आक Aak के औषधीय प्रयोग

July 9, 2017 | Author: संजय कुमार | Category: N/A
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अनेक रोगों की चिकित्सा आक द्वारा , आयुर्वेद, जड़ी बूटियां Calotropis Procera Ayurved...

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Aak From Jatland Wiki

॥ ओ३म ् ॥ भारत क

िस

जड़ बू ट

थमाला-१

आक

ले ख क

वामी ओमान द सर वती

काशक - हरयाणा सा ह य सं थान, गु कुल झ जर, जला झ जर (हरयाणा)

मु क - जै यद स ै , ब लीमारान, द ली-६

सु िम या नः आप औषधयः स तु हे भु ! तेर कृ पा से ाण, जल तथा व ा और औषिध हमारे िलये सदा सु खदायक ह ।

तीय सं करण (जून १९७८ ई०)

Digital text of the printed book prepared by - Dayanand Deswal दयान द दे सवाल

पृ ३-८

12/6/2012 10:16 AM

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Contents 1 न िनवेदन 2 पूवपी ठका 3 अक (आक) 4 आक का पौधा 5 आक के गुण 6 अक फल 7 वषैला आक 8 संश य िनवारण 9 अक और यूनानी िच क सा 10 ने रोग और आक 11 लीहा (ित ली) पर आक के योग 12

ास रोग पर आक 12.1

The author - Acharya Bhagwan Dev alias Swami Omanand Saraswati

ास रोकने क अ भुत औषध

13 आक से य मा रोग क िच क सा 14 कु 15 ित ली रोग 16 नपुस ं कता का रोग 17

ास रोग 17.1 वास पर आक के योग 17.2 दमे का नु खा

18 वायुरोग 19 अश (बवासीर) 20 सप वष क िच क सा



िनवे द न

सामा य मनु य चाहे जंगल, ाम, क बे, बड़े नगर कसी भी थान म िनवास करते ह , ायः सभी का एक ह वभाव है क छोटे मोटे रोग पर वै , हक म वा डा टर के घर का ार शी ह नह ं खटखटाते । अपने घर, खेत, जंगल, आस पड़ौस म सुगमता से जो भी घरे लू उपयोगी औषध िमल जाए, उसी का झट सेवन करते ह । क तु ित दन म आने वाले जाने पहचाने पौधे वृ आक, ढाक, नीम, पीपल बड़ आ द का यथाथ ान न होने से अनेक रोग क िच क सा इन के ारा भलीभांि त वे नह ं कर सकते । जो आक, नीम आ द सभी लोग को आगे पीछे घर और बाहर सव और हर समय दखाई दे ते ह, जो पदाथ अ य त सुल भ ह उनके ारा अनेक रोग क वयं िच क सा भी कर सक, इसी क याण क भावना से भारत क िस जड़ बूट थमाला का थम पु प अक वा आक आपको भट कया जा रहा है ।

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इसम सामा य प से रोग के िनदान वा पहचान, िच क सा, उपचार, प य पर भी काश डाला गया है । आशा है म े ी पाठक इस से लाभ उठायगे । - ओमान द सर वती

पूव पी ठका भगवान ् क सृ म असं य जड़ -बू टयां ह जो परम ् दयालु भु ने ा णमा के क याणाथ उ प न क ह । जनको उ प न करने से पूव अपनी परम प व वेदवाणी ारा उनके प व ान का काश भी ऋ षय के दय म कया । इसीिलए वेद सब स य व ाओं का पु तक है और वेद का पढ़ना पढ़ाना और सुनना सुनाना मानवमा का परम धम है । य क जब वेद सब स य व ाओं का भंडार है तो इसी के पढ़ने तथा उसके अनुसार आचरण करने से हम स चे सुख क ाि कर सकते ह । क तु अलप होने से मानव ु ट करता है , भूल करता है , फल व प दःु ख भोगता है , रोगी होता है क तु इसके चार ओर रोग क औषध व मान होते हुए भी अपनी अ प ता के कारण यह रोगी और दःु खी रहता है । "'पानी म मीन यासी, मुझे दे खत आवे हांसी'" इस लोको के अनु प मानव क दग ु ित हो रह है । इस दद ु शा से बचाने के िलए यह अक वा आक नाम क छोट सी पु तका िलख रहा हूं । अक भारत का एक िस पौधा है जो आयुवद के शा म जानी मानी हुई औषध है , जसे छोटे -छोटे वै तथा ामीण अनपढ लोग भी जानते ह तथा औषध प म योग भी करते ह । क तु वेद म इस अक के एक वशेष गुण क ओर संकेत कया जसका ान शायद हजार अ छे वै म से भी कसी वै को होगा और उसका योग तो कसी वै ने अपने जीवन म भूलकर भी नह ं कया है । मेरा यान इस ओर य गया, इसका एक मु य कारण है । एक बार हरयाणे के िस आय दानी पु ष चौ० य त जी खेड़ आसरा िनवासी ने मुझे चुनौती द क आप इस बात को य करके दखाओ क “वेद सब स य व ाओं का पु तक है ” । मने उनको य करके दखाया, वे मान गये । तभी से मेरा यान इस ओर अिधक गया और इितहास के शोध-काय के साथ वेद और आयुवद पर भी शोध-काय कर रहा हूँ । कई वष से मेरे ालु ोताओं ने मुझे अक वा आक पर िलखने के िलए बहुत बल दया । बहुत काय म फंसा होने के कारण िलखते-िलखते कई वष िनकल गये क तु आयसमाज थापना शता द के होने वाले द ली के महो सव २४ से २८ दसंबर १९७५ पर भागते-दौड़ते कुछ िलख ह डाला जो पाठक के हाथ म है । यह लेख िलखने के िलए मुझे दो-तीन घटनाओं से और अिधक बल िमला । बहुत वष हुए रोहतक जले म एक ाम िसवाना है जो दब ू लधन माजरा के पास तहसील झ जर म है । म वहां कसी कायवश गया । उस े म मुझे बहुत से लोग जानते ह क म िच क सा ारा जनता क कुछ सेवा करता हूँ । वहाँ पर एक माता अपनी पु ी को मेरे पास लेकर आई जो सवथा अ धी थी, दोन आंख म चेचक के बड़े -बड़े फोले थे । कतने ह वष से उसे कुछ भी दखाई नह ं दे ता था, इसी कारण उस क या क माता बहुत दःु खी थी, बह बहुत क णा-जनक श द म इस कार कहने लगी क - मेर पु ी अंधी है , इससे ववाह कौन करे गा और म जवान अंधी बेट को घर कैसे और कब तक रखूंगी ? मुझे माता के दःु ख और ववशता पर बड़ दया आ रह थी क तु म भी कुछ समझ नह ं पा रहा था, या क ं । मने कहा - माता जी, चेचक के फोले ह, इनक िच क सा डा टर, वै कसी के पास भी नह ं, म तो चाहता हूं ई र इसे आंख वाली कर दे । उस माता ने फर दःु ख से रोकर कहा - भाई, मने सुना है आप अ छ दवा जानते ह, यह बेचार क या है , इस पर दया करो । मुझे उस समय एक योग याद आ गया जो कभी पढ़ा था क तु उसका योग नह ं कया था । मने वह माता जी को बता कर वदा ली । वह तो बेचार द ु खया थी, उसने ापूवक बनाया और उसका योग कया । जब म अगले वष उस ाम म गया तो वह माता अपने पु ी के साथ मुझे िमली । म स नता से आ य म पड़ गया । या दे खा, दोन आंख के फोले कट गए और अ धी क या सवथा आंख वाली सुल ाखी हो गई । वह माता बहुत स न और कृत थी ।

तीय घटना एक बार रोहतक म हरयाणे के सभी वै का स मेल न था । मुझे भी बुलाया था, उन सब ने मुझे अपनी सभा का अ य बना दया और स मेल न क समाि पर सब ने मुझे अपने अनुभूत योग बताने का आ ह कया । मने उस दन अपने अक (आक) पर ह कुछ अनुभ ूत योग बताये । कुछ वै ने वे योग िलख भी िलए । उन वै म से एक वै मुझे एक दन गांव म िमल गया और उस ने िमलते ह पहली बात यह कह क आप का आक का अनुभूत योग बहुत ह अ छा है और अ ध को दान करने वाला है । कतने ह अंध और काण क आंख उस योग से सवथा ठ क कर द , योग या

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जाद ू है ! इन घटनाओं के प ात ् मने वयं भी आक के योग का खूब योग कया तथा अपने या यान म भी इस क खूब चचा क , आक को द य औषध के प म दे खा । जतना आजमाया, उतना ह इस स य को पाया । इस स य को वेद म खोजने का मने य कया, य क आयुवद तो वेद का एक उपवेद ह है । मेरा यान ऋ वेद के कुछ म पर गया जन म अक क द यता क चचा है । ऋ वेद के थम म डल से लेकर दशव म डल तक १३ मं म १३ बार अक श द का योग हुआ है जन म अक क द यता और मह ा पर काश पड़ता है - सूय, अ न, र म, करण इ या द । अक, आक, पादप और इस िस औषध का भी नाम है जसक चचा इस पु तक म म कर रहा हूँ । वेद के मं के आधार पर अक (आक) क चचा व तार से तो फर कभी क ं गा । इस समय कुछ थोड़ा सा िलखना पाठक के हत के िलए आव यक है । ऋ वेद के म डल १० अ० ५ और सू ६८ का छठा म है यदा वल य पीयतो जसुं भे बृह पितर द तपोिभरक :। बृह पित जो सब से बड़ा व ान है , वेद, उपवेद (आयुवद) आ द का महान ् आचाय है , वह अ नत व धान द य औषध अक के ारा अपने िश य रोिगय का वल आवरण च ु रोग, फोला, जाला, मोितया ब द आ द को न करता है और अक के द य गुण के ारा योित ( काश) अथात ् ने दान करता है । यह वह स य है जसके कारण जतने सं कृत भाषा म सूय के नाम ह, वे सभी नाम इस अक के पौधे के ह, जो सूय म काश योित गम आ द गुण ह, वे इस अक के पौधे म ह । सूय के िनकलते ह अ धकार, सद , ठं डक, शीत भाग जाता है उसी कार आक भी अ धेपन आ द च ु रोग को दरू भगाता है । काण को आंख वाला और अ ध को सुल ाखा बनाता है वायु कफ के सब रोग को न करने म अकेला ह समथ और श शाली है । सूय जस कार संस ार क सार मलिनता ग दगी को न करता है उसी कार आक पामा, दाद चमदल (च बल) तथा भयंकर ग दे कु आ द रोग को न करने वाला है । सव कार के कृ िमरोग , पीड़ाओं, वायु कफ रोग तथा आंख के रोग का आक परम श ु है , इन को दरू भगाता है । गम के कारण जब ी म ऋतु म सब कुछ सूख जाता है , तब म भूि म बागड़ म भयंकर रे िग तान जहां जल के दशन भी नह ं होते, वहां यह आक ह फलता फूलता जवानी क म ती म झूमता रहता हुवा दखाई दे ता है य क यह भी सूय नामधार है । इसम आ नेय त व का बाहु यु है जो क अपने नाम रािश वाले िम सूय के िनकत जाता उतना ह यह स न होकर फलता फूलता है और वासा जस कार यह कहता है क वासायं व मानायां आशायां जी वत य च । र

प ी

यी कासी कमथमवसीदित ॥

संस ार म वासा व मान हो और रोगी को जी वत रहने क आशा हो तो फर र प , य (तपे दक), खांस ी का रोगी य दःु ख पाता है ? इसी भांित अक (आक) भी रोिगय को स बोिधत करते हुए कहता है जी वतुं य द वा छ त स यक मिय भूतले । अ धा: कुतोऽवसीद त

ास

वातोदर यपीडां च ूरोगां व दोष क ठमालां च

कफा दता: ॥१॥ मूलत: ।

णे ह म युं व माम ् ॥२॥

हे मनु यो ! य द ने योित खोकर अंधे हो गये हो, ास, कास, ेत कु और कफ के रोग से पी ड़त हो और अब भी तु हारे जीने क इ छा है तो मुझ आक के रहते हुए तुम क य उठा रहे हो ?॥१॥ म वायु वकार, उदर, य (तपे दक), सभी कार के ने रोग, चम वकार और ग डमाला आ द रोग को कर दे ता हंू , अत: विधपूवक तुम मेरा सेवन करके रोगर हत हो जाओ । इसम कोई स दे ह नह ं है ॥२॥ अक के इन वशेष गुण को दे खकर ह इस पर कुछ िलखने का य

णमा म न

कया है ।

- ओमान द सर वती

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पृ ९-२०

अक (आक) ध व तर य िनघ टु म अक अथात ् आक के वषय म इस कार िलखा है अकः सूया यः पु पी व ीरोऽथ वक रणः । ज भलः

ीरपण

यादा फोटो भा करो र वः ॥

ध व तर य िनघ टु म अक, सूया य, पु पी, व ीर, वक रण, ज भल, ीरपण , आ फोट, भा कर और र व - ये नाम सामा य प से िगनाये ह । जतने नाम सूय के ह, उतने अक अथात ् आक के भी ह । आक क उप वष म गणना क है । राजिनघ टु म आक के िन निल खत नाम िलखे ह अकः

ीरदलः पु पी तापः

व ीरो भा करः भ जनः सूया

ीरपण

ीरका डकः ।

ीर खूज नः िशवपु पकः ॥१॥ या स वता च वक रणः ।

सदापु पी र वरा फोटक तथा ॥२॥

तूलफलः शुकफलो वंश येकसमा यः ॥

आक - आवरण पृ

राजिनघ टु के अनुस ार ये इ क स नाम होते ह । जो नाम आक के ध व तर य िनघ टु ने दये ह उनम से नौ नाम तो य के य ह । केवल एक ज भल नह ं दया । जो बारह नाम अिधक दये ह उनम एक नाम स वता तो सूय का िस नाम है ह । और कुछ नाम श दभेद से िमलते-जुलते ह । जैसे - व ीरः, ीरदलः, ीर , ीरपण , ीरका डकः - ये समानाथक ह ह । ताप, सदापु प आ द नाम ेत अक अथात ् सफेद आक के दये ह । शुक - तोते क आकृित के समान आक का फल होता है , इससे शुकफल इसका नाम रख दया । तथा तूल - ई वाला फल होता है इसिलए तूलफल अक का नाम है । खजू - खाज को न करने वाला होने से इसका गुणवाची नाम खजू न है । इसके पु प क याणकार ह, अतः िशवपु पक इसका नाम है । भंजक और वक रण दोन नाम गुणवाची ह । कुछ अ य िनघ टु ओं म और भी नाम पाठभेद से दे दये ह अथवा सूय के बहुत नाम ह, वे सब आक के ह उनका उ लेख भी ंथकार ने कर दया है । अक तीन-चार कार के होते ह । कुछ उनके नाम िमलते ह । जैसे सफेद आक के नाम इस कार से ह -

राजाक वा शु लाक राजाक वसुकोऽ यक म दारो गण पकः । एका ीलः सदापु पी स चालकः तापनः ॥ ध व तर य िनघ टु म राजाक जो अक म वशेष कार का आक होता है , इसके उपरो नाम दये ह । इसी को ेत अक (सफेद आक) कहते ह । कुछ व ान ् ेत अक को पृथक् मानते ह । जैसे राजिनघ टु म इस कार िलखा है -

शु लाक शु लाक तपनः

ेतः ताप

िसताककः ।

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सुपु पः शंकरा दः याद यक वृ म लका ॥ शु लाक, तपन, ेत, ताप, िसताक, सुप ु प, शंकरा द नाम सफेद आक के ह । इसको वृ म लका भी कहते ह । य क सफेद आक सभी आक म े है , अतः इसे अक का राजा राजाक कहते ह । शु लाकः ेतः िसताककः वसुकः अ यकः म दारः गण पकः एका ीलः सदापु पः ेतपु पः बालाकः और तापसः ये सभी नाम ेत अक अथात ् सफेद आक के ह । य क इसके पु प वा फूल ेत (सफेद) होते ह, इसिलए इसका नाम ेत, िसताककः (िसता - िम ी के समान ेत), वेतपु प, ेतपु पी और शु लाक आ द नाम से इसक िस है । अक (आक) के भे द अक वा आक चार कार के होते ह । १. ेताक अथात ् सफेद आक, २. र ाक वा लाल आक, ३ लाल आक का ह दस ू रा कार है जो उं चाई म सबसे छोटा और सबसे वषैला होता है । ४. पवतीय आक - यह पहाड़ आक पौधे के प म नह ं, लता के प म होता है , जो उ र भारत म बहुत कम क तु महारा म पया मा ा म होता है । आक के अ य भाषाओं के नाम नामः - अक, राजाक, वभावसु आ द सं कृ त भाषा के नाम ऊपर िलखे जा चुके ह । ह द - आक, म दार । बंगाली पाक द । मराठ - ई, चक , पाठर ई । तेलंगी - निल, ज ले, डे घोली, तेल ज लोड़े । फारसी - खरक, दध ू । अरबी - ऊषर । अं ेजी - जाकजे टक, वेल ो वट । लै टनः - केलो ो पस जायजे टका के ोस र इ या द आक के विभ न भाषाओं के नाम ह ।

आक का पौधा भारत दे श म आक के पौधे (झाड़) सब थान पर िमलते ह । ऊं चे पवत पर इसका अभाव दे खने को िमलता है । वैसे तो सामा य प से इसको सब लोग जानते ह, क तु औषध प म यह पौधा कतना गुणकार और हतकार है इसका वशेष ान तो कसी- कसी वरले वै को ह है । सामा य जनता को तो इतना ह ान है क यह एक वषैला पौधा है , कभी-कभी औषध के प म काय म आ जाता है । इसके वशेष ानाथ ह यह लघु पु तका िलखी है । आक का पौधा दो हाथ से लेकर दस हाथ तक ऊंचाई म दे खने को िमलता है । यह आक का झुरमुट ऊंची शु क म भूिम वा बागड़ म अिधक होता है । बागड़ वा ऊसर भूिम म उ प न होने के कारण अरबी म इसको ऊसर कहते ह । इसके मु य कांड तथा छोट -मोट शाखाओं क वचा (छाल) अ य त कोमल वा नम होती है । भार म भी बहुत ह का होता है । बड़ सुग मता से तोड़ जा सकती है । इसक कोमल शाखाय चपट होती ह । धुनी (पीनी) हुई ई क भांि त घने ेत लोम से ढ़क रहती ह । प े ल बे, प वृ त के पास पतले तथा आगे से चौड़े होते ह । प वृ त इतने छोटे होते ह क ऐसा तीत होता है क ये डािलय से ह िनकले हुए ह । प के ऊपर क ओर वृ त के िनकट दलब ता वण ककश लोम होते ह । प के ऊपर क दशा को उदर और वपर त दशा को पृ (पीठ) कहते ह । आक के प ोदर म ई के समान पतली तह पुड़त लोम क होती है । प े के ये लोम बहुत ह घने (िघनके) होते ह । अतः इसी कारण से प े क पीठ सफेद दखाई दे ती है । ऊपर व णत प ेत अक के प ह । सफेद आक के पौधे ह ऊंचे होते ह जो आठ वा दस हाथ तक ऊंचे होते ह । ये महारा म बहुत होते ह । ेत अक और र अक क सभी व तुओं म बड़ा भेद होता है । र वण के आक के पौधे छोटे तथा प े वटवृ (बड़) के समान गोल होते ह । ेताक (सफेद आक) के पु प कुछ ेत ह होते ह और इ ह ं अपने ेत पु प के कारण ह ेताक, ेतपु पी आ द इसके नाम ह । क तु इतना यान रख क ेताक के पु प वा फूल सवथा सफेद नह ं होते, क तु ऊपर क ओर ईषतपीत ् अथात ् नवनीत (नूनी घी) के समान रं ग वाले होते ह । आक के पांच पु प प वलग- वलग होते ह । जैसे चमेल ी वा जूह होते ह । इनक ल बाई एक-एक इं च तक होती है । उ र भारत म ेत जाित का आक अ य त दल ु भ वा द ु ा य है । बहुत वष हुए लेखक ने एक ेत आक का पौधा ो० शेरिसंह जी आय र ा रा यमं ी भारत के ाम बाघपुर म मा. मांगेराम या ी क कृ पा से दे खा था । उ ह ने इस पौधे क बड़ र ा क , इसके बीज भी बोये क तु कुछ काल के पीछे वह ेत आक न ह हो गया । सफेद जाित के आक क खोज किमयागर (तांबे को सोना बनाने वाले) लोग बहुत रखते ह । क तु इसी वष दे खने से पता चला क ेत आक महारा म पया मा ा म िमलता है । इसके बड़े -बड़े पौधे हो जाते ह । घर और बाग म भी सफेद आक के पौधे लोग ने लगा रखे ह । वै नाथ परली (मरहठावाड़ा) म आयसमाज के धान क घरे लू वा टका म अनेक ेताक के पेड़ लगे हुए ह क तु इसके गुण को

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यहां के िनवासी बहुत कम जानते ह । लाल जाित का आक सव सुलभता से ा य है । गुण क से औषध के प म दोन कार के आक का योग होता है । दोन म कुछ समान गुण भी िमलते ह क तु ेत अक म अिधक उ म गुण होने से आयुवद म यह वन पित द य औषध मानी जाती है । लाल आक इसके समान तो नह ं क तु यह भी गुण का भ डार है । जतना लाभ इस पौधे से वै और भारतीय िच क सक ने तथा रसायनशा य ने पहले उठाया था उतना कसी तीय औषध से नह ं उठाया । वैसे आक का पौधा अपने आप म वात, कफ आ द के सभी रोग को न करने के िलए पूण औषधालय है । अं ेजी िश ा के चार तथा एलोपैथी के सार से इस द य औषध क कुछ उपे ा करने लगे ह । फर भी आज तक ामीण लोग म तो इसका चुर मा ा म औषध के प म चलन और उपयोग होता है । शहर लोग इसके लाभ से वंिचत हो रहे ह । कसी- कसी वशेष ने तो आक को वान पितक पारद िलखकर इसके गुण क यथाथता को कट कया है । आयुवद शा ने इसके गुण का इस कार से वणन कया है ।

आक के गुण ध व तर य िनघ टु गुणाः – अक त ो भवेद ु णः शोधनः परमः मृतः । क डू णहरो ह त ज तुस तितमु ताम ् ॥१४॥ अक तु कटु ण शोफ णहरः क डू कु

वात

पनः सरः ।

लीहाकृ मी जयेत ् ॥१५॥

आक के फूल

ेत अक तीखा (कडु वा), उ ण (गम), परमशोधक, र मल आ द को शु करने वाला और ब ढ़या जुलाब है । अ छा वरे चन है । सूजन, खाज, दाद, फोड़ को ठ क करता है । पेट के कृिमय तथा कु (कोढ़) के क ड़ को समूल न करता है । र वण का आक भी कडु वा, गम, वायु के रोग को दरू करने वाला द पक, पाचक तथा वरे चन कराने म अ यु म है । भाव काश िनघ टु म भाव काश िलखते ह अक यं सरं वातकु क डू वष णान ् । िनह त लीहगु माशः

े मोदरशकृ कृमीन ् ॥६७॥

दोन कार के आक अथात ् ेताक और र ाक रे चक (द तावर) ह । वायुरोग को, कु , खुजली, वष, फोड़ , ित ली रोग, गु म (गोला), बवासीर, कफ के रोग ( ास कासा द), पेट के रोग और मल के कृिमय (क ड़ ) को न करने वाले ह। ध व तर य िनघ टु म र वण के आक के गुण ये ह गुणाः अक तु कटु



वात ज ोपनीयकः ।

शोफ णहरः क डू कु कृिम वनाशनः ॥ र वण का आक अथात ् सामा य आक कडु वा, गम, वायु के रोग को जीतने वाला, द पक, पाचक, शोथ (सूजन) फोड़ को हरने वाला, खाज, कोढ़ और सब कार के कृिमय का नाश करने वाला है । राजिनघ टु म राजाक और शु लाक के गुण िन न कार से िलखे गये ह गुणाः -

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राजाकः कटु ित ो णः कफमेदो वषापहः । वातकु

णान ् ह त शोफक डू वसपनुत ् ॥२८॥

राजाक कडु वा तीखा और उ ण कृित का होता है । कफ, मेद (चब ) और वष को दरू भगाता है । वातरोग को, कोढ़ और फोड़ को दरू करता है । शोथ (सूजन), खुजली तथा वसप आ द रोग का नाशक है । शु लाक गुणाः ेताकः कटु ित ो णो मलशोधनकारकः । मू कृ

ा शोफाित दोष वनाशनः ॥३०॥

सफेद आक कड़ु वा, तीखा, उ ण और मल का शोधक है , अ छा वरे चन है । मू कृ (र प ), शोथ, फोड़ के क और दोष को न करने वाला है ।

(मू क से आना), अ

भाविम ने आक के पु प और दध ू के गुण को भी पृथक् -पृथक् िलखा है । े त आक के फू ल अलककुसुमं वृ यं लघु द पनपाचनम ् । अरोचक सेकाशः कास ासिनवारणम ् ॥६८॥ सफेद आक का फूल वीयवधक, ह का, अ न को द पन करने वाला, पाचक है । अ िच, कफ, बवासीर, खांसी और वनाशक है ।

ास

र ाकपु पं मधुरं सित ं कु कृिम नं कफनाशनं च । अश वषं ह त च र

प स ा ह गु मे

यथौ हतं तत ् ॥

लाल आक के फूल मधुर, कड़वे, कोढ़, कृिम, कफ, बवासीर, वष, र प , गु म (गोला) तथा सूजन को न करने वाला है । र ाक के पु प बगनी रं ग के होते ह । खल जाने पर पांच वा चार पंख ड़यां अलग-अलग हो जाती ह और बीच म िशव क प ड क मू के समान चौकोर पाई जाती है । इस र वण के पु प के आने का समय वशेष प से तो फा गुन और चै मास ह ह । साधारण प से ये मास तक इनका खूब बाहु य रहता है । शीतकाल म तो पु प का अभाव सा हो जाता है । वष म नौ-दस मास तक इस आक पर फूल थोड़े बहुत पाते ह रहते ह । ये , आषाढ़ मास म सभी आक फूल से लदे रहते ह । आक का सूय के साथ वशेष स ब ध है । इसिलए जतने सूय के नाम ह उतने ह इस आक के पौधे के ह । गम म जब पृ वी सूय के िनकट आ जाती है और सूय क भयंकर गम से तपने और जलने लगती है , जोहड़, तड़ाग, बावड़ सब का जल सूख जाता है , बड़े वृ सूखने लगते ह तब एक यह पौधा है जो म भूिम म भी जहां जल का नामो-िनशान भी नह ं दखाई दे ता और कुओं म भी जल सौ सौ हाथ नीचे होता है , उस समय यह आक खूब फलता और फूलता है । इस पौधे म युवाव था ठाठ मारती है । यह आ नेयत व धान पौधा उस भयंकर उ ण काल म खूब हरा भरा रहता है । सूय और गम सबसे अिधक िम आक के ह ह । सूय के गुण को सबसे अिधक आक का पेड़ ह हण करता है । सूय के सभी गुण का अक वा आक आदान करता है । जैसे सूय क उ णता से गम म वायु और कफ के रोग नह ं रहते, उनका लोप हो जाता है । उसी कार वायु और कफ के रोग को आक भी समूल न कर दे ता है । जैसे सूय के काश से अ धकार दरू भाग जाता है , इसी कार आक क यह द यौषिध ा णय के च ु स ब धी वकार को दरू करके द य योित दान करती है । आक क औषध आक के पंचांग ह औषध म योग होते ह । फल का उपयोग बहुत यून होता है क तु आक का दध ू , मूल, अंकुर, प आ द सभी व तुय औषधाथ यु होती ह । इसका ीर वा दध ू , पु प और मूल, वक् अिधक योग म आते ह । ार बनाने के िलए पंचांग का ह योग कया जाता है ।

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आक के द ूध के गु ण गुणाः ीरमक य ित ो णं कु गु मोदरहरं

न धं सलवणं लघु ।

े मेत रे चनम ् ॥७०॥

भाविम जी िलखते ह - आक का दध ू कड़वा, गम, िचकना, खार , ह का और कोढ़, गु म (गोला) तथा अ य उदर रोग का नाशक है । वरे चन कराने म (द त के िलए) यह अित उ म है । े त आक के पु प के गु ण अलकंकुसुमं वृ यं लघु द पनपाचनम ् । अरोचक सेकाश कास ासिनवारणम ् ॥६८॥ सफेद आक के फूल वीयव क, ह के अ न को द पन करने वाले, पाचक और अ िच, कफ, बवासीर, खांस ी तथा दमा रोग के नाशक ह ।

ास,

र ाक के पु प के गु ण र ाकपु पं मधुरं सित ं कु कृिम नं कफनाशनं च । अश वषं ह त च र

प ं सं ा ह गु मे शवयथौ हतं तत ् ॥

लाल आक के फूल मधुर, कड़वे, ाह और कु , कृिम, कफ, बवासीर, वष, र वाले ह ।

प , गु म तथा सूजन को न करने

अक फल आक के फल दे खने म अ भाग म तोते क च च के समान होते ह । इसीिलए आक का एक नाम शुकफल है । ये फल ये मास तक पक जाते ह । इनके अ दर काले रं ग के दाने वा बीज होते ह और बहुत कोमल ई से ये फल भरे रहते ह । इसक ई भी वषैली होती है । फल का औषध म बहुत यून उपयोग होता है । ार बनाने वाले आक के पंचांग म फल को भी जलाकर भ म बनाकर ार िनकालने क विध से ार बनाकर औषध म उपयोग लेते ह । च ु रोग , कण रोग , जुकाम, खांस ी, दमा, चम- वकार म, वषम वर, वात और कफ के रोग म इसके पु प, प ,े ीर, जड़ क छाल सभी का उपयोग होता है जसका व तार से पृथक् पृथक् वणन आगे प ढ़ये ।

आक का फल

े त म दारः ेतम दार वशेष कार का आक केवल राजिनघ टु ने माना है । ेतम दारक

व यः पृ वीकुरबकः मृतः ।

द घपु पः िसतालक द घा यकः शरा यः ॥३७॥ एक

ेत म दारक नाम का बड़े पु प वाला, ऊंचा बढ़ने वाला, िम ी के समान

ेत आक होता है । जतने शर (तीर) के

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नाम होते ह उतने ह इसके नाम होते ह । यह सफेद आक का ह भेद है । इसके गुण िन न कार ह गुणाः ेतम दारकोऽ यु ण त ो मल वशोधनः । मू कृ

णा ह त कृ मीन य तदा णान ् ॥३१॥

ेत म दारक अ य त गम, ित (तीखा), मल का शोधन करने वाला वरे चन है । मू कृ अ य त दःु खदायी कृिमय (क ड़ ) का नाश करता है ।

फोड़ को न करता है ।

जतने भी आक के भेद आयुवद के थ ने आक के पौध के िलखे ह, ायः सभी गुण सबसे िमलते-जुलते ह । गुण म थोड़ा भेद पाया जाता है । आयुवद के थ म य -त जो भी आक के औषध प म सकड़ कार के योग िलखे ह वहाँ कह ं भी यह नह ं िलखा क ेत आक का योग कर । केवल आक मा ह िलखा िमलता है । अतः पाठक को भी यह उिचत है क जो आक उपल ध हो चाहे ेत वा सफेद आक हो अथवा र वा लाल आक हो उसी का योग िन संकोच होकर कर । शा - विध के अनुसार आक का योग करने से अव यमेव लाभ होगा । इतना अव य यान रख य द आपको ेत आक सरलता से िमल जाये तो उसी का उपयोग कर य क वह सव े आक वा आक का पौधा है । क तु वह न िमले तो लाल आक को यथ समझकर ह न भावना से न दे ख य क लाल आक भी गुण का भ डार है । वह भी जाद ू के समान भाव रखता है और सव सुलभ है ।

वषैला आक जो आक क जाित सबसे छोट होती है अथात ् यह उं चाई म सबसे छोटा होता है और यह म भूिम (बागड़) म ह होता है । इसके फूल सफेद िलए हुए पशताई रं ग के होते ह । इसको कुछ व ान ् सबसे वषैल ा मानते ह । अक कौन सा अिधक वषैला है तथा कौन सा यून वष वाला, इसक पहचान यह है क आक का दध ू िनकालकर अपने नाखून पर उसक दो-चार बूद ं टपकाय । य द दध ू बहकर नीचे िगर जाये तो कम वष वला है और य द वह ं अंगूठे पर जम जाये तो अिधक वषैला है । अथात ् जो आक का दध ू अिधक गाढ़ा होता है वह अिधक वषैला होता है और जो दध ू पतला होता है वह कम वष वाला होता है । अिधक वषैल े दध को सीधा खलाने क औषध म योग नह ं करना चा हए । अ य भ मा द ू औषध बनाने म इसका योग कर सकते ह । अक का मू ल वक् (जड़ क छाल) औषध के प म अक क जड़ क छाल वा िछलका बहुत योग म आता है । सं कृ त म इसे वक् वा व कल कहते ह । अक क जड़ क छाल पसीना लाने वाली, ास को दरू करने वाली, गरम और वमनकारक है । उपदं श आतशक को न करने वाली है । यह छाल वाद म कड़वी तीखी होती है । उ ण (गम) कृित वाली, द पन पाचन प का ाव करने वाली है , रस थ और वचा को उ ेजना दे ने वाली है , धातु प रव क, उ ेजक, बलदायक और रसायन है । थोड़ मा ा म यह आमाशय (मेदे ) म दाह (जलन) उ प न करती है । इससे वमन हो जाती है । इसके उपयोग से बहुत पसीना आता है , इससे इसका ेद जनन धम बहुत उ म माना गया है । इसका रसायन धम भी पारे के समान उ म है य क इसके सेवन से यकृत ् क या सुधरती है और प का ाव भली भांित होता है । शर र क पृथक् पृथक् थय को उ े जत करती है जससे सारे शर र क रस या और जीवन विनमय या अ छ कार से होने लगती है । इससे शर र पु होकर बल क वृ होती है । बढ़े हुए जगर और ित ली को ठ क करती है । आंत के रोग को भी अक छाल का योग ठ क करता है । पृ २१-२५ आक के मू ल वक् को उतारने क विध कसी औषध म आक क छाल क आव यकता हो तो कसी पुराने आक क जड़ क छाल लेनी चा हये । य क आक जतना पुराना होगा उतनी ह अिधक उसक जड़ वा जड़ क छाल अिधक उपयोगी और गुणकार होगी । पुरानी जड़ म कड़वी छाल क मा ा अिधक होती है । ी म ऋतु म चै वा वैश ाख मास म बागड़ वा म भूिम म उगे हुए पुराने आक क जड़ खोदकर उस पर लगी हुई िम ट झाड़ प छ ल और ह के हाथ से जल से इसक जड़ धो डाल और फर छाया म ह सुखानी चा हय । धूप म सुखाने से औषिधय के गुण घट जाते ह । एक दो दन बाद इसके ऊपर क मुदा छाल तथा

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िम ट य द कुछ हो तो झाड़कर हटा दे व और अ तछाल को उतारकर छाया म सुखाकर अपने उपयोग म लाव । य द कुछ काल पीछे उपयोग लेना हो तो कूट कपड़छान करके अ छ डाट वाली शीशी म ब द करके रख दे व । आक क ब ढ़या छाल के चूण का रं ग चावल के रं ग के समान ह होता है । यह छाल वर, ित याय (जुकाम), खांस ी, अितसार, कास, ास तथा गले के रोग को ठ क करती है । उपदं श क बहुत अ छ औषध है । व तार से रोग करणानुसार िलखगे । जड़ क छाल क अपे ा आक के पु प अिधक गुणकार ह और पु प क अपे ा आक का दध ू अिधक और शी भावकार है । औषध क मा ा - जड़ क छाल वा मूल वक् क मा ा सामा य प से १ र ी से ४ र ी तक है । वशेष अव थाओं म आधा माशे से दो माशे तक । मा ा दे श, काल, रोगी क श और कृित को दे खकर दे नी चा हये । य द कसी अव था म वमन कराना हो तो ३ माशे से ६ माशे तक अक क जड़ वा छाल द जा सकती है क तु वै से परामश लेकर ह अिधक मा ा म दे ना चा हये य क यह वष भी है , हािन भी हो सकती है । एक से दो र ी दे ने से हािन क कम स भावना है । आक के दध ं तक है । वषैला अथात ् गाढ़ा हो तो खलाने म उसका योग न कर । ू क मा ा एक से चार बूद आक के प े के रस क मा ा ३ माशे से ६ माशे तक है । अंकुर क मा ा १ माशे से ३ माशे तक है । अ तधूमद ध प े क मा ा २ माशे से ४ माशे तक दे सकते ह । पु प का चूण १ माशे से २ माशे तक है ।

संशय िनवारण अक भेद के वषय म पाठक को स दे ह हो सकता है य क अक को एक ह कार का माना गया है । सु त ु कार ने अक और अलक दो भेद माने ह । राजिनघ टु ने अक, ेताक, राजाक और ेत म दारक चार भेद िलखे ह । भाव काश िनघ टु म ेत अक और र ाक दो भेद माने ह । पंजाब, हरयाणा, उ र दे श, आगरा, अवध, बहार और बंग दे श म अिधकतर बगनी रं ग के फूल वाले आक पाये जाते ह और उ ह ह र ाक (लाल आक) कहते ह । क तु बंगाल म ेत रं ग के फूल पीतिमि त वण के अिधक पाये जाते ह । इ ह ह ेताक (सफेद आक) सफेद फूल वाले कहते ह । महारा म भी ये ेत अक पया मा ा म ा य ह । क तु ध व तर य वा राजिनघ टु म म दारक और राजाक या है , यह वचारणीय वा खोज का वषय है । राजाक के पयाय म राजिनघ टु कार ने िलखा है - राजाक वसु क ाऽलक म दारो गण पकः । अतः यह मानन पड़े गा क म दारक, म दार, अलक और राजाक सब एक आक के पयायवाची नाम ह । अ णद तथा अ य लेखक ने म दाक और अलक आ द को ेत े त पु प सफेद फूल वाला िलखा है । अतः म दाक राजाक ये सब ेत अक क जाित के ह ह । राजिनघ टु म राजाक को सदापु प और ेतम दारक तथा द घपु प िलखा है । बंगाल का ेताक सदापु प नह ं होता और न ह उ र दे श , हरयाणा आ द का छोटे फूल वा गु छ वाला ेताक सदापु प होता है । अतः इससे यह िस होता है क जस जाित के ेताक वस त से िभ न ऋतु वा अ य ऋतु म भी फूल दे ते ह वे ह राजाक हो सकते ह और जस ेताक के पु प बड़े होते ह वे ह ेत म दारक होते ह । कुछ लेखक का ऐसा मत है - र ाक वा लाल आक क अपे ा दध ेताक (सफेद आक) म अिधक पाया जाता है , वह ह अिधक गुणकार होता है । उ र दे श म जस अक को म दार ू पुकारते ह, वह बड़े -बड़े पतले प वाला और सफेद फूल वाला होता है । यह चमेली तथा जूह के समान अथवा लाल कनेर के समान होता है । यह ेत म दारक वा राजाक है । एक और कार का ेत पु प वाला छोटा पौधा म दार वा आक का होता है , इसके पु प भी ेत होते ह । वह सदापु पी नह ं होता, यह हरयाणे म भी िमलता है । जो बड़ा सदापु पी होता है वह महारा वा बंगाल म पाया जाता है जसे लोग िशवम दर (िशवालय ) और अपने घर म लगाते ह । यह कम पाया जाता है । लेखक ने इसे महारा म बहुत दे खा है । इसके फूल को पौरा णक भाई िशवमूि त पर चढ़ाते ह । सु त ु क ट का म ड हण ने िलखा है - अलक म दारकः य य ीरं न वन यित । चरकशा अमृतघृता द अनेक योग म योगाथ उ लेख कया है । यथा थान उसक चचा होगी ।

म भी अक का

अक और यूनानी िच क सा ऐलोपैिथक िच क सा प ित के मानने वाले डा टर लोग अक को वायु रोग, दाद, खुजली आ द चम रोग, भग दर, नासूर आ द रोग के िलए हतकर मानते ह । उदर रोग के िलए भी हतकर मानते ह । यथा- थान इस वषय पर

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काश डाला जायेगा । आक का येक अंग आयुवद क से औषध के प म बड़ा मह व रखता है । या वै , या हक म और या डा टर इस स य को सभी नतम तक होकर वीकार करते ह क तु आयुवद शा के अनुसार यह द य औषध जाद ू का भाव रखती है । अनेक रोग पर यह तुर त ह रामबाण के समान अचूक औषध है । इसका दध ू , पु प, वक् सभी अ तीय ह । जन रोग पर यह उपयोग म आते ह, उन पर आगे पाठक पढ़कर यथोिचत उपयोग करके लाभ उठायगे । ध व तर य िनघ टु म अक को क डू णहरः क डू (खुजली) आ द चमरोग तथा ण (फोड ) को ठ क करने वाला िलखा है । क डू रोग क डू , खुजली, खाज, पामा रोग यह सब पयायवाची ह । चरक शा

ने क डू खुजली को

अथात ् कु (कोढ़) का छोटा कार है । यह क डू रोग खुजली के नाम से सव इस क डू वा खुजली के िलए यु

ु कु रोग माना है

िस है । आयुवद का पामा नाम

होता है । शर र के विभ न भाग म वशेष प से हाथ क अंगुि लय म बहुत

सी फु सयां हो जाती ह । इनम दाह, जलन, पीड़ा और स त खुजली होती है । यह सूखी तथा पकने वाली गीली दो कार क होती है । जंघाओं पर भी यह रोग होता है । पकने पर इसम से ग दा पीप (मवाद) िनकलता है और जहां यह पीप लगता है वह ं और फु सयां िनकल आती ह । यह छूत का रोग है , एक दस ू रे को लग जाता है । अतः सावधान रहने क आव यकता है । लेखक को व ाथ जीवन म यह रोग हुआ था । इसक डा टर से िच क सा कराई तो कोई लाभ नह ं हुआ । फर दे शी िच क सा से तुर त लाभ हुआ । इसी से मेर प ित क ओर हुई थी । इसी

िच दे श ी िच क सा

ा ने आयुवद क ओर मुख मोड़ दया । य - य आयुवद के ारा सेवा करने का

अवसर िमला, दन दन ू ी रात चौगुनी आयुवद म आ था, व ास बढ़ता ह गया । इसी कारण ढ़ िन य और मेर मा यता बन गई क संस ार म आयुव दक िच क सा प ित ह पूण वै ािनक तथा सव म है । शेष सब िच क सा प ितयां अधूर तथा हािनकारक ह । १. अका द तैल आक के प

का रस १ सेर, सरस का तेल १ पाव, ह द पसी हुई १ छटांक - पानी म पीसकर गोली बना ल ।

सबको एक पा म डालकर अ न पर पकाय, म द आंच जलाय । जब केवल तैल शेष रह जाये तो इसे छानकर शीशी म सुर नीम के प

त रख तथा खुजली पर इसको लगाय । ह के हाथ से मािलश कर । एक-दो घ टा धूप म बैठ, फर के गम पानी से नान कर । नान से पूव गाय के गोबर म जल िमलाकर लेप कर फर नान कर

तो अिधक लाभ होगा । यह तैल क डू (खुजली) क रामबाण औषध है । सभी वै

का अनुभ ूत तैल है । इस तैल

से क छू, कु तथा दाद भी दरू होता है । पृ २६-३० २. लघु म र या द तैल बृहत ् म र या द तैल के योग से क डू खुजली, दाद, कु सब दरू होते ह । इनके योग कु

करण म पढ़ ।

इनम भी अकद ु ध डाला जाता है । ३. वष-तैल वष तैल भी खुजली दाद कु क अ छ औषध है । इसम भी आक का दध ू पड़ता है । कु के करण म दे ख ।

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४. महािस दरू ा द तैल, क दपसार तैल इन दोन के योग से खुजली, दाद, सव कार के कु न होते ह । कु के करण म पढ़ने का क कर । ५. आक का दध ू चार तोले, जीरा काला चार तोले, िस दरू चार तोले, सरस का तैल ४८ तोले और जल अढ़ाई सेर सबको एक साथ बतन म आग पर चढ़ाएं । जीरा काला और िस दरू को कपड़छान करके डाल । म दा न पर पकाय । तैल शेष रह जाये तब छानकर खुजली पर लेप कर । इससे क डू , दाद आ द चम रोग दरू ह गे । ६. िस दरू , गूगल, रस त, मोम और नीलाथोथा - सब पांच-पांच तोले । सबको पीस छान ल और इनको पीसकर १० तोले आक के दध ू म गोला बनाय । दो सेर सरस का तैल तथा आठ सेर जल सब तांबे के पा म डालकर अ न पर चढ़ाय । जब तैल रह जाय तो छान लेव । इस तैल के लगाने से खुजली, क डू दाद दरू होते ह । ७. खुजली दाद क अचूक दवा ह द ५ तोले को जल के साथ पीसकर चटनी सी बना ल । आक के प

का रस चार सेर लेव और सरस का तैल

आधा सेर - इन तीन को कढ़ाई म म दा न से पकाय । जब केवल तैल शेष रह जाये तो उतारकर छान लेव । इसम मोम १० तोले डालकर अ न पर पुनः गम कर । मोम के िमलने पर नीचे उतार ल । इसम पारे ग धक क क जली चार तोले, भुना हुआ सुहागा, सफेद क था, चीनी, कमेल ा, काली िमच, राल, मुदासंग, भुना हुआ नीलाथोथा, भुनी हुई फटकड़ , मैनिशल और ग धक - ये सब दो-दो तोले लेव । इनको कूट-छान कर क जली म िमला द तथा तैल म िमलाकर बोतल म रख । इसे दाद खुजली पर लगाय । खुजली दाद को समूल न करती है । जो य

िच क सा करते करते थक गये ह और िनराश हो गये ह , दाद जाने का नाम न लेता हो, भयंकर से

भयंकर दाद खुजली भी इसके सेवन से न हो जाते ह । ८. दाद चमला क औषध ऊंट क दस मींगन जो गोल-गोल होती ह, लेकर उ ह एक साथ रखकर जलाय । वे सब जलकर सब िनधूम हो जाय तो उ ह एक-एक को िचमटे से पकड़कर एक छटांक आक के दध ू म बुझाय । इनके ठ डा होने पर नीम के ताजा ड डे से इ ह खूब रगड़, साथ-साथ थोड़ा सरस का तैल भी डालते जाय । जब रगड़ते-रगड़ते यह मरहम सी बन जाये तो दाद व च बल पर दोपहर प ात ् लगाय । ित दन लगाते रह । य द बीच म कुछ क होने लगे तो ढ़ाक के प

का वाथ बनाकर उससे झार य क कसी- कसी य

पर आक के दध ू का वष चढ़ जाता है ।

उस समय औषध लगाना छोड़ दे व । रोगी को घृत पलाय तथा गम-गम करके घी ह लगाय अथवा गु कुल झ जर का स जीवनी तैल लगाय । य द दाद च बल न जाये तो दो चार दन के पीछे दाद च बल पर फर औषध लगाय । औषध अ छ है । दाद के च बल कृिमय को समूल न करती है । क अव य होता है क तु च बल (चमला) के समान ज

कु नासू र और र

हठ कु समूल न हो जाता है ।

वकार

अठारह कार के कु होते ह । इनम से सात महाकु और यारह ु कु - सब िमलाकर अठारह (१८) कार के कु रोग होते ह जनम क डू (पामा) खुजली, दाद, च बल भी स मिलत ह । ये वपर त और िम या आहार यवहार के कारण होते ह । कु रोग क िच क सा अित क ठन है । आक को शा कार ने कु के कृिमय का नाश करने वाला

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िलखा है ।

ने रोग और आक अनुपम काजल एक तोला शु (साफ) ई लेकर पनवा ल और उसक अंगुली के समान मोट ब ी बना ल और उसे आक के दध ू म िभगो द । अगले दन २४ घ टे के प ात ् उस ई क ब ी को आक के दध ू म िभगो द । इसी कार सात बार िभगोय और छाया म ह सुखाय । जब सवथा सूख जाये तो इसे तीन दन गाय के एक पाव घी म िभगोय और फर तीन दन के प ात ् िनवात (वायु र हत) थान पर द पक को जलाय और उसके ऊपर िम ट वा धातु का शु पा लेकर काजल पाड़ । जब सारा घी जल जाये और पा रख ल । इस काजल को सलाई से सोते समय ने

के ठ डा होने पर काजल झाड़कर कसी शीशी म

म डाल । रोग अिधक हो तो ातःकाल सूय दय से पूव भी

ित दन डालते रह । इस कार िनर तर कुछ मास इस काजल के सेवन से आंख के सभी रोग दरू ह गे । दरू का न द खना, िनकट का न द खना, रोहे , फोला, आंख म पानी आना, पढ़ने से आंख का थकना, आंख क खुजली, आंख का दख ु ना अ द सभी ने रोग को यह अनुपम काजल दरू करता है । यह च ु रोग के िलए अ तीय औषध है । इससे नयनक (च मे) उतर जाते ह । चेचक के फोले भी दरू होकर अ ध को भी दखाई दे ने लगता है । बार-बार क अनुभ ूत औषध है । आजमाओ, लाभ उठाओ और ऋ षय के गुण गाओ । य द इसके साथ

फला

घृत तथा महा फला द घृत का सेवन कया जाये तो सोने पर सुहागे का काय करे गा । आंख म लगाने के िलए यह काजल और खाने के िलए

फला द घृत दोन ह च ु रोग के िलए रामबाण औषध ह । हमने बहुत रोिगय

क इसके ारा िच क सा क है , ायः सभी को लाभ हुआ है । जहां पर सब औषध वफल हो जाती ह, वह ं इस काजल ने लाभ कया है । कतने अंध काण को इसने च ु

दे खकर आंख वाला (सुल ाखा) बनाया है । यह

अ य त भावशाली है । पहले-पहल एक ह सलाई काजल लगाना चा हये । कुछ समय प ात ् एक समय पर तीन सलाई तक लगाई जा सकती ह । उससे और भी अिधक लाभ होता है । २. जहां आक का दध ू कम िमलता हो वहां पर केवल एक बार ई क ब ी को आक के दध ू म िभगो ल और फर सूखने पर तीन दन गोघृत म िभगोकर काजल बनाव तथा उसका योग कर । तीन-चार बार िभगोकर य द काजल बनाया जाये तो और अिधक लाभ होता है । य द सात बार िभगोकर बनाय तो बहुत ह गुणकार काजल बनता है । जतना प र म करगे उतना ह लाभ होगा । ३. ई के एक पाव भर फोये को तीन-चार बार आक के दध ू म सुखाय, फर गाय के घी म खूब तर करके कढ़ाई म इसे जलाकर राख कर । राख सवथा ठ ड होने पर इसको रगड़कर खूब बार क पीसकर कई बार कपड़छान कर ल तथा सुम के समान इसका योग कर । घी च ुरोग म लाभ करता है । ४. ई के फोहे को तीन-चार बार आक के दध ू म िभगोकर सुखाय तथा सूख जाने पर शु सरस के तैल म खूब

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िभगोकर तवे वा कढ़ाई म जलाकर राख कर ल । फर पीसकर सुम के प म योग कर । इससे भी च ुरोग म लाभ होता है क तु गोघृत के समान नह ं । िनधन तैल म लाभ उठा सकते ह । ५. ई के फोहे क ब ी आक के दध ू म एक बार अथवा तीन-चार बार अथवा सात बार िभगोकर छाया म सुखाकर सरस के तैल म िभगोकर जलाकर काजल बनाय । इसको सुम के प म आंख म डाल । इससे भी च ुरोग म लाभ होगा, क तु गोघृत तो अमृत है , तैल तैल ह है । दोन म समानता कैसे हो सकती है ? ६. इन काजल को ब ढ़या कपूर अथवा भीमसेनी कपूर अथवा कोई और ब ढ़या सुमा िमलाकर अिधक उपयोगी बनाया जा सकता है ।

फोला और आक क जड़ १. - आक क जड़ को जल म िघसकर आंख म लगाने से नाखून वा फोला न हो जाता है । २. - पुरानी ई को तीन बार आक के दध ू म सुखाय । तीन बार इस या को कर । छाया म सुखाना चा हये, सवथा सूखने पर सरस के तैल म िभगोकर सीप म रखकर जला ल । इस राख को खूब बार क पीस कपड़छान करके सुम क भांि त सलाई से डाल तो कुछ समय म फोला कट जायेगा । य द तैल पीली सरस का हो तो अिधक लाभ करे गा । ३. - य द आक के दध ू म िभगोई हुई ई को गोघृत म रखकर जलाकर भ म कर तो अिधक लाभदायक होगी । पृ ३१-३५ ४. -

ेत आक क जड़ को गौ के म खन के साथ पीसकर सुम क भांित आंख म डालने से ने - योित बढ़ती है ।

मोितया ब द ५. - जंगली कबूतर क बीठ आक के दध ू म िभगोकर सुखा ल । फर तांबे के पा म डालकर नींबू के रस म डाल द । सात दन िभगोये रख, फर खरल करके एक भावना महद के रस क दे व, फर सुम के समान बार क पीस ल । इसको आंख म डालने से मोितया ब द, जाला फोला कट जाता है । ६. - पुरानी ट को बार क पीस लेव तथा आक के दध ू म िभगोकर खरल कर । य द यह चूण १ छटांक हो तो इसम ३० ल ग िमलाकर खरल करके सुमा बना लेव और इसको थोड़ा नाक के ारा सूंघने से मोितया ब द कट जायेगा । यह मा यता यूनानी हक म क है । ७. - आक के दध ू क भावना दे कर बनाये हुए बारहसींग क ेत भ म को ेत पुननवा क जड़ के रस म तीन दन खरल कर, सुखाकर सुमा बना ल और इसको आंख म डाल । इससे फोला, जाला, मोितया ब द सब दरू ह गे । ८. - पहले िलखा हुआ काजल जो आक के दध ू म ई िभगोकर गोघृत से बनाया गया हो । ेत पुननवा क जड़ का चूण १ तोला, आक के दध म बनाई गई बारहसीं ग े क भ म १ तोला, भीमसेनी कपूर छः माशे, महद के प का चूण १ तोला ू सबको बार क पीसकर कई बार कपड़छान कर । सुम के समान तैयार हो जाए तो सबसे पीछे भीमसेनी कपूर िमलाय । इस सुम को डालने से ने के सभी रोग फोला, जाला, मोितया ब द आ द दरू ह गे, ने - योित खूब बढ़े गी । ९. - ऊपर िलखी हुई औषध को योग करते समय महा फला दघृत अथवा जाये तो बहुत अिधक लाभ होगा । १०. - सायंकाल दो तोले

फला द घृत का सेवन भी रोगी को कराया

फले को आधा सेर जल म िभगो दे व । ातःकाल जल को िनथार कर इस जल से आंख को

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धोव तो सोने पर सुहागे का काय होगा । ने रोग के रोिगय को लाल िमच, खटाई, तैल, क चा मीठा, गुड़, श कर आ द नह ं खाना चा हये ।

लीहा (ित ली) पर आक के योग सामा य प से व थ य इं च तक होती है ।

क लीहा वा ित ली तीन इं च से चार इं च तक होती है । इसक मोटाई एक इं च से ढ़ाई

थान - यह ित ली मानव शर र का एक अंग है जो मनु य के पेट के अ दर बा पसिलय के ब कुल नीचे रहती है । र क यूनता वा िच क सा से यह घटती बढ़ती रहती है । काय - भोजन का रस प ाशय से गुजर कर यकृत ् म जाता है और यकृत ् से लीहा (ित ली) म जाकर र वा खून का प धारण करता है । अथात ् र को उ प न करने वाली बा ओर दय के नीचे रहने वाली र को बनाने वाली र ना ड़य का मूल ऋ षय ने केवल ित ली को माना है ।

लीहा के बढ़ने के कारण लीहा वा ित ली ल बे समय तक वर के आने से बढ़ जाती है । इससे भोजन नह ं पचता । ह का सा वर रहता है । पाचनश ीण होकर रोगी भी िनबल हो जाता है । शर र का रं ग पीला पड़ जाता है । जब ित ली बहुत अिधक बढ़ जाती है तो नाक और दांत से र आने लगता है । र के वमन (कै) होने लगते ह । पांव, आंख, मुख और सारे शर र पर सूजन हो जाती है , पीिलया अथात ् पा डु रोग हो जाता है । कसी- कसी को खूनी द त होने लगते ह । अ त म जलोदर हो जाता है और जब मुख म ज म हो जाये तो रोगी क अव था असा य होती है । िच क सा - ित ली के रोगी को क ज नह ं होना चा हये । ार भ म रे चक औषध दे नी चा हये । रोग य द पुराना हो तो भूल कर भी वरे चन न कर, द त न दे व । ित ली के साथ सूजन, वर, द त, खांस ी आ द जो भी रोग ह , उनक िच क सा साथ-साथ करनी चा हये । औषध - आक के पके हुए पीले रं ग के प े लेव और सधा लवण को जल म बार क पीस लेव और आक के प पर इसका लेप करके धूप म सुखा दे व और सूखने पर एक िम ट क हांड म भर दे व । इस हांड के ऊपर कपरोट करके सुखाकर गजपुट को आग म फूंक दे व और ठ डा होने पर औषध को िनकाल लेव और बार क पीसकर शीशी म सुर त रख । इसक मा ा ४ र ी से दो मासे तक गम जल वा गोमू के साथ दोन समय दे व । इससे सव कार से बढ़ हुई ित ली वशेष प से कफ से बढ़ ित ली िन य से ठ क हो जाती है ।



ार

सांभर लवण, यव ार, समु लवण, सुहागा सफेद भुना हुआ - सबको समभाग लेकर बार क पीस लेव और तीन दन तक आक के दध ू म खरल कर और इसके प ात ् तीन दन तक थोहर के दध ू म खरल कर और एक हांड म आक के प को बछा दे व और उनके ऊपर ऊपरवाला चूण डाल दे व । इस कार हांड को भर कर ढ़ता से कपरोट कर दे व और गजपुट क आग म फूंक दे व, ठं डा होने पर बार क पीसकर रख और नीचे िलखा चूण इसम िमला लेव । स ठ, काली िमच, पीपल बड़ा, वाय बडं ग, राई, हरड़ का िछलका, बहे ड़े का िछलका, चोया वा पीपलामूल, ह ंग घी म भुनी हुई - समभाग लेकर चूण बना लेव । इसम से चूण ३ माशे और ऊपर का व ार २ माशे िमलाकर गम जल के साथ दो बार लेव । यह एक मा ा है । इसके योग से बढ़ हुई ित ली िन य से ठ क हो जाती है । २. - सधा लवण को थोहर के दध ू म पीसकर इसको आक के प पर लेप करके सुखा ल और िम ट क हांड म ब द करके चू हे पर चढ़ाय । जब जलकर प क राख हो जाये, इन को पीस कर राख का चूण कर लेव । इस म से १ माशा गाय क छाछ के साथ ित दन लेने से ित ली का रोग न हो जाता है ।

अ य उदर रोग १. - दे वदा का चूण, ढ़ाक के बीज, आक क जड़ क छाल, गज पीपल, सुहाजना क छाल, अ गंध नागौर - इन सबको

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खूब बार क पीसकर पेट पर लेप कर, इससे उदर रोग न होते ह ।

लाल चूण २. - आक क जड़ का िछलका १ तोला, गे १ तोला, नौशादर २ तोला, काली िमच १ तोला, कपूर छः माशे - सबको कपड़छान करके सुर त रख । सव कार के उदर रोग पर मा ा १ माशे से तीन माशे तक यथोिचत अनुपात से लेने से बहुत ह लाभ करता है । उदरपीड़ा, गु म (गोला), क ज द त, ित ली, यकृत ् ( जगर) रोग न होते ह । खांसी, जुकाम, वरा द रोग को दरू करता है । ी वै बलव तिसंह आय पहलवान का िस योग है जो अमृतधारा के समान बहुत से रोग क अचूक औषध है । अ य रोग के ऊपर यथा थान अनुपान िलख दया जायेगा । उदर रोग पर गम जल, गाय क छाछ और गोमू के साथ लेव ।

उदर रोग पर ३. ब द ुघृत - - आक का दध ू ८ तोले, थोहर का दध ू ४ तोले, वृत (िनसोत) ४ तोले, बड़ हरड़ का िछलका ४ तोले, कमेल ा ४ तोले, जमालगोटे क जड़ ४ तोले, अमलतास का गूदा ४ तोले, शं पु पी ४ तोले, नील क जड़ ४ तोले - इन सबको बार क पीस कर जल के साथ घोटकर गोला बनाय और कढाई म एक सेर जल चढाव, म दा न जलाय, सब व तु जल जाय केवल घृत रह जाये तब उतारकरछान लेव, यह ब दघ ृ है । इसक मा ा १ बू द ( ब द)ु से १० बूद ं ु त तक है , गम जल के साथ सेवन करने से पेट के सभी रोग, क ज, गोला, पीड़ा, ित ली, जगर आ द दरू होते ह । इस घृत क जतनी बूद ं रोगी को दगे उतने ह द त ह गे तथा पेट के सभी रोग न होते ह । यह आयुवद शा का िस योग है , सभी वै इसका योग करते ह, अ छ औषध है । प य-सूजन के रोग म खटाई और लवण न खाय । सूजन म क ज भी नह ं होना चा हये । पृ ३६-४० ४. शोथ (सू ज न) पर - पीपल बड़ा एक छटाँक को बार क कपड़छान कर ल । तीन-चार दन आक के दध ू म खरल कर तथा तीन-चार दन तक थोहर के दध म खरल कर ल अथवा दान क े समभाग द ध ले ले व और उनसे इक ठा सात दन ू ू खरल करके दो र ी क गोिलयां बना लेव । दो गोली ित दन गम जल से योग करने से कफ वाली सूजन दरू होगी । यह औषध भी पाचक और रे चक है , श और काल दे खकर लेव । ५. - आक के प ,े पुननवा, नीम क छाल - इन सबको समभाग लेकर कूट छान कर वाथ बनाय और रोगी के शर र पर छ ंटे लगाने से सूजन (शोथ) दरू होगा । ६. - अक क जड़ क छाल, अरं ड क जड़ क छाल, करं जवे क जड़ क छाल, पुननवा, दोन कार का ेत और लाल समभाग लेव । इनका वाथ बना ल । इससे रोगी के शर र को धोया कर । यह सूजन के िलए उ म औषध है । ७. - उपरो औषध के साथ, पुननवा द चूण, पुननवा अ क वाथ, पुननवा द तैल, पुननवा द अ र - इनम से कसी भी औषध का योग कर तो बहुत ह लाभ होगा । ८. - सूंठ का चूण ३ माशे एक तोला गुड़ के साथ िमलाकर लेव तथा ऊपर से पांच तोला पुननवा का रस (ताजा) कुछ दन पीने से सूजन रोग इस कार न हो जाते ह जैसे वायु के वेग से बादल न होते ह । शोथ (सूजन) रोग के िलये पुननवा अ य त प य वा हतकर है ।

ास रोग पर आक १. - आक का प ा १, काली िमच ५२ - इन दोन को खरल करके माष के दाने के समान गोिलयां बनाय - इनम से छह गोिलयां उ ण जल के साथ कुछ दन योग करने से ास रोग दरू होता है । छोटे ब चे को एक गोली दे नी चा हये । २. - आक क जड़ का िछलका तीन तोले, अजवायन दे श ी दो तोले, पुराना गुड़ ५ तोले - सब रगड़कर जंगली बेर के समान गोली बनाय । ताजे जल के साथ एक-एक गोली लेव, दन म कई बार लेव, ास रोग क उ म औषध है । ३. - भुने हुए जौ (यव ) को आक के रस म १४ दन तक िनर तर रख । फर धूप म सुखाकर बार क पीस ल । इनम से १ माशे से ३ माशे तक छः माशे शहद म िमलाकर लेव । यह अ य त लाभ द औषध है , विच भाव डालती है ।

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४. - नीलाथोथा भुना हुआ एक माशा, गुड़ एक माशा - दोन को कूटकर आक के दध ू म खरल करके इसक सात गोिलयां बनाय । एक गोली ित दन जल के साथ िनगलवा द । इसके योग से तीन-चार दन तो खूब वमन (कै) तथा द त लगगे । इसके प ात ् आराम हो जाएगा । मूंग चावल क खचड़ और घी खलाय । इस उ म औषध से पुराने से पुराना दमा ास रोग समूल न हो जायेगा । ५. - लोटा स जी १० तोले को िनर तर आठ दन तक आक के दध ू म िभगोव, त प ात ् एक िम ट के सकोरे म स जी को डाल कर आक के दध से भर ले व । फर इसक कपरोट कर सुखाकर दस उपल क आग म फूंक दे व । सवथा ू ठ डा होने पर िनकालकर बार क पीस लेव और ित दन १ माशा गम जल से योग करने से ास रोग दरू होता है । ६. - आक के पांच अंग को जलाकर राख बना ल और उसे तोल से आठ गुने जल म िभगो दे व । दन म कई बार हलाते रह । तीन दन पीछे ऊपर का जल िनथार छानकर पकाय, ार बन जायेगा । मा ा १ र ी पान वा अदरक के रस वा मधु के साथ सेवन कराय । ास रोग दरू होगा । ७. - आक क कोमल-कोमल क पल, पीपल बड़ा, सधा लवण सब सम भाग लेकर खूब बार क पीसकर जंगली बेर के समान गोली बनाय । एक गोली गम पानी के साथ ित दन लेने से दमा दरू होगा । ८. - आक का प ा एक, काली िमच पांच - इन दोन को खूब बार क पीसकर जंगली बेर के समान गोली बनाय । इनम से ७ गोिलयां योग करने से ह लाभ हो जायेगा । ये सभी योग कफ वाले दमे को लाभ करते ह ।

ास रोकने क अ भुत औषध धतूरे के प ,े भांग के प ,े क मीशोरा, सबको कूटकर मोटा मोटा चूण बना ल और इसे एक बार आक के दध ू वा आक के प के रस म िभगोकर छाया म सुखा दे व । जब दमा का रोगी तड़फ रहा हो और उसे कसी कार भी आराम न होता हो, उस समय इस औषध क एक दो चुटक धधकते हुये कोयल पर डाल कर रोगी को इसका धुंआं मुख के माग से खंचवाय, यह औषध जाद ू के समान भाव डालेगी । दमा का दौरा सवथा शा त होगा । रोगी यह अनुभ व करे गा क रोग सवथा चला गया है । इस औषध को हु के क िचलम म एक दो चुटक त बाकू के थान पर रखकर पलाय, कुछ ह घूंट लेने से लाभ होगा । यह ास वा दमा क थायी िच क सा नह ं है । वदे श से करोड़ पये क िसगरे ट इसी कार क औषध क आकर भारत म बकती है , जससे दमे के रोगी पीकर लाभ उठाते ह । समय पड़ने पर रोगी को इसका लाभ उठाना चा हये य क यह उसी समय तुर त लाभ करती है ।

आक से य मा रोग क िच क सा राजय मा वा य वा तपे दक िस तथा भयंकर रोग है । इसक िच क सा बहुत क ठन तथा महं गी अथात ् ययसा य है । धनाभाव के कारण कतने रोगी इस रोग म त होकर मृ यु के मुख म चले जाते ह । वीय आ द धातुओं के य वा नाश से यह रोग होता है । इसक िच क सा म चयपालन वा वीयर ा सब औषिधय से बढ़कर तथा सव म प य वा हतकर है । िनधन के िलए एक अ य त हतकार और साथ ह बहुत ह स ता योग अक का नीचे िलखता हूँ । मेरे एक प रिचत डॉ. भरतिसंह जी थे । वे तपे दक के रोिगय को यह योग पुरानी आयु म मु त दया करते थे । उस से रोिगय को बहुत लाभ होता था क तु वे यह योग कसी को नह ं बताया करते थे । कभी-कभी वे लेखक से िमलने आया करते थे । वे मुझ से नेह करते थे । एक दन म वै कमवीर जी के पास नरे ल ा म बैठा हुआ था, वे मुझे िमलने आये । उ ह दरू से वै कमवीर जी ने आते दे ख िलया । वै कमवीर जी ने कहा डा टर जी क य मा क औषध है जो बहुत अ छ है क तु ये कसी को बताते नह ं । स भव है आप को बता द । उनके मेरे पास आने पर मने कुशल ेम पूछा और फर उनसे कहा - अब आप बहुत वृ हो गये हो, न जाने कब भु क आ ा आ जाये । या आप तपे दक क औषध लेकर ह मरोगे, कसी को बताओगे नह ं ? उ ह ने कहा म आपको बता सकता हूँ य क आप तो सेवा ह करगे । उ ह ने स नता पूवक वह योग मुझे बता दया । तपे दक का योग - आक का दध ू १ तोला, ह द ब ढ़या १५ तोले - दोन को एक साथ खूब खरल कर । खरल करते करते बार क चूण बन जायेगा । मा ा - दो र ी से चार र ी तक मधु के साथ दन म तीन-चार बार रोगी को दे व । तपे दक के साथी वर खांसी, फेफड़ से कफ म र (खून) आ द आना सब एक दो मास के सेवन से न हो जाते ह और रोगी भला

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चंगा हो जायेगा । इस औषध से वे िनराश हताश रोगी भी अ छे व थ हो जाते ह ज ह डा टर ह पताल से असा य कहकर िनकाल दे ते ह । बहुत ह अ छ औषध है य मा पर वै बलव तिसं ह जी का योग ी वै बलव तिसंह जी आय हरयाणे के माने हुए िच क सक ह । उनका बहुत बार का अनुभ ूत योग है । योग - आक का ताजा दध ू १ तोला, ह द छोट गांठ वाली ५ तोले, सपग धा क जड़ क छाल १० तोले, महा द ती के फल का चूण २० तोले, वणबस तमालती रस १ तोला - सब को इक ठा बार क पीसकर चूण बना ल । मा ा - चार र ी से एक माशे तक दन म चार बार मधु म िमलाकर रोगी को चटाय । एक-दो मास के िनर तर योग से रोग समूल न हो जाता है । वै जी का यह योग सकड़ रोिगय पर आजमाया हुआ है । िनराश हताश रोगी जो अनेक डॉ टर वै से िच क सा कराते थक जाते ह, उन को यह औषध वा य दान करती है । आयुवद क यह जादभ ू र औषध है । आजमाय और लाभ उठाय । वषक टक (जहर ला फोड़ा) वषक टक एक वषैल ा फोड़ा है जो हाथ के अंगूठे म ह िनकलता है । रोगी को बहुत बेचैन कर दे ता है , सोना और खाना सब हराम हो जाता है । इसक एक बहुत अनुभ ूत औषध है जो पर पराओं से वै ह र जी नारनौल (हरयाणा) के कुटु ब म चली आती है । पृ ४१-४५ योग - अंगूठे पर आक के दध ू का लेप करके आक का प ा बांध दे व । दो-तीन बार ऐसा करने से वह फूट जायेगा । फर गुड़ के शबत से धोय तथा वार को गोमू म पीसकर लेप कर द, उसके मुख को खाली छोड़ दे व । मुवाद िनकल कर एक छोट ह ड िनकलेगी और फोड़ा ठ क हो जायेगा । लेप पर लेप करते रह । क ठमाला गले वा ठोड पर बड़ वा छोट स त न घुल ने वाली गोल गांठ हो जाती ह, इनको कंठमाला, गलगंड वा बेल कहते ह । इसे गल थी भी कहते ह । यह क सा य रोग है । रोगी को बड़ा क दे ता है । १. - पीपल बड़ा बार क चूण कर ल और इसको आक के दध ू वा थोहर के दध ू म लेप करने से कंठमाला दरू होती है । आक के दध का ले प दोपहर प ात ् करना चा हये । दोपहर ले प करने से आक का दध ू ू चढ़ता है । सूय के चढ़ने के साथ आक चढ़ता है इसीिलये आक के सभी नाम सूय के नाम-साथक ह । २. - आक का दध ू , गढ़ल के फूल, ितल का तैल, अपामाग का ार और जल - सम भाग लेकर इक ठे करके कूट-पीस रगड़ कर कंठमाला पर लेप कर । ित दन लेप करने से एक स ाह म यह रोग दरू होता है । ३. - गुंजा द तैल, ेत घूंघची (गुंजा) क जड़, कनेर क जड़ का िछलका, बधारा के बीज, आक का दध ू , सरस - सब पांच-पांच तोले लेव । सब को मू के साथ पीसकर गोले बना लेव और पाँच सेर गोमू , सवा सेर सरस का तैल सबको कलीदार पा म चढ़ाकर पकाव और तैल रह जाये तो दो-तीन बार, यहां तक क दस बार उपरो व तुओं को पुनः पुनः नई नई लेकर डाल । म दा न से पकाय । केवल तैल रह जाने पर इसे िनथार छान लेव । इसको क ठमाला पर बार-बार लगाने से क ठमाला न हो जाती है । यह गलग ड अपची और येक कार क कंठमाला के िलए रामबाण औषध है । इसे िनयिमत प से लगाने से पुराना रोग भी न हो जाता है । प य - अपामाग क जड़ के मणके बनाकर उसक माला गले म पहनने से क ठमाला रोग म लाभ होता है । इस माला को एक स ताह के पीछे बदलते रह । कचनार गूगल जो आयुवद के िच क सा ंथ म सव िलखा है , इसके िनर तर योग करने से कंठमाला समूल न हो जाता है । यह ऋ षय क इस रोग क अचूक औषध है । सभी पुराने वै क हजार बार क अनुभ ूत औषध है । इसका सेवन कर तथा लाभ उठाव । इस रोग म खाने क सव म औषध है ।

रसोली क गांठ

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थी वा रसोली क गांठ ायः चब और कफ क अिधकता से होती है । पहले इसका सूजन दरू करना चा हये । लेप - आक का दध ू , जमालघोटे क जड़, िच क क छाल और गुड़ िमलाकर सबको रगड़कर लेप तैयार कर और बढ़ से बढ़ हुई गांठ पर लेप कर । इस लेप के लगाने से गांठ पककर फूट जाती है और ग दा (मुवाद) िनकलकर रसोली वा अवुद गांठ न हो जाती है । यह इसक सव म िच क सा है । प य - कचनार गूगल को रोगी को खला दे ने से सोने पर सुहागे का काय होता है । कसी अ छे जराह वा डा टर से श य या कराने अथवा अ न से दाग दे ने से भी यह रोग दरू हो जाता है । क तु उपरो लेप इस रोग क सव म िच क सा है । इसका योग करके लाभ उठाय ।

गु म वा गोले का रोग गु म वा गोला एक ह रोग होता है । दय थान, प वाशय और नािभ के म य म वायु के कु पत होने से वायु का गोला सा उ प न हो जाता है जो बहुत क द होता है । कारण - बार-बार अिधक खाने, न पचने वाला भोजन करने, मांस, मछली अभ य पदाथ के खाने से, अिधक भार उठाने से, अपने से अिधक बलवान ् से कु ती करने से, तीन दोष के बगड़ने से, दय से मसान तक गांठ के समान गोला उ प न हो जाता है । इसको गु म कहते ह । िच क सा प य - वै के िलये आव यक है क गु म के रोगी को वायु कु पत करने वाले आहार- यवहार से बचाये । गु मरोगी को ायः क ज रहता है । अफारा होता है , अपानवायु नह ं िनकलता । इन क को दरू करने के िलए गाय के गम दध ू म एक तोला अदरक का रस डालकर पलाने से लाभ होता है । गम जल क बोतल से पेट पर सेक करने से भी लाभ होता है । १. - लीहा (ित ली) के करण म िलखे व

ार के योग से गु म रोग म बहुत लाभ होता है ।

२. - सूँठ, काली िमच, पीपल बड़ा, ल ग, ह ंग घी म भुनी हुई सब सम तोल लेव और इन सबके समान भाग आक के फूल (छाया म सुखाये हुए) लेव । इन फूल से आधा काला लवण लेव । सबको कपड़छान कर लेव । मा ा - दो माशे से चार माशे तक गम जल के साथ दन म दो-तीन बार लेने से वायु और कफ का गु म (गोला) रोग दरू होता है । वर िच क सा आक का फूल जो अभी खला न हो, केवल एक फूल क डोड वा कली लेकर गुड़ म लपेटकर तेइया क बार के दन खलाय, वर नह ं चढ़े गा ।

वात वर वात वर म शर र का कांपना, मुख गले का सूखा रहना, नींद कम आना, पेट दद, क ज, अफारा, शर र, पैर और िसर म पीड़ा (भड़क), ज भाई आना, छ ंक न आना आ द उप व होते ह । गोद ती भ म को आक के प के रस म खरल करके ट कया बनाकर धूप म सुखाय और िम ट के पा म ब द करके गजपुट क आग द । इस कार तीन बार कर, बहुत ब ढ़या भ म बनेगी। मा ा - एक र ी से दो र ी तक मुन का के बीज िनकालकर उसम भ म लपेटकर रोगी को खलाय । दन म तीन-चार बार दे व और ऊपर से थोड़ा गाय का दध ू , िमसर िमला कर पलाय । इसक तीन-चार मा ा से वात वर दरू होगा ।

कफ वर कफ वर म रोगी को खांसी, ास, हचक , भोजन म अ िच तथा इसम नींद बहुत आती है तथा त जल आता रहता है तथा मुख का वाद अ य त बुरा रहता है ।

ा रहती है । मुख म

िच क सा

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१. - बारहिसंगा के सींग के छोटे -छोटे टु कड़े कर ल । उ ह िम ट के पा म डालकर ऊपर से आक का दध ू इतना डाल क वे ग ं के भाग सब डू ब जाय । स पुट करके गजपुट क आग दे व । यह या तीन बार कर । अ य त ेत रं ग क भ म बनेगी । मा ा - आधा र ी से एक र ी तक शहद म िमलाकर दन म तीन-चार बार दे व । पसिलय क पीड़ा, खांसी, िनमोिनया सब दरू ह गे । २. - शंख बीस तोले साफ कर ल तथा टु कड़े बनाकर िम ट के बतन म डालकर आक का दध ू इसम भर दे व जसम शंख के टु कड़े डू ब जाय । फर स पुट करके गजपुट क आग दे व और इसी कार सात बार आक के दध ू क भावना दे कर आग दे व । बहुत अ छ भ म बनेगी । मा ा - एक र ी से दो र ी तक मधु के साथ अथवा मुन का म, दन म दो बार दे ने से खांसी, आ द सब रोग दरू ह गे ।

ास, कफ वर, हचक

भ म अ क काली - शु अ क टु कड़े -टु कड़े करके आक के प के जल म तीन दन तक खरल कर और गजपुट क आग दे व तथा इस कार बारह बार खरल कर और गजपुट क आग दे व तथा इस कार बारह बार खरल करके आग दे व । बहुत ह ब ढ़या भ म तैयार होगी । रोगी को एक र ी से दो र ी तक मधु के साथ सेवन कराने से कफ वर, खांसी सब दरू भागगे । प य - कफ वर के रोगी को उ ण जल जो खूब पकाया हो, वह दे व । कफ वर के रोगी को आर भ म उपवास कराय । वर उतरने पर भूख लगे तो मूंग क दाल का पानी, काली िमच, स ठ आ द डालकर पलाय । घी, िचकनाई, कसी कार क न दे व । गाय का दध ू , काली िमच, स ठ, पीपल उसम उबाल कर पलाय । पृ ४६-५०

गोद ती भ म गोद ती हड़ताल १० तोले को घी गंवार के रस म भ म बना ल । फर इस भ म को आक के प के रस म खरल करके ट कया बनाकर धूप म सुखा लेव । फर गजपुट क आग म फूंक और इस कार तीन बार करने से इसक अ छ भ म बनेगी । मा ा - १ र ी से २ र ी तक मुन का म लपेट कर रोगी को दो तीन बार दे व । ऊपर से गाय का दध ू दे व । वात वर दरू हो जायेगा । रोगी को गम जल ह पलाव । शोथ वा सू ज न आक के प ,े वषखपरा, नीम का िछलका - इनका वाथ करके सूजन वाले रोगी को छ ंटे लगाने से शोथ (सूजन) दरू होता है । शोथ पर शोथ उदरा द लोह आयुवद का िस योग है । उसम आक क जड़ क छाल पड़ती है । कसी फामसी वा वै से बनी हुई ले लेव । बड़ा योग है , वयं बनाना क ठन है । इसक मा ा १ माशे से ३ माशे तक गम जल, गम गोद ु ध, अक स फ अथवा दह के म ठे (त ) के साथ लेव । इसके योग से शोथ, गोले का रोग, पीिलया, पा डु रोग, अशा द सभी उदर रोग दरू होते ह । मु ट ापा १. - आक क जड़ का िछलका, अरं ड क जड़ का िछलका, फला - तीन सम भाग करके कपड़छान कर ल और रा को आधा पाव गम जल म ६ माशे िभगो दे व । ातःकाल मल छानकर इसम चार तोले शहद िमलाकर पलाय । यह औषध चालीस दन दे ने से मोटापा दरू होगा । औषध क मा ा थोड़ -थोड़ बढ़ाकर १ तोले तक लेव । २. - स ठ, काली िमच, पीपल बड़ा, हरड़, बहे ड़ा, आंवला, आक क जड़ का िछलका - सब एक-एक तोला, काला लवण दो तोले कपड़छान कर लेव । इसम से चार माशे तक उ ण जल के साथ लेने से मोटापा दरू होगा ।

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ब क िच क सा - आक के प ब दरू होगी ।

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पर अरं ड का तैल चुपड़कर आग पर सेक ल और ब पर बांध । कुछ दन बांधने से

उपदं श वा आतिशक आक क जड़ का व कल (छाल) एक-दो र ी शहद वा गाय के म खन वा मलाई के साथ एक मास खलाने से पूण लाभ होगा । अनुभूत है ।

कु कु रोग के अठारह कार होते ह । इसम सात महाकु और यारह

ु कु कहाते ह ।

कारण - वात, प और कफ द ू षत होकर शर र के रस, र , मांस, चब आ द धातुओं को बगाड़ दे ते ह और कु वा कोढ़ क उ प का कारण बनते ह ।

िच क सा व (सफे द कोढ़) फु लबर - जो फुलबर नई हो, जसके बाल सफेद न हुए ह , सूई चुभोने पर र वह सा य है , उसक िच क सा हो सकती है ।

(खून) िनकलता हो

ताले र रस - आक का दध ू , घी गंवार का रस, ह द , करं जवे क िगर , घुंघची, शंख भ म, िभलावा शु , किलहार , गंधक शु , पारा शु , वाय बडं ग, काली िमच, मधु और शहद - सब एक-एक तोले को आठ गुणा गोमू म पकाय । खूब गाढ़ा होने पर सुर त रख । मा ा - दो र ी से १ माशे तक ित दन योग करने से फुलबर आ द सभी कु न हो जाते ह । भू त भै र व रस - हड़ताल बर कया शु १५ तोले, गंधक शु ६ तोले, ब ढ़या नई इमली १५ तोले, क था १० तोले - इन सबको बार क पीस ल । आक के दध ू और थोहर के दध ू , दोन म सात-सात दन तक िनर तर खरल कर । फर रो हड़ा (रो हतक) क जड़ के वाथ म खरल कया हुआ पारा १ तोला इसम िमलाय तथा २ र ी से १ माशे तक ताजे जल के साथ योग कर । यह भी ेत कु आ द सभी कु ठ रोग क उ म औषध है । अक वर रस - पारा शु १६ तोले, गंधक शु ४८ तोले, तांब े के बार क प ४८ तोले - सब को एक खरल म डालकर इसका गोला बनाकर िम ट क हांड म रखकर एक सकोरे से ढ़क दे व और उसके ऊपर खूब राख भर दे व और हांड का मुख ढ़ता से ब द कर दे व । इसके नीचे ६ घ टे तक आग जलाय । ठ डा होने पर औषध को िनकालकर आक के दध ू म एक दन खरल कर और पहले क भांित ६ घ टे तक आग दे व । यह या यून से यून १२ बार कर ।

लीपद जन दे श म वषा अिधक होती है और वषा का जल खड़ा रहता है , जहां सदै व सीलन वा ठ डक रहती है , वहां यह रोग हो जाता है । इस रोग को यूनानी म फ ल पांव अथात ् हाथी पांव भी कहते ह । इस रोग म सूजन पेडू वा जांघ म उ प न होकर पांव म चली जाती है और साथ ह वर भी उ प न करती है । यह रोग शर र के अ य अंग पर हो जाता है , कुछ वै का मत है । ार भ म इस रोग म वेदन, उपवास, वरे चन (जुलाब), दाग दे ना, खून िनकलवाना आ द हतकर होते ह । १. ले प - सफेद आक क जड़ का िछलका कांजी वा िसरके म पीसकर लेप करने से यह हाथी पांव रोग दरू हो जाता है । २. - आक क जड़ का िछलका, िच क छाल, स ठ, दे वदा का बुरादा - इन सब को सम भाग लेकर गोमू म पीसकर िनर तर लेप करने से यह रोग दरू होता है । ३. बडं ग ा द तै ल - बाय वडं ग, आक क जड़, काली िमच, स ठ, िच क छाल, दे वदा चूण, एलवा, सधा लवण आ द पांच लवण अलग-अलग तथा नौशादर - सबको दस-दस तोले लेव और कपड़छान कर ल । ितल का तैल चार सेर, जल सोलह सेर को कलीदार पा म म दा न से पकाय । तैल शेष रहने पर िनथार कर छान ल । इसम से १ तोला गम जल

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के साथ ित दन लेने से और इसी तैल क मािलश करने से यह हाथीपांव ( लीपद) रोग दरू होता है । प य - ब ढ़या हरड़ को अरं ड के तैल म भून ल और छः माशे से एक तोले तक १० तोला गोमू के साथ लेव । यह भी बहुत अ छ औषध है । इस रोग म लीपद, गजकेसर , पप या द चूण और िन यान द रस का सेवन भी बहुत लाभ द है । नाड़ ण (नासू र ) जब कोई ण (फोड़ा) बगड़ जाता है और बढ़ा हुआ ग दा मुवाद र म िमलकर शर र क नस ना ड़य म व हो जाता है और पीछे कसी भाग से शनैः शनैः बहने लगता है तो इस कार के ण (फोड़े ) को नासूर वा नाड़ ण कहते ह । १. - थोहर का दध ू , आक का दध ू , दा ह द का कपड़छान कया हुआ चूण - इन तीन क ब ी बनाकर नासूर म रखने से यह ज म ठ क हो जाता है । २. - आक के प ,े चमेली के प ,े अमलतास, करं जवे क िगर , जमालघोटे क िगर , सधा नमक, काला नमक, जोखार, िच क - सबको समभाग लेव और कपड़छान कर लेव और थोहर के दध ू म ब ी बनाकर नासूर म रख । इसके योग से नासूर दरू होता है भग दर १. - थोहर का दध ू , आक का दध ू , दा ह द का बार क चूण - इन तीन को इक ठा पीसकर भग दर के ज म म भर द । इससे यह रोग शा त हो जायेगा । २. िनशा द तै ल - ह द , आक का दध ू , सधा नमक, गूलर का िछलका, कनेर का िछलका, गूगल, इ जौ - सबको समान भाग लेकर जल के साथ पीसकर गोला बनाय और इससे दग ु ुना ितल का तैल और तैल से चौगुना जल लेव । सबको म दा न पर पकाव । तैल शेष रह जाने पर िनथार छानकर भग दर के ज म पर िनर तर लगाने से बहुत शी लाभ होता है । िन य दा द तैल से भी यह रोग दरू होता है और इस तैल म भी आक का दध ू डाला जाता है । नायु रोग (नहारवा) यह एक कार का वषैल ा फोड़ा होता है जो उन म भूिम (बागड़ आ द) दे श म होता है जहाँ जोहड़ तालाब का जल पीया जाता है । हाथ-पांव आ द सूजकर सूत के समान एक धागा फोड़े के पक कर फूटने से िनकलता है । यह धागा शनैः शनैः बाहर िनकलता हुआ रोगी को बड़ा क दे ता है । पृ ५१-५५ ितल का तैल गम करके नाहरवे पर लगाव और आक के प से यह रोग चला जाता है ।

को सेक कर उन पर तैल लगाकर बांध दे व । इससे िन य

प य - अ ग धा दघृत के सेवन से इसम बड़ा ह लाभ होता है ।

कण रोग पर आक १. - पीले रं ग के पके हुए आक के प पर घी चुपड़ कर आग पर सेक, फर इनका रस िनचोड़कर और इस रस को थोड़ा गम करके कान म डालने से कण पीड़ा (दद) दरू होती है । २. - आक के नम-नम प को कांजी के साथ पीसकर इसम सधा लवण और सरस का तेल िमलाकर ड डा थोहर के खोल म भर द और ऊपर से स पुट करके आग पर सेक ल और फर िनचोड़ कर रस िनकाल । इस रस को कान म

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डालने से पीड़ा तुर त दरू होगी । ३. - ितल का तैल एक पाव, धतूरे का रस १ सेर और आक के प े १४ - तीन को कढ़ाई म चढ़ाकर अ न जलाय । तेल शेष रहने पर उतार लेव । इस तेल को कान म डालने से कान के सभी रोग बहना, पीड़ा, बहरापन आ द दरू होते ह । नाक के रोग आक का दध ू १ तोला, िच क छाल, चोया, अजवायन, क टकार , करं जवे के बीज, सधा नमक - सब एक-एक तोला । सब को बार क पीसकर गोला बनाय तथा २४ तोले ितल का तैल और ९९ तोले गोमू लेव । सबको आग पर पकाय । तैल शेष रहने पर िनथार छान ल तथा इसक नसवार लेने से नाक क बवासीर दरू होती है । न य वा नसवार आक के दध ू म चावल को खूब िभगोव । छाया म सुखा कर कपड़छान कर लेव । इसक नसवार लेने से छ ंक आकर नाक खुल जाता है तथा जुकाम ठ क हो जाता है । का हुआ नजला बह कर िनकल जाता है । यह बहुत तेज नसवार है अतः थोड़ लेनी चा हये । अिधक छ ंक आय तो गम करके घी सूँघ लेव । ए ड़य क पीड़ा यह पीड़ा जो पैर क ऐड़ म हो जाती है , वह कसी औषध से दरू नह ं होती, कुछ दन आक के फूल को जल म खूब पकाय तथा इसक भाप से खूब सेक तथा पीछे फूल को भी गम-गम हालत म ऐ ड़य पर बांधकर सो जाय । कुछ दन यह िच क सा करने से यह रोग दरू होता है । अनेक बार क अनुभ ूत औषध है । शर र के कसी भी अंग पर पीड़ा होवे तो वह उपरो

औषध से ठ क हो जायेगी ।

कु १. वष तै ल - आक का दध ू , कनेर क छाल, करं जवे क िगर , ह द , दा ह द , तगर, कुठ, बच, लाल च दन, मालती के प ,े सतोना, मंजीठ, िस दरू सब दो-दो तोले, मीठा तेिलया चार तोले - सब को जल म पीसकर चटनी सी बना ल । तैल सरस ६४ तोले और गोमू २५६ तोले डालकर तांब े के पा म पकाय । म द आग जलाय । केवल तैल रह जाये तो उतार छानकप रख ल । इस तैल के लगाने से सब कार के कु दरू होते ह, दाद खुजली क वशेष औषध है । २. करवीरा द तै ल - ेत करवीर (कनेर) क जड़ का िछलका १० तोले, आक का दध ू १० तोले, मीठा तेिलया १० तोले इनको घोट कर गोला सा बना ल । १२० तोले ितल का तैल, ४८० तोले गोमू लेकर तांब े के पा म पकाय, म द आंच हो । तेल के शेष रह जाने पर उतार छान ल । इस तेल मे लगाने से येक कार का कु ठ दरू हो जाता है । ३. - गोमू म शु क हुई बावची तथा शु ग धक सभी िमलाकर मधु के साथ ३ माशे ातः सायं सेवन करने से कु ठ (फूलबर ) दरू होता है ।

ेत

उदर रोग शोथ उदरा द लोह - आक क जड़ का िछलका आधा सेर, वष खपरा, िगलोय, िच क, गुल िसकर , मनक द, सुहांजना क जड़ का िछलका, हुल हुल बूट क जड़ ये सभी आध-आध सेर - इन सबको कूट-छान फौलाद (लोह) भ म आधा सेर, आक का दध ू १० तोले, थोहर का दध ू २० तोले, शु ग धक ४ तोले, शु गूगल १० तोले, शु पारा २ तोले पारा और ग धक को एक साथ रगड़ कर सुम के समान पीस । सव थम वाथ का आठ सेर जल कढ़ाई म डालकर आग पर चढ़ाय । इसम पारा ग धक क कजली और भ म िमलाकर म द आग पर पकाय । जब गाढ़ा हो जाये, ऊपर का सभी शेष िमला ल तथा िन निल खत व तुय बार क पीसकर कपड़छान कर इसी म िमला दे व । शु जमालघोटे क िगर , ता भ म, मुद ासंग, िच क क छाल, जमीक द, सरफूंका, ढ़ाक के बीज, फला, बाय बडं ग, िनसौत सफेद, जमालघोटे क जड़, गुलिसकर क जड़, वषखपरे क जड़, हडगोड़ बूट येक अढ़ाई तोले । यह शोथोदरा द लोह है । मा ा ४ र ी से ३ माशे तक अक स फ, उ ण जल के साथ अथवा गोदह क छाछ के साथ योग करने से सभी उदर रोग, बवासीर, गोला, पा डू , सूजन दरू होते ह । ले प - अक छाल, दयार का बुरादा, ढ़ाक, गज पीपल, सुहांजने क छाल, अ ग ध नागौर - इन सब को गोमू म पीसकर पेट पर गाढ़ा लेप कर । इससे उदर रोग न होते ह ।

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ित ली रोग आक के प े १ सेर, सधा लवण १ सेर इन दोन को हांड म एक दस ू रे के ऊपर तह बनाकर रख । जलाकर पीसकर रख ल । मा ा १ माशा गम जल वा गोमू के साथ लेने से ित ली का रोग न हो जाता है । यह औषध वास और कास रोग को भी दरू करती है । १. - आक क कली ६ तोला, काली िमच ३ तोले, सधा लवण ३ तोले, ल ग ८ माशे, कली का चूना ३ माशे, शु अफ म डे ढ़ माशा - इन सब औषिधय को कपड़छान करके एक भावना अदरक के रस क दे व और दस ू र भावना नींब ू के रस क दे व और चणे के समान गोिलयां बना ल । गम जल के साथ एक गोली से चार गोली तक दे व । इस से सव कार क उदरपीड़ा (पेट दद), आमाशय के रोग, अजीणता आ द दरू होते ह । वशूिचका (है जा) म गुल ाब जल के साथ दे ने से बड़ा लाभ होता है । २. - आक के फूल सूखे कूट करके आक के प के रस म तीन दन तक खरल करके चने के समान गोिलयां बनाय । इन म दो गोली उ ण जल के साथ दे ने पर क ठन से क ठन उदरशूल (पेट दद) को तुर त आराम होता है । ३. - आक के फूल १ तोला, लाहौर नमक १ तोला, पीपल १ तोला - इन सबको कूट पीस कर काली िमच के समान गोिलयां बनाएं । रात को सोते समय बालक को एक गोली तथा बड़ को दो गोली दे ने से सव कार के ास और खांस ी म लाभ होता है । वह ं पेट दद, है जा और सोते समय लार बहने के रोग म भी यह बहुत अ छ औषध है । ४. - आक के हरे फूल का रस २ सेर, इस रस म १ सेर आक का दध ू और सवा सेर गाय का घी अ न पर चढ़ा के धीमी आंच से पकाय । घी के शेष रहने पर उतार छान कर सुर त रख । यह अकघृत आंत के कृ िमय (क ड़ ) को न करने के िलए अमू य औषध है । आंत के क ड़ के कारण पाचनश बगड़ गई हो और जसको बवासीर हो उनको इस घी क मा ा तीन माशे से ६ माशे तक आधा पाव दध ू के साथ दे ने से बहुत लाभ होता है । ५. - स जी ार ५ तोले, नौसादर ५ तोले, सधा नमक अढ़ाई तोले, स चर नमक अढ़ाई तोले - इन सब व तुओं को ४० तोले आक के दध ू म ४० तोले थूहर का दध ू घोट कर एक हांड म भर कर कपड़-िम ट कर गजपुट क आग म फूंक ल । शीतल होने पर राख िनकालकर तोल लेव और उसका पांचवां भाग िच क छाल, पांचवां भाग हरड़ क छाल, पांचवां भाग बहे ड़ा, पांचवां भाग आंवला और पांचवां भाग िनसोत छाल लेकर सब को कूट छानकर ऊपर वाली औषध म िमला ल । मा ा ३ माशे से ६ माशे तक । इसम २ र ी शंख भ म िमला लेव । इसके सेवन से यकृ त दोष, कलेजा के सब रोग को ठ क करती है । प थर के समान स त पेट को यह धीरे धीरे नम करके रोग र हत कर दे ती है । यह आनाह (अफारा) और को ब ता (क ज) को दरू करने के िलए रामबाण औषध है । गोमू अथवा कुमार आसव के साथ लेने से तो सोने पर सुहागे का काय करती है । पृ ५६-६० ६. - आक के पीले प े १००, करं जवे के प े १००, व ण क छाल ४० तोले, थूहर (नागफण) के डोडे १०० तोले, घी वार का रस ८ तोले, गूगल २ तोले, लहसुन २० तोले, का कज क छाल २० तोले, स चर नमक १२ तोले, स ठ ७ तोले, काली िमच ७ तोले, पीपल ७ तोले, समु नमक ४० तोले, वड नमक ४ तोले, अजवायन २ तोले, अजमोद २ तोले, ह ंग ४ तोले, काला जीरा ४ तोले, राई १६ तोले, िच क छाल ३२ तोले - इन सब औषिधय को कूट छानकर १६ तोले आक का दध ू और १६ तोले सरस का तैल डालकर एक हांड म भरकर कपड़ िम ट करके सुखा दे व और आग पर चढ़ा कर औषिधय क राख बना दे व । कपड़छान करके सुर त र ख । मा ा ६ माशे गाय क छाछ के साथ दे व । पुराना अजीण, म दा न, ब उदर रोग कुछ दन म दरू ह गे । यह पाचक तथा रे चक है । इसिलए वायु गोला, गु म, उदर शूल , अजीण आ द रोग के िलए अमृत है ।

वसू िचका वा है जा १. - आक के फूल के अ दर क ल ग १ तोला, काली िमच १ तोला और १ तोला अदरक िमलाकर घोटकर चने के समान गोिलयां बनाय । इसम से एक गोली है जे के रोगी को स फ के वा पौद ने के जल के साथ दे ने से तुर त लाभ होता है ।

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२. - आक के जड़ क छाल १ तोला, काली िमच १ तोला - दोन को बार क पीसकर चने के समान गोिलयां बनाय । दो गोली अक-स फ वा अक-िसकंजवीन के साथ दे ने से है जे क क ठन अव था म मरणास न रोगी को भी त काल लाभ होता है । ३. - आक क जड़ क छाल १ तोला, काली िमच ३ माशे, स चर नमक ३ माशे - इन सब को बार क पीसकर चने के समान गोली बनाय, ६ माशे घी के साथ एक-एक गोली दे ने से िनराशा क अव था म भी लाभ होता है ।

ने रोग १. - सफेद आक क जड़ को म खन के साथ पीसकर आंख म लगाने से ने - योित तेज होती है । २. - पुरानी ट का मह न चूण एक तोला लेकर आक के दध ू म िभगोकर सुखा ल और छः दाने ल ग को पीसकर इसम िमला ल । थोड़ा सा चूण नाक ारा सूंघने से मोितया ब द म लाभ होता है । ३. - बंगसेन का कथन है - १ तोल आक क जड़ क छाल को कूटकर पाव भर जल म घ टे भर िभगोकर उस जल को छान ल । इस जल क बूद ं आंख म डालने से आंख क लाली, भार पन और आंख क खुजली दरू होती है । ४. - पुरानी ई को तीन बार आक के दध ू म िभगोकर छाया म सुखा ल । फर उसको सरस के शु तैल म तर करके सीपी म जला ल । फर जली हुई ब ी क राख को बार क पीसकर आँख म डालने से आँख का फोला कट जाता है । अ छ औषध है । य द गोघृत म उपरो काय कया जाए तो अिधक लाभ होगा ।

कण रोग कणशूल, कणनाद, कण ाव अथवा कान का बहना आ द रोग होते ह । इनक िच क सा िलखी जाती है । १. अका द तै ल - आक के प का रस १ सेर, अर ड के प का रस १ सेर, मूल ी के प का रस १ सेर, धतूरे के प का रस १ सेर, थोहर का दध ू १ सेर, अमलतास के प का रस १ सेर, ितल का तैल १ सेर - सब को पकाय । इसम १ छटांक सधा लवण, ह द १ छटांक - इनको ४ सेर गोमू म िमलाकर साथ डाल द । म द अ न से पकाय, तैल रह जाने पर िनथारकर रख ल । इसे थोड़ा गम करके दोन समय कान म डालने से बहरापन, कान का बहना, कणशूल आ द सभी रोग दरू ह गे । २. - आक के प का रस १ सेर, १ सेर बेलिगर को पीस कर गोमू म गोला बनाय । पांच सेर ितल का तैल और २० सेर गाय का दध ू म द आग से पकाय, तैल शेष रहने पर िनथार छान लेव । इसको कान म डालने से बहरापन दरू होगा । ३. - आक के फूल और कोमल प को कांजी म पीसकर और सधा लवण और ितल का तैल िमलाकर थोहर के डं डे को पोला (खोखला) करके उसम भर दे ना चा हये । फर उस डं डे के चार ओर आक के प े लपेटकर धागे से बांध कर कपरोट कर द, सूखने पर आग म पकाय । ऊपर क िम ट लाल होने पर उसे िनकाल ल और उसका गम-गम रस कान म टपकाने से कान क सव कार क पीड़ा सवथा दरू होती है । ४. - पोहकरमूल, दालचीनी, िच क, गुड़, द तीबीज, कुठ और कसीस को आक के दध ू म पीसकर लेप करने से कणपीड़ा न ट होती है ।

नाक के रोग १. - एक छटांक चावल वा अरण क राख को आक के दध ू म िभगो ल । सूख जाने पर बार क पीस ल । इसके सूंघने से छ ंक आयगी, ब द नाक खुलकर बहने लगेगा । जुकाम, िसरदद दरू होगा । २. - गोस वा आरण क राख को आक के दध ू म िभगोकर उप रिल खत नसवार भी बनायी जाती है जो लाभदायक तथा स ती भी है । कौड़ भी इस पर यय नह ं होगा । सूंघने से खूब छ ंक आती ह ।

अक वष तथा अक से वष-िच क सा

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कसी य को सं खया, व सनाभ (मीठा तेिलया), कुचला आ द दया गयाहो तो पहले खूब वमन (कै) करानी चा हये । वल ब होने पर वरे चन दे ना चा हये । दध ू म घी िमलाकर बार-बार पलाने से सब वष शा त होते ह । आक वयं भी एक उप वष है । इसके वष को दरू करने के िलये िन न उपाय कर । १. - य द कसी मनु य ने आक के प े, फूल वा दस ू रा भाग अिधक मा ा म खा िलया हो तो उसको ढ़ाक (पलाश) के प का वाथ बनाकर पलाएं । इससे आक का वष दरू होगा । २. - य द अक का दध ू लगने से ज म हो जाये तो ढ़ाक के प से लाभ होता है । इस कार आक क औषध ढ़ाक है ।

का वाथ बनाकर उससे ज म को अ छ

कार से धोने

३. - बनौले क िगर ४ तोले, ठ डाई से समान घोटकर पलाने से आक का वष तुर त बना कसी क ट के दरू हो जाता है ।

िभरड़, ततै या म खी का वष िभरड़ ततैये वा मधुम खी के काटने पर काटे हुए थान पर आक का दध ू लगाएं । वष और पीड़ा दरू होगी, सूजन भी नह ं चढ़े गी । िभरड़ ततै ये के डं क को िनकालकर दध ू लगाने से शी लाभ होता है । म छर आ द काट जाये तो उस थान पर लगाने से वष तथा पीड़ा खुजली दरू होती है ।

पागल कु े का वष १. - पागल कु े के काटे हुए थान पर आक के दध ू का लेप करने से कुछ दन म वष दरू हो जाता है २. - आक के दध ू म िस दरू िमलाकर पागल कु े के काटे हुये थान पर बार-बार लेप करने से कुछ दन म वष दरू हो जाता है । ३. - आक का दध ू , गुड़ और ितल का तैल - तीन व तुओं को िमलाकर योग करने से कु े का वष इस कार न हो जाता है जस कार तेज वायु से बादल न ट हो जाते ह । मा ा १२ तोले । चार-पांच बार योग कराय । पागल कु े के काटे हुए थान को तुर त जला दे ना चा हये वा पछने लगाकर सींगी लगाकर खून िनकाल दे ने से वष िनकल जाता है ।

मकड़ का वष करं जवे क िगर , आक का दध ू , कनेर क छाल, अतीस, िच क छाल, अखरोट - इन सबको जल म पीसकर प ी बनाकर इससे चार गुणा सरस का तैल, तैल से चार गुणा जल - सबको कली वाले पा म पकाय, तैल शेष रहने पर िनथार ल । मकड़ के काटे थान पर लगाने से सब क दरू होता है । पृ ६१-६५

नपुंसकता का रोग १. भ म सं खया े त - सं खया क पांच तोले क एक डली ले लेव और उसे लोहे क कड़छ म रख और इसे चू हे पर रखकर म द-म द अथात ् धीमी आंच जलाय । इस पर आक का दध ू पांच सेर प के का चोया द अथात ् टपकाते रह अथात ् एक बार सं खया क डली को अक दध ू से ढक दे व । जब दध ू जल जाये तो और डाल द । जब जले हुये दध ू क बहुत सी मैल इक ठ हो जाए तो उसे दरू कर द तथा आक का दध ू डालते रह । जब सारा पांच सेर दध ू जल जाये तो डली को लेकर तीन दन तक अक के दध ू म ह खरल कर और ट कया बना सुखा ल । फर पांच तोला मीठा तेिलया (व सनाभ) लेकर इसको खूब बार क पीस ल और कपड़छान कर ल और आक के दध ू म गूंदकर सं खया क ट कया पर लपेट दे व । सूख जाने पर एक िम ट क हांड म रखकर हं डया के मुख पर सावधानी से एक याला जोड़ दे व और

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कपड़िम ट से स पुट कर सुखा लेव और चू हे पर चढ़ाकर सवथा धीमी-धीमी अ न जलाव । पूर आठ घ टे आग जलाने के प चात ् आग बुझा दे व तथा हांड को ठं ड होने पर याले तथा हांड म उड़कर लगे हुये जोहर को ले लेव । यह सं खया क भ म है । मा ा आधे चावल से एक चावल तक है । दध ू क मलाई के साथ दन म केवल एक बार योग कर और ऊपर से पु कारक घी दध ं क को पुं व दान करती ू का भोजन कर । यह भ म बूढ़ को जवान बनाती और नपुस है । अमोघ औषध है । इसके योग करने वाल को तैल, खटाई, लाल िमच से बचना चा हये तथा चय का पालन करना चा हए । य द हांड म कुछ नीचे बचा रह जाये तो अ न जलाकर फर जोहर उड़ा लेना चा हए । २. नपुंस कता नाशक ितला - सं खया वेत क डली पांच तोले लेकर आक के दध ू म िभगो दे व और िनर तर सात दन तक भीगा रहने दे व, फर इसे िनकालकर गाय के बहुत अ छे बीस तोला घृत म इ क स दन तक खरल कर । त प चात ् इसे दध ू म रख दे व और जतना घृत िनथर जाये उसे ई के फाये ारा शनैः शनैः ले लेव और इस घृत म िन निल खत व तुय ित तोले के हसाब से बार क पीसकर िमला दे व । केसर १ माशा, क तूर ४ र ी, अकरकरा ४ र ी, ल ग ४ र ी, अ र क तूर २ माशे - इनको िमलाकर शीशी म रख । यह अ तीय औषध ितला है । इसक मािलश से उप थे य पर लाल प ी सी िनकल आती है । जब पया त प ी िनकल आय और पया त सूजन वा क हो तो इसे लगाना छोड़ दे व, घी गम करके लगाव । इसके एक-दो बार योग करने से सब िनबलता दरू होकर नपुस ं कता दरू हो पुनर प पुं वश ा त होती है । ३. रोगन िसं ग रफ - िसंगरफ मी पांच तोले क डली लेकर इसे एक मास तक अक के दध ू म डु बोये रख । त प चात ् १० सफेद याज लेकर इ ह रगड़कर गोला सा बनाव । उसके बीच म िसंगरफ क डली को रखकर कपरोट कर ल । फर सूखने पर आध घ टे तक कोयल क आग म रख । फर डली को िनकाल नीम के पानी तथा शहद म बुझाय । इकतालीस बार यह या कर । येक तीन बार म नये याज बदल । इस काय को करके डली को प ह तोले हरणखुर के रस म खरल कर । फर ५ तोला आक के दध ू म खरल करके गोिलयां बनाय और इन गोिलय को एक छोट सी आितशी शीशी म भरकर शीशी के मुख म लोहे के तार वा बाल भर दे व और शीशी को पाताल य म रखकर दो सेर बकर क मींगन क आग दे व । जतना िसंगरफ का तैल िनकले, उसे शीशी म सुर त रख । मा ा - १ बूद ं पान वा मलाई म रखकर खाय । कृित का खेल दे ख । यह पुं

व क वृ

करने वाली अ तीय औषध है ।

४. सं खया क भ म े त - दो तोले सफेद सं खया क डली लेकर एक स ताह तक आक के दध ू म िभगोव । फर हरमल के छः तोला रस म खरल कर और फर जंगली गोभी के ९ तोले रस म खरल कर और ट कया बनाकर धूप म सुखा ल । फर सफेद फूलवाली हरणखुर १५ तोले के कूटे हुए गोले (लुगदे ) म लपेट कर सात बार कपड़िम ट कर । सुखाकर दो सेर जंगली आरण (उपल ) म आंच दे व, शीतल होने पर िनकाल लेव । बहुत ब ढ़या ेत रं ग क भ म बनेगी । मा ा - राई के एक दाने के समान दध ू क मलाई वा म खन म लपेटकर खाय, ऊपर से थोड़ा गाय का गम दध ू पीव । इसके योग से खूब श (पुं व) बढ़ती है । पौ क भोजन घी, दध ू तुर त पचकर शर र का अंग बन जाता है ।

वसप रोग सप के समान वशेष प से फैलने वाला होने से वसप कहलाता है । खार , ख टे और गम ती ण पदाथ के सेवन से दोष के द ू षत होने से र , मांस और मेद खराब हो जाते ह और शर र पर सूजन फु सयां फैल जाती ह । िच क सा करं जा द तै ल - आक का दध ू , थोहर का दध ू , किलहार , सतोना, िच क छाल, भांगरा, ह द , मीठा तेिलया - सब एक-एक तोला जल के साथ घोट पीसकर ट कया बनाएं । चौगुणा सरस का तैल अथात ् ३२ तोले लेव और ११८ तोले गोमू लेव । म द आग पर पकाय । तैल रहने पर िनथार छान लेव । इस तैल क मािलश से वसप और व फोटक रोग का नाश होता है ।

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ास रोग वास से स ब ध रखने से इस रोग का नाम ास पड़ा है । इसी को दमा कहते ह । इस रोग के वषय म यह लोको िस है क दमा दम के साथ है अथात ् जब तक दम ाण ह, दमा ( ास) भी तब तक रहता है । जीवन पय त यह प ड नह ं छोड़ता । इसी कारण दमे वा ास के रोगी इसे असा य रोग समझकर िनराश होकर अ य त दःु खी रहते ह । वैसे यह बात तो ठ क है क यह रोग दःु सा य वा क सा य है । बड़ ह सावधानी और त परता से इसक िच क सा क जाय तो यह समूल न ट हो सकता है । इसके ल ण वा प हचान यह है तेज दौड़ने से लगातार और शी ास आने लगते ह । इसी कार सुखपूवक बैठे रहने से भी मनु य को तेजी और तंगी से ास आने लग तो इसको ास (दमा) रोग कहते ह । कारण गम, , क ज करने वाले, दे र से पचने वाले भार पदाथ अिधक खाने से, चय नाश से, बफ का ठ डा पानी पीने से, अिधक ठ ड व तुओं के खाने से, धूल, धुंव से, अिधक उपवास करने से, श से अिधक प र म वा यायाम करने इ या द कारण से ास रोग क उ प होती है । ास पांच कार का होता है । नीचे इस कार के योग आक के िलखे जा रहे ह जो सभी कार के ास रोग पर लाभदायक ह । वात और कफ से कु पत ास रोग पर वशेष हतकर है । प से द ू षत ास पर अक योग कसी वै के परामश से ह सेवन करने चा हय । कुछ योग ३६, ३७ और ३८ पृ ठ पर ास स ब धी िलखे जा चुके ह । शेष नीचे दये जा रहे ह ।

१. एक ताजा खूब पका हुआ गोला बाजार से लेव और चाकू से उसका एक भाग इस कार काट क उसे फर उस पर ठ क जमाकर ढ कन के प म रखा जा सके । इस गोले को आक के दध ू से भर दे व और इसम एक तोला अफ म खािलश डाल के कटा हुआ ढ़ कन उस पर लगाकर गेहूं के आटे से कपरोट करके धूप म सुखा दे व । सूख जाने पर भेड़ क पांच सेर मींगन के ढ़े र के बीच म रखकर आग जला द । जब यह गोला अ न के समान लाल हो जाये तो आग को हटाकर सावधानी से इस गोले को िनकाल ल । सवाग शीतल होने पर आटे को हटाकर गोले को कूटकर सुरमे के समान बार क कर ल । मा ा एक र ी से चार र ी तक मधु म िमलाकर दे व ।

ास क रामबाण

के समान अचूक औषध है । सेवन करके लाभ उठाव । अनुभ ूत औषध है ।

ास और कास २. आक के फूल डे ढ़ माशा, सधा लवण डे ढ़ माशा, अफ म ३ र ी, अजवायन ६ माशे - इन सब को कूट पीसकर चने क दाल के समान गोिलयां बनाय । तीन-तीन घ टे के अ तर से एक-एक गोली गम पानी से दे ने से

ास और

खांसी दोन म लाभ होगा । ३. आक क ब द मुंह क कली २ तोले, अजवायन १ तोला, गुड़ ५ तोला - इन तीन औषिधय को खूब कूटकर एक आकार बना ल । फर आक के सात प

पर इस औषध को रख ऊपर नीचे करके सोमकर कपड़ िम ट करके

गम भूभल म दो हर तक दबा दे व, फर िनकालकर बार क पीसकर सुर साथ दे ने से

त रख । मा ा १ माशा म खन के

ास और पुरानी खांसी म बहुत लाभ होता है ।

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पृ ६६-७० ४. आक के फूल और काली िमच समान भाग लेकर खरल करके एक-एक र ी क गोिलयां बनाय । इनम से एक-एक गोली गम जल से चार बार दे ने से

ास, खांस ी, ह टे रया, वायु और कफ के रोग म बहुत लाभ होता है

। ५. आक के कोमल प

का काढ़ा करके जौ क भुनी हुई धानी को सात भावना दे कर सुखा लेना चा हये । फर उसका

चूण करके मा ा ६ माशे शहद के साथ चटाने से

ास कास रोग म लाभ होता है ।

६. आक के फूल, आक का दध ू , आक क जड़ क छाल, आक के प

का रस - ये सभी वायु कफ के

ास कास आ द

रोग को दरू करने वाले ह । आक क सभी व तुय बहुत थोड़ मा ा म म खन मलाई और गाय के दध ू के साथ दे नी चा हय । आक उप वष है , वमनकारक तथा वरे चक भी है , अतः इसका योग सावधानी से तथा थोड़ मा ा म करना चा हये, नह ं तो हािन भी हो सकती है ।

वास पर आक के योग १. सफेद फटकड़ १० तोला लेकर कूटकर मोट छलनी म से छान लेव और २० तोला आक का दध ू लेकर दोन व तुओं को िम ट के छोटे पा (बतन) म डालकर अ छ

कार कपरोट कर सुखाकर इसे उपल क आंच म

फूंक ल । यह कोयल क अंगीठ पर भी फूंक जा सकती है । ठ ड होने पर बार क पीस ल । मा ा - आधा र ी से एक र ी तक यथाश

रोगी को दे खकर मलाई म लपेटकर दन म दो बार दे व ।

ास रोग समूल न हो जायेगा

। २. आक के प

का रस एक से दो तोले तक रोगी को पलाने से वमन होकर कफ िनकल जाता है और त काल रोगी

को आराम हो जाता है । ३. आक के फूल क कली, १ माशा काली िमच - दोन का चूण बना ल । मा ा - एक माशा ातः-सायं मधु के साथ दे ने से

ास रोग म बहुत ह लाभ होता है ।

४. अपामाग ार वा यव ार - इनम से कोई

ार दो माशे लेकर गोघृत ६ माशे िमलाकर चटाय । इससे कफ

िनकलकर रोगी को लाभ होगा ।

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५. आक का

ार १ माशे से २ माशे तक गोघृत ६ माशे म िमलाकर चटाने से रोगी को लाभ होगा ।

६. बासा

ार २ माशे लेकर ६ माशे गोघृत म िमलाकर चटाने से कफ िनकलकर रोग दरू हो जाता है ।

७. अक, बासा, यव, अपामाग और केला - इन सब के

ार जो समय पर िमल जाय, समान भाग ले लेव और जतना

ार हो, उतना ह िसतोपला द चूण ले लेव और इनम थोड़ मा ा म गोघृत िमला लेव जससे इनक

ता दरू

हो जाये और १ माशे से तीन माशे तक औषध मधु म िमलाकर रोगी को दन रात म अनेक बार उसक आयु, रोग और श

को दे खकर चटाय । सव कार के

ास, काली खांस ी, कु ा खांस ी आ द रोग न ट ह गे ।

८. आक के पु प ५ तोले, आकाश बेल जसे अमरबेल भी कहते ह, यह भी पांच तोले लेकर दोन को खूब बार क घोट पीसकर, रगड़कर काली िमच के समान गोली बना ल तथा दो गोली मुख म रखकर ातः सायं दोन समय चूस तो दमा दम ु दबाकर भाग जाता है । अ य त स ती और लाभदायक औषध है क तु िनर तर द घकाल तक यून से यून एक वष तो अव य लेव । य द कसी रोगी को गम म दमे का दौरा न पड़ता हो तो न लेव । जन ऋतुओं म

ास का कोप होता हो, उन दन म अव य लेव । यह अनुभूत औषध है ।

९. त बाकू दे सी आध सेर सुखाकर कपड़छान कर लेव और िम ट क हांड म दालकर उसम आक का दध ू इतना डाल क त बाकू का चूण उस म भलीभांित डू ब जाये । अ छ अ न म फूंक दे व । ठ डा होने पर बार क पीसकर शीशी म सुर

कार कपरोट करके ५ सेर उपल (गोस ) को त रख । मा ा आधा र ी मधु के साथ सेवन

कराय । लाभदायक औषध है । १०. अक

ार, हरमल

ार, त बाकू

ार और गुड़ जलाया हुआ - चार समभाग लेकर खूब अ छ

कार से खरल कर

ल । मा ा - आध र ी मधु वा घृत के साथ सेवन कराय । य द कफ न िनकले तो घृत के साथ और कफ िनकलता हो तो मधु के साथ ातः सायं सेवन कराय । इससे दमे के रोगी को लाभ होगा । दमे क िस े ट १. - आक के सूखे प ,े धतूरे के सूखे प े, भांग के सूखे प े और कलमीशोरा - चार समभाग लेकर मोटा-मोटा कूट लेव और कागज पर डालकर ब ी सी बनाय । िस ेट बनाकर दमे का दौरा पड़ने पर रोगी को पलाव, तीन चार बार पीने पर दौरा तुर त ह शा त हो जायेगा । यह वास के भयंकर वेग को जाद ू के समान न ट कर दे ती है । यह सामियक िच क सा है । रोगी को वास आकर शा त िमलती है । वह यह अनुभव करता है क दौरा हुआ ह नह ं । इसी कार का एक योग ३८ पृ ठ पर है । यहां कुछ व तार से िलखा है । वास रोगामृत

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२. - लाल फटकड़ ६० माशे, सधा नमक ६० माशे लेकर बार क चूण कर ल । फर िम ट क हांड म आध सेर आक का दध ू लेकर उस म पूव िल खत दोन व तुओं का चूण बार क पसा हुआ िमला द । इसके बाद हांड का मुख ढ़ककर कपरोट करके सुखा द, फर गजपुट क अ न द । सार ठं ड होने पर दवा िनकालकर पीस ल और शीशी म सुर त रख । वास रोग पर अमृत तु य है । से वन विध - रोगी जतनी खीर खा सके उतनी सायंकाल तैयार कर ल और रा को उस खीर म आधा माशा १२ हर पीपल (३६ घ टे खरल क हुई) िमलाकर ३ घ टे तक च मा क चांदनी म रख, फर उपरो त दवा म से २ र ी दवा खीर म िमलाकर रोगी को खलाव और रोगी को कह क ातःकाल जतनी दरू तक घूम सके, घूम आवे । तीन मास तक रोगी को तैल, खटाई, शीतल तथा वायुकारक व तुओं से परहे ज रखना ठ क है । इसी कार तीन मास तक रोगी को सेवन कराव । इन तीन मास म रोगी को चय का पालन करना आव यक है । यह दमे का उ म योग है ।

दमे का नु खा ३. - कसी आक क ऐसी जड़ िनकाल जसको ज ा पर रखते ह मुख कड़वा हो जाये या सफेद बड़े आक क । बड़े वा छोटे -मोटे आक को उखाड़ने से ४-५ म से एक आध िमल जाता है जस क जड़ म कटु ता हो, उसे धोकर साफ कर और िछलका उतार द और भीतर भाग को छाया म सुखा द । जब सूख जाये तब उसे कूटकर चूण बना लेव और कपड़छान करके उस चूण के समभाग काली िमच और िम ी िमलाकर गोली बना ल । बस, दमे का नु खा तैयार है । मा ा - एक गोली जल के साथ ातः सायं दे व । अ छ औषध है । ४. - आक क जड़ क लकड़ का कपड़छान चूण य द १ छटांक हो तो उसम एक छटांक काली िमच का चूण और एक छटांक िम ी िमलाकर गोली बना ल । ५. - स जी एक पाव लेकर कपड़छान कर ल और इसको आक के दध ू म िभगो दे व । आक का दध ू स जी के ऊपर एक उं गल ऊंचा रहे । इसी कार एक स ताह तक इसको आक के दध ू म िभगोये रख, फर िम ट के पा म कपरोट कर सुखाकर रा म १५-२० सेर उपल क अ न म इसे फूंक दे व । ठ डा होने पर िनकालकर पीसकर सुर त रख । मा ा - १ र ी से २ र ी तक शहद वा बताशे म रखकर ातः सायं दया कर । यह औषध वास रोग के िलए अमृत के समान है । सेवन कर और आयुवद के चम कार को दे ख । नये वास रोग को एक ह स ताह म उखाड़ कर समूल न ट करती है । दोन के िलए रामबाण के समान अचूक औषध है । स जी, जो व धोने के काय म आती है , उसी से यह औषध बनती है । इस औषध क जतनी शंस ा कर, थोड़ है । ६. - ब ढ़या खांड को चीनी के पा म आक के दध ू से अ छ कार िभगो द और व से ढ़क दे व । सूख जाने पर फर िभगो दे व । दो-तीन बार यह या कर । सूख जाने पर तवे पर रख कर अ न जलाकर इसक राख कर ल और कपड़छान कर सुर त रख । मा ा - एक चावल से एक र ी तक गाय के म खन वा बादाम रोगन म दे व । वष क पुरानी खांसी को दरू करती है केवल एक स ताह म । ास रोग पर भी लाभदायक है । आक के सभी योग वास और कास दोन को साथ न करने वाले ह । पृ ७१-७५ ७. - आक क कोमल-कोमल क पल ३ तोले और दे श ी अजवायन डे ढ़ तोला, दोन को बार क पीस और एक छटांक (५ तोले) गुड़ िमलाकर दो-दो माशे क गोिलयां बनाय और ित दन ातःकाल खाली पेत एक-एक गोली खाय तो रोग सवथा और शी न ट होगा । ८. - सीप, शंख, कौड़ और ग ं भ म - इन चार को आक के दध ू म भावना दे कर भ म बना ल और इनम से कसी भी एक भ म क मा ा १ र ी से २ र ी तक अदरक के रस वा मधु म अथवा म खन म रोगी को दे ने से रोग समूल न ट होगा । कास, वासा द के िलए उ म औषध है । ९. - शाखा मूंग ा ( वाल) लेकर कपड़छान कर ल और आक के दध ू म खरल करके ट कया बनाकर सुखाकर अ न म फूंक करके भ म बनाय । मा ा - १ र ी मधु, पान के रस, अदरक के रस वा बताशे म दे व । वास रोग म लाभदायक है । इन सभी भ म म वास, कास और कफ के रोग को न ट करने का गुण आक के दध ू क भावना दे ने से आता है । यथाथ म कफ और वायु के रोग को न ट करने के िलए आक वयं औषधालय है ।

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१०. - आक के प है ।

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का रस १-२ तोला पलाने से रोगी को वमन होकर कफ िनकल जाता है तथा वास रोग म लाभ होता

११. - आक के फूल क कली एक माशा तथा काली िमच एक माशा - दोन का चूण बना ल । मा ा - ४ र ी से १ मासे तक मधु के साथ लेने से वास, कास रोग न ट होते ह । १२. - आक का प ा १, काली िमच २५ - दोन को खूब खरल करके माष के दाने के समान गोली बनाय । इनम एक समय छः गोिलयां गम जल के साथ दे ने से वास रोग दरू होता है । छोटे बालक को एक गोली दे नी चा हए । १३. - आक क कोमल छोट प ी को एक पान म रखकर रोगी को खलाएं । इस कार ४० दन इस औषध के योग से सव कार के वास, कास समूल न ट होते ह । १४. - आक के पके हुए प े १ सेर, चूना १ तोला, सधा नमक १ तोला - इन दोन को जल म बार क पीसकर आक के प पर लेप कर और छाया म सुखाकर हांड म भरकर उसका मुख कपरोट से ब द करके चू हे पर चढ़ाकर नीचे छः घ टे तक तेज अ न जलाय । ठ डा होने पर बार क पीसकर सुर त रख । मा ा - एक र ी ातः सायं पान म रखकर खलाने से वास कास दरू हो जाते ह । १५. - अजवायन ८ तोले, हरड़ क छाल, वड नमक, क था, सधा नमक, ह द भारं गी क जड़, इलायची, सुहागा, कायफल, अडू सा, अपामाग क जड़, जवाखार और स जीखार - ये सब चार चार तोले, आक के फूल सूखे हुए १६ तोले सबका बार क चूण करके घी वार के रस म घोट । फर उसक ट कया बनाकर सुखा ल और िम ट क हांड म रखकर कपड़िम ट करके चू हे पर चढ़ाकर औषिधय को जला ल और राख को कपड़छान कर ल । मा ा डे ढ़ माशे तक मधु के साथ चटाने से ास, कास, खांस ी, कफ के रोग शा त होते ह ।

वास तथा कास १. - गुड़ ६ माशा, आक का एक हरा प ा दोन को खूब रगड ल । इसक एक वा दो मा ा बना ल । इसे ातःकाल अथवा दोन समय सेवन कर, तीन चार दन सेवन करने से कफ सरलता से बाहर िनकल जाता है और कास और ास म लाभ होता है । २. - आक के प पर सफेद रे त सा लगा रहता है , उसे चाकू से उतारकर बाजरे के समान गोली बना ल और एक पान के प े म जसम क था चूना लगा हो, रखकर खा ल । इसके सेवन से पुरानी से पुरानी खाँसी दो चार दन के सेवन से चली जाती है और वास म भी लाभ होता है । ातः समय दोन समय सेवन कर । ३. - आक के पीले प े ५ तोले और धतूरे के हरे प े ५ तोले, अडू से (बांस े) के हरे प े ५ तोले, गुड़ पुराना १५ तोले, सबको खूब घोट पीट रगड़कर चने के समान गोली बना ल । शहद के साथ ातः सायं एक एक गोली सेवन कर । इससे वास और कास दोन म लाभ होगा । ४. - आक क जड़ क छाल दो तोले, बांस ा घनस व आठ तोले, अफ म १ तोला, कपूर १ तोला । इन सबको पीसकर दो दो र ी क गोली बनाय, एक दो गोली का सेवन कर । इसके सेवन से वास, कास, र प , अितसार, र दर, उरः त और सं हणी म भी लाभ होगा । बां स ा घनस व - एक सेर बांसा पंचांग को चार सेर जल म सायंकाल िभगो द । ातःकाल वाथ कर, एक सेर शेष रहने पर छानकर पुनः पकाय । जब अफ म जैसा गाढ़ा हो जाये, उतार ल । यह बांस े का घनस व है । उप रिल खत चार योग वै बलव तिसंह आय पहलवान के बहुत बार के अनुभ ूत ह । पाठक के हताथ दे दये ह । ५. - आक क जड़ के छाल स हत कोयले बना ल, समान भाग काला नमक भी िमलाकर पीस ल । मा ा एक से २ र ी तक मधु के साथ ातः सायं लेने से ास कास दोन को ह लाभ होता है ।

वायुरोग सभी रोग वात, प और कफ - इन तीन दोष के द ू षत वा कु पत होने से उ प न होते ह । क तु आयुवद शा वायुरोग को वशेष प से धानता द है । य क -



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Aak - Jatland Wiki

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प ं पंगु कफः पंगु पंगवो मलधातवः । वायुना य नीय ते त ग छ त मेधवत ् ॥ प , कफ, मल और धातु सभी लंग ड़े ह । यह वायु ह है जो इनको जहां चाहे वहां धकेलकर ले जाता है । वायु इन सबम बलवान ् है । यह बहुत से रोग का कारण है । खी, शु क और ठ ड व तुओं के यून (कम) खाने, चय के नाश, कषली और चरचर व तुओं के योग करने से, पूव वायु लगने, अिधक जागने से, जल म अिधक समय तैरने से, चोट लगने, अिधक प र म करने, अिधक यायाम करने से, ठ डक लगने तथा अिधक उपवास आ द के कारण वायु कु पत होकर अनेक वात यािधयां, वायुरोग हो जाते ह । वायु के रोग वषा ऋतु, वस त ऋतु और दन रा के तीसरे भाग म, भोजन के पचने पर वायु के वकार वा रोग उ प न होते ह । आक कफ और वायु के रोग का नाश करता है । जहां-जहां आक का उपयोग होता है , नीचे िलख रहे ह । अका द तै ल १. - आक के प े ढ़ाई तोले, धतूरे के प े ढ़ाई तोले, कनेर क छाल ढ़ाई तोले - सबको जल के साथ प थर पर रगड़कर गोला बना ल । ितल का तैल १ पाव लेकर सबको कढ़ाई पर चढ़ाय और गोमू १ सेर इनम डाल द । जब सब जलकर केवल तैल रह जाये तो िनथारकर छान ल । इसक मािलश करने से लकवा आ द वायु रोग न ट होते ह । २. - नारायण तैल क मािलश करने से सभी वायु रोग न ट होते ह । मािलश के पीछे आक के प पर नारायण तैल अथवा ऊपर वाला अका द तैल चुपड़कर आक के प को वायु के रोग पर बांधने से सोने पर सुहागे का काय करता है । ३. - आक के फूल को कसी पा म जल म डालकर उबाल । शर र के हाथ, पांव आ द जस अंग म क ट हो वा वायुरोग हो, उसे भांप से सेक । शर र के अंग को गम व से ढ़क दे व । भांप क टं कार से पसीना िनकलेगा । फर व से पूछ ं कर अकतैल वा नारायण तैल क मािलश कर तो वायु रोग सब दरू ह गे । वायु के रोग क पीड़ा को दरू करने के िलए आक से बढ़कर कोई औषध नह ं है । पैर क एड़ क पीड़ा पैर क एड़ म जब वायु रोग वा चोट के कारण पीड़ा होती है तो वह बहुत िच क सा करने पर भी नह ं जाती । वै डा टर ायः सभी वफल हो जाते ह । उस समय आक के फूल से भाप ारा िसकाई (सेक) करनी चा हये और आक के फूल ह बांधने चा हय । एक स ताह म सब पीड़ा दरू होकर रोगी भला चंगा हो जाएगा । य द वायु के रोग म योगराज गूगल साथ-साथ खलाते रह तो सोने पर सुहागे का काम होगा । पृ ७६-८० अक वक् वायु के रोग पर आक क जड़ क छाल उतारकर छाया म सुखाय और कूट कर कपड़छान कर ल । मा ा १ र ी से दो र ी तक गाय क मलाई वा म खन के साथ लेव । न िमले तो गुड़ म िमलाकर गोली बना ल और उसे खाकर ऊपर गम जल वा गोद ु ध पलाय । वायु क पीड़ा जैसे र ंगन वात, रांगड़ आ द क पीड़ा सब दरू होगी । अका द तै ल योग - आक क जड़ का िछलका १ पाव, कुचला आध पाव, सं खया सफेद १ तोला, सरस वेत १ तोला, धतूरे के बीज ५ तोले - सबको जौकुट करके एक आितशी शीशी म डाल । उसके मुख म बार क तार का अथवा घोड़ के बाल का गु छा भर दे व और शीशी पर ढ़ कपरोट करके सुखा ल तथा पाताल-य से तैल िनकाल । तैल को सुर त रख और जस अंग पर वायु का भाव हो उस पर मािलश कर । लकवा, अधाग आ द सभी वायु रोग इसके योग से न ट होते ह । खलाने के िलए योगराज गूगल का योग सभी वातरोग म लाभ द है । वषगभ तै ल

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आक के प का रस १ सेर, कनेर के प का रस १ सेर, धतूरे के प का रस १ सेर, संभ ालू के प का रस १ सेर, जटामांसी का वाथ १ सेर, ितल का तैल १ सेर - सब एक कली वाले पा म चढ़ाकर म दा न से पकाय । जब सब पानी जल जाये, केवल तैल शेष रह जाये तो इसम नीचे िलखी व तुय कपड़-छान करके िमलाय । धतूरे के बीज, फूल यंगू, मीठा तेिलया, स यानाशी के बीज, रासना कनेर क जड़ का िछलका, मलकंगनी, काली िमच, गूगल, मजीठ, बालछड़, बच, िच क, दे वदा का चूण, ह द , दा ह द , एरं ड का िछलका, हरड़, बहे ड़ा और आंवला - इनका िछलका येक व तु एक-एक तोला लेव । सबको सुम के समान बार क पीस लेव । ऊपर वाले तैल म िमलाकर सुर त रख । जब योग करना हो तो इसे खूब हलाय और इस वष गभ तैल क मािलश से सभी वायुरोग तथा उनक पीड़ा समूल न ट होती है । से क वायु के रोग को अथवा उसक पीड़ा को दरू करने के िलए सेक वा िसकाई से बहुत लाभ होता है । योग - पुराने आक क जड़ के पास से रे त लेकर उसके समान ह लवण बार क पीसकर िमला ल और इनको एक कढाई म गम करके बड़ -बड़ पोटिलयां बनाय और इनसे रोगी के उन अंग पर िसकाई कर जहां वायु रोग के कारण पीड़ा हो । सेकने से पसीना आयेगा और सब कार क पीड़ा तथा रोग दरू होगा । वातर लेप - आक क छाल, सरस , नीम क छाल, बालछड़, यव ार, काले ितल - सबको समभाग लेकर गोमू के साथ रगड़कर लेप तैयार कर और वातर पर लेप करने से कफ धान वातर न ट होता है । इसके साथ अमृता द गूगल, महाित होगा ।

घृत, अमृता द घृत कसी खाने क औषध का सेवन कर तो बहुत अिधक लाभ

वायु न ाशक हलवा आक क जड़ क छाल को महानारायण तैल म गुड़ आटा डालकर हलवा तैयार करके वायु के रोग पर अथवा चोट लगने पर पीड़ा वाले थान पर गम-गम बांध । चाहे कतनी ह पीड़ा हो, तुर त दरू होकर रोगी सुखपूवक सो जायेगा । वायु के कसी भी रोग के कारण अथवा आघात, चोट आ द लगने से रोगी बेहोश हो तो इसके बांधने से शी ह होश आ जायेगा और य द दद (पीड़ा) के कारण रोगी िच ला रहा हो, रो रहा हो, इस हलवे को बांधने से सब क ट दरू होकर रोगी सो जायेगा और कुछ ह दन म पीड़ा सूजन तथा वायु के रोग न ट हो जायगे । पीड़ा दरू करने के िलए यह जाद ू के समान भाव करने वाली रामबाण औषध है । य द गु कुल झ जर म तैयार होने वाले संजीवनी तैल म आक क जड़ क छाल का हलवा बनाया जाये तो इसके समान अनुपम अ तीय औषध वायु वा चोट क पीड़ा को दरू करने वाली और नह ं है । सकड़ नह ,ं हजार बार क अनुभूत औषध है । पीड़ा पर अपूप वायु रोग क पीड़ा अथवा आघात (चोट) लगने पर जो पीड़ा वा क ट होता है उसको दरू करने के िलए आक क जड़ क छाल डालकर अपूप (पूड़े) नारायण तैल वा संजीवनी तैल म आटा गुड़ िमलाकर पूड़े बनाकर गम-गम बांधने से अस पीड़ा वा क ट दरू होकर रोगी चैन से सो जाता है । ह ड टू टने पर बहुत पीड़ा होती है , क तु उप रिल खत हलवा और पूड़े पीड़ा को जाद ू के समान दरू करते ह । यह बार-बार क अनुभ ूत औषध है । वातरोग नाशक तै ल १. - आक के हरे प ,े अर ड के हरे प ,े थोहर के प ,े बकायन के प ,े सहजने के प े, भांगरे के प े और भांग के प े सब समभाग लेकर इनका रस िनकाल ल । रस के समान तोल का ितल का तैल भी कढ़ाई म साथ डालकर म द आंच पर कपाय, तैल शेष रहने पर उतारकर छान लेव । वायु के रोग पर मािलश करते समय थोड़ काली िमच और पीपल का चूण िमला ल । इस तैल क मािलश से अधाग, लकवा, ग ठया, स धवात आ द रोग म खूब लाभ होता है । २. - आक के प े - ७, िभलावे ७ नग इन दोन व तुओं को ितल तैल म डालकर आग पर चढ़ाय, दोन के अ छ

कार

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जलने पर तैल को छानकर शीशी म रख और धूप म बैठकर मािलश करने से सब वायु के रोग दरू होते ह । ३. - गूगल ६ माशे, महद ३ माशे, सनाय के प े ३ माशे, कतीरा १ माशा - इन सबको आक के दध ू म खूब घोटकर चने के समान गोली बनाय । मा ा १ गोली ित दन गम जल के साथ खाने से ग ठया, संि धवात, जोड़ के दद, गृ सी (रांघड़) दस ू र वात यािधयां न ट होती ह । ४. - आक क किलयां बना खली हुई, स ठ, काली िमच और बांस क प ी समान भाग लेकर घोटकर चने के समान गोिलयां बना ल और ातः सायं दो गोली गम पानी के साथ खाने से ग ठया म बहुत ह लाभ होगा । ५. - लेप - आक क जड़ को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से हाथी पांव, अंडवृ होता है । वायु रोग म वेद न

तथा अ य वायु रोग म बड़ा लाभ

या

६. - एक ग ढ़ा इतना गहरा खोद क मनु य जसम अ छ कार से बैठ सके । इस ग ढ़े म जंगली उपले (अरणे) भरकर जला द, जससे उसक द वार सब लाल हो जाय । फर उसको साफ करके उसम ताजे आक के प े भर दे व । जब वे प े गम होकर भाप िनकलने लगे तो अधाग (फािलज) के रोगी को क बल वा प मीने क गम च र उढ़ाकर ग ढे के ऊपर बठा द । उसका मुख खुला रख जससे वह भाप से बचा रहे । इस या से खूब पसीने आकर रोगी पसीन से भीग जायेगा । अ छ कार पसीने आने पर तौिलये से शर र प छ ल । यह या मकान के अ दर एका त थान पर होनी चा हए और वै को वयं अपने स मुख करनी चा हये जससे रोगी घबराये नह ं । दस ू रे दन रोगी को अरं ड क िगर ६ माशे बादाम रोगन म भूनकर शहद के साथ खलाव । उससे वमन तथा वरे चन (द त) ह गे । उसी कार एक दो दन छोड़कर रोगी को फर भफारा दे व । इस कार तीन बार भफारा दे ने से िनराश रोगी भी ठ क हो जाता है । इस भफारे से शर र पर छोट -छोट फुंिसयां हो जाती ह जो वयं चली जाती ह । अथवा उन पर गाय का घी गम करके अथवा संजीवनी तैल लगाव । रोगी को वर भी हो जाता है । इससे घबराना नह ं चा हये । इन दन रोगी को गाय का दध ू ह पलाव । यह या असा य समझे जाने वाले अधाग आ द वायु रोग को दरू करती है । वषम वर (मले रया) ी बलव तिसंह जी आय पहलवान हरयाणे के िस वै ह । ऋ ष महा मा के समान सार आयु िच क सा ारा सेवा करने म लगा द है । याकरण, आयुवद आ द के अ छे व ान ् और अनुभ वी वै ह । उनके अनुभ ूत योग नीचे िलख रहा हूं । पृ ८१-८५ १. - नौसादर, गोद ती, सुहागा, फटकड़ (भुनी हुई) सब एक-एक छटांक - सबको कूट-छानकर आक के दध ू म िभगोकर सुखा ल और कपड़-छान कर आक के दध ू म िभगोकर सुखा ल और क पड़-िम ट करके भ म के समान फूंक ल । फर मा ा ३ र ी खांड म िमलाकर एक बार ह दे व । पसीना आकर वर उतर जायेगा । वर उतारने के िलए सव म औषध है तथा वर को समूल न करती है । २. - फटकड़ भ म, नौसादर, कर ज बीज िगर , गे शु , बीज धतूरा, तुलसी के प ,े गोद ती भ म, आक क जड़ क छाल सब एक-एक तोला, काली िमच छः माशे, नीम के प का रस अथवा घृतकुमार के रस म खरल करके चने के समान गोली बनाय । वर रोकने के िलए, वर आने से दो घ टे पूव जल के साथ दे व । यह बहुत ह उ म औषध है । स

नपात

आक क जड़ क छाल, अन तमूल, िचरायता, बुरादा दे वदा , रासना, स भालू बीज, बच, अरनी क छाल, सुहाजना क छाल, पीपल, पीपलामूल, च य, िच क छाल, स ठ, अतीश, भांगरा - ये सभी समान भाग लेकर यवकुट कर ल । दो तोला लेकर आधा सेर जल म वाथ कर । आधा पाव रहने पर उतार लेव । स नपात रोगी को ३-३ घ टे के पीछे पलाव । यह वाथ स नपात के भयंकर उप व , लाप, त ा, बेहोशी, जाड़ भीचना, आंसू िगरना, पसीना अिधक आना,

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शर र ठ डा होना, धनुवात, वास, खांस ी तथा सूता के वायु रोग म अ य त भावशाली है । वषम वर पर मीठ कु नै न खांड १० तोले, आक का दध ू १ तोला, दोन को खूब खरल कर और कुछ ग द िमलाकर दो-दो र ी क गोली बनाव । गम जल के साथ दे व । यह चढ़े हुए वर को उतार दे ती है और उतरे को रोक दे ती है । यह कुनैन से बढ़कर गुणकार है । इसके योग म दध ू अिधक दे व । क ज हो तो ह का जुलाब वर उतरने पर दे दे व । कफ वर (िनमोिनया) १. लेप - आक के प का वरस िनकालकर उसम गेहूं का चूण (आटा) िभगोकर रबड़ सी बनाकर गम करके रोगी के शर र पर लेप कर द, उसी समय पीड़ा दरू हो जाती है । लेप को लगा ह रहने द । २. बारहसींगा क ग ं ृ भ म आक के दध ू क भावना दे कर बनाई हुई मा ा एक र ी से दो र ी तक मुन का म दे व अथवा अदरक वा पान का रस वा शहद के साथ दो तीन बार दे ने से िनमोिनया (कफ वर), पा शूला द समूल न हो जाते ह । नजला आधासीसी १. सफेद चावल, नीलाथोथा, कपूर - तीन दो-दो तोले, स ठ १ तोला सबको बार क पीसकर आक के दध ू क भावना दे कर सुखा ल । फर इस चूण को थोड़ा सा आग पर भूनकर पीस ल । इस चूण को थोड़ मा ा म बादाम रोगन, गोघृत वा बकर के दध ू म िमलाकर नाक म टपकाय । आधाशीशी, िसर दद, पुराना नजला आ द रोग दरू होते ह । २. अनार क छाल ४ तोले खूब मह न पीसकर आक के दध ू म िभगोकर आटे के समान गूंधकर रोट सी बना ल । म द आंच पर पका ल । फर इसे सुखाकर बार क पीस ल । ३ माशे जटामासी, ३ माशे छर ला, डे ढ़ माशा कायफल - इन सबका चूण बनाकर रख ल । इस औषध के सूंघने से स त छ ंक आकर नजला, जुकाम, मूछा, बेहोशी आ द रोग दरू होते ह ।

अश (बवासीर) १. - तीन बूद ं आक के दध ू को ई पर डालकर उस पर थोड़ा कुटा हुआ यव ार बुरककर उसे बताशे म रखकर िनगल जाय । इस योग से अश (बवासीर) बहुत शी न ट हो जाती है । २. - आधा पाव आक का दध ू खरल म डालकर इतना रगड़ क वह खरल म िचपक जाए । दस ू रे दन इसी कार आक का आधा पाव दध ू उसी खरल म पहले िचपके हुए दध ू पर डालकर इतना रगड़ क वह दध ू भी उसम िचपक जाये । इस कार आठ दन म १ सेर आक का दध खरल म डाल रगड़कर सु ख ा ल । फर इसको खुरचकर इसके दो भाग कर ल । ू िम ट के एक बड़े याले म नीचे इस आक के दध ू का एक भाग बछा दे व । उसके ऊपर एक तोला सुहागा रख द और उसके ऊपर दस ू रा भाग बछा इस औषध के ऊपर िम ट का एक छोटा याला जसके बीच म एक िछ हो, रख द । त प ात ् बड़े याले के ऊपर एक बड़ा याला रखकर कपड़िम ट कर द । फर इन याल के सूख जाने पर चू हे पर चढ़ाकर द पक के समान ह क अ न जलाय । जब ऊपर का याला गम होने लगे, उस पर चार तह करके व शीतल जल म िभगोकर रख दे व । चार हर क आंच होने के पीछे उतार कर सावधानी से खोल लेव । तीन याल म तीन कार क औषध ा त होगी । ऊपर वाले याले म इस का स व (जौहर) िमलेगा । बीच वीले याले म पीले रं ग क सलाख िमलगीं और तीसरे याले म औषध का बचा हुआ भाग िमलेगा । अनुभवी वै का कथन है क नीचे के याले वाली औषध आमवात (ग ठया) रोग के िलए एक र ी भ म ित दन बताशे म रख कर दे ने से तीन ह दन म ग ठया रोग म बहुत लाभ करती है । शेष दो याल क औषिधयां बवासीर के रोिगय के िलए बहुत लाभदायक ह । इनका सेवन इस कार से कर । पहले बीच के याले क औषध क मा ा १ र ी म खन म िमलाकर दो दन तक खलाव और खाने के िलए रोगी को केवल िम ी िमलाकर गोद ु ध ह दे व । दो दन के पीछे रोगी के पेट म पीड़ा होगी, इससे घबराव नह ं । तीसरे दन रोगी को बहुत ातःकाल ह ऊपर के याले वाला स व (जौहर) मा ा एक र ी म खन म िमलाकर खलाय और रोगी को िलटा द । एक हर के प चात ् कांच िनकल म से िगर जायगे । उ ह व छ (साफ) कपड़े से दरू कर दे ना चा हये । फर एक तोला फटकड़ का बार क चूण कपड़े पर रख कर कांच पर रख दे ना चा हये और लंग ोट बांध दे ना चा हये । रोगी को िम ी िमला गोद ु ध पलाकर दो घ टे दोन पैर पर बठा दे व, फर कोई सुपच नम भोजन दे व । रोगी दो-चार दन म ह इस कार इस क ट द रोग से छुटकारा पा जाता है ।

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प थर १. - आक के फूल को गाय के दध ू म पीसकर तीस दन ातःकाल ित दन लेने से जलन यु ।

प थर रोग न ट होता है

२. - छाया म सुखाये हुए आक के फूल, यव ार, कलमीशोरा और कुसुंभ बीज - इन सब औषध को समान भाग लेकर हर दब ू (घास) के रस म खरल कर । इस का तीन माशा चूण बकर के दध ू के साथ लेने से ब त और गुद क प थर तथा मू ावरोध (पेश ाब क कावट) दरू होती है । पुं

वश

१. - एक सेर गाय का घी कढ़ाई म डालकर उस म साफ कया हुआ एक आक का नया प ा डालकर जलाते जाय । जब सौ प े जल जाय तो उस घी को छानकर बोतल म भर द । इस घी म से २ तोला घी दध ू वा रोट के साथ सेवन करने से पुं व श बढ़ती है । यह घृत कफ के रोग और कृिमरोग का नाश करता है । २. ितला मािलश के िलये - आक के दध ू को १२ हर तक गाय के घी म खरल कर और १ र ी घी ितला के प म योग करने से बालकपन क मूखता से हुई नपुस ं कता दरू होगी । ३. - ग धक, ह राकसीस येक छः तोले, फटकड़ और िशंगरफ तीन-तीन तोले लेकर चूण कर ल और आक के डोड म से काले बीज िनकलवाकर उनका तैल िनकलवा ल । यह तैल यून से यून १ पाव हो । पहले उस चूण को गोघृत वा बादाम रोगन क १०० भावनाय दे व । फर इस पाव भर आक के तैल म इस चूण को खरल करके एक- दल कर ल और आक क ई क मोट -मोट ब यां बनाकर इस खरल क हुई औषध म तर कर दे व । फर इन ब य को लोहे क छड़ पर लटकाकर इनम आग लगा द और इनके नीचे चीनी िम ट का साफ पा रख द । इन ब य म से जो तैल टपके उसे इक ठा होने पर छानकर शीशी म रख । मा ा एक खस के दाने के समान । इस तैल को रोट के गास म िनगल ल । और रा को एक खस के समान रोट के गास म दाय जबड़े के नीचे रख । इस कार दस रा तक योग कर । इस के दस रा तक योग से बुढ़ापा न ट होकर जवानी आती है । पूण श दान करके युवा बनाता है । पृ ८६-९२ दाद खु ज ली पामा रोग आक के प का रस ४ सेर, पीली सरस का तैल आध सेर और ह द ५ तोला जल के साथ खूब बार क पीस चटनी सी बनाकर इसक लुगद वा गोला बनाकर इसम डाल दे व । म दा न म पकाय । जब रस जलकर तैल मा शेष रह जाय तो उसे उतार कर छान लेव । इस तैल म दस तोला मोम डालकर म दा न पर पकाय । जब मोम तैल म िमल जाये तो उतार ल । फर इसम ग धक, भुना हुआ सुहागा, सफेद क था, रे व द चीनी, कमीला, काली िमच, राल, मुदा संग, नीलाथोथा भुना हुआ, भुनी हुई फटकड़ - ये सब ढ़ाई-ढ़ाई तोले बार क पीस कपड़छान करके ऊपर वाले तैल म िमला दे व और इसम ४ तोले पारे ग धक क कजली भी िमला द और शीशी म भर ल । दाद चमदल (च बल) के िलये अमोघ औषध है । भयंकर से भयंकर दाद भी इससे शी समूल न ट हो जाते ह । िनराश रोिगय क यह आशा और सहारा है । दाद के अित र खाज व पामा रोग को दरू करती है । र

वकार, नासू र , कोढ़ आ द

आक के प का रस ९६ तोले, गाय का घी ८ तोले, सरस का तैल १६ तोले - इन तीन व तुओं को िमलाकर कली वाले पा म अ न पर चढ़ा दे व और धीमी आंच जलाव । जब केवल घी और तैल शेष रह जाये तो उसे उतारकर छान लेव । इसम आक के सूखे प का कपड़छान चूण ४ तोले, ग धक पारे क रगड़ हुई कजली १ तोला, िस दरू आधा तोला, हरताल आधा तोला, मैनिसल आधा तोला, ह द आधा तोला - इन सब व तुओं को कपड़छान करके ऊपर वाले तले घी म िमलाकर मरहम बनाय । इस मरहम के लगाने से पुराने घाव और नासूर जो कसी औषध से ठ क न होते ह , इससे ठ क हो जाते ह । नासू र , कं ठमाला, बवासीर आ द

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पीपल, ह द , शंख क भ म, स जी ार, क च के बीज, सधा लवण, िनगु ड के प े, चनगोट के बीज, केशर, आसव का कचरा, मूल ी, नीलाथोथा, नागकेशर, मुग क बींठ, धतूरे के बीज और अजवायन - इन सब व तुओं को समभाग लेकर कपड़छान कर ल और एक भावना गाय के दध ू क दे कर सुर त रख । इसके लेप करने से सव कार के पुराने ज म, नासूर, कंठमाला, बवासीर और न फटने वाली गांठ भी ठ क हो जाती ह । कु ठ रोग आक क जड़ क छाल ४ सेर एक िम ट के बतन म डाल द और एक पाव भर गेहंू क पोटली वेत व म बांधकर इस म डाल द और उस पा को ितहाई जल से भर दे व । इस पा का मुख कपरोट से बंद करके २१ दन तक घोड़े क लीद म गाड़ दे व । फर िनकाल ल । य द कुछ जल शेष हो तो आग पर रखकर जला ल और गेहूं क पोटली को िनकाल कर इनको रगड़ कर ६१ तोिलयां बनाय । एक-एक गोली ित दन जल से खा ल और केवल गेहंू क रोट और घी खाय, नमक भी छोड़ दे व तो कु रोग म लाभ होगा । अप मार (िमरगी) अप मार वा िमरगी के रोग म रोगी को दौरा पड़ने पर िशर म च कर सा आता है । आंख टे ढ कर लेता है , वह अचेत होकर भूिम पर िगरकर हाथ-पांव मारने लगता है । मुख म झाग आ जाते ह । कई बार तो रोगी क ज ा (जीभ) भी कट जाती है । कुछ समय के प ात ् वयं चेतना (होश) म आ जाता है । इसके रोगी क म त क क श न हो जाती है । १. - आक क जड़ का िछलका, बकर वा गाय के दध ू म पीसकर नाक म टपकाने से िमरगी का दौरा दरू हो जाता है । प य - प चग य घृत, महाचेतस घृत, ा

घृत आ द म से कसी एक का सेवन कराय, मृगी रोग समूल न ट होगा ।

२. - आठ-दस साल पुराना गोघृत एक तोला गम करके और इसम ६ माशे िम ी िमलाकर पलाने से उ माद तथा मृगी का रोग दरू होता है । ३. - य द मृगी का रोग पु ष को हो तो पु ष के िसर क खोपड़ क ह ड मशान से लाकर खूब बार क पीसकर इस म से १ र ी से दो र ी तक गाय क मलाई वा म खन म ित दन योग कराय । मृगी का रोग िन चय से समूल न ट हो जायेगा । रोगी को यह औषध बतानी नह ं चा हये, वह घृणा के कारण खायेगा नह ं । य द मृगी का रोग ी को हो तो उसे ी क खोपड़ क ह ड दे नी चा हये । य द इस औषध के योग से भी रोग न जाये तो कृ िम रोग समझकर वै को िच क सा नह ं करनी चा हये । ४. - काली गाय के गोमू क कुछ बूद ं रोगी के नाक म डाल । यह इस रोग क उ म औषध है । ५. - अ वग धा र ट, अ वग धा द चूण - इनका योग भी मृगी रोग को भगा दे ता है । आक के अित र जाए ।

कुछ औषध मृगी के रोगी के िलए इसीिलए िलख द क इस दःु खदायी रोग से रोगी को छुटकारा िमल

६. - आक के ताजे फूल और काली िमच समभाग लेकर पीसकर ढ़ाई-ढ़ाई र ी क गोिलयां बनाय और दन म एक-एक गोली ३-४ बार दे व । मृगी, ास, बाइ टे , िधर वकार और नायु-रोग (र चापा द) न हो जाते ह । ७. - जब चार घड़ दन शेष रहे , तब मृगी के रोगी के तलव पर दध ू लगाकर काली िमच का बार क चूण उस पर भुरभुरा द । फर पांव के तलवे पर आक का प ा बांधकर जुराब वा जूता पहन ल । चालीस दन तक बना पैर धोये इस कार करने से मृगी रोग का नाश हो जाता है । कुछ अनुभवी िच क सक का यह कथन है ।

सप वष क िच क सा १. - आक क जड़ का िछलका १ तोला ठं डाई के समान जल म घोटकर पलाने से सप वष उतर जाता है ।

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२. - आक क क पल तीन चबाकर खाने से सप वष दरू हो जाता है । ३. - शंख, अफ म, नीलाथोथा, कालपी, सफेद फटकड़ , शु कुचला, नौसादर, हु के का मैल - इन सब औषध को समभाग लेकर चूण कर ल । फर इस चूण को तीन भावनाय आक के दध ू क दे कर छाया म सुखाकर बार क पीसकर शीशी म सुर त रख । सप के काटे थान पर थोड़ा सा चीरा लगाकर एक र ी औषध उस पर रगड़ द । य द वष बढ़ चुका हो तो एक-दो र ी औषध जल म घोलकर पलाय जससे वमन होकर वष िनकल जायेगा । य द रोगी बेहोश हो तो थोड़ सी औषध कसी पोली (खोखली) नली ारा रोगी के नाक म फूंक । उससे छ ंक आकर होश आ जायेगा । वषैल े सप के काटने पर लाभ होगा । ४. - आक क जड़ और बाड़ (कपास) क जड़ दोन साथ साथ समान भाग लेकर पीस ल और थोड़ा जल िमलाकर पलाय । इससे सप वष म लाभ होता है । ५. - सप जस थान पर काटे उस थान पर पछने लगाकर आक का दध ू टपकाते रह, जब तक वष रहे गा, आक का दध ू साथ साथ सूखता रहे गा । जब दध ू सूखना बंद हो जाए तो समझ लो वष समा हो गया और दध ू टपकाना बंद कर द। ६. - गु कुल झ जर क बनी सपदं श ामृत औषध सदै व अपने पास रख । सांप के काटने पर उसका योग रोगी पर कर । अचूक औषध है । हजार रोिगय पर वह आजमाई हुई है । उसम नाकुली (अमृता बूट ) जसे महारा म नाय कहते ह, पड़ती है जो थावर और जंगम सभी वष क रामबाण औषध है ।

ब छू वष पर १. - ब छू के वष पर पहले गूगल क धूनी दे कर फर आक के प

को पीस कर लेप करने से पीड़ा और वष दरू होते ह ।

२. - ब छू का डं क िनकाल दे ना चा हये, फर उस पर आक का दध ू मसलना चा हये । इसके मसलने तथा लेप करने से लाभ होगा । य द ब छू का डं क न िनकले तो भी आक के लगाने से ब छू वष उतरकर पीड़ा दरू होती है । उस अव था म आक का दध ू कई बार शी -शी लगाना पड़ता है । ३. - अक ार - जहां ब छू ने काटा हो, उस थान पर थोड़ा नमक और थोड़ा पानी िमलाकर मलने से लाभ होता है । य द नमक और पारा आक के ार के साथ िमलाकर डं क थान पर मदन कर तो पीड़ा तुर त शा त होगी ।

पागल कु े के काटने पर आक क जड़ क छाल ३ तोले, धतूरे के प का चूण ४ माशे और िम ी ३ तोले - सबको जल के साथ घोटकर एक-एक र ी क गोली बना ल । रोगी को पहले अरं ड के तैल का जुलाब दे व । पांच वष क आयु तक एक-एक गोली, १० वष क आयु वाल को दो-दो गोली और १५ वष से अिधक आयु के रोगी को तीन-तीन गोली ातः-सायं दोन समय खला दे व और ऊपर से एक दो मु ठ भुने हुए चने खला द जससे उ ट न होकर औषध पच जाये । औषध लेने के तीन घ टे पीछे जल और भोजन लेना चा हये । इस कार इस औषध को ४० दन सेवन कराय । आठव दन बीच-बीच म अरं ड के तैल क जुलाब दे ते रह । भोजन म गेहंू चणे क रोट और घी का सेवन कराय । इससे जन को पागल कु े वा गीदड़ ने काटा हो तो पागलपन (हड़काव) होने का भय नह ं रहता । य द इन गोिलय के सेवन करने पर भी कसी को हड़काव (पागलपन) हो जाये तो आक के प का रस १ तोला, धतूरे का रस डे ढ़ माशा, ितल का तैल ढ़ाई तोले िमलाकर पला द । दस ू रे -तीसरे दन इस से आधी खुराक पलानी चा हये । इस से उ प न हुई यािध दरू हो जायेगी । अ य रोग पर यह औषध इसके अित र अनुवात, ताण, कफ, खांसी, वास, हचक , उपदं श , आतिशक, वचारोग, कोढ़, नहारवा रोग को भी उिचत अनुपात से सेवन करने पर अ छा लाभ करती है ।

आंख का फोला

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विच योग - जस रोगी को आंख म फोला हो, वह जस आंख म फोला हो उस से दस (कोख) म अंगूठे ू र ओर कु से आक का दध ातःकाल लगाकर मल । जैसे बा आंख म फोला हो तो दा कोख म पेट पर अंगूठे जतने थान पर ू अक दध ू लगाकर खूब मलना चा हये । एक स ताह के पीछे फर उसी कार पुनः उसी थान पर आक का दध ू ातःकाल लगकर लेप करके मल । जैसे र ववार को दध ू लगाया है तो अगले र ववार को फर लगाय । य द पहली बार लगाने से कुछ दन पीछे फोले वाली आंख लाल हो जाये तो समझो औषध का भाव हो गया, फोला अव य कटे गा । फर एक र ववार छोड़कर आक का दध ू लगाय । इस कार तीन-चार बार अक द ु ध कोख म लगाना चा हये । यह अव य यानपूवक कर क य द दांई आंख म फोला हो तो बा कोख पर और बा आंख म फोला हो तो दा कोख पर आक का दध ू लगाकर मल । बीच-बीच म एक स ताह क अपे ा १५ दन म लगाय । फोला अव य कट जायेगा । ी माननीय र निसंह जी गा जयाबाद के ाता इस िच क सा को बहुत वष से करते आ रहे ह । बहुत से रोिगय को लाभ हुआ है । वे र ववार को ह ातःकाल आक का दध ू लगाते ह । बहुत रोगी उनके पास लाभ उठा चुके ह ।

•••• इित ••••

Digital text of the printed book prepared by - Dayanand Deswal दयान द दे सवाल

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