235347477 Mudra Chikitsa Swami Ananta Bodha Chaitanya

January 16, 2017 | Author: anand_amin_2 | Category: N/A
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अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि

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मद्र ु ा ऩररभाषा एवं ऱाभ : ‘भद ु ॊ यातीतत भद्र ु ा,’ इस व्मत्ु ऩत्त्त के अनस ु ाय मे भद्र ु ाएॊ दे वताओॊ के सभऺ फनाकय ददखराने से उन्हें प्रसन्नता प्रदान कयती हैं| ऩज ू ा-ववधानों भें ‘भद्र ु ा’ एक आवश्मक

अॊग भाना गमा है | दे वी-दे वताओॊ के सभऺ प्रकट की जानेवारी भद्र ु ाएॊ ऩथ ृ क-ऩथ ृ क कभम की दृत्टट से हजायों प्रकाय की होती हैं, त्जनभें कुछ जऩाॊगबत ू हैं तो कुछ

नैवेदमाॊगबत ू | कुछ का प्रमोग कभमववशेष के प्रसॊग भें एकदॊ त भद्र ु ा, फीजाऩयु भद्र ु ा,

अॊकुश भद्र ु ा, भोदक भद्र ु ा आदद| ऐसे ही शशव, ववटण,ु शत्तत, सूमामदद दे वों की भद्र ु ाएॊ हैं| इनका तनत्म, नैशभत्त्तक औय काम्म-प्रमोग की दृत्टट से बी भॊत्रऩव म साधन ू क

होता है औय भॊत्र शसद्ध हो जाने ऩय इनके प्रमोग से अबीटट पर प्राप्त होता है | दे वताओॊ की प्रसन्नता, चित्त की शवु द्ध औय ववववध योगों के नाश भें भद्र ु ाओॊ से

फड़ी सहामता शभरती है | भद्र ु ातत्व को सभझकय,प्रत्मेक भनटु म को इनका साधन कयना िादहए|

भद्र ु ाओॊ को बोगी ऩरु ु षों के शरए बोगप्रद औय भभ ु ऺ ु ुओॊ के शरए भोऺप्रद भाना गमा

है | इसशरए भद्र ु ाएॊ गह ृ स्थ औय सॊन्मासी दोनों के शरए उऩमोगी हैं| कुण्डशरनी शत्तत के जागयण भें इन भद्र ु ाओॊ से सहामता शभरती है । ककॊतु मह आवश्मक नहीॊ कक सबी भद्र ु ाओॊ को ककमा जाए, वयन ् जो अऩनी शायीरयक त्स्थतत के अनक ु ू र औय अभ्मास भें सयर प्रतीत हो, उसी को कयना िादहए| ऐसा कयनेवारे साधक को

अवश्म ही मोगशसवद्ध हो सकती है औय वह कुण्डशरनी जाग्रत कयने भें ऩण म मा ू त सभथम हो सकता है |

हभाया शयीय अनन्त यहस्मों से बया हुआ है । शयीय को स्वस्थ फनाए यखने की शत्तत हभाये शयीय भें ही तनदहत होती है । जरूयत है उस शत्तत को जानकय उसे सॊतुशरत औय व्मवत्स्थत कयने की। िॊकू क शयीय ऩॊितत्वों से शभरकय फना है,

इसशरए जफ तक शयीय भें मे तत्व सॊतशु रत यहते हैं, तफ तक शयीय तनयोगी यहता

है । मदद ककन्हीॊ कायणों से इन तत्वों भें असॊतर ु न ऩैदा हो जाए, तो नाना प्रकाय के

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योग उत्ऩन्न होने रगते हैं। मदद हभ इन तत्वों को ऩन ु ् सॊतुशरत कय दें , तो शयीय तनयोगी हो जाता है ।

हभाये हाथ की िायों अॊगशु रमों, एक अॊगटु ठ वस्तत ु ् ऩॊितत्वों का प्रतततनचधत्व कयते हैं -

१. अॊगूठा= अत्नन,

२. तजमनी=(ऩहरी अॊगर ु ी) = वाम,ु

३. भध्मभा=(दस ू यी अॊगुरी)= आकाश,

४. अनाशभका=(तीसयी अॊगुरी)= ऩथ् ृ वी,

५. कतनत्टठका=(सफसे छोटी अॊगुरी)= जर

उॊ गशरमों को एक दस ू ये से छूते हुए ककसी खास त्स्थतत भें इनकी जो आकृतत फनती है , उसे भद्र ु ा कहते हैं। भद्र ु ा के दवाया अनेक योगों को दयू ककमा जा सकता है। उॊ गशरमों के ऩाॊिों वगम ऩॊितत्वों के फायें भें फताते हैं। त्जससे अरग-अरग ववदमत ु

धाया फहती है । इसशरमे भद्र ु ा ववऻान भें जफ उॊ गशरमों का योगानस ु ाय आऩसी स्ऩशम कयाते हैं, तफ सात्त्वक ऊजाम शयीय भें प्रवादहत होती है , औय हभाये शयीय के योग को सभाप्त कयने रगती है , त्जससे हभाया शयीय तनयोगी होने रगता है । मद्र ु ा चचकित्सा :ऩयु ाने कार भें अॉगशु रमों की ववशबन्न यिनाओॊ मा कहें कक भद्र ु ाओॊ से भनटु म ने सि ू नाओॊ का आदान प्रदान ककमा। आज बी भक ू -फचधय व्मत्ततओॊ

को अऩनी

फात कहने के शरमे हस्त सॊकेत ही भख् ु म भाध्मभ है । हभाये शास्त्रीम नत्ृ मों भें

हस्त-भद्र ु ाओॊ का फहुत भहत्व है । धाशभमक कामोंभें, जऩ, जाऩ, ध्मान आदद भें बी हाथों की भद्र ु ामें भहत्वऩण ू म होती है । शयीय को स्वस्थ यखने भें अॉगशु रमोंकी फड़ी बशू भका है तमोंकक शयीय के हय बाग की तॊत्रत्रकाओॊ का सम्फन्ध अॉगशु रमों से हैं। इसी ऻान का उऩमोग एतमप्र ु ेशय चिककत्सा भें बी ककमा गमा है ।

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शास्त्रों के अनस ु ाय मह सत्ृ टट ऩाॊि तत्वों से फनीॊ है । वे तत्व हैं :- अत्ननतत्व,

वामत ु त्व, ऩथ् ृ वी तत्व, जरतत्व औय आकाशतत्व। मह भानव शयीय बी इन्हीॊ ऩाॊि

तत्वों से फना है । मत ् वऩॊडे तत ् ब्रहभाॊड।े अथामत ् मही ऩाॊि तत्व भनटु म के शयीय के अन्दय बी हैं।

हभायी सत्ृ टट का अत्नन तत्व है सम ू ,म सम ू म से प्राप्त ऊजाम मा उटणता।

वामत ु त्व अथामत हवा मा हवा के ऻात-अऻात घटक औय हवा की प्राण शत्तत।

ऩथ् ृ वी तत्व अथामत शभटटी औय जभीन से ऩैदा होनेवारी वनस्ऩतत औय ऩथ् ृ वी की प्राणशत्तत।

जरतत्व माने सागय, नददमाॉ औय बग ू बीम जर औय जर की प्राणशत्तत, औय

आकाश तत्व अथामत आकाश मा रयततता, खारीऩन मा खारी स्थान औय रयतत स्थान की प्राणशत्तत।

मही ऩाॊि तत्व भानव दे ह भें हैं। सत्ृ टट भें जैसी उटणता है वैसी ही भनटु म के शयीय भें बी है । हभाये शयीय का ताऩभान ९७ मा ९८ अॊश सेत्ससमस है अथामत हभ भें अत्ननतत्व है।

हभ साॊस रेते हैं, पेपड़ों भें हवा यहती है अथामत वामत ु त्व का हभ उऩमोग कयते है । बोजन के दवाया हभ वनस्ऩतत औय अन्म खतनजों का उऩमोग कयते हैं। अथामत हभाया शयीय ऩथ् ृ वी तत्व से फना है ।

शयीय की नसों भें खन ू प्रवादहत होता यहता है। ऩीने के शरए हभ ऩानी प्रमोग भें राते हैं हभाये शयीय भें

71% ऩानी है । अत् हभ भें जरतत्व है ।

हभाये शयीय भें खारी स्थान है जैसे पेपड़ों भें , ऩेट भें , नाक भें मे सबी आकाश तत्व की उऩत्स्थतत का सॊकेत है ।

मह भानव शयीय -ऩथ् ृ वी,जर,अत्नन,आकाश तथा वाम-ु ऩॊितत्व से तनशभमत है

साधायनतमा आहाय ववहाय का असॊतुरन इन ऩॊितत्वों के सॊतुरन को खत्ण्डत कयता है औय परस्वरूऩ भनटु म शयीय योगों से ग्रशसत हो जाता है ,तनमशभत

व्मामाभ तथा सॊतशु रत आहाय ववहाय स्वाबाववक रूऩ से कामा को तनयोगी यखने भें सभथम हैं,ऩय वतमभान के व्मस्त सभम भें कुछ तो आरस्म औय कुछ व्मस्तता वश

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तनमशभत मोग सफके दवाया सॊबव नहीॊ हो ऩाता,ऩयन्तु मोग भें कुछ ऐसे साधन हैं त्जनभे न अचधक श्रभ की आवश्मकता है औय इन भें से "भद्र ु ा चिककत्सा" भख् ु म

चिककत्सा ऩध्दतत है। इसके अॊतगमत ववशबन्न हस्तभद्र ु ाओॊ के अभ्मास से हभ अनेक योगों,कटटो से भत ु त हो सकते है, ऐसा सॊबव है ।

अॊगशु रमों को ववशबन्न प्रकाय से भोड कय, भद्र ु ा फनाने ऩय, हथेशरमों औय अॊगुशरमों की त्स्थतत भें ऩरयवतमन होने से भाॊस ऩेशशमों भे खखॊिाव होता है एवॊ उन ऩय दवाफ ऩड़ता है त्जससे ग्रह एवॊ उनके ऩवमतों के दोषों से उत्तऩन्न होने वारे योग ठीक होते है । हथेशरमों औय अॊगशु रमों ऩय त्स्थत शयीय के बीतयी एवॊ फाहयी अॊगों के स्थान से सॊफत्न्धत अॊगों के योग नटट होते है । हथेशरमों ऩय त्स्थत स्राव ग्रॊचथमाॊ अऩना कामम सि ु ारु रूऩ से कयने रगती है ।ह्रदम ये खा, जीवन ये खा एवॊ फध ु ये खा के दोष दयू होते है। दामें हाथ की भद्र ु ा कयने से शयीय के फामें तयप एवॊ फामें हाथ की भद्र ु ा से शयीय के दामें बाग को राब होता है। भद्र ु ाओॊ को दोनों हाथ से कयने ऩय आशातीत राब होता है । िुछ ऩाऱनीय ननयम:स्वस्थ यहने के शरए भद्र ु ाओॊ को कभ से कभ 15 शभनट औय ज्मादा से ज्मादा 45 शभनट तक ही कयना िादहए , ददन भे दो फाय कयने ऩय ज्मादा जसदी राब होता है । शायीरयक तत्वों भे ऩरयवतमन होने रगता है । ववशेषत् ऻान भद्र ु ा, प्राण भद्र ु ा एवॊ अऩान भद्र ु ा कयने से सभस्त स्नामु भण्डर प्रबाववत होता है । त्जससे भनटु म का सवमतोभख ु ी ववकास होता है । भद्र ु ा स्वस्थ यहते हुमे बी की जा सकती है। भद्र ु ाए ककसी बी सभम ककसी बी अवस्था भे औय कही बी की जा सकती है । रेककन ऩण म कये । सफसे ऩहरे ू म राब रेने के शरए शाॊत स्थान भे फैठ कय एकाग्रताऩव ू क स्वच्छ जर से नहा रे मा हाथ ऩैय धो रे । उसके फाद ऩव ू म मा उत्तय ददशा की

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तयप भख ु कय के दयी मा गद्दे ऩय सीधा फैठे औय आॉखों को हसका सा फॊद कयरे उसके फाद भद्र ु ा अभ्मास कयें । श्वास धीये धीये रे औय छोड़े। अनेक भद्र ु ा तत्व को घटाने मा फढ़ाने भे बी सहामक होती है। अॊगूठे के अग्र बाग से अॊगुरी के अग्र बाग को शभराने से उस अॊगर ु ी भे त्स्थत तत्व भे ववृ द्ध होती है अथवा तत्व सभ अवस्था भे आ जाता है । अॊगर ु ी को भोड़ कय अॊगठ ू े की जड़ भे यख कय अॊगठ ू े की अॊगुरी के ऊऩय यखने से उस अॊगुरी भे त्स्थत तत्व भे कभी आती है ।

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1. नमस्िार मद्र ु ा

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सम ू म नभस्काय की शरु ु आत बी इसी भद्र ु ा से होती है । इसी भद्र ु ा भें कई आसन ककए जाते हैं। प्रणाभ ववनम का सि ू क है । इसे नभस्काय मा नभस्ते बी कह सकते हैं। सभि ू े बायतवषम भें इसका प्रिरन है । इस भद्र ु ा को कयने के अनेकों पामदे हैं। मोगासन मा अन्म कामम की शरु ु आत के ऩव ू म इसे कयना िादहए। इसको कयने से भन भें अच्छा बाव उत्ऩन्न होता है औय कामम भें सपरता शभरती है। ववचध : दोनों हाथों को जोड़कय जो भद्र ु ा फनाते हैं, उसे नभस्काय भद्र ु ा कहते हैं। सवम प्रथभ आॉखें फॊद कयते हुए दोनों होथों को जोड़कय अथामत दोनों हथेशरमों को शभराते हुए छाती के भध्म भें सटाएॉ तथा दोनों हथेशरमों को एक-दस ू ये से दफाते हुएॉ कोहतनमाॉ को दाएॉ-फाएॉ सीधी तान दें । जफ मे दोनों हाथ जुड़े हुए हभ धीये -धीये भत्स्तटक तक ऩहुॉिते हैं तो नभस्काय भद्र ु ा फनती है। ऱाभ : हभाये हाथ के तॊतु भत्टतटक के तॊतुओॊ से जुड़े हैं। हथेशरमों को दफाने से मा जोड़े यखने से रृदमिक्र औय आऻािक्र भें सकक्रमता आती है त्जससे जागयण फढ़ता

अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि है । उतत जागयण से भन शाॊत एवॊ चित्त भें प्रसन्नता उत्ऩन्न होती है। रृदम भें ऩटु टता आती है तथा तनशबमकता फढ़ती है । इस भद्र ु ा का प्रबाव हभाये सभि ू े बावनात्भक औय वैिारयक भनोबावों ऩय ऩड़ता है , त्जससे सकायात्भकता फढ़ती है। मह साभात्जक औय धाशभमक दृत्टट से बी राबदामक है । *************************

2. ज्ञान मद्र ु ा –

ववचध:- दऺाङ्गुटठतजमनी मोगो ऻान भद्र ु ा। (तनत्मोत्सवे)

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अॊगूठे औय तजमनी(ऩहरी उॊ गरी) के ऩोयों को आऩस भें (त्रफना जोय रगामे सहज रूऩ भें ) जोड़ने ऩय ऻान भद्र ु ा फनती है।

ऱाभ:- इस भद्र ु ा के तनत्म अभ्मास से स्भयण शत्तत का अबत ू ऩव ू म ववकाश होता है .भत्टतटक की दफ म ता सभाप्त हो जाती है .साधना भें भन रगता है .ध्मान ु र

एकाग्रचित होता है .इस भद्र ु ा के साथ मदद भॊत्र का जाऩ ककमा जाम तो वह शसद्ध होता है. ककसी बी धभम/ऩॊथ के अनम ु ामी तमों न हों ,उऩासना कार भें मदद इस

भद्र ु ा को कयें औय अऩने इटट भें ध्मान एकाग्रचित्त कयें तो, भन भें फीज रूऩ भें त्स्थत प्रेभ की अन्त्सशररा का अजश्र श्रोत स्वत् प्रस्पुदटत हो प्रवादहत होने

रगता है औय ऩयभानन्द की प्रात्प्त होती है.इसी भद्र ु ा के साथ तो ऋवषमों भनीवषमों तऩत्स्वमों ने ऩयभ ऻान को प्राप्त ककमा था॥ ऩागरऩन,अनेक प्रकाय के भनोयोग,

चिडचिडाऩन,क्रोध,िॊिरता,रम्ऩटता,अत्स्थयता,चिॊता,बम,घफयाहट,व्माकुरता,अतनद्रा योग, डडप्रेशन जैसे अनेक भन भत्स्तटक सम्फन्धी व्माचधमाॊ इसके तनमशभत

अभ्मास से तनत्श्ित ही सभाप्त हो जाती हैं.भानशसक ऺभता फढ़ने वारा तथा

सतोगण ु का ववकास कयने वारा मह अिक ू साधन है. ववदमाचथममों ,फवु द्धजीववमों से

रेकय प्रत्मेक आमव ु गम के स्त्री ऩरु ु षों को अऩने आत्त्भक भानशसक ववकास के शरए भद्र ु ाओॊ का प्रमोग अवश्म ही कयना िादहए।

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3. वामु भद्र ु ा:-

ववचध :- अॊगूठे के फाद वारी ऩहरी अॊगुरी - तजमनी को भोड़कय उसके नाखबाग का दवाफ (हसका) अॊगठ ू े के भर ू बाग (जड़) भें ककमा जाम औय अॊगठ ू े से तजमनी ऩय दवाफ फनामा जाम ,शेष तीनो अॉगशु रमों को अऩने सीध भें सीधा यखा जाम...इससे जो भद्र ु ा फनती है,उसे वामु भद्र ु ा कहते हैं. राब - वामु सॊफन्धी सभस्त योग मथा - गदठमा,जोडों का ददम , वात, ऩऺाघात, हाथ ऩैय मा शयीय भें कम्ऩन , रकवा, दहस्टीरयमा, वामु शर ू , गैस, इत्मादद अनेक असाध्म योग इस भद्र ु ा से ठीक हो जाते हैं. इस भद्र ु ा के साथ कबी कबी प्राण भद्र ु ा बी कयते यहना िादहए... *************************

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4. आिाश मद्र ु ा

ववचध् दोनों हाथों की भध्मभा अॊगुशरमों को अॊगूठों के अग्रबाग से रगाकय फाकी अॊगशु रमों को सीधा कय दें । अफ हाथों को घट ु नों ऩय यख रें। हथेशरमों का रुख ऊऩय की ओय यहे गा। कभय-गदम न सीधी यख कय आॊखें फॊद कय ध्मान की त्स्थतत भें फैठ जाएॊ। ऱाभ् कान के योग, फहयाऩन, कान भें आवाजें आने की सभस्मा दयू होने रगती है । हड्डडमों की कभजोयी को बी दयू कयने भें भदद शभरती है। *************************

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5. शन् ू म भद्र ु ा :-

ववचध :- अॊगूठे से दस ू यी अॊगुरी (भध्मभा,सफसे रम्फी वारी अॊगर ु ी) को भोड़कय अॊगूठे के भर ू बाग (जड़ भें ) स्ऩशम कयें औय अॊगूठे को भोड़कय भध्मभा के ऊऩय से ऐसे दफामें कक भध्मभा उॊ गरी का तनयॊ तय स्ऩशम अॊगूठे के भर ू बाग से फना यहे । फाकी की तीनो अॉगशु रमों को अऩनी सीध भें यखें.इस तयह से जो भद्र ु ा फनती है उसे शन् ू म भद्र ु ा कहते हैं। राब - इस भद्र ु ा के तनयॊ तय अभ्मास से कान फहना, फहयाऩन, कान भें ददम इत्मादद कान के ववशबन्न योगों से भत्ु तत सॊबव है.मदद कान भें ददम उठे औय इस भद्र ु ा को प्रमत ु त ककमा जाम तो ऩाॊि सात शभनट के भध्म ही राब अनब ु त ू होने रगता है .इसके तनयॊ तय अभ्मास से कान के ऩयु ाने योग बी ऩण म ् ठीक हो जाते हैं.. ू त इसकी अनऩ ु यू क भद्र ु ा आकाश भद्र ु ा है .इस भद्र ु ा के साथ साथ मदद आकाश भद्र ु ा का प्रमोग बी ककमा जाम तो व्माऩक राब शभरता है.

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6. ऩथ् ु ा ृ वी मद्र

ववचध् दोनों हाथों की अनाशभका अॊगुशरमों को अॊगूठों के अग्रबाग से रगाकय फाकी अॊगशु रमाॊ सीधी यखें। अफ हाथों को घट ु नों ऩय यख रें। हथेशरमों का रुख ऊऩय की ओय यहे गा। कभय-गदम न सीधी यख कय आॊखें फॊद कय ध्मान की त्स्थतत भें फैठ जाएॊ। ऱाभ् मह भद्र ु ा शायीरयक दफ ु रमता दयू कय वजन फढ़ाती है, शयीय भें स्पूततम, कात्न्त एवॊ तेज फढ़ाकय जीवनी शत्तत का ववकास कयती है। इसके अभ्मास से ऩािन तन्त्र को फर शभरता है । *************************

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7. सय ू य मद्र ु ा

ववचध् दोनों हाथों की अनाशभका अॊगुशरमों को अॊगूठों के भर ू भें रगाकय अॊगूठे से दफाकय फाकी अॊगशु रमों को सीधा कयके यखें । अफ हाथों को घट ु नों ऩय यख रें। हथेशरमों का रुख ऊऩय की ओय यहे गा। कभय-गदम न सीधी यख कय आॊखें फॊद कय ध्मान की त्स्थतत भें फैठ जाएॊ। ऱाभ् मह भद्र ु ा भोटाऩा कभ कय वजन घटाती है, शयीय भें ऊटणता फढ़ाती है, शत्तत का ववकास कयती है , कॉरेस्रॉर फढ़ने नहीॊ दे ती, भधभ ु ेह व रीवय के योग भें राब ऩहुॊिाती है, शयीय को सॊतशु रत कय दे ती है । नोट् कभजोय व्मत्तत इसका अभ्मास न कयें । गभी भें इसका अभ्मास कभ ही कयें । *************************

अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि 8. वरुण मद्र ु ा

ववचध् दोनों हाथों की कतनटठा अॊगुशरमों को अॊगूठों के अग्रबाग ऩय रगाकय फाकी अॊगशु रमों को सीधा यखने से मह भद्र ु ा फनती है । अफ हाथों को घट ु नों ऩय यख रें। हथेशरमों का रुख ऊऩय की ओय यहे गा। कभय-गदम न सीधी यख कय आॊखें फॊद कय ध्मान की त्स्थतत भें फैठ जाएॊ। ऱाभ् मह िभमयोग, यतत ववकाय दयू कयती है, शयीय भें रूखाऩन दयू कय त्विा को िभकीरी व भर ु ामभ फनाने भें सहामक है, िेहये की सॊद ु यता को फढ़ा दे ती है । नोट् कप प्रकृतत वारे व्मत्तत इसका अभ्मास ज्मादा न कयें ।

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अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि 9. जऱोिर नाशि:-

ववचध् कतनटठा को अॉगूठे के जड़ भें रगाकय अॉगूठे से दफामें। राब- जर तत्त्व की अचधकता से होने वारे सबी योग,सज ू न, जरोदय आदद भें ववशेष राब होता है । योग शान्त होने तक ही कयें ।

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10. प्राण मद्र ु ा :-

ववचध् अॊगूठे से तीसयी अनाशभका तथा िौथी कतनत्टठका अॉगशु रमों के ऩोयों को एकसाथ अॊगठ ू े के ऩोय के साथ शभराकय शेष दोनों अॉगशु रमों को अऩने सीध भें खडा यखने से जो भद्र ु ा फनती है उसे प्राण भद्र ु ा कहते हैं.. राब - ह्रदम योग भें याभफाण तथा नेत्रज्मोतत फढाने भें मह भद्र ु ा ऩयभ सहामक है .साथ ही मह प्राण शत्तत फढ़ाने वारा बी होता है .प्राण शत्तत प्रफर होने ऩय भनटु म के शरए ककसी बी प्रततकूर ऩरयत्स्थततमों भें धैमव म ान यहना अत्मॊत सहज हो जाता है .वस्तत ु ् दृढ प्राण शत्तत ही जीवन को सख ु द फनाती है .. इस भद्र ु ा की ववशेषता मह है कक इसके शरए अवचध की कोई फाध्मता नहीॊ..इसे कुछ शभनट बी ककमा जा सकता है .

अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि 11. अऩान मद्र ु ा

ववचध् दोनों हाथों की भध्मभा तथा अनाशभका अॊगशु रमों को अॊगठ ू े के अग्रबाग से रगाकय फाकी अॊगुशरमों को सीधी यखें । अफ हाथों को घट ु नों ऩय यख रें। हथेशरमों का रुख ऊऩय की ओय यहे गा। कभय-गदम न सीधी यख कय आॊखें फॊद कय ध्मान की त्स्थतत भें फैठ जाएॊ। ऱाभ् कब्ज, भधभ ु ेह, ककडनी ववकाय, वामु ववकाय, फवासीय को दयू कयने भें सहामक है, शयीय को शद्ध ु कय नाड़ी दोषों को दयू कयने वारी है, भत्र ू का अवयोध दयू कय दाॊतों को भजफत ू कयती है, ऩसीना बी राती है । नोट् इस भद्र ु ा के अभ्मास से भत्र ू अचधक आने रगता है । *************************

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अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि

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12. व्यान मद्र ु ा:-

ववचध- हाथ की भध्मभा अॊगुरी के आगे के बाग को अॊगूठे के आगे के बाग से शभराने औय तजमनी अॊगुरी को फीि की अॊगुरी के नाखून से छुआएॊ फाकी फिी सायी अॊगशु रमाॊ सीधी यहनी िादहए। इसी को व्मान भद्र ु ा कहा जाता है । अवचध- इस भद्र ु ा को सफ ु ह 15 शभनट औय शाभ को 15 शभनट तक कयना िादहए। ऱाभ- व्मान भद्र ु ा को कयने से ऩेशाफ सॊफॊधी सबी योग दयू होते हैं। जैस-े ऩेशाफ ज्मादा आना, ऩेशाफ भें िीनी आना, ऩेशाफ के साथ घात आना, ऩेशाफ रुक-रुक कय आना आदद योग सभाप्त हो जाते हैं। इसके अरावा इस भद्र ु ा के तनमशभत अभ्मास से भधभ ु ेह, प्रभेह औय स्वप्नदोष बी दयू होता है । त्स्त्रमों के शरए मह भद्र ु ा सफसे ज्मादा राबदामक फताई गई है । इस भद्र ु ा को कयने से त्स्त्रमों के साये योग सभाप्त हो जाते हैं।

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13. उिान मद्र ु ा:-

ववचध :- ऩहरी, भध्मभा औय अनाशभका उॊ गरी के आगे के बाग को अॊगूठे के आगे के बाग से रगाएॊ। इसे उदान भद्र ु ा कहते हैं। इसका सॊफॊध कॊठ से भत्स्तटक तक होता है। मह ववशवु द्ध िक्र को प्रवादहत कयता है ।

राब :- इससे भन शाॊत होता है औय थामयॉइड सॊफॊधी सबी योगों भें राब ऩहुॊिता है । सभमावचध :- इस भद्र ु ा को बी केवर 15 से 45 शभतनट तक ही कयना िादहए ।

अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि 14. सभान भद्र ु ा

ववचध :- हाथ की िायो उॊ गशरमों औय अॊगूठे के अग्रबाग को शभरा कय ऊऩय की तयप यखने से सभान भद्र ु ा फनती है। इस भद्र ु ा भे ऩाॊिों तत्व शभर जाते है । राब – मह भद्र ु ा हभाये वविायों को आध्मात्त्भक फनाती है। फयु े वविाय दयू होते है

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अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि 15. हृिय मद्र ु ा

ववचध् दोनों हाथों की तजमनी अॊगशु रमों को अॊगूठों के भर ू भें रगाकय भध्मभा व अनाशभका अॊगुशरमों को अॊगूठे के अग्रबाग ऩय रगा दें व छोटी अॊगुरी को सीधा कयके यखें। अफ हाथों को घट ु नों ऩय यख रें। हथेशरमों का रुख ऊऩय की ओय यहे गा। कभय-गदम न सीधी यख कय आॊखें फॊद कय ध्मान की त्स्थतत भें फैठ जाएॊ। ऱाभ् मह भद्र ु ा रृदम योगों भें ववशेष रूऩ से राबकायी है । प्रततददन 10-15 शभनट अभ्मास से रृदम भजफत ू होता है, गैस फनना, शसयददम , अस्थभा व उच्ि यततिाऩ भें राबकायी है। सीदढ़मों ऩय िढ़ने से ऩहरे ही अगय मह भद्र ु ा रगा री जाए औय इस भद्र ु ा के साथ ही सीदढ़माॊ िढ़ी जाएॊ, तो साॊस नहीॊ पूरती।

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16. लऱंग मद्र ु ा

ववचध्:- फाएॉ हाथ का अॊगूठा सीधा खडा कय दादहने हाथ से फाएॊ हाथ कक अॉगशु रमों भें ऩयस्ऩय पॉसाते हुए दोनों ऩॊजों को ऐसे जोडें कक दादहना अॊगठ ू ा फाएॊ अॊगठ ू े को फहाय से आवत्ृ त कय रे ,इस प्रकाय जो भद्र ु ा फनेगी उसे अॊगुटठ भद्र ु ा कहें गे। राब - अॊगूठे भें अत्नन तत्व होता है .इस भद्र ु ा के अभ्मास से शयीय भें उटभता फढ़ने रगती है .शयीय भें जभा कप तत्व सख ू कय नटट हो जाता है .सदी जक ु ाभ,खाॊसी इत्मादद योगों भें मह फड़ा राबदामी होता है.कबी मदद शीत प्रकोऩ भें आ जाएॉ औय शयीय भें ठण्ड से कॊऩकॊऩाहट होने रगे तो इस भद्र ु ा का प्रमोग त्वरयत राब दे ता है। *************************

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17. शंख मद्र ु ा:-

ववचध :- फाएॊ हाथ के अॊगूठे को दोनों हाथ की भट्ठ ु ी भें फॊद कयके फाएॊ हाथ की तजमनी उॊ गरी को दादहने हाथ के अॊगूठे से शभराने से शॊख भद्र ु ा फनती है | इस भद्र ु ा भें फाएॊ हाथ की फाकी तीन उॊ गशरमों के ऩास भें सटाकय दाएॊ हाथ की फॊद उॊ गशरमों ऩय हसका-सा दफाव ददमा जाता है | इसी प्रकाय हाथ फदरकय अथामत ् दाएॊ हाथ के अॊगूठे को फाएॊ हाथ की भट्ठ ु ी भें फॊद कयके शॊख भद्र ु ा फनाई जाती है| इस भद्र ु ा भें ऱाभ :- अॊगूठे का दफाव हथेरी के फीि के बाग ऩय औय भट्ठ ु ी की तीन उॊ गशरमों का दफाव शक्र ु ऩवमत ऩय ऩड़ता है त्जससे हथेरी भें त्स्थत नाशब औय थाइयॉइड (ऩत्ू सरका) ग्रॊचथ के केंद्र दफते हैं| ऩरयणाभस्वरूऩ नाशब औय थाइयॉइड ग्रॊचथ के ववकाय ठीक होते हैं|

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शॊख भद्र ु ा का नाशब िक्र से तनकट का सॊबॊध है , इसशरए शायीय के स्नामत ु ॊत्र ऩय ववशेष कामम कयती है , अत् अन्त् औय फाहम स्वास्थ्म भें फहुत राबकायी है . मह ऩािन तॊत्र को उत्तभ फनाती है . तनमशभत कयने से बख ू फढाने भें भदद शभरती है. मह भद्र ु ा फोरते सभम उच्िायण के दोषों को दयू कयने भें फहुत प्रबावी है जैसे तुतराना /हकराना आदद दोष तनमभतत प्रमोग से दयू हो जाते हैं . सॊगीत की साधना कयने वारों के शरए ववशेश राबकायी है . वाणी को भधयु फनाती है ।

मह भद्र ु ा ऩज ू न भें बी प्रमत ु त होती है|

इसका प्रमोग रॊफे सभम तक ककमा जा सकता है |

इस भद्र ु ा का नाशबिक्र से ववशेष सम्फन्ध है त्जसके कायण नाशब से सॊफॊचधत शयीय की नाडड़मों ऩय सक्ष् ू भ औय स्वास्थ्मवधमक प्रबाव ऩड़ता है तथा स्नामभ ु ण्डर शत्ततशारी फनती है|

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18. योनन मुद्रा:-

मौचगक दृत्टट से अऩने अॊदय कई प्रकाय के यहस्म तछऩाए यखनेवारी भद्र ु ा का

वास्तववक नाभ ‘मोतन भद्र ु ा’ है | तत मोग के अनस ु ाय केवर हाथों की उॊ गशरमों से भहाशत्तत बगवती की प्रसन्नता के शरए मोतन भद्र ु ा प्रदशशमत कयने की आऻा है|

प्रत्मऺ रूऩ से इसका प्रबाव रॊफी मोग साधना के अॊतगमत तॊत्र-भॊत्र-मॊत्र साधना से बी दृत्टटगोिय होता है | इस भद्र ु ा के तनयॊ तय अभ्मास से साधक की प्राण-अऩान

वामु को शभरा दे नेवारी भर ू फॊध कक्रमा को बी साथ कयने से जो त्स्थतत फनती है , उसे ही मोतन भद्र ु ा की सॊऻा दी है| मह फड़ी िभत्कायी भद्र ु ा है|

ऩद्मासन की त्स्थतत भें फैठकय, दोनों हाथों की उॊ गशरमों से मोतन भद्र ु ा फनाकय औय

ऩव ू म भर ू फॊध की त्स्थतत भें सम्मक् बाव से त्स्थत होकय प्राण-अऩान को शभराने की प्रफर बावना के साथ भर ू ाधाय स्थान ऩय मौचगक सॊमभ कयने से कई प्रकाय की शसवद्धमाॊ प्राप्त हो जाती हैं|

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ऋवषमों का भत है कक त्जस मोगी को उऩयोतत त्स्थतत भें मोतन भद्र ु ा का रगाताय अभ्मास कयते-कयते शसवद्ध प्राप्त हो गई है , उसका शयीय साधनावस्था भें बशू भ से आसन सदहत ऊऩय अधय भें त्स्थत हो जाता है| सॊबवत् इसी कायण आदद

शॊकयािाममजी ने अऩने मोग यत्नावरी नाभक ववशेष ग्रॊथ भें भर ू फॊध का उसरेख ववशेष रूऩ से ककमा है |

19. धेनु मुद्रा :-

बायतीम ऩयॊ ऩया भे धेनु गाम को कहा जाता है औय मह दहन्द ू धभम के सात्त्वक औय भहानता का प्रतीक है । धेनु भद्र ु ा फनाते सभम हाथों की उॊ गशरमा गाम के थनों जैसी हो जाती है । जैसे गाम के थनों से दध ू ऩीकय शयीय ऩटु ट फनता है वैसे ही धेनु भद्र ु ा कयने से बी शयीय रृटट ऩटृ ट फनता है। ववचध :- अन्मोन्माशबभख ु ॊ त्श्रटटाकतनटठानाशभका ऩन ु ्

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तथा ि तजमतनभध्मा धेनु भद्र ु ा अभत ृ प्रदा ॥ ( कारी तॊत्र ) अऩने दोनों हाथो की अॊगशु रमो के ऩोयो को एक साथ शभरा रे कपय फामे हाथ की तजमनी ऊॊगर ु ी को दाएॊ हाथ की फीि वारी उॊ गरी से छुआए। इसके फाद दाएॊ हाथ की तजमनी उॊ गरी को फामे हाथ की फीि वारी उॊ गरी से छुआमें। ऐसे ही फामे हाथ की अनाशभका उॊ गुरी को दाएॊ हाथ की सफसे छोटी उॊ गरी से शभराएॊ। अॉगूठों को खुरा छोड़ दे । हाथ की अॊगशु रमों को नीिे की तयप कयने से अॊगशु रमों की आकृतत गाम के धनों जैसी हो जाती है इसी कायण इसे धेनु भद्र ु ा कहते है । सभम :- इस भद्र ु ा का अभ्मास धीये धीये फढ़ाए ऩहरे 1 से 15 शभतनट औय फाद भे 15 से 30 तथा जफ अच्छी तयह मह भद्र ु ा अभ्मास भे आ जाए तफ इस भद्र ु ा को 45 शभतनट तक कय सकते है । राब :- धेनु भद्र ु ा से ऩािन तॊत्र भजफत ू होता है औय शयीय ताकतवय व स्वस्थ फनता है । मह ऩेट के योगों के शरए याभफाण भद्र ु ा है । मोग साधना भे फहुत ही उऩमोगी भद्र ु ा कहराती है । तॊत्र एवॊ कभमकाॊड भे बी धेनु भद्र ु ा का प्रमोग है है । ऩयु ानी भान्मता के अनस ु ाय मह अभत ु ा है। मह भद्र ु ा वात ृ तत्व को दे ने वारी भद्र वऩत्त तथा कप को सॊतशु रत कयती है ।

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20. मग ु ा:ृ ी मद्र

भग ृ दहयन को कहा जाता है । मऻ के दौयान होभ की जाने वारी साभग्री को इसी भद्र ु ा भें होभ ककमा जाता है। प्राणामाभ ककए जाने के दौयान बी इस भद्र ु ा का उऩमोग होता है। ध्मान कयते वतत बी इस भद्र ु ा का इस्तेभार ककमा जाता है । मह भद्र ु ा फनाते वतत हाथ की आकृतत भग ृ के शसय के सभान हो जाती है इसीशरए इसे भग ु ा कहा जाता है । मह एक हस्त भद्र ु ा है। ृ ी भद्र ववचध : अऩने हाथ की अनाशभका औय भध्मभा अॊगुरी को अॊगठ ू े के आगे के बाग को छुआ कय फाकी फिी तजमनी औय कतनटठा अॊगर ु ी को सीधा तान दे ने से भग ृ ी भद्र ु ा फन जाती है । योग आसन - इस दौयान उत्कटासन, सख ु ासन औय उऩासना के सभम इस्तेभार होने वारे आसन ककए जा सकते हैं।

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समय:- इस भद्र ु ा को सवु वधानस ु ाय कुछ दे य तक कय सकते हैं औय इसे तीन से िाय फाय ककमा जा सकता है। ऱाभ:-

भग ु ा कयते सभम अॊगठ ू े के ऩोय औय अॊगशु रमों के जोड़ ऩय दफाव ृ ी भद्र

ऩड़ता है । उतत दफाव के कायण शसयददम औय ददभागी ऩये शानी भें राब शभरता है । एतमप्र ु ेशय चिककत्सा के अनस ु ाय उतत अॊगशु रमों के अॊदय दाॊत औय सामनस के त्रफॊद ु होते हैं त्जसके कायण हभें दाॊत औय सहनस योग भें बी राब शभरता है। ववशेष- भाना जाता है कक इस भद्र ु ा को कयने से सोिने औय सभझने की शत्तत का ववकास बी होता है । भग ु ा शभगी के योचगमों के शरए फहुत ही राबकायी है । ृ ी भद्र 21. यमहररमद्र ु ा

ववचध -सवम प्रधभ आऩ अऩने दोनों हाथों की सफसे छोटी अॊगुरी अथामत कतनटठा को आऩस भें एक दस ू ये के प्रथभ ऩोय से शभरा दें । इसी के साथ दोनों अॊगठ ू े को बी आऩस भें शभरा दें । अफ तीन अॊगशु रमाॊ फाकी यह जाएॊगी- भध्मभा, तजमनी औय अनाशभका। इन तीनों अॊगशु रमों को हथेरी की ओय भोड़कय भट्ठ ु ी जैसा फनाइए। अॊगशु रमों की इस त्स्थतत को मभ हरयभद्र ु ा कहते हैं।

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ऱाभ :- मभहरयभद्र ु ा के तनमशभत अभ्मास से नाडड़मों को शत्तत शभरती है। इस भद्र ु ा के तनयॊ तय अभ्मास से ऩेट के योग जैसे- कब्ज, बख ू ना रगना औय त्जगय की कभजोयी दयू होती है । इस भद्र ु ा से त्स्त्रमों के स्तनों के साये योगों भें बी राब शभरता है । मभ हरयभद्र ु ा को प्रततददन 5 शभनट सफ ु ह औय 5 शभनट शाभ को कयें । आऩ इसके कयने का सभम फढ़ाकय 10 शभनट तक कय सकते हैं। प्रततददन कभ से कभ ऩाॊि भद्र ु ाएॊ अऩनी सवु वधानस ु ाय कयनी िादहए। भद्र ु ाओॊ से सबी योगों भें राब ऩामा जा सकता है मदद उनका मोग शशऺक से ऩछ ू कय तनमशभत अभ्मास ककमा जाए। भद्र ु ाएॊ खासकय उन रोगों के शरए पामदे भॊद सात्रफत होती है जो मोगासन कयने भें असभथम हैं। 22. ऩषु ऩांजलऱ मद्र ु ा:-

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मह भहत्वऩण ू म हस्त मोग भद्र ु ा है । जैसे दआ ु भें हाथ उठाते हैं मा ऩटु ऩ अऩमण कयते हैं तफ मह भद्र ु ा फनती है । जैसा कक इसका नाभ है ऩटु ऩाॊजशर इसी से मह शसद्ध होता है कक मह भद्र ु ा ककस प्रकाय की होगी। ववचध:- दोनों हाथों की अॊगशु रमों औय अॊगठ ू े को आऩस भें शभरा भखणफद्ध को बी शभरा रें। कपय दोनों हाथों की छोटी अॊगशु रमों को एक साथ शभराकय ऐसी आकृतत फना रें कक जैसे हभ ककसी बगवान को पूर िढ़ाते सभम फनाते हैं इसे ही ऩटु ऩाॊजशर भद्र ु ा कहते हैं। ऱाभ:- ऩटु ऩाॊजरी भद्र ु ा के तनयॊ तय अभ्मास से नीॊद अच्छी तयह से आने रगती है । आत्भववश्वास फढ़ता है । 23. यज भद्र ु ा:-

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यज भद्र ु ा केवर त्स्त्रमों के शरए है ऐसा नहीॊ, फत्सक अगय ऩरु ु ष इस भद्र ु ा को कयते हैं तो उनके वीमम सॊफॊधी सभस्त योग दयू हो जाते हैं। ववचध- यज भद्र ु ा फनाना फहुत ही आसान है । कतनटठा (छोटी अॊगुरी) अॊगुरी को हथेरी की जड़ भें भोड़कय रगाने से यज भद्र ु ा फन जाती है । ऱाभ- यज भद्र ु ा से त्स्त्रमों के भाशसक धभम सॊफॊधी योग दयू होते हैं। इसके अरवा शसय भें बायीऩन यहना, छाती भें ददम, ऩेट, ऩीठ, कभय का ददम आदद योग बी यज भद्र ु ा कयने से दयू हो जाते हैं। स्त्री के साये प्रजनन अॊगों की ऩये शातनमों को मे भद्र ु ा त्रफसकुर दयू कय दे ती है ।

24. अदिती मद्र ु ा:-

ववचध:- अॊगठ ू े के आगे के बाग को अनाशभका (छोटी उॊ गरी के साथ वारी उॊ गरी) उॊ गरी की जड़ भें टे ढ़ा रगाने से अददती भद्र ु ा फन जाती है । ऱाभ:- इस भद्र ु ा को कयने से हय सभम उफासी आना, ज्मादा छीॊक आना जैसे योगों को दयू ककमा जा सकता है ।

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समय:- अददती भद्र ु ा को ददन भें 3-4 फाय 15-15 शभनटों के शरए कय सकते हैं। 25. हं सी मद्र ु ा:-

जैसे हॊ स नीय ऺीय वववेक की साभथ्मम यखता है वैसे इस भद्र ु ा के कयने से सोिने औय त्वरयत तनणमम की ऺभता फढती है। मद्र ु ा िी ववचध - सख ु ासन मा उत्कटासन भें फैठकय अऩने हाथ की सबी सफसे छोटी अॊगुरी को छोड़कय अॊगशु रमों को अॊगठ ू े के आगे के बाग को दफाने से 'हॊ सी भद्र ु ा' फन जाती है । अवचध- इस भद्र ु ा को प्रयॊ ब भें 5-8 शभनट से कयके 30-48 शभनट तक कय सकते हैं। मद्र ु ा िा ऱाभ- इस भद्र ु ा तनमशभत अभ्मास से वववेक फढ़ता है अथामत इससे सोिनेसभझने की शत्तत फढ़ती है औय इससे शयीय का बायीऩन सभाप्त हो जाता है ।

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ववशेषता- भाना जाता है कक इस भद्र ु ा का तनमशभत अभ्मास कयने से याजशसक ताकत फढ़ती है औय व्मत्तत धन सॊऩन्न फना यहता है। सावधानी - इस भद्र ु ा को कयते सभम ककसी बी प्रकाय का भॊत्र नहीॊ जऩना िादहए औय ना ही कोई अन्म धाशभमक उऩक्रभ कयें । 26. हस्तऩात मद्र ु ा:ववचध:- इस भद्र ु ा को कयने के शरए आऩ अऩने दोनों हाथों की हथेरी के ऩीछे के बाग को आऩस भें अॊगुशरमों सदहत शभरा दें । इस आकृतत को हस्तऩात भद्र ु ा कहा जाता है । मह नभस्काय भद्र ु ा जैसा ही है रेककन इसभें हथेरी के ऩटृ ठ बाग को शभरा ददमा जाता है । ऱाभ:- इस हस्तऩात भद्र ु ा को कयने से श्वास औय गरे के के साये योग भें फहुत राब शभरता है । त्जन त्स्त्रमाॊ मदद इसका तनमशभत अभ्मास कयती हैं तो इससे उनके स्तन सड़ ु ौर, सॊद ु य औय स्वस्थ हो जाते हैं। त्जन त्स्त्रमों के स्तन छोटे हैं, ढीरे हैं मा उनके स्तनों भें दध ू नहीॊ आता है तो मह भद्र ु ा उनके शरए फहुत राबकायी शसद्ध हो सकती है। 27. ध्यान मुद्रा ववचध:- ऩद्मासन भें फैठकय फाएॊ हाथ की हथेरी ऩय दाएॊ हाथ की हथेरी को (उसटे

हाथ ऩय सीधे हाथ को) हसके से यखने से ध्मान भद्र ु ा फनती है| ध्मान यखें कक इस

भद्र ु ा भें शसय, गदम न एवॊ यीढ़ की हड्डी सीधी यहे | आॊखें औय होंठ सहज से फन्द यहें | ध्मान अऩने इटटदे व के स्वरूऩ ऩय दटकाएॊ अथवा कामोत्सगम कयें अथामत ् शयीय से

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सभता यखते हुए कुछ दे य के शरए वविाय यदहत अवस्था भें यहने का प्रमास कयें | अटटाॊग मोग (मभ, तनमभ, प्राणामाभ, प्रत्माहाय, धायणा, ध्मान औय सभाचध) के एक अॊग ‘ध्मान’ की साधना भें मह भद्र ु ा ववशेष रूऩ से सहामक शसद्ध हुई है | ऱाभ :- जो व्मत्तत ऩद्मासन नहीॊ कय सकते, उन्हें ध्मान भद्र ु ा सख ु ासन मा

स्वत्स्तक अथवा ऩारथी आसन भें कयना िादहए| मह सहज भद्र ु ा है| सहज ध्मान

भद्र ु ा को साधायण व्मत्तत अचधक रम्फे सभम तक सयरता से कय सकता है | इससे ध्मान भद्र ु ा के राब बी शभर जाते हैं|

ध्मान भद्र ु ा भें मदद हथेशरमाॊ एक दस ू ये ऩय यखने के फाद दोनों हथेशरमाॊ ऻान भद्र ु ा की त्स्थतत भें यखी जाएॊ तो ध्मान भद्र ु ा तथा ऻान भद्र ु ा के सत्म्भशरत राब के

साथ ऩद्मासन के राब बी शभर जाते हैं| साधक के शरए ध्मान भद्र ु ा भें सभम की कोई सीभा नहीॊ है | रेककन सहजता के साथ ऩद्मासन कयने की ऺभता के अनरू ु ऩ

ध्मान भद्र ु ा का अभ्मास कयना िादहए| साधायण व्मत्तत को इसे धीये -धीये फढ़ाते हुए कभ-से-कभ २० शभनट से एक घॊटे तक कयना िादहए| ध्मान भद्र ु ा न कय सकने की अवस्था भें सहज ध्मान भद्र ु ा कयके राब उठाना िादहए|

भन की िॊिरता शाॊत होकय चित्त की एकाग्रता फढ़ती है | सात्त्वक वविायों की उत्ऩत्त्त होती है औय प्रबु बजन भें भन रगता है|

ध्मान के प्रबाव से साधक को ध्मान की उच्ितय त्स्थतत भें ऩहुॊिने भें सहामता शभरती है| आत्भ साऺात्काय औय ईश्वय के साऺात्काय भें मह भद्र ु ा सहामक है| 28. शाम्भवी मद्र ु ा:आॉखें खुरी हों, रेककन आऩ दे ख नहीॊ सकते। ऐसी त्स्थतत जफ सध जाती है तो उसे शाम्बवी भद्र ु ा कहते हैं। ऐसी त्स्थतत भें आऩ नीॊद का भजा बी रे सकते हैं। मह फहुत कदठन साधना है। इसके ठीक उसटा कक जफ आॉखें फॊद हो तफ आऩ दे ख

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सकते हैं मह बी फहुत कदठन साधना है, रेककन मह दोनों ही सॊबव है । असॊबव कुछ बी नहीॊ। फहुत से ऐसे ऩशु औय ऩऺी हैं जो आॉखे खोरकय ही सोते हैं। ववचध:- मदद आऩने त्राटक ककमा है मा आऩ त्राटक के फाये भें जानते हैं तो आऩ इस भद्र ु ा को कय सकते हैं। सवमप्रथभ शसद्धासन भें फैठकय यीढ़-गदम न सीधी यखते हुए ऩरकों को त्रफना झऩकाएॉ दे खते यहें , रेककन ध्मान ककसी बी िीज को दे खने ऩय ना यखें । ददभाग त्रफसकुर बीतय कहीॊ रगा हो। ऱाभ:- शाम्बवी भद्र ु ा को कयने से ददर औय ददभाग को शाॊतत शभरती है। मोगी का ध्मान ददर भें त्स्थय होने रगता है। आॉखें खुरी यखकय बी व्मत्तत नीॊद औय ध्मान का आनॊद रे सकता है। इसके सधने से व्मत्तत बत ू औय बववटम का ऻाता फन सकता है । सऱाह:- शाम्बवी भद्र ु ा ऩयू ी तयह से तबी शसद्ध हो सकती है जफ आऩकी आॉखें खुरी हों, ऩय वे ककसी बी िीज को न दे ख यही हो। ऐसा सभझें की आऩ ककसी धन ू भें जी यहे हों। आऩको खमार होगा कक कबी-कबी आऩ कहीॊ बी दे ख यहें होते हैं, रेककन आऩका ध्मान कहीॊ ओय यहता है। समय:- इस भद्र ु ा को शरु ु आत भें त्जतनी दे य हो सके कयें औय फाद भें धीये -धीये इसका अभ्मास फढ़ाते जाएॉ।

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29 शक्ततचालऱनी मद्र ु ा:ववचध :- आठ अॊगुर रॊफा औय िाय अॊगुर िौड़ा भर ु ामभ वस्त्र रेकय नाशब ऩय

रगाएॊ औय कदटसत्र ू भें फाॊध रें| कपय शयीय भें बस्भ यभाकय शसद्धासन भें फैठें औय

प्राण को अऩान से मत ु त कयें | जफ तक गह ु म दवाय से िरती हुई वामु प्रकाशशत न हो, इस सभम तक गह ु म दवाय को सॊकुचित यखें| इससे वामु का जो तनयोध होता

है , उसभें कुम्बक के दवाया कुण्डशरनी शत्तत जाग्रत होती हुई सष ु म् ु ना भागम से ऊऩय जाकय खड़ी हो जाती है | मोगभद्र ु ा से ऩहरे इसका अभ्मास कयने ऩय ही मोतन भद्र ु ा की ऩण ू म शसवद्ध होती है|

ऱाभ :- इस भद्र ु ा से कुण्डशरनी शत्तत का जागयण होता है| जफ तक मह सोती है ,

तफ तक सबी आॊतरयक शत्ततमाॊ सप्ु त ऩड़ी यहती हैं| इसशरए कुण्डशरनी का जाग्रत होना साधक के शरए फहुत आवश्मक है| प्राण-अऩान को सॊमत ु त कयने की कक्रमा प्राणवामु को ऩयू क दवाया बीतय खीॊिने औय उड्डीमान फॊध से अऩान वामु को ऊऩय की ओय आकवषमत कयने से ऩण ू म होती है| इसभें गह ु म प्रदे श के सॊकोि औय ववस्ताय का अभ्मास होने से अचधक सयरता हो सकती है | 30. तड़ागी मद्र ु ा:ववचध :- दोनों ऩाॊवों को दण्ड के सभान धयती ऩय ऩसाय रें औय हाथों से उनके

अॊगूठों को ऩकड़ने तथा दोनों जाॊघों ऩय शसय को स्थावऩत कयें , साथ ही उदय को तड़ाग (सयोवय) के सभान कय रें |

ऱाभ :- मह भद्र ु ा अनेक योगों औय वद्ध ृ ावस्था को बी दयू कयने भें सहामक शसद्ध होती है|

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31. माण्डवी मद्र ु ा:ववचध :- भख ु को फॊद कयके जुफान को तारु भें घभ ु ाएॊ औय सहस्राय से टऩकते हुए सध ु ायस को जुफान से धीये -धीये ऩीने का मत्न कयें | मही भाण्डवी (मा भाण्डुकी) भद्र ु ा है |

ऱाभ :- इसके दवाया फारों की सपेदी, उनका झड़ना, शयीय ऩय झरु यम मों, भॊह ु ासों

आदद का ऩड़ना तथा तनफमरता आदद दयू होकय चिय-मौवन की प्रात्प्त होती है | इससे यसोत्ऩादन होकय अभत ृ त्व की उऩरत्ब्ध होना सॊबव हो जाता है| 32. ऩालशनी मद्र ु ा ववचध:- दोनों ऩाॊवों को कॊठ के ऩीछे की ओय रे जाकय उन्हें ऩयस्ऩय शभराएॊ औय ऩाश के सभान दृढ़ता से फाॊध रें|

ऱाभ :- इसके अभ्मास से बी कुण्डशरनी शत्तत के जागयण भें फहुत सग ु भता हो जाती है तथा साधक के शयीय भें फर औय ऩत्ु टट का आववबामव होता है| भानशसक फरवद्धमन भें बी मह फहुत दहतकय है| 33. िािी मद्र ु ा:काक कौए को कहते हैं। कौए की िोंि जैसी भॊह ु की भद्र ु ा फना रेने को काकी भद्र ु ा कहा जाता है । ववचध : ककसी बी आसन भें फैठकय होठों को ऩतरी सी नरी के सभान भोड़कय कौए की िोंि जैसा फना रें। अफ नाक के अग्र बाग को दे खते हुए अऩना ऩयू ा ध्मान नाक ऩय दटका दें । इसके फाद भॊह ु से धीये -धीये गहयी श्वास रेकय होठों को फॊद कय दें । कुछ दे य फाद श्वास को नाक से फाहय तनकार दें । इस तयह से 10

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शभनट तक कयें । ऱाभ : मह भद्र ु ा जहाॊ शयीय भें ठॊ डक फढ़ाती हैं वहीॊ मह कई योगों को दयू कयने भें राबदामक है । इस भद्र ु ा का तनयॊ तय अभ्मास कयने से शयीय भें अॊदय बोजन ऩिाने की कक्रमा तेज हो जाती है । इससे अम्रवऩत्त का फढ़ना कभ हो जाता है । 34. मातंचगनी मद्र ु ा:भातॊग का अथम होता है भेघ। भाॊ दग ु ाम का एक रूऩ है भातॊगी। मह दस भहाववदमा भें से नौवीॊ ववदमा है । भातॊग नाभ से एक ध्मान होता है , भॊत्र होता है औय एक हाथी का नाभ बी भातॊग है । ऋवष वशशटठ की ऩत्नी का एक नाभ बी भातॊगी है । ऋवष कश्मऩ की ऩत्र ु ी का नाभ बी भातॊगी है त्जससे हाथी उत्ऩन्न हुए थे। ववचध : शाॊत जगह भें ऩानी के अॊदय गरे तक शयीय को डुफों रें औय कपय नाक से ऩानी को खीॊिकय उसे भॊह ु से तनकार रें। कपय भॊह ु से ऩानी को खीॊिकय नाक से फाहय तनकार दें । इस कक्रमा को ही भातॊचगनी भद्र ु ा कहते हैं। ऱाभ : इस भद्र ु ा के अभ्मास से आॊखों की योशनी तेज हो जाती है । शसय ददम भें मह भद्र ु ा अत्मॊत राबकायी भानी जाती है। इससे नजरा-जक ु ाभ आदद के योग बी दयू हो जाते हैं। इस भद्र ु ा के तनयॊ तय अभ्मास से िेहये ऩय िभक आ जाती है औय फार बी सपेद नहीॊ होते हैं। इस भद्र ु ा के शसद्ध हो जाने ऩय व्मत्तत भें ताकत फढ़ जाती है ।

35. नभोमद्र ु ा नब का अथम होता है 'आकाश'। इस भद्र ु ा भें जीब को तारु की ओय रगाते हैं, इसीशरए इसे नबोभद्र ु ा कहते हैं। नबोभद्र ु ा कयना सयर नहीॊ है । इसे ककसी मोग

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शशऺक से सीखकय ही कयना िादहए। मह भद्र ु ा फहुत से योगों भें राबदामक शसद्ध हुई है । इस फाये भें एक श्रोक बी हैमत्र मत्र त्स्थतों मोगी सवमकामेषु सवमदा। उध्वमत्जव्ह: त्स्थयो बत्ू वाधायमेत्भवनॊ सदा। नबोभद्र ु ा भवेदष ु ा मोदववना योग नाशशनी।। अथामत साये कामों भें त्स्थय हुआ चित्त अऩनी जीब के अगरे बाग को भॊह ु के अॊदय तारू भें रगाकय श्वास को अॊदय योक रेता है। इस त्स्थतत से वैिारयक गततववचधमाॊ तत्कार फॊद हो जाती है इसीशरए इस भद्र ु ा को यहस्म का आबास ददराने वारी भद्र ु ा बी कहा जाता है । ववचध:- अऩनी आॊखों को अऩनी दोनो बौंहों के फीि भें जभाकय आऩकी जीब तारु के साथ रगा रें। मह दोनों कामम एक ही साथ औय एक ही सभम भें कयें । सवु वधानस ु ाय जफ तक सॊबव हो इसी त्स्थतत भें यहे औय कपय कुछ शभनट का ध्मान कयें । ऱाभ:- नबोभद्र ु ा के तनयॊ तय अभ्मास से जीब, गरे औय आॊखों के साये योग सभाप्त हो जाते हैं। इससे भत्स्तटक भें त्स्थयता फढ़ती है औय भत्स्तटक के योग बी दयू हो जाते हैं। 36. नालसिाग्र मद्र ु ा :नाशसकाग्र भद्र ु ा का अथम होता है नाक का आखखयी छोय, ऊऩयी दहस्सा मा अग्रबाग। इस बाग ऩय फायी-फायी से सॊतुरन फनाने हुए दे खना ही नाकककाग्र भद्र ु ा मोग कहराता है । रेककन मह भद्र ु ा कयने से ऩहरे मोग शशऺक की सराह जरूय रें , तमोंकक इसके कयने से बक ृ ु टी ऩय जोय ऩड़ता है ।

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ववचध:- ककसी बी आसन भें फैठकय नाक के आखखयी शसये ऩय नजये दटका रें। हो सकता है कक ऩहरे आऩ फाईं आॊखों से उसे दे ख ऩाएॊ तफ कुछ दे य फाद दाईं आॊखों से दे खें। इस दे खने भें जया बी तनाव न हो। सहजता से इसे दे खें। ऱाभ- इससे जहाॊ आॊखों की एतसयसाइज होती है वहीॊ मह भत्स्तटक के शरए बी राबदामक है । इससे भन भें एकाग्रता फढ़ती है। इस भद्र ु ा के रगाताय अभ्मास कयने से भर ू ाधाय िक्र जाग्रत होने रगता है त्जससे कुण्डरीनी जागयण भें भदद शभरती है । इससे भर ू ाधाय िक्र इसशरए जाग्रत होता है तमोंकक दोनों आॊखों के फीि ही त्स्थत है इड़ा, वऩॊगरा औय सष ु म् ु ना नाड़ी जो भर ू ाधाय तक गई है। समय:- इस भद्र ु ा को इतनी दे य तक कयना िादहए कक आॊखों ऩय इसका ज्मादा दफाव नहीॊ ऩड़ें कपय धीये -धीये इसे कयने का सभम फढ़ाते जाएॊ। 37. ब्रह्म आसन मद्र ु ा:कुछ रोग इसे ब्रहभा भद्र ु ा बी कहते हैं, तमोंकक इस आसन भें गदम न को िाय ददशा भें घभ ु ामा जाता है औय ब्रहभाजी के िाय भख ु थे इसीशरए इसका नाभ ब्रहभा भद्र ु ा आसन यखा गमा। रेककन असर भें मह ब्रहभ भद्र ु ा आसन है औय इसभें सबी ददशाओॊ भें त्स्थत ऩयभेश्वय को जानकय उसका चिॊतन ककमा जाता है । नभाज ऩढ़ते वतत मा सॊध्मा वॊदन कयते वतत उतत भद्र ु ासन को ककमा जाता यहा है । ववचध:- ऩद्मासन, शसद्धासन मा वज्रासन भें फैठकय कभय तथा गदम न को सीधा यखते हुए गदम न को धीये -धीये दामीॊ ओय रे जाते हैं। कुछ सेकॊड दामीॊ ओय रुकते हैं, उसके फाद गदम न को धीये -धीये फामीॊ ओय रे जाते हैं। कुछ सेकॊड तक फामीॊ ओय रुककय कपय दामीॊ ओय रे जाते हैं। कपय वाऩस आने के फाद गदम न को ऊऩय की ओय रे जाते हैं, उसके फाद नीिे की तयप रे जाते हैं। कपय गदम न को तराकवाइज

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औय एॊटीतराकवाइज घभ ु ाएॉ। इस तयह मह एक िक्र ऩयू ा हुआ। अऩनी सवु वधानस ु ाय इसे िाय से ऩाॉि िक्रों भें कय सकते हैं। ऱाभ : त्जन रोगों को सवामइकर स्ऩोंडराइदटस, थाइयाइड नराॊट्स की शशकामत है उनके शरए मह आसन राबदामक है । इससे गदम न की भाॉसऩेशशमाॉ रिीरी तथा भजफत ू होती हैं। आध्मात्त्भक दृत्टट से बी मह आसन राबदामक है। आरस्म बी कभ होता जाता है तथा फदरते भौसभ के सदी-जक ु ाभ औय खाॉसी से छुटकाया बी शभरता है । सावधाननयां : त्जन्हें सवामइकर स्ऩोंडराइदटस मा थाइयाइड की सभस्मा है वे ठोडी को ऊऩय की ओय दफाएॉ। गदम न को नीिे की ओय रे जाते सभम कॊधे न झक ु ाएॉ। कभय, गदम न औय कॊधे सीधे यखें । गदम न मा गरे भें कोई गॊबीय योग हो तो मोग चिककत्सक की सराह से ही मह भद्र ु ाआसन कयें । 38. भज ु ंचगनी मद्र ु ा:ववचध:- इसभें भख ु को पैराकय कॊठ से फाहयी वामु खीॊिी जाती है | तारु औय त्जहवा के भध्म वामु के घभ ू ने से शयीय भें अद्भत ु शत्तत का आववबामव होता है | ऱाभ:- मह भद्र ु ा अजीणम आदद उदय योगों को नटट कयने भें बी फहुत उऩमोगी है| इस प्रकाय भद्र ु ाओॊ के अभ्मास से साधक को सफ प्रकाय के शायीरयक, भानशसक औय आत्त्भक फर की प्रात्प्त होती है | मोगािामों के अनस ु ाय ‘नात्स्त भद्र क्षऺततभण्डरे (घेयण्ड सॊदहता)’ अथामत ् भद्र ् ु ासनककॊचितशसवद्धदॊ ु ाओॊ के सभान शसवद्धदामक कोई अन्म साधन ब-ू भॊडर ऩय नहीॊ है | इसशरए मोगशसवद्ध के आकाॊऺीजनों को भद्र ु ाओॊ का अभ्मास कयना श्रेमस्कय है|

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39. खेचरी मद्र ु ा:भनटु म की जीब (त्जहवा) दो तयह की होती हैं- रॊफी औय छोटी। रॊफी जीब को सऩमत्जहवा कहते हैं। कुछ रोगों की जीब रॊफी होने से वे उसे आसानी से नाशसकाग्र ऩय रगा सकते हैं औय खेियी-भद्र ु ा कय सकते हैं। भगय त्जसकी जीब छोटी होती है उसे तकरीपों का साभना कयना ऩड़ता है । सफसे ऩहरे उन्हें अऩनी जीब रॊफी कयनी ऩड़ती है औय उसके शरए घषमण व दोहन का सहाया रेना ऩड़ता है । जीब नीिे की ओय से त्जस नाड़ी से जड़ ु ी होती है उसे काटना ऩड़ता है । खेियी भद्र ु ा को शसद्ध कयने एवॊ अभत ृ के स्राव हे तु आवश्मक उद्दीऩन भें कुछ वषम बी रग सकते हें । मह व्मत्तत की मोनमता ऩय बी तनबमय कयता है । मोग भें कुछ भद्र ु ाएॊ ऐसी हैं त्जन्हें शसपम मोगी ही कयते हैं। साभान्मजनों को इन्हें नहीॊ कयना िादहए। खेियी भद्र ु ा साधकों के शरए भानी गई है । ववचध :- इसके शरए जीब औय तारु को जोड़ने वारे भाॊस-तॊतु को धीये -धीये काटा जाता है अथामत एक ददन जौ बय काटकय छोड़ ददमा जाता है । कपय तीन-िाय ददन फाद थोड़ा-सा औय काट ददमा जाता है। इस प्रकाय थोड़ा-थोड़ा काटने से उस स्थान की यतत शशयाएॊ अऩना स्थान बीतय की तयप फनाती जाती हैं। जीब को काटने के साथ ही प्रततददन धीये -धीये फाहय की तयप खीॊिने का अभ्मास ककमा जाता है । इसका अभ्मास कयने से कुछ भहीनों भें जीब इतनी रॊफी हो जाती है कक मदद उसे ऊऩय की तयप रौटा (उसटा कयने) ददमा जाए तो वह श्वास जाने वारे छे दों को बीतय से फॊद कय दे ती है। इससे सभाचध के सभम श्वास का आना-जाना ऩण म ् ू त योक ददमा जाता है । ऱाभ : इस भद्र ु ा से प्राणामाभ को शसद्ध कयने औय साभचध रगाने भें ववशेष सहामता शभरती है । साधनायत साधओ ु ॊ के शरए मह भद्र ु ा फहुत ही राबदामी भानी

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जाती है । ववशेषता : तनयॊ तय अभ्मास कयते यहने से त्जफ जफ रॊफी हो जाती है , तफ उसे नाशसका यन्रों भें प्रवेश कयामा जा सकता है । इस प्रकाय ध्मान रगाने से कऩार भागम एवॊ त्रफॊद ु ववसगम से सॊफॊचधत कुछ ग्रॊचथमों भें उद्दीऩन होता है। त्जसके ऩरयणाभस्वरूऩ अभत ृ का स्राव आयॊ ब होता है । उसी अभत ृ का स्राव होते वतत एक ववशेष प्रकाय का आध्मात्त्भक अनब ु व होता है । इस अनब ु व से शसवद्ध औय सभाचध भें तेजी से प्रगतत होती है । चेतावनी : मह आरेख शसपम जानकायी हे तु है । कोई बी व्मत्तत इसे ऩढ़कय कयने का प्रमास न कये , तमोंकक मह शसपम साधकों के शरए है आभ रोगों के शरए नहीॊ। 40. अक्‍वनी मद्र ु ा:इस भद्र ु ा से साधक भें घोड़ों जैसी शत्तत आ जाती है, त्जसे ‘हॉसम ऩॉवय’ कहते हैं| ववचध :- इस भद्र ु ा भें गद ु ा-दवाय का फाय-फाय सॊकोिन औय प्रसाय ककमा जाता है | इसी से भद्र ु ा की शसवद्ध हो जाती है| इसके दवाया कुण्डशरनी जागयण भें सग ु भता यहती है औय अनेक योग नटट होकय शायीरयक फर की ववृ द्ध होती है | ऱाभ :- अत्श्वनी भद्र ु ा शसद्ध होने से साधक की अकारभत्ृ मु कबी नहीॊ होती| गुदा औय उदय से सॊफॊचधत योगों का इसके दवाया शभन होता है तथा दीघमजीवन की उऩरत्ब्ध होती है| त्रफना भर ू फॊध के अत्श्वनी भद्र ु ा नहीॊ हो सकती|

41. बज्रौऱी मद्रु ा:-

फज्रौरी भद्र ु ा बी भर ू फॊध का अच्छा अभ्मास ककए त्रफना ककसी प्रकाय सॊबव नहीॊ है | मह भद्र ु ा केवर मोगी के शरए ही नहीॊ, बोगी के शरए बी अत्मॊत राबकायी है |

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ववचध :- इस भद्र म दटकाकय, दोनों ऩाॊवों ु ा भें ऩहरे दोनों ऩाॊवों को बशू भ ऩय दृढ़ताऩव ू क को धीये -धीये दृढ़ताऩव म ऊऩय आकाश भें उठा दें | इससे त्रफॊद-ु शसवद्ध होती है| ू क

शक्र ु को धीये -धीये ऊऩय की आकॊु िन कयें अथामत ् इॊदद्रम के आॊकुिन के दवाया वीमम

को ऊऩय की ओय खीॊिने का अभ्मास कयें तो मह भद्र ु ा शसद्ध होती है | ववदवानों का भत है कक इस भद्र ु ा के अभ्मास भें स्त्री का होना आवश्मक है , तमोंकक बग भें

ऩततत होता हुआ शक्र ु ऊऩय की ओय खीॊि रें तो यज औय वीमम दोनों ही िढ़ जाते हैं| मह कक्रमा अभ्मास से ही शसद्ध होती है |

कुछ मोगािामम इस प्रकाय का अभ्मास शक्र ु के स्थान ऩय दनु ध से कयना फताते हैं| जफ दनु ध खीॊिने का अभ्मास शसद्ध हो जाए, तफ शक्र ु को खीॊिने का अभ्मास कयना िादहए| वीमम को ऊऩय खीॊिनेवारा मोगी ही ऊध्वमयेता कहराता है |

ऱाभ :- इस भद्र ु ा से शयीय रृटट-ऩटु ट, तेजस्वी, सॊद ु य, सड ु ौर औय जया-भत्ृ मु यदहत होता है| शयीय के सबी अवमव दृढ़ होकय भन भें तनश्िरता की प्रात्प्त होती है | इसका अभ्मास अचधक कदठन नहीॊ है | मदद गह ृ स्थ बी इसके कयें , तो फरवद्धमन औय सौंदममवद्धमन का ऩयू ा राब प्राप्त कय सकते हैं।

चेतावनी : मह आरेख शसपम जानकायी हे तु है । कोई बी व्मत्तत इसे ऩढ़कय कयने का प्रमास न कये , तमोंकक मह शसपम साधकों के शरए है आभ रोगों के शरए नहीॊ। साधना कयनेवारे व्मत्तत के शरए मह आवश्मक है कक वह साधना भें कातमक, वाचिक औय भानशसक कक्रमाओॊ ऩय ऩयू ा तनमॊत्रण यखे तथा सभम-सभम ऩय उचित ताॊत्रत्रक प्रकक्रमाओॊ का बी सभन्वम कयता यहे | इस दृत्टट से त्जस प्रकाय आसन ऩात्रासादन, अिमन आदद भें कक्रमाओॊ का ववधान है, उसी प्रकाय उनके साथ कुछ भद्र ु ा फनाने का ववधान है | मे भद्र ु ाएॊ भख् ु म रूऩ-से हाथ औय उसकी उॊ गशरमों के प्रमोग से फनती हैं| जैसे हभाया शयीय ऩॊितत्वभम है | अत् शास्त्रकायों ने कहा है कक इन उॊ गशरमों के प्रमोग से इन तत्वों की न्मन ू ाचधकता दयू की जा

अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि

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सकती है तथा तत्वों की सभता-ववषभता से होनेवारी कभी को उॊ गशरमों की भद्र ु ा से सभ फनामा जा सकता है | इतना ही नहीॊ, ऐसी भद्र ु ाओॊ के सहमोग से उन तत्वों को स्वेच्छाऩव म घटामा-फढ़ामा बी जा सकता है | मे तत्व क्रभश् अॊगुटठ भें अत्नन, ू क तजमनी भें वाम,ु भध्मभा भें आकाश, अनाशभका भें ऩथ् ृ वी औय कतनत्टठका भें जर के रूऩ भें ववदमभान यहते हैं| दे वताओॊ की प्रसन्नता, चित्त की शवु द्ध औय ववववध योगों के नाश भें भद्र ु ाओॊ से फड़ी सहामता शभरती है | भद्र ु ातत्व को सभझकय, प्रत्मेक मोगी को इनका साधन कयना िादहए| कुण्डशरनी शत्तत के जागयण भें इन भद्र ु ाओॊ से सहामता शभरती है | महाॊ हभने त्जन भद्र ु ाओॊ का वणमन एवॊ चित्रण ककमा है, उसभें प्रत्मेक मोगी, साधक को ऩरयचित होना िादहए|

अनंतबोध चैतन्य द्वारा संऩादित त्रिदिवसीय मुद्राचचकित्सा सि

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मोग अनस ु ाय आसन औय प्राणामाभ की त्स्थतत को भद्र ु ा कहा जाता है। फॊध, कक्रमा औय भद्र ु ा भें आसन औय प्राणामाभ दोनों का ही कामम होता है ।

मोग भें भद्र ु ाओॊ को आसन औय प्राणामाभ से बी फढ़कय भाना जाता है । भद्र ु ा दो

तयह की होती है- ऩहरी हस्त भद्र ु ा अथामत हाथों औय उसकी अॊगशु रमों को ववशेष आकृतत भें फनाना औय दस ू यी आसन भद्र ु ा अथामत त्जसभें ऩयू ा शयीय ही सॊिाशरत होता है।

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