिचन बहुिचन एकिचन बहुिचन िड़के को िड़को को बच्चे ने गाना बच्चों ने गाना गाया बि बि गाया ु ाओ ु ाओ नदी का जि नलदयों का अदमी से अदलमयों से पूछ िो ठंडा है जि ठंडा है पूछ िो (2) संबोधन में ‘ओ’ जोड़कर बहुिचन बनाया जाता है। जैसेबच्चों ! ध्यान से सनु ो। भाआयों ! मेहनत करो। बहनो ! ऄपना कतथ व्य लनभाओ।

ऄध्याय 7 कारक पररभाषा-संज्ञा या सिथ नाम के लजस रूप से ईसका सीधा संबंध लक्रया के साथ ज्ञात हो िह कारक कहिाता है। जैसे-गीता ने दूध पीया। आस िाक्य में ‘गीता’ पीना लक्रया का कताथ है और दूध ईसका कमथ । ऄतः ‘गीता’ कताथ कारक है और ‘दूध’ कमथ कारक। कारक लिभलि- संज्ञा ऄथिा सिथ नाम शब्दों के बाद ‘ने, को, से, के लिए’, अलद जो लचह्न िगते हैं िे लचह्न कारक लिभलि कहिाते हैं। लहन्दी में अठ कारक होते हैं। ईन्हें लिभलि लचह्नों सलहत नीचे देखा जा सकता हैकारक लिभलि लचह्न (परसगथ ) 1. कताथ ने 2. कमथ को

3. करण से, के साथ, के द्वारा 4. संप्रदान के लिए, को 5. ऄपादान से (पथृ क) 6. संबंध का, के , की 7. ऄलधकरण में, पर 8. संबोधन हे ! हरे ! कारक लचह्न स्मरण करने के लिए आस पद की रचना की गइ हैंकताथ ने ऄरु कमथ को, करण रीलत से जान। संप्रदान को, के लिए, ऄपादान से मान।। का, के , की, संबंध हैं, ऄलधकरणालदक में मान। रे ! हे ! हो ! संबोधन, लमत्र धरहु यह ध्यान।। लिशेष-कताथ से ऄलधकरण तक लिभलि लचह्न (परसगथ ) शब्दों के ऄंत में िगाए जाते हैं, लकन्तु संबोधन कारक के लचह्न-हे, रे, अलद प्रायः शब्द से पूिथ िगाए जाते हैं। 1. कताण कारक लजस रूप से लक्रया (कायथ ) के करने िािे का बोध होता है िह ‘कताथ ’ कारक कहिाता है। आसका लिभलि-लचह्न ‘ने’ है। आस ‘ने’ लचह्न का ितथ मानकाि और भलिष्यकाि में प्रयोग नहीं होता है। आसका सकमथ क धातओ ु ं के साथ भूतकाि में प्रयोग होता है। जैसे- 1.राम ने रािण को मारा। 2.िड़की स्कूि जाती है। पहिे िाक्य में लक्रया का कताथ राम है। आसमें ‘ने’ कताथ कारक का लिभलि-

लचह्न है। आस िाक्य में ‘मारा’ भूतकाि की लक्रया है। ‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाि में होता है। दूसरे िाक्य में ितथ मानकाि की लक्रया का कताथ िड़की है। आसमें ‘ने’ लिभलि का प्रयोग नहीं हुअ है। लिशेष- (1) भूतकाि में ऄकमथ क लक्रया के कताथ के साथ भी ने परसगथ (लिभलि लचह्न) नहीं िगता है। जैसे-िह हस ँ ा। (2) ितथ मानकाि ि भलिष्यतकाि की सकमथ क लक्रया के कताथ के साथ ने परसगथ का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-िह फि खाता है। िह फि खाएगा। (3) कभी-कभी कताथ के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रयोग भी लकया जाता है। जैसे(ऄ) बािक को सो जाना चालहए। (अ) सीता से पस्ु तक पढी गइ। (आ) रोगी से चिा भी नहीं जाता। (इ) ईससे शब्द लिखा नहीं गया। 2. कमण कारक लक्रया के कायथ का फि लजस पर पड़ता है, िह कमथ कारक कहिाता है। आसका लिभलि-लचह्न ‘को’ है। यह लचह्न भी बहुत-से स्थानों पर नहीं िगता। जैसे- 1. मोहन ने सापँ को मारा। 2. िड़की ने पत्र लिखा। पहिे िाक्य में ‘मारने’ की लक्रया का फि सापँ पर पड़ा है। ऄतः सापँ कमथ कारक है। आसके साथ परसगथ ‘को’ िगा है। दूसरे िाक्य में ‘लिखने’ की लक्रया का फि पत्र पर पड़ा। ऄतः पत्र कमथ कारक है। आसमें कमथ कारक का लिभलि लचह्न ‘को’ नहीं िगा। 3. करण कारक

संज्ञा अलद शब्दों के लजस रूप से लक्रया के करने के साधन का बोध हो ऄथाथ त् लजसकी सहायता से कायथ संपन्न हो िह करण कारक कहिाता है। आसके लिभलि-लचह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ है। जैसे- 1.ऄजथ नु ने जयद्रथ को बाण से मारा। 2.बािक गेंद से खेि रहे है। पहिे िाक्य में कताथ ऄजथ नु ने मारने का कायथ ‘बाण’ से लकया। ऄतः ‘बाण से’ करण कारक है। दूसरे िाक्य में कताथ बािक खेिने का कायथ ‘गेंद से’ कर रहे हैं। ऄतः ‘गेंद से’ करण कारक है। 4. संप्रदान कारक संप्रदान का ऄथथ है-देना। ऄथाथ त कताथ लजसके लिए कुछ कायथ करता है, ऄथिा लजसे कुछ देता है ईसे व्यि करने िािे रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। आसके लिभलि लचह्न ‘के लिए’ को हैं। 1.स्िास्थ्य के लिए सूयथ को नमस्कार करो। 2.गरुु जी को फि दो। आन दो िाक्यों में ‘स्िास्थ्य के लिए’ और ‘गरुु जी को’ संप्रदान कारक हैं। 5. ऄिादान कारक संज्ञा के लजस रूप से एक िस्तु का दूसरी से ऄिग होना पाया जाए िह ऄपादान कारक कहिाता है। आसका लिभलि-लचह्न ‘से’ है। जैसे- 1.बच्चा छत से लगर पड़ा। 2.संगीता घोड़े से लगर पड़ी। आन दोनों िाक्यों में ‘छत से’ और घोड़े ‘से’ लगरने में ऄिग होना प्रकट होता है। ऄतः घोड़े से और छत से ऄपादान कारक हैं। 6. संबधं कारक

शब्द के लजस रूप से लकसी एक िस्तु का दूसरी िस्तु से संबंध प्रकट हो िह संबंध कारक कहिाता है। आसका लिभलि लचह्न ‘का’, ‘के ’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है। जैसे- 1.यह राधेश्याम का बेटा है। 2.यह कमिा की गाय है। आन दोनों िाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमिा का’ गाय से संबंध प्रकट हो रहा है। ऄतः यहाँ संबंध कारक है। 7. ऄलधकरण कारक शब्द के लजस रूप से लक्रया के अधार का बोध होता है ईसे ऄलधकरण कारक कहते हैं। आसके लिभलि-लचह्न ‘में’, ‘पर’ हैं। जैसे- 1.भिँ रा फूिों पर मडँ रा रहा है। 2.कमरे में टी.िी. रखा है। आन दोनों िाक्यों में ‘फूिों पर’ और ‘कमरे में’ ऄलधकरण कारक है। 8. संबोधन कारक लजससे लकसी को बि ु ाने ऄथिा सचेत करने का भाि प्रकट हो ईसे संबोधन कारक कहते है और संबोधन लचह्न (!) िगाया जाता है। जैसे1.ऄरे भैया ! क्यों रो रहे हो ? 2.हे गोपाि ! यहाँ अओ। आन िाक्यों में ‘ऄरे भैया’ और ‘हे गोपाि’ ! संबोधन कारक है।

ऄध्याय 8 सवणनाम सिथ नाम-संज्ञा के स्थान पर प्रयि ु होने िािे शब्द को सिथ नाम कहते है। संज्ञा की पनु रुलि को दूर करने के लिए ही सिथ नाम का प्रयोग लकया जाता है। जैसे-मैं, हम, तू, तमु , िह, यह, अप, कौन, कोइ, जो अलद। सिथ नाम के भेद- सिथ नाम के छह भेद हैं1. परुु षिाचक सिथ नाम। 2. लनियिाचक सिथ नाम। 3. ऄलनियिाचक सिथ नाम।

4. संबंधिाचक सिथ नाम। 5. प्रश्निाचक सिथ नाम। 6. लनजिाचक सिथ नाम। 1. िरु ु षवाचक सवणनाम लजस सिथ नाम का प्रयोग ििा या िेखक स्ियं ऄपने लिए ऄथिा श्रोता या पाठक के लिए ऄथिा लकसी ऄन्य के लिए करता है िह परुु षिाचक सिथ नाम कहिाता है। परुु षिाचक सिथ नाम तीन प्रकार के होते हैं(1) ईत्तम परुु षिाचक सिथ नाम- लजस सिथ नाम का प्रयोग बोिने िािा ऄपने लिए करे, ईसे ईत्तम परुु षिाचक सिथ नाम कहते हैं। जैसे-मैं, हम, मझ ु े, हमारा अलद। (2) मध्यम परुु षिाचक सिथ नाम- लजस सिथ नाम का प्रयोग बोिने िािा सनु ने िािे के लिए करे, ईसे मध्यम परुु षिाचक सिथ नाम कहते हैं। जैसेतू, तमु ,तझ ु े, तम्ु हारा अलद। (3) ऄन्य परुु षिाचक सिथ नाम- लजस सिथ नाम का प्रयोग बोिने िािा सनु ने िािे के ऄलतररि लकसी ऄन्य परुु ष के लिए करे ईसे ऄन्य परुु षिाचक सिथ नाम कहते हैं। जैस-े िह, िे, ईसने, यह, ये, आसने, अलद। 2. लनश्चयवाचक सवणनाम जो सिथ नाम लकसी व्यलि िस्तु अलद की ओर लनियपूिथक संकेत करें िे लनियिाचक सिथ नाम कहिाते हैं। आनमें ‘यह’, ‘िह’, ‘िे’ सिथ नाम शब्द लकसी लिशेष व्यलि अलद का लनियपूिथक बोध करा रहे हैं, ऄतः ये लनियिाचक सिथ नाम है।

3. ऄलनश्चयवाचक सवणनाम लजस सिथ नाम शब्द के द्वारा लकसी लनलित व्यलि ऄथिा िस्तु का बोध न हो िे ऄलनियिाचक सिथ नाम कहिाते हैं। आनमें ‘कोइ’ और ‘कुछ’ सिथ नाम शब्दों से लकसी लिशेष व्यलि ऄथिा िस्तु का लनिय नहीं हो रहा है। ऄतः ऐसे शब्द ऄलनियिाचक सिथ नाम कहिाते हैं। 4. संबधं वाचक सवणनाम परस्पर एक-दूसरी बात का संबंध बतिाने के लिए लजन सिथ नामों का प्रयोग होता है ईन्हें संबंधिाचक सिथ नाम कहते हैं। आनमें ‘जो’, ‘िह’, ‘लजसकी’, ‘ईसकी’, ‘जैसा’, ‘िैसा’-ये दो-दो शब्द परस्पर संबंध का बोध करा रहे हैं। ऐसे शब्द संबंधिाचक सिथ नाम कहिाते हैं। 5. प्रश्नवाचक सवणनाम जो सिथ नाम संज्ञा शब्दों के स्थान पर तो अते ही है, लकन्तु िाक्य को प्रश्निाचक भी बनाते हैं िे प्रश्निाचक सिथ नाम कहिाते हैं। जैसे-क्या, कौन अलद। आनमें ‘क्या’ और ‘कौन’ शब्द प्रश्निाचक सिथ नाम हैं, क्योंलक आन सिथ नामों के द्वारा िाक्य प्रश्निाचक बन जाते हैं। 6. लनजवाचक सवणनाम जहाँ ऄपने लिए ‘अप’ शब्द ‘ऄपना’ शब्द ऄथिा ‘ऄपने’ ‘अप’ शब्द का प्रयोग हो िहाँ लनजिाचक सिथ नाम होता है। आनमें ‘ऄपना’ और ‘अप’ शब्द ईत्तम, परुु ष मध्यम परुु ष और ऄन्य परुु ष के (स्ियं का) ऄपने अप का बोध करा रहे हैं। ऐसे शब्द लनजिाचक सिथ नाम कहिाते हैं।

लिशेष-जहाँ के िि ‘अप’ शब्द का प्रयोग श्रोता के लिए हो िहाँ यह अदरसूचक मध्यम परुु ष होता है और जहाँ ‘अप’ शब्द का प्रयोग ऄपने लिए हो िहाँ लनजिाचक होता है। सिथ नाम शब्दों के लिशेष प्रयोग (1) अप, िे, ये, हम, तमु शब्द बहुिचन के रूप में हैं, लकन्तु अदर प्रकट करने के लिए आनका प्रयोग एक व्यलि के लिए भी होता है। (2) ‘अप’ शब्द स्ियं के ऄथथ में भी प्रयि ु हो जाता है। जैसे-मैं यह कायथ अप ही कर िूगँ ा। ऄध्याय 9 लवर्ेषण लिशेषण की पररभाषा- संज्ञा ऄथिा सिथ नाम शब्दों की लिशेषता (गणु , दोष, संख्या, पररमाण अलद) बताने िािे शब्द ‘लिशेषण’ कहिाते हैं। जैसेबड़ा, कािा, िंबा, दयाि,ु भारी, सन्ु दर, कायर, टेढा-मेढा, एक, दो अलद। लिशेष्य- लजस संज्ञा ऄथिा सिथ नाम शब्द की लिशेषता बताइ जाए िह लिशेष्य कहिाता है। यथा- गीता सन्ु दर है। आसमें ‘सन्ु दर’ लिशेषण है और ‘गीता’ लिशेष्य है। लिशेषण शब्द लिशेष्य से पूिथ भी अते हैं और ईसके बाद भी। पूिथ में, जैसे- (1) थोड़ा-सा जि िाओ। (2) एक मीटर कपड़ा िे अना। बाद में, जैसे- (1) यह रास्ता िंबा है। (2) खीरा कड़िा है। लिशेषण के भेद- लिशेषण के चार भेद हैं1. गणु िाचक।

2. पररमाणिाचक। 3. संख्यािाचक। 4. संकेतिाचक ऄथिा सािथ नालमक। 1. गण ु वाचक लवर्ेषण लजन लिशेषण शब्दों से संज्ञा ऄथिा सिथ नाम शब्दों के गणु -दोष का बोध हो िे गणु िाचक लिशेषण कहिाते हैं। जैसे(1) भाि- ऄच्छा, बरु ा, कायर, िीर, डरपोक अलद। (2) रंग- िाि, हरा, पीिा, सफे द, कािा, चमकीिा, फीका अलद। (3) दशा- पतिा, मोटा, सूखा, गाढा, लपघिा, भारी, गीिा, गरीब, ऄमीर, रोगी, स्िस्थ, पाितू अलद। (4) अकार- गोि, सडु ौि, नक ु ीिा, समान, पोिा अलद। (5) समय- ऄगिा, लपछिा, दोपहर, संध्या, सिेरा अलद। (6) स्थान- भीतरी, बाहरी, पंजाबी, जापानी, परु ाना, ताजा, अगामी अलद। (7) गणु - भिा, बरु ा, सन्ु दर, मीठा, खट्टा, दानी,सच, झूठ, सीधा अलद। (8) लदशा- ईत्तरी, दलक्षणी, पूिी, पलिमी अलद। 2. िररमाणवाचक लवर्ेषण लजन लिशेषण शब्दों से संज्ञा या सिथ नाम की मात्रा ऄथिा नाप-तोि का ज्ञान हो िे पररमाणिाचक लिशेषण कहिाते हैं। पररमाणिाचक लिशेषण के दो ईपभेद है(1) लनलित पररमाणिाचक लिशेषण- लजन लिशेषण शब्दों से िस्तु की

लनलित मात्रा का ज्ञान हो। जैसे(क) मेरे सूट में साढे तीन मीटर कपड़ा िगेगा। (ख) दस लकिो चीनी िे अओ। (ग) दो लिटर दूध गरम करो। (2) ऄलनलित पररमाणिाचक लिशेषण- लजन लिशेषण शब्दों से िस्तु की ऄलनलित मात्रा का ज्ञान हो। जैसे(क) थोड़ी-सी नमकीन िस्तु िे अओ। (ख) कुछ अम दे दो। (ग) थोड़ा-सा दूध गरम कर दो। 3. संख्यावाचक लवर्ेषण लजन लिशेषण शब्दों से संज्ञा या सिथ नाम की संख्या का बोध हो िे संख्यािाचक लिशेषण कहिाते हैं। जैसे-एक, दो, लद्वतीय, दगु नु ा, चौगनु ा, पाचँ ों अलद। संख्यािाचक लिशेषण के दो ईपभेद हैं(1) लनलित संख्यािाचक लिशेषण- लजन लिशेषण शब्दों से लनलित संख्या का बोध हो। जैसे-दो पस्ु तकें मेरे लिए िे अना। लनलित संख्यािाचक के लनम्नलिलखत चार भेद हैं(क) गणिाचक- लजन शब्दों के द्वारा लगनती का बोध हो। जैसे(1) एक िड़का स्कूि जा रहा है। (2) पच्चीस रुपये दीलजए। (3) कि मेरे यहाँ दो लमत्र अएगँ े। (4) चार अम िाओ।

(ख) क्रमिाचक- लजन शब्दों के द्वारा संख्या के क्रम का बोध हो। जैसे(1) पहिा िड़का यहाँ अए। (2) दूसरा िड़का िहाँ बैठे। (3) राम कक्षा में प्रथम रहा। (4) श्याम लद्वतीय श्रेणी में पास हुअ है। (ग) अिलृ त्तिाचक- लजन शब्दों के द्वारा के िि अिलृ त्त का बोध हो। जैसे(1) मोहन तमु से चौगनु ा काम करता है। (2) गोपाि तमु से दगु नु ा मोटा है। (घ) समदु ायिाचक- लजन शब्दों के द्वारा के िि सामूलहक संख्या का बोध हो। जैसे(1) तमु तीनों को जाना पड़ेगा। (2) यहाँ से चारों चिे जाओ। (2) ऄलनलित संख्यािाचक लिशेषण- लजन लिशेषण शब्दों से लनलित संख्या का बोध न हो। जैसे-कुछ बच्चे पाकथ में खेि रहे हैं। 4. संकेतवाचक (लनदेर्क) लवर्ेषण जो सिथ नाम संकेत द्वारा संज्ञा या सिथ नाम की लिशेषता बतिाते हैं िे संकेतिाचक लिशेषण कहिाते हैं। लिशेष-क्योंलक संकेतिाचक लिशेषण सिथ नाम शब्दों से बनते हैं, ऄतः ये सािथ नालमक लिशेषण कहिाते हैं। आन्हें लनदेशक भी कहते हैं। (1) पररमाणिाचक लिशेषण और संख्यािाचक लिशेषण में ऄंतर- लजन िस्तओ ु ं की नाप-तोि की जा सके ईनके िाचक शब्द पररमाणिाचक लिशेषण कहिाते हैं। जैसे-‘कुछ दूध िाओ’। आसमें ‘कुछ’ शब्द तोि के

लिए अया है। आसलिए यह पररमाणिाचक लिशेषण है। 2.लजन िस्तओ ु ं की लगनती की जा सके ईनके िाचक शब्द संख्यािाचक लिशेषण कहिाते हैं। जैसे-कुछ बच्चे आधर अओ। यहाँ पर ‘कुछ’ बच्चों की लगनती के लिए अया है। आसलिए यह संख्यािाचक लिशेषण है। पररमाणिाचक लिशेषणों के बाद द्रव्य ऄथिा पदाथथ िाचक संज्ञाए ँ अएगँ ी जबलक संख्यािाचक लिशेषणों के बाद जालतिाचक संज्ञाए ँ अती हैं। (2) सिथ नाम और सािथ नालमक लिशेषण में ऄंतर- लजस शब्द का प्रयोग संज्ञा शब्द के स्थान पर हो ईसे सिथ नाम कहते हैं। जैसे-िह मंबु इ गया। आस िाक्य में िह सिथ नाम है। लजस शब्द का प्रयोग संज्ञा से पूिथ ऄथिा बाद में लिशेषण के रूप में लकया गया हो ईसे सािथ नालमक लिशेषण कहते हैं। जैसेिह रथ अ रहा है। आसमें िह शब्द रथ का लिशेषण है। ऄतः यह सािथ नालमक लिशेषण है। लवर्ेषण की ऄवस्थाएँ लिशेषण शब्द लकसी संज्ञा या सिथ नाम की लिशेषता बतिाते हैं। लिशेषता बताइ जाने िािी िस्तओ ु ं के गणु -दोष कम-ज्यादा होते हैं। गणु -दोषों के आस कम-ज्यादा होने को ति ु नात्मक ढंग से ही जाना जा सकता है। ति ु ना की दृलष्ट से लिशेषणों की लनम्नलिलखत तीन ऄिस्थाए ँ होती हैं(1) मूिािस्था (2) ईत्तरािस्था (3) ईत्तमािस्था (1) मल ू ावस्था

मूिािस्था में लिशेषण का ति ु नात्मक रूप नहीं होता है। िह के िि सामान्य लिशेषता ही प्रकट करता है। जैसे- 1.सालित्री सदंु र िड़की है। 2.सरु शे ऄच्छा िड़का है। 3.सूयथ तेजस्िी है। (2) उिरावस्था जब दो व्यलियों या िस्तओ ु ं के गणु -दोषों की ति ु ना की जाती है तब लिशेषण ईत्तरािस्था में प्रयि ु होता है। जैसे- 1.रिीन्द्र चेतन से ऄलधक बलु द्धमान है। 2.सलिता रमा की ऄपेक्षा ऄलधक सन्ु दर है। (3) उिमावस्था ईत्तमािस्था में दो से ऄलधक व्यलियों एिं िस्तओ ु ं की ति ु ना करके लकसी एक को सबसे ऄलधक ऄथिा सबसे कम बताया गया है। जैसे1.पंजाब में ऄलधकतम ऄन्न होता है। 2.संदीप लनकृष्टतम बािक है। लिशेष-के िि गणु िाचक एिं ऄलनलित संख्यािाचक तथा लनलित पररमाणिाचक लिशेषणों की ही ये ति ु नात्मक ऄिस्थाए ँ होती हैं, ऄन्य लिशेषणों की नहीं। ऄिस्थाओं के रूप(1) ऄलधक और सबसे ऄलधक शब्दों का प्रयोग करके ईत्तरािस्था और ईत्तमािस्था के रूप बनाए जा सकते हैं। जैसेमूिािस्था ईत्तरािस्था ईत्तमािस्था ऄच्छी ऄलधक ऄच्छी सबसे ऄच्छी चतरु ऄलधक चतरु सबसे ऄलधक चतरु बलु द्धमान ऄलधक बलु द्धमान सबसे ऄलधक बलु द्धमान

बििान ऄलधक बििान सबसे ऄलधक बििान आसी प्रकार दूसरे लिशेषण शब्दों के रूप भी बनाए जा सकते हैं। (2) तत्सम शब्दों में मूिािस्था में लिशेषण का मूि रूप, ईत्तरािस्था में ‘तर’ और ईत्तमािस्था में ‘तम’ का प्रयोग होता है। जैसेमूिािस्था ईत्तरािस्था ईत्तमािस्था ईच्च ईच्चतर ईच्चतम कठोर कठोरतर कठोरतम गरुु गरुु तर गरुु तम महान, महानतर महत्तर, महानतम महत्तम न्यून न्यूनतर न्यनूतम िघु िघतु र िघतु म तीव्र तीव्रतर तीव्रतम लिशाि लिशाितर लिशाितम ईत्कृष्ट ईत्कृष्टर ईत्कृट्ठतम सदंु र सदंु रतर सदंु रतम मधरु मधरु तर मधतु रतम लवर्ेषणों की रचना

कुछ शब्द मूिरूप में ही लिशेषण होते हैं, लकन्तु कुछ लिशेषण शब्दों की रचना संज्ञा, सिथ नाम एिं लक्रया शब्दों से की जाती है(1) संज्ञा से लिशेषण बनाना प्रत्यय संज्ञा लिशेषण संज्ञा लिशेषण क ऄंश अंलशक धमथ धालमथ क ऄिंकार अिंकाररक नीलत नैलतक ऄथथ अलथथ क लदन दैलनक आलतहास ऐलतहालसक देि दैलिक आत ऄंक ऄंलकत कुसमु कुसलु मत सरु लभ सरु लभत ध्िलन ध्िलनत क्षधु ा क्षलु धत तरंग तरंलगत आि जटा जलटि पंक पंलकि फे न फे लनि ईलमथ ईलमथ ि आम स्िणथ स्िलणथ म रि रलिम इ रोग रोगी भोग भोगी इन,इण कुि कुिीन ग्राम ग्रामीण इय अत्मा अत्मीय जालत जातीय अिु श्रद्धा श्रद्धािु इष्याथ इष्याथ िु िी मनस मनस्िी तपस तपस्िी मय सख सख दख दख ु ु मय ु ु मय

िान रूप िती(स्त्री) गणु मान बलु द्ध मती श्री (स्त्री) रत धमथ स्थ समीप लनष्ठ धमथ

रूपिान गणु िती बलु द्धमान

गणु पत्रु श्री

गणु िान पत्रु िती श्रीमान

श्रीमती

बलु द्ध

बलु द्धमती

धमथ रत समीपस्थ धमथ लनष्ठ

कमथ देह कमथ

कमथ रत देहस्थ कमथ लनष्ठ

(2) सिथ नाम से लिशेषण बनाना सिथ नाम लिशेषण सिथ नाम िह िैसा यह (3) लक्रया से लिशेषण बनाना लक्रया लिशेषण लक्रया पत पलतत पूज पठ पलठत िंद भागना भागने िािा पािना

लिशेषण ऐसा

लिशेषण पूजनीय िंदनीय पािने िािा

ऄध्याय 10 लिया लक्रया- लजस शब्द ऄथिा शब्द-समूह के द्वारा लकसी कायथ के होने ऄथिा करने का बोध हो ईसे लक्रया कहते हैं। जैसे(1) गीता नाच रही है। (2) बच्चा दूध पी रहा है। (3) राके श कॉिेज जा रहा है। (4) गौरि बलु द्धमान है। (5) लशिाजी बहुत िीर थे। आनमें ‘नाच रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ शब्द कायथ -व्यापार का बोध

करा रहे हैं। जबलक ‘है’, ‘थे’ शब्द होने का। आन सभी से लकसी कायथ के करने ऄथिा होने का बोध हो रहा है। ऄतः ये लक्रयाए ँ हैं। धातु लक्रया का मूि रूप धातु कहिाता है। जैसे-लिख, पढ, जा, खा, गा, रो, पा अलद। आन्हीं धातओ ु ं से लिखता, पढता, अलद लक्रयाए ँ बनती हैं। लक्रया के भेद- लक्रया के दो भेद हैं(1) ऄकमथ क लक्रया। (2) सकमथ क लक्रया। 1. ऄकमणक लिया लजन लक्रयाओं का फि सीधा कताथ पर ही पड़े िे ऄकमथ क लक्रया कहिाती हैं। ऐसी ऄकमथ क लक्रयाओं को कमथ की अिश्यकता नहीं होती। ऄकमथ क लक्रयाओं के ऄन्य ईदाहरण हैं(1) गौरि रोता है। (2) सापँ रेंगता है। (3) रेिगाड़ी चिती है। कुछ ऄकमथ क लक्रयाए-ँ िजाना, होना, बढना, सोना, खेिना, ऄकड़ना, डरना, बैठना, हस ँ ना, ईगना, जीना, दौड़ना, रोना, ठहरना, चमकना, डोिना, मरना, घटना, फादँ ना, जागना, बरसना, ईछिना, कूदना अलद। 2. सकमणक लिया लजन लक्रयाओं का फि (कताथ को छोड़कर) कमथ पर पड़ता है िे सकमथ क लक्रया कहिाती हैं। आन लक्रयाओं में कमथ का होना अिश्यक हैं, सकमथ क

लक्रयाओं के ऄन्य ईदाहरण हैं(1) मैं िेख लिखता ह।ँ (2) रमेश लमठाइ खाता है। (3) सलिता फि िाती है। (4) भिँ रा फूिों का रस पीता है। 3.लद्वकमथ क लक्रया- लजन लक्रयाओं के दो कमथ होते हैं, िे लद्वकमथ क लक्रयाए ँ कहिाती हैं। लद्वकमथ क लक्रयाओं के ईदाहरण हैं(1) मैंने श्याम को पस्ु तक दी। (2) सीता ने राधा को रुपये लदए। उपर के िाक्यों में ‘देना’ लक्रया के दो कमथ हैं। ऄतः देना लद्वकमथ क लक्रया हैं। प्रयोग की दृलि से लिया के भेद प्रयोग की दृलष्ट से लक्रया के लनम्नलिलखत पाचँ भेद हैं1.सामान्य लक्रया- जहाँ के िि एक लक्रया का प्रयोग होता है िह सामान्य लक्रया कहिाती है। जैसे1. अप अए। 2.िह नहाया अलद। 2.संयि ु लक्रया- जहाँ दो ऄथिा ऄलधक लक्रयाओं का साथ-साथ प्रयोग हो िे संयि ु लक्रया कहिाती हैं। जैसे1.सलिता महाभारत पढने िगी। 2.िह खा चक ु ा। 3.नामधातु लक्रया- संज्ञा, सिथ नाम ऄथिा लिशेषण शब्दों से बने लक्रयापद नामधातु लक्रया कहिाते हैं। जैसे-हलथयाना, शरमाना, ऄपनाना, िजाना,

लचकनाना, झठु िाना अलद। 4.प्रेरणाथथ क लक्रया- लजस लक्रया से पता चिे लक कताथ स्ियं कायथ को न करके लकसी ऄन्य को ईस कायथ को करने की प्रेरणा देता है िह प्रेरणाथथ क लक्रया कहिाती है। ऐसी लक्रयाओं के दो कताथ होते हैं- (1) प्रेरक कताथ प्रेरणा प्रदान करने िािा। (2) प्रेररत कताथ -प्रेरणा िेने िािा। जैसे-श्यामा राधा से पत्र लिखिाती है। आसमें िास्ति में पत्र तो राधा लिखती है, लकन्तु ईसको लिखने की प्रेरणा देती है श्यामा। ऄतः ‘लिखिाना’ लक्रया प्रेरणाथथ क लक्रया है। आस िाक्य में श्यामा प्रेरक कताथ है और राधा प्रेररत कताथ । 5.पूिथकालिक लक्रया- लकसी लक्रया से पूिथ यलद कोइ दूसरी लक्रया प्रयि ु हो तो िह पूिथकालिक लक्रया कहिाती है। जैसे- मैं ऄभी सोकर ईठा ह।ँ आसमें ‘ईठा ह’ँ लक्रया से पूिथ ‘सोकर’ लक्रया का प्रयोग हुअ है। ऄतः ‘सोकर’ पूिथकालिक लक्रया है। लिशेष- पूिथकालिक लक्रया या तो लक्रया के सामान्य रूप में प्रयि ु होती है ऄथिा धातु के ऄंत में ‘कर’ ऄथिा ‘करके ’ िगा देने से पूिथकालिक लक्रया बन जाती है। जैसे(1) बच्चा दूध पीते ही सो गया। (2) िड़लकयाँ पस्ु तकें पढकर जाएगँ ी। ऄिूणण लिया कइ बार िाक्य में लक्रया के होते हुए भी ईसका ऄथथ स्पष्ट नहीं हो पाता। ऐसी लक्रयाए ँ ऄपूणथ लक्रया कहिाती हैं। जैसे-गाधँ ीजी थे। तमु हो। ये लक्रयाए ँ ऄपूणथ लक्रयाए ँ है। ऄब आन्हीं िाक्यों को लफर से पलढए-

गांधीजी राष्रलपता थे। तमु बलु द्धमान हो। आन िाक्यों में क्रमशः ‘राष्रलपता’ और ‘बलु द्धमान’ शब्दों के प्रयोग से स्पष्टता अ गइ। ये सभी शब्द ‘पूरक’ हैं। ऄपूणथ लक्रया के ऄथथ को पूरा करने के लिए लजन शब्दों का प्रयोग लकया जाता है ईन्हें पूरक कहते हैं।

ऄध्याय 11 काल काल लक्रया के लजस रूप से कायथ संपन्न होने का समय (काि) ज्ञात हो िह काि कहिाता है। काि के लनम्नलिलखत तीन भेद हैं1. भूतकाि। 2. ितथ मानकाि। 3. भलिष्यकाि। 1. भूतकाल

लक्रया के लजस रूप से बीते हुए समय (ऄतीत) में कायथ संपन्न होने का बोध हो िह भूतकाि कहिाता है। जैसे(1) बच्चा गया। (2) बच्चा गया है। (3) बच्चा जा चक ु ा था। ये सब भूतकाि की लक्रयाए ँ हैं, क्योंलक ‘गया’, ‘गया है’, ‘जा चक ु ा था’, लक्रयाए ँ भूतकाि का बोध कराती है। भूतकाि के लनम्नलिलखत छह भेद हैं1. सामान्य भूत। 2. असन्न भूत। 3. ऄपूणथ भूत। 4. पूणथ भूत। 5. संलदग्ध भूत। 6. हेतहु ेतमु द भूत। 1.सामान्य भूत- लक्रया के लजस रूप से बीते हुए समय में कायथ के होने का बोध हो लकन्तु ठीक समय का ज्ञान न हो, िहाँ सामान्य भूत होता है। जैसे(1) बच्चा गया। (2) श्याम ने पत्र लिखा। (3) कमि अया। 2.असन्न भूत- लक्रया के लजस रूप से ऄभी-ऄभी लनकट भूतकाि में लक्रया का होना प्रकट हो, िहाँ असन्न भूत होता है। जैसे(1) बच्चा अया है। (2) श्यान ने पत्र लिखा है।

(3) कमि गया है। 3.ऄपूणथ भूत- लक्रया के लजस रूप से कायथ का होना बीते समय में प्रकट हो, पर पूरा होना प्रकट न हो िहाँ ऄपूणथ भूत होता है। जैसे(1) बच्चा अ रहा था। (2) श्याम पत्र लिख रहा था। (3) कमि जा रहा था। 4.पूणथ भूत- लक्रया के लजस रूप से यह ज्ञात हो लक कायथ समाप्त हुए बहुत समय बीत चक ु ा है ईसे पूणथ भूत कहते हैं। जैसे(1) श्याम ने पत्र लिखा था। (2) बच्चा अया था। (3) कमि गया था। 5.संलदग्ध भूत- लक्रया के लजस रूप से भूतकाि का बोध तो हो लकन्तु कायथ के होने में संदहे हो िहाँ संलदग्ध भूत होता है। जैसे(1) बच्चा अया होगा। (2) श्याम ने पत्र लिखा होगा। (3) कमि गया होगा। 6.हेतहु ेतमु द भूत- लक्रया के लजस रूप से बीते समय में एक लक्रया के होने पर दूसरी लक्रया का होना अलश्रत हो ऄथिा एक लक्रया के न होने पर दूसरी लक्रया का न होना अलश्रत हो िहाँ हेतहु ेतमु द भूत होता है। जैसे(1) यलद श्याम ने पत्र लिखा होता तो मैं ऄिश्य अता। (2) यलद िषाथ होती तो फसि ऄच्छी होती। 2. वतणमान काल

लक्रया के लजस रूप से कायथ का ितथ मान काि में होना पाया जाए ईसे ितथ मान काि कहते हैं। जैसे(1) मलु न मािा फे रता है। (2) श्याम पत्र लिखता होगा। आन सब में ितथ मान काि की लक्रयाए ँ हैं, क्योंलक ‘फे रता है’, ‘लिखता होगा’, लक्रयाए ँ ितथ मान काि का बोध कराती हैं। आसके लनम्नलिलखत तीन भेद हैं(1) सामान्य ितथ मान। (2) ऄपूणथ ितथ मान। (3) संलदग्ध ितथ मान। 1.सामान्य ितथ मान- लक्रया के लजस रूप से यह बोध हो लक कायथ ितथ मान काि में सामान्य रूप से होता है िहाँ सामान्य ितथ मान होता है। जैसे(1) बच्चा रोता है। (2) श्याम पत्र लिखता है। (3) कमि अता है। 2.ऄपूणथ ितथ मान- लक्रया के लजस रूप से यह बोध हो लक कायथ ऄभी चि ही रहा है, समाप्त नहीं हुअ है िहाँ ऄपूणथ ितथ मान होता है। जैसे(1) बच्चा रो रहा है। (2) श्याम पत्र लिख रहा है। (3) कमि अ रहा है। 3.संलदग्ध ितथ मान- लक्रया के लजस रूप से ितथ मान में कायथ के होने में संदहे का बोध हो िहाँ संलदग्ध ितथ मान होता है। जैसे-

(1) ऄब बच्चा रोता होगा। (2) श्याम आस समय पत्र लिखता होगा। 3. भलवष्यत काल लक्रया के लजस रूप से यह ज्ञात हो लक कायथ भलिष्य में होगा िह भलिष्यत काि कहिाता है। जैसे- (1) श्याम पत्र लिखेगा। (2) शायद अज संध्या को िह अए। आन दोनों में भलिष्यत काि की लक्रयाए ँ हैं, क्योंलक लिखेगा और अए लक्रयाए ँ भलिष्यत काि का बोध कराती हैं। आसके लनम्नलिलखत दो भेद हैं1. सामान्य भलिष्यत। 2. संभाव्य भलिष्यत। 1.सामान्य भलिष्यत- लक्रया के लजस रूप से कायथ के भलिष्य में होने का बोध हो ईसे सामान्य भलिष्यत कहते हैं। जैसे(1) श्याम पत्र लिखेगा। (2) हम घूमने जाएगँ े। 2.संभाव्य भलिष्यत- लक्रया के लजस रूप से कायथ के भलिष्य में होने की संभािना का बोध हो िहाँ संभाव्य भलिष्यत होता है जैसे(1) शायद अज िह अए। (2) संभि है श्याम पत्र लिखे। (3) कदालचत संध्या तक पानी पड़े।

ऄध्याय 12 वाच्य िाच्य-लक्रया के लजस रूप से यह ज्ञात हो लक िाक्य में लक्रया द्वारा संपालदत लिधान का लिषय कताथ है, कमथ है, ऄथिा भाि है, ईसे िाच्य कहते हैं। िाच्य के तीन प्रकार हैं1. कतथ िृ ाच्य। 2. कमथ िाच्य। 3. भाििाच्य।

1.कतथ िृ ाच्य- लक्रया के लजस रूप से िाक्य के ईद्देश्य (लक्रया के कताथ ) का बोध हो, िह कतथ िृ ाच्य कहिाता है। आसमें लिंग एिं िचन प्रायः कताथ के ऄनस ु ार होते हैं। जैसे1.बच्चा खेिता है। 2.घोड़ा भागता है। आन िाक्यों में ‘बच्चा’, ‘घोड़ा’ कताथ हैं तथा िाक्यों में कताथ की ही प्रधानता है। ऄतः ‘खेिता है’, ‘भागता है’ ये कतथ िृ ाच्य हैं। 2.कमथ िाच्य- लक्रया के लजस रूप से िाक्य का ईद्देश्य ‘कमथ ’ प्रधान हो ईसे कमथ िाच्य कहते हैं। जैसे1.भारत-पाक यद्ध ु में सहस्रों सैलनक मारे गए। 2.छात्रों द्वारा नाटक प्रस्ततु लकया जा रहा है। 3.पस्ु तक मेरे द्वारा पढी गइ। 4.बच्चों के द्वारा लनबंध पढे गए। आन िाक्यों में लक्रयाओं में ‘कमथ ’ की प्रधानता दशाथ इ गइ है। ईनकी रूपरचना भी कमथ के लिंग, िचन और परुु ष के ऄनस ु ार हुइ है। लक्रया के ऐसे रूप ‘कमथ िाच्य’ कहिाते हैं। 3.भाििाच्य-लक्रया के लजस रूप से िाक्य का ईद्देश्य के िि भाि (लक्रया का ऄथथ ) ही जाना जाए िहाँ भाििाच्य होता है। आसमें कताथ या कमथ की प्रधानता नहीं होती है। आसमें मख्ु यतः ऄकमथ क लक्रया का ही प्रयोग होता है और साथ ही प्रायः लनषेधाथथ क िाक्य ही भाििाच्य में प्रयि ु होते हैं। आसमें लक्रया सदैि पलु ल्िंग, ऄन्य परुु ष के एक िचन की होती है। प्रयोग

प्रयोग तीन प्रकार के होते हैं1. कतथ रर प्रयोग। 2. कमथ लण प्रयोग। 3. भािे प्रयोग। 1.कतथ रर प्रयोग- जब कताथ के लिंग, िचन और परुु ष के ऄनरू ु प लक्रया हो तो िह ‘कतथ रर प्रयोग’ कहिाता है। जैसे1.िड़का पत्र लिखता है। 2.िड़लकयाँ पत्र लिखती है। आन िाक्यों में ‘िड़का’ एकिचन, पलु ल्िंग और ऄन्य परुु ष है और ईसके साथ लक्रया भी ‘लिखता है’ एकिचन, पलु ल्िंग और ऄन्य परुु ष है। आसी तरह ‘िड़लकयाँ पत्र लिखती हैं’ दूसरे िाक्य में कताथ बहुिचन, स्त्रीलिंग और ऄन्य परुु ष है तथा ईसकी लक्रया भी ‘लिखती हैं’ बहुिचन स्त्रीलिंग और ऄन्य परुु ष है। 2.कमथ लण प्रयोग- जब लक्रया कमथ के लिंग, िचन और परुु ष के ऄनरू ु प हो तो िह ‘कमथ लण प्रयोग’ कहिाता है। जैसे- 1.ईपन्यास मेरे द्वारा पढा गया। 2.छात्रों से लनबंध लिखे गए। 3.यद्ध ु में हजारों सैलनक मारे गए। आन िाक्यों में ‘ईपन्यास’, ‘सैलनक’, कमथ कताथ की लस्थलत में हैं ऄतः ईनकी प्रधानता है। आनमें लक्रया का रूप कमथ के लिंग, िचन और परुु ष के ऄनरू ु प बदिा है, ऄतः यहाँ ‘कमथ लण प्रयोग’ है। 3.भािे प्रयोग- कतथ रर िाच्य की सकमथ क लक्रयाए,ँ जब ईनके कताथ और कमथ दोनों लिभलियि ु हों तो िे ‘भािे प्रयोग’ के ऄंतगथ त अती हैं। आसी प्रकार भाििाच्य की सभी लक्रयाए ँ भी भािे प्रयोग में मानी जाती है। जैसे-

1.ऄनीता ने बेि को सींचा। 2.िड़कों ने पत्रों को देखा है। 3.िड़लकयों ने पस्ु तकों को पढा है। 4.ऄब ईससे चिा नहीं जाता है। आन िाक्यों की लक्रयाओं के लिंग, िचन और परुु ष न कताथ के ऄनस ु ार हैं और न ही कमथ के ऄनस ु ार, ऄलपतु िे एकिचन, पलु ल्िंग और ऄन्य परुु ष हैं। आस प्रकार के ‘प्रयोग भािे’ प्रयोग कहिाते हैं। वाच्य िररवतणन 1.कतथ िृ ाच्य से कमथ िाच्य बनाना(1) कतथ िृ ाच्य की लक्रया को सामान्य भूतकाि में बदिना चालहए। (2) ईस पररिलतथ त लक्रया-रूप के साथ काि, परुु ष, िचन और लिंग के ऄनरू ु प जाना लक्रया का रूप जोड़ना चालहए। (3) आनमें ‘से’ ऄथिा ‘के द्वारा’ का प्रयोग करना चालहए। जैसेकतथ िृ ाच्य कमथ िाच्य 1.श्यामा ईपन्यास लिखती है। श्यामा से ईपन्यास लिखा जाता है। 2.श्यामा ने ईपन्यास लिखा। श्यामा से ईपन्यास लिखा गया। 3.श्यामा ईपन्यास लिखेगी। श्यामा से (के द्वारा) ईपन्यास लिखा जाएगा। 2.कतथ िृ ाच्य से भाििाच्य बनाना(1) आसके लिए लक्रया ऄन्य परुु ष और एकिचन में रखनी चालहए। (2) कताथ में करण कारक की लिभलि िगानी चालहए। (3) लक्रया को सामान्य भूतकाि में िाकर ईसके काि के ऄनरू ु प जाना लक्रया का रूप जोड़ना चालहए।

(4) अिश्यकतानस ु ार लनषेधसूचक ‘नहीं’ का प्रयोग करना चालहए। जैसेकतथ िृ ाच्य भाििाच्य 1.बच्चे नहीं दौड़ते। बच्चों से दौड़ा नहीं जाता। 2.पक्षी नहीं ईड़ते। पलक्षयों से ईड़ा नहीं जाता। 3.बच्चा नहीं सोया। बच्चे से सोया नहीं जाता।

ऄध्याय 13 लिया-लवर्ेषण लक्रया-लिशेषण- जो शब्द लक्रया की लिशेषता प्रकट करते हैं िे लक्रयालिशेषण कहिाते हैं। जैसे- 1.सोहन सदंु र लिखता है। 2.गौरि यहाँ रहता है। 3.संगीता प्रलतलदन पढती है। आन िाक्यों में ‘सन्ु दर’, ‘यहा’ँ और ‘प्रलतलदन’ शब्द लक्रया की लिशेषता बतिा रहे हैं। ऄतः ये शब्द लक्रयालिशेषण हैं। ऄथाथ नस ु ार लक्रया-लिशेषण के लनम्नलिलखत चार भेद हैं-

1. काििाचक लक्रया-लिशेषण। 2. स्थानिाचक लक्रया-लिशेषण। 3. पररमाणिाचक लक्रया-लिशेषण। 4. रीलतिाचक लक्रया-लिशेषण। 1.काििाचक लक्रया-लिशेषण- लजस लक्रया-लिशेषण शब्द से कायथ के होने का समय ज्ञात हो िह काििाचक लक्रया-लिशेषण कहिाता है। आसमें बहुधा ये शब्द प्रयोग में अते हैं- यदा, कदा, जब, तब, हमेशा, तभी, तत्काि, लनरंतर, शीघ्र, पूिथ, बाद, पीछे , घड़ी-घड़ी, ऄब, तत्पिात्, तदनंतर, कि, कइ बार, ऄभी लफर कभी अलद। 2.स्थानिाचक लक्रया-लिशेषण- लजस लक्रया-लिशेषण शब्द द्वारा लक्रया के होने के स्थान का बोध हो िह स्थानिाचक लक्रया-लिशेषण कहिाता है। आसमें बहुधा ये शब्द प्रयोग में अते हैं- भीतर, बाहर, ऄंदर, यहा,ँ िहा,ँ लकधर, ईधर, आधर, कहा,ँ जहा,ँ पास, दूर, ऄन्यत्र, आस ओर, ईस ओर, दाए,ँ बाए,ँ उपर, नीचे अलद। 3.पररमाणिाचक लक्रया-लिशेषण-जो शब्द लक्रया का पररमाण बतिाते हैं िे ‘पररमाणिाचक लक्रया-लिशेषण’ कहिाते हैं। आसमें बहुधा थोड़ा-थोड़ा, ऄत्यंत, ऄलधक, ऄल्प, बहुत, कुछ, पयाथ प्त, प्रभूत, कम, न्यून, बूदँ -बूदँ , स्िल्प, के िि, प्रायः ऄनमु ानतः, सिथ था अलद शब्द प्रयोग में अते हैं। कुछ शब्दों का प्रयोग पररमाणिाचक लिशेषण और पररमाणिाचक लक्रयालिशेषण दोनों में समान रूप से लकया जाता है। जैसे-थोड़ा, कम, कुछ काफी अलद। 4.रीलतिाचक लक्रया-लिशेषण- लजन शब्दों के द्वारा लक्रया के संपन्न होने की रीलत का बोध होता है िे ‘रीलतिाचक लक्रया-लिशेषण’ कहिाते हैं। आनमें

बहुधा ये शब्द प्रयोग में अते हैं- ऄचानक, सहसा, एकाएक, झटपट, अप ही, ध्यानपूिथक, धड़ाधड़, यथा, तथा, ठीक, सचमचु , ऄिश्य, िास्ति में, लनस्संदहे , बेशक, शायद, संभि हैं, कदालचत्, बहुत करके , हा,ँ ठीक, सच, जी, जरूर, ऄतएि, लकसलिए, क्योंलक, नहीं, न, मत, कभी नहीं, कदालप नहीं अलद।

ऄध्याय 14 संबधं बोधक ऄव्यय संबंधबोधक ऄव्यय- लजन ऄव्यय शब्दों से संज्ञा ऄथिा सिथ नाम का िाक्य के दूसरे शब्दों के साथ संबंध जाना जाता है, िे संबंधबोधक ऄव्यय कहिाते हैं। जैसे- 1. ईसका साथ छोड़ दीलजए। 2.मेरे सामने से हट जा। 3.िािलकिे पर लतरंगा िहरा रहा है। 4.िीर ऄलभमन्यु ऄंत तक शत्रु से िोहा िेता रहा। आनमें ‘साथ’, ‘सामने’, ‘पर’, ‘तक’ शब्द संज्ञा ऄथिा सिथ नाम शब्दों के साथ अकर ईनका संबंध िाक्य के दूसरे शब्दों के साथ

बता रहे हैं। ऄतः िे संबंधबोधक ऄव्यय है। ऄथथ के ऄनस ु ार संबंधबोधक ऄव्यय के लनम्नलिलखत भेद हैं1. काििाचक- पहिे, बाद, अगे, पीछे । 2. स्थानिाचक- बाहर, भीतर, बीच, उपर, नीचे। 3. लदशािाचक- लनकट, समीप, ओर, सामने। 4. साधनिाचक- लनलमत्त, द्वारा, जररये। 5. लिरोधसूचक- ईिटे, लिरुद्ध, प्रलतकूि। 6. समतासूचक- ऄनस ु ार, सदृश, समान, तल्ु य, तरह। 7. हेतिु ाचक- रलहत, ऄथिा, लसिा, ऄलतररि। 8. सहचरसूचक- समेत, संग, साथ। 9. लिषयिाचक- लिषय, बाबत, िेख। 10. संग्रिाचक- समेत, भर, तक। लिया-लवर्ेषण और संबधं बोधक ऄव्यय में ऄंतर जब आनका प्रयोग संज्ञा ऄथिा सिथ नाम के साथ होता है तब ये संबंधबोधक ऄव्यय होते हैं और जब ये लक्रया की लिशेषता प्रकट करते हैं तब लक्रया-लिशेषण होते हैं। जैसे(1) ऄंदर जाओ। (लक्रया लिशेषण) (2) दक ु ान के भीतर जाओ। (संबंधबोधक ऄव्यय)

ऄध्याय 15 समच्ु चयबोधक ऄव्यय समच्ु चयबोधक ऄव्यय- दो शब्दों, िाक्यांशों या िाक्यों को लमिाने िािे ऄव्यय समच्ु चयबोधक ऄव्यय कहिाते हैं। आन्हें ‘योजक’ भी कहते हैं। जैसे(1) श्रलु त और गंज ु न पढ रहे हैं। (2) मझ ु े टेपररकाडथ र या घड़ी चालहए। (3) सीता ने बहुत मेहनत की लकन्तु लफर भी सफि न हो सकी।

(4) बेशक िह धनिान है परन्तु है कं जूस। आनमें ‘और’, ‘या’, ‘लकन्त’ु , ‘परन्त’ु शब्द अए हैं जोलक दो शब्दों ऄथिा दो िाक्यों को लमिा रहे हैं। ऄतः ये समच्ु चयबोधक ऄव्यय हैं। समच्ु चयबोधक के दो भेद हैं1. समानालधकरण समच्ु चयबोधक। 2. व्यलधकरण समच्ु चयबोधक। 1. समानालधकरण समच्ु चयबोधक लजन समच्ु चयबोधक शब्दों के द्वारा दो समान िाक्यांशों पदों और िाक्यों को परस्पर जोड़ा जाता है, ईन्हें समानालधकरण समच्ु चयबोधक कहते हैं। जैसे- 1.सनु ंदा खड़ी थी और ऄिका बैठी थी। 2.ऊतेश गाएगा तो ऊतु तबिा बजाएगी। आन िाक्यों में और, तो समच्ु चयबोधक शब्दों द्वारा दो समान शब्द और िाक्य परस्पर जड़ु े हैं। समानालधकरण समच्ु चयबोधक के भेद- समानालधकरण समच्ु चयबोधक चार प्रकार के होते हैं(क) संयोजक। (ख) लिभाजक। (ग) लिरोधसूचक। (घ) पररणामसूचक। (क) संयोजक- जो शब्दों, िाक्यांशों और ईपिाक्यों को परस्पर जोड़ने िािे शब्द संयोजक कहिाते हैं। और, तथा, एिं ि अलद संयोजक शब्द हैं।

(ख) लिभाजक- शब्दों, िाक्यांशों और ईपिाक्यों में परस्पर लिभाजन और लिकल्प प्रकट करने िािे शब्द लिभाजक या लिकल्पक कहिाते हैं। जैसेया, चाहे ऄथिा, ऄन्यथा, िा अलद। (ग) लिरोधसूचक- दो परस्पर लिरोधी कथनों और ईपिाक्यों को जोड़ने िािे शब्द लिरोधसूचक कहिाते हैं। जैसे-परन्त,ु पर, लकन्त,ु मगर, बलल्क, िेलकन अलद। (घ) पररणामसूचक- दो ईपिाक्यों को परस्पर जोड़कर पररणाम को दशाथ ने िािे शब्द पररणामसूचक कहिाते हैं। जैसे-फितः, पररणामस्िरूप, आसलिए, ऄतः, ऄतएि, फिस्िरूप, ऄन्यथा अलद। 2. व्यलधकरण समच्ु चयबोधक लकसी िाक्य के प्रधान और अलश्रत ईपिाक्यों को परस्पर जोड़ने िािे शब्द व्यलधकरण समच्ु चयबोधक कहिाते हैं। व्यलधकरण समच्ु चयबोधक के भेद- व्यलधकरण समच्ु चयबोधक चार प्रकार के होते हैं(क) कारणसूचक। (ख) संकेतसूचक। (ग) ईद्देश्यसूचक। (घ) स्िरूपसूचक। (क) कारणसूचक- दो ईपिाक्यों को परस्पर जोड़कर होने िािे कायथ का कारण स्पष्ट करने िािे शब्दों को कारणसूचक कहते हैं। जैसे- लक, क्योंलक, आसलिए, चूलँ क, तालक अलद। (ख) संकेतसूचक- जो दो योजक शब्द दो ईपिाक्यों को जोड़ने का कायथ करते हैं, ईन्हें संकेतसूचक कहते हैं। जैसे- यलद....तो, जा...तो, यद्यलप....तथालप, यद्यलप...परन्तु अलद। (ग) ईदेश्यसूचक- दो ईपिाक्यों को परस्पर जोड़कर ईनका ईद्देश्य स्पष्ट

करने िािे शब्द ईद्देश्यसूचक कहिाते हैं। जैसे- आसलिए लक, तालक, लजससे लक अलद। (घ) स्िरूपसूचक- मख्ु य ईपिाक्य का ऄथथ स्पष्ट करने िािे शब्द स्िरूपसूचक कहिाते हैं। जैसे-यानी, मानो, लक, ऄथाथ त् अलद।

ऄध्याय 16 लवस्मयालदबोधक ऄव्यय लिस्मयालदबोधक ऄव्यय- लजन शब्दों में हषथ , शोक, लिस्मय, ग्िालन, घणृ ा, िज्जा अलद भाि प्रकट होते हैं िे लिस्मयालदबोधक ऄव्यय कहिाते हैं। आन्हें ‘द्योतक’ भी कहते हैं। जैसे1.ऄहा ! क्या मौसम है। 2.ईफ ! लकतनी गरमी पड़ रही है। 3. ऄरे ! अप अ गए ?

4.बाप रे बाप ! यह क्या कर डािा ? 5.लछः-लछः ! लधक्कार है तम्ु हारे नाम को। आनमें ‘ऄहा’, ‘ईफ’, ‘ऄरे’, ‘बाप-रे-बाप’, ‘लछः-लछः’ शब्द अए हैं। ये सभी ऄनेक भािों को व्यि कर रहे हैं। ऄतः ये लिस्मयालदबोधक ऄव्यय है। आन शब्दों के बाद लिस्मयालदबोधक लचह्न (!) िगता है। प्रकट होने िािे भाि के अधार पर आसके लनम्नलिलखत भेद हैं(1) हषथ बोधक- ऄहा ! धन्य !, िाह-िाह !, ओह ! िाह ! शाबाश ! (2) शोकबोधक- अह !, हाय !, हाय-हाय !, हा, त्रालह-त्रालह !, बाप रे ! (3) लिस्मयालदबोधक- हैं !, ऐ ं !, ओहो !, ऄरे, िाह ! (4) लतरस्कारबोधक- लछः !, हट !, लधक्, धत् !, लछः लछः !, चपु ! (5) स्िीकृलतबोधक- हा-ँ हाँ !, ऄच्छा !, ठीक !, जी हाँ !, बहुत ऄच्छा ! (6) संबोधनबोधक- रे !, री !, ऄरे !, ऄरी !, ओ !, ऄजी !, हैिो ! (7) अशीिाथ दबोधक- दीघाथ यु हो !, जीते रहो ! ऄध्याय 17 र्ब्द-रचना शब्द-रचना-हम स्िभाितः भाषा-व्यिहार में कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करके ऄलधक-से-ऄलधक काम चिाना चाहते हैं। ऄतः शब्दों के अरंभ ऄथिा ऄंत में कुछ जोड़कर ऄथिा ईनकी मात्राओं या स्िर में कुछ पररितथ न करके निीन-से-निीन ऄथथ -बोध कराना चाहते हैं। कभी-कभी दो ऄथिा ऄलधक शब्दांशों को जोड़कर नए ऄथथ -बोध को स्िीकारते हैं। आस तरह एक शब्द से कइ ऄथों की ऄलभव्यलि हेतु जो नए-नए शब्द बनाए

जाते हैं ईसे शब्द-रचना कहते हैं। शब्द रचना के चार प्रकार हैं1. ईपसगथ िगाकर 2. प्रत्यय िगाकर 3. संलध द्वारा 4. समास द्वारा उिसगण िे शब्दांश जो लकसी शब्द के अरंभ में िगकर ईनके ऄथथ में लिशेषता िा देते हैं ऄथिा ईसके ऄथथ को बदि देते हैं, ईपसगथ कहिाते हैं। जैसे-परापराक्रम, पराजय, पराभि, पराधीन, पराभूत। ईपसगों को चार भागों में बाटँ ा जा सकता हैं(क) संस्कृत के ईपसगथ (ख) लहन्दी के ईपसगथ (ग) ईदथ ू के ईपसगथ (घ) ईपसगथ की तरह प्रयि ु होने िािे संस्कृत के ऄव्यय (क) संस्कृत के उिसगण ईपसगथ ऄलत ऄलध ऄनु

ऄथथ (में) ऄलधक, उपर उपर, प्रधानता पीछे , समान

शब्द-रूप ऄत्यंत, ऄत्यत्त ु म, ऄलतररि ऄलधकार, ऄध्यक्ष, ऄलधपलत ऄनरू ु प, ऄनज ु , ऄनक ु रण

ऄप ऄलभ ऄि अ ईत् ईप दरु ् दस ु ् लन लनर् लनस् परा परर प्र प्रलत लि

बरु ा, हीन

ऄपमान, ऄपयश, ऄपकार ऄलभयोग, ऄलभमान, सामने, ऄलधक पास ऄलभभािक बरु ा, नीचे ऄिनलत, ऄिगणु , ऄिशेष तक से, िेकर, अजन्म, अगमन, अकाश ईिटा उपर, श्रेष्ठ ईत्कं ठा, ईत्कषथ , ईत्पन्न ईपकार, ईपदेश, ईपचार, लनकट, गौण ईपाध्यक्ष बरु ा, कलठन दज ु थ न, ददु थ शा, दगु थ म बरु ा दिु ररत्र, दस्ु साहस, दगु थ म ऄभाि, लिशेष लनयि ु , लनबंध, लनमग्न लबना लनिाथ ह, लनमथ ि, लनजथ न लबना लनिि, लनश्छि, लनलित पीछे , ईिटा परामशथ , पराधीन, पराक्रम सब ओर पररपूणथ, पररजन, पररितथ न अगे, ऄलधक, ईत्कृष्ट प्रयत्न, प्रबि, प्रलसद्ध सामने, ईिटा, प्रलतकूि, प्रत्येक, प्रत्यक्ष हरएक हीनता, लिशेष लियोग, लिशेष, लिधिा

सम् सु

पूणथ, ऄच्छा ऄच्छा, सरि

संचय, संगलत, संस्कार सगु म, सयु श, स्िागत

(ख) लहन्दी के उिसगण ये प्रायः संस्कृत उिसगों के ऄिभ्रंर् मात्र ही हैं। ईपसगथ ऄ ऄन

ऄथथ (में) ऄभाि, लनषेध रलहत

ऄध

अधा

औ कु लन

रलहत बरु ाइ ऄभाि

शब्द-रूप ऄजर, ऄछूत, ऄकाि ऄनपढ, ऄनबन, ऄनजान ऄधमरा, ऄधलखिा, ऄधपका औगनु , औतार, औघट कुसंग, कुकमथ , कुमलत लनडर, लनहत्था, लनकम्मा

(ग) उदणू के उिसगण ईपसगथ

ऄथथ (में)

कम

थोड़ा

शब्द-रूप कमबख्त, कमजोर, कमलसन

खशु

प्रसन्न, ऄच्छा

गैर

लनषेध

दर

में

ना

लनषेध

बा

ऄनस ु ार

बद

बरु ा

बे

लबना

िा

रलहत

सर हम हर

मख्ु य साथ प्रलत

खशु बू, खशु लदि, खशु लमजाज गैरहालजर, गैरकानूनी, गैरकौम दरऄसि, दरकार, दरलमयान नािायक, नापसंद, नाममु लकन बामौका, बाकायदा, बाआज्जत बदनाम, बदमाश, बदचिन बेइमान, बेचारा, बेऄक्ि िापरिाह, िाचार, िािाररस सरकार, सरदार, सरपंच हमददी, हमराज, हमदम हरलदन, हरएक,हरसाि

(घ) उिसगण की तरह प्रयुि होने वाले संस्कृत ऄव्यय

ईपसगथ ऄ (व्यंजनों से पूिथ) ऄन् (स्िरों से पूिथ) स

ऄथथ (में)

शब्द-रूप

लनषेध

ऄज्ञान, ऄभाि, ऄचेत

लनषेध

ऄनागत, ऄनथथ , ऄनालद

सलहत

ऄधः

नीचे

लचर

बहुत देर

ऄंतर

भीतर

पनु ः परु ा परु स् लतरस् सत्

लफर परु ाना अगे बरु ा, हीन श्रेष्ठ

सजि, सकि, सहषथ ऄधःपतन, ऄधोगलत, ऄधोमख ु लचराय,ु लचरकाि, लचरंतन ऄंतरात्मा, ऄंतराथ ष्रीय, ऄंतजाथ तीय पनु गथ मन, पनु जथ न्म, पनु लमथ िन परु ातत्ि, परु ातन परु स्कार, परु स्कृत लतरस्कार, लतरोभाि सत्कार, सज्जन, सत्कायथ

ऄध्याय 18 प्रत्यय प्रत्यय- जो शब्दांश शब्दों के ऄंत में िगकर ईनके ऄथथ को बदि देते हैं िे प्रत्यय कहिाते हैं। जैसे-जिज, पंकज अलद। जि=पानी तथा ज=जन्म िेने िािा। पानी में जन्म िेने िािा ऄथाथ त् कमि। आसी प्रकार पंक शब्द में ज प्रत्यय िगकर पंकज ऄथाथ त कमि कर देता है। प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं-

1. कृत प्रत्यय। 2. तलद्धत प्रत्यय। 1. कृत प्रत्यय जो प्रत्यय धातओ ु ं के ऄंत में िगते हैं िे कृत प्रत्यय कहिाते हैं। कृत प्रत्यय के योग से बने शब्दों को (कृत+ऄंत) कृदंत कहते हैं। जैसेराखन+हारा=राखनहारा, घट+आया=घलटया, लिख+अिट=लिखािट अलद। (क) कतथ िृ ाचक कृदंत- लजस प्रत्यय से बने शब्द से कायथ करने िािे ऄथाथ त कताथ का बोध हो, िह कतथ िृ ाचक कृदंत कहिाता है। जैसे-‘पढना’। आस सामान्य लक्रया के साथ िािा प्रत्यय िगाने से ‘पढनेिािा’ शब्द बना। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप पढनेिािा, राखनहारा, खेिनहारा, िािा हारा लिखनेिािा,रखिािा पािनहारा अउ लबकाउ, लटकाउ, चिाउ अक तैराक ऄनाड़ी, लखिाड़ी, अका िड़का, धड़ाका, धमाका अड़ी ऄगाड़ी अि,ु झगड़ािू, दयाि,ु अिू उ ईड़ाउ, कमाउ, खाउ कृपािु एरा िटु ेरा, सपेरा आया बलढया, घलटया धािक, सहायक, ऐया गिैया, रखैया, िटु ैया ऄक पािक

(ख) कमथ िाचक कृदंत- लजस प्रत्यय से बने शब्द से लकसी कमथ का बोध हो िह कमथ िाचक कृदंत कहिाता है। जैसे-गा में ना प्रत्यय िगाने से गाना, सूघँ में ना प्रत्यय िगाने से सूघँ ना और लबछ में औना प्रत्यय िगाने से लबछौना बना है। (ग) करणिाचक कृदंत- लजस प्रत्यय से बने शब्द से लक्रया के साधन ऄथाथ त करण का बोध हो िह करणिाचक कृदंत कहिाता है। जैसे-रेत में इ प्रत्यय िगाने से रेती बना। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप अ भटका, भूिा, झूिा इ रेती, फास ँ ी, भारी उ झाड़ऺ ़ू न बेिन, झाड़न, बंधन धौंकनी करतनी, नी सलु मरनी (घ) भाििाचक कृदंत- लजस प्रत्यय से बने शब्द से भाि ऄथाथ त् लक्रया के व्यापार का बोध हो िह भाििाचक कृदंत कहिाता है। जैसे-सजा में अिट प्रत्यय िगाने से सजािट बना। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप ऄन चिन, मनन, लमिन औती मनौती, लफरौती, चनु ौती भि ु ािा,छिािा, अिा ऄंत लभड़ंत, गढंत लदखािा अइ कमाइ, चढाइ, िड़ाइ अिट सजािट, बनािट, रुकािट

अहट घबराहट,लचल्िाहट (ड़) लक्रयािाचक कृदंत- लजस प्रत्यय से बने शब्द से लक्रया के होने का भाि प्रकट हो िह लक्रयािाचक कृदंत कहिाता है। जैसे-भागता हुअ, लिखता हुअ अलद। आसमें मूि धातु के साथ ता िगाकर बाद में हुअ िगा देने से ितथ मानकालिक लक्रयािाचक कृदंत बन जाता है। लक्रयािाचक कृदंत के िि पलु ल्िंग और एकिचन में प्रयि ु होता है। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप डूबता, बहता, हुअ अता हुअ, पढता ता ता रमता, चिता हुअ या खोया, बोया अ सूखा, भूिा, बैठा कर जाकर, देखकर ना दौड़ना, सोना 2. तलित प्रत्यय जो प्रत्यय संज्ञा, सिथ नाम ऄथिा लिशेषण के ऄंत में िगकर नए शब्द बनाते हैं तलद्धत प्रत्यय कहिाते हैं। आनके योग से बने शब्दों को ‘तलद्धतांत’ ऄथिा तलद्धत शब्द कहते हैं। जैसे-ऄपना+पन=ऄपनापन, दानि+ता=दानिता अलद। (क) कतथ िृ ाचक तलद्धत- लजससे लकसी कायथ के करने िािे का बोध हो। जैसे- सनु ार, कहार अलद। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप



पाठक, िेखक, लिलपक पत्रकार, किाकार, कार लचत्रकार एरा सपेरा, ठठेरा, लचतेरा टोपीिािा घरिािा, िािा गाड़ीिािा िकड़हारा, पलनहारा, हारा मलनहार कारीगर, बाजीगर, गर जादूगर

अर आया अ दार ची

सनु ार, िहु ार, कहार सलु िधा, दलु खया, अढलतया मछुअ, गेरुअ, ठिअ ु इमानदार, दक ु ानदार, कजथ दार मशािची, खजानची, मोची

(ख) भाििाचक तलद्धत- लजससे भाि व्यि हो। जैसे-सराथ फा, बढु ापा, संगत, प्रभतु ा अलद। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप बचपन, िड़कपन, पन अ बि ु ािा, सराथ फा बािपन लचकनाहट, कड़िाहट, अइ भिाइ, बरु ाइ, लढठाइ अहट घबराहट िालिमा, मलहमा, आमा पा बढु ापा, मोटापा ऄरुलणमा इ गरमी, सरदी,गरीबी औती बपौती

(ग) संबंधिाचक तलद्धत- लजससे संबंध का बोध हो। जैसे-ससरु ाि, भतीजा, चचेरा अलद। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप अि ससरु ाि, नलनहाि एरा ममेरा,चचेरा, फुफे रा नैलतक, धालमथ क, जा भानजा, भतीजा आक अलथथ क (घ) उनता (िघतु ा) िाचक तलद्धत- लजससे िघतु ा का बोध हो। जैसेिलु टया। प्रत्ययय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप िलु टया, लडलबया, कोठरी, टोकनी, आया इ खलटया ढोिकी टी, टा िगँ ोटी, कछौटी,किूटा ड़ी, ड़ा पगड़ी, टुकड़ी, बछड़ा (ड़) गणनािाचक तद्धलत- लजससे संख्या का बोध हो। जैसे-आकहरा, पहिा, पाचँ िाँ अलद। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप हरा आकहरा, दहु रा, लतहरा िा पहिा रा दूसरा, तीसरा था चौथा

(च) सादृश्यिाचक तलद्धत- लजससे समता का बोध हो। जैसे-सनु हरा। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप पीिा-सा, नीिा-सा, सा हरा सनु हरा, रुपहरा कािा-सा (छ) गणु िाचक तद्धलत- लजससे लकसी गणु का बोध हो। जैसे-भूख, लिषैिा, कुििंत अलद। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप भूखा, प्यासा, अ इ धनी, िोभी, क्रोधी ठंडा,मीठा इय िांछनीय, ऄनक ु रणीय इिा रंगीिा, सजीिा ऐिा लिषैिा, कसैिा िु कृपाि,ु दयािु िंत दयािंत, कुििंत िान गणु िान, रूपिान (ज) स्थानिाचक तद्धलत- लजससे स्थान का बोध हो. जैसे-पंजाबी, जबिपरु रया, लदल्िीिािा अलद। प्रत्यय शब्द-रूप प्रत्यय शब्द-रूप पंजाबी, बंगािी, इ आया किकलतया, जबिपरु रया गज ु राती िाि िािा डेरिे ािा,

लदल्िीिािा कृत प्रत्यय और तलित प्रत्यय में ऄंतर कृत प्रत्यय- जो प्रत्यय धातु या लक्रया के ऄंत में जड़ु कर नया शब्द बनाते हैं कृत प्रत्यय कहिाते हैं। जैसे-लिखना, लिखाइ, लिखािट। तलद्धत प्रत्यय- जो प्रत्यय संज्ञा, सिथ नाम या लिशेषण में जड़ु कर नया शब्द बनाते हं िे तलद्धत प्रत्यय कहिाते हैं। जैसे-नीलत-नैलतक, कािा-कालिमा, राष्र-राष्रीयता अलद।

ऄध्याय 19 संलध संलध-संलध शब्द का ऄथथ है मेि। दो लनकटिती िणों के परस्पर मेि से जो लिकार (पररितथ न) होता है िह संलध कहिाता है। जैसे-सम्+तोष=संतोष। देि+आंद्र=देिद्रें । भान+ु ईदय=भानूदय। संलध के भेद-संलध तीन प्रकार की होती हैं-

1. स्िर संलध। 2. व्यंजन संलध। 3. लिसगथ संलध। 1. स्वर संलध दो स्िरों के मेि से होने िािे लिकार (पररितथ न) को स्िर-संलध कहते हैं। जैसे-लिद्या+अिय=लिद्यािय। स्िर-संलध पाचँ प्रकार की होती हैं(क) दीघण संलध ह्रस्ि या दीघथ ऄ, आ, ई के बाद यलद ह्रस्ि या दीघथ ऄ, आ, ई अ जाए ँ तो दोनों लमिकर दीघथ अ, इ, और उ हो जाते हैं। जैसे(क) ऄ+ऄ=अ धमथ +ऄथथ =धमाथ थथ, ऄ+अ=अ-लहम+अिय=लहमािय। अ+ऄ=अ अ लिद्या+ऄथी=लिद्याथी अ+अ=अलिद्या+अिय=लिद्यािय। (ख) आ और इ की संलधआ+आ=इ- रलि+आंद्र=रिींद्र, मलु न+आंद्र=मनु ींद्र। आ+इ=इ- लगरर+इश=लगरीश मलु न+इश=मनु ीश। इ+आ=इ- मही+आंद्र=महींद्र नारी+आंद=ु नारींदु इ+इ=इ- नदी+इश=नदीश मही+इश=महीश (ग) ई और उ की संलधई+ई=उ- भान+ु ईदय=भानूदय लिध+ु ईदय=लिधूदय ई+उ=उ- िघ+ु उलमथ =िघूलमथ लसध+ु उलमथ =लसंधूलमथ

उ+ई=उ- िधू+ईत्सि=िधूत्सि िधू+ईल्िेख=िधूल्िेख उ+उ=उ- भू+उध्िथ =भूध्िथ िधू+उजाथ =िधूजाथ (ख) गण ु संलध आसमें ऄ, अ के अगे आ, इ हो तो ए, ई, उ हो तो ओ, तथा ऊ हो तो ऄर् हो जाता है। आसे गणु -संलध कहते हैं जैसे(क) ऄ+आ=ए- नर+आंद्र=नरेंद्र ऄ+इ=ए- नर+इश=नरेश अ+आ=ए- महा+आंद्र=महेंद्र अ+इ=ए महा+इश=महेश (ख) ऄ+इ=ओ ज्ञान+ईपदेश=ज्ञानोपदेश अ+ई=ओ महा+ईत्सि=महोत्सि ऄ+उ=ओ जि+उलमथ =जिोलमथ अ+उ=ओ महा+उलमथ =महोलमथ (ग) ऄ+ऊ=ऄर् देि+ऊलष=देिलषथ (घ) अ+ऊ=ऄर् महा+ऊलष=महलषथ (ग) वृलि संलध ऄ अ का ए ऐ से मेि होने पर ऐ ऄ अ का ओ, औ से मेि होने पर औ हो जाता है। आसे िलृ द्ध संलध कहते हैं। जैसे(क) ऄ+ए=ऐ एक+एक=एकै क ऄ+ऐ=ऐ मत+ऐक्य=मतैक्य अ+ए=ऐ सदा+एि=सदैि अ+ऐ=ऐ महा+ऐश्वयथ =महैश्वयथ (ख) ऄ+ओ=औ िन+ओषलध=िनौषलध अ+ओ=औ महा+औषध=महौषलध ऄ+औ=औ परम+औषध=परमौषध अ+औ=औ महा+औषध=महौषध (घ) यण संलध

(क) आ, इ के अगे कोइ लिजातीय (ऄसमान) स्िर होने पर आ इ को ‘य’् हो जाता है। (ख) ई, उ के अगे लकसी लिजातीय स्िर के अने पर ई उ को ‘ि’् हो जाता है। (ग) ‘ऊ’ के अगे लकसी लिजातीय स्िर के अने पर ऊ को ‘र’् हो जाता है। आन्हें यण-संलध कहते हैं। आ+ऄ=य+् ऄ यलद+ऄलप=यद्यलप इ+अ=य+् अ आलत+अलद=आत्यालद। इ+ऄ=य+् ऄ नदी+ऄपथ ण=नद्यपथ ण इ+अ=य्+अ देिी+अगमन=देव्यागमन (घ) ई+ऄ=ि्+ऄ ऄन+ु ऄय=ऄन्िय ई+अ=ि+् अ स+ु अगत=स्िागत ई+ए=ि्+ए ऄन+ु एषण=ऄन्िेषण ऊ+ऄ=र+् अ लपत+ृ अज्ञा=लपत्राज्ञा (ड़) ऄयालद संलध- ए, ऐ और ओ औ से परे लकसी भी स्िर के होने पर क्रमशः ऄय्, अय,् ऄि् और अि् हो जाता है। आसे ऄयालद संलध कहते हैं। (क) ए+ऄ=ऄय्+ऄ ने+ऄन+नयन (ख) ऐ+ऄ=अय+् ऄ गै+ऄक=गायक (ग) ओ+ऄ=ऄि्+ऄ पो+ऄन=पिन (घ) औ+ऄ=अि+् ऄ पौ+ऄक=पािक औ+आ=अि्+आ नौ+आक=नालिक 2. व्यंजन संलध व्यंजन का व्यंजन से ऄथिा लकसी स्िर से मेि होने पर जो पररितथ न होता है ईसे व्यंजन संलध कहते हैं। जैसे-शरत्+चंद्र=शरच्चंद्र। (क) लकसी िगथ के पहिे िणथ क्, च्, ट्, त्, प् का मेि लकसी िगथ के तीसरे ऄथिा चौथे िणथ या य,् र,् ि्, ि,् ह या लकसी स्िर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। जैसेक्+ग=ग्ग लदक्+गज=लदग्गज। क्+इ=गी िाक्+इश=िागीश

च+् ऄ=ज् ऄच्+ऄंत=ऄजंत ट्+अ=डा षट्+अनन=षडानन प+ज+ब्ज ऄप्+ज=ऄब्ज (ख) यलद लकसी िगथ के पहिे िणथ (क्, च्, ट्, त,् प्) का मेि न् या म् िणथ से हो तो ईसके स्थान पर ईसी िगथ का पाचँ िाँ िणथ हो जाता है। जैसेक्+म=ड़् िाक्+मय=िाड़्मय च्+न=ञ् ऄच्+नाश=ऄञ्नाश ट्+म=ण् षट्+मास=षण्मास त्+न=न् ईत्+नयन=ईन्नयन प्+म्=म् ऄप्+मय=ऄम्मय (ग) त् का मेि ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, ि या लकसी स्िर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैस-े त्+भ=द्भ सत्+भािना=सद्भािना त्+इ=दी जगत्+इश=जगदीश त+् भ=द्भ भगित्+भलि=भगिद्भलि त+् र=द्र तत+् रूप=तद्रूप त्+ध=द्ध सत्+धमथ =सद्धमथ (घ) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ि होने पर ि् हो जाता है। जैसेत्+च=च्च ईत्+चारण=ईच्चारण त्+ज=ज्ज सत्+जन=सज्जन त्+झ=ज्झ ईत्+झलटका=ईज्झलटका त्+ट=ट्ट तत्+टीका=तट्टीका त+् ड=ड्ड ईत्+डयन=ईड्डयन त+् ि=ल्ि ईत्+िास=ईल्िास (ड़) त् का मेि यलद श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है। जैसेत्+श्=च्छ ईत्+श्वास=ईच््िास त्+श=च्छ ईत्+लशष्ट=ईलच्छष्ट त्+श=च्छ सत्+शास्त्र=सच्छास्त्र (च) त् का मेि यलद ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है। जैसेत+् ह=द्ध ईत्+हार=ईद्धार त+् ह=द्ध ईत+् हरण=ईद्धरण

त्+ह=द्ध तत्+लहत=तलद्धत (छ) स्िर के बाद यलद छ् िणथ अ जाए तो छ् से पहिे च् िणथ बढा लदया जाता है। जैसेऄ+छ=ऄच्छ स्ि+छं द=स्िच्छं द अ+छ=अच्छ अ+छादन=अच्छादन आ+छ=आच्छ संलध+छे द=संलधच्छे द ई+छ=ईच्छ ऄन+ु छे द=ऄनच्ु छे द (ज) यलद म् के बाद क् से म् तक कोइ व्यंजन हो तो म् ऄनस्ु िार में बदि जाता है। जैसेम्+च्=ां लकम्+लचत=लकं लचत म्+क=ां लकम्+कर=लकं कर म्+क=ां सम्+कल्प=संकल्प म्+च=ां सम्+चय=संचय म्+त=ां सम्+तोष=संतोष म्+ब=ां सम्+बंध=संबंध म+् प=ां सम्+पूणथ=संपूणथ (झ) म् के बाद म का लद्वत्ि हो जाता है। जैसेम्+म=म्म सम्+मलत=सम्मलत म्+म=म्म सम्+मान=सम्मान (ञ) म् के बाद य्, र,् ि्, ि,् श्, ष,् स्, ह् में से कोइ व्यंजन होने पर म् का ऄनस्ु िार हो जाता है। जैसेम्+य=ां सम्+योग=संयोग म्+र=ां सम्+रक्षण=संरक्षण म+् ि=ां सम्+लिधान=संलिधान म+् ि=ां सम्+िाद=संिाद म्+श=ां सम्+शय=संशय म्+ि=ां सम्+िग्न=संिग्न म्+स=ां सम्+सार=संसार (ट) ऊ,र,् ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चिगथ , टिगथ , तिगथ , श और स का व्यिधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। जैसेर+् न=ण परर+नाम=पररणाम र+् म=ण प्र+मान=प्रमाण (ठ) स् से पहिे ऄ, अ से लभन्न कोइ स्िर अ जाए तो स् को ष हो जाता

है। जैसेभ+् स=् ष ऄलभ+सेक=ऄलभषेक लन+लसद्ध=लनलषद्ध लि+सम+लिषम 3. लवसगण-संलध लिसगथ (:) के बाद स्िर या व्यंजन अने पर लिसगथ में जो लिकार होता है ईसे लिसगथ -संलध कहते हैं। जैसे-मनः+ऄनक ु ू ि=मनोनक ु ू ि। (क) लिसगथ के पहिे यलद ‘ऄ’ और बाद में भी ‘ऄ’ ऄथिा िगों के तीसरे, चौथे पाचँ िें िणथ , ऄथिा य, र, ि, ि हो तो लिसगथ का ओ हो जाता है। जैसेमनः+ऄनक ु ू ि=मनोनक ु ू ि ऄधः+गलत=ऄधोगलत मनः+बि=मनोबि (ख) लिसगथ से पहिे ऄ, अ को छोड़कर कोइ स्िर हो और बाद में कोइ स्िर हो, िगथ के तीसरे, चौथे, पाचँ िें िणथ ऄथिा य,् र, ि, ि, ह में से कोइ हो तो लिसगथ का र या र् हो जाता है। जैसेलनः+अहार=लनराहार लनः+अशा=लनराशा लनः+धन=लनधथ न (ग) लिसगथ से पहिे कोइ स्िर हो और बाद में च, छ या श हो तो लिसगथ का श हो जाता है। जैसेलनः+चि=लनिि लनः+छि=लनश्छि दःु +शासन=दश्ु शासन (घ)लिसगथ के बाद यलद त या स हो तो लिसगथ स् बन जाता है। जैसेनमः+ते=नमस्ते लनः+संतान=लनस्संतान दःु +साहस=दस्ु साहस

(ड़) लिसगथ से पहिे आ, ई और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोइ िणथ हो तो लिसगथ का ष हो जाता है। जैसेलनः+किंक=लनष्किंक चतःु +पाद=चतष्ु पाद लनः+फि=लनष्फि (ड)लिसगथ से पहिे ऄ, अ हो और बाद में कोइ लभन्न स्िर हो तो लिसगथ का िोप हो जाता है। जैसेलनः+रोग=लनरोग लनः+रस=नीरस (छ) लिसगथ के बाद क, ख ऄथिा प, फ होने पर लिसगथ में कोइ पररितथ न नहीं होता। जैसेऄंतः+करण=ऄंतःकरण

ऄध्याय 20 समास समास का तात्पयथ है ‘संलक्षप्तीकरण’। दो या दो से ऄलधक शब्दों से लमिकर बने हुए एक निीन एिं साथथ क शब्द को समास कहते हैं। जैसे-‘रसोइ के लिए घर’ आसे हम ‘रसोइघर’ भी कह सकते हैं।

सामालसक शब्द- समास के लनयमों से लनलमथ त शब्द सामालसक शब्द कहिाता है। आसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद लिभलियों के लचह्न (परसगथ ) िप्तु हो जाते हैं। जैसे-राजपत्रु । समास-लिग्रह- सामालसक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समासलिग्रह कहिाता है। जैसे-राजपत्रु -राजा का पत्रु । पूिथपद और ईत्तरपद- समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहिे पद को पूिथपद और दूसरे पद को ईत्तरपद कहते हैं। जैसे-गंगाजि। आसमें गंगा पूिथपद और जि ईत्तरपद है। समास के भेद समास के चार भेद हैं1. ऄव्ययीभाि समास। 2. तत्परुु ष समास। 3. द्वंद्व समास। 4. बहुव्रीलह समास। 1. ऄव्ययीभाव समास लजस समास का पहिा पद प्रधान हो और िह ऄव्यय हो ईसे ऄव्ययीभाि समास कहते हैं। जैसे-यथामलत (मलत के ऄनस ु ार), अमरण (मत्ृ यु कर) आनमें यथा और अ ऄव्यय हैं। कुछ ऄन्य ईदाहरणअजीिन - जीिन-भर, यथासामथ्यथ - सामथ्यथ के ऄनस ु ार यथाशलि - शलि के ऄनस ु ार, यथालिलध लिलध के ऄनस ु ार

यथाक्रम - क्रम के ऄनस ु ार, भरपेट पेट भरकर हररोज़ - रोज़-रोज़, हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में रातोंरात - रात ही रात में, प्रलतलदन - प्रत्येक लदन बेशक - शक के लबना, लनडर - डर के लबना लनस्संदहे - संदहे के लबना, हरसाि - हरेक साि ऄव्ययीभाि समास की पहचान- आसमें समस्त पद ऄव्यय बन जाता है ऄथाथ त समास होने के बाद ईसका रूप कभी नहीं बदिता है। आसके साथ लिभलि लचह्न भी नहीं िगता। जैसे-उपर के समस्त शब्द है। 2. तत्िरु ु ष समास लजस समास का ईत्तरपद प्रधान हो और पूिथपद गौण हो ईसे तत्परुु ष समास कहते हैं। जैसे-ति ु सीदासकृत=ति ु सी द्वारा कृत (रलचत) ज्ञातव्य- लिग्रह में जो कारक प्रकट हो ईसी कारक िािा िह समास होता है। लिभलियों के नाम के ऄनस ु ार आसके छह भेद हैं(1) कमथ तत्परुु ष लगरहकट लगरह को काटने िािा (2) करण तत्परुु ष मनचाहा मन से चाहा (3) संप्रदान तत्परुु ष रसोइघर रसोइ के लिए घर (4) ऄपादान तत्परुु ष देशलनकािा देश से लनकािा (5) संबंध तत्परुु ष गंगाजि गंगा का जि (6) ऄलधकरण तत्परुु ष नगरिास नगर में िास (क) नञ तत्िुरुष समास

लजस समास में पहिा पद लनषेधात्मक हो ईसे नञ तत्परुु ष समास कहते हैं। जैसेसमस्त पद समास-लिग्रह समस्त पद समास-लिग्रह ऄसभ्य न सभ्य ऄनंत न ऄंत ऄनालद न अलद ऄसंभि न संभि (ख) कमणधारय समास लजस समास का ईत्तरपद प्रधान हो और पूिथिद ि ईत्तरपद में लिशेषणलिशेष्य ऄथिा ईपमान-ईपमेय का संबंध हो िह कमथ धारय समास कहिाता है। जैसेसमस्त समास-लिग्रह समस्त पद समात लिग्रह पद चंद्रमख चंद्र जैसा मख कमिनयन कमि के समान नयन ु ु देहिता देह रूपी िता दहीबड़ा दही में डूबा बड़ा नीिकमि नीिा कमि पीतांबर पीिा ऄंबर (िस्त्र) सज्जन सत् (ऄच्छा) जन नरलसंह नरों में लसंह के समान (ग) लिगु समास लजस समास का पूिथपद संख्यािाचक लिशेषण हो ईसे लद्वगु समास कहते हैं। आससे समूह ऄथिा समाहार का बोध होता है। जैसेसमस्त समात-लिग्रह समस्त समास लिग्रह

पद निग्रह नौ ग्रहों का मसूह तीनों िोकों का लत्रिोक समाहार

पद दोपहर दो पहरों का समाहार चौमासा चार मासों का समूह

सौ ऄब्दो (सािों) का निरात्र नौ रालत्रयों का समूह शताब्दी समूह ऄठन्नी अठ अनों का समूह 3. िंि समास लजस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा लिग्रह करने पर ‘और’, ऄथिा, ‘या’, एिं िगता है, िह द्वंद्व समास कहिाता है। जैसेसमस्त समस्त समास-लिग्रह समास-लिग्रह पद पद पापऄन्नपाप और पण्ु य ऄन्न और जि पण्ु य जि सीताखरासीता और राम खरा और खोटा राम खोटा उँचराधाउँच और नीच राधा और कृष्ण नीच कृष्ण

4. बहुव्रीलह समास लजस समास के दोनों पद ऄप्रधान हों और समस्तपद के ऄथथ के ऄलतररि कोइ सांकेलतक ऄथथ प्रधान हो ईसे बहुव्रीलह समास कहते हैं। जैसेसमस्त पद समास-लिग्रह दशानन दश है अनन (मख ु ) लजसके ऄथाथ त् रािण नीिकं ठ नीिा है कं ठ लजसका ऄथाथ त् लशि सि ु ोचना सदंु र है िोचन लजसके ऄथाथ त् मेघनाद की पत्नी पीतांबर पीिे है ऄम्बर (िस्त्र) लजसके ऄथाथ त् श्रीकृष्ण िंबोदर िंबा है ईदर (पेट) लजसका ऄथाथ त् गणेशजी दरु ात्मा बरु ी अत्मा िािा (कोइ दष्टु ) श्वेतांबर श्वेत है लजसके ऄंबर (िस्त्र) ऄथाथ त् सरस्िती संलध और समास में ऄंतर संलध िणों में होती है। आसमें लिभलि या शब्द का िोप नहीं होता है। जैसेदेि+अिय=देिािय। समास दो पदों में होता है। समास होने पर लिभलि या शब्दों का िोप भी हो जाता है। जैसे-माता-लपता=माता और लपता। कमथ धारय और बहुव्रीलह समास में ऄंतर- कमथ धारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का लिशेषण होता है। आसमें शब्दाथथ प्रधान होता है। जैसेनीिकं ठ=नीिा कं ठ। बहुव्रीलह में समस्त पद के दोनों पदों में लिशेषणलिशेष्य का संबंध नहीं होता ऄलपतु िह समस्त पद ही लकसी ऄन्य संज्ञालद

का लिशेषण होता है। आसके साथ ही शब्दाथथ गौण होता है और कोइ लभन्नाथथ ही प्रधान हो जाता है। जैसे-नीि+कं ठ=नीिा है कं ठ लजसका ऄथाथ त लशि।

ऄध्याय 21 िद-िररचय पद-पररचय- िाक्यगत शब्दों के रूप और ईनका पारस्पररक संबंध बताने में लजस प्रलक्रया की अिश्यकता पड़ती है िह पद-पररचय या शब्दबोध

कहिाता है। पररभाषा-िाक्यगत प्रत्येक पद (शब्द) का व्याकरण की दृलष्ट से पूणथ पररचय देना ही पद-पररचय कहिाता है। शब्द अठ प्रकार के होते हैं1.संज्ञा- भेद, लिंग, िचन, कारक, लक्रया ऄथिा ऄन्य शब्दों से संबंध। 2.सिथ नाम- भेद, परुु ष, लिंग, िचन, कारक, लक्रया ऄथिा ऄन्य शब्दों से संबंध। लकस संज्ञा के स्थान पर अया है (यलद पता हो)। 3.लक्रया- भेद, लिंग, िचन, प्रयोग, धात,ु काि, िाच्य, कताथ और कमथ से संबंध। 4.लिशेषण- भेद, लिंग, िचन और लिशेष्य की लिशेषता। 5.लक्रया-लिशेषण- भेद, लजस लक्रया की लिशेषता बताइ गइ हो ईसके बारे में लनदेश। 6.संबंधबोधक- भेद, लजससे संबंध है ईसका लनदेश। 7.समच्ु चयबोधक- भेद, ऄलन्ित शब्द, िाक्यांश या िाक्य। 8.लिस्मयालदबोधक- भेद ऄथाथ त कौन-सा भाि स्पष्ट कर रहा है।

ऄध्याय 22 र्ब्द-ज्ञान 1. ियाणयवाची र्ब्द

लकसी शब्द-लिशेष के लिए प्रयि ु समानाथथ क शब्दों को पयाथ यिाची शब्द कहते हैं। यद्यलप पयाथ यिाची शब्द समानाथी होते हैं लकन्तु भाि में एकदूसरे से लकं लचत लभन्न होते हैं। 1.ऄमतृ - सधु ा, सोम, पीयूष, ऄलमय। 2.ऄसरु - राक्षस, दैत्य, दानि, लनशाचर। 3.ऄलग्न- अग, ऄनि, पािक, िलह्न। 4.ऄश्व- घोड़ा, हय, तरु गं , बाजी। 5.अकाश- गगन, नभ, असमान, व्योम, ऄंबर। 6.अख ँ - नेत्र, दृग, नयन, िोचन। 7.आच्छा- अकांक्षा, चाह, ऄलभिाषा, कामना। 8.आंद्र- सरु शे , देिेंद्र, देिराज, परु दं र। 9.इश्वर- प्रभ,ु परमेश्वर, भगिान, परमात्मा। 10.कमि- जिज, पंकज, सरोज, राजीि, ऄरलिन्द। 11.गरमी- ग्रीष्म, ताप, लनदाघ, उष्मा। 12.गहृ - घर, लनके तन, भिन, अिय। 13.गंगा- सरु सरर, लत्रपथगा, देिनदी, जाह्निी, भागीरथी। 14.चंद्र- चादँ , चंद्रमा, लिध,ु शलश, राके श। 15.जि- िारर, पानी, नीर, सलिि, तोय। 16.नदी- सररता, तलटनी, तरंलगणी, लनझथ ररणी। 17.पिन- िाय,ु समीर, हिा, ऄलनि। 18.पत्नी- भायाथ , दारा, ऄधाथ लगनी, िामा। 19.पत्रु - बेटा, सतु , तनय, अत्मज। 20.पत्रु ी-बेटी, सतु ा, तनया, अत्मजा।

21.पथ्ृ िी- धरा, मही, धरती, िसधु ा, भूलम, िसधंु रा। 22.पिथ त- शैि, नग, भूधर, पहाड़। 23.लबजिी- चपिा, चंचिा, दालमनी, सौदामनी। 24.मेघ- बादि, जिधर, पयोद, पयोधर, घन। 25.राजा- नपृ , नपृ लत, भूपलत, नरपलत। 26.रजनी- रालत्र, लनशा, यालमनी, लिभािरी। 27.सपथ - सांप, ऄलह, भज ु गं , लिषधर। 28.सागर- समद्रु , ईदलध, जिलध, िाररलध। 29.लसंह- शेर, िनराज, शादथ ूि, मगृ राज। 30.सूयथ- रलि, लदनकर, सूरज, भास्कर। 31.स्त्री- ििना, नारी, कालमनी, रमणी, मलहिा। 32.लशक्षक- गरुु , ऄध्यापक, अचायथ , ईपाध्याय। 33.हाथी- कंु जर, गज, लद्वप, करी, हस्ती। 2. ऄनेक र्ब्दों के ललए एक र्ब्द 1 2 3 4 5 6

डरािना, लजसे देखकर डर (भय) िगे भयानक जो लस्थर रहे स्थािर ज्ञान देने िािी ज्ञानदा भूत-ितथ मान-भलिष्य को देखने (जानने) िािे लत्रकािदशी जानने की आच्छा रखने िािा लजज्ञासु लजसे क्षमा न लकया जा सके ऄक्षम्य

7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25

पंद्रह लदन में एक बार होने िािा ऄच्छे चररत्र िािा अज्ञा का पािन करने िािा रोगी की लचलकत्सा करने िािा सत्य बोिने िािा दूसरों पर ईपकार करने िािा लजसे कभी बढु ापा न अये दया करने िािा लजसका अकार न हो जो अख ँ ों के सामने हो

पालक्षक सच्चररत्र अज्ञाकारी लचलकत्सक सत्यिादी ईपकारी ऄजर दयािु लनराकार प्रत्यक्ष ऄगम, जहाँ पहुचँ ा न जा सके ऄगम्य लजसे बहुत कम ज्ञान हो, थोड़ा जानने िािा ऄल्पज्ञ मास में एक बार अने िािा मालसक लजसके कोइ संतान न हो लनस्संतान जो कभी न मरे ऄमर लजसका अचरण ऄच्छा न हो दरु ाचारी लजसका कोइ मूल्य न हो ऄमूल्य जो िन में घूमता हो िनचर जो आस िोक से बाहर की बात हो ऄिौलकक

26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44

जो आस िोक की बात हो लजसके नीचे रेखा हो लजसका संबंध पलिम से हो जो लस्थर रहे दख ु ांत नाटक जो क्षमा करने के योग्य हो लहंसा करने िािा लहत चाहने िािा हाथ से लिखा हुअ सब कुछ जानने िािा जो स्ियं पैदा हुअ हो जो शरण में अया हो लजसका िणथ न न लकया जा सके फि-फूि खाने िािा लजसकी पत्नी मर गइ हो लजसका पलत मर गया हो सौतेिी माँ व्याकरण जाननेिािा रचना करने िािा

िौलकक रेखांलकत पािात्य स्थािर त्रासदी क्षम्य लहंसक लहतैषी हस्तलिलखत सिथ ज्ञ स्ियंभू शरणागत िणथ नातीत शाकाहारी लिधरु लिधिा लिमाता िैयाकरण रचलयता

45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63

खून से रगँ ा हुअ ऄत्यंत सन्ु दर स्त्री कीलतथ मान परुु ष कम खचथ करने िािा मछिी की तरह अख ँ ों िािी मयूर की तरह अख ँ ों िािी बच्चों के लिए काम की िस्तु लजसकी बहुत ऄलधक चचाथ हो लजस स्त्री के कभी संतान न हुइ हो फे न से भरा हुअ लप्रय बोिने िािी स्त्री लजसकी ईपमा न हो जो थोड़ी देर पहिे पैदा हुअ हो लजसका कोइ अधार न हो नगर में िास करने िािा रात में घूमने िािा इश्वर पर लिश्वास न रखने िािा मांस न खाने िािा लबिकुि बरबाद हो गया हो

रिरंलजत रूपसी यशस्िी लमतव्ययी मीनाक्षी मयूराक्षी बािोपयोगी बहुचलचथ त िंध्या (बाझ ँ ) फे लनि लप्रयंिदा लनरुपम निजात लनराधार नागररक लनशाचर नालस्तक लनरालमष ध्िस्त

64 लजसकी धमथ में लनष्ठा हो 65 देखने योग्य 66 बहुत तेज चिने िािा 67 जो लकसी पक्ष में न हो 68 तत्त्त्त्ति को जानने िािा 69 तप करने िािा 70 जो जन्म से ऄंधा हो 71 लजसने आंलद्रयों को जीत लिया हो 72 लचंता में डूबा हुअ 73 जो बहुत समय कर ठहरे 74 लजसकी चार भज ु ाए ँ हों 75 हाथ में चक्र धारण करनेिािा 76 लजससे घणृ ा की जाए 77 लजसे गप्तु रखा जाए 78 गलणत का ज्ञाता 79 अकाश को चूमने िािा 80 जो टुकड़े-टुकड़े हो गया हो 818 अकाश में ईड़ने िािा 82 तेज बलु द्धिािा

धमथ लनष्ठ दशथ नीय द्रतु गामी तटस्थ तत्त्त्त्तिज्ञ तपस्िी जन्मांध लजतेंलद्रय लचंलतत लचरस्थायी चतभु थ ज ु चक्रपालण घलृ णत गोपनीय गलणतज्ञ गगनचंबु ी खंलडत नभचर कुशाग्रबलु द्ध

83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98

कल्पना से परे हो जो ईपकार मानता है लकसी की हस ँ ी ईड़ाना उपर कहा हुअ उपर लिखा गया लजस पर ईपकार लकया गया हो आलतहास का ज्ञाता अिोचना करने िािा इश्वर में अस्था रखने िािा लबना िेतन का जो कहा न जा सके जो लगना न जा सके लजसका कोइ शत्रु ही न जन्मा हो लजसके समान कोइ दूसरा न हो जो पररलचत न हो लजसकी कोइ ईपमा न हो

कल्पनातीत कृतज्ञ ईपहास ईपयथ ि ु ईपररलिलखत ईपकृत ऄलतहासज्ञ अिोचक अलस्तक ऄिैतलनक ऄकथनीय ऄगलणत ऄजातशत्रु ऄलद्वतीय ऄपररलचत ऄनपु म

3. लविरीताथणक (लवलोम र्ब्द) शब्द

लििोम

शब्द

लििोम

शब्द

लििोम

ऄथ आलत अलमष लनरालमष ऄनक ु ू ि प्रलतकूि अहार लनराहार ऄमतृ लिष अकाश पाताि ऄल्पायु दीघाथ यु अलश्रत लनरालश्रत ऄरुलच रुलच अरंभ ऄंत ऄिनलत ईन्नलत लक्रया प्रलतलक्रया कड़िा मीठा ईदय ऄस्त कमथ लनष्कमथ अिस्य स्फूलतथ गहरा ईथिा अलद ऄनालद गणु दोष

अलिभाथ ि लतरोभाि ऄलभज्ञ ऄनलभज्ञ अद्रथ शष्ु क ऄल्प ऄलधक ऄगम सगु म अशा लनराशा ऄनग्रु ह लिग्रह ऄंधकार प्रकाश अलद ऄंत अय व्यय कटु मधरु कृतज्ञ कृतघ्न अिोक ऄंधकार क्रय लिक्रय ऄनपु लस्थत ईपलस्थत खशु ी दख ु , गम ऄलतिलृ ष्ट ऄनािलृ ष्ट जीिन मरण आष्ट ऄलनष्ट

अकषथ ण अजादी ऄनरु ाग ऄलनिायथ ऄलभमान ऄथथ ऄपमान ऄनज ु अदान ऄिाथ चीन ऄिनी अदर क्रुद्ध अयात लखिना अयथ गरुु आच्छा गरीब

लिकषथ ण गि ु ामी लिराग िैकलल्पक नम्रता ऄनथथ सम्मान ऄग्रज प्रदान प्राचीन ऄंबर ऄनादर शान्त लनयाथ त मरु झाना ऄनायथ िघु ऄलनच्छा ऄमीर

आलच्छत चर ईदार जड़ ईत्थान ईत्तर एक लदन मानिता धीर लमत्र नकिी मौलखक लनकट पलतव्रता राग पलित्र प्रेम पूणथ

ऄलनलच्छत घर ऄचर ईपकार ऄनदु ार जि चेतन ईधार पतन जंगम दलक्षण जलटि ऄनेक तच्ु छ रात देि दानिता धमथ ऄधीर मान शत्रु नूतन ऄसिी लमथ्या लिलखत अलस्तक दूर रक्षक कुिटा राजा द्वेष प्रिय ऄपलित्र िाभ घणृ ा लिजय ऄपूणथ िसंत

बाहर ऄपकार थि नकद स्थािर सरस महान दानि ऄधमथ ऄपमान परु ातन सत्य नालस्तक भक्षक रंक सलृ ष्ट हालन पराजय पतझर

आहिोक छूत ईत्तीणथ जीिन ईत्कषथ गप्तु ऐसा दरु ाचारी महात्मा धूप मधरु लनमाथ ण मोक्ष लनंदा पाप रालत्र लिधिा प्रश्न परतंत्र

परिोक ऄछूत ऄनत्त ु ीणथ मरण ऄपकषथ प्रकट िैसा सदाचारी दरु ात्मा छािँ कटु लिनाश बंधन स्तलु त पण्ु य लदिस सधिा ईत्तर स्ितंत्र

लिरोध बंधन शीत मंगि शक्ु ि स्िदेश स्िाधीन ज्ञान सपु त्रु सच स्तलु त लिषम

समथथ न मलु ि ईष्ण ऄमंगि कृष्ण लिदेश पराधीन ऄज्ञान कुपत्रु झूठ लनंदा सम

बाढ शयन भाि सौभाग्य लहत हषथ क्षलणक सज ु न समु लत साकार लिशद्ध ु सरु

सूखा जागरण ऄभाि दभु ाथ ग्य ऄलहत शोक शाश्वत दज ु थन कुमलत लनराकार दूलषत ऄसरु

शूर बरु ाइ स्िगथ स्िीकृत साक्षर लहंसा साधु शभु सरस श्रम सजीि लिद्वान

कायर भिाइ नरक ऄस्िीकृत लनरक्षर ऄलहंसा ऄसाधु ऄशभु नीरस लिश्राम लनजीि मूखथ

4. एकाथणक प्रतीत होने वाले र्ब्द 1. ऄस्त्र- जो हलथयार हाथ से फें ककर चिाया जाए। जैसे-बाण। शस्त्र- जो हलथयार हाथ में पकड़े-पकड़े चिाया जाए। जैसे-कृपाण। 2. ऄिौलकक- जो आस जगत में कलठनाइ से प्राप्त हो। िोकोत्तर। ऄस्िाभालिक- जो मानि स्िभाि के लिपरीत हो। ऄसाधारण- सांसाररक होकर भी ऄलधकता से न लमिे। लिशेष। 3. ऄमूल्य- जो चीज मूल्य देकर भी प्राप्त न हो सके ।

बहुमूल्य- लजस चीज का बहुत मूल्य देना पड़ा। 4. अनंद- खशु ी का स्थायी और गंभीर भाि। अह्लाद- क्षलणक एिं तीव्र अनंद। ईल्िास- सख ु -प्रालप्त की ऄल्पकालिक लक्रया, ईमंग। प्रसन्नता-साधारण अनंद का भाि। 5. इष्याथ - दूसरे की ईन्नलत को सहन न कर सकना। डाह-इष्याथ यि ु जिन। द्वेष- शत्रतु ा का भाि। स्पधाथ - दूसरों की ईन्नलत देखकर स्ियं ईन्नलत करने का प्रयास करना। 6. ऄपराध- सामालजक एिं सरकारी कानून का ईल्िंघन। पाप- नैलतक एिं धालमथ क लनयमों को तोड़ना। 7. ऄननु य-लकसी बात पर सहमत होने की प्राथथ ना। लिनय- ऄनशु ासन एिं लशष्टतापूणथ लनिेदन। अिेदन-योग्यतानस ु ार लकसी पद के लिए कथन द्वारा प्रस्ततु होना। प्राथथ ना- लकसी कायथ -लसलद्ध के लिए लिनम्रतापूणथ कथन। 8. अज्ञा-बड़ों का छोटों को कुछ करने के लिए अदेश। ऄनमु लत-प्राथथ ना करने पर बड़ों द्वारा दी गइ सहमलत। 9. आच्छा- लकसी िस्तु को चाहना। ईत्कं ठा- प्रतीक्षायि ु प्रालप्त की तीव्र आच्छा। अशा-प्रालप्त की संभािना के साथ आच्छा का समन्िय। स्पहृ ा-ईत्कृष्ट आच्छा। 10. सदंु र- अकषथ क िस्त।ु चारु- पलित्र और सदंु र िस्त।ु

रुलचर-सरुु लच जाग्रत करने िािी सदंु र िस्त।ु मनोहर- मन को िभु ाने िािी िस्त।ु 11. लमत्र- समियस्क, जो ऄपने प्रलत प्यार रखता हो। सखा-साथ रहने िािा समियस्क। सगा-अत्मीयता रखने िािा। सरृु दय-सदंु र रृदय िािा, लजसका व्यिहार ऄच्छा हो। 12. ऄंतःकरण- मन, लचत्त, बलु द्ध, और ऄहंकार की समलष्ट। लचत्त- स्मलृ त, लिस्मलृ त, स्िप्न अलद गणु धारी लचत्त। मन- सख ु -दख ु की ऄनभु ूलत करने िािा। 13. मलहिा- कुिीन घराने की स्त्री। पत्नी- ऄपनी लििालहत स्त्री। स्त्री- नारी जालत की बोधक। 14. नमस्ते- समान ऄिस्था िािो को ऄलभिादन। नमस्कार- समान ऄिस्था िािों को ऄलभिादन। प्रणाम- ऄपने से बड़ों को ऄलभिादन। ऄलभिादन- सम्माननीय व्यलि को हाथ जोड़ना। 15. ऄनज ु - छोटा भाइ। ऄग्रज- बड़ा भाइ। भाइ- छोटे-बड़े दोनों के लिए। 16. स्िागत- लकसी के अगमन पर सम्मान। ऄलभनंदन- ऄपने से बड़ों का लिलधित सम्मान। 17. ऄहंकार- ऄपने गणु ों पर घमंड करना। ऄलभमान- ऄपने को बड़ा और दूसरे को छोटा समझना।

दंभ- ऄयोग्य होते हुए भी ऄलभमान करना। 18. मंत्रणा- गोपनीय रूप से परामशथ करना। परामशथ - पूणथतया लकसी लिषय पर लिचार-लिमशथ कर मत प्रकट करना। 5.समोच्चररत र्ब्द 1. ऄनि=अग ऄलनि=हिा, िायु 2. ईपकार=भिाइ, भिा करना ऄपकार=बरु ाइ, बरु ा करना 3. ऄन्न=ऄनाज ऄन्य=दूसरा 4. ऄण=ु कण ऄन=ु पिात 5. ओर=तरफ और=तथा 6. ऄलसत=कािा ऄलशत=खाया हुअ 7. ऄपेक्षा=ति ु ना में ईपेक्षा=लनरादर, िापरिाही 8. कि=संदु र, परु जा काि=समय 9. ऄंदर=भीतर ऄंतर=भेद

10. ऄंक=गोद ऄंग=देह का भाग 11. कुि=िंश कूि=लकनारा 12. ऄश्व=घोड़ा ऄश्म=पत्थर 13. ऄलि=भ्रमर अिी=सखी 14. कृलम=कीट कृलष=खेती 15. ऄपचार=ऄपराध ईपचार=आिाज 16. ऄन्याय=गैर-आंसाफी ऄन्यान्य=दूसरे-दूसरे 17. कृलत=रचना कृती=लनपणु , पररश्रमी 18. अमरण=मत्ृ यपु यंत अभरण=गहना 19. ऄिसान=ऄंत असान=सरि 20. कलि=कलियगु , झगड़ा किी=ऄधलखिा फूि 21. आतर=दूसरा आत्र=सगु लं धत द्रव्य

22. क्रम=लसिलसिा कमथ =काम 23. परुष=कठोर परुु ष=अदमी 24. कुट=घर,लकिा कूट=पिथ त 25. कुच=स्तन कूच=प्रस्थान 26. प्रसाद=कृपा प्रासादा=महि 27. कुजन=दज ु थन कूजन=पलक्षयों का किरि 28. गत=बीता हुअ गलत=चाि 29. पानी=जि पालण=हाथ 30. गरु =ईपाय गरुु =लशक्षक, भारी 31. ग्रह=सूयथ,चंद्र गहृ =घर 32. प्रकार=तरह प्राकार=लकिा, घेरा 33. चरण=पैर चारण=भाट 34. लचर=परु ाना

चीर=िस्त्र 35. फन=सापँ का फन फ़न=किा 36. छत्र=छाया क्षत्र=क्षलत्रय,शलि 37. ढीठ=दष्टु ,लजद्दी डीठ=दृलष्ट 38. बदन=देह िदन=मख ु 39. तरलण=सूयथ तरणी=नौका 40. तरंग=िहर तरु गं =घोड़ा 41. भिन=घर भिु न=संसार 42. तप्त=गरम तप्तृ =संतष्टु 43. लदन=लदिस दीन=दररद्र 44. भीलत=भय लभलत्त=दीिार 45. दशा=हाित लदशा=तरफ़

46. द्रि=तरि पदार ऄथ द्रव्य=धन 47. भाषण=व्याख्यान भीषण=भयंकर 48. धरा=पथ्ृ िी धारा=प्रिाह 49. नय=नीलत नि=नया 50. लनिाथ ण=मोक्ष लनमाथ ण=बनाना 51. लनजथ र=देिता लनझथ र=झरना 52. मत=राय मलत=बलु द्ध 53. नेक=ऄच्छा नेकु=तलनक 54. पथ=राह पथ्य=रोगी का अहार 55. मद=मस्ती मद्य=मलदरा 56. पररणाम=फि पररमाण=िजन 57. मलण=रत्न फणी=सपथ

58. मलिन=मैिा म्िान=मरु झाया हुअ 59. मात=ृ माता मात्र=के िि 60. रीलत=तरीका रीता=खािी 61. राज=शासन राज=रहस्य 62. िलित=सदंु र िलिता=गोपी 63. िक्ष्य=ईद्देश्य िक्ष=िाख 64. िक्ष=छाती िक्षृ =पेड़ 65. िसन=िस्त्र व्यसन=नशा, अदत 66. िासना=कुलत्सत लिचार बास=गंध 67. िस्त=ु चीज िास्त=ु मकान 68. लिजन=सनु सान व्यजन=पंखा 69. शंकर=लशि

संकर=लमलश्रत 70. लहय=रृदय हय=घोड़ा 71. शर=बाण सर=तािाब 72. शम=संयम सम=बराबर 73. चक्रिाक=चकिा चक्रिात=बिंडर 74. शूर=िीर सूर=ऄंधा 75. सलु ध=स्मरण सधु ी=बलु द्धमान 76. ऄभेद=ऄंतर नहीं ऄभेद्य=न टूटने योग्य 77. संघ=समदु ाय संग=साथ 78. सगथ =ऄध्याय स्िगथ =एक िोक 79. प्रणय=प्रेम पररणय=लििाह 80. समथथ =सक्षम सामथ्यथ =शलि

81. कलटबंध=कमरबंध कलटबद्ध=तैयार 82. क्रांलत=लिद्रोह क्िांलत=थकािट 83. आंलदरा=िक्ष्मी आंद्रा=आंद्राणी 6. ऄनेकाथणक र्ब्द 1. ऄक्षर= नष्ट न होने िािा, िणथ , इश्वर, लशि। 2. ऄथथ = धन, ऐश्वयथ , प्रयोजन, हेत।ु 3. अराम= बाग, लिश्राम, रोग का दूर होना। 4. कर= हाथ, लकरण, टैक्स, हाथी की सूड़ँ । 5. काि= समय, मत्ृ य,ु यमराज। 6. काम= कायथ , पेशा, धंधा, िासना, कामदेि। 7. गणु = कौशि, शीि, रस्सी, स्िभाि, धनषु की डोरी। 8. घन= बादि, भारी, हथौड़ा, घना। 9. जिज= कमि, मोती, मछिी, चंद्रमा, शंख। 10. तात= लपता, भाइ, बड़ा, पूज्य, प्यारा, लमत्र। 11. दि= समूह, सेना, पत्ता, लहस्सा, पक्ष, भाग, लचड़ी। 12. नग= पिथ त, िक्षृ , नगीना। 13. पयोधर= बादि, स्तन, पिथ त, गन्ना। 14. फि= िाभ, मेिा, नतीजा, भािे की नोक। 15. बाि= बािक, के श, बािा, दानेयि ु डंठि।

16. मध=ु शहद, मलदरा, चैत मास, एक दैत्य, िसंत। 17. राग= प्रेम, िाि रंग, संगीत की ध्िलन। 18. रालश= समूह, मेष, ककथ, िलृ िक अलद रालशया।ँ 19. िक्ष्य= लनशान, ईद्देश्य। 20. िणथ = ऄक्षर, रंग, ब्राह्मण अलद जालतया।ँ 21. सारंग= मोर, सपथ , मेघ, लहरन, पपीहा, राजहंस, हाथी, कोयि, कामदेि, लसंह, धनषु भौंरा, मधमु क्खी, कमि। 22. सर= ऄमतृ , दूध, पानी, गंगा, मध,ु पथ्ृ िी, तािाब। 23. क्षेत्र= देह, खेत, तीथथ , सदाव्रत बाटँ ने का स्थान। 24. लशि= भाग्यशािी, महादेि, श्रगृ ाि, देि, मंगि। 25. हरर= हाथी, लिष्ण,ु आंद्र, पहाड़, लसंह, घोड़ा, सपथ , िानर, मेढक, यमराज, ब्रह्मा, लशि, कोयि, लकरण, हंस। 7. िर्ु-िलियों की बोललयाँ पशु उँट

बोिी पशु बिबिाना कोयि

लचलड़या

चहचहाना भैंस

मोर

कुहकना घोड़ा

हाथी

लचघाड़ना कौअ

शेर

दहाड़ना

सारस

बोिी कूकना डकराना (रभँ ाना) लहनलहनाना कािँ -कािँ करना क्रें-क्रें करना

पशु बोिी गाय रभँ ाना बकरी लमलमयाना तोता टैं-टैं करना सापँ फुफकारना

लटटहरी

टीं-टीं करना

कुत्ता

भौंकना

मक्खी लभनलभनाना

8. कुछ जड़ िदाथों की लवर्ेष ध्वलनयाँ या लियाएँ लजह्वा रृदय ऄश्रु पंख नौका

िपिपाना धड़कना छिछिाना फड़फड़ाना डगमगाना

दातँ पैर घड़ी तारे मेघ

लकटलकटाना पटकना लटक-लटक करना जगमगाना गरजना

9. कुछ सामान्य ऄर्लु ियाँ ऄशद्ध ु शद्ध ु

ऄशद्ध ऄशद्ध ु शद्ध ु ु लिखा लिखा ऄगामी अगामी सप्तालहक यी इ संसारर सांसारर क्यूँ क्यों अधीन क क ईपन्या व्योहार व्यिहार बरात बारात लसक दलु नयां दलु नया लतथी लतलथ कािीदा

शद्ध ु

ऄशद्ध ु ऄिो साप्तालहक लकक हस्ताक्षे ऄधीन प औपन्या क्षत्रीय लसक कालिदास पूरती

शद्ध ु ऄिौ लकक हस्तक्षे प क्षलत्रय पूलतथ

स ऄलतथी ऄलतलथ नीती नीलत गहृ णी

गलृ हणी

अलशथ िा अशीिाथ लनररक्ष लनरीक्ष लबमारी बीमारी द द ण ण िड़ा शतालब्द शताब्दी िड़ाइ स्थाइ स्थायी यी सालमग्री सामग्री िालपस िापस दस ु रा दूसरा ऄनलु दत ऄनूलदत आलतहा ऐलतहालस लसक क घबड़ाना घबराना

परर पररलस्थ लस्थत लत पलत्न पत्नी श्रीमलत श्रीमती

उत्था प्रदलशथ नी प्रदशथ नी न रेणू रेणु नपु रु बज ब्रज प्रथक ृ

साधू साधु जादु जादू दालय दाआत्ि सेलनक सैलनक सैना त्ि श्राप शाप बनस्पलत िनस्पलत बन ऄमाि लिना लबना बसंत िसंत ऄमािस्या प्रशाद श्या लनस्िा हंलसया हलँ सया गंिार गिँ ार ऄसोक ऄशोक थथ मल्ु य मूल्य महाऄ दस्ु कर दष्ु कर लसरीमान श्रीमान िान िान न निम् निम क्षात्र छात्र छमा क्षमा अदथ श

ईत्थान नूपरु पथृ क सेना िन प्रसाद लनःस्िा थथ महान अदशथ

षष्टम्

षष्ठ

ददु शाथ ददु थ शा

प्रंतु

परंतु प्रीक्षा

परीक्षा

मरया मयाथ दा दा

किलय कलित्री प्रमात्मा परमात्मा घलनष्ट घलनष्ठ त्री

राजलभषे राज्यालभ लपयास प्यास लितीत व्यतीत क षेक मांलस मानलस व्यलिक िैयलिक समिाद संिाद क क

कृप्या कृपा संपलत संपलत्त

मूित लिषेश लिशेष शाशन शासन दःु ख दख मूितः ु यः लपओ लपयो हुये हुए िीये लिए सहास साहस रामायन रामायण चरन चरण रनभूलम रणभूलम रसायण रसायन प्रान प्राण मरन मरण कल्यान कल्याण पडता पड़ता ढेर ढेर झाडू झाड़़ू मेंढक मेढक श्रेष्ट श्रेष्ठ षष्टी षष्ठी लनष्टा लनष्ठा सलृ ष्ठ सलृ ष्ट आष्ठ आष्ट ईपि स्िास्थ स्िास्थ्य पांडे पांडेय स्ितंत्रा स्ितंत्रता ईपिक्ष क्ष्य महत्ि महत्त्त्त्ि ईज्िि ईज्जिि व्यस्क ियस्क ऄध्याय 23 लवराम-लचह्न

लिराम-लचह्न- ‘लिराम’ शब्द का ऄथथ है ‘रुकना’। जब हम ऄपने भािों को भाषा के द्वारा व्यि करते हैं तब एक भाि की ऄलभव्यलि के बाद कुछ देर रुकते हैं, यह रुकना ही लिराम कहिाता है। आस लिराम को प्रकट करने हेतु लजन कुछ लचह्नों का प्रयोग लकया जाता है, लिराम-लचह्न कहिाते हैं। िे आस प्रकार हैं1. ऄल्प लिराम (,)- पढते ऄथिा बोिते समय बहुत थोड़ा रुकने के लिए ऄल्प लिराम-लचह्न का प्रयोग लकया जाता है। जैसे-सीता, गीता और िक्ष्मी। यह सदंु र स्थि, जो अप देख रहे हैं, बापू की समालध है। हालन-िाभ, जीिन-मरण, यश-ऄपयश लिलध हाथ। 2. ऄधथ लिराम (;)- जहाँ ऄल्प लिराम की ऄपेक्षा कुछ ज्यादा देर तक रुकना हो िहाँ आस ऄधथ -लिराम लचह्न का प्रयोग लकया जाता है। जैसेसूयोदय हो गया; ऄंधकार न जाने कहाँ िप्तु हो गया। 3. पूणथ लिराम (।)- जहाँ िाक्य पूणथ होता है िहाँ पूणथ लिराम-लचह्न का प्रयोग लकया जाता है। जैसे-मोहन पस्ु तक पढ रहा है। िह फूि तोड़ता है। 4. लिस्मयालदबोधक लचह्न (!)- लिस्मय, हषथ , शोक, घणृ ा अलद भािों को दशाथ ने िािे शब्द के बाद ऄथिा कभी-कभी ऐसे िाक्यांश या िाक्य के ऄंत में भी लिस्मयालदबोधक लचह्न का प्रयोग लकया जाता है। जैसे- हाय ! िह बेचारा मारा गया। िह तो ऄत्यंत सशु ीि था ! बड़ा ऄफ़सोस है ! 5. प्रश्निाचक लचह्न (?)- प्रश्निाचक िाक्यों के ऄंत में प्रश्निाचक लचह्न का प्रयोग लकया जाता है। जैसे-लकधर चिे ? तमु कहाँ रहते हो ? 6. कोष्ठक ()- आसका प्रयोग पद (शब्द) का ऄथथ प्रकट करने हेत,ु क्रमबोध और नाटक या एकांकी में ऄलभनय के भािों को व्यि करने के लिए लकया जाता है। जैसे-लनरंतर (िगातार) व्यायाम करते रहने से देह (शरीर)

स्िस्थ रहता है। लिश्व के महान राष्रों में (1) ऄमेररका, (2) रूस, (3) चीन, (4) लब्रटेन अलद हैं। नि-(लखन्न होकर) ओर मेरे दभु ाथ ग्य ! तूने दमयंती को मेरे साथ बाधँ कर ईसे भी जीिन-भर कष्ट लदया। 7. लनदेशक लचह्न (-)- आसका प्रयोग लिषय-लिभाग संबंधी प्रत्येक शीषथ क के अगे, िाक्यों, िाक्यांशों ऄथिा पदों के मध्य लिचार ऄथिा भाि को लिलशष्ट रूप से व्यि करने हेत,ु ईदाहरण ऄथिा जैसे के बाद, ईद्धरण के ऄंत में, िेखक के नाम के पूिथ और कथोपकथन में नाम के अगे लकया जाता है। जैसे-समस्त जीि-जंत-ु घोड़ा, उँट, बैि, कोयि, लचलड़या सभी व्याकुि थे। तमु सो रहे हो- ऄच्छा, सोओ। द्वारपाि-भगिन ! एक दबु िा-पतिा ब्राह्मण द्वार पर खड़ा है। 8. ईद्धरण लचह्न (‘‘ ’’)- जब लकसी ऄन्य की ईलि को लबना लकसी पररितथ न के ज्यों-का-त्यों रखा जाता है, तब िहाँ आस लचह्न का प्रयोग लकया जाता है। आसके पूिथ ऄल्प लिराम-लचह्न िगता है। जैसे-नेताजी ने कहा था, ‘‘तमु हमें खून दो, हम तम्ु हें अजादी देंगे।’’, ‘‘ ‘रामचररत मानस’ ति ु सी का ऄमर काव्य ग्रंथ है।’’ 9. अदेश लचह्न (:- )- लकसी लिषय को क्रम से लिखना हो तो लिषय-क्रम व्यि करने से पूिथ आसका प्रयोग लकया जाता है। जैसे-सिथ नाम के प्रमख ु पाचँ भेद हैं :(1) परुु षिाचक, (2) लनियिाचक, (3) ऄलनियिाचक, (4) संबंधिाचक, (5) प्रश्निाचक। 10. योजक लचह्न (-)- समस्त लकए हुए शब्दों में लजस लचह्न का प्रयोग लकया जाता है, िह योजक लचह्न कहिाता है। जैसे-माता-लपता, दाि-भात,

सख ु -दख ु , पाप-पण्ु य। 11. िाघि लचह्न (.)- लकसी बड़े शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए ईस शब्द का प्रथम ऄक्षर लिखकर ईसके अगे शून्य िगा देते हैं। जैसेपंलडत=पं., डॉक्टर=डॉ., प्रोफे सर=प्रो.।

ऄध्याय 24 वाक्य-प्रकरण

िाक्य- एक लिचार को पूणथता से प्रकट करने िािा शब्द-समूह िाक्य कहिाता है। जैसे- 1. श्याम दूध पी रहा है। 2. मैं भागते-भागते थक गया। 3. यह लकतना सदंु र ईपिन है। 4. ओह ! अज तो गरमी के कारण प्राण लनकिे जा रहे हैं। 5. िह मेहनत करता तो पास हो जाता। ये सभी मख ु से लनकिने िािी साथथ क ध्िलनयों के समूह हैं। ऄतः ये िाक्य हैं। िाक्य भाषा का चरम ऄियि है। वाक्य-खंड िाक्य के प्रमख ु दो खंड हैं1. ईद्देश्य। 2. लिधेय। 1. ईद्देश्य- लजसके लिषय में कुछ कहा जाता है ईसे सूचलक करने िािे शब्द को ईद्देश्य कहते हैं। जैसे1. ऄजथ नु ने जयद्रथ को मारा। 2. कुत्ता भौंक रहा है। 3. तोता डाि पर बैठा है। आनमें ऄजथ नु ने, कुत्ता, तोता ईद्देश्य हैं; आनके लिषय में कुछ कहा गया है। ऄथिा यों कह सकते हैं लक िाक्य में जो कताथ हो ईसे ईद्देश्य कह सकते हैं क्योंलक लकसी लक्रया को करने के कारण िही मख्ु य होता है। 2. लिधेय- ईद्देश्य के लिषय में जो कुछ कहा जाता है, ऄथिा ईद्देश्य (कताथ ) जो कुछ कायथ करता है िह सब लिधेय कहिाता है। जैसे1. ऄजथ नु ने जयद्रथ को मारा। 2. कुत्ता भौंक रहा है।

3. तोता डाि पर बैठा है। आनमें ‘जयद्रथ को मारा’, ‘भौंक रहा है’, ‘डाि पर बैठा है’ लिधेय हैं क्योंलक ऄजथ नु ने, कुत्ता, तोता,-आन ईद्देश्यों (कताथ ओ)ं के कायों के लिषय में क्रमशः मारा, भौंक रहा है, बैठा है, ये लिधान लकए गए हैं, ऄतः आन्हें लिधेय कहते हैं। ईद्देश्य का लिस्तार- कइ बार िाक्य में ईसका पररचय देने िािे ऄन्य शब्द भी साथ अए होते हैं। ये ऄन्य शब्द ईद्देश्य का लिस्तार कहिाते हैं। जैसे1. सदंु र पक्षी डाि पर बैठा है। 2. कािा सापँ पेड़ के नीचे बैठा है। आनमें सदंु र और कािा शब्द ईद्देश्य का लिस्तार हैं। ईद्देश्य में लनम्नलिलखत शब्द-भेदों का प्रयोग होता है(1) संज्ञा- घोड़ा भागता है। (2) सिथ नाम- िह जाता है। (3) लिशेषण- लिद्वान की सिथ त्र पूजा होती है। (4) लक्रया-लिशेषण- (लजसका) भीतर-बाहर एक-सा हो। (5) िाक्यांश- झूठ बोिना पाप है। िाक्य के साधारण ईद्देश्य में लिशेषणालद जोड़कर ईसका लिस्तार करते हैं। ईद्देश्य का लिस्तार नीचे लिखे शब्दों के द्वारा प्रकट होता है(1) लिशेषण से- ऄच्छा बािक अज्ञा का पािन करता है। (2) संबंध कारक से- दशथ कों की भीड़ ने ईसे घेर लिया। (3) िाक्यांश से- काम सीखा हुअ कारीगर कलठनाइ से लमिता है। लिधेय का लिस्तार- मूि लिधेय को पूणथ करने के लिए लजन शब्दों का प्रयोग लकया जाता है िे लिधेय का लिस्तार कहिाते हैं। जैसे-िह ऄपने पैन

से लिखता है। आसमें ऄपने लिधेय का लिस्तार है। कमथ का लिस्तार- आसी तरह कमथ का लिस्तार हो सकता है। जैसे-लमत्र, ऄच्छी पस्ु तकें पढो। आसमें ऄच्छी कमथ का लिस्तार है। लक्रया का लिस्तार- आसी तरह लक्रया का भी लिस्तार हो सकता है। जैसेश्रेय मन िगाकर पढता है। मन िगाकर लक्रया का लिस्तार है। वाक्य-भेद रचना के ऄनस ु ार िाक्य के लनम्नलिलखत भेद हैं1. साधारण िाक्य। 2. संयि ु िाक्य। 3. लमलश्रत िाक्य। 1. साधारण वाक्य लजस िाक्य में के िि एक ही ईद्देश्य (कताथ ) और एक ही समालपका लक्रया हो, िह साधारण िाक्य कहिाता है। जैसे- 1. बच्चा दूध पीता है। 2. कमि गेंद से खेिता है। 3. मदृ ि ु ा पस्ु तक पढ रही हैं। लिशेष-आसमें कताथ के साथ ईसके लिस्तारक लिशेषण और लक्रया के साथ लिस्तारक सलहत कमथ एिं लक्रया-लिशेषण अ सकते हैं। जैसे-ऄच्छा बच्चा मीठा दूध ऄच्छी तरह पीता है। यह भी साधारण िाक्य है। 2. संयुि वाक्य दो ऄथिा दो से ऄलधक साधारण िाक्य जब सामानालधकरण समच्ु चयबोधकों जैसे- (पर, लकन्त,ु और, या अलद) से जड़ु े होते हैं, तो िे संयि ु िाक्य कहिाते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं।

(1) संयोजक- जब एक साधारण िाक्य दूसरे साधारण या लमलश्रत िाक्य से संयोजक ऄव्यय द्वारा जड़ु ा होता है। जैसे-गीता गइ और सीता अइ। (2) लिभाजक- जब साधारण ऄथिा लमश्र िाक्यों का परस्पर भेद या लिरोध का संबंध रहता है। जैसे-िह मेहनत तो बहुत करता है पर फि नहीं लमिता। (3) लिकल्पसूचक- जब दो बातों में से लकसी एक को स्िीकार करना होता है। जैसे- या तो ईसे मैं ऄखाड़े में पछाड़़ूगँ ा या ऄखाड़े में ईतरना ही छोड़ दूगँ ा। (4) पररणामबोधक- जब एक साधारण िाक्य दसूरे साधारण या लमलश्रत िाक्य का पररणाम होता है। जैसे- अज मझ ु े बहुत काम है आसलिए मैं तम्ु हारे पास नहीं अ सकूँगा। 3. लमलित वाक्य जब लकसी लिषय पर पूणथ लिचार प्रकट करने के लिए कइ साधारण िाक्यों को लमिाकर एक िाक्य की रचना करनी पड़ती है तब ऐसे रलचत िाक्य ही लमलश्रत िाक्य कहिाते हैं। लिशेष- (1) आन िाक्यों में एक मख्ु य या प्रधान ईपिाक्य और एक ऄथिा ऄलधक अलश्रत ईपिाक्य होते हैं जो समच्ु चयबोधक ऄव्यय से जड़ु े होते हैं। (2) मख्ु य ईपिाक्य की पलु ष्ट, समथथ न, स्पष्टता ऄथिा लिस्तार हेतु ही अलश्रत िाक्य अते है। अलश्रत िाक्य तीन प्रकार के होते हैं(1) संज्ञा ईपिाक्य।

(2) लिशेषण ईपिाक्य। (3) लक्रया-लिशेषण ईपिाक्य। 1. संज्ञा ईपिाक्य- जब अलश्रत ईपिाक्य लकसी संज्ञा ऄथिा सिथ नाम के स्थान पर अता है तब िह संज्ञा ईपिाक्य कहिाता है। जैसे- िह चाहता है लक मैं यहाँ कभी न अउँ। यहाँ लक मैं कभी न अउँ, यह संज्ञा ईपिाक्य है। 2. लिशेषण ईपिाक्य- जो अलश्रत ईपिाक्य मख्ु य ईपिाक्य की संज्ञा शब्द ऄथिा सिथ नाम शब्द की लिशेषता बतिाता है िह लिशेषण ईपिाक्य कहिाता है। जैसे- जो घड़ी मेज पर रखी है िह मझ ु े परु स्कारस्िरूप लमिी है। यहाँ जो घड़ी मेज पर रखी है यह लिशेषण ईपिाक्य है। 3. लक्रया-लिशेषण ईपिाक्य- जब अलश्रत ईपिाक्य प्रधान ईपिाक्य की लक्रया की लिशेषता बतिाता है तब िह लक्रया-लिशेषण ईपिाक्य कहिाता है। जैसे- जब िह मेरे पास अया तब मैं सो रहा था। यहाँ पर जब िह मेरे पास अया यह लक्रया-लिशेषण ईपिाक्य है। वाक्य-िररवतणन िाक्य के ऄथथ में लकसी तरह का पररितथ न लकए लबना ईसे एक प्रकार के िाक्य से दूसरे प्रकार के िाक्य में पररितथ न करना िाक्य-पररितथ न कहिाता है। (1) साधारण िाक्यों का संयि ु िाक्यों में पररितथ नसाधारण िाक्य संयि ु िाक्य 1. मैं दूध पीकर सो गया। मैंने दूध लपया और सो गया। 2. िह पढने के ऄिािा ऄखबार भी बेचता है। िह पढता भी है और

ऄखबार भी बेचता है 3. मैंने घर पहुचँ कर सब बच्चों को खेिते हुए देखा। मैंने घर पहुचँ कर देखा लक सब बच्चे खेि रहे थे। 4. स्िास्थ्य ठीक न होने से मैं काशी नहीं जा सका। मेरा स्िास्थ्य ठीक नहीं था आसलिए मैं काशी नहीं जा सका। 5. सिेरे तेज िषाथ होने के कारण मैं दर्फतर देर से पहुचँ ा। सिेरे तेज िषाथ हो रही थी आसलिए मैं दर्फतर देर से पहुचँ ा। (2) संयि ु िाक्यों का साधारण िाक्यों में पररितथ नसंयि ु िाक्य साधारण िाक्य 1. लपताजी ऄस्िस्थ हैं आसलिए मझ ु े जाना ही पड़ेगा। लपताजी के ऄस्िस्थ होने के कारण मझ ु े जाना ही पड़ेगा। 2. ईसने कहा और मैं मान गया। ईसके कहने से मैं मान गया। 3. िह के िि ईपन्यासकार ही नहीं ऄलपतु ऄच्छा ििा भी है। िह ईपन्यासकार के ऄलतररि ऄच्छा ििा भी है। 4. िू चि रही थी आसलिए मैं घर से बाहर नहीं लनकि सका। िू चिने के कारण मैं घर से बाहर नहीं लनकि सका। 5. गाडथ ने सीटी दी और रेन चि पड़ी। गाडथ के सीटी देने पर रेन चि पड़ी। (3) साधारण िाक्यों का लमलश्रत िाक्यों में पररितथ नसाधारण िाक्य लमलश्रत िाक्य 1. हरलसंगार को देखते ही मझ ु े गीता की याद अ जाती है। जब मैं हरलसंगार की ओर देखता हँ तब मझ ु े गीता की याद अ जाती है। 2. राष्र के लिए मर लमटने िािा व्यलि सच्चा राष्रभि है। िह व्यलि

सच्चा राष्रभि है जो राष्र के लिए मर लमटे। 3. पैसे के लबना आंसान कुछ नहीं कर सकता। यलद आंसान के पास पैसा नहीं है तो िह कुछ नहीं कर सकता। 4. अधी रात होते-होते मैंने काम करना बंद कर लदया। ज्योंही अधी रात हुइ त्योंही मैंने काम करना बंद कर लदया। (4) लमलश्रत िाक्यों का साधारण िाक्यों में पररितथ नलमलश्रत िाक्य साधारण िाक्य 1. जो संतोषी होते हैं िे सदैि सख ु ी रहते हैं संतोषी सदैि सख ु ी रहते हैं। 2. यलद तमु नहीं पढोगे तो परीक्षा में सफि नहीं होगे। न पढने की दशा में तमु परीक्षा में सफि नहीं होगे। 3. तमु नहीं जानते लक िह कौन है ? तमु ईसे नहीं जानते। 4. जब जेबकतरे ने मझ ु े देखा तो िह भाग गया। मझ ु े देखकर जेबकतरा भाग गया। 5. जो लिद्वान है, ईसका सिथ त्र अदर होता है। लिद्वानों का सिथ त्र अदर होता है। वाक्य-लवश्लेषण िाक्य में अए हुए शब्द ऄथिा िाक्य-खंडों को ऄिग-ऄिग करके ईनका पारस्पररक संबंध बताना िाक्य-लिश्लेषण कहिाता है। साधारण िाक्यों का लिश्लेषण 1. हमारा राष्र समद्ध ृ शािी है। 2. हमें लनयलमत रूप से लिद्यािय अना चालहए। 3. ऄशोक, सोहन का बड़ा पत्रु , पस्ु तकािय में ऄच्छी पस्ु तकें छाटँ रहा है।

ईद्देश्य लिधेय िाक्य ईद्देश्य ईद्देश्य का लक्रया कमथ कमथ का पूरक लिधेय क्रमांक कताथ लिस्तार लिस्तार का लिस्तार 1. राष्र हमारा है - - समद्ध ृ 2. हमें - अना लिद्यािय - शािी लनयलमत चालहए रूप से 3. ऄशोक सोहन का छाटँ रहा पस्ु तकें ऄच्छी पस्ु तकािय बड़ा पत्रु है में लमलश्रत िाक्य का लिश्लेषण1. जो व्यलि जैसा होता है िह दूसरों को भी िैसा ही समझता है। 2. जब-जब धमथ की क्षलत होती है तब-तब इश्वर का ऄितार होता है। 3. मािूम होता है लक अज िषाथ होगी। 4. जो संतोषी होत हैं िे सदैि सख ु ी रहते हैं। 5. दाशथ लनक कहते हैं लक जीिन पानी का बि ु बि ु ा है। संयि ु िाक्य का लिश्लेषण1. तेज िषाथ हो रही थी आसलिए परसों मैं तम्ु हारे घर नहीं अ सका। 2. मैं तम्ु हारी राह देखता रहा पर तमु नहीं अए। 3. ऄपनी प्रगलत करो और दूसरों का लहत भी करो तथा स्िाथथ में न लहचको। ऄथण के ऄनस ु ार वाक्य के प्रकार ऄथाथ नस ु ार िाक्य के लनम्नलिलखत अठ भेद हैं1. लिधानाथथ क िाक्य।

2. लनषेधाथथ क िाक्य। 3. अज्ञाथथ क िाक्य। 4. प्रश्नाथथ क िाक्य। 5. आच्छाथथ क िाक्य। 6. संदथे थ क िाक्य। 7. संकेताथथ क िाक्य। 8. लिस्मयबोधक िाक्य। 1. लिधानाथथ क िाक्य-लजन िाक्यों में लक्रया के करने या होने का सामान्य कथन हो। जैसे-मैं कि लदल्िी जाउँगा। पथ्ृ िी गोि है। 2. लनषेधाथथ क िाक्य- लजस िाक्य से लकसी बात के न होने का बोध हो। जैसे-मैं लकसी से िड़ाइ मोि नहीं िेना चाहता। 3. अज्ञाथथ क िाक्य- लजस िाक्य से अज्ञा ईपदेश ऄथिा अदेश देने का बोध हो। जैसे-शीघ्र जाओ िरना गाड़ी छूट जाएगी। अप जा सकते हैं। 4. प्रश्नाथथ क िाक्य- लजस िाक्य में प्रश्न लकया जाए। जैसे-िह कौन हैं ईसका नाम क्या है। 5. आच्छाथथ क िाक्य- लजस िाक्य से आच्छा या अशा के भाि का बोध हो। जैसे-दीघाथ यु हो। धनिान हो। 6. संदहे ाथथ क िाक्य- लजस िाक्य से संदहे का बोध हो। जैसे-शायद अज िषाथ हो। ऄब तक लपताजी जा चक ु े होंगे। 7. संकेताथथ क िाक्य- लजस िाक्य से संकेत का बोध हो। जैसे-यलद तमु कन्याकुमारी चिो तो मैं भी चिू।ँ 8. लिस्मयबोधक िाक्य-लजस िाक्य से लिस्मय के भाि प्रकट हों। जैसेऄहा ! कै सा सहु ािना मौसम है।

ऄध्याय 25

ऄर्ि ु वाक्यों के र्ुि वाक्य (1) िचन-संबंधी ऄशलु द्धयाँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. पालकस्तान ने गोिे और तोपों से अक्रमण लकया। पालकस्तान ने गोिों और तोपों से अक्रमण लकया। 2. ईसने ऄनेकों ग्रंथ लिखे। ईसने ऄनेक ग्रंथ लिखे। 3. महाभारत ऄठारह लदनों तक चिता रहा। महाभारत ऄठारह लदन तक चिता रहा। 4. तेरी बात सनु ते-सनु ते कान पक गए। तेरी बातें सनु ते-सनु ते कान पक गए। 5. पेड़ों पर तोता बैठा है। पेड़ पर तोता बैठा है। (2) लिंग संबंधी ऄशलु द्धया-ँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. ईसने संतोष का सास ँ िी। ईसने संतोष की सास ँ िी। 2. सलिता ने जोर से हस ँ लदया। सलिता जोर से हस ँ दी। 3. मझ ु े बहुत अनंद अती है। मझ ु े बहुत अनंद अता है। 4. िह धीमी स्िर में बोिा। िह धीमे स्िर में बोिा। 5. राम और सीता िन को गइ। राम और सीता िन को गए। (3) लिभलि-संबंधी ऄशलु द्धया-ँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. मैं यह काम नहीं लकया ह।ँ मैंने यह काम नहीं लकया है। 2. मैं पस्ु तक को पढता ह।ँ मैं पस्ु तक पढता ह।ँ 3. हमने आस लिषय को लिचार लकया। हमने आस लिषय पर लिचार

लकया 4. अठ बजने को दस लमनट है। अठ बजने में दस लमनट है। 5. िह देर में सोकर ईठता है। िह देर से सोकर ईठता है। (4) संज्ञा संबंधी ऄशलु द्धया-ँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. मैं रलििार के लदन तम्ु हारे घर अउँगा। मैं रलििार को तम्ु हारे घर अउँगा। 2. कुत्ता रेंकता है। कुत्ता भौंकता है। 3. मझ ु े सफि होने की लनराशा है। मझ ु े सफि होने की अशा नहीं है। 4. गिे में गि ु ामी की बेलड़याँ पड़ गइ। पैरों में गि ु ामी की बेलड़याँ पड़ गइ। (5) सिथ नाम की ऄशलु द्धया-ँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. गीता अइ और कहा। गीता अइ और ईसने कहा। 2. मैंने तेरे को लकतना समझाया। मैंने तझ ु े लकतना समझाया। 3. िह क्या जाने लक मैं कै से जीलित ह।ँ िह क्या जाने लक मैं कै से जी रहा ह।ँ (6) लिशेषण-संबंधी ऄशलु द्धया-ँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. लकसी और िड़के को बि ु ाओ। लकसी दूसरे िड़के को बि ु ाओ। 2. लसंह बड़ा बीभत्स होता है। लसंह बड़ा भयानक होता है। 3. ईसे भारी दख ु हुअ। ईसे बहुत दख ु हुअ।

4. सब िोग ऄपना काम करो। सब िोग ऄपना-ऄपना काम करो। (7) लक्रया-संबंधी ऄशलु द्धया-ँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. क्या यह संभि हो सकता है ? क्या यह संभि है ? 2. मैं दशथ न देने अया था। मैं दशथ न करने अया था। 3. िह पढना मागँ ता है। िह पढना चाहता है। 4. बस तमु आतने रूठ ईठे बस, तमु आतने में रूठ गए। 5. तमु क्या काम करता है ? तमु क्या काम करते हो ? (8) महु ािरे-संबंधी ऄशलु द्धया-ँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. यगु की मागँ का यह बीड़ा कौन चबाता है यगु की मागँ का यह बीड़ा कौन ईठाता है। 2. िह श्याम पर बरस गया। िह श्याम पर बरस पड़ा। 3. ईसकी ऄक्ि चक्कर खा गइ। ईसकी ऄक्ि चकरा गइ। 4. ईस पर घड़ों पानी लगर गया। ईस पर घड़ों पानी पड़ गया। (9) लक्रया-लिशेषण-संबंधी ऄशलु द्धया-ँ ऄशद्ध ु शद्ध ु 1. िह िगभग दौड़ रहा था। िह दौड़ रहा था। 2. सारी रात भर मैं जागता रहा। मैं सारी रात जागता रहा। 3. तमु बड़ा अगे बढ गया। तमु बहुत अगे बढ गए. 4. आस पिथ तीय क्षेत्र में सिथ स्ि शांलत है। आस पिथ तीय क्षेत्र में सिथ त्र शांलत है।

ऄध्याय 26 महु ावरे और लोकोलियाँ

महु ािरा- कोइ भी ऐसा िाक्यांश जो ऄपने साधारण ऄथथ को छोड़कर लकसी लिशेष ऄथथ को व्यि करे ईसे महु ािरा कहते हैं। िोकोलि- िोकोलियाँ िोक-ऄनभु ि से बनती हैं। लकसी समाज ने जो कुछ ऄपने िंबे ऄनभु ि से सीखा है ईसे एक िाक्य में बाधँ लदया है। ऐसे िाक्यों को ही िोकोलि कहते हैं। आसे कहाित, जनश्रलु त अलद भी कहते हैं। महु ािरा और िोकोलि में ऄंतर- महु ािरा िाक्यांश है और आसका स्ितंत्र रूप से प्रयोग नहीं लकया जा सकता। िोकोलि संपूणथ िाक्य है और आसका प्रयोग स्ितंत्र रूप से लकया जा सकता है। जैसे-‘होश ईड़ जाना’ महु ािरा है। ‘बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी’ िोकोलि है। कुछ प्रचलित महु ािरे 1. ऄंग संबधं ी महु ावरे 1. ऄंग छूटा- (कसम खाना) मैं ऄंग छूकर कहता हँ साहब, मैने पाजेब नहीं देखी। 2. ऄंग-ऄंग मस ु काना-(बहुत प्रसन्न होना)- अज ईसका ऄंग-ऄंग मस ु करा रहा था। 3. ऄंग-ऄंग टूटना-(सारे बदन में ददथ होना)-आस ज्िर ने तो मेरा ऄंग-ऄंग तोड़कर रख लदया। 4. ऄंग-ऄंग ढीिा होना-(बहुत थक जाना)- तम्ु हारे साथ कि चिूगँ ा। अज तो मेरा ऄंग-ऄंग ढीिा हो रहा है। 2. ऄक्ल-संबधं ी महु ावरे

1. ऄक्ि का दश्ु मन-(मूखथ)- िह तो लनरा ऄक्ि का दश्ु मन लनकिा। 2. ऄक्ि चकराना-(कुछ समझ में न अना)-प्रश्न-पत्र देखते ही मेरी ऄक्ि चकरा गइ। 3. ऄक्ि के पीछे िठ लिए लफरना (समझाने पर भी न मानना)- तमु तो सदैि ऄक्ि के पीछे िठ लिए लफरते हो। 4. ऄक्ि के घोड़े दौड़ाना-(तरह-तरह के लिचार करना)- बड़े-बड़े िैज्ञालनकों ने ऄक्ि के घोड़े दौड़ाए, तब कहीं िे ऄणबु म बना सके । 3. अँख-संबधं ी महु ावरे 1. अख ँ लदखाना-(गस्ु से से देखना)- जो हमें अख ँ लदखाएगा, हम ईसकी अख ँ ें फोड़ देगें। 2. अख ँ ों में लगरना-(सम्मानरलहत होना)- कुरसी की होड़ ने जनता सरकार को जनता की अख ँ ों में लगरा लदया। 3. अख ँ ों में धूि झोंकना-(धोखा देना)- लशिाजी मगु ि पहरेदारों की अख ँ ों में धूि झोंककर बंदीगहृ से बाहर लनकि गए। 4. अख ँ चरु ाना-(लछपना)- अजकि िह मझ ँ ें चरु ाता लफरता है। ु से अख 5. अख ँ मारना-(आशारा करना)-गिाह मेरे भाइ का लमत्र लनकिा, ईसने ईसे अख ँ मारी, ऄन्यथा िह मेरे लिरुद्ध गिाही दे देता। 6. अख ँ तरसना-(देखने के िािालयत होना)- तम्ु हें देखने के लिए तो मेरी अख ँ ें तरस गइ। 7. अख ँ फे र िेना-(प्रलतकूि होना)- ईसने अजकि मेरी ओर से अख ँ ें फे र िी हैं। 8. अख ँ लबछाना-(प्रतीक्षा करना)- िोकनायक जयप्रकाश नारायण लजधर

जाते थे ईधर ही जनता ईनके लिए अख ँ ें लबछाए खड़ी होती थी। 9. अख ँ ें सेंकना-(सदंु र िस्तु को देखते रहना)- अख ँ सेंकते रहोगे या कुछ करोगे भी 10. अख ँ ें चार होना-(प्रेम होना,अमना-सामना होना)- अख ँ ें चार होते ही िह लखड़की पर से हट गइ। 11. अख ँ ों का तारा-(ऄलतलप्रय)-अशीष ऄपनी माँ की अख ँ ों का तारा है। 12. अख ँ ईठाना-(देखने का साहस करना)- ऄब िह कभी भी मेरे सामने अख ँ नहीं ईठा सके गा। 13. अख ँ खि ु ना-(होश अना)- जब संबंलधयों ने ईसकी सारी संपलत्त हड़प िी तब ईसकी अख ँ ें खि ु ीं। 14. अख ँ िगना-(नींद अना ऄथिा व्यार होना)- बड़ी मलु श्कि से ऄब ईसकी अख ँ िगी है। अजकि अख ँ िगते देर नहीं होती। 15. अख ँ ों पर परदा पड़ना-(िोभ के कारण सचाइ न दीखना)- जो दूसरों को ठगा करते हैं, ईनकी अख ँ ों पर परदा पड़ा हुअ है। आसका फि ईन्हें ऄिश्य लमिेगा। 16. अख ँ ों का काटा-(ऄलप्रय व्यलि)- ऄपनी कुप्रिलृ त्तयों के कारण राजन लपताजी की अख ँ ों का काटँ ा बन गया। 17. अख ँ ों में समाना-(लदि में बस जाना)- लगरधर मीरा की अख ँ ों में समा गया। 4. कलेजा-संबधं ी कुछ महु ावरे 1. किेजे पर हाथ रखना-(ऄपने लदि से पूछना)- ऄपने किेजे पर हाथ रखकर कहो लक क्या तमु ने पैन नहीं तोड़ा।

2. किेजा जिना-(तीव्र ऄसंतोष होना)- ईसकी बातें सनु कर मेरा किेजा जि ईठा। 3. किेजा ठंडा होना-(संतोष हो जाना)- डाकुओं को पकड़ा हुअ देखकर गािँ िािों का किेजा ठंढा हो गया। 4. किेजा थामना-(जी कड़ा करना)- ऄपने एकमात्र यिु ा पत्रु की मत्ृ यु पर माता-लपता किेजा थामकर रह गए। 5. किेजे पर पत्थर रखना-(दख ु में भी धीरज रखना)- ईस बेचारे की क्या कहते हों, ईसने तो किेजे पर पत्थर रख लिया है। 6. किेजे पर सापँ िोटना-(इष्याथ से जिना)- श्रीराम के राज्यालभषेक का समाचार सनु कर दासी मंथरा के किेजे पर सापँ िोटने िगा। 5. कान-संबधं ी कुछ महु ावरे 1. कान भरना-(चगु िी करना)- ऄपने सालथयों के लिरुद्ध ऄध्यापक के कान भरने िािे लिद्याथी ऄच्छे नहीं होते। 2. कान कतरना-(बहुत चतरु होना)- िह तो ऄभी से बड़े-बड़ों के कान कतरता है। 3. कान का कच्चा-(सनु ते ही लकसी बात पर लिश्वास करना)- जो मालिक कान के कच्चे होते हैं िे भिे कमथ चाररयों पर भी लिश्वास नहीं करते। 4. कान पर जूँ तक न रेंगना-(कुछ ऄसर न होना)-माँ ने गौरि को बहुत समझाया, लकन्तु ईसके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी। 5. कानोंकान खबर न होना-(लबिकुि पता न चिना)-सोने के ये लबस्कुट िे जाओ, लकसी को कानोंकान खबर न हो। 6. नाक-संबधं ी कुछ महु ावरे

1. नाक में दम करना-(बहुत तंग करना)- अतंकिालदयों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है। 2. नाक रखना-(मान रखना)- सच पूछो तो ईसने सच कहकर मेरी नाक रख िी। 3. नाक रगड़ना-(दीनता लदखाना)-लगरहकट ने लसपाही के सामने खूब नाक रगड़ी, पर ईसने ईसे छोड़ा नहीं। 4. नाक पर मक्खी न बैठने देना-(ऄपने पर अचँ न अने देना)-लकतनी ही मस ु ीबतें ईठाइ, पर ईसने नाक पर मक्खी न बैठने दी। 5. नाक कटना-(प्रलतष्ठा नष्ट होना)- ऄरे भैया अजकि की औिाद तो खानदान की नाक काटकर रख देती है। 7. महुँ -संबधं ी कुछ महु ावरे 1. महुँ की खाना-(हार मानना)-पड़ोसी के घर के मामिे में दखि देकर हरद्वारी को महुँ की खानी पड़ी। 2. महुँ में पानी भर अना-(लदि ििचाना)- िड्डुओ ं का नाम सनु ते ही पंलडतजी के महुँ में पानी भर अया। 3. महुँ खून िगना-(ररश्वत िेने की अदत पड़ जाना)- ईसके महुँ खून िगा है, लबना लिए िह काम नहीं करेगा। 4. महुँ लछपाना-(िलज्जत होना)- महुँ लछपाने से काम नहीं बनेगा, कुछ करके भी लदखाओ। 5. महुँ रखना-(मान रखना)-मैं तम्ु हारा महुँ रखने के लिए ही प्रमोद के पास गया था, ऄन्यथा मझ ु े क्या अिश्यकता थी। 6. महुँ तोड़ जिाब देना-(कड़ा ईत्तर देना)- श्याम महुँ तोड़ जिाब सनु कर

लफर कुछ नहीं बोिा। 7. महुँ पर कालिख पोतना-(किंक िगाना)-बेटा तम्ु हारे कुकमों ने मेरे महुँ पर कालिख पोत दी है। 8. महुँ ईतरना-(ईदास होना)-अज तम्ु हारा महुँ क्यों ईतरा हुअ है। 9. महुँ ताकना-(दूसरे पर अलश्रत होना)-ऄब गेहँ के लिए हमें ऄमेररका का महुँ नहीं ताकना पड़ेगा। 10. महुँ बंद करना-(चपु कर देना)-अजकि ररश्वत ने बड़े-बड़े ऄफसरों का महुँ बंद कर रखा है। 8. दाँत-संबधं ी महु ावरे 1. दातँ पीसना-(बहुत ज्यादा गस्ु सा करना)- भिा मझ ु पर दातँ क्यों पीसते हो? शीशा तो शंकर ने तोड़ा है। 2. दातँ खट्टे करना-(बरु ी तरह हराना)- भारतीय सैलनकों ने पालकस्तानी सैलनकों के दातँ खट्टे कर लदए। 3. दातँ काटी रोटी-(घलनष्ठता, पक्की लमत्रता)- कभी राम और श्याम में दातँ काटी रोटी थी पर अज एक-दूसरे के जानी दश्ु मन है। 9. गरदन-संबधं ी महु ावरे 1. गरदन झक ु ाना-(िलज्जत होना)- मेरा सामना होते ही ईसकी गरदन झक ु गइ। 2. गरदन पर सिार होना-(पीछे पड़ना)- मेरी गरदन पर सिार होने से तम्ु हारा काम नहीं बनने िािा है। 3. गरदन पर छुरी फे रना-(ऄत्याचार करना)-ईस बेचारे की गरदन पर

छुरी फे रते तम्ु हें शरम नहीं अती, भगिान आसके लिए तम्ु हें कभी क्षमा नहीं करेंगे। 10. गले-संबधं ी महु ावरे 1. गिा घोंटना-(ऄत्याचार करना)- जो सरकार गरीबों का गिा घोंटती है िह देर तक नहीं लटक सकती। 2. गिा फँसाना-(बंधन में पड़ना)- दूसरों के मामिे में गिा फँसाने से कुछ हाथ नहीं अएगा। 3. गिे मढना-(जबरदस्ती लकसी को कोइ काम सौंपना)- आस बद्ध ु ू को मेरे गिे मढकर िािाजी ने तो मझ ु े तंग कर डािा है। 4. गिे का हार-(बहुत प्यारा)- तमु तो ईसके गिे का हार हो, भिा िह तम्ु हारे काम को क्यों मना करने िगा। 11. लसर-संबधं ी महु ावरे 1. लसर पर भूत सिार होना-(धनु िगाना)-तम्ु हारे लसर पर तो हर समय भूत सिार रहता है। 2. लसर पर मौत खेिना-(मत्ृ यु समीप होना)- लिभीषण ने रािण को संबोलधत करते हुए कहा, ‘भैया ! मझ ु े क्या डरा रहे हो ? तम्ु हारे लसर पर तो मौत खेि रही है‘। 3. लसर पर खून सिार होना-(मरने-मारने को तैयार होना)- ऄरे, बदमाश की क्या बात करते हो ? ईसके लसर पर तो हर समय खून सिार रहता है। 4. लसर-धड़ की बाजी िगाना-(प्राणों की भी परिाह न करना)- भारतीय िीर देश की रक्षा के लिए लसर-धड़ की बाजी िगा देते हैं।

5. लसर नीचा करना-(िजा जाना)-मझ ु े देखते ही ईसने लसर नीचा कर लिया। 12. हाथ-संबधं ी महु ावरे 1. हाथ खािी होना-(रुपया-पैसा न होना)- जअ ु खेिने के कारण राजा नि का हाथ खािी हो गया था। 2. हाथ खींचना-(साथ न देना)-मस ु ीबत के समय नकिी लमत्र हाथ खींच िेते हैं। 3. हाथ पे हाथ धरकर बैठना-(लनकम्मा होना)- ईद्यमी कभी भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठते हैं, िे तो कुछ करके ही लदखाते हैं। 4. हाथों के तोते ईड़ना-(दख ु से हैरान होना)- भाइ के लनधन का समाचार पाते ही ईसके हाथों के तोते ईड़ गए। 5. हाथोंहाथ-(बहुत जल्दी)-यह काम हाथोंहाथ हो जाना चालहए। 6. हाथ मिते रह जाना-(पछताना)- जो लबना सोचे-समझे काम शरू ु करते है िे ऄंत में हाथ मिते रह जाते हैं। 7. हाथ साफ करना-(चरु ा िेना)- ओह ! लकसी ने मेरी जेब पर हाथ साफ कर लदया। 8. हाथ-पािँ मारना-(प्रयास करना)- हाथ-पािँ मारने िािा व्यलि ऄंत में ऄिश्य सफिता प्राप्त करता है। 9. हाथ डािना-(शरू ु करना)- लकसी भी काम में हाथ डािने से पूिथ ईसके ऄच्छे या बरु े फि पर लिचार कर िेना चालहए। 13. हवा-संबधं ी महु ावरे

1. हिा िगना-(ऄसर पड़ना)-अजकि भारतीयों को भी पलिम की हिा िग चक ु ी है। 2. हिा से बातें करना-(बहुत तेज दौड़ना)- राणा प्रताप ने ज्यों ही िगाम लहिाइ, चेतक हिा से बातें करने िगा। 3. हिाइ लकिे बनाना-(झूठी कल्पनाए ँ करना)- हिाइ लकिे ही बनाते रहोगे या कुछ करोगे भी ? 4. हिा हो जाना-(गायब हो जाना)- देखते-ही-देखते मेरी साआलकि न जाने कहाँ हिा हो गइ ? 14. िानी-संबधं ी महु ावरे 1. पानी-पानी होना-(िलज्जत होना)-ज्योंही सोहन ने माताजी के पसथ में हाथ डािा लक उपर से माताजी अ गइ। बस, ईन्हें देखते ही िह पानीपानी हो गया। 2. पानी में अग िगाना-(शांलत भंग कर देना)-तमु ने तो सदा पानी में अग िगाने का ही काम लकया है। 3. पानी फे र देना-(लनराश कर देना)-ईसने तो मेरी अशाओं पर पानी पेर लदया। 4. पानी भरना-(तच्ु छ िगना)-तमु ने तो जीिन-भर पानी ही भरा है। 15. कुछ लमले-जुले महु ावरे 1. ऄगँ ूठा लदखाना-(देने से साफ आनकार कर देना)-सेठ रामिाि ने धमथ शािा के लिए पाचँ हजार रुपए दान देने को कहा था, लकन्तु जब मैनेजर ईनसे मांगने गया तो ईन्होंने ऄगँ ूठा लदखा लदया।

2. ऄगर-मगर करना-(टािमटोि करना)-ऄगर-मगर करने से ऄब काम चिने िािा नहीं है। बंधु ! 3. ऄंगारे बरसाना-(ऄत्यंत गस्ु से से देखना)-ऄलभमन्यु िध की सूचना पाते ही ऄजथ नु के नेत्र ऄंगारे बरसाने िगे। 4. अड़े हाथों िेना-(ऄच्छी तरह काबू करना)-श्रीकृष्ण ने कं स को अड़े हाथों लिया। 5. अकाश से बातें करना-(बहुत उँचा होना)-टी.िी.टािर तो अकाश से बाते करती है। 6. इद का चादँ -(बहुत कम दीखना)-लमत्र अजकि तो तमु इद का चादँ हो गए हो, कहाँ रहते हो ? 7. ईगँ िी पर नचाना-(िश में करना)-अजकि की औरतें ऄपने पलतयों को ईगँ लियों पर नचाती हैं। 8. किइ खि ु ना-(रहस्य प्रकट हो जाना)-ईसने तो तम्ु हारी किइ खोिकर रख दी। 9. काम तमाम करना-(मार देना)- रानी िक्ष्मीबाइ ने पीछा करने िािे दोनों ऄंग्रेजों का काम तमाम कर लदया। 10. कुत्ते की मौत करना-(बरु ी तरह से मरना)-राष्रद्रोही सदा कुत्ते की मौत मरते हैं। 11. कोल्ह का बैि-(लनरंतर काम में िगे रहना)-कोल्ह का बैि बनकर भी िोग अज भरपेट भोजन नहीं पा सकते। 12. खाक छानना-(दर-दर भटकना)-खाक छानने से तो ऄच्छा है एक जगह जमकर काम करो। 13. गड़े मरु दे ईखाड़ना-(लपछिी बातों को याद करना)-गड़े मरु दे ईखाड़ने

से तो ऄच्छा है लक ऄब हम चपु हो जाए।ँ 14. गि ु छरे ईड़ाना-(मौज करना)-अजकि तमु तो दूसरे के माि पर गि ु छरे ईड़ा रहे हो। 15. घास खोदना-(फुजूि समय लबताना)-सारी ईम्र तमु ने घास ही खोदी है। 16. चंपत होना-(भाग जाना)-चोर पलु िस को देखते ही चंपत हो गए। 17. चौकड़ी भरना-(छिागँ े िगाना)-लहरन चौकड़ी भरते हुए कहीं से कहीं जा पहुचँ े। 18. छक्के छुडाना-(ब ऺ रु ी तरह परालजत करना)-पथ्ृ िीराज चौहान ने महु म्मद गोरी के छक्के छुड़ा लदए। 19. टका-सा जिाब देना-(कोरा ईत्तर देना)-अशा थी लक कहीं िह मेरी जीलिका का प्रबंध कर देगा, पर ईसने तो देखते ही टका-सा जिाब दे लदया। 20. टोपी ईछािना-(ऄपमालनत करना)-मेरी टोपी ईछािने से ईसे क्या लमिेगा? 21. तििे चाटने-(खशु ामद करना)-तििे चाटकर नौकरी करने से तो कहीं डूब मरना ऄच्छा है। 22. थािी का बैंगन-(ऄलस्थर लिचार िािा)- जो िोग थािी के बैगन होते हैं, िे लकसी के सच्चे लमत्र नहीं होते। 23. दाने-दाने को तरसना-(ऄत्यंत गरीब होना)-बचपन में मैं दाने-दाने को तरसता लफरा, अज इश्वर की कृपा है। 24. दौड़-धूप करना-(कठोर श्रम करना)-अज के यगु में दौड़-धूप करने से ही कुछ काम बन पाता है।

25. धलज्जयाँ ईड़ाना-(नष्ट-भ्रष्ट करना)-यलद कोइ भी राष्र हमारी स्ितंत्रता को हड़पना चाहेगा तो हम ईसकी धलज्जयाँ ईड़ा देंगे। 26. नमक-लमचथ िगाना-(बढा-चढाकर कहना)-अजकि समाचारपत्र लकसी भी बात को आस प्रकार नमक-लमचथ िगाकर लिखते हैं लक जनसाधारण ईस पर लिश्वास करने िग जाता है। 27. नौ-दो ग्यारह होना-(भाग जाना)- लबल्िी को देखते ही चूहे नौ-दो ग्यारह हो गए। 28. फूँक-फूँककर कदम रखना-(सोच-समझकर कदम बढाना)-जिानी में फूँक-फूँककर कदम रखना चालहए। 29. बाि-बाि बचना-(बड़ी कलठनाइ से बचना)-गाड़ी की टक्कर होने पर मेरा लमत्र बाि-बाि बच गया। 30. भाड़ झोंकना-(योंही समय लबताना)-लदल्िी में अकर भी तमु ने तीस साि तक भाड़ ही झोंका है। 31. मलक्खयाँ मारना-(लनकम्मे रहकर समय लबताना)-यह समय मलक्खयाँ मारने का नहीं है, घर का कुछ काम-काज ही कर िो। 32. माथा ठनकना-(संदहे होना)- लसंह के पंजों के लनशान रेत पर देखते ही गीदड़ का माथा ठनक गया। 33. लमट्टी खराब करना-(बरु ा हाि करना)-अजकि के नौजिानों ने बूढों की लमट्टी खराब कर रखी है। 34. रंग ईड़ाना-(घबरा जाना)-कािे नाग को देखते ही मेरा रंग ईड़ गया। 35. रफूचक्कर होना-(भाग जाना)-पलु िस को देखते ही बदमाश रफूचक्कर हो गए। 36. िोहे के चने चबाना-(बहुत कलठनाइ से सामना करना)- मगु ि सम्राट ऄकबर को राणाप्रताप के साथ टक्कर िेते समय िोहे के चने चबाने पड़े।

37. लिष ईगिना-(बरु ा-भिा कहना)-दयु ोधन को गांडीि धनषु का ऄपमान करते देख ऄजथ नु लिष ईगिने िगा। 38. श्रीगणेश करना-(शरू ु करना)-अज बहृ स्पलतिार है, नए िषथ की पढाइ का श्रीगणेश कर िो। 39. हजामत बनाना-(ठगना)-ये लहप्पी न जाने लकतने भारतीयों की हजामत बना चक ु े हैं। 40. शैतान के कान कतरना-(बहुत चािाक होना)-तमु तो शैतान के भी कान कतरने िािे हो, बेचारे रामनाथ की तम्ु हारे सामने लबसात ही क्या है ? 41. राइ का पहाड़ बनाना-(छोटी-सी बात को बहुत बढा देना)- तलनक-सी बात के लिए तमु ने राइ का पहाड़ बना लदया। कुछ प्रचललत लोकोलियाँ 1. ऄधजि गगरी छिकत जाए-(कम गणु िािा व्यलि लदखािा बहुत करता है)- श्याम बातें तो ऐसी करता है जैसे हर लिषय में मास्टर हो, िास्ति में ईसे लकसी लिषय का भी पूरा ज्ञान नहीं-ऄधजि गगरी छिकत जाए। 2. ऄब पछताए होत क्या, जब लचलड़याँ चगु गइ खेत-(समय लनकि जाने पर पछताने से क्या िाभ)- सारा साि तमु ने पस्ु तकें खोिकर नहीं देखीं। ऄब पछताए होत क्या, जब लचलड़याँ चगु गइ खेत। 3. अम के अम गठु लियों के दाम-(दगु नु ा िाभ)- लहन्दी पढने से एक तो अप नइ भाषा सीखकर नौकरी पर पदोन्नलत कर सकते हैं, दूसरे लहन्दी के ईच्च सालहत्य का रसास्िादन कर सकते हैं, आसे कहते हैं-अम के अम

गठु लियों के दाम। 4. उँची दक ु ान फीका पकिान-(के िि उपरी लदखािा करना)कनॉटप्िेस के ऄनेक स्टोर बड़े प्रलसद्ध है, पर सब घलटया दजे का माि बेचते हैं। सच है, उँची दक ु ान फीका पकिान। 5. घर का भेदी िंका ढाए-(अपसी फूट के कारण भेद खोिना)-कइ व्यलि पहिे कांग्रेस में थे, ऄब जनता (एस) पाटी में लमिकर काग्रेंस की बरु ाइ करते हैं। सच है, घर का भेदी िंका ढाए। 6. लजसकी िाठी ईसकी भैंस-(शलिशािी की लिजय होती है)- ऄंग्रेजों ने सेना के बि पर बंगाि पर ऄलधकार कर लिया था-लजसकी िाठी ईसकी भैंस। 7. जि में रहकर मगर से िैर-(लकसी के अश्रय में रहकर ईससे शत्रतु ा मोि िेना)- जो भारत में रहकर लिदेशों का गणु गान करते हैं, ईनके लिए िही कहाित है लक जि में रहकर मगर से िैर। 8. थोथा चना बाजे घना-(लजसमें सत नहीं होता िह लदखािा करता है)गजेंद्र ने ऄभी दसिीं की परीक्षा पास की है, और अिोचना ऄपने बड़े-बड़े गरुु जनों की करता है। थोथा चना बाजे घना। 9. दूध का दूध पानी का पानी-(सच और झूठ का ठीक फै सिा)- सरपंच ने दूध का दूध,पानी का पानी कर लदखाया, ऄसिी दोषी मंगू को ही दंड लमिा। 10. दूर के ढोि सहु ािने-(जो चीजें दूर से ऄच्छी िगती हों)- ईनके मसूरी िािे बंगिे की बहुत प्रशंसा सनु ते थे लकन्तु िहाँ दगु ंध के मारे तंग अकर हमारे मख ु से लनकि ही गया-दूर के ढोि सहु ािने। 11. न रहेगा बास ँ , न बजेगी बास ँ रु ी-(कारण के नष्ट होने पर कायथ न होना)-

सारा लदन िड़के अमों के लिए पत्थर मारते रहते थे। हमने अगँ न में से अम का िक्षृ की कटिा लदया। न रहेगा बास ँ , न बजेगी बास ँ रु ी। 12. नाच न जाने अगँ न टेढा-(काम करना नहीं अना और बहाने बनाना)जब रिींद्र ने कहा लक कोइ गीत सनु ाआए, तो सनु ीि बोिा, ‘अज समय नहीं है’। लफर लकसी लदन कहा तो कहने िगा, ‘अज मूड नहीं है’। सच है, नाच न जाने अगँ न टेढा। 13. लबन मागँ े मोती लमिे, मागँ े लमिे न भीख-(मागँ े लबना ऄच्छी िस्तु की प्रालप्त हो जाती है, मागँ ने पर साधारण भी नहीं लमिती)- ऄध्यापकों ने मागँ ों के लिए हड़ताि कर दी, पर ईन्हें क्या लमिा ? आनसे तो बैक कमथ चारी ऄच्छे रहे, ईनका भत्ता बढा लदया गया। लबन मागँ े मोती लमिे, मागँ े लमिे न भीख। 14. मान न मान मैं तेरा मेहमान-(जबरदस्ती लकसी का मेहमान बनना)एक ऄमेररकन कहने िगा, मैं एक मास अपके पास रहकर अपके रहनसहन का ऄध्ययन करूँगा। मैंने मन में कहा, ऄजब अदमी है, मान न मान मैं तेरा मेहमान। 15. मन चंगा तो कठौती में गंगा-(यलद मन पलित्र है तो घर ही तीथथ है)भैया रामेश्वरम जाकर क्या करोगे ? घर पर ही इशस्तलु त करो। मन चंगा तो कठौती में गंगा। 16. दोनों हाथों में िड्डू-(दोनों ओर िाभ)- महेंद्र को आधर ईच्च पद लमि रहा था और ईधर ऄमेररका से िजीफा ईसके तो दोनों हाथों में िड्डू थे। 17. नया नौ लदन परु ाना सौ लदन-(नइ िस्तओ ु ं का लिश्वास नहीं होता, परु ानी िस्तु लटकाउ होती है)- ऄब भारतीय जनता का यह लिश्वास है लक आस सरकार से तो पहिी सरकार लफर भी ऄच्छी थी। नया नौ लदन,

परु ाना नौ लदन। 18. बगि में छुरी महुँ में राम-राम-(भीतर से शत्रतु ा और उपर से मीठी बातें)- साम्राज्यिादी अज भी कुछ राष्रों को ईन्नलत की अशा लदिाकर ईन्हें ऄपने ऄधीन रखना चाहते हैं, परन्तु ऄब सभी देश समझ गए हैं लक ईनकी बगि में छुरी और महुँ में राम-राम है। 19. िातों के भूत बातों से नहीं मानते-(शरारती समझाने से िश में नहीं अते)- सिीम बड़ा शरारती है, पर ईसके ऄब्बा ईसे प्यार से समझाना चाहते हैं। लकन्तु िे नहीं जानते लक िातों के भूत बातों से नहीं मानते। 20. सहज पके जो मीठा होय-(धीरे-धीरे लकए जाने िािा कायथ स्थायी फिदायक होता है)- लिनोबा भािे का लिचार था लक भूलम सधु ार धीरे-धीरे और शांलतपूिथक िाना चालहए क्योंलक सहज पके सो मीठा होय। 21. सापँ मरे िाठी न टूटे-(हालन भी न हो और काम भी बन जाए)घनश्याम को ईसकी दष्टु ता का ऐसा मजा चखाओ लक बदनामी भी न हो और ईसे दंड भी लमि जाए। बस यही समझो लक सापँ भी मर जाए और िाठी भी न टूटे। 22. ऄंत भिा सो भिा-(लजसका पररणाम ऄच्छा है, िह सिोत्तम है)श्याम पढने में कमजोर था, िेलकन परीक्षा का समय अते-अते पूरी तैयारी कर िी और परीक्षा प्रथम श्रेणी में ईत्तीणथ की। आसी को कहते हैं ऄंत भिा सो भिा। 23. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-(बहुत कं जूस होना)-महेंद्रपाि ऄपने बेटे को ऄच्छे कपड़े तक भी लसििाकर नहीं देता। ईसका तो यही लसद्धान्त है लक चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। 24. सौ सनु ार की एक िहु ार की-(लनबथ ि की सैकड़ों चोटों की सबि एक

ही चोट से मक ु ाबिा कर देते है)- कौरिों ने भीम को बहुत तंग लकया तो िह कौरिों को गदा से पीटने िगा-सौ सनु ार की एक िहु ार की। 25. सािन हरे न भादों सूखे-(सदैि एक-सी लस्थलत में रहना)- गत चार िषों में हमारे िेतन ि भत्ते में एक सौ रुपए की बढोत्तरी हुइ है। ईधर 25 प्रलतशत दाम बढ गए हैं-भैया हमारी तो यही लस्थलत रही है लक सािन हरे न भागों सूखे।

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