Gurutva Jyotish Mar-2012

April 16, 2017 | Author: CHINTAN JOSHI | Category: N/A
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गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका

NON PROFIT PUBLICATION .

मार्ा- 2012

FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका मार्ा 2012 सर्ंतन जोशी

िंपादक

गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग

गुरुत्व कार्ाालर्

िंपका

92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA

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पत्रिका प्रस्तुसत

सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

फोटो ग्राफफक्ि

सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक आटा

हमारे मुख्र् िहर्ोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक िोफ्टे क इस्डिर्ा सल)

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अनुक्रम पंर्ांग त्रवशेष पंर्ांग गणना की वैज्ञासनक पद्धसत क्र्ा हं ? कैलेण्िर र्ुग की उत्पत्रि कब हुई ?

6 13

दे श के त्रवसभडन प्रांतो मं नववषा का प्रारं भ

25

ज्र्ोसतष के अनुशार शुभ-अशुभ मुहूता का प्रभाव?

26

पौरास्णक काल मं पंर्ांग गणना कैिे होती थी?

15

भद्रा त्रवर्ार

28

वैफदक पंर्ांग का इसतहाि?

18

फदशाशूल त्रवर्ार

31

कैलंिर व पंर्ांग मं क्र्ा अंतर हं ?

21

फदशाशूल महत्वपूणा र्ा कताव्र् महत्वपूणा है ?

32

पंर्ांग का मूल आधार?

24

ितिंग की मफहमा

33

नवराि त्रवशेष नव िंवत्िर का पररर्र्

35

भवाडर्ष्टकम ्

48

त्रवश्वाविु िंवत्िर मं जडम लेने वालं का भत्रवष्र्

36

क्षमा-प्राथाना

48

र्ैि नवराि मं नवदग ु ाा आराधना त्रवशेष फलदार्ी

37

दग ु ााष्टोिर शतनाम स्तोिम ्

49

फल

र्ैि नवराि व्रत त्रवशेष लाभदार्ी होता हं ।

39

त्रवश्वंभरी स्तुसत

50

कैिे करे नवराि व्रत ?

42

मफहषािुरमफदासनस्तोिम ्

51

नवराि मं दे वी उपािना िे मनोकामना पूसता

43

53

िप्तश्र्ललोकी दग ु ाा

दव ु ाा पूजन मं रखे िावधासनर्ां

44

दग ु ाा आरती

44

दग ु ाा र्ालीिा

45

श्रीकृ ष्ण कृ त दे वी स्तुसत

46

ऋग्वेदोक्त दे वी िूक्तम ्

46

सिद्धकुंस्जकास्तोिम ्

47

दग ु ााष्टकम ्

47

श्रीदग ु ााअष्टोिर शतनाम पूजन परशुराम कृ त श्रीदग ु ाास्तोि

श्री माकाण्िे र् कृ त लघु दग ु ाा िप्तशती स्तोिम ् नव दग ु ाा स्तुसत

61 62 63

नवदग ु ाा रक्षामंि

63

हमारे उत्पाद

14 मंि सिद्ध दै वी र्ंि िूसर् 38 भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी मंगल र्ंि िे ऋणमुत्रक्त 20 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसर् 38 नवरत्न जफित श्री र्ंि 23 मंि सिद्ध दल द्वादश महा र्ंि ा िामग्री 43 िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् ु भ 40 जैन धमाके त्रवसशष्ट र्ंि मंिसिद्ध स्फफटक श्रीर्ंि 27 दस्क्षणावसता शंख मंि सिद्ध रूद्राक्ष

57

श्री दग ु ाा कवर्म ् (रुद्रर्ामलोक्त)

दग ु ाा बीिा र्ंि

शसन पीिा सनवारक र्ंि

54

32 रासश रत्न 34 कनकधारा र्ंि

घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि

56 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा 64 िवा रोगनाशक र्ंि/

79

65 मंि सिद्ध कवर् 66 YANTRA

86

41 अमोद्य महामृत्र्ुंजर् कवर्

68 GEMS STONE

89

53 राशी रत्न एवं उपरत्न 67 मंि सिद्ध िामग्री-

68

84

87

24, 31 77,

स्थार्ी और अडर् लेख िंपादकीर्

4 दै सनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका 69 फदन-रात के र्ौघफिर्े

80

82

मार्ा 2012 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार

73 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक 75 ग्रह र्लन मार्ा-2012

मार्ा 2012 -त्रवशेष र्ोग

80 हमारा उद्दे श्र्

90

मार्ा मासिक रासश फल मार्ा 2012 मासिक पंर्ांग

81

83

GURUTVA KARYALAY

िंपादकीर् त्रप्रर् आस्त्मर् बंधु/ बफहन जर् गुरुदे व आज िमाज मं हर क्षेि मं पस्िमी िंस्कृ सत का प्रभाव असधक तीव्र होता जा रहा हं । ऐिा नहीं हं , फक सिफा भारतीर् लोग अपनी िंस्कृ सत एवं परं परा िे फकनारा कर पस्िमी िंस्कृ सत को अपना रहे हं ?, बस्ल्क िंपूणा दसु नर्ा मं लोग अपनी िंस्कृ सत एवं परं परा को भूलते जा रहे हं । ऐिी त्रवषम पररस्स्थसत मं भी ऐिे कुछ िंस्कारी लोग हं , स्जडहं ने पूणा दृढ़ता एवं इमानदारी के िाथ अपने पूवज ा ो द्वारा प्राप्तअपनी बहुमल् ू र् िंस्कृ सत एवं परं परा को िंजोर्े रखा हं ।

िैकिो वषा पूवाा मनुष्र् ने जब अपनी आंखं खोली तो उिे िूर्ा व र्डद्रमा अत्र्सधक प्रकाशमान फदखे होगं। िमर् के िाथ िाथ उिके सनरं तर अपने प्रर्ािो एवं अनुभवो िे अपनी स्जज्ञािा िे िमर् का आकलन आफद का कार्ा प्रारं भ करफदर्ा था। प्रार्ीन भारतीर् ग्रंथं मं कालगणना के त्रवषर् मं त्रवसभडन उल्लेख समलता है, स्जििे सिद्ध होता है फक हजारो वषा पूवा भी भारतीर् ऋषीमुसन अडर् िभ्र्ता एवं िंस्कृ सत के त्रवद्वानो िे इि त्रवषर् मं उनिे कहीं ज्र्ादा िजग थे। ऋग्वेद, ब्रह्मांि पुराण, वार्ु पुराण आफद पौरास्णक ग्रंथो मं कालगणना र्ा िंवत्िर का उल्लेख समलता हं । त्रवद्वानो के मत िे ईस्वी िन ् िे कई शतास्ब्दर्ं पूवा ज्र्ोसतष को काल स्वरूप माना जाता था। इि सलए ज्र्ोसतष को वेद िे

जोिकर वेदांगं मं िस्ममसलत फकर्ा गर्ा था। तब िे लेकर आज तक त्रवसभडन त्रवद्वानो ने कालगणना मं अपना महत्वपूणा र्ोगदान फदर्ा स्जिके फलस्वरुप प्रार्ीन काल िे आज तक अनेकं िंवतं का उल्लेख त्रवसभडन ग्रडथं िे प्राप्त होता है । भारतीर् िभ्र्ता एवं िंस्कृ सत मं त्रवसभडन धमा एवं िंप्रदार् के लोग बिते हं िबकी अपने धमा र्ा िमुदार् के त्रवद्वानं र्ा पूवज ा ो पर अटू ट श्रद्धा एवं त्रवश्वाि हं । स्जिके फल स्वरुप वहँ लोग अपनी माडर्ता एवं िंस्कारं के आधार पर अपनी िंस्कृ सत एवं िभ्र्ता को कार्म रखने के सलए अपनी माडर्ता एवं िंस्कृ सत के अनुशार वषा की गणना अलग-अलग िंवत ् के रुप मं करते हं ।

फहडद ु िंस्कृ सत के त्रवद्वानो के मत िे त्रवक्रम िंवत बहुजत लोगो द्वारा माडर्ता प्राप्त है , इि सलए असधकतर लोग

त्रवक्रम िंवत को मानते हं । गुजरात मं त्रवक्रम िंवत कासताक शुक्ल प्रसतपदा िे प्रारमभ होता है । लेफकन उिरी भारत मं त्रवक्रम िंवत र्ैि शुक्ल प्रसतपदा िे प्रारमभ होता है । इिके अलावा भारत मं 

स्कडद िंवत ् तथा शक् िंवत ् अथाात शासलवाहन िंवत ् तथा िातवाहन िंवत ्, हषा िंवत ्। केरल मं काल्लम अथवा मालाबार िंवत ्। कश्मीर मं िप्तऋत्रष िंवत ् अथाात लौफकक िंवत ्। लक्ष्मण िंवत ्। गौतम बुद्ध िंवत ्। वधामान महावीर

िंवत ्।सनमबाका िंवत ्। बंगाली आिामी िंवत ्। पारिी शहनशाही िंवत ्। र्हूदी िंवत ्। बहास्पत्र् वषा इत्र्ाफद िंवत ् का प्रर्लन रहा है । 

पंर्ांग सनमााण हे तु भारतीत गस्णतज्ञ आर्ाभट्ट ने अपने अनुभवं एवं शोधनकार्ा िे आर्ाभट्ट सिद्धांत नामक ग्रंथ की रर्ना की स्जि मं दै सनक खगोलीर् गणना और अनुष्ठानं के सलए शुभ मुहूता इत्र्ाफद का िमावेश फकर्ा गर्ा। त्रवद्वानं के मत िे आर्ाभट्ट सिद्धांत को र्ारं ओर िे स्वीकृ सत समली थी। क्र्ोफक आर्ाभट्ट अपने िमर् के िबिे बिे गस्णतज्ञ थे।

आर्ाभट्ट सिद्धांत की लोकत्रप्रर्ता एवं प्रामास्णकता सिद्ध होते ही भारतीर् पंर्ांग की गणना एवं सनधाारण मं

त्रवशेष महत्व एवं र्ोगदान रहा हं । आर्ाभट्ट के िमर् िे लेकर आजके आधुसनक र्ुग मं भी इि सिद्धांत को व्र्ावहाररक उद्दे श्र्ं िे भारत एवं त्रवदे शं मं सनरं तर इस्तेमाल मं रहा हं ।

आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग ज्र्ोसतष मं वस्णात िूर्ा सिद्धांत की प्रामास्णकता सिद्ध होने पर पंर्ांग

गणना मं िुलभता होने लगी। स्जि मं आगेर्लकर आर्ाभट्ट, वराहसमफहर और भास्कर ने अपने र्ोगदान िे पंर्ांग गणना पद्धसत िे जुिे ग्रंथो मं व्र्ापक िुधार फकए।

त्रवसभडन प्रदे शो एवं िंस्कृ सत की सभडनता के कारण पंर्ांगं की गणनाओं मं अंतर हो जाता है , लेफकन कुछ तथ्र् प्रार्ः िभी पंर्ांगं मं िमान होते हं ।

िभी पंर्ांगं के मुख्र् पाँर् अंग: सतसथ, वार, नक्षि, र्ोग और करण।

पंर्ांग के त्रवषर् मं र्जुवद े काल मं उल्लेख समलत हं की उि काल मं भारतीर्ं ने मािं के 12 नाम क्रमशः मधु, माधव, शुक्र, शुसर्, नभ, नभस्र्, इष, ऊजा, िह, िहस्र, तप तथा तपस्र् रखे थे।

मधुि माधवि शुक्रि शुसर्ि नभि नभस्र्िेषिोजाि िहि

िहस्र्ि तपि तपस्र्िोपर्ामगृहीतोसि िहं िवोस्र्हं हस्पत्र्ार् त्वा॥ (सतत्रिर िंफहता 1.4.14) र्जुवेद के ऋत्रष थे वैशमपार्न के सशष्र् के सशष्र् सतत्रिर िंफहता (उपसनषर्) मं िंवत्िर के मािं के 13 मफहनो के नाम

क्रमशः– अरुण, अरुणरज, पुण्िरीक, त्रवश्वस्जत ्, असभस्जत ्, आद्रा , त्रपडवमान ्, अडनवान ्, रिवान ्,

इरावान ्, िवौषध, िंभर, महस्वान ् थे। बाद मं र्ही नाम पूस्णामा के फदन र्ंद्रमा के नक्षि के आधार पर र्ैि, वैशाख, ज्र्ेष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद, आस्श्वन, कासताक, मागाशीषा, पौष, माघ तथा फाल्गुन हो गए।

पंर्ांग त्रवशेष अंक मं त्रवसभडन ग्रंथ एवं धमाशास्त्रों िे उल्लेस्खत प्रामास्णक कालगणना अथाात पंर्ांग िे जुिी महत्वपूणा जानकारीर्ं के अंश प्रकासशत फकर्े गर्े हं । पाठको की पंर्ांग के त्रवषर् िे जुिी धारणाएं स्पष्ट हं। उनके ज्ञान की वृत्रद्ध एवं जानकारी के उद्दे श्र् िे पंर्ांग िे िंबंसधत जानकारीर्ं को इि त्रवशेषांक को प्रस्तुत करने का प्रर्ाि फकर्ा गर्ा हं । नोट: र्ह अंक मं पंर्ंग िे िंबंसधत िारी जानकारी र्ा िामाडर् व्र्त्रक्त को दै सनक जीवन मं उपर्ोगी हो इि उद्दे श्र् िे दी गई हं । कालगणना िे िंबसं धत त्रवषर्ं मं रुसर् रखने वाले पाठक बंधु/बहनो िे त्रवशेष अनुरोध हं की फकिी भी कालगणना र्ा पंर्ांग िे सतसथ सनधाारण र्ा व्रत-त्र्ौहार का सनणार् करने िे पूवा अपने धमा के व्रत, पवा, िंवत्िर र्ा िमप्रदार् के प्रधान आर्ार्ा, गुरु, िुर्ोगर् त्रवद्वान र्ा जानकार िे परामशा करके मनार्ं क्र्ंफक स्थानीर् प्रथाओं एवं त्रवसभडन पंर्ांगं की गणना करने की पद्धसतर्ं मं भेद होने के कारण कभी-कभी त्रवशेष मं अंतर हो िकता है ।

इि अंक की प्रस्तुसत केवल पाठको के ज्ञानवधान के उद्दे श्र् की गई हं । पत्रिका मं प्रकासशत िभी जानकारीर्ां त्रवसभडन ग्रंथ, वेद, पुराण आफद पुरास्णक माध्र्म िे प्राप्त हं । स्जिे अत्र्ंत िावधानीपूवक ा िंग्रह कर प्रस्तुत फकर्ा गर्ा हं । फफर भी र्फद पत्रिका मं प्रकासशत फकिी लेख मं फकिी धमा/िंिकृ सत/िभ्र्ता के पवा सनणार्/नववषा को दशााने मं, दशाार्े

गए के िंकलन, प्रमाण पढ़ने, िंपादन मं, फिजाईन मं, टाईपींग मं, त्रप्रंफटं ग मं, प्रकाशन मं कोई िुफट रह गई हो, तो

उिे त्रवद्वान पाठक स्वर्ं िुधार लं। िंपादक एवं लेखक एवं गुरुत्व कार्ाालर् पररवार के िदस्र्ं की इि िंदभा मं कोई स्जममेदारी र्ा जवाबदे ही नहीं रहे गी।

सर्ंतन जोशी

मार्ा 2012

6

पंर्ांग गणना की वैज्ञासनक पद्धसत क्र्ा हं ?

 सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी कालज्ञानं प्रर्क्ष्र्ासम लगधस्र् महात्मनः।

भारतीर् पंर्ांग का इसतहाि अत्र्ंत प्रासर्न हं । भारत मं त्रवसभडन प्रादे सशक पंर्ांग मं क्रमश सतसथ, वार, नक्षि,

र्ोग और

करण र्ह पांर् प्रमुख अंग होते हं । क्र्ोफक,

इिी

अंगं

को

समलाकर

भारतीर् अथाात ्

पांर्

सतसथपि फदनदसशाका

अथाात ्

कैलंिर

को

पंर्ांग कहा जाता हं । पुरातन

काल

िे लेकर आज के आधुसनक र्ुग मं पंर्ांग की पौरास्णक गणना एवं सनमााण पद्धसत मं िमर्-िमर् पर िुधार र्ा िुक्ष्मता आती रही हं । क्र्ोफक, पंर्ांग का मुख्र् उद्दे श्र् मानव जीवन को प्रभात्रवत करने वाले ग्रह, नक्षि आफद ब्रह्मांफिर् शत्रक्त की स्टीक गणना कर मानव िमाज के िममुख प्रस्तुत करना एवं उनको लाभांत्रवत करना हं , इि सलए पंर्ांग मं नए शोध एवं आधुसनक पररक्षण द्वार पंर्ांग गणना मं स्टीकता आसत रही हं । इि पररणाम हं की, आज हमारे पाि पंर्ांग गणना एवं सनमााण के िशक्त माध्र्म उपलब्ध है । आज भारत भर मं राष्ट्रीर् पंर्ांग के के िाथ-िाथ कई क्षेिीर् पंर्ांग उपलब्ध हं । अंदाजन ई.500 के करीब आर्ार्ा लगध का वेदांग-ज्र्ोसतष (ॠक् व र्ाजुष ्) की रर्ना की थी। स्जि मं वस्णात हं की पांर् वषा का एक र्ुग, 366 फदनं का वषा होता हं । 11 वीं िदी िे पूवक ा ाल मं असधकतर भारतीर् पंर्ांग की गणना आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग ज्र्ोसतष मं उल्लेस्खत तथ्र्ं पर आधाररत होती थी।

शास्त्रों मं कहाँ गर्ा हं ।

कालज्ञान बोधक ज्र्ोसतषशास्त्रो का वतामान त्रवकसित स्वरुप आर्ार्ा लगध मुसन की दे न हं । िमर्

के

िाथ-िाथ

आर्ाभट्ट

की

खगोलीर्

गणना की त्रवसधर्ां भी बहुत प्रभावशाली िात्रबत हुई, फक उनके द्वारा प्रर्ोग फकए गए सिद्धांत त्रवश्व की अडर्

िभ्र्ता एवं िंस्कृ सतर्ं मं भी नजर आने लगे थे। 11वीं िदी

मं

स्पेन

के

मिहूर

वैज्ञासनक

अल

झकााली

(Al Zarkali) ने भी अपने कार्ं मं आर्ाभट्ट की खगोलीर् गणना िे मेलखाती हुई प्रणाली को तोलेिो

(Toledo) नाम फदर्ा। करीब 11वीं- 12वीं िदी िे लेकर कई िदीर्ं तक मं र्ूरोपीर्न दे शं मं तोलेिो प्रणाली को िवाासधक िूक्ष्म गणना के तौर पर फकर्ा जाता था। भारतीत गस्णतज्ञ आर्ाभट्ट ने अपने अनुभवं एवं शोधनकार्ा िे आर्ाभट्ट सिद्धांत नामक ग्रंथ की रर्ना की स्जि मं दै सनक खगोलीर् गणना और अनुष्ठानं के सलए शुभ मुहूता इत्र्ाफद का िमावेश फकर्ा गर्ा। त्रवद्वानं के मत िे आर्ाभट्ट सिद्धांत को र्ारं ओर िे स्वीकृ सत समली थी। क्र्ोफक आर्ाभट्ट अपने िमर् के िबिे बिे गस्णतज्ञ थे। आर्ाभट्ट सिद्धांत की लोकत्रप्रर्ता एवं प्रामास्णकता सिद्ध होते ही भारतीर् पंर्ांग की गणना एवं सनधाारण मं त्रवशेष महत्व एवं र्ोगदान रहा हं । आर्ाभट्ट के िमर् िे लेकर आजके आधुसनक र्ुग मं भी इि सिद्धांत को व्र्ावहाररक उद्दे श्र्ं िे भारत एवं त्रवदे शं मं सनरं तर इस्तेमाल मं रहा हं । आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग ज्र्ोसतष मं वस्णात िूर्ा सिद्धांत की प्रामास्णकता सिद्ध होने पर पंर्ांग गणना मं िुलभता होने लगी। स्जि मं आगेर्लकर

मार्ा 2012

7

आर्ाभट्ट, वराहसमफहर और भास्कर ने अपने र्ोगदान िे

वैफदक पंर्ांग मं 30 सतसथर्ां होती हं । स्जिमं 15

पंर्ांग गणना पद्धसत िे जुिे ग्रंथो मं व्र्ापक िुधार फकए।

सतसथर्ां कृ ष्ण पक्ष की तथा 15 शुक्ल पक्ष की होती हं ।

त्रवसभडन प्रदे शो एवं िंस्कृ सत की सभडनता के कारण

लेफकन र्ंद्र की गसत मं सभडनता होने के कारण सतसथ के

पंर्ांगं की गणनाओं मं अंतर हो जाता है , लेफकन कुछ

मान मं डर्ूना एवं सधकता बनी रहती है ।

तथ्र् प्रार्ः िभी पंर्ांगं मं िमान होते हं ।

िंपूणा भर्क्र की 360 फिग्री को 30 सतसथर्ं को

िभी पंर्ांगं के मुख्र् पाँर् अंग: सतसथ, वार, नक्षि,

360 ÷ 30 =12 शेष बर्ते हं । र्ंद्र अपने पररक्रमा पथ

र्ोग और करण।

पर एक फदन मं लगभग 13 अंश बढ़ता है । िूर्ा भी पृथ्वी के िंदभा मं एक फदन मं 1° र्ा 60 कला आगे बढ़ता हं ।

वृहदवकहिार्क्रम, पंर्ांग प्रकरण, श्लोक 1 मं कहा गर्ा है -

सतसथ वाररि नक्षिां र्ोग करणमेव र्। एतेषां र्िा त्रवज्ञानं पंर्ांग तस्डनगद्यते॥

फकिी भी त्रवशुद्ध पंर्ांग को फकिी स्थान त्रवशेष के अक्षांश और रे खांश पर सनधााररत फकर्ा जाता हं । फकिी पंर्ांग के सनमााण के सलए फकिी सनधााररत स्थान त्रवशेष के अक्षांश रे खांश का स्पष्ट उल्लेख फकर्ा जाता हं । मुख्र्तः पंर्ांग प्रस्तुसत की दो मुख्र् पद्धसतर्ां मानी जाती हं । एक हं सनरर्न और और दि ू री हं िार्न।

भारतीर् के पंर्ांग मं ज्र्ादातर सनरर्न पद्धसत असधक प्रर्सलत हं और पािात्र् दे शं मं िार्न पद्धसत असधक प्रर्सलत हं ।

इि सलए एक फदन मं र्ंद्र की कुल बढ़त 13 अंश िे िूर्ा की बढ़त के 1 अंश घटाने पर 12 अंश (13°-1°=12°) शेष रह जाते हं । शेष बर्ी बढ़त ही िूर्ा और र्ंद्र की गसत का अंतर होती हं । अमावस्र्ा के फदन िूर्ा और र्ंद्र एक िाथ एक ही रासश व एक ही अंशं मं स्स्थत होते हं । दोनं के बीर् का रासश अंतर शूडर् होता हं , इिसलए र्ंद्र फदखाई नहीं दे ता हं । जब दोनं का अंतर शूडर् िे बढ़ने लगता हं तब शुक्ल प्रसतपदा सतसथ का उदर् (प्रारं भ) होने लगता हं । िमर् के िाथ जब र्ह अंतर बढ़ते-बढ़ते 12° अंश का हो जाता है , तब प्रसतपदा सतसथ पूणा होकर फद्वतीर्ा सतसथ का उदर् होता है । र्ूंफक प्रसतपदा सतसथ के फदन भी र्ंद्र िूर्ा िे केवल 12 अंश ही आगे सनकलता है , इिसलए प्रसतपदा सतसथ को भी आकाश मं र्ंद्रदशान नहीं होते हं । इिी प्रकार िूर्-ा र्ंद्र के रासश अतर िे फकिी सतसथ त्रवशेष का

सतसथ : र्ंद्र की एक कला को सतसथ कहा जाता हं । कला का मान िूर्ा और र्ंद्र के अंतरांशं पर सनधााररत फकर्ा जाता हं ।

सतसथ सनधाारण के त्रवषर् मं शास्त्रो मं वस्णात हं ।

अकााफद्वसनिृजः प्रार्ीं र्द्यात्र्हरहः शषी।

तच्र्ाडद्रमानमंषैस्तु ज्ञेर्ा द्वादषसभस्स्तसथः॥

(श्लोक 13:मानाध्र्ार्:िूर्ा सिद्धांत:)

वैफदक ज्र्ोसतष मं रासशर्ो को 360 फिग्री को 12 भागो मं बांटा गर्ा है स्जिे भर्क्र कहते हं ।

सनधाारण फकर्ा जाता हं ।

करीबन पंद्रह फदन बाद मं जब

र्ंद्र का अंतर िूर्ा िे 180 अंश होता हं

(12 x15=180)

आगे होता है , तब पूस्णामा सतसथ की िमासप्त होती हं तथा कृ ष्णपक्ष की प्रसतपदा सतसथ का उदर् होता हं । पुनः जब िूर्ा और र्ंद्र का अंतर 360 अंश अथाात शूडर् होता हं तब कृ ष्ण पक्ष की अमावस्र्ा सतसथ िमाप्त होती हं ।

अपनी जडम कुंिली िे िमस्र्ाओं का िमाधान जासनर्े

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मार्ा 2012

8

बृहतिं ् फहता मं र्ंद्र का नक्षिं िे र्ोग बताते हुए

वार: भारतीर् ज्र्ोसतष मं एक वार एक िूर्ोदर् िे दि ू रे िूर्ोदर् तक रहता हं ।

वार को पररभात्रषत करते हुए शास्त्रों मं उल्लेख फकर्ा गर्ा हं

जेष्ठाद्यासननवक्षााण्र्फिु पसतनातीत्र् र्ुज्र्डते॥

प्रामास्णक माना जाता हं ।

वार को पौरास्णक ज्र्ोसतष मं िावन फदन र्ा अहगाण के नाम िे भी जाना जाता हं । वारं का प्रर्सलत क्रम पुरे त्रवश्व मं एक िमान है । िात वारं के नाम िात ग्रहं के नाम पर रखे गए हं । इन िात वारं का क्रम होरा क्रम के आधार पर रखे गए है और होरा क्रम ब्रह्मांि मं स्स्थत िूर्ााफद ग्रहं के कक्ष क्रम के अनुिार सनधााररत फकए गए हं ।

ज्र्ोसतष

मं

27

नक्षिं

को

12

रासशर्ं

मं

त्रवभास्जत फकर्ा जाता हं । प्रत्र्ेक नक्षि के र्ार र्रण (भाग) फकए गए हं । स्जििे प्रत्र्ेक र्रण का मान 13 अंश 20 कला माना गर्ा हं स्जिे उिके र्ार र्रण िे भाग दे ने पर 3 अंश 20 कला शेष बर्ती हं । (13 अंश 20 ÷ 4 = 3 अंश 20 कला) इि प्रकार 27 नक्षिं मं कुल 108 र्रण होते हं । वृहज्जातकम ् के अनुिार प्रत्र्ेक रासश मं 108

र्रण को 12 रासश मं भाग दे ने िे 9 र्रण हंगे। (108÷

नक्षि :

12 = 9)

ज्र्ोसतष शास्त्रो मं 12 रासशर्ां अथाात भर्क्र 360 अंश को 27 नक्षिं के 27

भागं मं बांटा गर्ा हं ।

हर

भाग एक नक्षि का कारक है और हर एक भाग को नक्षिं का एक सनधााररत नाम फदर्ा गर्ा है । कुछ त्रवद्वानो के मतानुशार 27 नक्षिं के असतररक्त एक और नक्षि हं स्जिे असभस्जत नक्षि के नाम िे जाना जाता हं इि सलए उनके मत िे कुल समलाकर 28 होते हं । िूर्ा सिद्धांत के अनुिार एक नक्षि का मान 360 अंश /27 नक्षि अथाात एक नक्षि के सलए 13 अंश 20 कला शेष रहता हं । त्रवद्वानं के कथन अनुिार उिराषाढ़ा नक्षि की अंसतम 15 तथा श्रवण नक्षि की प्रथम 4 घफटर्ां के त्रबर् असभस्जत नक्षि

की होती हं ।

इि तरह

असभस्जत नक्षि का मान कुल समलाकर 19 है । लेफकन प्रार्ः पंर्ांगं मं इि नक्षि की गणना दे खने को नहीं समलती हं ।

षिनागतासनपौष्णाद् द्वादशरौद्राच्र्मध्र्र्ोगीसन। इि श्लोक के अनुिार भी 27 नक्षिं वाला मत

उदर्ातउदर्ं वारः। ्

का काल

उल्लेख फकर्ा गर्ा हं :-

त्रवद्वानो के मत िे र्ंद्र लगभग 27 फदन 7 घंटे

43 समनट मं 27 नक्षि की पररक्रमा पूणा कर लेता हं । इि सलए र्ंद्र लगभग 1 फदन (60 घटी) मं एक नक्षि मं भ्रमण करता हं । लेफकन अपनी गसत कम-ज्र्ादा होने कारण र्ंद्र एक नक्षि को अपनी कम िे पार करने मं लगभग 67 घटी एवं अपनी असधकतम गसत िे पार करने मं लगभग 52 घटी का िमर् लेता हं ।

र्ोग : पंर्ांग मं मुख्र्तः र्ोग

दो प्रकार के माने गए हं

(१) आनंदाफद र्ोग और (२) त्रवष्कंभाफद र्ोग स्जि प्रकार िूर्ा और र्ंद्र के रासश अंतर िे सतसथ का सनधाारण होता हं , उिी प्रकार िूर्ा और र्ंद्र के रासश अंतर के र्ोग करने िे त्रवष्कंभाफद र्ोग का सनधाारण होता हं । र्हां स्पष्ट फकर्ा जा रहा हं , की र्ोग ब्रह्मांि के फकिी प्रकार के तारा िमूह अथाात ग्रह नक्षि नहीं हं । वरन र्ंद्र एवं िूर्ा के अंतर का र्ोग सनधाारण की स्स्थती का नाम हं ।

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आकाश मं सनरर्न इत्र्ाफद त्रबंदओ ु ं िे िूर्ा और

अंतर शूडर् होता हं , तो प्रसतपदा सतसथ के िाथ ही स्स्थर

र्ंद्र को िंर्ुक्त रूप िे 13 अंश 20 कला अथाात 800

फकंस्तुन करण का शुरु होता हं । जब र्ंद्र गसत िूर्ा िे 6

कला

का पूरा भोग करने मं स्जतना िमर् लगता है ,

अंश आगे सनकल जाती हं , तब फकंस्तुन करण की

वह र्ोग कहलाता है । इि प्रकार के फकिी भी एक र्ोग

िमासप्त होती हं । अथाात िूर्ा और र्ंद्र मं 6 अंश का

का मान नक्षि की भांसत 800 कला होता हं ।

अंतर होने मं जो िमर् लगता हं , उिे फकंस्तुन करण

त्रवष्कंभाफद र्ोगं की कुल िंख्र्ा 27 हं ।

कहा जाता हं । इिी प्रकार क्रमशः 6-6 अंश के अंतर पर

र्ोग का दै सनक मान लगभग 60 घटी 13 पल होता है । िूर्ा और र्ंद्र की गसतर्ं की अिमानता के

करण बदल जाते हं ।

करण सतसथ का आधा भाग होता हं ।

कारण मध्र्म मान मं डर्ूनता एवं सधकता बनती हं । इन र्ोगं मं वैधसृ त एवं व्र्सतपात नामक र्ोगं को महापातक कहते हं ।

सतसथ के पूवााद्धा अथाात पहले आधे भाग मं एक करण, उिराद्धा अथाात दि ू रे आधे भाग का एक करण। इि प्रकार एक सतसथ मं 2 करण होते हं ।

वार और नक्षि के िंर्ोग िे तात्कासलक आनंदाफद

िूर्ा और र्डद्रमा के बीर् 6º अंश

का अडतर

र्ोग बनते हं । पौरास्णक ग्रथं मं इनकी िंख्र्ा 28 दशााई

होने िे एक करण होता हं । ज्र्ोसतष शास्त्रो के अनुिार

है । इडहं स्स्थर र्ोग भी कहते हं । इनकी गस्णतीर् फक्रर्ा

करण की कुल िंख्र्ा 11 होती हं । 11 र्रण को दो भागो

नहीं है । र्े र्ोग िूर्ोदर् िे अगले िूर्ोदर् तक रहते हं ।

मं बाटा गर्ा हं र्र करण और स्स्थर करण।

इन र्ोगं का सनधाारण वार त्रवशेष को सनफदा ष्ट नक्षि िे त्रवद्यमान नक्षि (असभस्जत नक्षि के िाथ) तक की गणना द्वारा होता है ।

र्र करण मं 1) बव 2) बालव 3) कौलव

करण: फकिी भी सतसथ का आधा भाग करण कहलाता हं । िूर्ा और र्ंद्र मं 60 अंश का अंतर होने मं स्जतना िमर् लगता उि अंतर िे करण का सनधाारण फकर्ा जाता हं । फकिी-फकिी पंर्ांगं मं करण का वणान केवल िूर्ोदर्कालीन िमर् िे फकर्ा जाता हं , तो फकिी-फकिी पंर्ांगं मं सतसथ की िंपूणा अवसध को दो िमान भाग करके त्रवशेश तौर पर करणं का सनधाारण कर दे ते हं । एक सतसथ मं दो करण होते हं । इनकी कुल िंख्र्ा ११ है । करण को दो भागं मं बांटा गर्ा हं र्र और स्स्थर। बव, बालव, कौलव, तैत्रिल, गर, वस्णज एवं त्रवत्रष्ट (भद्रा) र्र और फकंस्तुन, शकुसन, र्तुष्पद एवं नाग स्स्थर िंज्ञक करण हं । करण की शुरुआत स्स्थर करण अथाात फकंस्तुन िे होती हं जब भर्क्र मं िूर्ा और र्ंद्र के बीर् अंश का

4) तैसतल 5) गर 6) वस्णज 7) त्रवत्रष्ट का िमावेश फकर्ा गर्ा हं ।

स्स्थर करण मं 1) शकुसन

2) र्तुष्पद 3) नाग 4) फकस्तुध्न का िमावेश फकर्ा गर्ा हं । जब िूर्ा और र्डद्रमा की गसत मं 13º-20' का अडतर होने िे एक र्ोग होता हं । कुल समला कर 27 र्ोग होते हं आकाश की स्स्थसत िे इन र्ोगो का कोइ िमबडध नहीं हं । वैिे भी र्ोगो की आवश्र्कता त्रवशेष रुप िे र्ािा, मुहुता इत्र्ाफद प्रिंगं मं पिती हं ।

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एक ही स्थान परहोते हं अथाात 0º का अडतर होता हं तो

र्ोगो के नाम

अमावस्र्ा सतसथ कहते हं ।

भर्क्र का कुलमान 360º हं ,

1) त्रवष्कुमभ

15) वज्र

2) प्रीसत

16) सित्रद्ध

3) आर्ुष्मान

17) व्र्तीपात

4) िौभाग्र्

18) वरीर्ान

5) शोभन

19) पररध

उदाहरण स्वरुप:

6) असतगि

20) सशव

0º िे 12º तक शुक्ल पक्ष की प्रसतपदा 12º िे 24º तक

7) िुकमाा

21) सिद्ध

फद्वतीर् तथा क्रमशः सतसथ वृत्रद्ध होकर अंत मं 330º िे

8) घृसत

22) िाध्र्

360º तक कृ ष्ण पक्ष की अमावस्र्ा को अंत होती हं ।

9) शूल

23) शुभ

10) गंि

24) शुक्ल

एवं सतसथ का क्षर् भी होता हं । र्फद फकिी सतसथमं दो

11) वृत्रद्ध

25) ब्रह्म

बार िूर्ोदर् हो जाता हं , तो उिे सतसथ वृत्रद्ध कहलाती हं

12) ध्रुव

26) ऎडद्र

तथा स्जि सतसथ मं िूर्ोदर् न हो तो उिे सतसथका क्षर्

13) व्र्ाघात

27) वैधसृ त

हो जाना कहा जाता हं ।

14) हषाण

तो एक सतसथ= 360÷ 30=12º अथाात िूर्-ा र्डद्र मं 12º का अडतर पिने पर एक सतसथ होती हं ।

भारतीर् ज्र्ोसतष की परमपरा मं सतसथ की वृत्रद्ध

उदाहरण के सलए एक सतसथ िूर्ोदर् िे पूवा प्रारमभ होती हं तथा िंपूणा फदन रहकर अगले फदन

र्ाडद्र माि र्ाडद्र माि मं कुल 30 सतसथर्ाँ होती हं स्जनमं 15 सतसथर्ाँ शुक्ल पक्ष की और 15 कृ ष्ण पक्ष की होती हं । सतसथर्ाँ सनमन प्रकार की हं । 1) प्रसतपदा

9) नवमी

2) फद्वतीर्ा

10) दशमी

3) तृतीर्ा

11) एकादशी

4) र्तुथी

12) द्वादशी

5) पंर्मी

13) िर्ोदशी

6) षष्टी

14) र्तुदाशी

7) िप्तमी

15) पूस्णामा

8) अष्टमी

30) अमावस्र्ा

सतसथर्ाँ शुक्लपक्ष की प्रसतपदा िे सगनी जाती हं । पूस्णामा को 15 तथा अमावस्र्ा को 30 सतसथ कहते हं । स्जि फदन िूर्ा व र्डद्रमा मं 180º अंश का अडतर (दरू ी) होता हं अथाात िूर्ा व र्डद्र आमने-िामने हो जाते हं तो उिे पूस्णामा सतसथ कहा जाता हं और जब िुर्ा व र्डद्रमा

िूर्ोदर् के 2 घंटे पिात तक भी रहती हं तो र्ह सतसथ दो िूर्ोदर् को स्पशा कर लेती हं । इिसलए इि सतसथमं वृत्रद्ध हो जाती हं । इिी प्रकार एक अडर् सतसथ िूर्ोदर् के पिात प्रारमभ होती है तथा दि ू रे फदन िूर्ोदर् िे पहले िमाप्त हो जाती हं , तो र्ह सतसथ एक भी िूर्ोदर् को स्पशा नहीं करती इि कारण उिे क्षर् होने िे सतसथक्षर् कहा जाता हं ।

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कैलेण्िर र्ुग की उत्पत्रि कब हुई ?

 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी िाधारणतः कैलेण्िर का उपर्ोग फदनांकं (तारीखं)

तो उिके बाद वे फिलं की बोआई करते थे। बाढ़ आने

मफहने, वषा का फहिाब रखने के सलए फकर्ा जाता हं ।

के बाद जब नील नदी मं दब ु ारा बाढ़ आती थी तो उडहंने

कैलेण्िर का उद्गम कब हुवा और कैलेण्िर का उपर्ोग

दे खा फक उि दौरान र्ांद 12 बार उगता था। र्ानी, 12

मानव िमाज कब िे कर रहा हं र्ह दावे के िाथ कोई

र्ंद्र-माहं के बाद बाढ़ आती थी और तब वे फिल की

नहीं कह िकता! क्र्ोफक, जब पौरास्णक काल मं जब

बोआई करते थे। समस्र के कुछ त्रवद्वानो ने दे खा फक जब

आफद मानव वन-बीहिं और गुफाओं मं रहते थे तो, र्हं

बाढ़ आती है तो आिमान मं एक तेज र्मकदार तारा भी

दे ख कर अवश्र् आिर्ार्फकत हुए हंगे फक, प्रसतफदन

फदखाई दे ने लगता है । उडहंने गणना की तो पता लगा

िूरज उदर् होता हं और शाम को अस्त हो जाता हं , र्ांद

फक 365 फदन-रात के बाद फफर ऐिा ही होता है । फफर

सनकलता है और छूप जाता हं । कभी भर्ंकर गमी पिती

तारा र्मकने लगता है । समस्र के सनवासिर्ं ने 365 फदन

हं , तो कभी जोरं की वषाा होने लगती हं । और फफर,

के वषा को 30 फदन के 12 महीनं मं बांट फदर्ा। वषा के

कभी फहला कर रख दे ने वाली ठं ि पिने लगती हं। उिने

अंत मं पांर् फदन बर् गए। इि तरह समस्र के सनवासिर्ं

जरूर िोर्ा होगा फक प्रकृ सत मं िमर्-िमर् पर ऐिे

ने कैलंिर का आत्रवष्कार कर सलर्ा होगा।

बदलाव क्र्ं होते हं ? क्र्ं ऋतुएं आती-जाती हं ? जब आफद मानव ने खेती करना शुरू फकर्ा होगा

अभी तक हुए ऐसतहासिक शोध िे जुसलर्न और

ग्रेगोरीर्न कैलंिर

महत्वपूणा माने जाते हं । जुसलर्न

तब, उिने जमीन मं बीज बोर्े हंगे तो उिने दे खा होगा

कैलंिर

फक फिल उगती हं , बढ़ती है और िमर् के िाथ-िाथ

था। आगे र्ल कर पोप ग्रेगोरी तेरहवं ने इि कैलेण्ि मं

पक जाती है । फफर उि फिल की कटाई कर लेता होगा।

िुधार करके ग्रेगोरीर्न कैलंिर तैर्ार फकर्ा था।

पुनः बीज बोने का िमर् आने पर फफर िे बीज बोए

रोम के शािक जुसलर्ि िीजर ने तैर्ार फकर्ा

45 ईस्वी पूवा िे अथाात इि िमर् िे पहले तक

हंगे। इि तरह फिल की बोआई-कटाई का क्रम र्लता

रोम िाम्राज्र् मं रोमन कैलंिर

रहा होगा। इि क्रम िे शार्द उिने पहली बार इि बात

कैलंिर

का अंदाजा लगाना शुरू फकर्ा होगा फक फिल बोने के

रोमन कैलंिर

फकतने िमर् बाद फफर िे नई फिल के बीज बोने हं ।

मफहनो का फकर्ा गर्ा।

धीरे -धीरे आफद मानव नं इि तरह शार्द पहली बार पूरे वषा का फहिाब लगार्ा होगा।

प्रर्सलत था। रोमन

मं वषा का प्रारं भ 1 मार्ा िे होता था। प्रारं भ मं मं वषा 10 माह का होता था फफर उिे 12

जब रोमन कैलंिर

मं 10 माह होते थे तो उि मं

आफद काल िे ही फकिी

10 माह क्रमशः माफटा अि, एत्रप्रसलि, मेअि, जूसनअि,

भी तरह त्रवश्व की त्रवसभडन िभ्र्ताओं ने सनस्ित तौर पर

स्क्वंफटसलि, िैस्क्िफटसलि, िेप्टं बर, अक्टू बर, नवंबर तथा

अपने-अपने ढं ग िे िमर् का फहिाब लगार्ा होगा।

फदिंबर। रोमन कैलंिर

समस्रवािीर्ं के मत िे: अनुमासनक तौर पर एिा माना जाता हं की वषा का पहला फहिाब िबिे 6,000 वषा पहले समस्र के सनवासिर्ं ने लगार्ा था। हर िाल जब नील नदी मं बाढ़ आती थी

को 10 माह िे जब 2 माह समला

कर उिे 12 मफहनो का फकर्ा गर्ा तो उि मं 12 माह क्रमशः लाडर्ुआरीअि, फेब्रुआरीअि, माफटा अि, एत्रप्रसलि, मेअि,

जूसनअि,

स्क्वंफटसलि,

िैस्क्िफटसलि,

अक्टू बर, नमबबर तथा फदिबबर थे।

िेप्टं बर,

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रोमन कैलंिर

के 10 महीनं के वषा मं केवल

304 फदन होते थे। एिा माना जाता है फक रोम के िम्राट

पूवा मं िम्राट ऑगस्टि के नाम पर िेक्िफटसलि माह का नाम ‘अगस्त’ रख फदर्ा गर्ा।

‘नुमा पोस्मपसलअि’ ने फदिंबर और मार्ा महीनं के बीर्

माना जाता हं की जूसलर्न कैलंिर

के अनुशार

फरवरी और जनवरी माह जोिे । स्जििे वषा 354 र्ा 355

ईस्टर का त्र्ौहार और अडर् धासमाक सतसथर्ां िंबंसधत

फदनं का हो गर्ा। हर दो वषा बाद असधमाि

जोि कर

ऋतुओं मं िही िमर् पर नहीं आती थीं। स्जििे कैलंिर

366 फदन का वषा मान सलर्ा जाता था। िमर् के िाथ-

मं असतररक्त फदन जमा हो गए थे। पोप ग्रेगोरी 1572 िे

िाथ इिमं िुधार होते रहे ।

1585 तक तेरहवं पोप रहे । िन ् 1582 तक वनाल

स्जििे कैलंिर

की गणनाएं र्ंद्रमा के बजार्

इस्क्वनॉक्ि 10 फदन त्रपछि र्ुका था।

फदनं के आधार पर होने लगीं। पृथ्वी द्वारा िूर्ा की

पोप ग्रेगोरी तेरहवं ने जूसलर्न कैलंिर

की 10

पररक्रमा की गणना के आधार पर वषा मं फदनं की

फदनं की िुफट को िुधारने के सलए उि वषा 5 अक्टू बर

िंख्र्ा 365.25 हो गई। इि िवा अथाात ् एक र्ौथाई

की सतसथ को 15 अक्टू बर मानने का िुझाव फदर्ा।

उि िमर् रोम के शािक जुसलर्ि िीजर ने

फदए गए। उि िमर् लीप वषा शताब्दी के अंत मं रखा

फदन िे गणना मं बिा भ्रम पैदा होने लगा। रोमन कैलंिर

स्जिके फलस्वरुप जूसलर्न कैलंिर

मं िे 10 फदन घटा

मं त्रवशेष िुधार फकर्ा। ईस्वी पूवा 44 मं

गर्ा बशते वह 400 की िंख्र्ा िे त्रवभास्जत होता हो।

स्क्वंफटसलि माह का नाम बदल कर जूसलर्ि िीजर के

इिीसलए 1700, 1800 और 1900 लीप वषा नहीं थे

िममान मं ‘जुलाई’ रख फदर्ा गर्ा। जुसलर्ि िीजर ने

जबफक वषा 2000 लीप वषा था। इि िंशोधन िे ग्रेगोरीर्

कैलंिर

कैलंिर

को िुधारने मं समस्र के खगोलत्रवद िोसिजेनीज

की मदद ली। फफर वषा 1 जनवरी िे शुरू फकर्ा गर्ा। स्जि मं हर र्ौथे वषा को छोि कर प्रत्र्ेक वषा 365 फदन

की शुरूआत हुई स्जिे आज त्रवश्व के असधकांश

दे शं मं अपनार्ा जा रहा है ।

इिके बावजूद त्रवश्व के कई दे श िमर् की गणना

का होगा। र्ौथा वषा लीप वषा होगा और उिमं 366 फदन

के सलए अभी भी अपने परं परागत पंर्ांग र्ा कैलंिर

हंगे। फरवरी को छोि कर प्रत्र्ेक माह मं 31 र्ा 30

उपर्ोग कर रहे हं । फहडद ,ु र्ीनी, इस्लामी र्ा फहजरी और

फदन हंगे। फरवरी मं 28 फदन हंगे लेफकन लीप वषा मं फरवरी मं 29 फदन माने जाएंग।े अनुमान है फक 8 ईस्वी

र्हूदी कैलंिर इिके प्रमुख उदाहरण हं ।

दग ु ाा बीिा र्ंि

शास्त्रोोक्त मत के अनुशार दग ु ाा बीिा र्ंि दभ ु ााग्र् को दरू कर व्र्त्रक्त के िोर्े हुवे भाग्र् को जगाने वाला माना गर्ा हं । दग ु ाा बीिा र्ंि द्वारा व्र्त्रक्त को जीवन मं धन िे िंबंसधत िंस्र्ाओं मं लाभ प्राप्त होता हं । जो व्र्त्रक्त

आसथाक िमस्र्ािे परे शान हं, वह व्र्त्रक्त र्फद नवरािं मं प्राण प्रसतत्रष्ठत फकर्ा गर्ा दग ु ाा बीिा र्ंि को स्थासप्त कर लेता हं , तो उिकी धन, रोजगार एवं व्र्विार् िे िंबंधी िभी िमस्र्ं का शीघ्र ही अंत होने लगता हं । नवराि के फदनो मं प्राण प्रसतत्रष्ठत दग ु ाा बीिा र्ंि को अपने घर-दक ु ान-ओफफि-फैक्टरी मं स्थात्रपत करने िे त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं , व्र्त्रक्त शीघ्र ही अपने व्र्ापार मं वृत्रद्ध एवं अपनी आसथाक स्स्थती मं िुधार होता दे खंगे। िंपूणा प्राण प्रसतत्रष्ठत एवं पूणा र्ैतडर् दग ु ाा बीिा र्ंि को शुभ मुहूता मं अपने घर-दक ु ान-ओफफि मं स्थात्रपत करने िे त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं ।

मूल्र्: Rs.550 िे Rs.8200 तक

का

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पौरास्णक काल मं पंर्ांग गणना कैिे होती थी?

 सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी र्जुवेद काल मं भारतीर्ं ने मािं के 12 नाम क्रमशः

वेदांग ज्र्ोसतष के अनुिार पाँर् वषं का एक र्ुग माना

मधु, माधव, शुक्र, शुसर्, नभ, नभस्र्, इष, ऊजा, िह,

गर्ा है , स्जिमं 1830 माध्र् िावन फदन, 62 र्ांद्र माि,

िहस्र, तप तथा तपस्र् रखे थे।

1860 सतसथर्ाँ तथा 67 नाक्षि माि होते हं ।

मधुि माधवि शुक्रि शुसर्ि

नभि नभस्र्िेषिोजाि िहि

िहस्र्ि तपि तपस्र्िोपर्ामगृहीतोसि िहं िवोस्र्हं हस्पत्र्ार् त्वा॥

(सतत्रिर िंफहता 1.4.14)

र्जुवेद के ऋत्रष थे वैशमपार्न के सशष्र् के सशष्र् सतत्रिर िंफहता (उपसनषर्) मं िंवत्िर के मािं के 13 मफहनो के नाम

क्रमशः– अरुण, अरुणरज, पुण्िरीक,

त्रवश्वस्जत ्, असभस्जत ्, आद्रा , त्रपडवमान ्, अडनवान ्, रिवान ्, इरावान ्, िवौषध, िंभर, महस्वान ् थे।

बाद मं र्ही नाम पूस्णामा के फदन र्ंद्रमा के नक्षि

के आधार पर र्ैि, वैशाख, ज्र्ेष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद, आस्श्वन, कासताक, मागाशीषा, पौष, माघ तथा फाल्गुन हो गए। र्जुवेद मं नक्षिं की पूरी िंख्र्ा तथा उनकी असधष्टािी दे वताओं के नाम का उल्लेख फकर्ा गर्ा हं । र्जुवेद मं सतसथ तथा पक्षं, उिर तथा दस्क्षण अर्न और त्रवषुव फदन का भी उल्लेख समलता है । त्रवषुव फदन वह है स्जि फदन िूर्ा त्रवषुवत ् तथा क्रांसतवृि के िंपात मं रहता है ।

त्रवद्वानो के मतानुिार र्जुवेद कासलक आर्ं को गुरु, शुक्र तथा राहु केतु का ज्ञान था। र्जुवेद के रर्नाकाल के त्रवषर् मं त्रवद्वानं मं मतभेद होने के उपरांत भी र्फद हम पािात्र् पक्षपाती, कीथ का मत भी लं तो र्जुवेद की रर्ना 600 वषा ईिा पूवा हो र्ुकी थी। इिके पिात ् वेदांग ज्र्ोसतष का काल आता है , जो ई. पू. 400 वषं िे लेकर ई. पू. 1,400 वषा तक है ।

र्ुग के पाँर् वषं के नाम: 

िंवत्िर,



पररवत्िर,



इदावत्िर,



अनुवत्िर तथा



इद्ववत्िर।

इिके अनुिार सतसथ तथा र्ांद्र नक्षि की गणना होती थी। इिके अनुिार मािं के माध्र् िावन फदनं की गणना भी की गई है । वेदांग ज्र्ासतष मं महत्वपूणा जानकारी समलती है वह र्ुग की कल्पना, स्जिमं िूर्ा और र्ंद्रमा के प्रत्र्क्ष वेधं के आधार पर मध्र्म गसत ज्ञात करके इष्ट सतसथ आफद सनकाली गई है । आगे आनेवाले सिद्धांत ज्र्ोसतष के ग्रंथं मं इिी प्रणाली को अपनाकर मध्र्म ग्रह सनकाले गए हं । वेदांग ज्र्ोसतष और सिद्धांत ज्र्ोसतष काल के भीतर कोई ज्र्ोसतष काल के भीतर कोई ज्र्ोसतष गणना का ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता। फकंतु इि बीर् के िाफहत्र् मं ऐिे प्रमाण समलते हं स्जनिे र्ह स्पष्ट है फक ज्र्ोसतष के ज्ञान मं वृत्रद्ध अवश्र् होती रही है , उदाहरण के सलर्े, महाभारत मं कई स्थानं पर ग्रहं की स्स्थसत, ग्रहर्ुसत, ग्रहर्ुद्ध आफद का वणान है । इििे इतना स्पष्ट है फक महाभारत के िमर् मं भारतवािी ग्रहं के वेध तथा उनकी स्स्थसत िे पररसर्त थे। सिद्धांत ज्र्ोसतष प्रणाली िे सलखा हुआ प्रथम

पौरुष ग्रंथ आर्ाभट प्रथम की आर्ाभटीर्म ् (शक िं. 421) है । तत्पिात ् वराहसमफहर (शक िं.427) द्वारा

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िंपाफदत

सिद्धांतपंसर्का

है ,

स्जिमं

पेतामह,

वासिष्ठ,

रोमक, पुसलश तथा िूर्सा िद्धांतं का िंग्रह है । इििे र्ह तो पता र्लता है फक वराहसमफहर िे पूवा र्े सिद्धांतग्रंथ प्रर्सलत थे, फकंतु इनके सनमााणकाल का कोई सनदे श नहीं

मधुि माधवि वािस्डतकावृतू शुक्रि शुसर्ि ग्रैष्मावृतू

नभि नभस्र्ि वात्रषाकावृतू इषिोजाि शारदावृतू िहि िहस्र्ि है मस्डतकावृतू तपि तपस्र्ि शैसशरावृतू।

(सतत्रिर िंफहता 4.4.11)

है । िामाडर्त: भारतीर् ज्र्ोसतष ग्रंथकारं ने इडहं अद्भत ु

अथाात: मधु और माधव विंत ऋतु, शुक्र और शुसर्

को सनकाला है, और र्े परस्पर सभडन हं । इतना सनस्ित

शरद् ऋतु, िहि और िहस्र् हे मंत ऋतु एवं तपि और

माना हं । आधुसनक त्रवद्वानं ने अनुमानं िे इनके कालं है फक र्े वेदांग ज्र्ोसतष तथा वराहसमफहर के िमर् के भीतर प्रर्सलत हो र्ुके थे। इिके बाद सलखे गए सिद्धांतग्रंथं मं मुख्र् हं : ब्रह्मगुप्त (शक िं. 520) का ब्रह्मसिद्धांत, लल्ल (शक िं. 560) का सशष्र्धीवृत्रद्धद, श्रीपसत (शक िं. 961) का सिद्धांतशेखर, भास्करार्ार्ा (शक िं. 1036) का सिद्धांत सशरोमस्ण, गणेश (1420 शक िं.) का ग्रहलाघव तथा कमलाकर भट्ट (शक िं.

ग्रीष्म ऋतु, नभि ् और नभस्र् वषाा ऋतु, इष और उजा तपस्र् सशसशर ऋतुवाले माि हं ।

तैत्रिरीर् ब्राह्मण के अनुशार:

तस्र् ते विंतः सशरः। ग्रीष्मो दस्क्षणः पक्षः। वषा पुच्छम ्। शरदि ु रः पक्ष। हे मंतो मध्र्म ्।

(तैसतर ब्राह्मण 3.10.4.1)

अथाात: वषा का सिर विंत, दाफहना पंख ग्रीष्म, बार्ां पंख

1530) का सिद्धांत-तत्व-त्रववेक।

शरद, पूंछ वषाा और हे मंत को मध्र् भाग कहा गर्ा हं ।

प्रश्नव्र्ाकरणांग मं बारह मफहनो की बारह पूणम ा ािी और

पक्षी के रुप मं माना गर्ा हं और ऋतुओं को उिका

बारह अमावस्र्ाओं के नाम और उनके फल इि प्रकार िे बतार्े हं ।

ता कहं ते पुण्णमािी आफहतेसत वदे ज्जा तत्थ खलु इमातो

इि का तात्पर्ा हं की तैत्रिरीर् ब्राह्मण काल मं वषा को त्रवसभडन अंग बतलार्ा हं । इिी प्रकार ऋग्वेद मं ऋतु शब्द का प्रर्ोग कई

बारि पुण्णमािीओ बारि अमाविाओ पण्णिाओ तं जहा

स्थान पर फकर्ा गर्ा हं । ऋतु शब्द का प्रर्ोग वहां वषा

माही, फग्गुणी, र्ेिी, त्रविाही, जेट्ठामुला, अिाढी॥

गई हं । उिमं हे मंत और सशसशर इन दोनं ऋतुओं को

आस्श्वन की अिोई, कासताक की, कृ त्रिका, मागाशीषा की

द्वादशमािाः पच्र्तावो हे मंतसशसशरर्ोः िमािेन।

िंत्रवट्ठी, पोट्ठवती, आिोई, कत्रिर्ा, मगसिरा, पोिी,

अथाात: श्रावण माि की श्रत्रवष्ठा, भाद्रपद् की पौष्ठवती,

के रुप मं हुवा हं । ऎतरे र् ब्राह्मण मं पांर् ही ऋतु बतार्ी एक ही रुप मं माना गर्ा हं ।

(ऎतरे र् ब्राह्मण 1.1)

मृगसशरा, पौष की पौषी, माघ की माघी, फाल्गुन की फाल्गुनी, र्ैि की र्ैिी, वैशाख की वैशाखी, ज्र्ेष्ठ की मूली एवं अषाढ़ की आषाढ़ी पूस्णामा बतार्ी गर्ी हं । कहीं-कहीं पूणम ा ासिर्ं के नामं के आधारप मािं के नाम

त्रवषुवद् वृि का महत्व: त्रवषुवद् वृि मं एक िमगसत िे र्लनेवाले मध्र्म िूर्ा

भी सलए गए हं ।

(लंकोदर्ािडन) के एक िूर्ोदर् िे दि ू रे िूर्ोदर् तक

ऋतु त्रवर्ार:

अंग्रेजी के सित्रवल िे जैिा है । एक िावन फदन मं 60

ई.पू. 8000 मं विडत ऋतु ही प्रारं सभक ऋतु मानी जाती थी, लेफकन ई.पू. 500 मं प्रारं सभक ऋतु वषाा ऋतु मानी जाने लगी थी। तैत्रिरीर् िंफहता मं कहा गर्ा हं ।

एक मध्र्म िावन फदन होता है । र्ह वतामान कासलक घटी; 1 घटी 24 समसनट िाठ पल; 1 पल 24 िंकेि 60 त्रवपल तथा 2 1/2 त्रवपल 1 िंकंि होते हं । िूर्ा के फकिी

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स्स्थर त्रबंद ु (नक्षि) के िापेक्ष पृथ्वी की पररक्रमा के काल

को िौर वषा कहते हं । र्ह स्स्थर त्रबंद ु मेषाफद है । ईिा के पाँर्वे शतक के आिडन तक र्ह त्रबंद ु कांसतवृि तथा त्रवषुवत ् के िंपात मं था।

अब र्ह उि स्थान िे लगभग 23 पस्िम हट

गर्ा है , स्जिे अर्नांश कहते हं । अर्नगसत त्रवसभडन ग्रंथं मं एक िी नहीं है । र्ह लगभग प्रसत वषा 1 कला मानी गई है । वतामान िूक्ष्म अर्नगसत 50.2 त्रवकला है । सिद्धांतग्रथं का वषामान 365 फदo 15 घo 31 पo 31 त्रवo 24 प्रसत त्रवo है । र्ह वास्तव मान िे 8।34।37 पलाफद असधक है । इतने िमर् मं िूर्ा की गसत 8.27 होती है । इि प्रकार हमारे वषामान के कारण ही अर्नगसत की असधक कल्पना है । वषं की गणना के सलर्े िौर वषा का प्रर्ोग फकर्ा जाता है । मािगणना के सलर्े र्ांद्र मािं का। िूर्ा और र्ंद्रमा जब राश्र्ाफद मं िमान होते हं तब वह अमांतकाल तथा जब 6 रासश के अंतर पर होते हं तब वह पूस्णामांतकाल कहलाता है । एक अमांत िे दि ू रे अमांत तक एक र्ांद्र माि

होता है , फकंतु शता र्ह है फक उि िमर् मं िूर्ा एक

रासश िे दि ू री रासश मं अवश्र् आ जार्। स्जि र्ांद्र माि मं िूर्ा की िंक्रांसत नहीं पिती वह असधमाि कहलाता है । ऐिे वषा मं 12 के स्थान पर 13 माि हो जाते हं । इिी प्रकार र्फद फकिी र्ांद्र माि मं दो िंक्रांसतर्ाँ

पि जार्ँ तो एक माि का क्षर् हो जाएगा। इि प्रकार

मापं के र्ांद्र रहने पर भी र्ह प्रणाली िौर प्रणाली िे िंबंद्ध है । र्ांद्र फदन की इकाई को सतसथ कहते हं । र्ह िूर्ा और र्ंद्र के अंतर के 12वं भाग के बराबर होती है । हमारे धासमाक फदन सतसथर्ं िे िंबद्ध है 1 र्ंद्रमा स्जि नक्षि मं रहता है उिे र्ांद्र नक्षि कहते हं । असत प्रार्ीन काल मं वार के स्थान पर र्ांद्र नक्षिं का प्रर्ोग होता था। काल के बिे मानं को व्र्क्त करने के सलर्े र्ुग प्रणाली अपनाई जाती है ।

र्ुग प्रणाली इि प्रकार है : 

कृ तर्ुग (ित्र्र्ुग) 17,28,000 वषा



द्वापर 12,96,000 वषा



िेता 8, 64,000 वषा



कसल 4,32,000 वषा



र्ोग महार्ुग 43,20,000 वषा



कल्प 1000 महार्ुग 4,32,00,00,000 वषा

िूर्ा सिद्धांत मं बताए आँकिं के अनुिार कसलर्ुग का आरं भ 17 फरवरी, 3102 ईo पूo को हुआ था। र्ुग िे अहगाण (फदनिमूहं) की गणना प्रणाली, जूसलर्न िे नंबर के फदनं के िमान, भूत और भत्रवष्र् की िभी सतसथर्ं की गणना मं िहार्क हो िकती है ।

गस्णत ज्र्ोसतष के ग्रंथं के दो वगीकरण हं : सिद्धांतग्रंथ

तथा

करणग्रंथ।

सिद्धांतग्रंथ

र्ुगाफद

अथवा कल्पाफद पद्धसत िे तथा करणग्रंथ फकिी शक के आरं भ की गणनापद्धसत िे सलखे गए हं । गस्णत ज्र्ोसतष ग्रंथं के मुख्र् प्रसतपाद्य त्रवषर् है : मध्र्म ग्रहं की गणना, स्पष्ट ग्रहं की गणना, फदक् , दे श तथा काल, िूर्ा और र्ंद्रगहण, ग्रहर्ुसत, ग्रहच्छार्ा, िूर्ा िांसनध्र् िे ग्रहं का उदर्ास्त, र्ंद्रमा की श्रृग ं ोडनसत, पातत्रववेर्न तथा वेधर्ंिं आफद की त्रववेर्ना की गई हं ।

पोरास्णक शास्त्रों मं उल्लेख हं :

िप्त र् वै शतासन त्रवशसति िंवत्िरस्र्ाहोरार्र्ः।

अथाात: वषा मं िात िौ बीि फदन और रात होते हं ।

जानकारं का कथन हं की इश्वर द्वारा स्थात्रपत काल के पफहर्े का बारह माि के रुप मं बारह अरं वाला र्क्र सनरडतर िूर्ा के र्ारं ओर घूम रहा है । इिमं फदन-रात के जोिे रूप पुि िात िौ बीि त्रवद्यमान रहते हं , अथाात ् एक वषा मं बारह महीने होते हं और 360 फदन तथा

360 रातं समलकर 720 अहोराि सनरडतर गसत करते रहते हं ।

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वैफदक पंर्ांग का इसतहाि?

 सर्ंतन जोशी भारतीर् ज्र्ोसतष ग्रहनक्षिं की गणना की अत्र्ंत

अथाातः िमग्र वेदं का मूल तात्पर्ा र्ज्ञ कमो िे है , र्ज्ञं

शूक्ष्म पद्धसत है स्जिका भारत मं उद्गम एवं त्रवकाि हुवा

का िंपादन शुभ िमर् मं होता है । इि सलए शुभ िमर्

हं । आजकल भी फहडद ु िंस्कृ सत मं इिी पद्धसत िे पंर्ांग

र्ा अशुभ िमर् का ज्ञान ज्र्ोसतष शास्त्रो द्वारा ही िंभव

बनाएं जाते हं । स्जनके आधार पर दे श भर मं धासमाक

होने िे ज्र्ोसतष शास्त्रो का नाम वेदांग ज्र्ोसतष कहा

कार्ं िंपडन फकए जाते तथा त्रवसभडन व्रत-पवा-त्र्ौहार

जाता है । वेद रूप को वेद पुरुष के मुख्र् छ: अंगं मं

मनाए जाते हं । भारतीर् िंस्कृ सत मं वतामान िमर् मं

व्र्ाकरण शास्त्रो वेद का मुख ज्र्ोसतष शास्त्रो दोनो नेि

असधकांश पंर्ांग िूर्सा िद्धांत, ग्रह िारस्णर्ं तथा ग्रहलाघव

सनरुक्त दोनो कान कल्प शास्त्रो दोनो हाथ सशक्षा शास्त्रो

की त्रवसध िे प्रस्तुत फकए जाते हं । कुछ ऐिे भी पंर्ांग

वेद की नासिका और छडद शास्त्रो वेद पुरुष के दोनो पैर

बनते हं अडर् पद्धसत के आधार पर प्रस्तुत फकर्ा जाता

कहे गर्े हं । लेफकन पुरुष रूप मं वेदशास्त्रो का ज्र्ोसतष

हं , प्रार्: इडहं भारतीर् सनरर्ण पद्धसत के अनुकूल बना

शास्त्रो नेि िमान स्थानीर् होने िे ज्र्ोसतष शास्त्रो ही वेद

फदर्ा जाता हं ।

का मुख्र् अंग हो जाता है ।हाथ पैर कान आफद िमस्त

फहडद ु पंर्ांग अथाात फहडद ु कैलंिर

के बारे मं

इस्डदर्ं की स्स्थसत के उपरांत नेि स्थानीर् ज्र्ोसतष

त्रवस्तार िे जानते हं । हमारे दे श मं लगभग 5,000 वषा

शास्त्रो की अनसभज्ञता फकिी की नही होती इिसलए

पूवा िे ही ग्रह, नक्षि, आफद के आधार पार काल अथाात

िवाशास्त्रों के अध्र्र्न की ििा होते हुवे भी ज्र्ोसतष

िमर् की िूक्ष्म गणना की जाती थी। उि काल मं हमारं

शास्त्रो मं ज्ञान की पररपक्वता िे वेदोक्त धमा और कमा

त्रवद्वान आर्ार्ं को इि बात का ज्ञान हो र्ुका था की

नीसत भूत-भत्रवष्र्ाफद ज्ञान के िाथ सनस्ित रूप िे धमा

एक र्ंद्र-माि मं ठीक 30 फदन नहीं होते, इि सलए एक

अथा काम और मोक्ष की प्रासप्त होती है ।

र्ांद्र वषा मं 360 िे कुछ कम फदन होते हं ।

अतः र्ज्ञं के त्रवसशष्ट फल प्राप्त करने के सलर्े

आज के आधुसनक र्ुग मं भारतीर् पंर्ांग के

र्ज्ञं का सनधााररत िमर् पर होना आवश्र्क था इिसलर्े

त्रवषर् मं वैज्ञासनक मत हं , की भारत का प्रार्ीनतम

वैफदककाल िे ही भारतीर्ं ने वेधं द्वारा िूर्ा और र्ंद्रमा

उपलब्ध िाफहत्र् वैफदक िाफहत्र् हं । त्रवद्वानो के का मत

की स्स्थसतर्ं िे काल का ज्ञान प्राप्त करना शुरू कर

हं की वैफदक कालीन भारतीर् ऋत्रष-मुसन र्ज्ञ फकर्ा करते

सलर्ा था। भारतीर् पंर्ांग िुधारिसमसत के आख्र्ा मं

थे।

फदए गए त्रववरण के अनुिार ऋग्वेद काल मं भारतीर्

इि त्रवषर् मं शास्त्रोोक्त मत इि प्रकार हं : -

वेदास्तावद र्ज्ञकमाप्रवृता: र्ज्ञा प्रोक्तास्ते तु कालाश्रर्ेण,

शास्त्रोादस्मात काबोधो र्त: स्र्ाद वेदांगत्वम ् ज्र्ोसतषस्र्ोक्तमस्िात ्।

आर्ार्ं ने र्ांद्र िौर वषा गणना पद्धसत का ज्ञान प्राप्त कर सलर्ा था। उि काल िे वे 12 र्ांद्र माि तथा र्ांद्र मािं को िौर वषा िे िामंजस्र् स्थात्रपत करनेवाले असधमाि

शब्दशास्त्रोम ् मुखम ् ज्र्ोसतषम ् र्क्षुषी श्रोिमुक्तम ् सनरुक्तम ् कल्प: करौ,

को भी जानते थे। फदन को र्ंद्रमा के नक्षि िे दशााते थे।

वेदर्क्षु: फकलेदम ् स्मृतम ् ज्र्ौसतषम ् मुख्र्ता र्ाडगमध्र्ेस्र् तेनोच्र्ते ,

था। वषा के फदनं की िंख्र्ा 366 थी, स्जनमं िे र्ांद्र वषा

र्ा तु सशक्षास्र् वेदस्र् नासिका पादपद्मद्वर्म ् छडदम ् आद्यैबध ुा :ै ॥ िंर्त ु ोपीतरै : कणानािाफदसभिक्षुषागंन हीनो न फकंसर्त कर:।

तस्मात फद्वजैध्र्ार्नीर्मेतत पुण्र्म ् रहस्र्म ् परमडर् तत्वम,

र्ो ज्र्ोसतषाम ् वेत्रि नर: ि िमर्क धमााथक ा ामान लभते र्शि॥

उडहं र्ंद्रगसतर्ं के ज्ञान उपर्ोगी र्ंद्र रासशर्क्र का ज्ञान के सलर्े 12 फदन घटा दे ते थे। जानकारो के अनुिार

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ऋग्वेद कालीन आर्ं का िमर् कम िे कम 1,200 वषा

का

ईिा पूवा अवश्र् होना र्ाफहए।

प्रकासशत हुए। ‘प्रार्ीन एवं मध्र्र्ुगीन भारत मं काल

अडर् त्रवद्वानो का कथ हं , फहडद ु ज्र्ोसतष मं एक

िूर्ोदर् िे दि ू रे िूर्ोदर् तक का िमर् िावन फदन कहलाता हं । उि िमर् उडहे िावन माि और र्ांद्र माि

िुधार’,

‘त्रवश्व

कैलंिर

र्ोजना’

इत्र्ाफद

लेख

सनधाारण की त्रवसभडन त्रवसधर्ां तथा शक िंवत ् की

उत्पत्रि’, ‘शक िंवत ् की शुरुआत’ इत्र्ाफद लेखो पर व्र्ाख्र्ान फदर्ा। इन प्रर्ािं के पररणामस्वरूप 1952 मं

का भी त्रवशेष ज्ञान प्राप्त हो र्ुका था। िमर् के िाथ

वैज्ञासनक एवं औद्योसगक अनुिंधान पररषद् ने एक कैलंिर

उडहं नक्षि और फफर सतसथ का ज्ञान प्राप्त हुआ।

िुधार िसमसत गफठत की। िसमसत को दे श के त्रवसभडन

वषा पूवा तक सतसथ और नक्षि, िमर् के इन दो अंगं का

िटीक वैज्ञासनक िुझाव दे ने की स्जममेदारी िंपी गई

ही ज्ञान था। उिके बाद करण, र्ोग और वार का ज्ञान

ताफक पूरे दे श मं एक िमान नागररक कैलंिर

लागू

प्राप्त हुआ होगा! स्जिके बाद सतसथ, नक्षि, वार, करण

फकर्ा जा िके। प्रो. मेघनाद िाहा इि कैलंिर

िुधार

और र्ोग, िमर् के इन पांर् अंगं िे ‘पंर्ांग’ अथाात

िसमसत के अध्र्क्ष सनर्ुक्त फकए गए। िसमसत के प्रमुख

कैलंिर का त्रवकाि हुआ होगा।

िदस्र् मं ए.िी.बनजी, के.के.दफ्तरी, जे.एि.करं िीकर,

और धासमाक सतसथर्ं की गणना के सलए दे श के त्रवसभडन

थे।

एिा अनुमान है की शक िंवत ् िे लगभग 1400

अपनी िभ्र्ता एवं िंस्कृ सत की आवश्र्कताओं

प्रांतं मं प्रर्सलत पंर्ांगं का अध्र्र्न करके िरकार को

गोरख प्रिाद, आर.वी.वैद्य तथा एन.िी. लाफहिी िासमल

प्रांतं मं कई प्रकार के पंर्ांग बनाए गए स्जनमं िे अनेक

पंर्ांगं मं िबिे प्रमुख िुफट थी वषा मं फदन की

पंर्ांग आज भी प्रर्सलत हं । लेफकन, प्रशािसनक तथा

असधकता। पंर्ांग प्रार्ीन ‘िूर्ा सिद्धांत’ पर आधाररत होने

मानव िमाज िे िंबंधी त्रवशेष उद्दे श्र् के सलए िंशोसधत

के कारण वषा के कुल फदन 365.258756 फदन होते है ।

और मानक भारतीर् राष्ट्रीर् कैलंिर

वषा की 0.258756 र्ह असधकता वैज्ञासनक गणना पर

का प्रर्ोग फकर्ा

जाता है ।

आधाररत िौर वषा िे .01656 फदन असधक हं । प्रार्ीन

भारतीर् राष्ट्रीर् कैलंिर का सनमााण मं प्रोफेिर मेघनाद िाहा जैिे िमत्रपात वैज्ञासनक के ितत प्रर्ािं का फल माना जाता है । क्र्ोफक, कैलंिर

सिद्धांत अपनाने के कारण ईस्वी िन ् 500 िे वषा 23.2 फदन आगे बढ़ र्ुका है । भारतीर् िौर वषा ‘विंत त्रवषुव’

िुधार का

औितन 21 मार्ा के अगले फदन मतलब 22 मार्ा िे शुरु

िामास्जक, िांस्कृ सतक और धासमाक त्रवश्वािं पर िीधा

होने के बजार् 13 र्ा 14 अप्रैल िे शुरु होता है । इिी

मं वैज्ञासनक िुधार का बीिा उठार्ा और हमारे कैलंिर

‘जुसलर्न कैलंिर ’ मं भी वषा मं कुल 365.25 फदन

को वैज्ञासनक और प्रामास्णक आधार प्रदान फकर्ा।

सनधााररत फकए गए थे, स्जिके कारण 1582 ईस्वी आते-

प्रभाव पिने का खतरा मोल लेते हुए भी उडहंने कैलंिर

प्रोफेिर मेघनाद िाहा ने भारतीर् पंर्ांगं और कैलंिर

िुधार की आवश्र्कता पर त्रवसभडन प्रसिद्ध

तौर पर र्ूरोप मं जूसलर्ि िीजर द्वारा शुरू फकए गए

आते 10 फदन की िुफट हो र्ुकी थी। तब पोप ग्रेगरी तेरहवं ने कैलंिर

िुधार के सलए आदे श दे फदर्ा फक उि

त्रवज्ञान पत्रिकाओं मं लेख सलख कर इि त्रवषर् की ओर

वषा 5 अक्टू बर को 15 अक्टू बर घोत्रषत कर फदर्ा जाए।

िरकार और आम लोगं का ध्र्ान आकत्रषात फकर्ा।

लीप वषा भी स्वीकार कर सलर्ा गर्ा। लेफकन, भारत मं

कैलंिर िे िंबंसधत उनके कुछ प्रमुख लेख इि प्रकार थेः

िफदर्ं िे पंर्ांग र्ानी कैलंिर

कैलंिर

िंशोधन नहीं हुआ था।

(पंर्ांग) िुधार की आवश्र्कता, ‘कालांतर मं

िंशोसधत कैलंिर

तथा ग्रेगोरीर् कैलंिर ‘भारतीर् कैलंिर

मं इि प्रकार का कोई

मार्ा 2012

20

कैलंिर

िुधार िसमसत के िदस्र्ं ने त्रवश्व कैलंिर

र्ोजना का भी िुझाव फदर्ा और 1954 मं जेनेवा मं आर्ोस्जत र्ूनेस्को के 18वं असधवेशन मं ‘त्रवश्व कैलंिर ’ िुधार के सलए प्रस्ताव भेजा। कैलंिर 1955

मं

अपनी

ररपोटा

प्रकासशत

श्रावण,

भाद्र,

कासताक, अग्रहार्ण, पौष, माघ और फाल्गुन।

आस्श्वन,

िसमसत ने र्ह भी सिफाररशं की फक वषा का

प्रत्र्ेक माि मं 31 फदन और आस्श्वन िे फाल्गुन तक

मं

की।

शक िंवत ् का प्रर्ोग फकर्ा जाना र्ाफहए। स्जि कारण

इिकी गणनाएं शक िंवत ् िे की जाती हं । शक िंवत ् की प्रथम सतसथ ईस्वी िन ् 79 के विंत त्रवषुव िे प्रारं भ

मं शक िंवत ् 1879

(अठारह िौ उनािी) के र्ैि माि की प्रथम सतसथ को गर्ा हं , जो ग्रेगोरीर् कैलंिर

की गणना

के अनुिार 22 मार्ा ईस्वी िन ् 1957 है । र्ानी, हमारा िंशोसधत राष्ट्रीर् कैलंिर

आषाढ़,

के सलए महत्वपूणा

िुझाव फदए। इन िुझावं के अनुिार राष्ट्रीर् कैलंिर

आधार माना

ज्र्ेष्ठ,

प्रारं भ विंत त्रवषुव के अगले फदन िे होना र्ाफहए। कैलंिर

ने

होती हं । हमारे राष्ट्रीर् कैलंिर

वैिाख,

िुधार िसमसत ने िसमसत

प्रशािसनक तथा नागररक कैलंिर

र्ैि,

22 मार्ा 1957 िे शुरू होता है ।

िुधार िसमसत ने िुझाव फदर्ा फक वषा मं 365 फदन तथा लीप वषा मं 366 फदन हंगे। लीप वषा की पररभाषा दे ते

हुए िुझाव फदर्ा गर्ा फक शक िंवत ् मं 78 जोिने पर जो िंख्र्ा समले वह अगर 4 िे त्रवभास्जत हो जाए तो

वह लीप वषा होगा। लेफकन, अगर वषा 100 का गुणज तो

है लेफकन 400 का गुणज नहीं है तो वह लीप वषा नहीं

माना जाएगा। राष्ट्रीर् परं परागत भारतीर् माि 12 हं :

मं र्ैि माि वषा का प्रथम माि होगा। र्ैि िे भाद्र तक प्रत्र्ेक माि मं 30 फदन हंगे। लीप वषा मं, र्ैि माि मं 31 फदन हंगे अडर्था िामाडर् वषं मं 30 फदन ही रहं गे।

लीप वषा मं र्ैि माि की प्रथम सतसथ 22 मार्ा के बजार् 21 मार्ा होगी। िसमसत ने कहा फक जो उत्िव और अडर्

महत्वपूणा सतसथर्ां 1400 वषा पहले स्जन ऋतुओं मं मनाई जाती थीं, वे 23 फदन पीछे हट र्ुकी हं । फफर भी धासमाक उत्िवं की सतसथर्ां परं परागत पंर्ांगं िे ही तर्

की जा िकती हं । िसमसत ने धासमाक पंर्ांगं के सलए भी फदशा सनदे श फदए। र्े पंर्ांग िूर्ा और र्ंद्रमा की गसतर्ं

की गणनाओं के आधार पर तैर्ार फकए जाते हं । भारतीर्

मौिम त्रवज्ञान त्रवभाग प्रसत वषा भारतीर् खगोल पंर्ांग प्रकासशत करता है । छुस्ट्टर्ं की सतसथर्ं की गणना इिी के आधार पर की जाती है । हमारे राष्ट्रीर् कैलंिर वषा त्रवश्व भर मं प्रर्सलत ग्रेगोरी कैलंिर ग्रेगोरीर् कैलंिर

के लीप

के िमान हं ।

मं 21 मार्ा की सतसथ विंत त्रवषुव र्ानी

वनाल इस्क्वनॉक्ि मानी गई है ।

मंि सिद्ध मूंगा गणेश मूंगा गणेश को त्रवध्नेश्वर और सित्रद्ध त्रवनार्क के रूप मं जाना जाता हं । इि के पूजन िे जीवन मं िुख िौभाग्र् मं वृत्रद्ध होती हं ।रक्त िंर्ार को िंतुसलत करता हं । मस्स्तष्क को तीव्रता प्रदान कर व्र्त्रक्त को र्तुर बनाता हं । बार-बार होने वाले गभापात िे बर्ाव होता हं । मूंगा गणेश िे बुखार, नपुंिकता , िस्डनपात और र्ेर्क जेिे रोग मं लाभ प्राप्त होता हं ।

मूल्र् Rs: 550 िे Rs: 8200 तक

मंगल र्ंि िे ऋण मुत्रक्त मंगल र्ंि को जमीन-जार्दाद के त्रववादो को हल करने के काम मं लाभ दे ता हं , इि के असतररक्त व्र्त्रक्त को ऋण मुत्रक्त हे तु मंगल िाधना िे असत शीध्र लाभ प्राप्त होता हं ।

त्रववाह आफद मं मंगली जातकं के कल्र्ाण के सलए

मंगल र्ंि की पूजा करने िे त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं । प्राण प्रसतत्रष्ठत मंगल र्ंि के पूजन िे भाग्र्ोदर्, शरीर मं खून की कमी, गभापात िे बर्ाव, बुखार, र्ेर्क, पागलपन, िूजन और घाव, र्ौन शत्रक्त मं वृत्रद्ध, शिु त्रवजर्, तंि मंि के दष्ट ु प्रभा, भूत-प्रेत भर्, वाहन दघ ा नाओं, हमला, र्ोरी इत्र्ादी िे बर्ाव होता हं । ु ट

मूल्र् माि Rs- 550

मार्ा 2012

21

कैलंिर व पंर्ांग मं क्र्ा अंतर हं ?

 आलोक शमाा आधुसनक (ग्रेगोररर्न) कैलंिर मं वार, फदनांक माि,

िूर्ा के िीधे िामने रहता है वहां गमी रहती है । क्र्ंफक

के बाद एक लीप वषा होता है, लीप वषा 100 वषा पिात नहीं

िे होने वाले बदलाव के कारण होते हं । पृथ्वी की

वषा का िमावेश होता हं । आधुसनक कैलंिर मं हर र्ार िाल होता एवं 400 वषा के बाद पुनः लीप वषा होता हं । इि प्रकार कैलंिर मं एक वषा मं कुल 365.2425 फदन होते है जो फक िार्न कैलंिर के एक वषा के कुल 365.2422 फदन के असधक करीब है और स्जि कारण करीबन 3000 वषं बाद दोनं कैलंिरं मं 1 फदन का अंतर आता है । आधुसनक कैलंिर की तुलना मं भारतीर् पंर्ांग मं सतसथ, वार, नक्षि,

र्ोग और करण आफद पांर् प्रमुख

अंगं का िमावेश होता हं । इिके उपरांत एक एक उडनत कैलंिर मं िूर्ोदर्-िूर्ाास्त िमर् ज्ञान, िूर्,ा र्ंद्र आफद ग्रहं का रासश प्रवेश, शुभ-अशुभ मुहूता, आफद त्रवशेष जानकारीर्ां िमाफहत होती हं ।

ज्र्ोसतष शास्त्रो के अनुशार सनरर्ण वषा मे कुल 365.2563 फदन होते है जो फक िूर्ा के एक रासश मं प्रवेश िे अगले वषा उिी रासश मं प्रवेश का िमर् होता हं । सनरर्ण वषा िार्न वषा िे 0.0142 फदन बिा है । इि सलए 100 वषं मं 1.42 फदनं का अंतर हो जाता है । इि कारण पंर्ांग प्रसत 100 वषं िे कैलंिर िे लगभग िे ढ़ फदन आगे सनकल जाता है । इि कारण मकर िंक्रांसत आफद फदनांक, सतसथ, िूर्रा ासश के अनुरुप मनाए जाने

ऋतु मं अंतर अर्न व िूर्ोदर् इत्र्ाफद पृथ्वी के झुकाव पररक्रमा के कारण ऋतु मं अंतर नहीं पिता ऋतु मं अंतर पृथ्वी के झुकाव के कारण पिता हं । इि सलए िार्न कैलंिर बनार्ा जाता हं । पृथ्वी का भूमध्र् भाग एकसलस्प्टक (Ecliptic) के िाथ एक रे खा पर काटता है , स्जिका एक त्रबंद ु विंत त्रवषुव व दि ू रा शरद त्रवषुव कहलाता है । र्ह रे खा पृथ्वी

की धुरी के दोलन के कारण वह 50.3 प्रसतवषा की गसत िे पस्िम की ओर स्खिकती है । पृथ्वी के पूणा 360 फिग्री र्लने को

सनरर्ण और उिके पुनः उिी झुकाव मं

आने को िार्न वषा कहते हं । इि कारण शरद त्रवषुव पर पृथ्वी को पुनः आने मं 360

फिग्री िे लगभग 50" कम

घुमना पिता है । र्ह अंतर ही अर्नांश कहलाता है । एिा माना जाता हं की िार्न कैलंिर व सनरर्ण पंर्ांग 23 मार्ा 285 को एक िमान थे। तब िे लेकर आज तक अंदाजन दोनो मं 24 फदनं का अंतर हो गर्ा है । इि सलए र्ैि माि, जो पहले फरवरी व मार्ा मं आता था,

अब र्ैि माि मार्ा व अप्रैल मं पिता हं । इि

सलए क्रमशः िभी माि मं अंतर हो गर्ा हं । स्जििे िभी

वाले त्र्ौहारं मं अंतर आ जाता है और फहं द ू पवा, जो

ऋतुओं एवं मफहनं मं अंतर होने लगे हं ।

जाते हं ।

सनरर्ण पंर्ांग और िार्न कैलंिर को एक िमान कर

सतसथ के अनुिार मनाए जाते हं , धीरे -धीरे आगे सनकलते िार्न व सनर्रण गणना क्र्ा हं ? और दोनं मं क्र्ा अंतर हं ?

पृथ्वी अपनी धुरी पर िूर्ा की पररक्रमा एकसलस्प्टक (Ecliptic) पर लगाती है । लेफकन र्ह लगभग 23.4 फिग्री झुकी होती है । पृथ्वी के इि झुकाव के कारण ही पृथ्वी पर गमी व िदी पिती हं । झुकाव िे पृथ्वी का जो भाग

िाधारणतः र्ह प्रश्न उठता हं की क्र्ा दे ना र्ाफहए? इि पर त्रवद्वानो का एकमत उिर नहीं होगा, क्र्ोफक दोनं सनरर्ण पंर्ांग और िार्न कैलंिर अपने स्थान पर ठीक हं । कैलंिर का सनमााण आम लोगो की िुत्रवधा एवं आवश्र्क्ता के अनुरुप फकर्ा गर्ा है , इि सलए उिका

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िार्न होना ही ठीक है । इि कारण ऋतुएं व िूर्ोदर्

कोई ठोि आधार नहीं हो िकता, लेफकन गस्णत के

आफद स्स्थतीर्ां तारीख के अनुिार एक िमान बने रहते

आधार पर ही फसलत के प्रमुख िूि िुसनस्ित फकए जाने

हं ।

र्ाफहए। पंर्ांग धासमाक कार्ं िे जुिे लोग, पंफित व

त्रवद्वानो के मत िे िभी पंर्ांगं को अंतरााष्ट्रीर्

ज्र्ोसतषं आफद के सलए हं , क्र्ोफक पंर्ांग िे सतसथ, ग्रह,

मानक प्राप्त ग्रह स्पष्ट करने वाले कमप्र्ूटर प्रोग्राम िे

नक्षि र्ोग आफद िे ग्रहं की स्पष्ट स्स्थसत जानी जाती है

गणना करनी र्ाफहए, स्जििे दे श के त्रवसभडन धासमाक

व शुद्ध गणना की जा िकती है । ग्रहं की स्स्थसत रासश

एवं स्थानीर् पंर्ांगं मं अंतर िमाप्त हो और िावाजसनक

अनुिार ही जानी जाती है ,

तौर पर मानव जासत को इि पंर्ांग िे लाभ प्राप्त हो

इि सलए गणना का सनरर्ण

होना िहज है ।

और पौरास्णक भ्रसमत करने वाली धारणाए िमाप्त हो।

इि सलए इिे िार्न नहीं कर िकते। इिी कारण

त्रवसभडन अर्नांश मं मतभेद िे ही ग्रह स्पष्ट एक

िभी पंर्ांग सनरर्ण ही होते हं । ग्रहं की गणना के सलए

िमान नही होते। लेफकन आज जब सिफा िार्न और

िूर्ा को आधार लेकर फफर अर्नांश घटाकर ग्रह स्पष्ट

सनरर्ण के भेद मं उलझे रहं गे, तो अर्नांश मं मतभेद

करना असत िुलभ होता है । अतः गणना के सलए प्रथम

रखने िे क्र्ा फार्दा। एिा मानाजाता हं की कुछ

िार्न गणना कर अर्नांश घटाकर सनरर्ण गणना कर

अर्नांश केवल नाम के कारण र्लन मं हं । उनमं अंतर

ली जाती है । ग्रह स्पष्ट की िार्न िारस्णर्ां उपल्बध

इतने कम हं फक ज्र्ोसतष के द्वारा इिका ित्र्ापन करना

होती हं । लेफकन इिका तात्पर्ा र्ह नहीं है फक ग्रह

अत्र्ंत दस् ु िाध्र् हं ।

िार्न गणनानुिार रासश मं भ्रमण करते हं । िभी ग्रह

इि सलए मतभेद को त्र्ागकर गणना के सलए

आकाश मंिल मं सनरर्ण गसत के अनुिार ही र्लते हं

सर्िापक्षीर् अथाात लहरी अर्नांश ही अपनाना र्ाफहए।

और ज्र्ोसतष, जो फक रासशर्ं, नक्षिं पर आधाररत है ,

फसलत कथन के सलए ज्र्ोसतषी के अपने-अपने सनणार् हो

पूणत ा र्ा सनरर्ण ही है । इि सलए जो गणनाएं की जा रही

िकते हं व उिके सलए कुछ भी जोिा र्ा घटार्ा जा

हं , वे पूणा ित्र् हं , उडहं गलत मानकर फेरबदल करने िे

िकता है ।

अनेको भ्रामक स्स्थसतर्ां उत्पडन हो िकती हं । इि सलए कैलंिर व पंर्ांग मं मतभेद एक स्वाभात्रवक स्स्थती है । पंर्ांग सनमााण मं आधुसनक प्रणाली आवश्र्क? पंर्ांगं के िमान होने मं मुख्र् आवश्र्क्ता होती हं , ग्रह स्पष्ट सिद्धांत को एक करना। दे श मं कुछ स्नानीर् पंर्ांग पौरास्णक िूर्ा सिद्धांत र्ा अडर् सिद्धांतं

पंर्ांग की सभडनता: पंर्ांग की सभडनता का प्रमुख कारण हं सतसथ

सनणार् मं की अलग-अलग त्रवसध। स्जिके कारण पवं को

लेकर दे श के त्रवसभडन स्थानो मं के लोगं की अलगअलग माडर्ता हं । िाधारणतः सतसथ सनणार् मं िूर्ोदर् की भूसमका

के आधार पर ही गणना करते हं , लेफकन आज के

प्रमुख होती हं ।

आधुसनक र्ुग मं आधुसनक गणना को गलत मानना

का िमर् बदल जाता है । र्फद िूर्ोदर् िमर् के

केवल परमपरासनष्ठता है । स्जि कारण ज्र्ोसतष के फसलत

आिपाि सतसथ बदल रही हो, तो स्थान के अनुिार सतसथ

मं गणनाओं का गलत आना प्रमुख कारण होता हं । इिमं

मं पररवतान हो जाता है और पंर्ांग मं भी अंतर होता हं ।

हमं केवल फसलत के सिद्धांतं मं बदलाव लाने र्ाफहए

स्जििे सतसथ पर सनधााररत पवं मं भी अंतर आ जाता है ।

गस्णत सिद्धांतो मं नहीं। त्रवशेष कर फसलत गस्णत का

अलग-अलग स्थान के अनुिार िूर्ोदर्

मार्ा 2012

23

इि सलए पंर्ांग की गणना स्थानीर् िूर्ोदर् िमर् के अनुरुप सतसथ का सनणार् कर पवा की गणना होती हं ।

अतः गणना के सलए केवल सतसथ के अनुिार पवा की गणना कर दे ने के कारण र्ह अंतर आता है । र्फद

कभी-कभी एक पवा दो तारीखं को पिता है । ऐिा

पवा की गणना त्रवसधवत्की जाए, तो इि प्रकार के अंतर

अक्िर जडमाष्टमी व दीपावली के िाथ होता है । कारण है

नहीं आएंगे। फहं द ू धमा ग्रंथं मं पवा गणना के सलए

दोनं पवं मं मध्र्रात्रि कालीन सतसथ, नक्षि आफद का सलर्ा जाना। प्रार्ः प्रातःकाल मं सतसथ दि ू री होती है ।

त्रवस्तृत िूि उपलब्ध हं , स्जििे गणना मं कोई िंदेह मुमफकन नहीं है ।

पंर्ांग मं असधक माि क्र्ा हं ? त्रवद्वानो के मतानुशार एक िौर वषा और र्ांद्र वषा के त्रबर् मं िामंजस्र् स्थात्रपत करने के सलए हर तीिरे वषा पंर्ांगं मं एक र्ाडद्रमाि की वृत्रद्ध होती है । इिी को असधक माि र्ा असधमाि र्ा मलमाि कहते हं । िौर वषा का मान 365 फदन, 15 घिी, 22 पल और 57 त्रवपल हं । जबफक र्ांद्रवषा 354 फदन, 22 घिी, 1 पल और 23 त्रवपल का होता है । इि प्रकार दोनं वषामानं मं प्रसतवषा 10 फदन, 53 घटी, 21 पल (अथाात लगभग 11 फदन) का अडतर पिता है । इि अडतर मं िमानता लाने के सलए र्ांद्रवषा 12 मािं के स्थान पर 13 माि का हो जाता है । वास्तव मं र्ह स्स्थसत स्वर्ं ही उत्त्पडन हो जाती है , क्र्ंफक स्जि र्ंद्रमाि मं िूर्ा िंक्रांसत नहीं पिती, उिी को असधक माि की िंज्ञा दे दी जाती है तथा स्जि र्ंद्रमाि मं दो िूर्ा िंक्रांसत का िमावेश हो जार्, उिे क्षर्माि कहाँ जाता है । क्षर्माि कासताक, मागा व पौि मािं मं होता है । स्जि वषा क्षर् माि पिता है , उिी वषा असध-माि भी पिता है परडतु र्ह स्स्थसत 19 वषं र्ा 141 वषं के पिात ् आती है । जैिे त्रवक्रमी िंवत 2020 एवं 2039 मं क्षर्मािं का आगमन हुआ तथा भत्रवष्र् मं िंवत 2057, 2150 मं पिने की िंभावना हं ।

द्वादश महा र्ंि र्ंि को असत प्रासर्न एवं दल ा र्ंिो के िंकलन िे हमारे वषो के अनुिंधान द्वारा बनार्ा गर्ा हं । ु भ

 परम दल ा वशीकरण र्ंि, ु भ

 िहस्त्रोाक्षी लक्ष्मी आबद्ध र्ंि

 भाग्र्ोदर् र्ंि

 आकस्स्मक धन प्रासप्त र्ंि

 मनोवांसछत कार्ा सित्रद्ध र्ंि

 पूणा पौरुष प्रासप्त कामदे व र्ंि

 राज्र् बाधा सनवृत्रि र्ंि

 रोग सनवृत्रि र्ंि

 गृहस्थ िुख र्ंि

 िाधना सित्रद्ध र्ंि

 शीघ्र त्रववाह िंपडन गौरी अनंग र्ंि

 शिु दमन र्ंि

उपरोक्त िभी र्ंिो को द्वादश महा र्ंि के रुप मं शास्त्रोोक्त त्रवसध-त्रवधान िे मंि सिद्ध पूणा प्राणप्रसतत्रष्ठत एवं र्ैतडर् र्ुक्त फकर्े जाते हं । स्जिे स्थापीत कर त्रबना फकिी पूजा अर्ाना-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष लाभ प्राप्त कर िकते हं ।

GURUTVA KARYALAY

Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

मार्ा 2012

24

पंर्ांग का मूल आधार?

 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, त्रवजर् ठाकुर फहडद ू िंस्कृ सत मं पंर्ांग का त्रवशेष महत्व है ।

हमारे र्हां पंर्ांग मं वस्णात सतसथ, पक्ष, ग्रह, नक्षि आफद की स्स्थती के आधार पर जीवन के त्रवसभडन 16 िंस्कारं िे लेकर र्ािा इत्र्ाफद कार्ं हे तु भी शुभ मुहूता का र्र्न करने पर त्रवशेष जोर फदर्ा जाता हं ।

शुभ मुहूता दे खने का मुख्र् उद्दे श्र् होता हं की

व्र्त्रक्त को अपने शुभ कार्ा मे सनस्ित िफलता प्राप्त हो

िके मुख्र्तः अर्न, त्रवषुव, ऋतु, िूर्ा एवं र्ंद्र, पक्ष, सतसथ, नक्षि, करण, र्ोग, िूर्ोदर् व र्ंद्रोदर्, फदनमान, रात्रिमान और पंर्ांग के मुख्र् अंग माने जाते हं । उपरोक्त िभी महत्वपूणा स्स्थतीर्ं का गस्णत के आधार पर िूक्ष्म त्रवश्लेषण फकर्ा जाता है । त्रवद्वानो के मत िे वैफदक प्रणाली मं इनका कोई त्रवशेष सनदे श नहीं है । लेफकन कालगणना मं पररशुद्धता के सलए इडहं अपनार्ा जाता हं । पृथ्वी िूर्ा के आकषाण िे सनधााररत एक सनर्त मागा मं ितत भ्रमण करती है । िाधारणतः पृथ्वी िे िूर्ा स्जि मागा पर र्लता हुआ प्रतीत होता है , उिे ज्र्ोसतष की पाररभात्रषक शब्दावली मं क्रांसतवृि अथाात एकसलस्प्टक

(Ecliptic) कहते हं । इि क्रांसतवृि मागा के 9 अंश िे बने त्रवस्तार को भर्क्र कहते हं । पृथ्वी की सनर्त गसत के कारण ही अर्न, त्रवषुव, ऋतु एवं फदन-रात होते हं । िंक्रांसत सनधाारण और पंर्ांग

की पररशुद्धता मं

अर्न और त्रवषुव सतसथर्ं की भूसमका प्रमुख मानी जाती हं ।

स्जि प्रकार पृथ्वी का िंबंध िूर्ा क्रांसतवृि िे रहता

है उिी प्रकार पृथ्वी का िंबंध िे र्ंद्र अपने सनस्ित माग्र मं भ्रमण करता है । अडर् ग्रहो की अपेक्षा र्ंद्र असत शीघ्र गसत करता है इि सलए र्ंद्र जब िूर्ा िे 12 अंशं के अंतर पर आता है , तब एक सतसथ का क्रम पूरा हो जाता है । इि प्रकार क्रमशः 12-12 अंशं के अंतर िे सनर्समत सतसथर्ां बदलती हं ।

भारसतर् िंस्कृ सत मे मुहूता का महत्व

भारसतर् िंस्कृ सत मे मुहूता का त्रवशेष महत्व हं ।

हमारे ऋत्रष-मुसन त्रवद्वान आर्ार्ं ने जडम िे अंत्र्ेत्रष्ट(मृत व्र्त्रक्त फक अंसतम फक्रर्ा) तक िभी िंस्कारं एवं अडर् िभी मांगसलक कार्ं के सलए मुहूता का त्रवधान आवश्र्क

बतार्ा गर्ा हं ।फकिी कार्ा त्रवशेष मं िफलता फक प्तासप्त हे तु सनस्ित मुहूता का र्ुनाव फकर्ा जाता हं । भारतीर् ज्र्ोसतष सिद्धाडत के अनुशार हर मुहूता का अपना

वैज्ञासनक प्रभाव एवं महत्व हं । कोई भी व्र्त्रक्त इन मुहूता के प्रभाव एवं महत्व के बारे मे पूणा जानकारी प्राप्त कर

व्र्त्रक्त अपने फकिी भी कार्ा उद्दे श्र् मं त्रवशेष िफलता प्रासप्त हे तु उसर्त मुहूता का र्ुनाव कर िफलता प्रासप्त फक िंभावना बढा िकते हं । एवं ज्र्ोसतषीर् मत िे शुभ फल

प्रदान करने वाले मुहूता मं फकर्े गर्े कार्ो मं उि कार्ा की िफलता की िंभावना कई गुणा बढ़ जाती है ।

प्रार्ः हर मुहूता का सनणार् ब्रह्मांि मं स्स्थत ग्रहो

फक स्स्थसतर्ं फक गणना कर फकर्ा जाता हं । भारसतर् िंस्कृ सत मं प्रार्ः हर शुभ कार्ा मं भारत के प्रमुख 16 िंस्कारो को िंपडन करने हे तु मुहूता का र्ुनाव असत आवश्र्क माना गर्ा हं । क्र्ोफक शुभा मुहूता मं फकर्े गर्े हर शुभ कार्ा अत्र्ासधक शुभ फल प्रदान करने वाले होते हं ।

गणेश लक्ष्मी र्ंि:

प्राण-प्रसतत्रष्ठत गणेश लक्ष्मी

र्ंि को अपने घर-दक ु ान-ओफफि-फैक्टरी मं पूजन स्थान, गल्ला र्ा अलमारी मं स्थात्रपत करने व्र्ापार मं त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं । र्ंि के प्रभाव िे भाग्र् मं उडनसत, मान-प्रसतष्ठा एवं

व्र्ापर मं वृत्रद्ध होती हं एवं आसथाक

स्स्थमं िुधार होता हं । गणेश लक्ष्मी र्ंि को स्थात्रपत करने िे भगवान गणेश और दे वी लक्ष्मी का िंर्ुक्त आशीवााद प्राप्त होता हं ।

Rs.550 िे Rs.8200 तक

मार्ा 2012

25

दे श के त्रवसभडन प्रांतो मं नववषा का प्रारं भ

 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी भारत मं प्रर्लीत त्रवसभडन कैलंिर एवं नववषा फदनांक

नाम

वषा

21 मार्ा

राष्ट्रीर् (शासलवाहन) शक िंवंत

1934 प्रारं भ

23 मार्ा-

त्रवक्रम िमवत्िर (र्ाडद्रवषा)

2069 प्रारं भ

14 अप्रैल

बंगाली नववषा

1419 प्रारं भ

16 अप्रैल

श्रीवल्लभ िंवंत

535 प्रारं भ

26 अप्रैल

आद्य शंकर िंवंत

2519 प्रारं भ

2 मई

श्रीफहत िंवंत

539 प्रारं भ

6 मई

बुद्ध पररसनवााण िंवंत

2556 प्रारं भ

2 जून

सशवराज शक िंवंत

339 प्रारं भ

3 जुलाई

मैसथल िाल

1420 प्रारं भ

1 अक्टू बर

फिली िन

1420 प्रारं भ

14 नवंबर

बुद्ध पररसनवााण िंवंत

2556 प्रारं भ

14 नवंबर

नेपाली िंवंत

1133 प्रारं भ

14 नवंबर

गुजराती िमवत्िर

2069 प्रारं भ

16 नवंबर

इस्लामी फहजरी िन (मुि.)

1434 प्रारं भ

दे श के त्रवसभडन प्रांतं मं मनार्े जाने वाले नववषा 15, जानवरी

पंगल (तसमल नववषा)

23, मार्ा

उगाफद (आंध्रप्रदे श)

23, मार्ा

गुिी पिवा (महाराष्ट्र)

24, मार्ा

र्ैती र्ाँद (सिंधी)

13, अप्रेल

त्रवशु (तसमल नव वषा)

14, अप्रेल

त्रवशु (केरला वषा)

14, अप्रेल

रंगाली त्रबहू (आिाम)

लेख को पाठको के ज्ञानवधान के उद्दे श्र् िे प्रकासशत फकर्ा गर्ा हं । उपरोक्त वस्णाक जानकारीर्ां त्रवसभडन माध्र्म िे प्राप्त हं । स्जिे अत्र्ंत िावधानीपूवक ा िंग्रह कर प्रस्तुत फकर्ा गर्ा हं । फफर भी र्फद िंबंसधत धमा/िंिकृ सत/िभ्र्ता के पवा सनणार्/नववषा को दशााने मं, दशाार्े गए के िंकलन, प्रमाण पढ़ने, िंपादन, फिजाईन, टाईप, त्रप्रंफटं ग ्, प्रकाशन मं

कोई िुफट रह गई हो, तो उिे त्रवद्वान पाठक स्वर्ं िुधार लं। िंपादक एवं लेखक एवं गुरुत्व कार्ाालर् पररवार के िदस्र्ं की इि िंदभा मं कोई स्जममेदारी र्ा जवाबदे ही नहीं रहे गी।

मार्ा 2012

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ज्र्ोसतष के अनुशार शुभ-अशुभ मुहूता का प्रभाव?

 राकेश पंिा आज की अत्र्ाधुसनक वैज्ञासनक पद्धसत के अनुिार

उडहंने िबिे महत्त्वपूण्ाा बात र्ह िमझी फक

ब्रह्माणि मं िमर् अथाात काल व अनंत आकाश के असतररक्त

मनुष्र्

िमस्त वस्तुएं मर्ाादा र्ुक्त हं । इि सलए िमर् का न ही कोई

आिर्ाजनक रुप िे अपने महत्वपूणा कार्ं मं िफलता

प्रारं भ है न ही कोई अंत है । अडर् शब्दं मं िमझे तो हम एिे

प्रासप्त के सलए एवं जीवन क्रम को अथाात अपने भत्रवष्र्

कोई भी त्रवशेष क्षण को सर्स्डहत नहीं कह िकते फक कब

को उज्जवल कर िकता हं । एक शुभ मुहूता मं प्रारं भ

िमर् अस्स्तत्व मं आर्ा र्ा िमर् इि क्षण िे आरं भ होता

आकाशीर्

त्रपंिं

के

िहर्ोग

िे

फकतने

फकर्ा गर्ा कोभी कार्ा मनुश्र् को शीघ्र ही जीवन मं

है । इिी तरह हम र्ह भी नहीं कह िकते है फक, इि क्षण के

िभी प्रकार िुख को प्राप्त कर अनेको उपलस्ब्धर्ां फदलाने

बाद िमर् का अस्स्तत्व िमाप्त हो जाएगा?, र्ा िमर्

मं िमथा होता हं ।

र्हाँ रुक जाएगा। क्र्ोफक अनंत आकाश की िमर् की तरह कोई मर्ाादा नहीं है, इि सलए तो इिका कहीं भी प्रारं भ र्ा अंत नहीं होता हं ।

मुहूता हमारे त्रवद्वानो द्वारा खोज की गई िवाासधक

महत्त्वपूण्ाा पररकल्पना है । मुहूता का अथा है फकिी भी कार्ा को करने के सलए िबिे िवाासधक उिम िमर् र्ा शुभ िमर् व सतसथ का र्र्न करना।

आधुसनक मानव ने इन दोनं तत्वं को हमेशा

कार्ा पूण्ाातः फलदार्क हो इिके सलए िमस्त

िमझने का व अपने अनुिार इनमं त्रवर्रण करने का

ग्रहं व अडर् ज्र्ोसतष तत्वं का िूक्ष्म त्रवश्लेषण फकर्ा

प्रर्ाि फकर्ा है , लेफकन उिे भी तक कोई िफलता प्राप्त

जाता है फक वे दष्ु प्रभावं को त्रवफल कर दे ते है । वे

नहीं हुई है ।

र्े दोनं तत्व त्रवसभडन रुपंमं अपना महातमर्

मनुष्र् पर जमाते आए है । र्ह दोनं तत्व मानव जीवन

मनुष्र् की जडम कुण्िली की िमस्त बाधाओं को दरू करने मं व दर् ु ोगं को हटाने मं िहार्क होते हं ।

मुहूता मनुष्र् के सलए ग्रह, नक्षि एवं र्ोग का

को अत्र्ंत ही महत्वपूण्ाा तरीके िे मानुष्र् को प्रभात्रवत

ऎिा अनूठा िंगम है फक वह कार्ा करने वाले मनुष्र् को

करते है ।

पूण्ाातः िफलता की ओर उडमुख कर दे ता है ।

प्रार्ीन ऋषी-मुसनर्ं को इन दोनं तत्वं का भली

इि सलए त्रवद्वानो का मत हं की मनुष्र् जब भी

भांसत बोध था। इि सलए उडहंने अपने आत्मीर् एवं

अपने जीवन मं ऎिा महत्वपूणा कार्ा करने जा रहा हं,

मनोबलि िे िामथ्र्ा, सर्ि की एकाग्रता व केस्डद्रत

स्जिमं उिका असधक िमर् व शत्रक्त प्रर्ोग मं हुवा हो

ध्र्ान िे, पूण्ाा र्ैतडर् व अद्धा र्ैतडर् शत्रक्त व बल िे एवं उच्र्कोफट के ज्ञान व अपनी फदव्र् ज्ञानर्क्षु िे इन तत्वं को िमझ सलर्ा था जो फक आज फक अत्र्ाधुसनक तकनीक िे कोिं दरू हं ।

उडहंने दे खा व जाना कैिे िमर् व अनंत ब्रह्मांि

अथवा इि कार्ा का मनुष्र् के जीवन पर काफी िमर् तक प्रभाव रहने वाला हो, तब उिे र्ह कार्ा शुभ मुहूता मं ही करना र्ाफहए। स्जििे र्ह कार्ा असत शीघ्र

फलदार्क होगा व वहँ असधक िुखमर्ी व िंतुष्ट जीवन व्र्तीत कर िके।

फक शत्रक्तर्ां हमं प्रभात्रवत करती है , कैिे नक्षिा व ग्रहं

ज्र्ोसतष त्रवद्या मं कार्ा का प्रारं भ िमर्, कुण्िली

का मेल हमारे जीवन को महत्त्वपूण्ाा फदशा व पररवतान

व उिकी गणना करके फकर्ा जाता है । इि सलए फकिी

दे ता है ।

भी शुभकार्ा करने के सलए उिके प्रारं भ करने का िमर्

मार्ा 2012

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अथाात मुहूता असत महत्वपूण्ाा होता है । मनुष्र् का भत्रवष्र्

र्ोगाफद के शुभत्व का िूक्ष्म अध्र्र्न करके कुछ र्ोग

एवं जीवन की महत्वपूणा घटनाएँ इि बात पर सनभार

ऎिे भी होते हं जो फक फकिी दोष त्रवशेषं को हटाने वाले

करती हं फक उिका जडम फकि िमर् हुआ था। लेफकन

र्ोगं होते हं , जो हजारं बुरे प्रभाव हटा दे ते है । इि तरह

त्रविमबना तो र्ह है फक मनुष्र् का स्वर्ं के

िे, पंर्ांग तत्त्वं के शुभत्व के असतररक्त भी वे िमस्त

जडम िमर् पर कोई सनर्ंिण नहीं है । लेफकन जीवन के

घटक फक अवश्र् जाँर् करनी र्ाफहए, जो मुहूता पर शुभ

मनुष्र् फक

अडर् फक्रर्ा-कलापं पर उिका पूण्ाा सनर्ंिरण है । इि सलए वह कार्ा करने का िमर् स्वर्ं िुसनस्ित कर िकता है । र्ही मुहूता की पररभाषा है । र्फद कार्ा प्रारं भ

का िमर् शुभ हं तो कार्ाफल सनस्ित रुप िे फलदार्क एवं इस्च्छत होगा। इि सलए तो कहाँ जाता हं की शुभ प्रारं भ अथाात आधा कार्ा स्वतः पूण्ाा होना।

शुभ र्ोग

प्रभाव िालते हं ।

अशुभ र्ोग जैिा की हमने बतार्ा की अशुभ तत्त्व भी हमेशा ही मौजूद होते हं । आवश्र्कता है फकिी एिी र्ुत्रक्त की जो अशुभ घटकं को असधक िे असधक कम कर िकेए असधक अशुभ घटकं को हटा िके तथा उपस्स्थत अशुभ घटकं को प्रभावहीन कर िके। अतः अशुभ व दोषपूणा िंर्ोजन

मुहूता अच्छे व बुरे दोनं र्ोगं का समश्रण है । कोई भी मुहूता अपने आप मं पूणा रुप िे शुभ नहीं होता है , स्जि

को दे ख ही फकिी मुहूता का र्र्न करना र्ाफहए, इि प्रकार िभी पररस्स्थसतर्ं का पूणा अध्र्र्न करना आवश्र्क होता है ।

पर कोई भी बुरा प्रभाव न हो। लेफकन ग्रहं के त्रवशेष

मंि सिद्ध स्फफटक श्री र्ंि "श्री र्ंि" िबिे महत्वपूणा एवं शत्रक्तशाली र्ंि है । "श्री र्ंि" को र्ंि राज कहा जाता है क्र्ोफक र्ह अत्र्डत शुभ फ़लदर्ी र्ंि

है । जो न केवल दि ू रे र्डिो िे असधक िे असधक लाभ दे ने मे िमथा है एवं िंिार के हर व्र्त्रक्त के सलए फार्दे मंद िात्रबत होता है । पूणा प्राण-प्रसतत्रष्ठत एवं पूणा र्ैतडर् र्ुक्त "श्री र्ंि" स्जि व्र्त्रक्त के घर मे होता है उिके सलर्े "श्री र्ंि" अत्र्डत फ़लदार्ी सिद्ध होता है उिके दशान माि िे अन-सगनत लाभ एवं िुख की प्रासप्त होसत है । "श्री र्ंि" मे िमाई अफद्रसतर् एवं अद्रश्र् शत्रक्त मनुष्र् की िमस्त शुभ इच्छाओं को पूरा करने मे िमथा होसत है । स्जस्िे उिका जीवन िे हताशा और सनराशा दरू होकर वह

मनुष्र् अिफ़लता िे िफ़लता फक और सनरडतर गसत करने लगता है एवं उिे जीवन मे िमस्त भौसतक िुखो फक प्रासप्त होसत है । "श्री र्ंि" मनुष्र् जीवन मं उत्पडन होने वाली िमस्र्ा-बाधा एवं नकारात्मक उजाा को दरू कर िकारत्मक उजाा का

सनमााण करने मे िमथा है । "श्री र्ंि" की स्थापन िे घर र्ा व्र्ापार के स्थान पर स्थात्रपत करने िे वास्तु दोष र् वास्तु िे िमबस्डधत परे शासन मे डर्ुनता आसत है व िुख-िमृत्रद्ध, शांसत एवं ऐश्वर्ा फक प्रसप्त होती है ।

गुरुत्व कार्ाालर् मे "श्री र्ंि" 12 ग्राम िे 2250 Gram (2.25Kg) तक फक िाइज मे उप्लब्ध है

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मार्ा 2012

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भद्रा त्रवर्ार

 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी एिी पौरास्णक माडर्ता हं की पुवा काल मं दे व

का प्रस्ताव रखा, िभी ने उनके प्रस्ताव ठु करा फदर्ा। र्हां

दानव र्ुद्ध मं सशव शंकर के दे ह िे र्ह भद्रा उत्पडन हुई

तक फक भद्रा ने िूर्ा दे व द्वारा बनवार्े गर्े अपने त्रववाह

हं । अडर् माडर्ता के अनुशार भद्रा भगवान िूर्ा दे व की

मण्िप, तोरण आफद नष्ट कर फदर्ा तथा िभी लोगं को

पुिी और शसनदे व की बहन है । शसन की तरह ही इिका

और भी असधक कष्ट दे ने लगी।

स्वभाव भी क्रूर माना गर्ा है । इि उग्र स्वभाव को सनर्ंत्रित

करने

के

सलए

ही

भगवान

ब्रह्मा

ने

उिी िमर् दे व-दानव-मानव के दःु ख को दे खकर

उिे

ब्रह्मा जी िूर्ा के पाि आर्े। िूर्ा िे अपनी कडर्ा को

कालगणना अथाात पंर्ाग के एक प्रमुख अंग करण मं

िडमागा पर लाने के सलए ब्रह्मा जी िे उसर्त परामशा दे ने

स्थापीत फकर्ा।

को कहा। तब ब्रह्मा जी ने त्रवत्रष्ट को बुलाकर कहा- 'भद्रे ,

भद्रा की उत्पत्रि के त्रवषर् मं एिा माना जाता हं

बव, बालव, कौलव आफद करणं के अंत मं तुम सनवाि

की दै त्र्ं को मारने के सलर्े भद्रा गदा भ (गधा) के मुख

करो और जो व्र्त्रक्त र्ािा, गृह प्रवेश तथा

अडर्

और लंबे पुछँ िफहत और तीन पैर र्ुक्त उत्पडन हुई है ।

मांगसलक कार्ा तुमहारे िमर् के दौरान करे , तो तुम

सिंह जैिी मुदे पर र्ढी हुई िात हाथ और शुष्क पेटवाली

उडहीं मं त्रवघ्न करो, जो तुमहारा आदर न करे , उनका

महाभर्ंकर, त्रवकराल मुखी, कार्ा का नाश करने वाली,

कार्ा तुम त्रबगाि दे ना। इि प्रकार त्रवत्रष्ट को उपदे श दे कर

अस्ग्न, ज्वाला िफहत दे वं द्वारा भेजी गई भद्रा पृथ्वी पर

ब्रह्मा जी अपने लोग र्ले गर्े।

उतरी है । अतः शुभ कार्ं मं भद्रा त्र्ागना ही िवाश्रष्ठ े है ।

ब्रह्माजी के बात िुनकर त्रवत्रष्ट अपने िमर् मं दे व-

भद्रा पंर्ांग के पांर् अंगं मं िे एक अंग-'करण'

दानव-मानव िमस्त प्रास्णर्ं को कष्ट दे ती हुई घूमने

पर आधाररत है र्ह एक अशुभ र्ोग है । भद्रा (त्रवत्रष्ट करण) मं अस्ग्न लगाना, फकिी को दण्ि दे ना इत्र्ाफद

लगी। इि प्रकार भद्रा की उत्पत्रि हुई।

भद्रा का दि ु रा नाम त्रवष्टी करण हं ।

िमस्त दष्ट ु कमा तो फकर्े जा िकते हं फकंतु फकिी भी

कृ ष्णपक्ष की तृतीर्ा, दशमी और शूक्ल पक्ष की र्तुथी

पौरास्णक कथा के अनुिार भद्रा भगवान िूर्ा

शुक्लपक्ष की अष्टमी, पुस्णामा के पुवााधा मं भद्रा रहती है ।

नारार्ण की कडर्ा है , भद्रा िूर्ा की पत्नी छार्ा िे

स्जि भद्रा के िमर् र्ँद्रमा मेष, वृष, समथुन, वृस्िक

उत्पडन है । भद्राका स्वरुप काले वणा, लंबे केश तथा बिे -

रासश मं स्स्थत हो तो भद्रा सनवाि स्वगा मं रहता है ।

बिे दांतं वाली तथा भर्ंकर रूप वाली कडर्ा है ।

र्ंद्रमा कडर्ा,तुला, धनु, मकर रासश मं हो तो भद्रा

मांगसलक कार्ा के सलए भद्रा िवाथा त्र्ाज्र् है ।

एकादशी के उिराधा मं एवं कृ ष्णपक्ष की िप्तमी, र्तुदाशी,

जडम लेते ही भद्रा र्ज्ञं मं त्रवघ्न-बाधा पहुंर्ाने

पाताल मं वाि करती हं और कका, सिंह, कुंभ, मीन राशी

लगी और उत्िवं तथा मंगल-र्ािा आफद मं उपद्रव करने

का र्ंद्रमा हो तो भद्रा का भुलोक पर सनवाि रहता है ।

लगी तथा िंपूणा जगत को पीिा पहुंर्ाने लगी। उिके दष्ट ु

शास्त्रों के अनुिार भुलोक की भद्रा ही अशुभ मानी जाती

स्वभाव को दे ख िूर्ा को उिके त्रववाह की सर्ंता होने

है । सतथी के पुवााधा मं (कृ ष्णपक्ष की िप्तमी एवं र्तुदाशी

लगी और वे िोर्ने लगे फक इि स्वेच्छा र्ाररणी, दष्ट ु ा,

और शुक्लपक्ष की अष्टमी पूस्णामा सतथी )

कुरुपा कडर्ा का त्रववाह फकिके िाथ फकर्ा जार्। िूर्ा ने

कहलाती है । सतथी के उिराधा की (कृ ष्णपक्ष की तृतीर्ा

स्जि-स्जि दे वता, अिुर, फकडनर आफद िे भद्रा के त्रववाह

एवं दशमी और शुक्लपक्ष की र्तुथी एवं एकादशी) की

फदन की भद्रा

मार्ा 2012

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भद्रा रािी की भद्रा कहलाती है । र्फद फदन की भद्रा रािी



गुरुवार की भद्रा को पुण्र्ैवती,

के िमर् और रािी की भद्रा फदन के िमर् आ जार्े तो



रत्रववार, बुधवार और मंगलवार की भद्रा को

उिे त्रवद्वानो ने शुभ माना है । असत आवश्र्क कार्ा आ जाए तो भद्रा की प्रारमभ की 5 घटी जो भद्रा का मुख

भफद्रका माना हं । 

होती है , अवश्र् ही त्र्ागनी र्ाफहए। श्रेष्ठ तो र्ही है की

त्रवशेष कर शसनवार की भद्रा अशुभ मानी जाती हं ।

भद्रा को त्र्ाग करके ही मांगलीक कार्ा िमपडन करने र्ाफहए।

भद्रा फल

भद्रा व्रत भद्रा के अशुभ प्रभाव िे रक्षा के सलए व्रत आफद

भद्रा का मुख और पूंछ:

के त्रवधान बताए गए हं , फकंतु आिान उपार्ं हं , िुबह

भद्रा पांर् घिी मुख मं, दो घिी कण्ठ मं, ग्र्ारह घिी

भद्रा के द्वादश नाम अथाात 12 नाम मंि का स्मरण

हृदर् मं, र्ार घिी पुच्छ मं स्स्थत रहती है ।

कार्ासित्रद्ध के िाथ त्रवघ्न, रोग, भर् को दरू कर ग्रहदोषं

शास्त्रोोक्त मत िे 

जब भद्रा मुख मं रहती है तो कार्ा का नाश होता हं ।



जब भद्रा कण्ठ मं रहती है तो धन का नाश होता हं ।



जब भद्रा हृदर् मं रहती है तो प्राण का नाश होता हं ।



जब भद्रा नासभ मं रहती है तो कलह होता हं ।



जब भद्रा कफट मं रहती है तो अथानाश होता हं ।



लेफकन जब भद्रा पुच्छ मं होती हं , तो त्रवजर् की प्राप्त एवं कार्ा सिद्ध होते है । ज्र्ोसतष के अनुशार त्रवत्रष्ट करण को र्ार भागं मं

त्रवभास्जत करके भद्रा मुख और पूंछ िरलता िे ज्ञात फकर्ा जा िकता हं । भद्राकी प्रकृ सत असत दष्ट ु है इिसलए मांगसलक कार्ं मं

भद्राकाल का अवश्र् ही त्र्ाग करना र्ाफहए।

भद्राकाल मं त्रववाह, मुंिन, गृहप्रवेश, र्ज्ञोपत्रवत, रक्षाबंधन र्ा कोई भी नर्ा काम शुरू करना वस्जात माना गर्ा है । लेफकन भद्राकाल मं तंि कार्ा, ऑपरे शन करना, मुकदमा करना, राजनैसतक र्ुनाव, फकिी वस्तु का कटना, र्ज्ञ करना, वाहन खरीदना आफद कमा शुभ माने गए हं ।

त्रवद्वानो के मत िे: 

िोमवार और शुक्रवार की भद्रा को कल्र्ाणी,



शसनवार की भद्रा को वृस्िकी,

को भी शांत करने वाला माना गर्ा है ।

भद्रा र्ोग मं कार्ा सित्रद्ध के सलए प्रर्ोग फकए जाने वाला मंि:

धडर्ा दसधमुखी भद्रा महामारी खरानना। कालरात्रिमाहारुद्रा त्रवत्रष्टि कुलपुत्रिका॥

भैरवी र् महाकाली अिुराणां क्षर्ंकरी।

द्वादशैव तु नामासन प्रातरुत्थार् र्: पठे त ्॥

न र् व्र्ासधभावेत ् तस्र् रोगी रोगात्प्रमुच्र्ते। ग्रह्य: िवेनुकूला: स्र्ुना र् त्रवघ्राफद जार्ते॥

शास्त्रोोक्त मत हं , की जो व्र्त्रक्त प्रातः भद्रा के इन बारह नामं का स्मरण करता है उिे फकिी भी व्र्ासध का भर् नहीं होता और उिके िभी ग्रह अनुकूल हो जाते हं । उिके कार्ं मं कोई त्रवघ्न नहीं होता। र्ुद्ध मं वह त्रवजर् प्राप्त करता है , जो त्रवसध पूवक ा त्रवत्रष्ट का पूजन करता है , सनःिंदेह उिके िभी कार्ा सिद्ध हो जाते हं ।

भद्रा के व्रत की शास्त्रोोक्त त्रवसध : स्जि फदन भद्रा हो, उि फदन व्रत-उपवाि करना र्ाफहए। र्फद रात्रि के िमर् भद्रा हो तो दो फदन तक उपवाि करना र्ाफहए। स्त्रोी अथवा पुरुष दोनो के सलए व्रत असधक उपर्ुक्त होता हं ।

मार्ा 2012

30

व्रत के फदन व्रती को िवोषसध र्ुक्त जल िे स्नान

इि प्रकार ििह भद्राव्रत करने के पिर्ात अंत मं

करना र्ाफहए र्ा नदी पर जाकर त्रवसध पूवक ा स्नान

उद्यापन करना र्ाफहए। लोहे की पीठ पर भद्रा की मूसता

करना र्ाफहए। दे वता तथा त्रपतरं का तपाण एवं पूजन

स्थात्रपत करनी र्ाफहए, काला वस्त्रो अत्रपात करके गडध,

कर कुशा की भद्रा की मूसता बनार्ं और गंध, पुष्प, धूप,

पुष्प आफद िे त्रवसधवत पूजन कर प्राथाना करनी र्ाफहए।

दीप, नैवेद्य आफद िे उिकी पूजन करना र्ाफहए। भद्रा के

लोहा, बैल, सतल, बछिा िफहत काली गार्, काला कंबल

बारह नामं िे 108 बार हवन करके

ब्राह्मण को भोजन

और र्थाशत्रक्त दस्क्षणा के िाथ वह मूसता ब्राह्मण को दान

करवाना र्ाफहए स्वर्ं भी सतल समसश्रत भोजन ग्रहण

करनी र्ाफहए र्ा उिका त्रविजान कर दं । इि प्रकार जो

करना र्ाफहए।

भी व्र्त्रक्त भद्रा व्रत एवं तदं तर त्रवसध पूवक ा व्रत का

पूजन की िमाप्ती पर इि मडि िे प्राथाना करनी र्ाफहए।

छार्ा िूर्ि ा ुते दे त्रव त्रवत्रष्टररष्टाथा दासर्नी।

पूस्जतासि र्थाशक्त्र्ा भद्रे भद्रप्रदा भव॥

उद्यापन करता है उिके फकिी भी कार्ा मं त्रवघ्न नहीं पिता तथा उिे प्रेत, ग्रह, भूत, त्रपशार्, िाफकनी, शाफकनी, र्क्ष, गंधवा, राक्षि आफद आिुरी शत्रक्त िे फकिी प्रकार का कष्ट नहीं हो िकता।

100 िे असधक जैन र्ंि हमारे र्हां जैन धमा के िभी प्रमुख, दल ा एवं शीघ्र प्रभावशाली र्ंि ताम्र पि, ु भ सिलवर (र्ांदी) ओर गोल्ि (िोने) मे उपलब्ध हं ।

मंि सिद्ध र्ंि गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा त्रवसभडन प्रकार के र्ंि कोपर ताम्र पि, सिलवर (र्ांदी) ओर गोल्ि (िोने) मे त्रवसभडन प्रकार की िमस्र्ा के अनुिार बनवा के मंि सिद्ध पूणा प्राणप्रसतत्रष्ठत एवं र्ैतडर् र्ुक्त फकर्े जाते है . स्जिे िाधारण (जो पूजा-पाठ नही जानते र्ा नही किकते ) व्र्त्रक्त त्रबना फकिी पूजा अर्ाना-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष लाभ प्राप्त कर िकते है . स्जि मे प्रसर्न र्ंिो िफहत हमारे वषो के अनुिंधान द्वारा बनाए गर्े र्ंि भी िमाफहत है . इिके अलवा आपकी आवश्र्कता अनुशार र्ंि बनवाए जाते है . गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा उपलब्ध करार्े गर्े िभी र्ंि अखंफित एवं २२ गेज शुद्ध कोपर (ताम्र पि)- 99.99 टर् शुद्ध सिलवर (र्ांदी) एवं 22 केरे ट गोल्ि (िोने) मे बनवाए जाते है . र्ंि के त्रवषर् मे असधक जानकारी के सलर्े हे तु िमपका करे

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

मार्ा 2012

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फदशाशूल त्रवर्ार

 त्रवजर् ठाकुर फदशाशूल के त्रवषर् मं शास्त्रोोक्त मत:

शनौ र्डद्रे त्र्जेत्पूवाा, दस्क्षणां र् फदशां गुरौ। िूर्े शुक्रे पस्िमामर्, बुधे भौमे तथोिरम ्॥

फदशाशूल पररहार के सलए 

रत्रववार को घी पीकर।



िोमवार को दध ू पीकर।

अथाात: शसनवार और र्डद्रवार अथाात िोमवार को पूवा



मंगलवार को गुि खाकर।

फदशा को फदशाशूल होती हं । बृहस्पसतवार (गुरुवार) को



बुधवार को सतल खाकर।

दस्क्षण फदशा मं, इतवार (रत्रववार) और शुक्रवार को



गुरुवार को दही खाकर।

पस्िम मं और मंगल तथा बुधवार को उिर फदशा मं शूल



शुक्रवार को जौ खाकर।

होती हं । इि सलर्े स्जि वार को स्जि फदशा मं फदशाशूल



शसनवार को उिद खाकर र्ािा करने िे फदशाशूल

हो उि फदशा मं र्ािा नहीं करनी र्ाफहर्े।

का दोष पररहार माना जाता हं ।

अडर् मत िे:

िोम शसनर्र पूरब ना र्ालू। मंगल बुध उिरफदसिकाल॥

फदशाशूल पररहार के अडर् उपार् 

फदशाशूल पररहार के सलए



रत्रववार को पान का दान।



अथाात: िोमवार एवं शसनवार को पूरब फदशा मं तथा

िोमवार को र्ंदन का दान।



मंगल एवं बुधवार को उिर फदशा मं र्ािा नहीं करनी

मंगलवार को छाछ का दान।



र्ाफहर्े। रत्रववार एवं शुक्रवार को पस्िम फदशा मं र्ािा

बुधवार को पुष्प का दान।



करना िवादा हासनकारक होता है । गुरूवार के फदन तो

गुरवार को दही का दान।



दस्क्षण फदशा मं र्ािा करना अशुभ है । र्े फदशाशुल

शुक्रवार को धृत (घी) का दान।



शसनवार

रत्रव शुक्र जो पस्िम जार्। हासन होर् पथ िुख नफहं पार्॥ गुरौ दस्क्खन करे पर्ाना, फफर नहीं िमझो ताको आना॥

कहलाते है । शास्त्रोोक्त माडर्ता के अनुशार फदशाशूल वाली फदशा मं र्ािा करने िे कार्ा सिद्धी नहीं होता|

को

काले

सतल

का

दान

करने

िे

फदशाशूल पररहार हो जाता हं । ***

अिली 1 मुखी िे 14 मुखी रुद्राक्ष गुरुत्व कार्ाालर् मं िंपूणा प्राणप्रसतत्रष्ठत एवं अिली 1 मुखी िे 14 मुखी तक के रुद्राक्ष उपलब्ध हं । ज्र्ोसतष कार्ा िे जुिे़ बंधु/बहन व रत्न व्र्विार् िे जुिे लोगो के सलर्े त्रवशेष मूल्र् पर रत्न, उपरत्न र्ंि, रुद्राक्ष व अडर् दल ा िामग्रीर्ां एवं ु भ अडर् िुत्रवधाएं उपलब्ध हं । रुद्राक्ष के त्रवषर् मं असधक जानकारी के सलए कार्ाालर् मं िंपका करं ।

त्रवशेष र्ंि :

हमारं र्हां िभी प्रकार के र्ंि िोने-र्ांफद-तामबे मं आपकी आवश्र्क्ता के अनुशार फकिी भी भाषा/धमा

के र्ंिो को आपकी आवश्र्क फिजाईन के अनुशार २२ गेज शुद्ध तामबे मं अखंफित बनाने की त्रवशेष िुत्रवधाएं उपलब्ध हं । असधक जानकारी के सलए कार्ाालर् मं िंपका करं ।

GURUTVA KARYALAY BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected]

मार्ा 2012

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फदशाशूल महत्वपूणा र्ा कताव्र् महत्वपूणा है ?

 त्रवजर् ठाकुर एक बार एक राजा के ऊपर उिके प्रसतद्वं दी राजा

फदशा मं तो मंने जब होश िमभाला हं अपने खेत पर

ने हमला कर फदर्ा। राजा ने राज ज्र्ोसतषी को बुलार्ा

जाता रहा हूँ और मेरे त्रपताजी िे लेकर दादा परदादा भी

और उनिे पूछा फक इि वक्त हमं क्र्ा करना र्ाफहए।

जाते रहे हं । ज्र्ोसतषी ने कहा अच्छा अपना हाथ फदखा।

ज्र्ोसतषी ने उिर फदर्ा महाराज स्जि फदशा िे हमला

फकिान ने ज्र्ोसतषी को अपना हाथ उलटा फदखार्ा

हुआ हे वह फदशा पूवा हं और आज उि फदशा मं फदशाशूल

ज्र्ोसतषी ने कहा िीधा कर के फदखाओ।

की बात को व़जीर बीर् मं काट कर बराबर कह रहा हे

फेलाए। हमारे क्षेि मे िाक्षात सशवजी का वाि हे हम को

फक महाराज फौरन हमला करो। राजा ने कहा नहीं हम

फकिी सर्ज का िर नहीं हं । वह फकिान जर् महाकाल

को ज्र्ोसतषी की बात मननी है । ज्र्ोसतशी ने कहा हम

बोल कर र्ला गर्ा।

हे , आज हमं उि फदशा मं नहीं जाना र्ाफहर्े। ज्र्ोसतषी

को इि िमर् उलटी फदशा मं अथाात पस्िम फदशा मं जाना र्ाफहए। और वो पस्िम की और र्ल फदए। रास्ते मं उनका व़जीर बार-बार कह रहा था

फकिान बोला हम सभखारी नही हं

जो हाथ

फकिान की बात िे राजा को भी अकल आइ और उिने मंिी िे कहा वापि र्लो और हमला बोलो, राजा ने भी जर् महकाल का नारा लगा कर हमला बोल फदर्ा

महारज हमला करो। लेफकन व़जीर की बात को राजा ने

और जीत गर्ा।

नहीं िुना।

नोट: फदशाशूल माि िे अपने कताव्र् िे पीछे हटना कोरी

रािते मं उडहं एक फकिान समला जो पूवा फदशा की और

मूखत ा होती हं । इि सलए आकस्स्मक प्रिंगो एवं घटनाओं

जा रह था। ज्र्ोसतषी ने उिे रोका और कहाँ आज इधर

िे सनपटने के सलए फदशाशूल का त्रवर्ार त्र्ाग कर अपनी

फदशाशूल है इधर मत जाओ । फकिान बोला पंफितजी इि

बुत्रद्ध एवं त्रववेक िे कार्ा करना र्ाफहए।

शसन पीिा सनवारक िंपूणा प्राणप्रसतत्रष्ठत 22 गेज शुद्ध स्टील मं सनसमात अखंफित पौरुषाकार शसन र्ंि पुरुषाकार शसन र्ंि (स्टील मं) को तीव्र प्रभावशाली बनाने हे तु शसन की कारक धातु शुद्ध स्टील(लोहे ) मं बनार्ा गर्ा हं । स्जि के प्रभाव िे िाधक को तत्काल लाभ प्राप्त होता हं । र्फद जडम कुंिली मं शसन प्रसतकूल होने पर व्र्त्रक्त को अनेक कार्ं मं अिफलता प्राप्त होती है , कभी व्र्विार् मं घटा, नौकरी मं परे शानी, वाहन दघ ा ना, गृह क्लेश आफद ु ट

परे शानीर्ां बढ़ती जाती है ऐिी स्स्थसतर्ं मं प्राणप्रसतत्रष्ठत ग्रह पीिा सनवारक शसन र्ंि की अपने को व्र्पार स्थान र्ा घर मं स्थापना करने िे अनेक लाभ समलते हं । र्फद शसन की ढै ़र्ा र्ा िाढ़े िाती का िमर् हो तो इिे अवश्र् पूजना र्ाफहए। शसनर्ंि के पूजन माि िे व्र्त्रक्त को मृत्र्ु, कजा, कोटा केश, जोिो का ददा , बात रोग तथा लमबे िमर् के िभी प्रकार के रोग िे परे शान व्र्त्रक्त के सलर्े शसन र्ंि असधक लाभकारी होगा। नौकरी पेशा आफद के लोगं को पदौडनसत भी शसन द्वारा ही समलती है अतः र्ह र्ंि असत उपर्ोगी र्ंि है स्जिके द्वारा शीघ्र ही लाभ पार्ा जा िकता है ।

मूल्र्: 1050 िे 8200

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ितिंग की मफहमा

 श्रेर्ा.ऐि.जोशी फकिी नगर के बाहर जंगल मं कोई िाधु िंत

मंिी होगा है , इि सलए इिे रोकने पर नाराज होकर ऐिा

आकर ठहरे । िंत की ख्र्ासत नगर मं फैली तो लोग दरू -

कह रहा है । प्रहररर्ं ने उिे त्रबना और पूछताछ फकए

दरू िे आकर समलने लगे। िंत के प्रवर्नं का दौर शुरू

भीतर जाने फदर्ा।

हो गर्ा।

वहाँ िे र्लने पर र्ोर का आत्म त्रवश्वाि और बढ़

िंत की ख्र्ासत भी फदन-प्रसतफदन दरू -दरू तक

गर्ा। महल मं पहुंर् गर्ा। महल मं दाि-दासिर्ं ने भी

फैलने लगी। फदनभर लोगो का जमाविा िंत के करीब

उिे रोका। उिे पूछा कोन झो तूं र्ोर फफर ित्र् बोला

रहता था। उनमं िे एक र्ोर भी दरू सछपकर िंत के

फक मं र्ोर हूं, र्ोरी करने आर्ा हूं। दाि-दासिर्ं ने भी

प्रवर्नो को िुनता था। रात को र्ोरी करता और फदन मं

उिे वही िोर्कर जाने फदर्ा जो प्रहररर्ं ने िोर्ा था।

लोगं िे सछपने के सलए जंगल मं आ जाता। उिने िुना

राजा का कोई खाि दरबारी होगा। अब तो र्ोर का

की िंत लोगं िे रोज कहते हं फक ित्र् बोसलए। ित्र्

त्रवश्वाि िातवं आिमान पर पहुंर् गर्ा था, राहमहल मं

बोलने िे जीवन िरल हो जाता है । िंत के मुख िे बार-

वहँ स्जििे भी समलता उििे ही कहता फक मं र्ोर हूं।

बार एक फह बात िुन-िुन के एक फदन र्ोर िे रहा नहीं

फफर भी वहँ पहुंर् गर्ा महल के भीतर।

गर्ा, लोगं के जाने के बाद उिने अकेले मं िंत िे पूछा

र्ोर ने वहाँ िे कुछ कीमती िामान िोने के

आप रोजाना कहते हो फक ित्र् बोलना र्ाफहए, उििे

आभूषण, हीरे -जवाहरात आफद उठार्े और बाहर की ओर

लाभ होता है लेफकन मं कैिे ित्र् बोल िकता हूं। िंत

र्ल फदर्ा। जाते िमर् रानी ने दे ख सलर्ा। राजा के

ने पूछा-तुम कौन हो भाई? र्ोर ने कहा मं एक र्ोर हूं।

आभूषण लेकर कोई आदमी जा रहा है । उिने पूछा ऐ

िंत बोले तो क्र्ा हुआ। ित्र् का लाभ िबको समलता

कौन हो तुम, राजा के आभूषण लेकर कहां जा रहे हो।

है । तुम भी परख कर दे ख लो।

र्ोर फफर िर् बोला र्ोर हूं, र्ोरी करने आर्ा था, मं

िंत की बात िुनकर र्ोर ने सनणार् सलर्ा की

र्ोरी करके ले जा रहा हूं। रानी िोर् मं पि गई, भला

आज र्ोरी करते िमर् िभी िे िर् बोलूंगा। दे खता हूं

कोई र्ोर ऐिा कैिे बोल िकता है , उिके र्ेहरे पर तो

िर् बोलने िे क्र्ा लाभ समलता है । उि रात र्ोर र्ोरी

भर् भी नहीं है । जरूर महाराज ने ही इिे र्े आभूषण

करने राजमहल मं पहुंर्ा। महल के मुख्र् दरवाजे पर

कुछ अच्छा काम करने पर भंट स्वरूप पुरस्कार के रूप

पहुंर्ते ही उिने दे खा दो प्रहरी पहरा दे रहे हं । प्रहररर्ं

मं फदए हंगे। रानी ने भी र्ोर को जाने फदर्ा। जाते-जाते

ने उिे रोका ऐ कौन है तूं। और इतनी रात मं फकधर जा

रास्ते मं राजा िे भी िामना हो गर्ा। राजा ने पूछा ऐ

रहे हो।

मेरे आभूषण लेकर कहां जा रहे हो, और कौन हो तुम? र्ोर ने सनिरता िे कहा मं एक र्ोर हूं, और मं

र्ोर फफर बोला मं र्ोर हूं, र्ोरी करने आर्ा हूं। राजा ने

र्ोरी करने जा रहा हूं। प्रहररर्ं ने िोर्ा कोई र्ोर ऐिा

िोर्ा इिे रानी ने भंट दी होगी। राजा ने उििे कुछ नहीं

नहीं बोल िकता। र्ह जरूर राज दरबार का कोई खाि

कहा, और एक िेवक को उिके िाथ कर फदर्ा। िेवक

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िामान उठाकर उिे आदर िफहत महल के बाहर तक

भर जाएगा। र्ोर भागता-दौिता िंत के पाि आर्ा और

छोि गर्ा।

पैरं मं सगर पिा। राजमहल की िारी घटना उिने िंत

अब तो र्ोर के आिर्ा का फठकाना न रहा। उिने

को बताई। उिके भीतर की र्ेतना शत्रक्त जाग्रत हो गई

िोर्ा झूठ बोल-बोलकर मंने जीवन के फकतने फदन र्ोरी

उिने र्ोरी करना छोि फदर्ा और उिी िंत को अपना

करने मं बरबाद कर फदए। अगर र्ोरी करके िर् बोलने

गुरू बनाकर उडहीं के िाथ रहकर उनकी िेवा करने

पर परम त्रपता परमात्मा मैरा इतना िाथ दे ता है तो

लगा।महापुरुषो ने िर् ही कहा हं , फक जो िच्र्े िंत

फफर अच्छे कमा करने पर तो जीवन फकतना आनंद िे

होता है वह हर जगह अपना प्रभाव छोिते है ।

मंि सिद्ध रूद्राक्ष Rudraksh List

Rate In Indian Rupee

Rudraksh List

Rate In Indian Rupee

एकमुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

2800, 5500

आठ मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

820,1250

एकमुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

750,1050, 1250,

आठ मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

1900

दो मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर)

30,50,75

नौ मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

910,1250

दो मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

50,100,

नौ मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

2050

दो मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

450,1250

दि मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

1050,1250

तीन मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर)

30,50,75,

दि मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

2100

तीन मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

50,100,

ग्र्ारह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

1250,

तीन मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

450,1250,

ग्र्ारह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

2750,

र्ार मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर)

25,55,75,

बारह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

1900,

र्ार मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

50,100,

बारह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

2750,

पंर् मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

25,55,

तेरह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

3500, 4500,

पंर् मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

225, 550,

तेरह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

6400,

छह मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर)

25,55,75,

र्ौदह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

10500

छह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

50,100,

र्ौदह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

14500

िात मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर)

75, 155,

गौरीशंकर रूद्राक्ष

1450

िात मुखी रूद्राक्ष (नेपाल)

225, 450,

गणेश रुद्राक्ष (नेपाल)

550

िात मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

1250

गणेश रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा)

750

रुद्राक्ष के त्रवषर् मं असधक जानकारी हे तु िंपका करं । GURUTVA KARYALAY, 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

मार्ा 2012

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नव िंवत्िर का पररर्र्

 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी शुक्ल

फहडद ू पंर्ांग के अनुशार इि वषा नव वषा र्ैि

प्रसतपदा 22-मार्ा-2012 की रात 07:10 बजे िे

शुरू होने वाले त्रवक्रम िंवत 2069 का प्रारं भ कडर्ा लग्न

आफद की घटनार्ं असधक मािा मं हो िकती हं । िौडदर्ा प्रिाधन, खाध तेल आफद की कीमतं जन मानि को असधक प्रभात्रवत करं गी।

मं होगा। इर वषा त्रवश्वाविु नाम का िंवत्िर रहे गा।

इि वषा रोफहणी का वाि इि िंवत मे पवात पर

त्रवश्वाविु िंवत्िर का स्वामी राहु हं । इि वषा का राजा

है इि सलए वषा मे जल िंबंसधत िमस्र्ा अथाात बषाा का

और मंिी दै त्र्गुरु शुक्र हंगे। ज्र्ोसतषीर् गणना एवं

कम होना तथा कृ त्रष र्ोग्र् उपर्ोगी वषाा मे कमी आ

शास्त्रोोक्त मत के आधार पर नव िंवत्िर के फदन ग्रहो की

िकती

हं । लेफकन इि वषा कहीं -कहीं पर

स्स्थती के अनुशार र्ह िंवतिर वषा

बाढ़ की स्स्थती भी िंभव हं ।

भर लोगं को त्रवसभडन िमस्र्ाओं

जीवन उपर्ोगी वस्तुओं की मूल्र्

मे उलझार्ेगा वषाा मे कमी हो

वृत्रद्ध मे उतार-र्ढ़ाव बना रहे गा।

िकती हं , इिके अलावा खाद्य पदाथा

इि िंवत का वाि कुमहार

अथाात अडन की कमी हो िकती है

के घर है इि सलए कृ त्रष र्ोग्र् भूसम

दे श मे राजस्व की कमी की भी

और भूसम-भवन आफद के बाजार मे

सिथसतर्ां आिकती हं । त्रवक्रम िंवत

असधकासधक तेजी आर्गी। वषाा की कमी

2069 का स्वामी शुक्र है जोफक िुख-

के पूणा िंकेत हं । इि वषा लघु उधोग, दरू

िमृत्रि का कारक होगा। स्जििे नर्ा

िंर्ार के िाधनं मे भारी मािा मं वृत्रद्ध

िंवत आधुसनक तकनीक व नवीन

हंगी। इि वषा िंवत के राजा शुक्र वाहन

आत्रवष्कार दे ने वाला रहे गा।

मेढ़क हं । वाहन मेढ़क होने के कारण कुछ

त्रवद्वानो के मत िे ज्र्ोसतष

प्रदे शं मे भारी वषाा िे बाढ़ जैिे प्राकृ सतक

के अनुिार शुक्र को राजा और मंिी

आपदा स्स्थतीर्ं का िामना करना पि िकता है ।

दोनं पद समलने वाला िंर्ोग असत दल ा है । एिा िंर्ोग ु भ

नविंवत मं ग्रहो का फल:

आर्ेगा, जब शुक्र को राजा व मंिी के पद पर रहने का

शुक्र वषा का राजा और मंिी हं शुक्र को रिीले पदाथं का

फफर िे 16 िाल बाद अथाात िंवत 2086 मं वापि अविर समलेगा। जानकारं की माने तो त्रवश्वाविु नाम का र्ह िंवत्िर लोगो मं आध्र्ास्त्मक रूसर् व आस्था बढ़ाने

वाला िात्रबत होगा। वहीं लोगं मं राजनैसतक ििा के प्रसत आक्रोश रहे गा। बहुमूल्र् धातुओं मं तेजी, आसथाक

स्स्थसत मं िुधार करने वाला और िुख-शांसत दे ने वाला रहे गा। कडर्ा लग्न मे ही वषा की शुरुआत होने िे दे श मे कहीं पर राज्र् भंग तथा कहीं कहीं पर

दं गे-फिाद

शुक्र: स्वामी माना गर्ा हं । इि सलए इि वषा रिीले फलं की उपज अच्छी रहे गी। भौसतक िुख-िाधनं मे वृत्रद्ध की होने के अच्छे िंकेत हं । व्र्विासर्क कार्ं िे जुिे लोगो को धनलाभ समलता रहे गा। िामास्जक कार्ा िे जुिेलोगं मं मफहला वगा का वर्ास्व असधक प्रबल रहे गा। मनोरं जन उधोग, िौडदर्ा प्रिाधन इत्र्ाफद शुक्र िे िंबंसधत कार्ा त्रवशेष मे लाभ की स्स्थती बनेगी।

मार्ा 2012

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त्रवलाि और उपर्ोगी वस्तुओं मं वृत्रद्ध करवाते हं ।

िूर्ा: िूर्ा नीरिेश (धातुओं का असधपसत)हं इि सलए िोना, र्ांदी, पीतल, तांबा, रत्न आफद की कीमतं मे तेजी िे

बृहस्पसत लोगो मं धमा, शास्त्रो आफद आध्र्ास्त्मक ज्ञान को भी बढाते हं ।

वृत्रद्ध होगी हं । िूर्ा उच्र् वगा के व्र्ापाररर्ं के सलए धन

शसन:

वृत्रद्धए एवं व्र्ापार मं असधक लाभ के िंकेत दे ता हं और

धाडर्ेश (शीतकालीन फिलं-खरीफ का स्वामी) शसन होने

छोटे वगा के व्र्ापारीर्ं के सलर्े धन हानी के िंकेत दे ता

िे वषा भर जल िंिाधनं मे कमी हो िकती हं । दे श की

हं । क्रर्-त्रवक्रर् िे जुिे लोगो के कारोबार का त्रवस्तार

आसथाक

होगा। िूर्ा की उच्र् असधकारी तथा उधोगपसतर्ं पर

पररस्स्थर्ां भी सनसमात हो िकती हं गृह र्ुद्ध भी हो

त्रवशेष कृ पा रहे गी।

िकता है । जानकारो के मत िे शसन की स्स्थती दे श के

र्डद्र:

फकिी त्रवसशष्ट व्र्फकत की मृत्र्ु के िंकेत हं ।

िस्र्ेश(ग्रीष्मकालीन फिलं-रबी का स्वामी) र्डद्रमा होने के कारण लोगं के भौसतक िंिाधनं की वृत्रद्ध होगी और लोग धनधाडर् िे िमपडन हंगे।

मंगल: मंगल की स्स्थती िे दे श मे वषाा की कमी के कारण बनते हं िामास्जक भाईर्ारे मे त्रबखराव की सिथसत पैदा हो िकती हं । मंगल के कारण राजकीर् शािन-प्रशािन तथा राजनेताओं के प्रसत जनता मे आक्रोि की स्स्थती भी िंभव होती हं ।

बृहस्पसत:बृहस्पसत की स्स्थती िे असधक वषाा के िंकेत हं , इि स्थान मं बृहस्पसत लोगं के िुख-िाधन, भोग

स्स्थती

सर्ंताजनक

हो

िकती

हं,

र्ुद्ध

इि वषा दग े (रक्षामंिी) बृहस्पसत है जो राजकीर् ु ि

कार्ं िे जुिे लोगं के सलर्े उडनत डर्ार् व्र्वस्था का िूर्क हं । बृहस्पसत डर्ार्त्रप्रर् और धमात्रप्रर् है इि सलर्े डर्ार् और धमा की रक्षा के सलए दे श मं िंघषा का वातावरण भी बन िकता हं ।

नोट: जानकारं की माने तो त्रवश्वाविु िंवतिर मे फकिी भी वस्तु की नाहीं असधकता रहती नाहीं कमी रहती हं । प्रार्ः िबकुछ मध्र्म रहता है अथाात वषाा मध्र्म, आसथाक अपराधो मं वृत्रद्ध, लालर् की असधकता िे लोगं को परे शान होना पि िकता हं ।

त्रवश्वाविु िंवत्िर मं जडम लेने वालं का भत्रवष्र् फल र्फद आपका जडम त्रवश्वाविु िंवत्िर मं हुआ है । स्जि प्रकार नाम िे त्रवश्वाविु ज्ञात होता है , आप जीवन मं प्रार्ः भाग्र्शाली हंगे और अपने िभी कामं मं िफल होगं। आप असधक बुत्रद्धमान, ज्ञानी, धासमाक तथा िदार्ारी होगं और हमंशा प्रशंिनीर् कार्ं को करने मं रत रहे गं। आप भारी मािा मं धन िंग्रह करे गं और अपने जीवन िाथी और िंतान को जीवन के िभी िुख एवं ऐश्वर्ाप्रद िामग्रीर्ं के िाथ आनंद िे रहं गे। आप धैर्ा और सनरं तर पररश्रम की एक प्रसतमूसता होगं और िफहष्णुता तथा क्षमाशीलता के गुणं िे पररपूणा होगं। अपने शानदार आर्रण के कारण आप त्रवख्र्ात होगं और अपने िराहनीर् कामं के कारण आपको िमाज मं त्रवशेष पहर्ान समलेगी।

की

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र्ैि नवराि मं नवदग ु ाा आराधना त्रवशेष फलदार्ी

 सर्ंतन जोशी नमो दे व्र्ै महादे व्र्ै सशवार्ै िततं नम:।

नम: प्रकृ त्र्ै भद्रार्ै सनर्ता: प्रणता: स्मताम ्॥

अथाात: दे वी को नमस्कार हं , महादे वी को नमस्कार हं । महादे वी सशवा को िवादा नमस्कार हं । प्रकृ सत एवं भद्रा को मेरा प्रणाम हं । हम लोग सनर्मपूवक ा दे वी जगदमबा को नमस्कार करते हं । उपरोक्त मंि िे दे वी दग ु ाा का स्मरण कर प्राथाना करने माि िे

दे वी प्रिडन होकर अपने भक्तं की इच्छा पूणा करती हं । िमस्त दे व गण स्जनकी स्तुसत प्राथना करते हं । माँ दग ु ाा अपने भक्तो की रक्षा कर उन पर कृ पा द्रष्टी वषााती हं और उिको उडनती के सशखर पर जाने का मागा प्रिस्त करती हं । इि सलर्े

ईश्वर मं श्रद्धा त्रवश्वार रखने वाले िभी मनुष्र् को दे वी की शरण मं जाकर दे वी िे सनमाल हृदर् िे प्राथाना करनी र्ाफहर्े।

दे वी प्रपडनासताहरे प्रिीद प्रिीद मातजागतोsस्खलस्र्।

पिीद त्रवश्वेतरर पाफह त्रवश्वं त्वमीिरी दे वी र्रार्रस्र्।

अथाात: शरणागत फक पीिा दरू करने वाली दे वी आप हम पर

प्रिडन हं। िंपूणा जगत माता प्रिडन हं। त्रवश्वेश्वरी दे वी त्रवश्व फक रक्षा करो। दे वी आप फह एक माि र्रार्र जगत फक असधश्वरी हो।

िवामंगल-मांगल्र्े सशवेिवााथि ा ासधके ।

शरण्र्े िर्मबके गौरर नारार्स्ण नमोऽस्तुते॥ िृत्रष्टस्स्थसत त्रवनाशानां शत्रक्तभूते िनातसन। गुणाश्रर्े गुणमर्े नारार्स्ण नमोऽस्तुते॥ अथाात: हे दे वी नारार्णी आप िब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमर्ी हो। कल्र्ाण दासर्नी सशवा हो। िब पुरूषाथं को सिद्ध करने वाली शरणा गतवत्िला तीन नेिं वाली गौरी हो, आपको नमस्कार हं । आप िृत्रष्ट का पालन और िंहार करने वाली शत्रक्तभूता िनातनी दे वी, आप गुणं का आधार तथा िवागुणमर्ी हो। नारार्णी दे वी तुमहं नमस्कार है ।

इि मंि के जप िे माँ फक शरणागती प्राप्त होती हं । स्जस्िे मनुष्र् के जडम-जडम के पापं का नाश होता है । मां जननी िृत्रष्ट फक आफद, अंत और मध्र् हं । दे वी िे प्राथाना करं –

शरणागत-दीनाता-पररिाण-परार्णे

िवास्र्ासतंहरे दे त्रव नारार्स्ण नमोऽस्तुते॥

अथाात: शरण मं आए हुए दीनं एवं पीस़्ितं की रक्षा मं िंलग्न रहने वाली तथा िब फक पीिा दरू करने वाली नारार्णी दे वी आपको नमस्कार है ।

रोगानशेषानपहं सि तुष्टा

रूष्टा तु कामान िकलानभीष्टान ्। त्वामासश्रतानां न त्रवपडनराणां

त्वामासश्रता हाश्रर्तां प्रर्ास्डत।

अथाातः दे वी आप प्रिडन होने पर िब रोगं को नष्ट कर दे ती हो और कुत्रपत होने पर मनोवांसछत िभी कामनाओं का नाश कर दे ती हो। जो लोग तुमहारी शरण मं जा र्ुके है । उनको त्रवपत्रि आती ही नहीं। तुमहारी शरण मं गए हुए मनुष्र् दि ू रं को शरण दे ने वाले हो जाते हं ।

िवाबाधाप्रशमनं िेलोक्र्स्र्ास्खलेश्वरी।

एवमेव त्वर्ा कार्ामस्र्ध्दै ररत्रवनाशनम ्।

अथाातः हे िवेश्वरी आप तीनं लोकं फक िमस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे िभी शिुओं का नाश करती रहो।

शांसतकमास्ण िवाि तथा द:ु स्वप्रदशाने।

ग्रहपीिािु र्ोग्रािु महात्मर्ं शणुर्ात्मम।

अथाातः िवाि शांसत कमा मं, बुरे स्वप्न फदखाई दे ने पर तथा ग्रह जसनत पीिा उपस्स्थत होने पर माहात्मर् श्रवण करना र्ाफहए। इििे िब पीिाएँ शांत और दरू हो जाती हं ।

***

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मंि सिद्ध त्रवशेष दै वी र्ंि िूसर् आद्य शत्रक्त दग ु ाा बीिा र्ंि (अंबाजी बीिा र्ंि)

िरस्वती र्ंि

महान शत्रक्त दग ु ाा र्ंि (अंबाजी र्ंि)

िप्तिती महार्ंि(िंपूणा बीज मंि िफहत)

नव दग ु ाा र्ंि

काली र्ंि

नवाणा र्ंि (र्ामुंिा र्ंि)

श्मशान काली पूजन र्ंि

नवाणा बीिा र्ंि

दस्क्षण काली पूजन र्ंि

र्ामुंिा बीिा र्ंि ( नवग्रह र्ुक्त)

िंकट मोसर्नी कासलका सित्रद्ध र्ंि

त्रिशूल बीिा र्ंि

खोफिर्ार र्ंि

बगला मुखी र्ंि

खोफिर्ार बीिा र्ंि

बगला मुखी पूजन र्ंि

अडनपूणाा पूजा र्ंि

राज राजेश्वरी वांछा कल्पलता र्ंि

एकांक्षी श्रीफल र्ंि

मंि सिद्ध त्रवशेष लक्ष्मी र्ंि िूसर् श्री र्ंि (लक्ष्मी र्ंि)

महालक्ष्मर्ै बीज र्ंि

श्री र्ंि (मंि रफहत)

महालक्ष्मी बीिा र्ंि

श्री र्ंि (िंपूणा मंि िफहत)

लक्ष्मी दार्क सिद्ध बीिा र्ंि

श्री र्ंि (बीिा र्ंि)

लक्ष्मी दाता बीिा र्ंि

श्री र्ंि श्री िूक्त र्ंि

लक्ष्मी गणेश र्ंि

श्री र्ंि (कुमा पृष्ठीर्)

ज्र्ेष्ठा लक्ष्मी मंि पूजन र्ंि

लक्ष्मी बीिा र्ंि

कनक धारा र्ंि

श्री श्री र्ंि (श्री श्री लसलता महात्रिपुर िुडदर्ै श्री

वैभव लक्ष्मी र्ंि (महान सित्रद्ध दार्क श्री महालक्ष्मी र्ंि)

महालक्ष्मर्ं श्री महा र्ंि) अंकात्मक बीिा र्ंि ताम्र पि पर िुवणा पोलीि (Gold Plated) िाईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

मूल्र् 640 1250 1850 2700 4600 8200

ताम्र पि पर रजत पोलीि (Silver Plated) िाईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

मूल्र् 460 820 1250 2100 3700 6400

ताम्र पि पर (Copper)

िाईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

र्ंि के त्रवषर् मं असधक जानकारी हे तु िंपका करं ।

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मूल्र् 370 550 820 1450 2450 4600

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र्ैि नवराि व्रत त्रवशेष लाभदार्ी होता हं ।

 सर्ंतन जोशी फहडद ु िंिकृ सत के अनुशार नववषा का शुभारं भ र्ैि माि के शुक्ल पक्ष की प्रथम सतसथ िे होता है ।

इि फदन िे विंतकालीन नवराि की शुरुआत होती हं ।

त्रवद्वानो के मतानुशार र्ैि माि के कृ ष्ण पक्ष की िमासप्त के िाथ भूलोक के पररवेश मं एक त्रवशेष पररवतान दृत्रष्टगोर्र होने लगता हं स्जिके अनेक स्तर और स्वरूप होते हं । इि दौरान ऋतुओं के पररवतान के िाथ नवरािं का तौहार मनुष्र् के जीवन मं बाह्य और आंतररक पररवतान मं एक त्रवशेष िंतुलन स्थात्रपत करने मं िहार्क होता हं । स्जि तरह बाह्य जगत मं पररवतान होता है उिी प्रकार मनुष्र् के शरीर मं भी पररवतान होता है । इि सलर्े नवराि उत्िव को आर्ोस्जत करने का उद्दे श्र् होता हं की मनुष्र् के भीतर मं उपर्ुक्त पररवतान कर उिे बाह्य पररवतान के अनुकूल बनाकर उिे स्वर्ं के और प्रकृ सत के बीर् मं िंतुलन बनार्े रखना हं । नवरािं के दौरान फकए जाने वाली पूजा-अर्ाना, व्रत इत्र्ाफद िे पर्ाावरण की शुत्रद्ध होती हं । उिीके िाथ-िाथ मनुष्र् के शरीर और भावना की भी शुत्रद्ध हो जाती हं । क्र्ोफक व्रत-उपवाि शरीर को शुद्ध करने का पारं पररक तरीका हं जो प्राकृ सतक-सर्फकत्िा का भी एक महत्वपूणा तत्व है । र्ही कारण हं की त्रवश्व के प्रार्ः िभी प्रमुख धमं मं व्रत का महत्व हं । इिी सलए फहडद ू िंस्कृ सत मं र्ुगो-र्ुगो िे नवरािं के दौरान व्रत करने का त्रवधान हं । क्र्ोकी व्रत के माध्र्म िे प्रथम मनुष्र् का शरीर शुद्ध होता हं , शरीर शुद्ध होतो मन एवं भावनाएं शुद्ध होती हं । शरीर की शुत्रद्ध के त्रबना मन व भाव की शुत्रद्ध िंभव नहीं हं । र्ैि नवरािं के दौरान िभी प्रकार के व्रत-उपवाि शरीर और मन की शुत्रद्ध मं िहार्क होते हं । नवरािं मं फकर्े गर्े व्रत-उपवाि का िीधा अिर हमारे अच्छे स्वास्थ्र् और रोगमुत्रक्त के सलर्े भी िहार्क होता हं । बिी धूम-धाम िे फकर्ा गर्ा नवरािं का आर्ोजन हमं िुखानुभसू त एवं आनंदानुभसू त प्रदान करता हं । मनुष्र् के सलए आनंद की अवस्था िबिे अच्छी अवस्था हं । जब व्र्त्रक्त आनंद की अवस्था मं होता हं तो उिके शरीर मं तनाव उत्पडन करने वाले िूक्ष्म कोष िमाप्त हो जाते हं और जो िूक्ष्म कोष उत्िस्जता होते हं वे हमारे शरीर के सलए अत्र्ंत लाभदार्क होते हं । जो हमं नई व्र्ासधर्ं िे बर्ाने के िाथ ही रोग होने की दशा मं शीघ्र रोगमुत्रक्त प्रदान करने मं भी िहार्क होते हं । नवराि मं दग ु ाािप्तशती को पढने र्ा िुनने िे दे वी अत्र्डत प्रिडन होती हं एिा शास्त्रोोक्त वर्न हं । िप्तशती का पाठ उिकी मूल भाषा िंस्कृ त मं करने पर ही पूणा प्रभावी होता हं ।

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व्र्त्रक्त को श्रीदग ु ाािप्तशती को भगवती दग ु ाा का ही स्वरूप िमझना र्ाफहए। पाठ करने िे पूवा श्रीदग ु ाािप्तशती फक पुस्तक

का इि मंि िे पंर्ोपर्ारपूजन करं -

नमोदे व्र्ैमहादे व्र्ैसशवार्ैिततंनम:। नम: प्रकृ त्र्ैभद्रार्ैसनर्ता:प्रणता:स्मताम ्॥ जो व्र्त्रक्त दग ु ाािप्तशतीके मूल िंस्कृ त मं पाठ करने मं अिमथा हं तो उि व्र्त्रक्त को िप्तश्लोकी दग ु ाा को पढने िे लाभ प्राप्त होता हं । क्र्ोफक िात श्लोकं वाले इि स्तोि मं श्रीदग ु ाािप्तशती का िार िमार्ा हुवा हं ।

जो व्र्त्रक्त िप्तश्लोकी दग ु ाा का भी न कर िके वह केवल नवााण मंि का असधकासधक जप करं । दे वी के पूजन के िमर् इि मंि का जप करे ।

जर्डती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपासलनी। दग ु ाा क्षमा सशवा धािी स्वाहा स्वधानमोऽस्तुते॥ दे वी िे प्राथाना करं -

त्रवधेफहदे त्रव कल्र्ाणंत्रवधेफहपरमांसश्रर्म ्।रूपंदेफहजर्ंदेफहर्शोदे फहफद्वषोजफह॥ अथाातः हे दे त्रव! आप मेरा कल्र्ाण करो। मुझे श्रेष्ठ िमपत्रि प्रदान करो। मुझे रूप दो, जर् दो, र्श दो और मेरे काम-क्रोध इत्र्ाफद शिुओं का नाश करो। त्रवद्वानो के अनुशार िमपूणा नवरािव्रत के पालन मं जो लोगं अिमथा हो वह नवराि के िात रािी,पांर् रािी, दं रािी और एक रािी का व्रत भी करके लाभ प्राप्त कर िकते हं । नवराि मं नवदग ु ाा की उपािना करने िे नवग्रहं का प्रकोप शांत होता हं ।

दस्क्षणावसता शंख आकार लंबाई मं 1" to 1.5" ईंर्

िुपर फाईन स्पेशल आकार लंबाई मं 180 230 280 4" to 4.5" ईंर् 280 370 460 5" to 5.5" ईंर्

2" to 2.5" ईंर्

370

460

3" to 3.5" ईंर्

460

550

0.5" ईंर्

फाईन

फाईन

640 6" to 6.5" ईंर् 820 7" to 7.5" ईंर्

िुपर फाईन स्पेशल 730 910 1050 1050

1250

1450

1250

1450

1900

1550

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2100

हमारे र्हां बिे आकार के फकमती व महं गे शंख जो आधा लीटर पानी और 1 लीटर पानी िमाने की क्षमता वाले होते हं । आपके अनुरुध पर उपलब्ध कराएं जा िकते हं ।  स्पेशल गुणविा वाला दस्क्षणावसता शंख पूरी तरह िे िफेद रं ग का होता हं ।  िुपर फाईन गुणविा वाला दस्क्षणावसता शंख फीके िफेद रं ग का होता हं । 

फाईन गुणविा वाला दस्क्षणावसता शंख दं रं ग का होता हं ।

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रासश रत्न मूंगा

हीरा

पडना

मोती

माणेक

Red Coral

Diamond (Special)

Green Emerald

Naturel Pearl (Special)

Ruby (Old Berma) (Special)

(Special) 5.25" Rs. 1050 6.25" Rs. 1250 7.25" Rs. 1450 8.25" Rs. 1800 9.25" Rs. 2100 10.25" Rs. 2800

10 cent 20 cent 30 cent 40 cent 50 cent

Rs. 4100 Rs. 8200 Rs. 12500 Rs. 18500 Rs. 23500

(Special) 5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 8.25" Rs. 19000 9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000

5.25" 6.25" 7.25" 8.25" 9.25" 10.25"

Rs. 910 Rs. 1250 Rs. 1450 Rs. 1900 Rs. 2300 Rs. 2800

2.25" 3.25" 4.25" 5.25" 6.25"

Rs. Rs. Rs. Rs. Rs.

12500 15500 28000 46000 82000

पडना

Green Emerald (Special) 5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 8.25" Rs. 19000 9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000

** All Weight In Rati

All Diamond are Full White Colour.

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

तुला रासश:

वृस्िक रासश:

धनु रासश:

मकर रासश:

कुंभ रासश:

मीन रासश:

हीरा

मूंगा

पुखराज

नीलम

नीलम

पुखराज

Diamond (Special)

Red Coral

Y.Sapphire

B.Sapphire

B.Sapphire

Y.Sapphire

(Special)

(Special)

(Special)

(Special)

(Special)

10 cent 20 cent 30 cent 40 cent 50 cent

Rs. 4100 Rs. 8200 Rs. 12500 Rs. 18500 Rs. 23500

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5.25" Rs. 1050 6.25" Rs. 1250 7.25" Rs. 1450 8.25" Rs. 1800 9.25" Rs. 2100 10.25" Rs. 2800 ** All Weight In Rati

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

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* उपर्ोक्त वजन और मूल्र् िे असधक और कम वजन और मूल्र् के रत्न एवं उपरत्न भी हमारे र्हा व्र्ापारी मूल्र् पर उप्लब्ध हं ।

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

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कैिे करे नवराि व्रत ?

 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी नव फदनं तक र्लने वाले इि पवा पर हम व्रत रखकर मां के नौ अलग-अलग रूप की पूजा फकजाती हं । इि दौरान घर मं फकर्ा जाने वाला त्रवसधवत हवन भी स्वास्थ्र् के सलए अत्र्ंत लाभप्रद हं । हवन िे आस्त्मक शांसत और वातावरण फक शुत्रद्ध के अलावा घर नकारात्मक शत्रक्तर्ं का नाश हो कर िकारात्मक शत्रक्तर्ो का प्रवेश होता हं । नवराि व्रत नवराि मं नव राि िे लेकर िात रािी,पांर् रािी, दं रािी और एक रािी व्रत करने का भी त्रवधान हं । नवराि व्रत के धासमाक महत्व के अलावा वैज्ञासनक महत्व हं , जो स्वास्थ्र् की दृत्रष्ट िे काफी लाभदार्क होता हं । व्रत करने िे शरीर मं र्ुस्ती-फुती बनी रहती हं । रोजाना कार्ा करने वाले पार्न तंि को भी व्रत के फदन आराम समलता हं । बच्र्े, बुजुग,ा बीमार, गभावती मफहला को नवराि व्रत का नहीं रखना र्ाफहए। नवराि व्रत िे िंबंसधत उपर्ोगी िुझाव 

व्रत के दौरान असधक िमर् मौन धारण करं ।



व्रत के शुरुआत मं भूख काफी लगती हं । ऐिे मं नींबू पानी त्रपर्ा जा िकता है । इििे भूख को सनर्ंत्रित रखने मं मदद समलेगी।



जहा तक िंभव हो सनजाला उपवाि न रखं। इििे शरीर मं पानी फक कमी हो जाती हं और अपसशष्ट पदाथा शरीर के बाहर नहीं आ पाते। इििे पेट मं जलन, कब्ज, िंक्रमण, पेशाब मं जलन जैिी कई िमस्र्ाएं पैदा हो िकती हं ।



एक िाथ खूब िारा पानी पीने के बजाए फदन मं कई बार नींबू पानी त्रपएं।



ज्र्ादातर लोगो को उपवाि मं अक्िर कब्ज की सशकार्त हो जाती हं । इिसलए व्रत शुरू करने के पहले त्रिफला, आंवला, पालक का िूप र्ा करे ले के रि इत्र्ाफद पदाथो का िेवन करं । इििे पेट िाफ रहता है ।



व्रत के दौरान र्ार्, काफी का िेवन काफी बढ़ जाता है । इि पर सनर्ंिण रखं।

व्रत के दौरान कौनिे खाद्य पदाथा ग्रहण करं ? 

व्रत मं अडन का िेवन वस्जात हं । स्जि कारण शरीर मं ऊजाा की कमी हो जाती हं ।



अनाज फक जगह फलं व िस्ब्जर्ं का िेवन फकर्ा जा िकता हं । इििे शरीर को जरुरी ऊजाा समलती हं ।



िुबह के िमर् आलू को फ्राई करके खार्ा जा िकता हं । आलू मं काबोहाइड्रे ट प्रर्ुर मािा मं होता है । इि सलए आलू खाने िे शरीर को ताकत समलती है ।



िुबह एक सगलाि दध ू त्रपलं। दोपहर के िमर् फल र्ा जूि लं। शाम को र्ार् पी िकते हं ।

कई लोग व्रत मं एक बार ही भोजन करते हं । ऐिे मं एक सनस्ित अंतराल पर फल खा िकते हं । रात के खाने मं सिंघािे के आटे िे बने पकवान खा िकते हं ।

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नवराि मं दे वी उपािना िे मनोकामना पूसता

 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी दे वी भागवत के आठवं स्कंध मं दे वी उपािना का त्रवस्तार िे वणान है । दे वी का पूजन-अर्ान-उपािना-िाधना इत्र्ाफद के पिर्ात दान दे ने पर लोक और परलोक दोनं िुख दे ने वाले होते हं ।  प्रसतपदा सतसथ के फदन दे वी का षोिशेपर्ार िे पूजन करके नैवेद्य के रूप मं दे वी को गार् का घृत (घी) अपाण करना र्ाफहए। मां को र्रणं र्ढ़ार्े गर्े घृत को ब्रामहणं मं बांटने िे रोगं िे मुत्रक्त समलती है ।  फद्वतीर्ा सतसथ के फदन दे वी को र्ीनी का भोग लगाकर दान करना र्ाफहए। र्ीनी का भोग लागाने िे व्र्त्रक्त दीघाजीवी होता हं ।  तृतीर्ा सतसथ के फदन दे वी को दध ू का भोग लगाकर दान करना र्ाफहए। दध ू का भोग लागाने िे व्र्त्रक्त को दख ु ं िे मुत्रक्त समलती हं ।

 र्तुथी सतसथ के फदन दे वी को मालपुआ भोग लगाकर दान करना र्ाफहए। मालपुए का भोग लागाने िे व्र्त्रक्त फक त्रवपत्रि का नाश होता हं ।  पंर्मी सतसथ के फदन दे वी को केले का भोग लगाकर दान करना र्ाफहए। केले का भोग लागाने िे व्र्त्रक्त फक बुत्रद्ध, त्रववेक का त्रवकाि होता हं । व्र्त्रक्त के पररवारीकिुख िमृत्रद्ध मं वृत्रद्ध होती हं ।  षष्ठी सतसथ के फदन दे वी को मधु (शहद, महु, मध) का भोग लगाकर दान करना र्ाफहए। मधु का भोग लागाने िे व्र्त्रक्त को िुद ं र स्वरूप फक प्रासप्त होती हं ।

 िप्तमी सतसथ के फदन दे वी को गुि का भोग लगाकर दान करना र्ाफहए। गुि का भोग लागाने िे व्र्त्रक्त के िमस्त शोक दरू होते हं ।

 अष्टमी सतसथ के फदन दे वी को श्रीफल (नाररर्ल) का भोग लगाकर दान करना र्ाफहए। गुि का भोग लागाने िे व्र्त्रक्त के िंताप दरू होते हं ।

 नवमी सतसथ के फदन दे वी को धान के लावे का भोग लगाकर दान करना र्ाफहए। धान के लावे का भोग लागाने िे व्र्त्रक्त के लोक और परलोक का िुख प्राप्त होता हं ।

मंि सिद्ध दल ा िामग्री ु भ हत्था जोिी- Rs- 370

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िप्तश्र्ललोकी दग ु ाा

दे त्रव त्वं भक्तिुलभे िवाकार्ात्रवधासर्नी।

कलौ फह कार्ासिद्धर्थामुपार्ं ब्रूफह र्ितः॥ दे व उवार्:

दग ु ाा आरती जर् अमबे गौरी मैर्ा जर् श्र्ामा गौरी। तुमको सनिफदन ध्र्ावत हरर ब्रमहा सशवरी॥१॥

श्रृणु दे व प्रवक्ष्र्ासम कलौ िवेष्टिाधनम।्

मांग सिंदरू त्रवराजत टीको मृगमदको।

त्रवसनर्ोगः

कनक िमान कलेवर रक्तामबर राजे।

मर्ा तवैव स्नेहेनाप्र्मबास्तुसतः प्रकाश्र्ते॥ ॐ अस्र् श्री दग ु ाािप्तश्लोकीस्तोिमडिस्र् नारार्ण ऋत्रषः अनुष्टपछडदः, ्

श्रीमह्मकाली महालक्ष्मी महािरस्वत्र्ो दे वताः, श्रीदग ु ााप्रीत्र्थं िप्तश्लोकीदग ु ाापाठे त्रवसनर्ोगः। ॐ ज्ञासननामत्रप र्ेतांसि दे वी भगवती फहिा। बलादाकृ ष्र् मोहार् महामार्ा प्रर्च्छसत॥ दग ु े स्मृता हरसि भीसतमशेषजडतोः

स्वस्थैः स्मृता मसतमतीव शुभां ददासि। दाररद्रर्दःु खभर्हाररस्ण त्वदडर्ा िवोपकारकरणार् िदाद्रा सर्िा॥

िवामंगलमंगल्र्े सशवे िवााथि ा ासधके। शरण्र्े त्र्र्मबके गौरर नारार्स्ण नमोऽस्तुते॥ शरणागतदीनातापररिाणपरार्णे। िवास्र्ासताहरे दे त्रव नारार्स्ण नमोऽस्तुते॥ िवास्वरूपे िवेशे िवाशत्रक्तिमस्डवते। भर्ेभ्र्स्त्रोाफह नो दे त्रव दग ु े दे त्रव नमोऽस्तुते॥ रोगानशोषानपहं सि तुष्टा रूष्टा तु कामान ् िकलानभीष्टान।्

त्वामासश्रतानां न त्रवपडनराणां त्वामासश्रता ह्माश्रर्तां प्रर्ास्डत॥ िवााबाधाप्रशमनं िैलोक्र्स्र्ास्खलेश्र्लवरर। एवमेव त्वर्ा कार्ामस्र्द्वै ररत्रवनाशनम॥् ॥ इसत श्रीिप्तश्लोकी दग ा ्॥ ु ाा िंपूणम

उज्जवल िे दोऊ नैना र्डद्रवदन नीको॥२॥ रक्त पुष्प गल माला कण्ठन पर िाजे॥३॥ केहरर वाहन राजत खड्ग खप्पर धारी। िुर नर मुसन जन िेवत सतनके दःु ख हारी॥४॥ कानन कुंिल शोसभत नािाग्रे मोती। कोफटक र्ंद्र फदवाकर राजत िम ज्र्ोसत॥५॥ शुभ ं सनशंभु त्रवदारे मफहषािुरधाती। धूम्रत्रवलोर्न नैना सनशफदन मदमाती॥६॥ र्ण्ि मुण्ि िंहारे शोस्णत बीज हरे । मधु कैटभ दोउ मारे िुर भर्हीन करे ॥७॥ ब्रमहाणी रुद्राणी तुम कमलारानी। आगम सनगम बखानी तुम सशव पटरानी॥८॥ र्ौिंठ र्ोसगनी गावत नृत्र् करत भैरुँ। बाजत ताल मृदंगा अरु िमरुँ ॥९॥ तुम ही जग की माता तुम ही हो भरता। भक्तन की दःु खहताा िुख िमपत्रि कताा॥१०॥ भुजा र्ार असत शोसभत वर मुद्रा धारी। मनवांस्च्छत फल पावे िेवत नर नारी॥११॥ कंर्न थाल त्रवराजत अगर कपुर बािी। श्री माल केतु मं राजत कोफट रतन ज्र्ोती॥१२॥ माँ अमबे जी की आरती जो कोई नर गार्े। कहत सशवानंद स्वामी िुख िंपत्रि पार्े॥१३॥

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॥दग ु ाा र्ालीिा॥ नमो नमो दग ु े िुख करनी।

मफहमा असमत नजात बखानी॥१४॥

ध्र्ावे तुमहं जो नर मन लाई।

नमो नमो दग ु े दःु ख हरनी ॥१॥

मातंगी अरु धूमावसत माता।

जडम-मरण ताकौ छुफट जाई॥२८॥

सनरं कार है ज्र्ोसत तुमहारी।

भुवनेश्वरी बगला िुख दाता॥१५॥

जोगी िुर मुसन कहत पुकारी।

सतहूँ लोक फैली उस्जर्ारी ॥२॥ शसश ललाट मुख महात्रवशाला। नेि लाल भृकुफट त्रवकराला ॥३॥ रूप मातु को असधक िुहावे।

श्री भैरव तारा जग ताररणी। सछडनभालभव दःु खसनवाररणी॥१६॥ केहरर वाहन िोह भवानी।

र्ोगन हो त्रबन शत्रक्त तुमहारी॥२९॥ शंकर आर्ारज तप कीनो। कामअरु क्रोधजीसत िब लीनो॥३०॥

लांगुर वीर र्लत अगवानी॥१७॥

सनसशफदन ध्र्ान धरो शंकर को।

कर मं खप्पर खड्ग त्रवराजै।

काहुकाल नफहं िुसमरो तुमको॥३१॥

जाको दे ख काल िर भाजै॥१८॥

शत्रक्त रूप का मरम न पार्ो।

िोहै अस्त्रो और त्रिशूला।

शत्रक्त गई तब मन पसछतार्ो॥३२॥

अडनपूणाा हुई जग पाला।

जाते उठत शिु फहर् शूला॥१९॥

शरणागत हुई कीसता बखानी।

तुम ही आफद िुडदरी बाला ॥६॥

नगरकोट मं तुमहीं त्रवराजत।

जर् जर् जर् जगदमबभवानी॥३३॥

प्रलर्काल िब नाशन हारी।

सतहुँलोक मं िं का बाजत॥२०॥

भई प्रिडन आफद जगदमबा।

दरशकरत जन असत िुखपावे ॥४॥ तुम िंिार शत्रक्त लै कीना। पालन हे तु अडन धन दीना ॥५॥

तुम गौरी सशवशंकर प्र्ारी ॥७॥ सशव र्ोगी तुमहरे गुण गावं। ब्रह्मा त्रवष्णु तुमहं सनत ध्र्ावं ॥८॥ रूप िरस्वती को तुम धारा। दे िुबुत्रद्ध ऋत्रष मुसनन उबारा ॥९॥ धरर्ो रूप नरसिंह को अमबा। परगट भई फािकर खमबा ॥१०॥

शुमभ सनशुमभ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन िंहारे ॥२१॥ मफहषािुर नृप असत असभमानी। जेफह अघ भार मही अकुलानी॥२२॥ रूप कराल कासलका धारा। िेन िफहत तुम सतफह िंहारा॥२३॥ परी गाढ़ िडतन पर जब जब।

रक्षा करर प्रह्लाद बर्ार्ो।

भईिहार् मातु तुम तब तब॥२४॥

फहरण्र्ाक्ष को स्वगा पठार्ो॥११॥

अमरपुरी अरु बािव लोका।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

तब मफहमा िब रहं अशोका॥२५॥

श्री नारार्ण अंग िमाहीं॥१२॥ क्षीरसिडधु मं करत त्रवलािा। दर्ासिडधु दीजै मन आिा॥१३॥ फहं गलाज मं तुमहीं भवानी।

दई शत्रक्त नफहं कीन त्रवलमबा॥३४॥ मोको मातु कष्ट असत घेरो। तुम त्रबन कौन हरै दःु ख मेरो॥३५॥ आशा तृष्णा सनपट ितावं। मोह मदाफदक िब त्रबनशावं॥३६॥ शिु नाश कीजै महारानी। िुसमरं इकसर्त तुमहं भवानी॥३७॥ करो कृ पा हे मातु दर्ाला। ऋत्रद्ध-सित्रद्ध दै करहु सनहाला।३८॥ जब लसग स्जऊँ दर्ा फल पाऊँ। तुमहरो र्श मं िदा िुनाऊँ॥३९॥

ज्वाला मं है ज्र्ोसत तुमहारी।

श्री दग ु ाा र्ालीिा जो कोई गावै।

तुमहं िदा पूजं नर-नारी॥२६॥

िब िुख भोग परमपद पावै॥४०॥

प्रेम भत्रक्त िे जो र्श गावं।

दोहा: दे वीदाि शरण सनज जानी।

दःु ख दाररद्र सनकट नफहं आवं॥२७॥

करहु कृ पा जगदमब भवानी॥

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श्रीकृ ष्ण कृ त दे वी स्तुसत नवराि मं श्रद्धा और प्रेमपूवक ा महाशत्रक्त भगवती दे वी की पूजा-उपािना करने िे र्ह सनगुण ा स्वरूपा दे वी पृथ्वी के िमस्त

जीवं पर दर्ा करके स्वर्ं ही िगुणभाव को प्राप्त होकर ब्रह्मा, त्रवष्णु और महे श रूप िे उत्पत्रि, पालन और िंहार कार्ा करती हं । श्रीकृ ष्ण उवार् त्वमेव िवाजननी मूलप्रकृ सतरीश्वरी। त्वमेवाद्या िृत्रष्टत्रवधौ स्वेच्छर्ा त्रिगुणास्त्मका॥१॥ कार्ााथे िगुणा त्वं र् वस्तुतो सनगुण ा ा स्वर्म ्। परब्रह्मास्वरूपा त्वं ित्र्ा सनत्र्ा िनातनी॥२॥ तेजःस्वरूपा परमा भक्तानुग्रहत्रवग्रहा। िवास्वरूपा िवेशा िवााधारा परात्पर॥३॥

िवाबीजस्वरूपा र् िवापूज्र्ा सनराश्रर्ा। िवाज्ञा िवातोभद्रा िवामंगलमंगला॥४॥ अथाातः आप त्रवश्वजननी मूल प्रकृ सत ईश्वरी हो, आप िृत्रष्ट की उत्पत्रि के िमर् आद्याशत्रक्त के रूप मं त्रवराजमान रहती हो और स्वेच्छा िे त्रिगुणास्त्मका बन जाती हो। र्द्यत्रप वस्तुतः आप स्वर्ं सनगुण ा हो तथात्रप प्रर्ोजनवश िगुण हो जाती हो। आप परब्रह्म स्वरूप, ित्र्, सनत्र् एवं िनातनी हो। परम तेजस्वरूप और भक्तं पर अनुग्रह करने आप शरीर धारण करती हं। आप िवास्वरूपा, िवेश्वरी, िवााधार एवं परात्पर हो। आप िवााबीजस्वरूप, िवापूज्र्ा एवं आश्रर्रफहत हो। आप िवाज्ञ, िवाप्रकार िे मंगल करने वाली एवं िवा मंगलं फक भी मंगल हो।

ऋग्वेदोक्त दे वी िूक्तम ् अहसमत्र्ष्टर्ास्र् िूक्त स्र् वागामभृणी ऋत्रष: िस्च्र्त्िुखात्मक: िवागत: परमात्मा दे वता, फद्वतीर्ार्ा ऋर्ो जगती, सशष्टानां त्रिष्टु प ् छडद:, दे वीमाहात्मर् पाठे त्रवसनर्ोगः। ध्र्ानम ् सिंहस्था शसशशेखरा मरकतप्रख्र्ैितुसभाभज ुा ै: शङ्खं र्क्रधनु:शरांि दधती नेिैस्स्त्रोसभ: शोसभता। आमुक्ताङ्गदहारकङ्कणरणत्काञ्र्ीरणडनूपुरा दग ु ाा दग ु सा तहाररणी भवतु नो रत्नोल्लित्कुण्िला॥

दे वीिूक्तम ् अहं रुद्रे सभवािसु भिरामर्हमाफदत्र्ैरुत त्रवश्वदे वःै । अहं समिावरुणोभा त्रबभमर्ाहसमडद्राग्नी अहमसश्र ्वनोभा॥१॥ अहं िोममाहनिं त्रबभमर्ाहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम ्। अहं दधासम द्रत्रवणं हत्रवष्मते िुप्राव्र्े र्जमानार् िुडवते॥२॥ अहं राष्ट्री िंगमनी विूनां सर्फकतुषी प्रथमा र्स्ज्ञर्ानाम ्। तां मा दे वा व्र्दधु: पुरुिा भूररस्थािां भूय्र्र्ावेशर्डतीम ्॥३॥ मर्ािो अडनमत्रि र्ोत्रवपश्र्सत र्: प्रास्णसत र्ईश्रृणोत्र्ुक्त म ्। अमडतवो मां तउप स्क्षर्स्डत श्रुसधश्रुत श्रत्रद्धवं ते वदासम॥४॥ अहमेव स्वर्समदं वदासम जुष्टं दे वेसभरुत मानुषसे भः। र्ं कामर्े तं तमुग्रं कृ णोसम तं ब्रह्माणं तमृत्रषं तं िुमेधाम ्॥५॥ अहं रुद्रार् धनुरा तनोसम ब्रह्मफद्वषे शरवे हडतवा उ। अहं जनार् िमदं कृ णोमर्हं द्यावापृसथवीआत्रववेश॥६॥ अहं िुवे त्रपतरमस्र् मूधड ा मम र्ोसनरप्स्वडत: िमुद्रे। ततो त्रव सतष्ठे भुवनानु त्रवश्वोतामूं द्यां वष्माणोप स्पशसम॥७॥ अहमेव वात इव प्रवामर्ारभमाणा भुवनासन त्रवश्वा। परो फदवा पर एना पृसथव्र्ैतावती मफहना िंबभूव॥८॥

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॥ सिद्धकुंस्जकास्तोिम ् ॥ सशव उवार्

ऐंकारी िृत्रष्टरूपार्ै ह्रींकारी प्रसतपासलका।

र्ेन मडिप्रभावेण र्ण्िीजापः शुभो भवेत॥१॥ ्

र्ामुण्िा र्ण्िघाती र् र्ैकारी वरदासर्नी॥४॥

शृणु दे त्रव प्रवक्ष्र्ासम कुंस्जकास्तोिमुिमम।्

क्लींकारी कामरूत्रपण्र्ै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥३॥

न कवर्ं नागालास्तोिं कीलकं न रहस्र्कम।्

त्रवच्र्े र्ाभर्दा सनत्र्ं नमस्ते मंिरूत्रपस्ण।

न िूक्तं नात्रप ध्र्ानं र् न डर्ािो न र् वार्ानम॥२॥ ्

धां धीं धूं धूजट ा े ः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी॥५॥

कुंस्जकापाठमािेण दग ु ाापाठफलं लभेत।्

क्रां क्रीं क्रूं कासलका दे त्रव शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥

असत गुह्यतरं दे त्रव दे वानामत्रप दल ा म॥३॥ ् ु भ

हुं हुं हुंकाररूत्रपण्र्ै जं जं जं जमभनाफदनी।

गोपनीर्ं प्रर्त्नेन स्वर्ोसनररव पावासत।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवाडर्ै ते नमो नमः

मारणं मोहनं वश्र्ं स्तमभनोच्र्ाटनाफदकम।्

अं कं र्ं टं तं पं र्ं शं वीं दं ु ऐं वीं हं क्षं॥७॥

पाठमािेण िंसिद्धर्ेत ् कुंस्जकास्तोिमुिमम॥४॥ ्

सधजाग्रं सधजाग्रं िोटर् िोटर् दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥

अथ मंि

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं र्ामुण्िार्ै त्रवच्र्े। ॐ ग्लं हंु क्लीं जूं िः ज्वालर् ज्वालर् ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं र्ामुण्िार्ै त्रवच्र्े ज्वल हं िं लं क्षं फट् स्वाहा इसत मंिः

नमस्ते रुद्ररूत्रपण्र्ै नमस्ते मधुमफदासन।

नमः कैटभहाररण्र्ै नमस्ते मफहषाफदासन॥१॥

नमस्ते शुमभहडत्र्र्ै र् सनशुमभािुरघासतसन।

पां पीं पूं पावाती पूणाा खां खीं खूं खेर्री तथा ॥८॥ िां िीं िूं िप्तशती दे व्र्ा मंिसित्रद्धं कुरुष्व मे॥ इदं तु कुंस्जकास्तोिं मंिजागसताहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्र्ं गोत्रपतं रक्ष पावासत॥

र्स्तु कुंस्जकर्ा दे त्रव हीनां िप्तशतीं पठे त।् न तस्र् जार्ते सित्रद्धररण्र्े रोदनं र्था॥ । इसत श्री कुंस्जकास्तोिम ् िंपूणम ा ्।

जाग्रतं फह महादे त्रव जपं सिद्धं कुरुष्व मे॥२॥

दग ु ााष्टकम ्

दग ु े परे सश शुभदे सश परात्परे सश।

पूज्र्े महावृषभवाफहसन मंगलेसश।

मोक्षेऽस्स्थरे त्रिपुरिुडदररपाटलेसश।

स्तुत्र्े स्वधे िकलतापहरे िुरेसश।

रमर्ेधरे िकलदे वनुते गर्ेसश।

तृष्णे तरं सगस्ण बले गसतदे ध्रुवेसश।

वडद्ये महे शदसर्तेकरुणाणावेसश।

कृ ष्णस्तुते कुरु कृ पां लसलतेऽस्खलेसश॥१॥ फदव्र्े नुते श्रुसतशतैत्रवामले भवेसश। कडदपादारशतर्ुडदरर माधवेसश।

मेधे सगरीशतनर्े सनर्ते सशवेसश।

कृ ष्णस्तुते कुरु कृ पां लसलतेऽस्खलेसश॥२॥ रािेश्वरर प्रणततापहरे कुलेसश। धमात्रप्रर्े भर्हरे वरदाग्रगेसश।

वाग्दे वते त्रवसधनुते कमलािनेसश।

कृ ष्णस्तुतेकुरु कृ पां लसलतेऽस्खलेसश॥३॥

पद्मे फदगमबरर महे श्वरर काननेसश। कृ ष्णस्तुते कुरु कृ पा लसलतेऽस्खलेसश॥४॥ श्रद्धे िुराऽिुरनुते िकले जलेसश। गंगे सगरीशदसर्ते गणनार्केसश।

दक्षे स्मशानसनलर्े िुरनार्केसश।

कृ ष्णस्तुते कुरु कृ पां लसलतेऽस्खलेसश॥५॥ तारे कृ पाद्रानर्ने मधुकैटभेसश।

त्रवद्येश्वरे श्वरर र्मे सनखलाक्षरे सश।

ऊजे र्तुःस्तसन िनातसन मुक्तकेसश।

कृ ष्णस्तुते कुरु कृ पां लसलतऽस्खलेसश॥६॥

माहे श्वरर त्रिनर्ने प्रबले मखेसश।

कृ ष्णस्तुते कुरु कृ पां लसलतेऽस्खलेसश॥७॥ त्रवश्वमभरे िकलदे त्रवफदते जर्ेसश।

त्रवडध्र्स्स्थते शसशमुस्ख क्षणदे दर्ेसश। मातः िरोजनर्ने रसिके स्मरे सश।

कृ ष्णस्तुते कुरु कृ पां लसलतेऽस्खलेसश॥८॥ दग ु ााष्टकं पठसत र्ः प्रर्तः प्रभाते

िवााथद ा ं हररहराफदनुतां वरे ण्र्ाम।्

दग ु ां िुपूज्र् मफहतां त्रवत्रवधोपर्ारै ः

प्राप्नोसत वांसछतफलं न सर्राडमनुष्र्ः॥९॥ ॥ इसत श्री दग ा ्॥ ु ााष्टकं िमपूणम

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॥ भवाडर्ष्टकम ् ॥ न तातो न माता न बडधुना दाता

कुकमी कुिंगी कुबुत्रद्ध कुदािः

न पुिो न पुिी न भृत्र्ो न भताा।

कुलार्ारहीनः कदार्ारलीनः।

न जार्ा न त्रवद्या न वृत्रिमामैव

कुदृत्रष्टः कुवाक्र्प्रबंधः िदाऽह

गसतस्त्वं गसतस्त्वं त्वमेका भवासन॥१॥

गसतस्त्व गसतस्त्वं त्वमेका भवासन॥५॥

भवाब्धावपारे महादःु खभीरुः

प्रजेशं रमेशं महे शं िुरेशं

कुिंिार-पाश-प्रबद्धः िदाऽहं

न जानासम र्ाऽडर्त ् िदाऽहं शरण्र्े

पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमिः। गसतस्त्वं गसतस्त्वं त्वमेका भवासन॥२॥

फदनेशं सनशीथेश्वरं वा कदासर्त।्

गसतस्त्वं गसतस्त्वं त्वमेका भवासन॥६॥

न जानासम दानं न र् ध्र्ान-र्ोगं

त्रववादे त्रवषादे प्रमादे प्रवािे

न जानासम तंि न र् स्तोि-मडिम।्

जले र्ाऽनले पवाते शिुमध्र्े।

न जानासम पूजां न र् डर्ािर्ोगं

अरण्र्े शरण्र्े िदा मां प्रपाफह

गसतस्त्वं गसतस्त्वं त्वमेका भवासन॥३॥

गसतस्त्वं गसतस्त्वं त्वमेका भवासन॥७॥

न जानासम पुण्र्ं न जानासन तीथं

अनाथो दररद्रो जरा-रोगर्ुक्तो

न जानासम मुत्रक्तं लर्ं वा कदासर्त।्

महाक्षीणदीनः िदा जाड्र्वक्िः।

न जानासम भत्रक्त व्रतं वाऽत्रप मात-

त्रवपिौ प्रत्रवष्टः प्रणष्टः िदाऽहं

गासतस्त्वं गसतस्त्वं त्वमेका भवासन॥४॥

गसतस्त्वं गसतस्त्वं त्वमेका भवासन॥८॥ ॥ इसत श्रीभवाडर्ष्टकं िंपूणम ा ्॥

क्षमा-प्राथाना अपराधिहस्त्रोास्ण फक्रर्डतेऽहसनाशं मर्ा। दािोऽर्समसत मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरर॥१॥ आवाहनं न जानासम न जानासम त्रविजानम ्। पूजां र्ैव न जानासम क्षमर्तां परमेश्वरर॥२॥ मडिहीनं फक्रर्ाहीनं भत्रक्तहीनं िुरेश्वरर। र्त्पूस्जतं मर्ा दे त्रव पररपूणा तदस्तु मे॥३॥

अपराधशतं कृ त्वा जगदमबेसत र्ोच्र्रे त ्। र्ां गसतं िमवापनेसत न तां ब्रह्मादर्: िुराः॥४॥

िापराधोऽस्स्म शरणं प्राप्तस्त्वां जगदस्मबके। इदानीमनुकमप्र्ोऽहं र्थेच्छसि तथा कुरु॥५॥ अज्ञानाफद्वस्मृतेभ्रराडत्र्ा र्डडर्ूनमसधकं कृ तम ्। तत्िवा क्षमर्तां दे त्रव प्रिीद परमेश्वरर॥६॥ कामेश्वरर जगडमात: िस्च्र्दानडदत्रवग्रहे । गृहाणार्ाासममां प्रीत्र्ा प्रिीद परमेश्वरर॥७॥

गुह्यासतगुह्यगोप्िी त्वं गृहाणास्मत्कृ तं जपम ्। सित्रद्धभावतु मे दे त्रव त्वत्प्रिादात्िुरेश्वरर॥८॥

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दग ु ााष्टोिर शतनाम स्तोिम ्

शतनाम प्रवक्ष्र्ासम शृणुष्व कमलानने।

अनेकशस्त्रोहस्ता र् अनेकास्त्रोस्र् धाररणी।

र्स्र् प्रिादमािेण दग ु ाा प्रीता भवेत ् िती॥१॥

कुमारी र्ैककडर्ा र् कैशोरी र्ुवती र्सतः॥१२॥

िती िाध्वी भवप्रीता भवानी भवमोर्नी।

अप्रौढा र्ैव प्रौढा र् वृद्धमाता बलप्रदा।

आर्ाा दग ु ाा जर्ा र्ाद्या त्रिनेिा शूलधाररणी॥२॥

महोदरी मुक्त केशी घोररूपा महाबला॥१३॥

त्रपनाकधाररणी सर्िा र्ण्िघण्टा महातपाः।

अस्ग्नज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्स्वनी।

मनो बुत्रद्धरहं कारा सर्िरूपा सर्ता सर्सतः॥३॥

नारार्णी भद्रकाली त्रवष्णुमार्ा जलोदरी॥१४॥

िवामडिमर्ी ििा ित्र्ानडदस्वरूत्रपणी।

सशवदत ू ी कराली र् अनडता परमेश्वरी।

अनडता भात्रवनी भाव्र्ा भव्र्ाभव्र्ा िदागसतः॥४॥ शामभवी दे वमाता र् सर्डता रत्नत्रप्रर्ा िदा। िवात्रवद्या दक्षकडर्ा दक्षर्ज्ञत्रवनासशनी॥५॥

कात्र्ार्नी र् िात्रविी प्रत्र्क्षा ब्रह्मवाफदनी॥१५॥ र् इदं प्रपठे स्डनत्र्ं दग ु ाानामशताष्टकम ्।

नािाध्र्ं त्रवद्यते दे त्रव त्रिषु लोकेषु पावासत॥१६॥

अपणाानेकवणाा र् पाटला पाटलावती।

धनं धाडर्ं िुतं जार्ां हर्ं हस्स्तनमेव र्।

पट्टामबरपरीधाना कलमञ्जीररस्ञ्जनी॥६॥

र्तुवग ा ा तथा र्ाडते लभेडमुत्रक्तं र् शाश्वतीम ्॥१७॥

अमेर्त्रवक्रमा क्रूरा िुडदरी िुरिुडदरी।

कुमारीं पूजसर्त्वा तु ध्र्ात्वा दे वीं िुरेश्वरीम ्।

वनदग ु ाा र् मातङ्गी मतङ्गमुसनपूस्जता॥७॥

पूजर्ेत ् परर्ा भक्त्र्ा पठे डनामशताष्टकम ्॥१८॥

ब्राह्मी माहे श्वरी र्ैडद्री कौमारी वैष्णवी तथा।

तस्र् सित्रद्धभावेद् दे त्रव िवै: िुरवरै रत्रप।

र्ामुण्िा र्ैव वाराही लक्ष्मीि पुरुषाकृ सतः॥८॥ त्रवमलोत्कत्रषाणी ज्ञाना फक्रर्ा सनत्र्ा र् बुत्रद्धदा। बहुला बहुलप्रेमा िवावाहनवाहना॥९॥

राजानो दाितां र्ास्डत राज्र्सश्रर्मवापनुर्ात ्॥१९॥ गोरोर्नालक्त ककुङ्कुमेन सिडदरू कपूरा मधुिर्ेण।

त्रवसलख्र् र्डिं त्रवसधना त्रवसधज्ञो भवेत ् िदा धारर्ते

सनशुमभशुमभहननी मफहषािुरमफदा नी।

पुराररः॥२०॥

मधुकैटभहडिी र् र्ण्िमुण्ित्रवनासशनी॥१०॥

भौमावास्र्ासनशामग्रे र्डद्रे शतसभषां गते।

िवाािुरत्रवनाशा र् िवादानवघासतनी।

त्रवसलख्र् प्रपठे त ् स्तोिं ि भवेत ् िमपदां पदम ्॥२१॥

िवाशास्त्रोमर्ी ित्र्ा िवाास्त्रोधाररणी तथा॥११॥

शादी िंबंसधत िमस्र्ा क्र्ा आपके लिके-लिकी फक आपकी शादी मं अनावश्र्क रूप िे त्रवलमब हो रहा हं र्ा उनके वैवाफहक जीवन मं खुसशर्ां कम होती जारही हं और िमस्र्ा असधक बढती जारही हं । एिी स्स्थती होने पर अपने लिके-लिकी फक कुंिली का अध्र्र्न अवश्र् करवाले और उनके वैवाफहक िुख को कम करने वाले दोषं के सनवारण के उपार्ो के बार मं त्रवस्तार िे जनकारी प्राप्त करं ।

GURUTVA KARYALAY

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50

मार्ा 2012

त्रवश्वंभरी स्तुसत त्रवश्वंभरी स्तुसत मूल रुपिे गुजराती मं वल्लभ भट्ट द्वारा सलखी गई हं । स्वस्स्तक.ऎन.जोशी त्रवश्वंभरी अस्खल त्रवश्वतणी जनेता।

रे रे भवानी बहु भूल थई ज मारी।

त्रवद्या धरी वदनमां विजो त्रवधाता॥

आ स्जंदगी थई मने असतशे अकारी॥

दब ु त्रुा द्ध दरु करी िद्दबुत्रद्ध आपो।

दोषो प्रजासळ िधळा तव छाप छापो।

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥१॥

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥७॥

भूलो पफि भवरने भटकुं भवानी।

खाली न कोइ स्थळ छे त्रवण आप धारो।

िुझे नफह लगीर कोइ फदशा जवानी॥

ब्रह्मांिमां अणु-अणु महीं वाि तारो॥

भािे भर्ंकर वळी मनना उतापो।

शत्रक्त न माप गणवा अगस्णत मापो।

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥२॥

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥८॥

आ रं कने उगरवा नथी कोइ आरो।

पापो प्रपंर् करवा बधी रीते पूरो।

जडमांध छु जननी हु ग्रही हाथ तारो॥

खोटो खरो भगवती पण हुं तमारो॥

ना शुं िुणो भगवती सशशुना त्रवलापो।

जािर्ांधकार करी दरू िुबुत्रद्ध स्थापो।

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥३॥

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥९॥

मा कमा जडम कथनी करतां त्रवर्ारु।

शीखे िुणे रसिक छं द ज एक सर्िे।

आ िृत्रष्टमां तुज त्रवना नथी कोइ मारु॥

तेना थकी त्रित्रवध ताप टळे खसर्ते॥

कोने कहुं कठण काळ तणो बळापो।

बुत्रद्ध त्रवशेष जगदं ब तणा प्रतापो।

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥४॥

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥१०॥

हुं काम क्रोध मध मोह थकी भरे लो।

श्री िदगुरु शरनमां रहीने र्जुं छुं।

आिं बरे असत धणो मद्थी छकेलो॥

रात्रि फदने भगवती तुजने भजुं छु॥

दोषो बधा दरू करी माफ पापो।

िदभक्त िेवक तणा पररताप र्ापो।

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥५॥

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥११॥

ना शास्त्रोना श्रवणनु पर्ःपान पीधु।

अंतर त्रवषे असधक उसमा थतां भवानी।

ना मंि के स्तुसत कथा नथी काइ कीधु॥

गाऊ स्तुसत तव बळे नमीने मृिानी॥

श्रद्धा धरी नथी कर्ाा तव नाम जापो।

िंिारना िकळ रोग िमूळ कापो।

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥६॥

माम ् पाफह ॐ भगवती भव दःु ख कापो ॥१२॥

मार्ा 2012

51

मफहषािुरमफदासनस्तोिम ् ||भगवतीपद्यपुष्पांजसलस्तोि मफहषािुरमफदा सनस्तोिम ् || श्री त्रिपुरिुडदर्ै नमः || भगवती भगवत्पदपङ्कजं भ्रमरभूतिुरािुरिेत्रवतम ् | िुजनमानिहं िपररस्तुतं कमलर्ाऽमलर्ा सनभृतं भजे ||१|| ते उभे असभवडदे ऽहं

त्रवघ्नेशकुलदै वते

|

नरनागाननस्त्वेको

नरसिंह

नमोऽस्तुते

||२||

हररगुरुपदपद्मं

शुद्धपद्येऽनुरागाद्

त्रवगतपरमभागे िस्डनधार्ादरे ण | तदनुर्रर करोसम प्रीतर्े भत्रक्तभाजां भगवसत पदपद्मे पद्यपुष्पाञ्जसलं ते ||३|| केनैते रसर्ताः कुतो न सनफहताः शुमभादर्ो दम ा ाः केनैते तव पासलता इसत फह तत ् प्रश्ने फकमार्क्ष्महे | ब्रह्माद्या अत्रप शंफकताः ु द स्वत्रवषर्े

र्स्र्ाः

प्रिादावसध

प्रीता

िा

मफहषािुरप्रमसथनीच््द्यादवद्यासन

मे

||४||

पातु

श्रीस्तु

र्तुभज ुा ा

फकमु

र्तुबााहोमाहौजाडभुजान ् धिेऽष्टादशधा फह कारणगुणाडकार्े गुणारमभकाः | ित्र्ं फदक्पसतदस्डतिंख्र्भुजभृच्छमभुः स्वय्ममभूः स्वर्ं धामैकप्रसतपिर्े फकमथवा पातुं दशाष्टौ फदशः ||५|| प्रीत्र्ाऽष्टादशिंसमतेषु र्ुगपद्द्वीपेषु दातुं वरान ् िातुं वा भर्तो त्रबभत्रषा भगवत्र्ष्टादशैतान ् भुजान ् | र्द्वाऽष्टादशधा भुजांस्तु त्रबभृतः काली िरस्वत्र्ुभे मीसलत्वैकसमहानर्ोः प्रथसर्तुं िा त्वं रमे रक्षमाम ् ||६|| असर् सगररनंफदसन नंफदतमेफदसन त्रवश्वत्रवनोफदसन नंदनुते सगररवर त्रवंध्र् सशरोसधसनवासिसन त्रवष्णुत्रवलासिसन स्जष्णुनुते | भगवसत हे सशसतकण्ठकुटु ं त्रबसन भूरर कुटु ं त्रबसन भूरर कृ ते जर् जर् हे मफहषािुरमफदासन रमर्कपफदा सन

शैलिुते

||१||||७||

िुरवरवत्रषास्ण

दध ु रा धत्रषास्ण

दम ुा मत्रषास्ण ु ख

हषारते

त्रिभुवनपोत्रषस्ण

शंकरतोत्रषस्ण

फकस्ल्बषमोत्रषस्ण घोषरते | दनुज सनरोत्रषस्ण फदसतिुत रोत्रषस्ण दम ा शोत्रषस्ण सिडधुिुते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन ु द रमर्कपफदा सन शैलिुते ||२||||८|| असर् जगदं ब मदं ब कदं ब वनत्रप्रर् वासिसन हािरते सशखरर सशरोमस्ण तुङ्ग फहमालर् शृग ं सनजालर् मध्र्गते | मधु मधुरे मधु कैटभ गंस्जसन कैटभ भंस्जसन रािरते जर् जर् हे मफहषािुरमफदासन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||३||||९|| असर् शतखण्ि त्रवखस्ण्ित रुण्ि त्रवतुस्ण्ित शुण्ि गजासधपते ररपु गज गण्ि त्रवदारण र्ण्ि पराक्रम शुण्ि मृगासधपते | सनज भुज दण्ि सनपासतत खण्ि त्रवपासतत मुण्ि भटासधपते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||४||||१०|| असर् रण दम ा शिु वधोफदत दध ु द ु रा सनजार शत्रक्तभृते र्तुर त्रवर्ार धुरीण महासशव दत ू कृ त प्रमथासधपते | दरु रत दरु ीह दरु ाशर् दम ु सा त दानवदत ू कृ तांतमते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदासन शैलिुते ||५||||११|| असर् शरणागत वैरर वधूवर वीर वराभर् दार्करे त्रिभुवन मस्तक शूल त्रवरोसध सशरोसध कृ तामल शूलकरे | दसु मदसु म तामर दं द ु सु भनाद महो मुखरीकृ त सतग्मकरे जर् जर् हे मफहषािुरमफदासन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||६||||१२|| असर् सनज हुँकृसत माि सनराकृ त धूम्र त्रवलोर्न धूम्र शते िमर त्रवशोत्रषत शोस्णत बीज िमुद्भव शोस्णत बीज लते | सशव सशव शुभ ं सनशुभ ं महाहव तत्रपात भूत त्रपशार्रते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||७||||१३|| धनुरनु िंग रणक्षणिंग पररस्फुर दं ग नटत्कटके कनक त्रपशंग पृषत्क सनषंग रिद्भट शृंग हतावटु के | कृ त र्तुरङ्ग

बलस्क्षसत

रङ्ग

घटद्बहुरङ्ग

रटद्बटु के

जर्

जर्

हे

मफहषािुरमफदा सन

रमर्कपफदा सन

शैलिुते

||१४||

मार्ा 2012

52

िुरललनाततथेसर्तथेसर्तथासभनर्ोिरनृत्र्रते

हाित्रवलािहुलािमसर्

प्रणताताजनेऽसमतप्रेमभरे

|

सधसमफकटसधक्कटसधकटसधसमध्वसनघोरमृदंगसननादरते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||८||||१५|| जर् जर् जप्र् जर्ेजर् शब्द परस्तुसत तत्पर त्रवश्वनुते झण झण स्झस्ञ्जसम स्झंकृत नूपुर सिंस्जत मोफहत भूतपते | नफटत नटाधा नटीनट नार्क नाफटत नाट्र् िुगानरते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदासन शैलिुते ||९||||१६|| असर् िुमनः िुमनः िुमनः िुमनः िुमनोहर कांसतर्ुते सश्रत रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्िवृते | िुनर्न त्रवभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमरासधपते जर् जर् हे मफहषािुरमफदासन रमर्कपफदासन शैलिुते ||१०||||१७|| िफहत महाहव मल्लम तस्ल्लक मस्ल्लत रल्लक मल्लरते त्रवरसर्त वस्ल्लक पस्ल्लक मस्ल्लक स्झस्ल्लक सभस्ल्लक वगा वृते | सितकृ त फुस्ल्लिमुल्ल सितारुण तल्लज पल्लव िल्लसलते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदासन शैलिुते ||११||||१८|| अत्रवरल गण्ि गलडमद मेदरु मि मतङ्गज राजपते त्रिभुवन भूषण भूत कलासनसध रूप पर्ोसनसध राजिुते | असर् िुद तीजन लालिमानि मोहन मडमथ राजिुते जर् जर् हे मफहषािुरमफदासन रमर्कपफदासन शैलिुते ||१२||||१९|| कमल दलामल कोमल कांसत कलाकसलतामल भाललते िकल त्रवलाि कलासनलर्क्रम केसल र्लत्कल हंि कुले | असलकुल िङ्कुल कुवलर् मण्िल मौसलसमलद्भकुलासल कुले जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||१३||||२०|| कर मुरली रव वीस्जत कूस्जत लस्ज्जत कोफकल मञ्जुमते समसलत पुसलडद मनोहर गुस्ञ्जत रं स्जतशैल सनकुञ्जगते | सनजगुण भूत महाशबरीगण िद्गण ृ केसलतले जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||१४||||२१|| कफटतट पीत ु िंभत दक ु िडनख र्ंद्र रुर्े | स्जत कनकार्ल ु ू ल त्रवसर्ि मर्ूखसतरस्कृ त र्ंद्र रुर्े प्रणत िुरािुर मौसलमस्णस्फुर दं शल मौसलपदोस्जात सनभार कुंजर कुंभकुर्े जर् जर् हे मफहषािुरमफदासन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||१५||||२२|| त्रवस्जत िहस्रकरै क िहस्रकरै क िहस्रकरै कनुते कृ त िुरतारक िङ्गरतारक िङ्गरतारक िूनुिुते | िुरथ िमासध िमानिमासध िमासधिमासध िुजातरते जर् जर् हे मफहषािुरमफदासन रमर्कपफदासन शैलिुते ||१६||||२३|| पदकमलं करुणासनलर्े वररवस्र्सत

र्ोऽनुफदनं

ि

सशवे

असर्

कमले

कमलासनलर्े

कमलासनलर्ः

ि

कथं



भवेत ् |

तव

पदमेव

परं पदसमत्र्नुशीलर्तो मम फकं न सशवे जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||१७||||२४|| कनकलित्कल सिडधु जलैरनु सिस्ञ्र्नुते गुण रङ्गभुवं भजसत ि फकं न शर्ीकुर् कुंभ तटी परररं भ िुखानुभवम ् | तव र्रणं शरणं करवास्ण नतामरवास्ण सनवासि सशवं जर् जर् हे मफहषािुरमफदासन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||१८||||२५|| तव त्रवमलेडदक ु ु लं वदनेडदम ु लं िकलं ननु कूलर्ते फकमु पुरुहूत पुरीडदम ु ुखी िुमुखीसभरिौ त्रवमुखीफक्रर्ते | मम तु मतं सशवनामधने भवती कृ पर्ा फकमुत फक्रर्ते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||१९||||२६|| असर् मसर् दीनदर्ालुतर्ा कृ पर्ैव त्वर्ा

भत्रवतव्र्मुमे

असर्

जगतो

जननी

कृ पर्ासि

र्थासि

तथाऽनुसमतासिरते

|

र्दसु र्तमि

भवत्र्ुररर

कुरुतादरु ु तापमपाकुरुते जर् जर् हे मफहषािुरमफदा सन रमर्कपफदा सन शैलिुते ||२०||||२७|| स्तुसतसमतस्स्तसमतः िुिमासधना सनर्मतोऽर्मतोऽनुफदनं पठे त ् | परमर्ा रमर्ात्रप सनषेव्र्ते पररजनोऽररजनोऽत्रप र् तं भजेत ् ||२८|| रमर्सत फकल कषास्तेषु सर्िं नराणामवरजवर र्स्माद्रामकृ ष्णः कवीनाम ् | अकृ त िुकृसतगमर्ं रमर्पद्दै कहमर्ं स्तवनमवनहे तुं प्रीतर्े त्रवश्वमातुः ||२९|| इडदरु मर्ो मुहुत्रबाडदरु मर्ो मुहुत्रबाडदरु मर्ो र्तः िोऽनवद्यः स्मृतः | श्रीपतेः िूनूना काररतो र्ोऽधुना त्रवश्वमातुः पदे पद्यपुष्पाञ्जसलः ||३०||

|| इसत श्रीभगवतीपद्यपुष्पाञ्जसलस्तोिम ् ||

मार्ा 2012

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दव ु ाा पूजन मं रखे िावधासनर्ां

 सर्ंतन जोशी  माता दग ु ाा की पूजा करने वाले िाधकं को उपािना िंबंधी इन बातं का ध्र्ान रखना लाभदार्क रहता हं । त्रवद्वानो के मत मं शास्त्रोोक्त त्रवधान िे एक ही घर मं तीन शत्रक्तर्ं की पूजा करना वस्जात हं ।

 दे वीपीठ पर वाद्य-शहनाई का वादन नहीं करं ।

 भगवती दग ु ाा का आह्वान त्रबल्व पि, त्रबल्व शाखा र्ा त्रिशूल पर ही फकर्ा जाना र्ाफहए।

 दे वी दग ु ाा को केवल लाल कनेर और िुगंसधत पुष्प असत त्रप्रर् हं । इि सलर्े आराधना मं िुगंसधत पुष्प ही लं।

 नवराि मं कलश की स्थापना केवल फदन मं करनी र्ाफहए।  मां भगवती की प्रसतमा हमेशा लाल वस्त्रो िे त्रबराजीत रहे ।  दे वी को भी लाल रं ग की र्ुनरी र्ढाएं।

नवराि मं नवाणा मंि जप दे वी मां के िामने लाल आिन पर बैठकर लाल र्ंदन की माला िे करना लाभ प्रद होता हं ।

कनकधारा र्ंि आज के र्ुग मं हर व्र्त्रक्त असतशीघ्र िमृद्ध बनना र्ाहता हं । धन प्रासप्त हे तु प्राण-प्रसतत्रष्ठत कनकधारा र्ंि के िामने बैठकर कनकधारा स्तोि का पाठ करने िे त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं । इि कनकधारा र्ंि फक पूजा अर्ाना करने िे ऋण और दररद्रता िे शीघ्र मुत्रक्त समलती हं । व्र्ापार मं उडनसत होती हं , बेरोजगार को रोजगार प्रासप्त होती हं । श्री आफद शंकरार्ार्ा द्वारा कनकधारा स्तोि फक रर्ना कुछ इि प्रकार फक हं , स्जिके श्रवण एवं पठन करने िे आि-पाि के वार्ुमि ं ल मं त्रवशेष अलौफकक फदव्र् उजाा उत्पडन होती हं । फठक उिी प्रकार िे कनकधारा र्ंि अत्र्ंत दल ु ाभ र्ंिो मं िे एक र्ंि हं स्जिे मां लक्ष्मी फक प्रासप्त हे तु अर्ूक प्रभावा शाली माना गर्ा हं । कनकधारा र्ंि को त्रवद्वानो ने स्वर्ंसिद्ध तथा िभी प्रकार के ऐश्वर्ा प्रदान करने मं िमथा माना हं । जगद्गरु ु शंकरार्ार्ा ने दररद्र ब्राह्मण के घर कनकधारा स्तोि के पाठ िे स्वणा वषाा कराने का उल्लेख ग्रंथ शंकर फदस्ग्वजर् मं समलता हं । कनकधारा मंि:- ॐ वं श्रीं वं ऐं ह्रीं-श्रीं क्लीं कनक धारर्ै स्वाहा'

मूल्र्: Rs.550 िे Rs.8200 तक

गुरुत्व कार्ाालर् िंपका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

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श्रीदग ु ााअष्टोिर शतनाम पूजन

मार्ा 2012

 त्रवजर् ठाकुर

िंकल्पः

ऋष्र्ाफद डर्ािः

ॐ तत्ित ् अद्यैतस्र् ब्रह्मणोफि फद्वतीर् प्रहराद्धे श्वेत वराह

श्रीनारद-ऋषर्े नमः। सशरसि, गार्िी छडदिे नमः। मुख,े

क्षेिे कसलर्ुगे कसल प्रथम र्रणे अमुक िमवत्िरे अमुक

शक्तर्े नमः। पादर्ो, ॐ कीलकार् नमः। नाभौ, श्रीदग ु ाा-

कल्पे जमबू-द्वीपे भरत खण्िे आर्ाावता दे शे अमुक पुण्र् मािे अमुक पक्षे अमुक सतथौ अमुक वािरे अमुक गोिो अमुक (शमाा, वमाा अपने र्ा स्जिके सलर्े अनुष्ठान कर रहे हो उनके नाम का उच्र्ारण करं ।) अहं श्रीदग ु ाा-प्रीत्र्थे

श्रीदग ु ाा दे वतार्ै नमः। हृफद, दं ु बीजार् नमः। गुह्य,े ह्रीं प्रीत्र्थं श्रीदग ु ाा अष्टोिर शत नाम पूजने त्रवसनर्ोगार् नमः। िवांगे।

अष्टोिर शत नाम मडिैः र्था शत्रक्त र्जनं कररष्र्े।

षिङ्ग डर्ाि:

(अमुक के स्थान पर अपना वतामान स्थान-िंवत्ि-माि-

ह्रां ॐ ह्रीं दं ु दग ु ाार्ै। ह्रीं ॐ ह्रीं दं ु दग ु ाार्। ह्रूं ॐ ह्रीं दं ु

पक्ष-सतसथ-वाि- का उर्ारण करं और अमुक गोिो व नाम के स्थान पर स्जिके सलर्े जप फकर्ा जा रहा हो

उि व्र्त्रक्त के गोि व नाम का उर्ारण करना र्ाफहए र्फद स्वर्ं जप कर रहे हो तो स्वर्ंका गोि नाम लं)

दग ु ाार्। ह्रं ॐ ह्रीं दं ु दग ु ाार्। ह्रं ॐ ह्रीं दं ु दग ु ाार्। ह्रः ॐ ह्रीं दं ु दग ु ाार्। कर डर्ाि: अंगुष्ठाभ्र्ां नमः। तजानीभ्र्ां नमः। मध्र्माभ्र्ां नमः।

त्रवसनर्ोगः ॐ अस्र् श्रीदग ु ाा अष्टोिर शतनाम माला मडिस्र् श्रीनारद

ऋत्रषः, गार्िी छडदः, श्रीदग ु ाा दे वता, दं ु बीजं, ह्रीं शत्रक्तः, ॐ कीलकं, श्रीदग ु ाा प्रीत्र्थं श्रीदग ु ाा अष्टोिर शत नाम पूजने त्रवसनर्ोगः।

पृष्ठाभ्र्ां फट्। अंग डर्ाि:

हृदर्ार् नमः। सशरिे स्वाहा। सशखार्ै वषट्। कवर्ार् हुम ्। नेि-िर्ार् वौषट। अस्त्रोार् फट्।

नोट: श्रीदग ु ाा अष्टोिर नामावली के मडिं िे पूजन करते

िमर् उक्त मडि का उच्र्ारण कर त्रवसनर्ोग करना र्ाफहर्े। र्फद सिफा नाम अथाात मडिं के द्वारा जप करना हो, तो पूजने त्रवसनर्ोग। के स्थान पर जपे त्रवसनर्ोगः। का उर्ारण करं और र्फद पूजन के िाथ त्रवसधवत

अनासमकाभ्र्ां हुम। कसनत्रष्ठकाभ्र्ां वौषट। करतल-कर-

तपाण

करना

हो,

तो पूजने

ध्र्ानः सिंहस्था शसश-शेखरा मरकत-प्रख्र्ा र्तुसभाभज ुा ैः। शंख र्क्र-धनुः-शरांि दधती नेिैस्स्त्रोसभः शोसभता॥ आमुक्तांगद-हार-कंकण-रणत ्-काञ्र्ी-क्वणन ्-नूपुरा। दग ु ाा दग ु सा त-हाररणी भवतु वो रत्नोल्लित ्-कुण्िला॥

तपाणे र्

त्रवसनर्ोगः। का उर्ारण करं । नाम मडिं का होम करना हो, तो होमे त्रवसनर्ोगः। का उर्ारण करं । ऋष्र्ाफद डर्ाि मं भी उपरोक्त त्रवसध िे र्ोजन करं ।

उक्त प्रकार ‘ध्र्ान’ करने के बाद माँ दग ु ाा का मानसिक पूजन करं ।

55

मानि पूजनः ॐ लं पृथ्वी तत्त्वात्मकम ् गडधम ् श्रीजगदमबा दग ु ाा प्रीतर्े िमपार्ासम

नमः॥



हं

आकाश

तत्त्वात्मकम ्

पुष्पं

श्रीजगदमबा दग ु ाा प्रीतर्े िमपार्ासम नमः॥ ॐ र्ं वार्ु तत्त्वात्मकं धूपं श्रीजगदमबा दग ु ाा प्रीतर्े घपाार्ासम नमः॥ ॐ

रं अस्ग्न-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीजगदमबा-दग ु ाा-प्रीतर्े दशार्ासम

नमः॥ ॐ वं जल तत्त्वात्मकं नैवेद्य श्रीजगदमबा दग ु ाा प्रीतर्े सनवेदर्ासम

नमः॥



शं

िवा

तत्त्वात्मकं

श्रीजगदमबा दग ु ाा प्रीतर्े िमपार्ासम नमः॥

तामबूलम ्

उक्त मडि के उर्ारण के बाद मं दग ु ाा अष्टोिर शत नामावली का पाठ करं ।

त्रिबीज र्ुक्त र्तुथ्र्ाडत अष्टोिर शत नामावली ॐ ह्रीं दं ु श्रीित्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिाध्व्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीभव-प्रीतार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीभवाडर्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीभव-मोसर्डर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीआर्ाार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीदग ु ाार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीजर्ार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीआद्यार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीत्रि-नेिार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीशूल-धाररण्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीत्रपनाक-धाररण्र्े पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीसर्िार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीर्ण्ि-घण्टार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीमहा-तपार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीमनो-रुपार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीबुद्धर्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअहं कारार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीसर्ि-रुपार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीसर्तार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीसर्त्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिवा-मडि-मय्मर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीसनत्र्ार्ै पूजर्ासम नमः।

मार्ा 2012

ॐ ह्रीं दं ु श्रीित्र्ानडद-स्वरुत्रपण्र्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीअनडतार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीभात्रवडर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीभाव्र्ार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअभव्र्ार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिदा-गत्र्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीशामभव्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीदे व-मातार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीसर्डतार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीरत्न-प्रर्ार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिवा-त्रवद्यार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीदक्ष-कडर्ार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीदक्ष-र्ज्ञ-त्रवनासशडर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीअपणाार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअनेक-वणाार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीपाटलार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीपाटलावत्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीपटामबर-परीधानार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीकल-मञ्जीर-रस्ञ्जडर्ै नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअमेर्-त्रवक्रमार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीक्रूरार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिुडदर्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिुर-िुडदर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीवन-दग ु ाार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीमातंगर्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीमतंग-मुसन-पूस्जतार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीब्राह्मर्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीमाहे श्वर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीऐडद्रर्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीकौमार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीवैष्णव्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीर्ामुण्िार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीवाराह्यै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीलक्ष्मर्ै पूजर्ासम नमः।

मार्ा 2012

56

ॐ ह्रीं दं ु श्रीपुरुषाकृ त्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीर्त्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीउत्कत्रषाण्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीप्रौढार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीत्रवमलार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअप्रौढार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीज्ञानार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीवृद्ध-मातार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीफक्रर्ार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीबल-प्रदार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीित्र्ार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीमहा-दे व्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीबुत्रद्धदार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीबहुलार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीबहुल-त्रप्रर्ार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीमुक्त-केश्र्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीघोर-रुपार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीमहा-बलार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिवा-वाहनार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीसनशुमभ-शुमभ-हनडर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीमफहषािुर-मफदा डर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीमधु-कैटभ-हडत्र्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीर्ण्ि-मुण्ि-त्रवनासशडर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीिवाािुर-त्रवनाशार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिवा-दानव-घासतडर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीिवा-शास्त्रो-मय्मर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीत्रवद्यार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीिवाास्त्रो-धाररण्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअनेक-शस्त्रो-हस्तार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअनेकास्त्रो-त्रवधाररण्र्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीकुमार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीकडर्ार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीकैशोर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीर्ुवत्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअस्ग्न-ज्वालार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीरौद्र-मुख्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीकाल-रात्र्र्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीतपस्स्वडर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीनारार्ण्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीभद्रकाल्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीत्रवष्णु-मार्ार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीजलोदर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीसशव-दत्ू र्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीकराल्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीअनडतार्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीपरमेश्वर्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीकात्र्ार्डर्ै पूजर्ासम नमः। ॐ ह्रीं दं ु श्रीिात्रवत्र्र्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीप्रत्र्क्षार्ै पूजर्ासम नमः।

ॐ ह्रीं दं ु श्रीब्रह्म-वाफदडर्ै पूजर्ासम नमः।

भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी िुख-शास्डत-िमृत्रद्ध की प्रासप्त के सलर्े भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी :- स्जस्िे धन प्रसप्त, त्रववाह र्ोग, व्र्ापार वृत्रद्ध, वशीकरण, कोटा कर्ेरी के कार्ा, भूतप्रेत बाधा, मारण, िममोहन, तास्डिक बाधा, शिु भर्, र्ोर भर् जेिी अनेक परे शासनर्ो िे रक्षा होसत है और घर मे िुख िमृत्रद्ध फक प्रासप्त होसत है , भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी मे लघु श्री फ़ल, हस्तजोिी (हाथा जोिी), सिर्ार सिडगी, त्रबस्ल्ल नाल, शंख, काली-िफ़ेद-लाल गुंजा, इडद्र जाल, मार् जाल, पाताल तुमिी जेिी अनेक दल ा िामग्री होती है । ु भ

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मार्ा 2012

57

परशुराम कृ त श्रीदग ु ाास्तोि ॥ परशुराम उवार् ॥ श्रीकृ ष्णस्र्

सशवे

र्

आत्रवभूत ा ा

र्ः।

िरस्वती

परा

र्॥

राधा

िृष्ट्र्ुडमुखस्र्

िूर्-ा कोफट-प्रभा-र्ुक्ता,

वस्त्रोालंकार

भूत्रषता।

वफि

िुस्स्मता,

िुमनोहरा॥

शुद्धांशक ु ाधाना

नव

र्ौवन

लसलतं

िमपडना

कबरीभारं

अहोसनवार्नीर्ा मोक्षप्रदा

मालती त्वं,

िमभूर्

ित्रद्भः

कृ ष्णस्त्वां ततो र्स्र्ैव

दृष्ट्वा, तेन,

ि तव

ततो

ततस्त्वं

त्रवश्वसनलर्ो

प्राणासधष्ठातृमूत्रिार्ाा कृ ष्णप्राणासधकां

राधां

तां

तं

िात्रविीं

शुद्धरूपां

ऐश्वर्ाासधष्ठािीमूसताः लक्ष्मीं

वदस्डत

रागासधष्ठािी िरस्वतीं

र्ा तां

बुत्रद्धत्रवाद्या

प्रवदस्डत

शास्डति िंतस्तां

शुद्धां

दे वानामत्रप

त्वं

िवाास्त्वं

त्रवद्या

र्॥

विे ः

र्

तुलिी

नैऋातस्र्

शतरूपा

र्

िुडदरी।

र्

कैटभी॥

मनोः

िवााि

र्ा

तपस्स्वनां

त्वं

त्वं

गार्िी

शत्रक्त त्वं

शैत्र्स्वरूपा भूमौ

गडधरूपा

शास्त्रोज्ञां

प्रवदस्डत

बुधा

भुत्रव॥

कृ ष्णेन

मूसतारसधदे वता।

शूसलने

र् त्रवद्या

कृ पर्ा

िगुणस्र् र्

आकाशे

र्॥

हुताशने।

सनशाकरे ॥

शब्दरूत्रपणी।

जीत्रवनां

िवाशक्तर्ः॥

त्वं

िंिारे

िाररूत्रपणी।

बुत्रद्धवाा

ज्ञानशत्रक्त

त्रवापस्िताम ्॥

दिा त्वं

िृत्रष्टपालनिंहारशक्त ब्रह्मत्रवष्णुमहे शानां

र्॥

कलहांकुरा।

स्त्वं

र्

र्ा िा

ब्राह्मणस्र्

शोभारूपा

र्

िवाबीजस्वरूपा

राजिु।

दाफहका

र्

क्षुस्त्पपािादर्स्त्वं स्मृसतमेधा

िररद्वराः।

िवाास्त्वत्कलर्ास्मबके॥

त्वमितां

सनगुण ा स्र्

प्रभास्वरूपा

प्रिूः।

र्ाः

नृणांराजलक्ष्मीि

ित्त्वस्वरूपा

ज्र्ोतीरूपा

अहल्र्ा विुडधरा॥

पृसथव्र्ां

ह्यडर्ाः

तपस्र्ा

ितां

त्रप्रर्ा।

वसिष्ठस्र्ाप्र्रुडधती॥

र्ात्रप

गृहलक्ष्मीगृहे

जले

सनलर्ेधुना॥

कुबेरस्र्

िवााधारा

वेदाशास्त्रोप्रिूरत्रप।

िवामग ं लरूत्रपणी॥

शसशकला

प्राणवल्लभा॥

गौतमस्र्ात्रप

िूर्े



र् र्

रसतरीश्वरी।

दे वमाताफदसतस्तथा।

पुरात्रवदः॥

ित्त्वस्वरुत्रपणीम ्

स्वाहा

िवामोफहनी॥

स्त्रोी

कदा मस्र्

ितां

सशवस्र्

िवाबीजरूत्रपणी।

लोपामुद्राप्र्गस्त्र्स्र्

एताः

शाडतरूत्रपणी।

वार्ोः

िुशीला

दे वहूसतः

त्रवश्वधारकः॥

मनीत्रषणः॥

फह

तु

ईशानस्र्

गंगा

त्रबभ्रती।

त्रप्रर्ा

र्मस्र्

ह।

ह॥

जलेशस्र्

शुक्लमूसताः

िवाशत्रक्तज्र्ाा

र्ोत्रषतः

र्ोत्रषतः॥

वरुणानी

दे वी,

िवामंगलमंगल्र्ा िवामंगलबीजस्र्

त्वत्कलांशांशकलर्ा

स्वर्म ्॥

महात्रवराट्।

वदस्डत

परमानडदरूत्रपणी॥

कासमनी

परमात्मनः॥

वेदासधष्ठािीमूसतार्ां

परमानडद-रूपस्र्

कामस्र्

त्रवश्वगोलकम ्।

कृ ष्णस्र्

र्।

शक्रस्र्

ह॥

पञ्र्मूतीि

पररपूणत ा मस्र्

शर्ी

जलरासशबाभूव

पञ्र्धाभूर्

त्रप्रर्ा॥

त्रबभ्रती।

र्कार

पुप्लुवे

रािेश्वरस्र्ैव

वेदिूब्राह्मणः

रोफहणी

पुरा॥

त्रवराड्

िात्रविी

र्डद्रस्र्

बभूव

ि

लक्ष्मीनाारार्णास्डतके।

िूर्स् ा र्

धात्रवता

जातो

र्

त्वं

छार्ा

मूलप्रकृ सतरीश्वरी।

त्वस्डनःश्वािो महावार्ुः

त्रवराड्

मस्ण्ितम ्॥

ब्रह्माण्िाडर्स्खलासन

घमाजलेनैव

ि

शोसभता।

िवामोफहनीम ्।

वीर्ााधानं

लोमकूपेष,ु

सनःश्वािो

त्वां राधा

महज्जज्ञे,

तच्छृंगारक्रमेणैव

र्

िस्स्मता

िहिाहूर्,

फिमभं

माल्र्

र्ारुमूसता

िहिा,

ख्र्ाता

त्रवडद ु

महात्रवष्णोत्रवासधः

क्षणमािेण

बालैः

सिडदरू

मुमक्ष ु ूणां,

मुमोह

सशवास्वरूपा

गोलोकेपररपूणत ा मस्र्

त्रवग्रहतः,

 आलोक शमाा

िवाज्ञानप्रिूः

शुभा।

मृत्र्ुञ्जर्ः

सशवः॥

र्तो

र्स्स्त्रोत्रवधाि िा

त्वमेव

नमोस्तु

र्ाः। ते॥

मार्ा 2012

58

मधुकैटभभीत्र्ा स्तुत्वा

र्

मुमोर्

िस्तो

र्ां

दे वीं

मधुकैटभर्ोर्ुद्ध ा े बभूव र्ां

स्तुत्वा

वृषरूपेण

जघान

त्रिपुरं

र्दाज्ञर्ा

वातः

र्दाज्ञर्ा

फह

मृत्र्ुिरसत



दग ु ाा

कुतो

ते

पुि

प्रजाथी

दग ु ां

प्रणमामर्हम ्॥

भ्रष्टराज्र्ो

प्रणमामर्हम ्॥

तस्र्

प्रणमामर्हम ्॥

व्र्ासधग्रस्तो

प्रणमामर्हम ्॥

जलराशौ

सनमगडि

स्वासमभेदे

पुिभेदे

र्

दग ु ां किुं



शक्ताि

फह

र्े

भक्ता

र्डद्रमा

बलवांस्तुष्टो

तेषां

तारागणा

रुष्टाः

र्स्र्

तुष्टः

िभार्ां वा



र्

फकं

कररष्र्स्डत

काण्वशाखोक्तम ् पूजाकाले

र्ािाकाले

र्स्र्

र्

प्रातवाा

लभेद् रुष्टो

गुरुदे वो

राजा

स्तोिस्मरणमािेण हत्रवष्र्ं

भक्तर्ा

दग ु ां

लभते

स्तोिस्मरणमाितः॥

समिभेदे

िमपूज्र्

दारुणे।

लभेद्

ध्रुवम॥

श्रृणोसत

महावडध्र्ा ज्ञासननं

काकवडध्र्ा

मृतवत्िा

र्

स्तोिराजं

र्ा

िा

लभते

र्

सशवे

फह

गुरौ॥

घटे

शाश्वती।

िवादेवताः॥ शंकरस्र्

र्।

हडतुसमहे श्वरः॥

त्रवद्यते वा

कडर्ामाता

क्वसर्त ्।

सनरे डकुशाः र्

भृत्र्ाि

भृगो।

दब ा ाः ु ल

महान ्





िुखी।

दब ा ाः॥ ु ल

.

िमपूज्र्

श्रृणोसत पुिहीना दग ु ां

प्रिूर्ते॥

षण्मािश्रवणाल्लभेत ् पुिं

पञ्र्मािं र्

र्ा।

सर्रजीत्रवनम ्।

नवमािं

हररः।

िौभाग्र्ं

बडधने।

र्

स्तोिराजं

फदव्र्पुिं र्

र्

स्तत्स्मृसतमाितः॥

वास्ञ्छताथं र्

िा

भर्ानकः।

कारागारे

र्

लभेत ्॥

स्तोिराजप्रिादतः॥

मुक्त

वषं

प्रजाम ्॥

बाडधवोथवा।

शिुग्रस्तो र्

लभेत ्।

धनं

वा

भवेडमुक्तः

कृ त्वा

लभेद्ध्रुवम॥

र्ाप्नुर्ात ्

वरदः

श्मशाने

पठे त ्।

कडर्कां

नष्टत्रविो

दस्र्ुग्रस्तोफहग्रस्ति राजद्वारे

र्ः

वास्ञ्छताथं

राज्र्ं

तुष्टि

र्

व्रज। िंततम ्॥

ह॥

॥फल-श्रुसत॥

िुस्स्थरतां

भाग्र्वतां

रुष्टा

बभूव

अिौभाग्र्ा

िंततं

र्ेडनरदे वो

ह।

हररशब्दो

शुभासशषम ्।

ददौ॥

तव

कुवास्डत

मे।

तूणं

रामं

वरं

कस्त्वां

र्ेषां

ताम ्॥

रुरोद

रुष्टाि

भक्ता

स्वर्म ्।

कुप्र्सत॥

तां

कृ ष्णभक्तानामशुभं

अडर्दे वेषु

र्दाज्ञर्ा।

क्षमस्व

सशष्र्ो

र्स्मात ्

वेगतः।

नमासम

भत्रक्तभावसत

भक्तस्त्वं

िंततम ्।

सनगुण ा ः

सशवदे

र्स्र्

स्तौत्रष

िमुस्त्थतः।

पासत

ज्र्ोस्तु

फह

सशवे।

भ्रमसत

वत्ि

कृ ष्णे

गुरौ

श्रीकृ ष्णस्र्

फकं

त्रवद्यां

भगवांस्तुष्टोस्तु



तस्र्

लभते

र्ाभर्ं

िवाि

हडतु

गुरुपत्नीं

त्रवद्याथी

प्रणमर्

हे

िवााडतरात्मा इष्टदे वे

कडर्ाथी

माता

िमभ्रमेण

भव

अहो

िृत्रष्टं

पशुरा ामि

भत्रक्तभावतु

पुिं

जगडमातरपराधं

शवाप्रिादात ्

तं

तां

शक्ति

सशशूनामपराधेन

अमरो

लभते

पाता

भगवाञ्रीकृ ष्णो

रक्ष

तुष्टा

पुिाथी

दग ु ां

र्

काले

ज्र्ोसतःस्वरूपो

इत्र्ुिवा

तां

िृत्रष्टं

िंहरे त ्

रक्ष

प्रणमामर्हम ्॥

शश्वद्

जडत्वोघे

त्रवना

दग ु ां

दग ु ां

कालि

िृजसत

िंहताा

स्तोिम ् वै

िूर्स् ा तपसत

दहत्र्स्ग्नस्तां

दत्त्वा

प्रणमामर्हम ्॥

त्रवष्णुरीश्वरीम ्।

शमभुः

तां

तुष्टा

दग ु ां

तां

स्तुत्वा

पावाती

जगामाडतःपुरं

पसतते

स्वर्ं

वासत

वषातीडद्रो

र्र्ा

िवे

इत्र्ुक्त्वा

प्रणमामर्हम ्॥

िरथे

िुराः

त्रवष्णुना

मूध्नाा

तां

महार्ुद्धे

तुष्टुवुः

स्त्रोष्टा

तां

प्रकस्मपतः।

िातािौ

शत्रक्तमान ्

त्रिपुरस्र्

धाता

िा

पुिं

श्रृणोसत लभते



भत्रक्ततः। ध्रुवम ्॥ र्ा।

ध्रुवम ्॥

भावाथाः परशुराम ने कहाः पोरास्णक काल की बात हं ; गौ-लोक मं जब िभी तरह िे श्रीकृ ष्ण िृत्रष्टरर्ना के सलए तैर्ार हुए, उि िमर् उनके शरीर िे आपका प्राकटर् हुआ था।

आपकी कास्डत करोिं िूर्ो के िमान थी। आप वस्त्रो और अलंकारं िे त्रवभूत्रषत थीं। आपके शरीर पर अस्ग्न मं तपाकर शुद्ध की हुई िािी का पररधान था। नव तरुण अवस्था थी। ललाट पर सिंदरू का फटका शोसभत हो रहा

था। मालती के फूलो की मालाओं िे मस्ण्ित गुँथी हुई िुडदर केश थे। बिा ही मनोहर रूप था। मुख पर मडद

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मुस्कान थी। अहो ! आपकी मूसता बिी िुडदर थी, उिका वणान करना कफठन हं । आप मुमुक्षुओं को मोक्ष प्रदान करने वाली तथा स्वर्ं महात्रवष्णु की त्रवसध हो।

दे वाडगनाएँ भी आपके कलांश की अंशकला िे प्रादभ ूा ु त हुई हं । िारी नाररर्ाँ आपकी त्रवद्यास्वरूपा हं और आप

िबकी कारणरूपा हो। अस्मबके ! िूर्ा की पत्नी छार्ा,

बाले ! आप िबको मोफहत कर लेने वाली हो। आपको

र्डद्रमा की भार्ाा िवामोफहनी रोफहणी, इडद्र की पत्नी

दे खकर श्रीकृ ष्ण उिी क्षण मोफहत हो गर्े। तब आप

शर्ी, कामदे व की पत्नी ऐश्वर्ाशासलनी रसत, वरुण की

उनिे िमभात्रवत होकर िहिा मुस्कराती हुई भाग र्लीं।

पत्नी वरुणानी, वार्ु की प्राणत्रप्रर्ा स्त्रोी, अस्ग्न की त्रप्रर्ा

इिी कारण ित्पुरुष आपको मूलप्रकृ सत ईश्वरी राधा कहते

स्वाहा, कुबेर की िुडदरी भार्ाा, र्म की पत्नी िुशीला,

हं । उि िमर् िहिा श्रीकृ ष्ण ने आपको बुलाकर वीर्ा का

नैऋात की जार्ा कैटभी, ईशान की पत्नी शसशकला, मनु

आधान फकर्ा। उििे एक महान ् फिमब उत्पडन हुआ। उि

की त्रप्रर्ा शतरूपा, कदा म की भार्ाा दे वहूसत, वसिष्ठ की

िमस्त ब्रह्माण्ि स्स्थत हं । फफर राधा के श्रृग ं ार क्रम िे

त्रप्रर्ा

आपका सनःश्वाि प्रकट हुआ। वह सनःश्वाि महावार्ु हुआ

आधाररूपा विुडधरा, गंगा, तुलिी तथा भूतल की िारी

और वही त्रवश्व को धारण करने वाला त्रवराट् कहलार्ा।

श्रेष्ठ िररताएँ-र्े िभी तथा इनके असतररत्रक्त जो अडर्

आपके पिीने िे त्रवश्वगोलक त्रपघल गर्ा। तब त्रवश्व का

स्स्त्रोर्ाँ हं , वे िभी आपकी कला िे उत्पडन हुई हं । आप

फिमब िे महात्रवराट् की उत्पत्रि हुई, स्जिके रोमकूपं मं

सनवािस्थान वह त्रवराट् जल की रासश हो गर्ा। तब

पत्नी अरुडधती, दे वमाता अफदसत, अगस्त्र् मुसन की लोपामुद्रा,

गौतम

की

पत्नी

अफहल्र्ा,

िबकी

मनुष्र्ं के घर मं गृहलक्ष्मी, राजाओं के भवनं मं

आपने अपने को पाँर् भागं मं त्रवभक्त करके पाँर् मूसता

राजलक्ष्मी, तपस्स्वर्ं की तपस्र्ा और ब्राह्मणं की गार्िी

धारण

हो। आप ित्पुरुषं के सलए

कर

प्राणासधष्ठािी

ली।

उनमं

मूसता

परमात्मा

श्रीकृ ष्ण

उिे

भत्रवष्र्वेिा

हं ,

की

जो लोग

ित्त्वस्वरूप और दष्ट ु ं के

सलर्े कलह की अडकुर हो। सनगुण ा की ज्र्ोसत और िगुण

कृ ष्णप्राणासधका राधा कहते हं । जो मूसता वेद-शास्त्रों की

की शत्रक्त आप ही हो।

जननी

आप िूर्ा मं प्रभा, असगन ् मं दाफहका शत्रक्त, जल मं

तथा

वेदासधष्ठािी

हं ,

उि

शुद्धरूपा

मूसता को

मनीषीगण िात्रविी नाम िे पुकारते हं । जो शास्डत तथा शाडतरूत्रपणी

ऐश्वर्ा

की

असधष्ठािी

मूसता

हं ,

शीतलता और र्डद्रमा मं शोभा हो। भूसम मं गडध और

उि

आकाश मं शब्द आपका ही रूप हं । आप भूख-प्र्ाि

ित्त्वस्वरूत्रपणी शुद्ध मुसता को िंत लोग लक्ष्मी नाम िे

आफद तथा प्रास्णर्ं की िमस्त शत्रक्त हो। िंिार मं िबकी

असभफहत करते हं । अहो ! जो राग की असधष्ठािी दे वी

उत्पत्रि की कारण, िाररूपा, स्मृसत, मेधा, बुत्रद्ध अथवा

शुक्ल वणा की हं , उि शास्त्रो की ज्ञाता मूसता को शास्त्रोज्ञ

कृ पापूवक ा िमपूणा ज्ञान की प्रित्रवनी जो शुभ त्रवद्या प्रदान

िरस्वती कहते हं । जो मूसता बुत्रद्ध, त्रवद्या, िमस्त शत्रक्त की

की थी, वह आप ही हो; उिी िे सशवजी मृत्र्ुज्जर् हुए

तथा ित्पुरुषं को पैदा करने वाली हं , स्जिकी मूसता

असधदे वता,

िमपूणा

मंगलं

की

मंगलस्थान,

त्रवद्वानं की ज्ञानशत्रक्त आप ही हो। श्रीकृ ष्ण ने सशवजी को

हं । ब्रह्मा, त्रवष्णु और महे श की िृत्रष्ट, पालन और िंहार

िवामंगलरूत्रपणी और िमपूणा मंगलं की कारण हं , वही

करने वाली जो त्रित्रवध शत्रक्तर्ाँ हं , उनके रूप मं आप ही

आप इि िमर् सशव के भवन मं त्रवराजमान हो।

त्रवद्यमान हो; अतः आपको नमस्कार हं ।

आप ही सशव के िमीप सशवा अथाात पावाती, नारार्ण के

जब मधु कैटभ के भर् िे िरकर ब्रह्मा काँप उठे थे, उि

सनकट लक्ष्मी और ब्रह्मा की त्रप्रर्ा वेदजननी िात्रविी और

िमर् स्जनकी स्तुसत करके वे भर्मुक्त हुए थे; उि दे वी

िरस्वती हो। जो पूररपूणातम एवं परमानडदस्वरूप हं , उन रािेश्वर श्रीकृ ष्ण की आप परमानडदरूत्रपणी राधा हो।

को मं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मधु-कैटभ के र्ुद्ध मं जगत के रक्षक र्े भगवान त्रवष्णु स्जन परमेश्वरी का

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स्तवन करके शत्रक्तमान हुए थे, उन दग ु ाा को मं नमस्कार

भागाव ! भला, स्जन भाग्र्वानं पर बलवान ् र्डद्रमा

जाने पर िभी दे वताओं ने स्जनकी स्तुसत की थी; उि

िकते हं । िभा मं महान आत्मबल िे िमपडन िुखी

करता हूँ। त्रिपुर के महार्ुद्ध मं रथिफहत सशवजी के सगर

प्रिडन हं तो दब ा तारागण रुष्ट होकर उनका क्र्ा त्रबगाि ु ल

दग ु ाा को मं प्रणाम करता हूँ। स्जनका स्तवन करके

नरे श स्जिपर िंतुष्ट हं , उिका दब ा भृत्र्वगा कुत्रपत ु ल

का िंहार फकर्ा था; उन दग ु ाा को मं असभवादन करता हूँ।

परशुराम को शुभ आशीवााद दे कर अडतःपुर मं र्ली गर्ीं

स्जनकी आज्ञा िे सनरडतर वार्ु बहती हं , िूर्ा तपते हं ,

। तब तुरंत हरर नाम का घोष गूँज उठा ।

इडद्र वषाा करते हं और अस्ग्न जलाती हं ; उन दग ु ाा को मं

फलश्रुसत: जो मनुष्र् इि काण्वशाखोक्त स्तोि का पूजा के

वृषरूपधारी त्रवष्णु द्वारा उठार्े गर्े स्वर्ं शमभु ने त्रिपुर

होकर क्र्ा कर लेगा? र्ं कहकर पावाती हत्रषात हो

सिर झुकाता हूँ। स्जनकी आज्ञा िे काल िदा वेगपूवक ा

िमर्, र्ािा के अविर पर अथवा प्रातःकाल पाठ करता

र्क्कर काटता रहता हं और मृत्र्ु जीव-िमुदार् मं

हं , वह अवश्र् ही अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर लेता हं ।

त्रवर्रती रहती हं ; उन दग ु ाा को मं नमस्कार करता हूँ।

इिके पाठ िे पुिाथी को पुि, कडर्ाथी को कडर्ा,

स्जनके आदे श िे िृत्रष्टकताा िृत्रष्ट की रर्ना करते हं ,

त्रवद्याथी को त्रवद्या, प्रजाथी को प्रजा, राज्र्भ्रष्ट को राज्र्

पालनकताा रक्षा करते हं और िंहताा िमर् आने पर

और धनहीन को धन की प्रासप्त होती हं । स्जिपर गुरु ,

िंहार करते हं ; उन दग ु ाा को मं प्रणाम करता हूँ। स्जनके

दे वता, राजा अथवा बडधु-बाडधव क्रुद्ध हो गर्े हं, उिके

त्रबना स्वर्ं भगवान श्रीकृ ष्ण, जो ज्र्ोसतःस्वरूप एवं

सलर्े र्े िभी इि स्तोिराज की कृ पा िे प्रिडन होकर

सनगुण ा हं, िृत्रष्ट-रर्ना करने मं िमथा नहीं होते; उन दे वी

वरदाता हो जाते हं । स्जिे र्ोर-िाकुओं ने घेर सलर्ा हो,

को मेरा नमस्कार हं । जगज्जननी, रक्षा करो, रक्षा करो;

िाँप ने िि सलर्ा हो, जो भर्ानक शिु के र्ंगल ु मं फँि

मेरे अपराध को क्षमा कर दो । भला, कहीं बच्र्े के

गर्ा हो अथवा व्र्ासधग्रस्त हो; वह इि स्तोि के स्मरण

अपराध करने िे माता कुत्रपत होती हं ।

माि िे मुक्त हो जाता हं । राजद्वार पर, श्मशान मं,

इतना कहकर परशुराम उडहं प्रणाम करके रोने लगे। तब

कारागार मं और बडधन मं पिा हुआ तथा अगाध

दग ु ाा प्रिडन हो गर्ीं और शीघ्र ही उडहं अभर् का वरदान दे ती हुई बोलीं- हे वत्ि ! तुम अमर हो जाओ। बेटा !

जलरासश मं िू बता हुआ मनुष्र् इि स्तोि के प्रभाव िे

मुक्त हो जाता हं । स्वासमभेद, पुिभेद तथा भर्ंकर समिभेद

अब शास्डत धारण करो। सशवजी की कृ पा िे िदा िवाि

के अविर पर इि स्तोि के स्मरण माि िे सनिर् ही

तुमहारी त्रवजर् हो। िवााडतरात्मा भगवान ् श्रीहरर िदा

अभीष्टाथा की प्रासप्त होती हं । जो स्त्रोी वषापर्ाडत भत्रक्त

सशव मं तुमहारी िुदृढ भत्रक्त बनी रहे ; क्र्ंफक स्जिकी

इि स्तोिराज को िुनती हं , वह महावडध्र्ा हो तो भी

तुमपर प्रिडन रहं । श्रीकृ ष्ण मं तथा कल्र्ाणदाता गुरुदे व

पूवक ा दग ु ाा का भलीभाँसत पूजन करके हत्रवष्र्ाडन खाकर

इष्टदे व तथा गुरु मं शाश्वती भत्रक्त होती हं , उि पर र्फद

प्रिववाली हो जाती हं । उिे ज्ञानी एवं सर्रजीवी फदव्र् पुि

िभी दे वता कुत्रपत हो जार्ँ तो भी उिे मार नहीं िकते।

प्राप्त होता हं । छः महीने तक इिका श्रवण करने िे

तुम तो श्रीकृ ष्ण के भक्त और शंकर के सशष्र् हो तथा

दभ ा ा िौभाग्र्वती हो जाती हं । जो काकवडध्र्ा और ु ग

मुझ गुरुपत्नी की स्तुसत कर रहे हो; इिसलए फकिकी

मृतवत्िा नारी भत्रक्त पूवक ा नौ माि तक इि स्तोिराज

शत्रक्त हं जो तुमहं मार िके। अहो ! जो अडर्ाडर्

को िुनती हं , वह सनिर् ही पुि पाती हं । जो कडर्ा की

दे वताओं के भक्त हं अथवा उनकी भत्रक्त न करके सनरं कुश

माता तो हं परं तु पुि िे हीन हं , वह र्फद पाँर् महीने

ही हं , परं तु श्रीकृ ष्ण के भक्त हं तो उनका कहीं भी

तक कलश पर दग ु ाा की िमर्क् पूजा करके इि स्तोि

अमंगल नहीं होता।

को श्रवण करती हं तो उिे अवश्र् ही पुि की प्रासप्त होती हं ।

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॥श्री भैरव उवार्॥

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श्री दग ु ाा कवर्म ् (रुद्रर्ामलोक्त)

ॐ ऐं िौः क्लीं िौः पातु गुह्यं गुह्यकेश्वरपूस्जता॥१६॥

अधुना दे त्रव वक्ष्र्ेऽहम ् कवर्ं मडिगभाकम ्।

ॐ ह्रीं ऐं श्रीं ह् िौः पार्ादरु ू मम मनोडमनी।

परमाथाप्रदं सनत्र्ं महापातकनाशनम ्।

ॐ ऐं क्लीं पातु मे जंघे मेरुवासिनी।

त्रवना दानेन मडिस्र् सित्रद्धदे त्रव कलौ भवेत ्।

ॐ ह्रीं दँ ु पातु मे पादौ पावाती षोिशाक्षरी।

भैरवो भैरवेशासन त्रवष्णुनाारार्णो बली।

दस्क्षणे र्स्ण्िका पातु नैऋाते नारसिंफहका।

ब्रह्मा पावासत लोकेशो त्रवघ्नध्वंशी गजाननः॥४॥

पस्िमे पातु वाराही वार्व्र्े मापरास्जता॥२०॥

िूर्स् ा तमोपहिडद्रो मडिामृतसनसधस्तथा।

उिरे पातु कौमारी र्ैशाडर्ां शांभवी तथा।

िेनानीि महािेनो स्जष्णुलेखषाभः॥५॥

ऊध्वा दग ु ाा िदा पातु पात्वधस्तास्च्छवा िदा॥२१॥

दग ु ाार्ाः िारिवास्वं कवर्ेश्वरिञ्ज्ञकम ्॥१॥

ॐ जूं िः िौः पातु जानू जगदीश्वरपूस्जता॥१७॥

र्ोसगत्रप्रर्ं र्ोगीगमर्ं दे वानामत्रप दल ा म ्॥२॥ ु भ

ॐ ह्रीं श्रीं गीं िदा पातु गुल्फौ मम गणेश्वरी॥१८॥

धारणादस्र् दे वेसश सशवस्त्रोैलोक्र्नार्कः॥३॥

पूवे मां पातु ब्रह्माणी विौ माँ वैष्णवी तथा॥१९॥

बहुनोक्तेन फकं दे त्रव दग ु ााकवर्धारणात ्।

प्रभाते त्रिपुरा पातु सनशीथे सछडनमस्तका।

मत्र्ोऽप्र्मरतां र्ासत िाधको मडििाधकः॥६॥

सनशाडते भैरवी पातु िवादा भद्रकासलका॥२२॥

॥त्रवसनर्ोग॥

अग्नेरमबा र् मां पातु जलाडमां जगदस्मबका।

कवर्स्र्ास्र् दे वसश ऋत्रषः प्रोक्तो महे श्वरः।

वार्ोमाा पातु वाग्दे वी वनाद् वनजलोर्ना॥२३॥

छडदोऽनुष्टुप ् त्रप्रर्े दग ु ाा दे वताष्टाक्षरा स्मृता॥७॥

सिंहात ् सिंहािना पातु िपाात ् िपााडतकािना।

ॐ मे पातु सशरो दग ु ाा ह्रीं मे पातु ललाटकम ्॥८॥

र्क्षेभ्र्ो र्स्क्षणी पातु रक्षोभ्र्ो राक्षिाडतका।

मं ठं गण्िौ र् मे पातु दे वेसश रक्तकुण्िला॥९॥

िवाि िवादा पातु ॐ ह्रीं दग ु ाा नवाक्षरा।

र्फक्रबीजं र् बीजं स्र्ाडमार्ाशत्रक्तररतीररता।

रोगाडमां राजमातंगी भूताद् भूतेशवल्लभा॥२४॥

ॐ दँ ु नेिेऽष्टाक्षरा पातु र्क्री पातु श्रुती मम।

भूतप्रेतत्रपशार्ेभ्र्ः िुमख ु ी पातु मां िदा॥२५॥

वार्ुनाािां िदा पातु रक्तबीजसनषूफदनी।

इतीदं कवर्ं गुह्यं दग ु ाा िवास्वमुिमम ्॥२६॥

लवणं पातु मे र्ोष्ठौ र्ामुण्िा र्ण्िघासतनी॥१०॥

॥फल-श्रुसत॥

भेकी बीजं िदा पातु दडताडमे रक्तदस्डतका।

मडिगभा महे शासन कवर्ेश्वरिंज्ञकम ्।

ॐ ऐं क्लीं पातु मे स्कडधौ स्कडदमाता महे श्वरी।

वमा सित्रद्धप्रदं गोप्र्ं परापररहस्र्कम ्।

ॐ ह्रीं श्री पातु मे कण्ठं नीलकण्ठांकवासिनी॥११॥ ॐ िं क्लीं मे पातु बाहू दे वेशी बगलामुखी॥१२॥

िं ऐं ह्रीं पातु मे हस्तौ वक्षो दे वता त्रवडध्र्वासिनी। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं पातु कुस्क्षं मम मातंसगनी परा॥१३॥ ॐ ह्रीं श्रीं ऐं पातु मे पाश्वे फहमार्लसनवासिनी। ॐ स्त्रोीं ह्रूँ ऐं पातु पृष्ठं मम दग ु सा तनासशनी॥१४॥ ॐ क्रीं ह्रूँ पातु मे नासभं दे वी नारार्णी िदा।

ॐ ऐं क्लीं िौः िदा पातु कफटं कात्र्ार्नी मम॥१५॥ ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं पातु सशश्नं दे वी श्रीबगलामुखी।

त्रविदं पुण्र्दं पुण्र्ं वमा सित्रद्धप्रदं कलौ॥२७॥ श्रेर्स्करं मनुमर्ं रोगनाशकरं परम ्॥२८॥ महापातककोफटघ्नं मानदं र् र्शस्करम ्।

अश्वमेधिहस्त्रोस्र् फलदं परमाथादम ्॥२९॥

अत्र्डतगोप्र्ं दे वेसश कवर्ं मडिसित्रद्धदम ्।

पठनात ् सित्रद्धदं लोके धारणाडमुत्रक्तदं सशवे॥३०॥ रवौ भूजे सलखेद् श्रीमान ् कृ त्वा कमााफिकं त्रप्रर्े। श्रीर्क्राग्रेऽष्टगडधेन िाधको मडिसिद्धर्े॥३१॥

सलस्खत्वा धारर्ेद् बाहौ गुफटकां पुण्र्वसधानीम ्।

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फकं फकं िाधर्ेल्लोके गुफटका वमाणोऽसर्रात ्॥३२॥

अदातव्र्समदं वमा मडिगभा रहस्र्कम ्॥३७॥

धनाथी धारर्ेत्कण्ठे पुिाथी कुस्क्षमण्िले॥३३॥

अदीस्क्षतार् नो दद्यात ् कुर्ैलार् दरु ात्मने॥३८॥

गुफटकां धारर्ेडमूस्ध्ना राजानं वशमानर्ेत ्।

तामेव धारर्ेडमूस्ध्ना सलस्खत्वा भूजप ा िके। श्वेतिूिेण िंवेष्टर् लाक्षर्ा पररवेष्टर्ेत ्॥३४॥

अवक्तव्र्ं महापुण्र्ं िवािारस्वतप्रदम ्।

अडर्सशष्र्ार् दष्ट ु ार् सनडदकार् कुलासथानाम ्। दीस्क्षतार् कुलीनार् गुरुभत्रक्तरतार् र्॥३९॥

िुवणेनाथ िंवेष्टर् धारर्ेद् रक्तरञ्जुना।

शाडतार् कुलिक्तार् शाडतार् कुलकासमने ।

गुफटका कामदा दे त्रव दे वनामत्रप दल ा ा॥३५॥ ु भ

इदं वमा सशवे दद्यात्कुलभागी भवेडनरः॥४॥

कवर्स्र्ास्र् दे वेसश वस्णातुं नैव शक्र्ते॥३६॥

गुह्यं गोप्र्तमं गोप्र्ं गोपनीर्ं स्वर्ोसनवत ्॥४१॥

कवर्स्र्ास्र् गुफटकां धत्वा मुत्रक्तप्रदासर्नीम ्।

इदं रहस्र्ं परमं दग ु ााकवर्मुिमम ्।

मफहमानं महादे त्रव स्जह्वाकोफटशतैरत्रप।

॥इसत रुद्रर्ामल तडिे, श्रीदे वीरहस्र्े दग ु ााकवर्ं॥

श्री माकाण्िे र् कृ त लघु दग ु ाा िप्तशती स्तोिम ् ॐ वींवींवीं वेणुहस्ते स्तुसतत्रवधवटु के हां तथा तानमाता, स्वानंदेमंदरुपे अत्रवहतसनरुते भत्रक्तदे मुत्रक्तदे त्वम ्।

हं िः िोहं त्रवशाले वलर्गसतहिे सित्रद्धदे वाममागे, ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष त्रवपुले वीरभद्रे नमस्ते॥१॥ ॐ ह्रीं-कारं र्ोच्र्रं ती ममहरतु भर्ं र्मामुंिे प्रर्ंिे, खांखांखां खड्गपाणे ध्रकध्रकध्रफकते उग्ररुपे स्वरुपे। हुंहुंहुं-कार-नादे गगन-भुत्रव तथा व्र्ात्रपनी व्र्ोमरुपे, हं हंहं-कारनादे िुरगणनसमते राक्षिानां सनहं त्रि॥२॥ ऐं लोके कीतार्ंती मम हरतु भर्ं र्ंिरुपे नमस्ते, घ्रां घ्रां घ्रां घोररुपे घघघघघफटते घघारे घोररावे।

सनमांिे काकजंघे घसित-नख-नखा-धूम्र-नेिे त्रिनेि,े हस्ताब्जे शूलमुंिे कलकुलकुकुले श्रीमहे शी नमस्ते॥३॥ क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुहमस्खले कोफकले, मानुरागे मुद्रािंज्ञत्रिरे खां कुरु कुरु िततं श्रीमहामारर गुह्ये। तेजंगे सित्रद्धनाथे मनुपवनर्ले नैव आज्ञा सनधाने, ऐंकारे रात्रिमध्र्े शसर्तपशुजने तंिकांते नमस्ते॥४॥ ॐ व्रां व्रीं व्रुं व्रूं कत्रवत्र्े दहनपुरगते रुक्मरुपेण र्क्रे, त्रिःशक्त्र्ा र्ुक्तवणााफदककरनसमते दाफदवंपूणव ा णे। ह्रीं-स्थाने कामराजे ज्वल ज्वल ज्वसलते कोसशतैस्तास्तुपिे स्वच्छं दं कष्टनाशे िुरवरवपुषे गुह्यमुंिे नमस्ते॥५॥ ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोरतुंिे घघघघघघघे घघाराडर्ांसघ्रघोषे, ह्रीं क्रीं द्रं द्रं र् र्क्र र र र र रसमते िवाबोधप्रधाने। द्रीं तीथे द्रीं तज्र्ेष्ठ जुगजुगजजुगे मलेच्छदे कालमुंिे, िवांगे रक्तघोरामथनकरवरे वज्रदं िे नमस्ते॥६॥ ॐ क्रां क्रीं क्रूं वामसभिे गगनगिगिे गुह्यर्ोडर्ाफहमुि ं े , वज्रांगे वज्रहस्ते िुरपसतवरदे मिमातंगरुढे । िूतेजे शुद्धदे हे लललललसलते छे फदते पाशजाले, कुंिल्र्ाकाररुपे वृषवृषभहरे ऐंफद्र मातनामस्ते॥७॥ ॐ हुंहुंहुंकारनादे कषकषवसिनी मांसि वैतालहस्ते, िुसं िद्धषैः िुसित्रद्धढा ढढढढढढः िवाभक्षी प्रर्ंिी।

जूं िः िं शांसतकमे मृतमृतसनगिे सनःिमे िीिमुद्रे, दे त्रव त्वं िाधकानां भवभर्हरणे भद्रकाली नमस्ते॥८॥ ॐ दे त्रव त्वं तुर्ह ा स्ते करधृतपररघे त्वं वराहस्वरुपे, त्वं र्ंद्री त्वं कुबेरी त्वमसि र् जननी त्वं पुराणी महं द्री। ऐं ह्रीं ह्रीं कारभूते अतलतलतले भूतले स्वगामागे, पाताले शैलभृंगे हररहरभुवने सित्रद्धर्ंिी नमस्ते॥९॥ हं सि त्वं शंिदःु खं शसमतभवभर्े िवात्रवघ्नांतकार्े, गांगींगूंगंषिं गे गगनगफटतटे सित्रद्धदे सित्रद्धिाध्र्े।

क्रूं क्रूं मुद्रागजांशो गिपवनगते त्र्र्क्षरे वै कराले, ॐ हीं हूं गां गणेशी गजमुखजननी त्वं गणेशी नमस्ते॥१०॥ ॥इसत माकाण्िे र् कृ त लघु िप्तशती दग ु ाा स्तोिम ्॥

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नव दग ु ाा स्तुसत अमर पसत मुकुट र्ुस्मबत र्रणामबुज िकल भुवन िुख जननी।

जर्सत मही मफहता िा सशव दत्ू र्ाख्र्ा प्रथम शत्रक्तः॥६॥

जर्सत जगदीश वस्डदता िकलामल सनष्कला दग ु ाा॥१॥

मुक्ताट्टहाि भैरव दस् ु िह रव र्फकत िकल फदक् र्क्रा।

त्रवकृ त नख दशन भूषण रुसधर विाच्क्षुररत खड्ग कृ त हस्ता।

जर्सत भुजगेडद्र बडधन शोसभत कणाा महा रुण्िा॥७॥

जर्सत नर मुण्ि मस्ण्ित त्रपसशत िुरािव रता र्ण्िी॥२॥

पटु पटह मुरज मदा ल झल्लरर काराव नसतातावर्वा।

प्रज्वसलत सशस्ख गणोज्ज्वल त्रवकट जटा बद्ध र्डद्र मस्ण शोभा।

जर्सत मधु वृत रुपा दै डर् हरी भ्रामरी दे वी॥८॥

जर्सत फदगमबर भूषा सिद्ध वटे शा महा लक्ष्मीः॥३॥

शाडता प्रशाडत वदना सिंह रथा ध्र्ान र्ोग िस्डनष्ठा।

कर कमल जसनत शोभा पद्मािन बद्ध वदना र्।

जर्सत र्तुभज ुा दे हा र्डद्र कला र्डद्र मंगला दे वी॥९॥

जर्सत कमण्िलु हस्ता नडदा दे वी नतासता हरा॥४॥

पक्ष पुट र्ञ्र्ु घातैः िञ्र्ूस्णात त्रववुध शिु िंघाता।

फदग ् विना त्रवकृ त मुखा फेतकारोद्दाम पूररत फदगौघा।

जर्सत सशत शूल हस्ता बहु रुपा रे वती रौद्रा॥१०॥

जर्सत त्रवकराल दे हा क्षेम करी रौद्र भावस्था॥५॥

पर्ाटसत शत्रक्त हस्ता त्रपतृ वन सनलर्ेषु र्ोसगनी िफहता।

क्षोसभत ब्रह्माण्िोदर स्व मुख स्वर हुं कृ त सननादा।

जर्सत हर सित्रद्ध नामनो हरर सित्रद्ध वस्डदता सिद्धै ः॥११॥

नवदग ु ाा रक्षामंि ॐ शैलपुिी मैर्ा रक्षा करो।

ॐ कुषमाणिा तुम ही रक्षा करो।

ॐ कालरात्रि काली रक्षा करो।

ॐ जगजनसन दे वी रक्षा करो।

ॐ शत्रक्तरूपा मैर्ा रक्षा करो।

ॐ िुखदाती मैर्ा रक्षा करो।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ जगजननी नमः।

ॐ जगजननी नमः।

ॐ जगजननी नमः।

ॐ ब्रह्मर्ाररणी मैर्ा रक्षा करो।

ॐ स्कडदमाता माता मैर्ा रक्षा करो।

ॐ महागौरी मैर्ा रक्षा करो।

ॐ भवताररणी दे वी रक्षा करो।

ॐ जगदमबा जनसन रक्षा करो।

ॐ भत्रक्तदाती रक्षा करो।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ जगजननी नमः।

ॐ जगजननी नमः।

ॐ जगजननी नमः।

ॐ र्ंद्रघणटा र्ंिी रक्षा करो।

ॐ कात्र्ासर्नी मैर्ा रक्षा करो।

ॐ सित्रद्धरात्रि मैर्ा रक्षा करो।

ॐ भर्हाररणी मैर्ा रक्षा करो।

ॐ पापनासशनी अंबे रक्षा करो।

ॐ नव दग ु ाा दे वी रक्षा करो।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ नव दग ु ाा नमः।

ॐ जगजननी नमः।

ॐ जगजननी नमः।

ॐ जगजननी नमः।

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नवरत्न जफित श्री र्ंि शास्त्रो वर्न के अनुिार शुद्ध िुवणा र्ा

रजत मं सनसमात श्री र्ंि के र्ारं और र्फद

नवरत्न जिवा ने पर र्ह नवरत्न जफित श्री र्ंि कहलाता हं । िभी रत्नो को उिके

सनस्ित स्थान पर जि कर लॉकेट के रूप

मं धारण करने िे व्र्त्रक्त को अनंत एश्वर्ा एवं लक्ष्मी की प्रासप्त होती हं । व्र्त्रक्त को एिा आभाि होता हं जैिे मां लक्ष्मी उिके

िाथ हं । नवग्रह को श्री र्ंि के िाथ . .

लगाने िे ग्रहं की अशुभ दशा का

धारणकरने वाले व्र्त्रक्त पर प्रभाव नहीं

होता हं ।

गले मं होने के कारण र्ंि पत्रवि रहता हं एवं स्नान करते िमर् इि र्ंि पर स्पशा कर जो

जल त्रबंद ु शरीर को लगते हं , वह गंगा जल के िमान पत्रवि होता हं । इि सलर्े इिे िबिे तेजस्वी एवं फलदासर् कहजाता हं । जैिे अमृत िे उिम कोई औषसध नहीं, उिी प्रकार लक्ष्मी प्रासप्त के सलर्े श्री र्ंि िे उिम कोई र्ंि िंिार मं नहीं हं एिा शास्त्रोोक्त वर्न हं । इि प्रकार

के नवरत्न जफित श्री र्ंि गुरूत्व कार्ाालर् द्वारा शुभ मुहूता मं प्राण प्रसतत्रष्ठत करके बनावाए जाते हं ।

असधक जानकारी हे तु िंपका करं ।

GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

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िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् स्जि व्र्त्रक्त को लाख प्रर्त्न और पररश्रम करने के बादभी उिे मनोवांसछत िफलतार्े एवं फकर्े गर्े कार्ा मं सित्रद्ध (लाभ) प्राप्त नहीं होती, उि व्र्त्रक्त को िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् अवश्र् धारण करना र्ाफहर्े। कवर् के प्रमुख लाभ: िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् के द्वारा िुख िमृत्रद्ध और नव ग्रहं के नकारात्मक प्रभाव को शांत कर धारण करता व्र्त्रक्त के जीवन िे िवा प्रकार के द:ु ख-दाररद्र का नाश हो कर िुख-िौभाग्र् एवं उडनसत प्रासप्त होकर जीवन मे िसभ प्रकार के शुभ कार्ा सिद्ध होते हं । स्जिे धारण करने िे व्र्त्रक्त र्फद व्र्विार् करता होतो कारोबार मे वृत्रद्ध होसत हं और र्फद नौकरी करता होतो उिमे उडनसत होती हं ।  िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् के िाथ मं िवाजन वशीकरण कवर् के समले होने की वजह िे धारण करता की बात का दि ू रे व्र्त्रक्तओ पर प्रभाव बना रहता हं ।  िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् के िाथ मं अष्ट लक्ष्मी कवर् के समले होने की वजह िे व्र्त्रक्त पर मां महा िदा लक्ष्मी की कृ पा एवं आशीवााद बना रहता हं । स्जस्िे मां लक्ष्मी के अष्ट रुप (१)-आफद लक्ष्मी, (२)-धाडर् लक्ष्मी, (३)-धैरीर् लक्ष्मी, (४)-गज लक्ष्मी, (५)-िंतान लक्ष्मी, (६)-त्रवजर् लक्ष्मी, (७)-त्रवद्या लक्ष्मी और (८)-धन लक्ष्मी इन िभी रुपो का अशीवााद प्राप्त होता हं ।  िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् के िाथ मं तंि रक्षा कवर् के समले होने की वजह िे तांत्रिक बाधाए दरू

होती हं , िाथ ही नकारत्मन शत्रक्तर्ो का कोइ कुप्रभाव धारण कताा व्र्त्रक्त पर नहीं होता। इि कवर् के प्रभाव िे इषाा-द्वे ष रखने वाले व्र्त्रक्तओ द्वारा होने वाले दष्ट ु प्रभावो िे रक्षाहोती हं ।

 िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् के िाथ मं शिु त्रवजर् कवर् के समले होने की वजह िे शिु िे िंबंसधत

िमस्त परे शासनओ िे स्वतः ही छुटकारा समल जाता हं । कवर् के प्रभाव िे शिु धारण कताा व्र्त्रक्त का र्ाहकर कुछ नही त्रबगि िकते।

अडर् कवर् के बारे मे असधक जानकारी के सलर्े कार्ाालर् मं िंपका करे : फकिी व्र्त्रक्त त्रवशेष को िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् दे ने नही दे ना का अंसतम सनणार् हमारे पाि िुरस्क्षत हं ।

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/ Email Us:- [email protected], [email protected] (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)

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जैन धमाके त्रवसशष्ट र्ंिो की िूर्ी श्री र्ौबीि तीथंकरका महान प्रभात्रवत र्मत्कारी र्ंि

श्री एकाक्षी नाररर्ेर र्ंि

श्री र्ोबीि तीथंकर र्ंि

िवातो भद्र र्ंि

कल्पवृक्ष र्ंि

िवा िंपत्रिकर र्ंि

सर्ंतामणी पाश्वानाथ र्ंि

िवाकार्ा-िवा मनोकामना सित्रद्धअ र्ंि (१३० िवातोभद्र र्ंि)

सर्ंतामणी र्ंि (पंिफठर्ा र्ंि)

ऋत्रष मंिल र्ंि

सर्ंतामणी र्क्र र्ंि

जगदवल्लभ कर र्ंि

श्री र्क्रेश्वरी र्ंि

ऋत्रद्ध सित्रद्ध मनोकामना मान िममान प्रासप्त र्ंि

श्री घंटाकणा महावीर र्ंि

ऋत्रद्ध सित्रद्ध िमृत्रद्ध दार्क श्री महालक्ष्मी र्ंि

श्री घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि

त्रवषम त्रवष सनग्रह कर र्ंि

श्री पद्मावती र्ंि

क्षुद्रो पद्रव सननााशन र्ंि

श्री पद्मावती बीिा र्ंि

बृहच्र्क्र र्ंि

श्री पाश्वापद्मावती ह्रंकार र्ंि

वंध्र्ा शब्दापह र्ंि

पद्मावती व्र्ापार वृत्रद्ध र्ंि

मृतवत्िा दोष सनवारण र्ंि

श्री धरणेडद्र पद्मावती र्ंि

कांक वंध्र्ादोष सनवारण र्ंि

श्री पाश्वानाथ ध्र्ान र्ंि

बालग्रह पीिा सनवारण र्ंि

श्री पाश्वानाथ प्रभुका र्ंि

लधुदेव कुल र्ंि

भक्तामर र्ंि (गाथा नंबर १ िे ४४ तक)

नवगाथात्मक उविग्गहरं स्तोिका त्रवसशष्ट र्ंि

मस्णभद्र र्ंि

उविग्गहरं र्ंि

श्री र्ंि

श्री पंर् मंगल महाश्रृत स्कंध र्ंि

श्री लक्ष्मी प्रासप्त और व्र्ापार वधाक र्ंि

ह्रींकार मर् बीज मंि

श्री लक्ष्मीकर र्ंि

वधामान त्रवद्या पट्ट र्ंि

लक्ष्मी प्रासप्त र्ंि

त्रवद्या र्ंि

महात्रवजर् र्ंि

िौभाग्र्कर र्ंि

त्रवजर्राज र्ंि

िाफकनी, शाफकनी, भर् सनवारक र्ंि

त्रवजर् पतका र्ंि

भूताफद सनग्रह कर र्ंि

त्रवजर् र्ंि

ज्वर सनग्रह कर र्ंि

सिद्धर्क्र महार्ंि

शाफकनी सनग्रह कर र्ंि

दस्क्षण मुखार् शंख र्ंि

आपत्रि सनवारण र्ंि

दस्क्षण मुखार् र्ंि

शिुमुख स्तंभन र्ंि

(अनुभव सिद्ध िंपूणा श्री घंटाकणा महावीर पतका र्ंि)

र्ंि के त्रवषर् मं असधक जानकारी हे तु िंपका करं ।

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घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि को स्थापीत करने िे िाधक की िवा मनोकामनाएं पूणा होती हं । िवा प्रकार के रोग भूत-प्रेत आफद उपद्रव िे रक्षण होता हं । जहरीले और फहं िक प्राणीं िे िंबंसधत भर् दरू होते हं । अस्ग्न भर्, र्ोरभर् आफद दरू होते हं ।

दष्ट ु व अिुरी शत्रक्तर्ं िे उत्पडन होने वाले भर्

िे र्ंि के प्रभाव िे दरू हो जाते हं ।

र्ंि के पूजन िे िाधक को धन, िुख, िमृत्रद्ध,

ऎश्वर्ा, िंतत्रि-िंपत्रि आफद की प्रासप्त होती हं । िाधक की िभी प्रकार की िास्त्वक इच्छाओं की पूसता होती हं । र्फद फकिी पररवार र्ा पररवार के िदस्र्ो पर वशीकरण,

मारण,

उच्र्ाटन

इत्र्ाफद

जाद-ू टोने

वाले

प्रर्ोग फकर्े गर्ं होतो इि र्ंि के प्रभाव िे स्वतः नष्ट हो जाते हं और भत्रवष्र् मं र्फद कोई प्रर्ोग करता हं तो रक्षण होता हं ।

कुछ जानकारो के श्री घंटाकणा महावीर पतका

र्ंि िे जुिे अद्द्भत ु अनुभव रहे हं । र्फद घर मं श्री

घंटाकणा महावीर पतका र्ंि स्थात्रपत फकर्ा हं और र्फद कोई इषाा, लोभ, मोह र्ा शिुतावश र्फद अनुसर्त कमा करके फकिी भी उद्दे श्र् िे िाधक को परे शान करने का प्रर्ाि करता हं तो र्ंि के प्रभाव िे िंपूणा पररवार का रक्षण तो होता ही हं , कभी-कभी शिु के द्वारा फकर्ा गर्ा अनुसर्त कमा शिु पर ही उपर उलट वार होते दे खा हं ।

मूल्र्:- Rs. 1450 िे Rs. 8200 तक उप्लब्द्ध

िंपका करं । GURUTVA KARYALAY Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Email Us:- [email protected], [email protected] Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/

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अमोद्य महामृत्र्ुंजर् कवर् अमोद्य् महामृत्र्ुंजर् कवर् व

उल्लेस्खत अडर् िामग्रीर्ं को शास्त्रोोक्त त्रवसध-त्रवधान िे त्रवद्वान

ब्राह्मणो द्वारा िवा लाख महामृत्र्ुंजर् मंि जप एवं दशांश हवन द्वारा सनसमात कवर् अत्र्ंत प्रभावशाली होता हं ।

अमोद्य् महामृत्र्ुंजर् कवर् कवर् बनवाने हे तु:

अपना नाम, त्रपता-माता का नाम, गोि, एक नर्ा फोटो भेजे

अमोद्य् महामृत्र्ुज ं र् कवर्

दस्क्षणा माि: 10900

राशी रत्न एवं उपरत्न त्रवशेष र्ंि हमारं र्हां िभी प्रकार के र्ंि िोने-र्ांफदतामबे मं आपकी आवश्र्क्ता के अनुशार

फकिी भी भाषा/धमा के र्ंिो को आपकी

आवश्र्क फिजाईन के अनुशार २२ गेज िभी िाईज एवं मूल्र् व क्वासलफट के अिली नवरत्न एवं उपरत्न भी उपलब्ध हं ।

शुद्ध तामबे मं अखंफित बनाने की त्रवशेष िुत्रवधाएं उपलब्ध हं ।

हमारे र्हां िभी प्रकार के रत्न एवं उपरत्न व्र्ापारी मूल्र् पर उपलब्ध हं । ज्र्ोसतष कार्ा िे जुिे़ बधु/बहन व रत्न व्र्विार् िे जुिे लोगो के सलर्े त्रवशेष मूल्र् पर रत्न व अडर् िामग्रीर्ा व अडर् िुत्रवधाएं उपलब्ध हं ।

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मासिक रासश फल

 सर्ंतन जोशी मेष: 1 िे 15 मार्ा 2012: खर्ा आवश्र्क्ता िे असधक हो िकता हं खर्ा पर सनर्ंिण करने का प्रर्ाि करं । आपके इष्ट समि एवं िाथी के कारण व्र्र् बढ िकते हं । नौकरी/व्र्विार् के महत्व पूणा कार्ो मं आपको असतररक्त िावधानी रखनी र्ाफहर्े अडर्था कुछ कार्ो मं नुक्शान िंभव है । पररवार मं फकिी िदस्र् के स्वभाव के कारण आपके पररवार मं मानसिक अशांसत का माहोल हो िकता है । 16 िे 31 मार्ा 2012: फकर्े गर्े पूंस्ज सनवेश द्वारा आकस्स्मक धन प्रासप्त के र्ोग है । आपकी कार्ा शैली असधक िफक्रर् हो जाएगी। स्वास्थ्र् िुख मं वृत्रद्ध होगी फफर भी खानेपीने का त्रवशेष ध्र्ान रखना फहतकारी रहे गा। आपका िामास्जक जीवन उच्र् स्तर का हो िकता हं । पररवार मं खुसशर्ो का माहोल रहे गा। आपको शुभ िमार्ार प्राप्त हो िकर्े है ।

वृषभ: 1 िे 15 मार्ा 2012 : नौकरी-व्र्विार् मं बदलाव का त्रवर्ार कर िकते है । आसथाक लाभ िामाडर् रहे गा। उधार फदर्े धन की पुनः प्रासप्त मं हो िकती हं । भूसम-भवन-वाहन िे िंबंसधत कार्ं मं बाधाएं हो िकती हं । र्फद त्रववाफहत हं तो दांपत्र् िुख मं वृत्रद्ध होगी। र्फद अत्रववाफहत हं तो त्रववाह के र्ोग बन रहे हं । धासमाक र्ािा र्ा दरू स्थ स्थानो की र्ािा होने के र्ोग हं । 16 िे 31 मार्ा 2012 : धन लेन-े दे ने िे बर्ं अडर्था धन र्ुकाने र्ा धन की पुनः प्रासप्त मं त्रवलंब हो िकता हं । गुप्त त्रवरोधी-शिुओं के कारण धन हासन हो िकती है । आपका व्र्वहार तीव्र एवं आक्रामकता िे र्ुक्त हो िकता हं अतः त्रवशेष कर जीवन िाथी के िाथ व्र्वहार कूशल रहं । अपने खाने- पीने का ध्र्ान रखे। अपनी असधक खर्ा करने फक प्रवृत्रि पर सनर्ंिण करने का प्रर्ाि करं ।

समथुन: 1 िे 15 मार्ा 2012: आपको हर कदम पर िफलता प्राप्त होने के र्ोग हं । इि िमर् भारी मािा मं पूंस्ज सनवेश करने िे बर्े लेफकन आपका स्वभाव थोिा सर्िसर्िा बन िकता हं । अपने क्रोध पर सनर्ंिण रखे अडर्था आपका स्वभाव आपके त्रप्रर्जनो को त्रवशेष कष्ट दे िकता हं । आपके उपर झूठे आरोप लग िकते हं । अपने खान-पान का ध्र्ान रखे आपका स्वास्थ्र् िामाडर् रहे गा। 16 िे 31 मार्ा 2012 : नर्ा व्र्विार् र्ा नौकरी प्राप्त हो िकती हं र्ा आपके कार्ा क्षेि मं नर्े बदलाव हो िकते हं । आलस्र् के कारण आपके महत्व पूणा कार्ा प्राभात्रवत होि अकते हं िावधानी वते। क्र्ोफक थोिे िे प्रर्ाि िे कार्ाक्षेि मं त्रवशेष िफलताएं प्राप्त होने के र्ोग बन रहे हं । शिु आपके उपर हात्रव होने का अिफल प्रर्ाि कर िकते हं । दांपत्र् जीवन तनाव पूणा हो िकता हं ।

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मार्ा 2012

कका: 1 िे 15 मार्ा 2012: आकस्स्मक धन प्रासप्त व पुराने भुगताकी प्रासप्त हो िकती हं । आपकी आसथाक स्स्थती प्रबल होने के र्ोग हं । प्रेम प्रिंग मं िफलता प्राप्त होगी, अनैसतक कमा व अनुसर्त कार्ो िे बर्े। भूसम-भवन वाहन िे िंबंसधत कार्ो मं त्रवशेष िफलताए प्राप्त होगी। अपने खानेपीने का ध्र्ान रखे अडर्था स्वास्थर् िंबंसधत परे शानीर्ां िंभव हं । 16 िे 31 मार्ा 2012 : छोटी-छोटी िमस्र्ाए आने के उपरांत कमाक्षेि मं त्रवशेष पद प्रासप्त के र्ोग व धन वृत्रद्ध के र्ोग बन रहे हं । आपके िामास्जक मान-िममान और पद-प्रसतष्ठा मं वृत्रद्ध होगी। ग्रहं के प्रभाव िे अत्र्ासधक व्र्र् होने के र्ोग बन रहे हं । र्फद आप अत्रववाफहत हं तो त्रववाह के उिम र्ोग बन रहे हं । दांपत्र् िुख मं वृत्रद्ध होगी।

सिंह: 1 िे 15 मार्ा 2012: भूसम-भवन िं िंबंसधत कार्ो मं त्रवशेष रुसर् रहे गी। एकासधक स्त्रोोत िे आसथाक लाभ होने के र्ोग बन रहे हं । स्थान पररवतान िे िंबंसधत सनणार्ो को िंभव हो, तो स्थसगत करना उसर्त रहे गा। नौकरी-व्र्विार् िे िंबंसधत कार्ो मं िफलता के र्ोग हं । शिु एवं त्रवरोधी पक्ष िे आपको परे शानी िंभव हं । दरू स्थ स्थानो की धासमाक र्ािाएं िफल हो िकती हं । 16 िे 31 मार्ा 2012 : पुराने भुगतान की पुनः प्रासप्त िे आसथाक पक्ष िुधरे गा। भूसमभवन िे िंबंसधअ मामलो मं िफलता समल िकती हं । आपकी मानसिक सर्ंताएं बढ़ िकती हं । शिु एवं त्रवरोधी आपको वाद-त्रववाद मं उलझा िकते हं । अतः िोर् त्रवर्ार कर सलर्ा गर्ा उसर्त सनणार् आपके फहत मं रहे गा। अपने क्रोध एवं गुस्िे पर सनर्ंिण रखने का प्रर्ाि करं ।

कडर्ा: 1 िे 15 मार्ा 2012: भूसम-भवन िे िंबंसधअ मामलं मं त्रवलंब िंभव हं । कार्ाक्षेि मं अत्र्ासधक पररश्रम के उपरांत थोिी िफलता प्राप्त होगी। शिु एवं त्रवरोधी पक्ष िे अनावश्र्क वाद-त्रववाद िंभव हं । इष्ट समिं एवं त्रप्रर्जनो िे मतभेद इत्र्ादी िमस्र्ाएं हो िकती हं । अत्रववाफहत हं तो त्रववाह तर् होने के प्रबल र्ोग हं । स्वास्थ्र् िंबंसधत छोटी-छोटी िमस्र्ाए िंभव हं । 16 िे 31 मार्ा 2012 : कार्ाक्षेि मं उममीद िे कम लाभके र्ोग बन रहे हं । व्र्था के खर्ो िे आसथाक पक्ष कमजोर हो िकता हं । शिु एवं त्रवरोधी पक्ष के कारण राजकीर् कार्ो िे परे शानी िंभव हं । थोिे िमर् के सलर्े पररवार मं अशास्डत का वातावरण हो िकता हं । दांपत्र् जीवन िुखमर् व्र्तीत होगा। वाहन िावधानी िे र्लार्े र्ा वाहन िे िावधान रहे आकस्स्मक दघ ा ना हो िकती हं । ु ट

71

मार्ा 2012

तुला: 1 िे 15 मार्ा 2012: आसथाक मामलं मं िमर् उतार-र्ढ़ाव वाला हो िकता है । पूंस्ज सनवेश इत्र्ाफद के सलए िमर् प्रसतकूल हं इि सलए सनवेश करने िे परहे ज करं । आवश्र्कता िे असधक िंघषा करना पि िकता है । घरमं मांगसलक कार्ा िंपडन होने के र्ोग हं । पररवार मं फकिी िदस्र् के स्वभाव के कारण आपके पररवार मं मानसिक अशांसत का माहोल हो िकता है । 16 िे 31 मार्ा 2012 : नौकरी-व्र्विार् मं अत्र्ासधक पररश्रम एवं मेहनत के उपरांत बहुत मुस्श्कल िे धन लाभ प्राप्त कर िकते हं । अपनी असधक खर्ा करने फक प्रवृत्रि पर सनर्ंिण करने का प्रर्ाि करं । इष्ट समिं एवं पररवार के िदस्र्ं का पूणा िहर्ोग प्राप्त होगा। आपका का स्वास्थ्र् नरम हो िकता है । प्रेम िंबंसधत मामलं मं िफलता प्राप्त होने के अच्छे िंकेत हं ।

वृस्िक: 1 िे 15 मार्ा 2012 : कार्ाक्षेि की िमस्र्ाकं दरू करने मं आप पूणा रुप िे िमथा हंगे हं । व्र्विार्ीक कार्ो महत्वपूणा कार्ो मं असतररक्त िावधानी बता अडर्था कुछ कार्ो मं नुक्शान हो िकता है । पररवार के फकिी िदस्र्के िाथ मं मतभेद िंभव हं । िंतान िंबंसधत सर्ंताओंका सनवारण होगा। त्रवपरीत सलंग के प्रसत आपका आकषाण असधक रहे गा। स्वास्थ्र् िामाडर्तः उिम रहे गा। 16 िे 31 मार्ा 2012 : व्र्वािार् िे जुिे हं और िाझेदारी की र्ोजना बना रहे हं तो िमर् प्रसतकूल िात्रबत हो िकता हं । ऋण के लेन-दे ने िे बर्ने का प्रर्ाि करं अडर्था धन की पुनः प्रासप्त-भुगतान मं त्रवलंब हो िकता हं । नर्े लोगो िे समिता होगी। महत्वपूणा एवं घरे लू मामलो मं र्ुनौतीओं का िामना करना पि िकता हं । मौिम के पररवतान के िाथ-िाथ अपने खाने- पीने का त्रवशेष ध्र्ान रखना फहतकारी रहे गा।

धनु: 1 िे 15 मार्ा 2012 : व्र्ापार उद्योग िे जुिे़ लोगो को नर्े अविर प्राप्त हंगे। भूसम-भवन-वाहन िे िंबंसधत कार्ो मं लाभ प्राप्त होगा। कोटा -कर्हरी के कार्ो मं त्रवलंब हो िकता हं । अनार्श्र्क खर्ा करने िे बर्े। इष्ट समिं के िहर्ोग िे नर्े समि बन िकते हं । प्रेम िंबंधं मं मतभेद होने के र्ोग बन रहे हं । इि सलए धैर्ा और िंर्म िे काम ले जल्दबाजी परे शानी का कारण बन िकती हं । 16 िे 31 मार्ा 2012 : नौकरी-व्र्विार् िे िंबसं धत कार्ं के सलए र्ह िमर् आसथाक लाभदे ने वाला रहे गा। आकस्स्मक धन प्रासप्त के र्ोग बनेगं स्जस्िे आसथाक स्स्थती मं िुधार होगा। पररजनो िे आपके ररश्तं मं कुछ खटाि आ िकती है । इि सलए असधक िमर् अपने पररवार के िाथ त्रबताने का प्रर्ाि करे । पररवार के फकिी िदस्र् का स्वास्थ्र् प्राभात्रवत हो िकता हं ।

72

मार्ा 2012

मकर: 1 िे 15 मार्ा 2012 : आपको कार्ा क्षेि मं नर्े अविर प्राप्त अहो िकते हं । आकस्स्मक धन प्रासप्त के र्ोग बन रहे हं । आपके भौसतक िुख-िाधनो मं वृत्रद्ध होगी। पररवार मं मांगसलक कार्ा िंपडन होने के अच्छे र्ोग हं । व्र्विासर्क र्ािा मं िफलता प्राप्त हो िकती है । खानपान का त्रवशेष ध्र्ान रखं अडर्था पूराने रोगो के कारण लंबे िमर् के सलए कष्ट िंभव हं । दांपत्र् जीवन िुखमर् रहे गा। 16 िे 31 मार्ा 2012 : नौकरी-व्र्विार् मं आसथाक लेन-दे न िे िंबंसधत कार्ो मं त्रवशेष िावधानी बरते। भूसम-भवन-वाहन िे िंबंसधअ कार्ो िे लाभ प्रासप्त िंभव हं । शिुओं पर आपका प्रभाव रहे गा। आपके त्रवरोधी एवं शिु पक्ष परास्त हंगे। आपकी िामस्जक प्रसतष्ठाभी इि अवसध मं बढे गी। अपने पररजनो का पूणा प्रेम व िहर्ोग आपको प्राप्त होगा। अत्रववाफहत हं तो त्रववाह के र्ोग बन रहे हं ।

कुंभ: 1 िे 15 मार्ा 2012 : नौकरी-व्र्विार् िे िंबंसधत कार्ो मं िफलता के र्ोग हं । धनलाभ के उिम र्ोग बन रहे हं िाथ ही अनावश्र्क खर्ा भी बढ़ िकता हं । महत्व के कार्ो मं इष्ट समिं एवं िंबंधीर्ं िे िहर्ोग समलेगा। दांपत्र् जीवन मं थोिा तनाव िंभव हं । शिु आपके उपर हात्रव होने का अिफल प्रर्ाि कर िकते हं । दांपत्र् जीवन िुख मं वृत्रद्ध के अच्छे िंकेत हं । 16 िे 31 मार्ा 2012 : नौकरी-व्र्विार् मं उडनसत के र्ोग बन रहे हं । भूसम-भवन िे िंबंसधअ मामलो मं त्रवलंब हो िकता हं । दरू स्थानो की व्र्विार्ीक र्ािाए स्थसगत करनी पि िकती हं । दरू स्थ स्थानो की धासमाक र्ािाएं िफल हो िकती हं । पररवार के फकिी िदस्र् का स्वास्थ्र् सर्ंताकारक हो िकता हं । जीवन िाथी िे िहर्ोग प्राप्त होगा। शुभ िमार्ार फक प्रासप्त हो िकती हं ।

मीन: 1 िे 15 मार्ा 2012 : नौकरी, व्र्ापार, पूंजी सनवेश इत्र्ाफद िे आकस्स्मक रुप िे धन प्रासप्त हो िकती हं ।आपकी कार्ा शैली असधक िफक्रर् हो जाएगी। अपनी लगन एवं मेहनत िे धन िंबंधी पूरानी िमस्र्ाओं का िमाधान िंभव हं । मनोनुकूल जीवन िाथी फक प्रासप्त हे तु िमर् उिम िात्रबत हो िकता हं ।

पररवार के फकिी िदस्र् का स्वास्थ्र् कमजोर हो िकता

हं । 16 िे 31 मार्ा 2012 :

आपके रुके हुए महत्वपूणा कार्ा पूरे हो िकते हं । प्रसतर्ोसगता

के कार्ो मं बुत्रद्धमानी व र्तुरता िे शीघ्र लाभ और िफलता प्राप्त करं गे। शिुओं पर आपका प्रभाव रहे गा। आपके त्रवरोधी एवं शिु पक्ष परास्त हंगे। अत्रववाह है तो त्रववाह होने के र्ोग बन रहे हं । व्र्र् पर सनर्डिण रखने िे लाभ प्राप्त होगा। धासमाक र्ािा र्ा दरु स्थ स्थानो की र्ािा होने के र्ोग हं ।

मार्ा 2012

73

मार्ा 2012 मासिक पंर्ांग फद

वार

माह

1

गुरु

2

पक्ष

सतसथ

िमासप्त नक्षि

फाल्गुन शुक्ल

अष्टमी

19:55:29

रोफहस्ण

19:50:48

शुक्र

फाल्गुन शुक्ल

नवमी

21:34:45

मृगसशरा

3

शसन

फाल्गुन शुक्ल

दशमी

22:28:04

आद्रा

4

रत्रव

फाल्गुन शुक्ल

5

िोम

फाल्गुन शुक्ल

6

र्ंद्र

िमासप्त

करण

िमासप्त

त्रवषकुंभ

24:38:36

त्रवत्रष्ट

06:51:44

वृष

-

21:59:08

प्रीसत

24:44:08

बालव

08:50:41

वृष

09:00:00

23:25:16

आर्ुष्मान 24:14:01

तैसतल

10:07:27

समथुन

-

एकादशी 22:30:45 पुनवािु

24:02:38

िौभाग्र्

23:05:27

वस्णज

10:36:23

समथुन

17:58:00

द्वादशी

21:41:52

पुष्र्

23:49:22

शोभन

21:16:34

बव

10:11:52

कका

-

मंगल फाल्गुन शुक्ल

िर्ोदशी

20:07:02

अश्लेषा

22:51:06

असतगंि

18:51:06

कौलव

09:00:29

कका

22:51:00

7

बुध

फाल्गुन शुक्ल

र्तुदाशी

17:52:49

मघा

21:16:16

िुकमाा

15:53:46

गर

07:04:04

सिंह

-

8

गुरु

फाल्गुन शुक्ल

पूस्णामा

15:10:28

पूवााफाल्गुनी 19:13:17 धृसत

12:32:02

बव

15:10:28

सिंह

24:39:00

9

शुक्र

र्ैि

कृ ष्ण

एकम

12:06:33

उिराफाल्गुनी 16:52:29 शूल

08:54:22

कौलव

12:06:33

कडर्ा

-

10

शसन

र्ैि

कृ ष्ण

08:56:04

हस्त

14:26:04

वृत्रद्ध

25:18:34

गर

08:56:04

कडर्ा

25:13:00

11

रत्रव

र्ैि

कृ ष्ण

र्तुथी

26:44:38

सर्िा

12:02:27

ध्रुव

21:38:04

बव

16:12:45

तुला

-

12

िोम

र्ैि

कृ ष्ण

पंर्मी

24:00:23

स्वाती

09:51:56

व्र्ाघात

18:08:49

कौलव

13:19:08

तुला

26:25:00

13

मंगल र्ैि

कृ ष्ण

षष्ठी

21:38:37

त्रवशाखा

07:58:18

हषाण

14:57:22

गर

10:46:07

वृस्िक

-

14

बुध

र्ैि

कृ ष्ण

िप्तमी

19:43:07

जेष्ठा

29:28:07

वज्र

12:07:29

त्रवत्रष्ट

08:37:29

वृस्िक

29:28:00

15

गुरु

र्ैि

कृ ष्ण

अष्टमी

18:14:47

मूल

28:54:09

सित्रद्ध

09:38:13

बालव

06:55:06

धनु

-

16

शुक्र

र्ैि

कृ ष्ण

नवमी

17:14:34

पूवााषाढ़

28:47:23

व्र्सतपात 07:32:23

गर

17:14:34

धनु

-

फद्वतीर्ातृतीर्ा

िमासप्त र्ोग

रासश

िमासप्त

मार्ा 2012

74

17

शसन

र्ैि

कृ ष्ण

दशमी

18

रत्रव

र्ैि

कृ ष्ण

19

िोम

र्ैि

20

29:05:55

पररग्रह

28:23:44

त्रवत्रष्ट

16:41:33

धनु

10:49:00

एकादशी 16:34:46 श्रवण

29:48:50

सशव

27:19:46

बालव

16:34:46

मकर

-

कृ ष्ण

द्वादशी

16:51:26

धसनष्ठा

30:55:11

सित्रद्ध

26:34:33

तैसतल

16:51:26

मकर

18:19:00

मंगल र्ैि

कृ ष्ण

िर्ोदशी

17:32:28

धसनष्ठा

06:54:58

िाध्र्

26:07:09

वस्णज

17:32:28

कुंभ

-

21

बुध

र्ैि

कृ ष्ण

र्तुदाशी

18:37:52

शतसभषा

08:25:40

शुभ

25:59:25

शकुसन

18:37:52

कुंभ

27:47:00

22

गुरु

र्ैि

कृ ष्ण

20:06:42

पूवााभाद्रपद

10:17:57

शुक्ल

26:10:27

र्तुष्पाद

07:19:50

मीन

-

23

शुक्र

र्ैि

शुक्ल

एकम

22:00:51

उिराभाद्रपद 12:33:40 ब्रह्म

26:38:21

फकस्तुघ्न 09:00:51 मीन

-

24

शसन

र्ैि

शुक्ल

फद्वतीर्ा

24:15:38

रे वसत

15:12:49

इडद्र

27:23:08

बालव

11:05:19

मीन

15:12:00

25

रत्रव

र्ैि

शुक्ल

तृतीर्ा

26:47:17

अस्श्वनी

18:08:51

वैधसृ त

28:19:09

तैसतल

13:29:28

मेष

-

26

िोम

र्ैि

शुक्ल

र्तुथी

29:28:18

भरणी

21:16:07

त्रवषकुंभ

29:22:41

वस्णज

16:07:41

मेष

28:04:00

27

मंगल र्ैि

शुक्ल

पंर्मी

32:08:24

कृ सतका

24:26:13

प्रीसत

30:25:16

बव

18:49:39

वृष

-

28

बुध

र्ैि

शुक्ल

षष्ठी

08:08:11

रोफहस्ण

27:25:03

प्रीसत

06:25:03

बालव

08:08:11

वृष

-

29

गुरु

र्ैि

शुक्ल

षष्ठी

10:33:16

मृगसशरा

29:59:31

आर्ुष्मान 07:17:20

तैसतल

10:33:16

वृष

16:47:00

30

शुक्र

र्ैि

शुक्ल

िप्तमी

12:27:26

आद्रा

32:00:14

िौभाग्र्

07:48:03

वस्णज

12:27:26

समथुन

-

31

शसन

र्ैि

शुक्ल

अष्टमी

13:42:13

आद्रा

08:00:01

शोभन

07:50:39

बव

13:42:13

समथुन

-

अमाव स्र्ा

16:41:33

उिराषाढ़

क्र्ा आप फकिी िमस्र्ा िे ग्रस्त हं ? आपके पाि अपनी िमस्र्ाओं िे छुटकारा पाने हे तु पूजा-अर्ाना, िाधना, मंि जाप इत्र्ाफद करने का िमर् नहीं हं? अब आप अपनी िमस्र्ाओं िे बीना फकिी त्रवशेष पूजा-अर्ाना, त्रवसध-त्रवधान के आपको अपने कार्ा मं िफलता प्राप्त कर िके एवं आपको अपने जीवन के िमस्त िुखो को प्राप्त करने का मागा प्राप्त हो िके इि सलर्े गुरुत्व कार्ाालत द्वारा हमारा उद्दे श्र् शास्त्रोोक्त त्रवसध-त्रवधान िे त्रवसशष्ट तेजस्वी मंिो द्वारा सिद्ध प्राणप्रसतत्रष्ठत पूणा र्ैतडर् र्ुक्त त्रवसभडन प्रकार के र्डि- कवर् एवं शुभ फलदार्ी ग्रह रत्न एवं उपरत्न आपके घर तक पहोर्ाने का हं ।

मार्ा 2012

75

मार्ा-2012 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार फद

वार माह

पक्ष

सतसथ

िमासप्त प्रमुख व्रत-त्र्ोहार

1

गुरु

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी

19:55:29 श्रीदग ु ााष्टमी व्रत, श्रीअडनपूणााष्टमी व्रत, तैलाष्टमी,

2

शुक्र

फाल्गुन शुक्ल नवमी

21:34:45 आनडद नवमी, ब्रजमं होली शुरू, लट्ठमार होली (बरिाना, मथुरा),

3

शसन

फाल्गुन शुक्ल दशमी

22:28:04 फागु दशमी, लट्ठमार होली, लट्ठमार होली, 3 फदन खाटू श्र्ाम मेला(राज)

4

रत्रव

फाल्गुन शुक्ल एकादशी

22:30:45 आमलकी (आंवला) एकादशीव्रत, रं गभरी एकादशी, लट्ठमार होली (मथुरा)

5

िोम

फाल्गुन शुक्ल द्वादशी

21:41:52

6

मंगल फाल्गुन शुक्ल िर्ोदशी

20:07:02

7

बुध

फाल्गुन शुक्ल र्तुदाशी

17:52:49

8

गुरु

फाल्गुन शुक्ल पूस्णामा

15:10:28

9

शुक्र

र्ैि

कृ ष्ण

12:06:33

10

शसन

र्ैि

कृ ष्ण

11

रत्रव

र्ैि

12

िोम

13

एकम फद्वतीर्ा-

श्रीजगडनाथ दशान, गोत्रवडद द्वादशी,

नृसिंह द्वादशी व्रत, श्र्ामबाबा द्वादशी,

पापनासशनी द्वादशी, िुकृत द्वादशी, जर्ा द्वादशी, पुष्र् नक्षिर्ुक्त महाद्वादशी, भौम

प्रदोष

(वृडदावन)

व्रत(ऋणमोर्न

हे तु

उिम),

नंद

िर्ोदशी

व्रत, होसलकोत्िव

महे श्वर व्रत, िवाासताहर व्रत, पूस्णामा व्रत, हुताशनी पूस्णामा, (होसलका-दहन िूर्ाास्त िे रात्रि 11.39 के मध्र् शुभ काल),

स्नान-दान-व्रत हे तु उिम फाल्गुनी पूस्णामा, होली-रं गोत्िव (धुलैण्िी), दोल र्ािा, श्रीर्ैतडर् महाप्रभु जर्ंती व्रतोत्िव, होलाष्टक िमाप्त, गणगौर पूजा प्रारं भ (राज)

रसतकाम महोत्िव, विंतोत्िव, व्र्सतपात महापात प्रात:8.32 िे फदन 12.51 बजे तक,

भइर्ा दज ू , दमपत्रि टीका, विडत प्रारं भ, िंत तुकाराम जर्ंती, वन फदवि, सर्िगुप्त

\तृतीर्ा

08:56:04

कृ ष्ण

र्तुथी

26:44:38 िंकष्टी श्रीगणेश र्तुथी व्रत (र्ं.उ.रा. 9.18), छिपसत सशवाजी की जडमसतसथ,

र्ैि

कृ ष्ण

पंर्मी

24:00:23 श्रीपंर्मी, रं ग पंर्मी, फाग महोत्िव,

मंगल र्ैि

कृ ष्ण

षष्ठी

21:38:37 श्रीएकनाथ षष्ठी, वृद्ध अंगारक पवा

पूजा,

शीतला िप्तमी, शीतला-पूजा, सिलाहं की िप्तमी(पं), मीन-िंक्रास्डत के स्नान-दान

बुध

र्ैि

कृ ष्ण

िप्तमी

19:43:07 का पुण्र्काल िूर्ोदर् िे िांर् काल 05:14 बजे तक, पूजा-िंकल्प हे तु विडत

15

गुरु

र्ैि

कृ ष्ण

अष्टमी

18:14:47

16

शुक्र

र्ैि

कृ ष्ण

नवमी

17:14:34 वाराह नवमी, अडवष्टका नवमी, अडवष्टका श्राद्ध

17

शसन

र्ैि

कृ ष्ण

दशमी

16:41:33 दशमाता व्रत,

14

ऋतु प्रारं भ, मीन (खर) माि शुभ कार्ं मं वस्जात, शीतलाष्टमी, िंतानाष्टमी,

श्रीऋषभदे व जडमफदन(जैन)

कालाष्टमी व्रत, अष्टका श्राद्ध, ऋषभदेव जर्ंती,

76

18

रत्रव

र्ैि

कृ ष्ण

एकादशी

16:34:46 पापमोसर्नी एकादशी व्रत,

19

िोम

र्ैि

कृ ष्ण

द्वादशी

16:51:26 िोम प्रदोष व्रत,

20

21

22

मंगल र्ैि

कृ ष्ण

िर्ोदशी

मार्ा 2012

मासिक सशवरात्रि व्रत, मधुकृष्ण िर्ोदशी, रं गतेरि, वारुणी पवा प्रात: 6.54 िे

17:32:28 िार्ं 5.32 बजे तक, िूर्ा िार्न मेष रात्रष मं प्रात: 10.46 बजे, विडत िमपात ्,

मां फहं गलाज पूजा

केदार र्तुदाशी, सर्ि र्तुदाशी, रुद्रतीथा-स्नान,राष्ट्रीर् (शासलवाहन) शक िमवत ्

बुध

र्ैि

कृ ष्ण

र्तुदाशी

18:37:52 1934 प्रारं भ, वैधसृ त महापात फदन 12.05 िे िार्ं 5.07 बजे तक, त्रवश्व वन

गुरु

र्ैि

कृ ष्ण

अमावस्र्ा 20:06:42

फदवि,

अमावस्र्ा, त्रवक्रम.िं. 2068 पूण,ा स्नान-दान-श्राद्ध हे तु उिम र्ैिी अमावस्र्ा, थाल भरुण फदवि, र्ैि नवरािारं भ, बिंत नवराि, घट स्थापना, त्रवश्वाविु’ नामक त्रवक्रम.िं.2069 प्रारं भ, बैठकी, नविंवत्िरोत्िव, नवपंर्ांग फल-श्रवण, ध्वजारोहण, वािंसतक नवराि

23

शुक्र

र्ैि

शुक्ल एकम

22:00:51 शुरू, कलश( घट) स्थापना, सतलक व्रत, त्रवद्या व्रत, आरोग्र् व्रत, गुिी पिवा (महाराष्ट्र),

िा.हे िगेवार जर्ंती, गौतम ऋत्रष जर्ंती, आर्ािमाज स्थापना फदवि, अभ्र्ंग स्नान, भगतसिंह- राजगुरु-िुखदे व शहीद फदवि

24

शसन

र्ैि

शुक्ल फद्वतीर्ा

24:15:38 नवीन र्ंद्र-दशान, र्ैती र्ाँद-झूलेलाल जर्ंती (सिंधी),

25

रत्रव

र्ैि

शुक्ल तृतीर्ा

26:47:17

26

िोम

र्ैि

शुक्ल र्तुथी

29:28:18 वरदत्रवनार्क र्तुथी व्रत, दमनक र्तुथी, त्रवनार्की र्तुथी (र्ं.उ.रा.9.41),

27

मंगल र्ैि

शुक्ल पंर्मी

32:08:24

28

बुध

र्ैि

शुक्ल षष्ठी

08:08:11 र्ैती छठ का खरना, स्कडद (कुमार) षष्ठी व्रत,

29

गुरु

र्ैि

शुक्ल षष्ठी

10:33:16

30

शुक्र

र्ैि

शुक्ल िप्तमी

12:27:26

गौरी तृतीर्ा, गणगौर तीज व्रत, िौभाग्र् िुंदरी व्रत, मनोरथ तृतीर्ा व्रत, अरुं धती व्रत, जसमफद उलावल, मत्स्र्ावतार जर्ंती,

श्रीपंर्मी,

लक्ष्मी-पूजा, श्रीराम राज्र्ासभषेक फदवि, हर्व्रत, अनंतनाग पंर्मी,

पशुपतीश्वर-दशान (काशी),

िूर्ष ा ष्ठी व्रत (र्ैती छठ), र्मुना जर्ंती महोत्िव, वािंती दग ु ाापूजा, त्रबल्वासभमंिण षष्ठी, अशोकाषष्ठी वािंती दग ु ाापूजा प्रारं भ, महािप्तमी व्रत, कालरात्रि िप्तमी, महासनशा पूजा, कमला िप्तमी, भास्कर िप्तमी, िूर्द ा मनक पूजा, दग ु ााष्टमी-महाष्टमी व्रत, अशोकाष्टमी, अशोकाष्टमी (बंगाल), श्रीअडनपूणााष्टमी व्रत एवं

31

शसन

र्ैि

शुक्ल अष्टमी

13:42:13 पररक्रमा (काशी), महासनशा पूजा, िांईबाबा उत्िव 3 फदन (सशरिी), मनिादेवी

मेला(हररद्वार), बहुफोटा मेला (जममू), िम्राट अशोक जर्ंती,

मार्ा 2012

77

गणेश लक्ष्मी र्ंि प्राण-प्रसतत्रष्ठत गणेश लक्ष्मी र्ंि को अपने घर-दक ु ान-ओफफि-फैक्टरी मं पूजन स्थान, गल्ला र्ा अलमारी मं स्थात्रपत करने व्र्ापार मं त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं । र्ंि के प्रभाव िे भाग्र् मं उडनसत, मान-प्रसतष्ठा एवं

व्र्ापर मं वृत्रद्ध होती

हं एवं आसथाक स्स्थमं िुधार होता हं । गणेश लक्ष्मी र्ंि को स्थात्रपत करने िे भगवान गणेश और दे वी लक्ष्मी का

Rs.550 िे Rs.8200 तक

िंर्ुक्त आशीवााद प्राप्त होता हं ।

मंगल र्ंि िे ऋण मुत्रक्त मंगल र्ंि को जमीन-जार्दाद के त्रववादो को हल करने के काम मं लाभ दे ता हं , इि के असतररक्त व्र्त्रक्त को ऋण मुत्रक्त हे तु मंगल िाधना िे असत शीध्र लाभ प्राप्त होता हं ।

त्रववाह आफद मं मंगली जातकं के कल्र्ाण के सलए मंगल

र्ंि की पूजा करने िे त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं । प्राण प्रसतत्रष्ठत मंगल र्ंि के पूजन िे भाग्र्ोदर्, शरीर मं खून की कमी, गभापात िे बर्ाव, बुखार, र्ेर्क, पागलपन, िूजन और घाव, र्ौन शत्रक्त मं वृत्रद्ध, शिु त्रवजर्, तंि मंि के दष्ट ु प्रभा,

मूल्र् माि Rs- 550

भूत-प्रेत भर्, वाहन दघ ा नाओं, हमला, र्ोरी इत्र्ादी िे बर्ाव होता हं । ु ट

कुबेर र्ंि कुबेर र्ंि के पूजन िे स्वणा लाभ, रत्न लाभ, पैतक ृ िमपिी एवं गिे हुए धन िे लाभ प्रासप्त फक कामना करने वाले व्र्त्रक्त के सलर्े कुबेर र्ंि अत्र्डत िफलता दार्क होता हं । एिा शास्त्रोोक्त वर्न हं । कुबेर र्ंि के पूजन िे एकासधक स्त्रोोि िे धन का प्राप्त

होकर धन िंर्र् होता हं ।

ताम्र पि पर िुवणा पोलीि

ताम्र पि पर रजत पोलीि

ताम्र पि पर

(Gold Plated)

(Silver Plated)

(Copper)

िाईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

मूल्र् 640 1250 1850 2700 4600 8200

िाईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

मूल्र् 460 820 1250 2100 3700 6400

िाईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected]

मूल्र् 370 550 820 1450 2450 4600

78

मार्ा 2012

नवरत्न जफित श्री र्ंि शास्त्रो वर्न के अनुिार शुद्ध िुवणा र्ा रजत मं सनसमात श्री र्ंि के र्ारं और र्फद नवरत्न जिवा ने पर र्ह नवरत्न जफित श्री र्ंि कहलाता हं । िभी रत्नो को उिके सनस्ित स्थान पर जि कर लॉकेट के रूप मं धारण करने िे व्र्त्रक्त को अनंत एश्वर्ा एवं लक्ष्मी की प्रासप्त होती हं । व्र्त्रक्त को एिा आभाि होता हं जैिे मां लक्ष्मी उिके िाथ हं । नवग्रह को श्री र्ंि के िाथ लगाने िे ग्रहं की अशुभ दशा का धारण करने वाले व्र्त्रक्त पर प्रभाव नहीं होता हं । गले मं होने के कारण र्ंि पत्रवि रहता हं एवं स्नान करते िमर् इि र्ंि पर स्पशा कर जो जल त्रबंद ु शरीर को लगते हं , वह गंगा

जल के िमान पत्रवि होता हं । इि सलर्े इिे िबिे तेजस्वी एवं फलदासर् कहजाता हं । जैिे अमृत िे उिम कोई औषसध नहीं, उिी प्रकार लक्ष्मी प्रासप्त के सलर्े श्री र्ंि िे उिम कोई र्ंि िंिार मं नहीं हं एिा शास्त्रोोक्त वर्न हं । इि प्रकार के नवरत्न जफित श्री र्ंि गुरूत्व कार्ाालर् द्वारा शुभ मुहूता मं प्राण प्रसतत्रष्ठत करके बनावाए जाते हं ।

अष्ट लक्ष्मी कवर् अष्ट लक्ष्मी कवर् को धारण करने िे व्र्त्रक्त पर िदा मां महा लक्ष्मी की कृ पा एवं आशीवााद बना रहता हं । स्जस्िे मां लक्ष्मी के अष्ट रुप (१)-आफद लक्ष्मी, (२)-धाडर् लक्ष्मी, (३)-धैरीर् लक्ष्मी, (४)गज लक्ष्मी, (५)-िंतान लक्ष्मी, (६)-त्रवजर् लक्ष्मी, (७)-त्रवद्या लक्ष्मी और (८)-धन लक्ष्मी इन िभी रुपो का स्वतः अशीवााद प्राप्त होता हं ।

मूल्र् माि: Rs-1050

मंि सिद्ध व्र्ापार वृत्रद्ध कवर् व्र्ापार वृत्रद्ध कवर् व्र्ापार के शीघ्र उडनसत के सलए उिम हं । र्ाहं कोई भी व्र्ापार हो अगर उिमं लाभ के स्थान पर बार-बार हासन हो रही हं । फकिी प्रकार िे व्र्ापार मं बार-बार बांधा उत्पडन हो रही हो! तो िंपूणा प्राण प्रसतत्रष्ठत मंि सिद्ध पूणा र्ैतडर् र्ुक्त व्र्ापात वृत्रद्ध र्ंि को व्र्पार स्थान र्ा घर मं स्थात्रपत करने िे शीघ्र ही व्र्ापार वृत्रद्ध एवं

मूल्र् माि: Rs.370 & 730

सनतडतर लाभ प्राप्त होता हं ।

मंगल र्ंि (त्रिकोण) मंगल र्ंि को जमीन-जार्दाद के त्रववादो को हल करने के काम मं लाभ दे ता हं , इि के असतररक्त व्र्त्रक्त को ऋण मुत्रक्त हे तु मंगल िाधना िे असत शीध्र लाभ प्राप्त होता हं । त्रववाह आफद मं मंगली जातकं के कल्र्ाण के सलए मंगल र्ंि की पूजा करने िे त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं ।

मूल्र् माि Rs- 550

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected], Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/

79

मार्ा 2012

त्रववाह िंबंसधत िमस्र्ा क्र्ा आपके लिके-लिकी फक आपकी शादी मं अनावश्र्क रूप िे त्रवलमब हो रहा हं र्ा उनके वैवाफहक जीवन मं खुसशर्ां कम होती जारही हं और िमस्र्ा असधक बढती जारही हं । एिी स्स्थती होने पर अपने लिके -लिकी फक कुंिली का अध्र्र्न अवश्र् करवाले और उनके वैवाफहक िुख को कम करने वाले दोषं के सनवारण के उपार्ो के बार मं त्रवस्तार िे जनकारी प्राप्त करं ।

सशक्षा िे िंबंसधत िमस्र्ा क्र्ा आपके लिके-लिकी की पढाई मं अनावश्र्क रूप िे बाधा-त्रवघ्न र्ा रुकावटे हो रही हं ? बच्र्ो को अपने पूणा पररश्रम एवं मेहनत का उसर्त फल नहीं समल रहा? अपने लिके-लिकी की कुंिली का त्रवस्तृत अध्र्र्न अवश्र् करवाले और उनके त्रवद्या अध्र्र्न मं आनेवाली रुकावट एवं दोषो के कारण एवं उन दोषं के सनवारण के उपार्ो के बार मं त्रवस्तार िे जनकारी प्राप्त करं ।

क्र्ा आप फकिी िमस्र्ा िे ग्रस्त हं ? आपके पाि अपनी िमस्र्ाओं िे छुटकारा पाने हे तु पूजा-अर्ाना, िाधना, मंि जाप इत्र्ाफद करने का िमर् नहीं हं ? अब आप अपनी िमस्र्ाओं िे बीना फकिी त्रवशेष पूजा-अर्ाना, त्रवसध-त्रवधान के आपको अपने कार्ा मं िफलता प्राप्त कर िके एवं आपको अपने जीवन के िमस्त िुखो को प्राप्त करने का मागा प्राप्त हो िके इि सलर्े गुरुत्व कार्ाालत द्वारा हमारा उद्दे श्र् शास्त्रोोक्त त्रवसध-त्रवधान िे त्रवसशष्ट तेजस्वी मंिो द्वारा सिद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत पूणा र्ैतडर् र्ुक्त त्रवसभडन प्रकार के र्डि- कवर् एवं शुभ फलदार्ी ग्रह रत्न एवं उपरत्न आपके घर तक पहोर्ाने का हं ।

ज्र्ोसतष िंबंसधत त्रवशेष परामशा ज्र्ोसत त्रवज्ञान, अंक ज्र्ोसतष, वास्तु एवं आध्र्ास्त्मक ज्ञान िं िंबंसधत त्रवषर्ं मं हमारे 30 वषो िे असधक वषा के अनुभवं के िाथ ज्र्ोसति िे जुिे नर्े-नर्े िंशोधन के आधार पर आप अपनी हर िमस्र्ा के िरल िमाधान प्राप्त कर िकते हं ।

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected]

ओनेक्ि जो व्र्त्रक्त पडना धारण करने मे अिमथा हो उडहं बुध ग्रह के उपरत्न ओनेक्ि को धारण करना र्ाफहए। उच्र् सशक्षा प्रासप्त हे तु और स्मरण शत्रक्त के त्रवकाि हे तु ओनेक्ि रत्न की अंगूठी को दार्ं हाथ की िबिे छोटी उं गली र्ा लॉकेट बनवा कर गले मं धारण करं । ओनेक्ि रत्न धारण करने िे त्रवद्या-बुत्रद्ध की प्रासप्त हो होकर स्मरण मार्ा शत्रक्त का त्रवकाि होता हं ।

मार्ा 2012

80

मार्ा 2012 -त्रवशेष र्ोग कार्ा सित्रद्ध र्ोग 4/5

रात्रि 12.01 िे िूर्ोदर् तक

23

फदन 12.34 िे रातभर

5

िूर्ोदर् िे रात्रि 11.48 तक

25

िूर्ोदर् िे िार्ं 6.07 तक

6

िूर्ोदर् िे रात्रि 10.50 तक

27

िूर्ोदर् िे रात्रि 12.25 तक

18

प्रात: 5.04 िे िूर्ोदर् तक

28

िमपूणा फदन-रात

अमृत र्ोग 4/5

रात्रि 12.01 िे िूर्ोदर् तक

23

फदन 12.34 िे रातभर

फद्वपुष्कर (दोगुना फल) र्ोग 19

प्रात: 5.47 िे िूर्ोदर् तक

त्रिपुष्कर (तीन गुना फल) र्ोग 4

रात्रि मं 10.29 िे रात्रि 12.01 तक

रत्रव-पुष्र्ामृत र्ोग 4/5

रात्रि 12.01 िे िूर्ोदर् तक

र्ोग फल : 

कार्ा सित्रद्ध र्ोग मे फकर्े गर्े शुभ कार्ा मे सनस्ित िफलता प्राप्त होती हं, एिा शास्त्रोोक्त वर्न हं ।



फद्वपुष्कर र्ोग मं फकर्े गर्े शुभ कार्ो का लाभ दोगुना होता हं । एिा शास्त्रोोक्त वर्न हं ।



त्रिपुष्कर र्ोग मं फकर्े गर्े शुभ कार्ो का लाभ तीन गुना होता हं । एिा शास्त्रोोक्त वर्न हं ।



रत्रव पुष्र्ामृत र्ोग एवं अमृत र्ोग शुभ कार्ा हे तु उिम माना जाता हं ।

दै सनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका गुसलक काल

र्म काल

(शुभ)

(अशुभ)

िमर् अवसध

िमर् अवसध

िमर् अवसध

रत्रववार

03:00 िे 04:30

12:00 िे 01:30

04:30 िे 06:00

िोमवार

01:30 िे 03:00

10:30 िे 12:00

07:30 िे 09:00

मंगलवार

12:00 िे 01:30

09:00 िे 10:30

03:00 िे 04:30

बुधवार

10:30 िे 12:00

07:30 िे 09:00

12:00 िे 01:30

गुरुवार

09:00 िे 10:30

06:00 िे 07:30

01:30 िे 03:00

शुक्रवार

07:30 िे 09:00

03:00 िे 04:30

10:30 िे 12:00

शसनवार

06:00 िे 07:30

01:30 िे 03:00

09:00 िे 10:30

वार

राहु काल (अशुभ)

मार्ा 2012

81

फदन के र्ौघफिर्े िमर्

रत्रववार

िोमवार

मंगलवार बुधवार गुरुवार

शुक्रवार

शसनवार

06:00 िे 07:30

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

काल

07:30 िे 09:00

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

09:00 िे 10:30

लाभ

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

10:30 िे 12:00

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

12:00 िे 01:30

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

01:30 िे 03:00

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

03:00 िे 04:30

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

04:30 िे 06:00

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

काल

रात के र्ौघफिर्े िमर्

रत्रववार

िोमवार

मंगलवार

बुधवार गुरुवार

शुक्रवार

शसनवार

06:00 िे 07:30

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

07:30 िे 09:00

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

09:00 िे 10:30

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

10:30 िे 12:00

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

12:00 िे 01:30

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

01:30 िे 03:00

लाभ

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

03:00 िे 04:30

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

शुभ

र्ल

काल

04:30 िे 06:00

शुभ

र्ल

काल

उद्वे ग

अमृत

रोग

लाभ

शास्त्रोोक्त मत के अनुशार र्फद फकिी भी कार्ा का प्रारं भ शुभ मुहूता र्ा शुभ िमर् पर फकर्ा जार्े तो कार्ा मं िफलता

प्राप्त होने फक िंभावना ज्र्ादा प्रबल हो जाती हं । इि सलर्े दै सनक शुभ िमर् र्ौघफिर्ा दे खकर प्राप्त फकर्ा जा िकता हं ।

नोट: प्रार्ः फदन और रात्रि के र्ौघफिर्े फक सगनती क्रमशः िूर्ोदर् और िूर्ाास्त िे फक जाती हं । प्रत्र्ेक र्ौघफिर्े फक अवसध 1 घंटा 30 समसनट अथाात िे ढ़ घंटा होती हं । िमर् के अनुिार र्ौघफिर्े को शुभाशुभ तीन भागं मं बांटा जाता हं , जो क्रमशः शुभ, मध्र्म और अशुभ हं ।

र्ौघफिर्े के स्वामी ग्रह

* हर कार्ा के सलर्े शुभ/अमृत/लाभ का

शुभ र्ौघफिर्ा

मध्र्म र्ौघफिर्ा

अशुभ र्ौघफिर्ा

र्ौघफिर्ा स्वामी ग्रह

र्ौघफिर्ा स्वामी ग्रह

र्ौघफिर्ा

स्वामी ग्रह

शुभ

गुरु

र्र

उद्बे ग

िूर्ा

अमृत

र्ंद्रमा

काल

शसन

लाभ

बुध

रोग

मंगल

शुक्र

र्ौघफिर्ा उिम माना जाता हं । * हर कार्ा के सलर्े र्ल/काल/रोग/उद्वे ग का र्ौघफिर्ा उसर्त नहीं माना जाता।

मार्ा 2012

82

फदन फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक वार

1.घं

2.घं

3.घं

4.घं

5.घं

6.घं

7.घं

8.घं

9.घं

रत्रववार

िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

िोमवार

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

मंगलवार

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

बुधवार

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल

गुरुवार

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

शुक्रवार

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

शसनवार

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

र्ंद्र

10.घं 11.घं 12.घं

रात फक होरा – िूर्ाास्त िे िूर्ोदर् तक रत्रववार

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

िोमवार

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

मंगल

िूर्ा

शुक्र

बुध

र्ंद्र

शसन

गुरु

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गुरु

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होरा मुहूता को कार्ा सित्रद्ध के सलए पूणा फलदार्क एवं अर्ूक माना जाता हं , फदन-रात के २४ घंटं मं शुभ-अशुभ िमर् को िमर् िे पूवा ज्ञात कर अपने कार्ा सित्रद्ध के सलए प्रर्ोग करना र्ाफहर्े।

त्रवद्वानो के मत िे इस्च्छत कार्ा सित्रद्ध के सलए ग्रह िे िंबंसधत होरा का र्ुनाव करने िे त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं ।  िूर्ा फक होरा िरकारी कार्ो के सलर्े उिम होती हं ।  र्ंद्रमा फक होरा िभी कार्ं के सलर्े उिम होती हं ।  मंगल फक होरा कोटा-कर्ेरी के कार्ं के सलर्े उिम होती हं ।  बुध फक होरा त्रवद्या-बुत्रद्ध अथाात पढाई के सलर्े उिम होती हं ।  गुरु फक होरा धासमाक कार्ा एवं त्रववाह के सलर्े उिम होती हं ।  शुक्र फक होरा र्ािा के सलर्े उिम होती हं ।  शसन फक होरा धन-द्रव्र् िंबंसधत कार्ा के सलर्े उिम होती हं ।

मार्ा 2012

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ग्रह र्लन मार्ा-2012 Day 1

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िवा रोगनाशक र्ंि/कवर् मनुष्र् अपने जीवन के त्रवसभडन िमर् पर फकिी ना फकिी िाध्र् र्ा अिाध्र् रोग िे ग्रस्त होता हं । उसर्त उपर्ार िे ज्र्ादातर िाध्र् रोगो िे तो मुत्रक्त समल जाती हं , लेफकन कभी-कभी िाध्र् रोग होकर भी अिाध्र्ा

होजाते हं , र्ा कोइ अिाध्र् रोग िे ग्रसित होजाते हं । हजारो लाखो रुपर्े खर्ा करने पर भी असधक लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। िॉक्टर द्वारा फदजाने वाली दवाईर्ा अल्प िमर् के सलर्े कारगर िात्रबत होती हं , एसि स्स्थती मं लाभा प्रासप्त के सलर्े व्र्त्रक्त एक िॉक्टर िे दि ू रे िॉक्टर के र्क्कर लगाने को बाध्र् हो जाता हं । भारतीर् ऋषीर्ोने अपने र्ोग िाधना के प्रताप िे रोग शांसत हे तु त्रवसभडन आर्ुवेर औषधो के असतररक्त र्ंि, मंि एवं तंि उल्लेख अपने ग्रंथो मं कर मानव जीवन को लाभ प्रदान करने का िाथाक प्रर्ाि हजारो वषा पूवा फकर्ा था। बुत्रद्धजीवो के मत िे जो व्र्त्रक्त जीवनभर अपनी फदनर्र्ाा पर सनर्म, िंर्म रख कर आहार ग्रहण करता हं , एिे व्र्त्रक्त को त्रवसभडन रोग िे ग्रसित होने की िंभावना कम होती हं । लेफकन आज के बदलते र्ुग मं एिे व्र्त्रक्त भी भर्ंकर रोग िे ग्रस्त होते फदख जाते हं । क्र्ोफक िमग्र िंिार काल के अधीन हं । एवं मृत्र्ु सनस्ित हं स्जिे त्रवधाता के अलावा और कोई टाल नहीं िकता, लेफकन रोग होने फक स्स्थती मं व्र्त्रक्त रोग दरू करने का प्रर्ाि तो अवश्र् कर िकता हं ।

इि सलर्े र्ंि मंि एवं तंि के कुशल जानकार िे र्ोग्र् मागादशान लेकर व्र्त्रक्त रोगो िे मुत्रक्त पाने का र्ा उिके प्रभावो को कम करने का प्रर्ाि भी अवश्र् कर िकता हं । ज्र्ोसतष त्रवद्या के कुशल जानकर भी काल पुरुषकी गणना कर अनेक रोगो के अनेको रहस्र् को उजागर कर िकते हं । ज्र्ोसतष शास्त्रो के माध्र्म िे रोग के मूलको पकिने मे िहर्ोग समलता हं , जहा आधुसनक सर्फकत्िा शास्त्रो अक्षम होजाता हं वहा ज्र्ोसतष शास्त्रो द्वारा रोग के मूल(जि) को पकि कर उिका सनदान करना लाभदार्क एवं उपार्ोगी सिद्ध होता हं । हर व्र्त्रक्त मं लाल रं गकी कोसशकाए पाइ जाती हं , स्जिका सनर्मीत त्रवकाि क्रम बद्ध तरीके िे होता रहता हं । जब इन कोसशकाओ के क्रम मं पररवतान होता हं र्ा त्रवखंफिन होता हं तब व्र्त्रक्त के शरीर मं स्वास्थ्र् िंबंधी त्रवकारो उत्पडन होते हं । एवं इन कोसशकाओ का िंबंध नव ग्रहो के िाथ होता हं । स्जस्िे रोगो के होने के कारणा व्र्त्रक्तके जडमांग िे दशा-महादशा एवं ग्रहो फक गोर्र मं स्स्थती िे प्राप्त होता हं । िवा रोग सनवारण कवर् एवं महामृत्र्ुंजर् र्ंि के माध्र्म िे व्र्त्रक्त के जडमांग मं स्स्थत कमजोर एवं पीफित ग्रहो के अशुभ प्रभाव को कम करने का कार्ा िरलता पूवक ा फकर्ा जािकता हं । जेिे हर व्र्त्रक्त को ब्रह्मांि फक उजाा एवं पृथ्वी का गुरुत्वाकषाण बल प्रभावीत कताा हं फठक उिी प्रकार कवर् एवं र्ंि के माध्र्म िे ब्रह्मांि फक उजाा के िकारात्मक प्रभाव िे व्र्त्रक्त को िकारात्मक उजाा प्राप्त होती हं स्जस्िे रोग के प्रभाव को कम कर रोग मुक्त करने हे तु िहार्ता समलती हं । रोग सनवारण हे तु महामृत्र्ुंजर् मंि एवं र्ंि का बिा महत्व हं । स्जस्िे फहडद ू िंस्कृ सत का प्रार्ः हर व्र्त्रक्त

महामृत्र्ुंजर् मंि िे पररसर्त हं ।

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मार्ा 2012

कवर् के लाभ : 

एिा शास्त्रोोक्त वर्न हं स्जि घर मं महामृत्र्ुंजर् र्ंि स्थात्रपत होता हं वहा सनवाि कताा हो नाना प्रकार फक आसध-व्र्ासध-उपासध िे रक्षा होती हं ।



पूणा प्राण प्रसतत्रष्ठत एवं पूणा र्ैतडर् र्ुक्त िवा रोग सनवारण कवर् फकिी भी उम्र एवं जासत धमा के लोग र्ाहे स्त्रोी हो र्ा पुरुष धारण कर िकते हं ।



जडमांगमं अनेक प्रकारके खराब र्ोगो और खराब ग्रहो फक प्रसतकूलता िे रोग उतपडन होते हं ।



कुछ रोग िंक्रमण िे होते हं एवं कुछ रोग खान-पान फक असनर्समतता और अशुद्धतािे उत्पडन होते हं । कवर् एवं र्ंि द्वारा एिे अनेक प्रकार के खराब र्ोगो को नष्ट कर, स्वास्थ्र् लाभ और शारीररक रक्षण प्राप्त करने हे तु िवा रोगनाशक कवर् एवं र्ंि िवा उपर्ोगी होता हं ।



आज के भौसतकता वादी आधुसनक र्ुगमे अनेक एिे रोग होते हं , स्जिका उपर्ार ओपरे शन और दवािे भी कफठन हो जाता हं । कुछ रोग एिे होते हं स्जिे बताने मं लोग फहर्फकर्ाते हं शरम अनुभव करते हं एिे रोगो को रोकने हे तु एवं उिके उपर्ार हे तु िवा रोगनाशक कवर् एवं र्ंि लाभादासर् सिद्ध होता हं ।



प्रत्र्ेक व्र्त्रक्त फक जेिे-जेिे आर्ु बढती हं वैिे-विै उिके शरीर फक ऊजाा होती जाती हं । स्जिके िाथ अनेक प्रकार के त्रवकार पैदा होने लगते हं एिी स्स्थती मं उपर्ार हे तु िवारोगनाशक कवर् एवं र्ंि फलप्रद होता हं ।



स्जि घर मं त्रपता-पुि, माता-पुि, माता-पुिी, र्ा दो भाई एक फह नक्षिमे जडम लेते हं, तब उिकी माता के सलर्े असधक कष्टदार्क स्स्थती होती हं । उपर्ार हे तु महामृत्र्ुंजर् र्ंि फलप्रद होता हं ।



स्जि व्र्त्रक्त का जडम पररसध र्ोगमे होता हं उडहे होने वाले मृत्र्ु तुल्र् कष्ट एवं होने वाले रोग, सर्ंता मं उपर्ार हे तु िवा रोगनाशक कवर् एवं र्ंि शुभ फलप्रद होता हं ।

नोट:- पूणा प्राण प्रसतत्रष्ठत एवं पूणा र्ैतडर् र्ुक्त िवा रोग सनवारण कवर् एवं र्ंि के बारे मं असधक जानकारी हे तु हम िे िंपका करं ।

Declaration Notice    

We do not accept liability for any out of date or incorrect information. We will not be liable for your any indirect consequential loss, loss of profit, If you will cancel your order for any article we can not any amount will be refunded or Exchange. We are keepers of secrets. We honour our clients' rights to privacy and will release no information about our any other clients' transactions with us.  Our ability lies in having learned to read the subtle spiritual energy, Yantra, mantra and promptings of the natural and spiritual world.  Our skill lies in communicating clearly and honestly with each client.  Our all kawach, yantra and any other article are prepared on the Principle of Positiv energy, our Article dose not produce any bad energy.

Our Goal  Here Our goal has The classical Method-Legislation with Proved by specific with fiery chants prestigious full consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your door step.

मार्ा 2012

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मंि सिद्ध कवर्

मंि सिद्ध कवर् को त्रवशेष प्रर्ोजन मं उपर्ोग के सलए और शीघ्र प्रभाव शाली बनाने के सलए तेजस्वी मंिो द्वारा शुभ महूता मं शुभ फदन को तैर्ार फकर्े जाते हं . अलग-अलग कवर् तैर्ार करने केसलए अलग-अलग तरह के मंिो का प्रर्ोग फकर्ा जाता हं .

 क्र्ं र्ुने मंि सिद्ध कवर्?  उपर्ोग मं आिान कोई प्रसतबडध नहीं  कोई त्रवशेष सनसत-सनर्म नहीं  कोई बुरा प्रभाव नहीं  कवर् के बारे मं असधक जानकारी हे तु

मंि सिद्ध कवर् िूसर् िवा कार्ा सित्रद्ध

4600/-

ऋण मुत्रक्त

910/-

त्रवघ्न बाधा सनवारण

550/-

िवा जन वशीकरण

1450/-

धन प्रासप्त

820/-

नज़र रक्षा

550/-

अष्ट लक्ष्मी

1250/-

तंि रक्षा

730/-

460/-

िंतान प्रासप्त

1250/-

शिु त्रवजर्

दभ ु ााग्र् नाशक

730/-

* वशीकरण (२-३ व्र्त्रक्तके सलए)

स्पे- व्र्ापर वृत्रद्ध

1050/-

त्रववाह बाधा सनवारण

730/-

* पत्नी वशीकरण

640/-

कार्ा सित्रद्ध

1050/-

व्र्ापर वृत्रद्ध

730/--

* पसत वशीकरण

640/-

आकस्स्मक धन प्रासप्त

1050/-

िवा रोग सनवारण

730/-

िरस्वती (कक्षा +10 के सलए)

550/-

1050/-

नवग्रह शांसत

910/-

मस्स्तष्क पृत्रष्ट वधाक

640/-

िरस्वती (कक्षा 10 तकके सलए)

460/-

भूसम लाभ

910/-

कामना पूसता

640/-

* वशीकरण ( 1 व्र्त्रक्त के सलए)

640/-

काम दे व

910/-

त्रवरोध नाशक

640/-

रोजगार प्रासप्त

370/-

पदं उडनसत

910/-

रोजगार वृत्रद्ध

550/-

*कवर् माि शुभ कार्ा र्ा उद्दे श्र् के सलर्े

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/ Email Us:- [email protected], [email protected] (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION) (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)

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YANTRA LIST Our Splecial Yantra 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10

12 – YANTRA SET VYAPAR VRUDDHI YANTRA BHOOMI LABHA YANTRA TANTRA RAKSHA YANTRA AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA PADOUNNATI YANTRA RATNE SHWARI YANTRA BHUMI PRAPTI YANTRA GRUH PRAPTI YANTRA KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA

EFFECTS For all Family Troubles For Business Development For Farming Benefits For Protection Evil Sprite For Unexpected Wealth Benefits For Getting Promotion For Benefits of Gems & Jewellery For Land Obtained For Ready Made House -

Shastrokt Yantra 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42

AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) BHAGYA VARDHAK YANTRA BHAY NASHAK YANTRA CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA DARIDRA VINASHAK YANTRA DHANDA POOJAN YANTRA DHANDA YAKSHANI YANTRA GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) GARBHA STAMBHAN YANTRA GAYATRI BISHA YANTRA HANUMAN YANTRA JWAR NIVARAN YANTRA JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA YANTRA KALI YANTRA KALPVRUKSHA YANTRA KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) KANAK DHARA YANTRA KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA KARYA SHIDDHI YANTRA  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA KRISHNA BISHA YANTRA KUBER YANTRA LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA LAKSHAMI GANESH YANTRA MAHA MRUTYUNJAY YANTRA MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA NAVDURGA YANTRA

Blessing of Durga Win over Enemies Blessing of Bagala Mukhi For Good Luck For Fear Ending Blessing of Chamunda & Navgraha Blessing of Chhinnamasta For Poverty Ending For Good Wealth For Good Wealth Blessing of Lord Ganesh For Pregnancy Protection Blessing of Gayatri Blessing of Lord Hanuman For Fewer Ending For Astrology & Spritual Knowlage Blessing of Kali For Fullfill your all Ambition Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga Blessing of Maha Lakshami For Successes in work For Successes in all work Blessing of Lord Krishna Blessing of Kuber (Good wealth) For Obstaele Of marriage Blessing of Lakshami & Ganesh For Good Health Blessing of Shiva For Fullfill your all Ambition For Marriage with choice able Girl Blessing of Durga

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YANTRA LIST

43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64

EFFECTS

NAVGRAHA SHANTI YANTRA NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA  SURYA YANTRA  CHANDRA YANTRA  MANGAL YANTRA  BUDHA YANTRA  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA)  SUKRA YANTRA  SHANI YANTRA (COPER & STEEL)  RAHU YANTRA  KETU YANTRA PITRU DOSH NIVARAN YANTRA PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA RAM YANTRA RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA SANKAT MOCHAN YANTRA SANTAN GOPAL YANTRA SANTAN PRAPTI YANTRA SARASWATI YANTRA SHIV YANTRA

For good effect of 9 Planets For good effect of 9 Planets Good effect of Sun Good effect of Moon Good effect of Mars Good effect of Mercury Good effect of Jyupiter Good effect of Venus Good effect of Saturn Good effect of Rahu Good effect of Ketu For Ancestor Fault Ending For Pregnancy Pain Ending For Benefits of State & Central Gov Blessing of Ram Blessing of Riddhi-Siddhi For Disease- Pain- Poverty Ending For Trouble Ending Blessing Lorg Krishana For child acquisition For child acquisition Blessing of Sawaswati (For Study & Education) Blessing of Shiv Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & 65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA) Peace Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth 66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA For Bad Dreams Ending 67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Vehicle Accident Ending 68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All 69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes For Bulding Defect Ending 70 VASTU YANTRA VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA For Education- Fame- state Award Winning 71 Blessing of Lord Vishnu (Narayan) 72 VISHNU BISHA YANTRA Attraction For office Purpose 73 VASI KARAN YANTRA Attraction For Female  MOHINI VASI KARAN YANTRA 74 Attraction For Husband  PATI VASI KARAN YANTRA 75 Attraction For Wife  PATNI VASI KARAN YANTRA 76 Attraction For Marriage Purpose  VIVAH VASHI KARAN YANTRA 77 Yantra Available @:- Rs- 190, 280, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..

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GURUTVA KARYALAY NAME OF GEM STONE

GENERAL

Emerald (पडना) Yellow Sapphire (पुखराज) Blue Sapphire (नीलम) White Sapphire (िफ़ेद पुखराज) Bangkok Black Blue(बंकोक नीलम) Ruby (मास्णक) Ruby Berma (बमाा मास्णक) Speenal (नरम मास्णक/लालिी) Pearl (मोसत) Red Coral (4 jrh rd) (लाल मूंगा) Red Coral (4 jrh ls mij) (लाल मूंगा) White Coral (िफ़ेद मूंगा) Cat’s Eye (लहिुसनर्ा) Cat’s Eye Orissa (उफििा लहिुसनर्ा) Gomed (गोमेद) Gomed CLN (सिलोनी गोमेद) Zarakan (जरकन) Aquamarine (बेरुज) Lolite (नीली) Turquoise (फफ़रोजा) Golden Topaz (िुनहला) Real Topaz (उफििा पुखराज/टोपज) Blue Topaz (नीला टोपज) White Topaz (िफ़ेद टोपज) Amethyst (कटे ला) Opal (उपल) Garnet (गारनेट) Tourmaline (तुमालीन) Star Ruby (िुर्क ा ाडत मस्ण) Black Star (काला स्टार) Green Onyx (ओनेक्ि) Real Onyx (ओनेक्ि) Lapis (लाजवात) Moon Stone (र्डद्रकाडत मस्ण) Rock Crystal (स्फ़फटक) Kidney Stone (दाना फफ़रं गी) Tiger Eye (टाइगर स्टोन) Jade (मरगर्) Sun Stone (िन सितारा) Diamond (.05 to .20 Cent )

(हीरा)

MEDIUM FINE

200.00 550.00 550.00 550.00 100.00 100.00 5500.00 300.00 30.00 75.00 120.00 20.00 25.00 460.00 15.00 300.00 350.00 210.00 50.00 15.00 15.00 60.00 60.00 60.00 20.00 30.00 30.00 120.00 45.00 15.00 09.00 60.00 15.00 12.00 09.00 09.00 03.00 12.00 12.00 50.00

500.00 1200.00 1200.00 1200.00 150.00 190.00 6400.00 600.00 60.00 90.00 150.00 28.00 45.00 640.00 27.00 410.00 450.00 320.00 120.00 30.00 30.00 120.00 90.00 90.00 30.00 45.00 45.00 140.00 75.00 30.00 12.00 90.00 25.00 21.00 12.00 11.00 05.00 19.00 19.00 100.00

(Per Cent )

(Per Cent )

FINE

SUPER FINE

1200.00 1900.00 1900.00 2800.00 1900.00 2800.00 1900.00 2800.00 200.00 500.00 370.00 730.00 8200.00 10000.00 1200.00 2100.00 90.00 120.00 12.00 180.00 190.00 280.00 42.00 51.00 90.00 120.00 1050.00 2800.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 550.00 640.00 410.00 550.00 230.00 390.00 45.00 60.00 45.00 60.00 280.00 460.00 120.00 280.00 120.00 240.00 45.00 60.00 90.00 120.00 90.00 120.00 190.00 300.00 90.00 120.00 45.00 60.00 15.00 19.00 120.00 190.00 30.00 45.00 30.00 45.00 15.00 30.00 15.00 19.00 10.00 15.00 23.00 27.00 23.00 27.00 200.00 370.00 (PerCent )

(Per Cent)

SPECIAL

2800.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 1000.00 & above 1900.00 & above 21000.00 & above 3200.00 & above 280.00 & above 280.00 & above 550.00 & above 90.00 & above 190.00 & above 5500.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 910.00 & above 730.00 & above 500.00 & above 90.00 & above 90.00 & above 640.00 & above 460.00 & above 410.00& above 120.00 & above 190.00 & above 190.00 & above 730.00 & above 190.00 & above 100.00 & above 25.00 & above 280.00 & above 55.00 & above 100.00 & above 45.00 & above 21.00 & above 21.00 & above 45.00 & above 45.00 & above 460.00 & above (Per Cent )

Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus

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िूर्ना  पत्रिका मं प्रकासशत िभी लेख पत्रिका के असधकारं के िाथ ही आरस्क्षत हं ।  लेख प्रकासशत होना का मतलब र्ह कतई नहीं फक कार्ाालर् र्ा िंपादक भी इन त्रवर्ारो िे िहमत हं।  नास्स्तक/ अत्रवश्वािु व्र्त्रक्त माि पठन िामग्री िमझ िकते हं ।  पत्रिका मं प्रकासशत फकिी भी नाम, स्थान र्ा घटना का उल्लेख र्हां फकिी भी व्र्त्रक्त त्रवशेष र्ा फकिी भी स्थान र्ा घटना िे कोई िंबंध नहीं हं ।  प्रकासशत लेख ज्र्ोसतष, अंक ज्र्ोसतष, वास्तु, मंि, र्ंि, तंि, आध्र्ास्त्मक ज्ञान पर आधाररत होने के कारण र्फद फकिी के लेख, फकिी भी नाम, स्थान र्ा घटना का फकिी के वास्तत्रवक जीवन िे मेल होता हं तो र्ह माि एक िंर्ोग हं ।  प्रकासशत िभी लेख भारसतर् आध्र्ास्त्मक शास्त्रों िे प्रेररत होकर सलर्े जाते हं । इि कारण इन त्रवषर्ो फक ित्र्ता अथवा प्रामास्णकता पर फकिी भी प्रकार फक स्जडमेदारी कार्ाालर् र्ा िंपादक फक नहीं हं ।  अडर् लेखको द्वारा प्रदान फकर्े गर्े लेख/प्रर्ोग फक प्रामास्णकता एवं प्रभाव फक स्जडमेदारी कार्ाालर् र्ा िंपादक फक नहीं हं । और नाहीं लेखक के पते फठकाने के बारे मं जानकारी दे ने हे तु कार्ाालर् र्ा िंपादक फकिी भी प्रकार िे बाध्र् हं ।

 ज्र्ोसतष, अंक ज्र्ोसतष, वास्तु, मंि, र्ंि, तंि, आध्र्ास्त्मक ज्ञान पर आधाररत लेखो मं पाठक का अपना त्रवश्वाि होना आवश्र्क हं । फकिी भी व्र्त्रक्त त्रवशेष को फकिी भी प्रकार िे इन त्रवषर्ो मं त्रवश्वाि करने ना करने का अंसतम सनणार् स्वर्ं का होगा।  पाठक द्वारा फकिी भी प्रकार फक आपिी स्वीकार्ा नहीं होगी।  हमारे द्वारा पोस्ट फकर्े गर्े िभी लेख हमारे वषो के अनुभव एवं अनुशध ं ान के आधार पर सलखे होते हं । हम फकिी भी व्र्त्रक्त त्रवशेष द्वारा प्रर्ोग फकर्े जाने वाले मंि- र्ंि र्ा अडर् प्रर्ोग र्ा उपार्ोकी स्जडमेदारी नफहं लेते हं ।  र्ह स्जडमेदारी मंि-र्ंि र्ा अडर् प्रर्ोग र्ा उपार्ोको करने वाले व्र्त्रक्त फक स्वर्ं फक होगी। क्र्ोफक इन त्रवषर्ो मं नैसतक मानदं िं , िामास्जक , कानूनी सनर्मं के स्खलाफ कोई व्र्त्रक्त र्फद नीजी स्वाथा पूसता हे तु प्रर्ोग कताा हं अथवा प्रर्ोग के करने मे िुफट होने पर प्रसतकूल पररणाम िंभव हं ।  हमारे द्वारा पोस्ट फकर्े गर्े िभी मंि-र्ंि र्ा उपार् हमने िैकिोबार स्वर्ं पर एवं अडर् हमारे बंधुगण पर प्रर्ोग फकर्े हं स्जस्िे हमे हर प्रर्ोग र्ा मंि-र्ंि र्ा उपार्ो द्वारा सनस्ित िफलता प्राप्त हुई हं ।

 पाठकं फक मांग पर एक फह लेखका पूनः प्रकाशन करने का असधकार रखता हं । पाठकं को एक लेख के पूनः प्रकाशन िे लाभ प्राप्त हो िकता हं ।  असधक जानकारी हे तु आप कार्ाालर् मं िंपका कर िकते हं । (िभी त्रववादो केसलर्े केवल भुवनेश्वर डर्ार्ालर् ही माडर् होगा।)

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FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका मार्ा -2012 िंपादक

सर्ंतन जोशी िंपका गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग

गुरुत्व कार्ाालर्

92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन

91+9338213418, 91+9238328785 ईमेल [email protected], [email protected],

वेब http://gk.yolasite.com/ http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

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हमारा उद्दे श्र् त्रप्रर् आस्त्मर् बंधु/ बफहन जर् गुरुदे व जहाँ आधुसनक त्रवज्ञान िमाप्त हो जाता हं । वहां आध्र्ास्त्मक ज्ञान प्रारं भ हो जाता हं , भौसतकता का आवरण ओढे व्र्त्रक्त जीवन मं हताशा और सनराशा मं बंध जाता हं , और उिे अपने जीवन मं गसतशील होने के सलए मागा प्राप्त नहीं हो पाता क्र्ोफक भावनाए फह भविागर हं , स्जिमे मनुष्र् की िफलता और अिफलता सनफहत हं । उिे पाने और िमजने का िाथाक प्रर्ाि ही श्रेष्ठकर िफलता हं । िफलता को प्राप्त करना आप का भाग्र् ही नहीं असधकार हं । ईिी सलर्े हमारी शुभ कामना िदै व आप के िाथ हं । आप अपने कार्ा-उद्दे श्र् एवं अनुकूलता हे तु र्ंि, ग्रह रत्न एवं उपरत्न और दल ा मंि शत्रक्त िे पूणा प्राण-प्रसतत्रष्ठत सर्ज वस्तु का हमंशा ु भ प्रर्ोग करे जो १००% फलदार्क हो। ईिी सलर्े हमारा उद्दे श्र् र्हीं हे की शास्त्रोोक्त त्रवसध-त्रवधान िे त्रवसशष्ट तेजस्वी मंिो द्वारा सिद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत पूणा र्ैतडर् र्ुक्त िभी प्रकार के र्डि- कवर् एवं शुभ फलदार्ी ग्रह रत्न एवं उपरत्न आपके घर तक पहोर्ाने का हं ।

िूर्ा की फकरणे उि घर मं प्रवेश करापाती हं । जीि घर के स्खिकी दरवाजे खुले हं।

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