ayurved
August 26, 2017 | Author: Vikash Aggarwal | Category: N/A
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THURSDAY 9 FEBRUARY 2012 वीर्यवान भव : वीमयवान बव : मही आशीवायद प्राचीन कार भें फच्चों को ददमा जाता था. मह सवयश्रेष्ठ आशीवायद भाना जाता था. इसके फाद नॊफय आता थाऩुत्रवान बव , तेजस्वी बव, ववद्वान बव, फुविभान बव का. आज कर तो नभस्ते ,सराभ, गड ु भार्निंग का दौय है . अफ कहाॉ मभरते हैं आशीवायद.
आइमे आज इस एक आशीवायद वीमयवान बव के आमुवेददक भहत्व को खॊगारते हैं.
वीमय ही शक्तत का बण्डाय है . शयीय भें जहाॉ वीमय का र्नभायण होता है ,आध्माक्त्भक ऺेत्र के जानकाय ठीक वहीॊ कॊु डमरनी शक्तत का सोमी हुई हारत भें यहना फताते हैं. कॊु डमरनी को जगाना ही सफसे दष्ु कय कामय है ,फडी फडी कठोय तऩस्माए बी इस काभ को नहीॊ कय ऩाती . आचामय
यजनीश ने उस ऺेत्र को जागत ृ यखने के मरए सम्बोग से सभाधध की
ओय का नाया ददमा, रेककन तथाकधथत ववद्वानों ने इसकी फडी आरोचना की . आमुवेद कहता है कक जफ शयीय भें वीमय का र्नभायण होगा ही नहीॊ तो
शयीय के फा़ी ववकास कामय बी अवरुि हो जामेंगे. न बुजाओॊ भें ताकत होगी , न खून फनेगा ,न ही फुवि काभ कये गी ,न ही ऩाचन किमा सही होगी. अथायत वीमय नहीॊ तो शयीय भुदे के साभान है . अत् वीमय का र्नभायण सतत जायी यहना चादहए .
हाराॊकक आमुवेद की ८०% जडी फूदिमाॉ जो मबन्न मबन्न योगों की दवाओॊ
का र्नभायण कयती है ,योग को दयू कयने के साथ ही साथ वीमय का बी
र्नभायण कयती हैं. इसमरए ककसी बी योग का इराज आमुवेददक ऩद्दर्त से कयने का भतरफ है -- आभ के आभ ,गुठमरमों के बी दाभ.
वीमय को आऩ आधर्ु नक बाषा भें िोभोसोभ कह सकते हैं .वैऻार्नको ने
मे फता ददमा है कक इन्हीॊ िोभोसोभ ऩय यॊ ग रूऩ,रम्फाई ,भोिाई ,ददभाग ,आॉख ,नाक ,फीभारयमा आदद को कॊट्रोर कयने वारे जीन भौजूद यहते हैं.मे िोभोसोभ अथायत गुणसूत्र ही जीवन का आधाय भाने गमे हैं.अत्
इनकी प्रचयु ता शयीय भें फहुत जरूयी है .आज आऩको एक ऽास चीज़ के फाये भें फताती हूॉ जो मे काभ सग य कयती है . हाराॊकक हभ सबी ु भताऩूवक उस चीज़ को जानते हैं.------
मे है फफर ू का गोंद अथायत खाने वारा गोंद .अतसय इसका प्रमोग
प्रसूताओॊ के मरए होता है ,रेककन मे गोंद नायी औय ऩुरुष दोनों के ही
प्रजनन अॊगों को शक्तत ऩदान कयने औय उन्हें वीमय से सभि ृ फनाने का काभ कयता है .
इस गोंद को अगय आऩ ऩानी भें मबगो कय यख दीक्जमे औय रगबग १ घॊिे फाद उस ऩानी को छान कय ऩी रीक्जमे तो मे आऩके शयीय भें
शक्तत औय स्पूर्तय दोनों ही प्रदान कये गा. १२ घॊिे भें गोंद ऩयू ी तयह ऩानी भें नहीॊ घुरता ,क्जतना घुर गमा है उतना छान कय ऩी रीक्जमे कपय
उस फयतन भें औय ऩानी डार दीक्जमे .गोंद का ऩानी अतिूफय से रेकय भाचय तक वऩमा जा सकता है .इसे १० वषय के ऊऩय ककसी बी रडके
रडकी को ददमा जा सकता है .मे नुस्खा आऩको ठॊ ड से बी फचाएगा औय शयीय के ववकास भें बी सहामक होगा .ददन भें एक फाय ऩीना कापी यहता है . अगय कोई भयीज अस्ऩतार से तुयॊत डडस्चाजय होकय रौिा है तो मे
नुस्खा उसकी शक्तत रौिाने भें फहुत काभमाफ है . गोंद को घी भें बूनते हैं तो मे पूर कय फडा हो जाता है कपय उसका
चयू ा कयके भेवों के साथ मभरा कय रड्डू फनाए जाते हैं . मह बी इसे
खाने का एक तयीका है ,मह अतसय प्रसूताओॊ के मरए फनामा जाता है ,ककन्तु इसे कोई बी खा सकता है .
फफूर के गोंद भें - गैरेतिोज, एये बफक एमसड, कैक्शशमभ तथा भैग्नीमशमभ के रवण उऩक्स्थत होते हैं.
आमुवेद कहता है कक भुॊख के छारों भें , गरे के सूखने भें , भूत्र के
अवयोध भें , अर्तसाय औय भधुभेह भें इसका प्रमोग पामदा दे ता है .
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